डर के आगे जीत है ~ कैसे हराएँ अपने डर को

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डर के आगे जीत है ~ कै से हराएँ अपने डर को

डर क्या होता है ?
डर एक प्राकृतिक, शतिशाली और आतिम मानवीय भावना है। इसमें एक साववभौतमक जैव रासायतनक
प्रतितिया के साथ-साथ एक उच्च व्यतिगि भावनात्मक प्रतितिया शातमल है। डर हमें खिरे की
ु सान के खिरे के प्रति सचेि करिा है, चाहे वह खिरा शारीररक हो या मनोवैज्ञातनक।
उपतथथति या नक

असल में डर इंसान की सोच ही होिी है। इंसान डरिा िभी है जब उसके मन में बहुि सारे ऐसे तवचार होिे
है तजनका उसके पास जवाब नहीं होिा, अगर आपको आपके मन मै जो डर है उसका जवाब हो िो आप
नहीं डरोगे, इस
ं ान के अिं र डर बहिु िरीके से हो सकिे है तजनकी वजह से डरिा है, क्या आपने कभी
सोचा है तक आपको डर क्यों लगिा है ? अगर आपने नहीं सोचा है िो हम आपको बिाने जा रहे है।

जब भी हम कोई भी ऐसा काम करिे है जो तक हमने आज से पहले कभी भी नहीं तकया हो अगर हम उस
काम को करिे है िो हमारे अंिर डर आने लग जािा है।

तजस चीज़ की हमारे पास कोई भी जानकारी नहीं होिी है िो हम अपने-आप ही उस काम से डरने लग
जािे है।
जब भी हमको डर लगिा है िो हमारे अिं र िो िरह की प्रतितकयाव होिी है।

1. शारीररक प्रतितिया

2. भावनात्मक प्रतितिया

1. शारीररक प्रतितिया

इस शारीररक प्रतितिया को "लडाई या उडान" प्रतितिया के रूप में भी जाना जािा है, तजसके साथ आपका शरीर
खिु को यद्ध
ु में प्रवेश करने या भागने के तलए िैयार करिा है। यह शारीररक प्रतितिया प्रतितिया सभ
ं विः एक
तवकासवािी तवकास है। यह एक थवचातलि प्रतितिया है जो हमारे अतथित्व के तलए महत्वपूर्व है।

2. भावनात्मक प्रतितिया
िूसरी ओर, भय के प्रति भावनात्मक प्रतितिया अत्यतिक व्यतिगि होिी है। क्योंतक डर में हमारे तिमाग में कुछ ऐसी
ही रासायतनक प्रतितियाएं शातमल होिी हैं जो खश ु ी और उत्तेजना जैसी सकारात्मक भावनाएं करिी हैं, कुछ
पररतथथतियों में डर महसूस करना मजेिार के रूप में िेखा जा सकिा है, जैसे तक जब आप डरावनी तिल्में िेखिे हैं।

कामयाबी उन्ही लोगों के कदम चूमती है,

जो अपनें फ़ै सलों से दुननयााँ बदल कर रख देते हैं और

नाकामयाबी उन लोगों का मक
ु द्दर बन कर रह जाती है

जो लोग दुननयााँ के डर से अपनें फै सले बदल नदया करते हैं।

हमको जो एक डर सबसे ज्यािा लगिा है या तिर कह लीतजये 99 % लोगो को लगिा है तक लोग क्या
कहेगे अगर ये डर हमारे अंिर से तनकल जाये िो तिर िो हमारा काम बहुि आसान हो जायेगा

क्योतक जब भी हमारे अंिर कोई भी काम करने का तवचार आिा है कुछ करने का िो एकिम से बीच में
ये आ जािा है की लोग क्या कहेगे और हम उसको करने से पहले हे छोड िेिे है।

अगर कोई भी चीज़ तजसको हमने न िो सीखा है और ना ही हमको करना आिा िो हमको उससे डर लगिा
है पर जब हम उसको सीख जािे है उसके बाि नहीं लगिा है।

उससे मत डरो जो वास्तनवक नहीं है,

ना कभी था ना कभी होगा, जो वास्तनवक है,

वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं नकया जा सकता है।

सुप्रिया सेनापतत

XI - B

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