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जल ही जीवन है

जल एक ऐसी प्राकृितक व्तु स , िजसके िबना प्रािणजगत का अिस्तत्व संभव नहीं । लेिकन िव� बै
अनस ु ार िव� क� आबादी का छठा िहस्सा िनज र्ल इलाकों में रहता है । िव� के अनेक देश जल संकट क�
से जूझ रहे हैं । इसिलए यह शंका गलत नहीं िदखतिक जल पर अिधकार के िलए अगला िव�युद्ध होगा । ज
पर आधा�रत पवनचिक्कयों क� पुरानी तकनीक ही आधुिनक बाँधों क� सफलता का सबसे बड़ा आधार मा
जाती है । ये पवनचिक्कयाँ जल के बहाव से धान क� कुटाई एवं आटा पीसने जैसे अनेक काम आने के सा-
साथ िबजली उत्पन्न करने तक का क करती हैं । इन्हीं पवनचिक्कयों को केंद्र में रखकर कुछ
एक राष्ट्रीय सम्मेलन कर चुके िहमालयी पयार्वरण अध्ययन एवं संर�ण ‘हेस्क’ के िनदेशक डॉ. अिनल
जोशी कहते है- “पवनचिक्कयाँ आज तक िव� में इसिलए िज़ंदा , क्योंिक ये पानी के बहाव का इसमाल
करके पानी को आगे उपयोग में लाने के िलए स्वतंत्र रखती ” ‘ग्रीन ला’ के संपादक जैविवद् डॉ. जी. एस.
रजवार बाँधों का िनमार्ण करके उससऊजार्उत्पन्न करने को सही मानते , क्योंिक िबजली उत्प, िसंचाई
एवं समूचा िवकास िकसी-न-िकसी तरह पानी से जुड़ा है । निदयाँ एवं असंख्य जल स्रोत गहरे संकट में ह
इनसे िनपटने के िलए िकए गए प्रयासों में वषार् जल संग्रहण क� तकनीक अिधक उपयोगी रही -संचय का
‘गुजरात मॉडल’ देश में काफ़� जगहों पर अपनाया गया है । राजस्थान और पंजाब में इस तकनीक को अपन
तालाब और निदयो के सफल प्रयोगह�ए हैं । िमजोरम मे-घर में ज-संग्रह का उपयोग िकया जा रहा है

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