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वसतं
अस्मिता और सर्जना का त्रैिास्सक
सपं ादकीय सपं कज संपादक
डॉ लक्ष्मी झमन डॉ लक्ष्मी झमन
संपादिका, वसंत/रिमदझम वरिष्ठ प्राध्यादपका एवं अध्यक्षा
सृजनात्मक लेखन एवं सृजनात्मक लेखन एवं
प्रकाशन दवभाग प्रकाशन दवभाग
महात्मा गाधं ी सस्ं थान, मोका उपसंपादक
मॉिीशस श्रीमती श्रीदत िामपल
creativewritingdept@gmail.com सृजनात्मक लेखन एवं
Phone : 4032022 प्रकाशन दवभाग
Fax : 4332164
प्रकाशक
महात्मा गांधी संस्थान, मॉिीशस
वसतं में प्रकादशत सामग्री में व्यक्त
मद्र
ु क
दवचाि तथा दृदिकोण लेखकों के हैं,
दवक्रम स्यतू ोहल
इसके दलए संपािकीय सहमदत
आवश्यक नहीं है । टाइप सेटटंग
दिशा बहाििु
पत्रिका वववरण
आवरण सज्जा
वर्ष ४५ (२०२३), अक ं १५३
दवक्रम स्यतू ोहल
एक प्रदत – ३५ रु, दविेश 2 USD
वेबसाइट
https://www.mgirti.ac.mu
वसतं पदिका से सबं दं धत दकसी भी ©Mahatma Gandhi Institute
तिह के दववाि मॉिीशस-न्यायालय के Mauritius
अधीन ही मान्य होंगे । ISSN 1694-4100

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अनुक्रि

संपादकीय - डॉ. लक्ष्मी झमन - 3


कोणाकष - िेवी नागिानी - 7
महाकवि ‘विराला’ के बाल सावहत्य का शैविक अिदाि - डॉ. विविि सेठी - 16
नागाजनषु के काव्य में वैचारिक उन्मेर् - दपन्टू यािव - 21
रूस-यक्र
ू े न यद्ध
ु – आदथषक साम्राज्यवाि का ज्वलतं - िमेश चन्र - 29
उिाहिण
यात्रा वृत्ांत
महाकाल के दचि प्रतीदक्षत िशषन - डॉ बीिसेन जागादसंह - 33
सिु म्य यािा लक्षद्वीप की - गोवद्धषन यािव - 39
सिीक्षा
स्कन्िगप्तु : समीक्षा - डॉ लक्ष्मी झमन - 47
उदमषला का दविह - डॉ लक्ष्मी झमन - 52
कहानी
एक मल
ु ाकात - गोवद्धषन यािव - 58
कस्वता
कोिोना को समझो - अदमत कुमाि गप्तु ा - 63
स्नबंध
परिवाि - डॉ लक्ष्मी झमन - 66

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संपादकीय
- डॉ लक्ष्िी झिन
नया वर्ष 2023 पिापषण कि चक ु ा है । नव वर्ष के आगमन पि हम सब ने
उत्साह से खदु शयााँ मनाई ं। इस अवसि पि हम अपने सािे िख ु भलू ने का
प्रयास किते हैं । नई आशा, नई ऊजाष से दिि एक बाि नए जोश से नव
वर्ष को जीने का प्रयास किते हैं । पिु ाने िाग-द्वेर्ों को भल
ू कि नए वर्ष से
मानव को नए व्यवहाि प्रािंभ किने चादहए । ‘जब जागे तब प्रभात’ औि
‘गतम् न शोचम’् , ये नए वर्ष के सिू होने चादहए । नए वर्ष में दकए हुए
संकल्प, के वल संकल्प न िहकि जीवन में साकाि बनेंगे तो दबगड़ी हुई बाज़ी संभल जाती है
औि सामान्य मानव भी महानता के उत्गंु दशखि को प्राप्त कि सकता है । हमािे िेश में नतू न
वर्ष के अवसि पि अथाषत् पहली जनविी को लोगों का प्रातःकालीन बेला में मदं ििों में आना-
जाना शरूु हो जाता है । यह अनपु म दृश्य पिू े िेश में िेखने को दमलता है ।

हमािी संस्कृ दत में सिलता का िहस्य यही है दक अपनी कृ तज्ञता िशाषने के दलए सवषप्रथम
ईश्वि के दलए समय दनकाला जाता है । यही मानव-जीवन के दवदभन्न आयामों को पणू षता िेता
है । हमािे मदं िि हमािी भदक्त का, खशु ी का औि शदक्त का कें र-स्थल है । हमािे धमष का हि
त्योहाि हमें कुछ सीखें अवश्य िेता है । हमािी सस्ं कृ दत में सभी क्षेि के कायष पिमात्मा को
नमन किने से शरू ु होते हैं । यह नमस्काि के वल औपचारिक नहीं है, यह के वल पिंपिा एवं
िीदत नहीं है । यह नमस्काि इस बात का प्रतीक है दक हमािा मागष, समपषण का है औि जो
दवनम्र है वही आगे बढ़ेगा ।
भाितीय संस्कृ दत में पवोत्सवों को सतत प्रवाहशीलकाल के प्रतीक रूप में मनाया जाता है ।
पवोत्सव मनाने का प्रयोजन है ऋतु में परिवतषन का महत्त्व समझना, मनष्ु य के जीवन-चक्र
औि ऋतु के चक्र में समानता िेखना औि काल को प्रवाह के रूप में सतत चलायमान समय
की धािा के रूप में िेखना । पवष का अथष है रिक्तता में पणू तष ा का भाव भिना । पवष मनाने का
प्रयोजन इस प्रकाि से जहााँ एक ओि अपने भीति अखडं ता एवं पणू तष ा का भाव भिना है, वहााँ
िसू िी ओि समय के दवशेर् क्षण को पहचानना है जब प्रकृ दत में एक दवशेर् परिवतषन आता है।
हमािी संस्कृ दत में सािे पवष प्रेिणा तथा उल्लास के साथ सम्पन्न होते हैं ।

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पािंपरिक उत्सवों के साथ-साथ जीवन के हि मोड़ पि एक उत्सव है। उत्सव मािकता से पणू ष
होता है, जो जब चढ़ता है तो हि उम्र दसंििू ी कि जाता है । उत्सव जीवन का ऐसा पल है जो
सािी तादकष क बदु द्ध, दववेक से पिे , िदु नया के कमष-कांड, अभाव औि पीड़ा की दनत्य भिी
अवस्थाओ ं से अलग ही अपना ससं ाि बसाता है। उत्सव का कोई कािण नहीं होता, या याँू
कह सकते हैं दक कोई भी कािण उत्सव हो सकता है औि यह कािण होने के दलए पैसा हि
चीज़ की तिह पहली शतष दनश्चय ही नहीं है। आजकल उत्सव के मिं होते प्रकाश के अनेक
कािण पाए जाते हैं। एक ज़माना था जब सब दिल खोलकि सब उत्सवों में भाग दलया किते
थे।

ििअसल, व्यावसादयक मानस भी घटती उत्सवधदमषता के दलए दज़म्मेिाि है औि हि कोई


जीवन में व्यस्त है। इस व्यस्तता के चलते व्यदक्त ऐसे दकसी भी काम में अपना समय लगाना
नहीं चाहता दजसका कोई तात्कादलक िल उसे दमलता न दिखता हो। आधदु नकीकिण के
साथ-साथ हृिय पि दिमाग हावी होने से कई चीज़ें नि हुई हैं, उत्सव भी उनमें से एक है। हम
लोग स्वाथष के पीछे मनोिंजन को भल ू गए हैं औि परिणाम यह है दक हम तनाव से जझू िहे हैं।
उत्सव के दवदभन्न पािंपरिक रूपों में कहीं दवदभन्न सामादजक स्ति के लोगों को जोड़ने का
सिल प्रयास है तो कहीं उनके मन की पीड़ा को ििू किने का प्रयास ।

उत्सव तो एक बहाना है दक मन का उल्लास िोज़मिाष की जीवनचयाष में िबते-िबते कहीं


खीझ या आक्रोश में न बिल जाए । उत्सवों को मनाने से हमािे सािे तनाव ििू हो जाते हैं ।
उत्सव जान-पहचान बढ़ाने के भी मौके हैं।
जीवन जीने को दववश मानव के पास ऐसे चंि आह्लादित किनेवाले क्षण हैं दजन्हें जीने के
प्रयास के क्रम में नया साल हि बाि की तिह एक उत्सव, एक पवष के रूप में आता है औि हम
इसे पणू ष रूप से दजएाँ, उत्साह एवं उल्लास से दजएाँ क्योंदक समय कभी दकसी की प्रतीक्षा नहीं
किता । कालचक्र अपनी धिु ी पि घमू ता िहता है । वह कभी नहीं रुकता । इसीदलए कहते हैं
जो समय गज़ु ि गया वह कभी लौटकि नहीं आता क्योंदक हि गज़ु िते पल के साथ एक अवसि
जड़ु ा िहता है । अगि वह अवसि पवष मनाने का होता है तो उसे दकसी भी हाल में हाथ से जाने
नहीं िेना चादहए ।

इन पवों में जीवन जीने की कला का िहस्य छुपा हुआ है । हि पवष के हि पल का आनिं के
साथ दबताने का अथष है जीवन में प्रिुल्लता एवं सकािात्मकता को बल
ु ावा िेना । नववर्ष के
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कुछ ही दिन बाि मकि संक्रांदत के पवष का भव्य आगमन होता है । भाितीय संस्कृ दत में सयू ष
को मनष्ु य के श्रेय एवं मागष का प्रवतषक माना गया है । सयू ष कालचक्र दनमाषता है । वह दिन-िात
का दनमाषता कहलाता है । इसकी दकिणें प्रकाश औि उष्मा का अक्षय भडं ाि है । सयू ष दवदभन्न
वस्तओु ं के दनमाषण एवं परिवतषन के मल ू में है । मकि संक्रादं त पि सयू षिवे भमू ध्य िे खा को पाि
किके मकि िे खा की ओि बढ़ना प्रािंभ किते हैं । अतः सिी के प्रकोप में कमी आती है ।
वास्तव में यह बात भाित के दलए लागू होती है । हमािे िेश मॉिीशस में इस समय गमी का
मौसम होता है । पिु ाणों के अनसु ाि मकि सक्र ं ादं त सख
ु , शादन्त, वैभव, प्रगदत सचू क जीवों में
प्राणिाता, स्वास््यवधषक और्दधयों के दलए गणु कािी औि आयवु िे के दलए दवशेर् महत्त्व
की है । नवग्रहों में सूयष ही प्रधान ग्रह है, सयू ष के दबना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा
सकती । सयू ष ही जीवन तत्व को अग्रसि किनेवाला, उसे चैतन्य बनाने वाला, प्रकाश
िेनेवाला मलू तत्व है।

जीवन िेनेवाले भगवान सयू ष का महापवष मकि संक्रांदत नववर्ष कहलाता है । प्रत्येक वर्ष 14
जनविी को मकि संक्रांदत का पवष मनाया जाता है औि मॉिीशस में पहले यह आम छुट्टी का
दिन हुआ किता था पिंतु अब ऐसा नहीं है। मकि 12 िादशयों में से एक िादश है। संक्रांदत का
अथष होता है – संक्रमण । दजतने लंबे समय में पृ्वी सयू ष के चािों ओि चक्कि लगाती है, उसे
‘सौि वर्ष’ कहते हैं । पृ्वी का गोलाई में सयू ष के चािों ओि घमू ना ‘क्रादं त चक्र’ कहलाता है।
इस परिदध को 12 भागों में बााँटकि 12 िादशयााँ बनी हैं। इन िादशयों का नामकिण 12 नक्षिों
के अनरू
ु प हुआ है । पृ्वी का एक िादश से िसू िी िादश में प्रवेश ‘संक्रांदत’ कहलाता है । इस
तिह पृ्वी का मकि िादश में प्रवेश किना ‘मकि संक्रादं त’ कहलाता है । भाित में पजं ाब में
यह पवष ‘लोहड़ी’ के रूप में, तदमलनाडु में ‘पोंगल’ औि के िल में ‘ओणम’ के रूप में मनाया
जाता है।

इस अवसि पि दवदभन्न व्यंजनों के दमश्रण से दखचड़ी तैयाि की जाती है । मकि संक्रांदत का


महत्व इस कािण सबसे अदधक बढ़ जाता है दक उस समय सयू ष उस कोण पि आ जाता है
जब वह अपनी सम्पणू ष िदश्मयााँ मानव पि उतािता है । इसके दलए चैतन्य होना आवश्यक है,
तभी ये िदश्मयााँ भीति की िदश्मयों के साथ दमलकि शिीि के कण-कण को जाग्रत कि िेती हैं,
इसदलए मकि संक्रांदत के अवसि पि सयू ष की साधना की जाती है । मकि संक्रांदत अथाषत्
प्रकाश की अधं काि पि दवजय। मानव जीवन भी प्रकाश औि अधं काि से दघिा हुआ है। मकि
सक्र
ं ादं त के दिन मानव को सक्र ं मण किने का शभु संकल्प किना है । मानव जीवन में व्याप्त
अज्ञान संिहे , अधं श्रद्धा, जड़ता, कुसंस्काि आदि अधं काि के द्योतक हैं। मानव को अज्ञान को
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ज्ञान से, संिहे को दवज्ञान से, अधं श्रद्धा को श्रद्धा से, जड़ता को चेतना से औि कुसंस्कािों को
संस्कािसजषन द्वािा ििू हटाना है । यही उसके जीवन की सच्ची संक्रांदत कहलाएगी ।

मकि सक्र
ं ादं त सयू ोपासना का दवदशि पवष है। इस पवष का सबसे अदधक महत्वपणू ष स्वरूप सयू ष
साधना है क्योंदक सयू ष के दबना दकसी भी वस्तु के दृश्य-अदृश्य होने की कल्पना ही नहीं की
जा सकती । मकि संक्रांदत का त्योहाि समिसता का प्रतीक है, जो हम सबको भावनात्मक
एकता के सिू में बााँधता है । उत्सव मनाने की प्रथा भले ही जीदवत है पि इस बात को भी
नकािा नहीं जा सकता है दक इसमें कमी आ गई है । हमािे िेश में मकि संक्रांदत को नव वर्ष
के रूप में मनाया जाता था पि अब हमें याि ही नहीं िहता दक यह पवष हमािे दलए दकतना
महत्व िखता है ।
हमें इस ओि ध्यान िेना चादहए दक हम अपने बच्चों को इन पवों से वदं चत न िखें । हम अपने
पवों की अवहेलना न किें । बच्चे जब इन पवों को मनाते हैं तब समझ पाते हैं दक इन पवों को
एक साथ मनाने से जीवन में प्रसन्नता िौड़कि हमािे पास आती है । आज के वैज्ञादनक यगु में
हम खदु शयााँ ढूाँढते दििते हैं । पिंतु सच तो यह है दक धमष के अनसु ाि पवों को मनाकि एवं
अपनाकि हि व्यदक्त अपनी जीवन-यािा सिलतापवू क ष पणू ष कि सकता है । अगि हम सिैव
प्रसन्न एवं स्वस्थ िहना चाहते हैं तो श्रेष्ठ उपाय यही है दक हम अपने पवों को मनाकि अपने
कतषव्यों का दनवाषह अवश्य किें । मकि संक्रांदत के बाि 8 माचष 2023 को मनाए जानेवाले
होली उत्सव के दलए वसतं पदिका की ओि से सभी को होली की मगं ल कामनाएाँ ।

छोड़ सिय की रेत पर चरणस्चन्ह अपने, होके स्वर्यी


एक और वर्ज ने ले ली हि से, अंस्ति स्वदाई
आया नया वर्ज खस्ु ियााँ स्लए ढेर, बढ़ाने हिारी हमती
श्रि की गस्त न रुके , चलती रहे र्ीवन की कश्ती
िनाएाँ हि अपने उत्सव सारे, ज़रूरी है थोड़ी सी िमती
िाचज ८ को र्ब लाएगी सूरर् की स्करण, स्संदूरी लाली
हर्ोल्लास से भर देगी सबको रंगों की फगुआ रानी
एकता के रंग िें रंग र्ाएाँ, बधं ी रहे िानवता की डोरी
पन्नों िें वसंत पस्त्रका, सर्ाए प्यार की मयाही
देती सबको िभ ु कािनाएाँ, रगं ीन होली की स्नराली
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कोणाकज
- देवी नागरानी
स्वचारात्िक र्ांच पड़ताल, प्रेि के स्िस्श्रत रूपों का िास्त्रीय
स्ववेचन
सभ्यता ही हमािी धिोहि है, दजसकी नींव पि जीवन रूपी कश्ती उम्र का
सिि पाि किते हुए इस दकनािे से उस दकनािे पहुचाँ पाती है। ऐसी सभ्यता
जो आदि-जगु ाि से दशव की जटाओ ं से धािा बनकि, सयू ष की दकिणों की तिह हमािी जड़ों में
िोपे हुए संस्कािों को दनखािते हुए कह उठती है, कुछ ऐसी काव्यधािा में, जैसे दशव की
जटाओ ं से बहती धािा अपने बहाव के साथ उस सत्यम,् दशवम,् संिु िम् का गणु गान किती
हुई दवनीता िाहुिकि जी की कलम से अपनी उपदस्थदत िज़ष किाते हुए मनोभावों समेत शब्िों
की कश्ती में सवाि हो सागि की लहिों के संग-संग उताि चढ़ाव पि खिु की थाह पाती है।
उनकी बानगी की जािगू िी को महससू कीदजए इन शब्िों में:
सहस्त्रादब्ियों पहले
एक दटमदटमाती लौ सी
उदित हुई थी एक दकिण
िेखते ही िेखते
एक दविाट सयू ष समान तेजस्वी बन
अपने गढ़ू ज्ञान से
समस्त धिा को जगमगा दिया
सहस्त्र हाथों से दवज्ञान,
तकनीक, अध्यात्म, धमष
संस्कृ दत की एक दवशाल
धिोहि सौंप िी मनष्ु य के हाथों में
दकतने ही िाहू ग्रसने आए
दकतने ही काले बािलों ने
दनगल लेना चाहा
लेदकन हि अाँधेिे को चीि
पनु ः उदित हो जाती है

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वह सनातन सभ्यता
दजसमें कृ ष्ण की बााँसिु ी के सिु हैं
िाम की मयाषिा
दशव का दशवत्व है
उस सभ्यता के सयू ष को भला
कौन अस्त कि सकता है...?
सच है, ऐसी सभ्यता को कौन अस्त कि सकता है? सत्य जब बाहि भीति प्रकट होता है तब
दनशब्िता बदतयाती है औि सुनने वाला उस मौन के िायिे की दगिफ़्त महससू किते हुए उस
सौन्ियष से जड़ु जाता है, कुछ याँू जैसे डॉ. संजीव कुमाि जी ने मन की तन्मयता में खोकि
अपनी कृ दत “कोणाकष ’ में अपने भावों, मनोभावों को स्वच्छ, दनमषल, काव्यधािा में उन
सयू षदकिणों से नहाई दशल्पकािी को सजीव दकया है, कुछ याँू जैसे वे अभी बोल पड़ेंगी। यही
लेखन का सत्यम् है, यही दशवम् है, औि सिंु िम् भी । शब्िों में बानगी की कलाकािी व
भव्यता िेदखए:
तम्ु हािा सौन्ियष
जगाता है मन में कौतूहल
उस कल्पना का
जो िेखा होगा
उस महादशल्पी ने...!

लेखन कला एक ऐसा मधबु न है दजसमें हम शब्ि बीज बोते हैं, परिश्रम के खाद्य का जगु ाड़
किते हैं औि सोच से सींचते हैं, तब कहीं जाकि इसमें शब्िों के अनेकों िंग दबिंगे समु न
दनखिते औि महकते हैं।
कदवता दलखना एक दक्रया है, एक अनभु दू त है जो हृिय में पनपते हुए हि भाव के
आधाि पि दटकी होती है। एक सत्य यह भी है दक यह हि इन्सान की पाँजू ी है, शायि इसदलए
दक हि बशि में एक कलाकाि, एक दचिकाि, दशल्पकाि एवं एक कदव छुपा हुआ होता है।
दकसी न दकसी माध्यम द्वािा सभी अपनी भावनाएाँ प्रकट किते हैं, पि स्वरूप सब का अलग-
अलग होता है। एक दशल्पकाि पत्थिों को तिाश कि एक स्वरूप बनाता है जो उसकी कल्पना
को साकाि किता है, दचिकाि तदू लका पि िंगों के माध्यम से अपने सपने साकाि किता है
औि एक कदव शब्िों का सहािा लेकि अपनी दनशब्ि सोच को अदभव्यक्त किता है तो
कदवता बन जाती है।
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बस याँू ही कुछ प्रकट हुई है डॉ. संजीव कुमाि जी की कलम की धाि से ये कदवताएाँ
जो उन्होंने मन की आाँखों से िेखीं, उस दशल्पकाि की अद्भुत कलाकृ दतयों में। जी हााँ हम
उनके साथ इस पथ पि हमसिि हो चल िहे हैं कोणाकष सूयष मदं िि के उस उज्ज्वल प्रांगण में
जहााँ की दिव्यता, वैभव व उस जगमगाते सयू ष के सौन्ियष को अपने मन की आाँखों से िेखते
हुए, अपने भीति की अाँधेिी खलाओ ं को प्रकाशमय किते हुए उन िौशन िाहों के पदथक बन
पाएाँ।
दहन्िू धमष में सयू ष िेव की पजू ा का दवशेर् महत्व है। ज्योदतर् शास्त्र में सयू षिवे को ग्रहों
का सवषश्रेष्ठ गृह माना गया है, एवं वेिों-पिु ाणों के मतु ादबक सयू ष िेव की आिाधना-पजू ा-
अचषना जहााँ की जा िही है, वहीं कुछ बड़े िाजाओ ं ने भी सूयषिवे की आिाधना की औि कि
ििू होने एवं मनोकामनाएाँ पूणष होने पि सयू षिवे के प्रदत अपनी अटूट आस्था प्रिदशषत किने के
दलए कई सयू ष मदं ििों का दनमाषण भी किवाया। वहीं उन्हीं में से एक है कोणाकष का सयू ष मदं िि
जो दक अपनी भव्यता औि अद्भुत बनावट के कािण पिू े िेश में प्रदसद्ध है औि िेश के सबसे
प्राचीनतम ऐदतहादसक धिोहिों में से एक है। लेखक की प्रदतभा शब्िों के दशल्प में िमकते
हुए उस सत्य को िेदखए दकस दनिालेपन से िशाष िही है:

दकसी दशल्पी की कल्पना का मतू ष रूप,


शीर्ष पि थामे सहस्र दकिणों का भाि,
तमु आज भी वैसे ही हो
दशल्प श्रेष्ठ भले ही दवगत यौवन।
कहते हैं दक भगवान कृ ष्ण के वश ं ज साम्ब को कुष्ठ व्यादध हुई दजससे मदु क्त के दलए
साम्ब ने िेश के १२ जगहों पि भव्य सयू ष मदन्िि बनवाए थे औि भगवान सयू ष की आिाधना
की थी। ऐसा कहा जाता है तब साम्ब को कुष्ठ से मदु क्त दमली थी।

ओदडया लोककथाओ ं में, धमषपि दबशु महािाणा नाम के एक महान वास्तक ु ाि के पिु थे,
दजन्होंने भाित के पवू ी तट पि ओदडशा के कोणाकष में सयू ष मदं िि का दनमाषण एक ही िात में
पिू ा दकया, तादक 1,200 दशल्पकािों को तत्कालीन िाजा से िांसी से बचाया जा सके ।
लंगल ु ा निदसंह िेव प्रथम दकंविदं तयों का कहना है दक उन्होंने कहानी को िै लने से िोकने के
दलए मदं िि के शीर्ष को पिू ा किने के दलए अदं तम चिण पूिा किने के बाि समरु में कूिकि
अपना जीवन बदलिान कि दिया। कोणाकष मंदिि अभी भी १३वीं शताब्िी के बाि से दबशु
महािाणा औि उनके पिु धमषपि की कहादनयों को बता िहा है।
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इदतहास के अनसु ाि, पवू ी गंगा िाजवश ं के िाजा लंगल
ु ा निदसंह िेव प्रथम ने कोणाकष में एक
दवशाल मदं िि बनाने का िै सला दकया। मदं िि सयू ष िेव के आकाि में होना था, सयू ष अपने िथ
में सवाि थे। मदं िि के दनमाषण के दलए १,२०० दशल्पकािों की भती की गई थी, दजसका नेतत्ृ व
दबशु महािाणा नाम के एक व्यदक्त ने दकया था औि इस परियोजना को बािह साल लगने थे।
बािह वर्ष के अतं के दनकट, दबशु महािाणा का पिु धमषपि, जो अब १२ वर्ष का है, अपने
दपता से दमलने गया। आगमन पि, उसने अपने दपता को व्यदथत पाया; सयू ष मदं िि के शीर्ष पि
मक ु ु ट अभी तक पिू ा नहीं हुआ था औि िाजा ने सभी 1,200 दशल्पकािों को सबु ह तक पिू ा
नहीं किने पि उन्हें मािने की धमकी िी थी। हालांदक यह कायष असंभव लग िहा था, धमषपि ने
इसे अके ले ही पिू ा किने का िै सला दकया।
इसके बाि कािीगिों के बीच वाि-दववाि हुआ। अपने स्वयं के जीवन के डि से
अगि यह पता चला दक उनके बजाय एक बच्चे ने काम पिू ा कि दलया है, तो उन्होंने मांग की
दक धमषपि को माि दिया जाए, इस सझु ाव का उनके दपता ने कड़ा दविोध दकया । अतं में, इस
बहस को दनपटाने के दलए, धमषपि ने अपने द्वािा पणू ष दकए गए मक
ु ु ट से छलांग लगा िी, खिु
को माि डाला औि कािीगिों की सिु क्षा सदु नदश्चत कि ली।
ऐसे ही एक अलौदकक उपिोक्त ऐदतहादसक, पौिादणक एवं स्थापत्यकला संबंधी
त्यों के आलोक में डॉ. संजीव कुमाि का कथन उनके शब्िों में “मेिे मन में हमेशा से
दजज्ञासा िहती थी दक इस स्थापत्य कला के पीछे कोई तो कल्पना िही होगी दजसके ताि
महादशल्पी दवशु के साथ जड़ु े होंगे औि उनके मन में उपजा होगा औि कै से इन मदू तषयों का
सिू हुआ होगा। इसके अदतरिक्त परियोजना के क्या परिमाप औि परिमाण थे उनको िेखकि
ही मदं िि की पृष्ठभदू म का सक्ष्ू म अध्ययन मझु े आवश्यक लगा, कोणाकष के बािे में अपनी
आाँखों से स्वयं िेखकि ही उसकी दशल्पकला की व्याख्या की जा सकती थी, उसके दशल्प
को समझा जा सकता था। यह मदं िि अब सयू ष मदं िि की जगह अब प्रेम मदं िि अदधक प्रतीत
होता।
अपनी इस दजज्ञासा की सम्पणू तष ा बख्शने के दलए उनके अपने शब्िों में-“ मैंने िो बाि
कोणाकष की यािा की औि वहााँ के भग्नावशेर्ों, मदं िि के अवशेर्ों एवं परिसि नजिीक से
िेखा एवं समझा। उपलब्ध सादहत्य एवं सचू नाओ ं के दवश्ले र्ण के बाि मझु े लगा दक इस
अप्रदतम दशल्प कला के पीछे , जो भावना, कल्पना, ज्ञान, अनभु व एवं दचंतन है वह भी
अप्रदतम है। यह सत्य है दक सभी बातों का ज्ञान दकसी अनभु व से प्राप्त हो यह जरूिी नहीं।

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कल्पना एवं अनभु व का दमश्रण एक नई धािा की सृदि भी कि जाता है। कोणाकष की पृष्ठभदू म
औि महािाणा दवशु की दशल्प कला तो यही स्पि किती है।“
समेटे अपने आाँचल में
खड़ा है आज भी
एक कालखडं
दजसमें दनदहत थी
कल्पना की उड़ान
नभ पि उड़ते सयू ष को
अपनी धिती पि
उताि लाने का स्वप्न
लेखक के कथन की सत्यता ‘अपनी आाँखों से स्वयं िेखकि ही उसकी दशल्पकला की
व्याख्या की जा सकती थी’ सोने पे सहु ागा िही...दजसके दलए यथाकदथत सत्य को काव्य में
दनपणु ता व भव्यता के स्ति पि नवदनमाषदणत किते हुए उनका कदव मन आसपास की मतू षरूप
कलाकृ दतयों की मक ू ता को अपनी जागृत लहलहाती दवचािधािाओ ं से कल कल बहती
काव्य धािा में कुछ याँू िच िहा है जैसे मदू तषयों के उस प्रागं ण में पत्थि बोल उठे हों-
हााँ दवश,ु लगता है समादहत हो गया है
तम्ु हािा अदस्तत्व शब्िों को उके िती
इस लेखनी में औि जैसे एक चलदचि सा
दिखाने लगा है तम्ु हािा जीवन तम्ु हािा प्रेम
तम्ु हािी कल्पना अदृश्य, दकन्तु मतू ष।
लगता है जाग उठें गे उन स्वप्नों के
मोहक इन्रधनर्ु शब्िों का आचं ल ओढ़कि
औि दखल उठें गे तम्ु हािे स्वप्न कमल
इस काल में।।
कोणाकष सयू ष मदं िि के िोनों ओि 12 पदहयों की िो कतािें हैं। इनके बािे में कुछ लोगों
का मत है दक 24 पदहए एक दिन में 24 घण्टों का प्रतीक है, जबदक अन्य का कहना है दक ये
12 माह का प्रतीक है। यहााँ दस्थत सात अश्व सप्ताह के सात दिन िशाषते हैं। समरु ी यािा
किने वाले लोग एक समय इसे ब्लैक पगोडा कहते थे, क्योंदक ऐसा माना जाता है दक यह
जहाज़ों को दकनािे की ओि आकदर्षत किता था औि उनका नाश कि िेता था।
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दिखता है दवशु
तम्ु हािी आाँखों के कोणों पि
उस सौन्ियष का अकष
उस अतीत की भव्य गाथा
जो सालती होगी पल पल
तम्ु हें जलाती होगी
कोणाकष सयू ष मदं िि के धादमषक महत्व औि खबू सिू त बनावट की वजह से इसे िेखने यहााँ न
दसिष िेश से बदल्क दविेशों से भी लाखों की संख्या में पयषटक आते हैं औि इस भव्य मदं िि
की खबू सिू त कलाकृ दत का आनंि लेते हैं औि तमाम तिह के किों से मदु क्त पाते हैं। महान
कदव व नाटककाि िवीन्रनाथ टैगोि ने इस मदं िि के बािे में दलखा हैः “कोणाकष , जहााँ पत्थिों
की भार्ा मनष्ु य की भार्ा से श्रेष्ठति है। ” उसी अनबोली भार्ा को सिु दिया है संजीव कुमाि
की बाहिी व भीतिी दृदि ने, इस अनोखे लावण्य काव्य सृजन से वे बधाई के पाि हैं।

दजिं गी एक संिु ि कदवता है पि कदवता दजिं गी नहीं, इस बात का समथषन श्री आि.
पी. शमाष 'महदर्ष' का यह शेि बखबू ी बयान किता है:
स्र्ंदगी को हि अगर कस्वता कहें
स्फर उसे क्षस्णका नहीं तो क्या कहें।
दकसी ने खबू कहा है 'कदव औि शब्ि का अटूट बंधन होता है। कदव के दबना शब्ि
तो हो सकते हैं, पिंतु शब्ि दबना कदव नहीं होता। जब तक कदव की सोच उन शब्िों का
सहािा लेकि पनपने औि बोलने लगती है तभी ही वह कदवता बन जाती है, कभी ग़ज़ल तो
कभी रुबाई।
डॉ. संजीव कुमाि ने जैसे पत्थिों को िेखते हुए एक एक कलाकृ दत के सौंियष में जान िंू क कि
एक नतू न सौन्ियष बख्शा है अपने पाठकों को, कुछ ऐसे जैसे उस दशल्पी ने िचा उन दशलाओ ं
से -
िच दिया जैसे एक महाकाव्य
उस दशल्पी की स्वदगषक कल्पना ने
आिाधना के स्वि अचानक ही गजाँू उठते होंगे
आज भी गभष गृह से क्योंदक पक
ु ािा होगा
उसने मन से उसी महाशदक्त को
उति आने के दलए अपने िथ सदहत
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औि होने को प्रदतस्थादपत गभषगहृ के कोणों के बीच
औि बना लेने को उसे अकष क्षेि तादक अदखल भवु न
बन सके उसका श्रीक्षेि बिसता है इदतहास का
वह एक एक शब्ि गीत बनकि हि कोने में।।
यही कदवता मनोभावों की कल-कल बहती हुई एक प्रवाहमान-धािा होती है जो कई
दिशाओ ं में अनेक स्तिों पि अपनी चाह तलाश किते हुए दवश्राम पाती है।
कदवता का िसू िा पहलू यह भी है दक 'कदवता' के वल भार्ा या शब्ि का समहू नहीं। मनोभाव
शब्िों की तोतली सी बोली में जब अदभव्यक्त होते हैं तो वही कदवता बन जाती है। िचना का
यह एक ऐसा मधबु न है जहााँ शब्ि-बीज के अक ं ु ि अपनी ताज़गी व िंगत के साथ एहसास के
पिों पि ऊाँचाइयों औि गहिाइयों में डूबकि खिु को अदभव्यक्त किते हैं। सनु ते हैं जब गमों के
मौसम आते हैं तो बेहतिीन िचना की सृदि होती है। जैसे:
काव्य के पंखों पि
मैं तीव्र वेग से दततली सी उड़ती हूाँ
अपने आस-पास की भव्य सन्ु ििता दनहािने हेतु
अपनी मखमली चिम चेिा से
एक अनोखे आनंि की अनुभदू त हेत-ु ----
काव्य िचना औि कुछ नहीं बस हृिय की भार्ा है। हि मानव, जो तादकष क रूप से दचन्तन
किता है औि दिल की आवाज़ सनु ता है। वह अपने स्नेह, घृणा, धैयष, सहु ानभदू त, क्रोध,
आहत सन्तल ु न, अहसासों के दवदभन्न भावों की अनभु दू त व्यक्त कि सकता है। कुछ ऐसे ही
डॉ. संजीव कुमाि जी जब मौन पत्थिों से दघिे िहे होंगे तब उनके ह्रिय के लब एक माधयु ष को
अपने भीति दलए कहीं लहलहाती काव्य धािा को प्रवाहमान होते हुए पा िहे होंगे जो छलक
कि शब्िों में अपना स्विरूप पाती िही -
एक शाम
उन्हीं पार्ाण दशलाओ ं के बीच
तलाशता िहा मन
दक वह मदू तषयााँ जीवन का मतू ष हैं
या मदू तषयााँ ही जीवन-
खोजती िही आाँखें
उन भाव भदं गमाओ ं के बीच
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उस दशल्पी की आाँखों के
अनबेधे स्वप्न कै से जागे होंगे
उसी प्रकाि एक कदव की कल्पना, सन्ु िि शब्ि लय या दबना लय संग अपनी
अनभु दू तयााँ अदभव्यक्त किती हैं, दजसमें उनकी कल्पना शब्िों के माध्यम से कभी धड़कनें
लगती है, तो कभी घटु नों के बल चलने लगती है। कभी नृत्यांगना बन तेज़ गदत से या दततली
बन भ-ू भू कि प्रकृ दत से गले दमल सन्ु ििता का ऐसा अनोखा खबू सिू त अहसास िेती है।
दवचािों का सन्ु िि ताना-बाना बनु कि एक नई चाल संग सम्मोदहत गीत बन पड़ता है।
जैसे बड़ी निी की चाल से
एक प्रवाह गज़ु िता है
एक सईु के लघु दछर से!...
कुछ ऐसे ही भाव अदभव्यक्त हुए हैं जैसे वे मदू तषयााँ, जीवन का मतू ष हैं या मदू तषयााँ ही जीवन!
बस एक अद्भुत भार्ा भाव का प्रयास है जो कह उठता है:
समेटे अपने आाँचल में
खड़ा है आज भी एक कालखंड
दजसमें दनदहत थी कल्पना की उड़ान
नभ पि उड़ते सयू ष को
अपनी धिती पि उताि लाने का स्वप्न
जो अपनी अदभनवता में भि लाया होगा
उत्साह का पािावाि औि कल्पना के उत्कर्ष
उके ि गया होगा उन पत्थिों पि
जो हो उठा जीवतं कला की प्राचयु षता के साथ
दवदभन्न मरु ाओ ं में जीवन की भदं गमाओ ं में
दजससे आज भी जाग उठता है
दवस्मय भी औि पश्चात्ाप भी।
यह एक दिल की भार्ा है जो सीदमत शब्िों द्वािा, असीदमत िख ु -सख ु ों, किों-िासदियों,
लालचों, अनदभज्ञताओ,ं एकान्तों, स्नेह-घृणाओ ं आदि अहसासों को प्रकट किती है। पि एक
मौन भी सौ बोलने वालों को चपु किा िेने में सक्षम िहता है।

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काव्य िचना एक जनु नू है, वास्तव में यह दिल का संगीत है जो मौन िहकि भी खमोशी में
सचेतन कानों से सनु ा जा सकता है अथाषत् एक खामोश िुसिुसाहट दबना दकसी भार्ाई
िायिे में पनपती है-जैसा मैंने महससू दकया है, िेखा है.....
अगि
तमु श्रद्धा की आखों से िेखते हो तो
तम्ु हािे भीति की अनिेखी िदु नया
एक नई िदु नया के द्वाि तम्ु हािे दलए खोलती है!
कदवता भी ऐसी ही एक अनकही, अनसनु ी अदभव्यदक्त है
कोणाकष की पृष्ठभदू म औि महािाणा दवशु की दशल्प कला को एक जीवतं स्पिता
िेते संजीव कुमाि जी ने कुल 97 भावखण्डों में इस संवाि को एक नादटका के संवाि की
भांदत दलखने का सिल प्रयास है। यह न के वल दशल्प एवं इदतहास के प्रसंग हैं बदल्क प्रेम के
दमदश्रत रूपों का शास्त्रीय दववेचन भी है। इस प्रस्तदु तकिण के दलए वे बधाई के पाि हैं।
कानों में गजंू ता है एक अद्भुत सगं ीत
वह नृत्य मरु ाओ ं से सजे पााँव
वह सौन्ियष की प्रदतमदू तष-यौवनाएाँ
जीवनोत्सव के गातीं गीत
शायि िचती कोई महासंगीतमय कृ दत
गजंु ािती मन मदस्तष्क में
जीवन की चहल किमी भिे
नृत्य की पिचापें ताताथै्या के स्वि
मृिगं की थापें औि कणषदप्रय वाद्यसगं ीत
की पृष्ठभदू म के बीच
घघाँु रुओ ं की िंजनमयं ी झक ं ाि
बेसधु किती सी अमृत भिती सी
बिसती पल पल कोणाकष की मदू तषयों में...!
इस िचनात्मक आभा का उजाला
मन की तहों को िोशन किता िहे, िमकता िहे।
- एल्िहम्ज , इस्लनुआ
यु.एस.ए

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महाकवि ‘विराला’ के बाल सावहत्य का शैविक अिदाि
- डॉ. विविि सेठी
सावहत्यकार कोई भी रचिा करिा है िो सामाविक पररप्रेक्ष्य में रहकर
ही करिा है। सावहत्यकार के वलए लोकमंगल की भाििा महत्त्िपर्ू ण है।
िही रचिा सफल मािी िािी है िो यगु बोध का दावयत्ि भी भली-
भााँवि विभा सके । आचायण मम्मट िे काव्य के िो छः प्रयोिि बिाये हैं
उिमें से एक प्रयोिि कान्िासम्मि उपदेश भी है।1 सावहत्यकार का
कायण ि के िल लोकरंिि अवपिु अपिी लेखिी के माध्यम से भले-बरु े
का ज्ञाि प्रदाि करिािा भी है। वहन्दी सावहत्यकारों िे भी इस रचिात्मक यगु धवमणिा पर उवचि
ध्याि वदया है ि सावहवत्यक-सामाविक- सांस्कृ विक मल्ू यों की रिा करिे िाला सावहत्य
समाि को प्रदाि वकया है। शैविक मल्ू य भी इसी की कडी हैं। महाकवि ‘विराला’ छायािादी
चिष्टु य के एक महत्िपर्ू ण स्िम्भ हैं। कवि रूप में विराला सिणत्र समादृि हैं। ‘अिावमका’,
‘पररमल’, ‘िुलसीदास’, ‘अवर्मा’, ‘बेला’ आवद काव्यसंग्रहों में विराला िे अपिी विराली
लेखिी का प्रत्यि प्रमार् प्रदाि वकया है। परन्िु विराला के िल कवि के रूप में ही िहीं अवपिु
उिका गद्य-पक्ष भी उििा ही सबल है। उपन्यास, कहािी, संस्मरर्, सम्पादि, समीिा आवद
भी उिके लेखकीय व्यवित्ि के बहुमख ु ी रूपों को दशाणिे हैं। इसी के साथ-साथ विराला का
बाल सावहत्य भी है, िो विशेषिया बच्चों के वलए ही वलखा गया है। ि के िल मिोरंिि की
दृवष्ट से अवपिु शैविक दृवष्ट से भी इसका असंवदग्ध महत्त्ि है। प्रस्ििु शोध आलेख में हम
‘विराला के बाल सावहत्य का शैविक महत्ि’ पर वििेचि प्रस्ििु करें ग।े
सिणप्रथम ‘वशिा’ शब्द पर विचार करिा आिश्यक है। ‘वशिा’ संस्कृ ि शब्द है िो
‘वशि’ ‘विद्योपादािे’ धािु से ‘गरु ोश्च हलः’ सत्रू से भािाथण में ‘अ’ प्रत्यय करिे पर विष्पन्ि
मािा िािा है।2 इस रीवि से विद्या ग्रहर् करिा ही वशिा है। डमविल के शब्दों में- ‘‘अपिे
व्यापक अथण में वशिा में िे सब प्रभाि सवम्मवलि रहिे हैं िो व्यवि पर उसके िन्म से लेकर
मृत्यु िक पडिे हैं।’’3 प्लेटो िे भी वशिा को शारीररक, मािवसक ि बौविक विकास की
प्रविया मािा है। सावहत्य का कायण भी प्रकारान्िर से मािि का समवु चि विकास करिा ही है।
बच्चों के सावहत्य पर िो यह उत्तरदावयत्ि और भी अवधक बढ़ िािा है। बाल सावहत्य का
अथण भी समझिा आिश्यक है। सामान्य रूप से बच्चों के वलए वलखे िािे िाले सावहत्य को
बाल-सावहत्य की संज्ञा दी िािी है। डॉ. श्रीप्रसाद के शब्दों में,‘‘िह समस्ि सावहत्य विसमें
बाल सावहत्य के ित्त्ि हैं अथिा विसे बालकों िे पसदं वकया है, भले ही उसकी रचिा मल ू िः

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बालकों के वलए ि हुई हो, बाल सावहत्य है।’’4 िास्िि में विस सावहत्य से सहििापिू णक
बालकों का स्िस्थ मिोरंिि, ज्ञािििणि और चररत्र सम्ििणि हो, िही सही अथों में बाल
सावहत्य है। इसमें वशश-ु बाल-वकशोर सभी आयिु गों का सावहत्य आ िािा है। िहााँ िक
विराला के बाल सावहत्य की बाि है िो उिकी बाल सावहत्य सम्बन्धी रचिाओ ं में भि ध्रिु ,
भि प्रह्लाि, भीष्म, महारार्ा प्रिाप, सीखभरी कहावियााँ, रामायर्-महाभारि, ईसप की
कहावियााँ; ये सभी रचिाएाँ आिी हैं। यहााँ यह बाि भी उल्लेखिीय है वक विराला के बाल
सावहत्य में कोई मौवलक प्रर्यि िहीं है अवपिु पौरावर्क-ऐविहावसक चररत्रों के िीिििृत्त को
कथासत्रू ों में वपरोया गया है। हााँ, यह बाि महत्त्िपर्ू ण है वक इसका प्रर्यि सिणथा ििीि रूप में
वकया गया है। शैविक उपदेशों ि सीखों से भरी ये बालोपयोगी िीिवियााँ ि कथाएाँ बालकों
के िीिि में विवभन्ि चाररवत्रक, मािवसक ि सामाविक गर्ु ों के विकास की दृवष्ट से
अत्यवधक महत्त्िपर्ू ण ि उपयोगी हैं। विराला का यह बाल सावहत्य वशिा के सामान्य उद्देश्यों
यथा ज्ञाि-शारीररक-चररत्र- सांस्कृ विक विकास के उद्देश्यों की पवू िण भी करिा है। स्पेंसर िे भी
कहा है,‘‘मिष्ु य की सबसे बडी आिश्यकिा और सबसे बडा रिक-चररत्र है, वशिा िहीं।’’5
इसी उद्देश्य से विराला का सावहत्य विशेषकर बाल सावहत्य अत्यन्ि महत्त्िपूर्ण है।
विराला द्वारा प्रथम बालोपयोगी पस्ु िक ‘भि ध्रिु ’ सि् 1926 में वलखी गई थी। इसमें बालक
ध्रिु की कथा को कुल िौ पररच्छे दों में विभि वकया गया है। इसकी भवू मका में विराला की
शैविक दृवष्ट वदखलाई पडिी है। भि ध्रिु की भवू मका में िे वलखिे हैं,‘‘वकसी देश को उन्िवि
के वशखर पर वफर से संस्थावपि करिे के वलए सबसे उत्तम उपाय यही है वक उसके बालकों
की सािणभौवमक वशिा की ओर ध्याि वदया जाए। उिके सामिे देश के आदशण बालकों के
चररत्र रखे िाएाँ।’’6 छायािादी कवि की ऐसी सामाविक दृवष्ट, ऐसा समाि बोध द्रष्टव्य है।
भि प्रह्लाि की भवू मका भी देवखए,‘‘ऐसे धमणविष्ठ बालक के चररत्र का प्रचार पथभ्रष्ट कुवशिा
से बचािे के वलए देश के बालकों में अिश्य होिा चावहए।’’7 भाषा के सम्बन्ध में भी िे बडे
सिग रहे हैं। बालकोवचि भाषा का ध्याि विराला को है। िे वलखिे हैं,’’प्रह्लाि के चररत्र-
वचत्रर् में हमिे यथासाध्य सरल भाषा का प्रयोग वकया है। साधिा और वसवि सम्बन्धी उच्च
ित्त्िों के समद्घु ाटि की चेष्टा भी की है।’’8 इसके पच ं म पररच्छे द के अन्िगणि प्रह्लाि के
बाल्यकाल ि गरू ु कुल की कथायोििा की प्रस्िवु ि की गई है, विसमें बालकों को एक सफल
छात्र िीिि िीिे की सत्प्रेरर्ा है। ये िथ्य इस बाि के द्योतक हैं वक विराला शैविक दृवष्ट से
भी एक सिग रचिाकार थे।
‘भीष्म’ िामक पस्ु िक में कुल िेरह पररच्छे दों के अन्िगणि महाभारि की कथा साररूप में
कही गयी है। इसकी कथािक योििा भी कुछ ऐसी ही है वक बालकों को कुछ सीख वमल
सके । भीष्म का चररत्रांकि उिके सत्यविष्ठा, परािम, ब्रह्मचयष आवद गर्ु ों के पररप्रेक्ष्य में वकया
17
गया है।‘महारार्ा प्रिाप’ िामक ऐविहावसक आख्याि भी प्राप्त होिा है। कुल अठारह
पररच्छे दों के अन्िगणि राष्रीय चेििा का विकास वदखाया गया है। यहााँ अकबर को भ्रष्ट ि
महारार्ा प्रिाप को देशभि िीर योिा के रूप में दशाणया गया है। बालकों में चररत्र विमाणर् के
साथ-साथ राष्र विमाणर् की सत्प्रेरर्ा भी दी गई है। यह भी महत्त्िपर्ू ण है वक उपरोि
लोकोज्जज्जिल चररत्रों की कथा ही विराला िे िहीं वलखी अवपिु काव्यमयी लेखिी से उन्हें
बालकों ि वकशोरों के वहि सरल ि सरस बिा वदया। कवठि इविहास की घटिाओ ं को उन्होंिे
अत्यवधक सरल ि सरल रूप में बालकोवचि मिोविज्ञाि का ध्याि रखिे हुए िवर्णि वकया
विससे िे बोवझल अथिा दरू ु ह ि लगें। ‘सीखभरी कहावियााँ’ भी विराला िे बच्चों के वलए
वलखी थीं विसमें लगभग चालीस कहावियों का संकलि है। िैसे िो ये सभी लोक व्यिहार में
प्रचवलि कहावियााँ हैं, परन्िु विराला िे इन्हें अपिे ढंग से वलखा। प्रत्येक कहािी के अिं में
विष्कषण रूप में उस कहािी की सीख को सवू िरूप में वलखा गया है।डॉ. सरयप्रू साद दीविि के
शब्दों में,‘‘यवद बालक इि सत्रू ों को अपिे िीिि ि व्यिहार में उिार लें िो उिका िीिि
विवश्चि रूप से सफल ही कहा जाएगा ।’9 विराला की कलम से िहााँ ‘राम की शविपिू ा’ ि
‘िल ु सीदास’ िैसी उदात्त कृ वियों िे िन्म वलया, िहीं सामान्य िीिि के लघमु ाििों को भी
स्थाि वमला। बालोपयोगी कथा सावहत्य में उपरोि कहावियााँ अपिा महत्त्िपर्ू ण स्थाि रखिी
हैं। इसी िम में रामायर् ि महाभारि की अन्िकण थाएाँ भी वमलिी हैं िो ि के िल बच्चों के
वलए अवपिु प्रौढ़ों के वलए भी समाि रूप से उपयोगी हैं। डॉ. रामविलास शमाण के शब्दों
में,‘‘यद्यवप विराला िे मख्ु यिः अथोपािणि के वलए ये पस्ु िकें वलखीं िथावप इिसे उिकी राष्र
की वचंिा का, बालकों के भविष्य की वचंिा का पिा लगिा है।’’10 विःसंदहे विराला का
उपरोि सावहत्य बच्चों के वलए अत्यिं उपयोगी ि प्रभािोत्पादक है। विराला एक समथण कवि
के रूप में िो िगप्रविवष्ठि हैं ही, एक समथण गद्यकार के रूप में भी िे हमारे समि आिे हैं और
उससे भी अवधक एक बाल रचिाकार के रूप में। ि के िल बाल रचिाकार के रूप में अवपिु
बाल मिोविज्ञाि पर भी गहरी पकड रखिे िाले सावहत्यकार के रूप में। उिकी रचिाओ ं का
शैविक महत्त्ि िगण्य िहीं मािा िा सकिा। इस रूप में िे सिणदा समादृि होंगे।
- सी-231,शाहदािा कॉलोिी
बरेली
संदर्भ सूची-
1. आचायण मम्मट, ‘काव्यप्रकाश’, पृ. 6
2 त्यागी-पाठक, ‘वशिा के सामान्य वसिान्ि’, पृ. 10
3. डमविल, ‘चाइल्ड माइडं ’, पृ.1
4. डॉ. िागेश पांडेय ‘संिय’, ‘बाल सावहत्य के प्रविमाि’, पृ. 20

18
5. हरबटण स्पेंसर, ‘ऐिक ु े शिल वफलॉसफी’, पृ. 79
6. सयू णकांि वत्रपाठी ‘विराला’, ‘विराला रचिािली’(भाग-7), पृ. 23
7. िही, पृ. 69
8. िही, पृ. 70
9. डॉ. सरयप्रू साद दीविि, ‘विराला समग्र’, पृ. 86
10. डॉ. रामविलास शमाण, ‘विराला की सावहत्य साधिा’(भाग-3), पृ. 118
************
भीष्ि की सीख
- स्नराला
धमषिाज यदु धदष्ठि के मन में आया, िाज्य तो दिि से स्थादपत हुआ, पिंतु अनश
ु ासन की दशक्षा
िेनेवाला योग्य अदभज्ञ जन िसू िा भीष्म के दसवा कोई नहीं । इसदलए भीष्म से इसकी दशक्षा
लेनी चादहए । भीष्म बहुिशी, बहुश्रतु औि बहुपदठत हैं, यह सोचकि उन्होंने हाथ जोड़कि
कहा, ‘दपतामह, हमें अनश ु ासन की उदचत सीख िीदजए । आपके दसवा कोई इस योग्य मझु े
नहीं नज़ि आता ।’
भीष्म ने यदु धदष्ठि के आग्रह पि, अनेक प्रकाि की दशक्षाएाँ मोक्षधमष, वणाषश्रम धमष, िाजधमष,
िाज्यानश ु ासन आदि की िीं, इससे महाभाित की अनश ु ासनपवष ओत-प्रोत है । यदु धदष्ठि
एकदनष्ठ होकि भीष्म की गम्भीि, उिाि, प्रभावशादलनी दशक्षाएाँ सनु ते िहे । भाग्य औि क्रम के
प्रश्न पि भीष्म ने कहा, - ‘भाग्य औि क्रम में भेि नहीं । मान लो, भाग्य से कोई िाजपिु हुआ,
पि उसका िाज्य दकसी िसू िे वीि ने यद्ध ु किके छीन दलया, अब दजसने छीना, उसके साथ क्रम
भी है औि भाग्य भी; दजसका िाज्य गया, उसका कमष न िहने के कािण भाग्य भी गया । यहााँ
दनदश्चत है दक क्रम ही भाग्य है । परुु र्ाथष क्रम को प्रधानता िेता औि भाग्य में परिणत होता है ।
िाजा का कमष है – वह अपनी पिू ी शदक्त से, तन, मन औि धन से प्रजा का पालन किे । प्रजा
की सदु वधा के दलए जान हथेली पि दलए िहे । प्रजा को दशदक्षत किे , व्यवसाय, दशल्प औि
कला को प्रश्रय िे । इनके दलए िाजमागष, बाज़ाि, दशक्षणालय आदि दनदमषत किे । समस्त वस्तु
औि दवर्यों पि संिदशषता िखे, िाज्य के दलए सबकी आवश्यकता समझे । प्रजा का जादत-धमष
के दवचाि से पिे पहुचाँ कि समभाव से पालन औि शासन किे । िाज्य के उत्पातों से, चोिी-
डाके आदि से, प्रजा की िक्षा किे । इस तिह परुु र्ाथष का परिचय िेने पि, िाजा प्रजाजनों का
दप्रय होता है । प्रजा की प्रशसं ा से मृत्यु के बाि वह स्वगष-सुख प्राप्त किता है । प्रजाजनों के
मनोलोक से दगि न पाने के कािण िाज्य स्वगषलोक से च्यतु नहीं होता । समस्त दवद्याओ ं का
आधािभतू होने के कािण िाजा पि अदवद्या का प्रभाव नहीं पड़ता । इस प्रकाि परुु र्ाथष स्वयं
भाग्य में परिणत होता है – कमष ही अदृि का उत्पािक है । यह कहकि भीष्म कुछ िेि के दलए
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मौन हो गए । महािाज यदु धदष्ठि भीष्म के दिए उपिेश के बोध में डूबे हुए महानंि का अनभु व
कि िहे थे । दिि प्रकृ दतस्थ होने पि भीष्म को प्रणाम कि चले ।
भीष्ि का प्राण-त्याग
बहुत दिनों तक धमषिाज यदु धदष्ठि भीष्म के पास आते-जाते िहे । क्रमश: उत्िायण का समय
आया । भीष्म की इच्छा-मृत्यु थी । वह सयू ष के उत्िायण होने पि प्राण छोड़ेंग,े प्रदतज्ञा कि
चक ु े थे । अब वह समय आया । धमषिाज यदु धदष्ठि पिु ोदहत के हाथ संस्काि-अदग्न औि वाहकों
से घी, ित्न, िे शमी वस्त्र, चिं न, पष्ु प, माल्य, यव-दतल, कुश, अगरु औि चिं न की लकड़ी
दलवाकि महािाज धृतिाष्र, गाधं ािी, कंु ती औि नगि के गणमान्य जनों को आगे कि भाइयों
के साथ चले । वहााँ जाकि िेखा – भीष्म ऋदर्यों औि मदु नयों से पहले की तिह दघिे हुए हैं ।
यथासमय इन सबको आकि प्रणाम किते िेखकि भीष्म ने कहा – ‘ईश्वि तमु लोगों का
कल्याण किें , अब मेिा समय आ गया है । 58 दिन तक शिशय्या में िहते बड़ा कि हुआ है ।
यह समय मझु े एक शताब्िी से लबं ा जान पड़ा है ।’
धृतिाष्र औि पांडव दवर्ण्ण खड़े थे ।भीष्म यह िेखकि बोले, ‘हे धृतिाष्र, तमु क्षि धिम की
कुल बातें जानते हो । पिु ों के दनधन से तम्ु हें असह्य कि हुआ है पि धमष का महाँु िेखकि यह
कि सहन किते हुए ससं ाि का बधं न मक्त ु किो । इससे अदधक मैं तम्ु हें कुछ नहीं कहता ।
पांडवों के प्रदत दकसी प्रकाि की अदनि-दचंतना न किना । वे धादमषक हैं औि बिाबि गरुु जनों
के दलए श्रद्धा-सम्पन्न िहे हैं । िाज्य के वे ही योग्य हैं ।’ दिि एक बाि समवेत ऋदर्-मदु नयों की
ओि उन्होंने दृदि डाली । ऋदर् लोग सजग हो गए । दिि महावीि, महािथ, अपिादजत योद्धा,
दचि-ब्रह्मचािी भीष्म प्राणायाम द्वािा प्रयाण किने को उद्यत हुए । उन्होंने मल
ू ाधाि में दृदि की,
औि क्षणमाि में उन्हें ज्योदत-मण्डल दिख पड़ा । अपाि िहस्य-सृदि को िेखते हुए भीष्म जहााँ
से आए थे, वहााँ पहुचाँ गए । स्वगष में उनके स्वागत की बड़ी तैयारियााँ थीं । िेव-कन्याएाँ
मगं लगीत गाती हुई भीष्म को ले गई ं।
पांडवों ने िेखा, दपतामह का शिीि दनष्प्राण हो गया है ।पांडव इस महात्मा, नि-श्रेष्ठ के प्रयाण
में िखु ी होकि िोने लगे । दिि, चंिन की दचता लगाई गई औि शिदवद्ध शव को कीमती वस्त्रों
से ढककि यदु धदष्ठि आदि पाडं वों ने उठाकि दचत पि िखा । िूलमालाओ ं से ससु दज्जत शव
पि नगि के सहस्रों नािी-नि अपने-अपने श्रद्धा के िूल चढ़ाने लगे । दिि यदु धदष्ठि ने दचता में
अदग्न-संयोग दकया ।आग जल उठी । भीम, अजनषु आदि वीि दपतामह की दिव्य दशक्षा औि
अथाह ज्ञान की याि कि आाँसू बहाते िहे । कुछ िेि बाि दचता जल गई । शव भस्मीभतू हो
गया । नगि के लोग बड़ी श्रद्धा से दचता की िाख लेने लगे । इस तिह प्रायः समस्त भस्म
समाप्त हो गया ।
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नागार्जनु के काव्य िें वैचाररक उन्िेर्
- स्पन््ू यादव
दवचाि तत्व एक यग्ु म शब्ि है, जो दवचाि औि तत्व के संयोग से बना है, दजसका
अथष है दवचािों की वास्तदवक दस्थदत। 'चि' धातु में 'दव' उपसगष तथा ‘घञ्’ प्रत्यय के संयोग
से 'दवचाि' शब्ि दनष्पादित हुआ है, दजसका शब्िाथष दचन्तन, दवमशष, तत्वाथष दचन्तन होता है।
वास्तव में जो कुछ मन में सोचा गया अथवा सोच कि दनदश्चत दकया जाए वही दवचाि है।
दहन्िी के प्रायः सभी शब्िकोशों में दवचाि शब्ि का यही अथष स्वीकाि दकया गया है। 'दवचाि'
दचन्तन से सम्बदन्धत होने के कािण मल ू तः िशषनशास्त्र का पारिभादर्क शब्ि था, पिन्तु शनैः
शनैः इसका प्रयोग मनोदवज्ञान आदि दवदवध शास्त्रों के साथ सादहत्य में भी होने लगा।
मनोदवज्ञान में स्वीकाि दकया गया है दक सामान्य बदु द्ध की प्रदक्रया का नाम दचन्तन है, जो
त्य प्रस्ततु हों, उसके सम्बन्ध को हृियगं म किने के दलए यह मानदसक प्रदक्रया अदनवायष
होती है। इदन्रयबोध अथवा भावना से दभन्न भाव या प्रत्यय पि मानदसक के न्रीयकिण की
परिणदत ही दवचाि है । इदन्रय बोध के अदतरिक्त पिाथों के समस्त अदभज्ञान' को दवचाि शब्ि
से अदभदहत दकया जाना चादहए। िशषन शास्त्र में दचन्तन अदनवायषतः प्रयोजनीय है, दजसके
दलए दवचािों, दबम्बों, प्रतीकों की अपेक्षा की जाती है।
आम आिमी के शोर्ण, उत्पीड़न तथा दतिस्काि से नागाजनषु आहत होकि माि
भावाकुल होकि आाँसू ही नहीं टपकाते प्रत्यतु ् उनकी मनीर्ा इन परिदस्थदतयों के कािण औि
समाधान के दलए दनष्कर्षपिक स्थापनाएाँ किती हैं। दहन्िी प्रिेश के लघमु ानव को उन्होंने
वैदश्वक मानवता के उत्पीड़न वगष के रूप में दचदन्हत दकया था, दजसकी दनिक्षिता औि
दवपन्नता की पिम्पिा से उन्होंने अपनी भीष्मता को जोड़ कि सघं र्षवन्ती सच
ं ेतना के दवरोही
स्वि मख ु रित दकए। उनके काव्य में अन्याय, िमन औि शोर्ण से उपजी कटुता व्यक्त हुई
दजसने उन्हें ऐसी वैचारिकता से जोड़ा दक इन शोर्क परिदस्थदतयों के दवरुद्ध वह एक दचन्तन
प्रस्ततु कि सके ।
नागाजनषु की वैचारिकता वस्ततु ः भौदतकवािी जीवन िशषन पि मजबतू ी से खड़ी हुई
है। इस जीवन िशषन का लक्ष्य उत्पीड़न औि शोर्ण को दनयदमत मान कि स्वीकाि कि लेना
नहीं है, बदल्क अपने हक, अपने दहस्से के सुख के दलए संघर्षपणू ष प्रयत्न किना है। जीवन औि
जगत् सम्बन्धी अपनी दवदशि मान्यताओ ं के कािण नागाजषनु की दवचािधािा ने मल्ू यों औि
मानिण्डों को जन्म दिया, दजनकी दिशा प्राचीन शास्त्रीय मान्यताओ ं से दनतान्त दभन्न है।

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प्रभाव की दृदि से नागाजनषु की वैचारिकता माक्सषवाि के दनकट है, दकन्तु इसकी अपनी श्रव्य
अदस्मता औि मौदलकता है। नागाजनषु की आयु जब माि तीन वर्ष की थी तभी 1914 ई. में
प्रथम दवश्वयद्ध
ु प्रािम्भ हुआ, जो 1919 ई. तक चलता िहा। इस यद्ध ु से सािा दवश्व प्रभादवत
हुआ। इस महायद्ध ु का कािण उपदनवेशवाि था, दजसका उद्देश्य ही शोर्ण औि उत्पीड़न है।
यही काल भाित में माक्सषवािी दवचािधािा के उत्कर्ष का काल है, दजसका जाने अनजाने में
प्रभाव नागाजनषु पि पड़ा ही था। माक्सषवाि के प्रथम उत्कर्ष के अन्तगषत सन् 1918 से लेकि
1922 तक के पाचं वर्ों का समय दलया गया है। इसके एक छोि पि प्रथम महायद्ध ु की
समादप्त के पश्चात् भाित में अग्रं ेज़ी साम्राज्यवाि की िमन नीदत का आिम्भ औि िसू िे छोि पि
महात्मा गांधी के नेतत्ृ व में चलने वाला भाित का प्रथम स्वाधीनता आन्िोलन है। दद्वतीय
उत्कर्ष काल के अन्तगषत् सन् 1923 से सन् 1930 तक के आठ वर्ों का समय दलया गया है।
यह िो िाष्रीय आन्िोलनों के बीच का यगु है, दजसमें िाजनीदतक जागिण की लहि िेश के
एक दसिे से िसू िे दसिे तक पहुचं ी है। स्वतिं माक्सषवािी िाजनीदतक सस्ं थाओ ं का जन्म हुआ है
औि माक्सषवािी दवचािधािा से परिचादलत मज़ििू आन्िोलनों का सिू पात सन् 1931 से सन्
1936 तक के छः वर्ों का समय दलया गया है। यह युग दद्वतीय िाष्रीय आन्िोलन की
असिलताजन्य प्रदतदक्रया से प्रािम्भ होता है।
सोदवयत सघं की प्रगदत के िलस्वरूप िेश में माक्सषवाि के प्रदत आस्था का दवकास
हुआ, समाजवािी आन्िोलनों को बल दमला यहााँ तक दक भाितीय िाष्रीय कांग्रेस के अन्िि
भी समाजवािी िल का दनमाषण हुआ, दजसकी इन दिनों उत्ि प्रिेश में सिकाि चल िही है।
सन् 1936 में प्रगदतशील लेखक संघ की स्थापना होती है औि इस प्रकाि सादहदत्यक क्षेि में
भी माक्सषवािी दवचािधािा से प्रभादवत एक आन्िोलन चल पड़ता है। प्रगदतशील लेखक संघ
की स्थापना से लेकि सन् 1942 के िाष्रीय स्वाधीनता आन्िोलन तक के यगु में तत्कालीन
िाजनीदतक परिदस्थदतयों के प्रकाश में इस यगु से सम्बदन्धत माक्सषवािी काव्य चेतना का
दवश्लेर्ण दकया गया है। 1942 के िाष्रीय स्वाधीनता आन्िोलन तथा 1939 से 1945 तक
चले दद्वतीय दवश्व यद्ध
ु में अग्रं ेज़ों की दनबषल हुई साम्राज्यवािी शदक्त के िलस्वरूप यह यगु
साम्यवािी दवचािधािा के दलए अदत अनक ु ू ल यगु आया है।"
कोई भी कदव जब कदव कमष के दलए प्रदतबद्ध होता है तो उसे समकालीन परिवेश के
सन्िभों के बीच से गज़ु ि कि काव्य यािा समाप्त किनी पड़ती है। उसे उस तेवि, दमजाज औि
महु ाविे को समझना - अपनाना पड़ता है , दजसमें उसके समय की कदवता दलखी जाती है।
छंिों से गज़ु ि जाने के दलए उग्र नागाजषनु जैसे िचनाधमी को भी उन अदृश्य सीमाओ ं से
प्रभादवत होना पड़ता है, जो काल से उपजे सत्य के कंधों पि सवाि होकि अदृश्य लक्ष्मण
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िे खाएाँ खींचते िहते हैं दकसी भी सृजनधमी को इन िे खाओ ं के अन्िि िहने अथवा इनका
अदतक्रमण किने को द्वन्द्व का साक्षात्काि किना ही पड़ता है। स्वीकाि औि अस्वीकाि के इस
तनावपणू ष दबन्िु पि खड़े होने का सबतू िेकि ही वह कदवता की यांदिक एकरूपता से बच
सकता है औि अपनी प्रयोजनवती साथषक काव्यात्मक संभावनाओ ं का भिोसा दिला सकता
है। नागाजनषु की कदवताओ ं को पढ़कि अनसु ंदधत्सु को प्रदतभादसत हुआ दक दवरोह औि
आक्रामकता के महु ाविे से लैस तत्यगु ीन काव्य संचेतना से गज़ु िते हुए भी नागाजनषु ने अपनी
सवं िे नाओ ं को सोच के कवच में दनबद्ध िखने की चेिा की है।
डॉ. िामदवलास शमाष ने कश्मीि में दहन्िू िाजा हिीदसहं के दवरुद्ध बहुसिं क्षक मसु लमान
औि हैििाबाि के दनज़ाम के दवरुद्ध दहन्िू जनता के संघर्ष का उल्लेख दकया है। उनका कहना
है दक यदि यह संघर्ष सिल होते तो साम्प्रिादयक समस्या बहुत कुछ अक ं ु श में होती औि
जनवािी क्रादन्त की प्रगदत बहुत सगु म होती । िाम जन्मभदू म औि बाबिी मदस्ज़ि दववाि से
िै ली तनातनी औि िगं ों की पृष्ठभदू म में यह समझना कदठन नहीं है दक दहन्ि-ू मदु स्लम
समिु ायवाि के साथ पजंू ीवाि वगष का सधु ािवािी नेतत्ृ व दकस तिह अन्िरूनी साठ गाठं किता
है। अकािण नहीं है दक यह सधु ािवािी नेतत्ृ व आज दिि से िामिाज्य का वािा किके
सामिु ादयक भावनाओ ं का िोहन किने औि वामपक्ष की प्रगदत को दनयंिण में िखने का
प्रयास कि िहा है।
नागाजनषु ने उक्त िोनों घटनाओ ं पि कदवताएाँ दलखी थीं, दजनमें उनकी साम्प्रिादयकता
दविोधी तथा जनवािी समथषन सोच अन्तदनषगदू ढ़त है। ये कदवताएाँ हैं" हज़ाि हज़ाि बाहों वाली
( पृष्ठ 48 औि 137 ) तथा "पिु ानी जदू तयों का कोिस (पृष्ठ 37-40)। इन कदवताओ ं में जो
दवचािधािा प्रवादहत हुई है वह अन्याय औि शोर्ण के दवरुद्ध जनवािी आिं ोलन को
संघर्षशील धिातल प्रिान किती है। प्रगदतशील आिं ोलन के दवघटन के बाि प्रयोगवाि नई
कदवता के भीति िह कि मदु क्तबोध ने बहुत सघं र्ष दकया था।
उनका संघर्ष इसदलए जदटल है दक एक ओि वे बहुत सी वैचारिक मनोवैज्ञादनक
गदु त्थयों औि दवसंगदतयों में िंसे हुए हैं, िसू िी ओि जनता से हमििी िखने के कािण शीतयुद्ध
आदि की साम्राज्यवािी िणनीदत से भिसक लड़ते हैं। 69-70 के िौिान सादहत्य में जनवािी
दवचािधािा के आगे आने के दलए सघं र्ष आिम्भ दकया दकन्तु स्वाधीन भाित की बहुत सी
व्यादधयों को 1947 के सत्ा हस्तान्तिण से दनिपेक्ष मान कि िेखा गया। परिणामस्वरूप
सादहदत्यक आिशष के रूप में प्रगदतशील लेखकों की बजाय नई कदवता पि ही दृदि रूक गई
औि मदु क्तबोध की एक ऐसी छदव दनदमषत हुई दक वे अन्तदवषिोधों से मक्त ु , वैचारिक अनुमानों
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से बहुत ऊपि, िेश-काल के तीनों आयामों को सम्यक रूप में िेखने वाले दवलक्षण परुु र् थे।
मदु क्तबोध को स्वतः प्रमाण मानकि आलोचना के मान ही नहीं दस्थि दकए गए नई कदवता के
वैचारिक आधािों की खोज भी की गई, दजनमें अदस्तत्ववाि का उल्लेख तक प्रासंदगक न
िहा, नई कदवता पजंू ीवाि सस्ं कृ दत का मचं है। यह घोर्णा तो की गई, पि प्रगदतवाि औि नई
कदवता के अन्तदवषिोधों को दवदभन्न वगों के सांस्कृ दतक संघर्ष के रूप में िेखने का प्रयत्न नहीं
दकया गया। नागाजनषु समेत प्रगदतशील लेखकों का माि भत्सषना के दलए उल्लेख दकया गया।
प्रगदतशील सादहत्य औि नई कदवता का संबंध औि इसका दचन्तन समझने के दलए
क्रमशः श्रीकान्त वमाष, िघवु ीि सहाय औि नागाजनषु की िाजनीदतक कदवता का दवश्ले र्ण
किने से दनष्कर्ष दनकलता है दक श्रीकान्त वमाष सत्ाधािी वगष के शासक पक्ष से, िघवु ीि सहाय
उस वगष के प्रदतपक्ष से तथा नागाजनषु उस वगष के जनवािी दवकल्प से जड़ु े कदव हैं। मदु क्तबोध
का दचन्तन जनवािी है, जो क्रादन्त को आवश्यक तो समझता है, लेदकन पजंू ीवािी नेतत्ृ व की
प्रगदतशीलता से भी आकृ ि है। आलोचना- सादहत्य में चाहे दजतने भ्रम बने हुए हों, कदवता
की वतषमान मख्ु य धािा दलए नागाजनषु की जनवािी कदवता का महत्व उभि िहा है। इब्तबाि
िब्बी ने मदु क्तबोध औि नागाजषनु का िचनात्मक अन्ति समझाते हुए दलखा है-
"मझु े लगिा है वक मवु िबोध िे वहन्दी कवििा को बहुि ऊाँचाई पर खडा कर वदया।
काफी ऊाँचा मचं , बडा विशाल मचं खडा कर वदया ।... पर मैं मख ू िण ा की हद िक बहुि
वििम्रिा से यह कहिे की धृष्टिा कर रहा ह,ाँ वक इस विशाल ढााँचे में प्रार् िहीं हैं, स्पदं ि िहीं
है, कै ििास पर खाली लकीरें हैं. ..... पंवडिों की पहुचाँ है िहााँ, िि सामान्य के वलए बीहड है
िह कवििा। इसी वलए शायद लकडी का रािर् और ब्रह्म रािस है िहााँ िो काम अधरू ा रह
गया था, उसे िागििणु परू ा करिे हैं। िह उसमें घास का हरा रंग . भरिे हैं। कोयल की कूक,
आग की गधं , चािलों की महक, यािी िीिि से ओि-प्रोि कर देिे हैं। िागाििणु की कवििा
में िावन्ि का खोखला िारा िहीं, आम आदमी की विन्दगी के हक के वलए लगािार लडाई
की सोची समझी िीवि है।.. ... एक दो मिष्ु य िहीं, इस देश की िििा उन्हें प्रेररि करिी है
रचिा के वलए और उसकी रचिा मात्र समय काटिे के वलए िहीं महि फै शि के वलए िहीं .
बवल्क आम आमदी को मिु ावसब सहवलयिें महु य्ै या करािे के वलए हैं।"
नागाजनषु अन्याय औि दवर्मता के दलए भ्रि िाजनीदतज्ञों औि अिसिशाहों को
दजम्मेिाि मानते हैं। खिु को उनके आमने सामने िख कि सीधी चोट किते हैं। नागाजनषु अपने
अनभु व से व्यवस्था की अमानवीयता औि जनता की घटु न को पहचान कि जनता को इससे
मदु क्त दिलाने का दचन्तन किते हैं। उनका यह दचन्तन है सधु ाि के ध्येय की चेतना का प्रसाि,
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शोर्णवािी व्यवस्था का आमल ू परिवतषन, इस परिवतषन के दलए अन्याय, िमन औि शोर्ण
के दविोध का क्रादन्तधमी संकल्प, भ्रि पंजू ीवािी नेताशाही नौकि शाही के दवरुद्ध आिं ोलन
औि ऐसा सब कि सकने के दलए प्रकृ दत के कलात्मक जान पड़ने वाले प्रतीक चनु कि जनता
को जाग्रत किना। नागाजनषु का मत है दक सभ्यता औि सस्ं कृ दत की दविाट् उपलदब्धयााँ अपने
आप नहीं होतीं, उसके दलए आग पैिा किनी होती है-
"हिा और पािी की िरह
वह दविासत में नहीं दमलती
उसे पैिा किना होता है
उन हाथों के दखलाि
दजन्होंने
कभी
आग पैिा नहीं की
दसिष
उसे तापते िहे।"

दवचाि हवा में पैिा नहीं होते । दनदश्चत सामादजक परिवेश ही दनदश्चत दवचािों को जन्म
की पृष्ठभदू म तैयाि किता है। इसदलए नागाजनषु की प्रगदत आग्रही सोच मानव दवकास की
दनदश्चत यािा सम्पन्न किके ही अपना आकाि ग्रहण कि सधी है जो दक इसके परिप्रेक्ष्य में
अनेक तत्व पंजू ीभतू रूप में समच्ु चदयत है। वस्ततु ः नागाजनषु की सोच की पृष्ठभदू म में
आधदु नक वैज्ञादनक प्रगदत, बदु द्धवाि के दवकास औि स्वतिं ता तथा बिाबिी के दलए होने
वाले िाजनैदतक सामादजक संघर्ों का काल सापेक्ष सत्य है।
वैचारिक धिातल पि दवदभन्न िेशी-दविेशी दवचािकों की अवधािणाएाँ हैं। वगषसा के
अनसु ाि कोई िहस्यपणू ष जीवन-शदक्त ही दवकास क्रम में नतू न स्तिों की उद्भावना का कािण है
जहााँ रूदढ़वािी दवकासवाि ने दवकास की दक्रया को माि परिणामस्वरूप परिवतषन की प्रदक्रया
माना, वहााँ सृजनात्मक दवकासवाि इसे माि गणु ात्मक परिवतषन की प्रदक्रया मानता है। इस
प्रकाि दवकास की धािणा अपने समस्त दवकास औि अपनी उिात् कल्पनाओ ं के अनन्ति
एक अधं ी गली में आकि रुक गई। रूदढ़वािी दवकासवाि, नत्योिभावना औि सृजनात्मक
दवकासवाि औि उसके क्रम में आई नवीन उद्भावनाओ ं की व्यवस्था नहीं कि सके । इस
आवश्यकता की पदू तष अब तक के दवकासवािी दचन्तन की उपलदब्धयों का उपयोग किते हुए
तथा माक्सष औि एाँजल्े स द्वािा प्रदतपादित द्वद्वं ात्मक भौदतकवाि से अनप्रु मादणत होते हुए
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नागाजनषु ने प्रगदत औि दवकास की धािणा को अध्यात्मवाि की अधं ेिी गली से बाहि दनकाल
कि एक ठोस वैज्ञादनक औि सामादजक सोच का आधाि दिया
"धन्य धन्य यह दहु री विरही मस्ु काि....
वज्रपान, गप्तु यान
मात हुए सभी पंथ
खल ु गए गाथा-ग्रन्थ
तैयाि हों कुछ औि पिु ित्क
पिू ा हो तीसिा चौथा सप्तक
खिु ा किे पा आओ चाकिी हजािों की.......
........... उधि है न्ययू ाकष इधि िािमसा
बीच में लटक िहा फ्रीडम ऑि कल्चि ।

नागाजनषु की अपनी जीवन-यािा इससे उल्टी िही है। उनका दज़िं गी तथा समाज के
प्रदत एक नज़रिया था औि वह इसी नज़रिये के आलोक में अपने जीवन को आगे बढ़ाते गये।
वे सनातन धमष से दनकल कि उत्िोत्ि जनवाि औि समाजवाि की ओि बढ़ते गए। अपनी
व्यदक्तगत सुख-सदु वधाओ ं तथा स्वास््य की पिवाह न किते हुए मक ु दलसी, गिु वत, अन्याय,
शोर्ण, प्रपीड़न, अधं दवश्वास, अवांदछत पिम्पिाओ ं तथा कंु दठत िीदत-रिवाजों के उन्मल
ू न के
प्रयास में आजीवन लगे िहे।
नागाजनषु ने बौद्ध धमष की िीक्षा भी ग्रहण की थी । बौद्ध धमष में िीदक्षत होने के
उपिान्त, उसके सादहत्य औि व्यवहाि का अध्ययन किने के बाि अपने दचन्तन औि अनुभव
को समृद्ध दकया लेदकन अपने सहज आलोचनात्मक दववेक को उन्होंने कभी नहीं त्यागा ।
नागाजनषु की काव्य-चेतना का पहला संघर्ष धमष की जकड़बन्िी के दवरुद्ध चला । उन्होंने यह
भली भांदत अनुभव दकया दक समकालीन जीवन में धमष की कोई प्रगदतशील सामादजक
भदू मका नहीं िह गयी है। वह धदनकों की संपिा औि जन सामान्य की दवपिा से सम्बद्ध है। वह
साधािण जन को दवदवध अमानदवक औि अप्राकृ दतक दवदध-दनर्ेधों में उलझाता है, जीवन
को दनिथषक मानकि उससे पलायन का उपिेश िेता है। नागाजनषु की वैचारिकता पलायन को
कभी स्वीकृ दत नहीं िेती। वह जीवन की प्राकृ दतक आवश्यकताओ,ं आकांक्षाओ ं को भी
मान्यता िेते हैं। तभी तो बौद्ध संघों के अपने अनभु व-ज्ञान से सम्पन्न होकि उन्होंने 'दभक्षणु ष’
की कल्पना की है। वह मजबरू ियों के कािण बचपन में ही बद्ध ु की शिण में आ गयी।
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यवु ावस्था के साथ उसकी नािी सलु भ आकांक्षाएाँ जागने लगीं। वह बद्ध
ु के प्रदत आकृ ि हुई।
हीनयान महायान समझ चक ु ने के बाि अब वह मानव सम्बन्धों का सहजयान जानना चाहती
है।
"भगवान अदमताभ, सहचि मैं चाहती
चाहती अवलम्ब, चाहती सहािा
िेकि दतलांजदल दम्या संकोच को
हृिय की बात को कहती हूाँ आज मैं
कोई एक होता
दक दजसको
अपना मैं समझती...............
भख ू मातृत्व की मेिी दमटा िेता,
स्त्रीत्व का सि
ु ल पाकि अनायास
धन्य मैं होती।"

नागाजनषु िाशषदनक कदव नहीं है, उनमें 'अमतू ष दचंतन की ऊाँचाई नहीं है। लेदकन उनमें
सहज प्रज्ञा के साथ-साथ दवचािधािा का भी अदस्तत्व है, इससे सभी परिदचत है उनकी
दवचािधािा औि सहज प्रज्ञा ( उनकी चेतना के सचेत औि अचेत पक्ष ) उनकी कदवता को
'अमतू ष कलात्मकता की तिि नहीं ले जाती। कािण यह है दक नागाजनषु कला की िचनात्मक
प्रदक्रया में अपने इदं रयबोध औि भाव बोध पि दवश्वास नहीं खोते। इधि अपनी कुछ
िाजनीदतक कदवताओ ं में उन्होंने यथाथष के जदटल अतं ः संबंधों के साथ-साथ उन्नत वैचारिक
दनष्कर्ष भी प्रस्ततु दकये हैं। अमतू ष दवचािों के साथ उन्होंने कला की मतू षता की भिपिू िक्षा भी
की है। अन्तषिाष्रीय मृिा कोर् से भाित ने जो ऋण दलया उसके सि ु ल से हमािा िेश आदथषक
क्षेि में अमिीका का दपछलगआ ु बनेगा । उस पि अमिीका का िोब चलेगा औि
"हााँ, एक ही खतिा है, दजससे
होगी तू पिे शान
बदल्क जिा-सी गिलत से
दमट सकता है तेिा नामोदनशान।"

अमिीका ऋण नीदत की कृ पा से मैदक्सको का अथषतंि दिवादलएपन के दजस कगाि पि


आ खड़ा हुआ है। उससे नागाजनषु की दचतं ा का सत्य प्रकट हो जाता है। नागाजनषु ने यह
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कदवता 'छोटी मछली बड़ी मछली ....' का रूपक अपना कि दलखी है। इसमें उन्होंने
दकस्सागोई औि िै टेंसी के दशल्प का दमलान किके अपनी कला का एक औि सशक्त पक्ष
उजागि कि दिया है। अगि अमतू षता का अथष संविे नात्मक जदटलता औि सक्ष्ू मता है तो
नागाजनषु ने अपनी कदवताओ ं के उिाहिण से यह दसद्ध दकया है दक जदटलति औि सक्ष्ू मति
संविे नाओ ं को कला में मतू ष बनाकि कै से पेश दकया जाता है। बदु द्धजीवी पाठकों की बात मैं
नहीं किता, नागाजनषु के साधािण पाठक उनकी कदवताओ ं के इस ममष को पहचानते हैं।
नागाजनषु अपनी कला की चनु ौती इसी बात को मानते हैं दक आम दजिं गी से जड़ु े सवाल औि
परिदस्थदतगत यथाथष दकतना ही जदटल औि सक्ष्ू म क्यों न हो, अपने सृजन में उसकी
अदभव्यदक्त असंभव नहीं। इस प्रकाि के क्य कदवता में रूपान्तरित होने पि वे साधािण
पाठकों के दलए ग्राह्य बनाये जा सकते हैं। नागाजनषु के दशल्प की दवशेर्ता है दक उनके जदटल
औि अदतसक्ष्ू म क्य भी संप्रेर्णीय हैं।
संदभज सूची
1. संदक्षप्त दहन्िी शब्ि सागि पृ. 893
2. दचन्तन मीमांसा ( डॉ. दिनेश चन्र दद्ववेिी ) पृ. 14
3. दचन्तन का तादत्वक दववेचन ( डॉ. एन. डी. समादधया ) पृ. 32
4. तमु ने कहा था ( भगवत िावत). पृ. 14
5. नागाजनषु िचनावली पृ.47
6. नागाजनषु िचनावली पृ. 66

- िोधाथी- िहारार्ा सयार्ीराव


स्वश्वस्वद्यालय, बड़़ौदा गुर्रात



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रूस-यूक्रेन युद्ध – आस्थजक साम्राज्यवाद का ज्वलंत उदाहरण
- रिेि चन्र
रूस औि यक्र ू े न के मध्य यद्ध
ु का इदतहास कई वर्ष पिु ाना है। ये िोनों िेश
ििविी, 2014 से यद्ध ु ित हैं। रूस एक बहुत बड़ा िेश होने के साथ-साथ
एक महाशदक्त भी है, जबदक यक्र ू े न उसकी तल
ु ना में बहुत छोटा औि
कमज़ोि िेश है। रूस का क्षेििल 1,70,98,246 वगष दक.मी. है, जबदक
यक्र
ू े न का माि 6,03,628 वगष दक.मी. है अथाषत् इसका क्षेििल रूस के
क्षेििल का माि लगभग साढ़े तीन प्रदतशत है। िसू िी ओि यूक्रेन रूस से
तीन ओि से दघिा हुआ भी है। इसके अदतरिक्त रूस के साथ यक्र ू े न में िह िहे रूस के
अलगाववािी नागरिक भी हैं। इन सब कािणों से प्रशासदनक औि सैन्य शदक्त की दृदि से
यक्र
ू े न रूस का कोई मक ु ाबला नहीं है।

यदि दवगत के कुछ वर्ों में जाएाँ, तो रूस-यक्रू े न यद्ध


ु की कहानी कुछ इस प्रकाि है। यिू ोपीय
यदू नयन (ई.यू) औि यूक्रेन संघ के बीच 2012 में एक समझौता हुआ था, दजस पि हस्ताक्षि
21 नवबं ि, 2013 को होने थे औि दजसके तहत यक्र ू े न ई.यू का एक प्राथदमकता वाला
सहयोगी बन जाता, पिंतु यक्रू े न के पवू ी औि िदक्षणी भागों में िह िहे रूस के समथषक लोगों के
दहतों को ध्यान में िखते हुए यक्र
ू े न के रूस-समथषक िाष्रपदत दवक्टि यानक ू ोदवच ने 2013 में
इस समझौते पि हस्ताक्षि नहीं दकए। इससे क्षब्ु ध होकि यक्र ू े न में ई.यू के साथ समझौते के
समथषक लोगों ने दवरोह कि दिया, दजसके परिणामस्वरूप यूक्रेन की संसि ने ििविी, 2014
में यानक
ू ोदवच को बिखास्त कि दिया। तब रूसी सेना ने यक्र ू े न के क्रीदमया पि आक्रमण कि
18 माचष, 2014 को उसे सिा के दलए अपने कब्ज़े में ले दलया। इससे यक्र ू े न ने क्रीदमया को
जल की 85 प्रदत शत आपदू तष किने वाली नॉथष क्रीदमयाई नहि को ब्लॉक कि दिया।

अगस्त, 2014 में रूसी छद्मवेशी सेना ने यक्रू े न पि दिि आक्रमण कि दिया। ििविी, 2015 में
िोनों िेशों के बीच दमन्सक की िसू िी सदं ध हुई, पिंतु कुछ दववािों के कािण सदं ध को पिू ी तिह
लागू नहीं दकया जा सका, दजस कािण इन िेशों के बीच यद्ध ु ने स्थायी रूप ले दलया। 2015,
2016, 2018, 2019 औि 2021 में इन िोनों के बीच दभन्न-दभन्न कािणों से िह-िहकि दिि
छुट-पटु लड़ाइयााँ हुई ं। माचष, 2021 में रूस ने यक्र
ू े न की सीमा के साथ दिि सेना इकट्ठी किनी
शरू
ु कि िी औि साथ ही उसने यह घोर्णा की दक उसका यक्र ू े न पि आक्रमण किने का कोई
इिािा नहीं है। पिंतु दिसबं ि, 2021 में अमिीका की खदु िया रिपोटष ने यह बताया दक रूस ने
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यक्र
ू े न की सीमा पि कहााँ-कहााँ सेना तथा आयद्ध ु इकट्ठे दकए हुए हैं औि उसकी दकस-दकस
को मािने की मंशा है। कुछ ही समय बाि रूस ने यक्र ू े न पि आिोप लगाया दक वह यूक्रेन में िह
िहे रूस के नागरिकों का नि-संहाि कि िहा है औि उसे यद्ध ु के दलए उकसा िहा है, पिंतु
यक्र
ू े न, नाटो तथा अन्य यिू ोपीय िेशों ने रूस के इस िावे को खोखला बताया।

ििविी, 2021 में रूस के िाष्रपदत पदु तन ने यूक्रेन िेश की वैधादनकता पि ही सवाल खड़ा
कि दिया औि कहा दक रूस के वलादिमीि लेदनन ने यूक्रेन िाज्य रूस की भदू म से ही बनाया
था औि वह कभी कोई स्वतंि िेश िहा ही नहीं। उसने कहा दक िसू िे दवश्व यद्ध ु के बाि
जोसेि स्टादलन ने पवू ी यिू ोप के अन्य िेशों की भदू म दमलाकि यक्र ू े न के क्षेि को बढ़ा दिया
था तथा 1954 में दनदकता ख्रश्ु चेव ने रूस से क्रीदमया को अलग कि उसे दकन्हीं कािणों से
यक्र
ू े न को िे दिया था। पदु तन ने कहा दक िसू िे दवश्व यद्ध ु में रूसी नाजी जमषनी द्वािा रूसी
ईसाई मािे गए थे, न दक यहूिी लोग तथा अब यक्र ू े न का समाज औि सिकाि पि नवनाजीवाि
छाया हुआ है। पिंतु यक्र ू े न ने इसका खडं न दकया। मध्य औि पवू ी यिू ोप के कुछ िेशों नाटो
(North Atlantic Treaty Organization) में शादमल हो गए थे, क्योंदक इससे उन्हें
सिु क्षा औि आदथषक दवकास के अदधक अवसि दमलने के साथ-साथ रूसी आक्रमण से भी
संिक्षण दमल िहा था। इसी कािण यक्र ू े न भी नाटो में शादमल होना चाह िहा था। तब रूस ने
अमिीका औि नाटो से यह मांग भी कि िी दक यक्र ू े न को नाटो में शादमल न दकया जाए तथा
पवू ी यिू ोपीय िेशों में दस्थत नाटो की बहुिाष्रीय सेना को हटाया जाए। ऐसा न किने पि उसने
आक्रामक रुख अपनाने की भी धमकी िी। अमिीका औि नाटो ने इन मांगों को यह कह
मानने से इन्काि कि दिया दक इससे उनकी खल ु े द्वाि नीदत का उल्लंघन होगा, हालांदक नाटो
ने यक्रू े न के उसमें शादमल होने के अनिु ोध पि भी कोई कािष वाई नहीं की।

17 ििविी, 2022 के बाि यक्र ू े न के डोनबास में यद्ध


ु ने ज़ोि पकड़ दलया। िोनों पक्षों ने एक-
िसू िे पि आक्रमण किने का आिोप लगाया। रूस के आक्रमण से आक्रांत होकि बाि के दिनों
में यक्र
ू े न के दवदभन्न शहिों को खाली किा दलया गया। उधि रूस ने यक्र ू े न को उसपि
आक्रमण किने की झठू ी खबिें िै ला िीं। इन खबिों के वीदडयो नौदसदखयों द्वािा तैयाि दकए
गए थे, इसदलए बाि में झठू े सादबत हुए। 21 ििविी, 2022 को रूस ने शादं त स्थादपत किने
के बहाने यक्र ू े न के डोनबास शहि में सेना तैनात कि िी, दजसका संयक्ु त िाष्र संघ की सिु क्षा
परिर्ि् ने घोि दविोध दकया। 22 ििविी को रूस की िे डिे शन कौंदसल ने रूस को उसके
बाहि सैदनक ताकत का प्रयोग किने की इजाज़त िे िी। 24 ििविी, 2022 से रूस के
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िाष्रपदत पदु तन ने यक्रू े न के दवरुद्ध दवशेर् सैदनक अदभयान की घोर्णा किके यक्र ू े न के कीव
शहि पि आक्रमण कि दिया। यक्र ू े न के िाष्रपदत जेलेंस्की ने िेश में सैदनक शासन घोदर्त कि
यक्र
ू े न के 18 से 60 वर्ष की आयु के सभी परुु र्ों के यक्र ू े न छोड़ने पि पाबंिी लगा िी। हालांदक
माचष, 2022 में रूस की िौजों ने यक्र ू े न में आगे बढ़ना बिं कि दिया था, पिंतु 8 अप्रैल,
2022 को रूस ने िदक्षणी औि पवू ी यिू ोप में दिि सेना भेज िी। 19 अप्रैल, 2022 को रूस ने
यक्र
ू े न के 500 दक.मी. के िायिे के क्षेिों में दिि आक्रमण कि दिया। 13 मई को यक्र ू े न की
सेना ने खािकीव के दनकट रूसी िौज को वापस होने पि मजबिू दकया, पिंतु 20 मई को रूस
ने यक्रू े न के मािीपोल शहि को अपने कब्ज़े में ले दलया औि अपनी सीमा से सैदनक अड्डों
औि आम जनता पि बमबािी किनी शरू ु कि िी। इस आक्रमण की पिू े दवश्व में भत्सषना हुई।
संयक्ु त िाष्र संघ की महासभा ने रूसी िौजों को वापस जाने को कहा औि अतं ििाष्रीय
न्यायालय ने रूस को यद्ध ु बंि किने का आिेश दिया। यिू ोप कौंदसल ने भी रूस को स्वयं में से
दनकाल दिया औि कई िेशों ने उसके दवरुद्ध प्रदतबधं लगा दिए तथा यक्र ू े न को मानवीय औि
सैदनक सहायता िी।
इस यद्ध ु में 2014 से 2021 तक 3,000 से अदधक आम लोग मािे गए। िोनों िेशों ने एक-
िसू िे के नागरिकों को बंिी बनाना शरू
ु कि दिया। 2016 में सिकािी क्षेिों में बंिी बनाने की
प्रदक्रया बिं हो गई, पिंतु अलगाववािी क्षेिों में वह तब भी जािी िही। इस प्रकाि यद्ध ु से मानव
अदधकाि के मद्दु े उठ खड़े हुए। यद्ध
ु के कािण यक्र ू े न में डॉक्टिी दशक्षा ले िहे अनेक भाितीय
छािों को भी अपना पाठ्यक्रम छोड़कि स्विेश लौटना पड़ा, दजनका भदवष्य अभी भी अधि
में लटका हुआ है।
इस यद्धु का एक कािण यह भी था दक 2014 तक रूस की गैस पाइपलाइन यिू ोपीय िेशों में
यक्र
ू े न से होकि गज़ु िती थी, दजससे यक्र ू े न को भी हि वर्ष 3 दबदलयन यएू स डालि की आय
होती थी। यद्ध ु आिंभ होने के बाि यक्र ू े न ने अपनी गैस बनानी शरूु कि िी। 2018 के बाि
रूस ने यक्रू े न के मध्य से गैस आपदू तष किनी दबल्कुल बंि कि िी, पिंतु 2019 के अतं में एक
समझौते द्वािा रूसी गैस दिि यूक्रेन से होकि जाने लगी।
यद्ध
ु के कािण रूस ने साइबि शदक्त का इस्तेमाल किके 2015 में यक्र ू े न की पावि दग्रड को
हैक कि दलया तथा यक्र ू े न की सचू ना प्रणाली को भी प्रभादवत दकया। रूस के सैदनक हवाई
जहाज़ों ने एअि रैदिक से संचाि भी बंि कि दिया, दजससे दसदवदलयन एअिलाइनों को खतिा
हो गया। रूस ने कहा दक हमािा यद्ध ु नाटो के साथ नहीं है, पिंतु नाटो का दवश्वास है दक यह
रूस के साथ यद्ध ु है। दब्रदटश प्रधान मिं ी बोरिस जॉनसन ने इस आिोप का खडं न दकया दक
नाटो यक्र
ू े न में अप्रत्यक्ष लड़ाई लड़ िहा है। यद्धु के कािण अनेक िेशों की अथष-व्यवस्था तथा
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सप्लाई चेन पि भी प्रभाव पड़ा। यक्र ू े न के पवू ी औि िदक्षणी भागों के कुल दमलाकि 40,000
वगषदकलोमीटि वाले 4 शहिों डोनेत्स्क, जैपोरिदझया, खेिसन औि िदसयाल में तथाकदथत
जनमत के बतू े पि उन्हें अपने में दमला दलया। इसके बाि रूस ने घोर्णा की दक यक्र ू े न का 15
प्रदतशत क्षेि उसके कब्ज़े में आ गया है। रूस ने पहले 2014 में यक्र ू े न के क्रीदमया शहि को
अपने में दमलाया था औि अब इन 4 अन्य शहिों को भी दमला दलया है। इससे साि जादहि है
दक रूस का यक्र ू े न के साथ युद्ध का मतं व्य के वल आदथषक साम्राज्यवाि नहीं है, बदल्क धीिे -
धीिे किके या तो सपं णू ष यक्र
ू े न को अपने में दमला लेना है या उसे आदथषक तथा मनोवैज्ञादनक
रूप से इतना कमज़ोि कि िेना है दक वह उसके मनसबू ों का दविोध ही न कि सके ।

रूस औि यक्र ू े न के बीच यह यद्धु अभी भी जािी है औि यक्र ू े न में मानव अदधकाि न जाने कब
बहाल होंगे। सक्ष्ू म रूप से िेखें तो यह यद्ध
ु औि कुछ नहीं, रूस की अपनी अथष-व्यवस्था
सधु ािने की के वल उसी तिह की साम्राज्यवािी नीदत है, दजस तिह चीन अपने आस-पास के
िेशों को दभन्न-दभन्न कािणों से आतंदकत किता िहता है। यह यद्ध ु दजसकी लाठी उसकी भैंस
की दकंविदं त का एक जीता-जागता औि ज्वलंत उिाहिण है। दजस नाटो में शादमल होने की
आतिु ता से यक्र ू े न यद्ध
ु की िासिी झेल िहा है, उसी नाटो से उसे सदक्रय सहयोग नहीं दमल
िहा है औि रूस अपनी मनमानी कि िहा है। रूस एक शदक्तशाली िेश होने के कािण अन्य
िेश भी उसके दवरुद्ध खल ु कि सामने नहीं आ िहे हैं। पिंतु यह कभी नहीं मानकि चलना
चादहए दक ताकतवि हमेशा लाभ में ही िहता है। यद्ध ु जैसे मामले में हि िेश नक ु सान में िहता
है औि पीछे जाता है। यद्ध ु कभी दकसी िेश का दवकास नहीं किता अदपतु दवनाश किता है।
कम से कम इस सच्चाई को मान औि शांदतपणू ष सह-अदस्तत्व की भावना को ध्यान में िखकि
ही सब िेश व्यवहाि किें तो वह पिू े दवश्व के दहत में होगा, क्योंदक न जाने कब ऐसे यद्ध
ु तीसिे
दवश्व यद्ध
ु का कािण बन जाएाँ।



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यात्रा वृत्ांत
िहाकाल के स्चर प्रतीस्क्षत दिजन
- डॉ बीरसेन र्ागास्संह
प्रस्तावना बात १९८० के लगभग की है ! मैंने उज्जैन के दवक्रम
दवश्वदवद्यालय से एम ए - दहन्िी , प्रथम श्रेणी में उत्ीणष किने के पश्चात्
“दहन्िी में मॉिीशस का योगिान “ दवर्य को पीएच डी के दलए लगे
हाथ पंजीकिण किवा दिया था ! तब मैं िीशमाि फ्लाक के प्राथदमक
स्कूल में दशक्षक पनु : दनयक्त ु हुआ था , जहााँ उज्जैन जाने से पहले
कायषित था ! ज़ोि-शोि से पिन्तु दवदधवत शोधानशासन ु ु़ के दनयमों को
ध्यान में िखकि मैं ने अपने स्वीकृ त दवर्यानसु ाि शोध-खोज प्रािंभ कि दिया था !
कोिोमांडेल दस्थत िाष्रीय अदभलेखागाि मेिा प्रथम पड़ाव था ! वहााँ कड़ा परिश्रम किके
शोध-खोज किते हुए दवद्वान श्री प्रह्लाि िामशिण जी से मैं दमलता िहा औि उनके सझु ावों से
लाभ कमाता िहा ! ‘ज़ दहन्िस्ु तानी’ के िो सिु दक्षत अक ं ों के पश्चात् मैंने ‘मॉिीशस इदन्डयन
टाइम्स’ औि ‘मॉिीशस दमि’ के धल ू -धसू रित औि जीणाषवस्था में समस्त अक ं ों का
अवलोकन एवं अध्ययन दकया था ! तभी मैं ने मॉिीशस में प्रकादशत प्रथम यािा वृत्ान्त को
िेखा-पढ़ा था ! दिनांक १२ जनविी से २५ जनविी १९२८ तक के िैदनक ‘मॉिीशस दमि’ में
पं गोदवन्ि दिवेिी शास्त्री द्वािा दलदखत “मेिी मॉिीशस यािा” प्रकादशत हुआ था ! बाि में मैं
ने औि अनेक यािा वृत्ान्त पढ़े थे ! प्रो वासिु वे दवष्णिु याल द्वािा दलदखत “ मेिी कोठरियााँ “
से मैं इतना प्रभादवत हुआ दक बाि में मैं ने पि- पदिकाओ ं के अलावा तीन यािा वृत्ान्त
पस्ु तकाकाि में प्रकादशत किवाए हैं !
स्वर्य-प्रवेि - अगस्त ,२२ के पहले सप्ताह की बात है! मैं अपनी अगली पस्ु तक “मॉिीशस
का दहन्िी सादहत्य : भदू मका एवं इदतहास” की भदू मका दलखने में व्यस्त था दक भाित के
मध्य प्रिेश िाज्य की िाजधानी भोपाल से मेिे नाम एक ईमेल आया था … औि उसे पढ़ कि
मैं अनचाहे लगा था बच्चों की तिह दबलख-दबलख कि िोने ! मेिी पत्नी इन्िु िौड़ी आयी थी
!! लगी थी ढाढ़स बाँधाने ! आाँसू िोक कि तब मैंने बताया था दक मझु भल ु ाए जा चक ु े पुिाने
आउट डेटेड दहन्िी के सादहत्यकाि को २००७ के बाि एक बाि पनु : स्मिण दकया गया है !
वर्ष २००७ में ही मेिे अवकाश ग्रहण किने के वर्ष भि बाि भाित सिकाि ने मझु े न्यू यॉकष के
दवश्व दहन्िी सम्मेलन में सािि आमदं ित किके “ दवश्व दहन्िी सम्मान” प्रिान दकया था !
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भोपाल में १४ दसतम्बि , २२ को एक फ़्ांसीसी एवं एक जापानी दहन्िी के दवद्वान के साथ-
साथ मझु े भी “ िाष्रीय िािि कादमल बुल्के ” सम्मान प्रिान दकया जाने वाला था ! हवाई
दटकट एवं होटल खचष सदहत ! बात तो खश ु ी की थी पि मैं िोया क्यों था ?? शायि इसदलए
दक मॉिीशस में मझु से अत्यन्त अल्प … न के बिाबि दहन्िी क्षेि में योगिान किने वालों को
दवगत वर्ों में मैं बड़े-बड़े सम्मानों से भाित में सम्मादनत होते िेखता आ िहा था …!!
आदखि मैं भी तो हाड़-मांस का दनदमषत ईश्वि द्वािा प्रित् िल ु षभ मनष्ु य जीवन जीने वाला एक
तच्ु छ प्राणी हूाँ न ! प्रसप्तु पीड़ाएाँ मेिे हृिय को चीि कि आाँसू स्वरूप आदखि बाहि दनकल
आई ं!
यात्रा की तैयारी - दबना बेटे- बहू -पोती को बताएाँ इन्िु औि मैं लगे थे यािा की तैयािी
किने! पासपोटष तो थे हमािे पास ! तीन महीने के वीसा का ऑन लाईन आवेिन भिा था औि
सप्ताह भि बाि हस्तगत कि दलया था !
वैक्सीनेशन को लेकि समस्या अवश्य हुई थी ! कोदवि -१९ के िो वैक्सीन औि िो बस्ु टि
डोज़ पहले से ही हमािे हो चुके थे पिन्तु उन्हें इन्टिनेशनल काडष पि िजष किवाने के दलए हमें
िो दिन बाि पोटष लईु जाना पड़ा था ! न जाने कब उस सेवा का दवके न्रीकिण दकया जाएगा !
…. औि अतं त: एयि दटकट !! इन्िु के दटकट के पैसे मैंने चक ु ा दिए थे .. अपने दटकट के भी
… दजनको आयोजक भाित पहुचाँ ने पि मझु े लौटाने वाले थे ! सप्ताह भि पहले घि पि सभी
के समक्ष िाज़ खोला था ! िसू िी कक्षा में पढ़ िही आठ साल की पोती झक ं ृ ता से पहली बाि
तीन सप्ताह के दलए हम िोनों ििू होने वाले थे ! बहुत कदठनाइयों से वह मान गई थी दक हमें
आवश्यक कायष हेतु उससे ििू जाना पड़ िहा था ! क्या इसी को सांसारिक मोह-माया तो नहीं
कहते हैं ! एक बात कहना मैं भल ू िहा हूाँ … मरु ा !! मैं कुछ भाितीय रुपये भजं ाकि अपने
पास िखना चाहता था …. मझु े न दकसी बैंक में दमला - बैंक ओव बािोिा में भी नहीं दमला
… न ही मॉनी चैंज़ि से ! दवश्व शदक्त बन िहे भाित की मरु ा इतनी िल ु षभ ! कब यएू स डॉलि
के समान भाितीय रुपये हि जगह उपलब्ध होंगे ! … औि उड़ने का दिन आदखि आ ही गया
था … ९ दसतम्बि की शाम हम लोग प्लेज़ााँस एयिपोटष पहुचाँ गए थे ! िात जगा किनी थी !
दिल्ली नहीं .. मम्ु बई तक ही एयि मॉिीशस जाता है ! दिि सबु ह भोपाल की डेढ़ घटं े की एयि
इदं डया की फ़्लाइट लेनी थी ! िो सटू के स औि िो हैंडबैग ढोते हुए भटकते हुए हमािी यािा का
आनन्ि क़ब के ग़ायब हो गया था ! ढलती उम्र .. ७६ … ६९ …. के कािण शायि हम िोनों
थके -मााँिे िात आाँखों में दबताने के कािण भी कटुता का अनभु व कि िहे थे ! मम्ु बई हमािे
दलए माि रांदज़ट का नगि था … जहााँ हम ठहिने वाले नहीं थे !

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भोपाल ! िाजा भोज की बसाई नगिी भोपाल आज सभी सख ु -सदु वधाओ ं से सम्पन्न है !
दवस्तृत तालाबों औि पहादड़यों औि हरियाली के कािण इिं ौि की जगह भोपाल को मध्य-
प्रिेश की िाजधानी चनु ा गया था ! भोपाल के िाजा भोज हवाई अड्डे पि हमािे स्वागत हेतु
वहााँ पहले से अपने स्वास््य सधु ािने के दलए िह िहे मॉिीशसीय दहन्िी के सादहत्यकाि दमि
िाज हीिामन हमें लेने आया हुआ था ! िाज से दमलकि हमें अपाि प्रसन्नता हुई थी ! िस औि
ग्यािह दतदथ को हम िोनों िाज के पेईगं गेस्ट थे ! िाज के साथ ढेि सािी खबिों का आिान-
प्रिान होता िहा ! इन्िु औि मैंने भोपाल का साथ-साथ ४० साल पहले अपने दवद्याथी काल
में भ्रमण दकया था ! हमने पनु : दबड़ला मदं िि, अजायबघि औि भोजपिु जाकि उस दशवालय
के िशषन दकए दजसे िाजा भोज ने एक िात में बनवाया था ! हााँ ! कुछ खिीिािी भी की थी !
…. औि दिनांक १२ से १४ दसतम्बि तक हम िोनों मध्य-प्रिेश शासन के अदतदथ स्वरूप
साथषक होटल, न्यू माके ट में सम्मानपवू कष ठहिाए गए थे ! एक त्य बयान करूाँ … मझु े मफ़्ु त
में खाना-पीना, काि में घमू ना .. मफ़्ु त में दबल्कुल नहीं भाता है ! मैं ने जीवन भि कठोि
परिश्रम किके खिु कुआाँ खोिकि पानी पीया है ! मैं माि कमष पि दवश्वास किता हूाँ … भाग्य
पि नहीं … अत: मेिी अतं िात्मा मझु े दधक्काि िही थी … मैं किता भी तो क्या किता ! औि
अतं तः दहन्िी दिवस १४ दसतम्बि, २०२२ की शाम आ गई थी ! िवीन्र भवन में कायषक्रम
था! मेिे दलए मनोनीत अिसि हमें कायषक्रम में ले जाने के दलए आ गए थे ! दवशाल भवन
था! सैदनक औि पदु लस भािी सख्ं या में तैनात थे !
चीि दमदनस्टि दशविाजदसंह चौहान के प्रंधानत्व में कायषक्रम सम्पन्न होने वाला था ! चाय-
पान की व्यवस्था थी ! दिि खबू दचि खींचे गए थे ! मैं ने भी फ़्ेंच दविर्ु ी एवं जापानी दवद्वान
के साथ दचि दखचं वाया था - हम तीनों को “ िाष्रीय िािि कादमल बुल्के सम्मान” अपने-
अपने िेश में दहन्िी सेवा के दलए प्रिान दकए जाने वाला था ! … हमें ससम्मान स्टेज पि
दविाजने के दलए आग्रह दकया गया था ! हमने सी एम जी के साथ खड़े होकि िीप प्रज्वलन
दकया था ! … औि सोने में सहु ागा यह हुआ था दक मझु े चीि दमदनस्टि श्री दशविाजदसंह
चौहान के साथ दबठा दिया गया था!! मैंने उन से बातें की थीं औि सेल्िी भी ली थी ! वे
मॉिीशस में दहन्िी , दहन्ित्ु व औि भाितीय संस्कृ दत संबंधी बातें किते िहे ! मॉिीशस की
आदथषक प्रगदत से वे अवगत थे! मैं … बीिसेन जागादसहं उतने बड़े नेता के साथ बैठा बातें
कि िहा था …. मैं स्वयं हैिान था ….दहन्िी … हााँ दहन्िी ने मझु नाचीज़ को कहााँ से कहााँ
पहुचाँ ा दिया था ! उन्हीं के कि/कमलों द्वािा मझु े भी शाल , िूलों का गच्ु छा , प्रमाण-पि एवं
स्मृदत दचह्न प्रिान दकया गया था ! मचं के नीचे इन्िु बैठी मस्ु किा िही थी ! िाज के िोस्त
मोबाइल से दचि खींच िहे थे ! िात िेि तक औपचारिक कायषक्रम के बाि कदव सम्मेलन
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चलता िहा ! …. मैं भोपाल को भल ु ाए नहीं भल
ू पाऊाँगा … पहला कािण है वहााँ िाज
हीिामन का आदत्य ! िसू िा मझु अिने से दहन्िी सेवक को उतना अदधक सम्मादनत दकया
जाना औि तीसिा है िाजसी ठाट-बाट के साथ हमािे होटल में ठहिने की सव्ु यवस्था ! मेिे
स्वगषवासी मोंसेलमााँ दनवासी दमि इसी को कहते थे - “ कुत्े को घी नहीं पचता !” भोपाल
जैसी सन्ु िि नगिी की मोह-माया हमें अपने आकर्षण में बााँध िही थी औि िसू िी ओि उज्जैन
से महाकाल, इन्िु औि मझु े शीघ्रादतशीघ्र िशषनाथष अदविल आमिं ण कादलिास के मेघितू
सम भेज िहे थे ! रुक जाना मृत्यु का पयाषय जो होता है … चलते जाना ही जीवन का पयाषय
होता है ! अत: हमें १५ दसतम्बि की सबु ह ही एयि कोन कोच द्वािा भोपाल से उज्जैन जाना
था ! हम दनकल पड़े थे !
वैसे भी वर्ष २००३ में नई दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्यदू ज़यम एाँड लाइब्रेिी , तीन मदू तष में
िामिेव धिु न्धि औि मझु े आमदं ित दकया गया था ! दिल्ली से हम िोनों उज्जैन गए थे ! तब
उज्जैन का दवकास उतना नहीं हुआ था दजतना दक १५ से २० दसतम्बि , २२ को मैंने
साक्षात्काि दकया ! भोपाल से उज्जैन माि साढ़े तीन घटं े में पहुचाँ गए थे .. दबन उबड़-खाबड़
िास्ते में दहचकोले खाते हुए हाईवे में ! उज्जैन हिा-भिा था ! मैंने ४४ वर्ष पहले के उज्जैन में
आमल ू -चल ू परिवतषन िेखा था ! न बस दसंधी कोलोनी से होते हुए घटं ा घि पि फ़्ी गजं के
पास रुकती थी … न िेवीस गेट का बस अड्डा औि बग़ल में माधव कॉलेज पहले जैसे
िीखे! कोच नाना खेड़ा नामक मेिे दलए अनजान बस स्टेंड पि रुका था! कोई तााँगा दिख नहीं
िहा था ! ओटो वाले ने समझाया था दक वर्ों पहले से उज्जैन में तााँगा नहीं सस्ता था ! …
औि इन्िु का तााँगे में चढ़ने का ४४ वर्ष पिु ाना सपना अधिू ा िह गया था ! ओटो में हम िोनों
दवश्वदवद्यालय के अदतदथ-गृह तक पहुचाँ े थे जहााँ पहले से ही दहन्िी के दवभागाध्यक्ष प्रो
शैलेन्र कुमाि शमाष ने हमािे दलए एयि कोन औि गमष पानी की सदु वधा से यक्त ु बड़े से साि-
सथु िे कमिे का आिक्षण कि दिया था ! नहा-धोवा कि हम आिाम कि ही िहे थे दक गजु िात
गए हुए प्रो शैलेन्र का िोन आ गया था ! वहीं गेस्त हाउस के भोजनालय में हमािे दलए
भोजन की व्यवस्था की गई थी! वह उज्जैन जहााँ ४४ वर्ष पहले मैं ने एम ए, पीएच डी की थी
…. कोई परिदचत दिखाई नहीं िे िहा था ! शाम के समय वहीं सामने के दवक्रम पाकष में कुछ
घमू े थे ! सब अनजान- अपरिदचत लग िहे थे !
अगली सबु ह साढ़े िस बजे प्रो शैलेन्र आए थे ! बात चीत के बाि वे हमें दहन्िी दवभाग
स्वागत-सत्काि, भार्ण-भोजन, भेंट-साक्षात्काि आदि के दलए ले गए थे ! बहुत ही सन्ु िि
कायषक्रम हुए थे ! कुछ समय पहले पता चला दक वहााँ मॉिीशस के गांधी संस्थान की अजं दल
दचन्तामदण गई हुई थी ! कुछ छािाओ ं ने उनके बािे में मझु से पछ
ू ा भी था ! मैं ने कहा था दक
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वे दहन्िी दवभाग की दविर्ु ी अध्यक्षा हैं ! वहााँ के सभी कमषठ एवं दवद्वान लेक्चिाि मेिा परिचय
पाकि मझु े अपने से सीदनयि बताने लगे थे ! उन लोगों ने इन्िु औि मेिा अत्यदधक मान-
सम्मान औि सेवा-सत्काि दकया था ! एक बात से सभी प्रभादवत थे — मेिा धािा-प्रवाह से
शद्ध
ु दहन्िी में सानतु ान घटं े तक बोलना ! मेिे शद्धु ोच्चािण ने भी उन्हें प्रभादवत दकया था —
मेिे बोलने के बाि के वक्ताओ ं के भार्णों ने मझु े ऐसे सोचने के दलए बाध्य दकया था ! दवभाग
का भवन नया था पिन्तु सभी स्मृदत्यााँ वहााँ पिु ानी थीं ! मेिे पज्ू यपाि गरुु वि आचायष प्रो
िाममदू तष दिपाठी जी का तैल्य दचि िेखकि मैं भाव दवभोि हो गया था ! उन्हीं के आशीवाषि
से मैं ने पीएच डी किने की दहम्मत जटु ाई थी ! कदववि दशवमगं लदसंह समु न, उप कुलपदत,
दव दव का दचि भी वहााँ था दजनसे मैंने मॉिीशस में सोमित् बखोिी जी के घि भेंट की थी,
समु न जी को जानकि ही मैं युवावस्था में बनािस दमिवि मल ू शकं ि िामधनी के बल ु ाने पि भी
वहााँ न जाकि उज्जैन पढ़ने चला गया था ! मेिी आाँखें डबडबा गई थीं ! अनेक दचि खींचे गए
थे ! साक्षात्काि भी दलया गया था ! इन्िु को तो छािाएाँ घेि कि वहीं उज्जैन में बस जाने की
बात किने लगी थीं ! शाम को हम लोग अदतदथ गृह लौटे थे !
इन्िु कहती िही है दक भोपाल में मेिे सिकाि द्वािा सम्मादनत होने के पीछे वास्तव में महाकाल
का वििान है ! ४४ लम्बे वर्ों से इन्िु महाकाल िशषन के दलए तिसती िही है ! प्रो शैलेन्र ने
अपने एक पीएच डी कि िहे दशष्य सिं ीप पाडं ेय को हमािे महाकाल िशषन की दज़म्मेवािी
सौंपी थी ! उन के साथ इन्िु , एक भाितीय दमि औि मैं चल पड़े थे ! हमािे पास पास होने पि
भी हम बीस िीट ििू से ही िशषन कि पाए थे ! समीप से िशषन किने के दलए रु १,५००/-
लगते हैं ! इन्िु संतुि थी दक िशषन हो गए … मैं दहन्िी सादहत्य का इदतहास दलखने वाले
आचायष िामचन्र शक्ु ल के बािे में सोच िहा था … िे लवे के स्टेशन मास्टि … जो पत्नी के
साथ कभी पजू ा-पाठ किने न मदं िि जाते थे औि न ही घि पि पजू ा किने में साथ िेते थे ! औि
एक मॉिीशसीय उिाहिण है … जयनािायण िाय !! कट्टि सनातनी परिवाि के पिन्तु वैचारिक
धिातल पि दनगणषु - दनिाकाि पजू क ! मैं तो स्पि रूप से कहता हूाँ दक मैं दशव जी के दनगणषु -
दनिाकाि रूप का पजू क हूाँ ! इन्िु मझु े आयष समाजी कहती-मानती है ! … औि वृद्धावस्था में
मैं आयष सभा का आजीवन सिस्य बन गया हूाँ ! पिन्तु मैं दनदवषवाि रूप से स्वीकाि किता हूाँ
दक महाकाल में दिव्य शदक्त है ! मेिे परिवाि औि मझु पि महाकाल की भदक्त का असि अनेक
नकािात्मक परिदस्थदतयों में हम लोगों ने िेखा है ! एक प्रकाि से महाकाल की कृ पा है दक हम
लोग स्वस्थ -चंगा भोपाल- उज्जैन -दिल्ली घमू आए ! अगले दिन हम कीदतष मंदिि सभागाि
में सम्राट दवक्रमादित्य के पिमाि वश ं जों द्वािा आयोदजत एक भव्य समािोह में आमदं ित थे !
अपने भार्ण में मैंने दवक्रमी संवत् पि मॉिीशसीय संिभष में चचाष की थी !
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पजू ा-पाठ, कथा-यज्ञ, पंचांग आदि सभी शभु कायों में दवक्रमी संवत् का प्रचलन है, न शक
संवत् औि न दक्रदश्चयन कालेन्डि का ! िाजा भोज एक महान िाजा के रूप में स्मिण दकए
जाते हैं दजन्होंने आधदु नक भोपाल नगि को बसाया था .. प्रदसद्ध कहावत है — कहााँ िाजा
भोज, कहााँ गगं ू तेली ! थकावट के मािे हमािा हाल बेहाल था ! हम िोनों िादि के कायषक्रम में
जा नहीं पाए थे ! अगले दिन हम ने प्रदतकल्पा सांस्कृ दतक संस्था, उज्जैन में उपदस्थत होकि
कादलिास संस्थान भवन में एक सि की अध्यक्षता की थी औि भार्ण भी दिया था !
तत्सबं दं धत दवर्य पि आयोदजत भार्ण प्रदतयोदगता के मख्ु य दनणाषयक पि भाि भी साँभाला
था ! शाम को स्वादिि भोजनोपिान्त हम लौटे थे ! यह १८ दसतम्बि की बात थी ! उन्नीस
दसतम्बि को हम लोग सबु ह अपने उज्जैन दनवासी दमि दशव नागिीया के घि गए थे ! हम
िोनों ने अपने छाि काल (१९७७-८२) की यािों को ताज़ा दकया था ! …. औि िाजस्व
कोलोनी में गरुु छाया नामक हम उस घि को िेखने गए थे जहााँ मैं औि इन्िु छाि काल में िहा
किते थे ! मकान मादलक बहाििू दसहं की मृत्यु हो चक ु ी थी …. सभी लड़दकयााँ ब्याही जा
चक ु ी थीं औि माि इजं ीदनयि पिु टोनी अब बंगलौि में अपनी मााँ औि परिवाि के साथ िहता
है ! सभी से िोन पि खबू बातें हुई ंथीं ! दिि शाम के समय हम लोग कुछ खिीिािी किने चले
गए थे— कृ ता के दलए पायल, िो-तीन सादड़यााँ , लाल दसंििू , रूराक्ष आदि खिीिे थे ! फ़्ी
गजं में के शवानी जी से दमले थे - यह परिवाि मॉिीशस के प्रदसद्ध व्यापािी हासामाल परिवाि
के सगे रिश्तेिाि है !
दिनांक २० दसतम्बि की सबु ह मैं तैयाि होकि टहल िहा था दक दवक्रम दव दव के उप कुलपदत
से अचानक भेंट हो गई थी ! हम लोगों ने खबू बातें की थीं ! उनके साथ मैंने एक सेल्िी भी
ली थी ! घड़ी भि बाि, प्रो शैलेन्र हमें दबिा किने आ गए थे ! पनु : दमलने के वािे के बाि
हम िोनों सिं ीप पाडं ेय के साथ नाना खेड़ा बस अड्डे के दलए दनकल पड़े थे जहााँ से हम िोनों
भोपाल लौटने वाले थे ! उज्जैन से दबिा होना हमािे दलए िख ु िायी था … पिन्तु रूक जाना
मौत का पयाषय होता है …. बहते जाना … चलते जाना दज़न्िगी का पयाषय जो है ! हमें
भोपाल से अगले दिन २१ दसतम्बि को दिन में साढ़े बािह बजे एयि इदं डया द्वािा दिल्ली जो
पहुचाँ ना था !

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सुरम्य यात्रा लक्षद्वीप की
- गोवद्धजन यादव
एक प्रदसद्ध कहावत है दक जीवन में बचपन एक बाि औि जवानी भी
के वल एक बाि ही आती है, लेदकन कमबख्त बढ़ु ापा कुछ ऐसा होता है
जो एक बाि आया तो दिि लौटकि नहीं जाता। जीवन की यह अदन्तम
अवस्था है,इससे इनकाि नहीं दकया जा सकता । यदि आप नौकिीपेशा
िहे हैं औि सेवादनवृत् होकि पेंशन का लाभ ले िहे हैं, तो स्वाभादवक है
दक आपके दमिों की भीड़ कािी पीछे छूट चक ु ी होती है। दमलने-जल
ु ने
वालों की संख्या में कािी कमी आ चक ु ी होती है। आप अपने आपको थका-सा औि
एकाकी महससू किने लगते हैं। अचानक आए इस परिवतषन से आपके स्वभाव में भी अन्ति
आने लगता है औि आप अपनी खीझ परिवाि के लोगों पि उतािने लगते हैं। औि एक दिन
ऐसा भी आता है दक आपकी उपेक्षा होने लगती है। यदि ऐसा होने लगे तो समदझए यह
आपकी िगु दष त होने का समय आ चक ु ा है। ऐसी दस्थदत का दनमाषण न हो, इसके दलए आपको
कािी सचेत िहने की आवश्यक्ता है। अच्छे दमिों की तलाश किना शरुु कि िीदजए। ऐसे दमि
दजनमें जीदजदवर्ा कूट-कूटकि भिी हो। जो सकािात्मक ऊजाष के धनी हों,ऐसे लोगों का साथ
पकदड़ए औि हो सके तो सत्-सादहत्य से जड़ु जाइए। हि आिमी की अपनी कोई न कोई
अदभरुदच या अदभलार्ा िहती है, जो समय के अभाव में या कािणवश आप पिू ी नहीं कि
पाए हों, तो उसे आगे बढ़ाइए। प्रसन्नदचत िदहए औि दमिों की टोली के साथ दकसी िमणीय
स्थान को खोज कि, िेशाटन पि दनकल जाइए। प्रकृ दत का सादन्नध्य औि वाताविण आपमें
एक नई ऊजाष भि िेगा। आप अपने जीवन से प्रेम किने लगेंग।े प्रसन्न िहने लगेंगे औि अपनी
प्रसन्नता के चलते लोगों के बीच आकर्षण का के न्र बने िहेंग।े आपकी पछ ू -पिख बढ़
जाएगी। सच मादनए, अगि आप ऐसा कि सके तो दनदश्चत जादनए दक आपसे बढ़कि
प्रसन्नदचत औि सख ु ी कोई हो ही नहीं सकता।
सन 2002 मेिे दलए खश ु ी का पैगाम लेकि आया। डाक सहायक के पि से पिोन्नत
होकि मझु े एच।एस।जी। पोस्टमास्टि होने का सौभाग्य दमला। इस समय तक मेिी सदवषस साढ़े
सैंतीस साल की हो चक ु ी थी औि परिवाि की लगभग सभी जवाबिारियों से मैं मक्त ु हो चकु ा
था। किीब छः माह तक पि पि बने िहने के बाि मैंने स्वेदच्छक सेवादनवृदत् इस सोच के साथ
ले दलया था दक शेर् समय मझु े सादहत्य-साधना में लगा िेना चादहए। कक्षा नौ का दवद्याथी
िहते हुए मेिा झक
ु ाव सादहत्य की ओि हो चक ु ा था औि इन दिनों मैं कदवताएाँ दलखने लगा

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था। सेवादनवृदत् के ठीक बाि मेिे दमि स्व. प्रमोि उपाध्याय जी मेिे घि आए औि मझु से
मध्यप्रिेश िाष्रभार्ा प्रचाि सदमदत, दहन्िी भवन भोपाल चलने का आग्रह किने लगे। उन
दिनों यहााँ पावस व्याख्यानमाला का आयोजन दकया गया था। कायषक्रम के अंत में मेिी
मल ु ाकात दहन्िी भवन के मिं ी-सचं ालक श्रद्धेय कै लाशचन्र पतं जी से हुई। उन्होंने मझु से
दहन्िी भवन से जड़ु ने का आग्रह दकया । मैंने उनके आग्रह को स्वीकाि दकया औि इस तिह मैं
दवगत सिह सालों से दहन्िी के उन्नयन औि प्रचाि-प्रसाि के दलए प्राणपण से काम कि िहा हू।ाँ
इस जनु नू ने मझु े कािी कुछ दिया । दजसकी मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी । मझु े मान
दमला, सम्मान दमला । अनेकों सादहत्यकािों से दमलने औि दमिता कायम किने के अवसि
दमले औि कई सादहदत्यक संस्थाओ ं से जड़ु ने औि िेश-दविेश की यािाएाँ किने का सौभाग्य
भी दमला । आज मेिे चाि कहानी संग्रह, एक कदवता संग्रह, एक लघक ु था संग्रह सदहत किीब
बीस ई-बक्ु स बन चक ु ी है। मेिी कई कहादनयों औि कदवताओ ं का अनवु ाि कई भार्ाओ ं में
हुआ तथा मेिी अनेक िचनाएाँ िेश-दविेश के अनेक पि-पदिकाओ ं में प्रकादशत भी हो चक ु ी
हैं। लगभग पांच सौ पि-पदिकाओ ं में मेिी िचनाएाँ अब तक प्रकादशत हो चक ु ी हैं। यािाओ ं से
अनेक िायिे हुए। मॉिीशस के लब्ध-प्रदतष्ठ सादहत्यकाि श्री िामिेव धिु ं धि जी का मैंने
साक्षात्काि दलया। इसी तिह न्य-ु जसी अमेरिका की प्रख्यात कहानीकाि सश्रु ी िेवी नागिानी
जी ने मेिा साक्षात्काि दलया। कभी-कभी मैं सोचता हूाँ दक अगि मैं सेवादनवृदत् नहीं लेता तो
शायि ही मझु े इस प्रकाि के अवसि दमल पाते। सकािात्मक सोच िखने का ही प्रदतिल है दक
मैं कािी कुछ हादसल कि पाया ।
इसी घमु कड्ड़ी के चलते मेिी मल ु ाकात प्रो. िाजेश्वि अनािेव जी से हुई। वे पीजी
कालेज से सेवादनवृत् प्राचायष हैं। सकािात्मक ऊजाष के धनी हैं। अब तक आप चौंतीस-पैंतीस
िेशों की यािा कि चक ु े हैं। एक यािा पिू ी नहीं हो पाती दक वे िसू िी यािा की रूपिे खा बनाने
लगते हैं। इनके साथ मझु े नेपाल, भटु ान, इण्डोनेदशया, मलेदशया, बाली सदहत िेश के अनेक
भ-ू भागों की यािाएाँ किने का अवसि दमला । लक्ष द्वीप के बािे में मैं कािी कुछ पढ़ चक ु ा था।
मन में एक नहीं, अनेकों बाि यहााँ जाने के दवचाि बनते-दबगड़ते िहे, लेदकन जाना नहीं हो
पाया। अपने मन की पीड़ा को मैंने श्री अनािेवजी से उजागि किते हुए कायषक्रम बनाने को
कहा। उन्होंने हामी भिी औि इस तिह लक्षद्वीप जाने के कायषक्रम तय हो पाया । इस यािा में
दमि अनािेवजी, उनकी पत्नी श्रीमती अदनता अनािेव सदहत गौिीशक ं ि जी िबु े, नमषिा प्रसाि
कोिीजी औि मैं स्वयं साथ थे। अमिावती के दमि जयन्त ढोले जी, उनकी धमषपत्नी श्रीमती
सर्ु मा ढोले जी हम लोगों के साथ नागपिु से आ जड़ु े थे ।

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लक्षद्वीप जाने से पूवष हमने कुछ जानकारिय़ााँ इटं नेट से प्राप्त की थीं। ज्ञात हुआ दक
इस द्वीप पि पहुचाँ ने के िो ही साधन हैं। या तो आपको सिि पानी के जहाज़ से जाना होता है
या दिि हवाई जहाज़ से। जाने से पवू ष पयषटक को उसके स्थानीय पदु लस स्टेशन से इस आशय
का प्रमाण-पि लेना होता है दक वह दक्रदमनल दकस्म का नहीं है। इस प्रमाण-पि के आधाि
पि ही आपको वहााँ जाने की अनमु दत प्राप्त होती है औि वहााँ पहुचाँ ने के बाि द्वीप दस्थत
पदु लस स्टेशन पि आपको अपनी उपदस्थदत िज़ष किवानी होती है। बाि में यह भी ज्ञात हुआ
दक पानी के जहाज़ अभी नहीं चल िहे हैं औि वे रिपेयरिंग के दलए कुछ समय तक िोक दिए
गए हैं। हमािे पास एक ही दवकल्प बचा था दक हम हवाई यािा किते हुए वहााँ पहुचाँ े। पयषटक
को द्वीप में चाि दिन से ऊपि रुकने नहीं दिया जाता है। साथ ही यह भी ज्ञात हुआ दक कोच्ची
से सप्ताह में के वल एक दिन ही हवाई जहाज़ यहााँ के दलए उड़ान भिता है। यह भी पता चला
दक लौटते समय हवाई जहाज़ कोच्ची की जगह कोदझकोड के दलए उड़ान भिे गा । ऐसी
दवकट परिदस्थदत में हमने नागपिु के “मवस्मतक ्ूसज एन्ड ट्रेवल” ( Swastic Tours and
Travels, Plot No। 10, Dandige Lay 0ut, Shankar Nagar 440010)। के
संचालक श्री स्ननाद आल्िेलकर र्ी ( मोबा।9421706506) का सहािा दलया औि हमने
अपने दहसाब से कायषक्रम दनधाषरित दकए। श्री आल्मेलकि जी ने अपने सहायक श्री प्रमोि
झाड़े (7620107238) को हमािे साथ यािा पि दभजवाया, तादक हमें कोई असदु वधा न हो।
हमािे साथ इस यािा में अन्य प्रिेशों से श्री अनन्त िालेगांवकि जी, एन. श्रीिामन,
श्रीमती पर्ु ा श्रीिामन, सश्रु ी वीणा महादडकि जी, सश्रु ी शादलनी डोणे जी, श्री साके त
के लकिजी, श्री सवोत्म के लकिजी, सश्रु ी शदमषन कौटो (Sharmeen Couto), सश्रु ी दस्मता
श्रीवास्तवजी, सश्रु ी दचिा पिाजं पे जी एवं िीपक गोखले जी भी शादमल थे।
17/19-01-2020 ( सुवणज र्यंस्त एक्स रास्त्र 11.30)
17 तािीख की शाम को हम दछन्िवाड़ा से नागपिु के दलए िवाना हुए। सवु णष जयंती
एक्स।नागपिु िादि साढ़े ग्यािह बजे पहुचाँ ती है। लगाताि िो दिन की यािा के पश्चात् हम
दिनांक 19 जनविी की सबु ह छः-साढे छः बजे के किीब कोदच्च पहुचाँ े। शहि की प्रख्यात
थ्री-स्टाि होटेल सािा (SARA) में हमें रुकवाया गया। चाँदू क हमािे पास आज का दिन ही शेर्
था, अगली सबु ह हमें शीघ्रता से तैयाि होकि कोदच्च एअि-पोटष पहुचाँ ना था। अगदत् के दलए
फ़्लाईट सबु ह साढ़े नौ बजे की थी । अतः हमने इस अल्पावदध में कोच्ची शहि के कुछ
प्रदसद्ध स्थलों को िेखने का मानस बनाया ।

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इस अल्पावदध में हमने फ़ोक क्लोर म्युस्र्यि (FOLK CLORE
MUSIUM), सें् फ़्ांस्सस र्ेस्वयर चचज ( SAINT FRANCIS ZAVIER) ,
साइनेगोग स्र्व्र् िस्न्दर (यहूस्दयों का प्राथजना मथल) -SYNEGOG JEWS
TEMPLE- तथा डच पैलेस ( DUTCH PALACE) िेखा औि िोपहि को हमने
“फ़ो्ज क्वीन” होटेल में सस्ु वािु भोजन का आनन्ि दलया ।
ज्ञात हो दक पतु षगाली नादवक वास्को डी गामा 8 र्ुलाई 1497 में भाित की खोज में
दनकला था । 20 िई 1498 को वह के िल तट के कोज्जीकोड दजले के कालीकट के काखड
गााँव पहुचाँ ा था। 1502 में वह पनु ः िसू िी बाि भाित आया था। लबं ी दबमािी के बाि उसका
दनधन सन 1524 में हुआ। उसके मृत शिीि को कोदच्च के सतं फ़्ांदसस चचष में ििनाया गया
था। सन 1539 में पतु षगाल के इस हीिो के शिीि के अवशेर्ों को दनकालकि पतु षगाल के
स्वस्डगुअरा (VIDIGUEIRA ) में ििनाया गया।
20-22 र्नवरी—अगस्त् द्वीप
बीस जनविी की सबु ह आठ बजे हमने होटेल सािा छोड़ दिया औि सीधे एअिपोटष
पहुचाँ े। सबु ह साढ़े नौ बजे की इदं डयन एअिलाईन की फ़्लाईट अगदत् के दलए थी । कोच्ची
(कोचीन) से अगदत् तक की उड़ान में महज एक घटं ा तीस दमनट लगते हैं। उड़ते हुए हवाई
जहाज़ से अगदत् द्वीप इस तिह दिखाई िेता है।
अगदत् द्वीप
हवाई अड्डे से कुछ ही ििू ी पि सैलादनयों के दलए हट्स बने हुए हैं। मीलों ििू -ििू
तक िै ली, चांिी-सी चमचमाती मखमली िे त के मध्य ये हट्स बने हुए हैं। इस मखमली िे त
पि चलना एक अलग ही तिीके का अहसास दिलाता है। जगह-जगह ऊगे नारियल के
असख्ं य पेड़ औि पास ही लहलहाता-समरु आपको दकसी दिव्य लोक में ले जाने के दलए
पयाषप्त है। इतना अलौदकक दृश्य दजसे शब्िों में नहीं बांधा जा सकता। ििू -ििू तक िै ली नीले
पानी की चािि, दक्षदतज पि िंग दबखेिता सिू ज, सिे ि झक्कास िे त औि िंग-दबिंगी मछदलयााँ
अगदत् की असली पहचान है। यदि संयोग से उस दिन पदू णषमा हो तो इस द्वीप की सन्ु ििता को
िेखकि आप मिं मग्ु ध हो उठें ग।े

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कुछ अन्य र्ानकाररयााँ अगस्त्त् द्वीप की।
भाित के िदक्षण-पदश्चम में दस्थत अिब सागि में कमल-सा दखला एक भ-ू भाग है,
दजसे लक्ष द्वीप के नाम से जाना जाता है। यह स्थान भाित की मख्ु यभदू म से लगभग 300
दक.मी. की ििू ी पि अवदस्थत है। लक्षद्वीप की उत्पदत् प्राचीन काल में हुए ज्वालामख ु ीय
दवस्िोट से दनकले लावा से हुई है। समस्त के न्र शादसत प्रिेशों में यह सबसे छोटा है। इस
द्वीप-समहू में कुल 36 द्वीप हैं, पिन्तु के वल िस द्वीपों पि जनजीवन है, शेर् दनजषन पड़े हुए हैं।
पयषटक को इन द्वीप-समहू में जाने से पवू ष के न्र से अनमु दत लेनी होती है। दविेशी सैलादनयों को
के वल िो द्वीपों पि ही जाने की इजाज़त दमलती है।
िदु नया के सबसे शानिाि उष्णकदटबधं ीय द्वीप प्रणादलयों में से एक, लक्षद्वीप के िल
तट से 220-440 दक.मी. ििू है। द्वीप पारिदस्थदतकी औि संस्कृ दत की एक अनमोल दविासत
प्रिान किते हैं। द्वीपों की अनठू ी दवशेर्ता इसकी प्रवाल दभदत् है। 4200 वगष दकलोमीटि समरु
के धन में समृद्ध लैगनू का, 32 वगष दकलोमीटि के क्षेि में 36 द्वीपों में िै ल गया है। लक्षद्वीप में
पानी के नीचे का दृश्य कालीडोस्कोदपक औि लभु ावनी है। लैगनू दस्वदमगं , वायुसदििं ग-,
डाइदवगं , स्नोके दलगं औि कायदकंग जैसे पानी के खेल के दलए उत्कृ ि क्षमता प्रिान किता है।
कोई आश्चयष नहीं, लक्षद्वीप तेजी से भाित की अपनी एक तिह की आदधकारिक खेल-प्रकृ दत
पयषटन क्षेि का स्थान बनता जा िहा है। सभी द्वीप सिे ि मगंू ा, िे त द्वािा आच्छादित है। इसका
दक्रस्टल पानी औि प्रचिु मािा में समरु ी जीवन इन द्वीपों की संिु िता को बढ़ाता है। नीले समरु
के दवशाल दवस्ताि में यह द्वीप पन्नों की तिह दिखाई िेता है।
िसू िे दिन हमें बगं ािम द्वीप पि ले जाने से पवू ष तलापैनी द्वीप पि ले जाया गया, जो
बंगािम से कुछ ही मील की ििू ी पि अवदस्थत है।
तलापैनी आइलैण्ड
यहााँ तीन द्वीप हैं दजनमें आबािी नहीं है। इनके चािों ओि लैगनू की सिंु िता िेखने
लायक है। कूमेल एक खाड़ी है जहााँ पयषटन की पिू ी सदु वधाएाँ उपलब्ध हैं। यहााँ से दपत्ी औि
दथलक्कम नाम के िो द्वीपों को िेखा जा सकता है। इस द्वीप का पानी इतना साि है दक, आप
इस पानी में अिं ि तैिने वाले जीवों को आसानी से िेख सकते हैं। साथ ही यहााँ आप तैि सकते
हैं, िीि पि चल सकते हैं, नौका में बैठकि घमू सकते हैं औि कई वाटि स्पोट्षस का आनंि ले
सकते हैं।
बगं ारि आइलैण्ड।

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अन्य द्वीपों से यह सबसे खबू सिू त द्वीप है। यह बेहि ही शांत द्वीप है। इसकी शांदत
पयषटकों को अच्छी खासी पसिं आती है। यहााँ नारियल के सघन वृक्ष आपका मन मोह लेते
है। डालदिन, कछुए, मेंढक औि िंग-दबिंगी मछदलयााँ यहााँ िेखी जा सकती है। मन मोह लेने
वाले इस द्वीप पि हमने बहुत सािा समय आनन्ि में दबताया औि इसी के दकनािे एक
दवशालकाय टैंट के नीचे बैठकि हम सब पयषटकों ने सस्ु वािु भोजन का आनन्ि दलया । औि
अगदत् द्वीप के दलए िवाना हो गए। चाँदू क 22 जनविी की िात हमािे दलए अदन्तम िादि थी,
अगली सबु ह हमें वादपस लौट जाना था, इस अदन्तम पड़ाव पि हम सब शातं समरु के दकनािे
बैठकि शेि-शायिी औि सन्ु िि गीतों औि कदवताओ ं का आनन्ि उठाते िहे।
23-01-2020
22 तािीख की िात को ही हमने अपना सािा सामान पैक कि दलया था। सुबह के
चाय-नाश्ते के बाि हम अगदत् एअिपोटष पहुचाँ े। इस बाि की उड़ान कोच्ची की न होकि
कोदझकोड के दलए थी। इस बात की सचू ना पहले ही प्रसारित कि िी गई थी, दक कोच्ची
एअिपोटष मिम्मत के दलए इस दिन बंि िखा जाएगा । कोझीकोड पहुचाँ कि हम उस स्थान को
िेखना चाहते थे, जहााँ वास्को डी गामा अपनी लबं ी यािा के िौिान उतिा था। चाँदू क हमािे
पास समय की कािी कमी थी। औि हमें शीघ्रता से कोझीकोड िे ल्वे स्टेशन पहुचाँ ना था। यहााँ
से जनशताब्िी एक्सप्रेस से हमािे सीटें ऎल्लपी के दलए आिदक्षत हो चक
ु ी थीं। अतः बीच में
रुक पाना सभं व नहीं था। ऎलप्पी रुककि “बेकवा्र” का हम आनन्ि उठाना चाहते थे।
अतः ऎलप्पी के दलए हमने अपनी सीटें पहले से ही आिदक्षत कि िखी थीं ।
“गोकुलि” में हमने रुकने के दलए आवास का पहले ही रिजवेशन किवा दलया था।
गोकुलम के संचालक श्री दजपसन कािी दमलनसाि एवं प्रसन्नदचत् व्यदक्त हमें दमले। 23
तािीख की िात को श्री अनािेव जी की तबीयत अचानक दबगड़ गई औि उन्हें दकसी योग्य
डाक्टि को दिखाया जाना जरुिी था, चाँदू क हमािे दलए ऎलप्पी एकिम नया शहि था। हमािे
पास शहि के बािे में ज्यािा जानकािी भी नहीं थी। दमि दजपसन श्रीमती अनािेव औि
अनािेव जी को अस्पताल लेकि गए औि पिू ा ईलाज किवाने के बाि ही िेि िात गोकुलम
पहुचाँ े थे। श्री दजपसन की दमलनसारिता, अथक परिश्रम औि आत्मीय सहयोग औि उनके
सेवाभाव के दलए हम दजतनी भी प्रशसं ा किें , कम ही प्रतीत होगी । हम उनके इस मधिु
सहयोग को जीवन भि नहीं भल ू पाएाँग।े
के िल में आलाप्पड़ु ा (ऎल्लपी) एक महत्वपणू ष पयषटन स्थल है। आलाप्पड़ु ा के
अप्रवाही जल ( BACK WATER) के िल के सबसे लोकदप्रय पयषटक आकर्षणों में से
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एक हैं। वादर्षक नेहरू रािी बोट िे स को िेखने के दलए आलाप्पड़ु ा एक प्रमख ु प्रवेश द्वाि है।
आलाप्पड़ु ा िे लवे स्टेशन आलाप्पड़ु ा औि इसके आसपास पयषटकों के पयषटक आकर्षणों का
िौिा किने के दलए एक प्रवेश द्वाि के रूप में कायष किता है। इसके अलावा यहााँ पि 52 रेने
रूकती हैं दजनमे 8 रेने यहााँ से खल
ु ती हैं एवं 8 रेने यहााँ पि अपनी यािा का समापन किती हैं।
पवू ष के वेदनस के रूप में दवख्यात अलाप्पझु ा हमेशा से ही के िल के समरु ी इदतहास
को जानने का एक महत्वपणू ष कें र िहा है। आज यह खबू सिू त गतं व्य अपने नौका िौड़,
बैकवॉटि, समरु ी तटों, समरु ी उत्पािों औि कॉयि उद्योग के दलए कािी ज्यािा प्रदसद्ध है। यह
शहि कोट्टायम से 46 दक.मी., कोदच्च से 53 औि दिवेन्रम के 155 दक.मी. ििू ी पि दस्थत है।
के िल के साथ यह भाित के भी मख्ु य पयषटन गतं व्यों में दगना जाता है। के िल में अलाप्पझु ा के
बैकवा्र सबसे लोकदप्रय पयषटक आकर्षण है।
इन बैकवाटिों में एक हाउसबोट क्रूज बक ु दकया जा सकता है। यह स्थल कुमािकोम औि
कोचीन को उत्िी औि कोल्लम से िदक्षण में जोड़ता है। अलाप्पझु ा के बीच परिवाि औि
िोस्तों के साथ दपकदनक मनाने के दलए सबसे खास स्थान माने जाते हैं। यह पिू ा क्षेि समरु
औि पहादड़यों से दघिा हुआ है जो यहााँ आने वाले सैलादनयों को एक यािगाि अवकाश
दबताने का मौका प्रिान किता है। पयषटन के मामले में इसे भारत का बैकवा्र पैराडाइर्
कहा जाता है। जहााँ आप एक आिामिायक सिि का लत्ु ि उठा सकते हैं। कुट्टानाि की
भौगोदलक दवशेर्ताओ ं के साथ यहााँ के धान के खेत इसे एक शानिाि औि मनोिम स्थल
बनाने का काम किते हैं। िोटोग्रािी के दलए यह एक आिशष स्थान है। यहााँ की चाि प्रमख ु
नदियााँ मीदचल, अचंकोदवल, पम्पा औि मदणमाला प्रवाह इस स्थान को रैवलसष के दलए एक
हब बनाने का काम किती हैं। प्राकृ दतक संिु िता में चाि चांि लगाते यहााँ के नारियल के पेड़
कािी मनोिम दृश्य प्रिान किने का काम किते हैं।
25 –र्नवरी।-2020
चौबीस तािीख की िादि को हमने अपना सािा सामान पैक कि दलया था।
जनशतादब्ि एक्सं सबु ह साढ़े आठ बजे ऎल्लेप्पी से िवाना होती है। यहााँ से सीधे नागपिु के
दलए हमने अपनी सीटें पवू ष में ही आिदक्षत किवा ली थीं। शाम साढ़े पााँच बजे के लगभग यह
नागपिु पहुचाँ ी। नागपिु से बस द्वािा हम दछन्िवाड़ा साढ़े नौ बजे पहुचाँ गए थे।

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और अन्त िें।
लक्षद्वीप से लौटकि आए हुए हमें अभी ज्यािा समय नहीं दबता है। िस दिन के इस
िोमाचं क सिि की मधिु -स्मृदतयााँ आज भी चमत्कृ त किती हैं। चमत्कृ त किते हैं वे अद्भुत
क्षण, जब हम पिू ब से सिू ज को दनकलता िेख िोमांदचत होते थे तो वहीं उसे अस्ताचल में
जाता िेख, इस आशा के साथ लौट पड़ते थे दक अगली सबु ह दिि सिू ज एक नया उजाला,
एम नया संिश े ा लेकि दिि नीलगगन में अवतरित होगा । दखलदखलाता-िहाड़ता समरु औि
समरु के बीच कमल सा दखला द्वीप, दजसकी चांिी-सी चममचाती मल ु ायम िे त पि दवचिण
किना औि नारियल के पेड़ से बधं े झल ू े में जी भिके झल
ू ना । िह-िह कि याि आते हैं वे क्षण
जब हम सब दमलकि द्वीप पि िै ली असीम शांदत के बीच सहभोज का आनन्ि उठाते हैं। याि
आते हैं वे क्षण जब हम नौका दवहाि किते हुए समरु के तल में िै ली शैवाल के सघन
बनु ावट ं को िेखकि िोमादं चत होते थे।
हम धन्यवाि ज्ञादपत किते हैं स्वदस्तक रेव्ह्लि के सच ं ालक श्री अल्मेलकि जी के
प्रदत दक उन्होंने यािा को सखु िायक बनाने के दलए अपने सहायक श्री प्रमोि जी झाड़े को
हमािे साथ दभजवाया । न दसिष दभजवाया बदल्क नागपिु स्टेशन पि स्वयं दमलने आए औि
हम सब लोगों को यािगाि दगफ़्ट सौगात में िी । हम धन्यवाि ज्ञादपत किते हैं ऎल्लपी के
होटल “गोकुलम” के संचालक श्री दजपसन जी के प्रदत दक उन्होंने अपने समय में से समय
को चिु ाते हुए हमें भिपिू सहयोग दिया । श्री दजपसन की दमलनसारिता- उनमें कूट-कूट कि
भिी सहयोग की भावना को हम कभी भल ु ा नहीं पाएाँगे । हम धन्यवाि ज्ञादपत किते हैं उन
सभी महानुभावों को जो हमािे सहयािी बने औि इस यािा को अदवस्मिणीय बनाने में अपना
सहयोग दिया ।

- 103 कावेरी नगर,स्छन्दवाड़ा

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मकन्दगुप्त : सिीक्षा
- डॉ लक्ष्िी झिन
मकन्दगप्तु का चररत्र-स्चत्रण
स्कन्िगप्तु नाटक का नायक स्कन्िगप्तु है । जयशक
ं ि प्रसाि ने नाटक का
नामकिण उसके नाम पि दकया है । प्रसाि जी ने स्कन्िगप्तु के चरिि की
दवदभन्न अनभु दू तयों का मादमषक दचिण दकया है । उसके चरिि में अतं द्विंद्व
एवं भावक ु ता का सदम्मश्रण है ।
स्कन्िगप्तु एक ऐदतहादसक व्यदक्त है । नाटककाि ने उसे अदधकाि के प्रदत उिासीन दिखाया है,
दकन्तु स्कन्िगप्तु कतषव्यों के प्रदत पणू रू
ष प से जागरूक है । स्कन्िगप्तु के जीवन का एकमाि
लक्ष्य आयष िाष्र के गौिव की िक्षा किना है । वह जीवनपयिंत इस कत्षव्य के प्रदत सजग है ।
जयशक ं ि प्रसाि ने स्कन्िगप्तु के इस ध्येय को पिू ा किके नाटक को सख ु ातं बनाया है । वह
िाष्रीय गौिव की िक्षा किके अपने जीवन को महान बना लेता है । िख ु इस बात का है दक
अपनी प्रेयसी के साथ उसका दववाह नहीं हो पाता । उसके चरिि पि प्रकाश डालते हुए
नाटककाि ने उसे एक सच्चे िाष्रप्रेमी एवं िेशभक्त के रूप में िशाषया है । वह अतं तक सैदनक
माि िहता है । उसे पि का लालच नहीं है । अपने सख ु से अदधक उसे िाष्र की िक्षा की दचतं ा
िहती है । उसके आत्म-दवश्वास का स्वि, पिू े नाटक में सवषि मख ु रित है ।
जयशक ं ि प्रसाि ने स्वयं स्कन्िगप्तु स्पि रूप से कहलवाया है –
‘सख ु लोभ से, मनष्ु य के भय से, मैं उत्कोच िेकि कृ त साम्राज्य नहीं चाहता ।’
नाटक में स्कन्िगप्तु का िेशप्रेम अत्यंत उच्चकोदट का है । िेश में दविेदशयों का आ जाना, शेि
की मााँि में दसयाि का पहुचाँ जाना है । नाटककाि दलखते हैं –
‘दसहं ों की दवहाि स्थली में शृगं ाल-वृिं सड़ी लोथ नोंच िहे हैं ।’
स्कन्िगप्तु जन्मभदू म को ‘स्वगाषिदप गिीयसी’ मानता है औि उसकी िक्षा हेतु प्राणों की बदल
िेने में जीवन की साथषकता िेखता है –
‘शास्त्रबल से शिीि िेकि भी यदि हो सका तो जन्मभदू म का उपकाि क्या लाँगू ा ।’
वह भट्टाकष से कहता है –
‘यदि कोई साथी न दमल तो साम्राज्य के दलए नहीं – जन्मभदू म के उद्धाि के दलए मैं अके ला
यद्ध
ु करूाँगा ।’

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स्कन्िगप्तु हि कीमत पि अपने इस िेशप्रेम के प्रदत ईमानिाि िहते हैं । स्कन्िगप्तु का व्यदक्तत्व
आकर्षण से भिा हुआ है । वह अत्यंत ही सौन्ियषवान परुु र् है । वह अत्यंत ही दृढ़ एवं धैयषवान
वीि है । नाटककाि ने उसके अनपु म व्यदक्तत्व का दचिण इस प्रकाि दकया है –
‘उिाि, वीि-हृिय, िेवोपम सौन्ियष इस यवु िाज का दवशाल मस्तक कै सी चक्र दलदपयों से
अदं कत है । आाँखों में एक जीवनपणू ष ज्योदत है।’
स्कन्िगप्तु के चरिि में क्षमाशीलता, त्याग की भावना एवं हृिय की दवशालता का परिचय
नाटक में पग-पग पि दमलता है । इस बात का प्रमाण वहााँ दमलता है जहााँ वह बड़े-से-बड़े
अपिाध के दलए अपने शिु को क्षमा कि िेता है ।
शवषनाग को क्षमा किके वह उसे सुमागष पि लेने में सिल हो पाता है । उसका हृिय इतना
दवशाल है दक वह परुु गप्तु को उसके जघन्य अपिाध के दलए क्षमा ही नहीं किता, विन् उसे
मगध का शासक बना िेता है । वह स्वयं मगध का दसंहासन नहीं लेना चाहता । उसके त्याग
की भावना की पदु ि इस कथन के द्वािा होती है –
‘अपने अदधकािों के प्रदत आपकी उिासीनता औि दनत्य नए परिवतषन ।’
जयशकं ि प्रसाि स्कन्िगप्तु के मन में अतं द्विंद्व दिखाते हुए दलखते हैं –
‘इस साम्राज्य का बोझ दकस दलए? मेिा तो दनज का कोई स्वाथष नहीं, हृिय के एक-एक कोने
को छान डाला । कहीं कामना की वन्या नहीं । के वल गप्तु सम्राट के वश ं धि होने की ियनीय
िशा ने मझु े इस िहस्यपणू ष दक्रया-कलाप में संलग्न िखा है।’
िेवसेना के प्रदत स्कन्िगप्तु का प्रेम गभं ीि एवं पदवि है पिंतु िेवसेना उसका साथ नहीं िेती ।
इस बात से उसे बहुत ठे स लगती है औि वह अपनी जननी की समादध को साक्षी बनाकि
आजीवन अदववादहत िहने की प्रदतज्ञा किता है ।
प्रेम से दनिाश होकि भी वह कुछ िेि के दलए दववशता का अनभु व किता है –
‘कोई भी मेिे अन्तःकिण का आदलगं न किके न तो िो सकता है औि न हाँस सकता है।’
स्कन्िगप्तु शरू
ु से अतं तक नाटक में छाया हुआ है । वह धीि एवं उिात् गणु ों से सम्पन्न
नायक है । नाटक का कथानक उसके व्यदक्तत्व को कें र बनाकि चलता है । इस नाटक में
उसके जैसा कोई अन्य पाि नहीं जो इतना प्रभावशाली हो । नाटक के प्रायः सभी पाि उसकी
गरिमा के सामने छोटे पड़ जाते हैं । वह एक उपयक्त ु एवं पिोपकािी सम्राट है । व्यदक्तत्व एवं
कत्षव्य िोनों ही दृदियों से स्कन्िगप्तु इस नाटक का सच्चा नायक दसद्ध होता है । वह आद्यांत

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नाटक में कमषयोगी की तिह अपने कतषव्यों का दनवाषह किता है औि कथानक को सदक्रय
बनाए िखता है ।
मकन्दगप्तु के नारी पात्र
जयशक ं ि प्रसाि ने स्कन्िगप्तु नाटक में स्त्री पािों के चरिि एवं व्यदक्तत्व का चरिि बड़ी
कुशलता से अदं कत दकया है । उनके स्त्री पािों में भावक ु ता, त्याग औि सेवा के साथ-साथ
मयाषिापणू ष आत्म-सम्मान का भाव सिैव जाग्रत दिखाई पड़ता है । नािी पािों के चरिि-दचिण
में नारियों के प्रदत दवशेर् सहानभु दू त दिखाई है नाटककाि ने ।
‘स्कन्िगप्तु ’ नाटक में अनन्तिेवी खलनादयका के रूप में प्रस्ततु की गई है । वह स्कन्िगप्तु के
प्रदत अनेक र्ड्यन्ि िचती है पिंतु अतं में स्कन्िगप्तु उसे क्षमा कि िेता है । अनन्तिेवी मगध
के प्रथम कुमािगप्तु की िानी औि परुु गप्तु की माता है ।वह वृद्ध सम्राट की जवान िानी है । पिंतु
अत्यंत ही महत्वाकांक्षी मदहला है ।वह अपनी महत्वाकांक्षा की पदू तष के दलए भट्टाकष को
प्रस्ततु किती है । वह कहती है –
‘क्षरु हृिय जो चहू े के शब्ि से भी शदं कत होते हैं, जो अपनी सााँस से ही चौंक उठते हैं, उनके
दलए उन्नदत का कंटदकत मागष नहीं है । महत्वाकांक्षा का िगु षम स्वगष उनके दलए स्वप्न है।’
दस्त्रयों की डैनी औि आाँसू की शदक्त का उपयोग किके वह भट्टाकष को अपनी ओि दमला लेती
है । वह अपने पि के बल पि दवजया को आतदं कत किती िहती है । वह सब की कमज़ोरियों
का लाभ उठाती िहती है । नािी -पािों में वह बहुत ही क्रूि औि र्ड्यंिकािी है । अपने वृद्ध
पदत कुमािादित्य के प्रदत उसके मन में तदनक भी िया की भावना नहीं है । उसकी
महत्वाकांक्षा का एक हदथयाि परुु गप्तु भी है । अनन्तिेवी अतं में अपनी महत्वाकांक्षा पिू ी कि
ही लेती है । चाहे इसमें िेश टूट जाता है, उसे इस बात का कोई िख ु नहीं ।
स्कन्िगप्तु की अन्य पािा है दवजया । दवजया मालव की कन्या है । वदणक पिु ी होने के कािण
वह धन की लोलपु है –
‘स्वणष ित की चमक िेखनेवाली आाँखें दबजली की तलवािों का तेज सह नहीं पातीं।’
वह यद्ध
ु से भयभीत िहती है । वह अत्यंत ही संिु ि है । एक ओि प्रकृ दत ने उसे अपाि सौन्ियष
पाया है औि िसू िी ओि अपने दपता से उसने दवपल ु धन पाया है । वह अपनी महत्वाकांक्षा
की दसदद्ध में िोनों का उपयोग किना चाहती है । दवजया भट्टाकष का विण किती है क्योंदक

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भट्टाकष गप्तु -साम्राज्य के महाबलादधकृ त के पि पि दनयक्त
ु है औि साथ ही प्रख्यात वीि है ।
वह आत्म-कें दरत नािी है । वह अपनी धनिादश िेश-सेवा के दलए िेने का प्रलोभन िेकि
स्कन्िगप्तु को खिीिना चाहती है। भट्टाकष का विण किना तथा स्कन्िगप्तु को धन से खिीिने
का िस्ु साहस किना उसकी िबु षल मनोवृदत् का परिणाम है । जयशक ं ि प्रसाि ने उसे धन के
लालच में जीनेवाली नािी के रूप में दचदित दकया है । दवजया आत्म-प्रवचं ना का दशकाि
होकि हि बाि गलत किम उठाती है । अतं तः अपने उद्देश्यों में असिल होने पि वह
आत्महत्या कि लेती है ।
िामा स्कन्िगप्तु नाटक की गौण स्त्री पािा है । जयशक
ं ि प्रसाि ने उसके चरिि को उत्कृ ि बनाते
हुए उसमें भाितीय नािी जीवन की प्रेिक शदक्त एवं कृ तज्ञता के भाव की प्रदतष्ठा की है दजससे
उसका चरिि चमत्कृ त हो उठा है । िामा िाज-भक्त है, कत्षव्यपिायण तथा ईमानिाि िासी है ।
वह महािानी िेवकी की िक्षा के दलए अपने पदत की भत्सषना किती है । नाटक के अतं में यह
दिखाया गया है दक वह हूणों के अत्याचािों से दवदक्षप्त हो जाती है।
िामा एक अच्छी पत्नी के नाते अपने पदत को सन्मागष की ओि प्रेरित किने के दलए तत्पि
िहती है । एक ओि वह अपने पदत पि अदधकाि भी जमाती है तो िसू िी ओि उसके बिु े
आचिणों की कटु आलोचना भी किती है । पिंतु उसका पदत शवषनाग भी अपनी पत्नी के
आदधपत्य भाव को स्वीकाि किता हुआ कहता है –
‘मैं करिंध से गिजते हुए दसंह की पाँछ
ू उखाड़ सकता हू,ाँ दकन्तु दसंहवादहनी! तम्ु हें िेखकि तेिे
िेवता कूचक्र जाते हैं।’
िामा भले ही पदत के प्रदत भत्सषनापणू ष शब्िों का प्रयोग किती है पिंतु सच यही है दक वह ऐसा
के वल उसे प्रगदत के मागष पि प्रेरित किने के दलए किती है ।
कमला भट्टाकष की मााँ है पिंतु मााँ होते हुए भी उसकी ममता उसे कमज़ोि नहीं बना पाती
क्योंदक उसका वात्सल्य प्रेम दववेक की नींव पि आधारित है । वह भट्टाकष के िाष्ररोही एवं
अमानवीय कायों का तीव्र दविोध किती है । वह अपने पिु को गलत मागष से हटाकि उसके
वास्तदवक कल्याण की कामना किती है । उसकी उत्कट अदभलार्ा है दक –
‘पिु िेश का सेवक होगा, म्लेच्छों से पि िदलत भाित-भदू म का उद्धाि किके मेिा कलंक धो
डालेगा ।’
कमल के हृिय में अनन्तिेवी की भााँदत मातृत्व की िबु षलता या सत्ा की महत्वकांक्षा नहीं है ।
उसके कथन से उसकी सच्चरििता का पता चलता है –
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‘मझु े इसका िख ु है दक मैं मि क्यों नहीं गई, क्यों अपने कलंकपणू ष जीवन को पालती िही ।
भट्टाकष ! तेिी मााँ को एक ही आशा थी दक पिु िेश का सेवक होगा, म्लेच्छों से पि-िदलत
भाित-भदू म का उद्धाि किके मेिा कलंक धो डालेगा, मेिा दसि ऊाँचा होगा ।’
पिंतु जब भट्टाकष अपने कुकमों से मन के हृिय को आघात पहुचाँ ाता है तो वह चपु चाप नहीं
बैठती । वह अपने महत्त्वपणू ष पि के अनरूु प उसे सन्मागष पि लाने का पिू ा प्रयास किती है ।
वह भट्टाकष के कुकृ त्यों का दविोध ही नहीं किती, अदपतु उनका प्रदतकाि किने के दलए वह
उसे िदं डत किने के दलए उद्यत िहती है ।
स्कन्िगप्तु नाटक में िेवकी महािानी है। वह प्रकृ दत से उिाि, धमषपिायण, सत्यदनष्ठ, दनभीक
औि कोमल हृिय वाली है। आततायी उन्हें िस्त नहीं कि सकते क्योंदक दवपदत्काल में वह
भगवान को पक ु ािती है। वह जीवनािशों की िक्षा के दलए पीछे नहीं हटती । वह इतनी दनडि है
दक जब अनन्तिेवी औि भट्टाकष उनके प्राण लेने के दलए उनके सामने खड़े हो जाते हैं तो वे
उनकी डिावनी उदक्तयों से ज़िा भी दवचदलत नहीं होती। वे दृढ़तापवू क ष उनके प्रत्येक बात का
महाँु तोड़ उत्ि िेती है। अनन्तिेवी के व्यंग्य-भिे ताने सनु कि वे कहती हैं –
‘पिमात्मा की कृ पा है दक मैं स्वामी के िक्त से कलदु र्त दसंहासन पि न बैठ सकी ।’
महािेवी िेवकी िाजमाता है। वह िामा को आततादययों के हाथ आत्मबदल नहीं होने िेती है
अदपतु बदलिान िेने के दलए वह आततादययों के हाथों स्वयं मिने को प्रस्ततु हो जाती है ।
िेवसेना स्कन्िगप्तु की वह नादयका है दजसने जीवनभि के वल दिया है, लटु ाया है –
‘िाष्र को, िाष्र के सेनानी स्कन्िगप्तु को यहााँ तक दक प्रदतदहसं ा की आग में जलनेवाली
दवजया को भी सब कुछ िे दिया दकन्तु बिले में उसे के वल वेिना दमली ।
जयशक ं ि प्रसाि उसकी अनुगाँजू को इस प्रकाि प्रस्ततु किते हैं –
‘आह, वेिना दमली दविाई
मैंने भ्रमवश संदचत मधक ु रियों की भीख लटु ाई ।’
िेवसेना जयशक
ं ि प्रसाि की आिशष नािी कल्पना को चरिताथष किती है। उसमें जातीय गौिव
की भावना, दवश्व कल्याण की कामना औि आत्मसम्मान की भावना दवद्यमान है। उसका
चरिि एकिम पावन एवं उज्ज्वल है। यद्यदप नाटक में उसका स्कन्िगप्तु से दववाह नहीं होता,
दिि भी वह नादयका पि की अदधकारिणी है। नाटककाि ने िेवसेना के चरिि में अतं द्विंद्व
दिखाकि उसे सजीवता प्रिान की है।

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उस्िजला का स्वरह
- डॉ लक्ष्िी झिन
साके त का पिू ा नवम् सगष उदमषला की उच््वासों औि दविह के तप्त
आाँसओु ं से आाँधी औि वर्ाष के रूप में उद्वेदलत हो उठा है । गप्तु जी
दलखते हैं –
करुणे क्यों िोती है? उत्ि में औि अदधक तू िोई!
मेिी दवभदू त है जो, उसको भवभदू त कहे क्यों कोई।।
मैदथलीशिण गप्तु ने साके त के नवम् सगष के आिंभ में ही स्पि कि दिया है –
मानस मदं िि में सती पदत की प्रदतमा थाप ।
जलती सी उस दविह में, बनी आिती आप । ।
कदव साके त की नादयका के उच्चािशष को स्थादपत किते हुए दलखते हैं दक प्रेम की सादधका
उदमषला अपने मन-मदं िि में अपने आिाध्य िेव स्वामी को प्रदतष्ठादपत किके आप ही आिती
की ज्वाला बनकि जल िही है । कदव के अनसु ाि वह त्याग औि दविह की पिाकाष्ठा है ।
साके त की उदमषला त्याग औि अनिु ाग की प्रदतमा है । उदमषला साके त की स्वादमनी है । साके त
में उदमषला के भाव सौन्ियष की पााँच झााँदकयााँ दमलती हैं जो इस प्रकाि हैं –
• िाज्यादभर्ेक के दिन प्रभात में
• लक्ष्मण के वन जाते समय
• दचिकूट में दविहावस्था में
• लक्ष्मण के अयोध्या लौट जाने पि पनु दमषलन के अवसि पि

वस्ततु ः उदमषला का दविह जीवन के पिे से कोई वस्तु नहीं है । उसका दविह दनत्य प्रदत के
गृहस्थ से ही सम्बद्ध है । उसका िख ु साधािण जीवन की दकसी प्रेम-योदगनी से भी कदठन है ।
उसमें दमलन की आकाक्ष ं ा तो है पिंतु वह यह नहीं चाहती दक उसके दप्रय लक्ष्मण अपने धमष
अथवा उद्देश्य छोड़कि चले आए । वह तो एक आिशष दविदहणी नादयका है ।
अपने स्वामी की मनोयोदगनी, दवर्य-दवयोदगनी उदमषला क्रमशः अपना आत्म-ज्ञान खो बैठती
है औि बेसधु ी औि अचेतनावस्था में वह जो प्रलाप किती है, उसी का संग्रह कदव ने नवम्
सगष में दकया है । मैदथलीशिण गप्तु उदमषला का मादमषक दचिण किते हुए दलखते हैं दक उदमषला
के अतीत की स्मृदतयों की एक वेिना भिी टीस है, उसका लटु ा हुआ प्याि का संसाि औि
उसकी वह दचंतनीय अवस्था दजसमें न उसे ‘वन’ दमला औि न ‘भवन’ ही । उसका सब कुछ
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उसकी उन्मत्ता में ईधन ं के समान प्रज्वदलत हो उठता है । पदत की आत्मीयता से प्राप्त
होनेवाला सख ु पणू ष रूप से उसके जीवन में आया भी न था दक वह दविह की आाँधी से
दवदच्छन्न हो दबखि गई । इस गभं ीि दचंतन में यह सोच-सोचकि वह कुछ सहम-सी जाती है
जहााँ कदव दलखते हैं –
यह दवर्ाि! वह हर्ष कहााँ अब, िेता या जो िे िी ।
वन के पहले प्रभात में आाँख खल ु ी जब मेिी
.......................................................
पि पष्ु प सब दबखि िहे हैं, कुशल ने मेिी तेिी
जीवन के पहले प्रभात में आाँख खल ु ी जब मेिी ।
जीवन की अस्त-व्यस्तता के कािण उदमषला अपनी काल्पदनक सदखयााँ बनाती है औि सिु दभ
से गगाँू ी नदियों से, सारिका से, चातकी से औि न जाने दकस दकस से अपनी कारुण्य-कथा
कहती है । उसका दविह ऐसा है जो समस्त दवश्व में व्याप्त है । इसीदलए वह कहती है –
मेिी ही पृ्वी का पानी
ले-लेकि यह अंतरिक्ष सखी आज बना है िानी !
मेिी ही धिती की धमू ,
बना आज आली, घनधमू ।
गिज िहा गज-सा झक ु -झमू
ढाल िहा मि पानी
मेिी ही पृ्वी का पानी ।

दविदहणी उदमषला को दविह ताप से संतप्त िेखकि मलयादनल भी सशदं कत हो उठता है, उसे
भय है दक कहीं उसके दविह-िग्ध शिीि से लगकि लू न बन जाए औि अपने आप को ही
जला न डाले । इस पि उदमषला स्वयं ही उसको लौट जाने के दलए कह िेती है –

जा मलयादनल लौट जा, यहााँ अवदध का श्राप लगे न लू होकि कहीं, तू अपने को आप ।

मैदथलीशिण गप्तु जी के दवयोग का समय दवयोग से भी अदधक िारुण है । उदमषला का दवयोग


भी उसी प्रकाि का है । दप्रय के प्रवास का समय दचंता, िखु , मोह, काम, दनिादश्रता आदि न
जाने दकतने भावों का उद्दीपन शरू ु हो जाता है । उदमषला एक आिशष दविदहणी नादयका है ।

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यदि दप्रय को स्वप्न में भी िेखती है तो उसे लौट जाने के दलए प्रेरित किती है । दमलन की
तीव्र अदभलार्ा होने के कािण वह स्वयं भले ही लक्ष्मण के दनकट पहुचाँ ने की आकाक्ष ं ा
किती है –

यही आता इस मन में


छोड़ धाम धन जाकि
मैं भी िहूाँ उसी वन में ।
वह आगे कहती है –
बीच-बीच में मैं उन्हें िेख लाँ,ू मैं झिु मटु की ओट ।
जब वे दनकल जाएाँ, तब हो जाऊाँ उसी ढोल में लोट ।
दविदहणी का जीवन सिलता से नहीं कटा । समय काटे नहीं कटता । वह कोई ऐसा साथी
चाहती है दजससे उसका समय शीघ्र ही व्यतीत हो, क्योंदक दप्रय की आशा में उसकी सााँसें
रुकी हैं । जब तक आशा है तब तक प्राण भी अपने दक्रयाकलाप औि गदतदवदध में संलग्न
िहते हैं । समिख ु ी स्वभाव वाले से आत्मीयता हो जाने के कािण उदमषला सभी
प्रोदर्तपदतकाओ ं को दनमिं ण िेती है –
प्रोदर्तपदतकाएाँ हों दजतनी भी सखी, उन्हें दनमिं ण दिया
समिदु खनी दमलें तो िख ु बाँटें, जा ।
पिंतु जब उदमषला को इतनी दवशाल औि दवस्तृत पिु ी में उसी को ये समिदु खनी नहीं दमलती
तो वह माता सियू के पास जाती है, उससे न जाने दकतनी अतीत स्मृदतयााँ कहती हैं, उसके
पास हाँसती हैं, िोती हैं औि कभी संविे ना प्रकट किती हैं औि कभी अपनी औि उसकी िशा
की तल ु ना कि हृिय मसोसकि िह जाती हैं –
गदत जीवन में दमले तुझ,े
सरिते, बंधन की व्यथा मझु े ।

कभी वह शक ु सारिका से संविे ना प्रकट किती है औि कभी संध्या समय जलते हुए िीपक पि
पतगं ों के मोह को िेख उदमषला को अपने दविाट् की झााँकी दमलती है । आगे चलकि
मैदथलीशिण गप्तु र्ट्ऋतु परिवतषन की प्रदतदक्रया का वणषन किते हैं जो दविदहणी उदमषला के
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हृिय में भावनाओ ं को जाग्रत किने हेतु प्रस्ततु दकया गया है । इससे उसकी दिनचयाष पि भी
प्रभाव पड़ता है दजनसे उसका समय व्यतीत किने का साधन प्रस्ततु हो जाता है । उदमषला
तपोयोगी ग्रीष्म के आिंभ का स्वागत किती है क्योंदक उसमें पिदहत दचंतन की भी भावना
दनदहत है । दवयोग उसको आत्माथी न बनाकि पिमाथी बना िेता है । उसमें त्याग का स्पि
आभास लदक्षत होता है, तभी तो उसने कहा है –
मैं अपने अधीि नहीं
स्वाथी ये लोचना नीि नहीं ।
उदमषला के दवचािानसु ाि यह ग्रीष्म का ताप लक्ष्मण के तप का ही प्रभाव है, इसीदलए वह
काति हो पकु ाि उठती है –

मन को यों मत जीतो!
बैठी है यहााँ यह मादननी सदु ध लो उसकी भी तो ।

ग्रीष्म के पश्चात् वर्ाष काल में ऐसा िेखा गया है दक दविह में पीदड़त लोगों की िशा अत्यंत
करुण हो जाती है । काले-काले मेघ औि दिि वर्ाष का होना दविदहयों के हृिय में अनेक भावों
को उत्पन्न किते हैं पिंतु वर्ाष के समय उदमषला ने उसका उज्ज्वल पक्ष ही दलया है । उसकी
उिाि भावना ने वर्ाष में उपकाि की ही वृदत् को पाया है –
बिस घट बिसाँू मैं संग
सिसों अवनी के सब अगं
दमले मझु े भी कभी उमंग
सबके साथ सयानी !
शिि के खजं नों को िेखकि लक्ष्मण के सनु यनों की िे खा उसके स्मृदत-पट पि अदं कत हो जाती
है –
दनिख सखी ये खंजन आए
िे िे उन मेवे िंजन ने नया इधि मन भाए
दविह में प्रत्येक दविही को दप्रयदमलन की तीव्र अदभलार्ा िहती है । वस्ततु ः अदभलार्ा
अथवा उत्कंठा सवषप्रधान भावना है जो सभी िशाओ ं का मक ू रूप है । उदमषला की अदभलार्ा
में उत्कंठा है, भोलापन है, तीव्रता है । पिंतु वह यह भी जानती है दक आगे दविह की िीवाि
खड़ी है । अतः वह दवचािों में मग्न हो जाती है –
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आप भवदध बन सकाँू कहीं तो, क्यों कुछ िेि लगाऊाँ
मैं अपने को आप दमटाकि जाकि उनको लाऊाँ ।
उदमषला को अपने सखु ि बाल्यकाल की प्रथम-दमलन की यौवन की क्रीड़ा की बाि-बाि स्मृदत
हो जाती है । उस जीवन की सख ु मयी मधिु स्मृदतयााँ उसे औि भी पीड़ा िेती हैं क्योंदक इस
समय –
दवदध के प्रमोि से दवनोि भी दवर्ाि है ।

मैदथलीशिण गप्तु ने उदमषला के दविह-वणषन का हृियस्पशी वणषन किते हुए यह िशाषया है दक


उदमषला इस पीड़ा को सहते-सहते अधष-मदू छष त सी हो जाती है । उदमषला अपने दविह में खाना
भी त्याग िेती है । उसकी सखी भोजन का थाल पिोसकि लाती है, पिंतु उदमषला यह कहकि
हटा िेती है –
अिी व्यथष है व्यजं नों की बड़ाई
हटा थाल, तू क्यों इसे आप लाई ।
शीतल-मिं सगु दं धत वायु उदमषला के दनकट आती है पि वह उसका आनंि कै से ले सकती है?
वह उससे पीछे लौट जाने की प्राथषना किती है –
अिी सिु दभ जा लौट जा, अपने सगं सहेज
तू है िूलों की पली, यह कााँटों की सेज
दप्रय के दविह से नेिों से ही अश्रपु ात नहीं हो िहा, अदपतु समस्त शिीि से स्वेि रूपी अश्रु बहने
लगे हैं –
नयन नीि पि ही सखी, तू किती थी खेि ।
टपक उठा है िेख अब, िोम-िोम से स्वेि ।।
चकवी जब पहले कभी िोया किती थी, उदमषला समझती थी दक वह गा िही है पिंतु आज जब
अपने ऊपि आकि बीती, तब अनभु व हुआ दक चकवी िोती थी या गाया किती थी –

चातकी मझु को आज ही हुआ भाव का भान।


हा! वह तेिा रुिन था मैं समझी थी गान ।।
उदमषला अपने मन को तिह-तिह से समझाती है दक दप्रय यही है, कहीं ििू नहीं गए, दकन्तु
आाँखें दिि िोए दबना नहीं मानतीं –
नयनों को िोने िो,
मन, तू संकीणष न बन, दप्रय बैठे हैं
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आाँखों से ओझल हो,
गए नहीं वे कहीं, यही बैठे हैं । ।
उदमषला इस दविह-वेिना से इतनी िस्त है दक कभी-कभी सोचती है मैं भी उसी वन में जाकि,
दबना उन्हें बताए वहााँ िहने लगाँ,ू आदखि िेखने भि को तो दमल जाएाँगे –
यही आता है इस मन में
छोड़ धाम-धन जाकि मैं भी िहूाँ उसी वन में ।
अतं में उदमषला अपनी सखी से यही प्राथषना किती है दक दप्रय दविह में अगि वह पागल हो
जाए तो वह उसका कुछ उपचाि न किे , चाहे उदमषला हाँसती िहे, या िोती िहे –
सजनी! पागल भी यदि हो सकाँू ।
कुशल तो, अपनापन खो सकाँू ।
शपथ है उपचाि न कीदजयो
बस इसी दप्रय-कानन कंु ज में ।
‘साके त’ के कदव ने दवयोदगनी उदमषला को अपने काव्य का कें र बनाया है । आिंभ में वह
भावक ु प्रेदमका जैसी है । पिंतु नवें सगष में दविह की आग में तपती िहती है । साके त की
नादयका उदमषला है जो अपने कुल की सहृिय वधू है औि जो अपनी प्रदतष्ठा में अदद्वतीय है ।
‘साके त’ का उद्देश्य उदमषला के चरिि की महत्ा को प्रदतपादित किना है । उदमषला त्याग औि
अनिु ाग की साक्षात् प्रदतमा है । सम्पणू ष ‘साके त’ का दनमाषण ही उदमषला के आाँसओ
ु ं से हुआ
है। वही उदमषला, जो एक दिन स्वगीय सख ु की भोक्ता बनी थी, आज दविह के बंधन में पड़
त्याग की प्रदतमा बनकि ही िह गई । वह दप्रय के साथ जाने का आग्रह भी नहीं कि सकती
क्योंदक इससे िाम को पथ में बाधा होगी । वह मन को ही धैयष िेती है, दजससे वह दप्रय के पथ
का दवघ्न न बन सके –
‘कहा उदमषला ने – हे मन!
तू दप्रय पथ का दवघ्न न बन ।
आज स्वाथष है त्याग भिा ।
है अनिु ाग-दविाग भिा ।
इस तिह समस्त ‘साके त’ में उदमषला की अश्र-ु सरिता ही प्रवादहत होती िहती है । ‘साके त’ में
कदव का लक्ष्य है – उदमषला के चरिि को प्रमख
ु ता िेना औि उसके प्रदत करूण समपषण किना।

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एक िुलाकात
- गोवद्धजन यादव
अदं तम सप्ताह दिसबं ि का चल िहा है । चाि दिन की के जअ ु ल बाकी है।
यदि जेब में मनीिाम होते तो मज़ा आ जाता । िोस्तों की ओि से भी
तिह-तिह के प्रस्ताव दमल िहे थे। पिंतु सभी को कोई न कोई बहाना
बनाकि टाल िेता हू,ाँ दबना पैसों के दकया भी क्या जा सकता था? अत:
ऑदिस से दचपके िहकि समय पास किना ही श्रेयस्कि लगा ।
31 दिसम्बि का दिन, पहाड़ जैसा कट तो गया पि शाम एवं
िादि कै से कटेगी यह सोचकि दिल घबिाने-सा लगा। उड़ने को घायल पंछी जैसी मेिी हालत
हो िही थी। अनमना जानकि पत्नी ने कुछ पछ ू ने की दहम्मत की, पि ठीक नहीं लग िहा है,
कहकि मैं उसे टाल गया। खाना खाने बैठा तो खाया नहीं गया। थाली सिका कि हाथ धोया ।
महंु में सपु ािी का कतिा डाला । थोड़ा घमू कि आता हू,ाँ कहकि घि के बाहि दनकल गया ।
ठंड अपने शबाब पि थी। िोनों हाथ पतलनू की जेब में कुनकुना कि िहे थे। तभी उंगदलयों के
पोि से कुछ दसक्के टकिाए। अिं ि ही अिं ि उन्हें दगनने का प्रयास किता हूाँ एक दसक्का औि
िो चवदन्नयााँ भि जेब में पड़ी थीं। सोचा एक पान औि एक दसगिे ट का सेजा जम जायेगा ।
पान के ठे ले पि दचि-परिदचतों को पाकि आगे बढ़ जाता हू।ाँ िसू िे पान के ठे ले पि भी यही
नज़ािा था। एक के बाि एक पान के ठे लों को पीछे छोड़ता हुआ कािी ििू चला आया था।
उदद्वग्न मन दलये, मैं सड़क के दकनािे -दकनािे चला जा िहा था । तभी मैंने महससू दकया दक
कोई व्हीकल मेिे पीछे आ िही है। तदनक पलट कि िेखा । एक चमचमाती जेन ठीक मेिे पीछे
िें ग िही थी। मैं औि थोड़ा हटकि चलने लगता हूाँ दक वह आगे दनकल जाए, पि अब वह
मझु से सटकि चलने लगी।
सहसा गाड़ी में से एक हाथ दनकलता है औि मेिी कलाई को मजबतू ी से थाम लेता
है। इस अप्रत्यादशत घटना से मैं हड़बड़ा जाता हू।ाँ मेिी पेशानी पि पसीना चू उठता है। मैं कुछ
समझाँू इससे पवू ष ही वह ििवाज़ा खोलकि मेिे सामने खड़ा हो गया। उसका इस तिह ऐठं कि
खड़ा हो जाना मझु े ड्रेकुला की तिह लगा। मैं अिं ि ही अिं ि बिु ी तिह से कााँप उठा। उसने बड़ी
बेतकल्लि ु ी से मेिे कंधे पि अपने भािी भिकम हाथ की धौंस जमाते हुए कहा, " क्यों... क्या
हालचाल है। " उसकी कड़किाि आवाज़ सनु कि मेिी तो जैसे दघग्गी ही बंध गई थी। कुछ
कहना चाह भी िहा था, पिंतु जीभ जैसे तालू से दचपक गई थी औि शब्ि आकि गले में िंस
गए थे। मेिी आाँखें बिाबि िेख िही थीं। वह मिं -मिं मस्ु किा िहा था। उसकी यह मस्ु कान मझु े
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बड़ी वीभत्स सी लग िही थी। प्रत्यत्ु ि न पाकि, उसने दिि वही प्रश्न िागा। कड़ाके की ठंड में
मैं पसीना-पसीना हुआ जा िहा था। आाँखें पथिा-सी गई थीं औि सोचने- समझने की शदक्त
एकिम गायब हो गई थी। मैं बुत बना उसके सामने खड़ा था।
'अिे याि, तेिा तो नवषस ब्रेक डाउन हो गया लगता है, मैं कोई भतू -वतू नहीं बदल्क
तेिे बचपन का िोस्त हू।ाँ बिसों-बिस बाि तू मझु े दिखाई दिया सो सोचा दक कुछ सिप्राईज
िगाँू ा, गौि से मेिी तिि िेख तो सही। उसके शब्िों में अब आत्मीयता की खश्ु बू आ िही थी,
दजसने संजीवनी का काम दकया। मैं अब होश में आने लगा था, बदल्क अब नॉमषल हो गया
था। मैंने उसके चेहिे को पहचानने की कोदशश की पि असिलता ही हाथ लगी। पहचान
लायक कोई भी अवशेर् उसके चेहिे पि नजि नहीं आ िहे थे। एक हािे हुए जआ ु िी की तिह
मेिी हालत हो गई थी।
'वेिी सॉिी याि, मैं तझु े सचमचु नहीं पहचान पाया ।’ मैंने दबना दकसी लाग-लपेट के
अपनी असमथषता उस पि प्रकट कि िी।
'हााँ याि मझु े बड़ी हैिानी हो िही है दक तू मझु े पहचान नहीं पाया । सनु , तेिे बािे में मैं
सब कुछ बताता हू।ाँ तेिा नाम गोवधषन यािव है न? तू मल ु नाई का िहने वाला है न? तुम डाक
दवभाग में कायष किते हो न? तुमने दछन्िवाड़ा में अपना मकान बना दलया है न? " उसने औि
भी ढेिों बातें मेिे बािे में बतलाई।ं उसने सचमचु ही मेिा सािा कच्चा दचठ्ठा खोलकि िख दिया
था। दनदश्चत ही वह मेिा पवू ष परिदचत िहा होगा। तभी तो उसने इतनी सािी बातें मेिे बािे में
बतलाई।ं इतना सब कुछ घदटत होने के बाि भी मैं उसे पहचान नहीं पा िहा था। मेिी नजिें झक ु
आई ं औि दनिाशा का भाव मेिे चेहिे पि उति आया था । उसने मझु े भिपिू नज़िों से घिू ा औि
ज़ोििाि ठहाका लगाया। औि मझु से कहने लगा, 'अिे याि, इसमें इतना पिे शान होने की क्या
बात है। अब तमु पिू े समय मेिे साथ िहोगे। तमु खिु -ब-खिु मझु े जान जाओगे। दिि भी यदि
नहीं पहचान पाओगे तो मैं तम्ु हें खिु ही अपने बािे में बता िगाँू ा। चल आ बैठ। उसने
शालीनता से काि का ििवाज़ा खोला। मैं यंिवत् गाड़ी में जा धंसा। गाड़ी का स्टेयरिंग
सम्हालते हुए अपने जेब से दसगिे ट का पैकेट दनकाला औि मेिी ओि बढ़ा दिया। मैं एक
दसगिे ट ले लेता हू।ाँ उसने भी एक दसगिे ट अपने ओठों से िबाते हुए लाईटि जलाया। लाईटि
के जलते ही एक जल-तिंग की आवाज़ दथिकने लगती है। दसगिे ट जलाते हुए मैंने एक लंबा
कश खींचा। तब तक वह गाड़ी स्टाटष कि चक ु ा था।
गाड़ी अब एक आलशीन बगीचे में से होते हुए गज़ु ि िही थी। जगह-जगह िव्वािे
िंग-दबिंगी िोशनी में दथिक िहे थे। बगीचे में लाईदटंग भी बड़े किीने से की गई थी। तभी काि
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एक आलीशान महल के सामने जाकि रुकती है। वह हानष बजाता है। एक सटू ेड-बटू ेड
वाचमैन आकि काि का ििवाज़ा खोलता है। वह काि के बाहि आ जाता है। उसके बाहि
आते ही वाचमैन ने ज़ोििाि सैल्यटू मािा । अब वह आगे बढ़ने लगता है। वाचमैन ने आगे
बढ़कि काच ं का आिमकि ििवाज़ा खोला। अब वह अन्िि प्रवेश किने लगता है। मैं यंिवत्
उसके पीछे हो लेता हू।ाँ अिं ि पहुचाँ ते ही मझु े ऐसा लगा दक मैं जन्नत में आ गया हू,ाँ जगह-
जगह कलात्मक पेंदटंग्स लगी हुई थीं। झाड़-िानसू ों से िोशनी दबखि िही थी। िीवािों से
सटकि आिमकि अप्सिाओ ं की नग्न-अधषनग्न मदू तषयााँ मािकता दबखेि िही थीं। पिू े िशष पि
बेशकीमती कालीन दबछा हुआ था। हॉल में हल्की गल ु ाबी-सी िोशनी छाई थी। हि एक टेबल
पि प्रेमी-प्रेदमकाएाँ अस्त-व्यस्त मरु ाओ ं में बैठे दचयसष कि िहे थे। हल्की धीमी आवाज़ में कोई
इगं दलश-टयदू नंग माहौल में उत्ेजना भि िही थी। कई जोड़े डांदसंग फ्लोि पि एक िसू िे की
कमि में हाथ डाले दथिक िहे थे। एक जवान बाला दथिकती जाती थी औि खाली होते पैमानों
को भिती जा िही थी।
अब वह इठलाती, बलखाती मेिी ओि बढ़ी चली आ िही थी। आगे बढ़कि उसने
दगलास मेिे ओठों से लगा दिया । मैंने उसके नाजक ु हाथों से दगलास ले दलया औि एक ही
सांस में पिू ा उताि दलया। वह एक के बाि एक दगलास मेिी ओि बढ़ाती चली गई। मझु े
दबल्कुल ही नहीं मालमू दक मैं दकतने दगलास चढ़ा चक ु ा होऊाँगा। अब उसने मेिा हाथ थाम
दलया औि अब वह डांदसंग फ्लोि की ओि बढ़ने लग जाती है। डांदसंग फ्लोि पि मैं न जाने
कब तक डांस किता िहा। मझु े याि नहीं औि न ही वह कदथत दमि मझु े याि आया। सहसा
माईक पि एक स्वि उभिता है। " लेडीज एण्ड जेन्टलमैन, " दथिकते हुए जोड़े थम जाते हैं।
प्राय: सभी की दनगाहें डायस की ओि मड़ु जाती हैं। वह कोई औि नहीं मेिा अपना कदथत
दमि था। फ्लैश लाइट में वह हीिे का सा जगमगा िहा था। उसने मौन भगं किते हुए मेिा नाम
लेकि पक ु ािा औि कहा दक मैं डायस पि पहुचाँ जाऊाँ। बहके हुए किमों से मैं वहााँ पहुचाँ जाता
हू।ाँ बड़े मनोहारिक तिीके से उसने मेिा परिचय दिया। कहा, 'िोस्तों... आप इन्हें नहीं जानते। ये
एक अच्छे गीतकाि हैं, तथा गायक भी हैं। इनके अिं ि एक से बढ़कि एक अनमोल खजाने
छुपे हुए हैं औि जब ये गाते हैं तो लगता है दक कोई झिना आकाश से उति िहा हो औि मीठी
स्वि लहिी दबखेि िहा हो पि...... अचानक उसकी सईू "पि " पि अटक जाती है। लोग
अपनी सांसों को िोककि आगे कुछ सनु ना चाह िहे हैं। पि वह एक लंबी चप्ु पी साध लेता है।
थोड़ी िेि चपु िहने के बाि उसने कहा, " हााँ तो िोस्तों, मैं तो इनके बािे में एक चीज बतलाना
तो भल ू ही गया। जानते हैं, इनकी जेब में अब भी एक दसक्का औि िो चवदन्नयााँ पड़ी हैं। वर्ष
के अदं तम दिन, ये बेचािे जश्न नहीं मना पा िहे थे। िास्ते में इनसे अनायास ही मलु ाकात हो गई
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औि मैं इन्हें यहााँ उठा लाया। शायि मैंने ठीक दकया विना आज महदिल दबना गीत-संगीत के
सनू ी-सनू ी सी लगती। "
उसके उद्बोधन को सनु कि मेिा सािा नशा जाता िहा। मझु े ऐसा लगा जैसे स्वगष से
उठा कि धिती पि िें क दिया गया होऊाँ। अपने आप को संयत किते हुए मैंने माईक सम्हाला
औि कहा, 'दमिो, मैं अभी तक इस व्यदक्त को नहीं जान पाया जो मझु े उठाकि यहााँ लाया।
इन्होंने अपनी ओि से िोस्ती का हाथ बढ़ाया था। औि मैंने इन्हें एक दवश्वास के साथ गले
लगाया था। यह घटना ज्यािा पिु ानी नहीं है अदपतु चंि घटं ों पहले की है। इन्होंने िोस्ती को
ऐसे झटक दिया जैसे धल ू पड़ने पि आिमी अपने कपड़े झाड़ने लगता है। अब मैं इन्हें िोस्त
कहूाँ या िश्ु मन। खैि जो भी हो, इन्होंने एक दवश्वास तोड़ा है, एक दिल तोड़ा है औि जब दिल
टूटता है तो एक ििष भिा गीत मख ु रित होता है—
तमु कहते हो गीत सनु ाओ 'तो कै से गाऊाँ औि गवाऊाँ िे ।
मेिे दहििा पीि जगी है कै से गाऊाँ औि गवाऊाँ िे ।
आशाओ ं की पी पी कि खाली प्याली, मैं बाँिू -बाँिू को तिसा हू,ाँ
उम्मीिों का सेहिा बांधे, मैं द्वाि-द्वाि भटका हूाँ ,
तमु कहते हो िाह बताऊाँ तो कै से िाह दिखाऊाँ िे ।
मन एक व्यथा जागी है। कै से हमिाही बन जाऊाँ िे ।
िंग-िंगों में िंगी दनयदत नटी क्या-क्या दृश्य दिखाती है,
पातं ों की हि दथिकन पि मिमाती-मस्ताती है,
तमु कहते हो नाच दिखाऊाँ तो कै से नाचाँू औि नचाऊाँ िे ।
मनमयिू दविहा िंदजत है, कै से नाचाँू औि नचाऊाँ िे ।
दिन िनू ी सांस बांटता सपन िात िे आया हू,ाँ
तन में थोड़ी सासं बची है, मन में थोड़ी आस बची है,
दतस पि तमु ने सिु दभ मााँगी तो कै से-कै से मैं दबखिाऊाँ िे ।
तमु कहते हो गीत सनु ाओ तो कै से गाऊाँ औि गवाऊाँ िे ।
गीत गाते-गाते मैं लगभग रुआसं ा हो गया था। अब ििक कि िो पड़ता हू,ाँ तमाम
लोगों पि इसका क्या प्रभाव पड़ा, मैं नहीं जानता औि न ही जानना उपयक्त
ु समझा। दजस
मजबतू ी के साथ उसने मेिी कलाई थामी थी, उससे कहीं िनू ी ताकत से मैंने उसका हाथ
पकड़ा औि लगभग घसीटता हुआ उसे बाहि ले आया। बाहि आते ही मैं वाक्यद्ध ु पि उति
आया था।
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'दमि, तमु ने मझु े दजगिी याि कहा; िोस्त कहा, मेिे गले में हाथ डाला औि दचकनी-
चपु ड़ी बातें बनाकि यहााँ ले आए। तुमने मेिा स्वागत बड़ी गमषजोशी के साथ दकया। तुमने
सबकी नज़िों में मेिा मान बढ़ाया तो िसू िी ओि, तमु ने मेिे साथ बड़ा ही भद्दा मज़ाक भी कि
डाला। तमु ने मझु े ज़लील दकया। आदखि क्यों? मैं एक सासं में न जाने दकतना कुछ बोल गया।
पिंतु वह न जाने दकस दमट्टी का बना था दक उस पि कोई असि ही नहीं हो िहा था। बदल्क मेिे
द्वािा अपमादनत दकए जाने के बावजिू उसके चेहिे पि पवू ष की तिह मिं -मिं मस्ु कान खेल िही
थी। उसने न तो अपना हाथ छुड़ाने की कोदशश की औि न ही प्रयास दकया। बदल्क मेिी
आाँखों में आाँखें डालकि उसने कहा, 'अच्छा दमि तो तमु मेिा नाम जानना चाहते हो! तो सनु ो
मेिा नाम वक्त है। लोग मझु े समय के नाम से भी जानते हैं। मैं सन् 2022-23 का दमला-जल ु ा
रूप तम्ु हािे सामने खड़ा हू।ाँ बस कुछ ही दमनटों के बाि मैं तमु से दविाई ले लाँगू ा औि दिि
तम्ु हािे सामने एक नतू न वर्ष के रूप में-एक नई सिी के रूप में प्रकट हो जाऊाँगा। सािी िदु नया
एक नई सिी का बेसब्री से इतं ज़ाि कि िही है। पि दमि जाते-जाते मैं तमु से एक पते की बात
कहे जा िहा हू।ाँ सच कहूाँ तमु मेिे अब भी दमि हो। मैंने तम्ु हें हकीकत के िशषन किाए हैं। एक
वास्तदवकता से परिदचत किाया है। औि तमु हो दक बिु ा मान गए। मेिी एक बात हमेशा ध्यान
में िखना, दजस तिह तुम अपने गीतों में नये-नए िंग भिते हो-ठीक उसी की तिह अपने जीवन
में ऐश्वयष का भी िंग भिो। जी तोड़-ईमानिािी से मेहनत किो औि उन्नदत के मागष पि आगे बढ़
चलो। खबू धन कमाओ। बलशाली बनो, तादक तमु कंचन औि कादमनी का जी भिके
उपभोग कि सको। धन एक ऐसी शदक्त है दजससे तमु अध्यात्म के दशखि पि भी जा सकते हो।
दसद्धाथष दकसी दभखािी के घि नहीं जन्मे थे बदल्क वे िाजा के बेटे थे, िाजकुमाि थे। धन बल
से तृप्त होने के बाि ही वे बद्ध ु कहला पाए। मैं भी उन्हीं का साथ िेने को तत्पि िहता हूाँ जो
सचमचु में कुछ बनना चाहते हैं। अच्छा िोस्त अब मैं दविा ले िहा हूाँ सािी िदु नया मेिी बाट
जोह िही है। "
सािा शहि पटाखों की गजंू से दथिक उठा। एक आदतशबाजी िंग-दबिंगी िुलझदड़यााँ
दबखेिती हुई आसमान की तिि उठती है। सहसा मेिा ध्यान उस ओि बंध जाता है तभी एक
ज़ोििाि धमाका होता है। काली अधं ेिी िात में, नीले आकाश के बोडष पि एक-एक शब्ि
क्रमश: उभिते चले जाते हैं—'हेप्पी न्यू ईयि, 'वेलकम न्यू ईअि, 'स्वागतम नई शताब्िी।
नज़िें झक
ु ा कि िेखता हूाँ वह गायब हो चकु ा था ।

- कावेरी नगर,स्छन्दवाड़ा (ि.प्र.)

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कस्वता
कोरोना को सिझो
- अस्ित कुिार गप्तु ा

मैं दविेश की धिती से आया हूाँ


मानव जादत को दसखाने
तमु मझु े समझ जाओ
ऐसा क्यों कि िहे हो?
अब तम्ु हािी हिकतों से प्रकृ दत सहन कि नहीं पाई
औि दकसी से बयााँ दकया नहीं जाता
ये सब बहुत कि दलया अत्याचाि
एक पंजू ीपदत बनकि
एक िाजा औि महािाजा बनकि
कि दलए हो अत्याचाि
अत्याचाि!
अब रुक जाओ ठहि जाओ
मानवता को तोड़ दिया
औि प्रकृ दत को तमु ने तोड़ दिया
अब कहााँ िह गई है तम्ु हािी सत्यता
औि मानवता ढह चक ु ी है
प्रकृ दत की सिंु िता दबखि चक ु ी है
जब तमु मझु े खींचते थे
निी नालों औि नहिों के पानी से
तब िो-चाि बाँिू ें दमलतीं नहीं
अब तम्ु हािी दघनौनी हिकतों से
मझु से सहा नहीं जाता,
रुका नहीं जाता
तमु प्रकृ दत की गोि को छीन दलए हो
आये दिन अत्याचाि औि शोर्ण के
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कटघिों में बााँधती जा िही है
कुछ तो सीखो मेिे बाले कुछ तो सीखो मेिे बाले
क्योंदक प्रकृ दत का िोहन किो
लेदकन शोर्ण मत किो
क्या आपको पता है?
जब कोयल की आवाज़ में हाँसती थी, बोलती थी
चहचहाती हुई किलव किती थी
अब मानो प्रकृ दत की गोि में तेिा बैठना मदु श्कल हो गया है
मानो हवा के वेग से सोता हुआ बािल
तनू े प्रकृ दत को ऐसा कि डाला
मेिे हाथ पाव के साथ सब कट गए
मेिे पास अब क्या बचा है? दक आपको िल, िूल िाँू खाने के दलए
या तम्ु हािी अभरता का व्यवहाि शोर्ण किने के दलए
जो मेिे पास था ईश्वि से लेकि दिया लेदकन सबने छीन दलया
औि पनु ः वह पंछी कोयल की आवाज़ बोलती है
अब मेिी आाँखों में दसिष आाँसू ही बची हैं
न ही िस धिा पि दगिती है
औि न ही आसमान के तािों पि
हि जगह प्रकृ दत के साथ दखलवाड़ दकया जाता है
चाहे वह पश-ु पक्षी हो
या कोई अन्य प्राणी
अब क्या हो गया कई दिनों से घिों में बंि
औि कई दिनों से तम्ु हािा अत्याचाि बिं
पनु ः वह पंछी कलिव किती हुई पशओ ु ं के झडंु में बुला िही है
अब तमु िाँ स गए हो
प्रत्येक नि- नािी
औि अपनी दजिं गी की डोि से
कहीं बढ़ न जाए मेिी धड़कनें
क्या यही प्रकृ दत है?
प्रकृ दत की मानवता एवं किलव
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जो पश-ु पदक्षयों से दमलती थी
अब नहीं दमलती
क्योंदक अब तमु कै ि हो गए हो
एक दपंजड़े के कटघिे में
अब मैं बाहि आ गया हूाँ
क्योंदक
मैं एक कोिोनावायिस हूाँ
एक बाि आता हूाँ
पनु ः एक सदियों तक
याि दिला कि चला जाता हूाँ
इतना ज़रूि याि िखना
प्रकृ दत के साथ भिपिू िोहन किो लेदकन पश-ु पक्षी औि
नि-नािी के साथ शोर्ण मत किो।
यह संसाि रूपी जीवन
सबको जीने का हक
सेवा मिि किने का हक
दजसे बनाए िखना औि सजाए िखना हम सभी का िादयत्व है
मैं एक कोिोना वायिस हूाँ
अब दकसी की जान नहीं लाँगू ा
एक दिन चला जाऊाँगा
अपनी मदं जल की तिि
क्योंदक मैं एक भेजा हुआ िेवितू था
अब सीख जाओ
कोिोना वायिस से
अब सीख जाओ
कोिोना वायिस से

- स्हदं ी स्वभाग,
कला संकाय,
एि.एस यूस्नवस्सज्ी आफ बड़ौदा गुर्रात।
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पररवार
- डॉ लक्ष्िी झिन
सामादजक जीवन की आधािभतू इकाई परिवाि है । परिवाि का आधाि
नािी को माना गया है। परिवाि संस्काि दशक्षण के दलए ऐसी संिु ि
पाठशाला है दजसकी आचायाष गृदहणी होती है । परिवाि को धमषशाला भी
माना गया है दजसमें धमाषधमष का दनणषय गृदहणी किती है । सबसे
उल्लेखनीय दवचाि यह है दक परिवाि श्रम-कें र है दजसमें सिस्यों के दलए
श्रम का दनधाषिण गृदहणी किती है। परिवाि आनंि का दनके तन है दजसमें
दवदवध प्रकाि के मनोिंजन की व्यवस्था गृदहणी किती है । परिवाि को प्रदशक्षणशाला भी
कहा गया है दजसमें गृदहणी दबना थके जीवन जीने की कला दसखाती है ।
शास्त्रों में परिवाि का पालन-पोर्ण स्त्री द्वािा होता है । व्यंजनों के माध्यम से पणू ष पोर्ण की
व्यवस्था गृदहणी ही किती है । बड़े बज़ु गु ष परिवाि का िादयत्व ग्रहण किने को उद्यत वधू को
परिवाि की साम्राज्ञी बनने का आशीवाषि ठीक ही िेते हैं ।
परिवाि को साम्राज्य इसदलए कहा जाता है क्योंदक उसमें प्रत्येक सिस्य को अपने व्यदक्तत्व
को प्रकादशत किने का पिू ा अवसि उपलब्ध होता है । इसमें कोई अदतशयोदक्त नहीं दक इस
पारिवारिक दृदि से िाष्र एक सिू में बाँधता है औि यही से सस्ं कृ त का श्लोक –
‘उिािचरितानाम् तो वसधु ैव कुटुंबकम’् को चरिताथष किते हुए दवश्व परिवाि की कल्पना
साकाि होती है । आिशष कुटुंब तथा समाज के दबना मनष्ु य इतनी लंबी यािा तय नहीं कि
सकता है। सामान्यतः व्यदक्त के जीवन का आधाि परिवाि ही है ।
ऐसी मान्यता िही है दक दजस प्रकाि प्रकृ दत के दबना परुु र् का कायष अपणू ष िहता है, ठीक उसी
प्रकाि नािी के दबना नि का जीवन अधिू ा है । इसी त्य के आधाि पि सामादजक व्यवस्था
बनाई गई है दजसके अतं गषत परिवाि की नींव खड़ी की गई । समाज के उत्थान में परुु र् एवं
नािी िोनों का योगिान समान रूप से आवश्यक िहा है । नािी को परिवाि की धिु ी माना गया
है ।
परिवाि में नि औि नािी की उपमा िथ के िो पदहयों से िी गई है । यदि ये िो पदहए समान हों,
तो िथ ठीक प्रकाि से चलता है दकन्तु यदि एक पदहया खोटा दनकला तो िथ का ठीक से
चलना कदठन हो जाता है । इन िोनों की सहभादगता से परिवाि दवकास के पथ पि अग्रसि
होता है । पिंतु यह भी सच है दक परिवाि में नािी की भदू मका नि से भी अदधक महत्त्वपणू ष है ।

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माता के रूप में वह संतान को जीवन प्रिान किती है । पत्नी के रूप में वह पदत की िेखभाल
किती है । गृदहणी के रूप में वह सािे गृहकायष में हाथ बाँटाते हुए सम्पणू ष परिवाि की सहादयका
दसद्ध होती है । नािी उस खान के समान है जो परिवाि को ससु ंस्कृ त यक्त ु बनाने की क्षमता
िखती है । नािी मानव की जननी ही नहीं अदपतु दनमाषिी भी है । जन्म तो शिीि से होता है
दकन्तु दनमाषण संस्कािों से होता है । नािी जैसा चाहे वैसा मानव दनदमषत कि सकती है । बच्चा
जब गभष में होता है तभी उसके संस्कािों का दनमाषण शरू ु हो जाता है । यह सवषदवदित है दक
मााँ के जैसे दवचाि होंगे, जैसे भाव होंगे, वे ही आगे चलकि उसके बच्चों में स्िुरित होंगे ।
जन्म के बाि बालक सवषप्रथम मााँ के ही सपं कष में िहता है । मााँ उसमें सस्ं काि प्रत्यािोदपत
किती है । माता को पिम गरुु बताया गया है । ससु ंतानोत्पदत् से वह िाष्र दहत का सम्पािन
किती है । पारिवारिक संबंधों में ‘मााँ’ शब्ि ही सवषप्रथम दनकला होगा । उसी का प्रत्यक्ष
प्रमाण है दक जब कोई दशशु या प्रौढ़ अपने मख ु से ‘मााँ’ या ‘अम्मा’ कहता है तो मााँ दनहाल
हो उठती है । मातृत्व स्वयं में एक महान िेन है औि परिवाि में तो मातृत्व संपणू तष ा लाता है ।
परिवाि में मदहलाओ ं में मातृ रूप का दवदशि स्थान है । संतानों से पणू ष परिवाि को सख ु ी
परिवाि माना गया है । वह माता वीि माता कहलाती है जो सबु ह-शाम परिवाि को संभालते
हुए कतषव्यपिायणता की भावना का उिाहिण प्रस्ततु किती है । सम्पणू ष मानव-जीवन चाि
आश्रमों में दवभक्त है – ब्रह्मचयष आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम एवं सन्यास
आश्रम। इन चािों आश्रमों का प्रदतपालक गृहस्थ आश्रम है इसीदलए परिवाि का सुसंस्कृ त
होना दनतांत आवश्यक है तादक दकसी परिवाि के सिस्य अन्य तीन आदश्रत आश्रमों के प्रदत
अपने िादयत्वों का दनवाषह कि सकें ।
परिवाि में चरिि दनमाषण की प्रथम एवं प्रधान दशल्पी माता ही है । मातृशदक्त द्वािा हमािा
आहाि, दवद्या, परिधान, हमािी दशक्षा आदि का संवद्धषन होता है । दवचािकों ने चाि प्रकाि के
गरुु माने हैं – ईश्वि, माता-दपता, िीक्षागरुु औि दशक्षा गरुु । ईश्वि के बाि माता-दपता का ही
प्रमखु स्थान है औि इन िोनों में भी माता का स्थान अक्षण्ु ण है । माता ही जैसे चाहे वैसी
दशक्षा दशशु को िे सकती है ।
यह िेखा गया है दक कई महापरुु र्ों के चरिि पि मााँ की साधना एवं दशक्षा का दवशेर् प्रभाव
परिलदक्षत हुआ है । पिम हाँस िेव िामकृ ष्ण की माता चरं मनी िेवी, स्वामी दववेकानिं के नाम
से अपने िेश से ििू दविेशों में दहन्िू धमष की दवजय पटाखा िहिाने वाले निें र ित की मााँ
श्रीमती भवु नेश्विी, छिपती दशवाजी को अत्याचािी मग़ु लों के दवरुद्ध कमि कसने के दलए मााँ
जीजाबाई की प्रेिणा एवं दशक्षा ही मख्ु य कािण थी । महात्मा गाधं ी के कण-कण में सस्ं कािों में
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पंजू ी भिने वाली माता पतु लीबाई को भला कौन भल
ु ा सकता है? िख
ु की बात है दक परिवािों
में मातृशदक्त होते हुए भी आज समाज अनेक समस्याओ ं से ग्रस्त होता जा िहा है क्योंदक
आज का मानव अच्छे अक्षि, अच्छा ज्ञान एवं उच्च संस्कािों को छोड़कि अहक ं ाि औि
लोभ के वशीभतू होकि दवकािों का दशकाि होता जा िहा है ।
परिवाि में दकसी को िसू िे को हादन पहुचाँ ाने का अदधकाि नहीं है । इसदलए भाितीय संस्कृ दत
में ‘वसधु ैव कुटुंबकम’् की सीख िी जाती है । इसका यह भाव है दक सािा दवश्व एक परिवाि
है। इस परिवाि में सभी सख ु ी हो, सभी दनिोगी हो, सभी का कल्याण हो, दकसी को भी कभी
कोई िख ु न हो ।
परिवाि में यह सोचना अदनवायष है दक कोई भी सिस्य जो जानता, मानता है, चाहता औि
कहता है, वह सावषजदनक दहत में है या नहीं । धमष औि कत्षव्य उसे वह काम किने की छूट
िेते हैं या नहीं । वैसे भी परिवाि की साथषकता तभी है जब उसमें हि दकसी का योगिान हो ।
हि सिस्य को एक-िसू िे का दहतैर्ी बनना पड़ता है । परिवाि में आत्म-दवश्वास, ईमानिािी
औि सहयोग िेने जैसे मल्ू यों को बढ़ावा िेना चादहए । परिवाि में सभी दववािों का अतं
शांदतपणू ष ढंग से ही सल ु झाना चादहए अन्यथा ये दववाि बड़े-बड़े टकिाि में परिवदतषत हो जाते
हैं । पिंतु यह तभी संभव हो पाएगा जब घि के सभी सिस्य इस बात की स्वीकृ दत िें । वैसे भी
एक हाथ से ताली नहीं बज सकती । उसमें िोनों हाथों का सहयोग आवश्यक है । परिवाि के
लोग कभी बढ़ती महगं ाई, बीमारियों, कभी सबं धं ों में उताि-चढ़ाव, घि-बाहि का तनाव, एक
साथ न जाने दकतनी कदठनाइयों से जझू ते िहते हैं । इसीदलए सब को संगदठत होना अत्यंत
आवश्यक है । कहा भी जाता है दक ‘संघे शदक्त’ अथाषत् एकता में बल है ।
ससं ाि में सभी प्राणी अपने जीवन को सख ु ी तथा शांत बनाना चाहते हैं । अपने िहन-सहन के
स्ति को उन्नत किना चाहते हैं । पिंतु यह तभी सभं व हो सकता है, जब हमािा व्यय हमािी
आय के अनसु ाि हो, हमािे आदश्रतों की संख्या दजनके भिण-पोर्ण, पढ़ाई-दलखाई औि
सख ु -सदु वधा का भाि हमािे ऊपि है, कम हो । कम आय वाले मनष्ु य पि यदि अदधक आदश्रत
होंगे तो उसका जीवन स्ति दनम्न होगा औि घि का मदु खया परिवाि के व्यदक्तयों की सख ु -
सदु वधा के दलए सामग्री एकि किने में अपने को असमथष पाएगा ।
बच्चों की दशक्षा-िीक्षा, उनके भावी जीवन के पथ-दनमाषण का उत्ििादयत्व माता-दपता पि ही
होता है, इसदलए दजस व्यदक्त के दजतने आदश्रत होंगे, उतनी ही दचंता उसे अदधक होगी ।
अतः मानदसक शादन्त की दृदि से एकल परिवाि का स्ति श्रेष्ठ होता है । एकल परिवाि के
अनेक लाभ हैं । परिवाि अपना जीवन सख ु ी, स्वस्थ औि शादन्त से व्यतीत कि सके गा ।
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उसके िहन-सहन का स्ति ऊाँचा होगा, वह अपने आदश्रतों की प्रत्येक आवश्यकता की पदू तष
किता हुआ उन्हें अदधक सख ु ी िख सके गा । संयक्त ु परिवाि के कुछ िोर् भी हैं । सयं क्त ु
परिवाि में कई बाि झगड़ों की जहिीली हवा िै ल जाती है। दभन्न-दभन्न दवचाि, आिशष औि
स्वभाव के व्यदक्तयों के बीच सघं र्ष होता िहता है। सयं क्त
ु परिवाि में कमानेवाले व्यदक्तयों की
आमिनी एक-सी न भी हो, पिंतु खचष तो सबके दलए समान होता है । इससे कमानेवाले
व्यदक्त पि अदधक बोझ पड़ता है । औि िसू िे आिाम से िहते हैं । यह भी िेखा गया है दक सिा
बड़ों की प्रभसु त्ा के कािण सयं क्त
ु परिवाि में यवु कों की साहसवृदत् औि सधु ािदृदि का भी
दवकास नहीं हो पाता । धीिे -धीिे संयक्त
ु परिवाि अपने-आप टूटते गए । परिदस्थदतयााँ बिलती
गई ं औि संयक्त
ु परिवाि की प्रथा लप्तु होती गई । संयक्त ु परिवाि की दवसंगदतयों से बचने के
दलए समाज में सुखमय एवं सुदवधाजनक गृहस्थ जीवन जीने हेतु एकल परिवाि की धािणा
को उपयक्तु उपाय के रूप में स्वीकाि दकया गया औि यह पिंपिा धीिे -धीिे चहुाँ ओि स्थाई
होती गई ।
इस प्रकाि जीवन संघर्ष भी कम होगा । न पािस्परिक द्वेर् होगा न वैमनस्य । परिवाि में अदधक
सिस्यों के होने पि लड़ाई अदधक होती है क्योंदक सभी की रुदच औि दवचाि दभन्न होते हैं
औि ऐसी दस्थदत में परिवाि के मदु खया को अदधक कि उठाने पड़ते हैं । आधदु नक यगु का
दनयम सा बन गया है दक हि परिवाि में िो से अदधक बच्चे नहीं होते । कहा भी जाता है
‘छोटा परिवाि सख ु ी परिवाि’। छोटे परिवाि में ही बच्चों की िेख-िे ख, दशक्षा-िीक्षा एवं उनके
भदवष्य का संिु ि दनमाषण हो सकता है ।
परिवाि में मााँ-बाप का िादयत्व होता है दक अपनी संतानों को मल्ू यों से अनप्रु ादणत किते हुए
उन्हें योग्य नागरिक बनाएाँ तादक वे समाज में मानवीय मल्ू यों के प्रदत आस्था उत्पन्न किके
बहुजातीय सांप्रिादयक वैमनस्य को पनपने ही न िें औि इस दवर्य में हमािा िेश इस बात का
जीता-जागता उिाहिण है दक बहुजातीय िेश होने के बावजिू भी लड़ाई-झगड़े से ििू लोग
शांदत से िहते हुए अपनी सदहष्णतु ा का परिचय िेते हैं । धमष औि जादत के नाम पि यहााँ कोई
झगड़ा नहीं होता । वस्ततु ः व्यवस्था में शांदत तभी िहती है जब हि परिवाि में शांदत हो ।
परिवािों में यह भी िेखा जाता है दक बच्चे दवद्याथी-जीवन में बिु ाइयों का दशकाि होकि पथ-
भ्रि होने लगते हैं औि मााँ-बाप को अधं ेिे में िखने लगते हैं । माता-दपता की प्याि-भिी दृदि
को हृिय पि सबसे भयंकि वज्रपात तब होता है जब उनके बच्चे पतन की खाई में दगिने लगते
हैं । हमािा कत्षव्य बनता है दक हम बच्चों को सही िाह दिखाएाँ औि उन्हें चरििहीन बनने से
बचाएाँ । जीवन-मल्ू यों के अभाव में आजकल समाज में दवनाशकािी परिणाम िेखने में आ िहे
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हैं । नैदतकता से दकनािा किनेवाले दिशाहीन बच्चों को न अपने गतं व्य का बोध होता है न
साधनों का। इसीदलए परिवाि में अदभभावक बचपन से ही अपने बच्चों को नैदतकता का पाठ
दसखाते हैं । अच्छे दवचाि, सद्भाव, सिाचाि, सदहष्णतु ा आदि मानव मल्ू यों के संचाि द्वािा
परिवाि में बच्चों को चरििवान व्यदक्त बनाने का सतत प्रयास रुकना नहीं चादहए ।
यह दनदवषवाि है दक परिवाि में ही माता-दपता अपने बच्चों के भदवष्य-दनमाषण की प्रदक्रया में
महत्त्वपणू ष योगिान िेते हैं । माता-दपता के दलए अपने बच्चों का भदवष्य सवोपरि होता है ।
आज के वैश्वीकिण के िौि में बच्चों को उदचत मागष-िशषन अदभभावक ही िे सकते हैं ।
दशदक्षत मााँ-बाप बच्चों को श्रेष्ठ िाय िे सकते हैं औि उन्हें जीवन में कुछ अनठू े कायष किने के
दलए प्रोत्सादहत कि सकते हैं । अक्सि यही िेखा गया है दक माता-दपता द्वािा मागषिशषन दकए
जाने पि बच्चों का भदवष्य उदचत दिशा की ओि अग्रसि होता है ।
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होली
- (गोवधजन स्सहं फ़़ौदार) "सस्चचदानन्द"
होली का त्यौहाि आया, लाल, नीला, पीला, हिा,
भि भि झोली प्याि लाया िंग अबीि गल ु ाल ले आया
सबको िंगने एक िंग में, घल ु दमल नाचे ढोल बजाएाँ,
िंगों का त्यौहाि आया। झमू े नाचे धमू मचाएाँ
दकतना प्यािा प्यािा है, मस्ती का त्यौहाि आया,
पवोत्सव में न्यािा है होली का त्यौहाि आया।
उलझनें सल ु झाने आया, आता बिस में एक बाि,
टूटे रिश्ते जोड़ने आया तोड़ने निित की िीवाि
बनके दनमषल दनश्छल हम भी, मस्तानों की टोली लाता,
एक िजू े को िंग लगाएाँ प्रीत - मीत बढ़ाने आता
खदु शयों का त्यौहाि आया, गली मोहल्ले शोि मचाओ ,
होली का त्यौहाि आया। चलो चलो हुड़िगं मचावो
मदु श्कल से ऐसे पल दमलते, प्रेम सौहािष का त्यौहाि आया,
चलो मनालो इसको दिल से होली का त्यौहाि आया।

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