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त्रिपिटक - विकिपीडिया
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त्रिपिटक
विनय पिटक
सुत्त- परि-
खन्धक
विभंग वार
सुत्त पिटक
दीघ मज्झिम संयुत्त
निकाय निकाय निकाय
अंगुत्तर खुद्दक
निकाय निकाय
अभिधम्म पिटक
बौद्ध धर्म
की श्रेणी का हिस्सा
बुनियादी मनोभाव
चार आर्य सत्य ·
आर्य अष्टांग मार्ग ·
निर्वाण · त्रिरत्न · पँचशील
अहम व्यक्ति
गौतम बुद्ध · बोधिसत्व
क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म
दक्षिण-पूर्वी बौद्ध धर्म
· चीनी बौद्ध धर्म
· तिब्बती बौद्ध धर्म ·
पश्चिमी बौद्ध धर्म
बौद्ध साम्प्रदाय
थेरावाद · महायान
· वज्रयान
बौद्ध साहित्य
त्रिपतक · पाळी ग्रंथ संग्रह
· विनय
· पाऴि सूत्र · महायान सूत्र
· अभिधर्म · बौद्ध तंत्र
त्रिपिटक को तीन भागों में विभाजित किया गया है,
विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्म पिटक। इसका
विस्तार इस प्रकार है[1]- त्रिपिटक में १७ ग्रंथो का
समावेश है।
(१) विनयपिटक
सुत्तविभंग (पाराजिक, पाचित्तिय)
खन्धक (महावग्ग, चुल्लवग्ग)
परिवार
पातिमोक्ख
(२) सुत्तपिटक
दीघनिकाय
मज्झिमनिकाय
संयुत्तनिकाय
अंगुत्तरनिकाय
खुद्दकनिकाय
खुद्दक पाठ
धम्मपद
उदान
इतिवुत्तक
सुत्तनिपात
विमानवत्थु
पेतवत्थु
थेरगाथा
थेरीगाथा
जातक
निद्देस
पटिसंभिदामग्ग
अपदान
बुद्धवंस
चरियापिटक
(३) अभिधम्मपिटक
धम्मसंगणि
विभंग
धातुकथा
पुग्गलपंञति
कथावत्थु
यमक
पट्ठान।
परिचय
बौद्ध-परम्परा के अनुसार त्रिपिटक तीन संगीतियों से
स्थिर हुआ। कहा जाता है कि बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद
सुभद्र नामक भिक्षु ने अपने साथियों से कहा- ‘‘आवुसो,
शोक मत करो, रुदन मत करो ! हम लोगों को महाश्रमण
से छु टकारा मिल गया है। वे हमेशा कहते रहते थे- ‘यह
करो, यह मत करो’। लेकिन अब हम जो चाहेंगे करेंगे।
जो नहीं चाहेंगे, नहीं करेंगे।’’
महत्व
बौद्ध त्रिपिटक अनेक दृष्टियों से बहुत महत्त्व का है।
इसमें बुद्धकालीन भारत की राजनीति, अर्थनीति,
सामाजिक व्यवस्था, शिल्पकला, संगीत, वस्त्र-आभूषण,
वेष-भूषा, रीति-रिवाज तथा ऐतिहासिक, भौगोलिक,
व्यापारिक आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का विस्तार से
प्रतिपादन है। उदाहरण के लिए, विनयपिटक में बौद्ध
भिक्षु-भिक्षुणियों के आचार-व्यवहार सम्बन्धी नियमों का
विस्तृत वर्णन है। ‘महावग्ग’ में तत्कालीन जूते, आसन,
सवारी, ओषधि, वस्त्र, छतरी, पंखे आदि का उल्लेख है।
‘चुल्लवग्ग’ में भिक्षुणियों की प्रव्रज्या आदि का वर्णन है।
यहाँ भिक्षुओं के लिए जो शलाका-ग्रहण की पद्धति
बताई गयी है। वह तत्कालीन लिच्छवि गणतंत्र के ‘वोट’
(छन्द) लेने के रिवाज की नकल है। उस समय के
गणतन्त्र शासन में कोई प्रस्ताव पेश करने के बाद,
प्रस्ताव को दुहराते हुए उसके विषय में तीन बार तक
बोलने का अवसर दिया जाता था। तब कहीं जाकर
निर्णय सुनाया जाता था। यही पद्धति भिक्षु संघ में
स्वीकार की गयी थी।
‘सूत्रपिटक’ (सुत्तपिटक) के
अन्तर्गत दीर्घनिकाय में
पूरणकस्सप, मक्खलि गोसाल, अजित के सकम्बल,
पकु ध कच्चायन, निगंठ नातपुत्त और संजय वेलट्ठिपुत्त
नामक छह यशस्वी तीर्थकरों का मत-प्रतिपादन,
लिच्छवियों की गण-व्यवस्था, अहिंसामय यज्ञ, जात-पाँत
का खण्डन आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का उल्लेख
है। ‘मज्झिमनिकाय’ में बुद्ध की चारिका, नातपुत्त-मत-
खण्डन, अनात्मवाद, वर्ण-व्यवस्था-विरोध, मांसभक्षण-
विचार आदि विषयों का प्रतिपादन है। ‘संयुत्तनिकाय’ में
कोसल के राजा पसेनदि और मगध के राजा अजातशत्रु
के युद्ध का वर्णन है।
1. समन्तपासादिका (विनय-अट्ठकथा)
2. सुमंगलविलासिनी (दीघनिकाय-अट्ठकथा)
3. पपंचसूदनी (मज्झिमनिकाय-अट्ठकथा)
4. सारत्थपकासिनी (संयुत्तनिकाय-अट्ठकथा)
5. मनोरथपूरणी (अंगुत्तरनिकाय-अट्ठकथा)
6. अभिधम्मपिटक की भिन्न-भिन्न अट्ठकथाएँ
इन्हें भी देखें
त्रिपिटक कोरिया
बौद्ध धम्म की पालि साहित्य परंपरा
अनुपिटक
बाहरी कड़ियाँ
त्रिपिटक (https://web.archive.org/web/20
140621102454/http://www.tipitaka.org/
deva/) (देवनागरी में)
टीका
1. "प्राचीन भारत की श्रेष्ठ कहानियाँ, लेखकः
जगदीश चन्द्र जैन, प्रकाशक:भारतीय ज्ञानपीठ,
प्रकाशित : मई ०९, २००३" (https://web.arc
hive.org/web/20071023080248/http://
pustak.org/bs/home.php?bookid=123
9) . मूल (http://pustak.org/bs/home.ph
p?bookid=1239) से 23 अक्तू बर 2007 को
पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 सितंबर 2008.
2. पृष्ठ ९, पुस्तकःबुद्धवचन त्रिपिटकया न्हापांगु
निकाय ग्रन्थ दीघनिकाय, वीरपूर्ण स्मृति ग्रन्थमाला
भाग-३, अनुवादक:दुण्डबहादुर बज्राचार्य,
भाषा:नेपालभाषा, मुद्रकःनेपाल प्रेस
"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=त्रिपिटक&oldid=5864720" से प्राप्त