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एक

मेरी क मत शु से ही खराब रही ।


हालां क इस दुिनया म एक लड़क होना ही अपने आपम सबसे बड़ा अिभशाप है ।
जब क म तो लड़क भी थी और बद क मत भी ।
यानी दोन अवगुण मेरे अ दर थे ।
ज़रा सोिचये, ऐसी हालत म मेरे ऊपर या गुज़री होगी ।
सबसे पहले म आपको अपना नाम बताती ँ ।
नताशा शमा!
यही मेरा नाम है ।
अपने नाम क तरह ही म ब त खूबसूरत थी ।
मेरा ज म गोरखपुर के ‘अली नगर’ मोह ले म आ । अली नगर, जो अब ‘आय नगर’
के नाम से जाना जाता है । मेरी बद क मती क शु आत तो तभी हो गयी थी, जब मेरे
ज म लेते ही मेरे िपता का देहावसान हो गया ।
मेरे पैदा होने क खबर सुनकर वह साइ कल पर ज दी-ज दी हॉि पटल क तरफ दौड़े
चले आ रहे थे, तभी उनक साइ कल का एक ए बेसडर कार से ब त भीषण ए सीडे ट
आ और वह त काल मारे गये ।
मेरी मां ने अभी मेरी श ल भी नह देखी थी क उससे पहले ही उ ह अपने सुहाग के
उजड़ जाने क सूचना िमली ।
उनक चीख िनकल पड़ी ।
वह पछाड़े खा-खाकर रो पड़ ।
उनके दल- दमाग पर कै सा भीषण व पात आ होगा, उसका आप सहजता से
अनुमान लगा सकते ह ।
पैदा होते ही म सबक नफरत का िनशाना बन चुक थी ।
हर कसी ने मुझे सुलगती आंख से देखा ।
“अरे नािगन है, नािगन ।”
“अरे ज मजली है । पैदा होते ही अपने बाप को खा गयी ।”
यह िवष म बुझे वो ताने थे, जो पैदा होने पर मुझे आस-पड़ोस क औरत से सुनने को
िमले ।
मेरी मां ने कई दन तक मेरी श ल भी नह देखी ।
जब मेरा रोते-रोते बुरा हाल हो गया, तो पड़ोस क ही एक औरत ने मुझे जबरद ती मां
क गोद म डाल दया था । बेचारी मां, वह भी आिखर कब तक मेरा रोना देखती ।
कब तक मुझसे नफरत करती ।
आिखरकार वो एक ‘मां’ थी ।
थक-हारकर उसने मुझे मेरे नसीब के साथ कबूल कर ही िलया ।
यही उसक मजबूरी थी ।
☐☐☐
फर मुझे एक घटना और याद आती है, िजसका मेरे जीवन पर ब त गहरा भाव पड़ा

आज सोचती ,ँ अगर वो घटना मेरे जीवन म न घटी होती, तो यादा बेहतर रहता ।
गोरखपुर म एक ब त िस ‘गोरखनाथ मं दर’ है । वह मं दर कई एकड़ भूिम म फै ला
है और उसका ांगण भी अ यंत िवशाल है । उस ‘गोरखनाथ मं दर’ म हर वष मकर
सं ांित के अवसर पर एक ब त बड़ा धा मक मेला लगता है, जो ‘िखचड़ी मेला’ के नाम से
िस है ।
उस मेले म दूर-दूर से साधु आते ह ।
भ गण आते ह ।
उन दन म उस मं दर क भ ता और वहां क गहमा-गहमी देखते ही बनती है ।
तब मेरी आयु िसफ छ: वष थी, जब म अपनी माँ के साथ उस िखचड़ी मेले म गयी ।
बड़ी-बड़ी दाढ़ी-मूंछे और गे ए व धारण कये साधु को देखकर मेरे शरीर म
िसहरन दौड़ जाती । म अपनी माँ क साड़ी पकड़कर ब त सहमी-सहमी सी चल रही थी ।
वैसे भी ब क तरह शरारत तो म कर ही नह पाती थी ।
हालात के च ूह म उलझकर म बचपन से ही ब त गंभीर हो गयी थी ।
मेरी माँ ने मुझे एक ल बे-चौड़े डील-डौल वाले साधु के सामने ले जाकर िबठा दया ।
उस साधु क आँख अंगारे क तरह धधक रही थ । गले म ा क ढेर सारी मालाएं थ ।
चौड़े म तक पर टीके वाली जगह च दन से ‘ि शूल’ बना था और उसके आसन के नजदीक
ही पीतल का चमकदार कमंडल रखा आ था ।
माँ ने सबसे पहले उसके कमंडल म पांच पये ा व प डाले ।
“महा मन !” फर वो उसके सामने हाथ जोड़कर बोल - “आप मेरी इस बेटी क
ह तरे खा देखकर बताय क इसके भिव य म या है ?”
साधु क लाल सुख आँख त काल मेरे चेहरे पर जाकर टक गय ।
उसक आँख म ऐसा न जाने या था, म और भी यादा डर गयी तथा कसकर माँ से
िलपट गयी ।
जब क मेरा चेहरा देखते-देखते उस साधु क आँख म अब और भी लाल-लाल डोरे
उभर आये थे । वह मेरे म तक क रे खाएं पढ़ रहा था ।
“अभागी है, अभागी ।” एकाएक वो िवषधर क भांित फुं फकार उठा- “इसक क मत
म ेम नह है । यह सदा पु ष के ेम को तरसेगी । पु ष का ेम, वह चाहे िपता के प म
हो या ेमी के प म, इसे कभी पु ष का ेम नह िमलेगा ।”
“नह ! नह ! !” म चीख उठी- “वह साधु पागल है । मूख है ।”
म एकदम साधु के सामने से उठी और भीड़ क तरफ भाग खड़ी ई ।
माँ ने दौड़कर कसी तरह मुझे पकड़ा तथा फर जोर से मेरे गाल पर एक झ ाटेदार
झापड़ रसीद कर दया ।
म रो पड़ी ।
म आज तक नह समझ पायी, माँ ने मुझे वो झापड़ य मारा था ?
या इसिलये, य क मने उस साधु को अपश द कहे ?
या फर इसिलये, य क म अभागी थी ?
बहरहाल फर साधु के वह श द तमाम िज दगी मेरा पीछा करते रहे ।
कु छ महीन बाद ही मेरा कू ल म एडिमशन हो गया और म पढ़ने के िलये जाने लगी ।
ले कन कू ल म मा टर भी मुझसे ष े भावना रखते और बात-बात पर मेरी िपटाई कर
डालते ।
सबसे बड़ी बात ये है, म अपराधबोध से इतनी बुरी तरह त थी क माँ से भी
िशकायत नह कर पाती थी ।
मुझे यही लगता, सारा कसूर मेरा है ।
म बद क मत य ँ ?
कु ल िमलाकर ‘पु ष-जाित’ बचपन से ही मेरे िलये कौतूहलता का कारण बनने लगा ।
म बचपन से ही पु ष को इस तरह देखती, जैसे वह दूसरे लोक क कोई चीज ह ।
जैसे उनम कोई खास बात है । उन सब बात ने पु ष के ित मेरे दल म चु बक य
आकषण पैदा कर दया था ।
☐☐☐
फर धीरे -धीरे हालात बदलने शु ए।
म जैसे-जैसे बड़ी होने लगी, ठीक वैसे-वैसे मेरा प िनखरता चला गया ।
मां ने भी अब गृह थी चलाने के िलये गोरखपुर के एक ब त बड़े सेठ के यहां आया क
नौकरी कर ली थी ।
मेरी उ अब चौदह वष हो चुक थी ।
उ क उस दहलीज तक प च ं ते-प चं ते म ब त कड़क जवान लड़क बन गयी । मेरे
हाथ-पैर मखमली थे और दूध जैसे सफे द थे ।
सुराहीदार गदन ।
रे शम से मुलायम सुनहरी रं गत िलये भूरे बाल ।
म अपने कू ह म ख़म देते ए जब चलती, तो उन पु ष के मुंह से कराह फू ट-फू ट
जात , जो कभी मुझसे ष े भावना रखते थे ।
वह मुझे बड़े हसरत भरी िनगाह से देखते ।
उनक िनगाह मेरे अंग- यंग पर घूमत ।
वह मेरे हवा म उड़ने के दन थे । मेरी आँख म अब गजब चमक पैदा हो गयी थी । मुझे
जब भी ‘िखचड़ी मेले’ म िमले उस साधु क भिव यवाणी याद आती, िजसने यह कहा था
क मेरी क मत म ‘पु ष का ेम’ नह है, तो म हंस पड़ती ।
आज क तारीख म इतने पु ष मेरे आगे-पीछे मधुमि खय क तरह मंडराते थे क अगर
म उ ह िल ट देना शु करती, तो मेरे आसपास पु ष क एक बड़ी भीड़ जमा हो जाती ।
जादूगर को तो जादूगरी क कला सीखने म साल लग जाते ह, जब क एक औरत तो
पैदाइशी ही जादूगर होती है । ऊपर से अगर वो खूबसूरत भी हो और अपने को सोने
क त तरी म रखकर परोसना भी जानती हो, तब तो कहने ही या । तब तो उसक ब ले
ब ले । फर तो वह बड़े से बड़े जादूगर, सॉरी मद क भी ऐसी तेसी फे र सकती है ।
सच तो यह है क औरत से बड़ा कािबल और क र माई जीव दुिनया म दूसरा कोई नह
। औरत म ही वो क़ाबिलयत होती है क वह कसी भी अ छे-भले मद को बेवकू फ बना
सकती है और अगर उसक कसी पर नज़रे -इनायत ह , मेहरबानी हो, तो वह बेवकू फ को
भी अ छा-भला मद बना सकती है ।
सबसे दलच प बात ये है, मेरा यह हाल िसफ चौदह साल क उ म था ।
अब आप सावधान हो जाइये, य क म आपक मुलाक़ात अपने सबसे पहले ‘ ेमी’ से
कराने जा रही ँ ।
ेमी, हालां क म नह जानती क उसके िलये‘ ेमी’ का संबोधन कतना उपयु है ।
फर भी मेरे ित उसका आकषण तो था ही ।
मेरे पहले ेमी का नाम था- ‘हरीश सोढी’ । वैसे सब उ ह ‘सोढा साहब’ कहते थे ।
सोढा साहब क उ सतीस-अड़तीस साल थी । उनक दो मेरे से भी बड़ी-बड़ी बे टयाँ
थ , एक बेटा था । इसके अलावा अ छी-खासी बीवी थी । यािन सोढा साहब का भरा-पूरा
प रवार था ।
आप च क रहे ह गे, जब सोढा साहब मेरे मुकाबले इतने उ दराज ि थे, तो वह मेरे
ेमी कै से ए ?
जनाब, मद क फतरत बड़ी रं गीन होती है । वह जैसे-जैसे उ क ढलान क तरफ
बढ़ता है, वैसे-वैसे उसके ‘पर’ फड़फड़ाने लगते ह । तबीयत मचलने लगती है और वह
औरत के मामले म बड़ा नदीदा बन जाता है ।
ऐसे ही सोढा साहब थे ।
औरत क ‘से स अपील’ को देखकर अ दर ही अ दर फड़फड़ाने वाले ।
बहरहाल मुझे ऐसे कई वाकये याद आते ह, जब वो िब कु ल भूख क तरह मुझे देखते थे
। उनक िनगाह मेरे भारी-भरकम उरोज पर जाकर टक जाती थ और फर धीरे -धीरे
फसलती ई मेरी जाँघ तक का जुगारा फयाँ नापती चली जात ।
अलब ा वो मुझे सबके सामने ‘बेटी-बेटी’ कहकर बुलाते थे ।
देर तक बात करते ।
कभी मुझे टा फयां लाकर देते, तो कभी मेरे िलये ॉक ले आते । या कभी अपने ब के
साथ िसनेमा ही ले जाते ।
यािन सोढा साहब क मेरे ऊपर ख़ास नज़रे इनायत थी ।
☐☐☐
फर एक घटना घटी ।
जबरद त घटना ।
वह घटना ऐसी थी, िजसने मुझे अ दर तक झंझोड़कर रख दया ।
गम क छु य के दन थे । सोढा साहब क बीवी अपने ब के साथ एक महीने के
िलये मायके जा चुक थी । और अब सोढा साहब घर पर अके ले ही रहते थे । उनका ॉपट
का ध धा था, इसिलये वैसे भी उनका यादा समय घर पर ही गुजरता था ।
म भी घर पर अके ली होती, य क म मी तो सुबह ही अपनी ‘आया’ क नौकरी करने
िनकल पड़ती थ ।
उस दन खूब िचलिचलाती ई धूप पड़ रही थी ।
तभी सोढा साहब घर पर आ धमके ।
“हैलो माई हनी !” उ ह ने आते ही बड़ी गरमजोशी के साथ कहा ।
“हैलो अंकल !”
“तुम भी घर पर पड़े-पड़े बोर हो जाती होगी ।”
“यह तो है अंकल ।”
“देखो म तु हारे िलये या लाया ँ ?”
मने देखा, वो उस दन भी मेरे िलये काफ सारी चाकलेट लेकर आये थे ।
चाकलेट देखते ही मेरी आँख म िवल ण चमक क ध उठ । मने झपटकर उनके हाथ से
सभी चाकलेट ले ली और खाने लगी ।
तब-तक सोढा साहब अ दर से दरवाजा बंद कर चुके थे ।
“म भी दअरसल पड़े-पड़े बोर हो रहा था ।” सोढा साहब ने कहा- “इसिलये मने सोचा,
य न तु हारे पास चलूँ ।”
“आपने अ छा कया अंकल, आइए बै ठये ।”
“बैठने से पहले म टी.वी. ऑन करता ँ । आज हम दोन एक साथ बैठकर टी.वी. देखगे
।”
“ठीक है अंकल !”
मने गदन िहलाई ।
सोढा साहब ने अब तक टेलीिवज़न खोल िलया और चैनल बदलने लगे । वह शायद
अपना कोई पसंदीदा ो ाम ढू ंढ रहे थे ।
ज द ही उ ह ने एक इं ि लश फ म पर टी.वी. सेट कर दया ।
वह इं ि लश फ म भी काफ रोमां टक और उस समय भी परदे पर काफ गरमा-गरम
दृ य चल रहा था ।
बाथ म का सीन था ।
एक औरत और मद कसकर िचपटे ए थे ।
दोन खड़े थे । औरत ने अपना घुटना मद के पेट म इतनी बुरी तरह घुसाया आ था,
मानो उसक अंतिड़यां फाड़ डालना चाहती हो ।
उसके हाथ औरत क पीठ पर सरसरा रहे थे ।
आह-कराह फू ट रही थ ।
म अपलक उस दृ य को देखने लगी ।
म ब ी ज र थी ले कन ेम क उस भाषा को म तब तक खूब अ छी तरह समझने
लगी थी । इतना ही नह , वह दृ य मुझे आक षत भी करते थे ।
सोढा साहब ने वह मेरे पास बैठकर वो फ म काफ देर तक देखी ।
फर जब फ म समा हो गयी, उ ह ने टी.वी. बंद कर दया ।
“अब तुम थोड़ी देर आराम कर लो ।” सोढा साहब बोले ।
म वही िब तर पर लेट गयी ।
एक बात मने नोट नह क । फ म देखते-देखते सोढा साहब क आँख म लाल-लाल
डोरे उभर आये थे ।
☐☐☐
मेरी कब आँख मुंद गयी, मुझे पता तक न चला ।
थोड़ी ही देर बाद मने अनुभव कया, सोढा साहब भी वह मेरे बराबर म लेट गये थे ।
मुझे कु छ भी अजीब न लगा ।
म उस समय च क , जब सोढा साहब के हाथ धीरे -धीरे मेरे भारी-भरकम उरोज पर
सरसराने लगे ।
मेरे शरीर म ऐसी सनसनाहट दौड़ गयी, जैसे एक साथ हजार ची टयाँ मेरे बदन म
ग दश करने लगी ह ।
वह अ भुत एहसास था ।
वैसा एहसास मुझे िज दगी म पहले कभी नह आ था ।
फर सोढा साहब के हाथ सरसराते ए मेरी जाँघ तक प चँ गये ।
मेरी आँख भ से खुल गयी ।
सोढा साहब सकपकाये ।
वह िखिसयाने हो गये ।
“ल… लगता है... तु ह न द नह आ रही ।” वह बोले ।
मने कु छ न कहा ।
म िसफ अपलक उनक तरफ देखती रही ।
मेरे देखने के अंदाज म ‘चुभन’ थी ।
“सो जाओ... थोड़ी देर बाद म तु ह खुद जगा दूग
ं ा ।”
मने अपनी आँख वापस बंद कर ल ।
सोढा साहब कु छ देर िब कु ल खामोश मेरे बराबर लेटे रहे । शायद वो यह अनुमान
लगाने क कोिशश कर रहे थे, उनक उस हरकत क मेरे ऊपर या ित या ई है ।
जब म थोड़ी देर कु छ न बोली, तो उनका हाथ दोबारा मेरे शरीर पर सरसराने लगा ।
इस मतबा मने कु छ न कहा ।
मेरे अ दर धीरे -धीरे आग-सी भरती चली जा रही थी ।
तभी सोढा साहब ने िह मत दखाकर मेरा एक गाढ़ चु बन भी ले िलया ।
म तब भी शा त लेटी रही ।
इससे सोढा साहब का हौसला ब त बढ़ गया । अब वह िब कु ल खुलकर खेलने के मूड म
आ गये ।
उ ह ने आनन-फानन मेरे सारे कपड़े उतार डाले ।
“आइ लव यू !”
“आइ लव यू ! !”
सोढा साहब के श द मेरे कान म िम ी घोलने लगे ।
वह सुखद अनुभूितयाँ मुझे पागल बनाए दे रही थ ।
“सचमुच तुम ब त यादा अ छी ब ी हो, ब त यादा ।” सोढा साहब ब त धीमी
आवाज म फु सफु साए ।
वह पागल हो रहे थे ।
जो ‘पु ष जाित’ सदा से मेरे िलये कौतुहलता का कारण रही थी, उसी ‘पु ष जाित’ का
एक नया प अब मुझे देखने को िमल रहा था ।
थोड़ी देर बाद ही मेरे हलक से एक ब त तेज चीख िनकली, िजसने पूरे घर को कं पकपा
कर रख दया ।
☐☐☐
वह मेरी िज दगी का पहला सहवास था ।
वह पहली बार था, जब म कसी पु ष के साथ हमिब तर ई । हालां क उस पहले
सहवास के दौरान मुझे ब त भयंकर पीड़ा झेलनी पड़ी थी, मगर उससे कह यादा सुख
क अनुभूितयां मुझे । ख़ासतौर पर जब सहवास या अपने चरम बंद ु पर थी, तो उस
समय के असीम आनंद को तो श द म व णत भी नह कया जा सकता ।
म मानो इस ण हवा म उड़ रही थी ।
मेरी क पना को ‘पर’ लग गये थे ।
सोढा साहब भी अब हरदम मेरे आगे-पीछे मंडराते रहते थे । अलब ा उनक आँख अब
मेरे सामने झुक -झुक रहत ।
उसके बाद उ ह ने मेरे साथ कई मतबा से स कया ।
फर एक दन वह मेरे पास आये और उ ह ने मुझे कु छ सफ़े द गोिलयां द ।
“यह या है?” मने पूछा ।
“यह कु छ खाने क गोिलयां ह ।” सोढा सागब संजीदा अंदाज म बोले- “तुम इनम से
एक गोली रोज खा िलया करो, ले कन इन गोिलय के बारे म तु हारी म मी को कु छ पता
न चलने पाये ।”
“इन गोिलय को खाने से या होगा?” मने पूछा ।
“कु छ नह होगा । इन गोिलय को खाने से बस तु हारी सेहत ठीक रहेगी तथा तुम और
भी यादा ख़ूबसूरत लगने लगोगी ।”
“मुझे नह खानी यह गोिलयां ।” मने आवेश म वह गोिलयां सामने िब तर पर फककर
मारी ।
“बेवकू फ जैसी बात मत करो ।” सोढा साहब ने वह गोिलयां उठा ल और मेरी तरफ
पलटे- “अगर तुम एक गोली रोज खा िलया करोगी, तो तु हारा या िबगड़ जायेगा ?”
“मने कहा न... ।” म गुरायी- “मुझे नह खानी यह गोिलयां ।”
“देखो… ब जैसी िजद मत करो ।” सोढा साहब मुझे समझाते ए बोले- “अब तुम
पहले जैसी ब ी नह रही हो ।”
“ फर कै सी ब ी हो गयी ँ म ?”
सोढा साहब से एकाएक मेरे उस सवाल का जवाब देते न बना ।
“यािन तुम यह गोिलयां नह खाओगी ?”
“नह , िब कु ल नह ।”
“जानती हो नताशा, अगर तुमने यह गोिलयां नह खायी ।” सोढा साहब इस बार थोड़ा
आवेश म बोले- “तो या होगा ?”
“ या होगा ?”
“त...तो ब त बुरा हो जायेगा ।” सोढा साहब का शु क वर । उ ह ने अपनी गदन मेरी
तरफ से घुमा ली- “त...तो तु हारा पेट फु ल जायेगा । मालूम है, पेट फू लने का या मतलब
है ?”
म स रह गयी ।
मेरे शरीर का एक-एक रोआं खड़ा हो गया ।
म खूब अ छी तरह जानती थी क पेट फू लने का या मतलब है । मने उस तरह के ब त
से क से सुने थे ।
“ या सोच रही हो ?”
“अ… अगर म यह गोिलयां खाऊँगी ।” म गंभीरतापूवक सोढा साहब क तरफ देखते
ए बोली- “तो मेरा पेट नह फू लेगा ?”
“नह , िब कु ल नह । इसीिलये तो म यह गोिलयां तु ह दे रहा ँ ।”
मने अब चुपचाप वह गोिलयां पकड़ ल ।
जब क सोढा साहब बड़े िखिसयाने ढंग से हँसे ।
उ ह ने मुझे अपनी बाह म समेट िलया । मेरे भरे -भरे उरोज कसकर अपने सीने से
िचपटा िलये और मेरे गाल का एक गाढ़ चु बन िलया ।
“तुम सचमुच ब त अ छी ब ी हो, ब त यादा अ छी । अपनी म मी को इन गोिलय
के बारे म कु छ मत बताना । इ ह कह छु पाकर रखना और यह देखो, म तु हारे िलये या
लाया ँ ।” सोढा साहब ने अपनी जेब से चाकलेट का एक पूरा ‘िग ट पैक’ िनकालकर
मेरी तरफ बढ़ाया ।
“मुझे नह चािहए यह चाकलेट !” मने एकाएक सोढा साहब के हाथ से वह ‘िग ट पैक’
छीनकर ब त जोर से सामने दीवार क तरफ फककर मारा- “म अब ब ी नह रही ,ँ
समझे !”
सोढा साहब ब त िवि मत ने से मुझे देखते रह गये ।
वह मेरे अंदर एक बड़े प रवतन क शु आत थी ।
बड़े और हंगामाई प रवतन क शु आत ।
☐☐☐
उस घटना के बाद भी हम दोन ने कई बार से स कया ।
सोढा साहब अब मेरे साथ खुलकर हमिब तर होते थे और बार-बार इस बात को
दोहराते थे, वह मुझसे ‘ ेम’ करते ह ।
ेम!
म तब इस छोटे से श द क साथकता और गहराई अनुभव नह करती थी । म यही
समझती थी, सोढा साहब जो करते ह, वही ेम है । बहरहाल मेरे िलये यही ब त बड़ी
संतुि क बात थी क मुझे एक पु ष का ेम िमल रहा था । फर चाहे उस ‘ ेम’ का प
कतना ही वीभ स य न था । आिखर सोढा साहब क बदौलत ही म कभी-कभी उस
साधु क भिव यवाणी क िख ली उड़ा िलया करती थी, िजसने ये कहा था क मेरे भा य
म पु ष का ेम नह है ।
फर एक घटना घटी, ब त दल दहला देने वाली घटना ।
म ‘गभिनरोधक गोिलयां’ िब कु ल टीन से खा रही थी, फर भी पता नह कै से
मािसक धम क गया ।
मुझे तो इस बारे म यादा जानकारी भी नह थी । दरअसल सोढा साहब ही मेरी इस
बात का यादा याल रखते थे । जैसे ही उ ह यह खबर ई, उनके होश उड़ गये ।
“ या तुम रोजाना वह सफ़े द गोिलयां खाती हो ?” सोढा साहब मेरे ऊपर गुरा उठे ।
“हाँ ।” मेरे हाथ-पैर भी कांपे- “म तो रोजाना वह गोिलयां खा रही ँ ।”
“तो फर कै से आ यह सब ?”
म चुप ।
मेरा रं ग िब कु ल ह दी क तरह पीला पड़ चुका था । यह बात ही मुझे दहला देने के
िलये काफ थी क मेरा पेट अब फू ल जायेगा ।
और सोढा साहब का मेरे से भी बुरा हाल था । म शत लगाकर कह सकती ,ँ मने अपनी
िज दगी म सोढा साहब को पहले कभी इतना आतं कत नह देखा था, िजतना उस दन
देखा । उनके चेहरे क रं गत िब कु ल सफ़े द फ पड़ चुक थी । आँख म हवाइयां थ और
ह ठ कागज़ क तरह फड़फड़ा रहे थे ।
वह बेचैनीपूवक इधर-उधर टहलने लगे ।
“मुझे ही कु छ करना होगा ।” वह बार-बार एक ही बात बड़बड़ा रहे थे- “ज दी कु छ
करना होगा ।”
वह या करने वाले थे, यह मुझे भी मालूम न था ।
☐☐☐
उसी रात सोढा साहब ने म मी से बात क ।
सोढा साहब का हर अंदाज िनराला था । म खन लगाना तो वह खूब जानते थे ।
रात के सवा दस बज रहे थे, जब सोढा साहब ने घर म कदम रखा । वह अपने साथ
गुलाब जामुन भी लेकर आये थे ।
“लीिजये बहन जी !”
म मी च क ।
“अ… आप यह सब य ले आये ?”
“कु छ भी नह है । दरअसल म घर आ रहा था क तभी हलवाई ने आवाज दे ली ।”
सोढा साहब बोले- “अब कु छ-न-कु छ तो मुझे वहां से लाना ही था । आिखर यह भी तो मेरा
ही घर है, सोचा यहाँ के िलये लेता चलूँ या फर नह है यह मेरा घर ?”
“आप कै सी बात करते ह भाई साहब !” म मी तुरंत बोल - “यह घर भला आपका य
नह है ? आपका ही तो है ।”
म मी ने गुलाब जामुन का पै कट पकड़ िलया ।
“बै ठये ।”
सोढा साहब जूते उतारकर वह लकड़ी क एक कु स पर बैठ गये ।
“जब से भाई साहब गुजरे ह ।” सोढा साहब ब त अफसोसजनक लहजे म बोले- “तब से
यह घर ब त सूना-सूना रहने लगा है ।”
सोढा साहब के उन श द ने सीधे म मी के मम को पश कया ।
वह उदास हो गय ।
“म दरअसल आपसे कु छ कहने आया था बहन जी !”
“ या ?”
“कल ही म ॉपट के काम से जयपुर जा रहा ँ ।” सोढा साहब बोले- “काफ बड़ा काम
है । अगर डील फाइनल हो गयी, तो यूं समझो क इस बार मेरे वारे - यारे हो जायगे ।”
“यह तो अ छी बात है भाई साहब !”
“ले कन म एक बात और सोच रहा ँ ।”
“ या ?”
“इन ग मय क छु य म नताशा कह भी घूमने के िलये नह गयी ।” सोढा साहब
योजना के तार फै लाते ए बोले- “म सोच रहा ,ँ य न नताशा को इस बार म अपने
साथ जयपुर ही ले जाऊं ? इसी बहाने वह भी जयपुर घूम आयेगी । वैसे भी मेरा िसफ तीन
दन का टू र है ।”
“नह -नह !” म मी तुरंत बोल - “आप खामखाह परे शान हो जायगे भाई साहब !”
“इसम परे शानी क या बात है ?” सोढा साहब ने कहा- “आिखर नताशा मेरी बेटी
जैसी ही तो है । फर आप तो जानती ह, ॉपट का काम भी कोई ब त यादा लंबा-चौड़ा
नह होता । बस एक दो मी टंग ही करनी पड़ती है ।”
“ले कन फर भी आपको खामखाह द त होगी ।”
“आप यूं किहये क आप नताशा को मेरे साथ भेजना नह चाहत ।”
“यह आप या कह रहे ह ? ऐसी बात नह है ।”
“तो फर नताशा को म ले जा रहा ँ ।” सोढा साहब अिधकारपूवक बोले- “मेरी आप
चंता न कर । म इसे सब संभाल लूंगा । इसी बहाने यह थोड़ा घूम भी लेगी । अभी ब ी ही
तो है । इसे थोड़ा घूमना- फरना भी चािहए ।”
“जैसा आप चाह ।”
आिखरकार म मी ने मुझे जयपुर जाने क इजाजत दे ही दी ।
☐☐☐
अगले दन ही सोढा साहब मुझे लेकर जयपुर के िलये रवाना हो गये थे ।
जैसा क आप समझ ही गये ह गे, सोढा साहब क जयपुर म कोई ॉपट डील नह थी ।
वह िसफ मुझे गोरखपुर से दूर ले जाना चाहते थे, ताक मेरे गभधारण क खबर वहां न
फ़ै लने पाये ।
जयपुर प च ं कर वो अपने एक दो त के घर ठहरे ।
दो त का नाम राके श था । राके श स ाइस-अ ाइस साल का एक तंद त नौजवान था
। वह दो कमर के एक लैट म अके ला रहता था । अभी उसक शादी नह ई थी और
सबसे बड़ी बात ये है क ॉपट के धंधे म वो सोढा साहब को अपना गु मानता था ।
उस रात उन दोन दो त ने बाहर वाले कमरे बैठकर खूब जमकर शराब पी ।
“एक बात बोलूँ सोढा साहब !” राके श नशे क िपनक म बोल रहा था ।
म अंदर वाले कमरे म थी और लेटी ई थी । उन दोन क बात करने क आवाज मुझे
वहां तक सुनाई पड़ रही थ ।
“बोलो !” सोढा साहब क आवाज- “ या कहना चाहते हो ?”
“य… यह आपने ठीक नह कया सोढा साहब ! अभी उस ब ी क उ ही या है ?”
“बेकार क बात मत करो ।” सोढा साहब गुरा उठे - “म तु हारा भाषण सुनने के िलये
यहाँ नह आया ँ । अब जो होना था, हो चुका है ।”
“आप मामले क गंभीरता को नह समझ रहे ह सोढा साहब !” राके श बोला- “कोई भी
लेडी डॉ टर आसानी से इस के स को हडल करने के िलये तैयार नह होगी ।”
“ य ? तु हारी वो डॉ टर सहेली कहाँ है, िजससे तुम ज दी शादी करने वाले हो?”
“अब इस बारे म, म उससे मदद लूं ?” राके श च का ।
“ य ? या आ?”
“ल… ले कन अगर मने उसे यह सारी बात बताई सोढा साहब, तो उसक िनगाह म मेरे
करै टर का कतना गलत इ ेशन पड़ेगा । वह या सोचेगी क मेरे दो त कै सा-कै सा काम
करते ह । आिखर उस मासूम लड़क क उ ... ।”
“ फर उ को ले बैठे ?” सोढा साहब दहाड़े- “अब अपनी यह बक-बक बंद करो । म
पहले ही ब त टशन म ँ । एक बात तुम खूब अ छी तरह समझ लो राके श ! मेरी इस
सम या का समाधान तुमने ही ढू ँढना होगा । मुझे इस बात से कोई सरोकार नह है क
तु हारी वो डॉ टर सहेली इस के स को हडल करती है या फर तुम कसी दूसरी डॉ टर को
पकड़कर लाते हो, ले कन डॉ टर का इं तजाम तो तुमने ही करना होगा।और इतना भी
बड़ा के स नह है, िजतना तुम इसे बना रहे हो । अगर ब ी क उ कम न होती, तो म ही
इसे कोई टेबलेट िखला देता । ले कन उ क वजह से म कोई र क नह लेना चाहता,
इसिलए डॉ टर क बात कर रहा ँ ।”
राके श के चेहरे पर बेचैनी झलकने लगी ।
शायद सोढा साहब क बात ने उसे ब त उलझन म डाल दया था ।
शराब के िगलास क खनखनाहट मुझे िनरं तर सुनाई दे रही थी ।
“यह काम इतना आसान नह है ।” राके श काफ देर बाद बोला ।
“म जानता ,ँ इसीिलये तु हारे पास आया ँ ।”
“क… या मतलब ?”
“मतलब ब त साफ़ है राके श । तुम मानो या न मानो, ले कन यह सच है क इस काम
को तु हारी वो डॉ टर सहेली ही बेहतर अंजाम दे सकती है । अगर तुम कसी दूसरी लेडी
डॉ टर को पकड़ोगे, तो उससे बदनामी का पूरा खतरा है । राज खुलने का पूरा खतरा है,
जो क म नह चाहता ।”
“ले कन म उससे यह सब कै से क ं ?”
“हाँ, यह बात ज र िवचार करने लायक है ।”
वह दोन बाहर वाले कमरे म बैठे न जाने कतनी देर तक शराब पीते रहे ।
उन दोन के बीच जबरद त टशन का माहौल था ।
िगलास क खनखनाहट और आपस म न जाने या- या बड़बड़ाने क आवाज मुझे
िनरं तर सुनाई दे रही थ ।
ले कन अंत म सोढा साहब ही जीते ।
वो आिखरकार राके श को इस बात के िलये तैयार करने म कामयाब हो ही गये क वह
काम उसक डॉ टर सहेली ही करे गी ।
उधर!
मेरा भी दहशत से कु छ कम बुरा हाल न था ।
मेरी िनगाह बार-बार अपने पेट पर आकर ठहर जाती थ ।
☐☐☐
अगले दन सुबह-ही-सुबह वहां स ाइस-अ ाइस वष क एक लड़क ने कदम रखा ।
वह श ल से ही ब त कु लीन प रवार क नजर आती थी । डॉ टर थी और राके श क
भावी प ी थी ।
सोढा साहब उस दन जान-बुझकर लैट से गायब रहे ।
लड़क ने आने के बाद सबसे पहले मेरा चेकअप कया । उसक आँख म मेरे िलये ढेर
सारी हमदद के िनशान थे ।
उसने धीरे -धीरे मेरा पेट दबाकर देखा और आँख चैक क ।
“तु हारे पेट म दद तो नह हो रहा ?” वह अचानक मुझे िनहारते ए बोली ।
“नह !”
मेरी गदन आिह ता से इनकार म िहली ।
“ख ी-ख ी डकार आ रही ह ?”
“नह , मुझे कु छ नह हो रहा ।” मेरी एकाएक ब त जोर से लाई फू ट पड़ी । म कसकर
उस लड़क से िचपट गयी- “मुझे बस ब त डर लग रहा है आंटी । म… म ठीक तो हो
जाऊंगी न ?”
लड़क क आंख म भी आंसु क न ह -न ह बूँद उमड़ आय ।
उसने अपनी लाई को फू ट पड़ने से बड़ी मुि कल के साथ रोका ।
“ चंता मत करो ।” उसका ब त ेह भरा हाथ मेरे बाल म फरने लगा- “तु ह कु छ
नह होगा । म तु ह कु छ नह होने दूग ं ी ।”
लड़क ने मुझे आिह ता से िब तर पर िलटा दया ।
फर वो वापस बाहर वाले कमरे म प च ँ ी, जहाँ राके श मौजूद था ।
“तु हारा दो त आदमी है या जानवर ।” वह बाहर प च ं ते ही राके श पर बरस पड़ी ।
उसक आवाज बेहद गु से से भरी ई थी- “ कतनी मासूम-सी और भोली ब ी है । उस
द र दे को इसक उ का याल नह आया ?”
‘अब यह सारी बात छोड़ो ।”
“ य छोड़ दूं यह सारी बात ?” वह ककश लहजे म बोली- “ या इतना सब कु छ करते
समय उसने फू ल जैसे चेहरे क तरफ़ भी नह देखा । तुम सब मद एक जैसे होते हो ।
बदजात ! बेगैरत ! लड़क को देखते ही लार घुटन तक टपकने लगती है ।”
“इसम मेरा कोई दोष नह है ।” राके श भी िच ला उठा- “मने कु छ नह कया ।”
“ य नह कया तुमने कु छ ? तुमने उसके पाप पर पदा डालने का जघ य अपराध
कया है ।”
“लानत है, म इसीिलये इस च र म नह पड़ना चाहता था ।”
“ या इसके माँ-बाप नह ह ?”
“िसफ माँ है ।” राके श बोला- “बाप का तो पैदा होते ही देहावसान हो गया था ।”
“तभी तो... ।”
“ या तभी तो...?”
“तभी तो वह मामला यहाँ तक प च ँ ा । अगर इस ब ी का बाप ज़ंदा होता, तो तु हारे
सोढा साहब क ब ीसी िबखेर देता । तब तु हारे सोढा साहब को पता चलता क ऐसे
कु कम करने का या फल िमलता है ? कह तु हारे सोढा साहब ने इसक माँ के साथ भी
तो... ।”
“अब तुम हद से आगे बढ़ रही हो ।” राके श िच ला उठा ।
“ य ? इसम हद से आगे बढ़ने क या बात है ? जो आदमी यौन-शोषण करने के िलये
इतनी मासूम-सी ब ी के ऊपर रहम नह खा सकता, उसके िलये माँ या चीज है ?”
“मुझे िसफ एक लाइन म जवाब दो ।” राके श के स का बाँध टू टने लगा- “तुम यह के स
ए जािमन कर रही हो या नह ?”
“करना ही पड़ेगा ।” लड़क बोली- “तु हारे सोढा साहब के िलये नह , बि क इस फू ल-
सी ब ी क िज दगी के िलये करना पड़ेगा । भगवान ने भी लड़क को या चीज बनाया
है, सारे कु कम मद करता है, ले कन भुगतना लड़क को पड़ता है । वह तो शु करो, यादा
दन नह हो गये । वरना िजतनी कम उ क यह ब ी है, उस हालत म कु छ भी हो सकता
था ।”
म वह सारी बात सुन रही थी ।
और !
वह बात सुन-सुन कर म बार-बार काँप रही थी ।
मुझे अहसास हो रहा था, ‘पु ष ेम’ क उस कौतुहलता ने मुझे कतने खतरनाक ग े म
धके ल दया है ।
☐☐☐
बहरहाल फर सब कु छ आसानी से िनपट गया ।
उस करण को लेकर कोई ब त बड़ी घटना नह घटी ।
उस लेडी डॉ टर ने मुझे दन म तीन बार दो-दो कै सूल खाने के िलये दए । कै सूल मुझे
गरम पानी के साथ िखलाये गये थे ।
रात तक ही नतीजा िनकल आया ।
मेरा ‘मािसक धम’, जो िपछले कई दन से का आ था, वह पुन: शु हो गया ।
अलब ा खून मेरे बड़ी तादाद म िनकला, िजसे देखकर म घबरा गयी । ले कन लेडी
डॉ टर हर पल मेरे करीब थी, उसने मुझे ढांढस बंधाया ।
“ चंता मत करो ।” लेडी डॉ टर ने बड़े ही ेहपूण अंदाज म मेरा कं धा थपथपाते ए
कहा- “कु छ नह आ है, बि क तु हारी सम या हल हो गयी है बेटी । अब तु ह कोई
खतरा नह ।”
लेडी डॉ टर ने मेरे माथे पर ेहिस अंदाज म चु बन अं कत कया और ब त यार से
बाल म उं गिलयाँ फराई ।
उसका पश ममता भरा था ।
िजसने मुझे ब त ह सला दया ।
यह बात अलग है, मेरा रं ग अब और भी यादा ह दी क तरह पीला जद पड़ गया था
और म मरीज नजर आने लगी थी, जैसे म िपछले कई महीन से बीमार चल रही होऊं ।
फर अगले दन तक मुझे काफ फल- ू ट खाने के िलये दए गये ।
जूस के कई िगलास िपलाए गये ।
इससे मेरी तबीयत थोड़ी संभली ।
मेरे चेहरे क रौनक कु छ वापस आयी ।
हम दो दन जयपुर म और के । सोढा साहब ने म मी को टेलीफोन करके इ ला दे दी
थी क उनका ॉपट का थोड़ा काम और बाक है, इसिलये वो एक दन लेट आयगे ।
चौथे दन हम गोरखपुर प च ं े।
तब तक मेरी तबीयत काफ संभल चुक थी ।
☐☐☐
तबीयत तो संभल गयी, मगर उसके बाद मेरी िज दगी म एक बड़ा भूकंपकारी मोड़
आया ।
दरअसल महीना पूरा होते ही सोढा साहब के बीवी-ब े वापस लौट आये थे । वैसे भी
सोढा साहब अब मुझसे खंच-े खंचे रहने लगे थे और पहले क तरह ेमपूवक तो वह
हरिगज भी पेश नह आते थे । म ही कभी उनके घर चली जाती थी, उ ह ने तो हमारे घर
आना अब िब कु ल छोड़ दया था ।
इससे मेरे दल को काफ ध ा लगा ।
मुझे साधु क भिव यवाणी पुन: याद हो आयी, तु हारे जीवन म पु ष का ेम नह है ।
त...तो या सोढा साहब मुझसे िसफ खेल रहे थे ?
उनका ेम, ेम नह था ?
मने सोढा साहब के बारे म िजतना सोचा, उतना म गु से म धधक उठी ।
एक दन सोढा साहब क बीवी अपने ब के साथ एक धा मक आयोजन म गयी ई
थी । सोढा साहब घर पर अके ले थे ।
तभी म सोढा साहब के सामने जा धमक ।
“त… तुम ?” उस व सोढा साहब मुझे वहां देखकर घबरा उठे ।
“ य ?” म सीधे खंजर क तरह उनक आँख म आँख डालकर फुं फकारी- “मुझे यहाँ
देखकर घबरा रहे ह ?”
कम-से-कम िपछले दन जो घटनाएं घटी थ , उ ह ने मेरे अ दर इतना हौसला ज र
भर दया था क म सीधे सोढा साहब क आँख म आँख डालकर बात कर सकूं ।
“क… कै सी बात कर रही हो ?” सोढा साहब िखिसयाने ढंग से हँस-े “म … म भला
तुमसे य घबराऊँगा? आओ बैठो ।”
“म यहाँ बैठने नह आयी ँ ।” म नािगन क तरह फुं फकारी- “बि क म आपसे कु छ
पूछने आयी ँ ।”
“ या ?”
“ या यह सच है, आप मुझसे ेम नह करते ? िपछले दन आपने मेरे साथ जो कु छ
कया, वह िसफ आपका मतलब था ?”
“यह तुम कै सी बात कर रही हो नताशा ?”
सोढा साहब चालाक िसयार क तरह ख -ख करके हँसते ए मेरी तरफ बढ़े और
उ ह ने मुझे यार से बाह म भर लेना चाहा ।
“मुझे छू ना मत ।” म दहाड़ उठी ।
सोढा साहब ठठके ।
उस समय मेरे चेहरे पर जलजले जैसे आसार थे ।
मेरी आँख भ ी बनी ई थ ।
“म आपक असिलयत पहचान गयी ँ ।” म गरजते ए ही बोली- “मुझे मालूम हो गया
है, िपछले दन आपने मेरे साथ जो कु छ कया, वह िसफ आपका नाटक था । आपने मुझसे
कभी ेम कया ही नह , बि क म अब एक बात और सोच रही ँ ।”
“ या ?”
“िपछले दन िजतनी भी घटनाएं घटी ह, म य न उन सबके बारे म आंटी को बता दूं
? म मी को बता दूं ?”
सोढा साहब दहल उठे ।
मेरे उन श द ने उनके दल- दमाग पर भीषण व पात कया था ।
“नह ।” वह ज दी से बोले- “तुम ऐसा नह करोगी ?”
“ य ? ऐसा करने से कौन रोके गा मुझे ? या आप ?”
“हाँ ! म रोकूं गा तु ह । तुम पागल हो गये हो, िब कु ल पागल ।”
सोढा साहब एकाएक जमीन को बुरी तरह र दते ए मेरी तरफ बढ़े ।
उस ण न जाने य मुझे ऐसा लगा, वह मुझे मारने के िलये मेरी तरफ बढ़ रहे ह ।
म घबरा गयी ।
वह मेरे नजदीक पीतल का एक भारी-भरकम फू लदान रखा आ था । मेरे अ दर न
जाने कहाँ से इतनी शि आ गयी क एकाएक मने वह फू लदान उठा िलया और उसे ब त
जोर से सोढा साहब क खोपड़ी पर ख चकर दे मारा ।
त काल सोढा साहब क खोपड़ी अंडे के िछलके क तरह फट पड़ी ।
वह चीखते ए धड़ाम से नीचे िगरे । उनक चीख अ यंत क दायक और वीभ स थी ।
िगरते ही उनके ाण-पखे उड़ गये ।
सब कु छ सेकंड के स व िह से म हो गया ।
पलक झपकते ही ।
हालां क सोढा साहब क ह या करने मेरा उ े य नह था, ले कन फर भी सोढा साहब
क ह या हो चुक थी ।
सोढा साहब क लाश देखकर म भी आतं कत हो उठी ।
म तुरंत वहाँ से भागी ।
☐☐☐
थोड़ी ही देर म सोढा साहब क ह या का समाचार पूरे मोह ले म फ़ै ल गया था ।
िजसने भी सोढा साहब के बारे म सुना, वही च का ।
उसी क हैरानी बढ़ी ।
य क थोड़ी देर पहले तक सभी ने सोढा साहब को ठीक-ठाक देखा था ।
पूरे मोह ले म एक ही चचा थी ।
“दरअसल वो नहाकर बाहर िनकले थे ।” कोई औरत कह रही थी- “तभी न जाने कै से
उनका पैर फसल गया और पीतल का फू लदान ब त जोर से उनके िसर म जा लगा ।
फ़ौरन उनक मौत हो गयी ।”
“यािन वो दुघटनावश मारे गये ?”
“हाँ ।”
हर कसी ने सोढा साहब क मौत को एक आकि मक हादसा समझा । यह बात तो
कसी को वाब तक म नह सूझी क वा तव म सोढा साहब क ह या क गयी है ।
और वो ह या मने क है । ऐसी तो क पना करना भी कसी के िलये मुि कल था ।
बहरहाल सोढा साहब क मौत को जो आकि मक हादसा समझा जा रहा था, वह मेरे
िलये अ छी बात थी ।
ले कन एक बात का अफसोस मुझे ज र था ।
और ब त अफसोस था ।
सोढा साहब के मरने का मुझे इतना दुःख नह था, िजतना इस बात का था क वह
मुझसे ‘ ेम’ नह करते थे ।
उस घटना के बाद ‘पु ष जाित’ के ित मेरी कौतुहलता पहले से भी यादा बढ़ गयी ।
☐☐☐
फर आगामी छ: वष मेरे झील के उस शांत पानी क तरह गुजरे , िजसम कोई हलचल
नह होती ।
कोई हंगामा नह होता ।
यािन उन छ: वष के अ दर मेरी िज दगी म कोई पु ष नह आया ।
यह काफ च का देने वाली बात थी ।
अलब ा म अब बीस साल क ब त अ नं सु दरी बन चुक थी । अपने मुज सम
को म खुद न जाने कतनी देर तक आईने म िनहारती रहती । इसम कोई शक नह , ऊपर
वाले ने क मत मेरी चाहे जैसी िलखी थी, मगर मेरे ऊपर सु दरता का भ डार उसने
जमकर लुटाया था ।
य - य मेरी उ बढ़ी, वैसे-वैसे मेरी सु दरता म चार चाँद लगते चले गये ।
मने इं टर क परी ा भी फ ट िडिवज़न म पास क । म पढ़ने म काफ तेज थी । इस
बीच मने कं यूटर भी सीख िलया और शॉट हड भी सीख ली ।
न जाने कब इनक ज रत पड़ जाये ।
इं टर क परी ा उ ीण करने के बाद मने ‘गोरखपुर िव िव ालय’ के अ दर बी.ए. म
एडिमशन ले िलया ।
इस तरह म कॉलेज प च ँ गयी ।
कॉलेज ही वो जगह थी, जहाँ मेरी अपने दूसरे ‘ ेमी’ से मुलाक़ात ई ।
आ द य!
जी हाँ, मेरे दूसरे ेमी का नाम ‘आ द य’ था ।
☐☐☐
“नताशा!” वह मेरा गुलाब-सा मुखड़ा अपनी हथेिलय म भरकर ब त अनुरागपूण ढंग
से कहता- “म तुमसे ब त यार करता ं । म तु हारे िबना जीिवत नह रह सकता ।”
म िखलिखलाकर हंस पड़ती ।
मेरी हंसी ऐसी खनकदार होती, जैसे टील क थाली म एक साथ तांबे के असं य िस े
बज उठे ह ।
“सच आ द य ? या तुम मुझसे वाकई इतना ही यार करते हो ?”
“हां नताशा !”उसक आवाज मानो गहरे अ धकू प से िनकलती- “म तु ह दल चीरकर
नह दखा सकता, वरना तब मालूम पड़ता क मेरे दल म तु हारे िलये कतनी जगह है ।”
“जनाब !” म उसके माथे का गाढ़ चु बन लेकर बोली- “ कसी दन तु हारी यह तमाम
रोमां टक बात हवा न हो जाएं ।”
“नह । म मर जाऊंगा, ले कन तु ह अपने आपसे अलग न होने दूग
ं ा । अब हम दोन क
सांस एक ही डोर से बंध चुक ह नताशा! यू आर द वीटे ट ीम ऑफ माई लाइफ !”
“सपना ? िसफ एक खूबसूरत सपना ?”
“नह ।” आ द य जोर देकर बोला- “तुम मेरी िज दगी का खूबसूरत सपना हो, िजसे म
हक कत म बदलना चाहता ं ।”
“स… सच आ द य ?”
उसक बात सुनकर म हवा म उड़ने लगी ।
“हां, नताशा !”
“तुम मुझे धोखा तो नह दोगे ?”
“कभी नह ।”
सोढा साहब को म िब कु ल भूल चुक थी ।
स े यार का अहसास मुझे हो रहा था ।
ेम क साथकता म अनुभव कर रही थी ।
☐☐☐
वह मेरे दीवानगी से भरे दन थे ।
ेम या होता है, इसका अहसास मुझे आ द य ने कराया ।
म सोते-जागते, उठते-बैठते उन दन िसफ और िसफ आ द य के बारे म सोचा करती
थी ।
वो मेरे वाब म आकर बस गया था ।
मुझे कदम-कदम पर यही लगता, आ द य मुझसे स ा यार करता है, य क उसक
आंख म मने वासना क वो ललक नह देखी थी, जो सोढा साहब क आंख म थी ।
आ द य ने त हाइय म भी कभी मेरे साथ गलत हरकत करने क कोिशश नह क ।
वह िसफ मेरे काले घनेरे बाल से खेलता था ।
उसक उं गिलयां मेरे होठ पर सरसरात ।
या फर वो देर तक मेरी आंख म झांकता रहता ।
यही उसका ‘ ेम’ था ।
हम दोन ने कई बार गोरखपुर म ‘तरं ग टॉक ज’ और ‘राज टॉ कज’ म जाकर फ म
देखी थ ।
‘बॉबीना’ म िडनर भी िलया ।
दन-ब- दन हमारा यार गहरा होता जा रहा था । मुझे बस एक ही बात का डर था,
आ द य एक धनवान िपता क संतान था ।
उसके िपता ब त बड़े इ डि यिल ट थे ।
मुझे भय था, कह उसक दौलत हमारे आड़े न आ जाये ।
ले कन फर भी आ द य पर िव ास था मुझे । उसके कसम-वाद पर भरोसा था ।
वह मुझे अपनी मजबूत बाह म समेटता, तो मुझे लगता, यही मेरी िज दगी क मंिजल
है ।
यही वो ेमी है, िजसक मुझे तलाश थी ।
☐☐☐
14 माच!
यह मेरे ज म दन क तारीख थी ।
हालां क वो मेरे िलये कोई ब त शुभ दन नह था, ले कन आ द य ने मेरा बीसवां
ज म दन ब त धूमधाम के साथ मनाया ।
‘बॉबीना’ होटल म आ द य ने उस दन एक शानदार सुइट बुक कया था ।
दल के आकार का एक काफ बड़ा के क उसने वहां मंगाया ।
अलब ा उस खूबसूरत शाम के मेहमान और मेजबान हम िसफ दो ही थे । वैसे भी जहां
ेमी- ेिमका मौजूद ह , वहां त हाई से खूबसूरत मेहमान तथा दलकश बात से यादा
नशीली शराब और भला या हो सकती है ?
मने के क काटा ।
फर आ द य ने खुद अपने हाथ से मुझे के क िखलाया ।
एक-एक ल हा मुझे यादगार लग रहा था ।
“म एक बात क ं नताशा ?” थोड़ी देर बाद ही आ द य ने मेरी बाल म उं गिलय क
कं घी-सी करते ए कहा ।
उस समय हम दोन िब तर पर बैठे थे । मेरा िसर आ द य क गोद म रखा था और वह
बड़े यार से मेरे ऊपर झुका आ था ।
“ या कहना चाहते हो ?”
“म िपछले कई दन से एक बात सोच रहा ,ं मुझे अब तुमसे शादी कर लेनी चािहए ।”
म हंस पड़ी ।
मेरी हंसी ब त बुल द थी ।
“ य ?” आ द य के ने िसकु ड़े- “तुम इस तरह हंस य रही हो ?”
“माई िडयर, तु ह शायद एक कहावत मालूम नह है । इट इज नो एज िब डंग कॉस स
इन द एअर ।”
“नह , म यह हवा म इमारत नह बना रहा ं ।” आ द य दृढ़तापूवक बोला- “बि क म
सचमुच तुमसे शादी करना चाहता ं ।”
“ले कन शादी करने के िलये म मी-डैडी से परिमशऩ भी लेनी पड़ती है । या तुमने
उनसे परिमशन ली ?”
“म वही सोच रहा ,ँ य न कल ही उनसे बात क ं ?”
“दै स गुड! काफ अ छी बात है ।”
“ल… ले कन… ।”
“ले कन या ?”
“ य न तुम भी अपनी म मी से बात कर लो ?”
“उनक तुम चंता मत करो आ द य । उ ह तैयार करना मेरा काम है । वह ना नह
करगी ।”
“ फर भी ?”
“मने कहा न ।” म उसक बात काटकर बोली- “उ ह म तैयार कर लूंगी ।”
उसके बाद भी हम दोन के बीच यार-मोह बत क ढेर सारी बात होती रह थ ।
देर तक ।
फर वो पहला दन था, जब आ द य और मेरे बीच सहवास या ई ।
हालां क हम दोन म से कसी क भी ऐसी इ छा नह थी ।
मगर यार क बात करते-करते हम दोन कब उस डगर पर चल पड़े, दोन म से कसी
को पता न चला ।
वो भावना क गम थी ।
वासना क तिपश थी, जो गरम मोम क तरह धीरे -धीरे िपघलने लगी ।
☐☐☐
उसके बाद आ द य का एकाएक कॉलेज आना बंद हो गया ।
वो छ: दन तक कॉलेज नह आया ।
म बेचैन हो उठी ।
मेरा पागलपन सीमाएं तोड़ने लगा । मेरी रात क न द उड़ चुक थी । तब मुझे
अहसास आ, म खुद आ द य से कतना यार करती थी । उसके िबना अब मेरे िलये एक
ल हा भी गुजारना नामुम कन था ।
मने दजन मतबा आ द य के घर फोन िमलाया, ले कन हर बार दूसरी तरफ से उसक
म मी फोन उठाती थ ।
सातव दन आ द य के कॉलेज म दशन ए ।
उसक श ल देखते ही मुझे ऐसा लगा, मानो दुिनया क न जाने कौन-सी नेमत मुझे
हािसल हो गयी हो ।
“ओह आ द य !” म कॉलेज के ांगण म ही दौड़ती ई उसके नजदीक प च ँ ी और
एकदम कसकर उससे िलपट गयी- “तुम इतने दन से कहाँ थे ? कहाँ चले गये थे तुम ?”
आ द य कु छ सकपकाया ।
उसने इधर-उधर देखा ।
“सॉरी !” मुझे भी तुरंत कॉलेज के ांगण का अहसास आ- “सॉरी !”
म पीछे हटी ।
ले कन आ द य न जाने य मुझे कु छ बदला-बदला लग रहा था ।
“तुम कु छ बोल य नह रहे आ द य ?”
“मुझे तुमसे ज री बात करनी है ।” आ द य संजीदा लहजे म बोला- “मेरे साथ आओ
।”
“कहाँ ?”
“आओ तो ।”
म चुपचाप आ द य के पीछे-पीछे चल पड़ी ।
आ द य मुझे लेकर कॉलेज क िवशाल लाइ ेरी म प च ं ा।
वह आज ब त उदास था ।
लाइ ेरी म एक कोने वाली टेबल पर जाकर हम बैठ गये ।
“मुझे तु ह एक ब त बुरी खबर सुनानी है नताशा !” आ द य थोड़े िवचिलत लहजे म
बोला ।
“कै सी बुरी खबर ?”
मेरा दल धड़क उठा ।
मेरी बेचैनी और बढ़ी ।
“द… दरअसल म मी-डैडी ने मेरे िलये एक लड़क पसंद कर ली है । ने ट वीक मेरी
एंगेजमट भी है ।”
“न… नह !”
मेरे हलक से चीख िनकल गयी ।
मुझे ऐसा लगा, मानो लटर गड़गड़ाता आ मेरे िसर पर आ िगरा हो ।
“क… या तुमने अपने म मी-डैडी से मेरे बारे म बात नह क थी ?”
“क थी ।” आ द य शु क वर म बोला- “ले कन वो तु हारे साथ मेरी शादी करने को
तैयार नह ए । उनक िजद थी, मेरी शादी उसी लड़क से होगी, जो उ ह ने पसंद क थी
।”
“क… या तुम भी उस लड़क से शादी कर लोगे ?” मेरी आवाज बुरी तरह कं पकं पा
रही थी ।
“तुम मेरी मजबूरी समझो नताशा !” आ द य नजर झुकाए-झुकाए बोला- “म और कर
भी या सकता ँ ? मने म मी-डैडी को काफ समझाने क कौिशश क , ले कन वो नह
माने । अब म उ ह छोड़ भी तो नह सकता ।”
मेरा िसर घुमने लगा ।
यह अहसास ही मेरे होश उड़ा देने के िलये पया था क अब आ द य कसी और का हो
जायेगा ।
वो आ द य कसी और का हो जायेगा, िजससे सचमुच मने दलोजान से यार कया था

िजसके िबना म एक ल हा नह गुजार सकती थी ।
मेरी आंख म आंसू छलछला आए ।
“आई बैग युअर पाडन नताशा !”आ द य ब त धीरे -धीरे मेरा हाथ थपथपा रहा था-
“ रयली आइ एम सॉरी ।”
मने दोन हथेिलय म अपना चेहरा छु पा िलया और म रो पड़ी ।
मेरी िहच कयां बंध गयी ।
“िह मत रखो ।” आ द य बोला- “म जानता ,ं सचमुच तु ह ब त दुख प च ं ा है,
ले कन मेरी मजबूरी समझो ।”
“आ द य ! म तु हारे िबना नह रह सकती ।” म फफकते ए ही बोली- “मुझे अपने से
अलग मत करो ।”
“म भी तु ह अपने से अलग नह करना चाहता नताशा, ले कन म या कर सकता ं ।”
उस दन म आ द य के सामने खूब रोयी ।
खूब िगड़िगड़ायी ।
ले कन आ द य मुझसे शादी करने के िलये तैयार न आ । वो बार-बार अपनी मजबूरी
क दुहाई देता रहा ।
बार-बार अपने म मी-डैडी का रोना रोता रहा ।
उसके बाद वो चला गया ।
☐☐☐
आप अंदाजा नह लगा सकते, उस सारी रात मुझे न द नह आयी ।
म जागती रही ।
मेरे तमाम सपने, तमाम उ मीद एक ही झटके म फना हो चुक थ ।
यह अहसास ही मेरे शरीर म अजीब-सी िसहरन दौड़ा देता था क अब आ द य कसी
और क बांह म होगा ।
वह कसी और का सुहाग बनेगा ।
म बेचैन हो गयी ।
मुझे लगा, म पागल हो जाऊंगी ।
उ फ- मद भी या चीज़ है, इस बात का अहसास आप बस मेरे जैसी कसी औरत क
एक “आह” से लगा सकते ह । एक त हा, अके ली, बेआसरा औरत रात म िब तर पर िबना
मद के ऐसे कलपती है, जैसे िबन पानी के मछली।
मद ही नह औरत भी यार म पागल होती है ।
आ द य को खोने के नाम से ही मुझे डर लग रहा था । म उसे कसी भी हालत म नह
खोना चाहती थी ।
फर मने एक फै सला कया ।
खतरनाक फै सला ।
िपछले कई दन से म कॉलेज नह गयी थी, मगर चौथे दन म कॉलेज जा प च ं ी।
आ द य भी उस दन कॉलेज आया आ था ।
“आ द य !” म कॉलेज कॉरीडोर म उसके साथ-साथ चलते ए बोली- “म तुमसे कु छ
कहना चाहती ं ।”
“ या ?”
“तुम मुझसे एक बार अके ले म िमलना पस द करोगे आ द य ?”
“ कसिलये ?”
“मुझे तुमसे कु छ ज री बात करनी है ।” म ग भीरतापूवक बोली- “म वादा करती ,ं
उसके बाद म तु हारी िज दगी से हमेशा के िलये चली जाऊंगी ।”
“ठीक है ।” आ द य ने कहा- “बताओ, कस जगह िमलना चाहती हो ?”
“आज शाम सात बजे तुम मुझसे ‘यूिनव सटी पाक’ म िमलो ।”
“ओ.के .! म ठीक सात बजे पाक म प च ं जाऊंगा ।”
हम दोन अलग हो गये ।
उसके बाद ठीक सात बजे हमारी ‘यूिनव सटी पाक’ म मुलाकात ई । यूिनव सटी पाक’
उस समय िब कु ल सुनसान पड़ा आ था और शाम क कािलमा धीरे -धीरे वहां फै लने लगी
थी ।
आ द य जैसे ही पाक म प च ं ा, मने फौरन अपने कपड़ से ल बे फल वाला चाकू
िनकाल िलया और इससे पहले क आ द य कु छ समझ पाता, मने आनन-फानन वह चाकू
उसके पेट म घ प डाला ।
इतना ही नह , म मशीनी गित से वह चाकू उसके पेट म घ पती चली गयी ।
बार बार ।
जबरद त पीड से ।
आ द य क चीख िनकल गय ।
पेट से खून का फ वारा छू ट पड़ा ।
“आ द य !” म खून से सना चाकू हाथ म िलये-िलये जहरीली नािगन क भांित फुं फकार
उठी- “अगर तुम मेरे नह ए, तो कसी के भी नह हो सकते । कसी के भी नह ।”
मने उसके पेट म कु छेक हार और कये ।
आ द य धड़ाम से पीछे जा िगरा ।
िगरते ही उसके ाण पखे उड़ गये ।
आप समझ ही गये ह गे- औरत अगर मौह बत म सब कु छ लुटाना जानती है, तो फर
धोखेबाज़ मद को जह ुम रसीद करना भी जानती है । औरत के अ दर अगर मौह बत का
ज़ बा कसी समु िजतना िवशाल होता है, तो वह मौह बत म खता खाई ई औरत भी
कसी जहरीली नािगन से कम नह होती । िजसके डसे का कोई इलाज़ नह ।
आ द य का मडर करने के बाद मने एक ख़ास काम और अंजाम दया । उसके पास
िजतना भी क मती साज-समान था, वह सब मने लूट िलया । उसका पस, अंगूठी, सोने क
चेन, सब-कु छ ।
उसके बाद म बड़ी खामोशी के साथ वहां से भाग िनकली ।
☐☐☐
अगले दन पूरे ‘गोरखपुर िव िव ालय’ म हड़क प मच गया था ।
आ द य क लाश पाक से बरामद हो चुक थी ।
अलब ा सबने यही समझा क वह कसी सड़क छाप चेन ेचस या बूट लैगरस का
काम है, िजसने आ द य का वह क मती साज-सामान छीनने क खाितर उसके चाकू घ प
दया था ।
उस करण म भी कसी का मेरे ऊपर शक न गया ।
वह मामला भी यूं ही िनपट गया ।
उसके बाद मेरी िज दगी म शंकर आया ।
☐☐☐
शंकर!
वह मेरा एक और ेमी था ।
शंकर ऐसे शाही ठाठ-बाट के साथ रहता था, मानो वह कसी बड़ी रॉयल फै िमली को
िबलांग करता हो ।
वह िवदेशी गािड़य म घूमता ।
क मती-से-क मती कपड़े पहनता ।
इसके अलावा वह मुझे जो जट देता, वह भी बेहद क मती होते ।
कभी वो मुझे हीरे के टॉ स लाकर देता ।
तो कभी सोने क अगूं ठयाँ ।
हद तो तब हो गयी, जब एक दन उसने कई लड़ी वाला सोने का भारी-भरकम हार
लाकर मुझे दया ।
सबसे रोमांचकारी बात ये थी, शंकर का िबज़नस या है, यह भी मुझे मालूम न था ।
बहरहाल वो ेम कोई ब त यादा ल बा न चला ।
ज द ही शंकर क असिलयत मेरे सामने उजागर हो गयी थी । उसक असिलयत भी
एक ब त पुराने अखबार से उजागर ई, जो अखबार इ ेफाक से मेरे हाथ लग गया । उसी
फटे-पुराने अखबार म छपी एक खबर से मुझे पता चला, दरअसल शंकर एक पेशेवर चोर
था ।
उसक िज दगी के दो ही शौक थे ।
चोरी करना और शादी करना ।
वह चोरी कर-करके पहले क मती उपहार लड़ कय को जट करता था और फर उ ह
अपने ेमजाल म फांसकर उनसे शादी कर लेता । वह अब तक बीस शा दयाँ कर चुका था
। पुिलस ब त सरगम से उसे तलाशती घूम रही थी ।
उस खबर को पढ़ते ही मेरे पैर के नीचे से धरती िखसक गयी ।
यािन म शंकर का इ सवां िशकार थी ।
माई गॉड!
यही शु था, मुझे व रहते वो जानकारी हो गयी ।
☐☐☐
अगले दन ही मने वो फटा-पुराना अखबार शंकर के सामने रखा ।
या मजाल, जो वह अखबार देखकर शंकर ज़रा भी घबराया हो । उ टे वो कसी
शाितर बदमाश क तरह ब त जोर से िखलिखलाकर हंसा ।
“चलो अ छा आ ।” शंकर हँसता आ ही बोला- “ क तु ह मेरे बारे म सब कु छ मालूम
हो गया ।”
“य… यािन तुम मुझसे ेम नह करते थे ?” म भ च े लहजे म बोली ।
“सवाल ही नह उठता डा लग !” शंकर ब त दृढ़तापूवक बोला- “इस शंकर ने कभी
कसी से ेम नह कया, कभी भी नह । इस शंकर ने तो िसफ शा दयाँ मनाई ह और अब
यह शंकर तुमसे भी शादी करे गा । यह इ सव शादी होगी !”
“तुम मूख आदमी हो ।” म दहाड़ उठी । मने उसे जलती आँख से घूरा- “तुम या
समझते हो, तु हारे बारे म इतना सब-कु छ पता चलने के बाद भी म तुमसे शादी क ं गी ?
हरिगज नह ।”
“शादी तो तु ह अब मुझसे करनी ही पड़ेगी नताशा डा लग !” शंकर क आवाज म
यक न कू ट-कू ट कर भरा था- “अब तुम चाहते ए भी इस शादी को नह रोक सकती ।”
मचक ।
शंकर यह एक नया रह यो ाटन कर रहा था ।
“क… या मतलब?”मेरे ने िसकु ड़े- “म इस शादी को य नह रोक सकती ?”
“यह देखो डा लग !” शंकर ने तुरंत अपनी जेब से ढेर सारे फोटो ा स िनकालकर मेरे
सामने फके - “इन त वीर को देखो और फर फै सला करो क या तु हारे अ दर मेरे
िखलाफ जाने क िह मत है?”
मेरी िनगाह त वीर पर पड़ी ।
और!
त वीर पर िनगाह पड़ते ही मेरे होश उड़ गये ।
मेरे शरीर का एक-एक र आ खड़ा हो गया ।
वह मेरी ब त अ ील त वीर थ , िजनम म शंकर के साथ लगभग रित- ड़ा जैसी मु ा
म नजर आ रही थी । त वीर अलग-अलग एंगल से ख ची गयी थ और वह फोटो ाफ का
बेहतरीन नमूना थ ।
ऐसा मालूम पड़ता था, जैसे कसी ोफे शनल फोटो ाफर ने वो त वीर ख ची ह ।
“म… मेरी यह त वीर कब ख ची गय ?” म हत भ लहजे म बोली ।
“डा लग !” शंकर ने आगे बढ़कर मेरे गाल पर बड़े भ ड़े अंदाज म िचकोटी काटी- “यह
शंकर िचिड़याँ को फांसने के िलये ऐसे आड़े-ितरछे हथकं डे हमेशा तैयार करके रखता है ।”
“िचिड़याँ !” मने उसे ोधपूण नज़र से घूरा- “म तु ह िचिड़याँ नजर आती ँ ?”
“हाँ !”
“लगता है शंकर, अभी तु हारा वा ता कसी ऐसी िचिड़याँ से नह पड़ा, जो अपने
िशकार क जान भी ले लेती हो ।”
“क... या मतलब?”
मने एकाएक बड़े अ यािशत प से पॉइं ट टू एट क रवा वर िनकालकर शंकर क
खोपड़ी क तरफ तान दी ।
शंकर भयभीत हो उठा ।
“य… यह रवा वर तु हारे पास कहाँ से आयी ?”
“तु हारे जैसे द रं द से िनपटने के िलये ही म यह रवा वर अपने पास रखती ँ ।” म
अ िवि क भांित बोली- “अब बताओ, या अब भी तु हारे अ दर इतनी िह मत है,
जो मुझसे शादी कर सको ?”
शंकर ने जोर से अपने गले का थूक सटका ।
उसी ण मने रवा वर का ेगर दबा दया । त काल शंकर इस तरह डकार उठा, जैसे
िजबह होते समय कोई बकरा डकराया हो ।
गोली उसक गदन क ह ी फाड़ती ई सीधे खोपड़ी म जा घुसी और वह फ़ौरन एक
लाश म त दील हो गया ।
म तुरंत घटना थल से भाग िनकली ।
☐☐☐
शंकर क मौत ने भी गोरखपुर म काफ जबरद त हडकं प मचाया ।
पुिलस ने उसके ह यारे को तलाशने के िलये खूब एड़ी-चोटी का जोर लगा दया था,
मगर वह ह यारे को न तलाश सक ।
शंकर क मौत का रह य भी रह य ही रहा ।
उसके बाद मेरी िज दगी म तीन ेमी और आये तथा वह तीन भी सोढा साहब, आ द य
और शंकर क तरह मेरे हाथ मारे गये ।
उन सबका एक ही कसूर था, उ ह ने पहले मुझसे ेम कया तथा फर मुझे धोखा दे
दया ।
सबके सब धोखेबाज थे ।
अपना मतलब हल करने वाले ।
बहरहाल पुिलस ह या के कसी भी मामले को न सुलझा सक , य क मने येक ह या
ब त चालाक और सफाई के साथ क थी ।
कह कोई सबूत नह छोड़ा ।
उन एक के बाद एक होने वाली रह यमयी ह या के कारण अब गोरखपुर म भी
जबरद त आतंक फ़ै ल गया था ।
पुिलस अब इतना अनुमान ज र लगा चुक थी,वह ह याय कोई एक लड़क कर रही है

ज द ही म पूरे गोरखपुर म ‘लेडी कलर’ के नाम से िव यात हो गयी ।
लेडी कलर !
िजसके पीछे गोरखपुर क पुिलस अब बुरी तरह हाथ धोकर पड़ चुक थी ।
मगर वो ‘लेडी कलर’ कौन है, यह कसी को मालूम न था ।
यह कोई नह जानता था ।
☐☐☐
इसी दर यान मुझे एक जबरद त हादसे का भी सामना करना पड़ा ।
मेरी माँ का देहा त हो गया ।
वह िपछले काफ समय से बीमार चल रही थ ।
माँ क मौत ने मुझे झंझोड़ डाला । इस दुिनया म माँ ही थी, जो मेरी अपनी थी । िजससे
मुझे कुं ठा म िलपटा आ ही सही, मगर यार िमला था ।
स ा यार िमला था ।
दो त ! म अपने ेिमय के बारे म बता-बताकर अब आपको यादा बोर नह क ं गी ।
म बस आपको एक ि के बारे म और बताना चाहती ँ । वह ि , जो मेरा सातवाँ
ेमी था ।
उसने मेरी िज दगी म कदम रखा और उसके बाद मेरी िज दगी क धारा ही बदल गयी

गौतम पटेल, यह मेरे उस सातव ेमी का नाम था ।
गौतम पटेल िब कु ल अलग ि व का मािलक था ।
वह ल बे-चौड़े कद-काठी वाला था । भरा-भरा बदन । उसका चेहरा ब त रौबदार था
और गुबरै ली मूंछ थ , जो उसक पसनेिलटी को और भी यादा रौबदार बनाती थ ।
गौतम पटेल िडटेि टव एजसी चलाता था ।हालां क गोरखपुर जैसे छोटे से शहर म
‘िडटेि टव एजसी’ चलाना भारी दल-गुद का काम था, मगर गौतम पटेल वह काम करता
था ।
गौतम पटेल से मेरी मुलाकात भी बड़े हंगामाई माहौल म ई ।
रात के नौ बजे का समय था, म ‘राके श टा कज’ से अके ली फ म देखकर लौट रही थी ।
तभी एक मा ित कार ब त तूफानी पीड से दौड़ती ई मेरे िब कु ल बराबर म आकर क

उसके पिहये चीख उठे । अगर वो ज़रा भी ि लप होती, तो म उसक चपेट म आ जाती ।
“यह या ब तमीजी है ?” म चीखते ए एकदम पलटी ।
मने देखा, उस मा ित कार म तीन रईसजादे सवार थे, जो म ती म मालूम पड़ रहे थे
और उ ह ने खूब शराब पी ई थी ।
“हैलो जान !” उनम से एक िखलिखलाकर हँसता आ बोला- “आज रात या करने का
मूड है? आओ आज हम तु ह अपने बेड म क सैर करा द ।”
“बैड म क नह दो त!” दूसरे ने हंसते ए उसके जोर से कोहनी मारी- “ वग क कहो
। वग क सैर ।”
“पहले यह तो पूछ लो ।” तीसरा बोला- “ क यह पैसे कतने लेगी ?”
“पैसे क कोई चंता नह है । हम इसे पय के ढेर से लाद दगे । बस यह हमारी आज
क रात रं गीन कर दे ।”
“शटअप !” म गु से से िच ला उठी- “म वैसी लड़क नह ,ँ जैसी तुम मुझे समझ रहे
हो ।”
“इससे कोई फक नह पड़ता क तुम कै सी लड़क हो ।” उनम से एक अब कार से नीचे
से उतर आया- “तु ह बस लड़क होना चािहए और वो हम देख रहे ह क तुम हो । चलो,
हमारे साथ चलो ।”
उसने आगे बढ़कर मेरा हाथ पकड़ िलया और जबरद ती मुझे कार क तरफ ख चा ।
“छोड़ो मुझे ।” म िच लाई- “छोड़ो !”
“माई डेलीशस डा लग !” बाक दोन भी अब कार से नीचे उतर आये- “हमने तु ह
छोड़ने के िलये नह पकड़ा है । आज क रात तो तु ह हमारी रं गीन करनी ही पड़ेगी ।”
‘नह !” म िच लाई- “नह !”
उन लोग ने अब मुझे जबरद ती कार क तरफ ख चा ।
म फड़फड़ाई ।
“हे प मी !” म िच ला उठी- “ लीज हे प मी !”
मेरी आवाज उस िनजन इलाके म दूर-दूर तक गूंजने लगी ।
पर तु उन तीन रईसजाद के दल- दमाग पर वासना का भूत बुरी तरह सवार था । वह
मुझे कसी भी हालत म छोड़ने के िलये तैयार न थे । उन तीन ने ही अब मुझे कसकर
जकड़ िलया और फर वह घसीटते ए कार क तरफ ले जाने लगे ।
वह तीन थे, म अके ली ।
म कबूतर क भांित फड़ाफड़ा रही थी ।
मेरी चीख गूँज रही थ ।
वह तीन मुझे कार के अ दर धके लकर बंद करते, उससे पहले ही वहां एक और कार
ब त ही तूफानी पीड से आकर क तथा फर उसके पिहये यूं चीखे, जैसे वहां भूकंप आ
गया हो । उसके बाद गौतम पटेल उसम से कसी ‘ए शन-हीरो’ क तरह ज प लगाकर
नीचे कू दा ।
“यह या हो रहा है?” वह उन तीन को ललकारते ए चीखा- “इस लड़क को छोड़ते
य नह ?”
तीन लड़क का यान अब गौतम पटेल क तरफ आक षत आ ।
उसका लंबा कद ।
बिल शरीर ।
वह कसी को भी कं पकं पा देने के िलये पया था ।
मगर !
गौतम पटेल के उस ि व का उन तीन पर कोई फक नह पड़ा ।
“ य बे ?” उनम से एक मुझे पकड़े-पकड़े बोला- “तू कौन है ? इस लड़के का भाई
लगता है ?”
“अभी बताता ,ँ म कौन ँ ।”
तुरंत गौतम पटेल क राउं ड कक इतनी तेज़ गित के साथ घूमी क उनम से दो लड़के
हलक फाड़कर िच लाते ए इधर-उधर जा िगरे ।
तीसरा बड़ी तेजी से उसक तरफ झपटा, मगर उससे पहले ही गौतम पटेल का भारी-
भरकम पंच उसके चेहरे पर इतनी जोर से पड़ा क लड़के क वीभ स चीख िनकल गई और
उसक नाक से खून जाने लगा ।
उसी ण पीछे से दोन लड़के गौतम पटेल क तरफ झपटे ।
एक ने उछलकर उसका गला पकड़ना चाहा ।
दूसरे का घूँसा उसके चेहरे क तरफ लपका ।
मगर गौतम पटेल के शरीर म चीते जैसी फु त समा चुक थी । उसने घूमकर धड़ाधड़
अपनी कोहिनय के चंड हार लड़क के सीने पर कये ।
वह भसे क तरह डकरा उठे ।
फर दो घूंसे उनके चेहरे पर भी पड़े ।
उनका पूरा जबड़ा दहल उठा ।
जब क गौतम पटेल ने अब झपटकर अपनी जेब से पॉइं ट अड़तीस कै लीबर क रवा वर
िनकाल ली । रवा वर हाथ म आते ही गौतम पटेल ने उसका से टी लॉक पीछे ख चा और
उसक नाल एक लड़के क खोपड़ी क तरफ उठाई ।
रवा वर हाथ म आने क देरी थी, तुरंत उन लड़क क सारी दलेरी हवा हो गई ।
उनका चेहरा एकदम ई क तरह सफ़े द फ पड़ गया । वह िगरते-पड़ते फ़ौरन कार म
सवार ए और एकदम उनक कार ब दूक से छू टी गोली क तरह वहां से भागी ।
म उस समय एकटक गौतम पटेल को देख रही थी । िन:संदह े उसक मजबूत कद-काठी
और उसके ए शन ने मुझे इ ेस कया था ।
गौतम पटेल कु छ देर सुनसान पड़ी उस सड़क को देखता रहा, िजधर से कार भागी थी-
फर वो मेरी तरफ घूमा । उसने रवा वर वापस अपनी जेब म रख ली और एक िसगरे ट
सुलगाई ।
“कहाँ जा रही हो तुम ?”
“अ… आय नगर ।” गौतम पटेल के सवाल का जवाब देते समय मेरी आवाज म ह क
सी कं पकपाहट दौड़ी थी ।
“तु ह इतनी रात को अके ले सड़क पर नह घूमना चािहए ।” गौतम पटेल बोला- “तु ह
शायद मालूम नह है, िपछले काफ दन से इस शहर का माहौल ठीक नह चल रहा ।”
“म जानती ँ ।” म शु क वर म बोली- “ले कन म इस दुिनया म अके ली ँ िम टर! म
भला कब तक कसी का साथ तलाशूंगी ।”
गौतम पटेल के चेहरे पर हैरानी के िच न दौड़ गये ।
वह िसगरे ट का कश लगाते-लगाते ठठका ।
“ या तु हारे माँ-बाप नह ह ?”
“नह ।”
“बहन-भाई?”
“कोई भी नह है ।”
“ओह! सॉरी! वैरी सॉरी! !”
म खामोश रही ।
रात क नीरवता अब पहले से भी यादा बढ़ चुक थी ।
“चलो ! म तु ह तु हारे घर तक छोड़ देता ँ ।”
मने ऐतराज न कया ।
उस दन गौतम पटेल पहली बार मुझे मेरे घर छोड़ने आया ।
☐☐☐
गौतम पटेल मेरे पुराने ेिमय के मुकाबले म कई मायन म अलग था । सबसे अलग तो
उसक पसनेिलटी ही थी । वह बड़ी मजबूत कद-काठी और आकषक ि व का मािलक
था । वैसा आकषक ि व मेरे पहले कसी ेमी का न था । इसके अलावा वो सीधे मेरी
आँख म आँख डालकर बात करता था, उसक पलक तक नह झपकती थ ।
अगर आप पु ष क फतरत के अ छे जानकार ह, तो आपको मालूम होगा क ऐसे
ब त कम ही पु ष होते ह, जो कसी लड़क क आँख म आँख डालकर देर तक बात कर
सक ।
मगर गौतम पटेल म वह खूबी िव मान थी ।
वह जब मुझसे बात करता, तो म अपने आपको कसी अबोध ब ी जैसी अनुभव करती
थी । उसका मदाना ि व हर समय मेरे ऊपर बुरी तरह हावी रहता । ज द ही गौतम
पटेल और मेरे बीच अ छी दो ती हो गयी । उसी दौरान मुझे गौतम पटेल के बारे म एक
बात और पता चली, वह अिभजीत घोष के जासूसी उप यास का जबरद त शौक़ न था ।
हालाँ क यह बात चचा करने के लायक नह है, मगर कहानी म आगे इस बात क
अ छी-खासी मह ा है ।
इतना ही नह , अिभजीत घोष के िवषय म बात करने म भी गौतम पटेल को खूब आनंद
आता था ।
“तु ह सुनकर हैरानी होगी।” एक बार गौतम पटेल ने मुझे बताया- “अिभजीत घोष ने
अपने पूरी िज दगी म कु ल पचास उप यास िलखे ह और वह सभी उप यास मने पढ़े ए ह
। एक बार नह , बि क कई-कई बार पढ़े ह ।”
अिभजीत घोष के बारे म चचा करते समय गौतम पटेल क दीवानगी साफ़ झलकती थी

म हंसी ।
“ य ?” मने गौतम पटेल से पूछा- “अिभजीत घोष के उप यास म ऐसा या है, जो
तुम उनका एक-एक उप यास कई मतबा पढ़ते हो ?”
“लगता है, तुमने कभी िज दगी म अिभिजत घोष का कोई उप यास नह पढ़ा है ।”
“नह !”
“तभी तो !” गौतम पटेल बोला- “तभी तो तुम यह बात कह रही हो । अगर तुमने
िज दगी म कभी अिभिजत घोष का कोई एक उप यास भी पढ़ा होता नताशा, तो तु ह
मालूम पड़ता क वह आदमी कतनी कमाल क कहािनयाँ िलखता है । खासकर उसके
मडर लान भी ऐसे गजब के होते ह क कोई भी पाठक उ ह पढ़ते समय अपने दांत तले
उं गिलयाँ दबा ले । आ यजनक बु ी का मािलक है वह आदमी । म तो जैस-े जैसे उसके
उप यास पढ़ता ,ँ वैसे-वैसे मेरी उसके ित दीवानगी बढ़ती जाती है । वैसे वह आदमी
समाज के िलये ख़तरा भी है ।”
“ य ?” म च क - “अिभजीत घोष समाज के िलये खतरा य है ?”
“ य क वह अपने उप यास म ह या क ऐसी-ऐसी योजनाय बनाता है ।” गौतम पटेल
बोला- “ क अगर कोई अपराधी उन योजना से े रत होकर वा तिवक िज दगी म मडर
कर डाले, तो मेरा दावा है क िह दु तान क पुिलस तो या कॉटलड क पुिलस भी उसे
िगर तार न कर सके । वह कह कोई सबूत ही नह छोड़ता । उसक हर मडर ला नंग
ब त फु ल ूफ होती है ।”
“अगर यह बात है ।” म बोली- “तो सचमुच अिभजीत घोष समाज के िलये ब त बड़ा
खतरा है । या उसके कसी उप यास पर आज तक कभी कोई मडर आ है ?”
“अभी तक तो नह आ ।” गौतम पटेल बोला- “ले कन मडर हो तो सकता है, ख़तरा
तो बना ही आ है ।”
“यह बात तो है ।”
अगर अिभजीत घोष वा तव म ही इतने दमदार मडर लान बनाता था, तो इसम कोई
शक नह क उसके उप यास को आधार बनाकर कभी भी कोई ह या हो सकती थी ।
बहरहाल अिभजीत के बारे म हम लोग के बीच चचाएं खूब होती थ । उन चचा से
मुझे एक फायदा ज र आ । म अिभजीत घोष के बारे म काफ कु छ जान चुक थी । जैसे
वह पचपन-साठ साल का अधेड़ क तु तंद त बु ा था और मु बई के पॉश इलाके म
रहता था ।
इसी दौरान मुझे अिभजीत घोष का एक उप यास पढ़ने का मौक़ा भी िमला ।
वाकई!
मडर िम ी तो वह आदमी खूब िलखता था ।
वह उप यास पढ़ने के बाद म भी उस लेखक क फै न हो गयी ।
☐☐☐
गौतम पटेल अब मेरे घर भी काफ आने-जाने लगा था ।
पर तु न जाने य कभी-कभी उसक गितिविधयाँ ब त सं द ध हो जाती थ और तब
ऐसा मालूम होता था, जैसे वह कसी च र म है ।
एक दन म बाथ म म थी और ान कर रही थी । गौतम पटेल कमरे म बैठा था । तभी
मुझे ऐसा लगा, जैसे कसी ने मेरा कबड खोला हो ।
मेरी सम त इि यां सजग हो उठ ।
मने ान करते-करते िझरी म-से बाहर झांककर देखा । यह देखकर मेरे आ य से ने
फट पड़े क गौतम पटेल ने मेरा कबड खोला आ था और वह िब कु ल चोर क तरह
उसम कु छ तलाश रहा था ।
म ज दी से कपड़े पहनकर बाहर िनकली ।
मेरे यूं अ यािशत ढंग से बाहर िनकलने पर गौतम पटेल थोड़ा सकपका उठा ।
“ या बात है?” म उस पर डायरे ट हमला करते ए बोली- “तुम इस तरह मेरे कबड म
य घुस रहे हो ?”
“दरअसल तु हारे कु छ पुराने ेिमय क त वीर देख रहा था ।”
मेरे हाथ-पैर म बफ जैसी लहर दौड़ गयी ।
पुराने ेमी ।
मने देखा, गौतम पटेल के हाथ म उस समय दो त वीर थ ।
एक त वीर मेरी शंकर के साथ थी और दूसरी आ द य के साथ ।
“जहाँ तक म समझता ँ ।” गौतम पटेल एक त वीर को दखाता आ बोला- “यह
शंकर है । शंकर, एक पेशेवर चोर ! िजसके जीवन म दो ही शौक थे, चोरी करना और
शादी करना । वह बीस शा दयाँ कर चुका था और इ सव शादी करने जा रहा था,
ले कन... !”
“ले कन या ?”
मेर शरीर का एक-एक रोआं खड़ा हो गया ।
मुझे तुरंत याल हो आया । गौतम पटेल एक जासूस भी है । शहर के अपराध तं पर
उसक बड़ी पैनी िनगाह रहती है ।
“ले कन शंकर क वह इ सव ेिमका हद से यादा चालाक िनकली माय हनी डा लग
!” गौतम पटेल कु छ टाइल के साथ मु कु राकर बोला- “वह उसे अपना िशकार बना पाता,
उससे पहले उस इ सव ेिमका ने ही उसे अपना िशकार बना डाला । शंकर क इ सव
ेिमका ।” गौतम पटेल ने ब त अभे नज़र से मुझे घूरा- “कह शंकर क वो इ सव
ेिमका तुम ही तो नह थी माय वीट हाट ?”
“यह या बकवास लगा रखी है तुमने ?” म चीख उठी- “लगता है, तुम पागल हो गये
हो गौतम !”
“ य ?” गौतम पटेल बोला- “शंकर के साथ वाली तु हारी यह त वीर तो यही कहानी
कह रही है क तुम उसक इ सव ेिमका थी ।”
मुझे एकाएक कोई जवाब देते न बना ।
मेरे ऊपर अब घबराहट बुरी तरह हावी होने लगी थी ।
“और यह आ द य है ।” गौतम पटेल ने अब दूसरी त वीर पर दृि पात कया- “बेचारा
आ द य! िजसक लाश यूिनव सटी पाक म पड़ी िमली और गोरखपुर के स पूण पुिलस
िडपाटमट ने यही समझा क उसे कसी चेन ेकर या बूट लैगरस ने मार डाला है ।”
“तो और स ाई या थी ?” मने ब त दबंग लहजे म कहा- “स ाई भी तो यही थी क
आ द य को कसी चेन ेकर या बूट लैगरस ने मार डाला था ।”
“स ाई यह नह थी नताशा !” गौतम पटेल एकाएक दुदात लहजे म बोला- “स ाई
ये थी क आ द य को उसक ेिमका ने मारा था । को ड लािडड मडर कया था उस
शरीफ आदमी का । और उसका कसूर... उस शरीफ आदमी का कसूर बस इतना था क वह
उससे शादी नह कर सकता था । हालां क वह उस लड़क को सचमुच यार करता था,
ले कन अपने माई-बाप क बात टालने क िह मत उसके अ दर नह थी और इसी क सजा
आ द य को भुगतनी पड़ी । उसी लड़क ने ब त खतरनाक ढंग से उसक जान ले ली,
िजससे वो सबसे यादा यार करता था ।”
म च क उठी ।
मेरे चेहरे पर अचरज के भाव दौड़े ।
“त... तुम यह सब बात कै से जानते हो क आ द य क िज दगी म कोई लड़क भी थी ?”
“ य क मैडम नताशा !” गौतम पटेल एक-एक श द चबाता आ बोला- “म उसी
आ द य का छोटा भाई ँ । आ द य, िजसका पूरा नाम आ द य पटेल था ।”
“नह !”
मेरे मुंह से चीख िनकल गयी ।
मेरे दमाग म अनार छू टते चले गये ।
गौतम पटेल, आ द य का छोटा भाई । मेरे सभी मसाम ने एक साथ ढेर सारा पसीना
उगल दया ।
उफ़ !
या मायाजाल था ।
“मैडम नताशा !” गौतम पटेल अब मुझे धधकती िनगाह से घूर रहा था- “िजस दन
मेरे बड़े भाई क खून से सनी लथपथ लाश यूिनव सटी पाक से बरामद ई, म उसी दन
समझ गया था वह कसी सड़कछाप लुटेरे का काम नह है बि क आ द य क ी- लांड
ह या क गयी है और वो ह या तुमने क है । ले कन तब अपनी बात को सािबत करने के
िलये मेरे पास सबूत नह थे । कसी के पास सबूत नह थे । उसके बाद गोरखपुर म ‘लेडी
कलर’ का आतंक फ़ै ल गया । न जाने य तब एक बार फर मेरे शक क सुई तु हारी
तरफ घूमी । मुझे लगा, तु ह वो लड़क हो, जो गोरखपुर म इस तरह एक के बाद
एकअपने ेिमय का मडर कर रही हो । मने तु हारी हक कत का पदाफाश करने के िलये
तु हारे इद-िगद एक जाल बुना ।”
“जाल !” मेरे वर म कौतुहलता साफ़-साफ़ झलक - “कै सा जाल?”
“उस दन ‘तरं ग टॉक ज’ से वापस लौटते समय जो तीन लड़के तु हारे साथ छेड़-छाड़
कर रहे थे, वह मेरे ही जासूस साथी थे और मेरे कहने पर ही उ ह ने वो ामा अंजाम दया
। हालां क कसी लड़क से संपक बनाए क वह टाइल ब त िघसी-िपटी थी, ब त पुरानी
थी और फ़ मी थी । ले कन फर भी मेरा वह ामा काम कर गया और शायद इसिलये
काम कर गया, य क फ म म भी उस तरह का ामा भले चाहे कतनी ही बार रपीट
हो चुका हो, ले कन आम िज दगी म वैसे ामे कम ही होते ह।”
“य...यािन तुमने मुझसे ेम नह कया ।” मेरे दल- दमाग पर प थर से गड़गड़ाते ए
िगरे - “तुम भी मुझसे िसफ ेम का नाटक ही कर रहे थे ?”
“इसम कोई शक नह ।” गौतम पटेल बेिहचक बोला- “ क म तु हारे साथ ेम का
नाटक कर रहा था और इसिलये कर रहा था, ता क तु ह आ द य क ह या के इ जाम म
िगर तार कर सकूं । ता क तु हारे िखलाफ ऐसे सबूत इक ा कर सकूं , िजनसे सािबत हो
जाये क तु ह ‘लेडी कलर’ हो ।”
“यू चीट !” म अ िवि क भांित िच ला उठी- “यू फु िलश! बा टड !”
मुझे मानो गु से का दौरा पड़ गया ।
जबरद त दौरा ।
यह अव था ही मुझे पागल बना देने के िलये पया था क मेरा ‘वो सातवाँ’ ेमी भी
धोखेबाज था ।
वह एक छोटी-सी टेबल रखी थी । मने तुरंत वो टेबल उठाकर ब त जोर से गौतम
पटेल के ऊपर ख चकर मारी ।
गौतम पटेल बुरी तरह हड़बड़ा उठा । शायद उसे मेरी तरफ से ऐसे अ यािशत हमले
क उ मीद नह थी ।
वो नीचे झुका ।
टेबल ब त जोर से उसके िसर के ऊपर से सनसनाती ई गुज़री और सामने दीवार से
जाकर टकराई ।
म उसके ऊपर दूसरा हमला कर पाती, उससे पहले ही गौतम पटेल ने झपटकर अपनी
पॉइं ट अड़तीस कै लीबर क रवा वर बाहर िनकाल ली और उसे मेरी तरफ ताना ।
“खबरदार !” वो दहाड़ा- “खबरदार! अगर कोई और हरकत क तो !”
ले कन म मानो पागल हो चुक थी ।
मुझे उस पल कु छ भी नजर नह आ रहा था ।
मने आंधी-तूफ़ान क तरह अब झपटकर वह रखा िम ी का एक गमला उठा िलया ।
धांय!
गौतम पटेल ने रवा वर का ेगर दबा दया ।
मेरे हाथ म मौजूद िम ी का गमला िब कु ल इस तरह फटा, जैसे मेरे हाथ म ही कोई बम
फट पड़ा हो ।
मेरी वीभ स चीख िनकल गई ।
“तुम आज नह बचोगी ।” गौतम पटेल कहर भरे वर म बोला- “तु ह आज उन सभी
ह या का िहसाब देना होगा, जो तुमने क है ।”
गौतम पटेल ने धांय-धांय पुन: दो फायर कये ।
मेरे होश उड़ गये ।
मेरे ऊपर आतंक हावी हो गया ।
म उन गोिलय से बचती ई त काल वहां से भागी ।
म घर से बाहर िनकल पाती, उससे पहले ही गौतम पटेल मेरी मंशा भांपकर दौड़ता
आ दरवाजे के पास जा खड़ा आ और उसने दरवाजा अ दर से बंद कर िलया ।
उसके बाद उसने रवा वर हाथ म पकड़े-पकड़े फर मेरी तरफ अबाउट टन िलया ।
मेरे और होश उड़ गये ।
गौतम पटेल गोली चला पाता, उससे पहले ही म अि तीय फु त के साथ दौड़ती ई
दूसरे कमरे म जा घुसी और मने धड़ाक से दरवाजा भीतर से बंद कर िलया ।
☐☐☐
म पहली बार एक खतरनाक ित द ं ी का सामना कर रही थी ।
ऐसे ित द ी का, िजससे मेरी जान को पूरा-पूरा खतरा था ।
म वह दरवाजे से पीठ लगाकर खड़ी हो गयी और बुरी तरह हांफने लगी । यह एहसास
मुझे अ दर तक िहलाये दे रहा था क मेरा वह सातवां ेमी भी धोखेबाज था ।उसने भी
मेरे साथ ेम का खेल खेला था । मेरे कान म पुन: उस साधु के वा य गूंजने लगे, जो मुझे
‘गोरखनाथ मं दर’ म िमला था ।
“नह ! नह ! !” म गु से से कांप उठी- “म गौतम पटेल को भी नह छोडू गं ी । मने आज
तक कसी को धोखा नह दया । सभी ने मुझे धोखा दया । सब धोखेबाज ह ।”
म िह मत करके दरवाजे के पास से हटी और फर मने बड़ी तेजी से उसी कमरे म बने
टोर म क तरफ कदम बढ़ाए ।
मेरी टांग अजीब से अहसास से काँप-काँप जा रही थ । मेरे शु क होठ पर बार-बार
पपड़ी-सी जम जाती ।
गौतम पटेल!
गौतम पटेल!!
वही एक नाम मेरे दमाग म हथौड़े क तरह बज रहा था ।
टोर म के पास प च ं कर मने उसका दरवाजा खोला और फर अ दर दािखल ई ।
सामने ही लोहे का एक बड़ा-सा संदक ू रखा था ।
मने संदक ू खोल डाला और फर उसम भरे कपड़े िनकाल-िनकालकर आनन-फानन
बाहर फकने लगी ।
जैसे ही संदकू खाली आ, तुरंत मेरी िनगाह रवा वर पर जाकर ठहर गयी ।
रवा वर उस संदक ू म कपड़ के नीचे छु पाकर रखा गया था और वो पॉइं ट टू एट
कै लीबर क वही रवा वर थी, िजससे म पहले भी कई ह याएं कर चुक थी ।
मने झपटकर वो रवा वर उठा ली ।
या म आज फर उस रवा वर से एक और ह या करने म कामयाब हो सकूं गी ?
मेरा िव ास डोलने लगा ।
आिखर गौतम पटेल एक जासूस था ।
उसक ह या करनी इतनी आसान नह थी, िजतनी आसानी से मने अपने पहले ेिमय
क ह या कर डाली थी ।
तभी मुझे टेलीफोन का यान आया, जो बगल वाले कमरे म मौजूद था और वह गौतम
पटेल मौजूद था । गौतम पटेल टेलीफोन ारा अपना कोई मददगार वहां बुला सकता था ।
म रवा वर हाथ म पकड़े-पकड़े कमरे क िखड़क के नजदीक प च ँ ी और मने िखड़क म
मुि कल से दो इं च िझर पैदा करके बाहर वाले कमरे म झांका ।
म स रह गयी ।
गौतम पटेल उस समय टेलीफोन पर ही कसी से बात कर रहा था और रवा वर अब
भी उसके हाथ म थी । फर उसके टेलीफोन का रसीवर वापस े िडल पर रख दया ।
मने िखड़क से ही त काल एक फायर कया ।
ले कन गौतम पटेल क क मत अ छी थी । उसी समय उसक िनगाह मेरे ऊपर पड़
गयी ।
वह झुका ।
उसक खोपड़ी तरबूज क भांित फटने से बस बाल-बाल बची ।
म फु त के साथ अब दरवाजे क तरफ झपटी । दरवाजे क कुं डी खोली और बाहर
िनकली ।
म जानती थी, अब वहां कना खतरनाक है ।
जैसे ही म कमरे से बाहर िनकली, तभी गौतम पटेल ने भी मेरे ऊपर फायर कया ।
मेरे माथे पर मौत के पसीने चुहचुहा आये ।
म चीखते ए एकदम नीचे बैठ गयी ।
“बेवक़ू फ़ लड़क !” गौतम पटेल चंघाड़ा- “म आज तु ह नह छोडू ग ं ा । तु हारी मौत
आज िनि त है ।”
मने बैठे-बैठे फरकनी क तरह घूमकर एक फायर कया ।
गौतम पटेल के अंितम श द एक भयावह चीख म त दील हो गये ।
गोली ठीक सनसनाती ई उसक जांघ म जाकर धंसी थी । वह चीखता आ अपनी
जांघ पकड़कर नीचे झुका ।
हालां क म उस समय मैदान छोड़कर भागने क इ छु क थी, ले कन तब म ठठक गयी ।
मुझे लगा, क मत मेरे साथ है ।
म फर जीत सकती ँ ।
म अपनी टांग फै लाकर खड़ी हो गयी तथा मने दो फायर और कये ।
दोन गोिलयां गौतम पटेल के सीने म जाकर लग ।
वह कु े क तरह डकरा उठा । उसके सीने से खून का फ वारा इस तरह छू टा, जैसे
कसी ने नल खोल दया हो ।
वो धड़ाम से नीचे िगरा ।
पर तु िगरते-िगरते उसने रवा वर का ेगर दबाना चाहा, मगर कामयाब न आ ।
उसक कं पकं पाती उं गली ेगर के नजदीक प च ँ ी । एक ण के िलये ऐसा लगा, वह ेगर
दबा देगा । ले कन वो ेगर दबा पाता, उससे पहले ही उसके हाथ क पकड़ रवा वर के
ऊपर ढीली पड़ गयी और रवा वर उसके हाथ से छू टकर नीचे जा िगरी ।
वह खुद भी िगरा ।
“ लडी िशट !” मने ब त जोर से अपनी ऊंची हील वाला सिडल उसके मुंह पर ख चकर
मारा- “म नफ़रत करती ँ तुमसे । स त नफ़रत! तुम सब मद एक जैसे हो । धोखेबाज !
पाखंडी ! कु े क जात के ! िजस तरह आ द य ने मुझे धोखा दया, उसी तरह तुमने भी
मुझे धोखा दया । यू आर ए क नंग फे लो । आई हेट यू !”
मने ोध म एक और दनदनाती ई लात उसके चेहरे पर जड़ी ।
गौतम पटेल मर चुका था ।
मगर उसक आँख खुली ई थ और उन खुली ई आँख म अंितम ण तक मेरी िलये
नफ़रत थी ।
☐☐☐
तभी एकाएक ‘अली नगर’ का वह सारा इलाका पुिलस सायरन क आवाज से गूँज उठा

म दहल गयी ।
उफ़ ! तो गौतम पटेल ने मरने से पहले पुिलस को वहां बुला िलया था ।
वह मरते-मरते भी मेरे िलये संकट खड़ा कर गया था ।
पुिलस सायरन क आवाज जोर-जोर से उस सारे वातावरण को कं पकं पा रही थी । ऐसा
मालूम होता था, जैसे वह कई सारी पुिलस पे ो लंग कार थ , जो उस पूरे े क घेराबंदी
कर रही थ ।
म पसीने म नहा गयी ।
मेरे शरीर का एक-एक र गटा खड़ा हो गया ।
मने तुरंत फं गर ंट िमटाकर अपनी पॉइं ट टू ऐट कै लीबर क रवा वर वह गौतम
पटेल क लाश के पास फक तथा फर दरवाजा खोलकर बेपनाह फु त के साथ घर म से
भागी ।
शु था, पुिलस अभी वहां नह प च ँ ी थी ।
मने एक बार भागना शु कया, तो फर पता नह म कब-तक भागती चली गयी ।
म बस भागती रही ।
भागती रही ।
पुिलस के सायरन क आवाज िनरं तर मेरे कान म गूँज रही थ । मुझे ऐसा लग रहा था,
जैसे पुिलस मेरे पीछे लगी हो ।
वह अजीब दहशत का माहौल था ।
मेरा चेहरा िब कु ल सफ़े द फ पड़ा आ था । ह ठ कागज़ क तरह फड़फड़ा रहे थे ।
मुझे िसफ इतना मालूम है, मुझे जब होश आया तो म गोरखपुर रे लवे टेशन पर खड़ी
थी ।
म दौड़ती ई एक ेन म चढ़ गयी ।
मुझे नह मालूम, वह ेन कौन सी थी ?
मुझे यह भी नह मालूम, वह ेन कहाँ जा रही थी ? मुझ िसफ इतना पता था क म
जब उस ेन म चढ़ी, तो वह धीरे -धीरे लेटफाम छोड़ रही थी और फर देखते-ही देखते
उसने पीड पकड़ ली ।
वह तूफानी गित से पट रय पर दौड़ने लगी ।
म उसी िड बे म एक सीट पर बैठ गयी और बुरी तरह हांफने लगी ।
मेरी सांस उखड़ी ई थ और मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरा दल उछल-उछल कर
पसिलय को कू ट रहा हो ।
मेरी सांस जब थोड़ी वि थत , तो मने देखा क िजस िड बे म म बैठी ई थी, वह
फ ट- लास क पाटमट था ।
म काँप गयी ।
मने िखड़क से बाहर झांककर देखा, गोरखपुर अब धीरे -धीरे पीछे छू ट रहा था ।
वह गोरखपुर पीछे छू ट रहा था, जहाँ मेरा ज म आ । जहाँ बचपन क वेदना मने सही
। िजस शहर म मने अपने सात ेिमय को मौत के घाट उतारा । गोरखपुर के साथ-साथ
अब मेरी ढेर सारी याद पीछे छू टती जा रही थ ।
मेरे िज दगी अब एक नई दशा म भाग रही थी ।
ऐसी दशा म, िजसके बारे म मुझे खुद कु छ मालूम न था ।
“ टकट लीज !”
तभी वह आवाज मेरे कान म पड़ी ।
मेरे शरीर का पुजा-पुजा काँप गया ।
मने पलटकर देखा, वह टी.सी. ( टकट-चैकर) था, जो टकट चेक करता आ धीरे -धीरे
मेरी तरफ बढ़ रहा था ।
म बेचैन हो गयी ।
म तूफानी पीड से दौड़ती उस ेन से उतरकर भाग भी तो नह सकती थी ।
मेरा आधे से यादा शरीर पसीने म लथपथ हो गया और मुझे जेल के सीखंचे दखाई
पड़ने लगे ।
जेल!
िजस जेल से बचने के िलये म अपना भरा-पूरा घर छोड़कर भागी थी, वही जेल फर
मेरे सामने थी ।
“यस मैडम !” तभी टी.सी. मेरे नजदीक आकर खड़ा हो गया- “ टकट !”
“ट… टकट !”
“हाँ मैडम ! आपने कहाँ जाना है ? आप कृ पया अपना टकट दखाइए ।”
म भला टकट कहाँ से दखाती ?
“ल… ले कन... ।”
“ऑ फसर… यह मेरे साथ है ।” म अपनी बात पूरी करती, उससे पहले ही कोई मेरे
पीछे से बोल पड़ा- “दरअसल म ज दबाजी म इनका रज़वशन न करा सका । मगर आप
चंता न कर । आप जो भी जुमाना कहगे, म भरने के िलये तैयार ँ ।”
मचक ।
मने पलटकर उस फ़ र ते क श ल देखी, िजसने यूं बड़े अ यािशत ढंग से मेरी मदद
क थी ।
और उसक श ल देखते ही मेरे दल- दमाग पर भीषण िबजली गड़ागड़ा कर िगरी ।
वह अिभजीत घोष था ।
िह दु तान का िस जासूसी उप यासकार- अिभजीत घोष!
यह से मेरी िज दगी के एक िब कु ल नए और धमाकाखेज अ याय क शु आत ई ।
☐☐☐

दो
दो त ! अब तक म एक बात ब त अ छी तरह समझ चुक थी ।
यही क ‘पु ष का ेम’ मेरे जीवन म नह है ।
अगर ‘गोरखनाथ मं दर’ म िमले उस साधु क बात गलत होती, तो अब तक कसी न
कसी पु ष का ेम मुझे ज र हािसल हो गया होता । फर मुझे यूं सात ह याएं करने क
आव यकता न पड़ती । यािन अब इस बात के ित मेरा िव ास भी दृढ़ हो गया था ।
मने एक संक प और कया ।
अगर अब कोई ेमी मेरे जीवन म आयेगा भी तो म उसे अपने जीवन म नह आने दूग ं ी।
य क म नह चाहती थी, मुझे फर अपने कसी नए ेमी से धोखा खाना पड़े तथा पुन:
कसी के खून से अपने हाथ रं गने पड़े । म अब एक पुरसकू न िज दगी गुजारने के मूड म थी,
िजसम कोई हलचल न हो । यािन अब मने अपनी क मत के आगे पूरी तरह घुटने टेक दए
थे और फलहाल म कोई नई ेम-लीला रचाने के मूड म नह थी ।
यह एक तरह से मेरी हार थी ।
पर तु म धोखा खा-खाकर इतना थक चुक थी क फलहाल मुझे अपनी वो हार भी
दल से कबूल थी ।
इस व , टी.सी. अपना जुमाना लेकर जा चुका था और म अिभजीत घोष के सामने
वाली सीट पर बैठी थी ।
वो ए स ेस ेन पहले क भांित धुंआधार पीड से पट रय पर दौड़ी जा रही थी ।
“ या म तु हारा नाम पूछ सकता ँ ?” अिभजीत घोष अपलक मुझे िनहारता आ
बोला ।
“न… नाम ?”
“हाँ, बशत तु ह अपना नाम बताने म कोई एतराज न हो तो ।”
“नह … नह ।” म तुरंत बोली- “मुझे भला अपना नाम बताने म या ऐतराज हो
सकता है । मेरा नाम नताशा शमा है ।”
मने उसे बेिझझक अपना असली नाम बता दया ।
हालां क म उसके सामने अपना कोई ‘फज नाम’ ले सकती थी, मगर मने ऐसा नह
कया ।
य नह कया ?
यह मुझे भी नह मालूम था ।
अिभजीत घोष पचपन-साठ बरस का अधेड़ ि था, ले कन फर भी उसका ि व
काफ आकषक था । उसने काफ मू यवान सूट पहना आ था । टाई लगाई ई थी और
हाथ म ‘बजक’ कं पनी का एक याह काला िसगार था, िजसके वह बीच-बीच म छोटे-छोटे
कश लगाता था ।
“तुम इस व कहाँ जा रही हो ?”
“इस बारे म म कु छ नह जानती ।”
“ या मतलब?” अिभजीत घोष सीट पर बैठा-बैठा इस तरह िच क ं ा, जैसे उसे जोर से
िब छू ने काट खाया हो- “तु ह यह भी मालूम नह क तुम कहाँ जा रही हो ? तु हारी
मंिजल या है ?”
“नह !”
“आ य है ।”
म चुप बैठी रही ।
“ या तु हारे माँ-बाप तु हारी गलत जगह शादी करना चाहते थे, जो तुम घर छोड़कर
भागी हो ?”
“ऐसी कोई बात नह है घोष साहब ।”
अिभजीत घोष अपने ‘बजक’ िसगार का कश लगाते-लगाते कु छ ठठका ।
उसने मुझे गौर से देखा ।
“तुम मुझे पहचानती हो ?”
“हाँ !” मने वीकृ ती म गदन िहलाई ।
“कौन ँ म ?”
“आपका नाम अिभजीत घोष है और आप िह दु तान के िस जासूसी उप यासकार ह
।”
“चलो शु है ।” अिभजीत घोष ने राहत क ल बी सांस ली- “कम-से-कम एक तरीके
क बात तो तुम जानती हो ।”
म कु छ न बोली ।
“ले कन फर भी कह तो जा रही होओगी तुम ?” अिभजीत घोष बोला- “कह -न-कह
प चँ ने के िलये तो तुम इस ेन म चढ़ी होओगी ?”
“म िसफ ज द-से-ज द गोरखपुर से दूर हो जाना चाहती ँ ।” म तापूवक कहा-
“इसीिलये म इस ेन म चढ़ी थी ।”
“थक गॉड! तुम तो मेरे उप यास के करे टर से भी यादा रह यमयी ढंग से बात
करती हो । ले कन गोरखपुर से भी दूर य जाना चाहती हो तुम ?”
“वह एक ल बी कहानी है ।”
“ कतनी ल बी ?”
“ब त ल बी !” म बोली- “ फलहाल मेरे िसर म दद है । म उस बारे म बात भी नह
करना चाहती ।”
“ठीक है ।” अिभजीत घोष बोला- “म इस व मु बई जा रहा ँ । जब तक तुम अपनी
मंिजल के बारे म कोई फै सला न कर लो, तब तक अगर तुम चाहो, तो मेरे साथ मेहमान के
तौर पर रह सकती हो ।”
मुझे अिभजीत घोष का वह ताव बेहतर लगा ।
वैसे भी इस व कह -न-कह िसर छु पाने के िलये मुझे एक छत क ज रत तो थी ही ।
☐☐☐
मु बई रे लवे टेशन पर जो आदमी अिभजीत घोष को रसीव करने आया, वह भी एक
अलग ही दुिनया का ाणी था ।
नाटा कद ।
भारी डील-डौल ।
आधे से अिधक गंजा िसर ।
अलब ा उसने सफ़े द फ वद पहनी ई थी । सफ़े द पीक-कै प लगाई ई थी, िजस पर
सुनहरी चेन लगी ई थी । साफ़ जािहर हो रहा था, वह अिभजीत घोष का ाइवर है ।
वो रे लवे टेशन के बाहर एक चमचमाती काली कै डीलॉक कार िलये ती ा कर रहा
था ।
“नम ते साहब !” ाइवर क िनगाह जैसे ही अिभजीत घोष पर पड़ी, उसने आगे
बढ़कर अिभजीत घोष के हाथ से ीफके स िलया ।
“नम ते !” अिभजीत घोष बोला- “कै से हो माधवन ?”
उसका नाम माधवन था ।
ज र वो राज थानी था ।
“पीछे बंगले पर तो सब-कु छ ठीक-ठाक रहा ?”
“जी साहब !”
तभी माधवन क िनगाह मेरे ऊपर जाकर ठठक ।
अपने साहब के साथ एक सु दर लड़क को देखकर उसे हैरानी ई थी । वह च का ।
“इनसे िमलो माधवन !” अिभजीत घोष बोला- “यह नताशा है ।”
“नम ते मेम साब !”
माधवन ने फ़ौरन अपने हाथ जोड़ दए ।
“नम ते !”
“यह हम लोग क मेहमान ह । अब यह कु छ दन हम लोग के साथ बंगले पर ही रहगी
।”
“ब त अ छा साहब !”
इस बीच अिभजीत घोष और म काली कै डीलॉक क िपछली सीट पर बैठ चुके थे ।
मुझे यह कहने म कोई िहचक नह , म िज दगी म पहली बार इतनी मू यवान कार म
बैठी थी ।
माधवन ने भी अपनी ाइ वंग सीट संभाली ।
तुरंत वह काली कै डीलॉक मु बई शहर क सड़क पर तूफानी पीड से भागने लगी ।
यह मेरा एक िब कु ल नई और चमचमाती दुिनया म आगमन था । म सब कु छ ब त
िवि मत िनगाह से देख रही थी । खासतौर पर अिभजीत घोष जैसे अ यंत नामचीन और
इतने बड़े आदमी ने िजस तरह मुझे आ य दया था, वह भी कु छ कम अचरज ह ‘ पूण न
था ।
आिखर अिभजीत घोष मेरे बारे म जानता भी या था ?
कु छ भी नह ।
और उससे भी यादा अचरजपूण ये था, अिभजीत घोष ने अभी तक मेरे बारे म जानने
का कोई ब त यादा यास भी नह कया था ।
☐☐☐
अिभजीत घोष का मड-आइलड म काफ बड़ा बंगला था ।
मड आइलड, जो मु बई से थोड़ा अलग हटकर था । शांितपूण े था और अ यंत
ऐ यशाली सुख-सुिवधा से पूण था । वहां ऐसे िनमाता, िनदशक, फ म-कलाकार और
बड़े-बड़े तकनीिशयन के बंगले बने ए थे, जो मु बई क गहमा-गहमी दुिनया से दूर
भागना चाहते ह । ऐसे म मड-आइलड म प च ं कर उ ह आ याि मक शाि त महसूस होती
थी ।
“हालां क मड आइलड मु बई से थोड़ा दूर ज र है ।” अिभजीत घोष अपना ‘बजक’
िसगार सुलगाते ए बोला- “ले कन मेरे जैसे लेखक के िलये यह जगह ब त ही ब ढ़या है
और िसफ मेरे जैसे लेखक के िलये ही य , यह मड-आइलड तो हर उस आदमी के िलये
ब त ब ढ़या जगह है, जो शाि त का तम ाई हो । सकू न का तम ाई हो और साफ-सुथरी
हवा को पसंद करता हो । इस त हा इलाके म मेरे दमाग के अ दर ऐसे-ऐसे ‘खतरनाक
लाट’ ज म लेते ह, जो पहले कभी ज म नह लेते थे ।
खतरनाक लाट!
वह बात कहकर खुद ही ब त जोर से हंसा अिभजीत घोष ।
म भी मु कु राई ।
“आप पहले कहाँ रहते थे ?”
“पहले म जु तारा रोड पर रहता था ।” अिभजीत घोष ने िसगार का एक कश लगाया-
“हालां क वो काफ पॉश इलाका है, ले कन सकू न और साफ़ हवा क चाहत ने मुझे मड-
आइलड क तरफ ख च िलया ।”
“ओह !”
कै डीलॉक कार तूफाने गित से सड़क पर दौड़ती रही ।
वह मड-आइलड क तरफ़ भागी जा रही थी ।
“आप वहां अके ले रहते ह ?”
“नह ! म अके ला कहाँ ?ँ ” अिभजीत घोष बोला- “बंगले के िजतने कमचारी ह, वह
सब मेरे साथ ह । इसके अलावा उप यास के िजतने भी करै टर ह, वह हरदम मेरे साथ
होते ह । बड़े-बड़े दुदात काितल, ठग, लुटेरे और पुिलस ऑ फसर ! देखा, म चौबीस घंटे
कै से-कै से लोग से िघरा रहता ँ ?”
“आप सचमुच काफ दलच प ह ।”
“एक आदमी को दलच प होना भी चािहए ।”
“आपने शादी य नह क घोष साहब ?”
मेरे उस पर अिभजीत घोष थोड़ाउदास हो गया ।
लगता था, मने उसके दल का कोई तार छेड़ दया था ।
“शादी भी मने करनी चाही थी ।” अिभजीत घोष ने िसगार का एक और कश लगाया-
“ले कन शायद शादी मेरे नसीब म नह िलखी थी । मने िजस लड़क से मोह बत क ,
उससे मेरी शादी नह हो सक , य क उसका बाप एक बड़ा पैसे वाला आदमी था और म
अपने शु आती दन म या था, एक संघषशील लेखक । पैसे-पैसे का मोहताज लेखक!
भला ऐसे म कौन अपनी लड़क का हाथ मेरे हाथ म देकर उसक क मत फोड़ता । उसके
प ात मेरे उप यास एक के बाद एक िहट होते चले गये । मेरा नाम देश भर म फ़ै लने लगा
। मेरे पास दौलत आने लगी । मेरी हर मुराद पूरी ई, ले कन फर वही मेरी िज दगी म न
आई, िजसक मुझे सबसे यादा चाहत थी ।”
अिभजीत घोष ने एक ल बी सांस ख ची ।
“सच बात तो ये है ।” वह थोड़ा ककर बोला- “ कसी ने इस बाबत आज मुझसे सवाल
भी एक ल बे अरसे बाद पूछा है, शायद बीस-प ीस साल बाद । वरना हर कोई मेरे
उप यास पर ही चचा करता है । हर कोई यही जानना चाहता है क म अब कस स जे ट
पर नया उप यास िलख रहा ँ ।”
“सॉरी घोष साहब !” म बोली- “लगता है, मने आपका दल दुखाया है ।”
“नह ! ऐसी कोई बात नह ।”
अिभजीत घोष ने ‘बजक’ कं पनी के उस िसगार का एक कश और लगाया ।
कार अब मड-आइलड े म िव हो चुक थी ।
चार तरफ अब ल बी-चौड़ी सड़क और बड़े-बड़े बंगले ही दखाई पड़ रहे थे । ऐसा
महसूस होता था, मानो बंगल क एक ृंखला अंतहीन दूरी तक चली गयी है । उन बंगल
म अ सर फ म और सी रय स क शू टंग भी होती रहती थी । अब भी हो रही थी ।
वहाँ यादातर बंगले बने ही इस मकसद के िलये थे ।
कै डीलॉक कार अब चढ़ाई वाले रा ते पर दौड़ने लगी।
फर वो अ यंत भ बंगले के सामने प च ं कर क ।
वह काले प थर से बना एक ब त बड़ा बंगला था । ऊंची बाउं ी वाल थी, िजस पर
कटीले तार लगे थे । एक िवशाल आयरन गेट था और आयरन गेट के उस पार एक लंबा-
चौड़ा ाइव-वे नज़र आ रहा था । आयरन गेट के बराबर म ही लगी एक त ती पर िलखा
था- ‘अिभजीत घोष’
माधवन ने जोर से कार का हॉन बजाया ।
फ़ौरन अ दर से ‘बहादुर’ (नेपाली चौक दार) दरवाजे क तरफ भागता दखाई दया ।
उसने आयरन गेट खोला ।
त काल कार बंगले के ल बे-चौड़े ाइव-वे पर भागती चली गयी ।
☐☐☐
फर इस दुिनया के शायद सबसे यादा रह यमयी आदमी से मेरी मुलाक़ात ई ।
आप लोग को लग रहा होगा, म अितशयोि से काम ले रही ,ँ मगर ऐसी बात नह है
। वह अिभजीत घोष के जासूसी पा से भी कह यादा रह यमयी था और उसक
खामोशी तो ज़बरद त स पस पैदा करती थी ।
वह अरे िबयन घोड़ा था ।
िब कु ल चांदनी क तरह सफ़े द फ ।
उस घोड़े पर एक आदमी राइ डंग कर रहा था और बंगले के िवशाल ांगण म दौड़ा-
दौड़ा फर रहा था । उसक घुड़सवारी का अंदाज़ बड़ा मदाना था, जो बरबस ही कसी को
भी अपनी तरफ आक षत कर ले । वह आदमी भी कु छ कम आकषक न था । वह िब कु ल
इं ि लश फ म के जे स-बांड क तरह ल बा-चौड़ा और छरहरा था । उसने ब त टाइट
ज स पहनी ई थी । चमड़े क जै कट और पैर म ाउन कलर के िजप वाले िशकारी जूत,े
जो बस उसके घुटन से थोड़ा ही नीचे थे ।
“िव म !” अिभजीत घोष ने उसे आवाज दी ।
त काल िव म नाम के उस आदमी ने अरे िबयन घोड़े को जोर से ऐड़ लगायी ।
घोड़ा भी अपनी दोन टांग उठाकर ब त जोर से िहनिहनाया और घूमा । उसके बाद वो
अिभजीत घोष क तरफ दौड़ता चला गया था ।
घोड़ा अिभजीत घोष से मुि कल से तीन फु ट के फासले पर आकर का और िव म ने
बेहद सधे ए अंदाज म नीच छलांग लगायी ।
“गुड इव नंग घोष साहब !”
“गुड इव नंग! कै से हो िव म ?”
“फाइन सर !”
िव म के नजदीक आते ही मुझे उसके अ दर से ऐसी बदबू आयी, जैसी घोड़े क लीद म
से आती है । उसक शे वंग हद दज तक बढ़ी ई थी । उसके बाल खे और बेजान हो चुके
थे । न जाने उसे अपने बाल म कं घा कये और तेल लगाये कतना जमाना गुजर चुका था ।
मने अपनी नाक-भ िसकोड़ी ।
“यह िव म है ।” अिभजीत घोष ने मेरी तरफ देखते ए कहा- “हमारे अ तबल का
ख़ास िस यो रटी गाड, सब कु छ ! िव म जहाँ एक बहादुर इं सान है, वह इसम कु छ
बुराइयाँ भी ह ।”
“कै सी बुराइयाँ ?”
“जैसे यह नहाता ब त कम है ।” अिभजीत घोष ने हंसते ए कहा- “इसके अलावा बात
भी कम करता है ।”
िव म खामोश खड़ा रहा ।
उसके ऊपर उन श द क कोई ित या न ई ।
“ फर भी िव म से तु हारी मुलाक़ात अ छी रहेगी ।” अिभजीत घोष बोला- “िव म
एक ऐसी बंद कताब क तरह है, िजसका कवर कोई ब त अ छा भले ही न सही, ले कन
जैस-े जैसे इस कताब के प े पलटते ह, आदमी क उस कताब को पढ़ने क इ छा-शि
बढ़ती चली जाती है ।”
‘इं टरे टंग! िम टर िव म क शि सयत का आपने काफ अ छा वणन तुत कया है
घोष साहब !”
“आप घोष साहब क बात पर न जाओ मैडम !” िव म ने अपनी खामोशी तोड़ी-
“घोष साहब मेरे बारे म मजाक कर रहे ह ।”
“म मजाक कर रहा ँ या नह , यह तु ह आगे चलकर मालूम होगा । कम ऑन ।”
म अिभजीत घोष के साथ-साथ अब बंगले के अ दर क तरफ बढ़ गयी ।
िव म!
उस आदमी से मेरी पहली मुलाक़ात काफ अजीब थी ।
बंगले म अ दर क तरफ बढ़ते ए मुझे ऐसा तीत आ, जैसे िव म क लेड क धार
जैसी पैनी आँख मेरी पीठ म गड़ी ई ह ।
☐☐☐
अिभजीत घोष का वह बंगला कई एकड़ भूिम म फै ला था । आधी से यादा जगह म तो
खाली कं पाउं ड और ाइव-वे ही था । इसके अलावा इमारत भी काफ िवशालकाय जगह
म िन मत थी । काफ लंबा-चौड़ा प थर का चबूतरा था, िजस पर चार सी ढ़याँ चढ़ने के
बाद ऊपर प च ं ा जाता, फर चबूतरा पार करके इमारत म दािखल आ जाता । वहां कोई
बीस कमरे थे । टडी म था । ाइं ग हाल था और थोड़ा हटकर सव ट ाटर थे ।
कु ल िमलाकर अिभजीत घोष का वह बंगला कसी महल से हरिगज कम न था ।
बंगले के अ दर मेरी एक नौकर से और मुलाक़ात ई ।
अिभजीत घोष को देखते ही उसने भी अपने दोन हाथ जोड़े ।
“इनसे िमलो कु मार!” अिभजीत घोष ने उससे मेरा सबसे ख़ास प रचय कराया-
“इनका नाम नताशा है ।”
“हैलो मैडम !”
“हैलो !”
उस नए नौकर का नाम कु मार था । कु मार साधारण श ल-सूरत वाला आदमी था ।
साधारण कद था और उ तीस-ब ीस साल के आसपास थी । अलब ा वह अपने हाव-
भाव से थोड़ा शाितर मालूम होता था ।
“कु मार, यह मैडम अब कु छ दन इधर बंगले म ही रहगी ।” अिभजीत घोष बोला-
“तुमने इनका ख़ास याल रखना है ।”
“आप िन ंत रह घोष साहब !” कु मार ने त परतापूवक कहा ।
“गुड! मुझे यही उ मीद है । जाओ, इ ह इनका कमरा दखाओ ।”
“आइये मेम साहब !”
अिभजीत घोष जहाँ अब बंगले म अपने बेड म क तरफ बढ़ गया, वह म कु मार के
साथ-साथ चल पड़ी ।
कु मार काफ बातूनी था ।
वह एक ब त लंबा-चौड़ा संगमरमरी गिलयारा था, िजसम से म अब कु मार के साथ
होकर गुजर रही थी ।
“आप शायद घोष साहब के बुआ क लड़क ह मैडम !” कु मार मेरे साथ-साथ चलते ए
बोला- “जो पहले िशमला म रहती थी ।”
“नह ।”
कु मार च का ।
उसने हैरानीपूवक मेरी तरफ देखा ।
“ फर आप घोष साहब क या लगती ह ?”
“कु छ भी नह ।” मने मु कु राकर कहा- ‘दरअसल आपके घोष साहब से मेरी मुलाक़ात
िसफ कु छ घंटे पुरानी है । मेरी ेन म ही उनसे मुलाक़ात ई थी ।”
“ ेन म?”
“हाँ !”
“बड़ी अजीब बात कर रही ह आप ।”
कु मार के चेहरे पर उलझनपूण भाव उभर आये । मुझे देखकर उसके चेहरे पर जो खुशी
पैदा ई थी, वह अब पूरी तरह नदारद हो चुक थी ।
उस ण मुझे अहसास आ, मने कु मार को स ाई बताकर शायद ठीक नह कया ।
ले कन तीर कमान से छू ट चुका था ।
तभी कु मार ने आगे बढ़कर एक कमरे का दरवाजा खोला । कमरा काफ ऐ यशाली ढंग
से सजा आ था और उसम सुख-सुिवधा क लगभग तमाम चीज उपल ध थ ।
“वाऊ! फै टाि टक !” कमरा देखते ही मेरी तबीयत खुश हो गयी ।
“जगह आपको पसंद आयी मैडम ?”
“िब कु ल !”
“अगर आपको कसी चीज क ज रत पड़े, तो िसफ यह बटन दबा देना ।” कु मार ने
अ दर आकर वह बेड के नजदीक लगे एक बटन क तरफ इशारा कया- “म तुरंत यहाँ
उपि थत हो जाऊंगा ।”
मने बटन को यानपूवक देखा ।
“ठीक है ।”
कु मार तब तक जाने के िलये मुड़ चुका था ।
“सुनो !”
कु मार जाते-जाते ठठका ।
“तुम यहाँ या करते हो ?”
“म यहाँ का बावच ँ ।” कु मार ने बताया- “सब लोग के िलये खाना बनाता ँ और
घोष साहब क तमाम ज रत का यान रखता ँ ।”
“घोष साहब के अलावा यहाँ और कतने आदमी ह ?”
“कु ल चार आदमी ह । िव म, माधवन, बहादुर और म… यािन कु मार ।”
“ओ.के . !”
कु मार चला गया ।
☐☐☐
शाम के समय घोष साहब ने और मने एक साथ िडनर कया ।
िडनर वाकई ब त लजीज था ।
हालां क मु बई शहर म यादा ठ ड नह पड़ती, ले कन जहाँ तक मुझे याद आता है,
वह एक सद शाम थी । म भी ठ ड अनुभव कर रही थी और मने शाल लपेट ली थी । मड
आइलड का वह इलाका वैसे भी ब त खुला आ और हवादार था ।
िडनर लेने के प ात हम दोन टडी म आकर बैठ गये ।
“मेरे एक सवाल का जवाब दोगी ?” अिभजीत ने अपलक मेरी तरफ देखते ए कहा ।
उस समय वह ईजी चेयर पर बैठा था ।
एक कताब खुली ई उसक गोद म रखी थी ।
“ य नह ? ज र !”
“तुमने कसका खून कया है ?”
घोष साहब ने एकाएक इतने अ यािशत ढंग से मुझसे वो सवाल पूछा क म उछल
पड़ी ।
“ख...खून?” म हत भ लहजे म बोली- “यह आप या कह रहे ह घोष साहब ?”
“ य ?” अिभजीत घोष के होठ पर ह क -सी मु कान दौड़ी- “ या मने कु छ गलत
कहा ? या तुमने कसी का खून नह कया है ?”
मुझे अपनी जान सूखती अनुभव ई ।
“दरअसल मेरे इस सवाल पर तु ह कोई ब त यादा परे शान नह होना चािहये
नताशा!” अिभजीत घोष बोला- “तुम शायद भूल रही हो, म एक जासूसी उप यासकार ँ
। सुबह से शाम तक म खून-खराबा करने वाले इसी तरह के करदार के बीच जीता ँ ।
तु हारी जानकारी के िलये बता दू,ं तुम िजतनी बुरी तरह हड़बड़ाई ई ेन म चढ़ी थी, म
तभी समझ गया था क तुम कु छ गड़बड़ करके आर रही हो । फर टी.सी. के टकट माँगने
पर तुम िजतनी भयभीत हो उठी थी, उससे तो यह बात और भी यादा सािबत हो गयी ।”
मुझे अपना खून बफ क तरह ठं डा पड़ता अनुभव आ ।
मुझे पहली बार एहसास आ, म वाकई एक द गज जासूसी उप यासकार के सामने थी

“तु हारी उस समय क हालत देखकर दो ही चीज अपेि त थ ।” अिभजीत घोष बाल
क खाल िनकालता आ बोला- “या तो तु हारे माता-िपता तु हारी मज के िखलाफ
तु हारी शादी कर रहे थे, इसिलये तुम अपना घर छोड़कर भाग आयी थ । या फर तुमने
कसी का खून कर दया था । शादी वाली बात तो मने तुमसे वह ेन म पूछ ली थी और
तुमने उस बात से इं कार भी कर दया । अब िसफ एक ही बात संभव थी, तुमने कसी का
खून कर दया है ।”
म हतबु -सी अिभजीत घोष क तरफ देखने लगी ।
अिभजीत घोष!
वो अब ब त शांतिच मु ा म अपना िसगार सुलगा रहा था ।
“य… यह जानते ए भी क म कसी का खून करके आयी ँ ।” मेरे दल- दमाग पर
िबजली-सी गड़गड़ाकर िगरी- “आपने मुझे अपने यहाँ शरण दी ?”
“दरअसल मने तु ह अपने यहाँ शरण ही इसिलये दी।” अिभजीत घोष धमाका-सा
करता आ बोला- “ य क तुम कसी का खून करके भागी थ ।”
☐☐☐
म भौच रह गयी ।
मेरे ने बुरी तरह फट पड़े, मानो अभी अपनी कटो रय से बाहर िनकल पड़गे ।
“य… यह आप या कह रहे ह घोष साहब ?”
“ य ?” अिभजीत घोष बोला- “ या मने कु छ गलत कहा ?”
म अिभजीत घोष को इस तरह देखने लगी, जैसे कसी अजूबे को देख रही होऊँ ।
“दरअसल मुझे तु हारे अ दर एक िनद ष लड़क दखाई दी थी ।” अिभजीत घोष याह
काले िसगार का छोटा-सा कश लगाते ए बोला- “अगर म तु ह उस व जाने देता, तो
तुम न जाने कहाँ-कहाँ भटकती । कहाँ-कहाँ ठोकर खाती । ऐसी प रि थितय म तु ह
सहारे क ज रत थी । अगर मने तु ह सहारा दया, तो या बुरा कया ?”
“यािन आपने यह जानते ए भी क म एक खूनी ,ँ मेरी मदद क ?”
“हाँ !”
मेरी िनगाह म अिभजीत घोष का दजा एकाएक अब ब त बुलंद हो गया ।
“ या तुम यह बताना पसंद करोगी क तुमने कसक ह या क है ? म यह बात भी
तुमसे कसी उ े यवश पूछ रहा ँ ।”
“ कस उ े यवश ?”
“म नह चाहता, तुमने कसी बचकाने अंदाज म वह मडर कर दया हो और वह खून
तु हारी जंदगी म आइ दा कोई फसाद पैदा करे ।”
बात अिभजीत घोष क काफ हद तक ठीक थी ।
मुझे न जाने य अब उस आदमी से कु छ भी छु पाना ठीक न लगा ।
☐☐☐
मेरी िपछली िज दगी म जो कु छ गुजरा था, म वह सब एक ही सांस म अिभजीत घोष
को बताती चली गयी ।
मने उससे कु छ नह छु पाया ।
मेरी गुज़री ई कहानी सुनकर अिभजीत घोष भी एकाएक ब त संजीदा हो गया । वह
ईजी चेयर पर थोड़ा और पसरकर बैठ गया तथा उसने याह काले िसगार का एक कश
लगाया ।
“यह सब ठीक नह आ ।” अिभजीत घोष संजीदा लहजे म ही बोला- “तुम नह
जानती, तुम इस व कतने खतरे म हो ।”
“ या मतलब ?”
“ या तु हारे आिख़री िशकार गौतम पटेल ने जब फोन करके पुिलस को वहां बुलाया,
तो या उसने फोन पर ही पुिलस को तु हारे बारे म सब कु छ बता दया था ?”
“कु छ कह नह सकती ।”
“ फर भी कु छ अंदाजा ?”
“नह ! कोई अंदाजा नह । मुझे िसफ इतना मालूम है, उसने फोन करके पुिलस को वहां
तलब कया था । अब उसक टेलीफोन पर पुिलस से या बात , यह म नह सुन सक ।”
“यािन गौतम पटेल मरने से पहले गोरखपुर पुिलस को तु हारे बारे म सब कु छ बता
चुका था या नह बता चुका था ।” अिभजीत घोष बोला- “ तु ह इस बारे म कोई
जानकारी नह है ।”
“नह !”
“ओह! यह और भी यादा गड़बड़ वाली बात है ।”
“ य ? इसम गड़बड़ या है?”
“ज़रा सोचो।” अिभजीत घोष ने चंितत भाव से िसगार का एक कश लगाया- “अगर
गौतम पटेल मरने से पहले ही पुिलस को तु हारे बारे म सब कु छ बता चुका था, तो वो यह
भी बता चुका होगा क वा तव म तु ह ‘लेडी कलर’ हो । फर इस समय गोरखपुर के
अ दर तु हारे नाम का कतना हडकं प मचा होगा । पुिलस तु ह गोरखपुर म भूसे म सुई क
तरह ढू ँढती फर रही होगी और जब तुम पुिलस को पूरे गोरखपुर म कह नह िमलोगी, तो
मालूम है या होगा?”
“क… या होगा ?”
“ फर पुिलस तु ह पूरे देश के अ दर तलाश करने क मुिहम छेड़ग े ी ।” अिभजीत घोष
बोला- “तु हारे फोटो अखबार म कािशत ह गे । तु हारे से स बंिधत खबर टी.वी. पर
ॉडका ट क जायगी । ‘मो ट वांटेड’ जैसे अ यंत पॉपुलर सी रयल म तु हारे ऊपर
ो ाम तैयार ह गे । तु हारे ऊपर इनाम घोिषत कया जायेगा और उसके बाद तुम समझ
सकती हो, तु हारे िलये कह भी छु पकर रहना नामुम कन होगा । फर पूरे िह दु तान क
जमीन तु हारे िलये छोटी पड़ जायेगी ।”
म भयभीत हो उठी ।
म जानती थी, ‘मो ट वांटेड’ जैसे ो ाम म आने का या मतलब था ?
आज तक न जाने कतने अपराधी उस ो ाम म आने के बाद पकड़े जा चुके थे ।
या मेरा भी वैसा ही ह होना था ?
“इसके अलावा तुमने एक बात पर गौर नह कया है ।”
“ कस बात पर ?”
“एक ितशत मान लो, गौतम पटेल ने पुिलस को तु हारे बारे म कु छ बताया भी नह ,
तब भी गौतम पटेल का मडर तु हारे घर पर आ है । ऐसी प रि थित म पुिलस वैसे भी
तु ह तलाशने क हरचंद कोिशश करे गी और चूं क तुम वहां उपि थत नह होओगी,
इसिलये पुिलस का येन-के न कारे ण तु हारे ऊपर ही शक जायेगा । दरअसल तुमने ज़रा
भी बुि मानी से काम नह िलया और गौतम पटेल का खून करने के बाद वहां से भागने म
काफ ज दबाजी दखाई बि क तु ह वहां ककर पुिलस के सामने कोई कहानी गढ़नी
चािहए थी और उससे भी पहले यह कोिशश करनी चािहए थी क तुम गौतम पटेल से ही
यह पूछती क उसने पुिलस को तु हारे बारे म कु छ बताया था या नह बताया था । अगर
गौतम पटेल ने पुिलस को तु हारे बारे म कु छ नह बताया था, तो तु हारे िलये मुि कल ही
कु छ नह थी । खतरा ही कु छ नह था । फर तुम गौतम पटेल को पॉइं ट लक शूट करने के
बाद कसी को भी उसक ह या के इ जाम म लपेट सकती थ ।”
अिभजीत घोष क बात म दम था ।
म िजतनी उसक बात सुन रही थी, उतने ही मेरे होश उड़ रहे थे ।
“अ… आप ठीक कह रहे ह घोष साहब ।” म कं पकं पाये वर म बोली- “ले कन अब या
हो सकता है ?”
“यही तो अफसोस है क अब कु छ नह हो सकता है ।” अिभजीत घोष गहरी सांस लेकर
बोला और ईजी चेयर छोड़कर उठ खड़ा आ- “तु हारे बचने के िजतने भी रा ते थे, वह
सब तु हारी ज दबाजी के कारण पहले ही बंद हो चुके ह ।”
म भी ज दी से कु स छोड़कर उठी और अिभजीत घोष के नजदीक प च ँ ी।
“ फर भी मेरे बचने का कोई तरीका तो होगा घोष साहब ?” मेरे वर म साफ़-साफ़
ता झलक ।
“मुझे सोचने दो ।”
अिभजीत घोष क मु ा एकाएक काफ िवचारपूण हो गयी ।
वह अपनी ‘बजक’ कं पनी के िसगार के छोटे-छोटे कश लगाता आ इधर-से-उधर
टहलने लगा ।
मुझे अिभजीत घोष उस समय देवता नजर आ रहा था । अब वही इं सान मुझे बचा
सकता था ।
इधर-से-उधर टहलते-टहलते एकाएक अिभजीत घोष ठठका ।
उसने मेरी तरफ देखा ।
“एक बात बताओ ।”
“प...पूिछए ।” म कौतुहलता पूवक बोली ।
“तुम कु छ फोटो ा स का िज कर रही थी । वह फोटो ा स, जो तु हारे शंकर तथा
आ द य के साथ थे और उन फोटो ा स को गौतम पटेल ने देख िलया था ।”
“हाँ...वह फोटो ा स थे ।” म ज दी से बोली ।
“अब वो फोटो ा स कहाँ ह ? या तुम उ ह वह छोड़ आयी ?”
“नह । म घर छोड़कर भागते समय उ ह अपने साथ ले आयी थी ।”
“थक गॉड !” अिभजीत घोष ने गहरी िन: ास छोड़ी- “कम-से-कम एक तरीके का काम
तो तुमने कया । तुम नह जानती, अगर वह फोटो ा स तुम वह छोड़ आती, तो फर
दुिनया क कोई ताकत तु ह ‘लेडी कलर’ सािबत होने से नह बचा सकती थी । अब तुम
एक काम करो, तु हारे पास वह जो फोटो ा स ह, उ ह तुरंत न कर डालो । अपनी मौत
को दावत देने वाले इस तरह के सबूत कभी अपने पास नह रखने चािहए ।”
“ठीक है ।” म बोली- “म आज रात को ही वह फोटो ा स न कर दूगं ी ।”
“ब त बेहतर ।”
☐☐☐
अिभजीत घोष का दमाग उस समय काफ तेज पीड से चल रहा था ।
िजतनी बारीक से वह एक-एक ि थित का अवलोकन कर रहा था, उससे सािबत हो
रहा था क वह वा तव म ही एक बेहतरीन जासूसी उप यासकार है और मडर िम ी
िलखने म उस आदमी को महारथ हािसल है ।
“अब बस एक तरीका है ।” अिभजीत घोष बोला ।
“क… या ?”
“तुम चार-पांच दन तक इस बंगले से बाहर कसी भी हालत म िब कु ल कदम नह
रखोगी । कसी को पता भी नह चलना चािहए क तुम इस बंगले के अ दर मौजूद हो या
मने तु ह आ य दया आ है ।”
“उससे या होगा ?”
“वही बता रहा ँ ।” अिभजीत घोष एक-एक बात ब त सोचता-िवचरता आ बोला-
“इन चार-पांच दन म हम पूरी तरह अखबार पर िनगाह रखगे । टी.वी.चैन स पर
िनगाह रखगे तथा यह जानने का यास करगे क गोरखपुर से तु हारे भाग आने के बाद
वहां ‘लेडी कलर’ को लेकर पुिलस क गितिविधयाँ या ह ? उन गितिविधय के बारे म
पता चलने के बाद ही हम यह फै सला करगे क अब आगे या कदम उठाया जाये । ठीक ?”
“ठीक है ।” मने वीकृ ती म गदन िहलाई ।
अिभजीत घोष क एक-एक बात ब त नपी-तुली थी ।
“ले कन एक बात तुम अ छी तरह समझ लो नताशा !” एकाएक अिभजीत घोष क
आवाज ब त स त हो उठी ।
म काँप गयी ।
मुझे लगा, अिभजीत घोष कोई गंभीर बात कहने जा रहा है ।
“क… या बात समझ लूं ?”
“मुझे अपराध और अपराधी, दोन से स त नफ़रत है ।”अिभजीत घोष दांत
कट कटाता आ बोला- “तु ह शायद सुनकर आ य होगा क एक अपराधी से िजतनी
स त नफ़रत म करता ,ँ उतनी शायद ही दुिनया म कोई और करता हो। य क मेरा
मानना है क एक अपराधी बेहद गंदे और मानिसक प से बीमार समाज का ज मदाता
होता है । अगर आप एक अपराधी को गोली मारते ह, तो आप कम-से-कम सौ ाई लीन
िसटीज स को नारक य िज दगी जीने से बचाते ह । ले कन ाइम के ऊपर इतनी ल बी-
चौड़ी फला फ देने के बावजूद भी अगर म तु हारी मदद कर रहा ,ँ तो िसफ इसिलये
कर रहा ,ँ य क तुम मूलभूत तौर पर अपराधी नह हो । तुम हालात क िशकार एक
लड़क हो । तुमने िजतने खून कये, वो ी- लांड नह थे । पूव योजनाब नह थे । बि क
तुमने आवेश म और हताशा का िशकार होकर वह सारे मडर कये । वह सारे खून क मत
के ित तु हारा िवरोधाभास थे । इसिलये म समझता ,ँ फलहाल तु ह कानून के हवाले
करना तु हारे साथ नाइं साफ होगी । ले कन यह बात तु ह भी सोचनी चािहए और
इसिलये समझनी चािहए, कह तुम मुझे अपरािधय का मददगार न समझ लो ।”
“ओह घोष साहब !” म एकाएक कसकर अिभजीत घोष से िलपट गयी- “म सोच भी
नह सकती थी क मेरी आप जैसे आदमी से मुलाक़ात होगी । आप जैसा आदमी संकट के
इन घनघोर ण म मेरी इतनी हे प करे गा।”
“ चंता मत करो ।” अिभजीत घोष ेहपूवक मेरी पीठ थपथपाता आ बोला- “म हर
पल तु हारे साथ ँ । म तु ह आसानी से कु छ नह होने दूग
ं ा ।”
“थक यू ! थक यू वैरी मच घोष साहब ! आपने यह श द कह दए, तो मुझे लग रहा है,
जैसे मेरी आधी से यादा मुि कल इसी ण ख़ म हो ग ।
अिभजीत घोष ने अपने याह काले िसगार का एक छोटा-सा कश और लगाया ।
☐☐☐
उसके बाद अिभजीत घोष ने एक मह वपूण काय अंजाम दया ।
वो एक ख़ास कदम था ।
उसने बंगले के चार नौकर को अपने उसी टडी म म बुलाया ।
उस ण अिभजीत घोष अपनी ईजी चेयर पर पहले क तरह टांग फै लाए बैठा था ।
िसगार उसके हाथ म था । जब क म पीछे क तरफ ईजी चेयर क ऊंची पु त को दोन
हाथ से पकड़े खड़ी थी ।
“आपने हम बुलाया घोष साहब ?” कु मार बड़े अदब के साथ बोला ।
िव म, माधवन और बहादुर, वह उसके बराबर म ही खामोश खड़े थे ।
“हाँ, कु मार !” अिभजीत घोष ने उन चार क तरफ नजर उठा - “मने तुम लोग को
एक ज री बात कहने के िलये बुलाया है ।”
“कै सी ज री बात?”
चार च के ।
उनक िज दगी म यह पहला वाकया था, जब अिभजीत घोष ने उ ह इस तरह तलब
कया था ।
वह भी ज री बात करने के िलये ।
“नताशा से तो आज तुम लोग का प रचय हो ही चुका है ।”
“जी साहब !”
“म नताशा के बारे म तुम लोग से बात करना चाहता ँ ।” अिभजीत घोष बोला ।
“ या ?”
“दरअसल म चाहता ,ँ नताशा यहाँ ठहरी ई है, यह बात कसी को पता न चलने पाये
।” अिभजीत घोष ने बेहद शांत लहजे म कहा ।
“ य ?” िव म आिह ता से च का ।
उसके दमाग म धमाका-सा आ ।
“बहस मत करो ।” अिभजीत घोष क आवाज म स ती पैदा ई- “तुमसे जो कहा जा
रहा है, िसफ वह करो । दस इज माय आडर ! ओ.के .?”
“ओ.के . घोष साहब !”
उन चार म से पहले कसी ने अिभजीत घोष को इतना स ती के साथ बात करते नह
देखा था ।
वह उनके िलये आ य का कारण था ।
“इसके अलावा एक बात और यान रहे ।” अिभजीत घोष ने उन चार पर नजर घुमाते
ए कहा ।
“ या ?”
“यह बात अगर इस बंगले क चारदीवारी से बाहर जाती है, तो म समझूंगा क वह
तुमम से कसी के ारा बाहर गयी है । य क इस बंगले म कोई लड़क भी मौजूद है, यह
बात हम पाँच के अलावा कोई नह जानता । समझ गये ?”
सब खामोश रहे ।
“मुझे तुम लोग से इस स ब ध म कु छ और तो नह कहना है ?”
“नह ।”
“यू मे गो नाउ ।”
चार चले गये ।
िव म क िनगाह न जाने य उस ण भी मुझे ऐसी लग , मानो वह मेरे शरीर म गड़ी
जा रही ह ।
िव म!
उसम न जाने कै सा चु बक य आकषण था ।
म जब-जब उसे देखती, मेरे दल क धड़कन तेज हो जात ।
फर उस रात अिभजीत घोष और मने एक साथ बैठकर टी.वी. क ख़बर सुन ।
एक-एक करके सभी चैनल देखे ।
मगर मेरे से स बंिधत कोई खबर कसी चैनल पर नह थी ।
☐☐☐
अगले दन अिभजीत घोष ने मेरे िलये बाजार से कु छेक कपड़े मंगा दए ।
मेरे पास कपड़े नह ह, यह बात अिभजीत घोष रात ही भांप गया था । सुबह ही उसने
माधवन को रे डीमेड कपड़े लेने भेज दया । माधवन जो कपड़े लेकर आया, वो काफ अ छे
थे ।
यारह बजे का समय था । म धारीदार लाउ जंग पायजामा और हाईनेक का पुलोवर
पहने बंगले म टैरेस पर खड़ी थी तथा ह क -ह क धूप का आनंद ले रही थी ।
तभी म च क उठी ।
मुझे ऐसा लगा, जैसे कोई ‘आफत’ गड़गड़ाती ई मेरे िसर पर िगरी हो ।
वह एक नीले रं ग क िज सी थी, िजसे मने पहले बंगले अ दर दािखल होते और फर
कते देखा ।
पुिलस!
मेरे दमाग पर मानो िब छू ने ब त जोर से डंक मारा ।
मेरे होश गुम ।
िज सी के कते ही उसम से एक वद म सजा-धजा पुिलस इ सपे टर बाहर िनकला ।
लंबा कद । गौर वण । उ तीस-पतीस के आसपास । वह पुिलस इं पे टर खाक वद म
िब कु ल ऐसा नजर आ रहा था, मानो वह खासतौर पर उसी वद के िलये बना हो ।
पुिलस इं पे टर को देखते ही मेरा चेहरा एकदम कागज क तरह सफे द पड़ गया ।
आंख म हवाइयां ।
होठ शु क ।
म कु मार क तरफ मुड़ी । कु मार, जो उस व टैरेस क सफाई कर रहा था ।
“य...यहां पुिलस य आयी है ?” म भयभीत मु ा म बोली ।
“पुिलस ?”
कु मार ने भी च ककर नीचे ाइव-वे क तरफ देखा, ले कन फर वो धीरे से मु कु रा
दया ।
“यह इं पे टर िवकास बाली ह मैडम !”
“व...िवकास बाली ?”
“हां !” कु मार ने बताया- “यह घोष साहब के उप यास के ब त ज़बरद त फै न ह । यह
अ सर घोष साहब से िमलने बंगले पर आते रहते ह ।”
“ओह !”
मेरे िसर से मानो कोई बड़ा बोझ उतर गया ।
मने ल बी राहत क सांस ली । वरना म तो घबरा ही गयी थी ।
म टैरेस से थोड़ा पीछे हट गई, ता क एकाएक कसी क िनगाह मेरे ऊपर न पड़ सके ।
“मैडम- मुझे घोष साहब के साथ इस बंगले म रहते ए काफ साल हो गये ह ।” कु मार
बड़ी त मयतापूवक बोला- “ले कन मने इं पे टर िवकास बाली जैसा उनके उप यास का
फै न आज तक नह देखा ।”
“ य , िवकास बाली म ऐसी या खास बात है ?”
“दरअसल इं पे टर िवकास बाली को घोष साहब के तमाम उप यास क घटनाएं
मानो जबानी याद ह मैडम ! इतना ही नह , इं पे टर िवकास बाली का यह भी कहना है
क घोष साहब के उप यास पढ़-पढ़कर उसे अपने पुिलस कै रयर म काफ लाभ प च ं ा है ।
उसने कई अपरािधय को तो िब कु ल वैसी ही योजना बनाकर पकड़ िलया, जैसी घोष
साहब अपनी उप यास म योजना बनाते ह ।”
“ओह ! वेरी इ े टंग !”
मेरी आंख चमक उठ ।
वो काफ दलच प बात थी ।
“िवकास बाली कभी िसफ एक मामूली कां टेबल के तौर पर पुिलस के महकम म भत
आ था ।” कु मार बोला- “ले कन फर वह काफ ज दी-ज दी तर क सी ढ़यां चढ़ता
आ इं पे टर क पो ट तक जा प च ं ा । िवकास बाली का मानना है, अगर वह घोष
साहब के उप यास न पढ़ता होता, तो इतनी ज दी तर क सी ढ़यां हरिगज़ न चढ़ता ।
जासूसी उप यास पढ़-पढ़कर इं पे टर िवकास बाली का दमाग भी काफ शाप हो गया है
। खासतौर पर उसने अपनी प ी के ह यारे को िजस तरह पकड़ा, वह तो अ भुत ही था ।”
इं पे टर िवकास बाली के करै टर म अब मेरी दलच पी भी काफ बढ़ने लगी ।
िवकास बाली!
वह अपने आपम ब त अनोखी चीज मालूम हो रहा था ।
वैसे भी इस दुिनया म ऐसे काफ लोग होते ह, िजनके बारे म इं सान यादा-से- यादा
जानना चाहता है ।
िवकास बाली उ ह म से एक था ।
“ या कसी ने उसक प ी क ह या कर दी थी ?” मने कौतुहलतावश पूछा ।
“हां ! वह एक इि तहारी मुज रम था ।” कु मार बोला- “िजसने इं पे टर िवकास बाली
क प ी को गोिलय से भून डाला । ले कन फर िवकास बाली ने उसे िजस तरह पकड़ा,
उसने स पूण पुिलस िडपाटमे ट को चम कृ त करके रख दया । वो एक आ यजनक
मामला था ।”
“ कस तरह पकड़ा इं पे टर िवकास बाली ने उसे ?” म उ सुकतापूवक कु मार क तरफ
देखने लगी ।
म उसके बारे म यादा-से- यादा जानने को बैचेन थी ।
“आज से कोई छः महीने पुरानी घटना है ।” कु मार बोला- “उस गुंडे का नाम ‘कांित
भाई’ था । कांित भाई का मुंबई शहर म बड़ा आतंक था । बड़ा दबदबा था । वह सुपारी ले-
लेकर कई मडर कर चुका था, मगर एक दन कांित भाई िवकास बाली के ह थे चढ़ गया
और िवकास बाली ने उसे जेल क सलाख के पीछे धके ल दया । कांित भाई को दस साल
क सजा ई, मगर कांित भाई दस साल तक सलाख के पीछे कहां रहने वाला था ?”
“ फर या आ ?”
“ फर वही आ ।”कु मार बोला- “िजसक आशंका थी ।”
“यािन कांित भाई जेल तोड़कर भाग िनकला ?” मने अपने अधर पर जबान फराई ।
“िब कु ल ।” कु मार बोला- “वह न िसफ जेल तोड़कर भाग िनकला, बि क उसने सौगंध
खाई क िवकास बाली से बदला ज र लेगा । जेल तोड़कर भागने के बाद वो सीधा
िवकास बाली के घर प च ं ा । क मत का खेल देखो, वहां इ सपे टर िवकास बाली तो उसे
न िमला, ले कन उसक बीवी ज र िमल गई । कांित भाई ितशोध क वाला म इतना
इतना धधक रहा था क उसने िवकास बाली क बीवी को ही गोिलय से भून डाला और
वहां से भाग खड़ा आ ।”
“ओह !” मेरे शरीर म तेज िसहरन दौड़ी- “इं पे टर क बीवी को मारकर उसे या
िमला ?”
“कु छ भी नह िमला । बस ितशोध क वाला म धधकती उसक आ मा को थोड़ा
सुकून प चं ा होगा । बहरहाल रात को ही जब इ सपे टर िवकास बाली अपने घर प च ं ा
और वहां उसने अपनी बीवी क लाश देखी, तो उसके ऊपर मानो भीषण व पात आ ।
सबसे बड़ी बात ये है क उसके घर म इतनी बड़ी घटना घट गई थी, ले कन मोह ले-पड़ोस
म कसी को कु छ पता न था । इं पे टर िवकास बाली ने कांित भाई को पकड़ने के िलये
तुरंत एक योजना बनाई । उसने अपनी बीवी के शव को वह एक कमरे म छु पा दया और
मोह ले-पड़ोस म लोग के सामने ऐसा शो कया, जैसे उसक बीवी को कु छ न आ हो ।
वह रोजाना तैयार होकर तथा घर का ताला लगाकर बकायदा पुिलस टेशन जाता था
और शाम को अपनी ूटी ऑफ होने के बाद वापस आता । मोह ले-पड़ोस वाल को उसने
यह बताया क उसक बीवी बाहर गई ई है ।”
“ले कन इतने दन तक एक शव को घर म रखने से तो उसके अ दर से बदबू उठने लगी
होगी ।” म िसहरकर बोली ।
“नह । ऐसा नह आ ।” कु मार ने बताया- “िवकास बाली य क एक इ सपे टर था
और मॉग म उसका आना-जाना होता रहता था, इसिलये वो जानता था क कसी भी शव
को कस कार ल बे समय तक सुरि त रखा जा सकता है । उसने मॉग से कु छ के िमकल
वगैरह अरज कर िलये थे, िज ह उसने शव के ऊपर लगाकर रखा ।”
“ओह !”
“बहरहाल इं पे टर िवकास बाली के उस नाटक का काि त भाई के ऊपर अपेि त
भाव पड़ा ।”कु मार बोला- “काि त भाई यह समझ रहा था, उसने चूं क इं पे टर िवकास
बाली क बीवी को मार डाला है, इसिलये उस ह याका ड का पूरे महकमे म बड़ा
जबरद त हंगामा मचेगा । बड़ी हाय-तौबा होगी, ले कन जब वैसा कु छ न आ । हंगामा
मचना तो अलग बात है, यह खबर कसी अखबार के छोटे कॉलम म भी न छपी क
इ सपे टर िवकास बाली क बीवी क ह या हो गई है । इतना ही नह , कांित भाई ने
िवकास बाली को भी बड़ी मु तैदी के साथ रोजाना अपनी ूटी पर आते जाते देखा, तो
अब कांित भाई क खोपड़ी चकराई । वो समझ न सका, या माजरा है । वो इसी बात को
लेकर कं यूज होने लगा क उसने िवकास बाली क बीवी क ह या क भी है या नह क है
। इसी तरह एक-एक करके सात दन गुजर गये ।”
“काि त भाई क बैचेनी तो अब अपने चरम पर प च ं ने लगी होगी?”
“बैचेनी या, उस आदमी क खोपड़ी बुरी तरह चकरिघ ी बनी ई थी । सातव दन
जब बात उसक बदा त के बाहर हो गई, तो वह िवकास बाली क बीवी को देखने के िलये
रात के समय चुपचाप उसके घर म जा घुसा और इ सपे टर िवकास बाली मानो उसी ण
के इं तजार म था । वह त काल कांित भाई के ऊपर झपट पड़ा । कांित भाई ने माजरा
भांपकर वहां से भागने का यास कया, तो इ सपे टर िवकास बाली ने उसे फौरन शूट
कर दया । तब आठव दन जाकर लोग को मालूम आ क इ सपे टर िवकास बाली क
बीवी क मौत हो चुक है । तब एक साथ दो लाश िवकास बाली के घर से बाहर िनकल ।
िजसने भी इस घटना म का िववरण सुना, वही भौच ा रह गया । कांित भाई को पकड़ने
के िलये इ सपे टर िवकास बाली ने जो योजना बनाई, उसके घोष साहब भी आज तक
ब त बड़े फै न ह । अलब ा िवकास बाली यही कहता है, वह ऐसी योजना इसिलये बना
सका, य क वह घोष साहब के उप यास पढ़ता है ।”
म स रह गई ।
वाकई ।
इ सपे टर िवकास बाली ने अपनी प ी के ह यारे को पकड़ने के िलये जो योजना
बनाई, वह अ भुत थी ।
बेहद अ भुत ।
उसके िलये िवकास बाली क िजतनी भी शंसा क जाती, वह कम ही थी ।
थोड़ी देर बाद मने िवकास बाली को जाते देखा । न जाने य उसे देखकर मेरे शरीर म
ह क -सी िसहरन दौड़ गई ।
☐☐☐
मने देखा, बंगले म अिभजीत घोष से िमलने के िलये सुबह से शाम तक अ सर लोग
आते रहते थे ।
िमलने आने वाल म मु य तौर पर उनके काशक, शंसक या शहर के स मािनत
ि होते । इसके अलावा बड़े-बड़े लब के ितिनिध भी वहां आते रहते थे, जो कसी
समारोह क अ य ता का पोज़ल लेकर उनके पास आते । कसी इमारत के उ ाटन का
ताव लेकर लोग उनके पास आते या कह कसी गो ी का आयोजन होता, िजसम
अिभजीत घोष ने अपने िवचार करने होते ।
अिभजीत घोष का पूरा दन काफ त रहता ।
उप यास लेखन म भी वो बेहद त लीन रहते थे ।
इसके अलावा देश के कोने-कोने से उनके शंसक क जो िच यां या मेल आत , वह भी
कु छ कम न थ । उ ह देश भर से समारोह म भाग लेने के िलये आमंि त कया जाता था ।
उस फै न मेल को देखकर पता चलता था, अिभजीत घोष कतना फे मस आदमी है ।
जैसा क पहले भी बताया जा चुका है, अिभजीत घोष को घोड़ का भी शौक था ।
उनके अ तबल म कोई आठ घोड़े थे और सभी बेहतरीन न ल के थे और बेहद मू यवान
थे । वह घोड़े रे स के मैदान म भी कराए पर जाते थे । इसके अलावा अिभजीत घोष कभी-
कभार सुबह के समय कसी घोड़े पर बैठकर हवाखोरी करते ।
कु ल िमलाकर अिभजीत घोष क जंदगी शानदार ढंग से चल रही थी ।
उसम कह कोई हलचल न थी ।
कह कोई हड़कं प न था ।
परं तु यह बात कु छ ठीक नह है, जहां म होऊं, वहां कोई हलचल न हो ।
☐☐☐
अगले चार दन तक अिभजीत घोष और मने अखबार पर बड़ी पैनी िनगाह रखी ।
कई-कई अखबार मंगाए गये ।
टी.वी. क खबर को देखा ।
पर तु कह भी मेरे से स बंिधत कोई यूज नह थी ।
चौथे दन आज तक पर एक खबर सा रत ई ।
खबर गोरखपुर क ‘लेडी कलर’ से संबंिधत थी । खबर म बताया गया, गोरखपुर
पुिलस को एक लड़क क लाश बरामद ई है और पुिलस का अनुमान है, संभवतः वह
लेडी कलर क लाश है । खबर म यह भी बताया गया, लेडी कलर अपने कसी नए ेमी
का मडर करने जा रही थी, ले कन इस बार दाव उ टा पड़ गया और उसके ेमी ने ही उसे
मार डाला । अलब ा लेडी कलर को मार डालने वाला उसका किथत ेमी अभी पुिलस के
सामने नह आया है ।
आज तक पर इस खबर को सुनते ही अिभजीत घोष और मेरे चेहरे पर रौनक आ गई ।
मने खुशी म िबयर के दो लॉज पैग तैयार कए, िज ह हमने एक दूसरे से टकराया ।
“िचयस !” मने गरमजोशी के साथ कहा ।
“िचयस !” घोष साहब भी बोले ।
उस खबर को सुनने के बाद मेरा मानो तमाम िसरदद गायब हो चुका था ।
“जहाँ तक म समझता ँ ।” अिभजीत घोष ने कहा- “गौतम पटेल ने पुिलस को ‘लेडी
कलर’ के तौर पर तु हारा नाम नह बताया था । उसने ज र टेलीफोन पर यह कहा होगा
क ‘लेडी कलर’ उस इलाके म मौजूद है, आप लोग ज दी यहाँ प च ं े । अगर गौतम पटेल
गोरखपुर पुिलस को उस समय तु हारा नाम बता देता, तो आज पुिलस क यूजन का
िशकार न होती ।”
“िब कु ल ठीक बात है ।” मने भी बीयर के दो घूँट भरे - “ज र गौतम पटेल मेरे बारे म
पुिलस को नह बता सका था, म खामखाह परे शान हो रही थी ।”
“अलब ा एक मामला मुझे अभी भी कु छ पेचीदा नजर आ रहा है ।” अिभजीत घोष
िवचारपूण मु ा म बोला ।
“ या ?”
म ठठक ।
“गौतम पटेल क ह या तु हारे घर पर ई थी । ठीक?”
“िब कु ल ठीक ।”
“पुिलस को गौतम पटेल क लाश भी तु हारे ही घर से बरामद ई होगी ।”
“यह भी ठीक है ।”
“ऐसे हालात म गोरखपुर पुिलस को तु हारे बारे म छानबीन ज र करनी चािहए थी,
तु ह ढू ँढने क कोिशश करनी चािहए थी । जब क ऐसी कोई सूचना उपल ध नह है ।”
“इसक एक दूसरी वजह भी तो हो सकती है ।”
“ या ?”
“यह भी तो संभव है ।” म बोली- “ क गोरखपुर पुिलस ने यह समझ िलया हो क म भी
‘लेडी कलर’ का िशकार बन चुक ँ । अलब ा मेरी लाश ढू ँढने क पुिलस ने कोिशश क
हो और मेरा नाम फलहाल वहां ‘िम संग परसन ायड’ क डायरी म िलखा हो ।”
“हाँ !” अिभजीत घोष बोला- “यह स भव है ।”
अिभजीत घोष ने भी बीयर के दो घूँट लगाये ।
हम दोन ही अब काफ तनावपूण नजर आ रहे थे ।
“ फर भी म समझता ँ ।” अिभजीत घोष बोला- “अब तु ह डरने क कोई ज रत नह
है । ‘लेडी कलर’ वाला अ याय फलहाल पूरी तरह समा हो चुका है और तुम अब
आज़ाद हो ।”
“थक गॉड !” मने अपने गले क घंटी को छु आ- “म आज़ाद ँ घोष साहब, यह एहसास
ही मेरे शरीर म अजीब-सा रोमांच पैदा कर रहा है । म अपनी खुशी बयान नह कर पा
रही ँ ।”
“म तु हारी ि थित समझ सकता ँ ।”
मने बीयर का अपना पूरा िगलास खाली करके सामने टेबल पर रख दया ।
म खुश थी ।
ब त यादा खुश ।
“अब एक नई िज दगी तु हारे सामने पड़ी है नताशा !” अिभजीत घोष उ साहपूवक
बोला- “एक नई, ल बी और आशा से भरी िज दगी, िजसक तुम िब कु ल नए तरह से
शु आत कर सकती हो । पीछे गोरखपुर म जो कु छ गुज़रा है, उस सबको भूल जाओ ।”
“आप ठीक कह रहे ह घोष साहब ! पीछे जो कु छ गुजरा है, मुझे उन सब बात को भूल
जाना होगा । मुझे सचमुच अब इस नए शहर म, नए तरह से अपनी िज दगी शु करनी
होगी ।”
अिभजीत घोष ने भी अपना िगलास खाली करके टेबल पर रखा और फर सीधे मेरी
आँख म झाँका ।
“नये तरह से िज दगी शु करने के िलये या करना चाहती हो तुम ?”
“मुझे सबसे पहले एक नौकरी करनी होगी घोष साहब !”
“नौकरी ?”
“हाँ !”
“ कस तरह क नौकरी करना चाहती हो तुम ? मेरा मतलब है, नौकरी करने के िलये
तुम या जानती हो ?”
“म शॉटहड और टाइप काफ अ छी जानती ँ । म कह भी रशे सिन ट या से े टरी
क स वस काफ बेहतर कर सकती ँ ।”
“वैरी गुड !” मेरी बात सुनकर न जाने य अिभजीत घोष क आँख म तेज चमक पैदा
ई- “यह तो तुमने आज ही बताया क तुम शॉटहड और टाइप भी काफ अ छी जानती
हो । फर तो तु ह स वस ढू ँढने क भी ज रत नह ।”
“ य ?”
“दरअसल मुझे भी अपनी फै न मेल और देश के कोने-कोने से आने वाले समारोह के
आमं ण का जवाब देने के िलये ऐसी ही एक से े टरी क स त ज रत है । अगर तुम यह
सब कर सकती हो, तो तुम इसी बंगले म य नह ठहर जाती ।”
मेरी आँख मं िवल ण चमक क ध उठी ।
सच तो ये है, म खुद यही चाहती थी ।
अिभजीत घोष ने लगभग मेरे मुंह क बात छीन ली थी ।
“बोलो या कहती हो ?”
‘कहना या है घोष साहब !” म फु ि लत लहजे म बोली- “इस बंगले म रहकर आपके
वा ते काम करना तो मेरे िलये सौभा य क बात होगी ।”
“यािन नौकरी प ?”
“िब कु ल प ।”
इस तरह मेरी िज दगी ने एक नए पड़ाव पर कदम रखा ।
वह मेरी िज दगी का एक नया मोड़ था । नया और हंगामाखेज मोड़ ।
☐☐☐
अगले दन से ही एक िस उप यासकार क से े टरी का िजतना काम हो सकता है,
वह सारा काम मने संभाल िलया ।
बंगले के मु य ाइं ग हाल से जुड़ा आ ही एक काफ बड़ा कमरा था, वह कमरा मेरे
अिधकार म आ गया ।
से े टरी का काम भी कम न था ।
अ सी से सौ के बीच तो रोजाना अिभजीत घोष के शंसक क ही िच यां आती थ ।
फै न मेल होती थी, िजनम से छांट-छांट कर मुझे कु छेक को जवाब देना होता ।
इसके अलावा देश के कोने-कोने से अिभजीत घोष को िजन समारोह म आमंि त कया
जाता, उन समारोह के आयोजक को भी मुझे अ यंत सुसं कृ त भाषा म आमं ण र करने
वाले ऐसे जवाब िलखने होते, जो उ ह जरा भी बुरा न लगे । उन जवाब को पहले म
टेप रकाडर पर िडटे ट करती थी और फर अिभजीत घोष को एक बार सुनाती ।
अिभजीत घोष को उनम जो भी प रवतन करने होते, वह मुझे बता देते । फर म वह
जवाब टाइप करके भेज देती थी ।
उनके काशक के िहसाब- कताब वाली फाइल भी मने चेक क ।
उसम बड़ा घपला था ।
कु छेक काशक ऐसे थे, जो उनके एक-एक उप यास के सात-सात र ंट छाप चुके थे,
ले कन उ ह ने अिभजीत घोष को रॉय टी के चेक मुि कल से दो-तीन बार भेजे थे । जब
मने वह सारा िहसाब अिभजीत घोष के सामने रखा, तो वह भी च क उठे ।
उ ह ने त काल काशक को फोन खड़खड़ाया ।
उस धोखाधड़ी के िलये वह उनके ऊपर लाल-पीले ए ।
बहरहाल उस घटना के बाद काशक के िहसाब- कताब क िज मेदारी भी मेरे ऊपर
आ गयी ।
अब अगर कसी काशक ने अिभजीत घोष का नया उप यास छापना होता था, तो वह
पहले मुझसे आकर बात करता ।
धीरे -धीरे म उस बंगले के अ दर सबसे यादा शि शाली पोजीशन ा करने लगी ।
अलब ा उस शि शाली पोजीशन के कारण अब कु छ लोग मेरे से ई या भी रखने लगे
थे ।
कु मार उनम सबसे ऊपर था ।
उसक आँख बताती थ , वह मुझे पसंद नह करता है ।
“ य ?”
यह मुझे भी मालूम न था ।
☐☐☐
एक रात बंगले म बड़ी खौफनाक घटना घटी ।
रात के दो बजे का समय था । एकाएक मेरी भ से आँख खुली । पूरे बंगले म बड़ा
जबरद त तूफ़ान आया आ था । वह ऐसी आवाज थ , जैसे बंगले क दीवार गड़गड़ाकर
िगर रही ह । जैसे शीशे चटक रहे ह ।
“बचो !” तभी मुझे बाहर से कसी के िच लाने क आवाज सुनाई पड़ी- “भागो ।”
म आनन-फानन अपने गाउन क डो रयाँ कसती ई कमरे म से बाहर िनकली ।
तभी मने बुरी तरह आतं कत अव था म माधवन को भागते देखा ।
“ या हो गया?” म िच लाई ।
“जैक अ तबल से भाग िनकला है ।” माधवन भागते ए ही िच लाकर बोला ।
“जैक ... कौन जैक ?”
“वही सफ़े द रं ग का अरे िबयन घोड़ा ।”
“हे भगवान! इतना जबरद त हंगामा वही घोड़ा मचा रहा है ?”
“हाँ !”
म दौड़ती ई टैरेस पर प च ँ ी ।बंगले क लाइट जल उठी थ । सवट ाटर क लाइट भी
जली ई नजर आ रही थ । पूरे बंगले म ऐसा हंगामा बरपा था, जैसे न जाने वहां कौन-सी
आफत आ गयी हो ।
बंगले के कं पाउं ड म मुझे घोड़ा कह नजर न आया ।
तभी अिभजीत घोष भी दौड़ता आ वहां प च ं ा।
“घोड़ा आपे से बाहर हो रहा है ।” अिभजीत घोष ने हांफते ए बताया ।
“ले कन उसे आ या ?”
“मालूम नह ।”
“मगर वो दखाई तो कह नह दे रहा है ।”
“वो बंगले के अ दर घुस आया है ।”
“हे भगवान !”
मेरे शरीर म रोमांच क लहर दौड़ गयी ।
मने यान से वो हंगामे क आवाज सुनी ।
वह वाकई बंगले के अ दर से आ रही थ ।
िव म बुरी तरह गला फाड़कर चीख-िच ला रहा था ।
“उसने ाइं ग हाल म काफ तोड़-फोड़ क है ।” अिभजीत घोष बोला- “मुंह म दबाकर
कालीन फाड़ डाला है । सोफा तोड़ दया है और कई दूसरी मू यवान चीज को नुकसान
प च
ं ाया है ।”
“मगर वो बंगले म घुसा कै से ?”
“कु छ समझ म नह आ रहा ।”
ाइं गहाल म अभी भी जबरद त हंगामा मचा आ था । घोड़ा इधर-से-उधर भागा-
भागा फर रहा था । चीज के टू टने क आवाज आ रही थ । िव म उसे काबू करने क
हरचंद कोिशश कर रहा था ।
मगर अभी तक वो नाकाम था ।
☐☐☐
तभी एकाएक शोर बढ़ गया ।
घोड़े ने अपने दोन पैर उठा-उठाकर ब त जोर से फश पर पटके और उसके बाद वो
कमान से छू टे तीर क तरह भागा ।
“जैक !” िव म िच लाया- “जैक !”
कु मार के भी िच लाने क आवाज सुनाई पड़ी ।
“घोष साहब!” कु मार हड़बडाकर भागता आ टैरेस के सामने प च ं ा- “भािगये ! घोड़ा
इसी तरफ आ रहा है ।”
अगले ही पल कु मार क दय-िवदारक चीख िनकल गयी ।
घोड़ा वहां आ प च ं ा था ।
कु मार चीखता आ एक टेबल के नीचे घुस गया ।
घोड़ा आंधी-तूफ़ान बना था । वह ऐसे भाग रहा था, जैसे रे स के मैदान म िन द होकर
भाग रहा हो ।
िव म उसके पीछे था ।
तभी गिलयारे म रखा एक टू ल घोड़े के सामने आ गया । घोड़े ने उसम जोर से लात
मारी ।
टू ल उछलकर सीधा मेरे और अिभजीत घोष के सामने आ िगरा ।
मेरी चीख िनकल गयी ।
“िव म !” अिभजीत घोष िच लाया- “पकड़ो इसे ! पकड़ो !”
“म कोिशश कर रहा ँ घोष साहब !”
िव म पसीने म नहा रहा था ।
हांफ रहा था ।
उसक दौड़ भी इस समय देखने लायक थी । वह बड़े मदाना अंदाज म दौड़ लगा रहा
था ।
तभी घोड़े ने अपनी दोन टाँगे उठाकर दीवार पर मार ।
वह जोर-जोर से िहनिहनाया ।
फर भागा ।
वह ब त गु से म था ।
“जैक !” िव म के िच लाने क आवाज पूरे बंगले म गूंजी- “ क जाओ जैक !”
ले कन जैक कने वाला कहाँ था ?
“ड ट बी एं ी जैक !”
मगर जैक भागता रहा ।
मने घबराकर अिभजीत घोष का कं धा पकड़ िलया ।
माहौल ब त खतरनाक था ।
☐☐☐
फर एक जानलेवा ण और आया ।
म और अिभजीत घोष अब टैरेस से िनकलकर गिलयारे म आकर खड़े हो गये थे । कु मार
भी टेबल के नीचे से बाहर िनकल आया ।
मने देखा, गिलयारे के अंितम छोर पर सामने क तरफ एक ब त बड़ा कांच का
‘ए े रयम’ रखा था, िजसम ढेर सारा पानी और हजार के िहसाब से छोटी-छोटी रं ग-
िबरं गी मछिलयाँ मौजूद थ ।
घोड़ा उसी ‘ए े रयम’ क तरफ दौड़ा जा रहा था ।
उस दृ य को देखकर अिभजीत घोष के ने भी आतंक से फ़ै ल गये ।
“िव म !” अिभजीत घोष पुन: बुरी तरह गला फाड़कर िच लाया- “पकड़ो इसे! ज दी
पकड़ो । वरना यह ‘ए े रयम’ तोड़ डालेगा ।”
िव म का यान भी अब ‘ए े रयम’ क तरफ के ि त आ ।
और!
अगले पल िव म ने जबरद त जाबांजी का प रचय दया ।
घोड़ा ‘ए े रयम’ को तोड़ पाता, उससे पहले ही िव म एकदम ज प लगाकर घोड़े के
सामने जा प च ं ा । एक ण के िलये ऐसा लगा, जैसे घोड़ा, िव म को भी र दता आ आगे
गुजर जायेगा ।
मगर वैसा कु छ नह आ । घोड़े ने जैसे ही उसे मारने के िलये अपनी दोन टांग ऊपर
उठा , िव म ने त काल झपटकर उस अरे िबयन घोड़े क दोन अगली टांग कसकर हवा म
ही पकड़ ल ।
घोड़ा बुरी तरह िहनिहनाया ।
अपनी िपछली टांग पर जोर-जोर से उछला ।
पर तु िव म उसक दोन टांग कसकर पकडे खड़ा रहा । इतना ही नह , फर उसने
अपने िसर का भी चंड हार घोड़े के मुंह पर कया ।
घोड़े क ददनाक चीख िनकल गयी ।
वह और उछला ।
और िहनिहनाया ।
“जैक ! ड ट बी एं ी !” िव म िच ला रहा था- “ड ट बी एं ी !”
ले कन घोड़े पर उन श द का कु छ असर न था ।
ऐसा लग रहा था, मानो उन दोन के बीच शि -प र ण हो रहा हो । िव म को
उसक दोन अगली टांग पकड़े रखने के िलये अपने शरीर क स पूण जान लगानी पड़ रही
थी ।
मगर दलच प नजारा ये था, िव म कमजोर नह पड़ रहा था ।
उ टे घोड़े के ही धीरे -धीरे कस-बल ढीले पड़ने लगे ।
“वेलडन िव म !” अिभजीत घोष उसका अद य साहस देख शंसा कये िबना न रह
सका- “वैरी वेलडन !”
तभी िव म ने अपने घुटने का भीषण हार घोड़े क गदन पर कया ।
घोड़ा पुन: िहनिहनाया ।
पुन: उछला ।
मगर फर धीरे -धीरे शांत पड़ने लगा । जैसे उस ं यु म उसने िव म के हाथ
पराजय वीकार कर ली हो ।
उसने अपने दोन पैर जमीन पर टका दए ।
जब क िव म ने अब उसक लगाम पकड़ ली थी । फर वो घोड़े क लगाम पकड़े-पकड़े
मुड़ा ।
“सॉरी घोष साहब !” वो अिभजीत घोष क तरफ आक षत होकर बोला- “जैक के
कारण आज सबक न द िड टब हो गयी ।”
“ले कन यह अ तबल से बाहर िनकला कै से ?” अिभजीत घोष क आवाज म िव मय का
पुट था ।
“कु छ समझ नह आ रहा ।”
“ या तुम इसे बांधना भूल गये थे ?”
“नह !” िव म ने ब त शा त मु ा म इं कार म गदन िहलाई- “मने शाम के समय इसे
अ छी तरह बांधा था, फर भी यह न जाने कै से खुल गया । वैसे भी आज शाम से इसक
तबीयत कु छ खराब थी और यह हंगामे के मूड म लग रहा था । म इसे अभी दवाई देता ँ
।”
अिभजीत घोष खामोश खड़ा रहा ।
“गुड नाइट एवरीबडी !”
“गुड नाइट !”
िव म घोड़े को लेकर बाहर क तरफ बढ़ गया ।
इतना बड़ा हंगामा हो गया था, मगर िव म के चेहरे पर उस समय ज़रा भी िशकन नह
था ।
वो िब कु ल सहज था ।
☐☐☐
िव म के उस गंद-े गलीज और बदबू से भरे ि व म ऐसा न जाने या था, म धीरे -
धीरे उसक तरफ आक षत होने लगी ।
ले कन जैसा क म पहले ही बता चुक ,ँ अब म कसी नए ेमी को अपने जीवन म
नह आने देना चाहती थी । य क अब म यह बात भली-भांित समझ चुक थी, पु ष का
ेम मेरे जीवन म नह है ।
और!
जब कसी पु ष का ेम मेरे जीवन म ही नह है, तो म पुन: य नई िसरदद मोल लूं ?
य फर कसी के खून से अपने हाथ रं गू ?
ले कन फर भी कोई बात थी, जो म िव म क तरफ ख ची जा रही थी ।
ख चती ही चली जा रही थी ।
अलब ा म िव म के ेमपाश म फं सने से बचने के िलये हमेशा उसे डांटती-फटकारती
रहती थी । हमेशा उससे बड़े मािलकाना अंदाज म रौब के साथ बात करती ।
म सुबह-ही-सुबह बंगले के कं पाउं ड म टहल रही थी, तभी मुझे सामने से िव म आता
दखाई पड़ा । उसके शरीर से भीषण बदबू आ रही थी ।
“तुम नहा नह सकते?” िव म जैसे ही करीब आया, म गुरा उठी- “ या यहाँ पानी का
अकाल पड़ गया है ?”
िव म कु छ न बोला ।
वह घोड़े पर बैठा आ धीरे -धीरे आगे क तरफ बढ़ गया ।
“तुमने सुना नह ?” म पलटकर चंघाड़ी- “म तु ह से कह रही ँ । या तुम नहा नह
सकते ? अ तबल के अ दर से भी इतनी बुरी बदबू नह आती, िजतनी तु हारे अ दर से
आती है ।”
उसका घोड़ा क गया ।
“जी, म जानता ँ ।” वह िबना मेरी तरफ पलटे बोला ।
“ या जानते हो तुम ?”
“यही क मेरे अ दर से बदबू आती है ।”
“तो फर तुम नहा नह सकते ?”
वह चुप रहा ।
िब कु ल खामोश ।
उसक खामोशी उसका ब त बड़ा हिथयार थी ।
“तु हारी बेहतरी इसी म है, तुम आज शाम तक नहा लो ।”
िव म ने घोड़े पर बैठे-बैठे पलटकर मेरी तरफ देखा और फर ब त धीरे से मु कु राया ।
तौबा !
उसक मु कान ब त वेधक थी । वह ऐसी मु कान थी, जो कसी न तर तक को चीरती
चली जाये । लेड क धार तक म छेड़ कर दे । म गारं टी से कह सकती ,ँ मने अपने पूरे
जीवन-काल के दौरान कसी मद के ह ठ पर ऐसी वेधक मु कान नह देखी थी । वो ऐसी
मु कान थी, जैसे वह मेरे अ दर क छटपटाहट को महसूस कर रहा था । जैसे वो जानता
था, मेर दल म या है और म उससे या छु पा रही ँ ।
िव म ब त धीरे -धीरे घोड़े पर आगे बढ़ गया ।
मगर मेरी चेतावनी के बावजूद वो शाम तक नहाया नह । मेरी बात का उसके ऊपर
कोई असर न था ।
☐☐☐
इस बीच अिभजीत घोष और मेरे स ब ध भी काफ िवकिसत ए ।
यही वो दौर था, जब मने घोष साहब के एक के बाद एक कई उप यास पढ़ डाले । िबना
शक घोष साहब एक बेहतरीन उप यास लेखक थे । उनके उप यास म अंत तक काफ
रह य बना रहता था । खासतौर पर म फर क ग ं ी क ह या क योजना बनाने म तो वह
मा टरमाइं ड थे ।
अब म घोष साहब के साथ उनके आगामी उप यास म टोरी िड कशन म भी शािमल
होती थी और घोष साहब कसी भी कहानी को फाइनल करने से पहले बाकायदा मेरी
उिचत राय लेते ।
घोष साहब के साथ मेरा नजदीक र ता जुड़ने लगा था ।
“म आपसे एक बात पूछना चाहती ँ घोष साहब!” एक बार टोरी िड कशन के दौरान
मने अिभजीत घोष से कया ।
“ या ?”
“िबना शक आपने एक-से-एक बेहतरीन उप यास िलखे ह ।” म बोली- “आपने
उप यास म एक-से-एक बेहतरीन कहानी िलखी है । ले कन या कोई ऐसी कहानी भी है,
िजसे िलखने क आपक बड़ी तम ा हो ? िजसे आप अभी तक न िलख पाये ह ?”
मेरी बात सुनकर अिभजीत घोष के चेहरे पर संजीदगी क परत पुत गयी ।
अिभजीत घोष ने ‘बजक’ कं पनी के अपने याह काले िसगार का छोटा-सा कश लगाया

“हाँ !” अिभजीत घोष ने धीरे से कहा- “ऐसी एक कहानी है, िजसे िलखने क मेरी बड़ी
तम ा है । िजसे िलखने का म बरस से सपना देख रहा ँ ।”
मेरे चेहरे पर उ सुकता झलकने लगी ।
आिखर वो या कहानी हो सकती है, िजसे िलखना अिभजीत घोष जैसे िम ी राइटर
क भी तम ा हो ।
“मेरा एक बात का और दावा है ।” अिभजीत घोष थोड़े उ माद म बोला ।
“ या ?”
“िजस दन भी म वह उप यास िलखूंगा, वह मेरी िज दगी का सबसे यादा सुपरिहट
उप यास सािबत होगा और वह िम ी राइ टंग क दुिनया म तहलका मचा देगा ।”
“आिखर उस उप यास क कहानी या होगी ?” मेरी कौतुहलता बढ़ती जा रही थी ।
“कहानी गजब क होगी ।”
“ या?”
“म एक ऐसे ि क कहानी िलखना चाहता ँ ।” वह बोला- “िजसक ह या होने
वाली है । मगर दलच प बात ये है क अपनी ह या क योजना वो खुद बनाता है और यह
बात उसे ही नह मालूम होती क उस मडर क ला नंग के अनुसार उसी क ह या होने
वाली है ।”
म च क उठी ।
मेरे चेहरे पर गहन अचरज के भाव दौड़े ।
“यािन मकतूल खुद अपनी ह या क योजना तैयार करता है ?”
“िब कु ल ।”
“ले कन ऐसा कै से हो सकता है ।” मेरा िव फा रत वर- “मकतूल खुद अपनी ह या क
योजना बनाये ?”
“ फलहाल म यही बात सोच रहा ँ । िजस दन भी मुझे अपने इस सवाल का जवाब
िमल गया, म उसी दन उप यास िलख डालूँगा ।”
हालां क अिभजीत घोष के साथ मेरी वो बातचीत वह ख़ म हो गयी ।
ले कन फर भी कहानी का वो लाट सारी रात मेरे दमाग म घूमता रहा ।
वाकई !
टोरी का वन लाइनर ब त गजब था ।
ज़रा सोिचये, कतना आ यजनक मामला है क जो आदमी मरने वाला है, वही अपनी
मौत का सामान तैयार करे ।
ऐसी बात भी कोई अिभजीत घोष जैसा जासूसी उप यासकार ही सोच सकता था ।
☐☐☐
अब एक रह यो ाटन म आपके सामने और करती चलूँ ।
आप थोड़ा संभलकर बैठ जाइए ।
म समझती ,ँ अब आपके कमरे म भयानक भूचाल आने वाला है ।
म एक ऐसा रह यो ाटन करने वाली ,ँ िजसे सुनकर आप िनि त तौर पर उछल पड़गे
। तो सुिनए !
घोष साहब भी अब मुझे मुझसे यार करने लगे थे ।
हालां क हम दोन क उ म ब त बड़ा फासला था । ले कन फर भी मने अिभजीत
घोष क आँख म अनेक बार ऐसे भाव देखे थे, जैसे भाव एक मद क आँख म तब पैदा
होते ह, जब वो उस औरत से ख़ास इ छा रखता हो । जब वो उस औरत के साथ से सुअल
अटैचमट चाहता हो । सबसे बड़ी बात ये है, औरत, मद क आँख मं ऐसे भाव पढ़ने का
ख़ास मा ा रखती है । मने दजन मतबा देखा था क अिभजीत घोष के चेहरे पर मुझसे
बात करते-करते बड़े अनुराग के भाव दौड़ जाते थे । वह मुझसे बड़ी हमदद के साथ पेश
आने लगते थे और उनका हमदद का अंदाज ऐसा होता था, जैसे वह अपना सब कु छ मेरे
ऊपर लुटा देना चाहते ह ।
मुझे सोढा साहब क याद हो आयी ।
वाकई कभी मने यह बात िब कु ल ठीक कही थी, मद क फतरत बड़ी रं गीन होती है ।
वह जैस-े जैसे उ के ढलान क तरफ बढ़ता है, वैसे-वैसे उसके ‘पर’ फड़फड़ाने लगते ह ।
तबीयत मचलने लगती है और वह औरत के मामले म बड़ा नदीदा बन जाता है ।
ऐसे ही सोढा साहब थे ।
ऐसा ही अब अिभजीत घोष था ।
और अिभजीत घोष ही या दुिनया म सबके सब मद एक जैसे होते ह ।
बेगैरत !
बेहया !
घोष साहब अब मुझे हर जगह अपने साथ लेकर जाते ।
इतना ही नह , अब वो धीरे -धीरे अपना यार भी मेरे ऊपर कट करने लगे थे ।
वह बड़ा अजीब माहौल था ।
मेरे दल- दमाग पर जहाँ हमेशा िव म सवार रहता था, वह अिभजीत घोष के दल-
दमाग पर सदा म सवार रहती ।
अलब ा म िव म को अपने दल- दमाग से िनकालकर फक देना चाहती थी ।
मेरी इ छा नह थी, अब मेरे जीवन म कोई नया ेमी कदम रखे ।
ले कन िव म कसी तूफ़ान क तरह मेरी िज दगी म ज़बरद ती घुसा चला आ रहा था

फर भी मने उस तूफ़ान को रोकना था, कसी भी हालत म रोकना था ।
☐☐☐
िव म मेरे जीवन म ेमी बनकर न आ जाये, इसका मने एक बड़ा नायाब फामूला खोज
िनकाला ।
म भी अिभजीत घोष म दलच पी दखाने लगी ।
म भी उससे घुट-घुटकर बात करने लगी ।
मुझे आज भी याद है, इं पे टर िवकास बाली को उस दन िडनर पर आमंि त कया
गया था ।
िडनर लेने के बाद अिभजीत घोष, इ सपे टर िवकास बाली और मेरे बीच देर तक बात

“सचमुच आपको एक अ छी से े टरी िमल गयी है घोष साहब !” इ सपे टर िवकास
बाली ने मेरी तरफ देखकर मु कु राते ए कहा- “यह अपना हर काम ब त िज मेदारी के
साथ अंजाम देती ह ।”
“इसम कोई शक नह ।” अिभजीत घोष ने भी मेरी शंसा म कसीदे पढ़े- “नताशा
वाकई ि िलएंट है । नताशा जबसे बंगले म आयी है, तब से म खुद को काफ महसूस
करने लगा ँ । फै न मेल का जवाब अब समय पर चला जाता है । मेरी रॉय टी भी काफ
बढ़ गयी है और सबसे बड़ी बात ये है, मेरे समारोह म आने-जाने के शे ूल िब कु ल सही
रहते ह । वरना पहले तो कभी-कभी मुझे बड़ी द त का सामना करना पड़ता था ।”
“यािन नताशा के आने से आपको काफ फ़ायदा आ है ।”
“िब कु ल !”
िडनर के बाद बीयर का दौर शु आ।
म भी बीयर के छोटे-छोटे घूँट भरने लगी । ऐसे हर दौर म, म अिभजीत घोष का
खुलकर साथ देती थी ।
“ले कन नताशा जी आपको िमल कहाँ ?” इं पे टर िवकास बाली ने भी बीयर का
छोटा-सा घूँट भरते ए कहा ।
“इनसे मेरी पहली मुलाक़ात ेन म ई थी ।”
“ ेन म ?” िवकास बाली च का ।
और !
च क म भी पड़ी थी ।
मुझे लगा, अिभजीत घोष मेरे बारे म सारी असिलयत उगलने वाला है ।
मगर वैसा कु छ न आ ।
“दरअसल यह नौकरी क तलाश म मु बई आ रही थी ।” अिभजीत घोष बोला- “और
मुझे भी एक से े टरी क स त ज रत थी, इसिलये मने तुरंत इ ह यहाँ रख िलया ।”
“यािन सब कु छ संयोगवश आ ।”
“हाँ !”
“वैसे आप रहने वाली कहाँ क ह ?” इ सपे टर िवकास बाली ने मेरी तरफ देखते ए
कहा ।
“गोरखपुर क ।”
“दै स गुड ! काफ अ छा शहर है ।” िवकास बाली ने बीयर का एक घूँट और भरा-
“खासतौर पर धा मक पु तक के िलये देश भर म िस है ।”
“जी हाँ !”
हम लोग बात करते रहे और बीयर पीते रहे ।
“म तु ह एक खुशखबरी और सुनाना चाहती ँ इ सपे टर !” अिभजीत घोष ने काफ
स िचत लहजे म कहा ।
“ या ?”
“म ब त ज द नताशा को एक नई पो ट पर िनयु करने क सोच रहा ँ ।”
“ कस पो ट पर ?”
“ज द ही बताऊंगा । फलहाल उप यास क तरह थोड़ा स पस रहने दो ।” वह बात
कहकर अिभजीत घोष ब त जोर से ठठाकर हंसा ।
िवकास बाली भी मु कु राया ।
काफ देर तक िबयर का वह दौर चलता रहा ।
रात के दस बज रहे थे, जब इ सपे टर िवकास बाली बंगले से िवदा आ ।
पर तु अिभजीत घोष के पीने का म तब भी जारी रहा था । अिभजीत घोष मुझसे
बात करता रहा और पीता रहा ।
पीते-पीते वो बहकने भी लगा था ।
उसक आँख म सुख-सुख डोरे उभर आये थे ।
“अब आप बस क िजये घोष साहब !”
“नह ! मुझे पीने दो ।”
अिभजीत घोष एक ही सांस म पूरा पैग खाली कर गया ।
फर उसने अपने िलये दूसरा पैग तैयार कया ।
रात के यारह बजे एक िवहंगमकारी घटना घटी । अिभजीत घोष क अब नशे म बुरी
हालत हो गयी थी । फर उसी हालत म उसने मुझे अपनी बाह म समेट िलया ।
म ह -ब रह गयी ।
“यह... यह आप या कर रहे ह घोष साहब ?” मने उसक बाह क िगर त से िनकलना
चाहा ।
पर तु अिभजीत घोष क बाह का दायरा अब और भी स त हो गया ।
“अ… आई लव यू नताशा !” अिभजीत घोष के धधकते ह ठ मेरे गाल पर आ टके ।
“हाँ, घोष साहब !”
“आई लव यू !”
उस ण अिभजीत घोष को मानो कु छ भी सुनाई नह दे रहा था ।
वो खुलकर खेलने के मूड म था ।
जब क म समझ नह पा रही थी, म या क ं ?
म अजीब उलझन म थी ।
मने एक ही झटके म अिभजीत घोष को िशकं जे से आजाद होने का फै सला कर िलया,
पर तु फर म ठठक गयी ।
दरअसल एकाएक मेरी िनगाह लास वंडो पर जाकर टक गयी थी । लास वंडो के
उस पार एक काला साया खड़ा नजर आ रहा था, िजसक िनगाह हमारे ऊपर ही थी । उस
काले साए को म देखते ही पहचान गयी, वो िव म था ।
म मु कु रा उठी ।
एकाएक मेरे दमाग म बड़ा नायाब िवचार क ध गया । अगर मने िव म नाम के उस
नए ेमी को अपने जीवन म दािखल होने से रोकना था, तो मेरे िलये वह एक बेहतरीन
अवसर था ।
म अपनी बाह उठाकर एक भरपूर अंगड़ाई ली और फर बाह का दायरा अिभजीत
घोष क कमर के िगद लपेट दया ।
“वैरी गुड !” अिभजीत घोष का उ साह कई गुना बढ़ गया- “सचमुच तुम ब त अ छी
हो । म तुमसे यार करने लगा ँ नताशा !”
म खामोश रही ।
“ या तुम भी मुझसे यार करती हो ?”
म कु छ न बोली ।
“जवाब दो नताशा !”
“ या सब कु छ मुझे अपनी जबान से ही कहना होगा घोष साहब ?” म धीरे से
फु सफु साई ।
“ओह ! म भूल गया था क तुम एक लड़क हो ।”अिभजीत घोष ठठाकर हंसा ।
उसके बाद वह िब कु ल खुलकर खेलने के मूड म आ गया ।
उसने मुझे अपनी दोन बाह म भरकर उठा िलया तथा फर मुझे लेकर िब तर क
तरफ बढ़ा ।
अगले कु छ ण तूफानी थे ।
जबरद त तूफानी ।
िपछले काफ दन से मने भी से स नह कया था, इसिलये मेरे शरीर म भी भूख जाग
रही थी ।
अिभजी घोष ने पहले मुझे िब तर पर पटका और फर मेरे ऊपर सवार हो गया । शनै:
शनै: मेरी नस-नस म भी अंगारे भरते चले जा रहे थे ।
म अजीब से आन द से सराबोर होने लगी थी ।
एक जानी-पहचानी सुखद गुदगुदाहट क अनुभूित मेरी रग-रग म होने लगी ।
अिभजीत घोष के हाथ अब मेरे शरीर पर फसलने लगे थे ।
खेल चल िनकला ।
पर तु वो खेल कोई ब त यादा लंबा और मजेदार न था । उ अिभजीत घोष के ऊपर
हवी होने लगी थी ।
ब त ज दी उसने िब तर पर घुटने टेक दए ।
एक ण तो ऐसा आया, जब म बुरी तरह झुंझला उठी ।
फर भी मने ज त कया ।
कसी तरह उसे झेला ।
☐☐☐
अगले दन अिभजीत घोषऔर मेरे बीच कोई ब त यादा बात न । हम दोन ही
एक-दूसरे से नजर चुरा रहे थे ।
शाम का समय था ।
अिभजीत घोष ने कु मार को भेजकर मुझे अपने राइ टंग म म बुलाया ।
राइ टंग म का वातावरण उस दन कु छ बदला-बदला था । हमेशा क तरह अिभजीत
घोष अपने उप यास लेखन म त नह था । काफ सारे प े उसक टेबल पर इधर-से
उधर फै ले ए थे और कमरे म ‘बजक’ कं पनी के िसगार का धुंआ भरा था ।
“आओ नताशा !” राइ टंग म म घुसते ही मेरे कान म अिभजीत घोष क आवाज
पड़ी ।
मने देखा, अिभजीत घोष उस समय अपनी रवा वंग चेयर पर मेरी तरफ पीठ कये
बैठा था और धीरे -धीरे िसगार के कश लगा रहा था ।
“बैठो ।”
म कु स ख चकर ब त शा त भाव से टेबल के इस तरफ बैठ गयी । मेरा दल न जाने
य धड़क-धड़क जा रहा था ।
“म तुमसे कु छ कहना चाहता ँ नताशा !”
“क… या ?”
अिभजीत घोष ने पहले गहरी िन: ास छोड़ी ।
वो शायद भूिमका बाँध रहा था ।
“हालां क म नह जानता, वो बात सही है या गलत ।” अिभजीत घोष मेरी तरफ से
पीठ कये- कये धीमे वर म बोला- “ले कन फर भी म वो बात तुमसे कहना चाहता ँ ।
मेरी इ छा है, तुम मेरी प ी बन जाओ ।”
“यािन शादी ।”
मेरे दमाग पर भीषण िबजली गड़ागड़ाकर िगरी ।
“हाँ !”
“ले कन घोष साहब... ।”
म हड़ाबड़ाई ।
“पहले मेरी पूरी बात सुनो ।” अिभजीत घोष ने िसगार का छोटा-सा कश लगाया- “म
जानता ,ँ हम दोन क उ म काफ फक है । पर तु फर भी म समझता ,ँ हम दोन
अ छे पित-प ी बन सकते ह । हम दोन समझदार ह । एक-दूसरे को समझने क
सलािहयत हमारे अ दर ह और फर दुिनया म ऐसी िमसाल कम तो नह , जब उ का फक
होने के बावजूद भी इस तरह क शा दयां कामयाब ई ह ।”
म चुप बैठी रही ।
मने क पना भी नह क थी, अिभजीत घोष जैसा आदमी मेरे सामने ऐसा ताव भी
रख सकता है ।
“एक बात और यान रहे नताशा !”
“ या ?”
“तु हारे ऊपर मेरा दबाव कु छ नह है ।” अिभजीत घोष मेरी तरफ से पीठ कये- कये
बोला- “तुम इं कार भी कर सकती हो । तब भी मेरी िनगाह म तु हारा आदर कम नह
होगा । तुम पूरी तरह आजाद होकर कोई भी फै सला ले सकती हो ।”
म एकाएक कु स छोड़कर उठ खड़ी ई ।
फर म िब कु ल अिभजीत घोष के सामने जाकर खड़ी हो गयी और मने अपना एक हाथ
उसके कं धे पर रख दया ।
अिभजीत घोष ने मेरी तरफ देखा ।
उसक आँख धुंआ-धुंआ थ ।
“घोष साहब !” म संतुिलत लहजे म बोली- “इसम सोचना या है । बि क यह तो मेरे
िलये गव क बात होगी क म आप जैसे स मािनत लेखक क प ी बनूँ ।”
“स… सच ?” अिभजीत घोष एकदम अपनी रवा वंग चेयर छोड़कर खड़ा हो गया ।
“हाँ, सच घोष साहब ।”
अिभजीत घोष ने कसकर मुझे अपनी बाह म भर िलया मेरे गाल पर एक गाढ़ चु बन
अं कत कया ।
दो त , आप सोच रह ह गे, मने अिभजीत घोष के साथ शादी करने का वो फै सला
काफ ज दबाजी म कया ।
पर तु ऐसा नह था ।
वह फै सला मने काफ सोच-समझकर िलया था ।
अगर मने एक बार फर अपनी िज दगी म कसी नए ‘ ेमी’ को आने से रोकना था, तो
इसका अब बस एक ही तरीका था क म ज द-से-ज द कसी से शादी कर लूं ।
कसी क प ी बन जाऊं ।
और आप ही सोिचये, इस व मुझे अिभजीत घोष से यादा ब ढ़या पित और कहाँ
िमल सकता था ?
एक तरह से शादी करने का फै सला लेकर मने अपनी उस हंगामाखेज िज दगी का
लगभग ‘दी एंड’ ही कर दया, िजसके कारण मुझे अतीत म सात-सात पु ष के खून से
हाथ रं गने पड़ गये थे ।
☐☐☐

तीन
22 दस बर ।
दन शु वार ।
यह वो तारीख थी, िजस दन मेरी हंद ु तान के उस महान जासूसी उप यासकार
अिभजीत घोष के साथ शादी ई ।
ले कन मुझे बाद म जाकर अहसास आ क मने अिभजीत घोष के साथ शादी करके
अपनी िज दगी का सबसे गलत कदम उठाया था ।
मेरी िज दगी म तो चैन था ही नह ।
उसम तो बस हंगामा-ही-हंगामा था ।
हमारी शादी ब त धूम-धड़ाके के साथ संप ई ।
पूरा बंगला कसी दु हन क तरह सजाया गया ।
बंगले के कई एकड़ भूिम म फै ले िवशाल कं पाउं ड म बड़े-बड़े सफ़े द क ात लगाये गये ।
एक ब त बड़ा डां संग लोर बनाया गया, जहाँ मेहमान के वा ते िमड नाइट जैसी
रोशनी म फै ले डांस का आयोजन रखा गया ।
उस शादी म एक हजार से यादा लोग ने िशरकत क ।
और वह सब मु बई शहर के बड़े-बड़े लोग थे ।
िजनम महारा के मु यमं ी से लेकर फ म के बड़े-बड़े िनमाता-िनदशक, अिभनेता-
अिभने ी, के ट लेयर, काशक, दूसरे लेखकगण तथा सरकारी सेवा म रत बड़े-बड़े
अिधकारी शािमल ए ।
िजसने भी मुझे देखा, उसी ने मु कं ठ से मेरी सु दरता क तारीफ़ क ।
य त: मुझे अपना भिव य बड़ा उ वल दखाई दे रहा था ।
आिखर इतने धनी और नामचीन आदमी क प ी बनने का सौभा य मुझे ा आ था ।
इ सपे टर िवकास बाली भी हम उस शादी क मुबारकबाद देने आया ।
“ओह !” आते ही उसने अिभजीत घोष से कहा- “तो आपने इनके िलये नई पो ट यह
चुनी थी ।”
“हाँ !” अिभजीत घोष मु कु राया- “कै सी लगी तु ह मैडम नताशा क नई पो ट ?”
“बेहतर !”
“बेहतर या ब त बेहतर ?”
“ब त यादा बेहतर घोष साहब ।”
“गुड !”
अिभजीत घोष क मु कान और यादा गहरी हो गयी ।
ले कन मने अनुभव कया, इ सपे टर िवकास बाली ने यह बात दल से नह कही थी ।
न जाने य मुझे इ सपे टर िवकास बाली उस शादी से उतना खुश नह दखाई दया,
िजतने दूसरे लोग खुश थे ।
मने िव म को देखा ।
िव म को तो जैसे इस बात क कोई परवाह ही नह थी क मेरी शादी भी हो गयी है ।
दु हन के िलबास म उसने मुझे एक बार भी नजर उठाकर नह देखा था और वह बस
ज रत के काम िनपटाता आ इधर-से-उधर घूम रहा था ।
हालां क मेरी िज दगी म कोई नया ेमी न आ जाये, इसीिलये मने आनन-फानन वो
शादी क थी ।
पर तु फर भी न जाने य िव म क वो बे खी मुझे अ छी नह लगी । म चाहती थी,
वो मुझे देखे । उसके चेहरे पर इस बात का मलाल पैदा हो क मेरी शादी कसी और से हो
गयी थी । अगर उसके चेहरे पर दुःख के भाव कट होते, तो मुझे अ छा लगता ।
मेरे दल को सुकून प च ं ता ।
☐☐☐
िजस दन हमारी शादी ई, उसी दन शाम के समय हम हनीमून मनाने के िलये एक
आइलड पर चले गये ।
इसम कोई शक नह , अिभजीत घोष ने हनीमून मनाने के िलये जो जगह चुनी, वह
वाकई लाजवाब थी ।
वह वीडन क राजधानी टॉकहोम के पास बीच समु म बना एक छोटा-सा आइलड
था, जो अ य त सुख-सुिवधा से प रपूण था और उस आइलड क आबादी कसी छोटे
क बे जैसी थी । वहां रे तरां थे । बीयर बार थे । दो इं टर-कॉि टनटल होटल थे ।
हम एक होटल म जाकर ठहर गये ।
हम चूं क थके -हारे थे, इसिलये दोपहर तक तो हमने आराम ही कया और फर आइलड
म घूमने िनकल पड़े ।
वहां कड़ाके क ठ ड पड़ रही थी ।
पर तु फर भी वहां काफ लोग घूमने के िलये आये ए थे । ख़ासतौर पर उस आइलड
के उन ऐितहािसक खंडहर म सबक िच थी, जो पुतगाली सा ा य क याद दलाते थे ।
हम सारा दन उ ह खंडहर म भटकते रहे ।
फर धीरे -धीरे शाम ढलने लगी ।
“चलो !” अिभजीत घोष ने मेरी आँख म झांका- “अब हम वापस होटल चलना चािहए
।”
“इतनी भी या ज दी है ?”
“ य ?” अिभजीत घोष बोला- “आज हमारी सुहागरात है । एक रात तो हम वैसे ही
सफ़र म बबाद कर चुके ह ।”
“स… सुहागरात ?”
म कांप गयी ।
“ य ?” अिभजीत घोष मु कु राया- “ या तुम नह जानती, शादी के बाद पित-प ी
सुहागरात भी मनाते ह, जब क हमने तो अभी तक सुहागरात मनायी ही नह है ।”
“यह आप या कह रहे ह?” म थोड़े शरारती लहजे म बोली- “ या हम यह सब पहले
नह कर चुके ।”
“डा लग ! सै स चाहे कतनी ही बार य न कर िलया जाये, पर तु फर भी सुहागरात
का मह व कम नह होता । चलो अब यादा बोर मत करो ।”
मै जानती थी, उस बात को ब त देर तक टाला नह जा सकता था ।
अ ततः वो तकलीफ तो मुझे बदा त करनी ही थी ।
हालां क ब त से पु ष के साथ ेम-लीलाएं रचाने और सहवास करने के बाद मेरी यह
मा यता बन गयी थी क अंधेरे म मद-मद म कोई फक नह होता ।
सब मद िब तर पर तकरीबन एक जैसे होते ह ।
सब एक जैसी ही हरकत करते ह ।
पर तु मेरी वह मा यता कतनी गलत थी, यह मुझे उस रात अहसास आ ।
म भूल गयी थी क उ भी कोई चीज होती है । उ यादा होने के बाद मद, मद नह
रहता, बि क वह थूलकाय-सी कोई चीज बन जाता है । जैसी अब अिभजीत घोष बन
चुका था । उस रात वह मेरे साथ सहवास ही न कर सका, पहले ही उसके हाथ-पैर ढीले
पड़ गये ।
म ोिधत हो उठी ।
उस रात मुझे स त अफसोस आ क मने य उस आदमी से शादी कर ली थी ।
☐☐☐
हमारी सुहागरात का बेड़ागक हो चुका था और इस बात का अहसास अिभजीत घोष
को भी था ।
वह अगले दन से मेरी चाटु का रता म जुट गया ।
वो हर ण मुझे खुश रखने क कोिशश करता था । वो चाहता था, म उसके सामने कोई
इ छा क ं , िजसे वो दौड़कर पूरी करे । म जानती थी, वह अपनी झप िमटाने क
कोिशश कर रहा था ।
म और भड़क उठी ।
मुझे ऐसे मद स त नापस द थे, जो औरत क चमचािगरी करते ह ।
बहरहाल अिभजीत घोष फलहाल वही सब कु छ कर रहा था ।
अगला पूरा दन हमने फर आईलै ड म घूमते ए और खरीदारी करते ए गुजारा ।
उस दन हम काफ रात को होटल वापस लौटे । अिभजीत घोष ने भी ज दी लौटने क
िजद नह क थी ।
हम सारा दन के थके -हारे थे, इसिलये िब तर पर पड़ते ही हम दोन को न द आ गयी ।
हमारा आइलड म तीन दन तफरीह करने का मूड था, पर तु अिभजीत घोष मुझे दो
दन बाद ही लेकर टॉकहोम प च ं गया ।
टॉकहोम काफ खूबसूरत शहर था ।
मगर न जाने य मुझे वह इतना सु दर नह लगा । शायद इं सान के अ दर से फू ट पड़ने
वाली खुिशयां ही व तु क सु दरता और असु दरता का पैमाना बन जाती ह । हम दस दन
के ो ाम के साथ िनकले थे, मगर अब इतना ल बा हनीमून मुझे भयभीत कर रहा था ।
टॉकहोम म हम एक पांच िसतारा होटल के काफ बड़े सुइट म ठहरे ।
उस सुइट म एक डबल बेड वाला ब त बड़ा बेड म था । दो बाथ म थे । एक बड़ा सा
टै ड म था और एक े संग म था, िजसम एक बेड लगा आ था ।
“सुइट पस द आया न डा लग ?”अिभजीत घोष मुझे देखते ही ज दी से बोला ।
“ब त सु दर है ।” म टै ड म म झांकती ई बोली- “आपक पस द कभी घ टया हो
सकती है घोष साहब !”
“घोष साहब नह !”अिभजीत घोष मेरे करीब आकर खड़ा हो गया- “तुम मुझे अब
िसफ अिभजीत कहा करो डा लग !”
“ले कन... ।”
“इस मामले म कोई बहस नह ।” मेरे कु छ कहने से पहले ही अिभजीत घोष ने मेरी
बात काटी- “यह मेरी इ छा है ।”
“ठीक है ।” म बोली- “अगर आप चाहते ह, तो म आपको अिभजीत ही कहा क ं गी।
ले कन इसम मेरी भी एक शत है ।”
“ या ?”
“अिभजीत म आपको अके ले म क ग ं ी । बाक सबके सामने म आपको घोष साहब ही
कहा क ं गी ।”
“ओ.के . ।”
अिभजीत घोष ने उस बारे म मुझसे यादा बहस नह क ।
तभी म े संग म का अवलोकन करने लगी ।
“वाउ!” े संग म देखते ही म खुशी से चहक उठी- “फ टाि टक ! यह सबसे बेहतरीन
जगह है । म अब इसी े संग म म सोया क ं गी । म थोड़ी बेचैनी क न द सोने वाली
लड़क ं अिभजीत । म नह चाहती क मेरे कारण आपके आराम म परे शानी हो ।”
अिभजीत घोष क पीठ उस समय मेरी तरफ थी।
मगर सामने े संग टेबल के शीशे म मुझे उसक श ल नजर आ रही थी । मेरी बात
सुनते ही उसका चेहरा लटक गया था । वह और भी यादा बूढ़ा दृि गोचर होने लगा ।
“ओह ! म सोच रहा था क तुम मेरे साथ बेड म म सोना पस द करोगी ।”
“ऐसी कोई बात नह ।” म उसका थोड़ा याल रखते ए बोली- “आप जहां कहोगे, म
वहां सो जाऊंगी । ले कन म शादी म िज मानी र त से यादा दो ती क भावना क क
करती ं । म िब कु ल आपक तरह ं अिभजीत । िजस तरह आप िज मानी र त को
यादा धानता नह देत,े वही नज रया मेरा है । यह हमारा सौभा य है क हम दोन के
िवचार एक जैसे ह ।”
अिभजीत घोष का चेहरा फ पड़ गया ।
मने उससे क ी काटने के िलये काफ चालाक से काम िलया था और अ छा-खासा
श द का मायाजाल बुन डाला था ।
“ठीक है !” अिभजीत घोष बोला- “जैसा तुम मुनािसब समझो ।”
वह ब त थके -हारे कदम से बेड म क तरफ बढ़ गया ।
मुझे उस ण उस आदमी पर ब त तरस आया ।
आिखर इसम उसक या गलती थी, जो वह बूढ़ा था, लैमरिवहीन था और ब त जोश-
खरोश के आलम म मेरे साथ रित- ड़ा नह कर पाता था ।
मेरी इ छा ई, म दौड़ूं और उसके साथ उसी के बेड म म जाकर सो जाऊं ।
ले कन फर म इस काम के िलये खुद को तैयार न कर सक ।
मुझे खुद पर गु सा आने लगा ।
आिखर इतनी ल बी िज दगी उसके साथ कै से कटेगी । फर मने अपने दल को तस ली
दी क मु बई प च ं ने के बाद एक बार फर सब कु छ ठीक हो जायेगा । वह जहां अपने
लेखन म, शंसक म और सामािजक याकलाप म त हो जायेगा, वह मेरे वा ते भी
करने के िलये काफ कु छ होगा ।
उस दन िब तर पर लेटकर मुझे िव म क याद आई ।
उसका ल बा-चौड़ा कद-काठ । चीते जैसा फु त ला शरीर । िव म क याद आते ही घोड़े
क लीद जैसी बदबू मेरी सांस म समा गयी, पर तु उस ण वह बदबू मुझे यादा बुरी
नह लगी ।
एकाएक मेरा जी चाहने लगा, म उड़कर मड-आइलै ड के बंगले म प च ं जाऊं और वहां
प चं कर िव म से ढेर सारी बात क ं ।
उससे दो ती क ं ।
☐☐☐
वह अजीब पागलपन भरा अहसास था ।
म कसी भरपूर जवान मद के साथ सहवास करने के िलये तड़पने लगी थी । वह तड़प
ऐसी थी, जैसे म आज तक कसी मद के िलये नह तड़पी थी ।
अिभजीत घोष ने मेरी भूख जगा दी थी, ले कन उस भूख को वह शा त नह कर पाया
था ।
और यही मेरे पागलपन क वजह थी ।
अगले तीन दन हमने टॉकहोम म घूमते ए गुजारे ।
साथ-साथ िप चर देख ।
कै ि डल लाइट िडनर िलया ।
मगर फर भी एक अनचाहा-सा फासला हम दोन के बीच बढ़ने लगा था । हम एक-
दूसरे से पहले के मुकाबले काफ कम बात करते थे और थोड़ा खंच-े खंचे रहते ।
एक दन रात का समय था ।
म होटल के े संग म म सोने क तैयारी कर रही थी ।
“नताशा !”
मने च ककर िसर उठाया ।अिभजीत घोष अपने बेड म म से मुझे आवाज दे रहा था ।
“ या है ?”म थोड़े संतुिलत लहजे म बोली ।
“जरा यहां आओ ।”
म कांप गयी ।
इस तरह अिभजीत घोष ने मुझे पहले कभी नह बुलाया था ।
म ज दी से अपने रे शमी गाउन को दु त करती ई िब तर छोड़कर खड़ी ई, लीपर
पहनी और फर अिभजीत घोष के बेड म म प च ं ी।
मने देखा, अिभजीत घोष बेड पर ही क बल टांग के ऊपर डाले बैठा था । एक कताब
खुली ई उसक गोद म रखी थी और वह अपने काले याह िसगार के छोटे-छोटे कश लगा
रहा था ।
“अ दर आ जाओ नताशा ! मुझे तुमसे कु छ बात करनी है ।”
“म सोने जा रही थी ।” म धीरे से बोली, पर तु फर आगे बढ़कर उसके सामने िब तर
पर जा बैठी ।
मेरा दल धड़क-धड़क जा रहा था ।
उस ण मेरी िह मत नह थी, जो म अिभजीत घोष का सामना क ं ।
“आिखर या बात है?”
“वही तो म तुमसे जानना चाहता ं नताशा, आिखर या बात है ? या तुम मुझसे
शादी करके खुश नह हो ?”
मुझे अिभजीत से इस तरह के सीधे हमले क उ मीद नह थी ।
म बौखला गयी ।
हालां क अिभजीत घोष ने मुझे िब तर पर खुश नह कया था, ले कन फर भी म उसे
खोना नह चाहती थी ।
मुझे फलहाल एक पित क ज रत थी ।
फर चाहे वह ‘नाम’ का ही पित य न हो ।
“खुश, म तो ब त यादा खुश ं ।” म तुर त बोली- “आपने यह कै से सोच िलया क म
खुश नह ं ?”
“तु हारे वहार से तो ऐसा ही मालूम होता है, जैसे तुम मुझसे ब त खुश नह हो ।”
अिभजीत घोष ने संजीदगी के साथ िसगार का एक कश लगाया- “तुम मुझसे इस तरह पेश
आती हो, जैसे म छू त का कोई मरीज होऊँ ।”
“अ… अिभजीत !”
मेरे मुंह से ती िससकारी छू ट पड़ी ।
म बड़ी तेजी से उसक तरफ बढ़ी ।
“ लीज, मुझे हाथ मत लगाना ।” अिभजीत घोष थोड़ा पीछे सरक गया- “तुमने सैर-
सपाटे और हनीमून का सारा मजा चौपट कर डाला है । मुझे अफसोस हो रहा है, म तु हारे
साथ यहाँ आया ही य ?”
“यह आप कै सी बात कर रहे हो अिभजीत ?” म आंदोिलत लहजे म बोली- “मने
हनीमून का मजा चौपट नह कया है । अगर मुझे यादा सैर-सपाटा पसंद नह है, तो
इसम म या कर सकती ँ । अजीब तरीका है आपके हनीमून मनाने का । जब दो ेमी-
ेिमका आपस म बात करते ह , तो सैर-सपाटा करने या खंडहर म िसर टकराते रहने क
या ज रत है ?”
अिभजीत ने अपनी बड़ी वेधक िनगाह से मेरी तरफ देखा ।
“ ेमी- ेिमका ?”
“हाँ !”
“ले कन तु हारे वहार से मुझे ऐसा नह लगता, जैसे तुम मुझसे ेम करती होओ । तुम
तो मेरे साथ िब तर पर सोने से भी परहेज करती हो ।”
अब म डर गयी ।
मुझे लगने लगा, कह वो मुझे तलाक देने क बात न कह बैठे ।
वह मेरे अतीत के बारे सब-कु छ जानता था । वह मेरा ब त कु छ िबगाड़ सकता था ।
“म आपके साथ सोने क इ छु क नह ँ ?” म ज दी से बात संभालती ई बोली-
“ले कन आपके वहार से तो मुझे ऐसा लगता था, जैसे आप खुद ही मेरे संसग के इ छु क
नह हो ।”
“यह तुम कै से कह सकती हो?”
“एक बार टोरी िड कशन के दौरान आपने ही तो कहा था क मोह बत म िज मानी
र त से यादा िम ता क क मत होती है ।”
“ओह! लगता है, हम दोन के बीच कोई गलतफहमी पैदा हो गयी है ।”
“ज र यही बात है अिभजीत !” म बड़ी तेजी से आगे क तरफ सरक - “यह सच है, हम
दोन के बीच वह रात एक नाकामयाब रात इसिलये थी, य क हम दोन के बीच
युचुअल अंडर ट डंग नह बन पायी थी । हम दोन ही एक-दूसरे से खंच रहे थे ।”
“हम दोन नह , बि क तु ह मुझसे खंच रही थी ।” अिभजीत घोष बोला- “म तो
तुमसे मोह बत करता ँ ।”
“मगर मुझे तो यही लग रहा था क उस रात के बाद आप ही मुझसे दूरी बनाना चाह
रहे हो । इसीिलये म दूसरे कमरे म जाकर सोने लगी थी । या आप यह चाहते ह, म आपके
साथ इसी कमरे म सोया क ं ?”
‘और नह तो या ?” अिभजीत घोष कि पत वर म बोला- “म चाहता ँ क हम दोन
के बीच कोई दीवार न रह जाये ।”
“ओह माय गॉड ! हम दोन इतने समझदार होते ए भी कस कार एक-दूसरे से मूख
क तरह बताव कर रहे थे । कस तरह एक-दूसरे को गलत समझ रहे थे । ओह अिभजीत
!”
मेरे मुंह से िसस कयाँ छू ट पड ।
आप समझ ही सकते ह, मेरी वह िसस कयां बनावटी थ ।
नाटक य !
मने आगे बढ़कर अिभजीत घोष को अपनी बाह म भर िलया ।
अिभजीत घोष भी मुझसे कसकर िलपट गया ।
“आप वाकई मुझसे यार करते हो अिभजीत ?”
“िब कु ल, दल क गहराइय से ।”
“ओह माय वीट हाट !”
अिभजीत घोष ने अब मुझे अपनी गोद म समेट िलया था ।
उसक सूखी और कमजोर उं गिलयाँ मेरे क ध म धंसी जा रही थ ।
उस रात म अिभजीत घोष के कमरे म उसी के िब तर पर सोई । वह रात मेरे िलये
भारी क दायक थी । पर तु उस रात मने एक काम अ छा कया, मने लेटने से पहले कमरे
क लाइट बंद कर दी ।
उस सारी रात म सोई नह ।
अिभजीत घोष तमाम रात मेरे अंग- यंग के साथ िखलवाड़ करता रहा ।
उसक मरिग ली जांघे और थूलकाय पेट रह-रहकर मेरे शरीर से टकराता रहा ।
पर तु वह रात नाकामयाब रात नह रही ।
अिभजीत घोष ने उस रात काफ धैय से काम लेकर दखाया ।
☐☐☐
जैसा क म पहले बता चुक ,ँ हम पूरे दस दन के ो ाम से कॉटलड आये थे । पर तु
अब अिभजीत घोष भी यही समझने लगा था क मेरी यादा सैर-सपाटे म िच नह है,
इसिलये सातव दन ही हम वापस मु बई लौट गये ।
यह मेरे िलये भारी खुशी क बात थी ।
मेरी उ मीद को मानो पर लग गये थे ।
म हवा म उड़ रही थी ।
मने जब अिभजीत घोष के बंगले म कदम रखा, तो मेरा चेहरा ताजे गुलाब क तरह
दमक रहा था ।
बंगले म प च ं ते ही मने खुशी-खुशी सबसे पहले नौकर से िमलना शु कया ।
मगर िजसे म देखना चाहती थी, वो वहां कह नह था ।
मेरी बेचैन नजर उसे इधर-उधर खोजने लग ।
“िव म कहाँ है ?” अंतत: मने पूछ ही िलया ।
“िव म !” माधवन बोला- “वह घोड़े को लेकर रे सकोस गया आ है ।”
“ओह !”
“कोई ख़ास बात मैडम ?”
“नह ! ऐसे ही पूछ रही थी । वो दखाई नह दया न ! पीछे तो बंगले म सब कु छ
ठीक-ठाक रहा न ?”
“जी मैडम ! सब ठीक रहा ।”
“कु मार !”
मने कु मार को आवाज दी ।
“यस मैडम !”
कु मार त काल भागा-भागा मेरे पास आया ।
हालां क कु मार मुझे पसंद नह करता था, ले कन फर भी अपनी नापसंदगी उसने कभी
मेरे ऊपर जािहर करने क कोिशश नह क ।
“पीछे जो डाक आयी होगी, वो कहाँ ह ?”
“वह सब मने आपक टेबल पर रख दी थी मैडम !”
“कोई फोन ?’
“एक काशक का फोन आया था । वो घोष साहब का नया उप यास छपने के िलये
आपसे िमलना चाहता है । एक-दो दन म शायद वो आपको फर फोन करे गा ।”
“ ँ !”
म ल बे-ल बे डग रखती ई अब अपने कमरे क तरफ बढ़ गयी ।
हालां क म अब अिभजीत घोष क बीवी बन चुक थी । ले कन फर भी उसक से े टरी
का काम छोड़ने क मेरी इ छा नह थी ।
आिखर इतने िवशालकाय बंगले म व गुजारने का वही एक साधन तो मेरे पास था ।
म सबसे पहले नहा-धोकर े श ई और फर अपने ऑ फस म प च ं कर मने डाक देखी ।
मेरी टेबल पर िच य का अ बार लगा आ था ।
ढेर सारा काम मेरी ती ा म था ।
म तुरंत अपने काम म म हो गयी ।
यह बात अलग है, मेरा यान िव म क तरफ ही लगा आ था । हालाँ क म जानती
थी, मेरी वो बेकरारी खुद मेरे िलये ही खतरनाक है । म खुद ही तो चाहती थी, मेरे जीवन
म कोई नया ेमी कदम न रखे और फर म जान-बूझकर एक झंझट को आमं ण दे रही थी

पर तु म बेबस थी ।
म करना कु छ चाहती थी, कर कु छ रही थी ।
िव म !
उस आदमी का चेहरा आँख के सामने क धते ही म ांस जैसी ि थित म प च ँ जाती थी
। यह शायद पागलपन क इ तहा थी ।
पागलपन, िजसका दूसरा नाम ‘मोह बत’ है ।
☐☐☐
शाम के छ: बजे तक म िच यां तथा मेल पढ़ती रही और उनम से कु छेक के जवाब म
टेप रकाडर पर बोल-बोलकर िडटे ट भी करती रही ।
उसके बाद म टहलने के इरादे से बंगले के कं पाउं ड म प च
ँ ी।
मेरी आँख तब भी िव म को ही तलाश रही थ ।
म सवट ाटर क तरफ गयी । िव म वाले ाटर का बाहर से कुं डा लगा था ।
म अ तबल क तरफ बढ़ी ।
वो वह था ।
उस समय िव म एक मोटर से चलने वाली मशीन हाथ म पकड़े खड़ा था और उससे
घोड़े क पीठ का आं साफ़ कर रहा था । हालत उसक वही थी । वो शायद िपछले सात
दन के दौरान भी नह नहाया था । उसने कपड़े भी वही पहने ए थे, िशकारी जूत,े टाइट
ज स और लेदर क जै कट ।
“हेलो !”
“हेलो मैडम !”
िव म ने एक सरसरी-सी िनगाह मेरे ऊपर डाली ।
पर तु उसने मशीन बंद नह क और वो पहले क तरह ही घोड़े क पीठ का आं
त मयतापूवक साफ़ करता रहा ।
म जल-भुन गयी ।
आज तक कभी कसी मद ने मुझे इस कदर नजरअंदाज नह कया था ।
“माधवन बता रहा था ।” म उससे वातालाप जारी रखते ए बोली- “ क तुम रे सकोस
गये ए हो । रे सकोस से कब लौटे ?”
“दो घंटे पहले ही लौट आया था ।”
“घोष साहब से िमले ?”
“हाँ !”
मने कहना चाहा, मुझसे य नह िमले ? पर तु फर म चुप लगा गयी ।
वह टू ल पर अं ेजी क दो-तीन कताब रखी ई थ , िजनम से एक आधी खुली ई थी

मने आगे बढ़कर वो कताब उठाई ।
वह िव िस जासूस के ऊपर थी ।
साफ़ जािहर हो रहा था, िव म काफ पढ़ा-िलखा था ।
“मुझे तु हारा कै रे टर काफ अजीब नजर आता है िव म !”
“ कसिलये ?”
िव म अब घुटन के बल बैठ गया था और मशीन से घोड़े के पेट का आं साफ़ करने
लगा ।
“तुम नहाते जो नह हो । अपना अजीब-सा बुरा हाल जो बनाए रखते हो ।”
िव म हंसा ।
उसक हंसी भी सीिमत दायरे म थी ।
“अगर तुमने साफ़-सुथरा रहना न शु कया, तो मुझे घोष साहब से तु हारी िशकायत
करनी होगी ।”
“आप मुझे धमक दे रही ह ?”
“नह , समझा रही ँ ।”
“मुझे समझाने क ऐसी ही कौिशश आप पहले भी एक मतबा कर चुक ह मैडम ।”
यह कहकर िव म ने मेरी तरफ देखा ।
उसक आँख म बड़ी भावनामयी गहराई और स ती थी ।
एक ण के िलये मुझे उसक आँख म ऐसा कु छ दखाई दया क एकाएक मेरा दल
बि लय उछलने लगा । वो वही नंगी लालसा थी, जो मने कभी सोढा साहब या शंकर क
आँख म देखी थी । वह मेरी क पना क उपज नह थी । मने सचमुच ही उसक आँख म
वह भाव देखा था, जो कसी ी को यह बताता है क उस मद को हािसल कया जा
सकता है या नह ।
मगर वह ज बा ज द ही उसक आँख म गायब हो गया ।
म समझ गयी, आग दोन तरफ बराबर लगी ई थी ।
☐☐☐
म िव म क तरफ लगातार ख चती चली जा रही थी ।
म पानी थी, वो आग !
म डोर थी, वो पतंग !
एक अजीब-सा र ता हम दोन के बीच कायम हो गया था ।
अगले दन अिभजीत घोष के साथ लंच लेते समय मने एक मह वपूण चचा छेड़ी ।
“ या बात है ?” अिभजीत घोष गौर से मेरी तरफ देखता आ बोला- “आज काफ
थक -हारी नजर आ रही हो ।”
“हाँ, जब से लौटी ,ँ तब से काम का बोझ काफ है । उसी को िनपटाने क कोिशश कर
रही थी ।”
“ या ब त काम है ?”
“हाँ, िपछले सात दन म िच य और मे स का ढेर जमा हो गया है । म तो यह सोच-
िवचार ही कर रही ँ क वह सारा काम कै से िनपटेगा । फर उसम कु छ ब त ज री मे स
भी ह, िजनका ज दी जवाब दया जाना आव यक है ।”
“ओह ! यह तो काफ ज टल बात है।” अिभजीत घोष लंच लेते-लेते ठठका- “तुम एक
काम य नह करती ?”
“ या ?”
“अपना एक सहायक य नह रख लेती । वही तु हारे काम म हाथ बंटा दया करे गा
।”
वह श द कहने के बाद अिभजीत घोष पुन: लंच लेने लगा था ।
“सच तो ये है अिभजीत, आज सुबह से यही बात म भी सोच रही ँ ।”
“वेरी गुड !”
“ले कन मेरे दमाग म एक बात और भी है ।”
“ या ?”
“इस काम के िलये कोई नया नौकर रखने क या ज रत है ।” मने तुरंत िनशाने पर
तीर छोड़ा- “ या बंगले म ही कोई ऐसा आदमी नह है, जो सहायक का काम कर सके ?
आिखर वह सारा दन खाली ही तो रहते ह ।”
“यह बात भी ठीक है ।”
अिभजीत घोष अब थोड़ा सोच म डू ब गया था ।
सोच म डू बे-डू बे वह लंच लेता रहा ।
जब क मेरा दल धड़क-धड़क जा रहा था ।
तभी कु मार ने गरम टमाटर सूप लाकर टेबल पर रख दया ।
“मेरी िनगाह म बंगले के अ दर एक आदमी है ।” अिभजीत घोष काफ सोच-िवचार
कर बोला- “जो यह काम कर सकता है ।”
“कौन ?”
“िव म !”
मेरे मानो मन क मुराद पूरी हो गयी ।
म मानो हवा म उड़ने लगी ।
“नह -नह ।” फर भी म इं कार म गदन िहलाते ए बोली- “िव म नह !”
“ य ?”
“आपने देखा ही है, वह कतना गंदा रहता है । वह तो मेरे नजदीक से भी गुजरता है, तो
मुझे बदबू आती है ।”
अिभजीत घोष धीरे से हंस पड़ा ।
“ चंता मत करो, म उससे बोल दूग
ं ा क वह साफ़-सुथरा रहा करे और तु हारे सहायक
का काम देखे ।”
“ या वो आपक बात मानेगा?” म थोड़े सशं कत लहजे म बोली ।
“ य नह मानेगा ?”
☐☐☐
अगले दन से ही िव म ने मेरे सहायक का काम देखना शु कर दया ।
वह अब नहा-धोकर और अपने सुतली जैसे बाल म ह का-सा तेल लगाकर मेरे सामने
आया, तो म उसे अचंिभत िनगाह से देखती रह गयी ।
वह िब कु ल जे स बांड क तरह माट नजर आ रहा था और उसक मदाना चमक ब त
बढ़ गयी थी ।
अलब ा उसने कपड़े तथा जूते वही पहने ए थे ।
फर भी उस जैसे जंगली आदमी को सुधारने के िलये शु आत अ छी थी ।
“वेरी गुड !” म उसे शंसनीय ने से देखते ए बोली- “पहली बार लग रहा है, तुम
इसी दुिनया क कोई चीज हो ।”
वह हमेशा क तरह शांत था ।
“अब तुम थोड़ा ब त बोलना भी शु कर दो ।”
“मुझे काम या करना है ?”
“वह भी बताती ँ ।”
मने उसे काम समझाना शु कया ।
आदमी वह वाकई बुि मान था ।
मुझे कोई भी बात उसे दोबारा समझाने क आव यकता नह पड़ी । दो घंटे म ही वह
पूरी तरह ड हो गया और तेजी से अपना काम करने लगा ।
यह देखकर म च कत रह गयी, वह टाइप भी करना जानता था ।
वह तो मानो कोई हरफनमौला चीज था ।
हर मज क दवा ।
उसक उं गिलयाँ कं यूटर के क -बोड पर इस तरह दौड़ती थ , जैसे उसे टाइप करने का
वष का तजुबा हो ।
शाम तक ही उसने मेरा काफ काम िनपटा डाला ।
☐☐☐
उसी दन एक घटना घटी ।
अिभजीत घोष क एकाएक न जाने कै से तबीयत िबगड़ गयी ।
वह राइ टंग म म बैठा लेखन कर रहा था, तभी उसके िसर म बड़ा तेज दद उठा । दद
वाकई तेज था ।
म तुरंत उसके पास प च
ँ ी।
“ या पहले भी ऐसा दद उठा है ?”
“हाँ, दो-तीन मतबा उठ चुका है ।” अिभजीत घोष दद से छटपटाता आ बोला ।
कु मार भी वह आ गया ।
“म आपके िलये चाय बनाकर लाता ँ घोष साहब !”
“ज दी लाओ !”
कु मार दौड़ता आ वहां से चला गया ।
शी ही जब वो लौटा, तो उसके हाथ म गरमा-गरम चाय का एक कप था ।
अिभजीत घोष चाय पी गया ।
चाय पीने से उसके िसरदद को कु छ आराम प च ं ा । फर थोड़ा ककर उसने एक
िसरदद क गोली खाई और एक न द क गोली खाई ।
“म आराम करना चाहता ँ ।”
“चिलये ।”
मने अिभजीत घोष क कमर म बांह डाल दी और सहारा देकर उसे उठाया ।
वह िब कु ल लुंज-पुंज आदमी था ।
म उसे लेकर बेड म म प च ँ ी । बेड म म प च ं ते ही वह लेट गया ।
“म अब थोड़ी देर सोऊँगा ।” अिभजीत घोष बोला- “इससे मेरी तबीयत को आराम
िमलेगा ।”
“ य नह , ज र ।”
मने एक पतला-सा क बल उसके ऊपर डाल दया ।
“बेड म क लाइट और बंद कर दो ।” अिभजीत घोष बोला- “अब म सुबह ही उठूं गा ।”
“ठीक है ।”
मने लाइट बंद कर दी और बेड म से बाहर िनकल आयी ।
बाहर से मने दरवाजे के दोन प ले और िभड़ा दए ।
म हवा म उड़ रही थी ।
अब सारी रात मेरी अपनी थी ।
म ाइं ग हाल से जुड़े अपने ऑ फस म प च ँ ी।
िव म वह था । ले कन अब वो जाने क तैयारी कर रहा था । कं यूटर को उसने
ओवरआल से ढक दया था । िच य को िलफ़ाफ़े म डालकर उनके पैकेट बना दए थे ।
“तुम कहाँ जा रहे हो ?” म वहां प चं ते ही बोली ।
“आपने मुझे जो काम दया था, म वो सब िनपटा चुका ँ ।” िव म बोला- “वैसे भी
मुझे अ तबल म जाकर थोड़ी घोड़ क भी देखभाल करनी है ।”
“ओह !”
यह तो म भूल ही गयी थी, िव म के ऊपर एक दूसरी िज मेदारी भी थी ।
“मेरी बात यान से सुनो ।” एकाएक म िव म के काफ नजदीक जा खड़ी ई और
धीमी आवाज म फु सफु साई ।
िव म च का ।
“कै सी बात?”
“घोष साहब क तबीयत एकाएक कु छ खराब हो गयी है ।” मने धारा वाह अंदाज म
कहा- “उनके िसर म कु छ दद है । वह न द क गोली लेकर सो गये ह और अब वो सुबह
उठगे । समझ रहे हो, अब वो सुबह उठगे ।”
िव म एकाएक आ य से मेरी तरफ देखने लगा ।
“काम यादा है ।” म आगे बोली- “म आज रात भी थोड़ा काम िनपटाना चा ग ं ी । तुम
आ जाना ।”
एकाएक िव म क आँख म ऐसे भाव पैदा आ, जैसे वो भांप गया था, म या चाहती
थी ।
मैने परवाह न क ।
अ छी बात थी, अगर वो एक ही बार म सब कु छ भांप गया था ।
देर-सवेर तो उसने वह बात भांपनी ही थी ।
“रात को ?”
“हाँ !”
“ले कन तब कु मार जाग रहा होगा ।”
मेरे चेहरे पर हष क कोपल फू ट पड़ ।
यािन वह तैयार था ।
मेरे िलये वो शुभ संकेत था ।
“कु मार क तुम परवाह मत करो ।” म बेचैनी के साथ बोली- “इसका इं तजाम म कर
दूग
ं ी ।”
“कै सा इं तजाम ?”
“न द क एक गोली मने आज रात कु मार को भी िपला देनी है । फर घोष साहब क
तरह वो भी गहरी न द सो जायेगा ।”
िव म अपलक मुझे देखने लगा ।
“आज रात दस बजे म तु हारा इं तज़ार क ं गी िव म !”
िव म खामोश रहा ।
“आओगे न दस बजे?”
वो कु छ न बोला ।
“म तु ह से पूछ रही ं ।” म बुरी तरह झ ला उठी- “जवाब दो ।”
“म देखूंगा ।”
“देखोगे नह ।” म गुराई- “तुम आओगे । म तु हारा इ तजार क ं गी ।”
िव म कु छ ण मेरी आंख म आंख डाले मुझे देखता रहा और फर िबना कोई जवाब
दये चला गया ।
म झ ला उठी । अजीब पागल आदमी था ।
छ ीस ंजन से सजी थाली उसके सामने रखी थी और उसे कु छ खबर ही न थी ।
सच तो ये है, अगर वह दूसरे मद क तरह शु से ही मुझम दलच पी लेता, तो उसे
अपनी जंदगी से म खी क तरह बाहर िनकाल फकने म मुझे आसानी रहती । फर मेरी
जंदगी म एक और ेमी दािखल न हो पाता । मगर उसका जुदा वहार ही मुझे उसक
तरफ ख च रहा था ।
☐☐☐
मेरे हाथ कांप रहे थे ।
मेरा दल बड़े जोर से धड़क रहा था ।
िव ास जािनए, कम-से-कम कसी मद क वजह से मेरा ऐसा हाल कभी नह आ था ।
मेरा दल कह रहा था, िव म रात दस बजे ज र आएगा । कु मार को रात के समय
चाय पीने क आदत थी । मने चुपचाप कचन म जाकर उसक चाय म दो न द क
गोिलयां डाल दी । चाय पीने के मुि कल से एक घंटे बाद ही वह अपने कमरे म जाकर सो
गया और उसके खराटे बजने लगे ।
अब मेरा रा ता साफ था ।
अब मुझे कोई खतरा न था ।
न द क गोिलयां मने अिभजीत घोष क ायर म से िनकाली थ । फर म ऑ फस म
आकर बेचैनी से िव म का इं तजार करने लगी ।
पता नह वो आने वाला था या नह आने वाला था ।
मगर वो आया ।
ठीक दस बजे आया ।
िव म के आते ही म एकदम दौड़कर उससे िचपट गयी और उसे अपनी बाह म भर
िलया ।
उस ण के िलये म न जाने कब से बेकरार हो रही थी ।
“ओह िव म! म तुमसे यार करने लगी ं ।” मने लगभग हाँफते ए कहा ।
मेरी सांस म तूफान आया आ था ।
“म जानता ं ।” िव म शा त लहजे म बोला ।
मने च ककर िव म क तरफ देखा ।
“जानते हो ?” म बोली- “तब भी इतनी बे खी से पेश आते हो । मने तु हारे जैसा प थर
क तरह बेिहस मद आज तक नह देखा ।”
वो खामोश रहा ।
उसक खामोशी पर म झ ला उठती थी ।
मेरा दल चाहता था क म उसका िसर फोड़ दूं या फर अपना फोड़ डालूं । आिखर म
उस जैसे आदमी से खामखाह उलझ रही थी ।
उस ण म से स के िलये इस कदर ाकु ल हो रही थी क मने दरवाजा भी अ दर से
बंद नह कया था ।
“पीछे हटो ।”
“ य ?”
“कोई आ सकता है । म दरवाजा ब द कर लूं ।”
“ओह !”
म हट गयी ।
िव म ने ही आगे बढ़कर दरवाजा अ दर से ब द कया ।
दरवाजा ब द करके वह पलटा ही था क म फर उसक बाह म समा गयी । इतना ही
नह , म आनन-फानन म उसके कपड़े भी उतारने लगी ।
उसक जै कट, पट, शट, देखते ही देखते मने उसके सारे कपड़े उतार डाले ।
िव म ने कोई ितरोध न कया ।
“काफ ज दी म हो ।” वो ब त धीरे से बोला ।
“हां, काफ ज दी म ं । तुम नह जानते, मने कतना इ तजार कया है ।”
शी ही िव म मेरे सामने िसफ अ डरिवयर म खड़ा था ।
मेरा हाथ सरसराता आ उसके अ डरिवयर म समा गया ।
उफ!
वह पूण पु ष था ।
पूण से भी यादा पूण पु ष ।
उसका मजबूत िज म तथा कसे ए अंग- यंग देखकर मेरी यास और भी भड़क उठी
थी ।
उसी ण िव म ने मुझे कसी िखलौने क तरह गोद म उठा िलया और फर मुझे लेकर
वह ऑ फस म पड़े काफ चौड़े दीवान क तरफ बढ़ा ।
उसके बाद उसने ब त धीरे -धीरे मेरे कपड़े उतारने शु कये ।
हालां क म ाकु ल हो रही थी ।
मेरी इ छा थी क वो मेरे कपड़े उतारने क बजाय उ ह बस जंगिलय क तरह फाड़
डाले ।
फर भी मने स कया ।
अपने अ दर से बह िनकलने वाले सैलाब को रोका ।
म अब िनव थी ।
मने एकाएक अपनी संगमरमरी बाह म िव म को जकड़ िलया ।
“िव म ! आई लव यू !”
म मान मदहोश ई जा रही थी ।
“आई लव यू !”
मेरे मुंह से बार-बार वह श द फू टने लगे ।
उसक बगल म से, उसक जांघ म से, उसके सीने म से मुझे अभी भी घोड़े क लीद
जैसी दुग ध आ रही थी । वह दुग ध उसके रोम-रोम म समा चुक थी । ले कन उस ण
उस दुग ध से भी मुझे असीम मानिसक शाि त ा हो रही थी ।
म वाकई पागल हो चुक थी ।
मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे म कसी ब त तंद त, जवान, अरे िबयन ह े-क े घोड़े के
साथ सहवास कर रही होऊं ।
म उस ण एक बात दावे के साथ कह सकती थी, मेरी िज दगी म अभी तक िजतने ेमी
आए थे, उनम िव म जैसा शानदार और गुबरै ला मद कोई न था ।
कमरे का टे परे चर एकाएक ब त बढ़ गया था ।
हम न जाने कतनी देर तक उसी तरह आपस म गु थम-गु था होते रहे ।
मुझे नह मालूम, वो खेल कतनी देर चला ।
समय का तो जैसे मुझे कोई अनुमान ही नह रहा था।
मुझे िसफ इतना पता है, अ ततः एक काफ ल बी मूठ वाला गरम खंजर मेरी दोन
जांघ को बीच म से फाड़ता चला गया था और मेरे हलक से अ य त दयिवदारक चीख
िनकल गयी ।
वो चीख ऐसी वीभ स थी, जैसी चीख मेरी आज तक कभी कसी सहवास के दौरान नह
िनकली थी ।
म कतनी ही देर पड़ी हांफती रही ।
िव म ने मेरे सामने वासना क एक नई और रं गीन दुिनया खोल दी थी ।
उस ण के बाद म उस गुबरै ल मद क और भी यादा दीवानी हो उठी ।
☐☐☐
फर तो जैसे वह िसलिसला चल िनकला ।
मेरे जीवन म एक नये ेमी ने कदम रख दया था । मेरी उस दृढ़ ित ा क धि यां
उड़ चुक थ , जो मने गोरखपुर से भागते समय क थी क मेरे जीवन म अब कोई नया
ेमी दािखल नह होगा ।
िव म रोजाना टीन के मुतािबक ऑ फस आता था ।
म मौका देखकर कभी भी उसे बाह म दबोच लेती । उसका चु बन ले लेती या फर
दूसरी कोई हरकत करती ।
“िव म !”ऐसे ही एक दन म उसे बाह म भरे -भरे बोली- “ य न वह सब फर
दोहराया जाये ।”
“पागल मत बनो ।” िव म ने आिह ता से मुझे खुद से अलग कर दया- “रोज-रोज इस
तरह क हरकत ठीक नह । तुम घोष साहब को नह जानती ।”
“ या नह जानती ?”
“यही क वह एक जासूसी उप यासकार ह । ऐसे पा और घटना क संरचना वह
रोज करते ह । अगर एक बार उ ह तु हारे और मेरे स ब ध क जरा सी भी भनक िमल
गई, तो वह उसी ण खड़े पैर मुझे नौकरी से िनकाल दगे और तु हारा या होगा, इसका
अंदाजा भी तुम सहज लगा सकती हो ।”
“मुझे अपने अंजाम क परवाह नह ।”
“तु ह अपने अंजाम क भले परवाह न हो ।” िव म बोला- “ले कन मुझे परवाह है । म
इतनी अ छी नौकरी को कसी हालत म छोड़ना नह चाहता । तुम नह जानती, घोष
साहब म चाहे लाख बुराइयां सही, मगर एक खूबी उनम है, वो िन संदह े बड़े आदमी ह
और इतने बड़े आदमी के यहां नौकरी िमलना आसान नह होता ।”
“बेकार क बात मत करो ।” म गुरायी- “नौकरी! नौकरी! या तु ह मेरी परवाह नह ?
या यह दो टके क नौकरी तु ह मेरे से भी यादा यारी है ?”
िव म कु छ न बोला ।
“देखो ।” मने धैयपूवक कहा- “हम दूसरे िमलन के िलये कु छ-न-कु छ करना होगा ।”
“ या करोगी ?” िव म बोला- “उस दन घोष साहब क तबीयत एकाएक खराब हो
गयी थी, इसिलये हम मौका िमल गया । अब या गारं टी है, घोष साहब क तबीयत कब
खराब होगी ?”
“तबीयत खराब होने क गारं टी भले न हो ।” मने कहा- “ले कन फर भी घोष साहब से
िनपटा जा सकता है ।”
“कै से ?”
िव म के ने िसकु ड़े ।
उसके चेहरे पर कौतुहलता जागी ।
“पहले उ ह ने न द क गोली खुद ली ।” मने तरक ब सुझाई- “मगर इस बार उ ह न द
क गोली म िखला दूग ं ी । उ ह भी और कु मार को भी ।”
“नह ! नह !” िव म बोला- “म र क नह लेना चाहता ।”
“इसम या र क है ?”
“अगर न द क गोली िखलाने से उनक तबीयत कु छ यादा खराब हो गयी तो ? या
उ ह न द ही नह आयी, तब या होगा ? िब कु ल नह । हम समझदारी से काम लेना
होगा नताशा ।”
“पागल मत बनो ।” म गुरायी- “म समझदारी से ही काम ले रही ,ं जो इतनी योजना
बुन रही ं ।”
“ फर भी इसम खतरा है और कु मार, कु मार को तुम या समझती हो ? मने उसक
आंख म देखा है । उसके दल म तु हारे िलये कोई ब त अ छे भाव नह ह ।”
“म जानती ं ।”
“जानती हो, तब भी इतना पागलपन दखा रही हो ?”
“तुम इसे चाहे कु छ भी कहो, ले कन म तु हारे िबना नह रह सकती ।”
म फर िचपट गयी ।
“मेरा चु बन लो िव म, मेरा चु बन लो ।” म छटपटा रही थी ।
मेरी सांस भभक रही थ ।
िव म ने मेरा एक गाढ़ चु बन िलया ।
☐☐☐
ज द ही मुझे इस बात का एहसास अ छी तरह हो गया था क िव म के साथ दोबारा
हमिब तर होना कोई आसान काम नह है ।
वह तो इ ेफाक से एक गो डन चांस मुझे िमल गया था और उसका मने पूरा-पूरा
फायदा उठाया ।
फर एक वा या और घटा ।
िव म काम करने दो दन तक ऑ फस न आया । इस बीच अिभजीत घोष तथा मेरे
स ब ध िब कु ल सहज थे और उनम कह कोई अवरोध न था । ले कन लगातार दो दन
तक िव म के न आने से म बेचैन हो उठी ।
या बात थी ?
य नह आ रहा था िव म ?
जब तीसरे दन भी िव म न आया, तो मेरे स का बाँध छू ट गया और म उसके ाटर म
जा प च ँ ी।
िव म तब वह था । ले कन वो अ तबल जाने के िलये तैयार हो रहा था । जैकेट उसने
पहन ली थी और तभी अपने िशकारी जूत म पैर डाले थे ।
मुझे देखते ही वो च का ।
“तुम ?”
“ य मुझे देखकर आ य हो रहा है ?”
िव म कु छ न बोला ।
उसने िसफ अपने जूत क िजप ऊपर क तरफ ख ची ।
“तुम िपछले दो दन से कहाँ गायब हो ?”
‘अ तबल म कु छ यादा काम था ।” िव म बोला- “और फर कल मुझे एकाएक
रे सकोस जाना पड़ गया, इसीिलये न आ सका ।”
म उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी ।
मने उसक आँख म झाँका ।
“मेरी आँख म आँख डालकर जवाब दो िव म ! या यह सच नह है क तुम मुझसे
खंच रहे हो ?’
“ऐसी कोई बात नह है ।”
“देखो िव म !” म स ती से बोली- “अगर तुम नह चाहते क यह र ता आगे बढ़े, तो
म इसे अभी ख़ म करने के िलये तैयार ँ ।”
“तुम खामखाह बात बढ़ा रही हो । तु हारे दल म मेरे िलये यह वहम बैठ गया है ।”
“तो फर इतने दन गायब रहने के पीछे और या बात है ?”
िव म ठठका ।
उसने सीधे मेरी आँख म झांका ।
“सच बताऊँ ?”
“हाँ, सच ही बताओ ।”
“म... म राज खुलने से डरता ँ ।” िव म बोला- “म नह चाहता क घोष साहब को
हमारे बारे म कु छ पता चले ।”
“घोष साहब को कु छ पता नह चलेगा ।” म आंदोिलत होकर बोली ।
“तु हारे िसफ एक लाइन कह देने से बात ख़ म नह हो जाती । तुम अभी घोष साहब
को नह जानती हो ।”
“म जानती ँ ।”
“नह जानती ।” िव म ककश लहजे म बोला- “अगर जानती होती, तो तुम सारा
मामला इतनी सहजता से ह गज न लेती । वह कोई साधारण आदमी नह ह, िजनक
आँख म धूल झ क जा सके ।”
“ठीक है! म नह जानती तु हारे घोष साहब को ।” मने एकाएक िव म के दोन कं धे
कसकर पकड़ िलये- “और म जानना भी नह चाहती । म िसफ तु ह जानना चाहती ,ँ
तु ह । समझे ? अब मेरी एक बात यान से सुनो । आज रात म तु हारा इ तजार क ं गी ।
घोष साहब आज क रात पहले क तरह गहरी न द सो जायगे और कु मार भी । मुझे
उ मीद है, तुम आओगे । म अब चलती ँ ।”
मने िव म के दोन कं धे छोड़ दए ।
म जाने के िलये मुड़ी ।
मने यह भी मालूम करने का यास नह कया था, िव म आयेगा या नह ।
म जैसे ही मुड़ी, तभी मने अपने दाय हाथ पर िव म के हाथ का पश महसूस कया ।
मेरे शरीर म रोमांच क लहर दौड़ गयी । िव म ने मेरा हाथ कसकर पकड़ िलया और
फर घुमाकर अपनी मजबूत बाह म समेट िलया । अपने ह ठ मेरे ह ठ पर रख दए ।
उस ण मने िव म क आँख म अपने ित गहन अनुराग के भाव देखे ।
“तुम मुझे धोखा तो नह दोगे िव म ?”
“नह , कभी नह ।”
“सच ?”
“िब कु ल सच ।”
िव म ने मेरे चेहरे पर झूल आयी बाल क एक लट को पीछे कया ।
यही वो ण था, जब मने बाहर ह क -सी आहट क आवाज सुनी ।
म तुरंत िव म से अलग हो गयी ।
“म चलती ँ । लगता है बाहर कोई है ।”
िव म ने ितरोध न कया ।
☐☐☐
सवट ाटर से बाहर िनकलते ही मेरे शरीर म तेज झुरझुरी दौड़ गयी ।
वह अिभजीत घोष था ।
अिभजीत घोष सामने से उसी तरफ चला आ रहा था ।
उसे देखकर एक पल के िलये तो मेरे शरीर का सारा खून ही िनचुड़ गया और म
भयभीत हो उठी । ले कन शी ही मने खुद को ब त सहज बना िलया । म जानती थी,
मेरी ज़रा-सी बौखलाहट मेरी असिलयत के ऊपर से पदा उठा सकती थी ।
“तुम यहाँ या कर रही हो ?” अिभजीत घोष मेरे नजदीक आकर बोला ।
“कु छ नह ।” मने ब त सहज उ र दया- “िव म िपछले दो दन से काम पर नह
आया था, इसिलये म देखने चली आयी क वो य नह आ रहा ।”
“तु हारा इस तरह सवट ाटर म आना-जाना ठीक नह है । इस तरह का जो भी काम
हो, कु मार से कराया करो ।”
“ठीक है ।”
मने उस िसलिसले म यादा बहस नह क ।
“वह आ य नह रहा था ?”
“कहता था, अ तबल म िबज़ी था । आज से आयेगा ।”
“मालूम होता है, इस िव म का दमाग कु छ यादा खराब हो गया है ।”
मने कु छ न कहा ।
म िसफ बंगले क तरफ बढ़ गयी ।
थोड़ा आगे जाकर मने पलटकर देखा ।
मुझे जबरद त शॉक लगा ।
अिभजीत घोष अभी भी वह खड़ा था और मुझे ही देख रहा था ।
म काँप उठी ।
या अिभजीत घोष ने मेरी और िव म क बात सुन ली थ ?
या उसे हम दोन पर शक हो गया था ?
मेरा दल डरने लगा ।
अगर ऐसा था, तो ठीक नह था ।
ले कन उसके बाद शाम तक कोई िवशेष घटना न घटी । अिभजीत घोष के बताव म भी
कोई फक न था ।
वह मुझसे िब कु ल सहज ढंग से पेश आ रहा था ।
यािन उसे शक नह आ था ।
रात को मने योजना के मुतािबक़ अिभजीत घोष और कु मार, दोन को न द क गोिलयां
दे द ।
फर वह रात ब त हंगामाखेज रात गुज़री ।
ब त भूक पकारी ।
उस रात िव म ने और मने दूसरी बार से स कया । वह से स पहले से भी यादा
दयिवदारक और भूकंप क तरह झंझोड़ देने वाला था ।
एक बार फर कमरे म जोर का तूफ़ान आया और गुजर गया । मगर तूफ़ान के बाद
बादल पूरे वेग से बरसे थे और उस बरसात ने हम दोन को ही तृ कर दया था ।
वह पारी भी अ छीखासी जोरदार पारी सािबत ई ।
मगर नतीजा !
वही !
न कोई हारा, न कोई जीता ।
आनंद के गहरे सागर म गोते लगाने के बाद हम दोन एक-दूसरे क बाह म कसकर
िलपट गये ।
☐☐☐
एक बता म अ छी तरह समझ चुक थी, िव म से मेरा दल कभी भरने वाला नह था

वह तो यूं मेरे खून म घुल गया था, जैसे आज तक कोई नह घुला था ।
म अब िव म के साथ ब त खुलकर पेश आने लगी थी । म कभी भी उसके ाटर म
चली जाती । हालां क अिभजीत घोष ने मुझे चेतावनी दी थी क म वहां न जाया क ं ।
ले कन!
िव म मेरे होशो-हवास पर हावी होता जा रहा था ।
मुझे सोते-जागते, उठते-बैठते अब िसफ िव म ही दखाई पड़ता था ।
मुझे दुिनया क कोई परवाह न थी । म यह तक भूल चुक थी, अिभजीत घोष एक
िस जासूसी लेखक ह और उनम राज सूंघने क अ भुत शि है ।
ऐसे ही एक दन म उसके ाटर म थी ।
मने िव म को ब त कसकर अपनी बाह म भरा आ था तथा मेरे शरीर पर िसफ ा
और पटी थी ।
“तुम उससे या कहकर आयी हो ?” िव म थोड़ा भयभीत था ।
“कु छ नह !” म बोली- “वह अपने राइ टंग म म बैठा उप यास िलख रहा है और तुम
जानते हो, जब वह उप यास िलखता है, तब उसे दुिनया क कोई परवाह नह होती ।”
िव म हंसा ।
“ले कन शायद उसे तु हारी परवाह हो ?”
“नह !” म अफसोस के साथ बोली- “म भी उसके िलये दुिनया म ही ँ । अगर ऐसा
होता, तो फर बात ही या थी ?”
“यह तु हारा वहम भी तो हो सकता है ?”
“नह ! वहम नह है िडयर !” मेरा हाथ सरसराता आ िव म क शट के अ दर दािखल
हो गया और ह ठ उसक गदन पर सरकने लगे- “कम-से-कम इस मामले म, म उसे तुमसे
यादा अ छी तरह जानती ँ ।”
िव म का हाथ भी अब सरसराता आ मेरे व पर प च ँ गया था, जब क दूसरा हाथ
मेरे पेट से फसलता आ अ दर दािखल होगया ।
म असीम आनंद से सराबोर होने लगी ।
हम दोन उस समय फश पर खड़े ए एक-दूसरे से िचपटकर ‘ऑरल से स’ कर रहे थे ।
ऑरल से स!
िजसम रित- ड़ा को छोड़कर ी-पु ष बाक सब कु छ करते ह ।
चु बन लेते ह ।
अंग- यंग छेड़ते ह ।
उस या म रित- या से भी यादा से सुअल फ लंग होती है और आन द आता है ।
तभी घटना घटी ।
अचानक दरवाजे पर द तक ई ।
िव म ने और मने एक-दूसरे क तरफ देखा । मेरे चेहरे से सारा खून िनचुड़ गया ।
“कौन है ?”
“म देखता ँ ।”
िव म ने मुझे अपने से परे धके ला और तेजी से दरवाजे क तरफ बढ़ा । िव म ने िझरी
म से बाहर झांका ।
त प ात वह इतना भयभीत हो उठा, िजतना मने उसे िज दगी म पहले कभी नह देखा
था ।
“घोष साहब ह !” वह एकदम से झपटकर मेरे करीब प च ं ा- “ज दी छु पो, ज दी ।”
घोष साहब का नाम सुनकर मेरा एक-एक रोआं कांप उठा ।
मने झपटकर ज दी वह पड़े अपने कपड़े उठाये और दौड़कर टोर म म जा छु पी ।
इस बीच िव म दरवाजा खोल चुका था ।
“बड़ी देर कर दी दरवाजा खोलने म ?”
अिभजीत घोष क आवाज मेरे कान म पड़ी ।
“म कपड़े बदल रहा था घोष साहब ! या म है ?”
“अ तबल म तो सब कु छ ठीक-ठाक चल रहा है ?”
“जी हाँ !”
“म बाहर चहलकदमी कर रहा था ।” अिभजीत घोष बोला- “मने सोचा, य न म
घोड़ के बारे म तुमसे मालूम करता चलूँ ।”
“आपने ठीक कया घोष साहब !”
वह दोन बात कर रहे थे, जब क म टोर म म छु पी ई पसीने म नहाए जा रही थी ।
उ फ!
अगर म िसफ ा और पटी म अिभजीत घोष के ारा वहां पकड़ ली जाती, तो िनि त
ही मेरी कहानी ख़ म थी ।
“जैक के अब या हाल ह ?” मेरे कान म अिभजीत घोष क आवाज पुन: पड़ी ।
“पहले से तो ब त बेहतर है घोष साहब !” िव म बोला- “म उसे दवाई दे रहा ँ ।”
“कोई यादा खतरे वाली बात तो नह ?”
“नह , कोई खतरे वाली बात नह । अगर कोई बात होगी, तो म आपको इ ला क ं गा
।”
“ठीक है । जैक का ख़ास याल रखना । वह ब त क मती घोड़ा है ।”
“आप िन ंत रह ।”
“म चलता ँ ।”
“अ छा घोष साहब !”
अिभजीत घोष चला गया ।
☐☐☐
अिभजीत घोष के जाते ही िव म तुर त टोर- म म आ घुसा ।
मने देखा, उसका चेहरा िब कु ल सफ़े द झ पड़ा आ था ।
एकदम सफ़े द चाक क तरह ।
“हे भगवान! आज तो बाल-बाल बचे ।”
िव म माल से अपने चेहरे का पसीना प छता आ बोला ।
मेरा खुद बुरा हाल था ।
दल धड़क-धड़क जा रहा था ।
“मने तु ह पहले ही आगाह कया था ।” िव म बोला- “उस क ब त के अ दर राज
सूंघने क िवल ण शि है । अब खेल ख़ म नताशा! अब हम कभी इस तरह अके ले नह
िमलगे । अब तुम जाओ ।”
“ले कन... ।”
“अब इस मामले म कोई बहस नह । लीज !”
मेरी टांग काँप-काँप जा रही थ ।
उस ण म खुद बहस करने क ि थित म नह थी ।
म दरवाजे क तरफ बढ़ी ।
“एक िमनट को !”
“अब या बात है?”
“पहले मुझे देखने दो । बाहर कोई है तो नह ।”
िव म ने दरवाजा खोला और बाहर झांका ।
बाहर कोई न था ।
“ठीक है, जाओ ।” उसने पलटकर कहा ।
म त काल एक भयभीत चोर क तरह वहां से िनकलकर भागी ।
☐☐☐
मेरे िलये आफत बढ़ती जा रही थ ।
सबसे भयंकर मुि कल ये थी, अिभजीत घोष अब िव म और मेरे ऊपर शक करने लगा
था ।
जब क म िनरं तर उसके यार म डू बती जा रही थी ।
वो मेरी बेइंतहा दीवानगी से भरे दन थे ।
िव म! िव म!
मुझे हर पल वही एक आदमी चमकता था ।
पं ह दन तक फर हमने एक-दूसरे को छु आ भी नह । वह टीन के मुतािबक़ ऑ फस
म अपना काम करने आता था, काम करता था और चला जाता था । उसने मेरे और अपने
दर यान एक ख़ास तरह क दूरी बना ली थी । म भी उससे ब त यादा घुल-िमलकर बात
नह करती थी ।
फलहाल मेरे िलये यही ब त बड़ा क र मा था क म िव म को अभी भी अपने
सहयोगी के पद पर िचपकाए ए थी ।
ले कन आिखरकार जहाँ चाह हो, वहां राह िनकल ही आती है ।
मने िमलन का रा ता खोज ही िलया ।
मुझे आज भी याद है, वह बु वार का दन था । िव म रोजाना के मुतािबक़ कं यूटर पर
कु छ ज री िच यां टाइप कर रहा था । म अिभजीत घोष का ही एक उप यास लेकर
िव म के सामने वाली कु स पर जा बैठी और मने अपनी िनगाह उप यास के प पर
िचपका ल ।
“िव म !” म उप यास के प पर िनगाह िचपकाए-िचपकाए बोली- “मेरी बात यान
से सुनो ।”
िव म ने च ककर मेरी तरफ देखा ।
“नह ! मुझे मत देखो । अपना काम करते रहो ।”
िव म क उं गिलयाँ िब कु ल पहले क तरह कं यूटर पर दौड़ने लग ।
“ या तु ह मालूम है ।” म बोली- “कल घोष साहब तीन दन के िलये पूना जा रहे ह ।”
“मालूम है ।”
“िव म ! यह हमारे िलये एक शानदार मौक़ा है । घोष साहब का पूना म ब त त
ो ाम होगा । उ ह ने िमनोलॉजी के ऊपर एक समारोह म अ य ीय भाषण देना है ।
एक कू ल के सां कृ ितक ो ाम म जाकर पुर कार बांटने ह और वह लेखक क एक गो ी
म भी जाना है । तीसरे दन कह वो शाम तक लौटगे ।”
“ले कन तुम शायद जानती नह हो ।” िव म ज दी-ज दी टाइप करता आ बोला-
“तीन दन के इस अित त ो ाम म तुम भी उनके साथ जा रही हो ।”
“म जानती ँ ।” मने नाक-भ िसकोड़ी- “वो कल ही मुझसे इस बारे म बात कर रहे थे,
मगर मने अभी उ ह कोई जवाब नह दया है । म उनसे जाने के िलये मना कर दूग ं ी ।”
“बेकार क बात मत करो ।” िव म तीखे वर म बोला- “उनसे पूना जाने के िलये मना
मत करना ।”
“ य ?”
“अगर तुम पूना जाने के िलये मना करोगी, तो घोष साहब को तु हारे और मेरे स ब ध
पर शक पहले से भी यादा मजबूत होगा ।”
म सोचने लगी ।
िव म बात सही कह रहा था ।
“ठीक है ।” म काफ सोच-िवचारकर बोली- “तो फर म पूना न जाने का कोई और
तरीका िनकालूंगी । एक बात तो तुम अ छी तरह समझ लो िव म, म जाने वाली तो
कसी हालत म नह ँ । तीन दन, हमारे पास एक साथ गुजारने के िलये पूरे तीन दन
ह गे और सबसे बड़ी बात ये है, वो बु ा भी खतरे क घंटी क तरह हमारे सामने उपि थत
नह रहेगा ।”
िव म ने एकाएक ठठककर मेरी तरफ देखा ।
उसने टाइप करना बंद कर दया था ।
“ले कन तुम पूना न जाने का या तरीका िनकालोगी ?”
“कोई-न-कोई तरीका तो मुझे िनकालना ही पड़ेगा । म कोई अ छा-सा बहाना बना
दूग
ं ी ।”
िव म कु छ न बोला ।
वह िसफ मुझे देखता रहा ।
☐☐☐
और, आिखरकार मने एक अ छा-सा बहाना ढू ंढ ही िलया ।
जब पूना जाने का टाइम आया, तो मने उससे कु छ घंटे पहले ही लेराइगो (Larigo) क
एक साथ चार टेबलेट खा ल । चार टेबलेट खाते ही मेरा जी िमचलाने लगा, च र आने
लगे और फर बड़ी मुि कल से आधा घंटे बाद ही मुझे एक के बाद एक दो बड़ी-बड़ी
उि टयाँ ।
उन उि टय ने मुझे िहलाकर रख दया ।
मेरी हालत देखकर अिभजीत घोष भी काफ चंितत आ ।
“उ फ ! तु हारी तबीयत भी अभी खराब होनी थी । को, म डॉ टर को बुलाता ँ ।”
“नह ! डॉ टर बुलाने क कोई ज रत नह ।”
“ य ज रत नह !” अिभजीत घोष बोला- “अगर डॉ टर क दवाई नह लोगी, तो
तु हारी तबीयत और िबगड़ जायेगी ।”
बहरहाल !
अिभजीत घोष ने डॉ टर बुला िलया ।
जब तक डॉ टर आया, तब तक मुझे ठं डा-ठं डा पसीना आकर बुखार भी चढ़ चुका था ।
डॉ टर ने आकर मेरा लड ेशर चेक कया । टे परे चर नापा और फर खाने के िलये
मेिडिसन दी ।
“मुझे कोई ऐसी दवाई दो डॉ टर ।” म अिभजीत घोष के सामने डॉ टर से बोली- “जो
म ज द-से-ज द ठीक हो जाऊं ।”
“ य ?”
“ य क मुझे थोड़ी देर बाद ही पूना जाना है । वहां घोष साहब के कु छ ज री ो ाम
ह ।”
“नह !” डॉ टर क गदन इं कार क सूरत म िहली- “पूना तो अब आप नह जायगी
मैडम! आपक तबीयत काफ खराब है, अब आपने दो-तीन दन तक पूरी तरह बेडरे ट
करना होगा ।”
“ले कन… ।”
“नह नताशा !” अिभजीत घोष ने भी कहा- “पूना तो अब तुम नह जाओगी । बि क
तु हारी तबीयत को देखते ए म भी सोच रहा ,ँ अब म भी पूना जाने का अपना ो ाम
किसल कर दूं ।”
मेरा दल ध से रह गया ।
अिभजीत घोष ऐसा भी िनणय ले सकता है, यह तो मने सोचा भी न था ।
“नह -नह , घोष साहब !” म ज दी से बोली- “आप अपना ो ाम किसल न कर । वह
तीन ज री मी टंग ह । उनक काफ पहले से तैया रयां हो रही ह ।काड बंट चुके ह तथा
दूसरे लोग को भी आमंि त कया जा चुका है । अगर ऐसी प रि थित म आप वहां नह
गये, तो यह ठीक नह होगा ।”
“मगर ऐसी हालत म, म तु ह यहाँ अके ला छोड़कर पूना कै से जा सकता ँ नताशा ?”
“मुझे कु छ नह आ है ।” म बोली- “मामूली बुखार है, ज द ही वह भी ठीक हो जायेगा
। आिखर डॉ टर साहब ने दवाई तो दे ही दी है ।”
“िब कु ल ठीक बात है ।” डॉ टर भी ि थित क गंभीरता को समझता आ बोला-
“ यादा चंता क कोई बात नह है घोष साहब ! मैडम का बुखार आज रात या फर कल
सुबह तक हर हाल म उतर जायेगा । आप िन ंत होकर पूना जाएँ और फर अगर मैडम
को पीछे कोई परे शानी होती है, तो उसके िलये म यहाँ मौजूद ँ ।”
अिभजीत घोष फर भी तापूवक अपने काले याह िसगार के छोटे-छोटे कश
लगाता आ इधर-से-उधर घूमता रहा ।
वो बेचैन था ।
वह फै सला नह कर पा रहा था, वो या करे ।
ले कन आिखरकार जीत मेरी ई ।
अिभजीत घोष मुझे मड-आइलड के उसी बंगले म अके ला छोड़कर पूना के िलये रवाना
हो गया ।
☐☐☐
बताने क ज रत नह , अिभजीत घोष के पीठ फे रते ही मेरी तबीयत एकदम ठीक हो
गयी थी और म पहले से भी यादा चाक-चौबंद व तंद त दखाई पड़ने लगी ।
मुझे ऐसा लग रहा था, मानो मने कोई बड़ा कला फ़तेह कर िलया हो ।
अगर अिभजीत घोष िजस लेन से पूना रवाना आ था, वह लेन रा ते म ही े श हो
जाता, तो वह मेरी िज दगी का सबसे मुबारक दन होता । मुझे उस आदमी से इतनी
नफ़रत हो चली थी ।
आधी रात को लगभग दो बजे का समय था, जब िव म एक बार फर मेरे बेड म म था

“िव म !” म िव म को अपनी बाह म भरे -भरे बोली- “हम इस जंजाल से िनकलने का
कोई उिचत रा ता तलाशना ही होगा । म अब और यादा दन तक यह जुदाई बदा त
नह कर सकती ।”
“ यादा उतावलापन न दखाओ ।” िव म ने कहा- “िजस तरह चल रहा है, सब कु छ
उसी तरह चलने दो ।”
“ले कन िजस तरह यह सब कु छ चल रहा है िव म !” म बोली- “वह भी तो कोई
आसान रा ता नह है । उसम भी खतरा-ही-खतरा है । आिखर हम कब तक इस तरह
चोरी-छु पे िमलते रहगे और कब तक यह सारा िसलिसला यूँ ही चलेगा ?”
“बात तो ठीक है ।”
िव म भी सोच म डू ब गया ।
“म एक बात क ं िव म !” मने िव म के गले म अपनी बाह का हार िपरोया ।
“कहो !”
“ब त दमाग खपाई करने के बाद मने इस सम या का एक हल सोचा है ।”
“कै सा हल?”
“िव म, म य न अिभजीत घोष को तलाक दे दूं और फर हम दोन शादी कर ल?”
“बेवकू फ जैसी बात मत करो ।” िव म ने एकाएक मुझे अपने से अलग कर दया-
“ या तुम जानती हो, घोष साहब ने कु छ दन पहले ही अपने सॉिलसीटर से एक नई
वसीयत तैयार कराई है और उस वसीयत म उ ह ने अपनी सारी जायदाद तु हारे नाम कर
दी है । या ऐसी प रि थित म तुम यह पसंद करोगी क तुम घोष साहब को तलाक देकर
उनक सारी दौलत से हाथ धो बैठो? माय डेलीिशयस डा लग नताशा ! म मानता ँ क
इस िज दगी म मोह बत भी कोई चीज होती है । ले कन मत भूलो, दौलत भी कोई कम
बड़ी चीज नह होती । और घोष साहब क सारी चल-अचल संपि सौ करोड़ से भी
यादा क है ।”
“सौ करोड़ ।”
मेरे मुंह से ती िससकारी छू ट गयी ।
म िव म को ब त िवि मत िनगाह से देखने लगी । िव म का एक नया प मेरे सामने
उजागर हो रहा था ।
“हाँ ! सौ करोड़ !” िव म बोला- “और सौ करोड़ क संपि कोई कम नह होती
नताशा ! ज़रा सोचो घोष साहब तो एक-न-एक दन मरगे ही । वो भला कब तक जीिवत
रहने वाले ह । जब तक घोष साहब मर नह जाते, तब तक जैसा चल रहा है, वैसा ही
चलने दो । म कु छ गलत तो नह कह रहा ?”
मेरा दल जोर से धड़कने लगा ।
िव म क बात म दम था ।
सौ करोड़ !
वाकई सौ करोड़ क उस अथाह संपदा को लात मारना कोई अ लमंदी नह थी ।
ले कन फर भी यह सोचकर मेरा दम सूखने लगा, पता नह अिभजीत घोष अभी कब
मरने वाला था । पांच साल ! दस साल ! बीस साल ! अभी तो उसके बारे म कु छ कहा ही
नह जा सकता था ।
म खुद को अजीब से दोराह पर खड़ा आ महसूस करने लगी ।
अिभजीत घोष ! वह मरे ए सांप क तरह मेरे गले म पड़ चुका था ।
☐☐☐
िव म और मेरे बीच काफ देर तक उस स जे ट पर बात होती रह ।
फर हम दोन के दर यान जब ेमलीला शु ई, तो एकाएक िबना कसी अि म
चेतावनी के टेलीफोन क घंटी बज उठी ।
हम दोन च के ।
िव म तो तुरंत मुझसे िछटककर यूं अलग आ था, जैसे कमरे म कोई आ गया हो ।
टेलीफोन क घंटी रात के उस स ाटे म िनरं तर बज रही थी ।
“ज र वही है ।” िव म एकाएक भयभीत मु ा म बोला- “वही ! घोष साहब !”
“हाँ ! घोष साहब !”
म कांप उठी ।
“वही हो सकते ह । वो तु ह यहाँ अके ला छोड़कर चले ज र गये ह, मगर उ ह चैन नह
िमलेगा । उ ह जवाब दो नताशा ! ले कन जो भी कहो, ब त सावधानी के साथ कहना ।”
मने कं पकपाते हाथ से टेलीफोन का रसीवर उठाया ।
अलब ा इतनी अ ल से मने काम ज र िलया क बोलते समय ऐसी आवाज बना ली,
जैसे अभी-अभी न द से जागी होऊँ ।
“कौन है ?” म रसीवर उठाकर गुरायी ।
दूसरी तरफ से मुझे तुरंत अिभजीत घोष क आवाज सुनाई पड़ी ।
वही था ।
क ब त!
“ओह अिभजीत !”
म सोच भी नह सकती थी, डेढ़ सौ कलोमीटर दूर रहकर भी वह आदमी मेरे और
िव म के बीच म दीवार बन सकता था ।
“हे भगवान !” म उन दे वर म बोली- “यह आपको या हो गया है ? या आप जानते
हो, इस व रात के तीन बज रहे ह ।”
“लगता है, मने तु ह सोते से जगाया है नताशा ?”
“और नह तो या ।”
“नाराज मत होओ डा लग !” अिभजीत घोष बोला- “मुझे तु हारी तबीयत क फ़ हो
रही थी । तु हारा बुखार उतरा या नह ?”
“वह तो आपके जाने के थोड़ी देर बाद ही उतर गया था । दवाई ने काफ ज दी काम
कया ।”
“और उ टी ?”
“ फर कोई उ टी वगैरा भी नह ई । म अब पूरी तरह ठीक ँ ।”
“वेरी गुड ! तु हारी आवाज सुनकर मुझे काफ राहत िमल रही है नताशा !”
“ लीज ! अब आप सो जाओ अिभजीत ! काफ रात हो गई है । मेरी आँख म भी न द है
।”
“ले कन या तुम िमनोलॉजी क उस मी टंग के बारे म नह जानना चाहोगी डा लग,
िजसम मने आज अ य ीय भाषण पढ़ा ।”
अिभजीत घोष क बात सुनकर मुझे उस ण बेहद गु सा आया ।
वह रात के तीन बजे अपने अ य ीय भाषण क बात कर रहा था ।
“डा लग ! मेरा आज का भाषण बेहद-बेहद कामयाब रहा । मी टंग म उपि थत येक
ि ने मेरे उस भाषण क मु कं ठ से शंसा क ।”
उसके बाद वह तकरीबन पांच िमनट तक अपने भाषण का ही राग अलापता रहा ।
आिखरकार म उसे टोके िबना न रह सक ।
“अिभजीत लीज ! अब टेलीफोन बंद कर दो । ब त रात हो गयी है । मुझे डर है, कह
इतनी रात को जागने से मेरी तबीयत फर खराब न हो जाये ।”
“ओके ! ओके ! गुड नाइट ।”
“गुड नाइट अिभजीत !”
वह बड़ी मुि कल से टला ।
मने टेलीफोन का रसीवर रख दया ।
ले कन अिभजीत घोष क उस टेलीफोन कॉल ने एकाएक कमरे का सारा माहौल
िबगाड़ दया था और वहां क मािनयत तो िब कु ल ही हवा हो चुक थी ।
☐☐☐
सच तो ये है, अपना बेड म भी अब मुझे पि लक लेस जैसा नजर आने लगा था ।
ऐसा लगता था, मानो हर तरफ से कई आंख हम ही घूर रही ह ।
वह आतंक का बड़ा अजीबोगरीब एहसास था ।
“नताशा !” िव म अपने कपड़े पहनकर िब तर से उठ खड़ा आ- “म अब चलता ं ।”
िव म के उन श द ने मेरे दल- दमाग पर एक और भीषण व पात कया ।
मचक ।
“जा रहे हो, ले कन अभी तो दन िनकलने म काफ देर बाक है िव म ! और अभी
हमने कया ही या है ।”
“नह , अब इन सब बात से कोई फायदा नह ।” िव म उदास वर म बोला- “इस
समय मुझे ऐसा लग रहा है, जैसे घोष साहब यहाँ कमरे म ही मौजूद ह ।”
“ले कन यह तु हारा वहम है िव म !” मने खड़े होकर िव म को अपनी बांह म लेने
का यास कया ।
पर तु िव म िछटककर मुझसे पीछे हट गया ।
“म जानता ,ं यह मेरा वहम है ।” िव म बोला- “मगर फर भी न जाने य मुझे अब
यहां एक सेके ड और भी ठहरना काफ अजीब लग रहा है ।”
म िव म क मनःि थित अ छी तरह समझ रही थी ।
सच तो ये है, उस टेलीफोन कॉल के बाद मेरा भी कु छ-कु छ वैसा ही हाल था ।
“ठीक है िव म!” मने िव म का एक गाढ़ चु बन िलया- “तो फर कल रात सही ।
बताओ, कल रात तु ह मेरे पास आओगे या फर म तु हारे पास आऊं ?”
“कल रात !” िव म के चेहरे पर अफसोस भरी मु कान पैदा ई- “डा लग! तुम नह
जानती, कल क रात अब हमारे िलये कभी नह आएगी । देख लेना, उससे पहले ही घोष
साहब यहां आ धमकगे ।”
“वो नह आएंगे ।” म ब त दृढ़तापूवक बोली- “उनक सारी मी टंग ब त अज ट ह ।”
“अज ट मी टंग !” िव म बोला- “म फर क ग ं ा, म घोष साहब को तुमसे यादा
जानता ं नताशा ! वो हर हालत म अपनी सारी मी टंगे किसल करके लौट आएंगे और
अगर वो नह लौटे, तो यह हमारे िलये अ छा ही होगा । हम दोनो के िलये ।”
िव म ने एक बार बड़े अनुरागपूण ने से मेरी तरफ देखा ।
फर वो चला गया ।
िव म तो चला गया, पर तु फर मेरी वो रात बड़ी उलझनपूण रही । मुझे सारी रात
सोच-सोचकर न द नह आयी ।
☐☐☐
अगले दन मने िव म को ब त सज-धजकर कह जाते देखा ।
पहले भी म िव म को इसी तरह कई मतबा बंगले से बाहर जाते देख चुक थी । वो
कहां जाता था, यह मुझे भी मालूम न था ।
“इस व कहां जा रहे हो ?”
वह उस समय गैराज से एक पुरानी फयेट कार बाहर िनकाल रहा था, जब म उसके
सामने जाकर बोली ।
वह फयेट कार बंगले म खासतौर पर इसिलये रखी गयी थी, ता क अगर कसी नौकर
को ज री काम से मु बई वगैरह जाना पड़े, तो वह उसका इ तेमाल कर सके ।
“म अपनी मां से िमलने जा रहा ं ।” िव म संजीदगी के साथ बोला ।
“मां !”
म च क पड़ी ।
मेरे ने िव फा रत अंदाज म फै ल गये ।
“हां, मेरी मां जोगे री म रहती है ।” िव म बोला- “वापसी म म जैक के िलये
दवाइयां वगैरा भी लेता आऊंगा और महाल मी रे सकोस म भी थोड़ा काम है ।”
“ले कन अपनी मां का िज तुमने पहले कभी तो नह कया िव म ?”
“ज रत ही नह पड़ी होगी ।”
म चुप रही ।
पर तु एकाएक मां का िव म ने िजस कार िज कया था, वह मुझे थोड़ा अजीब लग
रहा था ।
“म स ाह म कम-से-कम एक मतबा मां से िमलने ज र जाता ं ।” िव म कह रहा था-
“अगर म सात-आठ दन नह जाता, तो मां परे शान हो जाती है । वैसे भी उनक देखभाल
करने वाला कोई नह है ।”
िव म तब तक फएट कार गैराज से बाहर िनकाल चुका था ।
“कब तक लौटोगे ?”
“शाम तक लौट आऊंगा ।” िव म ाइ वंग सीट पर बैठा-बैठा बोला ।
“रात वाला ो ाम तो याद है न ?”
“याद है ।” िव म आिह ता से मु कु राकर बोला ।
अगले ही पल फएट कार ाइव-वे पर दौड़ती चली गई ।
िव म चला गया ।
☐☐☐
िव म ने एक बात िब कु ल सही कही थी, कल क रात अब हमारे िलये कभी नह
आएगी ।
और !
िव म क वो भिव यवाणी सच सािबत ई ।
अिभजीत घोष अगले दन शाम को ही पूना से वापस लौट आया ।
“अ...आप !” अिभजीत घोष को देखते ही मुझे यूं जोरदार झटका लगा, जैसे एक साथ
हजार िब छू ने डंक मारा हो ।
“ य , मुझे देखकर हैरानी हो रही है डा लग ?” अिभजीत घोष ने आते ही मुझे अपनी
बाह म समेट िलया और मेरा एक चुंबन िलया- “दरअसल तु हारे िबना वहां मेरा एक
सेकड के िलये भी दल नह लगा । मने िमनोलॉजी के ऊपर होने वाले समारोह म भाग
िलया । आज कू ल के एक सां कृ ितक समारोह म जाकर पुर कार बांटे और उसके बाद
फ़ौरन लेन पकड़कर सीधा यहां चला आया ।”
“मगर कल आपने लेखक क एक गो ी म भी तो िह सा लेना था अिभजीत ?”
“वह ो ाम मने किसल कर दया । मने जब गो ी के आयोजक को तु हारी बीमारी के
बारे म बताया, तो उ ह ने चुपचाप मेरी अनुपि थित वीकार कर ली ।”
“ओह !”
मेरे चेहरे पर िनराशा पुत गयी ।
िव म के साथ गुजरी िपछली रात से अभी मेरी तृ णा शांत भी नह ई थी क
अिभजीत घोष आ टपका था ।
फर िव म के कारण भी काफ बड़ा हंगामा आ ।
वह उस दन तो अपनी मां के पास गया ही था । अगले दन वो फर अपनी मां से
िमलने चला गया । उसने बताया, उसक मां क तबीयत कु छ खराब चल रही है ।
न जाने य मेरे मन म अब संदह े पैदा होने लगा ।
माँ !
ज र उस करण म कह -न-कह कु छ गड़बड़ थी ।
☐☐☐
चौथे दन िव म मां से िमलने का बहाना भरकर जब फर बंगले से रवाना आ, तो इस
बार मने बड़ी खामोशी से उसका पीछा कया ।
म डर रही थी ।
सच तो ये है, अगर मेरी मोह बत ने अिभजीत को कमजोर बना दया था, तो िव म क
मोह बत ने मुझे कमजोर बना दया था । म अपने उस नए ेमी को कसी हालत म खोना
नह चाहती थी ।
यह देखकर म च क , िव म ने अपनी कार जु के एक छोटे से िस वर बीच होटल क
पा कग म ले जाकर खड़ी क ।
होटल !
िव म वहां य आया था ?
उसे तो अपनी मां से िमलने जोगे री जाना था ।
मेरा दल जोर-जोर से धड़कने लगा ।
मने अपनी कार थोड़ा फासले से खड़ी कर ली और वह से िव म क गितिविध देखने
लगी ।
िव म जैसे ही कार से बाहर िनकला, तभी एक लड़क तेज-तेज कदम से उसक तरफ
बढ़ी । वह थोड़े लंबे कद क और साधारण श ल-सूरत वाली लड़क थी । कपड़े भी उसने
कोई ब त ब ढ़या नह पहने ए थे ।
ह के गुलाबी कलर का कु ता-सलवार और दुप ा, बस ।
“हेलो मा रया !” मेरे कान म िव म क आवाज पड़ी- “कै सी हो तुम ?”
“बस ठीक ं ।”
लड़क क आवाज कोई ब त यादा उ साहपूण नह थी ।
मगर िव म ब त घुल-िमलकर उससे बात कर रहा था ।
मुझे अपने हाथ-पैर बफ क तरह ठं डे पड़ते अनुभव ए ।
मा रया !
तो िव म, मुझसे नह बि क उस लड़क मा रया से यार करता था ।
मेरा िसर घूमने लगा ।
एक बार फर मेरे कान म गोरखनाथ मं दर म िमले साधु के श द गूंजने लगे- ‘तु हारे
जीवन म उसका ेम नह है । तुम सदा पु ष के ेम को तरसोगी ।’
यािन िव म भी मुझे धोखा दे रहा था ।
वो भी धोखेबाज था ।
उ फ!
धोखा! धोखा!! धोखा!!!
वह एक श द मेरे दमाग म हंटर क तरह बजने लगा ।
☐☐☐
आप नह जानते, उस ण मेरी या हालत हो रही थी ।
मुझे एहसास हो रहा था, मने िव म से यार करके अपनी जंदगी क एक और बड़ी
भयंकर गलती क है । तभी मने िव म और मा रया को होटल म अंदर क तरफ जाते देखा

अब आनन-फानन मने भी अपनी कार पा कग म खड़ी क । कार से उतरी । फर उन
दोन के पीछे-पीछे ही होटल म अंदर क तरफ बढ़ी ।
वह िस वर बीच होटल खासतौर पर नौजवान लड़के -लड़ कय के बीच लोकि य था ।
वह एक तरह का ेम-घर दा था ।
ेम-घर दा, जहां हर तरह के जोड़े ठहरते थे ।आप िववािहत ह या न ह । आपके पास
सामान हो या न हो, आप जब तक चाह वहां ठहर सकते थे । उस होटल म आपसे कोई
पूछने वाला नह था ।
उस होटल के िपछले िह से म एक काफ बड़ा बगीचा बना आ था ।
उस बगीचे म छत रय के नीचे लगी मेज पर लोग क भीड़ जमा थी । मने देखा,
िव म और मा रया भी एक टेबल पर आमने-सामने बैठे थे ।
म एक पेड़ क ओट वाली टेबल पर बैठ गई और वह से उन दोन क गितिविध देखने
लगी ।
उ ह ने पहले भोजन कया ।
मा रया क श ल-सूरत से ऐसा लगता था, जैसे वो िव म के साथ वहां बैठ कर बोर हो
रही हो । ठीक वैसे ही भाव म िव म के चेहरे पर उस समय देखती थी, जब वो मेरे साथ
होता था ।
वह दोन कु छ बात कर रहे थे ।
ले कन मा रया क िव म क बात म यादा दलच पी न थी ।
भोजन के प ात िव म ने सौ-सौ के नोट िनकालकर मा रया को दए, िज ह मा रया ने
तुरंत पकड़ िलये थे । फर िव म ने वेटर को बुलाकर िबल चुकाया और उसके बाद वो
लॉबी म आ गये ।
म भी उनके नजदीक खड़ी हो गई ।
“डा लग !” िव म उससे पूछ रहा था- “बीच पर चल ?”
“नह , मेरी इ छा नह है ।” मा रया बोली- “वैसे भी मने कसी से ब त ज री
मुलाकात करनी है ।”
साफ लग रहा था, मा रया झूठ बोल रही है ।
सफे द झूठ !
मा रया क बात सुनकर िव म का चेहरा स त हो उठा ।
“मा रया ! या यह सच नह है क तुम झूठ बोल रही हो ?”
“ओके ! ओके ! !” मा रया बोली- “म झूठ बोल रही ं । देखो िव म, मुझे फालतू क
बात के अलावा इस जंदगी म और भी ढेर काम करने ह । अगर म व िनकाल पाई, तो
म अगले बुधवार को तुमसे फर िमलूंगी ।”
“अगला बुधवार ? मगर अभी तो उसम ब त दन बाक है ।” िव म बोला- “देखो मुझे
वापस जाने क कोई ज दी नह है डा लग ! हम बीच पर जाकर थोड़ी देर म ती कर सकते
ह ।”
“वह सब तुम करो ।” मा रया ने एकाएक ब त होकर अपनी र टवॉच पर दृि
डाली- “ओह ! म ब त लेट हो चुक ँ िडयर ! म अब चलती ं । गुड बाय ! गुड लक !”
िव म उसे रोकने क फर कोई कोिशश करता, उससे पहले ही मा रया लंब-े लंबे डग
रखती ई वहां से चली गई ।
िव म िपटा-सा मुंह िलये अपनी जगह खड़ा रहा ।
☐☐☐
े क नई नई अनुभूितयां मुझे हो रही थ ।

िव म अब बगीचे म वापस उसी टेबल पर जाकर बैठ चुका था, िजस पर वो थोड़ी देर
पहले मा रया के साथ बैठा था ।
मने कु छ सोचा ।
फर म धीरे धीरे चलती ई िव म के िब कु ल सामने वाली कु स पर जाकर बैठ गई ।
िव म मुझे देखते ही इस तरह उछला, जैसे बगीचे म एटमबम फट पड़ा हो ।
“त...तुम !” िव म हत भ लहजे म बोला- “तुम यहां ?”
“ य ?” म नफरतपूणलहजे म बोली- “मुझे देखकर हैरानी हो रही है माय िडयर ! म
दरअसल तु हारी जासूसी कर रही थी । अभी-अभी मने तु हारी मां को देखा, िजससे
िमलने के िलये तुम ब त बेचैन रहते हो । तु हारी मां काफ जवान है । वो अभी भी कई
ब े पैदा करने क मता रखती है ।”
“शटअप !” वो दहाड़ उठा ।
“शटअप नह !” म उससे भी जोर से दहाड़ी- “यू शटअप ! यू आर ए क नंग फे लो !”
उसक गदन झुक गयी ।
उसके सारे कस-बस ढीले पड़ गये ।
“तु ह इस तरह मेरा पीछा करते ए यहाँ नह आना चािहए था ।” िव म धीमी
आवाज म बोला- “घोष साहब से तुम या कहकर आयी हो ?”
“म उनसे कहकर आयी ,ँ म पालर जा रही ं ।”
“ फर भी घोष साहब को हमारे ऊपर शक हो सकता है ।”
“ लीज !” म स ती के साथ बोली- “अब उस चै टर को बंद करो । यह बताओ, मा रया
तु हारी या लगती है ?”
“बताऊं ?”
“हाँ, बताओ । म बड़ी बेस ी से इस सवाल का जवाब सुनना चाहती ं ।”
“मेरा जवाब सुनकर तुम च क उठोगी ।”
“कोई बात नह ।”
“तो सुनो, मा रया मेरी प ी है ।”
“प ी !”
मेरे दमाग म एक और िव फोट आ ।
जबरद त िव फोट !
☐☐☐
प… प ी !
मने क पना भी नह क थी, मुझे िव म से ऐसा कोई जवाब िमलेगा ।
“यह तुम या कह रहे हो, प ी !” म भौच े लहजे म बोली- “ या यह सच है ?”
“िब कु ल सच है । आज से तीन साल पहले मेरी और मा रया क शादी ई थी ।” िव म
मुझे मा रया के बारे म सब-कु छ बताता चला गया- “हालां क मा रया ि यन थी,
ले कन फर भी हमारी शादी म कोई कावट न आयी । अलब ा शादी के बाद हमारी
जंदगी म असली झमेला शु आ ।”
“कै सा झमेला ?”
“सबसे पहला झमेला तो ब को लेकर ही आ । मा रया ब े नह चाहती थी, जब क
मुझे ब से यार था । ब वाली बात भी म कसी तरह बदा त कर लेता, ले कन फर
एक ऐसी बात उजागर ई, िजसने मुझे मा रया से अलग रहने पर िववश कर दया ।”
“ऐसी या बात उजागर ई ?”
िव म ने कु छ कहने से पहले अपने शु क अधर पर जबान फे री ।
उसके चेहरे पर ऐसे भाव उजागर ए, जैसे कोई त ख़ बात कहने से पहले कसी के
चेहरे पर उजागर होते ह ।
“दरअसल मा रया िन फोमैिनयाक थी ।” िव म आ ोश म बोला- “उसके कई पु ष
के साथ अवैध संबंध थे । मुझे जब उन संबंध का पता चला, तो हम दोन के बीच
जबरद त झगड़ा आ । मगर हैरानी क बात ये थी क मा रया अपने उस कु कृ य पर जरा
भी श मदा नह थी । वह तो उसे ऐब मानने के िलये ही तैयार नह थी । वो कहती थी, वो
जो कु छ करती है, वह सब ठीक है । आिखरकार िववश होकर मने उससे कनारा कर िलया
।”
मेरी आंख म अब अचरज के िच न बढ़ते जा रहे थे ।
अचरज के भी, कौतुहल के भी ।
“जब वो इतनी खानाखराब लड़क है ।” म बोली- “तो तुम उससे अब भी संपक बनाकर
य रखे ए हो ? और िजस तरह तुम उसके साथ पेश आ रहे थे, उससे तो ऐसा लगता है,
जैसे तु हारे दल म अभी भी उसके िलये यार है ।”
िव म ने अपनी नजर झुका ल ।
“ यार तो नह ।” उसने ब त धीमी आवाज म कहा- “अलब ा उसके ित मेरे दल म
एक तरह का आकषण ज र है । उससे अलग होने के बाद भी मने चाहा था, वह सुधर
जाये और म उसे अपना लूं । परं तु जैसा क तुमने अब देखा होगा, उसके सुधरने के
फलहाल कोई आसार नह है । अब तो बस एक ही तरीका है, म उसे िब कु ल भूल जाऊं ।”
“तो फर तुम उससे तलाक य नह ले लेते ?”
मने तुरंत अपना प ा फका ।
“यही तो ॉ लम है ।” िव म बोला- “मा रया मुझे तलाक नह देती ।”
“ य ?”
“वह तलाक के ऐवज म दस लाख पए मांगती है, ता क अपनी जंदगी पूरे ऐशो-
आराम के साथ गुजार सके । अगर उसने दस लाख पए क िडमांड न रखी होती, तो म न
जाने कब का उससे तलाक ले चुका होता ।”
म सारा माजरा समझ गई ।
वह पूरी त वीर मेरी आंख के सामने प होती चली गई ।
“तो इसिलये तुम घोष साहब क ऐशो-आराम वाली नौकरी छोड़ने से भी कतराते हो,
य क अगर तुमने वह नौकरी छोड़ दी, तो मा रया के सामने तु हारी पोजीशन और भी
मुफिलस वाली हो जायेगी ।”
िव म कु छ न बोला ।
वह खामोश बैठा रहा । मगर उसक ख़ामोशी भी उस बात को कबूल रही थी ।
बहरहाल मामला इतना खतरनाक नह था, िजतना मुझे होटल म घुसते ही तीत आ
था । िव म ने मुझे मा रया के बारे म न बताकर धोखा ज र दया था, ले कन बात अभी
दायरे से बाहर नह िनकली थी ।
मामले को अभी भी संभाला जा सकता था ।
“ठीक है ।” म कु स छोड़कर उठी- “चलो, बीच पर घूमने चलते ह ।”
िव म ने एकाएक घोर आ य से मेरी तरफ देखा ।
“ या तुमने मुझे माफ कर दया ?”
“माय िडयर !” म मु कु राई- “तुमने ऐसा कु छ नह कया है, जो लड़ाई-झगड़े क नौबत
आये । अलब ा इस तरह क बात मुझसे भिव य म कभी मत छु पाना ।”
☐☐☐
उसके बाद िव म ने और मने काफ टाइम बीच पर चहलकदमी करते ए गुजारा ।
मेरा दमाग उस व काफ तेजी से स य था ।
मुझे कोई ऐसी योजना बनानी थी, जो एक ही झटके म सारे संकट समा हो जाये । म
अिभजीत घोष से छु टकारा पा लूं और िव म मा रया से ।
म सोचती रही ।
सोचते-सोचते अक मात् मेरे दमाग म एक ऐसा आइिडया क धा, जो मुझे अपनी हरे क
सम या का मुक मल हल दखाई पड़ने लगा । म हैरान थी, मुझे वो योजना पहले य नह
सूझी थी ।
“िव म !” म बीच पर रे त म चलते-चलते बोली- “मेरी एक बात सुनो ।”
“ या ?”
“हम दोन िमलकर य न घोष साहब क ह या कर डाल ।”
मेरे वो श द सुनकर िव म इस तरह च का, जैसे उसके दमाग म बम फट पड़ा हो ।
यही शु था, उसका हाटफे ल न हो गया ।
“ह… ह या !” वो हकलाए लहजे म बोला- “य… यह तुम या कह रही हो ?”
उसका चेहरा एकदम सफे द फ पड़ चुका था ।
होश गुम ।
“धीरे बोलो ।” मने कहा- “हमारे आस-पास दूसरे लोग भी मौजूद ह ।”
िव म भयभीत होकर बीच पर इधर-उधर देखने लगा ।
“देखो िव म !” म िवचारपूण लहजे म बोला- “मने ब त सोच-समझकर यह बात कही
है । जरा सोचो, अगर हम दोन िमलकर घोष साहब क ह या कर देते ह, तो वसीयत के
मुतािबक म उनक सारी चल-अचल ापट क मालक न बन जाऊंगी । इस तरह घोष
साहब क रोज-रोज क िसरदद से भी हम बच जाएंगे । और फर तुम दस लाख पये
देकर मा रया से भी तलाक हािसल कर सकोगे । इतना ही नह , उसके बाद शादी करके
घोष साहब के बंगले म ही पित-प ी क तरह रहगे । यािन एक ही झटके म हमारी तमाम
सम या का समाधान िनकल आएगा और उसके िलये हमने िसफ एक ही काम करना होगा,
घोष साहब क ह या !”
घोष साहब क ह या के नाम पर मने िव म के माथे पर पसीने क न ह -न ह बूंदे
चुहचुहाते देख , िज ह उसने माल िनकालकर साफ कया ।
“ल… ले कन घोष साहब क ह या करनी भी तो आसान नह है नताशा !” िव म
भयभीत मु ा म बोला ।
ह या के नाम से ही उसक हवा खु क ई जा रही थी, वो डर रहा था ।
और उसका वह डर म अनुभव कर रही थी ।
“ह या करनी कु छ मुि कल नह होती िव म !” म उसके अ दर का भय िमटाते ए
बोली ।
“हो सकता है, ह या करना मुि कल न होती हो ।” िव म बोला- “ले कन घोष साहब
क ह या करना ज र मुि कल है ।”
“ यो ? घोष साहब क ह या करना य मुि कल है ?”
“तुम शायद अभी घोष साहब को नह जानती ।” िव म बोला- “घोष साहब एक बेहद
फे मस ि ह । अगर उन जैसे ि क ह या हो गयी, तो उससे पूरे देश म हंगामा
मचेगा । सोशल और ि ट मीिडया म भूचाल आ जायेगा । अखबार म खबर छपगी । बड़े
पैमाने पर उस ह याकांड क त तीश होगी । ऐसी हालत म फर या होगा, इसका
अंदाजा तुम अ छी तरह लगा सकती हो । फर इं पे टर िवकास बाली को भी तुम भूल
रही हो । इं पे टर िवकास बाली, घोष साहब के ह यारे को ढू ंढने के िलये जमीन-आसमान
एक कर देगा ।”
“तुम खामखाह घबरा रहे हो ।” म बोली- “अगर घोष साहब का मडर एक फु ल ूफ
योजना बनाकर कया जायेगा, तो हम कु छ नह होगा । कह कोई भूचाल नह आएगा ।”
“फु ल ूफ योजना!” िव म बोला- “ले कन वो फु ल ूफ योजना बनाएगा कौन भाई हनी
डा लग ?”
“हां, यह बात ज र िवचार करने लायक है ।”
म सोचने लगी ।
एक बात तो म भी अनुभव कर रही थी क घोष साहब क ह या के िलये कोई ब त
मा टरपीस योजना क ज रत थी ।
ऐसी योजना क , जो घोष साहब क ह या भी एक साधारण घटना लगे ।
जो कह कोई हंगामा न हो ।
बहरहाल उस दन बीच से लौटते समय एक घटना और घटी । मेरी कार का िपछला
टायर फट गया । कार का टायर फटने क भीषण आवाज ई और जबरद त ए सीडट
होते-होते बचा । मेरी चीख तक िनकल गयी ।
एक पेयर टायर कार क िड म पड़ा आ था ।
िव म ने तभी वो टायर बदल दया ।
वह संकट तो उसी ण समा हो गया, ले कन उस मामूली घटना का कु छ आगामी
घटना पर बड़ा गहरा भाव पड़ा ।
☐☐☐
सारी रात मेरी ब त बेचैनी के आलम म गुजरी ।
म बस करवट बदलती रही ।
एक बात मेरे दमाग म िब कु ल क ल क तरह ठु क चुक थी क मौजूदा माहौल म मेरी
सम या का बस एक ही समाधान है, घोष साहब क ह या ! अगर अिभजीत घोष मारा
जाये, तो न िसफ म हमेशा-हमेशा के िलये िव म को पा सकती थी, बि क मा रया वाले
करण का समाधान भी िनकल सकता था ।
तमाम रात म ह या क कोई फु ल ूफ योजना सोचती रही ।
मगर मुझे यह कहने म कोई िहचक नह , मेरे दमाग म ऐसी कोई फु ल ूफ योजना न
आयी, िजससे म संतु हो पाती । कु छेक योजनाएं, जो मेरे दमाग म आय , वो ब त ह क
थ , ब त साधारण थ और उन योजना को आधार बनाकर अिभजीत घोष जैसे बड़े
आदमी क ह या करना बेवकू फ होता ।
अ ततः मेरे दमाग म ह या क फु ल ूफ योजना बनाने का एक बड़ा नायाब िवचार
क धा ।
एक बात म ज र क ग ं ी।
ह या क योजना बनाने का इतना नायाब िवचार भी मेरे दमाग म इसिलये क ध सका,
य क मने थोड़ा ब त समय अिभजीत घोष जैसे िम ी राइटर के साथ गुजार िलया था ।
उसके साथ कु छेक टोरी सी टंग कर ली थ ।
अगले दन मने अपने ऑ फस म ही िव म से फर बात क ।
“एक बात अ छी तरह समझ लो िव म !” म धीमी आवाज म बोली ।
“ या?”
“ह या क कोई ऐसी फु ल ूफ योजना बनाना आसान बात नह है, िजससे पूरे पुिलस
िडपाटमट को धोखा दया जा सके । मने सारी रात इसी िवषय पर सोचा है, पर तु म
कोई ऐसी योजना नह बना सक ।”
“म या कहता था ।” िव म तुरंत बोला- “यह सब करना कोई आसान नह है ।”
“िच ता मत करो ।” मने बड़े यक न के साथ पहलू बदला- “अगर हम ह या क कोई
फु ल ूफ योजना नह बना सकते, तो इस बंगले म एक आदमी ऐसा ज र है, जो ह या क
ऐसी फु ल ूफ योजना बना सकता है और िजसका काम ही ह या क योजना बनाना है ।”
“कौन आदमी ?”
“घोष साहब !”
िव म उस नाम को सुनकर एकदम इस तरह उछला, जैसे एक साथ हजार िब छु ने
उसे डंक मार दया हो ।
“घ...घोष साहब !”
“हां ।”
“ले कन भला घोष साहब अपनी ह या क योजना खुद य बनाएंगे ?” िव म बोला ।
“वो बनाएंगे ।” मेरे वर म यक न कू ट-कू ट कर भरा था- “तुम बस मेरा कमाल देखते
जाओ । बस इस बार वो काम होगा, जो दुिनया म पहले कभी नह आ ।”
िव म आ यच कत-सा मेरी तरफ देखता रहा ।
वो यक न नह कर पा रहा था ।
वो इस बात पर यक न नह कर पा रहा था क घोष साहब जैसा आदमी खुद अपनी
ह या क योजना बनाने वाला है ।
☐☐☐
चार
मने अपने प े फै लाने शु कये ।
एक बात म दावे के साथ कह सकती ,ं म जो ह या करने जा रही थी, वह मेरी जंदगी
क सबसे अ भुत ह या थी ।
सबसे यादा ी- लांड ह या थी ।
म समझती ,ं आपने भी ऐसी ह या के बारे म पहले कभी पढ़ा-सुना नह होगा, जब
मकतूल ने खुद अपने िलये क खोदी ।
खुद अपनी मडर ला नंग तैयार क ।
“वाह!”उसी दन शाम को मने अिभजीत घोष के साथ िडनर लेते समय भूिमका बांधनी
शु क - “मने आज ही आपका नया नॉवल पढ़ा अिभजीत ! आपने एक बार फर या
फं टाि टक मडर िम ी िलखी है । अ भुत ! म दावे के साथ कह सकती ,ं आपका यह नया
नॉवल भी सुपर-डु पर िहट होगा ।”
“थक यू !” अिभजीत घोष िडनर लेत-े लेते मु कु राया- “हालां क मेरे नॉवेल क तारीफ
ब त लोग करते ह, मगर जब तुम तारीफ करती हो, तो अ छा लगता है ।”
“म आपको एक राय दूं अिभजीत ?”
“ या?”
“याद है, आपने एक बार टोरी िड कशन के दौरान मुझसे कहा था क आपके दमाग म
एक ऐसी कहानी है, िजसे िलखने क आपक बड़ी तम ा है । िजसे िलखने का आप बरस
से सपना देख रहे ह ।”
“हां !”अिभजीत घोष बोला- “वाकई वह उप यास िलखना मेरा एक सपना ही है ।”
“तो इस बार आप वही उप यास िलख डालो अिभजीत ! मेरा दावा है, वह उप यास पूरे
उप यास जगत म तहलका मचा देगा । जरा सोचो, आपक वो कहानी कतनी अ भुत
होगी, िजसम मकतूल खुद अपनी ह या क योजना बनाएगा ।”
“यह तो है ।” अिभजीत घोष ने गव के साथ कहा- “कहानी तो वह वाकई ब त अ भुत
होगी । अ भुत भी और अिव मरणीय भी, िजसका एक-एक चौ टर पाठक को च काएगा
। ले कन अभी इस कहानी क िसफ आउटलाइन मेरे दमाग म है, अभी उसक पूरी िडटेल
मने तैयार नह क है ।”
“तो फर आप उसक िडटेल तैयार करो, बि क मेरी एक और इ छा है ।”
“ या ?”
“उस कहानी क िडटेल जब आप तैयार करगे, तो उसम म भी आपक हे प क ं गी ।”
“वेरी गुड !”अिभजीत घोष ने स िच मु ा म कहा- “तो फर म कल से ही उस
कहानी पर काम शु करता ं ।”
☐☐☐
अगले दन से ही अिभजीत घोष ने अपनी उस उप यास क कहानी का ताना-बाना
बुनना शु कर दया ।
म भी ताना-बाना बुनने म हर ण उसके साथ थी ।
“सबसे पहले हमने यह सोचना है ।” अिभजीत घोष बोला- “ क हमारे उप यास का जो
मु य पा है, यािन िजसक ह या होने वाली है और जो खुद कसी के च ूह म फं स कर
अपनी ह या क योजना बनाएगा, वह कै सा आदमी है और उसका ोफे शन या है ।”
“इस बारे म, म एक सलाह दूं ?”
“ज र ।”
“वह कोई जासूस होना चािहए ।”
उस ण मेरा दमाग काफ तेज पीड से चल रहा था । कोई सोच भी नह सकता था,
म कै सा खौफनाक जाल बुन रही थी ।
“जासूस?” अिभजीत घोष चौका ।
“हां ।”
“जासूस य
“देिखए, एक बात तो आप भी मानगे ।” म बोली- “उप यास का पा कोई ऐसा होना
चािहए, जो योजनाएं बनाने म ब त मा टर माइं ड हो । जो ऐसी फु ल ुफ योजनाएं बनाता
हो, िज ह कोई साधारण आदमी न बना सके और ऐसी योजनाएं दो ही तरह के लोग बनाते
ह ।”
“कै से-कै से ?”
“कोई अपराधी या फर जासूस ।”
“तुम एक बात भूल रही हो ?”
“ या ?”
“हमारे जैसे जासूसी उप यासकार भी तो इस तरह क धुआंधार योजना बनाते ह ।” वह
बात कहकर अिभजीत घोष ब त जोर से हंसा ।
म भी मु कु राई ।
“यह तो है, ले कन हम उप यास के मु य पा के तौर पर कसी जासूस को ही चुनगे,
िजसे योजनाएं बनाकर काम करने म महारत हािसल है । वैसे भी वो ि योजना बनाने
म इसिलये भी ए सपट होना चािहए, य क तभी तो ह यारा भी ष ं रचकर उसी से
उसके मडर क ला नंग तैयार कराता है । इसके अलावा वो जासूस कोई बड़ा अंतररा ीय
तर का जासूस होना चािहए, जैसे कमांडर करण स सेना या फर जीरो जीरो सेवन जे स
बॉ ड ।”
“गुड आइिडया !”अिभजीत घोष ने बड़ी तारीफ िनगाह से मेरी तरफ देखा- “वाकई
इस दशा म तु हारा दमाग काफ अ छा चल रहा है । अब एक सवाल और ।”
“ या ?”
“ह यारा कौन होगा, जो जासूस क ह या करे गा ?”
“हां, यह भी अहम है ।”
म सोचने लगी ।
ले कन !
बात कु छ और ही थी ।
सच तो ये है, म िसफ सोचने का अिभनय कर रही थी । जैसे मने कब-कब या- या
करना था, यह म पहले ही फाइनल कर चुक थी ।
आिखर इतना बड़ा खेल खेल रही थी म ।
फलहाल अिभजीत घोष वाला रोल म एक जासूस को दे चुक थी । अब मेरे रोल क
बारी थी क मेरा रोल उप यास म कसने ले करना था ।
“म समझती ं ।” म पहले क तरह ही सोचने-िवचारने का अिभनय करते ए बोली-
“ क ह यारा जासूस के घर का ही कोई सद य होना चािहए, तभी उप यास म यादा मजा
आएगा, तभी कहानी म यादा ि व ट पैदा होगा ।”
“यािन कसी फै िमली मे बर ने ही जासूस क ह या का षड़यं रचना है ।” अिभजीत
घोष च का ।
“हाँ !”
“ले कन फै िमली मे बर भला जासूस क ह या का षड़यं य रचेगा ?”
“इसम या मुि कल है । मान लीिजये, उस जासूस क बीवी कसी दूसरे पु ष से
िमलती है ।” म थोडा डरते-डरते बोली- “और इसिलये वो जासूस क ह या करना चाहती
है । मगर बीवी को महसूस होता है, जासूस एक िस ि है, इसिलये अगर उसक
ह या कोई फु ल ूफ योजना बनाकर न क गयी, तो उसम फं सने के पूरे-पूरे चांस ह । ले कन
ॉ लम ये है क वो ह या क कोई ब त फु ल ूफ योजना बनाने म अस म है । वो जानती
है, ऐसी योजना वह जासूस ही बना सकता है । तब उसक बीवी जासूस के सामने एक
का पिनक कहानी गढ़ती है और पूछती है, अगर ऐसी प रि थित म कोई औरत अपने पित
का मडर करना चाहे, तो कै से करे गी । उस जासूस क क पना म भी यह बात नह है क
उसक बीवी ही उसका मडर करना चाहती है । इसिलये वो खुशी-खुशी अपनी प ी को
एक ब त फु ल ूफ ह या क योजना बनाकर दखाता है और फर उसी योजना पर काम
करके उसक बीवी जासूस क ह या कर डालती है ।”
“वैरी गुड!” अिभजीत घोष ने एक बार फर मेरी मु कं ठ से शंसा क - “अ भुत !
अगर तुम इसी तरह कहािनयां गढ़ती रही, तो वह दन दूर नह , जब तुम उप यास लेखन
म मेरी भी छु ी कर डालोगी ।”
म आिह ता से मु कु राई ।
“अब िसफ सोचना है ।” अिभजीत घोष बोला- “ क वह फु ल ूफ योजना या होगी ।”
“िब कु ल ! अगर योजना भी अ भुत बन सकती है, तो फर इस उप यास को सुपरिहट
होने से कोई नह रोक सकता ।”
“इसम कोई शक नह ।”
उसके बाद आगामी दस दन तक अिभजीत घोष ह या क योजना पर काम करता रहा
। उस दौरान एक-एक ण म उसके साथ रही । अिभजीत घोष योजना बनाने म प र मी
था । वह योजना बनाते समय खाना-पीना तक भूल जाता था और बड़ी त लीनता से काम
करता था ।
वह बार-बार बस एक ही बात कहता, वह अपनी िज दगी के सबसे बेहतरीन उप यास
पर काम कर रहा है ।
वह उप यास ज र तहलका मचाएगा ।
ज द ही मुझे अहसास हो गया, अिभजीत घोष वाकई एक मा टरमाइं ड आदमी है ।
खासतौर पर ह या क योजना बनाने म तो उसे महारथ हािसल थी । वह योजना के हर
अलग-अलग पहलू पर गौर करता था । हर पहलू को खूब ठोक-बजाकर देखता था क कह
कोई लूज पॉइं ट तो नह है । कु ल िमलाकर अिभजीत घोष के योजना पर काम करने का
नज रया बड़ा ापक था । बड़ा वसीह था ।
वह इस तरह से योजना को हर एंगल से कसता था क वो अपने आप फु ल ूफ बन जाती
थी ।
इसके अलावा उसे पुिलस िडपाटमट, मेिडकल साइं स, पो टमाटम हाउस और
फं गर ंट जैसे स जे ट क भी बड़ी अ छी जानकारी थी । बहरहाल अिभजीत घोष के
साथ ह या क वो योजना बनाते समय मुझे बस एक ही बात का डर रहा था क कह उसे
मेरी असली ला नंग क भनक न हो जाये ।
मगर ।
ई र का शु था ।
वैसा कु छ न आ ।
यारहव दन ह या क एक फु ल ूफ योजना बनकर तैयार हो चुक थी ।
योजना इतनी सुदढ़ृ थी क इ सपे टर िवकास बाली जैसे दस-बीस पुिलस ऑ फसर भी
अगर अपने दमाग के घोड़े दौड़ा लेत,े तब भी वो अिभजीत घोष क ह या के इ जाम म
मुझे या िव म को िगर तार नह कर सकते थे ।
िगर तार करना तो दूर, वो ह या ही सािबत नह कर सकते थे ।
ऐसी अ भुत थी वो योजना ।
☐☐☐
बारहव दन मने ह या क उस फु ल ूफ योजना से िव म को भी अवगत कराया ।
रात का समय था ।
पूरे बंगले म स ाटा फै ला था ।
उसी स ाटे का लाभ उठाते ए म िव म के ाटर म जा घुसी ।
खुद िव म का स पस से बुरा हाल था । वह उस योजना के बारे म सुनने को मरा जा
रहा था ।
“ या आ ?” वो तापूवक बोला और उसने दरवाजे क िसटकनी अ दर से बंद क -
“ या फाइनल आ ?”
“बताती ँ ।” मने कहा- “पहले आराम से बैठ जाओ ।”
िव म एक कु स पर बैठ गया ।
म भी उसके सामने एक कु स पर जा बैठी ।
कौतुहलता इस समय िव म के चेहरे के जर-जर से टपक रही थी ।
“िव म, योजना से पहले एक बात अ छी तरह समझ लो ।”
“ या ?”
“अगर घोष साहब क ह या होती है, तो उसम तु हारा भी उतना ही हाथ होगा,
िजतना क मेरा । अगर घोष साहब क ह या के बाद तुमने मुझसे शादी करने से मना कर
दया, तो म खुद को पुिलस के हवाले कर दूग ं ी और उसके बाद तु हारा या होगा, यह
अंदाजा तुम खुद ही लगा सकते हो । इसिलये तुम इस पूरे ताव पर एक बार फर ठं डे
दमाग स िवचार कर लो । अगर तुम मुझसे शादी करने के िलये तैयार हो, तभी यह सारा
हंगामा करने से फ़ायदा है । जहाँ तक योजना क बात है, योजना सुनाने म तु ह कल फर
आ जाऊंगी ।”
“बेकार क बात मत करो ।” िव म ने तुरंत मेरा हाथ पकड़ िलया- “म खूब ठं डे दमाग
से सोच-िवचार कर चुका ँ । यह तो मेरे िलये खुशी क बात होगी क मेरी तु हारे जैसी
सु दर लड़क से शादी होगी । ले कन एक बात म तुमसे ज र कहना चा ग ं ा ।”
“ या ?”
“सारा मामला ब त यादा सुरि त होना चािहए, कह कोई खतरे वाली बात न हो ।”
“उसक चंता तुम मत करो । उस िसलिसले पर अिभजीत घोष और म पहले ही काफ
गौर कर चुके ह । फर भी योजना म अगर तु ह कह कोई कमी या लूज पॉइं ट दखाई दे,
तो मुझे बताना ।”
िव म कु स पर थोड़ा तनकर बैठ गया ।
वह ह या क योजना के बारे म जानने को काफ उ सुक था ।
“ठीक है, बताओ ।”
“घोष साहब क ह या म हमारे सामने सबसे बड़ी ॉ लम है इ सपे टर िवकास बाली
!” मने उसका योजना के एक-एक पहलू क तरफ यान आक षत करना शु कया ।
“इ सपे टर िवकास बाली !” िव म बोला- “वह य ?”
“ य क घोष साहब क जब ह या होगी, तो जैसा क तुम भी कह रहे हो क घोष
साहब के ह यारे को पकड़ने के िलये सबसे यादा एि टव इ सपे टर िवकास बाली ही
होगा । य क कह -न-कह वो घोष साहब से आ मीय प से जुड़ा है और घोष साहब क
ह या से उसे गहरा आघात प च ं ेगा ।”
“यह तो है ।”
“घोष साहब क ह या के बाद वो एक नतीजे पर और फ़ौरन झटपट प च ँ जायेगा ।”
“ कस नतीजे पर ?”
“यही क घोष साहब क ह या मने क हो सकती है । ह या के ऐसे मामल म पुिलस का
प ी पर बड़ी ज दी शक जाता है । वैसे भी घोष साहब और मेरी उ म जो बड़ा फक है,
उस हालत म पुिलस का मेरे ऊपर शक कया जाना वैसे भी लािजमी है । फर घोष साहब
क ह या के बाद उनक तमाम दौलत क भी म माल कन बनने वाली ,ँ जो क ह या का
एक और बड़ा कारण है । ऐसे माहौल म योजना क सबसे पहली ज रत तो यही है क
घोष साहब क ह या कु छ इस तरह से क जाये क कसी का भी मेरे ऊपर शक न जाये
और सब उसे वाभािवक मौत ही समझ ।”
“िब कु ल ठीक बात है ।”
िव म मेरे मुंह से िनकला एक-एक श द ब त यान से सुन रहा था ।
“तो फर घोष साहब क ह या कस तरह होगी ?” िव म ने पूछा ।
“उनक ह या कार ए सीडट से क जायेगी ।” म धमाका-सा करते ए बोली ।
“कार ए सीडट ?”
“हाँ ! यह तो तु ह मालूम ही होगा िव म !” म िव म क तरफ थोड़ा आगे को झुक गई
और ब त धीमी आवाज म फु सफु साई- “ क जब कार का टायर फटता है, तो या होता है
। कार चलते-चलते िब कु ल कसी शराबी क भांित सड़क पर लहरा जाती है । आउट ऑफ़
क ोल हो जाती है । ऐसी प रि थित म कार अगर कसी पहाड़ी सड़क पर चल रही हो,
तो उसके बैरके स तोड़कर नीचे खाई म िगरने के भी पूरे चांस रहते ह । कहने को कार का
टायर फटना एक मामूली-सी बात है, मगर टायर के फटने से एक बड़ी खतरनाक घटना
घट सकती है । समझ रहे हो न, म या कह रही ँ ?”
“हाँ !” िव म ने शु क अधर पर जबान फराई- “म समझ रहा ँ ।”
“बेहतर ! वैस भी बीच पर मेरी कार का जो टायर फट गया था, वह घटना तु ह याद
ही होगी क सब कु छ कतने अ यािशत और आकि मक तरीके से आ । अब म तु ह
बताती ँ क हमने कस तरह पूरे लान को अंजाम देना है । जहाँ तक म समझती ,ँ घोष
साहब को अपने ो ाम के मुतािबक़ आने वाली कसी न कसी रात को कसी समारोह म
भाग लेने के िलये ज र जाना होगा । इस तरह के समारोह म भाग लेने वो अ सर जाते
रहते ह । आने वाली कसी रात को जब वो कसी समारोह म भाग लेने के िलये िनकलगे,
तो हमने तभी ए सीडट का लान रच देना है ।”
“मगर तुम एक बात भूल रही हो नताशा !”
“ या ?”
“उस समय कार ाइवर माधवन भी घोष साहब के साथ ही होगा ।”
“म कु छ भी नह भूली ँ । पूरा लान मेरे दमाग म है । इसम कोई शक नह , घोष
साहब जब भी कसी समारोह म भाग लेने जाते ह, तो माधवन उनके साथ होता है ।
ले कन उस रात माधवन उनके साथ नह होगा ।”
“ य ?”
“ य क जाने से कु छ घंटे पहले ही म उसे लेराइगो क वही चार टेबलेट िखला दूग
ं ी, जो
मने खाई थ । टेबलेट खाते ही उसे च र आने लगगे । जी मचलाने लगेगा और दो-तीन
बड़ी-बड़ी उि टयां हो जायगी । ऐसी हालत म वो गाड़ी चलाने लायक नह रहेगा और तब
घोष साहब भी उसे अपने साथ नह ले जायगे । उस प रि थित म वो खुद गाड़ी चलाना
पसंद करगे । या म गलत कह रही ँ ?”
“नह ।” िव म बोला- “तु हारी बात िब कु ल ठीक है । ऐसी हालत म घोष साहब खुद
ही गाड़ी चलाएंगे ।”
“अब आगे क योजना सुनो ।” म बोली- “घोष साहब जब अपनी कार िनकालने गैराज
मप च ं गे, तो उस समय हम दोन म से कोई एक ि गैराज म ही मौजूद होगा और
घोष साहब के वहां प च ं ते ही उनके िसर पर भीषण हार करे गा । िजससे घोष साहब
अचेत हो जायगे । उसके बाद घोष साहब को उनक कार म ही िबठाकर बंगले से बाहर
िनकाला जायेगा और फर ऐसा शो करके जैसे रा ते म उनक कार का टायर फट गया हो,
उ ह कार सिहत कसी ब त गहरी खाई म धके ल दया जायेगा । इस तरह वो ए सीडट
का एक ओपन एंड शट के स होगा । वैरी संपल ! सब कु छ ब त सहजता क साथ हो
जायेगा ।”
िव म के चेहरे पर अब स पस के िच न नजर आने लगे ।
“ या सब कु छ इतनी ही सहजता से िनपट जायेगा ?” उसने थोड़ी ाकु लतापूवक पूछा

“नह ! कु छ मुि कल भी पेश आयगी ।”
“जैसे ?”
“जैसे घोष साहब क मौत चाहे कसी भी प म य न हो ।” म बोली- “पर तु
इ सपे टर िवकास बाली के संदह े क सुई एक बार मेरी तरफ ज र घूमेगी और तब अपने
आपको कसी भी आफत से बचाने के िलये ज री है क मेरे पास कोई ब त ब तरबंद
शहादत हो । जबरद त ऑई िवटनेस हो ।”
“एक िमनट !” िव म ने अक मात मुझे रोका- “म तु हारे सामने एक बात और प
करता चलूँ ।”
“ या ?”
“घोष साहब के ऊपर गैराज म जो हमला होगा, वो म नह तुम करोगी । इसका कोई
गलत अथ मत लगाना नताशा । मने इस तरह के काम पहले नह कये ह, इसिलये मुझसे
चूक हो सकती है । और उस समय क जरा-सी चूक के कारण हमारी पूरी योजना लॉप हो
जायेगी । इसिलये बेहतर यही है क तु ह उस काम को करो, य क तुम पहले भी इस
तरह के काम कर चुक हो ।”
“पहले भी इस तरह के काम कर चुक ं ।” मेरे ने एकाएक घोर िव मय से फट पड़े-
“ या मतलब ?”
“देखो, मुझसे कु छ भी छु पा नह है ।” िव म मेरे सामने नजर झुकाए-झुकाए धीमी
आवाज म बोला- “जब तुम पहले ही दन घोष साहब को अपने बारे म सब-कु छ बता रही
थी, तभी इ ेफाक से मने उस दन वो सारी बात सुन ली थ । गोरखपुर म तु हारे साथ
या- या गुजरा । कस तरह तुमने अपने सात ेिमय के खून कये । मुझे सबकु छ पता
चल गया । ले कन तु हारी उस कहानी को सुनकर मुझे तुमसे हमदद ही ई । और इस
व भी म अपनी उस जानकारी का कोई बेजा इ तेमाल नह कर रहा ं ।”
म आ यच कत ने से लगातार िव म को देखे जा रही थी ।
िव म !
एकाएक िव म ने वो रह यो ाटन करके मुझे ति भत कर दया था ।
“मेरी बात समझने का यास करो ।” िव म मेरे लगातार घूरने के कारण कु छ सकपका
उठा- “मुझे घोष साहब पर हमला करने म कोई एतराज नह है । म तुमसे यादा
शि शाली ,ं इसिलये आ मण भी जोरदार ढंग से कर सकता ं । पर तु यह शि से
यादा धैय और हौसले का काम है, जो शायद उस ण मेरे पास नह होगा । य क मुझे
ऐसे काम का तजुबा नह है ।”
मुझे िव म क बात तकसंगत लगी ।
वो शायद ठीक कह रहा था ।
☐☐☐
“ओ.के . !” मने काफ सोच-िवचारकर वीकृ ित म गदन िहलाई- “म यह काम करने के
िलये तैयार ं । गैराज म घुसकर घोष साहब के ऊपर हमला भी म ही क ं गी और फर
कार को कसी ऊंची पहाड़ी सड़क से धके ल भी दूग ं ी । मड-आइलड म ऐसी ब त सड़क ह,
जहां ए सीडट लान कया जा सके । मगर एक दूसरे िसलिसले म मुझे तु हारी मदद क
हर हाल म ज रत पड़ेगी ।”
“बताओ ।” िव म त परतापूवक बोला- “ या करना होगा मुझे ?”
“ क सा यह है, दरअसल मुझे एक ही व म दो जगह मौजूद रहना होगा । पहाड़ी
सड़क पर भी और बंगले के अंदर अपने ऑ फस म भी, जहां मौजूद लोग कसम खाकर यह
कह सक क उ ह ने मुझे उस समय ऑ फस म काम करते ए देखा था और सुना था ।
जब क हक कत म उस व म पहाड़ी सड़क पर कार को गहरी खाई म धके लने का काम
अंजाम दे रही होऊंगी । ले कन बंगले म उस व ऐसे गवाह होने ज री ह, िजन पर
इं पे टर िवकास बाली यक न कर सके । उन गवाह म से एक, कु मार का होना ब त
ज री है, जो मेरी उस व बंगले म उपि थित क बात करे गा ।”
“कु मार ?” िव म च का- “गवाह म कु मार का होना य ज री है ?”
मने वो वजह भी बताई ।
“दरअसल घोष साहब क ह या के बाद जब इ सपे टर िवकास बाली जांच-पड़ताल
करे गा ।” म बोली- “तो थोड़ी ब त जांच पड़ताल के बाद ही उसे पता चल जायेगा क
कु मार मुझे पसंद नह करता । ऐसी प रि थित म जब कु मार, इ सपे टर िवकास बाली से
यह कहेगा क म दुघटना के व अपने ऑ फस म काम कर रही थी, तो िवकास बाली
कु मार क बात पर आसानी से यक न कर लेगा । इसके अलावा हमारा दूसरा गवाह कमल
पॉके ट बु स का मािलक कमल जैन होगा । कमल जैन एक इ तदार आदमी है । तबे
वाला आदमी है । फर िपछले काफ समय से उसक बड़ी इ छा है क वह घोष साहब का
कोई नया उप यास कािशत करे । म जब उसे उप यास का काशन करने संबंधी
िड कशन के िलये बुलाऊंगी, तो वह दौड़ा-दौड़ा आएगा । ऐसी हालत म वह भी मेरी
बेगुनाही का च मदीद गवाह बन जायेगा । इ सपे टर िवकास बाली के सामने मेरे प म
कमल जैन जैसे िति त आदमी क गवाही भी ब त मायने रखेगी । िवकास बाली इस
बात को अ छी तरह जानता है क कमल जैन ऐसा आदमी नह है, जो खामखाह झूठा
बयान देकर कसी बड़े बखेड़े म फं सने क कोिशश करे गा । इसके अलावा तु हारी गवाही
तो मेरे प म होगी ही ।”
िव म क आंख म योजना के ित शंसा के भाव उभर आए ।
योजना ही ऐसी थी, उसे जो भी सुनता, शंसनीय नजर से देखता ।
“मगर एक बात म नह समझ पा रहा ं ।” िव म बोला ।
“ या ?”
“तुम एक ही समय म दो जगह मौजूद कै से रह सकती हो ?”
“हां, अ छा सवाल है ।” म बोली- “दरअसल इसी काम को करने के िलये घोष साहब ने
अपना असली दमाग खच कया है । ह या क योजना का यही सबसे दलच प और
झकझोर देने वाला िह सा है । हालां क एक ही समय म दो जगह मौजूद रहना ब त
अिव सनीय ज र लगता है, परं तु अगर थोड़ा बुि से काम िलया जाये, तो यह काम
संभव है । अलब ा इस काम को करने के िलये थोड़े धैय और अ यास क ज रत पड़ेगी ।
म तु ह बताती ,ं घोष साहब ने योजना का ताना-बाना कस तरह बुना है । हालां क
योजना फु ल ूफ है, परं तु फर भी अगर तु ह कह कोई कमी दखाई दे, तो मुझे तुरंत
बताना ।”
“ठीक है ।” िव म बोला- “बताओ, कस तरह तुम एक ही समय म दो जगह मौजूद
रहोगी ?”
“मान लो घोष साहब शाम को छः बजे कसी समारोह म जाने के िलये घर से बाहर
िनकलते ह । उनके जाते ही तुम नौ बजकर दस िमनट पर घंटी बजाकर कु मार को ऑ फस
म बुलाते हो । अभी कु मार ाइं ग हॉल तक ही प च ं ा होता है क तुम ऑ फस से बाहर
िनकलते हो और ऑ फस का दरवाजा खुला छोड़ देते हो । अब ाइं गहॉल म खड़ा कु मार
मुझे ऑ फस के अंदर एक टेप रकॉडर पर िच ी िड टेट करते ए देखता है । उसे कु स पर
मेरी पीठ दखाई देती है, कु स के ह थे पर रखी मेरी बांह और कोहनी दखाई देती है । म
कमरे म मौजूद ,ं कु मार के सामने यह बात जािहर करने के िलये म समझती ं क इतना
ही काफ है । तुम कु मार से कहते हो क मुझे कॉफ क ज रत है । इसके अलावा तुम
कु मार को यह भी बताते हो क थोड़ी ब त देर म ही काशक कमल जैन भी वहां प च ं ने
वाला है । अगर कमल जैन वहां प च ं जाये, तो उसे थोड़ी देर ऑ फस के बाहर ाइं ग हॉल
म ही िबठाया जाना है । कमल जैन ऑ फस म तुरंत अंदर इसिलये नह जायेगा, य क म
कु छ ब त ज री िच यां िड टेट कर रही ं और अभी उस काम को समा होने म
तकरीबन आधा घंटा लग जायेगा । इतना ही नह , तुम कु मार को ऑ फस के अंदर भी
दािखल हो लेने देते हो, ले कन मेरी कु स और कु मार के बीच म तुम खड़े रहते हो । इसके
अलावा तुम कॉफ का मग उससे वह पकड़ लेते हो तथा उं गली से चुप रहने का इशारा
करते हो, ता क मेरे िड टेशन देने म कु छ िव न पड़े । मेरी िच यां िड टेट करने क
आवाज तब कु मार ब त साफ-साफ सुनता है । कु मार के कॉफ देकर चले जाने के प ात
तुम ऑ फस के दोन प ले भेड़ देते हो तथा फर कमल जैन के आने का इं तजार करते हो ।
तक़रीबन प ह िमनट बाद कमल जैन वहां प च ं ता है ।”
“ फर ?”
“ फर या ?” म बोली- “योजना के मुतािबक काशक कमल जैन को बाहर ाइं ग हॉल
म ही िबठाया जाता है । कमल जैन के आने के बाद तुम फर ऑ फस से बाहर िनकलते हो
और ाइं ग हॉल म घुसते हो । यहां तुमने एक बात का खास याल रखना है, तुमने ऑ फस
का दरवाजा खासतौर पर खुला छोड़ देना है ।”
“ य ?”
“ य क ाइं ग हॉल म बैठा काशक कमल जैन और कु मार, दोन मुझे कु स पर बैठा
देख सक तथा िच यां िड टेट करती मेरी आवाज सुन सक । तुम कमल जैन से कहते हो क
म कु छ ज री काम कर रही ं और मेरा काम ज द ही समा होने वाला है । काम समा
होते ही उसे अंदर ऑ फस म बुला िलया जायेगा । म समझती ,ं कमल जैन उस बात को
समझेगा और ाइं ग हॉल म बैठेगा । उसके बाद तुम वापस ऑ फस म आ जाते हो तथा
दरवाजे के पट भेड़ देते हो । बस तुमने यही सब करना है । बोलो, कर सकोगे यह काम ?”
िव म कु छ देर शांत बैठा रहा ।
िब कु ल ि थर ।
“एक बात मुझे उलझन म डाल रही है ।” उसक आवाज धीमी थी ।
“ या ?”
“ या तब तुम वा तव म ही ऑ फस के अंदर मौजूद होओगी ?”
“नह ।” मने एकदम प लहजे म कहा ।
“नह ?”
िव म बुरी तरह च क पड़ा ।
आ यच कत ।
“ल...ले कन अगर तुम ऑ फस म मौजूद ही नह होओगी ।” िव म बोला- “तो इतना
सारा नाटक कै से होगा ?”
“वही तो सारा दमाग का खेल है ।” म योजना का एक-एक प ा खोलते ए बोली- “म
एक टेप रकॉडर के अंदर एडवांस म ही कई सारी िच यां िड टेट कर के रख छोडू ग ं ी।
तुम काशक कमल जैन और कु मार को मेरी आवाज सुनाने के िलये वह टेप रकॉडर ऑन
कर दोगे । इसके अलावा कु स पर जो मेरी बांह दखाई देगी, वह तो एक ब त मामूली-सा
काम है । तार के एक मुड़े ए े म और कोट क मदद से इस तरह का म पैदा कया जा
सकता है । बात को और भी यादा िव सनीय तथा दमदार बनाने के िलये हैट का
इ तेमाल भी कया जा सकता है, जो पीछे से ऐसा म पैदा करे गा, जैसे वह मेरे िसर पर
रखा हो । इन तमाम बात से कसी को भी यक न दलाया जा सकता है क उस व म
ऑ फस के अंदर ही मौजूद ं ।”
“ रयली मारवलस!” िव म शंसा कए िबना न रह सका- “ दस इज फं टाि टक
ला नंग ।”
“अभी तो और आगे सुनो ।” मने योजना बताने का िसलिसला जारी रखा- “जब तुम
इधर बंगले म यह सारा ामा अंजाम दे रहे होओगे, तो उधर कसी पहाड़ी सड़क पर म
घोष साहब क ह या करने के बाद उनक कार का ए सीडट लान कर रही होऊंगी । म
बैरके स तोड़कर कार को गहरी खाई म धके ल दूग ं ी तथा फर अपना काम समा करके
ज द-से-ज द यहां प च ं ूंगी और िपछली िखड़क के रा ते से ऑ फस म आ जाऊंगी । उसके
बाद म कु स पर टंगा आ कोट पहन लूंगी, िजसक बांह पर सबक नजर पड़ी होगी और
फर काशक कमल जैन को अंदर बुलाया जायेगा । िव म, योजना के इस िह से क
सफलता-असफलता सब कु छ तु हारे हाथ म है । तुम कमल जैन तथा कु मार के सामने
िजतने िव ास के साथ अिभनय करोगे, उतनी ही यह योजना कामयाब रहेगी । तुमने एक
ण के िलये भी अपना धैय नह खोना है और उनके सामने िब कु ल इस तरह पेश आना है,
जैसे वा तव म ही म ऑ फस के अंदर ं । यह सारा खेल कॉि फडस का होगा ।”
“ठीक है ।” िव म बोला- “म सारा काम कर लूंगा ।”
“पूरे कॉि फडस के साथ ?”
“हां, पूरे कॉि फडस के साथ ।”
“बेहतर ! अगर तुम यह काम इसी तरह से कर लोगे िव म, तो मेरे प म ये आई
िवटनेस दुिनया क कसी भी अदालत म नह टू ट पायेगी ।”
☐☐☐
थोड़ी देर के िलये सवट ाटर म स ाटा छा गया ।
योजना वाकई शानदार थी ।
शानदार या थी, ब त-ब त यादा शानदार थी ।
और यह बात म भी अ छी तरह जानती थी ।
िव म ने एक बार कु स से खड़े होकर अपने ाटर का दरवाजा खोला और बाहर झांका

बाहर पूरी तरह स ाटा छाया था ।
कह कोई न था ।
वो दरवाजा बंद करके वापस इ मीनान से कु स पर आ बैठा ।
“चाय िपयोगी ?”
“नह ! उसक कोई ज रत नह है ।” म तुरंत बोली- “इस समय हमारा एक-एक सेकड
क मती है और हम िसफ योजना पर ही बात करनी चािहए । यह बताओ, योजना म तु ह
कह कोई कमी तो नह दखाई दे रही ?”
िव म िवचार करने लगा ।
“एक जगह मुझे कु छ आशंका मालूम पड़ रही है ।” वो काफ सोचने-िवचारने के बाद
बोला ।
“कहां ?”
“मान लो काशक कमल जैन को वहां प च ं ने म देर हो जाती है और इस बीच टेप भी
पूरा चलकर ख म हो जाता है । तब ऐसी प रि थित म या होगा?”
िव म क आशंका उपयु थी ।
ऐसा हो सकता था ।
“जहां तक म समझती ं ।” म बोली- “सव थम तो काशक कमल जैन को बंगले पर
प च ं ने म देर ही नह होगी, य क वह घोष साहब का नया नॉवल छापने के िलये ब त
बैचेन है । ब त उ सुक है । फर भी एक ितशत अगर मान लो, कमल जैन को बंगले पर
प च ं ने म थोड़ी ब त देर हो जाती है, तो उसके िलये तुम एक काम कर सकते हो, जो टेप
ख म न हो ।”
“ या ?”
“जैसे ही कु मार कॉफ दे कर जाये, तुम टेप बंद कर देना और कमल जैन के आने का
इं तजार करना । कमल जैन जैसे ही ाइं ग हॉल के अंदर दािखल हो, तुम फर टेप चालू कर
देना । इस तरह तु हारे पास काफ टेप बचेगा । इसके अलावा एक बड़ी नाजुक बात और
है, जो योजना को सफल तथा पूरी तरह िव सनीय बनाने के िलये बेइंतहा ज री है ।”
“ या ?”
“जब तुम ाइं ग हॉल म जाकर काशक कमल जैन से बात करोगे, तो उस बातचीत म
थोड़ी देर के िलये म भी शािमल हो जाऊंगी ।”
िव म के चेहरे पर हैरानी के भाव पैदा ए ।
वह च का ।
“तुम शािमल हो जाओगी ।” िव म बोला- “ले कन यह सब कै से होगा ? तुम तो
ऑ फस के अ दर मौजूद ही नह होओगी ।”
“उससे कोई फक नह पड़ता । इस काम को करने के िलये बस थोड़े अ यास क ज रत
है । दरअसल वह आवाज भी टेप रकॉडर म ही रकॉड क जायेगी । मेरी आवाज एकाएक
ऑ फस से बाहर िनकलेगी । सॉरी िम टर कमल जैन! बस थोड़ी देर क और बात है, म
अभी आपको ऑ फस के अंदर बुलाती ं । वह बात कहने के बाद म फर टेप रकॉडर पर
िच यां िड टेट करने लगूंगी । इससे काशक कमल जैन तथा कु मार को इस बात का और
भी प ा भरोसा हो जायेगा क म अंदर ऑ फस म ही ं । य ? कै सी रहेगी यह बात?”
“ब ढ़या ।”
“ले कन इस एक लाइन के संवाद को एकदम मौके पर ही फट करने के िलये थोड़ी
सावधानी क ज रत पड़ेगी । य क अगर लाइन ज़रा भी आगे-पीछे ई, तो फर यह
राज खुलने म देर नह लगेगा क म अ दर ऑ फस म नह ँ ।”
िव म थोड़ा फ मंद नजर आने लगा ।
“और अगर कोई गड़बड़ हो गयी तो ?” िव म बोला ।
“नह होगा । म कहा न, बस इसके िलये थोड़ी सावधानी और अ यास क ज रत
पड़ेगी । हम लोग अ यास पहले ही कर लगे ।”
“एक सवाल और है ।” िव म ने कहा- “िजसक तरफ अभी शायद तुमने यान नह
दया है नताशा !”
“ या ?”
“मान लो, तुम घोष साहब क ह या करने म भी कामयाब हो जाती हो और कसी
पहाड़ी सड़क से उनक कार खाई म धके लकर ए सीडट भी लान कर बैठती हो । ले कन
उसके बाद तुम घटना थल से बंगले तक कस तरह वापस लौटोगी, य क घटना थल
बंगले के आसपास भी नह होगा । और तुमने वह से ज द-से-ज द वापस लौटना है ।
य क तु हारे पास यादा समय भी नह होगा ।”
“बात तो ठीक है ।” म बोली- “वाकई तुम दमाग लगा रहे हो । वैसे इस सम या का भी
एक हल है ।”
“ या ?”
“तुम पहले ही नौकर के इ तेमाल म आने वाली फएट कार घटना थल के आसपास ही
कह छु पा दोगे, म उसी से वापस लौटूंगी ।”
“ठीक है ।”
“ फएट कार घटना थल के आसपास छु पाने म तु ह तो कोई ऐतराज नह ?”
“नह ! कोई ऐतराज नह ।”
“ओ.के . !” म बेस ी से अपनी र टवाच पर िनगाह डालते ए बोली- “तो अब म
चलती ँ । मुझे यहाँ काफ व हो चुका है । मेरे जाने के बाद भी तुम योजना के एक-एक
पहलू को खूब अ छी तरह जांचना परखना और उसम तु ह कह कोई कमी दखाई दे, तो
मुझे बताना ।”
“बेहतर ।”
म कु स छोड़कर खड़ी हो गयी ।
िव म भी उठा ।
िव म ने उठते ही एकाएक मुझे अपनी बाह के दायरे म समेट िलया और मेरे गाल पर
एक गाढ़ चु बन अं कत कया ।
“आई लव यू नताशा! आई लव यू ।” वो ब त भावपूण लहजे म बोला ।
“तुम मुझे धोखा तो नह दोगे िव म ?”
“कै सी बात कर रही हो ।” िव म ने कहा- “यह सवाल तो मुझे तुमसे करना चािहए ।”
मने भी ब त समपण मु ा म िव म क पीठ के िगद अपनी बाह कस द ।
िव म जब मेरे पास होता था, तो म अपने आपको ब त संतु महसूस करती थी ।
उसके बाद म वहां से िवदा ई ।
☐☐☐
अगले पांच दन बड़ी शाि त के साथ गुजरे ।
इस बीच िव म तथा मेरी मुलाक़ात लगातार होती रह । योजना म थोड़ी ब त जो
और किमयाँ थ , उ ह भी हमने अ छी तरह कस िलया ।
अब योजना फु ल ूफ हो चुक थी ।
हालां क घोष साहब ने ही उस पर काफ मेहनत कर ली थी और उसम यादा कु छ
प रवतन करने के िलये बचा नह था । अब िसफ वो दन तय करना बाक था, िजस दन
वह सारा षड़यं रचा जाता ।
ज द ही वो दन भी फाइनल हो गया ।
बु वार का दन था, म उस दन डाक देख रही थी । तभी मेरे हाथ शादी का एक
िनमं ण-प हाथ लगा। वह नवभारत टाइ स के थानीय स पादक देवीचरण शु ला के
लड़के क शादी का िनमं ण प था, िजसम देवीचरण शु ला ने अिभजीत घोष से शादी म
आने का िवशेष आ ह कया था ।
मेरी आँख चमक उठ ।
म जानती थी, देवीचरण शु ला के अिभजीत घोष से काफ अ छे स ब ध ह ।
मने वो िनमं ण प अिभजीत घोष के सामने रखा ।
“हाँ !” अिभजीत घोष ने अपने िचर-प रिचत अंदाज म बजक कं पनी के िसगार का कश
लेते ए कहा- “मुझे मालूम है क देवीचरण के लड़के क शादी होने वाली है । आज सुबह
मेरे पास देवीचरण का फोन भी आया था ।”
“ या आप शादी म जायगे ?”
“ य नह ।” अिभजीत घोष बोला- “िब कु ल जाऊंगा । अगर शादी म न गया, तो
देवीचरण काफ नाराज होगा । शादी कब क है ?”
“शु वार क ।”
“यािन परस !”
“यस !”
“ठीक है । तुम भी मेरे साथ शादी म जाने के िलये तैयार रहना ।” अिभजीत घोष बोला-
“ठीक छ: बजे हम यहाँ से िनकल जायगे ।”
“म!” मेरे िसर पर एकाएक िबजली-सी गड़गड़ाकर िगरी- “ले कन म कै से जा सकती ँ
।”
“ य ?”
“दरअसल काशक कमल जैन को मने परस शाम छ: बजे ही िबजनेस मी टंग के िलये
यहाँ बुलाया आ है ।” मने िब कु ल सफ़े द झूठ बोला ।
“ओह! यह तो काफ परे शानी क बात है ।”
“िब कु ल ।”
“ या वो मी टंग किसल नह हो सकती?”
“नह । कमल जैन िपछले काफ टाइम से मी टंग करने का इ छु क था, फर उसने टू र
पर कह बाहर भी जाना है । और सबसे बड़ी बात ये है क अगर मेरी उस दन कमल जैन
के साथ मी टंग न भी होती, तब भी म उस पाट म नह जा पाती ।”
“ कसिलये ?”
“दरअसल म ऐसे समारोह म जाने से बचना चाहती ,ँ जहाँ काफ सारे लोग क
गैद रं ग होती है । यादा भीड़-भाड़ म, म सहज नह रह पाती और मेरे मन म यह खौफ
भी बना रहता है क कोई गोरखपुर क नताशा शमा के तौर पर मुझे पहचान न ले ।”
मेरी बात सुनकर अिभजीत घोष सोच म डू ब गया ।
मेरी बात उसे ठीक लगी ।
“ओके ।” वह बोला- “तो फर शादी म, म अके ला ही चला जाऊंगा । माधवन से कहना
क वो कार लेकर तैयार रहे ।”
“म माधवन से बोल दूगं ी ।”
वो बात वह ख़ म हो गयी ।
अभी तक पूरी योजना ठीक-ठाक चल रही थी ।
☐☐☐
मने िव म को भी बता दया, सारा काम शु वार क शाम छ: बजे होना तय हो गया है

हमारे पास अब िसफ दो दन थे ।
दो दन ।
एक ण के िलये मेरे शरीर म ठं डक क लहर दौड़ गयी ।
अभी तक वो योजना के वल जबानी जमा खच थी, ले कन अब जब क उसको काय प
देने का का समय आया, तो मुझे दहशत होने लगी ।
अगर कह भी मुझसे ज़रा-सी भूल ई, तो वह सारा खेल ख़ म ।
िव म तो पहले ही काफ भयभीत था । वो चाहे लाख दलेर था, मगर इस तरह क
कायवाही उसने पहले कभी अंजाम नह दी थी ।
उसी दन मने काशक कमल जैन को भी फोन कया ।
“हैलो मैडम !” कमल जैन भारी गरमजोशी के साथ बोला- “आज हमारी याद कै से आ
गयी ?”
“िम टर जैन ! म आपके साथ एक मी टंग करना चाहती ँ ।”
“घोष साहब के नए उप यास के िसलिसले म ?” कमल जैन चहका ।
“जी हाँ !”
“वैरी गुड ! यह तो मेरी खुशनसीबी होगी मैडम !”
“बताईये, मी टंग कब करनी है ?” म धैयपूवक बोली ।
“जब आप चाह ।”
म जानती थी, कमल जैन का वही जवाब होगा ।
म एक-एक श द ब त नाप-तोल कर बोल रही थी ।
“ या आप शु वार क शाम सवा छ: बजे आ सकते ह ?” मने सोचने िवचारने का
अिभनय करते ए कहा ।
“ य नह ।”
“ठीक है िम टर जैन ! तो फर शु वार क शाम सवा छ: बजे क मी टंग आपके साथ
फ स ।”
“थक यू मैडम !”
“आप कवर आइिडया और पि लिसटी बजट के साथ मुझसे िमल ।”
“ओ.के .! म पूरी तैयारी करके आऊँगा मैडम !”
“गुड बाय !”
“गुड बाय !”
स ब ध िव छेद हो गया ।
कमल जैन के साथ मी टंग का वह ो ाम भी आसानी से तय हो गया ।
☐☐☐
हालां क अभी तक कोई मुि कल पेश नह आयी थी । फर भी क ठनाइयां कई थ ।
मेरी रात अब अिभजीत घोष के साथ गुजरती थ ।
वह सारी रात मेरे शरीर को न चता-खसोटता रहता था और अजीब-अजीब से सुअल
हरकत करता था ।
उसके साथ सहवास या करने के दौरान मुझे जो पीड़ा झेलनी पड़ती, आप उसका
अनुमान भी नह लगा सकते । वह िन संदह े घोर यातना से भरी रात थ ।
इसके अलावा मने ऑ फस म काफ सारी िच य के जवाब कं यूटर पर िड टेट भी
करने शु कर दए थे । हर िच ी का जवाब ख़ म होने के बाद मने उसका समय नोट कर
िलया । यह इसिलये भी ज री था, ता क िव म को पता रहे क काशक कमल जैन के
प च
ँ ने पर मेरे ारा कहे गये मह वपूण श द कब आने वाले ह ।
फर िव म ने और मने एक बार पूरे ो ाम क रहसल भी क ।
रहसल क जगह भी हमने काफ बेहतर चुनी ।
बंगले म सवट ाटर से ब त दूर अ तबल के पीछे िब कु ल वीराने म एक के िबन बना
आ था । आधी रात के व म और िव म उसी के िबन म जा प च ं े।
के िबन क चाबी मेरे पास थी ।
म के िबन का दरवाजा खोलकर अ दर दािखल ई । मने कं यूटर को वह के िबन म पड़ी
एक टेबल पर िब कु ल इस तरह रख दया, जैसा वो योजना को याि वत करते समय
रखा जाना था ।
मुि कल से दो िमनट बाद ही िव म भी वहां प चँ गया ।
एकाएक मेरा दल चाहा, म दौड़कर िव म को अपनी बाह म समेट लूं ।
ले कन मने अपनी भावना को काबू कया ।
यह इस तरह के काम का समय नह था । मने देखा, िव म उस समय भी थोड़ा डरा
आ था ।
मुझे भय आ, कह वो डर ही उससे कु छ गड़बड़ न करा दे ।
“सब कु छ ठीक है ?” वह आते ही बोला ।
“हाँ !”
“तो फर हम रहसल शु करनी चािहए ।” िव म ने कहा- “वैसे भी हमारे पास
यादा समय नह है ।”
िव म ने अब लोहे के तार से बनी ई एक ल बी-सी ूब िनकालकर मेज पर रख दी ।
“यह देखो, यह ूब मने तु हारी बांह क जगह इ तेमाल करने के िलये बनायी है । इसे
अ छी तरह देख लो, कह कोई कमी हो तो बताना ।”
मने ूब देखी ।
वह लोहे के तार का जाल था ।
ूब वाकई ब त ख़ूबसूरत ढंग से बनी ई थी ।
“अ भुत !” म उस ूब को ब त शंसनीय ने से देखते ए बोली- “वाकई तुमने यह
काम काफ अ छे ढंग से कया है ।”
मने अपना कोट उतारा और ूब को कोट क एक आ तीन के अ दर वि थत कर
दया ।
फर ूब को थोड़ा मोड़ा, तो वह बीच म से िब कु ल बांह क श ल म मुड़ गयी । उसके
बाद मने वह कोट कु स पर रख दया और ूब वाली बांह को कु स को कु स के ह थे पर
इस तरह टकाया, जैसे सचमुच वहां कसी क बांह रखी हो ।
फर हम दोन ने थोड़ा पीछे दरवाजे के पास खड़े होकर पूरी ि थित का जायजा िलया ।
कोट क बांह िब कु ल ऐसी लग रही थी, जैसा हम चाहते थे । अगर कोई थोड़े फासले से
उसे देखता, तो यही समझता क कोई ि कु स पर बांह रखे बैठा है ।
“ रयली फटाि टक !” म ब त गरमजोशी के साथ बोली- “सब कु छ िब कु ल वैसा ही
लग रहा है, जैसा हम चाहते थे । बस एक छोटी-सी कमी है ।”
“ या ?”
“अगर हम बांह वाली इस ूब के साथ थोड़ा ऊपर को लाकर लोहे का एक ऐसा तार
और जोड़ द, िजस पर हैट टकाया जा सके , तो हमारा काम और भी ब ढ़या हो जायेगा ।”
“वह तार भी म कल सुबह ही जोड़ दूग ं ा ।”
“गुड !”
“ या तुमने टेप पूरी तरह तैयार कर िलया है ?” िव म ने पूछा ।
“हाँ, वह सब एकदम रे डी है । टेप म तु ह अभी सुनाती ँ । बस थोड़ी व था और
ठीक कर लूं ।”
मने आगे बढ़कर टेबल को कु स के िब कु ल सामने कर दया, अब दोन चीज िब कु ल
उस ि थित म आ गय , जैसी ऑ फस के अ दर रखी ई थ । टेप को टेबल पर रख दया
गया और फर उसे शु कर दया गया ।
उसके बाद हम दोन दरवाजे के पास जा खड़े ए और कु स क तरफ देखने लगे ।
टेप क आवाज कमरे म गूंजने लगी ।
हालां क आवाज हमने काफ कम क ई थी, मगर फर भी टेप से िनकलती उस
आवाज ने कमरे म बड़ा अलौ कक-सा वातावरण पैदा कर दया था और उस समय ऐसा
लग रहा था, जैसे वा तव म ही कमरे के अ दर कोई तीसरा ाणी मौजूद हो ।
एकाएक बीच म ही टेप म से मेरी आवाज िनकलनी बंद हो गयी ।
कु छ देर के िलये के िबन म स ाटा छा गया ।
गहरा स ाटा ।
हम दोन ही उस समय दरवाजे के पास सांस रोके खड़े थे ।
“सॉरी िम टर कमल जैन!” तभी कं यूटरम से मेरी थोड़ी ऊंची आवाज िनकली- “बस
थोड़ी देर क और बात है, म अभी आपको ऑ फस के अ दर बुलाती ँ ।”
उसके बाद फर िच यां िड टेट करने क आवाज आने लगी ।
मने िव म क तरफ देखा ।
उसके चेहरे पर अब उ मीद क ह क -सी करण चमक रही थी ।
मने आगे बढ़कर टेप बंद कर दया ।
“जहाँ तक मेरा अनुमान है, अगर तुम सारा काम ठीक-ठाक करोगे ।” म बोली- “तो
कह कोई गड़बड़ होने वाली नह है । तुमने िसफ यह यान रखना है क मेरे ारा कमल
जैन के िलये कहे गये वा य टेप म कब आते ह ।”
मने एक िल ट िनकालकर िव म क तरफ बढ़ाई ।
“यह या है ?”
“यह उन िच य क पूरे टाइम-टेबल के साथ िल ट है, िजनके जवाब म मने कं यूटर
पर िड टेट कये ए ह । तुम इस िल ट को देखकर टाइम-टेबल अ छी तरह कं ठ थ कर
सकते हो, ता क बाद म तु ह कोई परे शानी न आये ।”
िव म ने िल ट पकड़ ली ।
वह मेरी एक-एक बात ब त गौर से सुन रहा था ।
“आओ! हम एक बार फर थोड़ी देर रहसल कर लेते ह । थोड़ी देर के िलये तुम मुझे
कु मार समझो और ऐसा अंदाजा लगाओ, जैसे कमल जैन बाहर ाइं ग हाल म बैठा आ है ।
ठीक ?”
“ठीक ।”
मने टेप को रवाइं ड करके फर चालू कर दया ।
मेरी आवाज पुन: कमरे के अ दर गूंजने लगी ।
काफ देर तक हम लोग रहसल करते रहे । हम इस बात क पूरी कोिशश कर रहे थे क
कह कोई गड़बड़ न हो जाये ।
पांच
अगले दन शु वार था ।
यािन हंगाम का दन ।
उस दन मने एक काला लबादा लाकर पहले ही अपनी मेज क ायर म रख िलया ।
िव म हमेशा क तरह ही सहज मालूम हो रहा था । ले कन सहज नह था । मेरा दल
घबरा रहा था और म आज सुबह-ही-सुबह बीयर के दो बड़े पैग डकार गयी थी ।
मौसम भी कु छ खराब था ।
“ऐसा मालूम होता है ।” िव म ने क यूटर वाली अपनी सीट पर बैठे-बैठे कहा- “ क
आज बा रश हो सकती है नताशा !”
“हाँ !” म भी बोली- “कु छ ऐसा ही लग रहा है । अगर बा रश हो गयी, तो यह ठीक
नह होगा ।”
“ या तुम तब भी अपना काम करोगी ?”
“वह तो करना ही है ।” मेरे वर म दृढ़ता थी- “कोई आंधी-तूफ़ान अब इस ो ाम को
किसल नह कर सकता । आिखर हमने तमाम तैया रयां कर ली ह ।”
“गुड ! और माधवन का या कया तुमने ?”
“अभी थोड़ी देर पहले कु मार ने माधवन के िलये चाय बनायी थी ।” म धीमी आवाज म
बोली- “मने लेराइगो क चार टेबलेट उसम घोल दी है ।”
“वह कब तक अपना असर दखायगी ?”
“देखो, ज द ही उ ह ने अपना असर दखाना चािहए । धीरे -धीरे हम अपनी मंिजल क
तरफ बढ़ रहे ह िव म! ब त ज द हम आजाद ह गे । िब कु ल आजाद !”
“काश ऐसा ही हो ।”
िव म वह श द कहने के बाद बाहर िखड़क क तरफ देखने लगा ।
मौसम वाकई अ छा नह था ।
कं यूटर मेज पर रखा आ था । कु स एकदम सही ि थित म थी और उस बात का ख़ास
याल रखा गया था क ऑ फस म मि म रोशनी रहे ।
मेज क ायर म मने लबादे के अलावा एक जोड़ी द ताने भी लाकर रख िलये थे ।
ायर म ही अिभजीत घोष पर आ मण करने के िलये लोहे क एक मजबूत रॉड भी
रखी थी ।
तमाम तैया रयां पूरी हो चुक थ ।
तभी कु मार ऑ फस म आ प च ं ा।
“मैडम! एक बुरी खबर है ।” कु मार ने अ दर आते ही कहा ।
“कै सी बुरी खबर ?”
“एकाएक माधवन बीमार हो गया है, जब क घोष साहब को उसे लेकर शाम छ: बजे
कसी शादी म जाना है ।”
“माधवन बीमार पड़ गया है ।” मने च क पड़ने का जबरद त अिभनय कया- “ या हो
गया उसे ?”
“उस अभी-अभी दो-तीन बड़ी-बड़ी उि टयां ई ह और वो िसरदद क भी िशकायत कर
रहा है ।”
“ओह! ज र उसने कोई ऊटपटांग चीज खा ली होगी ।”
“ऐसा उसने कु छ खाया भी नह , िजससे तबीयत खराब होती ।” कु मार बोला- “बस
थोड़ी देर पहले उसने चाय पी थी और वो चाय भी मने ही उसे बनाकर िपलाई थी ।”
“ फर उसक तबीयत कै से खराब ई ?”
“मालूम नह ।”
“ठीक है । म घोष साहब को इस बारे म इ ला कर दूग
ं ी ।”
“थक यू मैडम !”
“कु छ और ?”
“नह ! म बस आपको यही सूचना देने आया था ।”
कु मार चला गया ।
कु मार के जाते ही मेरा दल और जोर-जोर से धड़कने लगा ।
चार बज चुके थे ।
धीरे -धीरे वो समय नजदीक आता जा रहा था, जब सारा षड़यं रचा जाना था ।
☐☐☐
म अिभजीत घोष के कमरे म प च ँ ी।
कु मार तब वह था ।
ज र उसने खुद ही वहां आकर अिभजीत घोष को माधवन के बीमार पड़ने क सूचना
दे दी थी । उस समय उसके हाथ म काफ का एक याला था, िजसे वो अव य ही अिभजीत
घोष के िलये लाया था ।
“नताशा ! तुमने इसक बात सुनी ।” अिभजीत घोष मेरे वहां प च ं ते ही बोला- “यह
एक मुसीबत से भरी खबर और सुना रहा है ।”
“माधवन के बारे म ?”
“हाँ, वही ।” अिभजीत घोष बोला- “कहता है, माधवन बीमार पड़ गया । इसने भी
अभी बीमार पड़ना था ।”
“म तो कहती ँ ।” म खासतौर पर कु मार को सुनाते ए बोली- “अब आप देवीचरण
शु ला के बेटे क शादी म जाना किसल ही कर दो, तो यादा बेहतर है ।”
“ऐसा कै से हो सकता है ।” अिभजीत घोष ने तुरंत कहा- “देवीचरण शु ला मेरा पुराना
िम है । अगर म उसके बेटे क शादी म न गया, तो वह नाराज होगा।”
कु मार ने कॉफ़ का कप अिभजीत घोष के सामने टेबल पर ले जाकर रख दया ।
अिभजीत घोष ने कॉफ़ का एक छोटा-सा घूँट भरा ।
“ फर मौसम भी ठीक नह है ।” म बोली ।
“मौसम क तो कोई ख़ास बात नह ।” अिभजीत घोष ने कहा- “थोड़ी देर म बादल छंट
जायगे और अगर बा रश भी होने लगी, तब भी या परवाह है । आिखर मुझे कार म ही
तो वहां जाना है ।”
“ फर भी म समझती ,ँ अब आप वहां जाना किसल ही कर द, तो यादा बेहतर है ।”
“नह , म किसल नह कर सकता ।”
“ य ?”
“आज सुबह ही देवीचरण शु ला ने मुझे फर फोन कया था और शादी म ज र आने के
िलये कहा था ।”
“मगर जब माधवन ही बीमार है ।” म बोली- “तो आप वहां कै से जायगे?”
“ या थोड़ी ब त देर म उसक तबीयत ठीक नह हो जायेगी?”
“नह !” कु मार क गदन इं कार म िहली- “उसक तबीयत ब त खराब है । मुझे तो नह
लगता, वो कल सुबह तक भी ठीक हो पायेगा ।”
“कोई बात नह । तो फर म अके ला ही वहां चला जाऊंगा ।”
“आप कार अ छी तरह ाइव भी कर लगे ?” म थोड़े सशं कत लहजे म बोली ।
मेरी बात सुनकर अिभजीत घोष हंसने लगा तथा उसने कॉफ़ के दो-तीन घूँट और भरे ।
“तुम मुझे या िब कु ल ही ब ा समझती हो । म माधवन से भी यादा अ छा कार
ाईवर ँ । मेरी चंता न करो ।”
“जैसा आप मुनािसब समझ ।” म अिभजीत घोष के सामने हिथयार-सा डालते ए
बोली ।
अिभजीत घोष ने थोड़ी ही देर म काफ का वह कप खाली करके टेबल पर रखा ।
साढ़े पांच बज चुके थे ।
अिभजीत घोष अब शादी म जाने के िलये तैयार होने लगा ।
तभीएकाएक आसमान का सीना चाक करके ब त जोर से िबजली कड़कड़ाई और
बा रश होने लगी ।
“लो !” मने कहा- “बा रश भी शु हो गयी ।”
“कोई बात नह । बा रश म भी कार ाइ वंग का अलग ही आनंद है ।”
अिभजीत घोष ने टाई क नॉट कसी और दपण के सामने खड़े होकर अपने बाल सँवारे ।
उसने लू कलर का सूट पहना आ था, िजसम वो काफ माट दखाई दे रहा था ।
“पता नह !” म बोली- “ऐसी बा रश म कमल जैन यहाँ आ भी पायेगा या नह । मेरे
लायक कोई काम तो नह है ?”
“नह । कोई काम नह है।”
“ठीक है, तो म ऑ फस म जाकर कमल जैन के साथ होने वाली मी टंग क थोड़ी
तैया रयां करती ँ ।”
“ओ.के .।”
☐☐☐
म आनन-फानन ऑ फस म प च
ँ ी।
िव म वह था ।
अलब ा उसक िनगाह बार-बार दरवाजे क तरफ उठ जाती थ । वो उस ण डरा
आ िब कु ल नह था ।
“यह देखो ।” मेरे ऑ फस म प च ं ते ही िव म बोला- “म तु हारे िलये लाि टक क
टोपी लाया ,ँ इस बा रश म तु हारे बाल गीले िब कु ल भी नह होने चािहए ।”
“वैरी गुड !”
िव म का दमाग अब सचमुच काफ पीड से काम करने लगा था ।
मने तेजी के साथ अपना कोट उतारकर कु स पर डाल दया और ायर से लबादा
िनकालकर पहन िलया ।
फर मने लाि टक क टोपी और द ताने भी पहने ।
“तु ह सब कु छ याद है न ?” मने िव म क तरफ पलटकर कहा- “ क तुमने पीछे या-
या करना है ?”
“यहाँ क तुम िब कु ल चंता मत करो ।” िव म बोला- “तुम िसफ अपने काम क तरफ
यान दो ।”
मने संतुि पूण अंदाज म ायर के अ दर हाथ डाला और लोहे क रॉड बाहर िनकाल ली

रॉड मने फ़ौरन ही लबादे के अंदर छु पा ली थी ।
“तुम कतनी देर म वापस आओगी ?”
“मुि कल से आधा घंटे म वापस आ जाऊंगी ।” मने फु सफु साकर कहा- “पीछे एक-एक
बात का यान रखना ।”
“मने कहा न, यहाँ क िब कु ल फ़ मत करो ।”
म अब ऑ फस म पीछे क तरफ बनी िखड़क के नजदीक प च ँ चुक थी ।
मेरे कू दते ही िखड़क वापस बंद हो गयी ।
बा रश अभी भी हो रही थी । अलब ा ब त तेज बा रश नह थी ।
म बड़ी तेजी के साथ गैराज क तरफ बढ़ी ।
अिभजीत घोष को गैराज तक प च ँ ने म मुझसे यादा व लगना था । य क वो
काफ घूमकर ढके ए रा ते से गैराज तक जाता, ता क बा रश म भीग न सके । जब क म
सीधे कं पाउं ड पार करके ही वहां प चँ सकती थी । आिखर लबादे और टोपी का कम-से-
कम यह फ़ायदा तो मुझे िमलना ही था ।
☐☐☐
म उस गैराज म प चँ ी, जहाँ अिभजीत घोष क कै डीलॉक कार खड़ी होती थी ।
गैराज काफ लंबा-चौड़ा था । उस समय गैराज का शटर खुला आ था । ज र कु मार
पहले ही उस शटर को खोल गया था ।
म वह शटर के नजदीक थोड़े अँधेरे िह से म खड़ी हो गयी और अिभजीत घोष क
ती ा करने लगी ।
यही सोच-सोच कर मेरा दल धड़क जा रहा था क म एक ह या और करने वाली थी ।
अगले कु छ ण म या होने वाला था, यह खुद मुझे भी मालूम न था । तभी मने अँधेरे
म एक साए को गैराज क तरफ ही आते देखा । साया नजदीक आया, तो पता चला क तो
वह अिभजीत घोष ही था ।
मने लोहे क रॉड लबादे म से बाहर िनकला ली और उसे मु ी म कसकर पकड़ िलया ।
मेरा दल जोर-जोर से पसिलय को कू टने लगा । अिभजीत घोष अब काफ नजदीक आ
चुका था । म अपना सांस रोके खड़ी रही । तभी अिभजीत घोष मेरे िब कु ल बराबर म से
गुजरा और गैराज के अ दर दािखल हो गया ।
गैराज म प चं ते ही उसने लाइट जलाई ।
म अब लोहे क रॉड हाथ म कसकर पकड़े-पकड़े उसके िब कु ल पीछे प च ँ चुक थी ।
उसी ण एक घटना घटी ।
अिभजीत घोष को न जाने कै से इस बात का एहसास हो गया क कोई उसके पीछे है ।
वह बड़ी तेजी से मेरी तरफ घूमा ।
और !
उसके घूमते ही मेरा लोहे क रॉड वाला हाथ हरकत म आ गया ।
रॉड अपनी चंड गित से अिभजीत घोष क खोपड़ी पर पड़ी ।
“नह ... ।”
अिभजीत घोष के हलक से ऐसी दयिवदारक चीख िनकली, जैसे पूंछ पिहये के नीचे आ
जाने के कारण कु ा ब त जोर से िबलिबलाया हो ।
उसके घुटने मुड़ गये और वह नीचे को झुक गया ।
तभी मने पुन: उसक खोपड़ी पर रॉड का शि शाली हार कया । अिभजीत घोष
धड़ाम से फश पर जा िगरा ।
☐☐☐
उसके बाद म कै डीलॉक के अ दर सवार हो गयी ।
कार क चािबयां मने अिभजीत घोष के कोट क जेब म से िनकाल ली थ । फर मने
फश पर पड़े अिभजीत घोष को भी कार के अ दर घसीट िलया और ाइ वंग सीट पर
िब कु ल इस तरह िबठाया, जैसे वही कार चला वाला हो ।
मने उसका कोट झाड़कर साफ़ कर दया ।
खोपड़ी पर कनपटी के पास से खून क एक पतली-सी लक र बह रही थी, मने माल से
खून क वो लक र भी साफ़ कर दी और उसके बाल सु वि थत कये ।
अब अिभजीत घोष एकदम चाक-चौबंद नजर आ रहा था ।
अलब ा अभी वो मरा नह था । उसे सांस अटक-अटककर आ रहा था । मने उसके
दोन हाथ टेय रं ग हील पर टका दए और खुद भी वह ाइ वंग सीट के नजदीक बैठ
गयी । कार क डोम लाइट मने जलाई नह थी, ता क कार के अ दर का दृ य कसी को भी
एकदम प प से न दखाई पड़े ।
फर मने कार का इं जन टाट कया ।
त काल कार का इं जन घरघराकर जाग उठा और उसके बाद कार गैराज से िनकलकर
बाहर ाइव-वे क तरफ भागी ।
मुझे लगा, बा रश का होना उस व मेरे हक़ म अ छा ही था ।
य क एकाएक चार तरफ अँधेरा िघर आया था और बा रश क बूंद के कारण कु छ
भी प नजर नह आ रहा था । मने कार क वंड न के वाइपर भी ऑन कर दए और
अब वो रह-रहकर इधर से उधर घूम रहे थे ।
अिभजीत घोष के हाथ टेय रं ग पर रखे ज र थे, ले कन कार म ही चला रही थी ।
बंगले के फाटक के पास प च ं कर मने कार एक ण के िलये रोक । बहादुर बा रश म
भीगता आ ज दी से दौड़कर फाटक खोल रहा था । फाटक को खोलते ए उसने एक
नजर ाइ वंग सीट पर भी डाली, जहाँ उसे वाभािवक प से अिभजीत घोष ही बैठा
आ नजर आया ।
फाटक खोलकर उसने ब त जोर से अिभजीत घोष को एक सै यूट मारा ।
तुरंत कार सराटे के साथ बहादुर के बराबर म से गुजरकर फाटक पार कर गयी ।
बहादुर भी एक च मदीद गवाह बन चुका था ।
यही क उसने अिभजीत घोष को अके ले बंगले म से जाते देखा था ।
कार त ु गित से सड़क पर दौड़ती रही ।
कै डीलॉक अभी थोड़ी ही दूर गयी होगी क मुझे सामने से िस वर कलर क एक टाटा
इं िडका आती दखाई पड़ी ।
वह कमल जैन क कार थी ।
ओह !
यािन कमल जैन िब कु ल राइट टाइम पर वहां प च ँ रहा था ।
जब क बा रश को देखकर मेरे मन म संदह े हो गया था क पता नह कमल जैन वहां
आएगा या नह ।
मने कार क र तार बढ़ा दी ।
तभी एक घटना और घटी ।
अिभजीत घोष को न जाने कै से होश आ गया । उसके मुंह से कराह िनकली और उसने
िमचिमचाते ए आँख खोलने का यास कया ।
उसे होश म आते देखकर म भयभीत हो उठी ।
एकाएक कार मेरे िनयं ण से बाहर हो गयी । वह सड़क पर बड़ी बुरी तरह लहराई और
एक भयानक ए सीडट होते-होते बचा ।
तभी कमल जैन क टाटा इं िडका सराटे के साथ मेरे बराबर म से गुज़री ।
मने कसी तरह कार को संभाला और अिभजीत घोष क खोपड़ी पर एक दोह थड़
जमाया ।
वह पुन: बेहोश हो गया ।
थक गॉड!
उन चंद सेकंड म ही म पसीने म लथपथ हो उठी थी ।
मने पलटकर देखा । टाटा इं िडका पहले क तरह ही सड़क पर दौड़ी जा रही थी ।
अलब ा उसक र तार अब कम थी ।
अभी कमल जैन को बंगले तक प च ँ ने म पांच िमनट और लगने थे ।
यानी सारा काम अंजाम देने के िलये मेरे पास प ीस िमनट थे ।
प ीस िमनट !
म घबरा उठी ।
इन प ीस िमनट म मने मड-आइलड क पहाड़ी सड़क तक भी प च ँ ना था । वहां
प चं कर मने कार का पिहया बदलना था और सही पिहया उतारकर उसक जगह फटा
आ पिहया लगाना था, ता क उसे पूरी तरह दुघटना का मामला समझा जा सके । फर
मने बैरके स तोड़कर कार को पहाड़ी सड़क से नीचे धके लना था । उस फएट कार को
खोजना था, िजसे िव म पहले ही पहाड़ी सड़क के पास छु पा गया था । फर मैने तूफानी
गित से बंगले पर वापस प च ँ ना था । अ तबल क साइड वाली एक िखड़क से बंगले के
अ दर घुसना था । वापस अपने ऑ फस म प च ँ ना था । आनन-फानन अपना लबादा
उतारकर कोट पहनना था और उसके बाद काशक कमल जैन के सामने ऐसा शो करना
था, जैसे म तो शु से वह थी ।
और यह सारा काम मने प ीस िमनट म करना था ।
प ीस िमनट !
मुझे झुंझलाहट होने लगी ।
मुझे लगा, म ब त बेवक़ू फ़ लड़क ँ । भला इतने सारे काम प ीस िमनट म कै से हो
सकते थे ।
असंभव !
नामुम कन !
कसी उप यास क कागज पर योजना बनाना अलग बात है और उसे ैि टकल तौर
पर अंजाम देना अलग बात है ।
मेरे शरीर म सद लहर दौड़ गयी ।
मुझे घबराहट हो रही थी ।
मने मौसम का हाल देखा । बा रश कम ज र हो गयी थी, ले कन िजस तरह आसमान
पर घने बादल िघरे ए थे, उसे देखकर लगता नह था क थोड़ी ब त देर म बरसात क
जायेगी ।
☐☐☐
ज द ही कै डीलॉक पहाड़ी सड़क के नजदीक प च ं कर क गयी ।
वह पहाड़ी सड़क गवनमट गे ट हाउस से बस थोड़ा ही आगे थी । ब त ऊंचाई पर थी
और उस सड़क के दोन तरफ गहरी खाइयाँ थ ।
िव म ने और मने पहले ही काफ सोच-समझकर उस सड़क का चयन कर िलया था ।
उस सड़क क सबसे बड़ी खूबी ये थी क वो यादातर खाली रहती थी और इतने खराब
मौसम म तो वहां कसी वाहन के आने का मतलब ही न था ।
मने पहाड़ी सड़क पर प च ं कर कार रोक और नीचे उतर आयी ।
बा रश के थपेड़े अब सीधे मेरे ऊपर पड़ने लगे ।
पर तु मने परवाह न क ।
मने कार क िड खोली । फ़ौरन मुझे वो पिहया नजर आने लगा, जो बीच से फट गया
था । उस पिहये क अब बड़ी उपयोिगता िस होने वाली थी । उसी पिहये क बदौलत
अब यह सािबत होना था क कार दुघटना त ई है ।
मने पिहया बाहर िनकाल िलया ।
उसके बाद म आनन-फानन अगला पिहया बदलने के कायकलाप म जुट गयी । मने
औजार िनकाल िलये ।
हालां क ऐसे तूफानी मौसम म कसी लड़क के िलये कार का पिहया बदलना कोई
आसान काम न था ।
चाबी बार-बार नट के ऊपर से फसल- फसल जाती थी ।
म अब और भयभीत हो उठी ।
टाइम भागा जा रहा था, जब क पिहया बदलने का नाम नह ले रहा था ।
बड़ी मुि कल से म पिहया उतारने म कामयाब ई ।
अब फटा आ पिहया फट करना और भी मुि कल काम था । ले कन मेरा हौसला
फलहाल काफ बढ़ चुका था और मेरे हाथ काफ ज दी-ज दी चल रहे थे ।
ज द ही म फटा आ पिहया फट करने म कामयाब हो गयी ।
ले कन इस बीच एक घटना घट चुक थी ।
िजस ढ न म पिहये के खुले ए नट रखे थे, न जाने कै से वो ढ न पलट गया । ढ न के
पलटते ही सारे नट इधर-से-उधर िबखर गये ।
म और झुंझला उठी ।
अँधेरे म इन नट को तलाशना ही अब आसान काम न था ।
म िजतनी ज द-से-ज द वो काम िनपटाना चाह रही थी, उतनी देर हो रही थी ।
वह कु ल छ: नट थे ।
बड़ी मुि कल से म उनम से िसफ पांच नट ही तलाश पायी । एक नट क तलाश म और
समय बबाद करना बेवकू फ थी ।
पांच नट अ छी तरह कसने के बाद मने पिहये के ऊपर ढ न चढ़ाया और फर अपनी
घड़ी देखी ।
मेरे पास अब िसफ आठ िमनट बचे थे ।
आठ िमनट !
फर मने कार का दरवाजा खोला और अ दर दािखल ई । अब मने कार का इं जन
दोबारा टाट करना था और फर उस कार को लकड़ी क बैरके स तोड़कर नीचे गहरी
खाई म धके ल देना था ।
ले कन कै डीलॉक के अ दर दािखल होते ही म स रह गयी ।
मेरे िज म का एक-एक रोआं खड़ा हो गया ।
अिभजीत घोष कार क ाइ वंग सीट पर िब कु ल चाक-चौबंद हालत म बैठा था । उसे
होश आ चुका था और उस समय वो मेरी एक-एक एि टिवटी देख रहा था ।
☐☐☐
“तु… तुम !”
मेरी आवाज भय से बुरी तरह कं पकं पायी ।
मुझे ऐसा लगा, जैसे मेरे शरीर म कोई चंगारी दौड़ गयी हो ।
“ य ? मुझे होश म आया देखकर हैरानी हो रही है ?” अिभजीत घोष नफ़रतपूण लहजे
म बोला- “तु हारी सारी योजना म अब भांप चुका ँ । तुमने मेरा ही दांव मेरे ऊपर चला
दया । म समझ रहा था क म अपने उप यास का लाट तैयार कर रहा ,ँ ले कन म नह
जानता था क वो सारा षड़यं मेरी ह या के िलये ही रचा जा रहा है ।”
म िखलिखलाकर हंसी ।
तभी ब त जोर से आसमान का सीना चाक करके िबजली भी कड़कड़ाई ।
“तु ह तो खुश होना चािहए अिभजीत !” मने हंसते ए ही कहा- “ क तु हारी िज दगी
का जो सबसे शानदार लाट था, वो अब तु हारे साथ ही हक कत म त दील हो रहा है ।
तुम सचमुच ब त भा यशाली हो । गुड बॉय !”
अिभजीत घोष एकाएक चीते क तरह मेरे ऊपर झपटा ।
मगर !
मने उसे यादा मौका नह दया ।
मने त काल लोहे क रॉड अपनी पूरी शि से उसक खोपड़ी पर ख चकर मारी ।
रॉड इस बार ब त चंड प से उसक खोपड़ी पर पड़ी थी । लोहे क रॉड पड़ते ही
उसक खोपड़ी फट गयी और वो वह ाइ वंग सीट पर ढेर हो गया । वो अब अपने हाथ-
पाँव पटक रहा था और जोर-जोर से सांस ले रहा था । म जानती थी, उसके ाण बस
िनकलने ही वाले ह ।
मने अिभजीत घोष क तरफ यादा यान नह दया । मने आगे झुककर कै डीलॉक कार
का इं जन टाट कया और धीरे -धीरे टेय रं ग हील घुमाना शु कया ।
कार अब बैरके स क तरफ बढ़ने लगी । फर धीरे -धीरे उसक र तार तेज होने लगी ।
जैसे ही कै डीलॉक ने र तार पकड़ी, म तुरंत छलांग लगाकर एक तरफ हट गयी ।
तभी कार ब त जोर से बैरके स से टकराई ।
बैरके स टू टने क भीषण आवाज ई और फर कार जबरद त गजना करती ई नीचे
गहरी खाई म जा िगरी ।
मने नीचे झांककर देखा ।
कार कई सौ फु ट नीचे अब एक च ान पर जाकर अटक गयी थी । मेरे देखते-ही-देखते
एकाएक वहां एक बड़ा तेज शोला भड़का और फर पूरी कार धू-ं धूं करके जल उठी ।
☐☐☐
बा रश अब क गयी थी ।
मने उस पहाड़ी सड़क पर यादा समय थ नह गंवाया ।
मने ज द ही वो फएट कार ढू ंढ िनकाली थी, िजसे िव म आज सुबह ही नजदीक क
झािड़य म छु पा गया था । कु मार और माधवन वगैरा के सामने उसने यह बहाना बनाया
क कार के इं जन म थोड़ी खराबी आ गयी है, इसिलये वो उसे मोटर मैकेिनक के पास छोड़
आया है ।
म आनन-फानन फएट म सवार ई और फर मने वो फएट तूफानी गित से बंगले क
तरफ दौड़ा दी ।
कार मने बंगले से थोड़ा पहले ही रोक और उसे पूव क भांित ऊंची-ऊंची झािड़य तथा
घने पेड़ के बीच म छु पा दया ।
फर म दौड़ती ई बंगले क िपछली साइड म प च ँ ी । वहां एक लोहे क मजबूत ि ल
लगी ई थी, जो सीधे अ तबल क तरफ खुलती थी । मने उस ि ल को दोन हाथ से
पकड़कर पीछे क तरफ ध ा दया, तो ि ल उखड़ गयी । िव म ने अ दर से उसके बो ट
पहले ही खोल दए थे । म उसी िखड़क के रा ते बंगले म दािखल ई । ि ल को पहले क
तरह अपने थान पर फ स कया ।
कु छ ण बाद ही जब म अपने ऑ फस क िखड़क क चौखट पर चढ़ी, तो मेरे कान म
अपनी ही वो आवाज पड़ी, जो मने कं यूटर पर रकॉड क थी ।
मेरे चेहरे पर राहत के भाव उभरे ।
यािन मेरी शहादत प थी ।
म कमरे म कू द गई ।
जो लबादा मने पहना आ था, वो बुरी भीग चुका था । मेरे जूते िम ी म सने ए थे और
मेरे हाथ गंदे थे ।
िव म मुझे देखते ही बड़ी तेजी से मेरी तरफ झपटा ।
“थक गॉड !” िव म थोड़े शु क लहजे म बोला- “म तो सोच रहा था क तुम पता नह
आओगी भी या नह ।”
िव म ने झपटकर एक बड़ा-सा तौिलया मुझे पकड़ा दया ।
“ज दी करो । कमल जैन को इ तजार करते-करते ब त देर हो चुक है और टेप भी बस
ख़ म होने वाला है ।”
म आनन-फानन तौिलये से अपने हाथ-मुंह प छने लगी ।
िसर पर मौजूद लाि टक क टोपी भी मने उतार फक ।
“पीछे तो सब कु छ ठीक रहा न?” म अपने बाल को झटका देते ए बोली ।
“हाँ ! सब-कु छ ठीक रहा ।” िव म बोला- “और वहां या आ ?”
“वहां भी सब-कु छ ठीक-ठाक िनपट गया है ।”
“शु है ।”
िव म के चेहरे पर भी संतोष के भाव उभरे ।
अब कु स पर रखा अपना कोट म पहन चुक थी और हैट भी पहन िलया ।
कु स के ह थे पर रखी बांह वाली ूब हटा दी गयी ।
ले कन फर भी मुझे अपनी टांग कं पकं पाती महसूस हो रही थी ।
“यह लो !” िव म ने आधा िगलास ांडी मेरी तरफ बढ़ाई- “इसे पी जाओ, इससे सद
का एहसास थोड़ा कम होगा ।”
“थक यू !” मने िव म क तरफ शंसनीय नज़र से देखा ।
सच पूछो तो उस व मुझे ांडी क स त आव यकता अनुभव हो रही थी। म एक ही
सांस म सारी ांडी पी गयी । ांडी पीते ही मानो मेरे िज म म जान पड़ गयी थी । फ़ौरन
ही मेरी टांग कं पकं पानी बंद हो गय और मेरे अ दर हौसला आ गया ।
“अब तुम सबसे पहले कमल जैन से जाकर िमलो ।”
“ठीक है ।”
मेरे चेहरे पर इस व िवजेता जैसी चमक थी ।
हालां क मुझे वहां प च
ँ ने म देर हो गयी थी, ले कन फर भी सबकु छ िब कु ल
योजनानुसार ही िनपटा था ।
इस बीच िव म ने तौिलया, लबादा, ूब वगैरा सब चीज मेज क एक ायर म बंद
कर दी थ और फर कं यूटर भी बंद कर दया ।
ऑ फस म स ाटा छा गया ।
गहरा स ाटा ।
☐☐☐
काशक कमल जैन उस व ाइं ग हाल म बैठा एक पि का के प े पलट रहा था और
बोर हो रहा था ।
तभी ऑ फस का दरवाजा खोलकर म चौखट पर नमूदार ई ।
“आई एम सॉरी िम टर जैन !” म खनकते वर म बोली- “मेरे कारण आपको थोड़ा
इ तजार करना पड़ा । दरअसल म कु छ ज री िच यां िड टेट कर रही थी ।”
कमल जैन मुझे देखते ही फौरन सोफा चेयर छोड़कर खड़ा हो गया ।
“कोई बात नह मैडम !” कमल जैन उ साहपूवक बोला- “घोष साहब सचमुच काफ
भा यशाली ह, जो उ ह आप जैसी मेहनत करने वाली प ी िमली, जो उनके काम म इतना
हाथ बंटाती है ।”
“ऐसी कोई बात नह है िम टर जैन !” म ब त धीरे से मु कु राई- “भा यशाली तो म ,ं
जो मुझे घोष साहब जैसे बड़े लेखक क प ी बनने का सौभा य ा आ । आइए, अ दर
आइए ।”
कमल जैन ने जब ऑ फस म कदम रखा, तभी िव म मेरे बराबर से होता आ बाहर
चला गया ।
म अपनी कु स पर आकर बैठ चुक थी ।
मेरी सामने वाली कु स पर काशक कमल जैन बैठा ।
“जब म यहाँ आ रहा था ।” कमल जैन बोला- “तभी मने घोष साहब को जाते देखा था ।
बाई गॉड, वह तो ब त तेज कार चलाते ह । मेरे सामने ही उनक कै डीलॉक कार का बड़ा
भीषण ए सीडट होते-होते बचा था ।”
“यह आप या कह रहे ह ?”
“म िब कु ल ठीक कह रही ँ । और वह कार म भी अके ले थे, या उनका ाइवर उनके
साथ नह गया ?”
“नह ! उसक तबीयत आज एकाएक खराब हो गयी थी ।”
“ओह !”
“चिलये छोिडये ।” मने कं धे उचकाये- “अब हम कु छ िबजनेस क बात कर, िजस
स ब ध म यह मी टंग रखी गयी है । अगर घोष साहब का नया नॉवेल आपको छापने के
िलये दया जाये, तो उसका पि लिसटी बजट या होगा, वह िडटेल आप लेकर आये ह?”
“हाँ ! वह सारी िडटेल म लाया ँ ।” कमल जैन ने अपना काले रं ग का ीफके स टेबल
पर रखकर खोला और फर उसम से िनकालकर कु छ पेपर मेरे सामने रखे ।
म एक-एक पेपर ब त यानपूवक देखने का अिभनय करने लगी ।
कमल जैन सारी तैयारी बड़ी मेहनत से करके लाया था, मगर वो बेचारा कहाँ जानता
था क घोष साहब का नया नॉवेल अब उसे तो या कसी को भी छपने के िलये नह
िमलने वाला है ।
☐☐☐
तभी एकाएक टेलीफोन क घंटी बजने लगी ।
टेलीफोन क घंटी ने मेरा यान अपनी तरफ आक षत कया ।
मचक ।
“हैलो !” म रसीवर उठाकर काफ धीम वर म बोली ।
“कौन ? मैडम नताशा ?”
“यस ।”
न जाने य उस आवाज को सुनकर म थोड़ी चौक ी हो उठी ।
“म देवी चरण शु ला बोल रहा ं मैडम !”
“ओह शु ला साहब !” म खासतौर पर कमल जैन क तरफ देखते ए बोली- “किहए,
या बात है ?”
“घोष साहब अभी तक यहां समारोह म नह प च ं े ह मैडम ! या वजह है, अब तो
बा रश भी बंद हो गई ।”
“घोष साहब नह प च ं े?” म च क - “ले कन उ ह तो यहां से चले ए आधा घंटा हो
चुका है । अब तक तो उ ह प च ं जाना चािहए था ।”
“मगर वह तो नह प च ं े । हे भगवान ! कह रा ते म कोई अनथ तो नह हो गया?”
देवीचरण का चंितत वर उभरा- “पांच बजे के करीब मने घोष साहब को फोन कया था,
तो वह बता रहे थे क एकाएक उनका ाइवर बीमार पड़ गया है, इसिलये वो खुद ही कार
ाइव करते ए लाएंगे । मेरा दल घबरा रहा है, मुझे पुिलस को खबर करनी चािहए ।”
पुिलस !
मेरा दल एकदम उछलकर हलक म आ फं सा ।
मुझे फौरन मेज क ायर म बंद अपने गीले लबादे, टोपी और ूब क याद आई । उस
फएट कार क याद आई, िजसका रे िडएटर भी अभी पूरी तरह ठं डा नह आ होगा ।
अगर ऐसी प रि थित म पुिलस वहां प च ं गई, तो िन य ही मेरी आफत आ जानी थी ।
“आप खामखाह परे शान हो रहे ह ।” म थोड़े तेज वर म बोली- “पांच दस िमनट म
घोष साहब वहां प च ं ने ही वाले ह गे । अगर वो न प चं ,े तब आप मुझे फोन क िजएगा ।”
“उस दौरान उनका चाहे कह ए सीडट आ पड़ा हो ?”
“ लीज ! ऐसा कु छ नह होने वाला है । और अब म फोन बंद कर रही ं ।”
देवीचरण शु ला के कु छ भी कह पाने से पहले मने टेलीफोन का रसीवर रख दया ।
फर मने कमल जैन क तरफ देखा ।
“आज नवभारत टाइ स के संपादक देवीचरण शु ला साहब के लड़के क शादी है ।” म
कमल जैन से संबोिधत ई- “घोष साहब वह गये ए ह, ले कन वो चूं क अभी तक वहां
नह प च ं े, इसिलये शु ला साहब खामखाह परे शान हो रहे ह । अगर नह प च ं ,े तो वे
प चं ने वाले ह गे । हो सकता है, रा ते म ही कह क गये ह ।”
“वह सड़क ठीक नह है मैडम ।” मेरी बात सुनकर कमल जैन क आंख म भी आतंक क
छाया दौड़ी- “और फर मने आपको पहले ही बताया था, घोष साहब काफ तेज र तार से
गाड़ी चला रहे थे ।”
“माय गॉड ! अब आप भी िब कु ल शु ला साहब क तरह बात करने लगे हो । अरे भाई
! घोष साहब कोई ब े नह ह । यह सड़क उनक अ छी-खासी देखी भाली है । और ऐसे
मौसम म भी उ ह ने पहले दजन मतबा ाइ वंग क होगी ।”
कमल जैन खामोश हो गया ।
ले कन उसक श ल बता रही थी क मेरी बात से वह संतु नह था ।
वह शु ला साहब का फोन आते ही साफ-साफ अिभजीत घोष के िलये फ मंद हो उठा
था ।
“चलो, हम थोड़ा काम िनपटा लेते ह ।”
हम दोन पहले क तरह ही नॉवेल के पि लिसटी मैटर पर बात करने लगे ।
हालां क उन बात म मेरी भी कोई दलच पी नह थी और मेरा यान बार-बार
अिभजीत घोष क तरफ चला जाता था, परं तु फर भी म अपने आपको पूरी सहज दशा
रही थी ।
अभी दस िमनट ही और गुजरे ह गे क तभी टेलीफोन क घंटी पुनः जोर-जोर से चीख
उठी ।
कोई नया झंझट !
कोई नई आफत !
काशक कमल जैन से पि लिसटी मैटर पर िड कस करते-करते म ठठक गई और मने
टेलीफोन से रसीवर उठाया ।
“हैलो !”
“इ सपे टर िवकास बोल रहा ं ।” दूसरी तरफ से एक भारी-भरकम आवाज मेरे कान
म पड़ी ।
इ सपे टर िवकास बाली !
मेरा मुंह सूख गया ।
मेरे चेहरे पर हवाइयां उड़ने लग ।
मने शी तापूवक कमल जैन क तरफ से पीठ फे र ली, ता क वह मेरे चेहरे के भाव को
न पढ़ सके ।
“मैडम, म शु ला साहब के यहां से बोल रहा ं ।” िवकास बाली क ब त चंितत
आवाज मेरे कान म पड़ी- “ या आपको मालूम है, घोष साहब अभी तक यहां नह प च ं े
ह ।”
“ या कह रहे ह ?” मने भी अब बैचेनी का दशन कया- “घोष साहब अभी तक वहां
नह प च ं े ?”
“नह ! म समझता ,ं ज र बीच रा ते म कह न कह कु छ गड़बड़ हो गई है ।”
इ सपे टर िवकास बाली बोला- “वरना घोष साहब ने काफ पहले ही यहां प च ं जाना
चािहए था । म फौरन उ ह ढू ंढने िनकल रहा ं ।”
“म भी िनकलती ं ।” मने ज दी से लाइन काट दी ।
मेरे हाथ-पैर म कं पकं पी-सी दौड़ रही थी ।
“िम टर जैन !” म ज दी से कु स छोड़ कर खड़ी हो गई- “लगता है, कोई भारी गड़बड़
हो गई है । घोष साहब अभी तक शादी म नह प च ं े ह । इ सपे टर िवकास बाली उ ह
ढू ंढने िनकल पड़ा है । म भी उ ह खोजने जा रही ं ।”
“अगर आपको ऐतराज न हो, तो म भी आपके साथ चलूं?” कमल जैन कौतुहलतापूवक
बोला ।
“ य नह ? ज र !”
म और कमल जैन तुरंत ऑ फस से बाहर िनकले ।
उसी ण िव म के कदम वहां पड़े ।
“आप कहां जा रही ह मैडम ?” िव म कु छ च ककर बोला ।
“इ सपे टर िवकास बाली को शक है क कह घोष साहब का ए सीडट न हो गया हो ।
वह उ ह ढू ंढने िनकल पड़ा है । म भी वह जा रही ं ।”
मेरी बात सुनकर िव म को जोरदार झटका लगा ।
साफ जािहर था, सब कु छ काफ तेजी के साथ हो रहा था ।
“म इस िसलिसले म आपक कु छ मदद कर सकता ं ?” िव म बोला ।
“नह , तु हारी यह ज रत है ।” म सीधे िव म क आंख म झांकते ए बोली- “मेरी
टेबल पर कु छ कागज पड़े ह, उ ह तरीके से रख देना और जरा ायर को भी चेक कर लेना
। मेरे वापस आने तक हर चीज दु त रहे ।”
िव म तुरंत भांप गया, म या कह रही थी ।
उसने इ सपे टर िवकास बाली के बंगले म प च ं ने से पहले ायर म रखा लबादा, ूब
और टोपी गायब करनी थी ।
अ तबल के पास वाली ि ल के बो ट कसने थे ।
फएट कार लाकर यथा थान खड़ी करनी थी ।
“म चलती ं ।”
“ठीक है मैडम !”
म कमल जैन के साथ बाहर िनकल गई ।
☐☐☐
कमल जैन क टाटा इं िडका तूफानी र तार से दौड़ती ई घटना थल पर प च ं ी।
परं तु हमारे से पहले ही इ सपे टर िवकास बाली वहां प च
ं चुका था और पुिलस का
अ छा-खासा लाव-ल कर उस जगह मौजूद था ।
बा रश अब िब कु ल नह हो रही थी ।
अलब ा रात का अंधेरा चार तरफ फै ला आ था, िजसे दूर करने के िलये दो ब त हाई
पावर क सच लाइट वहां जल रही थ । एक े न भी उस व वहां थी, जो लगभग तभी
प च ं ी थी और अब े न के ारा अिभजीत घोष क दुघटना त कै डीलॉक कार को बाहर
िनकालने क तैया रयां हो रही थ ।
म अभी टाटा इं िडका से बाहर भी नह िनकल पाई थी, तभी इ सपे टर िवकास बाली
तेज-तेज कदम से चलता आ मेरे नजदीक प च ं ा।
“यह सब या हो गया है ?” म हत भ लहजे म बोली- “ या कर रहे ह आप लोग ?”
“आप धैय रख और यह बैठी रह मैडम !” िवकास बाली कार क िखड़क के नजदीक
थोड़ा झुककर बोला- “दरअसल िजस बात का डर था, वही हो गया है । घोष साहब क
कार का भीषण ए सीडट हो चुका है ।”
“न… नह !” मेरे मुंह से तेज िससकारी छू टी ।
म ज दी से कार से बाहर िनकलने को ई ।
“ लीज, आप यह बैठी रह ।”
“ले कन घोष साहब को या आ है ?”
“हम ज द-से-ज द वही जानने क कोिशश कर रहे ह । जैसे ही कार बाहर िनकलेगी,
सब-कु छ साफ़ हो जायेगा ।”
म आतंक क ितमू त बनी कार क अगली सीट पर बैठी रही ।
कमल जैन भी कार से बाहर नह िनकला था ।
तमाम पुिलसकम बड़े जोर-शोर के साथ खाई म से कार िनकालने के कायकलाप म जुटे
थे । कु छेक पुिलसकम े न के आगे लटके छोटे से ब से म बैठकर नीचे खा म ही उतर गये
और फर उ ह ने वापस आकर इ सपे टर िवकास बाली से कु छ कहा । उस खबर को सुनते
ही िवकास बाली का चेहरा यूं सफे द फ पड़ गया, जैसे कसी ने िम सी म डालकर उसके
िज म का सारा खून िनचोड़ दया हो ।
वह लड़खड़ाते कदम से दोबारा मेरे नजदीक आया ।
“ या आ ?” मने उ सुकतापूवक पूछा ।
“आपके िलये एक बुरी खबर है मैडम !”
“क... कै सी बुरी खबर ?”
म उस समय एक घबराई ई प ी का बड़ा कु शल अिभनय कर रही थी ।
मेरे चेहरे पर एक रं ग आ रहा था, एक जा रहा था ।
“घोष साहब का देहांत हो चुका है ।”
“न...नह !”
म इतनी जोर से चीखी क आसपास का सारा वातावरण दहल उठा ।
म एकदम झपटकर कार से बाहर िनकली और खाई क तरफ दौड़ी, ले कन बीच रा ते
म ही इं पे टर िवकास बाली और कमल जैन ने मुझे पकड़ िलया ।
“मैडम नताशा !” िवकास बाली ने मेरे कं धे पकड़कर बुरी तरह झंझोड़े- “होश म आइए
। जो होना था, वह हो चुका है।”
म िवकास बाली के कं धे पर िसर रखकर जोर से फफक उठी ।
मने देखा, इ सपे टर िवकास बाली और कमल जैन क आंख म आंसु क बूंदे
टम टमा आई थ । तब कह िवकास बाली का यान कमल जैन क तरफ गया ।
“यह कौन ह ?” उसने ककर पूछा ।
“यह कमल पॉके ट बु स के मािलक िम टर कमल जैन ह ।” म धीरे -धीरे फफकते ए
बोली- “िजस व आपका फोन आया, तब यह मेरे ही साथ थे ।”
ले कन शी ही मने अपने ह ठ काटे ।
मुझे अपनी गलती का एहसास आ । मुझे इ सपे टर िवकास बाली के सामने यूं अपनी
शहादत पेश नह करनी चािहए थी ।
☐☐☐
अिभजीत घोष क मौत का समाचार जैसे ही बंगले म प च ं ा, तो वहां भी जबरद त
शोक क लहर दौड़ गई ।
म अब वापस बंगले म लौट आई थी । मेरे हाथ-पैर अजीब-सी आशंका से कं पकं पा रहे थे
और मुझे लग रहा था, कोई-न-कोई भयानक गड़बड़ होने वाली है।
िव म मेरे पास प चं ा।
“ ायर म रखे सामान का या कया तुमने ?” म ब त धीमी आवाज म फु सफु साई ।
“वह सब मने ठकाने लगा दया है ।”िव म का चेहरा भी सुता आ था ।
“और ि ल के बो ट, फएट कार?”
“ि ल के बो ट मने कस दए ह ।” िव म बोला-“अलब ा फएट कार म दन िनकलने
पर लेकर आऊंगा । इतनी रात को मैकेिनक के यहां से फएट कार लाना काफ
अ वाभािवक लगेगा ।”
“ठीक है ।”
िव म भी अपनी हर िज मेदारी को अ छी तरह िनभा रहा था ।
मने एकाएक आगे बढ़कर िव म को अपनी बाह म समेट िलया और बड़े अनुरागपूण
ढंग से उससे िचपट गई ।
“अब हम आजाद ह िव म !” म अक मात् बड़ी गरमजोशी के साथ बोली- “अब हमारी
मोह बत पर पहरा लगाने वाला कोई नह । मने रा ते क हर कावट दूर कर दी है । अब
हम दोन शादी करगे ।”
“पीछे हटो ।” एकाएक िव म ने मुझे अपने से अलग झटक दया- “यह इस तरह क
फालतू बात करने का समय नह है ।”
मचक ।
िव म ने िजतनी बेदद के साथ मुझे झटका था, उसने मुझे च काकर रख दया ।
“फालतू बात ?” म िव मयपूवक बोली- “ या मतलब ?”
“देखो, म तुमसे इस बारे म अब कोई बात नह करना चाहता ।” िव म ने दृढ़ता के
साथ कहा- “इ सपे टर िवकास बाली ब त चालाक है । अगर उसे हमारे संबंध क जरा
भी भनक लग गई, तो वह फौरन भांप जायेगा क घोष साहब क ह या के पीछे हम दोन
का ही हाथ है । इसिलये फलहाल अब तुम इस कहानी को यह ख म समझो । अब म
तुमसे कभी अके ले म िमलने क कोिशश नह क ं गा और न ही तुम करना ।”
“कहानी ख म !” मेरे शरीर म सद लहर दौड़ गई- “यह तुम या कह रहे हो िव म ?
अभी तो हमारी कहानी शु ई है । अभी तो हमने शादी करनी है ।”
“शादी?” िव म बड़े ं या मक ढंग से हंसा- “तुम या समझती हो, म तु हारी जैसी
लड़क से शादी क ं गा मैडम नताशा ! हरिगज़ नह ! यह सपना देखना तो तुम बंद कर दो
।”
िव म क बात सुन-सुनकर मेरे र गटे खड़े ए जा रहे थे । मेरे िसर पर व पात हो रहा
था ।
“लगता है, तुम पागल हो गये हो ।” म ोध म गुरा उठी- “तुम भूल गये हो, मने तुमसे
या कहा था । मने कहा था क अगर तुमने बाद म जरा भी चालाक दखाने क कोिशश
क , तो म खुद को पुिलस के हवाले कर दूग ं ी । और उसके बाद या होगा, इसका तुम
आसानी से अंदाजा लगा सकते हो ।”
“ठीक है ।” िव म हंसा- “अगर तुम इतनी ही बहादुर हो, तो कर दो खुद को पुिलस के
हवाले । ले कन यह मत भूलना क घोष साहब क ह या िसफ तुमने क है । और उससे
पहले अपने सात ेिमय क ह या का इ जाम भी तु हारे िसर पर है । जाओ, और बता दो
पुिलस को सब कु छ । मगर अब मुझसे संबंध रखने क कोई ज रत नह है ।”
वह श द कहने के बाद िव म वहां से चला गया ।
म घोर िव मय से उस दरवाजे को देखती रही, िजसम से अभी-अभी िव म गया था ।
म अपने कान पर यक न नह कर पा रही थी क िव म ने जो कु छ कहा, वो दल से
कहा है ।
वह एकदम इस तरह कै से बदल सकता था ?
माजरा मेरी समझ म नह आ रहा था ।
ज र कु छ गड़बड़ थी ।
भारी गड़बड़ ।
उस दन सारी रात मुझे न द नह आई ।
म बस बेचौनीपूवक करवट बदलती रही। मेरी आंख के िगद रह-रहकर बचपन से
अबतक क तमाम घटनाएं फरने लग । एक-एक करके अपने सभी ेिमय के चेहरे मेरी
आंख के िगद घूमे और फर उस साधु क भिव यवाणी भी याद आई, िजसने कहा था क
मेरे जीवन म पु ष का ेम नह है ।
सचमुच मुझसे गलती हो चुक थी ।
भयानक गलती ।
जो मने िव म के ेम म अंधे होकर अिभजीत घोष जैसे अपने पित को मार डाला ।
म मूख थी ।
महामूख ।
अिभजीत घोष, जो मेरी जंदगी का एक मह वपूण पड़ाव सािबत हो सकता था, मने
खुद उस पड़ाव को अपने हाथ से न कर डाला ।
☐☐☐
अगले दन अिभजीत घोष क लाश पो टमाटम होकर आ गई और फर उसका दाह
सं कार भी कर दया गया ।
मुंबई शहर क बड़ी-बड़ी हि तयां उसके दाह सं कार म सि मिलत ।
कु मार का तो रो-रोकर बुरा हाल था ।
अिभजीत घोष के मरने का सबसे यादा दुख कु मार को ही था ।
अगले दन चार बजे के करीब टेलीफोन क घंटी बजी, मने रसीवर उठाया ।
“हैलो !”
“मैडम नताशा !”
उस आवाज को सुनते ही म पहचान गई । वो काशक कमल जैन क आवाज थी ।
“जी हां ! म नताशा ही बोल रही ं ।”
“मैडम, म कमल जैन । मने सोचा क इ सपे टर िवकास बाली के बारे म आपको कु छ
बताऊं ।”
“इ सपे टर िवकास बाली !” मेरे शरीर का एक-एक रोआं खड़ा होता चला गया ।
न जाने य उस नाम को सुनते ही मेरे शरीर म दहशत क लहर दौड़ती थी ।
“दरअसल इ सपे टर िवकास बाली अभी थोड़ी देर पहले मेरे पास आया था । वह
मुझसे बड़े अजीब-अजीब सवाल पूछ रहा था ।”
“कै से अजीब सवाल ?”
“सवाल तो कई तरह के थे, ले कन उसका क आप ही थ । वह आपके बारे म ब त
खोद-खोदकर सवाल कर रहा था । जैसे वो जानना चाहता था, छः से साढ़े छः के बीच
आप कहां थ ? या कर रही थी ?”
“ फर आपने या कहा?” म ब त त ध मु ा म बोली ।
मेरा दल धड़कने लगा ।
“मने वही कहा, जो सच है ।” कमल जैन बोला- “मने कहा क उस समय आप अपने
ऑ फस म थ और ज री िच या िड टेट कर रही थ । ले कन मेरी बात से वो कु छ संतु
दखाई नह दया । आपको सुनकर दुख होगा मैडम, मगर यह सच है क वह घोष साहब
क ह या का शक आपके ऊपर कर रहा है ।”
“ह या ?” म ब त िव फा रत लहजे म बोली- “परं तु घोष साहब क ह या कहां ई है,
वह तो एक ए सीडट था ।”
“िब कु ल यही बात मने भी इ सपे टर िवकास बाली से कही । मगर वो उसे ए सीडट
मानने के िलये तैयार नह है । वो कह रहा था क यह ह या का मामला है । म समझता ,ं
वह इस बारे म बंगले के नौकर से भी पूछताछ करे गा । इसिलये मने सोचा क उस ख ती
इ सपे टर के बारे म आपको सूिचत कर दूं ।”
“थक यू !”
“अगर मेरे लायक कोई सेवा हो ।” कमल जैन बोला- “तो मुझे बे-िहचक बताना मैडम
!”
“ज र !”
मने टेलीफोन का रसीवर रख दया ।
मेरे दल क हालत बुरी होती जा रही थी ।
आफत-पर-आफत आ रही थी ।
मने सोचा भी न था, ऐसी ब तरबंद शहादत के बावजूद भी इ सपे टर िवकास बाली
इतनी ज दी मेरे ऊपर शक करने लगेगा ।
☐☐☐
मुि कल से एक घंटे बाद ही इ सपे टर िवकास बाली क नीली िज सी बंगले म जाकर
क ।
उसक िज सी देखते ही मेरे शरीर म झुरझुरी दौड़ गयी । िज सी से उतरकर उसने
सबसे पहले नेपाली चौक दार बहादुर से बात क और फर बंगले म अ दर क तरफ बढ़
गया । पर तु उसके बाद भी वो काफ देर तक मेरे पास नह आया । ज र वो िव म,
कु मार और माधवन वगैरा से भी उनके बयान ले रहा था ।
फर वो मेरे पास आया ।
म उस समय ाइं ग हॉल म थी और काफ गमगीन हालत म बैठी ई थी । मने उठकर
इ सपे टर िवकास बाली का वागत कया ।
“आइये िम टर बाली, बै ठये !”
“थक यू !”
िवकास बाली मेरे सामने वाले सोफा पर बैठ गया ।
म भी बैठी ।
हालां क उस इं सान का सामना करते ए म काफ घबरा रही थी, पर तु फर भी मने
काफ हौसले से काम िलया । कम-से-कम एक बात म ब त अ छी तरह जानती थी क वह
इ सपे टर चाहे कतना ही चालाक य न सही, पर तु आसानी से मेरे ऊपर ह या का
इ जाम सािबत नह कर पायेगा । इ सपे टर िवकास बाली कु छ ण खामोश रहा और
उसने एक िसगरे ट सुलगा ली ।
“कु छ पता चला ।” म ब त धीमी आवाज म बोली- “ क घोष साहब का ए सीडट कस
तरह आ था ?”
“हाँ, पता चल गया है ।” िवकास बाली ने िसगरे ट का एक कश लगाया- “दरअसल
उनक कार का एक टायर फट गया था ।”
“ओह !”
मेरे चेहरे पर दुःख और िवतृ णा क लक र और भी गहरी हो ग ।
“मुझे मालूम आ है ।” इ सपे टर िवकास बाली ने थोड़ा ककर पूछा- “ क कल शाम
छ: बजे तक आप अपने ऑ फस म ही थ और कु छ ज री िच यां िड टेट कर रही थ ।”
“जी हाँ ! यह बात सच है ।” मने बे-िहचक वीकार कया- “मगर इस बात का घोष
साहब के ए सीडट से या संबंध है ?”
“ए सीडट ! वह ए सीडट नह था मैडम ! इट वाज मडर ! वह ह या का िब कु ल खुला
आ मामला है ।”
मेरे दल ने मानो धड़कना बंद कर दया ।
मुझे ऐसा महसूस आ, जैसे म सांस लेना भूल चुक थी ।
“ह या ! अ… आप शायद मजाक कर रहे ह िम टर बाली ?”
“म इतने सी रयस मैटर पर कभी मजाक नह करता मैडम !” िवकास बाली ने वह श द
मेरी आँख म आँख डालकर ब त दृढ़ता के साथ कहे- “म इसीिलये आपक शहादत क
बात कर रहा ँ क घोष साहब क ह या के समय आप कहाँ थ ।”
“ या मतलब है तु हारा ?” म एकाएक भड़क उठी- “कह तुम यह तो नह सोच रहे क
घोष साहब क मने ह या क है ?”
“जब तक ह यारा पकड़ा नह जाता, तब तक मेरा यह दािय व बनता है क म हर
कसी के ऊपर शक क ं ।”
“ले कन म उस व ऑ फस म बैठी ई िच यां िड टेट कर रही थी ।” म ककश लहजे
म बोली- “िव म मेरे साथ था । िम टर कमल जैन मेरे साथ थे । कु मार मेरे साथ था । या
इतने लोग क शहादत तुम कम समझते हो ? या फर हम सभी ह या के इस षड़यं म
शािमल थे ?”
िवकास बाली िन र हो गया ।
कु छ देर वो सोफा चेयर पर बड़ी बेचैनी के साथ इधर-से-उधर पहलू बदलता रहा ।
“यह सच है, तु हारे पास अपने िनद ष होने क बड़ी ब तरबंद शहादत है ।” फर
िवकास बाली ने िसगरे ट का एक और कश लगाते ए कहा- “मगर फर भी म यह दावे से
कह सकता ँ क घोष साहब का खून तु ह ने कया है । दरअसल जब तुमने घोष साहब से
शादी क थी, म तभी भांप गया था क घोष साहब के साथ कु छ-न-कु छ अिन होने वाला
है । तुमने देखा भी होगा क म उस शादी से कोई ब त यादा खुश नह था ।”
इ सपे टर िवकास बाली बोलता जा रहा था और मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे भय मेरे
कलेजे म अपने खौफनाक पंजे गड़ाने लगा हो ।
“मुझे िसफ एक रह य का पता लगाना है ।”
“क... कौन से रह य का ?”
“यही क तुम एक समय म दो जगह उपि थत कै से रह पायी, बस यही एक गु थी म
सुलझा नह पा रहा ँ । िजस पल मने यह गु थी सुलझा ली, उसी पल तुम जेल क
सलाख के पीछे होओगी ।”
“तुम ज र पागल हो गये हो ।” म गुरा उठी- “पता नह या ऊल-जलूल बात बके जा
रहे हो । म तो अभी यही नह समझ पा रही ँ क तुम उस िब कु ल ओपन एंड शट के स को
ह या का मामला करार देने पर य तुले ए हो ?”
“ य क वो ह या का ही मामला था ।”
“कै से जाना ?”
“बताता ँ ।” इ सपे टर िवकास बाली पूरी दलेरी से और िबना िवचिलत ए बोला-
“दरअसल वो टायर कल रात नह फटा था । बि क कल रात तो उस फटे ए टायर का
बड़ी खूबसूरती से इ तेमाल कया गया था । आ ये था क घोष साहब का ह यारे ने पहले
मडर कया और फर उनक कार को चलाता आ पहाड़ी सड़क तक ले गया । पहाड़ी
सड़क पर प च ं कर उसने कार का टायर बदला । सही टायर उतारकर कार क िड म
डाल दया और उसक जगह वो फटा आ टायर लगा दया, जो पहले ही कार क िड म
मौजूद था । फर उसके बाद ह यारे ने घोष साहब को कार क ाइ वंग सीट पर िब कु ल
इस तरह बैठाया, जैसे वही कार चला रहे ह । फर उसने कार का इं जन टाट कया । कार
का ख बैरके स क तरफ मोड़ा और एि सलरे टर दबा दया । त काल कार ब दूक से छू टी
गोली क भांित बैरके स क तरफ दौड़ी और बैरके स क धि याँ उड़ाती ई नीचे गहरी
खा म जा िगरी ।”
मेरा खून िब कु ल बफ क तरफ ज़मने लगा ।
उफ़ !
क ब त पूरा घटना म एकदम इस तरह सुना रहा था, जैसे सब कु छ उसी क आँख के
सामने घ टत आ हो ।
“ य ?” इ सपे टर िवकास बाली ने मेरी आँख म झांका- “ या सब कु छ इसी तरह
नह आ था ?”
“मने कहा न, तुम पागल हो गये हो ।” मने दांत कटकटाये- “पता नह या- या बके जा
रहे हो । यह बात तुम कस आधार पर कह सकते हो क सब कु छ इसी तरह आ था ?”
“आधार भी है मेरे पास ।”
“ या ?”
“दरअसल तु ह सुनकर ध ा लगेगा ।” इ सपे टर िवकास बाली रह यो ाटन करता
आ बोला- “ क घोष साहब क जो ए सीडटल कार गहरी खाई से िनकाली गयी और
उसका जो एक टायर फटा आ था, उस फटे ए टायर के अ दर से काफ सारी रे त िमली
है और उसी रे त ने यह तमाम रह य खोला है ।”
“रे त ने रह य खोला, वो कस तरह ?”
“वह भी बताता ँ । दरअसल िजस पहाड़ी सड़क पर वो दुघटना घटी, वहां दूर-दूर तक
भी रे त नह है । ऐसी हालत म अगर उसी पहाड़ी सड़क पर टायर फटा था, तो फर उसके
अ दर रे त कै से प चँ गयी ? वो रे त ही सारी कहानी खुद कह रही है । वा तव म घोष
साहब क कार का वह टायर पहले कभी कसी बीच पर फटा था, जहाँ ढेर सारी रे त होती
है । टायर फटने के बाद जब वो िघसटा, तो उसके अ दर रे त भी घुस गयी । पहाड़ी सड़क
पर तो िसफ नकली ए सीडट लांट कया गया था । घोष साहब क सही-सलामत कार का
पिहया उतारकर उसक जगह वो फटा आ पिहया चढ़ाया गया । इसके अलावा जब मने
उस पिहये को अ छी तरह चेक कया, तो मने उसका एक नट भी गायब पाया । उसम
िसफ पांच नट चढ़े ए थे । मने पहाड़ी सड़क पर ही उस छठे नट को तलाश कया, तो मुझे
वह िमल गया । यह देखो !” िवकास बाली ने अपनी जेब से पिहये का छठा नट िनकालकर
मुझे दखाया- “यह छठा नट भी इस सारे षड़यं क कहानी खुद बयां कर रहा है । मैडम,
यह छठा नट चूं क पहाड़ी सड़क पर बरामद आ, इसिलये प तौर पर सािबत हो जाता
है क पिहया वहां बदला गया था । सब कु छ ी- लांड था । पूव योजनाब था । अब आप
किहये क यह ए सीडट का ओपन एंड शट के स है । यह ह या का मामला नह है ।”
मुझे च र आने लगा ।
खौफ से मेरे ाण िनकले जा रहे थे ।
इ सपे टर िवकास बाली ने सािबत कर दखाया था, वो वा तव म ही अिभजीत घोष के
जासूसी उप यास का फै न है और खुद भी उनके उप यास के करै टर से कु छ कम
सनसनीखेज नह है ।
“ल… ले कन इन सब बात से यह कहाँ सािबत होता है ।” म िवचिलत लहजे म बोली-
“ क यह सारा षड़यं मने रचा था ?”
“यह भी सािबत होगा ।” इ सपे टर िवकास बाली पूरे यक न के साथ बोला- “इतना
ही नह , यह भी सािबत होगा क इस पूरे षड़यं को तुम अके ले नह रच सकत । या
िव म ने तु हारा साथ दया था ?”
मेरी बौखलाहट बढ़ने लगी ।
िव म !
क ब त ने कतना सही िनशाना लगाया था ।
“लगता है, तुम िबलकु ल पागल हो गये हो ।” म कातर वर म बोली- “िव म से भला
मेरा या ता लुक है ?”
िवकास बाली चुपचाप मेरी तरफ देखता रहा ।
“िव म से तु हारा कोई ता लुक हो या न हो ।” वह िसगरे ट का कश लगाते ए बोला-
“ले कन तु हारे बाद एक िव म ही ऐसा श स है, िजसे घोष साहब क मौत से फ़ायदा
होगा । बि क घोष साहब क मौत से सबसे बड़ा फ़ायदा तो िव म को ही होने वाला है ।”
मचक ।
वह मेरे िलये एक नई सूचना थी ।
“िव म को सबसे बड़ा फायदा होने वाला है, वो कै से ?”
“लगता है, अभी तुमने घोष साहब क वसीयत नह पढ़ी है क उसम या िलखा है ।”
“नह !” मेरी गदन इं कार म िहली- “मने वसीयत नह पढ़ी ।”
“तभी तो तुम यह बात कह रही हो । दरअसल घोष साहब के अ तबल म जो आठ घोड़े
ह, घोष साहब क वसीयत के अनुसार वो सभी आठ घोड़े उनके बाद िव म को िमल
जायगे । और तु ह सुनकर हैरानी होगी क उन घोड़ क कु ल क मत चौदह करोड़ पये है
।”
“चौदह करोड़ के घोड़े ।” मेरे ने िव मय से फट पड़े ।
“जी हाँ ! उनम जो जैक नाम का घोड़ा है, उसी अके ले घोड़े क क मत छ करोड़ पये है
। इस िहसाब से घोष साहब के बाद उनक कु ल स पदा के सबसे बड़े िह से का मािलक तो
िव म ही होगा । तु हारे िह से म घोष साहब का िसफ यह बंगला आया है, िजसक क मत
दस करोड़ से यादा नह है ।”
“ल...ले कन मुझे तो मालूम आ है क घोष साहब क कु ल संपि सौ करोड़ से भी
यादा है ।”
“कौन कह रहा था तुमसे यह बात, या िव म ?” इ सपे टर िवकास बाली के होठ पर
ह क -सी मु कान रगी- “ज र वो तु ह मूख बना रहा था । िजतना वो खामोश रहता है,
उतना ही वो दु और चालाक वृि का आदमी है । घोष साहब क स पदा म सबसे
मू यवान कोई चीज थी, तो वह आठ घोड़े थे । िजनका अब िव म मािलक बन चुका है ।
अब वो अपनी ेिमका मा रया से शादी कर सके गा ।”
“मा रया से शादी !” मुझे एक और जोरदार शॉक लगा- “ या मा रया पहले से उसक
प ी नह थी ?”
“मतलब ही नह । दरअसल िव म क िज दगी का एक ही तो सपना है, मा रया से
शादी करना । जब क मा रया कसी दौलतमंद आदमी से शादी करना चाहती थी, जो क
िव म नह था । इसीिलये वो िव म से खंची- खंची रहती थी । उससे कम बात करती थी
। मगर अब जब क िव म चौदह करोड़ पये मू य के घोड़ का मािलक बन चुका है, तो
मा रया खुशी-खुशी उससे शादी करना कबूल करे गी ।”
मेरी रीढ़ क ह ी म ठ ड क लहर दौड़ गयी ।
धोखा! धोखा!! धोखा!!!
वही एक श द मेरी खोपड़ी म हथौड़े क तरह बजने लगा । एकाएक सारी त वीर मेरी
आँख के सामने साफ़ होती चली गयी ।
इतना बड़ा धोखा मुझे कभी कसी ेमी ने नह दया था ।
िव म ने मुझे िब कु ल बिल के बकरे क तरह इ तेमाल कया था ।
मेरी आंख के िगद िव म और मा रया क वह मुलाकात घूमने लगी, जो िस वर बीच
होटल के बगीचे म ई थी । सच तो ये है, िव म ने ही मुझे ह या के िलये उकसाया था ।
उसने जान-बूझकर अपने और मेरे दर यान एक दूरी पैदा क थी, जो उसको हािसल करने
के िलये मेरे अंदर बैचेनी बढ़े । फर उसने मा रया को दस लाख पए देकर तलाक लेने
वाला ताव भी मेरे सामने इसिलये रखा, ता क म बस अिभजीत घोष को रा ते से हटा
देने का लान बनाने लगूं ।
सारी सािजश िव म क रची ई थी ।
म तो िसफ उसके हाथ क कठपुतली थी, मामूली कठपुतली ।
म िजतना िव म क बारे म सोच रही थी, उतना मेरे अंदर ोध का वार-भाटा उमड़
रहा था । िव म ने वह तमाम सािजश िसफ मा रया को हािसल करने के िलये रची थी ।
म उस समय इ सपे टर िवकास बाली के सामने अपने चेहरे पर भूकंप जैसे भाव उभरने
से बड़ी मुि कल से रोक पा रही थी ।
“कोई बात नह ।” म िवकास बाली के सामने खुद को पूरी तरह सहज दशाते ए
बोली- “अगर घोष साहब अपनी वसीयत म िव म के नाम पर वह आठ घोड़े छोड़ गये ह,
तो अ छी ही बात है । वैसे भी उन जंगली जानवर क सही ढंग से सेवा िव म ही कर
सकता है, वह मेरे बस का नह है । मेरे िलये यह बंगला ही ब त है ।”
“यह बात तुम दल से कह रही हो ?”
“ य ? भला दल से य न क ग ं ी ?”
इ सपे टर िवकास बाली ने िसगरे ट के दो-तीन कशऔर लगाए तथा फर टोटा वह
एश- े म रगड़कर बुझा दया ।
“तुम चाहे कतना ही नाटक य न कर लो !” िवकास बाली बोला- “मगर मेरे इस
िव ास को तुम िडगा नह सकती क घोष साहब का खून तु ह ने कया है । तुमने और
िव म ने । मुझे िसफ अब यह पता लगाना है क तुम दोन िमलकर काशक कमल जैन
और कु मार को कस तरह बेवकू फ बना पाये । यह कै से संभव आ क िजस व तुम
पहाड़ी सड़क पर घोष साहब क लाश ठकाने लगा रही थ , उसी व उन दोन ने तु ह
अंदर ऑ फस म भी देखा और तु हारी आवाज भी सुनी ।”
मुझे घबराहट होने लगी ।
इ सपे टर िवकास बाली हक कत के ब त नजदीक प च ं ता जा रहा था ।
एकाएक वह सोफा चेयर छोड़कर खड़ा हो गया ।
“ फलहाल तो म जा रहा ं ।” िवकास बाली ने सीधे मेरी आंख म झांकते ए कहा-
“ले कन ज द ही म वापस लौटकर आऊंगा । और मेरे पास ऐसे सबूत भी ह गे, जो तु हारी
यह मजबूत शहादत एक ही झटके म टू ट जायेगी ।”
उसके बाद िवकास बाली वहां से चला गया ।
मगर उसके जाने के काफ देर बाद तक भी उसके वह धमक भरे श द मेरे कान म
गूंजते रहे ।
☐☐☐
हालां क म अ छी तरह जानती थी, इ सपे टर िवकास बाली के िलये मेरी उस शहादत
को तोड़ना कोई आसान काम न होगा ।
ले कन िजतना तेज-तरार वो इ सपे टर था, उस कारण मेरा आतं कत होना
वाभािवक था ।
अलब ा यह िव ास अब मेरा प ा हो चुका था क िव म ने मुझे धोखा दया था ।
उस हरामजादे को शु से ही मालूम था क चौदह करोड़ पए के वो ब मू य घोड़े
अिभजीत घोष के बाद उसके हाथ लगने वाले ह ।
गलती मेरी ही थी, जो मने गोरखपुर से भागने के बाद एक और ेमी को अपने जीवन म
आने का मौका दया ।
िव म !
म िजतना उसके बारे म सोच रही थी, उतना मेरा गु सा बढ़ रहा था ।
मने िव म को उसके कए क सजा ज र देनी थी ।
मेरे अंदर का वही शैतान जाग उठा, िजसने मुझसे गोरखपुर म पहले सात ेिमय के
खून कराए थे और फर उसी शैतािनयत क वो िजजीिवषा थी, िजसके वशीभूत होकर मने
अिभजीत घोष को भी मार डाला ।
एकाएक मने िव म को उस बंगले के अंदर िब कु ल अके ले घेरने का लान बना िलया ।
मने इ सपे टर िवकास बाली के जाते ही सबसे पहले माधवन, कु मार और बहादुर को
ाइं ग हॉल म बुलाया तथा फर उनके हाथ पर दो-दो महीने क एडवांस तन वाह रखी ।
तीनो च के ।
“य… यह आप हम एडवांस तन वाह य दे रही ह मैडम ?” माधवन ने घोर उ सुकता
के साथ पूछा ।
“दरअसल तु हारे िलये एक बुरी खबर है ।” म कसी च ान क भांित दृढ़ लहजे म
बोली- “म तुम तीन को नौकरी से आजाद कर रही ं ।”
“ले कन हमारा कसूर या है?” कु मार िव फा रत लहजे म बोला ।
“कसूर कु छ नह है । तुम लोग जानते ही हो, घोष साहब क ब त अक मात ढंग से मृ यु
ई है और म उस दुघटना को भुला नह पा रही ं । इसिलये मने सोचा है, अब म कु छ
महीने या फर साल दो साल गोरखपुर के अपने घर म ही गुजा ं गी ।”
“ले कन... ।” कु मार ने कु छ कहना चाहा ।
“नह !” मने उसक बात काट दी- “अब म और इस बंगले म नह रहना चाहती, यह
मेरा अटल फै सला है ।”
फर कोई कु छ न बोला ।
मुि कल से एक घंटे के अंदर वह तीन अपना सामान बांधकर वहां से चले गये ।
अब पूरे बंगले म िसफ म रह गई ।
िब कु ल अके ली ।
फर म अिभजीत घोष के राइ टंग म म प च ं ी । उसक टेबल के सबसे नीचे वाली
ायर म मने एक मतबा छोटी सी रवा वर पड़ी देखी थी ।
मने ायर खोली, रवा वर अभी भी वह थी ।
मने रवा वर िनकाल ली । अपनी िपछली जंदगी म म इतने खून कर चुक थी क
रवॉ वर जैसे वैपन को हिडल करना बखूबी जानती थी । मने रवा वर का चबर खोलकर
देखा । वह गोिलय से फू ल था । मने उसक नाल देखी, ऐसा मालूम होता था, जैसे उसक
हाल- फलहाल म ही ऑय लंग क गई हो । से टी लॉक भी ब ढ़या काम कर रहा था । वह
जमन मेड रवा वर थी और कसी उ दा क पनी क थी ।
म रवा वर लेकर वापस ाइं ग हाल म आकर बैठ गई । उसके बाद म बड़ी बेस ी से
िव म का इं तजार करने लगी ।
☐☐☐
समय धीरे -धीरे गुजरने लगा ।
जैस-े जैसे शाम िघरती आ रही थी, ठीक उसी अनुपात म चार तरफ अंधेरा भी फै लने
लगा ।
एकाएक इतना बड़ा बंगला यूं तीत होने लगा, जैसे वह कोई भुतहा इमारत हो और
वहां स दय से कोई न रहता हो ।
वातावरण म दो ही आवाज थ , घड़ी क टक- टक क आवाज और मेरे दल क
धड़कन क आवाज ।
काफ देर बाद मुझे लंब-े चौड़े ाइव-वे पर फएट कार आती दखाई पड़ी ।
शी ही वो कार बंगले के िब कु ल सामने आकर क । फर उसम से िव म और
मा रया उतरे ।
मा रया, तो उस हरामजादे िव म क अब इतनी िह मत हो गई थी क वह अपनी
सहेली को लेकर बंगले म भी आ प च ं ा था । िव म भी आज काफ सजा-धजा नजर आ
रहा था । कपड़े बदले ए थे और बाल शपू से धोए थे, इसिलये उसके िसर का एक-एक
बाल िखला आ था । मा रया भी उस दन उससे कु छ यादा सटकर चल रही थी और
हंस-हंसकर बात कर रही थी ।
उन दोन को देखकर मेरा खून और भी बुरी तरह खौल उठा ।
वह दोन सी ढ़यां चढ़कर बंगले के िवशालकाय चबूतरे पर आए तथा फर बंगले के
अंदर क तरफ बढ़े ।
उनके कदम के पदचाप क आवाज मेरे कान म गूंजने लगी ।
“कु मार !” िव म बंगले म आते ही गला फाड़कर िच लाया- “कु मार !”
खामोशी !
िन त धता !
रवा वर क बैरल पर मेरे हाथ और भी यादा स ती के साथ कस गये तथा मने
रवा वर अपने कोट क जेब म छु पा ली ।
म कान लगाकर सुनने लगी ।
वह दोन अब गिलयारे म थे और धीरे -धीरे उसी तरफ बढ़ रहे थे ।
“कु मार !” िव म फर िच लाया ।
मगर उसे कोई उ र न िमला ।
“आ य है ।” वह बोला- “यह कु मार न जाने कहां चला गया । मेन गेट पर बहादुर भी
नह था । बंगले म ऐसी खामोशी मने पहले कभी नह देखी ।”
“कह ऐसा तो नह ।” मा रया का सशं कत वर- “ क सब बंगले से कह चले गये ह
?”
“एक साथ भला सब कहां जा सकते ह । और फर देख नह रही, पूरा बंगला खुला पड़ा
है ।”
िव म मेरे ऑ फस क तरफ आने क िह मत नह जुटा पा रहा था ।
म ही चेयर छोड़कर खड़ी हो गई तथा फर बाहर िनकली ।
☐☐☐
िव म और मा रया उस समय कचन के पास थे तथा कु मार को ही खोज रहे थे ।
उसे कचन म भी न देखकर वह दोन कु छ बेचौन हो उठे और टेरेस के सामने क तरफ
झांककर देखने लगे । माधवन भी उ ह नह नजर नह आया ।
“हेलो िव म !” तभी म उन दोन के पीछे जा खड़ी ई- “ या मुझे तलाशने क कोिशश
नह करोगे ?”
वह दोन एकदम इस तरह च के , जैसे कसी ने उ ह आकाश से धरती पर पटक मारा हो

िव म क आंख म तो मुझे देखकर साफ-साफ खौफ के िच ह उभर आए थे ।
“ या बात है, आज काफ माट नजर आ रहे हो िव म !” म मु कु राई- “इस तरह के
नए कपड़े पहने ए मने तु ह जंदगी म पहली बार देखा है और कोई खुशबू भी लगाई ई
है, शायद कोई िवलायती सट है ।”
“ऐसी कोई बात नह ।” वह थोड़ा िखिसयाने लहजे म बोला- “मा रया के पास ही एक
से ट क शीशी थी, इसी ने लगा दया । ले कन बंगले म कोई दखाई नह पड़ रहा, सब
कहां चले गये ?”
“मने सबक छु ी कर दी है ।” म इ मीनान के साथ बोली ।
“छ...छु ी !” िव म और हड़बड़ाया- “ या मतलब ?”
“छु ी का या मतलब होता है िडयर ! अब इस पूरे बंगले म तु हारे और मेरे िसवा कोई
नह है । मने सोचा तुम अपनी मि लका को लेकर यहां आ रहे हो, इसिलये तु हारे वागत
क भरपूर तैया रयां क जाय । और एक रह य का तो मुझे आज ही पता चला क तुम
चौदह करोड़ क िवपुल धनरािश के वामी बन चुके हो ।”
“हां !” िव म िसटिपटाकर बोला- “मुझे भी घोष साहब क वसीयत के बारे म थोड़ी
देर पहले ही मालूम आ क वह सभी आठ घोड़े मेरे नाम कर गये ह ।”
“अ छा !” मने बड़ी वेधक नजर से उसक तरफ देखा- “थोड़ी देर पहले ही पता चला
।”
“हां !” िव म क आवाज कु छ कं पकपाई ।
मा रया क आंख म मुझे सबसे यादा डर दखाई दे रहा था । वह अपने आप म ही
िसकु ड़ी-िसमटी जा रही थी ।
वो ब त घबराई ई थी ।
“और मा रया को तुम यहां कसिलये लेकर आए हो ।”
“तु ह से तो िमलाने के िलये लाया था ।” िव म त परता के साथ बोला- “म समझता
,ं मा रया वाले अ याय को अब ख म कर देना चािहए । तुम इसे दस लाख पए देकर
सत करो । फर यह भी आजाद होगी और म भी आजाद होऊंगा ।”
“अ छा ! परं तु तलाक लेने से पहले शादी करनी भी तो ज री होती है माय िडयर !
और अभी थोड़ी देर पहले इ सपे टर िवकास बाली से मुझे मालूम आ है क अभी तो
तु हारी शादी भी नह ई । अभी तो तुम लोग िसफ ेम क प गे ही बढ़ा रहे हो ।”
मेरे इस वा य ने िव म जैसे धुरंधर क भी मुक मल हवा खराब करके रख दी ।
वो भांप गया, सारा रह य मेरे सामने उजागर हो चुका है ।
“मुझे अब चलना चािहए ।” वह एकाएक मा रया को लेकर पलटा ।
“नह ! इतनी आसानी से अब तुम लोग नह जा सकते ।” म फौरन उन दोन के सामने
जाकर खड़ी हो गई ।
इतना ही नह , मने तुरंत अपने कोट क जेब से रवा वर भी बाहर िनकाल िलया ।
“य...यह सब या है ?”
“तुम जानते ही हो, म गोरखपुर क लेडी कलर ं िव म ! जो लड़क अपने साथ
ेिमय का खून कर सकती है, वह आठव ेमी का खून य नह कर सकती ?”
“त...तुम मेरा खून करोगी ?”
िव म क सारी हरकत मान ज हो गय ।
“हां, तु हारा भी ।” मने दांत कट कटाए- “और तु हारे साथ तु हारी इस सहेली का
भी, िजसके कारण तुमने मुझे धोखा दया ।”
“न...नह ।” मा रया क चीख िनकल गई ।
वह एकाएक िव म को भी वहां छोड़कर भागी ।
मगर !
वो अभी भागकर थोड़ी ही दूर गयी होगी क फौरन मने रवा वर का ेगर दबा दया ।
धांय !
गोली भागती ई मा रया क टांग म लगी । वो चीखते ए नीचे िगरी और उसने पुनः
खड़े होकर भागने का उप म कया ।
धांय !
मने एक फायर और कया ।
मा रया क अ य त क दायक और घुटी-घुटी चीख िनकल गयी ।
इस बार गोली ठीक उसक गदन म जाकर लगी थी । गोली लगते ही वह वह धड़ाम से
नीचे फश पर ढेर हो गई और उसक गदन से थुल-थुल करके खून बहने लगा ।
“मा रया !” िव म िच लाता आ उसक तरफ झपटा, ले कन वह उसे छू भी पाता,
उससे पहले ही मा रया के ाण पखे उड़ गये ।
मा रया क लाश देखते ही िव म वहशी हो उठा ।
वह एकदम मेरी तरफ पलटा ।
मगर सच तो ये है, उस समय म भी कु छ कम वहशी नह थी । मने एक फायर और
कया ।
गोली िव म क िब कु ल खोपड़ी को हवा देती ई गुजरी ।
िव म चीख उठा । वो चाहे लाख दलेर आदमी था, मगर इतना दलेर नह था, जो यूं
मौत से आंख-िमचौली खेल सके । गोली जैसे ही उसक खोपड़ी को हवा देते ए गुजरी,
उसके माथे पर पसीने क न ह -न ह बूंद चुहचुहा उठ ।
“अगर इतने ही मद के ब े हो ।” मने उसे साफतौर पर ककश लहजे म ललकारा- “तो
आगे बढ़ो और मार डालो मुझे । वरना जो दगाबाजी तुमने मेरे साथ क है, उसके ऐवज म
आज तु हारी खैर नह है ।”
“म...मने तु हारे साथ कोई दगाबाज नह क ।” िव म क आवाज काफ सहमी-सहमी
थी ।
“ या तु हारा यह झूठ दगाबाजी नह है ।” म गरजी- “जो तुमने मुझसे मा रया के बारे
म बोला । तुमने मुझसे कहा क वो तु हारी बीवी है और तुम उससे तलाक लेना चाहते हो
।”
िव म चुप !
उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लग ।
“और या तुमने घोष साहब क वसीयत के बारे म मुझसे झूठ नह बोला था ?” म
रवा वर उसके सीने क तरफ ताने-ताने गरजी- “तुमने मुझसे कहा क उनक सौ करोड़
से भी यादा क चल-अचल संपि है । और या तुम यह बात पहले से नह जानते थे क
वह सभी आठ घोड़े वसीयत के मुतािबक तु ह िमलने वाले ह ? उन घोड़ को हािसल करने
के िलये ही तुमने न िसफ मुझे धोखा दया, बि क घोष साहब क भी ह या करा डाली ।”
म धीरे -धीरे अब िव म क तरफ बढ़ने लगी ।
िसफ मा रया का खून करके ही मेरा दमाग ठं डा नह आ था ।
“म... मेरे नजदीक मत आना ।” िव म क आवाज कं पकं पा उठी- “तु हारा दमाग फर
गया है ।”
“हां, मेरा दमाग फर गया है ।” मेरी आंख लाल सुख हो रही थ - “ले कन जरा सोचो,
यह दमाग कसक वजह से फरा है िव म ! तु हारी वजह से । तु ह मने कतना टू ट-
टू टकर चाहा था । तु हारे कारण मने अिभजीत घोष जैसे अपने पित को भी मार डाला, जो
मेरी एक-एक बात का याल रखता था । और तुमसे मुझे या िमला, धोखा ! िसफ धोखा !
जब तुम मेरे पास होते थे, तब भी तु हारे दमाग पर मा रया सवार रहती थी । तुम तो
िसफ उसे हािसल करने के िलये मेरा इ तेमाल कर रहे थे ।”
म जब बोलने म त लीन थी, तभी एकाएक िव म छलांग लगाकर सामने गिलयारे म
भागा ।
म भी उसके पीछे दौड़ी ।
िव म अब भागता आ ज दी से अिभजीत घोष के राइ टंग- म म घुस गया । वहां
घुसते ही उसने आनन-फानन मेज क सबसे नीचली ायर खोली और उसम ज दी-ज दी
कु छ तलाशने लगा ।
म हंसी ।
“तुम ायर म जो रवा वर तलाश रहे हो िव म !” म फुं फकारी- “वही रवा वर इस
व मेरे हाथ म है ।”
िव म ने झटके से गदन ऊपर उठाई ।
उसक हवा और भी यादा खु क हो गई ।
“म समझती ं ।” म राइ टंग म के दरवाजे पर िहमालय क तरह खड़े होकर बोली-
“अब तु ह भी यमलोक के िलये थान कर ही लेना चािहए िव म ! मा रया मर चुक है,
या अब अपनी ेिमका का तुम अंत तक साथ नह दोगे ?”
मने रवा वर का से टी कै च पीछे ख चा ।
“नह !” वो दहाड़ उठा- “गोली मत चलाना ।”
“ य ? मरने से डर लगता है ।” म जोर से हंसी- “मा रया के िलये अपने अिभजीत घोष
जैसे वफादार मािलक क जान ले सकते हो, खुद अपनी जान नह दे सकते ।”
िव म तभी चीते क तरह मेरे ऊपर झपट पड़ा ।
वह एकदम अक मात तौर पर मेरे ऊपर झपटा था ।
मेरी चीख िनकल गई ।
वो मुझे िलये-िलये सीधा धड़ाम् से नीचे िगरा और फर उसका हाथ मेरे रवा वर के
ऊपर झपटा ।
मगर जैसा क आप लोग जानते ही ह, मौत के खेल क म उससे बड़ी िखलाड़ी थी । मने
शंकर और रं जीत पटेल जैसे महारिथय को इस खेल म पछाड़ डाला था । िव म मेरे हाथ
से रवा वर छीन पाता, उससे पहले ही म कलाबाजी खा गई ।
न िसफ कलाबाजी खा गई, बि क एकदम उसके िशकं जे से आजाद होकर ज प लेकर
उठी ।
फर मने िव म को मौका नह दया । म रवा वर का ेगर दबाती चली गई ।
धांय! धांय! धांय!
गोिलय क आवाज से वह पूरा बंगला थरा उठा ।
िव म खून से लथपथ होता चला गया ।
हालां क पहली ही गोली उसका काम तमाम कर गई थी, ले कन फर भी म तब तक
ेगर दबाती चली गई, जब तक रवा वर का पूरा चै बर खाली न हो गया ।
☐☐☐
उस अ यंत िवशालकाय बंगले म अब दो लाश पड़ी थ ।
िव म और मा रया क लाश ।
िव म क ह या करने के बाद म वह राइ टंग म क चौखट के पास नीचे फश पर बैठ
गई ।
म हांफ रही थी, जैसे म कसी ब त लंबी मैराथन दौड़ म भाग लेकर आ रही होऊं ।
मेरी आंख धुआं-धुआं हो रही थ ।
म नह जानती थी, अब मेरा भिव य या है । पित और ेमी, दोन को म अपने हाथ
से मार चुक थी ।
समय धीरे -धीरे गुजरता रहा । अंधेरा अब और भी यादा बढ़ गया था । तभी मने बाहर
बंगले के ाइव-वे पर एक कार के कने क आवाज सुनी । मगर म जरा भी आतं कत न ई
। अब मुझे कसी क परवाह न थी । म अपना काम कर चुक थी ।
फर कोई ज दी-ज दी सी ढ़यां चढ़ता आ अंदर आ गया ।
उसके बाद गिलयारे म कसी के चलने क आवाज सुनाई पड़ी ।
“कु मार !” कोई जोर से िच लाया- “कु मार !”
आवाज मेरी जानी-पहचानी थी ।
म लाश से थोड़ा फासले पर कं कत िवमूढ़-सी अव था म बैठी रही । लाश के आसपास
अब खून का तालाब-सा बनने लगा था । वो रवा वर अभी भी मेरे पास थी, िजससे मने
दो-दो खून कए थे ।
आगंतुक कु छ देर बंगले म इधर-से-उधर घूमता रहा और फर मेरे सामने आ खड़ा आ ।
वह इ सपे टर िवकास बाली था ।
मुझे उस हालत म देखकर वह च का ।
“आओ इं पे टर ! म तु हारा ही इं तजार कर रही थी ।” मेरी आवाज उस समय ब त
िनज व, ब त धीमी थी, जैसे कु एं म से िनकल रही हो- “तु हारे िलये एक खुशखबरी है ।
अब तु ह मेरी ब तरबंद शहादत को तोड़ने के िलये यादा िसर खपाने क आव यकता
नह है । म कबूल करती ,ं मने ही घोष साहब का खून कया है । िसफ घोष साहब का ही
नह , बि क िव म का भी, मा रया का भी ।”
िव म के नाम पर इ सपे टर िवकास बाली क िनगाह मुझसे थोड़ा फासले पर पड़ी
िव म क लाश पर गई ।
िव म क लाश देखकर वह और च का ।
वह कतनी ही देर ब त तंिभत-सी अव था म मेरे नजदीक खड़ा रहा । मेरी हालत
देखकर मानो उसे सदमा प च ं ा था । उसने अपनी जेब से सफे द माल िनकाला और फर
मेरे हाथ म मौजूद रवा वर, मेरे फं गर ंट सिहत उस माल म लपेटकर अपने अिधकार
म कर िलया । उसके बाद वो वह घुटन के बल मेरे पास बैठ गया ।
“और या तुम आज अपने उन सात ेिमय क ह या को कबूल नह करोगी ।” वह
मेरी आंख म झांकता आ बोला- “जो ह याएं तुमने गोरखपुर म क ?”
अब मेरे च कने क बारी थी ।
मने एकदम िव मयपूवक अपनी गदन ऊपर उठाई ।
“तुम मेरे अतीत के बारे म कै से जानते हो ?”
“दरअसल जब तुमने बताया था क तुम गोरखपुर क हो ।” इ सपे टर िवकास बाली
बोला- “और तु हारा नाम नताशा शमा है, मुझे तभी तु हारे ऊपर शक आ था । अखबार
म भी मने लेडी कलर वाले करण के बारे म पढ़ा क नताशा शमा गोरखपुर से गायब है ।
म तभी भांप गया था क तु ह वो नताशा शमा हो । ले कन फर भी मने तु ह कभी कु छ
नह कहा ।”
“ य ?” म कौतुहलपूवक बोली- “ य कु छ नह कहा ?”
“ य क जब मने तु ह पहली बार देखा ।” िवकास बाली ब त भाव-िव वल वर म
बोला- “तभी मुझे तु हारे अंदर अपनी गीता नजर आई थी ।”
“ग...गीता ।”
“हां गीता, मेरी बीवी, िजसे एक दुदात अपराधी ने मार डाला था । तु हारी श ल
काफ कु छ गीता से िमलती थी । फर मने देखा क तुम एक नई जंदगी शु करने क
तलबगार हो, इसीिलये मने तु हारे शा त जीवन म प थर मारना मुनािसब नह समझा ।
ले कन फर जब तुमने घोष साहब से शादी क , तो मुझे अ छा नह लगा । ब त फक था
तुम दोन क उ म । िसफ घोष साहब का ही नह , बि क तु हारा भी वो फै सला गलत
था । और उससे भी बड़ी गलती तुमने घोष साहब क ह या करके क ।”
मने अपनी नजर झुका ल ।
“िम टर बाली !” मने गहरी सांस लेकर कहा- “गलितयां तो मने अपनी जंदगी म न
जाने कतनी क थ । यह सब मेरी क मत का दोष था ।”
अब मुझे इ सपे टर िवकास बाली से भी उतना डर नह लग रहा था । मने उसे
पहचानने म देर क थी । सच तो ये है, वह शु से ही मेरा शुभ चंतक था ।
“गीता !” एकाएक इं पे टर िवकास बाली ने मेरा हाथ अपने हाथ म पकड़ िलया और
बड़बड़या- “कभी मने अपनी गीता क ह या के इ जाम म एक अपराधी को गोली मार दी
थी । ल... ले कन आज मेरी वही गीता खुद कई ह या के इ जाम म अदालत के कटघरे म
जाकर खड़ी होगी । यह मेरी जंदगी क सबसे बड़ी हार है, सबसे बड़ी हार ।”
इ सपे टर िवकास बाली बड़बड़ाने लगा । उसक हालत अ िवि जैसी थी ।
वह सचमुच शु से ही मुझम अपनी प ी गीता के प म देख रहा था और अब उसे
सदमा प च ं ा था ।
“िम टर िवकास बाली ! आई एम सॉरी !” म मानो अपना दुख भूल गई और मने उसका
कं धा थपथपाया ।
ले कन िवकास बाली ने मानो मेरे श द सुने ही नह ।
☐☐☐
मुझे अदालत म पेश कया गया ।
वो मुकदमा कई मायन म िविच था । सबसे यादा िविच तो वह इसिलये था,
य क इं पे टर िवकास बाली िज दगी म पहली बार कसी अपराधी के साथ रयायत से
पेश आया । उसने मेरा गोरखपुर क लेडी कलर वाला च र अदालत के सामने उजागर
नह कया । मेरे ऊपर िसफ अिभजीत घोष, िव म और मा रया क ह या के इ जाम म
अदालत म मुकदमा चला ।
मुझे अदालत ने दस वष के कठोर कारावास क सजा सुनाई ।
म जानती थी, मने जो अपराध कये थे, उसके ऐवज म वह सजा ब त कम थी और यह
सब इं पे टर िवकास बाली के िवशेष यास से आ था ।
म जब मिहला पुिलसक मय के घेरे म कोट म से बाहर िनकली, तो इ सपे टर
िवकास बाली मेरे सामने आकर खड़ा हो गया । उसक आंख म अभी भी दुख के काले
साए मंडरा रहे थे ।
“नताशा !” वो धीमे वर म बोला- “म तुमसे कु छ कहना चाहता ं ।”
“ या ?”
“मेरी इ छा है क जब तुम दस साल क सजा काटकर जेल से बाहर िनकलो, तो
गोरखनाथ मि दर के उस साधु क वो भिव यवाणी गलत सािबत हो जाये, जो उसने
तु हारे बारे म क थी । यही क तु हारे जीवन म पु ष का ेम नह है ।”
“ले कन कै से होगी वो भिव यवाणी गलत ?” म च क ।
“म उस भिव यवाणी को गलत सािबत क ं गा ।” इं पे टर िवकास बाली गरमजोशी के
साथ बोला- “म तु ह पु ष का ेम दूगं ा ।”
मेरे हलक से एकाएक ऐसा हंसी का कहकहा उबल पड़ा, जैसे कसी ने कोरे ल े का थान
फाड़ दया हो ।
जैसे म पागल हो गयी होऊं ।
“त… तुम !” िवकास बाली हड़बड़ा उठा- “तुम हंस य रही हो ?”
“एक और ेमी !” मने हंसते ए ही कहा- “आिखर मेरी िज दगी म एक और ेमी आ
गया ।”
“म एक और ेमी बनकर नह ।” इ सपे टर िवकास बाली ने एकाएक स ती से मेरी
बात काट दी- “बि क एक पित बनकर तु हारी जंदगी म आना चाहता ं और म गोरखपुर
क नताशा शमा को नह बि क अपनी प ी गीता को अपनाना चाहता ं । गीता, िजसका
मेरा ज म-ज मांतर का साथ है ।”
मेरी हंसी भ से गायब हो गई ।
म आ य से िवकास बाली क तरफ देखने लगी । जब क मिहला पुिलसकम मेरी
हथकड़ी पकड़कर धीरे -धीरे मुझे उससे दूर लेती चली गई ।
☐☐☐
दस वष !
दस वष का वह िवराट समय भी यूं ही पंख लगाकर उड़ता चला गया था, जैसे िहमालय
क गगनचु बी चोटी पर बैठा कोई िग द अन त आकाश म उड़ता चला जाये ।
इन दस वष ने काफ बदल दया था मुझे । मेरे सुख गाल क ललछोही आभा अब
नदारद हो चुक थी । और मेरे बाल भी अब ह के -ह के सफे द होने लगे थे ।
जेल के फाटक से बाहर िनकलते ही म च क ।
मने देखा, इं पे टर िवकास बाली अपनी नीली िज सी के साथ मुझे ले जाने के िलये
बाहर ही खड़ा था । इन दस वष ने उसे भी काफ बदला था और उसक कलम भी सफे द
हो चली थ ।
“ओह !” म धीमी आवाज म बोली- “मने समझा था, इन दस वष के दौरान तुम मुझे
भूल भी चुके होओगे ।”
“म हर कसी को भूल सकता ं ।” िवकास बाली ने फौरन आगे बढ़कर मुझे अपनी बाह
म समेट िलया- “ले कन अपनी गीता को कभी नह भूल सकता, कभी नह ।”
मेरी आंख म खुशी के आंसू िझलिमलाने लगे ।
म जानती थी, मुझे अब वाकई एक स ा ेमी िमल गया था ।
ेमी, जो अगर अ तमन से यार करे , तो उसक बाह जैसा वग दुिनया म और कह
नह ।

समा

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