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उपभोक्तावाद की संस्कृति
उपभोक्तावाद की संस्कृति
लेखक परिचय
शयामचरण दु बे
इनका जन्म सन 1922 में मध्य प्रदे श के बुंदेलखंड क्षेत्र में हुआ। उन्ोंने नागपुर तवश्वतवधालय से से मानव तवज्ञान में पीएचडी
की। वे भारि के अग्रणी समाज वैज्ञातनक रहे हैं । इनका दे हां ि सन 1996 में हुआ।
हमारी परम्पराओं का अवमूल्यन हुआ है , आिाओं का क्षरण हुआ है । हमारी मानतसकिा में तगरावट आ रही है । हमारी तसतमि
संसाधनों का घोर अप्व्व्यय हो रहा है । आलू तचप्स और तपज़्जा खाकर कोई भला स्वि कैसे रह सकिा है ? सामातजक सरोकार में
कमी आ रही है । व्यक्तक्तगि केन्द्रिा बढ़ रही है और स्वाथण परमाथण पर हावी हो रहा है । गां धीजी के अनुसार हमें अपने आदशों
पर तटके रहिे हुए स्वि बदलावों को अपनाना है । उपभोक्ता संस्कृति भतवष्य के तलए एक बडा खिरा सातबि होने वाली है ।
प्रश्न अभ्यास
उत्ति : लेखक के अनुसार उपभोग का भोग करना ही सुख है। अथाणि् जीवन को सुखी बनाने वाले उत्पाद का
ज़रूरि के अनुसार भोग करना ही जीवन का सुख है।
उत्ति : आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दै तनक जीवन को पूरी िरह प्रभातवि कर रही है। इसके कारण
हमारी सामातजक नींव खिरे में है। मनुष्य की इच्छाएाँ बढ़िी जा रही है , मनुष्य आत्मकेंतिि होिा जा रहा है।
सामातजक दृतिकोण से यह एक बडा खिरा है।
उत्ति : गााँधी जी सामातजक मयाणदाओं और नैतिकिा के पक्षधर थें। गााँधी जी चाहिे थे तक लोग सदाचारी, संयमी
और नैतिक बनें, िातक लोगों में परस्पर प्रेम, भाईचारा और अन्य सामातजक सरोकार बढ़े । लेतकन उपभोक्तावादी
संस्कृति इन सबके तवपरीि चलिी है। वह भोग को बढ़ावा दे िी है तजसके कारण नैतिकिा िथा मयाणदा का ह्रास
होिा है। गााँधी जी चाहिे थें तक हम भारिीय अपनी बुतनयाद और अपनी संस्कृति पर कायम रहें। उपभोक्ता
संस्कृति से हमारी सांस्कृतिक अक्तििा का ह्रास हो रहा है। उपभोक्ता संस्कृति से प्रभातवि होकर मनुष्य स्वाथण-
केक्तन्द्रि होिा जा रहा है। भतवष्य के तलए यह एक बडी चुनौिी है, क्योंतक यह बदलाव हमें सामातजक पिन की ओर
अग्रसर कर रहा है।
उत्ति :
(क) उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव अत्यंि कतठन िथा सूक्ष्म हैं। इसके प्रभाव में आकर हमारा चररत्र बदलिा
जा रहा है। हम उत्पादों का उपभोग करिे-करिे न केवल उनके गुलाम होिे जा रहे हैं बक्ति अपने जीवन का लक्ष्य
को भी उपभोग करना मान बैठे हैं। सही बोला जाय िो - हम उत्पादों का उपभोग नहीं कर रहे हैं, बक्ति उत्पाद
हमारे जीवन का भोग कर रहे हैं।
(ख) सामातजक प्रतिष्ठा तवतभन्न प्रकार की होिी है तजनके कई रूप िो तबलकुल तवतचत्र हैं। हास्यास्पद का अथण है-
हाँसने योग्य। अपनी सामातजक प्रतिष्ठा को बढ़ाने के तलए ऐसे - ऐसे कायण और व्यविा करिे हैं तक अनायास हाँसी
र्ूट पडिी है। जैसे अमरीका में अपने अंतिम संस्कार और अंतिम तवश्राम-िल के तलए अच्छा प्रबंध करना ऐसी
झूठी प्रतिष्ठा है तजसे सुनकर हाँसी आिी है।
िचना औि अतभव्यक्तक्त
5. कोई वस्तु हमारे तलए उपयोगी हो या न हो, लेतकन टी.वी. पर तवज्ञापन दे ख कर हम उसे खरीदने के तलए अवश्य
लालातयि होिे हैं। क्यों ?
उत्ति : टी .वी .पर तदखाए जानेवाले तवज्ञापन बहुि सम्मोहक एवं प्रभावशाली होिे हैं। वे हमारी आाँ खों और कानों
को तवतभन्न दृश्यों और ध्वतनयों के सहारे प्रभातवि करिे हैं। वे हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्ामक आकर्णण पैदा
करिे हैं। 'खाए जाओ ','क्या करें ,कंटर ोल ही नहीं होिा','तदमाग की बत्ती जला दे िी है ' जैसे आकर्णण हमारी लार
टपका दे िे हैं। इसके प्रभाव में आनेवाला हर व्यक्तक्त इनके वश में हो जािा है। और इस िरह अनुपयोगी वस्तुएाँ भी
हमें ललातयि कर दे िी हैं।
6. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चातहए या उसका तवज्ञापन ? िकण दे कर
स्पि करें ।
उत्ति : वस्तुओं को खरीदने का एक ही आधार होना चातहए - वस्तु की गुणवत्ता। तवज्ञापन हमें गुणवत्ता वाली
वस्तुओं का पररचय करा सकिे हैं। अतधकिर तवज्ञापन हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्ामक आकर्णण पैदा करिे
हैं। वे आकर्णक दृश्य तदखाकर गुणहीन वस्तुओं का प्रचार करिे हैं।
7. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही "तदखावे की संस्कृति" पर तवचार व्यक्त कीतजए।
उत्ति : यह बाि तबिुल सच है की आज तदखावे की संस्कृति पनप रही है। आज लोग अपने को आधुतनक से
अत्याधुतनक और कुछ हटकर तदखाने के चक्कर में क़ीमिी से क़ीमिी सौंदयण-प्रसाधन, म्युतज़क-तसस्टम, मोबाईल
र्ोन, घडी और कपडे खरीदिे हैं। समाज में आजकल इन चीज़ों से लोगों की हैतसयि आाँ की जािी है। यहााँ िक तक
लोग मरने के बाद अपनी कब्र के तलए लाखों रूपए खचण करने लगे हैं िातक वे दु तनया में अपनी हैतसयि के तलए
पहचाने जा सकें। "तदखावे की संस्कृति" के बहुि से दु ष्पररणाम अब सामने आ रहे हैं। इससे हमारा चररत्र स्वि:
बदलिा जा रहा है। हमारी अपनी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएाँ , आिाएाँ घटिी जा रही है। हमारे सामातजक
सम्बन्ध संकुतचि होने लगा है। मन में अशांति एवं आक्रोश बढ़ रहे हैं। नैतिक मयाणदाएाँ घट रही हैं। व्यक्तक्तवाद,
स्वाथण, भोगवाद आतद कुप्रवृतत्तयााँ बढ़ रही हैं।
8. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति -ररवाजों और त्योहारों को तकस प्रकार प्रभातवि कर रही है ? अपने
अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद तलक्तखए ।
उत्ति : उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारे रीति-ररवाज़ और त्योहार भी बहुि हद िक प्रभातवि हुए हैं। आज त्योहार,
रीति-ररवाज़ का दायरा सीतमि होिा जा रहा। त्योहारों के नाम पर नए-नए तवज्ञापन भी बनाए जा रहे हैं ; जैसे-
त्योहारों के तलए खास घडी का तवज्ञापन तदखाया जा रहा है, तमठाई की जगह चॉकलेट ने ले ली है। आज रीति-
ररवाज़ का मिलब एक दू सरे से अच्छा लगना हो गया है। इस प्रतिस्पधाण में रीति-ररवाज़ों का सही अथण कहीं लुप्त हो
गया है।
भाषा अध्यन
9. धीरे -धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में बदल रहा है तक्रया है। यह तक्रया कैसे हो रही है - धीरे -धीरे । अिः यहााँ धीरे -धीरे तक्रया-तवशेर्ण है। जो
शब्द तक्रया तक तवशेर्िा बिािे हैं, तक्रया-तवशेर्ण कहलािे हैं। जहााँ वाक्य में हमें पिा चलिा है तक्रया कैसे, कब,
तकिनी और कहााँ हो रही है, वहााँ वह शब्द तक्रया-तवशेर्ण कहलािा है।
ऊपर तदए गए उदाहरण को ध्यान में रखिे हुए तक्रया-तवशेर्ण से युक्त पााँच वाक्य पाठ में से छााँटकर तलक्तखए।
उत्ति
1. धीरे -धीरे सब कुछ बदल रहा है । ('धीरे -धीरे ' रीतिवाचक तक्रया-तवशेर्ण) (सब-कुछ 'पररणामवाचक तक्रया-
तवशेर्ण')
2. आपको लुभाने तक जी-िोड कोतशश में तनरं िर लगी रहिी है । ('तनरं िर' रीतिवाचक तक्रया-तवशेर्ण)
3. सामंिी संस्कृति के ित् भारि में पहले भी रहे हैं । ('पहले' कालवाचक तक्रया-तवशेर्ण)
4. अमेररका में आज जो हो रहा है , कल वह भारि में भी आ सकिा है। (आज, कल कालवाचक तक्रया-तवशेर्ण)
5. हमारे सामातजक सरोकारों में कमी आ रही है। (पररमाणवाचक तक्रया-तवशेर्ण)
MCQ Test
Important Question
Notes
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