2008 3 1501 42431 Judgement 01-Mar-2023 HIN

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रपोट करने यो य

भारत के उचतम यायालय म


आपराधक अपीलय ेाधकार

2009 क आपराधक अपील सं"या 987

र#व ढंगरा ….. अपीलकतागण

बनाम

हरयाणा रा*य ….. +,तवादगण

के साथ

2009 क आपराधक अपील सं"या 989-990


2009 क आपराधक अपील सं"या 986
2009 क आपराधक अपील सं"या 988
और
आपराधक अपील सं"या 2023 का 645

(@ #वशेष अनम
ु ,त याचका (आपराधक सं"या 2012 क सं"या 5296)

,नणय

नागार3ना, यायाधीश

2012 क वशेष अनम


ु त याचका (आपराधक) संया 5296 म अनम
ु त द गई ।

अ य सभी मामल$ म अनम


ु त पहले ह मंजरू क जा चक
ु  है ।

2. उपि+थत अपील उन पांच अ-भय.


ु त$ /वारा दायर क गई ह0 िजनक दोष-स2य$ क

पिु 3ट पंजाब और ह7रयाणा उ9च यायालय के :दनांक 13.02.2008 के आ;ेपत नण<य

/वारा भारतीय दं ड सं:हता, 1860 (सं;ेप म 'आईपीसी') क धारा 148,149 और 364ए के

तहत क गई है ।
आपराधक अपील /एसएलपी आरोपय$ के नाम छूट के साथ गुजर :हरासत
संया क अवध

2009 क आपराधक अपील रमन गो+वामी (मत


ृ , जेल :हरासत AमाणपB
संया 987 अ-भय.
ु त संया 3) :दनांक 31.01.2023 के
अनस
ु ार 6 साल, 8 महने
और 10 :दन (मत
ृ क)।
अपील समाCत हो जाती है ।

2009 क आपराधक अपील रव ढंगरा (आरोपी 7 वष<, 10 माह और 13 :दन


संया 987 संया 4) (31.01.2023 के जेल
अ-भर;ा Aमाण पB के
अनस
ु ार 13.05.2009 से
जमानत पर)

आपराधक अपील संया 2009 लEमी नारायण (आरोपी अ-भर;ा AमाणपB A+तुत
क 986 और 2009 क 988 संया 5) नहं Fकया गया

आपराधक अपील संया 989- बलजीत पाहवा (आरोपी 7 वष<, 8 माह और 2 :दन
990/2009 संया 2) (31.01.2023 के जेल
अ-भर;ा Aमाण पB के
अनस
ु ार 13.05.2009 से
जमानत पर)

2012 क एसएलपी परवेज खान (आरोपी 3 साल, 7 महने और 2 :दन


(आपराधक) संया 5296 संया 1) (31.01.2023 के जेल
अ-भर;ा Aमाण पB के
अनस
ु ार 28.07.2012 से
जमानत पर)

रमन गो+वामी /वारा दायर 2009 क आपराधक अपील संया 987 को उनक मHृ यु

के कारण :दनांक 08.04.2019 के आदे श /वारा समाCत कर :दया गया है । तदनस


ु ार, केवल

रव ढंगरा के संबंध म आपराधक अपील संया 987/2009 पर वचार Fकया जाता है । इन

सभी मामल$ क एक साथ सन


ु वाई क गई और इस सामा य नण<य से इनका न+तारण

Fकया जा रहा है ।
3. सं;ेप म , -शकायतकता< डॉ. एच. के. सोबती (पीडKLय-ू 20) के अनरु ोध पर थानेसर

शहर के प-ु लस थाने म दज< एफआईआर संया 64 के अनस


ु ार, अपीलकता<ओं ने डॉ. एच. के.

सोबती और Oीमती इंP सोबती (पीडKLय-ू 5) के पB


ु हष< (पीडKLय-ू 21), जो 14 साल का था,

का उस समय अपहरण कर -लया था जब वह +कूल जा रहा था। +टे शन हाउस अधकार ने

इस :टCपणी के साथ Aाथ-मक दज< क थी Fक भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364/34 के

तहत मामला तQय$ से बनता Aतीत होता है । पीडKल-ू 21 के बयान के अनस


ु ार, उसे सह-

आरोपी रव ढंगरा ने अपने +कूटर पर पीछे बैठने के -लए धमकाया और मना करने पर उसे

जबरन कार म डाल :दया गया। सरु ;ा के -लए चLलाने पर उसे धमक द गई Fक अगर वह

रोएगा तो उसे चाकू और प+तौल से मार :दया जाएगा। उ ह$ने उसे यह भी बताया Fक

उसके संप न पता 50 लाख Tपये क Fफरौती भी दे सकते ह0।

जांच म पता चला Fक पीडKLय-ू 21 को मकान संया 772, से.टर-13, कुT;ेB म रखा

गया था। Oीमती कांता गोयल (पीडKLय-ू 2) जो मकान नंबर 1653/13 क नवासी थीं, जो

उ.त +कूल के पास था और 9 वीं क;ा के एक अ य छाB, मनीष (पीडKLय-ू 4) ने उ ह

बताया Fक सब
ु ह 8:15 बजे दो लड़क$, िजनके चेहरे ढं के हुए थे, ने हष< को Vबना नंबर Cलेट

वाल और रं गीन शीशे वाल माT त कार म Vबठा :दया था। बाद म , उसी :दन, Fफरौती क

मांग करने वाले कॉल AाCत हुए, िजस पर कार< वाई करते हुए, पीडKल-ू 20 मांगी गयी Fफरौती

के साथ संबंधत +थान पर पहुंच गया। जब वह अपीलाथ<य$ /वारा Fफरौती AाCत करने और

उसके ब9चे को छोड़ने का इंतजार कर रहा था, पी डKLय-ू 21 हष< सोबती को 16.2.2000 को

सब
ु ह 04:00 बजे से 04:30 बजे के बीच 7रहा Fकया गया और पी डKLय-ू 11 सरू ज भान राठW के

घर के छोड़ :दया गया। उ ह$ने उसक मां को फोन Fकया, जो उ ह सब


ु ह लगभग 5:30 बजे

अपने घर ले गY।

4. यह Fक Fफरौती क मांग और पछ
ू ताछ पीडKल-ू 20 को 09.03.2000, 12.03.2000,

13.03.2000 और 14.03.2000 को पB$ और टे लफोन संदेश$ के माZयम से क गई थी।

Fफरौती के संबंध म एक अ य संदेश 15.03.2000 को दोपहर 2:30 बजे टे लफोन के माZयम


से AाCत हुआ। उसने अपीलकता<ओं को सू चत Fकया Fक वह 15 लाख Tपये क [यव+था नहं

कर सका, उसने 12 लाख Tपये क [यव+था क थी। इन संदेश$ म AाCत नद\ श$ पर कार< वाई

करते हुए पीडKल-ू 20 प-ु लस को सू चत करने के बाद, पैस$ क थैल के साथ, रात 8:15 बजे

]े न म सवार हुआ। जब ]े न अंबाला म Tक तो वह उतर गया। वह कुT;ेB वापस चला गया

जहाँ से उसे पैसे क थैल के साथ अपना घर छोड़ने और करनाल आने के -लए कहा गया।

पीडKल-ू 20 -सवल _ेस म दो उप- नर;क$ के साथ अपनी कार म गया। एक पल


ु के पास

एक बैग म नकद क `डलवर पर, यह पता चला Fक एक इंजी नय7रंग छाB रव दहू न

(पीडKल-ू 19) के नाम से पंजीकृत एक मोबाइल फोन से कॉल Fकए गए थे। उसने खल
ु ासा

Fकया Fक उसके दो+त$, अपीलकता<ओं ने उसका फोन उधार -लया था। 17.03.2000 को,

रव ढंगरा, बलजीत पाहवा, परवेज खान और रमन गो+वामी नाम के चार आरोपी

[यि.तय$ के :ठकाने के बारे म गुCत सच


ू ना -मलने पर, आरोपी लEमी नारायण को छोड़कर

िज ह 03 अAैल, 2000 को गरaतार Fकया गया था, प-ु लस /वारा गरaतार Fकया गया था।

म
ु य या यक मिज+]े ट, कुT;ेB ने 06.06.2000 को इस मामले को सन
ु वाई के -लए सB

यायालय को सbप :दया।

5. अ त7र.त सB यायाधीश, फा+ट ]ै क कोट< , कुT;ेB, (']ायल कोट< ', सु वधा के -लए)

ने भारतीय दं ड सं:हताक धारा 364, 364ए, 342, 506 सहप:ठत धारा 148 के तहत अपराध

करने के आरोपी अपीलकता<ओं पर मक


ु दमा चलाया। अ-भयोजन प; ने दं ड AFcया

सं:हता, 1973 क धारा 164 के तहत अपीलकता<ओं के बयान$ स:हत 27 गवाह और 72

द+तावेजी Aदश< A+तुत Fकए (इसके बाद 'सीआरपीसी', सं;ेप म ) और 5 मामले क

संपिHतयां। अपीलकता<ओं क ओर से 13 द+तावेजी Aदश< A+तुत Fकए गए। वचारण

अदालत ने दं ड AFcया सं:हता क धारा 313 के तहत अपीलकता<ओं - अ-भय.


ु त$ के बयान

दज< Fकए।

6. अपीलकता<ओं ने कहा Fक उ ह झठ
ू ा फंसाया गया था और पकड़े जाने के बाद उ ह

अवैध कारावास म रखा गया था। उ ह$ने यह भी तक< :दया Fक उनक त+वीर$ को +थानीय
मी`डया के माZयम से [यापक eप से Aचा7रत Fकए जाने और अ-भयोजन प; के गवाह$ के

साथ सामना करने के बाद उ ह अदालत म पेश Fकया गया था। इसके अलावा, यह A+तत

Fकया गया था Fक 18.03.2000 को अदालत के सम; पेश Fकए जाने से पहले उ ह Aता`ड़त

Fकया गया था। उ ह$ने यह भी कहा Fक उ ह 20.03.2000 को जांच अधकार /वारा तैयार

Fकए गए बयान$ पर ह+ता;र करने के -लए मजबरू Fकया गया था।

7. वचारण यायालय ने पव
ू f.त कथन$ और अ-भलेख पर अ य साEय पर वचार

Fकया और यह अ-भ नधा<7रत Fकया Fक अपीलाथ<य$ ने एक वधवT2 सभा का गठन

Fकया और एक सामा य उgेhय के अनस


ु रण म , उसके पता को 15 लाख Tपए क Fफरौती

रा-श का भग
ु तान करने के -लए मजबरू करने के -लए पी डKल-ू 21 का अपहरण Fकया।

वचारण यायालय ने यह भी न3कष< नकाला Fक अपीलकता<ओं ने पीडKLय-ू 21 के

कारावास और Fफरौती का भग
ु तान करने के -लए पीडKLय-ू 20 को मजबरू करने के -लए उसे

मौत धमक दे कर, लाभ उठाने क को-शश क।

वचारण यायालय को पीडKल-ू 21 के कथन पर अवhवास करने का कोई कारण नहं


-मला।

इस Aकार, अपीलकता<ओं को भारतीय दं ड सं:हता क धारा 149 के साथ प:ठत धारा

148 और 364ए के तहत दं डनीय अपराध$ के -लए दोषी ठहराया गया था। अपीलकता<ओं ने

इस आधार पर सजा म नरमी क Aाथ<ना क Fक उनके बढ़


ू े माता-पता ह0 और उनक

दे खभाल करने वाला कोई और नहं है । वचारण यायालय ने मक


ु दमे का न3कष< नकाला

और 29.05.2003 को अपना फैसला सन


ु ाया। वचारण अदालत ने आरोपी-अपीलकता<ओं

को भारतीय दं ड सं:हता क धारा 148 के तहत तीन साल के सOम कारावास और आईपीसी

क धारा 149 के साथ प:ठत धारा 364ए के तहत आजीवन कठोर कारावास और AHयेक को

2000 Tपये का जुमा<ना दे ने क सजा सन


ु ाई। वचारण अदालत ने आगे यह भी +प3ट Fकया

Fक वचाराधीन :हरासत क अवध को set off (समायोिजत) कर :दया जाएगा और दोन$

सजाएं साथ-साथ चलगी।


8. अपीलकता<ओं ने पंजाब और ह7रयाणा उ9च यायालय के सम; दोष-स2 और

दं डादे श के आदे श के jखलाफ अपील क। उ9च यायालय ने इस Ahन पर वचार Fकया Fक

.या भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364ए के तहत Fफरौती के -लए अपहरण के अपराध म

अपीलकता<ओं क पहचान करने और उ ह उससे जोड़ने के -लए वhवसनीय साEय मौजूद

ह0। उ9च यायालय ने पीडKल-ू 21 के बयान को महHवपण


ू < करार :दया और उसी पर भरोसा

करते हुए कहा Fक भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364ए के सभी अवयव$ को संतु3ट Fकया

गया था।

उ9च यायालय ने इस दलल को खा7रज कर :दया Fक अ-भयोजन प; के मामले म

तािHवक वसंग त थी और यह माना Fक अ-भयोजन प; के गवाह$ के बयान$ क सHयता पर

संदेह करने का कोई कारण नहं था। पीडKल-ू 21 के संबंध म , उ9च यायालय ने :टCपणी क

Fक वह एक बाल गवाह था, लेFकन उसने लंबी और खोजी A तपर;ा का सामना Fकया और

उसके सं+करण म कोई वरोधाभास नहं है । इसने पीडKल-ू 20 के Tख म वरोधाभास$ के

बारे म तक< को यह कहते हुए खा7रज कर :दया Fक जांच म वसंग त अपने आप म एक

वhवसनीय गवाह क गवाह को अ+वीकार करने का आधार नहं हो सकता है । इसके

अलावा, उ9च यायालय ने न3कष< नकाला Fक पीडKल-ू 20 और पीडKल-ू 21 क गवाह के

आधार पर, "अपराध के साथ अ-भय.


ु त का संबंध उचत संदेह से परे +थापत होता है । ”

9. उ9च यायालय ने भारतीय दं ड सं:हता क धारा 363 या 365 के अधीन या भारतीय

दं ड सं:हता क धारा 506 के अधीन Fकसी अपराध के -लए, िजसम सात वष< से अधक के लंबे

समय तक नरोध के आधार पर आजीवन कारावास के यन


ू तम दं डादे श का उपबंध नहं है,

दोष-स2 को उपांत7रत करने के अपीलाथ<य$ के अ-भवाक को अ+वीकार कर :दया। उ9च

यायालय के फैसले और सजा से [यथत होकर, अ-भय.


ु त$ ने अपनी-अपनी वशेष

अनम
ु त याचकाएं दायर करके इस यायालय का दरवाजा खटखटाया है , िजसम अनम
ु त

द गई है और अब इसे आपराधक अपील माना जाता है ।


11.05.2009 को, इस यायालय ने नोट Fकया Fक अपीलकता<ओं ने सात साल जेल

क सजा काट ल थी और उ ह आवhयक शतk पर वचारण यायालय क संतिु 3ट पर

जमानत द जा सकती थी। इसने वशेष अनम


ु त याचकाओं म अपील करने क अनम
ु त

भी द और मामल$ को +वीकार Fकया।

10. इस यायालय के सम; अपीलकता<-आरोपी ने A+तत


ु Fकया है Fक इस तQय के बारे

म गंभीर संदेह है Fक अपीलकता< वह [यि.त ह0 िज ह$ने हष< सोबती, पी डKल-ू 21 का

अपहरण Fकया था, लेFकन नीचे के यायालय$ ने पी डKल-ू 21 के साEय पर वhवास करने के

कारण पाए ह0। इस Aकार, जांच के बारे म सवाल उठाते हुए बर करने के -लए :दए गए तकk

को +वीकार Fकए Vबना, अपीलकता<ओं ने आlह Fकया है Fक उनक क़ैद क लंबी अवध का

या यक नो:टस -लया जाए और भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364ए के तहत उनक कैद

और दोष-स2 को भारतीय दं ड सं:हता क धारा 363 के तहत दोष-स2 म संशोधत Fकया

जाए।

सवf9च यायालय वधक सेवा स-म त /वारा नय.


ु त अपीलकता<ओं क ओर से

उपि+थत व/वान अधव.ता Oी गौरव अlवाल ने एस. के. अहमद बनाम तेलंगाना रा*य,

(2021) 9 एस. सी. सी. 59 (एस. के. अहमद) पर भरोसा Fकया, यह तक< दे ने के -लए Fक इस

मामले म भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364ए के आवhयक तHव साVबत नहं हुए ह0। उनके

तक< का सार यह था Fक सB यायालय और उ9च यायालय ने इस तQय क अवहे लना क है

Fक 15 अAैल, 2002 को यायालय के सम; पीडKल-ू 21 का बयान 15 फरवर, 2000 को

प-ु लस को :दए गए बयान से काफ बेहतर था। इस-लए, उ ह$ने कहा Fक मौत या चोट

पहुंचाने का कोई खतरा साVबत नहं हुआ है । उ ह$ने यह भी A+तुत Fकया Fक मHृ यु या चोट

के कारण के आधार पर Fफरौती क कोई मांग साVबत नहं क जा सक .य$Fक यह प-ु लस से

नकल थी। उ ह$ने A+तुत Fकया Fक पीडKल-ू 12 पलट गया और पीडKल-ू 13 केवल एक

सांयोगक गवाह था. इस-लए, आ;ेपत नण<य$ म ह+त;ेप Fकया जा सकता है और


अपीलकता<ओं को द गई सजा को संशोधत करके राहत द जा सकती है , भले ह

अपीलकता<ओं को बर करना संभव न हो।

दस
ू र ओर, Oी राकेश म/
ु गल, A तवाद राnय के -लए व/वान एएजी ने उ9च

यायालय के फैसले का समथ<न Fकया और तक< :दया Fक इन अपील$ म कोई योoयता नहं

है और इसे खा7रज Fकया जा सकता है । उ ह$ने A+तत


ु Fकया Fक उ9च यायालय अपने

तकk और यहां अपीलकता<ओं /वारा दायर अपील$ को खा7रज करने म यायसंगत था।

11. 7रकॉड< म मौजूद तQय$ और प;कार$ के A त/वं/वी नवेदन$ को दे खते हुए, हम इस

अपील म वचार Fकए जाने वाले Vबंद ु को इस बात तक सी-मत करना उचत समझते ह0 Fक

.या इस मामले म तQय, भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364ए के तहत अपराध को आकष<त

करते ह0 और य:द उHतर नकाराHमक म है, तो .या भारतीय दं ड सं:हता क धारा 363 के

तहत सजा के -लए दोष-स2 को संशोधत करना यायोचत और उचत होगा।

इस मामले को प7रAेEय म रखने के -लए धारा 361के साथ प:ठत धारा 363, 364,

364 ए के उपबंध$ क तल
ु ना क जानी चा:हए। उ.त Aावधान इस Aकार ह0 :

धारा 361: #वधपण


ू  संरकता से अपहरण। जो कोई Fकसी अAाCतवय
को, य:द वह नर हो, तो सोलह वष< से कम आयु वाले को, या य:द वह
नार हो तो, अqारह वष< से कम आयु वाल को या Fकसी वकृतचHत
[यि.त को, ऐसे अAाCतवय या वकृतचHत [यि.त के वधपण
ू <
संर;कता म से ऐसे संर;क क सsम त के Vबना ले जाता है या बहका
ले जाता है , वह ऐसे अAाCतवय या ऐसे [यि.त का वधपण
ू < संर;कता
म से [यपहरण करता है , यह कहा जाता है ।

+प3टकरण.-इस धारा म “वधपण


ू < संर;क” शKद$ के अ तग<त ऐसा
[यि.त आता है िजस पर ऐसे अAाCतवय या अ य [यि.त क दे ख-रे ख
या अ-भर;ा का भार वधपव
ू क
< य+त Fकया गया है ।

अपवाद. इस धारा का व+तार Fकसी ऐसे [यि.त के काय< पर नहं है ,


िजसे सtावपव
ू क
< यह वhवास है Fक वह Fकसी अधम<ज -शशु का पता
है , या िजसे सtावपव
ू क
< यह वhवास है Fक वह ऐसे -शशु क वधपण
ू <
अ-भर;ा का हकदार है , जब तक Fक ऐसा काय< दरु ाचा7रक या
वधवT2 Aयोजन के -लए न Fकया जाए।

x xx

धारा 363: 7यपहरण के 8लए द9ड जो कोई भारत म से या वधपण


ू <
संर;कता म से Fकसी [यि.त का [यपहरण करे गा, वह दोन$ म से
Fकसी भां त के कारावास से, िजसक अवध सात वष< तक क हो सकेगी,
दिuडत Fकया जाएगा और जुमा<ने से भी दuडनीय होगा।

धारा 364. ह3या करने के 8लए 7यपहरण या अपहरण।जो कोई इस-लए


Fकसी [यि.त का [यपहरण या अपहरण करे गा Fक ऐसे [यि.त क
हHया क जाए या उसको ऐसे [यय नत Fकया जाए Fक वह अपनी हHया
होने के खतरे म पड़ जाए, वह आजीवन कारावास से या क:ठन कारावास
से, िजसक अवध दस वष< तक क हो सकेगी, दिuडत Fकया जाएगा
और जुमा<ने से भी दuडनीय होगा।

धारा 364ए। मिु <त धन (=फरौती) इ3याAद के 8लए 7यपहरण-जो कोई


Fकसी [यि.त का [यपहरण या अपहरण करता है अथवा ऐसे [यपहरण
या अपहरण के पhचात ् Fकसी [यि.त का नरोध करता है , और ऐसे
[यि.त क मHृ यु या उपह त का7रत करने क धमक दे ता है , अथवा
अपने आचरण /वारा ऐसी यिु .तय.
ु त आशंका उHप न करता है Fक
ऐसे [यि.त क हHया या उपह त का7रत क जा सकती है अथवा ऐसे
[यि.त को उपह त या मHृ यु, सरकार को या Fकसी वदे शी राnय अथवा
अ तरा<3]य अ तशा<सकय संगठन अथवा Fकसी अ य [यि.त को
Fकसी काय< को करने या काय< को करने से वरत रहने अथवा मिु .त-धन
अदा करने के -लए बाZय करने के उgेhय से का7रत करता है , मHृ यु दuड
अथवा आजीवन कारावास से दिuडत Fकया जायेगा, और जुमा<ने से भी
दuडनीय होगा।

12. हम यह नोट करते ह0 Fक भारतीय दं ड सं:हता क धारा 363 [यपहरण के कृHय को

दं `डत करती है और इसक धारा 364 Fकसी [यि.त क हHया के -लए उसके [यपहरण या

अपहरण के अपराध को दं `डत करती है । धारा 364ए मिु .त धन (Fफरौती) क मांग करने के

-लए जबरद+ती :हंसा या उसके पया<Cत खतरे को शा-मल करके अपराध क गंभीरता को
और बढ़ाती है । तदनस
ु ार, तीन$ अपराध$ के -लए अधकतम दं ड cमशः सात वष< और दस

वष< का कारावास और आजीवन कारावास या मHृ यु दं ड है ।

[यपहरण के नंदनीय कृHय का अपराधीकरण करते समय संसद के सE


ू म, Oेणीब2

xि3टकोण क सावधानीपव
ू क
< [याया क जानी चा:हए।

अपराध के व-भ न घटक$ और दं ड क कठोरता का नव<चन करने और आ;ेपत

ू यांकन करने से पहले, हम लोAहत कौशल बनाम हरयाणा रा*य, (2009) 17


नण<य$ का मL

एससीसी 106 म इस यायालय क :टCपjणय$ को दोहराना उचत समझते ह0, िजसम इस

यायालय ने नsन-लjखत मत [य.त Fकयाः

15. .... यह सच है Fक [यपहरण जैसा Fक भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364-ए के


तहत समझा जाता है , वा+तव म एक नंदनीय अपराध है और जब एक असहाय
ब9चे का मिु .त धन (Fफरौती) के -लए [यपहरण Fकया जाता है और वह भी
करबी 7रhतेदार$ /वारा, तो घटना और भी अ+वीकाय< हो जाती है । हालांFक,
अपराध क गंभीरता और इससे यायालय के मन म जो घण
ृ ा पैदा होती है , वे
ऐसे कारक ह0 जो ऐसे मामल$ म एक अ-भय.
ु त के न3प; पर;ण के jखलाफ
भी जाते ह0। इस-लए, एक यायालय को साEय का मL
ू यांकन करते समय
व+तु न3ठता और या यक वचार$ के बजाय भावनाओं /वारा अपने नण<य$ म
Aभावत होने क संभावना के jखलाफ सावधान रहना चा:हए।

13. इस यायालय ने, वशेष eप से अ,नल बनाम दमन और दव +शासन, (2006) 13

एस. सी. सी. 36 (अ,नल), #वCवनाथ गुDता बनाम उ3तरांचल रा*य (2007) 11 एस. सी. सी.

633 (#वCवनाथ गुDता) और #वEम 8संह बनाम भारत संघ, (2015) 9 एस. सी. सी. 502

(#वEम 8संह) म भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364 ए के अधीन अपराध के Fकए जाने के -लए

दोष-स2 का आदे श दे ने के -लए आवhयक तHव$ को नsन-लjखत र त से +प3ट Fकया है ः

(क) अ,नल म , उन मामल$ के संबंध म Aासंगक :टCपjणयां क गई थीं जहां अ-भय.


ु त

को उस अपराध के -लए दोषी ठहराया गया है िजसके संबंध म कोई आरोप तय नहं Fकया

गया है । उ.त मामले म , सवाल यह था Fक .या उसम अपीलाथy को भारतीय दं ड सं:हता क


धारा 364 ए के तहत दोषी ठहराया जा सकता था, जब वरचत आरोप भारतीय दं ड सं:हता

क धारा 364 के साथ प:ठत धारा 34 के तहत था। सवf9च यायालय के उ.त नण<य से

चन
ु े जा सकने वाले Aासंगक अंश नsनानस
ु ार ह0: "

54. उपय.
ु< त नण<य$ म से वध के कथन/तक<वा.य, िज ह उपरो.त नण<य$
से नकाला जा सकता है , इस Aकार ह0 :

(i) अपीलकता< पर आरोप$ के गलत संयोजन (-मसजोइंडर) के कारण Fकसी


पव
ू ा<lह / कोई A तकूल Aभाव नहं पड़ना चा:हए।
(ii) गौण अपराध के -लए दोष-स2 अनz
ु ेय है ।
(iii) इसका प7रणाम याय क वफलता नहं होना चा:हए।
(iv) य:द पया<Cत अनप
ु ालन होता है , तो आरोप$ का गलत संयोजन (-मस
जोइंडर) घातक नहं हो सकता है और इस तरह के गलत संयोजन (-मस जोइंडर)
केवल आरोप तय करने के -लए गलत संयोजन (-मस जोइंडर) से उHप न होने
चा:हए।

55. धारा 364 और 364-ए के तहत अपराध करने के -लए अवयव -भ न-


-भ न ह0। [यपहरण करने का आशय िजससे Fक उसक हHया क जा सके या
उसका इस Aकार नपटारा Fकया जा सके Fक वह खतरे म पड़ जाए .य$Fक हHया
दं ड सं:हता क धारा 364 क अपे;ाओं को परू ा करती है, उसक धारा 364-ए के
अधीन अपराध करने के -लए दोष-स2 अ-भAाCत करने के -लए यह साVबत
करना आवhयक है Fक न केवल ऐसा अपहरण या द3ु Aेरण हुआ है बिLक उसके
पhचात ् अ-भय.
ु त ने ऐसे [यि.त को मHृ यु का7रत करने या उपह त का7रत
करने क धमक द है या उसके आचरण से यह यिु .तय.
ु त आशंका पैदा होती है
Fक ऐसे [यि.त को सरकार या Fकसी वदे शी राnय या अंतररा3]य अंतर-
सरकार संगठन या Fकसी अ य [यि.त को कोई काय< करने या न करने के -लए
या Fफरौती दे ने के -लए ववश करने के -लए मHृ यद
ु ं ड :दया जा सकता है या
उपह त का7रत Fकया जा सकता है ।

56. इस Aकार, दमन के व/वान सB यायाधीश के -लए यह अ नवाय< था Fक


वह ऐसा आरोप वरचत करे जो दं ड सं:हता क धारा 364-ए के अधीन
प7रकिLपत अपराध के ववरण का उHतर दे । यह सच हो सकता है Fक [यपहरण
मिु .त धन (Fफरौती) पाने के उgेhय से Fकया गया था, लेFकन आरोप तय करते
समय इसे अपीलकता< के सामने रखा जाना चा:हए था। अपीलाथy के A त
पव
ू ा<lह +प3ट है .य$Fक Fकसी भी आरोप क वरचना करते समय एक उ9च
(अथा<त म
ु य/ Aधान) अपराध के अवयव$ को उसके सम; नहं रखा गया था। ”
(ख) #वCवनाथ गुDता के मामले म , यह नsन-लjखत eप म दे खा गयाः

"8. धारा 364-ए के अनस


ु ार, जो कोई भी Fकसी [यि.त का [यपहरण या
अपहरण करता है और उसे क़ैद म रखता है और ऐसे [यि.त को मHृ यु या उपह त
का7रत करने क धमक दे ता है और उसके आचरण से एक यिु .तय.
ु त आशंका
पैदा होती है Fक ऐसे [यि.त को मारा जा सकता है या चोट पहुंचाई जा सकती है ,
और मिु .तधन (Fफरौती) मांगता है और य:द मHृ यु हो जाती है , तो उस मामले म
आरोपी को मौत या आजीवन कारावास क सजा द जा सकती है और जुमा<ना भी
लगाया जा सकता है ।

9. धारा 364-ए का महHवपण


ू < घटक [यपहरण या अपहरण है , जैसा भी
मामला हो। तHपhचात ् [यप{त/अप{त को यह धमक द जाती है Fक य:द
मिु .तधन (Fफरौती) क मांग परू  नहं क गई तो पी`ड़त को मार :दया जायेगा
और य:द मHृ यु हो जाती है तो धारा 364-ए का अपराध पण
ू < हो जाता है । इस खंड
म तीन चरण ह0, एक है [यपहरण या अपहरण, दस
ू रा धन क मांग के साथ मौत
क धमक और अंत म जब मांग परू  नहं होती है , तो मHृ य।ु य:द ये तीन$ तHव
उपलKध ह0 तो यह दं ड सं:हता क धारा 364-ए के तहत अपराध का गठन करे गा।
इन तीन$ तHव$ म से कोई भी एक +थान पर या अलग-अलग +थान$ पर हो
सकता है ।

(ग) #वEम 8संह म , यह नsन-लjखत eप म दे खा गयाः

“ 25. … धारा 364 -ए भारतीय दं ड सं:हता म तीन अलग-अलग घटक


ह0 अथा<त (i) संबंधत [यि.त [यपहरण या अपहरण या [यपहरण या
अपहरण के बाद पी`ड़त को क़ैद म रखता है ; (ii) मार दे ने या चोट पहुँचाने
क धमक दे ता है या मHृ यु या चोट लगने क आशंका का कारण बनता है
या वा+तव म चोट पहुँचाता है या मHृ यु का कारण बनता है ; और (iii)
[यपहरण, अपहरण या क़ैद और मौत या चोट क धमक, ऐसी मौत या
चोट या वा+तवक मौत या चोट क आशंका संबंधत [यि.त या Fकसी
और को कुछ करने या कुछ करने से रोकने के -लए मजबरू करने के -लए
होती है या मिु .तधन (Fफरौती) का भग
ु तान करने के -लए मजबरू करता
है । ये तHव, हमार राय म , भारतीय दं ड सं:हता क धारा 383 के तहत
जबरन वसल
ू  के अपराध से +प3ट eप से -भ न ह0। मौजूदा कानन
ू ी ढांचे
म कमी को वध आयोग /वारा दे खा गया था और धारा 364-ए भारतीय
दं ड सं:हता के eप म एक अलग Aावधान को शा-मल करने के -लए
A+ताव :दया गया था ताFक मिु .तधन (Fफरौती) क ि+थ त को कवर
Fकया जा सके, िजसम ऊपर उिLलjखत तHव शा-मल हो।"
यह साVबत करना आवhयक है Fक न केवल इस तरह का [यपहरण या द3ु Aेरण हुआ

है , बिLक इसके बाद आरोपी ने ऐसे [यि.त को मार दे ने या चोट पहुंचाने क धमक द या

उसके आचरण से यह यिु .तय.


ु त आशंका पैदा हुई Fक ऐसे [यि.त को सरकार या Fकसी

वदे शी राnय या अंतररा3]य, अंतर-सरकार संगठन या Fकसी अ य [यि.त को कोई काय<

करने या करने से वरत रहने या मिु .तधन (Fफरौती) दे ने के -लए मजबरू करने के -लए मारा

जा सकता है या उपह त का7रत Fकया जा सकता है ।

14. हाल ह म एस. के. अहमद म इस यायालय ने इस बात पर बल :दया है Fक भारतीय

दं ड सं:हता क धारा 364 ए के तीन Acम या घटक ह0, अथा<त ्

i. Fकसी [यि.त का [यपहरण या अपहरण और उ ह क़ैद म रखना;

ii. मHृ यु या उपह त का7रत करने का खतरा, और मिु .तधन (Fफरौती) क मांग के साथ
[यपहरण, अपहरण या क़ैद का उपयोग, और

iii. जब मांग परू  नहं क जाती है , तो मार डालना।

कथत फैसले के Aासंगक भाग नीचे :दए गए ह0 :

" 12. अब हम यह पता लगाने के -लए धारा 364-ए पर गौर कर सकते ह0 Fक


अपराध के -लए धारा +वयं Fकन तHव$ पर वचार करता है । जब हम धारा 364-ए
क [याया करते ह0 तो नsन-लjखत +प3ट होता है :

(i) जो कोई Fकसी [यि.त का अपहरण या अपहरण करता है या ऐसे


अपहरण या अपहरण के बाद Fकसी [यि.त को :हरासत म रखता है,

(ii) और ऐसे [यि.त को मHृ यु या उपह त का7रत करने क धमक


दे ता है, या अपने आचरण से यह यिु .तय.
ु त आशंका पैदा करता है Fक
ऐसे [यि.त को मHृ यद
ु ं ड :दया जा सकता है या उपह त क जा सकती है,

(iii) या सरकार या Fकसी वदे शी राnय या अंतररा3]य अंतर-सरकार


संगठन या Fकसी अ य [यि.त को कोई काय< करने या करने से परहे ज
करने या Fफरौती दे ने के -लए मजबरू करने के -लए ऐसे [यि.त को
आहत या मHृ यु का7रत करता है"
(iv) "मHृ यु या आजीवन कारावास से दं डनीय होगा और जुमा<ने का भी
दायी होगा।"

धारा 364-ए म शा-मल पहल आवhयक शत< यह है Fक "जो कोई भी


Fकसी [यि.त का अपहरण या अपहरण करता है या Fकसी [यि.त को
ऐसे अपहरण या अपहरण के बाद :हरासत म रखता है ।“ दस
ू र शत< 'और'
संयोजन से शe
ु होती है । दस
ू र शत< के दो भाग भी ह0 अथा<त (क) ऐसे
[यि.त को मHृ यु या आहत का7रत करने क धमक दे ता है या (ख)
उसके आचरण से यह यिु .तय.
ु त आशंका पैदा होती है Fक ऐसे [यि.त
को मHृ यु या आहत का7रत क जा सकती है । उपरो.त शत< का कोई भी
भाग, य:द परू ा Fकया जाता है, तो अपराध के -लए दस
ू र शत< को परू ा
करे गा। तीसर शत< "या" शKद से शe
ु होती है अथा<त सरकार या Fकसी
वदे शी राnय या अंतररा3]य अंतर-सरकार संगठन या Fकसी अ य
[यि.त को कोई काय< करने या करने से परहे ज करने या Fफरौती दे ने के
-लए मजबरू करने के -लए ऐसे [यि.त को आहत या मHृ यु का7रत करता
है । तीसर शत< इन शKद$ से शe
ु होती है "या ऐसे [यि.त को चोट
पहुंचाता है या मHृ यु का कारण बनता है ताFक सरकार या Fकसी वदे शी
राnय को कोई काय< करने या करने से परहे ज करने या Fफरौती का
भग
ु तान करने के -लए मजबरू Fकया जा सके।" धारा 364-ए म ‘Fफरौती
के -लए अपहरण’ आ:द शीष<क है । Fफरौती मांगने के -लए Fकसी [यि.त
/वारा Fकया गया अपहरण परू  तरह से धारा 364-ए के अंतग<त आता है।

13. हमने दे खा है Fक पहल शत< के पhचात ् दस


ू र शत< संयोजन
/वारा जोड़ी जाती है और इस Aकार, जो कोई Fकसी [यि.त का अपहरण
या अपहरण करता है, ऐसे अपहरण या अपहरण के पhचात ् Fकसी [यि.त
को नरोध म रखता है और ऐसे [यि.त को मHृ यु या आहत का7रत करने
क धमक दे ता है।

14. संयोजन का उपयोग "और" उसका उHेCय और पदाथ।धारा 364-


ऐ म ''या" नौ बार शJद का +योग =कया गया है और परू  धारा म केवल
एक ह संयोजन "और" है और जो पहल और दस
ू र शत म शा8मल होता
है । इस Aकार, धारा 364-ए के तहत Fकसी अपराध को कवर करने के
-लए, पहल शत< को परू ा करने के अलावा, दस
ू र शत< अथा<त 'और ऐसे
[यि.त को मHृ यु या चोट पहुंचाने क धमक दे ता है' को भी साVबत करने
क आवhयकता है, य:द मामला धारा 364-ए के बाद के खंड$ के अंतग<त
नहं आता है ।
15. 'और' शKद का उपयोग संयोजन के eप म Fकया जाता है । शKद
'या' का उपयोग +प3ट eप से व-श3ट है । दोन$ शKद$ का उपयोग अलग-
अलग उgेhय और पदाथ< के -लए Fकया गया है। आपराधक कानन
ू के
संबंध म "असंगत" और "संय.
ु त" शKद$ पर वचार करते समय कानन
ू क
[याया पर cॉफोड< ने नsन-लjखत बयान :दयाः

"........... यायालय को आपराधक कानन


ू म संयोजी शKद$ के
+थान पर वघटनकार शKद$ को A त+थापत करने के -लए
अHयधक अ न9छुक होना चा:हए और इसके वपरत, य:द ऐसी
कार< वाई अ-भय.
ु त को A तकूल eप से Aभावत करती है।"

xxx

33. उपय.
ु< त मामल$ म धारा 364-ए के सांवधक Aावधान और इस
यायालय /वारा अधकथत वध पर Zयान दे ने के पhचात ् हम इस
न3कष< पर पहुंचे ह0 Fक धारा 364-ए के अधीन Fकसी अ-भय.
ु त को
-स2दोष ठहराने के -लए आवhयक तHव िज ह अ-भयोजन /वारा साVबत
Fकया जाना अपे€;त है , नsनानस
ु ार ह0:

(i) Fकसी [यि.त का [यपहरण या अपहरण या ऐसे [यपहरण


या अपहरण के पhचात ् Fकसी [यि.त को कैद म रखना; और

(ii) ऐसे [यि.त को मHृ यु या आहत का7रत करने क धमक


दे ता है, या उसके आचरण से यह यिु .तय.
ु त आशंका उHप न होती है
Fक ऐसे [यि.त को मHृ यद
ु ं ड :दया जा सकता है या उपह त का7रत
Fकया जा सकता है या।

(iii) सरकार या Fकसी वदे शी राnय या Fकसी सरकार संगठन


या Fकसी अ य [यि.त को कोई काय< करने या उससे दरू रहने या
Fफरौती दे ने के -लए मजबरू करने के -लए ऐसे [यि.त को आहत या
मHृ यु का7रत करता है।

इस Aकार, पहल शत< +थापत करने के बाद, एक और शत< को परू ा करना


होगा .य$Fक पहल शत< के बाद, उपयोग Fकया गया शKद है और। इस
Aकार, पहल शत< के अलावा या तो शत< (ii) या (iii) को साVबत करना
होगा, िजसम वफल रहने पर धारा 364-क के तहत दोष-स2 को बरकरार
नहं रखा जा सकता है ।"

इस Aकार, एस. के. अहमद म इस यायालय ने भारतीय दं ड सं:हता क धारा

364क के अधीन दोष-स2 को अपा+त कर :दया और उसे धारा 363 के अधीन


दोष-स2 म इस कारण से उपांत7रत कर :दया Fक अ त7र.त शतk को

नsन-लjखत eप म मत [य.त करके परू ा नहं Fकया गयाः

"42. दस
ू र शत< साVबत नहं होने के बाद, हम अपीलाथy के व/वान
अधव.ता के A+तत
ु ीकरण म सार पाते ह0 Fक अपीलाथy क दोष-स2
भारतीय दं ड सं:हता क धारा 364-ए के तहत :टकाऊ नहं है।हम, इस
Aकार, धारा 364-ए के तहत अपीलाथy क दोष-स2 को खा7रज़ करते ह0।
हालांFक, अपहरण के बारे म 7रकॉड< म मौजद
ू सबत
ू $ से, यह साVबत हो
जाता है Fक आरोपी ने पी`ड़ता का अपहरण Fफरौती के -लए Fकया था,
Fफरौती क मांग भी साVबत हो गई थी।भले ह धारा 364-ए के तहत
अपराध उचत संदेह से परे साVबत नहं हुआ है, लेFकन अपहरण का
अपराध परू  तरह से +थापत हो गया है, िजसके Aभाव म व/वान सB
यायाधीश ने पैरा 19 और 20 म एक +प3ट न3कष< दज< Fकया है।
अपहरण का अपराध साVबत हो जाने पर, अपीलकता< को धारा 363 के
तहत दोषी ठहराया जाना चा:हए। धारा 363 दं ड का Aावधान करती है जो
Fकसी भी Aकार का कारावास है िजसे सात वष< तक बढ़ाया जा सकता है
और जुमा<ना भी लगाया जा सकता है।"

15. अब, हम वत<मान मामले म उपरो.त अनप


ु ात क Aयोnयता पर वचार कर गे

और पीडKल-ू 21 के बयान$ म वरोधाभास$ के बारे म अपीलकता<ओं के तक< पर

वचार कर गे। हम उ9च यायालय से सहमत ह0 Fक बयान महHवपण


ू < ह0। हम यह

भी नोट करते ह0 Fक नीचे के यायालय$ ने, जैसा Fक अपहरण के मामल$ म

सामा य है, 'मHृ यु या आघात पहुंचाने के खतरे ' के तHव को साVबत करने के -लए

या यह नधा<7रत करने के -लए Fक .या अपीलकता< के आचरण से यह यिु .तय.


ु त

आशंका पैदा होती है Fक ऐसे [यि.त को मौत क सजा द जा सकती है या

आघात पहुंचाई जा सकती है। हमने 18 फरवर, 2000 को प-ु लस को :दए गए

पीडKल-ू 21 के बयान का अवलोकन Fकया है , अथा<त ्, अपीलकता<ओं क कैद से घर

लौटने के दो :दन बाद-यहां। बयान दज< करते ह0 Fक उ ह अपीलकता<ओं /वारा रात

म एक '7रवॉLवर' के साथ धमक द गई थी, जो उनके पास होने का दावा Fकया

गया था। यथाथ< कथन यह था Fक एक eमाल और एक काले कपड़े को आंख$ पर


बांध :दया गया था और मझ
ु से कहा गया था Fक उनके पास 7रवॉLवर है और

अगर वह कोई आवाज उठाता है तो वे उसे मार डालगे।" हालांFक, शT


ु आती बयान

के लगभग दो साल बाद, 15 अAैल 2002 को नचल अदालत के सम; :दए गए

बयान म एक महHवपण
ू < ववरण शा-मल है िजसे पछले बयान म छोड़ :दया गया

था। इस बात का उLलेख करने के बाद Fक पीडKLय-ू 21 को जबरन कार के अंदर

डाल :दया गया था और बंद कर :दया गया था, बयान म कहा गया है, “हमलावर$

ने मझ
ु े चाकू और प+तौल से धमक द और मझ
ु े मारने क धमक द।" इस

Aकार, तीन महHवपण


ू < प7रवत<न दे खे जा सकते ह0: पहला, खतरे के ठWक समय म

प7रवत<न-दस
ू रा, खतरे क सप
ु द
ु < गी क व-श3टता-एंजे-लना को मारने का खतरा और

तीसरा, खतरे के पीछे के इरादे क चक


ू -यानी पीडKLय-ू 21 को रोने से रोकने के

-लए।

ये ववरण धारा 364-ए के तहत आरोप के दस


ू रे घटक को साVबत करने के -लए

महHवपण
ू < ह0 और इस धारा के तहत अपराध को साVबत करने के -लए आवhयक

ह0, अथा<त ्, धमक िजसके प7रणाम+वeप यह यिु .तय.


ु त आशंका पैदा होती है Fक

ऐसे [यि.त को मौत क सजा द जा सकती है या चोट पहुंचाई जा सकती है । यह

+प3ट है Fक यह घटक तक<संगत संदेह से परे साVबत नहं हुआ है । नचले

यायालय$ ने अपीलाथ<य$ को दोषी ठहराने से पहले इस संदेह को परू  तरह से दरू

नहं Fकया।धमक के घटक को साVबत करने के -लए, उसे चप


ु कराने के उgेhय से

बाल पी`ड़त को डराना पया<Cत नहं है।य:द अधकतम मHृ यु दं डादे श और यन


ू तम

आजीवन दं डादे श वाले दं डादे श क साEय संबंधी सीमा इतनी कम है तो 363, 364

और 364- ए के अधीन अपहरण के -लए दं ड$ के बीच का अंतर नरथ<क हो

जाएगा।

16. वशेष eप से, हम यह नोट करते ह0 Fक उ9च यायालय ने मLलेशी बनाम

कना<टक राnय, (2004) 8 एस. सी. सी. 95 (मLलेशी) म पव


ू fदाहरण को ठWक से लागू
नहं Fकया। उ.त मामले के तQय, एक बड़े लड़के के अपहरण के संबंध म , उस पाट‚

के इद<-गद< घम
ू ते थे िजससे धारा 364-ए के तहत अपराध को घर लाने के -लए

Fफरौती क मांग क जानी चा:हए। एस. के. अहमद म यह पाया गया Fक मLलेशी

मामले म Fफरौती क मांग पर वचार Fकया गया और यह अ-भ नधा<7रत Fकया

गया Fक मल
ू eप से अपहरण Fकए गए [यि.त से मांग क गई थी और केवल

यह तQय Fक यह मांग करने के बाद Fकसी अ य [यि.त को सू चत नहं Fकया

जा सकता था .य$Fक इस बीच गरaतार अ-भय.


ु त धारा 364 ए क शतk के

Aभाव को दरू नहं करता था। जैसा Fक एस. के. अहमद म इस यायालय /वारा

+प3ट Fकया गया है, मLलेशी केवल Fफरौती से संबंधत था और इसका अनप
ु ात

उन मामल$ म कोई सहायता नहं करे गा जहां धारा 364ए के तहत अपराध के

अ य घटक$ क पू त< पर सवाल उठाया जाता है।

17. वत<मान मामले के तQय$ म, इस-लए हम अपीलाथ<य$ के व/वान अधव.ता,

Oी गौरव अlवाल के A+तत


ु ीकरण से सहमत ह0 Fक आईपीसी क धारा 364ए के

तहत अपीलाथ<य$ क दोष-स2 :टकाऊ नहं है।

18. इस यायालय को दं ड AFcया सं:हता क धारा 216 के अधीन आरोप म

प7रवत<न करने क [यापक शि.त है, जबFक अ-भय.


ु त पर A तकूल Aभाव न डाले,

जैसा Fक जसवंदर सैनी बनाम राnय (रा3]य राजधानी ;ेB :दLल सरकार)

(2013) 7 एससीसी 256, पैरा 11; कPय अ वेषण Kयरू ो बनाम करमL
ु ला ओसन

खान (2014) 11 एससीसी 538, पैरा संया 17 और 18 म दोहराया गया है । डॉ.

नMलारे Nडी Oीधर रे Nडी बनाम आंP +दे श रा*य (2020) 12 एससीसी 467, पैरा

सं"या 21 म इस यायालय क ,नQन8लRखत AटDपRणयां भी 8शा+द है:

"21. उपरो.त उदाहरण$ से यह +प3ट है Fक धारा 216 यायालय


को Fकसी भी आरोप को बदलने या प7रवत<न के -लए अन य और
[यापक शि.त Aदान करती है।उपधारा (1) म " नण<य के पव
ू < Fकसी भी
समय" शKद$ का उपयोग यायालय को साEय, तक< और नण<य को
सरु €;त रखने के बाद भी आरोप$ को बदलने या जोड़ने क अपनी
शि.तय$ का उपयोग करने के -लए सश.त करता है। आरोप म प7रवत<न
या वृ 2 तब क जा सकती है जब यायालय क राय म आरोप क
वरचना म कोई चक
ू हुई हो या य:द अ-भलेख पर लाई गई सामlी क
Aथमx3टया जांच के बाद यायालय कथत अपराध ग:ठत करने वाले
तQयाHमक अवयव$ के अि+तHव के बारे म एक अनम
ु ान क राय बनाने
के -लए अlसर होता है।Fकसी आरोप के प7रवध<न या वृ 2 का व नhचय
करते समय यायालय /वारा अपनाई जाने वाल कसौट यह है Fक
अ-भलेख पर लाई गई सामlी का अ-भकथत अपराध के अवयव$ के
साथ AHय; संबंध या कड़ी होने क आवhयकता है।आरोप को जोड़ने से
केवल अ त7र.त आरोप$ के -लए मक
ु दमा शe
ु होता है, िजसके बाद, साEय
के आधार पर, यह नधा<7रत Fकया जाता है Fक .या अ-भय.
ु त को
अ त7र.त आरोप$ के -लए दोषी ठहराया जा सकता है । यायालय को धारा
216 के अधीन अपनी शि.तय$ का यायोचत eप से Aयोग करना चा:हए
और यह सु निhचत करना चा:हए Fक अ-भय.
ु त पर कोई A तकूल Aभाव
न पड़े और उसे न3प; वचारण क अनम
ु त द जाए। यायालय क
शि.त पर एकमाB बाधा यह है Fक आरोप$ के प7रवध<न या वृ 2 /वारा
अ-भय.
ु त पर A तकूल Aभाव पड़ने क संभावना है ।उपधारा (4) तदनस
ु ार
उन यायालय$ /वारा अपनाए जाने वाले xि3टकोण को व:हत करती है
जहां A तकूल Aभाव का7रत Fकया जा सकता है ।"

इस-लए, हम अपील$ को आं-शक eप से +वीकार करते ह0 और आईपीसी क

धारा 364ए के तहत दोष-स2 को दरFकनार करते ह0।

व/वान वचारण यायालय और उ9च यायालय के नण<य उपरो.त सीमा

तक संशोधत Fकए जाते ह0। अपीलाथ<य$ को अब भारतीय दं ड सं:हता क धारा

363 के तहत अपराध के -लए दोषी ठहराया गया है यानी, अपहरण और सात साल

के कारावास और 2000/- Tपये के जुमा<ने क सजा सन


ु ाई गई है ।य:द अपीलाथ<य$

ने सात साल से अधक के कारावास को छूट के साथ परू ा कर -लया है और

2000/- Tपये के जुमा<ने का भग


ु तान Fकया है , तो हम अपीलाथ<य$ को नद\ श दे ते ह0

Fक य:द जमानत पर नहं है तो उ ह तुरंत 7रहा Fकया जाए। य:द नहं, तो


अपीलकता< चार सCताह क अवध के भीतर आHमसमप<ण कर गे और शेष सजा

काट गे।

.......................................... जे.
(संजय =कशन कौल)

…...................................... जे.
(बी. वी. नागार3ना)
नई AदMल
1 माच, 2023.

अ+वीकरणः +थानीय भाषा म अनव


ु ा:दत नणय< वाद के सी-मत उपयोग के -लए है ताFक
वह अपनी भाषा म इसे समझ सके और Fकसी अ य उ/येhय के -लए इसका उपयोग नहं

Fकया जा सकता है । सभी [यवहा7रक और आधका7रक उ/येhय$ के -लए नण<य का अंlेजी

सं+करण Aामाjणक होगा और न3पादन और काया< वयन के उ2ेhय के -लए उपय.


ु त
रहे गा ।

Translated by Mr Vishal, Revisor and Mr. Lekh Nath Gautam, Translator.

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