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E ISSN 2320 - 0871 पीअर रीव्यूड रेफ्रीड ररसर्च जर्चऱ: Vol 4, Issue 6
E ISSN 2320 - 0871 पीअर रीव्यूड रेफ्रीड ररसर्च जर्चऱ: Vol 4, Issue 6
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ू रे फ्रीड ररसर्च जर्चऱ
शोध सॊऺेऩ
बक्तत आॊदोरन नवचेतना का द्मोतक है । इसके साथ बायतीम सभाज ,सॊस्कृतत औय साहहत्म के ववकास का नमा
चयण प्रायॊ ब होता है । बक्तत आॊदोरन व्माऩक साॊस्कृततक आॊदोरन है जो स्वमॊ को धभा , साहहत्म, बाषा, सॊस्कृतत
रसरत कराओॊ भें असबव्मतत कयता है । मह असबव्मक्तत असबजात्म के ववरुद्ध औय रोक के ऩऺ भें भुखय होती है ।
बक्तत आॊदोरन के केन्द्र भें बक्ततकाव्म है । बक्ततकाव्म जन -सॊस्कृतत का उन्द्भेष है । प्रस्तुत शोध ऩि भें नीभाड के
रोकवप्रम सॊत कवव ससॊगाजी के काव्म भें ग्राभीण चेतना ऩय ववचाय ककमा गमा ।है
जन-सॊस्कृतत कहीॊ न कहीॊ ग्राभीण सॊस्कृतत से कवव हों रेककन हभाये रोक भें वे एक दे वता के
ऩोवषत होती है। बायत गाॉवों का दे श है। बक्तत रुऩ भें ऩरयवततात हो गमे हैं। ग्राभीणों का कोई
अऩने ऩद -थचह्न अॊककत कयते हुए हदखामी दे ता पसरों ऩय कोई सॊकट आ जाए तो वे ससॊगाजी
है। कफीय, सूय, तुरसी से रेकय ससॊगाजी तक मह की शयण भें ही जाते हैं। ऩशु खो जाने मा
ससॊगाजी का जन्द्भ ग्राभ खजूयी (वताभान फड़वानी चढाने की भनौती रेते हैं औय गाम - बैंस दध
ू न
क्जरा ) भें सॊवत ् 1576 ववक्रभ (1519 ई)1 दे तो ससॊगाजी के नाभ का डोया ऩहनाते हैं। मह
भें हुआ था। ससॊगाजी तनभाड़ के कवव हैं। उनके फातें ग्राभीण कृषकों औय ससॊगाजी के सॊफध
ॊ ों को
एक सभथ भें फदर चुके हैं।”2 कई फाय ऐसा बी भानकय ही साये पैसरे होते हैं।ऩश्चाताऩ से मत
ु त
होता है कक साहहत्म भें ग्राभीण जीवन होता है अऩयाधी को मह कहकय छोड़ हदमा जाता है - “जा
रेककन ग्राभीण जीवन भें वह साहहत्म नहीॊ होता। ससॊगाजी का ऩाम रागी र(सॊत ससॊगाजी के ऩैय
रेककन ससॊगाजी के साथ ऐसा नहीॊ है। मह कवव ऩकड़ रो,सफ अऩयाध सभट जामेंगे)”3
अऩने व्मक्ततत्व एवॊ कववता के साथ ऩयू ी ताकत सॊत ससॊगाजी के काव्म को ‘बजन‘ कहा गमा है।
से ग्राभीण जीवन भें उऩक्स्थत है। इनके काव्म भें तनभाड़ी तनगण
ाु भागा के बजन
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आते हैं , क्जन्द्हे आज बी गामा जाता है ’।4 आज ऻान का गोरा चरावजों,सुआ उड़ी-उड़ी जाम।।5
बी इनके बजन के फगैय तनभाड़ी ग्राभीण जीवन स्ऩष्ट्ट है ,ककस प्रकाय ग्राभीण जनों को उन्द्हीॊ की
अधूया-सा है। बाषा,उन्द्हीॊ के कृवष-कभो के रुऩक के द्वाया
ससॊगाजी के काव्म भें रोक जीवन के रुऩकों का ऩहुॊचामा। ससॊगाजी ककसान जीवन के कवव हैं।
ऩशुऩारक एवॊ कृवष-कभा से सीधे जुड़े थे , इससरए से उनका काव्म दभक यहा है।ककसानों के स्वेद
उनके काव्म भें साये रूऩक,प्रतीक इन्द्हीॊ ऺेिों से कण की तयरता ससॊगाजी के काव्म भें ठोस शब्द
आते हैं। मे ग्राभीण जीवन के रुऩक साधन के फनकय आते हैं औय मे ठोस शब्द कृवष कभायत
ससॊगाजी कृषकों के रोकवप्रम कवव हैं। उनके कृषक हर जोत यहे होते हैं तो ससॊगा वाणी का
हैं। एक उदाहयण दृष्ट्टव्म है क्जसभें वे हरय नाभ शायीरयक चेष्ट्टा कृवष कभा की होती है औय
की खेती कयने की सराह दे यहे हैं। वे फता यहे है भानससक द शा ऻान की। कोई कभाकाॊड नहीॊ है
कक इस खेती भें फहुत राब है। ऩाऩ का ऩारवा वयन ् कभायत यहते हुमे ऻान दशा भें प्रवेश है।ऐसा
(कहटरी झाडडमाॉ) कटवा रेना औय फाहय पेंक प्रवेश ससॊगा वाणी की सहजता से ही सॊबव है।
दे ना। कभा की कास(एक घास) त्रफनवाकय खेती ग्राभीण जीवन भें ऩशुऩारन एक भहत्वऩण
ू ा तथ्म
को तनभार कय रेना। श्वास-प्रश्वास दो फैर हैं है। ससॊगाजी स्वमॊ बी ऩशुऩारक थे। इनके काव्म
वऩयाणी(एक फाॊस क्जससे फैरों को हाॊका जाता है) जैसे गाम का रूऩक-
रगाओ। ओभ का फतखय जोततए औय भूरभॊि भाखन भाखन सॊतो ने ऩामा ,फासण का तमा
ऩय चढ कय ऻान के गोरे पेंककमे क्जससे इस फतान भें यख हदमा है। सॊतों ने भाखन प्राप्त कय
पसर को नक
ु सान ऩहुॊचाने वारे ऩऺी उड़ जाए- सरमा है। अफ इस फतान का कोई काभ नहीॊ है।
‘खेती खेड़ो ये हरय नाभ की ,जा भ भुकतो है महाॉ अनेक यॊ गों की गामों से तात्ऩमा षटचक्र की
ऩाऩ का ऩारवा कटावजो,काठी फाहय यार। जो सत्व तनकरा है , वह शयीय रूऩी फतान भें
कभा की कास एचावजो,खेती तनयभर होम।। इकट्ठा है। उसभे जो ब्रह्भानॊद रूऩी भाखन फना
आस स्वास दोई फैर है,सुयती यास रगाव। है, उसे सॊतों ने प्राप्त कय सरमा है , अफ इस
प्रेभ वऩयाणो कय घयो,ऻान की आय रगाव।। खारी फतान रूऩी शयीय का कोई काभ नहीॊ फचा।
ओहभ ् फतखय जूऩजो,खेती रट रूभ होम। शयीय औय ब्रह्भ का द्वैत सभाप्त हो गमा। दे ह
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ससॊगाजी अऩने प्रतीक,त्रफम्फ, रूऩक ग्राभीण जीवन 4.डॉ.नगेन्द्र सॊऩादक, हहन्द्दी साहहत्म का इततहास, ऩृष्ट्ठ