1660128029067.lang Dev Reading RLV Konark Ki Atmkatha 05 Hindi VII CB

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कोणाकर ् क� आत्मक

मैं सूयर्मंिदर कोणाकर्ह�ँजीवन के आधार सूयर ् के िवल�ण भवन होने का गौरव ु म झे प्रा� । उड़ीसा क� तीन
स्विणर्म नग�रयों भुवन, कोणाकर् और पुरी के ित्रकोण में , भारत के पूव� समुद् तट पर िनिमर ्त एक
अभूतपूवर ् स्मा, भारत के गौरवमय इितहास का प्रत, कला क� उन्नत अवस्था का द्योतक और मानव
सबसे उत्कृ� और उदा� भावना का उदाहरण । ु म झे बनवाने का श्रेय पूव� गंग राजवंश के राजा नरिसंह द
प्रथम को जाता है । कोणाकर् दो शब्दों से िमलकर ब- कोण और आकर् । कोण का अथर् - कोना और आकर्
प्रयु� होता - सूयर ् के िलए । अतएव मैं कोणाकर् का मंिदर सूयर् भगवान को समिपर्त ह�ँ । कहा जाता है िक
िनमार ्ण में िशल्प, स्थापत्यकला िव, कलाकार व कारीगर 12 वष� तक रात-िदन लगे रहे । तब जाकर मेरा
भव्य स्व�प िनखर सका । यह भी कहजाता है िक जब राजा नरिसंह देव के खजाने से 12 वष� का धन मेरे
िनमार ्ण में लग गया तो उन्होंने प्रधान वास्तुिवद् िवशु महाराणा को शीघ्र कायर् समा� करने के आदेश ि
िनमार ्ण के िलए क� गई संकल्पना अत्यंत अनोखी थी । मुझे एक िवशाल सूयर् रथ के �प मेया गया । इसके
हर भाग क� नक्काशी अनमोल है । यह रथ सूयर् क� द्रुत गित का प्रतीक है । िजसे सात िवल�ण घोड़े ते
खींच रहे हैं । इस रथ में 10 फ�ट व्यास के 24 पिहए लगे हैं । इन वृहदाकार पिहयों क� नक्काशी
खूबसूरत है । प्रश द्वापर दो िसंह र�क क� तरह द्वार के दोनों ओर खड़े हैं । इसप्रकार मेरे िनमा
संकल्पना ही अत्यंत ऐ�यर्पूणर् थी और यही कारण है िक मैं भारत क� वास्तुकला का सवर्श्रे� उदा

Hindi/VII कोणाकर् क� आत्मक 1

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