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अनंत चतर्

ु द शी व्रत महत्व व पज
ू ा ववधि एवं कथा
Anant Chaturdasi Varth mahatv /Pooja Vidhi katha

अनंत चतुर्दशी व्रत कब और कैसे - अनंत चतर्


ु द शी के दर्न भगवान श्री हरि की पूजा की
जाती है । यह व्रत भाद्रपर् के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी ततथि को ककया जाता है ।
इस व्रत में सूत या िे शम के धागे को लाल कंु कुम से िं ग, उसमें चौर्ह गांठे (14 गांठे भगवान
श्री हरि के द्वािा 14 लोकों की प्रतीक मानी गई है ) लगाकि िाखी के तिह का अनंत बनाया
जाता है । इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान पि चढा कि व्रती अपने बाजु में बााँधते
हैं ।
परु
ु ष र्ाएं तिा स्त्रियां बाएं हाि में अनंत बााँधती है । ऐसी मान्यता है कक यह अनंत हम पि
आने वाले सब संकटों से िक्षा किता है। यह अनंत डोिा भगवान ववष्णु को प्रसन्न किने
वाला तिा अनंत फल र्े ने वाला माना गया है ।यह व्रत धन पि
ु ादर् की कामना से ककया जाता
है। इस दर्न नए डोिे के अनंत को धािण किके पिु ाने का ववसजदन ककया जाता है ।
अस्त्नन पिु ाण के अनस
ु ाि व्रत किनेवाले को एक सेि आटे की मालपआ
ु अिवा पड
ू ी बनाकि
पज
ू ा किनी चादहये तिा उसमें से आधी ब्राह्मण को र्ान र्े र्ें औि शेष को प्रसार् के रूप में
बंधु-बााँधवों के साि ग्रहण किें । इस व्रत में नमक का उपयोग तनषेध बताया गया है ।
ऐसी मान्यता है कक यदर् ककसी व्यस्त्क्त को अनंत िारते में पडा ममल जाये तो उसे भगवान
की इच्छा समझ कि, अनंत व्रत तिा पूजन किना चादहये ।
यह व्रत पुरुषों औि स्त्रियों के समरत पापों को नष्ट किने वाला माना गया है ।
इस व्रत के प्रभाव से ही पाण्डवों ने अपने भाईयों सदहत महाभाित का युद्ध जीत अपना
खोया हुआ साम्राज्य तिा मान सम्मान पाया ।

अनंत चतर्
ु दशी व्रत पज
ू न सामग्री :- Anant Chaturdashi Vrat Pujan Samagri:-

इस पूजा में यमुना (नर्ी ), शेष (नाग ) तिा अनंत ( श्री हरि ) की पूजा की जाती है । इस
में कलश को यमुना के प्रतीक के रूप में , र्ब
ू ाद को शेष का प्रतीक तिा 14 गांठों वाले अनंत
धागे को भगवान श्री हरि के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है । इस में फूल, पत्ती, नैवैद्य
सभी सामग्री को 14 के गण
ु क के रूप में उपयोग ककया जाता है । ऐसा कहा जाता है कक
यदर् यह व्रत 14 वषों तक ककया जाए, तो व्रती ववष्णु लोक की प्रास्त्तत किता है ।

पत्ते – 14 प्रकाि के वक्ष


ृ ों के
कलश (ममट्टी का )- एक
कलश पाि (ममट्टी का )- एक
र्ब
ू ाद
चावल – 250ग्राम
कपूि- एक पैकेट
धूप - एक पैकेट
पुष्पों की माला – चाि
फल – सामर्थयादनुसाि
पष्ु प (14 प्रकाि के)
अंग वरि –एक
नैवैद्य( मालपुआ )
ममष्ठान्न - सामर्थयादनुसाि
अनंत सूि ( 14 गााँठों वाले ) – नये
अनंत सि
ू ( 14 गााँठों वाले ) – पिु ाने
यज्ञोपवीत( जनेऊ) – एक जोडा
वरि
तुलसी र्ल
पान- पााँच
सप
ु ािी- पााँच
लौंग – एक पैकेट
इलायची - एक पैकेट
पंचामत
ृ (र्ध
ू ,र्ही,घत
ृ ,शहर्,शक्कि)
शेषनाग पि लेटे हुए श्री हरि की मूततद अिवा तरवीि
आसन ( कम्बल )

अनंत चतर्
ु द शी व्रत पज
ू न ववधि आरम्भ:-

पुिाणों मे इस व्रत को किने का ववधान नर्ी या सिोवि पि उत्तम माना गया है । पिं तु आज
के आधुतनक युग में यह सम्भव नहीं है । अत: घि में ही पूजा रिान पि शुद्थधकिण किके
अनंत भगवान की पूजा किें तिा किा सुने । साधक प्रात: काल रनानादर् कि तनत्यकमों से
तनवत
ृ हो जायें । सभी सामग्री को एकत्रित कि लें तिा पज
ू ा रिान को पववि कि लें। पत्नी
सदहत आसन पि बैठ जायें ।
अनंत चतुर्दशी पूजन ववधि –
पुिाणों मे इस व्रत को किने का ववधान नर्ी या सिोवि पि उत्तम
माना गया है । पिं तु आज के आधुतनक युग में यह सम्भव नहीं है ।
अत: घि में ही पज
ू ा रिान पि शद्
ु थधकिण किके अनंत भगवान की
पूजा किें तिा किा सुने। साधक प्रात: काल रनानादर् कि तनत्यकमों
से तनवत
ृ हो जायें। सभी सामग्री को एकत्रित कि लें तिा पूजा रिान
को पववि कि लें। पत्नी सदहत आसन पि बैठ जायें।
पववत्रीकरण-
अब र्ादहने हाि में जल लेकि तनम्न पवविीकिण मंि का उच्चािण
किें औि सभी सामग्री , उपस्त्रित जन- समह
ू पि उस जल का तछं टा
र्ें कि सभी को पववि कि लें ।
पववत्रीकरण मंत्र –
ॐ अपववत्रः पववत्रो वा सवद अवसथांगत: अवपवा।
यः समरे त पुण्डरीकाक्षं स वाह्य अभ्यन्तर: शुधचः॥
आचमन
र्ाएाँ हाि में जल लें तनम्न आचमन मंि के द्वािा तीन बाि आचमन
किें
“ॐ केशवाय नमः” मंि का उच्चािण किते हुए जल को पी लें।
“ॐ नािायणाय नमः” मंि का उच्चािण किते हुए जल को पी लें।
“ॐ वासर् ु े वाय नमः” मंि का उच्चािण किते हुए जल को पी लें।
तत्पश्चात“ॐ हृवषकेशाय नमः” कहते हुए र्ाएाँ हाि के अंगठ
ू े के मल

से होंठों को र्ो बाि पोंछकि हािों को धो लें।
पववत्री िारण
तत्पश्चात ् तनम्न मंि के द्वािा कुश तनममदत पवविी धािण किे
पववत्रे सथो वैष्णव्यौ सववतव
ु ःद प्रसव उत्पन
ु ाम्यच्छिद्रे ण पववत्रेण
सय
ू स
द य रच्ममभभः ।
तसय ते पववत्रपते पववत्रपूतसय यत्कामः पुने तछिकेयम ।।
सवच्सतवाचन –
हाि में अक्षत तिा पुष्प लें औि तनम्न मंिों को बोलते हुए िोडा
–िोडा पुष्प भूमम पि छोडते जायें ।
ॐ गणेशास्त्म्बकाभयां नम : ।
ॐ केशवाय नम : ।
ॐ नािायणणाय नम : ।
ॐ माधवाय नम : ।
ॐ गोववंर्ाय नम : ।
ॐ ववष्णवे नम : ।
ॐ मधस
ु र्
ू नाय नम : ।
ॐ त्रिववक्रमाय नम : ।
ॐ वामनाय नम : ।
ॐ श्रीिाधाय नम : ।
ॐ ह्रषीकेशाय नम : ।
ॐ पद्मनाभाय नम : ।
ॐ र्ामोर्िाय नम : ।
ॐ संकषदणाय नम : ।
ॐ वासर्
ु े वाय नम : ।
ॐ प्रद्यम्
ु नाय नम : ।
ॐ अतनरुद्धाय नम : ।
ॐ परु
ु षोत्तमाय नम : ।
ॐ अधोक्षजाय नम : ।
ॐ निमसंहाय नम : ।
ॐ अच्युताय नम : ।
ॐ जनार्द नाय नम : ।
ॐ उपें द्राय नम : ।
ॐ हिये नम : ।
ॐ श्रीकृष्णाय नम : ।
ॐ श्रीलक्ष्मीनािायणाभयां नम : ।
ॐ उमामहे श्विाभयां नम : ।
शचीपिु न्र्िाभयां नम : ।
मातवृ पतभ
ृ यां नम : ।
इष्टर्े वताभयो नम : ।
ग्रामर्े वताभयो नम : ।
रिानर्े वताभयो नम : ।
वारतुर्ेवताभयो नम : ।
सवेभयो र्े वभ
े यो नम : ।
सवेभयो ब्राह्मणेभयो नम : ।
संकल्प : -
हाि मे अक्ष्त ,पान का पत्ता ,सुपािी तिा सामर्थयादनुसाि मसक्के लेकि
संकल्प मंि उच्चारित किते हुए संकल्प किें –

ॐ ववष्णवु वदष्णवु वदष्ण:ु श्रीमद्भगवतो महापरु


ु षरय ॐ ववष्णोिाज्ञया
प्रवतदमानरय अद्य श्रीब्रह्मणोऽस्त्ह्न द्ववतीय पिाद्दधे ववष्नप
ु र्े
श्रीश्वेतवािाहकल्पे वैवरवतमन्वन्तिे , अष्टाववंशतततमे यग
ु े कमलयग
ु े,
कमलप्रिमचिणे भल
ू ोके जम्बुद्वीपे भाितवषे भितखण्डे
आयादवतैकर्े शे अमुकक्षेिे (अपने नगि तिा क्षेि का नाम लें)
बौद्धावतािे अमक
ु नाम संवत्सिे श्रीसुये अमुकयाने अमुक ऋतो(
ऋतु का नाम लें ) महामंगल्यप्रर्े मासानां मासोत्तमे भाद्र मासे
शक्
ु ल पक्षे चतर्
ु द शी ततिौ अमक
ु वासिे ( वाि का नाम लें ) अमक

नक्षिे ( नक्षि का नाम लें ) अमक
ु योगे अमक
ु -किणे
अमक
ु िामशस्त्रिते चंद्रे ( स्त्जस िामश में चंद्रमा स्त्रित हो,उसका नाम
लें ) अमुकिामशस्त्रिते श्रीसुये (स्त्जस िामश में सुयद स्त्रित हो,उसका
नाम लें ) र्े वगुिौ शेषेषु ग्रहे षु यिायिा- िामशरिान-स्त्रितेषु सत्सु
एवं ग्रह-गण
ु ग़ण-ववशेषण- ववमशष्टायां शभ
ु पुण्यततिौ अमुक गोि
(अपने गोि का नाम लें ) अमुकनाम ( अपना नाम ले ) ऽहं मम
सकुटुम्बरय क्षेमैश्वयादयिु ािोनयचतुववदधपुरुषािदमसद््यिं मया
आचरितं वा आचायदमाणरय व्रतरय सम्पण
ू फ
द लावातत्यिं
श्रीमर्नन्तपज
ू नमहं करिष्ये। श्रीमर्नन्तव्रतांगत्वेन गणेशपज
ू नं
,यमुनापूजनादर्कं च करिष्ये।
गौरी-गणेश पूजन:-
अब अक्षत, पष्ु प एवं िोली लेकि गौिी-गणेश का पज
ू न ्यान किें

अक्षत, पुष्प, िोली गौिी - गणेश पि चढायें ।


कलश पज
ू न
कलश में शुद्ध जल भि लें औि उसमें िोडा गंगाजल ममला लें।
भूमम पि चावल अिवा िोली से अष्टर्ल तनममदत किें औि उस पि
कलश की रिापना किें । अब अक्षत, पुष्प लेकि तनम्न मंिो द्विा
कलश का ्यान किें ।

कलश पि पष्ु प एवं अक्षत छोडें।


शंख पूजन
ननम्न मंत्रो से शंख का पज
ू न करते हुए उस पर पष्ु प एवं अक्षत
िोड़ें।

यमन
ु ा जी का ध्यान
अब र्ोनों हाि जोडकि तनम्न मंिो से यमुना जी का ्यान किें :-
अंग पूजन कलश :-
हाि में अक्षत लेकि िोड-िोडा अक्षत कलश पि छोडते हुए तनम्न
मन्ि उच्चारित किें –
नाम मंत्र पूजन कलश :-
हाि में अक्षत तिा पष्ु प लेकि एक –एक मंि पढते हुए िोडा-
िोडा अक्षत औि पष्ु प कलश पि चढायें।

प्राथदना
अब धूप,र्ीप,नैवद्
ै य,ताम्बूल आदर् कलश पि समवपदत किें औि
र्ोनों हाि जोडकि प्रािदना किें ।
अनन्त भगवान की सथापना-
यमन
ु ा कलश पि पण
ू प
द ाि (ममट्टी का हो स्त्जसमें अष्टर्ल बना हो
) रिावपत कि उस पि सात फणयक्
ु त र्ब
ू ाद से तनममदत शेषजी
(नाग र्े वता) रिावपत किें तिा उसपि अनन्त भगवान
(शेषनाग पि सोये हुए) की तरवीि अिवा मूततद िखें ।
इसी पि 14 गााँठोंवाला अनंत भी िखें । अब हाि में पष्ु प लेकि
अनंत भगवान का ्यान तिा आवाहन किें ।

पाद्यादर्पूजन-
अब पाद्यादर्पूजन किें
अंग पूजा-
हाि में अक्षत तिा पष्ु प लेकि मंि पढते हुए िोडा- िोडा अक्षत
औि पष्ु प चढायें औि अंग पजू ा किें –
पंचोपचार पूजन तथा प्राथदना –
अक्षत तिा पष्ु प चढायें,धप
ू -र्ीप दर्खायें औि नैवद्य समवपदत कि
पञ्चोपचाि ववथध से पज
ू न कि प्रािदना किें –
अनन्तकल्पोक्तफलं र्े दह मे त्वं महीधि ।
त्वत्पूजािदहतश्चाधं फलं प्रातनोतत मानव:।

द्वार पूजा :-
इसके बार् मण्डपरि चािों द्वािों पि तनम्न मंिोंसे पूजन किें :-
गह
ृ द्वािे –
द्वािथश्रयै नम: ।
नन्र्ायै नम: ।
सुनन्र्ायै नम: ।
धाञ्यै नम: ।
ववद्यायै नम: ।
मशवशक्तयै नम: ।
मायाशक्तयै नम: ।
शंखतनधये नम: ।
पद्मतनधये नम: ।
उत्तिद्वािे –
द्वािथश्रयै नम: ।
बलायै नम: ।
प्रबलायै नम: ।
धाञ्यै नम: ।
ववद्यायै नम: ।
मशवशक्तयै नम: ।
मायाशक्तयै नम: ।
शंखतनधये नम: ।
पद्मतनधये नम: ।
पस्त्श्चमद्वािे –
द्वािथश्रयै नम: ।
महाबलायै नम: ।
प्रबलायै नम: ।
धाञ्यै नम: ।
ववधाञ्यै नम: ।
मायाशक्तयै नम: ।
शंखतनधये नम: ।
पद्मतनधये नम: ।
पीठम्ये –
वारतुपुरुषाय नम: ।
मण्डूकाय नम: ।
कामास्त्ननरुद्राय नम: ।
आधािशक्तयै नम: ।
कूमादय नम: ।
पथृ िव्यै नम: ।
अमत
ृ ाणदवाय नम: ।
श्वेतद्वीपाय नम: ।
कल्पवक्ष
ृ ेभयो नम: ।
मणणमस्त्न्र्िाय नम: ।
हे मपीठाय नम: ।
धमादय नम: ।
अधमादय नम: ।
ज्ञानाय नम: ।
वैिानयाय नम: ।
ऐश्वयादय नम: ।
अनैश्वयादय नम: ।
सहरिफणास्त्न्वताय नम: ।
अनन्ताय नम: ।
पद्माय नम: ।
आनन्र्कन्र्ाय नम: ।
ववकािमयकेसिे भयो नम: ।
प्रकृततमयपिेभयो नम: ।
सूयम
द ण्डलाय नम: ।
चंद्रमण्डलाय नम: ।
वस्त्ह्नमण्डलाय नम: ।
सं सत्याय नम: ।
िं िजसे नम: ।
तं तमसे नम: ।
आत्मने नम: ।
पिमात्मने नम: ।
ज्ञानात्मने नम: ।
प्राणात्मने नम: ।
कालात्मने नम: ।
ववद्यात्मने नम: ।
तत: - पव
ू ाददर्दर्क्षु–
जयायै नम: ।
ववजयायै नम: ।
अस्त्जतायै नम: ।
अपिास्त्जतायै नम: ।
तनत्यायै नम: ।
ववनामशन्यै नम: ।
र्ोनरयै नम: ।
अघोिायै नम: ।
मंगलायै नम: ।
अपािशस्त्क्तकमलासनायै नम: ।
प्राणप्रनतष्ठा :-
भगवान श्री अनन्तर्े व की मतू तद अिवा तरवीि व चौर्ह गााँठों वाले
धागे की प्राण प्रततष्ठा किें ।
हाि में अक्षत लेकि र्ोनों हाि जोडे तिा मंि उच्चारित किें :-

अक्षत को मूततद औि अनंत पि छोड र्ें ।


ध्यान मंत्र :-
हाि में पुष्प लेकि भगवान का ्यान किें ।

पुष्प भगवान को समवपदत किें


प्रिानर्े वता पूजन-
र्ोनों हाि जोडकि भगवान श्री हरि का ्यान किें

आवाहन करे -
र्ोनों हाि जोडकि भगवान श्री हरि का आवाहन किें :-

आसन र्े :-
कोई वरि अिवा मौली हाि में लेकि भगवान श्री हरि को आसन
र्ें –

पाद्य–
जल पाि से जल लेकि पाद्य धुलने के मलये जल समवपदत किें –
अर्घयद ऱ्ें
जल पाि से जल लेकि भगवान का अमभषेक किें
अनन्तानन्त र्े वेश अनन्तफल्र्ायक ।
अनन्तानन्तरूपोऽमस गह
ृ ाणार्घ्यं नमोऽरतु ते॥
आचमन (जल) ऱ्ें –
जल पाि से जल लेकि हाि धुलने के मलये जल समवपदत किें
गंगोर्कं समानीतं सुवणदकलशे स्त्रितम ्।
आचम्यतां हृषीकेश प्रसीर् परु
ु षोत्तम ॥
सनान करावे –
जल पाि से जल लेकि रनान के मलये जल समवपदत किें –
अनन्तगुणरूपाय ववश्वरूपधिाय च ।
नमो महात्मर्े वाय अनन्ताय नमो नम:॥

सनान ववधि –
र्नु ध ,र्थध, घत
ृ , मध,ु शकदिा से बािी बािी से भगवान को
पञ्चामत
ृ रनान किायें औि अंत में शद्
ु ध जल से रनान किायें ।
वसत्रम
भगवान को मंि के साि वरि समवपदत किें :-

उपवसत्रम :-
भगवान को मंि के साि उपवरि/मौली समवपदत किें –

यज्ञोपवीत
भगवान को मंि के साि यज्ञोपवीत समवपदत किें –

चंर्नम :-
भगवान को मंि के साि चंर्न समवपदत किें

अक्षतम :-
हाि में अक्षत लेकि मंिों द्वाि अक्षत समवपदत किें
पुष्प माला-
हाि में माला ले औि भगवान को चढाये-

ग्रंधथ पूजा-
तत्पश्चात हाि में अक्षत लेकि ग्रंथि पज
ू ा किें औि मंि के साि
अक्षत छोडते जायें

अंग पज
ू ा :-
हाि में अक्षत लेकि अंग पूजा के मंि के साि अक्षत छोडते जायें

पत्र पूजा
अलग-अलग 14 पवत्तयों से पि पज
ू ा किें
पुष्प पूजा :-
14 प्रकाि के पष्ु प से पष्ु प पज
ू ा किें
भगवान के अष्टोत्तरशत (108) नामों से पूजा कऱें :-
हाि में अक्षत औि पष्ु प लें तिा एक-एक नाम को बोलते हुए
श्रीअनंत भगवान को अक्षत समवपदत किें –
1. अन्न्ताय नम: ।
2. अच्युताय नम: ।
3. अद्भूतकमदणे नम: ।
4. अममतववक्रमाय नम: ।
5. अपिास्त्जताय नम: ।
6. अखण्डाय नम: ।
7. अस्त्नननेिाय नम: ।
8. अस्त्ननवपष्ु पे नम: ।
9. अदृश्याय नम: ।
10. अत्रिपुिाय नम: ।
11. अनुकूलाय नम: ।
12. अमत
ृ ाशने नम: ।
13. अनघाय नम: ।
14. अतसतु नलयाय नम: ।
15. अहिाय नम: ।
16. अष्टमूतय
द े नम: ।
17. अतनरुद्धाये नम: ।
18. अतनववष्टाय नम: ।
19. अचञ्चलाय नम: ।
20. अब्र्ादर्काय नम: ।
21. अचलरूपाय नम: ।
22. अणखलाधािाय नम: ।
23. अव्यक्ताय नम: ।
24. अनरू
ु पाय नम: ।
25. अभयंकिाय नम: ।
26. अक्षताय नम: ।
27. अवपुषे नम: ।

28. अयोतनजाय नम: ।


29. अिववन्र्ाक्षाय नम: ।
30. अशनवस्त्जत
द ाय नम: ।
31. अधोक्षजाय नम: ।
32. अदर्ततपुरुषाय नम: ।
33. अस्त्म्बकापततपूस्त्जताय नम: ।
34. अपरमािनामशने नम: ।
35. न्यायाय नम: ।
36. अनादर्ने नम: ।
37. अप्रमेयाय नम: ।
38. अघशिये नम: ।
39. अमिारिर्घ्नाय नम: ।
40. अनीश्विाय नम: ।
41. अजाय नम: ।
42. अघोिाय नम: ।
43. अनादर्तनधनाय नम: ।
44. अमिप्रभवे नम: ।
45. अग्राह्राय नम: ।
46. अक्रूिाय नम: ।
47. अनत्त
ु माय नम: ।
48. अरूपाय नम: ।
49. अह्ने नम: ।
50. अमोघादर्पतये नम: ।
51. जयाय नम: ।
52. अक्षमाय नम: ।
53. अमत
ृ ाय नम: ।
54. अमोघवीयादय नम: ।
55. अव्यंगाय नम: ।
56. अववर्घ्नाय नम: ।
57. अतींदद्रयाय नम: ।
58. अतततेजसे नम: ।
59. अममतववक्रमाय नम: ।
60. अष्टमूतय
द े नम: ।
61. अतनलाय नम: ।
62. अवशाय नम: ।
63. अणोिणीयसे नम: ।
64. अशोकाय नम: ।
65. अिववन्र्ाय नम: ।
66. अथधष्ठानाय नम: ।
67. अममतनयनाय नम: ।
68. अिण्यवामसने नम: ।
69. अप्रमत्ताय नम: ।
70. अनन्तरूपाय नम: ।
71. अनलाय नम: ।
72. अममषाय नम: ।
73. अरिरूपाय नम: ।
74. अग्रगण्याय नम: ।
75. अपनेयाय नम: ।
76. अन्तकाय नम: ।
77. अथचन्त्याय नम: ।
78. अपांतनधये नम: ।
79. अिववन्र्ाये नम: ।
80. अमिवप्रयाय नम: ।
81. अष्टमसद्थधर्ाय नम: ।
82. अिववंर्ाय नम: ।
83. अनघाय नम: ।
84. अिादय नम: ।
85. अक्षोभयाय नम: ।

86. अथचदष्मते नम: ।


87. अनेकमूतय
द े नम: ।
88. अनन्तब्रह्माण्र्पतये नम: ।
89. ब्रह्माण्डनायकाय नम: ।
90. अनन्तशयनाय नम: ।
91. अमिाथधपतये नम: ।
92. अनाधािाय नम: ।
93. अनन्तनाम्ने नम: ।
94. अनन्तथश्रये नम: ।
95. श्रीपतये नम: ।
96. अक्सिाय नम: ।
97. आश्रमरिाय नम: ।
98. आश्रमानीताय नम: ।
99. अन्नर्ाय नम: ।
100. आत्मयोनये नम: ।
101. अस्त्ननपतये नम: ।
102. अवतनधिाय नम: ।
103. अनादर्ने नम: ।
104. आदर्त्याय नम: ।
105. अमत
ृ ाय नम: ।
106. अपवगदप्रर्ाय नम: ।
107. अव्यक्ताय नम: ।
108. व्यक्ताय नम: ।
िूप-
धूप समवपदत किें –

र्ीपक –
शद्
ु ध घी का र्ीपक जलाकि श्रीहरि को र्ीप दर्खायें ।
नैवद्य-
नैवैद्य समवपदत किें –

आचमन –
आचमन के मलये तीन बाि जल समवपदत किें ।

चंर्न-
हािों के मलये सुगथं धत चंर्न समवपदत किें ।

फल :-
जो भी फल उपलब्ध हों वह समवपदत किें ।:-
इर्ं फलं मया र्े व रिावपतं पुितरतव ।
तेन मे सफलावास्त्ततभदज्जन्मतन जन्मतन॥

पंग
ू ीफल- ताम्बल
ू -:-
पान के पत्ते को उलट कि उस पि सुपािी,लौंग,ईलायची तिा कुछ
मीठा िखकि ताम्बूल बनायें औि मुखशद्
ु थध के मलये ताम्बूल
समवपदत किें ।
पूगीफलं मद्र्ीव्यं नागवल्लीर्लैयत
ुद म ्।
एलादर्चण
ू स
द ंयक्
ु तं ताम्बूलं प्रततगहृ
ृ ताम ्॥
द्रव्य-र्क्षक्षणा-:-
सामर्थयादनस
ु ाि र्क्षक्षणा समवपदत किें –
दहिण्यगभदगभदरयं हे मबीजं ववभावसो:।
अनन्तपुण्यफलर्मत: शास्त्न्तं प्रयच्छ मे ॥
कथा –

अनंत व्रत कथा सुने अथवा सुनाय़ें ।


आरती-
कपूि जला कि भगवान श्रीअनंत जी की आिती किें –
श्री जगर्ीमवरजी की आरती
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
ॐ जय जगर्ीश हिे , रवामी जय जगर्ीश हिे
भक्त जनों के संकट, र्ास जनों के संकट, क्षण में र्िू किे ||
जो ्यावे फल पावे, र्ख
ु ववनसे मन का रवामी र्ख
ु ववनसेमन का
सख
ु सम्पतत घि आवे, कष्ट ममटे तन का ||
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
मात वपता तुम मेिे, शिण गहूं मैं ककसकी रवामी शिण गहूं मैं ककसकी
तुम त्रबन औि न र्ज ू ा, आस करूं मैं स्त्जसकी ||
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
तुम पूिण पिमात्मा, तुम अंतयादमी रवामी तुम अंतयादमी
पािब्रह्म पिमेश्वि, तम
ु सब के रवामी ||
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
तम
ु करुणा के सागि, तम
ु पालन कताद रवामी तम
ु पालन कताद
मैं मिू ख खल कामी ,कृपा किो भताद ||
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
तुम हो एक अगोचि, सबके प्राणपतत, रवामी सबके प्राणपतत,
ककस ववथध ममलूं र्यामय, तुमको मैं कुमतत ||
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
र्ीनबंधु र्ख
ु हताद, ठाकुि तुम मेिे, रवामी ठाकुि तुम मेिे
अपने हाि उठाओ, द्वाि पडा तेिे ||
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
ववषय ववकाि ममटाओ, पाप हिो र्े वा, रवमी पाप हिो र्े वा,
श्रद्धा भस्त्क्त बढाओ, संतन की सेवा ||
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
श्री जगर्ीशजी की आिती, जो कोई नि गावे,रवामी जो कोई नि गावे।
कहत मशवानन्र् रवामी, सुख संपवत्त पावे ||
|| ॐ जय जगर्ीश हिे ||
प्रर्क्षक्षणा :-
र्ोनों हाि जोड कि प्रर्क्षक्षणा किें -
यातन कातन च पापातन ज्ञाता- ऽज्ञात- कृतातन च ।
तातन सवादणण नश्यस्त्न्त प्रर्क्षक्षणां पर्े पर्े ॥
पष्ु पांजभल:-
हाि में फूल लेकि पुष्पांजमल समवपदत किें :-
नमरते भगवन ् भय
ू ो नमरते गरुड्वज! ।
नमरते कमलाकान्त अनन्ताय नमो नम: ॥

र्ोरक(अनंत सूत्र) प्राथदना:-


र्ोनों हाि जोडकि अनन्त सूि के मलये र्ोिक(अनंत सूि) प्रािदना किें :-
अनन्ताय नमसतुभ्यं सहसत्रभशरसे नम:।
नमोऽसतु पद्मनाभाय नागानां पतये नम: ॥

र्ोरक(अनंत सूत्र) ग्रहण:-


सभी उपस्त्रित जन र्ोिक ग्रहण किें
अनन्तकामर्: कामाननन्तो मे प्रयछितु ।
अनन्तर्ोररूपेण पुत्रपौत्राभभविदतु॥
र्ोरक(अनंत सूत्र ) बााँि़ें:-
मंि के द्वािा अपने –अपने बाजू पि र्ोिक(अनंत सूि) बााँधे –
अनन्त संसारमहासमद्र
ु े मग्नं समभ्युद्िर वासर्
ु ेव ।
अनन्तरूपं ववननयोजयसव अनन्तसूत्राय नमो नमसते॥
पुराना र्ोरक(अनंत सूत्र) ववसजदन मंत्र :-
पिु ाने र्ोिक(अनंत सि
ू ) को ववसस्त्जत
द किें
नम: सवददहताथादय जगर्ानन्र्कारक: ।
जीणदर्ोरकममुं र्े वं ववसज
ृ ेऽहं त्वर्ाज्ञया॥

वायनर्ान मंत्र-:-
सामर्थयादनस
ु ाि उपस्त्रित जन र्क्षक्षणा ,फल तिा मालपए
ु समवपदत किें ।
गह
ृ ाणेर्ं द्वीजश्रेष्ठ वायनं र्क्षक्षणायुतम।
त्वत्प्रसार्ार्हं र्े वं मुछयेयं कमदबन्िनात।।
प्रनतगहृ
ृ द्वीजश्रेष्ठ अनन्तफलर्ायक ।
पक्वान्नफलसंयुक्तं र्क्षक्षणाघत
ृ संयुक्तम।
वायनं द्ववजवयादय र्ासयाभम व्रतपूतय
द े॥

पुराना र्ोरक(अनंत सूत्र) र्ान मंत्र-:-


पुिाने र्ोिक (अनंत सूि) को र्ान किें ।
अनन्त: प्रनतगह्
ृ णानत अनन्तो वै र्र्ानत च ।
अनन्तसतारकोभाभ्यामनन्ताय नमो नम:॥

इसके बार् यथा शच्क्त ब्राह्मणोंको भोजन कराव़ें।

“अनेन कृतपूजनेन श्रीअनन्तर्े व: प्रीयताम”


कहकर पूजन कमद अपदण करे ।
॥इनत श्री अनंत –पूजनवविानम॥
Sudhanshu Panday

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