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मीरा के पद
मीरा के पद
मीरा के पद
मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्ति हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली गई
है। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। मीिाबाई भगवान गवष्णु जी से गवनती किती है गक हे प्रभु आप मेिे
सािे दु ख दू ि कि दें ।
मीरा के पद भावार्थ : प्रस्तुत पिंक्ति में कवगयत्री मीिाबाई ने श्री हरि यागन गवष्णु भगवान से अपनी पीड़ा
हिने की गवनती की है। इसी वजह से वे हरि के उन रूपोिं का स्मिण कि िही हैं , गजन्हें धािण कि के
उन्होिंने अपने भिोिं की िक्षा की थी। यहााँ मीिा कह िही हैं गक प्रभु अपने भिोिं की पीड़ा हिने यागन दू ि
किने ज़रूि आते हैं ।
मीरा के पद ववशेष:-
मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्तियााँ हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली
गई हैं। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। मीिाबाई ने इस पद में हरि के अलग-अलग रूपोिं का वणशन
गकया है।
मीरा के पद भावार्थ : इन पिंक्तियोिं में मीिाबाई ने हरि के गवगभन्न रूपोिं का वणशन गकया है। प्रथम पिंक्ति
में मीिा ने हरि के कृष्ण रूप का वणशन गकया है , जब उन्होिंने द्रौपदी को वस्त्र दे कि भिी सभा में ठीक
उसी प्रकाि उनकी लाज बचाई, गजस प्रकाि एक भाई अपनी बहन की िक्षा किता है। दू सिी पिंक्ति में
मीिा ने हरि के उस रूप का वणशन गकया है, जब प्रह्लाद की िक्षा किने के गलए हरि ने निगसहिं का अवताि
गलया औि गहिण्यकश्यप का वध गकया। तीसिी पिंक्ति में मीिा ने हरि के उस रूप का वणशन गकया है ,
जब हरि ने डूबते हुए बूढ़े गजिाज की िक्षा हेतु मगिमच्छ का वध गकया।
मीरा के पद ववशेष:-
मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्ति हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली गई
है। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। मीिाबाई श्री कृष्ण से गवनती किती है गक प्रभु उनके सब दु ख पीड़ा
को दू ि कि दें ।
मीरा के पद भावार्थ : मीिाबाई का मानना है गक जो भि सच्चे हृदय से हरि की भक्ति किता है , प्रभु
उसके दु ुः ख दू ि किने ज़रूि आते हैं। इसीगलए मीिा प्रभु से खुद की पीड़ा दू ि किने की गवनती कि िही
हैं।
मीरा के पद ववशेष:-
मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्तियााँ हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली
गई हैं। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। मीिाबाई श्री कृष्ण के दर्शन पाने के गलए नौकि बनने के गलए
भी तैयाि है।
मीरा के पद भावार्थ : प्रस्तुत पिंक्तियोिं में मीिाबाई की कृष्ण-भक्ति का उदाहिण गमलता है। वे कृष्ण की
भक्ति में इस प्रकाि लीन हैं गक उनके दर्शन पाने के गलए वे नौकि बनने के गलए भी तैयाि हैं। इसी वजह
से वे इन पिंक्तियोिं में श्री कृष्ण से खुद को अपना नौकि िखने की गवनती कि िही हैं ।
जब वे नौकि बनकि सुबह-सुबह बागबानी किें गी, तो इसी बहाने उन्हें कृष्ण के दर्शन हो जाएाँ गे। वृिंदावन
की तिंग गगलयोिं में वे गोगविंद की लीला गाते हुए गििें गी। इस नौकिी में उन्हें वो सबकुछ गमलेगा, गजसकी
उन्हें जन्ोिं से चाहत थी। उन्हें खचश किने के गलए श्री कृष्ण के दर्शन एविं स्मिण गमलेंगे तथा उन्हें भाव एविं
भक्ति की ऐसी जागीि गमलेगी, जो सदा उनके पास ही िह जाएगी।
मीरा के पद ववशेष:-
1. भाव भगती में अनुप्रास अलिंकाि है।
मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्तियााँ हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली
गई हैं। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। इस पद में मीिाबाई ने श्रीकृष्ण के रुप-सौिंदयश का अद्धभुत
वणशन गकया है।
मीरा के पद भावार्थ : प्रस्तुत पिंक्तियोिं में मीिाबाई ने श्री कृष्ण के रूप-सौिंदयश का बड़ा ही मोहक वणशन
गकया है। मीिा कहती हैं गक श्री कृष्ण जब हिे वस्त्र पहनकि, मोि-मुकुट धािण गकये हुए, गले में वैजन्ती
माला पहने औि हाथोिं में बााँ सुिी लेकि वृन्दावन में गाय चिाते हैं , तो उनका रूप सभी का मन मोह लेता
है।
मीरा के पद ववशेष:-
मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्तियााँ हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली
गई हैं। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। इस पद में मीिाबाई का श्री कृष्ण के दर्शन के गलए व्याकुलता
का वणशन है।
मीरा के पद भावार्थ : इन पिंक्तियोिं में मीिाबाई ने श्री हरि के दर्शन किने की अपनी तीव्र इच्छा का वणशन
गकया है। वे ऊाँचे -ऊाँचे महलोिं के बीच बाग़ लगाएिं गी। गजनके बीच वे साज-श्रृिंगाि किके कुसुम्बी ििं ग की
साड़ी पहनकि श्री कृष्ण के दर्शन किें गी। वे तो श्री कृष्ण के दर्शन के गलए इतनी व्याकुल हो गई हैं गक
उन्हें लग िहा है , आधी िात में ही श्री कृष्ण उन्हें यमुना के तट पि दर्शन दे कि उनका दु ुः ख हि लें।
मीरा के पद ववशेष:-
प्रश्न 1 -: पहले पद में मीरा ने हरर से अपनी पीडा हरने की ववनती वकस प्रकार की है ?
उत्तर -: पहले पद में मीिा कहती हैं गक गजस प्रकाि हे ! प्रभु आप अपने सभी भिोिं के दु खोिं को हिते हो ,जैसे –
द्रोपदी की लाज बचाने के गलए साड़ी का कपड़ा बढ़ाते चले गए ,प्रह्लाद को बचाने के गलए निगसिंह का रूप धािण कि
गलया औि ऐिावत हाथी को बचाने के गलए मगिमच्छ को माि गदया उसी प्रकाि मेिे भी सािे दु खोिं को हि लो अथाश त
सभी दु खोिं को समाप्त कि दो।
प्रश्न 2 -: दू सरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यं करना चाहती है ? स्पष्ट कीविए।
उत्तर -: दू सिे पद में मीिा श्री कृष्ण की नौकि बनने की गवनती इसगलए किती है क्ोिं गक वह श्री कृष्ण के दर्शन का
एक भी मौका खोना नहीिं चाहती है । वह कहती है गक मैं बगीचा लगाऊाँगी तागक िोज सुबह उठते ही मुझे श्री कृष्ण के
दर्शन हो सकें।
प्रश्न 3 -: मीरा ने श्री कृष्ण के रूप स द ं र्थ का वर्थन कैसे वकर्ा है ?
उत्तर -: मीिा श्री कृष्ण के रूप सौिंदयश का वणशन किते हुए कहती हैं गक उन्होिंने सि पि मोि पिंख का मुकुट धािण
गकया हुआ है ,पीले वस्त्र पहने हुए हैं औि गले में वैजिंत िूलोिं की माला को धािण गकया हुआ है । मीिा कहती हैं गक
जब श्री कृष्ण वृन्दावन में गाय चिाते हुए बािं सुिी बजाते है तो सब का मन मोह लेते हैं ।