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Sundarkand Ke Prayog
Sundarkand Ke Prayog
जय सियाराम जय हनम
ु ान
काफी लोगों के मेरे पास मैसेज आ रहे थे कि किसी विशेष मनोकामना की पर्ति
ू के लिए संद
ु रकांड के पाठ किस
प्रकार किए जाते हैं और उसकी क्या विधि है बताइए
गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित कल्याण के अंकों में अनस
ु ंधान करने पर दो विधियां संद
ु रकांड के अनष्ु ठान कि मझ
ु े
प्राप्त हुई है
मनोकामना पर्ति ू के लिए संद
ु रकांड के संपटि
ु त
पाठ किए जाते हैं
संपटि
ु त पाठ का अर्थ होता है किसी विशेष चौपाई या दोहे का सुंदरकांड के हर दोहे के पहले और बाद में पाठ
करना।
किस कार्य के लिए किस विषेश चौपाई या दोहे का प्रयोग किया जाता है वह मैं अंत में बताऊंगा पहले अनुष्ठान
की विधि लिख रहा हूं यह दो विधियां कल्याण के अंक से ली गई है
विधि (1)-: हनुमान जी की मर्ति
ू सामने सिहासन पर पधरा कर सिंदरू का चोला चढ़ा दे । फिर विधिवत पंचोपचार
से पूजन करके 5 अड़हुल(जासवान) के फूल चढ़ाएं और 5 बेसन के लड्डू का भोग लगाएं इस बात का निश्चित
नियम अवश्य रखना चाहिए जितने अडहुल के फूल चढ़ाए जाए उतने ही लड्डुओं का भोग लगाया जाए इस
प्रकार 49 दिनों तक नित्य ठीक समय पर एकांत स्थान में पाठ करें सुंदरकांड के आरं भ और अंत में
निम्नलिखित चौपाइयों का संपुट दे -:
कहई रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहे हु बलवाना।।
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक विग्यान निधाना।।
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहीं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
विधि (2) प्रत्येक शनिवार रात्रि के 11:00 बजे तेल का दीपक जला कर श्री हनुमान जी का चित्र सामने रखकर
पूर्ण श्रद्धा एवं निष्ठा से समस्या के निवारणार्थ सुंदरकांड के नौ अखंड पाठ करो तो तुम्हारी मनोकामना हनुमान
जी की कृपा से अवश्य पूरी होगी
(*नए साधक प्रारं भ मे धीरे धीरे एक- एक पाठ बढाते हुए आदत मे आने पर अखंड पाठ करे *)
दोनो मे से किसी भी एक विधि से अनुष्ठान करे
१॰ ऐश्वर्य प्राप्ति
‘माता सीता की स्तति
ु ’ का नित्य श्रद्धा-विश्वासपर्व
ू क पाठ करें ।
“उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम ्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम ्।।” (बालकाण्ड, श्लो॰ ५)”
अर्थः- उत्पत्ति, स्थिति और संहार करने वाली, क्लेशों की हरने वाली तथा सम्पर्ण
ू कल्याणों की करने वाली
श्रीरामचन्द्र की प्रियतमा श्रीसीता को मैं नमस्कार करता हूँ।।
२॰ दःु ख-नाश
‘भगवान ् राम की स्तुति’ का नित्य पाठ करें ।
“यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदे वासुरा
यत्सत्वादमष
ृ ैव भाति सकलं रज्जौ यथाहे र्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्दे ऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम ्।।” (बालकाण्ड, श्लो॰ ६)
अर्थः- सारा विश्व जिनकी माया के वश में है और ब्रह्मादि दे वता एवं असुर भी जिनकी माया के वश-वर्ती हैं।
यह सब सत्य जगत ् जिनकी सत्ता से ही भासमान है , जैसे कि रस्सी में सर्प की प्रतीति होती है । भव-सागर के
तरने की इच्छा करनेवालों के लिये जिनके चरण निश्चय ही एक-मात्र प्लव-रुप हैं, जो सम्पूर्ण कारणों से परे हैं,
उन समर्थ, दःु ख हरने वाले, श्रीराम है नाम जिनका, मैं उनकी वन्दना करता हूँ।
३॰ सर्व-रक्षा
‘भगवान ् शिव की स्तति
ु ’ का नित्य पाठ करें ।
अर्थः- जिनकी गोद में हिमाचल-सुता पार्वतीजी, मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा, कण्ठ में
हलाहल विष और वक्षःस्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभषि
ू त, दे वताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर,
संहार-कर्त्ता, सर्व-व्यापक, कल्याण-रुप, चन्द्रमा के समान शुभ्र-वर्ण श्रीशंकरजी सदा मेरी रक्षा करें ।
४॰ सख
ु मय पारिवारिक जीवन
‘श्रीसीता जी के सहित भगवान ् राम की स्तति
ु ’ का नित्य पाठ करें ।
“नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम,
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम ||” (अयोध्याकाण्ड, श्लो॰ ३)
अर्थः- नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्रीसीताजी जिनके वाम-भाग में विराजमान हैं और
जिनके हाथों में (क्रमशः) अमोघ बाण और सन्
ु दर धनुष है , उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार
करता हूँ।।
५॰ सर्वोच्च पद प्राप्ति
श्री अत्रि मुनि द्वारा ‘श्रीराम-स्तुति’ का नित्य पाठ करें ।
छं दः-
“नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥
भजामि ते पदांबज
ु ं । अकामिनां स्वधामदं ॥
निकाम श्याम संद
ु रं । भवाम्बन
ु ाथ मंदरं ॥
प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥
प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥
निषंग चाप सायकं । धरं त्रिलोक नायकं ॥
दिनेश वंश मंडनं । महे श चाप खंडनं ॥
मन
ु ींद्र संत रं जनं । सरु ारि वंद
ृ भंजनं ॥
मनोज वैरि वंदितं । अजादि दे व सेवितं ॥
विशद्ध
ु बोध विग्रहं । समस्त दष
ू णापहं ॥
नमामि इंदिरा पतिं । सुखाकरं सतां गतिं ॥
भजे सशक्ति सानुजं । शची पतिं प्रियानुजं ॥
त्वदं घ्रि मूल ये नराः । भजंति हीन मत्सरा ॥
पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥
विविक्त वासिनः सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥
निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥
तमेकमभ्दत
ु ं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं ॥
जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥
भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदर्ल
ु भं ॥
स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥
अनूप रूप भूपतिं । नतोऽहमर्वि
ु जा पतिं ॥
प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति दे हि मे ॥
पठं ति ये स्तवं इदं । नरादरे ण ते पदं ॥
व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता ॥” (अरण्यकाण्ड)
‘मानस-पीयूष’ के अनस
ु ार यह ‘रामचरितमानस’ की नवीं स्तति
ु है और नक्षत्रों में नवाँ नक्षत्र अश्लेषा है । अतः
जीवन में जिनको सर्वोच्च आसन पर जाने की कामना हो, वे इस स्तोत्र को भगवान ् श्रीराम के चित्र या मर्ति
ू के
सामने बैठकर नित्य पढ़ा करें । वे अवश्य ही अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी कर लेंगे।
विशेषः
“संशय-सर्प-ग्रसन-उरगादः, शमन-सुकर्क श-तर्क -विषादः।
भव-भञ्जन रञ्जन-सुर-यूथः, त्रातु सदा मे कृपा-वरुथः।।”
उपर्युक्त श्लोक अमोघ फल-दाता है । किसी भी प्रतियोगिता के साक्षात्कार में सफलता सनि
ु श्चित है ।
७॰ सर्व अभिलाषा-पूर्ति
‘श्रीहनुमान जी कि स्तति
ु ’ का नित्य पाठ करें ।
“अतुलितबलधामं हे मशैलाभदे हं
दनज
ु वनकृशानंु ज्ञानिनामग्रगण्यम ् ।
सकलगण
ु निधानं वानराणामधीशं
रघप
ु तिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।” (सन्
ु दरकाण्ड, श्लो॰३)
८॰ सर्व-संकट-निवारण
‘रुद्राष्टक’ का नित्य पाठ करें ।
॥ श्रीरुद्राष्टकम ् ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितल
ु सीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम ् ॥
विशेषः– उक्त ‘रुद्राष्टक’ को स्नानोपरान्त भीगे कपड़े सहित शिवजी के सामने सस्वर पाठ करने से किसी भी
प्रकार का शाप या संकट कट जाता है । यदि भीगे कपड़े सहित पाठ की सवि
ु धा न हो, तो घर पर या शिव-
मन्दिर में भी तीन बार, पाचँ बार, आठ बार पाठ करके मनोवाञ्छित फल पाया जा सकता है । यह सिद्ध प्रयोग है ।
विशेषकर ‘नाग-पञ्चमी’ पर रुद्राष्टक का पाठ विशेष फलदायी है ।
नियम-
मानस के दोहे -चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद
अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके
लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान ् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की
है -इसलिये वाराणसी की ओर मख
ु करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।
अष्टांग हवन सामग्री
१॰ चन्दन का बरु ादा, २॰ तिल, ३॰ शद्ध
ु घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपरू , ८॰ शद्ध
ु केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰
पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।
जानने की बातें -
जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है , उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन
हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक
दिन करना है । मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे दे नी चाहिये। प्रत्येक
आहुति में चौपाई आदि के अन्त में ‘स्वाहा’ बोल दे ना चाहिये।
प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक
सेर (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता,
बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या
मिश्री मिला सकते हैं। केसर शद्ध
ु ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।
हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता १०८ की संख्या गिनने के लिये है । बैठने के लिये आसन ऊन का
या कुश का होना चाहिये। सत ू ी कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।
मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये।
दस
ू रे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।
सिद्ध की हुई रक्षा-रे खा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रे खा
जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ दे कर सिद्ध
करना चाहिये। रक्षा-रे खा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है । दस
ू रे काम के लिये दस
ू रा मन्त्र सिद्ध करना
हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।
एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र
(चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सवि
ु धा हो, जप करते रहना
चाहिये।
कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन
चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।
१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सख
ु दायक।।”
२॰ संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिद ु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”
४॰ विघ्न शांति के लिये
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”
५॰ खेद नाश के लिये
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”
६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
“दै हिक दै विक भौतिक तापा।राम राज काहूहि ं नहि ब्यापा॥”
८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दरू करने के लिये
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”
९॰ विष नाश के लिये
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”
१०॰ अकाल मत्ृ यु निवारण के लिये
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तम्
ु हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”
११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भत
ू भगाने के लिये
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”
१२॰ नजर झाड़ने के लिये
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तन
ृ तोरी।।”
१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”
१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सभ
ु ाएँ।।”
१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”
१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
२०॰ सर्व-सख
ु -प्राप्ति के लिये
सन
ु हिं बिमक्
ु त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
“भव भेषज रघन
ु ाथ जसु सन
ु हिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
“भव
ु न चारिदस भरा उछाहू। जनकसत
ु ा रघब
ु ीर बिआहू।।”
२३॰ मक
ु दमा जीतने के लिये
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
“कर सारं ग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघन
ु ाथा॥”
२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
“गरल सध
ु ा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
२६॰ शत्रत
ु ानाश के लिये
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भग
ृ ुकुल कमल पतंगा॥”
२८॰ विवाह के लिये
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”
२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”
३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”
३१॰ आकर्षण के लिये
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”
३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
“सुनि समझ
ु हिं जन मदि
ु त मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
३३॰ निन्दा की निवत्ति
ृ के लिये
“राम कृपाँ अवरे ब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गहृ ँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
३५॰ उत्सव होने के लिये
“सिय रघबु ीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सन
ु हिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जस।ु ।”
३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सरु क्षित रखने के लिये
“जग
ु ति
ु बेधि पनि
ु पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनरु ाग।।”
३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रति
ु नीती॥
३८॰ कातर की रक्षा के लिये
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सम
ु न माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
४०॰ विचार शद्ध
ु करने के लिये
“ताके जग
ु पद कमल मनाउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ।।”
४१॰ संशय-निवत्ति
ृ के लिये
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
” अनुचित बहुत कहे उँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
४३॰ विरक्ति के लिये
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु दे हु दया करि राम।।”
४६॰ श्रीहनुमान ् जी को प्रसन्न करने के लिये
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”
४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”
५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
“केहरि कटि पट पीतधर सष
ु मा सील निधान।
दे खि भानक
ु ु ल भष
ू नहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”
५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”
मानस के मन्त्र
१॰ प्रभु की कृपा पाने का मन्त्र
“मक
ू होई वाचाल, पंगु चढ़ई गिरिवर गहन।
जासु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल-दहन।।”
विधि-प्रभु राम की पज
ू ा करके गुरूवार के दिन से कमलगट्टे की माला पर २१ दिन तक प्रातः और सांय नित्य
एक माला (१०८ बार) जप करें ।
लाभ-प्रभु की कृपा प्राप्त होती है । दर्भा
ु ग्य का अन्त हो जाता है ।
२॰ रामजी की अनक
ु म्पा पाने का मन्त्र
“बन्दउँ नाम राम रघुबर को। हे तु कृसानु भानु हिमकर को।।”
विधि- सर्य
ू ग्रहण के समय पर्ण
ू ‘पर्वकाल’ के दौरान इस मन्त्र को जपता रहे , तो मन्त्र सिद्ध हो जायेगा। इसके
पश्चात ् जब भी आवश्यकता हो इस मन्त्र को सात बार पढ़ कर गोरोचन का तिलक लगा लें।
लाभ- इस प्रकार करने से वशीकरण होता है ।
विधि- प्रतिदिन इस मन्त्र के १००८ पाठ करने चाहियें। इस मन्त्र के प्रभाव से सभी कार्यों में अपुर्व सफलता
मिलती है ।
६॰ रामजी की पज
ू ा अर्चना का मन्त्र
“अब नाथ करि करुना, बिलोकहु दे हु जो बर मागऊँ।
जेहिं जोनि जन्मौं कर्म, बस तहँ रामपद अनरु ागऊँ।।”
विधि- जिस आसन में सुगमता से बैठ सकते हैं, बैठ कर ध्यान प्रभु श्रीराम में केन्द्रित कर यथाशक्ति अधिक-से-
अधिक जप करें । इस प्रयोग को २१ दिन तक करते रहें ।
लाभ- मन को शांति मिलती है ।
विधि- रुद्राक्ष की माला पर प्रतिदिन १००० बार ४० दिन तक जप करें तथा अपने नाते-रिश्तेदारों से कुछ सिक्के
भिक्षा के रुप में प्राप्त करके गुरुवार के दिन विष्णुजी के मन्दिर में चढ़ा दें ।
लाभ- मन्त्र प्रयोग से समस्त पापों का क्षय हो जाता है ।
विधि- इस मन्त्र को यथाशक्ति अधिक-से-अधिक संख्या में ४० दिन तक जप करते रहें और प्रतिदिन प्रभु श्रीराम
की प्रतिमा के सन्मख
ु भी सात बार जप अवश्य करें ।
लाभ- जन्म-जन्मान्तर तक श्रीरामजी की पज
ू ा का स्मरण रहता है और प्रभश्र
ु ीराम प्रसन्न होते हैं।