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Savitri BK 1 C 1 Part4
Savitri BK 1 C 1 Part4
Savitri BK 1 C 1 Part4
Book 1, canto 1
Part 4
Once more a tread perturbed the vacant Vasts;
इन रीती विस्तत
ृ ताओं को फिर एक बार पगध्िनन ने व्यथित कर दिया;
ननत्यता का केन्द्र, भािसमाथि की शान्न्द्त से पर्
ू ण एक िे िानन ने
शाश्ित पलकों को उघाडा न्िससे स्िगण द्िार खुल गये;
िरू स्ि आनन्द्िलोक से आयी एक दिव्याकृनत समीप आती लगी।
सम्पर्
ू ण सन्ृ ष्ट एक समपणर् और एक अनष्ु ठान बन गयी।