मीरा के पद

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मीरा के पद- Meera Ke Pad

हरि आप हिो जन िी भीि।

द्रोपदी िी लाज िाखी, आप बढ़ायो चीि।


भगत कािण रूप निहरि, धियो आप सिीि।
बूढ़तो गजिाज िाख्यो, काटी कुञ्जि पीि।

दासी मीिााँ लाल गगिधि, हिो म्हािी भीि॥

स्याम म्हाने चाकि िाखो जी,


गगिधािी लाला म्हााँने चाकि िाखोजी।
चाकि िहस्यूाँ बाग लगास्यूाँ गनत उठ दिसण पास्यूाँ।
गबिंदिावन िी कुिंज गली में, गोगविंद लीला गास्यूाँ।
चाकिी में दिसण पास्यूाँ, सुमिण पास्यूाँ खिची।
भाव भगती जागीिी पास्यूाँ, तीनूिं बातााँ सिसी।

मोि मुगट पीताम्बि सौहे, गल वैजिंती माला।


गबिंदिावन में धेनु चिावे, मोहन मुिली वाला।

ऊाँचा, ऊाँचा महल बणाविं गबच गबच िाखूाँ बािी।


सााँवरिया िा दिसण पास्यूाँ, पहि कुसुम्बी साई।
आधी िात प्रभु दिसण, दीज्यो जमनाजी िा तीिािं।
मीिािं िा प्रभु गगिधि नागि, गहवड़ो घणो अधीिााँ ।

हरि आप हिो जन िी भीि।

मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्ति हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली गई
है। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। मीिाबाई भगवान गवष्णु जी से गवनती किती है गक हे प्रभु आप मेिे
सािे दु ख दू ि कि दें ।

मीरा के पद भावार्थ : प्रस्तुत पिंक्ति में कवगयत्री मीिाबाई ने श्री हरि यागन गवष्णु भगवान से अपनी पीड़ा
हिने की गवनती की है। इसी वजह से वे हरि के उन रूपोिं का स्मिण कि िही हैं , गजन्हें धािण कि के
उन्होिंने अपने भिोिं की िक्षा की थी। यहााँ मीिा कह िही हैं गक प्रभु अपने भिोिं की पीड़ा हिने यागन दू ि
किने ज़रूि आते हैं ।

मीरा के पद ववशेष:-

1.िाजस्थानी गमगश्रत ब्रजभाषा का प्रयोग गकया गया है ।

द्रोपदी िी लाज िाखी, आप बढ़ायो चीि।


भगत कािण रूप निहरि, धियो आप सिीि।
बूढ़तो गजिाज िाख्यो, काटी कुञ्जि पीि।

मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्तियााँ हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली
गई हैं। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। मीिाबाई ने इस पद में हरि के अलग-अलग रूपोिं का वणशन
गकया है।
मीरा के पद भावार्थ : इन पिंक्तियोिं में मीिाबाई ने हरि के गवगभन्न रूपोिं का वणशन गकया है। प्रथम पिंक्ति
में मीिा ने हरि के कृष्ण रूप का वणशन गकया है , जब उन्होिंने द्रौपदी को वस्त्र दे कि भिी सभा में ठीक
उसी प्रकाि उनकी लाज बचाई, गजस प्रकाि एक भाई अपनी बहन की िक्षा किता है। दू सिी पिंक्ति में
मीिा ने हरि के उस रूप का वणशन गकया है, जब प्रह्लाद की िक्षा किने के गलए हरि ने निगसहिं का अवताि
गलया औि गहिण्यकश्यप का वध गकया। तीसिी पिंक्ति में मीिा ने हरि के उस रूप का वणशन गकया है ,
जब हरि ने डूबते हुए बूढ़े गजिाज की िक्षा हेतु मगिमच्छ का वध गकया।

मीरा के पद ववशेष:-

1.काटी कुञ्जि में अनुप्रास अलिंकाि है।

2. िाजस्थानी गमगश्रत ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है ।

दासी मीिााँ लाल गगिधि, हिो म्हािी भीि॥

मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्ति हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली गई
है। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। मीिाबाई श्री कृष्ण से गवनती किती है गक प्रभु उनके सब दु ख पीड़ा
को दू ि कि दें ।

मीरा के पद भावार्थ : मीिाबाई का मानना है गक जो भि सच्चे हृदय से हरि की भक्ति किता है , प्रभु
उसके दु ुः ख दू ि किने ज़रूि आते हैं। इसीगलए मीिा प्रभु से खुद की पीड़ा दू ि किने की गवनती कि िही
हैं।

मीरा के पद ववशेष:-

1.िाजस्थानी गमगश्रत ब्रजभाषा का प्रयोग गकया गया है ।

स्याम म्हाने चाकि िाखो जी,


गगिधािी लाला म्हााँने चाकि िाखोजी।
चाकि िहस्यूाँ बाग लगास्यूाँ गनत उठ दिसण पास्यूाँ।
गबिंदिावन िी कुिंज गली में, गोगविंद लीला गास्यूाँ।
चाकिी में दिसण पास्यूाँ, सुमिण पास्यूाँ खिची।
भाव भगती जागीिी पास्यूाँ, तीनूिं बातााँ सिसी।

मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्तियााँ हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली
गई हैं। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। मीिाबाई श्री कृष्ण के दर्शन पाने के गलए नौकि बनने के गलए
भी तैयाि है।

मीरा के पद भावार्थ : प्रस्तुत पिंक्तियोिं में मीिाबाई की कृष्ण-भक्ति का उदाहिण गमलता है। वे कृष्ण की
भक्ति में इस प्रकाि लीन हैं गक उनके दर्शन पाने के गलए वे नौकि बनने के गलए भी तैयाि हैं। इसी वजह
से वे इन पिंक्तियोिं में श्री कृष्ण से खुद को अपना नौकि िखने की गवनती कि िही हैं ।

जब वे नौकि बनकि सुबह-सुबह बागबानी किें गी, तो इसी बहाने उन्हें कृष्ण के दर्शन हो जाएाँ गे। वृिंदावन
की तिंग गगलयोिं में वे गोगविंद की लीला गाते हुए गििें गी। इस नौकिी में उन्हें वो सबकुछ गमलेगा, गजसकी
उन्हें जन्ोिं से चाहत थी। उन्हें खचश किने के गलए श्री कृष्ण के दर्शन एविं स्मिण गमलेंगे तथा उन्हें भाव एविं
भक्ति की ऐसी जागीि गमलेगी, जो सदा उनके पास ही िह जाएगी।

मीरा के पद ववशेष:-
1. भाव भगती में अनुप्रास अलिंकाि है।

2. िाजस्थानी गमगश्रत ब्रजभाषा का प्रयोग गकया गया है ।

3. इस पद में मीिाबाई की श्रीकृष्ण के प्रगत भक्ति भावना का वणशन हुआ है ।

मोि मुगट पीताम्बि सौहे , गल वैजिंती माला।


गबिंदिावन में धेनु चिावे, मोहन मुिली वाला।

मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्तियााँ हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली
गई हैं। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। इस पद में मीिाबाई ने श्रीकृष्ण के रुप-सौिंदयश का अद्धभुत
वणशन गकया है।

मीरा के पद भावार्थ : प्रस्तुत पिंक्तियोिं में मीिाबाई ने श्री कृष्ण के रूप-सौिंदयश का बड़ा ही मोहक वणशन
गकया है। मीिा कहती हैं गक श्री कृष्ण जब हिे वस्त्र पहनकि, मोि-मुकुट धािण गकये हुए, गले में वैजन्ती
माला पहने औि हाथोिं में बााँ सुिी लेकि वृन्दावन में गाय चिाते हैं , तो उनका रूप सभी का मन मोह लेता
है।

मीरा के पद ववशेष:-

1. मोि मुगट, मोहन मुिली में अनुप्रास अलिंकाि है ।

2. िाजस्थानी गमगश्रत ब्रजभाषा का प्रयोग गकया गया है ।

ऊाँचा, ऊाँचा महल बणाविं गबच गबच िाखूाँ बािी।


सााँवरिया िा दिसण पास्यूाँ, पहि कुसुम्बी साई।
आधी िात प्रभु दिसण, दीज्यो जमनाजी िा तीिािं।
मीिािं िा प्रभु गगिधि नागि, गहवड़ो घणो अधीिााँ।

मीरा के पद प्रसंग: प्रस्तुत पिंक्तियााँ हमािी गहिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ पाठ-2 ‘मीिा के पद’ से ली
गई हैं। इस पद की िचगयता मीिाबाई है। इस पद में मीिाबाई का श्री कृष्ण के दर्शन के गलए व्याकुलता
का वणशन है।

मीरा के पद भावार्थ : इन पिंक्तियोिं में मीिाबाई ने श्री हरि के दर्शन किने की अपनी तीव्र इच्छा का वणशन
गकया है। वे ऊाँचे -ऊाँचे महलोिं के बीच बाग़ लगाएिं गी। गजनके बीच वे साज-श्रृिंगाि किके कुसुम्बी ििं ग की
साड़ी पहनकि श्री कृष्ण के दर्शन किें गी। वे तो श्री कृष्ण के दर्शन के गलए इतनी व्याकुल हो गई हैं गक
उन्हें लग िहा है , आधी िात में ही श्री कृष्ण उन्हें यमुना के तट पि दर्शन दे कि उनका दु ुः ख हि लें।

मीरा के पद ववशेष:-

1. ऊाँचा-ऊाँचा, गबच गबच में पुनरुक्ति प्रकार् अलिंकाि है ।

2. पास्यूाँ पहि में अनुप्रास अलिंकाि है।

3. िाजस्थानी गमगश्रत ब्रजभाषा का प्रयोग गकया गया है ।

प्रश्न 1 -: पहले पद में मीरा ने हरर से अपनी पीडा हरने की ववनती वकस प्रकार की है ?
उत्तर -: पहले पद में मीिा कहती हैं गक गजस प्रकाि हे ! प्रभु आप अपने सभी भिोिं के दु खोिं को हिते हो ,जैसे –
द्रोपदी की लाज बचाने के गलए साड़ी का कपड़ा बढ़ाते चले गए ,प्रह्लाद को बचाने के गलए निगसिंह का रूप धािण कि
गलया औि ऐिावत हाथी को बचाने के गलए मगिमच्छ को माि गदया उसी प्रकाि मेिे भी सािे दु खोिं को हि लो अथाश त
सभी दु खोिं को समाप्त कि दो।

प्रश्न 2 -: दू सरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यं करना चाहती है ? स्पष्ट कीविए।
उत्तर -: दू सिे पद में मीिा श्री कृष्ण की नौकि बनने की गवनती इसगलए किती है क्ोिं गक वह श्री कृष्ण के दर्शन का
एक भी मौका खोना नहीिं चाहती है । वह कहती है गक मैं बगीचा लगाऊाँगी तागक िोज सुबह उठते ही मुझे श्री कृष्ण के
दर्शन हो सकें।
प्रश्न 3 -: मीरा ने श्री कृष्ण के रूप स द ं र्थ का वर्थन कैसे वकर्ा है ?
उत्तर -: मीिा श्री कृष्ण के रूप सौिंदयश का वणशन किते हुए कहती हैं गक उन्होिंने सि पि मोि पिंख का मुकुट धािण
गकया हुआ है ,पीले वस्त्र पहने हुए हैं औि गले में वैजिंत िूलोिं की माला को धािण गकया हुआ है । मीिा कहती हैं गक
जब श्री कृष्ण वृन्दावन में गाय चिाते हुए बािं सुिी बजाते है तो सब का मन मोह लेते हैं ।

प्रश्न 4 -: मीरा की भाषा शैली पर प्रकाश डावलए।


उत्तर -: मीिा को गहिंदी औि गुजिती दोनोिं की कवगयत्री माना जाता है । इनकी कुल सात -आठ कृगतयााँ ही उपलब्ध हैं ।
मीिा की भाषा सिल ,सहज औि आम बोलचाल की भाषा है , इसमें िाजस्तानी ,ब्रज, गुजिती ,पिंजाबी औि खड़ी बोली
का गमश्रण है ।पदोिं में भक्तििस है तथा अनुप्रास ,पुनरुक्ति ,रूपक आगद अलिंकािोिं का भी प्रयोग गकया गया है ।
प्रश्न 5 -: वे श्री कृष्ण कय पाने के वलर्ा क्ा – क्ा कार्थ करने कय तैर्ार हैं ?
उत्तर -: मीिा श्री कृष्ण को पाने के गलए अनेक कायश किने के गलए तैयाि हैं – वे कृष्ण की सेगवका बन कि िहने को
तैयाि हैं ,वे उनके गवचिण अथाशत घूमने के गलए बाग़ बगीचे लगाने के गलए तैयाि हैं ,ऊाँचे ऊाँचे महलोिं में क्तखड़गकयािं
बनाना चाहती हैं तागक श्री कृष्ण के दर्शन कि सके औि यहााँ तक की आधी िात को जमुना नदी के गकनािे कुसुम्बी
ििं ग की साडी पहन कि दर्शन किने के गलए तैयाि हैं।
(ख) वनम्नवलखखत पंखिओं का काव्य – स न्दर्थ स्पष्ट कीविए -:
1) हरि आप हिो जन िी भीि।
द्रयपदी री लाि राखी ,आप बढार्य चीर।
भगत कारर् रूप नरहरर ,धरर्य आप सरीर।
काव्य -स न्दर्थ – इन पिंक्तिओिं में मीिा श्री कृष्ण के भक्ति -भाव को प्रकट कि िही है । इन पिंक्तिओिं में र्ािंत िस
प्रधान है । मीिा कहती है गक हे !श्री कृष्ण आप अपने भिोिं के कष्ोिं को हिने वाले हो। आपने द्रोपदी की लाज बचाई
औि साड़ी के कपडे को बढ़ाते चले गए। आपने अपने भि प्रह्लाद को बचाने के गलए निगसिंह का रूप भी धािण
गकया।
2) बूढ़तो गजिाज िाख्यो ,काटी कुञ्जि पीि।
दासी मीरााँ लाल वगरधर , हरय म्हारी भीर।।
काव्य स न्दर्थ – इन पिंक्तिओिं में मीिा श्री कृष्ण से उनके दु ुः ख दू ि किने की गवनती किती हैं । इन पिंक्तिओिं में तत्सम
औि तद्भव र्ब्ोिं का सुन्दि गमश्रण है । मीिा कहती हैं गक गजस तिह हे !श्री कृष्ण आपने हागथओिं के िाजा ऐिावत को
मगिमच्छ के चिंगुल से बचाया था मुझे भी हि दु ुः ख से बचाओ।
3) चाकिी में दिसन पास्यूाँ ,सुमिन पास्यूाँ खिची।
भाव भगती िागीरी पास्ूाँ ,वतन्नू बातााँ सरसी।।
काव्य स न्दर्थ – इन पिंक्तिओिं में मीिा श्री कृष्ण के प्रगत अपनी भाव भक्ति दर्ाश िही है । यहााँ र्ािं त िस प्रधान है । यहााँ
मीिा श्री कृष्ण के पास िहने के तीन िायदे बताती है । पहला -उसे हमेर्ा दर्शन प्राप्त होिंगे ,दू सिा -उसे श्री कृष्ण को
याद किने की जरूित नहीिं होगी औि तीसिा -उसकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता ही जायेगा।
प्रश्न 6 – मीरा के विस पद में ” वहवडय ” शब्द प्रर्ुि हुआ है , उस पद कय वलखखए तर्ा र्ह भी स्पष्ट कीविए
वक ” वहवडय ” का अर्थ क्ा है।
उत्तर – आधी िात प्रभु दिसण ,दीज्यो जमनाजी िे तीिा।
मीिााँ िा प्रभु गगिधि नागि , गहवड़ो घणो अधीिा।
अथाश त मीिा कहती हैं गक हे ! मेिे प्रभु गगिधि स्वामी मेिा मन आपके दर्शन के गलए इतना बेचैन है गक वह सुबह का
इन्तजाि नहीिं कि सकता। मीिा चाहती है की श्री कृष्ण आधी िात को ही जमुना नदी के गकनािे उसे दर्शन दे दें ।
इस पद में ” गहवड़ो ” का अथश ” हृदय यागन मन ” से गलया गया है । “गहवड़ो घणो अधीिा ” अथशत हृदय या मन बहुत
बैचेन हो िहा है ।
प्रश्न 7 – लयग मीरा कय बावरी कहते र्े। स्पष्ट कीविए क्यं ?
उत्तर – मीिा कृष्ण – भक्ति में अपनी सुध – बुध खो चुकी थी। उन्हें गकसी पििं पिा या मयाश दा का भी ध्यान नहीिं िहता
था। वह कृष्ण प्रेम में पागल होकि उनकी मूगतश के सम्मुख नाचती िहती है । वह कृष्ण को अपना पगत मानती थी। मीिा
सिंतोिं की सिंगगत में िहती थी। कृष्ण – भक्ति के गलए उन्होिंने िाज – परिवाि छोड़ गदया , लोकगनिंदा सही तथा मिंगदिोिं में
भजन गाए , नृत्य गकया। उसके इन्हीिं कायों के कािण लोगोिं ने उसकी भिपूि गनिंदा की पििं तु मीिा तो सब सािं सारिकता
को त्याग कि कृष्ण की अनन्य भक्ति में िम चुकी थी। मीिा की अनन्य कृष्ण – भक्ति की इसी पिाकष्ठा को बावलेपन
की सिंज्ञा दी गई है । इसी कािण लोग उन्हें बाविी कहते थे।
प्रश्न 8 – मीरा िी के पदयं की क न सी भाषा है ?
उत्तर – मीिा जी के पदोिं में िाजस्थानी औि बृज भाषा का गमलाजुला प्रयोग गमलता है ।
प्रश्न 9 – दु सरे पद में मीरा िी श्री कृष्ण से क्ा प्रार्थना करती हैं ?
उत्तर – दू सिे पद में कवगयत्री मीिा जी श्री कृष्ण के प्रगत अपनी भक्ति भावना को उजागि किते हुए कहती हैं गक हे !
श्री कृष्ण मुझे अपना नौकि बना कि िखो अथाश त मीिा गकसी भी तिह श्री कृष्ण के नजदीक िहना चाहती है गिि चाहे
नौकि बन कि ही क्ोिं न िहना पड़े । दू सिे पद में मीिा श्री कृष्ण की नौकि बनने की गवनती इसगलए किती है क्ोिं गक
वह श्री कृष्ण के दर्शन का एक भी मौका खोना नहीिं चाहती है। वह कहती है गक वे बगीचा लगाएाँ गी तागक िोज सुबह
उठते ही उन्हें श्री कृष्ण के दर्शन हो सकें।

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