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आज की ये summary एक मनोविज्ञान (psychology) की किताब के बारे

में है, जिसने पूरी दुनिया पर अपनी छाप छोड़ दी, इस किताब का नाम
है Emotional Intelligence, जिसे Daniel Goleman ने लिखा है।

Goleman एक मनोवैज्ञानिक है और एक बेहतर लेखक भी। उनकी ये


किताब, Emotional Intelligence, लंबे वक्त तक New York Times की top
best seller रही है। लेखक दूसरे विषय जैसे की रचनात्मकता
(creativity), प्रेरणा और सामाजिक क्षा (learning) पर भी लिखते हैं।

लेखक अपनी किताब में बताते है, कि एक इंसान की सफलता में,


बुद्धि यानी की intelligence भाग, ज्यादा से ज्यादा 20% ही मदद करती है
और बाकी का 80% हाथ होता है, EQ यानी की भावनात्मक भाग का। जहां
IQ आपके समझने और जानकारी को सही जगह पर लागू करने की एक
सही समझ होती है वहीं EQ इंसान की खुद की और दूसरों की भावना को
समझने और प्रबंधित (manage) करने की एक कला है। जिनका
भावनात्मक भाग बहुत अधिक होता है, वह लोग बदलते पर्यावरण के साथ
आसानी से adjust हो जाते हैं।

दुर्भाग्‍यपूर्ण, पूरी दुनिया में कुछ इस तरह के trend चले हुए हैं,
जिससे आज की युवा पीढ़ी, पहले की पीढ़ियों के मुकाबले बहुत फंसी
हुई हैं, जिससे उन्‍हें मानसिक बीमारी, अपराध और लत जैसी, काफ़ी
negative नतीजे भुगतने पड़ रहे हैं।

School या college भी इनकी जीवन में आने वाली emotional समस्या पर


बिलकुल ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वो अपने
बच्चों को educate करें। समस्या ये है कि ज्यादातार young लोग
emotionally literate नहीं है, क्योंकि उन्हें खुद को emotional
intelligence पर कोई शिक्षा नहीं दी गई है। आज इस summary के जरिए
हम उन सभी पहलुओं को detail में जानेंगे।
भावनात्मक मस्तिष्क (emotional brain)

असल में human brain के 2 हिस्से होते हैं- emotional brain और


rational brain। हमारे विकास के इतिहास में, emotional brain पहले
आया और ये brain के सबसे नीचे वाले हिस्से में होता है।
Rational brain इसके बाद आया और ये brain के बाहरी side के ऊपर
वाले हिस्से में होता है। Brain के structure की वजह से और इसके
body के साथ connection की वजह से, emotional brain, rational brain
से ज्यादा speed से काम करता है, और ज्यादा मजबूत होता है।

भावनात्मक बुद्धिमत्ता की प्रकृति


Emotional Intelligence 5 महत्वपूर्ण योग्यताओं के बारे में है :
1 – भावनात्मक आत्म-जागरूकता: भावना के आते वक्त जागरूक रहना,
खास कर तब जब कोई नकारात्मक भावना पैदा हो, जैसे की चिंता,
अवसाद और गुस्सा।

2 – भावनात्मक आत्म-नियमन: नकारात्मक भावनाओं को प्रबंधित करने


की तकनीक का उपयोग करना, ताकी वो वहां ज्यादा देर तक न रह सके।
इन तकनीकों में, उन हालातों को बदलना शामिल है, जिसने आपको गुस्सा
दिलाया, depression की हालातों में physical arousal को बढ़ाया और
घबराहट के हालातों में physical arousal को घटाया।

3 – आत्म-प्रेरणा: मुसीबत के समय में आ वादीवादीशा


और सकारात्मक बने
रहना, और लक्ष्य की तरफ बढ़ने के लिए विलंबित संतुष्टि (delayed
gratification) का उपयोग और चरम प्रदर्नर्श
न तक पहुंचने के लिए flow
state का उपयोग करना।
Delayed gratification का मतलब है, भविष्य के किसी बड़े इनाम को
पाने के लिए, अभी के छोटे इनाम को जाने देना। जैसे TV देखने
जैसे छोटे आनंद की जगह, मैं पढाई करूंगा, जो कि मेरे भविष्य के
लिए एक बड़ा इनाम होगा।

Flow state का मतलब है, कि जब आपके emotions align हो जाते हैं,


उस काम के साथ जो आप कर रहे हैं और जो विचार काम से संबंधित
ना हो, उनके बारे में कोई एहसास तक नहीं होना चाहिए। Flow state
में आने के लिए, हमें जानबूझकर sharp focus की जरूरत होती है, जो
हमारे हाथ में है। वो काम आपकी ability level से हल्का सा ऊपर होना
चाहिए, लेकिन सा होना चाहिए जिसे आपने पहले भी कई बार practice
किया हो, और जिसमें आप ज्यादा थके नहीं।

4 – दूसरों की भावनाओं के प्रति जागरूकता: सहानुभूति रखना, इसके लिए


हमें शांत रहने की जरूरत होती है, ताकी हम सामने वाले इंसान की
शारीरिक अवस्था को copy कर पाए। ये हमें वो feel करने में मदद करता
है, जो सामने वाला इंसान feel कर रहा होता है।

5 – रितोंश्तों
को संभालना: ये जाने की कैसे बहस और लड़ाई को सुलझाया
जाए और बात करते वक्त कैसे emotional flooding से बचा जाए।

Emotional flooding का मतलब है किसी मुकिल लश्कि


बातचीत या बहस के
दौरान जब आपकी heart rate 10 beat प्रति मिनट बढ़ जाती है। ऐसे में
दोनों पक्षों को अपनी चर्चा को फिर से शुरू करने से पहले, एक 20
मिनट का break लेना चाहिए। हालांकि 5 मिनट काफ़ी लग सकते हैं,
लेकिन असल में हमें 20 मिनट चाहिए होते हैं।

भावनात्मक स्व-नियमन (emotional Self regulation) :

क्रोध के लिए – गुस्से की आग को बुझाने के सबसे अच्छे तरीकों


में से एक है, कि हमारी स्थिति के बारे में सकारात्मक रूप से सोचा
जाए। दूसरी तरफ, जितना ज्यादा हम सोचते हैं, कि किस वजह से हम
गुस्सा हुए, उतना ही हमें और गुस्सा होने की वजह मिलती जाती है।
Studies बताती है, कि जब गुस्सा खत्म होता है तो ये उस पल (moment)
में आपको अच्छा feel करवा सकता है, लेकिन ये गुस्सा हमे के
लिए दूर नहीं करता (Emotional Intelligence)।

Depression के लिए – Depression एक low arousal state है, इसीलिये


इसमें, exercise mood को अच्छा करने में मदद कर सकती है, जबकी
relax करने से ये और बढ़ा सकता है। Depression कम करने की और
तकनीक में से एक है, कि आप नीचे की ओर तुलना करें यानी की खुद
को अपने से कमतर लोगों के साथ तुलना करें। तीसरा तरीका इसका ये
है कि हम लोगों की मदद करें, ये हमें गुस्से के बारे में लगातार
सोचने के बजाय दूसरों की problem पर focus करवाता है और हम उनकी
help करते हुए अच्छा महसूस करते हैं ।

Anxiety के लिए – Anxiety यानी की घबराहट एक high arousal state है।


तो यहां relaxation तकनीक मदद करती है, जबकि exercise यहां पर काम
खराब कर देती है। परे ननशा लोग अपनी पढ़ाई और job में अच्छा नहीं
कर पाते। हालांकि लोग अच्छा भी perform करते हैं, जब एक normal
anxiety होती है। अगर चिंता बहुत कम है, तो इसके लिए कुछ नहीं
करें। लेकिन अगर चिंता ज्यादा है, तब आपका mentally किसी चीज पर
focus करना मुकिल लश्कि
हो जाता है। दोनों के बीच में होता है sweet
spot।

भावनात्मक बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल


A. विवाह में भावनात्मक बुद्धिमत्ता

तलाक की दर बढ़ रही है, 1950 में 30% से, 1990 में ये प्रतिशत
67% हो चुका है। कोई खास मुद्दा शादी को खत्म नहीं करता है। ये ऐसा है
कि कैसे couple एक दूसरे से disagree करते हैं और discuss करते
हैं वो मायने रखता है। यहां हमें अगले की बुराई और बीच में एक
दीवार खड़ी करने से बचना है।

अक्सर ये होता है कि, पत्नी ऐसी शिकायत करती है जिसके बारे में
पति को लगता है कि ये कोई बड़ी बात नहीं है और वो कुछ action नहीं
लेते हैं। आखिर में पत्नी बुराई करते-करते पति के किरदार पर ही
उन्गली उठाने लगती है। जैसे, पत्नी कह सकती है “तुम कभी मेरी बात
पर विचार नहीं करते” बजाय की “अभी जो तुमने किया उससे मुझे लगता
है कि तुम्हें मुझे लेकर कोई फ़र्क नहीं पड़ता।”
जब पति अपनी बुराई face करता है, तो वो emotionally बह जाता है और
उससे deal करने के लिए, वो अपने और अपनी पत्नी के बीच एक
दीवार खड़ी कर देता है, क्योंकि ये पुरुषों के evolution के समय से
चला आ रहा, यही उनका defense mechanism है। जैसे की, वो बिल्कुल
emotionless हो जाएंगे या अपनी पत्नी को पूरा ignore करेंगे। इस
तरह का व्यवहार पत्नी को मजबूर कर देते हैं कि वो और ज्यादा झगड़ा
और बुराई करें और इस तरह दीवार बढ़ती जाती है। और अगर ऐसा होना
बढ़ता जाता है तो ये रितेश्ते
को तलाक की तरफ ले जाता है।

इसका समाधान छिपा है emotional intelligence में। इसका method use


करके, बात करते समय couples, emotional flooding से बच सकते हैं।
को अच्छे से handle करने के लिए, हर व्यक्ति को
लेकिन रितेश्ते
अगले व्यक्ति की भावनाओं से अवगत रहने की जरूरत है, और ऐसा
करने के लिए, उनको मनोवैज्ञानिक शांत रहने की जरूरत होगी। ये
मुकिल लश्कि
बातचीत आखिर में दोनों व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से
उत्साहित करते हैं, इसलिए उनको self aware रहने की जरूरत है। हम
देख सकते हैं कि किस तरह emotional intelligence marriage को बनाए
रखने के लिए कितना जरूरी है।

B. कार्यस्थल में भावनात्मक बुद्धिमत्ता

कम EQ रखने वाले लोग, दूसरे लोगों को stress दे देते हैं, और


stress लोगों को पागल बना देता है। मुख्य (main) EQ skills जो
workplace में चाहिए वो है-

1. लोगों की feeling से घुलना मिलना।


2. असहमतियों (disagreement) को संभालना।
3. प्रवाह अवस्था (flow state) में प्रवेश करना।
4. शिकायत करने वालों को एक मददगार आलोचक के रूप में लेना।
5. विविधता (diversity) की संस्कृति पैदा करना।
6. प्रभावी रूप से अपना सामाजिक दायरा (social circle) बढ़ाना
(Emotional Intelligence)।
एक manager – कर्मचारी का रिता श्ता
एक पति-पत्नी के रितेश्ते
की तरह होती
है, जहां manager कर्मचारी के किरदार पर सवाल उठा सकता है,
अपने और कर्मचारी के बीच में दीवार खड़ी कर सकता है। दूसरी
गलती जो manager करता है, वो है कि छोटी समस्या पर ध्यान नहीं
देना, और एक समय के बाद ये छोटी समस्याएं, ज्यादा frustration में
बदल जाती है और manager employee पर बरस पड़ते हैं। ये चीज़
कर्मचारी को बुरा feel करवाती है, कि उससे इस बारे में पहले क्यों
नहीं कहा गया।

एक कलात्मक आलोचक (artful critique) व्यक्ति के action पर focus करता


है, ना कि उसके character पर। वो इस बात पर ज़ोर देता है, कि क्या
बदले जाने की जरूरत है, और सुधार करने के लिए समाधान प्रदान
करता है। एक कलात्मक आलोचक बनने के लिए चाहिए, कि आप आमने-
सामने बात करें, हमदर्दी दिखाएं और feel करें, कि receiver कैसा
feel कर रहा होगा।

यहां पर एक उदाहरण दिया गया है, जिसमें artful critique कहता है


कर्मचारी से- “इस stage पर मुकिल लश्कि
ये है कि तुम्हारा plan काफ़ी
लंबा समय लेगा और ये काफी खर्चीला रहने वाला है। मैं चाहता हूं
कि आप इस खर्चे के बारे में एक बार फिर से सोचिए, खासकर design
के बारे में, और देखिए अगर आप इस काम को जल्दी करने का कोई
तरीका ढूंढ सकते हैं तो।”
Diversity और नई चीजों को शामिल करने को बढ़ावा देने के लिए,
research बताती हैं, कि लोगों की deep feeling को बदलना बहुत
मुकिल लश्कि
है, इसलिए को शि श
करने का कोई फ़ायदा नहीं है। इसके
बजाय, संगठनों को अपने व्यवहार को train करना चाहिए, जो कि काफी
आसान है। संस्थाओं को जरूरत है एक zero tolerance माहौल बनाने
की, जो तेजी से और सबके सामने भेदभाव करने वालों को सजा दे।
इससे लोग मिलकर काम करेंगे, चाहे वो अंदर ही अंदर इसे पक्ष-
पात ही क्यों न माने।

Team की performance में, सद्भाव (harmony) यानि की एकता, एक


single greatest determinant है। सद्भाव हर सदस्य को पूरा सहयोग करने
की अनुमति देती है। क्योंकि जहां emotional टकराव होता है, वहां लोग
best नहीं दे पाते।
Top performers 3 चीजों में दूसरे सभी लोगों से बेहतर होते हैं-
आगे बढ़ने के लिए initiative लेना, मिलकर काम करने को promote
करना और खुद को emotionally regulate करना। उनके पास एक flexible,
informal network होता है, जो उन्हें अनपेक्षित (unpredictable)
समस्याएं हल करने में मदद करते हैं।

C. Medical care में emotional intelligence

किसी व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक ज़रूरतों को अच्छे से समझना, उसकी


medical ज़रूरतों के लिए भी अच्छा ख़ास फ़ायदेमंद होता है।
वर अक्सर एक पहले से चिंतित रोगी के सामने, उन सभी
चिकित्सा पे वरशे
भयानक संभावनाओं का नाम लेते हैं, जो उन्हें और ज्यादा चिंतित
बना देता है। चिंता का एक वैज्ञानिक link होता है, बीमारी से और
उसकी recovery से, ऐसे बहुत से सबूत हैं जहां तनाव की वजह से,
nervous system बहुत टूट-फूट जाती है।

गुस्सा दिल के लिए बहुत बुरा होता है। ज्यादा गुस्सा करने वाले लोग
smoker, blood pressure patient और high collestrol वाले लोगों कि
तुलना में जल्दी मरते हैं। इसका मारक (antitode) है, कि अपने अंदर
लोगों पर भरोसा करने वाला दिल विकसित किया जाए, दूसरे के बेहतर
इरादों को समझा जाए।

अकेलापन, बीमार पड़ने और मरने के जोखिम को लगभग दो गुना कर


देता है। जबकी smoking में ये 1.6 गुना ही है। अपनी भावनाओं से
निपटने का एक तरीका ये है, कि इन्हें एक paper पर लिख लिया जाए,
और आने वाले कुछ दिनों तक, ऐसी कहानी बुने जिसमें कुछ मतलब
(meaning) ढूंढा जा सके।

बच्चों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का पोषण


करना
कोई हैरत की बात नहीं, माता-पिता का emotional intelligence एक बच्चे
के emotional development में, एक बहुत बड़ा role play करता है।
लेकिन ये बच्चों के EQ के अलावा भी, दूसरे area में भी मदद करता
है, इसमें अच्छी academic performance और stress का कम होना शामिल
है।

पारिवारिक जीवन हमारे भावनात्मक learning के लिए पहला स्कूल है।


हम सीखते हैं कि खुद के बारे में कैसा feel किया जाए, कैसे दूसरे
हमारे feeling पर react करते हैं, कैसे उनकी feelings के बारे में
सोचा जाए, और कैसे उम्मीद और डर को जताया जाए। 3 तरह की
emotional parenting होती है-

 बच्चों की feeling को पूरी तरह से ignore करने वाली।


 ऐसे माता-पिता एक emotional storm notice करते हैं, लेकिन वो
ये तय करते हैं कि बच्चा जिस तरह इससे deal करे वो ठीक है,
चाहे वो किसी को मारे, रोए या चिल्लाए।
 अपने बच्चों के गुस्से को बुरी तरह नकार देने वाले और उल्टा
उन्हीं को सज़ा देने वाले parents इस श्रेणी में आते हैं।
भावनात्मक रूप से बुद्धिमान माता-पिता अपने बच्चों की उदासी को, एक
अवसर की तरह लेते हैं और एक भावनात्मक coach की तरह serve
करते हैं। वो समझने के लिए समय लेते हैं, कि बच्चों को क्या तंग
कर रही है, और फिर वो बच्चों को उनकी feelings से बाहर निकालने के
positive तरीके ढूंढते हैं।

भावनात्मक निरक्षरता (Illiteracy) –


परिणाम और समाधान
बच्चो में low emotional intelligence होने की कीमत बहुत ज्यादा है,
जैसे depression, crime और addiction जैसे शराब, drugs और eating
disorder।

Depression होता है मुख्य रूप से भावनात्मक क्षमता के 2 क्षेत्रों की


कमी की वजह से- relationship skills और setbacks को कोई कैसे handle
करता है। Relationship skills में कमी की वजह से, उनकी अपने
parents और नजदीकी लोगों से problem बनी रहती है। तब, वो इन
setbacks पर ऐसे respond करते हैं, ये feel करके कि वो इस बारे में
कुछ नहीं कर सकते, और ये चीज़ उन्हें depression की तरफ ले जाती
है।

क्योंकि depression शुरू में चिड़चिड़ेपन की form में शुरू होता है,
खासकर parents के मामले में, लोग भी ऐसे depressed person से
घुलना मिलना पसंद नहीं करते, और ये एक spiral की तरह उसे और
नीचे ले जाता है, तर्क और अलगाव की तरफ। अगर बच्चे को ये
सिखाया जाता है, कि वो अपनी हालात को सुधारने के लिए action ले
सकते हैं, तो वो depression में गिरने से बच जाएंगे।

लीशी
शराब और न ली दवाओं की लत:
ऐसे लोग जो alcohol और drugs के साथ experiment करते हैं, 14% लोग
alcoholic बनते हैं और 5% drug addict बन जाते हैं। Addict लोगों
के साथ फ़र्क ये होता है, कि वो अपने negative emotions को ठीक
करने के लिए इन substance को एक दवा की तरह लेने लगते हैं।

क्योंकि alcohol में एक relaxation effect होता है, इसके addicts उनकी
extremely high anxiety को treat करने के लिए भी alcohol का सहारा
लेते हैं। Drug addict depression की स्थिति में cocain की तरफ
चले जाते हैं, और गुस्से को control करने के लिए heroin की तरफ।

Interventions programs को ये चाहिए कि वो बच्चों को key emotional


skills सिखाएं, ताकी वो addiction से बच सकें और उसे treat कर सकें।
इन skills में कुछ ऐसे होते हैं जैसे, भावनात्मक आत्म-जागरूकता,
भावनात्मक आत्म-नियमन, तनाव और चिंता से निपटना, सामाजिक
संकेतों को पढ़ना, सहानुभूति, नकारात्मक प्रभावों को रोकना, और ये
समझना कि किसी स्थिति में क्या चीज स्वीकार्य है।
भोजन विकार (eating disorder):

Eating disorder तब होते हैं जब हम खतरों की feeling को पहचानने की


क्षमता को खो देते है, जो जुड़ी होती है आपकी body के high
dissatisfaction से। जैसे एक लड़की stress feel कर रही है और गुस्सा
है, लेकिन वो ये नहीं बता पा रही है कि ये feeling क्या है, और उसे
ये लगता है कि ये चीज उसकी भूख है। और तब वो खुद को ठीक करने
के तौर पर, लगतार खाती जाती है।

लेकिन वजन बढ़ाने को avoid करने के लिए, वो इस पूरे खाने को


बाहर निकाल देती है, इसे bulimia कहते हैं। या फिर वो लड़की एक
sense of control feel करने के लिए, खुद को भूखा रखती है, इसे
anorexia कहते हैं। इन eating disorder को रोकने और इनसे बचने
के लिए, इस लड़की को ये सीखना होगा कि अपनी feelings को कैसे
पहचानें और उन feelings को ठीक करने के लिए, फिर healthy methods
को use करें।

भावनात्मक साक्षरता कार्यक्रम

लेखक सभी स्कूलों से कहते हैं, कि ऐसे भावनात्मक साक्षरता


कार्यक्रम design और लागू किए जाएं, जो जल्दी शुरू हो, जो की उम्र के
हिसाब से भी सही हो, स्कूलों के सभी सालों तक चले, और स्कूल, घर
और समाज तीनों के लिए काम करें। उम्र के हिसाब से यहां मतलब की
बच्चों को एक उम्र से पहले वो चीजें ना सिखाएं जो सीखने कि उसकी
अभी काबिलियत ही नहीं है।

6-11 की उम्र तक, बच्चे विलंबित संतुष्टि को समझने, सामाजिक रूप से


जिम्मेदार बनने, गुस्से के भाव को नियंत्रित करने, और एक
सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने की योग्यता, विकसित कर चुके
होते हैं। ये साल उनके आने वाले साल के लिए एक deciding factor
की तरह साबित होती हैं।

Middle school से high school, teenage में और young age में,


लगभग सभी में self confidence drop होता है और self consciousness
में rise देखने को मिलता है। इस वक्त के दौरान, बच्चों को ये
सीखना जरूरी है कि कैसे करीबी रितेश्तेबनते हैं, emotions को पढ़ा
जाए, relationship problems solve कि जाएं और कैसे self confidence
को nurture किया जाए।

एक तकनीक जिसे हर बच्चा गुस्सा होने या रोने से पहले इस्तेमाल


कर सकता है, उसे STOPLIGHT तरीका कहते हैं। पहली है red light,
रुकें और act करने से पहले सोचे। दुसरी है yellow -ख़ुद से समस्या
के बारे में कहें और ये कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं, एक
सकारात्मक लक्ष्य बनाएं, और बहुत से समाधान और उनके नतीजों के
बारे में सोचें। आखिर में है green – जो भी plan आपको best लग
रहा है उसके साथ आगे बढ़ें।

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