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E ISSN 2320 – 0871

बायतीम बाषाओॊ की अॊतयााष्ट्रीम भाससक शोध ऩत्रिका 17 अप्रैर 2016

पीअर रीव्यड
ू रे फ्रीड ररसर्च जर्चऱ

ससॊगाजी का काव्म औय ग्राभीण जीवन


कवीन्द्र कुभाय बायद्वाज
अततथथ ववद्वान
बाषा ववबाग (हहन्द्दी)
शासकीम होरकय ववऻान भहाववद्मारम
इन्द्दौय, भध्मप्रदे श, बायत

शोध सॊऺेऩ
बक्तत आॊदोरन नवचेतना का द्मोतक है । इसके साथ बायतीम सभाज ,सॊस्कृतत औय साहहत्म के ववकास का नमा
चयण प्रायॊ ब होता है । बक्तत आॊदोरन व्माऩक साॊस्कृततक आॊदोरन है जो स्वमॊ को धभा , साहहत्म, बाषा, सॊस्कृतत
रसरत कराओॊ भें असबव्मतत कयता है । मह असबव्मक्तत असबजात्म के ववरुद्ध औय रोक के ऩऺ भें भुखय होती है ।
बक्तत आॊदोरन के केन्द्र भें बक्ततकाव्म है । बक्ततकाव्म जन -सॊस्कृतत का उन्द्भेष है । प्रस्तुत शोध ऩि भें नीभाड के
रोकवप्रम सॊत कवव ससॊगाजी के काव्म भें ग्राभीण चेतना ऩय ववचाय ककमा गमा ।है

व्मक्ततत्व एवॊ कृततत्व हभ रोगों के सरए ससॊगाजी बरे ही एक सॊत

जन-सॊस्कृतत कहीॊ न कहीॊ ग्राभीण सॊस्कृतत से कवव हों रेककन हभाये रोक भें वे एक दे वता के

ऩोवषत होती है। बायत गाॉवों का दे श है। बक्तत रुऩ भें ऩरयवततात हो गमे हैं। ग्राभीणों का कोई

काव्म भें ग्राभीण जीवन प्रभख


ु ता से काव्म भें ऩशु खो जामे मा गाम, बैस दध
ू दे ना फॊद कय दे ,

अऩने ऩद -थचह्न अॊककत कयते हुए हदखामी दे ता पसरों ऩय कोई सॊकट आ जाए तो वे ससॊगाजी

है। कफीय, सूय, तुरसी से रेकय ससॊगाजी तक मह की शयण भें ही जाते हैं। ऩशु खो जाने मा

ऩरयदृश्म ववस्तीणा है। रहरहाती पसरों के सरए वे ससॊगाजी ऩय प्रसाद

ससॊगाजी का जन्द्भ ग्राभ खजूयी (वताभान फड़वानी चढाने की भनौती रेते हैं औय गाम - बैंस दध
ू न

क्जरा ) भें सॊवत ् 1576 ववक्रभ (1519 ई)1 दे तो ससॊगाजी के नाभ का डोया ऩहनाते हैं। मह

भें हुआ था। ससॊगाजी तनभाड़ के कवव हैं। उनके फातें ग्राभीण कृषकों औय ससॊगाजी के सॊफध
ॊ ों को

काव्म भें तनभाड़ का ग्राभीण जीवन असबव्मतत व्माख्मातमत कयती हैं।

हुआ है। ‘ससॊगाजी तनभाड़ के रोक जीवन की तनभाड़ की गज


ू य आहद फड़ी-फड़ी ग्राभीण जाततमों

धड़कन हैं। तनगण


ुा कवव ससॊगाजी ग्राभीणों के सरए की ऩॊचामतों भें आज बी ससॊगाजी को साऺी

एक सभथ भें फदर चुके हैं।”2 कई फाय ऐसा बी भानकय ही साये पैसरे होते हैं।ऩश्चाताऩ से मत
ु त

होता है कक साहहत्म भें ग्राभीण जीवन होता है अऩयाधी को मह कहकय छोड़ हदमा जाता है - “जा

रेककन ग्राभीण जीवन भें वह साहहत्म नहीॊ होता। ससॊगाजी का ऩाम रागी र(सॊत ससॊगाजी के ऩैय

रेककन ससॊगाजी के साथ ऐसा नहीॊ है। मह कवव ऩकड़ रो,सफ अऩयाध सभट जामेंगे)”3

अऩने व्मक्ततत्व एवॊ कववता के साथ ऩयू ी ताकत सॊत ससॊगाजी के काव्म को ‘बजन‘ कहा गमा है।

से ग्राभीण जीवन भें उऩक्स्थत है। इनके काव्म भें तनभाड़ी तनगण
ाु भागा के बजन

This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 4, Issue 6 139


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बायतीम बाषाओॊ की अॊतयााष्ट्रीम भाससक शोध ऩत्रिका 17 अप्रैर 2016

पीअर रीव्यड
ू रे फ्रीड ररसर्च जर्चऱ

आते हैं , क्जन्द्हे आज बी गामा जाता है ’।4 आज ऻान का गोरा चरावजों,सुआ उड़ी-उड़ी जाम।।5
बी इनके बजन के फगैय तनभाड़ी ग्राभीण जीवन स्ऩष्ट्ट है ,ककस प्रकाय ग्राभीण जनों को उन्द्हीॊ की
अधूया-सा है। बाषा,उन्द्हीॊ के कृवष-कभो के रुऩक के द्वाया

ससॊगजी के काव्म भें ग्राभीण रूऩक ससॊगाजी ने ब्रह्भतत्व का ऻान जन-जन तक

ससॊगाजी के काव्म भें रोक जीवन के रुऩकों का ऩहुॊचामा। ससॊगाजी ककसान जीवन के कवव हैं।

उऩमोग फड़ी ही कुशरता से हुआ है। ससॊगाजी तनभाड़ की तऩती दऩ


ु हयी की तयह ऻान के ताऩ

ऩशुऩारक एवॊ कृवष-कभा से सीधे जुड़े थे , इससरए से उनका काव्म दभक यहा है।ककसानों के स्वेद

उनके काव्म भें साये रूऩक,प्रतीक इन्द्हीॊ ऺेिों से कण की तयरता ससॊगाजी के काव्म भें ठोस शब्द

आते हैं। मे ग्राभीण जीवन के रुऩक साधन के फनकय आते हैं औय मे ठोस शब्द कृवष कभायत

रुऩ भें आते हैं औय साध्म होता है तनगण


ुा ब्रह्भ। ग्राभीणों को ऻान द शा की ओय रे जाते हैं। जफ

ससॊगाजी कृषकों के रोकवप्रम कवव हैं। उनके कृषक हर जोत यहे होते हैं तो ससॊगा वाणी का

काव्म भें कृवष-कभा से सॊफथॊ धत रूऩक बी सभरते अनग


ु ज
ूॊ न होता है- ’खेती खेड़ो ये हरय नाभ की ‘-

हैं। एक उदाहयण दृष्ट्टव्म है क्जसभें वे हरय नाभ शायीरयक चेष्ट्टा कृवष कभा की होती है औय

की खेती कयने की सराह दे यहे हैं। वे फता यहे है भानससक द शा ऻान की। कोई कभाकाॊड नहीॊ है

कक इस खेती भें फहुत राब है। ऩाऩ का ऩारवा वयन ् कभायत यहते हुमे ऻान दशा भें प्रवेश है।ऐसा

(कहटरी झाडडमाॉ) कटवा रेना औय फाहय पेंक प्रवेश ससॊगा वाणी की सहजता से ही सॊबव है।

दे ना। कभा की कास(एक घास) त्रफनवाकय खेती ग्राभीण जीवन भें ऩशुऩारन एक भहत्वऩण
ू ा तथ्म

को तनभार कय रेना। श्वास-प्रश्वास दो फैर हैं है। ससॊगाजी स्वमॊ बी ऩशुऩारक थे। इनके काव्म

क्जनको सुयतत की यास रगाओ औय प्रेभ की भें ऩशओ


ु ॊ से सॊफथॊ धत रूऩक बी सभरते हैं।

वऩयाणी(एक फाॊस क्जससे फैरों को हाॊका जाता है) जैसे गाम का रूऩक-

हाथ भें यखो तथा उन फैरों को ऻान की आय ‘फयन-फयन की गउ दह


ु ाई,एक फासन भें धयना।

रगाओ। ओभ का फतखय जोततए औय भूरभॊि भाखन भाखन सॊतो ने ऩामा ,फासण का तमा

रुऩी फीज को खेत भें फोइए। सत ् का भाॊडवा कयना।।6

फनाओ औय उसभें धभा की सीढी रगाओ। उस अथाात ् अनेक यॊ गों की गामों का दध


ू दह
ु कय एक

ऩय चढ कय ऻान के गोरे पेंककमे क्जससे इस फतान भें यख हदमा है। सॊतों ने भाखन प्राप्त कय

पसर को नक
ु सान ऩहुॊचाने वारे ऩऺी उड़ जाए- सरमा है। अफ इस फतान का कोई काभ नहीॊ है।

‘खेती खेड़ो ये हरय नाभ की ,जा भ भुकतो है महाॉ अनेक यॊ गों की गामों से तात्ऩमा षटचक्र की

राब।। ऩॊखुडडमों के ववसबन्द्न यॊ गों से है। इन षटचक्रों से

ऩाऩ का ऩारवा कटावजो,काठी फाहय यार। जो सत्व तनकरा है , वह शयीय रूऩी फतान भें

कभा की कास एचावजो,खेती तनयभर होम।। इकट्ठा है। उसभे जो ब्रह्भानॊद रूऩी भाखन फना

आस स्वास दोई फैर है,सुयती यास रगाव। है, उसे सॊतों ने प्राप्त कय सरमा है , अफ इस

प्रेभ वऩयाणो कय घयो,ऻान की आय रगाव।। खारी फतान रूऩी शयीय का कोई काभ नहीॊ फचा।

ओहभ ् फतखय जूऩजो,खेती रट रूभ होम। शयीय औय ब्रह्भ का द्वैत सभाप्त हो गमा। दे ह

सत को भाडो योऩजो,धयभ की ऩऩड़ी रगाव। से ववदे ह की मािा ऩण


ू ा हुई।

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E ISSN 2320 – 0871

बायतीम बाषाओॊ की अॊतयााष्ट्रीम भाससक शोध ऩत्रिका 17 अप्रैर 2016

पीअर रीव्यड
ू रे फ्रीड ररसर्च जर्चऱ

ससॊगाजी अऩने प्रतीक,त्रफम्फ, रूऩक ग्राभीण जीवन 4.डॉ.नगेन्द्र सॊऩादक, हहन्द्दी साहहत्म का इततहास, ऩृष्ट्ठ

से उठाते हैं। जैसे झर


ू े का रूऩक- 133-भमूय ऩेऩय फैतस नईहदल्री सॊस्कयण, 1991 ।
5.श्रीयाभ ऩरयहाय(सॊकरनकताा)-कहे जन ससॊगा, ऩृष्ट्ठ 44
‘याभ नाभ की डोय रगी है -म्हाये सतगरु
ु साभण
-भ.प्र. आहदवासी रोककरा ऩरयषद बोऩार , तत
ृ ीम
झूरे।
सॊस्कयण 1997.
ऩाॊच सखी सभर भॊगर गावे , भनआ
ु तार
6.श्रीयाभ ऩरयहाय(सॊकरनकताा)- कहे जन ससॊगा , ऩृष्ट्ठ
फजावे।।‘7
78- भ.प्र. आहदवासी रोककरा ऩरयषद बोऩार , तत
ृ ीम
झूरों के प्रतत ग्राभीणों का वव शेष आकषाण यहा सॊस्कयण 1997.
है। तनभाड भें सावन भें झर
ू े फाॊधे जाते हैं। 7.श्रीयाभ ऩरयहाय(सॊकरनकताा)- कहे जन ससॊगा ऩृष्ट्ठ
क्स्िमाॉ फच्चे झूरा झूरते है। आनॊद उठाते हैं। 39, भ.प्र. आहदवासी रोककरा ऩरयषद बोऩार, तत
ृ ीम
रोक के झूरों को ससॊगाजी ने अरौककक अथा सॊस्कयण 1997.

हदमा है। 8.यभेशचॊर गॊगयाडे, तनभाड़ के सॊत कवव ससॊगाजी, ऩृष्ट्ठ


68, हहॊदी साहहत्म बॊडाय,रखनऊ प्रथभ सॊस्कयण 1996।
तनष्ट्कषा
ससॊगाजी के महाॉ कहीॊ ऩतनहायी का क्जक्र आता है,
कही खेती-फाड़ी , ऩशुओॊ का , कही जर फीच
गगयी’ का; कुर सभराकय ऩयू ा ग्राभीण ऩरयवेश
उनके काव्म भें दे खा जा सकता है। भाखनरार
चतुवेदी जी ने सरखा है- “ ससॊगाजी की वाणी फे
इक्ख्तमाय तनकरती है-उसभें मद्मवऩ अरॊकायों का
प्रदशान नहीॊ ,ककॊ तु वह इतने सीधे-सच्चे ढॊ ग से
कही जाती है कक वह सीधे भभा को छू रेती
है।”8 ससॊगाजी की मह भभाबेदी वाणी आज बी
ग्राभीणों का कॊठ हाय फनी हुई है। ससॊगा जी के
काव्म भें ग्राभीण जीवन है औय ग्राभीण जीवन भें
बी उनका काव्म आज बी सुना जा सकता है।
सॊदबा ग्रन्द्थ
1.कवीन्द्र कुभाय बायद्वाज , रघु शोध प्रफॊध , बक्तत
आन्द्दोरन औय ससॊगाजी का काव्म ऩृष्ट्ठ-58-बायतीम
बाषा केन्द्र जवाहयरार नेहरू ववश्वववद्मारम नईहदल्री
2.कवीन्द्र कुभाय बायद्वाज , रघु शोध प्रफॊध बक्तत
आन्द्दोरन औय ससॊगाजी का काव्म ऩृष्ट्ठ-76, बायतीम
बाषा केन्द्र जवाहयरार नेह रू ववश्ववव द्मारम,
नईहदल्री।
3.यभेशचॊर गॊगयाडे, तनभाड़ के सॊत कवव ससॊगाजी, ऩृष्ट्ठ
63, हहन्द्दी साहहत्म बॊडाय ,रखनऊ, प्रथभ सॊस्कयण
1996.

This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 4, Issue 6 141

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