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t.

me/HindiNovelsAndComics
t.me/HindiNovelsAndComics

D U S R I D U N I YA
inspire by true story

Prem S Gurjar

Kavyam Publication
t.me/HindiNovelsAndComics

Copyright © 2019 Prem S Gurjar

All rights reserved

The characters and events portrayed in this book are fictitious. Any similarity to real persons, living or
dead, is coincidental and not intended by the author.

No part of this book may be reproduced, or stored in a retrieval system, or transmitted in any form or
by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording, or otherwise, without express written
permission of the publisher.

ISBN-13: 9781234567890
ISBN-10: 1477123456

Cover design by: Art Painter


Library of Congress Control Number: 2018675309
Printed in the United States of America
t.me/HindiNovelsAndComics

दूसरी दुिनया
(उप यास)

लेखक

ेम एस गुजर

लेखक प रचय:-
पहले ही उप यास ‘ फलाॅसाॅफस टोन’ से सु खय म आनेवाले ेम एस गुजर राज थान
के उदयपुर शहर से 80 कमी दूर एक छोटे से गांव से ता लुक रखते है। फलासाफस टोन
वष 2018 को नई द ली के िह द यु म पि लके शन से कािशत आ था। ये अमेजन क
बे ट सेलर िल ट म थान बना चुका है। कािशत होते ही ये नावेल टीवी और ंट
मीिडया क सुिखय म रहा।

लेखक फ म के िलए ट लेखन का काम भी कर रहे ह। इनक िलखी ट पर


ज द ही एक वेब सी रज बनने वाली है।

लेखक का दूसरा उप यास ‘स ावाला यार’ नाम से कािशत होने के िलए ेस म गया
आ है। ये लव टोरी पर आधा रत उप यास है। इसम राज थान क माटी क स धी महक
महसूस क जा सकती ह। ये राज थान क आंचिलकता के खूबसूरती के साथ समेटता है।
कहानी को ब त ही खूबसूरती के साथ तुत कया गया है क पाठक अंत पढ़े बगैर उठ
नह सकत। इस नावेल पर फ म बनने क तैयारी है। तीसरा उप यास ‘रह य’ नाम से
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शी ही मु बई के बुक कै फे पि लके शन से कािशत होनेवाला है जो क ांटम भौितक पर


आधा रत सांइस फ शन उप यास है।

लेखक का पहला कहानी सं ह शी ही ‘सरकारी नौकरी’ नाम से आनेवाला है।

दैिनक भा कार और गितशील लेखक संघ ारा ेम एस गुजर को िह दी सािह य म युवा


सािह यकार के प म कहानी और कथा िवधा म दूसरा थान दान कया गया।
सािह यकार ानरं जन जी, उदय काश जी, ममता कािलया जी और िजते भा टया जी
के िनणायक म डल ारा ेम एस गुजर को कहानी और कथा िवधा म दूसरा थान दया
गया।

वतमान म लेखक राज थान िश ा िवभाग म ा यापक पद ‘झील क नगरी’ उदयपुर म


कायरत ह। ातक, िश ा ातक के प ात् िह दी सािह य, इितहास एवं राजनीित
िव ान म ातको र क उपािध ा क । िह दी एवं इितहास म रा ीय पा ता परी ा
(नेट) उ ीण तथा िह दी म रा य पा ता परी ा (सेट) भी उ ीण कर ली।

© ेम एस गुजर

इस उप यास के सारे अिधर सुरि त है। कसी कार का कं टट कॉपी करने


पर कानून कायवाही का अिधकार होगा।
का म् पि लके शन
ीनाथ कालोनी, बड़गांव,
उदयपुर, राज थान 313011
संपक - 9829163272

ई-बुक य :-
समय के साथ याएँ भी बदल रही ह। पहले पा डु िलिप पूरी होने के बाद काशक को
भेजी जाती थी। काशक उसे छापने म कभी एक साल तो कभी दो साल भी लगा देते थे।
अब ऐसा नह है। मने इस नॉवेल को िलखते ही सबसे पहले ई-बुक के प म कं डल पर
कािशत कर दया और पा डु िलिप काशक को भी भेज दी। जब तक काशक इसक
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ितयाँ छापेगा, तब तक कई लोग इसे ई-बुक के प म कं डल पर पढ़ चुके ह गे। आनेवाला


समय ई-बुक का होगा। मने भी नया रा ता चुना। अब कोई भी रचना िलखकर सबसे पहले
छपवाने क भागदौड़ नह करता। उसे ई-बुक पर कािशत कर देता ँ और फर आराम से
काशक को भेजता ।ँ मुझे बैचेनी नह रहती और काशक को बार-बार परे शान भी नह
करना पड़ता क या ो ेस है? समय के साथ याएँ बदलती ह और हम नये आयाम
को वीकार कर उनका वागत करना चािहए।
जो युवा िलख रहे ह उनसे भी यही क गँ ा क वे ई-बुक के मह व को समझे। दुिनया
िडजीटल हो रही है। लोग फटाफट कताब पढ़ रहे ह। ऐसे म ई-बुक सबसे अ छा िवक प
है।

- ेम एस गुजर

कृ त ता
आप सभी पाठक का दल से कृ त ँ क आपने नॉवेल ‘दूसरी दुिनया’ को इतना पसंद
कया। मुझे लगातर मेल पर या मोबाइल पर ित याएँ िमलती रहती ह। म हमेशा से
इस सोच का समथक रहा ँ क कहानी के वल टाइमपास का ज रया नह होनी चािहए।
और ना ही इतनी गंभीर होनी चािहए क एक लाइन से दूसरी पढ़ने का मन ही नह कर।
म म यम माग का प धर ।ँ इस नाॅवेल म मने मनोरं जन के साथ-साथ साथक संदश
े भी
दया ह।
आप सभी का दल से शु गुज़ार ।ँ
- ेम एस गुजर
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भा ग - 1
पहली दुिनया:-
रात के दस बजे, खेड़ा गांव म चार तरफ स ाटा पसरा आ। एकाध घर म से कसी बुजुग
के खांसने या कसी ब े के रोने क ह क सी आवाज़ सुनाई दे जाती उसी कार जैसे कोई
म छर का ब ा कान के पास आकर धीमे से िभनिभना जाता है। कभी-कभी ठ ड से
ठठु रते ए कसी काणे कु े के रोने क आवाज़ आ जाती जो मानो सूिचत कर रहा हो क
ठ ड ब त बढ़ गई है और कोई घर से बाहर नह िनकले। कभी दूर खेत से िसयार के
‘ ई... ई..’ करते वर सुनाई दे रहे थे। अिधकांश ामीण सो चुके थे। देर रात तक जलने
वाले अलाव भी अब बंद हो चुके थे। सद हवा के झ के ने प थर तक को कं पकपा दया था।

‘‘अगर आप लोग को बोझ लग रहा ँ तो कल ही गाँव छोड़कर चला जाऊंगा।’’ मुकेश ने


आँसू रोकते ए कहा। नह चाहते ए भी उसे रोना आ रहा था ठीक उसी कार जैसे
जीवन म ब त कु छ नह चाहते ए भी आ जाता है, जैसे दुख, दद, तकलीफ, असफलता,
िनराशा इन सब का कोई वागत नह करता फर भी आ नामुराद जाते है दुम िहलाते ए।
िजस चीज को िजतना अिधक रोकते है वो और अिधक बल होकर हमारे जीवन म आती
है। इसे आकषण का िस ांत कहो या भा य क भड़ास, पर यही सच है।
‘‘तेरा मोटा भाई होने के नाते ये तुझे दो बात सुना सकता है। अगर इतना ही घम ड है तो
चला जाना।’’ मुकेश क माँ ने जैसे उसके मुँह पर प थर ही मार दया हो। उसे तो लगा था
क फ म म माँ को ब त ही समानुभूितपूवक दखाया जाता है पर यहाँ तो माँ खुद अपने
बेटे को घर से िनकाल रही है। उसे उ मीद नह थी क भाई के साथ-साथ माँ भी उससे
प ला छु ड़ाना चाहती है। सुना तो था पर अब यक न हो गया क इं सान क वै यू के वल
दौलत के मानद ड से ही क जाती है। सगे-संबंधी भी उसका साथ छोड़ देते है िजसके पास
फू टी कौड़ी नह होती। सगी माँ ने भी आज उससे कनारा कर िलया; य क वो अभी तक
जीवन म सफल नह हो पाया। सफलता इतनी भी ज री तो नह होनी चािहए थी क
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लोग उसके आधार पर ही सारे र ते-नाते बनाये-िबगाड़े।


‘‘िजतनी तेरी जुबान चलती है उतना दमाग चलाया होता तो कोई नौकरी िमल जाती।’’
मुकेश के बड़े भाई रामे र ने फटकारा। गांव म बड़े भाई को वैिधक परिमशन होती है
छोटे भाई को कू टने या लताड़ने क जब क छोटा बड़े के िखलाफ एक श द भी बोला नह
क चार तरफ ािह- ािह मच जाती है।
रामे र मुकेश से चार साल ही बड़ा था। िपताजी सरकारी ाइमरी कू ल म चपड़ासी थे।
बड़ी मुि कल से घर का गुजारा हो पाता था। इ ेफाक से तीन साल पहले उनक ए सीडट
से मृ यु हो गई। उनक जगह पर बड़े भाई रामे र को अनुकंपा नौकरी िमल गई। रामे र
ने बीए-बीएड कर रखी थी और िपछले पाँच साल से सरकारी नौकरी क तैयारी कर रहा
था; पर नौकरी नह िमली। जब भी रज ट आता और रामे र का सले शन नह होता तो
कु छ श द कॉमन होते जो उसके मुँह से िनकलते जब कोई उससे उसके रज ट या सले शन
के बारे म पूछता, ‘आजकल सरकारी नौकरी के िलए क पी टशन कतना तगड़ा हो
गया...सब फज वाड़ा होता है, दस-दस लाख पये देने वाले बैठे है ऐसे म तैयारी
करनेवाल का कहाँ नंबर आता। और अंितम बहाना होता, भा य ने मेरा साथ नह दया
बस एक ही नंबर से वंिचत रह गया।’ और लोग उसक हाँ म हाँ िमला लेते क भला भा य
से ऊपर कोई चीज़ होती है या? जब रामे र पूरी तरह से िनराश हो चुका था क
अचानक िपताजी क मृ यु होने के कारण उसे बाबू क नौकरी िमल गई। उसके बाद उसने
अपने भा य को खूब सराहा और सारे देवता के चूरमा-बाटी क सादी करवायी।
शु -शु म तो उसने छोटे भाई का अ छे से खयाल रखा। जब दो साल बाद उसका नौकरी
म थाईकरण हो गया तो धीरे -धीरे भाई के ित ेह उसी कार कम होने लगा जैसे
सौतेली माँ का ेह कम होता जाता है।
‘‘मुझे नसीहत देने क ज रत नह है। म अपना गुजारा कर सकता ।ँ खैरात क नौकरी
ना िमली तो ना सही।’’ मुकेश ने आज पहली बार बड़े भाई के िखलाफ कड़े ल ज का
इ तेमाल कया। वो तंग आ चुका था अपने इस जीवन से व रोज-रोज के तान से। आिखर
कोई कब तक सहता रहे। हर चीज़ क सीमा होती है पर उसके भाई-भाभी और माँ ने तो
जैसे मोचा ही खोल दया है उसके िखलाफ।
छोटे भाई के मुंह से खैरात क नौकरी वाली बात रामे ार को चुभ गई। उसने आव देखा
ना ताव, आगे बढ़कर एक झापट मुकेश को रसीद कर दी। माँ बीच म पड़कर रोका, वो
मुकेश से सहानुभूित रखती थी इसिलए नह रोका बि क इसिलए रोका क पड़ौसी तमाश
देख रहे ह गे, कल खेत-कु ए पर ताना मारगे, चुपके -चुपके हमारे ऊपर हँसगे।
‘‘मुझसे जुबान लड़ता है साले... यही तमीज है तुझम। मादरssss... गेलssss...’’
‘‘हाँ तो मने या गलत कहा? आप भी तो बीएड कर के कई क साल से बेरोजगार थे।
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वो तो अनुकंपा पर िनयुि िमल गई वरना कौनसा आप कल टर क परी ा पास कर


दए थे।’’
‘‘चुप कर साले! वरना सारे दाँत तोड़ दूग
ं ा।’’
‘‘हाँ तो तोड़ दीिजए ना। आपके कलेजे म ठं डक तो पड़ जाएगी।’’
’’इतना ही घम ड है तो फड़फड़ करने के बजाय जीवन म कु छ बन के दखा देता ना। तू ही
बन जाता ना कल टर।’’
‘‘मु क नौकरी पर इठला रहे हो। िपछले पाँच साल से क पी टशन दे रहे थे अगर दम
होता तो खुद के बलबूते पर नौकरी लग के बता देते।’’
‘‘अबे जा साले...। मेरी छोड़...तू खुद तीन साल से क पी टशन दे रहा है। तु ही लग के
बता देता। बीए तक तो मने पढ़ा दया। उसके बाद कािबिलयत होती तो अपने पैर पर
खड़ा होकर बता देता।’’
‘‘एक दन ऐसा आयेगा जब कु छ बड़ा कर के बता दूग
ं ा। जा रहा ँ घर छोड़ कर, िजस
दन स सैस िमलेगी उस दन ही अपना चेहरा दखाऊंगा।’’ मुकेश ने तय कर िलया क
इसी व घर छोड़ देगा। जहां आ मस मान नह हो वहां एक पल कने म घुटन सी लगने
लगती है।
वह दौड़ा-दौड़ा कमरे म गया, एक फटा बेग लेकर उसम दो जोड़ी कपडे जो क अभी तक
क उसक संिचत स पित थी, िजयो का चाजर, एक पुरानी कताब, आधार काड और दो
पारले जी िब कु ट के पांच-पांच पये वाले पैकेट रख दए य क आज सवेरे से उसने
खाना नह खाया था। पे ट क जेब म पस रख दया, रखने से पहले खोलकर देखा, के वल
पचास पये का एक नोट और खु ले तीन-चार पये पड़े थे। दूसरी जेब म िजयो का प ह
सौ पये वाला फोन रख दया, िजसम िपछले दो मिहन से बैलस नहीे था।
बाहर ठ ड ब त थी। उसके पास कोई वेटर भी नह था, पैसे होते तो वेटर आता। यहाँ
तो बड़े भाई के तान के अलावा उसके जीवन म बचा ही या था। एक फटी-पुरानी सॉल
थी िजसे ओढ़कर, बैग पीछे लटकाते ए उस कमरे को मानो अंितम बार देखने लगा िजसम
िपछले तीन साल से कै द था। पढ़ाई कर रहा था पर कसी कै दी के समान। कै दी को भी
कम से कम टाइम-टू -टाइम खाना और रे ट करने को िमलता। उसे तो घर के काम करवाने
के अलावा एक िमिनट भी रे ट नह , रातभर पढ़ता और दन म दो-चार घ टे सोने को
िमलते।
जैसे ही घर से रवाना होने लगा, सोचा क शायद माँ पीछे से आवाज़ लगाकर रोक लेगी।
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कम से कम रात भर के िलए तो रोक ही सकती है। डाटते ए कहेगी क ‘घर छोड़कर


जाना ही है तो सवेरे चले जाना। इस समय कड़ाके क ठ ड पड़ रही है और रा ते म घना
जंगल पड़ता है। वहां से इतनी रात को कोई पेदल नह जाता।’ कं तु ऐसा कु छ नह आ।
माँ ने उ टा कह दया क, ‘‘चला जा करमखोड़ले। अगर मालूम होता क तेरे जैसी
िनक मी औलाद पैदा होगी पैदा होने से पहले ही गला घोट देती।’’
‘‘हाँ जा रहा ।ँ ’’ कहते ए मुकेश ने वो घर छोड़ दया जहाँ बचपन से अभी तक उसक
याद जुड़ी थी। वह पैदल ही शहर क तरफ चल दया। दमाग म िवचार का तुफान
म डरा रहा था क आगे या होगा? कहाँ जायेगा? जेब म कौड़ी नह । सोचने लगा, ‘लोग
कतने ज दी बदल जाते ह। र ते-नाते सब बकवाज़ ह। यहाँ कोई कसी का नह होता।
सब वाथ के र ते-नाते है। पलभर पहले सोचा भी नह था क घर छोड़ना पड़ेगा। मने तो
पूरी कोिशश क थी नौकरी लगने क पर सले शन नह हो पाया। आजकल कं पी टशन भी
कतना टफ हो गया है। लोग साल को चंग करने के बाद भी सरकारी नौकरी नह लग
पाते, म तो घर पर ही पुरानी कताब से तैयारी कर रहा ।ँ िपछली बार दो नंबर से ही
चूक गया था। एक गलत होने के कारण माइनस मा कग हो गई और सले शन से
वंिचत रह गया। साले भी तो इतना घुमाकर पूछते है क सामनेवाला घनच र बन
जाता है।
साचते-साचते खेड़ा गांव के सारे घर उसक आँख के सामने गुजरते जा रहे थे। सब घर के
दरवाजे बंद थे और लोग शांित से सो रहे थे। देखते ही देखते उसके सामने से मनोहर जी,
मांगी लाल जी, लालूराम जी, दयाशंकर जी, बापू, भवंरलाल जी, जानाबा, हमेराबा के
घर िनकलने लगे। मानो वे सारे घर मौन वर म आपस म उसी के बारे म बात कर रहे हो,
उसे कोस रहे हो, लानत दे रहे हो क कै सा आदमी है एक नौकरी नह लग सका और भाई
को चैलद दे आया क एक दन देश दुिनया मुझे जानेगी। मुकेश को लगा क अंधेरे म सारे
घर के आँख आ गई हो और उ लू क भाँित खेड़ा गाँव के सारे घर उसे ही देख रहे हो। गांव
का अंितम घर मुरली साधु का आया व उसके बाद देव थान आया। उसने एक बार पीछे
पलटकर गाँव को देखा और अगे चल दया।
जीवन क पहेली भी के डी श क तरह होती है क एक के बाद एक मुि कल टेप आती
रहती है। हर बार अगली टेप िपछली से यादा मुि कल होती है। सबसे बड़ी दुख क बात
तो ये क दोन म गेम क अंितम टेप तक कोई नह प च ँ सका। जो च चं ा वो फर िज दा
ही नह बचा। इस कार एक पहेली ही बनकर रह गई जीवन क अंितम टेप भी। ज र
अंत के पल ब त ही खूबसूरत रहे ह गे क िजसने भी देखी वो लौटकर वापस इस नामुराद
दुिनया म नह आया।
उसे लगने लगा क अब उसके जीवन म कु छ भी नह बचा। सब ख म हो गया। सोचने लगा
क मेरा वजूद ही य है इस दुिनया म? या ये दन दखाने के िलए उस िनदयी
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सृजनकता ने मेरा सृजन कया। उसे अपने जीवन से नफरत होने लगी। ऐसा समय भी
आता है जब सारी चीज हमारे िवपरीत होने लगे तब हम यादा मजबूती से उभरते है।
मुि कल हम हमारी असली ताकत से, हमारे अंदर क मता से प रचय कराती है।
गु सा सब को आता है पर कम ही लोग इसे सही दशा दे पाते है। मुकेश को भी ब त
गु सा आ रहा था क सारे गाँव को आग लगा दे, कह दे जाओ तुम सब मेरी तरफ से भाड़
म जाओ। कह दे एक दन म भी कु छ बन के दखाऊगा। इस समय उसने अपने सारे गु से,
टेशन को डायरे शन देकर अपनी मंिजल क तरफ मोड़ दया। आज दृढ़ िन य कर
िलया क सफल होकर ही दखाएगा। अगर स सैज को ही पूजते है तो वो भी स सैज
होकर दखाएगा।
अपनो से लगे घाव सबसे यादा तकलीफ देते है। मुकेश बीए पास करने के बाद नौकरी क
तैयारी कर रहा था। घर पर ही रहकर पढ़ाई करता। पहले-पहल तो बड़े भाई ने थोड़ ब त
पढ़ाई का खचा दया पर बाद म शनैः-शनैः वो भी बंद कर दया। धीरे -धीरे उस पर तंज
कसने लगा। आये दन ताने मारता। मुकेश दस िमिनट के िलए भी घर से बाहर कह दो त
के साथ बात करता दख जाता तो रामे ार उसे तान से छलनी कर देता। मुकेश भी अंदर
ही अंदर घुटने लगा। माँ भी रामे र क हाँ म हाँ िमलाती य क इस समय उसका कमाऊ
पूत तो रामे ार ही था। सोने का अ डा देने वाली मुग से कौन बैर रखता है।
आज उसने वो सारी िडि याँ पीछे छोड़ दी जो िपछले प ीस साल म इक ी क थी। जेब
म के वल पचास पये है। इसी से आगे का जीवन गुजारना है। अब उसके पास खोने के िलए
कु छ भी नह बचा; कं तु पाने के िलए पूरी दुिनया है। जब हम पहले से ही गत म होते ह तो
और अिधक िगरने का डर िमट जाता है। ना िगरने का डर, ना असफल होने का डर, ना
दौलत खोने का डर। िगरने से पहले ही िगरने का डर सताता है।
देखते ही देखते गांव पीछे छू ट गया। उसने मोबाईल म टोच चालू कर दी और चुपचाप
चलने लगा। चार तरफ घना जंगल था। घु प अंधेरा।

दूसरी दुिनया:-
रा ल जैन मु बई क हाई ोफाइल पाट से बाहर िनकला। चार तरफ से कै मरा िलए
रपोटर व उसके फे न आरजे क एक झलक पाने को मचल रहे थे। चाकाचैध रोशनी म उसे
आठ-दस बोडीगाड घेरे ए चल रहे थे। बोडीगाड भीड़ को दूर हटाकर आरजे के िलए
रा ता बना रहे थे। इस समय आरजे के चेहरे पर कोई अलौ कक चमक दखाई दे रही थी।
‘‘आर.जे.......आरजे........आरजे......’’ लोग एक वर म टंग कर रहे थे।
‘‘सर सुना है आप शादी करने वाले है।’’ रपोटर ने माईक उसक तरफ करते ए दम
लगाकर पूछा। उसने रपोटर क तरफ देखा तक नह ।
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‘‘लगातार तीन फ म सुपरडू पर िहट देने के बाद आपको कै सा लग रहा है।’’ दूसरे ने ने
पूछा। एक-एक कर के सब कु छ ना कु छ पूछ रहे थे-
‘‘सर मुझे ओटो ाफ दीिजए।’’
‘‘म आपक ब त बड़ी फे न ।ँ ’’
‘‘आप कमाल क ए ट ग करते हो।’’
‘‘आगामी ोजे ट के बारे म कु छ बताइये?’’
इसी कार हाथ म माइक िलए मीिडया और लोग का जूम बेकाबू-सा हो रहा था िजसे
बोडीगाड बखूबी रोके ए थे। आरजे कु छ भी नह बोला। ह क सी दखावटी मु कान
चेहरे पर िबखरते ए चलने लगा। ये तो उसका रोज का टीन है। कभी-कभी उसे लोग
पर तरस आता। कतने फलतू होते है। मेरी एक झलक के िलए घंट खड़े रहते है। मुझे
फॉलो करते है। यही तो इस दुिनया क सबसे बड़ी कमजोरी है। वो दूसर को फोलो करती
है। लोग दूसर के जैसा बनना चाहते है। वे उनके जैसा दखना चाहते है। उनके साथ से फ
लेना चहते है। कोई भी अपने अंदर झांककर नह देखता क वो सबसे अलग है। यहां कोई
कसी के जैसा नह बन सकता। सबके अलग-अलग रा ते ह। सब म वही कािबिलयत है जो
मुझम है पर वे उसे पहचान नह पाते। ‘‘सर गाड़ी तैयार है।’’ एक गाड ने आरजे के कान
के पास आकर कहा। गाड क आवाज़ से उसका चंतन म टू टा। सामने लेक कलर क
बीएमड यू जो तकरीबन पचास करोड़ क होगी, आकर क । एक गाड ने दरवाजा
खोला और आरजे तपाक से उसम बैठ गया। उसके आगे-पीछे तीन-तीन गािड़यां
िस य रटी गाड क थी। देखते ही देखते गािड़याँ वहाँ से च फू च र हो गई। पीछे खड़े
लोग के वल एक झलक पाकर ही अपने आप को ध य मान रहे थे मानो सा ात ई र के
दशन हो गए हो।
‘‘तु हे पता है लोग मेरे दीवाने है। मुझे कतना यार देते है। म तो बस इस दुिनया पर छा
गया ।ँ ’’ आरजे ने ाइवर से कहा।
‘‘जी सर !’’
‘‘ऐसा लगता है ये िज दगी एक वग है। यहाँ मेरे पास वो सब कु छ है िजसका लोग सपना
देखते है।’’
‘‘यू आर रयली ेट सर!’’
‘‘कभी-कभी सोचता ँ ये सब वाकई म सच है या म कोई सपना तो नह देख रहा ?ँ ’’
इतने म आरजे के हाथ म मोबाईल क रं ग बजी। आई फोन इलेवन का मोबाइल था
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िजसपर गो डन लेट चढ़ी ई थी।


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भा ग - 2
पहली दुिनया:-
अब गांव काफ पीछे छू ट चुका था। गांव के एकाध घर म जलते ब ब क रोशनी अब
मि म होते ए िवलीन होती जा रही थी। वो इतनी ह क हो गई थी जैसे जुगनू चमक
रहा हो। शनैः शनैः वो भी गायब हो गई। मुकेश का अतीत अब उसका साथ छोड़ चुका था।
उसे अपने वतमान से ही भिव य का िनमाण करना है। उसक आँख अभी भी नम है क
कतना ज दी लोग अपन का साथ छोड़ देते है। काश उसके िपताजी होते तो आज उसे इस
हाल म घर नह छोड़ना पड़ता। वो एक बार तो ज र रोक लेते। वे ऊपर से देख रहे ह गे
इस िन ु र दुिनया क दुिनयादारी को। ज र उनक आँख नम हो गई होगी मेरी क मत
और प रवार वाल के िबहेिवयर पर।
वह चुपचाप चलने लगा। घनी रात और स ाटा कसी अनहोनी से सावचेत रहने के िलए
उसक इं य को स य कए ए था। इस समय उसक पूरी चेतना कान पर क त हो
चुक थी। कसी प े के िहलने या पांव क ठोकर से बजते कं कर क आवाज़ भी आती तो
वो सहम कर इधर-उधर देखता। घनी अंधेरी रात म जंगल से गुजना कै सा होता है इसे वही
महसूस कर सकता है जो कभी गुजरा हो। मुकेश पहले भी इस रा ते से गुजर चुका था पर
इतनी रात गए पहली बार आया है।
उसके अवचेन मन म संिचत सारे सं कार और कहािनयां जो इस रा ते और आगे आनेवाले
मशान के बारे म गांव के बड़े-बुजुग ारा भयानक अंदाज म सुनाई गई थी वो सब चुपके -
चुपके उभर कर बरसाती क ड़ क तरह बाहर आ रही थी। वो अपना यान इन सब से
हटाने का बल यास कर रहा था उतना ही नाकाम हो रहा था। वाकई म हमारा दमाग
एक मंक माइ ड क तरह है। इसे िजस चीज के बारे म सोचने के िलए मना कया जाये ये
क ब त उसी के बारे म सोचेगा। मुकेश का यान इस समय नह चाहते ए भी आगे
आनेवाले मशान क तरफ जा रहा था।
इसी रा ते तो उसके िपताजी को लेकर मशान गये थे। तब वो कतना रोया था। देखते ही
देखते उसके िपताजी धधकती वाला म जलकर राख हो गए थे। तब वहां मौजूद हर इं सान
दाशिनक हो गया था। न र शरीर और आ मा-परमा मा के िवचार म डू बा आ था। सब
के सब मौन, जलती आग म नजर गड़ए कसी शू य म डू बे ए से देखे जा रहे थे। उसने भी
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देखी थी वो लपट, जो कु छ ही पल म उसके िपता के अ ती व को ही लील गई।


रा ता गांव क मशान के ठीक म य म होकर गुजरता है इसीिलए लोग रात के अंधेरे म
इस रा ते से नह जाते। कसी के कतना भी ज री काम य ना हो तो भी लोग इस रा ते
से नह गुजरते, खास तौर पर म य राि को।
इस समय रात के ए जे ट बारह बजे है। मुकेश मशान तक प च ं गया। उसे याद आने
लगा क गांव के लोग बात कया करते थे क रात के ठीक बारह बजे भूलकर भी मशान
क तरफ नह फटकना चािहए। उस समय सारी आ माएं जा त होती है। भूत आस-पास
घूमते ह और चुड़लै पेड़ क टहिनय पर अटखेिलयाँ करती ई, गीत गाती ई, िचखती-
िच लाती ई आने-जाने वाले मुसा फर को िनगल जाती ह और डकार भी नह लेती।
कहते है क गुिड़या के बाल क तरह वे इं सान को मुँह म रखकर झट से पानी बना देती
है। जाने कतने भयानक क से सुने थे उसने गांव म अलाव जलाते लोग के मुँह से तब
सोचा नह था क एक दन मुझे भी ठीक बारह बजे इस मन स मशान म आना पड़ेगा।
उसके शरीर म कं पकं पी छू ट रही थी ये सोचकर क मेरा यहाँ आना और घड़ी म ए जे ट
बारह बजना के वल संयोग तो नह हो सकता, ज र कसी अनहोनी का संकेत है। नह
चाहते ए भी उसक नज़र मशान क तरफ चली गई जहां मुद को जलाया जाता।
अचानक उसे एक आदमी काला चोगा पहने, मशान के ठीक ऊपर खड़ा दखाई दया, जो
उसी क तरफ देख रहा था। उसक आँख िब ली क आँख क तरह अंधेरे म भी ह के नीले
रं ग म चमक रही थी। मुकेश के र गटे (रोम) खड़े हो गए। दल क धड़कन धूम मचाने
गली।
वो तेज-तेज कदम से आगे बढ़ने लगा। ये तो नमान चालीसा के ोक थे जो उसे अभी
तक जंदा रखे ए थे वरना कब का डर के मारे गश खाकर िगर पड़ता। तुलसीदास जी ने ये
अ छा कया क हनुमान चालीसा िलखी और उसम भी पेशली भूत-िपचास का िज
कया। वो खास तौर से एक ही लाइन को बार-बार व जोर से रपीट करने लगा, ‘भूत-
िपचास िनकट नह आवे। महावीर जब नाम सुनावे...’ उसने आवाज़ इतनी तेज़ कर दी क
आसानी से मशान पर बैठे उस भूत को सुनाई दे और वो थोड़ा ब त भी िलहाज कर के
उसे खाने का िवचार छोड़ दे। आवाज के साथ-साथ मुकेश के कदम भी तेज होने लगे।
चुड़ल
ै के बारे म तो उसने सुन रखा था क जब भी चुड़ल ै दखे तो अपने सारे कपड़े
खोलकर तीन बार थूंकने के बाद आंखे बद कर लेनी चािहए। चुड़ल
ै शमाकर गािलयां
बकती ई चली जाएगी। इस समय वह चुड़ल ै प रवार क तरफ से तो आ त था क उसे
तो कपड़े खोलकर भी भगा देगा भले ही उसके िलए उसे थोड़ी देर के िलए िनव होना
पड़ेगा पर इस समय इ त से अिधक जान क चंता सता रही थी। कं तु उसक असली
चंता इस बात पर थी क भूत के बारे म तो गांव वाल ने कोई उपाय बाताया ही नह ।
ऐसी ही बात सोचते ए वो भागा जा रहा था क अचानक उसके दा तरफ तेज रोशनी
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चमक । उसने उस तरफ देखा तब तक वो गायब हो चुक थी। उसका कलेजा बैठ गया।
तभी पीछे से ‘सर-सर’ क आवाज आने लगी। जैसे कोई घसीटा कर चल रहा हो। अब तो
उसे यक न हो गया क प ा भूत ही है। वो बस वहां से भाग जाना चहता था। मोबाइल क
रोशनी बंद हो गई। उसे आ य आ क अपने आप कै से बंद हो गई। तभी ठोकर लगने से
वो िगर पड़ा। सर-सर क आवाज़ उसके नजदीक प च ं गई। उसने मुड़कर देखा तो जैसे
कोई ब त बड़ा काले कलर का छायािच उसी के ऊपर आ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे
कटी गदन का कोई भूत हो िजसक गदन अलग और धड़ अलग मूवमट कर रहे थे फर भी
मानो दोन आपस म जुड़े ए थे। ललाट लाल कलर का बड़ा सा ितलक लगा आ तीत
हो रहा था। उसे लगा जैसे वो वह बेहोश हो रहा है।
‘‘तुम इतना डर य रहे हो?’’ काले चोगेवाले ि ने पूछा जो उससे चार कदम दूरी
पर खड़ा था व उसका के वल चोगा, िसर पर िशकारी टोपी और पांव म आम के जुते पहने
दखाई दे रहे थे। अंदर का पूरा शरीर गायब था। जैसे के वल कपड़े ही हवा म लहरा रह हो।
चेहरे पर के वल दो बड़ी-बड़ी नीली डरावनी आँख ज र दखाई दे रही थी िजनके ज ट
ऊपर िस दुर का बड़ा सा ितलक लगा आ था।
‘‘म म् ममममम....’’
‘‘तुम इतना डर य रहे हो?’’ उस आदमी क आवाज़ फर से आई। उसक आवाज़ हर
बार बदल-बदल कर आ रही थी। जैसे एक आदमी के अंदर कई सारे आदमी या आ माएँ
दबी पड़ी हो।
‘‘मुझसे कोई गलती हो गई हो ता माफ कर दो। मुझे जाने दो।’’ वो जमीन पर पड़े-पड़े
िगड़िगड़ाया।
‘‘हम तु ह डराने के िलए नह आये। तु हारी मदद करने के िलए आया आये ह।’’ चोगा
घसीटाता आ उसके नजदीक आ रहा था।
‘‘मुझे मत मा रए। आपके हाथ जोड़ता ,ँ लीज मुझे मत मा रए। आपको या चािहए?
मुझे जाने दीिजए।’’ मुकेश को समझ आ गया क अब उसका अंत नज़दीक आ गया है।
‘‘हम कु छ नह चािहए।’’ एक साथ सारी आ माएं बोली। ‘‘तो अब सवाल ये उठता है क
तु ह जीवन से या चािहए?’’ चोगे म से कसी अधेड़ क आवाज़ आई।
‘‘म...मुझे कु छ नह चािहए। लीज! बस जाने दीिजए।’’
‘‘ज दी से हमारे सवाल का जवाब दो लड़के वरना िज दा नह बचोगे।’’ इस बार कसी
डॉन टाइप आ मा क दहाड़ सुनाई दी मानो वसूली करते ए मरनेवाले आदमी क
भटकती आ मा हो। मुकेश समझ गया क इसी चोगे म सारी आ माएँ राि िवचरण पर
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िनकली होगी। अब वो मेरा बचना मुि कल है। तभी उसे बड़े-बुजुग क एक बात याद
आयी क भूत से बचना नामुं कन है कं तु अगर उनके सवाल का ईमानदरी से सही-सही
जवाब देते रहो तो वो दया कर के छोड़ भी सकते है। हालां क ऐसा कसी के साथ आ
नह , ये एक एसी यौरी थी िजसे पहली बार इि लीमट करना है। उसने िव म-बेताल क
कहानी भी सुन रखी थी िजसम राजा िव मा द य बेताल नाम के भूत को पकड़ने जंगल म
जाते है, घनी अंधेरी रात म अचानक बेताल उनक पीठ पर सवार होकर उनक गदन
जकड़ कर अपने सवाल के सही-सही जवाब देने को कहता है। िव मा द य जब तक सही-
सही जवाब देते रहते, तब तक वो उ ह नह मारता। मुकेश को भी लगा क इस समय इस
भूत के सवाल का ईमानदारी से जवाब देना चािहए। यही अंितम रा ता बचा है।
‘‘तु ह जीवन से या चािहए?’’ इस बार कसी सनक आ मा ने झ लाते ए पूछा।
‘‘म....म...’’ उसे कु छ भी याद नह आ रहा था क या बताये? आज दन तक उसने कभी
खुद से ये सवाल कया ही नह था क आिखर मुझे जीवन से या चािहए? जंदगी क
भागदौड़ म कभी इस बात पर पर गौर भी नह कया क जीवन का मकसद या है? तभी
अचानक उसे याद आया क वो तो सरकारी नौकरी क तैयारी कर रहा था। उसे तो नौकरी
चािहए थी। उसने झट से कहा, ‘‘म जीवन म सकारी नौकरी लगना चाहता ।ँ ’’
‘‘तुम झूठ बोल रहे हो।’’ कहते ए उस चोगे ने मुकेश क गदन पकड़ ली। हाथ क
अगुिलयाँ दखाई तो नह दे रही थी पर उसके गले म जकड़न ज र महसूस हो रही थी।
पकड़ इतनी मजबूत थी क सांस लेने म क ठनाई होने लगी।
अब वो गहराई से सोचने लगा क आिखर उसके जीवन का परम ल य या है? उसे समझ
आ गया क झूठमूठ का जवाब ये भूत लोग पहचान लेते है। ये हमारे सब झूठ पकड़ लेते है।
इनके सामने कसी कार क चालाक नह चलेगी। उसे महसूस आ क वाकई म वो िजस
कं पी टशन क तैयारी कर के नौकरी लगना चाहता था वो तो उसका सपना नह था। वो ये
सब के वल समाज के लोग को दखाने के िलए व अपने आप को सािबत करने के िलए क
कर रहा था क म भी अपने जीवन म सफल ।ँ और सबसे ज री तो आ थक ज रत के
िलए ये नौकरी लगना चाहता था। ये उसके जीवन का सबसे बड़ा सपना नह था। वो
सोचने लगा क आिखर उसके जीवन का सपना या है? हम अपने सपन से इतनी दूरी
बना लेते है क मानो वे हमारे दु मन हो। कभी उ ह अपने करीब फटकने नह देते। पूरा
जीवन गुजार देते है पर एक बार इि मनान से नह सोचते क हमारा सपना या है? हमारे
जीवन का मकसद या है? कभी-कभार सोच भी लेते है तो उसे के वल प रक पना मानकर
रह जाते है। मुकेश ने भी ब त बड़ा सपना देखा था पर उसने कभी उस ओर यान नह
दया।
तभी उसे याद आया क वो तो बचपन से राइटर बनना और फ म म काम करना चाहता
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था। जब छोटा था तो टीवी पर हीरो को देखकर उसके अंदर का ए टर जाग उठता था। वो
अिभनेता के साथ-साथ डायरे टर और ि ट राइटर बनाना चाहता था। उसका सपना
था क वो एक दन महान अिभनेता आरजे से बढ़कर याित अ जत करे गा। आरजे खुद
उसके साथ से फ ि लक कर के अपने इं टा ाम पे पो ट करे गा।
चोगेवाले ने उसका गला और तेज दबाया। वो पसीना-पसीना हो गया। बड़ी मुि कल से
उसके मुंह से आवाज़ िनकाली, ‘‘म राइटर बनना और फ म म काम करना चाहता ।ँ ’’
मुकेश क आवाज सुनते ही उसने गदन छोड़ दी। सांस म सांस और जान म जान आयी।
खांसते ए बोला, ‘‘म भी मश र ए टर आरजे क तरह बनना चाहता ।ँ ’’
‘‘तु ह ये बात समझ य नह आती क यहां कोई कसी दूसरे क तरह नह बन सकता।’’
इस बार चोगे ने जमीन पर पेर ऐसे पटका मानो जमीन के छेद कर पाताल म चला
जायेगा।
‘‘म म..मेरा बतलब म हमेशा से राइटर, ए टर और डायरे टर बनाना चहता था;
कं तु ये के वल मेरा सपना था। यथाथ ने कभी िव ास ही नह करने दया क ऐसा सपना
मेरी औकात वाला इं सान या पूरा कर सकता है।’’
‘‘तुम या जानते हो सपने और यथाथ के बारे म। तुम कु छ नह जानते। तुम तो ये भी नह
जानते क इस समय सपना देख रहे हो या यथाथ म हो।’’ चोगे ने मानो कोई
रह यो ाटन कया।
‘‘पर इस समय तो वाकई म आप मेरे सामने खड़े हो।’’
‘‘ये के वल तु हारी इस समय क सोच है। कु छ देर बाद ये बदल जयेगी। चीज भी सोच के
साथ बदल जाती है।’’
‘‘ या सच म इस व म सपना देख रहा ?ँ ’’ मुकेश को आ य आ क ये सब या
झंझट है। वो उसे यहां से जाने य नह देते। उसने कभी सुना नह था क भूत या आ माएं
इस कार क बो रं ग बात भी करती है।
‘‘इस बात को तुम कभी नह जान पाओगे क तुम सपना देख रहे हो या यथाथ म हो।’’
‘‘तो आप ही बता दीिजए क सच या है?’’
‘‘कोई फक नह पड़ता क तुम सपने म मंिजल देखते हो या वा तिवकता म। फक तो इस
बात से पड़ता है क तुम या वाकई म उस मिजल को देखते हो िजसे तुम पाना चाहते हो
अपना जीवन ऐसे ही गुजार रहे हो।’’
‘‘म अपने सपने के बारे म सोचता तो था पर कभी उस पर यक न नह कया।’’
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‘‘एक आिखरी सवाल का जवाब सही से दे दोगे तो तु ह छोड़ दया जायेगा।’’ एक आ मा


जो इन सब क इनचाज लग रही थी उसक आवाज़ आयी।
‘‘हाँ....हाँ... छोड़ दया जायेगा।’’ सारी आ माएँ एक साथ बोली।
‘‘जी सर ! पूिछए?’’ कहने के बाद उसे याद आया क उसे ‘सर’ नह बोलना चािहए था।
ये तो अंगे्रजी का श द है और अं ेजी तो फरं िगय क भाषा है। कह भूत नाराज ना हो
जाये क हमसे अंगे्रजी म चटर-पटर करते हो। उसे तो कोई देसी श द जैसे - भूतजी, भूत
भाईसाहब, भूत दादा या भूत बावजी से अिभवादन कर के इ ह खुश करना चािहए था।
‘‘ या तु ह अंदर से कोई चीज परे शान करती ह क इस दुिनया म कु छ तो है, जो ठीक
वैसा नह है जैसा दखाई देता है?’’ इस बार चोगे म से कसी बुजुग भूत क आवाज़ आई।
वो इन सब का लड़पड़ दादा होगा।
‘‘हाँ मुझे ये बात हमेशा परे शान करती है।’’
‘‘तुमने ठीक जवाब दया। जाओ ! तु ह िज दा छोड़ा जा रहा है; य क तुम इं सानी
जीवन जीने के हकदार हो।’’ कहते ए चोगा दूर जाने लगा। चार कदम चलने के बाद एक
पल के िलए ठहरा, पीछे मुड़कर बोला, ‘‘बेटा ! तु ह एक वरदान दया जा रहा है। वो
वरदान तु हारे हाथ म है। उसे खोना मत। उसे वरदान के प म हमेशा अपने पास रखना।
एक दन चम कार अव य होगा।’’ इस बार उसके िपताजी क आवाज़ थी। उसने एकदम
सही से पहचान िलया था क ये तो उसके िपताजी ही थे।
इससे पहले क वो कु छ बोलता तभी अचानक उसे कसी ने झंकझोरा, ‘‘ या आ बेटा?’’
मुकेश क आँख खुली, उसने हड़बड़ा कर चार तरफ देखा वहां तो कोई चोगा नह था।
एक दूध बेचनेवाला उसे उठा रहा था। बगल म टीवीएस क मोटरसाइ कल खड़ी थी िजस
पर दूध क के ने लटक ई थी। ज र ये गांव से दूध लेकर पास के क बे म बेचने जाता
होगा। उसने मोबाइल म देखा सवेरे के चार बजे थे।
‘‘ या आ बेटा? तुम ठीक तो हो ना। मने तु ह यहां सड़क पर पड़े देखा तो
मोटरसाइ कल रोक कर उठाया।’’ उसने सफे द कलर क पगड़ी, आसमानी कमीज और
सफे द धोती पहन रखी थी।
मुकेश कु छ भी समझ नह पा रहा था क ये सब या हो रहा है? या वो सपना देख रहा
था। मुकेश को लगा क ज र डर कर बेहोश हो गया होगा और बेहोशी क हालत म
सपना देख रहा होगा। उसने देखा, एक काले कलर क ब त बड़ी ला टीक क थेली उसके
पास उड़ रही थी िजस पर लाल कलर का िनशान बना आ था माने कसी ने पान थूंक हो
उस पर। वह सोचने लगा क रात को चलते समय जो पीछे से ‘सर सर’ क आवाज़ आ
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रही थी कह वो इस थेली क तो नह थी जो हवा के बहाव के साथ उड़कर आई हो और म


डर के बेहोश हो गया होऊं। उस काले चोगे पर ितलक इस थेली पर लगे लाल रं ग के समान
ही था। मेरे दाई तरफ जो रोशनी ई, हो सकता है वो कसी जुगनू क रोशनी हो जो ठीक
मेरी आँख के दाय म चमका हो। हो सकता है डर के मारे म बेहोश हो गया होऊ और रात
को भूत का सपना आया हो।
तभी अचानक उसके हाथ क हथेली म एक ह के लाल रं ग का मूथ और छोट सा प थर
पड़ा िमला। उसने उसे आँख के पास लाकर देखा तो ऐसे लगा मोनो कोई चम कारी प थर
हो। उसने आस-पास देखा, इस कार का कोई दूसरा प थर दखाई नह दया। ये कै से हो
सकता है?
‘‘आप ठीक तो है?’’ दूधवाले को ज दी थी। उसे अपना दूध समय पर बाटना था।
‘‘हाँ जी! म ठीक ।ँ वो तो रात को यादा पी ली थी तो बहक कर यह िगर पड़ा।’’
मुकेश को दूधवाले से िप ड छु ड़ाना था। दूधवाला उस पर हंसते ए बाइक टाट कर वहां
से चला गया।
अब मुकेश का दमाग म पड़ गया क रात को जो कु छ आ वो एक सपना था या
हक कत। अगर सपना था तो ये हाथ म प थर कै से? उसने कहा भी तो था क ‘तु ह एक
वरदान दया जा रहा है। वो वरदान तु हारे हाथ म है।’ या ये प थर एक वरदान है जो
मेरे हाथ म िमला या ऐसे ही िगरते समय हाथ म आ गया? पर ऐसे ही िगरते समय हाथ म
आ गया होता तो सवाल ये उठता है क इस टाइप का कोई प थर यहां आस-पास म नह
है। बा क सारे तो काले प थर है। उसने मोबाइल क टाॅच से आस-पास के प थर का
मुआयना कया। ये सब से अलग ही कार का था।
समझ नह आ रहा था क ये सब या था? सपना या हक कत?
तभी उसे चोगे ारा कही बात याद आई, ‘‘इस बात को तुम कभी नह जान पाओगे क
तुम सपना देख रहे हो या यथाथ म हो।’’
मुकेश उठ खड़ा आ और धूल झटकते ए वहां से आगे बढ़ गया। उसने वो प थर अपनी
जेब म रख िलया। आिखर कोई तो बात है तब ये जादुई प थर उसके हाथ म आया और
उसके िपताजी क आ मा ने भी इसके बारे म पेशल कहा। उसके िपताजी क आ मा पर
उसे िव ास था। वो कभी उसके साथ मजाक नह करे गी। पूरे प रवार म िपजाती ही थे
िजसे वो सबसे अिधक यार करता था।
सोचने लगा क ज र कसी कार का मायाजाल होगा िजसम म फं स गया। जीवन म
ब त सी ऐसी बात होती है िज ह हम समझ नह पाते। वे सब कसी मायाजाल के समान
ही तो है। फलहाल मुझे यथाथ क दुिनया का सामना करना है।
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एक घ टे म वो नेशनल हाइवे आठ पर प च ं गया। घड़ी म सवेरे के पांच बजे थे। हाइवे पर


जयपुर-उदयपुर ट क कई सारी ावे स चलती है। उसे उदयपुर जाना था जो यहां से
अ सी कमी दूर था। उससे अिधक दूर जाने का उसके पास कराया भी नह था और इस
समय कोई मकसद भी नह था। जो इं सान बस घर से ऐसे ही अनायास िनकल जाता है वो
कह नह प च ं ता। मुकेश के भी इस समय उदयपुर के अलावा कसी दूसरे शहर म कोई
ऐसा प रिचत भी नह था िजसके पास जा सके । उदयपुर म तो उसका एक दो त वीण
रहता है िजसके कमरे पर क तो सकता है। रात वाली बात तो उसके िलए आई-गई हो
गई। उसने तो भूत से िप ड छु ड़ाने के िलए सपने को कु रे दा था वरना इस हालात म भला
कौन इतने बड़े सपने देखता है।
हाइवे पर प चं ा ही था क एक ावे स आई मुकेश ने दो कदम आगे बढ़ाकर गाड़ी
कवाने के िलए हाथ आगे बढ़ाया। यहाँ पर कोई टॉप नह था इसिलए भी उसे थोड़ा
आगे रहकर गाड़ीवाले का यान आक षत करना था। अगर बस टॉप होता तो वो िन ंत
बैठा रहता। उसके हाथ ने कमाल कया और एक वे स उसके पास आकर क । धुल के
कण हवा के थपेड़े के साथ उड़कर उसके चेहरे पर टकराये। गाड़ी पर ीनाथ वे स िलखा
आ था। मुकेश ने बैठने से पहले कराया पूछा,
‘‘उदयपुर जाना है?’’
गाड़ीवाले ने गदन से इशारा कया अंदर आ जाने का। उसे ज दी थी और वैसे भी उसने
िनयम िव गाड़ी रोक इसिलए वो यहाँ पर यादा समय बबाद नह करना चाहता था।
‘‘ कतना लोगे उदयपुर का?’’
‘‘सौ पये’’ गाड़ीवाले ने गुटखा थूंकते ए कहा।
मुकेश के पास कु ल पचाय पये ही थे।
‘‘पचास म ले चलते हो तो बोले।’’
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भा ग - 3
पहली दुिनया:-
‘‘पचास म ले चलते हो तो बोले।’’ मुकेश को मालूम था क कोई आधे कराये म नह ले
जाता पर इसके अलावा उसके पास कोई आ शन भी नह था। उसने जेब म रखे जादुई
प थर पर हाथ रखते ए ाइवर क तरफ देखा क कोई कमाल हो जाये।
‘‘चलो...पर सीट खाली िमले तो बैठ जाना वरना खड़ा रहना होगा।’’ ाइवर ने सोचा
सवेरे-सवेरे चाय-पानी के पैसे आ जायगे तो या बुरा है। वो अनुभवी था, चेहरे से पहचान
गया क लड़के के पास यादा पैसे नह है। हम कतना ही होिशयार बनने का दखावा
कर। कतना ही झूठ बोले पर कोई ना कोई अदृ य वाइ ेशन या कसी अदृ य चीज से एक
दूसरे से कने ट होते है क हमारा झूठ सामने वाला भांप ही लेता है।
‘‘ध यवाद !.’’ वो एक झटके म ह था पकड़ कर ऊपर चढ़ गया। बस नेशनल हाइवे पर
टापुटाप चलने लगी। उसने अंदर देखा, अिधकांश सवा रयां सोई ई थी। सवेरे पाँच बजे
क न द और घोड़ी पर बैठा बंद (दु हा) सबको यार लगता है। इस समय िखड़ कय से
ह क -ह क ठ डी हवा चल रही थी। बस के के िबन म जीरो वाट का ब ब जल रहा था
िजससे म म रोशनी चीज को अ प कं तु दशनीय बना रही थी। उसने कसी एफबीआई
एजट क तहर हर सीट पर िनगाह दौड़नी शु कर दी। कोई सी भी सीट खाली नह थी।
बस के सैके ड ला ट वाली रो म ले ट साईड क दो सीट म से िव डो के पास वाली एक
सीट खाली दखाई दी िजस पर डेल का बेग पड़ा आ था और बगल क सीट पर एक
लड़क बैठी ई थी।
लड़क ने िज स और टी-शट पहना आ था। चेहरा म म रोशनी म भी चमक रहा था।
हाथ म मोबाइल था और इयरफोन लागा रखे थे। िव डो से आती हवा से लड़क के
मुलायम बाल हवा म लहरा रहे थे जैसे मुकेश का अिभवाद कर रहे हो क,
‘आओ अजनबी दो घड़ी के सफर म, नयी दुिनया का िनमाण कर।
तुम भी कु छ बोलो म भी कु छ बोलूँ िमलकर मुह मत का पैगाम कर।’
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मुकेश जु फ म तो नह खोया पर बगलवाली सीट पर बैठना चाहता था। रातभर क


थकान व भूख से बेहाल हो गया था।
‘‘ये बेग आपका है या?’’ उसने लड़क से पूछा पर वो टस से मस नह ई। उसक आँख
बंद थी व कान म इयरफोन लगे थे। मुकेश समझा क शायद गाने सुन रही होगी इसिलए
नह बोली। मुकेश तय नह कर पा रहा था क इस लड़क को कै से उठाए। अनजान लड़क
को हाथ लगाकर उठाना भी ठीक नह होगा। कह ‘शट् अप’ ही बोल दे तो मेरी तो इ त
का फालुदा हो जाये। जवान लड़के दुिनयाभर क इं सट सहन कर लगे पर कसी जवान और
खूबसूतर लड़क से अपनी इं सट नह सह सकते।
‘‘इस सीट पर कोई है या?’’ उसने थोड़ी तेज आवाज़ म कहा। कोई ित या नह आई।
‘‘ये बेग आपका है या....?’’ नीचे झुकते ए मुहं को लड़क के कान के पास ले जाकर
जोर से पूछा।
बद क मती से गाने बंद थे और वो सो रही थी। ‘‘उई म मी...’’ लड़क डर के मारे उछल
पड़ी। अनायास ही उसके मुँह से चीख िनकली। लगभग आधी ऊपर उछलते ए वो सीट
पर छपाक से िगरी। माथे पर ऊपर वाली लीपर सीट क धम से लगी। खुजलाते ए
बोली, ‘‘वा स युअर ो लम? टु िपड कह के , इतना िच ला य रहे हो?’’
मुकेश सहम गया। दो कदम पीछे होते ए बोला, ‘‘मैडम जे पूछ रयो हो क आ सीट
खाली है काई, थे तो मारी सुणी नी रया था? बेरा हो के ?’’
उसक फराटेदार अं ेजी का उसने देशी म जवाब दया। लड़क ने खुद को रले स कया।
उसे यादा समझ तो नह आया पर इतना लगा क लड़का िव डोवाली सीट पर बैठना
चाहता है। उसने अपना बेग वहां से उठाया, खुद िव डोवाली सीट पर जाकर बैठ गई व
पासवाली सीट खाली कर बेग अपनी गोद म रख दया। मुकेश डरते-सहमते सीट पर ऐसे
बैठा मानो लोहे क क ल पर िबठाया जा रहा हो।
लड़क ने गाना चज कया और लड़के क तरफ धीमे वर म ‘‘इिडयट...’’ बुदबुदाते ए
िव डो क तरफ मुंह कर के सो गई। मुकेश ने कोई ित या नह दी। उसे तो सीट िमल
गई वो भी बड़ी बात थी। एक बार उसने लड़क क तरफ देखा ज र। सोचने लगा,
‘बोलने से पहले कतनी परी-परी सी लग रही थी। चाँद क रोशनी म चाँदनी-सी लगी।
वग से आई अ सरा-सी लगी पर जुबान खोलते ही सुपणखा सी या भूल-भूलेया फ म क
मंजूिलका क तरह डरावनी लग रही है।
पो फटने का समय हो गया था। हाइवे पर इस व खामोशी छाई ई थी। गांव दर गांव
आते जा रहे थे। गाव के लोग इस समय हाथ म लोटा लेकर तेज-तेज कदम से जंगल क
तरफ मंगल करने जा रहे थे। जानेवाल के चेहरे पर भारीपन-सा लगा तो आ रहे लोग के
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चेहरे पर ह कापन दखाई दे रहा था। कु छ लोग मुंह म नीम क डािलयाँ फसाय मंजन
करते ए आ रहे थे।
सूरज के िनकलते-िनकलते ावे स उदयपुर टनल तक प च ँ गई। टनल से कु छ पहल एक
ढाबे पर गाड़ी क । खलासी ने के िबन म आकर सूचना दी क गाड़ी दस िमिनट के िलए
के गी। िजस कसी को चाय-पानी-पेशाब करना हो कर ल।
या ी एक-एक कर के नीचे उतर कर आसपास म पेशाब रकने ही जगह ढू ंढ रहे थे। मुकेश
को ना तो टायलेट आ रहा था ना ही उसके पास चाय के पैसे थे। वो अपनी सीट पर ही बैठा
बाहर ढाबे पर लोग क चहल-पहल देखने लगा। उस ढाबे पर दो-चार वे स और एक
रोड़वेज खड़ी थी। उन सब के या ी इधर-उधर िबखरे ए थे। कोई चाय पी रहा था तो
कोई पोहा खा रहा था। ढाबावाले जोर-जोर से सब को िनमं ण दे रहे थे। पोहा वाला
गरमा-गरम पोहो के िलए िच ला रहा था तो चायवाला चाय...चाय..चाय.. करते ए
चीख रहा था। गैस क भि ाँ जल रही थी। ढाबे के पास म एक पान-गुटखा वाले का
के िबन था। वहाँ पर भी लोग डटे ए थे। कोई तानसेन खा रहा था तो कोई िसगरे ट फूं क
रहा था। कोई िवमल तो कोई िमराज खा रहा था।
‘‘ए स यूज मी...’’ बस को के देख लड़क ने बाहर जाने के िलए रा ता मांगा।
मुकेश ने घुटने पीछे ख च िलए। वो चुपचाप नीचे उतर गई और एक िबसलेरी क बोटल
लेकर वािपस आ गई। इस बार उसके टोके बगैर ही मुकेश उठ गया। जब वो बैठ गई तो
मुकेश भी अपनी सीट पर बैठ गया। इस बार लड़क ने ह का-सा मु कु राते ए ‘‘थ स...’’
कहा। बदले म मुकेश ने कोई ित या नह दी। वो बस नीचे देख रहा था। लड़क ने सोचा
क शायद इसे बुरा लग गया। वैसे भी देखने म गांव का सीधा-सादा लड़का लग रहा है।
चेहरे पर उदासी छाई ई है मानो अतीत के कसी से िनकल कर आया हो। आँख क
सुखता बता रही है क रात बड़ी मुि कल से गुजरी होगी।
लड़क को दया आ गई। उसने पानी क बोटल मुकेश क तरफ करते ए कहा, ‘‘पानी
पीओगे?’’
मुकेश ने यान ही नह दया। उसे वाकई म अ छा नह लगा क छोटी सी बात पर ये मेरे
ऊपर िच ला दी। म गांव का ँ और वो शहर क माट लड़क है तो इसका मतलब ये
थोड़ी है क वो मुझपर झ लाए। गावं के लोग या इं सान नह होते। आिखर उनके भी तो
दल होता। उनक भी तो भावनाएँ होती है। वे भी तो सब समझते है। ये या बात हो गई
क तुमने ा डेड जंस पहन िलया और अपने आप को हाई और गावं के आदमी को गंवार
मान बैठे।
‘‘हाय.. ‘‘ लड़क ने उसक तरफ देखते ए कहा, ‘‘बुरा लगा हो तो सॉरी... वो ए चुली
म डर गई थी ना तो घबराहट के मारे िच ला दी।’’ इस बार उसने मासूम चेहरा बनाकर
कं धे उचकाते ए कहा।
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लड़क को इस कार लिजयाते देख मुकेश पंघल गया। उसका सारा गु सा फु र हो गया।
कतना मासूम चेहरा है। बेचारी डर गई थी। अके ली लड़क को हजार िच ताएँ रहती है
ऊपर से रात का सफर हो तो सावचेत तो रहना पड़ता है। मुकेश ने उसे माफ करते ए
कहा, ‘‘जी कोई बात नह ।’’ िबसलेरी क बोटल ले कर दो घूंट पानी पीया। ‘‘थ यू’’
कहते ए उसने बोटल लड़क क तरफ कर दी। इससे यादा उसे बात करना नह आता।
पहली बार इतनी माट लड़क के पास बैठा।
गाड़ी अभी भी क ई थी। लोग का कोलाहल पि य के कलरव को दबा रहा था।
अब लड़क के ित मुकेश के िवचार बदल गए। उसे खुद पर ही झप ई क नाहक ही
भोली-भाली लड़क पर गु सा कए बैठा था। बेचारी कतनी िस पल है। कोई घम ड नह ।
आगे बढ़कर माफ मांगने म कोई शम नह समझी।
‘‘नह जी माफ तो मुझे मांगनी चािहए थी क आपको खामखाह डरा दया।’’ उसने
लड़क क तरफ देखते ए कहा, ‘‘आप ना ब त िस पल हो।’’
‘‘शट्अप...अपने काम से काम रखो।’’ लड़क ने चेहरा िबगाड़ते ए डाटा, ‘‘पकाऊ कह
के ’’
मुकेश के पैर तले क जमीन िखसक गई। ‘‘सॉरी जी...’’ कहते ए अपनी सीट पर दुबक
गया। नजर नीचे झुका ली और सोचने लगा - ये कस कार क लड़क है? इसका कोई
पदा भी है क नह ? कभी शोला तो कभी शबनम का प धारण कर लेती है। अ छा होगा
इससे दूरी बनाकर रखू।ँ
मुकेश चुपचाप चेहरा जटकाए सीट पर बैठ गया कसी अपराधी क तरह। लड़क
कनिखय से उसे देखती जा रही थी और फल- फलाकर हँस रही थी। मुकेश ने उसक
तरफ यान ही नह दया। लड़क को और जोर से हँसना आने लगा।
बस ने दो-तीन बार हॉन बजाया। जब सब लोग आ गए तो गाड़ी हाइवे पर र फतार
पकड़ने लगी।
‘‘आई एक रयली सॉरी...म तो मजाक कर रही थी।’’ लड़क ने बड़ी मुि कल से हँसी को
रोकते ए कहा, ‘‘तुम कस दुिनया से आये हो यार। इतने सीधे। और कतने भारी-भारी
व ड यूज करते हो? खामखाह’’ कहते ए लड़क फर से उ मु होकर हँसने लगी।
मुकेश चुप रहा।
‘‘मुझसे नाराज हो। ओके ... आई एम रयली सॉरी । म बस तु हारी सादगी को देखकर दंग
रह गई थी, इसीिलए छोटा सा मजाक कर दया यार।’’
‘‘जी कोई बात नह ।’’ इस बार उसने अपने आप को लड़क के ित आक षत होने या
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उसक िमठी-िमठी बात म आने से रोकते ए कहा।


‘‘तु ह बुरा लगा।’’
‘‘हम कौन होते है जी बुरा मानने वाले?’’
‘‘ओह लीज’’
‘‘सब समय का खेल है। िनयित ने तो हम पर ब त बड़ा मजाक कया आ ही था। आपने
छोटी-सी द लगी कर दी तो कौन सा पहाड़ टू ट पड़ा।’’
‘‘तुम ना ये िनयित जैसे लदी व ड यूज करते ए बड़े यूट लगते हो।’’
‘‘ये चोट लगने पर अंदर से वत ही िनकलते है जी। आप या जानो?’’
‘‘स ी म तुम इतना हट ए?’’
लड़क ने इस बार मुकेश क आँख म आँख डालते ए अपने कये पर वाकई म अफसोस
जताया। उसक कोमल आवाज़ सुन मुकेश क आँख छलक आई। सागर जब भर जाता है तो
एक बूंद भी उसे छलता देती है। भले ही उस बूंद का कोई मह व नह हो पर सागर को
छलकाने म उसका भी अपना योगदान होता है। मुकेश ने जीवन म कई संघष झेल।े कई
सारे ताने सुने। रात भर क घुटन से भर चुका था। जब लड़क ने द लगी कर दी तो वो
अपने आप को छलकने से रोक नह पाया। लड़क को पता नह चले इसिलए उसने नजरे
झुका ली।
‘‘ लीज! सुनो ना! आई ऍम सॉरी! मने जीवन म कभी तुम जैसा सीधा लड़का नह देखा।
म मु बई जैसी मे ो िसटी म रहती ।ँ वहाँ पर एक से बढ़कर एक नमूने देखे है पर तुम सा
नह देखा इसिलए बस थोड़ा सा टु िपड टाइप का मजाक कर दया।’’
‘‘आप दल को छोट मत क िजए। म कसी और कारण से परे शान था। आपका कोई दोष
नह है।’’
‘‘मुझे बताओ ना कस कारण से परे शान हो। कहते है अपना दुख दूसर से शेयर करने से
कम होता है और खुिशयाँ शेयर करने से बढ़ती है।’’
वो कु छ नह बोला।
‘‘अ छा ये तो बताओ तुम कहाँ तक जा रहे हो? अहमदाबाद?’’
‘‘आपको ऐसा य लगा क म अहमदाबाद जा रहा ’ँ ’
‘‘गाव से अिधकतर लोग अहमदाबाद जैसे बड़े शहरो म नौकरी के िलए जाते है तो मुझे
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लगा...’’
‘‘आपने सही सोचा पर म उदयपुर जा रहा ।ँ ’’
‘‘ओह रयली?’’
‘‘जी...’’
‘‘वाट् एन इं िसडट... म भी उदयपुर ही जा रही ।ँ ’’
‘‘जी...’’
‘‘ लीज एक मेहरबानी करो और मुझे आप या जी मत बोलो।’’
‘‘ य ’’
‘‘म ना यादा फामिलटीज म िबलीव नह करती।’’
‘‘अ छा जी!’’
‘‘ फर से जी’’
‘‘सॉरी जी...मेरा मतलब सॉरी’’
‘‘बाय द वे हाय... माइ नेम इज ुित’’ उसने मुकेश क तरफ हाथ बढ़ाते ए अपना नाम
बताया।
िु त कतना यार नाम है। मुकेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाते ए मन म सोचा। हाथ भी
इतना मुलायम क जरा सी खर च लगे तो खून िनकल आये। ये माट िसटी क लड़ कयाँ
तो स ी म माट होती है। कतनी बंदास होकर बात करती है। कसी अजनबी से भी हाथ
िमला लेती है। हमारे गांव म तो परदेश जाते समय आदिमय को भी िहदायत दी जाती है
क कसी अजनबी से बात नह करनी, कोई कु छ देवे तो खाना नह । कसी से घुलना-
िमलना नह चािहए। शहर के लोग बड़े बदमाश होते है, वे ठग लेते है। आज उसे लग रहा
था क ुित उसे वाकई म ठग रही है। कभी इं सान जानबूझकर ठगाजाना चहता है। ये
ठगाना भी कतना सुखद ठगाना है। इस अनुभूित के िलए तो वो जीवन भर ही ठगाने को
तैयार है। कतना यार से बोलती है। बचपन से अब तक कभी उसे कसी ने इतने यार से
सॉरी नह बोला।
‘‘ब त यारा नाम है।’’
‘‘ए ड यू’’
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‘‘सु दर नाम है।’’ मुकेश अभी भी उसके नाम क पिव ता म खोया आ था।
‘‘वाट् तु हारा नाम सु दर है’’ कहते ए वो हँसने लगी, ‘‘इ स अमे जंग नेम’’
मुकेश उसे हँसते देख चुप हो गया। कतनी अ छी लगती है हंसते ए। वो उसे हंसते देखने
के िलए सु दर लाल नाम भी रखने को तैयार हो गया।
‘‘तु हारे ना गांव म बड़े अजीब-अजीब टाइप के नाम रखते है।’’
‘‘च पा लाल...कालू लाल...भूरा लाल...भटका लाल...मटका लाल...’’ और वो जोर से
हँसने लगी। कह इस बार फर से लड़का नाराज नह हो जाये इसिलए उसने बड़ी मुि कल
से अपनी हंसी को रोका। कु छ देर चुप रहने के बाद बोली, ‘‘ये बताओ सब अपने नाम के
पीछे लाल य लगाते है?’’
‘‘नह मालूम’’
‘‘अ छा! सॉरी! म फर से तु हारा दल नह दुखाना चाहती ।ँ ’’
‘‘वैसे मेरा नाम मुकेश है।’’
‘‘उ स्...सॉरी...’’ होठ को गोल-गोल करते ए बोली, ‘‘सु दर लाल से तो मुकेश अ छा
नाम है।’’
‘‘वैसे इसका अथ या होता है?’’
मुकेश कु छ नह बोला। उसने कभी सोचा नह था क उसके नाम का अथ कोई माट
लड़क पूछ बैठेगी।
‘‘िजसके मुंह पर के स’’ और वो हंसने लगी। मुकेश को चुप देख बोली, ‘‘तुम िबलकु ल
मजाक नह करते। कतने अजीब हो।’’
‘‘बस ऐसे ही।’’
‘‘ओह कम ऑन ऐसे ही तो कु छ नह होता।’’
‘‘और सबकु छ लॉिजक से भी तो नह होता?’’
इतने म बस उदयपुर के पहले टॉप भुवाणा बाईपास चौराहे पर आकर क । खलासी ने
जोर से आवाज़ लगाकर यहां उतरने वाल को सावचेत कया। उसक आवाज़ सुनते ही
ुित हड़बड़ायी। उसे याद आया क उसे भी तो यह उतरना है। वो झट से अपना बेग
लेकर बाहर िनकलते ए बोली, ‘‘तुमसे िमलकर अ छा लगा सु दर लाल। मेरा टॉप आ
गया। मुझे यह उतरना होगा। ओके बाय...’’ कहते ए वो चली गई।
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‘‘बाय ुित...’’ मुकेश ब त कु छ कहना चाहता था। ब त कु छ सुनाना चाहता था मगर


बस उसे जाते ए के वल बाय ही बोल सका। कभी-कभी छोटे से सफर से बड़ी याद अ जत
हो जाती है िजनका घन व नापा नह जा सकता। िजनक लबाई मापने के िलए कोई
पैरामीटर नह बना है। मुकेश के इस दो घंटे के सफर क याद उसके जीवन के प ीस वाष
क सबसे खूबसूरत याद बन गई थी।
वह देखता ही रह गया और ुित चौराहे पर उतर कर सड़क के दूसरी तरफ खड़े ओटो
वाल क तरफ जाने लगी। वह बस के िव डोवाली सीट पर बैठ गया और अिनमेष उसी
को देख रहा था। उसे िव ास था क एक बार मुड़कर ज र देखेगी। सोचने लगा क ये दो
घंटे मेरे जीवन के सबसे खूबसूरत ल ह म शािमल हो गए है तो उसके जीवन म भी तो ये
ल ह कोई ना कोई तो थान रखते ह गे। उसे िव ास था क वो वापस मुड़कर एक बार तो
ज र देखेगी जैसे क फ म म देखती है। मु कु राते ए हाथ िहलाकर बाय...बाय..कहेगी।
उसने ही तो कहा था क म कतना सीधा-सादा ।ँ वो मेरे साथ कतना खुश थी। कतना
हँस रही थी। देखेगी ज र।
िु त ने पहले तो ओटोवाले से बातचीत क फर उसम जाकर बैठ गई। मुकेश ने अब पलके
झपकाना धीमा कर दया। अब कसी भी ण वो मुड़कर देख सकती है। ओटो टाट आ।
इधर बस का हॉन भी बज चुका था। वो भी रवाना होने लगी पर मुकेश का यान उस
लड़क क तरफ ही थी क एक बार देख ले बस।
ओटो भरररर....करते ए आगे बढ़ गया। लड़क ने एक बार भी मुड़कर नह देखा। मुकेश
िनराश हो गया। उसे समझ आ गया क वाकई म म ब त भोला ।ँ ये दो घंटे उसके िलए
इतने भी मायने नह रखते ह गे िजतनी उ मीद म लगाए बैठा था। आिखर वो माट
लड़क है। ा डेड कपड़े पहनती है। कहाँ म और कहाँ वो। ऐसे ही खामखाह चीज के अथ
लगाए जा रहा ।ँ वो सपन क दुिनया से फर से यथाथ म आ गया।
बस दूसरे टॉप फतहपुरा चौराहे पर प च
ँ गई। मुकेश को यह उतरना।
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भा ग - 4
पहली दुिनया:-
मुकेश फतहपुरा चौराहे पर उतर कर बड़गांव क तरफ चल दया। उसका दो त वीण
वह रहता था। उसे पूरा अ ेस नह मालूम था इसिलए उसने वीण को फोन कया पर
उसम तो बैलस ही नह । मुकेश घबारा गया। उसने दूबारा कॉल लगया पर बैलस हो तो
फोन लगे। दस पये का इं टंट लोन भी उसने पहले ही ख म कर दया था। वो बड़गांव
चौराहे पर जाकर बैठ गया। लोग अपने-अपने काम धंधे पर जा रहे थे। मुकेश ने झाडू
िनकाल रहे एक आदमी से पूछा, ‘‘भाई साहब एक दो त को कॉल करना है। मेरे मोबाइल
म बैलस नह है। या आपके फोन से एक कॉल कर सकता ?ँ ’’
‘‘ कसे करना है?’’
मेरा एक दो त यह रहता है। वीण नाम है। मुझे उसका पूरा ए स
े मालूम नह है। मेरे
पास पैसे भी खतम हो गए है। लीज!’’
‘‘ठीक है।’’ कहते ए उस आदमी म मुकेश क तरफ फोन बढ़ा दया। उसे मुकेश पर दया
आ गई।
उसने वीण को कॉल लगया पर वीण के फोन म इनक मंग सुिवधा बंद हो गई थी। उसने
दस िमिनट बाद फर से कॉल लगया क शायद कं पनी मेरी मुिसबत को समझते ए फोन
लगा दे पर वही ढाक के तीन पात। मुकेश का सारा जोश ठ डा पड़ गया। अब उसके सामने
कोई रा ता नह बचा था। सारे रा ते बंद हो चुके थे। चौराहे के पास म एक चाय क लारी
थी। मुकेश वहां जाकर बैठ गया। चायवाले ने उसे चाय के िलए पूछा पर उसने मना कर
दया। उसे अपनी ि थित मालूम थी। उसका मन तो ब त कर रहा था क काश एक चाय
नसीब हो जाती। रात से कु छ नह खया। पर अपने आप को मजबूरा पाया। हम सभी कह
ना कह कसी ना कसी मोड़ पर खुद को मजबूर पाते है। तब कोई रा ता दखाई नह
देता। मुकेश के सारे रा ते बंद हो गए थे। तभी वहां चाय क दुकान पर एक सं यासी आकर
बैठा। सं यासी ज ट उसके पास म बैठा। मुकेश ने उसका अिभवादन कया। सं यासी स
हो गया। उसने मुकेश के अिभवादन का मु कु रा कर जवाब दया, ‘‘जुग-जुग िजयो
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बेटा...जुग-जुग िजयो।’
चायवाले ने एक चाय सं यासी को पकड़ा दी। वो चाय पीते ए क ह िवचार म खोया
आ था क उसक नज़र मुकेश के हाथ म उस प थर पर पड़ी जो उसे मशान से िमला
था। सं यासी आ य से उछल पड़ा। लगभग िच लाते ए बोला,
‘‘ये तु ह कहां से िमला?’’
मुकेश घबरा गया। उसने देखा क सं यासी क नज़र उसके चम कारी प थर पर ही अटक
ई है। उसने बे खी से जवाब दया, ‘‘रा ते म पड़ा िमला।’’
‘‘ या तुम जानते हो तु हारे पास ये या चीज़ है?’’ सं यासी िच लाया। चायवाला भी
एकबार मुकेश क तरफ देखने लगा। एक आदमी जा अपना रािशफल पढ़ रहा था वो भी
अखबार साइड म कर मुकेश के हाथ क तरफ देखने लगा क आिखर लड़के के हाथ म ऐसा
या है?
‘‘नह ?’’ उसे इस समय प थर से अिधक चाय पीने का मन कर रहा था।
‘‘तु हारा नाम या है बेटे?’’
‘‘मुकेश’’
‘‘तुम ये प थर मुझे दे सकते हो?’’ उसने उस प थर क तरफ हाथ बढ़ाया जैसे नह देने
पर छीन कर ले लेगा।
‘‘नह ...’’ मुकेश ने इं कार कर दया। ये उसके िपजाती ने उसे दया था। आिखर िपजाती
क मृित को ऐसे कै से कसी को भी दे दे।
‘‘इसके बदले म या चािहए बोल ?’’ सं यासी क नज़र अभी भी उसी प थर पर अटक
ई थी।
‘‘ये िबकाऊ नह है।’’
‘‘एक बार छु ने दोगे।’’ सं यासी ने हाथ आगे बढ़ाए। उससे का नह जा रहा था।
‘‘एक चाय िपलाओ तो।’’ मुकेश ने भांप िलया क ज र ये कोई पागल टाइप का इं सान
है।
सं यासी ने चायवाले को चाय का आडर दया। ज दी से एक लास चाय मुकेश को दे दी
गई। मुकेश गट-गट पी गया। पीने के बाद उसने प थर सं यासी क तरफ बढ़ा दया।
सं यासी ने जैसे ही उस प थर को हाथ म िलया मान उसे िबजली का झटका लगा हो। वो
िच ला उठा, ‘‘ये तो अ भुत है। जादुई है। चम का रक है।’’
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सं यारी उस प थर को हाथ म िलए झूमने लगा। वहाँ मौजूद लोग सं यासी क उलजुलूल
हरकत देखने लगे। कोई हंस रहा था तो कोई कौतुहल से देख रहा था। मुकेश ने चाय
गटकने के बाद उठकर उस सं यासी से वो प थर झपट िलया। सं यासी मान अचानक
यथाथ क दुिनया म लौट आया। उसने गले म पहनी सोने क चेन िनकालकर मुकेश क
तरफ बढ़ाते ए कहा, ‘‘इसे रख लो बेटा। ये असली वण से िन मत तीन तोले क चेन है।
बदले म ये प थर मुझे दे दो।’’
‘‘िबलकु ल नह ।’’ मुकेश ने ऑफर ऑफर ठु करा तो दया पर उसके ज ट बाद सोचने लगा
क एक प थर ही तो है। अगर सोने क चेन ले लेगा तो कम से कम एक लाख पये क
होगी। इतने पय से तो वो उदयपुर म आराम से सेट हो सकता है। वीण के कमरे पर
कने क भी ज रत नह ।
सं यासी ने अपनी तजनी अंगूली म से सोने क अंगूठी िनकालकर चेन के साथ मुकेश क
तरफ करते ए कहा, ‘‘चेन के साथ म ये अंगूठी भी दे रहा ।ँ सोच लो। तु हारे पास इस
व फू टी कौड़ी भी नह है। ये प थर तु हारे तब तक कोई काम का नह जब तक तुम
इसक शि य को नह पहचान लो और कसी भी चीज़ क शि य को पहचानने म
काफ समय लगता है।’’
मुकोश चुप हो गया। लारी के आस-पास लोग क भीड़ इक ी होने लगी। सब इस अ भुत
सौदे के सा ी बनना चाह रहे थे। कौतुहल इस बात का था क कोई एक प थर के मामूली
टु केड़े के बदले म इतना सोना देने को य तैयार हो गया। सारे लोग मुकेश के हाथ म रखे
प थर को घूर रहे थे। ना तो उसम कोइ चमक थी ना ही वो कोई पुखराज, डायम ड आ द
र क तरह दखाई दे रहा था। एक मामूली प थर म ऐसी या बात है? लोग सं यासी को
आ जव कर रहे थे क कह बु ा पगला तो नह गया।
मुकेश खुद प थर क शि य से अनिभ था कतुं उसे इतना मालूम था क ये प थर कोई
आम नह है।
‘‘बोलो सौदा मंजूर है?’’ सं यासी ने मुकेश को असमंजस म पड़े देख फर पूछा। उसे लगा
क लड़का पंघल रहा है।

‘‘नह ...’’ मुकेश के मुंह से जोर से िनकला। उसे खुद नह मालूम था क वो इतना जोर से
य बोला पर उसने इतना तो तय मान िलया था क अगर ये सं यासी इस प थर के सवा
लाख पये देने को तैयार है तो इसका मतलब ये उससे अिधक कमत का ह या ज र
ब मू य है। उसने तय कया क वो इस त थर के बारे म और अिधक जानकारी इक ी
करे गा। उसने प थर जेब म रख दया और वहां से चल दया। सं यासी उसे नह मानते देख
वह पर पैर पटकने लगा। थोड़ी दूर तक वो मुकेश के पीछे-पीछे चलने लगा। िच लाते ए
क पछताओगे। सौदा कर लो। पर मुकेश सहमे ए तेज-तेज कदम से फतहसागर क तरफ
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रवाना हो गया। उसने छोटी-छोटी गिलय से होकर सं यासी से पीछा छु डाया। जब


देवाली प च
ं कर उसने पीछे मुड़कर देखा क उसका कोई पीछा तो नह कर रहा है। वो ये
देखकर िन ंत हो गया क कोई उसके पीछे नह है। वहां से वो सीधा फतहपुरा चौराहे
पर प चं गया। अब उसके चेहरे पर स ता थी क चलो जेब म एक ऐसा प थर है
िजसक इस व कमत सवा लाख से अिधक है। भले ही मुकेश क जेब म इस व एक
पया नह था पर उसने उस प थर को चूम िलया। वो खुश था क उसने सौदा नह कया।
ज र ये प थर कोई चम का रक है। इसके अंदर जाइुई शि यां है। उसे मालूम करना है क
इसम कस कार क जादुई शि याँ है? उस सं यारी ने कहा था क, ‘ये प थर तु हारे तब
तक कोई काम का नह जब तक तुम इसक शि य को नह पहचान लो’
वो फतहसागर कनारे जाकर बैठ गया। तकरीबन दो घंटे तक वहां बैठने के बाद उसने
िडसाइड कया क वो कह ना कह काम ढू ंढेगा वरना रात कना तो छोड़ो, पेट म अ
का एक टु कड़ा डालना मुि कल हो जायेगा।
उसने एक आदमी से पूछा, ‘‘भैया यहां पर काम करने वाले दहाड़ी मजदूर कस चौराहे
पर िमलं◌ेगे?’’
उस आदमी ने सोचा शायद इसको मजदूर चािहए। उसने मोटरसाइ कल पर कक मारते
ए कहा, ‘‘साइफन चौराहे पर।’’ उसके बाद गाड़ी टाट कर बोला, ‘‘म उसी तरफ जा
रहा ।ँ आप चाह तो मेरे साथ चल सकत है।’’
मुकेश उसक बाइक पर बैठ गया। कु छ ही देर म उसने खुद को साइफन चौराहे पर पाया।
सवेरे के यारह बच गए थे। वहां पर चार तरफ दहाड़ी मजदूर क भीड़ लगी ई थी।
जैसे ही कोई आदमी चौराहे पर आकर कता, बीस-प ीस मजदूर उसको चार तरफ से
घेर लेते। इस बार मोटरसाइकल वाला का। सारे मजदूर उसक तरफ लपके । मुकेश उसके
यादा पास म था। उसने झट जाकर पूछा, ‘‘साब मजदूर चािहए।’’
‘‘हाँ...’’ वो आदमी मुकेश को ऊपर से नीचे तक देखने लगा। उसे यक न हो गया था क ये
ज र कोई नया मजदूर है। िजस कार अमीर क अलग ही पहचान होती है उसी कार
मजदूर क भी अपनी एक पहचान होती है। उनके लहजे से पता लगाया जा सकता है क
कौन कतने साल से मजदूरी का ऐ सिप रयस हो डर है।
‘‘म तैयार ’ँ ’ उसक बाइक पर बैठने के िलए मुकेश ने एक टांग ऊपर उठाई।
‘‘ कतने पये लोगे।’’ उसने बाईक के रे स देते ए पूछा।
‘‘िजतना आप दोगे। कम से कम दनभर का खाना और रात गुजारने के िलए आिशयाना
िमल जाये।’’
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‘‘दो सौ पये दूग


ँ ा। मंजूर हो तो बोलो?’’
‘‘जी साबह!’’ कहते ए मुकेश उसक बाइक पर बैठ गया। तीन सौ पये का सौदा दो सौ
म तय हो गया।
दनभर जीतोड़ मेहनत करने के बाद जब उसे दो सौ पये िमले तो उसने सबसे पहले तो
बीस पये का बैलस डलवाया और वीण को फोन कया पर उसके फोन म इनक मंग बंद
आ रही थी। उसे ब त जोर क भूख लगी थी। सवेरे से कु छ नह खाया। आज पहली बार
उसे अहसास आ क पढ़ना मजदूरी करने से यादा सरला था। दन क िचलिचलाती धूम
म प थर तोकना दुिनया का सबसे मुि कल काम है। उसने दन म कई बार अपने आप को
कौसा क काश उसने अपने भाई और मां से माफ मांग ली होती तो ये दन देखना नह
पड़ता। खी-सूखी खाकर भी अपने घर म पड़ा रहता।
मुकेश पेदल ही चल दया। रा ते म उसे भोले दालबाटी क लारी दखी। सीधा उसक
लारी पर जाकर बैठ गया। उससे दालबाटी क रे ट पूछी तो उसने बताया क पचास पये
क एक थाली और थाली म छह बा टयाँ और अनिलिमटेड दाल िमलेगी। मुकेश तैयार हो
गया। अपना बेग साइड म रखकर वह पर बैठ गया। छह बा टयाँ उसके िलए पया थी।
देखते ही देखते सारी बा टय चट कर गया। हालां क उनम काफ कं कर आये और दाल तो
िबलकु ल पानी थी फर भी इस समय उसका पेट भर गया। जब वो वहां से खाना खाकर
उठा तो अंधेरा पड़ चुका था। पेट पूजा के बाद उसे रात गुजारने क चंता होने लगी। अब
अगर कसी होटल म के तो इतने पैसे नह ह। उसने कई दफा वीण को भी कौसा क
कमब त ने ऐसे नंबर दे दए जो बंद है। अगर नंबर चालू ही नह थे तो देने ही नह
चािहए।
खाना खाने के बाद वो ऐसे ही कु छ देर पेदल चालने लगा। ीट लाइट से सड़के चमचमा
रही थी। रात के अंधेरे को पूरी तरत मात देती दुकान क झगमागाती रोशनी। तहर-तरह
के नेम लेट, अ भुत छटा िबखेरती रोशनी का सा ा य फै ला आ था। लोग अपने-अपने
घरो क तरफ जा रहे थे। सबके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी क वे अपने घर जा रहे
है।
एक-एक कर दुकान के शटर नीचे होने लगे। मुकेश वहां से पेदल ही फतहसागर ही तरफ
चल दया। कु छ ही देर म वो फतहसागर प च ं गया। रात के करीब साठे आठ बजे थे।
फतहसागर पर लड़के और लड़ कय का तांता लगा आ था। पाल पर कदम रखने क
जगह नह थी। सारे के सारे बे फ होकर लहर का आनंद ले रहे थे। उसे इस समय सागर
क अलौ कक छटा से अिधक राज गुजारने क चंता सता रही थी। कल फर से उठकर
मजदूरी जाने क चंता दूसरे थान पर थी। जब हमारे पास कु छ भी नह हो। जब हम गत
म हो तो ब त सी आस-पास िबखरी अ छाइयाँ हम दखाई नह देती है। गुलाब के पु प
से आती महक भी हमारा दम घ ट देती है। इं सान बड़ा ही कोि लके टेड चर है िजसका
कोई ठीक ढंग से वणन नह कर सकता।
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एक तरफ तो मुकेश दनभर क थाकाल और कल क चंता म डू बा चुपचाप चले जा रहा


था, दूसरी तरफ युवा लड़के व लड़ कयाँ बीएमड यू, ओडी, फरारी म बलखाते-इठलाते
जा रहे थे। कोई गाता आ जा रहा था तो कोई उछलता-कू दता। सब के सब खुश थे। कसी
के माथे पर चंता क लक र नह थी।
अचानाक मुकेश क नजर पास से गुजरती एक फरारी कार म बैठी लड़क पर गयी। ये तो
ुित है। वही ुित जो दो घंटे के सफर म नयी अनुभूित छोड़ गयी। मुकेश कु छ नह बोल
पाया। वो बोलने क ि थित म भी नह था। कहां ुित जैसी अमीर लड़क और कहाँ वो
पैदल बंजारा सा। उसने देखा, ुित कतना उछलते-कू दते ए लाइफ के हर मूवमट को
ए जोय करते ए जा रही थी जैसे उसे कसी क कोई परवाह नह हो। एक लड़का कार
चला रहा था। पहले तो मुकेश ने सोचा ज र उसका भाई होगा और दोनो भाई-बहन
खाना खा के घूमने आये ह गे; कं तु जब उस लड़के ने ुित को कस कर दया तो मुकेश
ारा रिचत भाई-बहन का का से ट धुंआ हो गया।
मुकेश का दल अंदर से रो पड़ा। बाहर से वो स त दखाई दे रहा था पर अंदर से फफक-
फफक कर रो रहा था। हम सभी अंदर से रोते है पर कसी को दखाई नह देता। बाहर से
रोना औपचा र है जब क अंदर से रोना सहज है िजसम कसी कार के दखावे क ज रत
नह होती, िजसम ज री नह क आँसू आये या रोने का क ण ं दन सुनाई दे। ब त से
लोग रोते ह मन ही मन म, जब वो नह होता जो वो चाहते ह। जब दुिनया ऐसी नह हो
पाती जैसे वो समझते। मुकेश ने दनभर के कठोर म से िजतना खुद को िवगिलत नह
कया उससे अिधक इस एक पल के अहसास से थका दया क वो ुित के सामने कह
ए जी ट ही नह करता। एक ही तो लड़क उसे पसंद आयी थी वो भी कसी ओर क है।
ुित म और मुझम कतना अंतर है। कहाँ वो रच प रवार क मदम त माट गल और
कहाँ म जीवन के संघष म उलझा आ फक र। मुझे कम से कम सपने तो सोच समझकर
देखने चािहए थे। बेिसर पैर के सपने देखने से भला या िमलता है दुख के अलावा। कहाँ म
फ म इ ड ी म पापुलर राईटर, डायरे टर और ए टर बनने िनकला था और कहाँ यहाँ
रात गुजारने के िलए फाफे पड़ रहे है।
उसने खुद को मजबूत बनाया। सामने नगर िनगम क तरफ से शु पेयजल क टंक लगी
ई थी। वो वहाँ पानी पीने के िलए चला गया। जेब म देखा, एक सौ तीस पये पड़े थे।
दूसरी जेब म वो प थर िजसक शि य से वो अनिभ था। इसके अलावा उसके पास कोई
धन नह था। बस एक सपना था िजस पर उसे अभी तक िव ास नह था और उसने उस
तरफ यादा यान भी नह दया।
फतहसागर पर घूमते ए उसे फतहबालाजी का मं दर दखाई दया। आज क रात इसी
मं दर म गुजारने का तय कर वो मं दर म वेश कर गया। बेग म से टावेल िनकाला और
उसे ओढ़कर दूसरी दुिनया के सपने देखते ए सो गया। वो दुिनया जो इसी दुिनया म कह
है। वो दुिनया जो सब को आक षत करती है। वो दुिनया िजसके सब सपने देखते है। वो
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दुिनया जहाँ कोई ो लम नह होती। जहाँ के लोग अपना जीवन बड़ी शांित से गुजारते है।

दूसरी दुिनया:-
आर.जे. जो फ म इ ड ी का जानामाना नाम है। लोग उसका दीदार पाने के िलए घंट
सड़क पर खड़े रहते है। सब उसे चाहते है। उसके अंदर जुनून है। उसके अंदर कु छ अलग
हटकर करने क चाह है। वो हर फ म ऐसी करता है जो मनोरं जन के साथ-साथ लोग को
पोजे टव मैसेज भी दे। वो ऐसी ही फ म करता है िजसक टोरी म दम हो।
‘‘कभी-कभी सोचता ँ ये सब वाकई म सच है या म कोई सपना तो नह देख रहा ?ँ ’’
कार म बैठे-बैठे उसने ाइवर को कहा। ाइवर चुप रहा। इतने म रा ल का मोबाईल
बजा। एपल का लेटे ट वजन िजस पर गो डन लेट चढ़ी ई थी।
‘‘यस..जेटी िश ुल या है?’’ आरजे ने फोन रसीव करते ए कहा।
‘‘बॉस आपको आज रात को बारह बजे क लाइट से लंदन जाना है।’’ जेटी उसका
िशड् ◌्युलर था। उसक टू -डू -िल ट वही येट करता था।
‘‘ या इवट है?’’
‘‘बॉस वहाँ पर वड येटीव ए टर ऐसोिसएशन क सिमट है।’’
‘‘ .ँ .. मेरा या रोल ह?’’ आरजे बगैर कसी मकसद के कोई इवट अटट नह करता।
‘‘आपको एज ए इि डया के सबसे एटीव ए टर के तौर पर पीच देनी है। समय दस
िमिनट का है।’’
‘‘और तुम या सोचते हो? मुझे य जाना चािहए?’’ वो हर काय को दस बार सोच-
समझकर करता है। उसने जेटी से पहले ही बोल रखा था क कोई भी िश ुल बनाने से
पहले दस ऐसे कारण क िल ट होनी चािहए क मुझे वो काम य करना है और दस ही
ऐसे कारण क िल ट होनी चािहए क मुझे वो काम य नह करना चािहए। िल ट सुनने
के बाद म तय क ं गा क कौनसा प भारी है और मुझे वो काम करना चािहए या नह ।
जेटी ने सारे लाभ-और हािनयाँ िगना दी। रा ल दो िमिनट तक सोचता रहा। कार लगभग
उसके बंगले के वेश ार तक प च ँ गई थी। ार के चार तरफ चाक-चैबंध िस यो रटी
थी। गेट के ज ट बाहर कई सारे मीिडया वाले और आम पि लक उसक एक झलक पाने के
िलए चौबीस घंटे दखाई दे जाते है।
‘‘ठीक है। मेरा बेग तैयार करो।’’ रा ल ने सोचने के बाद फाइनल िडसीजन दया।
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‘‘यस बॉस ।’’


‘‘वैसे म प च
ं गया ।ँ तुम ऑ फस म िमलो अभी मुझसे। और हाँ आगामी फ म के िलए
कतनी ट हमे िमली है। वो सारी लेकर उस िव ेषक को भी साथ लेकर आओ या
नाम है उसका...’’
‘‘ ुित...’’
‘‘हाँ’’
‘‘सॉरी बॉस वो तो तीन दन क छु ी पर अपने गांव उदयपुर गई ई है। आपने ही उसक
छु ी वीकृ त क थी।’’
‘‘या...ओके ...तुम आ जाओ।’’ कहते ए आरजे ने फोन काट दया।
कार उसके ऑ फस ऑ फस के मेन गेट के बाहर क । एक नौकर ने दौड़कर दरवाजा
खोला। वो लगभग भागते ए ऑ फस प च ं ा। ठीक एक घंटे बाद उसक लाईट है। इस
एक घंटे म उसे कई सारे काम िनबटाने है। ऑ फस घर के दाई तरफ ब त ही आिलशान
बन आ था। आधा ऑ फस तो कताब से सटा पड़ा था। आरजे जैसे ही चेयर पर बैठा
उसके टेबल पर पहले ही जेटी ने एक पेज का िश ुल और दो पेज क लंदन म बोलने
वाली पीच रखी ई थी। जेटी एक नौकर के साथ दस-पं ह ट लेकर अंदर आया।
‘‘बताओ?’’ आरजे ने मोबाइल म वा सअप ुप को छोड़कर ि गत मैसेज देखते ए
जेटी से कहा।
‘‘बॉस इस व आपके पास तीस फ म म काम करने के पोजल आये है िजनका
िडसीजन पेिडग।’’ उसने ट आगे िखसकाते ए कहा, ‘‘और कु छ एड कं पिनय के
पोजल है। कु छ वेब सी रज करने के भी िनमं ण आये है।’’
‘‘तुमने पढ़ी कोई कहानी।’’ आरजे ने ट क मोटाई देखते ए पूछा।
‘‘नह बॉस। ुित ने सब पढ़ी है। उसके पास उनक िव तृत रपोट भी है।’’
‘‘कब आयेगी वो?’’
‘‘दो दन बाद बॉस...’’
‘‘तुम ना ऐसे टाइम म कसी भी ए लाय क छु ी क ऐ लीके शन लो ही मत जब म
इि डया म या अपने घर पर रहता ।ँ ’’
‘‘कल उसक सगाई है बॉस।’’
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‘‘मुझे इससे कोई मतलब नह ।’’ आरजे ने त ख नसीहत देते ए कहा, ‘‘लंदन का या
िश ुल है?’’
‘‘बॉस वहाँ प च
ं ते ही आपको होटले म दो घंटे के िलए रे ट करना है। उसके बाद सीधे
इवट म प च
ं ना है जो तकरीबन दो घंटे चलेगा। िजसम आपको दस िमिनट क पीच देनी
है ये टव ए टंग पर।’’
‘‘ .ँ ..’’ आरजे ने पीच वाले कागज को घूरते ए कहा। वैसे तो वो कसी भी इवट म
अपने मन क ही बोलते है पर एक पीच भी साथ म रख लेता है ता क कु छ फे ट देखने
पड़े तो द त नह हो।
‘‘पता है कोई ए टर ये टव नह होता। हम सभी पैदाइशी ही ये टव है; कं तु अपनी
ये टिवटी को भूलकर भागते रहते है ित पधा क अंधी दौड़ म।’’
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भा ग - 5
पहली दुिनया:-
मुकेश फतहबालाजी के मं दर म सो रहा था क रात के तकरीबन दो बजे एक आदमी
आया। उसने मुकेश को कोई ऐसी चीज़ सुंघाई िजससे वो बेहाश हो सके । वो आदमी चेरहे
पर काला नकाब पहने ए था। जैसे ही उसने मुकेश के मुंह पर बेहोशी क दवा से सना
माल रखा क इतने म उस चोर को पीछे से कसी ने जोर से ध ा मारा। वो दस कदम
दूर जा िगरा। धम् क आवाज़ के साथ िगरने से मुकेश क न द खुली। उसने देखा एक
आदमी िजसके मुंह पर नकाब ढका आ था वो दूर िगरा कराह रहा था। इससे पहले क
मुकेश उसे धर दबोचता वो िच लाते ए भागा,
‘‘वो प थर तो म लेकर ही र ग ं ा नह म हार माननेवाला नह ।ँ ’’
ं ा...तु ह छोडू ग
मं दर के पास म ीट लाइट जल रही थी। वो आदमी लड़खड़ाते ए भाग गया। मुकेश ने
उसक आवाज़ से पहचान िलया क ये तो वह सं यासी है िजसने दन म उसे चाय िपलाई
थी।
मके श ने देखा, वहाँ पर उसे कोई चोगा दखाई नह दया। घड़ी म दो बजकर दस िमिनट
हो गए थे। उसने अपनी जेब म से वो जादुई प थर िनकाला। काफ देर तक उसे देखता
रहा। उसे एक अजीब सी शि उस प थर म महसूस ई, लगा जैसे जब भी वो उस प थर
को हाथ म लेकर देखता है तब उसका आ मिव ास कई गुना बढ़ जाता है। उसे महसूस
आ क कोई भी सपना नामुं कन नह होता। प थर को चूमा और फर से जेब म रख
दया। यही तो एकमा उ मीद क करण है। िपताजी ने प कहा था क सारी शि
तु हारे हाथ म है। उसने सोते-सोते एक सवाल अपने अवचेत म छोड़ दया क आिखर
उसका सपना कै से संभव होगा। कोई रा ता य नह दखाई दे रहा? उसे कु छ समझ नह
आ रहा क इस समय या कर? तभी कसी ने उसे झकझोरा,
‘‘तुम यहाँ या कर रहे हो?’’ एक धुंधली सी आवाज़ आई। मुकेश हड़बड़ाकर उठा, देखा,
सामने वही चोगा था जो उसे मशान म दखाई दया था। चोगे के अंदर कोई इं सान नह
था। उसने काली िशकारी टाइप क टोपी पहन रखी थी। बा क -ब- वैसे ही था जैसा
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मशाम म िमला था। उसने आसपास देखा क कोई और भी इं सान इस पल का सा ी बन


रहा है या नह ? जब दूर-दूर तक कोई दखाई नह दया तो खुद को संभालते ए उठ
बैठा। अपने डर को काबू म रखते ए कहा, ‘‘सो रहा ँ ।’’ अ राि क शीत लहर से
उसके दाँत कं पकं पा रहे थे।
‘‘तुमने कभी सोचा है दूसरे लोग म और तुम म या फक है?’’ चोगे ने हवा म लहराते
ए कहा। नीचे पाँव नह थे।
‘‘हाँ...सोचा है। म दनभर यही तो करता ।ँ बस सोचता रहता ँ क आिखर दूसरे लोग
म और मुझम या फक है?’’ मुकेश ने फतहसागर क तरफ देखते ए कहा, ‘‘कल भी जब
दनभर प थर डाल रहा था तो यही सोच रहा था क जीवन मेरे साथ ही इस कार का
खेल य खेलता है। मेरी ही क मत इतनी खराब य है क...’’ इससे आगे मुकेश कु छ
बोलता उससे पहले ही चोगे ने उसका गला पकड़ िलया, ‘‘ क मत जैसा कु छ नह होता
लड़के । ये इं सान ारा इजाद कया आ अभी तक का सबसे खतरनाक आइिडया है।’’
‘‘अ...आ...आइ...एम सॉरी.... लीज।’’ उसे डर के मारे पसीना आ रहा था।
‘‘बोलते रहो...’’ चोगे ने मुकेश का गला छोड़ दया और अपने आसपास देखने लगा क
कोई मनु य या जीव तो नह आ रहा है। एक कु ा दूर से दोन को देख रहा था। चोगे ने
उसे हाथ के इशारे से दूर भगा दया।
‘‘म कह रहा था क मेरे साथ ही ऐसा य होता है क प रवार वाल ने मुझे छोड़ दया।
उदयपुर िजसके के भरोसे आया वो िमला नह । यहाँ दहाड़ी मजदूर बन कर रह गया।
आज म िजस थान पर ँ वहाँ से कोई अपनी क पना म भी इतना बड़ा सपना नह देखेगा
िजतना बड़ा मने देखा।’’
‘‘एक बात कान खोलकर सुन लो। कल ही अपने सपने के िलए िनकल जाओ। यादा
दमाग से मत सोचो। म बार-बार तु हारी सहायता करने नह आऊंगा। तु ह खुद ही
अपनी सहायता करनी होगी। खुद ही अपना रा ता चुनकर उस पर चलना होगा।’’
‘‘मेरी ये समझ म नह आ रहा क मु बई म मेरे जैसे कतने ही मारे -मारे फर रहे है।
कतने ही ए टर, राइटर बनने क चाह म वहाँ जाकर दहाड़ी मजदूर बन गए। मुझम
ऐसा पेशल या है क आप मुझे े रत कर रह है?’’ मुकेश को इसी बात का डर था क
उसने सपना ज र ब त बड़ा देखा है कं तु कह ऐसा नह हो क मु बई जाकर असफल हो
जाये। उसे खुद पर यक न नह हो पा रहा था क उसके जैसा गांव का छोरा िजसे ठीक से
अं ेजी भी नह आती वो आिखर कै से मु बई फ म इ ड ी म सफल हो पायेगा? कै से उसे
लोग वीकार करगे।
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‘‘ये रा ता तु हारे दल ने चुना है। तुम इसी के िलए बने हो। तु हारा दमाग हमेशा कसी
मेथेमे टिशयन क तरह के लकु लेशन म लगा रहता है। दमाग ब त ही सीिमत सोचता है।
तुम जो हो उसके इद-िगद ही दमाग सोचेगा। तुम जो हो सकते हो वो तु हारा दमाग
कभी नह सोच सकता है। इसके िलए तु ह अपने दमाग को जबरन वीकार करवाना
होगा। उसे समझाना होगा क तुम वो नह हो जो आज इस मं दर म सोया आ है बि क
तुम वो हो जो सपना देखते हो।’’
‘‘आपके िहसाब से मुझे अब या करना चािहए?’’ मुकेश को कु छ भी समझ नह आ रहा
था क जेब म के वल एक सौ तीस पये है ऐसे म वो या हासील कर सकता है। मु बई
जाकर सेटल होने के िलए थोड़ी-ब त दौलत तो होनी चािहए क वहां जाकर आराम से
सेटल हो सके । फर फ म के िलए लेखन शु कर सके ।
‘‘अपने सपने को पूरा करने के िलए कल ही िनकला जाओ। कसी का इं तजार मत करो।
सारी चीजे अपने आप सेटल हो जायेगी। तुम िजस आदश ि थित का इं तजार कर रहे हो वो
कभी आनेवाली नह है। ’’
कहते ए चोगा गायब हो गया। मुकेश बैठे-बैठे सोच ही रहा था क इतने म ‘टन्’ क
आवाज़ आई। उसने देखा शायद उसके दमाग क घं टयाँ बज रही होगी। वो फर से
सोचने लग गया। फर से ‘टन्-टन्-टन्’ क आवाज़ आई। इस बार आवाज़ जोर से आई
मानो दमाग क घं टय को यूटुथ से कने ट कर के बड़े पीकर म बजाया जा रहा हो। ये
या हो रहा है? या भूत जाते समय घं टयाँ बजाते ए जाते है? अब घं टय के साथ
‘धमड़्-धमड़्’ क आवाज़ भी आई। साथ म ‘छन-छन’ भी बजने लगा। उसे ऐसा लगा जैसे
दमाग फट कर बाहर आ जायेगा। तभी अचानक उसक आँख खुली। वो हड़बड़ाकर उठा
और ये देखकर आ य च कत हो गया क वो वाकई म सपने म था। इस समय सवेरा हो
चुका था। घड़ी म सात बजे थे। मं दर म सेवा का टाइम हो गया था। पुजारी दीपक जलाए
बालाजी के चार तरफ घुमा-घुमा कर आरती कर रहा था। लोग मं दर क घं टयाँ, ढोल,
नंगाड़े बजा रहे थे। उसे समझ नह आया क चोगेवाला ि अभी तो गया इतनी सी देर
म सवेरा कै से हो गया। उसने जेब टटोली, जादुई प थर सुरि त था। चैन क सांस ली।
सामने पानी क याऊ बनी ई थी वहां जाकर मुंह धोया। तब तक आरती समा हो चुक
थी। उसने हनुमानजी के दशन कए और खूब सारा साद िलया ता क सवेरे का ना ता
इसी से हो जाये।
आज मुकेश ने तय कर िलया था क चाहे रात को उसे सपना आया हो या हक कत म कोई
आ मा आयी हो पर वो अब यहाँ उदयपुर म नह के गा। आज रात क बां ा ए स ेस ेन
से मु बई के िलए रवाना हो जायेगा। जो दहाड़ी मजदूरी यहाँ कर रहा है वो वह कर
लेगा। वैसे भी उसे कसका मोह? ना उसके पास आिलशान घर है, ना दौलत, ना प रवार,
ना समाज और ना कोई खास दो त िजससे मोह होता। जो उसे रोकते। िजस कार यहां
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मं दर म सोकर रात गुजार रहा है उसी कार वहां भी मं दर तो ह गे ही। इं सान को


स दय से या चािहए था के वल दो जून क रोटी चािहए होती। जानवर भी अपना पेट
भर लेते है तो म तो ज र अपना पेट भर लूंगा। अब मुझे अिधक से अिधक अपने सपने के
बारे म सोचना होगा। म वही क ं गा जो म चाहता ।ँ आगे जो होगा देखा जायेगा।
मु बई जाने के िलए उसके पास के वल एक सौ तीस पये थे जो पया नह थे। उस दन
उसने फर से दहाड़ी मजदूरी क । वहां शाम को पाँच बजे होते ही रे लवे टेशन के
िलए टे पो म बैठ गया। अब उसके पास तीन सौ तीस पये हो गए थे। इतने म तो जनरल
का टक ट िमल जायेगा इसी उ मीद के साथ वो रे लवे टेशन प च ं गया। शाम के छह बजे
थे। उदयपुर से मु बई जानेवाली बां ा ए स ेस का टाइम रात के दस बजे का था। उसे
ब त भूख लग रही थी। सवेरे से कु छ नह खाया था। िजसके यहाँ दनभर काम कया था
उसने के वल दो टाइम चाय िपलायी थी। इसके अवाला पेट म कु छ भी नह डाला था। ेन
म अभी समय था िलहाजा वो टेशन के बाहर चला गया । िसटी टेशन के दाई तरफ एक
खाने क लारी लगी ई थी िजस पर मुसा फर अपने पेट क ुधा को शांत कर रहे थे।
लारी वाला बीस पये क छह और तीस क दस पुिड़यां दे रहा था। साथ म दाल । लोग
अपनी-अपनी पसंद के िहसाब से मे यू का चयन कर रहे थे। मे यू चयन म भूख का कम
पैस का अिधक यान रखा जा रहा था। साथ म एक लास छाछ के पाँच पये ए ा थे।
मुकेश ने बेग एक टू ल पर पटका और दस पुड़ी का आडर सबिमट कराते ए दूसरे टू ल
पर बैठ गया। लारी वाले के चार तरफ सात-आठ टू ल िबखरे पड़े थे। एक पर बैठो और
दूसरे टू ल पर रख कर खा लो। कु छ लोग लारी के सामने लकड़ी क छोटी प ी पर खड़े-
खड़े ही भोजन का रसा वादन ले रहे थे। मुकेश के सामने वाले टू ल पर अखबर के ए4
साइज के कागज पर पुिड़या रखी गई और एक दोने म दाल परोस दी गई।
पुिड़याँ िबलकु ल पतली और इतनी छोटी थी क एक कवे म एक पुड़ी आसानी से खायी जा
सकती थी। दाल के अंदर दाने कम पानी अिधक था। उसमे अंगुली घुमाकर देखा तो
मुि कल से एक-दो दाने िमले। पुड़ी के छोटे-छोटे टु कड़े कर के खाने लगा िजससे क मुंह
अिधक चले और शरीर को ये म हो जाये क उसने ब त अिधक खा िलया। सारी पुिड़याँ
खतम कर के उसने जी भर के पानी पीया। बची-खुची भूख को पानी से समा कर दया।
अब उसे पेट भरा-भरा लग रहा था। उसने खु ले दस-दस के तीन नोट लारी वाले को दए
और रे लवे टेशन क तरफ चल दया। अब उसके पास तीन सौ पये बचे थे।
घड़ी म आठ बजे थे। टेशन म वेश करते ही उसने सबसे पहले काउं टर पर जाकर मु बई
के िलए एक जनरल का टक ट मांगा।
‘‘तीन सौ पचपन।’’ अंदर बैठे आदमी ने मुकेश क तरफ देखे बगैर ही कहा।
‘‘ कतने सर’’ मुकेश का दल धक् सा आ। वो क फम करना चाह रहा था।
‘‘तीन सौ पचपन’’ इस बार अंदर बैठे ि ने झा लाते ए कहा और अपना हाथ पैसे
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लेने के िलए आगे बढ़ाया।


मुकेश कु छ नह बोल सका। उसके पीछे लाइन लगी ई थी। ज ट पीछेवाले आदमी ने
टोका, ‘‘भाईसाब थोड़ो ज दी करजो। मारे ेन रवाना वोवा वाली है।’’
मुकेश शू य सा हो गया। वो जान बूझ कर जेब टटोल रहा था ता क लोग को लगे क पैसे
िनकाल रहा है और उसे ये सोचने के िलए थोड़ा समय िमल जाये क अब आगे या करना
है।
‘‘भाई टक ट लेना हो तो ज दी कर।’’ काउं टर के अंदर से उस आदमी ने डाटा।
मुकेश ही नजर सामने काँच पर पड़ी। वहाँ िलखा था, ‘काउं टर टक ट - 10 पये’
‘‘एक काउं टर टक ट देना।’’ कहते ए उसने सौ का नोट आगे बढ़ाया ता क लोग के
सामने अपमािनत नह होना पड़े क इसके पास तो टक ट के पैसे ही नह ।
‘‘चज नह है या?’’ सौ का नोट लेते ए उसने मुकेश से पूछा।
‘‘नह सर...’’ मुकेश ने फर से जेब टटोलते ए कहा। उसे मालूम था क उसके पास दस
का नोट नह है पर जेब इस िलए टटोली ता क सामनेवाले को लगे क बेचार ढू ंढ तो रहा है
पर शायद इसके पास नह है।
उसने एक काउं टर टक ट दे दया। मुकेश ने खु ले पैसे जेब म रखे व मैने गेट क तरफ
बढ़ा। अंदर घुसते ही लेटफाम नंबर एक पर आ गया। उसका दल अभी भी धड़क रहा था
क बगैर टक ट के कै से मु बई जायेगा? कह कसी ने पकड़ िलया तो? पुिलस जेल म डाल
देगी तो जमानत के िलए कोई आनेवाला नह । अगले दो घंटे वो यही सोचता रहा क या
क ँ?
टेशन पर चहलपहल थी। जब भी कोई ेन आती तो लोग का जूम का जूम लेटफाॅम
पर िबखर जाता। सब के सब थके -शांत दखाई देते। उनके अंदर मंिजल पर प चं ने क
खुशी प दखाई देती थी। वे ज दी से ज दी अपने-अपने घर प च ं जाना चाहते थे। जब
ेन यहाँ से कसी दूसरे शहर के िलए जाती तो दृ य अलग होता। तब लोग प रवार सिहत
अपनो को छोड़ने आते, उ ह संभल कर सफर करने क लाख िहदायते दी जाती। रे ल का
इं जन बजते ही बाहर घुमनेवाले दौड़-दौड़ कर अपने-अपने िड ब म बैठने लगते। टीटी को
कोई ना कोई हर व घेरे रहता। दो नंबर म सीट उपल ध करवाने के िनवेदन सबसे
अिधक कये जाते।
‘‘साब एक सीट दलवा दो। रजवशन नह आ बेटे का। रात भर का सफर है। सवेर
उसके परी ा है साब।’’
‘‘एक सीट दलवा दो सर जी... मेरे साथ म छोटा ब ा है।’’
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इसी कार के सवाल से टीटी हरव िघरे रहता। जब बां ा जानेवाली ेन लेटफाम नंबर
एक पर लगी तब भी मुकेश कु छ िनणय नह कर पाया क या कर? उसका दमाग जड़़
सा होता जा रहा था। कु छ समझ नह आ रहा क जाय या नह । जाने वहाँ या होगा?
अचानक उसक नज़र एक लड़क पर पड़ी जो उसे ुित क तरह दखाई दी। सोचने लगा
क मुझे ये हो या गया है? आजकल हर लड़क मुझे ुित क तरह य दखाई देती?
ुित मेरी कभी नह हो सकती। उसक दुिनया ये नह है। वो दूसरी दुिनया से आयी है। म
इस दुिनया का ।ँ उसे पाने के िलए मुझे दूसरी दुिनया म जाना होगा जो सपनो क दुिनया
है।
ेन के रवाना होने म अभी समय था। या ी लेटफाम पर गूगल के वाई-फाई को लूट
रहे थे। कोई आती-जाती लड़ कय को को देख रहा था तो कोई कान म इयर फोन लगाकर
गाने सुन रहा था। कु छ लड़ कयाँ इ टा ाम के िलए से फ ले रही थी तो लड़के उनको
से फ लेते समय बानायी गई अजीब श ल को देख कर खुश हो रहे थे।
मुकेश अपनी बच से उठकर नजदीक क कताब क दुकान पर गया। वहाँ पर अिधकांश
नॉवेल थे। िह दी म भी थे और अं ेजी म भी। िह दी के नॉवेल एक रो म सीमटे ए थे
जब क अं ेजी के नॉवेल पूरी दूकान म अपना आिधप य जमाये ए थे। मुकेश को अं ेजी
नह आती इसिलए उसने िह दी क तरफ ख कया। उसने तय कर िलया क अगर उसे
राइटर बनना है तो अिधक से अिधक कताब पढ़नी होगी। खुद क सृजना मकता को
समझना होगा। िह दी कताब म अिधकांश समकालीन थी तो कु छ पुरानी भी थी। सुरे
मोहन पाठक के उप यास सबसे अिधक मा ा म थे। पाठक साहब का एक उप यास उसने
उठाया, उसके प े पलटे और फर से रख दया। इस समय वो कोई ऐसी कताब ढू ंढ रहा
था िजससे खुद क शि य को अ छे से समझ सके । खुद को अिधक से अिधक सृजना मक
बना सके । अपने सपने को साकार करने म मदद कर सक। तभी अचानक उसक नजर
रा डा बन क कताब ‘रह य’ पर पड़ी। उसे थोड़ा अजीब लगा क इसम या रह य है?
उसने वो कताब उठाकर देखी। पीछे िलखा था, ‘जब आप ये कताब पढ़गे तो जान जाएंगे
क आप सचमुच कौन ह। आप उस स ी भ ता को जान जाएंगे, जो जीवन म आपका
इं तजार कर रही है।’ उसके दल ने इस कताब के िलए हामी भर दी। कताब के पीछे तीन
सौ प ानवे पये िलखे थे। उसका दल धक् से बैठ गया। इतनी महंगी कताब?
दुकानदार ने मुकेश के को समझ िलया। उसने वही कताब जो उसका पाइरे टेड वजन
था जो क ह के पृ पर छपी ई थी तथा लेक ए ड वाइट का लुक दे रही थी, उसक
तरफ बढ़ा दी और कमत सौ पये लगायी। मुकेश ने बगैर सोचे सौ पये िनकाल कर दे
दए। इतने म ेन के रवाना होने का भ पू बज गया था।
उसने जेब से वो जादुई प थर िनकाला और उसके अंदर छु पी अदृ य शि य को देखते ए
कहने लगा, ‘‘आज म अपने सपने के िलए पहला कदम उठा रहा ।ँ आगे या होगा मुझे
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नह मालूम पर म बस अटू ट िव ास के साथ आगे बढ़ रहा ।ँ तुम म वाकई म जादुई


शि याँ है तो मुझे मु बई तक बगैर कसी झंझट के प चं ा देना। अगर तुमने प चं ा दया
तो म मान जाउं गा क वाकई म तु हारे अंदर अलौ कक शि यां है।’’ कहते ए उसने
प थर को चूम िलया। तभी उसे कु छ और याद आया, ‘‘और हाँ, अगर आज ुित के दशन
हो जायगे, वो अपने नंबर मुझे दे देगी तो म सौ ितशत मान जाउं गा तु हारी शि य को।
वादा करता ँ क उसके बाद कभी तु हारे सुपर पावर पर शक नह क ं गा।’’
ेन रवाना हो चुक थी। लोग भागकर अपनी-अपनी बोगी म चढ़ रहे थे। मुकेश ने वो
प थर जेब म रखा और िनडर होकर ेन क तरफ रवाना आ। उसने ण कर िलया क
एक बार ज र खुद पर िव ास कर के देखेगा। अपने सपने क राह पर चलकर देखेगा।
असफल तो वो इस समय भी है। इससे यादा या हो जायेगा क उसे दो-चार दन क
जेल हो जाये। वो दो दन भूखा रह जाये पर अगर वो सफल हो गया, अगर उसका सपना
साकार हो गया और वो इ ड ी का सबसे पाॅपुलर ट राइटर और ए टर बन गया तो
फर या चािहए।
ेन पीड पकड़ चुक थी। मुकेश एक झटके म सैके ड लास के लीपर बोगी म घुस गया।
ेन िसटी टेशन से आगे िनकल गई। उसने िखड़क पर ही खड़े-खड़े इस शहर को ध यवाद
दया और अंदर कोई खाली सीट ढू ंढने िनकल गया। पीछे से उसको टीटी आता आ दखाई
दया। मुकेश का दल धक् से बैठ गया। अब या करे गा? उसे डर सताने लगा पर कु छ ही
देर म उसने जेब म हाथ डालकर प थर को छु आ मानो उससे कोई शि हण कर रहा हो।
वो आगे बढ़ता गया। एक बोगी से दूसरी म, दूसरी से तीसरी म। लोग अपनी-अपनी सीट
पर कािबज हो चुके थे। कह पर भी कोई सीट खाली दखाई नह दे रही थी। बां ा
जानेवाली ेन हमेशा से खचाखच भरी रहती है। उसम जाने के िलए एक से दो मिहने
पहले रजवशन करवाना पड़ता है। उसे कह भी काई सीट खाली दखाई नह दी।
थक-हार के मुकेश एक ही जगह पर खड़ा हो गया। अब जो होना होगा वो हो जायेगा।
यादा भागने से कु छ भी होनेवाला नह । िजतना भागेगा उतनी ही परे शानी बढ़ेगी। वह
पर खड़े-खड़े उसे कसी ने पीछे से छु कर आवाज़ लगाई,
‘‘हाइ सु दर लाल...’’ पीछे से आवाज़ आई।
वैसे आवाज से वो कभी पीछे नह देखता पर उसे कसी ने छु कर आवाज़ दी थी इसिलए
उसने मुड़कर देखा तो मारे आ य से उसके मुँह से चीख िनकल गई,
‘‘ ुित.....आप?’’
बोगी के अंदर लाइट बंद थी। सारे मुसा फर सो चुके थे इसिलए मुकेश पहले ुित को नह
देख पाया पर जब उसने आवाज़ लगाई तो मुकेश ने पास जाकर यान से देखा तो वो ुित
थी। नीचे वाली सीट पर सो रही थी। उसके ऊपर क दोन सीट को लीप मोड म कया
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आ था और लोग सोए ए थे। ुित ने मुकेश को ख चकर अंदर बुला िलया। इतने म टीटी
वहाँ प च
ँ गया।
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भा ग - 6
पहली दुिनया:-
‘‘ टक ट...’’ टीटी ने िड बे क लाइट ऑन करते ए पूछा। अिधकतर मुसा फर सो रहे थे।
वे सर खुजलाते ए खड़े होने लगे।
‘‘तु हारा रजवशन कौनसी बोगी म है सु दरलाल’’ ुित ने अपना टक ट ढू ंढते ए
पूछा।
उसक आवाज़ बड़ी यूट लग रही थी मुकेश को। उसका मन कर रहा था क काश
जीवनभर उसे ऐसी आवाज़ सुनाई देती रहे। काश ये लड़क मुझे ऐसे ही सु दर लाल कह
कर िचढ़ाती रहे।
टीटी दूसरे मुसा फर से टक ट कले ट कर रहा था।
‘‘म खुद ही एक िड बा बन चुका ।ँ मेरा या रजवशन होगा ुित।’’ मुकेश का यान
टीटी क आवाज़ से भंग हो गया। उसे लगा क अब सच पकड़ा जायेगा और ये टटवा तो
मेरा टेटवा ही दबा देगा। साला मुझे पुिलस को स प देगा। पुिलसवाले चार ले चर झाड़गे
क चला था िहरो बनने और जेब म एक फू टी कौड़ी नह । यहाँ तक क उसके पास तो
र त देने के भी पैसे नह ।
‘‘मतलब तू फोकट म सफर कर रहा है।’’ ुित ने सर पीटते ए कहा। टीटी ने उसक
आवाज़ सुन ली। मुकेश ने ुित को आँख दखाई क उसे थोड़ा धीमे बोलना था। कोई
बेचार डू ब रहा हो तो उसे बचाना चािहए क डू ब मरने के िलए छोड़ देना चािहए।
‘‘ टक ट...’’ टीटी ने सीधे मुकेश को पूछा।
‘‘म म म म वो ए चुअली....’’ मुकेश ही आवाज़ अटक गई इतने म ुित बीच म बोल
पड़ी, ‘ए चुअली ये मेरे साथ है।’’
टीटी का हाथ अब मुकेश से हटकर ुित क तरफ बढ़ गया।
ुित ने अपनी जेब म से अपना टक ट िनकाल कर टीटी क तरफ बढा दया। टीटी ने
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टक ट लेकर चेक कया तो उसम तो के वल एक लड़क का ही रजवशन था। इससे पहले


क वो कु छ बोलता ुित बोली, ‘‘अंकल ये मेरे अिस टट है। इनको साथ ले जाना ब त
ज री था पर इनका रजवशन नह हो पाया तो मेरे साथ इस सीट पर बैठे है। अगर आप
बुरा ना मानो तो म आपक िखदमत म ये छोटा सा तोहफा पेश करना चा ग ँ ी‘‘ कहते ए
ुित ने अपनी जेब म से दो हजार का नोट िनकालकर टीटी क तरफ बढ़ाया।
टीटी सकपका गया। इधर उधर देखने लगा, सारी सवा रयाँ उसे ही घूर रही थी। मुकेश भी
आ य म था क इस नादान लड़क ने सब के सामने र त का ऑफर कै से पेश कर दया।
कम से कम टीटी को साइड म ले जा कर चुपके से र त देनी चािहए। आजकल हर कसी
के पास ए डराइड मोबाइल है। कौन जाने कब ि लप बना डाले और वायरल कर दे।
‘‘शट्अप... मुझे र त देने क कोिशश क तो अंदर करवा दूग
ं ा। आप जानती नह म
भारत सकार के रे लवे िडपाटमट का कमचारी ।ँ हम सरकारी कमचारी कभी र त नह
लेते मडम।‘‘ उसक इस बात पर ुित को हंसना आ गया। ‘‘आपको मेरे साथ पुिलस
क ोल म म चलता होगा। इसक रपोट क जायेगी।’’ कहते ए वो ुित को अपने
साथ ले गया। आसपास के सारे लोग आ य से देख रहे थे क लड़क कसती िब दास है।
खुलेआम सब के सामने र त पेश कर रही है वो भी पूरे आ मिव ास के साथ। यही नह
वो टीटी के साथ मु कु राते ए चली भी गई ये बोलते ए क बस पाँच िमिनट म आई।
मुकेश को कु छ भी समझ नह आ रहा था क ये या हो रहा है। वो आ य से ुित क सीट
पर बैठ गया। इतने म िच ोड़गढ़ रे लवे टेशन आ गया। बाहर चाय-कचोरी व समोसे वाले
गुटरगू कर रहे थे। लोग क रे लम पेल मची ई थी। रे लवे क दुिनया भी अलग ही दुिनया
होती है। यहाँ हर दन अलग-अलग मुसा फर होते है अलग-अलग वेश म। सब को कह ना
कह जाना होता है। कसी को दूसरे से कोई लेना देना नह । सबका अपना अपना अलग
सफर है। सबक अलग-अलग मंिजल।
िु त टीटी के पीछे-पीछे मु कु राते ए चली जा रही थी। थोड़ा आगे जाते ही बाथ म के
पास जहाँ ह का अंधेरा था और लोग यादा नह दख रहे थे वहाँ जाकर ुित क तरफ
मुखाितब होते ए टीटी ने अबद से कहा, ‘‘इस अभ ता के िलए मा चाहता ।ँ मुझे
आपका तोहफा कबूल है।’’ कहते ए उसने अपना हाथ र त लेने के िलए बढ़ाया।
‘‘मुझे लगा आप रे लवे के ित कत िन कमचारी है।’’ ुित ने पहले ही नोट हाथ म ले
रखा था। नोट आगे बढ़ाते ए बोली।
‘‘िबलकु ल सही समझा। भारतीय रे लवे का दािय व है क या ी क सारी सुिवधा का
खयाल रखे। और इस व म आपक सुिवधा का खयाल ही तो रख रहा ।ँ ’’ दो हजार
का नोट अपनी जेब म रखते ए टीटी मु कु राया।
ुित वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गई। बोगी के सारे लोग आ य से उसे देख रहे थे
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और आपस म कानाफू सी कर रहे थे क ये तो दो िमिनट म ही वापस आ गई।


‘‘तुम पागल तो नह हो।’’ मुकेश ने आ य से पूछा। उसने ऐसी िब दास लड़क कभी
नह देखी थी। उसे लगा क सचमुच समय बदल गया है।
‘‘वो सब छोड़ो और ये बताओ क तुम बगैर टक ट के कहाँ जा रहे हो? घर छोड़कर भाग
रहे हो या? या कसी लड़क का च र है? चेहरे से तो लग रहा है क तुम बोत भारी
टशन म हो।’’ ुित मुकेश के पास बैठते ए बोली।
‘‘नह यार वो मु बई अपना सपना पूरा करने के िलए जा रहा ।ँ ’’
‘‘ या सपना है तु हारा जो बगैर टक ट के ेन म चढ़ गए। कही कोई छोरी का लफड़ा तो
नह ?’’ ुित ने मु कु राते ए कहा।
‘‘तुम नह समझोगी, वैसे तुमने टीटी को कै से मना िलया?’’
‘‘अमूमन लोग दो सौ, पाँच सौ क र त देते है। दो हजार क र त कोई नह देता।
इतनी रकम को ठु कराना नामुं कन है।’’ ुित ने हंसते ए कहा, ‘‘हर काम म
आ मिव ास होना चािहए यार।’’
‘‘पर मेरे पास इतने पये नह है। तु ह कै से दूग
ं ा?’’
‘‘ज रत नह है। तुम तो सच बताना मु बई य जा रहे हो?’’
‘‘सच बताऊंगा तो तुम हंसोगी मुझ पर।’’
‘‘यक न मानो म वैसे ही ब त हंस चुक ।ँ जो सच है वो बताओ।’’
‘‘म फ म इ ड ी म ये टव राइटर बनना चाहता ।ँ यही मेरा सपना है और इसे पूरा
करने के िलए चल पड़ा ।ँ आगे या होगा नह मालूम।’’ मुकेश के चेहरे पर भिव य म
आनेवाली िवप ी से उठी चंता क लक र प दखाई दे रही थी।
िु त को एक बार तो यक न नह आ। उसने मुकेश के चेहरे को ब त यान से देखा। उसे
उसके हावभाव म स ाई क झलक दखी तो वो जोर से हँस पड़ी। ठहाका इतना तेज था
क ऊपर क बोगी म खराटे ले रहा या ी एक बार उठ बैठा और करवट बदल कर फर से
सो गया।
‘‘तुम वहाँ य जा रही हो?’’ मुकेश ने धीमे से कहा।
‘‘मेरी जॉब वह है।’’ कहते ए ुित इ टा ाम ओपन कर उदयपुर रे लवे टेशन पर ली
गई से फ को िमले लाइक देखने लगी।
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‘‘तु हारा कज कै से चुका पाऊंगा समझ नह आता।’’ मुकेश ने कृ त होते ए कहा। आज


ुित नह होती तो उसे या तो जेल जाना पड़ता या टीटी रा ते म ही उतार देता।
‘‘ या वाकई म तुम पागल तो नह हो गए?’’ अचानक ुित को जैसे कु छ याद आया हो।
‘‘ या? कसके िलए? मने या कया?’’ मुकेश डर गया क इसे अब या हो गया। वो
चार इं च ुित से दूर िखसक कर बैठ गया।
‘‘तुम मु बई ट राइटर बनने जा रहे हो और जब म फू टी कौड़ी नह ।’’
‘‘हाँ ।’’ मुकेश ने अपने इरादे को अटल रखा।
‘‘ या तुमने कोई कहानी या नॉवेल िलखा है?’’ ुित ने हाथ आगे बढ़ाते ए पूछा। ेन
क पीड ब त तेज थी। इं जन क सीटी और पिहय का शोर लोग क न द म खलल डाल
रहा था। पानी क बोतल और चाय वाले रात को भी एक िड बे से दूसरे िड बे म घूम रहे
थे।
‘‘नह ... फलहाल तो नह ।’’ मुकेश ने कं धे उचकाते ए कहा। बाहर से कभी-कभार आने
वाली रोशनी से मुकेश का चेहरा अजीब सा दखाई दे रहा था।
‘‘एब बात बोलूँ ! तुम ना सच म पागल हो।’’ ुित ने वा सअप मैसेज देखते ए कहा।
‘‘अपने सपने के िलए पागलपन अ छा है।’’
‘‘तु ह पता है मने तु हारी मदद य क ?’’ ुित क नज़रे मोबाइल म ही थी।
‘‘हाँ। तुम भली लड़क हो इसिलए।’’
‘‘नह ! म कोई दानी नह ँ पर जब तु हारे जैसे गांव से आये सीधे-साधे लड़क को
देखती ँ तो लगता क दुिनया म अभी भी अ छाई मौजूद है। जब पहली बार तुम मेरे
िच लाने से डर गए थे तब ही समझ गई थी तुम ब त सीधे लड़के हो। मुझे ऐसे लड़के
अ छे लगते है जो अंदर और बाहर से एक होते है। आजकल के शहर के लड़क का कोई
भरोसा नह रहता। आज उसके तो कल कसी और के साथ। वे झूठ भी इतनी सफाई से
बोलते है क यक न हो जाए।’’ ुित क आवाज़ म दद झलक रहा था। मानो कोई अतीत
का घाव उसे दद दे रहा हो।
‘‘कल तो मने तु ह ब त खुश देखा था फतहसागर पर। ऐसा या हो गया क तुम इतनी
उदास हो गई?’’
‘‘तुमने कल मुझे देखा था।’’ ुित ने आ य से पूछा, ‘‘तो फर आवाज़ य नही दी?’’
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‘‘म तु ह िड टब नह करना चाहता था।’’


‘‘पता है कल िजस लड़के के साथ घूम रही थी उससे मेरी सगाई हो गई है।’’ ुित ने
सगाई क बात नामल वे म कही।
मुकेश को जोर का झटका धीमे से लगा। उसका दल तो चकनाचूर हो गया पर आ य इस
बात पर हो रहा था क सगाई होने पर भी ये इतनी उदास बात य कर रही है। उसने
दखावटी खुशी कट करते ए कहा, ‘‘बधाई हो !’’
‘‘थ स !’’
‘‘तुम खुश नह लग रही हो।’’
‘‘सभी के नसीब मे खुिशयाँ कहाँ होती है।’’
‘‘ या आ? तुम उससे यार नह करती या?’’
‘‘म िजससे यार करती थी उसने मुझे धोखा दया। वो मुझसे झूठ बोलता रहा और म
आँख मूंद कर उस पर िव ास करती रही। जब उसका मन भर गया तो मुझे छोड़ कर
चाला गया। तब से मेरा िव ास उठ गया यार पौधे से। मने अपने घर वाल को फोन कर
के उनके िहसाब से लड़का देख कर मेरी सगाई प करने के िलए बोल दया। कल िजस
लड़के के साथ घूमते ए तुमने देखा उससे कल ही पहली बार िमली और देखा था।
फतहसागर भी घरवाल क िजद के कारण गई। म अंदर से खुश नह थी बस तु ह बाहर से
खुश दखाई दे रही थी।’’ कु छ देर खामोश रहने के बाद बोली,
‘‘पता है हम सभी दोहरे करदार म जीवन जी रहे है। हम अंदर से कु छ और होते है और
बाहर से कु छ और दखाते है। हम दुिनया को वही दखाते है िजसे ये देखना चाहती ह, वो
नह दखाते जो हम ह। जब पहली बार तु ह देखा तो लगा क तुम अंदर से और बाहर से
एक हो। तुम बाहर से भी वही हो जो अंदर से हो। आज फर से िमलकर यक न हो गया।’’
‘‘तो तुमने ऐसे लड़के से सगाई कर ली िजसे तुम जानती तक नह और वो भी इसिलए क
कसी ने तु हारा दल तोड़ दया। उसक सजा तुम अपने आप को दे रही हो। ेट ! ’’
‘‘हम सभी कह ना कह कसी ना कसी क सजा भुगत रहे होते है सु दर लाल। तुम
अभी-अभी गांव से आये हो। तुमने दुिनया नह देखी।’’ उसके बाद ुित मुकेश के पास
आकर धीमे से कहने लगी, ‘‘पता है, म मु बई म या करती ?ँ ’’
‘‘सोचना पड़ेगा...’’ दमाग पर जोर डालने के बाद मुकेश बोला, ‘‘मेरे अनुमान से तुम
एमबीए या सीए करके मु बई म कसी म टीनेशनल कं पनी म जॉब करती हो।’’
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‘‘तुम लोग को ठीक से आॅ जव नह कर सकते। एक लेखक के िलए सबसे ज री चीज़


या है? लोग को आॅ जव करना। खैर ! तुमने रा ल जैन का नाम तो सुना ही होगा?’’
‘‘आरजे?’’
‘‘ ।ँ सही कहा। आरजे। म उसके िलए काम करती ।ँ ’’
‘‘वाउ... ेट।’’ मुकेश उछल पड़ा। उसे यक न नह हो रहा था क वो मश र अिभनेता
आरजे के ऑ फस म काम करने वाली से बात कर रहा है। आरजे के साथ बैठने का तो
उसका सपना था।
‘‘म ही तय करती ँ क आरजे को कस फ म म काम करना चािहए और कसम नह । म
उसक ट रडर ।ँ उसे िमलने वाली सारी ट पढ़कर म िडसीजन लेती ँ क
आरजे को इस फ म म काम करना चािहए।’’
‘‘तब तो तुमसे िमलकर और भी अ छा लगा। एक ना एक दन मेरी ट भी तु हारे
पास आयेगी और तुम उसे ज र वीकृ ित दोगी।’’
‘‘काफ आ मिव ास है तु ह अपने आप पर।’’ ुित ने मु कु राते ए कहा। चांदनी रात म
चांद क रोशनी सीधे ुित पर पड़ रही थी। उसका चेहरा चमक रहा था।
‘‘बस जीवन म यही है मेरे पास। बा क एक दम फक र ।ँ ’’
उसके बाद ुित ने मुकेश को अपना काड िनकाल कर दया और साथ म ये ताव भी
रखा क कोई अ छी सी पा डु िलिप िलखकर ही मुझसे िमलने आना। देखते है तु हारा
आ मिव ास हक कत म बदलता है या नह ।
मुकेश ने काड जेब मं◌े रख दया। जेब म हाथ जाते ही उसके हाथ ने प थर को छु आ। उसे
अब पूरा यक न हो गया क ये कोई ना कोई चम कारी प थर है। उसने जो-जो मुरादे मांगी
इस प थर ने सारी मुरादे पूरी कर दी। उसने आज िन य कर िलया क अब वो इस प थर
पर पूरा यक न करे गा और इसे हर व अपने साथ रखेगा। प थर वाली बात उसने ुित
को भी नह बताई।
अगले दन जैसे ही ेन मु बई रे लवे टेशन प च ं ी, ुित मुकेश से हाथ िमलाकर ये कहते
ए चली गई क, ‘‘मुझे तु हारे ारा िलखी कहानी क ती ा रहेगी। जब कहानी पूरी
हो जाये और तु ह दल से लगे क उस कहानी पर फ म बननी चािहए तब सीधे मेरे पास
आ जाना।’’ कहते ए वो चली गई। मुकेश उसके हाथ क खुशबू को अपने शरीर म
महसूस करता रह गया। उसने ुित को जाते ए देखा। कु छ ही देर म वो गायब हो गई।
मुकेश ने बेग कं धे पर टांगा और चल पड़ा नयी दुिनया म।
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समझ नह आ रहा था क शु वात कहाँ से करे ? जेब म पेसे नह , ना कह रात कने क


जगह। ऐसे म आगे का सफर उसे मुि कल लगा। मन म शंकाएँ पैदा होने लगी। उसने एक
झटके म सारी शंका को दूर करते ए जादुई प थर को हाथ म िलए और उससे मूराद
मांगी, ‘‘है चम कारी प थर तु हारे अंदर शि है तो मुझे यहाँ रहने और खाने क जगह
दला दे।’’ उसके बाद उसने प थर जेब म रख दया। उसे िव ास था क कोई ना कोई
ब दोब त हो जायेगा। वो रे लवे टेशन से बाहर िनकला। शहर म लोग क रे लम पेल थी।
मोटर-गािड़याँ तो इतनी थी िजतनी उसके गांव म भसे-बक रयाँ नह थी। म छर क तरह
लोग इधर-उधर भटक रहे थे। इतने भीड़-भड़ाके म लोग सांस कै से लेते है?
कु छ देर ऐसे ही बेमतलब चलता रहा। बगैर मंिजल के इं सान और बगैर क ान के नाव
चलती है उस भांित वो इधर से उधर चलता रहा। देखते ही देखते शाम हो गई। एक
चौराहे के पास बने पाक म जाकर बैठ गया। कल से उसने कु छ नह खया था। जेब म इतने
पैसे भी नह क पेट भर के खाना खा ले। मु बई म तो ढाबे ब त मंहगे थे। वो दनभर से
परे शान बैठा-बैठा सोच रहा था क अब या कर?
कोई रा ता दखाई नह दे रहा था। इस समय सपने से यादा मह वपूण था पेट भरता
और रात गुजारना। फु टपाथ पर सोने के िलए भी तो उसके पास िब तर नह है। उसने
जादुई प थर िनकाला और उसे कोसने लगा क मेरी मूराद पूरी य नह क । या वाकई
म ये चम का रक प थर है या नह । उसे उस प थर पर शक होने लगा। तभी उसे याद आया
क कल ही तो उसने िन य कया था क आगे से इस प थर पर कभी शक नह करे गा और
आज ही शक करने लगा। उसे खुद पर घृणा होने लगी क फर से प थर क शि को दाव
पर लगा दया। उसे लगा क म खुद अंदर से ि थर नह ।ँ उसने प थर से माफ मांगी और
आगे से कभी उस पर शक नह करने का िनि य कया। उसे चूमकर जेब म रख दया। अब
वो थोड़ा रले स हो गया। जैसे फर से उसे नई ऊजा िमल गई हो। जैसे ही उसने गदन
ऊपर उठाई सामने गु ारा दखाई दया, जहाँ लंगर पर कई सारे लोग मु म खाना खा
रहे थे।
वो खड़ा हो गया और ये सोचते ए गु ारे क तरफ चल दया क जो मांगा था वो ते मेरे
सामने था फर भी जाने य म देख नह पाया। मने खाने और रात कने के िलए आ य
ही तो मांगा था और वो मेरे सामने था फर भी म देख नह पाया। इसम दोष इस प थर
का नह मेरी नजर का है। उसे लगा क इस दुिनया म ब त सारी संभावानएँ मौजूद रहती
है पर उसे हमारी नजरे देख नह पाती है। दोष हमारे अंदर होता है और हम कसी प थर
या अपनी क मत को कौसते है।
उस रात मुकेश ने गु ारे म पेट भर के खाना खाया और वह सो गया।
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भा ग - 7
पहली दुिनया:-
उस रात मुकेश ने गु ारे म पेट भर कर खाना खाया, कतने दन बाद उसे इतना लज़ीज़
खाना नसीब आ था। रात भी वह सो गया। दूसरे दन सवेरे उठते ही फर से उसके
दमाग म यही घूमने लगा क अब या कर? रोज-रोज तो इस तरह लंगर म दन नह
िनकाल सकता। सपना पूरा करने के िलए आिखर कु छ तो करना ही होगा। उसके अंदर एक
तरह क छटपटाहट हो रही थी। अजीब सी बैचेनी थी क कोई रा ता य नह दखाई दे
रहा है।
जब हम मंिजल तक प च ं ने का रा ता दखाई नह देता, तब हम बैचेन हो जाते ह। इं सान
क यही तो बुरी फ़तरत होती है क वो शु से अंत तक सारा रा ता देख लेना चाहता है,
उसके बाद मंिजल क तरफ बढ़ता है। जब तक रा ता दखाई नह दे तब तक वो एक कदम
भी आगे नह बढ़ाता। जीवन एक रह यमय कताब है, िजसका आिखरी प ा के वल अंत म
ही देखा जा सकता है। जब भी आगे का सारा रा ता दखाई नह देता है तब या तो हम
रा ता ही बदल देते ह या थक हार कर बैठ जाते ह। मुकेश क भी यही ि थित थी। वो इस
समय थक हार कर बैठ गया। उसने तो अभी तक एक कहानी भी नह िलखी, फर भला
उसे कोई य फ़ म म लेगा। वतमान या अतीत हमारी सोच को ब त अिधक भािवत
करते है। हम या तो अतीत या वतमान के हालात से के लकु लेश कर भिव य क क पना
करते ह। मुकेश भी इस समय वतमान हालात या अपने अतीत से नह उबर पा रहा था।
बार-बार उसके दमाग म यही िवचार क ध रहे थे क वो इस समय कमजोर है। उसके
पास कोई अनुभव नह है। ऐसे म उसे मंिजल िमलना ब त दु कर दखाई दे रहा था।
इसी कार के िवचार सोचते-िवचारते मुकेश के कई दन उस गु ारे म गुज़र गए। इस
दौरान उसने जो कताब खरीदी थी उसे पूरा पढ़ िलया। रा डा बन क कताब ‘रह य’
पढ़ने के बाद उसे महसूस आ क वो कमजोर नह है। उसके अंदर भी वो सारी
क़ािबलीयत है जो दुिनया के जीिनयस इं सान के अंदर होती है। हर कोई अपने आप म
िवशेष यो यता रखता है। उस कताब को पढ़ने के बाद मुकेश का आ मिव ास सातवे
आसमान पर था। सबसे मुि कल ये थी क फलहाल कोई रा ता दखाई नह दे रहा था
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जो उसे मंिजल क तरफ ले जाए।


एक दन वो इसी कताब को गु ारे के बगल म बने चबूतरे पर बैठकर पढ़ रहा था क
एक बुजुग उसके पास आकर बैठा। मुकेश ने पहले तो उसक तरफ यान नह दया। यहाँ
तो रोज ही पचास लोग आते रहते है। वो अपनी धुन म म त था क उस बुजुग ने पूछा,
‘‘ या पढ़ रहे हो बेटा।’’
बुजुग के पूछने पर मुकेश ने उसक तरफ देखा, वो दखने म काफ वृ लग रहा था। उ
तकरीबन अ सी वष के आसपास होगी। शरीर के सारे बाल सफे द हो चुके थे। िसर पर
पंजाबी पगड़ी पहन रखी थी िजससे सटीक अनुमान लगाया जा सकता था क ये कोई
पंजाबी है। वैसे भी गु ारे म अिधकांश पंजाबी ही आते थे। चेहरे पर दाढी इतनी बढी ई
थी क कमर तक लटक रही थी। शरीर िबलकु ल दुबला-पताला था पर बु ा दखने म
एि टव था। चेहरे पर झु रयाँ होते ए भी एक अजीब सी चमक दखाई दे रही थी। हाथ म
सोने का कड़ा और गले म सोने क चेन से उसने अनुमान लगा िलया क ज र कोई अमीर
बु ा होगा जो यहां टाइमपास करने आता होगा।
‘‘से फ-हे फ क कताब पढ़ रहा ँ सर।’’ इतना सा कहने के बाद मुकेश फर से अपनी
कताब म घुस गया। उसे मालूम था क लोग बस ऐसे ही पूछने िलए पूछते ह। उ ह दूसर
से कोई मतलब नह होता। वे तो बस टाइम पास करते ह।
‘‘अ छा...लो आफ अ े शन के बारे म पढ़ रहे हो।’’ बुजुग ने व छ द प से हंसते ए
कहा। उ सी क उ म भी उसके दाँत सलामत थे।
‘‘जी’’ मुकेश को इसम कोई आ य नह आ क बुढ़ऊ ने भी ये कताब पढ़ रखी हो। बु े
लोग के काम ही या रहता है, पढ़ने के अलावा।
‘‘ब त कम लोग कताब पढ़ते ह। तु ह पढ़ते ए देखकर अ छा लगा।’’
‘‘बस ऐसे ही खाली बैठा था तो सोचा...’’ इस बार मुकेश को नह चाहते ए भी उससे
बात करनी पड़ी। अ छा चे टर चल रहा था क बीच म कहाँ से बुढ़ऊ आ गया।
‘‘तु हारा भी कोई ना कोई सपना है िजसे पूरा करने के िलए तड़प रहे हो?’’ इस बार
बु ढ़े ने अपने चेहरे पर ह क सी मु कान िबखेरते ए रह यमयी आवाज़ म कहा। कहने के
बाद वो दो इं च मु कु राया।
मुकेश एक दम चका। उसे िव ास नह आ क बुढ़ऊ ने एकदम सही अनुमान कै से लगा
िलया। कह कोई जादूगर या मनोवै िनक तो नह जो इस उ म स ठया गया हो। या फर
हो सकता है ये ऐसे ही तु ा मार रहा हो पर इस बात क तारीफ तो करनी पड़ेगी क बु े
ने एकदम सही पकड़ा। उसने कताब बंद करते ए कहा, ‘‘हर कसी का सपना होता है।
मेरा भी है। आपका भी रहा होगा।’’
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‘‘नह ! आजकल कोई सपना नह देखता। सब एक दूसरे क देखा-देखी म भागे जा रहे ह


अंधी दौड़ म जैसे भेड़ का झु ड कसी सूने िवरान िबहड़ म भागा जा रहा हो।’’ बु े ने
दाशिनक अंदाज़ म कहा।
मुकेश को फ़ला फ से िवशेष लगाव था। वो समझना चाहता था क जीवन या है? वो
इसे समझ कर बेहतर बनाना चाहता था। उसका मानना था क जब तक हम कसी चीज
को समझगे नह तब तक उसे बेहतर कै से बना सकते ह। उसने बु े क बात म इं टरे ट लेते
ए पूछा, ‘‘आपको देखकर लगता है आप ज र दशनशा के रटायड ोफे सर रहे
ह गे।’’
‘‘गलत जवाब। तुम लोग म वही देखते हो जो तुम देखना चाहते हो। म तो दसवी फे ल
.ँ ..’’ कहते ए इस बार बुढ़ऊ ने जोर से ठहाका मारा।
मुकेश झप गया क तु ा इतना बकवाज़ िनकलेगा। उसने कु छ नह कहा।
‘‘बां ा म मेरा बुक टोर है। कताब पढ़ने का शौक था तो बुक टोर ही खोल दया। खाली
समय म सारी कताब पढ़ ली। इसिलए मुझे मालूम है तुम जो कताब पढ़ रहे हो उसम
या है।’’ उसने ग ारे क तरफ देखते ए कहा।
मुकेश को अब समझ आया क इसे कताब के बारे म इतना नोलेज कै से है।
‘‘मुझे भी कताब पढ़ने का ब त शौक है। म राइटर बनना चाहता ।ँ ’’ मुकेश के मुँह से
सपने के बार म अनायास ही िनकल गया। बाद म अहसास आ क नह बताना था। लोग
दूसर के सपने का मजाक बनाते ह। बार-बार िचढ़ाते ह।
‘‘राइटर बनना चाहते हो...’’ बु े ने गंभीर होते ए कहा। जैसे दमाग क गहराई म से
कोई िवचार पी क ड़ा पकड़ कर बाहर ख च रहा हो, ‘‘ य बनना चाहते हो?’’
‘‘म कु छ समझा नह ?’’
‘‘ये ‘ य ’ श द है ना.... इसके अंदर ब त ताकत है। तुम कोई भी काम ात या अ ात
कारण से करते हो। िजतना तु हारा ‘ य ’ अथात उस काय को करने का ‘पपज’ बड़ा
होगा तुम उतनी ही िश त से वो काय करोगे।’’
मुकेश को लगा क बुढ़ऊ ठीक ही तो कह रहा है। लगता है इसने कताब पढ़-पढ़ कर थोक
म ान क गंगा-जमुना डकार ली है। मुकेश ने दमाग पर जोर डालते ए कहा, ‘‘सच
बताऊ तो ये महसूस करता रहता ँ क म अ छा िलख सकता ।ँ जाने य पर मेरे अंदर
से एक आवाज़ जो हर व ये कहती है क मुझे ि ट लेखन म जाना चािहए। जब म
बािलवुड क आजकल बनी फ म देखता ँ तो लगता है क इनम से अिधकांश फ म क
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कहानी कतनी बकवाज़ है, फर भी उस पर करोड़ खच कर के फ म बना दी जाती है।’’


मुकेश ने अपने सपने के बारे म सारी बात बता दी।
‘‘तो तुम ि ट राइटर बनना चाहते हो?’’ मुकेश के चेहरे के हावभाव ओ जव करने के
बाद उस बुजुग ने धीम से कहा।
‘‘हाँ’’
‘‘मुि कल या है?’’
‘‘डर लग रहा है क या पता...’’
उसने मुकेश के डर को भाँप िलया।
‘‘बेट ये जो जीवन है ना ये बार-बार नह िमलता। पता है जीवन क सबसे बड़ी ेजडी
या है?’’ कहते ए बुजुग ने मुकेश क तरफ देखा। मुकेश चुप रहा। उसे पता था क ये
पूछने के िलए नह पूछा गया बि क बताने के िलए पूछा गया है।
‘‘ क लोग अपने सपने को पूरा करने से ब त डरते है। सबसे पहले तो वे सपना देखने से
डरते है। फर उसे पूरा करने के िलए कदम उठाने से डरते है क कह असफल ना हो जाये।
कह लोग हँसगे तो। सपना पूरा नह आ तो। उसके बावजूद भी सौ मे से पाँच आदमी
अपना सपना पूरा करने के िलए िनकल भी जाते है तो वे शु आत से ही सारा रा ता देख
लेना चाहते है। वे सब कु छ िश ुल कर लेना चाहते है। पता है स सेज क सबसे बड़ी
िवशेषता ये है क ये तु हारे ारा तय कए गए िश ुल या रा ते से तुम तक नह प च ं ेगी।
तुम इसे लोहे क र सी से बांध कर भी अपनी तरफ ख चोगे तो भी ये तु हारे पास नह
आयेगी। फर भले ही तुम बंगाली लाल-काला जादू कर दो या धरती खोद के आसमान म
छेद कर दो पर तुम स सेज नह हो सकते। स सेज तो उसके पीछे भागती है जो अपने
सपने को पूरा करने के िलए िश त से लग जाता है। िजसका ‘ य ’ मजबूत होता है। तुम
जो सपना देखते हो वो कतना अंदर से े रत होकर देखते हो उसी अनुपात म स सेज
तु हारे पास आयेगी। इसिलए म पूछा रहा था क तुम य राइटर बनना चाहते हो?’’
अब मुकेश को लगा क उसक चचा सही जा रही है। ये बु ा ज र कोई ना कोई उपयोगी
बात ही बतायेगा। इसने जीवन को काफ घोट िलया है। उसे भी इस समय यही जानना था
क उसका सपना कै से पूरा होगा। यही तो सबसे पड़ा उसके सामने िपछले कई दन से
घूम रहा था क वो कै से अपना रा ता खोजे। या कर क उसे अपने सपने क तरफ जाने
का सही रा ता िमले। य क रा ते तो ब त सारे होते है पर सही रा ते पर चलना ब त
ज री है। कह भूल से भी गलत रा ता पकड़ िलया तो जीवन बबाद हो जायेगा। कह और
ही चला जायेगा। िजस कार कार का टेय रं ग एक िमिनट के िलए भी छोड़ा नह क
कार सीधे खाई म चली जाती है या गलत रा ते पर चली जाती है ठीक उसी कार जीवन
क गाड़ी भी बगैर मंिजल को दमाग म रखे चलाने पर गलत डायरे शन म ही जायेगी।
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जब से उसने फ म लाइन म जाने का दृढ़ िन य कया है तब से वो इसी बारे म सोच रहा


है। वो उठते-बैठते यही सोचता रहता है क वो आरजे जैसे बड़े-बड़े ए टर के साथ बैठा है।
उनसे बात कर रहा है। उनसे िमल रहा है। वो दो-तीन साल म एक शानदार कहानी
िलखता है िजस पर बनी फ म का िहट होना तय माना जाता है। लोग उसक कहानी पर
बनी फ म आने का इं तजार करते ह। ए टर उसके ारा िलखी कहानी म रोल करने के
िलए मरते ह। ए ेस उससे आकर िमलती ह फ म म अपने िलए रोल क िसफा रश
लेकर। इसी कार के सपने तो देख रहा ह। उसे अब सपन क दुिनया म खोये रहना पसंद
है। आज जब िज सपन का िछड़ गया तो उसने दल खोल कर सारी बात बता दी, ‘‘मेरा
नाम मुकेश है। म राज थान से आया ।ँ ऐसा य हो रहा है, म नह जानता, पर नह
चाहते ए आपको मेरे सपने के बारे म सब कु छ बताने का मन कर रहा है। म अ सर लोग
को अपने सपने के बारे म नह बताता ँ य क लोग के िहसाब से मेरी वतमान
प रि थित ऐसी नह है क म इतना बड़ा सपना देख।ूँ ’’
‘‘तुम मुझे खुलकर बता सकते हो।’’
‘‘रही बात मेरे पपज क तो म दल से यही चाहता ।ँ जाने य पर मेरे अंदर का एक
िह सा बार-बार यही कहता है क म दूसरी दुिनया म जाना चाहता ँ जहाँ के सपने बार-
बार देखता ।ँ ऐसे लगता है जैसे म उस दुिनया के िलए ही बना ।ँ इतना िव ास है क
एक दन ज र उस दुिनया म प च ँ जाऊंगा िजसके सपने देख रहा ।ँ बस ये नह मालूम
क वहाँ कै से प च
ँ ना है। रा ता नह िमल रहा। मेरी वतमान ि थित इतनी लाचार है क
म आज एक िभखारी से अिधक नह ।ँ मेरे प रवार ने मुझे छोड़ दया। समाज ने छोड़
दया। म के वल बीए पास ।ँ यादा अं ेजी नह आती। जेब म फू टी कौड़ी नह । कने के
िलए आ य नह फर भी चला आया अपने सपने का पीछा करते ए इस िव ास के साथ
क जीवन कम से कम मुझे मरने के िलए तो नह छोड़ेगा। अपना पेट तो भर ही लूंगा। बस
इतने से िव ास ने मेरे सारे डर को समा कर दए। म फक र क तरह िनकल पड़ा अपनी
मंिजल क तरफ। अब यहाँ तक प च तो गया पर आगे का कोई रा ता दखाई नह दे
रहा।’’ कहते-कहते मुकेश अचानक चुप हो गया। कु छ देर खामोश रहने के बाद बोला,
‘‘आप ही बताइये कोई रा ता?’’
‘‘बेटा रा ता तो तु ह ही तलाशना होगा। इस बारे म म तु हारी कोई मदद नह कर
सकता पर इतनी मदद कर सकता ँ क तुम मेरी कताब क दुकान पर काम कर सकते
हो। वहाँ पर तु ह रहना और खाना मु म िमल जायेगा। खाली समय म यादा से यादा
कताब पढ़ने को िमल जायेगी िजससे संभव है तु ह तु हारी मंिजल का रा ता िमल
जाये।’’
‘‘मुझे मंजूर है। ये तो मेरे िलए ब त बड़ी कृ पा होगी। म कन श द से आपका शु या
अदा क ँ ?’’ कहते ए मुकेश ग द हो गया। उसक आँख नम हो आई। आज पहली बार
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उसे लगा क दूसरी दुिनया म जाने के िलए उसने पहली सीढ़ी पर कदम रख दया है। यही
उसके िलए सबसे मह वपूण था।
‘‘मेरा नाम मलखान संह है। लोग मुझे दादू कह कर पुकारते ह। तुम भी आज से इसी नाम
से बुला सकते हो। और हाँ ये बात भी ि लयर बता दूँ क म तु ह दुकान पर काम करने के
बदले म सौ पये ित दन के दूग ँ ा। साथ ही खाने और रहने क सुिवधा।’’
‘‘मुझे मंजूर है दादू।’’ एक बार के िलए तो उसे लगा क ये कै सा आदमी है मीठी-मीठी
बात कर के अपनी दुकान के िलए जुगाड़ ढू ंढ रहा है। ेम क आंच म पचास का काम पांच
म करवा रहा है। वाकई म मु बई तो कमाल क नगरी है। फर दूसरे ही पल उसे ये भी
खयाल आया क चलो एक बार पाँव रखने क जगह तो िमलेगी। अगर कु छ पाना है तो
थोड़ी ब त को ोमाइज करना होगा।
‘‘ या नाम बताया तुमने?’’
‘‘मुकेश’’
‘‘कहाँ से आये हो?’’
‘‘राज थान के उदयपुर शहर से?’’
‘‘ओ ... झील क नगरी से’’
‘‘जी’’
‘‘चलो मेरे साथ।’’ कहते ए दादू अपनी जगह से उठा। इस उ म भी बु ा िबलकु ल फट
लग रहा था।
मुकेश दादू के पीछे-पीछे चल दया। उसे लगा क सवेरे क ठ डी हवा उसका माथ चूम
रही है। दादू ने रा ते म उसे सारी चीज समझा दी क, दुकान का नाम सरदार बुक टोर
है। दो लड़के और तीन लड़ कयाँ पहले से काम कर रहे ह। तु ह वहाँ कोई तकलीफ नह
होगी। तुम तो जानते ही हो आजकल मु बई म रहना-खाना ही कतना महँगा हो गया है।
बात करते-करते दोन सरदार बुक टोर प च ँ गए। बुक टोर कोई मामूली कराणा टाइप
क दुकान नह थी बि क चार माले क िब ड ग म बना था। मुकेश ने सोचा था क दादू
क दुकान छोटी-मोटी पान के के िबन टाइप क दुकान होगी िजसम ये बु ा दन भर बैठा-
बैठा मिखयाँ मारता होगा व जब मिखयाँ नह बचती ह गी तो बोर होकर पड़ी कताब
उठाकर पढ़ने लग जाता होगा। पर यहाँ तो पूरा आलीशान वातावरण था। नीचे के तीन
माल पर ट म काँच लगा आ था, िजसम बाहर सड़क से ही अलग-अलग दराज पर
थोक म पड़ी कताब दखाई दे रही थी। बीच म बड़े-बड़े अ र म ‘सरदार बुक हाउस’’
िलखा आ था। चैथे माले पर दुकान म काम करने वाले लड़के और लड़ कय के रहने िलए
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अलग-अलग कमरे बने ए थे िजनम अटैच लेट-बाथ भी थे। कु छ कमरे और भी बने थे


िजनम र ी साम ी और कताब क ए ा ितयाँ पड़ी ई थी।
सवेरे के लगभग आठ बजे थे। दुकान खुलने का समय दस बजे का था। दरवाजे पर लाल
अ र म िलखा था दुकान खुलने का समय सवेरे दस से शाम को छह बजे तक। जैसे ही दादू
दुकान पर प च ं े तब वहाँ सफाई चल रही थी। दादू ने बताया क सफाई करने वाली अलग
से आती है। तु ह सफाई भी नह करनी पड़ेगी। मुकेश क नज़रे कताब पर टक ई थी।
कतने कार क कताब है। सच म दादू तो ब त रईस आदमी लगते है। इतनी बड़ी
कताब क दुकान उसने पहली बार देखी। उसने तो बािलवुड फ म म भी कभी इतनी
बड़ी दुकान नह देखी।
दादू सीधा मुकेश को िल ट म िबठाकर चैथे माले पर ले गया। वहाँ पर तकरीबन पाँच
कमरे बने ए थे िजनम से तीन पर तो ताले लग ए थे। दो म से एक का गेट अंदर से बंद
था व उपर िलखा था ग स म जब क दूसरे कमरे का गेट खुला आ था िजसके ऊपर बॉय
म िलखा आ था। दादू उस कमरे क तरफ बढ़े, उसका दरवाजा खुला था िलहाजा सीधे
अंदर घुस गए। अंदर से दो लड़क क आवाज़ आ रही थी जो आपस म जोर-जोर से बात
कर रहे थे। बात के साथ गािलयाँ भी सहज वाह म बह रही थी। दादू को देखते ही वे चुप
हो गए।
‘‘कै से हो तुम लोग?’’ दादू ने मु कु राते ए कहा।
‘‘दादू आप यहाँ?’’ उनम से एक लड़का बोला। उसक आँख मानो पूछ रही थी क आप
तो कभी यहाँ आते नह , आज अचानक इतना ज दी यहाँ कै से आ गएं?
‘‘तुम लोेग से िमलवाने लाया ँ तु हारे नये म पाटनर मुकेश से।’’ दादू ने मुकेश का
प रचय करवाया। म पाटनर श द सुनते ही दोन को झटका लगा। अब उ ह अपना म
इस अजनबी से शेयर करना पड़ेगा।
उसके बाद मुकेश क तरफ देखते ए बोले, ‘‘मुकेश इनसे िमलो ये है संतोष और लु बा।’’
संतोष ने मुकेश से हाथ िमलाया। वो दखने म ठगना था पर शरीर से थूलथूल। उसका पेट
बाहर िनकला आ साफ दखाई दे रहा था। उ म तकरीबन तीस साल का लग रहा था।
दखने म सांवला, नाक हद से यादा मोटा व पाँव छोटे लग रहे थे। उसके शरीर पर
जानवर क तरह बड़े-बड़े व काले बाद दखाई दे रहे थे।
लु बा ने भी मुकेश से हाथ िमलाया। लु बा दुबला था पर गोरा था। उसक नाक एवरे ज से
अिधक छोटी थी। जैसे कसी ने हथोड़ा मार कर अंदर दबा दी हो। दाँत यादा गुटखा खाने
के कारण पीले पड़ कर सड़ गए थे। आगे के सारे बाल गायब थे। िसर म कही-कह बचे ए
बाल पर लगाई ई काली मेहद ं ी का कलर चमड़ी पर ि लयार दखाई दे रहा था। तु बा
क उ तकरीबन प ीस साल थी।
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‘‘तुम दोन यान से सुन लो। आज के बाद मुकेश भी तु हारे साथ रहेगा। इसे इसके िह से
क जगह िमल जानी चािहए।’’ दादू ने दोन को लताड़ा, ‘‘और कोई बुरी आदत इसे मत
ं ा नह ।’’
सीखाना वरना छोडू ग
दादू क आवाज़ सुनते ही संतोष क नज़र लु बा के पीछे रखी बीयर क बोतल पर पड़ी।
जो रात को ही खाली क गई थी। संतोष ने आँख के इशारे से लु बा को समझाया। लु बा
समझ गया, उसने खड़े-खड़े ही पाँव से बोटल को पलंग के नीचे िखसकाया पर इ ेफाक से
बोटल नीचे िगर गई व टाइल पर ‘ट ्....’ से बजी।
‘‘ या िगरा?’’ दादू ने पूछा। उ ह बोटल दखाई नह दे रही थी।
लु बा ने झट नीचे बैठकर बोटल को अंदर क तरफ िखसकाते ए कहा, ‘‘कु छ नह दादू ये
तो बाल म लगाने क डाबर आवाला तेल क िशशी है।’’
‘‘बेटा यादा तेल मत लगाया करो। तु हारे काफ बाल झड़ चुके है। कह कोई गलत तेल
तो नह लगा रहे हो।’’ मु कु राते ए दादू मुकेश क तरफ मुड़,े ‘‘मुकेश बेटा यहाँ आराम
से रहो। ये दोन तंग करे तो मुझे बता देना। और हाँ आज तुम थक गए, खाना खाकर रे ट
करो। कल ठीक दस बजे दुकान म आ जाना।’’
उसके बाद दादू बाहर क तरफ चल दए। दरवाजे के बार िनकलते ए बोले, ‘‘तुम दोन
ठीक दस बजे नीचे आ जाना नालायक ।’’
‘‘जी दादू िबलकु ल।’’ दोन एक साथ बोले।
उसके बाद दादू सीधा िल ट क तरफ चले गए। वहाँ से नीचे चले गए। इधर कमरे म
मुकेश सहमा-सहमा सा खड़ा था। उसके सामने दो िबलकु ल अजनबी खड़े थे िजनसे या
बात करनी कु छ समझ नह आ रहा।
‘‘ या नाम बताया तुमने अपना?’’ संतोष ने िसर खुजलाते ए पूछा।
‘‘मुकेश’’
‘‘सुनो मुकेश अगर यहाँ रहना है तो हमारे िहसाब से चलना होगा वरना कताब चोरी के
झूठे इ जाम मे यहाँ से बाहर िनकलवा दगे। तुमसे पहले भी दो-तीन को बाहर का रा ता
दखा चुके ह। यहाँ खोपड़ी म नह सटकना मांगता है।’’ संतोष ने दादािगरी दखाई।
‘‘जी िबलकु ल। मेरे कारण आपको कोई द त नह होगी।’’ मुकेश ने अपना बेग रखते ए
कहा। आज पहली बार उसे कोई कमरा नसीब आ िजसम इि मनान से सो तो सके गा
वरना पाक म म छर ने इतना तंग कर दया क रात-रात भर न द नह आती।
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‘‘और सुन ! सामने के कमरे म दो लड़ कयाँ रहती है, उनसे दूर रहना।’’ लु बा ने गुटखा
बेिसन म थूँकते ए कहा।
‘‘दोन आइटम हमारे सेट है।’’ संतोष ने लु बा के कथन का प ीकरण दया।
‘‘जी आप िनि त रिहए। म वेसा नह ।ँ ’’
‘‘ या मतलब वैसे नह हो। कह तुम ‘गे’ तो नह हो?’’ संतोष उछल पड़ा। उसे गे लोग
से नफरत थी। उसे तो उस बारे म सोचकर भी उ टी हो आती। जाने कै से लोग उसे इं जाॅय
करते है।
‘‘नह म ‘गे’ नह ।ँ मेरा मतलब उस टाइप का नह क दूसर क गलफे् र ड पर बुरी
नजर रखूं।’’
उस कमरे म लोहे के तीन पलंग रखे ए थे। उन पर मैले-कु चले िब तर अ त- त िबखरे
ए पड़े थे। येक पलंग के पास म एक अलमारी रखी ई थी। सामने एक लोहे के टेबल
पुराने जामाने क कु बड़वाली टीवी पड़ी ई थी। आजकल क माट टीवी को लीम टीवी
भी कहा जाता है उस िहसाब से पुराने जमाने क टीवी को त द वाली टीवी या कु बड़वाली
ही माना जाएगा।
संतोष और लु बा ने मुकेश क दराज और पलंग पर पड़े अपने-अपने सामान हटा दए।
पलंग के नीचे पड़ी बीयर क बोटल पर मुकेश क नजर पड़ी। उसने बोटल लु बा क तरफ
करते ए कहा, ‘‘आपके तेल लगाने क िशशी।’’
संतोष और लु बा जोर से हँस पड़े। मुकेश भी हँस दया।
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भा ग - 8
पहली दुिनया:-
सरदार बुक हाउस पर पहले दन मुकेश ने आराम कया। जेब से प थर को बार-बार
िनकालता और चूमने के बाद फर से जेब म रख देता। उसके सामने अब बस एक ही ल य
था क कोई ऐसी कहानी िलखना िजसे ुित सले ट कर दे और सुपर टार आर.जे. उस पर
फ म बनाने को तैयार हो जाये। दनभर उसके दमाग म यही लान चलता रहा क कै से
वो कहानी िलखेगा। कहानी क िथम या रहेगी। कोई धासूँ नायक होना चािहए बा बली
टाइप का। नाियका तो कोई भी चलेगी जो क दखने म हँसीन व अ ेि टव हो। खूबसूरती
ुित जैसी होनी चािहए। फ म म कु छ गु डे और एकाध रीिम स गाना। रीिम स पर
ज र स ी िलयोनी को रोल देना चािहए।
इसी कार क ला नंग उसके दमाग म जगह बना रही थी। वह बािलवुड फ म इड ी
से यादा प रिचत तो नह था पर इस व उसे इससे कोई लेना-देना भी नह था क कस
िहरोइन का अफे यर कस िहरो के साथ चल रहा है या कौन कसके साथ िलव इन म रह
रह ह। उसे तो बस एक कहानी चािहए जो क धमाल मचा द। वह कहानी के िलए िजतना
दमाग पर जोर डालकर सोचता उतने ही उसे बकवाज़ आइिडया आते। कोई ढंग क
कहानी नह बन पाती। हर कहानी क शु आत तो कर देता पर आगे जाकर सब गड़बड़ हो
जाता। अंत होने का नाम ही नह लेता। ऐसा लगता जैसे कहानी चलती ही चली जा रही
है। पा अपनी मनमज के मािलक होते जा रहे है ठीक उसी कार जैसे एक िपता आठ-दस
संतान को ज म देता है, बड़े होकर वे अपने रा ते खुद चुन लेते है, उ ह िपताजी क उतनी
ज रत महसूस नह होती िजतनी बचपन म चलने के िलए होती थी। उसके पा भी उससे
िव ोह कये बैठे थे।
तंग आकर उसने दमाग को थोड़ा रले स कया। सोचा अगर कोई धासूँ कहानी िलखना
इसना आसान होता तो हर कोई िलखे बैठा होता। इसके िलए तपना पड़ेगा। करदार से
काम िनकलवाना होगा ठीक उसी कार िजस कार एक कं पनी का मैनेजर अपने
अिधन थ से काम करवाता है। इस समय वो ब त थक गया था िलहाजा धम् से िब तर
पर िगर गया। आँख बंद कर ली। उसके पा उसक आँख के सामने नाच रहे थे जैसे गवरी
म एक खेल पूरा होने के बाद सारे पा साथ िमलकर सामूिहक नृ य करते है।
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घड़ी म दोपहर के एक बजे थे। मुकेश िब तर पर लेटा ही था क संतोष और लु बा लंच


करने के िलए ऊपर आये। मुकेश को सोता देख लु बा ने उसके नाक म बारीक धागा
घुसाया, मुकेश क न द नह खुली। लु बा ने अब धागा उसके चेहरे पर घूमाते ए कान के
अंदर डाला, मुकेश ने अ िन ा म ही हाथ से कान खुजाला और फर से सो गया। लु बा ने
फर से वही हरकत क । मुकेश एक झटके म कान खुजलाते ए हड़बड़ाकर उठा मानो कोई
जानवर उसके कान म घुस गया हो। उसने देखा, लु बा और संतोष जोर-जोर से हंसने लगे।
‘‘ कतनाक सोयेगा रे ’’ लु बा ने अपने पलंग पर बैठकर जूते उतारते ए कहा।
‘‘खाना खाना है क नह ?’’ संतोष ने टफ न खोलते ए पूछा।
‘‘खाना...अ..हाँ...खाना है। या यहाँ रोज खाने के टफ न आते है?’’ मुकेश ने उबासी लेते
ए पूछा। उसे लगा क शायद हाथ से बनाना पड़ता होगा। उसने तो यही सुना था क
मु बई म जाकर संघष करनेवाले आधे टाइम भूखे रहते ह बेचारे । यहाँ तो बना बनाया
खाना टाइम-टू -टाइम नसीब हो जायेगा।
‘‘तुम रोज खाना नह खाते हो या? मुझे लगा रोज खाते ह गे।’’ लु बा ने अपने टफ न
को पलंग पर रखकर खोलते ए कहा।
‘‘नह मेरा मतलब कई सारे लोग खुद बनाते ह। इसका पैमट कौन करता है। या ये
हमारी सैलरी से काटा जायेगा।’’ मुकेश को लगा क शायद ये दोन आलसी बनाने के
आलस से सैलरी म से पैमट देकर टफ न चालू करवाये ह गे।
‘‘अपना सेठ बड़ा दलदार है बीडू ... खाना-रहना उनक तरफ से है।’’ लु बा ने कमरे के
कोने म पड़े एक टफ न क तरफ इशारा करते ए कहा, ‘‘वो रहा तु हारा टफ न।’’
‘‘दादू बोल रहे थे क तु ह भी खाना िखला द। या बात है? बड़ी चंता करने लगे दादू
तु हारी। कौनसी जादू क छड़ी घूम दये हो बुढ़ऊ पर।’’ संतोष ने उँ गली चाटते ए कहा।
‘‘दो टाइम टफ न आता है भाई। एक तो दोपहर को और दूसरा शाम को शाॅप बंद होते
समय।’’ लु बा ने रोटी का कोर दाल म िभगोकर मुंह म ठूं सते ए कहा।
‘‘ या इस िब ड ग म दादू नह रहते। मेरा मतलब वो कहाँ रहते ह?’’ मुकेश ने अपना
टफ न खोलते ए पूछा। टफ न तीन ख ड म था। एक म चावल, दूसरे म दाल और
तीसरे म रोटी रखी ई थी। सबसे पहले मुकेश ने रोटी िगनी, चार पतली-पतली रो टयाँ
जो आधी जली ई और आधी क ी थी। उ ह देखकर यह तय कर पाना मुि कल था क वे
जली ई है या क ी।
‘‘अरे दादा। या बात कर दी। दादू जैसे रईस आदमी इस भंगार जैसी जगह पर रे व।े
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इ पोिसबल।’’ खाना पूरा चट करते ए संतोष बोला, ‘‘सामने जो गु ारा है ना, उसके
ज ट पास म दादू का बोत बड़ा बंगला है। वहाँ रहते ह। ये दुकान भी उ ह क है। बोत
पैसा है बुढ़ऊ के पास।’’ टफ न को साइड म रख कर पानी का लास भरते ए कहा।
कमरे म पानी का एक कपर रखा आ था। िजस पर ‘ टक-टाॅक वाॅटर स वस’ िलखा आ
था।
‘‘ कताब बेचने से इतनी कमाई हो जाती है?’’ मुकेश ने चावल को दाल म डू बोकर मुंह म
रखने से पहले पूछा।
मुकेश क बात सुन दोन जोर-जोर से हंस पड़े। संतोष मुंह धो रहा, मुंह म भरा सारा पानी
सामने उसी के पलंग पर फै ल गया। दोन क हंसी अभी भी नह क रही थी। मुकेश को
आ य हो रहा था क इसम कौनसी हंसनेवाली बात है। कताब से नह कमा सकते है
या? कताब िलखकर तो जे.के . रो लंग ने िमिलयन कमा िलये। इसम या बात हो गई।
‘‘तुम ना गांव के एकदम सीधे-सादे छोरे हो। तु ह यादा सात-पाँच नह आता।’’ लु बा
ने अपना टफ न पैक करते ए कहा।
‘‘ससुरा कहता है कताब बेच कर िब ड ग खरीद ली वो भी मु बई म।’’ कहते ए संतोष
जूते पहनने लगा।
उ ह वापस नीचे जाना था। एक से डेढ़ का लंच टाइम था। घड़ी म एक बजकर ब ीस
िमिनट हो चुके थे। लु बा भी जूते पहन कर तैयार हो गया व दराज पर रखे काँच म देखकर
बाल ठीक करने लगा। दोन ने एक जैसी स े पहन रखी थी। लेक कलर का टाऊजर और
आसमानी शट िजस पर ‘एसबीएच’ अथात सरदार बुक हाउस िलखा था।
मुकेश क िज ासा शांत नह ई इससे पहले ही दोन वहाँ से बाहर िनकल गए। जाने से
पहले लु बा ने पीछे मुड़कर िहदायत दी, ‘‘सामनेवाली लड़ कय से दूर रहना बीडू
वरना...’’
नह चाहते ए भी मुकेश का यान सामने के दरवाजे पर गया जहाँ म नंबर 404 िलखा
आ था। इस समय कमरा बंद था व बाहर से लॉक कया आ था। मुकेश ने गिलयारे म आ
कर उसके कमरे का नंबर देखा, िलखा था - 403। दोन कमर सड़क क तरफ पड़ते है।
बीच गिलयारा तीन-चार फु ट का होगा। गिलयारा के अंत म सड़क क तरफ ब त बड़ा
काँच लगा आ था। मुकेश वहाँ जाकर खड़ा हो गया व मु बई शहर को देखने लगा। चार
तरफ लोग ही लोग। थूंक तो कसी ना कसी आदमी के ऊपर जाकर िगरे गा। गािड़याँ
इतनी क सड़क ा फक से जाम थी। गािड़य के हॉन का शोर वातावरण को िचड़िचड़ा
बना रहा था। मुकेश को लगा क यहाँ इतने शोर म लोग कै से रह लेते ह गे। एक हमारा
गांव है जहाँ शांित ही शांित। िचिड़यां क आवाज, कोयल क क, मोर का नाचना, खेत
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क ह रयाली, गाय का रं भाना, पगड़ी व धोती पहले सीधे-सादे लोग। कसी को ज दी


नह । सारे काम इि मनान से होते है जब क यहाँ तो कसी को सांस लेने क फु सत नह ।
िजसे देखो वही भागा जा रहा है। एक दूसरे से उलझते ए, झ लाते ए, फोन पर
िच लाते ए लोग इधर-से-उधर आ-जा रहे ह।
मुकेश शहर और गांव के फक को नो टस कर रहा था क पीछे से कसी ने उसे आवाज़ दी।
मुकेश सहम गया। उसने एक झटके म पीछे मुड़कर देखा, दो खूबसूरत लड़ कयाँ उससे
‘हाय’ कर रही थी। मुकेश को डरा देख दोन लड़ कयाँ जोर से हंस पड़ी। उ ह ने भी लेक
कलर का जंस और आसमानी टी-शट पहना आ था। बाल उनके घोसला टाइल म बने
ए थे। गले म आईडी काड लटका आ था और टी-शट पर ‘एसबीएच’ िलखा आ था।
मुकेश समझ गया क ये सामनेवाले म म रहती ह और इनका लंच टाइम अब आ है।
‘‘हाय... सॉरी! तु ह डरा दया। मेरा नाम ि या है।’’ ि या ने मुकेश क तरफ हाथ
बढ़ाया। मुकेश ने बेिझझक हाथ िमला िलया। ि या दखने म नाटी, रं ग गोरा, चेहरा
एकदम साफ, बाल घने काले व िस क , आँख म चमक थी। उसके हाथ इतने मुलायम थे
क मुकेश को लगा जैसे उसने ई को छु आ हो।
‘‘हेलो...मेरा नाम मुकेश है।’’ चेहरे पर मु कान िबखेरते ए उसने अपना नाम बताया।
‘‘हाय...म वैशाली।‘‘ वैशाली ने भी उससे हाथ िमलाया। वो दखने म काफ खूबसूरत
थी। उसक ल बाई साढ़े पाँच फु ट होगी, चेहरा गोल, बाल मुलायम, बरगंडी कलर कये
ए, नाक अपे ा से यादा छोटी, आँख डू बो देनेवाली, शरीर एकदम कसावट िलए ए
था। मुकेश को मानो चार सौ बीस का झटका लगा हो। इस बार उसने माइल को दोगुना
करते ए वैशाली से हाथ िमलाया।
‘‘तुम यहाँ नये आये हो ना? दादू बता रहे थे।’’ वैशाली ने हाथ छु ड़ाते ए पूछा।
‘‘हाँ..’’
इतने म ि या ने 404 नंबर म का दरवाजा खोला, दरवाजे के ज ट बाहर दो टफ न रखे
ए थे। वैशाली ने टफ न उठाये और दोन बाय बोलती ई अंदर चली गई। अंदर से
दरवाजा बंद कर दया।
मुकेश वापस अपने कमरे म आ गया। कतनी यारी लड़ कयाँ ह। दोनो ही बला क
खूबसूरत। कतने यार से हाथ िमला रही थी। अचानक उसे लु बा क नसीहत याद आ
गई। उसे लु बा पर गु सा आया। कहाँ वो और कहाँ ये कोमल किलयाँ। कतने ल पट क म
के लड़के ह दोनो। बेचारी सीधी-सरल लड़ कय को बदनाम करने पर तुले ए है ठरक
कह के ।
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पंखा दो पर चालाकर मुकेश अपने िब तर पर सो गया। उसे आज ुित क याद आ रही


थी। उसक ुित कतनी यारी और िन सछल लड़क है। उसे लगा जैसे इस दुिनया क
सारी लड़ कयाँ सीधी होती ह। ये तो कमब त लड़के ही उनके साथ धोखा कर के उ ह
कठोर बना देते ह। ुित को भी तो उसके बाॅय े ड ने धोखा दया। बेचारी अपने बॉय े ड
क सजा खुद भुगत रही है। शम नह आई उस कमीने को िजसने इसती यारी लड़क को
धोखा दया। मुकेश का बस चलता और वो लड़का सामने होता तो इसी समय उसे चार-
पाँच थ पड़ जड़ देता।
कु छ देर रे ट करने के बाद मुकेश तैयार होकर नीचे उतरा क एक बार पूरी दुकान देख तो
ले। दादू से भी िमल ले और उनका शु या भी अदा कर दे और सबसे ज री बात ये थी क
एकाध कताब ले आए िजसे आज पढ़कर पूरी करनी है। ुित ने कहा था क अ छा राइटर
बनने के िलए खूब कताब पढ़नी चािहए।
इसी िवचार म मुकेश सी ढ़य से नीचे उतरा तो सबसे पहले तीसरे माले पर प च ं ा। वहाँ
पर संतोष कसी ाहक को कताब दखा रहा था। यादा भीड़-भड़ ा नह था। एकाध
जने इधर-उधर गदन घुसाये कताब ढू ंढ रहे थे जैसे कोई बगुला गदन घुसाये समु के पानी
म िशकार क तलाश कर रहा हो। इस मंिजल पर कोई कमरा नह था बि क पूरे म होल
था िजस पर िह दी क सारी कताब रखी ई थी। अलग-अलग शे फ म करीने से सजायी
ई कताब। हर शे फ म ऊपर े कलर म संबंिधत कताब का टाइटल िलखा आ था।
उप यास, कहािनयाँ, किवताएँ, नाटक, जीविनयाँ, आ मकथाएँ, या ा-सं मरण, िनबंध,
लािसकल िह दी सािह य आ द क शे फ बनी ई थी। पूरे होल म आधे से अिधक म
के वल उप यास, कहािनयां और किवता सं ह के शे फ थे। लािसकल िह दी म आ दकाल,
भि लकाल और रीितकाल का सािह य था। सबसे ं ट पर जहाँ से ाहक ऊपर आता है
वहाँ वतमान म च चत िह दी क पाॅपुलर कताबं◌े रखी ई थी। जैसे - कु मार िव ास का
किवता सं ह - फर तेरी याद। चेतन भगत के सारे िह दी म अनु दत उप यास, अमीश
ि पाठी क अनु दत कताब, गुलजार साहब, राहत इं दौरी जी क कताब रखी ई थी।
उसके पास म यू िह दी क कताब जो आजकल के युवा िलख रहे है रखी ई थी िजसम
िनलो पल मृणाल का उप यास डाक हॉस, भागवंत अनमोल का उप यास जंदगी 50-50,
स य ास का बनारस टाक ज, द काश दुबे का मुसा फर कै फे , ेम एस गुजर का
उप यास फलासाफस टोन भी रखा आ था।
मुकेश तो मानो कताब क दुिनया म खो सा गया। वहाँ से नीचे उतरा।
अब वो दूसरे माले पर प च
ं गया। इस पर लु बा और ि या ाहक को कताब दखा रहे
थे। तीसरे क बिन पत यहां लोग क भीड़ अिधक थी। इस मंिजल पर सारी अं ेजी क
कताब रखी ई थी। अिधकांश कथे र अं ेजी सािह य था। यहां पर जीविनयाँ,
आ मकथाएँ व अ य कथे र अं ेजी सािह य भरा पड़ा था। चार तरफ क दीवार पर
बड़े-बड़े लेखक के िच व उनके कोटेशन बने ए थे। मुकेश क अं ेजी इतनी अ छी नह
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थी इसिलए वो वहाँ से नीचे उतरा।


अब वो ाऊंड लोर पर आ गया। यहाँ पर लोग क रे लम-पेल लगी ई थी। दादू मैन गेट
के पीछे बड़े से काऊंटर पर बैठे ए थे। सामने मोिनटर पर सारी िब ड ग म लगी
सीसीटीवी क फु टेज चल रही थी। दादू लोग से पैसे लेने म िबजी थे। इस होल म वैशाली
और एक और लड़क थी िजसे मुकेश ने पहली बार देखा। िजसने भी आ फस क स े ही
पहन रखी थी। मुकेश ने अनुमान लगा िलया क ये वो तीसरी लड़क है जो यहाँ क लोकल
है और शाम को घर चली जाती होगी। दोन लड़ कयाँ मु तेद खड़ी ाहक को लुभा रही
थी। हर कसी का मु कु राकर वागत कर रही थी।
पूरी दुकान म चार तरफ कारपेट िबछा आ था। कताब कांच के बॉ स, व लुभावने बुक
शे फ म सजाई ई थी। ऊपर टाइटल िलखा आ था जैसे फ शन नॉवेल, नॉन फ शन
नॉवेल, टोरी, लािसक िलटरे चर आ द। यहाँ पर अिधकांश नॉवेल और टोरी बुक थी।
चार तरफ दीवार पर अं ेजी के बड़े-बड़े राइटर के फोटे लगे ए थे िजनम टीफन कं ग,
जेके रो लंग, चेतन भगत, अमीश ि पाठी आ द।
मुकेश को देखते ही दादू ने अपने पास बुलाया। जब मुकेश उनके पास गया तो दादू ने
मु कु राते ए पूछा, ‘‘खाना खाया के नह और अ छे से रे ट कया के नह ?’’
‘‘जी खाना भी खा िलया और रे ट भी कर िलया।’’
‘‘कै सी लगी मेरी कतब क दुिनयाँ’’
‘‘ब त शानदार। मने सोचा नह था इतना बड़ा बुक टोर होगा।’’
‘‘ .ँ ..सो तो है। ये मु बई का ही नह भारत का सबसे बड़ा बुक टोर है। िपछले चालीस
साल से चला रहा ।ँ ’’
‘‘जी...’’
इतने म एक मोटा सा आदमी युवाल नोआ हरारी क कताब - 'सेिपय स - ए ीफ िह ी
ऑफ़ युमनकाइ ड’ लेकर आया। दादू ने उसक रे ट बताई। उस आदमी ने पैसे दए और
चला गया।
‘‘कल से तु ह ठीक दस बजे तैयार होकर आना है। तु हारी स ं जायेगी।’’
े शाम तक प च
‘‘जी दादू’’
‘‘तुम चाहो तो कताब ले जा सकते हो पढ़ने के िलए पर उ ह बगैर मोड़े -ब- वापस
रखनी होगी वरना तु हारी तनखाह म से पैसे काट लूंगा।’’
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‘‘जी िब कु ल।’’
‘‘बेटा मने तु हारी आँख म एक सपना देखा है। िनयित को ा करने का सपना।
इसीिलए मने तु ह अपनी दुकान म रखा। म चाहता ँ क तुम अपना सपना पूरा करो।
मुझे तो और भी कई सारे नौकर िमल जायगे पर तुम अगर अपनी िनयित को पा लेते हो तो
मुझे ब त खुशी होगी।’’
इसके बाद दो ाहक आ गए। दादू ने उसने पैसे िलए और मु कु राते ए उ ह िवदा कया।
‘‘म आपसे इसी बात का शु या अदा करने आया ँ क आपने मुझे जो मौका दया उसके
िलए म सदैव आभारी र गँ ां’’
‘‘काई बात नह । एक बात का हमेशा यान रखना। तु हारी मंिजल हर व तु हारी
आँख के सामने होनी चािहए। िजतनी सामने होगी उतनी ही ज दी तुम उस तक प च ं
जाओगे। ब त मुि कल होता है हर व अपनी नजर मंिजल पर टकाए रखना। ित दन
कई सारी बाधाएँ आती ह। कई सारे मोड़ आते ह, जो तु ह भटकाने का यास करते ह। कई
बार ऐसा लगेगा क तुमने सोचा उससे भी अिधक समय गुजर गया पर तु ह मंिजल नह
िमली तब तुम उदास हो जाओगे, तु ह लगने लगेगा क शायद अब तुम सफल नह हो
पाओगे। तब तुम हार मान लेते हो। ले कन याद रखना कभी भी असफलता जैसी कोई चीज
नह होती। हाँ अगर तुम कभी िनराश हो जाओ या आगे का कोई रा ता दखाई नह दे तो
कताब का सहारा ले सकते हो। ये तु ह कभी िमस गाईड नह करे गी। सदैव तु ह सही
रा ता दखाएगी। अपने आप पर िव ास को कभी खोने मत देना। तु हारा बल िव ास
ही तु ह ऊंचाई पर ले जायेगा। जब भी िनराश हो तब अपने आप को यक न दलाना क
इस दुिनया म कु छ भी नामुं कन नह है। पूरी लगन और मेहनत से कया गया काय तु ह
तु हारी मंिजल तक ज र प च ं ायेगा।’’ कहते ए दादू ने मुकेश क पीठ थपथपाई।
मुकेश को लगा मानो उसका आ मिव ास बढ़ गया। मानो वो अपना सपना पूरा कर
सकता है। कल तक उसके पास छत नह थी। आज एक छत तो नसीब ई है। कल मंिजल
भी िमल जायेगी। अब मुझे अिधक से अिधक ऐसी कताब पढ़नी चािहए जो मुझे े रत
कर। जो मुझे नया सोचने पर मजबूर कर। जो आऊट ऑफ़ बॉ स थं कं ग के पैटन क हो।
वहाँ से मुकेश सीधा तीसरे माले पर गया जहाँ िह दी क सारी कताब रखी ई थी। उसने
डा टर जोसेफ मफ क कताब ‘पावर ऑफ़ युअर सबकाि सयस माइ ड’ उठाई और
ऊपर चला गया। अपने कमरे म जाकर कताब खोलकर बैठ गया। उसे लगा इस व उसे
सबसे अिधक ज रत आ मिव ास को बल बनाने क है और आ मिव ास को बल
बनाने के िलए से फ-हे फ कताब से बेहतर या होगा।
समय तब ज दी गुजर जाता है जब हम कसी काम म मशगूल होते है जब क उस समय,
समय पहाड़ सा लगता है जब या तो फालतू बैठे होते है या कसी का इं तजार कर रहे होते
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ह। मुकेश ने कु छ प े पढ़े ही ह गे क शाम हो गई। छह बजे टोर बंद आ। लु बा और


संतोष दोन कमरे म एंटर ए। मुकेश को पढ़ते देख दोन ने उसे खूब िचढ़ाया। लु बा अपने
साथ एक बीयर क बोटल भी लेकर आया था। खाने के टफ न आ चुके थे। संतोष ने िबयर
के िलए दो लास ला कर टू ल पर रखे व बोटल खोलकर उनम बीयर उड़़ल े ने लगा। मुकेश
अभी भी कताब म ही खोया आ था।
‘‘थोड़ी सी क चलेगी बीडू ?’’ संतोष ने पूछा।
‘‘नह ! थ स। म कु छ भी खाता-िपता नह ।ँ ’’ मुकेश ने ह क सी माइल देते ए
ताव अ वीकार कर िलया।
‘‘महफ ल जम जायेगी यार। एक पेग पी ले दादा मजा आ जायेगा।’’ तु बा ने अपनी स

चं◌ेज करते ए क वे श कया।
‘‘नह थ स।’’ मुकेश ने कठोर आवाज़ म कहा व कताब के प े उलटने-पलटने लगा।
उसका मन पढ़ाई म नह लग रहा था। ऐसे माहोल म कै से पढ़े। ऊपर से बीयर क मेल से
उसका जी घबरा रहा था मानो उि टयाँ आ जायेगी। जाने कै सी गंदी बास आती है फर भी
लोग बड़े चाव से पीते है।
‘‘गेट कतनी बजे तक खुले रहते है?’’ मुकेश ने कताब को अपने पलंग पर उ टा रखते
ए जूते पहने। उसका मन बाहर घूमने का हो रहा था।
‘‘दस बजे तक खुले रहगे पर फकर नोट दर। कह कसी लड़क के साथ घूमने जाओ
और लेट हो जाओ तो मुझे कॉल कर देना अंदर से गेट खोल दूग
ं ा कभी भी कतनी भी रात
को आओ।’’ संतोष ने एक घूंट िबयर का भरते ए कहा।
‘‘ओके ।’’ कहते ए मुकेश गेट से बाहर िनकला और िल ट क तरफ रवाना आ। उसे
404 नंबर कमरे से लड़ कय के जोर-जोर से बात करने क आवाज़ आ रही थी। मुकेश
िल ट से नीचे उतर कर मेन गेट क तरफ रवाना आ। वहाँ ह का अंधेरा था। बाहर सड़क
पर रे लम-पेल थी। मुकेश अपनी धुन म आगे बढ़ ही रहा था क अंधेरे म उसे कोई साया
िहलता महसूस आ। इससे पहले क वो उस तरफ यान दे पाता या कु छ सोच पाता, उस
साये ने पीछे से आकर मुकेश के िसर पर िप तोल रख दी। मुकेश सहम गया। उसके कदम
वह ठहर गए।
‘‘िबलकु ल भी आवाज़ करने क कोिशश क तो शूट कर दूग
ं ा।’’ उसने िप तोल मुकेश क
कनपटी पर तानते ए कहा व गर दबाने के िलए उँ गली पर ेशर डाला...
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भा ग - 9
दूसरी दुिनया:-
आरजे अ तररा ीय ये टव ए टर का स अटड करके जैसे ही मु बई एयरपोट पर
ं ा, उसे मीिडयावाल ने घेर िलया। वैसे तो ये कोई ब त बड़ी उपलि ध नह थी पर
प च
भारत के िलए गव क बात थी क िव िसनेमा म यहाँ के कसी ए टर को भी पीच के
िलए आमंि त कया गया।
‘‘सर या भारतीय िसनेमा अब पूरे िव म अपनी जगह बना रहा है।’’ एक प कार ने
माइक आरजे क तरफ बढ़ाते ए पूछा।
प कार कु छ सवाल ऐसे पूछते है िजनका जवाब उनके सवाल म ही होता है पर ऐसे सरल
सवाल से ही वे इ टरे ट करना ारं भ करते है। आरजे ने कोई जवाब नह दया। आगे बढ़
गया। दूसरे प कार ने उसके साथ चलते ए पूछा, ‘‘आपके आगामी ोजे ट के बारे म
बाताइये सर?’’
आरजे हमेशा अपने आगामी ोजे ट के बारे म ही सोचता रहता था। प कार के सवाल ने
उसे बोलने के िलए रोक दया। आरजे अचानक का। उसके आगे-पीछे चलनेवाले
तकरीबन दस बॉडीगाड ने मोचा संभाल रखा था। आरजे के कते ही सारे रपोटर इक े
हो गए जो बाइट के च र म घूम रहे थे क आरजे के मुँह से दो श द ही िनकल जाये तो
टीवी क हेडलाइन बाना डाले। एक श द ही िमल जाये तो े कं ग यूज बना दे।
‘‘मेरी अपक मंग मूूवीयेटीव मूवी होगी, उसक कहानी सबसे हटकर है। िपछले दो
साल से के वल म उस फ म क कहानी पर काम कर रहा था। मेरा मानना है क कहानी म
दम होना चािहए। अगर कहानी म दम है तो फ म अपने आप िहट होती है।’’ आरजे ने
अपने आगामी ोजे ट का ेलर पेश कया और उसके बाद बगैर कु छ बोले-सुने आगे बढ़
गया।
‘‘सर इस मूवी को आने म कतना समय लग जायेगा।’’
‘‘सर फ म क कहानी या आप खुद िलख रहे है।’’
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‘‘सर उसम ए ेस कौन होगी?’’


‘‘ फ म का नाम या होगा सर?’’
प कार पीछे से िमिमयाते रहे पर आरजे ने एक नह सुनी। वो सीधे अपनी बीएमड यू म
बैठ गया। गाड़ी म उसके पास म उसका मुख सहायक जेटी पहले से इं तजार कर रहा था।
आगे-पीछे िस यो रटी गाड क कार चल रही थी। आरजे ने गाड़ी म बैठते ही जेटी से पूछा,
‘‘ या नाम है उस ि ट रडर का?’’
‘‘ ुित नाम है सर।’’ जेटी ने मोबाइल के को टे ट म ुित के नंबर िनकालकर बॉस के
आदेश क ती ा करने लगा। उसे मालूम था बॉस उसे फोन करने के िलए कहगे।
‘‘कॉल लगाकर बोलो क सले टेड ि ट के साथ मेरे ऑ फस म िमले।’’
‘‘यस बॉस’’ जेटी ने तुरंत ुित को कॉल लगया। बॉस का आदेश -ब- उसे सुनाकर फोन
काट दया। ुित इस समय घर जा चुक थी। तुरंत कार लेकर ऑ फस के िलए रवाना ई।
कु छ ही देर म आरजे अपने ऑ फस प चं गया। उसके ऑ फस के बाहर वे टंग क म
तकरीबन दस-प ह लोग बैठे ए थे। आरजे के पूछने पर जेटी ने बताया क ये सब
िति त लोग है जो आपसे िमलने आये है। इनम से कोई िवधायक है तो कोई सांसाद। कोई
िबजनेस मैन है तो कोई फाइनसर। आरजे ने कहा क इ ह कल बुलाना, आज म इन सब से
बात करने के मूड़ म नह ।ँ जेटी ऑ फस से बाहर चला गया व ुित ने ऑ फस म वेश
कया उसके हाथ म ि ट एनािलसीस रपोट थी।
‘‘ या कोई कहानी पसंद आई।’’ आरजे ने अपनी चेयर पर बैठते ए कहा।
‘‘सर इस मिहने हमारे पास कु ल एक सौ तीस ि ट आई थी िजसम से सौ तो िबलकु ल
बकवाज़ है। बा क बची तीस ठीक-ठाक है। उनम से भी मुझे कोई ऐसी कहानी नह िमली
जो एकदम ये टव हो। उनम से अिधकांश कहािनय का को से ट कसी हािलवुड फ म
से िलया गया था या उससे भािवत था। कोई ऐसी कहानी नह जो पूरी तरह से ये टव,
नई, अलग, रौचक व बांधे रखने वाली हो।’’ ुित ने एक ही सांस म सारा िववरण तुत
कर दया।
‘‘ .ँ ..’’आरजे कु छ सोच म पड़ गया।
‘‘इनम से टॉप फाइव क समरी मने इन प पर टाइप क है।’’ कहते ए ुित ने एक
पाँच पेज का बंच आगे िखसकाया। आरजे ने उसे उठाते ए देखा। ऊपर हे डंग िलखा आ
था व नीचे एक पेज म उसक कहानी का सार था।
‘‘ओके । म इ ह पढ़कर बताता ।ँ ’’
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‘‘ओके सर।’’ ुित ने उठते ए कहा।


‘‘ ुित तु ह पता है तु हारा रोल मेरी कं पनी म सबसे िज मेदारीवाला रोल है। तुम ही वो
स स हो जो मेरी फ म क कहािनय को फाइनल करती हो। तु हारे ारा फाइनल क
गई सारी फ म सुपर िहट रही है।’’
‘‘थ यू सर।’’
‘‘ओके । गुड नाइट।’’
‘‘गुड नाइट सर।’’
जैसे ही ुित मेन गेट क तरफ जाने लगी आरजे ने पीछे से आवाज़ लगाई, ‘‘ ुित...’’
ुित ने मुड़कर जवाब दया, ‘‘यस सर...’’
‘‘मेरे खयाल से इस समय तु हारे पास कोई ि
ट नह होगी तो य ना तुम बुक टोर
जाकर कु छ नॉवेल ले आओ अगर उनम कोई अ छी कहानी िमल जाये।’’
‘‘जी सर...कल ही ले आती ।ँ ’’
‘‘ओके .. वेलडन’’
‘‘गुड नाइट सर...’’ कहते ए ुित बाहर आ गई। बाहर आते ही उसने तय कया क कल
ही बुक टोर जाकर कु छ नई कताब लानी होगी। जब तक बॉस को कोई धासूँ कहानी
लाकर नह पकड़ा देती, तब तक मेरी जान खाते रहगे। एक बार अ छी कहानी िमल गई
तो चार-छह मिहने उस पर मूवी बनाने म िबजी हो जायगे।
इसी कार के चंतन म डू बी ुित अपने लेट प च
ं गई।

पहली दुिनया:-
‘‘िबलकु ल भी आवाज़ करने क कोिशश क तो शूट कर दूग
ं ा।’’ उसने िप तोल मुकेश क
कनपटी पर तानते ए कहा व गर दबाने के िलए उँ गली पर ेशर डाला।
मुकेश अपने हाथ ऊपर कर के खड़ा हो गया। मारे घबराहट के मुकेश का बदन पसीने-
पसीने हो रहा था। उसने फ म म ही ऐसे सीन देखे थे क कोई िप टल ताने खड़ा है।
असली जीवन म कभी िप टल भी नह देखी। बचपन म गांव के मेले म िबकने वाली
ला टीक क बंदक ू ज र देखी थी।
‘‘िबलकु ल भी आवाज़ करने क कोिशश क तो शूट कर दूग
ं ा।’’ वो आवाज़ फर से आई।
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‘‘म...म....कहाँ आवाज़ कर रहा ।ँ ’’ मुकेश ने घबराते ए कहा।


‘‘िबलकु ल भी आवाज़ करने क कोिशश क तो शूट कर दूग
ं ा।’’ वो आदमी फर से वही
श द दोहराने लगा।
मुकेश को अजीब लगा क ये एक ही बात को बार-बार रपीट य कर रहा है? आिखर
मुझसे या चाहता है, बता य नह देता? ऐसे हालात म तो पस, चेन, अंगूठी मांगी
जाती है। मेरे पास ना तो पस म पैसे है, ना ही चेन-अंगूठी है। कु छ भी हाथ नह लगने पर
कह गु से म मुझे गोली ना मार दे। मुझे भी ऐसे मुि कल समय के िलए कु छ तो पैसे
बचाकर रखने चािहए थे। अब तो गया काम से। तभी अचानक पीछे से संतोष क आवाज़
आई, ‘‘अबे मादर... भा यहाँ से।’’
मुकेश को कु छ भी समझ नह आ रहा क ये सब या हो रहा है। संतोष कसे भागने को
कह रहा है। या संतोष को डर नह लगता।
‘‘तू डर मत मुकेश। ये तो पागल है। यही म डराता रहता है।’’
मुकेश ने िह मत कर के पीछे मुड़कर देखा, धमक देनेवाला एक पागल िभखारी था। उसके
हाथ म कोई घन नह थी बि क लकड़ी का चार इं च का एक टु कड़ा था। उसके ल बी दाढ़ी,
ल बे कं ध तक िबखरे बाल, चेहरा िपचका आ, शरीर सूख कर कांटा हो चुका था, व
धूल-धूस रत, पीठ पर एक थेले म कचरा भरा आ था। वो अब भी एक ही श द रपीट
कर रहा था, ‘िबलकु ल भी आवाज़ करने क कोिशश क तो शूट कर दूग ं ा।’
संतोष ने उसे डराकर वहाँ से भगा दया।
‘‘म तो डर ही गया था क आज तो गया काम से।’’ मुकेश ने चैन क सांस लेते ए कहा।
‘‘मुझे मालूम था ये कमीना तुझे परे शान करे गा इसीिलए दा छोड़कर आया तेरे वा ते।’’
संतोष के मुँह से बीयार क मेल आ रही थी।
‘‘थ स भाई।’’ मुकेश ने दल से शु या कहा, ‘‘वैसे ये पागल कै से आ?’’
‘‘ये यहाँ मु बई म ए टर बनने आया था। कई साल तक संघष करता रहा। एक बार
कसी फ म म िवलेन के सहयोगी के प म दस सैके ड का रोल िमला िजसम िहरो के
माथे पर घन रख कर ये डायलोग बोलना था क, ‘िबलकु ल भी आवाज़ करने क कोिशश
क तो शूट कर दूगं ा।’ इसने रातभर खूब े टीस क । दूसरे दन जब इसने डायलोग बोला
तो डायरे टर को इसका लहजा पसंद नह आया। उसने इसे बाहर कर दया। बेचारे का
दल टू ट गया व दमाग से पगला गया। तब से अभी तक एक ही डायलोग को रपीट कये
जा रहा है। इसके अलावा एक श द नह बोलता।’’
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िहरो बनने आने व पागल हो जाने क बात सुन मुकेश उदास हो गया। उसका सपना भी तो
फ म इड ी म जाने का ही है। वो भी अपनी क मत आजमाने ही तो आया है। संतोष
तो वापस ये कहते ए ऊपर चला गया क, ‘‘ये मु बई है बीडू , यहाँ तरह-तरह क
खोपिड़याँ िमलेगी। ऐसे डर जायेगा तो या होगा रे तेरा। चल घूम के ज दी आ जाना।’’
मुकेश बाहर सड़क पर आकर ऐसे ही बगैर कसी उ े य के घूमने लगा। जब आपको कह
जाना नह होता है, जब आपका कोई उ े य नह होता है, जब आप ऐसे ही घूम रहे होते
हो तब चीजे अलग तरीके से दखाई देती है। तब आप अपने आस-पास होने वाली हर
घटना को आॅ जव करते हो। तब आप आते-जाते लोग , दुकान पर मोलभाव कराते
खरीददार , कान मे इयरफोन लगाकर चलते मुसा फर , फु टपाथ पर सामान बेचते
द र , हवा का झ का छोड़कर जाती बीएमड यू-ओडी-म सड ज कार को देख कर
अपने अंदर बैठे उस समी क को ल बी-चैड़ी समी ा िलखने का मौका देते हो क दुिनया
म कतनी असमानता है। ये दुिनया कु छ लोग के िलए तो वग है जब क कु छ के िलए
रौरव नक से भी बढ़कर है। ये दुिनया इतनी बटी ई य है। ये दुिनया कसी मायाजाल से
भी अिधक मायावी लगती है।
मुकेश भी इस समय सकारा मक व नकारा मक िवचार के वालामुखी से गुज़र रहा था।
कभी तो उसे लगता क उसका सपना के वल सपना ही है। उसे सच नह कया जा सकता।
कभी वो खुद को समझाता क कोिशश और िह मत से कु छ भी कया जा सकता है। कभी
उसे लगता क उसक तो क मत ही फू टी ई है। सुपर टार के घर ज म लेता तो आज
इतना संघष नह करना पड़ता। फर खुद को समझाता क क मत जैसी कोई चीज नह
होती है। होते है तो के वल अनुभव जो आनेवाले समय म ब त काम आने के िलए इस
यूिनवस ारा हम महसूस कराये जाते है।
िवचलन क ि थित म इं सान का ि थर रहना उतना ही मुि कल है िजतना पानी क लहर
को कृ ि म प से ि थर करने क कोिशश करना।
थोड़ा इधर-उधर का माकट देखकर मुकेश वापस अपने म आ गया। लु बा और संतोष सो
चुके थे। मुकेश भी चुपचाप सो गया। कल उसे भी ज दी उठकर नौकरी पर जाना है। सोने
के बाद भी उसे न द नह आई। उसके दमाग म उस रात क घटना याद आने लगी जब
उसके िपताजी ने उसे अपना सपना पूरा करने के िलए कहा था। वो उ ह कोसने लगा क
कस मुिसबत म डाल दया। यहाँ तो लोग सपने के च र म पागल हो गए है। उसने मन ही
मन ाथना क क रात को िपताजी एक बार सपने म आकर कोई रा ता बता जाए या
फर कम से कम कोई अ छी कहानी का आइिडया ही दे जाए। वहाँ भूत क दुिनया म तो
बैठे-ठाले लोग करते भी या ह गे। या तो चुडल
ै से लव के च र म पड़ते ह गे या मशान
पर बैठे ग पे मारते ह गे। कम से कम भूत क दुिनया क ही कोई कहानी बता जावे। उस
दन तो बड़े डाट-डाट कर बितया रहे थे क सपने को पूरा करने के िलए जा। अब कहां
गायब हो गए। उसने अपनी जेब म से उस चम कारी प थर को िनकाला और मन ही मन
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ाथना करने लगा क आज रात को कोई ना कोई भूत-चुडल ै आकर एक ढंग क कहानी ही
बता जावे। भले ही कॉपीराइट उनके नाम का ही रखूंगा, रॉय टी भी मशान म प च
ं ा
दुग
ं ा पर कोई कहानी तो बतावे।
ऐसे ही सोचते-सोचते उसे न द आ गई। उस रात उसे कोई सपना नह आया। ना ही उसके
िपताजी सपने म आये ना ही कोई भूत-चुडल
ै ।
सवेरे उठकर मुकेश ने अपने दमाग पर जोर डाला क कह कोई धुंधला सपना-सपनी तो
नह आया। जब दमाग ने ि लयर कर दया क रात को ऐसा कु छ नह आया तो उसने
िसर पीट िलया क साला जब ज रत होती है तब तो नह आते। खैर, नहा-धोकर मुकेश
ठीक दस बजे दुकान प च ं गया।
दादू काउं टर पर तैयार बैठे थे। आज उ ह ने मुकेश और संतोष क ुटी तीसरे माले पर
लगाई जहाँ िह दी क कताब थी। दादू का ये मानना था क नीचे के यादातर लोर पर
जहाँ ाहक यादा आती है वहाँ पर लड़ कय क ुटी लगानी चािहए ता क ाहक
दुबारा भी आते रहे।
दन के तकरीबन यारह बजे तीसरे माले म कोई ाहक नह थी। संतोष ऊपर े श होने
चला गया था। उसका पेट आज गुड़-गुड़ ब त कर रहा था। वो बार-बार िमसाइल भी छोड़
रहा था। जब उससे रहा नह गया तो मुकेश को ये समझा कर िनबटने के िलए अपने म
चला गया क कोई ाहक आ जाये तो आवाज़ लगा देना और दादू आ जाये तो बोलना
अभी-अभी गया है। मुकेश भी मान गया क कम से कम ताजा़ ऑि सजन तो नसीब होगी।
े एस गुजर का नॉवेल ‘स ावाला यार’ पढ़ रहा था
इस व मुकेश एक टू ल पर बैठा म
क उसके कान म कसी लड़क क मधुर आवाज़ आई,
‘‘सुनो! ये नई वाली िह दी क कताब कधर रखी है?’’
मुकेश ने लड़क क तरफ देखा, लड़क ने भी मुकेश क तरफ देखा। दोन एक साथ
िच लाए।
‘‘तुम...’’
‘‘ओह सु दर लाल तुम...’’ वो लड़क ुित थी। उसने जैसे ही मुकेश को देखा तो आ य म
पड़ गई क ये यहाँ या कर रहा है।
‘‘तुम यहाँ?’’ मुकेश भी आ य म था क ुित यहाँ कै से।
‘‘म तो यहाँ अ सर आती रहती ँ कताब लेने के िलए। मिहने म एकाध बार तो आ ही
जाती ।ँ ’’ ुित ने मुकेश के पास आकर कहा।
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‘‘मने यह नौकरी कर ली। तुमने ही कहा था ना क लेखक बनना तो खूब पढ़ो। तो म पढ़


रहा था।’’ मुकेश ने कताब कनारे रखते ए कहा।
उसे आज ुित ब त ही सु दर लग रही थी। ऐसा लग रहा था क सीधे आसमान से
अ सरा उतर कर सामने खड़ी हो गई हो।
‘‘दे स ेट।’’
‘‘तुम बताओ। मेरी याद आई...म..म..म मेरा मतलब मुझे भूल तो नह गई।’’ मुकेश ने
लड़खड़ाई जुबान को संभालते ए कहा।
‘‘िबलकु ल नह भूली। तुम हो ही इतने मासूम क म कै से भूल सकती ँ सु दर लाल।’’
‘‘तुम मुझे इतने यार से सु दरलाल कहती हो क मन करता है क मेरा नाम ही
सु दरलाल रख दू।ँ ’’
‘‘ओह रयली।’’
‘‘सच म’’
‘‘अ छा ये बताओ तुमने कोई कहानी िलखी।’’
‘‘नह अभी तक तो कोई आइिडया नह आ रहा।’’
‘‘ ट मी तुम अ छा िलख लोगे। अगली बार आऊँ तब तक कोई रोम टक लव टोरी िलख
लेना।’’
‘‘लव टोरी ही य ?’’
‘‘बेवकू फ उसम ब त सारे इमोश स सीन होते है जो हर इं सान के जीवन से जुड़े ए होते
है। हर कोई कभी ना कभी कसी से ना कसी से लव ज र करता है। कु छ पोज कर देते है
तो कु छ नह कर पाते पर सब लोग जीवन म एक बार लव ज र करते है वो भी
स ावाला। इसिलए लव टोरी म ब त सारी इमोश स उतारी जा सकती है। और िजस
कहानी से िजतना अिधक इमोशनल अटैचमट होगा वो उतनी ही दल म जगह बाना लेती
है।’’
‘‘ या मेरी पहली कहानी तुम पढ़ोगी।’’
‘‘ज र पढू ंगी पर इस समय मुझे कु छ नये नॉवेल चािहए।’’
‘‘िबलकु ल िमल जायगे। तुम कब से नॉवेल पढ़ने क शौक न हो गई।’’
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‘‘पागल मेरा काम ही यही है। कोई अ छी सी कहानी फाइ ड-आउट करना। वैसे कल
आरजे ने भी कहा था।’’
‘‘ या सच म तुम आरजे से फे स-टू-फे स बात करती हो। म...म..मेरा मतबल वो इतना बड़ा
टार है। म तो उसके सामने कु छ बोल ही नह पाऊँ।’’
‘‘एक बात तुम अ छे से समझ लो क टार भी सबसे पहले एक इं सान होता है। बस हम
उसे टार बना देते है। हम उसे तमगा देकर िसर पर चढ़ा देते है वरना वो भी उतना ही
इं सान होता है िजतने हम। वो भी उतना ही कमजोर होता है िजतने हम। वो कोई दूसरी
दुिनया से नह आया। बस हमने उसे दूसरी दुिनया का मान िलया। पता है हम सब क एक
ही दुिनया है। यहाँ कोई दूसरी दुिनया नह है।’’
उस दन तो ुित अपनी कताब लेकर ये कहती ई चली गई क जब कहानी िलख दो तो
बताना। पर मुकेश को समझ आ गया क यहाँ पर कोई दूसरी दुिनया नह है। सब इं सान
ही है। म भी उतना ही टार ँ िजतना आरजे। म भी उतना ही पाॅपुलर हो सकता ँ
िजतना आरजे वतमान म है। यहाँ पर कोई दूसरी दुिनया नह है।

(नोट- अब से कहानी एक ही म म चलेगी। य क पहली दुिनया और दूसरी दुिनया का


मेल हो गया है। सारे पा आपसे म गुथ गए ह। अब दोन म फक करना मुि कल है
इसिलए आगे से सब टाइटल ‘पहली दुिनया’ और ‘दूसरी दुिनया’ को हटा दया जायेगा।)

उसके बाद मुकेश से फ इ ूवमट करने लगा। जब भी समय िमलता कताब पढ़ता। एक
दन उसे एक आइिडया आया पर वो धुंधला था। के वल कहानी क थीम उसे अवचेतन मन
के मा यम से िमली। उसने उस थीम को पकड़ िलया और एक रात बैठकर पूरी कहानी
िलख दी। जब वो िलखने बैठा तो कहानी अपने आप धारा- वाह बहती रही। जैसे नदी का
पानी खुद अपना रा ता बना लेता है ठीक उसी कार उसक कहानी भी अपने पा गढ़ती
रही और घटना म बनता-िबगड़ता रहा।
जब कहानी पूरी हो गई तो उसने घड़ी देखी सवेरे क छह बजे थे। उसे आ य आ क
समय कै से िनकल गया पता ही नह चला। वो कहानी म इतना डू ब गया क समय उसके
िलए शू य हो गया था। उसने उठकर मुंह धोया और उस कहानी को फर से पढ़ने लगा तो
उसे खुद पर आ य आ क इतनी शानदार कहानी बन गई और वो भी वत धारा वाह
प से। जब क कतने ही दन से पूरी कहानी सोचने क कोिशश कर रहा था। घटनाएं,
पा , संवाद सब पहले से ही सोच कर िखलने क कोिशश कर रहा था तो कु छ भी सेट नह
बैठ रहा था। सब गड़बड़ हो रही थी पर अब सब ठीक हो गया।
उस दन उसने संतोष से सौ पये लेकर मोबाइल म बेलस डलवाया और ुित को मैसेज
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िलखा, ‘‘आई ुित...’’


‘‘कौन...’’ ुित ने र ले दया। उसके पास मुकेश के नंबर सेव नह थे।
‘‘तु हारा सु दर लाल’’
‘‘ओह हाइ।’’
‘‘कहानी िलख ली। तुमसे िमलना चाहता ।ँ ’’
िु त ने अगले दन शाम को छह बजे कबीर कै फ पर बुलाया। उसने पूरा ए ल े िलख भेजा।
मुकेश ने तुरंत नई वाली स े को धोकर सुखा दया। अगले दन उसने दादू से थोड़ा ज दी
जाने क अनुमित मांगी। दादू ने सहष जाने दे दया। मुकेश ओटो म बैठकर कै फे कबीर
प च ं गया। वो जीवन म पहली बार इतने महंगे कै फे म आया था। इस समय तक ुित नह
आई थी। मुकेश क नज़र बार-बार मे यू काड पर ही जा रही थी। एक काफ के तीन सौ
पये। साले कमीने, लूटेरे कह के । अमीर को लूटने का धंधा खोल रखा है। तीन सौ पये
म भला कौन फाफ पीता है। उसने आस-पास देखा तो काफ भीड़ थी। यादातर अमीर
लड़के -लड़ कयाँ खी-खी, खा-खा कर रहे थे। उ ह िम यू क कोई चंता नह थी।
इतने म कसी ने उसक पीठ पर धैला मारा। उसने मुड़कर देखा तो ुित थी।
‘‘ या कर रहे हो सु दरलाल।’’ ुित ने उसके सामनेवाली चेयर पर बैठते ए कहा।
‘‘िम यू काड देखकर िसर पीट रहा ।ँ एक काफ के तीन सौ पये। बाप का राज चला
रखा है साल ने।’’ मुकेश ने झ पते ए कहा य क उसक जेब म इस समय इतने पैसे
नह थ
‘‘तुम इतना इ रटेड य हो रहे हो?’’ ुित ने आ य म पूछा।
‘‘ य क म तु ह एक काफ नह पीला सकता। इतने पैसे नह ह यार मेरे पास।’’
‘‘अ छा तो ये बात है। वैसे यहाँ तु ह मने बुलाया है। िबल भी म भ ं गी।’’
‘‘ओके ...पर एक दन म अपनी तरफ से तु ह फाइव टार म िडनर पर ले जाऊँगा।’’
‘‘ओके डन। कहानी कहाँ है?’’
मुकेश ने कहानी उसे दे दी। ुित ने पस म रखते ए कहा, ‘‘मुझ पर िव ास तो है ना।’’
‘‘ऐसी बात मत करो ुित। मेरा इस दुिनया म कोई नह है। तुम पर िव ास नह क ँ गा
तो कस पर क ँ गा।’’
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‘‘वैसे तु ह बता दूँ क इस कार भी कसी पर आँख मूंदकर िबलीव नह करना चािहए।’’
‘‘तुम ठीक कह रही हो पर मुझे तु हारी आँख म स ाई दखाई देती है।’’ मुकेश ने ुित
क आँख म देखते ए कहा।
‘‘तुम कब से मुझे इतना ओ जव करने लगे हो।’’ ुित ने हँसते ए कहा।
‘‘तुमने ही तो कहा था क लेखक बनने के िलए लोग को ऑ जव करना आना चािहए।’’
‘‘तु ह मेरी सारी बात याद है। काश! सब लड़के तु हारी तरह िन छल होते।’’ कहते ए
ुित उदास हो गई।
मुकेश समझ गया क उसे पुराने ेमी क याद आ गई िजसने उसे धोखा दया था।
‘‘तुम ब त खूबसूरत लग रही हो।’’ मुकेश ने बात बदलते ए कहा। वो नह चाहता था
क ुित फर से उन दन को याद कर के अपसेट हो।
‘‘थ स। और तुम मासूम लग रहे हो।’’
‘‘शादी कब कर रही हो?’’
‘‘जब पेर स कहगे। वैसे वे ज दी ही करवा दगे।’’ ुित ने िनप भाव से कहा जैसे उसक
शादी से उसका खुद का कोई लेना-देना नह है।
‘‘ या तुम दल से चाहती हो?’’
‘‘ दल क कसे पड़ी है? वैसे सच क ँ तो दल कह का नह छोड़ता।’’
‘‘म दल क सुनकर ही यहाँ तक दौड़ा चला आया ँ और मुझे िव ास है क दल कभी
गलत नह होता। लोग गलत हो सकते है। धोखा दे सकते है पर हमारा दल कभी गलत
नह होता।’’
‘‘उस सही का भी या मतलब िजसका कोई औिच य नह हो। िजसने ठोकर लगवा दी
हो।’’
‘‘ठोकर लगने पर भला चलना कौन छोड़ता है।’’
िु त बस ह का सा मु कु रा भर दी। काफ पीने के बाद वो चली गई। मुकेश को लगा क
शायद मने कु छ यादा ही कह दया। उसे अफसोस भी हो रहा था क इतना नह बोलना
चािहए था। कहाँ वो और कहाँ म? चला ान बाटने। उस दन मुकेश ने खाना नह खाया।
िब तर पर चुपचाप सो गया। रात के तकरीबन दस बजे ुित का मैसेज आया,
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‘‘मने तु हारी बात पर गौर कया। तुमने िबलकु ल सही कहा। या कल फर से


िमलोगो।’’
मुकेश उछल पड़ा।
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भा ग - 1 0
मुकेश उछल पड़ा। उसे यक न नह आ क ुित पर उसक बात का इतना ज दी असर
हो जायेगा। उसने र ले म ‘वाय नोट’ िलखकर भेज दया। दूसरे दन भी दादू से उसने
थोड़ा ज दी जाने के िलए बोला, पहले तो दादू ने उसके चेहरे के ए स ेशन को यान से
देखकर कु छ अनुमान लगाने क चे ा क , फर मूक सहमती दे दी। दादू क िनगाह अभी
भी उस पर सवाल दाग रही थी क मने तु ह इसिलए पनाह दी थी क तुम अपनी िनयित
को ा कर सको और तुम यहाँ पर सेटल होने के बाद बेमतब के घूमने- फरने म व
जाया कर रहे हो। दादू ने उसे कहा कु छ भी नह पर मुकेश भी दादू के मूक को भाँप
गया था। उसने तय कया क आज ुित को ि लयर बोल दूग ँ ा क या तो ऑ फस टाइम
बाद िमला करो या फर रिववार को छु ी रहती है, उस दन चाहो तो दनभर िमल सकते
ह।
मन म फू टते ल डु के साथ मुकेश आज फर से कबीर कै फे पर प च ं गया था। आज ुित
पहले ही प च ं गई थी। उसके हाथ म कोई कताब थी िजसे ब त ही एका ता से पढ़ रही
थी। कै फ क सी ढ़य पर कदम रखते ही मुकेश को ुित क झलक िमल गई। इतन क
भीड़ म भी ुित को ढू ंढने म एक सैके ड का एक हजारवाँ िह सा भी नह लगा। आज उसने
लेक कलर का शट व नेवी यू कलर क ा डेड जंस पहन रखी थी। कै फे पर येक
टेबल पर दो-दो चेयर लगी ई थी। शायद इसिलए कयहाँ पर यादातर कप स ही आते
ह। कभी-कभी दो से यादा मुसा फर आ जाते है तो वेटर रजव म रखी चेयर लाकर रख
देता। मुकेश के कदम वत अपना रा ता तय करते ए, िथरकते से ुित के टेबल क तरफ
बढ़े।
एक पल के िलए उसक नज़रे कै फे पर जमा भीड़ पर पड़ी। अिधकांश लड़के -लड़ कयाँ ही
थे। ुित के पीछेवाली टेबल पर एक लड़का िजसने कान म बाली, दोन आँख के कोर पर
छोटी-छोटी बािलयाँ, नाक के बीच म एक बाली पहन रखी थी। एक पल के िलए उसे लगा
क ये िपछले ज म म शु ीव का भाई बाली तो नह था क इतनी बािलयां पहन रखी।
बगल म बैठी एक लड़क का जंस इतना फटा आ था क उसने जीवन म इससे दीन
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अव था म कसी िभखारी को भी नह देखा था। उसके गाँव म एक मालाराम नाम का


शराबी था, जो चौबीस घट दा पीकर गोबर क रोिड़य पर पड़ा रहता था, उसके कपड़े
भी इससे कम फटे ए थे।
इतने म मुकेश ुित के टेबल तक प चं गया पर वो इस समय कताब म इतना खोयी ई
थी क जब मुकेश ने उसके पीछे से उसक दोन आख पर अपनी अंगुिलयां रखी तो उसका
यान भंग आ।
‘‘ये सब तरीके पुराने हो गए है सु दर लाल।’’ ुित ने मुकेश का हाथ पकड़ कर आगे
ख चते ए कहा। उसने एक सैक ड म ही पहचान िलया था क ये मुकेश है।
‘‘मुझे लगा तुम थोड़ा दमाग पर जोर डालोगी पर तुमने तो फटाक से पहचान िलया।’’
मुकेश को आ य आ क इतना ज दी कै से पहचान िलया। साथ ही उसे अपनी इस करतूत
पर शम भी आई क ये सब गांव के गंवार के पतरे है। यहाँ इतने महंगे कै फे म भला कोई
ऐसी हरकत नह करता। उसे खुद पर झप ई।
‘‘इिडयट तुम ही आनेवाले हो तो ऑ फसली तुम ही ह गे। इसम जोर डालनेवाली कौनसी
बात ई।’’ ुित ने फटकारते ए कहा व कताब के पेज को थोड़ा सा मोड़कर उसे बंद कर
टेबल पर रख दया।
‘‘ या पढ़ रही हो?’’ ुित के सामने वाली चेयर पर बैठते ए मुकेश ने िवषया तर करते
के िलए पूछा।
‘‘नॉवेल ‘स ावाला यार’ पढ़ रही ।ँ ब त अ छी लव टोरी है इसम।’’ ुित ने
कताब मुकेश क तरफ िखसकाते ए कहा।
मुकेश ने मन ही मन म आगामी पढ़ी जानेवाली कताब क सूची म इस कताब को सबसे
ऊपर सेट कर दया। इतने म वेटर आ गया। ुित ने अपने िलए एक को ड काफ का आडर
देते ए मुकेश क तरफ वाचक िनगाह से देखा क तुम कौनसी काफ पीना पसंद
करोगे। मुकेश पासोपेश म पड़ गया क कौनसी काफ मंगाये। उसने दमाग पर जोर डाले
बगैर ही ुित क चोइस को कापी-पे ट कर दया। वेटर आडर नोट कर के चला गया। ुित
ने गहरी सांस लेते ए कहा, ‘‘तु हारी कहानी म कतनी पे लंग इरर है?’’
‘‘ या तुमने पूरी कहानी पढ़ी।’’ मुकेश ने िज ासावश पूछा। फर जब ुित कु छ नह
बोली तो उसने ुित के सवाल का जवाब दया, ‘‘वो दरअसल म बचपन से ही सरकारी
कू ल म पढ़ा ।ँ वहाँ कसी ने मेरी इस गलती पर मुझे टोका नह । िह दी के टीचर अ वल
तो कापी ही चेक नह करते थे और अगर कभी होली-दीपावली चेक कर भी लेते थे तो
आँख मूँदकर राईट-राईट लगाते ए आगे बढ़ जाते। उ ह राइट लगाकर आगे बढ़ने क
इतनी ज दी रहती थी क कभी-कभी तो कापी के प े पेन के ेशर से फट जाया करते थे।
जब बड़ा आ तब पता चला क मुझम ये गलती रह गई पर तब तक ब त देर हो चुक
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थी। तुम तो जानती ही हो प े घड़े पर िम ी नह लगती।’’


‘‘िब कु ल गलत सोच है तु हारी। पता नह कस मूख ने ये कहावत बनायी। ऐसे कु छ नह
होता। हम िनरं तर स खते रहते ह। िजस दन हम ये मान लेते ह क हम अब कु छ नह स ख
सकते उस दन से हम जंदा लाश होकर रह जाते ह। इसिलए तु हारी ये दिलल कोई
मायने नह रखती क पहले या आ था। समझे मेरी बात।’’
‘‘सॉरी बॉस... तुम िब कु ल ठीक कह रही हो। आगे से वतनी का यान रखूंगा। वैसे तु ह
कहानी कै सी लगी?’’ मुकेश के िलए ये के वल एक कहानी नह बि क सपने क तरफ
पहला कदम था। पहली सीढ़ी थी िजससे होकर उसे ऊँचाई के िशखर पर प च ँ ना था। वो
ुित के चेहरे के हावभाव देखने लगा व उसके बोलने से पहले ये अनुमान लगाने लगा क
या बोल सकती है।
‘‘कहानी एकदम बकवाज़ लगी।’’ ुित ने तपाक से बोल दया।
मुकेश उदास हो गया। उसने ुित के चेहरे के ए स ेशन देख,े वो गंभीर होकर कह रही
थी। मुकेश अब मानो कसी गहरे ग े म धंसता जा रहा हो। उसे खुद नह मालूम क ऐसे
समय म वो या सोचे और या ित या कर। उसने िपछले दन िजतनी भी
मो टवेशनल कताब पढ़ के जो सकारा मक ऊजा हािसल क थी वो एक पल म गायब हो
गई मानो कसी के प थर फकने से एक झटके म ूबलाईट का शीशा टू ट कर चूर-चूर हो
गया हो और चार तरफ घना अंधेरा छा गया हो।
लेखक बनने का जो सपना म देख रहा था या वो गलत था। या मेरी िनयित म टार
बनान नह िलखा है। इससे तो अ छा था म लक क तैयारी ही करता रहता। उसने
अपनी जेब पर हाथ घुमाया क आिखर वो चम का रक प थर कोई करतब य नह दखा
रहा है। पीछे से उस बाली धारक लड़के के अ हास क अवाज़ आई। मुकेश को लगा क वो
मुझ पर ही हँस रहा है क कु छ देर पहले तू हमारे कपड़ और रहन-सहन क बुराई कर
रहा था, ले अब खुद ही कसी काम का नह रहा। मानो कह रहा हो क तुम जैसे गाव से
आनेवाले लड़के बस सपने बड़े-बड़े देख लेते पर कर कु छ नह कर पाते, वही ढाक के तीन
पात।
‘‘ या सच म इतनी खराब थी।’’ कं पकं पायी आवाज म धीमे से, दमे के मरीज क तरह
या फर झाड़े म ठ ड म ठठु रते हलकू क सी आवाज़ म मुकेश ने ुित क तरफ देखते ए
पूछा।
‘‘और नह तो या झूठ बोल रही ।ँ ’’ ुित ने नामल आवाज़ म कहा।
मुकेश सोचने लगा क अरे देवी अगर मजाक कर रही हो या मेरे धैय क परी ा ले रही हो
तो पहले ही बता देना। कह ऐसा नह हो क तु हारी परी ा के च र म ही मेरे ाण
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पखे उड़ जाये। कतने कठोर, कतने िनदयी वर म कह दया क बकवाज़ कहानी िलखी
है। तुझे या मालूम एक-एक श द जोड़ना कतना मुि कल होता है। िजस कार कोई
कारीगर सोने पर निगन क न ाशी करने के िलए एक-एक नगीना होले-होले से जोड़ता
है, उसी कार तो एक लेखक को एक-एक श द जोड़ना पड़ता है और तेरे जैसे जािलम ने
एक पल म मेरे ताजमहल को ताशमहल बना दया जो हवा के एक झ के से िबखर गया।
‘‘मुझे लगता है म ये काम नह कर सकता। मेरे सपने झूठे थे। कहाँ म गांव से आया िह दी
िमिडयम से बीए पास और कहाँ बाॅिलवुड फ म इ ड ी का सबसे स सैजफु ल राइटर
बनने चला था। कहाँ म ितनका और कहाँ ये च वात।’’ कहते ए मुकेश क आँख छलक
आई। उस सपने के िलए उसने अपना घर-प रवार, गांव-िजला छोड़ दया। अपने सारे
दो त- र तेदार छोड़ दये। एक बारीक आवाज़ जो उसका दल अ सर सुना करता था,
उस आवाज़ पर भरोसा कर, सपने के पीछे चल पड़ा, कसी फक र क तरह।
‘‘तुम वाकई म इिडयट ही हो। रो रहे हो पागल। सच म तुमने ब त ही कमाल क कहानी
िलखी है।’’ ुित ने मामला िबगड़ते देख रह य से पटा ेप कया।
‘‘तुम मेरा दल रखने के िलए कह रही हो ना?’’
‘‘नह म सच कह रही ँ बेवकू फ। तु हारे िसर क कसम।’’ ुित ने मुकेश के िसर पर हाथ
रख कर कसम खाते ए कहा, ‘‘म तो तु हारी फरक ले रही थी और तुम रो दए। पागल
कह के । मेरा यक न करो तुमने ब त ही शानदार कहानी िलखी है।’’
‘‘मुझे लगा तुम सच कह रही हो। पता नह आज म तु हारे चेहरे के ए स ेशन य नह
भांप सका।’’ ह क सी मु कान लाते ए अपने आँसु को पोछकर नामल होते ए मुकेश
ने कहा।
तब तक वेटर काॅफ के दो बड़े-बड़े कप रख गया। लेक कलर के कप म काॅफ क खु बू से
मानो आसपास नशा छा गया हो।
िु त ने अपना कप उठाकर एक घूंट भरने के बाद कहा, ‘‘तुम ना, ब त ज दी िनराश हो
जाते हो। तु ह या लगता है? इस जीवन म हर कदम पर तु ह सफलता ही सफलता
िमलेगी? अगर ऐसा सोचकर चलते हो तो तुम एक नंबर के बेवकू फ हो। तु हारा ढृ ढ़
संक प तु हारी सफलता से नह बि क असफलता के बाद के जुनून से मापा जाता है। तुम
िगरकर कै से उठते हो वही सबसे मह वपूण है। खैर! सबसे पहले तो मुबारक हो पहली ही
कहानी इतनी अ छी िलखने के िलए।’’ कहते ए ुित ने मुकेश क तरफ हाथ बढ़ाया उसे
बधाई देने के िलए।
मुकेश ने अपना हाथ आगे बढ़ा दया। उसने आज फर से ुित के कोमल हाथ क छु अन
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को महसूस कया। उसका मन तो कर रहा था क इन हाथ को इसी समय चूम ले। कह दे


ुित से क तुम अगर मेेरा साथ दो तो म इससे भी अ छी कहािनयां िलख सकता ।ँ तुम
नह जानती क तुम मेरे िलए कतनी मह वपूण हो।
‘‘तो या मेरी कहानी पर फ म बन जायेगी?’’
‘‘नह ! फलहाल तो नह ।’’
‘‘तुमने तो कहा कहानी सले ट हो गई।’’
‘‘हाँ कहा तो है।’’
‘‘म कु छ समझा नह ? लीज अब मेरी फरक लेना बंद करो और साफ-साफ ल ज म
बताओ बात या है?’’
‘‘बात ये है क आरजे को तु हारी कहानी पसंद तो आई पर इस व इस पर फ म नह
बन सकती। तु ह इसे िव तार से िलखना होगा। इसे फ म क ि ट क शैली म िलखना
होगा, उसके बाद आरजे को दखाने के बाद ही फाइनल होगा क इस कहानी पर फ म
बनेगी या नह ।’’
‘‘सच बताना, या तु ह कहनी पंसद आई?’’
‘‘ब त पसंद आई? मेरा झूठ बोलने का कोई सस भी नह बनता।’’
‘‘ओके । तो म इसे िव तार से भी िलख लूंगा। इसम कौनसी बड़ी बात है।’’
‘‘ ...’’
‘‘तुम आज ब त सु दर लग रही हो।’’ ुित के गोरे बदन पर लेक शट फब रहा था।
‘‘थ स।’’
मुकेश कु छ नह बोला। चुपचाप काॅफ पीने लगा। आज उसके जीवन का सबसे बड़ा दन
था। उसक कहानी आरजे को पसंद आयी। इतने महान कलाकार ने टाइम िनकालकर
उसक कहानी पढ़ी ये ही उसके िलए सबसे बड़ी बात थी।
‘‘ या सोच रहे हो?’’ मुकेश को चुप देख ुित ने काफ का आिखरी घूंट भरकर, कप
टेबल पर रखते ए पूछा।
‘‘यही क तु हारा कै से शु या अदा क ँ ?’’ उसक आँख ह क सी नम हो गई। उसे
मालूम था क ुित नह होती तो वो भले कतानी भी अ छी कहानी िलख लेता पर वो
कहानी आरजे तक नह प चं पाती।
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‘‘इसम शु या क कोई बात नह । तु हारे अंदर कािबिलयत है। तुम इस लायक हो।
अ छा िलखनेवाल को हमेशा उनका पुर कार िमलता है। ये अलग बात है क लोग
कोिशश नह करते या उस बारे म सोचते नह है। तु ह पता है इ ड ी म अ छी कहािनय
क ब त िडमा ड है। दुभा य से अ छी कहािनयाँ िलखनेवाले ये सोचकर रह जाते और
आगे यास नह करते क इससे कोई मतलब नह िनकलनेवाला। कोिशश करने से पहले
ही अिधकांश लोग हार मान लेते है।’’
उस दन ुित ने मुकेश को कहानी िव तार से एवं ि ट के प म िलखने का िज मा
दया। जब मुकेश ने पूछा क ि ट कै से िलखी जाती है तो ुित ने उसे तीन कताब बताई
क उ ह पढ़ लेना, सब समझ म आ जायेगा। मुकेश ने तीन कताब नोट कर ली, पहली
कताब थी- ‘पटकथा लेखन एक प रचय’ लेखक मनोहर याम जोशी थे। दूसरी -
‘पटकथा लेखन ावहा रक िनदिशका’ िजसके लेखक असगर वजाहत थे। तीसरी कताब
‘ फ म क कहानी कै से िलख’ नाम क थी िजसके लेखक िवपुल के . रावल थे। उसने तय
कर िलया क सबसे पहले इ ही कताब को पढ़ेगा। उसके बाद कहानी को िव तार म
पटकथा के म म िलखोगा।
मुकेश खुशी-खुशी सरदार बुक हाउस प च ं गया। घड़ी म रात के दस बज गए थे। गेट बंद
होने ही वाला था क वो प च ं गया। उसके दमाग म अब वही कहानी घूम रही थी िजसे
िव तार से िलखना है। उस कहानी के पा उसक आँख के सामने इधर-उधर म डरा रहे
ं ा, सड़क क तरफ लगे लास के पास म खड़ी ि या और
थे। िल ट से जैसे ही गैलरी म प च
वैशाली आपस म बात कर रही थी और बाहर मु बई शहर के नजारे को देख रही थी। पीछे
से कसी के कदम क आहट सुन दोन मुड़ी, मुकेश को देख, मु कु राकर हाय बोला। मुकेश
ने उनके पास जाकर उ ह ये खुशखबरी सुनाई क उसक कहानी का सले शन हो गया है।
ि या और वैशाली ने मुकेश को बधाई दी। मुकेश सभी के िलए िमठाई पैक करवा कर
लाया था। उसने ि या और वैशाली को उसके म आकर िमठाई खाने के िलए कहा तो
दोेन तैयार हो गई व उसके पीछे-पीछे चल दी।
म नंबर 403 िजसम मुकेश, संतोष और लु बा रहते थे उसका गेट खुला आ था के वल
अटका रखा था। मुकेश म म एंटर हो गया। उसके पीछे-पीछे वैशाली और ि या भी अंदर
वेश कर गई। तीन जैसे ही कमरे म घुस,े अंदर लु बा और संतोष मोबइल पर धीमी
आवाज़ म कोई िविडयो देख रहे थे। आवाज़ िबलकु ल धीमी थी व दोन उस िविडयो म ऐसे
घुसे ए थे क पीछे से भले कोई म का सारा सामान चुराकर ले जाये तो भी उ ह इससे
कोई लेना-देना नह था।
मुकेश के साथ ि या और वैशाली को आये देख दोन उछल पड़े, लु बा ने घबराहट के मारे
िविडयो क आवाज़ धीमी करने के िलए ज दबाजी म बटन दबाकर मोबाइल को िब तर
पर उ टा रख दया। बद क मती से आवाज़ धीमे होने क बजाय फु ल हो गई थी पर लो
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नेट के कारण िविडयो बफ रं ग हो रहा था इसिलए कु छ समय के िलए िविडयो का वाॅ यूम
नह आने से लु बा समझा क आवाज़ बंद हो गई। दोन ने चेहरे के हावाभाव नामल करते
ए मु कु राकर लड़ कय का वागत कया। ये पहला मौका था जब दोन लड़ कय उनके
म म आयी थी। पहले दोन ने खूब मनुहार क पर लड़ कयां कभी नह आयी।
‘‘ या कर रहे थे?’’ मुकेश इस कमका ड से अनिभ था। उसने नामल-वे म पूछते ए
अपने पलंग पर बैठ गया और जुते उतारने लगा।
लु बा के पलंग पर लु बा और संतोष कसी अपराधी क तरह बैठे थे जब क संतोष के
पलंग पर ि या और वैशाली बैठ गई। वैसे ि या और वैशाली लड़क के म म नह आना
चाहती थी पर आज जब मुकेश ने िमठाई खाने का िवशेष आ ह कया तो दोन तैयार हो
गई।
‘‘कु छ ना वो नई वाली महाभारत देख रहे थे उस एप पर... या नाम है उस ऐप का
लु बा?’’ संतोष ने बात को संभालते ए कहा।
‘‘हॉट टार पर’’ लु बा ने तुरंत जवाब दया।
इतने म िविडयो बफर हो चुका था और नेट क पीड आने से िविडयो ले हो गया और
तेज-तेज आवाज़ म कसी मिहला औैर पु ष के ‘उ ..आ ’ के वर आने लगे।
लु बा ने झट से मोबाइल पर कं बल डाल दया। आवाज़ खामोश हो गई। िविडयो फर से
बफ रं ग होने के कारण पुश हो गया था। लु बा समझा क कं बल डालने से आवाज़ दब गई।
इस समय वो मोबाइल को हाथ म लेकर बंद भी नह कर सकता। अगर ऐसा करता तो
दोन लड़ कय को पता चल जाता क िविडय म कौनसी वाली महाभारत चल रही है।
मुकेश क उ ह खास परवाह नह थी पर लड़ कय के सामने वे अपनी फजीती होते ए
नह देख सकते थे।
‘‘लगता है चीर हरण वाला ऐपीसोड चल रहा है।’’ मुकेश ने म खरी के अंदाज़ म पूछा।
उसे कु छ डाउट आ क दोन लंपट कोई अं ेजीवाला िविडयो देख रहे है साले।
‘‘नह वो... हाँ शायद !’’ संतोष ने लु बा को आँख दखाते ए इशारा कया क अब
ि थित िनयं ण म है या नह । लु बा ने हाँ म िसर िहला दया। उसे लगा क आवाज़ दब
गई। वैसे भी िविडयो दो िमिनट का ही था तो ज दी ही पूरा हो जायेगा।
‘‘वो या है ना मेरे मोबाइल का साउ ड िपछले फट गया तो ऐसी ही आवाज़ आ रही
है।’’ लु बा ने कहा।
इतने म िविडयो फर से ले हो गया। इस बार आवाज़ अपने चरम पर थी। धुआँधार
आवाज़ आ रही थी। और ऐसी आवाज़ आ रही थी क िजसे यहाँ िलखा भी नह जा सकता।
लु बा का चेहरा सूख कर पीला पड़ गया था। संतोष तो वह का वह मू त बन गया। लु बा
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को कु छ भी सूझ नह रहा क या करे । लड़ कयाँ आ य से च कत देखे जा रही थी। मुकेश


समझ गया क ये अके ले म देखनेवाला िविडयो जो अब बद क मती से सावजिनक हो
गया। अब इसे रोकना उसके बस म भी नह । कमरे म कु छ देर के िलए स ाटा छा गया,
के वल िविडयो क आवाजे ही आ रही थी। लड़ कयाँ मारे शम के उठ कर चेहरा िबगाड़ते
ए ये कहकर चली गई क, ‘‘िमठाई इ ह ही िखला देना। लंपट कह के ।’’
उनके जाते ही मुकेश ने दरवाजा बंद कर दया और लु बा ने लपक कर िविडयो बंद कर
दया। संतोष कसी ऋिष क तरह ि थर भाव से बैठा खुद पर िनयं ण पाने क कोिशश
कर रहा था।
‘‘अबे साले... इन देिवय को म म लाने से पहले बोलना तो चािहए था।’’ लु बा
मोबाइल को दूर पटकते ए झ लाया।
‘‘मुझे या मालूम था तुम दोन चीर हरण कर रहे थे।’’ मुकेश हँसी नह रोक पाया।
‘‘बावा... इ त का कचरा कर दया लड़ कय के सामने।’’ संतोष ने मौन भंग करते ए
भ म करनेवाले ने से देखा।
‘‘दादा सच कह रहा ँ मुझे नह मालूम था आपके स संग के बारे म।’’
कु छ देर तक कमरे म स ाटा छा गया उसके बाद पूरे वाकये को याद कर के तीन एक साथ
हँस पड़े।
अगले दन से मुकेश उस कहानी को िव तार से िलखने म लग गया। साथ ही उसने ुित
ारा बताई तीन कताब भी पढ़ ली। समय िमलने पर वो कताब पढ़ता रहता। स ाह म
एकाध बार ुित से िमलने भी चला जाता पर या तो रिववार को या ऑ फस टाइम के
बाद। उसे ुित से यार था पर िह मत नह कर पा रहा था पोज करने क । वो सही व
क ती ा करने लगा।
िु त को भी समझ आ गया क वो उस लड़के के साथ कभी खुश नह रह पायेगी िजससे
उसक सगाई ई है। उसने एक दन घरवाल को फोन कर के साफतौर पर उस लड़के से
शादी करने से इं कार कर दया। कु छ दन तक तो उसके प रवारवाले नाराज रहे पर फर
उसक बात मान गए क बेटी क खुशी ही सव प र होती है। ुित क सगाई टू ट गई। उसने
चैन क सांस ली। ुित क माँ ने पूछा क या कोई दूसरा लड़का उसे पसंद है? तो ुित ने
प इं कार कर दया क अभी तक तो कोई नह पर जब भी पसंद आयेगा बाता देगी।
मुकेश ने अपनी ि ट पूरी कर के ुित को स प दी और ित या का इं तजार करने लगा।
ुित िपछले कु छ दन से बीमार होने के कारण उदयपुर चली गई। वह पर बेड रे ट करने
लगी।
इधर आरजे अपनी अगली फ म लेकर आ गया। उसने मीिडया के सामने फ म के रलीज
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होने क घोषणा भी कर दी और साथ म यह भी जोड़ दया क इस बार उसक फ म


अनोखी होगी, कहानी उसने खुद ही िलखी है। देखते ही देखते समय िनकल गया। आरजे
क फ म रलीज हो गई। चार तरफ उसी फ म के चच थे। अभी रलीज ए दो ही दन
ए क फ म ने पाँच सौ करोड कमा िलये।
मुकेश ुित के ठीक होने क दुआ करने लगा। समय िमलने पर वो नई कताब पढ़ता, खुद
को बेहरत बननो म लग गया। उसने उस जादुई प थर को हमेशा अपने पास रखा। जब भी
मौका िमलता उसे जेब से िनकालकर चूमता और उन सभी का शु या अदा करता
िज ह ने इस सफर म उसका साथ दया।
आरजे क फ म को रलीज ए आठवे दन रिववार को संतोष और लु बा ने फ म देखने
का लान बनाया। साथ म ि या और वैशाली को भी ले जाने का तय कया। अब जब क
दोन लड़ कय को ले जायगे तो मुकेश को भी ले जाना होगा िलहाजा पीवीआर म पाँच
टक ट बुक करा दये। दोन ने लान बना िलया क बीच म लड़ कय को िबठायगे और
उनके दोन तरफ हम बैठगे। मुकेश को बगल म िबठा दगे। उस दन पाँच फ म देखने
पीवीआर प च ं गए। ला नंग के िहसाब से िस टंग हो गई। मुकेश को बगल म बैठने से कोई
ोबलम नह थी; य क टक ट के पैसे भी तो दोन ने ही दये थे।
फ म तय समय पर टाट हो गई। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती गई मुकेश के चेहरे के
हावभाव उड़ते चले गए। वो स सा होकर देखता रह गया। उसका दमाग जड़ सा हो
गया। कु छ भी समझ नह आ रहा था क या हो रहा है? य हो रहा है?
य क
पूरी क पूरी फ म उसक कहानी के ऊपर बनी ई थी।
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भा ग - 11
मुकेश का दमाग कु छ देर तो ऐसे ही चकराता रहा चकरी क तरह। जैसे मेला म लगी
डाॅलर म बैठने के बाद च र आत है। गोल-गोल घूमने के बाद ि थर होने पर भी चीज
काफ देर तक गोल-गोल घूमती ई दखाई देती है वैसे ही उसे भी पीवीआर क लाल
ग ेवाली सीट घूमती ई दखाई दे रही थी। दमाग म पहला ि लक यही आ क मेरे
साथ धोखा आ पर दूसरे ही ि लक पर फर से चकरा गया क आिखर कसने मेरे साथ
धोखा कया। मने कहानी िलखने के बाद के वल ुित को ही दी थी। कसी पि का वाले को
भी नह भेजी थी क वहाँ से कोई आइिडया चोरी कर के ले जाए। उसका दमाग ुित को
गुनहगार ठहराने के िलए िब कु ल भी तैयार नह हो रहा था। ुित ऐसा नह कर सकती।
कभी नह कर सकती। उसे पूरा िव ास था। बेचारी क आँख म स ाई क झलक देखी
थी। िनःछल ि व था उसका फर भला वो ऐसा य करे गी? पैस के िलए तो वो कतई
ऐसा नह करे गी। जब भी िमलती थी तो अपने पैस से काॅफ िपलाती थी। कभी पैस को
तरजीह नह दी थी। ज र कोई और बात रही होगी जो मुझे नह मालूम है। पूरी फ म म
कह मेरा नाम नह आया और अगर ुित ने खुद के नाम से कहानी आरजे को दी होती तो
उसका नाम भी तो आना चािहए था।
दमाग क गित दुिनया के सुपर-डु पर क यूटर से भी कई गुना तेज होती है। क यूटर भी
अभी तक इं सानी दमाग का थान नह ले पाया और शायद स दय तक ले भी नह
पायेगा। मुकेश का दमाग इस व सुपर पीड से दौड़ रहा था; पर गु थी सुलझ नह रही
थी। एकाध पल के िलए खुश भी होता क मेरी िलखी कहानी पर फ म बन गई और वो
िसनेमा पर छा सी गई है। या आ जो इसका ेय मुझे नह िमल रहा पर आिखर स ाई
तो स ाई ही है, उसे कभी झूठलाया नह जा सकता। कोई मेरा आइिडया चुरा सकता है
पर मेरे अंदर क ये टिवटी को नह चुरा सकता। कोई मेरे साथ धोखा कर सकता है पर
मेरी मता व इराद को ने तनाबूत नह कर सकता।
फ म के डायलोग-दर-डायलोग तािलयाँ बज रही थी इधर मुकेश का रोम-रोम फु ि लत
हो रहा था क इन तािलय का काॅपीराइट भले ही आरजे ने ले िलया हो पर हक कत म तो
ये मेरे िलए ही बज रही है। उसका रोम-रोम िखल उठा। शु -शु म जो तनाव था वो अब
ह का हो चुका था और वो पूरी फ म को यान से देखने लगा क आिखर इसम मने या
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कमी रख दी या फर कौनसा सीन है िजस पर दशक बोर हो रहे है। वो पूरी ि ट पर


आ ममंथन करने लगा। सोचने लगा क जो हो चुका है उसका तो कु छ कया नह जा
सकता पर आगे से या सुधार कया जाये और कहानी को और अिधक भावी कै से बनाया
जाये।
संतोष को शक हो गया, उसने पूरी कहानी तो नह पढ़ी पर शु आत के दो पेरे ाफ ज र
पढ़े थे। वो बार-बार मुकेश के बदलते हावभाव देख कर क फम करना चाह रहा था क
ज र कोई बात है जो मुकेश हमसे छु पा रहा है। उसने जानबूझ कर अचनाक मुकेश से
पूछा, ‘‘मुकेश तु ह या लगाता है अब आगे या होगा?’’ और मुकेश अनायास ही उसे
आगे क कहानी बता देता, बताने के बाद उसे खुद पर झप होती, जब कहानी उसके
बाताये अनुसार चलती व संतोष को अपनी तरफ घूरते देखता वो ये कहते ए वापस
ि न क तरफ देखने लग जाता क ये तो एक तु ा था जो िनशाने पर लग गया।
फ म पूरी होने के बाद सारे लोग फ म क ि ट और डायलोग क ही तारीफ करते ए
बाहर िनकल रहे थे। मुकेश लोग के र ू यान से सुनता आ, गदन नीचे कये, चुपचाप
पीवीआर क सी ढ़याँ उतर रहा था। उसे लेग के चेहर और उनक वेशभूषा से कोई
मतलब नह था, वो तो उनके बुदबदाने पर यान दे रहा था और इस काम के िलए उसने
अपने दोन कान पर पूरा फोकस लगा िलया।
पीवीआर से बाहर िनकलकर संतोष ने मुकेश के दोन कं ध पर हाथ रखते ए उसक
आँख म आँख डालकर पूछा, ‘‘सच-सच बताना ये कहानी तेरी थी ना?’’
मुकेश नीचे देखने लग गया, उसक जुबान इस व मानो हड़ताल पर हो।
‘‘तुझे मेरी कसम होगी भाई, सच-सच बताना?’’ उसने मुकेश का हाथ अपने िसर पर
रखते ए पूछा।◌ं लु बा सामने गुटखेवाले क दुकान पर दो तानसेल ले रहा था जब क
ि या और वैशाली पानीपुड़ी वाले क लारी पर प च ं गई थी।
मुकेश क आँख से आँसू िनकल आये। संतोष समझ गया क भाई के साथ धोखा आ है।
उसने मुकेश को गले लगा िलया। जैसे ही मुकेश को गले लगाया वो और जोर से फफक
पड़ा। उसे जीवन म आज पहली बार कसी का कं धा नसीब आ था िजस पर िसर रख कर
रो सके । ब त कम खुशनसीब लोग होते ह िज ह रोने के िलए एक कं धा नसीब हो जाए।
आज क भागदौड़वाली दुिनया म कसी के पास टाइम नह है क दूसरे के दुख-दद बांट।
सब अपनी-अपनी धुन म म त ह। जब खुद पर िवप ी आती है तब अहसास होता है क वे
इतने दन बेमतलब क भौितक चीज के पीछे पागल क तरह भाग रहे थे; जब क
असली खुशी तो कसी के दुख म कं धा बनकर उसके आँसू पोछने म है। असली खुशी
मृगतृ णा क तरह होती है। हम उस ह रण क तरह खुशी पी क तूरी को इधर-उधर क
भौितक चीज म ढू ंढते फरते है- गाड़ी म, बंगले म, ल जरी लाइफ म, नौकर-चाकर म
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खुशी ढू ंढते है ठीक उसी कार जैसे ह रण जंगल-जंगल उस क तुरी को ढू ंढता फरता है जो
उसक खोपड़ी म दबी होती है। उसे कोई िस पंि याद आग गई।
जंगल-जंगल ढू ंढ रहा मृग अपनी ही क तुरी
कतना मुि कल है तय करना खुद से खुद क दूरी
‘‘रो मत मेरे यार। तू दल का ब त साफ है। मुझे मालूम था तेरे साथ कभी ना कभी चोट
होगी।’’ संतोष ने उसके आँसू प छते ए फटकारा, ‘‘देख, लड़ कयाँ हमारी तरफ ही देख
रही ह।’’ उसका इशारा पीवीआर से फ म देखकर आती अ य खूबसूरत लड़ कय क
तरफ था जो दोन को देखते ए, हँसते ए जा रही थी। ‘‘ऐसी हँसीना के सामने कौन
रोता ह! चल आज मेरी तरफ से तेरे को पानीपुड़ी िखलाता ।ँ ’’
पाँच पानीपुड़ी वाले क लारी पर प च ं गए। ि या और वैशाली ने दस पये का एक
राउ ड पहले ही पूरा कर िलया था। जब संतोष और मुकेश वहाँ प च ं े तब तक वे मु त क
पुड़ी लेकर खा रही थी। संतोष ने लारीवाले को पाँच लेट पानीपुरी का आडर दया, दोन
लड़ कयाँ मुँह पोछकर फर से मैदान म डट कर खड़ी हो गई, दूसरे िव यु के िलए।
वैशाली ने मुकेश को उदास देख पूछ िलया। मुकेश इस समय कु छ भी बताने क ि थित म
नह था। उसक मनःि थित देख संतोष ने सारी रामायण बया कर दी। सबके मुँह अवाक् से
रह गए। बेचारी पानीपुड़ी भी लेट म पड़ी क पड़ी रह गई जो क मुँह म जाने क ती ा
म ऐसे देख रही थी जैसे कोई छोटा ब ा माँ क गोद म आने के िलए हाथ ऊपर कए
ललसायी िनगाह से देखता हो।
‘‘ रयली ये कहानी तुमने िलखी मुकेश?’’ वैशाली ने पानीपुड़ी मुँह म डालने के बाद मुँह
को थोड़ा सा ऊपर करके होठ को भंचते ए अंदर ही अंदर पुड़ी का हलवा बनाते ए
पूछा।
‘‘आई का ट िबिलव क इतनी इ टरे टंग टोरी तुमने िलखी?’’ ि या ने लेट म रखी
पानीपुड़ी के छेद म याज व टमाटर का कचूमर डालते ए कहा।
‘‘तु ह िबिलव नह हो रहा हो तो म पर इसक िलखी कहानी पड़ी है। देख लेना। ऐसा
तो नह क ये अभी जाते ही कहानी िलख देगा।’’ संतोष ने पुड़ी खाने के बाद लेट म भरा
पानी सुड़कते ए लताड़ा।
‘‘बीडू तू तो गुदड़ी का लाल िनकला यार।’’ लु बा ने पानीपुड़ी खाने के बाद ए ा पानी
के िलए लेट आगे बढ़ाते ए कहा।
‘‘बट ये ठीक नह आ।’’ ि या ने मु त क पुड़ी के िलए हाथ आगे बढ़ाते ए कहा।
संतोष ने जेब से पस िनकाला, उसम कड़क नोट को साइड म दबाकर जजर नोट को आगे
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बढ़ा दया। पाँच वापस सरदार बुक हाउस प च ँ गये। शाम के छह बजे थे। जैसे ही मुकेश
मप चं ा उसके फोन क रं ग बजी। फोन ुित का था। उठाते ही ुित ने उसे इसी व
कबीर कै फे पर बुलाया, कहा क कु छ ज री बात करनी है। इससे पहले क मुकेश कु छ
पूछता, ुित ने इतना ही कहा क वो बुखार क अवा था म भी कै फे पर आ रही है
इसिलए ज दी से ज दी आ जाये। उसक इमोशनल बात सुन मुकेश सीधा नीचे उतरा व
ओटो म बैठकर कबीर कै फे क तरफ रवाना आ।
िु त उदयपुर तो गई ई थी फर अचानक यहाँ कै से आ गई और उसने बताया भी नह ।
आिखर उसने मेरी कहानी कसे दी? य दी? मेरे साथ ही ऐसा य आ? उसे कम से
कम मुझे बताना तो चािहए था क मेरी कहानी पर फ म बन रही है। मुझे रोय टी और
नाम नह चािहए पर कम से कम बता देती तो मेरा दल खुशी से झूम उठता। ऐसे ही कई
सवाल उसके दमाग म भ ा रहे थे, िजनका जवाब के वल ुित के पास था। जब हम
िवचार क परत दर परत उलझते जाते ह तो बाहर िनकलने का कोई रा ता समझ नह
िमलता। ऐसे हालात म समय कै से िनकल जाता है पता ही नह चलता। ओटोवाले ने जब
ेक मारकर कहा क भैया कबीर कै फे आ गया तो मुकेश क तं ा भंग ई। उसने ओटोवाले
को पैसे दये और कै फे के अंदर जाने लगा। आज उ मीद से अिधक भीड़ थी। रिववार होने
के कारण भी सं या अिधक थी। लोग मि खय क तरह काफ पर िभनिभना रहे थे। मुकेश
िनप भाव से चल रहा था मानो ‘रे िजडस इवल’ फ म के टी-वायरस से िसत कोई
मरीज चल रहा हो। वह जड़ सा होकर बगैर कसी ित या के कै फे म घुस गया। कभी-
कभी उसे महंगेवाले पर युम क खु बू आ जाती तो कभी कसी के जोर-जोर से हँसने क
आवाज।
आज कतने ही मिहन के बाद वो ुित से िमलने आया। जब से बीमार ई तब से उदयपुर
चली गई थी। उसे हरव ुित क ही चंता सताये रहती थी। घर पर बात नह कर पाने
क मजबूरी के कारण वो उसे यादा फोन भी नह करता था। कभी-कभी फोन कर के
तबीयत पूछ लेता तो वो खा- खा सा जवाब दे देती थी। मुकेश समझ सकता था क
बीमारी म इं सान िचड़िचड़ा हो जाता है। वो उसे यादा परे शान नह करता। वा सअप
और फे सबुक पर भी कभी मैसेज नह करता; य क इन सब चीज से तो वो कौस दूर
था। उसका मानना था क जीवन म जब तक मंिजल हािसल नह कर ले, तब तक ये सब
चीज समय ही बबाद करती ह। सोशल मीिडया ऐसा धीमा जहर ह जो हम अंदर ही अंदर
से खोकला कर देता ह। ये इं सान को पूरी तरह एिड ट कर देता है और पता भी नह चलने
देता है क कब हम सोशल मीिडया के गुलाम हो गए। ठीक उसी कार जैसे कोई अफ मची
पहले-पहल तो शौक से अफ म खाता है फर अफ म खाये बगैर उसे न द नह आती, एक
अजीब सी बैचेनी सताये रहती।
मुकेश हमेशावाली टेबल पर जाकर बैठ गया। ुित अभी तक नह आयी। उसने मोबाइल म
देखा तो ुित का एसएमएस था क म बस पाँच िमनट म प च ं रही ।ँ मुकेश ने ओके
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िलख कर भेज दया। बेचारी बीमारी के हालात म भी िमलने आ रही है। ये लड़क पागल
है। आज का आज ही िमलने आये और कहानी के बारे म सब ि लयर करे , इतना भी ज री
नह था। पहले पूरी तरह से ठीक तो हो जाती फर सारी बात कर लेत; पर एक नह
सुनती। आज जब आयेगी तो सबसे पहले उसे डाट िपलाऊँगा क अपना यान रखा कर।
इतना कु छ हो जाने के बाद भी उसके दमाग म एक ही चंता सताये जा रही थी क जाने
उसक ुित कै सी होगी? इतने दन से बीमार होने के कारण सूख कर कांटा हो चुक
होगी, चेहरा भी िपचक गया होगा। लापरवाह है, अपना ठीक से खयाल तक नह रखती।
िपछली बार आयी थी तब सद -जुकाम म भी को ड काफ पीने क िजद कए ए थी। मने
लाख समझाया पर मानने को तैयार नह ई और को ड काफ मंगवार पी ही ली। उसक
इसी लापरवाही के कारण तो उसक चंता सताये जा रही थी।
टेबल पर बैठे-बैठे उसने अपनी जेब म से एक सोने क अंगूठी िनकाल कर देखी, सोना
चमक रहा था। मुकेश के चेहरे पर भी चमक आ गई। िपछले दो मिहन क तनखाह बचार
उसने ुित के िलए सोने क अंगूठी बनवाई थी। सोचा था जब ठीक हो जायेगी तो कै फे पर
बुलाकर फ मी टाइल म एक घुटने पर खड़ा होकर उसे पोज करते ए अंगूठी उसक
तरफ बढ़ाऊंगा। एक डर ये भी था क कह ुित इनकार कर देगी तो या होगा पर उसे
िव ास था क ुित क आँख म मने यार देखा है, और इतना तो कताब म पढ़ा ही ह
क आँख कभी झूठ नह बोलती। मुकेश ने एक बार फर से अंगूठी को देखकर यार से चूमा
फर जेब म रख दया। दूसरी जेब म रखे जादुई प थर को भी बाहर िनकाला और उसे
धीमे से कहने लगा, ‘‘इतने दन म मने तुमसे कु छ नह माँगा। आज एक चीज़ माँग रहा
,ँ मुझे तु हारी शि पर पूरा िव ास है, इसिलए आिखरी बार माँग रहा ँ क लीज...
ुित मुझसे शादी के िलए हाँ बोल दे बस। मुझे इससे यादा कु छ नह चािहए। जब
स ावाला यार िमल जाये तो बाक सारी चीज अपने आप िमलनी शु हो जायेगी।
दौलत-शौहरत सब आ जायेगी बस स ावाला यार ब त ज री है।’’ कहते ए मुकेश ने
उस चम कारी प थर को फर से जेब म रख दया क कह कोई देख रहा होगा तो पागल
कहेगा।
उसे आये आधा घंटा हो चुका था पर अभी तक ुित नह आई। वैसे उसे कह जाना नह था
पर कै फे का वेटर बार-बार आ कर काफ के िलए पूछ रहा था। मुकेश को मालूम था क
शाम के समय मु बई का ा फक तो जान लेकर ही रहता है। एक मील के सफर के िलए ही
आधा घंटा लग जाता है तो ुित का लेट होना कोई बड़ी बात नह है। वो अब भिव य के
सपने देखने लगा क जब ुित मेरे साथ होगी तो सबसे पहले तो एक धासूँ ि ट िलखूँगा,
फर उसके कॉपीराइट बेचकर यहाँ घर खरीद लूँगा। उसके बाद हमेशा के िलए ुित और
म साथ रहगे। उसे फाइव टार म खाना िखलाने के िलए भी तो ले जाने का ोिमस पूरा
करना है।
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मुकेश खुली आँख से सपना देख ही रहा था क कसी ने उसक आँख पर हाथ रख दया।
उसके सामने अंधेरा छा गया। यान भंग आ। कसी ने पीछे खड़े होकर उसक आँखे पकड़
रखी थी। मुकेश को पहचानने म एक सैके ड का हजारवा िह सा भी नह लगा क ये ुित
के कोमल हाथ ह।
‘‘इिडयट! तुम आनेवाली हो तो तुम ही ह गी ना।’’ उसने ुित का ही जवाब उसे दया।
पहले जब उसने ुित क आँख पर हाथ रख दया था तब ुित ने भी यही कहा था।
उसक आवाज़ सुनते ही ुित हँसते ए उसके सामने आ गई। मुकेश को उसके शरीर से एक
अजीब सी जादुई खु बू आ रही थी, जो उसने जीवन म कह नह महसूस क थी। जैसे ही
ुित सामने आई मुकेश यह देखकर दंग रह गया क वो तो एकदम व थ दख रही है।
‘‘तुमने ब त ज दी पहचान िलया?’’ सामने क चेयर पर बैठते ए ुित ने मु कु राते से
अ फाज म कहा। उसके चेहरे से नूर टपक रहा था। अगर मुकेश के पास यादा
मेगािप सल का कै मरा होता तो वो इस पल को हमेशा के िलए कै द कर के रख लेता।
‘‘िजसे भूला जाये उसे पहचानने म समय लगता है।’’ मुकेश ने चैन क सांस ली क चलो
उसक ुित बीमारी से ठीक हो गई।
‘‘ कतनी देर ई तु ह आये?’’ मुकेश से पूछने के बाद उसके जवाब क ती ा कये बगैर
उसने वेटर क तरफ दो काफ का इशारा कया। वेटर तुरंत काफ लाने के िलए अंदर चला
गया।
‘‘बस अभी थोड़ी देर पहले आया था।’’ कहते ए मुकेश ने घड़ी म देखा आठ बज गए थे।
उसे यक न नह आ क इं तजार करते-करते डेढ घंटा हो गया। क पना म खोये-खोये
समय कै से िनकल गया पता ही नह चला।
‘‘पता है तुमसे िमलना ब त अ छा लगाता।’’ ुित ने पस के बेक कवर पर लगे िमरर म
अपना चेहरा देखकर होठ पर िलप टीक लगाते ए कहा।
मुकेश का दल बाग-बाग हो गया। यही तो श द सुनने के िलए उसके कान तरस रहे थे।
पहले उसे लगा क गांव से आये उस जैसे साधारण लड़के को भला कौन पसंद करे गा पर
ुित ने सािबत कर दया क गांव शहर से कोई फक नह पड़ता। स ा यार कि डशन के
बगैर होता है।
‘‘अब तु हारी तबीयत कै सी है? तुमने तो कहा था तु ह बुखार आ रहा है?’’
‘‘मुझे लगा तुम िमलने नह आओगे इसिलए झूठ कहा। सॉरी।’’ ुित ने मासूम सा चेहरा
बनाते ए कहा।
‘‘और तु ह ऐसा य लगा क म नह आऊंगा।’’ मुकेश को उसके झूठ से कोई फक नह
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पड़ा। वो तो इस बात से खुश था क चलो ुित अब एकदम ठीक है। उसने जेब से अंगूठी
िनकाल कर टेबल के नीचे हाथ म दबा दी और सही समय का इं तजार करने लगा। वो
सर ाइज देना चाहता था।
‘‘पता नह बस ऐसे ही लगा।’’ ुित ि ट वाली बात को पहले मुकेश के मुँह से सुनना
चाहती थी।
‘‘तुमने बताया नह मेरी ि ट पर फ म भी बन गई और रलीज भी हो गई?’’ मुकेश
ने मु े क बात छेड़ी। उसक िज ास उसे चैन से बैठने नह दे रही थी।
िु त को मानो िजस बात का डर था वही हो गई हो। उसने अपने चेहरे के बदलते हावभाव
को ि थर करने के िलए गहरी सांस लेते ए कहा, ‘‘मने वही सब बताने के िलए तु ह यहाँ
बुलाया।’’ इससे पहले क ुित कहानी शु करती वेटर काॅफ लेकर आ गया था। ुित ने
एक घूंट भरने के बाद चेयर को थोड़ा सा पास िखसकाते ए कहना ारं भ कया, ‘‘तुमने
मुझे जो ि ट दी थी वो मने आरजे को बताई तो उ ह ब त पसंद आयी। वो तुरंत इस पर
मूवी बनाने को राजी हो गया। उ ह ने समझा क ये ि ट मने खुद ही िलखी है, इसिलए
उ ह ने तुरंत उसी समय मुझे अगली फ म म लीड रोल देने क पेशकश कर दी। इससे
पहले क म कु छ बता पाती उ ह ने ताव ही ऐसा रखा क म बस कु छ बोल नह सक ।
जब वहाँ से घर आकर इस बारे म सोचा तो मुझे ब त बुरा लगा। अपने आप को माफ नह
कर पा रही थी और तुमसे नज़र िमलाने क िह मत भी चली गई थी, इसिलए तुमसे
िमलना बंद कर दया और मजबूरन ये झूठ बोलना पड़ा क म बीमार ँ और उदयपुर चली
गई।’’
‘‘तो या तुम बीमार नह थी।’’ मुकेश उछल पड़ा। उसका दल जैसे जोर से फड़का हो।
िपछले कतने मिहन से ुित के वा थ होने क दुआ कर रहा था; जब क वो तो बीमार
ही नह थी।
‘‘मुझे मालूम है तुम मुझे माफ नह करोगे; कं तु लीज! एक बार मेरे खाितर पूरी बात
सुन लो।’’
‘‘बताओ?’’
‘‘आरजे ने उस ि ट का काॅपीराइट अपने नाम करा दया और मुझे आगामी फ म म
िलड रोल देने का वादा कया। पहले तो मुझे शक आ क कह आरजे बाद म बदल गया
तो या होगा पर जब फ म अ छे से चल िनकली तो वो इतना खुश आ क उसने मुझे
शादी के िलए पोज कर दया।’’
‘‘ या?’’ मुकेश के मुँह से काफ बारह िगर पड़ी। वो खाँसते ए बोला।
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‘‘वो पल मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन पल था। म इतनी खुश थी क तु ह या बताऊ?


म तो जैसे सातव आसमान म उड़ रही थी।’’
‘‘तुमने या कहा?’’ मुकेश ने अंगूठी जो हाथ म िनकाली ई थी उसे वापस जेब म रखते
ए पूछा।
‘‘आरजे जैसा महान ए टर मुझे पोज करे और म अपने आप को रोक सकूँ । सारी
लड़ कयाँ उस पर मरती ह। कौन उससे शादी करना नह चाहेगी! उससे शादी के बाद तो
मेरा जीवन ही बदल जायेगा।’’ ुित पूरी तरह से आरजे म डू बी ई कहती जा रही थी,
‘‘मने तुरंत ही उसे हाँ कर दया। उसने बताया क आगामी फ म के रलीज के मौके पर
हम दोन सगाई कर लगे।’’
‘‘का ेचुलेशन...मुझे लगा तुम सचमुच क बीमार थी।’’ मुकेश का दल बूरी कदर से
धड़क रहा था। उसक नस म खून कुं चाले मार कर दौड़ रहा था। जैसे पगलाया घोड़ा घास
के मैदान पर दौड़ता है।
‘‘सॉरी सु दरलाल।’’
‘‘तु हारा तो कै रयर चल पड़ा।’’
अचानक ुित का यान मुकेश पर आया। वो खामोश हो गई जैसे कोई उड़ता आ पंछी
तपाक से जमीन पर िगर पड़ता हो। उसने मुकेश के हाथ पर अपना हाथ रखते ए कहा,
‘‘म तुमसे माफ मांगने आयी ।ँ मुझे मालूम था क वो कहानी तु हारे जीवन को बदल
सकती थी, उसक भरपाई तो म पैसे देकर भी नह कर सकती ;ँ पर फर भी म तु ह
उसके बदल म कु छ रकम देने आयी ।ँ ’’ कहते ए ुित ने पस म से दो लाख का चेक
िनकाल कर मुकेश क तरफ बढ़ाया। उसके हाथ कं पकं पा रहे थे। ‘‘म चाहती ँ क तुम
कभी कसी के सामने इस बात का िज ना करो क वो कहानी तुमने िलखी थी। अगर
आरजे को पता चलेगा तो वो मुझे कभी लीड रोल नह देगा।’’
‘‘तुम िनि त रहो ुित! मेरी तरफ से तु ह कभी ोबलम नह आयेगी।’’ मुकेश ने वो
चेक वापस ुित क तरफ धके ल दया, ‘‘मुझे नह चािहए ये खैरात। तु हारी शादी और
आनेवाली फ म के िलए मेरी तरफ से तोहफा समझ के रख लो।’’
ुित अवाक् सी देखती रह गई।
मुकेश बगैर गुडबाय कये टेबल पर वो अंगूठी पटक कर ये कहते ए आ गया क ‘‘वेटर
को मेरी तरफ से टीप दे देना।’’
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भा ग - 1 2
जीवन हम सब सीखा देता है- रोना, हँसना, िगरना, संभलना... सब। ऐसा कोई इं सान
नह है जो जीवन क पाठशाला म कु छ भी सीखे िबना सब कु छ पा गया हो। ऐसा
नामुं कन है क हम िगरे बगैर आसमान म क बुलं दय को छू सक। मुकेश भी इस समय
सीधे जमीन पर िगर गया। उसके सारे अरमान एक पल म तबाह हो गये। कतना ज दी
सबकु छ हो जाता है! देखते ही देखते वे लोग बदल जाते ह िजन पर आँख बंद कर के यक न
कया करते ह। पहले तो उसे, उसके प रवारवाल ने बेघर कर दया था वो भी िसफ
इसिलए क वो एक नौकरी नह लग सका य क उनक मु त क रो टयाँ तोड़ता था।
उसके बाद ुित ने दल तोड़ दया और ऐसा दल तोड़ा क उसके टू टने से मानो सारी
दुिनया ही बदल गई हो।
कै फे से वापस लौटते समय उसने एक बार भी पलटकर नह देखा, देखता भी य ? पीछे
देखने से उसे हमेशा ज म ही तो िमले ह। उसक आँख के सामने अंधेरा सा छा रहा था।
कै फे से बाहर िनकलते ही सीधा ओटो म बैठ गया व सरदार बुक हाउस का ख कया।
ओटो फट् फट् क आवाज़ से सफर तय कर रहा था, मुकेश उसक सीट पर मौजूद होते ए
भी मानो अनुपि थत था। सामने क सड़क, दुकान, ा फक, गािड़य क पी-पो व लोग
का शोरगुल सब देखते ए भी जैसे कु छ भी नह देख रहा था। रे ड लाइट पर ओटो का
कना, आस-पास गािड़य ारा धुंआ उड़ाना, बुलट भुट-भुट, बस का हान बजना और
भीख मांगनेवाल का एक हाथ उसक तरफ बढ़ना उसके िलए होते ए भी नह के बराबर
हो गया। य क इस समय वो दूसरी दुिनया म था। उस दुिनया म िजसे वो पीछे छोड़
आया। िजसने उसे ठोकर मार दी। वो उस अतीत से उबर नह पा रहा था िजसने उसे इतने
ज म दये।
उसक आँख के सामने वे सारे खूबसूरत दृ य लो मोशन म रपीट हो रहे थे िजनम ुित
क पहली बार उसके जीवन म ए ी ई थी। जैसे कसी फ म म फाइ टंग सीन म हवा म
ज प लगाकर िवलेन को मु ा मारते नायक के दृ य लो मोशन म बार-बार दखाये जाते
है या कसी नाियका क एं ी होने पर उसक लहराती जु फ व कमर के लटके -झटक को
बार-बार लो मोशन म रपीट कया जाता है ठीक उसी कार मुकेश के सामने ुित का
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चेहरा रपीट हो रहा था। जब पहली बार ावे स क सीट पर चुपचाप बैठे देखा था उसे
या फर बां ा ए स ेस म उसका साथ देना।
िवचार म खोये कब सरदार बुक हाउस आ गया उसे पता ही नह चला। ओटोवाले ने
उसके कं धे को एक हाथ से झंकझोर कर िहलाया तब उसक चेतना अतीत से वतमान म
लौटी। उसने हड़बड़ाकर बाहर देखा, सामने सरदार बुक हाउस क िब ड ग चुपचाप खड़ी
उसे देख अ हास ले रही थी। उसने ओटोवाले को पैसे देकर ऊपर क तरफ ख कया।
घड़ी म नो के लगभग बजे थे। आज फर से उस पागल ने मुकेश का रा ता रोका, पीछे से
उसक कनपटी पर लकड़ी का टु कड़ा रखते ए तेज़ आवाज़ म कहा क िबलकु ल भी िहलने
क कोिशश मत करना वरना शूट कर दूग ँ ा। मुकेश ने उसक तरफ यान ही नह दया।
उसका मन कर रहा था क काश्! ये मुझे सच म शूट कर दे। इस दुिनया म वैसे भी अ छे
इं सानो के िलए जगह कहाँ बची है। वो चुपचाप िल ट म चला गया। पागल लगातार वही
कथन दोहराये जा रहा था।
कमरे का गेट खेलकर देखा तो संतोष और लु बा दोनो पलंग पर बैठकर मोबाइल पर
लुड़ो कं ग खेल रहे थे। सामने टू ल पर िव क क बोटल पड़ी ई थी िजसके पास म दो
टील क लास रखी ई थी िजनम एक-एक पेग िव क का भरा आ था। पास म दस
पये क एक छोटी चखणा क थैली रखी ई थी, िजसम से दोन एक-एक दाना उठाकर
मुंह म रख रहे थे और अपनी-अपनी चाल चल रहे थे। दोन ने हाफ पट पहना आ था और
ऊपर पा क सफे द कलर क बिनयान। लु बा का हाफ पट इतना मैला-कु चैला हो गया
था क उस पर एकाध मि खयाँ भी िभन-िभना रही थी। छत पंखा तीन पर चल रहा था
िजससे उसक पखुिड़याँ गायब सी लग रही थी। हवा से बार-बार दराज म कपड़ व
सामान के नीचे िबछाये र ी अखबार कसी घायल प ी क तरफ फड़फड़ा रहे थे। लु बा
क दराज पर एमी जे सन व स ी िलयोनी के रं गीन िच लगे ए थे जब क संतोष क
दराज पर हेमा मािलनी और रे खा के िच । संतोष के बाई तरफ रखे मोबाइल म धीमी
आवाज़ म सदाबहार नगम चल रहे थे, ‘‘ये रात भीगी-भीगी...ये म त फजाय...उठा है
धीरे -धीरे ...वो चांद यारा... यारा... य आग सी लगा के ...गुमसुम है चांदनी...सोने भी
नह देता मौसम का इशारा...’’
मुकेश को मुँह लटकाये देख संतोष ने भाँप िलया क भाई का दल पूरी तरह से ज मी है।
दल पर ज र कोई अंद नी चोट लगी होगी। इं सान जब बाहर से ज मी होता है तो खून
उसके ज म क गहराई बया कर देता है; कं तु जब वो अंदर से, दल से ज मी होता है तो
दुिनया म ऐसा कोई पेरामीटर नह बना जो उसके ज म क गहराई माप सके । मेिडकल
सांइस ने भी ऐसी कोई दवा इजाद नह क क िजसको सुबह-शाम खाना खाने के बाद या
भूखे पेट लेने से दल के सारे ज म तीन दन या चार दन म भर जाये। िच क सा िव ान
क ये कै सी तर क क उसने इं सान का लोन बना दया, पूरे डीएनए को खंगाल िलया;
पर टू टे दल को नह जोड़ पाया।
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‘‘यार लु बा तु ह मालूम है इस देश म सड़क ए सीडे ट से िजतने लोग क मौत नह


होती उससे अिधक तो बेचारे दल के टू टने से मर जाते है ित दन।’’ संतोष ने य प
से लु बा और अ य प से मुकेश को कहा।
‘‘ या बात कर रहे हो दादा? दल टूटने से भला कौन मरता है?’’ लु बा ने िव क का
एक घूंट भरने के बाद उसे जबरन गले म ऐसे उतारा जैसे कोई कड़वी दवाई पी रहा हो या
नीम के कड़वे प का घोल पी रहा हो। उसके बाद झट से चखणा उठाकर मुंह म डाल
दया।
‘‘अबे भ चू ! तु ह इतना भी नह मालूम क दल के टूटने के बाद इं सान िज दा लाश ही
तो बन जाता है। इधर-उधर भटकता आ शरीर।’’ संतोष ने भी िव क का एक घूंट भरा।
‘‘यार दादा ! तुमको कै से पता चल जाता है सब बात का?’’ लु बा ने खाली हो चुक
लास को भरने के िलए बोटल का ढ न खोला व बड़े यान से लास म धार बनाकर
उड़ेलने लगा।
‘‘ऐसे ही बाल सफे द थोड़ी कये।’’ संतोष ने भी अपना लास एक ही घूंट म खाली कर
दया। उसे पता था क अगर वो बात म रह गया तो साला लु बा सारा ाटर गटक
जायेगा और डकार भी नह लेगा। उसने लास खाली करने के बाद लु बा के लास के पास
रख दया। लु बा ने दोन के लास भर दये व इि मनान से पीछे त कया लगाकर बैठ
गया। अब तक गाना भी चज हो चुका था, ‘‘ दल के अरमा आँसु म बह गये...हम वफा
कर के भी...’’
मुकेश ने उनक बात पर यान नह दया और कपड़े चज कर के अपने पलंग पर कं बल
ओढकर सो गया; पर उसक आँख म न द कहाँ? अंदर ही अंदर घुटन सी हो रही थी। मन
कर रहा था क दहाड़ मार के रो लूँ। दल का सारा बोझ ह का हो जायेगा पर कभी-कभी
इं सान को रोने क जगह भी नसीब नह होती। उसे लगा क सरकार ने िजतने सावजिनक
टाॅयलेट बनवाये है उनके बगल म एक क और बनाना चािहए जहाँ दुःखी इं सान दो पल
के िलए बैठकर रो सके । अपने सारे इमोश श बाहर िनकाल सके । सारे लोग अपने अंदर
स दय का गुबार िलए चल रहे ह। गले तक भरे ए। बस कोई देख नह पा रहा है, उनके
मु कु राते ए नकली चेहर के पीछे क हक कत को।
कु छ देर बाद लु बा और संतोष लाइट बंद कर के सो गये पर मुकेश को न द नह आई।
उसने मोबाइल म देखा, एक बजे थे। उठकर छत पर चला गया क कु छ देर टहलने से
शायद न द आ जाये। वहाँ एक लकड़ी के ब से पर जाकर बैठ गया। चार तरफ शांित ही
शांित थी। सड़क का शोरगुल इस समय कम हो गया था। नह के बराबर लोग इस व
मु बई क सड़क पर आ जा रहे थे। वैसे तो ये शहर कभी सोता नह पर तकरीबन दो से
चार के बीच दो घंटे के िलए थोड़ा सा सु ता ज र लेता है। ये दो घंटे ऐसे होते है जब
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आपको हर तरफ शांित ही शांित दखेगी।


मुकेश वह िसर टकाकर आसमान क तरफ देख सु ताने लगा। आज अमव या क रा ी
थी इसिलए चार तरफ घटाटोप अंधेरा छाया आ था। अंधेरा धीरे -धीरे बढ़ता ही जा रहा
था। कोई काली आकृ ित आसमान से उसक तरफ आती ई दखाई दी। मुकेश को लगा जैसे
उसके हाथ-पाँव सु हो गये हो। वो उ ह बार-बार िहलाने क कोिशश कर रहा था पर
िहला नह पा रहा था। देखते ही देखते वो आकृ ित उसके नज़दीक आ गई। मुकेश घबरा
रहा था क ये सब या हो रहा है। कोई ऐिलयन ही आसमान से आता है; पर मेरे पास
ऐसा कौन सा धन पड़ा है क ऐिलयन अपना टाइम खोटी करे गा।
पास आने पर उसे मालूम आ क वो एक रथ था िजस पर दो काले घोड़े उस रथ को हवा
म ख च रहे थे, िजस कार से पुराने जमाने क महाभारत और रामायण म देवता
आसमान म रथ पर उड़ा करते थे। उसे यक न नह हो रहा था क ऐसा भी कु छ हो सकता
है। रथ के चार पिहये उसके सामने क फश पर उतरे । मुकेश ने देखा, रथ म वही काले
चोगे वाला ि आया जो उसे पहले भी सपन म आया करता था। पर पहले तो सपने म
आता था, आज तो वाकई म आया है। मुकेश डर गया क कह ये यमदूत तो नह जो मेरी
फाइल सलटाने के िलए आये हो।
‘‘तुम परे शान लग रहे हो?’’ वो काला चोगा हवा म उड़ता आ मुकेश के िबलकु ल
नज़दीक आने के बाद बोला। उसने यान से देखा तो आज भी उसम कोई आकृ ित दखाई
नह दे रही थी। बस एक कपड़े का चोगा जो चार तरफ से िसला आ था। िसर पर
ि भुजाकार टोपी रखी ई थी। चोगे के एक हाथ म लकड़ी का ड डा था मानो हाक का
उ टा टीक पकड़ रखा हो।
‘‘म...ह...हाँ..वो थोड़ा सा।’’ मुकेश का दमाग अभी भी ये जजमट करने म लगा आ था
क ये असली है या वो कोई सपना देख रहा है। उसने अपनी दो अंगुिलय को िहलाकर
देखा फर अपनी जांघ पर चीकोटी काटी तो उसे दद आ और दद होने से यक न हो गया
क वो वा तिवक दुिनया म है। आज वो सपना नह देख रहा है।
‘‘तुम अपने दमाग पर इस बात के िलए इतना जोर य डाल रहे हो क या ये
वा तिवक दुिनया ह या तुम कोई सपना देख रहे हो।’’ एक बीमार आ मा, खांसते ए
बोली।
‘‘नह तो...’’ मुकेश का नह बोलना आ क चोगे का अदृ य हाथ उसक गदन पर प च ँ
गया, उसका सांस लेना मुि कल हो गया। कु छ भी नह बोल पा रहा था और ना ही सांस
ले पा रहा था। उसे याद आ गया क इनके सामने झूठ बोलने का मतलब होगा अपने ाण
गवाना। उसने पेट म बची-खुची वायु को गले तक लाकर जोर देते ए कहा, ‘‘सॉरी...आगे
से न...न..नन..’’ सारी वायु समा हो गई और अब वो कु छ नह बोल पाया। ऐसा लग
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रहा था क अब मरना तय है इतने म चोगे ने उसे छोड़ दया।


वो उससे दो कदम दूर जाकर हवा म िहलने-डु लने लगा। मुकेश ने चैन क सांस लेते ए
कहा, ‘‘मुझे माफ कर देना। इं सानी िज ासा के कारण आ जव कर रहा था क ये दुिनया
वा तिवक है या कोई सपना देख रहा ।ँ ’’ उसने सच-सच बता दया।
‘‘िज ासा अ छी बात है; कं तु सारा जीवन सच-झूठ का पता लगाने म ही गुजार दोगे तो
जो करने आये हो वो कब करोगे?’’
‘‘जी..’’ उसने गहरी सांस लेकर इतनी देर क छटपटाहट क ितपू त क ।
‘‘बेटा तुम परे शान य हो?’’ इस बार उसके िपताजी क आवाज़ आई।
चार तरफ हवा थम चुक थी। स ाटा छा गया। कतने दन बाद िपताजी आये। कब से
उ ह क तो ती ा कर रहा था। उसने चोगे क अदृ य छिव म अपने िपताजी क छिव
को कि पत करते ए कहा, ‘‘पापा आप इतने दन कहाँ थे?’’
‘‘तु ह पूछने का अिधकार नह है? िनयम भूल गये हो या?’’ इस बार चोगे म से
कसी खडू स बु े क खदराई आवाज़ आई।
मुकेश चुप हो गया।
‘‘तुम परे शान य हो बेटा?’’ इस बार फर से िपताजी क आवाज़ आयी। चोगा हवा म
लहरा रहा था व पाँव जमीन से एक मीटर ऊँचे थे।
‘‘म आज सवेरे से ब त परे शान ।ँ समझ नह आ रहा क लोग मेरे साथ ही ऐसा य
करते ह?’’ पापा क आवाज़ सुनके उसक आँख छलक आयी। बेटा जब मुिसबत म होता
है, उस सयम अगर िपता उसके दल क बात पहचान कर यार से पूछ ले तो दुिनया का
कोई भी बेटा अपने आप को रोने से नह रोक पायेगा।
‘‘तु ह या लगता है सारी चीज थाल म सजी-साजायी िमल जायेगी। यहाँ कु छ भी मु त
म नह िमलता बेटा। तु ह बस दो चीज का यान रखना है, पहला तो हमेशा अपनी आँख
के सामने ल य रखना। कभी भी उसे आँख से ओझल मत होने देना। दूसरा चाहे कु छ भी
हो जाये तु ह कना नह है। ठोकर लगना, नीचे िगरना ये सब होता रहा है और आगे भी
होता रहेगा। ठोकर उसे नह लगती है जो घर से ही नह िनकलता। तु ह अपने आप पर
पूरे िव ास के साथ चलते रहना है।’’ कहते ए िपताजी चुप हो गये। चोगा वापस मुड़ने
लगा। ऐसा लग रहा था क वो अब जा रहा है।
मुकेश के मन म कई सावाल घूम रहे थे पर वो िनयमानुसार उस चोगे से कोई नह पूछ
सकता। अगर पूछ सकता तो क बौछार कर देता। इतने म काला साया वापस रथ म
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बैठकर आसमान क तरफ जा चुका था। मुकेश को यक न हो गया क वो आज सपना नह


देख रहा था बि क हक कत म अपने िपताजी से संवाद कर रहा था। उसके चेहरे पर चंता
क बजाय खुशी के आँसु बह िनकले। मुख पर मंद-मंद मु कान छा गई। इतने म उसे ह के -
ह के छीट महसूस होने लगे मानो बा रशा आ रही हो।
ऐसा कै से हो सकता है? अभी तो बा रश का मौसम भी नह फर बा रश कै से। अचानक
हड़बड़ाकर उठा और ये देखकर आ य म पड़ गया क वो तो इस समय छत पर नह बि क
अपने पलंग पर सो रहा है और इद-िगद संतोष और लु बा खड़े पानी के छीट उसके चेहरे
पर उछालते ए मु कु रा रहे है। घड़ी म सुबह क सात बज रही है। मुकेश झट से पलंग से
नीचे उतर खड़ा हो गया।
‘‘ या बीडू ...लगता है रात को मीठे -मीठे सपने देख रहा था।’’ लु बा ने उसक तरफ
टावेल फकते ए कहा।
‘‘तुम लोग हमेशा मेरा ही मजाक य बनाते हो?’’ मुकेश ने टावेल लेकर चेहरे पर
िबखरी पानी क बूंद को प छते ए कहा। उसे समझ नह आ रहा था क वो सपना देख
रहा था या वा तिवकता म रात को िपताजी से मुखाितब आ था। या फर शायद कभी
इस रह य को नह समझ पाऊँगा। सही कहा था उ ह ने क म कभी ये नह जान पाऊँगा
क कौनसी दुिनया असली है।
‘‘यार ! हम तु हे उदास नह देख सकते, इसिलए म ती कर देते ह। तू िचल मार। इतना
टशन मत ले।’’ संतोष ने दातुन िघसते ए कहा। उसने नीचे टावेल लपेटा आ था जब क
ऊपर कोई व नह थे। उसका पेट बाहर को िनकल आया था। पेट और छाती पर बाल
इतने थे क मानो कसी िबहड़ म घनी सूखी घास उग रही हो।
तीन तैयार होकर ठीक दस बजे दुकान पर प च
ँ गये। आज दादू ने मुकेश को अपने पास
बैठा दया और बाक सब को भेज दया। मुकेश को समझ नह आ रहा था क दादू या
कहने वाले ह। कह मुझसे कोई गलती तो नह हो गई?
‘‘बैठो मेरे पास।’’ टूल मुकेश क तरफ िखसकाते ए दादू ने कहा। काउं टर के पीछे
ल मीजी, गणपित जी एवं सर वती जी क म तय पर लगाई अगरबती क िभनी-िभनी
खु बू आ रही थी।
‘‘थ स।’’ मुकेश टूल पर बैठ गया। इस समय दुकान म नह के बराबर ाहक थी। सवेरे
दस से बारह बजे के बीच सबसे कम भीड़ रहती है।
‘‘संतोष ने मुझे सब बता दया।’’ दादू ने गू लक का ताला खोलते ए कहा।
मुकेश को िजस बात का डर था वही आ।
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‘‘मने उस पर पूरा िव ास कया था पर उसने मेरे साथ धोखा कया।’’ उसने बाहर
सड़क पर टाई-सूट पहन कर ऑ फस जाते लाग को देखा। सब कतने ज दी म थे।
‘‘कोई तु हारे साथ या करे , ये मायने नह रखता। तुम नीचे िगर पड़ो, ये भी मायने नह
रखता। मायने तो ये रखता है क तुम कतना ज दी उठ खड़े होते हो।’’
मुकेश इस समय चुप ही रहा। जब कोई ान क बात समझाये उस सयम चुपचाप सुनाना
ही अ छा रहता है।
‘‘मुझे उ मीद है तुम एक दन अपना सपना पूरा कर दखाओगे। असंभव जैसा यहाँ कु छ
भी नह होता। मने तु ह आज यहाँ इसिलए बुलाया क म ये देखना चाहता था क कह
तुम अंदर से टू ट तो नह गये। इस दुिनया म दो तरह के इं सान होते ह। पहले वे लोग जो
ठोकर लगने या दल टू टने पर हमेशा के िलए िनराश हो जाते ह और आगे कोिशश करने से
क जाते ह। दूसरे , वे लोग जो ठोकर लगते ही तुरंत उठ खड़े होते ह और उससे सबख
स खकर आगे बढ़ जाते ह।’’ कहते ए दादू चुप हो गये। सामने न पर सीसीटीवी
फु टेज चल रही थी। दादू ने गहरी सांस लेते ए कहा, ‘‘पता है जीवन म सफल कौन होते
है?’’
‘‘दूसरी कार के लोग।’’ मुकेश ने तुरंत जवाब दया। वो दादू क बात हमेशा यान से
सुनता था। उसे मालूम था क दादू ब त कम पर ब त ही सारग भत बोलते ह।
‘‘िबलकु ल ठीक समझा। तुम तय कर लो क तुम कस के टेगरी म आना चाहते हो।’’
‘‘जी दादू।’’ कहते ए मुकेशु ी पर चला गया। इस समय यादा लोग नह थे। उसने

महादेवी वमा क किवता वाली कताब उठाई और पढ़ने लगा,
म नीर भरी दुख क बदली !
.....
िव तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
प रयन इतना, इितहास यही-
उमड़ी कल थी, िमट आज चली!
मुकेश इस समय इतना टू ट चुका था, नीचे िगर गया था क अब उसे कसी बात का डर
नह रहा। अब उसके सामने जीतने के िलए ये सारी दुिनया थी और हारने के िलए कु छ भी
नह । हम आगे इसिलए नह बढ़ पाते है य क हम हारने से डरते ह, कसी को खोने से
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डरते ह। ये डर ही हम रोके रखता है। मुकेश का सारा डर िनकल गया। उसक सारी
जकड़न अब टू ट चुक थी। कै फे से लौटता एक-एक कदम उसक आजादी का था। अब उसने
पूरी तरह से अपने आप को अपने सपने म लगा िलया। कोई ऐसा आइिडया सोचने लगा
िजस पर कहानी िलख सके , जो यूिनक हो, जो अिधक से अिधक लोग को भािवत करे ,
जो युवा को रत कर।
उसके बाद ना मुकेश ने ुित को फोन कया और ना ही ुित ने। मुकेश ने उसके नंबर तो
िडलीट नह कये पर कभी उसे कॉल भी नह कया। वो इस तरफ से अपना पूरा यान
हटा लेना चहता था; ले कन हटा नह पा रहा था। या तो ये इं सान का अिभशाप है या
कोई और कारण क वो िजस चीज से अपना यान हटाने क कोिशश करता है या िजसे
भूलने क कोिशश करता है वो उतना ही मृित म थाई होता जाता है। कभी-कभी शाम के
झुरमुटे म या अंधेरी रात म छत पर अके ले म मुकेश को ुित क याद भी आ जाती थी पर
वो मजबूर था। वो उसे कॉल भी नह कर सकता था; य क हो सकता है, ुित इस व
आरजे के साथ रह रही हो, ऐसे म वो नह चाहता था क ुित को कॉल कर के परे शान
करे । उसक िज दगी म दखल नह देना चाहता था।
कभी-कभी अनायास ही उसक अंगुिलयाँ मोबाइल क काॅ टे ट िल ट म जाकर क-पेड
पर ुित टाइप कर देती; पर फर दूसरे ही पल वो उसे न के सामने से हटा देता। कभी
कभार उसे गम म डू बे देख संतोष और लु बा दा क मनुहार करते, कहते क दो घूंट भरते
ही सारे गम चले जायगे। पर वो ये कहते ए इं कार कर देता क ये सब खुद को पागल
बनाने के उपाय है। दा से कभी कसी का भला नह आ और ना ही कभी कसी को
खोया यार िमला। रही बात गम भुलाने क तो अगर दा पीने से सारे लोग के गम
गायब हो जाते तो दूसरे दन से कोई मयखाने म जाता ही नह । ये तो सब खुद को बहकाने
और जबरन अवचेतन मन को अंधेरे म रखने का उप म है। संतोष और लु बा भी मुकेश के
तक के आगे नतम तक हो जाते पर अपना पेग बराबर लगाते रहते।
इस बीच मुकेश ने एक कहानी िलखी। कहानी के िलए कई दन तक तो उसे दमाग पर
जोर डालना पड़ा; पर कोई अ छा आइिडया दमाग म आया ही नह । आइिडया आना
और उस पर कहानी िलखना कतना मुि कल है ये वही समझ सकता है जो कहानी िलखता
है। एक आइिडया के िलए जाने कतने दन तक इं तजार करना पड़ता है तो कभी-कभी
नहाते समय ही धड़ाधड़ नये आइिडयाज क बहार आ जाती ह। उसने महसूस कया क
कोई भी आइिडया सबसे पहले सू म म म आता है। कभी भी पूरी कहानी, आइिडया के
प म कट नह होती। पहले पहल एक छोटा सा, सामा य सा आइिडया दमाग म
ि लक होता है। जैसे घने अंधेरे जंगल म कोई जुगनू एक पल के िलए चमकता है। वो ि लक
भी कु छ सैके ड के िलए ही रहता है। अगर इस समय म उस आइिडया को पकड़ ना ल तो
वो िततली क तरह उड़ जाता है। हमेशा के िलए कसी अंधेरी गुफा म समा जायेगा।
इसिलए मुकेश ने उस आइिडया को पकड़ कर एक डायरी पर नोट कर िलया और हमेशा के
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अपने काम म शगूल हो गया। उसने आगे का काम अपने अवचेन मन को स प दया क वो
ही इस पर कोई कहानी ढू ंढकर लाये। एक दन नहाते समय उसे उस आिडया पर एक उ दा
कहानी सूझी। तुरंत बाहर िनकलकर उसने उस िवचार को नोट कर दया।
एक रिववार को एकांत म बैठकर उसने उस पर कहानी िलख दी। कहानी िलखने के बाद
उस दन उसे वैसे ही छोड़ दया। यादा दमाग नह लगाया। अगले दन उसे फर से पढ़ा
तथा उसम वांिछत सुधार कये। इस कार उसने एक शानदार कहानी तैयार कर दी; कं तु
इस बार कसी को बताया नह । दूध का जला छाछ को भी फूं क-फूं क कर पी रहा था।
अगले कु छ दन उसने उस कहानी पर ि ट तैयार कर दी। अब बारी थी उसे भेजने क ;
पर ुित के अलावा ना तो कोई उसे जानता था ना वो कसी को जानता था। ऐसे ही कसी
को कै से भेज सकता है? अगर भेज भी देगा तो या गारं टी क कोई उसका आइिडया
चुरायेगा नह । कु छ दन इसी पशोपेश म रहा। तभी नॉवेल पढ़ते समय दमाग म आया क
वो भी अपनी कहानी को नॉवेल के प म छपा दे। अगर कहानी काशक को पसंद आ गई
तो उसे एक पया नह देना पड़ेगा और काशक अपने पैस से छाप भी देगा, ऊपर से
रोय टी के पैसे देगा वो अलग। मुकेश को रोय टी क फ नह थी। उसे तो बस
कॉपीराइट सुरि त करवाने थे। उसने इि मनान से नॉवेल पूरा कर दया। एक दन दादू से
छु ी लेकर वो पा डु िलिप िलए िनकल पड़ा उस दुिनया म िजसे काशक क दुिनया कहते
ह। उसने िह दी से छपने वाले नॉवेल व कहािनयाँ जो उसके यहाँ पड़े थे उनके पीछे से टॉप
टेन काशक के ए स े और फोन नंबर नोट कर िलये िजनके द तर मु बई म ही थे। सबसे
पहले उस काशक के द तर प च ं ा जो उसक िल ट पर नंबर एक पर था एवं जहाँ से
कािशत कताब सवािधक सं या म सरदार बुक हाउस म रखी ई थी। िजसके यहाँ से
बड़े-बड़े लेखक क कताब कािशत होती है।
मु य दरवाजे से जैसे ही अंदर प च
ं ा तो एक लड़क रसे सन पर बैठी क यूटर म कु छ
टाइप कर रही थी। मुकेश को देखते ही बोली, ‘‘यस सर बताइये?’’
‘‘एक उप यास क पा डु िलिप लेकर आया ।ँ यहाँ से छपवाना चाहता ।ँ ’’ मुकेश ने
पा डु िलिप आगे करते ए कहा।
‘‘सॉरी सर हमारा पि लके शन इस व ब त ही यादा िबजी है। वो कोई भी नया
ोजे ट नह ले सकता।’’ लड़क ने पा डु िलिप देखे बगैर ही रटारटाया जवाब दे दया।
‘‘एक बार देख तो लीिजए। हो सकता है कहानी आपको पसंद आ जाये।’’ उसने िवनती
भरे वर म कहा।
‘‘आपको बता तो दया सर। या अं ेजी म फर से रपीट क ँ ।’’ लड़क ने चेहरे पर
त खी लाते ए कहा।
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मुकेश इससे आगे एक श द नह बोल पाया। संपादक से िमलना तो दूर यहाँ तो


रसे सिन ट ने ही एक लेखक को दरवाजे से इस तरह बाहर भगा दया जैसे कोई कु ा
घुस आया हो। उसे ब त शम आई अपने आप पर, िह दी लेखक पर।
वहाँ से चुपचाप बाहर िनकल िल ट देखी। दूसरे नंबर के काशक के यहाँ जाने के िलए
ओटो म बैठा। पा डु िलिप हाथ म िलए जैसे ही मुकेश दूसरे नंबर के काशक के यहाँ प च
ं ा
तो इस बार उसे रसे सिन ट ने नह रोका। उसे सीधा अंदर संपादक जी के कमरे म भेज
दया। संपादक जी क उ तकरीबन स र क लग रही थी। सारे बाल सफे द थे। यहाँ तक
क कान के बाल भी सफे द थे। रं ग सांवला और नाक ब त बड़ी थी। संपादक फोन पर
कसी से बात करने म मशगूल था। मुकेश कु छ देर दरवाजे पर खड़ा रहा। जब उसक नज़र
मुकेश पर पड़ी तो उसने हाथ से इशारा कर उसे अंदर बुला िलया। मुकेश अदब से िसर
झुका अिभवादन करते ए अंदर आ गया। संपादक ने उसके अिभवाद पर िवशेष यान
नह दया। वो फोन पर बात करते ए क यूटर म मेल बॉ स चेक कर रहा था। जैसे ही
उसने फोन रखा, मुकेश क तरफ वाचक िनगाह से देखा।
‘‘सर नम कार। म ये पा डु िलिप लाया ।ँ इसे नॉवेल के प म छपवाना चाहता ।ँ ’’
मुकेश ने चेयर पर बैठते ए पा डु िलिप आगे बढ़ाई।
संपादक ने पा डु िलिप देखे बगैर ही मुकेश को यान से देखा, फर चेयर पर पीछे झुकते
ए पूछा, ‘‘अपक पहली कताब है या?’’
‘‘जी सर।’’ मुकेश ने खुश होते ए कहा। ज र ये कला का पारखी ि लग रहा है।
‘‘माफ करना हम कसी क पहली कताब पर र क नह लेते। फर भी आप अपनी
पा डु िलिप यहाँ छोड़ जाइये। अगर हमारी टीम वीकृ ित दे देगी तो आपको अपने खच से
कताब छपवानी होगी।’’ संपादक ने मोबाइल म खुद क फे सबुक पो ट कसने लाइक व
कम स कया उसे देखते ए कहा।
मुकेश ना तो पा डु िलिप यहाँ छोड़ सकता था ना ही इसे छपवाने के िलए पैसे दे सकता
था, िलहाजा वो अपनी पा डु िलिप उठाकर संपादक जी को शु या कहते ए वहाँ से
रवाना हो गया। संपादक जी ने उसक तरफ देखा तक नह , मानो जता रहे ह क तु हारे
जैसे यहाँ ब त सारे आजे रहते ह।
मुकेश अब प च ं ा अगले काशक के यहाँ, जो उसक िल ट म तीसरे पायदान पर था। इस
बार संपादक ने उससे ठीक से बात क । उसका नाम व पता पूछा। सारी चीज पूछने के बाद
िवन ता से कहा, ‘‘देखो बेटा तुम नये लेखक हो इसिलए कोई भी र क नह लेगा। म
तु हारा नॉवेल छापने को तैयार ँ पर इसक छपाई का सारा खच तु ह ही देना होगा।’’
‘‘ कतना खचा आयेगा।’’ मुकेश ने ऐसे ही जानकारी के िलए पूछा क शायद दो हजार-
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पाँच हजार लेते ह गे।


‘‘हमारे यहाँ अलग-अलग पैकेज िस टम है।‘‘ उसने एक पे पलेट आगे बढ़ाते ए कहा,
‘‘कम से कम िस वर पेक है, िजसम पचास हजार पये देने ह गे। िजसम हम एक हजार
काॅिपयाँ छापकर दगे। दूसरा पैकेजे है गो ड, िजसम तुमको पचह र हजार देने ह गे,
िजसम हम दो हजार काॅिपयाँ छापकर दगे साथ ही एक फे सबुक पेज बनकर ओपरे ट करगे
और साथ म एक यूज पेपर पर कताब क समी ा भी छपवायगे। इसके अलावा कताब
अमेजन, ि लपकाट, कं डल पर भी उपल ध करवायगे।’’ एसी म म बैठे संपादक ने
काँच के लास से पानी का घूंट भरते ए गला खखारकर कहना जारी रखा, ‘‘और तीसरा
और अंितम पैकेज है िजसका नाम ले टनम है, वो थोड़ा को टली पड़ सकता है; पर उसमे
हम तीन हजार ितयाँ छापगे। ऊपर वाली सारी फे िसिलटी तो दगे ही साथ म कताब का
िविडयो ेलर भी बनवाकर दगे।’’
मुकेश वहाँ से भी चला आया। ऐसे ही वो नो काशक के द तर च र काट गया पर कोई
भी िनःशु क उसक कबात को छापने को तैयार नह आ। यहाँ तक क इसके इतना कहने
पर भी कोई उसक कहानी पढ़ने को राजी नह आ। सारे के सारे बगैर पढ़े ही पैसे मांग
रहे थे। मुकेश का मन वेदना से भर उठा। उसे आज के दौर के लेखक और उनक ि थित पर
चंता हो आई। बेचार कतना प र म कर के , बड़ी मुि कल से एक-एक आइिडया पकड़कर
जैसे-तैसे कबात िलखता है, ऊपर से ये काशक उसे िग क तरफ न च खाते ह।
मुकेश ने सूची म देखा एक अंितम काशक बचा था िजसका नाम था ‘िह द काशन’।
घड़ी म शाम के पाँच बजने को आई। सवेरे से उसने कु छ भी नह खाया। भुख-े यासे उसका
हाल बेहाल हो रहा था। उसने तय कया क अब कह नह जायेगा। जब नो ने इनकार कर
दया तो दसवाँ कौनसा मान जायेगा। वो ओटो म बैठने के िलए आगे बढ़ गया। उस पच
को फकने ही वाला था क उसक नज़र िह द काशक के ए स े पर पड़ी। उसका एडेªस तो
यह का है। उसे कह और नह जाना पड़ेगा। बस दस कदम आगे चलते ही िह द काशक
का द तर है। मुकेश ने तय कया क जब इतना झेल चुका तो एक और सही। मन म मलाल
तो नह रहेगा क एक छू ट गया। वो पैदल ही िह द काशक के द तर प च ं ा। एक छोटा
सा कमरा था िजसम कोई रसे सिन ट नह , कोई ए लाय नह । एक बुजुग चेयर पर
बैठा-बैठा गदन नीचे झुकाए टेबल पर रखे कागल को आँख िबलकु ल पास सटाकर पढ़ रहा
था। उसने मोटे लस का च मा पहन रखा था। पढ़ने के टाइल से अनुमान लगाना मुि कल
नह क उसे दूर दृि दोष था। अथात उसे पास क चीज ठीक से दखाई नह देती ह गी।
मुकेश को अंदर आया देख उसने मुकेश क तरफ देखे बगैर कहा, ‘‘हाँ जी बताइये।’’
‘‘सर म एक नॉवेल छपवाना चाहता हँ।’’ मुकेश ने चार तरफ से उसके कमरे को ओ जव
करते ए कहा।
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‘‘आपने िलखा है?’’ बुजुग ने पोपले मुंह से कहा। उसके तकरीबन सारे दाँत िगर चुके थे।
‘‘जी सर’’
उसके बाद दस िमिनट तक वो कु छ नह बोला और पढ़ना जारी रखा। मुकेश ने समझा क
फालतू को टाइम खोटी कर रहा ।ँ उठकर चले जाना चािहए। वो जैसे ही उठने लगा क
बु े ने हाथ आगे बढ़ा दया पा डु िलिप के िलए। मुकेश ने उसे पा डु िलिप पकड़ा दी। बु े के
हाथ इतने पतले थे क नस और हि य के अलावा कु छ भी नह था। कमजोर इतना था क
पा डु िलिप का बोझ भी बड़ी मुि कल से उठा पा रहा था।
‘‘ या नाम है तु हारा?’’ बु े ने नाक िबलकु ल पा डु िलिप पर टकाते ए पूछा।
मुकेश ने रा ते म तय कर िलया था क वो ये कताब मुकेश नाम से नह छपायेगा। कसी
को अपनी वा तिवक पहचान बतायेगा ही नह । उसे तो के वल कताब का कॉपीराइट
चािहए था। उसे नाम आ द से कोई मतलग नह था इसिलए उसने गला ठीक करते ए
बताया, ‘‘मेरा नाम सु दरलाल है।’’
‘‘मेरा नाम ान काश है।’’ उसने ऊपर देखे बगैर ही कहा।
ान काश ने एक घ टे म सरसरी नज़र से पा डु िलिप को टटोलने के बाद गदन ऊपर
उठाते ए पहली बार मुकेश के चेहरे को यान से देखा मानो ये जजमट करना चाह रहा
हो क वाकई म ये कहानी इसी ने िलखी है या नह ।
‘‘ या नाम बताया तुमने अपना?’’ मोटे लस म उसक आँख उ लू क तरह लग रही थी।
‘‘जी सर मेरा नाम सु दर लाल।’’ मुकेश का दल धड़क रहा था। जाने या कहेगा। कह
ये ना कह दे क कहानी अ छी नह है।
‘‘ .ँ .. िम टर सु दरलाल आपक कहानी तो ब त अ छी है। म इसे छापने को भी तैयार
।ँ मुझे आपसे कु छ भी रािश नह चािहए। बस आप एक फोटो और चार-पाँच लाइन म
अपना प रचय िलख दीिजए।’’
‘‘ या सच म मुझे कु छ भी नह देना होगा।’’ मुकेश ने अपने आप को उछलने से रोका।
‘‘हाँ भाई हाँ। आिखर आपने कहानी भी तो इतनी शानदार िलखी है।’’
‘‘मगर सर म इस नॉवेल पर के वल अपना नाम और लेखक प रचाय के थान पर मेरा
े देना चाहता ।ँ इवन फोटो भी नह देना चाहता ।ँ ’’
इमेल ऐ स
‘‘कोई ोबलम नह । आप अपना मेल आई डी िलख दीिजए। म सबसे पहले इसक के वल
पाँच सौ ितयाँ ही छपवाऊँगा। चल िनकली तो और छपती रहेगी और िबकती रहेगी।
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आपको एमआरपी क दस ितशत रॉय टी देय होगी। थम पाँच सौ ितय म से दस


ितयाँ आपको देय होगी। बोलो मंजूर है।’’
‘‘िबलकु ल मंजूर है सर।’’
‘‘तो आप अगले रिववार तक आकर अपनी दस ितयाँ ले जाइयेगा।’’
‘‘एक बात पूछनी थी सर। या इसके कॉपीराइट मेरे नाम पर ही रहगे?’’
‘‘िबलकु ल। सारे अिधकार लेखक के पास सुरि त रहगे।’’
‘‘थ यू सर।’’ कहते ए मुकेश उठ खड़ा आ। वो जाने को आ क ान काश जी ने
टोका।
‘‘अरे बेटा इस नॉवेल का नाम या रखा। तुमने तो ऊपर कोई टाइटल दया ही नह । कस
नाम से छापूँ’’
‘‘इसका नाम रख दीिजए - ‘दूसरी दुिनया’ सर।’’ कहते ए मुकेश दरवाजे से बाहर
िनकल गया। ान काश ने पेन लेकर थम पेज पर बड़े अ र म िलख दया - दूसरी
दुिनया।
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भा ग - 1 3
अगले रिववार को कसी कारण से मुकेश काशक के यहाँ नॉवेल दूसरी दुिनया क ित
लेने नह जा पाया पर ान काश जी ने पाँच सौ ितयाँ छपवाकर मु बई के लोकल बुक
टोर पर उपल ध करवा दी। सरदार बुक हाउस भी इस नॉवेल क दो ितयाँ, नई
कताब के बंच के साथ आई। दादू ने बंच खोलकर सारी कताब क यूटर म चढ़ाई व
संबंिधत लोर पर िभजवाने से पहले उ ह खोल कर देखा। दादू हमेशा नई कताब को
पहले खोलकर देखते क खुद के िलए पढ़ने लायक कोई पु तक है या नह । अ सर वे
अं ेजी क कताब ही यादा पढ़ते थे पर आज अं ेजी के बंच म उ ह पढ़ने लायक कोई
कताब नह िमली। उ ह ने िह दी के ब डल को टटोला तो उसम भी कोई युिनक कताब
नह िमली। तभी अचानक उनक नज़र ‘दूसरी दुिनया’ नॉवेल पर पड़ी। नीचे लेखक का
नाम देखा, ‘सु दर लाल’ तो उ ह हँसी आई क कै से-कै से नाम के लेखक पनप गये ह। इससे
पहले उ ह ने सु दर लाल नाम के लेखक क कोई कताब नह देखी थी। ‘दूसरी दुिनया’ के
दो-चार प े पलटकर जैसे उस कताब को चख लेना चाहते थे मानो कोई मेले म घूमते ए
अचारवाले ही शॉप पर जाकर चार तरफ फै ले अचार के िड ब म से कसी एक िड बे म
से एक च मच लेकर चखकर यह तय करता है क चीज़ लेने लायक है क नह उसी कार
दादू ने जब दो-चार पेज पलटे तो मानो कताब ने उ ह जकड़ िलया हो। जैसे जुमांजी के
गेम म जब ब े खेलने बैठ जाते तो वो गेम उ ह पूरी तरह से जकड़ लेता और तब तक
चाहते ए भी आजा़द नह करता जब तक क गेम पूरा नह हो जाये। ठीक उसी कार
कताब ‘दूसरी दुिनया’ ने दादू क गदन को वह क वह ि थर कर दया। दादू ने बाक
सारी कताब यथोिचत थान पर िभजवा दी, के वल दूसरी दुिनया क एक ित अपने पास
रहने दी व सवेरे कम ाहक के टाइम, दो घ टे म इसे पूरी करने के िलए खोलकर बैठ गए।
के वल ुित को छोड़कर कोई नह जानता था क सु दरलाल ही मुकेश है।
दादू ने जब पूरी कताब पढ़ ली। ख म करते समय उनक आँख नम हो गई थी। उ ह यक न
नह आ क एक कताब क वजह से उनक आँख छलक आई। उ ह ने इधर-उधर देखा क
कह कोई देख तो नह रहा। फर मुकेश को अपने पास बुलाया। मुकेश जब दादू के पास
गया तो उ ह ने उसक तरफ कताब दुसरी दुिनया बढ़ाते ए कहा, ‘‘ये कताब पढ़ो?
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समकािलन पु तक म मने इतनी रौचक कताब कभी नह पढ़ी। इससे तु ह ब त कु छ


सीखने को िमलेगा।’’
मुकेश ने हाथ आगे बढ़ाकर कताब ले ली। जैसे ही उसने टाइटल ‘दूसरी दुिनया’ देखा,
भ च ा रह गया। कु छ देर के िलए तो मानो सांप सूंघ गया हो। जब दादू ने झकझ रा तो
उसने खुद को संभालते ए पूछा, ‘‘कौने है दादू इसके लेखक?’’ वो ये देखना चाहता था
क कह दादू को मालूम तो नह चल गया।
‘‘पता नह कोई सु दरलाल नाम का लेखक है। म भी नह जानता इसे; पर जो भी हो, ये
नॉवेल ब त शानदार िलखा है।’’ कहते ए दादू ने मुकेश के हाथ से कताब वापस लेकर
पीछे लेखक प रचय क तरफ इशारा करते ए कहा, ‘‘देखो लेखक ने अपने बारे म कु छ
भी नह िलखा। खुद के बारे म िलखने के बजाय इसम िलखवा दया क’’ कहते ए दादू
च मा लगाकर जोर-जोर से पढ़ने लगे, ‘‘दूसरी दुिनया क कहानी के वल लेखक क
कहानी नह है। ये हम सभी क कहानी है, ये उन सब क कहानी है जो जीवन म सपने
देखते है और उ ह पूरा करने के िलए चल पड़ते ह। हम सभी दूसरी दुिनया अथात सपन
क दुिनया को पाना चाहते ह। ये कताब नया रा ता दखाएगी, भटकने से बचायेगी, बड़े
सपने देखने के ो सािहत करे गी। ये कहानी आपको अहसास करायेगी क कोई भी सपना
नामुं कन नह होता, बस हम उसे नामुं कन मान लेते ह। अगर आप भी सपना देखते ह
और जीवन म कु छ पाना चाहते ह तो उप यास दूसरी दुिनया ज र पढ़।
नोट-इस कताब म लेखका का कोई प रचाय और फोटो नह दया जाये। ऐसा वयं लेखक
चाहते थे। उनका तक था क जब ये हम सब क कहानी है तो फर कै सा लेखक प रचय।’’
पूरा पढ़ने के बाद दादू ने च मा उतारते ए मुकेश क तरफ कताब बढ़ा दी जैसे कोई
अमानत स प रहे ह । जब मुकेश ने कताब हाथ म ली तो उसे अपनी ही कताब क छु अन
का अलग ही अहसास हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे एक िवचार ने मूत प ले िलया
हो।
‘‘लगता है नॉवेल आपको पसंद आया।’’ मुकेश ने कताब के कवर पेज को देखते ए
पूछा। उसे कवर इतना अ ेि टव नह लगा िजतना अं ेजी के नॉवेल और नई वाली िह दी
के नॉवेल पर होता है; पर फर भी दादू ने पढ़ने के िलए इसी कताब को चुना ये इस बात
को मािणत कर रहा है क आज भी लोग अ छे क टट वाली कताब पढ़ना पसंद करते ह।
‘‘अरे ब त पसंद आया। तुम खुद ही य नह पढ़ लेते हो। इसीिलए तो तु ह बुलाकर
पेशल पढ़ने के िलए सजे ट कर रहा ।ँ ’’ कहते ए दादू ने कताब के अंदर िलखे िह द
पि लके शन वाले के बेिसक नंबर पर फोन िमलाया। मुकेश वह खड़ा-खड़ा देख रहा था।
उसक सांसे थम सी गई थी क कह दादू के सामने राज ना खुल जाये।
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फोन लाउड पर कर रखा था।


ंग... ंग...
‘‘िह द पि लके शन...’’ उधर से फोन उठाने के बाद बु े क आवाज आई। मुकेश ने आवाज़
से पहचान िलया क ये ान काश है।
‘‘म सरदार बुक हाउस से बोल रहा ।ँ ’’ दादू ने तेज़ आवाज़ म कहा।
‘‘हाँ जी म खान संह जी नम कार !’’ ान काश दादू को पहचानता था।
‘‘कै से हो ान काश जी।’’ दादू ने कताब हाथ म लेकर उसके प े पलटते ए कहा।
‘‘बस आपक मेहरबानी है। कु छ नई कताब िभजवाई थी। आपको िमल गई होगी।’’
पीकर से आवाज़ आई।
‘‘हाँ िबलकु ल! िमल गई। म ये पूछ रहा था क’’ दादू ने कताब के ं ट पेज पर लेखक का
नाम पढ़ते ए कहा, ‘‘ये सु दरलाल नाम के लेखक का कोई और नॉवेल है या?’’
‘‘हा...हा...हा.. फलहाल तो ये उसका पहला नॉवेल है।’’
‘‘काफ अ छा राइटर है।’’ दादू ने बेिसक फोन के नंबर के बीच म जमी धूल को अंगूली
से साफ करते ए कहा।
‘‘म खान जी आपको या बताऊँ, िपछले दन एक नौजवान लड़का पसीने से तरबतर
मेरे पास पा डु िलिप लेकर आया। पहले तो मुझे लगा िलखी होगी कोई बकवाज़ टाइप क
कहानी। आजकल अ छी कहािनयाँ कौन िलखता है। सब एक-दूसरे क देखादेखी, अदावदी
म लगे ए ह, धड़ाधड़ कताब छपवाने म। फर मने उसक पा डु िलिप पढ़ी तो दल खुश
हो गया और म छापने को तैयार हो गया।’’ कहने के बाद बु े के खांसने क आवाज़ आई।
खांसी कने के बाद बोला, ‘‘अगर आपको इसक ितयाँ और चािहए तो बोिलयेगा
िभजवा दूगं ा।’’
‘‘जी िबलकु ल बता दूग
ं ा।’’ कहते ए दादू ने फोन रख दया। मुकेश क तरफ देखते ए
बोले, ‘‘लगता है कोई नया लेखक है। तुम अब जाओ अपने थान पर, ाहक का टाइम
हो गया है।’’
मुकेश चुपचाप कताब लेकर ऊपर चला आया। वो नह चाहता था क कसी को मालूम
चले क ये कताब उसने ही िलखी है। पता चलने म बुराई कु छ नह थी पर वो साधारण
इं सान बनकर आम लोग के बीच म रहते ए िलखना चाहता था। अगर एक बार उसके
ऊपर लेखक का तमगा लग गया तो ना जाने फर से वो इस आम जीवन को नजदीक से
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देख पायेगा या नह । उसे इस बात का भी डर था क लोग से स मान िमलने पर कह म


ईगो म ना आ जाऊँ तथा अपने सपने को भूलकर वो ना िलखने लगूँ जो लोग को पसंद
आये बजाय इसके क मेरा दल या कहता है? वो लेखक वाली सारी तड़क-भड़क से दूर
रहना चाहता था। उसे सादा जीवन ब त अ छा लगता था। उसने सोच रखा था क अगर
बािलवुड फ म का लेखक बन भी आऊँगा तो भी इसी कार सादा जीवन जीऊँगा।
उसने अपनी कताब को चार तरफ से छू कर देखा। उसे ब त सारा यार दया जैसे कोई
नवजात िशशु को सहलाता, पुचकारता है वैसे ही उसने नॉवेल क छु अन को महसूस
कया।
अगले रिववार वो ओटो म बैठकर सीधे ान काश जी के ऑ फस प च ं गया। आज उनक
ेस पर एक नया लड़का भी काम करता आ दखा। ऑ फस के ट गेट पर उसी के
नॉवेल का बड़ा बैनर लगा आ था। ऐसा लग रहा था जैसे इस नॉवेल ने दम तोड़ते इस
काशक म नये ाँण फूं क दये।
मुकेश को आया देख ान काश जी वयं अपनी चेयर से उठकर बहर से उसे अंदर ले आये।
‘‘आओ बेटा...’’ ान काश जी ने मुकेश को चेयर पर िबठाते ए, ऑ फस म कान करने
वाले लड़के को दो चाय लाने के िलए भेजा।
‘‘म कु छ ितयाँ लेने आया था, मुझे कह देनी है।’’ मुकेश को कताब क ितयाँ बािलवुड
के द गज डायरे टर और ए टर को भेजनी थी, ता क कसी को उसक कहानी पसंद आ
जाये तो उस पर फ म बन सक।
‘‘हाँ िबलकु ल ले जाओ।’’ ान काश जी ने बीस ितयाँ उसक तरफ करते ए कहा।
उनके चेहरे पर अ ितम खुशी दखाई दे रही थी।
‘‘पाँच सौ ितयाँ तो स ाहभर म ही सेल हो गई। दूसरा सं करण छपकर तैयार हो रहा
है।’’ इतने म लड़का दो चाय लेकर आ गया था। ान काश जी ने चाय का कप मुकेश क
तरफ बढ़ाते ए कहा, ‘‘आपने वाकई म कमाल का िलखा है। सब पसंद कर रहे ह।’’
‘‘जी शु या।’’ मुकेश इस समय शंसा से नह पंघलना चाहता था। उसे मालूम था क
ये तो कु छ भी नह , उसे तो अभी ब त बड़ी उपल धी हािसल करनी है। इतना ज दी ही
अपनी तारीफ सुनने का नशा चढ़ गया तो कभी आगे नह बढ़ पाऊँगा।
‘‘आपने अपने बारे बताया नह । िपछली बार यादा बात नह हो पाई थी। एक प कार
भी आया था आपका इं टर ू लेना चाहता था।’’ ान काश जी ने चाय का घूंट भरते ए
कहा।
‘‘नह इस सयम म इन सब म नह पड़ना चाहता। मेरा सपना कु छ और है। इन सब म
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पड़कर उस तरफ से िबलकु ल भी अपना यान नह हटा सकता ।ँ ’’ चाय का आिखरी घूंट
भरने के बाद मुकेश ने कागज के कप को िपचकाकर पास म रखे ड टिबन म डालते ए
कहा।
‘‘आप चाह तो म अभी तक क रॉय टी का िहसाब कर के दे दू।ँ ’’
‘‘नह मुझे इस समय रॉय टी म कोई इं टरे ट नह है। आप िहसाब िलख के रिखयेगा,
समय आने पर ले लूँगा। अब चलता ,ँ कह और भी जाना है।’’ कहते ए मुकेश नॉवेल
क ितयाँ अपने बेग म रखते ए उठकर रवाना हो गया।
‘‘म माफ चाहता ँ आपका इमेल नह छाप पाया। वो िजस पच पर िलखा था वो कह
खो गई। ब त ढू ंढा पर िमली नह । ना ही आपके मोबाइल नंबर थे क आपको पूछता।’’
‘‘कोई बात नह । अनजाने म भी अ छा ही आ।’’ मुकेश खुश था क चलो मेल आईडी
नह डाला वो और अ छा कया। वैसे भी म मिहने म एकाध बार लु बा या स तोष के
मोबाइल पर मेल खोलता ।ँ
उसके बाद मुकेश ओटो म बैठकर वहाँ से रवाना हो गया। आटोवाले को कु रयर वाले के
वहाँ ले जाने का बोलकर वो शहर देखने लगा।
ँ कर मुकेश ने अपने बेग म से दस बड़े िलफाफे िनकाले, िजन पर
कु रयर वाले के वहाँ प च
फ म इ ड ी के जानेमाने फ म िनमाता के ए स े िलखे ए थे। उसने ये सारे ए से
संतोष से मोबाइल उधार मांगकर, ऑनलाइन सच करके पहले ही िलख कर, िलफाफे
तैयार कर रखे थे। येक िलफाफे म एक-एक कताब क ित डाल दी व साथ म हाथ से
िलखा एक लेटर रख दया िजसम िलखा था,
‘‘आदरणीय सर, नम कार! म अपना नॉवेल आपको भेज रहा ।ँ इसक कहानी मने
फ म िनमाण को यान म रखते ए ही िलखी है। इसक पूरी ि ट मेरे पास पड़ी है।
अगर आपको कहानी पसंद आये तो म ि ट लेकर उपि थत हो जाऊँगा। मुझे इस नंबर
पर कॉल क िजयेगा - 9829163272
सु दरलाल’’
मुकेश ने लेटर क एक-एक ित नॉवेल के साथ िलफाफे म रख कर कु रयर करवा दया।
अब वो िन ंत था क उसका आइिडया कोई चोरी नह कर सकता। कताब के प म इस
कहानी के कॉपीराइट सुरि त हो गये है।
उसके बाद मुकेश वापस सरदार बुक हाउस अपने म आ गया। उस दन उसने चैन क
सांस ली क चलो सपने क दशा म पहला कदम दृढता से रख दया, िजसे कोई िडगा नह
सकता। उसे इस बात पर पूरा िव ास था क दस म से कोई ना कोई उसे ज र कॉल
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करे गा। पहली बार उसने अपने न बर शेयर कये। अब उसका यान हमेशा मोबाइल पर
ही रहता था। इससे पहले उसने कभी मोबाइल पर यान ही नह दया। पहले तो ुित का
कॉल आया करता था पर जब से ुित गई उसके बाद कसी का कॉल नह आया। ऐसा लग
रहा था जैसे मोबाइल मिहन क मौन साधना पर बैठा आ है।
देखते ही देखते सु दरलाल नाम के नये लेखक का उदय आ पर कोई नह जानता था क ये
सु दरलाल कौन है। यहाँ तक क काशक भी उसका असली नाम नह जानता था। ना
सु दरलाल सोशल मीिडया पर एि टव था ना उसका कोई पो टल ए स े था। मुकेश ने
काशक को प समझा दया था क कोई भी मुझसे संपक करना चाहे तो इं कार कर
देना।
जीवन क िवड बना कह या िविध का िवधान क इं सान पर अ छे िवचार का भाव
धीरे -धीरे पड़ता है जब क बुरे िवचार का ज दी। ठीक इसी कार अ छी चीज को
वायरल होने म समय लगता है जब क बुरी चीज ज दी फै ल जाती है। यही नॉवेल दूसरी
दुिनया के साथ आ। शु -शु म तो उसक ितयाँ धीमे से िबक ; पर जैसे-जैसे उसक
माउथ पि लिसटी बढ़ती गई, चार तरफ उसी कताब के चच होने लगे। कताब क
समी ा प -पि का म छपने लगी। फे सबुक पर हेशटेग के साथ समी ा शेयर क जाने
लगी। सोशल मीिडया पर लोग सु दरलाल नाम से सच मारने लगे, फे सबुक पर सच कया
जाने लगा पर कोई ऐसी ेफाइल नह िमली जो लेखन से संबंध रखती हो। कभी कोई
सु दरलाल टेª टर चलानेवाला िनकलता तो कभी कोई सु दरलाल माबल पर प थर
डालने वाला होता। कोई भस का ापारी होता तो कोई पानी के टकर स लाई
करनेवाला सु दरलाल िनकलता। कोई नह जानता क सु दरलाल कौन है? सबके िलए ये
एक पहेली बन गई। लोग काशक के ऑ फस फोन कर के पूछते पर काशक सब को एक
ही रटा-रटाया जवाब दे देते ही लेखक के नंबर उनके पास भी नह है।
दोपहर के एक बजे मुकेश एक ाहक को कताब दखा रहा था क उसके मोबाइल क रं ग
बजी, आज कतने ही मिहन के मौन के बाद उसके मोबाइल ने वर क लहरी पैदा क
थी। मुकेश खुद ही भूल गया था क उसके मोबाइल पर रं ग कौनसी थी। आज जब बजी तो
उसे पता चला। उसने ाहक से दो िमनट का समय मांगा और बगल म आकर फोन उठाया,
‘‘हेलो...’’ कहते समय उसके दल क धड़कन बढ़ गई थी। उसे मालूम था क ज र कसी
फ म िनमाता का ही फोन आया होगा।
‘‘ या आप सु दरलाल बोल रहे ह।’’ फोन म से एक मिहला क आवाज़ आई।
‘‘जी...आप कौन?’’ उसने ललाट पर सलवटे लाकर सारी चेतना राइट साइड के कान म
लाते ए पूछा जहाँ मोबाइल सटा रखा था।
‘‘म फ म िनमाता-िनदशक राजकु मार िहराना क पीए बोल रही ।ँ बॉस को आपक
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कहानी दूसरी दुिनया पसंद आयी। वे कल आपसे िमलना चाहते है। आप पूरी ि ट लेकर
ठीक दस बजे ऑ फस आ जाइयेगा।’’
‘‘जी...ठीक समय पर प च
ँ जाऊँगा। शु या।’’
अगले दन मुकेश ि ट क ित लेकर ठीक समय पर ऑ फस प च ँ गया। राजकु मार जी
ने ब त ही आि मयता से मुकेश से बात क व अपना पोजल मुकेश के सामने रख दया।
मुकेश ने कु छ दन का समय मांगा।
कहते है क इं सान का जब अ छा समय आता है तो अपने साथ ब त सी अ छी चीज लेकर
आता है। मुकेश को दस म से आठ िनमाता-िनदशक के यहाँ से कॉल आ गये। उसे तो उस
दन आ य आ जब आरजे के आ फस से भी कॉल आया व उसे ये बाताया गया क आरजे
आपसे िमलना चाहते है। उस दन तो मुकेश ने हाँ बोल दया पर अगले दन उसक िह मत
नह ई वहाँ जाने क । आिखर कै से जाता उसके ऑ फस जब क ुित वह होगी। उसके
अंदर ुित का सामना करने क िह मत नह बची थी। उसे मालूम था क अगर ुित
सामने आ जायेगी तो म फर से कमजोर पड़ जाऊँगा। फर से उसक याद मुझे परे शान
करे गी जब क वो आरजे के साथ आराम से रह रही होगी।
स ेवाले यार को कतना ही भूलाने क कोिशश कर दो पर उसे भूलाना उसी तरह
मुि कल है जैसे शरीर के कसी अंग पर टटू गुदवाने के बाद उसे िमटाना असंभव है। कतना
ही साबुन िघस दो पर वा तिवक टटू कभी नह िमटते उसी कार स ावाला यार कभी
नह िमटता। उसे तो कसी कोने म कु छ समय के िलए दबा दया जाता है।
मुकेश आरजे के ऑ फस नह जा पाया और उसने कॉल कर के इं कार कर दया क कहानी
पर कसी और से पहले ही करार कर चुका है।
शेष बचे सात पोजल म से मुकेश को राजकु मार सर का पोजल पसंद आया। उसम
लेखक को पूरी तरजीह दी गई। कु छ शत इस कार थी - कहानी का सारा े िडट लेखक को
दया जायेगा, मुनाफे का एक िनि त शेयर लेखक को दया जायेगा, फ म िनमाण के
समय हर व लेखक साथ रहेगा य क अगर डायलोग म कोई चज करना पड़े या कोई
ऐसी ि थित आये जहाँ कहानी क प रि थित कसी को समझ नह आये उस समय लेखक
से सलाह ली जायेगी। साथ रहने का सारा खचा कं पनी देगी व साथ म िनयत मानदेय भी।
नायक व नाियका के ऑिडशन म सु दरलाल व राजकु मार सर दोन िमलकर तय करगे क
फ म दूसरी दुिनया म कसे ए टर का रोल देना है और कसे ए ेस का। वे चाहते थे क
फ म म इस बार नये चेहर को मौका दया जाये।
मुकेश इस बात से परे शान था क दादू को या कहेगा? इस समय वो दादू को या बताकर
ल बी छु या ले। वो फ म िनमाण के बारे म भी नह बता सकता य क राजकु मार
िहराना सर ने साफ इं कार कर दया क जब तक वे मीिडया के सामने घोषणा नह कर
तब म कसी से कोई बात शेयर नह क ँ । इड ी म खबर आग क तरह फै लती है और
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फर उनको तोड़-मोड़कर पेश कया जाता है। इसिलए मुकेश कु छ दन से यही सोच रहा
था क दादू को या कह?
एक दन सवेरे दुकान खुलते ही उसने दादू के पास जाकर कहा, ‘‘दादू मुझे आपसे कु छ
कहना ह’’
‘‘ .ँ ..बोलो?’’ दादू ने अगरबती करते ए मुकेश क तरफ यान दये िबना कहा।
‘‘आप मेरे िपता के समान है। जब पहली बार मु बई आया तब आपने ही मुझ अभागे को
सहारा दया इसिलए म आप से कोई झूठ भी नह बोल सकता; पर कसी मजबूरी के
कारण सच भी नह बता पा रहा ।ँ ’’ मुकेश ने एक ही सांस म कह दया।
‘‘बात या ह बेटा?’’ दादू ने अगरबती त वीर के पास पड़े के ले म घुसेड़कर मुकेश क
तरफ आ य से देखते ए पूछा। आज मुकेश क बात उ ह कु छ अजीब लग रही थी।
‘‘बात ये है क मने एक कहानी िलखी िजस पर फ म बन रही है पर वे चाहते है क जब
तक वे मीिडया के सामने घोषणा नह कर दे तब तक म कोई भी बात कसी के सामने
ऑपन नह क ँ ।’’ मुकेश ने िववशता जताते ए कहा।
‘‘ये तो ब त खुशी क बात है। मुझे इससे कोई फक नह पड़ता क तुम कसके साथ फ म
बना रहे हो? मेरे िलए तो यही सबसे बड़ी बात है क तुम अपनी िनयित के रा ते पर चल
पड़े हो। तु हारी आँख म मने हमेशा से अपनी िनयित को पाने क लालसा देखी है।’’ दादू
ने मुकेश क पीठ थपथपाते ए कहा। उनके चेहरे पर खुशी क चमक थी।
‘‘म आपसे कु छ भी छु पाना नह चाहता पर मजबूर ।ँ ’’
‘‘कोई बात नह । म समझ सकता ।ँ कब से जाना है?’’
‘‘कल से...’’
‘‘ठीक है अपना यान रखना और कभी भी हार मत मानना। कभी भी कसी भी हालत म
हार मत मानना बेटा।’’ दादू ने जैसे जीवन का सार उसे बता दया।
उस दन रात को दादू ने अपनी तरफ से बुक टोर पर काम करने वाले सभी का मक को
होटल पर खाना िखलाया। कोई भी इसका कारण नह समझ सका क दादू आज मेहरबान
य है? बस दादू और मुकेश को छोड़कर।
दूसरे दन सवेरे दस बजे से फ म दूसरी दुिनया का ऑिडशन था। मुकेश अपना सारा
सामान लेकर ठीक समय पर प च ँ गया। ऑिडशन के बाद फ म रलीज होने तक उसे
वह रहना होगा।
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दस बजे से फ म के िलए नये चेहर का ऑिडशन ारं भ हो गया। दस दन से ऑिडशन


चल रहा था। ि नंग कमेटी पहले ही शाट िल टेड कर चुक थी और फाइनल राउ ड म
बीस लड़क और बीस लड़ कय का चयन कया गया। अब उन म से दो मबर का बोड
अथात राजकु मार सर और मुकेश दोन को िमलकर फाइनल एक का चयन करना है।
पहले ए टर का चयन कया गया। एक-एक कर बीस लड़क का ऑिडशन िलया गया।
उनक परफ मस देखी गई। अंत म अरशद नाम के लड़के का चयन कया गया जो फ म
दूसरी दुिनया का नायका होगा।
उसके बाद दोपहर का लंच आ। लंच के बाद दोन ऑिडशन म प च
ँ ।े ए ेस के िलए
ऑिडशन ारं भ आ।
एक-एक करके लड़ कयाँ परफोमस दे रही थी। मुकेश व राजकु मार सर यान से उनके
अिभनय को देख रहे थे व फाईल पर उ ह नंबर दे रहे थे। दोन को पाचास-पचास म से
नंबर देने थे। िजसके अंक सबसे यादा ह गे उसका चयन माना जायेगा।
म चलता रहा। एक, दो...आठ.. दस... प ह..और अंत म बीस नंबर क लड़क नाम जोर
से पुकारा गया,
‘‘अब आपके सामने आ रही है ुित’’
नाम सुनते ही मुकेश का दल जोर से धड़का। उसने सोचा कोई ुित नाम क लड़क होगी।
फर भी खुद को रोक नह पाया और झट से सामने देखा, मारे आ य से उछल पड़ा क
उसके सामने ऑिडशन देने के िलए जो लड़क खड़ी थी वही उसक ुित थी, िजससे वो
यार करता था।
मुकेश का िसर चकरा गया...
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भा ग - 1 4
िु त का नाम सुनते ही मुकेश ने गदन उठाकर कौतुहल से सामने देखा, कु छ देर के िलए
उसक आँख चिधया गई, यक न नह हो रहा था क सामने ुित खड़ी है। वही ुित
िजससे वो यार करता था। मुकेश का िसर चकरा रहा था व दल धंसकने लगा।
रामकु मार ने मुकेश को असहज देख पूछा, ‘‘आप क तबीयत ठीक तो है राइटर साहब?’’
‘‘जी.. म ठीक ।ँ लीज जारी रिखये।’’ उसने खुद को संभाल तो िलया पर समझ म कु छ
भी नह आ रहा था क ुित यहाँ या कर रही है? ये तो आरजे के साथ फ म करनेवाली
थी? ये भी तो हो सकता है क आरजे क फ म पूरी हो गई हो और वो रामकु मार िहराना
क फ म म काम करने ही चाह लेकर आयी हो। उसके दमाग म इस समय कई सारी
संभावनाएँ एक साथ द तक दे रही थी। कोई एक िनणय नह ले पा रहा था और ना ही
दमाग को गहराई से सोचने से रोक पा रहा था।
िु त ने जब सामने जज क चेयर पर एक तरफ जाने-माने िनमाता-िनदशक रामकु मार सर
को देखा और दूसरी तरफ मुकेश को देखा तो आँख पर यक न नह आ। लाईट का सारा
फोकस उसके ऊपर होने क वजह से भी वो ठीक से देख नह पा रही थी फर भी जाने य
उसका दल तेज-तेज धड़कने लगा। उसे थोड़ा ब त तो यक न हो गया क ये तो वही
पागल लड़का है। इस समय उसने अपना पूरा यान परफ मस पर दया। लगभग दस
िमिनट क तुती के बाद जैसे ही यूिजक का ुित मंच पर बैठे मुकेश क तरफ तरफ
देखती ई बाहर चली गई। मानो वो अपनी आँख से कई सारे सवाल दाग रही हो क तुम
यहाँ कै से? तु हारी वजह से मेरी सारी तुित का बंठा-ढार हो गया। म ठीक से परफ़ोम
नह कर पाई।
इन दस िमिनट म मुकेश का दमाग बराबर च र-िघ ी होता रहा और अंत म जाने य
अनायास ही उसके हाथ ने उसक सुने बगैर पेन उठाया और पचास म से पचास नंबर दे
दए। इससे पहले उसने कसी को इतने नंबर नह दये थे। बीस से तीस के बीच म ही सब
को िनबटा दया था।
अंत म नंबर क टॉट लंग कर के िनणय सुनाया गया तो लड़क म से अरशद िवजेता रहा
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जब क लड़ कय म ुित को लीड रोल िमला।


घोषणा होते ही मुकेश लगभग भागते ए बाहर आया ुित को ढू ँढने, उससे बात करने के
िलए क आिखर उसने आरजे क फ म छोड़कर यहाँ ऑिडशन य दया; कं तु बाहर
दूर-दूर तक उसे ुित दखाई नह दी। उसने मोबाइल म ुित के का टे ट पर जाकर कॉल
कया, मोबाइल से आवाज़ आई, ‘‘िजस नंबर से आप संपक करना चाहते है वो मौजूद
नह है।’’ मुकेश समझ गया क ुित ने पुराने वाले नंबर बंद करवा दये। ज र उसके
पास कोई दूसरे नंबर ह गे। वो बेताब हो उठा उससे बात करने को।
थक-हार कर वो अपने होटल चला आया। आज उसका मन बुझा-सा था। कु छ िलखने-पढ़ने
का मन नह हो रहा था। ये लड़क भी जाने य मुझे इतना स मोिहत करती है। आिखर
उसे भूल य नह पाता ।ँ जब भी ऐसा लगता है क भूल गया तब कु छ ऐसा हो जाता है
क वो मेरे सामने आ जाती।
शाम को तकरीबन छह बजे उसके मोबाइल पर कसी अननॉन नंबर से कॉल आया। इस
समय वो हमन हेस का नॉवेल ‘िस ाथ’ पढ़ रहा था। कताब म ऐसा खोया आ था क
रं ग बजने पर ऐसे चका जैसे कसी लड़क पर िछपकली िगरने पर वो चौक पड़ती है।
कताब क कहानी म डू बने के कारण उसका मन ही नह कर रहा था फोन उठाने का पर
तभी उसके दमाग म ये खयाल क धा क कह ुित का तो नह । उसका हाथ मोबाइल क
तरफ बढ़ा। ि न कलर के ि वच को ेस करते ए कान के पास ले जाकर धीमी आवाज़ म
बोला, ‘‘हेलो..’’
‘‘हाय...सु दरलाल।’’ कभी-कभी हम फोन देखने से पहले जो अनुमान लगाते है उसी का
फोन होता है। फोन से ुित क ही आवाज़ थी। सुनते ही मुकेश अवाक् रह गया।
‘‘त..त..तुम...’’ उसने कताब को उ टा रख कर, कमर सीधी करते ए कहा।
‘‘कै से हो राइटर साहब?’’ ुित क आवाज़ उसे पहले जैसी नह लगी।
‘‘बस ब ढ़या। तुम बताओ?’’
‘‘म भी ठीक ।ँ ’’
‘‘तु हारे नंबर बदल गये?’’
‘‘हाँ। समय के साथ ब त कु छ बदल जाता है राइटर साहब।’’
‘‘तुम मुझे राइटर साहब मत बोलो।’’
अ छा सुनो ! इस व हो या?’’
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‘‘हाँ’’
‘‘म कबीर कै फे पर ।ँ आ सकते हो या?’’
‘‘ठीक है, दस िमिनट म आता ।ँ ’’ कहते ए मुकेश ने फोन रख दया। वो ुित क
लाइफ म दखल तो नह देना चाहता था पर जब उसने ही बुलाया तो िमलने म या हज
है?
ँ ा, जहाँ दूर से ही ुित बैठी दखाई दी। कई सावाल
वो सीधा होटल से कबीर कै फे प च
और संभािवत जवाब दमाग म िलए वो ुित के पास वाली चेयर पर बैठ गया। आज कै फे
म इतनी भीड़ नह थी। ुित के चेहरे पर पहले से अिधक चमक दखाई दे रही थी। हो
सकता है फ म म काम करने के कारण भी वो अब अपने चेहरे का िवशेष खयाल रखने
लगी हो। दूसरी चीज़ जो उसने नो टस क वो ये थी क ुित अब पहले जैसी नह रही।
पहले जैसी म ती, पहले जैसे िब दास बात करना, पहले जैसे खुलकर बोलना ये सारी
चीज अब उसके अंदर से मानो गायब सी हो गई थी। अब वो धीर-गंभीर दखाई दे रही
थी। गहरे िवचार म खोई ई सी लग रही थी।
मुकेश के प च
ँ ने पर उसने औपचा रक मु कु राहट से वेलकम कया। पहले ऐसा नह होता
था। पहले वो मुकेश को छेड़ा करती थी। उसे इिडयट, बेवकू फ बोलकर ब सी हरकरत
कया करती थी। अब वो उसे राइटर साहब बोलकर बड़े ही औपचा रक तरीके से िमल
रही थी। उसे देख मुकेश को लगा क िज दगी ने ज र इसे गंभीर बना दया होगा। जीवन
क पाठशाला ही कु छ ऐसी है क वो सब को गंभीर बाना देती है। वो चुपचाप ुित को
ऑ जव करता रहा। वेटर आया। ुित ने दूर से ही दो को ड काफ का इशारा कया। वेटर
िसर झुकाये चला गया। उसके बाद कु छ पल के िलए स ाटा छा गया। ऐसा भी पहली बार
हो रहा था क दोन चुप बैठे है और कै फे का शोरगुल उन पर हावी हो रहा है। ुित
चुपचाप छोटी वाली अंगुली के नाखून से टेबल को कु रे द रही थी।
मुकेश भी िह मत नह कर पा रहा था बातचीत शु करने क । उसे कु छ भी समझ नह आ
रहा था क कस बात से शु आव करे ! या पूछे और कन ल ज म उससे उसका हाल
पूछे? उसने गला खखारते ए पूछा, ‘‘ल बे समय के बाद तुमसे िमलकर अ छा लगा।
सोचा नह था क तुमसे फर से मुलाकात होगी।’’
‘‘कभी-कभी जो सचते है वो नह होता बि क वो हो जाता है िजसके बारे म सोच भी नह
सकते।’’ ुित क आवाज़ कसी दाशिनक क तरह गहराई म से मानो दद का टु कड़ा बाहर
िनकाल कर ला रही हो। जब इं सान के साथ कोई चोट होती है तभी वो दशन क शरण म
जाता है।
‘‘ या आ कु छ खुलकर बताओगी? तुम तो आरजे क फ म म काम करने वाली थी।’’
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‘‘तुम मुझे माफ तो नह कर सकोगे पर फर भी तुमसे माफ मांगने आई ।ँ ’’ उसक


आँख छलक आई। ऐसा लग रहा था जैसे आँख म पहले से ही समु भरा आ था बस ह के
से थपेड़े का इं तजार था जो इस व लग-सा गया था।
‘‘ऐसी बात मत करो ुित।’’ उसने पीछे क जेब से माल िनकालकर ुित के आँसू
पोछते ए कहा, ‘‘तुम अपनी जगह सही हो, शायद िनयित कोई सबक िसखाना चाहती
थी।’’
आज पहली बार उसने ुित क आँख म आँसू देखे। उसका दल पसीज गया। अगर उसका
बस चलता तो वो कह देता क ुित तुम इतनी परे शान य हो रही हो। एक कहानी क
ही तो बात है। अरे ! तु हारे िलए तो हजार कहािनयाँ कु बान कर दू।ँ
‘‘बात या है, बताओ तो सही?’’ उसने माल फर से जेब म रखते ए पूछा।
‘‘उस दन जब तुमने अंगूठी टेबल पर पटक और चले गये तब मुझे अहसास आ क तुम
मुझे यार करते थे। म ही नासमझ थी जो तु हारी आँख म मेरे िलए चाहता देख नह
पाई। तुम तो चले गये पर म उस दन रातभर सो नह पाई। सोचा तुमसे फोन कर के बात
क ँ , समझाऊँ; पर िह मत नह हो रही थी। मुझे अफसोस इस बात का नह था क
तु हारी कहानी मेरे नाम से बता दी बि क इस बात का यादा अफसोस हो रहा था क
मने एक भोलेभाले, गांव से आये लड़के के साथ धोखा कया िजसे उसके प रवारवालो ने
घर से बाहर िनकाल दया था। मने उसे छला िजसका दल पहले से ही छलती हो चुका
था।’’ कहते ए ुित क आँख से झरना सा बहने लगा। मानो उसने इतने दन
आ ममंथन कर उसका सार-सार रख दया हो।
‘‘बस तुम रोना ब द करो लीज...’’ मुकेश ने टपकने को आतुर आँसु को अंगूठे से पोछते
ए कहा।
‘‘दूसरे दन सोचा आरजे को सब सच-सच बता दूँ क कहानी मने नह िलखी पर जाने
य बता नह पाई। अपने आप पर लािन भी हो रही थी। सोचा क अब कॉपीराइट तो
आरजे को िमल ही चुका है उसके बाद बताने से या फायदा? म इतजार करने लगी उसक
अगली फ म का। मने सोचा उसक अगली फ म म लीड रोल करने के बाद तुमसे िमलने
आऊँगी और जो कु छ आ उसके िलए माफ मांगूँगी ले कन आरजे ने मुझे ही अगली फ म
क कहानी िलखने के िलए बोल दया।’’ ुित ने गहरी सांस लेते ए कहना जारी रखा,
‘‘तुम तो जानते हो, कहानी िलखना हर- कसी के बस क बात नह । मने उस समय खुद
को िन सहाय पाया। कु छ भी नह िलख पाई। तकरीबन एक मिहने तक पेज-दर-पेज
िलखती रही और उ ह फाड़कर फकती रही पर कोई कहानी नह िलख पाई िजस पर
फ म बन सक। फर भी जैसे-तैसे एक कहानी िलख कर ले गई।’’
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‘‘ या सच म तुमने कहानी िलखी?’’ मुकेश ने बीच म टोका।


‘‘हाँ..एक बकवाज़ टोरी िलखी थी िजसे आरजे ने देखते ही फाड़ कर फक दया। तब मुझे
इस बात का अहसास आ क चोरी आसान है पर अपनी ये टवीटी को जगाना मुि कल
है। कसी क कहानी को अपना बता देने से खुद म वो कािबिलयत नह आ जाती जो उसमे
है। म तु हारी कहानी को अपना तो बता सकती थी पर तु हारे जैसी दूसरी कहानी नह
िलख सकती थी।’’
‘‘ .ँ .. फर?’’
‘‘उसके बाद आरजे को कसी दूसरे क कहानी पसंद आ गई और उसने मुझे अगली फ म
म कोई रोल नह दया। लीड़ रोल तो दूर क बात थी।’’
‘‘तो या तु हारी सगाई नह ई उसके साथ?’’
‘‘एक दन मने सगाई के िलए पूछा। जाने य म फर भी ये उ मीद लगाये बैठी थी क
वो मुझे तजीह देगा। म पगला गई थी।’’
‘‘ या कहा उसने?’’
‘‘वो मुझ पर िच लाने लगा, कहने लगा क म शोहरत पाने के िलए उससे सगाई करना
चाहती ।ँ उसने साफ इं कार कर दया। उसी दन म उसक नौकरी छोड़कर आ गई।’’
कै फे पर चहल-पहल बढ़ गई थी। कु छ देर दोन खामोश रहे। एक शू यता दोन के बीच म
छा गई थी। मुकेश ुित के चेहरे पर उभर आई रे खाएँ देखकर अनुमान लगाने क कोिशश
कर रहा था क बेचारी के साथ अ छा नह आ।
‘‘उस दन मुझे अहसास आ क मने तु हारा दल दुखाकर अ छा नह कया। हम दूसर
के दद का तब अ छे से अहसास होता है जब वैसी क वैसी चोट हम भी लगती ह। मुझे
पता चल गया क म िजस आरजे के पीछे पागल क तरह भाग रही थी वो कसी और का
नह हो सका तो मेरा या होगा। तब मुझे लगा क तुम जैसे सीधे-सादे लड़के को मने कु छ
यादा ही नज़रअंदाज कया था। जो इं सान हम सहज म चीज़ उपल ध हो जाता है हम
उसक कदर नह करत। उसके खोने के बाद या जाने के बाद ही हम उसक क मत पता
चलती है।’’ कहते ए ुित क आँख फर से नम हो गई।
‘‘और उसके बाद तुमने मुझे कॉल य नह कया?’’ मुकेश ने बाहर अंधेरे म डू बते शहर
को देखते ए पूछा।
‘‘कै से करती कॉल? मने कौनसा तु हारे साथ अ छा वहार कया? कस मुँह से तु ह
कॉल करती? म तु हारी माफ के लायक भी नह ;ँ पर फर भी आज तब तु ह देख िलया
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तो तुमसे माफ मांगने चली आई।’’ उसक आँख से आँसू क एक बूंद धीमे से नीचे चलने
लगी जैसे कार के लास पर बरसात क बुद होले-होले नीचे को उतरती है।
‘‘ऐसा मत कहो ुित। हम सभी को ठोकर लगती है। मुझे भी लगी थी। तु ह भी लगी है,
तो इसका मतलब या हम आगे चलना छोड़ द। गलती इं सान से ही तो होती है।’’
उस दन काफ देर तक दोन बात करते रहे पर अब ुित वैसी नह रही जैसी पहले थी।
मुकेश ने उसे स बल तो बंधा दया पर वो उस ुित से यार करता था जो नटखट थी। जो
हर व उसे छेड़ा करती थी। इस समय वो ुित नह थी िजससे वो यार करता था। इस
समय ऐसी ुित थी जो कसी बोझ से दबी ई चल रही हो जैसे अि थ-पंजर िनकल चुके
मजदूर के सर पर सौ कलो क बोरी लाद दो िजसे वो बड़ी मुि कल से ढोता आ चलता है
ठीक वैसे ही ुित ब त ही उदास व गंभीर दखाई दे रही थी।
मुकेश ने उसे फ म दूसरी दुिनया के िलए अ छी ए टीग करने क सलाह देते ए
शुभकामनाएँ दी व दोन कै फे से िवदा ए।
समय तो गुजर जाता है पर दल पर लगे ज म भरते नह । अगले दन से ुित रोज
टु िडयो आती और अपनी तरफ से बे ट दशन करती; पर मुकेश से वो यादा बात नह
करती। गुमसुम सी रहती। मुकेश जानता था क उसे सदमे से उभरने म समय लगेगा।
मुकेश तो ुित को आज भी चाहता; पर ुित उससे यादा बात नह करती। वो खुद को
माफ नह कर पा रही थी। जो अतीत गुजर गया, उससे वो उबर नह पा रही थी। मुकेश
उसे समझाता पर वो चुपचाप रहती मानो कु छ भी सुनने को तैयार नह हो।
छह मिहन के अथक प र म के बाद फ म दूसरी दुिनया बनकर तैयार हो गई। ेस-
क े स बुलाकर फ म को रलीज करने क ता रख 6 अ ैल, शु वार क घोषणा भी
कर दी गई। फ म के गाने तुरंत रलीज कर दये गए। गाने यादा कमाल नह दखा पा
रहे थे। रलीज होते ही सारे गाने लोफ हो गए। लोग नापसंद कर रहे थे। उनम कोई
आइटम स ग भी नह था। फ म के ेलर को भी यू ुब पर यादा ू नह िमले थे।
दूसरी तरफ आरजे ने ेस बुलाकर अपनी आगमी फ म ‘बूम-भड़ाका’ के रलीज करने क
घोषणा कर दी और उसक दनांक भी 6 अ ैल, शु वार को िनयत रखी गई। आरजे ारा
बुलाई ेस-क े स म प कार का तांता लगा आ था, जब क ‘दूसरी दुिनया’ के
रलीज होने क ेस-क े स म गीने-चुने प कार आये, उनम से भी अिधकांश बूढ़े हो
चुके थे और टाइमपास करने व चाय-ना ता करने के िहसाब से आ गये थे। सभी को मालूम
था क इस फ म म सारे करदार नये है। लेखक भी कोई नया लड़का, अिभनेता और
अिभने ी भी नये।
इधर आरजे क फ म ‘बूम-भड़ाका’ के गाने भी रलीज कर दये गये जो क सारे आइटम
स ग थे व धूम मचा रहे थे। उन गान म सारी लड़ कयाँ स या यूरोप से बुलाई गई थी।
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एक से बढ़कर एक।
दूसरी दुिनया के रलीज होने क इतनी चचा नह हो पा रही थी। सब चेहरे नये थे
इसिलए लोग म इतनी िज ासा नह थी। रलीज होने से पहले चार तरफ ऐसी कोई
चचा भी नह थी क फला फ म आने वाली है, जब क आरजे क फ म ‘बूम भड़का’ क
ती ा, लोग बेस ी से करने लगे। पहले दन के सारे शो पहले ही बुक हो चुके थे।
रामकु मार िहराना परे शान लग रहे थे। उ ह ने एकाध यूज चैनल वाले से बात करके
दूसरी दुिनया के टार-का ट का इं टर ू भी करवाया पर बात कु छ जमी नह । नये लोग
का इ टर ू कौन यान से देखता है? वो भी फ म रलीज होने या सुपरिहट होने से
पहले। ठीक उसी कास जैसे संदरू लगने और मं दर म थान पाने से पहले उस प थर को
कोई नह पूजता जो कसी नदी के कनारे स दय से पड़ा आ था। उसे तो मं दर म
ि थािपत होने व संदरू लगने के बाद लोग िसर नवाते ह। जब क बूम-भड़ाका के नायक
आरजे का इं टर ू लेने के िलए प कार म ध ा-मु हो रही थी। एक जगह तो प कार
म भगदड़ मचने से एक प कार क टांग भी टू ट गई थी।
फ म ‘दूसरी दुिनया’ क टार का ट को तो िबग बोस के घर म भी एं ी नह िमली ना
ही किपल शमा के शो म जब क ‘बूम-भड़ाका’ के नायक-नाियका सारे चैनल पर छाये
ए थे।
मुकेश भी परे शान हो रहा था। ये उसके जीवन का पहला और अंितम चांस था। पहली ही
फ म के लोफ होने के बाद उसे कोई दूसरा िनमाता-िनदशक नह िमलने वाला था। उसे
अघोिषत लेक िल ट म डाल दया जायेगा हमेशा के िलए।
िु त तो पहले से ही गुमसुम थी, अब और भी अिधक िड ेशन म चली गई। वो हरव घर
पर ही अके ले म रहती और फ म के रलीज होने का बेस ी से इं तजार करने लगी।
फर वो दन आ गया िजसका सबको बेस ी से इं तजार था। अथात 6 अ ैल का दन, जब
देश ही नह िव के लगभग सारे देश म फ म ‘बूम-भड़ाका’ और दूसरी दुिनया रलीज
ई। पीवीआर वाल ने के वल एक शो दूसरी दुिनया का रखा और बाक सारे शो बूम-
भड़ाका के रखे।
उस दन शाम को सारे यूज चैनल पर एक ही खबर आ रही थी क
‘‘आज रलीज ई फ म बूम-भड़ाका ने एक ही दन म दो सौ करोड़ कमाये जब क दूसरी
दुिनया के अिधकांश शो खाली रहे।’’
रात को जब ये खबर मुकेश ने सुनी तो गहरा सदमा लगा। उसे िव ास नह हो रहा था क
इस कदर नाकाम हो जायेगा। इस फ म के िलए सब कु छ दाव पर लगा दया था। खुद से
अिधक ुित के कै रयर क चंता थी क बेचारी मेरी असफल कहानी के कारण ुित का
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कै रयर बबाद हो गया।


चंता के उसे जोर का झटका लगा। तगड़ा अटैक आया। आँख के सामने अंधेरा छाने लगा।
होटल के कमरे म ही धम् से िगर पड़ा।
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भा ग - 1 5
होटल के िजस म म मुकेश बेहोश होकर िगरा, तभी एक वेटर म के बाहर से गुजर रहा
था। मुकेश के हाथ से पानी क लास छू टने से जोर क आवाज़ आई, िजससे वेटर का यान
म क तरफ गया। उसने गेट खोलकर देखा, मुकेश जमीन पर पड़ा जोर-जोर से सांस लेने
क कोिशश कर रहा था। वेटर ने तुरंत होटल मैनेजर को बुलाया, देखते ही देखते ए बुलस
बुलाई गई व मुकेश को हॉि पटल भेजा गया। मैनेजर ने मुकेश के मोबाइल पर ला ट कॉल
िजसे कया गया था उस नंबर पर कॉल कया तो घंटी ुित के मोबाइल पर बजी। मैनेजर
ने सारी बात ुित को बता दी। जैसे ही ुित ने ये खबर सुनी उसके होश उड़ गये। तुरंत
हॉि पटल प च ँ गई। ज दी-ज दी म वो अपना मोबाइल भी घर ही भूल आई पर मोबाइल
से अिधक उसे सु दरलाल क परवाह थी। परे शान तो वो पहले से ही थी। फ म दूसरी
दुिनया ही उसका एकमा सहारा थी, इसके लोफ होने के बाद कोई उसे चांस देनेवाला
नह । फ म इं ड ी म न जाने कतनी लड़ कयां वे टंग म लगी ई, खुश नसीब होती है
उसे ही ेक िमलता है। दुभा य से मूवी ने इतना कमाल नह दखाया िजतना सोचा था।
इस व इससे भी अिधक चंता उसे मुकेश क होने लगी।

मुकेश को इमरजसी म एडिमट करवाया गया। ुित के प चं ने के बाद होटल से आया


ि वापस होटल चला गया। ुित वे टंग म म जाकर बैठ गई। तकरीबन दस िमिनट
ए ह गे क एक नस ने आवाज़ लगाई, ‘‘सु दरलाल के साथ कौन आया है?’’ आवाज़ के
साथ-साथ उसक िनगाह वे टंग म म बैठे लोग क तरफ दौड़ रही थी। नस क आवाज
िबलकु ल पतली थी मानो कोई म छर कान म िभन-िभनाहट करता है वैसे ही िभन-िभनाई

‘‘यस मैम... या आ? म ।ँ ’’ सु दरलाल का नाम सुनते ही हड़बड़ाहट म चेयर से उठकर


नस क तरफ कदम बढ़ाती ुित ने कहा।

‘‘आपको डा टर साहब बुला रहे है, गेट के बाहर खड़े है।’’ नस ने ओपरे शन गेट क तरफ
इशारा कया जहाँ एक डा टर सफे द कोट पहने, गले म ए टेथो कोपी लटकाये खड़ा था।
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ए टेथो कोपी ऐसे लग रहा था जैसे कोई दो मुँह वाला काला सांप मरा आ गले म पड़ा
हो।

ुित दौड़ी-दौड़ी डा टर साहब के पास प चकर बोली, ‘‘सर उनक तबीयत कै सी है?’’

‘‘पेशट क ि थित काफ गंभीर है। ओपरे शन करना होगा। इस समय कु छ भी कहना
ज दबाजी होगी। आप धैय रिखए और काउं टर पर दो लाख एडवांस जमा करा दीिजए।’’
कहते ए डा टर अंदर चला गया।

डा टर के जाते ही ुित ने तुरंत काउं टर पर दो लाख पये खुद के डेिबट काड से जामा
करा दये। जब रसे सिन ट ने क यूटर पर फाम भरते समय कबोड क धड़धड़ के बीच
गदन उठाकर उससे पूछा क पेशट आपके या लगते है? तब वो कु छ देर के िलए िझझक
गई। रसे सिन ट के िलए तो ये एक कोमन सवाल था पर ुित ने कभी इस बारे म सोचा
नह था। दूसरे ही पल खुद को संभालते ए उसने कहा क वो उसक दो त है।
रसे सनवाली लड़क ने दो सैके ड के िलए उसका चेहरा देखा और फर धड़ाम से कु छ
टाइप कर, एक फाम का ंट िनकालकर, ह ता र क जगह लाइन खंची, फर ुित क
तरफ फाम के साथ एक बगैर ढ न का पेन बढाते ए, खंची ई लाइन के नीचे साइन
करने के िलए कहा। ुित ने पेन लेकर ओपरे शन फाम पर साइन तो कर दये पर अनायास
ही उसक नज़र फाम के नीचे िलखी उस लाइन पर अटक गई िजस पर िलखा था
‘ओपरे शन असफल होने या पेशट क मृ यु होने पर हॉि पटल िज मेदार नह होगा।’

पूरी रात मुकेश को इमरजसी म रखा गया, ुित ने वो रात वे टंग म म बैठकर गुजारी।
आँख म एक पल के िलए भी न द नह आ रही थी। रह-रह कर मुकेश क बात, उसका
भोलापन, उसक सहजता आँख के आगे नाच रही थी। हर इं सान के पास कु छ ऐसे दृ य
होते है जो मैमोरी म थाई प से सेव होते ह। या तो वे दृ य ब त ही पेशल होते ह या
ब त ही बुरे। मुकेश के ऐसे ही रोचाक दृ य उसक मृित म आ रहे थे। वो िजतना मुकेश
को जानती थी, उतना उसे कोई नह जानता था। पहली बार ावे स क सीट पर दो घंटे
उदयपुर तक के िलए उसने मुकेश को ओ जव कया था। आज भी ये लड़का वैसा का वैसा
ही है। एक इं च नह बदला। इं सान अ सर पद और दौलत िमलने के बाद बदल जाता है पर
मुकेश आज भी उतना ही सीधा था िजतना पहली बार देखा था। उसे ये सोच-सोच कर
रोना भी आ रहा था क काश! उसने मुकेश को पहले ही समझ िलया होता। ये इं सान क
वृित है क सरल चीज पर वो यान नह देता बि क ज टलता म उलझा आ रहता है।
ये दुिनया ब त ही अ छी और सरल है पर हम कभी उस अ छाई पर यान ही नह देते
जो हमारे इद-िगद है बि क अपना पूरा जीवन इस ज ोजहद म गुजार देते है क कसने
हमारे साथ बुरा बताव कया।
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हॉि पटल के वे टंग म का वातारण हमेशा ही गमगीन होता है। समय के साथ वहाँ नये
लोग आते और पुराने लोग अपने ज म भर जाने पर चले जाते है, उठकर... चुपचाप...।
आने-जाने के म म जो थाई रहता है वो है वे टग म क चेयर, सामने क दीवार पर
लगी स ह इं च क एलइडी टीवी, सीएलएफ ब ब और दो-चार पो टर जो वा य क
ज री जानकारी देते ए स दय से लोग के चेहरे क उदासी के सा ी बने ए है।
का शा म व णत शांत और िनवद भाव अगर कसी को देखना हो तो वो हॉि पटल
हॉि पटल के इमरजसी म के बाहर बने वे टंग म म जाकर बैठ जाये। वहाँ पर अ सर ये
दो भाव ही लोग के चेहर पर दखाई देते है।

इस सयम ुित अपने आँसू पोछकर चुपचाप बैठी आसपास के लोग को देखते ए सोच
रही थी। यहाँ पर मौजूद लोग म से अिधकांश कसी ना कसी पेशट के र तेदार थे। उनके
चेहरे पर र ता झलक रहा था। िजसका पेशट िजतना यादा नजदीक होता उसका चेहरा
उतना ही उदास, मायूस, गंभीर, िनराश या रोता आ दखाई देता। ुित के बगलवाली
सीट पर एक पु , िपजाती के िलए आँख म आँसू िलए टीवी को देखते ए भी नह देख
रहा था। सामने क चेयर पर कसी पेशंट क प ी अपने पित के िलए रो रही थी। उसका
रोना कोई नाॅ टस नह कर पा रहा था य क उसने अपने चेहरे को माल से ढका आ
था। पीछे क चेयर पर एक भाई अपनी बहन के िलए चंितत था तो कोनेवाली चेयर पर
दस साल क बेटी अपनी माँ के िलए बराबर रोये जा रही थी। ुित को लगा क जैसे सारे
लोग मुझसे पूछ रहे है क तु हारा पेशट से या र ता है? वो तु हारा या लगता है क
तुम इतना रो रही हो?

ऐसे ही कि पत सवाल-जवाब से िथत ुित क आँख बरबस ही बरस रही थी। उसे लग
क कह ना कह उसने मुकेश के साथ अ छा नह कया। इस िसचुवेशन क िज मेदार तो
म खुद ।ँ अगर मने उसक पहली कहानी नह चुराई होती तो आज उसे ये दन नह
देखना पड़ता। पहले तो उसके प रवारवाल ने उसे छोड़ दया, फर मने उसे धोख दया,
उसके बाद िनयित ने उस पर ऐसी चोट क क बेचार संभल नह पाया। कोई इं सान कब
तक तकलीफ सहता रहे। एक ना एक दन ऐसा आता है जब वो टू टकर िबखर ही जाता है,
ठीक उसी कार जैसे बार-बार चोट करने पर बुलेट ुफ लास भी एक दन टू ट जाता है।

सोच-िवचार के संसार म डू बे कब सवेरा हो गया पता ही नह चला। वो बार-बार


आॅपरे शन म के बाहर च र काटे जा रही थी पर डा टर कु छ भी नह बता रहे थे। उसका
दल बैठा जा रहा था। जैसे ही वो वे टंग म क तरफ मुड़ी क डा टर बाहर आये, उसने
पीछे मुड़कर पूछा, ‘‘सर ! सु दरलाल क तबीयत कै सी है? या वो बच जायेगा?’’

‘‘जी...अब वो खतरे से बाहर है।’’ कहते ए डा टर वहाँ से चला गया।


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डा टर के िलए ये महज कु छ ल ज थे जब क ुित के िलए नई दुिनया के ार थे जो बंद


होते-होते खुल गये। वो उछल पड़ी, चेहरे पर अ यािशत खुशी छा गई।

उसके बाद मुकेश को सामा य वाड के म नंबर दस म िश ट कर दया गया पर वो अभी


भी बेहोश था। ुित हरव उसके पास ही रही। उसने कसी से मोबाइल मांगकर नेट से
दादू क बुक टोर के नंबर सच कर के उ ह कॉल कया व उ ह सारा वाकया बता दया।
दादू उसी समय उससे िमलने आये पर मुकेश को अभी तक होश नह आया था। तीसरे दन
फर से दादू िमलने आये तो देखा, ुित उसी स
े म मुकेश के सामने रखे टू ल पर बैठी ऊंघ
रही थी। ुित को देखकर दादू को समझते देर नह लगी क लड़क तीन दन से घर नह
गई। दनरात यहाँ बैठी मुकेश का खयाल रख रही है।

‘‘बेटा तुम घर जाकर, नहा-धोकर आ जाओ, तब तक म यह बैठा ।ँ दुकान पर संतोष को


िबठाकर आया ।ँ ’’ दादू ने टू ल पर बैठते ए ुित को समझाया।

िु त एक पल के िलए भी उसे छोड़कर जाना तो नह चाहती थी पर ये सोचकर जाने को


तैयार हो गई क अब तबीयत भी ठीक है और दादू यहाँ बैठे है तब तक कोई चंता नह ।
उसने अपना पस उठाते ए कहा, ‘‘म एक घंटे म वापस आती ।ँ ’’ कहते ए वो हॉि पटल
से बाहर िनकली। आने के बाद से वो कह नह गई थी, आज पहली बार हॉि पटल से
बाहर िनकली। ऐसा उसके जीवन म पहली बार आ जब वो कसी के िलए इतना परे शान
ई थी। तीन दन से नहाई नह थी, श नह कया था, कपड़े नह बदले थे पर जाने य
उसके चेहरे पर अजीब सी खुशी थी। उसे रयलाइज हो रहा था क उसने पहली बार
जीवन म कु छ अ छा काम कया है। इससे पहले वो खुद के िलए ही सोचा करती थी। इस
बात क खुशी भी थी क चलो अब उसका सु दरलाल िज दा बच गया।

जैसे ही िु त बाहर िनकली मुकेश को होश आ गया, उसने ुित को जाते ए देखा िलया।
सामने टू ल पर दादू बैठे उसी क तरफ देख रहे थे।

‘‘तुमने तो उसे दवाना बना दया। तीन दन से तु हारे िलये परे शान हो रही थी। आज
मने िजद कर के घर भेजा।’’ दादू ने सारा वाकया मुकेश को बता दया। मुकेश क आँख से
दो बूंद िनकलकर अनायास ही आँख के कनारे होकर कान के पीछे से िब तर पर ढु लक
गई।

‘‘दादू मने ऐसा कु छ भी नह कया, बस जो कु छ भी कया दल से कया। पहले जब गांव


था तब दमाग लगाकर जीवन को खूब बदलने क कोिशश क पर कु छ भी हाथ नह लगा।
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फर मने दमाग क छोड़कर दल क कमान हाथ म थाम ली।’’

‘‘पता है! हम दमाग के घौड़े दौड़ा-दौड़ा कर स सेज के पीछे भागते रहते है; पर वो
कमब त उतनी ही दूर होती चली जाती है। फर एक दन पसीने से तर-ब-तर, थक-हार
कर बैठ जाते है और दमाग को शांत कर लेते है, तब सारा िनयं ण दल के पास चला
जाता है। और जाने य उसी समय से चीज बदलने लगती है। स सेज कसी चु बक क
तरह हमारी तरफ ख ची चली आती है।’’

‘‘म ज दी िनराश हो गया था दादू। मने इतनी कताब पढ़ी पर वाकई म जब मुिसबत आई
तो म खुद को संभाल नह पाया। मुझे लगा क मेरे सपन का महल ताश के प क तरह
धराशायी हो गया। मुझे लगा क अब मेरे जीवन म कु छ भी नह बचा। उस व लगा जैसे
अब म कु छ भी नह कर सकता। जाने य उस व इतनी नकारा मकता हावी हो गई, पर
अब लगता है क जंदा ँ तो फर से महल बना सकता ।ँ अब लग रहा है क िनयित कह
ना कह मुझे सबक संखा रही ह।’’

‘‘तुम भावुक हो, इसिलए ज दी िनराश हो जाते हो। अपनी भावना पर िनयं ण
थािपत करना सीखो।’’

आधे घंटे म ही ुित नहा-धोकर वापस आ गई। मुकेश उसी क ती ा कर रहा था। गेट से
जैसे ही कमरे म वेश कया दोन क आँख टकराई, मुकेश हो होश म आये देख उसका
चेहरा िखल गया। एक ह क सी मु कु राहट दोन के चेहर पर छा गई। ुित के आने के
बाद दादू ये कहते ए चले गये क ज दी ठीक होकर आ जाओ। सरदार बुक हाउस क
िब डंग तु हारा इं तजार कर रही है।

‘‘हाय सु दरलाल...।’’ दादू के बाहर जाते ही ुित ने पलंग पर पड़े-पड़े ही मुकेश को गले
लग िलया।

‘‘तुमने मेरे िलए इतनी...‘‘ इससे पहले क मुकेश आगे कु छ कहता, ुित क आँख से
िनकले आँसू उसके चेहरे पर टप-टप कर के टपकने लगे। उसने ुित को ऊपर उठाते ए
कहा, ‘‘तुम रो रही हो ुित? तु ह मेरी कमस होगी अगर एक भी आँसू िगराया तो।’’

‘‘म अपने आप को माफ नह कर पा रही थी।’’ नह चाहते ए भी उसक आँख बरस रही
थी।
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‘‘अब चुप हो जाओ वरना मुझे दूसरा अटैक आ जायेगा।’’ उसने शट से ुित के आँसू पोछे।

‘‘चल झूठे कह के ।’’

उसके बाद दोन हंसने लगे। फर कु छ देर तक कमरे म स ाटा छा गया। ऐसा लग रहा था
क जैसे दोन ही एक दूसरे को ब त कु छ कहना चाहते है पर कोई भी पहल नह कर पा
रहा था।

‘‘ या तुमने मुझे माफ कर दया।’’ ुित ने पलंग क च र के धागे को खंचते ए पूछा।

‘‘िबलकु ल कर दया ुित।’’

िु त ने पस म से वो अंगूठी बाहर िनकाली जो उसे पहनाने के िलए छह मिहने पहले मुकेश


कबीर कै फे पर लेकर आया था। अंगूठी मुकेश क तरफ बढ़ाते ए कहा, ‘‘तु हारी अमानत
को संभाल के रखा है।’’

मुकेश ने देखा, वही अंगूठी थी जो वह उस दन कबीर कै फे पर लेकर गया था ुित को


पोज कर के पहनाने के िलए। मुकेश देख ही रहा था इतने म ुित ने उसके हाथ को अपने
हाथ म लेकर कहा, ‘‘आई लव यू सु दरलाल...’’

मुकेश कु छ भी नह बोल पा रहा था। ुित के मुँह से ये ल ज सुनने के िलए उसके कान
तरस गये थे। कतनी िश त से यार करता ँ इस पागल लड़क को पर इसने कतने दन
बाद मेरे यार को समझा। पहले दन से ही जाने या जादू कर गई क अभी तक उससे
बाहर िनकल नह पाया। ुित के श द उसके कान म बार-बार गूंज रहे थे। उसने देखा,
ुित क आँख म इस बार स ावाला यार दखाई दे रहा था।

‘‘तुम मुझे र ले दो ये ज री नह बस म तुमसे यार करती ।ँ ’’ कहते ए ुित उठ गई।


जब ब त देर से मुकेश कोई र ले नह दे रहा था तो ुित ने समझा क शायद उसके दल
म अब मेरे िलया यार नह रहा हो।

िु त जैसे ही कमरे से बाहर जाने के िलए पलंग से उठी, मुकेश ने उसका हाथ पकड़ िलया
और बोला,
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‘‘आई लव यू टू .. ुित...मरते दम तक।’’

िु त ने अचानक मुड़कर देखा, जैसे उसे अपने कान पर यक न नह हो रहा हो और वो खुद


देख लेना चाहती हो मुकेश क आँख म। ुित को मुड़े देख मुकेश ने कहा, ‘‘म तो तुमसे उस
दन से यार करने लगा था जब पहली बार ावे स म देखा था। आज भी उतना ही करता
ँ और हमेशा करता र ग ँ ा।’’ उसने ुित का हाथ खंचकर उसे पलंग पर फर से िबठा
दया।

‘‘ रयली।’’

‘‘यस...’’

उसके बाद ुित ने मुकेश के होठ पर अपने होठ रख दये।

मुकेश ने अँगूठी ुित क तरफ बढ़ाते ए कहा, ‘‘ ुित तुम मुझसे शादी करोगी।’’

‘‘िबलकु ल क ँ गी मेरे भोले सु दरलाल।’’ कहते ए ुित उछल पड़ी। उसने फर से मुकेश
के होठ पर कस कर दया।

वो कस कर ही रही थी क कमरे म दूसरी दुिनया के िनमाता-िनदशक रामकु मार और


अिभनेता अरशद ने वेश कया। रामकु मार ने खखारकर गला ठीक करते ए दखावे के
िलए खांसने क आवाज िनकाली ता क दोन को मालूम चल जाये क कमरे म कोई और
भी है।

िु त तुरंत उठकर शमाती-लजाती मुकेश से दूर हो गई। मुकेश क हवाइयाँ भी उड़ गई थी


पर रामकु मार और अरशद अपनी मु कान नह रोक पा रहे थे। दोन के हाथ म गुलद ते
थे।

‘‘कै से हो राइटर साहब?’’ रामकु मार ने मुकेश के पलंग पर बैठते ए पूछा।

‘‘ठीक ँ सर...’’

अरशद सामने टू ल पर बैठ गया। ुित पीछे खड़ी हो गई थी। इस समय उसक िह मत
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नह हो रही थी सामने बैठने क ।

तु ह कतने कॉल कये’’ जेब से माल िनकालकर ललाट से पसीना प छते ए रामकु मार
ने कहा, ‘‘कोई र प स नह िमलने पर तु हारे होटले जाकर मालूम कया तो पता चला
क तुम यहाँ हॉि पटल म एडिमट हो। मालूम चलते ही हम दोन तुरंत चले आये।’’

‘‘सर मेरा मोबाइल होटल म ही छू ट गया। म तो उस व बेहोश हो गया था।’’

‘‘म समझ सकता ।ँ ’’

‘‘ फ म के िलए माफ चाहता ँ सर...’’ मुकेश ने इस बात का अफसोस जताया क वो


ठीक से कहानी नह िलख पाया िजससे फ म यादा चल नह पाई।

‘‘ या तुम समाचार नह देखते हो?’’ रामकु मार ने आ य से पूछा।

‘‘मुझे आज ही होश आया। िपछले तीन दन से बेहोश था।’’

‘‘और तुमने भी इ ह नही बताया ुित?’’ रामकु मार ने ुित क तरफ मुड़कर आ य से
देखते ए कहा, ‘‘हमने तु ह भी कतने कॉल कये पर तुमने फोन उठाया ही नह ।’’

‘‘ए चुली... सर मेरा मोबाइल भी हड़बड़ाहट म घर पर ही छू ट गया था। िपछले तीन


दन से म यह थी तो आपका फोन नह ले सक ।’’ ुित ने खड़े-खड़े ही बताया।

‘‘ या वाकई म तुम दोन को नह मालूम?’’ इस बार रामकु मार ने ललाट पर सलवटे लाते
ए पूछा।

‘‘नह सर...आप कस बारे म बात कर रहे ह? म कु छ समझी नह ?’’ ुित ने दोन कं धे


उचकाते ए अनिभ ता कट क । उसे नहाने का टाइम नह िमला तो भला यूज या
देखती।

‘‘ या वाकई म आप दोन को नह पता?’’ इस बार फ म दुसरी दुिनया के ए टर अरशद


ने दोन हाथो को गोल-गोल घुमाते ए पूछा।
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‘‘नह ...’’ दोन एक साथ बोले। इस समय मुकेश और ुित के चेहरे पर कौतुहल था। दोन
समझ नह पा रहे थे क ये कस बारे म बात कर रहे ह।

रामकु मार और अरशद ने एकदूसरे को देखा और जोर-जोर से हँसने लगे। कु छ देर तक


कमरे म ठहाक क विनयाँ गुंजती रही, फर रामकु मार ने कहा, ‘‘हमारी फ म दूसरी
दुिनया ने आरजे क फ म को कमाई के मामले म पीछे छोड़ दया।’’

‘‘ या...???’’ दोन के मुँह से एक साथ िनकला।

‘‘और मा चार दन म लागत से डबल कमाई कर ली।’’ अरशद ने कहा।

‘‘पर पहले दन तो उसने िनराश कया था...’’ मुकेश ने पूछा।

‘‘पहले दन तो फ म दूसरी दुिनया को कम दशक िमले पर दूसरे दन से ही लोग इस


फ म को देखने उमड़ पड़े। पहले दन आरजे ने माक टंग के दम पर भीड़ जुटा ली थी; पर
कसी को उसक फ म पसंद नह आई। लोग िथयेटर से बाहर िनकलकर, पानी पी-पी कर
आरजे को कोस रहे थे। इधर हमने माक टंग पर यादा पैसा नह लगया, इसिलए पहले
दन यादा शो नह िमले; पर जो लोग फ म देखकर बाहर िनकले, वे उछल-उछल कर
फ म दूसरी दुिनया क तारीफ कर रहे थे। जैसे ही सोशल मीिडया पर ये खबर फै ली क
फ म दूसरी दुिनया कमाल क फ म है, सब को एक बार ज र देखनी चािहए, वैसे ही
लोग का जूम उमड़ पड़ा। जो भी इस फ म को देख रहा है वो बाहर आकर यही कह
रहा है क फ म मनोरं जन के साथ-साथ लाइफ लेसन भी देती है।’’ उसके बाद मुकेश क
तरफ देखते ए रामकु मार िहराना कहने लगे, ‘‘सब तु हारी कहानी क तारीफ कर रहे ह
। उ ह इस फ म क कहानी कसी ई, दशक को बांधे रखने वाली, पूरी तरह से मनोरं जन
देनेवाली और सबसे मह वपूण, लोग को े रत करनेवाली लग रही है।’’

‘‘कह आप मेरा दल रखने के िलए तो नह कह रहे ह सर?’’ मुकेश को लगा क उसके


ेस को कम करने के िलए तो नह कह रहे है।

मुकेश क बात सुन रामकु मार िहराना ने अपनी जेब से आईफोन िनकाल कर गूगल पर
बॉ स ऑ फस रपोट सच कर के मोबाइल न मुकेश के चेहरे के पास ले जाकर दखाते
ए कहा, ‘‘बॉ स ऑ फस रपोट म फ म बूम भड़ाका ने अभी तक तीन सौ पचास करोड़
क कमाई क जब क चार दन म फ म दूसरी दुिनया ने तीन सौ पचह र करोड़ कमा
िलये। पहले दन पचीस करोड़, दूसरे दन पचास, तीसरे दन सौ करोड़ व चौथे दन दो
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सौ करोड़ कमाये। इस कार से शनैः-शनैः फ म क कमाई बढ़ती जा रही है, जब क बूम


भड़का ने पहले दन तीन सौ करोड़ कमाये, दूसरे दन प ीस, तीसरे दन प ह व चैथे
दन दस करोड़ कमाये।’

रामकु मार क बात सुन दोन उछल पड़े। ुित के चेहरे पर भी खुशी क लहर दौड़ गई।

‘‘ये तो ब त अ छी खबर है सर।’’ ुित ने दोन हाथ क मु याँ भंचकर ऊपर उठाते
ए कहा।

‘‘और तु हारे अिभनय क भी काफ तारीफ कर रहे है लोग।’’ अरशद ने कहा।

‘‘थ स...’’ ुित को उ मीद नह थी क इतनी ज दी सब कु छ बदल जायेगा। अभी कु छ


देर पहले तो वो िनराशा के समु म डू बी ई थी और अब िहमालय क चोटी पर प च

गई।

‘‘अ छा अब चलता ।ँ ज दी ठीक हो जाओ तो फ म क स सेज पाटी रखते है।’’


रामकु मार ने उठते ए कहा, ‘‘और हाँ अब तुम सब टार बन गये हो तो मीिडया के सामने
जरा सोच समझकर बोलना।’’

इसके बाद दोन उठकर रवाना हो गये। गेट तक जाकर रामकु मार सर ने मुड़कर कहा,
‘‘तु हारी अगली कहानी का इं तजार रहेगा? बेस ी से...’’ और उसके बाद दोन चले गये।

उसके दो दन बाद मुकेश को िड चाज कर दया गया। िजस दन िड चाज कया उस दन


दादू और संतोष भी आ गये थे। जैसे ही चार बाहर आये तो ये देखकर हैरान हो गये क
हा पीटल केे बाहर प कार क भीड जमी ई थी। सारे प कार अपना-अपना माइक हाथ
म थामे बेस ी से इं तजार कर रहे थे ुित और सु दरलाल का।

‘‘ ुित मैम आपक अगली फ म कौनसी होगी?’’ एक प कार ने ुित क तरफ माइक
बढ़ाते ए पूछा।

‘‘िम टर सु दरलाल आपक कहानी तो कमाल क थी। आगे कसके साथ फ म बनाने का
िवचार है?’’ दूसरे ने मुकेश से पूछा।
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इसी कार प कार सवाल पूछते रहे, ुित व मुकेश दल से जवाब देते रहे। ुित इस
समय भारत क उभरती ए ेस बन चुक थी तो मुकेश पापुलर राइटर। िजसक पहली ही
फ म कमाल दखा चुक थी। दोन एक दूसरे का हाथ थामे ए थे। अंत म दोन ने ेस के
सामने एकदूसरे से शादी करने क घोषणा कर दी।

बड़ी मुि कल से वे गाड़ी म बैठकर वहाँ से िनकले। रा ते म दादू ने मुकेश से पूछा, ‘‘तुम
चाहो तो सरदार बुक हाउस म रह सकते हो। अगर तु ह ठीक लगे तो।’’

‘‘म वह र ग
ँ ा दादू। जहाँ से शु वात क है उस थान को भला कै से छोड़ सकता ।ँ ’’

‘‘ या तु हारा सपना पूरा हो गया मुकेश?’’ दादू ने गंभीर होकर पूछा

‘‘नह दादू...अभी तो शु वात है।‘‘ कहते ए मुकेश अपने सपने के बारे म सोचने लगा।
अभी तो उसने एक ितहाई सफलता ा क है। अभी तो उसे ए टर बनना है फर
डायरे टर बनना है और एक दन ऐसा आयेगा जब अपनी िलखी कहानी पर खुद ही लीड
रोल क ँ गा और उस फ म को डायरे ट भी क ँ गा।

सरदार बुक हाउस प च


ँ ते ही मुकेश ने अलमारी म रखे उस जादुई प थर को िनकालकर
चूमा और ये कहते ए जेब म रख दया क,
‘‘मने खामखाह ही तुम पर शक कया था। तु ह यहां पटक दया। मने तुमसे जो चीज
मांगी थी वो सब तो तुमने मुझे दे दी...बस वांिछत चीज िमलने म थोड़ा व ज र लगा
और कु छ अ यािशत क ठनाइयां भी सामने आयी; कं तु मंिजल िमली ज र। अब सोचता
,ँ वो सब क ठनाइयां तो मंिजल का िह सा मा थी िजसे म असफलता समझ रहा था।
मुझे अब पता चल गया क जादू तो मेरे अंदर है। तुम तो बस इस बात का अहसास कराते
हो क इस दुिनया म जादू संभव है य द खुद पर यक न करो तो। अब से म खुद पर यक न
क ँ गा। तु ह साथ रखूंगा ता क तुम मुझे हरव महसूस करा सको क जादू मेरे अंदर छु पा
है।’’ इसके बाद उसने उस जादुई प थर को हमेशा के िलए अपने पास रख िलया।

उस दन उसने पहली बार अपनी माँ और बड़े भाई के नाम एक प िलखा और दस लाख
का चेक िलफाफे म रख कर भेज दया। प म िलखा,

‘‘माँ और बड़े भाईसाहब !


म जानता ँ क म आपक उ मीद पर खरा नह उतर सका और सरकारी नौकरी नह
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लग पाया इसिलए आपने मुझे घर से आधी रात को बाहर िनकाल दया। म भावुक ,ँ
परे शान था, असफलता से तंग आ चुका था, ऊपर से आपके तान से अंदर से िहल गया था।
एक बार मेरे अंदर झांककर तो देखा होता क म या कर सकता ।ँ आपने कभी मेरे अंदर
क उन असीम मता पर यान नह दया। मुझे बस थोड़ा सा यार चािहए था और
आप दोन का िव ास चािहये था, बा क सारी दुिनया को िहलाकर रखने क ताकत रखता
था; पर बद क मती से आपने मेरे अंदर क उस ताकत को समझा नह और छोटी-माटी
बोत पर ही मुझे घर से बाहर िनकाल दया।

अब सोचता ँ क इ ह बात ने तो मुझे मेरी िनयित क तरफ धके ला। ठोकर नह लगती
तो म आज भी उसी गांव म रह जाता या कोई छोटी-मोटी नौकरी करते ए अपना जीवन
गुजार देता। अब सोचता ँ तो लगता है क इसम आपका कोई दोष नह , ये तो मेरी
सफलता के िलए ज री था। उ मीद करता ँ आप मेरी फ लंग को समझ पा रहे ह गे।
आपका मुकेश।’’
उसके बाद मुकेश अगली कहानी िलखने म त हो गया। उसने अपनी तरफ से बुक हाउस
के सारे लोग को व ुित को फाइव टार म खाना िखलाकर अपना वादा पूरा कया। उसे
अलग कमरा दे दया गया िजसम के वल िलखने-पढ़ने का काम ही था। यादातर समय
मुकेश कताब पढ़ा करता और बा क टाइम कहानी िलखने म गुजारता। अब वो ऐसी
कहानी क तलाश म था जो अभी तक कसी ने नह िलखी हो और सोची हो, कहानी कु छ
हटकर हो, जो अंदर से झकझोर कर रख दे। उसने अपने कमरे क दीवार पर बड़े अ र म
एक किवता - जो खुद ने िलखी थी- िचपका दी, ता क हर दन उस पर नज़र पड़ती रहे,
तुम कोई मामूली नह हो
तुम महान हो ! तुम कमाल के हो!
दल से बड़े सपने देखो
खुद पर िव ास रखते ए
सपन क राह पर चल दो
हार-जीत, िगरना-संभलना तो होता रहेगा
तुम बस चलते रहो
चलते रहो
और एक दन
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तु हारा सपना सच होगा


य क
दल से सपने देखने वाल के सपने
हमेशा सच होते है।
य क
तुम कोई मामूली नह हो
तुम महान हो ! तुम कमाल के हो!

(कहानी समा )

(ये उप यास आप सभी के सपन के नाम करता ँ, जो शी ही 'दूसरी दुिनया' नाम से


कताब के प म कािशत होगा व अमेज़न पर उपल ध होगा। बहरहाल, फाईव टार
र ू देकर कम स कर बताइयेगा ज र)

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Prem S Gurjar
लेखक प रचय:- पहले
ही उप यास
‘ फलाॅसाॅफस टोन’ से
सु खय म आनेवाले
ेम एस गुजर
राज थान के उदयपुर
शहर से 80 कमी दूर
एक छोटे से गांव से
ता लुक रखते है।
फलासाफस टोन वष 2018 को नई द ली के िह द यु म पि लके शन से कािशत आ
था। ये अमेजन क बे ट सेलर िल ट म थान बना चुका है। कािशत होते ही ये नावेल
टीवी और ंट मीिडया क सुिखय म रहा।

लेखक फ म के िलए ट लेखन का काम भी कर रहे ह। इनक िलखी ट पर ज द


ही एक वेब सी रज बनने वाली है।

लेखक का दूसरा उप यास ‘स ावाला यार’ नाम से कािशत होने के िलए ेस म गया
आ है। ये लव टोरी पर आधा रत उप यास है। इसम राज थान क माटी क स धी महक
महसूस क जा सकती ह। ये राज थान क आंचिलकता के खूबसूरती के साथ समेटता है।
कहानी को ब त ही खूबसूरती के साथ तुत कया गया है क पाठक अंत पढ़े बगैर उठ
नह सकत। इस नावेल पर फ म बनने क तैयारी है। तीसरा उप यास ‘रह य’ नाम से
शी ही मु बई के बुक कै फे पि लके शन से कािशत होनेवाला है जो क ांटम भौितक पर
आधा रत सांइस फ शन उप यास है।

लेखक का पहला कहानी सं ह शी ही ‘सरकारी नौकरी’ नाम से आनेवाला है।


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दैिनक भा कार और गितशील लेखक संघ ारा ेम एस गुजर को िह दी सािह य म युवा


सािह यकार के प म कहानी और कथा िवधा म दूसरा थान दान कया गया।
सािह यकार ानरं जन जी, उदय काश जी, ममता कािलया जी और िजते भा टया जी
के िनणायक म डल ारा ेम एस गुजर को कहानी और कथा िवधा म दूसरा थान दया
गया।

वतमान म लेखक राज थान िश ा िवभाग म ा यापक पद ‘झील क नगरी’ उदयपुर म


कायरत ह। ातक, िश ा ातक के प ात् िह दी सािह य, इितहास एवं राजनीित
िव ान म ातको र क उपािध ा क । िह दी एवं इितहास म रा ीय पा ता परी ा
(नेट) उ ीण तथा िह दी म रा य पा ता परी ा (सेट) भी उ ीण कर ली।

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Dusri Duniya
इस पु तक म िन 50 से फ-हे फ कताब का सार या नीचोड़ है।
01.म मन :ँ Main Mann Hoon (Hindi Edition) (ि वेदी, दीप)
02. Vishwas ki Taqat (Hindi Edition) (Joe Vitale)
03.MANN KE CHAMATKAR (Hindi) (Murphy, Dr. Joseph)
04.1% Formula (the 1% Solution) (Hindi) (Tom Connellan)
05.TELEPSYCHICS (Hindi) (Murphy, Dr. Joseph)
06.Invincible Thinking (Hindi) (Okawa, Ryuho)
07.Life Is What You Make It (Hindi Edition) (Shenoy, Preeti)
08.Anant Chetna Ki Khoj Mein (Hindi) (Singer, Michael A.)
09.Leonardo da Vinci: A Life From Beginning to End (History, Hourly)
10.Megaliving: 30 Days to a Perfect Life (Hindi) (Hindi Edition) (Sharma,
Robin)
11.As a Man Thinketh (Allen, James)
12.YE JO HAI ZINDAGI (Hindi Edition) (OPRAH WINFREY)
13.Soch Badlo Zindagi Badlo (Hindi Edition) (Brian Tracy)
14.Jeevan Adbhut Hai (Hindi Edition) (Charlie Jones)
15.Mindset Hindi Book (Hindi Edition) ( वेक, कै रोल)
16.Kamyabi Unlimited (Hindi Edition) (Brian Tracy)
17.The New Science of Getting Rich (Hindi) (Wattles, Wallace D.)
18.Practical Steps to Think and Grow Rich (Hindi Edition) (Napoleon Hill)
19.HERO (Hindi) (Bryne, Rhonda)
20.Apani Soch Se Ameer Baniye (Hindi Edition) (Napoleon Hill)
21.24 Ghante Mein Zindagi Badlein (Hindi) (Hartness, Jim)
22.Discover Your Destiny (Hindi) (Sharma, Robin)
23.Antar Shanti Ki Awaaz - Stillness Speaks in Hindi (Hindi Edition) (Tolle,
Eckhart)
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24.Jeevan Ke Arth Ki Talaash Me Manushya (Hindi edition) (Frankl, Viktor


E.)
25.STEVE JOBS KI TARAH KAISE SOCHEIN (Hindi) (SMITH, DANIEL)
26.Seed Of Genius (Hindi Edition) (Ankur Gupta)
27.Manchahi Safalta Kaise Payen (Hindi Edition) (Napoleon Hill)
28.Mushkil Daur Mein Aage Badhane ke 7 Rahasya (Hindi Edition) (Willie
Jolley)
29.The Success Factor (Hindi) (Hindi Edition) (Leach, John)
30.DHAN KO AAKARSHIT KAISE KAREN (Hindi) (Murphy, Dr. Joseph)
31.Power Pranayama (Hindi) (Mahtani, Dr. Renu)
32.STEPHEN R COVEY KE VIVEKPOORNA VICHAR (Hindi) (Stephen
R Covey)
33.LOGON KO PRABHAVIT KAISE KAREN (Hindi) (Maxwell, John C)
34.The Mastery Manual (Hindi) (Hindi Edition) (Sharma, Robin)
35.Law of Attraction: Secrets To Unleashing The Power From Within
(D'apollonio, Daniel)
36.How to Think Bigger: (Meadows, Martin)
37.CHINTA CHHODO SUKH SE JIYO (Hindi) (Carnegie, Dale)
38.Get Smart! (Hindi) (1) (Hindi Edition) (Tracy, Brian)
39.Who Will Cry When You Die? (Hindi) (Sharma, Robin)
40.Aap Khud Hi Best Hain (Hindi) (Kher, Anupam)
41.Thomas Alva Edison (Hindi) (Mishra, Vinod Kumar)
42.Subconscious Mind Power: (Thompson, James)
43.The Power of Habit: (Hindi Edition) (Duhigg, Charles)
44.Find Your Passion: 25 Questions You Must Ask Yourself (Junttila, Henri)
45.The 21 Day Miracle: How To Change Anything in 3 Short Weeks (Rush,
Ed)
46.Summary of The ONE Thing: (Publishing, La Moneda)
47.100 Ways to Motivate Yourself (Chandler, Steve)
48.Neerh Ka Nirman Phir (Bachchan Autobiography) (Hindi)
(Bachchan^Harivansh Rai)
49.The 80/20 Principle hindi book (Hindi Edition) (कोच, रचड)
50.Kya Bhulu Kya Yaad Karu (Bachchan Autobiography) (Hindi) (Rai,
Bachchan Harivansh)

मने िपछले तीन साल म 100 से यादा से फ-हे फ कताब पढ़ी होगी। उन सब का सार
यही लगा क हम िनरं तर सकारा मक रहते ए सही दशा म यास करना चािहए।
t.me/HindiNovelsAndComics

सवाल ये उठता है क हम आिखर िनरं तर सकारा मक कै से रह जब क एक ही दन म हम


कतनी ही बार परे शान होते है, नकारा मक होते है, हताश हो जाते है। ऐसे म सबसे
ब ढ़या उपाय ये है क आप इस कताब को हर दम अपने साथ रख। ऐसा माना जाता है
क रात को सोने से पहले और सवेरे उठते ही हमारे अवचेतन मन के ार खुले होते है।
अगर उस समय हम अपने आप को सकारा मक रख पाये तो सारा दन कसी चम कार क
तरह गुजरे गा। इसिलए आप सवेरे उठते ही व रात को सोने से ठीक पहले इस कताब के
मो टवेशनल थोट पढ़ ता क आपका नज़ रया सकतारा क रहे।

Philosopher's Stone (Hindi Edition) Kindle Edition


यह एक चरवाहे क कहानी है, जो बचपन से एक ही सपना बार-बार देखता है। राजा
बनने का सपना। एक दन वह धड़कते दल और काँपते क़दम के साथ घर से चल देता है।
उसे नह पता मंिजल कै से िमलेगी! कसी को िनयित के रा ते पहले से मालूम नह होते।
लड़के को िव ास है क जब कोई अपनी िनयित क तलाश म चल देता ह तो ये ांड
उसके िलए वहाँ दरवाजे़ खोल देता ह जहाँ िसफ दीवार ह। तभी उसे दुिनया क सबसे
खूबसूरत राजकु मारी मधुिलका से यार हो जाता है। फर ारं भ होता है एक जादूई जंगल
का सफ़र जहाँ कसी अ ात थान पर सोने के कले म रखे ‘पारस प थर’ ( फलॉसॉफस
टोन) को खोजना है; क तु इससे पहले उसे जंगली लूटेर , मायावी नगरी, जादूई
जानवर , रह यमयी वनदेवी के सा ा य को पार करते ए काले जादू से यु खूँखा़र
कबीलाई सरदार से सामना करना होगा। यही िनयित का सफर है।

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