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Dusri Duniya Inspire by True Story @HindiNovelsAndComics Prem S
Dusri Duniya Inspire by True Story @HindiNovelsAndComics Prem S
me/HindiNovelsAndComics
t.me/HindiNovelsAndComics
D U S R I D U N I YA
inspire by true story
Prem S Gurjar
Kavyam Publication
t.me/HindiNovelsAndComics
The characters and events portrayed in this book are fictitious. Any similarity to real persons, living or
dead, is coincidental and not intended by the author.
No part of this book may be reproduced, or stored in a retrieval system, or transmitted in any form or
by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording, or otherwise, without express written
permission of the publisher.
ISBN-13: 9781234567890
ISBN-10: 1477123456
दूसरी दुिनया
(उप यास)
लेखक
ेम एस गुजर
लेखक प रचय:-
पहले ही उप यास ‘ फलाॅसाॅफस टोन’ से सु खय म आनेवाले ेम एस गुजर राज थान
के उदयपुर शहर से 80 कमी दूर एक छोटे से गांव से ता लुक रखते है। फलासाफस टोन
वष 2018 को नई द ली के िह द यु म पि लके शन से कािशत आ था। ये अमेजन क
बे ट सेलर िल ट म थान बना चुका है। कािशत होते ही ये नावेल टीवी और ंट
मीिडया क सुिखय म रहा।
लेखक का दूसरा उप यास ‘स ावाला यार’ नाम से कािशत होने के िलए ेस म गया
आ है। ये लव टोरी पर आधा रत उप यास है। इसम राज थान क माटी क स धी महक
महसूस क जा सकती ह। ये राज थान क आंचिलकता के खूबसूरती के साथ समेटता है।
कहानी को ब त ही खूबसूरती के साथ तुत कया गया है क पाठक अंत पढ़े बगैर उठ
नह सकत। इस नावेल पर फ म बनने क तैयारी है। तीसरा उप यास ‘रह य’ नाम से
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© ेम एस गुजर
ई-बुक य :-
समय के साथ याएँ भी बदल रही ह। पहले पा डु िलिप पूरी होने के बाद काशक को
भेजी जाती थी। काशक उसे छापने म कभी एक साल तो कभी दो साल भी लगा देते थे।
अब ऐसा नह है। मने इस नॉवेल को िलखते ही सबसे पहले ई-बुक के प म कं डल पर
कािशत कर दया और पा डु िलिप काशक को भी भेज दी। जब तक काशक इसक
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- ेम एस गुजर
कृ त ता
आप सभी पाठक का दल से कृ त ँ क आपने नॉवेल ‘दूसरी दुिनया’ को इतना पसंद
कया। मुझे लगातर मेल पर या मोबाइल पर ित याएँ िमलती रहती ह। म हमेशा से
इस सोच का समथक रहा ँ क कहानी के वल टाइमपास का ज रया नह होनी चािहए।
और ना ही इतनी गंभीर होनी चािहए क एक लाइन से दूसरी पढ़ने का मन ही नह कर।
म म यम माग का प धर ।ँ इस नाॅवेल म मने मनोरं जन के साथ-साथ साथक संदश
े भी
दया ह।
आप सभी का दल से शु गुज़ार ।ँ
- ेम एस गुजर
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भा ग - 1
पहली दुिनया:-
रात के दस बजे, खेड़ा गांव म चार तरफ स ाटा पसरा आ। एकाध घर म से कसी बुजुग
के खांसने या कसी ब े के रोने क ह क सी आवाज़ सुनाई दे जाती उसी कार जैसे कोई
म छर का ब ा कान के पास आकर धीमे से िभनिभना जाता है। कभी-कभी ठ ड से
ठठु रते ए कसी काणे कु े के रोने क आवाज़ आ जाती जो मानो सूिचत कर रहा हो क
ठ ड ब त बढ़ गई है और कोई घर से बाहर नह िनकले। कभी दूर खेत से िसयार के
‘ ई... ई..’ करते वर सुनाई दे रहे थे। अिधकांश ामीण सो चुके थे। देर रात तक जलने
वाले अलाव भी अब बंद हो चुके थे। सद हवा के झ के ने प थर तक को कं पकपा दया था।
सृजनकता ने मेरा सृजन कया। उसे अपने जीवन से नफरत होने लगी। ऐसा समय भी
आता है जब सारी चीज हमारे िवपरीत होने लगे तब हम यादा मजबूती से उभरते है।
मुि कल हम हमारी असली ताकत से, हमारे अंदर क मता से प रचय कराती है।
गु सा सब को आता है पर कम ही लोग इसे सही दशा दे पाते है। मुकेश को भी ब त
गु सा आ रहा था क सारे गाँव को आग लगा दे, कह दे जाओ तुम सब मेरी तरफ से भाड़
म जाओ। कह दे एक दन म भी कु छ बन के दखाऊगा। इस समय उसने अपने सारे गु से,
टेशन को डायरे शन देकर अपनी मंिजल क तरफ मोड़ दया। आज दृढ़ िन य कर
िलया क सफल होकर ही दखाएगा। अगर स सैज को ही पूजते है तो वो भी स सैज
होकर दखाएगा।
अपनो से लगे घाव सबसे यादा तकलीफ देते है। मुकेश बीए पास करने के बाद नौकरी क
तैयारी कर रहा था। घर पर ही रहकर पढ़ाई करता। पहले-पहल तो बड़े भाई ने थोड़ ब त
पढ़ाई का खचा दया पर बाद म शनैः-शनैः वो भी बंद कर दया। धीरे -धीरे उस पर तंज
कसने लगा। आये दन ताने मारता। मुकेश दस िमिनट के िलए भी घर से बाहर कह दो त
के साथ बात करता दख जाता तो रामे ार उसे तान से छलनी कर देता। मुकेश भी अंदर
ही अंदर घुटने लगा। माँ भी रामे र क हाँ म हाँ िमलाती य क इस समय उसका कमाऊ
पूत तो रामे ार ही था। सोने का अ डा देने वाली मुग से कौन बैर रखता है।
आज उसने वो सारी िडि याँ पीछे छोड़ दी जो िपछले प ीस साल म इक ी क थी। जेब
म के वल पचास पये है। इसी से आगे का जीवन गुजारना है। अब उसके पास खोने के िलए
कु छ भी नह बचा; कं तु पाने के िलए पूरी दुिनया है। जब हम पहले से ही गत म होते ह तो
और अिधक िगरने का डर िमट जाता है। ना िगरने का डर, ना असफल होने का डर, ना
दौलत खोने का डर। िगरने से पहले ही िगरने का डर सताता है।
देखते ही देखते गांव पीछे छू ट गया। उसने मोबाईल म टोच चालू कर दी और चुपचाप
चलने लगा। चार तरफ घना जंगल था। घु प अंधेरा।
दूसरी दुिनया:-
रा ल जैन मु बई क हाई ोफाइल पाट से बाहर िनकला। चार तरफ से कै मरा िलए
रपोटर व उसके फे न आरजे क एक झलक पाने को मचल रहे थे। चाकाचैध रोशनी म उसे
आठ-दस बोडीगाड घेरे ए चल रहे थे। बोडीगाड भीड़ को दूर हटाकर आरजे के िलए
रा ता बना रहे थे। इस समय आरजे के चेहरे पर कोई अलौ कक चमक दखाई दे रही थी।
‘‘आर.जे.......आरजे........आरजे......’’ लोग एक वर म टंग कर रहे थे।
‘‘सर सुना है आप शादी करने वाले है।’’ रपोटर ने माईक उसक तरफ करते ए दम
लगाकर पूछा। उसने रपोटर क तरफ देखा तक नह ।
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‘‘लगातार तीन फ म सुपरडू पर िहट देने के बाद आपको कै सा लग रहा है।’’ दूसरे ने ने
पूछा। एक-एक कर के सब कु छ ना कु छ पूछ रहे थे-
‘‘सर मुझे ओटो ाफ दीिजए।’’
‘‘म आपक ब त बड़ी फे न ।ँ ’’
‘‘आप कमाल क ए ट ग करते हो।’’
‘‘आगामी ोजे ट के बारे म कु छ बताइये?’’
इसी कार हाथ म माइक िलए मीिडया और लोग का जूम बेकाबू-सा हो रहा था िजसे
बोडीगाड बखूबी रोके ए थे। आरजे कु छ भी नह बोला। ह क सी दखावटी मु कान
चेहरे पर िबखरते ए चलने लगा। ये तो उसका रोज का टीन है। कभी-कभी उसे लोग
पर तरस आता। कतने फलतू होते है। मेरी एक झलक के िलए घंट खड़े रहते है। मुझे
फॉलो करते है। यही तो इस दुिनया क सबसे बड़ी कमजोरी है। वो दूसर को फोलो करती
है। लोग दूसर के जैसा बनना चाहते है। वे उनके जैसा दखना चाहते है। उनके साथ से फ
लेना चहते है। कोई भी अपने अंदर झांककर नह देखता क वो सबसे अलग है। यहां कोई
कसी के जैसा नह बन सकता। सबके अलग-अलग रा ते ह। सब म वही कािबिलयत है जो
मुझम है पर वे उसे पहचान नह पाते। ‘‘सर गाड़ी तैयार है।’’ एक गाड ने आरजे के कान
के पास आकर कहा। गाड क आवाज़ से उसका चंतन म टू टा। सामने लेक कलर क
बीएमड यू जो तकरीबन पचास करोड़ क होगी, आकर क । एक गाड ने दरवाजा
खोला और आरजे तपाक से उसम बैठ गया। उसके आगे-पीछे तीन-तीन गािड़यां
िस य रटी गाड क थी। देखते ही देखते गािड़याँ वहाँ से च फू च र हो गई। पीछे खड़े
लोग के वल एक झलक पाकर ही अपने आप को ध य मान रहे थे मानो सा ात ई र के
दशन हो गए हो।
‘‘तु हे पता है लोग मेरे दीवाने है। मुझे कतना यार देते है। म तो बस इस दुिनया पर छा
गया ।ँ ’’ आरजे ने ाइवर से कहा।
‘‘जी सर !’’
‘‘ऐसा लगता है ये िज दगी एक वग है। यहाँ मेरे पास वो सब कु छ है िजसका लोग सपना
देखते है।’’
‘‘यू आर रयली ेट सर!’’
‘‘कभी-कभी सोचता ँ ये सब वाकई म सच है या म कोई सपना तो नह देख रहा ?ँ ’’
इतने म आरजे के हाथ म मोबाईल क रं ग बजी। आई फोन इलेवन का मोबाइल था
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भा ग - 2
पहली दुिनया:-
अब गांव काफ पीछे छू ट चुका था। गांव के एकाध घर म जलते ब ब क रोशनी अब
मि म होते ए िवलीन होती जा रही थी। वो इतनी ह क हो गई थी जैसे जुगनू चमक
रहा हो। शनैः शनैः वो भी गायब हो गई। मुकेश का अतीत अब उसका साथ छोड़ चुका था।
उसे अपने वतमान से ही भिव य का िनमाण करना है। उसक आँख अभी भी नम है क
कतना ज दी लोग अपन का साथ छोड़ देते है। काश उसके िपताजी होते तो आज उसे इस
हाल म घर नह छोड़ना पड़ता। वो एक बार तो ज र रोक लेते। वे ऊपर से देख रहे ह गे
इस िन ु र दुिनया क दुिनयादारी को। ज र उनक आँख नम हो गई होगी मेरी क मत
और प रवार वाल के िबहेिवयर पर।
वह चुपचाप चलने लगा। घनी रात और स ाटा कसी अनहोनी से सावचेत रहने के िलए
उसक इं य को स य कए ए था। इस समय उसक पूरी चेतना कान पर क त हो
चुक थी। कसी प े के िहलने या पांव क ठोकर से बजते कं कर क आवाज़ भी आती तो
वो सहम कर इधर-उधर देखता। घनी अंधेरी रात म जंगल से गुजना कै सा होता है इसे वही
महसूस कर सकता है जो कभी गुजरा हो। मुकेश पहले भी इस रा ते से गुजर चुका था पर
इतनी रात गए पहली बार आया है।
उसके अवचेन मन म संिचत सारे सं कार और कहािनयां जो इस रा ते और आगे आनेवाले
मशान के बारे म गांव के बड़े-बुजुग ारा भयानक अंदाज म सुनाई गई थी वो सब चुपके -
चुपके उभर कर बरसाती क ड़ क तरह बाहर आ रही थी। वो अपना यान इन सब से
हटाने का बल यास कर रहा था उतना ही नाकाम हो रहा था। वाकई म हमारा दमाग
एक मंक माइ ड क तरह है। इसे िजस चीज के बारे म सोचने के िलए मना कया जाये ये
क ब त उसी के बारे म सोचेगा। मुकेश का यान इस समय नह चाहते ए भी आगे
आनेवाले मशान क तरफ जा रहा था।
इसी रा ते तो उसके िपताजी को लेकर मशान गये थे। तब वो कतना रोया था। देखते ही
देखते उसके िपताजी धधकती वाला म जलकर राख हो गए थे। तब वहां मौजूद हर इं सान
दाशिनक हो गया था। न र शरीर और आ मा-परमा मा के िवचार म डू बा आ था। सब
के सब मौन, जलती आग म नजर गड़ए कसी शू य म डू बे ए से देखे जा रहे थे। उसने भी
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चमक । उसने उस तरफ देखा तब तक वो गायब हो चुक थी। उसका कलेजा बैठ गया।
तभी पीछे से ‘सर-सर’ क आवाज आने लगी। जैसे कोई घसीटा कर चल रहा हो। अब तो
उसे यक न हो गया क प ा भूत ही है। वो बस वहां से भाग जाना चहता था। मोबाइल क
रोशनी बंद हो गई। उसे आ य आ क अपने आप कै से बंद हो गई। तभी ठोकर लगने से
वो िगर पड़ा। सर-सर क आवाज़ उसके नजदीक प च ं गई। उसने मुड़कर देखा तो जैसे
कोई ब त बड़ा काले कलर का छायािच उसी के ऊपर आ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे
कटी गदन का कोई भूत हो िजसक गदन अलग और धड़ अलग मूवमट कर रहे थे फर भी
मानो दोन आपस म जुड़े ए थे। ललाट लाल कलर का बड़ा सा ितलक लगा आ तीत
हो रहा था। उसे लगा जैसे वो वह बेहोश हो रहा है।
‘‘तुम इतना डर य रहे हो?’’ काले चोगेवाले ि ने पूछा जो उससे चार कदम दूरी
पर खड़ा था व उसका के वल चोगा, िसर पर िशकारी टोपी और पांव म आम के जुते पहने
दखाई दे रहे थे। अंदर का पूरा शरीर गायब था। जैसे के वल कपड़े ही हवा म लहरा रह हो।
चेहरे पर के वल दो बड़ी-बड़ी नीली डरावनी आँख ज र दखाई दे रही थी िजनके ज ट
ऊपर िस दुर का बड़ा सा ितलक लगा आ था।
‘‘म म् ममममम....’’
‘‘तुम इतना डर य रहे हो?’’ उस आदमी क आवाज़ फर से आई। उसक आवाज़ हर
बार बदल-बदल कर आ रही थी। जैसे एक आदमी के अंदर कई सारे आदमी या आ माएँ
दबी पड़ी हो।
‘‘मुझसे कोई गलती हो गई हो ता माफ कर दो। मुझे जाने दो।’’ वो जमीन पर पड़े-पड़े
िगड़िगड़ाया।
‘‘हम तु ह डराने के िलए नह आये। तु हारी मदद करने के िलए आया आये ह।’’ चोगा
घसीटाता आ उसके नजदीक आ रहा था।
‘‘मुझे मत मा रए। आपके हाथ जोड़ता ,ँ लीज मुझे मत मा रए। आपको या चािहए?
मुझे जाने दीिजए।’’ मुकेश को समझ आ गया क अब उसका अंत नज़दीक आ गया है।
‘‘हम कु छ नह चािहए।’’ एक साथ सारी आ माएं बोली। ‘‘तो अब सवाल ये उठता है क
तु ह जीवन से या चािहए?’’ चोगे म से कसी अधेड़ क आवाज़ आई।
‘‘म...मुझे कु छ नह चािहए। लीज! बस जाने दीिजए।’’
‘‘ज दी से हमारे सवाल का जवाब दो लड़के वरना िज दा नह बचोगे।’’ इस बार कसी
डॉन टाइप आ मा क दहाड़ सुनाई दी मानो वसूली करते ए मरनेवाले आदमी क
भटकती आ मा हो। मुकेश समझ गया क इसी चोगे म सारी आ माएँ राि िवचरण पर
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िनकली होगी। अब वो मेरा बचना मुि कल है। तभी उसे बड़े-बुजुग क एक बात याद
आयी क भूत से बचना नामुं कन है कं तु अगर उनके सवाल का ईमानदरी से सही-सही
जवाब देते रहो तो वो दया कर के छोड़ भी सकते है। हालां क ऐसा कसी के साथ आ
नह , ये एक एसी यौरी थी िजसे पहली बार इि लीमट करना है। उसने िव म-बेताल क
कहानी भी सुन रखी थी िजसम राजा िव मा द य बेताल नाम के भूत को पकड़ने जंगल म
जाते है, घनी अंधेरी रात म अचानक बेताल उनक पीठ पर सवार होकर उनक गदन
जकड़ कर अपने सवाल के सही-सही जवाब देने को कहता है। िव मा द य जब तक सही-
सही जवाब देते रहते, तब तक वो उ ह नह मारता। मुकेश को भी लगा क इस समय इस
भूत के सवाल का ईमानदारी से जवाब देना चािहए। यही अंितम रा ता बचा है।
‘‘तु ह जीवन से या चािहए?’’ इस बार कसी सनक आ मा ने झ लाते ए पूछा।
‘‘म....म...’’ उसे कु छ भी याद नह आ रहा था क या बताये? आज दन तक उसने कभी
खुद से ये सवाल कया ही नह था क आिखर मुझे जीवन से या चािहए? जंदगी क
भागदौड़ म कभी इस बात पर पर गौर भी नह कया क जीवन का मकसद या है? तभी
अचानक उसे याद आया क वो तो सरकारी नौकरी क तैयारी कर रहा था। उसे तो नौकरी
चािहए थी। उसने झट से कहा, ‘‘म जीवन म सकारी नौकरी लगना चाहता ।ँ ’’
‘‘तुम झूठ बोल रहे हो।’’ कहते ए उस चोगे ने मुकेश क गदन पकड़ ली। हाथ क
अगुिलयाँ दखाई तो नह दे रही थी पर उसके गले म जकड़न ज र महसूस हो रही थी।
पकड़ इतनी मजबूत थी क सांस लेने म क ठनाई होने लगी।
अब वो गहराई से सोचने लगा क आिखर उसके जीवन का परम ल य या है? उसे समझ
आ गया क झूठमूठ का जवाब ये भूत लोग पहचान लेते है। ये हमारे सब झूठ पकड़ लेते है।
इनके सामने कसी कार क चालाक नह चलेगी। उसे महसूस आ क वाकई म वो िजस
कं पी टशन क तैयारी कर के नौकरी लगना चाहता था वो तो उसका सपना नह था। वो ये
सब के वल समाज के लोग को दखाने के िलए व अपने आप को सािबत करने के िलए क
कर रहा था क म भी अपने जीवन म सफल ।ँ और सबसे ज री तो आ थक ज रत के
िलए ये नौकरी लगना चाहता था। ये उसके जीवन का सबसे बड़ा सपना नह था। वो
सोचने लगा क आिखर उसके जीवन का सपना या है? हम अपने सपन से इतनी दूरी
बना लेते है क मानो वे हमारे दु मन हो। कभी उ ह अपने करीब फटकने नह देते। पूरा
जीवन गुजार देते है पर एक बार इि मनान से नह सोचते क हमारा सपना या है? हमारे
जीवन का मकसद या है? कभी-कभार सोच भी लेते है तो उसे के वल प रक पना मानकर
रह जाते है। मुकेश ने भी ब त बड़ा सपना देखा था पर उसने कभी उस ओर यान नह
दया।
तभी उसे याद आया क वो तो बचपन से राइटर बनना और फ म म काम करना चाहता
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था। जब छोटा था तो टीवी पर हीरो को देखकर उसके अंदर का ए टर जाग उठता था। वो
अिभनेता के साथ-साथ डायरे टर और ि ट राइटर बनाना चाहता था। उसका सपना
था क वो एक दन महान अिभनेता आरजे से बढ़कर याित अ जत करे गा। आरजे खुद
उसके साथ से फ ि लक कर के अपने इं टा ाम पे पो ट करे गा।
चोगेवाले ने उसका गला और तेज दबाया। वो पसीना-पसीना हो गया। बड़ी मुि कल से
उसके मुंह से आवाज़ िनकाली, ‘‘म राइटर बनना और फ म म काम करना चाहता ।ँ ’’
मुकेश क आवाज सुनते ही उसने गदन छोड़ दी। सांस म सांस और जान म जान आयी।
खांसते ए बोला, ‘‘म भी मश र ए टर आरजे क तरह बनना चाहता ।ँ ’’
‘‘तु ह ये बात समझ य नह आती क यहां कोई कसी दूसरे क तरह नह बन सकता।’’
इस बार चोगे ने जमीन पर पेर ऐसे पटका मानो जमीन के छेद कर पाताल म चला
जायेगा।
‘‘म म..मेरा बतलब म हमेशा से राइटर, ए टर और डायरे टर बनाना चहता था;
कं तु ये के वल मेरा सपना था। यथाथ ने कभी िव ास ही नह करने दया क ऐसा सपना
मेरी औकात वाला इं सान या पूरा कर सकता है।’’
‘‘तुम या जानते हो सपने और यथाथ के बारे म। तुम कु छ नह जानते। तुम तो ये भी नह
जानते क इस समय सपना देख रहे हो या यथाथ म हो।’’ चोगे ने मानो कोई
रह यो ाटन कया।
‘‘पर इस समय तो वाकई म आप मेरे सामने खड़े हो।’’
‘‘ये के वल तु हारी इस समय क सोच है। कु छ देर बाद ये बदल जयेगी। चीज भी सोच के
साथ बदल जाती है।’’
‘‘ या सच म इस व म सपना देख रहा ?ँ ’’ मुकेश को आ य आ क ये सब या
झंझट है। वो उसे यहां से जाने य नह देते। उसने कभी सुना नह था क भूत या आ माएं
इस कार क बो रं ग बात भी करती है।
‘‘इस बात को तुम कभी नह जान पाओगे क तुम सपना देख रहे हो या यथाथ म हो।’’
‘‘तो आप ही बता दीिजए क सच या है?’’
‘‘कोई फक नह पड़ता क तुम सपने म मंिजल देखते हो या वा तिवकता म। फक तो इस
बात से पड़ता है क तुम या वाकई म उस मिजल को देखते हो िजसे तुम पाना चाहते हो
अपना जीवन ऐसे ही गुजार रहे हो।’’
‘‘म अपने सपने के बारे म सोचता तो था पर कभी उस पर यक न नह कया।’’
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भा ग - 3
पहली दुिनया:-
‘‘पचास म ले चलते हो तो बोले।’’ मुकेश को मालूम था क कोई आधे कराये म नह ले
जाता पर इसके अलावा उसके पास कोई आ शन भी नह था। उसने जेब म रखे जादुई
प थर पर हाथ रखते ए ाइवर क तरफ देखा क कोई कमाल हो जाये।
‘‘चलो...पर सीट खाली िमले तो बैठ जाना वरना खड़ा रहना होगा।’’ ाइवर ने सोचा
सवेरे-सवेरे चाय-पानी के पैसे आ जायगे तो या बुरा है। वो अनुभवी था, चेहरे से पहचान
गया क लड़के के पास यादा पैसे नह है। हम कतना ही होिशयार बनने का दखावा
कर। कतना ही झूठ बोले पर कोई ना कोई अदृ य वाइ ेशन या कसी अदृ य चीज से एक
दूसरे से कने ट होते है क हमारा झूठ सामने वाला भांप ही लेता है।
‘‘ध यवाद !.’’ वो एक झटके म ह था पकड़ कर ऊपर चढ़ गया। बस नेशनल हाइवे पर
टापुटाप चलने लगी। उसने अंदर देखा, अिधकांश सवा रयां सोई ई थी। सवेरे पाँच बजे
क न द और घोड़ी पर बैठा बंद (दु हा) सबको यार लगता है। इस समय िखड़ कय से
ह क -ह क ठ डी हवा चल रही थी। बस के के िबन म जीरो वाट का ब ब जल रहा था
िजससे म म रोशनी चीज को अ प कं तु दशनीय बना रही थी। उसने कसी एफबीआई
एजट क तहर हर सीट पर िनगाह दौड़नी शु कर दी। कोई सी भी सीट खाली नह थी।
बस के सैके ड ला ट वाली रो म ले ट साईड क दो सीट म से िव डो के पास वाली एक
सीट खाली दखाई दी िजस पर डेल का बेग पड़ा आ था और बगल क सीट पर एक
लड़क बैठी ई थी।
लड़क ने िज स और टी-शट पहना आ था। चेहरा म म रोशनी म भी चमक रहा था।
हाथ म मोबाइल था और इयरफोन लागा रखे थे। िव डो से आती हवा से लड़क के
मुलायम बाल हवा म लहरा रहे थे जैसे मुकेश का अिभवाद कर रहे हो क,
‘आओ अजनबी दो घड़ी के सफर म, नयी दुिनया का िनमाण कर।
तुम भी कु छ बोलो म भी कु छ बोलूँ िमलकर मुह मत का पैगाम कर।’
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चेहरे पर ह कापन दखाई दे रहा था। कु छ लोग मुंह म नीम क डािलयाँ फसाय मंजन
करते ए आ रहे थे।
सूरज के िनकलते-िनकलते ावे स उदयपुर टनल तक प च ँ गई। टनल से कु छ पहल एक
ढाबे पर गाड़ी क । खलासी ने के िबन म आकर सूचना दी क गाड़ी दस िमिनट के िलए
के गी। िजस कसी को चाय-पानी-पेशाब करना हो कर ल।
या ी एक-एक कर के नीचे उतर कर आसपास म पेशाब रकने ही जगह ढू ंढ रहे थे। मुकेश
को ना तो टायलेट आ रहा था ना ही उसके पास चाय के पैसे थे। वो अपनी सीट पर ही बैठा
बाहर ढाबे पर लोग क चहल-पहल देखने लगा। उस ढाबे पर दो-चार वे स और एक
रोड़वेज खड़ी थी। उन सब के या ी इधर-उधर िबखरे ए थे। कोई चाय पी रहा था तो
कोई पोहा खा रहा था। ढाबावाले जोर-जोर से सब को िनमं ण दे रहे थे। पोहा वाला
गरमा-गरम पोहो के िलए िच ला रहा था तो चायवाला चाय...चाय..चाय.. करते ए
चीख रहा था। गैस क भि ाँ जल रही थी। ढाबे के पास म एक पान-गुटखा वाले का
के िबन था। वहाँ पर भी लोग डटे ए थे। कोई तानसेन खा रहा था तो कोई िसगरे ट फूं क
रहा था। कोई िवमल तो कोई िमराज खा रहा था।
‘‘ए स यूज मी...’’ बस को के देख लड़क ने बाहर जाने के िलए रा ता मांगा।
मुकेश ने घुटने पीछे ख च िलए। वो चुपचाप नीचे उतर गई और एक िबसलेरी क बोटल
लेकर वािपस आ गई। इस बार उसके टोके बगैर ही मुकेश उठ गया। जब वो बैठ गई तो
मुकेश भी अपनी सीट पर बैठ गया। इस बार लड़क ने ह का-सा मु कु राते ए ‘‘थ स...’’
कहा। बदले म मुकेश ने कोई ित या नह दी। वो बस नीचे देख रहा था। लड़क ने सोचा
क शायद इसे बुरा लग गया। वैसे भी देखने म गांव का सीधा-सादा लड़का लग रहा है।
चेहरे पर उदासी छाई ई है मानो अतीत के कसी से िनकल कर आया हो। आँख क
सुखता बता रही है क रात बड़ी मुि कल से गुजरी होगी।
लड़क को दया आ गई। उसने पानी क बोटल मुकेश क तरफ करते ए कहा, ‘‘पानी
पीओगे?’’
मुकेश ने यान ही नह दया। उसे वाकई म अ छा नह लगा क छोटी सी बात पर ये मेरे
ऊपर िच ला दी। म गांव का ँ और वो शहर क माट लड़क है तो इसका मतलब ये
थोड़ी है क वो मुझपर झ लाए। गावं के लोग या इं सान नह होते। आिखर उनके भी तो
दल होता। उनक भी तो भावनाएँ होती है। वे भी तो सब समझते है। ये या बात हो गई
क तुमने ा डेड जंस पहन िलया और अपने आप को हाई और गावं के आदमी को गंवार
मान बैठे।
‘‘हाय.. ‘‘ लड़क ने उसक तरफ देखते ए कहा, ‘‘बुरा लगा हो तो सॉरी... वो ए चुली
म डर गई थी ना तो घबराहट के मारे िच ला दी।’’ इस बार उसने मासूम चेहरा बनाकर
कं धे उचकाते ए कहा।
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लड़क को इस कार लिजयाते देख मुकेश पंघल गया। उसका सारा गु सा फु र हो गया।
कतना मासूम चेहरा है। बेचारी डर गई थी। अके ली लड़क को हजार िच ताएँ रहती है
ऊपर से रात का सफर हो तो सावचेत तो रहना पड़ता है। मुकेश ने उसे माफ करते ए
कहा, ‘‘जी कोई बात नह ।’’ िबसलेरी क बोटल ले कर दो घूंट पानी पीया। ‘‘थ यू’’
कहते ए उसने बोटल लड़क क तरफ कर दी। इससे यादा उसे बात करना नह आता।
पहली बार इतनी माट लड़क के पास बैठा।
गाड़ी अभी भी क ई थी। लोग का कोलाहल पि य के कलरव को दबा रहा था।
अब लड़क के ित मुकेश के िवचार बदल गए। उसे खुद पर ही झप ई क नाहक ही
भोली-भाली लड़क पर गु सा कए बैठा था। बेचारी कतनी िस पल है। कोई घम ड नह ।
आगे बढ़कर माफ मांगने म कोई शम नह समझी।
‘‘नह जी माफ तो मुझे मांगनी चािहए थी क आपको खामखाह डरा दया।’’ उसने
लड़क क तरफ देखते ए कहा, ‘‘आप ना ब त िस पल हो।’’
‘‘शट्अप...अपने काम से काम रखो।’’ लड़क ने चेहरा िबगाड़ते ए डाटा, ‘‘पकाऊ कह
के ’’
मुकेश के पैर तले क जमीन िखसक गई। ‘‘सॉरी जी...’’ कहते ए अपनी सीट पर दुबक
गया। नजर नीचे झुका ली और सोचने लगा - ये कस कार क लड़क है? इसका कोई
पदा भी है क नह ? कभी शोला तो कभी शबनम का प धारण कर लेती है। अ छा होगा
इससे दूरी बनाकर रखू।ँ
मुकेश चुपचाप चेहरा जटकाए सीट पर बैठ गया कसी अपराधी क तरह। लड़क
कनिखय से उसे देखती जा रही थी और फल- फलाकर हँस रही थी। मुकेश ने उसक
तरफ यान ही नह दया। लड़क को और जोर से हँसना आने लगा।
बस ने दो-तीन बार हॉन बजाया। जब सब लोग आ गए तो गाड़ी हाइवे पर र फतार
पकड़ने लगी।
‘‘आई एक रयली सॉरी...म तो मजाक कर रही थी।’’ लड़क ने बड़ी मुि कल से हँसी को
रोकते ए कहा, ‘‘तुम कस दुिनया से आये हो यार। इतने सीधे। और कतने भारी-भारी
व ड यूज करते हो? खामखाह’’ कहते ए लड़क फर से उ मु होकर हँसने लगी।
मुकेश चुप रहा।
‘‘मुझसे नाराज हो। ओके ... आई एम रयली सॉरी । म बस तु हारी सादगी को देखकर दंग
रह गई थी, इसीिलए छोटा सा मजाक कर दया यार।’’
‘‘जी कोई बात नह ।’’ इस बार उसने अपने आप को लड़क के ित आक षत होने या
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लगा...’’
‘‘आपने सही सोचा पर म उदयपुर जा रहा ।ँ ’’
‘‘ओह रयली?’’
‘‘जी...’’
‘‘वाट् एन इं िसडट... म भी उदयपुर ही जा रही ।ँ ’’
‘‘जी...’’
‘‘ लीज एक मेहरबानी करो और मुझे आप या जी मत बोलो।’’
‘‘ य ’’
‘‘म ना यादा फामिलटीज म िबलीव नह करती।’’
‘‘अ छा जी!’’
‘‘ फर से जी’’
‘‘सॉरी जी...मेरा मतलब सॉरी’’
‘‘बाय द वे हाय... माइ नेम इज ुित’’ उसने मुकेश क तरफ हाथ बढ़ाते ए अपना नाम
बताया।
िु त कतना यार नाम है। मुकेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाते ए मन म सोचा। हाथ भी
इतना मुलायम क जरा सी खर च लगे तो खून िनकल आये। ये माट िसटी क लड़ कयाँ
तो स ी म माट होती है। कतनी बंदास होकर बात करती है। कसी अजनबी से भी हाथ
िमला लेती है। हमारे गांव म तो परदेश जाते समय आदिमय को भी िहदायत दी जाती है
क कसी अजनबी से बात नह करनी, कोई कु छ देवे तो खाना नह । कसी से घुलना-
िमलना नह चािहए। शहर के लोग बड़े बदमाश होते है, वे ठग लेते है। आज उसे लग रहा
था क ुित उसे वाकई म ठग रही है। कभी इं सान जानबूझकर ठगाजाना चहता है। ये
ठगाना भी कतना सुखद ठगाना है। इस अनुभूित के िलए तो वो जीवन भर ही ठगाने को
तैयार है। कतना यार से बोलती है। बचपन से अब तक कभी उसे कसी ने इतने यार से
सॉरी नह बोला।
‘‘ब त यारा नाम है।’’
‘‘ए ड यू’’
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‘‘सु दर नाम है।’’ मुकेश अभी भी उसके नाम क पिव ता म खोया आ था।
‘‘वाट् तु हारा नाम सु दर है’’ कहते ए वो हँसने लगी, ‘‘इ स अमे जंग नेम’’
मुकेश उसे हँसते देख चुप हो गया। कतनी अ छी लगती है हंसते ए। वो उसे हंसते देखने
के िलए सु दर लाल नाम भी रखने को तैयार हो गया।
‘‘तु हारे ना गांव म बड़े अजीब-अजीब टाइप के नाम रखते है।’’
‘‘च पा लाल...कालू लाल...भूरा लाल...भटका लाल...मटका लाल...’’ और वो जोर से
हँसने लगी। कह इस बार फर से लड़का नाराज नह हो जाये इसिलए उसने बड़ी मुि कल
से अपनी हंसी को रोका। कु छ देर चुप रहने के बाद बोली, ‘‘ये बताओ सब अपने नाम के
पीछे लाल य लगाते है?’’
‘‘नह मालूम’’
‘‘अ छा! सॉरी! म फर से तु हारा दल नह दुखाना चाहती ।ँ ’’
‘‘वैसे मेरा नाम मुकेश है।’’
‘‘उ स्...सॉरी...’’ होठ को गोल-गोल करते ए बोली, ‘‘सु दर लाल से तो मुकेश अ छा
नाम है।’’
‘‘वैसे इसका अथ या होता है?’’
मुकेश कु छ नह बोला। उसने कभी सोचा नह था क उसके नाम का अथ कोई माट
लड़क पूछ बैठेगी।
‘‘िजसके मुंह पर के स’’ और वो हंसने लगी। मुकेश को चुप देख बोली, ‘‘तुम िबलकु ल
मजाक नह करते। कतने अजीब हो।’’
‘‘बस ऐसे ही।’’
‘‘ओह कम ऑन ऐसे ही तो कु छ नह होता।’’
‘‘और सबकु छ लॉिजक से भी तो नह होता?’’
इतने म बस उदयपुर के पहले टॉप भुवाणा बाईपास चौराहे पर आकर क । खलासी ने
जोर से आवाज़ लगाकर यहां उतरने वाल को सावचेत कया। उसक आवाज़ सुनते ही
ुित हड़बड़ायी। उसे याद आया क उसे भी तो यह उतरना है। वो झट से अपना बेग
लेकर बाहर िनकलते ए बोली, ‘‘तुमसे िमलकर अ छा लगा सु दर लाल। मेरा टॉप आ
गया। मुझे यह उतरना होगा। ओके बाय...’’ कहते ए वो चली गई।
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भा ग - 4
पहली दुिनया:-
मुकेश फतहपुरा चौराहे पर उतर कर बड़गांव क तरफ चल दया। उसका दो त वीण
वह रहता था। उसे पूरा अ ेस नह मालूम था इसिलए उसने वीण को फोन कया पर
उसम तो बैलस ही नह । मुकेश घबारा गया। उसने दूबारा कॉल लगया पर बैलस हो तो
फोन लगे। दस पये का इं टंट लोन भी उसने पहले ही ख म कर दया था। वो बड़गांव
चौराहे पर जाकर बैठ गया। लोग अपने-अपने काम धंधे पर जा रहे थे। मुकेश ने झाडू
िनकाल रहे एक आदमी से पूछा, ‘‘भाई साहब एक दो त को कॉल करना है। मेरे मोबाइल
म बैलस नह है। या आपके फोन से एक कॉल कर सकता ?ँ ’’
‘‘ कसे करना है?’’
मेरा एक दो त यह रहता है। वीण नाम है। मुझे उसका पूरा ए स
े मालूम नह है। मेरे
पास पैसे भी खतम हो गए है। लीज!’’
‘‘ठीक है।’’ कहते ए उस आदमी म मुकेश क तरफ फोन बढ़ा दया। उसे मुकेश पर दया
आ गई।
उसने वीण को कॉल लगया पर वीण के फोन म इनक मंग सुिवधा बंद हो गई थी। उसने
दस िमिनट बाद फर से कॉल लगया क शायद कं पनी मेरी मुिसबत को समझते ए फोन
लगा दे पर वही ढाक के तीन पात। मुकेश का सारा जोश ठ डा पड़ गया। अब उसके सामने
कोई रा ता नह बचा था। सारे रा ते बंद हो चुके थे। चौराहे के पास म एक चाय क लारी
थी। मुकेश वहां जाकर बैठ गया। चायवाले ने उसे चाय के िलए पूछा पर उसने मना कर
दया। उसे अपनी ि थित मालूम थी। उसका मन तो ब त कर रहा था क काश एक चाय
नसीब हो जाती। रात से कु छ नह खया। पर अपने आप को मजबूरा पाया। हम सभी कह
ना कह कसी ना कसी मोड़ पर खुद को मजबूर पाते है। तब कोई रा ता दखाई नह
देता। मुकेश के सारे रा ते बंद हो गए थे। तभी वहां चाय क दुकान पर एक सं यासी आकर
बैठा। सं यासी ज ट उसके पास म बैठा। मुकेश ने उसका अिभवादन कया। सं यासी स
हो गया। उसने मुकेश के अिभवादन का मु कु रा कर जवाब दया, ‘‘जुग-जुग िजयो
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बेटा...जुग-जुग िजयो।’
चायवाले ने एक चाय सं यासी को पकड़ा दी। वो चाय पीते ए क ह िवचार म खोया
आ था क उसक नज़र मुकेश के हाथ म उस प थर पर पड़ी जो उसे मशान से िमला
था। सं यासी आ य से उछल पड़ा। लगभग िच लाते ए बोला,
‘‘ये तु ह कहां से िमला?’’
मुकेश घबरा गया। उसने देखा क सं यासी क नज़र उसके चम कारी प थर पर ही अटक
ई है। उसने बे खी से जवाब दया, ‘‘रा ते म पड़ा िमला।’’
‘‘ या तुम जानते हो तु हारे पास ये या चीज़ है?’’ सं यासी िच लाया। चायवाला भी
एकबार मुकेश क तरफ देखने लगा। एक आदमी जा अपना रािशफल पढ़ रहा था वो भी
अखबार साइड म कर मुकेश के हाथ क तरफ देखने लगा क आिखर लड़के के हाथ म ऐसा
या है?
‘‘नह ?’’ उसे इस समय प थर से अिधक चाय पीने का मन कर रहा था।
‘‘तु हारा नाम या है बेटे?’’
‘‘मुकेश’’
‘‘तुम ये प थर मुझे दे सकते हो?’’ उसने उस प थर क तरफ हाथ बढ़ाया जैसे नह देने
पर छीन कर ले लेगा।
‘‘नह ...’’ मुकेश ने इं कार कर दया। ये उसके िपजाती ने उसे दया था। आिखर िपजाती
क मृित को ऐसे कै से कसी को भी दे दे।
‘‘इसके बदले म या चािहए बोल ?’’ सं यासी क नज़र अभी भी उसी प थर पर अटक
ई थी।
‘‘ये िबकाऊ नह है।’’
‘‘एक बार छु ने दोगे।’’ सं यासी ने हाथ आगे बढ़ाए। उससे का नह जा रहा था।
‘‘एक चाय िपलाओ तो।’’ मुकेश ने भांप िलया क ज र ये कोई पागल टाइप का इं सान
है।
सं यासी ने चायवाले को चाय का आडर दया। ज दी से एक लास चाय मुकेश को दे दी
गई। मुकेश गट-गट पी गया। पीने के बाद उसने प थर सं यासी क तरफ बढ़ा दया।
सं यासी ने जैसे ही उस प थर को हाथ म िलया मान उसे िबजली का झटका लगा हो। वो
िच ला उठा, ‘‘ये तो अ भुत है। जादुई है। चम का रक है।’’
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सं यारी उस प थर को हाथ म िलए झूमने लगा। वहाँ मौजूद लोग सं यासी क उलजुलूल
हरकत देखने लगे। कोई हंस रहा था तो कोई कौतुहल से देख रहा था। मुकेश ने चाय
गटकने के बाद उठकर उस सं यासी से वो प थर झपट िलया। सं यासी मान अचानक
यथाथ क दुिनया म लौट आया। उसने गले म पहनी सोने क चेन िनकालकर मुकेश क
तरफ बढ़ाते ए कहा, ‘‘इसे रख लो बेटा। ये असली वण से िन मत तीन तोले क चेन है।
बदले म ये प थर मुझे दे दो।’’
‘‘िबलकु ल नह ।’’ मुकेश ने ऑफर ऑफर ठु करा तो दया पर उसके ज ट बाद सोचने लगा
क एक प थर ही तो है। अगर सोने क चेन ले लेगा तो कम से कम एक लाख पये क
होगी। इतने पय से तो वो उदयपुर म आराम से सेट हो सकता है। वीण के कमरे पर
कने क भी ज रत नह ।
सं यासी ने अपनी तजनी अंगूली म से सोने क अंगूठी िनकालकर चेन के साथ मुकेश क
तरफ करते ए कहा, ‘‘चेन के साथ म ये अंगूठी भी दे रहा ।ँ सोच लो। तु हारे पास इस
व फू टी कौड़ी भी नह है। ये प थर तु हारे तब तक कोई काम का नह जब तक तुम
इसक शि य को नह पहचान लो और कसी भी चीज़ क शि य को पहचानने म
काफ समय लगता है।’’
मुकोश चुप हो गया। लारी के आस-पास लोग क भीड़ इक ी होने लगी। सब इस अ भुत
सौदे के सा ी बनना चाह रहे थे। कौतुहल इस बात का था क कोई एक प थर के मामूली
टु केड़े के बदले म इतना सोना देने को य तैयार हो गया। सारे लोग मुकेश के हाथ म रखे
प थर को घूर रहे थे। ना तो उसम कोइ चमक थी ना ही वो कोई पुखराज, डायम ड आ द
र क तरह दखाई दे रहा था। एक मामूली प थर म ऐसी या बात है? लोग सं यासी को
आ जव कर रहे थे क कह बु ा पगला तो नह गया।
मुकेश खुद प थर क शि य से अनिभ था कतुं उसे इतना मालूम था क ये प थर कोई
आम नह है।
‘‘बोलो सौदा मंजूर है?’’ सं यासी ने मुकेश को असमंजस म पड़े देख फर पूछा। उसे लगा
क लड़का पंघल रहा है।
‘‘नह ...’’ मुकेश के मुंह से जोर से िनकला। उसे खुद नह मालूम था क वो इतना जोर से
य बोला पर उसने इतना तो तय मान िलया था क अगर ये सं यासी इस प थर के सवा
लाख पये देने को तैयार है तो इसका मतलब ये उससे अिधक कमत का ह या ज र
ब मू य है। उसने तय कया क वो इस त थर के बारे म और अिधक जानकारी इक ी
करे गा। उसने प थर जेब म रख दया और वहां से चल दया। सं यासी उसे नह मानते देख
वह पर पैर पटकने लगा। थोड़ी दूर तक वो मुकेश के पीछे-पीछे चलने लगा। िच लाते ए
क पछताओगे। सौदा कर लो। पर मुकेश सहमे ए तेज-तेज कदम से फतहसागर क तरफ
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दुिनया जहाँ कोई ो लम नह होती। जहाँ के लोग अपना जीवन बड़ी शांित से गुजारते है।
दूसरी दुिनया:-
आर.जे. जो फ म इ ड ी का जानामाना नाम है। लोग उसका दीदार पाने के िलए घंट
सड़क पर खड़े रहते है। सब उसे चाहते है। उसके अंदर जुनून है। उसके अंदर कु छ अलग
हटकर करने क चाह है। वो हर फ म ऐसी करता है जो मनोरं जन के साथ-साथ लोग को
पोजे टव मैसेज भी दे। वो ऐसी ही फ म करता है िजसक टोरी म दम हो।
‘‘कभी-कभी सोचता ँ ये सब वाकई म सच है या म कोई सपना तो नह देख रहा ?ँ ’’
कार म बैठे-बैठे उसने ाइवर को कहा। ाइवर चुप रहा। इतने म रा ल का मोबाईल
बजा। एपल का लेटे ट वजन िजस पर गो डन लेट चढ़ी ई थी।
‘‘यस..जेटी िश ुल या है?’’ आरजे ने फोन रसीव करते ए कहा।
‘‘बॉस आपको आज रात को बारह बजे क लाइट से लंदन जाना है।’’ जेटी उसका
िशड् ◌्युलर था। उसक टू -डू -िल ट वही येट करता था।
‘‘ या इवट है?’’
‘‘बॉस वहाँ पर वड येटीव ए टर ऐसोिसएशन क सिमट है।’’
‘‘ .ँ .. मेरा या रोल ह?’’ आरजे बगैर कसी मकसद के कोई इवट अटट नह करता।
‘‘आपको एज ए इि डया के सबसे एटीव ए टर के तौर पर पीच देनी है। समय दस
िमिनट का है।’’
‘‘और तुम या सोचते हो? मुझे य जाना चािहए?’’ वो हर काय को दस बार सोच-
समझकर करता है। उसने जेटी से पहले ही बोल रखा था क कोई भी िश ुल बनाने से
पहले दस ऐसे कारण क िल ट होनी चािहए क मुझे वो काम य करना है और दस ही
ऐसे कारण क िल ट होनी चािहए क मुझे वो काम य नह करना चािहए। िल ट सुनने
के बाद म तय क ं गा क कौनसा प भारी है और मुझे वो काम करना चािहए या नह ।
जेटी ने सारे लाभ-और हािनयाँ िगना दी। रा ल दो िमिनट तक सोचता रहा। कार लगभग
उसके बंगले के वेश ार तक प च ँ गई थी। ार के चार तरफ चाक-चैबंध िस यो रटी
थी। गेट के ज ट बाहर कई सारे मीिडया वाले और आम पि लक उसक एक झलक पाने के
िलए चौबीस घंटे दखाई दे जाते है।
‘‘ठीक है। मेरा बेग तैयार करो।’’ रा ल ने सोचने के बाद फाइनल िडसीजन दया।
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‘‘मुझे इससे कोई मतलब नह ।’’ आरजे ने त ख नसीहत देते ए कहा, ‘‘लंदन का या
िश ुल है?’’
‘‘बॉस वहाँ प च
ं ते ही आपको होटले म दो घंटे के िलए रे ट करना है। उसके बाद सीधे
इवट म प च
ं ना है जो तकरीबन दो घंटे चलेगा। िजसम आपको दस िमिनट क पीच देनी
है ये टव ए टंग पर।’’
‘‘ .ँ ..’’ आरजे ने पीच वाले कागज को घूरते ए कहा। वैसे तो वो कसी भी इवट म
अपने मन क ही बोलते है पर एक पीच भी साथ म रख लेता है ता क कु छ फे ट देखने
पड़े तो द त नह हो।
‘‘पता है कोई ए टर ये टव नह होता। हम सभी पैदाइशी ही ये टव है; कं तु अपनी
ये टिवटी को भूलकर भागते रहते है ित पधा क अंधी दौड़ म।’’
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भा ग - 5
पहली दुिनया:-
मुकेश फतहबालाजी के मं दर म सो रहा था क रात के तकरीबन दो बजे एक आदमी
आया। उसने मुकेश को कोई ऐसी चीज़ सुंघाई िजससे वो बेहाश हो सके । वो आदमी चेरहे
पर काला नकाब पहने ए था। जैसे ही उसने मुकेश के मुंह पर बेहोशी क दवा से सना
माल रखा क इतने म उस चोर को पीछे से कसी ने जोर से ध ा मारा। वो दस कदम
दूर जा िगरा। धम् क आवाज़ के साथ िगरने से मुकेश क न द खुली। उसने देखा एक
आदमी िजसके मुंह पर नकाब ढका आ था वो दूर िगरा कराह रहा था। इससे पहले क
मुकेश उसे धर दबोचता वो िच लाते ए भागा,
‘‘वो प थर तो म लेकर ही र ग ं ा नह म हार माननेवाला नह ।ँ ’’
ं ा...तु ह छोडू ग
मं दर के पास म ीट लाइट जल रही थी। वो आदमी लड़खड़ाते ए भाग गया। मुकेश ने
उसक आवाज़ से पहचान िलया क ये तो वह सं यासी है िजसने दन म उसे चाय िपलाई
थी।
मके श ने देखा, वहाँ पर उसे कोई चोगा दखाई नह दया। घड़ी म दो बजकर दस िमिनट
हो गए थे। उसने अपनी जेब म से वो जादुई प थर िनकाला। काफ देर तक उसे देखता
रहा। उसे एक अजीब सी शि उस प थर म महसूस ई, लगा जैसे जब भी वो उस प थर
को हाथ म लेकर देखता है तब उसका आ मिव ास कई गुना बढ़ जाता है। उसे महसूस
आ क कोई भी सपना नामुं कन नह होता। प थर को चूमा और फर से जेब म रख
दया। यही तो एकमा उ मीद क करण है। िपताजी ने प कहा था क सारी शि
तु हारे हाथ म है। उसने सोते-सोते एक सवाल अपने अवचेत म छोड़ दया क आिखर
उसका सपना कै से संभव होगा। कोई रा ता य नह दखाई दे रहा? उसे कु छ समझ नह
आ रहा क इस समय या कर? तभी कसी ने उसे झकझोरा,
‘‘तुम यहाँ या कर रहे हो?’’ एक धुंधली सी आवाज़ आई। मुकेश हड़बड़ाकर उठा, देखा,
सामने वही चोगा था जो उसे मशान म दखाई दया था। चोगे के अंदर कोई इं सान नह
था। उसने काली िशकारी टाइप क टोपी पहन रखी थी। बा क -ब- वैसे ही था जैसा
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‘‘ये रा ता तु हारे दल ने चुना है। तुम इसी के िलए बने हो। तु हारा दमाग हमेशा कसी
मेथेमे टिशयन क तरह के लकु लेशन म लगा रहता है। दमाग ब त ही सीिमत सोचता है।
तुम जो हो उसके इद-िगद ही दमाग सोचेगा। तुम जो हो सकते हो वो तु हारा दमाग
कभी नह सोच सकता है। इसके िलए तु ह अपने दमाग को जबरन वीकार करवाना
होगा। उसे समझाना होगा क तुम वो नह हो जो आज इस मं दर म सोया आ है बि क
तुम वो हो जो सपना देखते हो।’’
‘‘आपके िहसाब से मुझे अब या करना चािहए?’’ मुकेश को कु छ भी समझ नह आ रहा
था क जेब म के वल एक सौ तीस पये है ऐसे म वो या हासील कर सकता है। मु बई
जाकर सेटल होने के िलए थोड़ी-ब त दौलत तो होनी चािहए क वहां जाकर आराम से
सेटल हो सके । फर फ म के िलए लेखन शु कर सके ।
‘‘अपने सपने को पूरा करने के िलए कल ही िनकला जाओ। कसी का इं तजार मत करो।
सारी चीजे अपने आप सेटल हो जायेगी। तुम िजस आदश ि थित का इं तजार कर रहे हो वो
कभी आनेवाली नह है। ’’
कहते ए चोगा गायब हो गया। मुकेश बैठे-बैठे सोच ही रहा था क इतने म ‘टन्’ क
आवाज़ आई। उसने देखा शायद उसके दमाग क घं टयाँ बज रही होगी। वो फर से
सोचने लग गया। फर से ‘टन्-टन्-टन्’ क आवाज़ आई। इस बार आवाज़ जोर से आई
मानो दमाग क घं टय को यूटुथ से कने ट कर के बड़े पीकर म बजाया जा रहा हो। ये
या हो रहा है? या भूत जाते समय घं टयाँ बजाते ए जाते है? अब घं टय के साथ
‘धमड़्-धमड़्’ क आवाज़ भी आई। साथ म ‘छन-छन’ भी बजने लगा। उसे ऐसा लगा जैसे
दमाग फट कर बाहर आ जायेगा। तभी अचानक उसक आँख खुली। वो हड़बड़ाकर उठा
और ये देखकर आ य च कत हो गया क वो वाकई म सपने म था। इस समय सवेरा हो
चुका था। घड़ी म सात बजे थे। मं दर म सेवा का टाइम हो गया था। पुजारी दीपक जलाए
बालाजी के चार तरफ घुमा-घुमा कर आरती कर रहा था। लोग मं दर क घं टयाँ, ढोल,
नंगाड़े बजा रहे थे। उसे समझ नह आया क चोगेवाला ि अभी तो गया इतनी सी देर
म सवेरा कै से हो गया। उसने जेब टटोली, जादुई प थर सुरि त था। चैन क सांस ली।
सामने पानी क याऊ बनी ई थी वहां जाकर मुंह धोया। तब तक आरती समा हो चुक
थी। उसने हनुमानजी के दशन कए और खूब सारा साद िलया ता क सवेरे का ना ता
इसी से हो जाये।
आज मुकेश ने तय कर िलया था क चाहे रात को उसे सपना आया हो या हक कत म कोई
आ मा आयी हो पर वो अब यहाँ उदयपुर म नह के गा। आज रात क बां ा ए स ेस ेन
से मु बई के िलए रवाना हो जायेगा। जो दहाड़ी मजदूरी यहाँ कर रहा है वो वह कर
लेगा। वैसे भी उसे कसका मोह? ना उसके पास आिलशान घर है, ना दौलत, ना प रवार,
ना समाज और ना कोई खास दो त िजससे मोह होता। जो उसे रोकते। िजस कार यहां
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इसी कार के सवाल से टीटी हरव िघरे रहता। जब बां ा जानेवाली ेन लेटफाम नंबर
एक पर लगी तब भी मुकेश कु छ िनणय नह कर पाया क या कर? उसका दमाग जड़़
सा होता जा रहा था। कु छ समझ नह आ रहा क जाय या नह । जाने वहाँ या होगा?
अचानक उसक नज़र एक लड़क पर पड़ी जो उसे ुित क तरह दखाई दी। सोचने लगा
क मुझे ये हो या गया है? आजकल हर लड़क मुझे ुित क तरह य दखाई देती?
ुित मेरी कभी नह हो सकती। उसक दुिनया ये नह है। वो दूसरी दुिनया से आयी है। म
इस दुिनया का ।ँ उसे पाने के िलए मुझे दूसरी दुिनया म जाना होगा जो सपनो क दुिनया
है।
ेन के रवाना होने म अभी समय था। या ी लेटफाम पर गूगल के वाई-फाई को लूट
रहे थे। कोई आती-जाती लड़ कय को को देख रहा था तो कोई कान म इयर फोन लगाकर
गाने सुन रहा था। कु छ लड़ कयाँ इ टा ाम के िलए से फ ले रही थी तो लड़के उनको
से फ लेते समय बानायी गई अजीब श ल को देख कर खुश हो रहे थे।
मुकेश अपनी बच से उठकर नजदीक क कताब क दुकान पर गया। वहाँ पर अिधकांश
नॉवेल थे। िह दी म भी थे और अं ेजी म भी। िह दी के नॉवेल एक रो म सीमटे ए थे
जब क अं ेजी के नॉवेल पूरी दूकान म अपना आिधप य जमाये ए थे। मुकेश को अं ेजी
नह आती इसिलए उसने िह दी क तरफ ख कया। उसने तय कर िलया क अगर उसे
राइटर बनना है तो अिधक से अिधक कताब पढ़नी होगी। खुद क सृजना मकता को
समझना होगा। िह दी कताब म अिधकांश समकालीन थी तो कु छ पुरानी भी थी। सुरे
मोहन पाठक के उप यास सबसे अिधक मा ा म थे। पाठक साहब का एक उप यास उसने
उठाया, उसके प े पलटे और फर से रख दया। इस समय वो कोई ऐसी कताब ढू ंढ रहा
था िजससे खुद क शि य को अ छे से समझ सके । खुद को अिधक से अिधक सृजना मक
बना सके । अपने सपने को साकार करने म मदद कर सक। तभी अचानक उसक नजर
रा डा बन क कताब ‘रह य’ पर पड़ी। उसे थोड़ा अजीब लगा क इसम या रह य है?
उसने वो कताब उठाकर देखी। पीछे िलखा था, ‘जब आप ये कताब पढ़गे तो जान जाएंगे
क आप सचमुच कौन ह। आप उस स ी भ ता को जान जाएंगे, जो जीवन म आपका
इं तजार कर रही है।’ उसके दल ने इस कताब के िलए हामी भर दी। कताब के पीछे तीन
सौ प ानवे पये िलखे थे। उसका दल धक् से बैठ गया। इतनी महंगी कताब?
दुकानदार ने मुकेश के को समझ िलया। उसने वही कताब जो उसका पाइरे टेड वजन
था जो क ह के पृ पर छपी ई थी तथा लेक ए ड वाइट का लुक दे रही थी, उसक
तरफ बढ़ा दी और कमत सौ पये लगायी। मुकेश ने बगैर सोचे सौ पये िनकाल कर दे
दए। इतने म ेन के रवाना होने का भ पू बज गया था।
उसने जेब से वो जादुई प थर िनकाला और उसके अंदर छु पी अदृ य शि य को देखते ए
कहने लगा, ‘‘आज म अपने सपने के िलए पहला कदम उठा रहा ।ँ आगे या होगा मुझे
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आ था और लोग सोए ए थे। ुित ने मुकेश को ख चकर अंदर बुला िलया। इतने म टीटी
वहाँ प च
ँ गया।
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भा ग - 6
पहली दुिनया:-
‘‘ टक ट...’’ टीटी ने िड बे क लाइट ऑन करते ए पूछा। अिधकतर मुसा फर सो रहे थे।
वे सर खुजलाते ए खड़े होने लगे।
‘‘तु हारा रजवशन कौनसी बोगी म है सु दरलाल’’ ुित ने अपना टक ट ढू ंढते ए
पूछा।
उसक आवाज़ बड़ी यूट लग रही थी मुकेश को। उसका मन कर रहा था क काश
जीवनभर उसे ऐसी आवाज़ सुनाई देती रहे। काश ये लड़क मुझे ऐसे ही सु दर लाल कह
कर िचढ़ाती रहे।
टीटी दूसरे मुसा फर से टक ट कले ट कर रहा था।
‘‘म खुद ही एक िड बा बन चुका ।ँ मेरा या रजवशन होगा ुित।’’ मुकेश का यान
टीटी क आवाज़ से भंग हो गया। उसे लगा क अब सच पकड़ा जायेगा और ये टटवा तो
मेरा टेटवा ही दबा देगा। साला मुझे पुिलस को स प देगा। पुिलसवाले चार ले चर झाड़गे
क चला था िहरो बनने और जेब म एक फू टी कौड़ी नह । यहाँ तक क उसके पास तो
र त देने के भी पैसे नह ।
‘‘मतलब तू फोकट म सफर कर रहा है।’’ ुित ने सर पीटते ए कहा। टीटी ने उसक
आवाज़ सुन ली। मुकेश ने ुित को आँख दखाई क उसे थोड़ा धीमे बोलना था। कोई
बेचार डू ब रहा हो तो उसे बचाना चािहए क डू ब मरने के िलए छोड़ देना चािहए।
‘‘ टक ट...’’ टीटी ने सीधे मुकेश को पूछा।
‘‘म म म म वो ए चुअली....’’ मुकेश ही आवाज़ अटक गई इतने म ुित बीच म बोल
पड़ी, ‘ए चुअली ये मेरे साथ है।’’
टीटी का हाथ अब मुकेश से हटकर ुित क तरफ बढ़ गया।
ुित ने अपनी जेब म से अपना टक ट िनकाल कर टीटी क तरफ बढा दया। टीटी ने
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भा ग - 7
पहली दुिनया:-
उस रात मुकेश ने गु ारे म पेट भर कर खाना खाया, कतने दन बाद उसे इतना लज़ीज़
खाना नसीब आ था। रात भी वह सो गया। दूसरे दन सवेरे उठते ही फर से उसके
दमाग म यही घूमने लगा क अब या कर? रोज-रोज तो इस तरह लंगर म दन नह
िनकाल सकता। सपना पूरा करने के िलए आिखर कु छ तो करना ही होगा। उसके अंदर एक
तरह क छटपटाहट हो रही थी। अजीब सी बैचेनी थी क कोई रा ता य नह दखाई दे
रहा है।
जब हम मंिजल तक प च ं ने का रा ता दखाई नह देता, तब हम बैचेन हो जाते ह। इं सान
क यही तो बुरी फ़तरत होती है क वो शु से अंत तक सारा रा ता देख लेना चाहता है,
उसके बाद मंिजल क तरफ बढ़ता है। जब तक रा ता दखाई नह दे तब तक वो एक कदम
भी आगे नह बढ़ाता। जीवन एक रह यमय कताब है, िजसका आिखरी प ा के वल अंत म
ही देखा जा सकता है। जब भी आगे का सारा रा ता दखाई नह देता है तब या तो हम
रा ता ही बदल देते ह या थक हार कर बैठ जाते ह। मुकेश क भी यही ि थित थी। वो इस
समय थक हार कर बैठ गया। उसने तो अभी तक एक कहानी भी नह िलखी, फर भला
उसे कोई य फ़ म म लेगा। वतमान या अतीत हमारी सोच को ब त अिधक भािवत
करते है। हम या तो अतीत या वतमान के हालात से के लकु लेश कर भिव य क क पना
करते ह। मुकेश भी इस समय वतमान हालात या अपने अतीत से नह उबर पा रहा था।
बार-बार उसके दमाग म यही िवचार क ध रहे थे क वो इस समय कमजोर है। उसके
पास कोई अनुभव नह है। ऐसे म उसे मंिजल िमलना ब त दु कर दखाई दे रहा था।
इसी कार के िवचार सोचते-िवचारते मुकेश के कई दन उस गु ारे म गुज़र गए। इस
दौरान उसने जो कताब खरीदी थी उसे पूरा पढ़ िलया। रा डा बन क कताब ‘रह य’
पढ़ने के बाद उसे महसूस आ क वो कमजोर नह है। उसके अंदर भी वो सारी
क़ािबलीयत है जो दुिनया के जीिनयस इं सान के अंदर होती है। हर कोई अपने आप म
िवशेष यो यता रखता है। उस कताब को पढ़ने के बाद मुकेश का आ मिव ास सातवे
आसमान पर था। सबसे मुि कल ये थी क फलहाल कोई रा ता दखाई नह दे रहा था
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उसे लगा क दूसरी दुिनया म जाने के िलए उसने पहली सीढ़ी पर कदम रख दया है। यही
उसके िलए सबसे मह वपूण था।
‘‘मेरा नाम मलखान संह है। लोग मुझे दादू कह कर पुकारते ह। तुम भी आज से इसी नाम
से बुला सकते हो। और हाँ ये बात भी ि लयर बता दूँ क म तु ह दुकान पर काम करने के
बदले म सौ पये ित दन के दूग ँ ा। साथ ही खाने और रहने क सुिवधा।’’
‘‘मुझे मंजूर है दादू।’’ एक बार के िलए तो उसे लगा क ये कै सा आदमी है मीठी-मीठी
बात कर के अपनी दुकान के िलए जुगाड़ ढू ंढ रहा है। ेम क आंच म पचास का काम पांच
म करवा रहा है। वाकई म मु बई तो कमाल क नगरी है। फर दूसरे ही पल उसे ये भी
खयाल आया क चलो एक बार पाँव रखने क जगह तो िमलेगी। अगर कु छ पाना है तो
थोड़ी ब त को ोमाइज करना होगा।
‘‘ या नाम बताया तुमने?’’
‘‘मुकेश’’
‘‘कहाँ से आये हो?’’
‘‘राज थान के उदयपुर शहर से?’’
‘‘ओ ... झील क नगरी से’’
‘‘जी’’
‘‘चलो मेरे साथ।’’ कहते ए दादू अपनी जगह से उठा। इस उ म भी बु ा िबलकु ल फट
लग रहा था।
मुकेश दादू के पीछे-पीछे चल दया। उसे लगा क सवेरे क ठ डी हवा उसका माथ चूम
रही है। दादू ने रा ते म उसे सारी चीज समझा दी क, दुकान का नाम सरदार बुक टोर
है। दो लड़के और तीन लड़ कयाँ पहले से काम कर रहे ह। तु ह वहाँ कोई तकलीफ नह
होगी। तुम तो जानते ही हो आजकल मु बई म रहना-खाना ही कतना महँगा हो गया है।
बात करते-करते दोन सरदार बुक टोर प च ँ गए। बुक टोर कोई मामूली कराणा टाइप
क दुकान नह थी बि क चार माले क िब ड ग म बना था। मुकेश ने सोचा था क दादू
क दुकान छोटी-मोटी पान के के िबन टाइप क दुकान होगी िजसम ये बु ा दन भर बैठा-
बैठा मिखयाँ मारता होगा व जब मिखयाँ नह बचती ह गी तो बोर होकर पड़ी कताब
उठाकर पढ़ने लग जाता होगा। पर यहाँ तो पूरा आलीशान वातावरण था। नीचे के तीन
माल पर ट म काँच लगा आ था, िजसम बाहर सड़क से ही अलग-अलग दराज पर
थोक म पड़ी कताब दखाई दे रही थी। बीच म बड़े-बड़े अ र म ‘सरदार बुक हाउस’’
िलखा आ था। चैथे माले पर दुकान म काम करने वाले लड़के और लड़ कय के रहने िलए
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‘‘तुम दोन यान से सुन लो। आज के बाद मुकेश भी तु हारे साथ रहेगा। इसे इसके िह से
क जगह िमल जानी चािहए।’’ दादू ने दोन को लताड़ा, ‘‘और कोई बुरी आदत इसे मत
ं ा नह ।’’
सीखाना वरना छोडू ग
दादू क आवाज़ सुनते ही संतोष क नज़र लु बा के पीछे रखी बीयर क बोतल पर पड़ी।
जो रात को ही खाली क गई थी। संतोष ने आँख के इशारे से लु बा को समझाया। लु बा
समझ गया, उसने खड़े-खड़े ही पाँव से बोटल को पलंग के नीचे िखसकाया पर इ ेफाक से
बोटल नीचे िगर गई व टाइल पर ‘ट ्....’ से बजी।
‘‘ या िगरा?’’ दादू ने पूछा। उ ह बोटल दखाई नह दे रही थी।
लु बा ने झट नीचे बैठकर बोटल को अंदर क तरफ िखसकाते ए कहा, ‘‘कु छ नह दादू ये
तो बाल म लगाने क डाबर आवाला तेल क िशशी है।’’
‘‘बेटा यादा तेल मत लगाया करो। तु हारे काफ बाल झड़ चुके है। कह कोई गलत तेल
तो नह लगा रहे हो।’’ मु कु राते ए दादू मुकेश क तरफ मुड़,े ‘‘मुकेश बेटा यहाँ आराम
से रहो। ये दोन तंग करे तो मुझे बता देना। और हाँ आज तुम थक गए, खाना खाकर रे ट
करो। कल ठीक दस बजे दुकान म आ जाना।’’
उसके बाद दादू बाहर क तरफ चल दए। दरवाजे के बार िनकलते ए बोले, ‘‘तुम दोन
ठीक दस बजे नीचे आ जाना नालायक ।’’
‘‘जी दादू िबलकु ल।’’ दोन एक साथ बोले।
उसके बाद दादू सीधा िल ट क तरफ चले गए। वहाँ से नीचे चले गए। इधर कमरे म
मुकेश सहमा-सहमा सा खड़ा था। उसके सामने दो िबलकु ल अजनबी खड़े थे िजनसे या
बात करनी कु छ समझ नह आ रहा।
‘‘ या नाम बताया तुमने अपना?’’ संतोष ने िसर खुजलाते ए पूछा।
‘‘मुकेश’’
‘‘सुनो मुकेश अगर यहाँ रहना है तो हमारे िहसाब से चलना होगा वरना कताब चोरी के
झूठे इ जाम मे यहाँ से बाहर िनकलवा दगे। तुमसे पहले भी दो-तीन को बाहर का रा ता
दखा चुके ह। यहाँ खोपड़ी म नह सटकना मांगता है।’’ संतोष ने दादािगरी दखाई।
‘‘जी िबलकु ल। मेरे कारण आपको कोई द त नह होगी।’’ मुकेश ने अपना बेग रखते ए
कहा। आज पहली बार उसे कोई कमरा नसीब आ िजसम इि मनान से सो तो सके गा
वरना पाक म म छर ने इतना तंग कर दया क रात-रात भर न द नह आती।
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‘‘और सुन ! सामने के कमरे म दो लड़ कयाँ रहती है, उनसे दूर रहना।’’ लु बा ने गुटखा
बेिसन म थूँकते ए कहा।
‘‘दोन आइटम हमारे सेट है।’’ संतोष ने लु बा के कथन का प ीकरण दया।
‘‘जी आप िनि त रिहए। म वेसा नह ।ँ ’’
‘‘ या मतलब वैसे नह हो। कह तुम ‘गे’ तो नह हो?’’ संतोष उछल पड़ा। उसे गे लोग
से नफरत थी। उसे तो उस बारे म सोचकर भी उ टी हो आती। जाने कै से लोग उसे इं जाॅय
करते है।
‘‘नह म ‘गे’ नह ।ँ मेरा मतलब उस टाइप का नह क दूसर क गलफे् र ड पर बुरी
नजर रखूं।’’
उस कमरे म लोहे के तीन पलंग रखे ए थे। उन पर मैले-कु चले िब तर अ त- त िबखरे
ए पड़े थे। येक पलंग के पास म एक अलमारी रखी ई थी। सामने एक लोहे के टेबल
पुराने जामाने क कु बड़वाली टीवी पड़ी ई थी। आजकल क माट टीवी को लीम टीवी
भी कहा जाता है उस िहसाब से पुराने जमाने क टीवी को त द वाली टीवी या कु बड़वाली
ही माना जाएगा।
संतोष और लु बा ने मुकेश क दराज और पलंग पर पड़े अपने-अपने सामान हटा दए।
पलंग के नीचे पड़ी बीयर क बोटल पर मुकेश क नजर पड़ी। उसने बोटल लु बा क तरफ
करते ए कहा, ‘‘आपके तेल लगाने क िशशी।’’
संतोष और लु बा जोर से हँस पड़े। मुकेश भी हँस दया।
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भा ग - 8
पहली दुिनया:-
सरदार बुक हाउस पर पहले दन मुकेश ने आराम कया। जेब से प थर को बार-बार
िनकालता और चूमने के बाद फर से जेब म रख देता। उसके सामने अब बस एक ही ल य
था क कोई ऐसी कहानी िलखना िजसे ुित सले ट कर दे और सुपर टार आर.जे. उस पर
फ म बनाने को तैयार हो जाये। दनभर उसके दमाग म यही लान चलता रहा क कै से
वो कहानी िलखेगा। कहानी क िथम या रहेगी। कोई धासूँ नायक होना चािहए बा बली
टाइप का। नाियका तो कोई भी चलेगी जो क दखने म हँसीन व अ ेि टव हो। खूबसूरती
ुित जैसी होनी चािहए। फ म म कु छ गु डे और एकाध रीिम स गाना। रीिम स पर
ज र स ी िलयोनी को रोल देना चािहए।
इसी कार क ला नंग उसके दमाग म जगह बना रही थी। वह बािलवुड फ म इड ी
से यादा प रिचत तो नह था पर इस व उसे इससे कोई लेना-देना भी नह था क कस
िहरोइन का अफे यर कस िहरो के साथ चल रहा है या कौन कसके साथ िलव इन म रह
रह ह। उसे तो बस एक कहानी चािहए जो क धमाल मचा द। वह कहानी के िलए िजतना
दमाग पर जोर डालकर सोचता उतने ही उसे बकवाज़ आइिडया आते। कोई ढंग क
कहानी नह बन पाती। हर कहानी क शु आत तो कर देता पर आगे जाकर सब गड़बड़ हो
जाता। अंत होने का नाम ही नह लेता। ऐसा लगता जैसे कहानी चलती ही चली जा रही
है। पा अपनी मनमज के मािलक होते जा रहे है ठीक उसी कार जैसे एक िपता आठ-दस
संतान को ज म देता है, बड़े होकर वे अपने रा ते खुद चुन लेते है, उ ह िपताजी क उतनी
ज रत महसूस नह होती िजतनी बचपन म चलने के िलए होती थी। उसके पा भी उससे
िव ोह कये बैठे थे।
तंग आकर उसने दमाग को थोड़ा रले स कया। सोचा अगर कोई धासूँ कहानी िलखना
इसना आसान होता तो हर कोई िलखे बैठा होता। इसके िलए तपना पड़ेगा। करदार से
काम िनकलवाना होगा ठीक उसी कार िजस कार एक कं पनी का मैनेजर अपने
अिधन थ से काम करवाता है। इस समय वो ब त थक गया था िलहाजा धम् से िब तर
पर िगर गया। आँख बंद कर ली। उसके पा उसक आँख के सामने नाच रहे थे जैसे गवरी
म एक खेल पूरा होने के बाद सारे पा साथ िमलकर सामूिहक नृ य करते है।
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इ पोिसबल।’’ खाना पूरा चट करते ए संतोष बोला, ‘‘सामने जो गु ारा है ना, उसके
ज ट पास म दादू का बोत बड़ा बंगला है। वहाँ रहते ह। ये दुकान भी उ ह क है। बोत
पैसा है बुढ़ऊ के पास।’’ टफ न को साइड म रख कर पानी का लास भरते ए कहा।
कमरे म पानी का एक कपर रखा आ था। िजस पर ‘ टक-टाॅक वाॅटर स वस’ िलखा आ
था।
‘‘ कताब बेचने से इतनी कमाई हो जाती है?’’ मुकेश ने चावल को दाल म डू बोकर मुंह म
रखने से पहले पूछा।
मुकेश क बात सुन दोन जोर-जोर से हंस पड़े। संतोष मुंह धो रहा, मुंह म भरा सारा पानी
सामने उसी के पलंग पर फै ल गया। दोन क हंसी अभी भी नह क रही थी। मुकेश को
आ य हो रहा था क इसम कौनसी हंसनेवाली बात है। कताब से नह कमा सकते है
या? कताब िलखकर तो जे.के . रो लंग ने िमिलयन कमा िलये। इसम या बात हो गई।
‘‘तुम ना गांव के एकदम सीधे-सादे छोरे हो। तु ह यादा सात-पाँच नह आता।’’ लु बा
ने अपना टफ न पैक करते ए कहा।
‘‘ससुरा कहता है कताब बेच कर िब ड ग खरीद ली वो भी मु बई म।’’ कहते ए संतोष
जूते पहनने लगा।
उ ह वापस नीचे जाना था। एक से डेढ़ का लंच टाइम था। घड़ी म एक बजकर ब ीस
िमिनट हो चुके थे। लु बा भी जूते पहन कर तैयार हो गया व दराज पर रखे काँच म देखकर
बाल ठीक करने लगा। दोन ने एक जैसी स े पहन रखी थी। लेक कलर का टाऊजर और
आसमानी शट िजस पर ‘एसबीएच’ अथात सरदार बुक हाउस िलखा था।
मुकेश क िज ासा शांत नह ई इससे पहले ही दोन वहाँ से बाहर िनकल गए। जाने से
पहले लु बा ने पीछे मुड़कर िहदायत दी, ‘‘सामनेवाली लड़ कय से दूर रहना बीडू
वरना...’’
नह चाहते ए भी मुकेश का यान सामने के दरवाजे पर गया जहाँ म नंबर 404 िलखा
आ था। इस समय कमरा बंद था व बाहर से लॉक कया आ था। मुकेश ने गिलयारे म आ
कर उसके कमरे का नंबर देखा, िलखा था - 403। दोन कमर सड़क क तरफ पड़ते है।
बीच गिलयारा तीन-चार फु ट का होगा। गिलयारा के अंत म सड़क क तरफ ब त बड़ा
काँच लगा आ था। मुकेश वहाँ जाकर खड़ा हो गया व मु बई शहर को देखने लगा। चार
तरफ लोग ही लोग। थूंक तो कसी ना कसी आदमी के ऊपर जाकर िगरे गा। गािड़याँ
इतनी क सड़क ा फक से जाम थी। गािड़य के हॉन का शोर वातावरण को िचड़िचड़ा
बना रहा था। मुकेश को लगा क यहाँ इतने शोर म लोग कै से रह लेते ह गे। एक हमारा
गांव है जहाँ शांित ही शांित। िचिड़यां क आवाज, कोयल क क, मोर का नाचना, खेत
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‘‘जी िब कु ल।’’
‘‘बेटा मने तु हारी आँख म एक सपना देखा है। िनयित को ा करने का सपना।
इसीिलए मने तु ह अपनी दुकान म रखा। म चाहता ँ क तुम अपना सपना पूरा करो।
मुझे तो और भी कई सारे नौकर िमल जायगे पर तुम अगर अपनी िनयित को पा लेते हो तो
मुझे ब त खुशी होगी।’’
इसके बाद दो ाहक आ गए। दादू ने उसने पैसे िलए और मु कु राते ए उ ह िवदा कया।
‘‘म आपसे इसी बात का शु या अदा करने आया ँ क आपने मुझे जो मौका दया उसके
िलए म सदैव आभारी र गँ ां’’
‘‘काई बात नह । एक बात का हमेशा यान रखना। तु हारी मंिजल हर व तु हारी
आँख के सामने होनी चािहए। िजतनी सामने होगी उतनी ही ज दी तुम उस तक प च ं
जाओगे। ब त मुि कल होता है हर व अपनी नजर मंिजल पर टकाए रखना। ित दन
कई सारी बाधाएँ आती ह। कई सारे मोड़ आते ह, जो तु ह भटकाने का यास करते ह। कई
बार ऐसा लगेगा क तुमने सोचा उससे भी अिधक समय गुजर गया पर तु ह मंिजल नह
िमली तब तुम उदास हो जाओगे, तु ह लगने लगेगा क शायद अब तुम सफल नह हो
पाओगे। तब तुम हार मान लेते हो। ले कन याद रखना कभी भी असफलता जैसी कोई चीज
नह होती। हाँ अगर तुम कभी िनराश हो जाओ या आगे का कोई रा ता दखाई नह दे तो
कताब का सहारा ले सकते हो। ये तु ह कभी िमस गाईड नह करे गी। सदैव तु ह सही
रा ता दखाएगी। अपने आप पर िव ास को कभी खोने मत देना। तु हारा बल िव ास
ही तु ह ऊंचाई पर ले जायेगा। जब भी िनराश हो तब अपने आप को यक न दलाना क
इस दुिनया म कु छ भी नामुं कन नह है। पूरी लगन और मेहनत से कया गया काय तु ह
तु हारी मंिजल तक ज र प च ं ायेगा।’’ कहते ए दादू ने मुकेश क पीठ थपथपाई।
मुकेश को लगा मानो उसका आ मिव ास बढ़ गया। मानो वो अपना सपना पूरा कर
सकता है। कल तक उसके पास छत नह थी। आज एक छत तो नसीब ई है। कल मंिजल
भी िमल जायेगी। अब मुझे अिधक से अिधक ऐसी कताब पढ़नी चािहए जो मुझे े रत
कर। जो मुझे नया सोचने पर मजबूर कर। जो आऊट ऑफ़ बॉ स थं कं ग के पैटन क हो।
वहाँ से मुकेश सीधा तीसरे माले पर गया जहाँ िह दी क सारी कताब रखी ई थी। उसने
डा टर जोसेफ मफ क कताब ‘पावर ऑफ़ युअर सबकाि सयस माइ ड’ उठाई और
ऊपर चला गया। अपने कमरे म जाकर कताब खोलकर बैठ गया। उसे लगा इस व उसे
सबसे अिधक ज रत आ मिव ास को बल बनाने क है और आ मिव ास को बल
बनाने के िलए से फ-हे फ कताब से बेहतर या होगा।
समय तब ज दी गुजर जाता है जब हम कसी काम म मशगूल होते है जब क उस समय,
समय पहाड़ सा लगता है जब या तो फालतू बैठे होते है या कसी का इं तजार कर रहे होते
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भा ग - 9
दूसरी दुिनया:-
आरजे अ तररा ीय ये टव ए टर का स अटड करके जैसे ही मु बई एयरपोट पर
ं ा, उसे मीिडयावाल ने घेर िलया। वैसे तो ये कोई ब त बड़ी उपलि ध नह थी पर
प च
भारत के िलए गव क बात थी क िव िसनेमा म यहाँ के कसी ए टर को भी पीच के
िलए आमंि त कया गया।
‘‘सर या भारतीय िसनेमा अब पूरे िव म अपनी जगह बना रहा है।’’ एक प कार ने
माइक आरजे क तरफ बढ़ाते ए पूछा।
प कार कु छ सवाल ऐसे पूछते है िजनका जवाब उनके सवाल म ही होता है पर ऐसे सरल
सवाल से ही वे इ टरे ट करना ारं भ करते है। आरजे ने कोई जवाब नह दया। आगे बढ़
गया। दूसरे प कार ने उसके साथ चलते ए पूछा, ‘‘आपके आगामी ोजे ट के बारे म
बाताइये सर?’’
आरजे हमेशा अपने आगामी ोजे ट के बारे म ही सोचता रहता था। प कार के सवाल ने
उसे बोलने के िलए रोक दया। आरजे अचानक का। उसके आगे-पीछे चलनेवाले
तकरीबन दस बॉडीगाड ने मोचा संभाल रखा था। आरजे के कते ही सारे रपोटर इक े
हो गए जो बाइट के च र म घूम रहे थे क आरजे के मुँह से दो श द ही िनकल जाये तो
टीवी क हेडलाइन बाना डाले। एक श द ही िमल जाये तो े कं ग यूज बना दे।
‘‘मेरी अपक मंग मूूवीयेटीव मूवी होगी, उसक कहानी सबसे हटकर है। िपछले दो
साल से के वल म उस फ म क कहानी पर काम कर रहा था। मेरा मानना है क कहानी म
दम होना चािहए। अगर कहानी म दम है तो फ म अपने आप िहट होती है।’’ आरजे ने
अपने आगामी ोजे ट का ेलर पेश कया और उसके बाद बगैर कु छ बोले-सुने आगे बढ़
गया।
‘‘सर इस मूवी को आने म कतना समय लग जायेगा।’’
‘‘सर फ म क कहानी या आप खुद िलख रहे है।’’
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पहली दुिनया:-
‘‘िबलकु ल भी आवाज़ करने क कोिशश क तो शूट कर दूग
ं ा।’’ उसने िप तोल मुकेश क
कनपटी पर तानते ए कहा व गर दबाने के िलए उँ गली पर ेशर डाला।
मुकेश अपने हाथ ऊपर कर के खड़ा हो गया। मारे घबराहट के मुकेश का बदन पसीने-
पसीने हो रहा था। उसने फ म म ही ऐसे सीन देखे थे क कोई िप टल ताने खड़ा है।
असली जीवन म कभी िप टल भी नह देखी। बचपन म गांव के मेले म िबकने वाली
ला टीक क बंदक ू ज र देखी थी।
‘‘िबलकु ल भी आवाज़ करने क कोिशश क तो शूट कर दूग
ं ा।’’ वो आवाज़ फर से आई।
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िहरो बनने आने व पागल हो जाने क बात सुन मुकेश उदास हो गया। उसका सपना भी तो
फ म इड ी म जाने का ही है। वो भी अपनी क मत आजमाने ही तो आया है। संतोष
तो वापस ये कहते ए ऊपर चला गया क, ‘‘ये मु बई है बीडू , यहाँ तरह-तरह क
खोपिड़याँ िमलेगी। ऐसे डर जायेगा तो या होगा रे तेरा। चल घूम के ज दी आ जाना।’’
मुकेश बाहर सड़क पर आकर ऐसे ही बगैर कसी उ े य के घूमने लगा। जब आपको कह
जाना नह होता है, जब आपका कोई उ े य नह होता है, जब आप ऐसे ही घूम रहे होते
हो तब चीजे अलग तरीके से दखाई देती है। तब आप अपने आस-पास होने वाली हर
घटना को आॅ जव करते हो। तब आप आते-जाते लोग , दुकान पर मोलभाव कराते
खरीददार , कान मे इयरफोन लगाकर चलते मुसा फर , फु टपाथ पर सामान बेचते
द र , हवा का झ का छोड़कर जाती बीएमड यू-ओडी-म सड ज कार को देख कर
अपने अंदर बैठे उस समी क को ल बी-चैड़ी समी ा िलखने का मौका देते हो क दुिनया
म कतनी असमानता है। ये दुिनया कु छ लोग के िलए तो वग है जब क कु छ के िलए
रौरव नक से भी बढ़कर है। ये दुिनया इतनी बटी ई य है। ये दुिनया कसी मायाजाल से
भी अिधक मायावी लगती है।
मुकेश भी इस समय सकारा मक व नकारा मक िवचार के वालामुखी से गुज़र रहा था।
कभी तो उसे लगता क उसका सपना के वल सपना ही है। उसे सच नह कया जा सकता।
कभी वो खुद को समझाता क कोिशश और िह मत से कु छ भी कया जा सकता है। कभी
उसे लगता क उसक तो क मत ही फू टी ई है। सुपर टार के घर ज म लेता तो आज
इतना संघष नह करना पड़ता। फर खुद को समझाता क क मत जैसी कोई चीज नह
होती है। होते है तो के वल अनुभव जो आनेवाले समय म ब त काम आने के िलए इस
यूिनवस ारा हम महसूस कराये जाते है।
िवचलन क ि थित म इं सान का ि थर रहना उतना ही मुि कल है िजतना पानी क लहर
को कृ ि म प से ि थर करने क कोिशश करना।
थोड़ा इधर-उधर का माकट देखकर मुकेश वापस अपने म आ गया। लु बा और संतोष सो
चुके थे। मुकेश भी चुपचाप सो गया। कल उसे भी ज दी उठकर नौकरी पर जाना है। सोने
के बाद भी उसे न द नह आई। उसके दमाग म उस रात क घटना याद आने लगी जब
उसके िपताजी ने उसे अपना सपना पूरा करने के िलए कहा था। वो उ ह कोसने लगा क
कस मुिसबत म डाल दया। यहाँ तो लोग सपने के च र म पागल हो गए है। उसने मन ही
मन ाथना क क रात को िपताजी एक बार सपने म आकर कोई रा ता बता जाए या
फर कम से कम कोई अ छी कहानी का आइिडया ही दे जाए। वहाँ भूत क दुिनया म तो
बैठे-ठाले लोग करते भी या ह गे। या तो चुडल
ै से लव के च र म पड़ते ह गे या मशान
पर बैठे ग पे मारते ह गे। कम से कम भूत क दुिनया क ही कोई कहानी बता जावे। उस
दन तो बड़े डाट-डाट कर बितया रहे थे क सपने को पूरा करने के िलए जा। अब कहां
गायब हो गए। उसने अपनी जेब म से उस चम कारी प थर को िनकाला और मन ही मन
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ाथना करने लगा क आज रात को कोई ना कोई भूत-चुडल ै आकर एक ढंग क कहानी ही
बता जावे। भले ही कॉपीराइट उनके नाम का ही रखूंगा, रॉय टी भी मशान म प च
ं ा
दुग
ं ा पर कोई कहानी तो बतावे।
ऐसे ही सोचते-सोचते उसे न द आ गई। उस रात उसे कोई सपना नह आया। ना ही उसके
िपताजी सपने म आये ना ही कोई भूत-चुडल
ै ।
सवेरे उठकर मुकेश ने अपने दमाग पर जोर डाला क कह कोई धुंधला सपना-सपनी तो
नह आया। जब दमाग ने ि लयर कर दया क रात को ऐसा कु छ नह आया तो उसने
िसर पीट िलया क साला जब ज रत होती है तब तो नह आते। खैर, नहा-धोकर मुकेश
ठीक दस बजे दुकान प च ं गया।
दादू काउं टर पर तैयार बैठे थे। आज उ ह ने मुकेश और संतोष क ुटी तीसरे माले पर
लगाई जहाँ िह दी क कताब थी। दादू का ये मानना था क नीचे के यादातर लोर पर
जहाँ ाहक यादा आती है वहाँ पर लड़ कय क ुटी लगानी चािहए ता क ाहक
दुबारा भी आते रहे।
दन के तकरीबन यारह बजे तीसरे माले म कोई ाहक नह थी। संतोष ऊपर े श होने
चला गया था। उसका पेट आज गुड़-गुड़ ब त कर रहा था। वो बार-बार िमसाइल भी छोड़
रहा था। जब उससे रहा नह गया तो मुकेश को ये समझा कर िनबटने के िलए अपने म
चला गया क कोई ाहक आ जाये तो आवाज़ लगा देना और दादू आ जाये तो बोलना
अभी-अभी गया है। मुकेश भी मान गया क कम से कम ताजा़ ऑि सजन तो नसीब होगी।
े एस गुजर का नॉवेल ‘स ावाला यार’ पढ़ रहा था
इस व मुकेश एक टू ल पर बैठा म
क उसके कान म कसी लड़क क मधुर आवाज़ आई,
‘‘सुनो! ये नई वाली िह दी क कताब कधर रखी है?’’
मुकेश ने लड़क क तरफ देखा, लड़क ने भी मुकेश क तरफ देखा। दोन एक साथ
िच लाए।
‘‘तुम...’’
‘‘ओह सु दर लाल तुम...’’ वो लड़क ुित थी। उसने जैसे ही मुकेश को देखा तो आ य म
पड़ गई क ये यहाँ या कर रहा है।
‘‘तुम यहाँ?’’ मुकेश भी आ य म था क ुित यहाँ कै से।
‘‘म तो यहाँ अ सर आती रहती ँ कताब लेने के िलए। मिहने म एकाध बार तो आ ही
जाती ।ँ ’’ ुित ने मुकेश के पास आकर कहा।
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‘‘पागल मेरा काम ही यही है। कोई अ छी सी कहानी फाइ ड-आउट करना। वैसे कल
आरजे ने भी कहा था।’’
‘‘ या सच म तुम आरजे से फे स-टू-फे स बात करती हो। म...म..मेरा मतबल वो इतना बड़ा
टार है। म तो उसके सामने कु छ बोल ही नह पाऊँ।’’
‘‘एक बात तुम अ छे से समझ लो क टार भी सबसे पहले एक इं सान होता है। बस हम
उसे टार बना देते है। हम उसे तमगा देकर िसर पर चढ़ा देते है वरना वो भी उतना ही
इं सान होता है िजतने हम। वो भी उतना ही कमजोर होता है िजतने हम। वो कोई दूसरी
दुिनया से नह आया। बस हमने उसे दूसरी दुिनया का मान िलया। पता है हम सब क एक
ही दुिनया है। यहाँ कोई दूसरी दुिनया नह है।’’
उस दन तो ुित अपनी कताब लेकर ये कहती ई चली गई क जब कहानी िलख दो तो
बताना। पर मुकेश को समझ आ गया क यहाँ पर कोई दूसरी दुिनया नह है। सब इं सान
ही है। म भी उतना ही टार ँ िजतना आरजे। म भी उतना ही पाॅपुलर हो सकता ँ
िजतना आरजे वतमान म है। यहाँ पर कोई दूसरी दुिनया नह है।
उसके बाद मुकेश से फ इ ूवमट करने लगा। जब भी समय िमलता कताब पढ़ता। एक
दन उसे एक आइिडया आया पर वो धुंधला था। के वल कहानी क थीम उसे अवचेतन मन
के मा यम से िमली। उसने उस थीम को पकड़ िलया और एक रात बैठकर पूरी कहानी
िलख दी। जब वो िलखने बैठा तो कहानी अपने आप धारा- वाह बहती रही। जैसे नदी का
पानी खुद अपना रा ता बना लेता है ठीक उसी कार उसक कहानी भी अपने पा गढ़ती
रही और घटना म बनता-िबगड़ता रहा।
जब कहानी पूरी हो गई तो उसने घड़ी देखी सवेरे क छह बजे थे। उसे आ य आ क
समय कै से िनकल गया पता ही नह चला। वो कहानी म इतना डू ब गया क समय उसके
िलए शू य हो गया था। उसने उठकर मुंह धोया और उस कहानी को फर से पढ़ने लगा तो
उसे खुद पर आ य आ क इतनी शानदार कहानी बन गई और वो भी वत धारा वाह
प से। जब क कतने ही दन से पूरी कहानी सोचने क कोिशश कर रहा था। घटनाएं,
पा , संवाद सब पहले से ही सोच कर िखलने क कोिशश कर रहा था तो कु छ भी सेट नह
बैठ रहा था। सब गड़बड़ हो रही थी पर अब सब ठीक हो गया।
उस दन उसने संतोष से सौ पये लेकर मोबाइल म बेलस डलवाया और ुित को मैसेज
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‘‘वैसे तु ह बता दूँ क इस कार भी कसी पर आँख मूंदकर िबलीव नह करना चािहए।’’
‘‘तुम ठीक कह रही हो पर मुझे तु हारी आँख म स ाई दखाई देती है।’’ मुकेश ने ुित
क आँख म देखते ए कहा।
‘‘तुम कब से मुझे इतना ओ जव करने लगे हो।’’ ुित ने हँसते ए कहा।
‘‘तुमने ही तो कहा था क लेखक बनने के िलए लोग को ऑ जव करना आना चािहए।’’
‘‘तु ह मेरी सारी बात याद है। काश! सब लड़के तु हारी तरह िन छल होते।’’ कहते ए
ुित उदास हो गई।
मुकेश समझ गया क उसे पुराने ेमी क याद आ गई िजसने उसे धोखा दया था।
‘‘तुम ब त खूबसूरत लग रही हो।’’ मुकेश ने बात बदलते ए कहा। वो नह चाहता था
क ुित फर से उन दन को याद कर के अपसेट हो।
‘‘थ स। और तुम मासूम लग रहे हो।’’
‘‘शादी कब कर रही हो?’’
‘‘जब पेर स कहगे। वैसे वे ज दी ही करवा दगे।’’ ुित ने िनप भाव से कहा जैसे उसक
शादी से उसका खुद का कोई लेना-देना नह है।
‘‘ या तुम दल से चाहती हो?’’
‘‘ दल क कसे पड़ी है? वैसे सच क ँ तो दल कह का नह छोड़ता।’’
‘‘म दल क सुनकर ही यहाँ तक दौड़ा चला आया ँ और मुझे िव ास है क दल कभी
गलत नह होता। लोग गलत हो सकते है। धोखा दे सकते है पर हमारा दल कभी गलत
नह होता।’’
‘‘उस सही का भी या मतलब िजसका कोई औिच य नह हो। िजसने ठोकर लगवा दी
हो।’’
‘‘ठोकर लगने पर भला चलना कौन छोड़ता है।’’
िु त बस ह का सा मु कु रा भर दी। काफ पीने के बाद वो चली गई। मुकेश को लगा क
शायद मने कु छ यादा ही कह दया। उसे अफसोस भी हो रहा था क इतना नह बोलना
चािहए था। कहाँ वो और कहाँ म? चला ान बाटने। उस दन मुकेश ने खाना नह खाया।
िब तर पर चुपचाप सो गया। रात के तकरीबन दस बजे ुित का मैसेज आया,
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भा ग - 1 0
मुकेश उछल पड़ा। उसे यक न नह आ क ुित पर उसक बात का इतना ज दी असर
हो जायेगा। उसने र ले म ‘वाय नोट’ िलखकर भेज दया। दूसरे दन भी दादू से उसने
थोड़ा ज दी जाने के िलए बोला, पहले तो दादू ने उसके चेहरे के ए स ेशन को यान से
देखकर कु छ अनुमान लगाने क चे ा क , फर मूक सहमती दे दी। दादू क िनगाह अभी
भी उस पर सवाल दाग रही थी क मने तु ह इसिलए पनाह दी थी क तुम अपनी िनयित
को ा कर सको और तुम यहाँ पर सेटल होने के बाद बेमतब के घूमने- फरने म व
जाया कर रहे हो। दादू ने उसे कहा कु छ भी नह पर मुकेश भी दादू के मूक को भाँप
गया था। उसने तय कया क आज ुित को ि लयर बोल दूग ँ ा क या तो ऑ फस टाइम
बाद िमला करो या फर रिववार को छु ी रहती है, उस दन चाहो तो दनभर िमल सकते
ह।
मन म फू टते ल डु के साथ मुकेश आज फर से कबीर कै फे पर प च ं गया था। आज ुित
पहले ही प च ं गई थी। उसके हाथ म कोई कताब थी िजसे ब त ही एका ता से पढ़ रही
थी। कै फ क सी ढ़य पर कदम रखते ही मुकेश को ुित क झलक िमल गई। इतन क
भीड़ म भी ुित को ढू ंढने म एक सैके ड का एक हजारवाँ िह सा भी नह लगा। आज उसने
लेक कलर का शट व नेवी यू कलर क ा डेड जंस पहन रखी थी। कै फे पर येक
टेबल पर दो-दो चेयर लगी ई थी। शायद इसिलए कयहाँ पर यादातर कप स ही आते
ह। कभी-कभी दो से यादा मुसा फर आ जाते है तो वेटर रजव म रखी चेयर लाकर रख
देता। मुकेश के कदम वत अपना रा ता तय करते ए, िथरकते से ुित के टेबल क तरफ
बढ़े।
एक पल के िलए उसक नज़रे कै फे पर जमा भीड़ पर पड़ी। अिधकांश लड़के -लड़ कयाँ ही
थे। ुित के पीछेवाली टेबल पर एक लड़का िजसने कान म बाली, दोन आँख के कोर पर
छोटी-छोटी बािलयाँ, नाक के बीच म एक बाली पहन रखी थी। एक पल के िलए उसे लगा
क ये िपछले ज म म शु ीव का भाई बाली तो नह था क इतनी बािलयां पहन रखी।
बगल म बैठी एक लड़क का जंस इतना फटा आ था क उसने जीवन म इससे दीन
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पखे उड़ जाये। कतने कठोर, कतने िनदयी वर म कह दया क बकवाज़ कहानी िलखी
है। तुझे या मालूम एक-एक श द जोड़ना कतना मुि कल होता है। िजस कार कोई
कारीगर सोने पर निगन क न ाशी करने के िलए एक-एक नगीना होले-होले से जोड़ता
है, उसी कार तो एक लेखक को एक-एक श द जोड़ना पड़ता है और तेरे जैसे जािलम ने
एक पल म मेरे ताजमहल को ताशमहल बना दया जो हवा के एक झ के से िबखर गया।
‘‘मुझे लगता है म ये काम नह कर सकता। मेरे सपने झूठे थे। कहाँ म गांव से आया िह दी
िमिडयम से बीए पास और कहाँ बाॅिलवुड फ म इ ड ी का सबसे स सैजफु ल राइटर
बनने चला था। कहाँ म ितनका और कहाँ ये च वात।’’ कहते ए मुकेश क आँख छलक
आई। उस सपने के िलए उसने अपना घर-प रवार, गांव-िजला छोड़ दया। अपने सारे
दो त- र तेदार छोड़ दये। एक बारीक आवाज़ जो उसका दल अ सर सुना करता था,
उस आवाज़ पर भरोसा कर, सपने के पीछे चल पड़ा, कसी फक र क तरह।
‘‘तुम वाकई म इिडयट ही हो। रो रहे हो पागल। सच म तुमने ब त ही कमाल क कहानी
िलखी है।’’ ुित ने मामला िबगड़ते देख रह य से पटा ेप कया।
‘‘तुम मेरा दल रखने के िलए कह रही हो ना?’’
‘‘नह म सच कह रही ँ बेवकू फ। तु हारे िसर क कसम।’’ ुित ने मुकेश के िसर पर हाथ
रख कर कसम खाते ए कहा, ‘‘म तो तु हारी फरक ले रही थी और तुम रो दए। पागल
कह के । मेरा यक न करो तुमने ब त ही शानदार कहानी िलखी है।’’
‘‘मुझे लगा तुम सच कह रही हो। पता नह आज म तु हारे चेहरे के ए स ेशन य नह
भांप सका।’’ ह क सी मु कान लाते ए अपने आँसु को पोछकर नामल होते ए मुकेश
ने कहा।
तब तक वेटर काॅफ के दो बड़े-बड़े कप रख गया। लेक कलर के कप म काॅफ क खु बू से
मानो आसपास नशा छा गया हो।
िु त ने अपना कप उठाकर एक घूंट भरने के बाद कहा, ‘‘तुम ना, ब त ज दी िनराश हो
जाते हो। तु ह या लगता है? इस जीवन म हर कदम पर तु ह सफलता ही सफलता
िमलेगी? अगर ऐसा सोचकर चलते हो तो तुम एक नंबर के बेवकू फ हो। तु हारा ढृ ढ़
संक प तु हारी सफलता से नह बि क असफलता के बाद के जुनून से मापा जाता है। तुम
िगरकर कै से उठते हो वही सबसे मह वपूण है। खैर! सबसे पहले तो मुबारक हो पहली ही
कहानी इतनी अ छी िलखने के िलए।’’ कहते ए ुित ने मुकेश क तरफ हाथ बढ़ाया उसे
बधाई देने के िलए।
मुकेश ने अपना हाथ आगे बढ़ा दया। उसने आज फर से ुित के कोमल हाथ क छु अन
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‘‘इसम शु या क कोई बात नह । तु हारे अंदर कािबिलयत है। तुम इस लायक हो।
अ छा िलखनेवाल को हमेशा उनका पुर कार िमलता है। ये अलग बात है क लोग
कोिशश नह करते या उस बारे म सोचते नह है। तु ह पता है इ ड ी म अ छी कहािनय
क ब त िडमा ड है। दुभा य से अ छी कहािनयाँ िलखनेवाले ये सोचकर रह जाते और
आगे यास नह करते क इससे कोई मतलब नह िनकलनेवाला। कोिशश करने से पहले
ही अिधकांश लोग हार मान लेते है।’’
उस दन ुित ने मुकेश को कहानी िव तार से एवं ि ट के प म िलखने का िज मा
दया। जब मुकेश ने पूछा क ि ट कै से िलखी जाती है तो ुित ने उसे तीन कताब बताई
क उ ह पढ़ लेना, सब समझ म आ जायेगा। मुकेश ने तीन कताब नोट कर ली, पहली
कताब थी- ‘पटकथा लेखन एक प रचय’ लेखक मनोहर याम जोशी थे। दूसरी -
‘पटकथा लेखन ावहा रक िनदिशका’ िजसके लेखक असगर वजाहत थे। तीसरी कताब
‘ फ म क कहानी कै से िलख’ नाम क थी िजसके लेखक िवपुल के . रावल थे। उसने तय
कर िलया क सबसे पहले इ ही कताब को पढ़ेगा। उसके बाद कहानी को िव तार म
पटकथा के म म िलखोगा।
मुकेश खुशी-खुशी सरदार बुक हाउस प च ं गया। घड़ी म रात के दस बज गए थे। गेट बंद
होने ही वाला था क वो प च ं गया। उसके दमाग म अब वही कहानी घूम रही थी िजसे
िव तार से िलखना है। उस कहानी के पा उसक आँख के सामने इधर-उधर म डरा रहे
ं ा, सड़क क तरफ लगे लास के पास म खड़ी ि या और
थे। िल ट से जैसे ही गैलरी म प च
वैशाली आपस म बात कर रही थी और बाहर मु बई शहर के नजारे को देख रही थी। पीछे
से कसी के कदम क आहट सुन दोन मुड़ी, मुकेश को देख, मु कु राकर हाय बोला। मुकेश
ने उनके पास जाकर उ ह ये खुशखबरी सुनाई क उसक कहानी का सले शन हो गया है।
ि या और वैशाली ने मुकेश को बधाई दी। मुकेश सभी के िलए िमठाई पैक करवा कर
लाया था। उसने ि या और वैशाली को उसके म आकर िमठाई खाने के िलए कहा तो
दोेन तैयार हो गई व उसके पीछे-पीछे चल दी।
म नंबर 403 िजसम मुकेश, संतोष और लु बा रहते थे उसका गेट खुला आ था के वल
अटका रखा था। मुकेश म म एंटर हो गया। उसके पीछे-पीछे वैशाली और ि या भी अंदर
वेश कर गई। तीन जैसे ही कमरे म घुस,े अंदर लु बा और संतोष मोबइल पर धीमी
आवाज़ म कोई िविडयो देख रहे थे। आवाज़ िबलकु ल धीमी थी व दोन उस िविडयो म ऐसे
घुसे ए थे क पीछे से भले कोई म का सारा सामान चुराकर ले जाये तो भी उ ह इससे
कोई लेना-देना नह था।
मुकेश के साथ ि या और वैशाली को आये देख दोन उछल पड़े, लु बा ने घबराहट के मारे
िविडयो क आवाज़ धीमी करने के िलए ज दबाजी म बटन दबाकर मोबाइल को िब तर
पर उ टा रख दया। बद क मती से आवाज़ धीमे होने क बजाय फु ल हो गई थी पर लो
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नेट के कारण िविडयो बफ रं ग हो रहा था इसिलए कु छ समय के िलए िविडयो का वाॅ यूम
नह आने से लु बा समझा क आवाज़ बंद हो गई। दोन ने चेहरे के हावाभाव नामल करते
ए मु कु राकर लड़ कय का वागत कया। ये पहला मौका था जब दोन लड़ कय उनके
म म आयी थी। पहले दोन ने खूब मनुहार क पर लड़ कयां कभी नह आयी।
‘‘ या कर रहे थे?’’ मुकेश इस कमका ड से अनिभ था। उसने नामल-वे म पूछते ए
अपने पलंग पर बैठ गया और जुते उतारने लगा।
लु बा के पलंग पर लु बा और संतोष कसी अपराधी क तरह बैठे थे जब क संतोष के
पलंग पर ि या और वैशाली बैठ गई। वैसे ि या और वैशाली लड़क के म म नह आना
चाहती थी पर आज जब मुकेश ने िमठाई खाने का िवशेष आ ह कया तो दोन तैयार हो
गई।
‘‘कु छ ना वो नई वाली महाभारत देख रहे थे उस एप पर... या नाम है उस ऐप का
लु बा?’’ संतोष ने बात को संभालते ए कहा।
‘‘हॉट टार पर’’ लु बा ने तुरंत जवाब दया।
इतने म िविडयो बफर हो चुका था और नेट क पीड आने से िविडयो ले हो गया और
तेज-तेज आवाज़ म कसी मिहला औैर पु ष के ‘उ ..आ ’ के वर आने लगे।
लु बा ने झट से मोबाइल पर कं बल डाल दया। आवाज़ खामोश हो गई। िविडयो फर से
बफ रं ग होने के कारण पुश हो गया था। लु बा समझा क कं बल डालने से आवाज़ दब गई।
इस समय वो मोबाइल को हाथ म लेकर बंद भी नह कर सकता। अगर ऐसा करता तो
दोन लड़ कय को पता चल जाता क िविडय म कौनसी वाली महाभारत चल रही है।
मुकेश क उ ह खास परवाह नह थी पर लड़ कय के सामने वे अपनी फजीती होते ए
नह देख सकते थे।
‘‘लगता है चीर हरण वाला ऐपीसोड चल रहा है।’’ मुकेश ने म खरी के अंदाज़ म पूछा।
उसे कु छ डाउट आ क दोन लंपट कोई अं ेजीवाला िविडयो देख रहे है साले।
‘‘नह वो... हाँ शायद !’’ संतोष ने लु बा को आँख दखाते ए इशारा कया क अब
ि थित िनयं ण म है या नह । लु बा ने हाँ म िसर िहला दया। उसे लगा क आवाज़ दब
गई। वैसे भी िविडयो दो िमिनट का ही था तो ज दी ही पूरा हो जायेगा।
‘‘वो या है ना मेरे मोबाइल का साउ ड िपछले फट गया तो ऐसी ही आवाज़ आ रही
है।’’ लु बा ने कहा।
इतने म िविडयो फर से ले हो गया। इस बार आवाज़ अपने चरम पर थी। धुआँधार
आवाज़ आ रही थी। और ऐसी आवाज़ आ रही थी क िजसे यहाँ िलखा भी नह जा सकता।
लु बा का चेहरा सूख कर पीला पड़ गया था। संतोष तो वह का वह मू त बन गया। लु बा
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भा ग - 11
मुकेश का दमाग कु छ देर तो ऐसे ही चकराता रहा चकरी क तरह। जैसे मेला म लगी
डाॅलर म बैठने के बाद च र आत है। गोल-गोल घूमने के बाद ि थर होने पर भी चीज
काफ देर तक गोल-गोल घूमती ई दखाई देती है वैसे ही उसे भी पीवीआर क लाल
ग ेवाली सीट घूमती ई दखाई दे रही थी। दमाग म पहला ि लक यही आ क मेरे
साथ धोखा आ पर दूसरे ही ि लक पर फर से चकरा गया क आिखर कसने मेरे साथ
धोखा कया। मने कहानी िलखने के बाद के वल ुित को ही दी थी। कसी पि का वाले को
भी नह भेजी थी क वहाँ से कोई आइिडया चोरी कर के ले जाए। उसका दमाग ुित को
गुनहगार ठहराने के िलए िब कु ल भी तैयार नह हो रहा था। ुित ऐसा नह कर सकती।
कभी नह कर सकती। उसे पूरा िव ास था। बेचारी क आँख म स ाई क झलक देखी
थी। िनःछल ि व था उसका फर भला वो ऐसा य करे गी? पैस के िलए तो वो कतई
ऐसा नह करे गी। जब भी िमलती थी तो अपने पैस से काॅफ िपलाती थी। कभी पैस को
तरजीह नह दी थी। ज र कोई और बात रही होगी जो मुझे नह मालूम है। पूरी फ म म
कह मेरा नाम नह आया और अगर ुित ने खुद के नाम से कहानी आरजे को दी होती तो
उसका नाम भी तो आना चािहए था।
दमाग क गित दुिनया के सुपर-डु पर क यूटर से भी कई गुना तेज होती है। क यूटर भी
अभी तक इं सानी दमाग का थान नह ले पाया और शायद स दय तक ले भी नह
पायेगा। मुकेश का दमाग इस व सुपर पीड से दौड़ रहा था; पर गु थी सुलझ नह रही
थी। एकाध पल के िलए खुश भी होता क मेरी िलखी कहानी पर फ म बन गई और वो
िसनेमा पर छा सी गई है। या आ जो इसका ेय मुझे नह िमल रहा पर आिखर स ाई
तो स ाई ही है, उसे कभी झूठलाया नह जा सकता। कोई मेरा आइिडया चुरा सकता है
पर मेरे अंदर क ये टिवटी को नह चुरा सकता। कोई मेरे साथ धोखा कर सकता है पर
मेरी मता व इराद को ने तनाबूत नह कर सकता।
फ म के डायलोग-दर-डायलोग तािलयाँ बज रही थी इधर मुकेश का रोम-रोम फु ि लत
हो रहा था क इन तािलय का काॅपीराइट भले ही आरजे ने ले िलया हो पर हक कत म तो
ये मेरे िलए ही बज रही है। उसका रोम-रोम िखल उठा। शु -शु म जो तनाव था वो अब
ह का हो चुका था और वो पूरी फ म को यान से देखने लगा क आिखर इसम मने या
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खुशी ढू ंढते है ठीक उसी कार जैसे ह रण जंगल-जंगल उस क तुरी को ढू ंढता फरता है जो
उसक खोपड़ी म दबी होती है। उसे कोई िस पंि याद आग गई।
जंगल-जंगल ढू ंढ रहा मृग अपनी ही क तुरी
कतना मुि कल है तय करना खुद से खुद क दूरी
‘‘रो मत मेरे यार। तू दल का ब त साफ है। मुझे मालूम था तेरे साथ कभी ना कभी चोट
होगी।’’ संतोष ने उसके आँसू प छते ए फटकारा, ‘‘देख, लड़ कयाँ हमारी तरफ ही देख
रही ह।’’ उसका इशारा पीवीआर से फ म देखकर आती अ य खूबसूरत लड़ कय क
तरफ था जो दोन को देखते ए, हँसते ए जा रही थी। ‘‘ऐसी हँसीना के सामने कौन
रोता ह! चल आज मेरी तरफ से तेरे को पानीपुड़ी िखलाता ।ँ ’’
पाँच पानीपुड़ी वाले क लारी पर प च ं गए। ि या और वैशाली ने दस पये का एक
राउ ड पहले ही पूरा कर िलया था। जब संतोष और मुकेश वहाँ प च ं े तब तक वे मु त क
पुड़ी लेकर खा रही थी। संतोष ने लारीवाले को पाँच लेट पानीपुरी का आडर दया, दोन
लड़ कयाँ मुँह पोछकर फर से मैदान म डट कर खड़ी हो गई, दूसरे िव यु के िलए।
वैशाली ने मुकेश को उदास देख पूछ िलया। मुकेश इस समय कु छ भी बताने क ि थित म
नह था। उसक मनःि थित देख संतोष ने सारी रामायण बया कर दी। सबके मुँह अवाक् से
रह गए। बेचारी पानीपुड़ी भी लेट म पड़ी क पड़ी रह गई जो क मुँह म जाने क ती ा
म ऐसे देख रही थी जैसे कोई छोटा ब ा माँ क गोद म आने के िलए हाथ ऊपर कए
ललसायी िनगाह से देखता हो।
‘‘ रयली ये कहानी तुमने िलखी मुकेश?’’ वैशाली ने पानीपुड़ी मुँह म डालने के बाद मुँह
को थोड़ा सा ऊपर करके होठ को भंचते ए अंदर ही अंदर पुड़ी का हलवा बनाते ए
पूछा।
‘‘आई का ट िबिलव क इतनी इ टरे टंग टोरी तुमने िलखी?’’ ि या ने लेट म रखी
पानीपुड़ी के छेद म याज व टमाटर का कचूमर डालते ए कहा।
‘‘तु ह िबिलव नह हो रहा हो तो म पर इसक िलखी कहानी पड़ी है। देख लेना। ऐसा
तो नह क ये अभी जाते ही कहानी िलख देगा।’’ संतोष ने पुड़ी खाने के बाद लेट म भरा
पानी सुड़कते ए लताड़ा।
‘‘बीडू तू तो गुदड़ी का लाल िनकला यार।’’ लु बा ने पानीपुड़ी खाने के बाद ए ा पानी
के िलए लेट आगे बढ़ाते ए कहा।
‘‘बट ये ठीक नह आ।’’ ि या ने मु त क पुड़ी के िलए हाथ आगे बढ़ाते ए कहा।
संतोष ने जेब से पस िनकाला, उसम कड़क नोट को साइड म दबाकर जजर नोट को आगे
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बढ़ा दया। पाँच वापस सरदार बुक हाउस प च ँ गये। शाम के छह बजे थे। जैसे ही मुकेश
मप चं ा उसके फोन क रं ग बजी। फोन ुित का था। उठाते ही ुित ने उसे इसी व
कबीर कै फे पर बुलाया, कहा क कु छ ज री बात करनी है। इससे पहले क मुकेश कु छ
पूछता, ुित ने इतना ही कहा क वो बुखार क अवा था म भी कै फे पर आ रही है
इसिलए ज दी से ज दी आ जाये। उसक इमोशनल बात सुन मुकेश सीधा नीचे उतरा व
ओटो म बैठकर कबीर कै फे क तरफ रवाना आ।
िु त उदयपुर तो गई ई थी फर अचानक यहाँ कै से आ गई और उसने बताया भी नह ।
आिखर उसने मेरी कहानी कसे दी? य दी? मेरे साथ ही ऐसा य आ? उसे कम से
कम मुझे बताना तो चािहए था क मेरी कहानी पर फ म बन रही है। मुझे रोय टी और
नाम नह चािहए पर कम से कम बता देती तो मेरा दल खुशी से झूम उठता। ऐसे ही कई
सवाल उसके दमाग म भ ा रहे थे, िजनका जवाब के वल ुित के पास था। जब हम
िवचार क परत दर परत उलझते जाते ह तो बाहर िनकलने का कोई रा ता समझ नह
िमलता। ऐसे हालात म समय कै से िनकल जाता है पता ही नह चलता। ओटोवाले ने जब
ेक मारकर कहा क भैया कबीर कै फे आ गया तो मुकेश क तं ा भंग ई। उसने ओटोवाले
को पैसे दये और कै फे के अंदर जाने लगा। आज उ मीद से अिधक भीड़ थी। रिववार होने
के कारण भी सं या अिधक थी। लोग मि खय क तरह काफ पर िभनिभना रहे थे। मुकेश
िनप भाव से चल रहा था मानो ‘रे िजडस इवल’ फ म के टी-वायरस से िसत कोई
मरीज चल रहा हो। वह जड़ सा होकर बगैर कसी ित या के कै फे म घुस गया। कभी-
कभी उसे महंगेवाले पर युम क खु बू आ जाती तो कभी कसी के जोर-जोर से हँसने क
आवाज।
आज कतने ही मिहन के बाद वो ुित से िमलने आया। जब से बीमार ई तब से उदयपुर
चली गई थी। उसे हरव ुित क ही चंता सताये रहती थी। घर पर बात नह कर पाने
क मजबूरी के कारण वो उसे यादा फोन भी नह करता था। कभी-कभी फोन कर के
तबीयत पूछ लेता तो वो खा- खा सा जवाब दे देती थी। मुकेश समझ सकता था क
बीमारी म इं सान िचड़िचड़ा हो जाता है। वो उसे यादा परे शान नह करता। वा सअप
और फे सबुक पर भी कभी मैसेज नह करता; य क इन सब चीज से तो वो कौस दूर
था। उसका मानना था क जीवन म जब तक मंिजल हािसल नह कर ले, तब तक ये सब
चीज समय ही बबाद करती ह। सोशल मीिडया ऐसा धीमा जहर ह जो हम अंदर ही अंदर
से खोकला कर देता ह। ये इं सान को पूरी तरह एिड ट कर देता है और पता भी नह चलने
देता है क कब हम सोशल मीिडया के गुलाम हो गए। ठीक उसी कार जैसे कोई अफ मची
पहले-पहल तो शौक से अफ म खाता है फर अफ म खाये बगैर उसे न द नह आती, एक
अजीब सी बैचेनी सताये रहती।
मुकेश हमेशावाली टेबल पर जाकर बैठ गया। ुित अभी तक नह आयी। उसने मोबाइल म
देखा तो ुित का एसएमएस था क म बस पाँच िमनट म प च ं रही ।ँ मुकेश ने ओके
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िलख कर भेज दया। बेचारी बीमारी के हालात म भी िमलने आ रही है। ये लड़क पागल
है। आज का आज ही िमलने आये और कहानी के बारे म सब ि लयर करे , इतना भी ज री
नह था। पहले पूरी तरह से ठीक तो हो जाती फर सारी बात कर लेत; पर एक नह
सुनती। आज जब आयेगी तो सबसे पहले उसे डाट िपलाऊँगा क अपना यान रखा कर।
इतना कु छ हो जाने के बाद भी उसके दमाग म एक ही चंता सताये जा रही थी क जाने
उसक ुित कै सी होगी? इतने दन से बीमार होने के कारण सूख कर कांटा हो चुक
होगी, चेहरा भी िपचक गया होगा। लापरवाह है, अपना ठीक से खयाल तक नह रखती।
िपछली बार आयी थी तब सद -जुकाम म भी को ड काफ पीने क िजद कए ए थी। मने
लाख समझाया पर मानने को तैयार नह ई और को ड काफ मंगवार पी ही ली। उसक
इसी लापरवाही के कारण तो उसक चंता सताये जा रही थी।
टेबल पर बैठे-बैठे उसने अपनी जेब म से एक सोने क अंगूठी िनकाल कर देखी, सोना
चमक रहा था। मुकेश के चेहरे पर भी चमक आ गई। िपछले दो मिहन क तनखाह बचार
उसने ुित के िलए सोने क अंगूठी बनवाई थी। सोचा था जब ठीक हो जायेगी तो कै फे पर
बुलाकर फ मी टाइल म एक घुटने पर खड़ा होकर उसे पोज करते ए अंगूठी उसक
तरफ बढ़ाऊंगा। एक डर ये भी था क कह ुित इनकार कर देगी तो या होगा पर उसे
िव ास था क ुित क आँख म मने यार देखा है, और इतना तो कताब म पढ़ा ही ह
क आँख कभी झूठ नह बोलती। मुकेश ने एक बार फर से अंगूठी को देखकर यार से चूमा
फर जेब म रख दया। दूसरी जेब म रखे जादुई प थर को भी बाहर िनकाला और उसे
धीमे से कहने लगा, ‘‘इतने दन म मने तुमसे कु छ नह माँगा। आज एक चीज़ माँग रहा
,ँ मुझे तु हारी शि पर पूरा िव ास है, इसिलए आिखरी बार माँग रहा ँ क लीज...
ुित मुझसे शादी के िलए हाँ बोल दे बस। मुझे इससे यादा कु छ नह चािहए। जब
स ावाला यार िमल जाये तो बाक सारी चीज अपने आप िमलनी शु हो जायेगी।
दौलत-शौहरत सब आ जायेगी बस स ावाला यार ब त ज री है।’’ कहते ए मुकेश ने
उस चम कारी प थर को फर से जेब म रख दया क कह कोई देख रहा होगा तो पागल
कहेगा।
उसे आये आधा घंटा हो चुका था पर अभी तक ुित नह आई। वैसे उसे कह जाना नह था
पर कै फे का वेटर बार-बार आ कर काफ के िलए पूछ रहा था। मुकेश को मालूम था क
शाम के समय मु बई का ा फक तो जान लेकर ही रहता है। एक मील के सफर के िलए ही
आधा घंटा लग जाता है तो ुित का लेट होना कोई बड़ी बात नह है। वो अब भिव य के
सपने देखने लगा क जब ुित मेरे साथ होगी तो सबसे पहले तो एक धासूँ ि ट िलखूँगा,
फर उसके कॉपीराइट बेचकर यहाँ घर खरीद लूँगा। उसके बाद हमेशा के िलए ुित और
म साथ रहगे। उसे फाइव टार म खाना िखलाने के िलए भी तो ले जाने का ोिमस पूरा
करना है।
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मुकेश खुली आँख से सपना देख ही रहा था क कसी ने उसक आँख पर हाथ रख दया।
उसके सामने अंधेरा छा गया। यान भंग आ। कसी ने पीछे खड़े होकर उसक आँखे पकड़
रखी थी। मुकेश को पहचानने म एक सैके ड का हजारवा िह सा भी नह लगा क ये ुित
के कोमल हाथ ह।
‘‘इिडयट! तुम आनेवाली हो तो तुम ही ह गी ना।’’ उसने ुित का ही जवाब उसे दया।
पहले जब उसने ुित क आँख पर हाथ रख दया था तब ुित ने भी यही कहा था।
उसक आवाज़ सुनते ही ुित हँसते ए उसके सामने आ गई। मुकेश को उसके शरीर से एक
अजीब सी जादुई खु बू आ रही थी, जो उसने जीवन म कह नह महसूस क थी। जैसे ही
ुित सामने आई मुकेश यह देखकर दंग रह गया क वो तो एकदम व थ दख रही है।
‘‘तुमने ब त ज दी पहचान िलया?’’ सामने क चेयर पर बैठते ए ुित ने मु कु राते से
अ फाज म कहा। उसके चेहरे से नूर टपक रहा था। अगर मुकेश के पास यादा
मेगािप सल का कै मरा होता तो वो इस पल को हमेशा के िलए कै द कर के रख लेता।
‘‘िजसे भूला जाये उसे पहचानने म समय लगता है।’’ मुकेश ने चैन क सांस ली क चलो
उसक ुित बीमारी से ठीक हो गई।
‘‘ कतनी देर ई तु ह आये?’’ मुकेश से पूछने के बाद उसके जवाब क ती ा कये बगैर
उसने वेटर क तरफ दो काफ का इशारा कया। वेटर तुरंत काफ लाने के िलए अंदर चला
गया।
‘‘बस अभी थोड़ी देर पहले आया था।’’ कहते ए मुकेश ने घड़ी म देखा आठ बज गए थे।
उसे यक न नह आ क इं तजार करते-करते डेढ घंटा हो गया। क पना म खोये-खोये
समय कै से िनकल गया पता ही नह चला।
‘‘पता है तुमसे िमलना ब त अ छा लगाता।’’ ुित ने पस के बेक कवर पर लगे िमरर म
अपना चेहरा देखकर होठ पर िलप टीक लगाते ए कहा।
मुकेश का दल बाग-बाग हो गया। यही तो श द सुनने के िलए उसके कान तरस रहे थे।
पहले उसे लगा क गांव से आये उस जैसे साधारण लड़के को भला कौन पसंद करे गा पर
ुित ने सािबत कर दया क गांव शहर से कोई फक नह पड़ता। स ा यार कि डशन के
बगैर होता है।
‘‘अब तु हारी तबीयत कै सी है? तुमने तो कहा था तु ह बुखार आ रहा है?’’
‘‘मुझे लगा तुम िमलने नह आओगे इसिलए झूठ कहा। सॉरी।’’ ुित ने मासूम सा चेहरा
बनाते ए कहा।
‘‘और तु ह ऐसा य लगा क म नह आऊंगा।’’ मुकेश को उसके झूठ से कोई फक नह
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पड़ा। वो तो इस बात से खुश था क चलो ुित अब एकदम ठीक है। उसने जेब से अंगूठी
िनकाल कर टेबल के नीचे हाथ म दबा दी और सही समय का इं तजार करने लगा। वो
सर ाइज देना चाहता था।
‘‘पता नह बस ऐसे ही लगा।’’ ुित ि ट वाली बात को पहले मुकेश के मुँह से सुनना
चाहती थी।
‘‘तुमने बताया नह मेरी ि ट पर फ म भी बन गई और रलीज भी हो गई?’’ मुकेश
ने मु े क बात छेड़ी। उसक िज ास उसे चैन से बैठने नह दे रही थी।
िु त को मानो िजस बात का डर था वही हो गई हो। उसने अपने चेहरे के बदलते हावभाव
को ि थर करने के िलए गहरी सांस लेते ए कहा, ‘‘मने वही सब बताने के िलए तु ह यहाँ
बुलाया।’’ इससे पहले क ुित कहानी शु करती वेटर काॅफ लेकर आ गया था। ुित ने
एक घूंट भरने के बाद चेयर को थोड़ा सा पास िखसकाते ए कहना ारं भ कया, ‘‘तुमने
मुझे जो ि ट दी थी वो मने आरजे को बताई तो उ ह ब त पसंद आयी। वो तुरंत इस पर
मूवी बनाने को राजी हो गया। उ ह ने समझा क ये ि ट मने खुद ही िलखी है, इसिलए
उ ह ने तुरंत उसी समय मुझे अगली फ म म लीड रोल देने क पेशकश कर दी। इससे
पहले क म कु छ बता पाती उ ह ने ताव ही ऐसा रखा क म बस कु छ बोल नह सक ।
जब वहाँ से घर आकर इस बारे म सोचा तो मुझे ब त बुरा लगा। अपने आप को माफ नह
कर पा रही थी और तुमसे नज़र िमलाने क िह मत भी चली गई थी, इसिलए तुमसे
िमलना बंद कर दया और मजबूरन ये झूठ बोलना पड़ा क म बीमार ँ और उदयपुर चली
गई।’’
‘‘तो या तुम बीमार नह थी।’’ मुकेश उछल पड़ा। उसका दल जैसे जोर से फड़का हो।
िपछले कतने मिहन से ुित के वा थ होने क दुआ कर रहा था; जब क वो तो बीमार
ही नह थी।
‘‘मुझे मालूम है तुम मुझे माफ नह करोगे; कं तु लीज! एक बार मेरे खाितर पूरी बात
सुन लो।’’
‘‘बताओ?’’
‘‘आरजे ने उस ि ट का काॅपीराइट अपने नाम करा दया और मुझे आगामी फ म म
िलड रोल देने का वादा कया। पहले तो मुझे शक आ क कह आरजे बाद म बदल गया
तो या होगा पर जब फ म अ छे से चल िनकली तो वो इतना खुश आ क उसने मुझे
शादी के िलए पोज कर दया।’’
‘‘ या?’’ मुकेश के मुँह से काफ बारह िगर पड़ी। वो खाँसते ए बोला।
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भा ग - 1 2
जीवन हम सब सीखा देता है- रोना, हँसना, िगरना, संभलना... सब। ऐसा कोई इं सान
नह है जो जीवन क पाठशाला म कु छ भी सीखे िबना सब कु छ पा गया हो। ऐसा
नामुं कन है क हम िगरे बगैर आसमान म क बुलं दय को छू सक। मुकेश भी इस समय
सीधे जमीन पर िगर गया। उसके सारे अरमान एक पल म तबाह हो गये। कतना ज दी
सबकु छ हो जाता है! देखते ही देखते वे लोग बदल जाते ह िजन पर आँख बंद कर के यक न
कया करते ह। पहले तो उसे, उसके प रवारवाल ने बेघर कर दया था वो भी िसफ
इसिलए क वो एक नौकरी नह लग सका य क उनक मु त क रो टयाँ तोड़ता था।
उसके बाद ुित ने दल तोड़ दया और ऐसा दल तोड़ा क उसके टू टने से मानो सारी
दुिनया ही बदल गई हो।
कै फे से वापस लौटते समय उसने एक बार भी पलटकर नह देखा, देखता भी य ? पीछे
देखने से उसे हमेशा ज म ही तो िमले ह। उसक आँख के सामने अंधेरा सा छा रहा था।
कै फे से बाहर िनकलते ही सीधा ओटो म बैठ गया व सरदार बुक हाउस का ख कया।
ओटो फट् फट् क आवाज़ से सफर तय कर रहा था, मुकेश उसक सीट पर मौजूद होते ए
भी मानो अनुपि थत था। सामने क सड़क, दुकान, ा फक, गािड़य क पी-पो व लोग
का शोरगुल सब देखते ए भी जैसे कु छ भी नह देख रहा था। रे ड लाइट पर ओटो का
कना, आस-पास गािड़य ारा धुंआ उड़ाना, बुलट भुट-भुट, बस का हान बजना और
भीख मांगनेवाल का एक हाथ उसक तरफ बढ़ना उसके िलए होते ए भी नह के बराबर
हो गया। य क इस समय वो दूसरी दुिनया म था। उस दुिनया म िजसे वो पीछे छोड़
आया। िजसने उसे ठोकर मार दी। वो उस अतीत से उबर नह पा रहा था िजसने उसे इतने
ज म दये।
उसक आँख के सामने वे सारे खूबसूरत दृ य लो मोशन म रपीट हो रहे थे िजनम ुित
क पहली बार उसके जीवन म ए ी ई थी। जैसे कसी फ म म फाइ टंग सीन म हवा म
ज प लगाकर िवलेन को मु ा मारते नायक के दृ य लो मोशन म बार-बार दखाये जाते
है या कसी नाियका क एं ी होने पर उसक लहराती जु फ व कमर के लटके -झटक को
बार-बार लो मोशन म रपीट कया जाता है ठीक उसी कार मुकेश के सामने ुित का
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चेहरा रपीट हो रहा था। जब पहली बार ावे स क सीट पर चुपचाप बैठे देखा था उसे
या फर बां ा ए स ेस म उसका साथ देना।
िवचार म खोये कब सरदार बुक हाउस आ गया उसे पता ही नह चला। ओटोवाले ने
उसके कं धे को एक हाथ से झंकझोर कर िहलाया तब उसक चेतना अतीत से वतमान म
लौटी। उसने हड़बड़ाकर बाहर देखा, सामने सरदार बुक हाउस क िब ड ग चुपचाप खड़ी
उसे देख अ हास ले रही थी। उसने ओटोवाले को पैसे देकर ऊपर क तरफ ख कया।
घड़ी म नो के लगभग बजे थे। आज फर से उस पागल ने मुकेश का रा ता रोका, पीछे से
उसक कनपटी पर लकड़ी का टु कड़ा रखते ए तेज़ आवाज़ म कहा क िबलकु ल भी िहलने
क कोिशश मत करना वरना शूट कर दूग ँ ा। मुकेश ने उसक तरफ यान ही नह दया।
उसका मन कर रहा था क काश्! ये मुझे सच म शूट कर दे। इस दुिनया म वैसे भी अ छे
इं सानो के िलए जगह कहाँ बची है। वो चुपचाप िल ट म चला गया। पागल लगातार वही
कथन दोहराये जा रहा था।
कमरे का गेट खेलकर देखा तो संतोष और लु बा दोनो पलंग पर बैठकर मोबाइल पर
लुड़ो कं ग खेल रहे थे। सामने टू ल पर िव क क बोटल पड़ी ई थी िजसके पास म दो
टील क लास रखी ई थी िजनम एक-एक पेग िव क का भरा आ था। पास म दस
पये क एक छोटी चखणा क थैली रखी ई थी, िजसम से दोन एक-एक दाना उठाकर
मुंह म रख रहे थे और अपनी-अपनी चाल चल रहे थे। दोन ने हाफ पट पहना आ था और
ऊपर पा क सफे द कलर क बिनयान। लु बा का हाफ पट इतना मैला-कु चैला हो गया
था क उस पर एकाध मि खयाँ भी िभन-िभना रही थी। छत पंखा तीन पर चल रहा था
िजससे उसक पखुिड़याँ गायब सी लग रही थी। हवा से बार-बार दराज म कपड़ व
सामान के नीचे िबछाये र ी अखबार कसी घायल प ी क तरफ फड़फड़ा रहे थे। लु बा
क दराज पर एमी जे सन व स ी िलयोनी के रं गीन िच लगे ए थे जब क संतोष क
दराज पर हेमा मािलनी और रे खा के िच । संतोष के बाई तरफ रखे मोबाइल म धीमी
आवाज़ म सदाबहार नगम चल रहे थे, ‘‘ये रात भीगी-भीगी...ये म त फजाय...उठा है
धीरे -धीरे ...वो चांद यारा... यारा... य आग सी लगा के ...गुमसुम है चांदनी...सोने भी
नह देता मौसम का इशारा...’’
मुकेश को मुँह लटकाये देख संतोष ने भाँप िलया क भाई का दल पूरी तरह से ज मी है।
दल पर ज र कोई अंद नी चोट लगी होगी। इं सान जब बाहर से ज मी होता है तो खून
उसके ज म क गहराई बया कर देता है; कं तु जब वो अंदर से, दल से ज मी होता है तो
दुिनया म ऐसा कोई पेरामीटर नह बना जो उसके ज म क गहराई माप सके । मेिडकल
सांइस ने भी ऐसी कोई दवा इजाद नह क क िजसको सुबह-शाम खाना खाने के बाद या
भूखे पेट लेने से दल के सारे ज म तीन दन या चार दन म भर जाये। िच क सा िव ान
क ये कै सी तर क क उसने इं सान का लोन बना दया, पूरे डीएनए को खंगाल िलया;
पर टू टे दल को नह जोड़ पाया।
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‘‘मने उस पर पूरा िव ास कया था पर उसने मेरे साथ धोखा कया।’’ उसने बाहर
सड़क पर टाई-सूट पहन कर ऑ फस जाते लाग को देखा। सब कतने ज दी म थे।
‘‘कोई तु हारे साथ या करे , ये मायने नह रखता। तुम नीचे िगर पड़ो, ये भी मायने नह
रखता। मायने तो ये रखता है क तुम कतना ज दी उठ खड़े होते हो।’’
मुकेश इस समय चुप ही रहा। जब कोई ान क बात समझाये उस सयम चुपचाप सुनाना
ही अ छा रहता है।
‘‘मुझे उ मीद है तुम एक दन अपना सपना पूरा कर दखाओगे। असंभव जैसा यहाँ कु छ
भी नह होता। मने तु ह आज यहाँ इसिलए बुलाया क म ये देखना चाहता था क कह
तुम अंदर से टू ट तो नह गये। इस दुिनया म दो तरह के इं सान होते ह। पहले वे लोग जो
ठोकर लगने या दल टू टने पर हमेशा के िलए िनराश हो जाते ह और आगे कोिशश करने से
क जाते ह। दूसरे , वे लोग जो ठोकर लगते ही तुरंत उठ खड़े होते ह और उससे सबख
स खकर आगे बढ़ जाते ह।’’ कहते ए दादू चुप हो गये। सामने न पर सीसीटीवी
फु टेज चल रही थी। दादू ने गहरी सांस लेते ए कहा, ‘‘पता है जीवन म सफल कौन होते
है?’’
‘‘दूसरी कार के लोग।’’ मुकेश ने तुरंत जवाब दया। वो दादू क बात हमेशा यान से
सुनता था। उसे मालूम था क दादू ब त कम पर ब त ही सारग भत बोलते ह।
‘‘िबलकु ल ठीक समझा। तुम तय कर लो क तुम कस के टेगरी म आना चाहते हो।’’
‘‘जी दादू।’’ कहते ए मुकेशु ी पर चला गया। इस समय यादा लोग नह थे। उसने
ट
महादेवी वमा क किवता वाली कताब उठाई और पढ़ने लगा,
म नीर भरी दुख क बदली !
.....
िव तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
प रयन इतना, इितहास यही-
उमड़ी कल थी, िमट आज चली!
मुकेश इस समय इतना टू ट चुका था, नीचे िगर गया था क अब उसे कसी बात का डर
नह रहा। अब उसके सामने जीतने के िलए ये सारी दुिनया थी और हारने के िलए कु छ भी
नह । हम आगे इसिलए नह बढ़ पाते है य क हम हारने से डरते ह, कसी को खोने से
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डरते ह। ये डर ही हम रोके रखता है। मुकेश का सारा डर िनकल गया। उसक सारी
जकड़न अब टू ट चुक थी। कै फे से लौटता एक-एक कदम उसक आजादी का था। अब उसने
पूरी तरह से अपने आप को अपने सपने म लगा िलया। कोई ऐसा आइिडया सोचने लगा
िजस पर कहानी िलख सके , जो यूिनक हो, जो अिधक से अिधक लोग को भािवत करे ,
जो युवा को रत कर।
उसके बाद ना मुकेश ने ुित को फोन कया और ना ही ुित ने। मुकेश ने उसके नंबर तो
िडलीट नह कये पर कभी उसे कॉल भी नह कया। वो इस तरफ से अपना पूरा यान
हटा लेना चहता था; ले कन हटा नह पा रहा था। या तो ये इं सान का अिभशाप है या
कोई और कारण क वो िजस चीज से अपना यान हटाने क कोिशश करता है या िजसे
भूलने क कोिशश करता है वो उतना ही मृित म थाई होता जाता है। कभी-कभी शाम के
झुरमुटे म या अंधेरी रात म छत पर अके ले म मुकेश को ुित क याद भी आ जाती थी पर
वो मजबूर था। वो उसे कॉल भी नह कर सकता था; य क हो सकता है, ुित इस व
आरजे के साथ रह रही हो, ऐसे म वो नह चाहता था क ुित को कॉल कर के परे शान
करे । उसक िज दगी म दखल नह देना चाहता था।
कभी-कभी अनायास ही उसक अंगुिलयाँ मोबाइल क काॅ टे ट िल ट म जाकर क-पेड
पर ुित टाइप कर देती; पर फर दूसरे ही पल वो उसे न के सामने से हटा देता। कभी
कभार उसे गम म डू बे देख संतोष और लु बा दा क मनुहार करते, कहते क दो घूंट भरते
ही सारे गम चले जायगे। पर वो ये कहते ए इं कार कर देता क ये सब खुद को पागल
बनाने के उपाय है। दा से कभी कसी का भला नह आ और ना ही कभी कसी को
खोया यार िमला। रही बात गम भुलाने क तो अगर दा पीने से सारे लोग के गम
गायब हो जाते तो दूसरे दन से कोई मयखाने म जाता ही नह । ये तो सब खुद को बहकाने
और जबरन अवचेतन मन को अंधेरे म रखने का उप म है। संतोष और लु बा भी मुकेश के
तक के आगे नतम तक हो जाते पर अपना पेग बराबर लगाते रहते।
इस बीच मुकेश ने एक कहानी िलखी। कहानी के िलए कई दन तक तो उसे दमाग पर
जोर डालना पड़ा; पर कोई अ छा आइिडया दमाग म आया ही नह । आइिडया आना
और उस पर कहानी िलखना कतना मुि कल है ये वही समझ सकता है जो कहानी िलखता
है। एक आइिडया के िलए जाने कतने दन तक इं तजार करना पड़ता है तो कभी-कभी
नहाते समय ही धड़ाधड़ नये आइिडयाज क बहार आ जाती ह। उसने महसूस कया क
कोई भी आइिडया सबसे पहले सू म म म आता है। कभी भी पूरी कहानी, आइिडया के
प म कट नह होती। पहले पहल एक छोटा सा, सामा य सा आइिडया दमाग म
ि लक होता है। जैसे घने अंधेरे जंगल म कोई जुगनू एक पल के िलए चमकता है। वो ि लक
भी कु छ सैके ड के िलए ही रहता है। अगर इस समय म उस आइिडया को पकड़ ना ल तो
वो िततली क तरह उड़ जाता है। हमेशा के िलए कसी अंधेरी गुफा म समा जायेगा।
इसिलए मुकेश ने उस आइिडया को पकड़ कर एक डायरी पर नोट कर िलया और हमेशा के
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अपने काम म शगूल हो गया। उसने आगे का काम अपने अवचेन मन को स प दया क वो
ही इस पर कोई कहानी ढू ंढकर लाये। एक दन नहाते समय उसे उस आिडया पर एक उ दा
कहानी सूझी। तुरंत बाहर िनकलकर उसने उस िवचार को नोट कर दया।
एक रिववार को एकांत म बैठकर उसने उस पर कहानी िलख दी। कहानी िलखने के बाद
उस दन उसे वैसे ही छोड़ दया। यादा दमाग नह लगाया। अगले दन उसे फर से पढ़ा
तथा उसम वांिछत सुधार कये। इस कार उसने एक शानदार कहानी तैयार कर दी; कं तु
इस बार कसी को बताया नह । दूध का जला छाछ को भी फूं क-फूं क कर पी रहा था।
अगले कु छ दन उसने उस कहानी पर ि ट तैयार कर दी। अब बारी थी उसे भेजने क ;
पर ुित के अलावा ना तो कोई उसे जानता था ना वो कसी को जानता था। ऐसे ही कसी
को कै से भेज सकता है? अगर भेज भी देगा तो या गारं टी क कोई उसका आइिडया
चुरायेगा नह । कु छ दन इसी पशोपेश म रहा। तभी नॉवेल पढ़ते समय दमाग म आया क
वो भी अपनी कहानी को नॉवेल के प म छपा दे। अगर कहानी काशक को पसंद आ गई
तो उसे एक पया नह देना पड़ेगा और काशक अपने पैस से छाप भी देगा, ऊपर से
रोय टी के पैसे देगा वो अलग। मुकेश को रोय टी क फ नह थी। उसे तो बस
कॉपीराइट सुरि त करवाने थे। उसने इि मनान से नॉवेल पूरा कर दया। एक दन दादू से
छु ी लेकर वो पा डु िलिप िलए िनकल पड़ा उस दुिनया म िजसे काशक क दुिनया कहते
ह। उसने िह दी से छपने वाले नॉवेल व कहािनयाँ जो उसके यहाँ पड़े थे उनके पीछे से टॉप
टेन काशक के ए स े और फोन नंबर नोट कर िलये िजनके द तर मु बई म ही थे। सबसे
पहले उस काशक के द तर प च ं ा जो उसक िल ट पर नंबर एक पर था एवं जहाँ से
कािशत कताब सवािधक सं या म सरदार बुक हाउस म रखी ई थी। िजसके यहाँ से
बड़े-बड़े लेखक क कताब कािशत होती है।
मु य दरवाजे से जैसे ही अंदर प च
ं ा तो एक लड़क रसे सन पर बैठी क यूटर म कु छ
टाइप कर रही थी। मुकेश को देखते ही बोली, ‘‘यस सर बताइये?’’
‘‘एक उप यास क पा डु िलिप लेकर आया ।ँ यहाँ से छपवाना चाहता ।ँ ’’ मुकेश ने
पा डु िलिप आगे करते ए कहा।
‘‘सॉरी सर हमारा पि लके शन इस व ब त ही यादा िबजी है। वो कोई भी नया
ोजे ट नह ले सकता।’’ लड़क ने पा डु िलिप देखे बगैर ही रटारटाया जवाब दे दया।
‘‘एक बार देख तो लीिजए। हो सकता है कहानी आपको पसंद आ जाये।’’ उसने िवनती
भरे वर म कहा।
‘‘आपको बता तो दया सर। या अं ेजी म फर से रपीट क ँ ।’’ लड़क ने चेहरे पर
त खी लाते ए कहा।
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‘‘आपने िलखा है?’’ बुजुग ने पोपले मुंह से कहा। उसके तकरीबन सारे दाँत िगर चुके थे।
‘‘जी सर’’
उसके बाद दस िमिनट तक वो कु छ नह बोला और पढ़ना जारी रखा। मुकेश ने समझा क
फालतू को टाइम खोटी कर रहा ।ँ उठकर चले जाना चािहए। वो जैसे ही उठने लगा क
बु े ने हाथ आगे बढ़ा दया पा डु िलिप के िलए। मुकेश ने उसे पा डु िलिप पकड़ा दी। बु े के
हाथ इतने पतले थे क नस और हि य के अलावा कु छ भी नह था। कमजोर इतना था क
पा डु िलिप का बोझ भी बड़ी मुि कल से उठा पा रहा था।
‘‘ या नाम है तु हारा?’’ बु े ने नाक िबलकु ल पा डु िलिप पर टकाते ए पूछा।
मुकेश ने रा ते म तय कर िलया था क वो ये कताब मुकेश नाम से नह छपायेगा। कसी
को अपनी वा तिवक पहचान बतायेगा ही नह । उसे तो के वल कताब का कॉपीराइट
चािहए था। उसे नाम आ द से कोई मतलग नह था इसिलए उसने गला ठीक करते ए
बताया, ‘‘मेरा नाम सु दरलाल है।’’
‘‘मेरा नाम ान काश है।’’ उसने ऊपर देखे बगैर ही कहा।
ान काश ने एक घ टे म सरसरी नज़र से पा डु िलिप को टटोलने के बाद गदन ऊपर
उठाते ए पहली बार मुकेश के चेहरे को यान से देखा मानो ये जजमट करना चाह रहा
हो क वाकई म ये कहानी इसी ने िलखी है या नह ।
‘‘ या नाम बताया तुमने अपना?’’ मोटे लस म उसक आँख उ लू क तरह लग रही थी।
‘‘जी सर मेरा नाम सु दर लाल।’’ मुकेश का दल धड़क रहा था। जाने या कहेगा। कह
ये ना कह दे क कहानी अ छी नह है।
‘‘ .ँ .. िम टर सु दरलाल आपक कहानी तो ब त अ छी है। म इसे छापने को भी तैयार
।ँ मुझे आपसे कु छ भी रािश नह चािहए। बस आप एक फोटो और चार-पाँच लाइन म
अपना प रचय िलख दीिजए।’’
‘‘ या सच म मुझे कु छ भी नह देना होगा।’’ मुकेश ने अपने आप को उछलने से रोका।
‘‘हाँ भाई हाँ। आिखर आपने कहानी भी तो इतनी शानदार िलखी है।’’
‘‘मगर सर म इस नॉवेल पर के वल अपना नाम और लेखक प रचाय के थान पर मेरा
े देना चाहता ।ँ इवन फोटो भी नह देना चाहता ।ँ ’’
इमेल ऐ स
‘‘कोई ोबलम नह । आप अपना मेल आई डी िलख दीिजए। म सबसे पहले इसक के वल
पाँच सौ ितयाँ ही छपवाऊँगा। चल िनकली तो और छपती रहेगी और िबकती रहेगी।
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भा ग - 1 3
अगले रिववार को कसी कारण से मुकेश काशक के यहाँ नॉवेल दूसरी दुिनया क ित
लेने नह जा पाया पर ान काश जी ने पाँच सौ ितयाँ छपवाकर मु बई के लोकल बुक
टोर पर उपल ध करवा दी। सरदार बुक हाउस भी इस नॉवेल क दो ितयाँ, नई
कताब के बंच के साथ आई। दादू ने बंच खोलकर सारी कताब क यूटर म चढ़ाई व
संबंिधत लोर पर िभजवाने से पहले उ ह खोल कर देखा। दादू हमेशा नई कताब को
पहले खोलकर देखते क खुद के िलए पढ़ने लायक कोई पु तक है या नह । अ सर वे
अं ेजी क कताब ही यादा पढ़ते थे पर आज अं ेजी के बंच म उ ह पढ़ने लायक कोई
कताब नह िमली। उ ह ने िह दी के ब डल को टटोला तो उसम भी कोई युिनक कताब
नह िमली। तभी अचानक उनक नज़र ‘दूसरी दुिनया’ नॉवेल पर पड़ी। नीचे लेखक का
नाम देखा, ‘सु दर लाल’ तो उ ह हँसी आई क कै से-कै से नाम के लेखक पनप गये ह। इससे
पहले उ ह ने सु दर लाल नाम के लेखक क कोई कताब नह देखी थी। ‘दूसरी दुिनया’ के
दो-चार प े पलटकर जैसे उस कताब को चख लेना चाहते थे मानो कोई मेले म घूमते ए
अचारवाले ही शॉप पर जाकर चार तरफ फै ले अचार के िड ब म से कसी एक िड बे म
से एक च मच लेकर चखकर यह तय करता है क चीज़ लेने लायक है क नह उसी कार
दादू ने जब दो-चार पेज पलटे तो मानो कताब ने उ ह जकड़ िलया हो। जैसे जुमांजी के
गेम म जब ब े खेलने बैठ जाते तो वो गेम उ ह पूरी तरह से जकड़ लेता और तब तक
चाहते ए भी आजा़द नह करता जब तक क गेम पूरा नह हो जाये। ठीक उसी कार
कताब ‘दूसरी दुिनया’ ने दादू क गदन को वह क वह ि थर कर दया। दादू ने बाक
सारी कताब यथोिचत थान पर िभजवा दी, के वल दूसरी दुिनया क एक ित अपने पास
रहने दी व सवेरे कम ाहक के टाइम, दो घ टे म इसे पूरी करने के िलए खोलकर बैठ गए।
के वल ुित को छोड़कर कोई नह जानता था क सु दरलाल ही मुकेश है।
दादू ने जब पूरी कताब पढ़ ली। ख म करते समय उनक आँख नम हो गई थी। उ ह यक न
नह आ क एक कताब क वजह से उनक आँख छलक आई। उ ह ने इधर-उधर देखा क
कह कोई देख तो नह रहा। फर मुकेश को अपने पास बुलाया। मुकेश जब दादू के पास
गया तो उ ह ने उसक तरफ कताब दुसरी दुिनया बढ़ाते ए कहा, ‘‘ये कताब पढ़ो?
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पड़कर उस तरफ से िबलकु ल भी अपना यान नह हटा सकता ।ँ ’’ चाय का आिखरी घूंट
भरने के बाद मुकेश ने कागज के कप को िपचकाकर पास म रखे ड टिबन म डालते ए
कहा।
‘‘आप चाह तो म अभी तक क रॉय टी का िहसाब कर के दे दू।ँ ’’
‘‘नह मुझे इस समय रॉय टी म कोई इं टरे ट नह है। आप िहसाब िलख के रिखयेगा,
समय आने पर ले लूँगा। अब चलता ,ँ कह और भी जाना है।’’ कहते ए मुकेश नॉवेल
क ितयाँ अपने बेग म रखते ए उठकर रवाना हो गया।
‘‘म माफ चाहता ँ आपका इमेल नह छाप पाया। वो िजस पच पर िलखा था वो कह
खो गई। ब त ढू ंढा पर िमली नह । ना ही आपके मोबाइल नंबर थे क आपको पूछता।’’
‘‘कोई बात नह । अनजाने म भी अ छा ही आ।’’ मुकेश खुश था क चलो मेल आईडी
नह डाला वो और अ छा कया। वैसे भी म मिहने म एकाध बार लु बा या स तोष के
मोबाइल पर मेल खोलता ।ँ
उसके बाद मुकेश ओटो म बैठकर वहाँ से रवाना हो गया। आटोवाले को कु रयर वाले के
वहाँ ले जाने का बोलकर वो शहर देखने लगा।
ँ कर मुकेश ने अपने बेग म से दस बड़े िलफाफे िनकाले, िजन पर
कु रयर वाले के वहाँ प च
फ म इ ड ी के जानेमाने फ म िनमाता के ए स े िलखे ए थे। उसने ये सारे ए से
संतोष से मोबाइल उधार मांगकर, ऑनलाइन सच करके पहले ही िलख कर, िलफाफे
तैयार कर रखे थे। येक िलफाफे म एक-एक कताब क ित डाल दी व साथ म हाथ से
िलखा एक लेटर रख दया िजसम िलखा था,
‘‘आदरणीय सर, नम कार! म अपना नॉवेल आपको भेज रहा ।ँ इसक कहानी मने
फ म िनमाण को यान म रखते ए ही िलखी है। इसक पूरी ि ट मेरे पास पड़ी है।
अगर आपको कहानी पसंद आये तो म ि ट लेकर उपि थत हो जाऊँगा। मुझे इस नंबर
पर कॉल क िजयेगा - 9829163272
सु दरलाल’’
मुकेश ने लेटर क एक-एक ित नॉवेल के साथ िलफाफे म रख कर कु रयर करवा दया।
अब वो िन ंत था क उसका आइिडया कोई चोरी नह कर सकता। कताब के प म इस
कहानी के कॉपीराइट सुरि त हो गये है।
उसके बाद मुकेश वापस सरदार बुक हाउस अपने म आ गया। उस दन उसने चैन क
सांस ली क चलो सपने क दशा म पहला कदम दृढता से रख दया, िजसे कोई िडगा नह
सकता। उसे इस बात पर पूरा िव ास था क दस म से कोई ना कोई उसे ज र कॉल
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करे गा। पहली बार उसने अपने न बर शेयर कये। अब उसका यान हमेशा मोबाइल पर
ही रहता था। इससे पहले उसने कभी मोबाइल पर यान ही नह दया। पहले तो ुित का
कॉल आया करता था पर जब से ुित गई उसके बाद कसी का कॉल नह आया। ऐसा लग
रहा था जैसे मोबाइल मिहन क मौन साधना पर बैठा आ है।
देखते ही देखते सु दरलाल नाम के नये लेखक का उदय आ पर कोई नह जानता था क ये
सु दरलाल कौन है। यहाँ तक क काशक भी उसका असली नाम नह जानता था। ना
सु दरलाल सोशल मीिडया पर एि टव था ना उसका कोई पो टल ए स े था। मुकेश ने
काशक को प समझा दया था क कोई भी मुझसे संपक करना चाहे तो इं कार कर
देना।
जीवन क िवड बना कह या िविध का िवधान क इं सान पर अ छे िवचार का भाव
धीरे -धीरे पड़ता है जब क बुरे िवचार का ज दी। ठीक इसी कार अ छी चीज को
वायरल होने म समय लगता है जब क बुरी चीज ज दी फै ल जाती है। यही नॉवेल दूसरी
दुिनया के साथ आ। शु -शु म तो उसक ितयाँ धीमे से िबक ; पर जैसे-जैसे उसक
माउथ पि लिसटी बढ़ती गई, चार तरफ उसी कताब के चच होने लगे। कताब क
समी ा प -पि का म छपने लगी। फे सबुक पर हेशटेग के साथ समी ा शेयर क जाने
लगी। सोशल मीिडया पर लोग सु दरलाल नाम से सच मारने लगे, फे सबुक पर सच कया
जाने लगा पर कोई ऐसी ेफाइल नह िमली जो लेखन से संबंध रखती हो। कभी कोई
सु दरलाल टेª टर चलानेवाला िनकलता तो कभी कोई सु दरलाल माबल पर प थर
डालने वाला होता। कोई भस का ापारी होता तो कोई पानी के टकर स लाई
करनेवाला सु दरलाल िनकलता। कोई नह जानता क सु दरलाल कौन है? सबके िलए ये
एक पहेली बन गई। लोग काशक के ऑ फस फोन कर के पूछते पर काशक सब को एक
ही रटा-रटाया जवाब दे देते ही लेखक के नंबर उनके पास भी नह है।
दोपहर के एक बजे मुकेश एक ाहक को कताब दखा रहा था क उसके मोबाइल क रं ग
बजी, आज कतने ही मिहन के मौन के बाद उसके मोबाइल ने वर क लहरी पैदा क
थी। मुकेश खुद ही भूल गया था क उसके मोबाइल पर रं ग कौनसी थी। आज जब बजी तो
उसे पता चला। उसने ाहक से दो िमनट का समय मांगा और बगल म आकर फोन उठाया,
‘‘हेलो...’’ कहते समय उसके दल क धड़कन बढ़ गई थी। उसे मालूम था क ज र कसी
फ म िनमाता का ही फोन आया होगा।
‘‘ या आप सु दरलाल बोल रहे ह।’’ फोन म से एक मिहला क आवाज़ आई।
‘‘जी...आप कौन?’’ उसने ललाट पर सलवटे लाकर सारी चेतना राइट साइड के कान म
लाते ए पूछा जहाँ मोबाइल सटा रखा था।
‘‘म फ म िनमाता-िनदशक राजकु मार िहराना क पीए बोल रही ।ँ बॉस को आपक
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कहानी दूसरी दुिनया पसंद आयी। वे कल आपसे िमलना चाहते है। आप पूरी ि ट लेकर
ठीक दस बजे ऑ फस आ जाइयेगा।’’
‘‘जी...ठीक समय पर प च
ँ जाऊँगा। शु या।’’
अगले दन मुकेश ि ट क ित लेकर ठीक समय पर ऑ फस प च ँ गया। राजकु मार जी
ने ब त ही आि मयता से मुकेश से बात क व अपना पोजल मुकेश के सामने रख दया।
मुकेश ने कु छ दन का समय मांगा।
कहते है क इं सान का जब अ छा समय आता है तो अपने साथ ब त सी अ छी चीज लेकर
आता है। मुकेश को दस म से आठ िनमाता-िनदशक के यहाँ से कॉल आ गये। उसे तो उस
दन आ य आ जब आरजे के आ फस से भी कॉल आया व उसे ये बाताया गया क आरजे
आपसे िमलना चाहते है। उस दन तो मुकेश ने हाँ बोल दया पर अगले दन उसक िह मत
नह ई वहाँ जाने क । आिखर कै से जाता उसके ऑ फस जब क ुित वह होगी। उसके
अंदर ुित का सामना करने क िह मत नह बची थी। उसे मालूम था क अगर ुित
सामने आ जायेगी तो म फर से कमजोर पड़ जाऊँगा। फर से उसक याद मुझे परे शान
करे गी जब क वो आरजे के साथ आराम से रह रही होगी।
स ेवाले यार को कतना ही भूलाने क कोिशश कर दो पर उसे भूलाना उसी तरह
मुि कल है जैसे शरीर के कसी अंग पर टटू गुदवाने के बाद उसे िमटाना असंभव है। कतना
ही साबुन िघस दो पर वा तिवक टटू कभी नह िमटते उसी कार स ावाला यार कभी
नह िमटता। उसे तो कसी कोने म कु छ समय के िलए दबा दया जाता है।
मुकेश आरजे के ऑ फस नह जा पाया और उसने कॉल कर के इं कार कर दया क कहानी
पर कसी और से पहले ही करार कर चुका है।
शेष बचे सात पोजल म से मुकेश को राजकु मार सर का पोजल पसंद आया। उसम
लेखक को पूरी तरजीह दी गई। कु छ शत इस कार थी - कहानी का सारा े िडट लेखक को
दया जायेगा, मुनाफे का एक िनि त शेयर लेखक को दया जायेगा, फ म िनमाण के
समय हर व लेखक साथ रहेगा य क अगर डायलोग म कोई चज करना पड़े या कोई
ऐसी ि थित आये जहाँ कहानी क प रि थित कसी को समझ नह आये उस समय लेखक
से सलाह ली जायेगी। साथ रहने का सारा खचा कं पनी देगी व साथ म िनयत मानदेय भी।
नायक व नाियका के ऑिडशन म सु दरलाल व राजकु मार सर दोन िमलकर तय करगे क
फ म दूसरी दुिनया म कसे ए टर का रोल देना है और कसे ए ेस का। वे चाहते थे क
फ म म इस बार नये चेहर को मौका दया जाये।
मुकेश इस बात से परे शान था क दादू को या कहेगा? इस समय वो दादू को या बताकर
ल बी छु या ले। वो फ म िनमाण के बारे म भी नह बता सकता य क राजकु मार
िहराना सर ने साफ इं कार कर दया क जब तक वे मीिडया के सामने घोषणा नह कर
तब म कसी से कोई बात शेयर नह क ँ । इड ी म खबर आग क तरह फै लती है और
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फर उनको तोड़-मोड़कर पेश कया जाता है। इसिलए मुकेश कु छ दन से यही सोच रहा
था क दादू को या कह?
एक दन सवेरे दुकान खुलते ही उसने दादू के पास जाकर कहा, ‘‘दादू मुझे आपसे कु छ
कहना ह’’
‘‘ .ँ ..बोलो?’’ दादू ने अगरबती करते ए मुकेश क तरफ यान दये िबना कहा।
‘‘आप मेरे िपता के समान है। जब पहली बार मु बई आया तब आपने ही मुझ अभागे को
सहारा दया इसिलए म आप से कोई झूठ भी नह बोल सकता; पर कसी मजबूरी के
कारण सच भी नह बता पा रहा ।ँ ’’ मुकेश ने एक ही सांस म कह दया।
‘‘बात या ह बेटा?’’ दादू ने अगरबती त वीर के पास पड़े के ले म घुसेड़कर मुकेश क
तरफ आ य से देखते ए पूछा। आज मुकेश क बात उ ह कु छ अजीब लग रही थी।
‘‘बात ये है क मने एक कहानी िलखी िजस पर फ म बन रही है पर वे चाहते है क जब
तक वे मीिडया के सामने घोषणा नह कर दे तब तक म कोई भी बात कसी के सामने
ऑपन नह क ँ ।’’ मुकेश ने िववशता जताते ए कहा।
‘‘ये तो ब त खुशी क बात है। मुझे इससे कोई फक नह पड़ता क तुम कसके साथ फ म
बना रहे हो? मेरे िलए तो यही सबसे बड़ी बात है क तुम अपनी िनयित के रा ते पर चल
पड़े हो। तु हारी आँख म मने हमेशा से अपनी िनयित को पाने क लालसा देखी है।’’ दादू
ने मुकेश क पीठ थपथपाते ए कहा। उनके चेहरे पर खुशी क चमक थी।
‘‘म आपसे कु छ भी छु पाना नह चाहता पर मजबूर ।ँ ’’
‘‘कोई बात नह । म समझ सकता ।ँ कब से जाना है?’’
‘‘कल से...’’
‘‘ठीक है अपना यान रखना और कभी भी हार मत मानना। कभी भी कसी भी हालत म
हार मत मानना बेटा।’’ दादू ने जैसे जीवन का सार उसे बता दया।
उस दन रात को दादू ने अपनी तरफ से बुक टोर पर काम करने वाले सभी का मक को
होटल पर खाना िखलाया। कोई भी इसका कारण नह समझ सका क दादू आज मेहरबान
य है? बस दादू और मुकेश को छोड़कर।
दूसरे दन सवेरे दस बजे से फ म दूसरी दुिनया का ऑिडशन था। मुकेश अपना सारा
सामान लेकर ठीक समय पर प च ँ गया। ऑिडशन के बाद फ म रलीज होने तक उसे
वह रहना होगा।
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भा ग - 1 4
िु त का नाम सुनते ही मुकेश ने गदन उठाकर कौतुहल से सामने देखा, कु छ देर के िलए
उसक आँख चिधया गई, यक न नह हो रहा था क सामने ुित खड़ी है। वही ुित
िजससे वो यार करता था। मुकेश का िसर चकरा रहा था व दल धंसकने लगा।
रामकु मार ने मुकेश को असहज देख पूछा, ‘‘आप क तबीयत ठीक तो है राइटर साहब?’’
‘‘जी.. म ठीक ।ँ लीज जारी रिखये।’’ उसने खुद को संभाल तो िलया पर समझ म कु छ
भी नह आ रहा था क ुित यहाँ या कर रही है? ये तो आरजे के साथ फ म करनेवाली
थी? ये भी तो हो सकता है क आरजे क फ म पूरी हो गई हो और वो रामकु मार िहराना
क फ म म काम करने ही चाह लेकर आयी हो। उसके दमाग म इस समय कई सारी
संभावनाएँ एक साथ द तक दे रही थी। कोई एक िनणय नह ले पा रहा था और ना ही
दमाग को गहराई से सोचने से रोक पा रहा था।
िु त ने जब सामने जज क चेयर पर एक तरफ जाने-माने िनमाता-िनदशक रामकु मार सर
को देखा और दूसरी तरफ मुकेश को देखा तो आँख पर यक न नह आ। लाईट का सारा
फोकस उसके ऊपर होने क वजह से भी वो ठीक से देख नह पा रही थी फर भी जाने य
उसका दल तेज-तेज धड़कने लगा। उसे थोड़ा ब त तो यक न हो गया क ये तो वही
पागल लड़का है। इस समय उसने अपना पूरा यान परफ मस पर दया। लगभग दस
िमिनट क तुती के बाद जैसे ही यूिजक का ुित मंच पर बैठे मुकेश क तरफ तरफ
देखती ई बाहर चली गई। मानो वो अपनी आँख से कई सारे सवाल दाग रही हो क तुम
यहाँ कै से? तु हारी वजह से मेरी सारी तुित का बंठा-ढार हो गया। म ठीक से परफ़ोम
नह कर पाई।
इन दस िमिनट म मुकेश का दमाग बराबर च र-िघ ी होता रहा और अंत म जाने य
अनायास ही उसके हाथ ने उसक सुने बगैर पेन उठाया और पचास म से पचास नंबर दे
दए। इससे पहले उसने कसी को इतने नंबर नह दये थे। बीस से तीस के बीच म ही सब
को िनबटा दया था।
अंत म नंबर क टॉट लंग कर के िनणय सुनाया गया तो लड़क म से अरशद िवजेता रहा
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‘‘हाँ’’
‘‘म कबीर कै फे पर ।ँ आ सकते हो या?’’
‘‘ठीक है, दस िमिनट म आता ।ँ ’’ कहते ए मुकेश ने फोन रख दया। वो ुित क
लाइफ म दखल तो नह देना चाहता था पर जब उसने ही बुलाया तो िमलने म या हज
है?
ँ ा, जहाँ दूर से ही ुित बैठी दखाई दी। कई सावाल
वो सीधा होटल से कबीर कै फे प च
और संभािवत जवाब दमाग म िलए वो ुित के पास वाली चेयर पर बैठ गया। आज कै फे
म इतनी भीड़ नह थी। ुित के चेहरे पर पहले से अिधक चमक दखाई दे रही थी। हो
सकता है फ म म काम करने के कारण भी वो अब अपने चेहरे का िवशेष खयाल रखने
लगी हो। दूसरी चीज़ जो उसने नो टस क वो ये थी क ुित अब पहले जैसी नह रही।
पहले जैसी म ती, पहले जैसे िब दास बात करना, पहले जैसे खुलकर बोलना ये सारी
चीज अब उसके अंदर से मानो गायब सी हो गई थी। अब वो धीर-गंभीर दखाई दे रही
थी। गहरे िवचार म खोई ई सी लग रही थी।
मुकेश के प च
ँ ने पर उसने औपचा रक मु कु राहट से वेलकम कया। पहले ऐसा नह होता
था। पहले वो मुकेश को छेड़ा करती थी। उसे इिडयट, बेवकू फ बोलकर ब सी हरकरत
कया करती थी। अब वो उसे राइटर साहब बोलकर बड़े ही औपचा रक तरीके से िमल
रही थी। उसे देख मुकेश को लगा क िज दगी ने ज र इसे गंभीर बना दया होगा। जीवन
क पाठशाला ही कु छ ऐसी है क वो सब को गंभीर बाना देती है। वो चुपचाप ुित को
ऑ जव करता रहा। वेटर आया। ुित ने दूर से ही दो को ड काफ का इशारा कया। वेटर
िसर झुकाये चला गया। उसके बाद कु छ पल के िलए स ाटा छा गया। ऐसा भी पहली बार
हो रहा था क दोन चुप बैठे है और कै फे का शोरगुल उन पर हावी हो रहा है। ुित
चुपचाप छोटी वाली अंगुली के नाखून से टेबल को कु रे द रही थी।
मुकेश भी िह मत नह कर पा रहा था बातचीत शु करने क । उसे कु छ भी समझ नह आ
रहा था क कस बात से शु आव करे ! या पूछे और कन ल ज म उससे उसका हाल
पूछे? उसने गला खखारते ए पूछा, ‘‘ल बे समय के बाद तुमसे िमलकर अ छा लगा।
सोचा नह था क तुमसे फर से मुलाकात होगी।’’
‘‘कभी-कभी जो सचते है वो नह होता बि क वो हो जाता है िजसके बारे म सोच भी नह
सकते।’’ ुित क आवाज़ कसी दाशिनक क तरह गहराई म से मानो दद का टु कड़ा बाहर
िनकाल कर ला रही हो। जब इं सान के साथ कोई चोट होती है तभी वो दशन क शरण म
जाता है।
‘‘ या आ कु छ खुलकर बताओगी? तुम तो आरजे क फ म म काम करने वाली थी।’’
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तो तुमसे माफ मांगने चली आई।’’ उसक आँख से आँसू क एक बूंद धीमे से नीचे चलने
लगी जैसे कार के लास पर बरसात क बुद होले-होले नीचे को उतरती है।
‘‘ऐसा मत कहो ुित। हम सभी को ठोकर लगती है। मुझे भी लगी थी। तु ह भी लगी है,
तो इसका मतलब या हम आगे चलना छोड़ द। गलती इं सान से ही तो होती है।’’
उस दन काफ देर तक दोन बात करते रहे पर अब ुित वैसी नह रही जैसी पहले थी।
मुकेश ने उसे स बल तो बंधा दया पर वो उस ुित से यार करता था जो नटखट थी। जो
हर व उसे छेड़ा करती थी। इस समय वो ुित नह थी िजससे वो यार करता था। इस
समय ऐसी ुित थी जो कसी बोझ से दबी ई चल रही हो जैसे अि थ-पंजर िनकल चुके
मजदूर के सर पर सौ कलो क बोरी लाद दो िजसे वो बड़ी मुि कल से ढोता आ चलता है
ठीक वैसे ही ुित ब त ही उदास व गंभीर दखाई दे रही थी।
मुकेश ने उसे फ म दूसरी दुिनया के िलए अ छी ए टीग करने क सलाह देते ए
शुभकामनाएँ दी व दोन कै फे से िवदा ए।
समय तो गुजर जाता है पर दल पर लगे ज म भरते नह । अगले दन से ुित रोज
टु िडयो आती और अपनी तरफ से बे ट दशन करती; पर मुकेश से वो यादा बात नह
करती। गुमसुम सी रहती। मुकेश जानता था क उसे सदमे से उभरने म समय लगेगा।
मुकेश तो ुित को आज भी चाहता; पर ुित उससे यादा बात नह करती। वो खुद को
माफ नह कर पा रही थी। जो अतीत गुजर गया, उससे वो उबर नह पा रही थी। मुकेश
उसे समझाता पर वो चुपचाप रहती मानो कु छ भी सुनने को तैयार नह हो।
छह मिहन के अथक प र म के बाद फ म दूसरी दुिनया बनकर तैयार हो गई। ेस-
क े स बुलाकर फ म को रलीज करने क ता रख 6 अ ैल, शु वार क घोषणा भी
कर दी गई। फ म के गाने तुरंत रलीज कर दये गए। गाने यादा कमाल नह दखा पा
रहे थे। रलीज होते ही सारे गाने लोफ हो गए। लोग नापसंद कर रहे थे। उनम कोई
आइटम स ग भी नह था। फ म के ेलर को भी यू ुब पर यादा ू नह िमले थे।
दूसरी तरफ आरजे ने ेस बुलाकर अपनी आगमी फ म ‘बूम-भड़ाका’ के रलीज करने क
घोषणा कर दी और उसक दनांक भी 6 अ ैल, शु वार को िनयत रखी गई। आरजे ारा
बुलाई ेस-क े स म प कार का तांता लगा आ था, जब क ‘दूसरी दुिनया’ के
रलीज होने क ेस-क े स म गीने-चुने प कार आये, उनम से भी अिधकांश बूढ़े हो
चुके थे और टाइमपास करने व चाय-ना ता करने के िहसाब से आ गये थे। सभी को मालूम
था क इस फ म म सारे करदार नये है। लेखक भी कोई नया लड़का, अिभनेता और
अिभने ी भी नये।
इधर आरजे क फ म ‘बूम-भड़ाका’ के गाने भी रलीज कर दये गये जो क सारे आइटम
स ग थे व धूम मचा रहे थे। उन गान म सारी लड़ कयाँ स या यूरोप से बुलाई गई थी।
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एक से बढ़कर एक।
दूसरी दुिनया के रलीज होने क इतनी चचा नह हो पा रही थी। सब चेहरे नये थे
इसिलए लोग म इतनी िज ासा नह थी। रलीज होने से पहले चार तरफ ऐसी कोई
चचा भी नह थी क फला फ म आने वाली है, जब क आरजे क फ म ‘बूम भड़का’ क
ती ा, लोग बेस ी से करने लगे। पहले दन के सारे शो पहले ही बुक हो चुके थे।
रामकु मार िहराना परे शान लग रहे थे। उ ह ने एकाध यूज चैनल वाले से बात करके
दूसरी दुिनया के टार-का ट का इं टर ू भी करवाया पर बात कु छ जमी नह । नये लोग
का इ टर ू कौन यान से देखता है? वो भी फ म रलीज होने या सुपरिहट होने से
पहले। ठीक उसी कास जैसे संदरू लगने और मं दर म थान पाने से पहले उस प थर को
कोई नह पूजता जो कसी नदी के कनारे स दय से पड़ा आ था। उसे तो मं दर म
ि थािपत होने व संदरू लगने के बाद लोग िसर नवाते ह। जब क बूम-भड़ाका के नायक
आरजे का इं टर ू लेने के िलए प कार म ध ा-मु हो रही थी। एक जगह तो प कार
म भगदड़ मचने से एक प कार क टांग भी टू ट गई थी।
फ म ‘दूसरी दुिनया’ क टार का ट को तो िबग बोस के घर म भी एं ी नह िमली ना
ही किपल शमा के शो म जब क ‘बूम-भड़ाका’ के नायक-नाियका सारे चैनल पर छाये
ए थे।
मुकेश भी परे शान हो रहा था। ये उसके जीवन का पहला और अंितम चांस था। पहली ही
फ म के लोफ होने के बाद उसे कोई दूसरा िनमाता-िनदशक नह िमलने वाला था। उसे
अघोिषत लेक िल ट म डाल दया जायेगा हमेशा के िलए।
िु त तो पहले से ही गुमसुम थी, अब और भी अिधक िड ेशन म चली गई। वो हरव घर
पर ही अके ले म रहती और फ म के रलीज होने का बेस ी से इं तजार करने लगी।
फर वो दन आ गया िजसका सबको बेस ी से इं तजार था। अथात 6 अ ैल का दन, जब
देश ही नह िव के लगभग सारे देश म फ म ‘बूम-भड़ाका’ और दूसरी दुिनया रलीज
ई। पीवीआर वाल ने के वल एक शो दूसरी दुिनया का रखा और बाक सारे शो बूम-
भड़ाका के रखे।
उस दन शाम को सारे यूज चैनल पर एक ही खबर आ रही थी क
‘‘आज रलीज ई फ म बूम-भड़ाका ने एक ही दन म दो सौ करोड़ कमाये जब क दूसरी
दुिनया के अिधकांश शो खाली रहे।’’
रात को जब ये खबर मुकेश ने सुनी तो गहरा सदमा लगा। उसे िव ास नह हो रहा था क
इस कदर नाकाम हो जायेगा। इस फ म के िलए सब कु छ दाव पर लगा दया था। खुद से
अिधक ुित के कै रयर क चंता थी क बेचारी मेरी असफल कहानी के कारण ुित का
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भा ग - 1 5
होटल के िजस म म मुकेश बेहोश होकर िगरा, तभी एक वेटर म के बाहर से गुजर रहा
था। मुकेश के हाथ से पानी क लास छू टने से जोर क आवाज़ आई, िजससे वेटर का यान
म क तरफ गया। उसने गेट खोलकर देखा, मुकेश जमीन पर पड़ा जोर-जोर से सांस लेने
क कोिशश कर रहा था। वेटर ने तुरंत होटल मैनेजर को बुलाया, देखते ही देखते ए बुलस
बुलाई गई व मुकेश को हॉि पटल भेजा गया। मैनेजर ने मुकेश के मोबाइल पर ला ट कॉल
िजसे कया गया था उस नंबर पर कॉल कया तो घंटी ुित के मोबाइल पर बजी। मैनेजर
ने सारी बात ुित को बता दी। जैसे ही ुित ने ये खबर सुनी उसके होश उड़ गये। तुरंत
हॉि पटल प च ँ गई। ज दी-ज दी म वो अपना मोबाइल भी घर ही भूल आई पर मोबाइल
से अिधक उसे सु दरलाल क परवाह थी। परे शान तो वो पहले से ही थी। फ म दूसरी
दुिनया ही उसका एकमा सहारा थी, इसके लोफ होने के बाद कोई उसे चांस देनेवाला
नह । फ म इं ड ी म न जाने कतनी लड़ कयां वे टंग म लगी ई, खुश नसीब होती है
उसे ही ेक िमलता है। दुभा य से मूवी ने इतना कमाल नह दखाया िजतना सोचा था।
इस व इससे भी अिधक चंता उसे मुकेश क होने लगी।
‘‘आपको डा टर साहब बुला रहे है, गेट के बाहर खड़े है।’’ नस ने ओपरे शन गेट क तरफ
इशारा कया जहाँ एक डा टर सफे द कोट पहने, गले म ए टेथो कोपी लटकाये खड़ा था।
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ए टेथो कोपी ऐसे लग रहा था जैसे कोई दो मुँह वाला काला सांप मरा आ गले म पड़ा
हो।
ुित दौड़ी-दौड़ी डा टर साहब के पास प चकर बोली, ‘‘सर उनक तबीयत कै सी है?’’
‘‘पेशट क ि थित काफ गंभीर है। ओपरे शन करना होगा। इस समय कु छ भी कहना
ज दबाजी होगी। आप धैय रिखए और काउं टर पर दो लाख एडवांस जमा करा दीिजए।’’
कहते ए डा टर अंदर चला गया।
डा टर के जाते ही ुित ने तुरंत काउं टर पर दो लाख पये खुद के डेिबट काड से जामा
करा दये। जब रसे सिन ट ने क यूटर पर फाम भरते समय कबोड क धड़धड़ के बीच
गदन उठाकर उससे पूछा क पेशट आपके या लगते है? तब वो कु छ देर के िलए िझझक
गई। रसे सिन ट के िलए तो ये एक कोमन सवाल था पर ुित ने कभी इस बारे म सोचा
नह था। दूसरे ही पल खुद को संभालते ए उसने कहा क वो उसक दो त है।
रसे सनवाली लड़क ने दो सैके ड के िलए उसका चेहरा देखा और फर धड़ाम से कु छ
टाइप कर, एक फाम का ंट िनकालकर, ह ता र क जगह लाइन खंची, फर ुित क
तरफ फाम के साथ एक बगैर ढ न का पेन बढाते ए, खंची ई लाइन के नीचे साइन
करने के िलए कहा। ुित ने पेन लेकर ओपरे शन फाम पर साइन तो कर दये पर अनायास
ही उसक नज़र फाम के नीचे िलखी उस लाइन पर अटक गई िजस पर िलखा था
‘ओपरे शन असफल होने या पेशट क मृ यु होने पर हॉि पटल िज मेदार नह होगा।’
पूरी रात मुकेश को इमरजसी म रखा गया, ुित ने वो रात वे टंग म म बैठकर गुजारी।
आँख म एक पल के िलए भी न द नह आ रही थी। रह-रह कर मुकेश क बात, उसका
भोलापन, उसक सहजता आँख के आगे नाच रही थी। हर इं सान के पास कु छ ऐसे दृ य
होते है जो मैमोरी म थाई प से सेव होते ह। या तो वे दृ य ब त ही पेशल होते ह या
ब त ही बुरे। मुकेश के ऐसे ही रोचाक दृ य उसक मृित म आ रहे थे। वो िजतना मुकेश
को जानती थी, उतना उसे कोई नह जानता था। पहली बार ावे स क सीट पर दो घंटे
उदयपुर तक के िलए उसने मुकेश को ओ जव कया था। आज भी ये लड़का वैसा का वैसा
ही है। एक इं च नह बदला। इं सान अ सर पद और दौलत िमलने के बाद बदल जाता है पर
मुकेश आज भी उतना ही सीधा था िजतना पहली बार देखा था। उसे ये सोच-सोच कर
रोना भी आ रहा था क काश! उसने मुकेश को पहले ही समझ िलया होता। ये इं सान क
वृित है क सरल चीज पर वो यान नह देता बि क ज टलता म उलझा आ रहता है।
ये दुिनया ब त ही अ छी और सरल है पर हम कभी उस अ छाई पर यान ही नह देते
जो हमारे इद-िगद है बि क अपना पूरा जीवन इस ज ोजहद म गुजार देते है क कसने
हमारे साथ बुरा बताव कया।
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हॉि पटल के वे टंग म का वातारण हमेशा ही गमगीन होता है। समय के साथ वहाँ नये
लोग आते और पुराने लोग अपने ज म भर जाने पर चले जाते है, उठकर... चुपचाप...।
आने-जाने के म म जो थाई रहता है वो है वे टग म क चेयर, सामने क दीवार पर
लगी स ह इं च क एलइडी टीवी, सीएलएफ ब ब और दो-चार पो टर जो वा य क
ज री जानकारी देते ए स दय से लोग के चेहरे क उदासी के सा ी बने ए है।
का शा म व णत शांत और िनवद भाव अगर कसी को देखना हो तो वो हॉि पटल
हॉि पटल के इमरजसी म के बाहर बने वे टंग म म जाकर बैठ जाये। वहाँ पर अ सर ये
दो भाव ही लोग के चेहर पर दखाई देते है।
इस सयम ुित अपने आँसू पोछकर चुपचाप बैठी आसपास के लोग को देखते ए सोच
रही थी। यहाँ पर मौजूद लोग म से अिधकांश कसी ना कसी पेशट के र तेदार थे। उनके
चेहरे पर र ता झलक रहा था। िजसका पेशट िजतना यादा नजदीक होता उसका चेहरा
उतना ही उदास, मायूस, गंभीर, िनराश या रोता आ दखाई देता। ुित के बगलवाली
सीट पर एक पु , िपजाती के िलए आँख म आँसू िलए टीवी को देखते ए भी नह देख
रहा था। सामने क चेयर पर कसी पेशंट क प ी अपने पित के िलए रो रही थी। उसका
रोना कोई नाॅ टस नह कर पा रहा था य क उसने अपने चेहरे को माल से ढका आ
था। पीछे क चेयर पर एक भाई अपनी बहन के िलए चंितत था तो कोनेवाली चेयर पर
दस साल क बेटी अपनी माँ के िलए बराबर रोये जा रही थी। ुित को लगा क जैसे सारे
लोग मुझसे पूछ रहे है क तु हारा पेशट से या र ता है? वो तु हारा या लगता है क
तुम इतना रो रही हो?
ऐसे ही कि पत सवाल-जवाब से िथत ुित क आँख बरबस ही बरस रही थी। उसे लग
क कह ना कह उसने मुकेश के साथ अ छा नह कया। इस िसचुवेशन क िज मेदार तो
म खुद ।ँ अगर मने उसक पहली कहानी नह चुराई होती तो आज उसे ये दन नह
देखना पड़ता। पहले तो उसके प रवारवाल ने उसे छोड़ दया, फर मने उसे धोख दया,
उसके बाद िनयित ने उस पर ऐसी चोट क क बेचार संभल नह पाया। कोई इं सान कब
तक तकलीफ सहता रहे। एक ना एक दन ऐसा आता है जब वो टू टकर िबखर ही जाता है,
ठीक उसी कार जैसे बार-बार चोट करने पर बुलेट ुफ लास भी एक दन टू ट जाता है।
जैसे ही िु त बाहर िनकली मुकेश को होश आ गया, उसने ुित को जाते ए देखा िलया।
सामने टू ल पर दादू बैठे उसी क तरफ देख रहे थे।
‘‘तुमने तो उसे दवाना बना दया। तीन दन से तु हारे िलये परे शान हो रही थी। आज
मने िजद कर के घर भेजा।’’ दादू ने सारा वाकया मुकेश को बता दया। मुकेश क आँख से
दो बूंद िनकलकर अनायास ही आँख के कनारे होकर कान के पीछे से िब तर पर ढु लक
गई।
‘‘पता है! हम दमाग के घौड़े दौड़ा-दौड़ा कर स सेज के पीछे भागते रहते है; पर वो
कमब त उतनी ही दूर होती चली जाती है। फर एक दन पसीने से तर-ब-तर, थक-हार
कर बैठ जाते है और दमाग को शांत कर लेते है, तब सारा िनयं ण दल के पास चला
जाता है। और जाने य उसी समय से चीज बदलने लगती है। स सेज कसी चु बक क
तरह हमारी तरफ ख ची चली आती है।’’
‘‘म ज दी िनराश हो गया था दादू। मने इतनी कताब पढ़ी पर वाकई म जब मुिसबत आई
तो म खुद को संभाल नह पाया। मुझे लगा क मेरे सपन का महल ताश के प क तरह
धराशायी हो गया। मुझे लगा क अब मेरे जीवन म कु छ भी नह बचा। उस व लगा जैसे
अब म कु छ भी नह कर सकता। जाने य उस व इतनी नकारा मकता हावी हो गई, पर
अब लगता है क जंदा ँ तो फर से महल बना सकता ।ँ अब लग रहा है क िनयित कह
ना कह मुझे सबक संखा रही ह।’’
‘‘तुम भावुक हो, इसिलए ज दी िनराश हो जाते हो। अपनी भावना पर िनयं ण
थािपत करना सीखो।’’
आधे घंटे म ही ुित नहा-धोकर वापस आ गई। मुकेश उसी क ती ा कर रहा था। गेट से
जैसे ही कमरे म वेश कया दोन क आँख टकराई, मुकेश हो होश म आये देख उसका
चेहरा िखल गया। एक ह क सी मु कु राहट दोन के चेहर पर छा गई। ुित के आने के
बाद दादू ये कहते ए चले गये क ज दी ठीक होकर आ जाओ। सरदार बुक हाउस क
िब डंग तु हारा इं तजार कर रही है।
‘‘हाय सु दरलाल...।’’ दादू के बाहर जाते ही ुित ने पलंग पर पड़े-पड़े ही मुकेश को गले
लग िलया।
‘‘तुमने मेरे िलए इतनी...‘‘ इससे पहले क मुकेश आगे कु छ कहता, ुित क आँख से
िनकले आँसू उसके चेहरे पर टप-टप कर के टपकने लगे। उसने ुित को ऊपर उठाते ए
कहा, ‘‘तुम रो रही हो ुित? तु ह मेरी कमस होगी अगर एक भी आँसू िगराया तो।’’
‘‘म अपने आप को माफ नह कर पा रही थी।’’ नह चाहते ए भी उसक आँख बरस रही
थी।
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‘‘अब चुप हो जाओ वरना मुझे दूसरा अटैक आ जायेगा।’’ उसने शट से ुित के आँसू पोछे।
उसके बाद दोन हंसने लगे। फर कु छ देर तक कमरे म स ाटा छा गया। ऐसा लग रहा था
क जैसे दोन ही एक दूसरे को ब त कु छ कहना चाहते है पर कोई भी पहल नह कर पा
रहा था।
मुकेश कु छ भी नह बोल पा रहा था। ुित के मुँह से ये ल ज सुनने के िलए उसके कान
तरस गये थे। कतनी िश त से यार करता ँ इस पागल लड़क को पर इसने कतने दन
बाद मेरे यार को समझा। पहले दन से ही जाने या जादू कर गई क अभी तक उससे
बाहर िनकल नह पाया। ुित के श द उसके कान म बार-बार गूंज रहे थे। उसने देखा,
ुित क आँख म इस बार स ावाला यार दखाई दे रहा था।
िु त जैसे ही कमरे से बाहर जाने के िलए पलंग से उठी, मुकेश ने उसका हाथ पकड़ िलया
और बोला,
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‘‘ रयली।’’
‘‘यस...’’
मुकेश ने अँगूठी ुित क तरफ बढ़ाते ए कहा, ‘‘ ुित तुम मुझसे शादी करोगी।’’
‘‘िबलकु ल क ँ गी मेरे भोले सु दरलाल।’’ कहते ए ुित उछल पड़ी। उसने फर से मुकेश
के होठ पर कस कर दया।
‘‘ठीक ँ सर...’’
अरशद सामने टू ल पर बैठ गया। ुित पीछे खड़ी हो गई थी। इस समय उसक िह मत
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तु ह कतने कॉल कये’’ जेब से माल िनकालकर ललाट से पसीना प छते ए रामकु मार
ने कहा, ‘‘कोई र प स नह िमलने पर तु हारे होटले जाकर मालूम कया तो पता चला
क तुम यहाँ हॉि पटल म एडिमट हो। मालूम चलते ही हम दोन तुरंत चले आये।’’
‘‘और तुमने भी इ ह नही बताया ुित?’’ रामकु मार ने ुित क तरफ मुड़कर आ य से
देखते ए कहा, ‘‘हमने तु ह भी कतने कॉल कये पर तुमने फोन उठाया ही नह ।’’
‘‘ या वाकई म तुम दोन को नह मालूम?’’ इस बार रामकु मार ने ललाट पर सलवटे लाते
ए पूछा।
‘‘नह ...’’ दोन एक साथ बोले। इस समय मुकेश और ुित के चेहरे पर कौतुहल था। दोन
समझ नह पा रहे थे क ये कस बारे म बात कर रहे ह।
मुकेश क बात सुन रामकु मार िहराना ने अपनी जेब से आईफोन िनकाल कर गूगल पर
बॉ स ऑ फस रपोट सच कर के मोबाइल न मुकेश के चेहरे के पास ले जाकर दखाते
ए कहा, ‘‘बॉ स ऑ फस रपोट म फ म बूम भड़ाका ने अभी तक तीन सौ पचास करोड़
क कमाई क जब क चार दन म फ म दूसरी दुिनया ने तीन सौ पचह र करोड़ कमा
िलये। पहले दन पचीस करोड़, दूसरे दन पचास, तीसरे दन सौ करोड़ व चौथे दन दो
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रामकु मार क बात सुन दोन उछल पड़े। ुित के चेहरे पर भी खुशी क लहर दौड़ गई।
‘‘ये तो ब त अ छी खबर है सर।’’ ुित ने दोन हाथ क मु याँ भंचकर ऊपर उठाते
ए कहा।
इसके बाद दोन उठकर रवाना हो गये। गेट तक जाकर रामकु मार सर ने मुड़कर कहा,
‘‘तु हारी अगली कहानी का इं तजार रहेगा? बेस ी से...’’ और उसके बाद दोन चले गये।
‘‘ ुित मैम आपक अगली फ म कौनसी होगी?’’ एक प कार ने ुित क तरफ माइक
बढ़ाते ए पूछा।
‘‘िम टर सु दरलाल आपक कहानी तो कमाल क थी। आगे कसके साथ फ म बनाने का
िवचार है?’’ दूसरे ने मुकेश से पूछा।
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इसी कार प कार सवाल पूछते रहे, ुित व मुकेश दल से जवाब देते रहे। ुित इस
समय भारत क उभरती ए ेस बन चुक थी तो मुकेश पापुलर राइटर। िजसक पहली ही
फ म कमाल दखा चुक थी। दोन एक दूसरे का हाथ थामे ए थे। अंत म दोन ने ेस के
सामने एकदूसरे से शादी करने क घोषणा कर दी।
बड़ी मुि कल से वे गाड़ी म बैठकर वहाँ से िनकले। रा ते म दादू ने मुकेश से पूछा, ‘‘तुम
चाहो तो सरदार बुक हाउस म रह सकते हो। अगर तु ह ठीक लगे तो।’’
‘‘म वह र ग
ँ ा दादू। जहाँ से शु वात क है उस थान को भला कै से छोड़ सकता ।ँ ’’
‘‘नह दादू...अभी तो शु वात है।‘‘ कहते ए मुकेश अपने सपने के बारे म सोचने लगा।
अभी तो उसने एक ितहाई सफलता ा क है। अभी तो उसे ए टर बनना है फर
डायरे टर बनना है और एक दन ऐसा आयेगा जब अपनी िलखी कहानी पर खुद ही लीड
रोल क ँ गा और उस फ म को डायरे ट भी क ँ गा।
उस दन उसने पहली बार अपनी माँ और बड़े भाई के नाम एक प िलखा और दस लाख
का चेक िलफाफे म रख कर भेज दया। प म िलखा,
लग पाया इसिलए आपने मुझे घर से आधी रात को बाहर िनकाल दया। म भावुक ,ँ
परे शान था, असफलता से तंग आ चुका था, ऊपर से आपके तान से अंदर से िहल गया था।
एक बार मेरे अंदर झांककर तो देखा होता क म या कर सकता ।ँ आपने कभी मेरे अंदर
क उन असीम मता पर यान नह दया। मुझे बस थोड़ा सा यार चािहए था और
आप दोन का िव ास चािहये था, बा क सारी दुिनया को िहलाकर रखने क ताकत रखता
था; पर बद क मती से आपने मेरे अंदर क उस ताकत को समझा नह और छोटी-माटी
बोत पर ही मुझे घर से बाहर िनकाल दया।
अब सोचता ँ क इ ह बात ने तो मुझे मेरी िनयित क तरफ धके ला। ठोकर नह लगती
तो म आज भी उसी गांव म रह जाता या कोई छोटी-मोटी नौकरी करते ए अपना जीवन
गुजार देता। अब सोचता ँ तो लगता है क इसम आपका कोई दोष नह , ये तो मेरी
सफलता के िलए ज री था। उ मीद करता ँ आप मेरी फ लंग को समझ पा रहे ह गे।
आपका मुकेश।’’
उसके बाद मुकेश अगली कहानी िलखने म त हो गया। उसने अपनी तरफ से बुक हाउस
के सारे लोग को व ुित को फाइव टार म खाना िखलाकर अपना वादा पूरा कया। उसे
अलग कमरा दे दया गया िजसम के वल िलखने-पढ़ने का काम ही था। यादातर समय
मुकेश कताब पढ़ा करता और बा क टाइम कहानी िलखने म गुजारता। अब वो ऐसी
कहानी क तलाश म था जो अभी तक कसी ने नह िलखी हो और सोची हो, कहानी कु छ
हटकर हो, जो अंदर से झकझोर कर रख दे। उसने अपने कमरे क दीवार पर बड़े अ र म
एक किवता - जो खुद ने िलखी थी- िचपका दी, ता क हर दन उस पर नज़र पड़ती रहे,
तुम कोई मामूली नह हो
तुम महान हो ! तुम कमाल के हो!
दल से बड़े सपने देखो
खुद पर िव ास रखते ए
सपन क राह पर चल दो
हार-जीत, िगरना-संभलना तो होता रहेगा
तुम बस चलते रहो
चलते रहो
और एक दन
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Thanks
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लेखक का दूसरा उप यास ‘स ावाला यार’ नाम से कािशत होने के िलए ेस म गया
आ है। ये लव टोरी पर आधा रत उप यास है। इसम राज थान क माटी क स धी महक
महसूस क जा सकती ह। ये राज थान क आंचिलकता के खूबसूरती के साथ समेटता है।
कहानी को ब त ही खूबसूरती के साथ तुत कया गया है क पाठक अंत पढ़े बगैर उठ
नह सकत। इस नावेल पर फ म बनने क तैयारी है। तीसरा उप यास ‘रह य’ नाम से
शी ही मु बई के बुक कै फे पि लके शन से कािशत होनेवाला है जो क ांटम भौितक पर
आधा रत सांइस फ शन उप यास है।
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मने िपछले तीन साल म 100 से यादा से फ-हे फ कताब पढ़ी होगी। उन सब का सार
यही लगा क हम िनरं तर सकारा मक रहते ए सही दशा म यास करना चािहए।
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