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लैंगिक विभेद का अर्थ
लैंगिक विभेद का अर्थ
लैंगिक विभेद से हमारा अभिप्राय बालक एवं बालिका में व्याप्त लैंगिक
विभेद किया जाता है जिसके कारण बालिकाओं को समाज में, शिक्षा में
हैं. यही लैंगिक विभेद है क्योंकि बालिकाओं एवं बालकों में यह विभेद
एवं प्राचीन परंपराओं के रूप में स्वीकृ त होती हैं एवं उनका कोई
वैज्ञानिक आधार नहीं होता है. यह पुरुष प्रधानता की ओर संके त करती
है."
स्त्री वर्ग को दुर्बल तथा निम्न स्तरीय बताने का प्रयास करते हैं एवं
रहा है. यह विभेद मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के तमाम देशों में
चल रहा है. समान्यतः विभेद कई प्रकार के होते हैं जैसे- जातिगत विभेद,
लिंगीय विभेद, भाषाई विभेद, प्रजातीय विभेद, रंगगत विभेद, सांस्कृ तिक
अधीन रहना चाहिए. मुस्लिम समाज में भी स्त्रियों को हमेशा पति व पुत्र
के अधीन रखा गया है. भारत में माता-पिता का अंतिम संस्कार करने के
(2). पुरुष प्रधान समाज:- भारतीय समाज पुरुष प्रधान है. जहां पर पुत्रों
का नाम ही लगाया जाता है. वंश परंपरा बढ़ाने के लिए माता-पिता, दादा-
दादी आदि को पुत्र की आवश्यकता होती है. लड़की को शादी के बाद पति
नाम ही लगता है. यहां तक कि अंतिम संस्कार, पिंड, मोक्ष आदि के लिए
प्रधान रही है. भारतीय संस्कृ ति में धार्मिक एवं यज्ञीय कार्यों में भी पुरुष
निषेध है. अतः ऐसी स्थिति में पुरुष प्रधान हो जाता है तथा इस स्त्री का
का कोई अस्तित्व नहीं है तथा उनसे ही उनकी पहचान तथा सुरक्षा है.
उनसे श्रेष्ठ हैं तथा वे स्वयं महिला होकर भी बालिकाओं के जन्म एवं
जाता है.
प्रकार हैं-
रह जाता है.
लगी. लड़के वाले लालच में आकर दहेज की मांग रखने लगे. हद
या नौकरी के लिए अलग शहर में भेजने में माता-पिता घबराते हैं.
दूसरी तरफ लड़की के बड़े होने पर दहेज के रूप में बड़ा खर्च
प्रकार हैं-
पुरुष उनसे श्रेष्ठ हैं. स्वयं स्त्री होकर अपने बेटे-बेटी में भेदभाव करने
हैं.
विभेद को दूर किया जा सके गा. लेखक, गीतकार, टी.वी. प्रोग्राम बनाने
वाले, फिल्मकार आदि इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. ये लोग
अपनी रचनाओं में नारी का महत्व तथा ईश्वर द्वारा बनाए नारी-पुरुष
अलग से स्कू ल, कॉलेज तथा व्यवसायिक कॉलेज खोले जाने चाहिए जहां
व्यवसाय कें द्रित हो जिसे पढ़कर उन्हें रोजगार प्राप्त हो. इससे परिवार
भी उन्हें पढ़ाने में विशेष रूचि लेगा. विद्यालयों में लिंग आधारित
प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह जैसी कु प्रथाएं जो महिलाओं के प्रगति में
बाधक हैं उन्हें समाप्त कर मुख्यधारा को मुख्य धारा में जोड़ा जाना
चाहिए. कु छ धार्मिक कर्मकांड ऐसे हैं जो सिर्फ पुरुष आधारित हैं. अभी
की वजह से पीछे रहना पड़ेगा बल्कि अभिभावक भी निः शंक रह सकें गे.
सकें . भारतीय संविधान में स्त्रियों के विकास तथा उनकी क्षमता के लिए
की.
(7). गलत सामाजिक परंपराओं एवं मान्यताओं की समाप्ति (Abolition
इनके पालन के पीछे व्यक्तियों में सामाजिक एवं धार्मिक भय व्याप्त है.
लैंगिक भेदभाव का अर्थ, इसके पीछे के कारण और अंत में समाज में
और पढ़ें।
भावना है, जो किसी विशेष लिंग द्वारा किसी भी संदर्भ में दूसरे लिंग के
चुने हुए मार्ग में फलने-फू लने के समान अवसरों से वंचित कर सकता
है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तुत मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स में लैंगिक
लैंगिक भेदभाव
लैंगिक भेदभाव की अवधारणा को बहुत महत्व मिला है क्योंकि समाज
हैं जिन्हें पूरा किया जाना चाहिए। लैंगिक भेदभाव की जड़ें बचपन से ही
है। ऐसे कई कारण हैं जो जीवन के विभिन्न चरणों में उनके अवसरों को
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, भेदभाव के बीज बचपन के चरण
अक्सर शारीरिक गतिविधियों, शिक्षा, बाहर के काम आदि में भाग लेने के
अंदर रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों
में देखा जाता है, जहां लोग अभी भी महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रही
शिक्षण संस्थानों में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, लड़कों की तुलना में
देशों में सामाजिक संघर्ष चर्चा का एक नियमित विषय है, वहां लड़कों की
कदम शून्य से शुरू करना होगा। छोटे बच्चों तक पहुंचना, उन्हें शिक्षित
करना, अच्छे कारण को बढ़ावा देना कु छ ऐसे सही उपाय हैं जो देश से
निष्कर्ष
हैं। भारत में लैंगिक भेदभाव एक ऐसा बड़ा शून्य है जिसे अच्छी
से ऊपर है, लिंग भेदभाव के पीछे वास्तविक कारण है। लैंगिक भेदभाव के
उत्तर: लैंगिक भेदभाव में भाग लेने और उसे बढ़ावा देने वालों के
बनाया गया हैं। लड़के के लिये इतना ज्यादा प्यार कि लड़कों के जन्म
की चाह में हम प्राचीन काल से ही लड़कियों को जन्म के समय या
जन्म से पहले ही मारते आ रहे हैं, यदि सौभाग्य से वो नहीं मारी जाती
हैं।
सकता हैं कि, लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव। समाज में
परम्परागत रुप से महिलाओं को कमजोर जाति-वर्ग के रुप में माना
जाता हैं।
सावित्री बाई फु ले
प्रचलित है।
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक- 2020 में भारत 153 देशों में 112 वें
हमारे देश में लैगिंक भेदभाव की जड़ें कितनी मजबूत और गहरी है।
सामाजिक क्षेत्र में- भारतीय समाज में प्रायः महिलाओं को घरेलू कार्य
अक्सर ऐसा देखा गया है कि घर में लिये जाने वाले निर्णयों में भी
पारिश्रमिक में अंतर है। औद्योगिक क्षेत्र में प्रायः महिलाओं को पुरुषों
खेल क्षेत्र में- खेलों में मिलने वाली पुरस्कार राशि पुरुष खिलाड़ियों की
क्रिके ट हर खेल में भेदभाव हो रहा है। इसके साथ ही, पुरुषों के खेलों
से प्राप्त की हैं।I
अनुसार, “ऐसा माना जाता हैं कि औरत को अपने बाल्यकाल में पिता के
होने के बाद अपने पुत्र के अधीन रहना चाहिये। किसी भी परिस्थिति में
प्रवासी मजदूरों के रुप में कार्य करने के लिये मजबूर होती हैं
लड़की को बचपन से शिक्षित करना अभी भी एक बुरा निवेश माना
वर्तमान में नौकरियों कौशल माँग की शर्तों को पूरा करने में असक्षम हो
जाती हैं, वहीं प्रत्येक साल हाई स्कू ल और इंटर मीडिएट में लड़कियों का
जाता हैं।
है।
नहीं है।
सभी राज्यों में वर्ष 2011-12 की तुलना में वर्ष 2017-18 में महिलाओं
की कार्य सहभागिता दर में गिरावट देखी गई है। इस गिरावट के
उपाय[संपादित करें]
करने के बारे में बात करती है। इसी क्रम में महिलाओं को भी वोट
लिये विशेष प्रावधान बनाने के लिये अधिकारित करता हैं। इसके अलावा,
हैं।
भारत में महिलाओं के लिये बहुत से संवैधानिक सुरक्षात्मक उपाय बनाये
रुप में व्यवहार किया जाता हैं, पुरुष उन्हें अपनी कामुक इच्छाओं की
खतरनाक स्तर पर हैं, दहेज प्रथा आज भी प्रचलन में हैं, कन्या भ्रूण
किया जा रहा है। तीन तलाक, हाज़ी अली दरगाह में प्रवेश जैसे मुद्दों
‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं’, ‘वन स्टॉप सेंटर योजना’, ‘महिला हेल्पलाइन
जाता है। दरअसल जेंडर बजटिंग शब्द विगत दो-तीन दशकों में