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Bhagvad Geeta - Day One
Bhagvad Geeta - Day One
जब मैंने पहली बार भगवद-गीता पढी, तो मुझे यह प्रतीत हुआ कि सभी अकभप्राय िेवल
बार-बार एि ही तथ्य िी पुनरावृकि हैं और अनुवाद मुझे कबल्कुल पसंद नहीं आएं गे। वास्तव
में, िई वर्षों ति मैं िभी भी दू सरे अध्याय से आगे नहीं जा सिी; जैसा कि िई भक्ों द्वारा
साझा किया गया अहसास है ।
भगवद-गीता िे बार-बार पढने िे बाद, मैंने दे खा कि िैसे श्रील प्रभुपाद ने प्रत्येि पाठ
िे कलए एि अकद्वतीय अकभप्राय प्रस्तुत किया , कजससे हम िृष्ण िे कनदे शों िी मनोदशा
और आत्मा िो समझ सिें।
इस खोज िे साथ मैंने गहन रुकच िे साथ भगवद-गीता िा अध्ययन िरना शुरू किया ।
पाठ्यक्रम के लिए एक संलिप्त गाइड
4. श्लोक
4.1 थीम्स
प्रत्येि श्लोिमें एि कवर्षय होता है जो अनुवाद िे आवश्यि कवर्षय िो प्रस्तुत िरता
है । इसमें महत्वपूर्ष कबंदुओं में अनुवाद िा कवश्लेर्षर् भी शाकमल हो सिता है ।
6. संिेप लवषय
अध्याय िे प्रमुख कवर्षयों िो आत्मसात िरने में सहायता िे कलए कवशेर्ष सारां श
प्रदान किए गए हैं। ये प्रमुख कवर्षय चचाष िे कलए महत्वपूर्ष कवर्षयों िो व्यक् िरते
हैं । उन्हें टे बल, आरे ख या कबंदीदार बक्से िे रूप में प्रस्तुत किया गया है
8. पाठ्यक्रम का प्रारूपण
पाठ्यक्रम िे दौरान, हमने महत्वपूर्ष कबंदुओं िो उजागर िरने िे कलए औपचाररि
परं परा िा उपयोग किया है । बोल्ड आमतौर पर शीर्षषिों और मुख्य कबंदुओं िे कलए
उपयोग किया जाता है । उप-कबंदुओं और महत्वपूर्ष शब्दों िे कलए रे खां कित िरना।
संस्कृत शब्दों िे कलए इटै कलि। और अनुवाद और उद्दे श्य से कनिाले गए कवकशष्ट
वाक्ां शों या शब्दों िो उजागर िरने िे कलए एिल और दोहरे उद्धरर्।
जैसा कि िृष्ण िी व्याख्या है कि अजुषन िो क्ों लडना चाकहए, िेवल एि सारां श था,
और चूंकि िृष्ण दोनों 'योग' िी मकहमा िरते हैं , इसकलए ज्ञान िी आध्याक्तत्मि उन्नकत
(2.45, 2.49 50), और िमष में इस्तेमाल किया जाने वाला इं टेलीजेंस, िमष (2.47 48, 2.50)
, अजुषन भ्रकमत हो जाता है और कचंतन िे जीवन िे कलए युद्ध िे मैदान िो त्याग िरने िे
कलए एि बहाने िे रूप में िृष्ण िे कनदे श िा उपयोग िरना चाहता है । इसकलए अजुषन
ने अध्याय तीन में भगवान िृष्ण से पूछते हैं कि वह क्ों युद्ध िो प्रोत्साकहत िर रहे हैं
अगर बुक्तद्धमिा िमष से बेहतर है ।
1.1 भगवद गीता का परिचय
भगवद-गीता या भगवान िा गीत महान िनुिषर अजुषन िो युद्ध िे मैदान में भगवान
िृष्ण द्वारा परम आध्याक्तत्मि मागषदशषन है , भगवद-गीता िो पां चवां वेद माना जाता
है । यह चार वेदों िा सार है जो ऋग्वेद, यजुर वेद, साम वेद और अथवषवेद हैं । वेद
ऐसे ग्रंथ हैं कजनमें प्राथषना, मंत्, अनुष्ठान और मानवता िे कलए बकलदान िी प्रकक्रयाएं
शाकमल हैं। वेदों िा मूल संदेश भगवद-गीता में बहुत व्यावहाररि रूप में कदया गया
है ।
िकलयुग में लोग अल्पायु होते हैं । संपूर्ष वैकदि साकहत्य िी समझ हाकसल िरना
किसी िे कलए भी असंभव है । लेकिन भगवद-गीता अपने जीवन िो पररपूर्ष िरने
िे तरीिे िे बारे में आिुकनि मनुष्य िो मागषदशषन दे सिती है क्ोंकि यह सभी
वैकदि साकहत्य िा सार है
िुछ सां साररि टीिािारों द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि िुरुक्षेत् शरीर है
और पां डव पााँ च इं कियााँ हैं , िृष्ण एि मुक् आत्मा हैं , और अजुषन एि मुक् आत्मा
िा प्रकतकनकित्व िरते हैं , आकद भारत में भगवद-गीता िे सैिडों भाष्य हैं , लेखिों
द्वारा व्याख्या िी गई है । िोई भक्तक् नहीं बक्तल्क िेवल मानकसि अटिलें हैं । किसी
भी व्यावहाररि प्रयोज्यता से रकहत, अटिलों से भरे ऐसे िमेंट िूल से ढिे पुराने
पुस्तिालयों में पडे हैं । श्री िृष्ण िे प्रकत जीवों िे कदल में सुप्त भक्तक् िो आह्वान
िरने िी ऐसी गलत व्याख्या में िोई सामथ्यष नहीं है । हालााँ कि, जब iskcon िे
संस्थापि आचायष श्रील प्रभुपाद द्वारा भगवद गीता िो प्रस्तुत किया गया, तो चार-
पााँ च वर्षों िे भीतर ही दु कनया भर में हजारों लोग िृष्ण िे प्रकत जागृत हो गए। दु कनया
भर में िरोडों लोगों ने अब िृष्ण िे नामों िा जाप िरना शुरू िर कदया है । यह
भगवद-गीता िो प्रस्तुत िरने िी शक्तक् है क्ोंकि यह उस उद्दे श्य िो बदले कबना
है कजसिे कलए मूल रूप से भगवान िृष्ण ने प्रस्तुत किया था।
c) भगवद-गीता का िक्ष्य
इस महान िायष िा लक्ष्य इसिे भीतर कनकहत है [BG 18.66]। वहााँ भगवान श्री िृष्ण
अजुषन िो आदे श दे रहे हैं कि वे अच्छे िाम और िाकमषि सूत्िार िे अन्य सभी
कनचले स्तरों िो पार िर लें और पूरी तरह से उनिे सामने समपषर् िर दें । भगवान्
अजुषन से वादा िरते हैं कि वह उनिी सभी पापपूर्ष प्रकतकक्रयाओं िो दमन िरिे
उन्हें इस संसार से जन्म और मृत्यु िे चक्र से उनिा उद्धार िर दें गे । यकद िोई
भगवद-गीता पढने िे बाद इस कनष्कर्षष और लक्ष्य पर नहीं आता है , तो एि
आवश्यि कबंदु िो भूल रहा है ।
भगवान ने भगवद-गीता में यह घोर्षर्ा िी है, अजुषन इसिो प्रमाकर्त िरते हैं ,
कवश्वरूप दशषन और उनिे मुंह में ब्रह्ां ड कदखाना उनिे वचषस्व िो साकबत िरता
है । भगवद गीता िो समझना तभी शुरू हो सिता है जब िोई सैद्धांकति रूप से
िृष्ण िो सवोच्च भगवान िे रूप में स्वीिार िरते हैं । िोई भगवद-गीता िा पठन-
पाठन और त्वररत ‘कटप्स’ पुस्ति िी तरह नहीं ले सिता है या कजस तरह से एि
हास्य उपन्यास पढे गा। भगवद् -गीता िो सावषभौकमि रूप से पढा और सराहा जाता
है और इसे बहुत मूल्यवान माना जाता है क्ोंकि यह भगवान िृष्ण द्वारा बोली गयी
है , क्ोंकि वे स्वयं भगवान हैं । भगवद-गीता ईश्वर िा गीत है , कजसे भगवान द्वारा
बोला गया है , कजसमें प्रत्येि मनुष्य िो परम मोक्ष िी प्राक्तप्त िे कलए मूल्यवान पाठ
हैं ।
COMMON THEME:
The very beginning of Bhagavad-gita, the first chapter, is more or less an
introduction to the rest of the book.
SECTION I (1.1 — 1.27)
INTRODUCTION
1. भगवान िी सुरक्षा - जो भक् भगवान िे समक्ष सुरक्षा िे कलए समपषर् िरते हैं , उन्हें
भौकति बािाओं िी परवाह किए कबना जीत िा आश्वासन कदया जाता है
2. भगवान एि अंतरं ग सेवि िे रूप में - भगवद गीता अपने भक्ों िे अंतरं ग सेवि
िे रूप में, भगवान िे सवोच्च व्यक्तक्त्व िृष्ण िा पररचय दे ते हैं । (जैसे अजुषन िे सारथी
िे रूप में)
पाठ 1.1
कवर्षय: िृतराष्टर ने संजय से पूछा कि
"मेरे पुत्ों और पां डु िे पुत्ों ने िुरुक्षेत् में तीथषस्थान (िमष-क्षत्) िे स्थान पर इिट्ठे होने
िे बाद, वे लडने िे इच्छु ि थे, उन्होंने क्ा किया?"
(a) भगवद-गीता पूर्ष आक्तस्ति कवज्ञान है - क्ोंकि स्वयं भगवन श्री िृष्ण ने व्यक्तक्गत
रूप से बोली है
(ख) भगवद गीता िा अध्ययन िैसे िरें - (श्रील प्रभुपाद गीता-महात्म्य पर आिाररत
है ):
• बारीिी से दे खना
• श्रीिृष्ण िे भक्ों िे सहयोग से
• व्यक्तक्गत रूप से प्रेररत व्याख्याओं िे कबना
• कशष्य उिराकििार िी पंक्तक् में
(ग) भगवद-गीता िी स्पष्ट समझ िा उदाहरर् - यह गीता में ही कदया गया है , कजस तरह
से कशक्षर् अजुषन द्वारा समझा जाता है , कजसने गीता िो सीिे भगवान से सुना
(घ) इस तरह िे अध्ययन िे लाभ - वैकदि ज्ञान और दु कनया िे सभी शास्त्रों िे सभी
अध्ययनों िो पार िरता है
(डं ) भगवद-गीता िा कवकशष्ट मानि - इसमें वह सब शाकमल है जो अन्य शास्त्रों में कनकहत
है , लेकिन यह भी जो िहीं और नहीं पाया जाना है
1. अपने पुत्ों िे कलए आं कशि - िृतराष्टर िेवल अपने पुत्ों िो 'िौरवों' िे रूप
में संदकभषत िरते हैं जो उनिे भतीजों, पां डवों िे संबंि में कवकशष्ट क्तस्थकत िा
प्रकतकनकित्व िरते हैं
2. कवकशष्ट शब्द 'िमष -क्षेत्' और 'िुरु -क्षेत्' िा उपयोग िरता है - उनिा महत्व
इस प्रिार है :
• िुरु -क्षेत् वैकदि युग िे प्राचीन िाल से तीथष यात्ा िा एि पकवत् स्थान है
• िुरु -क्षेत् एि पकवत् स्थान है और स्वगष िे लोगों िे कलए भी पूजा स्थल है
• स्वयं भगवन श्री िृष्ण व्यक्तक्गत रूप से पां डवों िी तरफ मौजूद है
• पां डव गुर्ी हैं - इसकलए पकवत् स्थान उन्हें प्रभाकवत िर सिता है
• िृतराष्टर युद्ध िे भाग्य पर पकवत् प्रभावों िे बारे में भयभीत हैं क्ोंकि:
▪ यह अपने ही बेटों िो समझौता िरने िे कलए प्रभाकवत िर सिता
है , या
▪ उन्होंने आशा व्यक् िी कि पकवत् प्रभाव िे तहत, रक्पात से बचने
िे कलए, पां डव अपने दावे िो त्याग सिते हैं
समानता: िान िा मैदान (क्षेत्) - अनावश्यि मातम, इसी तरह िुरु -क्षेत् िे िाकमषि
‘क्षेत्’में, िमष िे कपता श्रीिृष्ण िी उपक्तस्थकत में, िृतराष्टर और उनिे पुत् दु योिन जैसे
अवां कछत पौिों और दू सरों िो कमटा कदया जाएगा
“धृतिाष्र उवाच
धममिेत्रे कुरुिेत्रे समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्र्चैव लकमकुवमत सञ्जय || १ ||”
अनुवाद
िृतराष्टर ने िहा — हे संजय! िमषभूकम िुरुक्षेत् में युद्ध िी इच्छा से एित् हुए मेरे तथा पाण्डु िे पुत्ों ने
क्ा किया?
तात्पयम
तात्पयम : भगवद्गीता एि बहुपकठत आक्तस्ति कवज्ञान है जो गीता – महात्मय में सार रूप में कदया हुआ है।
इसमें यह उल्लेख है कि मनुष्य िो चाकहए कि वह श्रीिृष्ण िे भक् िी सहायता से संवीक्षर् िरते हुए
भगवद्गीता िा अध्ययन िरे और स्वाथष प्रेररत व्याख्याओं िे कबना उसे समझने िा प्रयास िरे । अजुषन ने
कजस प्रिार से साक्षात् भगवान् िृष्ण से गीता सुनी और उसिा उपदे श ग्रहर् किया, इस प्रिार िी स्पष्ट
अनुभूकत िा उदाहरर् भगवद्गीता में ही है । यकद उसी गुरु-परम्परा से, कनजी स्वाथष से प्रेररत हुए कबना,
किसी िो भगवद्गीता समझने िा सौभाग्य प्राप्त हो तो वह समस्त वैकदि ज्ञान तथा कवश्र्व िे समस्त शास्त्रों
िे अध्ययन िो पीछे छोड दे ता है । पाठि िो भगवद्गीता में न िेवल अन्य शास्त्रों िी सारी बातें कमलेंगी
अकपतु ऐसी बातें भी कमलेंगी जो अन्यत् िहीं उपलब्ध नहीं हैं । यही गीता िा कवकशष्ट मानदण्ड है । स्वयं
भगवान् श्रीिृष्ण द्वारा साक्षात् उच्चररत होने िे िारर् यह पूर्ष आक्तस्ति कवज्ञान है ।महाभारत में वकर्षत
िृतराष्टर तथा संजय िी वाताषएाँ इस महान दशषन िे मूल कसद्धान्त िा िायष िरती हैं । माना जाता है कि
इस दशषन िी प्रस्तुकत िुरुक्षेत् िे युद्धस्थल में हुई जो वैकदि युग से पकवत् तीथषस्थल रहा है । इसिा
प्रवचन भगवान् द्वारा मानव जाकत िे पथ-प्रदशषन हेतु तब किया गया जब वे इस लोि में स्वयं उपक्तस्थत
थे ।िमषक्षेत् शब्द साथषि है , क्ोंकि िुरुक्षेत् िे युद्धस्थल में अजुषन िे पक्ष में श्री भगवान् स्वयं उपक्तस्थत
थे । िौरवों िा कपता िृतराष्टर अपने पुत्ों िी कवजय िी सम्भावना िे कवर्षय में अत्यकिि संकदग्ध था ।
अतः इसी सन्दे ह िे िारर् उसने अपने सकचव से पूछा, ” उन्होंने क्ा किया ?” वह आश्र्वस्थ था कि
उसिे पुत् तथा उसिे छोटे भाई पाण्डु िे पुत् िुरुक्षेत् िी युद्ध भूकम में कनर्षयात्मि संग्राम िे कलए एित्
हुए हैं । कफर भी उसिी कजज्ञासा साथषि है । वह नहीं चाहता था िी भाइयों में िोई समझौता हो, अतः
वह युद्धभूकम में अपने पुत्ों िी कनयकत (भाग्य, भावी) िे कवर्षय में आश्र्वस्थ होना चाह रहा था । चूाँकि इस
युद्ध िो िुरुक्षेत् में लडा जाना था, कजसिा उल्लेख वेदों में स्वगष िे कनवाकसयों िे कलए भी तीथषस्थल िे
रूप में हुआ है अतः िृतराष्टर अत्यन्त भयभीत था कि इस पकवत् स्थल िा युद्ध िे पररर्ाम पर न जाने
िैसा प्रभाव पडे । उसे भली भााँकत ज्ञात था कि इसिा प्रभाव अजुषन तथा पाण्डु िे अन्य पुत्ों पर अत्यन्त
अनुिूल पडे गा क्ोंकि स्वभाव से वे सभी पुण्यात्मा थे । संजय श्री व्यास िा कशष्य था, अतः उनिी िृपा
से संजय िृतराष्टर ने उससे युद्धस्थल िी क्तस्थकत िे कवर्षय में पूछा ।
पाण्डव तथा िृतराष्टर िे पुत्, दोनों ही एि वंश से सम्बक्तित हैं , किन्तु यहााँ पर िृतराष्टर िे वाक् से उसिे
मनोभाव प्रिट होते हैं । उसने जान-बूझ िर अपने पुत्ों पर िृतराष्टर िे वाक् से उसिे मनोभाव प्रिट
होते हैं । उसने जान-बूझ िर अपने पुत्ों िो िुरु िहा और पाण्डु िे पुत्ों िो वंश िे उिराकििार से
कवलग िर कदया । इस तरह पाण्डु िे पुत्ों अथाषत् अपने भतीजों िे साथ िृतराष्टर िी कवकशष्ट मनःक्तस्थकत
समझी जा सिती है । कजस प्रिार िान िे खेत से अवां कछत पोिों िो उखाड कदया जाता है उसी प्रिार
इस िथा िे आरम्भ से ही ऐसी आशा िी जाती है कि जहााँ िमष िे कपता श्रीिृष्ण उपक्तस्थत हों वहााँ
िुरुक्षेत् रूपी खेत में दु योिन आकद िृतराष्टर िे पुत् रूपी अवांकछत पौिों िो समूल नष्ट िरिे युकिकष्ठर
आकद कनतान्त िाकमषि पुरुर्षों िी स्थापना िी जायेगी । यहााँ िमषक्षेत्े तथा िुरुक्षेत्े शब्दों िी, उनिी
एकतहाकसि तथा वैकदि महिा िे अकतररक्, यही साथषिता है ।