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पाठ ४ पष्ु प की अभिलाषा

कविता कवि-श्री माखनलाल चतुिेदी

श्रत
ु लेख शब्द

सम्राटों गूँथा

ललचाऊूँ िाग्य

िनमाली पथ

इठलाऊूँ शीश गहनों


दे िों सरु बाला

पाठ ४ पष्ु प की अभिलाषा

शब्दाथथ

चाह - इच्छा

सम्राट – राजा

िाग्य – ककस्मत

पथ- रास्ता

गूँथा – वपरोया

हरर- िगिान

इठलाऊूँ-इतराऊूँ

शीश- भसर

पाठ ४ पष्ु प की अभिलाषा


प्रश्न१- कविता में कौन अपनी इच्छा व्यक्त कर रहा है ?

उत्तर१- कविता में फल अपनी इच्छा व्यक्त कर रहा है |

प्रश्न२- पष्ु प क्या करके िाग्य पर इठलाना नहीीं चाहता ?

उत्तर२ -पष्ु प दे िताओीं के भसर पर चढ़कर इठलाना नहीीं चाहता |

प्रश्न३ पष्ु प िनमाली से क्या कह रहा है ?

उत्तर ३-पष्ु प िनमाली से कह रहा है कक उसे ऐसे पथ पर बबखेर दे , जजस पथ पर


िीर सैननक माति
ृ भम की रक्षा के भलए आत्म बभलदान के भलए जा रहे हों|

प्रश्न ४-पष्ु प माति


ृ भम की रक्षा के भलए जाने िाले िीरों के रास्ते में स्ियीं को
बबछाना चाहता है | पष्ु प की इस अभिलाषा से हमें क्या प्रेरणा भमलती है ?

उत्तर ४-पष्ु प की इस अभिलाषा से हमें यह प्रेरणा भमलती है कक हमें िी अपने


दे श की रक्षा के भलए किी पीछे नहीीं हटना चाहहए और मजु श्कल समय पड़ने पर
सीमा पर खड़े सैननकों का साथ दे ना चाहहए चाहे इसके भलए हमें अपने प्राणों को
िी त्यागना पड़े |

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