Wrib (A) 20789 1994

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प्रका%न के खिलए Gवीकृ9

न्यूर्ट सं०्रल साइर्ट सं०े%न सं०-2023:AHC:189666 AHC:AHC:189666 189666


बिनण से स्पष्ट हो जाता हैःय सु धिक्ष उच्च न्यायालय9 क ने की ओर से धि9शिर्थी- २२.०९ सन् १९९४.२०२३
बिनण से स्पष्ट हो जाता हैःय सुनाने की ओर से धि9शिर्थी - ०३.१०.२०२३

समक्ष उच्च न्यायालय उच्च न्यायालय न्यायालय, इलाहाबाद


काेर्ट सं० सं०: ४८
वाद: रि र्ट सं०-'बी' संख्या. - २०७८९ सन् १९९४ सन् १९९४ १९ सन् १९९४९ सन् १९९४४
प्रार्थी#: शि%व पूजन सिंसह
याची की ओर से ओ से : श्री वी द्र सिंह
ें सिंसह, अधि2वक्ता
प्रत्यर्थी#: डी.डी.सी एवं अन्य
प्रत्यर्थी# की ओर से ओ से : श्री आद्या प्रसाद धि9वा ी, अधि2वक्ता
माननीय सौ भ श्याम शमशेरी श्याम %म%े ी, न्यायमूर्ति9
(१). व9मान आज्ञा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित याधिचका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित १९ सन् १९९४९ सन् १९९४४ से इस न्यायालय के समक्ष उच्च न्यायालय लंबिब9
है, जबबिक वाद-बिवर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितय जबिर्ट सं०ल न होक , स ल प्रकृधि9 का है।

(२). पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितावली प उपस्थिGर्थी9 दG9ावेज व पक्ष उच्च न्यायालयों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन के बिवद्वान अधि2वक्ताओं के आवेदन
से यह बिवबिद9 हो9ा है बिक, उप संचालक, चकबन्दी, गाजीपु , ने बिव ो2ात्मक
आदे% पारि 9 बिकया है, जो बिनम्न उल्लेखिO9 बिवव ण से स्पष्ट हो जाता हैः से Gपष्ट हो जाता हैः हो जा9ा हैः-

(क). प्रार्थी# द्वा ा एक बिनग ानी संख्या ७७२, 2ा ा ४८- उत्त प्रदे%
जो9 चकबन्दी अधि2बिनयम, १९ सन् १९९४५३ के अं9ग9, उप संचालक
चकबन्दी, गाजीपु के समक्ष उच्च न्यायालय दाखिOल की ओर से र्थीी, जिजसके अं9ग9
बन्दोबG9 अधि2का ी, चकबन्दी, गाजीपु , द्वा ा अपील संख्या -
१९ सन् १९९४९ सन् १९९४१ में पारि 9 आदे% बिदनांक ३०.०७.७१ अाक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 बिकया गया
र्थीा।

(O). उप ोक्त वर्णिण से स्पष्ट हो जाता हैः9 बिनग ानी, उप संचालक चकबन्दी, गाजीपु ने
बिनण से स्पष्ट हो जाता हैःय बिदनांक ०४.०३.७२ द्वा ा आं शि%क रूप से Gवीका क 9े हुए
बिनG9ारि 9 की ओर से ।

(ग). उप ोक्त वर्णिण से स्पष्ट हो जाता हैः9 आदे% के महत्वपूण से स्पष्ट हो जाता हैः अं%, बिनम्न उद्दीर्णिण से स्पष्ट हो जाता हैः9 बिकये
जा हे हैः-

1
“मैने बिनग ानी क9ा 9र्थीा बिवपक्ष उच्च न्यायालयी ाज कु मा को सुना
व उनके चको की ओर से जाँच बिकया। बिनग ानी क9ा का कहना
है बिक वह छोर्ट सं०ा काG9का है प उसे 9ीन चक प्रबिदष्ट हो जाता हैः
बिकये गये है। 9र्थीा उसका गार्ट सं०ा सं० ६५२ आबिद का
चक छाया से प्रमाशिण से स्पष्ट हो जाता हैः9 है औ बिबना बिकसी मूल जो9 के
गार्ट सं०े प बिदया गया है यह सही है बिक बिनग ानी क9ा को
9ीन चक प्रबिदष्ट हो जाता हैः बिकये गये है जबबिक वह २१-४० का ही
काG9 का है अ9ः मैने बिनग ानीक9ा को सुझाव बिदया
बिक उसका गार्ट सं०ा संख्या ६५२ आबिद का चक समाप्त
क बिदया जायें औ उसे उसकी ओर से वह माखिलय9 उसके
गार्ट सं०ा संख्या ८१० आबिद प प्रबिदष्ट हो जाता हैः बिकये हुये चक में
%ाबिमल क बिदया जावे प यह इस सुझाव से सहम9
नही हुआ उसने चाहा बिक उसका गार्ट सं०ा संख्या ६५२
आबिद की ओर से माखिलय9 गार्ट सं०ा संख्या ६४१ आबिद प दे दी
जाये। गार्ट सं०ा संख्या ६४१ आबिद प सभ श्याम शमशेरीी को मूल जो9
के अनुसा ही चक बिदये गये है इसखिलये बिनग ानी क9ा
का गार्ट सं०ा संख्या ६५२ आबिद का चक गार्ट सं०ा संख्या
६४१ आबिद प नही प्रबिदष्ट हो जाता हैः बिकया जा सक9ा।
बिनग ानी क9ा का चक गार्ट सं०ा संख्या ६५२ आबिद
प प्रबिदष्ट हो जाता हैः बिकये गये हुये चको के गार्ट सं०ा संख्या ६५२ के
एक बिवसवा कवे का बिवबिनयम अनुपा9 ४ आने क ाया
गया है प इस बिवबिनयम अनुपा9 की ओर से भ श्याम शमशेरीूबिम बिनग ानी क9ा
को न बिमलक चकवदा १८६ ाज कुमा आबिद को दे
दी गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि जब बिक इस गार्ट सं०े की ओर से छाया से प्रभ श्याम शमशेरीाबिव9 भ श्याम शमशेरीूबिम
बिनग ानी क9ा के चक में पड़9ी है औ बिवपक्ष उच्च न्यायालयी ाज
कुमा चकदा १८५ के चक में न पड़9ी हो अ9ः यह
सं%ो2न क बिदया जा9ा है। बिनग ानी क9ा सं%ो2न
9ाखिलका के अनुसा आं शि%क रूप से Gवीका की ओर से गयी
ग्राम अशिभ श्याम शमशेरीलेOों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन में 9दनुसा अमल द ामद क बिदया
जावे।"
(घ). उप ोक्त आदे% बिदनांक ०४.०३.७२ के पारि 9 होने के उप ान्9
प्रार्थी# के द्वा ा एक बिवलंस्थिम्ब9 9जवीजसानी द OाG9 बिदनांक-
०७.१०.७४, उप संचालक चकबन्दी, गाजीपु के समक्ष उच्च न्यायालय इस आ%य
व का ण से स्पष्ट हो जाता हैः व% दाय की ओर से गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि, बिक वो एक वृद्ध व्यक्ति है और वो लम्बी व्यबिक्त है औ वो लम्बी

2
बीमा ी से ग्रG9 हा है, इस का ण से स्पष्ट हो जाता हैः वो बिदनांक ०४.०३.७२ को
अदाल9 या मुकदमे में उपस्थिGर्थी9 नहीं हो पाया था हो पाया र्थीा, इस का ण से स्पष्ट हो जाता हैःव% एक
9 फा कायवाही क 9े हुए उप ोक्त आदे% पारि 9 हो गया। प्रधि9वादी ने
बिकसी को Oड़ा क वा के फज# कायवाही क वाई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि र्थीी। प्रार्थी# द्वा ा
प्रार्थीना की ओर से गयी बिक, दफा ५ परि सीमा अधि2बिनयम, १९ सन् १९९४६३ का लाभ श्याम शमशेरी
देक 'एक 9 फा' आदे% Oारि ज क के मुकदमा मूल नम्ब प कायम
बिकया जाये।

(ङ). उप संचालक चकबन्दी, गाजीपु ने आदे% बिदनांक २२.०३.८२


द्वा ा 9जवीजसानी द OाG9 (पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित) Gवीका क के,
पूव में पारि 9 आदे% बिदनांक ०४.०३.७२ को बिन G9 बिकया औ
बिनग ानी को पूव संख्या प कायम क के बहस के खिलये धि9शिर्थी
बिन2ारि 9 क ी। प्रधि9वादी सुनवाई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि के दौ ान अनुपस्थिGर्थी9 हा। उक्त
आदे% के महत्वपूण से स्पष्ट हो जाता हैः अं% बिनम्न उल्लेखिO9 बिकये जा हे हैः-

“यह द OाG9 9जवीज सयानी बिनग ानी ७७२ में


पारि 9 आदे% बिदनांक ०४.०३.७२ के बिवरूद्ध व्यक्ति है और वो लम्बी प्रG9ु9
की ओर से गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि है। प्रार्थी# ने बिदनांक २१.११.८१ से इस आ%य
से %पर्थी पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित बिदया है बिक उपयुक्त आदे% उसकी ओर से
अनुपस्थिGर्थीधि9 से औ उसका फज# हG9ाक्ष उच्च न्यायालय बनवाक
पारि 9 क ाया गया है। उसे कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि नोबिर्ट सं०स या सूचना नही
की ओर से गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि र्थीी। इसके बिवरूद्ध व्यक्ति है और वो लम्बी कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि प्रधि9 %पर्थी पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित दाखिOल
नही है। अ9ः यह कानूनन सत्य मानी जायेगी औ
बिकसी बिव ो2 साक्ष्य के बिबना आदे% बिदनांक
०४.०३.७२ एक पक्ष उच्च न्यायालयीय माना जायेगा।
अ9ः आपके न्याय के बिबना ०४.०३.७२ बिन G9 बिकया
गया है। बिनग ानी चक नम्ब कायम की ओर से जा9ी है।
बिनग ानी प बहस हे9ु बिदनांक २६.०३.८२ को
उपस्थिGर्थी9 हो। इस बीच बिवपक्ष उच्च न्यायालयी की ओर से एक वा नोबिर्ट सं०स औ
भ श्याम शमशेरीेजी जाये।”

3
(च). 9दोप ान्9 उप संचालक चकबन्दी ने आदे% बिदनांक २९ सन् १९९४ .०३.८२
के द्वा ा गुण से स्पष्ट हो जाता हैः-दोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प पुनः बिनण से स्पष्ट हो जाता हैःय पारि 9 क , बिनग ानी को पूण से स्पष्ट हो जाता हैः रूप से
Gवीका क के, चकबन्दी अधि2का ी द्वा ा पारि 9 आदे% बिदनांक
१४.०४.१९ सन् १९९४७१ को बहाल Oा। इस G9 प भ श्याम शमशेरीी प्रधि9वादी
अनुपस्थिGर्थी9 हा। आदे% बिदनांक २९ सन् १९९४.०३.८२ के महत्वपूण से स्पष्ट हो जाता हैः अं% बिनम्न
उल्लेखिO9 बिकये जा9े हैः-

“यह बिनग ानी व व० {च} के आदे% बिदनांक


३०.०७.७१ के बिवरूद्ध व्यक्ति है और वो लम्बी प्रG9ु9 है।
मैने बिनग ानी क9ा के बिवद्वान अधि2वक्ता की ओर से बहस
को सुना 9र्थीा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितावली का अवलोकन बिकया। अशिभ श्याम शमशेरीलेOों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन
व भ श्याम शमशेरीूधिचत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित का भ श्याम शमशेरीी अवलोकन बिकया।
बिवद्वान स० व० अ० च० ने अपने G9 प
बिनग ानी क9ा व बिवपक्ष उच्च न्यायालयी मधि9 ाम के घ के चको में जो
सं%ो० बिकया है इसके का ण से स्पष्ट हो जाता हैः बिनग ानी क9ा के चक
औ बिवपक्ष उच्च न्यायालयी गण से स्पष्ट हो जाता हैः का बी चक बिबना मूल गार्ट सं०ा के 9र्थीा
मूल गार्ट सं०ा वाके से सेक्र्ट सं० के भ श्याम शमशेरीी बाह बन गये है औ
चकबन्दी अधि2का ी के दोनो पक्ष उच्च न्यायालयों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन के चको में उधिच9
रूप में मूल गार्ट सं०ा प प्रबिवष्ट हो जाता हैः बिकया। अ9ः बिवद्वान
स०व०अ० का आदे% बिन G9 क ने 9र्थीा बिवद्वान च-
अ० का आदे% बहाल Oने योग्य है।
9द्नुसा बिनग ानी मंजू की ओर से जा9ी है। वह च०अ०
के आदे% बिदनांक १४.०४.७१ बहाल Oा जा9ा है।
9द्नुसा सं%ो2न 9ाखिलका 9ैया क ायी गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि है। जिजस प
मे े हG9ाक्ष उच्च न्यायालय है औ वह आदे% का अंग होगी। बाद
वाद अमल द ामद पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितावली अंबिक9 हो।”
(छ). उप ोक्त आदे% बिदनाँक २९ सन् १९९४.०३.८२ के पारि 9 होने के उप ान्9
प्रधि9वादी ने एक द OाG9 9जवीजसानी (पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित)
बिवलम्ब से बिदनांक २२.१०.८४ को दाय क ी बिक, आदे% बिदनांक
२२.०३.८२ व २९ सन् १९९४.०३.८२ पूण से स्पष्ट हो जाता हैः9ः एक पक्ष उच्च न्यायालयीय र्थीे औ वाG9व में
उसकी ओर से कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि सूचना या नोबिर्ट सं०स प्रधि9वादी को 9ामील नही हुयी र्थीी।

4
(ज). प्रधि9वादी व एक अन्य के कायमी प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित, उप संचालक,
चकबन्दी के आदे% बिदनांक २१.०८.८७ द्वा ा बिन G9 बिकये गये,
जिजसके बिवरूद्ध व्यक्ति है और वो लम्बी प्रधि9वादी ने एक आज्ञा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित याधिचका (१९ सन् १९९४८९ सन् १९९४८ वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित
१९ सन् १९९४८७) इस न्यायालय के समक्ष उच्च न्यायालय दाय की ओर से , जो आदे% बिदनांक
१७.०४.१९ सन् १९९४९ सन् १९९४० द्वा ा बिनद|% सबिह9 आं शि%क रूप से Gवीका की ओर से गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि
बिक, उप संचालक चकबन्दी का आदे% बिदनांक २१.०८.८७ बिन G9
बिकया गया औ यह बिनद|शि%9 बिकया गया बिक, उप संचालक चकबन्दी,
प्रधि9वादी का कायमी प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित पुनः गुण से स्पष्ट हो जाता हैः-दोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प बिन G9ारि 9 क ें
औ यह बिवचा क ें बिक क्या प्रधि9वादी द्वा ा बिवलम्ब से दाय बिकये गये
कायमी प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित (बिदनांक २२.१०.८४) में उल्लेखिO9 बिवलम्ब के
का ण से स्पष्ट हो जाता हैः सं9ोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितजनक है या नही, औ क्या बिदनांक २२.०३.८२ को व
बिदनाँक २१.०३.८२ को उसके अनुपस्थिGर्थी9 होने का पयाप्त का ण से स्पष्ट हो जाता हैः र्थीा
अर्थीवा नही?

(झ). उप ोक्त आदे% के क्रम में, उप संचालक चकबन्दी नें प्रधि9वादी


के द्वा ा दाय कायमी प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित को गुण से स्पष्ट हो जाता हैः दोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प उभ श्याम शमशेरीय पक्ष उच्च न्यायालयों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन को
श्रवण से स्पष्ट हो जाता हैः क के आदे% बिदनांक २५.०४.९ सन् १९९४४ द्वा ा पूव में पारि 9 एक
पक्ष उच्च न्यायालयीय आदे% बिदनांक २२.०३.८२ व २९ सन् १९९४.०३.८२ को बिन G9 क
बिदया व प्रार्थी# द्वा ा दाय कायमी प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित बिदनांक ०७.१०.८४ को
भ श्याम शमशेरीी इस का ण से स्पष्ट हो जाता हैः से बिन G9 क बिदया बिक, उप संचालक, चकबन्दी को
पूव में पारि 9 आदे% को पुनर्विवचा क ने का कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि अधि2का नहीं हो पाया था र्थीा
यह आदे% (बिदनांक २५.०४.९ सन् १९९४४) व आदे% बिदनांक १४.०४.७१
चकबन्दी अधि2का ी द्वा ा पारि 9 व बन्दोबG9 अधि2का ी, चकबन्दी द्वा ा
पारि 9 आदे% बिदनांक ३०.०७.७१ को भ श्याम शमशेरीी व9मान आज्ञा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित याधिचका
मे आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 बिकया गया है।

(ञ) आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% बिदनांक २५.०४.९ सन् १९९४४ के प्रमुO अं% बिनम्न
खिलखिO9 हैः-

5
"आदे% बिदनांक ०४.०३.७२ बिनग ानी क9ा शि%व पूजन
को सुनने के पश्चा9 पारि 9 बिकया गया र्थीा। अ9ः शि%व
पूजन पून-बिवचा प्रार्थीना - पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित पोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैःीय नही है क्योबिक
इस न्यायालय को पुनबिवचा क ने का अधि2का क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित
प्राप्त नही है। अबिप9ु बिदनांक ०४.०३.७२ गुण से स्पष्ट हो जाता हैः दोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प
पारि 9 आदे% हो। शि%व पूजन की ओर से बिनग ानी ग्राम की ओर से
अन्य बिनग ाबिनयो के सार्थी बिनण से स्पष्ट हो जाता हैः#9 हुई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि र्थीी जिजसके दो
साल सा9 माह बाद बिदनांक ०७.१०.७४ को अधि9
बिमयाद वाह पुनबिवचा प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित बिदया गया आदे%
बिदनांक २२.०३.८२ में 2ा ा ५ बिवलम्ब अधि2० का
लाभ श्याम शमशेरी भ श्याम शमशेरीी नही बिदया गया है। इसखिलये एक पक्ष उच्च न्यायालयीय आदे%
बिदनांक २२.०३.८२ में बिवपक्ष उच्च न्यायालयी के बहस का कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि उल्लेO
नही है। आदे% बिदनांक २९ सन् १९९४.०३.८२ वगै नोबिर्ट सं०स
9ामील क ाये व वगै बिवपक्ष उच्च न्यायालयी को सुने पारि 9 बिकया गया
है। इसखिलये बिदनांक २२.१०.८४ को पुनGर्थीापना प्रार्थीना
पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित जो बिवपक्ष उच्च न्यायालयी सधि9 ाम ने बिदया है वह अन्9ग9 2ा ा ५
का प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित के सार्थी सधि9 ाम ने बिदया है 9र्थीा उसने
%पर्थी पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित भ श्याम शमशेरीी बिदया है बिक द OाG9 कायमी प बिदनांक
२६.०३.८२ को भ श्याम शमशेरी9# नोबिर्ट सं०स का 9ामीला बिदOाक
वावावाला 9 ीके से बिदनांक २९ सन् १९९४.०३.८२ को आदे%
पारि 9 क ाया गया है। बिदनांक २०.१०.८४ को ग्राम मे
जब उसे अफवाहन मालुम हुआ 9ो उसने अशिभ श्याम शमशेरीलेOों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन का
बिन ीक्ष उच्च न्यायालयण से स्पष्ट हो जाता हैः क ाया 9र्थीा बिदनांक २२.१०.८४ को
पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित दे हा है। अ9ः Gपष्ट हो जाता हैः है बिक
बिवपक्ष उच्च न्यायालयी सधि9 ाम को आदे% की ओर से जानका ी बिवलम्ब से हुई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि
इसखिलये उसने बिवलम्ब से पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित बिदया
अ9ः पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित को न्यायबिह9 में उदा
दृबिष्ट हो जाता हैः कोण से स्पष्ट हो जाता हैः अपना9े हुये समयावधि2 के अन्द /मान9े के
खिलये बिवलम्ब अधि2० की ओर से 2ा ा ५ बिम०अ० का लाभ श्याम शमशेरी
बिदया जा9ा है। चूँबिक बिदनाँक ०४.०३.७२ का बिनग ानी
क9ा की ओर से बिनग ानी आं शि%क रूप से Gवीका की ओर से गयी र्थीी
बिदनाँक ०४.०३.७२ को ही बिनग ानी क9ा के पक्ष उच्च न्यायालय में
आदे% हुआ र्थीा। सं%ो2न 9ाखिलका बनायी गयी र्थीी।
सं%ो2न 9ाखिलका के अनुसा पैमाइस भ श्याम शमशेरीी की ओर से गयी र्थीी
9र्थीा ग्राम के अधि2कां% काG9का ो को 9भ श्याम शमशेरीी जानका ी
भ श्याम शमशेरीी हुई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि र्थीी बिकन्9ु इसके बावजूद बिनग ानीक9ा ने

6
अत्यधि2क बिवलम्ब से बिदनांक ०७.१०.७४ के पुनबिवचा
प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित बिदया । चूँबिक न्यायालय ने सधि9 ाम के
पुनबिवचा प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प बिवपक्ष उच्च न्यायालयी को बगै सुने एक
पक्ष उच्च न्यायालयीय आदे% बिदनांक २२.०३.८२ व २९ सन् १९९४.०३.८२
पारि 9 बिकया है, इसखिलये एक पक्ष उच्च न्यायालयीय आदे% बिदनांक
२२.०३.८२ व २९ सन् १९९४.०३.८२ बिन G9 बिकया जा9ा है।
चूँबिक इस न्यायालय को पुनबिवचा क ने का कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि
अधि2का नही है। इसखिलये पुनबिवचा प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित शि%व
पूजन बिदनांक ०७.१०.७४ अपोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैःीय मान9े हुये बिन G9
बिकया जा9ा है। वाद आ० कायवाही पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितावली संचधिय9
हो।"
(३). उप ोक्त बिवव ण से स्पष्ट हो जाता हैः से यह Gपष्ट हो जाता हैः है बिक उप संचालक चकबन्दी नें आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9
आदे% द्वा ा पूव में प्रार्थी# के कायमी प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित व 9दोप ान्9 बिनग ानी बहाल होने
प , बिनग ानी में पारि 9 आदे%ों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन को एक पक्ष उच्च न्यायालयीय अधि2का बिवहीन होनें के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः ,
बिक उसको अपने आदे%ों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन को पुनर्विवचा क नें का अधि2का नहीं हो पाया था है, यह बिन2ारि 9
क 9े हुए आदे% बिदनांक २२.०३.८२ व २९ सन् १९९४.०३.८२ को बिन G9 क बिदया व
प्रार्थी# का मूल पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित बिदनांक ०७.१०.८४ को भ श्याम शमशेरीी अपोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैःीय9ा
के आ2ा प बिन G9 क बिदया औ यह आदे% पारि 9 क 9े हुए उसी
9र्थीाकशिर्थी9 पुनबिवचा के अधि2का का उपयोग बिकया। अ9ः उप संचालक,
चकबन्दी ने पुनर्विवचा अधि2का का ही उपयोग क 9े हुए पूव में पारि 9 आदे% को
इस आ2ा प बिन G9 बिकया बिक उसको पुनर्विवचा का अधि2का नहीं हो पाया था है। अ9ः
आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% बिदनांक २५.०४.९ सन् १९९४४ Gवयं में बिव ो2ाभ श्याम शमशेरीासी है।

(४). उप संचालक चकबन्दी नें उसी 9र्थीाकशिर्थी9 अधि2का (पुनर्विवचा ) का उपयोग


बिकया, जिजसके न होनें के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः ही पूव में एक पक्ष उच्च न्यायालयीय प न्9ु गुण से स्पष्ट हो जाता हैः दोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प पारि 9
दोनो आदे%ों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन को बिन G9 बिकया व मूल पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित को भ श्याम शमशेरीी पुनर्विवचा
क अधि2का न होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः बिन G9 क बिदया।

(५). प्रधि9वादी के बिवद्वान अधि2वक्ता श्री आध्या प्रसाद धि9वा ी ने बहस की ओर से , बिक
उप संचालक चकबन्दी को अपने आदे%ों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन को पुनर्विवचा क ने का अधि2का नहीं हो पाया था है
प न्9ु वो पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प पूव मे एक पक्ष उच्च न्यायालयीय पारि 9 आदे% को बिन G9

7
क सक9ा है। बिवद्वान अधि2वक्ता ने बिनवेदन बिकया बिक, जैसा बिक व9मान प्रक ण से स्पष्ट हो जाता हैः
मे बिकया गया है। बिवद्वान अधि2वक्ता ने इस ना9े , न्यायालय का ध्यान आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9
आदे% प क वाया। अ9ः आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% सम्पूण से स्पष्ट हो जाता हैः रूप से एक बिवधि2नुसा पारि 9
आदे% है, उसमे बिकसी भ श्याम शमशेरीी प्रका के हG9क्ष उच्च न्यायालयेंप की ओर से आवश्यक9ा नहीं हो पाया था है।

(६). उप संचालक चकबन्दी को पुनबिवचा प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित या पुनGर्थीापना/प्रत्याह्वान
प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प बिवचा क ने का अधि2का है, बिक नही, प बिव ो2ाभ श्याम शमशेरीासी आदे%
होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः इस न्यायालय की ओर से युगल पीठ से समक्ष से समक्ष उच्च न्यायालय श्रीम9ी शि%व ाजी व अन्य
प्रधि9 उप संचालक चकबन्दी व अन्य, १९ सन् १९९४९ सन् १९९४७ आ डी ५६२, के प्रक ण से स्पष्ट हो जाता हैः में बिनम्न
बिवधि2क प्रश्न निस्तारण के लिए सूत्रित किया गया किः बिनG9ा ण से स्पष्ट हो जाता हैः के खिलए सूबित्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित9 बिकया गया बिकः-

“क्या चकबन्दी प्राधि2कारि यों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन को अं9र्विनबिह9 %बिक्तयों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन का प्रयोग
क 9े हुए Gवयं द्वा ा पारि 9 अंधि9म आदे%ों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन का
पुनर्विवचा /प्रत्याह्वान क ने की ओर से छूर्ट सं० है, यद्यबिप उत्त प्रदे% जो9
चकबन्दी अधि2बिनयम, १९ सन् १९९४५३ द्वा ा उनमे पुनर्विवचा क ने का
क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबिताधि2का बिनबिह9 नहीं हो पाया था बिकया है।”
(न्यायालय द्वा ा अनुवाबिद9)

(७). युगल पीठ से समक्ष ने उप ोक्त बिवधि2क प्रश्न निस्तारण के लिए सूत्रित किया गया किः का उत्त श्रीम9ी शि%व ाजी (पूव में
उल्लेखिO9) के बिनण से स्पष्ट हो जाता हैःय में बिनम्न प्रका से बिदयाः-

“पूवगामी प्रG9 ों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन में बिकये गये बिव%लेर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैः प हमा ा सुबिवचारि 9
दृबिष्ट हो जाता हैःकोण से स्पष्ट हो जाता हैः है, बिक चकबन्दी प्राधि2कारि यों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन के खिलए अं9र्विनबिह9
%बिक्तयों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन का प्रयोग क 9े हुए, उत्त प्रदे% जो9 चकबन्दी
अधि2बिनयम के अं9ग9 Gवयं पारि 9 अंधि9म आदे%ों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन का
पुनर्विवचा / प्रत्याह्वान क ने की ओर से छूर्ट सं० नही है। इस प्रका सूबित्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित9
बिकया गया बिवधि2क प्रश्न निस्तारण के लिए सूत्रित किया गया किः का उत्त नका ात्मक है।”
(न्यायालय द्वा ा अनुवाबिद9)

(८). उप ोक्त बिवधि2क अवस्थिGर्थीधि9 से यह अबिववाबिद9 है, बिक उप संचालक चकबन्दी


औ अन्य चकबंदी प्राधि2कारि यों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन को Gवयं द्वा ा पारि 9 अंधि9म आदे% को न 9ो
पुनर्विवचा क नें की ओर से औ न ही प्रत्याह्वान क ने की ओर से अधि2कारि 9ा प्राप्त है। अ9ः
व9मान प्रक ण से स्पष्ट हो जाता हैः में आदे% बिदनांक २२.०३.८२ (जिजसके द्वा ा प्रार्थी# का कायमी

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प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित Gवीका बिकया गया व बिनग ानी मूल संख्या प कायम की ओर से गयी व
आदे% बिदनांक २९ सन् १९९४.०३.८२ (जिजसके द्वा ा प्रार्थी# की ओर से बिनग ानी प नवीन आदे%
गुण से स्पष्ट हो जाता हैः दोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प पारि 9 क पूण से स्पष्ट हो जाता हैः रूप से Gवीका की ओर से गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि), दोनो ही आदे%, उप
संचालक चकबन्दी के अधि2का क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित के बाह पारि 9 होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः बिवधि2 संग9
नही र्थीे। अ9ः बिन G9 बिकये जाने योग्य र्थीे, प न्9ु आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% बिदनांक
२५.०४.९ सन् १९९४४ जिजसके माध्यम से उप ोक्त दोनों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन आदे% उप संचालक चकबंदी के
द्वा ा एक पक्ष उच्च न्यायालयीय आदे% होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः बिन G9 बिकये गयें , प न्9ु दोनो ही आदे%
गुण से स्पष्ट हो जाता हैः-दोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित प पारि 9 हुए र्थीे। अ9ः वो अधि2कारि 9ा के बिबना पारि 9 बिकये गेय र्थीे।
व पुनर्विवचा प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित को भ श्याम शमशेरीी अधि2कारि 9ा बिवहीन होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः अपोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैःीय
माना, इसखिलये आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% भ श्याम शमशेरीी उसी पुनर्विवचा /प्रत्याह्वान की ओर से
अधि2कारि 9ा/क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबिताधि2का न हो9े हुए भ श्याम शमशेरीी पारि 9 बिकये जाने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः बिवधि2 संग9
नही है। अ9ः आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% एक Gवयम् १९९४ एक बिव ो2ाभ श्याम शमशेरीासी आदे% है।

(९ सन् १९९४). इस G9 प प्रार्थी# के बिवद्वान अधि2वक्ता श्री वी न्े द्र सिंह सिंसह ने यह अGमर्थी9ा
बिवबिद9 की ओर से , बिक अग आदे% बिदनांक २२.०३.८२, २९ सन् १९९४.०३.८२ व २५.०४.९ सन् १९९४४
क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबिताधि2का न होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः बिवधि2क नहीं हो पाया था है औ उसी का ण से स्पष्ट हो जाता हैः से उसके द्वा ा
दाखिOल पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित बिदनांक ०७.१०.८४ को भ श्याम शमशेरीी उप संचालक
चकबन्दी उसको बिन G9 क ने के अधि9रि क्त कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि आदे% पारि 9 नहीं हो पाया था क सक9े है
व वो पोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैःीय9ा के आ2ा प बिन G9 बिकया भ श्याम शमशेरीी जा चुका है। ऐसी स्थिGर्थीधि9 में उप
संचालक, चकबन्दी के द्वा ा पूव में पारि 9 आदे% बिदनांक ०४.०३.७२, जिजसके
माध्यम से प्रार्थी# की ओर से बिनग ानी आं शि%क रूप से Gवीका की ओर से गयी र्थीी, औ वो
उससे क्ष उच्च न्यायालयुब्2 र्थीा, पुनः बहाल हो जा9ा है, प न्9ु गल9 बिवधि2क ाय के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः व%
उक्त आदे% को व9मान आज्ञा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित याधिचका में आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 नही बिकया र्थीा। बिवद्वान
अधि2वक्ता ने यह बिनवेदन बिकया बिक उक्त आदे% को अब आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 बिकया जाना
चाबिहए औ इस आ%य से याधिचका के प्रार्थीना में उधिच9 सं%ोधि29 क ने की ओर से
प्रार्थीना की ओर से । प न्9ु न्यायालय का यह म9 है बिक, अब जबबिक व9मान याधिचका जो
२९ सन् १९९४ वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितˆ से बिवलंबिब9 है इसखिलये इस G9 प याधिचका की ओर से प्रार्थीना में सं%ो2न की ओर से
प्रार्थीना Gवीका क ने का कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि बिवधि2क औधिचत्य नहीं हो पाया था है। यह नही माना जा

9
सक9ा बिक ग9् १९९४ २९ सन् १९९४ वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितˆ में प्रार्थी# को अपनी गल9ी सु2ा ने की ओर से कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि सलाह न
बिमली हो, क्योबिक यह प्रार्थीना पहली बा बहस के दौ ान उठ से समक्ष ाई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि। इस संबं2 में
उच्च न्यायालय9म न्यायालय द्वा ा लाई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमिफ कॉ पो %
े न ऑफ इंधिडया बनाम संजीव बिवल्ड़स
प्राई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमिवेर्ट सं० खिल. व एक अन्य, २०२२ एस०सी०सी० अॉनलाइन एस०सी० ११२८
के प्रक ण से स्पष्ट हो जाता हैः में पारि 9 बिनण से स्पष्ट हो जाता हैःय का सन्दभ श्याम शमशेरी भ श्याम शमशेरीी समाचीन होगा। जहां यह भ श्याम शमशेरीी
अशिभ श्याम शमशेरीबिन2ारि 9 बिकया गया बिक, सं%ो2न की ओर से प्रार्थीना सामान्य9ा Gवीका की ओर से ही

जानी चाबिहये, जब 9क सं%ो2न द्वा ा कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि काल बधि29 दावा प्रG9ाबिव9 बिकया जा

हा हो, औ उस स्थिGर्थीधि9 में दावा को कालबाधि29ा का 9थ्य बिवचा क ने का एक

महत्वपूण से स्पष्ट हो जाता हैः का क हो जायेगा। औ यह बिक सं%ो2न के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः प्रधि9वादी एक उधिच9
ब9ाव को Oो देेगा।

(१०). उप ोक्त के उप ां9 भ श्याम शमशेरीी न्यायालय ने प्रधि9वादी के बिवद्वान अधि2वक्ता श्री
आध्या प्रसाद धि9वा ी से प्रश्न निस्तारण के लिए सूत्रित किया गया किः बिकया र्थीा, बिक क्या प्रार्थी# के अधि2वक्ता के मौखिOक
प्रार्थीना प न्याय बिह9 में आज्ञा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित याधिचका की ओर से प्रार्थीना मे उप ोक्त आ%य का
सं%ो2न बिकया जा सक9ा है? जिजस प प्रधि9वादी के बिवद्वान अधि2वक्ता ने पूण से स्पष्ट हो जाता हैः रूप
से बिव ो2 व ऐसे बिकसी भ श्याम शमशेरीी सं%ो2न से इंका बिकया।

(११). उप ोक्त बिवश्लेर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैः से न्यायालय का यह सुबिवचारि 9 अशिभ श्याम शमशेरीम9 है, बिक व9मान
प्रक ण से स्पष्ट हो जाता हैः में उप संचालक, चकबन्दी द्वा ा पारि 9 आदे% बिदनांक २२.०३.८२,
२९ सन् १९९४.०३.८२ व २५.०४.९ सन् १९९४४ उक्त प्राधि2का ी द्वा ा उसके क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबिताधि2का के प े
पारि 9 बिकये जाने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः न्यायसंग9 नही र्थीे। उसी प्रका प्रार्थी# द्वा ा दाय
बिकया गया पुनGर्थीापना आवेदन ०७.१०.७४ प क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबिताधि2का न होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः
उक्त प्राधि2का ी द्वा ा कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि बिवचा नही बिकया जा सक9ा र्थीा। अ9ः उसका बिन G9
होने के अधि9रि क्त %ेर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि बिवकल्प नही र्थीा। प न्9ु जो प्रबिक्रया अपनाई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि वो
बिवधि2क रूप से Gवयं में बिव ो2ाभ श्याम शमशेरीासी होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः उधिच9 नही र्थीी, यद्यबिप अंधि9म
परि ण से स्पष्ट हो जाता हैःाम न्याधियक दृबिष्ट हो जाता हैः से उधिच9 हा। ऐसी स्थिGर्थीधि9 में इस न्यायालय का म9 है,
बिक उप संचालक, चकबन्दी द्वा ा पारि 9 आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% जिजस समय पारि 9 बिकया
गया उसके पास श्रीम9ी शि%व ाजी (पूव मे उल्लेखिO9) में युगल पीठ से समक्ष द्वा ा पारि 9

10
बिनण से स्पष्ट हो जाता हैःय का भ श्याम शमशेरीी लाभ श्याम शमशेरी नही र्थीा। बिफ भ श्याम शमशेरीी अन्9 में उप संचालक, चकबन्दी ने प्रार्थी#
द्वा ा पुनGर्थीापना प्रार्थीना पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित बिदनांक ०७.१०.७५ को पोर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैःीय न होने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः
आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% द्वा ा बिन G9 बिकया है। अ9ः आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% एक 'अबिनबिम9
आदे%' की ओर से श्रेण से स्पष्ट हो जाता हैःी के अन्9ग9 आयेगा ना की ओर से एक 'अवै2ाबिनक आदे%' की ओर से श्रेण से स्पष्ट हो जाता हैःी के
अं9ग9। अ9ः आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% Gवयं में बिव ो2ाभ श्याम शमशेरीासी हो9े हुए भ श्याम शमशेरीी बिकसी प्रका
का हG9क्ष उच्च न्यायालयेप क ना उधिच9 नहीं हो पाया था होगा।

(१२). अब अन्9 में इस न्यायालय को यह बिन2ारि 9 क ना है , बिक उप ोक्त 9थ्यों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन
के अनुसा उप संचालक चकबन्दी के आदे% बिदनांक ०४.०३.७२ बहाल हो गया
र्थीा, प न्9ु यह आदे%, प्रार्थी# द्वा ा व9मान याधिचका में आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 न क ने से , व
न्यायालय द्वा ा आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% में हG9क्ष उच्च न्यायालयेप न क ने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः व याधिचका के
प्रार्थीना में इस G9 प सं%ो2न क ने की ओर से अनुमधि9 न देने के का ण से स्पष्ट हो जाता हैः , क्या प्रार्थी#
उपचा बिवहीन हो जायेगा, बिक वो अब आदे% बिदनांक ०४.०३.७२ को आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9
ही नही क पायेगा, या वो अब भ श्याम शमशेरीी परि सीमा अधि2बिनयम के उधिच9 प्राव2ानों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन का
न्यायसंग9 सहा ा लेक नवीन आज्ञा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित याधिचका द्वा ा उक्त आदे% (बिदनांक
०४.०३.७२) को अब भ श्याम शमशेरीी आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 क सक9ा है औ इस संदभ श्याम शमशेरी में क्या यह
न्यायालय अनुच्छे द २२६ के अं9ग9 असा2ा ण से स्पष्ट हो जाता हैः क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबिताधि2का का उपयोग क के
प्रार्थी# को नवीन आज्ञा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित याधिचका दाय क ने की ओर से Gव9ंत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित9ा (खिलबर्ट सं०#) दे सक9ा
है।

(१३). उप ोक्त बिवर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितय वG9ु प बिवचा क ने से पहले यह महत्वपूण से स्पष्ट हो जाता हैः हो जा9ा है
बिक व9मान याधिचका १९ सन् १९९४९ सन् १९९४४ से लंबिब9 है औ यह अबिववाबिद9 है बिक प्रार्थी# ने
याधिचका की ओर से प्रार्थीना में सं%ो2न क ने की ओर से कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि चेष्ट हो जाता हैःा नही की ओर से है औ उप ोक्त
बिवर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितय वG9ु प्रर्थीम बा न्यायालय के समक्ष उच्च न्यायालय बहस के दौ ान उजाग हुई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि है अर्थीा9
प्रार्थी# इस बिवर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितय वG9ु प २९ सन् १९९४ वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितˆ से मौन हा है औ यह भ श्याम शमशेरीी ध्यान Oना
होगा बिक परि सीमा अधि2बिनयम की ओर से 2ा ा १४ केवल उस समय के अपवजन का
प्राव2ान क 9ा है जो बिबना अधि2कारि 9ा वाले न्यायालय मे सद्भाव पूवक की ओर से गयी
कायवाही में लगा हो, प न्9ु व9मान प्रक ण से स्पष्ट हो जाता हैः में इस न्यायालय को उप ोक्त वर्णिण से स्पष्ट हो जाता हैः9
आदे% ०४.०३.७२ प बिवचा क ने की ओर से अधि2कारि 9ा प्राप्त र्थीी, औ प्रार्थी# ने

11
इसी न्यायालय में याधिचका दाय की ओर से र्थीी। अ9ः इस प्राव2ान का भ श्याम शमशेरीी कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि लाभ श्याम शमशेरी
प्रार्थी# को नही बिमल पायेगा।

(१४). अब मात्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित यह बिन2ारि 9 क ना %ेर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित है बिक, उप ोक्त वर्णिण से स्पष्ट हो जाता हैः9 परि स्थिGर्थीधि9यों के विद्वान अधिवक्ताओं के आवेदन में,
इस न्यायालय द्वा ा अपने असा2ा ण से स्पष्ट हो जाता हैः क्ष उच्च न्यायालयेत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबिताधि2का भ श्याम शमशेरीा 9ीय संबिव2ान के (अनुच्छे द
२२६ के अं9ग9) का उपयोग क 9े हुए प्रार्थी# को क्या आदे% बिदनांक
०४.०३.७२ (अर्थीा9् १९९४ जो ५० वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित पूव पारि 9 हुआ औ जो बिदनांक २२.०४.९ सन् १९९४४
(२९ सन् १९९४ वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित पूव) को बहाल हुआ) नवीन याधिचका पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित के द्वा ा आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 क ने की ओर से
Gव9ंत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित9ा दे सक9ा है?

(१५). उप ोक्त Gव9ंत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित9ा मात्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित 'न्यायबिह9’ में दी जा सक9ी है प न्9ु इसके खिलए
प्रार्थी# का आच ण से स्पष्ट हो जाता हैः सदभ श्याम शमशेरीावनापूण से स्पष्ट हो जाता हैः होना चाबिहयें व प्रधि9वादी को होने वाली बिवधि2क
हाबिन का भ श्याम शमशेरीी ध्यान Oना होगा, क्योबिक २९ सन् १९९४ वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित का अं9 ाल बहु9 अधि2क है।
औ जब प्रार्थी# ने इस लम्बे समय अं9 ाल में आदे% बिदनांक ०४.०३.७२ को
आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 क ने का कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि प्रयास नही बिकया है औ यह पूण से स्पष्ट हो जाता हैः बिवश्वास से नही माना
जा सक9ा बिक उसको सही बिवधि2क सलाह नही दी गई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि होगी। अ9ः प्रार्थी# का
आच ण से स्पष्ट हो जाता हैः सदभ श्याम शमशेरीावनापूण से स्पष्ट हो जाता हैः नही हा है।

(१६). उप ोक्त बिवश्लेर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबितण से स्पष्ट हो जाता हैः के उप ां9 मे ा यह सुबिववेधिच9 म9 है बिक न केवल
आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 आदे% में कोई जब कि इस गाटे की छाया से प्रभावित भूमि हG9क्ष उच्च न्यायालयेप बिकया जा सक9ा है व न् १९९४ प्रार्थी# को आदे%
बिदनांक ०४.०३.७२ को नवीन आज्ञा पत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित याधिचका द्वा ा आक्ष उच्च न्यायालयेबिप9 क ने की ओर से
Gव9ंत्र याचिका वर्ष १९९४ से इस न्यायालय के समक्ष लंबित9ा भ श्याम शमशेरीी नही दी जा सक9ी है। अ9ः यह याधिचका बिन G9 की ओर से जा9ी है।

आदे% बिद०/- ०३.१०.२०२३


बिनमल जिसन्हा

[न्यायमूर्ति9 सौ भ श्याम शमशेरी श्याम %म%े ी]

12

Digitally signed by :-
NIRMAL SINHA
High Court of Judicature at Allahabad

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