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Trinadapi Sunichena

Retreat
एल गीत
राजा ऐल ने कहा:हाय! मेरे मोह के व तार को तो दे खो! यह दे वी मेरा आ लंगन करती थी और मेर गदन
अपनी मु ठ म कये रहती थी। मेरा दय काम-वासना से इतना द ू षत था क मझ ु े इसका यान ह नह ं
रहा क मेरा जीवन कस तरह बीत रहा है ।
इस ी ने मझ ु े इतना ठगा क मै उदय होते अथवा अ त होते सय ू को भी दे ख सका। हाय! म इतने वष
से यथ ह अपने दन गँवाता रहा।
हाय! य य प मै शि तशाल स ाट तथा इस प ृ वी पर सम त राजाओं का मकुटम ण मन जाता हूँ,
क तु दे खो न! मोह ने मझ ु े ि य के हाथो का खलौना जैसा पशु बना दया है ।
य य प म चरु ऐ वय से यु त शि तशाल राजा था, क8 तु उस ी ने मझ ु े याग दया मानो म घास
क तु छ प ट होउँ । फर भी म, न न तथा ल जार हत पागल यि त क तरह च लाते हुए, उसका पीछा
करता रहा।
कहा है मेरा तथाक थत अ य धक भाव, बल तथा वा म व? िजस ी ने मझ ु े पहले ह छोड़ दया था
उसके पीछे म उसी तरह भगा जा रहा हूँ जैसे क गधा िजसके मँह ु पर उसक गधी दल ु ी झाड़ती है ।
ऊँची श ा या तप या तथा याग से या लाभ? इसी तरह धा मक शा का अ यन करने, एकांत
तथा मौन होकर रहने और फर ी वारा कसी का मन चरु ाये जाने से या लाभ?
ध कार हे मझ ु !े म इतना बड़ा मख ु हु क यह भी नह ं जाना क मेरे लए या अ छा है । य य प मझ ु े
वामी का उ च पद ा त हो गया, क तु म ि य से अपने को परा त करवता रहा मानो म कोई बैल या
गधा होऊँ।
य य प म उवशी के होठो के तथाक थत अमत ृ का सेवन वष कर चक ू ा था क तु मेर काम-वासनाएँ मेरे
दय म बार बार उठती रह और कभी भी बरु ाई नह ं जा सकती।
जो भौ तक अनभ ु ू त पर है और आ माराम मु नयो के वामी ह,उन भगवान के अ त र त म इस चेतना
को जो वै या के वारा चरु ाई जा चक ु है , भला और कौन बचा सकता है ।
चँ ू क मने अपनी बु ध को मंद बनने दया और चक ु म अपनी इि य को वश म नह ं कर सका,
इस लए मेरे मन का महँ मोह मटा नह ं य य प उवशी ने सु दर वचनो वारा मझ ु े अ छ सलाह द थी।
भला म अपने क ट के लए उसे कैसे दोष दे सकता हूँ जब क म वयं m को जनता है , उसे कभी भी
ि य या ि य म ल त रहने वाले पु षो क संगती नह ं करनी चा हए। आ खर, इि य का उनके वषय
से संपक अ नवाय प से मन को चलायमान करता है ।
चँ ू क मन ऐसी वा तु से ु ध नह ं होता जो न तो दखाई गई हो, न सन ु ी गई हो, इस लए ऐसे यि त का
मन, जो अपनी इि य को रोकता है , वतः अपने भौ तक कम से रोक दया जायेगा और शांत हो जायेगा ।
इस लये मनु य को चा हए क वह अपनी इि य को ि य क या ि य के त आस त पु ष क
खल ु कर संग त न करने दे । यहाँ तक क जो अ य धक व वान ह वे मन के छह श ओ ु ं पर व वास नह ं
कर सकते, तो फर मझ ु जैसे मख ु यि तयो के बारे म या कहा जाय?
भगवान ने कहा: इस कार यह गीत गाकर दे वताओ तथा मनु यो म व यात महाराज पु रवा ने वह पद
याग दया िजसे उसने उवशी लोक म ा त कर लया था। द या ान म उसका मोह हट गया; उसने अपने
दय म मझ ु े परमा मा प म समझ लया िजससे अंत म उसे शां त मल ग ।
इस लए बु धमान मनु य को सार कुसंग त याग दे नी चा हए और संत भ त क संगती हण करनी
चा हए िजनके श द से मन का अ त-अनरु ाग समा त हो जाता है ।
मेरे भ त अपने मन को मझ ु पर ि थर करते और कसी भी भौ तक वा तु पर नभर नह ं रहते। वे सदै व
शा त, सम ट से यु त तथा मम व, अहं कार, व व तथा लोभ से र हत होते है ।
हे महाभागा उ धव ! ऐसे संत भ त क संग त म सदा मेर चचा चलती रहती है और जो लोग मेर
म हमा के इस क तन तथा वण म भाग लेते है , वे नि चत प से सारे पापो से शु ध हो जाते ह।
जो यि त मेर इन कथाओ को सन ु ता है , क तन करता हे और आदरपव ू क आ मसात करता है , वह
धा पव ू क मेरे परायण हो जाता है और इस तरह मेर भि त ा त करता है ।
पण ू भ त के लए मझ ु पर म क भि त ा त कर लेने के बाद, करने के लए बचता ह या है ?
पर म के गुण असं य है और म सा ात ् आनंदमय अनभ ु व हूँ।
जो यि त य -अि न के पास पहुच चक ू ा हो, उसके लए िजस तरह शीत,भय तथा अहं कार दरू हो जाता
है , उसी तरह जो यि त भगवन के भ त क सेवा म लगा रहता है उसका आल य, भय तथा अ ान दरू हो
जाता है ।
भगवन के भ त, जो क परम ान को शांत भाव से ा त है उन लोग के लए चरम शरण है जो भौ तक
जीवन के भयावने सागर म बार बार डूबता तथा उठते है । ऐसे भ त उस मजबत ू नाव के स श ् होते है तो
डूब रहे यि त क र ा करती है ।
िजस तरह सम त ा णय के लए भोजन ह जीवन है , िजस तरह म द ु खयार का परम आ य हूँ तथा
िजस तरह इस लोक से मरकर जाने वालो के लए धम ह संप है , उसी तरह मेरे भ त उन लोगो के एक
मा आ य हे जो जीवन क दख ु मय अव था म पड़ने से डरते रहते है ।
मेरे भ त गण दै वी आँख दान करते है जब क सय ू केवल बा य ि ट दान करता है और वह भी तब
जब वह आकाश म उदय हुआ रहता हे । मेरे भ त गण ह मनु य के पू य दे व तथा असल प रवार है : वे
वयं ह आ मा है और वे मझु से अ भ न है ।
इस तरह उवशी के लोक म रहने क अपनी इ छा याग कर महाराज पु रवा सम त भौ तक संगती से
मु त होकर तथा अपने भीतर परू तारत तु ट होकर प ृ वी पर वचरण करने लगे।
कबूतर
पिंगला 
परु ं जन
मह ष नारद ने कहा: हे राजन, अनेक कार से अपने प त को मो हत करके अपने वश म
करती हुई रजा परु ं जन क प नी उसे सारा आनंद दान करने लगी और उसके साथ वषयी
जीवन यतीत करने लगी|

रानी ने नान कया और सभ ु व ो तथा आभष ू ण से अपने आप को सस


ु ि जत कया| भोजन
करने तथा परम संतु ट होने के बाद वह रजा के पास आई| उस अ यंत ससु ि जत तथा आकषक
मखु वाल को दे खकर रजा ने उसका त मयता अ भन दन कया|

रानी परु ं जनी ने रजा का आ लंगन कया और रजा ने भी उसे बाँह म भर लया| इस कार
एकांत म वे वनोद करते रहे और रजा परु ं जन अपनी ी पर इतना मो हत रहने लगा क उसे
अ छे बरु े का वचार न रहा| वह भल ू गया क रात तथा दन बीतने का अथ हे यथ ह आयु
का घटते जाना|

इस कार अ यंत मोह त होने से मन वी होते हुए भी रजा परु ं जन अपनी प नी क भज


ु ाओ
के त कये पर अपना सर रखे सदै व लेटा रहता था| इस कार वह उस रमणी को ह अपने
जीवन का सव व मानने लगा| अ ान के आवरण से ढके होने के कारण उसे आ मशा ा कर का
वयं का तथा भगवन का कोई ान न रहा|

हे रजा ाचीनब हशत, इस कार रजा परु ं जन काम तथा पापमय कमफलो से पू रत दय से
अपनी प नी के साथ भोग वलास करने लगा और इस तरह आधे ह ण म उनका नव
जीवन तथा यवु ाव था बीत गयी|

तब नारद मु न ने रजा ाचीनब हषत को स भो दत करते हुए कहा: हे वरा, इस कार राजा
परु ं जन ने अपनी प नी परु ं जनी के गभ से १,१०० पु उ प न हुए| क तु इस काय म उसका
आधा जीवन यतीत हो गया|

हे जाप त रजा ाचीनब हशत, इस तरह रजा परु ं जन के ११० क याएँ भी उ प न हु | ये सब


क सब अपने पता तथा माता के समान यश वी थी; उनका आचरण भ था, ये उदार थी और
अ य उ म गणु से यु त थीं|

त प चात पंचाल दे श के राजा परु ं जन ने अपने पैतक


ृ कुल क व ृ ध के लए अपने पु का
ववाह यो य वधु के साथ और अपनी क याओ का ववाह यो य वर के साथ कर दया\

इन अनेक पु म से येक के कई सौ पु उ प न हुए| इस कार राजा परु ं जन ने पत


ू तथा
पौ से सारा पंचाल दे श भर दया|

ये पु तथा पौ एक कार से परु ं जन के घर, खजाना, नौकर, स चव एवं दस ु रे सारे साज-


सामान समेत सार धन-स पदा को लट ू ने वाले थे तथा अ य साज सामान सार धन-स पदा
को लटू ने वाले थे| रजा परु ं जन का इन व तओ ु से गाढ़ स ब ध था|
नारद मनी ने आगे कहा: हे राजा ाचीनब हशत, तु हार ह तरह राजा परु ं जन भी अनेक
इ छाओ म उलझा हुआ| इस लए उसने दे वताओ, पतरो तथा सामािजक नेताओ क पज ू ा व वध
य ो वारा क , क तु ये सारे य नश ृ ंस थे, यक
ु उनके पीछे पशओ
ु के वध क कामना काम
कर रह थी|

इस कार राजा परु ं जन कमका ड म तथा अपने प रवार के त अनरु त रहकर और द ू षत


चेतना होने से अंततः ऐसे बंद ु पर पहुँच गया िजसे भौ तक व तओ
ु म अनरु त लोग बलकुल
नह ं चाहते|

जब इस कार वह नगर सै नको तथा कालक या के वारा वपदा त हो गई तो अपने प रवार


क ममता म ल त राजा परु ं जन यवनराज तथा काल-क या के आ मण से संकट ने पड़ गया|

काल-क या वारा आ लंगन कये जाने से धीरे धीरे राजा परु ं जन का सारा शार रक स दय जाता
रहा| अ य धक वषयास त होने से उसक बु ध ट हो गयी और उसका सारा ऐ वय न ट हो
गया| सभी कुछ खो जाने पर ग धव तथा यवन ने उसे बलपव ू क जीत लया |

तब राजा परु ं जन ने दे खा क उसक नगर अ त य त हो गयी और उसके पु , पौ , नौकर


तथा मं ी सभी मशः उसके वरोधी बनाते जा रहे है | उसने यह भी दे खा क उसक प नी
नेहशु य एवं अ यमन क हो गयी |

जब राजा परु ं जन ने दे खा क उसके प रवार के सम त ाणी, उसके संबंधी, अनच


ु र, दास, मं ी
तथा अ य सभी उसके व ध हो गए, तो वह अ यंत चि तत हुआ | क तु उसे इस ि थ त से
छूटने का कोई उपाय नह ं दखाई दया, य क वहा काल क या वारा बरु तरह परा त कर
दया गया था |

काल क या के भाव से वस भोग क सार व तए ु बासी पड़ गयी थीं | अपनी कामे छाओ के
बने रहने के कारण राजा परु ं जन अ यंत द न बन चकू ा था | उसे अपने जीवन ल य का भी पता
न था | वहा अब भी अपनी प नी तथा ब चो के त अ यंत आस त था और उसके पालन के
स ब ध म चं तत था |

राजा परु ं जन क नगर ग धव तथा यवन सै नक वारा जीत ल गई और य य प राजा इस


नगर को यागना नह चाहता था, क तु प रि थ तवश उसे ऐसा करना पड़ा, य क काल
क या ने उसे कुचल दया था |

ऐसी दशा म यवन राज के बड़े भाई वार ने अपने छोटे भाई भय को स न करने के लए
नगर म आग लगा द |

जब सार नगर जलने लगी तो सारे नाग रक तथा रजा के नौकर उसके प रवार के सद य, पु ,
पौ , पि नया तथा अ य संबंधी अि न क चपेट म आ गये| इस कार रजा परु ं जन अ यंत दख
ु ी
हो गया|
जब नगर क रखवाल करने वाले सप ने दे खा क नाग रको पर काल क या का आ मण हो
रहा है , तो वह यह दे खकर अ यंत संता य हुआ क यवन ने आ मण करके उसके घर म आग
लगा द है |

िजस कार जंगल म आग लगने पर व ृ के कोटर म रहने वाला सप उस व ृ को छोड़ना


चाहता है , उसी नगर कार वह नगर अधी क सप भी अि न म चंड ताप के कारण नगर
छोड़ने के लए इ छुक हो उठा|

तब राजा परु ं जन अपनी पु य , पु ो, पु , पु वधओ


ु ,ं जामाता, नौकर तथा अ य पाषद के साथ
साथ अपने घर, घर के सारे साज-सामन तथा जो कुछ भी सि जत धन थ, उन सबके वषय म
सोचने लगा|

राजा परु ं जन अपने प रवार के त तथा “मै” और “मेरे” वचार म अ य धक आस त था|


य क वह अपनी प नी के त अ य धक मो हत था, इस लए वह पहले से दन बन चक ू ा था|
वयोग के समय वह अ यंत दख ु ी हो गय|

राजा परु ं जन अ यंत चि ततं होकर सोचने लगा, “हाय! मेर प नी इतने सारे ब चो से परे शन
होगी| जब मै यह शार र छोड़ दँ गू ा तो यह कस कार प रवार के इन सभी सद य का पालन
करे गी? हाय! वह प रवार पालन के वचार से अ य धक क ट पाएगी|”

राजा परु ं जन अपनी प नी के साथ अपने परु ाने यवहार को सोचने लगा| उसे याद आया
कसक उसक पोअट प नी तब तक भोजन नह ं करती थी, जब वह वयं खा नह ं चक ु ता था;
वह तब तक नहाती थी जब तक वह नहा नह ं लेता था और वह उस पर सदा इतनी अनरु त
थी क य द वह कभी झड़क दे ता था और उस पर नाराज़ हो जाता था, तो वह मौन रहकर
उसके द ु यवहार को सह लेती थी|

राजा परु ं जन सोचता रहा क उसके मोह त होने पर कस तरह उसक प नी उसे अ छ
सलाह दे ती थी और उसके घर से बहार चले जाने पर वह कतनी दख
ु ी हो जाती थी| य य प वह
अनेक पु एवं वीर क माता थी तो भी राजा को डर था क वह गह ृ थी का भर नह ं ढो
सकेगी|

राजा परु ं जन आगे भी चं तत रहने लगा: “जब म इस संसार से चला जाऊंगा तो मेरे ऊपर पण

तरह आ त पु तथा पु या कस कार अपना जीव म नवाह करगी? उनक ि थ त जहाज म
चढ़े हुए उन या य के समान है िजनका जहाज सागर के बच म ह टूट जाता ह|

य य प राजा परु ं जन को अपनी प नी तथा ब चो के भा य के वषय म प चाताप नह ं करना


चा हए था फर भी उसने अपनी दन बु ध के कारण ऐसा कया| उसे समय, भय नामक
यवनराज उसे बंद करने के लए तरु ं त नकट आ धमका|

जब यवनगण राजा परु ं जन को पशु क भाती बांधकर उसे अपने थान को ले जाने लगे तो
राजा के अनच
ु र अ यंत शोकाकुल हो उठे | उ ह भी वलाप करते हुए राजा के साथ साथ जाना
पड़ा|
वह सप भी, िजसे यवनराज के सै नक ने बंधी बनाकर पहले ह नगर के बहार कर दया था,
अ य के साथ साथ अपने वामी के पीछे पीछे चल पड़ा| य ह इन सबो ने नगर को छोड़
दया य ह वह नगर तहस नहस ( व त) होकर धल ु म मील गयी|

जब राजा परु ं जन शि तशाल यवन वारा बलपव


ू क घसीटा जा रहा था, तब भी अपनीं नर
मख
ु ता के कारण वह अपने म तथा हतैषी परमा मा का मरण नह ं कर सका|

उस घोर नदयी राजा परु ं जन ने व वध य म अनेक पशय


ु का वध कया था| अब वे सारे
पशु इस अवसर का लाभ उठाकर उसे अपने सींगो से बेधने लगे| ऐसा तीत हो रहा था मानो
उसे फरस से टुकड़े-टुकड़े करके काटा जा रहा है |

ि य क द ू षत संगती के कारण िजव प राजा परु ं जन नरं तर संसार के सम त क ट को


सहता है और अनेकानेक वष तक सम त कार क म ृ त से शु य होकर भौ तक जीवन के
अ धकार े म पड़ा रहता है |

य क राजा परु ं जन ने अपनी प नी का मरण करते हुए अपने शार र का याग कया था,
अतः वह अगले ज म म अ छे कुल क एक अ यंत सु दर ी बनी| उसने राजा वदभ के घर
म राजा क क या प म अगला ज म लया|
अजामिल
जब शु ाचाय ने दे वयानी का यया त से ववाह कया, तो उसने श म ठा को उसके साथ जाने को कहा, ले कन
उ ह ने राजा को चेतावनी द , "मेरे य राजा, इस लड़क श म ठा को कभी भी अपने ब तर पर अपने साथ नह ं
रहने द।" हे राजा पर त, दे वयानी को एक अ छे पु के साथ दे खकर, श म ठा ने एक बार गभाधान के लए
उ चत समय पर राजा यया त के पास पहुँचाया। एकांत थान पर, उ ह ने अपनी म दे वयानी के प त राजा से
अनरु ोध कया क वह उसे भी एक पु के लए स म करे । जब राजकुमार श म ठा ने राजा यया त से पु के लए
वनती क , तो राजा नि चत प से धम के स धांत से अवगत था, और इस लए वह उसक इ छा को परू ा करने
के लए सहमत हो गया। य य प उ ह शु ाचाय क चेतावनी याद थी, उ ह ने इस मलन को सव च क इ छा के
प म सोचा, और इस कार उ ह ने श म ठा के साथ यौन संबध ं बनाए। दे वयानी ने यद ु और तव
ु सु को ज म दया
और श म ठा ने ह ु ु , अनु और पु को ज म दया। जब अ भमानी दे वयानी को बाहर ोत से पता चला क
श म ठा उसके प त से गभवती है , तो वह ोध से पागल हो गई। इस कार वह अपने पता के घर चल गई। राजा
यया त, जो बहुत कामो ेजक थे, ने अपनी प नी का पीछा कया, उसे पकड़ लया और उसे स न करने के लए
मनभावन श द बोलकर और उसके पैर क मा लश करने क को शश क , ले कन वह उसे कसी भी तरह से संतु ट
नह ं कर सका। शु ाचाय अ यंत ो धत थे।

उ ह ने कहा, "हे अस य मख ू , म हलाओं क लालसा! तमु ने बहुत बड़ा गलत कया है ।" "इस लए म आपको शाप
दे ता हूं क आप पर बढ़
ु ापे और अश तता वारा हमला कया जाएगा और वकृत कया जाएगा।"

राजा यया त ने कहा, "हे व वान, पू य ा मण, मने अभी तक आपक बेट के साथ अपनी कामक ु इ छाओं को
परू ा नह ं कया है ।" शु ाचाय ने तब उ र दया, "आप अपने बढ़ ु ापे का आदान- दान कसी ऐसे यि त से कर
सकते ह जो अपनी यव ु ाव था को आपको ह तां त रत करने क े लए सहमत होगा।" जब यया त को शु ाचाय से
यह वरदान ा त हुआ, तो उ ह ने अपने सबसे बड़े पु से अनरु ोध कया: मेरे यारे पु यद,ु कृपया मेरे बढ़ ु ापे और
अश तता के बदले मझ ु े अपनी जवानी दे दो। मेरे यारे बेटे, म अभी तक अपनी यौन इ छाओं से संतु ट नह ं हूँ।
ले कन य द आप मझ ु पर दया करते ह, तो आप अपने नाना वारा दया गया बढ़ ु ापा ले सकते ह, और म आपक
यव ु ाव था ले सकता ह ू ं ता क म क ु छ और वष क े लए जीवन का आनं द उठा सकंू ।

यद ु ने उ र दया: मेरे य पता, आप पहले ह बढ़ ु ापा ा त कर चकु े ह, हालाँ क आप भी एक यव ु ा यि त थे।


ले कन म आपके बढ़ ु ापे और अश तता का वागत नह ं करता, य क जब तक कोई भौ तक सख ु का आनंद नह ं
लेता, तब तक वह याग को ा त नह ं कर सकता। हे महाराज पर त, यया त ने इसी कार अपने पु तव ु स,ु

ु ु और अनु से अनरु ोध कया क वे अपनी यवु ाव था को व ृ धाव था के लए बदल द, ले कन य क वे धा मक
स धांत से अनजान थे, उ ह ने सोचा क उनक टम टमाती हुई यव ु ाव था शा वत है , और इस लए उ ह ने
अपने पता के जीवन को परू ा करने से इनकार कर दया। गण। राजा यया त ने तब पु से अनरु ोध कया, जो इन
तीन भाइय से छोटा था ले कन अ धक यो य था, "मेरे यारे बेटे, अपने बड़े भाइय क तरह अव ाकार मत बनो,
य क यह तु हारा कत य नह ं है ।"

पु ने उ र दया: हे महाम हम, इस द ु नया म कौन अपने पता को अपना कज चक ु ा सकता है ? पता क कृपा से
मनु य को जीवन का मानव प ा त होता है , िजससे वह परमे वर का सहयोगी बन सकता है । एक पु जो अपने
पता क इ छा के अनस ु ार काय करता है वह थम ेणी है , जो अपने पता के आदे श पर काय करता है वह
वतीय ेणी है , और जो अपने पता के आदे श को अप रवतनीय प से न पा दत करता है वह तीसरा वग है ।
पर तु जो पु अपने पता क आ ा को ठुकराता है , वह अपने पता के मल के समान है ।

शक
ु दे व गो वामी ने कहा: इस तरह, हे महाराज पर त, पु नाम का पु अपने पता यया त क व ृ धाव था को
वीकार करके बहुत स न हुआ, िजसने अपने पु क यव ु ाव था को ले लया और इस भौ तक द ु नया का आनंद
लया। त प चात, राजा यया त सात वीप से मलकर परू े व व के शासक बन गए, और नाग रक पर एक पता
क तरह शासन कया। य क उसने अपने पु क जवानी ले ल थी, उसक इं याँ नबल थीं, और उसने िजतना
चाहा उतना भौ तक सख ु भोगा। एकांत थान म, अपने मन, वचन, शर र और व भ न साम य को शा मल
करते हुए, महाराज यया त क य प नी, दे वयानी, हमेशा अपने प त को सबसे बड़ा पारलौ कक आनंद दे ती थी।
राजा यया त ने व भ न य का दशन कया, िजसम उ ह ने सव च भगवान, ह र को संतु ट करने के लए
ा मण को चरु मा ा म उपहार दए, जो सभी दे वताओं के जलाशय और सभी वै दक ान के उ दे य ह। परम
भगवान, वासद ु े व, िज ह ने मांडीय अ भ यि त का नमाण कया, वयं को सव यापी के प म द शत करते
ह, जैसे आकाश बादल को धारण करता है । और जब सिृ ट का नाश हो जाता है , तो सब कुछ सव च भगवान,
व णु म वेश करता है , और क म अब कट नह ं होती ह। भौ तक इ छाओं के बना, महाराज यया त ने सव च
भगवान क पज ू ा क , जो हर कसी के दल म नारायण के प म ि थत ह और भौ तक आंख के लए अ य ह,
हालां क हर जगह मौजद ू ह। य य प महाराज यया त परू े व व के राजा थे और उ ह ने एक हजार वष तक भौ तक
संप का आनंद लेने के लए अपने मन और पांच इं य को लगाया, ले कन वे संतु ट नह ं हो पाए।

शकु दे व गो वामी ने कहा: हे महाराज पर त, यया त को ी से बहुत लगाव था। समय के साथ, हालां क, यौन
आनंद और इसके बरु े भाव से घण ृ ा होने पर, उ ह ने इस तरह क जीवन शैल को याग दया और अपनी यार
प नी को न न ल खत कहानी सन ु ाई। मेर यार प नी, शु ाचाय क बेट , इस द ु नया म ब कुल मेरे जैसा कोई
था। कृपया सन ु य क म उनक े जीवन का इ तहास बताता हूं। ऐसे गह
ृ थ जीवन के बारे म सन ु कर जो लोग
गह ृ थ जीवन से सं यास ले चक ु े होते ह, वे हमेशा वलाप करते ह। जंगल म भटकते हुए, अपनी इं य को संतु ट
करने के लए भोजन करते हुए, संयोग से एक बकरा एक कुएं के पास पहुंचा, िजसम उसने दे खा क एक बकर
असहाय प से खड़ी है , जो क फलदायी ग त व धय के प रणाम के भाव से उसम गर गई है । बकरे को कुएँ से
कैसे नकाला जाए, इसक योजना बनाने के बाद, लालची बकर ने अपने सींग क नोक से कुएँ के कनारे पर प ृ वी
को इस तरह खोदा क वह बहुत आसानी से बाहर आ सके। जब वह बकर , िजसके कू हे बहुत अ छे थे, कुएँ से
बाहर नकल और बहुत सु दर बकर को दे खा, तो उसने उसे अपने प त के प म वीकार करने क इ छा क ।
जब उसने ऐसा कया, तो कई अ य बक रय ने भी उसे अपने प त के प म चाहा य क उसक शार रक संरचना
और अ छ मछ ंू और दाढ़ थी और वह वीय नवहन और संभोग क कला म मा हर था। अत: िजस कार भत ू
वारा ेतवा धत यि त पागलपन का दशन करता है , उसी कार वह-बक रय म से सव े ठ, कई बक रय से
आक षत होकर, कामक ु ग त व धय म लगा हुआ है और वाभा वक प से आ म-सा ा कार के अपने वा त वक
यवसाय को भल ू गया है । जब कुएं म गर बकर ने अपनी यार बकर को दस ू र बकर के साथ यौन संबधं म
ल त दे खा, तो वह बकर क ग त व धय को बदा त नह ं कर सक । दस ू रे के साथ अपने प त के यवहार से
य थत, बकर ने सोचा क वह-बकर वा तव म उसका दो त नह ं था, बि क कठोर दल था और कुछ समय के
लए ह उसका दो त था। इस लए, य क उसका प त कामक ु था, उसने उसे छोड़ दया और अपने पव ू अनरु क
के पास लौट आई।

बहुत पछताते हुए, वह-बकर , जो अपनी प नी के अधीन था, सड़क पर बकर का पीछा कया और उसक चापलस ू ी
करने क परू को शश क , ले कन वह उसे शांत नह ं कर सका। वह बकर एक ा मण के घर गई, जो एक और
बकर का पालन-पोषण करने वाला था, और उस ा मण ने गु से म बकर के लटकते हुए अंडकोष को काट दया।
ले कन बकर के अनरु ोध पर, ा मण बाद म रह यवाद योग क शि त से उनके साथ जड़ ु गए। मेर यार प नी,
जब बकर ने अपने अंडकोष को बहाल कया, तो उसने कुएं से ा त बकर का आनंद लया, ले कन य य प वह
कई वष तक आनंद लेता रहा, फर भी वह परू तरह से संतु ट नह ं हुआ है । हे सद
ंु र भौह वाल मेर यार प नी, म
ब कुल उस बकर क तरह हूं, य क म बु ध म इतना गर ब हूं क म आपक सद ंु रता से मो हत हो गया हूं और
आ म-सा ा कार के वा त वक काय को भल ू गया हू ं । एक कामकु यि त अपने मन को संतु ट नह ं कर सकता,
भले ह उसके पास चावल, जौ और अ य खा या न, सोना, पशु और म हलाओं स हत इस द ु नया म सब कुछ
पया त हो। कुछ भी उसे संतु ट नह ं कर सकता। िजस कार अि न म म खन चढ़ाने से आग कम नह ं होती
बि क बढ़ती जाती है , न य भोग से वासनाओं को रोकने का यास कभी सफल नह ं हो सकता। [वा तव म,
यि त को वे छा से भौ तक इ छाओं से बचना चा हए।] जब कोई यि त ई या नह ं करता है और कसी के लए
दभ ु ा य क इ छा नह ं रखता है , तो वह सम प होता है । ऐसे जातक के लए सभी दशाएं सखु मय तीत होती ह।
जो लोग भौ तक भोग से बहुत अ धक आस त ह, उनके लए इि यतिृ त को छोड़ना बहुत क ठन है । व ृ धाव था
के कारण अश त होने पर भी इि यतिृ त क ऐसी इ छाएँ नह ं छोड़ी जा सकतीं। इस लए, जो वा तव म सख ु
चाहता है , उसे ऐसी अत ृ त इ छाओं का याग करना चा हए, जो सभी लेश का कारण ह। अपनी माँ, बहन या
बेट के साथ भी वयं को एक ह आसन पर नह ं बैठने दे ना चा हए, य क इि याँ इतनी बल होती ह क ान
म बहुत उ नत होते हुए भी वह कामवासना के त आक षत हो सकता है । मने इि यतिृ त का आनंद लेते हुए
परू े एक हजार वष बताए ह, फर भी इस तरह के आनंद को भोगने क मेर इ छा त दन बढ़ती जाती है ।
इस लए, अब म इन सभी इ छाओं को याग दं ग ू ा और परम पु षो म भगवान का यान क ं गा। मान सक
मनगढ़ं त वंद से मु त और म या त ठा से मु त होकर म वन म पशओ ु ं के साथ वचरण क ं गा। जो यह
जानता है क भौ तक सख ु चाहे अ छा हो या बरु ा, इस ज म म या अगले म, इस ह पर या वग य ह पर,
अ थायी और बेकार है , और एक बु धमान यि त को ऐसी चीज का आनंद लेने या सोचने क को शश नह ं
करनी चा हए। , वयं का ाता है । ऐसा आ म-सा ा कार यि त अ छ तरह जानता है क भौ तक सख ु नरं तर
भौ तक अि त व और अपनी संवध ै ा नक ि थ त के व मरण का कारण है ।

शकु दे व गो वामी ने कहा: अपनी प नी दे वयानी से इस तरह बात करने के बाद, राजा यया त, जो अब सभी भौ तक
इ छाओं से मु त थे, ने अपने सबसे छोटे बेटे पु को बल ु ाया, और पु क जवानी को अपने बढ़ ु ापे के बदले वापस
कर दया। राजा यया त ने अपने पु ु यु को द ण पव ू , अपने पु यद ु को द ण, अपने पु तव ु सु को पि चम
और अपने पु अनु को उ र दया। इस तरह उसने रा य का बंटवारा कर दया। यया त ने अपने सबसे छोटे पु ,
पु को परू े व व का स ाट और उसके सभी धन का मा लक बना दया, और उसने पु से बड़े अ य सभी पु को
पु के नयं ण म रखा। कई वष तक इि यतिृ त का आनंद लेने के बाद, हे राजा पर त, यया त इसके आद
थे, ले कन उ ह ने इसे परू तरह से एक पल म छोड़ दया, जैसे एक प ी अपने घ सले से उड़ जाता है जैसे ह उसके
पंख बड़े हो जाते ह। चंू क राजा यया त ने पण ू प से भगवान, वासद ु े व के त समपण कर दया था, वे कृ त के
भौ तक गण ु के सभी संद ष
ू ण से म ु त हो गए थे । अपनी आ म-सा ा कार के कारण, वह अपने मन को पर म
[पर मण, वासद ु े व] पर ि थर करने म स म था, और इस कार उसने अंततः भगवान के एक सहयोगी क
ि थ त ा त क । जब दे वयानी ने महाराज यया त क बकर और बकर क कहानी सन ु ी, तो वह समझ गई क यह
कहानी, िजसे प त-प नी के बीच मनोरं जन के लए एक अजीब मजाक के प म तत ु कया गया था, का
उ दे य उसे उसक संवध ै ा नक ि थ त के लए जगाना था। त प चात शु ाचाय क पु ी दे वयानी समझ गई क
प त, म और स बि धय का भौ तकवाद स ब ध पयटक से भरे होटल म संग त के समान है । समाज, म ता
और ेम के संबध ं भगवान के परम यि त व क माया वारा बनाए जाते ह, ठ क वैसे ह जैसे व न म होता है ।
कृ ण क कृपा से, दे वयानी ने भौ तक द ु नया म अपनी का प नक ि थ त को याग दया। अपने मन को परू तरह
से कृ ण पर क त करके, उसने थल ू और सू म शर र से मिु त ा त क । हे भगवान वासद ु े व, हे भगवान के
सव च यि त व, आप संपण ू मांडीय अ भ यि त के नमाता ह। आप सभी के दय म परमा मा के प म
रहते ह और छोटे से छोटे ह, फर भी आप महान से बड़े ह और सव यापी ह। आप परू तरह से मौन दखाई दे ते ह,
आपके पास करने के लए कुछ नह ं है , ले कन यह आपके सव यापी वभाव और सभी ऐ वय म आपक प रपण ू ता
के कारण है । इस लए म आपको वन धांज ल अ पत करता हूं।

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