Ati Parbhavkari Logi Ki 7 Aadatein

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गत प रवतन के सश सबक़

ट फ़न आर. कवी
अनुवाद : डॉ. सुधीर द त
First published in India by

Manjul Publishing House


Corporate and Editorial Office
• 2nd Floor, Usha Preet Complex, 42 Malviya Nagar, Bhopal 462 003 - India
Sales and Marketing Office
• 7/32, Ground Floor, Ansari Road, Daryaganj, New Delhi 110 002 - India
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Hindi translation of The 7 Habits of Highly Effective People


by Stephen R. Covey

This edition first published in 2005


Fifteenth impression 2016

Copyright © 1989, 2004 FranklinCovey Company

Franklin Covey and the FC logo and trademarks are trademarks of


Franklin Covey Co. and their use is by permission.

FranklinCovey India and SouthAsia


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Mumbai: +91 22 42754444, Bangalore: +91 80 40716888
Website: www.franklincoveysouthasia.com

ISBN 978-81-86775-99-8

Translation by Dr. Sudhir Dixit


Cover design by Aquarius Inc.
All rights reserved. No part of this publication may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or
transmitted, in any form, or by any means (electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise) without the
prior written permission of the publisher. Any person who does any unauthorized act in relation to this publication may
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ट फ़न आर. कवी ारा ल खत
अ त भावकारी लोग क सात आदत
क सराहना
“ ट फ़न कवी ने मानवीय थ तय के बारे म शंसनीय पु तक लखी है। यह इतने अ छे तरीक़े से लखी गई
है, हमारी गहनतम चता क इतनी गहरी समझ लये ए है, हमारे संगठना मक और क् तगत जीवन के लये
इतनी उपयोगी है क म अपने हर प र चत को यह उपहार ँ गा।”
वारेन बे नस
ऑन बक मग ए लीडर के लेखक

“मने क् तगत भावका रता म सुधार करने वाले कसी श क या श क को नह दे खा, जसे इतनी
ज़बद त सकारा मक त या मली हो…। इस पु तक ने ट फ़न के स ांत के जीवनदशन को सुंदरता से
क्त कया है। म सोचता ँ क इसे पढ़कर कोई भी ज द ही उस ज़बद त त या को समझ जायेगा, जो म
और अ य लोग डॉ. कवी क श ा के त करते ह।”
जॉन पीपर, े सडट
ॉ टर एंड गबल

“ ट फ़न कवी ‘अमे रक सुकरात’ ह, जो आपके म त क के ार ‘ थायी चीज़ ’ जैसे जीवनमू य , प रवार,


संबंध तथा सं ेषण क ओर खोलते ह।”
ायन े सी
साइकोलॉजी ऑफ़ अचीवमट के लेखक

“ ट फ़न आर. कवी क पु तक शक् त, वश्वास और अनुभू त के साथ श ा दे ती है। इन स ांत क


साम ी और मब ता भावकारी सं ेषण के लये न व तैयार करते ह। एक श क के प म मेरी लाइ ेरी म
इसका मह वपूण थान होगा।”
व लयम रो फ़ केर
यूटा क मश्नर ऑफ़ हायर ए युकेशन

“ब त कम लोग ने, जनम मैनेजमट और संगठन के लोग भी शा मल ह, आधारभूत स ांत के बारे म इतने
लंबे समय तक और इतनी मेहनत से सोचा है, जतना ट फ़न कवी ने कया है। अ त भावकारी लोग क
सात आदत म वे हम कैसे-कर क मागद शका नह बताते ह, ब क एक अवसर दान करते ह। यह अवसर है
ख़ुद को खोजने, सर पर हमारे भाव को जानने और उनक गहरी अंत य का लाभ लेकर भावकारी बनने
का अवसर। यह एक अद्भुत पु तक है, जो आपक ज़दगी बदल सकती है।”
टॉम पीटस
इन सच ऑफ़ ए सीलस के लेखक
“इस पु तक म सफ़ बज़नेस म सफल होने का तरीक़ा नह बताया गया है, ब क इसम सफल मानवीय
संबंध के लये नै तकता के आधार पर जीने के तरीक़े को प रभा षत कया गया है। ज़ा हर है, यह कारगर है।”
ूस एल. ाइ टे सन
े सडट, प लक ॉडका टं ग स वस

“ऐसे समय म जब क अमे रक संगठन को हर तर पर कमचा रय को ऊजावान बनाने और लीडस पैदा


करने क बेहद ज़ रत है, कवी जीवन के लये सशक् तकरण का जीवनदशन दान करते ह, जो बज़नेस म
सफलता क सव े गारंट भी है… बु , क णा और ावहा रक अनुभव का आदश म ण।”
रोज़ाबेथ मॉस कटर
हावड बज़नेस र ू क संपादक तथा हेन जाये ट् स लन टु डांस क ले खका

“मने इतने वष म ट फ़न कवी से इतना कुछ सीखा है क हर बार जब म लखने बैठता ,ँ तो अवचेतन प
से वचार क चोरी के बारे म च तत रहता !ँ सेवन है बट् स कोई चमक-दमक वाला मनो व ान या फ़ैशनेबल
से फ़-हे प नह है। इसम सु ढ़ बु म ा और सु ढ़ स ांत ह।”
रचड एम. आयर
लाइफ़ बैलस और ट चग च न वै यूज़ के लेखक

“यह ब त अ छा रहेगा अगर सावज नक सेवा के हर तर पर हर क् त के लये इस पु तक को पढ़ना और


इसका योग करना आव यक बना दया जाये। नै तक आचरण संबंधी कसी कानून के बजाय यह कह अ धक
भावकारी होगी।”
सीनेटर जैक गान
अंत र म क़दम रखने वाले पहले सीनेटर

“जब ट फ़न कवी बोलते ह, तो ए ज़ी यू ट ज़ सुनते ह।”


ड स बज़नेस मंथ

“ ट फ़न कवी क ेरणादायी पु तक मनो व ान पर नःसंदेह 90 के दशक क सव े पु तक है। इसम


बताये गये स ांत शाश्वत ह और ज़दगी के हर पहलू पर लागू कये जा सकते ह। बहरहाल, ये स ांत कसी
ओपेरा क तरह ह। उ ह आसानी से तब तक द शत नह कया जा सकता, जब तक क पहले उनका अ यास न
कर लया जाये।”
ए रयल बाइबी, मेज़ो-सो ैनो
मे ोपो लटन ओपेरा

“मुझे यह पु तक ेरणादायी और वचारो ेजक लगी। सच तो यह है क म इसका बार-बार इ तेमाल करता


ँ।”
रचड एम. डेवॉस
े सडट, एमवे

“जीतना एक आदत है। और हारना भी। प चीस वष के अनुभव, वचार और शोध ने कवी को वश्वास
दला दया है क सात आदत सुखी, व थ व सफल लोग को उन क् तय से अलग करती ह, जो असफल होते
ह या संकु चत अथ म सफलता पाने के लये जीवन के अथ और सुख क ब ल दे दे ते ह।”
रॉन ज़े के
द स वस एज और स वस अमे रका के सह-लेखक

“ ट फ़न आर. कवी एक अ त इंसान ह। वे अंत के साथ लखते ह और लोग क परवाह करते ह।


सफलता के सा ह य क पूरी लाइ ेरी के बराबर ान का भंडार इस अकेली पु तक म है। अ त भावकारी
लोग क सात आदत म जो स ांत सखाये गये ह, उ ह ने मरे जीवन को सचमुच बदलकर रख दया है।”
केन लचड, पीएच.डी.
द वन मनट मैनेजर के लेखक

“सात आदत जीवन के सभी े के लोग लये सफलता क कुं जयाँ ह। यह ब त ही वचारो ेजक
पु तक है।”
एडवड ए. ेनन, चेयरमैन, े सडट व सीईओ
सयस, रोबक एंड कंपनी

“कवी प रवार, बज़नेस और समाज संबंधी थायी स चाइय का समथन करते ह। वे हम उस मनोवै ा नक
बकवास से बचाते ह, जसने मानवीय संबंध पर वतमान म लखे जा रहे अ धकांश सा ह य को षत कर दया है।
उनक पु तक कोई फ़ोटो ाफ़ नह , ब क एक या है और इसे इसी तरह दे खा जाना चा हये। वे आशावाद या
नराशावाद नह ह, ब क संभावनावाद ह, जो मानते ह क बदलने के लये हम और सफ़ हम ही अपने अंदर का
ार खोल सकते ह। इस पु तक को पढ़ने के सात से भी यादा अ छे कारण ह।”
ट व लाबुं क , कायकारी नदे शक
इंटरनेशनल रे डयो एंड टे ली वज़न सोसाइट

“जीवन के कसी भी े म सफलता पाने के लये ान सबसे तेज़ और सुर त रा ता है। ट फ़न कवी ने
उन रणनी तय का समावेश कया है, जनका योग सभी अ त भावकारी लोग करते ह। सफलता सीखी जा
सकती है और यह पु तक इसे सीखने का अ त भावकारी तरीक़ा है।”
चा स गव स, े सडट, चा स जे. गव स ऑगनाइज़ेशन, इ क.,
वे थ वदाउट र क के लेखक

“म कसी ऐसे क् त को नह जानता, जसने हमारे समाज म लीडस क मदद करने म ट फ़न कवी से
अ धक योगदान दया हो। संभवतः हमारे समाज म ऐसा कोई सा र क् त नह है, जसे यह पु तक पढ़ने और
इसके स ांत को अपनाने से फ़ायदा न हो।”
सीनेटर ऑ रन जी. हैच

“आप जन महानतम आदत को वक सत कर सकते ह, उनम से एक है ट फ़न कवी क बु म ा से


सीखना और उसे आ मसात करना। कवी जो कहते ह, उसी के अनु प जीते ह। यह पु तक थायी प से
‘ वजेता के वृ ’ म रहने म आपक मदद कर सकती है।”
डॉ. डे नस वेटली
द साइकोलॉजी ऑफ़ व नग के लेखक

“यह एक सश पु तक है। जीवन , लीडर शप और मानवीय संबंध के उनके स ांत इसे आज के


बज़नेस लीडस के लये एक ावहा रक श ण उपकरण बना दे ते ह। म इसके योग क अ य धक अनुशस
ं ा
करता ँ।”
नोलन आ कबा ड
े सडट और सीईओ, लैक एंड डेकर

“अ त भावकारी लोग क सात आदत लोग के साथ हमारे क् तगत संबंध म अनुशासन का
सुझाव दे ती है, जो नःसंदेह मू यवान होगा, अगर लोग इस बारे म वचार करने का समय नकाल।”
जे स सी. लेचर, नदे शक, नासा

“एक अ त योगदान। डॉ. कवी ने महानतम सफलता पाने वाले लोग क आदत को संक लत कया है और
उ ह एक सश , आसानी से योग म लाने वाली योजना म तुत कया है। हमारे पास अमे रक म त क को
खोलने के लये अब एक लू ट है।”
चा स गारफ़ ड, पीक परफ़ॉमस के लेखक

“सात आदत एक असाधारण पु तक है। मने आज तक कोई सरी पु तक नह पढ़ , जो इससे बेहतर


तरीक़े से क् त को जीवन क व भन्न ( क् तगत, पा रवा रक और ावसा यक) ज़ मेदा रय को आदश प
से एक कृत करने के लये े रत करती हो।”
पॉल एच. थॉमसन
डीन मै रयट कूल ऑफ़ मैनेजमट, बी.वाई.यू., तथा नोवेश स के लेखक

“अल वदा, डेल कारनेगी। ट फ़न कवी का मेरे जीवन पर गहरा भाव पड़ा है। उनके स ांत सश ह। ये
कारगर ह। इस पु तक को ख़रीद। इसे पढ़ और जब आप इन स ांत को जीवन म उतारगे, तो आपका जीवन
समृ हो जायेगा।”
रॉबट जी. ऐलन
ए टग वे थ और न थग डाउन के लेखक

“… अमे रका को ावसा यक और क् तगत दोन आधार पर बढ़ ई उ पादकता का ताला खोलने क


ज़ रत है। इस ल य को हा सल करने का सव े तरीक़ा मानव संसाधन का वकास है। डॉ. कवी क सात
आदत ऐसा करने के मागदशक स ांत दान करती ह। ये स ांत ब त समझदारी भरे ह और आधु नक समय म
सही नशाने पर लगते ह।”
एफ़.जी. “बक” रॉजस
द आईबीएम वे के लेखक

“इस पु तक म उन लोग के लये ावहा रक ान है, जो अपने जीवन, बज़नेस और कै रयर का नयं ण
अपने हाथ म लेना चाहते ह। हर बार जब भी म इसके कसी खंड को बारा पढ़ता ,ँ तो मुझे नई समझ मलती है,
जससे पता चलता है क संदेश मूलभूत और गहरे ह।”
गफ़ड प चॉट तृतीय
इ ा े यो रग के लेखक

“मने अपनी अ धकांश श ा सरे क् तय और उनके काम के अनुसरण (modeling) से ा त क है।


अ त भावकारी शोध और उदाहरण के मा यम से ट व क पु तक इस मॉड लग क या को सश बनाने म
मदद करती है।”
ै न टाक टन
एनएफ़एल हॉल ऑफ़ फ़ेम वाटरबैक

“ भावका रता के यु म न सफ़ ‘च र -आधा रत नी तशा ’ ‘ क् त व-आधा रत नी तशा ’ पर हर बार


वजय हा सल करता है, ब क यह क् तगत तथा ावसा यक जीवन म साथकता चाहने वाले लोग को अ धक
संतु व ख़ुशी भी दे ता है।”
लैरी व सन
च जग द गेम: द यू वे टु सेल के लेखक

“आधारभूत बात सफलता क कुंजी ह। ट फ़न कवी उनम नपुण ह। इस पु तक को ख़रीद, परंतु सबसे
मह वपूण बात यह है क इसका उपयोग कर।”
एंथनी रॉ ब स
अन ल मटे ड पॉवर के लेखक

“इस पु तक म मानवीय वभाव के बारे म उस तरह क पैनी स चाई है, जो आम तौर पर सफ़ उप यास
और कहा नय म पाई जाती है। आ ख़र म आप न सफ़ यह महसूस करगे क आप कवी को जानते ह, ब क यह
भी महसूस करगे क वे भी आपको जानते ह।”
ऑसन कॉट काड
गो और नेबुला अवाड् स वजेता

“ ट फ़न कवी सफ़ अपने श द के मा यम से ही कसी क् त या संगठन को मू यवान नह बनाते ह।


उनक जीवन और अखंडता - उनक क् तगत मसाल - लोग को मा सफलता से कह आगे तक ले जाती
है।”
टॉम एफ़. म
सह-सं थापक द वड टार फ़ाउंडेशन तथा द मै जक ऑफ़ कॉन ल ट के लेखक

“आज क त पधा मक नया म जब हम पर समय, या ा, काम और प रवार क इतनी माँग तथा


ज़ मेदा रयाँ ह, तो यह ब त लाभदायक है क समय-समय पर मागदशन लेने के लये हमारे पास ट फ़न कवी क
अ त भावकारी लोग क सात आदत ह।”
मैरी ऑसमंड

“अ त भावकारी लोग क सात आदत म ट फ़न कवी सात ंजन वाला भोजन पेश करते ह क
अपने जीवन का नयं ण कस तरह अपने हाथ म लया जाये और कस तरह अपने सपन के अनु प संपूण तथा
सुखी बना जाये। यह संतु दायक, ऊजावान और क़दम-दर-क़दम पु तक है, जसका योग क् तगत तथा
ावसा यक ग त के लये कया जा सकता है।”
रॉज़र टौबेक, एनएफ़एल हॉल ऑफ़ फ़ेम वाटरबैक

“इस पु तक म कवी जो न कष दे ते ह, वे हमारे समाज म च र -आधा रत नी तशा को पुनः था पत करने


क आव यकता को रेखां कत करते ह। यह पु तक से फ़-हे प सा ह य म एक मू यवान योगदान है।”
ड यू. लीमट टोन, सं थापक, स सेस मै ज़ीन

“ ट फ़न कवी का जीवन और स ांत का सचेतन एक करण आंत रक वचार तथा बाहरी वहार को एक
समान करने क ओर ले जाता है, जसके प रणाम व प क् तगत और सावज नक अखंडता हा सल होती है।”
ेगरी जे. नेवेल, वीडन म अमे रक राज त
समपण
मेरे सा थय को,
जो ख़ुद भी सश ह
और सर को भी सश बना रहे ह
आभार
पर पर- नभरता आ म नभरता से अ धक उ च जीवनमू य है।
यह पु तक कई म त क क सन ज टक रचना है। यह काम स र के दशक के म य म शु आ, जब म
अपने शोध के लये 200 वष के सफलता सा ह य क समी ा कर रहा था। म ब त से चतक क ेरणा और
बु म ा के लये उनका कृत ँ। इसके अलावा म इस बु म ा क जड़ और ोत के लये कई पी ढ़य का भी
कृत ँ।
म घम यंग यु नव सट और द कवी लीडर शप सटर के ब त से व ा थय , म और सा थय का भी
कृत ँ। इसके अलावा म उन हज़ार वय क , माता- पता , युवा , ए ज़ी यू ट ज़, श क और अ य ाहक
का भी कृत ,ँ ज ह ने इस साम ी क जाँच क और मुझे फ़ डबैक व ो साहन दया। यह साम ी और इसका
संयोजन धीरे-धीरे वक सत आ है। इसम उन लोग का योगदान भी है, जो ईमानदारी और गहराई से इसम डू ब
गये थे, य क उ ह यह वश्वास हो चुका था क सात आदत क् तगत और पार प रक भावका रता के लये
पूणतावाद तथा एक कृत नी त का त न ध व करती ह। और उ ह इस बात पर भी गहरा वश्वास था क अकेली
आदत के बजाय असली कुंजी उन आदत के पार प रक संबंध और उनके म म है।
इस पु तक के वकास और काशन के लये म ब त से लोग के त कृत ता के गहरे एहसास से भरा आ
ँ:
सै ा और हमारे ब च तथा उनके जीवनसा थय के त, जो अखंडता और सेवा का जीवन जीते ह तथा
ज ह ने घर से बाहर ब त सी या ा और ज़ मेदा रय के दौरान मेरा समथन कया है। उन स ांत को
सखाना आसान होता है, ज ह यजन जीते ह।
मेरे भाई जॉन के त, उनके सतत ेम, च, समझ और आ मा क प व ता के लये।
मेरे पता क य मृ त के त।
मेरी माँ के त, जो 87 जी वत वंशज के त न ावान ह और उनके त सतत ेम का दशन करती रहती
ह।
बज़नेस के अपने य म और सा थय के त, ख़ास तौर पर:
बल मैरे, रॉन मैक् मलन और ले स वैटरसन के त, ज ह ने फ़ डबैक, ो साहन व संपादक य सुझाव दये
और काशन म मदद क ।
ैड एंडरसन के त, ज ह ने एक साल से यादा समय के क् तगत याग के बाद सात आदत का
वी डयो-आधा रत वकास काय म तैयार कया। उनके नेतृ व म ब त से संगठन के हज़ार लोग ने इस
साम ी क जाँच क है, इसम संशोधन कये ह और इस पर अमल कया है। लगभग बना कसी अपवाद के,
इस साम ी के संपक म आने के बाद हमारे ाहक चाहते ह क वे इसे अपने अ धकांश कमचा रय को भी
उपल ध करवा द। इससे हमारे इस वश्वास क पु होती है क यह “काम करती” है।
बॉब थेल के त, ज ह ने हमारी फ़म के लये एक ऐसा स टम तैयार करने म मदद क , जसने मुझे इतनी
मान सक शां त द क म इस पु तक पर सचमुच अपना पूरा यान क त कर सका।
डे वड कॉनली के त, ज ह ने सात आदत क शक् त और जीवनमू य को सैकड़ बज़नेस संगठन तक
प ँचाया, जससे मुझे और मेरे सहयो गय लेन ली, रॉइस ू ज़र, रॉजर मे रल तथा अल वट् लर को
व वध थान पर ापक तरीक़े से अपने वचार तुत करने का सतत अवसर मला।
मेरी ोए टव लटरेरी एजट जेन मलर और ‘कर सकता ँ’ मान सकता वाले मेरे साथी ेग लक और
उनक सहयोगी ट फ़ेनी मथ और रैलीन बेकहेम वॉ लन के त, ज ह ने रचना मक तथा साह सक
माक टग नेतृ व दान कया।
साइमन एंड श टर के अपने संपादक बॉब एसाइना के त, उनक ावसा यक द ता और ोजे ट
लीडर शप के लये, उनके ब त से उ कृ सुझाव के लये और मुझे लखने तथा बोलने के अंतर को बेहतर
तरीक़े से समझाने के लये।
मेरी शु आती न ावान सहयो गय शल और हीदर मथ तथा मेरी वतमान सहयोगी मै र लन एं यूज़ के
त, न ा के ऐसे तर के लये जो सचमुच असाधारण है।
हमारी ए ज़ी यू टव ए सीलस मै ज़ीन के संपादक केन शे टन के त, ज ह ने कई वष पूव पहली
पांडु ल प का संपादन कया था और ज ह ने इस साम ी को व भन्न पृ भू मय म संशो धत करने तथा
जाँच करने म मदद क थी और जनक अखंडता व गुणव ा का एहसास बल है।
रेबेका मे रल के त, उनके अमू य संपादन और काशन सहयोग के लये, साम ी के त उनक आंत रक
न ा के लये, उस न ा को पूरा करने के लये उनक यो यता, संवेदनशीलता और सावधानी के लये; और
उनके प त रॉजर के त उनक बु म ापूण व सन ज टक सहायता के लये।
और के वम तथा उनके पु गेलॉड के त, ज ह ने वह सराहनीय जीवन द , जसने हमारे संगठन क
ती ग त म योगदान दया है।
वषय-सूची
तावना

खंड एक : पैरेडाइ स और स ांत


अंदर से बाहर क ओर
सात आदत - एक सं त सव ण

खंड दो : क् तगत वजय


पहली आदत ोए टव बन
क् तगत अवलोकन के स ांत
सरी आदत अंत को यान म रखकर शु कर
क् तगत लीडर शप के स ांत
तीसरी आदत पहली चीज़ पहले रख
क् तगत मैनेजमट के स ांत

खंड तीन : सावज नक वजय


पर पर- नभरता के पैरेडाइ स
चौथी आदत जीत/जीत सोच
पार प रक नेतृ व के स ांत
पाँचव आदत पहले समझने क को शश कर, फर समझे जाने क
परानुभू तपूण सं ेषण के स ांत
छठ आदत सनज का योग कर
रचना मक सहयोग के स ांत

खंड चार : नवीनीकरण


सातव आदत आरी क धार तेज़ कर
संतु लत आ म-नवीनीकरण के स ांत
पुनः अंदर से बाहर क ओर

उपसंहार
परश अ: व भन्न क से उ पन्न होने वाली संभा वत अनुभू तयाँ
परश ब: ऑ फ़स म वा ै ट II का एक दन
तावना

द सेवन है बट् स ऑफ़ हाइली इफ़े टव पीपुल जब पहली बार का शत ई थी, तब से अब तक नया म ब त


ापक प रवतन हो चुके ह। जीवन यादा ज टल, यादा तनावपूण और यादा माँग करने वाला बन गया है।
हम औ ो गक युग से नकलकर सूचना/ ान आधा रत युग म वेश कर चुके ह, जसके गहन भाव पड़े ह।
हम अपने क् तगत जीवन, प रवार और संगठन म ऐसी चुनौ तय व सम या का सामना कर रहे ह, जनक
एक या दो दशक पहले क पना भी नह क जा सकती थी। ये चुनौ तयाँ न सफ़ यादा बड़ी ह, ब क ये बलकुल
अलग क़ म क भी ह।
क यूटरीकृत वैश् वक बाज़ार- व था और समाज म हो रहे ज़बद त प रवतन ने एक ब त मह वपूण
सवाल उठाया है - जो मुझसे अ सर पूछा जाता है: “ या अ त भावकारी लोग क 7 आदत आज भी ासं गक
ह?” या फर, “ या वे आज से दस, बीस, पचास या सौ साल बाद भी ासं गक रहगी?” मेरा जवाब है: प रवतन
जतना बड़ा होगा और हमारे सामने खड़ी चुनौ तयाँ जतनी मु कल ह गी, ये आदत उतनी ही यादा ासं गक
ह गी। कारण: हमारी सम याएँ और ख शाश्वत ह तथा बढ़ते जा रहे ह। इसके अलावा इन सम या के समाधान
आज भी और हमेशा उन शाश्वत तथा वतः प स ांत पर आधा रत ह और रहगे, जो इ तहास के हर थायी
और समृ होते समाज म पाये जाते ह। मने इन स ांत को ईज़ाद नह कया है और म इसका ेय नह लेता ँ।
मने सफ़ उ ह पहचाना है और एक मब प म व थत कया है।
मेरे जीवन क एक ब त गहरी सीख यह है: अगर आप अपने सबसे बड़े ल य तक प ँचना चाहते ह और
अपनी सबसे बड़ी चुनौ तय को जीतना चाहते ह, तो उस स ांत या ाकृ तक नयम को पहचान और उस पर
अमल कर, जो आपके चाहे गये प रणाम को नयं त करता है। हमारे ारा स ांत पर अमल करने का तरीक़ा
एक- सरे से अलग होगा, जो हमारी शक् तय , तभा और रचना मकता ारा नधा रत होगा। परंतु अंततः
कसी भी यास म सफलता हमेशा उन स ांत के सामंज य म काम करने से मलती है, जनसे सफलता जुड़ी
होती है।
कई लोग इस तरह से नह सोचते ह, कम से कम सचेतन प से तो नह । दरअसल आप यह पायगे क
स ांत-क त समाधान हमारी लोक य सं कृ त क सोच और आम वहार के वपरीत होते ह। म आपके सामने
सबसे आम मानवीय चुनौ तय म इस वरोधाभास का च ण करना चा ँगा।

डर और असुर ा। आज ब त से लोग डर के एहसास से जकड़े ए ह। वे भ व य के बारे म डरे होते ह। वे


काय े म असुर त महसूस करते ह। उ ह यह डर सताता है क उनक नौक रयाँ छू ट जायगी। उ ह अपने प रवार
का भरण-पोषण करने क अपनी मता पर वश्वास नह होता। इस असुर ा क वजह से वे ायः जो खम लये
बना मन मारकर ज़दगी गुज़ारते ह और ऑ फ़स तथा घर म सर के साथ सह- नभरता (co-dependency) के
संबंध बनाते ह। इस सम या पर हमारी सं कृ त क आम त या यह होती है क यादा से यादा आ म नभर
बना जाये। “म अब ‘म और मेरे’ पर यान क त क ँ गा। म अपनी नौकरी क ँ गा, अ छ तरह से क ँ गा और
उसके बाद वा त वक खु शयाँ हा सल क ँ गा।” आ म नभरता एक मह वपूण, यहाँ तक क अ नवाय, जीवनमू य
और उपल ध है। सम या यह है क हम एक पर पर- नभर वा त वकता म रहते ह और सबसे मह वपूण
उपल धय के लये हम पर पर- नभरता क यो यता क आव यकता होती है, जो हमारी वतमान यो यता से
परे होती ह।

“मुझे यह अभी चा हये।” लोग चीज़ चाहते ह और त काल चाहते ह। “मुझे धन चा हये। एक अ छा और
बड़ा मकान चा हये। एक शानदार कार, सबसे बड़ा और अ छा मनोरंजन क चा हये। मुझे यह सब त काल चा हये
और म इन सबका हक़दार ँ।” हालाँ क आज के “ े डट काड” समाज ने “अभी ख़रीदो और बाद म भुगतान
करो” के काम को आसान बना दया है, परंतु अंततः आ थक स चाई हमारे सामने आती है। तब जाकर हम यह
समझ म आता है और कई बार तो ब त क कारी तरीक़े से समझ म आता है क हमारी ख़रीदारी हमारी उ पादन
करने क मता से आगे नह जा सकती। लंबे समय तक इसके वपरीत सोचना संभव नह है। याज क माँग
नमम होती ह; वे ग़ल तय को माफ़ नह करत । सफ़ कड़ी मेहनत करना ही पया त नह है। ौ ो गक म ब त
तेज़ी से प रवतन हो रहे ह। इसके अलावा, बाज़ार तथा ौ ो गक के वैशवीकरण
् के कारण त पधा भी बढ़
चुक है। ऐसे माहौल म हम न सफ़ श त होना पड़ेगा, ब क ख़ुद को लगातार श त करना पड़ेगा। हम अपने
म त क का वकास करना होगा, अपनी मता को लगातार बढ़ाते रहना होगा, उनम सतत नवेश करना होगा,
ता क हम पुरातन युग के अवशेष बनकर न रह जाय। नौकरी के े म बॉस अपने कमचा रय से प रणाम चाहते ह
और इसका कारण सीधा सा हैः त पधा भयानक है और कंपनी का अ त व दाँव पर लगा है। वतमान म उ पादन
करने क आव यकता आज क वा त वकता है। यह पूँजी क माँग का त न ध व करती है, परंतु सफलता का
वा त वक मं था य व और वकास है। हो सकता है आप अपने तमाही ल य को ा त कर ल, परंतु असली
सवाल यह है, या आप ऐसे आव यक नवेश कर रहे ह, जससे आप एक, पाँच और दस साल बाद भी इतने ही या
इससे यादा सफल बने रहगे? हमारी सं कृ त और वॉल ट वतमान प रणाम पर ज़ोर दे ते ह। परंतु वतमान माँग
को पूरा करने क आव यकता एक बात है और भावी सफलता के लये आव यक मता म नवेश करना
बलकुल सरी बात है। इन दोन म संतुलन था पत करने के स ांत क आव यकता से मुँह नह मोड़ा जा
सकता। यही आपक सेहत, आपके वैवा हक जीवन, आपके पा रवा रक संबंध और आपक सामुदा यक
आव यकता के बारे म भी सही है।

दोष दे ना और ख़ुद को शकार समझना। जहाँ भी आपको कोई सम या दखती है, आप आम तौर पर
दोष क उँगली उठा दे ते ह। हमारे समाज म शकार बनाने का खेल खेलना एक आदत बन चुक है। “काश मेरा
बॉस इतना तानाशाह और मूख नह होता… काश म इतने ग़रीब घर म पैदा नह आ होता… काश म यादा अ छ
जगह पर रह रहा होता… काश मुझे अपने डैडी से वरासत म ऐसा वभाव नह मला होता… काश मेरे ब चे इतने
व ोही नह होते… काश सरा वभाग हर समय ऑडर म गड़बड़ी नह करता… काश हम इतने घ टया उ ोग म
नह होते… काश हमारे कमचारी इतने आलसी और ेरणार हत नह होते… काश मेरी प नी यादा समझदार
होती… काश… काश।” यह ब त सामा य लग सकता है क हम अपनी सम या और चुनौ तय के लये सरे
क् तय या व तु को दोष द। इससे दद से ता का लक राहत तो मल सकती है, परंतु इससे हम इन सम या
से ज़दगी भर के लये बँध भी जाते ह। मुझे ऐसा क् त बता द, जो इतना वन हो क वह अपनी प र थ तय
क ज़ मेदारी वीकार करे और इतना साहसी हो क इन चुनौ तय का सामना करने के लये रचना मक पहल करे,
तो म आपको वक प क बल शक् त का जीता-जागता उदाहरण बता ँ गा।

नराशा। आलोचना और नराशा दोष क संतान ह। जब हम इस बात पर वश्वास करने के लोभन म पड़ जाते
ह क हम अपनी प र थ तय के शकार ह, जब हम नय तवाद क थ त के सामने घुटने टे क दे ते ह, तो हम
आशा खो दे ते ह, ेरणा क शक् त गँवा दे ते ह और अपने हालात से समझौता करके वह के वह बने रहते ह। “म
एक यादा, एक कठपुतली, एक बड़े प हये क छोट सी क ल ँ और म इस बारे म कुछ नह कर सकता। सफ़
मुझे इतना बता द क या करना है।” ब त से उद यमान और तभाशाली क् त यह अनुभव करते ह और इसके
प रणाम व प उ पन्न हताशा व अवसाद का शकार होते ह। लोक य सं कृ त म बचे रहने क त या
दोषद शता (cynicism) है - “अपने जीवन क अपे ा को इस हद तक कम कर दो, ता क आप कसी भी
क् त या व तु से नराश न ह ।” इ तहास उठाकर दे ख ली जये, यह त या वृ और आशा के स ांत के
वरोध म है। असली स ांत यह खोज है क “म अपने जीवन क रचना मक शक् त ँ।”

जीवन म संतुलन का अभाव। हमारे सेल फ़ोन समाज म जीवन लगातार ज टल, माँग भरा, तनावपूण और
पूरी तरह थकाने वाला होता जा रहा है। अपने समय का बंधन करने, यादा काम करने, यादा ग त करने और
आधु नक ौ ो गक के आ व कार के मा यम से अ धक कायकुशलता हा सल करने के हमारे तमाम यास के
बावज़ूद ऐसा य है क हम ख़ुद को लगातार “छु टपुट चीज़ क भरमार” के बीच म पाते ह - जनक वजह से हम
सेहत, प रवार, अखंडता और ब त सी ऐसी चीज़ को अनदे खा कर दे ते ह, जो हमारे लये सबसे मह वपूण ह?
हमारा काम सम या नह है; यह तो जीवन का थायी इंजन है। ज टलता या प रवतन भी सम या नह है। सम या
हमारी आधु नक सं कृ त का यह सोच है, “ यादा ज द जाओ, यादा दे र तक को, यादा कायकुशल बनो,
वतमान आव यकता के लये याग करो।” परंतु स चाई यह है क ऐसा करने से जीवन म संतुलन और मान सक
शां त नह मलती है। संतुलन और मान सक शां त तो उस क् त को मलते ह, जसे अपनी सव च
ाथ मकता का प एहसास होता है और जो उन पर क त होकर अखंडता भरा जीवन जीता है।

“इसम मेरे लये या है?” हमारी सं कृ त हम सखाती है क अगर हम जीवन म कुछ बनना चाहते ह, तो हम
“नंबर वन बनना” होगा। यह सं कृ त कहती है, “जीवन एक खेल, एक दौड़, एक तयो गता है, और आपको
इसम जीतना है।” कूल म सहपा ठय को, ऑ फ़स म सहक मय को, यहाँ तक क पा रवा रक सद य को भी
त प धय के प म दे खा जाता है - वे जतना यादा पायगे, आपके लये उतना ही कम बचेगा। ज़ा हर है, हम
बाहर से उदार दखने और सर क सफलता पर ता लयाँ बजाने क को शश करते ह, परंतु जब हम सर को
सफल होते दे खते ह, तो अंदर से, गोपनीय प से, हमम से ब त से लोग उनसे जलने लगते ह। हमारी स यता के
इ तहास म ब त से महान काम एक संक पवान क् त क आ म नभर इ छा ारा ए ह। परंतु ान-आधा रत
युग के सबसे बड़े अवसर और असीम उपल धयाँ उन लोग को मलगी, जो “हम” क कला म नपुण ह गे। आज
स ची महानता उस उदार म त क ारा हा सल क जायेगी, जो नः वाथ भाव से काम करेगा - जो पार प रक
स मान के साथ, पार प रक लाभ के लये काम करेगा।

समझे जाने क भूख। मानवीय दय क ब त कम आव यकताएँ समझे जाने क आव यकता से बड़ी ह -


हम सब ऐसी आवाज़ बनना चाहते ह, जसे सुना जाये, जसका स मान कया जाये, जसे मह व दया जाये,
जसका भाव हो। यादातर लोग का वश्वास है क भाव क कुंजी सं ेषण है - अपनी बात को प ता से
प ँचाना और अपनी बात मनवाने के लये बोलना। परंतु इस बारे म सचमुच वचार कया जाये, तो या आपको यह
नज़र नह आता है क जब सरे आपसे बात करते ह, तो आप समझने के लये नह सुनते ह? इसके बजाय आप
अ सर अपनी त या क्त करने क तैयारी म त होते ह। भाव क वा त वक शु आत तब होती है, जब
सर को यह महसूस हो क आप उनसे भा वत हो रहे ह - जब वे महसूस कर क आप उ ह समझ रहे ह - क
आपने गहराई और ईमानदारी से उनक बात सुनी ह और आप खुले ह। परंतु यादातर लोग भावना मक प से
इतने असुर त होते ह क वे गहराई नह सुनते ह - वे अपने एजडा के अनु प ख़ुद के वचार क्त करने म ही
त रहते ह और इससे पहले सामने वाले क बात समझने पर पया त लंबे समय तक यान क त नह करते ह।
हमारी सं कृ त आ हान करती है, यहाँ तक क इसक माँग करती है, क हम समझ और भाव डाल। बहरहाल,
भाव का स ांत पार प रक समझ ारा संचा लत होता है, जो तब उ पन्न होती है, जब कम से कम एक क् त
पहले गहराई से सुनने का संक प ले।

संघष और भन्नताय। लोग म ब त सी बात समान होती ह, परंतु फर भी वे ब त भन्न होते ह। वे अलग-
अलग तरह से सोचते ह, उनके जीवनमू य, ेरणा और उद्दे य अलग-अलग होते ह, कई बार तो एक- सरे के
वरोध म भी होते ह। इन भन्नता से संघष उ पन्न होना वाभा वक है। संघष और भन्नता को सुलझाने क
समाज क तयोगी नी त इस बात पर यान क त करती है क “आप जतना जीत सकते ह , जीत ल।” हालाँ क
समझौते क कुशलतापूण कला से ब त सा भला आ है, जहाँ दोन ही प अपनी माँग को कम करते जाते ह,
जब तक क कोई वीकार करने यो य म यम ब ा त नह हो जाता, परंतु दे खा जाये तो कोई भी प इससे
सचमुच ख़ुश नह होता। यह कतनी बड़ी बबाद है क भन्नता के कारण लोग अपने बीच के यूनतम साझे
समान तर पर प ँच जाय! कतनी बड़ी बबाद है क सम या को सुलझाने वाले लोग समाधान क तलाश करते
समय रचना मक सहयोग के स ांत को लागू नह करते ह, जससे दोन प के मूल वचार से बेहतर समाधान
नकले!

क् तगत ठहराव। मानवीय वभाव के चार आयाम होते ह - शरीर, म त क, दय और आ मा। इन दोन
नी तय क भन्नता और प रणाम पर वचार कर:

शरीरः
सां कृ तक वृ ः जीवनशैली बनाये रख; वा य संबंधी सम या का उपचार ऑपरेशन और दवा से
कर।
स ांतः वा य के था पत, शाश्वत प से वीकृत स ांत के सामंज य म अपनी जीवनशैली ढालकर
बीमा रय और सम या क रोकथाम कर।

म त कः
सं कृ त: टे ली वज़न दे ख, “मेरा मनोरंजन कर।”
स ांतः ापक और गहन अ ययन कर, लगातार श ा हा सल कर।

दयः
सं कृ त: अपने क् तगत, वाथपूण हत को आगे बढ़ाने के लये सर के साथ अपने संबंध का योग
कर।
स ांतः सबसे अ धक संतु और सुख गहराई तथा स मान से सुनने और सर क सेवा करने से मलता
है।

आ माः
सं कृ त: बढ़ती सांसा रकता और दोषद शता म फँस जाना।
स ांतः यह पहचान क साथकता क हमारी मूलभूत आव यकता और जीवन म हमारे ारा चाही गई
सकारा मक चीज़ का ोत स ांत ह - और म क् तगत प से यह मानता ँ क ईश्वर ही इन ाकृ तक
नयम का ोत है।

म आपको आमं त करता ँ क आप शाश्वत चुनौ तय और अपनी अनूठ आव यकता तथा चुनौ तय
दोन पर ही यान द। जब आप ऐसा करगे, तो आपको थायी समाधान और दशा ा त होगी। आप यह भी पायगे
क लोक य सां कृ तक क नी त और सावका लक, शाश्वत व स ांत-क त नी त म अंतर है और आप इस
अंतर को प ता से दे ख सकगे।

अं तम क् तगत ट पणी के प म, म वह सवाल दोहराना चाहता ँ जो म लगातार अपने श ण म करता :ँ


हमम से कतने लोग अपनी मृ युशैया पर यह इ छा करगे क उ ह ने अपने ऑ फ़स म या ट .वी. दे खने म यादा
समय बताया होता? इसका जवाब है - कोई नह । वे अपने यजन , अपने प रवार और उन लोग के बारे म
सोचते ह, जनक उ ह ने सेवा क है।
यहाँ तक क महान मनोवै ा नक अ ाहम मा लो ने भी अपने जीवन के अंत म भावी पीढ़ के सुख, संतु
और योगदान को अपने आ म-वा त वक करण (self-actualization) से ऊपर रखा (जो उनक लोक य
“आव यकता क ेणी” क सव च आव यकता थी)। इसे उ ह ने आ म-उ कष (self-transcendence) कहा।
यह मेरे साथ भी सही है। मुझे 7 आदत म समा हत स ांत का सबसे महान और सबसे संतु दायक भाव
मेरे ब च और नाती-पोत के जीवन से ा त आ है।
उदाहरण के तौर पर, मेरी 19 वष य पोती शैनॉन मा नया के अनाथ ब च क सेवा के लये “ े रत ई”।
उसने सै ा और मुझे एक दन एक धा मक प लखकर भेजा, जब एक छोटे बीमार ब चे ने उस पर उलट कर द
और फर गले लग गया। उसी ण शैनॉन ने संक प कया, “म अब वाथपूण जीवन नह जीना चाहती। मुझे
अपना जीवन सेवा म लगाना चा हये।” यह लखते समय वह मा नया लौट गई है और अब भी लोग क सेवा कर
रही है।
हमारे सभी ब चे ववा हत ह और उ ह ने अपने जीवनसा थय के साथ मलकर सेवा और स ांत पर क त
मशन व तैयार कये ह। इन मशन व के अनु प उ ह जीवन गुज़ारते दे खकर हम अपनी भावी पीढ़ से
ख़ुशी मल रही है।

अब जब आप अ त भावकारी लोग क 7 आदत पढ़ना शु करगे, तो म आपसे यह वायदा करता ँ क आपको


सीखने का एक रोमांचक अनुभव मलेगा। आप जो सीख, उसे अपने यजन को बताय। और सबसे मह वपूण
बात यह है क आप जो सीख, उस पर अमल करना शु कर। याद रख, सीखने और कुछ न करने का मतलब यह
है क आपने कुछ नह सीखा। जानने और न करने का मतलब यह है क आपने कुछ नह जाना।
क् तगत प से 7 आदत के अनु प जीने म मुझे लगातार संघष करना पड़ता है। ऐसा मूलतः इस लये है
क हम जतना बेहतर बनते जाते ह, चुनौती क कृ त बदलती जाती है, ठ क उसी तरह जस तरह क इंग,
गो फ़, टे नस या कसी अ य खेल म होता है। चूँ क म ईमानदारी से हर दन इन स ांत-क त आदत के अनु प
जीने के लये यास और संघष करता ँ, इस लये म इस रोमांच म गमजोशी से आपके साथ ँ।

— ट फ़न आर. कवी
stephen.covey@franklincovey.com
www.stephencovey.com
ोवो, यूटा
24 जुलाई, 2004
खंड एक
पैरेडाइ स और स ांत
अंदर से बाहर क ओर (Inside-Out)

इस पूरी नया म ऐसी कोई वा त वक े ता नह है, जसे सही जीवनशैली से


अलग कया जा सके।
● डे वड टार जॉडन

म नेकया25 हैसाल तक ावसा यक, वश्व व ालयीन, वैवा हक और पा रवा रक वातावरण म लोग के साथ काम
। इस दौरान म ऐसे ब त से लोग के संपक म आया ँ, ज ह ने बाहरी तौर पर अ वश्वसनीय सफलता
हा सल क है। इसके बावज़ूद मने यह दे खा है क वे आंत रक तौर पर अपने जीवन से संतु नह ह। वे गत
सामंज य तथा भावका रता क कमी क वजह से परेशान ह। वे लोग के साथ व थ व मधुर संबंध बनाने के लये
हमेशा संघष करते रहते ह।
मुझे लगता है क उ ह ने जो सम याएँ मुझे बताई ह, उनम से कुछ से आप भी प र चत ह गे:

मने अपने कै रयर के जो ल य नधा रत कये थे, उ ह म हा सल कर चुका ँ। मुझे ावसा यक से


अ या शत सफलता मली है, ले कन म अपने गत और पा रवा रक जीवन म इस सफलता क क़ मत चुका
रहा ँ। मेरी प नी और ब चे अब मेरे लये अजनबी हो चुके ह। मुझे तो यह भी वश्वास नह है क म ख़ुद को
जानता ँ। म शायद यह भी नह जानता क मेरे लये वा तव म या मह वपूण है। मुझे ख़ुद से पूछना पड़ता है -
या यह इतना मू यवान है क इसके लये इतना याग कया जाये?

मने डाइ टग क नई योजना बनाई है - इस साल पाँचव बार। म जानता ँ क मेरा वज़न बढ़ गया है। म सचमुच
बला होना चाहता ँ। म इस वषय पर का शत होने वाली नई पु तक और लेख नय मत प से पढ़ता ँ। ल य
नधा रत करता ँ। सकारा मक मान सक नज़ रये क मनोवै ा नक ख़ुराक दे कर ख़ुद को ो सा हत करता ँ क
म यह कर सकता ँ। परंतु म नह कर पाता। कुछ स ताह बाद सब कुछ टाँय-टाँय फ़ स हो जाता है। म ख़ुद से
कये गये वायदे को नह नभा पाता।

मने भावकारी मैनेजमट सखाने वाले कई श ण काय म म भाग लया है। अपने कमचा रय से मेरी अपे ाय
ब त यादा ह। म उनके साथ म तापूण तथा सही वहार करने क लगातार को शश करता ँ। परंतु मुझे नह
लगता क वे मेरे त वफ़ादार ह। मुझे महसूस होता है क अगर म कसी दन बीमार पड़ जाऊँ और ऑ फ़स न
आऊँ, तो वे सारा दन वाटर कूलर के आस-पास खड़े होकर गपशप करते रहगे। म उ ह आ म नभर और ज़ मेदार
य नह बना पाता - या इस तरह के कमचारी य नह ढूँ ढ़ पाता?

मेरा कशोर पु व ोही वभाव का है। वह नशीले पदाथ का आद हो चुका है। मने उसे समझाने क लाख को शश
क , परंतु वह मेरी सुनता ही नह है। म या क ँ ?

करने के लये ब त काम है, पर समय ब त कम है। म स ताह म सात दन, हर दन, हर पल दबाव और तनाव म
जीता ँ। म टाइम मैनेजमट से मनार म गया ँ और मने समय के बंधन क आधा दजन योजना को
आज़माकर भी दे खा है। हालाँ क मुझे कुछ लाभ तो मला, परंतु अब भी मुझे यह एहसास नह होता क म उतना
सुखद, सफल और शां तपूण जीवन जी रहा ँ, जतना म जीना चाहता ँ।
म अपने ब च को प र म का मह व सखाना चाहता ँ। परंतु उनसे कोई भी काम करवाने के लये मुझे हर क़दम
पर नगरानी रखना पड़ती है… और हर क़दम पर उनक शकायत भी सुनना पड़ती ह। इसके बजाय उस काम को
ख़ुद करना यादा आसान होता है। ब चे ख़ुशी-ख़ुशी अपना काम य नह करते ह? उ ह बार-बार टोकना य
पड़ता है?

म त ँ - सचमुच त। परंतु कई बार म सोचता ँ क म जो कर रहा ँ, या वह वा तव म मह वपूण है। या


उससे लंबे समय म कोई फ़क़ पड़ेगा? म वाक़ई यह सोचना चा ँगा क मेरे जीवन का कोई अथ था, इस नया म
मेरा आना साथक आ और मेरे कारण कोई फ़क़ पड़ा।

म जब अपने म या र तेदार को सफल या त त होते दे खता ँ, तो म मु कराकर उ ह बधाई दे ता ।ँ परंतु


भीतर ही भीतर म जल-भुन जाता ँ। मुझे ऐसा य महसूस होता है?

मेरा व ब त सश है। म जानता ँ क म कसी भी चचा म मनचाहा प रणाम हा सल कर सकता ।ँ


अ धकांश बार तो म सर को इस तरह भा वत कर सकता ँ, ता क वे मेरा मनचाहा समाधान सुझाय। म हर
थ त पर अ छ तरह सोच- वचार करता ँ और मुझे लगता है क मेरे मन म आने वाले वचार आम तौर पर सबके
लये सव म होते ह। परंतु फर भी म बेचैन रहता ँ। मुझे हमेशा यही चता सताती रहती है क सरे लोग मेरे
वचार और मेरे बारे म न जाने या सोचते ह गे।

मेरा वैवा हक जीवन घसट रहा है। हम लड़ते-झगड़ते तो नह ह, परंतु हमारे बीच का ेम अब मर चुका है। हमने
वैवा हक परामश लया, ब त से तरीक़े आज़माकर दे खे, परंतु कोई फ़ायदा नह आ। हम अपने भीतर वह भावना
फर से नह जगा पा रहे ह, जो पहले कभी थी।

ये सम याएँ गहरी ह और ददनाक भी। और ये ऐसी सम याएँ ह, ज ह तुरत-फुरत (quick fix) उपाय से
नह सुलझाया जा सकता।
कुछ साल पहले म और मेरी प नी सै ा भी इसी तरह क सम या से जूझ रहे थे। हमारे एक बेटे को कूल म
ब त सी मु कल का सामना करना पड़ रहा था। वह पढ़ाई- लखाई म कमज़ोर था। टे ट म अ छे नंबर लाने क
बात तो छोड़ ही द, उसे तो यह भी समझ म नह आता था क श्नप म दये गये नदश का पालन कैसे कया
जाये। सामा जक से भी वह अप रप व था और उसक वजह से हम अ सर ल जत होना पड़ता था। खेलकूद
के लहाज़ से वह छोटा और बला तो था ही, उसम मान सक तालमेल क कमी भी थी। उदाहरण के लये, बेसबॉल
खेलते समय कई बार तो पचर क गद पास आने से पहले ही वह अपना ब ला घुमा दे ता था। सब ब चे उसक
हँसी उड़ाते थे।
मेरे और सै ा के मन म उसक मदद करने क बल इ छा थी। हम यह एहसास था क अगर “सफलता”
जीवन के कसी े म सचमुच मह वपूण है, तो यह माता- पता क भू मका म सवा धक मह वपूण है। इस लये
हमने अपने बेटे के त अपने नज़ रये और वहार को सुधारने क को शश क । इसके साथ ही हमने उसके
नज़ रये और वहार को भी सुधारने क को शश क । हमने सकारा मक सोच क तकनीक का योग करके उसे
मनोवै ा नक प से ो सा हत करने क को शश क । “शाबाश, बेटे! तुम यह काम कर सकते हो! हम जानते ह
क तुम यह कर सकते हो। ब ले पर अपने हाथ थोड़े ऊपर रखो और नज़र गद पर जमाये रखो। जब तक गद
क़रीब न आ जाये, तब तक ब ला मत घुमाओ।” अगर उसम थोड़ा सा भी सुधार दखता था, तो हम उसका उ साह
बढ़ाने के लये उसक ब त यादा तारीफ़ करते थे। “ब त ब ढ़या बेटे, ऐसे ही करते रहो।”
जब सरे ब चे उसक हँसी उड़ाते थे, तो हम उ ह डाँट दे ते थे, “उसे मत चढ़ाओ। उसे अकेला छोड़ दो। वह
अभी सीख रहा है।” इस पर हमारा बेटा रोने लगता था तथा नराश होकर कहता था क वह कभी अ छ तरह नह
खेल पायेगा और वैसे भी उसे बेसबॉल पसंद नह है।
हमने ब त को शश क , परंतु जब थ त म ख़ास सुधार नह आ, तो हम सचमुच च तत हो गये। हम साफ़
नज़र आ रहा था क इसका उसके आ म-स मान पर ब त बुरा भाव पड़ रहा था। हमने उसे ो सा हत करने,
उसक मदद करने और सकारा मक रहने का यास कया। बहरहाल, जब हम बार-बार असफल ए, तो
आ ख़रकार हमने पीछे हटकर थ त को अलग कोण से दे खने का नणय लया।
उस समय म दे श भर के कई त त संगठन म नेतृ व वकास संबंधी श ण दे रहा था। म आई.बी.एम.
के ए ज़ी यू टव डेवलपमट ो ाम के श णा थय के लये सं ेषण (communication) और अनुभू त
(perception) वषय पर ै मा सक काय म तैयार कर रहा था।
जब मने इन काय म को तैयार करने के लये शोध कया, तो मेरी दलच पी ख़ास तौर पर इस वषय म
जा त ई क हमारी अनुभू तयाँ कस तरह वक सत होती ह, वे हमारे दे खने के नज़ रये को कस तरह नधा रत
करती ह और हमारा दे खने का नज़ रया कस तरह हमारे वहार को नधा रत करता है। जब मने आशावा दता के
स ांत और “ प मे लयन भाव” ( वयं पूण होने वाली आशा ) का अ ययन कया, तो मुझे यह समझ म आया
क हमारी अनुभू तयाँ कतनी गहराई म थत होती ह। इसने मुझे सखाया क हम नया को दे खने के साथ-साथ
अपने उस लस पर भी ग़ौर करना चा हये, जसके ारा हम नया को दे खते ह। इसने मुझे सखाया क लस ही
दरअसल यह तय करता है क हम नया को कस प म दे खते ह।
जन अवधारणा को म आई.बी.एम. म सखा रहा था, उनके प र े य म मने और सै ा ने अपनी थ त
का अवलोकन कया। ऐसा करने पर हम यह एहसास आ क हम अपने बेटे क मदद करने के लये जो कर रहे थे,
वह उस तरीक़े से मेल नह खाता था, जस तरीक़े से हम उसे सचमुच दे खते थे। जब हमने अपनी गहनतम
भावना क ईमानदारी से जाँच क , तो हमने पाया क हमारी अनुभू त यह थी क वह मूलतः अयो य और
“ पछड़ा” आ था। हमने अपने नज़ रये और वहार पर चाहे जतनी मेहनत क हो, परंतु हमारी को शश इस लये
कामयाब नह ई थ , य क अपने सकारा मक वहार तथा श द के बावज़ूद हम दरअसल उस तक यह संदेश
प ँचा रहे थे, “तुम स म नह हो। तु हारी र ा करना पड़ती है।”
हम यह एहसास होना शु आ क अगर हम थ त को बदलना चाहते ह, तो पहले हम ख़ुद को बदलना
होगा; और ख़ुद को भावकारी प से बदलने के लये हम सबसे पहले अपनी अनुभू तय को बदलना होगा।

व-आधा रत और च र -आधा रत नी तशा


(The Personality And Character Ethics)
अनुभू त पर मेरे शोध के अ त र इसी दौरान म 1776 के बाद से अमे रका म का शत सफलता पर लखे
सा ह य का गहन अ ययन कर रहा था। मने आ म-सुधार, लोक य मनो व ान और से फ़-हे प जैसे वषय पर
सैकड़ पु तक, लेख तथा नबंध पढ़े । जन स ांत को एक वतं तथा लोकतां क समाज सफल जीवन क
कुं जयाँ मानता था, उन सबका सार मेरी उँग लय पर था।
जब मने सफलता पर पछले 200 वष म लखी गई साम ी का अ ययन कया, तो मुझे उसम एक
आ यजनक पैटन नज़र आया। चूँ क म ख़ुद क म था और मने अपने आस-पास के ब त से लोग के जीवन तथा
संबंध म भी क दे खा था, इस लये मुझे यह बल एहसास आ क पछले 50 वष का अ धकांश सफलता संबंधी
सा ह य सतही था। इसम सफ़ सामा जक छ व बनाने क सजगता, तकनीक और तुरत-फुरत समाधान बताये गये
थे। एक तरह से सफलता का यह सा ह य सामा जक बड-एड् स और ए प रन जैसे तुरत-फुरत उपाय से भरा था,
जनके मा यम से गंभीर सम या को सुलझाने के यास कये जाते थे। हालाँ क कई बार इनसे सम या कुछ
समय के लये सुलझ भी जाती थी, परंतु इसके बावज़ूद द घकालीन सम याएँ य क य बनी रहती थ , अंदर ही
अंदर फैलती रहती थ तथा बार-बार उभर आती थ ।
इसके ठ क वपरीत, पहले 150 वष का सफलता संबंधी लगभग सारा सा ह य च र को सफलता क न व
मानता था और च र -आधा रत नी तशा पर क त था। इसम स य न ा, वन ता, वफ़ादारी, संयम, साहस,
न प ता, धैय, प र म, सादगी, आडंबरहीनता और व णम नयम जैसे चा र क गुण पर ज़ोर दया गया था।
बजा मन क लन क आ मकथा च र -आधा रत नी तशा का त न ध व करती है। यह मूलतः एक ऐसे
क कहानी है, जसने कुछ स ांत और आदत को अपने च र म गहराई से था पत कया।
च र -आधा रत नी तशा सखाता है क भावकारी जीवन के कुछ मूलभूत स ांत होते ह और लोग को
स ची सफलता तथा थायी सुख का एहसास तभी हो सकता है, जब वे इन स ांत को सीखकर इ ह अपने
मूलभूत च र म ढाल ल।
बहरहाल, थम वश्वयु के बाद सफलता का आधारभूत कोण च र -आधा रत नी तशा से हटकर
उस चीज़ क त पर हो गया, जसे हम व-आधा रत नी तशा कह सकते ह। व, सावज नक छ व,
नज़ रये और वहार को सफलता का आधार माना जाने लगा। सफलता सामा जक संबंध को सुचा बनाने क
यो यता और तकनीक पर आधा रत हो गई। इस व-आधा रत नी तशा ने मूलतः दो राह चुन : (1)
मानवीय और सामा जक संबंध म लोक- वहार क तकनीक, और (2) सकारा मक मान सक नज़ रया। इस
जीवनदशन का कुछ ह सा ेरक और कई बार उ चत सू य म आ, जैसे “आपका नज़ रया आपक
सफलता तय करता है,” “ यौ रयाँ चढ़ाने के बजाय मु कराने से अ धक दो त बनते ह,” और “इंसान अपने
म त क म जस चीज़ क क पना कर सकता है और वश्वास कर सकता है, उसे वह हा सल भी कर सकता है।”
व-आधा रत नी तशा के कई अ य पहलू भी थे, जो साफ़ तौर पर ग़मराह करते थे, यहाँ तक क
धोखा दे ते थे और लोग को ो सा हत करते थे क वे इन तकनीक का योग सफ़ इस लये कर, ता क लोग उ ह
पसंद कर। लोग को सर क चय म झूठ दलच पी का दशन करने के लये े रत कया जाता था, ता क वे
उनसे अपनी मनचाही चीज़ हा सल कर सक। कई बार तो लोग को “सफल दखने” का आडंबर करने क सलाह
द जाती थी या फर सर को कुचलते ए आगे बढ़ने का सुझाव तक दया जाता था।
इस सा ह य म कुछ हद तक च र को सफलता के एक त व के प म तो वीकार कया गया, परंतु
आधारभूत और उ ेरक मानने के बजाय इसे अलग-थलग करने क वृ दे खी जा सकती है। च र -आधा रत
नी तशा का उ लेख अ धकांशतः मौ खक कानदारी बन गया। मूलभूत ज़ोर भाव डालने क तुरत-फुरत
तकनीक , श हा सल करने क रणनी तय , संवाद कौशल और सकारा मक मान सक नज़ रये पर था।
मुझे यह एहसास होना शु आ क म और सै ा अपने बेटे के संबंध म जन समाधान को आज़मा रहे थे,
उनका अवचेतन ोत यही व-आधा रत नी तशा था। जब मने व-आधा रत नी तशा और च र -
आधा रत नी तशा के अंतर के बारे म अ धक गहराई से सोचा, तो मने महसूस कया क हमारे ब च के अ छे
वहार से सै ा तथा मेरी सामा जक त ा भा वत होती थी। हमारी चता के मूल म यह बात थी क हमारी
नज़र म हमारा यह बेटा अपे त ऊँचाई पर नह था। बेटे क छ व से अ धक चता हम अपनी छ व क थी। हम
अ छे तथा याल रखने वाले माता- पता क भू मका म सफल दखना चाहते थे और शायद इसी वजह से हमारे
मन म बेटे क इस तरह क छ व बनी थी। सम या को सुलझाने और उससे नबटने के हमारे तरीक़े म सफ़ बेटे क
भलाई क चता ही नह थी, ब क ब त कुछ उलझा आ था।
जब सै ा और मने इस बारे म बातचीत क , तो हम यह पीड़ादायी एहसास आ क उसके बारे म हमारे सोच
पर हमारे च र और उद्दे य का कतना सश भाव पड़ रहा था। हम जानते थे क सामा जक तुलना के
उद्दे य हमारे गहन जीवनमू य से मेल नह खाते थे। ऐसे उद्दे य हम शत पर आधा रत ेम क ओर ले जा रहे थे
और अंततः इनक वजह से हमारे बेटे का आ म वश्वास कम हो रहा था। इस लये हमने अपने यास को ख़ुद पर
क त करने का संक प कया - अपनी तकनीक पर नह , ब क अपने गहनतम उद्दे य और बेटे के त हमारी
अनुभू त पर। बेटे को बदलने क को शश करने के बजाय हमने अलग हटकर खड़े होने क को शश क । हमने यह
को शश क क हम उससे र हटकर उसक पहचान, वैय कता, मता और मह व का एहसास कर सक।
गहरे वचारमंथन के साथ जब हमने आ था तथा ाथना का सहारा लया, तो हम अपने बेटे म कई अ त
गुण नज़र आने लगे। हम उसके भीतर मता क कई परत दख , जो उसक अपनी ग त से वक सत ह गी। हमने
फ़ैसला कया क हम न त होकर उसके रा ते से हट जायगे और उसक मता के वक सत होने का इंतज़ार
करगे। हमने महसूस कया क हमारी वाभा वक भू मका यह होना चा हये क हम उसम वश्वास कर, उसका
आनंद ल और उसे स मान द। हमने पूरी ईमानदारी से अपने उद्दे य पर काम कया और सुर ा के आंत रक ोत
वक सत कये, ता क मह वपूण दखने क हमारी भावनाय हमारे ब च के “ शंसनीय” वहार पर नभर न ह ।
जैसे ही हमने अपने बेटे के बारे म अपनी पुरानी अनुभू त के शकंजे को ढ ला कया और जीवनमू य पर
आधा रत उद्दे य बनाये, नई भावनाय उभरने लग । अब हम उसक तुलना या मू यांकन करने के बजाय उसके
साथ आनंद ले रहे थे। हमने उसे अपनी छ व म गढ़ने या सामा जक आशा के अनु प नापने क को शश छोड़
द । हमने उसे अपे त सामा जक साँचे म ढालने क दयालुतापूण तथा सकारा मक को शश छोड़ द । चूँ क हमने
उसे मूलतः यो य और जीवन से संघष करने म स म पाया, इस लये हमने सर के उपहास से उसक र ा करना
छोड़ दया।
उसका पालन-पोषण इसी सुर ा के तले आ था, इस लये इसके एक़दम हट जाने से उसे क आ, जसे
उसने भी कया। हम उसक बात से सहमत थे, परंतु हमने कोई त या नह क । अनकहा संदेश यह था,
“हम तु हारी र ा करने क ज़ रत नह है। तुम मूलभूत प से ठ क हो।”
स ताह तथा महीने गुज़रते गये। समय के साथ उसम सहज आ म वश्वास नज़र आने लगा। वह वयं को ढ़
बनाने लगा। वह अपनी ग त से वक सत होने लगा। औसत सामा जक मानदं ड से उसका मू यांकन करने पर अब
वह उ कृ बन गया था - शै णक से, सामा जक प से और खेल के े म। यह प रवतन तथाक थत
वाभा वक वकासवाद या से ब त आगे तक आ था। कई साल बाद उसे ब त से व ाथ समूह ने अपना
लीडर चुना और वह रा य तर का खलाड़ी भी बन गया। जब वह घर पर अपना रपोट काड लेकर आता था, तो
उसम सारे के सारे ए ेड होते थे। उसने एक आकषक न छल व वक सत कया, जसने उसे हर तरह के
लोग से सहजता से संबंध बनाने म स म बनाया।
मेरा और सै ा का वश्वास है क हमारे बेटे क “सामा जक प से भा वत करने वाली” उपल धयाँ
सामा जक पुर कार क इ छा क वजह से नह मल । ये उपल धयाँ काफ़ हद तक अपने बारे म उसक
भावना क वजह से मल । यह मेरे और सै ा के लये एक अ त अनुभव था। इसने हमारे बाक़ ब च के साथ
तथा अ य भू मका म वहार करने के संबंध म हम मह वपूण सबक़ सखाया। इसने हम सफलता के व-
आधा रत नी तशा तथा च र -आधा रत नी तशा के बीच के मह वपूण अंतर के बारे म ब त गत तर पर
जाग क बनाया। एक भजनकार ने हमारे वश्वास को बख़ूबी कया है: “पूरी मेहनत से अपने दल को
टटोलो, य क ज़दगी के असली मु े यह से वा हत होते ह।”

ाथ मक और तीयक महानता
(Primary And Secondary Greatness)
मेरे बेटे के साथ मेरे अनुभव, अनुभू त संबंधी शोध और सफलता सा ह य के अ ययन ने मलकर मुझे एक
“अहा!” अनुभव दया, जब चीज़ अचानक सही जगह पर आ ग । म अचानक व-आधा रत नी तशा के
सश भाव को दे ख पाया और उन सू म, अ सर चेतन प से न पहचानी जा सकने वाली भ ता को प ता
से समझ पाया, जो व-आधा रत नी तशा तथा च र -आधा रत नी तशा म थ । एक तरफ़ तो वे स ांत
थे, ज ह म सच मानता था। इन स ांत के सं कार मुझम ब त पहले बचपन म डाले गये थे और ये मेरे
जीवनमू य के आंत रक एहसास क गहराई म थत थे। सरी तरफ़ तुरत-फुरत समाधान का वह जीवनदशन था,
जो हर दन मुझे घेरे रहता था। म अ धक गहरे तर पर यह समझ गया क जीवन के सभी े के लोग के साथ
बरस तक काम करते समय जो स ांत म सखा रहा था और ज ह म भावकारी मानता था, वे अ सर इन
लोक य वचार से भ य लगते थे।
म यह नह कह रहा ँ क व-आधा रत नी तशा के त व यानी व का वकास, सं ेषण क
यो यता का श ण, भा वत करने क कला क श ा और सकारा मक चतन लाभकारी नह ह या सफलता के
लये अ नवाय नह ह। मेरा वश्वास है क वे लाभकारी भी ह और कई बार अ नवाय भी। परंतु वे ाथ मक
(बु नयाद ) त व नह ह; वे तीयक (गौण) त व ह। शायद पछली पी ढ़य क न व पर नमाण करने क मानवीय
मता का योग करते समय अनजाने म ही हमने अपनी इमारत बनाने पर इतना अ धक यान क त कर लया
क हम उस न व को ही भूल गये, जस पर वह इमारत खड़ी थी। इतने लंबे समय तक बगैर बोये फ़सल काटने क
वजह से शायद हम यह भूल गये क बोना भी ज़ री है।
अगर म लोग को भा वत करने क तकनीक या रणनी तय का योग इस उद्दे य से क ँ क कस तरह
लोग से अपना मनचाहा या बेहतर काम करवाऊँ, कस तरह उ ह अ धक े रत क ँ ता क वे मुझे व एक- सरे को
यादा पसंद कर - जब क मेरा च र मूलतः दोषपूण और छल-कपट से भरा हो - तो म लंबे समय तक सफल नह
हो सकता। मेरे छल-कपट क वजह से अ वश्वास पैदा होगा और मेरे हर काम को ( जसम तथाक थत लोक-
वहार क अ छ तकनीक का योग भी शा मल है) जोड़-तोड़ या चालाक माना जायेगा। इससे ज़रा भी फ़क़
नह पड़ता क श द का जाल कतना अ छा है या इरादे कतने नेक ह। मूल बात यह है क अगर वश्वास नह है
या ब त कम है, तो थायी सफलता क न व ही नह है। सफ़ मूलभूत अ छाई ही तकनीक को सफल बनाती है।
तकनीक पर यान क त करना कूल म रटकर परी ा दे ने क तरह है। आप कई बार पास हो जाते ह,
शायद आपके नंबर भी अ छे आ जाय, परंतु अगर आप हर दन क़ मत नह चुकाते ह, तो आप कभी उन वषय म
सचमुच नपुण नह हो सकते, जनका आप अ ययन करते ह। तुरत-फुरत उपाय से आप श त म त क का
वकास नह कर सकते।
या आपने कभी सोचा है क खेती म तुरत-फुरत उपाय का इ तेमाल करना कतना मूखतापूण होगा? वसंत
म बीज बोना भूल जाना, पूरी गम मौज-म ती करते रहना और फर शरद ऋतु म फ़सल उगाने के लये तुरत-फुरत
उपाय अपनाना मूखता नह तो और या है? खेती एक ाकृ तक व था है। क़ मत चुकाना होगी और या का
पालन करना होगा। आप जो बोते ह, हमेशा वही काटते ह; इसम शॉटकट काम नह आते।
यह स ांत अंततः मानवीय वहार और आपसी संबंध के बारे म भी सही है। ये भी फ़सल के नयम पर
आधा रत ाकृ तक व थाय ह। कूल जैसी कृ म सामा जक व था म अगर आप यह सीख ल क कस तरह
इंसान ारा बनाये गये नयम को चालाक से तोड़ा जाये और “ कस तरह खेल को खेला जाये,” तो आप कुछ
समय के लये कामयाब हो सकते ह। अ धकांश एक-बार क मुलाक़ात या अ पकालीन मानवीय संबंध म आप
व-आधा रत नी तशा का योग करके सफल हो सकते ह। आप सामने वाले क चय म दलच पी के
अ भनय तथा अपने आकषक व और यो यता से उस पर अ छ छाप छोड़ सकते ह। अ पकालीन थ तय
म आप फटाफट और आसान तकनीक से कामयाबी हा सल कर सकते ह, परंतु द घकालीन संबंध म तीयक
त व का थायी मह व नह होता। अगर गहरी स य न ा और च र क मूलभूत ढ़ता नह है, तो जीवन क
चुनौ तयाँ स चे उद्दे य को सबके सामने ले आयगी और अ पकालीन सफलता के थान पर आपको मानवीय
संबंध म असफलता ही हाथ लगेगी।
तीयक महानता हा सल कर चुके कई लोग को उनक यो यता क वजह से सामा जक त ा तो मल
सकती है, परंतु वे ाथ मक महानता या अ छे च र के अभाव के शकार होते ह। दे र-सबेर यह बात आपको उनके
हर द घकालीन संबंध म दखाई दे गी, चाहे वह संबंध कसी ापा रक सहयोगी, जीवनसाथी, म या पहचान के
संकट (identity crisis) से गुज़रते कशोर पु के साथ हो। च र सबसे ऊँचे वर म बोलता है। जैसा इमसन ने
एक बार कहा था, “आप या ह, उसक आवाज़ मेरे कान म इतनी तेज़ी से सुनाई दे ती है क आप या कहते ह,
वह मुझे सुनाई नह दे ता।”
ज़ा हर है, ऐसी थ तयाँ होती ह, जहाँ लोग म च र क ढ़ता तो होती है, परंतु सं ेषण क यो यता नह
होती और बेशक इससे भी र त क गुणव ा भा वत होती है। परंतु इसके भाव फर भी उतने मह वपूण नह
होते ह।
अं तम वश्लेषण म, हमारा च र हमारे श द और काय से अ धक ऊँचे वर म बोलता है। हम सब यह
बात जानते ह। कुछ लोग पर हम पूरी तरह वश्वास करते ह, य क हम उनका च र जानते ह। चाहे वे मुखर ह
या न ह , चाहे वे मानवीय संबंध क तकनीक म नपुण ह या न ह , हम उन पर वश्वास करते ह और उनके साथ
सफलतापूवक काम करते ह।
व लयम जॉज जॉडन के श द म, “हर के हाथ म अ छाई या बुराई क अ त श द गई है -
उसके जीवन का ख़ामोश, अचेतन, अ य भाव। यह सफ़ उस बात का सतत त बब होता है, जैसा वह वा तव
म होता है; उस बात का नह , जसका वह ढ ग करता है।”

पैरेडाइम क श
अ त भावकारी लोग क सात आदत म मानवीय भावका रता के कई मूलभूत स ांत बताये गये ह। ये
आदत मूलभूत और ाथ मक ह। ये उन सही स ांत को आ मसात करने का त न ध व करती ह, जो थायी
सुख और सफलता क न व ह।
परंतु इससे पहले क हम इन सात आदत को सचमुच समझ सक, हम अपने ख़ुद के “पैरेडाइ स” को
समझना होगा और यह भी क “अपने पैरेडाइ स म प रवतन कैसे कया जाता है।”
च र -आधा रत नी तशा और व-आधा रत नी तशा सामा जक पैरेडाइ स के उदाहरण ह।
पैरेडाइम (paradigm) श द ीक भाषा से आया है। यह मूलतः एक वै ा नक श द है और आजकल इसका योग
आम तौर पर तमान, स ांत, अनुभू त, मा यता या कोण के अथ म कया जाता है। अ धक सामा य प म,
यह वह तरीक़ा है, जससे हम नया को “दे खते” ह। इसका संबंध क हमारी इं यगत अनुभू त से नह है,
ब क महसूस करने, समझने और वश्लेषण करने से है।
हमारे उद्दे य के लये पैरेडाइ स को समझने का आसान तरीक़ा उ ह न श के प म दे खना है। हम सब
जानते ह क “न शा े नह होता।” यह तो सफ़ वा त वक े के कुछ पहलु को प करता है। और
पैरेडाइम भी यही करता है। यह कसी अ य व तु का स ांत, प ीकरण या तमान होता है।
मान ली जये आप शकागो म कसी ख़ास जगह पर प ँचना चाहते ह? अगर आपके पास शहर क सड़क
का न शा हो, तो आपको अपनी मं ज़ल तक प ँचने म ब त मदद मलेगी। परंतु मान ली जये आपको ग़लत न शा
दे दया गया हो! मु ण क ु ट क वजह से डे ॉइट के न शे पर ग़लती से “ शकागो” छप गया हो! या आप उस
कुंठा और असफलता क क पना कर सकते ह, जसका सामना आपको अपनी मं ज़ल तक प ँचने क को शश
करते समय करना पड़ेगा?
हो सकता है आप अपने वहार म सुधार कर, आप और यादा मेहनत कर तथा अपनी ग त को गना कर
ल। परंतु आपके यास आपको तेज़ी से सफ़ ग़लत जगह पर प ँचने म ही सफल बनायगे।
हो सकता है आप अपने नज़ रये म सुधार कर और अ धक सकारा मक तरीक़े से सोच। आप अब भी सही
जगह पर नह प ँच पायगे, परंतु शायद आपको इसक परवाह नह होगी। आपका नज़ रया इतना सकारा मक
होगा क आप जहाँ भी प ँचगे, वह पर ख़ुश रहगे।
मु े क बात यह है क आप अब भी भटक रहे ह गे। मूलभूत सम या का आपके वहार या नज़ रये से कोई
लेना-दे ना नह है। इसका इस बात से पूरा लेना-दे ना है क आपके पास जो न शा है, वह ग़लत है।
जब आपके पास शकागो का सही न शा हो, तब मेहनत मह वपूण होती है। जब आप सही रा ते पर चलते
समय हताश करने वाली क ठनाइय का सामना कर, तब नज़ रये से सचमुच फ़क़ पड़ सकता है। परंतु पहली और
सबसे मह वपूण आव यकता यह है क न शा सही हो।
हमम से हर एक के म त क म ब त से न शे होते ह, ज ह मु य प से दो े णय म रखा जा सकता है:
1. चीज़ जैसी ह (वा त वकता ) के न शे, और 2. चीज़ जैसी होना चा हये (जीवनमू य ) के न शे। इ ह
मान सक न शो के मा यम से हम अपने हर अनुभव क ा या करते ह। हम न शो के सही होने के बारे म शायद
ही कभी सवाल करते ह। आम तौर पर तो हम यह भी पता नह होता क हमारे पास न शे ह। हम बस यह मान लेते
ह क हम जस तरह से चीज़ को दे खते ह, वे सचमुच उसी प म ह या उ ह उसी तरह होना चा हये।
हमारे नज़ रये और वहार इ ह मा यता से उ प होते ह। हम जस तरह से चीज़ को दे खते ह, उसी से
यह तय होता है क हम कस तरह सोचते और काय करते ह।
आगे बढ़ने से पहले म आपको एक बौ क और भावना मक अनुभव लेने के लये आमं त करता ँ। कुछ
पल ठहरकर पृ 34 क त वीर पर एक नज़र डाल।
अब पृ 35 पर छपी त वीर दे ख और आपने जो दे खा, उसका सावधानी से वणन कर।
या आपको उसम म हला दख रही है? आपके हसाब से उसक उ कतनी होना चा हये? वह कैसी
दखती है? वह या पहने ए है? आप उसे कस तरह क भू मका म दे खते ह?
आप शायद सरी त वीर क म हला का वणन करते ए कहगे क उसक उ लगभग 25 साल होगी - ब त
सुंदर, ज़रा फ़ैशनेबल, छोट नाक और थोड़ी नख़रे वाली। अगर आप अ ववा हत होते, तो उसे डे टग पर ले जाना
चाहते। अगर आप रटे लग बज़नेस म होते, तो आप फ़ैशन मॉडल के प म उसक सेवाय लेना चाहते।
परंतु अगर म आपसे क ँ क आप ग़लत ह? अगर म क ँ क यह त वीर साठ या स र वष क म हला क है,
जो उदास दखती है, जसक नाक ब त बड़ी है और जो न त प से मॉडल नह है? वह एक ऐसी म हला है,
जसक शायद आप सड़क पार करने म मदद करना चाह।
सही कौन है? त वीर को बारा दे ख। या आपको बूढ़ म हला दखाई द ? अगर नह , तो को शश करते रह।
या आप उसक बड़ी नाक को दे ख सकते ह? उसक शॉल?
अगर म और आप आमने-सामने होते, तो हम इस त वीर पर चचा कर सकते थे। आप मुझे बता सकते थे क
आप या दे खते ह और म आपको बता सकता था क म या दे खता ँ। हम तब तक चचा जारी रख सकते थे, जब
तक क आप प प से मुझे यह न दखा दे ते क आपको इस त वीर म या दख रहा है और म प प से
आपको यह न दखा दे ता क मुझे या दख रहा है।
चूँ क हम ऐसा नह कर सकते, इस लये पृ 59 खोल और वहाँ द गई त वीर का अ ययन कर। इसके बाद
इस त वीर को बारा दे ख। या अब आपको बूढ़ म हला दखाई द ? यह मह वपूण है क आगे पढ़ना शु करने
से पहले आप उसे दे ख ल।
इस योग से मेरा पहली बार सामना कई साल पहले हावड बज़नेस कूल म आ। श क इसका योग
प और भावपूण ढं ग से यह दशाने के लये कर रहे थे क दो लोग एक ही चीज़ को दे खने के बाद भी असहमत
हो सकते ह और दोन ही सही ह गे। यह ता कक नह है; यह मनोवै ा नक है।
श क कमरे म ब त सारे बड़े काड् स लेकर आये, जनम से आधे काड् स पर एक युवती क त वीर थी
( जसे आपने पृ 34 पर दे खा था) और बाक़ आधे काड् स पर पृ 59 वाली बूढ़ म हला क त वीर थी।
उ ह ने क ा म काड् स बाँट दये। कमरे के एक ह से म उ ह ने युवती क त वीर वाले काड बाँटे और सरे
ह से म बूढ़ म हला क त वीर वाले। उ ह ने हमसे कहा क हम 10 सेकंड तक अपने-अपने काड पर यान क त
कर। इसके बाद उ ह ने हमसे काड वापस ले लये। फर उ ह ने ोजे टर के मा यम से न पर पृ 35 पर द गई
त वीर दखाई, जो दोन त वीर को मलाने से बनी थी। इसके बाद उ ह ने पूरी क ा से उस म हला का वणन करने
को कहा। जन लोग ने काड म युवती क त वीर दे खी थी, उ ह न क त वीर म भी युवती दखाई द । और
ज ह ने काड म बूढ़ म हला क त वीर दे खी थी, उ ह इस त वीर म भी बूढ़ म हला नज़र आई।
फर श क ने एक व ाथ से कहा क वह कमरे के सरी ओर बैठे कसी व ाथ को बताये क उसने
या दे खा। जब उ ह ने आपस म बात क , तो सं ेषण क सम याएँ उभरकर सामने आ ।
“‘बूढ़ म हला’ से आपका या मतलब है? उसक उ 20 या 22 साल से यादा नह हो सकती!”
“अरे छो ड़ये भी! आप शायद मज़ाक़ कर रहे ह। उसक उ 70 साल होगी - हो सकता है, 80 के आसपास
हो!”
“आपको हो या गया है? या आप अंधे ह? यह म हला जवान है, ख़ूबसूरत है। म उसे अपने साथ बाहर
घुमाने ले जाना चा ँगा। वह सुंदर है।”
“सुंदर? वह तो खूसट बु ढ़या है।”
बहस बढ़ती गई। दोन को ही न सफ़ अपने नज़ रये पर पूरा वश्वास था, ब क वे अपने कोण पर अड़े
रहे। यह सब इसके बावज़ूद आ क व ा थय के पास एक बेहद मह वपूण लाभ था - उनम से अ धकांश योग
क शु आत से ही जानते थे क दरअसल सरे कोण का अ त व है। यह एक ऐसी चीज़ है, जसे हमम से
यादातर लोग आम जीवन म कभी वीकार नह करगे। बहरहाल, पहली बार तो सफ़ गने-चुने व ा थय ने ही
इस त वीर को सरे कोण से दे खने क सचमुच को शश क ।
काफ़ समय तक नरथक बहस होती रही। इसके बाद एक व ाथ न के पास गया और उसने ॉइंग क
एक लाइन क तरफ़ इशारा करते ए कहा, “यह युवती का हार है।” सरे ने कहा, “नह , यह तो बूढ़ म हला का
मुँह है।” धीरे-धीरे वे मतभेद के व श ब पर शां त से चचा करने लगे। आ ख़रकार, जब दोन त वीर का
व तार से वणन कया गया, तो व ा थय ने एक-एक करके सरे कोण को पहचान लया। शां त, स मान और
प संवाद के मा यम से कमरे म बैठे हम सब व ाथ अंततः सरे कोण को दे खने म सफल ए। परंतु जब
हम उससे नज़र हटाकर बारा उस त वीर को दे खते थे, तो हमम से अ धकांश को त वीर म वही छ व दखाई दे ती
थी, जसे दे खने के लये हम दस सेकंड क अव ध म कंडीशन (condition) कया गया था।
म अ सर इस अनुभू त- दशन का योग लोग तथा संगठन के सामने करता ँ, य क इससे हम गत
तथा पार प रक भावका रता क गहरी समझ मलती है। इससे सबसे पहले तो यह पता चलता है क कंडीश नग
हमारी अनुभू तय और पैरेडाइ स को कतनी बलता से भा वत करती है। अगर चीज़ को दे खने के हमारे
कोण पर दस सेकंड म इतना भाव पड़ सकता है, तो फर जीवन भर क कंडीश नग का कतना भाव पड़ता
होगा? प रवार, कूल, चच, ऑ फ़स का माहौल, म , सहयोगी और व-आधा रत नी तशा जैसे वतमान
सामा जक पैरेडाइम हमारे जीवन पर ख़ामोशी से अचेतन भाव डालते ह। वे हमारे कोण , पैरेडाइ स और
न शो को बनाने म मदद करते ह।
इससे यह भी पता चलता है क ये पैरेडाइ स हमारे नज़ रय और वहार के ोत ह। हम उनके बाहर रहकर
अखंडता या स य न ा (integrity) से काम नह कर सकते। जो हम दे खते ह, अगर हम उससे भ बात या
आचरण कर, तो हम पूणता क़ायम नह रख सकते। अगर आप उन 90 तशत लोग म से होते, ज ह कंडीशन
कये जाने के बाद म त त वीर म युवती दखाई दे ती है, तो बेशक आपको यह सोचने म क ठनाई होती क सड़क
पार करने म आपको उसक मदद करना पड़ सकती है। जस प म आप उसे दे खते, आपका नज़ रया और
वहार न त प से उसी अनु प होता।
यह हम व-आधा रत नी तशा के एक मूलभूत दोष से प र चत करवाता है। अगर हम उन मूलभूत
पैरेडाइ स क जाँच करने म असफल रह, जनसे हमारा वहार और नज़ रये उ प होते ह, तो बाहरी नज़ रये और
वहार को बदलने क को शश से लंबे समय म ब त कम लाभ होता है।
अनुभू त का दशन यह भी दशाता है क हमारे पैरेडाइ स सर के साथ हमारे वहार को कतना यादा
भा वत करते ह। भले ही हम यह सोचते ह क हम चीज़ को पूरी प ता और न प ता से दे ख रहे ह, परंतु हम
यह एहसास होने लगता है क सरे लोग उ ह उतने ही प तथा न प कोण से भ प म दे ख सकते ह।
“हम कहाँ खड़े ह, यह इस बात पर नभर करता है क हम कहाँ बैठे ह।”
हमम से हर एक म यह सोचने क वृ होती है क हम चीज़ को उसी प म दे खते ह, जैसी वे ह, यानी क
हम व तुपरक या तट थ (objective) ह। परंतु यह सच नह है। हम नया को उस प म नह दे खते, जैसी वह
है, ब क उस प म दे खते ह, जैसे हम ह - या जैसा दे खने के लये हम कंडीशन कया गया है। जब हम यह वणन
करने के लये अपना मुँह खोलते ह क हम या दखाई दे ता है, तो दरअसल हम ख़ुद का, अपनी अनुभू तय का
तथा अपने पैरेडाइ स का वणन करते ह। जब लोग हमसे असहमत होते ह, तो हम त काल सोचने लगते ह क
उनके साथ कुछ गड़बड़ है। परंतु जैसा इस दशन से सा बत होता है, ईमानदार और चैत य लोग भी एक ही चीज़
को अलग-अलग ढं ग से दे खते ह, य क हर उसे अपने अनुभव के अनूठे लस से दे खता है।
इसका यह मतलब नह है क त य होते ही नह ह। योग के ारंभ म दो लोग अलग-अलग त वीर को
दे खकर अलग-अलग कंडीश नग से भा वत ए। इसके बाद उ ह ने उन दोन त वीर को मलाने के बाद बनी
तीसरी त वीर दे खी। अब वे दोन समान त य को दे ख रहे थे - काली रेखाय तथा सफ़ेद थान - और दोन ही इ ह
त य के प म वीकार कर रहे थे। परंतु हर इन त य क ा या अपने पुराने अनुभव के आधार पर कर
रहा था; और त य का उनक ा या से अलग हटकर कोई अथ नह होता।
हम अपने मूलभूत पैरेडाइ स, न शो या मा यता के बारे म जतने अ धक जाग क ह गे, इस बारे म जतने
अ धक जाग क ह गे क हमारा अनुभव हम कस हद तक भा वत करता है, हम अपने पैरेडाइ स क उतनी ही
यादा ज़ मेदारी ले सकते ह। इस थ त म हम अपने पैरेडाइ स क जाँच कर सकते ह, यथाथ से उनक तुलना
कर सकते ह, सर क बात सुन सकते ह और उनक अनुभू तय के त खुला नज़ रया रख सकते ह। इस तरह
हम एक बड़ी त वीर हा सल कर सकते ह और एक अ धक नरपे या तट थ कोण भी।

पैरेडाइम प रवतन (Paradigm Shift) क श


अनुभू त दशन से हा सल कया गया सबसे मह वपूण ान शायद पैरेडाइम प रवतन के े म है, जसे हम
“अहा!” अनुभव कह सकते ह। “अहा!” अनुभव तब होता है, जब कोई आ ख़रकार म त त वीर को सरे
कोण से “दे खता” है। अपनी ारं भक अनुभू त से जतना बँधा होता है, “अहा!” अनुभव उतना ही
सश होता है। यह वैसा ही है, जैसे अचानक अंदर ब याँ जल गई ह ।
पैरेडाइम श ट वा यांश का याग सबसे पहले थॉमस कुहन ने अपनी बेहद भावशाली और मह वपूण
पु तक द चर ऑफ़ साइं ट फ़क रवॉ युश स म कया था। कुहन बताते ह क वै ा नक यास के े म
लगभग हर मह वपूण सफलता परंपरा तोड़ने, सोचने के पुराने तरीक़ से मु होने और पुराने पैरेडाइ स म
प रवतन करने से हा सल ई है।
म के महान खगोलशा ी टोलेमी के अनुसार पृ वी ांड का क थी। परंतु कोपर नकस ने सूय को क
म रखकर पैरेडाइम म प रवतन कया, हालाँ क इस वजह से उ ह काफ़ वरोध और क झेलना पड़ा। अचानक हर
चीज़ क ा या बदल गई।
यूटन का भौ तकशा ी मॉडल यां क (clock work) पैरेडाइम था और यह अब भी आधु नक इंजी नय रग
का आधार है। परंतु यह आं शक और अपूण था। आइं ट न के सापे ता के पैरेडाइम ने वै ा नक जगत क
कायापलट कर द , य क इसका अ धक भ व यसूचक और ा या मक मह व था।
जब तक जीवाणु स ांत नह खोजा गया था, तब तक सव के दौरान ब त सी म हला तथा शशु क
मृ यु हो जाती थी और कसी को भी इसका कारण समझ म नह आता था। यु म गो लय से जतने सै नक मरते
थे, उनसे यादा सै नक छु टपुट घाव और बीमा रय से मर जाते थे। परंतु जीवाणु स ांत के वक सत होने के
साथ ही एक बलकुल नया पैरेडाइम, समझने का एक बेहतर तथा सुधरा आ तरीक़ा संभव आ और इसक वजह
से च क सा के े म मह वपूण तथा ज़बद त सुधार आ।
आज का अमे रका भी पैरेडाइम प रवतन का ही प रणाम है। स दय तक शासन के बारे म राजशाही तथा
स ाट के दै वी अ धकार क पारंप रक अवधारणा च लत थी। तभी एक अलग पैरेडाइम वक सत आ - जनता
का, जनता के ारा और जनता के लये शासन। इस तरह एक संवैधा नक लोकतं का ज म आ, जससे
अ य धक मानवीय ऊजा और यो यता उ प ई तथा जीवन तर, वतं ता, भाव और आशा के एक ऐसे तर क
रचना ई, जसक मसाल नया के इ तहास म नह मलती।
सभी पैरेडाइम प रवतन सकारा मक दशा म नह होते। जैसा हमने दे खा है, जब पैरेडाइम च र -आधा रत
नी तशा से बदलकर व-आधा रत नी तशा हो गया, तो इसने हम उन जड़ से ही र कर दया, जो स ची
सफलता और सुख को पोषण दे ती ह।
परंतु चाहे पैरेडाइम प रवतन सकारा मक दशा म ह या नकारा मक दशा म, चाहे ये त काल ह या लंबे
समय म, ये हम नया को दे खने के एक कोण से सरे कोण क ओर ले जाते ह। और इन प रवतन का
सश भाव पड़ता है। चाहे ये सही ह या ग़लत, हमारे पैरेडाइ स हमारे नज़ रये तथा वहार के ोत ह और
अंततः सर के साथ हमारे संबंध के भी।

मुझे एक छोटे पैरेडाइम प रवतन का अनुभव याद आता है, जब म एक र ववार क सुबह को यूयॉक म एक
े न से या ा कर रहा था। लोग शां त से बैठे थे। कुछ अख़बार पढ़ रहे थे, कुछ वचार म खोये थे और कुछ अपनी
आँख बंद करके आराम कर रहे थे। माहौल ब त शांत था।
तभी अचानक एक आदमी अपने ब च के साथ ड बे म दा ख़ल आ। ब चे इतना शोर मचा रहे थे और
धमाचौकड़ी कर रहे थे क त काल पूरा माहौल बदल गया।
वह आदमी मेरे बगल म बैठ गया और उसने अपनी आँख बंद कर ल । ऐसा लग रहा था जैसे वह थ त से
बेख़बर था। ब चे ह ला कर रहे थे, सामान इधर से उधर फक रहे थे और लोग के अख़बार छ न रहे थे। यह दे खकर
चढ़ छू टना वाभा वक था। परंतु इसके बावज़ूद मेरे पास बैठे आदमी ने कुछ नह कया।
ऐसे माहौल म झुँझलाहट पर क़ाबू रखना मु कल था। मुझे यक़ न नह हो रहा था क वह इतना लापरवाह
कैसे हो सकता है? वह अपने ब च को इतना जंगली वहार कैसे करने दे रहा है, उ ह रोकने के लये कुछ य
नह कर रहा है और ज़रा भी ज़ मेदारी य नह ले रहा है? साफ़ दख रहा था क मेरी ही तरह ड बे म बैठा हर
या ी इस बात से चढ़ रहा था। अंततः मने असाधारण धैय और संयम के साथ उससे कहा, “ ीमान, लोग को
आपके ब च क वजह से सचमुच ब त परेशानी हो रही है। या आपको इस बारे म कुछ नह करना चा हये?”
उस आदमी ने अपनी आँख इस तरह खोल , जैसे उसे पहली बार थ त समझ म आई हो। फर वह धीमे से
बोला, “हाँ, आप सही कह रहे ह। मुझे लगता है मुझे इस बारे म कुछ करना चा हये। म अपने ब च के साथ अभी
अ पताल से आ रहा ँ, जहाँ इनक माँ क एक घंटे पहले मृ यु ई है। म नह जानता क मुझे या सोचना या
करना चा हये। और मुझे लगता है क ब चे भी नह जानते क इस थ त का सामना कस तरह कया जाये।”
या आप क पना कर सकते ह क मुझे उस व त कैसा महसूस आ होगा? मेरा पैरेडाइम बदल गया।
अचानक म घटना को अलग तरह से दे खने लगा। और चूँ क मने घटना को अलग तरह से दे खा, इस लये मने
अलग तरह से सोचा, अलग तरह से महसूस कया और अलग तरह से वहार कया। मेरी झुँझलाहट त काल
ग़ायब हो गई। मुझे अपने नज़ रये या वहार को नयं त करने क चता नह करना पड़ी। मेरा दय तो उस
क पीड़ा से थत हो गया था। हमदद और क णा क भावनाय मु ता से वा हत होने लग , “आपक
प नी क आज ही मृ यु ई है? ओह, मुझे ब त अफ़सोस है! या आप मुझे इस बारे म बता सकते ह? म आपक
कस तरह मदद कर सकता ँ?” पल भर म सब कुछ बदल गया था।

ब त से लोग जब जीवन को ख़तरे म डालने वाले संकट का सामना करते ह और अपनी ाथ मकता को
नई रोशनी म दे खते ह या जब वे अचानक कसी नई भू मका म क़दम रखते ह (जैसे वे प त या प नी, माता- पता
या दादा-दाद , मैनेजर या लीडर क भू मका म आते ह), तो वे अपने सोच म इसी तरह के मूलभूत प रवतन का
अनुभव करते ह।
व-आधा रत नी तशा के मा यम से हम अपने नज़ रय तथा वहार को बदलने क को शश म चाहे
ह त , महीन , यहाँ तक क वष मेहनत करते रह, इसके बावज़ूद हम उस प रवतन के एहसास के क़रीब भी नह
आ पायगे, जो त काल तब होता है, जब हम चीज़ को अलग तरीक़े से दे खने लगते ह।
यह प है क अगर हम अपने जीवन म अपे ाकृत छोटे प रवतन करना चाहते ह, तो हम शायद अपने
वहार और नज़ रये पर यान क त करके ऐसा कर सकते ह। परंतु अगर हम मह वपूण वांटम प रवतन करना
चाहते ह, तो हम अपने मूलभूत पैरेडाइ स पर मेहनत करना होगी।
थोरो के श द म, “बुराई क प य पर हज़ार हार करने से अ छा यह है क जड़ पर एक बार हार कर
दया जाये।” हम अपने जीवन म वांटम सुधार सफ़ तभी कर सकते ह, जब हम वहार और नज़ रये क प य
पर हार करना छोड़ द तथा जड़ यानी पैरेडाइ स पर काम करने म जुट जाय, जनसे हमारा वहार और नज़ रये
उ प होते ह।

दे खना और बनना (Seeing And Being)


ज़ा हर है, सभी पैरेडाइम प रवतन त काल नह होते। हालाँ क े न म मेरे पैरेडाइम म त काल प रवतन हो
गया था, परंतु हमारे बेटे के त मेरे और सै ा के पैरेडाइम म प रवतन धीमी, मु कल तथा सु वचा रत या
थी। हमने उसके साथ पहले जो तकनीक आज़माई थी, वह व-आधा रत नी तशा क हमारी बरस क
कंडीश नग तथा अनुभव पर आधा रत थी। वह तकनीक माता- पता के प म हमारी सफलता तथा हमारे ब च
क सफलता के पैमाने के बारे म हमारे गहनतम पैरेडाइ स का प रणाम थी। जब तक हमने उन मूलभूत पैरेडाइ स
को नह बदला और चीज़ को अलग तरह से नह दे खा, तब तक हम वयं म तथा थ त म वांटम ( ापक)
प रवतन करने म सफल नह ए।
हमारे बेटे को अलग तरह से दे खने के लये मुझे और सै ा को अलग तरह का बनना पड़ा। जब हमने वयं
के च र का वकास करने पर मेहनत क , तभी हमारा नया पैरेडाइम वक सत आ।
पैरेडाइ स च र से अ भ प से जुड़े ह। हम जो बनते ह, वही हम दे खते ह। और जो हम दे खते ह, वह
ब त हद तक उस पर नभर करता है जो क हम बनते ह। ऐसा लंबे समय तक नह हो सकता क हम अपने दे खने
म तो प रवतन कर ल, परंतु इसके साथ हमारे बनने म कोई प रवतन न हो। और यही बात वपरीत दशा म भी लागू
होती है।
े न म उस सुबह मेरे पैरेडाइम म त काल जो प रवतन आ, उसम भी मेरा बदला आ कोण मेरे मूलभूत
च र का प रणाम था और उसके ारा सी मत था।
न त प से ऐसे भी लोग ह गे, ज ह वा त वक थ त का पता चलने के बाद भी उ ह अफ़सोस या
अपराधबोध महसूस नह आ होता और वे खी तथा वधा त आदमी के पास चुपचाप बैठे रहते। सरी ओर,
मुझे यह वश्वास है क ऐसे भी संवेदनशील लोग ह गे, ज ह ने त काल यह भाँप लया होता क कोई गंभीर
सम या है और वे समझने तथा मदद करने क पहल पहले ही कर दे त,े जो म नह कर पाया था।
पैरेडाइ स ब त सश होते ह, य क वे उस लस क रचना करते ह, जसके ारा हम नया को दे खते ह।
पैरेडाइम प रवतन क श वांटम प रवतन क मूल श है, चाहे यह प रवतन त काल हो या धीमी सु वचा रत
या हो।

स ांत-क त पैरेडाइम
च र -आधा रत नी तशा इस मूलभूत वचार पर आधा रत है क कुछ स ांत मानवीय भावका रता को
नधा रत करते ह। मानवीय जगत म ये ाकृ तक नयम उतने ही वा त वक और थायी ह, जतना क भौ तक
जगत म गु वाकषण का नयम।
इन स ांत क वा त वकता और इनके भाव को एक अ य पैरेडाइम प रवतन के अनुभव म दे खा जा
सकता है, जसका वणन क कोच ने नौसेना सं थान क प का ोसी ड स म कया है।
दो यु पोत समु म कई दन तक ख़राब मौसम म यु ा यास का श ण ले रहे थे। म अ णी
यु पोत पर तैनात था और जब रात ई, तो म ज (जहाज के संचालन क ) पर नगरानी कर रहा था।
कोहरे के कारण हम दे खने म मु कल आ रही थी, इस लये क तान भी ज पर ही खड़े होकर सभी
ग त व धय क नगरानी कर रहे थे।
अँधेरा होने के कुछ ही समय बाद नगरानी कर रहे एक पहरेदार ने आकर कहा, “जहाज़ के अगले
ह से के सामने रोशनी दख रही है।”
क तान ने पूछा, “रोशनी थर है या हल रही है?”
पहरेदार ने जवाब दया, “ थर है, क तान।” इसका मतलब यह था क हम सामने खड़े कसी जहाज़
से टकराने वाले थे।
क तान ने स नलमैन को बुलाकर आदे श दया, “उस जहाज़ को यह संकेत भेज दो: हम दोन क
ट कर होने वाली है। आपको सलाह द जाती है क आप अपनी दशा म 20 अंश का प रवतन कर ल।”
सरी तरफ़ से संदेश आया, “आपको सलाह द जाती है क आप अपनी दशा म 20 अंश का प रवतन
कर ल।”
क तान बोला, “यह संदेश भेजो: म क तान ,ँ अपनी दशा 20 अंश बदलो।”
जवाब आया, “म सरे दज का जहाज़ी ँ। बेहतर होगा क आप अपनी दशा 20 अंश बदल ल।”
अब क तान भ ा गया। उसने चीख़ते ए कहा, “यह संदेश भेजो: म यु पोत ।ँ अपनी दशा 20 अंश
बदलो।”
चमकती ई रोशनी से हमारे पास यह संदेश आया, “म लाइटहाउस ँ।”
हमने अपनी दशा बदल ली।

क तान - और इस वणन को पढ़ने वाले हम सभी - के पैरेडाइम म आ प रवतन थ त को एक बलकुल ही


अलग रोशनी म ले आता है। हम वह वा त वकता दे ख सकते ह, जो उसक सी मत अनुभू त से अ धक वराट थी -
एक ऐसी वा त वकता, जसे समझना हमारे दै नक जीवन म उतना ही मह वपूण है, जतना क यह कोहरे म फँसे
क तान के लये था।
स ांत लाइटहाउस क तरह होते ह। वे ऐसे ाकृ तक नयम ह, ज ह तोड़ा नह जा सकता। जैसा से सल
बी. डे मल अपनी ऐ तहा सक फ़ म द टे न कमांडमट् स म शा मल स ांत के बारे म कहते ह, “ नयम तोड़ना
हमारे लये संभव नह है। हम नयम से टकराकर सफ़ ख़ुद को तोड़ सकते ह।”
हालाँ क लोग अपने अनुभव और कंडीश नग से बनने वाले पैरेडाइ स या न श के संदभ म अपने जीवन
तथा वहार को दे ख सकते ह, परंतु यान रहे, ये न शे े नह ह। ये तो “ परक कोण पर आधा रत
वा त वकता” ह और े का वणन करने के सफ़ यास ह।
“व तुपरक वा त वकता” या े “लाइटहाउस” जैसे स ांत से बने ह, जो मानवीय वकास और सुख को
नधा रत करते ह। ये ाकृ तक नयम ाचीन काल से हर स य समाज के ताने-बाने म बुने ए ह और इनम हर उस
प रवार तथा सं था क जड़ ह, जो थायी बनी रह और समृ । हमारे मान सक न शे े का वणन कतनी
सट कता से करते ह, इससे े के अ त व पर कोई फ़क़ नह पड़ता है।
इन स ांत या ाकृ तक नयम क वा त वकता हर उस के सामने प हो जाती है, जो गहराई से
सोचता है तथा सामा जक इ तहास के च का परी ण करता है। ये स ांत बार-बार सतह पर आते ह। जस हद
तक कसी समाज म रहने वाले लोग इ ह पहचानते ह और इनके अनुसार जीते ह, उसी हद तक वे या तो बचते तथा
वकास करते ह या फर वघटन और वनाश क ओर क़दम बढ़ाते ह।
जन स ांत क ओर म इशारा कर रहा ,ँ वे गूढ़, रह यमयी या “धा मक” वचार नह ह। इस पु तक म
ऐसा एक भी स ांत नह है, जो सफ़ एक धम म पाया जाता हो, जसम मेरा धम भी शा मल है। ये स ांत तो हर
मुख धम, थायी सामा जक दशन तथा नै तक व था का ह सा ह। ये स ांत अपने आप म प ह और इ ह
कसी भी ारा आसानी से सही सा बत कया जा सकता है। ऐसा लगता है, जैसे ये स ांत या ाकृ तक
नयम मानवीय थ त, मानवीय चेतना तथा मानवीय अंतरा मा का ह सा ह । ये सम त इंसान म व मान होते ह,
चाहे उनक सामा जक कंडीश नग कैसी भी हो या चाहे वे उनके त न ावान ह या न ह । अलब ा यह हो
सकता है क कंडीश नग या न ाहीनता क वजह से ये स ांत गहराई म दफ़न ह या कुंद ह ।
उदाहरण के लये म न प ता (fairness) के स ांत क ओर इशारा करना चा ँगा, जससे समानता तथा
याय क हमारी पूरी अवधारणा वक सत ई है। छोटे ब च म न प ता का सहज आंत रक एहसास होता है, भले
ही उनक कंडीश नग के अनुभव इसके वपरीत ही य न ह । इस बारे म ब त मतभेद हो सकते ह क न प ता
को कस कार प रभा षत कया जाये और उसे कैसे हा सल कया जाये, परंतु इस वचार को शाश्वत प से
लगभग सभी लोग जानते ह।
अ य उदाहरण म ईमानदारी तथा अखंडता शा मल ह। वे वश्वास क ऐसी न व तैयार करती ह, जो सहयोग
और द घकालीन गत व सामा जक वकास के लये अ नवाय है।
एक अ य स ांत मानव-मा क ग रमा का है। अमे रका के वाधीनता के घोषणाप क मूलभूत अवधारणा
इस जीवनमू य या स ांत का वणन करती है, “हम इस स य को वयं स मानते ह क सभी इंसान को उनके
रच यता ने समान बनाया है और उ ह कुछ ऐसे अ धकार दये ह, जनका हनन नह होना चा हये, जनम जीवन,
वतं ता तथा सुख पाने का अ धकार शा मल है।”
एक अ य स ांत सेवा या योगदान दे ने का वचार है। इसके अलावा एक स ांत गुणव ा या उ कृ ता है।
एक स ांत मता का है। इसके अनुसार हम सभी म अ वक सत मताय होती ह और हम वकास कर
सकते ह, अपनी मता बढ़ा सकते ह तथा नई यो यताय सीख सकते ह। वकास का स ांत मता से गहराई से
जुड़ा आ है - मता को सामने लाने और गुण को वक सत करने क ऐसी या, जसम धैय, पोषण तथा
ो साहन जैसे स ांत क आव यकता होती है।
स ांत वहार नह ह। वहार एक व श ग त व ध या काय है। जो वहार एक प र थ त म सफल
होता है, ज़ री नह है क वह सरी प र थ त म भी उतना ही सफल हो। इसक स चाई वे माता- पता मा णत
कर दगे, ज ह ने अपने सरे ब चे को भी उसी तरीक़े से पालने क को शश क थी, जस तरह उ ह ने अपने पहले
ब चे को पाला था।
वहार थ त के मान से व श होता है, जब क स ांत गहरे तथा मूलभूत स य ह, जो शाश्वत प से
लागू होते ह। ये सभी य , ववाह , प रवार , नजी तथा सावज नक संगठन आ द हर े म लागू होते ह।
जब ये स य भीतर जाकर आदत म बदल जाते ह, तो इनसे लोग को अलग-अलग थ तय से नबटने के लये
अलग-अलग तरह का वहार करने क श मलती है।
स ांत जीवनमू य नह ह। चोर के कसी गरोह के जीवनमू य हो सकते ह, परंतु वे उन मूलभूत स ांत
के वरोध म होते ह, जनके बारे म हम बात कर रहे ह। स ांत े ह; जीवनमू य न शे ह। जब हम सही स ांत
को मह व दे ते ह, तो हमारा स य से सा ा कार होता है यानी हम चीज़ को उसी प म दे ख पाते ह, जैसी वे ह।
स ांत मानवीय वहार के मागदशक ह, जनका थायी मह व सा बत हो चुका है। वे मूलभूत ह। वे
अ नवाय प से वयं स ह, इस लये उन पर बहस नह हो सकती। इन स ांत क वयं स कृ त को ज द
से समझने का एक तरीक़ा यह है क हम उनके वपरीत जीवनमू य के आधार पर भावकारी जीवन जीने क
मूखतापूण को शश पर वचार कर। मुझे नह लगता क कोई भी प पात, छल, नीचता, अयो यता, नकृ ता
या च र हीनता को थायी सुख और सफलता क ठोस न व मानने के बारे म गंभीरता से वचार कर सकता है।
हालाँ क इस बारे म बहस हो सकती है क इन स ांत को कस तरीक़े से प रभा षत, अ भ या हा सल कया
जाये, परंतु इनके अ त व के बारे म एक सावभौ मक आंत रक चेतना और जाग कता नज़र आती है।
हमारे न शे या पैरेडाइम इन स ांत अथवा ाकृ तक नयम से जतने क़रीबी प से जुड़े ह गे, वे उतने ही
अ धक सट क और उपयोगी सा बत ह गे। सही न शे हमारी गत या सामा जक भावका रता को न त प
से ब त अ धक भा वत करते ह, जब क सफ़ वहार और नज़ रये को बदलने क को शश से हम उतनी
सफलता नह मलेगी।

वकास और प रवतन के स ांत


व-आधा रत नी तशा क चमक-दमक और इसका बल आकषण इस वजह से है क इसे जीवन म
सफलता हा सल करने का तुरत-फुरत तरीक़ा समझा जाता है। लोग सोचते ह क यह गत भावका रता तथा
अ य लोग के साथ समृ संबंध वक सत करने म उनक मदद करेगा। वे सोचते ह क इस दौरान उ ह मेहनत तथा
वकास क उस वाभा वक या से नह गुज़रना पड़ेगा, जो इसे संभव बनाती है।
यह बना त य का तीक है। यह “फटाफट अमीर बनाने” वाली योजना है, जो “ बना मेहनत के अमीर”
बनाने का वायदा करती है। और यह सफल होती दख भी सकती है - परंतु इसक योजना बनाने वाला लंबे समय म
पीछे रह जाता है।
व-आधा रत नी तशा छलपूण और ामक है। इसक तकनीक और तुरत-फुरत समाधान से उ च
गुणव ा के प रणाम पाने के यास उतने ही सफल होते ह, जतने क डे ॉइट के न शे से शकागो म कसी जगह
तक प ँचने के यास।
व-आधा रत नी तशा क जड़ और इसके फल के अनुभवी अवलोकनकता ए रक ॉम के श द
म:
आज हम उस को दे खते ह, जो कसी वचा लत यं क तरह वहार करता है, जो ख़ुद को
न तो जानता है, न ही समझता है। वह जस इकलौते को जानता है वह उस तरह का है,
जैसा होने क उससे अपे ा क जाती है। उसके जीवन म भाषायी सं ेषण क जगह नरथक बकवास ने
ले ली है, कृ म मु कराहट ने न कपट हँसी का थान ले लया है और नीरस हताशा का एहसास
वा त वक पीड़ा क जगह ले चुका है। इस के बारे म दो बात कही जा सकती ह। पहली बात तो यह
क वह सहजता तथा वैय कता के उन दोष का शकार है, जो लाइलाज नज़र आते ह। साथ ही उसके
बारे म यह भी कहा जा सकता है क वह हमम से उन करोड़ लोग से मूलभूत प से भ नह है, जो
इस पृ वी पर रहते ह।
पूरे जीवन म वकास क मक अव थाय होती ह। ब चा पहले पलटना सीखता है, फर बैठता है, फर
घुटन के बल सरकता है और इसके बाद चलता तथा दौड़ता है। हर पायदान मह वपूण है और हर पायदान म समय
लगता है। कसी भी पायदान को छोड़ा नह जा सकता।
यही जीवन के सभी े म सही है। यही वकास के सभी े म सही है, चाहे वह पयानो बजाना सीखना
हो या ऑ फ़स के कसी सहयोगी के साथ भावकारी सं ेषण करना हो। यह य , ववाह , प रवार तथा
संगठन पर भी लागू होता है।
भौ तक व तु के े म तो हम या के इस त य या स ांत को जानते तथा वीकार करते ह, परंतु
भावना मक े , मानवीय संबंध और गत च र के े म इसे मानना यादा क ठन तथा कम ापक है।
इसे जानने और वीकार करने के बाद इसके सामंज य म रहना तो और भी यादा क ठन तथा कम ापक है।
प रणाम व प हम कई बार शॉटकट क तलाश करते ह। समय तथा मेहनत बचाने के लये हम इन अ नवाय
पायदान म से कुछ को लाँघकर आगे बढ़ना चाहते ह और इसके बावज़ूद अपे त प रणाम क फ़सल काटना
चाहते ह।
परंतु जब हम अपने वकास क कसी ाकृ तक या को लाँघकर शॉटकट अपनाते ह, तो या होता है?
अगर आप सफ़ औसत टे नस खलाड़ी ह , परंतु अपनी बेहतर छ व बनाने के लये आप अ धक ऊँचे तर पर
खेलने का फ़ैसला कर, तो इसका प रणाम या होगा? या सफ़ सकारा मक सोच के कारण आप कसी
ोफ़ेशनल खलाड़ी से मैच जीतने म सफल हो सकते ह?
या होगा अगर आप अपने दो त को यह यक़ न दला द क आप संगीत समारोह म पयानो बजा सकते ह,
जब क आपक वा त वक वतमान यो यता नौ स ख़ये क हो?
जवाब प ह। इस वकास या का उ लंघन करना, इसे नज़रअंदाज़ करना या इसका शॉटकट अपनाना
बलकुल असंभव है। यह कृ त के व है और ऐसे शॉटकट खोजने क को शश का प रणाम सफ़ नराशा तथा
कुंठा ही होता है।
दस ब के पैमाने पर अगर म कसी े म सरे तर पर ँ और पाँचव तर पर प ँचना चाहता ,ँ तो सबसे
पहले तो मुझे तीसरे तर क ओर क़दम बढ़ाना होगा। “हज़ार मील लंबी या ा भी पहले क़दम से शु होती है”
और इसे एक बार म एक क़दम बढ़ाकर ही पूरा कया जा सकता है।
अगर आप सवाल पूछकर या अपना अ ान कट करके श क को यह पता नह चलने दे ते क आप कस
तर पर ह, तो आप कभी नह सीख सकते और अपना वकास नह कर सकते। आप लंबे समय तक ढ ग करके
धोखा नह दे सकते, य क अंततः आपके बारे म स चाई पता चल जायेगी। अ ान को वीकार करना अ सर
सीखने क दशा म पहला क़दम होता है। थोरो ने सखाया है, “हमारे वकास के लये आव यक अ ान को हम
कैसे याद रख सकते ह, जब हम हर समय अपने ान का योग करते रहते ह?”
मुझे वह अवसर याद आता है, जब मेरे म क दो युवा पु याँ मेरे पास आ । अपनी आँख म आँसू भरकर
उ ह ने शकायत क क उनके पता कठोर ह और वे उनक थ त को समझ नह रहे ह। प रणाम के डर क
वजह से वे अपने माता- पता के सामने मुँह खोलने म हचक रही थ , परंतु इसके बावज़ूद उ ह अपने माता- पता के
ेम, समझ और मागदशन क ब त स त ज़ रत महसूस हो रही थी।
मने उनके पता से बात क और पाया क बौ क से वे घटना के बारे म जाग क थे। हालाँ क उ ह ने
यह वीकार कया क उनके वभाव म उ ता क सम या है, परंतु उ ह ने इसक ज़ मेदारी लेने से इंकार कर दया।
उ ह ने ईमानदारी से यह त य मानने से इंकार कर दया क उनके भावना मक वकास का तर कम था। प रवतन
क दशा म पहला क़दम उठाना उनके गव को गवारा नह था।
अपनी प नी, प त, ब च , म या ऑ फ़स के सहयो गय के साथ भावकारी संबंध बनाने के लये हम
उनक बात सुनना सीखना होगा। और इसम भावना मक ढ़ता क आव यकता होती है। सुनने म धैय, खुलेपन
और समझने क इ छा शा मल ह, जो च र के अ यंत वक सत गुण ह। न न भावना मक तर पर काम करना
और उ च- तर क सलाह दे ना ब त आसान होता है।
हमारे वकास का तर टे नस खेलने या पयानो बजाने के े म साफ़ नज़र आ जाता है, य क वहाँ ढ ग
करना असंभव है। परंतु च र तथा भावना मक वकास के े म यह उतना प नह होता। हम कसी अजनबी
या सहयोगी के सामने “नाटक” कर सकते ह या “नक़ाब” ओढ़ सकते ह। हम ढ ग कर सकते ह। और कुछ समय
तक हम इसके मा यम से सफल भी हो सकते ह - कम से कम सावज नक प से। हो सकता है हम ख़ुद को भी
धोखा दे ने म कामयाब हो जाय। परंतु मुझे वश्वास है क हमम से अ धकांश यह स चाई जानते ह क हम अंदर से
सचमुच कैसे ह; और मुझे लगता है क जन लोग के साथ हम रहते या काम करते ह, वे भी हमारी वा त वकता
जानते ह।
मने कई बार ावसा यक जगत म वकास क इस ाकृ तक या म शॉटकट अपनाने क को शश के
प रणाम दे खे ह। ए ज़ी यू ट ज़ ल छे दार भाषण तथा मु कराहट के श ण से, बाहरी काय या गठबंधन से
तथा मै ीपूण या श ुतापूण वलय के मा यम से उ पादकता, गुणव ा, मनोबल या ाहक सेवा क सं कृ त
वक सत करने क को शश करते ह। परंतु वे इस बात पर यान नह दे ते ह क इन चालबा ज़य से अ वश्वास का
माहौल बनता है। जब उनके ये उपाय सफल नह होते, तो वे व-आधा रत नी तशा क अ य तकनीक क
तलाश करते ह - और पूरे समय वे उन ाकृ तक स ांत तथा या क उपे ा और अवहेलना करते ह, जो
उ च- वश्वास क सं कृ त क न व ह।

मुझे याद है क मने भी कई साल पहले पता के प म इस स ांत क अवहेलना क थी। एक दन जब म


अपनी तीन वष य बेट क बथडे पाट के लये घर आया, तो मने दे खा क वह बाहरी कमरे के एक कोने म खड़ी
थी। उसने अपने सारे तोहफ़ को कसकर पकड़ रखा था और सरे ब च को उनके साथ खेलने नह दे रही थी।
मेरा यान सबसे पहले इस तरफ़ गया क वहाँ मौज़ूद कई माता- पता इस वाथपूण दशन को दे ख रहे थे। म
श मदा था तथा मेरी श मदगी इस वजह से और बढ़ गई थी, य क उस व त म वश्व व ालय म मानवीय संबंध
पर श ण दे रहा था। और म इन माता- पता क आशा को जानता था या कम से कम उ ह महसूस कर
सकता था।
कमरे का माहौल सचमुच तनावपूण था। ब चे अपने हाथ फैलाकर मेरी बेट के चार तरफ़ खड़े थे। वे उससे
उन तोहफ़ से खेलने क अनुम त माँग रहे थे, जो उ ह ने उसे कुछ समय पहले दये थे। परंतु मेरी बेट ने खलौने
दे ने से साफ़ मना कर दया। मने मन ही मन कहा, “मुझे न त प से अपनी बेट को चीज़ बाँटना सखाना
चा हये। सर के साथ चीज़ बाँटने का जीवनमू य हमारे सबसे मूलभूत वश्वास म से एक है।”
इस लये मने सबसे पहले एक आसान आ ह कया। “बेटा, या तुम अपने दो त को उन खलौन से खेलने
दोगी, जो उ ह ने तु ह दये ह?”
उसने तपाक से जवाब दया, “नह !”
मेरा सरा उपाय उसे तक ारा समझाना था। “गु ड़या रानी, अगर तुम अपने घर पर उ ह अपने खलौन से
खेलने दोगी, तो जब तुम उनके घर जाओगी, तो वे भी तु ह अपने खलौन से खेलने दगे।”
एक बार फर, त काल यह जवाब सुनने को मला, “नह !”
मेरी श मदगी बढ़ती जा रही थी, य क यह प हो चुका था क मेरा अपनी बेट पर ज़रा भी भाव नह
था। तीसरा उपाय रश्वत था। ब त धीमे से मने कहा, “बेटा, अगर तुम खलौने दे दोगी, तो म तु ह एक ब त
ब ढ़या तोहफ़ा ँ गा। म तु ह चुइंगम ँ गा।”
वह च लाकर बोली, “मुझे चुइंगम नह चा हये!”
अब मुझे ग़ सा आने लगा। अपनी चौथी को शश म मने डराने-धमकाने का योग कया, “अगर तुम खलौने
नह दोगी, तो तुम सचमुच मुसीबत म पड़ जाओगी!”
उसने रोते ए कहा, “मुझे परवाह नह है! ये मेरे खलौने ह। म इ ह सर को नह दे ना चाहती!”
आ ख़रकार, मने श का सहारा लया। मने उससे कुछ खलौने छ ने और सरे ब च को दे दये। “लो
ब चो, इन खलौन से खेलो।”
शायद मेरी बेट चीज़ बाँटने से पहले उनके वा म व का एहसास करना चाहती थी। (सच तो यह है क जब
तक म कसी चीज़ का वामी नह ँ, तब तक म उसे कसी को कैसे दे सकता ? ँ ) उसे इस बात क ज़ रत थी
क पता के प म म भावना मक प रप वता के अ धक उ च तर पर काम क ँ और यह अनुभव दलाने म
उसक मदद क ँ ।
परंतु उस समय मने अपनी बेट के वकास तथा हमारे संबंध को मह व नह दया; इसके बजाय मने अपने
बारे म वहाँ मौज़ूद माता- पता क राय को मह व दया। मने एक ारं भक फ़ैसला कर लया था क म सही था।
उसे अपने खलौने बाँटना चा हये और अगर वह ऐसा नह कर रही थी, तो वह ग़लत थी।
शायद मने उस पर उ च- तर क अपे ा इस लये थोप द , य क भावना मक पैमाने पर म नचले तर पर
था। धैय रखने या समझने म म या तो असमथ था या फर अ न छु क। इस लये मने उससे खलौने बाँटने क अपे ा
क । अपनी कमी क भरपाई करने के यास म मने अपने पद तथा अ धकार से श उधार ली और उसे वह करने
के लये ववश कर दया, जो म उससे करवाना चाहता था।
परंत,ु श उधार लेने से हम कमज़ोर बनते ह। श उधार लेने वाला इस लये कमज़ोर बनता है, य क वह
काम करवाने के लये बाहरी त व पर अ धक नभर हो जाता है। इससे वह भी कमज़ोर बनता है, जसे बात
मानने के लये ववश कया जाता है, य क इससे वतं तक-श , वृ तथा आंत रक अनुशासन के वकास म
बाधा पड़ती है। और अंततः इससे संबंध भी कमज़ोर हो जाता है। सहयोग का थान भय ले लेता है और दोन ही
अ धक वे छाचारी तथा र ा मक हो जाते ह।
और तब या होगा, जब उधार लेने वाली श का ोत - चाहे वह शारी रक श या अ धक बड़ा आकार
हो, पद या अ धकार हो, ड ी या टे टस स बल हो, परंग या पछली सफलताय ह - बदल जाये या न रहे?
अगर म अ धक प रप व होता, तो मने अपनी आंत रक श पर अ धक वश्वास कया होता। तब बाँटने
तथा वकास क मेरी समझ पर, ेम तथा पोषण दे ने क मेरी मता पर मुझे अ धक वश्वास होता। और मने
अपनी पु ी को यह वक प चुनने क वतं ता द होती क सर को अपने खलौन से खेलने क अनुम त दे ना या
न दे ना उसी पर नभर करता है। शायद उससे तकपूण आ ह करने के बाद मुझे ब च का यान कसी अ य रोचक
खेल क ओर मोड़ दे ना चा हये था तथा अपनी पु ी को भावना मक दबाव से बचा लेना चा हये था। मने यह सीखा
है क जब ब च को वा त वक वा म व का एहसास हो जाता है, तो वे ब त वाभा वक, मु और सहज प से
आपस म चीज़ बाँटने लगते ह।
मेरा अनुभव यह रहा है क ऐसे समय होते ह जब श ा दे ना चा हये और ऐसे भी समय होते ह जब श ा
नह दे ना चा हये। जब र ते तनावपूण ह और भावना मक तनाव का माहौल हो, तो श ा दे ने के यास को
अ सर अ वीकृ त के प म लया जाता है। परंतु जब माहौल अ छा हो, तो ब चे को शां त से अकेले म बुलाकर
श ा दे ने या जीवनमू य का मह व याद दलाने से अ धक गहरा भाव पड़ सकता है। इसके लये भावना मक
प रप वता क ज़ रत होती है, जो शायद उस समय मेरे धैय तथा आंत रक नयं ण के तर से परे थी।
शायद बाँटने के वा त वक एहसास से पहले हमारे मन म वा म व का एहसास होना ज़ री है। कई लोग
अपने वैवा हक जीवन तथा प रवार म या तो मशीनी अंदाज़ म दे ते ह या फर कुछ भी दे ने या बाँटने से इंकार कर
दे ते ह। हो सकता है उ ह वयं पर वा म व का या अपनी पहचान का एहसास कभी न आ हो। या फर शायद
उ ह कभी वयं के मह व का अनुभव न आ हो। अपने ब च के वकास म सचमुच मदद करने म हम इतना
धैयवान बनना पड़ता है क हम उ ह वा म व का एहसास होने द। साथ ही हम इतना बु मान भी बनना पड़ता है
क हम उ ह दे ने का मह व सखाय तथा वयं उदाहरण पेश कर।

सम या को दे खने का हमारा तरीक़ा ही सम या है


जब लोग ठोस स ांत के आधार पर चलने वाले य , प रवार तथा संगठन के जीवन म अ छ चीज़
घ टत होते दे खते ह, तो उनक ज ासा जाग जाती है। वे उनक गत साम य तथा प रप वता, पा रवा रक
एकता व ट मवक, अनुकूलनशील और सन ज टक संगठना मक सं कृ त क शंसा करते ह।
और उनका पहला आ ह उनके मूलभूत पैरेडाइम को कट कर दे ता है, “आप ऐसा कस तरह करते ह? मुझे
भी इसक तकनीक सखा द।” दरअसल वे यह कह रहे ह, “मुझे कोई तुरत-फुरत सलाह या समाधान दे द, ता क
मुझे अपनी थ त के दद से मु मल सके।”
उ ह ऐसे लोग मल जायगे, जो उनक इ छा को पूरा करते ए उ ह ऐसी चीज़ सखा दगे। और कुछ समय
के लये ये उपाय या तकनीक सफल होती भी दख सकती ह। ये उपाय या तकनीक सामा जक ए परीन और बड-
एड क तरह कुछ सतही या गंभीर सम या को ख़ म भी कर सकती ह।
परंतु गहराई म छु पी थायी सम या य क य बनी रहती है और अंततः नये गंभीर ल ण पुनः उभर
आयगे। लोग तुरत-फुरत समाधान के मा यम से अपनी गंभीर सम या तथा दद को र करने पर जतना यान
क त करगे, गहराई म थत उनक सम या उतनी ही बढ़ती जायेगी।
सम या को दे खने का हमारा तरीक़ा ही सम या है।
जन चता से यह अ याय शु आ था, आइये एक बार फर उन पर ग़ौर कर और व-आधा रत
नी तशा के भाव का वश्लेषण कर।

मने भावकारी मैनेजमट सखाने वाले कई श ण काय म म भाग लया है। अपने कमचा रय से मेरी अपे ाय
ब त यादा ह। म उनके साथ म तापूण तथा सही वहार करने क लगातार को शश करता ँ। परंतु मुझे नह
लगता क वे मेरे त वफ़ादार ह। मुझे महसूस होता है क अगर म कसी दन बीमार पड़ जाऊँ और ऑ फ़स न
आऊँ, तो वे सारा दन वाटर कूलर के आस-पास खड़े होकर गपशप करते रहगे। म उ ह आ म नभर और ज़ मेदार
य नह बना पाता - या इस तरह के कमचारी य नह ढूँ ढ़ पाता?

व-आधा रत नी तशा मुझसे कहता है क म कोई नाटक य काय क ँ (उ ह चीज़ बेहतर रोशनी म
दखाऊँ, उनके म त क को अपे त दशा म मोड़ ँ ), ता क मेरे कमचारी सही प म ढल जाय और उनके पास
जो है, उसका मह व समझने लग। या म कोई ऐसा ेरणादायक श ण काय म खोज लू,ँ जो उ ह न ावान बना
सके। या फर म ऐसे नये लोग को नौकरी पर रख लू,ँ जो बेहतर काम कर।
परंतु या इस बात क संभावना है क मेरे कमचा रय के न ाहीन तीत होते वहार के पीछे मुझसे जुड़ा
कोई कारण है? कह ऐसा तो नह क कमचारी अपने मन म यह सवाल कर रहे ह क या म सचमुच उनके
सव े हत म काम कर रहा ँ? कह ऐसा तो नह क उ ह यह लग रहा हो क म उनके साथ मशीन क तरह
वहार कर रहा ँ? या इसम कुछ स चाई है?
अपने मन क गहराई म या म सचमुच उ ह इसी तरीक़े से दे खता ? ँ या इस बात क संभावना है क जो
लोग मेरे लये काम करते ह, उ ह दे खने का मेरा तरीक़ा ही सम या का ह सा हो?

करने के लये ब त काम है, पर समय ब त कम है। म स ताह म सात दन, हर दन, हर पल दबाव और तनाव म
जीता ँ। म टाइम मैनेजमट से मनार म गया ँ और मने समय के बंधन क आधा दजन योजना को
आज़माकर भी दे खा है। हालाँ क मुझे कुछ लाभ तो मला है, परंतु अब भी मुझे यह एहसास नह होता क म उतना
सुखद, सफल और शां तपूण जीवन जी रहा ,ँ जतना म जीना चाहता ।ँ

व-आधा रत नी तशा मुझे बताता है क कोई न कोई चीज़ ज़ र होगी (कोई नया लानर या
से मनार), जो अ धक काय-कुशल तरीक़े से इन दबाव से नबटने म मेरी मदद करेगी।
परंतु या इस बात क संभावना है क काय-कुशलता (efficiency) सही समाधान ही न हो? या कम समय
म यादा काम करने से सचमुच फ़क़ पड़ेगा - या फर यह सफ़ उन प र थ तय तथा लोग पर त या करने क
मेरी ग त को बढ़ायेगा, जो मेरे जीवन को नयं त करते तीत होते ह?
या कोई ऐसी चीज़ हो सकती है, जसे मुझे अ धक गहरे और मूलभूत तरीक़े से दे खने क ज़ रत है - मेरे
अंदर का कोई पैरेडाइम, जो अपने समय, जीवन और वभाव को दे खने के मेरे तरीक़े को भा वत करता है?
मेरा वैवा हक जीवन घसट रहा है। हम लड़ते-झगड़ते तो नह ह, परंतु हमारे बीच का ेम अब मर चुका है। हमने
वैवा हक परामश लया, ब त से तरीक़े आज़माकर दे खे, परंतु कोई फ़ायदा नह आ। हम अपने भीतर वह भावना
फर से नह जगा पा रहे ह, जो पहले कभी थी।

व-आधा रत नी तशा मुझे बताता है क कोई नई पु तक या से मनार होगा, जहाँ भावना क इतनी
अ छ अभ और वश्लेषण होगा क मेरी प नी मुझे बेहतर तरीक़े से समझ पायेगी। या शायद यह नरथक
है, य क मुझे जस ेम क ज़ रत है, वह मुझे सफ़ एक नये संबंध म ही मल सकता है।
परंतु या इस बात क संभावना है क मेरी प नी असली सम या ही न हो? कह ऐसा तो नह है क म अपनी
प नी क कमज़ो रय को बढ़ा-चढ़ाकर दे ख रहा ँ और अपने साथ होने वाले वहार को अपने जीवन म ह त ेप
करने दे रहा ँ?
मेरे जीवनसाथी के बारे म, ववाह के बारे म या स चे ेम के बारे म या मेरा कोई ऐसा मूलभूत पैरेडाइम है,
जो सम या को बढ़ा रहा है?

या आप दे ख सकते ह क व-आधा रत नी तशा के पैरेडाइ स इस बात को मूलभूत प से


भा वत करते ह क हम कस तरीक़े से अपनी सम या को दे खते ह और उ ह सुलझाने क को शश करते ह?
चाहे लोग इसे दे ख पाय या नह , परंतु व-आधा रत नी तशा के खोखले वायद से ब त से लोग का
मोहभंग हो रहा है। दे श भर म या ा करने और अनेक संगठन के साथ काम करने के दौरान मने पाया है क
द घकालीन चतन करने वाले ए ज़ी यू ट ज़ ने मान सक उ साह बढ़ाने वाले मनो व ान से मुँह मोड़ लया है।
उ ह ने उन “ ेरणादायी” व ा क तरफ़ से मुँह मोड़ लया है, जनके पास मनोरंजक कहा नय तथा घसी- पट
उ य के सवाय कुछ नह होता।
वे कुछ ठोस चाहते ह; वे सही या चाहते ह। वे ए प रन और बड-एड् स जैसे तुरत-फुरत उपाय से
अ धक भावकारी तरीक़ा चाहते ह। वे लंबे समय से गहराई म दबी सम या को सुलझाना चाहते ह। और वे उन
स ांत पर यान क त करना चाहते ह, जनसे द घकालीन प रणाम मल।

सोच का एक नया तर
अ बट आइं ट न ने कहा था, “हमारी मह वपूण सम याएँ सोच के उसी तर पर नह सुलझाई जा सकत ,
जस तर पर हमने उ ह पैदा कया था।”
जब हम अपने चार तरफ़ तथा अपने अंदर ग़ौर से दे खते ह और उन सम या को पहचानते ह, ज ह हमने
व-आधा रत नी तशा के भीतर जीते ए तथा काम करते ए पैदा कया था, तो हम यह एहसास होने
लगता है क ये गहरी तथा मूलभूत सम याएँ ह। इ ह उस सतही तर पर नह सुलझाया जा सकता, जस तर पर ये
पैदा ई थ ।
हम इन गहरी सम या को सुलझाने के लये एक नये और अ धक गहरे तर के सोच क ज़ रत है। हम
एक ऐसे पैरेडाइम क ज़ रत है, जो सट क तरीक़े से भावकारी मानवीय अ त व और वहार के े का वणन
करने वाले स ांत पर आधा रत हो।
अ त भावकारी लोग क सात आदत साचे के इसी नये तर के बारे म है। यह गत तथा सामा जक
भावका रता के बारे म स ांत-क त, च र -आधा रत, “अंदर से बाहर क ओर” क नी त है।
“अंदर से बाहर क ओर” (Inside-Out) का अथ है सबसे पहले वयं से शु आत करना। इससे भी
मूलभूत बात है अपने सबसे अंद नी ह से यानी अपने पैरेडाइम, अपने च र और अपने उद्दे य से शु करना।
यह कोण कहता है क अगर आप सुखद वैवा हक जीवन जीना चाहते ह, तो आपको उस तरह का
बनना होगा, जो सकारा मक ऊजा उ प करे और नकारा मक ऊजा को बढ़ाने के बजाय इससे बचे। अगर आप
अपने कशोर बेटे को अ धक ख़ुशनुमा व सहयोगी बनाना चाहते ह, तो आपको अ धक समझदार, सहानुभू तपूण,
सामंज यपूण और ेमपूण अ भभावक बनना होगा। अगर आप अपने काम म अ धक वतं ता चाहते ह, तो
आपको अ धक ज़ मेदार, अ धक सहयोगपूण, अ धक योगदान दे ने वाला कमचारी बनना होगा। अगर आप चाहते
ह क लोग आप पर अ धक वश्वास कर, तो आपको अ धक वश्वास के क़ा बल बनना होगा। अगर आप तभा
के पहचाने जाने क तीयक महानता हा सल करना चाहते ह, तो पहले च र क ाथ मक महानता पर यान
क त कर।
‘इनसाइड-आउट’ कोण कहता है क गत वजय सावज नक वजय से पहले आती है। यह कहता
है क ख़ुद से वायदे करना और नभाना सर से वायदे करने और नभाने से पहले आता है। यह कहता है क
व को च र से ऊपर रखना नरथक है और ख़ुद को सुधारे बना सर के साथ संबंध सुधारने क को शश
करना थ है।
‘इनसाइड-आउट’ एक या है। यह नवीनीकरण क सतत या है, जो मानवीय वकास और ग त
को नयं त करने वाले ाकृ तक नयम पर आधा रत है। यह वकास का ऊ वमुखी च य पथ (upward
spiral) है, जो उ रदायी आ म नभरता तथा भावकारी पार प रक- नभरता के मशः उ चतर प क ओर ले
जाता है।
मुझे ब त से लोग के साथ काम करने का अवसर मला है - ब त अ छे और तभाशाली लोग, ऐसे लोग
जो गहराई से सुख और सफलता हा सल करना चाहते ह, ऐसे लोग जो उनक तलाश म भटक रहे ह, ऐसे लोग जो
सर को खी बना रहे ह। मने बज़नेस ए ज़ी यू ट ज़ और कॉलेज के व ा थय , चच और नाग रक समूह ,
प रवार और दं प तय के साथ काम कया है। अपने समूचे अनुभव म मने कभी भी सम या के थायी समाधान
या द घकालीन सुख और सफलता को बाहर से अंदर क ओर आते नह दे खा।
बाहर से अंदर क ओर (outside-in) के पैरेडाइम के प रणाम व प मने लोग को खी ही दे खा है। वे
हताशा और अकम यता का अनुभव करते ह। वे सर क कमज़ो रय और उन प र थ तय पर यान क त करते
ह, ज ह वे अपनी खद थ त के लये ज़ मेदार मानते ह। मने वैवा हक जीवन म खी दं प त दे खे ह, जहाँ दोन
ही सामने वाले को बदलना चाहते ह, जहाँ दोन ही सामने वाले के “दोष” गनाते ह, जहाँ दोन ही सामने वाले को
अपने साँचे म ढालना चाहते ह। मने मक और बंधन के बीच ऐसे ववाद दे खे ह, जनम लोग एक ऐसा कानून
बनाने म ब त सा समय तथा ऊजा ख़च करते ह, जो मक को काम करने के लये ववश करे, जैसे वश्वास क
न व वहाँ पहले से ही मौज़ूद हो।
हमारे प रवार के सद य नया के तीन “सवा धक गम” थान म रह चुके ह - द ण अ का, इज़राइल
और आयरलड। और मेरा वश्वास है क इन सभी जगह पर सम या का ोत बाहर से अंदर क ओर वाला
मुख सामा जक पैरेडाइम था। ववाद म शा मल हर समूह को वश्वास था क सम याएँ “बाहर” थ और अगर
“वे” (यानी सरे लोग) “सुधर जाय” या अचानक इस नया से “ सधार जाय,” तो सम याएँ हल हो जायगी।
इनसाइड-आउट अ धकांश लोग के लये एक नाटक य पैरेडाइम है। काफ़ हद तक इसका कारण यह है क
हमारी कंडीश नग व-आधा रत नी तशा के वतमान सामा जक पैरेडाइम के सश भाव म ई है।
मने अपने गत अनुभव तथा हज़ार लोग के साथ काम करने के अपने अनुभव का वश्लेषण कया।
मने इ तहास के सफल य तथा समाज का भी सावधानीपूवक वश्लेषण कया। इस वश्लेषण के बाद म
इस नतीजे पर प ँचा ँ क सात आदत म समा हत कई स ांत पहले से ही हमारे भीतर गहराई म ह, हमारी
अंतरा मा या चेतना म ह और हमारे सहज ान (common sense) म ह। उ ह पहचानने, उनका वकास करने
और अपनी गहनतम सम या को सुलझाने म उनका योग करने के लये हम सफ़ अलग तरीक़े से सोचने क
ज़ रत है। हम अपने पैरेडाइम को बदलकर एक नये तथा अ धक गहरे “अंदर से बाहर क ओर” (इनसाइड-
आउट) वाले तर तक ले जाने क ज़ रत है।
जब हम ईमानदारी से इन स ांत को समझना और अपने जीवन म उतारना चाहगे, तो मुझे वश्वास है क
हम ट .एस. इ लयट के इस कथन क स चाई को अनुभव कर पायगे:

हम खोजना कभी बंद नह करना चा हये और हमारी सम त खोज का अंत वह पर


प ँचना होगा, जहाँ से हमने शु कया था और उस थान को पहली बार जानना होगा।
सात आदत - एक सं त सव ण

हम वही बन जाते ह, जो हम बार-बार करते ह।


इस लये उ कृ ता कोई काय नह , ब क आदत है।
● अर तू

ह मारा च र मूलतः हमारी आदत से मलकर बनता है। एक सू म कहा गया है, “ वचार बोय, काय क फ़सल
काट; काय बोय, आदत क फ़सल काट; आदत बोय, च र क फ़सल काट; च र बोय, नय त क फ़सल
काट।”
आदत हमारे जीवन का ब त श शाली ह सा ह। वे लगातार दोहराई जाने वाली ऐसी याएँ ह, जनका
ोत अ सर अचेतन म होता है। इस लये वे लगातार, हर दन हमारे च र को करती ह और हमारी
भावका रता या उसक कमी का कारण होती ह।
जैसा महान श ा वद् होरेस मान ने एक बार कहा था, “आदत र सी क तरह होती ह। हम इसका एक-एक
धागा हर दन बुनते ह और ज द ही यह इतनी मज़बूत हो जाती है क इसे तोड़ा नह जा सकता।” गत प
से म इस कथन के आ ख़री ह से से सहमत नह ँ। म जानता ँ क आदत को तोड़ा जा सकता है। उ ह सीखा
और छोड़ा जा सकता है। परंतु म यह भी जानता ँ क यह फटाफट या तुरत-फुरत उपाय से नह हो सकता। इसम
ज़बद त संक प और या क ज़ रत होती है।
हमम से जो लोग अपोलो 11 क चं मा या ा के सा ी ह, वे उस समय मं मु ध हो गये थे, जब उ ह ने इंसान
को चं मा क सतह पर चलते और पृ वी पर वापस लौटते दे खा। उन रोमांचक दन के वणन के लये
“अक पनीय” और “अ वश्वसनीय” जैसे उ च को ट के वशेषण भी अपया त थे। बहरहाल, वहाँ प ँचने से पहले
अंत र या य को पृ वी के बल गु वाकषण को तोड़ना था। ऊपर उठने के उन शु आती कुछ मनट म
जतनी ऊजा लगी, उतनी अगले कई दन क पाँच लाख मील लंबी या ा म भी नह लगी।
आदत म भी बल गु वाकषण श होती है, जसका या तो यादातर लोग को पूरी तरह एहसास नह
होता या फर वे इसे वीकार नह करते। मानवीय भावका रता के मूलभूत स ांत का उ लंघन करने वाली
टालमटोल, अधीरता, आलोचना या वाथ जैसी आदत इतनी गहराई म जड़ जमा लेती ह क उ ह उखाड़ फकने के
लये जीवन म छु टपुट प रवतन करने या थोड़ी सी इ छाश से काम नह चलता। “ऊपर उठने” के लये ज़बद त
को शश क ज़ रत होती है, परंतु एक बार जब हम गु वाकषण के घेरे को तोड़कर उससे मु हो जाते ह, तो
हमारी वतं ता बलकुल नया आयाम ले लेती है।
कसी भी ाकृ तक श क तरह गु वाकषण क श भी हमारे प या वप म काम कर सकती है। हो
सकता है हमारी कुछ आदत का गु वाकषण फलहाल हम वहाँ जाने से रोक रहा हो, जहाँ हम जाना चाहते ह।
परंतु सरी तरफ़ यह गु वाकषण ही है, जो हमारे संसार को एक सू म बाँधता है, ह को उनक क ा म
रखता है और हमारे ांड को सु व थत बनाता है। यह एक बल श है और अगर हम आदत क
गु वाकषण श का योग कर, तो हम भावकारी जीवन के लये आव यक सु व था तथा सामंज य उ प
कर सकते ह।

“आदत ” क प रभाषा
अपने उद्दे य के लये हम आदत को ान, यो यता और इ छा के कटाव या त छे दन (intersection) के
प म प रभा षत करगे।
ान सै ां तक पैरेडाइम है, जो बताता है क या करना है और य करना है। यो यता यह बताती है क इसे
कैसे करना है। और इ छा ेरणा है, कसी काम को करना चाहना है। अगर हम अपने जीवन म कोई नई आदत
डालना चाहते ह, तो हमम ये तीन होना चा हये।
म अपने ऑ फ़स के सहयो गय , अपने जीवनसाथी या ब च के साथ संवाद म अ भावकारी हो सकता ँ,
अगर म उनक एक भी बात ठ क से सुने बना उ ह लगातार यही बताता र ँ क म या सोचता ँ। जब तक मुझे
आपसी चचा के सही स ांत मालूम न ह , तब तक हो सकता है म कभी यह जान ही न पाऊँ क मुझे सर क
बात सुनना भी चा हये।
और मान ली जये, मुझे यह ान हो क सर के साथ भावकारी संवाद करने के लये मुझे उनक बात यान
से सुनना चा हये, तो हो सकता है मुझम इसक यो यता न हो। हो सकता है मुझे यह पता ही न हो क दरअसल
कसी क बात को गहराई से कैसे सुना जाता है।
परंतु यह जानना ही काफ़ नह है क मुझे सुनना चा हये और कैसे सुनना चा हये। जब तक म सुनना न चा ,ँ
जब तक मुझम सुनने क इ छा न हो, तब तक यह मेरे जीवन म आदत नह बन सकती। आदत डालने के लये इन
तीन आयाम पर मेहनत करने क ज़ रत होती है।
बनने/दे खने का प रवतन एक ऊ वमुखी या है - बनना दे खने को बदल दे ता है, जो इसके बाद बनने को
बदल दे ता है और जैस-े जैसे हम वकास के ऊ वमुखी च य पथ (upward spiral) पर ऊपर उठते जाते ह, यह
सल सला चलता रहता है। ान, यो यता और इ छा पर मेहनत करके जब हम अपने पुराने पैरेडाइ स को याग दे ते
ह (हो सकता है वे बरस तक हमारे लये छद्म सुर ा का ोत रहे ह ), तो इसके बाद हम गत तथा
सामा जक भावका रता के नये तर पर प ँच सकते ह।
भावकारी आदत
आ मसात कये गये स ांत और वहार के पैटन
कई बार यह या क कारी होती है। यह एक ऐसा प रवतन है, जसके पीछे े उद्दे य क ेरणा होना
चा हये। इसके पीछे यह इ छा होना चा हये क आप भावी इ छा के लये अपनी वतमान इ छा को याग द।
परंतु इस या से सुख मलता है, जो “हमारे अ त व का ल य और उद्दे य” है। सुख क आं शक प रभाषा
हम इस कार दे सकते ह क यह रगामी इ छत व तु के लये ता का लक इ छत व तु का याग करने
क इ छा और मता का फल है।

प रप वता के पायदान
सात आदत मनोवै ा नक ो साहन के फ़ॉमूल का अलग-अलग या संयु समूह नह ह। वकास के
ाकृ तक नयम के तारत य म ये आदत गत व सामा जक भावका रता के वकास क मक,
सल सलेवार और अ यंत एक कृत नी त सुझाती ह। ये हम प रप वता के पायदान पर उ रो र ग त क ओर ले
जाती ह, पहले नभरता (dependence) से आ म नभरता (independence) क ओर आैर उसके बाद
आ म नभरता से पर पर- नभरता (interdependence) क ओर।
हम सभी शशु के प म जब जीवन क शु आत करते ह, तो हम सर पर पूरी तरह से नभर होते ह। सरे
हम दशा दे ते ह, पालते ह और सहारा दे ते ह। अगर सरे हमारा लालन-पालन न कर, तो हम सफ़ कुछ घंट तक
या अ धक से अ धक कुछ दन तक ही जी पायगे।
फर धीरे-धीरे उ बढ़ने के साथ हम शारी रक, मान सक, भावना मक और आ थक प से अ धक
आ म नभर बनते जाते ह। अंततः एक समय ऐसा आता है, जब हम पूरी तरह से अपना याल रखने लगते ह,
अपने नणय वयं लेने लगते ह और आ म नभर बन जाते ह।
जैसे-जैसे हम वकास करते ह और प रप व होते जाते ह, हम इस बात का उतना ही यादा एहसास होता
जाता है क समूची कृ त पर पर- नभर है और एक पर पर- नभर पयावरण तं कृ त को चलाता है, जसम
समाज भी शा मल है। वकास क इस या ा म और आगे बढ़ने पर हम पता चलता है क हमारी े मताय और
उपल धयाँ सरे लोग के साथ हमारे संबंध पर नभर ह। और इस तरह हम यह जान जाते ह क मानव जीवन भी
पर पर- नभर है।
बा याव था से वय कता तक होने वाला हमारा वकास ाकृ तक नयम के अनु प होता है। बहरहाल,
वकास के कई आयाम होते ह। उदाहरण के लये, पूण शारी रक प रप वता के तर पर प ँचने का यह मतलब
नह है क हम भावना मक या मान सक प से भी प रप व हो चुके ह। इसी तरह अगर कोई शारी रक प
से सर पर नभर है, तो यह ज़ री नह है क वह मान सक या भावना मक प से अप रप व हो।
प रप वता के पायदान म नभरता का पैरेडाइम है आप - आप मेरा याल रख; आप मेरी र ा कर;
आपने मुझे नह बचाया; म प रणाम के लये आपको दोष दे ता ँ।
आ म नभरता का पैरेडाइम है म - म यह काम कर सकता ँ; म ज़ मेदार ँ; म आ म नभर ँ; म चुनाव
कर सकता ँ।
पर पर- नभरता का पैरेडाइम है हम - हम यह काम कर सकते ह; हम सहयोग कर सकते ह; हम अपनी
यो यता और तभा को संयु करके तथा मलकर यादा अ छा काम कर सकते ह।
नभर जो चाहते ह, उसे पाने के लये उ ह सर क ज़ रत होती है। आ म नभर जो चाहते ह,
उसे वे वयं के यास से हा सल कर सकते ह। पर पर- नभर अपने यास को सर के यास के साथ
जोड़कर अपनी महानतम सफलता हा सल करते ह।
अगर म शारी रक प से नभर ँ - यानी लक़वे या वकलांगता या कसी अ य शारी रक अ मता का शकार
ँ - तो मुझे अपनी मदद के लये आपक ज़ रत होगी। अगर म भावना मक प से नभर ँ, तो मुझे मह व तथा
सुर ा का एहसास इस बात से होगा क आप मेरे बारे म या सोचते ह। अगर आप मुझे पसंद नह करगे, तो यह
मेरे लये खदायी हो सकता है। अगर म बौ क प से नभर ँ, तो म आपसे यह अपे ा क ँ गा क आप मेरे
लये नणय ल, मेरे लये सोच और मेरे जीवन क सम याएँ सुलझाय।
अगर म शारी रक प से आ म नभर ँ, तो म अपने सारे काम ख़ुद कर सकता ँ। अगर म मान सक प से
आ म नभर ,ँ तो म अपने लये सोच सकता ,ँ वचार के एक तर से सरे तर तक आगे जा सकता ँ,
रचना मक प से सोच सकता ँ, वश्लेषण कर सकता ँ, अपने वचार को सु व थत कर सकता ँ और उ ह
इस तरह कर सकता ,ँ ता क लोग उ ह समझ ल। अगर म भावना मक प से आ म नभर ,ँ तो मुझे
समथन और मा यता अपने भीतर से मलती है। म अपने अंदर से संचा लत होता ।ँ आ मस मान का मेरा एहसास
कसी सरे क शंसा या अ छे वहार पर नभर नह होता।
यह आसानी से नज़र आ जाता है क आ म नभरता नभरता क तुलना म ब त अ धक प रप व है।
आ म नभरता अपने आप म एक मुख उपल ध है, परंतु यह सव े नह है।
बहरहाल, वतमान सामा जक पैरेडाइम आ म नभरता को सहासन पर बैठाता है। यह ब त से य तथा
सामा जक आंदोलन का घो षत ल य है। आ मसुधार का अ धकांश सा ह य आ म नभरता को सव च थान पर
रखता है, मानो सं ेषण, ट मवक और सहयोग कम मह वपूण ह ।
दरअसल हम वतमान म आ म नभरता पर इतना ज़ोर इस लये दे ते ह, य क हम नभरता को पसंद नह
करते, जसम सरे लोग हम नयं त करते ह, हम प रभा षत करते ह, हमारा इ तेमाल करते ह और हमारा शोषण
करते ह।
यादातर लोग पर पर- नभरता क अवधारणा को समझ नह पाते ह और उ ह इसम नभरता क गंध आती
है। यही वजह है क हम ऐसे लोग मल जाते ह, जो आ म नभरता के नाम पर अ सर वाथवश अपने वैवा हक
संबंध तोड़ दे ते ह, ब च को छोड़ दे ते ह और हर तरह क सामा जक ज़ मेदारी से कतराते ह।
जस तरह क त या के प रणाम व प लोग “अपनी जंज़ीर उतार फकते ह,” “ वतं ” हो जाते ह,
“अपने अ धकार का दावा” करते ह और “अपने काम ख़ुद करते ह,” उससे अ सर यादा बु नयाद नभरताएँ
कट होती ह। ये ऐसी नभरताएँ ह, जनसे भागा नह जा सकता, य क ये बाहरी नह , अंद नी होती ह - जैसे
सर क कमज़ो रय को अपना भावना मक जीवन तहस-नहस करने क अनुम त दे ना या हमारे नयं ण के बाहर
के लोग तथा घटना ारा शो षत महसूस करना।
ज़ा हर है, हम यह महसूस हो सकता है क हम अपनी प र थ तय म प रवतन करने क आव यकता है।
परंतु नभरता क सम या गत प रप वता का मु ा है, जसका प र थ तय से ब त कम लेना-दे ना है।
प र थ तयाँ बेहतर हो जाय, तो भी अप रप वता और नभरता अ सर बनी रहती ह।
च र क स ची आ म नभरता हम ख़ुद काय करने क श दे ती है, बजाय इसके क सरे हमसे काम
करवाय। यह हम प र थ तय और सरे लोग पर नभरता से वतं करती है। और यह एक मह वपूण व वतं ता
दान करने वाला ल य है, परंतु यह भावकारी जीवन का अं तम ल य नह है।
सफ़ आ म नभर चतन ही पर पर- नभर वा त वकता के लये पया त नह है। जन आ म नभर लोग म
पर पर- नभरता के अनु प सोचने तथा काम करने क प रप वता नह होती, वे गत प से तो अ छा काम
कर सकते ह, परंतु वे ट म के अ छे लीडर या खलाड़ी नह हो सकते। वे पर पर- नभरता के उस पैरेडाइम को नह
जान पाये ह, जो ववाह, प रवार या संगठन म वा त वक सफलता पाने के लये आव यक है।
जीवन क कृ त ही ब त अ धक पर पर- नभर है। आ म नभरता ारा अ धकतम भावका रता हा सल
करने क को शश करना गो फ़ क टक से टे नस खेलने क को शश करने क तरह है - उपकरण वा त वक
आव यकता के अनु प नह है।
पर पर- नभरता अ धक प रप व और उ त अवधारणा है। अगर म शारी रक प से पर पर- नभर ,ँ तो
इसका मतलब यह है क म आ म नभर और स म ँ, परंतु मुझे यह एहसास भी है क आप और म अगर साथ
मलकर काम कर, तो उससे अ धक हा सल कर सकते ह, जो म अपने सव े प म अकेले हा सल कर सकता
ँ। अगर म भावना मक प से पर पर- नभर ,ँ तो मुझे अपने मह व का एहसास अपने भीतर से मलता है, परंतु
म सर को ेम दे ने तथा उनका ेम पाने क आव यकता को भी पहचानता ँ। अगर म बौ क प से पर पर-
नभर ँ, तो मुझे अपने चतन के साथ-साथ सर के सव े चतन क भी आव यकता महसूस होती है।
पर पर- नभर के प म मेरे पास सर के साथ गहराई से जुड़ने तथा साथक तरीक़े से ख़ुद को बाँटने
का अवसर होता है और म सर क साम य तथा वृहद संसाधन का लाभ भी उठा सकता ।ँ
पर पर- नभरता का चुनाव सफ़ आ म नभर ही कर सकते ह। नभर पर पर- नभर बनने का
चुनाव नह कर सकते। उनम ऐसा करने के लये आव यक च र नह होता और उनम यह नणय लेने क श भी
नह होती।
यही वजह है क आगामी अ याय क पहली, सरी और तीसरी आदत वयं पर वजय पाने से संबं धत ह। ये
को नभरता से आ म नभरता क ओर ले जाती ह। ये “ गत वजय” ह और च र के वकास का सार
ह। गत वजय सावज नक वजय से पहले आती है। आप इस या को उलट नह सकते, जस तरह
आप फ़सल बोने से पहले उसे काट नह सकते। यह “अंदर से बाहर क ओर” (Inside-out) है।
जब आप सचमुच आ म नभर बन जाते ह, तो आप भावकारी पर पर- नभरता क न व तैयार कर लेते ह।
आपके पास च र का वह आधार होता है, जससे आप भावकारी तरीक़े से व- धान “सावज नक वजय”
क ओर बढ़ सकते ह। “सावज नक वजय” को संभव बनाने के लये ट मवक, सहयोग और सं ेषण मह वपूण ह,
जनका वणन चौथी, पाँचव और छठ आदत म है।
इसका यह मतलब नह है क आपको चौथी, पाँचव और छठ आदत पर काम शु करने से पहले पहली,
सरी और तीसरी आदत म पूरी तरह आदश बनना होगा। अगर आप म को समझ लगे, तो आप अ धक
भावकारी तरीक़े से अपना वकास कर पायगे, परंतु म यह सुझाव नह दे रहा ँ क जब तक आप पहली, सरी
और तीसरी आदत पूरी तरह वक सत न कर ल, तब तक आप कई साल तक ख़ुद को सबसे अलग-थलग या र
रख।
पर पर- नभर संसार का सद य होने के नाते आपको हर दन संसार के संपक म आना पड़ता है। परंतु इस
संसार क गंभीर सम याएँ च र के पुराने कारण को ब त आसानी से छु पा सकती ह। जब आप यह समझ लगे
क आपके वा त वक व प का पर पर- नभर संबंध पर कैसा भाव पड़ता है, तो इससे आपको अपने यास
को वकास के ाकृ तक नयम के अनु प मब करने म मदद मलेगी।
सातव आदत नवीनीकरण क आदत है, जसम जीवन के चार मूलभूत आयाम का नय मत तथा संतु लत
नवीनीकरण होता है। यह बाक़ सभी आदत को घेरे और अपने भीतर समाये ए है। यह नरंतर सुधार क आदत
है, जो वकास का ऊ वमुखी च य पथ बनाती है। जब आप वकास क या म अपे ाकृत ऊँचे तर पर प ँच
जाते ह, तो यह पथ आपको नये उ च तर पर ले जाता है, जहाँ आप इन सभी आदत को समझते और इनके
अनु प जीते ह।
पृ 69 पर दये गये च म सात आदत के म तथा पर पर- नभरता का च ण है। जब भी हम इस पु तक
म आदत के मक संबंध और उनक सनज का अ ययन करगे, तो हम इस च का योग करगे। हम यह
जानगे क कस तरह एक- सरे से संब होने पर आदत सरी आदत पर प रवतनकारी भाव डालती ह और
अपना मू य भी बढ़ाती ह। हर अवधारणा या आदत का वणन करते समय च म उसे रेखां कत कया जायेगा।

भावका रता क प रभाषा


ये सात आदत भावका रता क आदत ह। चूँ क ये स ांत पर आधा रत ह, इस लये लंबे समय म ये हम
अ धकतम अ छे प रणाम दे ती ह। ये कसी के च र का आधार बन जाती ह और ु टर हत न शो के
श दायक क क रचना करती ह, जससे वह भावकारी ढं ग से अपनी सम या को सुलझा सकता है,
अपने अवसर को अ धकतम कर सकता है, और अ य स ांत को लगातार सीखकर उ ह वकास के ऊ वमुखी
च य पथ म संयो जत कर सकता है।
ये भावका रता क आदत इस लये भी ह, य क ये भावका रता के पैरेडाइम पर आधा रत ह। यह
पैरेडाइम एक ाकृ तक नयम के सामंज य म है, जसे म “पी/पीसी संतुलन” कहना चा ँगा, जसके व
चलकर ब त से लोग ख़ुद को बबाद कर लेते ह। ईसप क मुग और सोने के अंडे क कहानी के मा यम से इस
स ांत को आसानी से समझा जा सकता है।
इस नी तकथा म एक ग़रीब कसान क कहानी है, जसे एक दन अपनी य मुग के दड़बे से सोने का
चमकदार अंडा मला। पहले तो उसने सोचा क यह उसक आँख का वहम होगा। परंतु जब वह अंडे को फकने
लगा, तो उसके मन म वचार आया क य न सुनार से इसक जाँच करवा ली जाये।
सुनार ने उसे बताया क अंडा शु सोने का है! कसान को अपनी क़ मत पर यक़ न नह आ। जब अगले
दन फर यही घटना ई, तो वह और भी हैरान आ। हर दन सुबह आँख खुलते ही वह दड़बे क तरफ़ भागता था
और उसे रोज़ सोने का एक अंडा मल जाता था। दे खते ही दे खते वह ब त अमीर बन गया, परंतु उसे यह सब
कसी सपने क तरह लगता था।
बहरहाल, अमीर बनने के साथ ही उसम लालच और अधीरता क भावनाय आ ग । उसने सोचा क हर दन
सोने के अंडे का इंतज़ार य कया जाये। इस लये एक दन उसने फ़ैसला कया क वह मुग को मार डालेगा और
उसके भीतर के सारे अंडे एक ही बार म बाहर नकाल लेगा। परंतु जब उसने मुग का पेट चीरा, तो उसे अंदर कुछ
नह मला। वहाँ पर एक भी सोने का अंडा नह था। और अब भ व य म उसे सोने का एक भी अंडा नह मल
सकता था। जो मुग सोने के अंडे दे ती थी, कसान ने उस मुग को ही मार डाला था।
मेरे वचार से इस कहानी म एक ाकृ तक नयम, एक स ांत, भावका रता क मूलभूत प रभाषा न हत
है। अ धकांश लोग भावका रता को सोने के अंडे के पैरेडाइम से दे खते ह: आप जतना यादा उ पादन करते ह
या जतना यादा काम करते ह, आप उतने ही यादा भावकारी ह।
परंतु जैसा यह कहानी दशाती है, स ची भावका रता म दो चीज़ होना अ नवाय है: उ पादन (सोने के अंडे),
और उ पादन करने वाली संप या उ पादन मता (मुग )।

सात आदत का पैरेडाइम


अगर आप जीवन म ऐसा कोण अपनाते ह, जो सफ़ सोने के अंड पर ही यान क त करे और मुग को
नज़रअंदाज़ कर दे , तो आप ज द ही सोने के अंडे दे ने वाली संप को गँवा दगे। सरी तरफ़, अगर आप सफ़
मुग का ही यान रखगे और सोने के अंड को नज़रअंदाज़ कर दगे, तो ज द ही आपके पास इतने साधन नह
बचगे, जनसे आप अपना या मुग का पेट भर सक।
भावका रता संतुलन म न हत है, जसे म पी/पीसी संतुलन कहता ँ। पी (Production) यानी इ छत
प रणाम का उ पादन या सोने के अंडे। पीसी (Production Capability) यानी सोने के अंड का उ पादन करने
वाली उ पादन मता, यो यता या संप ।

तीन कार क संप याँ


मूल प से संप याँ तीन कार क होती ह: भौ तक, आ थक और मानवीय। आइये इ ह एक-एक करके
दे ख।
कुछ साल पहले मने एक भौ तक संप ख़रीद - पॉवर लॉनमोअर यानी लॉन क घास काटने वाली
व ुतच लत मशीन। मने इसका लगातार योग कया, परंतु इसके रखरखाव पर बलकुल यान नह दया। मशीन
कुछ समय तक तो अ छ चली, फर गड़बड़ करने लगी। मने इसक मर मत करवाकर और इसक धार तेज़
करवाकर इसे बारा पहले जैसा बनाने क को शश क , परंतु मने पाया क इंजन क मता आधी हो गई थी। एक
तरह से अब यह मशीन लगभग बेकार हो गई थी।
अगर मने पीसी म नवेश कया होता, यानी इस संप को सुर त रखने तथा इसके रखरखाव पर यान
दया होता, तो म अब भी इसके ारा उ प पी यानी अपने तराशे ए लॉन का आनंद ले रहा होता। बहरहाल,
इसका प रणाम यह आ क पुरानी मशीन के रखरखाव म मुझे जतना समय और धन ख़च करना पड़ता, उससे
अ धक मुझे नई मशीन ख़रीदने म करना पड़ा। यह क़तई भावकारी तरीक़ा नह था।
अ पकालीन लाभ या प रणाम के लालच म हम अ सर अपनी मू यवान भौ तक संप य को बबाद कर
दे ते ह। इन संप य म हमारी कार, क यूटर, वॉ शग मशीन या ायर तो शा मल ह ही, हमारा शरीर और पयावरण
भी शा मल है। पी और पीसी म संतुलन बनाये रखने से भौ तक संप य के भावकारी योग म ब त यादा फ़क़
पड़ता है।
आ थक संप के भावकारी येाग पर भी इसका ब त यादा भाव पड़ता है। लोग अ सर मूलधन और
याज के अंतर को नह समझ पाते ह। या आपने कभी अपने जीवन- तर को ऊँचा उठाने के लये या सोने के
यादा अंडे पाने के लये अपने मूलधन का योग कया है? घटते मूलधन म याज या आमदनी पैदा करने क
घटती श होती है। घटती ई पूँजी समटती जाती है और एक समय ऐसा आता है, जब यह बु नयाद
आव यकता को भी पूरा नह कर पाती।
हमारी सबसे मह वपूण आ थक संप है हमारी कमाने क मता। अगर हम अपने पीसी को बेहतर बनाने म
लगातार नवेश नह करते ह, तो हम अपने वक प को ब त सी मत कर लेते ह। हम अपनी वतमान थ त म ही
क़ैद होकर रह जाते ह और इस वचार से डरते रहते ह क कंपनी या बॉस हमारे बारे म या सोचते ह गे। इस तरह
हम आ थक प से नभर तथा र ा मक हो जाते ह। एक बार फर, यह भावकारी तरीक़ा नह है।
मानवीय े म भी पी/पीसी संतुलन इतना ही मूलभूत है, परंतु यह अ धक मह वपूण इस लये हो जाता है
य क भौ तक तथा आ थक संप य को मानव ही नयं त करता है।
जब वैवा हक जीवन म प त-प नी दोन ही सोने के अंडे यानी लाभ पाने के बारे म यादा चता करते ह और
इसे संभव बनाने वाले र ते को सुर त रखने के बारे म कम चता करते ह, तो वे अ सर असंवेदनशील और
लापरवाह हो जाते ह। वे उदारता के छोटे -छोटे काय को नज़रअंदाज़ कर दे ते ह और उस श ाचार को भूल जाते
ह, जो गहरे र ते म बेहद मह वपूण होता है। वे एक- सरे से काम नकलवाने के लये भावना मक नयं ण के
दाँव-पच का योग करने लगते ह, अपनी ख़ुद क आव यकता पर यान क त करने लगते ह, तक ारा अपने
वहार को उ चत ठहराते ह और सामने वाले को ग़लत सा बत करने के लये माण तलाशते ह। ेम, गाढ़ता,
कोमलता और सहजता कम होने लगती है। मुग दनो दन बीमार होती जाती है।
अब हम दे ख क ब च और माता- पता के र ते म या होता है। जब ब चे ब त छोटे होते ह, तो वे ब त
नभर, कोमल और असुर त होते ह। ऐसे म पीसी क मेहनत को नज़रअंदाज़ करना ब त आसान होता है। आप
उ ह श ण दे न,े उनसे संवाद करने, उनके साथ जुड़ने और उनक बात सुनने के मह व को अनदे खा कर दे ते ह।
इसके बजाय यह यादा आसान होता है क आप उनक असुर त थ त का लाभ उठाय, उनसे अपना काम
नकलवाय, उनसे अपना मनचाहा काम उस तरीक़े से करवाय, जस तरीक़े से आप करवाना चाहते ह - त काल!
आ ख़र आप उनसे बड़े ह, यादा समझदार ह और आप सही ह! इस लये य न उ ह सफ़ यह बता दया जाये
क उ ह या करना है? य द ज़ रत पड़े, तो उन पर चीख़- च लाय, उ ह धमक द और उ ह अपने तरीक़े से काम
करने के लये ववश कर द।
या फर इसके वपरीत, आप उनक हर फ़रमाइश पूरी कर सकते ह। आप लोक यता के सोने के अंडे का
पीछा करते ए उ ह हर क़ मत पर ख़ुश करने क को शश कर सकते ह और हर बार उ ह मनमानी करने क छू ट दे
सकते ह। प रणाम व प, बड़े होने पर उनम मानदं ड या अपे ा का आंत रक बोध नह होगा। साथ ही, उनम
अनुशा सत या ज़ मेदार होने क गत तब ता भी नह होगी।
चाहे आप तानाशाही का तरीक़ा अपनाय या अ त-उदारता का, मूल प से आपक मान सकता सोने के अंडे
क है। आप या तो अपनी ही अपनी चलाना चाहते ह या फर आप यह चाहते ह क ब चे आपको पसंद कर। परंतु
इस दौरान मुग का या होता है? कुछ साल बाद ब चे को ज़ मेदारी या आ म-अनुशासन का कतना एहसास
होगा? या फर उसम कतना आ म वश्वास होगा क वह सही नणय ले सकता है और मह वपूण ल य हा सल
कर सकता है? और आपके र ते का या होगा? जब वह कशोराव था के उस मह वपूण नाजक दौर म प ँचेगा,
जब उसे पहचान के संकट (identity crisis) से गुज़रना पड़ेगा, तो या अपने अनुभव से उसे यह वश्वास होगा
क आप बना नणय सुनाये उसक बात पूरे यान से सुनगे? या उसे यह भरोसा होगा क आप सचमुच गहराई से
उसक परवाह करते ह और चाहे कोई भी बात हो, वह आप पर वश्वास कर सकता है। या यह र ता इतना
मज़बूत होगा क आप उससे जुड़ सक, उससे संवाद कर सक, उसे भा वत कर सक?
मान ली जये, आप चाहते ह क आपक पु ी का कमरा साफ़ रहे। यह पी यानी उ पादन या सोने का अंडा है।
मान ली जये, आप यह भी चाहते ह क वह अपना कमरा ख़ुद साफ़ करे। यह पीसी यानी उ पादन मता है।
आपक पु ी वह मुग या संप है, जो सोने का अंडा दे ती है।
अगर आपके पी और पीसी म संतुलन है, तो वह ख़ुशी-ख़ुशी और बना याद दलाये अपना कमरा साफ़ कर
दे गी। इस लये य क वह तब है और उसम वयं को तब बनाये रखने का अनुशासन है। आपक पु ी वह
मू यवान संप है, वह मुग है, जो सोने का अंडा दे सकती है।
परंतु अगर आपका पैरेडाइम उ पादन पर यानी कमरे को साफ़ कराने पर ही क त है, तो हो सकता है
आपको उससे काम करवाने के लये बार-बार कहना या टोकना पड़े। हो सकता है आप अपने यास बढ़ाकर उस
पर च लाने लग या उसे धमक दे ने लग। इस तरह सोने का अंडा पाने क इ छा क वजह से आप मुग क सेहत
को कमज़ोर बना दे ते ह।

आइये, म आपको अपनी एक बेट के साथ अपना एक रोचक पीसी अनुभव बताता ँ। हम गत डे टग
पर जाने क योजना बना रहे थ। म आपको बताना चा ँगा क म अपने हर ब चे के साथ नय मत प से डे टग पर
जाना पसंद करता ँ। हमने यह पाया है क इस अवसर का इंतज़ार करना उसका अनुभव करने जतना ही
संतु दायक होता है।
इस लये म अपनी पु ी के पास गया और उससे बोला, “बेटा, आज रात हम बाहर जाने वाले ह। बोलो, तुम
या करना चाहती हो?”
उसने जवाब दया, “छो ड़ये डैडी, रहने द जये।”
मने कहा, “नह , सचमुच बताओ, तुम या करना चाहती हो?”
उसने आ ख़रकार कहा, “दे खये, जो म चाहती ँ, वह आपको पसंद नह आयेगा।”
मने गंभीरता से कहा, “दे खो बेटा, मुझे ज़ र पसंद आयेगा। हम लोग इक े कहाँ जायगे, यह फ़ैसला तुम
करोगी।”
उसने जवाब दया, “म टार वास फ़ म दे खने जाना चाहती ँ। परंतु म जानती ँ क आपको टार वास
पसंद नह है। आप इससे पहले वाली फ़ म म सो गये थे। आपको इस तरह क फ़टे सी फ़ म पसंद नह ह। रहने
द जये, डैडी।”
“नह बेटा, अगर तुम यही चाहती हो, तो मुझे भी यह अ छा लगेगा।”
“डैडी, आप इस बारे म परेशान न ह । यह ज़ री तो नह है क हम हमेशा अपनी डेट पर बाहर जाय।” वह
थोड़ा ठहरकर बोली, “परंतु या आप जानते ह क टार वास आपको पसंद य नह आती? ऐसा इस लये है,
य क आप जेडी नाइट के जीवनदशन और श ण को नह समझते ह।”
“ या?”
“डैडी, आप जो स ांत सखाते ह, दरअसल जेडी नाइट को भी उ ह स ांत के अनु प श त कया
जाता है।”
“वाक़ई? तब तो फर हम टार वास दखेने ज़ र चलगे!”
और हम गये। वह मेरे पास बैठ और उसने मुझे पैरेडाइम समझाया। म उसका व ाथ बन गया और उससे
सीखने लगा। यह ब त ही आनंददायक अनुभव था। अब म पूरी फ़ म म एक नया पैरेडाइम दे ख सकता था। अब
म यह समझ गया था क जेडी नाइट के श ण क मूलभूत फ़लॉसफ़ व भ प र थ तय म कस तरह सामने
आती है।
यह कोई पूव- नयो जत पी अनुभव नह था, ब क पीसी नवेश का अ या शत फल था। इससे हमारा र ता
मज़बूत आ और हम आनंद भी आया। साथ ही, हम सोने के अंडे का लाभ भी मला, य क मुग यानी हमारे
र ते क गुणव ा को भरपेट भोजन मला था।

संगठना मक पीसी
कसी भी सही स ांत का एक अ यंत मह वपूण पहलू यह होता है क यह इतना तकसंगत हो क इसे ब त
सी प र थ तय म अपनाया जा सके। इस पूरी पु तक म म उन तरीक़ पर चचा क ँ गा, जनके ारा इन स ांत
को य के साथ-साथ संगठन (organisations) म भी अपनाया जा सकता है, जनम प रवार भी शा मल
ह।
जब लोग संगठन म भौ तक संप य के योग म पी/पीसी संतुलन का स मान नह करते ह, तो वे संगठन
क भावका रता को कम कर दे ते ह। यही नह , वे अ सर मरती ई मुग सर के पास छोड़ जाते ह।
उदाहरण के लये, एक कसी मशीन यानी भौ तक संप का भारी है। वह अपने व र अ धका रय
को भा वत करने के लये ब त उ सुक है। संभवतः कंपनी तेज़ी से ग त कर रही है और मोशन ज द -ज द हो
रहे ह। इस लये वह अ धकतम उ पादन करता है और मशीन के रखरखाव के लये एक दन भी काम नह रोकता।
वह मशीन को दन-रात चलाता है। प रणाम व प उ पादन ब त यादा होता है, लागत कम लगती है और लाभ
आसमान छू ने लगता है। कुछ ही समय म उसे मोशन मल जाता है। सोने का अंडा!
परंतु मान ली जये आप उसक जगह पर नौकरी करने आते ह। आपको वरासत म एक बीमार मुग मलती
है, य क अब तक मशीन के पुज़ घस चुके ह और यह ख़राब होने लगी है। आपको मशीन के रखरखाव के लये
कई दन तक काम बंद करना पड़ता है और ख़च भी करना पड़ता है। लागत आसमान छू ने लगती है और लाभ
रसातल को। सोने के अंड के नुक़सान के लये दोष कसे दया जाता है? आपको। स चाई यह है क संप
आपके पहले वाले सुपरवाइज़र ने न क थी, परंतु हसाब- कताब रखने वाल ने सफ़ कंपनी के उ पादन, लागत
और लाभ का रकॉड रखा।
जब कसी संगठन क मानवीय संप य यानी ाहक और कमचा रय पर पी/पीसी संतुलन को लागू कया
जाता है, तब यह वशेष मह वपूण हो जाता है।
म एक ऐसे रे तराँ को जानता ँ, जहाँ ब त ब ढ़या फ़श सूप मलता था। यह रे तराँ हर दन लंच के समय
ाहक से खचाखच भरा रहता था। फर एक दन इसे बेच दया गया। इसके नये मा लक ने सोने के अंडे पर यान
क त कया और वह सूप म यादा पानी मलाने लगा। एक महीने तक लागत कम होने तथा आमदनी बराबर रहने
के कारण लाभ ब त बढ़ गया। परंतु धीरे-धीरे ाहक कम होने लगे। वश्वास उठ चुका था, इस लये बज़नेस भी
चौपट हो गया। नये मा लक के होश उड़ गये। उसने इसे बारा पहले जैसा लोक य बनाने क ब त को शश क ,
परंतु कोई फ़ायदा नह आ। उसने ाहक क उपे ा क थी, उनका वश्वास तोड़ा था और उनक वफ़ादारी क
संप खो द थी। अब वह मुग ही नह बची थी, जो सोने का अंडा दे सके।
ऐसे ब त से संगठन ह, जहाँ ाहक के बारे म तो ब त बात होती ह, परंतु उन लोग को पूरी तरह अनदे खा
कर दया जाता है, जो ाहक के संपक म आते ह - यानी कमचारी। पीसी स ांत यह है क आप अपने
कमचा रय के साथ हमेशा वैसा ही वहार कर, जैसा आप उनसे अपने सव े ाहक से करवाना
चाहते ह।
आप कसी आदमी के हाथ तो ख़रीद सकते ह, परंतु उसका दल नह ख़रीद सकते, जहाँ उसके उ साह और
वफ़ादारी का नवास है। आप उसक कमर तो ख़रीद सकते ह, परंतु उसका दमाग़ नह ख़रीद सकते, जहाँ उसक
रचना मकता, बु और कुशलता का नवास है।
पीसी का अथ यह है क आप अपने कमचा रय को वे छा से काम करने वाले वयंसेवक समझकर उनसे भी
उसी तरह वहार कर, जस तरह आप अपने ाहक से करते ह। आ ख़र कमचारी वे छा से काम करने वाले
वयंसेवक ही तो ह, य क वे अपने सव म ह स यानी अपने दल और दमाग़ को अपनी इ छा से आपक सेवा
म लगाते ह।

म एक बार एक समूह म था, जहाँ कसी ने पूछा, “आलसी और अयो य कमचा रय को कस तरह सही साँचे
म ढाला जाये?” एक आदमी ने जवाब दया, “हथगोले फक दो!” कई लोग मदाना मैनेजमट के इस सुझाव पर
ख़ुश ए, य क उनके हसाब से सुपरवाइ ज़ग क सही नी त यही थी, “या तो सुधर जाओ, वरना दफ़ा हो
जाओ।”
परंतु समूह म मौज़ूद एक अ य ने पूछा, “टु कड़े कौन उठायेगा?”
“टु कड़े बचगे ही नह ।”
वह बोला, “तो फर आप अपने ाहक के साथ भी ऐसा ही य नह करते? उनसे साफ़ श द म कह
द, ‘सु नये, अगर आप ख़रीदना नह चाहते, तो त काल यहाँ से दफ़ा हो जाय।’”
उसने कहा, “आप ाहक के साथ ऐसा नह कर सकते।”
“तो फर आप अपने कमचा रय के साथ ऐसा कैसे कर सकते ह?”
“ य क वे आपक नौकरी करते ह।”
“म समझ गया। अब आप यह बताय, या आपके कमचारी आपके त सम पत ह? या वे कड़ी मेहनत
करते ह? आपक कंपनी के कतने लोग नौकरी छोड़कर सरी कंप नय म चले जाते ह?”
“ या आप मज़ाक़ कर रहे ह? आजकल अ छे लोग मलते ही कहाँ ह? यादातर कमचारी नौकरी छोड़कर
चले जाते ह, ब त यादा छु याँ लेते ह, हमारे काम के साथ-साथ पाटटाइम काम भी करते ह। लोग को आजकल
कंपनी क ज़रा भी परवाह नह है।”

सोने के अंड क ही परवाह करने वाले नज़ रये या पैरेडाइम पर यान क त करके आप सामने वाले
के दल और दमाग़ क सश ऊजा का दोहन नह कर सकते। अ प अव ध म कंपनी का लाभ मह वपूण तो है,
परंतु यह सबसे मह वपूण नह है।
भावका रता संतुलन म न हत है। पी प रणाम पर अ य धक यान क त करने का नतीजा अ सर यह
होता है क सेहत बगड़ जाती है, मशीन ख़राब हो जाती ह, बक अकाउंट ख़ाली हो जाते ह और र ते टू ट जाते ह।
पीसी पर ज़ रत से यादा यान दे ना उस क तरह है, जो हर दन तीन-चार घंटे दौड़ता है और शेखी
बघारता है क ऐसा करने से उसक उ दस साल बढ़ जायेगी। उसे इस बात का एहसास ही नह होता क वह
लगभग इतना ही समय दौड़ने म लगा रहा है। या फर यह उस क तरह है, जो जीवन भर कूल-कॉलेज म
गुज़ार दे ता है, कभी कोई उ पादन नह करता और सर के सोने के अंड पर जीता है, यानी शाश्वत व ाथ
स ोम (eternal student syndrome) का शकार बना रहता है।
पी/पीसी संतुलन यानी सोने के अंडे (उ पादन) और मुग क सेहत व क याण (उ पादन मता) के बीच
संतुलन बनाना अ सर एक मु कल नणय होता है। परंतु मेरे वचार से यही भावका रता का वा त वक सार है।
यह अ प अव ध के प रणाम को द घ अव ध के प रणाम के साथ संतु लत करता है। यह श ा हा सल करते
समय अ छे नंबर लाने तथा उसक क़ मत अदा करने के बीच संतुलन था पत करता है। यह कमरे को साफ़ रखने
क इ छा तथा पु ी के साथ एक ऐसा र ता बनाने के बीच म संतुलन था पत करता है, जससे पु ी इस काम को
करने के लये भीतर से संक पवान हो और वह ख़ुशी-ख़ुशी, इ छा से तथा बना नगरानी के यह काम कर दे ।
यह एक ऐसा स ांत है, जसे आप अपने जीवन म सही सा बत होते दे ख सकते ह। जब आप सोने के
अ धक अंडे पाने के लये दन-रात ज़ रत से यादा मेहनत करते ह और बीमार हो जाते ह या ब त यादा थक
जाते ह, तो इस वजह से आप अगले दन बलकुल भी उ पादन नह कर पाते। सरी तरफ़, अगर आप रात को
अ छ न द ले लेते ह, तो सुबह जागने पर आप पूरे दन उ पादन करने के लये तैयार होते ह।
इस स ांत को आप तब भी सही सा बत होते दे ख सकते ह, जब आप कसी से अपना मनचाहा काम
करवाने के लये उस पर दबाव डालते ह, परंतु इसके बाद आपको यह महसूस होता है क संबंध कमज़ोर हो गये ह।
सरी तरफ़, जब आप कसी संबंध को मज़बूत बनाने म पया त समय लगाते ह, तो आप दे खते ह क साथ काम
करने और संवाद करने क इ छा तथा यो यता ब त अ धक बढ़ गई ह।
पी/पीसी संतुलन भावका रता का वा त वक सार है। यह जीवन के हर े म सही सा बत होता है। चाहे
हम इसके साथ काम कर या इसके ख़लाफ़, यह हमेशा व मान रहता है। यह लाइटहाउस है। यह भावका रता
क वह प रभाषा और पैरेडाइम है, जस पर इस पु तक क सात आदत आधा रत ह।

इस पु तक का योग कैसे कर
इससे पहले क हम अ त भावकारी लोग क सात आदत पर काम करना शु कर, म आपको दो पैरेडाइम
प रवतन का सुझाव दे ना चा ँगा, जो इस पु तक से मलने वाले लाभ को ब त बढ़ा दगे।
सबसे पहले तो म आपको यह सुझाव ँ गा क आप इसे पु तक के प म न “दे ख,” यानी आप यह न समझ
क आपको बस इसे एक बार पढ़कर रख दे ना है।
हो सकता है क पूरी पु तक क जानकारी हा सल करने के लये आप इसे एक बार म लगातार पूरा पढ़ना
चाह। बहरहाल, पु तक क साम ी को इस तरह तैयार कया गया है, ता क प रवतन तथा वकास क सतत या
म यह हमेशा आपके सहयोगी क भू मका नभाये। इसे वकास के बढ़ते म म व थत कया गया है। हर आदत
के अंत म उसे जीवन म अपनाने के सुझाव दये गये ह, ता क जैसे ही आप तैयार ह , आप कसी वशेष आदत का
अ ययन करके उस पर यान क त कर सक।
जब आप आदत को समझने और उन पर अमल करने के अ धक ऊँचे तर क ओर बढ़ते जाय, तो आप हर
आदत म दये गये स ांत को बार-बार पढ़कर अपने ान, यो यता और इ छा का व तार करने क को शश कर
सकते ह।
मेरा सरा सुझाव यह है क आप इस पु तक के त अपने पैरेडाइम को बदल ल। इस पु तक को सीखने
वाले व ाथ क भू मका के बजाय आप इसे सखाने वाले श क क भू मका म आ जाय। अंदर से बाहर क
ओर क नी त पर चल। इसे कसी सरे को बताने या इस पर चचा करने के उद्दे य से पढ़। यह ल य बना ल क
इसे सीखने के 48 घंटे के भीतर आप इस बारे म कसी सरे को सखायगे या इस पर चचा करगे।
उदाहरण के लये, अगर आपको यह पता होता क आपको अगले 48 घंटे के भीतर कसी को पी/पीसी
संतुलन के बारे म सखाना है, तो या आपने पु तक को अलग ढं ग से पढ़ा होता? जब आप इस अ याय का अं तम
ह सा पढ़ रहे ह, तो इसे आज़माकर दे ख। इस तरह पढ़, जैसे आप इसे अपने जीवनसाथी, ब चे, ावसा यक
सहयोगी या म को आज-कल म सखाने वाले ह, जब यह आपके दमाग़ म तरोताज़ा हो। अपनी मान सक तथा
भावना मक सोच म फ़क़ आपको ख़ुद ही नज़र आ जायेगा।
म गारंट दे ता ँ क अगर आप अगले अ याय क साम ी को इस तरीक़े से पढ़गे, तो इससे आपको न सफ़
पढ़ ई साम ी यादा अ छ तरह याद रहेगी, ब क आपका कोण भी व तृत हो जायेगा, आपक समझ
गहरी हो जायेगी और इन आदत को जीवन म उतारने क ेरणा भी बढ़ जायेगी।
इसके अलावा, जब आप अपने ारा सीखे स ांत खुलेपन और ईमानदारी से सर को बतायगे, तो आपको
यह दे खकर आ य होगा क आपके बारे म लोग के नकारा मक वचार या अनुभू तयाँ ग़ायब होने लगी ह। जन
लोग को आप ये आदत सखायगे, वे आपको एक बदलते और वक सत होते के प म दे खगे। जब आप
अपने जीवन म सात आदत पर अमल करगे, तो लोग आपके इस काम म आपक यादा मदद करगे और आपका
यादा समथन करगे। हो सकता है आपके साथ वे भी अपने जीवन म इन आदत पर अमल करने लग।

आप या आशा कर सकते ह
अं तम वश्लेषण म, जैसा मै र लन फ़ युसन ने कहा था, “कोई भी कसी सरे को प रवतन के लये तैयार
नह कर सकता। हम सब अपने प रवतन के ार क र ा करते ह, जसे सफ़ भीतर से ही खोला जा सकता है।
हम कसी सरे के प रवतन का ार नह खोल सकते, न तो बहस से, न ही भावना मक आ ह से।”
अगर आप सात आदत म समा हत स ांत को समझने और जीवन म उतारने के लये सचमुच अपने
“प रवतन के ार” को खोलने का फ़ैसला करते ह, तो म आपको आश्व त करना चाहता ँ क कई सकारा मक
प रवतन ह गे।
सबसे पहले तो आपक ग त वकासवाद होगी, परंतु अं तम प रणाम ां तकारी होगा। या आप इस
बात से सहमत नह ह क अगर पूरी तरह अमल कया जाये, तो सफ़ पी/पीसी संतुलन का स ांत ही अ धकांश
य और संगठन क कायापलट कर दे गा?
गत वजय क आदत यानी पहली तीन आदत के लये “प रवतन के ार” खोलने का प रणाम यह
होगा क आपका आ म वश्वास बढ़ जायेगा। आप ख़ुद को अ धक गहरे तथा साथक ढं ग से जान पायगे। आप
अपने वभाव, अपने गहनतम जीवनमू य और योगदान दे ने क अपनी अनूठ मता से प र चत ह गे। जब आप
अपने जीवनमू य को जयगे, तो आपको पहचान, ईमानदारी, नयं ण और आंत रक मागदशन का एहसास होगा।
यह एहसास आपके जीवन म उ लास और शां त भर दे गा। सर से तुलना करने या सर क धारणा के बजाय
आप ख़ुद को अपने भीतर से प रभा षत करगे। तब “ग़लत” और “सही” का संबंध भी इस बात से नह होगा क
कसी सरे को इस बात का पता चलेगा या नह ।
वसंग त यह है क जब आप इस बारे म कम परवाह करगे क सरे आपके बारे म या सोचते ह, तो आप
इस बारे म अ धक परवाह करने लगगे क सरे अपने बारे म या अपने संसार के बारे म या सोचते ह, जनम
आपके साथ उनके संबंध भी शा मल ह। तब आप सर क कमज़ो रय पर अपना भावना मक घर दा नह
बनायगे। इसके अलावा आप पायगे क प रवतन यादा आसान और वांछनीय है, य क ब त गहराई म बलकुल
क म एक ऐसी चीज़ है, जो मूलतः अप रवतनीय है।
फर जब आप अगली तीन आदत यानी सावज नक वजय क आदत पर आयगे, तो आप अपने कमज़ोर
या टू टे मह वपूण संबंध को सुधारने तथा बारा बनाने के लये उपाय तथा इ छा दोन का नवेश करगे। अ छे
संबंध न सफ़ सुधर जायगे, ब क अ धक गहरे, ठोस, रचना मक और रोमांचक भी बन जायगे।
अगर सातव आदत को गहराई से अंदर बठा लया जाये, तो यह पहली छह आदत का नवीनीकरण कर
दे गी। यह आपको सचमुच आ म नभर बना दे गी और भावकारी पर पर- नभरता म स म भी। इसके ारा आप
अपनी बैट रयाँ ख़ुद चाज कर सकते ह।
चाहे आपक वतमान थ त जो भी हो, म आपको वश्वास दलाता ँ क आपका असली व प आपक
आदत नह ह। आप ख़ुद को परा जत करने वाले वहार क पुरानी आदत को छोड़कर नई आदत डाल सकते ह।
आप भावका रता, सुख और वश्वास पर आधा रत संबंध क नई आदत सीख सकते ह।
म आपक सचमुच परवाह करता ँ, इस लये म आपको ो सा हत करता ँ क जब आप इन आदत का
अ ययन कर, तो अपने वकास तथा प रवतन के ार खोल ल। ख़ुद के साथ धैय से काम ल। आ म- वकास एक
नाजक चीज़ है; यह एक प व थान है। इससे बड़ा नवेश सरा नह है।
ज़ा हर है यह तुरत-फुरत या फटाफट होने वाला काम नह है। परंतु म आपको आश्व त करता ँ क आपको
लाभ मलगे और इतनी ज द मलगे क आप ो सा हत हो जायगे। थॉमस पेन के श द म, “जो चीज़ ब त
आसानी से मल जाती है, उसे हम ब त कम मह व दे ते ह। सफ़ क ठनाई से हा सल होने वाली चीज़ को ही मह व
दया जाता है। ईश्वर जानता है क अपनी व तु क सही क़ मत कैसे तय क जाये।”
खंड दो
गत वजय
पहली आदत
ोए टव बन
गत अवलोकन के स ांत

मेरी जानकारी म इससे अ धक उ साहवधक त य और कोई नह है क मनु य म


सचेतन यास ारा अपने जीवन को ऊँचा उठाने क न ववाद यो यता होती है।
● हेनरी डे वड थोरो

इ सकोनेपु मतकक कोत पढ़ते समय ख़ुद से अलग हटकर खड़े होने क को शश कर। अपनी चेतना को कमरे के ऊपरी
करके सोच क आप वहाँ खड़े होकर अपने म त क क आँख से ख़ुद को पढ़ते दे ख रहे ह। या
आप ख़ुद को उस तरह दे ख सकते ह, जैसे आप कसी सरे को दे ख रहे ह ?
अब एक और काम कर। अपनी वतमान अव था के बारे म सोच। या आप इसे पहचान सकते ह? आप इस
समय या महसूस कर रहे ह? आप अपनी वतमान मान सक अव था का वणन कस तरह करगे?
अब एक पल के लये इस बारे म सोच क आपका म त क कस तरह काम कर रहा है। या यह फुत ला
और चौकस है? या आपको ऐसा लगता है क आपका म त क इस समय दो भाग म बँटा आ है? एक तरफ़ तो
आपका म त क यह मान सक अ यास कर रहा है और सरी तरफ़ यह मू यांकन कर रहा है क इससे या सबक़
मलेगा।
आपने अभी जो कया है, वह करने क यो यता सफ़ मनु य म होती है। जानवर म यह यो यता नह होती।
हम इसे “आ म-जाग कता” या अपनी वचार- या के बारे म सोचने क यो यता कहते ह। इसी वजह से मनु य
नया क सम त व तु का वामी है और पीढ़ दर पीढ़ मह वपूण ग त कर रहा है।
यही वजह है क हम सर के अनुभव के साथ-साथ अपने अनुभव का भी मू यांकन कर सकते ह और
उनसे सीख सकते ह। यही वजह है क हम नई आदत डाल सकते ह और पुरानी आदत छोड़ सकते ह।
हमारी भावनाय हमारा स चा व प नह ह। हमारे मूड भी हमारा स चा व प नह ह। हमारे वचार भी
हमारा स चा व प नह ह। हम इन चीज़ के बारे म सोच सकते ह, यह त य हम इन चीज़ तथा ाणी जगत से
अलग करता है। आ म-जाग कता हम अलग खड़े होने म स म बनाती है और उस तरीक़े क जाँच करने म भी,
जससे हम ख़ुद को “दे खते” ह - हमारे वयं के पैरेडाइम क , जो भावका रता का सबसे मूलभूत पैरेडाइम है। यह
न सफ़ हमारे नज़ रये तथा वहार को भा वत करता है, ब क इस बात को भी भा वत करता है क हम सरे
लोग को कस तरह दे खते ह। यह मानव जा त के मूलभूत वभाव का हमारा न शा बन जाता है।
दरअसल जब तक हम इस बात पर यान नह दे ते क हम ख़ुद को कस तरह दे खते ह (और सर को कस
तरह दे खते ह), तब तक हम यह नह समझ सकगे क सरे वयं को और उनके संसार को कस तरह दे खते तथा
अनुभव करते ह। यह ान न होने से हम उनके वहार का वश्लेषण करते समय उन पर अपने इरादे थोप दगे
और इसके बावज़ूद ख़ुद को न प समझगे।
यह हमारी गत मता को ब त सी मत कर दे ता है और सर से जुड़ने क हमारी यो यता को भी। परंतु
आ म-जाग कता क अनूठ मानवीय तभा क बदौलत हम अपने पैरेडाइ स क जाँच कर सकते ह। हम यह
तय करने के लये उनक जाँच कर सकते ह क वे वा त वकता या स ांत पर आधा रत ह या फर वे कंडीश नग
तथा प र थ तय का प रणाम ह।

सामा जक दपण
मान ली जये हमारे मन म अपनी सफ़ वही छ व है, जो सामा जक दपण म दखाई दे ती है - यानी यह वतमान
सामा जक पैरेडाइम तथा हमारे आसपास के लोग के वचार , अनुभू तय और पैरेडाइ स से उ प होती है। अगर
हम ऐसी छ व दे खते ह, तो अपने बारे म हमारे वचार कसी मेले के व च शीश म दखते त बब क तरह ह गे।
“तुम कभी समय पर नह आते हो।”
“तुम कभी चीज़ को व थत य नह रख पाते हो?”
“तु ह तो कलाकार होना चा हये!”
“तुम घोड़े क तरह खाते हो!”
“मुझे यक़ न नह होता क तुम जीत गये!”
“यह ब त आसान है, फर भी तु हारी समझ म य नह आ रहा है?”
ये अवलोकन अ व थत और असंगत ह। ायः इस तरह के अवलोकन त बब कम और सर के वचार
का ेपण (projection) यादा होते ह। ये हमारे वा त वक व प का सट क या ु टहीन त बब नह दखाते।
इसके बजाय इनसे यह पता चलता है क हम जानकारी दे ने वाले लोग क चताय और चा र क कमज़ो रयाँ या
ह।
वतमान सामा जक पैरेडाइम का त बब हम बताता है क हम काफ़ हद तक कंडीश नग और प र थ तय
ारा नधा रत होते ह। हालाँ क हम कंडीश नग को अपने जीवन क बल श के प म वीकार करते ह, परंतु
अगर हम कह क हम सफ़ इसी के ारा नधा रत होते ह और हमारा इस पर कोई नयं ण नह है, तो हमारा
न शा पूरी तरह अलग होगा।
वा तव म तीन सामा जक न शे होते ह - नय तवाद क तीन सबसे लोक य अवधारणाय ह, जो अलग-
अलग या सामू हक प से मानव वभाव क ा या करती ह। आनुवं शक नय तवाद (Genetic
determinism) मूलतः कहता है क आपके बाप-दादा के कारण आप इस तरह के ह। इसी लये आपका
वभाव ऐसा है। आपके परदादा का ग़ सा तेज़ था और यह आपके भी डी.एन.ए. म आ गया है। यह पी ढ़य से
चला आ रहा है और आपको यह वरासत म मला है। इसके अलावा, आप आयरलड के ह और ग़ सा आयरलड के
लोग के वभाव म होता है।
मान सक नय तवाद (Psychic determinism) मूलतः कहता है क आपके माता- पता के कारण आप
इस तरह के ह। आपके पालन-पोषण और बचपन के अनुभव ने आपक गत वृ य और चा र क
संरचना को आकार दया है। इसी लये आप कसी समूह के सामने खड़े होने म डरते ह। आपके माता- पता ने
आपको इसी तरीक़े से पाला है। अगर आप कोई ग़लती कर दे ते ह, तो आपको ब त यादा अपराधबोध इस लये
होता है य क आपको अपने दल क गहराई म वह भावना मक ो ा मग “याद” है, जब आप ब त असुर त,
कोमल और नभर थे। आपको वह भावना मक दं ड, अ वीकृ त तथा कसी सरे के साथ ई तुलना “याद” है, जब
आपने अपे ा के अनु प अ छा दशन नह कया था।
प रवेशीय नय तवाद (Environmental determinism) मूलतः कहता है क अपने बॉस के कारण आप
ऐसे ह - या अपने जीवनसाथी के कारण या अपने उद्दं ड कशोर पु या अपनी आ थक थ त या फर रा ीय
नी तय के कारण। आपके प रवेश म मौज़ूद कोई या व तु आपक इस थ त के लये ज़ मेदार है।
इनम से हर न शा उद्द पन/ त या स ांत (stimulus/response theory) पर आधा रत है। इस
स ांत के बारे म सोचते समय हम अ सर कु के साथ पा लोव के योग के संदभ म सोचते ह। मूलभूत वचार
यह है क हमारी कंडीश नग इस तरह ई है, ता क हम कसी व श उद्द पन पर एक व श तरीक़े से त या
कर।

ये नय तवाद न शे े का कतना सट क और भावी वणन करते ह? ये दपण मनु य के वा त वक वभाव


क कतनी प छ व दखाते ह? या ये वयं पूरी होने वाली भ व यवा णयाँ ह? या ये उन स ांत पर आधा रत
ह, ज ह हम अपने भीतर तकसंगत ठहरा सकते ह?

उद्द पन और त या के बीच
इन सवाल के जवाब म म आपको व टर कल क ेरणादायी कहानी सुनाना चा ँगा:
कल एक नय तवाद थे। वे ॉयड क मनोवै ा नक परंपरा के समथक थे, जसके अनुसार आपके साथ
बचपन म जो भी होता है, उसी से आपका च र और व बनता है। यही मूल प से आपके पूरे जीवन को
नयं त करता है। आपके जीवन क सीमाय और दायरे पहले से ही तय हो चुके ह और बु नयाद तौर पर आप इस
बारे म यादा कुछ नह कर सकते।
कल एक य द मनोवै ा नक थे। उ ह जमनी के नाज़ी मृ यु श वर म क़ैद करके रखा गया, जहाँ उ ह
अमानवीय यातना का शकार होना पड़ा। उ ह द गई यातनाय मानवीय ग रमा के इतनी तकूल और वीभ स थ
क हम उनक बात करते समय भी काँप उठते ह।
उनके माता- पता, भाई और प नी श वर म मर गये या उ ह गैस क भ म झ क दया गया। उनक बहन
को छोड़कर उनका पूरा प रवार ख़ म हो गया। ख़ुद कल ने भी ब त यातनाय झेल तथा अन गनत अपमान सहे।
उ ह यह तक मालूम नह था क उनके साथ अगले पल या होने वाला है? या उ ह गैस क भ म झ ककर मार
दया जायेगा या फर वे उन “बचे ए” लोग म ह गे, जो भा यशाली मृतक क लाश हटायगे या बेलच से उनक
राख समेटगे?
एक दन एक छोटे से कमरे म वे अकेले नव बैठे थे। इस दा ण थ त म वे उस बारे म जाग क ए,
जसे उ ह ने बाद म “अं तम मानवीय वतं ता” कहा - वह वतं ता, जसे उनके नाज़ी आततायी उनसे नह छ न
सकते थे। वे लोग कल के पूरे प रवेश को नयं त कर सकते थे, वे उनके शरीर के साथ मनमानी कर सकते थे,
परंतु व टर कल आ म-जाग क इंसान थे, जो अपनी थ त को कसी अवलोकनकता क तरह दे ख सकते थे।
उनक मूलभूत पहचान सलामत थी। वे अपने मन म यह फ़ैसला कर सकते थे क यह सब उ ह कस तरह
भा वत करेगा। उनके साथ जो हो रहा था (यानी उद्द पन) और इस पर उनक त या के बीच उनके पास
त या चुनने क वतं ता या श थी।
अपने खद अनुभव के बीच कल ने क पना का योग करके ख़ुद को भ प र थ तय म दे खा। उ ह ने
क पना क क मृ यु श वर से मु होने के बाद वे अपने व ा थय के सामने ा यान दे रहे ह। वे अपने
म त क क आँख से ख़ुद को लास म म दे ख रहे थे और उस का प नक ा यान म वे अपने व ा थय को
वही सबक़ सखा रहे थे, जो वे उस समय घोर यातना के दौरान सीख रहे थे।
इस तरह ख़ुद पर मान सक, भावना मक और नै तक अनुशासन रखने के बाद, जसम ख़ास तौर पर मृ त
तथा क पना का योग शा मल था, वे अपनी वतं ता के छोटे से बीज को पोषण दे ने लगे। वे इसका नरंतर
अ यास करने लगे, जसके प रणाम व प यह धीरे-धीरे बढ़ने लगी। एक व त ऐसा आया, जब उनके पास नाज़ी
आतता यय से अ धक वतं ता हो गई। ना ज़य के पास शारी रक आज़ाद थी और प रवेश से चुनने के लये
अ धक वक प थे। परंतु कल के पास अ धक मान सक वतं ता थी यानी उनके पास अपने वक प चुनने क
अ धक आंत रक श थी। वे अपने आसपास के लोग के लये ेरणा बन गये, जनम कुछ नाज़ी सै नक भी
शा मल थे। उ ह ने ख को साथक ढं ग से झेलने और जेल के जीवन म भी ग रमा बनाये रखने म सर क मदद
क।
कल ने अ यंत अपमानजनक प र थ तय म भी आ म-जाग कता क अपनी मानवीय तभा का योग
करते ए मानव वभाव के बारे म एक मूलभूत स ांत खोजा: उद्द पन और त या के बीच मनु य के पास
त या चुनने क वतं ता होती है।
त या चुनने क वतं ता म वे तभाएँ शा मल ह, जो हम अनूठे प से मानवीय बनाती ह। आ म-
जाग कता के अलावा हमारे पास क पना है; हमारा म त क अपनी वतमान वा त वकता से परे जाकर
क पनालोक म वचरण करने म स म है। हमारे पास ववेक है; हमम सही और ग़लत का बोध होता है। हमम
अपने वहार को नयं त करने वाले स ांत क गहरी आंत रक जाग कता होती है। हमारा ववेक हम बताता
है क हमारे वचार और काय कस हद तक इन स ांत के अनु प ह। और हमारे पास आ म नभर इ छा है;
हमम बाक़ सभी भाव से मु होकर अपनी आ म-जाग कता के आधार पर काय करने क यो यता होती है।
सबसे बु मान जानवर के पास भी इनम से कोई तभा नह होती है। क यूटर क श दावली का योग
करते ए कहा जाये, तो उनक ो ा मग सहज वृ य और/या श ण ारा होती है। जानवर को ज़ मेदार
होने का श ण तो दया जा सकता है, परंतु वे श ण क ज़ मेदारी नह ले सकते। सरे श द म, वे वयं को
श त नह कर सकते। वे अपनी ो ा मग नह बदल सकते। वे इस बारे म जाग क भी नह होते ह।
परंतु अपनी अनूठ मानवीय तभा क बदौलत हम अपने लये ऐसे नये ो ाम लख सकते ह, जो हमारी
सहज वृ य और श ण से पूरी तरह अलग ह । यही वजह है क जानवर क मता तुलना मक प से
सी मत होती है, जब क इंसान क असी मत होती है। परंतु अगर हम जानवर क तरह रह यानी अपनी सहज
वृ य , प र थ तय और कंडीश नग के अनु प ही काय कर, अगर हम अपनी सामू हक मृ त से ही संचा लत
ह , तो हम भी उ ह क तरह सी मत हो जायगे।
नय तवाद पैरेडाइम मूलतः चूहे, बंदर, कबूतर तथा कु े जैसे जानवर और मनोरोग से पी ड़त यूरॉ टक/
साइकॉ टक लोग के अ ययन म सही सा बत होता है। हो सकता है क यह कुछ शोधकता के अपे त मानदं ड
को पूरा करता हो, य क इसे नापा जा सकता है तथा इसक भ व यवाणी क जा सकती है। परंतु मानव जा त का
इ तहास और हमारी अपनी आ म-जाग कता बताती है क यह न शा े का सट क व ु टहीन वणन नह करता
है!
हमारी अनूठ मानवीय तभाएँ हम ाणी जगत से ऊपर उठाती ह। हम इन तभा का जतना अ यास
करगे और इ ह जतना वक सत करगे, हम अपनी अनूठ मानवीय मता का दोहन करने क उतनी ही अ धक
श मलेगी। उद्द पन तथा त या के बीच म हमारी महानतम श है - त या चुनने क वतं ता।

“ ोए ट वट ” क प रभाषा
मानव वभाव के मूलभूत स ांत क अपनी खोज के दौरान कल ने ख़ुद का एक सट क न शा बनाया।
इस न शे के सहारे उ ह ने ोए ट वट क उस आदत को वक सत करना शु कया, जो कसी भी तरह के
प रवेश म अ त भावकारी क सबसे पहली और मूलभूत आदत है।
ोए टव मॉडल
हालाँ क ोए ट वट अब मैनेजमट क पु तक म आम श द बन गया है, परंतु इसके बावज़ूद यह आपको
अ धकांश श दकोश म नह मलेगा। इसका अथ सफ़ पहल करने से अ धक है। इसका अथ यह है क इंसान के
प म हम अपने जीवन के लये वयं ज़ मेदार ह। हमारा वहार हमारी प र थ तय का नह , ब क हमारे
नणय का प रणाम है। हम भावना को जीवनमू य के अधीन रख सकते ह। अपना मनचाहा प रणाम हा सल
करने के लये हमारे पास पहल करने क श है और ज़ मेदारी भी।
“रे पॉ स ब लट ” ( ज़ मेदारी) श द को दे ख - “रे पॉ स-ए ब लट ” - यानी अपनी त या चुनने क
यो यता। अ त ोए टव इस ज़ मेदारी को पहचानते ह। वे अपने वहार के लये प र थ तय , थ तय
या कंडीश नग को दोष नह दे ते। उनक भावना पर आधा रत प र थ तय का प रणाम होने के बजाय उनका
वहार उनके अपने सचेतन चुनाव का प रणाम है, जो जीवनमू य पर आधा रत होता है।
चूँ क हम वभाव से ोए टव ह, इस लये अगर हमारा जीवन कंडीश नग तथा प र थ तय ारा संचा लत
ह, तो ऐसा इस लये है य क हमने सचेतन नणय के ारा चुनाव करके या अ नणय क वजह से इन चीज़ को हम
नयं त करने क श दे द है।
इस तरह का चुनाव करते समय हम रए टव (reactive) हो जाते ह। रए टव अ सर अपने
भौ तक प रवेश से भा वत होते ह। अगर मौसम अ छा है, तो वे अ छा महसूस करते ह। अगर मौसम अ छा नह
है, तो इससे उनके नज़ रये और कायश पर वपरीत भाव पड़ता है। ोए टव अपना मौसम अपने साथ
लेकर चलते ह। चाहे बा रश हो या धूप, इससे उ ह कोई फ़क़ नह पड़ता। वे जीवनमू य से संचा लत होते ह और
अगर गुणव ापूण काय करना उनका जीवनमू य है, तो वे इस बात से भा वत नह होते क मौसम इसके अनुकूल
है या नह ।
रए टव अपने सामा जक प रवेश यानी “सामा जक मौसम” से भी भा वत होते ह। जब लोग उनके
साथ अ छा वहार करते ह, तो वे अ छा महसूस करते ह। जब लोग अ छा वहार नह करते, तो वे सुर ा मक
मु ा म आ जाते ह। रए टव सर के वहार क न व पर अपना भावना मक जीवन बनाते ह और सरे
लोग क कमज़ो रय को ख़ुद को नयं ण करने क अनुम त दे दे ते ह।
भावावेग को जीवनमू य के अधीन रखने क यो यता ोए टव का सार है। रए टव अपनी
भावना , प र थ तय , थ तय और प रवेश से संचा लत होते ह। ोए टव अपने जीवनमू य ारा
संचा लत होते ह, ज ह उ ह ने सावधानीपूवक वचार करके चुना है और अपने जीवन म अपनाया है।
ोए टव भी बाहरी उद्द पन से भा वत होते ह, चाहे वे शारी रक, सामा जक या मनोवै ा नक ह ।
परंतु उद्द पन के त उनक चेतन या अचेतन त या जीवनमू य पर आधा रत चुनाव या त या होती है।
जैसा ए लनोर ज़वे ट ने कहा है, “आपक सहम त के बना कोई आपको खी नह कर सकता।” गाँधीजी
के श द म, “अगर हम अपना आ मस मान न छोड़, तो कोई इसे हमसे छ न नह सकता।” हमारे साथ जो होता है
उससे हम उतने खी नह होते, जतने क उस पर हमारी सहम त और हमारी इ छा से द गई अनुम त क वजह से
होते ह।
म मानता ँ क भावना मक प से इसे वीकार करना ब त क ठन है, ख़ासकर तब जब हम वष से अपने
ख के लये प र थ तय या कसी सरे के वहार को दोष दे ते आ रहे ह । परंतु जब तक कोई गहराई
और ईमानदारी से यह नह कहता, “म आज जो कुछ ँ उन चुनाव के कारण ँ, जो मने कल कये थे,” तब तक
वह यह भी नह कह सकता, “म बदलने का चुनाव करता ँ।”

एक बार जब म सै ामे टो म ोए ट वट के वषय पर बोल रहा था, तो भाषण के बीच म एक म हला ोता
खड़ी ई और रोमां चत होकर बोलने लगी। वहाँ ब त से ोता बैठे थे और जब ब त सी आँख उसे घूरने लग , तो
उसे अचानक इस बात का एहसास आ क वह या कर रही थी, इस लये वह श मदा होते ए बैठ गई। बहरहाल,
वह ख़ुद पर क़ाबू नह रख पा रही थी, इस लये वह अपने आसपास बैठे लोग से बात करने लगी। वह ब त ख़ुश
नज़र आ रही थी।
या आ था, यह जानने के लये म इतना अधीर हो गया क मुझसे ेक का इंतज़ार नह हो रहा था।
आ ख़रकार जैसे ही ेक आ, म तुरंत उसके पास गया और उससे पूछा क या वह मुझे अपना अनुभव सुनाना
चाहती है।
उसने आवेश म कहा, “आप क पना नह कर सकते क मेरे साथ या आ है! म नया के सबसे बड़े
आलोचक और एहसानफ़रामोश आदमी क नस ँ। उसके लये म चाहे कतना ही अ छा क ँ , वह कभी संतु ही
नह होता। वह कभी मेरी शंसा नह करता और मेरी जीतोड़ को शश को अनदे खा कर दे ता है। वह हमेशा मुझ
पर च लाता रहता है और मेरे हर काम म ग़ल तयाँ नकालता रहता है। इस आदमी ने मेरे जीवन को नक बना दया
है और म अ सर अपनी कुंठा का गुबार अपने प रवार पर नकालती ँ। सरी नस भी मेरी ही तरह महसूस करती
ह। हम सब उसक मौत क आ माँगते ह।
“और आपका साहस दे खये क आप वहाँ पर खड़े होकर यह सुझाव दे रहे थे क कोई भी बात या
मेरी सहम त के बगैर मुझे खी नह कर सकता और मने ख़ुद अपने भावना मक जीवन को खी बनाने का चुनाव
कया है - दे खये, म कसी भी तरह इस बात से सहमत नह हो सकती थी।
“परंतु म इसके बारे म सोचती रही। मने सचमुच अपने दल म झाँककर दे खा और पूछा, ‘ या मेरे पास अपनी
त या चुनने क श है?’
“जब मुझे आ ख़रकार एहसास आ क मुझम यह श है, जब मने उस कड़वी गोली को नगला और यह
पाया क मने ख़ुद ही खी होने का चुनाव कया था, तो मुझे यह एहसास भी आ क म खी न होने का चुनाव भी
कर सकती ँ।
“उसी पल म खड़ी हो गई। मुझे महसूस आ, जैसे म सैन वे टन जेल से बाहर नकल रही ।ँ म चीख़-
चीख़कर पूरी नया को बताना चाहती थी, ‘म अब वतं !ँ म जेल से बाहर आ रही !ँ अब म ख़ुद को कसी
सरे के वहार ारा नयं त नह होने ँ गी।’”

हमारे साथ जो होता है, वह हम उतना ख नह प ँचाता, जतना क उस पर हमारी त या। ज़ा हर है,
घटनाय हम शारी रक या आ थक प से ख प ँचा सकती ह और हमारे जीवन को क कारी बना सकती ह। परंतु
यह ज़ री नह है क इससे हमारे च र या मूलभूत पहचान को ज़रा भी चोट प ँच।े हमारे सबसे मु कल अनुभव
दरअसल वे उपकरण ह, जो हमारे च र को ढालते ह, हमारी आंत रक श य का वकास करते ह, हम भ व य म
मु कल प र थ तय का सामना करने क वतं ता दे ते ह और सर को भी ऐसा करने क ेरक श दे ते ह।
कल उन कई लोग म से ह, जो मु कल प र थ तय म भी सर को ऊपर उठाने तथा े रत करने के लये
गत वतं ता वक सत कर पाये। वयतनाम के यु बं दय क आ मकथा के संग भी इसके समथन म
माण उपल ध कराते ह क हमारी गत वतं ता म कायापलट करने वाली श होती है और इस वतं ता
के ज़ मेदारी भरे योग से जेल क सं कृ त तथा क़ै दय पर भी भाव डाला जा सकता है। यह तब जतना सही
था, आज भी यह उतना ही सही है।
हम सब ऐसे लोग को जानते ह गे, जो ब त मु कल प र थ तय का सामना कर रहे ह या लाइलाज बीमारी
या गंभीर शारी रक अ मता के शकार ह, परंतु इसके बावज़ूद उ ह ने अपनी बल भावना मक श को अ ु ण
बनाये रखा। उनक अखंडता से हम ब त अ धक ेरणा मलती है। हम पर कोई और चीज़ इतना यादा या इतना
थायी भाव नह छोड़ती, जतना यह एहसास क कोई ख और प र थ तय से ऊपर उठ चुका है। ऐसा
उस जीवनमू य को जीता तथा अ भ करता है, जो जीवन को े रत करता है, प र कृत करता है और
उसे ऊँचा उठाता है।

मेरे और सै ा के जीवन का ब त ेरक समय वह था, जब हम चार साल तक अपनी य म कैरोल के


संपक म रहे, ज ह कसर हो गया था। वे सै ा क हन-सखी थ तथा दोन ही 25 साल से प क सहे लयाँ थ ।
जब कैरोल बीमारी क अं तम अव था म थ , तो सै ा ने उनके साथ काफ़ समय बताया। कैरोल अपने
जीवन के बारे म कुछ लखना चाहती थ और सै ा ने इस काम म उनक मदद क । जब भी सै ा काफ समय
तक यह मु कल काम करने के बाद लौटती थी, तो वह अपनी सहेली के साहस पर अ त शंसा से अ भभूत व
मं मु ध नज़र आती थी। उसक सहेली अपने ब च के नाम वशेष संदेश लखवा रही थी, जो उ ह उनके जीवन क
व भ अव था म भ व य म दये जाय।
कैरोल कम से कम दद नवारक दवाय लेती थ , ता क वे अपनी मान सक और भावना मक मता का पूरा
इ तेमाल कर सक। फर वे एक टे प रकॉडर म अपने श द रकॉड करती थ या सै ा को बोलकर लखाती थ ।
कैरोल इतनी ोए टव और बहा र थ , वे सर क इतनी परवाह करने वाली थ क वे अपने संपक म आने वाले
लोग के लये ेरणा का ब त बड़ा ोत बन ग ।
म उस अनुभव को कभी नह भूल पाऊँगा, जब कैरोल क मृ यु से एक दन पहले मने उनक आँख म गहराई
से झाँका। मने दे खा क उस गहरी वेदना के बीच भी उ ह अपने बल आंत रक मह व का एहसास था। म उनक
आँख म च र , योगदान और सेवा का जीवन दे ख सकता था तथा सर के त ेम, परवाह और शंसा का भी।

वष से म लोग के समूह से पूछ रहा ँ क उनम से कतन ने कसी मरते ए से ेरणा पाई है,
जसका गज़ब का सकारा मक नज़ रया हो, जसने अंत तक ेम और क णा सं े षत क हो तथा जसने
अ वश्वसनीय प से सर क सेवा क हो। आम तौर पर एक चौथाई ोता इसका जवाब हाँ म दे ते ह। फर म
पूछता ँ क उनम से कतने लोग इन य को कभी नह भूल पायगे - कतन के जीवन इस साहस से ेरणा
पाकर बदल गये, चाहे यह प रवतन अ थायी ही य न हो और कतने लोग सेवा तथा क णा के ऐसे उ कृ काय
से गहराई से आंदो लत व े रत ए। लगभग हमेशा सभी एक चौथाई ोता इसका जवाब भी हाँ म दे ते ह।
व टर कल सुझाव दे ते ह क जीवन म तीन क य मू य होते ह - अनुभवा मक (experiential) यानी जो
हमारे साथ होता है; रचना मक (creative) यानी जसे हम अ त व म लाते ह और कोणा मक
(attitudinal) यानी जो त या हम लाइलाज बीमारी जैसी मु कल प र थ तय म करते ह।
लोग के साथ मेरे अनुभव से कल क बात क पु होती है। मेरे वचार से पैरेडाइम या र े मग के संदभ
म इन तीन जीवनमू य म सव च मू य कोणा मक है। सरे श द म, सबसे मह वपूण यह है क जीवन के
अनुभव पर हम कैसी त या करते ह।
मु कल प र थ तयाँ अ सर पैरेडाइम म प रवतन करती ह और संदभ के बलकुल नये मानदं ड क रचना
करती ह, जनके ारा लोग नया को, वयं को और अ य लोग को दे खते ह और यह भी क जीवन उनसे या
अपे ाय कर रहा है। उनका अ धक ापक नज़ रया उन कोणा मक जीवनमू य को त ब बत करता है, जो
हम सबको ऊपर उठाते तथा े रत करते ह।

पहल करना
हमारा मूल वभाव काय करना है, सर को ख़ुद पर काय करने दे ना नह है। इसी वजह से हम वशेष
प र थ तय के त अपनी त या चुनने म स म होते ह और हम अपनी प र थ तयाँ बनाने क श भी
मलती है।
पहल करने का मतलब आप जनक, आ ामक या संवेदनहीन होना नह है। इसका मतलब घटना को
घ टत करवाने क अपनी ज़ मेदारी को पहचानना है।
बरस से म अ सर उन लोग को परामश दे ता आ रहा ँ, जो बेहतर नौक रयाँ चाहते ह। म उ ह अ धक पहल
करने क सलाह दे ता ँ। म कहता ँ क वे अपना च-परी ण और बु -परी ण करवाय। इसके अलावा, वे न
सफ़ उस उ ोग का अ ययन कर, जसम वे जाना चाहते ह, ब क उस कंपनी का भी अ ययन कर, जसम वे काम
करना चाहते ह । म उ ह सलाह दे ता ँ क वे उस कंपनी ारा झेली जा रही व श सम या का अ ययन कर
और इसके बाद एक भावकारी तु त तैयार कर, जसम यह बताया जाये क कस तरह उनक यो यताय कंपनी
क सम या को सुलझा सकती ह। इसे “समाधान बेचना” कहा जाता है और यह बज़नेस म सफलता का एक
मुख पैरेडाइम है।
इस पर त या करते ए लोग आम तौर पर सहमत हो जाते ह। अ धकांश लोग समझ जाते ह क इस तरह
क नी त रोज़गार या पदो त के उनके अवसर को ब त अ धक बढ़ा दे गी। परंतु उनम से ब त से लोग इसे संभव
बनाने के लये आव यक क़दम नह उठाते ह और पहल नह करते ह।
“मुझे नह मालूम क च-परी ण और बु -परी ण करवाने के लये कहाँ जाना चा हये।”
“म उ ोग और कंपनी क सम या का अ ययन कस कार क ँ ? कोई भी मेरी मदद नह करना
चाहता।”
“मुझे नह मालूम क भावकारी तु त कैसे तैयार क जाती है।”
ब त से लोग कसी घटना के होने का इंतज़ार करते ह या फर वे चाहते ह क कोई सरा उनक मदद करे।
परंतु अ छ नौक रयाँ उ ह लोग को मलती ह, जो ोए टव होते ह; जो ख़ुद सम या नह होते, ब क जनके
पास सम या के समाधान होते ह; जो उस काम को पूरा करने के लये सही स ांत के अनु प हरसंभव यास
करने क पहल करते ह।
जब भी हमारे प रवार का कोई सद य, चाहे वह छोटा ब चा ही य न हो, ग़ैर- ज़ मेदारी का प रचय दे ता है
और इंतज़ार करता है क कोई सरा उसका काम करवायेगा या उसे समाधान सुझायेगा, तो हम उससे कहते ह,
“अपनी बु और पहलश का योग करो!” दरअसल, अ सर हमारे यह कहने से पहले ही वह अपनी
शकायत के जवाब म ख़ुद यह बात कह दे ता है, “म जानता ँ — मुझे अपनी बु और पहलश का योग
करना है!”
लोग को ज़ मेदारी क राह पर चलाना उ ह गराना नह , ब क उठाना है। ोए ट वट मानव वभाव का
ह सा है और हालाँ क ोए टव मांसपे शयाँ सोई हो सकती ह, परंतु वे हम सबम होती ज़ र ह। सर के
ोए टव वभाव का स मान करके हम उ ह सामा जक दपण म कम से कम एक प और ु टहीन त बब
दान करते ह।
ज़ा हर है, हम क प रप वता के तर का भी यान रखना चा हये। हम गहरी भावना मक नभरता के
शकार लोग से उ च रचना मक सहयोग क अपे ा नह रख सकते। परंतु हम कम से कम इतना तो कर ही सकते
ह क उनके मूलभूत वभाव को ो सा हत कर और एक ऐसा प रवेश बना द, जहाँ लोग अवसर का दोहन कर
सक और सम या को बढ़ते ए आ म नभर तरीक़े से सुलझा सक।

कर या होने द (Act Or Be Acted Upon)


पहल करने वाले और पहल न करने वाले लोग के बीच दन और रात जतना अंतर होता है। म भावका रता
म सफ़ 25 से 50 तशत अंतर क बात नह कर रहा ँ, म तो 5000 तशत से भी अ धक अंतर क बात कर
रहा ,ँ ख़ासकर तब जब वे बु मान, जाग क और सर के त संवेदनशील ह ।
अपने जीवन म भावका रता का पी/पीसी संतुलन बनाने के लये पहल करने क आव यकता होती है। सात
आदत को वक सत करने के लये पहल करने क आव यकता होती है। जैसे-जैसे आप बाक़ छह आदत का
अ ययन करगे, आप दे खगे क हर आदत आपक ोए टव मांसपे शय के वकास पर नभर है। हर आदत म
काम करने क ज़ मेदारी आपक है। अगर आप कसी सरे के ारा ख़ुद पर काम कये जाने का इंतज़ार करगे, तो
सरे आप पर अपने मनचाहे तरीक़े से काम करगे। वकास तथा अवसर के प रणाम आपको दोन ही राह पर
मलगे।

एक बार म गृह सुधार उ ोग (home improvement industry) म लोग के एक समूह के साथ काम कर
रहा था। वहाँ पर बीस संगठन के त न ध बैठे थे, जो अपने आँकड़ और सम या पर खुलकर चचा करने के
लये हर तीन महीने म एक त होते थे।
भारी मंद का दौर चल रहा था और इस व श उ ोग पर आम अथ व था से यादा नकारा मक भाव
पड़ा था। जब हमने चचा शु क , तो ये लोग काफ़ हताश थे।
पहले दन हमने इस श्न पर वचार- वमश कया, “हमारे साथ या हो रहा है? उद्द पन या है?” ब त सी
चीज़ हो रही थ । प रवेश या माहौल के दबाव बल थे। हर तरफ़ बेरोज़गारी फैली थी और ब त से लोग कंपनी को
बचाने क ख़ा तर अपने कमचारी म को नकालने पर ववश थे। उस दन जब चचा ख़ म ई, तो हर
अ धक नराश हो गया था।
सरे दन हमने इस श्न पर वचार- वमश कया, “भ व य म या होने वाला है?” हमने प रवेश क
वृ य का अ ययन कया और इसम यह रए टव मा यता न हत थी क उनका भ व य इ ह चीज़ से तय
होगा। सरे दन के अंत तक हम और भी यादा हताश हो गये। चीज़ सुधरने से पहले यादा बगड़ती ह और सब
लोग यह बात जानते थे।
इस लये तीसरे दन हमने इस ोए टव श्न पर यान क त करने का फ़ैसला कया, “हमारी त या
या है? हम या करने जा रहे ह? हम इस थ त म अपनी पहल करने क श का यागे कस तरह कर सकते
ह?” सुबह हमने लागत के बंधन और उसे कम करने के बारे म बात क । दोपहर के बाद हमने बाज़ार म ह सेदारी
बढ़ाने के उपाय पर वचार कया। हमने इन दोन वषय पर गहन वचारमंथन कया। इसके बाद हमने कई
ावहा रक और कये जा सकने वाले काम पर यान क त कया। जब यह बैठक ख़ म ई, तो सब लोग म
रोमांच, आशा और ोए टव जाग कता क एक नई भावना साफ़ झलक रही थी।
तीसरे दन के अंत म हमने स मेलन के प रणाम को तीन खंड म बाँटकर इस सवाल का जवाब दया,
“ बज़नेस कैसा है?”
खंड एक: हमारे साथ जो हो रहा है, वह अ छा नह है तथा वृ याँ यह बताती ह क बेहतर होने से पहले
थ तयाँ और बगड़गी।
खंड दो: परंतु हम जो कर रहे ह, वह ब त अ छा है, य क हमारा मैनेजमट पहले से बेहतर है, हम अपनी
लागत कम कर रहे ह और बाज़ार म अपनी ह सेदारी बढ़ा रहे ह।
खंड तीन: इस लये बज़नेस पहले से बेहतर है।

अब कोई रए टव इस पर या कहेगा? “छोड़ो भी। त य का सामना करो। सकारा मक सोच और


ख़ुद को ो सा हत करने वाली यह नी त यादा समय तक नह चल सकती। दे र-सबेर आपको वा त वकता का
सामना करना ही पड़ेगा।”
परंतु सकारा मक चतन और ोए ट वट म यही अंतर है। हमने वा त वकता का सामना कया था। हमने
वतमान प र थ त और भावी अनुमान क वा त वकता का सामना कया था। परंतु हमने इस वा त वकता का भी
सामना कया था क हमारे पास इन प र थ तय और अनुमान के बारे म सकारा मक त या चुनने क श
है। वा त वकता का सामना तो हम उस थ त म नह करते, अगर हम इस वचार को वीकार कर लेते क प रवेश
म हो रही घटनाय ही हमारे भ व य को तय करगी।
बज़नेस, सामुदा यक समूह और हर तरह के संगठन - जनम प रवार भी शा मल ह - ोए टव हो सकते ह।
वे संगठन के भीतर ोए टव सं कृ त का नमाण करने के लये ोए टव य क रचना मकता और बु का
सम वय कर सकते ह। संगठन को प रवेश क दया पर रहने क कोई ज़ रत नह है। संगठन शा मल य के
साझे जीवनमू य और उद्दे य को हा सल करने के लये पहल कर सकता है।

अपनी भाषा सुनना


चूँ क हमारे नज़ रये और वहार हमारे पैरेडाइ स से उ प होते ह, इस लये अगर हम उनक जाँच करने के
लये अपनी आ म-जाग कता का योग करते ह, तो हम अ सर उनम अपने भीतर के न शो क कृ त दखाई
दे ती है। उदाहरण के लये, हमारी भाषा इस बात का वा त वक सूचक होती है क हम कस हद तक ख़ुद को
ोए टव मानते ह।
रए टव य क भाषा उ ह उ रदा य व या ज़ मेदारी से मु करती है।
“म ऐसा ही ँ। म जैसा ,ँ ।ँ ” म पहले से नधा रत ।ँ म इस बारे म कुछ भी नह कर सकता।
“वह मुझे ग़ सा दला दे ता है!” म ज़ मेदार नह ँ। मेरे भावना मक जीवन को जो चीज़ नयं त करती है,
वह मेरे क़ाबू से बाहर है।
“म यह नह कर सकता। मेरे पास समय नह है।” मेरे बाहर क कोई चीज़ - सी मत समय - मुझे नयं त
कर रही है।
“काश मेरी प नी अ धक धैयवान होती!” कसी सरे का वहार मेरी भावका रता को सी मत कर रहा है।
“मुझे यह करना ही पड़ेगा।” जो कुछ भी म करता ँ, वह करने के लये मुझे प र थ तयाँ या सरे लोग
ववश कर रहे ह। म अपने काय को चुनने के लये वतं नह ँ।
रए टव भाषा नय तवाद के मूलभूत पैरेडाइम से आती है। और इसका पूरा भाव उ रदा य व या ज़ मेदारी
का ह तांतरण है। म ज़ मेदार नह ँ, म अपनी त या नह चुन सकता।
एक बार एक व ाथ ने मुझसे पूछा, “ या आज आप मुझे लास से जाने दगे? मुझे टे नस मैच खेलने जाना
पड़ेगा।”
मने पूछा, “तु ह खेलने जाना पड़ेगा या तुम जाने का चुनाव करते हो?”
उसने आ य से कहा, “मुझे सचमुच जाना पड़ेगा।”
“अगर तुम नह जाओगे, तो या होगा?”
“मुझे ट म से बाहर नकाल दया जायेगा।”
“यह प रणाम तु ह कैसा लगेगा?”
“मुझे अ छा नह लगेगा।”
“ सरे श द म, तुम जाने का चुनाव इस लये कर रहे हो य क तुम ट म म बने रहने का प रणाम चाहते हो।
सरी तरफ़, अगर तुम मेरी लास छोड़ दोगे, तो या होगा?”
“म नह जानता।”
“अ छ तरह सोचो। लास म न आने का वाभा वक प रणाम या हो सकता है?”
“आप मुझे लास से बाहर तो नह नकालगे ना?”
“वह एक सामा जक प रणाम होगा। वह कृ म प रणाम होगा। अगर तुम टे नस ट म म नह जाओगे, तो तुम
नह खेल पाओगे। यह बलकुल वाभा वक प रणाम है। परंतु अगर तुम लास म नह रहोगे, तो उसका वाभा वक
प रणाम या होगा?”
“मुझे लगता है क म सीख नह पाऊँगा।”
“ बलकुल ठ क कहा। इस लये अब तु ह दोन प रणाम क तुलना करने के बाद अपना वक प चुनना है।
वैसे म जानता ँ क अगर म तु हारी जगह होता, तो म टे नस मैच खेलने का वक प चुनता। परंतु यह कभी मत
कहो क तु ह कोई काम करना पड़ेगा।”
उसने सहमते ए जवाब दया, “म टे नस मैच खेलने जाने का चुनाव करता ँ।”
“और मेरी लास छोड़ने का?” मने बनावट हैरानी से कहा।

रए टव भाषा के साथ एक गंभीर सम या यह है क यह वयं पूरी होने वाली भ व यवाणी (self-fulfilling


prophecy) बन जाती है। लोग का यह पैरेडाइम और भी ढ़ हो जाता है क वे पहले से ही नधा रत ह तथा वे
इस वश्वास के समथन के लये माण जुटाते ह। वे ख़ुद को प र थ तय का शकार मानने लगते ह। वे यह मानने
लगते ह क प र थ तय पर उनका कोई नयं ण नह है। उ ह यह लगता है क अपने जीवन या अपनी तक़द र पर
उनका कोई नयं ण नह है। वे अपनी थ त के लये बाहरी श य को दोष दे ते ह - सरे लोग , प र थ तय ,
यहाँ तक क ह-न को भी।

एक से मनार म म ोए ट वट क अवधारणा पर बोल रहा था। तभी एक आदमी आगे आया और बोला,
“ ट फ़न, आप जो कह रहे ह, वह मुझे पसंद आया। परंतु हर थ त भ होती है। मेरे वैवा हक जीवन को ही दे ख।
म सचमुच च तत ँ। मेरी प नी और मुझम अब एक- सरे के लये वे भावनाय नह बची ह, जो हमम पहले कभी
आ करती थ । मुझे लगता है क अब म उससे ेम नह करता ँ और वह भी मुझसे ेम नह करती है। म या कर
सकता ँ?”
मने पूछा, “अब भावना बलकुल भी नह बची है?”
वह बोला, “आपने ठ क कहा। और हमारे तीन ब चे ह, जनके बारे म हम सचमुच च तत ह। आपका या
सुझाव है?”
मने जवाब दया, “अपनी प नी से ेम करो।”
“मने आपको बताया ना, अब वह भावना ही नह रही।”
“उससे ेम करो।”
“आप समझ नह रहे ह। ेम क भावना अब बची ही नह है।”
“ फर भी उससे ेम करो। अगर भावना नह है, तो यह उससे ेम करने का एक अ छा कारण है।”
“परंतु जब आपम ेम क भावना ही नह है, तो फर आप ेम कैसे कर सकते ह।”
“ म , ेम एक या है। ेम क भावना उस या का फल है। इस लये उससे ेम करो। उसक सेवा करो।
याग करो। उसक बात यान से सुनो। ख़ुद को उसक जगह रखकर दे खो। उसक सराहना करो। उसका समथन
करो। या आप यह सब करने के इ छु क ह?”

सम त ग तशील समाज के महान सा ह य म ेम एक या है। रए टव इसे एक भावना बना दे ते


ह। वे भावना से संचा लत होते ह। हॉलीवुड क फ़ म ने आम तौर पर हमारे मन म इस वश्वास क ट
लख द है क हम इसके लये ज़ मेदार नह ह, य क हम अपनी भावना के अनु प काय करते ह। परंतु
हॉलीवुड क फ़ म क टं ग वा त वकता का वणन नह करती है। अगर हमारी भावनाय हमारे काय को
नयं त करती ह, तो सफ़ इस लये य क हमने उ ह ऐसा करने क श द है और अपनी ज़ मेदारी का याग
कर दया है।
ोए टव ेम को एक या बनाते ह। ेम एक ऐसी चीज़ है, जसे आप करते ह: इसम आप याग
करते ह, ख़ुद को उसी भावना से दे ते ह, जस तरह एक माँ अपने नवजात शशु को ज म दे ती है। अगर आप ेम
का अ ययन करना चाहते ह, तो उन लोग का अ ययन कर, जो सर के लये याग करते ह। ये याग वे उन लोग
के लये भी करते ह, जो उ ह ठे स प ँचाते ह या बदले म ेम नह दे ते ह। अगर आप अ भभावक ह, तो उस ेम पर
ग़ौर कर, जो आपके मन म अपने ब च के लये है, जनके लये आपने याग कये ह। ेम वह जीवनमू य है, जो
ेमपूण काय के ारा वा त वकता का प लेता है। ोए टव भावना को जीवनमू य से नीचे रखते ह।
ेम क भावना को भी बारा जी वत कया जा सकता है।
कोई चता नह
चता का वृ / भाव का वृ
अपनी ोए ट वट क सीमा के बारे म अ धक आ म-जाग क बनने का एक और उ कृ तरीक़ा इस बात
पर यान दे ना है क हम अपने समय और ऊजा को कहाँ क त करते ह। हम सबके पास ब त सी चताय होती ह -
हमारा वा य, हमारे ब चे, ऑ फ़स क सम याएँ, दे श का कज़, परमाणु यु । “ चता का वृ ” बनाकर हम इन
चीज़ को उन चीज़ से अलग कर सकते ह, जनसे हमारा कोई वशेष मान सक या भावना मक जुड़ाव नह होता।
जब हम अपने चता के वृ के अंदर क चीज़ को दे खते ह, तो यह प हो जाता है क इनम से कुछ चीज़
ऐसी ह, जन पर हमारा कोई वा त वक नयं ण नह है और बाक़ चीज़ ऐसी ह, जनके बारे म हम कुछ कर सकते
ह। इन बाद वाली चीज़ को पहचानकर हम उ ह भाव के छोटे वृ म रख सकते ह।
इन दो वृ म से कस पर हमारा अ धकांश समय और ऊजा क त होती है, यह तय करके हम जान सकते
ह क हम कस हद तक ोए टव ह।
ोए टव फ़ोकस
(सकारा मक ऊजा भाव के वृ को बड़ा बना दे ती है)
ोए टव अपने यास को भाव के वृ पर क त करते ह। वे उन चीज़ पर काम करते ह, जनके
बारे म वे कुछ कर सकते ह। उनक ऊजा क कृ त सकारा मक, ापक बनाने वाली, व तार करने वाली होती
है। प रणाम व प उनके भाव का वृ बड़ा हो जाता है।
सरी ओर, रए टव अपने यास को चता के वृ पर क त करते ह। वे सर क कमज़ो रय ,
अपने प रवेश क सम या तथा उन प र थ तय पर यान क त करते ह, जन पर उनका कोई नयं ण नह
होता। इसका प रणाम यह होता है क उनका नज़ रया सर को दोष दे ने या आरोप लगाने का होता है, उनक
भाषा रए टव होती है और वे सताये जाने क शकायत करते रहते ह। इस फ़ोकस क वजह से नकारा मक ऊजा
उ प होती है। इसके अलावा, इस वजह से वे उन चीज़ को नज़रअंदाज़ कर दे ते ह, जनके बारे म वे कुछ कर
सकते ह। इन दोन वजह से उनके भाव का वृ छोटा हो जाता है।
रए टव फ़ोकस

(नकारा मक ऊजा भाव के वृ को छोटा बना दे ती है)

जब तक हम अपने चता के वृ म काम कर रहे ह, तब तक हम इसके भीतर क चीज़ को ख़ुद को नयं त


करने क श दे रहे ह। हम सकारा मक प रवतन उ प करने के लये आव यक ोए टव पहल नह कर रहे ह।
पहले मने आपको अपने पु क कहानी बताई थी, जसे कूल म गंभीर सम या का सामना करना पड़ रहा
था। उसक प कमज़ो रय तथा उसके त सर के वहार को लेकर म और सै ा ब त च तत थे।
परंतु ये चीज़ हमारे चता के वृ म थ । जब तक हमने अपने यास को इन चीज़ पर क त कया, तब तक
हम कुछ हा सल नह कर पाये। इससे सफ़ हमारी अ मता तथा लाचारी क भावनाय बढ़ और हमारा पु हम पर
अ धक नभर होता गया।
जब हमने अपने भाव के वृ पर काम कया, जब हमने अपने पैरेडाइम पर अपना यान क त कया, तब
कह जाकर वह सकारा मक ऊजा उ प ई, जसने हम बदल दया और अंततः हमारे पु को भी भा वत
कया। प र थ तय के बारे म चता करने के बजाय ख़ुद पर काम करके हम प र थ तय को भा वत करने म
सफल ए।
पद, दौलत, भू मका या संबंध के कारण कुछ ऐसी प र थ तयाँ भी होती ह, जनम कसी के भाव
का वृ उसक चता के वृ से यादा बड़ा होता है।

यह थ त वयं थोपे गये भावना मक नकट दोष (emotional myopia) का सूचक है, जो चता के
वृ म क त एक और रए टव वाथ जीवनशैली है।
हालाँ क यह हो सकता है क ोए टव य को अपने भाव के योग को ाथ मकता के म म
सु नयो जत करना पड़े, परंतु उनक चता का वृ कम से कम उनके भाव के वृ जतना बड़ा होता है और वे
भावकारी ढं ग से अपने भाव का योग करने क ज़ मेदारी को वीकार करते ह।

य नयं ण, अ य नयं ण और शू य नयं ण


हम जन सम या का सामना करते ह, वे इन तीन े म से कसी एक म आती ह: य नयं ण (वे
सम याएँ, जनका संबंध हमारे अपने वहार से होता है), अ य नयं ण (वे सम याएँ, जनका संबंध सर के
वहार से होता है); या शू य नयं ण (वे सम याएँ, जनके बारे म हम कुछ नह कर सकते, जैसे हमारे अतीत या
थ त वशेष क वा त वकता)। ोए टव कोण इन तीन कार क सम या के समाधान क दशा म पहला
क़दम हमारे वतमान भाव के वृ म रखता है।
य नयं ण क सम याएँ हमारी आदत पर काम करने से सुलझती ह। ये प प से हमारे भाव के
वृ म होती ह। ये पहली, सरी और तीसरी आदत क “ गत वजय” होती ह।
अ य नयं ण क सम याएँ हमारे भाव क व धय को बदलकर सुलझाई जाती ह। ये चौथी, पाँचव
और छठ आदत क “सावज नक वजय” होती ह। मने मानवीय भाव क 30 अलग-अलग व धय को
गत प से पहचाना है। ये व धयाँ एक- सरे से उतनी ही भ ह, जतनी क परानुभू त (empathy) संघष
से या उदाहरण तुत करना कसी को समझाने से। अ धकांश लोग के पास इनम से सफ़ तीन-चार व धयाँ ही
होती ह, जो सामा यतया तक से शु होती ह। और अगर ये व धयाँ काम नह करत , तो वे यु करने या पलायन
करने के लये े रत होते ह। यह वचार ब त राहत दे ता है क म मानवीय भाव क नई व धयाँ सीख सकता ँ,
बजाय इसके क म पुरानी अ भावकारी व धय का लगातार योग करके कसी सरे को “सुधारने” क को शश
करता र !ँ
शू य नयं ण क सम या के बारे म यह शा मल होता है क हम अपने चेहरे के नचले ह से क लक र के
बारे म ज़ मेदारी ल। इसका अथ यह है क भले ही हम इन सम या को पसंद न करते ह , परंतु इसके बावज़ूद
हम मु कराते ह, इन सम या को शां त से वीकार करते ह और इनके साथ जीना सीखते ह। इस तरह हम इन
सम या को वयं को नयं त करने क श नह दे ते ह। हम उस भावना के अनु प काय करते ह, जो
ए कोह ल स एनॉ नमस सं था क ाथना म झलकती है, “हे ईश्वर, जन चीज़ को बदला जा सकता है और
बदला जाना चा हये, मुझे उ ह बदलने का साहस दो; जन चीज़ को बदला नह जा सकता, उ ह वीकार करने क
शां त दो; और दोन के अंतर को पहचानने क बु दो।”
चाहे सम या य , अ य या शू य नयं ण क हो, उसके समाधान क दशा म पहला क़दम उठाना हमारे
हाथ म होता है। यह हमारे भाव के वृ म होता है क हम अपनी आदत को बदल ल, अपने भाव क व धय
को बदल ल और उस तरीक़े को भी बदल ल, जससे हम शू य नयं ण क सम या को दे खते ह।

भाव के वृ का व तार करना


यह एहसास ेरणादायी है क कसी प र थ त पर अपनी त या का चुनाव करके हम उस प र थ त पर
बल भाव डाल सकते ह। जब हम कसी रासाय नक सू के एक ह से को बदलते ह, तो हम प रणाम क
कृ त को बदल दे ते ह।

मने कई वष तक एक संगठन के साथ काम कया है, जसका नेतृ व एक ब त तभाशाली कर रहे
थे। उनम वृ य को पहले से ही भाँपने क मता थी। वे रचना मक, तभावान, स म तथा बु मान थे - और
यह बात सब जानते थे। परंतु उनक मैनेजमट शैली तानाशाह जैसी थी। वे अपने कमचा रय से इस तरह वहार
करते थे, जैसे वे “गोफ़स” (अयो य) ह और उनम नणय लेने क बु न हो। वे संगठन के कमचा रय से इस तरह
से बोलते थे, “यह करो… वह करो… अब यह करो… अब वह करो - नणय म लूँगा।”
इसका प रणाम यह आ क उ ह ने लगभग पूरी ए ज़ी यू टव ट म को अपना वरोधी बना लया। उनके
कमचारी ग लयारे म इकट् ठे होकर एक- सरे से उनके बारे म शकायत करते थे। उनक चचा ब त प और
भावपूण होती थी, जैसे वे इस थ त को सुधारने क को शश कर रहे ह । परंतु वे लगातार शकायत ही करते रहे
और े सडट क कमज़ो रय के नाम पर ख़ुद को ज़ मेदारी से मु करते रहे।
एक ने कहा, “आप क पना नह कर सकते क इस बार या आ है। पछले दन वे मेरे डपाटमट म
आये। मने पूरी तैयारी कर रखी थी। परंतु उ ह ने आने के बाद बलकुल ही अलग संकेत दये। कई महीन से मने
जन काम पर मेहनत क थी, उन पर उ ह ने पल भर म गोली मार द , इस तरह! म नह जानता क म भ व य म
उनके साथ कैसे काम कर पाऊँगा? उनके रटायर होने म अभी कतना समय बचा है?”
सरा बोला, “वे अभी उनसठ साल के ह। या तु ह लगता है क तुम अगले छह साल तक यहाँ काम
कर सकते हो?”
“मुझे नह मालूम। वैसे वे इस तरह के इंसान ह, ज ह शायद रटायर ही नह कया जायेगा।”
परंतु उनम से एक ए ज़ी यू टव ोए टव था। वह भावना के बजाय जीवनमू य से संचा लत होता था।
उसने पहल क । उसने अनुमान लगाया, ख़ुद को े सडट क जगह पर रखकर दे खा और थ त का अ ययन
कया। वह े सडट क कमज़ो रय से अप र चत नह था, परंतु आलोचना करने के बजाय उसने उनक भरपाई
करने क को शश क । जहाँ े सडट क शैली कमज़ोर थी, वहाँ वह अपने कमचा रय को बचाने क को शश करता
था और उन कमज़ो रय को मह वहीन बना दे ता था। और वह े सडट क श य - उनक भ व य , तभा,
रचना मकता - के अनु प काम करता था।
इस ने अपने भाव के वृ पर यान क त कया। उसके साथ भी “गोफ़र” यानी अयो य कमचारी
क तरह ही वहार कया जाता था। परंतु उससे जतनी आशा क जाती थी, वह उससे अ धक काम करता था।
उसने यह भाँपा क े सडट क आव यकताय और अपे ाय या ह। उसने ख़ुद को े सडट क जगह पर रखकर
उनक मूल चता को समझा। इस लये जब वह उनके सामने कोई जानकारी तुत करता था, तो वह आँकड़ का
वश्लेषण कर दे ता था और उसके आधार पर अपनी अनुशंसा भी लख दे ता था।
जब म परामशदाता क है सयत से एक दन उस े सडट के साथ बैठा था, तो वे मुझसे बोले, “ ट फ़न, इस
आदमी ने अ वश्वसनीय काय कया है। इसने न सफ़ मुझे मेरे ारा माँगी गई जानकारी द है, ब क इसने
अ त र जानकारी भी द है, जसक हम सचमुच ज़ रत थी। इसने मेरी गहनतम चता के संदभ म आँकड़
का वश्लेषण कया है और अपनी अनुशंसा भी लखी है।
“अनुशंसा वश्लेषण के अनु प है और वश्लेषण आँकड़ के। वह ब त ही असाधारण ए ज़ी यू टव है!
कतनी राहत क बात है क बज़नेस के इस ह से के बारे म चता करने क कोई ज़ रत नह है।”
अगली मी टग म फर वही दोहराया गया। बाक़ सभी ए ज़ी यू ट ज़ से कहा गया, “यह करो… वह करो।”
जब क उस ए ज़ी यू टव से पूछा गया, “आपक या राय है?” उसके भाव का वृ बढ़ गया था।
इससे संगठन म काफ़ हलचल ई। ए ज़ी यू टव ग लयारे म रए टव य ने इस ोए टव पर
तशोध क गोलाबारी शु कर द ।
ख़ुद को ज़ मेदारी से मु रखना रए टव य क कृ त होती है। “म ज़ मेदार नह ँ,” यह कहना
ब त सुर त है। य क अगर म कहता ,ँ “म ज़ मेदार ,ँ ” तो मुझे यह भी कहना पड़ सकता है, “म ग़ैर-
ज़ मेदार ँ।” मेरे लये यह कहना ब त मु कल होगा क मेरे पास अपनी त या चुनने क श है और अपनी
त या चुनने के कारण ही मने अपने प रवेश को नकारा मक व कपटपूण बनाया है, ख़ासकर तब जब म वष से
कसी सरे क कमज़ो रय के नाम पर ख़ुद को प रणाम क ज़ मेदारी से बचाता आया ँ।
इस लये इन ए ज़ी यू ट ज़ ने इस बारे म तक और बा द इकट् ठा करने पर यान क त कया क वे
ज़ मेदार य नह थे।
परंतु वह ए ज़ी यू टव उनके त भी ोए टव था। धीरे-धीरे उसके भाव का वृ उन लोग तक भी
प ँचा। यह इस हद तक बढ़ गया क अंत म ऐसी थ त आ गई क उस संगठन का कोई भी उस
ए ज़ी यू टव से पूछे बना या उसक वीकृ त के बना कोई भी मह वपूण क़दम नह उठाता था, जसम े सडट
भी शा मल थे। परंतु े सडट को कोई ख़तरा महसूस नह आ, य क इस क श उनक श के साथ
जुड़ गई थी और उनक कमज़ो रय क भरपाई करने लगी थी। इस लये उनके पास अब दो लोग क श थी,
एक पूरक ट म थी।
इस क सफलता उसक प र थ तय पर नभर नह थी। कई अ य भी उसी थ त म थे। उन
प र थ तय के त उसक चुनी ई त या से फ़क़ पड़ा था! अपने भाव के वृ पर उसके फ़ोकस से फ़क़
पड़ा था!

कुछ लोग यह सोचते ह क “ ोए टव” का अथ आप जनक, आ ामक या असंवेदनशील होता है, परंतु
ऐसा क़तई नह है। ोए टव आ ामक नह होते। वे बु मान होते ह और जीवनमू य ारा संचा लत होते
ह। वे वा त वकता का वश्लेषण करते ह और जानते ह क कस चीज़ क ज़ रत है।
गाँधीजी को दे खये। उन पर आरोप लगाने वाले वधानसभा म बैठकर उनक आलोचना कर रहे थे,
य क वे उनक चता के वृ म शा मल नह हो रहे थे। वे इस लये आलोचना कर रहे थे य क गाँधीजी भारत को
ग़लाम बनाने वाले टश सा ा य क भ सना के श दाडंबर म शा मल नह हो रहे थे। उस समय गाँधीजी धान के
खेत म घूम रहे थे। वे धीरे-धीरे, शां त से, लगभग ग़मनामी म रहते ए खेत म काम कर रहे कसान और मज़ र
के बीच अपने भाव के वृ का व तार कर रहे थे। यही वजह थी क पूरे दे श म उनके त समथन और वश्वास
क एक ज़मीनी लहर फैल गई। हालाँ क उनके पास कोई पद या राजनी तक कुस नह थी, परंतु क णा, साहस,
उपवास और नै तक आ ह के ारा उ ह ने अंततः इं लड को घुटने टे कने पर ववश कर दया। उ ह ने अपने भाव
के वृ का व तार करके उसक श से तीस करोड़ लोग क राजनी तक परतं ता को ख़ म कर दया।

“होता” और “बन सकता ँ” (The “Have’s” And The “Be’s”)


हमारी चता कस वृ म है, यह नधा रत करने का एक तरीक़ा ”होता„ और ”बन सकता „ँ के अंतर को
पहचानना है। चता का वृ ”होता„ से भरा आ है:
“म ख़ुश होता, अगर मुझ पर कज़ नह होता।”
“अगर मेरा बॉस इतना तानाशाह नह होता…।”
“अगर मेरे प त म अ धक धैय होता…।”
“अगर मेरे ब चे अ धक आ ाकारी होते…।”
“अगर मेरे पास ड ी होती…।”
“अगर मेरे पास अपने लये अ धक समय होता…।”
भाव का वृ “बन सकता ँ” से भरा आ है - म अ धक धैयवान बन सकता ,ँ अ धक बु मान बन
सकता ,ँ अ धक ेमपूण बन सकता ।ँ यह च र पर क त होता है।
जब भी हम सोचते ह क सम या “कह बाहर” है, तो यह वचार ही सम या है। इस तरह हम बाहरी चीज़
को ख़ुद पर नयं ण करने क श दे दे ते ह। इस वचार म प रवतन का पैरेडाइम बाहर से अंदर क ओर है -
हमारे बदलने से पहले बाहरी चीज़ को बदलना होगा।
ोए टव नी त अंदर से बाहर क आरे बदलना है: अलग बनना, और अलग बनकर बाहरी प र थ तय म
सकारा मक प रवतन करना - म अ धक बु मान बन सकता ,ँ अ धक प र मी बन सकता ,ँ अ धक
रचना मक बन सकता ,ँ अ धक सहयोगपूण बन सकता ।ँ
ओ ड टे टामट क एक कहानी मुझे वशेष य है, जो य द -ईसाई परंपरा के मूलभूत ढाँचे का ह सा है।
यह जोसफ़ क कहानी है, ज ह स ह साल क उ म उनके भाइय ने म म दास के प म बेच दया था।
क पना क जये, जोसफ़ के लये यह कतना आसान होता क वे पो टफ़र के दास के प म ख़ुद पर तरस खाते
ए ख के सागर म डु ब कयाँ लगाते, अपने भाइय तथा अपने मा लक क कमज़ो रय पर यान क त करते और
अपने अभाव पर वलाप करते परंतु जोसफ़ ोए टव थे उ ह ने “बन सकता ” ँ पर ज़ारे दया। और कुछ ही
समय बाद वे अपने मा लक पो टफ़र का पूरा ापार सँभालने लगे। पो टफ़र को जोसफ़ पर ब त वश्वास था,
इस लये उ ह ने जोसफ़ को अपनी सारी संप का भारी और कता-धता बना दया।
फर वह दन आया, जब जोसफ़ एक मु कल प र थ त म फँस गये, परंतु यहाँ भी उ ह ने अपनी ईमानदारी
से समझौता करने से इंकार कर दया। इसके प रणाम व प उ ह अ यायपूण तरीक़े से तेरह साल के लये जेल म
डाल दया गया। परंतु एक बार फर वे ोए टव बने। उ ह ने अपने अंद नी भाव के वृ पर काम कया और
“होता” के बजाय “बन सकता ” ँ पर ज़ोर दया। इसक बदौलत वे ज द ही जेल का संचालन करने लगे और
अंततः पूरे म का मागदशन करने लगे। उ ह ने इतनी ग त कर ली क वे स ाट (Pharaoh) के बाद सरे थान
पर आ गये।
म जानता ँ क यह वचार ब त से लोग के लये ब त बड़ा पैरेडाइम प रवतन है। वयं क न य थ त
के लये सर को, कंडीश नग को या प र थ तय को दोष दे ना ब त आसान होता है। परंतु अपने जीवन को
नयं त करने क ज़ मेदारी हमारी है, य क हमम त या करने क मता है। इस समय हम जो ह, उस पर
काम करके अपनी प र थ तय पर बल भाव डालने के लये भी हम ही ज़ मेदार ह।
अगर मेरे वैवा हक जीवन म कोई सम या है, तो अपनी प नी के दोष लगातार गनाने से मुझे वा तव म या
हा सल होगा? म ज़ मेदार नह ँ, यह कहकर म ख़ुद को प र थ तय का शकार बना रहा ँ। म ख़ुद को एक
नकारा मक थ त म न य बना रहा ।ँ म अपनी प नी को भा वत करने क अपनी मता को भी कम कर
रहा ँ। मेरे ताने, दोषारोपण व आलोचना मक नज़ रया उसे और कमज़ोर बना दे ते ह, य क वह अपनी
कमज़ो रय को तकसंगत ठहराने क को शश करती है। मेरी आलोचना तो उस वहार से भी बुरी है, जसे म
सुधारना चाहता ँ। थ त को सकारा मक प से भा वत करने क मेरी मता ऐसे वहार के कारण मुरझा
जाती है और अंततः मर जाती है।
अगर म अपनी थ त को सचमुच सुधारना चाहता ,ँ तो म उस एक चीज़ पर काम कर सकता ,ँ जो मेरे
नयं ण म है - यानी म ख़ुद। म अपनी प नी को सुधारने क को शश करना बंद करके अपनी कमज़ो रय पर काम
कर सकता ँ। म एक अ छा जीवनसाथी बनने पर यान क त कर सकता ,ँ बना शत के ेम तथा सहारे का
ोत बन सकता ँ। इसके बाद म यह आशा कर सकता ँ क मेरी प नी इस ोए टव उदाहरण क श को
महसूस करेगी और बदले म वह भी इसी तरह का वहार करेगी। परंतु चाहे वह ऐसा करे या न करे, वयं पर यानी
अपने बनने पर काम करना अपनी प र थ त को भा वत करने का सबसे सकारा मक तरीक़ा है।
भाव के वृ म काम करने के ब त से तरीक़े ह - बहेतर ोता बनना, अ धक मे करने वाला जीवनसाथी
बनना, बहेतर व ाथ बनना, अ धक सहयोगपूण व सम पत कमचारी बनना। कई बार हम जो सवा धक
ोए टव काम कर सकते ह, वह है ख़ुशनुमा बनना, सफ़ स ची मु कराहट दे ना। ख क तरह ही ख़ुशी भी एक
ोए टव चुनाव है। मौसम जैसी कई चीज़ ह गी, जो कभी हमारे भाव के वृ के भीतर नह ह गी। परंतु
ोए टव य के प म हम अपने भौ तक या सामा जक मौसम को अपने साथ लेकर चल सकते ह। हम
ख़ुशी-ख़ुशी उन चीज़ को वीकार करते ह, ज ह हम वतमान म नयं त नह कर सकते, हालाँ क हम अपने
यास उन चीज़ पर क त रखते ह, ज ह हम नयं त कर सकते ह।

छड़ी का सरा सरा


अपने जीवन के फ़ोकस को पूरी तरह से अपने भाव के वृ पर क त रखने के लये हम अपने चता के वृ
क दो चीज़ के बारे म गंभीरता से वचार करने क ज़ रत है - प रणाम और ग़ल तयाँ।
हालाँ क हम अपने काय चुनने के लये वतं ह, परंतु हम उनके प रणाम को चुनने के लये वतं नह ह।
प रणाम ाकृ तक नयम ारा संचा लत होते ह। वे चता के बाहरी वृ म होते ह। हम तेज़ र तार से आ रही े न
के सामने खड़े होने का फ़ैसला कर सकते ह, परंतु हम यह फ़ैसला नह कर सकते क जब े न हम ट कर मारेगी,
तो उसके बाद या होगा।
हम अपने ावसा यक लेन-दे न म बेईमान होने का फ़ैसला कर सकते ह। इस नणय के सामा जक प रणाम
भ हो सकते ह, य क वे इस बात पर नभर करते ह क हम पकड़े जाते ह या नह , परंतु हमारे मूलभूत च र के
ाकृ तक प रणाम न त होते ह।
हमारा वहार स ांत ारा संचा लत होता है। इनके सामंज य म जीने से सकारा मक प रणाम मलते ह;
इनका उ लंघन करने से नकारा मक प रणाम मलते ह। कसी भी थ त म हम अपनी त या चुनने के लये
वतं ह, परंतु ऐसा करते समय हम उसके प रणाम को भी चुनते ह। “जब हम छड़ी का एक सरा उठाते ह, तो हम
सरा सरा भी उठाते ह।”
नःसंदेह हमारे जीवन म ऐसे भी समय रहे ह गे, जब कसी छड़ी को उठाने के बाद हम यह महसूस आ हो
क हमने ग़लत छड़ी उठा ली थी। हमारे चुनाव क वजह से हम ऐसे प रणाम मले, जो न मलते तो यादा अ छा
रहता। अगर हम बारा चुनाव करने का मौक़ा मले, तो हम अलग चुनाव करगे। हम इन चुनाव को ग़ल तयाँ कहते
ह और प रणाम के बाद वे सरी चीज़ ह, जन पर हम गंभीरता से वचार करना चाहये।
प ाताप से भरे लोग के लये शायद ोए ट वट का सबसे आव यक अ यास यह एहसास करना है क
पछली ग़ल तयाँ भी चता के बाहरी वृ म रहती ह। हम उ ह लौटा नह सकते, हम उ ह रद्द नह कर सकते और
हम उनक वजह से उ प प रणाम को नयं त नह कर सकते।
मेरा एक पु जब कॉलेज क ट म म वाटरबैक के प म खेल रहा था, तो उसने एक चीज़ सीखी। वह हर
मैच से पहले अपना र टबड चटकाता था। इसके अलावा वह तब भी र टबड चटकाता था, जब वह ख़ुद या कोई
और “अतीत पर प ाताप” क ग़लती करता था। वह ऐसा इस लये करता था, ता क पछली ग़लती अगले मैच के
संक प और काय को भा वत न करे।
ग़लती के त ोए टव नी त इसे त काल वीकार करना, सुधारना और इससे सीखना है। ऐसा करने से
असफलता सफलता म बदल जाती है। जैसा आई.बी.एम. के सं थापक ट .जे. वाटसन ने कहा था, “सफलता
असफलता के सरे सरे पर होती है।”
परंतु ग़लती को वीकार न करना, इसे न सुधारना और इससे कुछ न सीखना भी एक तरह क ग़लती है।
इससे आम तौर पर ख़ुद को धोखा दे ने और अपने काम को सही सा बत करने क राह पर चलने लगता है,
जस दौरान वह अ सर ख़ुद से और सर से तकपूण झूठ बोलता है। अपनी भूल पर पदा डालने क यह सरी
ग़लती पहली ग़लती को यादा ताक़तवर बनाती है, इसे अनुपातहीन मह व दे ती है और हम ब त गहरा नुक़सान
प ँचाती है।
हम सबसे यादा नुक़सान इस बात से नह होता क सरे या करते ह या हमसे या ग़ल तयाँ होती ह; हम
सबसे यादा नुक़सान इन चीज़ पर अपनी त या से होता है। जस ज़हरीले साँप ने हम काटा हो, अगर हम
उसके पीछे दौड़ने लग, तो इससे सफ़ यह होगा क ज़हर तेज़ी से हमारे पूरे शरीर म फैल जायेगा। इससे कह
बेहतर तरीक़ा यह होगा क हम त काल ज़हर बाहर नकालने के उपाय कर।
कसी ग़लती पर हमारी त या अगले पल क हमारी गुणव ा को भा वत करती है। यह मह वपूण है क
हम त काल अपनी ग़लती मान ल और उसे सुधार ल, ता क अगले ही पल हम पर से उसका नयं ण ख़ म हो जाये
और हम बारा श मल जाये।

वायदे करना और नभाना


वायदे करने और उ ह नभाने क मता हमारे भाव के वृ के क म है। ोए ट वट का सार और सबसे
प अभ यह है क हम ख़ुद से तथा सर से जो वायदे करते ह, उ ह कतनी ईमानदारी से नभाते ह।
यह हमारे वकास का सार भी है। आ म-जाग कता और ववेक क मानवीय तभा के कारण हम उन
े के बारे म जाग क होते ह जहाँ हम कमज़ोर ह, जहाँ हम सुधार कर सकते ह तथा जहाँ हम अपनी तभा
वक सत कर सकते ह। हम उन े के बारे म भी जाग क होते ह, ज ह बदले जाने या हमारी ज़दगी से बाहर
नकालने क आव यकता है। फर हम इस जाग कता पर काम करने के लये अपनी क पना और आ म नभर
इ छा को पहचानते और यु करते ह। जब हम वायदे करके, ल य बनाकर और उ ह नभाकर ऐसा करते ह, तो
हम अपने च र को, अपने “बनने” को ढ़ बनाते ह, जससे हमारे जीवन म बाक़ सकारा मक चीज़ संभव होती
ह।
यहाँ पर हम दो तरीक़े पाते ह, जो हमारे जीवन का नयं ण त काल हमारे हाथ म दे सकते ह। हम कोई
वायदा कर सकते ह और उसे नभा सकते ह। या हम ल य बना सकते ह और उसे हा सल करने के लये काम कर
सकते ह। जब हम वायदे करते और नभाते ह, चाहे वे छोटे ही य न ह , तो हम आंत रक ईमानदारी क न व
डालते ह। यह ईमानदारी हम आ म- नयं ण क जाग कता दे ती है। यह हम अपने जीवन क अ धक ज़ मेदारी
लेने क श तथा साहस दान करती है। जब हम ख़ुद से और सर से कये गये वायदे लगातार नभाते ह, तो
धीरे-धीरे हमारे लये हमारी त ा हमारे मूड से यादा मह वपूण हो जाती है।
ख़ुद से वायदे करने और नभाने क श भावका रता क मूलभूत आदत को वक सत करने का सार है।
ान, यो यता और इ छा सभी हमारे नयं ण म ह। हम तीन के संतुलन को सुधारने के लये कसी पर भी मेहनत
कर सकते ह। जैस-े जैसे कटाव या त छे दन का े बढ़ता जाता है, वैस-े वैसे हम उन स ांत को गहराई से
आ मसात करने लगते ह, जन पर आदत आधा रत ह। इसके साथ ही हम चा र क ढ़ता भी वक सत करते ह,
जो हम जीवन म बढ़ ई भावका रता क ओर संतु लत प से आगे बढ़ाती है।

ोए ट वट : तीस दवसीय परी ण


हम अपनी ोए ट वट को पहचानने और वक सत करने के लये कल क तरह मृ यु श वर के अनुभव से
गुज़रने क ज़ रत नह है। रोज़मरा के साधारण अनुभव म ही हम जीवन के असाधारण दबाव से नबटने क
ोए टव मता वक सत कर सकते ह। यह इसम न हत है क हम कस तरह से वायदे करते और नभाते ह,
कस तरह से ै फ़क जाम म फँसने पर वहार करते ह, कस तरह से ग़ सैल ाहक या उद्दं ड ब चे के त
वहार करते ह। यह इसम न हत है क हम अपनी सम या को कस तरह से दे खते ह और अपनी श य को
कहाँ क त करते ह। यह उस भाषा म न हत है, जसका हम योग करते ह।
म आपको चुनौती दे ता ँ क आप 30 दन तक ोए ट वट के स ांत को आज़माकर दे ख। इसे आज़माय
और दे ख क या होता है। 30 दन तक सफ़ अपने भाव के वृ म काम कर। छोटे -छोटे वायदे कर और उ ह
नभाय। पथ दशक बन, मू यांकनकता न बन। आदश बन, आलोचक न बन। समाधान का ह सा बन, सम या का
ह सा न बन।
इसे अपने वैवा हक जीवन, अपने प रवार और अपनी नौकरी म आज़माय। सर क कमज़ो रय पर बहस न
कर। अपनी कमज़ो रय को उ चत सा बत करने के लये भी बहस न कर। जब आप कोई ग़लती कर, तो उसे तुरंत
मान ल, सुधार और उससे सीख ल। दोष दे ने या आरोप लगाने क मु ा म न आय। उन चीज़ पर काम कर, जो
आपके नयं ण म ह। वयं पर - अपने बनने पर - काम कर।
सर क कमज़ो रय पर दोषारोपण करने के बजाय उ ह क णा क से दे ख। मुददा
् यह नह है क वे
या नह कर रहे ह या उ ह या करना चा हये। मुददा ् तो यह है क थ त पर आप कौन सी त या चुनते ह
और आपको या करना चा हये। अगर आप यह सोचने लगते ह क सम या कह बाहर है, तो ख़ुद को रोक।
दरअसल यह वचार ही सम या है।
जो लोग अपनी बीज पी वतं ता का हर दन अ यास करते ह, वे उस वतं ता को धीरे-धीरे बढ़ा लगे। जो
लोग ऐसा नह करते, वे पायगे क यह मुरझा गई है और सर ने उ ह अपने हसाब से जीने के लये बा य कर दया
है। वे उन ट् स के हसाब से काम करते ह, जो उनके माता- पता, सहयो गय तथा समाज ने लखी ह।
हम अपनी भावका रता, सुख और, अंत म म कहना चा ँगा, अपनी अ धकांश प र थ तय के लये भी ख़ुद
ही ज़ मेदार ह।
से युअल जॉनसन ने कहा था: “संतु का सोता म त क से फूटना चा हये। जस को मानवीय वभाव
का इतना कम ान है क वह अपने वहार के अलावा कसी सरी चीज़ को बदलकर सुख हा सल करना चाहता
है, वह अपना जीवन नरथक यास म बबाद करेगा और जस ख को वह र करना चाहता है, उसे कई गुना बढ़ा
लेगा।”
यह जानना क हम ज़ मेदार ह और त या करने म स म ह, भावका रता और इसक हर आदत के
लये ( जस पर हम चचा करगे) मूलभूत है।

अमल म लाने के सुझाव:


1. एक दन के लये अपनी और अपने आसपास के लोग क भाषा पर यान द। कतनी बार आप इस तरह के
रए टव वा यांश बोलते या सुनते ह, जैसे “अगर,” “म नह कर सकता,” या “मुझे करना पड़ेगा?”
2. कसी ऐसी घटना का अनुमान लगाय, जससे आपका नकट भ व य म सामना हो सकता है और जसम
अतीत के अनुभव के आधार पर आप शायद रए टव तरीक़े से वहार करगे। अपने भाव के वृ के संदभ
म थ त क समी ा कर। आप ोए टव तरीक़े से कस तरह वहार कर सकते ह? कुछ मनट तक अपने
म त क म उस घटना क त वीर दे ख और उसम वयं को ोए टव तरीक़े से त या करते ए दे ख। वयं
को उद्द पन और त या के बीच क खाई के बारे म याद दलाय। ख़ुद से वायदा कर क आप वक प
चुनने क अपनी वतं ता का योग करगे।
3. अपने ऑ फ़स या गत जीवन क कसी ऐसी सम या को चुन, जो आपको कुं ठत कर रही हो। यह तय
कर क यह कस ेणी म आती है। या यह य नयं ण, अ य नयं ण या शू य नयं ण क सम या
है? इसे सुलझाने के लये उस पहले क़दम का चुनाव कर, जो आप अपने भाव के वृ म उठा सकते ह और
फर वह क़दम उठा ल।
4. ोए ट वट के तीस दवसीय परी ण को आज़माय। अपने भाव के वृ म हो रहे प रवतन के बारे म
जाग क रह।
सरी आदत
अंत को यान म रखकर शु कर
गत लीडर शप के स ांत

जो कुछ हमारे भीतर है, उसक तुलना म हमारे पीछे और आगे के मामले ब त छोटे
ह।
● ओ लवर वडेल हो स

कृ पया अगले कुछ पृ पढ़ने के लये कोई ऐसी जगह खोज, जहाँ आप अकेले ह और वहाँ कोई वधान न हो।
अपने दमाग़ से बाक़ सारी चीज़ बाहर नकाल द। सफ़ पढ़ने तथा मेरे सुझाव मानने पर पूरा यान क त
कर। अपने टाइमटे बल, कामकाज, प रवार या म के बारे म चता न कर। सफ़ मेरी बात पर यान क त कर
और अपने म त क को सचमुच खोल द।
अपनी मान सक आँख से ख़ुद को कसी यजन क अं ये म शा मल होते दे ख। यह त वीर दे ख क आप
अं ये म भाग लेने के लये कार से क़ तान जा रहे ह, कार पाक कर रहे ह और उससे बाहर नकल रहे ह। जैसे
ही आप इमारत म दा ख़ल होते ह, आपको फूल दखाई दे ते ह और धीमा-धीमा संगीत सुनाई दे ता है। आगे जाने पर
आपको म और प रवार वाल के चेहरे दखते ह। आपको उस य के बछड़ जाने का ख होता है, परंतु
आपको ख़ुशी भी होती है क वह आपके क़रीब रहा था। ये दोन भाव वहाँ पर मौज़ूद सभी लोग के दल म होते ह।
जब आप कमरे के अगले ह से तक प ँचते ह और ताबूत म झाँकते ह, तो आपको अचानक अपना चेहरा
दखाई दे ता है। यह आपक अं ये है, जो आज से तीन साल बाद होगी। ये सब लोग आपके स मान म एक त
ए ह। वे आपके जीवन के बारे म ेम तथा सराहना क भावनाय करने आये ह।
आप बैठ जाते ह और अं तम सं कार क या शु होने का इंतज़ार करते ए अपने हाथ म रखे काय म
पर नज़र डालते ह। चार व ा बोलने वाले ह। पहला व ा आपके प रवार का सद य है - आपका कोई क़रीबी या
र का र तेदार। यह आपका पु -पु ी, भाई-बहन, भतीजा-भतीजी, चाचा-चाची, चचेरे भाई-बहन या दादा-दाद म
से कोई भी हो सकता है, जो र- र से आपक अं ये म शा मल होने के लये आये ह। सरा व ा आपके म
म से एक है, जो इस बारे म बतायेगा क आप के प म कैसे थे। तीसरा व ा आपके ऑ फ़स या वसाय
का सहकम है। और चौथा आपके चच या उस सामुदा यक सं थान का है, जहाँ आपने अपनी सेवाय द ह।
अब गहराई से सोच। आप या चाहते ह क इनम से हर व ा आपके और आपके जीवन के बारे म या
कहे? आप उनके श द म अपना कस तरह का त बब दे खना पसंद करगे क आप कस तरह के प त, प नी,
पता या माता थे? कस तरह के पु या पु ी या चचेरे भाई थे? कस तरह के म थे? कस तरह के सहकम थे?
आप अपने च र को कस प म दे खा जाना पसंद करगे? आप या चाहगे क वे आपके कन योगदान या
उपल धय को याद रख? यान से अपने आसपास के लोग क ओर दे ख। आप उनके जीवन म या प रवतन
लाना पसंद करगे?
इससे पहले क आप आगे पढ़, कुछ मनट नकालकर अपने वचार लख ल। इससे सरी आदत के बारे म
आपक गत समझ काफ़ हद तक बढ़ जायेगी।

“अंत को यान म रखकर शु कर” का या अथ है


अगर आपने इस का प नक अनुभव के योग म गंभीरता से ह सा लया है, तो आपने पल भर के लये ही
सही, अपने कुछ गहरे और आधारभूत जीवनमू य को छू लया था। आपने अपने भाव के वृ के क म थत
आंत रक मागदशन तं के साथ णक संपक था पत कर लया था।
जोसफ़ ए डसन के श द पर वचार कर:

जब म महान लोग क समा धय को दे खता ँ, तो मेरे अंदर ई या का हर भाव मर जाता है। जब म


सुंदर लोग के समा ध-लेख पढ़ता ,ँ तो मेरी हर बल इ छा बाहर हो जाती है। जब पु क समा ध
के प थर पर माता- पता के ख से मेरा सामना होता है, तो मेरा दय क णा से भर उठता है। जब म
वयं माता- पता क समा ध दे खता ँ, तो म उन लोग के लये शोक मनाने क नरथकता पर वचार
करता ँ, जनके पीछे हम भी ज द ही चले जायगे। जब म स ाट को उन लोग के पास लेटे दे खता
ँ, ज ह ने उ ह ग से हटाया था; जब म श ु व ान को पास-पास बनी क़ म दे खता ँ या उन
धा मक य को एक- सरे के नकट दफ़न दे खता ँ, ज ह ने अपने ववाद से वश्व को
वभा जत कया था, तो म मानव जा त क छोट -छोट त पधा , गुटबं दय और ववाद पर
वचार करते ए ख और आ य से भर जाता ँ। जब म लोग क समा धय पर लखी मृ यु क
अलग-अलग तारीख़ पढ़ता ँ, जनम से कुछ कल क होती ह और कुछ छह सौ साल पहले क , तो
म उस महान दन के बारे म सोचता ँ, जब हम सब समकालीन ह गे और एक साथ नज़र आयगे।

हालाँ क सरी आदत जीवन क कई अलग-अलग प र थ तय और तर पर लागू होती है, परंतु “अंत को
यान म रखकर शु कर” को लागू करने का सबसे मूलभूत तरीक़ा यह है क आप आज अपने जीवन के अंत क
छ व, त वीर या पैरेडाइम को यान म रखकर शु कर। आप अपने जीवन के अंत को संदभ का वह पैमाना या
मापदं ड (frame of reference) बना लेते ह, जसके ारा बाक़ हर चीज़ क जाँच क जाती है। आपके लये जो
सचमुच सबसे मह वपूण है, उसक पृ भू म म आप यह जाँच करते ह। आपके सम जीवन क पृ भू म म जीवन
के हर ह से क जाँच क जा सकती है, जसम आज का वहार, कल का वहार, अगले स ताह का वहार
और अगले महीने का वहार शा मल है। उस अंत को प प से यान म रखते ए आप यह सु न त कर
सकते ह क कसी भी दन आपके ारा कया गया कोई भी काय उस मापदं ड क अवहेलना न करे, जसे आपने
सबसे मह वपूण के प म प रभा षत कया है। साथ ही आप यह भी सु न त कर सकते ह क आपके जीवन का
येक दन उस सपने को साकार करने म साथक योगदान दे , जसे आपने अपने पूरे जीवन के लये दे खा है।
अंत को यान म रखकर शु करने का मतलब अपनी मं ज़ल को अ छ तरह समझकर या ा शु करना है।
इसका अथ यह समझना है क आप कहाँ जा रहे ह, ता क आप बेहतर ढं ग से यह जान सक क आप वतमान म
कहाँ ह… ता क आपके भ व य के क़दम हमेशा सही दशा म ह ।
ग त व धय के जाल या जीवन क तता म फँसना ब त ही आसान है। यह ब त आसानी से हो सकता
है क सफलता क सीढ़ पर चढ़ने के लये आप कड़ी मेहनत करते जाय और अंत म आपको पता चले क आपक
सीढ़ ग़लत द वार पर टक ई थी। यह संभव है क आप तह -ब त त ह - परंतु ब त भावकारी न
ह।
लोग अ सर यह पाते ह क उ ह ने जो सफलताय हा सल क ह, वे खोखली ह। उ ह अचानक यह एहसास
होता है क ये सफलताय उ ह ऐसी चीज़ क क़ मत पर मली ह, जो उनके लये कह अ धक मू यवान थ । हर
वसाय के लोग - डॉ टर, श क, अ भनेता, राजनेता, बज़नेस ोफ़ेशन स, खलाड़ी और लंबर - अ सर
अ धक आमदनी, अ धक त ा या अ धक ावसा यक द ता हा सल करने के लये संघष करते ह। और अंत म
इन लोग को पता चलता है क ल य हा सल करने क बल इ छा ने उ ह उन चीज़ के त अंधा कर दया था,
जो दरअसल उनके लये सबसे यादा मह वपूण थ … और अब वे चीज़ जा चुक ह।
जब हम वा तव म यह जान लेते ह क हमारे लये कौन सी चीज़ सचमुच मह वपूण ह, जब हम उस त वीर
को यान म रखकर हर दन अपना बंधन करते ह और वही काम करते ह, जो सचमुच हमारे लये सबसे मह वपूण
ह, तो हमारे जीवन म ब त बड़ा फ़क़ पड़ता है। अगर सीढ़ सही द वार से न टक हो, तो हमारा हर क़दम हम
यादा तेज़ी से ग़लत जगह क ओर ले जाता है। हो सकता है हम ब त त ह , ब त काय-कुशल ह , परंतु हम
स चे अथ म भावकारी तभी ह गे, जब हम अंत को यान म रखकर शु करगे।
अगर आप सावधानी से इस बात पर वचार कर क आप अपनी अं ये के अनुभव म अपने बारे म या
सुनना चाहते थे, तो आपको सफलता क अपनी प रभाषा मल जायेगी। हो सकता है यह प रभाषा उस प रभाषा
से ब त अलग हो, जो आपने इससे पहले सोच रखी हो। शायद शोहरत, सफलता, धन या अ य चीज़, ज ह पाने
क हम को शश करते ह, वे सही द वार का ह सा ही न ह ।
जब आप अंत को यान म रखकर शु करते ह, तो आप नये कोण से दे खने लगते ह। अपने म क
मृ यु पर एक आदमी ने सरे से पूछा, “वह कतना छोड़ गया?” म ने जवाब दया, “वह सब कुछ छोड़ गया।”

सभी चीज़ दो बार बनती ह


“अंत को यान म रखकर शु कर” इस स ांत पर आधा रत है क सभी चीज़ दो बार बनती ह। सभी चीज़
क थम रचना मान सक होती है और तीय रचना भौ तक।
मकान बनाने के उदाहरण को दे ख। पहली क ल को हथौड़े से ठ कने से पहले ही आप मकान क योजना पूरे
व तार से बनाते ह। आप ब त प ता से यह दे खने क को शश करते ह क आप कस तरह का घर चाहते ह।
अगर आप प रवार-क त घर चाहते ह, तो आप एक पा रवा रक क क योजना बनाते ह, जहाँ प रवार के सब
लोग सहजता से एक साथ उठ-बैठ सक। आप सरकने वाले दरवाज़ तथा बाहर के आँगन क योजना बनाते ह,
जहाँ ब चे खेल सक। आप काफ़ मेहनत से सोचते ह। आप अपना दमाग़ तब तक दौड़ाते ह, जब तक आप प
प से अपने मन म यह त वीर न दे ख ल क आप या बनाना चाहते ह।
फर आप इसका लू ट बनाते ह और नमाण-योजना तैयार करते ह। यह सब मकान क न व रखने से पहले
कया जाता है। अगर ऐसा न हो, तो तीय रचना यानी भौ तक नमाण म प रवतन करना आपको ब त महँगा
पड़ेगा, जससे आपके घर क लागत गनी हो सकती है।
बढ़ई का नयम है, “दो बार नापो, एक बार काटो।” आपको यह सु न त करना होता है क थम रचना
यानी लू ट सचमुच वही है, जो आप चाहते ह और आपने हर चीज़ के बारे म अ छ तरह वचार कर लया है।
इसके बाद ही आप मकान को ट और सीमट से बनाते ह। हर दन आप नमाण थल पर जाते ह और लू ट
नकालकर दे खते ह क उस दन या बनेगा। आप अंत को यान म रखकर शु करते ह।
सरे उदाहरण के तौर पर कसी वसाय (business) को दे ख। अगर आप अपने वसाय को सफल
बनाना चाहते ह, तो आप प प से प रभा षत करते ह क आप या हा सल करने क को शश कर रहे ह। आप
बाज़ार के ल य के संदभ म सावधानी से सोचते ह क आप कौन सा ॉड ट या सेवा दे ना चाहते ह। फर आप उस
ल य को पाने के लये वसाय के सभी त व को जुटाते ह, जनम पूँजी, शोध और वकास, संचालन, माक टग,
कमचारी, भौ तक सु वधाय आ द शा मल ह। आप जस हद तक अंत को यान म रखकर शु करते ह, अ सर
उसी से यह तय होता है क आपका वसाय सफल होगा या नह । अ धकांश ावसा यक वफलता क न व
थम रचना के दौरान ही डल जाती है, जब कम पूँजी, बाज़ार क ग़लत समझ या ावसा यक योजना के अभाव
जैसी सम याएँ पैदा होती ह।
यही ब च के पालन-पोषण के बारे म सही है। अगर आप ब च को ज़ मेदार और आ म-अनुशा सत बनाना
चाहते ह, तो अपने ब च के साथ दै नक वहार म आपको इस ल य को प ता से यान म रखना होगा। आप
उनसे ऐसा वहार नह कर सकते, जससे उनका आ म-अनुशासन या आ मस मान कम हो।
लोग इस स ांत का योग कमोबेश जीवन के अ धकांश े म करते ह। कसी या ा पर जाने से पहले
आप अपनी मं ज़ल तय करते ह और सव म माग से या ा करने क योजना बनाते ह। बगीचा लगाने से पहले आप
अपने म त क म और संभवतः काग़ज़ पर भी इसक योजना बनाते ह। भाषण दे ने से पहले आप उसे काग़ज़ पर
लखते ह। आँगन म लड के पग करने से पहले आप उसक क पना करते ह। सुई म धागा डालने से पहले ही आप
उन कपड़ क डज़ाइन बनाते ह, ज ह आप सलना चाहते ह।
जस हद तक हम दो रचना के स ांत को समझते ह और उन दोन क ही ज़ मेदारी वीकार करते ह,
उसी हद तक हम अपने भाव के वृ म काय करते ह और इस वृ क सीमाएँ बढ़ा लेते ह। जस हद तक हम इस
स ांत के सामंज य म काम नह करते और थम रचना क ज़ मेदारी नह लेत,े उसी हद तक हम अपने भाव
के वृ को छोटा कर लेते ह।

सु नयो जत या वयमेव (By Design Or Default)


स ांत यह है क सभी चीज़ दो बार बनती ह, परंतु इनक थम रचना हमेशा सचेतन प से तैयार नह क
जाती है। अगर हम अपने गत जीवन म आ म-जाग कता वक सत नह करते और थम रचना क
ज़ मेदारी नह लेत,े तो हम अपने भाव के वृ के बाहर रहने वाले लोग व प र थ तय को वयमेव यह श दे
दे ते ह क वे हमारे अ धकांश जीवन को मनचाहा आकार द। हम रए टव ढं ग से सर क ट् स के हसाब से
ज़दगी बताते ह, ज ह हमारे प रवार, सहयो गय , सरे लोग के उद्दे य और प र थ तय के दबाव ने लखा
है। हम उन ट् स के अनुसार जीने लगते ह, ज ह हमारे बचपन, श ण या कंडीश नग के दौरान हमम डाला
गया था।
ये ट् स स ांत से नह , ब क लोग से आती ह। इन ट् स का आधार इनम से कोई भी चीज़ हो
सकती है: हमारी गहरी असुर ा, सर पर हमारी ब त यादा नभरता, वीकृ त तथा ेम पाने क इ छा, समूह म
शा मल होने क ज़ रत, मह व और उपयो गता के एहसास क आव यकता, यह महसूस करने क ज़ रत क हम
मह वपूण ह।
चाहे हम इसके बारे म जाग क ह या न ह , चाहे यह हमारे नयं ण म हो या न हो, हमारे जीवन के हर ह से
म थम रचना होती है। हम या तो अपनी ही ोए टव योजना क तीय रचना ह या फर हम सर के उद्दे य ,
प र थ तय या अपनी पुरानी आदत क तीय रचना ह।
आ म-जाग कता, क पना और ववेक क अनूठ मानवीय तभाएँ हम थम रचना क जाँच करने म
समथ बनाती ह। इनक वजह से ही हम वयं क थम रचना क ज़ मेदारी ले सकते ह और अपनी ख़ुद क ट
लख सकते ह। सरे तरीक़े से कहा जाये, तो सात आदत म से पहली आदत कहती है, “आप रच यता ह;” सरी
आदत थम रचना है।

लीडर शप और मैनेजमट - दो रचनाय


सरी आदत गत लीडर शप के स ांत पर आधा रत है, जसका अथ यह है क लीडर शप थम
रचना है। लीडर शप (नेतृ व) मैनेजमट ( बंधन) नह है। मैनेजमट तीय रचना है, जस पर हम तीसरी आदत
वाले अ याय म चचा करगे। परंतु लीडर शप पहले आती है।
मैनेजमट का संबंध प रणाम या योजना (bottom line focus) से है: म कस तरह कुछ चीज़ को सव े
तरीक़े से हा सल कर सकता ँ? लीडर शप का संबंध कारण या ल य (top line focus) से है: वे कौन सी चीज़
ह, ज ह म हा सल करना चाहता ँ? पीटर कर और वारेन बे नस के श द म, “मैनेजमट काम को सही तरीक़े से
करना है; लीडर शप सही काम करना है।” मैनेजमट का अथ है सफलता क सीढ़ पर कुशलता से चढ़ना; जब क
लीडर शप यह नधा रत करती है क वह सीढ़ सही द वार से टक है।
अगर आप दोन के बीच के मह वपूण अंतर को ज द से समझना चाहते ह , तो आप उन मज़ र
(producers) क क पना कर, जो जंगल म औज़ार से टह नयाँ काटकर अपना रा ता बना रहे ह। ये लोग
उ पादक ह, सम याएँ सुलझाने वाले ह। वे झाड़-झंखाड़ को काट-छाँटकर रा ता बना रहे ह, इसे साफ़ कर रहे ह।
मैनेजर मज़ र के पीछे चल रहे ह। वे मज़ र के औज़ार पर धार कर रहे ह, नी त और नयम क नद शका
लख रहे ह, मांसपेशी वकास काय म तैयार कर रहे ह, उ त तकनीक ला रहे ह और औज़ार से सफ़ाई करने
वाल के लये समय-सा रणी तथा भुगतान क नी त नधा रत कर रहे ह।
लीडर वह है, जो सबसे ऊँचे वृ पर चढ़ता है, पूरी थ त का सव ण करता है और ज़ोर से च लाता है,
“हम ग़लत जंगल म ह!”
परंतु त कुशल मज़ र और मैनेजर क त या अ सर या होती है? “चुप रहो! हम आगे बढ़ रहे ह।”
य , समूह और ावसा यक कंप नय के प म हम झाड़-झंखाड़ काटकर रा ता बनाने म अ सर
इतने त रहते ह क हम यह एहसास ही नह होता क हम ग़लत जंगल म ह। और हम जस तेज़ी से बदलते
प रवेश म रह रहे ह, वह भावकारी लीडर शप को आ म नभर और पर पर- नभर जीवन के हर पहलू म पहले से
अ धक मह वपूण बना दे ता है।
हम सड़क के न शे क उतनी ज रत नह होती, जतनी भ व य या ल य और क पास ( स ांत या
दशा के ान) क होती है। हम अ सर यह मालूम नह होता क आगे आने वाली तराई कैसी होगी या हम उसे
पार करने के लये कस चीज़ क ज़ रत पड़ेगी। ब त कुछ इस बात पर नभर करेगा क हम उस समय या
नणय लगे। बहरहाल, हमारा आंत रक क पास हम हमेशा सही दशा दखायेगा।
भावका रता - अ सर बचाव भी - सफ़ इस बात पर नभर नह करती क हम कतने यादा यास करते
ह, ब क इस बात पर नभर करती है क हमारे यास सही जंगल म हो रहे ह या नह । और लगभग हर उ ोग व
वसाय म हो रहे आमूलचूल प रवतन म पहली ज़ रत लीडर शप क है तथा सरी ज़ रत मैनेजमट क ।
ावसा यक जगत म बाज़ार इतनी तेज़ी से बदल रहा है क जन ॉड ट् स और सेवा ने कुछ साल पहले
तक ाहक क चय तथा आव यकता को सफलतापूवक संतु कया था, वे आज पुराने और चलन से बाहर
हो चुके ह। ोए टव सश लीडर शप को प रवेश म होने वाले प रवतन पर लगातार नज़र रखना चा हये,
ख़ासकर ाहक के ख़रीदने क आदत तथा उद्दे य के प रवतन पर। इसके बाद लीडर शप को सही दशा म
संसाधन व थत करने के लये आव यक श उपल ध कराना चा हये।
कुछ प रवतन प रवेश को मह वपूण प से भा वत करते ह, जैसे एयरलाइन उ ोग का नजीकरण,
वा य सु वधा क आसमान छू ती क़ मत और आया तत कार क उ म गुणव ा तथा अ धक सं या। अगर
कोई कंपनी प रवेश पर नज़र नह रखती है, जसम उसके कमचारी शा मल ह; अगर कंपनी सही दशा म बढ़ते
रहने के लये रचना मक लीडर शप का योग नह करती है, तो कुशलतम मैनेजमट भी उसे असफल होने से नह
बचा सकता।
जैसा कसी ने कहा है, भावकारी लीडर शप के बना कुशल मैनेजमट “टाइटै नक जहाज़ क डेक पर लगी
कु सय को सीधा करने क तरह है।” मैनेजमट क कोई भी सफलता लीडर शप क असफलता क भरपाई नह
कर सकती। परंतु लीडर शप क ठन है, य क हम अ सर मैनेजमट के पैरेडाइम म उलझकर रह जाते ह।

सीटल म एक वष य ए ज़ी यू टव वकास काय म के अं तम स म एक ऑइल कंपनी के अ य ने मेरे


पास आकर कहा, “ ट फ़न, आपने हम सरे महीने म लीडर शप और मैनेजमट का अंतर समझाया था। उसी समय
मने कंपनी के े सडट के प म अपनी भू मका पर वचार कया। मुझे यह एहसास आ क मने कभी लीडर शप
तो क ही नह थी। म पूरी तरह मैनेजमट म जुटा आ था। म वतमान चुनौ तय तथा रोज़मरा क छोट -छोट बात
और ववरण म उलझकर रह गया था। इस लये मने मैनेजमट से र हटकर लीडर बनने का फ़ैसला कया;
मैनेजमट करने के लये म सरे लोग को नौकरी पर रख सकता था। म सचमुच अपने संगठन का नेतृ व करना
चाहता था।
“यह काम मु कल था। मुझे मैनेजमट छोड़ने के शु आती क झेलना पड़े, य क मने अपने सामने आने
वाले ब त से आव यक और मह वपूण मामले नबटाना बंद कर दये थे, जो मुझे त काल सफलता का एहसास दे ते
थे। जब मने दशा दे न,े सं कृ त का नमाण करने, सम या का गहन वश्लेषण करने और नये अवसर खोजने
जैसे मामल से जूझना शु कया, तो शु आत म मुझे कोई ख़ास संतु नह मली। मेरे मैनेजमट छोड़ने से मेरी
कंपनी के सरे लोग को भी क आ, य क उनक कायशैली का आरामदे ह े (comfort zone) अब बदल
गया था। उ ह यह बात पसंद नह आ रही थी क वे पहले क तरह मुझसे हर समय नह मल सकते थे। वे अब भी
यही चाहते थे क म उनके लये हमेशा उपल ध र ,ँ उनक दन- त दन क सम या को सुलझाने म मदद क ँ
और उन पर त या क ँ ।
“परंतु म लगन से अपने काम म जुटा रहा। मुझे पूरी तरह वश्वास हो चुका था क मुझे अपने संगठन का
नेतृ व करना चा हये। और मने ऐसा ही कया। आज हमारे बज़नेस का लया ही बदल चुका है। हम अपने प रवेश
के अ धक सामंज य म आ चुके ह। हमारी आय गनी और लाभ चौगुना हो गया है। म लीडर शप म ब त आगे बढ़
गया ँ।”
मुझे वश्वास है क अ सर माता- पता भी मैनेजमट के पैरेडाइम म उलझकर रह जाते ह। दशा, उद्दे य
और प रवार क भावना के बजाय वे नयं ण, कुशलता और नयम के बारे म सोचने लग जाते ह।
और हमारे गत जीवन म तो लीडर शप क कमी और भी साफ़ नज़र आती है। अपने जीवनमू य को
प करने से पहले ही हम ल य बनाने और उ ह हा सल करने के कुशल मैनेजमट म जुट जाते ह।

बारा ट लखना: अपना वयं का थम रच यता बनना


जैसा हमने पहले कहा है, ोए ट वट आ म-जाग कता क अनूठ मानवीय तभा पर आधा रत है। हमारे
जीवन म ोए ट वट का व तार करने और गत लीडर शप का योग करने म हम जो दो अ य मानवीय
तभाएँ स म बनाती ह, वे ह क पना और ववेक।
क पना के मा यम से हम अपने भीतर छु पी अपार मता क प का प नक त वीर दे ख सकते ह। ववेक
के मा यम से हम अपनी अनूठ यो यता और योगदान के े के संदभ म शाश्वत नयम या स ांत के संपक
म आ सकते ह। ववेक के मा यम से हम उन गत नी तय के संपक म आ सकते ह, जनक सीमा के भीतर
रहते ए हम इन े को सबसे भावकारी ढं ग से वक सत कर सकते ह। आ म-जाग कता के साथ मलकर ये
दोन तभाएँ हम अपनी ट लखने क श दे ती ह।
चूँ क हम पहले से ही सर ारा द गई ट् स के अनुसार जी रहे ह, इस लये अपनी ट लखना
दरअसल “ बारा ट लखने” क या है। इसका अथ है पैरेडाइम म प रवतन करने क या। इस
या म हम अपने पास मौज़ूद कुछ मूलभूत पैरेडाइ स को बदलना होता है। जब हम इन अ भावकारी ट् स
को पहचान लेते ह, जब हम अपने भीतर के इन ग़लत या अपूण पैरेडाइ स को पहचान लेते ह, तो हम ोए टव
तरीक़े से अपनी ट बारा लखना शु कर सकते ह।

म सोचता ँ क बारा ट लखने का ब त ेरक उदाहरण म के पूव रा प त अनवर सादात क


आ मकथा म मलता है। सादात को बचपन से ही इज़राइल से नफ़रत करना सखाया गया था। दल क गहराई म
बोई गई इस नफ़रत क ट से उनका पालन-पोषण कया गया था। इसी वजह से उ ह ने रा ीय टे ली वज़न पर
यह व दया था, “जब तक अरब क एक इंच भू म पर भी इज़राइल का क ज़ा रहेगा, तब तक म कभी कसी
इज़राइली से हाथ नह मलाऊँगा। कभी नह , कभी नह , कभी भी नह !” और दे श भर म जनता मं क तरह
दोहराती थी, “कभी नह , कभी नह , कभी भी नह !” उ ह ने इस ट के मा यम से पूरे दे श क ऊजा और इ छा
को एकजुट कर दया।
यह ट ब त आ म नभर और रा वाद थी। इसने जनता क भावना को आंदो लत कर दया। परंतु यह
ट ब त मूखतापूण भी थी और सादात यह बात जानते थे। यह ट थ त क अ यंत पर पर- नभर और
ख़तरनाक वा त वकता को नज़रअंदाज़ करती थी।
इस लये उ ह ने अपनी ट बारा लखी। यह या उ ह ने तब सीखी थी, जब वे युवाव था म कैरो
क य जेल क 54 नंबर क कोठरी म अकेले क़ैद थे। स ाट फा ख़ के ख़लाफ़ सा ज़श रचने के अपराध म उ ह
यह सज़ा द गई थी। उ ह ने अपने म त क से अलग हटकर इसका अवलोकन करना सीखा, ता क वे यह जाँच कर
सक क उनके म त क म लखी गई ट् स सही और समझदारीपूण थ या नह । उ ह ने अपने म त क को
ख़ाली करना सीखा। और अंततः उ ह ने यह सीख लया क यान क गहन गत या ारा, अपने धम ंथ
को पढ़कर और ाथना करके अपनी ट बारा कैसे लखी जाये।
वे लखते ह क जेल क कालकोठरी से बाहर नकलना उ ह अ छा नह लग रहा था, य क वह पर उ ह
यह एहसास आ था क स ची सफलता ख़ुद को जीतने से मलती है। स ची सफलता का अथ यह नह होता क
आपके पास व तुएँ ह , ब क इसका अथ वयं को जीतना और वयं पर नयं ण होना है।
ना सर शासनकाल म सादात को कुछ समय तक अपे ाकृत मह वहीन पद दया गया। सबको लगा क
उनका उ साह ठं डा पड़ गया था, परंतु ऐसी बात नह थी। लोग सादात को अपने जैसा मान रहे थे और उनक
ट् स को भी अपने जैसी मान रहे थे। लोग उ ह समझ नह पाये; सादात सही समय का इंतज़ार कर रहे थे।
और जब वह समय आया, जब वे म के रा प त बने और जब उ ह ने राजनी तक वा त वकता का
सामना कया, तो उ ह ने इज़राइल के त अपनी ट बारा लखी। उ ह ने ये सलम म इज़राइली संसद नेसेट
क या ा क और वश्व इ तहास के अभूतपूव शां त आंदोलन म से एक क शु आत क । यह एक साह सक
पहल थी, जसक वजह से अंततः कप डे वड समझौता आ।
गत लीडर शप का अ यास करते समय सादात अपनी आ म-जाग कता, क पना और ववेक का
योग करने म समथ थे। वे अपने सबसे मूलभूत पैरेडाइम और थ त को दे खने के कोण को बदलने म समथ
थे। उ ह ने अपने भाव के वृ के क म काम कया। सादात के बारा ट लखने और अपने पैरेडाइम म
प रवतन करने का रगामी भाव आ। इससे कोण तथा वहार के ऐसे प रवतन ारंभ ए, ज ह ने चता
के अ धक बड़े वृ म थत लाख -करोड़ लोग के जीवन पर भाव डाला।
आ म-जाग कता वक सत करने के दौरान हमम से यादातर लोग यह पाते ह क हमारी ट् स
अ भावकारी ह। हम पाते ह क हमारे अंदर कुछ ऐसी आदत गहराई म जड़ जमा चुक ह, जो उपयु नह ह और
उन चीज़ के सामंज य म नह ह, ज ह हम जीवन म सचमुच मह व दे ते ह। सरी आदत कहती है क हम ऐसी
ट् स के अनुसार जीने क कोई ज़ रत नह है। हम अपनी क पना और रचना मकता का योग करके
त या कर सकते ह और ऐसी नई ट् स लख सकते ह, जो न सफ़ अ धक भावकारी ह , ब क गहनतम
मू य तथा हमारे जीवनमू य को अथ दे ने वाले सही स ांत के अ धक सामंज य म भी ह ।
उदाहरण के तौर पर मान ल क मेरे ब च के त मेरा वहार ज़ रत से यादा रए टव है। मान ल क
जब भी वे कोई ऐसा काम करना शु करते ह, जसे म सही नह समझता, तो म त काल ब त अ धक तनाव
महसूस करने लगता ँ। म सुर ा मक द वार खड़ी कर लेता ँ और यु क तैयारी करने लगता ँ। मेरा फ़ोकस
द घकालीन वकास और समझ पर न होकर अ पकालीन वहार पर रहता है। म बड़े यु के बजाय छोट लड़ाई
जीतने क को शश करने लगता ँ।
म अपने अ -श बाहर नकालता ँ, जो मेरा बड़ा आकार या पद क स ा होती है। इसके बाद म उन पर
चीख़ता ँ, हावी होता ँ और उ ह धमक या सज़ा दे ता ँ। और म जीत जाता ।ँ टू टे ए र ते के मलबे के बीच म
वजेता क तरह खड़ा होता ँ। उस समय मेरे ब चे बाहरी तौर पर तो हार मान लेते ह, परंतु अंदर ही अंदर उनम
व ोह क भावनाय सुलगती रहती ह। इन भावना को वे उस समय तो दबा लेते ह, परंतु ये आगे चलकर अ धक
अ य व भद्दे प म बाहर नकलगी।
अब अगर म उस अं ये म बैठा होता, जसक हमने इस अ याय क शु आत म क पना क थी और मेरा
कोई ब चा उसम बोलने वाला होता, तो म या चाहता? म यह क़तई नह चाहता क उसका जीवन वक फ़ स
या तुरत-फुरत मुठभेड़ के ज़ म से भरा हो। इसके बजाय म यह चाहता क उसका जीवन मेरे ारा वष तक दये
गये ेमपूण श ण, श ण और अनुशासन का त न ध व करे। म यह चाहता क उसके दल और दमाग़ म मेरे
साथ बताये गये गहरे और साथक समय क सुखद याद ह । म यह चाहता क वह मुझे यार करने वाले पता के
प म याद रखे, जसने उसके बड़े होते व त सुख- ख बाँटे थे। म यह चाहता क वह उन समय को याद रखे, जब
वह अपनी सम याएँ और चताएँ लेकर मेरे पास आया था। म यह चाहता क मने उसक बात सुनी होती, उसे ेम
कया होता, उसक मदद क होती। म चाहता क वह यह जान ले क हालाँ क म आदश नह था, परंतु मेरे पास
जतना भी था, मने उससे पूरा यास कया था; और यह भी क शायद म उसे नया म कसी भी अ य से
यादा यार करता था।
इन चीज़ को चाहने के पीछे कारण यह है क म अपने दल क गहराई म अपने ब च को मह व दे ता ँ। म
उ ह यार करता ।ँ म उनक मदद करना चाहता ँ। म उनके पता के प म अपनी भू मका को मह व दे ता ।ँ
परंतु म हमेशा इन जीवनमू य को नह दे ख पाता। म “छोट -छोट चीज़ क भरमार” म उलझकर रह जाता
ँ। सबसे यादा मह वपूण चीज़ अ याव यक सम या , ता का लक चता और बाहरी वहार क परत के
नीचे दफ़न हो जाती ह। म रए टव बन जाता ँ। म हर दन अपने ब च से जस तरह वहार करता ँ, वह
अ सर उनके त मेरी स ची भावना से ब त कम मेल खाता है।
चूँ क म आ म-जाग क ँ, चूँ क मुझम क पना और ववेक है, इस लये म अपने गहनतम जीवनमू य क
जाँच कर सकता ँ। म यह एहसास कर सकता ँ क जस ट के हसाब से म जी रहा ,ँ वह उन जीवनमू य
से मेल नह खाती। म यह एहसास भी कर सकता ँ क मेरा जीवन अपने ारा बनाई गई ोए टव योजना का
प रणाम नह है, ब क उस थम रचना का प रणाम है, जसे मने प र थ तय और सरे लोग के भरोसे छोड़
दया था। परंतु म बदल सकता ँ। म अपनी मृ त के बजाय अपनी क पना के ारा जी सकता ।ँ म अपनी डोर
सी मत करने वाले अतीत के बजाय अपनी असी मत मता से बाँध सकता ँ। म ख़ुद अपना थम रच यता बन
सकता ँ।
अंत को यान म रखकर शु करने का अथ यह है क जीवन म पता क या अ य कोई भू मका नभाते समय
मेरे जीवनमू य और दशाय प होना चा हये। इसका अथ अपनी थम रचना के लये ख़ुद ज़ मेदार होना और
अपनी ट बारा लखना है, ता क मेरे वहार व कोण को उ प करने वाले पैरेडाइ स मेरे गहनतम
जीवनमू य से मेल खाते ह और सही स ांत के तारत य म ह ।
इसका अथ यह भी है क हर दन को शु करते समय ये जीवनमू य मेरे म त क म ढ़ता से थत ह । फर
जब जीवन म उतार-चढ़ाव आयगे या चुनौ तयाँ आयगी, तब म इन जीवनमू य के आधार पर अपने नणय ले
सकता ।ँ म अखंडता के साथ काम कर सकता ँ। मुझे भावना या प र थ त पर त या करने क ज़ रत नह
होगी। चूँ क मेरे जीवनमू य प ह, इस लये म सचमुच ोए टव बन सकता ँ और जीवनमू य से संचा लत हो
सकता ँ।

गत मशन टे टमट (ल य-व )


मेरे हसाब से अंत को यान म रखकर शु करने का सबसे भावकारी तरीक़ा यह है क एक गत
मशन टे टमट, दशन या स ांत तैयार कया जाये। इसका फ़ोकस इस बात पर रहता है क आप या बनना चाहते
ह (च र ) और या करना चाहते ह (योगदान और उपल धयाँ)। इसका फ़ोकस उन जीवनमू य या स ांत पर
भी रहता है, जन पर करना और बनना आधा रत ह।
चूँ क हर अनूठा है, इस लये येक का गत मशन टे टमट उस अनूठेपन को दशायेगा।
यह अनूठापन संरचना म भी दखेगा और श दावली म भी। मेरे म रो फ़ केर ने अपने गत स ांत को इस
तरह से कया है:

पहले घर पर सफल बनो।


ईश्वर क मदद चाहो और उसके यो य बनो।
ईमानदारी का कभी समझौता मत करो।
जो लोग शा मल ह, उ ह याद रखो।
नणय लेने से पहले दोन प को सुनो।
सर क सलाह लो।
जो नह ह, उनका बचाव करो।
न कपट परंतु नणायक बनो।
हर साल एक नई यो यता सीखो।
कल के काम क योजना आज बनाओ।
इंतज़ार करते समय आगे बढ़ो।
सकारा मक नज़ रया बनाये रखो।
हा य बोध बनाये रखो।
वयं को और अपने काम को व थत रखो।
ग़ल तय से मत डरो - ब क उनके त रचना मक, सकारा मक तथा सुधारा मक त या के
अभाव से डरो।
अपने अधीन थ क सफलता को आसान बनाओ।
जतना बोलो, उससे गना सुनो।
अपनी सभी यो यता और यास को हाथ के काम पर क त करो;
अगले काम या मोशन के बारे म चता मत करो।

प रवार और नौकरी के जीवनमू य म संतुलन खोजने वाली एक म हला ने अपने गत मशन टे टमट
को अलग तरह से कया है:

म अपने कै रयर और प रवार म यथासंभव सव े संतुलन बनाना चा ँगी, य क दोन ही मेरे लये
मह वपूण ह।
मेरा घर एक ऐसा थान होगा, जहाँ मुझे और मेरे प रवार को, म तथा मेहमान को ख़ुशी, सुकून,
शां त और सुख मले। म एक व छ और सु व थत माहौल बनाना चा ँगी, जसम आरामदे ह तरीक़े
से जया जा सके। हम घर म अपने खाने, पढ़ने, दे खने और काम करने के लये जो चुनगे, उसम म
समझदारी का योग क ँ गी। ख़ास तौर पर म अपने ब च को ेम करना, सीखना तथा हँसना
सखाना चाहती ँ - और काम करना तथा उनके अनूठे गुण को वक सत करना भी।
हमारे लोकतां क समाज के अ धकार , वतं ता और ज़ मेदा रय को म मह वपूण मानती ँ। म
राजनी तक या म शा मल होने वाली सजग और जाग क नाग रक बनूँगी, ता क यह सु न त
कर सकूँ क मेरी आवाज़ सुनी जाये और मेरे वोट का मह व हो।
म अपने आप शु होने वाली (self-starting) बनूँगी और अपने जीवन के ल य को हा सल करने
के लये पहलश का योग क ँ गी। म प र थ तय और अवसर पर काय क ँ गी, बजाय इसके
क वे मुझ पर काय कर।
म हमेशा वनाशकारी आदत और लत से ख़ुद को र रखने क को शश क ँ गी। म ऐसी आदत
वक सत क ँ गी, जो मुझे पुराने लेबल और सीमा से मु कर तथा मेरी मता और वक प
का व तार कर।
मेरा धन मेरा वामी नह , ब क सेवक होगा। म समय के साथ आ थक आ म नभरता हा सल करना
चा ँगी। मेरी इ छाय मेरी ज़ रत और मेरे साधन के अनुसार ह गी। घर तथा कार के द घकालीन
ऋण के अलावा म ख़ुद को हर तरह के उपभो ा ऋण से मु रखना चा ँगी। म जतना कमाऊँगी,
उससे कम ख़च क ँ गी और नय मत प से अपनी आमदनी का एक ह सा बचाऊँगी या नवेश
क ँ गी।
इसके अलावा म अपने पास उपल ध धन और मता का योग सेवा और धमाथ दान म भी
क ँ गी, ता क सर का जीवन अ धक आनंददायक बन सके।

आप गत मशन टे टमट को गत सं वधान कह सकते ह। संयु रा य अमे रका के सं वधान क


तरह यह भी मूलतः अप रवतनशील है। दो सौ से यादा वष हो गये ह, परंतु अमे रक सं वधान म अब तक सफ़
छ बीस संशोधन ए ह, जनम से दस तो मूल अ धकार क सूची ( बल ऑफ़ राइट् स) म ए थे।
अमे रका का सं वधान वह मानक है, जसके आधार पर दे श के हर कानून का मू यांकन कया जाता है। यह
वह द तावेज़ है, जसके त न ा क शपथ लेते समय रा प त इसक र ा, पालन तथा समथन के लये सहमत
होता है। यह वह मानदं ड है, जसके आधार पर लोग को नाग रकता दान क जाती है। यह वह बु नयाद और क
है, जो लोग को गृहयु , वयतनाम या वाटरगेट जैसे बड़े मान सक आघात झेलने क श दे ता है। यह वह
ल खत पैमाना और मुख मानदं ड है, जसके ारा बाक़ सभी चीज़ का मू यांकन तथा मागदशन कया जाता है।
सं वधान आज भी सही-सलामत है और अपनी मह वपूण भू मका नभा रहा है, य क यह सही स ांत पर
आधा रत है। यह वाधीनता के घोषणाप म शा मल वयं स और ामा णक स चाइय पर आधा रत है।
सामा जक वधा और प रवतन के दौर म भी ये स ांत सं वधान को शाश्वत श दे ते ह। थॉमस जेफ़रसन ने
कहा था, “ ल खत सं वधान होने म ही हमारी वशेष सुर ा है।”
सही स ांत पर आधा रत गत मशन टे टमट भी के लये इसी तरह का मानदं ड बन जाता है।
यह एक गत सं वधान बन जाता है। यह जीवन को दशा दे ने वाले बड़े नणय का आधार बन जाता है। हमारे
जीवन को भा वत करने वाली प र थ तय तथा भावना के बीच यह रोज़मरा के नणय लेने का आधार बन
जाता है। अमे रक सं वधान क तरह ही गत सं वधान से भी को प रवतन के दौर म शाश्वत श
मलती है।
लोग प रवतन के साथ तब तक नह रह सकते, जब तक क उनके भीतर एक अप रवतनीय क न हो।
प रवतन क यो यता क कुंजी यह अप रवतनीय एहसास है क आप कौन ह, आप या करने जा रहे ह और आप
कसे मह व दे ते ह।
मशन टे टमट होने पर हम प रवतन से कोई तकलीफ़ नह होती। हम पहले से नणय लेने या पूवा ह क
आव यकता नह पड़ती। वा त वकता को अनुकूल बनाने के लये हम जीवन म बाक़ हर या व तु का
अनुमान लगाने क ज़ रत नह होती। हम हर व तु या को एक ही साँचे म ढालने या े णय म बाँटने क
ज़ रत भी नह होती।
हमारा गत प रवेश भी नरंतर तेज़ ग त से बदल रहा है। इस तरह का ती प रवतन ब त से लोग के
हौसले प त कर दे ता है। इन लोग को महसूस होता है क वे इस प रवतन के साथ तालमेल नह बठा सकते और
जीवन का सामना नह कर सकते। वे रए टव बन जाते ह, हार मान लेते ह और बस आशा करते ह क जो होगा
अ छा ही होगा।
परंतु ऐसा हमेशा हो, यह ज़ री नह है। जन नाज़ी मृ यु श वर म व टर कल ने ोए ट वट का
स ांत सीखा, वह पर उ ह ने जीवन म उद्दे य तथा साथकता का मह व भी सीखा। उ ह ने जस जीवनदशन को
बाद म वक सत कया और सखाया, उसे “लोगोथैरेपी” कहा जाता है। इसका सार यह है क कई तथाक थत
मान सक और भावना मक बीमा रयाँ दरअसल नरथकता या ख़ालीपन के अंद नी एहसास के कारण पैदा होती
ह। लोगोथैरेपी लोग क मदद करती है क वे जीवन म अपना अनूठा अथ और उद्दे य खोज, जससे नरथकता
या ख़ालीपन का एहसास ख़ म हो जाये।
एक बार जब आपको ल य का एहसास हो जाता है, तो आपको अपनी ोए ट वट का सार मल जाता है।
आपके पास अपने जीवन को संचा लत करने वाली भ व य- और जीवनमू य होते ह। आपके पास वह मूलभूत
दशा होती है, जससे आप अपने द घकालीन और अ पकालीन ल य नधा रत करते ह। आपके पास सही
स ांत पर आधा रत ल खत सं वधान क श होती है, जसके आधार पर आप अपने हर नणय को
भावकारी तरीक़े से तौलते ह और समय, तभा तथा ऊजा का सबसे भावकारी उपयोग करते ह।

क म
गत मशन टे टमट लखने के लये हम अपने भाव के वृ के क से शु करना होगा। हम उस क
से शु करना होगा, जहाँ हमारे सबसे मूलभूत पैरेडाइ स यानी वे लस थत ह, जनके मा यम से हम संसार को
दे खते ह।
यह पर हम अपनी भ व य- और जीवनमू य पर वचार करते ह। यह पर हम आ म-जाग कता क
तभा का योग करके अपने न श क जाँच करते ह। अगर हम सही स ांत को मह व दे ते ह, तो आ म-
जाग कता के मा यम से हम यह सु न त करते ह क हमारे न शे े का ु टहीन वणन करते ह और हमारे
पैरेडाइ स स ांत व वा त वकता पर आधा रत ह । यह पर हम ववेक क अपनी तभा का योग क पास क
तरह करते ह और इसक मदद से अपनी अनूठ यो यता और योगदान के े को खोजते ह। यह पर हम अपने
मनचाहे अंत क मान सक रचना करने म क पना क तभा का योग करते ह। क पना हमारी शु आत को दशा
और उद्दे य दान करती है तथा ल खत सं वधान का मसौदा उपल ध कराती है।
हमारे ल य-क त यास भी यह पर े तम प रणाम हा सल करते ह। जब हम अपने भाव के वृ के क
म काम करते ह, तो हम इसका व तार करते ह। यह सव च श दायी पीसी काय है, जो हमारे जीवन के हर पहलू
क भावका रता को मह वपूण प से भा वत करता है।
हमारे जीवन के क म जो भी है, वह हमारी सुर ा, मागदशन, बु और श ोत होगा।
सुर ा (Security) आपके मह व के एहसास, आपक पहचान, आपके भावना मक संबल, आपके
आ मस मान और आपक मूलभूत गत श या इसके अभाव का त न ध व करती है।
मागदशन (Guidance) का अथ है जीवन म आपक दशा का ोत। आपका न शा यानी आपका
आंत रक संदभ-मानदं ड आपके लये यह वश्लेषण करता है क बाहर या हो रहा है। इस न शे के भीतर वे
मानदं ड या स ांत या मानक न हत होते ह, जनके ारा आप हर पल नणय लेते और काय करते ह।
बु (Wisdom) जीवन के बारे म आपका काण है, संतुलन का बोध है। बु का अथ यह समझना है
क कस तरह व भ ह से और स ांत लागू होते ह तथा एक- सरे के साथ संबं धत ह। इसम मू यांकन, अ छे -
बुरे क पहचान और समझने क यो यता शा मल ह। यह जे टा ट (gestalt) या एका मकता या एक कृत पूणता
है।
श (Power) काय करने क ऊजा या मता है। यह कसी काम को पूरा करने क ताक़त या साम य है।
यह वक प चुनने और नणय लेने क अ त मह वपूण ऊजा है। इसम गहराई म छु पी आदत छोड़ने तथा अ धक
उ च व भावकारी आदत वक सत करने क मता भी शा मल है।
सुर ा, मागदशन, बु और श - ये चार पर पर- नभर ह। सुर ा और प मागदशन से स ची बु
आती है तथा बु वह चगारी या उ रे क बन जाती है, जो श को मु करती और दशा दे ती है। जब ये चार
त व एक साथ होते ह, एक- सरे के साथ तालमेल और सम वय म रहते ह, तो ये एक उ म व, संतु लत
च र और सुंदरता से एक कृत क महान श क रचना करते ह।

ये जीवन-समथक त व जीवन के हर आयाम को आधार और श दे ते ह। और इनम से येक सब-कुछ-या-


कुछ-नह का मामला है। जस हद तक आप इनम से येक को वक सत करते ह, उसे च य पथ पर कह न कह
दशाया जा सकता है, जो कमोबेश हमारे ारा पहले बताये गये प रप वता के पायदान क तरह ही है। अगर ये चार
त व उस च के नचले सरे पर ह, तो ये कमज़ोर ह। आप मूलतः प र थ तय या सरे लोग पर नभर ह, जन
पर आपका कोई य नयं ण नह है। अगर ये त व च के ऊपरी सरे पर ह, तो नयं ण आपके हाथ म है।
आपके पास आ म नभर श और गाढ़ पर पर- नभर संबंध क न व है।
आपक सुर ा इस च के दो सर के बीच म कह पर होगी। इसके एक सरे पर है पूण असुर ा, जसम
आपका जीवन उन अ थर श य के ध के खाता है, जो इसे इधर से उधर उछालती ह। इसके सरे सरे पर है
अंद नी मह व का गहन एहसास तथा पूण गत सुर ा। आपका मागदशन भी इस च के दो सर के बीच म
कह पर होता है। इसके एक सरे पर है सामा जक दपण या अ य अ थर ोत पर नभरता। इसके सरे सरे पर
है बल आंत रक मागदशन। आपक बु भी इस च के दो सर के बीच म कह पर होती है। इसके एक सरे पर
पूरी तरह ग़लत न शा होता है, जहाँ हर चीज़ वकृत होती है और सही तरह फ़ट होती नह दखती है। इसके सरे
सरे पर जीवन का पूण और ु टर हत न शा होता है, जसम सभी ह से और स ांत एक- सरे के साथ उ चत
प से संबं धत होते ह। आपक श भी इस च के दो सर के बीच म कह पर होती है। इसके एक सरे पर है
जड़ता यानी कठपुतली क तरह कसी सरे क डो रय ारा संचा लत होना। इसके सरे सरे पर है उ च
ोए ट वट यानी सरे लोग तथा प र थ तय के अनु प काय करने के बजाय अपने जीवनमू य के अनुसार
काय करने क श ।
च म इन त व क थ त या होगी, इसके प रणाम व प उनका संयोजन, तालमेल और संतुलन कस हद
तक होगा, आपके जीवन के हर पहलू पर उनका कतना सकारा मक भाव पड़ेगा, यह आपके क यानी सबसे
गहराई म थत आपके मूलभूत पैरेडाइ स पर नभर करता है।

वैक पक क
हम सबके पास एक क होता है, हालाँ क हम आम तौर पर इसे इस प म नह पहचानते। न ही हम अपने
जीवन के हर पहलू पर उस क के सम भाव को पहचान पाते ह।
आइये, हम सं ेप म लोग के आम क या मूलभूत पैरेडाइ स क जाँच कर। यह इस लये आव यक है, ता क
हम यह बेहतर तरीक़े से समझ सक क कस तरह ये क इन चार मूलभूत आयाम को भा वत करते ह और
अंततः जीवन के उस योगफल को भी, जो उनसे वा हत होता है।

जीवनसाथी क यता (Spouse Centeredness)। वैवा हक संबंध सबसे अंतरंग, सबसे संतु दायक,
सबसे थायी और वकास करने वाला मानवीय संबंध हो सकता है। अपने प त या प नी पर क त होना
वाभा वक दख सकता है और उ चत महसूस हो सकता है।
परंतु अनुभव और अवलोकन एक अलग ही कहानी बताते ह। वष तक मने कई संकट त वैवा हक संबंध
को क़रीब से दे खा है और उन पर काम करते समय मने यह पाया है क लगभग हर जीवनसाथी-क त र ते म एक
डोर अव य रहती है। यह डोर बल भावना मक नभरता क होती है।
अगर हम भावना मक मह व का एहसास मूल प से हमारे वैवा हक र ते से मलता है, तो हम उस र ते पर
अ य धक नभर हो जाते ह। हम अपने जीवनसाथी क मनः थ त और भावना , वहार तथा बताव के त
असुर त हो जाते ह। हम हर उस बाहरी घटना के त असुर त हो जाते ह, जो उस र ते पर अ त मण कर
सकती हो - जैसे ब चे का ज म, सास-ससुर, आ थक झटके, सामा जक सफलताएँ।
जब ज़ मेदा रयाँ बढ़ती ह और वैवा हक जीवन म तनाव आते ह, तो हमम उन ट् स क ओर लौटकर
जाने क वृ होती है, जो हम बड़े होते समय द गई थ । परंतु यही हमारा जीवनसाथी भी करता है। और आम
तौर पर दोन क ट् स अलग-अलग होती ह। आ थक सम या , शशु अनुशासन या सास-ससुर संबंधी
मामल से नबटने के भ तरीक़े सामने आते ह। जब गहराई म बैठ ये वृ याँ जीवनसाथी पर भावना मक
नभरता के साथ जुड़ जाती ह, तो जीवनसाथी-क त र ते क सारी असुर ा सामने आ जाती है।
जब हम उस पर नभर ह , जसके साथ हम संघषरत ह, तो आव यकता और संघष दोन ही कई गुना
बढ़ जाते ह। इसके कुछ आम प रणाम ह यार-नफ़रत क अ त- त याएँ, लड़ो-या-भागो क वृ याँ, पलायन,
आ ामकता, कटु ता, े ष और शीतयु । ऐसा होने पर हम अपने वहार को उ चत ठहराने व उसका बचाव करने
का यास करते ह और अपने जीवनसाथी के वहार पर आ मण करने लगते ह। इस यास म हम अपनी पुरानी
वृ य तथा आदत का और भी यादा सहारा लेते ह।
न त प से, जब हम ब त अ धक असुर त होते ह, तो हम ख़ुद को आगामी आघात से बचाने क
ज़ रत महसूस होती है। इस लये हम कटा , पैने ं य या आलोचना या कसी भी ऐसे तरीक़े का सहारा लेते ह,
जो हमारे भीतर क कोमलता को ज़ा हर न होने दे । हर पाटनर इंतज़ार करता है क ेम करने क पहल सामने
वाला करे। अंततः इस मामले म उसे नराशा हाथ लगती है, परंतु इस बात से यह पु हो जाती है क उसके ारा
लगाये गये आरोप सही थे।
ऐसे र ते म सफ़ दखावे क सुर ा होती है, भले ही ऊपर से सब कुछ ठ क चलता दख रहा हो। मागदशन
उस पल क भावना पर आधा रत होता है। नभरता के वरोध म उ प नकारा मक वहार म बु और श
खो जाती ह।

प रवार क यता (Family Centeredness)। सरा आम क है प रवार। यह भी वाभा वक और उ चत


लग सकता है। क त होने तथा गहरा नवेश करने के लये यह एक ऐसा े है, जो गहरे र त , ेम और
भागीदारी के महान अवसर दान करता है। यह हम ऐसा ब त कुछ दे सकता है, जो जीवन को साथक बनाता है।
परंतु वडंबना यह है क क बनने के बाद यह उ ह त व को न कर दे ता है, जो पा रवा रक सफलता के लये
आव यक ह।
जो लोग प रवार-क त होते ह, उ ह सुर ा या गत मू य का एहसास पा रवा रक परंपरा, सं कृ त या
त ा से मलता है। इस तरह वे उस परंपरा या सं कृ त म होने वाले कसी भी तरह के प रवतन के त असुर त
हो जाते ह। वे पा रवा रक त ा को भा वत करने वाली बात के त भी असुर त हो जाते ह।
प रवार-क त माता- पता के पास यह भावना मक वतं ता या श नह होती क वे ब च को पालते
समय उनके सव च हत का सचमुच यान रख। अगर उ ह अपनी सुर ा प रवार से मलती है, तो ब च म
लोक य होने क आव यकता उनके लये अ धक मह वपूण होगी, जब क ब च के वकास म द घकालीन नवेश
करना कम मह वपूण होगा। या फर वे उस पल के हसाब से उ चत और सही वहार करने पर अपना यान
क त कर सकते ह। कोई भी अनु चत वहार उनक सुर ा को ख़तरे म डाल दे ता है। वे ब चे के द घकालीन
वकास पर यान क त करने के बजाय उस पल क भावना ारा संचा लत होते ह, त काल वच लत हो जाते ह
और ता का लक चता पर त या करते ह। वे उन पर चीख़ सकते ह, च ला सकते ह। या वे अ त त या
कर सकते ह और ग़ से म उ ह सज़ा भी दे सकते ह। उनम अपने ब च को सशत ेम करने क वृ होती है,
जस वजह से वे उ ह भावना मक प से नभर या त- नभर (counter-dependent) और व ोही बना दे ते
ह।

धन क यता (Money Centeredness)। लोग के जीवन म एक अ य ता कक और ब त आम क है धन


कमाना। जीवन के कसी भी े म यादा कुछ करने के लये आ थक सुर ा मूलभूत आव यकता है।
आव यकता के म या च म शारी रक सुर ा और आ थक सुर ा सबसे पहले आती ह। जब तक यह मूलभूत
आव यकता कम से कम यूनतम तर पर संतु नह होती, तब तक अ य आव यकताय स य भी नह हो पाती
ह।
हमम से यादातर लोग आ थक चता का सामना करते ह। अ धक ापक सं कृ त म ब त सी श याँ
हमारी आ थक थ त को भा वत कर सकती ह और करती ह। वे इस तरह क आ थक बाधाय खड़ी कर दे ती ह
या उनका ख़तरा उ प कर दे ती ह क हम अ सर च तत हो जाते ह और हमारी चता हमेशा सचेतन सतह तक
उभरकर नह आ पाती।
कई बार तो धन कमाने के लये प प से े या सट क कारण गनाये जाते ह, जैसे अपने प रवार का
यान रखने क इ छा। और ये बात मह वपूण ह। परंतु धन कमाने को क म रखना और इस पर पूरा यान क त
करना इनके वनाश का कारण बन जाता है।
एक बार फर चार जीवन-समथक त व - सुर ा, मागदशन, बु और श - पर वचार कर। मान ली जये,
म अपनी अ धकांश आ थक सुर ा अपनी नौकरी या आमदनी या संप से हा सल करता ।ँ चूँ क इन आ थक
आधार को कई त व भा वत करते ह, इस लये म इसे भा वत कर सकने वाली हर चीज़ क वजह से च तत,
असहज, सुर ा मक और परेशान हो जाता ँ। चूँ क मुझे गत मह व का एहसास अपनी आमदनी या संप
से मलता है, इस लये म हर उस चीज़ के त असुर त हो जाता ँ, जो उस आमदनी या संप पर वपरीत
भाव डालती है। परंतु काम करने और धन कमाने से बु या मागदशन अपने आप ा त नह होते। इसके
अलावा, इनसे श और सुर ा भी कुछ हद तक ही मलती है। धन के क क सीमाय दशाने के लये मेरे या मेरे
कसी य के जीवन म एक संकट ही पया त है।
धन-क त लोग अ सर प रवार या अ य ाथ मकता को परे रख दे ते ह। वे यह मान लेते ह क हर
इस बात को समझ जायेगा क आ थक आव यकताय सबसे पहले आती ह। म एक पता को जानता ँ, जो एक
दन अपने ब च को वायदे के अनुसार सकस दखाने ले जा रहा था। तभी ऑ फ़स से फ़ोन आया और उसे
बुलवाया गया। उसने जाने से मना कर दया। जब उसक प नी ने कहा क शायद उसे ऑ फ़स का काम करने के
लये चले जाना चा हये था, तो उसने जवाब दया, “काम तो फर आ जायेगा, ले कन बचपन नह आयेगा।” उसके
ब च को ाथ मकता के नधारण का यह छोटा उदाहरण जीवन भर याद रहा। यह न सफ़ उ ह एक सै ां तक
सबक़ के प म याद रहा, ब क यार के इज़हार के प म भी याद रहा।

काय-क यता (Work Centeredness)। काय-क त लागे “वकहो लक” (काम के लती) बन सकते ह। वे
काम के इतने द वाने हो सकते ह क इसके लये वे अपने वा य, संबंध और जीवन के अ य मह वपूण पहलु
क क़ मत चुकाने को भी तैयार रहते ह। उनक मूलभूत पहचान उनके काम से होती है, “म एक डॉ टर ँ,” “म
एक लेखक ँ,” “म एक अ भनेता ँ।”
चूँ क उनक पहचान और मह व का उनका एहसास उनके काम म रचा-बसा है, इस लये वे हर उस चीज़ से
असुर त अनुभव करते ह, जो उ ह काम करते रहने से रोकती है। उनका मागदशन काम क माँग का प रणाम
होता है। उनक बु और श उनके काम के े तक सी मत रहती है और उ ह जीवन के अ य े म
अ भावकारी बना दे ती है।

वा म व-क यता (Possession Centeredness)। ब त से लोग के लये वा म व क चीज़ ेरणादायी


श होती ह। ये चीज़ मूत या भौ तक वा म व क व तुएँ हो सकती ह, जैसे फ़ैशनेबल कपड़े, घर, कार, नाव और
आभूषण। या फर ये शोहरत या सामा जक त ा जैसी अमूत व तुएँ भी हो सकती ह। हमम से अ धकांश अपने
अनुभव से जानते ह क इस तरह का क कतना दोषपूण है, य क यह पलक झपकते ही ग़ायब हो सकता है
और ब त सी श य से भा वत होता है।
अगर मेरी सुर ा का एहसास मेरी त ा या अपने वा म व क चीज़ म न हत है, तो जीवन भर मुझे यही
ख़तरा महसूस होगा या आशंका रहेगी क ये चीज़ खो सकती ह, चोरी हो सकती ह या इनका मू य कम हो सकता
है। अगर म कसी ऐसे के सामने आता ँ, जसक संप , शोहरत या है सयत मुझसे यादा हो, तो म हीन
महसूस करता ँ। अगर म कसी ऐसे के सामने आता ,ँ जसक संप , शोहरत या है सयत मुझसे कम हो,
तो म े महसूस करता ँ। आ मस मान का मेरा एहसास लगातार घटता-बढ़ता रहता है। मुझम थरता या सतत
व का कोई बोध नह होता। म लगातार अपनी संप य , धन, शेयर , पद या त ा को सुर त रखने या
उनका बीमा करवाने क को शश करता ।ँ हम सबने उन आ मह या करने वाले लोग क कहा नयाँ सुनी ह,
ज ह ने शेयर बाज़ार के धराशायी (Crash) होने के कारण अपनी दौलत गँवा द थी या फर ज ह राजनी तक
उलटफेर क वजह से शोहरत गँवाना पड़ी थी।

आनंद क यता (Pleasure Centeredness)। वा म व क व तु के साथ क़रीबी प से जुड़ा एक और


आम क है - आनंद तथा सुख। हम एक ऐसे संसार म रहते ह, जहाँ इ छा क त काल संतु उपल ध है और
इसे ो सा हत कया जाता है। लोग क अपे ा को बढ़ाने म टे ली वज़न और फ़ म का ब त बड़ा हाथ है। वे
त वीर दखाते ह क सरे लोग के पास या है और सु वधा व “मौज-म ती” का जीवन जीने के लये वे या कर
सकते ह।
परंतु जब त वीर के मा यम से आनंद-क त जीवनशै लय क चमक च त क जाती है, तब ऐसी
जीवनशै लय के वाभा वक प रणाम को शायद ही कभी सट कता से दखाया जाता है। यह ब त कम बताया
जाता है क इन जीवनशै लय का आंत रक व, उ पादकता या संबंध पर या भाव पड़ता है।
संय मत मा ा म हा नर हत आनंद शरीर तथा म त क दोन को आराम प ँचाता है। इससे पा रवा रक व
अ य संबंध को भी पोषण मलता है। परंतु आनंद अपने आप म थायी संतु या संतोष का गहरा एहसास नह
दे ता। आनंद-क त “म ती” के हर बढ़ते तर से ज द ही ऊब जाता है और हमेशा पहले से अ धक ऊँचे
तर पर आनंद पाना चाहता है। इस लये उसका अगला आनंद पछले आनंद से बड़ा, बेहतर और यादा उ ेजक
होना चा हये। इस अव था म लगभग पूरी तरह आ म-क त हो जाता है और अपने पूरे जीवन क ा या
वयं को मलने वाले आनंद के संदभ म करता है।
ब त यादा लंबी छु याँ मनाना, ब त यादा फ़ म दे खना, ब त यादा ट .वी. दे खना, ब त यादा
वी डयो गेम खेलना - ऐसे काम म अनुशासनहीन आराम का ब त यादा समय बताना, जसम लगातार
यूनतम तरोध का रा ता चुनता है, धीरे-धीरे जीवन को बबाद कर दे ता है। इसका भाव यह होता है क
क मताय न य बनी रहती ह, तभाय अ वक सत रहती ह, म त क और आ मा आलसी बन जाती ह तथा
दय को वा त वक संतोष का एहसास नह हो पाता। सुर ा, मागदशन, बु और श कहाँ ह? च य पथ के
नचले सरे पर, एक णक आनंद म।
मैलकम मग रज ने “अ ट् वे टयेथ से चुरी टे टमोनी” (बीसव सद क स चाई) म लखा है:
इन दन जब म अपनी पछली ज़दगी पर नज़र डालता ,ँ जैसा म कई बार करता ,ँ तो
मेरे मन म सबसे सश वचार यह आता है क उस समय जो चीज़ सबसे मह वपूण और
लुभावनी दखती थी, वही अब सबसे नरथक और बेतुक दखती है। उदाहरण के लये,
उस समय हर काम म सफलता पाना मह वपूण लगता था। त ा या शंसा पाना
मह वपूण लगता था। प आनंद पाना जैसे धन हा सल करना या म हला को ेमजाल
म फँसाना या नया म चार तरफ़ शैतान क तरह घूमते ए या ा करना अ छा लगता
था, जसम म हर उस चीज़ का सुख भोगना चाहता था, जो जीवन के इस मेले म इंसान के
लये उपल ध है।
पीछे मुड़कर दे खते समय ख़ुद को संतु करने के ये सारे यास वशु क पना लगते ह
या जैसा पा कल ने कहा था, “धूल चाटते लगते ह।”
म /श ु क यता (Friend/Enemy Centeredness)। हालाँ क यह सफ़ युवा पीढ़ तक ही सी मत
नह है, परंतु ख़ास तौर पर युवा पीढ़ म म -क त रहने क अ धक संभावना होती है। उ ह अपने सा थय के
समूह म वीकृ त और मा यता पाना सबसे यादा मह वपूण लग सकता है। वकृत और सतत प रवतनशील
सामा जक दपण चार जीवन-समथक त व का ोत बन जाता है। यह सर के बदलते मूड, भावना , कोण
और वहार पर ब त नभर होता है।
म क यता म भी एक ही पर पूरी तरह क त रहा जा सकता है। इस थ त म इसम वैवा हक
जीवन के कुछ त व आ जाते ह। म -क यता के प रणाम व प कसी एक पर भावना मक नभरता
उ प हो सकती है, हम आव यकता/संघष के बढ़ते ऊ वमुखी च म फँस सकते ह और इससे उ प होने वाले
नकारा मक वहार म उलझ सकते ह।
और कसी श ु को अपने जीवन के क म रखने से या होगा? अ धकांश इसके बारे म कभी नह
सोचगे और संभवतः कोई भी सचेतन प से ऐसा नह करेगा। बहरहाल, श ु क यता ब त आम है, ख़ासकर जब
सचमुच संघषरत दोन अ सर एक- सरे के संपक म आते ह । जब कोई यह महसूस करता है क उसके
साथ भावना मक या सामा जक प से मह वपूण कसी ने अनु चत वहार कया है, तो यह ब त आसान
होता है क वह उस अ याय के बारे म सोचता रहे और सामने वाले को अपने जीवन का क बना ले। अपने जीवन
को ोए टव ढं ग से जीने के बजाय श ु क त अपने श ु के वहार और कोण पर त या करने
लगता है।

वश्व व ालय म पढ़ाने वाला मेरा एक म अपने शासक क कमज़ो रय के कारण ब त परेशान था।
शासक के साथ उसके संबंध नकारा मक और ख़राब थे। मेरे म ने ख़ुद को यह अनुम त द क वह लगातार
उसी शासक के बारे म सोचता रहे। अंततः यह थ त एक तरह के मनो वकार म बदल गई। वह इसम इतना डू ब
गया क इस वजह से प रवार, चच और सा थय के साथ उसके संबंध क गुणव ा पर वपरीत भाव पड़ने लगा।
अंततः वह इस नतीजे पर प ँचा क उसे उस वश्व व ालय को छोड़कर कह और पढ़ाने जाना होगा।
मने उससे पूछा, “अगर वह यहाँ न हो, तो या आप सचमुच इसी वश्व व ालय म पढ़ाना पसंद नह
करगे?”
उसने जवाब दया, “हाँ, म क ँ गा। परंतु जब तक वह यहाँ है, तब तक मेरे यहाँ रहने से जीवन क हर चीज़
गड़बड़ हो जायेगी। मुझे जाना ही पड़ेगा।”
मने पूछा, “आपने उस शासक को अपने जीवन का क य बना लया है?”
वह इस सवाल को सुनकर त ध रह गया। उसने यह मानने से इंकार कया। परंतु मने उसे बताया क वह एक
और उसक कमज़ो रय को यह अनुम त दे रहा है क वे उसके जीवन के पूरे न शे को वकृत कर द, उसक
आ था को न कर द और यजन के साथ उसके संबंध क गुणव ा को कम कर द।
उसने आ ख़रकार यह वीकार कया क उस आदमी क वजह से ये सारी चीज़ हो रही थ , परंतु अब भी वह
यह मानने को तैयार नह था क इस थ त को उसने ख़ुद चुना था। उसने इस खद थ त के लये शासक को
ज़ मेदार ठहराया। उसने घोषणा क क वह ख़ुद इसके लये क़तई ज़ मेदार नह था।
जब हमने बात क , तो धीरे-धीरे उसे यह एहसास आ क वा तव म वह वयं इसके लये ज़ मेदार था, परंतु
चूँ क उसने इस ज़ मेदारी को ठ क से नह नभाया, इस लये वह ग़ैर- ज़ मेदार था।

ब त से तलाक़शुदा लोग इसी ेणी म आते ह। वे अब भी अपने पूव जीवनसाथी के त ोध, कटु ता और
ख़ुद को सही सा बत करने जैसी भावना से भरे होते ह। नकारा मक से दे खा जाये, तो मनोवै ा नक प से
वे अब भी ववा हत ह। उन दोन को ही अपने आरोप को सही सा बत करने के लये पूव जीवनसाथी क
कमज़ो रय क ज़ रत है।
कई “बड़े” ब चे जीवन म मन ही मन या ख़ुलेआम अपने माता- पता से नफ़रत करते ह। वे अतीत के
वहार, उपे ा या प पात के लये उ ह दोष दे ते ह। वे अपने वय क जीवन को इस नफ़रत पर क त कर लेते ह
तथा इसके साथ जुड़ी ई रए टव व ख़ुद को उ चत ठहराने वाली ट के अनुसार जीते ह।
म या श ु-क त य के पास कोई आंत रक सुर ा नह होती। आ मस मान क भावनाय णभंगुर
होती ह य क वे सरे लोग के वहार या भावना मक अव था का प रणाम ह। ऐसे को मागदशन इस
वचार से मलता है क सरे इस पर कैसी त या करगे। उसक बु सामा जक लस या श ु-क त मान सक
वकार के ारा सी मत होती है। ऐसे के पास अपनी ख़ुद क कोई श नह होती। सरे लोग उसक
बागडोर थामे रहते ह।

चच क यता (Church Centeredness)। मेरा वश्वास है क चच से सचमुच जुड़ा लगभग हर यह


समझता होगा क चच जाना गत आ या मकता का पयायवाची नह है। ऐसे कुछ लोग ह, जो चच क ाथना
और काय म इतने त हो जाते ह क वे अपने आस-पास क बल मानवीय आव यकता के त
असंवेदनशील बन जाते ह। वे उ ह मा यता के वरोध म जीवन जीते ह, जनम वे गहराई से वश्वास करने का
दावा करते ह। सरी तरफ़, कुछ लोग ऐसे भी ह, जो चच तो कम जाते ह या बलकुल भी नह जाते ह, परंतु उनके
कोण और वहार मूलभूत य द -ईसाई धमशा के स ांत पर सचमुच क त नज़र आते ह।
अपने पूरे जीवन म संग ठत चच और सामुदा यक सेवा समूह म भाग लेने के बाद मने पाया है क कसी
के चच जाने का आव यक प से यह मतलब नह है क वह वहाँ पर सखाये जाने वाले स ांत के
अनु प जयेगा। हो सकता है आप कसी चच म तो स य ह , परंतु इसके उपदे श को जीने के मामले म न य
ह।
चच-क त जीवन म छ व या दखावा का सबसे मुख वचार बन सकता है। इससे पाखंड पैदा होता
है, जो उसक गत सुर ा और आंत रक मू य को कमज़ोर बनाता है। इस थ त म मागदशन सामा जक
ववेक से मलता है और चच-क त म सर पर “स य,” “ न य,” “उदार,” “ ढ़वाद ” या
“अनुदार” जैसे कृ म लेबल लगाने क आदत होती है।
चूँ क चच नी तय , काय म , आचरण और य से बना एक औपचा रक संगठन है, इस लये यह अपने
आप म कसी को गहरी थायी सुर ा या आंत रक मू य का एहसास नह दे सकता। चच ारा सखाये जाने
वाले स ांत को जीवन म उतारने से तो ऐसा हो सकता है, परंतु सफ़ संगठन का ह सा होने भर से यह नह हो
सकता।
न ही चच कसी को मागदशन का थायी एहसास दे सकता है। चच-क त लोग म अ सर े णय म
वभ जीवन जीने क वृ होती है। वे र ववार (Sabbath) के दन अलग तरह से काम करते, सोचते और
महसूस करते ह, जब क स ताह के बाक़ दन म वे बलकुल अलग तरह से जीते ह। एकता, पूणता या अखंडता
का यह अभाव ऐसे लोग क सुर ा के लये एक और ख़तरा है, जससे लेबल लगाने तथा वयं को सही सा बत
करने क आव यकता बढ़ जाती है।
चच को ल य का साधन मानने के बजाय ल य मान लेने से क बु और संतुलन का एहसास
कमज़ोर हो जाता है। हालाँ क चच लोग को श के ोत के बारे म सखाने का दावा करता है, परंतु यह ऐसा
दावा नह करता क इसम यह श है। यह सफ़ एक साधन होने का दावा करता है, जसके मा यम से मानव
वभाव म दै वी श वा हत हो सकती है।

आ म-क यता (Self Centeredness)। आजकल शायद सबसे आम क वयं होता है। इस आ म-
क यता का सवा धक प प वाथ है, जो अ धकांश लोग के जीवनमू य को न कर दे ता है। परंतु अगर हम
वकास तथा आ म-प रपूणता क कई लोक य व धय को ग़ौर से दे ख, तो हम अ सर इनके क म आ म-
क यता ही मलेगी।
आ म के सी मत क म ब त कम सुर ा, मागदशन, बु या श होती है। फ़ ल तीन के मृत सागर क
तरह यह हण तो करता रहता है, परंतु दे ता नह है और यह वाहर हत हो जाता है।
सरी ओर, जब साथक प से सेवा करने, उ पादन करने और योगदान दे ने क अपनी यो यता को सुधारने
के अ धक ापक कोण से आ म- वकास पर यान दया जाता है, तो चार जीवन-समथक त व म
आ यजनक वृ क पृ भू म तैयार होती है।
ये वे आम क ह, जनके ारा यादातर लोग अपना जीवन जीते ह। अ सर कसी सरे के जीवन के क
को पहचानना ब त आसान होता है, परंतु हम अपने क को उतनी आसानी से नह पहचान पाते ह। आप शायद
कसी ऐसे को जानते ह गे, जो धन को बाक़ सब चीज़ से ऊपर रखता होगा। आप शायद कसी ऐसे
को भी जानते ह गे, जो कसी नकारा मक र ते म अपनी ऊजा ख़ुद को सही सा बत करने म बबाद कर रहा है।
अगर आप यान द, तो आप कई बार वहार से परे उस क को दे ख सकते ह, जससे वह वहार उ प होता
है।

अपने क को पहचानना (Indentifying Your Center)


परंतु आप कहाँ पर ह? आपके अपने जीवन के क म या है? कई बार यह दे ख पाना आसान नह होता।
शायद अपने वयं के क को पहचानने का सव े तरीक़ा अपने जीवन-समथक त व को ग़ौर से दे खना है।
अगर आप नीचे दये गये वणन म से एक या अ धक के साथ ख़ुद को जोड़ पाते ह, तो आप इसे उस क से
जोड़कर दे ख सकते ह, जससे यह वा हत होता है। हो सकता है यही वह क हो, जो आपक गत
भावका रता को सी मत कर रहा हो।
अ धकांशतया कसी का क इनम से या इनके बाहर के कई क का सम वय होता है। यादातर लोग
ख़ुद को भा वत करने वाली ब त सी चीज़ से संचा लत होते ह। हो सकता है क बाहरी या अंद नी थ तय पर
नभर करते ए कोई ख़ास क तब तक स य रहे, जब तक क न हत आव यकताय संतु न हो जाय। इसके
बाद सरा क श शाली बन जाता है।
जब एक क से सरे क क ओर डोलता रहता है, तो उ प होने वाला सापे वाद जीवन म रोलर
को टर या ऊपर-नीचे होने वाले झूले क तरह होता है। एक पल आप आसमान म रहते ह, तो सरे पल पाताल म
प ँच जाते ह। आप एक कमज़ोरी क भरपाई के लये सरी कमज़ोरी से श उधार लेने का यास करते ह। दशा
का थायी एहसास नह होता, बु थर नह रहती, श क थायी आपू त नह होती, न ही गत आंत रक
मह व और पहचान का कोई एहसास होता है।
ज़ा हर है, आदश थ त यह है क एक प क बनाया जाये, जससे आप लगातार सुर ा, मागदशन, बु
और श चुरता म ा त कर सक। एक ऐसा क , जो आपक ोए ट वट को श दे और आपके जीवन के
हर ह से म सामंज य तथा सु व था दान करे।

स ांत का क
सही स ांत पर अपना जीवन क त करके हम चार जीवन-समथक त व के वकास के लये ठोस न व
तैयार करते ह।
हम सुर ा यह जानने से मलती है क य और व तु पर आधा रत अ य क तो अ सर तथा तुरंत
प रवतन के शकार हो जाते ह, परंतु सही स ांत कभी नह बदलते। हम उन पर वश्वास कर सकते ह।
स ांत कसी चीज़ पर त या नह करते। वे कभी ग़ सा नह होते। हमारे त उनका वहार बदलता
नह है। वे हम तलाक़ नह दे ते या हमारे सबसे अ छे दो त के साथ भाग नह जाते। वे हम बबाद करने क फराक़
म नह रहते। वे हमारे लये शॉटकट या वक फ़ स समाधान के रा ते नह बनाते। वे अपनी ामा णकता के
लये सर के वहार, प रवेश या वतमान फ़ैशन पर नभर नह होते। स ांत कभी नह मरते। ऐसा नह होता क
वे एक दन रह और सरे दन चले जाय। उ ह आग, भूकंप या चोरी ारा न नह कया जा सकता।
स ांत गहरी मूलभूत स चाइयाँ ह। वे अमर ह और ापक सामा य मानक ह। वे जीवन के भीतर कसकर
बुने गये धागे ह, जो जीवन के व को ु टहीनता, था य व, सुंदरता और मज़बूती दान करते ह।
हम इन स ांत को अनदे खा करने वाले लोग या प र थ तय के बीच म भी सुर त रह सकते ह, य क
हम जानते ह क स ांत लोग या प र थ तय से बड़े होते ह और हज़ार साल के इ तहास म हमने स ांत को
बार-बार जीतते दे खा है। इससे भी यादा मह वपूण बात यह है क हम इस ान के साथ सुर त हो सकते ह क
हम अपने जीवन म अपने ख़ुद के अनुभव से उनक ामा णकता स कर सकते ह।
ज़ा हर है, हम सव ाता नह ह। हमारे स चे वभाव और हमारे चार ओर क नया के बारे म अगर हम
जाग क न ह , तो इससे सही स ांत का हमारा ान और समझ सी मत होती है। हमारी समझ उन फ़ै़शनेबल
जीवनदशन तथा अवधारणा क बाढ़ से भी सी मत होती है, जो सही स ांत के तालमेल म नह होते। इन
वचार का भी लोक यता का अपना दौर रहेगा, परंतु उनके पहले आये इसी तरह के वचार क तरह ही ये भी
लंबे समय तक नह टक पायगे, य क इ ह झूठ न व पर बनाया गया है।
हमारी सीमाय ह, परंतु हम अपनी सीमा क रेखा को पीछे धकेल सकते ह। हमारे अपने वकास के
स ांत क समझ हम सही स ांत को इस वश्वास के साथ खोजने म समथ बनाती है क हम जतना अ धक
सीखते ह, उतनी ही अ धक प ता से हम उस लस पर फ़ोकस कर सकते ह, जसके मा यम से हम नया को
दे खते ह। स ांत कभी नह बदलते, उनके त हमारी समझ बदलती है।
बु और मागदशन, जो स ांत-क त जीवन से जुड़े होते ह, सही न शे से मलते ह - उस तरीक़े से, जैसी
चीज़ वा तव म ह, थ और रहगी। सही न शे हम प ता से यह दे खने म समथ बनाते ह क हम कहाँ जाना चाहते
ह और वहाँ कैसे प ँचा जाये। हम सही जानकारी का योग करके अपने नणय ले सकते ह, जन पर अमल करना
संभव और साथक हो।
स ांत-क त जीवन से मलने वाली गत श आ म-जाग क, ानी और ोए टव क श
है। ऐसे सर के कोण , वहार और काय ारा सी मत नह होते। वे प र थ तय और प रवेश के
भाव ारा भी सी मत नह होते, जनसे सरे लोग सी मत होते ह।
श क एकमा वा त वक सीमा स ांत के वाभा वक प रणाम ह। हम सही स ांत के ान के आधार
पर अपने काय चुनने के लये वतं ह, परंतु हम उन काय के प रणाम को चुनने के लये वतं नह ह। याद रख,
“अगर आप छड़ी का एक सरा उठाते ह, तो आप सरा सरा भी उठाते ह।”
स ांत के साथ हमेशा उनके वाभा वक प रणाम जुड़े होते ह। जब हम इन स ांत के सामंज य म जीते
ह, तो मलने वाले प रणाम सकारा मक होते ह। जब हम उनक अवहेलना करते ह, तो मलने वाले प रणाम
नकारा मक होते ह। परंतु चूँ क ये स ांत हर एक पर लागू होते ह, चाहे वह इसके बारे म जाग क हो या न हो,
इस लये प रणाम क यह सीमा शाश्वत है। और हम सही स ांत को जतना अ धक जान लगे, समझदारी से
काय करने क हमारी गत वतं ता उतनी ही अ धक होगी।
अपने जीवन को शाश्वत और अप रवतनशील स ांत पर क त करके हम भावकारी जीवन का मूलभूत
पैरेडाइम तैयार करते ह। यही वह क है, जो बाक़ सभी क को सही थान पर रखता है।
याद रख क आपका पैरेडाइम ही वह ोत है, जससे आपका वहार और कोण उ प होते ह।
पैरेडाइम च मे क तरह है। यह आपके जीवन क हर उस चीज़ को भा वत करता है, जसे आप दे खते ह। सही
स ांत के पैरेडाइम से चीज़ को दे खने पर आप जीवन म जो दे खगे, वह कसी अ य व तु पर क त पैरेडाइम से
नाटक य प से भ होगा।
मने इस पु तक के प र श ‘अ’ म एक व तृत चाट दया है। यह चाट बताता है क हमने जन क पर चचा
क है, उनम से शायद हर क चीज़ को दे खने के आपके तरीक़े को भा वत कर सकता है। आपका क कतना
अंतर पैदा कर सकता है, इसे त काल समझने के लये आइये हम एक व श सम या को व भ पैरेडाइ स से
दे ख। जब आप पढ़, तो हर च मे को लगाने क को शश कर। व भ क से वा हत होने वाली त या को
महसूस करने क को शश कर।
मान ली जये आज रात आपने अपनी प नी के साथ कसी संगीत काय म म जाने क योजना बनाई है।
आपने टकट ख़रीद लये ह और आपक प नी काय म म जाने को लेकर रोमां चत है। दोपहर के चार बजे ह।
अचानक आपका बॉस आपको अपने क म बुलाता है और कहता है क शाम को उसे आपक मदद चा हये,
य क कल सुबह 9 बजे होने वाली एक मह वपूण मी टग क तैयारी करना है।
अगर आप जीवनसाथी-क त या प रवार-क त च मे से दे ख रहे ह, तो आपक मु य चता आपक
प नी होगी। हो सकता है आप बॉस को बता द क आप नह क सकते और इसके बाद आप प नी को ख़ुश करने
के लये उसे संगीत काय म म ले जाय। हो सकता है आप यह महसूस कर क अपनी नौकरी बचाने क ख़ा तर
आपको कना पड़ेगा। बहरहाल, आप ऐसा अ न छा से करगे, प नी क त या के बारे म च तत रहगे, अपने
नणय को उ चत ठहराने क को शश करगे और प नी क नराशा या ोध से ख़ुद को बचाने का यास करगे।
अगर आप धन-क त च मे से दे ख रहे ह, तो आपका मु य वचार काम करने के बदले म मलने वाला
ओवरटाइम होगा। या फर दे र रात तक कने के कारण भ व य म वेतनवृ मलने क संभावना। आप अपनी
प नी को फ़ोन करके उसे सफ़ इतना बता सकते ह क आपको ऑ फ़स म दे र तक कना पड़ेगा। आप यह मान
लेते ह क आपक प नी इस बात को समझ जायेगी क आ थक आव यकताय सबसे यादा मह वपूण होती ह।
अगर आप काय-क त ह, तो आप इसे अवसर के प म दे ख सकते ह। आप काम के बारे म और अ धक
सीख सकते ह। आप अपने बॉस पर अ छ छाप छोड़ सकते ह और अपने कै रयर को आगे बढ़ा सकते ह। आप
अपे त समय से अ धक दे र तक काम करके ख़ुद क पीठ थपथपा सकते ह, य क यह इस बात का माण है
क आप कतने प र मी ह। आपक प नी को आप पर गव होना चा हये!
अगर आप वा म व-क त ह, तो आप उन चीज़ के बारे म सोच सकते ह, ज ह ओवरटाइम क आय से
ख़रीदा जा सकता है। या आप इस बारे म वचार कर सकते ह क अगर आप कगे, तो इससे ऑ फ़स म आपक
त ा कतनी बढ़ जायेगी। हर अगले दन यह जान लेगा क आप कतने महान, यागी और सम पत ह।
अगर आप आनंद-क त ह, तो आप शायद काम छोड़कर संगीत काय म म जा सकते ह, भले ही आपके
दे र तक ऑ फ़स म काम करने के लये आपक प नी ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो जाये। आप रात बाहर गुज़ारने के
हक़दार ह!
अगर आप म -क त ह, तो आपका नणय इस बात से भा वत होगा क आपने संगीत काय म म आने
के लये अपने म को आमं त कया है या नह । या ऑ फ़स के आपके म भी दे र तक ऑ फ़स म क रहे ह
या नह ।
अगर आप श ु-क त ह, तो आप इस लये दे र तक क सकते ह य क आप जानते ह क इससे ऑ फ़स
के उस क तुलना म आपका पलड़ा भारी हो जायेगा, जो सोचता है क वह कंपनी का सबसे अ छा कमचारी
है। इस लये जब आपका यह श ु बाहर मज़े कर रहा होगा, तब आप काम करगे, ग़लामी करगे, उसका तथा अपना
काम नबटायगे और कंपनी के हत म अपने गत आनंद का याग करगे। आप इस बात पर स ह गे क
आपके श ु ने इस अवसर को अनदे खा कर दया है।
अगर आप चच-क त ह, तो आप इस बात से भा वत हो सकते ह क चच के अ य सद य संगीत काय म
म जा रहे ह या नह , या चच के सद य आपके ऑ फ़स म काम करते ह या नह , या संगीत काय म कौन सा है -
रॉक क सट क तुलना म आपके लये हडेल का मसीहा अ धक मह वपूण होगा। आपका नणय इस बात से भी
भा वत हो सकता है क आपके वचार से “चच के अ छे सद य” को इस थ त म या करना चा हये और आप
इस अ त र काय को “सेवा” के प म दे खते ह या “धन के पीछे भागने” के प म।
अगर आप आ म-क त ह, तो आपका यान इस बात पर क त होगा क आपके लये सबसे अ छा या
रहेगा। या रात को बाहर जाना आपके लये बेहतर होगा? या फर बॉस को ख़ुश करना? आपक मु य चता यह
होगी क व भ वक प आपको कस तरह भा वत करगे।
जब हम एक ही घटना को कई क से दे खने के तरीक़ पर वचार करते ह, तो या यह हैरानी क बात है क
हमारे आपसी वहार म “युवती/बूढ़ म हला” क अनुभू त क सम याएँ आ जाती ह? या आप दे ख सकते ह
क हमारे क हम कतने मूलभूत प से भा वत करते ह? वे हमारी ेरणा , दै नक नणय , काय (या
अ धकांश मामल म, हमारी त या ) और घटना क ा या तक को भा वत करते ह। यही कारण है
क अपने क को समझना इतना मह वपूण है। और अगर यह क आपको ोए टव के प म सश नह
बनाता, तो आपक भावका रता के लये यह मूलभूत है क आप अपने पैरेडाइम म आव यक प रवतन करके
ऐसा क तैयार कर, जो यह काम करे।
स ांत-क त के प म आप थ त के भावावेग और वयं को भा वत करने वाले अ य त व से
र हटकर खड़े होने क को शश करते ह और वक प का मू यांकन करते ह। नौकरी क आव यकता ,
पा रवा रक आव यकता , अ य उप थत आव यकता और व भ वैक पक नणय के संभा वत प रणाम
आ द क संतु लत संपूणता को दे खने के बाद आप सव े समाधान पर प ँचने क को शश करगे और ऐसा सभी
बात पर वचार करने के बाद करगे।
आप संगीत काय म म जायगे या ऑ फ़स म ककर काम करगे, यह दरअसल भावकारी नणय का एक
ब त छोटा ह सा है। आप कई अ य क से भी यह चुनाव कर सकते ह। परंतु जब आप स ांत-क त पैरेडाइम
से नणय पर प ँचते ह, तो कई मह वपूण अंतर प दखते ह।
सबसे पहली बात, आप सरे लोग या प र थ तय ारा संचा लत नह हो रहे ह। आप ोए टव तरीक़े से
यह चुन रहे ह क आपके लये सव े वक प या है। आप अपने नणय को ान के आधार पर और सचेतन प
से ले रहे ह।
सरी बात, आप जानते ह क आपका नणय सबसे भावकारी है य क यह उन स ांत पर आधा रत है,
जनके द घकालीन प रणाम का पहले से ही अनुमान लगाया जा सकता है।
तीसरी बात, आप जस काय को करने का चुनाव करते ह, वह जीवन म आपके चरम जीवनमू य म योगदान
दे ता है। ऑ फ़स के कसी सहकम से ऊपर उठने के लये दे र तक कना एक बात है। और यह बलकुल ही अलग
बात है क आप इस लये क य क आप अपने बॉस क भावका रता को मह व दे ते ह और अपनी कंपनी के
हत म सचमुच योगदान दे ना चाहते ह। जब आप अपने नणय पर अमल करते ह, तो ये अनुभव आपके पूरे जीवन
के संदभ म गुणव ा और अथ ले लेते ह।
चौथी बात, आप अपनी प नी और अपने बॉस तक अपनी भावनाय उन सश नेटव स के मा यम से प ँचा
सकते ह, ज ह आपने पर पर- नभर संबंध म बनाया है। चूँ क आप आ म नभर ह, इस लये आप भावकारी प
से पर पर- नभर बन सकते ह। जन काम को स पा जा सकता है, उ ह आप सर को स पने का नणय ले सकते
ह और शेष काम करने के लये आप अगले दन सुबह ज द ऑ फ़स आ सकते ह।
और अंततः आप अपने नणय के बारे म अ छा महसूस करगे। चाहे आप कुछ भी करने का चुनाव कर, आप
उस पर यान क त कर सकते ह और उसका आनंद ले सकते ह।
स ांत-क त के प म आप चीज़ को अलग तरीक़े से दे खते ह। और चूँ क आप चीज़ को अलग
तरीक़े से दे खते ह, इस लये आप अलग तरीक़े से सोचते और काम करते ह। चूँ क आपके पास सु ढ़ व
अप रवतनीय क से वा हत होने वाली उ च दज क सुर ा, मागदशन, बु और श है, इस लये आपके पास
अ त ोए टव और अ त भावकारी जीवन क न व होती है।

गत मशन टे टमट लखना और उसका योग करना


जब हम अपने भीतर गहराई म जाते ह, जब हम अपने मूलभूत पैरेडाइ स को सही स ांत के सामंज य म
लाने के लये उ ह समझते और व थत करते ह, तो हम एक भावकारी तथा श दायक क क रचना तो
करते ही ह, एक प लस क रचना भी करते ह, जससे हम संसार को दे ख सकते ह। फर हम उस लस को इस
बात पर फ़ोकस कर सकते ह क हम अनूठे के प म इस संसार से कैसे संबंध बनायगे।
कल कहते ह क हम जीवन म अपने ल य का आ व कार नह करते ह, ब क उ ह पहचानते ह। मुझे
श द का यह चयन पसंद है। म सोचता ँ क हमम से येक म एक अंद नी मॉ नटर या एहसास होता है, जसे
हम ववेक कहते ह। यह हम अपने अनूठेपन क जाग कता दान करता है और यह बताता है क हम कौन से
अनूठे योगदान दे सकते ह। कल के श द म, “जीवन म येक का अपना व श कत या ल य होता
है…। इसम उसक जगह कोई सरा नह ले सकता, न ही उसका जीवन दोहराया जा सकता है। इस कार, हर एक
का काम उतना ही अनूठा होता है, जतना क इसे अमल म लाने का उसका व श अवसर।”
उस अनूठेपन को शा दक अ भ दे ने क को शश म हम ोए ट वट और अपने भाव के वृ म काम
करने का मूलभूत मह व फर से याद आ जाता है। बाहर वाले चता के वृ म जीवन का कोई अमूत अथ खोजने
क को शश करना अपनी ोए टव ज़ मेदारी को यागना होगा। ऐसी को शश के ारा हम अपनी थम रचना को
प र थ तय और सरे लोग के हाथ म स प दे ते ह।
हमारा अथ हमारे भीतर से आता है। पुनः कल के श द म, “अंततः मनु य को यह नह पूछना चा हये क
उसके जीवन का अथ या है, ब क यह समझना चा हये क यह सवाल उसी से पूछा जा रहा है। सं ेप म, जीवन
हर से यही सवाल करता है और वह अपने जीवन के बारे म जवाब दे कर ही इस सवाल का जवाब दे सकता
है। जीवन के त ज़ मेदार होकर ही वह त या कर सकता है।”
गत ज़ मेदारी या ोए ट वट थम रचना के लये मूलभूत है। अगर हम क यूटर क भाषा का फर
से योग कर, तो पहली आदत कहती है, “आप ो ामर ह।” सरी आदत इसके आगे कहती है, “ ो ाम लखो।”
जब तक आप यह नह मानते क आप ज़ मेदार ह और ो ामर ह, तब तक आप ो ाम लखने म सचमुच मेहनत
नह करगे।
ोए टव य के प म हम यह कर सकते ह क हम या बनना चाहते ह और अपने जीवन म
या करना चाहते ह। हम एक गत मशन टे टमट यानी एक गत सं वधान लख सकते ह।
मशन टे टमट कोई ऐसी चीज़ नह है, जसे आप रातोरात लख सकते ह । इसम गहरे आ म नरी ण,
यानपूण वश्लेषण, सु वचा रत अ भ तथा अ सर कई बार लखे जाने क ज़ रत होती है। तब कह जाकर
यह अं तम प म आता है। इसके त आरामदे ह महसूस करने म आपको कई स ताह या महीने भी लग सकते ह,
जब आप अंततः यह महसूस कर क यह आपके गहनतम जीवनमू य तथा दशा क पूण और सं त
अभ है। इसके बाद भी आप इसक नय मत समी ा करना चाहगे। जब समय आपको कुछ नया सखायेगा
या प र थ तयाँ बदलगी, तो समी ा के दौरान आप इसम छु टपुट प रवतन करना चाहगे।
परंतु मूल प से आपका मशन टे टमट आपका सं वधान बन जाता है। यह आपक जीवन तथा
जीवनमू य क ठोस अ भ बन जाता है। यह वह पैमाना बन जाता है, जसके ारा आप अपने जीवन क हर
अ य चीज़ का मू यांकन करते ह।
मने हाल ही म अपने मशन टे टमट क समी ा क है, जो म नय मत प से करता ।ँ साइकल या ा के
बाद जब म समु कनारे अकेले बैठा, तो मने अपना ऑगनाइज़र (organizer) नकाला और इस पर मेहनत क ।
इसम कई घंटे लगे, परंतु मुझे प ता का, सु व था तथा तब ता का, उ लास और वतं ता का एहसास आ।
मुझे लगता है क या भी उतनी ही मह वपूण है जतना क अं तम प रणाम (product)। मशन टे टमट
लखने या इसक समी ा करने से आप बदल जाते ह, य क यह आपको अपनी ाथ मकता के बारे म गहराई
तथा सावधानी से सोचने के लये ववश करता है और आपके वहार को आपके वश्वास के अनु प बनाने के
लये भी े रत करता है। जब आप यह करगे, तो सरे लोग को यह एहसास होने लगेगा क आप अपने साथ होने
वाली घटना से संचा लत नह होते ह, ब क आप जो करने क को शश कर रहे ह, उसके बारे म आप रोमां चत
ह और आपको ल य का एहसास है।

समूचे म त क का योग करना


हमारी आ म-जाग कता हम अपने वचार क जाँच करने क श दे ती है। यह गत मशन टे टमट
क रचना करने म वशेष प से सहायक होती है। इसका कारण यह है क दो अनूठ मानवीय तभाएँ - क पना
और ववेक - हम सरी आदत के योग म स म बनाती ह। और ये दोन मूलतः म त क के दाय ह से के काय
ह। दाय म त क क मता का दोहन कैसे कया जाये, यह समझने से हमारी थम रचना क यो यता ब त बढ़
जाती है।
दशक तक उस बारे म काफ़ शोध आ है, जसे म त क आ धप य अवधारणा (brain dominance
theory) कहा जाता है। न कष मूलतः यह बताते ह क म त क के दाय और बाय दोन गोलाध अलग-अलग
काय के वशेष होते ह, जन पर उनका आ धप य होता है। वे अलग-अलग ढं ग से जानकारी क ा या करते ह
और अलग-अलग तरह क सम या से नबटते ह।
मूलभूत प से, बायाँ गोलाध अ धक ता कक/शा दक होता है, जब क दायाँ गोलाध अ धक अंत ानी और
रचना मक होता है। बाय गोलाध का संबंध श द से है, दाय का त वीर से। बाय गोलाध का संबंध ह स और
व श वणन से है, जब क दाय का समूचे प और ह स के आपसी संबंध से। बाय गोलाध का संबंध वश्लेषण
(analysis) से है यानी यह कसी व तु को टु कड़ म अलग-अलग करके दे खता है, जब क दाय का संबंध
संश्लेषण (synthesis) से है यानी यह अलग-अलग टु कड़ को मलाकर दे खता है। बाय का संबंध मक
(sequential) चतन से है, दाय का संबंध सबके एक साथ और संपूण (holistic) चतन से है। बायाँ गोलाध
समयब है, जब क दायाँ समयमु है।
हालाँ क लोग म त क के दोन ह स का योग करते ह, परंतु आम तौर पर हर म एक न एक ह सा
अ धक बल होता है। ज़ा हर है, आदश थ त तो यह होगी क म त क के दोन ह स के बीच अ छा
तालमेल रखे तथा दोन क ही यो यता को वक सत करे, ता क वह पहले यह जान सके क इस थ त म कस
चीज़ क ज़ रत है और फर वह उससे नबटने के लये उ चत साधन का इ तेमाल करे। परंतु लोग म अपने
आ धप य वाले गोलाध के “आरामदे ह दायरे” (comfort zone) म बने रहने क वृ होती है, इस लये वे हर
थ त का वश्लेषण दाय या बाय म त क क वरीयता के अनुसार करते ह।
अ ाहम मा लो के श द म, “जो हथौड़े के योग म नपुण होता है, उसम हर चीज़ को क ल समझने
क वृ होती है।” यह एक और त व है, जो “युवती/बूढ़ म हला” क अनुभू त के अंतर को भा वत करता है।
दाय म त क और बाय म त क के लोग चीज़ को भ तरीक़ से दे खते ह।
हम जस नया म रहते ह, वहाँ मु यतः बाय म त क का आ धप य है। इसम श द , नाप-तौल और तक को
सहासन पर बठाया जाता है, जब क हमारे वभाव के अ धक रचना मक या कला मक पहलू, हमारे अंत ान,
हमारे बोध को अ सर उतनी धानता नह द जाती। हमम से ब त से लोग को अपने दाय म त क क मता का
दोहन करना मु कल लगता है।
ज़ा हर है यह वणन ब त ही सरलीकृत है और नये अ ययन न त प से म त क क काय णाली पर
अ धक काश डालगे। मु े क बात यह है क हम भ कार क वचार या को अपनाने म स म ह, परंतु
हम अपनी मता का ब त कम दोहन करते ह। जब हम अपने म त क क व भ मता के बारे म जाग क
होते ह, तो हम व श आव यकता को पूरा करने के लये अपने म त क का सचेतन योग अ धक भावकारी
ढं ग से कर सकते ह।

दाय म त क का दोहन करने के दो तरीक़े


मॉडल के प म म त क आ धप य अवधारणा का योग करने पर यह प हो जाता है क अपने
रचना मक दाय म त क के योग क हमारी मता से हमारी थम रचना क गुणव ा पर मह वपूण भाव पड़ता
है। हम अपने दाय म त क क मता का जतना अ धक योग करगे, हम इस बात क सम त वीर दे खने म
उतने ही अ धक स म ह गे क हम जीवन म या करना और बनना चाहते ह। हम मान सक च ण करने,
संश्ले षत करने और समय तथा वतमान प र थ तय को पार करने म उतने ही अ धक स म ह गे।

कोण का व तार कर
कई बार कोई अ नयो जत अनुभव हम बाय म त क के प रवेश तथा वचार या से बाहर धकेलकर
दाय म त क के प रवेश म प ँचा दे ता है। कसी यजन क मृ यु, गंभीर बीमारी, आ थक संकट या बड़ी वप
हम अलग हटकर खड़े होने, अपने जीवन को दे खने और ख़ुद से कुछ मु कल सवाल पूछने के लये ववश कर
सकती है: “वा तव म या मह वपूण है? म जो कर रहा ,ँ वह य कर रहा ँ?”
परंतु अगर आप ोए टव ह, तो आपको अपने कोण का व तार करने के अनुभव के लये प र थ तय
या सरे लोग का इंतज़ार नह करना पड़ता। आप सचेतन प से अपने अनुभव क रचना ख़ुद करते ह।
ऐसा करने के कई तरीक़े ह। आप अपनी क पना-श के मा यम से अपनी अं ये क त वीर दे ख सकते
ह, जैसा हमने इस अ याय के शु म कया था। अपनी ख़ुद क मरणोपरांत श त लख। इसे सचमुच पूरी प ता
से लख।
आप अपने ववाह क प चीसव और फर पचासव साल गरह क का प नक त वीर दे ख सकते ह। इस
त वीर को अपने जीवनसाथी के साथ बैठकर दे ख। उस पा रवा रक र ते के सार को पकड़ने क को शश कर,
जसे आप इतने वष तक रोज़ाना नवेश करके बनाना चाहते ह।
आप अपनी वतमान नौकरी से रटायरमट क का प नक त वीर दे ख सकते ह। आप अपने े म कौन से
योगदान दे ना चाहगे, कौन सी उपल धयाँ हा सल करना चाहगे? रटायरमट के बाद आपक योजनाय या ह गी?
या आप सरा कै रयर शु करगे?
अपने म त क का व तार कर। का प नक त वीर को पूरे व तार से दे ख। जतने अ धक भाव और भावनाय
आप इसम शा मल कर सकते ह , कर ल। जतनी अ धक इं य का आप योग कर सकते ह , कर।
मने अपनी वश्व व ालयीन क ा म इस तरह क का प नक त वीर दे खने के कई योग कये ह। म
अपने व ा थय से कहता ,ँ “यह मान ल क आपके पास जीने के लये बस यही एक से म टर है। और इसी
से म टर के दौरान आपको वश्व व ालय म एक अ छे व ाथ क तरह रहना है। अपने मन म इसक का प नक
त वीर दे ख क आप अपना यह से म टर कस तरह बतायगे।”
चीज़ अचानक एक अलग कोण म प ँच जाती ह। जन जीवनमू य को पहले कभी पहचाना भी नह
गया था, वे त काल उभरकर सामने आ जाते ह।
म व ा थय से कहता ँ क वे एक स ताह तक इस व तृत कोण के साथ रह और अपने अनुभव को
डायरी म लख ल।
प रणाम ब त आ यजनक होते ह। वे अपने माता- पता को प म लखने लगते ह क वे उ ह कतना यार
करते ह और उनक कतनी सराहना करते ह। वे अपने भाई, बहन या म के साथ सुलह कर लेते ह, जसके साथ
उनके संबंध झगड़े के कारण कमज़ोर हो गये थे।
उनक ग त व धय क बल क य वषयव तु और अंत न हत स ांत ेम बन जाता है। बुरा बोलने, बुरा
सोचने, अपमान करने या दोष दे ने क नरथकता ब त प हो जाती है, जब वे इस संदभ म सोचते ह क उ ह
सफ़ कुछ समय ही ज़दा रहना है। स ांत और जीवनमू य हर एक के सामने अ धक प हो जाते ह।
क पना का योग करने क ऐसी कई तकनीक ह, जो आपको अपने जीवनमू य के संपक म ला सकती ह।
मेरे ारा योग म लाई गई अलग-अलग तकनीक का प रणाम एक जैसा ही होता है। जब लोग गंभीरता से यह
पहचानने का संक प लेते ह क उनके लये जीवन म सचमुच सबसे मह वपूण या है, वे सचमुच या बनना और
करना चाहते ह, तो वे ब त ामय बन जाते ह। वे आज और कल से अ धक बड़े संदभ म सोचने लगते ह।

मान सक च ण और कथन (Visualization and Affirmation)


गत लीडर शप कोई एक बार कया जाने वाला काम नह है। यह सफ़ एक गत मशन टे टमट
लखने से शु या ख़ म नह होता। इसके बजाय यह अपनी जीवन और जीवनमू य को लगातार अपने सामने
रखने तथा अपने जीवन को इन सबसे मह वपूण चीज़ के तालमेल म लाने क सतत या है। और जब आप
अपने जीवन म अपने गत मशन टे टमट को उतारने क को शश करगे, तो इस यास म आपके सश दाय
म त क क मता आपक हर दन मदद कर सकती है। “अंत को यान म रखकर शु कर” का यह एक और
उदाहरण है।
आइये पहले दये गये उदाहरण क ओर चल। मान ली जये म एक पता ,ँ जो अपने ब च से सचमुच गहराई
से ेम करता ।ँ मान ली जये म अपने गत मशन टे टमट म इसे अपना मूलभूत जीवनमू य मानता ँ। परंतु
मान ली जये, हर दन म ज़ रत से यादा त या कर बैठता ।ँ
म अपने दाय म त क क मान सक च ण क श का योग करके एक “कथन” लख सकता ,ँ जो
दै नक जीवन म अपने गहरे जीवनमू य के अ धक सामंज य म आने म मेरी मदद करेगा।
एक अ छे कथन म पाँच मूलभूत त व होते ह: यह गत होता है, यह सकारा मक होता है, यह वतमान
काल म होता है, यह च ा मक होता है और यह भावना मक होता है। इस लये म इस तरह क कोई चीज़
लखता :ँ “यह ब त संतु दायक (भावना मक) है क जब मेरे ब चे ग़लत वहार करते ह, तो म ( गत)
बु , म
े , ढ़ता और आ म- नयं ण (सकारा मक) से त या करता ँ (वतमान काल)।”
फर म इसका मान सक च ण कर सकता ँ। म इस काम म हर दन कुछ मनट लगा सकता ँ और अपने
मन तथा शरीर को पूरी तरह व ाम क अव था म ला सकता ँ। म उन थ तय के बारे म सोच सकता ँ, जनम
मेरे ब चे ग़लत वहार कर सकते ह। म उस य का मान सक च ण पूरे ववरण के साथ कर सकता ँ। म उस
कुस क बनावट को महसूस कर सकता ँ, जस पर म बैठा ,ँ अपने पैर के नीचे के फ़श को, उस वेटर को जसे
मने पहन रखा है। म अपनी बेट ारा पहने ए कपड़ और उसके चेहरे के हाव-भाव दे ख सकता ।ँ म जतनी
यादा प ता और सट कता से ववरण क क पना कर सकूँगा, उतनी ही यादा गहराई से म इसे अनुभव
क ँ गा। उस थ त को म दशक के प म कम और सहभागी के प म अ धक दे खूँगा।
फर म यह दे ख सकता ँ क मेरी बेट कोई ऐसा काम करती है, जससे आम तौर पर मेरा दल तेज़ी से
धड़कने लगता है और मेरा पारा चढ़ जाता है। परंतु अपनी सामा य त या को दे खने के बजाय म यह दे ख
सकता ँ क म ेम, श तथा आ म- नयं ण ारा इस थ त से नबट रहा ,ँ जैसा मने कथन म संक प कया
है। म ऐसा ो ाम या ट लख सकता ,ँ जो मेरे जीवनमू य और गत मशन टे टमट के सामंज य म
हो।
और अगर म ऐसा करता ँ, तो दन-ब- दन मेरा वहार बदलेगा। अपने माता- पता, समाज, आनुवं शकता
या प रवेश ारा मुझे थमाई गई ट् स के अनुसार जीने के बजाय म उस ट के हसाब से जयूँगा, जसे
अपने चुने ए जीवनमू य के अनुसार मने ख़ुद लखा है।

मने अपने पु सीन को ो सा हत कया है क वह कथन क इस या का योग अपने फ़टबॉल कै रयर म


करे। हमने इसे तब शु कया, जब वह हाई कूल म वाटर बैक के प म खेलता था और अंततः मने उसे
सखाया क वह अकेले यह काम कैसे कर सकता है।
पहले तो गहरी साँस लेकर और धीरे-धीरे मांसपे शय को श थल करने क तकनीक ारा म उसे तनावमु
मान सक अव था म लाने क को शश करता था, ता क वह अंदर से शांत हो जाये। फर म यह मान सक च ण
करने म उसक मदद करता था क वह सबसे क ठन प र थ तय का सामना कर रहा है।
वह इस बात क क पना करता था क फ़टबॉल के मैच म उसक ओर तेज़ी के साथ ज़बद त आ मण हो
रहा है। उसे उस आ मण को समझकर उस पर त या करना थी। फर वह क पना करता था क उसे र ापं
के इराद को समझने के बाद गद को आगे बढ़ाना था। वह यह क पना करता था क वह पहले, सरे और तीसरे
रसीवर के इराद को एक ही झटके म ताड़ रहा है। वह उन वक प क क पना करता था, जन पर वह
सामा यतया वचार ही नह करता था।
उसने मुझे एक बार बताया क अपने फु़टबॉल कै रयर म वह लगातार तनाव महसूस कर रहा है। जब हमने
बातचीत क , तो मने पाया क वह तनाव का मान सक च ण कर रहा था। इस लये हमने बल तनाव क
प र थ त म तनावमु रहने के मान सक च ण पर मेहनत क । हमने यह जाना क मान सक च ण क कृ त
ब त मह वपूण है। अगर आप ग़लत चीज़ क का प नक त वीर बनायगे, तो आपको प रणाम म भी ग़लत त वीर
ही मलेगी।

डॉ. चा स गारफ़ ड ने खेल-जगत और बज़नेस क नया म उ चतम दशन करने वाल (peak
performers) पर ापक शोध कया है। जब वे नासा के काय म म काम कर रहे थे, तब उ ह ने अंत र
या य को अंत र म जाने से पहले धरती पर कृ म प रवेश म हर चीज़ क बार-बार रहसल करते दे खा। यह से
पीक परफ़ॉमस म उनक दलच पी जाग गई। हालाँ क वे ग णत म पीएच.डी. थे, परंतु उ ह ने बारा कॉलेज जाकर
मनो व ान म डॉ टरेट करने तथा पीक परफ़ॉमस के गुण का अ ययन करने का न य कया।
उनके शोध म एक मुख बात यह सामने आई क लगभग सभी वश्व तरीय खलाड़ी और अ य पीक
परफ़ॉमस मान सक च ण करते थे। वे अपनी वजय को दे खते थे, उसे महसूस करते थे, उसे वा तव म कर दखाने
से पहले उसका अनुभव करते थे। वे अंत को यान म रखकर शु करते थे।
आप भी अपने जीवन के हर े म यह कर सकते ह। कसी दशन से पहले, से स तु त से पहले, कसी
मु कल मुक़ाबले से पहले या कसी ल य को पूरा करने क चुनौती से पहले इसे प ता से, व तार से,
च ा मकता से, लगातार, बार-बार दे ख। इसके त आंत रक “आरामदे ह दायरा” बनाय। फर जब आप उस
थ त म प ँचगे, तो आपको वह अप र चत नह लगेगी। आप उससे भयभीत नह ह गे।
आपका रचना मक व क पनाशील दायाँ म त क आपके गत मशन टे टमट क रचना करने और इसे
जीवन म उतारने के काम म आपक सबसे मह वपूण संप य म से एक है।
ब त सी पु तक और ऑ डयो-वी डयो टे स उपल ध ह, जो मान सक च ण करने और कथन लखने क
या से संबं धत ह। इस े क कुछ नवीनतम खोज म सब ल मनल ो ा मग, यूरो- ल व टक ो ा मग
और तनाव-मु तथा आ म-चचा क या के नये प शा मल ह। इन सबम थम रचना के मूलभूत स ांत
क ा या, व तार और अलग-अलग याय शा मल ह।
सफलता के सा ह य क समी ा करते समय म इस वषय पर लखी सैकड़ पु तक के संपक म आया।
हालाँ क कुछ के दावे अ तशयो पूण थे और उनम वै ा नक माण के बजाय क़ से-कहा नय पर ज़ोर दया
गया था, परंतु मुझे लगता है क अ धकांश पु तक मूलभूत प से सही ह। इनम से अ धकांश मूलतः बाइबल के
अ ययन से े रत नज़र आती ह।
मान सक च ण करने तथा कथन लखने क तकनीक भावकारी गत लीडर शप म सु वचा रत ल य
तथा स ांत के आधार से वाभा वक प से उभरती ह, जो कसी के जीवन का क बन जाते ह। ये
तकनीक बारा ट तथा ो ाम लखने म अ य धक श शाली होती ह। इनम के दलो दमाग़ म
उद्दे य तथा स ांत के त गहरे संक प क ट लखने क बल श होती है। मुझे वश्वास है क सभी
धम के क म अलग-अलग भाषा म लखे गये एक जैसे स ांत और आचरण ह - साधना, ाथना, संक प,
परंपरा, धम ंथ का अ ययन, परानुभू त, क णा तथा ववेक और क पना दोन के योग के कई अलग-अलग
प।
परंतु अगर ये तकनीक व-आधा रत नी तशा का ह सा बन जाती ह और च र तथा स ांत से
वमुख हो जाती ह, तो उनका अ य क क ख़ा तर पयोग और अनु चत योग हो सकता है, ख़ासकर आ म के
क क ख़ा तर।
कथन लखना और मान सक च ण करना ो ा मग के प ह। और हम यह सु न त करना चा हये क हम
ख़ुद को कसी ऐसी ो ा मग क अनुम त न द, जो हमारे मूलभूत क के सामंज य म न हो या जो उन ोत से
आती हो, जो सही स ांत के बजाय पैसा कमाने, वाथ या अ य े पर क त हो।
क पना का योग णक सफलता को हा सल करने के लये भी कया जा सकता है, जो भौ तक सफलता
या “इसम मेरे लये या है” पर यान क त करने से मलती है। परंतु मेरा मानना है क क पना का अ धक उ च
योग ववेक के साथ होता है, ता क आ म या ख़ुद के पार जाकर योगदान दे ने वाले जीवन क रचना क जाये -
एक ऐसा जीवन, जो अनूठे उद्दे य और पर पर- नभर वा त वकता को नयं त करने वाले स ांत पर आधा रत
हो।

भू मकाय और ल य पहचानना
ज़ा हर है, ता कक/शा दक बायाँ म त क तब मह वपूण बन जाता है, जब आप अपने दाय म त क क
छ वय , भावना और त वीर को ल खत मशन टे टमट के श द म उतारने क को शश करते ह। जस तरह
श्वास के ायाम शरीर और म त क को एक कृत करने म मदद करते ह, उसी तरह लखना एक तरह क
साइको- यूरल मांसपेशीय ग त व ध है, जो चेतन और अवचेतन म त क के बीच सेतु बनाने और उ ह एक कृत
करने म मदद करती है। लखने से वचार प होता है और प धारण करता है। इससे सम को ह स म तोड़ने
म मदद मलती है।
हम सब अपने जीवन म ब त सी अलग-अलग भू मकाय नभाते ह। हमारे पास भ े या भू मका म
ज़ मेदारी होती है। उदाहरण के तौर पर मेरी भू मका एक , प त, पता, श क, चच के सद य और
बज़नेसमैन क हो सकती है। और इनम से हर भू मका मह वपूण है।
जब लोग जीवन म अ धक भावकारी बनने के लये मेहनत करते ह, तो यह मुख सम या सामने आती है
क वे पया त व तार से नह सोचते ह। वे भावकारी जीवन के लये आव यक अनुपात, संतुलन और ाकृ तक
पयावरण तं के एहसास को खो दे ते ह। वे काम के पीछे पागल होकर अपने वा य क उपे ा कर सकते ह।
ावसा यक सफलता के नाम पर वे अपने जीवन के सबसे मू यवान र त क उपे ा कर सकते ह।
आपके मन म यह वचार आ सकता है क आप अपने मशन टे टमट को टु कड़ म बाँट ल और अपने जीवन
क भू मका के अनुसार अलग-अलग ल य बना ल, ज ह आप हर े म हा सल करना चाहते ह। जब आप
ऐसा करगे, तो आपका मशन टे टमट न सफ़ अ धक संतु लत होगा, ब क इस पर काम करना भी अ धक
आसान होगा। अपनी ावसा यक भू मका क तरफ़ दे ख। हो सकता है आप से समैन या मैनेजर या ॉड ट
वक सत करने वाले ह । आप इस े म या करने जा रहे ह? वे कौन से जीवनमू य ह, ज ह आपका मागदशन
करना चा हये? अपनी गत भू मका के बारे म सोच - प त, प नी, पता, माता, पड़ोसी, म । आप इन
भू मका म या करना चाहते ह? आपके लये या मह वपूण है? सामुदा यक भू मका के बारे म सोच -
राजनी तक े , सावज नक सेवा, वयंसेवी संगठन।
एक ए ज़ी यू टव ने भू मका तथा ल य के वचार का योग करके नीचे दया मशन टे टमट तैयार कया
है:

मेरा ल य ईमानदारी से जीना और सर के जीवन म फ़क़ पैदा करना है।

इस ल य को पूरा करने के लये:

म परोपकार करता :ँ म हर से - हर से - ेम करता ँ, चाहे उसक थ त कैसी भी हो।


म याग करता :ँ म अपना समय, यो यता और संसाधन अपने ल य के त सम पत करता ँ।
म े रत करता :ँ म उदाहरण पेश करके सखाता ँ क हम सब ेमपूण पता यानी ईश्वर क संतान ह
और हर बड़ी सम या (Goliath) को हराया जा सकता है।
म भाव डालता :ँ म जो करता ,ँ उससे सर के जीवन पर फ़क़ पड़ता है।

ये भू मकाय मेरे ल य को हा सल करने म ाथ मक ह:

प त- मेरा जीवनसाथी मेरे जीवन म सबसे मह वपूण है। साथ मलकर हम सद्भाव, प र म,
परोपकार और मत यता के फल का योगदान दे ते ह।
पता- म जीवन का अ धका धक आनंद लेने म अपने ब च क मदद करता ।ँ
पु /भाई- म समथन और ेम दे ने के लये अ सर “वहाँ” होता ँ।
ईसाई- ईश्वर मुझ पर वश्वास कर सकता है क म अपनी शपथ नभाऊँगा और उसके अ य पु
क सेवा क ँ गा।
पड़ोसी- सर के त मेरे काय के ारा यीशु का ेम कट होता है।
प रवतन का कारक- म बड़े संगठन म उ च काय- दशन के वकास का उ ेरक ।ँ
व ाथ - म हर दन मह वपूण नई चीज़ सीखता ।ँ

अपने जीवन क मह वपूण भू मका के संदभ म अपना मशन टे टमट लखने से आपको संतुलन तथा
सु व था मलती है। यह आपक हर भू मका को प ता से आपके सामने रख दे ता है। आप यह सु न त करने
के लये अ सर अपनी भू मका क समी ा कर सकते ह क आप कसी एक भू मका म पूरी तरह से त लीन
होकर बाक़ भू मका क उपे ा तो नह कर रहे ह, जो आपके जीवन म उतनी ही या अ धक मह वपूण ह।
अपनी व भ भू मका को पहचानने के बाद आप उन द घकालीन ल य के बारे म सोच सकते ह, जो
आप येक भू मका म हा सल करना चाहते ह। हम एक बार फर दाय म त क के े म ह, य क हम क पना,
रचना मकता, ववेक और ेरणा का योग कर रहे ह। अगर ये ल य सही स ांत पर आधा रत मशन टे टमट के
व तार ह, तो ये उन ल य से काफ़ अलग ह गे, ज ह लोग आम तौर पर बनाते ह। ये सही स ांत और ाकृ तक
नयम के तालमेल म ह गे, जससे आपको उ ह हा सल करने क अ धक श मलती है। ये कसी सरे के ल य
नह ह, ज ह आपने आ मसात कर लया है। ये आपके अपने ल य ह। ये आपके गहनतम जीवनमू य को
त ब बत करते ह। ये आपक अनूठ यो यता और आपके ल य के एहसास को दशाते ह। और ये जीवन म
आपक चुनी ई भू मका से वक सत होते ह।
भावकारी ल य मु यतः ग त व ध के बजाय प रणाम पर यान क त करता है। यह पता लगाता है क
आप कहाँ पर होना चाहते ह और इस या म यह नधा रत करने म आपक मदद करता है क आप इस समय
कहाँ ह। भावकारी ल य आपको मह वपूण जानकारी दे ता है क वहाँ कैसे प ँचा जाये और आपको यह भी
बताता है क आप कब वहाँ प ँच गये ह। यह आपके यास और ऊजा को एक सू म बाँधता है। यह आपके हर
काय को साथक तथा उद्दे यपूण बनाता है। और यह अंततः दै नक ग त व धय म उतर सकता है, ता क आप
ोए टव बनकर अपने जीवन का नयं ण अपने हाथ म ल। आप हर दन ऐसी चीज़ करने म समथ बन रहे ह, जो
आपके गत मशन टे टमट को पूरा करने म आपको स म बनायगी।
भू मकाय और ल य आपके गत मशन टे टमट को संरचना तथा सु व थत दशा दे ते ह। अगर आपने
अब तक कसी तरह का गत मशन टे टमट नह बनाया है, तो यह शु आत करने के लये अ छा थान है।
अपने जीवन के कुछ े को चुन ल। इसके बाद हर े म दो-तीन मह वपूण प रणाम को चुन ल, जनके बारे म
आपको लगता है क आगे बढ़ने के लये आपको इ ह हा सल करना चा हये। अगर आप ऐसा करते ह, तो इससे
आपको अपने जीवन का सम कोण तथा दशा का एहसास मलता है।
जब हम तीसरी आदत क ओर बढ़गे, तो हम अ पकालीन ल य के बारे म अ धक गहराई से वचार करगे।
इस ब पर मह वपूण काम है भू मका और द घकालीन ल य को चुनना, जो आपके गत मशन टे टमट
के अनु प ह । जब हम तीसरी आदत यानी जीवन तथा समय के दन- त दन के बंधन पर आयगे, तो ये
भू मकाय और ल य भावकारी ल य बनाने और उ ह हा सल करने का आधार दान करगे।

पा रवा रक मशन टे टमट


चूँ क सरी आदत स ांत पर आधा रत है, इस लये यह ापक प से लागू होती है। सभी तरह के ,
प रवार, सेवा-समूह और संगठन जब अंत को यान म रखकर शु करते ह, तो वे ब त भावकारी बन जाते ह।
कई प रवार दमदार स ांत के आधार पर चलने के बजाय वषम थ तय , मूड, वक फ़ स और त काल
संतु के आधार पर चलते ह। जब भी तनाव या दबाव बढ़ता है, तो ये ल ण उभर आते ह: लोग दोषदश ,
आलोचक या ख़ामोश हो जाते ह या फर वे चीख़ना- च लाना और ज़ रत से यादा त या करना शु कर दे ते
ह। जो ब चे इस तरह के वहार को दे खते ह, वे यह सोचते ए बड़े होते ह क सम या को सुलझाने का
इकलौता तरीक़ा है - लड़ो या भाग जाओ।
कसी प रवार का दय वह है जो अप रवतनीय है, जो हमेशा वहाँ रहेगा - साझी जीवन और जीवनमू य।
पा रवा रक मशन टे टमट लखकर आप प रवार के स चे आधार को अ भ दे ते ह।
मशन टे टमट प रवार का सं वधान बन जाता है। यह मू यांकन करने और नणय लेने का मानदं ड या मानक
बन जाता है। यह प रवार को नरंतरता, एकता और दशा दे ता है। जब गत जीवनमू य प रवार के
जीवनमू य के तालमेल म होते ह, तो सभी सद य एक साथ मलकर साझे उद्दे य के लये काम करते ह, ज ह
गहराई से महसूस कया जाता है।
एक बार फर, या उतनी ही मह वपूण है जतना क ॉड ट। मशन टे टमट लखने और उसे सुधारने क
या प रवार को सुधारने का मुख तरीक़ा बन जाती है। मशन टे टमट तैयार करने के लये इकट् ठे काम करना
इसके अनुसार जीने क पीसी मता दान करता है।
आप प रवार के हर सद य से राय लेकर मशन टे टमट का पहला ा ट तैयार करते ह। फर आप इस ा ट
पर उनके वचार पूछते ह, इसम संशोधन करते ह और इसम सभी पा रवा रक सद य के श द का योग करते ह।
ऐसा करते समय आप प रवार को उन वषय पर चचा तथा सं ेषण करने के लये े रत करते ह, जो सचमुच
मह वपूण ह। सव े मशन टे टमट तब लखे जाते ह, जब प रवार के सद य साझे स मान क भावना के साथ
एक त होकर अपने अलग-अलग वचार करते ह और फर मलकर काम करते ह। प रवार के सभी सद य
एक साथ काम करके उससे बड़ी रचना तैयार करते ह, जो एक अकेले नह कर सकता था। कोण का
व तार करने, मह व या दशा बदलने, सुधारने या घसे- पटे वा यांश को नया अथ दे ने के लये प रवार को समय-
समय पर समी ा करना चा हये। इस समी ा से प रवार साझे जीवनमू य तथा उद्दे य म एकजुट होता है।
यह मशन टे टमट चतन का, प रवार के संचालन का मूल आधार बन जाता है। जब सम याएँ और संकट
आते ह, तो यह सं वधान लोग को याद दलाता है क कौन सी चीज़ सचमुच मह वपूण ह। यह सं वधान सही
स ांत के आधार पर सम या सुलझाने और दशा दखाने का काम भी करता है।
हमारे घर म हमने अपना मशन टे टमट अपने पा रवा रक क क द वार पर टाँग दया है, ता क हम इसे
दे ख सक और हर दन ख़ुद क नगरानी कर सक।
जब हम अपने घर म ेम, सु व था, उ रदायी आ म नभरता, सहयोग, उपयो गता, आव यकताय पूरी
करना, यो यताय वक सत करना, एक- सरे क यो यता म च लेना और सर क सेवा करना जैसे वा यांश
पढ़ते ह, तो इससे हम यह जानने का पैमाना मलता है क हम उन े म कैसा दशन कर रहे ह, जो प रवार के
प म हमारे लये सबसे मह वपूण ह।
जब हम अपने प रवार के ल य और ग त व धय क योजना बनाते ह, तो हम कहते ह, “इन स ांत क
रोशनी म वे कौन से ल य ह, जन पर हम काम करने वाले ह? अपने ल य को ा त करने और इन जीवनमू य
को साकार करने के लये हमारी काय-योजनाय या ह?”
हम इस मशन टे टमट क अ सर समी ा करते ह और हर साल दो बार अपने ल य और काम पर
पुन वचार करते ह। हम यह समी ा सतंबर और जून म करते ह, कूल के शु और ख़ म होते समय। इस समी ा
का उद्दे य वतमान थ त का पता लगाना, इसे सुधारना और इसे सश बनाना होता है। इससे हमारा
नवीनीकरण होता है और हम उन स ांत के त नये सरे से न ावान बनते ह, जनम हम वश्वास करते ह और
जनका हम समथन करते ह।

संगठना मक मशन टे टमट


मशन टे टमट् स सफल संगठन के लये भी अ नवाय ह। संगठन के साथ काम करते ए जन चीज़ पर म
सबसे यादा ज़ोर दे ता ,ँ उनम भावकारी मशन टे टमट् स तैयार करने म संगठन क मदद करना शा मल है।
और भावकारी बनने के लये यह टे टमट संगठन क नचली क़तार से आना चा हये। सभी कमचा रय को इसम
साथक प से ह सा लेना चा हये। इसम सफ़ शीष थ रणनी त योजनाकार ही शा मल नह होते, ब क संगठन
का हर शा मल होता है। एक बार फर, सबके शा मल होने क या लखे ए मशन टे टमट जतनी ही
मह वपूण है और इसके योग क कुंजी है।
जब भी म आई.बी.एम. म जाता ँ और वहाँ पर श ण क या दे खता ँ, तो मेरी ज ासा हमेशा जाग
जाती है। म यह दे खता ँ क इस संगठन के लीडस कसी समूह को संबो धत करते ए बार-बार कहते ह क
आई.बी.एम. तीन ल य पर टका है: इंसान क ग रमा, उ कृ ता और सेवा।
ये चीज़ आई.बी.एम. के वश्वास-तं का त न ध व करती ह। बाक़ हर चीज़ बदल जायेगी, परंतु ये तीन
चीज़ नह बदलगी। लगभग परासरण (osmosis) क तरह यह वश्वास-तं भी पूरे संगठन म फैल गया है और
यह वहाँ पर काम करने वाले हर को साझे जीवनमू य तथा गत सुर ा का ज़बद त आधार दान
करता है।

एक बार म यूयॉक म आई.बी.एम. कंपनी म कुछ लोग को श ण दे रहा था। यह एक छोटा समूह था,
जसम लगभग बीस लोग थे। उनम से एक बीमार पड़ गया। उसने कै लफ़ो नया म अपनी प नी को फ़ोन कया।
प नी च तत हो गई, य क उस बीमारी म उसे वशेष उपचार क आव यकता थी। श ण के लये ज़ मेदार
आई.बी.एम. के लोग ने उसे ब त अ छे अ पताल म ले जाने क व था क , जहाँ उस बीमारी के वशेष
डॉ टर थे। परंतु उ ह यह एहसास हो गया क उसक प नी को अब भी पूरी तस ली नह ई थी और वह सचमुच
यही चाहती थी क उसका प त घर लौट आये, जहाँ उनका गत डॉ टर सम या को सुलझा सके।
इस लये उ ह ने उस को घर भेजने का फ़ैसला कया। उसे कार से हवाई अड◌्डे प ँचाने म काफ़
समय लग जाता तथा ावसा यक उड़ान का इंतज़ार करने म तो और भी यादा व त लगता, इस लये उ ह ने एक
हे लकॉ टर बुलवाया, जो उसे हवाई अ े तक ले गया। फर उ ह ने सफ़ इस को कै लफ़ो नया भेजने के लये
एक वशेष हवाई जहाज़ कराये पर लया।
म नह जानता क इसम कतना ख़च आया। मेरा अनुमान है क कई हज़ार डॉलर ख़च ए ह गे। परंतु
आई.बी.एम. इंसान क ग रमा म वश्वास करता है। यह कंपनी के मूल आधार म से एक है। उप थत लोग ने इस
घटना म आई.बी.एम. के वश्वास-तं क अ भ दे खी, इस लये उ ह कोई हैरानी नह ई। म ब त भा वत
आ।
एक और बार क बात है। मुझे एक वशेष होटल म 175 शॉ पग सटस के मैनेजर को श ण दे ना था। म
उस होटल क सेवा के तर को दे खकर हैरान रह गया। यह कोई दखावे क या ऊपरी चीज़ नह थी। सेवा हर तर
पर प प से दख रही थी, सहजता से और बना नगरानी के हो रही थी।
म उस होटल म दे र रात को प ँचा था। मने पूछा क या म स वस उपल ध है। रसे श न ट ने कहा, “नह
म. कवी, परंतु अगर आप चाह, तो म कचन म जाकर जो भी उपल ध होगा, सड वच या सलाद या जो आप चाह,
वह आपके लये ला सकता ँ।” उसका नज़ रया पूरी तरह मेरे आराम और भलाई क चता से भरा था। उसने आगे
कहा, “ या आप उस स मेलन क को दे खना चाहगे, जहाँ आपको श ण दे ना है? या आपके पास अपनी
ज़ रत का हर सामान है? म आपके लये या कर सकता ? ँ म यहाँ आपक सेवा के लये ।ँ ”
वहाँ पर नगरानी करने वाला कोई सुपरवाइज़र नह था। यह पूरी तरह सम पत था।
अगले दन श ण दे ते समय मने पाया क मुझे कुछ रंगीन पेन क ज़ रत थी, जो मेरे पास नह थे। बीच
म थोड़ी दे र का वराम होने पर म बाहर हॉल म गया। वहाँ पर मुझे एक बेलबॉय दखा, जो कसी सरे काम से जा
रहा था। मने उससे कहा, “मेरी एक सम या है। म यहाँ पर मैनेजर के समूह को श ण दे रहा ँ और मुझे कुछ
रंगीन पेन चा हये। मेरे पास ब त कम समय है।”
वह पलटकर घूमा और त काल सावधान क मु ा म आ गया। उसने टै ग पर मेरा नाम पढ़ते ए कहा, “ म.
कवी, म आपक सम या सुलझा ँ गा।”
उसने यह नह कहा, “म नह जानता क कहाँ जाना है” या “अ छा, जाइये और रसे श न ट से बोल
द जये।” उसने इसक ज़ मेदारी लेते ए इसे सुलझा दया। और उसने मुझे ऐसा महसूस कराया, जैसे यह करना
उसके लये गौरव क बात हो।
बाद म, म साइड लॉबी म रखी कला मक व तु को दे ख रहा था। होटल का एक कमचारी मेरे पास आकर
बोला, “ म. कवी, या आप वह पु तक दे खना चाहगे, जसम इस होटल म रखी सभी कला मक व तु का वणन
है?” मेरी आव यकता को कतनी अ छ तरह से भाँप लया गया था! सेवा पर क त कतना बेहतरीन नज़ रया
था!
इसके बाद मने दे खा क एक कमचारी सीढ़ पर चढ़कर लॉबी क खड़ कयाँ साफ़ कर रहा था। वहाँ से उसे
दखा क एक म हला को बगीचे म वॉकर के साथ थोड़ी परेशानी हो रही थी। वैसे वह म हला गरी नह थी और उस
म हला के साथ कई लोग थे, परंतु वह कमचारी सीढ़ से नीचे उतरा, बाहर गया और उस म हला क मदद करके
वह उसे लॉबी म लाया। उसने यह सु न त कया क उस म हला क अ छ दे खभाल हो। फर वह वापस गया
और खड़ कयाँ साफ़ करने के अपने काम म जुट गया।
म यह पता लगाना चाहता था क इस संगठन ने ऐसी सं कृ त कस तरह वक सत क थी, जसक वजह से
यहाँ के कमचारी इतने समपण भाव से ाहक क सेवा करने के लये े रत ए। मने होटल के हाउसक पस, वेटर ,
बेलबॉय आ द से बात क । इस बातचीत म मने पाया क यह नज़ रया दरअसल वहाँ के सभी कमचा रय के
दलो दमाग़ म रचा-बसा था।
म पछले दरवाज़े से कचन म गया, जहाँ मने क य जीवनमू य दे खा: “ बना समझौते के गत सेवा।”
अंततः मने मैनेजर के पास जाकर कहा, “मेरा काम सश ट म च र तथा सं कृ त वक सत करने म संगठन क
मदद करना है। आपके यहाँ के प रवेश को दे खकर म हैरान ँ।”
उसने पूछा, “ या आप इसक असली कुंजी जानना चाहते ह?” यह कहते ए उसने होटल क चेन के मशन
टे टमट को बाहर नकाला।
उसे पढ़ने के बाद मने वीकार कया, “यह मशन टे टमट भा वत करता है। परंतु म ब त सी कंप नय को
जानता ,ँ जनके मशन टे टमट ब त भा वत करते ह।”
उसने पूछा, “ या आप सफ़ इस होटल के मशन टे टमट को दे खना चाहगे?”
“आपका मतलब है, आपने सफ़ इस होटल के लये एक अलग टे टमट तैयार कया है?”
“हाँ।”
“जो होटल चेन के टे टमट से भ है?”
“हाँ। यह मशन टे टमट उसके सामंज य म है, परंतु हमने इसे अपनी थ त, अपने प रवेश और अपने समय
के अनुकूल ढाला है।” उसने मेरी तरफ़ एक और काग़ज़ बढ़ाया।
मने पूछा, “इस मशन टे टमट को कसने तैयार कया?”
उसने जवाब दया, “हर कमचारी ने।”
“हर कमचारी ने? सचमुच हर कमचारी ने?”
“हाँ।”
“हाउसक पस ने?”
“हाँ।”
“वेटस ने?”
“हाँ।”
“डे क लक ने?”
“हाँ। या आप उन लोग ारा लखे मशन टे टमट को दे खना चाहगे, ज ह ने कल रात को आपका वागत
कया था?” उसने एक मशन टे टमट बाहर नकाला, जसे उन लोग ने ख़ुद लखा था। यह मशन टे टमट बाक़
मशन टे ट्मट् स के साथ गुँथा आ था। हर तर पर हर शा मल था।
उस होटल का मशन टे टमट एक बड़े प हये क धुरी था। यह कमचा रय के व श समूह के सु वचा रत
और वशेष तापूण मशन टे टमट् स से उ प आ था। होटल के मशन टे टमट का योग हर नणय के मानदं ड
के प म कया जाता था। यह प करता था क वे लोग कन जीवनमू य के आधार पर काम करते ह - वे ाहक
के साथ कस तरह वहार करते ह, वे एक- सरे के साथ कस तरह वहार करते ह। यह मैनेजर और लीडस क
शैली को भा वत करता था। यह पुर कार के तं को भा वत करता था। यह वहाँ नौकरी पर रखे जाने वाले लोग
के कार को भा वत करता था। यह नये कमचा रय को श त तथा वक सत करने के तरीक़े को भा वत
करता था। उस संगठन का हर पहलू अ नवायतः उस मशन टे टमट क धुरी का प रणाम था।
म बाद म उसी चेन के एक अ य होटल म गया। वहाँ ठहरने के बाद मने पहला काम यह कया क वहाँ का
मशन टे टमट दे खने के लये माँगा, जो उ ह ने मुझे तुरंत दे दया। इस होटल म मने “ बना समझौते के गत
सेवा” के ल य को यादा अ छ तरह से समझा।
तीन दन क अव ध म मने हर संभा वत थ त दे खी, जहाँ सेवा क आव यकता थी। मने हमेशा पाया क
सेवा अ त उ म और ब त भा वत करने वाले तरीक़े से द गई। परंतु यह हमेशा ब त गत भी थी। उदाहरण
के तौर पर, व मग पूल के पास मने एक कमचारी से पूछा क पीने का पानी कहाँ मलेगा। वह मुझे वाटर कूलर के
पास तक ले गया।
बहरहाल, मुझे जस चीज़ ने सबसे अ धक भा वत कया, वह यह थी क कमचारी बॉस को अपनी ग़लती
ख़ुद बता दे ते थे। हमने म स वस को ऑडर दया। हम बताया गया क ऑडर हमारे कमरे म कतने समय बाद
प ँचेगा। जब म स वस का वेटर हमारे कमरे क तरफ़ आ रहा था, तो रा ते म उसके हाथ से हॉट चॉकलेट फैल
गई। इस वजह से उसे वापस जाना पड़ा, े का माल बदलना पड़ा तथा बारा हॉट चॉकलेट रखना पड़ी। इन सब
काम म उसे कुछ अ त र समय लग गया। म स वस म लगभग पं ह मनट क दे र हो गई, जो दरअसल हमारे
लये ख़ास मायने नह रखती थी।
परंतु अगली सुबह म स वस के मैनेजर ने फ़ोन करके हमसे माफ़ माँगी। उसने हमारे सामने यह ताव
रखा क वह हम होटल क तरफ़ से मु त ना ता दे ना चाहता है। हम अपनी इ छानुसार या तो बफ़े ेकफ़ा ट ले
सकते ह या फर म स वस से ना ता बुलवा सकते ह। वह कसी तरह हम ई असु वधा क भरपाई करना चाहता
था।
जब कोई कमचारी मैनेजर को अपनी ग़लती ख़ुद बताता है, ता क ाहक या अ त थ क यादा अ छ
दे खभाल क जा सके, तो इससे उस संगठन क सं कृ त के बारे म या जानकारी मलती है?
जैसा मने पहले वाले होटल के मैनेजर को बताया था, म ऐसी ब त सी कंप नय को जानता ँ, जनके मशन
टे टमट भा वत करते ह। परंतु भावका रता म वा त वक और ब त बड़ा अंतर इस बात से पड़ता है क मशन
टे टमट कसने तैयार कया है। या इस मशन टे टमट को संगठन के हर ने तैयार कया है? या फर इसे
आलीशान कमर म बैठने वाले कुछ शीष थ ए ज़ी यू ट ज़ ने तैयार कया है?

संगठन म, जनम प रवार भी शा मल है, एक मूलभूत सम या यह आती है क लोग उन बात के त


न ावान नह होते, ज ह उनके जीवन म सरे लोग तय करते ह। वे उनसे सहमत ही नह होते ह।
संगठन के साथ काम करते समय मने ब त बार ऐसे कमचारी दे खे ह, जनके ल य कंपनी के ल य से पूरी
तरह अलग होते ह। मने आम तौर पर यह भी दे खा है क पुर कार का तं भी घो षत जीवनमू य के तं के
अनु प नह होता।
जब म उन कंप नय के साथ काम करना शु करता ,ँ ज ह ने कसी तरह का मशन टे टमट पहले ही
तैयार कर लया है, तो म उनसे पूछता ,ँ “आपक कंपनी के कतने लोग जानते ह क कंपनी का कोई मशन
टे टमट है? आपम से कतने लोग जानते ह क उसम या लखा है? इसे तैयार करने म कतने लोग शा मल थे?
आपम से कतने लोग सचमुच इस पर अमल करते ह और नणय लेने के मानदं ड के प म इसका योग करते
ह?”
बना सहभागी बने कोई तब ता नह होती। इसे अ छ तरह जान ल, इस पर नशान लगा ल, इस पर
गोला लगा ल, इसे रेखां कत कर ल। सहभा गता नह , तो तब ता नह ।
शु आती थ तय म यानी जब कोई नया कसी संगठन म शा मल होता है या जब प रवार म कोई
ब चा छोटा होता है, तो आप उसे आसानी से कोई ल य दे सकते ह और वह इसे वीकार कर सकता है, ख़ासकर
तब जब संबंध, अनुकूलन और श ण अ छा हो।
परंतु जब लोग अ धक प रप व हो जाते ह और उनका अपना जीवन एक अलग अथ रखने लगता है, तो वे
सहभा गता चाहते ह - मह वपूण सहभा गता। और अगर वे सहभागी या शा मल नह ह, तो वे उस मशन टे टमट
को वीकार नह करते ह। फर आपके सामने ेरणा-संबंधी एक मह वपूण सम या आ जाती है, जसे सोच के उसी
तर पर नह सुलझाया जा सकता, जस पर इसे पैदा कया गया था।
इसी लये संगठन का मशन टे टमट तैयार करने म समय, धैय, सहभा गता, कुशलता और परानुभू त क
आव यकता होती है। एक बार फर, यह कोई वक फ़ स या तुरत-फुरत होने वाला काम नह है। साझी
जीवन और जीवनमू य के अनु प संगठन के तं , ढाँचे और मैनेजमट शैली को संयो जत करने म समय,
तब ता, सही स ांत , साहस और अखंडता क आव यकता होती है। यह सही स ांत पर आधा रत है और
यह कारगर है।
कसी संगठन का मशन टे टमट - जो संगठन के हर क गहरी साझी जीवन और जीवनमू य को
सचमुच दशाता हो - बल एकता और ज़बद त तब ता उ प करता है। यह लोग के दलो दमाग़ म संदभ का
एक मानक तैयार करता है, मानदं ड या दशा नदश का एक समूह तैयार करता है, जसके ारा वे वयं को
नयं त करते ह। उ ह कसी सरे क आव यकता नह होती क वह उ ह दशा दे , नयं त करे, आलोचना करे या
घ टया नशानेबाज़ी करे। वे संगठन के अप रवतनीय क को वीकार कर लेते ह।

अमल म लाने के सुझाव:


1. इस अ याय के ारंभ म अं ये क का प नक त वीर बनाते समय आपके मन म जो वचार आये ह , उ ह
लखने का समय नकाल। अपने वचार को सु व थत करने के लये आप चाह तो नीचे दये गये चाट का
योग कर सकते ह।
2. कुछ समय नकाल और अपनी भू मका को लख ल, जैसी वे आपको दखती ह। या आप अपने जीवन
के दपण म दखने वाली छ व से संतु ह?
3. अपनी दै नक ग त व धय से ख़ुद को पूरी तरह से अलग करके अपने गत मशन टे टमट पर काम करने
का समय नधा रत कर।
4. प र श अ म दये चाट को दे ख, जसम व भ क को दशाया गया है। उन सब क पर गोला लगा ल,
जनम आपको अपनी छ व दखती हो। या वे आपके जीवन म वहार का आधार तैयार करते ह? या
आप अपने वश्लेषण के प रणाम के साथ आरामदे ह महसूस करते ह?
5. उन ट प णय , उ रण और वचार का सं ह शु कर, जनका योग आप अपने गत मशन टे टमट
को लखने म संसाधन के प म करना चाहते ह ।
6. कसी ऐसी थ त को पहचान, जसका सामना आप नकट भ व य म करने वाले ह और इस पर मान सक
रचना के स ांत का योग कर। आप जो प रणाम चाहते ह , उ ह लख ल और यह भी क कौन से क़दम
उठाने से आपको वे प रणाम मलगे।
7. सरी आदत के स ांत को अपने प रवार या काय-समूह को बताय और सुझाव द क एक साथ मलकर
आप लोग प रवार या समूह का मशन टे टमट तैयार करने क या शु कर सकते ह।
तीसरी आदत
पहली चीज़ पहले रख
क् तगत मैनेजमट के स ांत

सबसे अ धक मह वपूण चीज़ सबसे कम मह वपूण चीज़ के रहमोकरम पर कभी


नह छोड़ी जाना चा हये।
● गेटे

या आप एक पल ठहरकर नीचे दये दो सवाल का सं


समय ये जवाब आपके लये मह वपूण ह गे।
त जवाब लखगे? तीसरी आदत पर काम शु करते

पहला सवाल: आप कौन सा एक काम कर सकते ह (जो आप इस समय नह कर रहे ह), जसे अगर आप
नय मत प से कर, तो वह आपके क् तगत जीवन पर ब त सकारा मक फ़क़ डाल सकता है?
सरा सवाल: आपके बज़नेस या ावसा यक जीवन म कौन सा एक काम इस तरह के प रणाम उ पन्न
कर सकता है?
हम इन सवाल के जवाब पर बाद म चचा करगे। परंतु आइये, पहले तीसरी आदत को सही पृ भू म म
रखकर दे खते ह।

तीसरी आदत पहली तथा सरी आदत का क् तगत फल और ावहा रक प रणाम है।
पहली आदत कहती है, “आप रच यता ह। आप ज़ मेदार ह।” यह क पना, ववेक, आ म नभर इ छा और
ख़ासकर आ म-जाग कता क चार अनूठ मानवीय तभा पर आधा रत है। पहली आदत आपको यह कहने
क शक् त दे ती है, “मेरे बचपन या सामा जक दपण से मुझे जो ो ाम मला है, वह दोषपूण है। म इसक
अ भावकारी ट को पसंद नह करता ।ँ म इसे बदल सकता ँ।”
सरी आदत थम या मान सक रचना है। यह क पना पर आधा रत है यानी का प नक त वीर दे खने क
यो यता, संभावना दे खने क मता, अपने म त क म वह रचने क मता, जसे हम वतमान म अपनी आँख से
नह दे ख सकते। यह ववेक पर भी आधा रत है यानी अपने अनूठेपन तथा उन क् तगत और नै तक दशा नदश
को पहचानने क यो यता, जनके अंतगत हम इसका सबसे सुखद प से योग कर सकते ह। यह हमारे मूलभूत
पैरेडाइ स तथा जीवनमू य से गहन संपक है, और उस का प नक त वीर से भी, जो हम बन सकते ह।
तीसरी आदत है तीय रचना यानी भौ तक रचना। यह पहली तथा सरी आदत का प रणाम,
वा त वक करण और वाभा वक उ प है। यह स ांत-क त बनने क दशा म आ म नभर इ छा
(independent will) का योग है। इसका मतलब है इसे हर दन, हर पल करना।
पहली और सरी आदत तीसरी आदत के लये पूरी तरह अ नवाय ह। वे तीसरी आदत क अ नवाय शत ह।
अपने ोए टव वभाव को पहचाने बना और इसे वक सत कये बना आप स ांत-क त नह बन सकते। आप
तब तक स ांत-क त नह बन सकते, जब तक क आप अपने पैरेडाइ स के त जाग क न ह और यह न
समझ ल क उ ह कस तरह बदला जा सकता है तथा स ांत के सामंज य म लाया जा सकता है। आप तब तक
स ांत-क त नह बन सकते, जब तक क आपके पास यह जीवन या फ़ोकस न हो क आप कौन सा अनूठा
योगदान दे सकते ह।
परंतु अगर आपके पास यह आधार या न व है, तो आप तीसरी आदत को अपनाकर यानी भावकारी
क् तगत मैनेजमट का अ यास करके हर दन, हर पल स ांत-क त बन सकते ह।
याद रख, मैनेजमट ( बंधन) लीडर शप (नेतृ व) से बलकुल अलग है। लीडर शप बु नयाद तौर पर दाय
म त क क एक अ यंत शक् तशाली ग त व ध है। एक तरह से यह कला अ धक है। यह जीवनदशन पर आधा रत
होती है। जब आप क् तगत लीडर शप के मु का सामना कर रहे ह , तो आपको जीवन के आधारभूत सवाल
पूछना पड़ते ह।
परंतु एक बार जब आप उन मु से नबट ल और उ ह सुलझा ल, तो इसके बाद आपको ख़ुद का भावकारी
ढं ग से बंधन (Manage) करना होता है, ता क आप ऐसा जीवन तैयार कर सक, जो आपके जवाब के तालमेल
म हो। अगर आप “सही जंगल” म ही न ह , तो अ छे बंधन से यादा फ़क़ नह पड़ता। परंतु अगर आप सही
जंगल म ह, तो इससे ब त फ़क़ पड़ता है। दरअसल, अ छ तरह बंधन करने क यो यता तीय रचना क
गुणव ा को, यहाँ तक क इसके अ त व को भी नधा रत करती है। मैनेजमट भावकारी आ म-अनुशासन का
बाय म त क का पहलू है, जसम चीज़ को टु कड़ म तोड़ना, वश्लेषण करना, म म रखना, व श उपयोग
और समयब ता शा मल ह। क् तगत भावका रता का मेरा सू है: बाय से बंधन करो, दाय से नेतृ व करो।

आ म नभर इ छा क शक् त
आ म-जाग कता, क पना और ववेक के अलावा आ म नभर इ छा वह चौथी मानवीय तभा है, जो
भावकारी आ म- बंधन को सचमुच संभव बनाती है। आ म नभर इ छा नणय लेने और वक प चुनने तथा
उनके अनु प काय करने क यो यता है। यह ख़ुद पर काय करवाने के बजाय काय करने क मता है। यह
ोए टव तरीक़े से उस ो ाम पर काय करने क मता है, जसे हमने अ य तीन तभा क मदद से तैयार
कया है।
मानवीय इ छा ब त अद्भुत चीज़ है। यह अ वश्वसनीय बाधा को परा त करके बार-बार वजयी ई है।
इस नया म हेलन केलर जैसे ब त से लोग आ म नभर इ छा क शक् त और मह व का अद्भुत माण दे ते ह।
परंतु जब हम भावकारी आ म- बंधन के संदभ म इस तभा क जाँच करते ह, तो हम यह एहसास होता
है क आम तौर पर थायी सफलता उस यास से नह मलती, जो नाटक य हो, जो लोग को दखे, जसे जीवन म
एक बार या बना कसी क सहायता के कया जाये। सशक् तकरण यह सीखने से आता है क जन नणय को
हम हर रोज़ लेते ह, उ ह लेने म इस महान तभा का योग कस तरह कया जाये।
हमने अपने रोज़मरा के जीवन म आ म नभर इ छा कस हद तक वक सत क है, इसे हमारी क् तगत
अखंडता ारा मापा जाता है। अखंडता मूल प से वह जीवनमू य है, जसे हम ख़ुद पर लागू करते ह। यह ख़ुद से
वायदे करने और उ ह पूरा करने क यो यता है, “यह उसी अनु प जीना है, जो हम कहते ह।” यह वयं का
स मान है, च र -आधा रत नी तशा का मूल ह सा है और ोए टव वकास का सार है।
भावकारी मैनेजमट का अथ है पहली चीज़ को पहले रखना। जहाँ लीडर शप यह तय करती है क “पहली
चीज़” या ह, वह मैनेजमट उ ह हर दन, हर पल पहले थान पर रखता है। मैनेजमट का अथ है अनुशासन,
नणय पर अमल करना।
अनुशासन (discipline) श द श य (disciple) श द से बना है - कसी जीवनदशन का श य, कसी
स ांत-समूह का श य, जीवनमू य के कसी समूह का श य, कसी मह वपूण उद्दे य का श य, कसी
असाधारण ल य या उस ल य का त न ध व करने वाले क् त का श य।
सरे श द म, अगर आप अपने भावकारी मैनेजर ह, तो आपका अनुशासन भीतर से आता है। यह आपक
आ म नभर इ छा का प रणाम है। आप अपने गहन जीवनमू य और उनके ोत के श य व समथक बन जाते ह।
और आपम इतनी इ छा तथा अखंडता होती है क आप अपनी भावना , भावावेग और मनः थ त को उन
जीवनमू य के अधीन रख।
मेरे य नबंध म से एक है ई.एम. े का “द कॉमन डनो मनेटर ऑफ़ स सेस” (सफलता का सामा य
सूचक)। उ ह ने अपना जीवन उस एक सूचक को खोजने म लगा दया, जो सभी सफल लोग म समान हो। उ ह ने
पाया क वह सूचक कड़ी मेहनत, अ छ क़ मत या कुशल मानवीय संबंध नह था, हालाँ क सफलता पाने म ये
सभी मह वपूण थे। बाक़ त व से ऊपर आने वाला सव च त व तीसरी आदत के सार को समा हत करता है -
पहली चीज़ को पहले थान पर रखना।
उनका न कष था, “सफल क् तय म ऐसे काम करने क आदत होती है, ज ह करना असफल क् त
पसंद नह करते। यह ज़ री नह है क सफल लोग को भी वह काम करना पसंद हो, परंतु उनक नापसंदगी उनके
ल य क शक् त के अधीन रहती है।”
अपनी नापसंदगी को अधीन रखने के लये एक ल य, एक मशन, सरी आदत के जीवनमू य तथा दशा के
प एहसास क आव यकता होती है। इसके अलावा, मन के भीतर एक बल “हाँ!” क आव यकता होती है,
जो बाक़ सभी चीज़ को “नह !” कहना संभव बनाती है। इसके लये आ म नभर इ छाशक् त क आव यकता भी
होती है, यानी जब आप कसी काम को नह करना चाहते ह, तब उस काम को करने क शक् त; उस ण के
आवेग या आकां ा के अनु प काय करने के बजाय अपने जीवनमू य के अनु प काय करने क शक् त। यह
आपक ोए टव थम रचना के अनु प अखंडता से काय करने क शक् त है।

टाइम मैनेजमट क चार पी ढ़याँ


तीसरी आदत म हम जीवन तथा टाइम मैनेजमट के े से जुड़े कई सवाल पर वचार कर रहे ह। इस रोचक
े के आजीवन व ाथ के प म क् तगत प से मेरा मानना है क टाइम मैनेजमट के े म सव े चतन
का सार एक वा य म समा हत कया जा सकता है: अपने काम को ाथ मकता के आधार पर व थत
(organize) कर और उस पर अमल कर। यह वा य टाइम मैनेजमट अवधारणा क तीन पी ढ़य के वकास का
त न ध व करता है। इसे सव े ढं ग से कैसे कया जाये, इसके ब त से उपाय बताये गये ह और इस वषय पर
ब त सी पु तक लखी गई ह।
मानवीय यास के कई अ य े के अनु प क् तगत मैनेजमट भी एक पैटन म वक सत आ है। मुख
वकासवाद आघात, ज ह ए वन टॉ लर लहर या वे ज़ (waves) क सं ा दे ते ह, मशः एक के बाद एक
आते ह, जनम से येक एक मह वपूण नया आयाम जोड़ता है। उदाहरण के लये, सामा जक वकास म कृ ष
ां त के बाद औ ो गक ां त ई, जसके बाद सूचना ां त ई। हर मक लहर ने सामा जक तथा क् तगत
ग त के वाह क रचना क ।
इसी तरह, टाइम मैनेजमट के े म भी हर पीढ़ अपने पहले वाली पीढ़ से आगे ग त करती है - हर पीढ़
हम अपने जीवन का अ धक नयं ण लेने क ओर आगे बढ़ाती है। नोट् स और कायसूची (checklist) पहली वेव
या पीढ़ के सूचक थे। यह हमारे समय तथा ऊजा पर पड़ने वाले व भन्न दबाव को पहचानने तथा उनसे नबटने
क को शश थी।
सरी पीढ़ को कैलडर तथा अपॉइंटमट बु स से पहचाना जा सकता है। यह वेव आगे क ओर दे खकर
भ व य म होने वाली घटना और काम का समय नधा रत करने क को शश करती है।
तीसरी पीढ़ वतमान टाइम मैनेजमट े को दशाती है। यह पुरानी पी ढ़य के वचार म ाथ मकता का
मह वपूण वचार जोड़ती है यानी इसम जीवनमू य प कये जाते ह और उनके आधार पर काम के मह व क
तुलना क जाती है। इसके अलावा, यह पीढ़ ल य नधा रत करने पर यान क त करती है - व श द घकालीन,
म यमकालीन और अ पकालीन ल य। यह पीढ़ अपने जीवनमू य के सामंज य म इन ल य क ा त क दशा
म अपना समय और ऊजा लगाने पर ज़ोर दे ती है। इसम दै नक योजना बनाने क अवधारणा भी शा मल है,
जसका अथ है क आपके ारा नधा रत सबसे मह वपूण ल य और ग त व धय को हा सल करने के लये
आपके पास एक प तथा व श योजना होना चा हये।
हालाँ क तीसरी पीढ़ का योगदान मह वपूण है, परंतु लोग को यह एहसास होने लगा है क “काय-कुशल”
समय- नधारण और समय का नयं ण ायः वपरीत प रणाम दे ता है। जब फ़ोकस काय-कुशलता (efficiency)
पर होता है तो ऐसी अपे ाय जाग जाती ह, जो अ छे संबंध वक सत करने या मानवीय आव यकता को पूरा
करने का अवसर नह दे त । इस वजह से रोज़मरा के जीवन के सहज पल का आनंद उठाने का अवसर नह मल
पाता है।
प रणाम व प, ब त से लोग ने टाइम मैनेजमट काय म और योजना से मुँह मोड़ लया है, य क
उनक वजह से वे ब त पूव- नयो जत और तबं धत अनुभव करते ह। वे “टब के पानी के साथ ब चे को भी
बाहर फक दे ते ह” (वे मू यहीन व तु के साथ मू यवान व तु को भी छोड़ दे ते ह) और एक बार फर पहली
या सरी पीढ़ क तकनीक क ओर वापस लौट जाते ह, ता क संबंध , सहजता तथा जीवन क गुणव ा को
बचाकर रखा जा सके।
परंतु एक चौथी पीढ़ का उदय हो रहा है, जसक कृ त बलकुल ही अलग है। यह मानती है क दरअसल
“टाइम मैनेजमट” वा यांश ही ग़लत है - चुनौती समय का बंधन करना नह है, ब क ख़ुद का बंधन करना है।
संतु अपे ा म भी है और हा सल करने म भी। और अपे ा (तथा संतु ) हमारे भाव के वृ म थत है।
चौथी पीढ़ क अपे ाय चीज़ और समय पर अपना यान क त नह करती ह। इसके बजाय वे संबंध क
र ा करने, उ ह गाढ़ बनाने तथा प रणाम हा सल करने पर अपना यान क त करती ह। यानी सं पे म वे पी/
पीसी संतुलन को क़ायम रखने पर अपना यान क त करती ह।

वा ै ट II
मैनेजमट क चौथी पीढ़ का मूलभूत फ़ोकस अगले पेज पर दये गये टाइम मैनेजमट के मै स म दशाया
जा सकता है। मूलतः हम इन चार तरीक़ से अपना समय बताते ह।
जैसा आप दे ख सकते ह, यहाँ कसी ग त व ध को प रभा षत करने वाले दो त व ह: अ याव यक और
मह वपूण। अ याव यक का अथ है इसक तरफ़ त काल यान दे ने क ज़ रत है। यह “अभी करो” वाला काम
है! अ याव यक चीज़ हमसे त काल काम करवाती ह। फ़ोन क बजती ई घंट अ याव यक है। अ धकांश लोग
इस वचार को बदा त ही नह कर सकते क फ़ोन क घंट बजती रहने द जाये।
हो सकता है आपने कसी साम ी को तैयार करने म घंट लगाये ह और आप अ छ तरह तैयार होकर कसी
ख़ास मुददे् पर चचा के लये कसी के ऑ फ़स म गये ह । मान ली जये, जब आप वहाँ बैठे ह , तभी फ़ोन क घंट
बजने लगे, तो आम तौर पर यह आपक क् तगत चचा से पहले थान ले लेगी।
अगर आप कसी को फ़ोन कर, तो यादातर लोग यह नह कह पाते ह, “म आपको पं ह मनट बाद फ़ोन
करता ँ।” परंतु यही लोग शायद आपको ऑ फ़स म कम से कम उतने लंबे समय तक इंतज़ार करवायगे, जब वे
कसी सरे के साथ टे लीफ़ोन पर चचा कर रहे ह गे।

टाइम मैनेजमट मै स
अ याव यक मामले आम तौर पर साफ़ नज़र आते ह। वे हम पर दबाव डालते ह। वे काम करवाने पर ज़ोर
दे ते ह। अ सर सरे लोग भी इन काम को पसंद करते ह। अ याव यक काम आम तौर पर हमारे ठ क सामने होते
ह। और अ सर वे आनंददायक, आसान और चकर होते ह। परंतु ायः वे मह वहीन भी होते ह!
सरी ओर, मह व का संबंध प रणाम से है। अगर कोई चीज़ मह वपूण है, तो वह आपके मशन, आपके
जीवनमू य और आपके उ च ाथ मकता के ल य के त योगदान दे ती है।
हम अ याव यक मामल पर त काल त या करते ह। जो मामले मह वपूण तो होते ह, परंतु अ याव यक
नह होते, उनके लये अ धक पहल और ोए ट वट क आव यकता होती है। अवसर को पकड़ने के लये और
चीज़ को घ टत करवाने के लये हम काय करना होगा। अगर हम सरी आदत पर अमल नह करगे, अगर हमारे
पास यह प वचार नह होगा क कौन सी चीज़ मह वपूण है या हम अपने जीवन म या प रणाम चाहते ह, तो
हम आसानी से भटककर अ याव यक मामल पर त या करते रहगे।
पल भर के लये टाइम मैनेजमट मै स के चार वा ै ट् स या ह स को दे ख: वा ै ट I अ याव यक भी है
और मह वपूण भी। इसका संबंध उन मह वपूण प रणाम से है, जनक तरफ़ तुरंत यान दये जाने क ज़ रत है।
आम तौर पर हम वा ै ट I क ग त व धय को “संकट” या “सम याएँ” कहते ह। हम सबके जीवन म वा ै ट I
के कई काम होते ह। परंतु वा ै ट I ब त से लोग को पूरी तरह अपने म डु बा लेता है। ऐसे लोग संकट बंधक,
सम या क मान सकता वाले व समय सीमा से संचा लत ो ूसर बनकर रह जाते ह।
जब आप अपना फ़ोकस वा ै ट I पर रखते ह, तो यह और बड़ा होता जाता है। एक समय ऐसा आता है,
जब यह आप पर पूरी तरह हावी हो जाता है। यह समु लहर क तरह है। एक बड़ी सम या आती है और आपको
नीचे गरा दे ती है। आप संघष करके उठते ह, परंतु तभी सरी लहर आ जाती है, जो आपको तेज़ आवाज़ के साथ
बारा नीचे गरा दे ती है।
कुछ लोग अपने जीवन म हर दन सम या से टकराकर गरते रहते ह। उनके लये इकलौती राहत यह होती
है क वे वा ै ट IV क मह वपूण नह , अ याव यक नह ग त व धय क ओर पलायन कर। इस लये उनके पूरे
मै स को दे खने पर आप पायगे क उनका 90 तशत समय वा ै ट I म बीतता है और बचे ए 10 तशत
समय का अ धकांश ह सा वा ै ट IV म, जब क वे वा ै ट II और वा ै ट III क तरफ़ नाम मा का ही
यान दे ते ह। संकट- बंधन क नी त से अपने जीवन का बंधन करने वाले लोग इसी तरह जीते ह।

बाक़ लोग अपना ब त सा समय “अ याव यक, परंतु मह वपूण नह ” वाले वा ै ट III म बताते ह और
उ ह यह ग़लतफ़हमी रहती है क वे वा ै ट I म ह। वे अपना अ धकांश समय अ याव यक चीज़ पर त या
करने म लगाते ह और वे यह क पना कर लेते ह क वे मह वपूण भी ह गी। परंतु वा त वकता यह है क इन मामल
क अ याव यकता अ सर सर क ाथ मकता और अपे ा पर आधा रत होती है।
जो लोग अपना अ धकांश समय तीसरे और चौथे वा ै ट म बताते ह, वे मूलभूत प से ग़ैर- ज़ मेदारी का
जीवन जीते ह।

भावकारी लोग तीसरे और चौथे वा ै ट से बाहर रहते ह, य क भले ही वे अ याव यक ह या न ह , वे


मह वपूण नह ह। सरे वा ै ट म अ धक समय बताकर वे पहले वा ै ट म लगने वाले समय को भी कम कर
दे ते ह।
सरा वा ै ट भावकारी क् तगत मैनेजमट का दय है। यह उन चीज़ से संबं धत है, जो अ याव यक
तो नह ह, परंतु मह वपूण ह। इसका संबंध र ते बनाने, क् तगत मशन टे टमट लखने, द घकालीन योजना
बनाने और उस पर अमल करने, नवारक व था तथा तैयारी करने से है - वे सब चीज़ जो हम जानते ह क हम
करना चा हये, परंतु हम शायद ही कभी उ ह करने का समय नकाल पाते ह, य क वे अ याव यक नह होत ।

पीटर कर के श द को अलग तरह से कह, तो भावकारी क् त सम या क मान सकता वाले नह होते,


वे अवसर क मान सकता वाले होते ह। वे अवसर को पोषण दे ते ह और सम या को भूखा मार दे ते ह। वे
नवारक (preventive) तरीक़े से सोचते ह। उनके पास भी वा ै ट I के संकट तथा आपातकालीन थ तयाँ
होती ह, जनक तरफ़ उ ह त काल यान दे ने क ज़ रत होती है, परंतु इनक सं या तुलना मक प से कम होती
है। मह वपूण, परंतु अ याव यक नह वाले वा ै ट II क मतावधक उ च भाव वाली (high leverage)
ग त व धय पर यान क त करके वे अपने पी और पीसी को संतुलन म रखते ह।
टाइम मैनेजमट मै स को यान म रखते ए अब एक पल ठहर और सोच क आपने इस अ याय के ारंभ
म दये गये सवाल का या जवाब दया है। वे काम कस वा ै ट म आते ह? या वे मह वपूण ह? या वे
अ याव यक ह?
मेरा अनुमान है क वे संभवतः वा ै ट II म आते ह गे। वे प प से मह वपूण ह, ब त मह वपूण ह, परंतु
अ याव यक नह ह। और चूँ क वे अ याव यक नह ह, इस लये आप उ ह करते ही नह ह।
अब एक बार फर उन सवाल क कृ त क तरफ़ दे ख: आप अपने क् तगत और ावसा यक जीवन म
कौन सा एक काम कर सकते ह, जसे अगर आप नय मत प से कर, तो वह आपके जीवन पर ब त
सकारा मक फ़क़ डाल सकता है? वा ै ट II क ग त व धयाँ इस कार का भाव डाल सकती ह। इन
ग त व धय को करने से हमारी भावका रता चम कारी छलाँग (quantum leap) लगा सकती है।
मने एक शॉ पग सटर के मैनेजर के समूह से इसी तरह का सवाल पूछा। “अगर आपको अपने वसाय म
कोई एक काम करना हो, जसके बारे म आप जानते ह क उससे प रणाम पर ब त यादा सकारा मक भाव
पड़ेगा, तो वह कौन सा काम होगा?” एकमत से उनक त या थी क यह काम उनके ाहक यानी शॉ पग सटर
के कानदार से सहयोगपूण क् तगत संबंध बनाना होगा। यह वा ै ट II क ग त व ध है।
जब हमने यह वश्लेषण कया क उस समय वे इस ग त व ध म कतना समय लगा रहे थे, तो यह 5 तशत
से भी कम नकला। उनके पास इसके अ छे कारण थे - सम याएँ, जो उनके सामने एक के बाद एक चली आती
थ । उ ह रपोट् स तैयार करना पड़ती थ , मी ट स म भाग लेना पड़ता था, प का जवाब दे ना होता था, फ़ोन
करना पड़ते थे, लगातार वधान का सामना करना पड़ता था। वा ै ट I उनका सारा समय खा जाता था।
वे कान के मैनेजर के साथ ब त कम समय बता रहे थे और जो समय वे बताते भी थे, वह नकारा मक
ऊजा से भरा होता था। जब भी वे मैनेजर से मलने जाते थे, तो उसका इकलौता कारण उनके बीच के अनुबंध को
स ती से लागू करना होता था - कराया वसूलना या व ापन या कसी अ य ऐसी बात पर वचार करना, जो
शॉ पग सटर के दशा नदश के अनु प नह हो रही ह या इसी तरह क कोई और बात।
संपन्नता क बात तो रहने ही द, कान के मा लक बचे रहने के लये संघष कर रहे थे। उनके सामने
कमचा रय क सम याएँ थ , लागत क सम या थी, इ वे (सामान-सूची) क सम या थी और भी ब त सारी
सम याएँ थ । उनम से अ धकांश के पास मैनेजमट का ज़रा भी श ण नह था। कुछ सामा य प से अ छे
ापारी थे, परंतु उ ह मदद क ज़ रत थी। वे शॉ पग सटर के मा लक से मलना तो या, उ ह दे खना भी नह
चाहते थे। वे उ ह एक और सम या मानते थे, जससे उ ह जूझना पड़ता था।
इस लये मा लक ने ोए टव बनने का न य कया। उ ह ने अपने उद्दे य, जीवनमू य और ाथ मकताय
नधा रत क । इन ाथ मकता के अनु प उ ह ने करायेदार के साथ सहयोगपूण संबंध बनाने म अपना एक
तहाई समय लगाने का फ़ैसला कया।
उस संगठन के साथ लगभग डेढ़ साल तक काम करने के दौरान मने दे खा क इस काम म उनका समय 20
तशत से अ धक हो गया, जो चार गुनी से भी अ धक वृ थी। इसके अलावा, उ ह ने अपनी भू मका बदल ली।
वे अपने करायेदार के ोता, श क और परामशदाता बन गये। उनक चचा सकारा मक ऊजा से भर गई।
प रणाम अ वश्वसनीय और गहरा था। समय और व धय पर यान क त करने के बजाय संबंध और
प रणाम पर यान क त करने से आँकड़ म वृ ई। करायेदार यानी ाहक नये वचार और नपुणता से
मलने वाले प रणाम से रोमां चत थे, जब क शॉ पग सटर के मा लक अ धक भावकारी और संतु थे। उनके
संभा वत करायेदार क सूची बढ़ गई थी और कान के सामान क ब बढ़ने के कारण लीज़ से होने वाली
आमदनी भी बढ़ गई थी। वे अब नगरानी करने वाले पु लसकम या सुपरवाइज़र नह थे। वे सम या सुलझाने वाले
और मदद करने वाले बन चुके थे।

चाहे आप वश्व व ालय के व ाथ ह , असे बली लाइन म काम करने वाले मज़ र ह , गृ हणी ह , फ़ैशन
डज़ाइनर ह या कंपनी के े सडट ह , मेरा वश्वास है अगर आप ख़ुद से पूछ क वा ै ट II म या है और फर
उसे करने क ोए ट वट वक सत कर, तो आपको भी यही प रणाम मलगे। आपक भावका रता नाटक य
प से बढ़ जायेगी। आपक सम याएँ और संकट सुलझने लायक अनुपात म सकुड़ जायगे, य क आप आगे क
सोच रहे ह गे, जड़ पर काम कर रहे ह गे, नरोधा मक काम कर रहे ह गे, जो प र थ तय को संकट बनने ही नह
दे त।े टाइम मैनेजमट क भाषा म इसे पैरेटो स ांत कहा जाता है - 80 तशत प रणाम 20 तशत काय से
मलते ह।

“नह ” कहने म कस चीज़ क ज़ रत होती है


शु आत म वा ै ट II के लये समय नकालने का एकमा रा ता वा ै ट III और IV से समय नकालना
है। आप वा ै ट I क अ याव यक और मह वपूण ग त व धय क उपे ा नह कर सकते, हालाँ क जब आप
वा ै ट II म तैयारी करने और रोकथाम करने म अ धक समय लगायगे, तो वा ै ट I का आकार सकुड़ जायेगा।
परंतु शु आत म वा ै ट II म लगाने के लये समय वा ै ट III और IV से ही आयेगा।
वा ै ट II पर काम करने के लये आपको ोए टव बनना पड़ेगा, य क वा ै ट I और III आप पर
काम करते ह। वा ै ट II क मह वपूण ाथ मकता को “हाँ” कहने के लये आपको बाक़ ग त व धय को
“नह ” कहना सीखना होगा, जो कई बार प प से अ याव यक लग सकती ह।

कुछ समय पहले मेरी प नी को एक सामुदा यक स म त क अ य के प म काम करने का आमं ण मला।


उसके पास पहले से ही ब त से मह वपूण काम थे, इस लये वह दरअसल इस नये काम को नह करना चाहती थी।
बहरहाल, उसने इसे करने का दबाव महसूस कया और अंततः सहमत हो गई।
फर उसने अपनी एक य सहेली को फ़ोन करके पूछा क या वह भी इस स म त म काम करेगी। सहेली ने
काफ़ दे र तक उसक बात सुनने के बाद कहा, “सै ा, यह ब त ब ढ़या और सचमुच शंसनीय काम लग रहा है।
म सचमुच कृत ँ क आपने मुझे इससे जुड़ने का आमं ण दया। म इससे गौरवा वत ।ँ परंतु कई कारण से म
इसम भाग नह ले पाऊँगी। बहरहाल म आपको बताना चाहती ँ क म आपके इस आमं ण के लये कृत ँ।”
सै ा सुखद “नह ” के अलावा हर तरह क त या के लये तैयार थी। वह मेरी तरफ़ मुड़ी और आह भरते
ए बोली, “काश मने भी ऐसा ही कहा होता!”

म यह सुझाव दे ने क को शश नह कर रहा ँ क आपको मह वपूण सेवा काय म शा मल नह होना चा हये।


वे मह वपूण काम ह। परंतु आपको यह फ़ैसला करना होगा क आपक सव च ाथ मकताय या ह। साथ ही
आपम बाक़ सभी चीज़ को अ छे तरीक़े से, मु कराते ए, बना मा माँगे “नह ” कहने का साहस होना चा हये।
आप ऐसा इस लये करते ह, य क आपके भीतर इससे बड़ा एक “हाँ” आपको े रत कर रहा है। “अ छा”
अ सर “सव े ” का श ु होता है।
यान रख, आप हमेशा कसी न कसी चीज़ को “नह ” कह रहे ह। अगर आप अपने जीवन क प और
अ याव यक चीज़ के साथ ऐसा नह करते ह, तो शायद आप अ धक बु नयाद और बेहद मह वपूण चीज़ के साथ
ऐसा करते ह। जब अ याव यक काय अ छा हो, तब भी हो सकता है “अ छा” आपको अपने “सव े ” से र रख
रहा हो और आपको अपना अनूठा योगदान दे ने से रोक रहा हो, बशत आप इसे ऐसा करने क अनुम त द।

जब म एक बड़े वश्व व ालय म डायरे टर ऑफ़ यु नव सट रलेश स था, तो मने एक अ यंत तभाशाली,


ोए टव और रचना मक लेखक को काम पर रखा। जब उसे काम करते-करते कुछ महीने हो गये, तो एक दन म
उसके ऑ फ़स म गया और उससे कहा क वह मेरे कुछ अ याव यक काम कर दे , जनका मुझ पर ब त दबाव था।
उसने कहा, “ ट फ़न, आप मुझसे जो करवाना चाहगे, म वही क ँ गा। परंतु इससे पहले म आपको अपनी
थ त बताना चाहता ँ।”
फर वह मुझे द वार पर लगे अपने बोड क ओर ले गया, जहाँ उसने दो दजन से अ धक ोजे ट् स क सूची
टाँग रखी थी, जन पर वह काम कर रहा था। वहाँ पर पहले से नधा रत दशन के मानदं ड और डेडलाइन क
तारीख़ भी लखी थ , जन पर पहले ही प प से सहम त हो चुक थी। वह ब त अ धक अनुशा सत था और
यही कारण था क म सबसे पहले उसी के पास गया था। “अगर आप कोई काम करवाना चाहते ह, तो उसे कसी
त क् त को स प द।”
फर वह बोला, “ ट फ़न, आप जो काम मुझे अभी स प रहे ह, उ ह अ छ तरह से करने म कई दन लगगे।
आपके आ ह को पूरा करने के लये मुझे बस इतना बता द क आप इन पहले से नधा रत काम म से कसे दे री से
करवाना चाहगे या र करवाना चाहगे?”
ज़ा हर है, म इसक ज़ मेदारी नह लेना चाहता था। म अपने टाफ़ के सबसे उ पादक क् तय म से एक
के प हये म दाँता (cog) सफ़ इस लये नह फँसाना चाहता था, य क म उस समय संकट के वशीभूत होकर
मैनेजमट कर रहा था। म जो काम करवाना चाहता था, वे अ याव यक थे, परंतु मह वपूण नह थे। इस लये मने एक
सरे संकटनाशक मैनेजर को खोजकर वे काम उसे स प दये।

हम हर दन चीज़ को “हाँ” या “नह ” कहते ह और आम तौर पर हम ऐसा दन म कई बार करते ह। सही


स ांत का क और हमारे क् तगत मशन पर फ़ोकस हम बु दान करते ह, ता क हम ये नणय भावकारी
तरीक़े से ले सक।
व भन्न समूह के साथ काम करते ए म उनसे कहता ँ क भावकारी समय- बंधन और जीवन- बंधन
का सार संतु लत ाथ मकता के इद- गद व थत करना और उन पर अमल करना है। फर म ये सवाल पूछता
ँ: अगर आपको इन तीन े म से कसी एक म ख़ुद को दोषी मानना हो, तो वह कौन सा े है: (1)
ाथ मकता तय करने क अयो यता; (2) उन ाथ मकता के आस-पास व थत होने क अ न छा या
अ मता; या (3) उन पर अमल करने और अपनी ाथ मकता व व था के अनु प काय करने के अनुशासन
का अभाव?
अ धकांश लोग कहते ह क उनका मुख दोष अनुशासन क कमी है। अ धक गहराई से वचार करने पर म
सोचता ँ क यह सही नह है। दरअसल मूल सम या यह है क उनक ाथ मकताय उनके दलो दमाग़ म गहराई
से नह बोई गई ह। उ ह ने सरी आदत को सचमुच आ मसात नह कया है।
ऐसे ब त से लोग ह, जो अपने जीवन म वा ै ट II क ग त व धय के मह व को समझते ह, भले ही वे उ ह
इस प म पहचानते ह या न पहचानते ह । और सफ़ आ म-अनुशासन के मा यम से वे उन ग त व धय को
ाथ मकता दे ने और उ ह अपने जीवन म उतारने क को शश करते ह। परंतु चूँ क उनके पास स ांत-आधा रत
क और क् तगत मशन टे टमट नह होते, इस लये उनके पास लगातार को शश करते रहने क आव यक न व
ही नह होती है। वे सफ़ प य पर काम कर रहे ह। वे सफ़ अनुशासन के नज़ रय और वहार पर काम कर रहे
ह। और उनके मन म जड़ या उन मूलभूत पैरेडाइ स क जाँच करने का वचार ही नह आता, जनसे उनके
वाभा वक नज़ रये और वहार उ पन्न होते ह।
वा ै ट II पर क त होना एक ऐसा पैरेडाइम है, जो स ांत-आधा रत क से नकलता है। अगर आप
अपने जीवनसाथी, धन, म , आनंद या कसी बाहरी त व पर क त ह, तो आप बार-बार वा ै ट I और III म
धकेल दये जायगे, य क आप उन बाहरी शक् तय पर त या करते रहगे, जन पर आपका जीवन क त है।
भले ही आप अपने आ म यानी वयं पर क त ह , परंतु आप उस पल के भावावेग पर त या करते ए अंततः
वा ै ट I और III म आ जायगे। आपक आ म नभर इ छाशक् त अकेले ही आपको अपने क के ख़लाफ़
भावकारी तरीक़े से अनुशा सत नह कर सकती।
आ कटे चर का सू है, आकृ त काय का अनुसरण करती है। इसी तरह मैनेजमट लीडर शप का अनुसरण
करता है। आप कस तरह से अपना समय बताते ह, यह दरअसल इस बात का प रणाम होता है क आप अपने
समय और अपनी ाथ मकता को कस तरह से दे खते ह। अगर आपक ाथ मकताय स ांत-क और
क् तगत मशन टे टमट से नकलती ह, अगर वे आपके दलो दमाग़ म गहराई से बोई गई ह, तो आप अपने
समय का नवेश करने के लये वा ै ट II को वाभा वक और रोमांचक थान के प म दे खगे।
वा ै ट III क लोक यता या वा ै ट IV के पलायन के आनंद को “नह ” कहना लगभग असंभव होता
है, जब तक क आपके भीतर उससे यादा बड़ा और बल “हाँ” न हो। जब आपके पास अपने वतमान ो ाम
क जाँच करने क आ म-जाग कता होती है - और एक नये, अनूठे, स ांत-आधा रत ो ाम रचने क क पना
और ववेक होते ह, जसके त आप “हाँ” कह सक - सफ़ तभी आपम इतनी आ म नभर इ छाशक् त होगी क
आप स ची मु कराहट के साथ मह वहीन चीज़ को “नह ” कह सक।

वा ै ट II म वेश करना
अगर वा ै ट II क ग त व धयाँ प प से भावकारी क् तगत मैनेजमट का दय ह - अगर वे “पहली
चीज़” ह, ज ह हम सबसे पहले रखने क ज़ रत है - तो हम कस तरह उन चीज़ को व थत कर और उन पर
अमल कर?
टाइम मैनेजमट क पहली पीढ़ तो ाथ मकता क अवधारणा को पहचानती ही नह है। यह हम नोट् स और
“कायसू चयाँ” दे ती है, जनम हम काम पूरा होने के बाद सही का नशान लगा सकते ह। जब भी हम कसी काम
पर सही का नशान लगाते ह, तो हर बार हम सफलता का अ थायी एहसास होता है। परंतु इस सूची म जो काम
लखे ह, उनक कोई ाथ मकता तय नह क गई है। इसके अलावा, सूची म लखे काम का आपके जीवन के
चरम जीवनमू य तथा उद्दे य से कोई संबंध नह है। हमारे दमाग़ म जस काम को करने का वचार आता है या
य प से हम जो काम करने क ज़ रत महसूस होती है, हम सफ़ उसी काम को लखते और करते रहते ह।
ब त से लोग इस पहली पीढ़ के पैरेडाइम से अपने समय का बंधन करते ह। यह यूनतम तरोध का रा ता
है। कोई तकलीफ़ या तनाव नह होता; “बहाव के साथ बहने” म आनंद आता है। बाहर से थोपे गये अनुशासन या
शेड्यूल से लोग को यह संतु दायक एहसास होता है क वे प रणाम के लये ज़ मेदार नह ह।
परंतु भावका रता क प रभाषा के अनुसार दे खा जाये तो पहली पीढ़ के मैनेजर भावकारी नह होते ह। वे
ब त कम उ पादन करते ह, ब त कम प रणाम दे ते ह और उनक जीवनशैली उनक उ पादन मता को बढ़ाने के
लये कुछ नह करती। वे बाहरी शक् तय के ध के खाते रहते ह, उ ह अ सर वश्वसनीय और ज़ मेदार नह
माना जाता तथा उ ह नयं ण और आ मस मान का ब त कम एहसास होता है।
सरी पीढ़ के मैनेजर थोड़े यादा नयं ण म रहते ह। वे पहले से योजना और शेड्यूल बना लेते ह।
सामा यतः उ ह अ धक ज़ मेदार माना जाता है, य क वे तब “ मलने आ जाते ह,” जब मलने का उ ह ने वायदा
कया था।
परंतु एक बार फर, उ ह ने जन ग त व धय का शेड्यूल बनाया है, उनक कोई ाथ मकता तय नह होती।
इन ग त व धय का उनके गहरे जीवनमू य या ल य से कोई प संबंध भी नह होता। उ ह मह वपूण सफलताय
कम ही मलती ह और उनम शेड्यूल पर क त होने क वृ होती है।
तीसरी पीढ़ के मैनेजर आगे क दशा म एक मह वपूण क़दम बढ़ाते ह। वे अपने जीवनमू य को प करते
ह और ल य नधा रत करते ह। वे हर दन क योजना बनाते ह और अपनी ग त व धय को ाथ मकता के म म
जमा लेते ह।
जैसा म कह चुका ँ, आज का अ धकांश टाइम मैनेजमट यह पर है। परंतु इस तीसरी पीढ़ क कई गंभीर
सीमाय ह। सबसे पहली बात तो यह है क इससे भ व य- सी मत होती है - दै नक योजना बनाने म अ सर कई
ऐसी मह वपूण चीज़ छू ट जाती ह, ज ह सफ़ एक ापक कोण से दे खा जा सकता है। “दै नक योजना”
वा यांश ही अ याव यक काय पर क त है, ज ह “अभी” कया जाना है। हालाँ क तीसरी पीढ़ के ाथ मकता-
नधारण से ग त व ध मब होती है, परंतु यह उस ग त व ध के मूलभूत मह व के बारे म सवाल नह करती, जो
उससे पहले का काम है। यह ग त व ध को स ांत , क् तगत मशन, भू मका और ल य के संदभ म नह
रखती। तीसरी पीढ़ क जीवनमू य से संचा लत दै नक योजना क अवधारणा मूलतः वा ै ट I और III क
सम या तथा उस दन के संकट को ाथ मकता के आधार पर म म रखती है।
इसके अलावा, तीसरी पीढ़ भू मका का संतु लत तरीक़े से बंधन करने का कोई ावधान नह करती है।
इसम यथाथवाद क कमी होती है और दन म ज़ रत से यादा काम भर दे ने क वृ होती है, जसके
प रणाम व प क् त कुं ठत हो जाता है और कभी-कभार यह इ छा भी जाग जाती है क योजना को र
फककर वा ै ट IV म पलायन कर दया जाये। चूँ क पूरा यान टाइम मैनेजमट और ‘काय-कुशलता’ पर क त
होता है, इस लये इसक वजह से लोग से संबंध मधुर बनने के बजाय तनावपूण बन जाते ह।
हालाँ क तीन ही पी ढ़याँ कसी न कसी तरह के मैनेजमट उपकरण के मह व को पहचानती ह, परंतु उनम से
कसी ने भी ऐसा उपकरण नह बनाया, जो क् त को स ांत-आधा रत वा ै ट II क जीवनशैली जीने के लये
सश बनाये। पहली पीढ़ के नोटपैड और “कायसू चयाँ” हम सफ़ यान आने वाली चीज़ को लखने क जगह
दे ती ह, ता क हम उ ह भूल न जाय। सरी पीढ़ क अपॉइंटमट डाय रयाँ और कैलडर सफ़ भावी वचनब ता
को लखने क जगह दान करते ह, ता क हम वहाँ पर प ँच सक, जहाँ हमने उस समय प ँचने का वायदा कया
है।
लानस और साम ी के ज़खीरे के बावज़ूद तीसरी पीढ़ भी मूलतः वा ै ट I और III क ग त व धय क
ाथ मकता तय करने और उ ह सु नयो जत करने पर अपना यान क त करती है। हालाँ क कई श क और
परामशदाता वा ै ट II क ग त व धय के मह व को पहचानते ह, परंतु वा त वक योजना बनाने वाले तीसरी पीढ़
के उपकरण म उ ह व थत करने और अमल करने क कोई व था नह होती है।
चूँ क हर पीढ़ अपने पहले क पी ढ़य के आगे नमाण करती है, इस लये तीन पी ढ़य के कुछ उपकरण
और शक् तयाँ चौथी पीढ़ के लये ारं भक साम ी उपल ध कराती ह। परंतु इसके अलावा एक नये आयाम, एक
नये पैरेडाइम और उस पर अमल करने क अ त र आव यकता होती है, जो हम वा ै ट II म वेश करने क
शक् त दे , जो हम स ांत-क त बनने और ख़ुद का इस तरह बंधन करने क शक् त दे , ता क हम वह कर सक,
जो सचमुच सबसे मह वपूण है।

वा ै ट II उपकरण
वा ै ट II के मैनेजमट का उद्दे य हमारे जीवन का भावकारी बंधन करना है। इसका उद्दे य सश
स ांत के क , हमारे क् तगत मशन के ान और मह वपूण के साथ-साथ अ याव यक पर क त होकर
बंधन करना है। और इसका उद्दे य उस संरचना के भीतर काम करना है, जो हमारे उ पादन (P) को बढ़ाने तथा
हमारी उ पादन मता (PC) को बढ़ाने के बीच संतुलन बनाये रखे।
ज़ा हर है, वा ै ट III और IV क छोट -छोट बात क भरमार म फँसे ए लोग के लये यह एक
मह वाकां ी उद्दे य ह। परंतु इसे हा सल करने क को शश से क् तगत भावका रता पर ज़बद त भाव पड़ता
है।
वा ै ट II के ऑगनाइज़र को छह मह वपूण मानदं ड को पूरा करने क ज़ रत होगी:

तालमेल (Coherence)। तालमेल का अथ यह है क आपक भ व य- और उद्दे य, आपक भू मका और


ल य , आपक ाथ मकता और योजना तथा आपक इ छा और अनुशासन के बीच म तालमेल, एकता
और अखंडता है। आपके लानर म आपके क् तगत मशन टे टमट के लये थान होना चा हये, ता क आप
इसके सतत संपक म रह सक। इसम आपक भू मका और अ पकालीन तथा द घकालीन दोन ही तरह के
ल य के लये भी थान होना चा हये।

संतुलन (Balance)। आपके उपकरण को आपके जीवन म संतुलन बनाये रखने म आपक मदद करना चा हये।
इसे आपक व भन्न भू मका को पहचानने और उ ह आपके ठ क सामने रखने म मदद करना चा हये, ता क
आप मह वपूण े क उपे ा न कर, जैसे आपका वा य, आपका प रवार, आपक ावसा यक तैयारी या
क् तगत वकास।
कई लोग यह सोचते ह क एक े म मलने वाली सफलता जीवन के सरे े म मलने वाली वफलता
क भरपाई कर सकती है। परंतु या यह ऐसा सचमुच कर सकती है? शायद कुछ े म सी मत समय के लये
ऐसा हो भी सकता है। परंतु या आपके वसाय क सफलता टू टे ए वैवा हक संबंध, बगड़ी ई सेहत या च र
क कमज़ोरी क भरपाई कर सकती है? स ची भावका रता म संतुलन क आव यकता होती है और इस संतुलन
को बनाने तथा बनाये रखने म आपके उपकरण को आपक मदद करना चा हये।

वा ै ट II फ़ोकस (Quadrant II Focus)। आपको एक ऐसे उपकरण क ज़ रत है, जो आपको ो सा हत


और े रत करे। साथ ही, यह वा ै ट II म उतना समय दे ने म आपक मदद करे, जतना आपको इसे वा तव म
दे ना चा हये, ता क आप संकट को ाथ मकता के म म जमाने के बजाय उ ह उ पन्न ही न होने द। म सोचता ँ
क ऐसा करने का सव म तरीक़ा अपने जीवन को सा ता हक आधार पर व थत करना है। आप इस योजना
को भी दै नक आधार पर ढाल सकते ह और ाथ मकता नधा रत कर सकते ह, परंतु मूलभूत ज़ोर स ताह को
व थत करने पर होता है।
दै नक आधार के बजाय सा ता हक आधार पर व थत करना अ धक संतुलन और पृ भू म दान करता
है। हर सं कृ त म स ताह को समय क एकल और पूण इकाई मानने का वचार प प से न हत है। बज़नेस,
श ा और समाज के अ य पहलू स ताह क संरचना के भीतर काम करते ह। इसम काम या उद्दे य के लये कुछ
नश् चत दन नधा रत होते ह और कुछ दन आराम या ेरणा के लये। मूलभूत य द -ईसाई धमशा सबाथ या
र ववार का स मान करता है। स ताह के सात दन म से एक दन आ या मक वकास के उद्दे य के लये अलग
रख दया गया है।
यादातर लोग स ताह के संदभ म सोचते ह। परंतु तीसरी पीढ़ के अ धकांश योजना-उपकरण दै नक
योजना पर यान क त करते ह। हालाँ क वे आपक ग त व धय को ाथ मकता के आधार पर मब करने म
आपक मदद कर सकते ह, परंतु वे मूलतः संकट और अ याव यक काम को व थत करने म ही आपक मदद
करते ह। मह वपूण यह नह है क आपक सूची के काम को ाथ मकता के हसाब से जमाया जाये,
ब क मह वपूण यह है क आपक ाथ मकता को सूची म जमाया जाये। और यह सबसे अ छे ढं ग से
स ताह के संदभ म कया जा सकता है।

“लोग ” का आयाम (A “People” Dimension)। आपको एक ऐसे उपकरण क भी आव यकता है, जो सफ़


शेड्यूल से ही नह , लोग से भी सरोकार रखता हो। हालाँ क आप समय के साथ वहार करते समय काय-
कुशलता के संदभ म सोच सकते ह, परंतु लोग के साथ वहार करते समय स ांत-क त क् त
भावका रता के संदभ म सोचता है। ऐसे समय होते ह, जब वा ै ट II के स ांत-क त जीवन म यह
आव यकता होती है क शेड्यूल को कम और लोग को अ धक ाथ मकता द जाये। आपके उपकरण को इस
जीवनमू य को त ब बत करने क आव यकता है, ता क जब शेड्यूल का पालन न हो पाये, तब भी अपराधबोध
के बजाय जीवनमू य के अनुसार संचा लत होने का एहसास हो।

लचीलापन (Flexibility)। आपके योजना-उपकरण को हमेशा आपका सेवक होना चा हये, कभी आपका वामी
नह होना चा हये। चूँ क इसे आपके लये काम करना है, इस लये आपको इसे अपनी शैली, अपनी आव यकता
और अपने व श तरीक़ के हसाब से ढालना चा हये।

या ा के दौरान साथ रखने म आसानी (Portability)। आपका उपकरण ऐसा होना चा हये, जसे या ा के
दौरान आसानी से साथ रखा जा सके, ता क आप इसे अ धकांश समय अपने पास रख सक। हो सकता है बस म
या ा करते समय आपके मन म अपने क् तगत मशन टे टमट क समी ा करने क इ छा जाग जाये। हो सकता
है आपको कोई नया अवसर अचानक दख जाये और आप पहले से बनी योजना क तुलना उस नये अवसर के
मह व से करना चाह। अगर ऑगनाइज़र को या ा म साथ रखना आसान है, तो आप इसे अपने साथ रखगे, ता क
मह वपूण जानकारी हमेशा आपक प ँच म रहे।
चूँ क वा ै ट II भावकारी आ म- बंधन का दय है, इस लये आपको एक ऐसे उपकरण क आव यकता
है, जो आपको वा ै ट II म ले जाये। चौथी पीढ़ क अवधारणा के साथ काम के दौरान मने एक ऐसे उपकरण
क रचना क है, जो ऊपर दये गये मानदं ड के अनुसार वशेष प से तैयार कया गया है। बहरहाल तीसरी पीढ़
के कई अ छे उपकरण को भी आसानी से अपनी आव यकतानुसार ढाला जा सकता है। चूँ क स ांत दमदार ह,
इस लये वहार या व श अमल हर क् त क आव यकता के अनु प अलग-अलग हो सकता है।

वा ै ट II म वयं का मैनेजर (Self-Manager) बनना


हालाँ क म यहाँ भावका रता का वहार नह , उसके स ांत सखाने क को शश कर रहा ,ँ परंतु मेरा
वश्वास है क अगर आप स ांत-क त वा ै ट II के आधार पर अपने स ताह को सचमुच व थत करने का
अनुभव ल, तो आप इन स ांत और चौथी पीढ़ क शक् तदायक कृ त को यादा अ छ तरह से समझ सकते
ह।
वा ै ट II को व थत करने म चार मु य ग त व धयाँ शा मल ह:

भू मकाय पहचानना (Identifying Roles)। पहला काम अपनी मुख भू मका को लखना है। अगर आपने
अब तक अपने जीवन क भू मका के बारे म सचमुच गंभीरता से वचार नह कया है, तो आप अभी अपने
दमाग़ म आने वाली भू मका को लख सकते ह। आपक एक क् त के प म भू मका है। प रवार के सद य
के प म आप अपनी एक या अ धक भू मका को सूची म लखना चाह सकते ह - प त या प नी, माता या
पता, पु या पु ी, बड़े प रवार के सद य के प म दादा-दाद , नाना-नानी, चाचा-चाची या चचेरे भाई-बहन आ द।
आप अपने वसाय क कुछ भू मका को सूची म लख सकते ह, जससे उन व भन्न े क जानकारी
मलेगी, जनम आप नय मत प से अपने समय और ऊजा का नवेश करना चाहते ह। आपके पास चच या
सामुदा यक सेवा काय क भू मकाय भी हो सकती ह।
आपको अपनी इन भू मका को जीवन भर के लये प रभा षत करने क चता करने क ज़ रत नह है -
सफ़ अगले स ताह के बारे म सोच और उन े को लख ल, जनम आप अगले सात दन म ख़ुद को समय
बताते दे ख रहे ह ।
यहाँ पर दो उदाहरण दये गये ह क लोग कस तरीक़े से अपनी व भन्न भू मका को दे ख सकते ह:

1. क् त 1. क् तगत वकास
2. प त/ पता 2. प नी
3. मैनेजर यू ॉड ट् स 3. माता
4. मैनेजर रसच 4. रयल ए टे ट से सपसन
5. मैनेजर टाफ़ डेवलपमट 5. संडे कूल ट चर
6. मैनेजर एड म न े शन 6. स फ़नी बोड मबर
7. युनाइटे ड वे चेयरमैन

ल य का चयन करना (Selecting Goals)। अगला क़दम उन दो-तीन मह वपूण प रणाम के बारे म सोचना है,
ज ह आप हर भू मका म अगले सात दन के दौरान हा सल करना चाहते ह। इ ह ल य के प म लखा जायेगा।
(अगला पृ दे ख।)
इनम से कम से कम कुछ ल य वा ै ट II क ग त व धय से संबं धत होना चा हये। आदश थ त तो यह
होगी क ये अ पकालीन ल य उन द घकालीन ल य से जुड़े ह , ज ह आपने अपने क् तगत मशन टे टमट के
अनुसार चुना है। परंतु अगर आपने अपना मशन टे टमट न भी लखा हो, तब भी अपनी हर भू मका और उसके
दो-तीन ल य पर वचार करने पर आपको इस बात का एहसास हो सकता है क आपके लये या मह वपूण है।

टाइम-टे बल बनाना (Scheduling)। अब आप अपने ल य को यान म रखकर अगले स ताह क ओर दे ख


सकते ह और उ ह हा सल करने का समय नधा रत कर सकते ह। उदाहरण के लये, अगर आपका ल य अपने
क् तगत मशन टे टमट का पहला ा ट तैयार करना है, तो आप इस पर काम करने के लये र ववार को दो घंटे
का समय अलग रख सकते ह। र ववार (या स ताह का कोई और दन, जो आपके, आपके धम या प र थ तय के
हसाब से ख़ास हो) अ सर आदश समय होता है, जब आप क् तगत प से उ च तर पर ले जाने वाली
ग त व धय क योजना बनाय, जसम स ताह को व थत करना शा मल है। पीछे हटकर दे खने, ेरणा पाने,
अपने स ांत और जीवनमू य क पृ भू म म अपने जीवन को दे खने के लये यह ब त अ छा समय होता है।
अगर आपने ायाम करके शारी रक प से फ़ट रहने का ल य बनाया है, तो हो सकता है आप उस ल य
को ा त करने के लये स ताह म तीन-चार दन या शायद हर दन एक घंटा अलग रखना चाह। कुछ ल य ऐसे
ह गे, ज ह आप सफ़ कायालयीन समय म ही हा सल कर सकते ह या कुछ ऐसे ह गे, ज ह आप सफ़ श नवार
को ही हा सल कर सकते ह , जब आपके ब चे घर पर ह । या अब आपको दन के बजाय स ताह क योजना
बनाने के कुछ लाभ दखने लगे ह?
अपनी भू मका को पहचानने और ल य नधा रत करने के बाद आप हर ल य को स ताह के एक ख़ास
दन म मुखता से रख सकते ह, या तो ाथ मकता के प म या इससे भी बेहतर है एक ख़ास अपॉइंटमट के प
म। आप अपने वा षक या मा सक कैलडर क जाँच करके यह भी दे ख सकते ह क आपने पहले से इस स ताह के
लये कौन से अपॉइंटमट दे रखे ह। उन अपॉइंटमट् स के मह व का मू यांकन अपने ल य क पृ भू म म करने के
बाद आप ज ह ज़ री समझ, उ ह अपने शेड्यूल म शा मल कर और बाक़ को या तो कसी अ य समय के लये
तय कर या र करने क योजना बनाय।
आगे द गई सा ता हक वकशीट का अ ययन करते समय यह दे ख क 19 सबसे मह वपूण ल य ( जनम से
अ धकांश वा ै ट II के ह) म से येक को एक व श काययोजना म कस तरह शेड्यूल कया या ढाला गया
है। इसके अलावा, उस ब से पर भी ग़ौर कर, जस पर लखा है “आरी क धार तेज़ कर।” यह ब सा एक ऐसा
थान उपल ध कराता है, जहाँ हम चार मानवीय आयाम म ( जनक ा या सातव आदत म क जायेगी)
अ नवाय नवीनीकरण करने वाली वा ै ट II ग त व धय क योजना बनायगे।
स ताह के दौरान 19 मह वपूण ल य को हा सल करने के लये समय नधा रत करने के बाद भी यह दे ख क
वकशीट म कतना सारा ख़ाली समय बचा है! वा ै ट II क सा ता हक समय- व था आपको पहली चीज़ पहले
रखने क शक् त तो दे ती ही है, इसके अलावा यह आपको अ या शत घटना से नबटने क वतं ता और
लचीलापन भी दान करती है। अगर ज़ रत पड़े, तो आपके पास अपॉइंटमट का समय बदलने और लोग के साथ
संबंध व चचा का आनंद लेने क वतं ता होती है। इसके अलावा आप त काल सामने आने वाले अनुभव का
गहरा आनंद ले सकते ह, य क आप जानते ह क आपने अपने स ताह को ोए टव तरीक़े से व थत कया
है, जसम आप अपने जीवन के हर े के मुख ल य को हा सल करगे।

हर दन को ढालना (Daily Adapting)। वा ै ट II क सा ता हक व था के साथ दै नक योजना अ सर दन


को ढालने का काय बन जाती है। इसम आप ग त व धय को ाथ मकता के आधार पर मब करते ह और
अनपे त घटना , संबंध तथा अनुभव पर साथक त या करते ह।
हर सुबह कुछ मनट तक अपने शेड्यूल क समी ा करके आप ख़ुद को जीवनमू य-आधा रत नणय के
संपक म रख सकते ह, ज ह आपने स ताह को व थत करते समय लया था। इसके साथ ही आप उन
अनपे त त व पर भी यान दे सकते ह, जो आपके सामने आ गये ह। जब आप आने वाले दन को दे खते ह, तो
आप यह दे ख सकते ह क आपक भू मकाय और ल य आपको वाभा वक ाथ मकताय दान करते ह, जो
संतुलन के आपके आंत रक एहसास से उ पन्न होती ह। यह एक अ धक नम और दाय म त क का ाथ मकता-
नधारण है, जो अंततः आपके क् तगत मशन के एहसास से उ पन्न होता है।

द घकालीन व था
सा ता हक व था
अब भी आपको लग सकता है क तीसरी पीढ़ के ए, बी, सी या 1, 2, 3 ाथ मकता- नधारण आपके दै नक
काय को आव यक म दान करते ह। बहरहाल, यह एक झूठा ै त है क ग त व धयाँ या तो मह वपूण ह या फर
वे मह वपूण नह ह। वे प प से एक च य पथ पर होती ह और कुछ मह वपूण ग त व धयाँ बाक़ ग त व धय
से यादा मह वपूण होती ह। सा ता हक व था क पृ भू म म तीसरी पीढ़ का ाथ मकता- नधारण दै नक
को म दान करता है।
परंतु अगर आप यही न जानते ह क ग त व धयाँ कस तरह आपके क् तगत मशन (उद्दे य) के एहसास
से संबं धत ह और वे कस तरह आपके जीवन के संतुलन म फ़ट होती ह, तो ऐसी थ त म ग त व धय को
ाथ मकता के म म जमाने क को शश करना भावकारी नह है। हो सकता है आप ाथ मकता को नधा रत
करने के बाद ऐसी चीज़ हा सल कर ल, ज ह आप सचमुच नह चाहते या ज ह करने क आपको क़तई ज़ रत
ही नह है।

स ांत-क त वा ै ट II मैनेजर के प म अपने स ताह को व थत करने और कसी अ य चीज़ पर


क त क् त के प म अपने दन को व थत करने के बीच के अंतर को या अब आप दे ख सकते ह? या
आपको इस बात का एहसास होने लगा है क वा ै ट II पर यान क त करने से आपक भावका रता के
वतमान तर म कतना ज़बद त फ़क़ पड़ सकता है?
अपने और सैकड़ अ य लोग के जीवन म स ांत-आधा रत वा ै ट II को व थत करने क शक् त का
अनुभव करने के बाद मुझे वश्वास है क इससे ब त फ़क़ पड़ सकता है - वांटम सकारा मक फ़क़ पड़ सकता
है। और जतनी पूणता से सा ता हक ल य सही स ांत और क् तगत मशन टे टमट क अ धक ापक
संरचना से बँधे ह गे, भावका रता म उतनी ही अ धक वृ होगी।

इसके अनुसार जीना


एक बार फर क यूटर क भाषा क ओर लौटते ह। अगर पहली आदत कहती है, “आप ो ामर ह,” और
सरी आदत कहती है, “अपना ो ाम लखो,” तो तीसरी आदत कहती है, “ ो ाम चलाओ,” “ ो ाम के अनुसार
जयो।” और इसके अनुसार जीना मूलतः हमारी आ म नभर इ छा, आ म-अनुशासन, अखंडता और तब ता
का काय है। इस थ त म हम अपने अ पकालीन ल य , शेड्यूल या णक आवेग के अनुसार नह जीते ह, ब क
उन सही स ांत और गहनतम जीवनमू य के अनु प जीते ह, जो हमारे ल य , समय-सा र णय और जीवन को
साथक व ासं गक बनाते ह।
जब आप अपने स ताह से गुज़रगे, तो न संदेह ऐसे भी समय आयगे, जब आपक अखंडता क परी ा
होगी। वा ै ट III म सरे लोग क अ याव यक परंतु मह वहीन ाथ मकता पर त या करने क
लोक यता या वा ै ट II क ओर पलायन करने का आनंद वा ै ट II क उन मह वपूण ग त व धय पर हावी
होता दखाई दे गा, जनक आपने योजना बनाई है। बहरहाल, आपका स ांत-क , आ म-जाग कता और ववेक
आपको पया त आंत रक सुर ा, मागदशन और बु दान करगे। इनसे आपको अपनी आ म नभर इ छाशक् त
का योग करने क शक् त भी मलेगी, ता क आप सचमुच मह वपूण चीज़ के त अपनी अखंडता बनाये रख।
परंतु चूँ क आप सव नह ह, इस लये आप हमेशा पहले से ही यह नह जान सकते क सचमुच मह वपूण
या है। चाहे आप स ताह को कतनी ही सावधानी से व थत कर ल, फर भी ऐसे मौक़े आयगे, जब स ांत-
क त क् त के प म आपको अपने शेड्यूल के बजाय कसी उ चतर जीवनमू य को वरीयता दे ने क
आव यकता महसूस होगी। चूँ क आप स ांत-क त ह, इस लये आप शां त के आंत रक एहसास के साथ ऐसा
कर सकते ह।

एक बार क बात है, मेरा एक पु समयसा रणी और काय-कुशलता पर अमल करने म गहराई से जुटा आ
था। एक दन उसका शेड्यूल ब त त था, जसम हर ग त व ध के लये मनट- मनट का बँटवारा था। इसम
बाक़ काम के अलावा कुछ पु तक लाना, अपनी कार धोना और अपनी गल ड कैरोल को “छोड़ना” शा मल था।
हर काम समय-सा रणी के अनुसार आ, जब तक क बात कैरोल पर नह प ँची। वे लंबे समय से डे टग कर
रहे थे और वह आ ख़रकार इस नतीजे पर प ँचा था क इस र ते के सफल होने क संभावना नह है। इस लये
अपनी काय-कुशलता के मॉडल के अनु प उसने कैरोल से टे लीफ़ोन पर बात करने के लये समय-सा रणी म पं ह
मनट नधा रत कये थे।
परंतु यह ख़बर सुनकर कैरोल को ज़बद त मान सक आघात लगा। डेढ़ घंटे बाद भी मेरा पु उसके साथ
ब त ही भावना मक चचा म डू बा आ था। इसके बाद भी एक ही मुलाक़ात पया त नह थी। यह थ त उन दोन
के लये ही ब त कुंठाजनक अनुभव सा बत ई।
एक बार फर म यह कहना चा ँगा क आप क् तय के साथ काय-कुशलता के बारे म नह सोच सकते।
आप क् तय के साथ भावका रता के बारे म सोचते ह और व तु के साथ काय-कुशलता के बारे म। मने
कसी असहमत या अ य क् त के साथ “काय-कुशल” होने क को शश क है, परंतु उससे ज़रा भी फ़ायदा
नह आ। मने कसी सम या को सुलझाने के लये कसी ब चे या कमचारी को दस मनट का “ वा लट टाइम”
दे ने क को शश क है, परंतु अंततः यह पाया है क इस तरह क “काय-कुशलता” नई सम याएँ पैदा कर दे ती है
और शायद ही कभी गहनतम चता को र कर पाती है।
मने ब त से माता- पता को दे खा है (ख़ास तौर पर छोटे ब च क माता को) जो ब त कुछ हा सल
करना चाहते ह, परंतु अ सर कुं ठत हो जाते ह। उ ह ऐसा लगता है क उनका सारा दन छोटे ब च क ज़ रत
को पूरा करने म ही चला जाता है। यह याद रख, कुंठा हमारी अपे ा से उ पन्न होती है और हमारी अपे ाय
अ सर हमारे अपने जीवनमू य और ाथ मकता के बजाय सामा जक दपण का त बब होती ह।
परंतु अगर सरी आदत आपके दलो दमाग़ के भीतर गहराई से थत है, तो आप अ धक उ च जीवनमू य
से संचा लत हो रहे ह। आप अखंडता के साथ अपने शेड्यूल को उन जीवनमू य के अधीन रख सकते ह। आप
ख़ुद को ढाल सकते ह, आप लचीले हो सकते ह। जब आप अपने शेड्यूल को पूरा नह कर पाते या आपको इसे
बदलना पड़ता है, तब आपको अपराधबोध नह होता।

चौथी पीढ़ क गत
तीसरी पीढ़ के टाइम मैनेजमट उपकरण के योग का लोग कई कारण से तरोध करते ह। उनम से एक
कारण यह है क वे सहजता खो दे ते ह, कठोर हो जाते ह और उनम लचीलापन नह रहता। वे क् तय के बजाय
शेड्यूल को ऊपर रखते ह, य क मैनेजमट क तीसरी पीढ़ का काय-कुशलता का पैरेडाइम इस स ांत के
सामंज य म नह है क क् त व तु से अ धक मह वपूण होते ह।
चौथी पीढ़ का उपकरण इस स ांत को पहचानता है। इसके अलावा यह उपकरण यह भी पहचानता है क
काय-कुशलता के बजाय भावका रता के संदभ म आपको जस पहले क् त के बारे म वचार करने क ज़ रत
है, वह आप ख़ुद ह। यह आपको वा ै ट II म समय बताने, अपने जीवन को समझने तथा उसे स ांत पर
क त करने के लये ो सा हत करता है। यह आपको ो सा हत करता है क आप उन उद्दे य और जीवनमू य
को प अ भ क् त द, जनके ारा आप अपने दै नक नणय को संचा लत करवाना चाहते ह । यह आपके
जीवन को संतु लत बनाने म आपक मदद करता है। स ताह क पृ भू म म समय को व थत करने और शेड्यूल
बनाने के मा यम से यह दै नक योजना क सीमा से ऊपर उठने म आपक मदद करता है। और जब कसी
उ चतर जीवनमू य का उस चीज़ से संघष होता है, जसक आपने योजना बनाई है, तो यह आपको शक् त दे ता है
क आप अपनी आ म-जाग कता और ववेक का योग कर तथा उन स ांत और उद्दे य के त अखंड बने
रह, ज ह आपने सबसे मह वपूण माना है। सड़क के न शे का योग करने के बजाय आप क पास का योग कर
रहे ह।
आ म- बंधन क चौथी पीढ़ पाँच मह वपूण तरीक़ से तीसरी पीढ़ से अ धक उन्नत है।
1. यह स ांत-क त है। वा ै ट II को सफ़ मौ खक मह व दे ने के बजाय यह क य पैरेडाइम क रचना
करती है, जो आपको अपने समय को सचमुच मह वपूण और भावकारी संदभ म दे खने क शक् त दे ता है।
2. यह ववेक ारा नद शत है। यह आपको अवसर दे ती है क आप अपनी सव े यो यता के अनुसार
अपने जीवन को गहनतम जीवनमू य के तालमेल म व थत कर। परंतु यह आपको यह वतं ता भी दे ती है क
आप शांत रहते ए अपने शेड्यूल को अपने जीवनमू य के अधीन रख सक।
3. यह आपके अनूठे मशन (ल य) को प रभा षत करती है, जसम जीवनमू य और द घकालीन
ल य शा मल ह। यह आपके दन बताने के तरीक़े को दशा और उद्दे य दे ती है।
4. यह भू मका को पहचानकर और हर मह वपूण भू मका म सा ता हक ल य व ग त व धयाँ नधा रत
करके जीवन को संतु लत बनाने म आपक मदद करती है।
5. यह सा ता हक व था के मा यम से अ धक ापक संदभ दान करती है ( जसम
आव यकतानुसार दै नक अनुकूलन कया गया हो।) यह एक दन के सी मत कोण से ऊपर उठती है और
आपक मह वपूण भू मका क समी ा के मा यम से आपको अपने गहनतम जीवनमू य के संपक म रखती है।
जस ावहा रक धागे म ये पाँच ग तयाँ परोई गई ह, उस धागे का ाथ मक फ़ोकस र त और प रणाम
पर होता है; समय पर उसका तीयक या गौण फ़ोकस होता है।

काम स पना: पी और पीसी म वृ करना


हम जो भी हा सल करते ह, काम स पकर हा सल करते ह: या तो समय को स पकर या फर सरे लोग को
स पकर। अगर हम समय को काम स पते ह, तो हम काय-कुशलता के संदभ म सोचते ह। अगर हम सरे लाग
को काम स पते ह, तो हम भावका रता के संदभ म सोचते ह।
कई लोग सर को काम स पने से इंकार करते ह। उ ह लगता है क इसम ब त यादा समय और यास क
आव यकता होती है तथा वे ख़ुद इस काम को यादा अ छ तरह से कर सकते ह। परंतु सर को भावकारी
तरीक़े से काम स पना शायद सबसे शक् तशाली हाई-लीवरेज (उ च- भाव) ग त व ध है।
सरे यो य और श त लोग को ज़ मेदारी स पने के बाद आप अपनी ऊजा अ य हाई-लीवरेज
ग त व धय म लगा सकते ह। काम स पने का अथ वकास या वृ है, क् तय के लये भी और संगठन के लये
भी। वग य जे.सी. पेनी ने कहा था क उ ह ने सबसे समझदारीपूण नणय यह लया था क वे “छोड़ दगे।” यह
नणय उ ह ने तब लया, जब उ ह यह एहसास आ क वे सब कुछ अकेले नह सँभाल सकते। ब त पहले लये
गये इस नणय ने उ ह सैकड़ टोस तथा हज़ार क् तय के वकास और वृ म स म बनाया।
चूँ क काम स पने म सरे लोग शा मल होते ह, इस लये यह एक सावज नक वजय है और इसे चौथी आदत
म भी शा मल कया जा सकता था। परंतु चूँ क हम यहाँ पर क् तगत मैनेजमट के स ांत पर यान क त कर
रहे ह, और सर को काम स पने क यो यता मैनेजर तथा आ म नभर ोड् यूसर (उ पादक) के बीच का मुख
अंतर है, इस लये म क् तगत मैनेजमट यो यता के कोण से काम स पने के बारे म वचार कर रहा ँ।
ो ूसर (उ पादन करने वाला) वह करता है, जो इ छत प रणाम या सोने के अंडे हा सल करने के लये
आव यक हो। बतन साफ़ करने वाला अ भभावक, लू ट बनाने वाला आ कटे ट या प टाइप करने वाली
से े टरी ो ूसर है।
परंतु जब कोई क् त सोने के अंड का उ पादन करने के लये एक स टम बनाता है, लोग के साथ और
लोग के मा यम से काम करता है, तब वह क् त पर पर- नभर अथ म मैनेजर बन जाता है। वह अ भभावक
मैनेजर है, जो कसी ब चे को बतन धोने का काम स पता है। वह आ कटे ट मैनेजर है, जो सरे आ कटे ट् स क
ट म का मुख होता है। वह से े टरी ऑ फ़स मैनेजर है, जो सरी से े ट रय और ऑ फ़स के कमचा रय को
सुपरवाइज़ करती है।
एक ो ूसर एक घंटे के यास का नवेश करता है और अगर उसक काय-कुशलता म कोई कमी न आये,
तो उसे एक इकाई प रणाम मलता है।
सरी तरफ़, एक मैनेजर एक घंटे के यास का नवेश कर सकता है और भावकारी ढं ग से काम स पकर सौ
इकाई प रणाम का उ पादन कर सकता है।

मैनेजमट का मूल काम प हये को घुमाना है और भावकारी मैनेजमट क कुंजी डे लगेशन या काम स पना
है।

गोफ़र डे लगेशन
डे लगेशन (काम स पना) मूलतः दो कार का होता है: “गोफ़र डे लगेशन” और “ टु अड शप डे लगेशन।”
गोफ़र डे लगेशन का अथ है “इसके पीछे जाओ, उसके पीछे जाओ, यह करो, वह करो, और जब काम पूरा हो
जाये तो मुझे बताओ।” अ धकांश उ पादक ( ोड् यूसस) म गोफ़र डे लगेशन का पैरेडाइम होता है। आपको जंगल
म औज़ार से सफ़ाई करने वाले लोग याद ह? वे उ पादक ह। वे अपनी आ तीन चढ़ाते ह और काम पूरा कर दे ते ह।
अगर उ ह कसी सुपरवाइज़र या मैनेजर का पद दे दया जाये, तब भी वे उ पादक क तरह ही सोचगे। उ ह यह
मालूम नह होता क कसी सरे क् त को कोई काम पूरी तरह कैसे स पा जाये, ता क वह क् त प रणाम
हा सल करने के लये तब हो। चूँ क वे व धय पर यान क त करते ह, इस लये वे प रणाम के लये
ज़ मेदार बन जाते ह।

म भी एक बार गोफ़र डे लगेशन करने लगा था। यह तब क बात है, जब हमारा प रवार वाटर क इंग करने
गया था। मेरा पु , जो ब त अ छ क इंग करता है, क इंग कर रहा था और म नाव चला रहा था। मने कैमरा
सै ा को दया और उससे कुछ त वीर लेने को कहा।
पहले तो मने सै ा को हदायत द क वह त वीर लेने के मामले म संयम बरते, य क हमारे पास यादा
फ़ म नह बची थी। फर मुझे एहसास आ क वह कैमरे से अप र चत थी, इस लये म थोड़ी यादा प ता से
समझाने लगा। मने उसे बताया क फ़ोटो ख चने से पहले वह इस बात का इंतज़ार करे क सूय नाव के सामने हो
और हमारा पु लहर पर कूद रहा हो, मुड़ रहा हो या अपनी कोहनी छू रहा हो।
परंतु कैमरे के साथ उसक अनुभवहीनता और सी मत फ़ म के बारे म मने जतना यादा सोचा, म उतना ही
यादा च तत हो गया। मने आ ख़रकार कहा, “दे खो सै ा, जब म तु ह इशारा क ँ , तभी बटन दबाना। ठ क है?”
और म अगले कुछ मनट तक चीख़ता रहा, “इसक त वीर लो! - इसक त वीर लो! - इसक त वीर मत लेना! -
इसक त वीर मत लेना!” म डर रहा था क अगर म हर पल मागदशन नह ँ गा, तो काम सही तरीक़े से नह हो
पायेगा।
यह स चा गोफ़र डे लगेशन था, व धय क हर क़दम पर नगरानी। कई लोग लगातार इसी तरीक़े से डे लगेट
करते या काम स पते ह। परंतु इससे सचमुच कतना काम हो पाता है? और अगर आप उनके हर क़दम क
नगरानी कर रहे ह , तो कतने लोग को सुपरवाइज़ या मैनेज करना संभव है?
अ धक भावकारी और बेहतर तरीक़ा यह है क आप सरे लोग को पूरी तरह काम स प द। यह तरीक़ा
सरे लोग क आ म-जाग कता, क पना, ववेक तथा आ म नभर इ छा को समझने के पैरेडाइम पर आधा रत
है।

टु अड शप डे लगेशन
टु अड शप डे लगेशन व धय के बजाय प रणाम पर यान क त करता है। यह लोग को व ध चुनने का
वक प दे ता है और उ ह प रणाम के लये ज़ मेदार बनाता है। इसम शु आत म यादा समय लगता है, परंतु यह
एक अ छा नवेश है। टु अड शप डे लगेशन के ारा आप प हये को तेज़ी से घुमा सकते ह और अपने लीवरेज
( भाव) को बढ़ा सकते ह।
टु अड शप डे लगेशन म पाँच े मह वपूण ह। अपे ा के संदभ म इन पाँच े म शु आत से ही प
आपसी समझ और वचनब ता होना चा हये।

इ छत प रणाम। प और आपसी समझ बनाय क या करना है। कैसे के बजाय या पर यान क त कर।
व धय के बजाय प रणाम पर यान क त कर। समय द। धैय रख। इ छत प रणाम क का प नक त वीर
बनाय। इसे सरे क् त को दखाय और इसका वणन कर। वा लट टे टमट तैयार कर क प रणाम कैसे दखगे
और कब तक ा त ह गे।

दशा नदश। उन सीमा को प कर, जनके भीतर सामने वाले क् त को काम करना चा हये। व धय के
डे लगेशन से बचने के लये ये सीमाय यूनतम होना चा हये, परंतु अगर कसी तरह के बल तबंध ह, तो उ ह
अव य शा मल कया जाना चा हये। आप यह नह चाहगे क क् त यह सोचे क जब तक वह ल य को हा सल
करता है, तब तक उसे पूरी वतं ता है और इसी कारण वह कसी पुरानी परंपरा या जीवनमू य को तोड़ दे । ऐसा
करने से पहलशक् त मर जाती है और यह लोग को गोफ़र के आधारभूत सू क ओर वापस भेज दे ता हैः “आप
मुझे सफ़ यह बता द क आप मुझसे या करवाना चाहते ह और म वही क ँ गा।”
अगर आप उस काम म असफलता के रा त को जानते ह , तो उ ह बता द। ईमानदार और खुले रह - सामने
वाले को बता द क कहाँ दलदल है और कहाँ जंगली जानवर ह। आप यह नह चाहगे क आपको हर दन प हये
का बारा आ व कार करना पड़े। लोग को आपक या सर क ग़ल तय से सीखने द। संभा वत असफलता के
रा त क ओर इशारा कर और यह बताय क या नह करना है, परंतु उ ह यह न बताय क या करना है।
प रणाम क ज़ मेदारी उन पर ही छोड़ द - दशा नदश के भीतर जो करना आव यक हो, वह उ ह करने द।

संसाधन। उन मानवीय, व ीय, तकनीक या संगठना मक संसाधन को बता द, जनका योग वह क् त


इ छत प रणाम हा सल करने के लये कर सकता है।

जवाबदे ही। काय- दशन के मानदं ड तय कर ल, जनका योग प रणाम के मू यांकन म कया जायेगा। रपो टग
और मू यांकन का समय भी नश् चत कर ल।

प रणाम। यह भी प कर द क मू यांकन के प रणाम व प अ छा और बुरा या होगा। इसम इस तरह क


चीज़ शा मल हो सकती ह, जैसे आ थक पुर कार, मनोवै ा नक पुर कार, भन्न पद या काम, और संगठन के
समूचे मशन से जुड़े वाभा वक प रणाम।

कुछ साल पहले मुझे अपने एक पु के साथ डे लगेशन का एक रोचक अनुभव आ। हम अपने प रवार क
मी टग कर रहे थे और हमने अपना मशन टे टमट द वार पर टाँग दया था, ता क यह सु नश् चत हो सके क हमारी
योजनाय हमारे जीवनमू य के तालमेल म ह। प रवार के सभी सद य वहाँ मौज़ूद थे।
मने एक बड़ा लैकबोड लटकाया और हमारे ल य लखे - वे मु य चीज़, जो हम करना चाहते थे। उन ल य
से हमारे काम उ पन्न ए। फर मने कहा क उन काम को करने के लये सद य वे छा से ज़ मेदारी ल।
मने पूछा, “घर क क़ त का भुगतान कौन करना चाहता है?” मने पाया क सफ़ मेरा ही हाथ ऊपर था।
“बीमे का भुगतान कौन करना चाहता है? भोजन का? कार का?” ऐसा लग रहा था जैसे अवसर पर मेरा
स चा एका धकार था।
“नये ब चे को ध कौन पलाना चाहता है?” यहाँ पर अ धक च दखाई गई, परंतु इस काय के लये सफ़
मेरी प नी ही सचमुच यो य थी।
जब हम एक के बाद एक काम पर वचार करते ए सूची म नीचे उतरते गये, तो यह ज द ही प हो गया
क म मी-डैडी के पास स ताह म साठ घंटे से भी अ धक काम हो गया था। इस पैरेडाइम को यान म रखते ए
कुछ अ य काम सही थ त म आ गये।
मेरे सात वष य पु ट फ़न ने वे छा से लॉन क दे खभाल करने क पहल क । उसे सचमुच काम स पने से
पहले मने उसक संपूण श ण या शु क । म उसके दमाग़ म एक प त वीर था पत करना चाहता था
क अ छ तरह दे खभाल करने पर लॉन कैसा दखता है, इस लये म उसे अपने पड़ोसी के यहाँ ले गया।
मने कहा, “दे खो बेटे, हमारे पड़ोसी का लॉन कतना हरा और साफ़ है? हमारा ल य यही है: हरा और साफ़।
अब अपने लॉन को दे खो। वहाँ मले-जुले रंग दख रहे ह? वह ऐसा नह है, वह हरा नह है। हम हरा और साफ़
चाहते ह। अब तुम इसे हरा कैसे बनाओगे, यह तुम पर है। तुम इसे जस तरह से भी करना चाहो, तुम उसके लये
वतं हो, सवाय इसे पट करने के। परंतु म तु ह बता ँ क अगर मेरे पास यह काम होता, तो म इसे कस तरह
करता।”
“आप इसे कस तरह करते, डैडी?”
“म फ वारे को चलाता। परंतु हो सकता है तुम बा टय या होज़ का योग करना चाहो। इससे मुझे कोई फ़क़
नह पड़ता। हम तो सफ़ इस बात क परवाह है क रंग हरा हो। ठ क है?”
“ठ क है।”
“अब हम ‘साफ़’ के बारे म बात करते ह, बेटे। साफ़ का मतलब यह है क चार तरफ़ कोई कचरा न हो -
काग़ज़, र सी, डा लयाँ या कोई भी ऐसी चीज़, जससे यह जगह गंद दखे। म तु ह करके बताता ँ क ऐसा कैसे
कया जाता है। चलो, हम अपने आधे लॉन को इसी समय साफ़ करते ह और फ़क़ दे ख लेते ह।”
इसके बाद हमने काग़ज़ के दो थैले उठाये और लॉन के एक ह से का कूड़ा-करकट साफ़ कर दया। “अब
इस सरे को दे खो और उस सरे सरे को दे खो। अंतर दख रहा है? इसे साफ़ लॉन कहते ह।”
“ठह रये!” वह बोला, “मुझे उस झाड़ी के पीछे एक काग़ज़ दख रहा है!”
“ब त ब ढ़या! म झाड़ी के पीछे पड़े अख़बार के उस टु कड़े को नह दे ख पाया था। तु हारी नज़र ब त तेज़
ह, बेटे।
“अब इससे पहले क तुम यह नणय लो क तुम यह काम करोगे या नह , म तु ह कुछ और बात बता ँ ।
य क जब तुम इस काम क ज़ मेदारी ले लोगे, तो फर म इसे नह क ँ गा। यह तु हारा काम होगा। इसे
टु अड शप कहा जाता है। टु अड शप का अथ है ‘ वश्वास के साथ काम स पना।’ म तुम पर वश्वास करता ँ
क तुम काम को अ छ तरह से कर दोगे। अब तु हारा बॉस कौन होगा?”
“आप, डैडी?”
“नह , म नह । अपने बॉस तुम ख़ुद रहोगे। तुम ख़ुद को आदे श दोगे। तु ह कैसा लगता है जब म मी-डैडी तु ह
बार-बार काम करने के लये टोकते ह?”
“मुझे अ छा नह लगता।”
“हम भी यह करना अ छा नह लगता। इससे कई बार बुरी भावना उ पन्न हो जाती है, है ना? इस लये अब
तुम ख़ुद अपने बॉस हो। अब, ज़रा सोचो क तु हारा सहायक कौन है?”
“कौन?”
“म ँ,” मने कहा। “तुम मेरे बॉस हो।”
“म?”
“ बलकुल ठ क। परंतु मदद करने का मेरा समय सी मत है। कई बार म बाहर रहता ।ँ परंतु जब म यहाँ पर
र ँ, तो तुम मुझे बता दे ना क म कस तरह मदद कर सकता ँ। जो भी तुम मुझसे करने को कहोगे, म क ँ गा।”
“ठ क है!”
“अब ज़रा सोचो क तु हारा मू यांकन कौन करेगा।”
“कौन?”
“तुम ख़ुद अपना मू यांकन करोगे।”
“म क ँ गा?”
“हाँ। स ताह म दो बार हम दोन लॉन म चार तरफ़ टहलगे और तुम मुझे बताओगे क काम कैसा चल रहा
है। तुम कस तरह मू यांकन करोगे?”
“हरा और साफ़।”
“ बलकुल ठ क!”
मने उन दो श द के साथ उसे दो स ताह तक श त कया, तब कह जाकर मुझे महसूस आ क वह उस
काम को सँभालने के लये तैयार था। अंततः वह बड़ा दन आ गया।
“ या सौदा प का है, बेटा?”
“ बलकुल प का।”
“काम या है?”
“हरा और साफ़।”
“हरा या है?”
उसने हमारे आँगन को दे खा, जो अब बेहतर दखना शु हो गया था। फर उसने पड़ोसी के लॉन क तरफ़
इशारा कया। “उनके लॉन का रंग।”
“साफ़ या है?”
“कोई कचरा नह ।”
“बॉस कौन है?”
“म ँ।”
“सहायक कौन है?”
“आप ह, जब आपके पास समय हो।”
“मू यांकन कौन करेगा?”
“म। हम स ताह म दो बार चार तरफ़ टहलगे और म आपको बताऊँगा क काम कैसा चल रहा है।”
“और हमारा ल य या है?”
“हरा और साफ़।”
उस समय मने कसी तरह के भुगतान का ज़ नह कया था। परंतु इस तरह क टु अड शप के साथ म
भुगतान जोड़ने म भी नह हचकता।
दो स ताह और दो श द। मने सोचा क वह तैयार था।
यह श नवार क बात है। उस दन उसने कुछ नह कया। र ववार … कुछ नह । सोमवार… कुछ नह । जब म
मंगलवार को काम पर जाने के लये पोच से बाहर नकला, तो मने अपने पीले और गंदे लॉन को दे खा। जुलाई का
गम सूरज ऊपर क तरफ़ बढ़ रहा था। मने सोचा, “ नश् चत प से वह आज यह काम करेगा।” म श नवार को तो
उ चत ठहरा सकता था, य क उसी दन हमारा समझौता आ था। म र ववार को भी उ चत ठहरा सकता था,
य क र ववार सरे काम के लये था। परंतु म सोमवार को उ चत नह ठहरा सकता था। और आज मंगलवार हो
गया था। नश् चत प से वह आज यह काम कर दे गा। ग मय के दन थे। उसके पास करने के लये और काम भी
या है?
पूरे दन मुझसे स नह आ। म घर लौटकर दे खना चाहता था क या आ था। जब म मोड़ पर मुड़ा, तो
मुझे वही य दखा, जो म सुबह छोड़कर गया था। और मेरा बेटा सड़क के उस पार पाक म खेल रहा था।
इसे कसी तरह वीकार नह कया जा सकता था। दो स ताह के श ण और इतने सारे वायद के बाद म
यह दे खकर वच लत हो गया और मोहभंग क अव था म आ गया। हमने लॉन पर ब त मेहनत क थी, गव और
धन का नवेश कया था और म दे ख सकता था क वह सब बबाद हो रहा था। इसके अलावा, मेरे पड़ोसी का लॉन
साफ़-सुथरा तथा सुंदर था और हमारी थ त अब शमनाक होती जा रही थी।
म बारा गोफ़र डे लगेशन क ओर लौटने के लये तैयार था। बेटे, तुम इधर आओ और इस कचरे को अभी
हाल उठाओ वरना! म जानता था क म उस तरीक़े का इ तेमाल करके सोने का अंडा तो पा सकता था। परंतु मुग
का या होगा? उसक आंत रक तब ता का या होगा?
इस लये मने झूठ मु कान लाते ए सड़क के पार चीख़ते ए कहा, “हलो, बेटा। सब कैसा चल रहा है?”
“अ छा!” उसने जवाब दया।
“लॉन का काम कैसा चल रहा है?” म जानता था क जस पल मने यह कहा, उसी पल मने अपने समझौते
को तोड़ दया था। यह जवाबदे ही का वह तरीक़ा नह था, जो हमने तय कया था। हम इस बात पर सहमत नह ए
थे।
इस लये उसने भी इसे तोड़ने को यायो चत समझा। “ब ढ़या, डैडी।”
मने अपनी जीभ दाँत म दबाई और डनर के बाद तक इंतज़ार कया। फर मने कहा, “बेटा, अब हम वह
करते ह, जस पर हम सहमत ए थे। हम लॉन म इकट् ठे घूमते ह और तुम मुझे बता सकते हो क तु हारी
टु अड शप म काम कैसा चल रहा है।”
जब हम दरवाज़े से बाहर नकले, तो उसक ठु ड्डी काँपने लगी। उसक आँख म आँसू उमड़ आये और जब
तक हम लॉन के बीच म प ँचे, वह ससकने लगा।
“यह ब त मु कल है, डैडी!”
या ब त मु कल है? मने सोचा। तुमने एक भी काम नह कया है! परंतु म जानता था क या मु कल था
- आ म- बंधन, ख़ुद क नगरानी। इस लये मने कहा, “ या कोई ऐसी चीज़ है, जसम म तु हारी मदद कर सकता
?
ँ ”
उसने पूछा, “ या आप मेरी मदद करगे, डैडी?”
“हमारा समझौता या था?”
“आपने कहा था क जब आपके पास समय होगा, तब आप मेरी मदद करगे।”
“मेरे पास समय है।”
यह सुनते ही वह दौड़ता आ घर के अंदर गया और वापस लौटते समय उसके हाथ म दो थैले थे। उसने मुझे
एक थैला थमाया। “ या आप वहाँ पर पड़ा कचरा उठायगे?” उसने श नवार रात क दावत के कचरे क तरफ़
इशारा करते ए कहा। “इससे मुझे ब त चढ़ होती है!”
मने वह काम कया। जो भी उसने मुझसे करने को कहा, मने बलकुल वही कया। और तब जाकर उसने
अपने दल म समझौते पर मोहर लगाई। यह उसका लॉन था, उसक टु अड शप थी।
उसने उस पूरी गम म मुझसे सफ़ दो या तीन बार और मदद माँगी। उसने लॉन क अ छ दे खभाल क । मेरी
टु अड शप म लॉन जतना हरा और साफ़ रहता था, उसने लॉन को उससे यादा हरा और साफ़ रखा। अगर उसके
भाई-बहन चुइंगम का रैपर तक लॉन म छोड़ दे ते थे, तो वह उ ह फटकार लगाता था।

वश्वास मानवीय ेरणा का सव च प है। यह लोग के सव े व प को बाहर नकालता है। परंतु इसम
समय और धैय क ज़ रत होती है। और इसम लोग को श त तथा वक सत करने क आव यकता भी होती
है, ता क उनक द ता उस वश्वास के तर तक ऊपर उठ सके।
मुझे वश्वास है क अगर टु अड शप डे लगेशन सही ढं ग से कया जाये, तो इससे दोन ही प को लाभ
होता है और अंततः ब त कम समय म ब त अ धक काम हो जायेगा। मुझे वश्वास है क वह प रवार अ छ तरह
व थत है, जसका समय काय के भावकारी डे लगेशन म बताया जाता है, जसम काम को इस तरह बाँटा
जाता है क हर क् त अपना सारा काम दन के एक घंटे म कर सके। परंतु इसम सफ़ उ पादन या काम करने क
नह , ब क बंधन करने क इ छा क आंत रक मता क ज़ रत होती है। यान का क काय-कुशलता पर नह ,
ब क भावका रता पर होता है।
नश् चत प से आप कमरे क सफ़ाई ब चे से बेहतर ढं ग से कर सकते ह, परंतु मु य बात यह है क आप
ब चे को यह करने के लये सशक्त बनाना चाहते ह। इसम समय लगता है। आपको श ण और वकास म
शा मल होना पड़ेगा। इसम समय तो लगता है, परंतु आगे चलकर यह समय कतना मू यवान नवेश सा बत होगा!
लंबे समय म इससे आपका ब त सा समय बच जायेगा।
इस नी त म डे लगेशन का एक बलकुल नया पैरेडाइम शा मल है। प रणाम व प, यह संबंध क कृ त
बदल दे ता है: टु अड अपना बॉस ख़ुद बन जाता है और ववेक ारा शा सत होता है, जसम समझौते के अनुसार
नधा रत इ छत प रणाम के त वचनब ता शा मल है। उन इ छत प रणाम को हा सल करने के लये सही
स ांत के सामंज य म जो भी करना आव यक होता है, उसक रचना मक ऊजा भी टु अड शप डे लगेशन से
ा त होती है।
टु अड शप डे लगेशन म न हत स ांत सही ह और हर तरह के क् त या थ त पर लागू कये जा सकते
ह। अप रप व लोग के साथ आप कम इ छत प रणाम नधा रत करते ह और अ धक दशा नदश दे ते ह, अ धक
संसाधन दे ते ह, जवाबदे ही क अ धक चचाय करते ह और ता का लक प रणाम क अपे ा करते ह। अ धक
प रप व लोग के साथ आप अ धक चुनौतीपूण इ छत प रणाम चाहते ह, कम दशा नदश दे ते ह, जवाबदे ही क
चचाय कम करते ह और कम मापने परंतु अ धक समझने यो य मानदं ड नधा रत करते ह।
भावकारी डे लगेशन भावकारी मैनेजमट का सव े सूचक शायद इस लये है, य क यह क् तगत और
संगठना मक दोन ही वकास के लये आधारभूत है।

वा ै ट II पैरेडाइम
डे लगेशन ारा ख़ुद के या सर के भावकारी मैनेजमट क कुंजी कसी तकनीक उपकरण या बाहरी त व
म नह है। यह आंत रक है। यह वा ै ट II के पैरेडाइम म है, जो आपको सशक्त बनाता है क आप
अ याव यकता के बजाय मह व के लस से दे ख।
मने प र श ब म एक अ यास शा मल कया है, जसका शीषक है, “ऑ फ़स म वा ै ट II का एक दन।”
यह आपको बज़नेस क पृ भू म म यह दे खने म समथ बनायेगा क यह पैरेडाइम आपक भावका रता को
कतने सश प से भा वत कर सकता है।
जब आप वा ै ट II का पैरेडाइम वक सत करने पर काम करगे, तो आप अपने जीवन के हर स ताह को
व थत करने और उस पर अमल करने क अपनी यो यता बढ़ा लगे। आप अपने स ताह को अपनी गहनतम
ाथ मकता के चार ओर व थत करगे और अपने श द के अनु प जयगे। आप अपने जीवन के
भावकारी मैनेजमट के लये कसी सरे क् त या व तु पर नभर नह ह गे।
रोचक बात यह है क सभी सात आदत वा ै ट II म ह। हर आदत मूलभूत प से मह वपूण चीज़ से
ता लुक़ रखती है, जन पर अगर नय मत प से अमल कया जाये, तो वे हमारे जीवन म ज़बद त सकारा मक
अंतर ला सकती ह।

अमल म लाने के सुझाव:


1. वा ै ट II क कसी एक ग त व ध को पहचान, जसक आपने अपने जीवन म उपे ा क है - कोई ऐसी
ग त व ध, जसे अ छ तरह करने से क् तगत और ावसा यक प से आपके जीवन पर मह वपूण
भाव पड़ेगा। इसे लख ल और इस पर अमल करने का संक प ल।
2. टाइम मैनेजमट का मै स ख च और यह अनुमान लगाने क को शश कर क आप हर वा ै ट म अपना
कतने तशत समय बताते ह। फर तीन दन तक अपने समय का लेखा-जोखा पं ह मनट के टु कड़ म
रख। आपका अनुमान कतना सही था? या आप अपने समय बताने के तरीक़े से संतु ह? आपको कौन से
प रवतन करने क आव यकता है?
3. उन ज़ मेदा रय क सूची बनाय, ज ह आप सर को स प सकते ह और उन लोग क भी, ज ह आप काम
स प सकते ह या ज ह इन े म ज़ मेदार होने का श ण दे सकते ह। यह नधा रत कर क डे लगेशन
या श ण क या शु करने के लये कन चीज़ क ज़ रत है।
4. अपने अगले स ताह को व थत कर। उस स ताह के लये अपनी भू मका और ल य को लख। फर
ल य को एक व श काय योजना म बदल ल। स ताह के अंत म यह मू यांकन कर क आपक योजना ने
आपके गहरे जीवनमू य और उद्दे य को कतनी अ छ तरह आपके दै नक जीवन म उतारा है तथा आप
उन जीवनमू य और उद्दे य के त कस सीमा तक अखंड रहे ह।
5. ख़ुद को सा ता हक आधार पर व थत करने का संक प ल और इसे करने के लये एक नय मत समय
नश् चत कर।
6. अपने वतमान योजना उपकरण को या तो चौथी पीढ़ के उपकरण म बदल ल या फर इस तरह के उपकरण
को ा त करने क व था कर।
7. वा ै ट II के पैरेडाइम के भाव क अ धक गहरी समझ के लये “ऑ फ़स म वा ै ट II का एक दन”
(प र श ब) पूरा पढ़।
खंड तीन
सावज नक वजय
पर पर- नभरता के पैरेडाइ स

वश्वास के बना म ता नह हो सकती और अखंडता के बना वश्वास।


● से युअल जॉनसन

सा वज नक वजय के े म जाने से पहले हम याद रखना चा हये क भावकारी पर पर- नभरता सफ़ स ची


आ म नभरता क न व पर ही बनाई जा सकती है। क् तगत वजय सावज नक वजय से पहले आती है।
बीजग णत कैलकुलस से पहले आता है।
अब हम पीछे मुड़कर दे खते ह और यह नधा रत करने के लये मैदान का सव ण करते ह क हम जहाँ रह
चुके ह और हम जहाँ ह, उससे हम जहाँ जा रहे ह कस तरह संबं धत है। ऐसा करने पर हम प दखाई दे ता है क
हम जहाँ ह, वहाँ तक हम उस रा ते पर चले बना नह आ सकते थे, जस पर चलकर हम यहाँ तक प ँचे ह। इस
मैदान म अ य कोई रा ते नह ह; कोई शॉटकट नह ह। इस मैदान म पैराशूट से उतरने का कोई उपाय नह है।
सामने जो प र य (landscape) है, वह उन लोग के टू टे संबंध के टु कड़ से भरा आ है, ज ह ने ऐसी को शश
क थी। संबंध को बनाये रखने के लये जो प रप वता और चा र क शक् त आव यक थी, उसके बना उ ह ने
भावकारी संबंध म कूदने क को शश क थी।
परंतु आप ऐसा कर ही नह सकते। आपको इस रा ते पर या ा करना ही होगी। जब तक आप ख़ुद के साथ
सफलता क क़ मत न चुका द, तब तक आप सरे लोग के साथ सफल नह हो सकते।

कुछ साल पहले म ओरेगॉन के तट पर एक से मनार कर रहा था। वहाँ एक आदमी मेरे पास आकर बोला,
“आप जानते ह ट फ़न, सच क ँ तो मुझे इन से मनार म मज़ा नह आता है।” यह सुनते ही मेरा पूरा यान उस पर
क त हो गया।
उसने आगे कहा, “यहाँ बैठे हर क् त को दे ख। इस सुंदर तट को दे ख… समु तथा कृ त क सुंदरता को
दे ख। और म बस यहाँ बैठा आ ँ और चता कये जा रहा ँ क रात को मेरी प नी फ़ोन पर मुझसे कतनी बुरी
तरह से सवाल-जवाब करेगी।
“म जब भी घर से बाहर जाता ँ, तो वह मुझ पर हर बार थड ड ी का योग करती है। मने ना ता कहाँ
कया? वहाँ और कौन था? या म सुबह से दोपहर तक पूरे समय से मनार म था? लंच कब आ? मने लंच के
दौरान या कया? मने दोपहर कैसे बताई? मने शाम को दल बहलाने के लये या कया? मेरे साथ और कौन
था? हमने कस बारे म बातचीत क ?
“और वह सचमुच जो चीज़ जानना चाहती है, उसे वह कभी साफ़-साफ़ नह पूछती है। दरअसल वह मेरे
साथ रहने वाले उस क् त का नाम जानना चाहती है, जसे फ़ोन करके वह मेरी बात क स चाई के बारे म
तहक़ क़ात कर सके। वह मेरी नाक म दम कये रहती है। घर से बाहर जाने पर म जो भी करता ,ँ उसके बारे म
वह सैकड़ सवाल पूछती है। इससे मेरे पूरे अनुभव का मज़ा कर करा हो जाता है। मुझे यह बलकुल भी अ छा
नह लगता।”
वह ब त खी दख रहा था। कुछ दे र तक हमारी चचा के बाद उसने एक ब त रोचक बात कही। उसने थोड़ा
झपते ए कहा, “मुझे लगता है वह जानती है क कौन से सवाल पूछना है। म उससे एक ऐसे ही से मनार म मला
था… तब म कसी और के साथ ववा हत था!”
मने उसक बात म छु पे अथ पर वचार कया और फर कहा, “आप एक तरह से ‘ वक फ़ स’ म ह, है
ना?”
उसने पूछा, “आपका या मतलब है?”
“दे खये, आप यह चाहते ह गे क आप एक पचकस लेकर अपनी प नी का दमाग़ खोल द और उसके
नज़ रये को त काल बदलकर उसक नये सरे से वाय रग कर द, है ना?”
उसने भावावेग म आते ए कहा, “ बलकुल, म यही चाहता ँ क वह बदल जाये। मेरे वचार से उसका मुझे
इस तरह से लगातार परेशान करना ठ क नह है।”
“दे खो दो त,” मने कहा, “आप सफ़ चचा के मा यम से उन सम या से बाहर नह नकल सकते, ज ह
आपने अपने वहार से पैदा कया है।”
हम यहाँ एक ब त नाटक य और ब त ही बु नयाद पैरेडाइम प रवतन के बारे म चचा कर रहे ह। आप
क् त व तकनीक और नपुणता के मा यम से अपने सामा जक वहार को मधुर बनाने क को शश कर
सकते ह, परंतु यह भी हो सकता है क इस या म आप अपने अ त मह वपूण चा र क आधार को ब त छोटा
कर द। बना जड़ के आप फल नह पा सकते। यह मब ता का स ांत है: क् तगत वजय सावज नक
वजय से पहले आती है। आ म- नयं ण और आ म-अनुशासन ही सर के साथ अ छे संबंध क न व ह।
कुछ लोग कहते ह क कसी सरे को पसंद करने से पहले आपको ख़ुद को पसंद करना होता है। म सोचता
ँ क इस वचार म दम है, परंतु अगर आप ख़ुद को जानते ही न ह , अगर आपका ख़ुद पर कोई नयं ण या
वा म व ही न हो, तो ख़ुद को पसंद करना ब त मु कल होता है। अलब ा मनोवै ा नक ो साहन क तकनीक
से सतही तौर पर कुछ समय के लये ऐसा कया जा सकता है।
वा त वक आ म-स मान ख़ुद पर नयं ण से और स ची आ म नभरता से आता है, जो पहली, सरी और
तीसरी आदत का फ़ोकस है। आ म नभरता एक उपल ध है। पर पर- नभरता का चुनाव सफ़ आ म नभर लोग
ही कर सकते ह। जब तक हम स ची आ म नभरता हा सल करने के इ छु क न ह , तब तक मानवीय संबंध क
यो यताय वक सत करने क को शश मूखतापूण है। हम ऐसी को शश कर सकते ह और जब सूरज चमक रहा हो,
तो हम कुछ हद तक कामयाब भी हो सकते ह। परंतु जब मु कल समय आता है - और वह ज़ र आता है - तो
हमारे पास वह न व नह होती, जो इन सब चीज़ को खड़ा रख पाये।
कसी संबंध म सबसे मह वपूण बात यह नह है क हम या कहते या करते ह, ब क यह है क हम अंदर से
या ह। और अगर हमारे श द तथा काय हमारे आंत रक क (च र -आधा रत नी तशा ) के बजाय मानवीय
संबंध क सतही तकनीक ( क् त व-आधा रत नी तशा ) से उ पन्न होते ह, तो लोग इस छल-कपट को भाँप
लगे। हम भावकारी पर पर- नभरता के लये आव यक न व बनाने और उसे बनाये रखने म कामयाब नह हो
पायगे।
जो तकनीक और नपुणताय मानवीय संबंध म सचमुच फ़क़ पैदा करती ह, वे लगभग वाभा वक प से
स चे आ म नभर च र से वा हत होती ह। इस लये कोई संबंध बनाना शु करने क जगह हमारे भीतर है, हमारे
भाव के वृ के भीतर, हमारे अपने च र म। जब हम आ म नभर बन जाते ह - यानी जब हम ोए टव होते ह,
सही स ांत पर क त होते ह, जीवनमू य ारा संचा लत होते ह, अपने जीवन क ाथ मकता के चार ओर
अखंडता से जीवन को व थत करते ह तथा उन ाथ मकता पर अमल करते ह - तभी हम पर पर- नभर
बनने का चुनाव कर सकते ह। तभी हम लोग के साथ समृ , थायी व उ पादक संबंध बनाने म स म हो सकते
ह।
आगे के मैदान क ओर दे खने पर हम पाते ह क हम एक बलकुल नये आयाम म वेश कर रहे ह। पर पर-
नभरता गहरे, समृ और साथक संबंध क संभावना का ार खोल दे ती है। यह या मतीय प से
(geometrically) बढ़ ई उ पादकता, सेवा और योगदान के अलावा सीखने तथा वकास करने क संभावना
का ार खोल दे ती है। परंतु यह हम अपने सुख और सफलता क राह म सबसे बड़ी कावट का सामना करते ह।
यह पर हम सबसे यादा दद और कुंठा का एहसास होता है। और हम उस दद के बारे म ब त जाग क होते ह,
य क यह ब त ती होता है।
अपने क् तगत जीवन म भ व य- (vision), लीडर शप या मैनेजमट के अभाव के पुराने दद के साथ
हम अ सर बरस तक रह सकते ह। हम अ प प से परेशान तथा असहज महसूस करते ह और कभी-कभार,
कम से कम कुछ समय के लये इस दद से राहत पाने के लये क़दम उठाते ह। बहरहाल, चूँ क यह दद पुराना हो
गया है, इस लये हम इसके आद हो जाते ह और इसके साथ जीना सीख लेते ह।
परंतु जब हम सर के साथ वहार म सम याएँ आती ह, तो हम उस ती दद के बारे म ब त जाग क होते
ह। यह दद इतना ती हो जाता है क हम इससे पीछा छु ड़ाना चाहते ह।
तब हम इस दद को वक फ़ स उपाय या तकनीक से र करने क को शश करते ह, जो क् त व-
आधा रत नी तशा के सतही उपचार (band-aids) ह। हम यह नह समझ पाते क यह ती दद कसी गहरी
और पुरानी सम या से उ पन्न आ है और जब तक हम ल ण का उपचार बंद करके सम या का उपचार शु
नह करगे, तब तक हमारी को शश से हम वपरीत प रणाम ही मलगे। इससे हम अपने पुराने दद को सफ़ कुछ
समय तक छु पाने म ही सफल ह गे।
जब हम सर के साथ भावकारी वहार के बारे म सोच रहे ह, तो आइये हम भावका रता क उस
प रभाषा क ओर लौट, जो हमने पहले बताई थी। हम कह चुके ह क यह पी/पीसी संतुलन है तथा मुग और सोने
के अंडे क कहानी क मूल अवधारणा है।
पर पर- नभर थ त म सोने के अंडे भावका रता ह, आश्चयजनक सनज ह, सर के साथ खुले संवाद
और सकारा मक वहार के ारा उ पन्न प रणाम ह। इन अंड को नय मत प से पाने के लये हम मुग क
दे खभाल करने क ज़ रत है। हम उन संबंध को बनाने और उनक परवाह करने क ज़ रत है, जनक वजह से
वे प रणाम संभव ए।
इस लये अपने सव ण ब से नीचे उतरने से पहले और चौथी, पाँचव तथा छठ आदत म वेश करने से
पहले म आपको एक अवधारणा बताना चा ँगा। मेरा वश्वास है क यह पर पर- नभर वा त वकता म संबंध का
वणन करने और पी/पीसी संतुलन को प रभा षत करने का ब त शक् तशाली मेटाफ़र ( पक) है।

भावना मक बक अकाउंट
हम सब जानते ह क बक अकाउंट या होता है। हम इसम धन जमा करते ह और सं चत कोष (reserve)
बनाते ह, जसम से ज़ रत पड़ने पर हम धन नकाल सकते ह। भावना मक बक अकाउंट एक मेटाफ़र है। यह
अकाउंट कसी संबंध म जमा वश्वास के सं चत कोष को बताता है। जब आप सरे क् त के साथ होते ह, तो
यह अकाउंट आपको सुर ा का एहसास दे ता है।
अगर म आपके साथ अपने भावना मक बक अकाउंट म श ाचार, दयालुता व ईमानदारी का वहार करके
और आपसे कये वायदे नभाकर रा शयाँ जमा करता ँ, तो म वश्वास के कोष को बढ़ाता ँ। आपका मुझ पर
वश्वास बढ़ जाता है और ज़ रत पड़ने पर म उस वश्वास का कई बार उपयोग कर सकता ँ। हो सकता है क
मुझसे ग़ल तयाँ भी हो जाय, परंतु वश्वास का तर और भावना मक कोष उनक भरपाई कर दे गा। हो सकता है
क म अपनी बात प ता से न कह पाऊँ, परंतु फर भी आप मेरा मतलब समझ जायगे। आप मुझे “एक श द के
लये दोषी” नह मानगे। जब वश्वास का अकाउंट समृ होता है, तो सं ेषण आसान, तुरंत और भावकारी होता
है।
परंतु अगर मुझम अ श ता दखाने, अपमान करने और नीचा दखाने क आदत है; अगर मुझम अ त
त या करने, नज़रअंदाज़ करने या वे छाचारी होने क आदत है; अगर मुझम आपका वश्वास तोड़ने, आपको
धमकाने या आपके जीवन म छोटे -मोटे दे वता (little tin god) क भू मका नभाने क आदत है, तो अंतत: मेरे
भावना मक बक अकाउंट म जतनी रक़म जमा है, म उससे अ धक नकाल लेता ।ँ वश्वास का तर ब त कम
हो जाता है। इस थ त म म कतना लचीला रह सकता ँ?
बलकुल भी नह । म बा द सुरंग से भरे ख़तरनाक े म चल रहा होऊँगा। मुझे हर बात कहने से पहले
ब त सावधान रहना पड़ेगा। मुझे हर श द को तौलना पड़ेगा। यह तनाव का शहर है, लखे ए ववरण का
बंदरगाह (memo haven) है। यह अपनी पीठ सुर त रखना है, राजनी तक दाँवपच का इ तेमाल करना है।
ब त से संगठन इससे भरे ए ह। ब त से प रवार इससे भरे ए ह। ब त से ववाह इससे भरे ए ह।
अगर वश्वास क रा शयाँ लगातार जमा करके उसका बड़ा कोष जमा न कया जाये, तो वैवा हक र ता
कमज़ोर होने लगेगा। समृ व सहज समझ और सं ेषण क थ त के बजाय एक- सरे के साथ नभाने क थ त
बन जाती है, जहाँ दो लोग ठ क-ठाक स मानजनक और सहनशील तरीक़े से आ म नभर जीवनशै लयाँ जीने क
को शश करते ह। यह संबंध और भी बगड़कर श ुता तथा र ा मकता का हो सकता है। जब त या “लड़ो या
भागो” क होती है, तो शा दक यु होते ह, लोग घर छोड़कर चले जाते ह, बोलचाल बंद हो जाती है, भावना मक
रयाँ बढ़ जाती ह और ख़ुद का खड़ा सुनाते रहने का माहौल बन जाता है। इससे अंतत: घर पर शीतयु का
माहौल बन सकता है। इस थ त म ववाह सफ़ ब च , से स, सामा जक दबाव व छ व क सुर ा के कारण ही
बचा रहता है। या फर इसका अंत अदालत म खुलेआम लड़ाई म हो सकता है, जहाँ अहं को चकनाचूर करने वाले
तलाक़ के कटु कानूनी मुकदमे बरस तक चलते रह सकते ह, जनम लोग लगातार अपने पूव जीवनसाथी के दोष
गनाते रहते ह।
और यह संसार के उस सबसे अंतरंग, मू यवान, आनंददायी, संतु दायक और उ पादक संबंध म घ टत होता
है, जो इस धरती पर दो लोग के बीच संभव है। पी/पीसी लाइटहाउस हमेशा हमारे सामने रहता है। हम या तो इससे
टकराकर ख़ुद को बबाद कर सकते ह या फर हम इसका योग मागदशन करने वाले काश के प म कर सकते
ह।
ववाह जैसे हमारे सबसे नरंतर संबंध म हम नरंतर रा शयाँ जमा करने क सबसे यादा ज़ रत होती है।
लगातार होने वाली अपे ा के कारण पुराना कोष अपने आप कम होता रहता है। मान ली जये, आपको
अचानक हाई कूल का कोई पुराना म मल जाये, जसे आपने कई साल से नह दे खा हो। उसके साथ अपना
संबंध आप वह से शु कर सकते ह, जहाँ पर आपने उसे छोड़ा था, य क पहले क जमा रा श अब भी वहाँ
मौज़ूद है। परंतु जन लोग के साथ आप नय मत प से वहार करते ह, वहाँ अकाउंट्स म नरंतर नवेश करने
क यादा ज़ रत होती है। कई बार आपक रोज़मरा क बात के कारण या आपके त उनक अनुभू त बदलने
के कारण अपने आप रा श कम होती जाती है, जसका आपको पता भी नह चलता। यह ख़ास तौर पर प रवार म
कशोर पु -पु य (teenagers) के साथ होता है।
मान ली जये आपका एक कशोर आयु का पु है और उसके साथ आपका सामा य वातालाप कुछ इस तरह
का होता है, “अपना कमरा साफ़ करो। अपनी शट के बटन लगाओ। रे डयो क आवाज़ धीमी करो। अपने बाल
कटाकर आओ। और कचरे को बाहर फकना मत भूलना!” लंबे समय तक यही सल सला चलता रहे, तो नकाली
जाने वाली रा श ( वद् ॉअ स) जमा होने वाली रा श ( डपॉ ज़ट् स) से ब त यादा हो जायेगी।
अब मान ली जये, यह पु कुछ ऐसे मह वपूण नणय लेने जा रहा है, जो उसके पूरे जीवन को भा वत
करगे। परंतु वश्वास का तर इतना कम है और संवाद क या इतनी सी मत, मशीनी और असंतोषजनक है
क वह आपसे सलाह माँगने के लये उ सुक नह होगा। हो सकता है आपके पास उसक मदद करने के लये
पया त ान और बु हो, परंतु चूँ क आपने अकाउंट म जतना जमा कया था, उससे ब त यादा नकाल लया
है, इस लये वह अ पकालीन भावना मक कोण से अपने नणय लेगा, जसके द घकाल म ब त से नकारा मक
प रणाम हो सकते ह।
इन नाजक मु पर संवाद करने के लये आपको सकारा मक संतुलन क आव यकता है। आप या करते
ह?
अगर आप संबंध म डपॉ ज़ट करना शु कर द, तो या होगा? शायद आपको उसके त अपनी परवाह
दशाने का अवसर मल सकता है - जैसे अगर उसक च केटबो डग म है, तो घर म केटबो डग क प का
लाना, या जब वह कसी ोजे ट पर काम कर रहा हो, तो उसके पास जाकर उसक मदद का ताव रखना।
शायद आप उसे अपने साथ फ़ म दखाने या आइस म खलाने के लये बाहर ले जा सकते ह। आप संभवत: जो
सबसे मह वपूण डपॉ ज़ट कर सकते ह, वह है उसक बात को पूरे यान से सफ़ सुनना, बशत उसक बात सुनते
समय आप मू यांकन न कर, भाषण न द या उसक कही बात म अपनी आ मकथा को पढ़ने क को शश न कर।
सफ़ सुन और समझने क को शश कर। उसे महसूस करने द क आप उसक परवाह करते ह और उसे क् त के
प म वीकार करते ह।
हो सकता है क वह शु म कोई त या ही क्त न करे। हो सकता है उसके मन म यह शंका का भाव
आ जाये, “डैडी अब कस फराक म ह? म मी इस बार मुझ पर कौन सी तकनीक आज़मा रही ह?” परंतु जब
वा त वक डपॉ ज़ट होते रहगे, तो वे जुड़ने लगगे और ओवर ॉ क ई रा श का आँकड़ा कम होने लगेगा।
याद रख, वक फ़ स तकनीक मरी चका ह। संबंध को बनाने और सुधारने म समय लगता है। अगर आप
अपने कशोर पु क त या के अभाव या उसक एहसानफ़रामोशी को दे खकर अपना धीरज खो बैठते ह, तो
आप ब त बड़ा वद् ॉअल कर लेते ह, जससे आपके सारे अ छे काम पर पानी फर सकता है। “हमने तु हारे
लये इतना कुछ कया है, हमने इतने याग कये ह, इसके बाद तुम इतने एहसानफ़रामोश कैसे हो सकते हो? हम
तु हारा भला करने क को शश कर रहे ह और तुम इस तरह वहार कर रहे हो। मुझे इस पर वश्वास नह होता!”
धैय रखना मु कल है। ोए टव बनने, अपने भाव के वृ पर यान क त करने और वक सत हो रहे
संबंध को पोषण दे ने के लये च र क आव यकता होती है। च र न होने पर ही आप “फूल को उखाड़कर यह
दे खते ह क जड़ कतनी अ छ तरह बढ़ रही ह।”
वा त वकता यह है क यहाँ कोई वक फ़ स काम नह करता है। संबंध को बनाना और सुधारना
द घकालीन नवेश है।

छह मुख डपॉ ज़ट् स


मेरे हसाब से छह मुख डपॉ ज़ट् स होते ह, जो भावना मक बक अकाउंट को समृ बनाते ह।

क् त को समझ
सामने वाले को समझने क स ची को शश करना शायद आपके ारा कये जाने वाले सबसे मह वपूण
डपॉ ज़ट् स म से एक है। यह हर अ य डपॉ ज़ट क कुंजी है। जब तक आप सामने वाले को समझते नह ह, तब
तक आप सचमुच यह नह जान पाते क वह कस चीज़ को डपॉ ज़ट मानता है। जसे आप डपॉ ज़ट मान रहे ह
- बात करने के लये साथ घूमना, इकट् ठे आइस म खाने बाहर जाना, कसी साझे ोजे ट पर काम करना - हो
सकता है, सामने वाला उसे डपॉ ज़ट ही न मान रहा हो। आपक नज़र म जो डपॉ ज़ट है, वह अगर उसक गहन
चय या आव यकता के अनु प न हो, तो हो सकता है क वह उसे वद् ॉअल मान रहा हो।
एक क् त के लये जीवन म जो सबसे मह वपूण है, वह सरे के लये सबसे गौण हो सकता है। अगर
आपको डपॉ ज़ट करना है, तो जो सरे क् त के लये मह वपूण है, वह आपके लये भी उतना ही मह वपूण
होना चा हये, जतना क वह क् त आपके लये है। मान ली जये, आप कसी उ च ाथ मकता वाले ोजे ट पर
काम कर रहे ह , तभी आपका छह साल का ब चा आकर कसी ऐसी बात के लये बाधा डालता है, जो आपको
मह वहीन लगती है, परंतु हो सकता है क वह उसके लये ब त मह वपूण हो। सामने वाले के जीवनमू य को
पहचानने और उसके त बारा तब होने के लये सरी आदत क ज़ रत होती है। इसके अलावा, आपको
मानवीय ाथ मकता को शेड्यूल से ऊपर रखने क तीसरी आदत क भी ज़ रत पड़ती है। जो कुछ वह कहना
चाहता है, उसके मह व को वीकार करके आप उसके त समझ द शत करते ह, जो एक बड़ा डपॉ ज़ट बन
जाती है।

मेरा एक दो त है, जसके बेटे को बेसबॉल म ब त च थी। मेरे म को बेसबॉल म ज़रा भी दलच पी नह
थी। परंतु एक बार वह अपने बेटे के साथ मेजर लीग ट म के सभी मैच दे खने गया। इस दौरे म छह स ताह लगे और
ब त सा धन भी, परंतु इससे उनके संबंध सशक्त और गाढ़ बन गये।
वापसी पर मेरे म से पूछा गया, “ या आपको बेसबॉल से इतना यादा ेम है?”
“नह ,” उसने जवाब दया, “परंतु मुझे अपने बेटे से इतना यादा ेम है।”

मेरा एक और म है, जो कॉलेज म ोफ़ेसर है। उसके अपने कशोर पु के साथ संबंध ब त ख़राब थे। मेरे
म का पूरा जीवन मूलत: शै णक रहा था और उसे महसूस होता था क उसका पु अपना म त क वक सत
करने क मेहनत करने के बजाय अपने हाथ से काम करके अपनी ज़दगी बबाद कर रहा है। इसके प रणाम व प
वह लगभग हमेशा अपने पु के पीछे पड़ा रहता था। पश्चाताप के ण म वह डपॉ ज़ट करने क को शश करता
था, परंतु उनसे संबंध म कोई सुधार नह होता था। पु अपने पता क को शश को अ वीकृ त, तुलना और
मू यांकन के नये तरीक़ के प म दे खता था। इस वजह से डपॉ ज़ट् स के बजाय वद ॉअ स हो जाते थे। संबंध
ख़राब होते जा रहे थे और इससे पता का दल टू ट रहा था।
एक दन मने अपने म को यह स ांत बताया क सामने वाले के लये जो मह वपूण है, उसे अपने लये
उतना मह वपूण बना लेना चा हये, जतना वह क् त आपके लये है। यह बात उसके दल म उतर गई। उसने
अपने बेटे को घर के चार तरफ़ चीन क द वार का लघु प (miniature) बनाने के ोजे ट म लगा दया। इस
काम म काफ़ समय लगा और उन दोन ने इस पर डेढ़ साल तक साथ-साथ काम कया।
इस जुड़ाव के एहसास क वजह से पु अपने जीवन के उस मु कल दौर को पार कर गया और उसम अपने
म त क का वकास करने क इ छा बढ़ गई। परंतु असली लाभ उनके संबंध को आ। कड़वाहट के बजाय यह
पता और पु दोन के लये ख़ुशी तथा शक् त का ोत बन गया।

हमम यह वृ होती है क हम अपने जीवन के आधार पर यह सोच लेते ह क सरे लोग या चाहते ह या
उ ह कस चीज़ क ज़ रत है। हम सर के वहार पर अपने इरादे आरो पत (project) कर लेते ह। हम अपनी
आव यकता और इ छा के आधार पर यह ा या करते ह क कौन सी चीज़ डपॉ ज़ट है, या तो अभी या
उस समय जब हम जीवन क उसी अव था या उ म थे। अगर वे लोग हमारी को शश को डपॉ ज़ट नह मानते ह,
तो हमारी वृ यह सोचने क होती है क हमारे अ छे इराद के साथ कये गये यास को नकार दया गया है
और इसके बाद हम हार मान लेते ह।
व णम नयम (Golden Rule) कहता है, “ सर के साथ वैसा ही वहार कर, जैसा आप सर से अपने
लये चाहते ह ।” हालाँ क सतही तौर पर इसका यह मतलब हो सकता है क आप उनके लये वही कर, जो आप
उनसे अपने लये करवाना चाहते ह। परंतु मुझे लगता है क इसका अ धक गहरा अथ यह है क आप सर को
अनूठे क् तय के प म उसी तरह गहराई से समझ, जस तरह से आप समझे जाना चाहते ह और फर उस
समझ के आधार पर उनके साथ वहार कर। जैसा एक सफल पता ने ब च के लालन-पालन के बारे म सलाह द
थी, “उनके साथ अलग-अलग वहार करते ए उनके साथ एक सा वहार कर।”

छोट -छोट बात पर यान द


छोट -छोट उदारताय और श ाचार ब त मह वपूण ह। छोट -छोट अ श ताय, नममताय या अपमान क
बात ब त बड़े वद् ॉअ स का कारण बनती ह। संबंध म छोट बात ही बड़ी बात बन जाती ह।

मुझे एक रात क घटना याद है, जब म कुछ साल पहले अपने दो पु के साथ बाहर घूमने गया था। यह पता
और पु क सु नयो जत तफ़रीह थी, जसम जमना ट स, कु ती के मैच, हॉटडॉग, को ड क और फ़ म सब
कुछ था - यानी पूरी मौज-म ती।
फ़ म के बीच म ही सीन, जो उस समय चार साल का था, अपनी कुस पर सो गया। उसका बड़ा भाई
ट फ़न, जसक उ छह साल थी, जागता रहा और हमने साथ-साथ पूरी फ़ म दे खी। फ़ म ख़ म होने के बाद
मने सीन को अपनी बाँह म उठाया और उसे कार तक लाकर पछली सीट पर लटा दया। उस रात ब त ठं ड थी,
इस लये मने अपना कोट उतारा और सीन के चार तरफ़ सावधानी से लपेटते ए उसे अ छ तरह ढँ क दया।
जब हम घर प ँच,े तो म सीन को गोद म लेकर तुरंत अंदर गया और उसे ब तर पर लटा दया। ट फ़न ने
अपना पायजामा पहना, दाँत साफ़ कये और ब तर पर लेट गया। म भी उसके बगल म लेट गया, ता क बाहर
बताई गई शाम के बारे म उससे बात कर सकूँ।
“ ट फ़न, तु ह यह कैसा लगा?”
उसने जवाब दया, “अ छा।”
“तु ह मज़ा आया?”
“हाँ।”
“तु ह सबसे यादा पसंद या आया?”
“मालूम नह । शायद ै पलीन।”
“वह ब त ब ढ़या चीज़ थी, है ना - हवा म कलाबा ज़याँ खाना और करतब दखाना?”
वह यादा त या क्त नह कर रहा था। मने पाया क म ही बोले जा रहा था। म हैरान था क ट फ़न
खुलकर बात य नह कर रहा है। यह उसके वभाव के वपरीत था, य क जब रोमांचक चीज़ होती थ , तो आम
तौर पर वह खुलकर बात करता था। इससे मुझे थोड़ी नराशा ई। मुझे लगा, कुछ न कुछ गड़बड़ है; घर लौटते
समय और सोने क तैयारी करते समय भी वह ब त ख़ामोश था।
अचानक ट फ़न ने करवट बदली और द वार क तरफ़ मुँह कर लया। मुझे आ य आ क उसने ऐसा य
कया, इस लये मने थोड़ा ऊपर उठकर उसका चेहरा दे खा। उसक आँख म आँसू उमड़ रहे थे।
“ या गड़बड़ हो गई, बेटे? या बात है?”
वह मेरी तरफ़ मुड़ा। म दे ख सकता था क आँसू आने और ह ठ तथा ठु ी काँपने के कारण वह थोड़ा
ल जत महसूस कर रहा था।
“डैडी, अगर मुझे ठं ड लग रही होती, तो या आप मेरे चार तरफ़ भी अपना कोट लपेट दे ते?”
हमने जो वशेष शाम बाहर गुज़ारी थी, उसम ब त सी याद रखने वाली घटनाय थ । परंतु उसे जो घटना
सबसे मह वपूण लगी थी, वह दयालुता का एक छोटा सा काम था - उसके छोटे भाई के त णक, अचेतन ेम
का दशन।
वह अनुभव उस समय भी मेरे लये एक सशक्त क् तगत सबक़ था और आज भी है। लोग अंदर से ब त
नाजक और संवेदनशील होते ह। म नह मानता क इसम उ या अनुभव से ब त यादा फ़क़ पड़ता है। बाहरी
आवरण कतना ही कठोर दख रहा हो, उसके भीतर दल क नाजक भावनाय और कोमल भाव होते ह।

वायदे पूरे कर
अपने वायदे पूरे करना एक मुख डपॉ ज़ट है; उ ह पूरा न करना एक मुख वद् ॉअल है। दरअसल, शायद
इससे बड़ा वद् ॉअल कोई नह है क आप कसी से कोई मह वपूण वायदा कर और फर उसे पूरा न कर। अगली
बार जब आप वायदा करगे, तो वह उस पर वश्वास नह करेगा। लोग म यह वृ होती है क वे वायद के
आधार पर अपनी आशा के महल बना लेते ह, ख़ासकर तब जब वे वायदे उनक मूलभूत आजी वका से संबं धत
ह।
पता के प म मने इस नयम पर चलने क को शश क है क कोई ऐसा वायदा कभी न क ँ , जसे म पूरा न
कर पाऊँ। इस लये म वायदे करने म ब त सावधानी बरतता ँ और ब त कम वायदे करता ँ। इसके अलावा वायदे
करते समय म प रवतनशील और आपातकालीन थ तय के बारे म वचार करता ,ँ ता क अचानक कोई ऐसी
थ त न आ जाये, जससे म उस वायदे को पूरा न कर पाऊँ।
कभी-कभार, मेरी तमाम को शश के बावज़ूद अनपे त काम आ ही जाता है और ऐसी थ त उ पन्न हो
जाती है क वायदे को पूरा करना मूखतापूण या असंभव लगता है। परंतु म उस वायदे का स मान करता ँ। म या
तो उसे हर हाल म पूरा करता ँ या फर सामने वाले को पूरी थ त समझाकर उससे आ ह करता ँ क वह मुझे
उस वायदे से मुक्त कर दे ।
म मानता ँ क अगर आप हमेशा अपने वायदे पूरे करने क आदत डाल लेते ह, तो आप वश्वास के सेतु
बनाते ह, जो आपके और आपके ब चे के बीच क समझ क खाई को पाट दे ते ह। इसके बाद जब आपका ब चा
कोई ऐसा काम करना चाहता हो, जसे आप पसंद न करते ह , य क आपक प रप वता उसके ऐसे प रणाम दे ख
सकती है, जो ब चा नह दे ख सकता, तो आप उससे यह कह सकते ह, “बेटे, अगर तुम ऐसा करोगे, तो म तुमसे
वायदा करता ँ क उसका प रणाम यह होगा।” अगर ब चे को आपके श द पर, आपके वायद पर वश्वास है,
तो वह आपक सलाह मान लेगा।

अपे ा को प कर
ज़रा क पना क जये, कतनी मु कल हो जायेगी अगर आपके बॉस और आप इस बारे म अलग-अलग
वचार रखते ह क आपके काय- ववरण (job description) तैयार करने क भू मका कसक है।
आप पूछ सकते ह, “मुझे जो काम करने ह, उनका व तृत ववरण मुझे कब मलेगा?”
आपका बॉस यह जवाब दे सकता है, “म कब से इंतज़ार कर रहा ँ क तुम मेरे पास ववरण लखकर
लाओगे, ता क हम उस पर चचा कर सक।”
“मने सोचा था क मेरे काम को प रभा षत करना आपक भू मका है।”
“यह मेरी भू मका नह है। या तु ह याद नह है? मने तु ह पहले दन ही बता दया था क तुम अपने काम
को कैसे करोगे, यह पूरी तरह से तुम पर नभर करता है।”
“मने सोचा था, आपका यह मतलब है क मेरे काम क गुणव ा मुझ पर नभर करती है। परंतु म तो यह भी
नह जानता क मेरा काम वा तव म या है।”
ल य के े म अ प अपे ाय संवाद और वश्वास को भी कमज़ोर बनाती ह।
“मने बलकुल वही कया, जो आपने मुझसे करने के लये कहा था और यह रही वह रपोट, जो आपने मुझसे
बनाने के लये कही थी।”
“मुझे रपोट नह चा हये थी। तु हारा ल य सम या का वश्लेषण करके उसक रपोट बनाना नह था, ब क
उसे सुलझाना था।”
“मुझे लगा क मेरा ल य सम या के बारे म पूरी जानकारी एक त करना था, ता क हम इसे सुलझाने का
काम कसी सरे को स प सक।”
हमारे बीच इस तरह क चचाय कतनी बार होती ह?
“आपने कहा था…”
“नह , तुम ग़लत हो! मने यह कहा था…”
“आपने ऐसा नह कहा था! आपने कभी नह कहा क मुझे यह करना चा हये…”
“याद करो, मने कहा था! मने बलकुल साफ़ श द म कहा था…”
“आपने इसका ज़ तक नह कया था…”
“परंतु हम इस बात पर सहमत ए थे…”
संबंध म आने वाली लगभग सभी मु कल या परेशा नय का कारण भू मका और ल य के संदभ म
वरोधाभासी या अ प अपे ा क जड़ म ह। मु ा कुछ भी हो सकता है। नौकरी म कसके ज़ मे या काम है
से लेकर घर म कौन मछ लय को दाना डाले और कचरा बाहर ले जाये, या फर आप अपनी बेट से कमरा साफ़
करने क बात कस तरह कहते ह - मु ा कोई भी हो, यह बात तय है क अ प अपे ा से ग़लतफ़हमी, नराशा
और वश्वास के वद् ॉअ स ह गे।
कई अपे ाय अनकही या न हत होती ह। उ ह प प से बताया या घो षत नह कया जाता, परंतु लोग
व श भू मका म वे अपे ाय रखते ह। उदाहरण के लये, वैवा हक जीवन म प त-प नी क एक- सरे से
अनकही अपे ाय होती ह। हालाँ क इन अपे ा पर कभी वचार- वमश नह कया जाता है और कई बार तो
अपे ा करने वाले क् त को भी इनके बारे म पता नह होता, परंतु उ ह पूरा करने से संबंध म ब त बड़े
डपॉ ज़ट् स होते ह और उनक उपे ा करने से वद् ॉअ स होते ह।
इसी लये यह ब त मह वपूण है क जब आप कसी नई थ त म आय, तो सभी अपे ा को बाहर
नकलवाकर मेज़ पर रखवा ल। लोग अपे ा के आधार पर ही एक- सरे का मू यांकन करते ह। और अगर उ ह
ऐसा महसूस होता है क उनक मूलभूत अपे ा क उपे ा हो रही है, तो वश्वास का कोष कम हो जाता है। कई
नकारा मक थ तयाँ तो इस वजह से उ पन्न होती ह य क हम यह मान लेते ह क हमारी अपे ाय सबको साफ़
नज़र आती ह, उ ह सरे लोग प प से समझते ह और उनक अपे ाय भी वही ह जो हमारी ह।
अपे ा को शु म ही प कर दे ना डपॉ ज़ट है। इसम या ा क शु आत म समय और यास के
वा त वक नवेश क ज़ रत होती है, परंतु बाद म समय और यास दोन क ही ब त बचत होती है। अगर
अपे ाय प और साझी न ह , तो लोग भावना मक प से उलझने लगते ह, छोट -छोट ग़लतफ़ह मयाँ बढ़ने
लगती ह और क् त व के संघष तथा संवादहीनता म बदल जाती ह।
अपे ा को प करने म कई बार काफ़ ह मत क ज़ रत होती है। इस तरह वहार करना यादा
आसान लगता है जैसे हमारे बीच म कोई मतभेद नह है और हम यह आशा करते ह क थ त अपने आप सुधर
जायेगी। जब क हम करना यह चा हये क हम उन मतभेद का सामना कर, अपे ा के साझे ल य पर सहमत
होने का यास कर और फर उसे हा सल करने के लये मलकर काम कर।

क् तगत अखंडता दशाय


क् तगत अखंडता से वश्वास उ पन्न होता है और यह कई तरह के डपॉ ज़ट् स क न व है।
अखंडता का अभाव होने पर वश्वास के अकाउंट को समृ बनाने क लगभग हर को शश नाकाम हो
सकती है। अगर लोग के अंदर छल-कपट है, तो हो सकता है वे समझने क को शश कर, छोट -छोट बात का
यान रख, अपने वायदे पूरे कर, अपे ा को प और पूरा कर, परंतु इसके बाद भी वश्वास का कोष न बना
पाय।
अखंडता (integrity) म ईमानदारी (honesty) शा मल है, परंतु यह इससे आगे तक जाती है। ईमानदारी
सच बोलना है। सरे श द म, यह हमारे श द को वा त वकता के अनु प बनाना है। अखंडता हमारी
वा त वकता को हमारे श द के अनु प बनाना है - सरे श द म, अपने वायद और अपे ा को पूरा करना है।
इसम सुसंयो जत च र और एक पता क आव यकता होती है, जो मूलत: ख़ुद के त होती है, परंतु जीवन के
त भी होती है।
अखंडता को कट करने के सबसे मह वपूण तरीक़ म से एक है उनके त न ावान होना, जो उप थत
नह ह। ऐसा करके हम उन लोग का वश्वास ा त करते ह, जो उप थत ह। जब आप अनुप थत लोग का
बचाव करते ह, तो आप उप थत लोग का वश्वास हा सल करते ह।
मान ली जये, आप और म कभी अकेले म अपने सुपरवाइज़र क जमकर बुराई कर रहे थे। अगर सुपरवाइज़र
वहाँ मौज़ूद होता, तो हम इस तरह क बात करने क ह मत कभी नह करते। अब अगर आपके और मेरे बीच
मतभेद हो जाते ह, तो फर या होगा? आप जानते ह क म आपक कमज़ो रय के बारे म कसी सरे से बुराई
कर रहा होऊँगा। आपने और मने अपने सुपरवाइज़र क पीठ पीछे यही तो कया था। आप मेरा वभाव जानते ह।
म आपके मुँह पर तो मीठ -मीठ बात क ँ गा, परंतु आपक पीठ पीछे आपक बुराई क ँ गा। आप मुझे ऐसा करते
ए दे ख चुके ह।
यही छल-कपट का सार है। या इससे आपके साथ मेरे अकाउंट म वश्वास का कोष बढ़े गा?
सरी तरफ़, मान ली जये आप सुपरवाइज़र क आलोचना कर रहे थे और मने आपसे यह कहा था क म
आपक आलोचना के कुछ ब से सहमत ँ। इसके बाद मने यह सुझाव दया था क हम दोन सीधे
सुपरवाइज़र के पास चलते ह और उसे भावकारी ढं ग से बताते ह क कस तरह थ त सुधर सकती है। तब आप
यह जान जायगे क अगर कोई मुझसे आपक पीठ पीछे बुराई करेगा, तो म या क ँ गा?
एक और उदाहरण दे ख। मान ली जये आपके साथ संबंध बनाने के यास म मने आपको कोई ऐसी बात बता
द , जो कसी और ने मुझे वश्वास म लेकर बताई थी। हो सकता है म यह क ,ँ “मुझे दरअसल आपको यह नह
बताना चा हये, परंतु चूँ क आप मेरे म ह इस लये…” या सरे क् त के त वश्वासघात से आपके साथ मेरे
वश्वास का कोष बढ़े गा? या आप यह सोचगे क अगर आप मुझे वश्वास करके कुछ बतायगे, तो म उसे सर
को बता ँ गा?
ऐसा लग सकता है क इस तरह के छल-कपट से आप सामने वाले के साथ अपने संबंध के अकाउंट म
डपॉ ज़ट कर रहे ह, परंतु वा त वकता म यह वद् ॉअल है, य क आप अपनी अखंडता क कमी को दशा रहे
ह। हो सकता है आपको कसी को नीचा दखाने या गोपनीय जानकारी बताने के णक आनंद का सोने का अंडा
मल जाये। बहरहाल, इस या म आप मुग का गला दबा रहे ह और उस संबंध को कमज़ोर बना रहे ह, जो
द घकालीन संबंध म नरंतर आनंद दान करता है।
पर पर- नभर वा त वकता म अखंडता सफ़ यह है: आप सबके साथ एक ही कार के स ांत से वहार
करते ह। जब आप ऐसा करते ह, तो लोग आप पर वश्वास करगे। ऐसा हो सकता है क शु आत म वे उस तरह
के ईमानदार टकराव को पसंद न कर, जो इस तरह क अखंडता से उ पन्न हो सकता है। आमना-सामना करने के
लये ब त ह मत क ज़ रत होती है, इस लये ब त से लोग यूनतम तरोध के माग पर चलना पसंद करते ह।
सर को नीचा दखाना, उनक आलोचना करना, वश्वास तोड़ना या पीठ पीछे क जाने वाली आलोचना म
ह सा लेना हमेशा आसान होता है। परंतु अगर आप उनके त ईमानदार, न कपट और दयालु ह, तो कुछ समय
बाद लोग आप पर वश्वास करगे और आपका स मान करगे। आप उनक इतनी परवाह करते ह क आप आमना-
सामना करके थ त को सुलझाने क को शश करते ह। कहा जाता है क वश्वास कया जाना यार कये जाने से
यादा महान होता है। म मानता ँ क वश्वास कया जाना आगे चलकर यार कये जाने म बदल जाता है।

जब मेरा बेटा जोशुआ काफ़ छोटा था, तो वह अ सर मुझसे जीवन संबंधी गहरे सवाल पूछा करता था। जब
भी म कसी सरे के त अ त त या क्त करता था या थोड़ा सा भी अधीर या नमम होता था, तो उसे
अ छा नह लगता था। वह इतना संवेदनशील तथा ईमानदार था और हमारा संबंध इतना अ छा था क वह सीधे
मेरी आँख म दे खकर पूछता था, “डैडी, या आप मुझे यार करते ह?” उसे लगता था क अगर म कसी सरे के
साथ जीवन का कोई मूलभूत स ांत तोड़ रहा ,ँ तो कह म इसे उसके साथ भी तो नह तोडँगा।
श क और पता के प म मने पाया है क 99 क कुंजी एक है - ख़ासकर वह एक, जो ब त से लोग के
धैय और अ छे वभाव क परी ा ले रहा हो। एक व ाथ के त ेम और अनुशासन बा क़य के त ेम दशाता
है। आप एक के साथ जैसा वहार करते ह, वह बता दे ता है क आप बाक़ 99 को कतना मह व दे ते ह, य क
अंतत: हर क् त एक होता है।
अखंडता का अथ ऐसे हर संवाद से बचना भी है, जसम छल-कपट हो, वश्वासघात हो और जो मानवीय
ग रमा के तकूल हो। झूठ क एक प रभाषा यह है, “झूठ कसी भी तरह का ऐसा संवाद है, जसका इरादा धोखा
दे ना हो।” चाहे हम श द से सं े षत कर या वहार से, अगर हमम अखंडता है, तो हमारा इरादा धोखा दे ने का
नह हो सकता।

जब आप वद् ॉअल कर, तो स चे दल से माफ़ माँग


जब हम भावना मक बक अकाउंट से वद् ॉअल करते ह, तो हम माफ़ माँगना चा हये और स चे दल से
माँगना चा हये। बड़े डपॉ ज़ट् स स चे श द से होते ह:
“म ग़लत था।”
“म नदयी बन गया था।”
“मने आपके त स मान नह दखाया।”
“मने आपके साथ ग रमापूण वहार नह कया और मुझे सचमुच ख़ेद है।”
“मने आपके म के सामने आपको ल जत कया और मुझे ऐसा करने का कोई अ धकार नह था।
हालाँ क म आपके सामने अपनी बात रखना चाहता था, परंतु मुझे ऐसा कभी नह करना चा हये था। म माफ़
माँगता ँ।”
बेचारगी के बजाय स चे दल से तुरंत माफ़ माँगने के लये ब त चा र क शक् त क आव यकता होती है।
सचमुच माफ़ माँगने के लये क् त का ख़ुद पर वा म व होना चा हये और उसके अंदर मूलभूत स ांत तथा
जीवनमू य क सुर ा का गहरा बोध होना चा हये।
जन लोग म आंत रक सुर ा ब त कम होती है, वे ऐसा नह कर सकते। इससे वे ब त असुर त महसूस
करते ह। उ ह लगता है ऐसा करने से वे ब त बल तथा कमज़ोर नज़र आयगे और वे डरते ह क सरे लोग उनक
कमज़ोरी का फ़ायदा उठा लगे। उनक सुर ा सर के वचार पर आधा रत होती है और वे इस बारे म च तत होते
रहते ह क सरे या सोचगे। इसके अलावा, वे आम तौर पर महसूस करते ह क उनके काम उ चत थे। वे अपनी
ग़लती को सर क ग़ल तय के नाम पर तकसंगत स करते ह और अगर वे माफ़ माँगते भी ह, तो यह सतही
होती है।
एक पूव दे श क कहावत है, “अगर आप झुककर सलाम करना चाहते ह, तो नीचे तक झुक।” ईसाई
धमशा कहता है, “आ ख़री दमड़ी का भुगतान भी कर द।” डपॉ ज़ट बनने के लये माफ़ न सफ़ स ची होना
चा हये, ब क यह सामने वाले को भी स ची लगना चा हये।
लयो रो कन ने सखाया है, “कमज़ोर लोग ही ू र होते ह। वन ता क आशा सफ़ शक् तशाली लोग से
ही क जा सकती है।”

एक दन दोपहर को म घर के अपने ऑ फ़स म बैठकर लख रहा था। म धैय के वषय पर लख रहा था। हॉल
म ब च के ऊपर-नीचे भागने का शोर सुनाई दे रहा था। उठापटक क ज़ोरदार आवाज़ आ रही थ । मने महसूस
कया क मेरा ख़ुद का धैय कम होने लगा था।
अचानक मेरा पु डे वड बाथ म का दरवाज़ा ज़ोर-ज़ोर से भड़भड़ाने लगा। वह गला फाड़कर च ला रहा
था, “मुझे अंदर आने दो! मुझे अंदर आने दो!”
म अपने ऑ फ़स से भागकर बाहर गया और ब त तीखे वर म बोला, “डे वड, या तुम जानते हो क इससे
मुझे कतना वधान हो रहा है? या तुम जानते हो क कसी वषय पर यान क त करना और रचना मक प
से लखना कतना मु कल काम होता है? अब तुम अपने कमरे म जाओ और तब तक वह रहो, जब तक क तुम
अपने वहार को न सुधार लो।” वह उदास होकर अपने कमरे म चला गया और दरवाज़ा बंद कर लया।
जब म पलटा, तो मुझे एक और सम या नज़र आई। हॉल के चार फ़ट चौड़े ग लयारे म ब चे फ़टबॉल खेल रहे
थे और उनम से एक के मुँह पर कोहनी लग गई थी। वह हॉल म लेटा आ था और उसके मुँह से ख़ून बह रहा था।
मुझे पता चला क डे वड उसके लये गीला तौ लया लेने गया था और इसी लये बाथ म का दरवाज़ा भड़भड़ा रहा
था। परंतु अंदर उसक बहन मा रया नहा रही थी, इस लये दरवाज़ा नह खोल रही थी।
जब मुझे एहसास आ क मने थ त का कतना ग़लत वश्लेषण कर लया था और ज़ रत से यादा ही
त या क्त कर द थी, तो म फ़ौरन डे वड से माफ़ माँगने गया।
जैसे ही मने दरवाज़ा खोला, उसने छू टते ही मुझसे पहला वा य यह कहा, “म आपको माफ़ नह क ँ गा।”
“ य बेटा, य नह करोगे?” मने पूछा। “सच कहता ँ बेटा, मुझे यह मालूम नह था क तुम अपने भाई क
मदद करने क को शश कर रहे हो। तुम मुझे माफ़ य नह करोगे?”
उसने जवाब दया, “ य क पछले ह ते भी आपने ऐसा ही कया था।” सरे श द म वह यह कह रहा था,
“डैडी, आपने अपने अकाउंट से ओवर ॉ कर लया है और आप बात करके उस सम या से बाहर नह नकल
सकते, जसे आपने अपने वहार से पैदा कया है।”

स ची माफ़ से डपॉ ज़ट् स बनते ह। बार-बार माँगी जाने वाली माफ़ , जो स ची न लगे, वद् ॉअल होती है।
और यह बात संबंध क गुणव ा म झलकती है।
ग़लती करना एक बात है और उसे वीकार नह करना बलकुल सरी बात है। लोग ग़ल तय को माफ़ कर
दगे, य क ग़ल तयाँ अ सर दमाग़ या नणय से संबं धत होती ह। परंतु लोग दल क ग़ल तय को आसानी से
माफ़ नह करगे। बुरे इराद , बुरे ल य , पहली ग़लती को छु पाने और उ चत ठहराने क अहंकारी को शश को
आसानी से माफ़ नह कया जायेगा।

ेम के नयम और जीवन के नयम


जब हम बना शत के ेम के डपॉ ज़ट बनाते ह, जब हम ेम के ाथ मक नयम के अनु प जीते ह, तो हम
सर को जीवन के ाथ मक नयम के अनु प जीने के लये ो सा हत करते ह। सरे श द म, जब हम सर से
सचमुच बना शत या बंधन का ेम करते ह, तो हम सुर त महसूस करने म उनक मदद करते ह। अपने मूलभूत
जीवनमू य, पहचान और अखंडता म वे ख़ुद को सुर त, तकसंगत और ढ़ महसूस करते ह। उनके वाभा वक
वकास क या को ो साहन मलता है। हम उनके लये जीवन के नयम - सहयोग, योगदान, आ म-
अनुशासन व अखंडता - के अनु प जीना आसान बना दे ते ह। हम उनके सव च तथा सव े व प को खोजने
और उसके अनु प जीने के काय को आसान बना दे ते ह। हम उ ह यह वतं ता दे ते ह क वे हमारी शत और
पाबं दय पर त या करने के बजाय अपने आंत रक आदे श के अनु प वहार कर। इसका यह अथ नह है
क हम कोई सीमा ही नधा रत न कर या बल बन जाय। यह अपने आप म एक ब त बड़ा वद् ॉअल है। हम
सलाह दे ते ह, हम आ ह करते ह, हम सीमाय और प रणाम नधा रत करते ह। परंतु चाहे जो हो, हम ेम करते ह।
जब हम ेम के ाथ मक नयम क उपे ा करते ह - जब हम इस उपहार के साथ शत और बंधन जोड़ दे ते
ह - तो हम दरअसल सर को जीवन के ाथ मक नयम का उ लंघन करने के लये उकसाते ह। हम उ ह एक
रए टव और र ा मक थ त म प ँचा दे ते ह, जहाँ उ ह यह सा बत करने क आव यकता महसूस होती है,
“आपसे वतं रहकर भी आ म नभर क् त के प म मेरा मह व है।”
वा त वकता म वे आ म नभर नह ह। वे त- नभर (counter-dependent) ह, जो नभरता का ही सरा
प है और यह प रप वता के च य पथ के सबसे नचले सरे पर है। वे रए टव - लगभग श ुक त - बन जाते
ह, अपने अ धकार क र ा करने के बारे म अ धक च तत हो जाते ह, अपनी वैयक् तकता के माण तुत करने
के बारे म अ धक सजग हो जाते ह बजाय इसके क वे अपने आंत रक आदे श को ोए टव तरीक़े से सुन और
उनका स मान कर।
व ोह म त क क नह , दय क गाँठ है। इसे खोलने क कुंजी धनरा श डपॉ ज़ट करना है - बना शत के
ेम के नरंतर डपॉ ज़ट।

एक ब त त त कॉलेज के डीन मेरे म थे। उ ह ने अपने पु को उस कॉलेज म श ा दलाने क योजना


बनाई थी और वे इसके लये बरस से पैसे जोड़ रहे थे। परंतु जब समय आया, तो ब चे ने उस कॉलेज म पढ़ने से
इंकार कर दया।
इससे उसके पता ब त च तत हो गये। उस वशेष कॉलेज से नातक होकर नकलना पु के लये ब त
लाभकारी होता। इसके अलावा, यह एक पा रवा रक परंपरा भी थी। उससे पहले क तीन पी ढ़याँ वहाँ पढ़ चुक
थ । पता ने आ ह कया, मान-मनुहार क और चचा क । उ ह ने को शश क क पु को समझने के लये उसक
बात सुन, परंतु पूरे समय वे यही आशा करते रहे क पु अपना इरादा बदल लेगा।
जो सू म संदेश दया जा रहा था, वह शत पर आधा रत ेम का था। पु को लग रहा था क उसके पता एक
क् त और पु के प म उसे मह व नह दे रहे ह। इसके बजाय उस कॉलेज म भेजने क उनक इ छा यादा
बड़ी और मह वपूण थी। यह पु के लये ब त डराने वाली बात थी। प रणाम व प, वह अपनी पहचान और
अखंडता के साथ तथा उसे बनाये रखने के लये लड़ा। उसने वहाँ न जाने के अपने नणय को तकसंगत ठहराने के
लये अपने संक प और यास को बढ़ा दया।
आ म नरी ण क गहन या के बाद पता ने याग करने का फ़ैसला कया। उ ह ने यह नणय लया क वे
शत पर आधा रत ेम करना छोड़ दगे। वे जानते थे क उनका पु उनक इ छा के व चुनाव कर सकता है।
बहरहाल उ ह ने और उनक प नी ने पु को बना कसी शत के ेम करने का संक प कया, चाहे उसका चुनाव
जो भी हो। यह एक ब त मु कल काम था, य क उसक अ छ श ा उनके लये ब त मह वपूण थी। इस लये
भी, य क इसक योजना उ ह ने उसके ज म के समय से बना रखी थी और वे इसके लये तभी से बचत कर रहे
थे।
माता- पता बारा ट लखने क ब त मु कल या से गुज़रे। उ ह ने बना शत के ेम क कृ त को
समझने क स ची को शश क । उ ह ने अपने पु को बता दया क वे या कर रहे थे और य कर रहे थे। उ ह ने
उसे बता दया क वे उस ब पर प ँच गये थे, जहाँ वे पूरी ईमानदारी से यह कह सकते थे क उसके नणय से
उनका ेम भा वत नह होगा और वे उसे बना शत के ेम करते रहगे। उ ह ने उससे अपना मनचाहा काम करवाने
या उसे “सुधारने” क को शश करने के लये ऐसा नह कया था। ब क उ ह ने अपने वकास और च र को
तकपूण व तार दे ने के लये ऐसा कया था।
पु ने इस यास पर कोई ख़ास त या क्त नह क । बहरहाल, उसके माता- पता के बना शत के ेम
का पैरेडाइम इतना सशक्त था क इससे उनके ेम म कोई अंतर नह आया। लगभग एक ह ते बाद पु ने माता-
पता से कहा क उसने उस कॉलेज म न जाने का न य कया है। वे इस त या के लये पूरी तरह से तैयार थे।
इसके बाद भी वे उसे बना शत के ेम करते रहे। हर चीज़ शांत हो गई और ज़दगी सामा य प से चलती रही।
कुछ समय बाद एक रोचक बात ई। अब चूँ क पु को यह महसूस नह हो रहा था क उसे अपनी थ त क
र ा करनी पड़ेगी, इस लये उसने अपने दल के अंदर गहराई से टटोला और यह पाया क वह सचमुच उस
शै णक अनुभव को पाना चाहता है। उसने एडमीशन के लये आवेदन कया और इसके बाद अपने पता को यह
बात बताई। पता ने उसके नणय को पूरी तरह से वीकार करते ए एक बार फर बना शत का ेम द शत
कया। मेरा म ख़ुश था, परंतु ज़ रत से यादा नह , य क उसने सचमुच बना शत के ेम करना सीख लया
था।
संयुक्त रा संघ के पूव महास चव जनरल डैग हैमसको ड ने एक बार एक ब त गहरा और रदश वक्त
दया था: “जनसाधारण क मुक् त के लये मेहनत से म करने के बजाय ख़ुद को कसी एक क् त के त पूरी
तरह से सम पत कर दे ना अ धक महान काय है।”
इसका अथ यह है क म स ताह म पाँच, छह या सात दन तक हज़ार लोग और बाहर के ोजे ट् स म हर
दन आठ, दस या बारह घंटे लगा सकता ँ, परंतु इसके बाद भी अपनी प नी या अपने कशोर आयु के पु या
ऑ फ़स के सबसे क़रीबी साथी के साथ मेरे गहरे और साथक संबंध नह ह गे। जनसाधारण तथा जन हत के
उद्दे य के लये इतने सारे घंटे लगाते रहने के बजाय उस एक संबंध को फर से बनाने के लये च र क अ धक
महानता - अ धक वन ता, साहस और शक् त - क आव यकता होगी।
प चीस वष तक संगठन को परामश दे ने के बाद म इस कथन क शक् त से बार-बार भा वत आ ।ँ
संगठन क ब त सी सम याएँ शीष तर पर संबंध क क ठनाइय से उ पन्न होती ह। मूल सम या कसी
ावसा यक कंपनी के दो साझेदार के बीच, कंपनी के मा लक और े सडट के बीच, े सडट और ए ज़ी यू टव
वाइस- े सडट के बीच के संबंध होते ह। ऐसे म ब त से ोजे ट् स और बाहर के लोग के लये मेहनत करने के
बजाय असली मु का सामना करने और उ ह सुलझाने के लये सचमुच महान च र क ज़ रत होती है।

जब मने डैग हैमसको ड का कथन पहली बार पढ़ा, तब म एक संगठन म काम कर रहा था, जहाँ मेरे और
उस क् त के बीच अ प अपे ाय थ , जो मेरा दायाँ हाथ था। मुझम इतना साहस नह था क म हमारे बीच के
मतभेद का सामना क ँ । हमारे बीच के मतभेद भू मका व ल य संबंधी अपे ा और जीवनमू य के े म थे,
ख़ासकर हमारे शासन क व धय म। संभा वत अ य टकराव से बचने के लये मने कई महीन तक
समझौतावाद कोण से काम कया। इस पूरे समय म हम दोन के भीतर एक- सरे के त बुरी भावनाय बढ़ती
रह ।
“जनसाधारण क मुक् त के लये मेहनत से म करने के बजाय ख़ुद को कसी एक क् त के त पूरी
तरह से सम पत कर दे ना अ धक महान काय है,” यह पढ़ने के बाद म इतनी गहराई से भा वत आ क मेरे मन म
उस संबंध को बारा बनाने का वचार बल हो गया।
जो मेरे सामने था, उसका सामना करने के लये मुझे ख़ुद को मज़बूत बनाना पड़ा, य क म जानता था क
मु पर खुलकर चचा करना सचमुच मु कल होगा। गहरी साझी समझ तथा तब ता हा सल करना तो और भी
मु कल होगा। मुझे याद है क उस मुलाक़ात क क पना करते ए म वा तव म काँप रहा था। वह क् त ब त
कठोर दखता था, अपने ख़ुद के तरीक़ म वह ब त यादा ढल चुका था, अपनी नज़र म वह हमेशा सही होता था,
परंतु इसके बावज़ूद मुझे उसक शक् तय और यो यता क ज़ रत थी। मुझे डर था क आमना-सामना करने से
संबंध ख़तरे म पड़ सकता है, जसके प रणाम व प म उन शक् तय और यो यता को खो सकता ँ।
फर मने या शत मुलाक़ात क मान सक रहसल क । म या करने या कहने वाला था, इसका अ यास
करने के बजाय अंतत: मने स ांत पर ढ़ रहने का न य कया। तब जाकर मुझे संवाद करने के साहस और
मान सक शां त का अनुभव आ।
जब हमारी चचा ई, तो मुझे यह जानकर घोर आ य आ क वह भी इसी या से गुज़र रहा था और इस
तरह क चचा के लये उतावला हो रहा था। वह दरअसल कठोर और सुर ा मक भी नह था।
बहरहाल, हमारी शास नक शै लयाँ ब त भन्न थ और पूरा संगठन इन भन्नता पर त या क्त
कर रहा था। हम दोन ने वीकार कया क हमारी एकता के अभाव के कारण सम याएँ पैदा हो गई थ । कई
मुलाक़ात के बाद हम अ धक गहराई म दबे मु पर आमने-सामने चचा करने म सफल ए। हम उन मु को खुले
म चचा क मेज़ पर ले आये और उ च पार प रक स मान क भावना के साथ हमने उ ह एक-एक करके सुलझाया।
हम एक सशक्त पूरक ट म बनाने म सफल ए। और इस दौरान गहन क् तगत नेह भी उ पन्न आ, जसने
भावकारी ढं ग से मलकर काम करने क हमारी यो यता को ज़बद त प से बढ़ा दया।

भावकारी बज़नेस या प रवार या ववाह को चलाने हेतु आव यक एकता उ पन्न करने के लये ब त
क् तगत शक् त और साहस क आव यकता होती है। जनसाधारण के लये प र म करने क तकनीक
शास नक नपुणता चाहे कतनी ही अ धक य न हो, यह संबंध के वकास म च र क महानता के अभाव क
भरपाई नह कर सकती। यह ब त मूलभूत, एक-पर-एक (one-on-one) तर है, जसम हम ेम और जीवन के
मूलभूत नयम को जीवन म उतारते ह।

पी सम याएँ पीसी अवसर ह


इस अनुभव ने मुझे पर पर- नभरता का एक और सशक्त पैरेडाइम भी सखाया। इसका संबंध सम या
को दे खने के हमारे तरीक़े से है। महीन तक म सम या से बचने क को शश करता रहा था। म इसे चढ़ के ोत
और कावट के प म दे ख रहा था और यह चाह रहा था क यह कसी तरह से र हो जाये। परंतु जैसा बाद म
मालूम चला, उस सम या क वजह से ही मुझे एक गहरा संबंध बनाने का अवसर मला, जसने हम दोन को एक
सशक्त पूरक ट म के प म मलकर काम करने क शक् त दान क ।
मेरे वचार से पर पर- नभर थ त म हर पी सम या एक पीसी अवसर है। हर सम या भावना मक बक
अकाउंट म वृ करने का अवसर है, जो पर पर- नभर उ पादन को मह वपूण प से भा वत करता है।
जब माता- पता अपने ब च क सम या को नकारा मक और बोझ लगने वाली चढ़ के बजाय संबंध
बनाने के अवसर के प म दे खते ह, तो इससे माता- पता व ब चे क बातचीत क कृ त पूरी तरह बदल जाती है।
माता- पता अपने ब च को गहराई से समझने और उनक मदद करने के बारे म अ धक इ छु क, यहाँ तक क
रोमांचक हो जाते ह। जब ब चा उनके पास अपनी सम या लेकर आता है, तो वे यह नह सोचते, “अरे नह ! एक
और सम या नह !” इसके बजाय उनका पैरेडाइम यह होता है, “यह एक और बड़ा अवसर है, जब म अपने ब चे
क सचमुच मदद कर सकता ँ और हमारे संबंध म नवेश कर सकता ।ँ ” जब ब चे यह महसूस करते ह क माता-
पता उनक सम या को मह व दे ते ह और क् त के प म उ ह मह वपूण मानते ह, तो ेम और वश्वास का
बंधन मज़बूत होता है तथा चचाय ांज़ै शनल (transactional) से ांसफ़ॉमशनल (transformational) म
बदल जाती ह।
यह पैरेडाइम बज़नेस म भी शक् तशाली है। इस पैरेडाइम पर चलने वाली एक डपाटमट टोर चेन ने अपने
ाहक म गहरी न ा पैदा कर ली है। जब भी कोई ाहक टोर म कसी तरह क सम या लेकर आता है, चाहे वह
कतनी ही छोट य न हो, तो लक त काल उस सम या को ाहक के साथ संबंध बनाने के अवसर के प म
दे खते ह। वे सम या को सुलझाने क सकारा मक इ छा दशाते ह और इतनी सन्नता से त या करते ह क
ाहक ख़ुश हो जाता है। वे ाहक से इतनी शालीनता और स मान से वहार करते ह, इस तरह क अ त रक्त
सेवा (second-mile service) दे ते ह क ब त से ाहक तो कह और जाने के बारे म सोचते तक नह ह।
पर पर- नभर वा त वकता म भावकारी होने के लये पी/पीसी संतुलन सचमुच आव यक है। अगर हम यह
पहचान ल, तो हम अपनी सम या को पीसी बढ़ाने के अवसर के प म दे खकर उ ह मू यवान मान सकते ह।

पर पर- नभरता क आदत


भावना मक बक अकाउंट के पैरेडाइम को यान म रखते ए अब हम सावज नक वजय यानी सर के साथ
काम करने म सफलता क आदत म वेश करने के लये तैयार ह। हम दे ख सकते ह क ये आदत भावकारी
पर पर- नभरता उ पन्न करने के लये कस तरह मलकर काम करती ह। हम यह भी दे ख सकते ह क वचार
और वहार के सरे ो ा स क ट कतनी सशक्तता से हमारे भीतर डाली गई है।
इसके अलावा, हम एक अ धक गहरे तर पर यह दे ख सकते ह क भावकारी पर पर- नभरता सचमुच
आ म नभर लोग ारा ही हा सल क जा सकती है। लोक य “जीत/जीत चचा” क तकनीक से या “ त बबन”
क सुनने क तकनीक से या “रचना मक सम या सुलझाने” क तकनीक से सावज नक वजय ा त करना
असंभव है, य क ये तमाम तकनीक सफ़ क् त व पर यान क त करती ह और अ त मह वपूण चा र क
न व को ब त छोटा कर दे ती ह।
आइये अब हम सावज नक वजय क येक आदत पर गहराई से यान क त कर।
चौथी आदत
जीत/जीत सोच
पार प रक नेतृ व के स ांत

हमने व णम नयम याद कर लया है; आइये, अब हम इसे जीवन म उतार।


● एड वन माकहैम

ए कक बारकमीमुझकोे एक कंपनी के साथ काम करने के लये बुलाया गया, जसके


लेकर ब त च तत थे।
े सडट अपने कमचा रय म सहयोग

उ ह ने मुझसे कहा, “ ट फ़न, हमारी मूलभूत सम या यह है क कमचारी वाथ ह। वे कसी भी तरह से


सहयोग नह करते। म जानता ँ क अगर वे एक- सरे के साथ सहयोग कर, तो हम ब त यादा उ पादन कर
सकते ह। या आप मानवीय संबंध पर कोई ऐसा काय म तैयार कर सकते ह, जससे सम या सुलझ जाये?”
मने पूछा, “आपक सम या आपके कमचारी ह या आपके पैरेडाइ स ह?”
उ ह ने जवाब दया, “ख़ुद दे ख ली जये।”
और मने दे खा। मने पाया क वहाँ पर सचमुच वाथ था, सहयोग करने क इ छा का अभाव था, स ा का
तरोध था और र ा मक संवाद था। म दे ख सकता था क ऋणा मक थ त म प ँच चुके भावना मक बक
अकाउंट क वजह से कम वश्वास क सं कृ त बन चुक थी। परंतु मने पहले वाले सवाल पर आगे ज़ोर दया।
मने े सडट से कहा, “हम इसे और गहराई से दे खना चा हये। आपके कमचारी सहयोग य नह करते?
सहयोग न करने के लये उ ह या पुर कार मलता है?”
उ ह ने मुझे आश्व त कया, “सहयोग न करने के लये उ ह कोई पुर कार नह मलता। अलब ा अगर वे
सहयोग कर, तो पुर कार ब त सारे ह।”
“ या सचमुच?” मने पूछा। े सडट के ऑ फ़स क द वार पर पद के पीछे एक चाट लगा था। उस पर रेस के
कई घोड़े ै क पर दौड़ने के लये तैयार खड़े थे। हर घोड़े के चेहरे पर उसके एक मैनेजर का चेहरा चपका आ था।
अं तम रेखा पर बरमुडा का एक सुंदर पो टर लगा था, जसम नीले आकाश और ई जैसे मुलायम बादल के नीचे
समु के सफ़ेद रेतीले तट पर एक रोमां टक युगल हाथ म हाथ डाले टहल रहा था।
स ताह म एक बार यह आदमी सभी कमचा रय को अपने ऑ फ़स म बुलाता था और उनसे सहयोग के बारे
म बात करता था। “आइये, हम सब मलकर काम कर। अगर हम ऐसा करगे, तो हम सब अ धक धन कमायगे।”
फर वह पदा हटाकर उ ह चाट दखाता था। “अब आपम से कौन बरमुडा क सैर का पुर कार जीतने वाला है?”
यह तो उसी तरह क बात थी, जैसे एक फूल से बढ़ने को कहा जाये और पानी सरे फूल को दया जाये; जैसे
कहा जाये, “गो लयाँ तब तक चलती रहगी, जब तक क मनोबल म सुधार नह होता।” े सडट सहयोग चाहते थे।
वे चाहते थे क उनके कमचारी मलकर काम कर, वचार का आदान- दान कर और सामू हक यास से सबको
लाभ हो। परंतु वे उन लोग क एक- सरे से तयो गता करवा रहे थे; एक मैनेजर क सफलता का अथ बाक़
मैनेजर क असफलता था।
बज़नेस, प रवार और अ य संबंध म लोग क ब त सी सम या क तरह ही इस कंपनी क सम या भी
दोषपूण पैरेडाइम का प रणाम थी। े सडट तयो गता के पैरेडाइम से सहयोग के फल पाने क को शश कर रहे
थे। और जब उससे लाभ नह आ, तो वे कोई ऐसी तकनीक, काय म या वक फ़ स समाधान चाहते थे,
जससे उनके कमचारी आपस म सहयोग करने लग।
परंतु आप जड़ बदले बना फल नह बदल सकते। कोण और वहार पर मेहनत करने का अथ प य
क कटाई-छँ टाई करना होता। इस लये हमने अपना यान जड़ पर क त कया। हमने बलकुल ही अलग ढं ग से
क् तगत और संगठना मक े ता वक सत करने के बारे म सोचा। हमने सूचना और पुर कार के ऐसे तं
वक सत कये, जो सहयोग के जीवनमू य को बढ़ावा दे ते थे।
चाहे आप कंपनी के े सडट ह या गेटक पर, जस पल आप कसी भी है सयत से आ म नभरता से
नकलकर पर पर- नभरता म क़दम रखते ह, आप लीडर शप क भू मका म आ जाते ह। आप सरे लोग को
भा वत करने क थ त म होते ह। और भावकारी पार प रक लीडर शप (Interpersonal Leadership) क
आदत है जीत/जीत सोचना (Think Win/Win)।

मानवीय वहार के छह पैरेडाइम


जीत/जीत कोई तकनीक नह है; यह तो मानवीय वहार का समूचा दशन है। दरअसल यह वहार के छह
पैरेडाइ स म से एक है। वैक पक पैरेडाइम ह जीत/हार, हार/जीत, हार/हार, जीत, और जीत/जीत या कोई संबंध
नह ।
जीत/जीत हार/हार
जीत/हार जीत
हार/जीत जीत/जीत या कोई संबंध नह

जीत/जीत (Win/Win)
जीत/जीत म त क और दय क ऐसी मनोदशा है, जो सम त मानवीय वहार म पार प रक लाभ क
नरंतर तलाश करती है। जीत/जीत का अथ है क अनुबंध या समाधान पार प रक प से लाभ द और
संतु दायक है। जीत/जीत समाधान होने पर सभी प नणय के बारे म अ छा महसूस करते ह और काययोजना
के त न ावान होते ह। जीत/जीत जीवन को तयोगी े के प म न दे खकर सहयोगी े के प म दे खती
है। अ धकांश लोग म ै त (dichotomies) के संदभ म सोचने क वृ होती है: शक् तशाली या कमज़ोर, हाड
बॉल या सॉ टबॉल, जीत या हार। परंतु इस तरह का सोच मूलभूत प से दोषपूण है। यह स ांत के बजाय
शक् त और पद पर आधा रत है। जीत/जीत इस पैरेडाइम पर आधा रत है क सभी के लये ब त है और एक
क् त क सफलता का अथ सरे क असफलता नह है; सफलता सर क क़ मत पर या उ ह सफलता के
दायरे से बाहर रखकर ा त नह क जाती।
जीत/जीत तीसरे वक प म वश्वास है। यह आपका या मेरा तरीक़ा नह है, यह एक बेहतर तरीक़ा है, एक
अ धक उ च तरीक़ा है।

जीत/हार (Win/Lose)
जीत/जीत का एक वक प जीत/हार है यानी बरमुडा के लये दौड़ का पैरेडाइम। यह कहता है, “अगर म
जीतता ँ, तो आप हारते ह।”
जीत/हार तानाशाही क लीडर शप शैली है: “म जीत जाऊँगा, आप हार जायगे।” जीत/हार क मान सकता
वाले लोग म जीतने या अपना ल य पाने के लये अपने पद, शक् त, प रचय (credentials), वा म व क
व तु या क् त व का योग करने क वृ होती है।
. यादातर लोग को ज म से ही जीत/हार क मान सकता म गहराई से ट कया गया है। यह काम करने
वाली पहली और सबसे मह वपूण शक् त प रवार है। जब एक ब चे क सरे से तुलना क जाती है - जब धैय,
समझ या ेम इस तुलना के आधार पर दया जाता है या छ न लया जाता है - तो लोग जीत/हार क सोच अपना
लेते ह। जब भी ेम शत पर दया जाता है या जब भी लोग को ेम अ जत करना पड़ता है, तो उन तक यह संदेश
प ँचता है क वे आंत रक प से मू यवान या ेम करने यो य नह ह। उनका मू य उनके भीतर न हत होने के
बजाय बाहर थत है; उनका मू य कसी सरे क् त या अपे ा से तुलना म है।
और शत पर आधा रत ेम क थ त म उस न हे दल और दमाग़ के साथ या होता है, जो अ यंत
संवेदनशील है और अपने माता- पता के समथन व भावना मक संबल पर ब त नभर है। ब चे को जीत/हार क
मान सकता म ढाला, आकार दया और ो ाम कया जाता है।
“अगर म अपने भाई से यादा अ छा बन जाऊँ, तो मेरे माता- पता मुझसे यादा यार करगे।”
“मेरे माता- पता मुझसे उतना यार नह करते, जतना मेरी बहन से करते ह। शायद म उतना मू यवान नह
ँ।”
टं ग करने वाला एक और सश मा यम सा थय का समूह होता है। ब चा पहले अपने माता- पता से
और फर अपने सा थय से वीकृ त चाहता है, चाहे वे भाई-बहन ह या म । और हम सब जानते ह क साथी कई
बार ब त न ु र हो सकते ह। वे अ सर लोग को इस आधार पर पूणत: वीकार या अ वीकार करते ह क वे
उनक अपे ा और मानदं ड का पालन करते ह या नह । इससे जीत/हार क एक और ट लखी जाती है।
श ा जगत जीत/हार क इस ट को और अ धक शक् तशाली बनाता है। “सामा य वतरण व ”
(normal distribution curve) मूलत: बताता है क आपको “ए” ेड इस लये मला, य क कसी और को
“सी” ेड मला है। यह कसी व ाथ के मू य का आकलन बाक़ व ा थय से तुलना करके करता है। आंत रक
मू य पर क़तई यान नह दया जाता। हर व ाथ को बा प से प रभा षत कया जाता है।
“अ छा आप आ गये! हमारी पी.ट .ए. मी टग (पालक- श क संघ क बैठक) म आपको दे खकर ब त
अ छा लगा। आपको अपनी बेट कैरो लन पर सचमुच गव होना चा हये। वह सबसे ऊपर के 10 तशत
व ा थय म है।”
“यह सुनकर अ छा लगा।”
“परंतु आपके बेटे जॉनी क हालत ख़राब है। वह सबसे नीचे के 25 तशत व ा थय म है।”
“ या सचमुच? ओह, यह भयानक है! हम इस बारे म या कर सकते ह?”
इस तरह क तुलना मक जानकारी आपको यह नह बताती क शायद जॉनी अपने सभी आठ सलडर
(cylinders) का योग कर रहा है, जब क कैरो लन अपने आठ म से सफ़ चार सलडर का ही योग कर रही है।
परंतु व ा थय को उनक मता या उसके पूरे योग के हसाब से ेड्स नह मलते। उ ह सरे व ा थय से
तुलना के आधार पर ेड्स मलते ह। और ेड्स सामा जक मू य के संवाहक ह। वे अवसर का ार खोलते या बंद
करते ह। शै णक या के क म सहयोग नह , ब क त पधा है। सच तो यह है क सहयोग को आम तौर पर
नक़ल के साथ जोड़ा जाता है।
सश ो ा मग का एक और मा यम है खेलकूद, ख़ासकर हाई कूल या कॉलेज के युवा के लये। वे
अ सर यह मूलभूत पैरेडाइम वक सत कर लेते ह क जीवन जीत-हार का एक बड़ा खेल है, जहाँ कुछ लोग जीतते
ह और कुछ लोग हारते ह। “जीतने” का अथ है खेल के मैदान म सर को “हराना।”
एक और मा यम है कानून। हम एक ऐसे समाज म रहते ह, जसे मुकदमेबाज़ी पसंद है। जब भी लोग कसी
मु कल म पड़ते ह, तो यादातर के मन म पहला वचार यह आता है क कसी पर मुकदमा ठ क द, उसे अदालत
म घसीटकर ले जाय और कसी सरे को हराकर ख़ुद “जीत” जाय। परंतु र ा मक म त क न तो रचना मक होते
ह, न ही सहयोगी।
न त प से हम कानून क ज़ रत है, वरना समाज का वघटन हो जायेगा। यह र ा तो करता है, परंतु यह
सनज क रचना नह करता। सव े प म इसका प रणाम समझौता होता है। कानून वरोध या श ुता क
अवधारणा पर आधा रत है। हाल ही म एक वृ वक सत ई है, जसम वक ल और व ध महा व ालय को
ो सा हत कया जाता है क वे शां तपूण समझौता-वाता , जीत/जीत क तकनीक और नजी अदालत के
योग पर अपना यान क त कर। हो सकता है यह अं तम समाधान न हो, परंतु यह न त प से इस सम या के
त बढ़ती ई जाग कता दशाता है।
सचमुच तयोगी और कम- वश्वास क थ तय म न त प से जीत/हार क सोच का थान होता है।
परंतु अ धकांश जीवन तयो गता नह है। हम हर दन अपने जीवनसाथी, ब च , सा थय , पड़ो सय और म के
साथ तयो गता करने क ज़ रत नह है। “आपके वैवा हक जीवन म कौन जीत रहा है?” एक मूखतापूण श्न
है। अगर दोन नह जीत रहे ह, तो दोन हार रहे ह।
अ धकांश जीवन आ म नभर वा त वकता नह , ब क पर पर- नभर वा त वकता है। आपके ारा चाहे गये
अ धकांश प रणाम आपके और सर के बीच के आपसी सहयोग पर नभर करते ह। और जीत/हार क
मान सकता सहयोग क वरोधी (dysfunctional) है।

हार/जीत (Lose/Win)
कुछ लोग क ो ा मग हार/जीत क होती है।
“म हार जाता ँ, आप जीत जाय।”
“आगे नकल जाइये। मेरे साथ मनचाहा सलूक क जये।”
“मुझ पर पैर रखकर चढ़ जाइये। सब यही करते ह।”
“म हारने वाला ँ। म हमेशा हारता रहता ँ।”
“म शां त चाहता ।ँ शां त बनाये रखने के लये म कुछ भी करने को तैयार ँ।”
हार/जीत तो जीत/हार से भी बुरी है, य क इसके कोई मानदं ड (standards) नह ह - न कोई माँग, न
कोई अपे ा, न ही भ व य- । जन लोग क मान सकता हार/जीत क होती है, वे आम तौर पर सर को ख़ुश
करने या संतु करने म त परता दखाते ह। वे लोक यता या वीकृ त के मा यम से शक् त चाहते ह। उनम अपनी
भावना और वश्वास को क्त करने का साहस नह होता और वे सर के अहं क शक् त से आसानी से डर
जाते ह।
समझौता वाता म हार/जीत क मान सकता को आ म-समपण के प म दे खा जाता है - या तो हार मान
लेना या फर छोड़ दे ना। लीडर शप क शैली म यह व छं दता या पूरी छू ट दे ना है। हार/जीत का अथ अ छा इंसान
बनना है, भले ही “अ छे इंसान दौड़ म सबसे आ ख़र म आय।”
जीत/हार क मान सकता वाले लोग हार/जीत क मान सकता वाले लोग से ेम करते ह, य क वे उ ह
अपना आहार बना सकते ह। वे उनक कमज़ो रय को पसंद करते ह, य क वे उनका लाभ उठाते ह। ये
कमज़ो रयाँ उनक शक् तय क पूरक होती ह।
परंतु सम या यह है क हार/जीत वाले लोग अपनी ब त सी भावना को अपने भीतर दफ़न कर लेते ह।
और अ क्त भावनाय कभी नह मरत ; वे ज़दा दफ़न रहती ह तथा बाद म भद्दे तरीक़ से सामने आती ह।
मनोदै हक रोग (ख़ासकर श्वास संबंधी, नवस या र संचार तं संबंधी रोग) अ सर उस संगृहीत ई या, गहरी
नराशा या मोहभंग के कारण होते ह, जसे हार/जीत क मान सकता ारा दबाया या दफ़नाया गया था।
अनुपातहीन ोध, छोट सी बात पर ब त यादा त या और दोषद शता द मत भावना के अ य मूत प ह।
जो लोग लगातार अपनी भावना को दबाते रहते ह, जो भावना को साथकता के अ धक उ च तर तक
नह ले जाते, वे पाते ह क इससे उनके आ मस मान क गुणव ा पर वपरीत भाव पड़ता है और अंतत: सर के
साथ उनके संबंध क गुणव ा पर भी।
जीत/हार और हार/जीत दोन ही कमज़ोर थ तयाँ ह, जनका आधार क् तगत असुर ाय ह। कम समय
म जीत/हार से अ धक प रणाम मलगे, य क यह अ सर शीष थ लोग क मह वपूण शक् तय और गुण का
लाभ लेती है। हार/जीत क मान सकता शु से ही कमज़ोर और बुरी हालत म होती है।
कई ए ज़ी यू ट ज़, मैनेजर और माता- पता कसी पडु लम क तरह इधर-उधर झूलते रहते ह। वे एक दन तो
सर क परवाह न करने वाले जीत/हार के पैरेडाइम पर होते ह और सरे दन सर को पूरी छू ट दे ने वाले हार/
जीत के पैरेडाइम पर प ँच जाते ह। जब वे तं , दशा, अपे ा और अनुशासन क कमी तथा वधा को और लंबे
समय तक नह झेल पाते, तो वे जीत/हार क दशा म चले जाते ह। कुछ समय बाद उनका अपराध बोध उनके इस
संक प को बल बना दे ता है और वे फर से हार/जीत क तरफ़ लौट जाते ह - जब तक क ोध और कुंठा उ ह
बारा जीत/हार क ओर नह धकेल दे ती।

हार/हार (Lose/Lose)
जब जीत/हार क मान सकता वाले दो लोग आमने-सामने होते ह - यानी जब दो संक पवान, ज़ और
अहंकारी क् त आपस म वहार करते ह - तो प रणाम हार/हार होगा। दोन ही हारगे। दोन ही तशोध लेना
चाहगे और “पलटकर वार करना” या “ हसाब बराबर करना” चाहगे। वे इस त य के त अंधे हो जायगे क ह या
दरअसल आ मह या है और तशोध एक धारी तलवार है।
म एक तलाक़ के बारे म जानता ँ, जसम यायाधीश ने प त को आदे श दया क वह अपनी सारी संप
बेचकर आधे पैसे पूव-प नी को दे दे । इसका पालन करते ए प त ने अपनी 10,000 डॉलर से अ धक मू य क
कार 50 डॉलर म बेच द और पूव-प नी को 25 डॉलर दे दये। पूव-प नी के वरोध करने पर जब कोट के लक ने
थ त क जाँच क , तो उसने यह पाया क प त बाक़ संप भी इसी तरह से बेच रहा था।
कुछ लोग कसी श ु पर इतने यादा क त हो जाते ह, कसी सरे के वहार से इतनी बुरी तरह त हो
जाते ह क वे बाक़ हर चीज़ के त अंधे हो जाते ह। उनम सफ़ यह इ छा रहती है क वह क् त हार जाये, भले
ही इस यास म वे भी हार जाय। हार/हार क मान सकता श ुतापूण संघष और यु का जीवनदशन है।
हार/हार उस क् त का जीवनदशन भी है, जो सर पर ब त यादा नभर होता है, जसम आंत रक
दशा ान नह होता, जो खी होता है और सोचता है क हर क् त को खी होना चा हये। “अगर कोई भी न
जीते, तो शायद हारना इतना बुरा नह है।”

जीत (Win)
एक और आम वक प सफ़ अपनी जीत के बारे म सोचना है। जीत क मान सकता वाले लोग कसी क हार
नह चाहते। उससे उ ह कोई फ़क़ नह पड़ता। मह वपूण तो यह है क वे जो चाहते ह, वह उ ह मल जाये।
जब कोई वरोध या तयो गता क भावना न हो, तो जीत शायद दै नक कामकाज म सबसे आम व ध है।
जीत क मान सकता वाला क् त अपने हत को सुर त रखने के संदभ म सोचता है - और सर के हत को
सुर त रखने का काम उ ह पर छोड़ दे ता है।

कौन सा वक प सव म है?
अब तक हमने पाँच जीवनदशन पर वचार कया है यानी जीत/जीत, जीत/हार, हार/जीत, हार/हार और
जीत। इनम सबसे भावकारी कौन सा है? जवाब है, “यह नभर करता है।” अगर आपक ट म फ़टबॉल मैच
जीतती है, तो इसका मतलब यह है क सरी ट म हारती है। अगर आप कसी े ीय कायालय म काम करते ह,
जो सरे े ीय कायालय से मील र है और दोन कायालय म कोई काय-संबंधी र ता नह है, तो हो सकता है
आप बज़नेस क ग त को बढ़ाने के लये जीत/हार वाली तयो गता करवाना चाह। बहरहाल, अगर आपको
कमचा रय म या कमचारी-समूह म आपसी सहयोग बढ़ाने क आव यकता है, तो आप अ धकतम सफलता
हा सल करने के लये कंपनी के भीतर “बरमुडा क सैर” जैसी जीत/हार वाली थ त उ पन्न नह करना चाहगे।
अगर आप कसी र ते को मह व दे ते ह और मुददा ् ख़ास मह वपूण नह है, तो आप कुछ प र थ तय म
हार/जीत का योग करना चाह सकते ह, ता क सामने वाले को वा त वक समथन दया जा सके। “म जो चाहता
ँ, वह मेरे लये उतना मह वपूण नह है, जतना क आपके साथ मेरा संबंध। आइये इस बार यह काम आपके
तरीक़े से कर लेते ह।” इसके अलावा अगर आप महसूस करते ह क जीत हा सल करने के लये जो समय और
यास ख़च होगा, उससे अ य उ चतर जीवनमू य का उ लंघन होगा, तब भी आप हार/जीत का रा ता चुन सकते
ह; शायद यह उतना मू यवान ही नह है।
कुछ थ तयाँ ऐसी होती ह, जनम आप जीत का नज़ रया रखना चाहते ह और आपको इस बात क यादा
परवाह नह होती क उससे सर पर या भाव पड़ता है। उदाहरण के लये, अगर आपके ब चे का जीवन ख़तरे
म हो, तो आप सरे लोग और प र थ तय के बारे म सतही तौर पर च तत हो सकते ह, परंतु उसके जीवन को
बचाना सबसे मह वपूण होगा।
तो सव म वक प वा त वकता पर नभर करता है। चुनौती यह नह है क हर तरह क थ त म जीत/हार
या कसी अ य ट का हमेशा पालन करना है, ब क वा त वकता को सट कता से समझकर चुनाव करना है।
दरअसल अ धकांश थ तयाँ पर पर- नभर वा त वकता का ह सा होती ह और उनम इन पाँच वक प के
बजाय जीत/जीत ही एकमा स चा ावहा रक वक प है।
जीत/हार इस लये ावहा रक नह है, य क हालाँ क म आपके साथ मुठभेड़ म जीतता दख सकता ँ,
परंतु इससे मेरे त आपक भावना , आपके नज़ रये और हमारे संबंध पर वपरीत भाव पड़ेगा। उदाहरण के
लये, अगर म आपक कंपनी का स लायर ँ और म कसी ख़ास सौदे म अपनी शत पर जीतता ँ, तो म उस
समय तो अपनी मनचाही चीज़ पा सकता ँ। परंतु या आप बारा मेरे पास आयगे? अगर आप मुझे उसके बाद
बज़नेस न द, तो मेरी अ पकालीन जीत वा तव म एक द घकालीन हार होगी। इस लये पर पर- नभर जीत/हार
दरअसल आगे चलकर हार/हार बन जाती है।
अगर हम हार/जीत के रा ते पर चलते ह, तो आपको यह लग सकता है क आपको अपनी मनचाही चीज़
मल रही है। परंतु आपके साथ काम करने और समझौते को पूरा करने के बारे म मेरे नज़ रये पर इसका कैसा
भाव पड़ेगा? हो सकता है म आपको ख़ुश करने के लये उतना उ सुक न र ।ँ हो सकता है भ व य म होने वाली
कसी सौदे बाज़ी (negotiations) म म यु के पुराने घाव याद रखूँ। जब म उ ोग क सरी कंप नय के संपक म
आऊँगा, तो आपके और आपक कंपनी के बारे म मेरा नज़ रया उन तक प ँच सकता है। इस लये हम दोन फर से
हार/हार क थ त म ह। हार/हार प प से कसी भी संदभ म ावहा रक नह है।
और अगर म अपनी ही जीत पर यान क त क ँ और आपके कोण क परवाह ही न क ँ , तो सफल
संबंध का कोई आधार ही नह होता।
लंबे समय म अगर हम दोन नह जीतते ह, तो हम दोन हारगे। इसी लये पर पर- नभर वा त वकता म
जीत/जीत ही एकमा स चा वक प है।
मने एक बार एक लाये ट के लये काम कया। रटे ल टोस क एक बड़ी चेन के इस े सडट ने मुझसे कहा,
“ ट फ़न, यह जीत/जीत का वचार सुनने म तो अ छा लगता है, परंतु यह ब त आदशवाद है। बज़नेस क
मु कल और यथाथवाद नया इस तरह से नह चलती। सब तरफ़ लोग जीत/हार के रा ते पर चल रहे ह और
अगर आप खेल के नयम के हसाब से नह खेलगे, तो आप सफल नह हो सकते।”
“ठ क है,” मने कहा, “अपने ाहक के साथ जीत/हार क मान सकता अपनाकर दे खये। या यह
यथाथवाद है?”
उसने जवाब दया, “नह ।”
“ य नह ?”
“मेरे ाहक मुझसे र हो जायगे।”
“तो फर हार/जीत को आज़मा ल - टोर का मुनाफ़ा ख़ म कर द। या यह यथाथवाद है?”
“नह । मुनाफ़ा नह तो उद्दे य नह ।”
जब हमने व भन्न वक प पर वचार कया, तो दरअसल जीत/जीत ही एकमा यथाथवाद नी त तीत
ई।
उसने वीकार कया, “मुझे लगता है क यह ाहक के साथ तो यथाथवाद है, परंतु स लायस के साथ नह
है।”
मने पूछा, “आप स लायस के ाहक ह, तो फर यही स ांत आप पर लागू य नह होगा?”
वह बोला, “दे खये, हमने हाल ही म शॉ पग कॉ ले स के संचालक और मा लक के साथ अपनी लीज़ के
समझौते पर बारा सौदे बाज़ी क थी। हम जीत/जीत का नज़ रया लेकर गये थे। हम खुले थे, तकपूण थे और हम
समझौते क भावना के साथ गये थे। परंतु उ ह ने हमारी थ त को नम व कमज़ोर समझा और उ ह ने हमारी धुलाई
कर द ।”
मने पूछा, “तो आपने हार/जीत का योग य कया?”
“हमने हार/जीत का योग नह कया था। हम तो जीत/जीत चाहते थे।”
“मुझे लगा, आपने कहा क उ ह ने आपक धुलाई कर द ।”
“उ ह ने ऐसा ही कया।”
“ सरे श द म, आप हार गये।”
“यह सही है।”
“और वे जीत गये।”
“यह भी सही है।”
“तो इसे या कहा जायेगा?”
जब उसे एहसास आ क जसे वह जीत/जीत कह रहा था, वह वा तव म हार/जीत का पैरेडाइम था, तो
उसे गहरा ध का लगा। और जब हमने उस हार/जीत के द घकालीन भाव क जाँच क , तो हमने यह पाया क
संबंध क सतह के नीचे द मत भावनाय, कुचले ए जीवनमू य और े ष उबल रहे थे। वश्लेषण करने के बाद हम
दोन सहमत ए क वा तव म यह अंतत: दोन ही प के लये हार थी।
अगर उस क् त ने सचमुच जीत/जीत का कोण रखा होता, तो उसने सं ेषण क या म अ धक
समय लगाया होता, शॉ पग सटर के मा लक क बात थोड़ी यादा दे र तक सुनी होती और अपने कोण को थोड़े
यादा साहस के साथ क्त कया होता। वह जीत/जीत क भावना के साथ तब तक आगे बढ़ा होता, जब तक
क दोन को ही अ छा लगने वाला कोई समाधान नह नकला होता। और वह समाधान - वह तीसरा वक प -
सन ज टक होता - संभवत: कोई ऐसा वचार, जो दोन म से कसी ने पहले से नह सोचा होता।

जीत/जीत या कोई सौदा नह (Win/Win or No Deal)


अगर उन दोन क् तय को सन ज टक समाधान नह मला होता - ऐसा समाधान, जो दोन क ही पसंद
का होता - तो वे जीत/जीत क एक अ धक उ च अ भ क् त को चुन सकते थे - जीत/जीत या कोई सौदा नह ।
कोई सौदा नह का मूल अथ यह है क अगर हम दाने के लये लाभदायक समाधान नह खोज सकते, तो
हम सद्भावना से असहमत होने का वक प चुनते ह - कोई सौदा नह । न कोई अपे ाय होती ह, न ही काय-
दशन (performance) बाबत् कोई अनुबंध कया जाता है। चूँ क यह प नज़र आता है क हमारे जीवनमू य
या ल य वपरीत दशा म ह, इस लये म आपक सेवाय नह लेता ँ या हम मलकर कसी वशेष योजना पर
काम नह करते ह। आधी र तक प ँचने के बाद इसका एहसास होने के बजाय शु म ही यह एहसास होना
बेहतर है, य क तब अपे ाय पैदा हो चुक होती ह और दोन ही प का मोहभंग होने लगता है।
जब आप कोई सौदा नह को अपने म त क म एक वक प के प म रखते ह, तो आप वतं अनुभव
करते ह, य क आपको लोग के साथ छल-कपट करने या अपने एजडा को मनवाने या अपनी अपे ा को पूरा
करने के लये बल यास करने क ज़ रत नह होती। आप खुलकर बात कर सकते ह। आप थ तय के नीचे
दबे अ धक गहरे मु को समझने क सचमुच को शश कर सकते ह।
जब कोई सौदा नह का वक प मौज़ूद होता है, तो आप ईमानदारी से कह सकते ह, “म सफ़ जीत/जीत के
लये काम करना चाहता ँ। म जीतना चाहता ँ और म चाहता ँ क आप भी जीत। अगर आपको कोई समाधान
अ छा न लगे, तो म उस थ त म अपने ल य को नह पाना चाहता, य क बाद म यह राव अंतत: सामने आ
जायेगा और इससे संबंध म वद् ॉअल होगा। सरी तरफ़, मुझे लगता है आपको भी अ छा नह लगेगा अगर आप
तो अपने ल य ा त कर ल, परंतु इस या म म हार जाऊँ। तो आइये हम मलकर जीत/जीत के लये काम
कर। आइये हम थ त को इस कोण से सुलझाकर दे ख। और अगर हम जीत/जीत का समाधान नह मल
पाता, तो हम सहमत हो जाय क हम सौदा ही नह करगे। जो नणय हम दोन के लये ही लाभकारी न हो, ऐसा
कोई नणय लेने के बजाय कोई सौदा न करना बेहतर होगा। फर शायद कसी और समय हम दोन साथ काम कर
सकते ह।”

जीत/जीत या कोई सौदा नह क अवधारणा सीखने के कुछ समय बाद एक छोट क यूटर सॉ टवेअर
कंपनी के े सडट ने मुझे नीचे लखा अनुभव बताया।
“हमने एक नया सॉ टवेअर तैयार कया था, जसे हमने एक बक को पाँच साल के अनुबंध पर बेचा था। बक
का े सडट इस बारे म रोमां चत था, परंतु वहाँ के कमचारी सचमुच इस नणय के प म नह थे।
“लगभग एक महीने बाद बक के े सडट का तबादला हो गया। नया े सडट मेरे पास आकर बोला, ‘म इन
सॉ टवेअर ो ा स को लेकर च तत ँ। मेरे सामने ब त उलझन आ रही ह। सभी कमचारी कह रहे ह क वे इसके
अनुसार काम नह कर सकते और मुझे सचमुच महसूस होता है क इस समय म उ ह ऐसा करने के लये ववश
नह कर सकता।’
“मेरी कंपनी गहरी आ थक सम या का सामना कर रही थी। म जानता था क मेरे पास अनुबंध को लागू करने
का कानूनी अ धकार था। परंतु मुझे जीत/जीत के स ांत के मह व पर वश्वास हो चुका था।
“इस लये मने उससे कहा, ‘हमारे बीच अनुबंध आ है। आपके बक ने इस सॉ टवेअर ो ाम का योग
करने के लये हमारे ॉड ट् स और सेवाय ली ह। परंतु हम लगता है क आप इस बारे म ख़ुश नह ह। इस लये हम
यह करना चाहगे क हम अनुबंध र कर द और आपके जमा कये ए पैसे भी आपको लौटा द। अगर भ व य म
आपको कसी सॉ टवेअर सॉ यूशन (software solution) क आव यकता हो, तो आप हमसे संपक कर।’
“म अ रशः 84,000 डॉलर के समझौते को छोड़कर आ गया। यह आ थक आ मह या जैसा काम था।
बहरहाल मने महसूस कया क अगर यह स ांत सही है, तो आगे चलकर समझौता हमारे पास वापस आयेगा और
हम लाभ होगा।
“तीन महीने बाद नये े सडट ने मुझे बुलवाया और कहा, ‘म अपने डाटा ोसे सग के तरीक़े को बदलने वाला
ँ और म आपके साथ बज़नेस करना चाहता ँ।’ उसने 2,40,000 डॉलर के अनुबंध पर ह ता र कर दये।”
पर पर- नभर वा त वकता म जीत/जीत से कम कोई भी चीज़ सव म से हीन है और इसका द घकालीन
संबंध पर भाव पड़ेगा। उस भाव क क़ मत पर सावधानी से वचार कये जाने क आव यकता है। अगर आप
स ची जीत/जीत पर नह प ँच पाते, तो आम तौर पर बेहतर यही होगा क आप कोई सौदा नह का वक प चुन।
जीत/जीत या कोई सौदा नह क मान सकता पा रवा रक संबंध म ज़बद त भावना मक वतं ता दान
करती है। अगर प रवार के सद य कसी ऐसे वी डयो पर सहमत नह हो पाते, जसे दे खने म सबको आनंद आये,
तो वे कोई और काम करने का नणय ले सकते ह - कोई सौदा नह - बजाय इसके क कुछ लोग को सर क
ख़ा तर अपनी शाम का आनंद छोड़ना पड़े।

मेरी एक म है, जसका प रवार समूह गायन के े म कई वष से है। जब उसके ब चे छोटे थे, तो वह
संगीत तैयार करती थी और पोशाक बनाती थी। वह उ ह पयानो तक ले जाती थी और उनके दशन
(performance) को नद शत करती थी।
जब ब चे बड़े ए, तो उनक संगीत क च बदलने लगी। वे काय म क तु त और पोशाक के बारे म
अ धक वतं ता चाहने लगे। उ ह अपनी माँ का नदशन भी ख़ास पसंद नह आता था।
मेरी म को वष का अनुभव था और उसे रे ट हो स के वृ क आव यकता का क़रीबी ान था, जहाँ
वे काय म दे ने वाले थे। इस लये उसे नह लगा क ब च ारा सुझाये गये कुछ वचार उ चत ह गे। बहरहाल, उसने
ख़ुद को क्त करने और नणय लेने क या का ह सा बनने क उनक आव यकता को पहचाना।
इस लये उसने जीत/जीत या कोई सौदा नह का योग कया। उसने उ ह बताया क वह एक ऐसे समझौते
पर प ँचना चाहती थी, जसके बारे म सबको अ छा महसूस हो - अ यथा उ ह अपनी तभा का आनंद लेने के
सरे तरीक़े खोजने ह गे। प रणाम व प, सबने अपनी भावनाय क्त करने के लये वयं को वतं महसूस
कया। जीत/जीत समझौते पर प ँचने के लये चचा करते समय वे यह जानते थे क चाहे वे सहमत ह या न ह ,
कोई भावना मक बंधन नह है।

जीत/जीत या कोई सौदा नह कसी ावसा यक गठबंधन या बज़नेस क शु आत म सवा धक यथाथवाद


नी त है। हो सकता है लंबे समय से चल रहे बज़नेस संबंध म कोई सौदा नह ावहा रक वक प न हो, य क
इससे गंभीर सम याएँ उ पन्न हो सकती ह, ख़ासकर पा रवा रक या ऐसे वसाय म, जो म ता के आधार पर
शु ए थे।
संबंध को सुर त करने के यास म कई बार लोग बरस तक एक के बाद एक समझौते करते रहते ह।
हालाँ क वे बात तो जीत/जीत के बारे म करते ह, परंतु वा तव म वे जीत/हार या हार/जीत के बारे म सोचते रहते
ह। इससे क् तय और वसाय के लये गंभीर सम याएँ उ पन्न हो जाती ह, ख़ासकर तब जब तयोगी जीत/
जीत और सनज के अनुसार काम कर रहा हो।
कोई सौदा नह के अभाव म इस तरह के वसाय अवन त के माग पर चले जायगे और या तो वे असफल हो
जायगे या फर उ ह ावसा यक मैनेजर के हवाले करना पड़ेगा। अनुभव बताता है क पा रवा रक बज़नेस या
म के बीच बज़नेस था पत करते समय अ सर यह बेहतर होता है क बाद म कोई सौदा नह क संभावना को
पहले से ही वीकार कर लया जाये और कसी तरह का ख़रीद / ब का अनुबंध कर लया जाये, ता क संबंध को
थायी प से न कये बना वसाय को समृ रखा जा सके।
ज़ा हर है कुछ संबंध ऐसे होते ह, जहाँ कोई सौदा नह ावहा रक वक प नह होता है। म अपने ब चे या
प नी को उसके हाल पर छोड़कर कोई सौदा नह का वक प नह चुन सकता (अगर आव यकता हो, तो समझौता
करना बेहतर होगा - जो जीत/जीत का एक न न प है)। परंतु ब त से मामल म जीत/जीत या कोई सौदा नह
के कोण को ावसा यक चचा म पूरी तरह से अपनाना संभव है। और इस कोण से अ वश्वसनीय
वतं ता ा त होती है।

जीत/जीत के पाँच आयाम


जीत/जीत सोचना पार प रक लीडर शप क आदत है। इसम सर के साथ हमारे संबंध म चार अनूठ
मानवीय तभा यानी आ म-जाग कता, क पना, ववेक और आ म नभर इ छा का योग शा मल है। इसम
पार प रक श ा, पार प रक भाव और पार प रक लाभ शा मल ह।
इन पार प रक लाभ को उ पन्न करने के लये ब त साहस और परवाह क ज़ रत होती है, ख़ासकर जब
हम ऐसे लोग के साथ वहार कर रहे ह , ज ह जीत/हार क मान सकता म गहराई से ट कया गया हो।
यही कारण है क इस आदत म पार प रक लीडर शप के स ांत शा मल ह। भावकारी पार प रक
लीडर शप म भ व य , ोए टव पहल और सुर ा, मागदशन, बु तथा शक् त क आव यकता होती है। और
ये सब स ांत-क त क् तगत लीडर शप से आते ह।
जीत/जीत का स ांत हमारे समूचे वहार क सफलता के लये मूलभूत है और इसम जीवन के पाँच
पर पर- नभर आयाम शा मल ह। यह च र से शु होकर संबंध क ओर बढ़ता है, जससे अनुबंध वा हत होते
ह। इसका पोषण एक ऐसे प रवेश म होता है, जहाँ ढाँचा और तं जीत/जीत के स ांत पर आधा रत होते ह। और
इसम या क भी ज़ रत होती है। हम जीत/जीत के ल य को जीत/हार या हार/जीत के साधन से ा त नह
कर सकते।
नीचे दया रेखा च बताता है क ये पाँच आयाम एक- सरे से कस तरह संबं धत ह -

आइये अब हम इन पाँच आयाम पर एक-एक करके चचा कर:

च र (Character)
च र जीत/जीत क न व है और बाक़ हर चीज़ का नमाण इसी न व पर होता है। जीत/जीत के पैरेडाइम के
लये तीन चा र क गुण अ नवाय ह:

अखंडता। हम पहले ही अखंडता को प रभा षत करते ए कह चुके ह क यह वयं पर आरो पत मू य (value)


है। अखंडता को वक सत करने और उसे बनाये रखने म पहली, सरी और तीसरी आदत हमारी मदद करती ह।
जब हम अपने जीवनमू य को प ता से पहचानते ह और दै नक आधार पर इनके चार ओर अपने काय को
ोए टव तरीक़े से व थत तथा या वत करते ह, तो हम साथक वायदे करके और उ ह नभाकर आ म-
जाग कता तथा आ म नभर इ छा वक सत करते ह।
हम अपने जीवन म जीत का ल य कभी नह बना सकते, अगर हम गहरे अथ म यही न मालूम हो क जीत
कसम न हत है और वा तव म हमारे सबसे अंद नी जीवनमू य के सामंज य म या है। और अगर हम ख़ुद से
तथा सर से कये गये वायदे नह नभा पाते, तो हमारे वायदे नरथक हो जाते ह। हम यह बात जानते ह और सरे
भी यह बात जान जाते ह। वे छल-कपट को भाँप लेते ह और र ा मक हो जाते ह। वश्वास क कोई न व नह
बनती और जीत/जीत एक अ भावकारी सतही तकनीक बनकर रह जाती है। अखंडता न व का सबसे नीचे का
प थर है।

प रप वता। प रप वता साहस और परवाह के बीच संतुलन है। अगर कोई क् त अपनी भावना तथा
वश्वास को साहस के साथ क्त कर सकता है और उसम सामने वाले क भावना तथा वश्वास क परवाह
करने का संतुलन भी होता है, तो वह प रप व है, ख़ासकर तब जब वह मु ा दोन ही प के लये ब त मह वपूण
हो।
अगर आप ब त से मनोवै ा नक परी ण क जाँच कर, जनका योग लोग को नौकरी पर रखने, मोशन
दे ने और श ण के उद्दे य के लये कया जाता है, तो आप पायगे क उ ह इसी तरह क प रप वता का
मू यांकन करने के लये तैयार कया गया है। चाहे इसे अहं शक् त/परानुभू त संतुलन (ego
strength/empathy balance), आ म वश्वास/ सर के त स मान संतुलन (self confidence/respect
for others balance), लोग क परवाह/काम क परवाह संतुलन (the concern for people/concern for
tasks balance) कहा जाये, ांज़ै शनल एना ल सस भाषा म “म ठ क ,ँ आप ठ क ह” (I’m okay, you’re
okay) कहा जाये, या मैनेजमट ड भाषा म 9.1, 1.9, 5.5, 9.9 कहा जाये - दरअसल जस गुण क तलाश क
जाती है, उसे म साहस और परवाह (courage and consideration) का संतुलन कहता ।ँ
इस गुण के त स मान मानवीय वहार, मैनेजमट और लीडर शप के स ांत म गहराई से समाया आ है।
यह पी/पीसी संतुलन का गहरा मूत प है। जहाँ साहस सोने के अंडे पाने पर यान क त करता है, वह परवाह
का संबंध उस काम म शा मल सरे लोग के द घकालीन क याण से होता है। लीडर शप का मूलभूत काम है सभी
शा मल लोग के जीवन तर और जीवन क गुणव ा को बढ़ाना।
ब त से लोग ै त म सोचते ह - या तो यह या फर वह के संदभ म। वे सोचते ह क अगर आप अ छे ह, तो
आप कठोर नह ह। परंतु जीत/जीत का पैरेडाइम अ छा है … और कठोर भी है। यह जीत/हार क तुलना म गना
कठोर है। जीत/जीत चाहने के लये आपको न सफ़ अ छा होना होता है, ब क आपको साहसी भी बनना पड़ता
है। आपको न सफ़ परानुभू तपूण होना होता है, ब क आपको आ म वश्वासी भी बनना पड़ता है। आपको न
सफ़ परवाहपूण और संवेदनशील होना पड़ता है, ब क बहा र भी बनना पड़ता है। यह सब करना यानी साहस
और परवाह के बीच संतुलन बनाना वा त वक प रप वता का सार है और जीत/जीत का मूल है।
अगर मुझम साहस अ धक है और परवाह कम है, तो म जीत/हार के नज़ रये से सोचूँगा। म शक् तशाली और
अहं ारा संचा लत बन जाऊँगा। मुझम अपने वश्वास का साहस होगा, परंतु म आपके वश्वास क यादा
परवाह नह क ँ गा।
अपनी आंत रक प रप वता और भावना मक शक् त क कमी क भरपाई करने के लये म अपने पद और
स ा से या फर अपने डे शय स, अपनी व र ता या अपने संपक से शक् त उधार ले सकता ँ।
अगर मुझम परवाह अ धक है और साहस कम है, तो म हार/जीत के बारे म सोचूँगा। म आपके वश्वास
और इ छा के बारे म इतनी यादा परवाह क ँ गा क मुझम अपने वश्वास और इ छा को क्त करने या
उ ह पूरा करने का साहस नह होगा।
जीत/जीत के लये बल साहस और परवाह दोन ही अ नवाय ह। इनका संतुलन वा त वक प रप वता क
पहचान है। अगर मुझम यह संतुलन है, तो म आपक बात यान से सुन सकता ँ, परानुभू त से समझ सकता ँ,
परंतु म साहस के साथ आमना-सामना भी कर सकता ँ।
चुरता क मान सकता। जीत/जीत के लये च र का तीसरा अ नवाय गुण है चुरता क मान सकता - यह
पैरेडाइम क यहाँ पर सबके लये ब त कुछ है।
अ धकांश लोग को उस अवधारणा म गहराई से ट कया गया है, जसे म अभाव क मान सकता कहता
ँ। वे जीवन को इस तरह दे खते ह क इसम बस इतना ही है, जैसे यहाँ पर सफ़ एक केक (pie) है। और अगर
कसी को इस केक का बड़ा टु कड़ा मल जायेगा, तो इसका मतलब यह है क बाक़ सबके लये कम बचेगा।
अभाव क मान सकता जीवन का यह पैरेडाइम है क अगर मुझे यादा मलेगा, तो आपको कम मलेगा।
अभाव क मान सकता वाले लोग को सर क शंसा करने या उ ह ेय दे ने म ब त तकलीफ़ होती है।
उनके लये शक् त या लाभ म सर को ह सा दे ना ब त मु कल होता है - उ ह भी, जो उ पादन म मदद करते ह।
सर क - यहाँ तक क (और कई बार तो ख़ासकर) अपने प रवार के सद य , क़रीबी दो त या सहयो गय क -
सफलता पर सचमुच ख़ुश होने म उ ह ब त मु कल आती है। उ ह लगभग यह अनुभव होता है क अगर कसी
को वशेष स मान या धन ा त आ है अथवा कसी को कोई उ लेखनीय सफलता या उपल ध मली है, तो उनसे
वह चीज़ छ नी जा रही हो।
हालाँ क वे सर क सफलता पर श द से ख़ुशी क्त कर सकते ह, परंतु अंदर ही अंदर वे अपना दल
मसोस रहे होते ह। उ ह अपने मू य या मह व का एहसास तुलना करने से मलता है, इस लये कसी सरे क
सफलता कुछ हद तक उनक असफलता होती है। सफ़ कुछ व ाथ ही “ए” ेड के हो सकते ह; सफ़ एक
क् त ही “नंबर वन” हो सकता है। “जीतने” का मतलब सफ़ “हराना” होता है।
अभाव क मान सकता वाले लोग अ सर मन ही मन यह आशा करते रहते ह क सर पर वप आ जाये -
ब त बड़ी वप नह , ब क छोट -मोट कोई ऐसी वप , जो उ ह “उनक जगह पर” रखे। वे हमेशा तुलना
करते रहते ह, हमेशा तयो गता करते रहते ह। वे चीज़ या सरे लोग पर वा म व था पत करने म अपनी ऊजा
लगाते ह, ता क वे अपने मू य या मह व को बढ़ा सक।
वे चाहते ह क सरे लोग उसी राह पर चल, जस पर वे उ ह चलवाना चाहते ह। वे अ सर अपनी तकृ त
(clone) चाहते ह और वे ख़ुद को “हाँ” या जी- ज़ूरी करने वाले लोग से घेरे रहते ह - ऐसे लोग जो उ ह चुनौती न
द और जो उनसे कमज़ोर ह ।
अभाव क मान सकता वाले लोग को कसी पूरक ट म का सद य बनने म मु कल आती है। वे
मत भन्नता को अव ा और न ाहीनता का ल ण मानते ह।
सरी ओर, चुरता क मान सकता क् तगत मू य और सुर ा के गहरे आंत रक एहसास से उ पन्न होती
है। इस पैरेडाइम का मानना है क यहाँ सबके लये पया त है और इसके बाद भी ब त सा बाक़ बचा रहेगा। इस
पैरेडाइम का प रणाम त ा, शंसा, लाभ और नणय लेने म भागीदारी होता है। यह संभावना , वक प और
रचना मकता के ार खोलता है।
चुरता क मान सकता पहली, सरी और तीसरी आदत के क् तगत आनंद, संतु और पूणता को लेती
है तथा इसे बाहर क ओर सर के अनूठेपन, आंत रक मागदशन और ोए टव कृ त क सराहना क तरफ़ मोड़
दे ती है। यह सकारा मक पार प रक (interactive) वकास और नये तीसरे वक प क रचना क असी मत
संभावना को पहचानती है।
सावज नक वजय का अथ सर पर वजय पाना नह है। इसका अथ भावकारी वहार म ऐसी सफलता
पाना है, जससे हर शा मल क् त को लाभकारी प रणाम मल। सावज नक वजय का अथ मलकर काम करना,
संवाद करना और ऐसे प रणाम पाना है, जो वही लोग आ म नभर तरीक़े से अकेले नह पा सकते थे। और
सावज नक वजय चुरता क मान सकता के पैरेडाइम का प रणाम है।
अखंडता, प रप वता और चुरता क मान सकता वाले च र म न कपटता होती है, जो मानवीय वहार म
तकनीक के होने या न होने से ब त आगे तक जाती है।
जीत/हार क मान सकता वाले लोग के लये जीत/जीत का च र वक सत करना संभव है। मने पाया है क
उ ह इस काम म ब त मदद मलेगी अगर वे कसी ऐसे मॉडल या मटर (मागदशक) के साथ जुड़ जाय, जसक
मान सकता सचमुच जीत/जीत क हो। जब लोग जीत/हार या इसी तरह के जीवनदशन म गहराई से ट कये
गये ह और वे अपनी ही तरह क मान सकता के लोग के नय मत संपक म आते ह , तो उनके पास जीत/जीत के
जीवनदशन को य दे खने और अनुभव करने का यादा अवसर नह होता। यही वजह है क म सा ह य पढ़ने
(जैसे अनवर सादात क ेरक जीवनी इन सच ऑफ़ आइडे टट ), चै रयट् स ऑफ़ फ़ायर जैसी फ़ म दे खने
या लेस मज़रेब स जैसे नाटक दे खने क सलाह दे ता ँ, जो आपको जीत/जीत के मॉडल दखाय।
परंतु याद रख: अगर हम टं ग के पार जाकर, सीखे ए कोण और वहार के पार जाकर अपने
भीतर पया त गहराई म खोज, तो जीत/जीत और हर तरह के सही स ांत क वा त वक ामा णकता हम अपने
ख़ुद के जीवन म मल जायेगी।

संबंध (Relationships)
च र क न व पर हम जीत/जीत संबंध बनाते और बनाये रखते ह। वश्वास यानी भावना मक बक अकाउंट
जीत/जीत का सार है। वश्वास के बना हम अ धक से अ धक समझौता कर सकते ह। वश्वास के बना हमम
खुलकर संवाद करने, साथ-साथ सीखने और स ची रचना मकता क वश्वसनीयता का अभाव होता है।
परंतु अगर हमारा भावना मक बक अकाउंट समृ है, तो वश्वसनीयता का मु ा आड़े नह आता है। इसम
पया त डपॉ ज़ट कये जा चुके ह, इस लये आप और म दोन जानते ह क हम एक- सरे का गहराई से स मान
करते ह। हम क् त व या पद के बजाय मु पर यान एका करते ह।
चूँ क हम एक- सरे पर वश्वास करते ह, इस लये हम खुलकर बात करते ह। हम अपने सारे प े खोलकर
मेज़ पर रख दे ते ह। हालाँ क यह हो सकता है क हम चीज़ को अलग-अलग तरीक़ से दे खते ह , परंतु म जानता
ँ क जब म आपके सामने युवती का वणन क ँ गा, तो आप उसे स मान के साथ सुनने के इ छु क ह गे और आप
जानते ह क म आपक बूढ़ म हला के वणन को भी उतने ही स मान के साथ सुनूँगा। हम दोन ही एक- सरे के
नज़ रये को समझने के लये गहराई से संक पत ह। हम दोन ही तीसरे वक प या सन ज टक समाधान ा त
करने हेतु मलकर काम करने के लये संक पवान ह, जो हम दोन के लये बेहतर जवाब होगा।
वह संबंध, जसम बक अकाउंट समृ हो और दोन ही प जीत/जीत के त गहराई से संक पवान ह ,
ज़बद त सनज (छठ आदत) के लये आदश ंग बोड है। यह संबंध न तो मु क वा त वकता या मह व को
कम करता है, न ही यह कोण क भन्नता को ख़ म करता है। परंतु यह उस नकारा मक ऊजा को ज़ र
ख़ म कर दे ता है, जो आम तौर पर क् त व और पद क भन्नता पर क त होती है। इसके बजाय यह एक
सकारा मक व सहयोगी ऊजा पैदा करता है, जो पूरी तरह से मु को समझने और आपसी लाभकारी तरीक़े से
उ ह सुलझाने पर यान क त करती है।
परंतु अगर इस तरह का संबंध न हो, तो या होगा? या होगा, अगर आपको कसी ऐसे क् त के साथ
सहम त पर प ँचना हो, जसने कभी जीत/जीत के बारे म सुना ही न हो या जसे जीत/हार अथवा कसी अ य
पैरेडाइम म गहराई से ट कया गया हो?
जीत/हार क मान सकता वाले क् त के साथ वहार करना जीत/जीत क मान सकता वाले क् त क
स ची परी ा है। कसी भी प र थ त म जीत/जीत क थ त शायद ही कभी आसानी से हा सल हो पाती है।
इसके लये गहरे मु और मूलभूत भन्नता से नबटना होता है। परंतु ऐसा करना ब त आसान हो जाता है,
अगर दोन ही प इसके बारे म जाग क ह , इसके त संक पवान ह और उनके संबंध के भावना मक बक
अकाउंट समृ ह ।
जब आप जीत/हार के पैरेडाइम से आने वाले क् त से वहार कर रहे ह , तब भी संबंध ही कुंजी है।
आपको अपने भाव के वृ पर यान क त करने क ज़ रत है। आप स चे श ाचार, स मान, शंसा और सरे
कोण के त स ाव के मा यम से भावना मक बक अकाउंट म डपॉ ज़ट करते ह। आप संवाद क या म
यादा समय तक रहते ह। आप यादा सुनते ह और यादा गहराई से सुनते ह। आप अपनी बात यादा साहस के
साथ कहते ह। आप रए टव नह ह। ोए टव बनने क ख़ा तर चा र क शक् त ा त करने के लये आप अपने
भीतर यादा गहराई म जाते ह। आप इस काम म तब तक जुटे रहते ह, जब तक सामने वाला यह न समझ ले क
आप सचमुच एक ऐसा समाधान चाहते ह, जो दोन के लये ही वा त वक जीत हो। यह या भावना मक बक
अकाउंट म एक ज़बद त डपॉ ज़ट हो जाती है।
आप जतने यादा शक् तशाली ह गे - आपका च र जतना अ धक न कपट होगा, आपक ोए ट वट
का तर जतना ऊँचा होगा, आप जीत/जीत के त सचमुच जतने अ धक तब ह गे - सामने वाले क् त पर
आपका भाव उतना ही सश होगा। यह पार प रक लीडर शप क असली परी ा है। यह ांज़ै शनल
लीडर शप से आगे नकलकर ांसफ़ॉमशनल लीडर शप बन जाती है और शा मल लोग तथा संबंध क
कायापलट कर दे ती है।
जीत/जीत एक ऐसा स ांत है, जसक स चाई क पु लोग अपने ख़ुद के जीवन म कर सकते ह। इस लये
आप अ धकांश लोग को यह एहसास दला सकगे क अगर वे अपनी इ छा के बजाय दोन क इ छा को पूरा
करने का ल य लेकर चल, तो उनक वा त वक जीत होगी। परंतु फर भी ऐसे कुछ लोग रहगे, जो जीत/हार क
मान सकता म इतनी गहराई से जकड़े ह गे क वे जीत/जीत के बारे म सोचने के लये भी तैयार नह ह गे। ऐसी
थ त म याद रख क कोई सौदा नह का वक प आपके पास हमेशा मौज़ूद है। या कभी-कभार शायद आप
जीत/जीत के न न कार यानी समझौता करने के बारे म भी वचार कर सकते ह।
यह जानना मह वपूण है क भले ही भावना मक बक अकाउंट समृ हो, फर भी यह ज़ री नह है क सभी
नणय जीत/जीत पर आधा रत ह । एक बार फर, मह वपूण बात संबंध है। उदाहरण के लये, आप और म
मलकर काम कर रहे ह और आप मेरे पास आकर कहते ह, “ ट फ़न, म जानता ँ क आप इस नणय को पसंद
नह करगे। नणय म आपको भागीदार बनाने क बात तो रहने द, मेरे पास आपको पूरी बात समझाने का व त भी
नह है। इस बात क काफ़ संभावना है क आपको यह ग़लत लगेगा। परंतु या आप फर भी इसका समथन
करगे?”
आपका मेरे साथ जो भावना मक बक अकाउंट है, अगर वह सकारा मक थ त म है, तो ज़ा हर है म उसका
समथन क ँ गा। म आशा क ँ गा क आप सही सा बत ह गे और म ग़लत। म आपके नणय को सही सा बत करने
के लये मेहनत क ँ गा।
परंतु अगर भावना मक बक अकाउंट ख़ाली हो और म रए टव ँ, तो म इसका सचमुच समथन नह
क ँ गा। हो सकता है म आपके मुँह पर तो कह ँ क म समथन क ँ गा, परंतु आपक पीठ पीछे म ब त उ सा हत
नह र ँगा। म इसे सफल बनाने के लये आव यक नवेश नह क ँ गा। म क ँगा, “यह सफल नह आ। अब आप
मुझसे या करवाना चाहते ह?”
अगर म ब त यादा रए टव ,ँ तो म आपके नणय को बबाद कर सकता ँ और म पूरी को शश क ँ गा
क बाक़ लोग भी ऐसा ही कर। या म “ े षपूण प से आ ाकारी” बन सकता ँ और प रणाम क ज़ मेदारी
लये बना सफ़ उतना ही क ँ गा, जतना आपने मुझसे करने को कहा था।
ेट टे न म अपने पाँच वष के वास के दौरान मने दे खा क दे श ने दो बार अपने घुटने टे के, य क े न
कंड टस े षपूण ढं ग से आ ाकारी हो गये थे। वे सफ़ काग़ज़ पर लखे सारे नयम और नदश का अ रशः
पालन करने लगे थे।
अगर च र और संबंध क भावना मक न व न हो, तो क़ागज पर ए अनुबंध का अथ ब त कम होता है।
इस लये हम संबंध म नवेश करने क वा त वक इ छा से जीत/जीत क ओर बढ़ना होगा, जो इसे संभव बनाती
है।

अनुबंध (Agreements)
संबंध से अनुबंध उ पन्न होते ह, जो जीत/जीत को प रभाषा और दशा दे ते ह। उ ह कई बार काय अनुबंध
(performance agreements) या पाटनर शप अनुबंध कहा जाता है। इनम उ पादक वहार के पैरेडाइम को
आड़े (horizontal) से खड़े (vertical) म बदल दया जाता है। यहाँ पर सर क नगरानी (supervision) क
जगह क् त अपनी नगरानी ख़ुद करता है। आमने-सामने टकराहट क मु ा म खड़े होने के बजाय दोन लोग
सफल पाटनस के प म एक साथ खड़े होते ह।
जीत/जीत अनुबंध पर पर- नभर वहार के ापक े क ा या करते ह। जब हमने तीसरी आदत वाले
अ याय म “हरा और साफ़” कहानी म डे लगेशन या काम स पने पर बात क थी, तो हमने इसके एक मह वपूण
योग (application) पर वचार कया था। हमने वहाँ जन पाँच त व क सूची द थी, वही त व यहाँ भी उपयोगी
ह। वे उन लोग के लये जीत/जीत अनुबंध का ढाँचा तैयार करते ह, ज ह अपने ल य हा सल करने के लये सर
से संबंध रखने क ज़ रत होती है। फर चाहे यह कमचा रय और नयो ा के बीच का संबंध हो, ोजे ट पर
इक े काम करने वाले आ म नभर क् तय का आपसी संबंध हो, कसी साझे ल य पर सहयोगपूण तरीक़े से
काम कर रहे समूह के लोग के बीच का संबंध हो, या फर कंप नय और स लायस के बीच का संबंध हो। ये पाँच
त व उन लोग के बीच पर पर- नभर यास म स म लत अपे ा को प करने और उनका बंधन करने के
एक भावकारी तरीक़े क रचना करते ह।
जीत/जीत अनुबंध म न न ल खत पाँच त व ब त प कर दये जाते ह:

इ छत प रणाम ( व धयाँ नह ): यह जान ल क या कया जाना है और कब कया जाना है।


दशा नदश: मानदं ड को प कर (जैसे स ांत या नी तय को), जनके भीतर प रणाम हा सल करना
है।
संसाधन: उस मानवीय, आ थक, तकनीक या संगठना मक समथन का उ लेख कर द, जो उन प रणाम
को हा सल करने म मदद के लये उपल ध है।
जवाबदे ही: दशन के मानक नधा रत कर द और मू यांकन का समय भी।
प रणाम: प कर द क मू यांकन के बाद या होगा। कौन से अ छे और बुरे, वाभा वक और तकपूण
प रणाम ह गे।

ये पाँच त व जीत/जीत अनुबंध को जीवन दे ते ह। इन े म अगर शु आत से ही प आपसी समझ और


अनुबंध हो, तो इससे वह पैमाना बनता है, जस पर लोग अपनी सफलता को ख़ुद नाप सकते ह।
पारंप रक तानाशाही शैली का सुपर वज़न जीत/हार का पैरेडाइम है। यह ऋणा मक थ त वाले भावना मक
बक अकाउंट का प रणाम भी है। अगर आपको सर पर वश्वास नह है या आपम इ छत प रणाम क साझी
भ व य- नह है, तो आपक वृ यह होगी क आप सामने वाले के सर पर खड़े होकर लगातार नगरानी
करते रहगे और नदश दे ते रहगे। चूँ क वश्वास नह है, इस लये आपको लोग को नयं त करने क आव यकता
महसूस होती है।
परंतु अगर वश्वास का अकाउंट समृ है, तो आपका तरीक़ा या होता है? उनके रा ते से हट जाय। अगर
शु आत से ही आपका जीत/जीत अनुबंध है और अगर वे अ छ तरह जानते ह क उनसे या अपे ा क जा रही
है, तो आपक भू मका उनका सहायक बनना और उनक जवाबदे ही क रपोट ा त करना है।
यह मानवीय आ मा को ब त उ कृ बनाने वाला क़दम है क आप उनका मू यांकन करने के बजाय उ ह
अपना मू यांकन ख़ुद करने द। और उ च वश्वास क सं कृ त म यह अ धक सट क भी होता है। ब त से मामल
म लोग अपने दल म जानते ह क रकॉड म जो बताया गया है, चीज़ उससे अ छ हो रही ह। समझ
(discernment) अ सर अवलोकन (observation) से अ धक सट क होती है।

जीत/जीत मैनेजमट श ण
कई वष पहले म ब त सी शाखा वाले एक बड़े ब कग सं थान को परामश दे ने वाले ोजे ट म अ य
प से शा मल था। वे चाहते थे क हम उनके मैनेजमट श ण काय म का मू यांकन करके उसे सुधार, जसका
सालाना बजट 7,50,000 डॉलर था। इस काय म म कॉलेज के नातक को चुना जाता था और उ ह 12 अलग-
अलग वभाग म दो-दो स ताह के नधा रत काय दये जाते थे। उ ह छह महीने तक श ण लेना होता था, ता क
उनम उस उ ोग क सामा य समझ वक सत हो सके। वे दो स ताह कॉम शयल लोन वभाग म बताते थे, दो
स ताह औ ो गक लोन, दो स ताह माक टग, दो स ताह ऑपरेश स और इसी तरह बाक़ वभाग म भी। छह
महीने बाद उ ह बक क कसी शाखा का सहायक बंधक बना दया जाता था।
हमारा काम इस छह महीने क औपचा रक श ण अव ध का मू यांकन करना था। काम शु करते ही
हमने पाया क इस काम का सबसे मु कल ह सा इ छत प रणाम क प त वीर पाना था। हमने शीष थ
ए ज़ी यू ट ज़ से सबसे कठोर सवाल पूछा: “जब ये लोग अपना श ण पूरा कर लगे, तो आप इन लोग को
कन काम म यो य दे खना चाहते ह?” हम जो जवाब मले, वे अ प तथा लगभग वरोधाभासी थे।
श ण काय म व धय से संबं धत था, प रणाम से नह । इस लये हमने सुझाव दया क वे एक अलग
पैरेडाइम पर आधा रत पायलट श ण काय म बनाय, जसे “ श ाथ - नयं त श ण” (learner-
controlled instruction) कहा जाये। यह एक जीत/जीत अनुबंध था, जसम उनक उपल ध को दशाने वाले
प ल य और मानदं ड को पहचानना शा मल था। इसम दशा नदश , संसाधन , जवाबदे ही और ल य ा त
करने के बाद मलने वाले प रणाम को भी बताया गया था। इस मामले म प रणाम सहायक बंधक के प म
मोशन था, जहाँ वे श ण के स ांत को अमल म लायगे और उनके वेतन म अ छ -ख़ासी वृ होगी।
हम उद्दे शय
् का पता लगाने के लये सचमुच ब त को शश करना पड़ी। “आप उनसे अकाउं टग के बारे म
या सीखने क अपे ा रखते ह? माक टग के बारे म? रयल ए टे ट लो स के बारे म?” और हम सूची म नीचे
उतरते गये। आ ख़रकार हमारे सामने सौ से अ धक उद्दे य आ गये, ज ह हमने कम कया, सरल कया और
सु व थत कया। अंत म हमारे पास 39 प वहारवाद उद्दे य रह गये, जनके साथ मानदं ड जुड़े थे।
अवसर और बढ़ ई तन वाह क वजह से श ाथ ब त उ सुक और उतावले थे क इन मानदं ड को
जतनी ज द संभव हो, पूरा कर द। उनके लये यह एक बड़ी जीत थी। और यह कंपनी के लये भी एक बड़ी जीत
थी, य क उनके पास ऐसे सहायक शाखा बंधक ह गे, जो बारह अलग-अलग ग त व धय के जाल म उलझने के
बजाय प रणाम-क त मानदं ड को पूरा करगे।
इस लये हमने श ा थय को श ाथ - नयं त श ण और तं - नयं त श ण के बीच का अंतर
समझाया। हमने मूलत: कहा, “ये हमारे उद्दे य और मानदं ड ह। और हमारे पास ये संसाधन ह, जनके ारा इ ह
ा त करना है। इसम एक- सरे से सीखना भी शा मल है। अब आप लोग इस काम म जुट जाय। जैसे ही आप इन
मानदं ड को पूरा कर लगे, आपको सहायक बंधक के पद पर मोशन मल जायेगा।”
उ ह ने साढ़े तीन ह त म ही काम पूरा कर लया। श ण के पैरेडाइम को बदलने से अ वश्वसनीय ेरणा
और रचना मकता मु ई थी।
जैसा ब त से पैरेडाइम प रवतन के साथ होता है, यहाँ भी तरोध का सामना करना पड़ा। लगभग सभी
शीष थ ए ज़ी यू ट ज़ को इस पर वश्वास ही नह हो रहा था। जब उ ह माण दखाया गया क मानदं ड पूरे कर
लये गये थे, तो उ ह ने मूलभूत प से कहा, “इन श ा थय के पास अनुभव नह है। उनम प रप वता क कमी
है। इस वजह से उनके पास उस तरह क नणय-शक् त नह होगी, जो सहायक शाखा बंधक के प म हम उनसे
चाहते ह।”
उनके साथ बाद म ई बातचीत के दौरान हमने पाया क उनम से यादातर सचमुच यह कह रहे थे, “हमने
ह माली क थी, ये लोग उससे य बच?” परंतु ज़ा हर है उ ह ने ऐसा इस तरह से नह कहा। “उनम प रप वता
क कमी है” कहने-सुनने म यादा अ छा लगता था।
इसके अलावा, प कारण से ( जनम छह महीने के काय म के लये 7,50,000 डॉलर का बजट भी
शा मल था), का मक वभाग भी वच लत हो गया।
इस लये हमने कहा, “ठ क है। आइये, हम कुछ और उद्दे य वक सत करते ह तथा उनके साथ मानदं ड जोड़
दे ते ह। परंतु हम यह काम भी श ाथ - नयं त श ण के पैरेडाइम से ही करगे।” हमने आठ और उद्दे य
नकलवाये, जनके मानदं ड ब त कठोर थे। हमने कठोर मानदं ड इस लये रखे थे, ता क ए ज़ी यू ट ज़ को
तस ली हो सके क ये लोग सहायक शाखा बंधक बनने के लये पया त तैयार थे और वे अब श ण काय म
के बाद वाले ावहा रक ह से म जा सकते थे। जब इन मानदं ड को वक सत कया जा रहा था, तो उस या
के कुछ स म भाग लेने के बाद कई ए ज़ी यू ट ज़ ने यह ट पणी क क अगर श ाथ इन कठोर मानदं ड
को पूरा कर लेते ह, तो वे छह महीने के काय म से गुज़रे लोग से बेहतर तैयार हो जायगे।
हमने श ा थय को पहले से ही तरोध क अपे ा करने के लये तैयार कर रखा था। हम अ त र
उद्दे य और मानदं ड को लेकर उनके पास गये और कहा, “जैसी हम उ मीद थी, मैनेजमट आपसे कुछ अ त र
उद्दे य हा सल करवाना चाहता है, जनके मानदं ड पहले से यादा कठोर ह। उ ह ने इस बार हम आश्व त कया
है क अगर आप इन मानदं ड को पूरा कर लेते ह, तो वे आपको सहायक बंधक बना दगे।”
वे अ वश्वसनीय फ़त से काम म जुट गये। वे अकाउं टग जैसे वभाग म ए ज़ी यू ट ज़ के पास गये और
मूलभूत प से उ ह ने यह कहा, “सर, म नये पायलट काय म का सद य ,ँ जसे श ाथ - नयं त श ण
कहा जाता है। और म समझता ँ क आपने उद्दे य व मानदं ड वक सत करने क या म भाग लया है।
“मुझे इस वभाग के छह मानदं ड पूरे करने ह। मने उनम से तीन को तो कॉलेज म सीखी यो यता ारा पूरा
कर लया है। एक को मने पु तक से पढ़कर सीख लया। पाँचव को मने टॉम से सीखा, जसे आपने पछले स ताह
श त कया था। मेरे पास अब सफ़ एक मानदं ड बचा है, जसे मुझे पूरा करना है। म सोच रहा था क या आप
या आपके वभाग का कोई क् त मेरे साथ कुछ घंटे बताकर मुझे यह बतायेगा क इसे कैसे कया जाता है।” इस
तरह उ ह ने दो ह ते के बजाय एक वभाग म सफ़ आधा दन बताया।
इन श ा थय ने एक- सरे के साथ सहयोग कया, एक- सरे के साथ वचारमंथन कया और उ ह ने
अ त र उद्दे य को डेढ़ स ताह म पूरा कर लया। छह महीने का काय म समटकर पाँच स ताह का रह गया
और प रणाम म मह वपूण वृ ई।
अगर लोग म अपने पैरेडाइ स क जाँच करने और जीत/जीत पर यान क त करने का साहस हो, तो इस
तरह क सोच इसी कार से कसी भी संगठन के हर े को भा वत कर सकती है। जब ज़ मेदार, ोए टव
और आ म- नद शत क् तय को कसी काम को करने क वतं ता दे द जाती है, तो क् तय और संगठन के
साथ जो घ टत होता है, उन प रणाम को दे खकर म हैरान रह जाता ँ।

जीत/जीत काय-अनुबंध
(Win/Win Performance Agreements)
जीत/जीत काय-अनुबंध क रचना करने के लये मह वपूण पैरेडाइम प रवतन क आव यकता होती है।
यान व धय के बजाय प रणाम पर क त होता है। हमम से यादातर लोग म व धय क नगरानी करने क
वृ होती है। हम तीसरी आदत म बताये गये गोफ़र डे लगेशन का योग करते ह, जस तरह क मैनेजमट व ध
का योग मने सै ा के साथ कया था, जब मने उससे अपने वाटर क इंग कर रहे बेटे क त वीर ख चने को कहा
था। परंतु जीत/जीत अनुबंध प रणाम पर यान क त करते ह और ज़बद त मानवीय मता मु करते ह,
अ धक सनज क रचना करते ह और इस या म पी पर पूरा यान क त करने के बजाय पीसी बनाने पर भी
यान दे ते ह।
जीत/जीत क जवाबदे ही होने पर लोग अपना मू यांकन ख़ुद करते ह। लोग पारंप रक मू यांकन के जो खेल
खेलते ह, वे बेढंगे और भावना मक प से थकाने वाले होते ह। जीत/जीत म लोग अपना ख़ुद का मू यांकन करते
ह और इसके लये ऐसे मानदं ड का योग करते ह, ज ह तय करने म उ ह ने ख़ुद मदद क थी। अगर आप
मानदं ड सही तरह से तय कर ल, तो लोग ऐसा कर सकते ह। जीत/जीत डे लगेशन अनुबंध म सात साल का ब चा
भी ख़ुद को बता सकता है क वह कतनी अ छ तरह आँगन को “हरा और साफ़” रख रहा है।
वश्व व ालय क क ा म मुझे सव े अनुभव तब मले, जब मने शु आत म ही जीत/जीत क साझी
समझ के ल य को सबके सामने रख दया। “हम यह हा सल करने क को शश कर रहे ह। ये ए, बी या सी ेड क
मूलभूत आव यकताय ह। मेरा ल य यह है क म ए ेड पाने म आप सबक मदद क ँ । अब जस बारे म हमने
बात क है, उस बारे म आप वचार कर, वश्लेषण कर और फर ख़ुद यह तय कर क आप ऐसा या हा सल
करना चाहते ह, जो आपके लये अनूठा हो। फर हम एक साथ बैठकर आपके चाहे गये ेड पर सहमत होने का
यास करगे - और उसे हा सल करने के लये आपके ारा बनाई गई योजना पर भी।”
मैनेजमट दाश नक और परामशदाता पीटर कर ने सुझाव दया है क मैनेजर और उनके कमचा रय के
बीच काय-अनुबंध का सार हण करने के लये “कमचा रय के प , मैनेजर के नाम” का योग कया जाना
चा हये। कमचारी और मैनेजर के बीच अपे ा , दशा नदश तथा संसाधन पर गहराई और व तार से चचा होती
है, ता क वे संगठना मक ल य के तालमेल म काम कर। इसके बाद कमचारी मैनेजर को प लखता है, जसम
उस चचा का सारांश होता है। इसम वह यह संकेत भी दे ता है क अगली काययोजना कब बनेगी या समी ा चचा
कब होगी।
इस तरह का जीत/जीत काय-अनुबंध वक सत करना मैनेजमट क क य ग त व ध है। जब ऐसा अनुबंध
होगा, तो कमचारी उस अनुबंध के दायरे के भीतर ख़ुद को मैनेज कर सकते ह। इसके बाद मैनेजर कार रेस म सबसे
आगे चल रही पेस कार (जो कसी रेस को शु करवाती है, परंतु उसम भाग नह लेती) क तरह काम कर सकते
ह। वे चीज़ को शु करवाकर ख़ुद को रा ते से हटा सकते ह। इसके बाद उनका काम सफ़ फैले ए तेल को साफ़
करना ही रह जायेगा।
जब कोई बॉस अपने हर अधीन थ का थम सहयोगी बन जाता है, तो वह अपने नयं ण के दायरे को ब त
बढ़ा सकता है। शासन और ओवरहेड के सभी तर को ख़ म कया जा सकता है। इस तरह का मैनेजर छह या
आठ लोग के बजाय बीस, तीस, पचास या इससे भी अ धक लोग को सुपरवाइज़ कर सकता है।
जीत/जीत काय-अनुबंध म मलने वाले प रणाम उस काय- न पादन के वाभा वक या तकपूण प रणाम होते
ह। इनम ऐसा नह होता क मैनेजर अपने मनमाने ढं ग से पुर कार या दं ड दे ।
मूलत: चार कार के प रणाम (पुर कार और दं ड) होते ह, ज ह मैनेजमट या अ भभावक नयं त कर सकते
ह - आ थक, मनोवै ा नक, अवसर और ज़ मेदारी। आ थक प रणाम म इस तरह क चीज़ शा मल होती ह, जैसे
आमदनी, टॉक ऑ श स, भ े या आ थक दं ड। मनोवै ा नक प रणाम म शंसा, ेय, स मान, वश्वसनीयता
या उनका अभाव शा मल है। मनोवै ा नक पुर कार अ सर आ थक पुर कार से अ धक ेरक होते ह, जब तक
लोग ज़दा रहने के लये संघष न कर रहे ह । अवसर म श ण, वकास और वेतन के अ त र मलने वाले
लाभ (perks) शा मल ह। ज़ मेदारी का संबंध काय े और अ धकार से होता है, ज ह बढ़ाया या घटाया जा
सकता है। जीत/जीत अनुबंध एक या एक से अ धक े म प रणाम प कर दे ते ह और शा मल लोग उ ह
शु आत म ही प प से समझ लेते ह। आप खेल नह खेलते ह; हर चीज़ शु से ही प होती है।
इन तकपूण व क् तगत प रणाम के अलावा प प से यह पहचानना भी मह वपूण है क वाभा वक
संगठना मक प रणाम या ह। उदाहरण के लये, या होगा अगर म ऑ फ़स दे र से प ँचूँ, अगर म सर के साथ
सहयोग करने से इंकार क ँ , अगर म अपने अधीन थ के साथ जीत/जीत के अ छे काय-अनुबंध तैयार न क ँ ,
अगर म इ छत प रणाम के लये उ ह जवाबदे ह न बनाऊँ, या अगर म उनक ावसा यक ग त और कै रयर के
वकास को आगे न बढ़ाऊँ?

जब मेरी बेट 16 साल क ई, तो पा रवा रक कार के उपयोग को लेकर हमने उसके साथ एक जीत/जीत
अनुबंध कया। हम सहमत ए क वह नयम का पालन करेगी और कार को साफ़ तथा सही थ त म रखेगी। हम
सहमत ए क वह सफ़ ज़ मेदार उद्दे य के लये ही कार का उपयोग करेगी और ज़ रत होने पर अपनी माँ
तथा मेरे लये ाइवर का काम करेगी। और हम इस बात पर भी सहमत ए क वह अपने सभी काम ख़ुशी-ख़ुशी
बगैर याद दलाये करेगी। ये हमारी जीत थ ।
हम इस बात पर भी सहमत ए क म कुछ संसाधन उपल ध कराऊँगा - कार, गैस और बीमा। और हम
सहमत ए क वह मुझसे ह ते म एक बार मलेगी, आम तौर पर र ववार दोपहर को। इस मुलाक़ात म हम यह
मू यांकन करगे क वह अनुबंध के अनु प कस कार काम कर रही है। प रणाम प थे। जब तक वह अनुबंध
का अपना प पूरा करेगी, वह कार का उपयोग कर सकती है। अगर वह अनुबंध पूरा नह करेगी, तो वह यह
अ धकार खो दे गी, जब तक क वह बारा ऐसा करने का नणय न ले।
जीत/जीत अनुबंध ने शु आत से ही दोन प के लये प अपे ाय नधा रत कर द थ । यह उसके लये
जीत थी, य क अब वह कार का उपयोग कर सकती थी। और यह सै ा तथा मेरे लये भी न त प से एक
जीत थी, य क अब वह अपनी और कुछ हद तक हमारी प रवहन आव यकता को सँभाल सकती थी। हम
कार के रखरखाव या उसक साफ़-सफ़ाई के बारे म चता करने क ज़ रत भी नह थी। और हमारी एक अंद नी
जवाबदे ही थी, जसका अथ यह था क मुझे उसके सर पर खड़े रहने या उसक व धय क नगरानी करने क
ज़ रत नह थी। उसक अखंडता, उसका ववेक, उसक समझ (discernment) क शक् त और हमारे समृ
भावना मक बक अकाउंट क वजह से यह अनुबंध ब त अ छ तरह चला। हर क़दम पर उसक नगरानी करने क
को शश म हम भावना मक तनाव नह झेलना पड़ा। इसके अलावा अगर वह हमारे चाहे गये तरीक़े से काम नह
कर रही थी, तो हमने उसे उसी पल ताबड़तोड़ दं ड या पुर कार नह दया। हमारे बीच एक जीत/जीत अनुबंध था
और इसने हम सबको मु कर दया।

जीत/जीत अनुबंध ज़बद त प से मुक् तदायी होते ह। परंतु एकाक तकनीक के प रणाम (Product) के
प म वे अ धक समय तक नह ठहर पायगे। भले ही आप उ ह शु म ही नधा रत कर द, परंतु क् तगत
अखंडता और वश्वासपूण संबंध के बना उ ह बनाये रखने का कोई उपाय नह है।
स चा जीत/जीत अनुबंध पैरेडाइम, च र और संबंध का प रणाम होता है, जनसे यह वक सत होता है।
इस संदभ म यह उस पर पर- नभर वहार को प रभा षत और संचा लत करता है, जसके लये इसे बनाया गया
है।
तं (Systems)
कसी संगठन म जीत/जीत क थ त तभी क़ायम रह सकती है, जब तं इसका समथन कर। अगर आप
जीत/जीत के बारे म बात तो कर, परंतु जीत/हार को पुर कृत कर, तो आपके हाथ म एक हारने वाला काय म ही
बचा रहेगा।
आपको मूल प से वही मलता है, जसे आप पुर कृत करते ह। अगर आप अपने ल य पाना चाहते ह और
अपने मशन टे टमट के जीवनमू य का त बब दे खना चाहते ह, तो आपको अपने पुर कार तं को उन ल य
और जीवनमू य के अनु प रखना होगा। अगर इसे सु नयो जत तरीक़े से उनके अनु प नह रखा गया, तो आप
कहगे कुछ, और करगे कुछ और ही। आपक थ त उस मैनेजर क तरह होगी, जसके बारे म मने पहले बताया
था, जो बात तो सहयोग क करता था, परंतु जसने “बरमुडा क सैर” क तयो गता करवाकर त पधा को
बढ़ावा दया था।

मने कई वष तक म य-प म म एक ब त बड़े रयल ए टे ट संगठन के साथ काम कया। इस संगठन के


साथ मेरा पहला अनुभव एक बड़ी से स रैली थी, जसम 800 से अ धक से स सहयोगी वा षक पुर कार काय म
के लये एक त ए थे। यह एक ेरणादायक और उ साहवधक काय म था, जसम हाई कूल के बड थे और
काफ़ शोरशराबा भी।
वहाँ पर जमा 800 लोग म से लगभग 40 को सव च दशन के लये पुर कार मले, जैसे “सबसे यादा
से स,” “सबसे यादा सं या,” “सबसे यादा कमाया गया कमीशन” और “सबसे यादा सू चयाँ।” जहाँ
पुर कार दये जा रहे थे, वहाँ काफ़ रोमांच और शोरशराबा था। उ साह, ख़ुशी और ता लय का माहौल था। इसम
कोई शक नह था क वे 40 लागे जीत गये थे, परंतु इसके पीछे यह आंत रक एहसास भी था क 760 लागे हार
गये थे।
हमने तुरंत शै णक और संगठना मक वकास काय शु कया, ता क संगठन के तं को जीत/जीत के
पैरेडाइम के अनु प बनाया जा सके। हमने सबसे नचले तर के लोग को इसम शा मल कया, ता क उ ह े रत
करने वाला तं बनाया जा सके। हमने उ ह एक- सरे के साथ सहयोग करने और सनज का योग करने के लये
ो सा हत कया, ता क यथासंभव अ धक से अ धक लोग अपने क् तगत प से बनाये गये काय-अनुबंध के
इ छत प रणाम को हा सल कर सक।
एक साल बाद अगली रैली म 1000 से अ धक से स सहयोगी मौज़ूद थे और उनम से लगभग 800 को
पुर कार मले। वहाँ पर कुछ क् तगत वजेता भी थे, ज ह तुलना के आधार पर पुर कार मले थे। परंतु पुर कार
काय म मूलत: उन लोग पर क त था, ज ह ने ख़ुद के चुने काय-ल य को ा त कया था। यह उन समूह पर
क त था, ज ह ने ट म के ल य हा सल कये थे। कृ म प से शोरशराबा बढ़ाने, ता लयाँ बजाने या
मनोवै ा नक उ साहवधन के लये हाई कूल के बड बुलाने क कोई ज़ रत नह थी। वाभा वक च और रोमांच
का ज़बद त माहौल था, य क लोग एक- सरे क ख़ुशी बाँट सकते थे और से स सहयो गय क ट म एक साथ
पुर कार का आनंद ले सकती थ , जनम पूरे ऑ फ़स के लये पयटन या ा शा मल थी।
उ लेखनीय बात यह थी क जन 800 लोग को उस साल पुर कार मले थे, लगभग उन सभी ने सं या और
लाभ के संदभ म त क् त उतना ही उ पादन कया था, जतना पछले साल के 40 पुर कृत लोग ने कया था।
जीत/जीत क भावना ने सोने के अंड क सं या को मह वपूण प से बढ़ा दया था। और इस या म मुग को
भी अ छ तरह पोषण मला था, जससे ज़बद त मानवीय ऊजा और तभा मु ई। प रणाम व प उ पन्न
सनज हर स म लत क् त के लये अ त अनुभव थी।

तयो गता का मह व बाज़ार म है, पछले साल के दशन से तुलना म है या शायद कसी सरे ऑ फ़स या
क् त से तुलना म भी है। जहाँ वशेष पर पर- नभरता नह है, वहाँ सहयोग क आव यकता नह है। परंतु मु
उ मता के लये ऑ फ़स म आपसी सहयोग उतना ही मह वपूण है, जतना क बाज़ार म तयो गता। तयो गता
के प रवेश म जीत/जीत क भावना जी वत नह रह सकती।
जीत/जीत को सफल बनाने के लये तं के समथन क आव यकता होती है। श ण तं , नयोजन तं ,
संवाद तं , बजट तं , सूचना तं , भुगतान तं - सभी तं जीत/जीत के स ांत पर आधा रत होना चा हये।
मने एक और कंपनी को परामश दया, जो अपने कमचा रय को मानवीय संबंध का श ण दे ना चाहती
थी। इसम यह अवधारणा न हत थी क असली सम या कमचारी थे।
े सडट ने कहा, “आप जस टोर म चाह, जाकर ख़ुद दे ख ल क वे आपसे कस तरह वहार करते ह। वे
सफ़ ऑडर लेते ह। वे यह नह जानते क ाहक के क़रीब कैसे आया जाये। वे ॉड ट के बारे म कुछ नह
जानते। इसके अलावा उनम ॉड ट तथा ाहक क आव यकता को जोड़ने के ान और से स नपुणता का
अभाव है।”
म उनके कई टोस म गया। और वे सही थे। परंतु इसके बाद भी मुझे अपने दमाग़ म घुमड़ रहे सवाल का
जवाब नह मला: इस तरह का नज़ रया कस वजह से बना था?
े सडट ने कहा, “दे खये, हम सम या से नबटने क भरसक को शश कर रहे ह। हमने डपाटमट मुख को
अ छ मसाल पेश करने का आदे श दया है। हमने उ ह बता दया है क उनका दो तहाई काम सामान बेचना और
एक तहाई काम बंधन करना है। और वे बाक़ से समैन से यादा बेच रहे ह। हम आपसे बस इतना चाहते ह क
आप से समैन को श त कर द।”
इन श द को सुनते ही मुझे ख़तरे क लाल झंडी दखाई द । मने कहा, “आइये, हम थोड़ी और जानकारी
इक करते ह।”
उ ह मेरा यह सुझाव पसंद नह आया। वे “जानते थे” क सम या या थी और वे श ण शु करवाना
चाहते थे। परंतु म अड़ा रहा और दो दन म हमने असली सम या को खोज लया। काम क प रभाषा और भुगतान
के तं के कारण मैनेजर “मलाई खा रहे थे” (creaming)। वे कैश र ज टर के पीछे खड़े हो रहे थे और ाहक के
धीमे समय के दौरान सारे बज़नेस क मलाई खा रहे थे। सब जानते ह क रटे ल म आधा समय मंद का होता है
और बाक़ आधा आपाधापी भरा। इस लये मैनेजर सभी घ टया काम - टॉक क सूची का नयं ण, सामान जमाने
और सफ़ाई का काम - से समैन को दे दे ते थे। और वे ख़ुद र ज टर के पीछे खड़े होकर मलाई खाते थे। इसी
कारण डपाटमट मुख क ब सबसे अ धक होती थी।
हमने भुगतान तं को बदल दया। सम या रातोरात ठ क हो गई। हमने एक तं लागू कया, जसम मैनेजर
को धन तभी मलेगा, जब उनके से समैन धन कमाय। हमने मैनेजर क आव यकता और ल य को से समैन
क आव यकता और ल य के नीचे रखकर उ ह आपस म जोड़ दया। और मानवीय संबंध के श ण क
आव यकता अचानक ग़ायब हो गई। इस ताले को खोलने क कुंजी थी स चा जीत/जीत पुर कार तं वक सत
करना।

एक और उदाहरण म, म एक कंपनी के मैनेजर के साथ काम कर रहा था। इस कंपनी म औपचा रक काय-
मू यांकन क ज़ रत पड़ती थी। उसने अपने एक मैनेजर को जो मू यांकन रे टग द थी, उसे लेकर वह कुं ठत
था। उसने कहा, “उसे तीसरा ेड मलना चा हये थे, परंतु मुझे उसे पहला ेड दे ना पड़ा” ( जसका मतलब था े ,
मोशन पाने के यो य)।
मने पूछा, “ फर आपने उसे पहला ेड य दया?”
उसका जवाब था, “ य क आँकड़े उसके प म थे।”
“तो फर आपको ऐसा य लगता है क उसे तीसरा ेड मलना चा हये था?”
“ य क वह आँकड़ को ग़लत ढं ग से ा त करता है। वह लोग क उपे ा करता है। वह उनक पीठ पर
चढ़कर आगे नकल जाता है। वह सबके लये मु कल पैदा करता है।”
“ऐसा लगता है क वह पूरी तरह से पी यानी उ पादन पर यान क त करता है। और उसे इसके लये ही
पुर कार मल रहा है। परंतु अगर आप उसके साथ इस सम या के बारे म बात कर, अगर आप पीसी का मह व
समझने म उसक मदद कर, तो शायद इससे कुछ लाभ हो?”
उसने कहा क वह यह को शश पहले ही कर चुका था, परंतु कोई फ़ायदा नह आ।
“मान ली जये, अगर आप उसके साथ जीत/जीत का समझौता तय कर ल, जसम आप दोन सहमत ह क
उसे पी यानी आँकड़ के आधार पर सफ़ दो तहाई भुगतान मलेगा। और बचा आ एक तहाई भुगतान पीसी के
आधार पर मलेगा, यानी इस बात पर नभर करेगा क बाक़ लोग उसे कस तरह दे खते ह, वह कस तरह का
लीडर है, वह कस तरह कमचा रय क ग त म योगदान दे ता है, वह कस तरह क ट म तैयार करता है?”
उसने जवाब दया, “इसक तरफ़ वह ज़ र यान दे गा।”
अ सर सम या लोग म नह , तं म होती है। अगर आप अ छे लोग को बुरे तं म रख दे ते ह, तो आपको बुरे
प रणाम मलगे। आपको उन फूल को स चना होगा, ज ह आप बड़ा करना चाहते ह।
जब लोग सचमुच जीत/जीत सोचना सीख लेते ह, तो वे इसे उ पन्न करने और सश बनाने के लये तं
खड़े कर सकते ह। वे अनाव यक तयोगी थ तय को सहयोगी थ तय म पांत रत कर सकते ह और पी तथा
पीसी दोन का नमाण करके अपनी भावका रता पर सश भाव डाल सकते ह।
वसाय म ए ज़ी यू ट ज़ अपने तं को इसके अनु प बनाकर अ त उ पादक लोग क ऐसी ट म तैयार
कर सकते ह, जो मलकर काय के बाहरी मानदं ड से तयो गता कर सके। श ा के े म श क व ा थय के
काय- दशन के आधार पर े डग स टम बना सकते ह, जो पहले से सहमत ए मानदं ड क पृ भू म म हो। वे
व ा थय को सहयोग करने के लये ो सा हत कर सकते ह, ता क वे सीखने और ल य हा सल करने म एक- सरे
क सफलतापूवक मदद कर सक। प रवार म माता- पता एक- सरे के साथ तयो गता के बजाय सहयोग पर
अपना यान क त कर सकते ह। उदाहरण के लये बॉ लग जैसी ग त व धय म वे प रवार का कोर रख सकते ह
और पहले के कोर से आगे नकलने क को शश कर सकते ह। वे जीत/जीत अनुबंध के साथ घरेलू ज़ मेदा रयाँ
तय कर सकते ह, जो लगातार टोकाटाक को ख़ म करे और माता- पता को ऐसे काम करने म समथ बनाये, ज ह
सफ़ वे ही कर सकते ह।
एक म ने एक बार मुझे अपने दे खे एक काटू न के बारे म बताया, जसम दो ब चे बात कर रहे थे। एक कह
रहा था, “अगर म मी हम ज द नह उठायगी, तो हम कूल के लये दे र हो जायेगी।” इन श द ने बलता से
उसका यान ख चा। जब प रवार ज़ मेदार जीत/जीत के आधार पर व थत नह होते, तो इसी क़ म क
सम याएँ उ पन्न होती ह।
जीत/जीत का पैरेडाइम प दशा नदश और उपल ध संसाधन के भीतर न त प रणाम को हा सल
करने क ज़ मेदारी क् त को स प दे ता है। यह क् त को काय और प रणाम के मू यांकन के लये जवाबदे ह
बनाता है तथा काय के वाभा वक प रणाम दान करता है। और जीत/जीत का तं एक ऐसा प रवेश बनाता है,
जो जीत/जीत काय-अनुबंध का समथन करता है तथा उ ह शक् त दे ता है।

याएँ
जीत/जीत ल य को जीत/हार या हार/जीत के साधन से हा सल करने का कोई उपाय नह है। आप यह
नह कह सकते, “चाहे आप इसे पसंद कर या न कर, आपको जीत/जीत क मान सकता से सोचना होगा।” तो
सवाल यह है क जीत/जीत समाधान पर कैसे प ँचा जाये।
हावड के लॉ ोफ़ेसर रॉजर फ़शर और व लयम यूरी ने उस े म कुछ ब त उ लेखनीय काम कया है,
जसे वे “ स ांतवाद ” नी त बनाम “ थ तवाद ” व ध कहते ह। उ ह ने अपनी बेहद उपयोगी और ानवधक
पु तक गे टग टु यस म समझौता-वाता क इन नी तय पर चचा क है। हालाँ क जीत/जीत श द का योग नह
कया गया है, परंतु पु तक क भावना और न हत दशन जीत/जीत कोण के तालमेल म है।
वे सुझाव दे ते ह क स ांत-आधा रत समझौता-वाता का सार क् त को सम या से अलग करना है,
थ तय के बजाय चय पर यान क त करना है, पार प रक लाभ के वक प खोजना है और ल य के मानदं ड
पर ज़ोर दे ना है - कसी ऐसे बाहरी मानदं ड या स ांत पर, जो दोन प को पसंद हो।
जीत/जीत समाधान खोज रहे व भन्न लोग और संगठन के साथ अपने काम के दौरान म सुझाव दे ता ँ क
वे न न चार-सू ीय या म शा मल ह :

1. सम या को सरे कोण से दे ख। सरे प क आव यकता और चता को समझने व सामने रखने


क स ची को शश कर।
2. शा मल मु य मु और चता ( थ तय को नह ) को बता द।
3. तय कर क पूरी तरह वीकार करने यो य समाधान म कौन से प रणाम ह गे।
4. उन प रणाम को हा सल करने के लये संभा वत नये वक प को पहचान।
पाँचव और छठ आदत इस या के दो त व से य प से संबं धत ह, जन पर हम अगले दो अ याय
म व तार से चचा करगे।
परंतु इस मोड़ पर म यह संकेत दे ना चाहता ँ क जीत/जीत या क उ च अंतसबंधी कृ त जीत/जीत
के सार के साथ ही होती है। आप सफ़ जीत/जीत या से ही जीत/जीत समाधान हा सल कर सकते ह -
ल य और साधन एक जैसे होते ह।
जीत/जीत क् त व क तकनीक नह है। यह मानवीय वहार का संपूण पैरेडाइम है। यह पैरेडाइम
अखंडता, प रप वता और चुरता क मान सकता वाले च र से उ पन्न होता है। यह उ च वश्वास के संबंध से
वक सत होता है। यह उन अनुबंध म न हत है, जो भावकारी ढं ग से अपे ा तथा उपल ध को प करते ह
और उनका बंधन करते ह। यह समथक तं म फलता-फूलता है। और इसे उस या ारा हा सल कया जाता
है, जसक अ धक पूणता से जाँच करने के लये अब हम पाँचव और छठ आदत म जाने के लये तैयार ह।

अमल म लाने के सुझाव:


1. कसी ऐसी आगामी चचा के बारे म सोच, जसम आप कोई अनुबंध करने वाले ह या समाधान पर चचा करने
वाले ह । साहस और परवाह के बीच संतुलन बनाये रखने का संक प ल।
2. उन बाधा क सूची बना ल, जो आपको जीत/जीत पैरेडाइम का योग करने से रोकती ह। तय कर क
इनम से कुछ बाधा को ख़ म करने के लये आपके भाव के वृ के भीतर या कया जा सकता है।
3. एक ख़ास संबंध चुन ल, जहाँ आप जीत/जीत अनुबंध वक सत करना चाहगे। ख़ुद को सरे क् त के
थान पर रखने क को शश कर और प ता से लख ल क आपके हसाब से वह क् त समाधान को कस
तरह दे खता होगा। फर अपने ख़ुद के कोण से यह सूची बनाय क कौन से प रणाम आपके लये जीत
ह गे। सामने वाले क् त के पास जाय और पूछ क या वह तब तक सं ेषण करने का इ छु क है, जब तक
क आप सहम त के ब और पार प रक लाभदायक समाधान पर न प ँच जाय।
4. अपने जीवन के तीन मुख संबंध क पहचान कर। ऐसे कुछ संकेत द क उनम से येक के भावना मक
बक अकाउंट म आपके हसाब से कतनी रक़म है। कुछ प तरीक़े लख ल, जनके ारा आप येक
अकाउंट म डपॉ ज़ट कर सकते ह।
5. अपनी ख़ुद क टं ग पर गहराई से वचार कर। या यह जीत/हार क ट है? यह टं ग सरे
लोग के साथ आपके वहार को कस तरह भा वत करती है? या आप उस ट के मु य ोत को
पहचान सकते ह? तय कर क या ये ट् स वतमान वा त वकता म आपको लाभ प ँचा रही ह।
6. जीत/जीत पैरेडाइम के कसी मॉडल (आदश क् त) को सामने रखने क को शश कर, जो मु कल
थ तय म भी पार प रक लाभ क स ची को शश करता हो। संक प कर क आप उस क् त के उदाहरण
को अ धक ग़ौर से दे खगे और उससे सीखगे।
पाँचवी आदत
पहले समझने क को शश कर, फर समझे जाने

परानुभू तपूण सं ेषण के स ांत
(Principles of Empathic
Communication)

दल के अपने तक होते ह, जनके बारे म तक कुछ नह जानता।


● पा कल

मा नजातेली ह।जयेथोड़ी
आपको अपनी आँख म कोई परेशानी हो रही है और आप मदद के लये आँख के डॉ टर के पास
दे र तक आपक तकलीफ़ सुनने के बाद वह अपना च मा उतारकर आपके हाथ म थमा दे ता
है।
वह कहता है, “इसे पहन ली जये। म यह च मा दस साल से लगा रहा ँ और इससे मुझे सचमुच फ़ायदा आ
है। मेरे पास घर पर ऐसा ही एक और च मा है। आप इस च मे को ले जा सकते ह।”
आप च मा पहन लेते ह, परंतु इससे सम या और गंभीर हो जाती है।
आप च लाकर कहते ह, “यह तो भयानक है! मुझे तो कोई चीज़ दखाई ही नह दे रही है!”
वह पूछता है, “आपके साथ या गड़बड़ है? इससे मुझे तो ब त फ़ायदा होता है। थोड़ी मेहनत से को शश
कर।”
आप ज़ोर दे कर कहते ह, “म को शश कर रहा ँ। परंतु हर चीज़ धुंधली नज़र आ रही है।”
“आपको या हो गया है? सकारा मक तरीक़े से सोच।”
“ठ क है। सकारा मक तरीक़े से कहा जाये, तो म कुछ भी नह दे ख सकता ँ।”
वह आपको झड़क दे ता है, “दे खये, आप एहसानफ़रामोश ह। मने आपक मदद करने के लये कतना कुछ
कया है!”
अगली बार जब आपको मदद क ज़ रत होगी, तो इस बात क कतनी संभावना है क आप आँख के उसी
डॉ टर के पास जायगे? म अनुमान लगा सकता ँ क इस बात क यादा संभावना नह होगी। आपको कसी ऐसे
डॉ टर पर यादा वश्वास नह होगा, जो समाधान सुझाने से पहले सम या को ठ क से न पहचाने।
परंतु सं ेषण म समाधान सुझाने से पहले हम सम या को कतनी बार पहचानते ह?

“इधर आओ बेटे, मुझे बताओ क तुम कैसा महसूस कर रहे हो। म जानती ँ क यह मु कल है, परंतु म
समझने क को शश क ँ गी।”
“ या पता, म मी। आप सोचगी क यह मूखतापूण है।”
“ज़ा हर है, म ऐसा नह सोचूँगी! तुम मुझे बता सकते हो। बेटे, कोई भी तु हारी उतनी परवाह नह करता,
जतनी म करती ँ। मेरी च सफ़ तु हारी भलाई म है। कौन सी चीज़ तु ह इतनी खी कर रही है?”
“मुझे नह मालूम।”
“बताओ भी, बेटे। बात या है?”
“सच क ँ तो अब मुझे कूल अ छा नह लगता।”
“ या?” आप अ वश्वास से त या करती ह। “अब तु ह कूल अ छा नह लगता, इस बात से तु हारा
या मतलब है? हमने तु हारी श ा के लये कतने सारे याग कये ह! श ा तु हारे भ व य क न व है। अगर तुम
अपनी बड़ी बहन क तरह मेहनत करो, तो तु हारे यादा अ छे नंबर आयगे और तब तुम कूल को पसंद भी
करोगे। हमने तु ह बार-बार समझाया है क तुम अपने दमाग़ को थर कर लो। तुमम यो यता तो है, परंतु तुम
उसका इ तेमाल करने क मेहनत नह करते हो। थोड़ी यादा को शश करो। इसके बारे म सकारा मक नज़ रया
वक सत करो।”
थोड़ी दे र के लये ख़ामोशी छा जाती है।
“अब आगे कहो। मुझे बताओ क तुम कैसा महसूस करते हो।”

हमम यह वृ होती है क हम तेज़ी से आगे बढ़ते ह और अ छ सलाह दे कर चीज़ को ठ क करने क


को शश करते ह। परंतु हम अ सर असली सम या को पहचानने का व त नह नकाल पाते। हम इतना समय नह
लगाते क पहले वा तव म गहराई से सम या को समझ ल।
अगर मुझे एक वा य म सारांश म वह सबसे मह वपूण एकमा स ांत लखना हो, जो मने पार प रक
संबंध के े म सीखा है, तो वह स ांत यह होगा: पहले समझने क को शश कर… फर समझे जाने क । यह
स ांत भावकारी पार प रक सं ेषण (interpersonal communication) क कुंजी है।

च र और सं ेषण
इस समय आप मेरी लखी पु तक पढ़ रहे ह। पढ़ना और लखना दोन ही सं ेषण के प ह। इसी तरह
बोलना और सुनना भी सं ेषण के प ह। दरअसल ये सं ेषण के चार मूलभूत कार ह। ज़रा सोचकर दे खये क
आप इन चार को करने म दन म कतने घंटे लगाते ह। अ छ तरह सं ेषण करने क यो यता आपक
भावका रता के लये बेहद ज़ री है।
सं ेषण जीवन क सबसे मह वपूण यो यता है। हम जा त अव था म अपना अ धकांश समय सं ेषण म
बताते ह। परंतु ज़रा इस पर वचार कर: आपने बरस सीखा है क कैसे पढ़ा और लखा जाता है, बरस सीखा है
क कैसे बोला जाता है। परंतु सुनना सीखने के लये? आपको कौन सा श ण या श ा मली है जो आपको
इतनी अ छ तरह सुनने क यो यता दे ती है, ता क आप सचमुच गहराई से सरे क् त को उसके संदभ के
मानदं ड (frame of reference) से समझ सक?
तुलना मक प से ब त कम लोग के पास सुनने का कसी तरह का श ण होता है। जनके पास यह
होता भी है, उनके श ण का अ धकांश ह सा तकनीक से भरे क् त व-आधा रत नी तशा पर क त रहा
है। यह च र तथा संबंध क न व पर आधा रत नह होता, जो सामने वाले को सचमुच समझने के लये अ नवाय है।
अगर आप मेरे साथ - अपने जीवनसाथी, अपने ब चे, अपने पड़ोसी, अपने बॉस, अपने सहकम , अपने म
के साथ - भावकारी तरीक़े से चचा करना चाहते ह या मुझे भा वत करना चाहते ह, तो सबसे पहले तो आपको
मुझे समझना होगा। और आप ऐसा सफ़ तकनीक से नह कर सकते। अगर मुझे यह लगेगा क आप कसी
तकनीक का इ तेमाल कर रहे ह, तो मुझे इसम छल-कपट और चालबाज़ी का एहसास होगा। म सोचने लगूँगा क
आप ऐसा य कर रहे ह और इसके पीछे आपके उद्दे य या ह। और म इतना सुर त महसूस नह क ँ गा क
आपके सामने खुलकर अपनी बात क ँ।
मेरे साथ आपके भाव क वा त वक कुंजी आपका उदाहरण या आपका असली वहार है। आपका
उदाहरण वाभा वक प से आपके च र से उ पन्न होता है यानी इस बात से क आप सचमुच कस तरह के
क् त ह। आपका उदाहरण इस बात से उ पन्न नह होता क सरे लोग आपके बारे म या कहते ह या आप
मुझसे अपने बारे म कैसी राय रखवाना चाहते ह। यह तो आपके बारे म मेरे वा त वक अनुभव से कट होता है।
आपका च र हमेशा सबके सामने होता है और ख़ुद को सं े षत करता है। इससे लंबे समय म म आप पर
और मेरे साथ आपके यास पर सहज प से वश्वास या अ वश्वास करने लगता ँ।
अगर आपका जीवन कभी ठं डा, कभी गम होता है, अगर आप कभी ं या मक, कभी दयालु होते ह और
सबसे बढ़कर अगर आपका क् तगत आचरण आपके सावज नक आचरण से मेल नह खाता, तो मेरे लये
आपके साथ खुल पाना ब त मु कल होता है। फर भले ही म आपके ेम और भाव को कतना ही पाना चा ँ या
मुझे उसक कतनी ही ज़ रत हो, म इतना सुर त महसूस नह क ँ गा क आपके सामने अपने वचार, अनुभव
तथा अपनी कोमल भावनाय क्त क ँ । कौन जाने आपक त या या होगी?
परंतु जब तक म आपके सामने खुलूँगा नह , जब तक आप मुझे और मेरी अनूठ थ त तथा भावना को
समझगे नह , तब तक आप यह नह जान पायगे क मुझे कस तरह सलाह द जाये। हो सकता है आप जो कह वह
अ छा हो, परंतु उसका मुझसे कोई सीधा संबंध नह होगा।
आप कह सकते ह क आप मेरी परवाह करते ह और मुझे मह व दे ते ह। म इस बात पर बलता से वश्वास
करना चाहता ँ। परंतु जब तक आप मुझे समझते नह ह, तब तक आप मुझे मह व कैसे दे सकते ह? मेरे पास
सफ़ आपके श द होते ह और म श द पर भरोसा नह कर सकता।
म इतना ो धत और सुर ा मक ँ - शायद अपराधबोध से इतना त और भयभीत - क मुझे भा वत
नह कया जा सकता, भले ही अंदर से म यह बात जानता ँ क मुझे आपक सलाह क ज़ रत है।
जब तक आप मेरे अनूठेपन से भा वत नह ह गे, तब तक म आपक सलाह से भा वत नह होऊँगा।
इस लये अगर आप पार प रक सं ेषण क आदत म सचमुच भावकारी बनना चाहते ह, तो आप ऐसा सफ़
तकनीक के मा यम से नह कर सकते। आपको परानुभू तपूवक सुनने क यो यता का नमाण च र क न व पर
करना होगा, जो खुलेपन और वश्वास को े रत करती है। इसके अलावा आपको भावना मक बक अकाउंट को
भी समृ बनाना पड़ेगा, जससे दल के बीच सं ेषण संभव होता है।

परानुभू तपूवक सुनना


“पहले समझने क को शश कर” म पैरेडाइम का एक ब त गहरा प रवतन शा मल है। हम आम तौर पर यह
चाहते ह क हम पहले समझा जाये। यादातर लोग समझने के इरादे से नह सुनते ह, ब क वे जवाब दे ने के इरादे
से सुनते ह। वे या तो बोल रहे होते ह या बोलने क तैयारी कर रहे होते ह। वे हर चीज़ को अपने ख़ुद के पैरेडाइ स
से फ़ टर करते ह और सर के जीवन म अपनी आ मकथा पढ़ते ह।
“ओह, मुझे पता है आप कैसा महसूस कर रहे ह!”
“मेरे साथ भी ऐसा ही आ था। म आपको अपना अनुभव बताता ँ।”
वे सरे लोग के वहार पर लगातार अपनी घरेलू फ़ म चलाते रहते ह। वे जनके साथ चचा करते ह, उ ह
अपना च मा लगाने क सलाह दे ते रहते ह।
अगर उ ह कसी क् त - पु /पु ी, जीवनसाथी या कमचारी - के साथ कोई सम या होती है, तो उनका
नज़ रया यह होता है, “वह ब कुल भी नह समझता है।”

एक बार एक पता ने मुझसे कहा, “म अपने बेटे को नह समझ सकता। वह मेरी बात बलकुल भी नह
सुनता।”
मने जवाब दया, “म आपक कही बात फर से दोहराना चाहता ।ँ आप अपने बेटे को नह समझ सकते,
य क वह आपक बात नह सुनता।”
उसने कहा, “यह सही है।”
“मुझे फर से को शश करने द,” मने कहा। “आप अपने बेटे को नह समझ सकते, य क वह आपक बात
नह सुनता।”
उसने अधीरता से जवाब दया, “हाँ, मने यही कहा था।”
मने सुझाव दया, “मुझे लगता था क सरे क् त को समझने के लये आपको उसक बात सुनने क
ज़ रत होती है।”
“ओह!” उसने कहा। काफ़ दे र तक ख़ामोशी छाई रही। जब उसके दमाग़ क ब ी जली, तो उसने बारा
कहा, “ओह! हाँ! परंतु म उसे समझता ँ। म जानता ँ वह कस थ त से गुज़र रहा है। म ख़ुद भी उसी थ त से
गुज़र चुका ।ँ म यह नह समझ पा रहा ँ क वह मेरी बात य नह सुनता।”
इस आदमी को ज़रा भी अंदाज़ा नह था क बेटे के दमाग़ म सचमुच या चल रहा था। उसने अपने दमाग़ म
झाँककर दे खा और सोचा क उसे वहाँ पूरी नया दख रही है, जसम उसका बेटा भी शा मल था।

यह हमम से ब त से लोग के साथ होता है। हम अपनी ख़ुद क आ मकथा से भरे होते ह; हम अपने ख़ुद के
सही होने से भरे होते ह। हम चाहते ह क हम समझा जाये। हमारी चचाय एकल संवाद (monologue) बनकर रह
जाती ह और हम वा तव म कभी नह समझ पाते ह क कसी सरे क् त के भीतर या चल रहा है।
जब कोई क् त बोलता है, तो हम आम तौर पर चार तर म से कसी एक तर पर सुनते ह। हो सकता है
हम सामने वाले को नज़रअंदाज़ कर द, यानी सचमुच उसक बात बलकुल ही न सुन। हम झूठमूठ का दखावा
कर सकते ह, “हाँ। अ छा। ठ क है।” हम चु नदा बात सुनने का योग कर सकते ह यानी चचा के सफ़ कुछ
ह स को ही सुन। हम अ सर ऐसा तब करते ह, जब हम चार साल से कम उ के ब चे क लगातार बक-बक
सुनते ह। या हम यानपूवक सुनने का योग भी कर सकते ह, जसम हम कहे जाने वाले श द क तरफ़ यान द
और उस पर अपनी ऊजा क त कर। परंतु हमम से ब त कम लोग पाँचव तर पर सुनते ह, जो सुनने का सव च
प है - परानुभू तपूवक सुनना (empathic listening)।
जब म परानुभू तपूवक सुनने क बात कहता ँ, तो म सुनने क “स य” या “ त बबन” तकनीक का
ज़ नह कर रहा ँ, जनम मूलत: सामने वाले ारा कही गई बात क नक़ल क जाती है। इस तरह क सुनने क
तकनीक यो यता पर आधा रत ह तथा च र और संबंध से वभक्त ह। ये अ सर उन लोग को अपमा नत करती
ह, जनक बात को इस कार सुना जाता है। यह मूलत: आ मकथा मक भी है। अगर आप इन तकनीक का
योग करते ह, तो हो सकता है आप वा त वक चचा म अपनी आ मकथा ोजे ट न कर, परंतु सुनते समय
आपका उद्दे य आ मकथा मक होता है। आप त बबन कौशल (reflective skills) का योग करते ए सुनते
ह, परंतु आप जवाब दे न,े नयं त करने और अपना मतलब नकालने के इरादे से सुनते ह।
जब म परानुभू तपूवक सुनने क बात कहता ँ, तो मेरा मतलब है समझने के इरादे से सुनना। मेरा मतलब है
पहले समझने क को शश करना, सचमुच समझने क को शश करना। यह एक बलकुल ही अलग पैरेडाइम है।
परानुभू तपूवक सुनने का अथ कसी सरे क् त के संदभ-मानदं ड के भीतर प ँचना है। आप उसक
अनुभू त के मा यम से दे खते ह, आप नया को उसी तरह दे खते ह जस तरह वह दे खता है, आप उसके पैरेडाइम
को समझते ह, आप यह भी समझते ह क वह कैसा महसूस करता है।
परानुभू त सहानुभू त नह है। सहानुभू त सहम त का एक प है, एक तरह का मू यांकन है। और कई बार
यह अ धक सही मनोभाव तथा त या भी होती है। परंतु अ सर लोग सहानुभू त क ख़ुराक के आद हो जाते
ह। यह उ ह नभर बना दे ती है। परानुभू तपूवक सुनने का सार यह नह है क आप कसी के साथ सहमत ह ।
इसका सार यह है क आप पूरी तरह से और गहराई से उस क् त को समझ ल, भावना मक प से भी तथा
बौ क प से भी।
परानुभू तपूवक सुनना कहे गये श द के दज होने, उ ह त ब बत करने या समझने से ब त आगे तक जाता
है। सं ेषण वशेष का अनुमान है क हमारे बोले जाने वाले श द के मा यम से दरअसल सफ़ 10 तशत
सं ेषण होता है। 30 तशत सं ेषण हमारी व नय के मा यम से होता है और 60 तशत हमारी बॉडी ल वेज के
मा यम से। परानुभू तपूवक सुनते समय आप अपने कान से सुनते ह, परंतु उससे अ धक मह वपूण बात यह है क
आप अपनी आँख और दल से भी सुनते ह। आप सामने वाले क भावना और स चे अथ को समझने के लये
सुनते ह। आप वहार को समझने के लये सुनते ह। आप अपने म त क के दाय और बाय दोन ह स का योग
करते ह। आप एहसास करते ह, सहज अनुभू त करते ह, महसूस करते ह।
परानुभू तपूवक सुनना इस लये ब त शक् तशाली है य क यह आपको काम करने के लये ु टहीन
जानकारी दे ता है। ख़ुद क आ मकथा थोपने के बजाय या सामने वाले के वचार , भावना , उद्दे य तथा
ा या क क पना करने के बजाय आप कसी सरे क् त के दल और दमाग़ क वा त वकता को समझते ह।
आप समझने के लये सुनते ह। आप सामने वाले क आ मा के गहन संदेश को ा त करने पर यान क त करते
ह।
इसके अलावा, परानुभू तपूवक सुनना भावना मक बक अकाउंट म डपॉ ज़ट बनाने क कुंजी है, य क
आपके ारा कया गया कोई भी काम तब तक डपॉ ज़ट नह होता, जब तक क सामने वाला उसे डपॉ ज़ट न
माने। हो सकता है आप डपॉ ज़ट करने के लये इतनी मेहनत कर क आपक उँग लयाँ ह ी बनकर रह जाय, परंतु
सामने वाले को यह वद् ॉअल लगेगा, अगर वह आपके यास को जोड़-तोड़, वाथपूण, धमकाने वाला या
तु छता का वहार माने, य क आप यह नह समझ पाये ह क उसके लये वा तव म या मह वपूण है।
परानुभू तपूवक सुनना भावना मक बक अकाउंट म अपने आप म एक बड़ा डपॉ ज़ट है। यह गहराई तक
जाकर उपचार करता है और मरहम लगाता है, य क यह क् त को “मनोवै ा नक हवा” दान करता है।
आप इस समय जस कमरे म ह, अगर उसक सारी हवा अचानक बाहर ख च ली जाये, तो इस पु तक म
आपक च का या होगा? आप पु तक क परवाह नह करगे। आप हवा ा त करने के सवाय कसी और चीज़
क परवाह नह करगे। जी वत रहना आपक एकमा ेरणा बन जायेगी।
परंतु जब आपके पास हवा होती है, तो यह आपको े रत नह करती। मानवीय ेरणा के े क यह सबसे
बड़ी स चाइय म से एक है: संतु आव यकताय े रत नह करत । ेरणा सफ़ उ ह आव यकता से मलती है,
जो पूरी नह ई ह। शारी रक प से सुर त रहने के बाद कसी इंसान क सबसे बड़ी आव यकता मनोवै ा नक
प से सुर त रहना है - यानी उसे समझा जाये, समथन दया जाये, मा यता द जाये, सराहा जाये।
जब आप कसी क् त क बात परानुभू त से सुनते ह, तो आप उसे मनोवै ा नक हवा दे ते ह। और जब इस
मह वपूण आव यकता क पू त हो जाती है, तो उसके बाद आप भा वत करने या सम या को सुलझाने पर यान
क त कर सकते ह।
मनोवै ा नक हवा क यह आव यकता जीवन के हर े म सं ेषण को भा वत करती है।

एक बार मने यह अवधारणा शकागो के एक से मनार म सखाई। मने तभा गय से कहा क वे उस शाम
को परानुभू तपूवक सुनने का योग कर। अगली सुबह एक आदमी मेरे पास आया और वह ख़बर सुनाने के लये
छटपटा रहा था।
उसने कहा, “म आपको बताना चाहता ँ क कल रात को या आ? म यहाँ शकागो म कॉम शयल रयल
ए टे ट के एक बड़े सौदे को अं तम प दे ने क को शश कर रहा था। म संप के मा लक और उनके वक ल से
मला। म रयल ए टे ट के एक अ य एजट से भी मला, जसे एक वैक पक ताव के साथ हाल ही म शा मल
कया गया था।
“ऐसा लग रहा था, जैसे यह सौदा मेरे हाथ से नकलने वाला था। म इस पर छह महीने से भी यादा समय से
मेहनत कर रहा था और सच कहा जाये, तो मेरे सभी अंडे इसी एक टोकरी म रखे ए थे। सारे के सारे। म दहशत म
आ गया। मने वह हर काम कया, जो म कर सकता था। मने हर दरवाज़ा खटखटा लया। म जतनी से स तकनीक
जानता था, मने उन सबका योग करके दे ख लया। मेरे सामने आ ख़री वक प यही बचा था क म उनसे क ,ँ
‘ या हम इस नणय को कुछ समय के लये टाल सकते ह?’ परंतु यह संभव नह लग रहा था य क चीज़ तेज़ी से
हो रही थ और सौदे बाज़ी के इतने लंबे समय तक चलने से वे पहले ही ब त खीझे ए थे। यह साफ़ दख रहा था
क वे इस सौदे के बारे म ज द ही अं तम नणय लेने वाले थे।
“इस लये मने ख़ुद से कहा, ‘आपक सलाह को भी आज़माकर य न दे खा जाये? य न उस स ांत पर
अमल कया जाये, जो मने आज सीखा है। य न पहले समझने क को शश क जाये, फर समझे जाने क ? वैसे
भी, मेरे पास गँवाने के लये कुछ नह है।’
“मने उस आदमी से सफ़ इतना कहा, ‘पहले मुझे यह दे खने द क या म वा तव म आपक थ त को
समझ गया ।ँ या म यह समझ गया ँ क मेरे सुझाव के बारे म आपक चताय या ह? जब आप यह महसूस
कर ल क म उ ह समझता ँ, तब हम दे खगे क मेरा ताव ासं गक है या नह ।’
“मने ख़ुद को उसक जगह पर रखकर दे खने क स ची को शश क । मने उसक आव यकता तथा
चता को श द म क्त करने क को शश क और फर वह खुलने लगा।
“ जन चीज़ के बारे म वह च तत था, जन प रणाम क वह आशा कर रहा था, उ ह मने जतना अ धक
भाँपा और क्त कया, वह उतना ही अ धक खुलता गया।
“अंतत: हमारी चचा के बीच म ही वह खड़ा हो गया। वह फ़ोन के पास तक गया और अपनी प नी का नंबर
डायल कया। माउथपीस पर अपना हाथ रखकर उसने मुझसे कहा, ‘आपको सौदा मल गया है।’
‘यह सुनकर म भ च का रह गया। म अभी तक हैरान ँ।’ ‘‘
उसने उस आदमी को मनोवै ा नक हवा दे कर भावना मक बक अकाउंट म ब त बड़ा डपॉ ज़ट कया था।
यह अ छ तरह से समझ ल क अगर बाक़ चीज़ लगभग समान ह , तो मानवीय आयाम सौदे के तकनीक
आयाम से अ धक मह वपूण होता है।

पहले समझने क को शश करना यानी उपचार सुझाने से पहले बीमारी का पता लगाना मु कल है। कुछ
समय के लये यह ब त आसान होता है क आप कसी को वह च मा थमा द, जसने आपको इतने वष तक लाभ
प ँचाया है।
परंतु लंबे समय म यह पी और पीसी दोन को गंभीर प से कम करता है। सरे लोग कहाँ से आ रहे ह, इस
बात क उ चत समझ न हो, तो आप अ धकतम पर पर- नभर उ पादन ा त नह कर सकते। आप जन लोग के
साथ जुड़ते ह, अगर उ ह वा तव म यह न लगे क आपने उ ह समझ लया है, तो आप पार प रक पीसी या समृ
भावना मक बक अकाउंट नह पा सकते।
परानुभू तपूवक सुनना जो खम भरा भी है। गहराई से सुनने के अनुभव म जाने के लये ब त सुर ा क
ज़ रत होती है, य क आप भा वत होने के लये अपने ार खोल दे ते ह। आप असुर त हो जाते ह। एक तरह
से यह एक वरोधाभास है क भा वत करने के लये आपको भा वत होना पड़ता है। इसका अथ यह है क
आपको सचमुच समझना पड़ता है।
यही वजह है क पहली, सरी और तीसरी आदत इतनी आधारभूत ह। वे आपको अप रवतनीय आंत रक
क यानी स ांत का क दान करती ह, जससे आप बाहरी असुर ा का सामना शां त और शक् त से कर
सकते ह।

समाधान सुझाने से पहले सम या को समझ


(Diagnose Before You Prescribe)
हालाँ क यह जो खम भरा और मु कल है, परंतु पहले समझने क को शश करना या समाधान सुझाने से
पहले सम या को समझना एक ऐसा स ांत है, जो जीवन के ब त से े म प प से सही दखाई दे ता है।
यह सभी स चे ोफ़ेशन स क पहचान है। ने वशेष के लये यह ब त मह वपूण है, डॉ टर के लये यह ब त
मह वपूण है। जब तक आपको यह वश्वास न हो क डॉ टर ने सम या समझ ली है, तब तक आपको उसक
दवा या समाधान पर ज़रा भी वश्वास नह होगा।
जब हमारी बेट जेनी सफ़ दो महीने क थी, तो एक श नवार को वह बीमार पड़ गई। उस दन हमारे इलाक़े
म एक फ़टबॉल मैच हो रहा था, जसम लगभग सबक गहरी च थी। यह एक मह वपूण मैच था। लगभग
60,000 लोग उस मैच को दे ख रहे थे। म और सै ा भी मैच दे खने जाना चाहते थे, परंतु हम न ही जेनी को
अकेला नह छोड़ना चाहते थे। उसके उ ट -द त से हम च तत थे।
डॉ टर भी वह मैच दे खने गया था। वह हमारा घरेलू डॉ टर नह था, परंतु फ़ोन पर उपल ध था। जब जेनी
क थ त बगड़ी, तो हमने डॉ टर क मदद लेने का फ़ैसला कया।
सै ा ने टे डयम फ़ोन लगाकर डॉ टर से बात क । उसक आवाज़ क बेचैनी से सै ा भाँप सकती थी क
यह मैच का एक मह वपूण ण था। वह तेज़ी से बोला, “हाँ, या हो गया?”
“डॉ टर, म मसेज़ कवी बोल रही ।ँ हम अपनी ब ची जेनी के बारे म च तत ह।”
डॉ टर ने पूछा, “ थ त या है?”
सै ा ने ल ण बताये और डॉ टर बोला, “ठ क है। म दवाय बता दे ता ँ। आप कस कान से दवाय मँगवाते
ह?”
फ़ोन रखने के बाद सै ा ने महसूस कया क हड़बड़ी म वह डॉ टर को पूरी जानकारी नह दे पाई थी।
बहरहाल उसे यह लगा क उसने जतना बताया था, वह पया त था।
मने उससे पूछा, “तु ह या लगता है, डॉ टर को यह मालूम होगा क जेनी हाल ही म पैदा ई है?”
सै ा ने जवाब दया, “मुझे यक़ न है क उसे मालूम होगा।”
“परंतु वह हमारा घरेलू डॉ टर नह है। उसने पहले कभी जेनी का इलाज नह कया है।”
“मुझे फर भी लगता है क वह जानता होगा।”
“ या तुम सचमुच उसे दवा दे ना चाहोगी, जब तक क तु ह पूरा वश्वास न हो क उसे यह बात मालूम है?”
सै ा चुप हो गई। अंतत: उसने कहा, “अब हम या कर?”
म बोला, “उसे बारा फ़ोन करो।”
सै ा ने जवाब दया, “तुम उसे बारा फ़ोन करो।”
और मने कया। डॉ टर को एक बार फर मैच से बाहर बुलवाया गया। मने पूछा, “डॉ टर, जब आपने वे
दवाय लखी थ , तब या आपको यह मालूम था क जेनी सफ़ दो महीने क है?”
“नह ,” उसने हैरानी से कहा। “मुझे यह मालूम नह था। अ छा आ आपने बारा फ़ोन कर लया। म
त काल दवाय बदल दे ता ँ।”

अगर आपको सम या के नदान म वश्वास नह है, तो आपको समाधान म भी वश्वास नह होगा।


यह स ांत से स म भी सही है। भावकारी से समैन सबसे पहले ाहक क आव यकता , चता और
थ त को समझने क को शश करता है। नौ स खया से समैन ॉड ट बेचता है; ोफ़ेशनल से समैन
आव यकता और सम या के समाधान बेचता है। यह एक बलकुल भन्न कोण है। ोफ़ेशनल से समैन
सीखता है क कस तरह सम या का नदान (diagnose) कया जाये और उसे समझा जाये। वह यह भी सीखता
है क लोग क आव यकता को अपने ॉड ट् स या सेवा से कस तरह जोड़ा जाये। और अगर उसे लगता है
क उसके ॉड ट या सेवा से ाहक को लाभ नह होगा, तो उसम यह कहने क अखंडता या ईमानदारी होती है,
“मेरा ॉड ट या सेवा आपक इस आव यकता को पूरा नह करेगी।”
उपचार सुझाने से पहले सही नदान करना कानून का भी मूल है। ोफ़ेशनल वक ल केस तैयार करने से पहले
थ त समझने तथा कानून और पूववत उदाहरण को समझने के लये त य इक े करता है। अ छा वक ल अपना
केस लखने से पहले वरोधी वक ल का केस लगभग लखता है।
यह ॉड ट डज़ाइन करने म भी सही है। या आप कंपनी के कसी क् त ारा यह कहने क क पना कर
सकते ह, “ ाहक का शोध वगैरह बकवास बात है। हम तो सीधे ॉड ट डज़ाइन करना चा हये।” सरे श द म,
उपभोक्ता क ख़रीदने क आदत और उद्दे य को भूल जाय - सीधे ॉड ट डज़ाइन कर लो। यह तरीक़ा कभी
सफल नह होगा।
एक अ छा इंजी नयर पुल का न शा बनाने से पहले काम कर रही शक् तय और दबाव को समझेगा। एक
अ छा श क पढ़ाने से पहले क ा का मू यांकन करेगा। एक अ छा व ाथ अमल करने से पहले समझेगा। एक
अ छा अ भभावक मू यांकन करने या नणय लेने से पहले समझेगा। अ छे नणय क कुंजी समझना है। अगर
कोई क् त पहले ही नणय ले लेता है, तो वह कभी पूरी तरह नह समझ पायेगा।
पहले समझने क को शश करना एक ऐसा स ांत है, जसक स चाई जीवन के सभी े म प दखाई
दे ती है। यह एक ापक और आम स ांत है, परंतु पार प रक संबंध के े म यह सबसे बड़ी शक् त है।

चार आ मकथा मक त याएँ


(Four Autobiographical Responses)
चूँ क हम आ मकथा मक ढं ग से सुनते ह, इस लये हमारी वृ चार तरीक़ म से कसी एक से त या
करने क होती है। हम मू यांकन करते ह - हम या तो सहमत होते ह या असहमत। हम तहक़ क़ात करते ह - हम
अपने संदभ के मानदं ड (frames of reference) से सवाल पूछते ह। हम परामश दे ते ह - हम अपने अनुभव के
आधार पर सलाह दे ते ह। या फर हम ा या करते ह - हम अपने उद्दे य और वहार के आधार पर लोग क
ा या करते ह तथा उनके उद्दे य और वहार को प करने क को शश करते ह।
ये त याएँ हमम वाभा वक प से होती ह। हम इनम गहराई से ट कये गये होते ह। इन ट् स के
मॉड स (इन पर चलने वाले लोग) हमेशा हमारे आस-पास रहते ह। परंतु ये त याएँ हमारी समझने क यो यता
को वा तव म कस तरह भा वत करती ह?
मान ली जये, म अपने पु के साथ सं ेषण करने क को शश कर रहा ।ँ परंतु अगर म उसक पूरी बात
सुनने से पहले ही उसक बात का मू यांकन करने लगता ँ, तो या वह इतना वतं महसूस करेगा क मुझसे
खुलकर अपने दल क बात कहे? या म उसे मनोवै ा नक हवा दे रहा ? ँ
और जब म तहक़ क़ात करता ँ, तो उसे कैसा महसूस होता है? तहक़ क़ात बीस श्न (twenty
questions) खेलने क तरह है। यह आ मकथा मक है, यह नयं त करता है और यह आ ामक है। यह तकपूण
भी है और तक क भाषा भाव तथा भावना क भाषा से अलग होती है। हो सकता है आप पूरे दन बीस श्न
खेल, परंतु इसके बाद भी यह न समझ पाय क सामने वाले के लये या मह वपूण है। लगातार तहक़ क़ात करना
एक मुख कारण है, जसक वजह से माता- पता अपने ब च के क़रीब नह प ँच पाते।
“कैसा चल रहा है, बेटे?”
“ब ढ़या।”
“आजकल या हो रहा है?”
“कुछ नह ।”
“ कूल म या रोमांचक आ?”
“कुछ ख़ास नह ।”
“वीकएंड क तु हारी योजनाय या ह?”
“पता नह ।”
वह जब फ़ोन पर अपने दो त से बात करता है, तो आप उससे फ़ोन नीचे नह रखवा पाते, परंतु आपके
सवाल के जवाब म वह सफ़ एक-दो श द ही कहता है। आपका घर एक सराय है, जहाँ वह खाता और सोता है,
परंतु वह कभी अपनी भावनाय नह बताता है, कभी खुलता नह है।
और अगर आप इस बारे म ईमानदारी से सोच, तो आपको उसका प समझ म आ जायेगा। हर बार जब भी
वह अपनी कमज़ोर नस खोलकर आपके सामने रखता है, तो ‘मने तुमसे पहले ही कहा था’ जैसे वा य और अपनी
आ मकथा मक सलाह से आप उस नस को हाथी क तरह कुचल दे ते ह। फर वह आपको खुलकर य बतायेगा?
हम इन त या म इतनी गहराई से ट कये गये होते ह क हम यह एहसास भी नह होता क हम
उनका योग कर रहे ह। मने दे श भर म हज़ार लोग को यह अवधारणा सखाई है। जब हम परानुभू तपूवक सुनने
क थ तय म भू मकाय नभाते ह और जब लोग आ ख़रकार अपनी आम त या को सुनना शु करते ह,
तो उ ह हमेशा गहरा ध का लगता है। बहरहाल, जब वे यह समझ लेते ह क वे आम तौर पर कैसी त या करते
ह और यह सीख लेते ह क परानुभू तपूवक कैसे सुना जाता है, तो उ ह सं ेषण म नाटक य प रणाम ा त होने
लगते ह। पहले समझने क को शश कर ब त से लोग के लये सात आदत म सबसे रोमांचक और तुरंत लागू हो
सकने वाली आदत बन जाती है।
आइये एक उदाहरण पर नज़र डाल, जो एक पता और कशोर पु के बीच का आम संवाद हो सकता है।
हमारे ारा अभी बताई गई चार अलग-अलग त या के संदभ म पता के श द पर ग़ौर कर।

“डैडी, म जान गया ँ! कूल जाने का कोई फ़ायदा नह है!”


“ या बात है, बेटे?” (तहक़ क़ात)।
“यह पूरी तरह अ ावहा रक है। मुझे इसक एक भी चीज़ काम क नह लगती।”
“बेटे, तुम अभी इसके लाभ नह दे ख सकते। जब म तु हारी उ का था, तो मुझे भी ऐसा ही महसूस होता
था। मुझे याद है, म कुछ वषय को तो अपने समय क बबाद मानता था। परंतु बाद म जाकर वही वषय मेरे लये
सबसे मददगार सा बत ए। बस अपनी श ा पूरी कर लो। इसे कुछ समय दो।” (परामश)।
“म पहले ही अपने जीवन के दस साल इसे दे चुका ँ! या आप मुझे बता सकते ह क ऑटो मैके नक के
प म ‘x + y’ मेरे कस काम आयेगा?”
“ऑटो मैके नक के प म? तुम शायद मज़ाक़ कर रहे हो!” (मू यांकन)।
“नह , म मज़ाक़ नह कर रहा ँ। जो नाम के मेरे दो त को ही दे ख ली जये। उसने कूल छोड़ दया है। अब
वह कार को सुधारने का काम कर रहा है। और वह ब त सा पैसा कमा रहा है। यह काम ावहा रक है।”
“इस समय तु ह ऐसा लग सकता है। परंतु कुछ साल बाद जो नाम का तु हारा दो त यह सोचेगा क उसे
कूल क पढ़ाई पूरी कर लेना चा हये थी। तुम ऑटो मैके नक नह बनना चाहते। तु ह उससे बेहतर कसी चीज़ के
लये अगर ख़ुद को तैयार करना है, तो तु ह इसके लये श ा क ज़ रत है।” (परामश)।
“म नह जानता। जो का काम अ छा-ख़ासा चल रहा है।”
“दे खो बेटे, या तुमने सचमुच को शश क है?” (तहक़ क़ात, मू यांकन)।
“म हाई कूल म दो साल से पढ़ रहा ।ँ न त प से मने को शश क है। यह समय क बबाद है।”
“यह ब त त त कूल है, बेटे। उ ह कुछ तो ेय दो।” (परामश, मू यांकन)।
“बाक़ ब चे भी मेरी ही तरह महसूस करते ह।”
“ या तु ह एहसास है क तु हारी माँ और मने तु ह यहाँ तक प ँचाने के लये कतने याग कये ह? जब तुम
इतनी र तक आ गये हो, तो तुम अपनी पढ़ाई बीच म नह छोड़ सकते।” (मू यांकन)।
“म जानता ँ क आप लोग ने याग कये ह, डैडी। परंतु पढ़ाई- लखाई इतनी मू यवान है ही नह ।”
“दे खो, शायद अगर तुम अपना होमवक करने म यादा समय लगाओ और ट .वी. के सामने कम बैठो…”
(परामश, मू यांकन)।
“दे खये, डैडी। इससे कोई फ़ायदा नह होगा। पर… रहने भी द जये! म इस बारे म वैसे भी बात नह करना
चाहता।”

नश् चत प से उसके पता के इरादे नेक थे। नश् चत प से वे मदद करना चाहते थे। परंतु या उ ह ने
सचमुच समझना शु कया था?
आइये, ब चे क तरफ़ यादा ग़ौर से दे ख - सफ़ उसके श द पर नह , ब क उसके वचार और भावना
(जो नीचे ैकेट म दये गये ह) पर भी नज़र डाल और दे ख क डैडी क आ मकथा मक त या से उस पर
या भाव पड़ रहा है।

“डैडी, म जान गया ँ! कूल जाने का कोई फ़ायदा नह है!” (म आपके साथ बात करना चाहता ,ँ
आपका यान ख चना चाहता ँ।)
“ या बात है, बेटे?” (आपक च है! ब त ब ढ़या!)
“यह पूरी तरह अ ावहा रक है। मुझे इसक एक भी चीज़ काम क नह लगती।” (मुझे कूल म कोई
सम या आ रही है और मेरा मूड उखड़ा आ है।)
“बेटे, तुम अभी इसके लाभ नह दे ख सकते। जब म तु हारी उ का था, तो मुझे भी ऐसा ही महसूस होता
था।” (नह ! यह डैडी क आ मकथा का अ याय नंबर तीन आ गया। म इसके बारे म बात नह करना
चाहता था। मुझे इससे सचमुच कोई लेना-दे ना नह है क उ ह बना जूत के बफ़ म मील पैदल चलकर
कूल जाना पड़ता था। म अपनी सम या क जड़ तक प ँचना चाहता ।ँ ) “मुझे याद है, म कुछ वषय को
तो अपने समय क बबाद मानता था। परंतु बाद म जाकर वही वषय मेरे लये सबसे मददगार सा बत ए। बस
अपनी श ा पूरी कर लो। इसे कुछ समय दो।” (समय मेरी सम या को नह सुलझा सकता। काश म आपको
यह बता सकता! काश म इसे बस मुँह से नकालकर बाहर कर पाता!)
“म पहले ही अपने जीवन के दस साल इसे दे चुका ँ! या आप मुझे बता सकते ह क ऑटो मैके नक के
प म ‘x + y’ मेरे कस काम आयेगा?”
“ऑटो मैके नक के प म? तुम शायद मज़ाक़ कर रहे हो!” (अगर म ऑटो मैके नक बन जाऊँगा, तो वे
मुझे पसंद नह करगे। अगर म कूल क पढ़ाई पूरी नह क ँ गा, तो वे मुझे पसंद नह करगे। जो कुछ मने
कहा है, मुझे उसे उ चत सा बत करना होगा।)
“नह , म मज़ाक़ नह कर रहा ँ। जो नाम के मेरे दो त को ही दे ख ली जये। उसने कूल छोड़ दया है। अब
वह कार को सुधारने का काम कर रहा है। और वह ब त सा पैसा कमा रहा है। यह काम ावहा रक है।”
“इस समय तु ह ऐसा लग सकता है। परंतु कुछ साल बाद जो नाम का तु हारा दो त यह सोचेगा क उसे
कूल क पढ़ाई पूरी कर लेना चा हये थी।” (हे भगवान! अब श ा के मह व पर भाषण नंबर सोलह आ
गया।) “तुम ऑटो मैके नक नह बनना चाहते।” (आपको यह बात कैसे मालूम, डैडी? या आपको सचमुच
पता है क म या चाहता ? ँ ) “तु ह उससे बेहतर कसी चीज़ के लये अगर ख़ुद को तैयार करना है, तो तु ह
इसके लये श ा क ज़ रत है।”
“म नह जानता। जो का काम अ छा-ख़ासा चल रहा है।” (वह असफल नह है। कूल क पढ़ाई को
अधूरा छोड़ने के बाद भी वह असफल नह है।)
“दे खो बेटे, या तुमने सचमुच को शश क है?” (हम मु े से भटक रहे ह, डैडी। अगर आप सफ़ सुन, तो
म आपसे कसी सचमुच मह वपूण चीज़ के बारे म बात करना चाहता ँ।)
“म हाई कूल म दो साल से पढ़ रहा ।ँ न त प से मने को शश क है। यह समय क बबाद है।”
“यह ब त त त कूल है, बेटे। उ ह कुछ तो ेय दो।” (ब त ब ढ़या! अब हम वश्वसनीयता क
बात कर रहे ह। काश म उस बारे म बात कर सकता, जस बारे म म बात करना चाहता ँ।)
“बाक़ ब चे भी मेरी ही तरह महसूस करते ह।” (मेरी भी कुछ वश्वसनीयता है। म मूख नह ँ।)
“ या तु ह एहसास है क तु हारी माँ और मने तु ह यहाँ तक प ँचाने के लये कतने याग कये ह?” (ओहो,
यहाँ अपराधबोध क या ा शु हो गई। शायद म ही मूख ँ। कूल ब त ब ढ़या है, म मी-डैडी ब ढ़या ह,
सफ़ म ही ँ, जो मूख ।ँ ) “जब तुम इतनी र तक आ गये हो, तो तुम अपनी पढ़ाई बीच म नह छोड़ सकते।”
“म जानता ँ क आप लोग ने याग कये ह, डैडी। परंतु पढ़ाई- लखाई इतनी मू यवान है ही नह ।” (आप
समझ ही नह रहे ह।)
“दे खो, शायद अगर तुम अपना होमवक करने म यादा समय लगाओ और ट .वी. के सामने कम बैठो…”
(यह सम या नह है, डैडी! यह सम या है ही नह ! म कभी आपको बताने म सफल नह हो पाऊँगा। म ही
मूख ,ँ जो मने को शश क ।)
“दे खये, डैडी। इससे कोई फ़ायदा नह होगा। पर… रहने भी द जये! म इस बारे म वैसे भी बात नह करना
चाहता।”

या आप दे ख पा रहे ह क जब हम सफ़ श द के आधार पर कसी क् त को समझने क को शश करते


ह, तो हम कतने सी मत हो जाते ह, ख़ासकर तब जब हम अपने च मे से उसक तरफ़ दे ख रहे ह ? या आप दे ख
पा रहे ह क हमारी आ मकथा मक त याएँ उस क् त क हमारी समझ को कतना सी मत कर दे ती ह, जो
दरअसल हमसे यह चाह रहा है क हम उसक आ मकथा को समझ?
जब तक आप वशु इ छा, क् तगत च र क शक् त, सकारा मक भावना मक बक अकाउंट और
परानुभू तपूवक सुनने क यो यताय वक सत नह कर लेत,े तब तक आप कभी कसी सरे क् त के भीतर
सचमुच नह झाँक पायगे और नया को उसके नज़ रये से नह दे ख पायगे।
यो यताय परानुभू तपूवक सुनने के आइसबग ( हमशैल) का ऊपरी सरा ह। इन यो यता म वकास क
चार अव थाय शा मल ह।
पहली और सबसे कम भावकारी अव था है श द क नक़ल करना (mimic content)। यह सुनने क
“स य” या “ त बबन” यो यता म सखाई जाती है। च र और संबंध क न व न होने पर लोग इससे अपमा नत
अनुभव करते ह तथा अपने दल क बात को दल म ही बंद रखते ह। बहरहाल, यह पहली अव था इस लये है,
य क इसम कम से कम आप कही गई बात को सुनते ह।
श द क नक़ल करना आसान है। आप कसी के मुँह से नकलने वाले श द को बस सुनते ह और उ ह दोहरा
दे ते ह। आप शायद अपने दमाग़ का इ तेमाल भी नह करते ह।

“डैडी, म जान गया ँ! कूल जाने का कोई फ़ायदा नह है!”


“अ छा, तो तुम जान गये हो। तु ह लगता है कूल जाने का कोई फ़ायदा नह है।”
आपने मूलत: कही जाने वाली बात को ही दोहराया है। आपने मू यांकन नह कया है, तहक़ क़ात नह क है,
परामश नह दया है या ा या नह क है। कम से कम आपने यह तो दखा दया है क आप उसके श द पर
यान दे रहे ह। परंतु समझने के लये आपको इससे कह यादा करना होता है।
परानुभू तपूवक सुनने क सरी अव था कही गई बात को अपने श द म ढालना है। यह थोड़ा अ धक
भावी होता है, परंतु अब भी यह शा दक सं ेषण तक ही सी मत होता है।
“डैडी, म जान गया ँ! कूल जाने का कोई फ़ायदा नह है!”
“तुम अब कूल नह जाना चाहते।”
इस बार आपने उसके अथ को अपने श द म रख दया है। आप उसक कही बात के बारे म सोच रहे ह और
आपका यादातर सोच आपके बाय म त क यानी म त क के ता कक पहलू से होता है।
तीसरी अव था आपके दाय म त क को स य कर दे ती है। आप भावना को त ब बत करते ह।
“डैडी, म जान गया ँ! कूल जाने का कोई फ़ायदा नह है!”
“तुम सचमुच कुं ठत महसूस कर रहे हो।”
जो कुछ वह कह रहा है, उसक तरफ़ आप उतना यान नह दे रहे ह, जतना उसके श द म छु पी भावना
पर। चौथी अव था म सरी और तीसरी दोन अव थाय शा मल होती ह। आप सामने वाले क बात को अपने
श द म ढालते भी ह और उसक भावना को त ब बत भी करते ह।
“डैडी, म जान गया ँ! कूल जाने का कोई फ़ायदा नह है!”
“तुम कूल के बारे म सचमुच कुं ठत हो।”
कुंठा भावना (feeling) है, कूल साम ी (content) है। आप उसके सं ेषण के दोन पहलु को समझने
के लये अपने म त क के दोन ह स का योग कर रहे ह।
जब आप परानुभू तपूवक सुनने क यो यता क चौथी अव था का योग करते ह, तो जो होता है वह
अ वश्वसनीय है। जब आप ईमानदारी से समझने क को शश करते ह, जब आप साम ी को अपने वा य म ढालते
ह और भावना को त ब बत करते ह, तो आप उसे मनोवै ा नक हवा दे ते ह। आप उसके वचार और भावना
को प करने म भी उसक मदद करते ह। जब वह यह वश्वास करने लगता है क आप सचमुच सुनना और
समझना चाहते ह, तो उसक अंद नी भावना और उसके बाहरी सं ेषण के बीच का अवरोध हट जाता है। यह
आ मा से आ मा तक के सं ेषण का ार खोल दे ता है। फर ऐसा नह होता क वह सोच या महसूस तो कुछ और
कर रहा है, परंतु कह कुछ और रहा है। अब वह आप पर इतना वश्वास कर रहा है क वह अपनी गहनतम कोमल
भावनाय और वचार आपके सामने रख दे ।

“डैडी, म जान गया ँ! कूल जाने का कोई फ़ायदा नह है!” (म आपके साथ बात करना चाहता ,ँ
आपका यान ख चना चाहता ँ।)
“तुम कूल के बारे म सचमुच कुं ठत हो।” ( बलकुल ठ क! म यही तो महसूस कर रहा ।ँ )
“ बलकुल। यह पूरी तरह अ ावहा रक है। मुझे इसक एक भी चीज़ काम क नह लगती।”
“तु हारा मतलब है क कूल से तु हारा कोई भला नह हो रहा है।” (मुझे सोचने दो - या मेरा यही
मतलब है?)
“अरे, हाँ। म वहाँ कोई ऐसी चीज़ नह सीख रहा ँ, जो मेरी आगे चलकर मदद करे। मेरा मतलब है, जो नाम
के मेरे दो त को ही दे ख ली जये। उसने कूल छोड़ दया है। अब वह कार को सुधारने का काम कर रहा है। और
वह ब त सा पैसा कमा रहा है। यह काम ावहा रक है।”
“तु ह लगता है क जो का वचार सचमुच सही है।” ( या पता…।)
“ या पता, मुझे लगता है एक तरह से वह सही है। वह सचमुच अभी पैसे कमा रहा है। परंतु म शत लगाता ँ
क कुछ साल बाद वह ख़ुद पर ग़ सा हो रहा होगा।”
“तु हारे हसाब से जो को महसूस होगा क उसने ग़लत नणय लया था।”
“उसे ऐसा ही महसूस होगा। इस बारे म तो सो चये क वह कतना कुछ छोड़ रहा है। मेरा मतलब है, अगर
आपके पास अ छ श ा नह है, तो आप इस नया म यादा कुछ नह कर सकते।”
“ श ा वा तव म मह वपूण है।”
“और या! अगर आपके पास ड लोमा नह है, अगर आपको नौक रयाँ नह मल सकत या आप कॉलेज
नह जा सकते, तो आप या कर लगे? आपके पास श ा होना ही चा हये।”
“यह तु हारे भ व य के लये मह वपूण है।”
“ बलकुल। और… या आप जानते ह? म सचमुच च तत ँ। सु नये, आप यह बात म मी को तो नह
बतायगे?”
“तुम नह चाहते क यह बात तु हारी म मी को पता चले।”
“वाक़ई नह । पर रहने द जये, मुझे लगता है क आप उ ह बता सकते ह। वे शायद वैसे भी यह जान लगी।
दे खये, आज मेरा टे ट आ था। यह पढ़ने (reading) का टे ट था। और डैडी, उ ह ने कहा क म चौथे ेड के
तर पर पढ़ रहा ।ँ चौथे ेड के! जब क म हाई कूल म जू नयर ँ!”

वा त वक समझ कतना फ़क़ पैदा कर सकती है! अगर हम वा त वक सम या तक नह प ँच रहे ह, तो


नया क सबसे नेक इराद वाली सलाह का ज़रा भी मह व नह होगा। और अगर हम अपनी ही आ मकथा म
उलझे रहगे, अपने ख़ुद के पैरेडाइम म जकड़े रहगे और अपने च मे को थोड़ी दे र के लये उतारकर सरे कोण
से नया को दे खने के लये तैयार नह ह गे, तो हम कभी असली सम या तक नह प ँच पायगे।

“मुझे लगता है, म परी ा म फ़ेल हो जाऊँगा। और अगर म परी ा म फ़ेल हो जाऊँगा, तो बेहतर यही है क
म ख़ुद ही पढ़ाई छोड़ ँ । परंतु म पढ़ाई नह छोड़ना चाहता।”
“तुम ख़ुद को दोराहे पर महसूस करते हो। तुम वधा म हो।”
“आपको या लगता है डैडी, मुझे या करना चा हये?”

पहले समझने क को शश करके इस पता ने एक ांज़ै शनल अवसर को ांसफ़ॉमशनल अवसर म बदल
दया। सतही चचा करने के बजाय और सं ेषण के काम-को-पूरा-करो के तर के बजाय, उसने एक ऐसी थ त
न मत कर द , जसम वह कायापलट करने वाले भाव का योग कर सकता था, न सफ़ अपने पु पर ब क
संबंध पर भी। अपनी आ मकथा को एक तरफ़ रखकर और सचमुच समझने क को शश करके उसने भावना मक
बक अकाउंट म ब त बड़ा डपॉ ज़ट कर दया। इस वजह से उसने अपने पु को यह शक् त दान क क वह
अपने दल क परत दर परत खोलकर रख दे और असली मु े के बारे म बात करे।
अब पता और पु मेज़ के अलग-अलग सर पर एक- सरे के वरोध म नह बैठे ह। अब वे मेज़ के एक ही
तरफ़ साथ बैठकर सम या को दे ख रहे ह। पु अपने पता क आ मकथा खोल रहा है और परामश माँग रहा है।
बहरहाल जब पता परामश दे ना शु करे, तो उसे अपने पु के श द के त संवदे नशील होने क ज़ रत
है। जब तक त या तकपूण है, तब तक पता भावकारी ढं ग से सवाल पूछ सकता है और परामश दे सकता
है। परंतु जैसे ही त या भावना मक हो जाये, उसे फर से परानुभू तपूवक सुनने क ओर लौट आना चा हये।

“दे खो, मुझे लगता है क तुम कुछ चीज़ पर वचार कर सकते हो।”
“जैसे?”
“जैसे अपने पढ़ने के बारे म वशेष मदद ले सकते हो। शायद कूल म कसी तरह का कोस चलता हो।”
“मने पहले ही उसके बारे म पता लगा लया है। इसम दो रात और श नवार का पूरा दन लगेगा। इसम ब त
यादा समय लगेगा!”
इस जवाब म भावना का एहसास होते ही पता परानुभू त पर आ जाता है।
“यह क़ मत ब त यादा है।”
“इसके अलावा डैडी, मने स थ ेड वाले व ा थय से कह दया है क म उनका कोच बनूँगा।”
“तुम उ ह नह छोड़ना चाहते।”
“परंतु म आपको बता ँ , डैडी। अगर मुझे सचमुच लगे क कोस से मुझे मदद मलेगी, तो म वहाँ हर रात को
जाने को तैयार हो जाता। म उन ब च का कोच बनने के लये कसी और को ढूँ ढ़ लेता।”
“तुम सचमुच मदद चाहते हो, परंतु तु ह शंका है क या कोस से वाकई फ़क़ पड़ेगा।”
“डैडी, आपको या लगता है इससे कतना फ़क़ पड़ेगा?”

पु एक बार फर खुल गया है और तकपूण है। एक बार फर वह अपने पता क आ मकथा खोल रहा है।
अब पता के पास उसे भा वत करने और बदलने का एक और मौक़ा है।
ऐसे समय होते ह, जब कायापलट म कसी बाहरी परामश क आव यकता नह होती। अ सर जब लोग को
खुलकर बात करने का अवसर दया जाता है और वे अपनी सम याएँ खुलकर बताते ह, तो इस या म उ ह
समाधान प दखने लगते ह।
परंतु कई बार उ ह सचमुच कसी सरे के कोण और मदद क ज़ रत होती है। इसक कुंजी उस क् त
क सचमुच भलाई चाहना, उसक बात परानुभू तपूवक सुनना और उसे सम या व समाधान तक अपनी ग त तथा
समय से प ँचने दे ना है। यह याज क एक-एक परत छ लने क तरह है, जब तक क आप सबसे अंदर के नम क
तक नह प ँच जाते।
जब लोग सचमुच आहत ह और जब आप समझने क वशु इ छा से सुन, तो आप यह दे खकर
आ यच कत हो जायगे क वे कतनी ज द खुल जाते ह। वे खुलना चाहते ह। ब च म खुलने क ब त बल
इ छा होती है। उनम अपने सा थय के बजाय अपने माता- पता से खुलने क यादा इ छा होती है। और वे ऐसा ही
करगे, बशत उ ह महसूस हो क उनके माता- पता उ ह बना शत के ेम करगे, उसके बाद उनके त न ावान
ह गे और उनका मू यांकन नह करगे, न ही हँसी उड़ायगे।
अगर आप बना कसी पाखंड और छल-कपट के सचमुच समझने क को शश करगे, तो ऐसे समय आयगे
जब आप श दशः दं ग रह जायगे। सरे क् त क ओर से आप तक वा हत होने वाले वशु ान और समझ
को दे खकर आप हैरान रह जायगे। परानुभू त के लये हमेशा बातचीत करना ज़ री नह होता। दरअसल कई बार
तो श द आपके रा ते म बाधा बन जाते ह। यह एक ब त मह वपूण कारण है, जस वजह से सफ़ तकनीक से
काम नह चलेगा। इस तरह क समझ तकनीक क प ँच से बाहर हो जाती है। सफ़ तकनीक रा ते क कावट बन
जाती है।
मने परानुभू तपूवक सुनने क यो यता का उ लेख इस लये कया, य क यो यता कसी भी आदत का
एक मह वपूण ह सा है। हम यो यता क ज़ रत होती है। परंतु मुझे फर दोहराने द क यो यताय तब तक
भावकारी नह ह गी, जब तक क वे समझने क ईमानदार इ छा से उ पन्न न ह । लोग उनसे मतलब नकलवाने
के कसी भी तरह के यास से चढ़ जाते ह। दरअसल, अगर आप अपने क़रीबी लोग से वहार कर रहे ह, तो
उ ह यह बताने से मदद मलेगी क आप या कर रहे ह।
“मने सुनने और परानुभू त के संबंध म यह पु तक पढ़ । इसे पढ़ते समय मने आपके साथ अपने संबंध के
बारे म सोचा। मुझे एहसास आ क मने आपक बात उस तरह से नह सुनी है, जस तरह से मुझे सुनना चा हये।
परंतु म ऐसा करना चाहता ।ँ यह मेरे लये मु कल है। म कई बार इसम गड़बड़ कर सकता ,ँ परंतु म इस पर
मेहनत करने वाला ँ। म सचमुच आपक परवाह करता ँ और म समझना चाहता ।ँ मुझे आशा है क आप मेरी
मदद करगे।” अपने उद्दे य को ढ़तापूवक प करना एक बड़ा डपॉ ज़ट है।
परंतु अगर आप ईमानदार नह ह, तो म इसक को शश भी नह क ँ गा। इससे एक खुलापन और
संवेदनशीलता उ पन्न हो सकती है, जो बाद म आपको तब नुक़सान प ँचायेगी जब सामने वाले क् त को पता
चलेगा क आप सचमुच परवाह नह करते थे, आप सचमुच सुनना नह चाहते थे और इस या म आपने उसे
असुर त और आहत करके छोड़ दया। आइसबग या हमखंड का ऊपरी सरा (तकनीक) च र क वृहद न व पर
थत होना चा हये।
कुछ ऐसे लोग भी ह, जो वरोध करते ए कहगे क परानुभू तपूवक सुनने म ब त समय लगता है। हो सकता
है शु आत म थोड़ा यादा समय लगे, परंतु बाद म ब त सा समय बचता है। अगर आप एक डॉ टर ह और एक
बु म ापूण नु ख़ा लखना चाहते ह, तो आप सबसे अ छ चीज़ यह कर सकते ह क आप सट क नदान कर
यानी बीमारी को पूरी तरह से समझ ल। आप यह नह कह सकते, “म ब त ज द म ँ। मेरे पास बीमारी को ठ क
से समझने क फ़रसत नह है। बस यह दवाय ले लो।”

मुझे याद है एक बार म ओआ , हवाई के उ री समु तट पर एक कमरे म लख रहा था। हलक -हलक
हवा चल रही थी, इस लये मने कमरे को ठं डा करने के लये दो खड़ कयाँ खोल द - एक सामने क और सरी
कोने वाली। मेरे लखे ए अ याय के ब त सारे पन्ने एक बड़ी मेज़ पर रखे थे।
अचानक हवा तेज़ हो गई और काग़ज़ उड़ने लगे। मुझे याद है म हड़बड़ी म आ गया था, य क अब काग़ज़
उलट-पुलट गये थे। काग़ज़ पर नंबर नह डले थे और ज द से उ ह समेटने के लये म कमरे म इधर-उधर भागने
लगा। अंतत: मुझे एहसास आ क बेहतर यह होगा क म दस सेकंड का समय नकालकर एक खड़क बंद कर
ँ।

परानुभू तपूवक सुनने म समय लगता है, परंतु इसम उतना यादा समय नह लगता, जतना मील आगे प ँच
जाने के बाद पीछे लौटने और ग़लतफ़ह मयाँ र करने म लगता है। बारा वही काम करने, अ क्त और
अनसुलझी सम या के साथ जीने तथा लोग को मनोवै ा नक हवा न दे ने के प रणाम से नबटने म इससे ब त
यादा समय लगता है।
रदश परानुभू तपूण ोता ज द से समझ सकता है क भीतर गहराई म या हो रहा है। वह इतनी समझ
और समथन द शत कर सकता है क लोग उसके सामने अपने दल क एक-एक परत खोलने म सुर त अनुभव
करते ह, जब तक क वे उस कोमल आंत रक क तक नह प ँच जाते, जहाँ सम या सचमुच न हत होती है।
लोग चाहते ह क उ ह समझा जाये। और ऐसा करने के लये जतने भी समय के नवेश क आव यकता हो,
आपको बदले म समय का ब त यादा लाभ होता है। इसके लये आपको सम या और मु क सट क समझ
के साथ काम करना पड़ता है। इसके लये आपको समृ भावना मक बक अकाउंट बनाने पर काम करना पड़ता
है, जो तब समृ होता है जब कोई क् त यह अनुभव करे क उसे पूरी तरह समझ लया गया है।
समझ और अनुभू त
जब आप सर क बात को गहराई से सुनना सीख लगे, तो आप अनुभू त म ज़बद त भन्नताय दे खगे।
जब लोग पर पर- नभर थ तय म मलकर काम करने क को शश करगे, तो आप इन भन्नता के कारण
उ पन्न होने वाले भाव को मह व दे ने लगगे।
आपको युवती दखाई दे ती है और मुझे वृ म हला। और हम दोन ही सही हो सकते ह।
आप नया को जीवनसाथी-क त च मे से दे ख सकते ह; म इसे आ थक चता के धन-क त लस से दे खता
।ँ
हो सकता है आप चुरता क मान सकता म ट कये गये ह ; म अभाव क मान सकता म ट हो
सकता ।ँ
आप ब त का प नक, अंत से पूण और संपूणतावाद दाय म त क के पैरेडाइम से सम या का सामना
कर सकते ह। सम या से नबटने क अपनी नी त म म पूरी तरह बाय म त क वाला, ब त मब ,
वश्लेषणा मक और मुखर हो सकता ।ँ
हमारी अनुभू तयाँ ब त अलग हो सकती ह। और फर भी हम दोन ही अपने-अपने पैरेडाइ स के साथ बरस
से रहते आये ह। हम उ ह “त य” मानते आये ह तथा हर उस क् त के च र या मान सक मता पर श्न च ह
लगाते आये ह, जो “त य को नह दे ख सकता।”
अब हम अपनी तमाम भन्नता के साथ मलकर काम करने क को शश कर रहे ह - वैवा हक संबंध म,
नौकरी म, सामुदा यक सेवा के कसी ोजे ट म। हम मलकर संसाधन का बंधन कर रहे ह और प रणाम हा सल
करने क को शश कर रहे ह। तो अब हम ऐसा कस तरह कर? कस तरह हम अपनी क् तगत अनुभू तय क
सीमा के पार जाय, ता क हम गहराई से सं ेषण कर सक, ता क हम मु से सहयोगपूण ढं ग से नबट सक और
जीत/जीत के समाधान पा सक?
जवाब है पाँचव आदत। यह जीत/जीत क या म पहला क़दम है। भले ही (और ख़ासकर जब) सामने
वाला क् त उस पैरेडाइम से नह आ रहा हो, तो भी पहले समझने क को शश कर।

इस स ांत ने एक ए ज़ी यू टव के लये ब त सशक्त तरीक़े से काम कया, जसने मुझे यह अनुभव


सुनाया:
“म एक छोट कंपनी म काम कर रहा था, जसक एक बड़ी रा ीय ब कग सं था के साथ समझौता-वाता
चल रही थी। बक के वक ल सैन ां स को से आये, उनका म य थ (negotiator) ओ हयो से आया और उनके
दो बड़े बक के े सडट आये। कुल मलाकर आठ लोग क ट म चचा करने के लये आई। म जस कंपनी के लये
काम करता था, उसने जीत/जीत या कोई सौदा नह का ल य लेकर चचा करने का फ़ैसला कया। हमारी कंपनी
सेवा और लागत के तर को मह वपूण प से बढ़ाना चाहती थी, परंतु इस बड़ी बक क माँग से हम लगभग
परा त हो गये थे।
“हमारी कंपनी का े सडट चचा क मेज़ पर बैठा और बोला, ‘हम चाहते ह क आप जस तरह का समझौता
चाहते ह , उसे लख ल, ता क हम यह सु न त कर सक क हम आपक आव यकता और चता को
समझते ह। हम उन आव यकता और चता को जानने के बाद उन पर त या करगे। इसके बाद हम क़ मत
के बारे म बात कर सकते ह।’
“चचा करने वाली ट म के सद य अचं भत थे। वे हैरान थे क उ ह समझौता लखने का मौक़ा मल रहा था।
उ ह इसे तैयार करने म तीन दन का समय लगा।
“जब उ ह ने समझौते को सामने रखा, तो हमारे े सडट ने कहा, ‘अब हम यह सु न त कर ल क आप जो
चाहते ह, हम उसे समझ गये ह।’ और फर वे समझौते को पढ़ने लगे। वे साम ी को अपने श द म रखने लगे और
भावना को त ब बत करने लगे। उ ह ने ऐसा तब तक कया, जब तक क उ ह और बक वाल को यह वश्वास
नह हो गया क वे उन मु को पूरी तरह समझ गये ह, जो बक के लये मह वपूण थे। ‘हाँ। यह ठ क है। नह ,
हमारा यहाँ पर यह मतलब नह था… हाँ, अब आप इसे समझ गये ह।’
“जब उ ह ने पूरी तरह बक के कोण को समझ लया, तब उ ह ने अपने कोण से कुछ चताय क्त
करना शु क … और बक वाल ने उनक बात सुनी। वे सुनने के लये तैयार थे। वे हवा के लये संघष नह कर रहे
थे। जो चचा ब त ही औपचा रक, कम वश्वास वाले और लगभग श ुतापूण माहौल म शु ई थी, वह सनज
के लये उपजाऊ माहौल म बदल गई।
“चचा के अंत म बक क ट म के सद य ने मूल प से कहा, ‘हम आपके साथ काम करना चाहते ह। हम
यह सौदा करना चाहते ह। आप सफ़ यह बता द क क़ मत या है और हम द तख़त कर दगे।’”

फर समझे जाने क को शश कर
पहले समझने क को शश कर… फर समझे जाने क । सर को अपनी बात कैसे समझाई जाये, यह जानना
पाँचव आदत का सरा ह सा है और जीत/जीत समाधान तक प ँचने के लये समान प से मह वपूण है।
पहले हमने प रप वता को साहस और परवाह के संतुलन के प म प रभा षत कया है। समझने क
को शश करने म परवाह क आव यकता होती है; समझे जाने क को शश म साहस क ज़ रत होती है। जीत/
जीत के लये दोन ही चुर मा ा म होना चा हये। इस लये पर पर- नभर थ तय म हमारे लये समझा जाना
मह वपूण बन जाता है।
ाचीन यूना नय क एक अद्भुत फ़लॉसफ़ है, जो तीन मब प से व थत श द म न हत है, ईथॉस
( वश्वास), पैथॉस (भावना) और लोगॉस (तक)। म सुझाव दे ता ँ क इन तीन श द म पहले समझने क को शश
करने और भावकारी तु त (effective presentation) दे ने का सार समा हत है।
ईथॉस (ethos) आपक क् तगत वश्वसनीयता है। यह आपक अखंडता और द ता म लोग का
वश्वास है। यह वह वश्वास है, जसे आपने े रत और अ जत कया है। यह आपका भावना मक बक अकाउंट
है। पैथॉस (pathos) परानुभू त वाला प है - यह भावना है। इसका अथ है क आप सामने वाले के सं ेषण क
भावना मक बलता के अनु प महसूस करते ह। लोगॉस (logos) तक है, तु त का तकपूण प ।
म पर यान द: ईथॉस, पैथॉस, लोगॉस - सबसे पहले आपका च र , फर आपके संबंध, और फर आपक
तु त का तक। यह एक और मुख पैरेडाइम प रवतन दशाता है। अ धकांश लोग तु त दे ते समय सीधे अपने
वचार के लोगॉस (तक) पर प ँच जाते ह, बाय म त क के तक पर। वे ईथॉस ( वश्वास) और पैथॉस (भावना)
पर वचार कये बना ही लोग को अपने तक के औ च य का वश्वास दलाने क को शश करते ह।

मेरा एक प र चत ब त कुं ठत था। इसका कारण यह था क उसका बॉस एक ऐसी थ त म जकड़ा आ


था, जो उसके हसाब से लीडर शप क ग़लत शैली थी।
उसने मुझसे पूछा, “वे इस बारे म कुछ य नह करते? मने उनसे इस बारे म बात क है। वे इसके बारे म
जानते भी ह, परंतु वे कुछ करते नह ह।”
मने सवाल कया, “तो फर आप एक भावकारी तु त तैयार य नह करते?”
“मने क थी,” उसने जवाब दया।
“आप ‘ भावकारी’ को कस तरह प रभा षत करते ह? जब से समैन नह बेच पाता, तो वे कसे श ण
लेने के लये भेजते ह - ाहक को? भावकारी का अथ है, जो सफलतापूवक काम करे। इसका अथ पी/पीसी है।
या आपने वह प रवतन उ पन्न कर दया, जो आप चाहते थे? या आपने इस या म संबंध बनाये? आपक
तु त के प रणाम या थे?”
“मने आपको बताया ना क उ ह ने इस बारे म कुछ नह कया। वे तो सुनने को ही तैयार नह थे।”
“तो फर एक भावकारी तु त तैयार कर। आपको उनके वचार के त परानुभू त रखना होगी। आपको
उनके मान सक कोण के भीतर जाना होगा। आपको अपना सुझाव सरलता से और च ा मक प से दे ना
होगा। और आपको उनके प के वक प का वणन उनसे भी बेहतर तरीक़े से करना होगा। इसम आपको कुछ
होमवक करने क ज़ रत पड़ेगी। या आप इतना सब करने के इ छु क ह?”
उसने पूछा, “म इतनी मेहनत य क ँ ?”
“ सरे श द म, आप चाहते ह क वे अपनी लीडर शप क पूरी शैली बदल ल, परंतु आप अपनी तु त के
तरीक़े को नह बदलना चाहते?”
उसने जवाब दया, “मुझे ऐसा ही लगता है।”
मने कहा, “तब तो फर इसके बारे म मु कराय और इसके साथ जीना सीख ल।”
वह बोला, “म इसके साथ नह जी सकता। इससे मुझे अपनी अखंडता से समझौता करना पड़ता है।”
“ठ क है, तो फर भावकारी तु त पर मेहनत करने म जुट जाय। यह आपके भाव के वृ म है।”
अंतत: उसने यह काम नह कया। उसे यह नवेश ब त यादा लगा।

मेरे एक और प र चत वश्व व ालय म ोफ़ेसर थे और वे यह क़ मत चुकाने के इ छु क थे। वे एक दन मेरे


पास आये और बोले, “ ट फ़न, म अपने रसच के लये फ़ंड जुटाने के पहले दौर म भी नह प ँच पाया ँ, य क
मेरा रसच दरअसल डपाटमट क चय क मु य धारा म नह है।”
उनक थ त पर कुछ दे र तक चचा करने के बाद मने सुझाव दया क वे ईथॉस ( वश्वास), पैथॉस (भावना)
और लोगॉस (तक) का योग करते ए एक भावकारी तु त तैयार कर। “म जानता ँ क आप ईमानदार ह
और आप जो रसच करना चाहते ह, उससे ब त लाभ ह गे। वे जस वक प के प म ह, उसका वणन उनसे भी
बेहतर तरीक़े से कर। दखाय क आप उ ह गहराई से समझते ह। फर अपने आ ह के पीछे के तक को सावधानी
से प कर।”
उ ह ने कहा, “म को शश क ँ गा।”
“ या आप मेरे साथ इसका अ यास करना चाहते ह?” मने पूछा। वे इ छु क थे, इस लये हमने उनक तु त
क रहसल क ।
जब वे अपनी तु त दे ने गये, तो उ ह ने यह कहते ए शु आत क , “पहले तो म यह सु न त करना चा ँगा
क म आपके उद्दे य और मेरे सुझाव के बारे म आपक चता को समझता ँ या नह ।”
उ ह ने यह काम धीरे-धीरे करने म समय लगाया। उनके कोण के त अपनी गहरी समझ और स मान
को द शत करते ए जब वे अपनी तु त के बीच म थे, तो एक व र ोफ़ेसर ने सरे ोफ़ेसर क तरफ़ दे खा,
अपनी गदन हलाई और मेरे म से कहा, “तु ह तु हारा पैसा मल गया है।”

जब आप अपने वचार को प ता से, पूरा योरा दे ते ए, च ा मक प से और सबसे मह वपूण बात सही


संदभ म (उनके पैरेडाइ स और चता क गहरी समझ के संदभ म) रखकर तुत करते ह, तो आपके वचार
क वश्वसनीयता मह वपूण प से बढ़ जाती है।
आप “अपनी ही चीज़” म क़ैद नह रहते ह; आप ख़ुद के बनाये मंच से अ तशयोक् तपूण दावे नह करते ह।
आप वा तव म समझते ह। हो सकता है आपक तु त उससे अलग हो, जो आपने मूल प से सोच रखी है।
इसका कारण यह है क समझने क को शश करते समय आप सीखते भी ह।
पाँचव आदत आपको अपनी तु तय म अ धक सट कता और अखंडता दान करती है। और लोग यह
बात जान जाते ह। वे जान जाते ह क आप वे वचार तुत कर रहे ह, जनम आपका स चा वश्वास है और
आपने सभी ात त य व अनुभू तय पर भी वचार कर लया है, इस लये आपके वचार से सबको लाभ होगा।

एक-एक करके (One On One)


पाँचव आदत शक् तशाली है, य क यह आपके भाव के वृ के ठ क बीच म है। पर पर- नभर थ तय
म आपक चता के वृ म ब त सी बात होती ह - सम याएँ, असहम तयाँ, प र थ तयाँ, सरे लोग का वहार।
अगर आप अपनी ऊजा वहाँ क त करते ह, तो आप उस ऊजा को न कर दे ते ह और बदले म आपको ब त कम
सकारा मक प रणाम मलते ह।
परंतु आप हमेशा पहले समझने क को शश कर सकते ह। यह एक ऐसी चीज़ है, जो आपके नयं ण के
भीतर है। और जैसे ही आप ऐसा करते ह, जैसे ही आप अपने भाव के वृ पर यान क त करते ह, वैसे ही आप
सरे लोग को सचमुच गहराई से समझ लेते ह। आपके पास काम करने के लये ु टहीन जानकारी होती है, आप
मामल क तह तक ज द प ँचते ह, आप भावना मक बक अकाउंट बनाते ह और आप लोग को वह
मनोवै ा नक हवा दे ते ह जसक उ ह ज़ रत है, ता क आप मलकर भावकारी तरीक़े से काम कर सक।
यह अंदर से बाहर क ओर का (inside-out) कोण है। और जब आप ऐसा करते ह, तो यह दे ख क
आपके भाव के वृ म या होता है। चूँ क आप सचमुच सुनते ह, इस लये आप भा वत होने यो य हो जाते ह।
और भा वत होने यो य बनना सर को भा वत करने क कुंजी है। आपका वृ फैलने लगता है। आप अपनी
चता के वृ म थत ब त सी चीज़ को भा वत करने क अपनी यो यता बढ़ा लेते ह।
और यह भी दे ख क आपके साथ या होता है। जतनी यादा गहराई से आप सरे लोग को समझगे, आप
उ ह उतना ही अ धक मह व दगे, आप उनके त उतना ही अ धक स मान अनुभव करगे। कसी सरे क् त क
आ मा को छू लेना प व भू म पर चलने क तरह है।
पाँचव आदत ऐसी है, जस पर आप इसी समय अमल कर सकते ह। अगली बार जब आप कसी से भी बात
कर, तो अपनी आ मकथा को उठाकर एक तरफ़ रख द और सचमुच समझने क को शश कर। जब लोग अपनी
सम या के बारे म खुलकर बात न करना चाह, तब भी आप परानुभू तपूण हो सकते ह। आप उनके दल क
बात को समझ सकते ह, आप उनक चोट को भाँप सकते ह और आप त या कर सकते ह, “आप आज थोड़े
उदास लग रहे ह।” हो सकता है वे कुछ न कह। परंतु इससे कोई फ़क़ नह पड़ता। आपने समझ और स मान
द शत कर दया है।
दबाव न डाल। धैय रख। स मान कर। यह ज़ री नह है क लोग के शा दक प से खुलने के बाद ही आप
परानुभू त जताय। आप उनके वहार के त हर समय परानुभू त दखा सकते ह। आप समझदार, संवेदनशील
और जाग क हो सकते ह तथा ज़ रत पड़ने पर अपनी आ मकथा के बाहर रह सकते ह।
अगर आप अ यंत ोए टव ह, तो आप रोकथाम करने के अवसर उ पन्न कर सकते ह। पहले समझने क
को शश करने के लये आपको तब तक इंतज़ार करने क ज़ रत नह है, जब तक क आपके ब चे को कूल म
कोई सम या न आये या बज़नेस म आपको कसी से सौदे बाज़ी न करना हो।
एक-एक करके अपने ब च के साथ अभी समय बताय। उनक बात सुन; उ ह समझ। उनक नज़र से
अपने घर और कूल के जीवन को दे ख। उनक नज़र से उन चुनौ तय और सम या क तरफ़ दे ख, जनका वे
सामना कर रहे ह। भावना मक बक अकाउंट को समृ बनाय। उ ह मनोवै ा नक हवा दान कर।
अपने जीवनसाथी के साथ नय मत प से बाहर जाय। साथ म डनर कर या कोई ऐसा काम कर, जसे आप
दोन पसंद करते ह । एक- सरे क बात यान से सुन। समझने क को शश कर। जीवन को एक- सरे क नज़र से
दे ख।
सै ा के साथ मेरा दै नक समय एक ऐसी चीज़ है, जसक म कसी भी चीज़ से अदला-बदली करने को
तैयार नह होऊँगा। एक- सरे को समझने क को शश करने के अलावा हम अ सर समय नकालकर परानुभू तपूण
सुनने क यो यता का वा त वक अ यास करते ह, ता क हम अपने ब च के साथ सं ेषण म मदद मल सके।
हम अ सर कसी थ त के बारे म अपनी अलग-अलग अनुभू तयाँ एक- सरे को बताते ह। हम मु कल
पार प रक प रवार-संबंधी सम या के त अ धक भावकारी व धय का योग करने वाली भू मकाय भी
नभाते ह।
म यह अ भनय कर सकता ँ, मानो म पु या पु ी ,ँ जो कसी वशेष सु वधा का आ ह कर रहा है,
हालाँ क मने (उसने) अपनी मूलभूत पा रवा रक ज़ मेदारी पूरी नह क है। और सै ा अपना ख़ुद का (माँ का)
अ भनय करती है।
हम हर तरह से सं ेषण करते ह और थ त का स चा च ख चने का यास करते ह, ता क हम ख़ुद को
सुसंगत (consistent) बना सक, अपने ब च को सही स ांत सखा सक और उनके मॉडल बन सक। हमारे कुछ
सबसे मददगार भू मका-अ भनय (role-play) अतीत के कसी मु कल या तनावपूण य को फर से खेलने के
दौरान आते ह, जनम हमम से कसी ने “आपा खो दया था।”
अपने यजन को गहराई से समझने म आप समय का जो नवेश करते ह, उससे खुले सं ेषण का ज़बद त
लाभांश मलता है। प रवार और ववाह म जो ब त सी वकराल सम याएँ आती ह, उ ह पनपने और बढ़ने का
समय ही नह मलता। पार प रक सं ेषण इतना खुला हो जाता है क संभा वत सम याएँ शु आत म ही कुचल द
जाती ह। और भावना मक बक अकाउंट म वश्वास के इतने चुर भंडार होते ह क वा तव म पैदा होने वाली
सम या का सामना कया जा सकता है।
बज़नेस म आप अपने कमचा रय से एक-एक करके चचा कर सकते ह। उनक बात सुन; उ ह समझ। अपने
बज़नेस म हर तर पर - ाहक से, स लायस से और कमचा रय से - ईमानदार और सट क फ़ डबैक पाने के लये
मानवीय संसाधन क जवाबदे ही या ज़ मेदारी का तं वक सत कर। मानवीय त व को व ीय या तकनीक त व
जतना ही मह वपूण बनाय। जब आप बज़नेस म हर तर पर मानवीय संसाधन का दोहन करते ह, तो आप
समय, ऊजा और धन क ब त बचत करते ह। जब आप सुनते ह, तो आप सीखते ह। और आप अपने सहयो गय
तथा अधीन थ को मनोवै ा नक हवा भी दान करते ह। आप वफ़ादारी पैदा करते ह, जो आठ-से-पाँच बजे तक
क शारी रक माँग से कह आगे तक जाती है।
पहले समझने क को शश कर। इससे पहले क सम याएँ उभरकर खड़ी ह , इससे पहले क आप मू यांकन
करने और समाधान सुझाने क को शश कर, इससे पहले क आप अपने वचार तुत करने क को शश कर -
समझने क को शश कर। यह भावकारी पर पर- नभरता क एक सशक्त आदत है।
जब हम एक- सरे को सचमुच गहराई से समझ लेते ह, तो हम रचना मक समाधान और तीसरे वक प का
ार खोल दे ते ह। हमारी मत भन्नताय अब सं ेषण और ग त म बाधा नह रहत । इसके बजाय वे सनज क
सी ढ़याँ बन जाती ह।

अमल म लाने के सुझाव:

1. कोई ऐसा संबंध चुन, जसम आपको लगता हो क भावना मक बक अकाउंट लाल झंडी दखा रहा है।
समझने क को शश कर और सरे क् त के कोण से थ त को लख ल। अपनी अगली चचा म
समझने के लये सुन। जो आप सुन रहे ह, उसक तुलना अपने ारा लखी गई बात से कर। आपके अनुमान
कतने ठ क थे? या आप उस क् त के कोण को सचमुच समझ पाये थे?
2. कसी क़रीबी क् त को परानुभू त क अवधारणा बताय। उसे बताय क आप सर क बात सचमुच सुनने
क व ध पर मेहनत करना चाहते ह और एक स ताह बाद उससे फ़ डबैक माँग। आपने कैसा दशन कया?
आपने उस क् त को कैसा अनुभव कराया?
3. अगली बार जब आपको लोग के सं ेषण को दे खने का अवसर मले, तो कुछ मनट तक अपने कान बंद कर
ल और सफ़ दे ख। कौन से भाव क्त कये जा रहे ह, जो आपको सफ़ श द से समझ म नह आ सकते?
4. अगली बार जब आप ख़ुद को अनु चत प से कसी आ मकथा मक त या-तहक़ क़ात, मू यांकन,
परामश या ा या - का योग करते ए पकड़, तो अपनी ग़लती मानकर और माफ़ माँगकर थ त को
डपॉ ज़ट म बदलने क को शश कर। (“मुझे अफ़सोस है, मने अभी अनुभव कया है क म सचमुच समझने
क को शश नह कर रहा ।ँ या हम बारा शु कर सकते ह?”)
5. अपनी अगली तु त को परानुभू त पर आधा रत करने क को शश कर। सामने वाले के भन्न कोण का
वणन उससे बेहतर तरीक़े से कर, फर उसके कोण के हसाब से अपनी बात समझाने क को शश कर।
छठ आदत
सनज का योग कर
रचना मक सहयोग के स ांत

म एक संत क आशा को अपने मागदशक के प म लेता :ँ


अ याव यक चीज़ म, एकता -
मह वपूण चीज़ म, अनेकता -
सभी चीज़ म, उदारता।
● रा प त जॉज बुश का उद्घाटन भाषण

ज बकसरउनकवे पूटनरे जीवन


च चल को ेट टे न ने यु क कमान स पने के लये आमं त कया, तो उ ह ने ट पणी क
ने उ ह इसी ण के लये तैयार कया था। इसी तरह से, बाक़ सभी आदत का अ यास
हम सनज क आदत के लये तैयार करता है।
जब सनज (synergy) को सही तरह से समझ लया जाये, तो यह जीवन क सव च ग त व ध हो जाती
है। यह बाक़ सभी आदत का स चा परी ण और अ भ क् त बन जाती है।
सनज के सव च प चार अनूठ मानवीय तभा , जीत/जीत के ल य और परानुभू तपूण सं ेषण क
यो यता को हमारे जीवन क क ठनतम चुनौ तय पर क त करते ह। प रणाम लगभग चम कारी होते ह। हम
नये वक प क रचना करते ह - कोई ऐसी चीज़, जो पहले वहाँ नह थी।
सनज स ांत-क त लीडर शप का सार है। यह ब च के स ांत-आधा रत पालन-पोषण का सार है। यह
लोग के भीतर क महानतम शक् तय को उ े रत करती है, एका मक बनाती है और मु करती है। अब तक
हमने जन आदत पर चचा क है, वे सब हम सनज के चम कार क रचना करने के लये तैयार करती ह।
सनज या है? इसक सीधी सी प रभाषा यह है क कोई पूण चीज़ (total) अपने ह स के योगफल
(sum) से अ धक बड़ी होती है। इसका अथ है क ह स का एक- सरे के साथ जो संबंध है, वह भी अपने आप म
एक ह सा है। यह सफ़ ह सा ही नह है, ब क यह सबसे उ ेरक, सबसे शक् तदायी, सबसे एका मक और
सबसे रोमांचक ह सा है।
रचना मक या इसका सबसे भयावह ह सा भी है, य क आपको ठ क-ठ क मालूम नह होता क या
होने जा रहा है या इससे आप कहाँ प ँचगे। आपको मालूम नह होता क आपको राह म कौन से नये ख़तरे या
चुनौ तयाँ मलगी। रोमांच, खोज और रचना मकता के भाव से शु करने के लये ज़बद त आंत रक सुर ा क
ज़ रत होती है। इसम कोई शक नह है क आपको बेस कप के आरामदे ह दायरे को छोड़ना होगा और एक
बलकुल नये तथा अनजाने जंगल म जाना पड़ेगा। आप रा ता खोजने वाले बन जाते ह। आप नई संभावना , नये
े , नये महा प का रा ता बनाते ह, ता क सरे उसका अनुसरण कर सक।
सनज कृ त म चार तरफ़ है। अगर आप दो पौध को नज़द क लगा द, तो उनक जड़ आपस म मल
जाती ह और मट◌्ट क गुणव ा को सुधार दे ती ह, ता क दोन पौधे उससे बेहतर बढ़ सक, जतना वे अलग-
अलग बढ़ सकते थे। अगर आप लकड़ी के दो टु कड़ को आपस म जोड़ द, तो वे मलकर उससे अ धक बोझ सह
सकते ह, जतना वे अलग-अलग सह सकते थे। पूण चीज़ अपने ह स के योगफल से अ धक बड़ी होती है। एक
और एक जुड़कर तीन के बराबर हो सकते ह या उससे भी अ धक हो सकते ह।
कृ त से सीखे गये रचना मक सहयोग के स ांत को अपने सामा जक वहार म अमल म लाना असली
चुनौती है। पा रवा रक जीवन सनज को दे खने और इस पर अमल करने के ब त से अवसर दान करता है।
एक पु ष और एक म हला जस तरह एक ब चे को नया म लाते ह, वह सनज का ही प है। सनज का
सार मत भन्नता को मह व दे ना है - उनका स मान करना है, शक् तय को बढ़ाना है, कमज़ो रय क भरपाई
करना है।
हम प प से पु ष और म हला , प तय और प नय क शारी रक भन्नता को मू यवान समझते
ह। परंतु सामा जक, मान सक और भावना मक भन्नता को? या ये भन्नताय भी जीवन के नये और
रोमांचक प के सृजन का ोत नह हो सकत ? या ये भन्नताय एक ऐसा माहौल नह बना सकत , जो दोन
के लये ही सचमुच संतु दायक हो, जो दोन के ही आ म-स मान और आ म-गौरव को पोषण दे , जो दोन को ही
पहले आ म नभरता म प रप व होने और फर पर पर- नभरता म प रप व होने का अवसर दे ? या सनज
अगली पीढ़ के लये एक नई ट तैयार नह कर सकती, जो सेवा और योगदान के अ धक अनुकूल हो तथा कम
र ा मक, कम श ुतापूण और कम वाथ हो; जसम अ धक खुलापन, अ धक वश्वास, अ धक दे ने क भावना
हो तथा जसम र ा मकता व चालाक कम हो; जो अ धक ेम और परवाह करे तथा कम अ धकार जताने वाली
और कम नणया मक (judgmental) हो?

सन ज टक सं ेषण
जब आप सन ज टक सं ेषण करते ह, तो आप अपने म त क, दय और भावना को नई संभावना
और नये वक प क ओर खोल रहे ह। ऐसा लग सकता है जैसे आप सरी आदत (अंत को यान म रखकर
शु कर) को दर कनार कर रहे ह; परंतु दरअसल आप इसका वपरीत कर रहे ह - आप इसे संपूणता दे रहे ह।
जब आप सन ज टक सं ेषण म शा मल होते ह, तो आप नह जानते क अंतत: चीज़ का नतीजा या होगा या
अंत कैसा दखेगा, परंतु आपम रोमांच तथा सुर ा का आंत रक एहसास होता है और आपको वश्वास होता है क
अंत पहले से ब त बेहतर होगा। और यही वह अंत है, जसे आप यान म रखते ह।
आप इस वश्वास के साथ शु करते ह क शा मल प अ धक अंत (insight) या सूझ-बूझ हा सल
कर पायगे। आप इस वश्वास के साथ शु करते ह क मलकर सीखने तथा अंत के रोमांच से एक संवेग पैदा
होगा, जससे भ व य म और अ धक अंत पाना, सीखना तथा वकास करना संभव होगा।
ब त से लोग ने वा तव म अपने पा रवा रक जीवन या अ य पार प रक वहार म सनज का कभी कोई
ख़ास अनुभव नह कया है। उ ह र ा मक सं ेषण म श त और ट कया गया है या उनके मन म यह
धारणा बैठा द गई है क जीवन या सरे लोग पर भरोसा नह कया जा सकता। प रणाम व प, वे वा तव म
छठ आदत और इसके स ांत के त कभी खुल ही नह पाते ह।
यह जीवन क ब त बड़ी ासद और बबाद है, य क ब त सी मता (potential) का दोहन नह हो
पाता है। यह अपार मता पूरी तरह अ वक सत रहती है तथा उपयोग म नह आ पाती। अ भावकारी लोग हर रोज़
उपयोग म न लाई गई मता के साथ जीते रहते ह। वे अपने जीवन म सनज का अनुभव सफ़ छोटे तर या सतही
तौर पर ही करते ह।
हो सकता है उ ह कोई असामा य रचना मक अनुभव याद हो, शायद जब वे कसी मैच म कुछ समय के लये
स ची ट म भावना के साथ खेले थे। या शायद वे कसी आपातकालीन थ त म रहे ह , जसम लोग ने कसी क
जान बचाने या संकट को र करने के यास म अपने अहं और गव को भुलाकर असामा य प से सहयोग कया
था।
ब त से लोग को इस तरह क घटनाय असामा य, जीवन के च र के तकूल और यहाँ तक क चम कारी
भी लग सकती ह। परंतु ऐसा नह है। ये चीज़ लोग के जीवन म नय मत प से, लगातार, लगभग रोज़ पैदा क
जा सकती ह। परंतु इसके लये चुर क् तगत सुर ा, खुलेपन और रोमांच क भावना क ज़ रत होती है।
ायः सभी रचना मक यास कुछ हद तक ऐसे होते ह क उनके बारे म पहले से अनुमान नह लगाया जा
सकता। वे अ सर अ प , अंधेरे म छोड़े गये तीर (hit-or-miss) या परी ण (trial and error) नज़र आते ह।
जब तक लोग अ प ता के त ब त सहनशील न ह और जब तक उ ह स ांत तथा आंत रक जीवनमू य के
त अखंडता से सुर ा न मले, तब तक उ च रचना मक काय म शा मल होना उ ह भयावह और अ य लग
सकता है। तं , नश् चतता और भ व यसूचकता (predictability) क उनक आव यकता ब त अ धक होती है।

लास म म सनज
एक अ यापक के प म मेरा यह वश्वास है क ब त सी सचमुच महान क ाय अराजकता क कगार पर
लड़खड़ाती रहती ह। सनज इस बात क जाँच करती है क या श क और व ाथ सचमुच इस स ांत के त
खुले ह क पूण चीज़ अपने ह स के योगफल से अ धक बड़ी होती है।
ऐसे भी समय होते ह, जब श क और व ाथ दोन ही नश् चत प से यह नह जानते क या होने वाला
है। शु आत म एक सुर त प रवेश होता है, जो लोग को सचमुच खुलने, सीखने और एक- सरे के वचार सुनने म
समथ बनाता है। फर वचारमंथन (brainstorming) होता है, जहाँ मू यांकन क भावना रचना मकता, क पना
और बौ क नेटव कग क भावना के अधीन हो जाती है। फर एक ब त असामा य घटना होती है। पूरी क ा
एक नई शक् त, एक नये वचार, एक नई दशा के रोमांच से पांत रत होने लगती है, जसका वणन करना
मु कल है, परंतु यह सभी शा मल लोग को लगभग प ता से नज़र आता है।
सनज लगभग वैसी ही है, जैसे कोई समूह सामू हक प से पुरानी ट् स को एक तरफ़ रखकर नई
ट लखने के लये सहमत हो जाये।

म वश्व व ालय क एक क ा को कभी नह भूलूँगा, जसम म लीडर शप का जीवनदशन और शैली पढ़ा


रहा था। उस से म टर म हम तीन स ताह के लगभग समय आ था। तभी एक तु त के बीच म एक व ाथ
अपने ब त बल क् तगत अनुभव बताने लगा, जो ब त भावना मक और ानवधक थे। क ा म वन ता और
ा का भाव छा गया। सब व ा थय के मन म उसके त स मान और उसके साहस के त सराहना का भाव
था।
यह भाव सन ज टक और रचना मक यास के लये उपजाऊ भू म बन गया। सरे व ा थय ने इसे आगे
बढ़ाया, अपने अनुभव सुनाये, अपनी अंत याँ बता और अपनी आ म-शंकाय भी। वश्वास और सुर ा के भाव
ने ब त से लोग को ब त खुलकर बोलने के लये े रत कया। अपनी तैयार क गई तु त के बजाय उ ह ने एक-
सरे क अंत य तथा वचार से पोषण पाया। उ ह ने उस लास के अथ को नये सरे से खोजा और एक
ब कुल नया प र य बनाना शु कया।
म इस या म गहराई से शा मल था। दरअसल म इससे लगभग चम कृत था, य क यह ब त जा ई और
रचना मक लग रहा था। और मने पाया क क ा के तं के त मेरी तब ता का बंधन श थल हो रहा था,
य क म बलकुल नई संभावना को दे ख रहा था। यह कोई क पना क उड़ान नह थी। यह प रप वता, थरता
और वा त वकता का ऐसा एहसास था, जो पुराने तं और योजना से ब त आगे चला गया था।
हमने पुराने पाठ् य म, ख़रीद ई पाठ् यपु तक और तु त क बाक़ योजना को छोड़ दया। हमने नये
उद्दे य, ोजे ट और एसाइनमट नधा रत कये। जो हो रहा था, उसके बारे म हम इतने रोमां चत थे क अगले
तीन ह त म सबने यह जानने क ती इ छा महसूस क क सर के साथ या हो रहा है।
हमने अपनी सीखी ई बात और अंत य पर एक पु तक लखने का नणय लया, जो हमारे अ ययन के
वषय - लीडर शप के स ांत - पर आधा रत हो। एसाइनमट् स बदल दये गये, नये ोजे ट् स ले लये गये, नई ट म
बना द ग । लोग मूल क ा तं म जतनी मेहनत कर रहे थे, उससे कह यादा मेहनत करने लगे और ऐसा वे
बलकुल अलग कारण से कर रहे थे।
उस अनुभव से एक बेहद अनूठ , सुसंगत और सनज यु सं कृ त उभरी, जो से म टर के साथ ख़ म नह
ई। बरस तक उस लास के सद य पूव-छा बैठक आयो जत करते रहे। कई साल गुज़र चुके ह, परंतु आज भी
जब हम एक- सरे से मलते ह, तो हम इस बारे म बात करते ह और यह वणन करने का यास करते ह क या
आ था और य आ था।
मुझे इस बात पर हैरानी ई क इस तरह क सनज के लये पया त वश्वास बनने म कतना कम समय
लगा था। मेरे वचार से काफ़ हद तक ऐसा इस लये आ य क शा मल लोग तुलना मक प से अ धक प रप व
थे। वे अपने अं तम वष के अं तम से म टर म थे तथा मेरे वचार से वे एक और लास म अनुभव के बजाय कोई
यादा बड़ी चीज़ चाहते थे। वे कोई ऐसी नई और रोमांचक चीज़ चाहते थे, जो सचमुच साथक हो। उनके लये यह
“एक ऐसा वचार था, जसका समय आ चुका था।”
इसके अलावा, के म भी सही थी। मुझे महसूस आ क सनज का अनुभव करना इसके बारे म बात
करने से यादा सश है और कसी नई चीज़ को उ पन्न करना कसी पुरानी चीज़ को पढ़ते रहने से यादा
अथपूण है।
मने ऐसे समय भी दे खे ह, जैसा क मेरा वश्वास है अ धकांश लोग ने दे खे ह गे, जो लगभग सन ज टक थे
- ऐसे समय, जो अ व था क खाई के सरे पर लटके थे और कसी कारण से वे इसम नीचे उतर गये। खद यह है
क जन लोग ने ऐसे अनुभव म अपने हाथ जला लये थे, वे अ सर अपने नये अनुभव को शु करते समय उस
असफलता को याद रखते ह। वे उससे ख़ुद को बचाते ह और इस तरह ख़ुद को सनज से वं चत कर लेते ह।
यह उन शासक क तरह है, जो नये नयम और नी तयाँ बना दे ते ह, सफ़ इस लये य क संगठन के भीतर
के कुछ लोग ने पुराने नयम का पयोग कया था। नतीजा यह होता है क वे ब त से लोग क वतं ता तथा
रचना मक संभावना को सी मत कर दे ते ह। या उन बज़नेस पाटनस क तरह, जो बुरी से बुरी संभावना क
क पना करते ह और उ ह कानूनी भाषा म लख दे ते ह, जससे रचना मकता, उ म (enterprise) और सनज
क संभावना क पूरी भावना ही मर जाती है।
जब म अपने परामशदा ी और ए ज़ी यू टव श ण अनुभव के बारे म सोचता ँ, तो म कह सकता ँ क
मुख घटनाय लगभग हमेशा सन ज टक थ । आम तौर पर एक शु आती ण था, जसम ब त साहस और
शायद ब त ईमानदार होने क ज़ रत थी। कसी क् त, संगठन या प रवार के बारे म कसी ऐसी गहरी स चाई
का सामना करना था, जसे सचमुच कहे जाने क ज़ रत थी, परंतु इसे कहने के लये ब त साहस और स चे ेम
के सम वय क ज़ रत थी। फर सरे लोग अ धक ईमानदार, खुले और ामा णक बन गये तथा सन ज टक
सं ेषण क या शु हो गई। यह आम तौर पर अ धका धक रचना मक बनती गई और ऐसी अंत य तथा
योजना पर जाकर ख़ म ई, जनक शु आत म कसी को भी उ मीद नह थी।
जैसा काल रॉजस ने सखाया है, “जो सबसे क् तगत होता है, वही सबसे आम होता है।” आप अपनी
अ भ क् त म जतने यादा ईमानदार बनते ह, ख़ासकर क् तगत अनुभव और आ म-शंका के बारे म आप
जतने यादा वा त वक बनते ह, उतने ही यादा लोग आपक अ भ क् त से जुड़ सकते ह। ऐसा करके आप
उ ह इतनी सुर ा दान करते ह, ता क वे वयं को क्त करने के लये सुर त महसूस कर सक। यह
अ भ क् त बदले म सरे क् त के भाव को पोषण दे ती है और इस तरह वा त वक रचना मक परानुभू त पैदा
होती है, जो नई अंत याँ और श ाय उ पन्न करती है। रोमांच तथा नया काम करने का एहसास भी उ पन्न
होता है, जो इस या को जारी रखता है।
फर लोग एक- सरे के साथ लगभग आधे वा य म, कभी-कभी तो असंगत वा य म बात करने लगते ह,
परंतु वे एक- सरे का अथ ब त ज द समझ लेते ह। फर नये वक प को सु नश् चत करने वाली अंत , नये
कोण और नये पैरेडाइ स के बलकुल नये संसार खुल जाते ह और इनके बारे म बात होती ह। हालाँ क कभी-
कभार ये नये वचार हवा म ही रह जाते ह, परंतु आम तौर पर इनसे कसी तरह का ऐसा ठोस न कष नकलता है,
जो ावहा रक और उपयोगी होता है।

बज़नेस म सनज
अपने सा थय के साथ हमारे बज़नेस का कॉरपोरेट मशन टे टमट तैयार करते समय मने एक वशेष साथक
सन ज टक अनुभव ा त कया। कंपनी के लगभग सभी सद य ने पहाड़ के ाकृ तक स दय के बीच उस
टे टमट का पहला ा ट तैयार कया, जसे हमम से कुछ लोग एक उ कृ मशन टे टमट मानते ह।
पहले तो सं ेषण आदरपूण, सावधानीपूण और अनुमा नत (predictable) था। परंतु जब हमने व भन्न
वक प , संभावना और अवसर के बारे म बात करना शु क , तो लोग ब त खुले और ईमानदार हो गये तथा
तेज़ आवाज़ म सोचने लगे। मशन टे टमट के एजडे से मु साहचय क एक सामू हक भावना जा त ई। वचार
का सहज आदान- दान होने लगा। लोग साहसी होने के साथ-साथ सचमुच परानुभू तपूण हो गये। इस तरह हम
आपसी स मान तथा समझ से आगे बढ़कर रचना मक सन ज टक सं ेषण तक प ँच गये।
हर क् त इसे महसूस कर सकता था। यह रोमांचक था। जब यह पूरा हो गया, तो हमने अपनी सामू हक
भ व य- को श द म लखना शु कया। इनम से येक श द हर तभागी के लये मायने रखता था और वह
उसके त न ावान था।
इसके प रणाम व प उ पन्न आ कॉरपोरेट मशन टे टमट न न है:

हमारा मशन स ांत-क त लीडर शप को समझने व उस पर अमल करने के मा यम से साथक


उद्दे य को हा सल करने के लये क् तय और संगठन को उनक दशन मता म मह वपूण
वृ करने क शक् त दान करना है।

हमारे मशन टे टमट क रचना सन ज टक या से ई। इसने इस टे टमट को वहाँ उप थत हर क् त


के दलो दमाग़ पर अं कत कर दया। यह हमारे लये संदभ-मानदं ड बन गया और इसने यह बताने म काफ़ मदद
क है क हम या करना है और यह भी क हम या नह करना है।

मुझे एक और उ च- तरीय सनज अनुभव उस समय आ, जब मने एक बड़ी बीमा कंपनी क वा षक


योजना बैठक म संसाधन और वचार- वमश उ ेरक के प म काय करने का आमं ण वीकार कया। बैठक से
कई महीने पहले म इस दो दवसीय बैठक ( जसम सभी शीष थ ए ज़ी यू ट ज़ ह सा लेने वाले थे) क तैयारी
और आयोजन के लये ज़ मेदार स म त से मला। उ ह ने मुझे जानकारी द क पारंप रक तरीक़ा श्नाव लय
और सा ा कार के ज रये चार-पाँच मुख मुद◌्द को पहचानना और ए ज़ी यू ट ज़ ारा वैक पक ताव
तुत करना था। पछली बैठक म आम तौर पर वचार का स मानजनक आदान- दान होता था, हालाँ क कभी-
कभार ये बैठक र ा मक जीत/हार के अहं क टकराहट म भी बदल गई थ । आम तौर पर वे पहले से ही अनुमान
लगाई जा सकने वाली, पारंप रक और उबाऊ थ ।
जब मने स म त के सद य से सनज क शक् त के बारे म बात क , तो उ ह इसक मता का एहसास
आ। झझकते ए वे अपना तरीक़ा बदलने के लये सहमत ए। उ ह ने सभी ए ज़ी यू ट ज़ से उ च ाथ मकता
वाले हर मुद◌्दे पर गोपनीय “श्वेतप ” तैयार करने का अनुरोध कया। इसके बाद उ ह ने ए ज़ी यू ट ज़ से ख़ुद
को उन काग़ज़ म डु बो दे ने को कहा, ता क वे मुद◌्द और भन्न कोण को समझ ल। उ ह बैठक म सुनाने के
बजाय सुनने के लये तैयार होकर आना था, अपनी सुर ा और बचाव करने के बजाय सृजन करने और सनज के
लये तैयार होकर आना था।
हमने बैठक के पहले आधे दन म चौथी, पाँचव और छठ आदत क यो यता के स ांत और अमल
सखाये। बाक़ का समय रचना मक सनज म लगाया गया।
जो रचना मक ऊजा मु ई, वह अ वश्वसनीय थी। बो रयत क जगह रोमांच ने ले ली। लोग अब एक-
सरे के भाव के लये ब त खुले ए थे और उ ह ने नई अंत याँ और नये वक प उ पन्न कये। बैठक के
ख़ म होते-होते कंपनी क सबसे मह वपूण चुनौती क कृ त के बारे म एक बलकुल नई समझ वक सत ई।
श्वेतप के ताव अब नरथक हो गये थे। मत भन्नता को मह व दया गया और उ ह पार कया गया। एक
नई साझी वक सत होने लगी।

एक बार जब लोग वा त वक सनज का अनुभव कर लेते ह, तो फर वे कभी पुराने व प म नह रह पाते।


वे भ व य म भी म त क का व तार करने वाले ऐसे ही सरे रोमांचक अनुभव क संभावना तलाश करते ह।
अ सर कसी वशेष सन ज टक अनुभव को दोहराने क को शश क जाती ह, परंतु यह शायद ही कभी
संभव होता है। बहरहाल, रचना मक काय के पीछे के मूल उद्दे य दोहराया जा सकता है। सु र पूव दशन के
अनुसार, “हम महान लोग क नक़ल करने क को शश नह करना चाहते, ब क वह खोजने क को शश करना
चाहते ह, जो वे खोजना चाहते थे।” उसी तरह हम भी पछले रचना मक सन ज टक अनुभव क नक़ल करने क
को शश नह करना चाहते, ब क हम नये और भन्न तथा कई बार अ धक उ च उद्दे य के इद- गद नये
सन ज टक अनुभव बनाने क को शश करना चाहते ह।

सनज और सं ेषण
सनज रोमांचकारी है। रचना मकता रोमांचकारी है। खुलापन और सं ेषण चम कारी प रणाम उ पन्न कर
सकते ह। स चे मह वपूण लाभ और सुधार क संभावनाय इतनी वा त वक ह क इस खुलेपन के लये जो खम
लया ही जाना चा हये।

तीय वश्वयु के बाद अमे रका ने डे वड ल लए थल को नये परमाणु ऊजा आयोग का मुख बनाया।
ल लए थल ने ऐसे लोग का समूह बनाया, जो बेहद भावशाली थे, अपने े क ह तयाँ थे और अपने संदभ-
मानदं ड के श य थे।
लोग के इस ब त भन्नता भरे समूह का एजडा ब त भारी था और वे इसे पूरा करने के लये अधीर थे।
इसके अलावा, अख़बार वाले भी ज द मचा रहे थे।
परंतु ल लए थल ने उ च भावना मक बक अकाउंट बनाने के लये कुछ स ताह का समय लया। उ ह ने ऐसी
व था क , जससे ये लोग एक- सरे को अ छ तरह जान ल - उनक चयाँ, उनक आशाय, उनके ल य,
उनक चताय, उनक पृ भू मयाँ, उनके संदभ-मानदं ड, उनके पैरेडाइ स। ल लए थल ने ऐसे मानवीय वहार को
ो सा हत कया, जो लोग के बीच गाढ़ बंधन पैदा करता है, हालाँ क अ धक समय लेने के कारण उनक काफ़
आलोचना ई, य क यह “कुशल” बंधन नह था।
परंतु इसका प रणाम यह आ क यह समूह ब त क़रीबी सू म बँध गया, एक- सरे के साथ ब त खुल
गया, ब त रचना मक और सन ज टक हो गया। आयोग के सद य के बीच आपसी स मान क भावना इतनी
यादा थी क असहम त होने पर सर का वरोध और अपनी र ा करने के बजाय समझने क स ची को शश क
जाती थी। कोण यह रहता था, “अगर आपक बु , यो यता और तब ता का क् त मुझसे असहमत है,
तो आपक असहम त के पीछे कोई ऐसी वजह होगी, जसे म नह समझ पा रहा ँ, और म उसे समझना चाहता ।ँ
म आपके कोण और संदभ-मानदं ड पर ग़ौर करना चाहता ।ँ ” इससे सुर ा मक वहार क जगह खुलापन
वक सत आ और एक असाधारण सं कृ त का ज म आ।

नीचे दया गया रेखा च दशाता है क वश्वास का सं ेषण के अलग-अलग तर से कतना क़रीबी संबंध
है।

सं ेषण का सबसे न न तर कम वश्वास क थ तय से उ पन्न होता है। इसम र ा मकता और अ सर


कानूनी भाषा का योग होता है, जो सभी बुरी थ तय क क पना करती है और प र थ त बगड़ने क याशा
म अनु छे द और उप-अनु छे द बनाती है। इस तरह का सं ेषण सफ़ जीत/हार या हार/जीत उ पन्न करता है। यह
भावकारी नह है। इसम पी/पीसी संतुलन नह है और यह सुर ा मक होने के अ धक कारण उ पन्न करता है।
बीच क थ त आदरपूण सं ेषण है। यह वह तर है, जहाँ सामा य प से प रप व लोग चचा या वहार
करते ह। वे एक- सरे का स मान करते ह, परंतु अ य टकराव से बचना चाहते ह, इस लये वे वन ता से सं ेषण
करते ह। बहरहाल उनका सं ेषण परानुभू तपूण नह होता। हो सकता है वे बौ क प से एक- सरे को समझ ल,
परंतु वे वा तव म अपनी थ तय म न हत पैरेडाइ स और मा यता को गहराई से नह दे खना चाहते और वे नई
संभावना के त नह खुलना चाहते।
आदरपूण सं ेषण आ म नभर थ तय म और यहाँ तक क पर पर- नभर थ तय म काम करता है, परंतु
इससे रचना मक संभावना के लये रा ता नह बनता है। पर पर- नभर थ तय म आम तौर पर समझौते क
थ त अपनाई जाती है। समझौते का अथ है 1 + 1 = 1½। दोन प ारा कुछ दे ना और कुछ लेना। सं ेषण
र ा मक, ोधपूण या छल-कपट से भरा नह होता। यह ईमानदार, वा त वक और आदरपूण होता है, परंतु यह
रचना मक या सन ज टक नह होता। यह जीत/जीत का एक न न प उ पन्न करता है।
सनज का अथ है 1+1 जो 8, 16 या 1600 के बराबर भी हो सकता है। उ च वश्वास क सन ज टक
थ त मूलत: ता वत समाधान से बेहतर समाधान पैदा करती है और सभी प यह बात जानते ह। इसके
अलावा, वे सचमुच इस रचना मक काय का आनंद ले सकते ह। एक उप-सं कृ त बन जाती है, जो संतु दान
करती है। चाहे यह थोड़े समय के लये ही हो, परंतु इससे पी/पीसी संतुलन बनता है।
कुछ प र थ तयाँ ऐसी होती ह, जनम सनज हा सल नह हो सकती और कोई सौदा नह क थ त
ावहा रक नह होती। बहरहाल, इन प र थ तय म भी ईमानदार को शश करने से आम तौर पर अ धक
भावकारी समझौता संभव हो सकता है।

तीसरे वक प क तलाश करना


हमारे सं ेषण का तर हमारी पर पर- नभर भावका रता को कस कार भा वत करता है, इसे बेहतर
तरीक़े से दे खने के लये इस य क क पना कर:
छु ट् टय का समय आने वाला है और प त अपने प रवार को झील के े म ले जाना चाहता है, ता क
कै पंग और फ़ शग का आनंद लया जा सके। यह उसके लये मह वपूण है। वह साल भर से इसक योजना बना
रहा है। उसने झील के कनारे एक कॉटे ज का रज़वशन भी करवा लया है और कराये क नाव क व था भी
कर ली है। उसके बेटे भी वहाँ जाने के बारे म सचमुच रोमां चत ह।
बहरहाल, उसक प नी छु ट् टय म अपनी बीमार माँ से मलने जाना चाहती है, जो 250 मील र रहती ह।
वह अपनी माँ से मलने यादा बार नह जा पाती है और यह उसके लये मह वपूण है।
ये मत भन्नताय एक बड़े नकारा मक अनुभव का कारण बन सकती ह।
प त कहता है, “योजनाय बन चुक ह। ब चे रोमां चत ह। हम फ़ शग प पर जाना चा हये।”
प नी जवाब दे ती है, “परंतु हम नह जानते क मेरी माँ कतने दन और जयगी, इस लये म उनसे मलने
जाना चाहती ।ँ ऐसा करने के लये यही इकलौता मौक़ा है, य क हमारे पास इतना समय फर कभी नह होगा।”
“साल भर से हम इस एक ह ते क छु ट् टय का इंतज़ार कर रहे ह। ब चे एक स ताह तक अपनी नानी के
घर पर ख़ाली बैठे-बैठे परेशान हो जायगे। वे सबको तंग करगे। इसके अलावा, तु हारी माँ इतनी यादा बीमार नह
ह। और उनक दे खभाल करने के लये तु हारी बहन भी तो है, जो एक मील से भी कम री पर रहती है।”
“वे मेरी भी माँ ह। म उनके पास जाना चाहती ँ।”
“तुम उ ह हर रात को फ़ोन कर सकती हो। और हमने समस म प रवार के पुन मलन पर उनके साथ समय
बताने क योजना बना रखी है। याद है?”
“ समस पाँच महीने बाद है। हम नह जानते क वे तब तक ज़दा भी रहगी या नह । इसके अलावा, उ ह
मेरी ज़ रत है।”
“उनक अ छ दे खभाल हो रही है। इसके अलावा, ब च और मुझे भी तु हारी ज़ रत है।”
“मेरी माँ मछली पकड़ने से यादा मह वपूण ह।”
“तु हारे प त और ब चे तु हारी माँ से यादा मह वपूण ह।”
असहम त बढ़ती जाती है। आगे-पीछे वचार करने पर वे आ ख़रकार कसी तरह के समझौते पर प ँच सकते
ह। हो सकता है वे अलग-अलग जाने का फ़ैसला कर ल - प त ब च को लेकर झील म फ़ शग के लये चला जाता
है और प नी अपनी माँ से मलने चली जाती है। परंतु वे दोन ही अपराधी और खी महसूस करते ह। ब चे भी यह
बात समझ जाते ह और इससे उनक छु ट् टय का आनंद कम हो जाता है।
या फर यह हो सकता है क प त अपनी प नी के सामने समपण कर दे । परंतु वह ऐसा अ न छापूवक करेगा।
यह स ताह सबके लये ख भरा होगा, इस भ व यवाणी को पूरा करने के लये प त चेतन या अचेतन प से
माण भी तुत कर सकता है।
या फर यह हो सकता है क प नी अपने प त के सामने समपण कर दे । परंतु वह गुमसुम रहती है और अपनी
माँ क हालत बगड़ने क ख़बर पर अ य धक त या करती है। अगर उसक माँ गंभीर प से बीमार हो जाये
और मर जाये, तो प त ख़ुद को कभी माफ़ नह कर पायेगा और प नी भी उसे कभी माफ़ नह कर पायेगी।
वे अंतत: कसी भी समझौते पर प ँच, दोन ही प बरस तक उसे असंवेदनशीलता, उपे ा और ग़लत
ाथ मकता नधारण के नणय के प म दोहराते रहगे। यह बरस तक चलने वाले ववाद का ोत हो सकता है
और प रवार को दो ह स म भी बाँट सकता है। ब त से ववाह, जो कभी सुंदर, कोमल, आनंददायक और ेमपूण
थे, इसी तरह क घटना क ृंखला क वजह से वकृत होकर श ुता के तर तक प ँच गये ह।
प त और प नी थ त को भन्न- भन्न तरीक़ से दे खते ह। और यह भन्नता उ ह दो प म बाँट सकती है,
अलग कर सकती है, उनके संबंध म दरार डाल सकती है। या फर यह उ ह एक अ धक उ च तर पर यादा क़रीब
ला सकती है। अगर उ ह ने भावकारी पर पर- नभरता क आदत वक सत कर ली ह, तो वे एक बलकुल ही
अलग पैरेडाइम से अपनी मत भन्नता का सामना करते ह। उनका सं ेषण एक अ धक उ च तर पर होता है।
चूँ क उनका भावना मक बक अकाउंट समृ है, इस लये उनके वैवा हक जीवन म वश्वास और खुला
सं ेषण है। चूँ क वे जीत/जीत क मान सकता के साथ सोचते ह, इस लये उ ह तीसरे वक प म वश्वास होता है,
यानी एक ऐसा समाधान, जो दोन के लये ही लाभदायक हो और दोन के ारा मूलत: सुझाये गये समाधान से
बेहतर हो। चूँ क वे परानुभू तपूवक सुनते ह और पहले समझने क को शश करते ह, इस लये वे अपने भीतर और
अपने बीच जीवनमू य तथा चता क एक बड़ी त वीर बना लेते ह, जन पर नणय लेते समय वचार कया
जाना ज़ री होता है।
समृ भावना मक बक अकाउंट, जीत/जीत सोचना और पहले समझने क को शश करना - ये त व सनज
के लये आदश प रवेश तैयार कर दे ते ह।
बौ धम इसे “म य माग” कहता है। यहाँ पर म य का अथ समझौता नह है। इसका अथ अ धक उ च होना
है, कसी भुज के ऊपरी शीष क तरह।
“म य” या उ चतर माग क तलाश करने म प त और प नी को यह एहसास होता है क उनका ेम और
संबंध उनक सनज का ह सा है।
चचा के दौरान प त सचमुच गहराई से अपनी प नी क अपनी माँ से मलने क इ छा और आव यकता को
महसूस करता है। वह समझता है क उसक प नी अपनी बहन को राहत प ँचाना चाहती है, जस पर उनक माँ
क दे खभाल क ाथ मक ज़ मेदारी है। वह समझता है क कौन जाने वे कतने समय तक ज़दा रहगी और
नश् चत प से वे मछली पकड़ने से अ धक मह वपूण ह।
और प नी गहराई से अपने प त क इस इ छा को समझती है क प रवार इकट् ठे घूमने जाये और ब च को
एक आनंददायक अनुभव दया जाये। प नी को उस नवेश का एहसास रहता है, जो फ़ शग वैकेशन क तैयारी म
लये गये श ण और सामान पर ख़च आ है। और वह छु ट् टय को यादगार बनाने के मह व को भी महसूस
करती है।
इस लये वे अपनी इ छा को इकट् ठा कर लेते ह। अब वे सम या के वपरीत सर पर नह ह। वे एक साथ
एक ही सरे पर बैठकर सम या को दे ख रहे ह, आव यकता को समझ रहे ह और तीसरे वक प क रचना पर
काम कर रहे ह, ता क उन दोन क इ छाय पूरी हो सक।
प त सुझाव दे ता है, “ऐसा करते ह क हम इस महीने म ही कसी और समय ऐसी व था कर लेते ह, ता क
तुम अपनी माँ से मलने जा सको। म वीकएंड म घर क ज़ मेदा रयाँ सँभाल लूँगा और ह ते क शु आत म कसी
नौकरानी क व था कर लूँगा, ता क तुम जा सको। म जानता ँ क तु हारे लये वहाँ जाना मह वपूण है।
“या फर हम कै पंग और फ़ शग के लये कोई ऐसी जगह ढूँ ढ़ लेते ह, जो तु हारी माँ के घर के नज़द क हो।
वह थान उतना अ छा तो नह रहेगा, परंतु फर भी हम बाहर सैर कर सकते ह और सरी आव यकता को भी
पूरा कर सकते ह। ब चे भी बो रयत और कुंठा महसूस नह करगे। हम उनके चचेरे भाइय तथा मौसी-मौसा के
साथ आनंददायक ग त व धय क योजना भी बना सकते ह, जो एक अ त र लाभ होगा।”
वे सनज का योग करते ह। वे हर पहलू पर तब तक सं ेषण करते ह, जब तक क वे कसी ऐसे समाधान
पर नह प ँच जाते, जसके बारे म दोन को ही अ छा महसूस हो। यह उन दोन ारा मूलत: सुझाये गये समाधान
से बेहतर है। यह समझौते से भी बेहतर है। यह एक सन ज टक समाधान है, जो पी और पीसी का नमाण करता
है।
ांज़ै शन के बजाय यह ांसफ़ॉमशन है। उन दोन को ही अपनी मनचाही चीज़ मल जाती है और इस
या म वे अपने र ते को और मज़बूत बना लेते ह।

नकारा मक सनज
तीसरे वक प को खोजना ै तवाद (या तो यह/या फर वह) मान सकता से एक बड़ा पैरेडाइम प रवतन है।
परंतु ज़रा प रणाम पर नज़र डा लये!
जब लोग पर पर- नभर वा त वकता म सम या को सुलझाने या नणय पर प ँचने क को शश करते ह,
तो आम तौर पर कतनी सारी नकारा मक ऊजा ख़च होती है? सर क ग़ल तयाँ गनाने म, चाला कयाँ करने म,
त ं ता म, पार प रक संघष म, अपनी चमड़ी बचाने म, रणनी तयाँ बनाने म और वक प सोचने म कतना
यादा समय बबाद होता है? यह तो ऐसा ही है जैसे कार चलाते समय हमारा एक पैर ए सीलरेटर पर और सरा
ेक पर हो!
और यादातर लोग ेक पर से पैर हटाने के बजाय ए सीलरेटर पर दबाव बढ़ा दे ते ह। वे अ धक दबाव
डालकर, अ धक वाकपटु ता दखाकर और अ धक तकपूण जानकारी दे कर अपनी थ त को सु ढ़ बनाने क
को शश करते ह।
सम या यह है क अ यंत नभर लोग पर पर- नभर वा त वकता म सफल होने क को शश कर रहे ह। वे या
तो अपने पद क शक् त से ताक़त उधार लेने पर नभर ह और जीत/हार क मान सकता से काम कर रहे ह या फर
वे सर के बीच लोक य होने पर नभर ह और हार/जीत क मान सकता से काम कर रहे ह। हो सकता है वे
जीत/जीत क तकनीक पर बात कर रहे ह , परंतु सच तो यह है क वे सुनना नह चाहते ह और सफ़ अपना
मतलब नकालना चाहते ह। इस तरह के प रवेश म सनज उ पन्न नह हो सकती।
असुर त लोग सोचते ह क समूची वा त वकता उनके पैरेडाइ स के सामंज य म होना चा हये। उ ह सर
को अपनी तरह बनाने और अपने सोचने के तरीक़े म ढालने क अ यंत बल आव यकता होती है। उ ह यह
एहसास नह होता क संबंध क वा त वक शक् त सरे कोण के अ त व म है। एक सा होना एका मकता नह
है; एक पता एकता नह है। एकता या एका मकता एक सा होना नह , ब क पूरक होना है। एक सा होना
रचना मक नह है… यह नीरस है। मत भन्नता को मह व दे ना सनज का सार है।
मेरा मानना है क पार प रक सनज क कुंजी क् तगत सनज है, यानी हमारे भीतर क सनज ।
क् तगत सनज का क पहली तीन आदत के स ांत म न हत है। ये स ांत खुले होने और असुर त होने
के जो खम से नबटने के लये पया त आंत रक सुर ा दान करते ह। इन स ांत को आ मसात करके हम
जीत/जीत क चुरता क मान सकता और पाँचव आदत क ामा णकता वक सत कर लेते ह।
स ांत-क त बनने का एक ब त ावहा रक प रणाम यह होता है क यह हम पूण - सचमुच एक कृत -
बना दे ता है। जो लोग बाय म त क के ता कक और शा दक चतन म गहराई से ट कये होते ह, वे यह पाते ह
क इस तरह का सोच उन सम या को सुलझाने के लये अपया त है, जनम रचना मकता क ब त आव यकता
होती है। यह जानने के बाद वे जाग क हो जाते ह और अपने दाय म त क के भीतर एक नई ट को खोलना
शु कर दे ते ह। ऐसा नह है क उनके पास दायाँ म त क पहले था ही नह । वह तो बस न य पड़ा था। उसक
मांसपे शयाँ वक सत नह ई थ या शायद बचपन के बाद वे कमज़ोर हो गई थ , य क औपचा रक श ा या
सामा जक टं ग ने बाय म त क पर ब त यादा ज़ोर दया था।
जब कसी क् त क प ँच दाय म त क (क पनाशील, रचना मक व च ा मक) और बाय म त क
( वश्लेषणा मक, तकपूण व शा दक) दोन तक होती है, तो पूरा म त क काय कर रहा होता है। सरे श द म,
हमारे अपने म त क म मान सक सनज उ पन्न हो जाती है। और यह उपकरण जीवन क वा त वकता के लये
सबसे उपयु है, य क जीवन सफ़ तकपूण नह है - यह भावना मक भी है।

एक दन म ऑरलै डो, लो रडा म एक कंपनी म से मनार दे रहा था, जसका शीषक था, “बाय से बंधन
करो, दाय से नेतृ व करो।” वराम के दौरान कंपनी के े सडट मेरे पास आये और बोले, “ ट फ़न, यह अजीब बात
है। परंतु सच तो यह है क म इस साम ी को अपनी कंपनी के बजाय अपने वैवा हक जीवन म लागू करने के बारे म
सोच रहा ँ। मेरी प नी और मेरे बीच वा तव म सं ेषण क सम या है। या आप हम दोन के साथ लंच करगे?
सफ़ यह दे ख क हम एक- सरे से कस तरह बात करते ह?”
“ठ क है,” मने जवाब दया।
जब हम इकट् ठे बैठे, तो हमारे बीच कुछ श ाचार क बात । फर यह आदमी अपनी प नी क ओर मुड़ा
और बोला, “दे खो य, मने ट फ़न को अपने साथ लंच करने के लये इस लये आमं त कया है, ता क वे हमारे
सं ेषण को दे ख सक। शायद वे इसे सुधारने म हमारी मदद कर सकते ह। म जानता ँ, तुम यह महसूस करती हो
क मुझे यादा संवेदनशील और यादा परवाह करने वाला प त होना चा हये। या तुम मुझे कोई एक नश् चत
बात बता सकती हो, जो तु हारे हसाब से मुझे करना चा हये?” उसका बल बायाँ म त क त य, आँकड़े, योरे
तथा ह से चाहता था।
“दे खो, जैसा मने तु ह पहले भी बताया है, यह कोई नश् चत बात नह है। यह तो ाथ मकता के बारे म
एक सामा य एहसास है।” उसका बल दायाँ म त क अनुभू त और जे टा ट (gestalt) यानी सम के बारे म
बात कर रहा था, ह स के आपसी संबंध के बारे म बात कर रहा था।
“‘ ाथ मकता के बारे म एक सामा य एहसास’ से तु हारा या मतलब है? तुम मुझसे या करवाना चाहती
हो? मुझे कोई नश् चत चीज़ या काम बता दो, जसे म कर सकूँ।”
“दे खो, यह सफ़ एक भावना है।” उसका दायाँ म त क छ वय और अंत ान क भावना से भरा था।
“मेरे वचार से हमारा वैवा हक जीवन तु हारे लये उतना मह वपूण नह है, जतना क तुम मुझे बताते हो।”
“म इसे अ धक मह वपूण बनाने के लये या कर सकता ँ? मुझे कोई ठोस और प चीज़ बता दो, ता क म
आगे बढ़ सकूँ।”
“इसे श द म कहना मु कल है।”
इस मोड़ पर प त ने अपनी नज़र घुमाकर मेरी तरफ़ दे खा, मानो कह रहा हो, “ ट फ़न, वैवा हक संबंध म इस
तरह के गूँगेपन को कोई कैसे सहन कर सकता है?”
“यह सफ़ एक भावना है,” प नी बोली, “एक ब त बल भावना।”
प त ने प नी से कहा, “तु हारे साथ यही सम या है। और यही सम या तु हारी माँ के साथ है। दरअसल म
जतनी म हला को जानता ,ँ उन सबके साथ यही सम या है।”
फर वह प नी से इस तरह सवाल पूछने लगा, जैसे वह कसी कानूनी मुक़दमे म जरह कर रहा हो।
“ या तुम वहाँ रहती हो, जहाँ तुम रहना चाहती हो?”
“मुददा
् यह नह है,” प नी ने आह भरते ए कहा। “मुददा ् यह बलकुल नह है।”
प त ने बमु कल धैय रखते ए जवाब दया, “म जानता ँ, परंतु चूँ क तुम प ता से यह नह बता सकत
क सम या या है, इस लये मुझे लगता है सबसे अ छा तरीक़ा यह पता लगाना है क कौन सी चीज़ सम या नह
है। या तुम वहाँ रहती हो, जहाँ तुम रहना चाहती हो?”
“शायद हाँ।”
“दे खो, ट फ़न हमारी मदद के लये यहाँ पर सफ़ कुछ दे र के लये ही आये ह। सफ़ ‘हाँ’ या ‘ना’ म त काल
जवाब दो। या तुम वहाँ रहती हो, जहाँ तुम रहना चाहती हो?”
“हाँ।”
“ठ क है। यह तय हो गया। जन चीज़ को तुम पाना चाहती हो, या वे तु हारे पास ह?”
“हाँ।”
“ठ क है। जो काम तुम करना चाहती हो, या तुम वह काम करती हो?”
यह सल सला कुछ दे र तक यूँ ही चलता रहा। म दे ख सकता था क म बलकुल भी मदद नह कर रहा था।
इस लये मने ह त ेप कया और पूछा, “ या आपका र ता इसी तरह चलता है?”
प त बोला, “हर दन यही होता है, ट फ़न।”
प नी ने आह भरते ए कहा, “यही हमारे वैवा हक जीवन क कहानी है।”
मने उन दोन क तरफ़ दे खा और अचानक मेरे मन म यह वचार आया क ये दो आधे म त क वाले लोग थे,
जो एक साथ रह रहे थे। मने पूछा, “ या आपके ब चे ह?”
“हाँ, दो ह।”
“वाक़ई?” मने अ वश्वास से पूछा। “आपने यह कैसे कया?”
“यह हमने कैसे कया! इस सवाल का या मतलब है?”
“आप सन ज टक थे!” मने कहा। “एक और एक का जोड़ आम तौर पर दो होता है। परंतु आपने इसे चार
बना दया। यह सनज है। पूण चीज़ ह स के योगफल से अ धक बड़ी होती है। इसी लये म पूछ रहा ँ क आपने
यह कैसे कया?”
उसने जवाब दया, “आप जानते ह क हमने यह कैसे कया।”
मने कहा, “आपने ज़ र भन्नता को मह व दया होगा!”

भन्नता को मह व दे ना
लोग के बीच क मान सक, भावना मक तथा मनोवै ा नक भन्नता को मह व दे ना सनज का सार है।
और इ ह मह व दे ने क कुंजी यह एहसास करना है क लोग नया को उस तरह से नह दे खते ह जैसी यह सचमुच
है, ब क उस तरह से दे खते ह जैसे वे ख़ुद ह।
अगर म सोचता ँ क म नया को उसी तरह से दे खता ँ जैसी यह सचमुच है, तो फर म भन्नता को
मह व य दे ना चा ँगा? म कसी ऐसे क् त के बारे म सोचने क झंझट य पालूँगा, जो “रा ते से भटक गया
हो?” मेरा पैरेडाइम यह है क म न प ;ँ म नया को उसी तरह दे खता ँ जैसी क यह है। बाक़ सब लोग
छोट -छोट बात म लगे ह, एक म ही ँ जसे बड़ी त वीर दख रही है। इसी लये वे मुझे सुपरवाइज़र कहते ह - मेरे
पास उ कृ (super vision) है।
अगर मेरा पैरेडाइम यह रहेगा, तो म कभी भावकारी प से पर पर- नभर तो या, आ म नभर भी नह बन
पाऊँगा। मेरी कंडीश नग के पैरेडाइ स मुझे सी मत कर दगे।
जो क् त सचमुच भावकारी है, उसम अपनी अनुभू तय क सीमा को पहचानने क वन ता और
स मान होता है। वह उन संसाधन क क़ मत समझता है, जो सं ेषण के मा यम से सर के दल और दमाग़ से
उपल ध हो सकते ह। भावकारी क् त भन्नता को मू यवान मानता है, य क ये भन्नताएँ वा त वकता
के उसके ान और समझ को बढ़ाती ह। जब हम सफ़ अपने अनुभव तक सी मत रहते ह, तो हम जानकारी
(data) के नरंतर अभाव से परेशान रहते ह।
या यह तकपूण है क दो लोग असहमत ह और फर भी दोन सही ह ? यह तकपूण नह है: यह
मनोवै ा नक है; और यह ब त वा त वक भी है। आप युवती को दे खते ह; म बूढ़ म हला को दे खता ँ। हम दोन
एक ही त वीर को दे ख रहे ह और हम दोन ही सही ह। हम उ ह काली रेखा और उ ह सफ़ेद थान को दे खते
ह। परंतु हम उनक अलग-अलग ा या करते ह, य क हम अलग-अलग ा या करने के लये कंडीशन कया
गया है।
और जब तक हम अपनी अनुभू तय म भन्नता को मह व नह दे त,े जब तक हम एक- सरे को मह व
नह दे ते और इस संभावना पर वश्वास नह करते क हम दोन सही ह, जब तक हम यह नह सोचते क जीवन
हमेशा ै तवाद (या तो यह/या फर वह) नह होता, जब तक हम यह नह मानते क लगभग हमेशा तीसरे वक प
होते ह, तब तक हम उस कंडीश नग क सीमा के पार नह जा पायगे।
मुझे सफ़ बूढ़ म हला दखाई दे रही है, परंतु मुझे यह एहसास है क आप कुछ और दे ख सकते ह। और म
आपको तथा आपक अनुभू त को मह व दे ता ँ। म समझना चाहता ँ।
इस लये जब म अपनी अनुभू तय क भन्नता के बारे म जाग क होता ,ँ तो म कहता ँ, “अ छा! आप
इसे अलग तरह से दे खते ह! आपको जो दख रहा है, उसे दे खने म मेरी भी मदद कर।”
अगर दो लोग क राय एक ही है, तो उनम से एक अनाव यक है। उस क् त से बातचीत करके मेरा कोई
भला नह होने वाला, जसे सफ़ बूढ़ म हला दख रही हो। जो मुझसे सहमत है, म उसके साथ सं ेषण नह करना
चाहता। म आपके साथ सं ेषण करना चाहता ँ, य क आप इसे अलग तरह से दे खते ह। म उस भन्नता को
मह व दे ता ँ।
ऐसा करके म न सफ़ अपनी जाग कता बढ़ाता ँ, ब क आपको समथन भी दे ता ँ। म आपको
मनोवै ा नक हवा दे ता ।ँ म ेक पर से अपना पैर हटा लेता ँ और उस नकारा मक ऊजा को पैदा ही नह होने
दे ता, जसका योग आप कसी ख़ास थ त म ख़ुद क र ा करने के लये कर सकते थे। म सनज का प रवेश
बनाता ँ।
भन्नता को मू यवान समझने के मह व को श ा वद् डॉ. आर.एच. री ज़ ने अ सर दोहराई जाने वाली
नी तकथा “द ए नमल कूल” म बड़ी सुंदरता से क्त कया है:

एक बार जानवर ने यह नणय लया क उ ह “नये संसार” क सम या से नबटने के लये कोई


ज़ोरदार क़दम उठाना चा हये, इस लये उ ह ने एक कूल खोला। उ ह ने ग त व धय का एक
पाठ् य म तैयार कया, जसम दौड़ना, चढ़ना, तैरना और उड़ना शा मल था। इसे लागू करने म
आसानी हो, इस लये सभी जानवर को सभी वषय लेने थे।
बतख तैरने म अ वल थी, दरअसल वह अपने श क से भी बेहतर थी। उसे उड़ने म भी ब त
अ छे नंबर मले, परंतु वह दौड़ने म ब त कमज़ोर थी। चूँ क वह दौड़ने म कमज़ोर थी, इस लये
उसे कूल के बाद इसम मेहनत करने के लये कना पड़ता था। उसे तैरना छोड़कर दौड़ने का
अ यास करना पड़ा। यह सल सला तब तक चलता रहा, जब तक क उसके झ लीदार पैर बुरी
तरह से ख़राब नह हो गये। अब वह तैरने म सफ़ औसत रह गई थी। बहरहाल, इस बात से बतख
के अलावा कसी को भी चता नह ई, य क कूल म औसत होना बुरी बात नह मानी जाती
थी।
खरगोश दौड़ने म क ा म सबसे अ वल था, परंतु जब तैरने क बारी आई, तो उसे नवस ेकडाउन
हो गया।
गलहरी चढ़ने म ब त कुशल थी, परंतु उड़ने क क ा म वह कुं ठत हो गई, जहाँ उसका श क
उसे पेड़ के ऊपर से नीचे आने के बजाय ज़मीन से ऊपर उड़ने के लये कहता था। यादा थकान
क वजह से उसे मांसपेशी के तनाव और दद क बीमारी (charley horses) हो गई।
प रणाम व प उसे चढ़ने म सी ेड और दौड़ने म डी ेड मला।
बाज एक बगड़ा आ ब चा था। उसे गंभीरता से अनुशा सत करना पड़ता था। चढ़ने क क ा म
वह पेड़ क सबसे ऊपरी शाखा पर सबसे पहले प ँच जाता था, परंतु वहाँ प ँचने के लये वह
अपने तरीक़ का इ तेमाल करने पर ज़ोर दे ता था।
जब वा षक परी ा ई, तो एक असामा य ईल का औसत सबसे अ छा रहा और उसे सव े
व ाथ के प म चुना गया, य क वह ब त अ छ तरह तैर सकती थी, थोड़ा-ब त दौड़ सकती
थी, चढ़ सकती थी और उड़ भी सकती थी।
झुँड म बल बनाकर रहने वाली ज़मीनी गलह रयाँ (prairie dogs) उस कूल से बाहर रह और
उ ह ने टै स का वरोध कया, य क कूल ने पाठ् य म म खुदाई करने या बल बनाने को
शा मल नह कया था। उ ह ने अपने ब च को ब जू के यहाँ श ण के लये भेजा और बाद म
ाउंडहॉ स तथा गोफ़स के साथ मलकर एक सफल ाइवेट कूल शु कया।

शक् त े वश्लेषण (Force Field Analysis)


कसी पर पर- नभर थ त म सनज उन नकारा मक शक् तय से नबटने म वशेष प से शक् तशाली है,
जो वकास और प रवतन के वरोध म काम करती ह।
समाज व ानी कट ले वन ने “शक् त े वश्लेषण” मॉडल बनाकर यह बताया क दशन या थ त का
कोई भी व मान तर ऊपर उठाने वाली ेरक शक् तय और इसे हतो सा हत करने वाली अवरोधी शक् तय के
संतुलन क अव था है।
ेरक शक् तयाँ आम तौर पर सकारा मक, ता कक, सचेतन और आ थक होती ह। इसके वपरीत, अवरोधी
शक् तयाँ अ सर नकारा मक, भावना मक, अता कक, अचेतन और सामा जक/मनोवै ा नक होती ह। दोन ही
शक् तयाँ ब त वा त वक होती ह और प रवतन का सामना करते समय दोन पर ही वचार कया जाना चा हये।
उदाहरण के लये, आपके प रवार म एक नश् चत “माहौल” है। प रवार म सकारा मक या नकारा मक
वहार का एक नश् चत तर है। पा रवा रक सद य म अपनी चता या भावना को क्त करने म सुर त
या असुर त महसूस करने का और स मान या अस मान का माहौल है।
हो सकता है आप इस तर और माहौल को सचमुच बदलना चाहते ह । हो सकता है आप ऐसा माहौल बनाना
चाहते ह , जो अ धक सकारा मक, अ धक आदरपूण, अ धक खुला और अ धक वश्वासपूण हो। ऐसा करने के
लये आपके ता कक कारण वे ेरक शक् तयाँ ह, जो उस तर को ऊपर उठाने के लये काय करती ह।
परंतु उन ेरक शक् तय को बढ़ाना ही पया त नह है। अवरोधी शक् तयाँ आपके यास का वरोध करगी -
जैसे प रवार के ब च के बीच तयो गता क भावना, आपके और आपके जीवनसाथी के पुराने घरेलू जीवन क
अलग-अलग टं ग, प रवार म वक सत हो चुक आदत, नौकरी या आपके समय व ऊजा पर अ य माँग आ द।
ेरक शक् तय को बढ़ाने से प रणाम मल सकते ह - परंतु सफ़ कुछ समय तक। जब तक अवरोधी
शक् तयाँ वहाँ रहगी, यह काम लगातार यादा मु कल होता जाता है। यह कसी ंग को धकेलने क तरह है।
आप जतना यादा धकेलते ह, यह उतना ही यादा मु कल होता जाता है और फर ंग अचानक तेज़ी से पुराने
तर पर लौट आती है।
ऊपर और नीचे जाने क इस नरंतर उतार-चढ़ाव क या से आप कई यास करने के बाद यह महसूस
करने लगते ह क लोग “जैसे ह, वैसे ही रहगे” और “लोग को बदलना ब त मु कल है।”
परंतु जब आप सनज का योग करते ह, जब आप अवरोधी शक् तय पर सीधे काम करने म चौथी आदत
के उद्दे य, पाँचव आदत क यो यता और छठ आदत के वहार का योग करते ह, तो आप एक ऐसा माहौल
बना दे ते ह, जसम इन शक् तय के बारे म बात करना सुर त होता है। आप उ ह बाहर नकालते ह, उ ह ढ ला
करते ह और नई अंत य का सृजन करते ह, जो वा तव म उन अवरोधी शक् तय को ेरक शक् तय म
पांत रत कर दे ती ह। आप लोग को सम या म शा मल कर लेते ह, इसम पूरी तरह त लीन कर लेते ह, जससे
उ ह यह लगता है क यह उनक सम या है और वे समाधान का एक मह वपूण ह सा बन जाते ह।
प रणाम व प नये और साझे ल य उ पन्न होते ह। यह पूरा यास ऊपर क तरफ़ उठाता है। यह अ सर
ऐसे तरीक़ से होता है, जनक कसी ने क पना भी नह क थी। और इसम न हत रोमांच से एक नई सं कृ त पैदा
होती है। इसम शा मल लोग एक- सरे क मानवीयता क डोर से बँध जाते ह और नवीन सोच, नये रचना मक
वक प तथा अवसर ारा सश बनते ह।
म कई बार ऐसे लोग के बीच सुलह-चचा म शा मल रहा ,ँ जो एक- सरे से इतने नाराज़ थे क उ ह ने
अपने प को मज़बूत करने के लये वक ल क सेवाय ले रखी थ । इससे सम या और बढ़ गई, य क कानूनी
या क वजह से पार प रक सं ेषण और कम हो गया। परंतु वश्वास का तर इतना कम था क दोन ही प
महसूस करते थे क उनके पास अदालत म जाने के अलावा कोई अ य वक प था ही नह ।
मने पूछा, “ या आप जीत/जीत के समाधान म च रखते ह, जसके बारे म दोन प वा तव म अ छा
महसूस कर?”
त या आम तौर पर सकारा मक होती थी, परंतु यादातर लोग को वा तव म यह संभव नह लगता था।
“अगर म सरे प को तैयार कर सकूँ, तो या आप एक- सरे के साथ सं ेषण क या को सचमुच शु
करना चाहगे?”
एक बार फर जवाब “हाँ” होता था।
लगभग हर मामले म प रणाम च काने वाले रहे। जो सम याएँ कानूनी और मनोवै ा नक दाँवपच म महीन से
उलझी ई थ , वे कुछ घंट या दन म ही सुलझ ग । यादातर समाधान अदालत ारा कराये जाने वाले समझौते
के समाधान क तरह नह थे। वे सन ज टक समाधान थे, जो दोन ही प ारा सुझाये गये मूल समाधान से
बेहतर थे। और यादातर मामल म संबंध जारी रहे, हालाँ क शु आत म ऐसा लग रहा था क वश्वास क कमी
और संबंध म पड़ चुक गहरी दरार के कारण ये कभी नह सुधर सकते।

हमारे एक वकास काय म म एक ए ज़ी यू टव ने एक घटना बताई। एक नमाता पर उनके पुराने


औ ो गक ाहक ने काम पूरा न करने बाबत् अदालत म दावा कर दया। दोन ही प अपनी थ त को यायसंगत
मानते थे और एक- सरे को अनै तक व पूरी तरह अ वश्वसनीय समझते थे।
जब उ ह ने पाँचव आदत का अ यास शु कया, तो दो बात प । पहली बात, शु आती सं ेषण क
सम या के कारण ग़लतफ़हमी पैदा ई थी, जो बाद म आरोप और यारोप से बढ़ गई। सरी, दोन ही
शु आत म सद्भावना से काम कर रहे थे तथा मुकदमेबाज़ी के ख़च और झंझट को पसंद नह करते थे, परंतु दोन
को ही कोई और रा ता नह सूझ रहा था।
एक बार जब ये दोन बात प हो ग , तो चौथी, पाँचव और छठ आदत क भावना काम करने लगी,
सम या तेज़ी से सुलझ गई और संबंध आज भी अ छ तरह चल रहा है।

एक और प र थ त दे खये। एक दन सबेर-े सबेरे ही मेरे पास एक लड डेवलपर का फ़ोन आया, जो ता


से मदद क तलाश कर रहा था। बक उसक संप नीलाम करना चाहता था, य क वह मूलधन और याज क
क़ त समय पर नह चुका रहा था। डेवलपर ने बक पर मुकदमा दायर कर दया था, ता क यह या क सके।
उसे अपना काम पूरा करने और भूखंड का वकास करने तथा उ ह बेचने के लये अ त र कज़ क ज़ रत थी।
इसके बाद उसके पास इतना धन हो जाता क वह बक क रक़म चुका सकता था, परंतु बक ने साफ़ इंकार कर
दया क जब तक वह पुरानी क़ त को नह चुकायेगा, तब तक उसे और कज़ नह दया जा सकता। यह पूँजी क
कमी क मुग और अंडे वाली सम या थी।
इस बीच, ोजे ट अधूरा पड़ा था। सड़क खरपतवार से भरे खेत क तरह दखने लगी थ । जो गने-चुने घर
बन चुके थे, उनके मा लक ने जब अपनी जायदाद क क़ मत गरते दे ख , तो वे वरोध म खड़े हो गये। पूरा शहर
इस बात से परेशान था क “ ाइम लड” (बेहतरीन भू म) प रयोजना समय से पछड़ रही है और आँख का काँटा
बन रही है। बक और डेवलपर ने अदालती लड़ाई म लाख डॉलर ख़च कर दये थे और अगले कुछ महीन तक
अदालत म इस मामले क सुनवाई क तारीख़ नधा रत नह थी।
हताश होकर यह डेवलपर अ न छा से चौथी, पाँचव और छठ आदत के स ांत को आज़माने के लये
सहमत हो गया। उसने बक अ धका रय के साथ बैठक आयो जत क , जो उससे भी यादा अ न छु क थे।
बैठक सुबह आठ बजे बक के कॉ स म म शु ई। तनाव और अ वश्वास साफ़ नज़र आ रहा था। बक
के वक ल ने बक अ धका रय को कुछ भी न कहने क सलाह द थी। उ ह सफ़ सुनना था, बोलने क ज़ मेदारी
उसने ख़ुद सँभाल ली थी। वह ऐसा कुछ नह होने दे ना चाहता था, जससे अदालत म बक क थ त पर असर
पड़े।
शु म डेढ़ घंटे तक मने उन लोग को चौथी, पाँचव और छठ आदत के बारे म सखाया। 9.30 बजे म
लैकबोड के पास गया और हमारी पूव समझ के आधार पर बक क चताय लख । शु आत म बक अ धका रय
ने कुछ नह कहा, परंतु जब हमने जीत/जीत क मान सकता के अपने इराद को बताया और उ ह पहले समझने
क को शश क , तो वे थ त को प करने के लये धीरे-धीरे खुलने लगे।
जब उ ह लगा क उ ह समझ लया गया है, तो पूरा माहौल बदल गया। ग त तथा रोमांच का एहसास नज़र
आने लगा, य क अब यह साफ़ दखने लगा था क सम या शां तपूण ढं ग से सुलझ सकती है। वक ल क
आप य के बावज़ूद बक अ धका रय ने अपनी थ त को और खुलकर बताया। उ ह ने हम अपनी क् तगत
चता के बारे म भी बताया, “जब हम यहाँ से बाहर नकलगे, तो बक का े सडट हमसे पहला सवाल यही
करेगा, ‘ या हम हमारा पैसा मल गया?’ इसका हम या जवाब दगे?”
11 बज गये थे। बक अ धका रय को अब भी यह वश्वास था क उनक थ त सही है, परंतु उ ह अब यह
भी महसूस हो रहा था क उनक थ त को समझ लया गया था, इस लये अब न तो वे र ा मक थे और न ही वे
अनाव यक ह त ेप कर रहे थे। इस समय तक वे इतने पया त प से खुल चुके थे क वे डेवलपर क चता को
सुन सक, ज ह हमने लैकबोड के सरे ह से पर लख दया। इससे अ धक गहरी पार प रक समझ उ पन्न ई।
और इस बारे म सामू हक जाग कता भी क कस तरह शु आती ख़राब सं ेषण ने ग़लतफ़ह मयाँ तथा
अवा त वक अपे ाय पैदा कर द थ और कस तरह जीत/जीत क भावना से कया गया सतत सं ेषण इन वकट
सम या को पैदा होने से रोक सकता था।
दोन ही प को द घकालीन और ती दद का पार प रक एहसास था, परंतु साथ म दोन को ही वा त वक
ग त का एहसास भी था, इस लये हर क् त खुलकर चचा करता रहा। दोपहर तक बैठक ख़ म होना थी, परंतु
दोन ही प सकारा मक, रचना मक तथा सन ज टक थे और आगे भी बात करना चाहते थे।
डेवलपर के पहले सुझाव को ही सबने जीत/जीत क शु आती नी त के प म दे खा। इस पर सनज का
योग कया गया और इसम सुधार कये गये। अंतत: दोपहर 12.45 पर डेवलपर और बक के दो अ धकारी इकट् ठे
एक योजना लेकर होम ओनस एसो सयेशन और शहर के सामने तुत करने गये। बाद म उ पन्न ई ज टलता
के बावज़ूद कानूनी यु ख़ म हो गया और नमाण प रयोजना सफलता से पूरी ई।

म यह सुझाव नह दे रहा ँ क लोग को कानूनी या का योग नह करना चा हये। कुछ थ तय म


यह अ नवाय हो जाता है। परंतु म इसे पहले उपाय के बजाय अं तम उपाय के प म दे खता ।ँ अगर इसका ब त
ज द योग कया जाता है, चाहे ऐसा सफ़ रोकथाम के लये ही य न हो, तो कई बार डर और कानूनी पैरेडाइम
बाद म ऐसे वचार तथा काय- याएँ उ पन्न कर दे ते ह, जो सन ज टक नह होत ।

पूरी कृ त सन ज टक है
प र थ त- व ान (ecology) मूल प से कृ त क सनज का वणन करता है - हर चीज़ सरी चीज़ से
संब है। रचना मक शक् तयाँ एक- सरे के संबंध म रहने पर अ धकतम होती ह, जस तरह सात आदत क
स ची शक् त एक- सरे के साथ संबंध म है, न क अकेली आदत के प म।
ह स का पार प रक संबंध प रवार या संगठन के भीतर सन ज टक सं कृ त बनाने क शक् त भी है।
जुड़ाव जतना वा त वक होगा, सम या के वश्लेषण और उ ह सुलझाने म भागीदारी जतनी ईमानदारी से और
लंबे समय तक होगी, हर एक क रचना मकता उतनी ही अ धक बढ़े गी और जो वे बनाते ह, उसके त उनक
तब ता भी उतनी ही बढ़े गी। मेरे वचार से यही बज़नेस के त जापानी कोण क शक् त का सार है,
जसने सारी नया के बाज़ार को बदल दया है।
सनज कारगर है। यह एक सही स ांत है। यह पहले क सभी आदत क सव च उपल ध है। यह
पर पर- नभर वा त वकता म भावका रता है - यह ट मवक है, ट म का नमाण है, सरे लोग के साथ एकता और
रचना मकता का वकास है।
हालाँ क आप कसी पर पर- नभर चचा या सन ज टक या म सर के पैरेडाइ स को नयं त नह कर
सकते, परंतु आपके भाव के वृ म ब त सी सनज होती है।
आपक ख़ुद क आंत रक सनज इस वृ के अंदर होती है। आप अपने वभाव के वश्लेषणा मक और
रचना मक दोन प का स मान कर सकते ह। आप उनक भन्नता को मह व दे सकते ह और रचना मकता
को े रत करने के लये उन भन्नता का योग कर सकते ह।
श ुतापूण माहौल म भी आप अपने भीतर सन ज टक हो सकते ह। आपको अपमान को क् तगत प
से लेने क ज़ रत नह है। आप नकारा मक ऊजा को लाँघ सकते ह। आप सर म अ छाई क तलाश कर सकते
ह, और चाहे यह कतनी ही भन्न य न हो, आप इस अ छाई का योग अपने कोण को सुधारने और ापक
बनाने के लये कर सकते ह।
आप पर पर- नभर थ तय म साहस का अ यास कर सकते ह। आप खुल सकते ह; आप साहस के साथ
अपने वचार, भावनाय और अनुभव इस तरीक़े से खुलकर क्त कर सकते ह, ता क सरे भी खुलने के लये
ो सा हत ह ।
आप सर क भन्नता को मह व दे सकते ह। जब कोई आपसे असहमत हो, तो आप कह सकते ह,
“अ छा! आप इसे अलग तरह से दे खते ह।” आपको उनके साथ सहमत होने क ज़ रत नह है; बहरहाल आप
उ ह समथन दे सकते ह और उ ह समझने क को शश कर सकते ह।
अगर आपको सफ़ दो ही वक प दखाई दे ते ह - एक खु़द का वक प और सरा “ग़लत” वक प - तो
आप सन ज टक तीसरे वक प क तलाश कर सकते ह। लगभग हमेशा तीसरा वक प होता है और अगर आप
जीत/जीत के पैरेडाइम से काम करते ह तथा सचमुच समझने क को शश करते ह, तो आम तौर पर आप ऐसा
समाधान ढूँ ढ़ सकते ह, जो हर संबं धत क् त के लये बेहतर होगा।

अमल म लाने के सुझाव:

1. कसी ऐसे क् त के बारे म सोच, जो चीज़ को आम तौर पर आपसे अलग तरह से दे खता हो। उन तरीक़
पर वचार कर, जनम उन भन्नता का योग आप तीसरे वक प के समाधान क सी ढ़य के प म कर
सकते ह । शायद आप उन भन्न वचार को मह व दे ते ए कसी वतमान प रयोजना या सम या पर उसके
वचार जानना चाह सकते ह।
2. ऐसे लोग क सूची बनाय, जनसे आपको चढ़ होती है। या वे भन्न वचार का त न ध व करते ह?
अगर आपम अ धक आंत रक सुर ा हो और अगर आप भन्नता को मह व द, तो या उनसे सनज
उ पन्न हो सकती है?
3. कसी ऐसी थ त को पहचान, जसम आप अ धक ट मवक और सनज चाहते ह । सनज बढ़ाने के लये
कन प र थ तय क ज़ रत होगी? आप इन प र थ तय को न मत करने के लये या कर सकते ह?
4. अगली बार जब आपक कसी से मत भन्नता या टकराव हो, तो उस क् त क थ त म न हत चता
को समझने क को शश कर। उन चता पर रचना मक और पर पर लाभकारी तरीक़े से त या कर।
खंड चार
नवीनीकरण
सातव आदत
आरी क धार तेज़ कर संतु लत आ म-
नवीनीकरण के स ांत

कभी-कभी जब म वचार करता ँ


क छोट -छोट चीज़ के कतने ज़बद त प रणाम होते ह…
तो म यह सोचने के लये े रत हो जाता …

क कोई भी चीज़ छोट नह होती।
● ूस बाटन

मा नआपली पूजयेछतेआप जंगल म कसी आदमी के पास प ँचते ह, जो तेज़ी से पेड़ काटने म जुटा है।
ह, “आप या कर रहे ह?”
वह अधीरता से जवाब दे ता है, “आपको दख नह रहा? म आरी से यह पेड़ काट रहा ँ।”
आप आ य से कहते ह, “आप थके दख रहे ह! आप यह काम कब से कर रहे ह?”
वह पलटकर जवाब दे ता है, “पाँच घंटे से यादा हो चुके ह और म बुरी तरह थक गया !ँ बड़ी मेहनत का
काम है।”
आप सुझाव दे ते ह, “आप ऐसा य नह करते क कुछ मनट आराम कर ल और अपनी आरी क धार तेज़
कर ल? मुझे वश्वास है क इसके बाद यह यादा तेज़ी से काम करेगी।”
“मेरे पास आरी क धार तेज़ करने का समय नह है,” वह आदमी ज़ोर दे कर कहता है। “म पेड़ काटने म
ब त यादा त ँ!”

सातव आदत आरी क धार तेज़ करने का समय नकालना है। यह सात आदत के पैरेडाइम च क बाक़
सभी आदत को घेरे रहती है, य क यही आदत बाक़ सभी आदत को संभव बनाती है।

नवीनीकरण के चार आयाम


सातव आदत गत पीसी है। यह आपक सबसे बड़ी संप - यानी वयं - को सुर त रखना और
वक सत करना है। यह आपके वभाव के चार आयाम - शारी रक, आ या मक, मान सक और सामा जक/
भावना मक - का नवीनीकरण करती है।
हालाँ क अलग-अलग श द का योग कया जाता है, परंतु जीवन के अ धकांश दशन य या अ य
प से इन चार आयाम से संबं धत होते ह। दाश नक हब शेफ़ड व थ संतु लत जीवन का वणन चार जीवनमू य
के इद- गद करते ह: कोण (आ या मक), वाय ता (मान सक), संब ता (सामा जक), और श
(शारी रक)। जॉज शीहान चार भू मका का वणन करते ह: अ छा पशु होना (शारी रक), अ छा श पकार होना
(मान सक), अ छा म होना (सामा जक) और संत होना (आ या मक)। सश ेरणा और संगठन स ांत इन
चार आयाम या ेरणा म न हत ह - आ थक (शारी रक); लोग के साथ कैसा वहार कया जाता है
(सामा जक); लोग को कैसे वक सत और यु कया जाता है (मान सक); और संगठन ारा क जानी वाली
सेवा, काम या योगदान (आ या मक)।
“आरी क धार तेज़ कर” का मूल अथ है चार ेरणा को करना। इसका अथ है हमारे वभाव के
चार आयाम का समझदारीपूण और संतु लत तरीक़ से नय मत व नरंतर अ यास करना।
ऐसा करने के लये हम ोए टव बनना पड़ेगा। आरी क धार तेज़ करना न त प से वा ै ट II क
ग त व ध है, इस लये हम वा ै ट II पर काम करना होगा। चूँ क वा ै ट I अ याव यक होता है, इस लये यह हम
पर काम करता है। यह हम पर लगातार दबाव बनाये रखता है। गत पीसी पर तब तक दबाव डालना पड़ता है,
जब तक क यह हमारा सरा वभाव न बन जाये, जब तक क यह एक तरह क व थ लत न बन जाये। चूँ क यह
हमारे भाव के वृ के क म है, इस लये इसे कोई सरा हमारे लये नह कर सकता। हम इसे अपने लये ख़ुद
करना पड़ेगा।
यह हमारे ारा जीवन म कया जाने वाला सबसे श शाली नवेश है - ख़ुद म नवेश करना यानी अपने पास
के उस एकमा साधन म नवेश करना, जसके ारा हम जीवन जीना है और योगदान दे ना है। हम अपने काय
(performance) के साधन ह। और भावकारी बनने के लये हम इस बात के मह व को पहचानने क ज़ रत है
क हम सभी चार तरीक़ से आरी क धार तेज़ करने के लये नय मत प से समय नकालना है।

शारी रक आयाम
शारी रक या भौ तक आयाम म हमारे भौ तक शरीर क भावकारी दे खभाल करना शा मल है - सही तरह
का भोजन करना, पया त आराम और व ाम करना तथा नय मत प से ायाम करना।
ायाम वा ै ट II क उ च भाव वाली ग त व धय (high leverage activities) म से एक है, जसे
हमम से यादातर लोग नय मत प से इस लये नह करते, य क यह अ याव यक नह है। और चूँ क हम इसे
नह करते, इस लये दे र-सबेर हम ख़ुद को वा ै ट I म पाते ह, य क हमारी उपे ा के वाभा वक प रणाम के
प म हमारे सामने वा य संबंधी सम याएँ और संकट आ जाते ह।
हमम से यादातर लोग सोचते ह क हमारे पास ायाम के लये पया त समय नह है। कतना वकृत
पैरेडाइम है! दरअसल हमारे पास ायाम छोड़ने का समय नह है। हम हर स ताह तीन से छह घंटे के बारे म बात
कर रहे ह - यानी हर दन या सरे दन म कम से कम तीस मनट। स ताह के बाक़ 162-165 घंट पर इसके
लाभकारी भाव को दे खते ए शायद यह ब त अ धक समय नह है।
और इसे करने के लये आपको कसी वशेष उपकरण क आव यकता भी नह है। अगर आप उपकरण का
योग करने के लये कसी जम या पा जाना चाहते ह या कसी यो यता संबंधी खेल जैसे टे नस या रैकेटबॉल का
आनंद लेना चाहते ह, तो यह एक अ त र अवसर है। परंतु आरी क धार तेज़ करने के लये यह आव यक नह
है।
अ छा ायाम काय म वह है, जसे आप अपने घर पर ही कर सकते ह और जो इन तीन े म आपके
शरीर का वकास करे: सहनश , लचीलापन और श ।

सहनश एरो बक ायाम से मलती है, दय क आपके शरीर म र पंप करने क मता से मलती है।
हालाँ क दय एक मांसपेशी है, परंतु इसका सीधे ायाम नह कया जा सकता। इसका ायाम सफ़ बड़े
मांसपेशी-समूह के मा यम से कया जा सकता है, ख़ासकर पैर क मांसपे शय के मा यम से। यही कारण है क
तेज़ चलने, दौड़ने, साइकल चलाने, तैरने, ॉस-कं क इंग और जॉ गग करने जैसे ायाम इतने लाभकारी ह।
आप वा य क से यूनतम व थ ह, अगर आप अपनी दयग त को कम से कम सौ धड़कन त
मनट तक बढ़ा सक और उसे तीस मनट तक उसी तर पर रख सक।
आदश प से आपको अपनी दय दर (heart rate) को अपनी अ धकतम प स रेट के कम से कम साठ
तशत तक बढ़ाने क को शश करना चा हये। यह वह ती तम ग त है, जस पर आपका दय धड़क सकता है
और आपके शरीर म र पंप कर सकता है। आपक अ धकतम दय दर आम तौर पर 220 म से आपक उ को
घटाने से पता चलती है। अगर आप 40 साल के ह, तो आपको ायाम म 108 दय दर का ल य रखना चा हये
(220-40 = 180 × .6 = 108)। “ श ण भाव” आम तौर पर आपक गत अ धकतम दर के 72 से 87
तशत के बीच माना जाता है।

लचीलापन ख चने से आता है। अ धकांश वशेष एरो बक ायाम से पहले वामअप करने और ायाम के
बाद शरीर को ख चने व झुकाने संबंधी ायाम (cooling down/stretching) का सुझाव दे ते ह। एरो बक से
पहले वामअप करने से मांसपे शयाँ अ धक ती ायाम करने के लये ढ ली और गम होती ह। एरो बक के बाद म
कया गया ायाम लै टक ए सड को र करने म मदद करता है, ता क आप स ती या खचाव महसूस न कर।

श मांसपेशीय तरोध के ायाम को करने से मलती है - जैसे पुश-अ स, पुल-अ स, सट-अ स तथा
वज़न उठाना। आप श बढ़ाने पर कतना ज़ोर द, यह आपक थ त पर नभर करता है। अगर आप शारी रक
म या खेलकूद क ग त व धय से जुड़े ह, तो बढ़ ई श आपक नपुणता को बढ़ायेगी। परंतु अगर आपका
काम मूलत: एक ही जगह बैठे रहने का है और आपक जीवनशैली म सफलता के लये ब त यादा श क
ज़ रत नह है, तो एरो बक और े चग ए सरसाइज़ के अलावा मांसपेशी के हलके ायाम पया त ह।

एक बार म जम म अपने एक दो त के साथ था, जसके पास ायाम शरीर व ान म पीएच. डी. क उपा ध
है। वह अपनी श के नमाण पर यान क त कर रहा था। उसने मुझसे कहा क म उसे बच ेस करते ए दे खूँ।
उसने कहा क जब सही समय आयेगा, तो वह मुझसे वज़न हटाने के लये कहेगा। फर उसने मुझे हदायत द ,
“परंतु जब तक म न क ,ँ तब तक वज़न मत हटाना।”
इस लये म उसे दे खता रहा, इंतज़ार करता रहा और वज़न हटाने के लये ख़ुद को तैयार करता रहा। वज़न
ऊपर और नीचे गया, ऊपर-नीचे जाता रहा और म दे ख सकता था क यह मु कल होता जा रहा था। परंतु वह
वज़न उठाता रहा। जब वह उसे ऊपर उठाना शु करता था, तो म सोचता था, “वह इसे नह उठा पायेगा।” परंतु
वह उठा लेता था। फर वह धीरे से इसे वापस नीचे लाता था और फर ऊपर उठाने लगता था। ऊपर और नीचे,
ऊपर और नीचे।
आ ख़रकार जब मने उसके चेहरे क तरफ़ दे खा, जो को शश क वजह से खचा जा रहा था और र
वा हकाय लगभग चमड़ी से बाहर नकली पड़ रही थ , तो मने सोचा, “अब वज़न उसके सीने पर गरने वाला है
और यह उसके सीने को चकनाचूर कर दे गा। शायद मुझे उसका वज़न हटा लेना चा हये। शायद उसका नयं ण
ख़ म हो चुका है और उसे यह मालूम ही नह है क वह या कर रहा है।” परंतु वह इसे सुर त ढं ग से नीचे ले
आया। फर उसने बारा वज़न ऊपर उठा लया। मुझे यक़ न नह हो रहा था।
जब उसने आ ख़रकार मुझसे वज़न हटाने के लये कहा, तो मने पूछा, “आपने इतनी दे र तक इंतज़ार य
कया?”
उसने जवाब दया, “ ट फ़न, ायाम के लगभग सभी लाभ अंत म मलते ह। म श बनाने क को शश कर
रहा ।ँ और यह तब तक नह होता जब तक क मांसपेशी का तंतु फट न जाये और नस के तंतु म पीड़ा न होने
लगे। फर कृ त ज़ रत से यादा भरपाई करती है और 48 घंटे के भीतर वह तंतु पहले से यादा मज़बूत हो
जाता है।”
म उसक बात के मह व को समझ सकता था। यही स ांत भावना मक मांसपे शय के साथ भी काम करता
है, जैसे धैय। जब आप अपनी पछली सीमा से आगे जाकर धैय का अ यास करते ह, तो भावना मक तंतु टू ट
जाता है, कृ त ज़ रत से यादा भरपाई करती है और अगली बार तंतु पहले से यादा मज़बूत बन जाता है।

मेरा म मांसपे शय को श शाली बनाना चाहता था। और उसे मालूम था क यह कैसे कया जाता है।
बहरहाल, भावकारी बनने के लये हम सबको इस तरह श वक सत करने क ज़ रत नह है। “दद नह , तो
लाभ नह ” कुछ प र थ तय म उ चत हो सकता है, परंतु यह भावकारी ायाम काय म का सार नह है।
शारी रक आयाम के नवीनीकरण का सार आरी क धार तेज़ करना है यानी नय मत प से अपने शरीर का
इस तरह से ायाम करना है, जससे हमारी काम करने, ढलने और आनंद लेने क मता क़ायम रहे और बढ़े ।
ायाम का काय म वक सत करते समय हम बु मानी क ज़ रत भी है। लोग म शु आत म ज़ रत से
यादा ायाम करने क वृ होती है, ख़ासकर तब जब आपने पहले बलकुल भी ायाम न कया हो। और
इससे अनाव यक दद, चोट, यहाँ तक क थायी नुक़सान भी हो सकता है। इस लये धीमी शु आत करना सव म
नी त है। कसी भी तरह का ायाम काय म नवीनतम शोध प रणाम , आपके डॉ टर क सलाह और आपक
अपनी आ म-जाग कता के अनुकूल होना चा हये।
अगर आप ायाम नह कर रहे ह, तो ढलान क आरामदे ह दशा म जा रहा आपका शरीर न संदेह इस
प रवतन का वरोध करेगा। आप शु म इसे पसंद नह करगे। हो सकता है आप इससे नफ़रत भी कर। परंतु
ोए टव बन। इसे हर हाल म कर। जब आपने दौड़ने का काय म बनाया हो, भले ही उस दन सुबह पानी गर
रहा हो, फर भी इसे अव य कर। “अ छा! बा रश हो रही है! मुझे अपने शरीर के साथ-साथ इ छाश का
वकास करने का भी अवसर मला है!”
आप वक फ़ स का योग नह कर रहे ह; आप वा ै ट II क एक ऐसी ग त व ध का योग कर रहे ह,
जो चम का रक द घकालीन प रणाम दे गी। लगातार ायाम करने वाले कसी भी से पूछकर दे ख ल। जैस-े
जैसे आपका दय और ऑ सीजन का शोधन तं अ धक कुशल बनता जायेगा, आपक आराम करने वाली प स
रेट धीरे-धीरे कम होती जायेगी। जैसे-जैसे आप अपने शरीर क मेहनत करने क मता को बढ़ायगे, सामा य
ग त व धय को करना आपके लये अ धक आरामदे ह और सुखद बन जायेगा। शाम को आपम अ धक ऊजा होगी।
इसके अलावा, आपको उस थकान से भी मु मलेगी, जो आपको अतीत म ायाम करने के लये “अ धक
थका” बना दे ती थी। इसक जगह अब आपम ऊजा का संचार होगा, जो आपके हर काम म फू त दान करेगी।
ायाम से आपको संभवत: सबसे बड़ा लाभ यह मलेगा क आपक पहली आदत क ोए ट वट क
मांसपे शय का वकास होगा। जो श याँ आपको ायाम करने से र रखती ह, जब आप उन पर त या
करने के बजाय शारी रक वा य के जीवनमू य पर आधा रत ायाम करते ह, तो इससे आपके आ मस मान,
आपके आ म वश्वास, आपक अखंडता और अपने बारे म आपके पैरेडाइम पर गहरा भाव पड़ेगा।

आ या मक आयाम
आ या मक आयाम का नवीनीकरण आपके जीवन को लीडर शप दान करता है। इसका सरी आदत से
गहरा संबंध है।
आ या मक आयाम आपका क है, आपका दय है, जीवनमू य के तं के त आपक तब ता है। यह
जीवन का नहायत ही नजी े है और सवा धक मह वपूण है। यह उन ोत से श पाता है, जो आपको े रत
करते ह, ऊपर उठाते ह और पूरी मानवता क शाश्वत स चाइय से जोड़ते ह। और लोग इसे ब त अलग-अलग
तरह से करते ह।
मुझे धम ंथ पर नय मत ाथनापूण साधना से नवीनीकरण ा त होता है, य क वे मेरे जीवनमू य के तं
का त न ध व करते ह। जब म धम ंथ पढ़ता और साधना करता ,ँ तो मुझे महसूस होता है क मुझम नवीन
ऊजा और श आ गई है, सेवा पर मेरा यान क त हो गया है और म उसके लये तब ।ँ
महान सा ह य या महान संगीत म डू बना कई लोग को इसी तरह का भावना मक नवीनीकरण दान कर
सकता है। कुछ अ य लोग को यह कृ त के साथ सं ेषण म मलता है। जो लोग ख़ुद को कृ त म डु बो लेते ह,
कृ त उ ह आशीवाद म अपने वरदान दे ती है। जब आप शहर के शोर और होह ले को पीछे छोड़कर ख़ुद को
कृ त क लय और सुरताल म डु बा दे ते ह, तो आप नवीन बनकर लौटते ह। कुछ समय तक आप ब त शांत और
थर रहते ह, जब तक क बाहर का शोर और होह ला आपक आंत रक शां त के एहसास का धीरे-धीरे
अ त मण नह करने लगता।

आथर गॉडन अपनी छोट कहानी “द टन ऑफ़ द टाइड” म अपने आ या मक नवीनीकरण क


आ यजनक अंतरंग कहानी बताते ह। यह उनके जीवन के उस दौर के बारे म है, जब उ ह ने यह महसूस करना
शु कया क हर चीज़ नीरस और उबाऊ हो गई थी। उनका उ साह कम हो गया था। उनके लेखन के यास
सफल नह हो रहे थे। और थ त दनो दन बदतर होती जा रही थी।
आ ख़रकार उ ह ने एक डॉ टर क मदद लेने का फ़ैसला कया। शारी रक प से कोई गड़बड़ी नह मलने
पर डॉ टर ने उनसे पूछा क या वे एक दन के लये उसके नदश पर चल सकगे।
जब गॉडन ने इसका वचन दया, तो डॉ टर ने उनसे कहा क वे अगला दन ऐसी जगह पर बताय, जहाँ वे
अपने बचपन म सबसे सुखी थे। डॉ टर ने कहा क वे भोजन कर सकते ह, परंतु उ ह कसी से बातचीत नह करना
है, पढ़ना, लखना या रे डयो सुनने का काम नह करना है। फर डॉ टर ने चार पच लखे और कहा क वे उ ह
एक-एक करके नौ, बारह, तीन और छह बजे खोल।
गॉडन ने पूछा, “ या आप गंभीर ह?”
“जब आपको मेरा बल मलेगा, तो आपको नह लगेगा क म मज़ाक़ कर रहा था!” जवाब मला।
इस लये अगली सुबह गॉडन समु कनारे गये। जब उ ह ने पहला पचा खोला, तो उस पर लखा था, “ यान
से सुनो।” उ ह ने सोचा डॉ टर पागल हो गया है। वे तीन घंटे तक कैसे सुन सकते थे? परंतु उ ह ने डॉ टर के
नदश का पालन करने का वचन दया था, इस लये उ ह ने सुना। उ ह ने समु और प य क सामा य आवाज़
सुन । कुछ समय बाद उ ह कुछ और आवाज़ सुनाई द , जो पहले इतनी प नह थ । जब उ ह ने सुना, तो वे उन
सीख के बारे म सोचने लगे, जो समु ने उ ह बचपन म द थ - धैय, स मान, यह जाग कता क चीज़ पर पर-
नभर ह। वे आवाज़ - और ख़ामोशी - को सुनने लगे और उ ह ने बढ़ती ई शां त महसूस क ।
दोपहर को उ ह ने सरा पचा खोला। उस पर लखा था “पीछे प ँचने क को शश करो।” उ ह ने सोचा,
“ कस चीज़ तक पीछे प ँचने क को शश करो?” शायद बचपन तक, शायद सुखद समय क याद तक। उ ह ने
अपने बचपन के बारे म सोचा, ख़ुशी के ब त से छोटे -छोटे पल के बारे म सोचा। उ ह ने उन पल को अ छ तरह
याद करने क को शश क । और याद करने क इस या म उ ह अपने भीतर उ साह बढ़ता महसूस आ।
तीन बजे उ ह ने तीसरा पचा खोला। अब तक के काम आसान थे, परंतु यह भ था। इस पर लखा था,
“अपने उद्दे य क जाँच करो।” पहले तो वे र ा मक मु ा म आ गये। उ ह ने उन चीज़ के बारे म सोचा, ज ह वे
चाहते थे - सफलता, त ा, सुर ा - और उ ह ने उन सबको यायसंगत ठहराया। परंतु फर उनके मन म यह
वचार आया क ये उद्दे य पया त अ छे नह थे और शायद उ ह म उनक न य थ त का जवाब न हत था।
उ ह ने अपने उद्दे य पर गहराई से वचार कया। उ ह ने अतीत क ख़ुशी के बारे म सोचा। और
आ ख़रकार, उ ह जवाब मल गया।
वे लखते ह, “ न तता क एक क ध म मने दे खा क अगर कसी के उद्दे य ग़लत ह, तो कुछ भी
सही नह हो सकता। इससे कोई फ़क़ नह पड़ता क आप डा कये ह, नाई ह, बीमा एजट ह या गृ हणी ह - आप
चाहे कुछ भी ह । जब तक आप महसूस करते ह क आप सर क सेवा कर रहे ह, तब तक आप काम को अ छ
तरह करते ह। जब आप सफ़ अपनी मदद करने के बारे म च तत होते ह, तो आप काम को कम अ छ तरह करते
ह - यह नयम उतना ही अटल है जतना क गु वाकषण का नयम।”
जब छह बज गये, तो आ ख़री पच पर लखे नदश का पालन करने म यादा समय नह लगा। इस पर
लखा था, “अपनी चता को रेत पर लख दो।” गॉडन घुटने के बल बैठे और टू टे ए शंख के टु कड़े से कुछ श द
लख दये। फर वे मुड़े और वहाँ से चल दये। उ ह ने पलटकर पीछे नह दे खा.; वे जानते थे क वार क लहर
आयेगी।

आ या मक नवीनीकरण म समय के नवेश क आव यकता होती है। परंतु यह वा ै ट II क एक ऐसी


ग त व ध है, जसक उपे ा करने के लये हमारे पास सचमुच समय नह है।
महान सुधारक मा टन लूथर ने कहा था, “मुझे आज ब त यादा काम करना है, इस लये मुझे अपने घुटन के
बल एक घंटे यादा बैठना होगा।” उनके लये ाथना कोई मशीनी कत नह थी, ब क उनक ऊजा को मु
करने वाली और कई गुना बढ़ाने वाली श का ोत थी।
सु र पूव के एक झेन (Zen) गु के चेहरे पर हमेशा गहरी शां त का भाव रहता था, भले ही उ ह कतने ही
दबाव का सामना करना पड़े। एक बार उनसे कसी ने पूछा, “आप इस शां त को कस तरह बनाये रखते ह?”
उ ह ने कहा, “म कभी अपनी साधना के थान को नह छोड़ता।” वे सुबह ज द साधना करते थे और उन ण
क शां त को पूरे दन के लये अपने दल और दमाग़ म बसा लेते थे।
संदेश यह है क जब हम अपने जीवन के लीडर शप क का योग आपू त के ोत के प म करने का समय
नकालते ह और यह वचार करते ह क जीवन का वा त वक अथ या है, तो यह एक छाते क तरह बाक़ हर
चीज़ को ढँ क लेता है। यह हमारा नवीनीकरण करता है, हम ताज़गी दे ता है, ख़ासकर तब जब हम इसका पुनः
संक प ल।
यही कारण है क म गत मशन टे टमट को ब त मह वपूण मानता ँ। अगर हम अपने क तथा ल य
क गहरी समझ है, तो हम इसक अ सर समी ा कर सकते ह और इसके त फर से संक पवान बन सकते ह।
अपने दै नक आ या मक नवीनीकरण म हम उन जीवनमू य के तालमेल म दै नक घटना का मान सक च ण
कर सकते ह और उ ह जी सकते ह।
धमगु डे वड ओ. मैके ने सखाया था, “जीवन के महानतम यु हर दन आ मा के ख़ामोश क म लड़े
जाते ह।” अगर आप वहाँ पर यु जीत लेते ह, अगर आप अंद नी संघष के मुद◌्द को सुलझा लेते ह, तो
आपको शां त का एहसास होता है, यह जानने का एहसास क आपका वा त वक उद्दे य या है। और आप पायगे
क सावज नक वजय वाभा वक प से अनुसरण करेगी, य क इसके बाद आपम सहयोगपूण सोचने, सर के
क याण व भलाई को बढ़ावा दे ने और सर क सफलता पर सचमुच ख़ुश होने क वृ होगी।

मान सक आयाम
हमारा अ धकांश मान सक वकास और अ ययन-अनुशासन औपचा रक श ा के मा यम से होता है। परंतु
जैसे ही हम कूल के बाहरी अनुशासन को छोड़ते ह, हमम से ब त से लोग अपने दमाग़ पर ज़ोर डालना बंद कर
दे ते ह। अब हम गंभीर अ ययन नह करते, हम अपने काय े के बाहर के नये वषय को वा त वक गहराई से नह
टटोलते, हम वश्लेषणा मक तरीक़े से नह सोचते, हम लखना छोड़ दे ते ह (कम से कम समालोचना मक या
कसी ऐसे तरीक़े से तो लखना छोड़ ही दे ते ह, जो वचारपूण, प और सारग भत भाषा म अ भ करने क
यो यता क जाँच करे)। इसके बजाय हम ट .वी. दे खने म अपना समय बबाद करते ह।
सव ण से पता चलता है क अ धकांश घर म टे ली वज़न एक स ताह म 35 से 45 घंटे तक चलता है। यह
अव ध अ धकांश लोग ारा अपनी नौक रय म लगाये जाने वाले समय के बराबर है। यह अव ध अ धकांश ब च
ारा अपने कूल-कॉलेज म लगाये जाने वाले समय से अ धक है। ट .वी. आज का सबसे श शाली सामा जक
भाव है। और जब हम इसे दे खते ह, तो हम इसके मा यम से सखाये जा रहे जीवनमू य के संपक म आते ह। वे
ब त सू म और अ य तरीक़ से हम पर श शाली भाव डाल सकते ह।
समझदारी से ट .वी. दे खने के लये तीसरी आदत के भावकारी आ म- बंधन क आव यकता होती है, जो
आपको भेद पहचानने म समथ बनाता है और ऐसे ानवधक, ेरक तथा मनोरंजक काय म चुनने क श दे ता
है, जो आपके उद्दे य और जीवनमू य को सव े ढं ग से और पूरा कर।
हमारे प रवार म हमने ट .वी. दे खना त स ताह सात घंटे तक सी मत कर रखा है, यानी हर दन औसतन
लगभग एक घंटा। हमने एक पा रवा रक बैठक क , जसम हमने इस बारे म चचा क और इस जानकारी पर वचार
कया क ट .वी. के कारण प रवार म या हो रहा है। हमने पाया क जब प रवार का कोई भी सद य र ा मक न
हो या बहस के मूड म न हो, तब प रवार म ऐसी चचा करने से सद य को यह एहसास होने लगता है क उ ह
ट .वी. सी रयल क लत लग चुक है, उ ह नभरता क बीमारी हो गई है या उ ह कसी ख़ास काय म क लगातार
ख़ुराक क आदत पड़ चुक है।
म कई उ च गुणव ा वाले शै णक व मनोरंजक काय म के लये टे ली वज़न का कृत ँ। ये हमारे जीवन
को समृ बना सकते ह और हमारे उद्दे य तथा ल य को पाने म साथक योगदान दे सकते ह। परंतु ऐसे ब त से
काय म ह, जो सफ़ हमारा समय बबाद करते ह और हमारे म त क को भी षत करते ह। और कई तो ऐसे ह,
जो हम पर नकारा मक भाव डालते ह, बशत हम उ ह ऐसा करने क अनुम त द। शरीर क तरह ही टे ली वज़न
भी एक अ छा सेवक, परंतु बुरा वामी है। हम तीसरी आदत का अ यास करने और भावकारी तरीक़े से ख़ुद का
बंधन करने क ज़ रत है, ता क अपने उद्दे य को पूरा करने के लये कसी संसाधन का अ धकतम योग कर
सक।
श ा - सतत श ा, म त क को नरंतर तेज़ करना और इसका लगातार व तार करना - अ यंत मह वपूण
मान सक नवीनीकरण है। कई बार इसम लास म के बाहरी अनुशासन या व धवत अ ययन के काय म शा मल
होते ह; परंतु अ सर ऐसा नह होता। ोए टव ख़ुद को श त करने के ब त से तरीक़े ढूँ ढ़ सकते ह।
अलग हटकर खड़े होने और ख़ुद के ो ाम क जाँच करने के लये म त क को श त करना अ यंत
मू यवान है। मेरे हसाब से उदार श ा क प रभाषा यह है - बड़े सवाल , उद्दे य और अ य पैरेडाइ स को सामने
रखकर जीवन के ो ा स क जाँच करने क यो यता। इस तरह क श ा के बगैर श ण दमाग़ को संकु चत
और कुंद कर दे ता है, जससे श ण म न हत मा यता क कभी जाँच न हो सके। इसी लये ापक अ ययन
करना और ख़ुद को महान म त क के संपक म लाना इतना मू यवान है।
अपने म त क का नय मत प से ान बढ़ाने और उसका व तार करने के लये अ छा सा ह य पढ़ने क
आदत डालने से बेहतर कोई तरीक़ा नह है। यह उ च भाव डालने वाली एक और वा ै ट II ग त व ध है। आप
वतमान या अतीत के सव े म त क के भीतर वेश कर सकते ह। म यह बल सुझाव दे ना चाहता ँ क आप
एक महीने म एक पु तक पढ़ने का ल य बनाकर शु आत कर, फर हर दो स ताह म एक पु तक, फर एक स ताह
म एक पु तक। “जो पढ़ता नह है, वह उस से बेहतर थ त म नह है जो पढ़ नह सकता।”
गुणव ापूण सा ह य यानी महान पु तक, हावड ला स स, आ मकथाय, नेशनल यो ा फ़क और अ य
काशन हमारी सां कृ तक जाग कता को ापक बनाते ह। व भ े का वतमान सा ह य हमारे पैरेडाइ स को
ापक बना सकता है और हमारी मान सक आरी क धार को तेज़ कर सकता है, ख़ासकर तब जब हम पढ़ते
समय पाँचव आदत का अ यास कर और पहले समझने क को शश कर। लेखक के पास कहने के लये या है,
अगर इसे सचमुच समझने से पहले ही हम शु आती मू यांकन कर लेते ह और ख़ुद क आ मकथा का योग करते
ह, तो हम पढ़ने के लाभ को सी मत कर दे ते ह।
लखना मान सक आरी क धार तेज़ करने का एक और सश तरीक़ा है। अपने वचार , अनुभव ,
अंत य और सीखे ए सबक़ का जनल बनाने या डायरी लखने से मान सक प ता, सट कता और संदभ म
बढ़ोतरी होती है। अ छे प लखना - घटना के उथले तर के बजाय वचार और भावना के अ धक गहरे तर
पर सं ेषण करना - प प से सोचने, सट कता से तक करने और भावकारी ढं ग से समझे जाने क हमारी
यो यता को बढ़ाता है।
व थत करना और योजना बनाना सरी व तीसरी आदत के साथ संब मान सक नवीनीकरण के अ य
प का त न ध व करता है। यह अंत को यान म रखकर शु करना है और उस अंत को हा सल करने के लये
व थत होने म मान सक प से समथ बनना है। यह अंत को दे खकर शु से ही अपने म त क क क पना
श और मान सक च बनाने क श का अ यास करना है। आप पूरी या ा को भले ही क़दम के प म न
दे ख, परंतु आपको कम से कम उ ह स ांत के प म तो दे खना होगा।
यह कहा जाता है क यु सेनाप त के तंबू म जीते जाते ह। पहले तीन आयाम - शारी रक, आ या मक और
मान सक - म आरी क धार तेज़ करना एक ऐसा अ यास है, जसे म “दै नक गत वजय” कहता ँ। और म
आपको सुझाव दे ता ँ क आप हर दन एक घंटे यह आसान अ यास कर - अपने पूरे जीवन म हर दन एक घंटे।
एक घंटा बताने का कोई और तरीक़ा नह है, जो मू य तथा प रणाम के संदभ म दै नक गत वजय से
तुलना कर सके। यह आपके हर नणय, हर संबंध को भा वत करेगा। यह दन के बाक़ हर घंटे क गुणव ा और
भावका रता को ब त बढ़ा दे गा, जसम आपक न द क गहराई तथा आराम शा मल है। यह द घकालीन
शारी रक, आ या मक और मान सक श को बढ़ायेगा, ता क आप जीवन क मु कल चुनौ तय का सामना कर
सक।

फ़ ल स ु स के श द म:
आने वाले वष म कसी दन आप कसी बड़े लोभन से कु ती लड़ रहे ह गे या अपने जीवन क
कसी भारी वप के तले काँप रहे ह गे। परंतु असली संघष यहाँ है, अभी… अभी यह फ़ैसला
कया जा रहा है क आपके सबसे बड़े ख या लोभन के दन आप बुरी तरह से हारगे या शानदार
तरीक़े से जीतगे। नरंतर और नय मत लंबी या के बना च र का नमाण नह कया जा
सकता।

सामा जक/भावना मक आयाम


शारी रक, आ या मक और मान सक आयाम क़रीबी प से पहली, सरी और तीसरी आदत से संबं धत ह
तथा गत जीवन , लीडर शप और मैनेजमट के स ांत पर क त ह। सरी ओर, सामा जक/भावना मक
आयाम चौथी, पाँचव और छठ आदत पर यानी पार प रक नेतृ व, परानुभू तपूण सं ेषण और रचना मक
सहयोग के स ांत पर क त ह।
हमारे जीवन के सामा जक और भावना मक आयाम पर पर जुड़े ह, य क हमारा भावना मक जीवन पूरी
तरह न भी हो, तो भी मूलत: सर के साथ हमारे संबंध म वक सत और कट होता है।
हमारे सामा जक/भावना मक आयाम के नवीनीकरण म उस तरह का समय नह लगता, जैसा सरे आयाम
म लगता है। हम सर के साथ अपने सामा य रोज़मरा के सामा य वहार म इसे कर सकते ह। परंतु इसम न त
प से अ यास क ज़ रत होती है। हम ख़ुद के साथ ज़बद ती करना पड़ सकती है, य क हमम से ब त से
लोग ने गत वजय के तर और सावज नक वजय क चौथी, पाँचव तथा छठ आदत क यो यता को
हा सल नह कया है, जनका हमारे समूचे वहार म वाभा वक प से उतरना आव यक है।
मान ली जये आप मेरी ज़दगी म एक मुख ह। आप मेरे बॉस, मेरे अधीन थ, मेरे सहकम , मेरे म ,
मेरे पड़ोसी, मेरे जीवनसाथी, मेरे ब चे या मेरे र के र तेदार हो सकते ह। आप कोई भी हो सकते ह, जसके साथ
म वहार करना चा ँ या जसके साथ वहार करना ज़ री हो। मान ली जये हम मलकर बात करने, काम करने,
कसी मु कल मामले पर चचा करने, कसी उद्दे य को हा सल करने या सम या सुलझाने क ज़ रत है। परंतु हम
चीज़ को अलग-अलग तरीक़ से दे खते ह। हम अलग-अलग च म से दे खते ह। आपको युवती दखती है और मुझे
बूढ़ म हला।
ऐसी थ त म म चौथी आदत का अ यास करता ँ। म आपके पास आकर कहता ँ, “म दे ख सकता ँ क
हम इस थ त को अलग-अलग कोण से दे ख रहे ह। य न हम इस बात पर सहमत हो जाय क हम तब तक
सं ेषण करगे, जब तक क हम कोई ऐसा समाधान न खोज ल, जसके बारे म हम दोन को अ छा लगे? या आप
ऐसा करना चाहगे?” यादातर लोग इस सवाल का जवाब हाँ म दगे।
फर म पाँचव आदत क ओर बढ़ता ँ। “पहले म आपक बात सुनता ँ।” जवाब दे ने के इरादे से सुनने के
बजाय म आपके पैरेडाइम को गहराई से और पूरी तरह से समझने के लये परानुभू तपूवक सुनता ।ँ जब म
आपका कोण उतनी ही अ छ तरह प कर सकता ,ँ जतना क आप कर सकते ह, तभी म आपको अपना
कोण बताने पर यान क त करता ँ, ता क आप भी मेरे कोण को अ छ तरह समझ सक।
दोन प को ही अ छा लगने वाला समाधान खोजने का संक प लेकर और एक- सरे के कोण क गहरी
समझ के साथ हम छठ आदत क ओर बढ़ते ह। हम अपनी मत भ ता को र करने और तीसरे वक प के
समाधान खोजने के लये मलकर काम करते ह, जो हम दोन को ही अपने शु आती ताव या सुझाव से बेहतर
लग सक।
चौथी, पाँचव और छठ आदत म सफलता मूलत: तक का मामला नह है; यह मूलत: भावना का मामला है।
यह हमारे गत सुर ा के एहसास से गहराई से जुड़ा आ है।
अगर हमारी गत सुर ा हमारे अंदर के ोत से आती है, तो हमम सावज नक वजय क आदत का
अ यास करने क श होती है। परंतु अगर हम बौ क प से समृ होने के बावज़ूद भावना मक प से
असुर त ह , तो जीवन के मह वपूण मुद◌्द पर हमसे भ सोच रखने वाले लोग के साथ चौथी, पाँचव और
छठ आदत का योग करना डराने वाला काम हो सकता है।
आंत रक सुर ा कहाँ से आती है? यह इससे नह आती क सरे लोग हमारे बारे म या सोचते ह या वे हमारे
साथ कैसा वहार करते ह। यह उन ट् स से नह आती, जो हम थमाई गई ह। यह हमारी प र थ तय या पद
से भी नह आती।
यह हमारे भीतर से आती है। यह हमारे अपने दल और दमाग़ क गहराई म थत ु टहीन पैरेडाइ स और
सही स ांत से आती है। यह अंदर और बाहर क एक पता से आती है, यह अखंडता का जीवन जीने से आती
है, जसम हमारी दै नक आदत हमारे गहनतम जीवनमू य को त ब बत करती ह।
मेरा वश्वास है क अखंडता का जीवन आ मस मान का सबसे मूल ोत है। म उस लोक य सफलता
सा ह य से सहमत नह ,ँ जो कहता है क आ मस मान मूलत: मान सकता या नज़ रये का मामला है और आप
ख़ुद को मनोवै ा नक प से ो सा हत करके मान सक शां त पा सकते ह।
मान सक शां त सफ़ तभी मलती है, जब आपका जीवन स चे स ांत और जीवनमू य के तालमेल म हो।
इसके अलावा कसी सरे तरीक़े से मान सक शां त नह पाई जा सकती।
आंत रक सुर ा भावकारी पर पर- नभर तरीक़े से जीने के प रणाम व प भी मलती है। इस ान से सुर ा
मलती है क जीत/जीत समाधान का अ त व होता है, क जीवन हमेशा “या तो यह/या फर वह” नह होता
और लगभग हमेशा पार प रक लाभ के तीसरे वक प मौज़ूद होते ह। इस ान से सुर ा मलती है क आप ख़ुद
के संदभ-मानदं ड का याग कये बना उससे बाहर क़दम रख सकते ह और सरे को सचमुच गहराई से
समझ सकते ह। सुर ा तब मलती है, जब आप ईमानदारी से, रचना मक तरीक़े से और सहयोगपूण ढं ग से सरे
लोग से वहार करते ह और इन पर पर- नभर आदत का वा तव म अनुभव करते ह।
आंत रक सुर ा सेवा से और साथक ढं ग से सर क मदद करने से भी मलती है। इसका एक मह वपूण
ोत आपका काम है, जब आप ख़ुद को योगदान दे ने वाले और रचना मक प म दे खते ह, सचमुच फ़क़ पैदा
करने वाले के प म। एक और ोत गु त सेवा है - कोई भी इसके बारे म नह जानता और यह ज़ री नह है क
भ व य म भी कसी को इसक जानकारी हो। हम इस बात क चता नह करते ह; हमारी मूल चता सर के
जीवन को सुखमय बनाना है। हमारा उद्दे य त ा ा त करना नह , ब क भाव डालना है।
व टर कल ने जीवन म ऐसे अथ और उद्दे य क आव यकता पर यान क त कया है, जो हमारे जीवन
से बड़े ह और हमारे भीतर क सव े ऊजा का दोहन कर। वग य डॉ. हस से ये तनाव पर अपने अ यंत
मह वपूण शोध म मूल प से कहते ह क एक लंबा, व थ तथा सुखी जीवन योगदान दे ने और साथक योजना
म भाग लेने का प रणाम होता है, जो गत प से रोमांचक ह , जो सर के जीवन म योगदान द तथा उ ह
लाभ प ँचाय। उनका नी तशा था, “अपने पड़ोसी का ेम अ जत करो।”
जॉज बनाड शॉ के श द म,
जीवन म स चा सुख यह है क आप ऐसे उद्दे य के लये यु ह , जसे आप श शाली मानते
ह। यही कृ त क स ची श है। श इस बात म नह है क आप ख और शकायत का
आवेशपूण वाथ ढे ला बन जाय और इस बात का रोना रोते रह क नया आपको सुखी बनाने के
लये एकजुट नह हो रही है। मेरा मानना है क मेरा जीवन पूरे समाज का है और जब तक म इसे
जी रहा ँ, तब तक यह मेरा सौभा य है क म समाज के लये जो भी कर सकता ँ, क ँ । म
चाहता ँ क मेरी मृ यु तक मेरा पूरा उपयोग हो। म जतनी कड़ी मेहनत करता ँ, म उतना ही
अ धक जीता ँ। म जीवन म उसी क ख़ा तर ख़ुशी मनाता ँ। जीवन मेरे लये कोई छोट सी
मोमब ी नह है। यह एक तरह क भ मशाल है, जसे म इस पल थामे ए ँ और भावी पी ढ़य
को स पने से पहले म इसे यथासंभव अ धक तेज़ी से चमकाना चाहता ।ँ

एन. ए डन टै नर ने कहा है, “सेवा वह कराया है, जो हम इस धरती पर जीने के सौभा य के लये चुकाते ह।”
और सेवा करने के ब त सारे तरीक़े ह। इससे कोई फ़क़ नह पड़ता क हम कसी चच या सेवा सं थान से संब ह
या नह , या हमारे पास साथक सेवा का अवसर उपल ध कराने वाला कोई काम है या नह । ऐसा कोई दन नह
होता, जसम हम बना शत ेम के डपॉ ज़ट करके कसी सरे क सेवा न कर सक।

सर क ट लखना
यादातर लोग सामा जक दपण का प रणाम ह। उनक ट उनके आसपास के लोग क राय, अनुभू तय
और पैरेडाइ स से लखी जाती है। पर पर- नभर के प म आप और म उस पैरेडाइम से आते ह, जसम यह
एहसास शा मल होता है क हम सामा जक दपण का ह सा ह।
हम सर को उनका प और अ वकृत त बब दे ने का चुनाव कर सकते ह। हम उनके ोए टव वभाव
को बढ़ावा दे सकते ह और उनके साथ ज़ मेदार य क तरह वहार कर सकते ह। उ ह स ांत-क त,
मू य-आधा रत, आ म नभर और मह वपूण य के प म ट करने म हम उनक मदद कर सकते ह। और
चुरता क मान सकता होने से हम यह एहसास होता है क सर को सकारा मक त बब दे ने से हमारा कुछ
घटता या बगड़ता नह है। इससे हमारी वृ ही होती है, य क यह अ य ोए टव लोग के साथ भावकारी
वहार के अवसर बढ़ाता है।
शायद कसी समय आपके जीवन म कसी ने आप म तब वश्वास दखाया हो, जब आपको वयं पर
वश्वास नह था। उ ह ने आपक ट लखी थी। या उससे आपके जीवन म फ़क़ पड़ा?
या होगा, अगर आप सरे लोग क सकारा मक ट लख और उ ह समथन द? जब वे सामा जक दपण
ारा नद शत होकर नीचे क तरफ़ के रा ते पर जा रहे ह , तो आप उ ह ऊपर क तरफ़ के रा ते पर जाने के लये
े रत करते ह, य क आपको उनम वश्वास होता है। आप उनक बात सुनते ह और उनके साथ परानुभू त दशाते
ह। आप उ ह ज़ मेदारी से मु नह करते, ब क आप उ ह ोए टव बनने के लये ो सा हत करते ह।

शायद आप मैन ऑफ़ ला मचा नाम क संगीत ना टका से प र चत ह गे। यह एक म ययुगीन सामंत


(knight) क सुंदर कहानी है, जो एक वे या के संपक म आता है। इस प तत म हला के जीवन म जतने भी लोग
ह, वे सब उसक वतमान जीवनशैली का समथन कर रहे ह।
परंतु यह क व सामंत उसम कुछ और दे खता है, जो ब त ख़ूबसूरत तथा यारा है। वह उसके गुण दे खता है
और ढ़ता से उ ह ो सा हत करता है - बार-बार। वह उसे एक नया नाम दे ता है - ड सी नया - नये पैरेडाइम से
जुड़ा आ एक नया नाम।
पहले तो वह इसे पूरी तरह अ वीकार करती है, य क उसक पुरानी ट् स ब त श शाली ह। वह उसे
कपोलक पना करने वाला सर फ़रा मान लेती है, जसका दमाग़ चल गया है। परंतु वह नरंतर यास करता है।
वह बना शत के ेम के लगातार डपॉ ज़ट करता है और धीरे-धीरे यह उस म हला क ट के भीतर वेश कर
जाता है। यह उसके स चे वभाव और उसक आ मा क गहराई म उतर जाता है और वह त या करना शु
करती है। धीरे-धीरे वह अपनी जीवनशैली बदलना शु करती है। वह इसम वश्वास करती है और अपने नये
पैरेडाइम के अनु प काम करने लगती है, जससे उसके जीवन के बाक़ लोग को शु आत म नराशा होती है।
बाद म जब वह फर से अपने पुराने पैरेडाइम म लौटने लगती है, तो वह सामंत उसे अपनी मृ युशैया पर
बुलाता है और एक सुंदर गीत गाता है, “द इ पॉ सबल ीम” (असंभव सपना)। वह उसक आँख म झाँकता है
और फुसफुसाता है, “यह कभी मत भूलना क तुम ड सी नया हो।”

अपने आप पूरी होने वाली भ व यवा णय के े म एक बेहतरीन घटना इं लड के एक क यूटर क है,


जसक घटनावश ग़लत ो ा मग हो गई थी। शै णक संदभ म इसने “बु मान” ब च को “मूख” और “मूख”
ब च को “बु मान” घो षत कर दया। और यह क यूटर रपोट ाथ मक मानदं ड बन गई, जसके आधार पर
श क ने वष के शु म अपने व ा थय के बारे म पैरेडाइ स बनाये।
जब शासन को साढ़े पाँच महीने बाद अंतत: ग़लती का पता चला, तो उ ह ने ब च का बारा टे ट लेने का
नणय लया। कसी को भी नह बताया गया क कस तरह क ग़लती ई थी। टे ट के प रणाम आ यजनक थे।
जो ब चे समझदार थे, परंतु ज ह “मूख” घो षत कर दया गया था, उनका आई. यू. कम हो गया था। उ ह
मान सक प से सी मत, असहयोगी और सीखने म अ म माना गया था। उनसे ऐसा ही वहार कया गया था।
ट चस के पैरेडाइ स अपने आप पूरी होने वाली भ व यवाणी बन गये थे।
परंतु जन “मूख” ब च को “बु मान” माना गया था, उनके अंक ब त बढ़ गये थे। श क ने उनसे ऐसा
वहार कया था, मानो वे ब त बु मान ह । इस लये श क क ऊजा, आशा, आशावाद और रोमांच ने ब च म
उच गत आशा तथा मह व का संचार कया।
इन श क से पूछा गया क स के शु आती स ताह म उ ह कैसा महसूस आ था। उ ह ने जवाब दया,
“ कसी कारणवश हमारे तरीक़े काम नह कर रहे थे। इस लये हम अपने तरीक़े बदलने पड़े।” उ ह यह बताया गया
था क ब चे बु मान थे। इस लये अगर सही प रणाम नह मल रहे थे, तो श क ने सोचा क श ा दे ने के
तरीक़ म गड़बड़ होना चा हये। इस लये उ ह ने अपने तरीक़ पर मेहनत क । वे ोए टव बने; उ ह ने अपने भाव
के वृ म काम कया। सीखने वाल क प दखने वाली अ मता और कुछ नह , ब क कमोबेश श क के
लचीलेपन का अभाव था।

हम सर को उनके बारे म कौन सा त बब दे ते ह? और वह त बब उनके जीवन को कतना भा वत


करता है? हमारे पास ब त कुछ है, जसका नवेश हम सरे लोग के भावना मक बक अकाउंट्स म कर सकते ह।
लोग को हम छु पी मता के संदभ म जतना अ धक दे ख सकते ह, हम उनके साथ मृ त के बजाय क पना का
उतना ही योग कर सकते ह - अपने जीवनसाथी के साथ, अपने ब च के साथ, अपने सहयो गय या कमचा रय
के साथ। हम उन पर लेबल लगाने से इंकार कर सकते ह। जब भी हम उनके साथ होते ह, हम हर बार उ ह नये
तरीक़ से “दे ख” सकते ह। हम ऐसे आ म नभर और संतु बनने म उनक मदद कर सकते ह, जो सर के
साथ संतु दायक, समृ और सफल गहरे संबंध बनाने म स म ह ।
गेटे ने सखाया था, “अगर आप कसी से इस तरह वहार कर जैसा वह है, तो वह जैसा है वैसा ही
रहेगा। परंतु अगर आप कसी से इस तरह वहार कर, जैसा वह हो सकता है और उसे होना चा हये, तो वह
वैसा ही बन जायेगा जैसा वह हो सकता है और उसे होना चा हये।”

नवीनीकरण म संतुलन
आ म-नवीनीकरण क या म हमारे वभाव के चार आयाम म संतु लत नवीनीकरण शा मल होना
चा हये। ये चार आयाम ह: शारी रक, आ या मक, मान सक और सामा जक/भावना मक।
हालाँ क हर आयाम का नवीनीकरण मह वपूण है, परंतु यह सफ़ तभी सव च प म भावकारी बनता है,
जब हम बु म ापूण और संतु लत तरीक़े से चार आयाम म वहार करते ह। कसी भी एक े क उपे ा
करने से बाक़ सब पर नकारा मक भाव पड़ता है।
मने इसे संगठन और य दोन के बारे म सही पाया है। कसी संगठन म शारी रक आयाम आ थक
संदभ म होता है। मान सक या मनोवै ा नक आयाम यो यता को पहचानने, उसे वक सत करने और उसका
योग करने से संबं धत है। सामा जक/भावना मक आयाम का सरोकार मानवीय संबंध से होता है, यानी लोग के
साथ कैसा वहार कया जाता है। और आ या मक आयाम उद्दे य या योगदान और संगठना मक अखंडता के
ारा अथ खोजने से संबं धत है।
जब कोई संगठन इनम से कसी एक या एक से अ धक े क उपे ा करता है, तो इसका पूरे संगठन पर
नकारा मक भाव पड़ता है। जस रचना मक ऊजा के प रणाम व प ज़बद त सकारा मक सनज उ प हो
सकती थी, उसका योग संगठन के व संघष करने म हो सकता है और यह वकास तथा उ पादकता को
अव करने वाली श बन सकती है।
मने ऐसे भी संगठन दे खे ह, जनका इकलौता उद्दे य आ थक यानी धन कमाना होता है। वे आम तौर पर इस
उद्दे य का चार नह करते और कई बार कसी सरी चीज़ का चार करते ह। परंतु उनके दल म इकलौती इ छा
धन कमाने क होती है।
जब भी म यह दे खता ँ, तो मुझे उस संगठन क सं कृ त म ब त सी नकारा मक सनज भी नज़र आती है,
जससे कई अ य चीज़ पैदा हो जाती ह, जैसे वभाग म त पधा, र ा मक सं ेषण, जोड़-तोड़ और दमाग़ी
चाला कयाँ व रणनी तयाँ। बना धन कमाये हम भावका रता से समृ नह बन सकते, परंतु यह संगठन के
अ त व का पया त कारण नह है। हम बना खाये ज़दा नह रह सकते, परंतु हम खाने के लये ज़दा नह रहते ह।
सरी ओर मने ऐसे संगठन भी दे खे ह, जो लगभग पूरी तरह सामा जक/भावना मक आयाम पर क त रहते
ह। एक तरह से वे सामा जक योग ह और उनके जीवनमू य के तं म कोई आ थक मापदं ड नह होता। उनके
पास अपनी भावका रता को नापने का कोई पैमाना नह होता। इसके प रणाम व प वे हर क़ म क नपुणता
गँवा दे ते ह और अंतत: बाज़ार म अपनी उपयो गता को भी।
मने ऐसे ब त से संगठन दे खे ह, जो इनम से तीन आयाम तक वक सत कर लेते ह - उनके पास सेवा के
अ छे मापदं ड हो सकते ह, अ छे आ थक मापदं ड हो सकते ह और मानवीय संबंध के अ छे मापदं ड हो सकते ह,
परंतु वे दरअसल लोग क यो यता को पहचानने, उसका वकास करने, उसका उपयोग करने और उसे स मान दे ने
के त संक पवान नह होते। और अगर ये मनोवै ा नक बल नह ह, तो लीडर शप क शैली उदार नरंकुशता
बनकर रह जायेगी। प रणाम व प उनक सं कृ त म हम ब त सी गहरी, द घकालीन और सां कृ तक सम या
के त बब दखाई दे ते ह, जैसे सामू हक तरोध, वरोध, ब त से कमचा रय का नौकरी छोड़कर जाना।
संगठन हो या , भावका रता के लये चार आयाम के बु म ापूण और संतु लत वकास व
नवीनीकरण क आव यकता होती है। जस भी आयाम क उपे ा क जाती है, वह नकारा मक श े तरोध
उ प करता है, जो भावका रता और वकास के वरोध म होता है। जो संगठन और अपने मशन टे टमट
म चार आयाम को मा यता दे ते ह, वे संतु लत नवीनीकरण का एक श शाली ढाँचा दान करते ह।
सतत सुधार क यह या पूण गुणव ा आंदोलन (Total Quality Movement) क पहचान है और
जापान के आ थक उदय क कुंजी है।

नवीनीकरण म सनज
संतु लत नवीनीकरण पूणत: सन ज टक होता है। कसी भी आयाम म अपनी आरी क धार को तेज़ करने
के लये कये गये काम का सरे आयाम पर सकारा मक भाव पड़ता है, य क सभी आयाम आपस म गहराई
से जुड़े ह। आपका शारी रक वा य आपके मान सक वा य को भा वत करता है। आपक आ या मक श
आपक सामा जक/भावना मक श को भा वत करती है। जैसे ही आप कसी आयाम म सुधार करते ह, अ य
आयाम म भी आपक कु्शलता बढ़ जाती है।
अ त भावकारी लोग क सात आदत इन आयाम के बीच अ धकतम सनज उ प करती ह। कसी भी
आयाम म नवीनीकरण इन सात आदत म कम से कम कसी एक आदत म जीने क आपक यो यता को बढ़ा दे ता
है। और हालाँ क ये आदत सल सलेवार ह, परंतु सनज के स ांत के अनुसार एक आदत म सुधार बाक़ आदत
पर अमल करने क आपक यो यता को बढ़ा दे ता है।
आप जतने अ धक ोए टव होते ह (पहली आदत), उतने ही अ धक भावकारी ढं ग से आप अपने जीवन
म गत लीडर शप ( सरी आदत) और मैनेजमट का (तीसरी आदत) अ यास कर सकते ह। आप अपने जीवन
का बंधन जतने भावकारी ढं ग से करते ह (तीसरी आदत), आप वा ै ट II क नवीनीकरण क ग त व धय
को उतना ही अ धक कर सकते ह (सातव आदत)। आप पहले समझने क जतनी अ धक को शश करते ह
(पाँचव आदत), उतने ही अ धक भावकारी ढं ग से आप सन ज टक जीत/जीत समाधान क दशा म जा
सकते ह (चौथी और छठ आदत)। आप आ म नभरता क ओर ले जाने वाली कसी भी आदत (पहली, सरी,
तीसरी आदत) म जतना अ धक सुधार करगे, पर पर- नभर थ तय (चौथी, पाँचव , छठ आदत) म आप उतने
ही अ धक भावकारी ह गे। और नवीनीकरण (सातव आदत) सभी आदत के नवीनीकरण क या है।
जब आप अपने शारी रक आयाम का नवीनीकरण करते ह, तो आप अपनी गत जीवन को बल
करते ह (पहली आदत)। आप अपनी आ म-जाग कता और आ म नभर इ छा के पैरेडाइम को मज़बूत बनाते ह।
आप यह जान जाते ह क ख़ुद पर काय करवाने के बजाय आप काय करने के लये वतं ह और कसी भी
उद◌्द पन पर अपनी त या का चुनाव करने के लये वतं ह। यह शायद शारी रक अ यास का सबसे बड़ा
लाभ है। येक दै नक गत वजय आपके गत सुर ा अकाउंट म डपॉ ज़ट करती है।
जब आप अपने आ या मक आयाम का नवीनीकरण करते ह, तो आप अपनी गत लीडर शप ( सरी
आदत) को बल बनाते ह। आप अपनी मृ त के बजाय अपनी क पना तथा ववेक के अनुसार जीने क यो यता
को बढ़ा लेते ह। आप अपने गहनतम पैरेडाइ स और जीवनमू य को गहराई से समझने लगते ह, अपने भीतर सही
स ांत का क बना लेते ह, जीवन म अपने अनूठे उद्दे य को प रभा षत कर लेते ह, सही स ांत के सामंज य
म जीने के लये अपनी ट बारा लखते ह और श के अपने गत ोत का वकास करते ह।
आ या मक नवीनीकरण म आप समृ गत जीवन का नमाण करते ह, जो आपके गत सुर ा
अकाउंट म ज़बद त डपॉ ज़ट करता है।
जब आप अपने मान सक आयाम का नवीनीकरण करते ह, तो आप अपने गत मैनेजमट (तीसरी
आदत) को बल बनाते ह। जब आप योजना बनाते ह, तो आप अपने म त क को ववश करते ह क वह उ च
भाव वाले वा ै ट II क ग त व धय तथा ाथ मकता वाले ल य और ग त व धय को पहचाने, ता क आप
अपने समय व ऊजा का अ धकतम योग कर सक और अपनी ाथ मकता के इद- गद अपनी ग त व धय को
व थत तथा या वत कर सक। जैसे-जैसे आप इस नरंतर चलने वाली श ा म आगे जाते ह, आप अपने
ान के आधार और अपने वक प को बढ़ा लेते ह। आपक आ थक सुर ा आपक नौकरी म न हत नह होती;
यह आपक उ पादन मता - सोचने, सीखने, सृजन करने, अनुकूलन करने - म न हत होती है। यह स ची आ थक
आ म नभरता है। इसका अथ धनी होना नह होता; ब क धन कमाने क श रखना होता है। यह अंत न हत है।
दै नक गत वजय - शारी रक, आ या मक और मान सक आयाम के नवीनीकरण म हर दन कम से
कम एक घंटे लगाना - सात आदत के वकास क कुंजी है और यह पूरी तरह से आपके भाव के वृ म है। यह
वा ै ट II पर क त समय है, जो इन आदत को आपके जीवन म पूरी तरह उतारने और स ांत-क त बनने के
लये आव यक है।
यह दै नक सावज नक वजय क न व भी है। यह सामा जक/भावना मक आयाम म आरी क धार तेज़ करने
के लये आव यक आंत रक सुर ा का ोत है। इससे आपको गत श मलती है क आप पर पर- नभर
थ तय म अपने भाव के वृ पर यान क त कर सक, चुर मान सकता के पैरेडाइम से सर क ओर दे ख
सक, उनक मत भ ता को सचमुच मह व दे सक और उनक सफलता पर ख़ुश हो सक। यह आपको
वा त वक समझ और सन ज टक जीत/जीत समाधान के लये काम करने और पर पर- नभर वा त वकता म
चौथी, पाँचव तथा छठ आदत के अ यास के लये न व दान करता है।

ऊ वमुखी च
नवीनीकरण स ांत भी है और या भी। यह हम वकास तथा प रवतन के ऊ वमुखी च म ऊपर उठने
और लगातार सुधार करने क श दान करता है।
इस च म साथक और नरंतर ग त के लये हम नवीनीकरण के एक अ य पहलू पर वचार करने क
ज़ रत है - हमारा ववेक या अंतरा मा। यह उस अनूठ मानवीय तभा से संबं धत है, जो इस ऊ वमुखी ग त को
संचा लत करती है। मैडम डे टे ल के श द म, “अंतरा मा क आवाज़ इतनी धीमी है क इसे दबाना आसान है:
परंतु यह इतनी प भी होती है क इसे पहचानने म ग़लती करना असंभव है।”
ववेक वह तभा है, जो यह भाँप लेती है क हम सही स ांत के अनु प चल रहे ह या नह और जब यह
सही थ त म होती है, तो यह हम उनक तरफ़ ऊपर उठाती है।
जस तरह शारी रक और मांसपेशीय श ा उ कृ खलाड़ी के लये अ नवाय है, जस तरह म त क क
श ा कुशा व ाथ के लये अ नवाय है, उसी तरह ववेक क श ा स चे ोए टव और अ त भावकारी
के लये अ नवाय है। बहरहाल, ववेक के श ण और श ण म ब त अ धक एका ता, ब त अ धक
संतु लत अनुशासन तथा ब त अ धक सतत ईमानदार जीवन क आव यकता होती है। इसम नय मत प से ेरक
सा ह य पढ़ना, उ म वचार सोचना और सबसे बढ़कर, उस धीमी आवाज़ के सामंज य म जीना शा मल है।
जस तरह ायाम का अभाव और फ़ा ट फ़ूड कसी खलाड़ी क शारी रक मता को बबाद कर सकता है,
उसी तरह घ टया, अ ील या पोन ा फ़क चीज़ एक आंत रक अंधकार उ प कर सकती ह, जो हमारी उ चतर
अनुभू तय को सु कर दे ता है। “ या सही है और या ग़लत है?” क ाकृ तक या दै वी ववेक क आवाज़ के
थान पर यह सामा जक ववेक आ जाता है, “ या म पकड़ा जाऊँगा?”
डैग हैमसको ड के श द म,

पशु बने बना आप अपने भीतर के पशु के साथ नह खेल सकते, सच के अ धकार को ज़ त कये
बना झूठ के साथ नह खेल सकते और अपने म त क क संवेदनशीलता को खोये बना ू रता के
साथ नह खेल सकते। जो अपने बगीचे को साफ़-सुथरा रखना चाहता है, वह खरपतवार के
लये कसी यारी को सुर त नह रखता।

एक बार जब हम आ म-जाग क हो जाते ह, तो हम उन उद्दे य और स ांत को चुनना होगा, जनके


अनु प हम जयगे। वरना नवात (vacuum) भर जायेगा और हम अपनी आ म-जाग कता खोकर रगने वाले
जानवर क तरह हो जायगे, जो मूलत: सफ़ ज़दा रहने और संत त उ प करने के लये जीते ह। जो लोग उस
तर पर होते ह, वे जी नह रहे ह, उ ह “ जया जा रहा” है। वे सफ़ त या कर रहे ह, य क वे उन अनूठ
तभा के बारे म नह जानते, जो उनके भीतर न य और अ वक सत पड़ी ह।
और उ ह वक सत करने का कोई शॉटकट नह है। फ़सल का नयम हमेशा काम करता है; हम हमेशा वही
काटगे जो हमने बोया है - न उससे यादा, न उससे कम। याय का नयम अप रवतनीय है और हम ख़ुद को सही
स ांत के जतने क़रीब रखगे, इस बारे म हमारा नणय उतना ही बेहतर होगा क संसार कस तरह चलता है और
हमारे पैरेडाइ स यानी े के न शे उतने ही अ धक ु टहीन ह गे।
मेरा मानना है क जैस-े जैसे हम इस ऊ वमुखी च पर आगे बढ़ते ह, हम अपने ववेक को श त करने
और इसके आदे श का पालन करने के मा यम से नवीनीकरण क या म यादा मेहनत करना होगी। लगातार
श त हो रहा ववेक हम गत वतं ता, सुर ा, बु मानी और श क राह पर आगे क तरफ़ ले जायेगा।
ऊ वमुखी च म ऊपर जाने के लये हम अ धक उ च तर पर सीखने, संक प लेने और करने क ज़ रत
हाती है। अगर हम यह सोचते ह क इनम से कोई एक ही पया त है, तो हम ख़ुद को धोखा दे ते ह। ग त करते रहने
के लये हम सीखना, संक प लेना और करना होगा - सीखना, संक प लेना और करना होगा - और बारा सीखना,
संक प लेना तथा करना होगा।

अमल म लाने के सुझाव:

1. उन ग त व धय क सूची बनाय, जो आपको अ छ शारी रक थ त म रखने म मदद कर, जो आपक


जीवनशैली म सही बैठ और जनका आप लंबे समय तक आनंद ले सक।
2. इन ग त व धय म से कसी एक को चुन और उसे अगले स ताह क सूची म अपने गत भू मका े म
ल य के प म लख ल। स ताह के अंत म अपने कये गये काम का मू यांकन कर। अगर आप अपने ल य
तक नह प ँच पाये, तो या इसका कारण यह था क आपने इसे कसी सचमुच उ चतर जीवनमू य के
अधीन रख दया था? या फर आप अपने जीवनमू य के त अखंडता से काम करने म असफल रहे?
3. अपने आ या मक और मान सक आयाम म नवीनीकरण करने वाली ग त व धय क भी इसी तरह क सूची
बनाय। अपने सामा जक-भावना मक े म उन संबंध क सूची बनाय, ज ह आप सुधारना चाहते ह या
उन व श प र थ तय क , जनम सावज नक वजय अ धक भावका रता दान करेगी। हर े म एक
ग त व ध को चुन ल और उसे स ताह के ल य के प म सूची म लख ल। अमल कर और मू यांकन कर।
4. हर स ताह चार आयाम म “आरी क धार तेज़ करने वाली” व श ग त व धय को लखने, करने व अपने
काम और प रणाम का मू यांकन करने का संक प ल।

ऊ वमुखी च य पथ
पुनः अंदर से बाहर क ओर
(Inside-Out Again)

ईश्वर अंदर से बाहर क ओर काम करता है। नया बाहर से अंदर क ओर काम
करती है। नया लोग को झु गय से बाहर नकालती है। ईश्वर झु गय को
लोग से बाहर नकालता है और फर लोग ख़ुद को झु गय से बाहर नकालते ह।
नया लोग के प रवेश को बदलकर उ ह ढालती है। ईश्वर लोग को बदलता है,
जो इसके बाद अपने प रवेश को बदलते ह। नया मानवीय वहार को बदल
सकती है, परंतु ईश्वर मानवीय वभाव को बदल सकता है।
● एज़रा टै ट बसन

म आपको एक क् तगत कहानी सुनाना चा ँगा, जसम मेरे वचार से इस पु तक का सार न हत है। मुझे आशा
है क इसक मदद से आप इसम न हत स ांत के साथ ख़ुद को जोड़ सकगे।
कुछ साल पहले मने उस वश्व व ालय से अ ययन-अवकाश लया, जहाँ म पढ़ाता था। म अपने प रवार के
साथ पूरे एक साल तक ओआ , हवाई के उ री तट पर लेई म रहा।
वहाँ पर अ छ तरह जमने के बाद हमने रहने और काम करने क ऐसी दनचया वक सत क , जो न सफ़
ब त लाभकारी थी, ब क सुखद भी थी।
सुबह समु कनारे दौड़ने के बाद हम अपने दो ब च को नंगे पैर हाफ़ पट म कूल भेजते थे। म गन्ने के
खेत के पास बनी एक नजन इमारत म चला जाता था, जहाँ पर मने लेखनकाय के लये अपना ऑ फ़स बनाया
था। यहाँ का माहौल ब त ही सुंदर और शांत था - न फ़ोन, न मी टग, न तनाव भरे त काय म।
मेरा ऑ फ़स एक कॉलेज के बाहरी छोर पर था। एक दन जब म कॉलेज क लाइ ेरी के पछले ह से म लगे
कताब के ढे र के पास से गुज़र रहा था, तो मेरी नगाह एक पु तक पर पड़ी, जसने मेरा यान आक षत कया।
जैसे ही मने इसे खोला, मेरी नगाह एक पैरे ाफ़ पर ठहर गई, जसने मेरे जीवन को सशक्तता से भा वत कया।
मने उस पैरे ाफ़ को बार-बार पढ़ा। इसम मूल प से यह सरल वचार था क उ पन (stimulus) तथा
त या (response) के बीच म एक ख़ाली थान होता है और हमारे वकास तथा सुख दोन क कुंजी यह है क
हम उस ख़ाली थान का योग कस तरह करते ह।
इस वचार का मुझ पर जो भाव पड़ा, म उसका वणन नह कर सकता। मेरा पालन-पोषण आ म-
नय तवाद के जीवनदशन के साथ आ था। फर भी इस वचार को जस तरह से श द म क्त कया गया था
(“उ पन और त या के बीच म एक ख़ाली थान”) उसक वजह से इसने नये सरे से तथा लगभग
अ वश्वसनीय शक् त से मुझे भा वत कया। यह लगभग ऐसा ही था जैसे “मने इसे पहली बार जाना हो,” जैसे
मेरे अंदर ां त हो गई हो, “एक वचार जसका समय आ गया हो।”
मने इस पर बार-बार वचार कया और इसने मेरे जीवन के पैरेडाइम पर सशक्त भाव डालना शु कया।
ऐसा लगा जैसे म अपनी ही सहभा गता का े क बन गया था। म उस ख़ाली थान म खड़ा होने लगा और बाहर
के उ पन क तरफ़ दे खने लगा। म वतं ता के इस आंत रक एहसास म गोते खा रहा था क म अपनी त या
चुन सकता था - यहाँ तक क उ पन बन सकता था, कम से कम इसे भा वत कर सकता था - यहाँ तक क इसे
पलट भी सकता था।
इसके कुछ ही समय बाद, और कुछ हद तक इस “ ां तकारी” वचार के कारण, सै ा तथा मने गहरे
सं ेषण (communication) का अ यास शु कया। म दोपहर से थोड़ा पहले सै ा को अपनी लाल रंग क
पुरानी ह डा 90 े ल साइकल पर बैठाता था। हम अपने दो छोटे ब च को भी अपने साथ बठा लेते थे - एक हमारे
बीच म बैठता था और सरा मेरे बाय घुटने पर। मेरे ऑ फ़स के पास के गन्ने के खेत म हम लगभग एक घंटे तक
साइकल क सवारी करते थे और बात करते रहते थे।
ब चे इस या ा का आनंद लेते थे और बलकुल भी शोर नह करते थे। हम कभी-कभार ही कोई सरा वाहन
दखता था और साइकल बलकुल भी आवाज़ नह करती थी। हम एक- सरे क बात आसानी से सुन सकते थे।
आम तौर पर हम एक नजन तट पर कते थे, जहाँ हम ह डा को खड़ा करते थे और लगभग 200 गज़ पैदल
चलकर नधा रत थान पर प ँचकर पक नक लंच लेते थे।
रेतीला समु तट और टापू से आने वाली ताज़े पानी क नद पूरी तरह से ब च का यान आक षत कर लेते
थे, इस लये म और सै ा बना कसी वधान के अपनी चचा जारी रखते थे। शायद यह क पना करने म ब त
अ धक क पनाशक् त क ज़ रत नह होगी क एक साल तक रोज़ाना कम से कम दो घंटे गहरे सं ेषण क वजह
से हमारी आपसी समझ और वश्वास का तर कतना बढ़ा होगा।
शु आत म हम हर तरह के रोचक मु पर बात करते थे - लोग, वचार, घटनाय, ब चे, मेरा लेखन, घर पर
हमारा प रवार, भ व य क योजनाय आ द। धीरे-धीरे हमारा सं ेषण गहरा होता गया और हम अपने आंत रक
संसार के बारे म अ धक बात करने लगे - हमारा लालन-पालन, हमारी टं ग, हमारी भावनाय और
आ मशंकाय। जैसे-जैसे हम इन सं ेषण म गहराई म उतरते चले गये, हमने उनका अवलोकन भी कया और उनम
अपना अवलोकन भी कया। हम नये और रोचक तरीक़ से उ पन तथा त या के बीच के ख़ाली थान का
योग करने लगे। इसने हम यह सोचने के लये े रत कया क हम कस तरह ो ाम कया गया था और इन
ो ा स ने नया को दे खने के हमारे कोण को कस तरह आकार दया था।
हमने अपने आंत रक संसार क एक रोमांचक साह सक या ा शु कर द । हम यह बाहरी नया क कसी
भी चीज़ से अ धक रोमांचक, अ धक आकषक, अ धक दलच प, अ धक मोहक और खोज तथा अंत से पूण
लगी।
इसम सब कुछ “मधुर और सुखद” ही नह था। कभी-कभार हम कमज़ोर नस भी छू लेते थे। इसके अलावा
हम कुछ पीड़ादायी, तकलीफ़दे ह, आ म-अ भ क् त के अनुभव भी ए, ज ह ने हम एक- सरे के त ब त
खुला और असुर त बना दया। इसके बावज़ूद हमने पाया क हम वष से यह काम करना चाहते थे। जब हम
अ धक गहरे तथा कोमल मु म गये और उनसे बाहर नकले, तो हमने महसूस कया क न जाने कैसे हमारी पीड़ा
ख़ म हो गई थी।
हमने शु आत म एक- सरे को इतना सहारा दया, इतनी मदद क , इतना ो साहन दया और इतनी
परानुभू त द शत क क हमने एक- सरे क इन आंत रक खोज को पोषण दया और उ ह आगे बढ़ाया।
धीरे-धीरे हमने दो अनकहे बु नयाद नयम बना लये। पहला था “कोई तहक़ क़ात नह ।” जैसे ही कोई
असुर ा क अंद नी परत को खोले, हम उससे कोई सवाल नह पूछना था, सफ़ परानुभू त दशाना थी।
तहक़ क़ात करना ब त आ ामक होता। यह ब त नयं णकारी और तकपूण भी होता। हम नये और मु कल
मैदान म जा रहे थे, जो डरावना तथा अ न त था और हमारे भीतर डर व शंका उ पन्न करता था। हम इसम
अ धका धक या ा करना चाहते थे, परंतु हम अपने समय पर खुलने क एक- सरे क आव यकता का स मान
करते थे।
सरा बु नयाद नयम यह था क जब अनुभव ब त क कारी या पीड़ादायी हो जाये, तो हम उस मु े को उस
दन अधूरा छोड़ दे ते थे। फर हम इसे या तो अगले दन वह से शु करते थे या फर तब तक इंतज़ार करते थे,
जब तक उसे सुनाने वाला क् त फर से शु करने के लये तैयार न हो। हम अधूरी बात को साथ रखते थे,
य क हम जानते थे क हम उनसे नबटना चाहते थे। चूँ क हमारे पास इसके लये पया त समय और अनुकूल
प रवेश था, चूँ क हम अपनी ख़ुद क भागीदारी का अवलोकन करने और अपने वैवा हक जीवन के वकास के बारे
म ब त रोमां चत थे, इस लये हम जानते थे क दे र-सबेर हम इन अधूरे मु से नबटना होगा और कसी तरह उ ह
ख़ म करना होगा।
इस तरह के सं ेषण का सबसे मु कल और अंतत: सबसे लाभदायक ह सा तब आया, जब मेरी और सै ा
क असुर ा ने एक- सरे का पश कया। चूँ क हम क् तगत प से जुड़े ए थे, इस लये हमने पाया क उ पन
और त या के बीच ख़ाली थान था ही नह । कुछ बुरी भावनाय उभरकर सतह पर आ । परंतु हमारी गहन
इ छा और हमारा न हत अनुबंध यह था क हम वह से शु करगे, जहाँ हमने छोड़ा था और उन भावना का
तब तक सामना करगे, जब तक क हम उ ह सुलझा न ल।
उन मु कल समय म से एक मेरे क् त व क मूलभूत वृ से संबं धत था। मेरे पता ब त अंतमुखी
क् त थे - ब त नयं त और ब त सावधान। मेरी माँ ब त सामा जक, खुले वभाव क और सहज ह। म अपने
अंदर दोन तरह क वृ याँ पाता ।ँ जब म असुर त महसूस करता ,ँ तो मुझम अपने पता क तरह अंतमुखी
बन जाने क वृ होती है। म अपने भीतर चला जाता ँ और सुर त रहकर अवलोकन करता ँ।
सै ा काफ़ हद तक मेरी माँ क तरह है - सामा जक, ईमानदार और सहज। हम इतने बरस म ऐसे ब त से
अनुभव से गुज़र चुके ह, जनम मुझे उसका खुलापन अनु चत लगा था और उसे महसूस आ था क मेरा नयं ण
सामा जक तथा क् तगत दोन कार से ग़लत था, य क म सर क भावना के त असंवेदनशील हो जाता
था। यह सब और इससे भी यादा बात उन गहरी या ा म बाहर नकल । म सै ा क अंत और बु म ा
का कायल हो गया, जसने अ धक खुला, अ धक उदार, अ धक संवेदनशील व अ धक सामा जक क् त बनने म
मेरी मदद क ।
एक और मु कल समय का संबंध उस बात से था, जसे म सै ा क ऐसी “सनक” मानता था, जो मुझे
बरस से परेशान कर रही थी। ऐसा लगता था क उसे जडेयर ए लाये सेस का भूत सवार था, जसका कारण
मुझे बलकुल समझ नह आता था। वह कसी सरी कंपनी के ए लाये सेस ख़रीदने के बारे म सोचती तक नह
थी। जब हम शु कर रहे थे और हमारा बजट ब त तंग था, तब भी उसने ज़ोर दया क हम पचास मील क या ा
करके “बड़े शहर” जाय, जहाँ जडेयर ए लाये सेस बकते थे, य क उस समय हमारे छोटे वश्व व ालय के
क़ बे का कोई कानदार उ ह नह रखता था।
यह मेरे लये ब त तनाव क बात थी। सौभा यवश यह थ त तभी आती थी, जब हम कोई ए लाये स
ख़रीदते थे। परंतु जब यह सामने आती थी, तो यह एक उ पन क तरह थी, जो लाल ब ी वाली बल त या
उ पन्न कर दे ता था। यह मु ा सारे अता कक चतन का तीक नज़र आता था और यह मेरे अंदर ब त सी
नकारा मक भावनाय उ पन्न कर दे ता था।
म आम तौर पर अपने अनु चत अंतमुखी वहार म चला जाता था। मुझे लगता था क इस सम या से
नबटने का इकलौता तरीक़ा यह था क इसका सामना ही न कया जाये, अ यथा म अपना नयं ण खो ँ गा और
ऐसी बात कह ँ गा, जो मुझे नह कहना चा हये। ऐसे समय आते थे, जब म संतुलन खो दे ता था और कोई
नकारा मक बात कह दे ता था तथा मुझे बाद म माफ़ माँगना पड़ती थी।
मुझे सबसे यादा परेशानी इस बात से नह थी क उसे जडेयर ए लाये सेस पसंद थे, ब क इस बात से
थी क वह लगातार उनके प म नहायत ही अता कक और बेतुक बात कहती थी, जो नराधार होती थ । अगर
वह यह मान लेती क उसक त या अता कक और पूरी तरह भावना मक थी, तो म सोचता ँ क म इसे सहन
कर सकता था। परंतु उसके ारा वयं को सही ठहराने से म परेशान हो जाता था।
वसंत क शु आत म जडेयर का मु ा सामने आया। पहले के समूचे सं ेषण ने हम तैयार कर दया था।
बु नयाद नयम गहराई से था पत हो चुके थे - तहक़ क़ात नह करना है और अगर मु ा कसी एक या दोन के ही
लये अ धक पीड़ादायी बन जाये, तो इसे उस दन के लये छोड़ दया जाये।
म उस दन को कभी नह भूल पाऊँगा, जस दन हमने इस वषय म खुलकर बात क । हम उस दन समु
कनारे नह के, ब क गन्ने के खेत म साइकल पर घूमते रहे, शायद इस लये य क हम एक- सरे से नज़र नह
मलाना चाहते थे। इस मु े का लंबा मनोवै ा नक इ तहास था, इससे ब त सी बुरी भावनाय जुड़ी थ और यह
ब त लंबे समय से गहराई म दबा आ था। यह इतना मह वपूण नह था क संबंध म दरार डाल दे , परंतु जब आप
कोई ख़ूबसूरत एका मक र ता बनाने क को शश कर रहे ह , तो मतभेद का हर मु ा मह वपूण होता है।
हमने उस चचा म जो जाना, उससे म और सै ा दोन आ यच कत थे। यह सचमुच सन ज टक था। ऐसा
लगा मानो सै ा ख़ुद पहली बार अपनी तथाक थत “सनक” का कारण जान रही थी। वह अपने पता के बारे म
बात करने लगी क कस तरह वे हाई कूल म इ तहास के श क तथा कोच के प म बरस काम करते रहे और
प रवार का ख़च चलाने के लये उ ह ए लाये स बज़नेस म जाना पड़ा। जब आ थक मंद का दौर आया, तो उ ह
गंभीर आ थक मु कल का सामना करना पड़ा। वे बबाद हो गये होते, परंतु उस मु कल समय म उनका बज़नेस
सफ़ इस वजह से बचा, य क जडेयर ने उनक इ वे को फ़ाइनस कया।
सै ा का अपने पता के साथ ब त गहरा और मधुर र ता था। जब वे शाम को थककर घर लौटते थे, तो वे
ब तर पर लेट जाते थे और सै ा उनके पैर सहलाती थी तथा उ ह गाना सुनाती थी। यह एक सुंदर समय था,
जसका वे दोन वष तक लगभग त दन आनंद लेते रहे। पता बज़नेस क अपनी चता के बारे म खुलकर
बात करते थे और सै ा को बताते थे क वे जडेयर के ब त कृत ह, जसक आ थक मदद क बदौलत ही वे
मु कल समय को पार कर पाये।
पता और पु ी के बीच का यह सं ेषण ब त वाभा वक और सहज ढं ग से आ था, जब सबसे सशक्त
ट् स लखी जाती ह। उन आराम के पल म हमारे र ाकवच श थल होते ह, इस लये सब तरह क छ वयाँ और
वचार हमारे अवचेतन मन क गहराई म बो दये जाते ह। शायद सै ा इस बात को भूल चुक थी, जब तक क उस
वष के सं ेषण म यह ब त वाभा वक और सहज प म बाहर नह नकली।
सै ा को ख़ुद के बारे म ज़बद त अंत ान मला और जडेयर के बारे म अपनी भावना क गहरी जड़
का पता चला। मुझे भी ान ा त आ और मेरे अंदर स मान का एक नया तर वक सत आ। मुझे यह एहसास
आ क सै ा ए लाये सेस के बारे म बात नह कर रही थी; वह तो अपने पता और वफ़ादारी के बारे म बात कर
रही थी - अपने पता क आव यकता के त वफ़ादारी के बारे म।
मुझे याद है उस दन हम दोन क आँख म आँसू भर आये थे, जसका कारण सफ़ हा सल आ ान नह
था। यह एक- सरे के त बढ़ ई स मान क भावना के कारण आ था। उस दन हमने यह जाना क अ सर
मह वहीन दखने वाली चीज़ क जड़ गहरे भावना मक अनुभव से जुड़ी होती ह। गहरे और कोमल मु को दे खे
बना सफ़ सतही छु टपुट बात से नबटना कसी के दल क प व भू म को कुचलने क तरह है।
उन महीन के सं ेषण के हम ब त से लाभ ए। हमारा सं ेषण इतना सशक्त हो गया क हम एक- सरे के
वचार को त काल समझ लेते थे। जब हमने हवाई छोड़ा, तो हमने इस सल सले को जारी रखने का संक प
लया। इतने वष के बाद भी हम सफ़ बातचीत करने के लये नय मत प से अपनी ह डा े ल साइकल पर जाते
ह या मौसम ख़राब होने पर कार म जाते ह। हम महसूस करते ह क यार म बने रहने क कुंजी सं ेषण करना है,
ख़ासकर भावना के बारे म। हम एक- सरे से हर रोज़ कई बार बातचीत करने क को शश करते ह, तब भी जब
म या ा कर रहा होता ँ। यह एक तरह से घर को छू ने क तरह है, जससे सम त सुख, सुर ा और जीवनमू य
सुलभ हो जाते ह, जनका यह त न ध व करता है।
थॉमस वो फ़ का कथन ग़लत था। आप बारा घर जा सकते ह - बशत आपका घर एक ब मू य संबंध हो,
एक मू यवान साहचय हो।

भन्न पी ढ़य के बीच रहना (Intergenerational Living)


जैसा सै ा और मने उस अद्भुत वष म खोजा, उ पन तथा त या के बीच के ख़ाली थान और अपने
मानवीय वभाव क चार अनूठ तभा के समझदारी से योग करने क यो यता ने हम अंदर से बाहर क ओर
काम करने क शक् त द ।
इससे पहले हम बाहर से अंदर क ओर क नी त (outside-in) को आज़मा चुके थे। हम एक- सरे से ेम
करते थे और हमने अपने नज़ रय तथा वहार को नयं त करके तथा मानवीय वहार क उपयोगी तकनीक
का योग करके अपने मतभेद को र करने का यास कया था। परंतु ये बड एड् स और ए परीन सफ़ कुछ
समय तक ही चल पाये। जब तक हमने अपने मूलभूत पैरेडाइ स के तर पर प ँचकर मेहनत और सं ेषण नह
कया, तब तक लंबे समय से चली आ रही न हत सम याएँ र नह ।
जब हमने अंदर से बाहर क ओर (inside-out) काम करना शु कया, तभी जाकर हम वश्वास और
खुलेपन का र ता बनाने म सफल ए। इसके अलावा, हम बाधा बन रही मत भन्नता को गहरे और थायी प
से सुलझाने म भी सफल ए, जो बाहर से अंदर क ओर क नी त से कभी संभव नह हो सकता था। जीत/जीत
संबंध, एक- सरे क गहरी समझ, एक अद्भुत सनज - ये वा द फल हम उन जड़ से मले, ज ह हमने उस
व त पोषण दया, जब हमने अपने ो ा स क जाँच क , अपनी ट बारा लखी और अपने जीवन का बंधन
इस तरह कया, ता क हम एक- सरे के साथ गहराई से सं ेषण करने वाली वा ै ट II क मह वपूण ग त व ध के
लये समय नकाल।
और हम अ य फल भी ा त ए। हम ब त गहरे तर पर यह दे ख पाये क जस तरह हमारे जीवन पर हमारे
माता- पता का इतना सशक्त भाव पड़ा था, उसी तरह हम भी अपने ब च के जीवन को भा वत कर रहे ह और
आकार दे रहे ह, भले ही हम यह काम ऐसे तरीक़ से कर रहे ह , जनका हम एहसास ही नह होता। हमारे अपने
जीवन म टं ग क शक् त को समझने के बाद हमारे मन म यह नई इ छा जागी क हम अपनी भावी पी ढ़य
को जो स प, वह नी त और उदाहरण दोन य से सही स ांत पर आधा रत हो।
मने इस पु तक म स पी गई ग़लत ट् स पर वशेष यान आक षत कया है, ज ह हम ोए टव तरीक़े से
बदलना चाहते ह। परंतु जब हम अपनी टं ग क सावधानी से जाँच करते ह, तो हमम से ब त से लोग को
अपने भीतर सुंदर और सकारा मक ट् स भी दखगी, जनक हमने कभी क़ ही नह क । स ची आ म-
जाग कता हमारी मदद करती है क हम इन ट् स और इ ह दे ने वाल के त कृत बन, जो हमसे पहले आये
थे और ज ह ने हम स ांत-आधा रत जीवनशैली का पोषण दया था। उ ह ने न सफ़ हम यह त बब दखाया
था क हम या ह, ब क यह भी क हम या बन सकते ह।
कई पी ढ़य वाले सशक्त प रवार म ज़बद त शक् त होती है। ब च , माता- पता, दादा-दाद , चाचा-चाची,
चचेरे भाई-बहन का भावकारी प से पर पर- नभर प रवार बलता से यह समझने म लोग क मदद कर
सकता है क वे कौन ह, वे कहाँ से आ रहे ह और वे कन स ांत के प म खड़े ह।
ब च के लये ख़ुद को “समुदाय” के साथ जोड़कर दे खना ब त लाभदायक होता है। उ ह यह एहसास होता
है क ब त से लोग उ ह जानते ह और उनक परवाह करते ह, भले ही वे पूरे दे श म फैले ए ह । और जब आप
अपने प रवार का पालन-पोषण कर रहे होते ह, तो यह एक ब त बड़ा लाभ हो सकता है। अगर आपके कसी ब चे
को मु कल आ रही ह और वह अपने जीवन के कसी ख़ास मोड़ पर आपसे अपने दल क बात नह कह पा रहा
हो, तो हो सकता है वह आपके भाई या बहन से अपने दल क बात कह सके, जो कुछ समय तक उसका त न ध
(surrogate) पता या माता, मागदशक या हीरो बन सकता है।
जो दादा-दाद अपने पोते-पो तय म ब त च लेते ह, वे इस नया के सबसे मू यवान क् तय म से ह। वे
ब त अद्भुत सकारा मक सामा जक दपण हो सकते ह! मेरी माँ इसी तरह क ह। हालाँ क उनक उ 85 से
अ धक है, परंतु वे अब भी अपने हर वंशज म गहरी क् तगत दलच पी लेती ह। वे हम ेम भरे प लखती ह।
एक दन म हवाई जहाज़ म जब उनका प पढ़ रहा था, तो मेरे गाल पर आँसू बहने लगे। म अगर आज रात को
उ ह फ़ोन क ँ , तो म जानता ँ क वे कहगी, “ ट फ़न, म तु ह बताना चाहती ँ क म तु ह ब त यार करती ँ
और मेरे वचार से तुम ब त ब ढ़या इंसान हो।” वे लगातार हम संबल दे ती रहती ह।
कई पी ढ़य के बीच पर पर मज़बूत संबंध वाला प रवार सबसे लाभदायक, साथक और संतु दायक
पर पर- नभर र त म से एक है। और ब त से लोग उस र ते के मह व को महसूस करते ह। ज़रा याद क जये,
कुछ समय पहले ट् स ने हम कतना मं मु ध कया था। हमम से हर एक क जड़ होती ह और हमम उन जड़
यानी अपने पूवज को खोजने व जानने क यो यता भी होती है।
ऐसा करने म सव च और सबसे सशक्त ेरणा सफ़ ख़ुद के लये करने म नह है, ब क अपने वंशज के
लये, सम त मानव जा त के वंशज के लये करने म है। जैसा कसी ने कहा है, “हम अपने ब च के लये सफ़ दो
ही थायी वरासत छोड़ सकते ह - एक है जड़, सरी पंख।”

प रवतन का कारक क् त बनना


मेरा वश्वास है क अपने ब च और अ य लोग को “पंख” दे ने का अथ है उ ह उस नकारा मक टं ग
से ऊपर उठने क वतं ता दे कर सशक्त बनाना, जो हम ह तांत रत क गई है। मेरा मानना है इसका अथ है, जैसा
मेरे म और सहयोगी डॉ. टे री वानर कहते ह, “प रवतन का कारक क् त” बनना। उन अ भावकारी ट् स
को अगली पीढ़ को स पने के बजाय हम उ ह बदल सकते ह। और हम यह काम इस तरह से कर सकते ह, ता क
इस या म संबंध भी मज़बूत बन।
अगर आपके माता- पता ने आपको बचपन म पीटा हो, तो इसका यह मतलब नह है क आपको भी अपने
ब च को पीटना है। बहरहाल ऐसे ब त से माण उपल ध ह, जो बताते ह क आपम उस ट के अनु प जीने
क वृ होगी। परंतु चूँ क आप ोए टव ह, इस लये आप उस ट को बारा लख सकते ह। आप यह चुनाव
कर सकते ह क आप अपने ब च को नह पीटगे, ब क उ ह समथन दगे और सकारा मक ढं ग से उनक ट
लखगे।
आप इसे अपने क् तगत मशन टे टमट म लख सकते ह और अपने दलो दमाग़ म भी। आप यह
का प नक त वीर दे ख सकते ह क आप अपनी दै नक क् तगत वजय म उस मशन टे टमट के सामंज य म जी
रहे ह। आप अपने माता- पता से ेम करने और उ ह मा करने के लये क़दम उठा सकते ह और अगर वे अब भी
जी वत ह, तो उ ह समझने क को शश करके आप उनके साथ सकारा मक संबंध बना सकते ह।
जो वृ आपके प रवार म पी ढ़य से चली आ रही हो, वह आप पर आकर क सकती है। आप प रवतन
के कारक क् त ह - अतीत और भ व य के बीच क कड़ी ह। और आपका अपना प रवतन आगे आने वाली
ब त से ज़द गय को भा वत कर सकता है।
बीसव सद म प रवतन के कारक क् तय म अनवर सादात का नाम मुख है, ज ह ने वरासत म हमारे
लये प रवतन क कृ त क गहरी समझ छोड़ी है। सादात के पीछे ऐसा अतीत था, जसने अरबवा सय और
इज़राइ लय के बीच “शंका, डर, नफ़रत और ग़लतफ़हमी क बड़ी द वार” खड़ी कर द थी। उ ह जो भ व य
सामने दख रहा था, उसम संघष और एकाक पन का बढ़ना अव यंभावी लग रहा था। वे उस अतीत और भ व य
के बीच डटकर खड़े हो गये। समझौता वाता के उनके यास का हर तर पर वरोध आ और आप याँ उठाई
ग । ये आप याँ बड़े मु पर ही नह , ब क औपचा रकता जैसे छोटे -छोटे मु पर भी उठाई ग , जनम
ता वत समझौत के आलेख म मह वहीन कॉमा या फ़ल टॉप पर बहस भी शा मल थी।
जब बाक़ लोग इस तनावपूण थ त को सुलझाने क को शश करते समय प य पर हार कर रहे थे, तब
सादात ने जेल क वीरान कालकोठरी म अपने पुराने क करण अनुभव का सहारा लया और जड़ पर हार करना
शु कर दया। और ऐसा करके उ ह ने करोड़ लोग के इ तहास क दशा बदल द ।
अपनी आ मकथा म वे लखते ह:

यह तब आ जब मने लगभग अचेतन प से उस आंत रक शक् त का सहारा लया, जसे मने


कैरो क य जेल क 54 नंबर क कोठरी म वक सत कया था - प रवतन क एक ऐसी शक् त,
जसे आप प रवतन क यो यता या मता भी कह सकते ह। मने पाया क मेरे सामने एक ब त
ज टल थ त है और म इसे तब तक बदलने क आशा नह कर सकता, जब तक क म ख़ुद को
अपे त मनोवै ा नक और बौ क मता से तैयार न कर लूँ। उस वीरान जगह पर जीवन और
मानव वभाव के बारे म मेरे चतन ने मुझे यह सखाया था क जो क् त अपने वचार के ढाँचे को
नह बदल सकता, वह कभी वा त वकता को नह बदल पायेगा और इस लये कभी ग त नह कर
पायेगा।

प रवतन - स चा प रवतन - अंदर से बाहर क ओर होता है। यह क् त व-आधा रत नी तशा क वक


फ़ स तकनीक ारा वहार और नज़ रये क प य पर हार करने से नह होता। यह जड़ पर हार करने से
होता है - हमारे वचार के ढाँचे पर, मूलभूत और आधारभूत पैरेडाइ स पर, जो हमारे च र को प रभा षत करते ह
और उस लस का नमाण करते ह, जसके ारा हम संसार को दे खते ह। ए मयल के श द म,

नै तक स य को वचार म उ पन्न कया जा सकता है। इसके बारे म भावनाय हो सकती ह। इसे
जीने क इ छा हो सकती है। परंतु इन सारे तरीक़ से नै तक स य के अंदर जाने क को शश के
बावज़ूद यह हमसे र रह सकता है। हमारा वज़ूद, हमारा वभाव, हमारे अ त व का व प हमारी
चेतना से भी गहरा है। सफ़ वही स चाइयाँ, जो इस अं तम े म व होती ह, जो हमारे व प
म ढल जाती ह, जो वाभा वक बन जाती ह, सायास या न यास बन जाती ह, अचेतन भी और
चेतन भी, वे ही वा तव म हमारा जीवन ह - अथात् वे संप से अ धक ह। जब तक हम स य और
हमारे बीच म ज़रा सा भी ख़ाली थान दखाई दे ता है, तब तक हम इससे बाहर रहते ह। जीवन का
वचार, भावना, इ छा या चेतना वा तव म जीवन नह हो सकती। जीवन का ल य दै वीय बनना है।
तभी हा न क कसी संभावना से परे हम स य को अपना कह सकते ह। यह अब हमारे बाहर नह
रह जाता है, न ही एक तरह से यह हमारे अंदर रहता है। ब क हम और यह एकाकार बन जाते ह;
हम वह बन जाते ह और वह हम बन जाता है।
ख़ुद के साथ, अपने यजन के साथ, अपने म और सहयो गय के साथ एकता - एका मकता - हा सल
करना सात आदत का सव च, सव े और सवा धक वा द फल है। हमम से यादातर लोग ने अतीत म
समय-समय पर इस स ची एकता के फल को चखा है, जस तरह हमने एकता क कमी के कड़वे और अकेलेपन
के फल को भी चखा है - और हम जानते ह क एकता कतनी क़ मती और नाजक होती है।
ज़ा हर है, पूण अखंडता के च र का नमाण करना और ेम तथा सेवा का जीवन जीना आसान नह है,
जससे इस तरह क एकता बनती है। यह वक फ़ स नह है।
परंतु यह संभव है। यह सही स ांत पर अपने जीवन को क त करने क इ छा से शु होता है। यह बेकार
आदत के आरामदे ह दायर और सरे क ारा बनाये गये पैरेडाइ स से मुक्त होने से शु होता है।
कई बार हम ग़ल तयाँ करते ह और श म दा महसूस करते ह। परंतु अगर हम दै नक क् तगत वजय से
शु कर और अंदर से बाहर क ओर काम कर, तो प रणाम न त प से मलगे। जब हम बीज बोते ह, धैयपूवक
खरपतवार साफ़ करते ह और बीज को पोषण दे ते ह, तो हम स चे वकास के रोमांच का अनुभव करने लगते ह
और अंतत: एक सुसंगत व भावकारी जीवन के अतुलनीय मधुर फल का वाद चखते ह।
एक बार फर, म इमसन के कथन को दोहराना चा ँगा: “हम जस काम को लगातार करते रहते ह, वह
यादा आसान बन जाता है - इस लये नह य क काम क कृ त आसान हो गई है, ब क इस लये य क उसे
करने क हमारी यो यता बढ़ गई है।”
अपने जीवन को सही स ांत पर क त करके और काय करने क हमारी यो यता व काय के बीच संतु लत
फ़ोकस बनाकर हम इतने सशक्त बन जाते ह क हम भावकारी, उपयोगी और शां तपूण जीवन का नमाण कर
सक …अपने लये और आगे आने वाली पी ढ़य के लये।

एक क् तगत ट पणी
इस पु तक को समा त करते समय म आपको अपना क् तगत वश्वास बताना चा ँगा। मेरा वश्वास है
क सही स ांत कृ त के नयम ह और परम पता परमा मा ही सही स ांत का ोत है। वह हमारी अंतरा मा
का भी ोत है। मेरा वश्वास है क जस हद तक लोग ईश्वर ारा े रत अंतरा मा के अनुसार जयगे, वे अपने
मानवीय वभाव का उतना ही अ धक वकास कर पायगे। और जस हद तक वे ऐसा नह करगे, उस हद तक वे
पशु के तर तक नीचे गर जायगे।
म मानता ँ क मानवीय वभाव के कुछ पहलु तक कानून या श ा ारा नह प ँचा जा सकता; उन तक
प ँचने के लये ईश्वर क शक् त क आव यकता होती है। मेरा मानना है क इंसान के प म हम ख़ुद को आदश
या पूण नह बना सकते। हम जस हद तक ख़ुद को सही स ांत पर क त करगे, उसी हद तक हमारे मानवीय
वभाव म दै वी तभाय वक सत ह गी और उसी हद तक हम अपनी रचना क अपे ा को पूरा कर पायगे।
ट लहाड डे चा डन के श द म, “हम ऐसे मानवीय जीव नह ह, ज ह आ या मक अनुभव मला है, ब क ऐसे
आ या मक जीव ह, ज ह मानवीय अनुभव मला है।”
इस पु तक म बताई गई यादातर बात से म क् तगत प से संघष करता रहता ँ। ले कन यह संघष
लाभदायक और संतु दायक है। यह मेरे जीवन को अथ दे ता है और मुझे ेम करने, सेवा करने तथा बारा
को शश करने क साम य दे ता है।
एक बार फर, ट .एस. इ लयट बड़ी सुंदरता से मेरी क् तगत खोज और वश्वास को क्त करते ह: “हम
खोजना कभी बंद नह करना चा हये और हमारी सम त खोज का अंत वह पर प ँचना होगा, जहाँ से हमने शु
कया था और उस थान को पहली बार जानना होगा।”
उपसंहार:
जो सवाल मुझसे अ सर पूछे जाते ह
स चसवाल
क ँ तो इस उपसंहार म दये गये कुछ
इतनी बार पूछे जाते ह और इतनी
गत सवाल से म हमेशा असहज हो जाता ँ। परंतु मुझसे ये
च से पूछे जाते ह क मने इ ह यहाँ थान दया है। इनम से कई
सवाल और जवाब को ल वग द 7 है बट् स म भी शा मल कया गया है।

सेवन है बट् स ऑफ़ हाइली इफ़े टव पीपुल 1989 म का शत ई थी। इससे बाद के वष म आपको जो
अनुभव मले, उनके बाद अब आप इसम या प रवतन करना चाहगे या इसम या जोड़ना या घटाना
चाहगे?

म यह बात हलके-फुलके तरीक़े से नह कह रहा ँ, परंतु सच क ँ तो म इसम कोई प रवतन नह करना चा ँगा।
यह सच है क म अ धक गहराई म जा सकता ँ और अ धक व तार से अमल करने के बारे म बता सकता ँ, परंतु
तब से अब तक जो पु तक का शत ई ह, उनम मुझे यह करने का पया त अवसर मला है।
उदाहरण के लये, 2,50,000 लोग के परी ण म यह पाया गया क तीसरी आदत यानी पहली चीज़ पहले
रख, सबसे उपे त आदत है। इस लये 1996 म का शत फ़ ट थ स फ़ ट पु तक सरी और तीसरी आदत म
यादा गहराई तक गई और इसने बाक़ सभी आदत के बारे म अ धक त य और उदाहरण भी जोड़े।
द 7 है बट् स ऑफ़ हाइली इफ़े टव फ़ै मलीज़ ने 7 आदत के चतन के ढाँचे का योग सु ढ़, सुखद और
अ त भावकारी प रवार को बनाने म कया।
साथ ही, मेरे बेटे सीन ने कशोराव था क अनूठ आव यकता , चय और चुनौ तय के लये इस ढाँचे का
योग करते ए ब त आकषक, मनोरंजक और श ा द तरीक़े से द 7 है बट् स ऑफ़ हाइली इफ़े टव ट स
लखी।
लाख लोग हम बता चुके ह क 7 आदत को अपनाने से उनके जीवन पर मह वपूण भाव पड़ा है और वे
रचना मक श बन गये ह। उनम से 76 ने ल वग द 7 है बट् स म साहस और ेरणा क अपनी ेरक कहा नयाँ
व तार से बताई ह - जनसे यह भी सा बत होता है क इन स ांत म हर तरह क गत, पा रवा रक और
संगठना मक थ त म कायापलट करने क श है, चाहे प र थ तयाँ, संगठना मक थ त या जीवन के पुराने
अनुभव कैसे भी रहे ह ।

पु तक के काशन के बाद आपने 7 आदत के बारे म या सीखा?

मने ब त सी चीज़ सीखी ह या सु ढ़ क ह। म सं ेप म अपने सीखे दस सबक़ बताना चा ँगा।


1. स ांत और जीवनमू य के अंतर को समझने का मह व। स ांत ाकृ तक नयम ह, जो हमसे परे ह। स ांत
अंतत: हमारे काय के प रणाम को नयं त करते ह। जीवनमू य आंत रक और परक ह तथा वे हमारे
वहार को दशा दे ने वाले सबसे श शाली कारक ह। हम यही आशा करते ह क हम स ांत को अपने
जीवनमू य बना लगे, ता क हम वतमान म अपने मनचाहे प रणाम इस तरह से मल, ता क हम भ व य म इससे भी
बड़े प रणाम हा सल कर सक, जो भावका रता क प रभाषा भी है। हर के जीवनमू य होते ह; अपरा धय
के गग के भी जीवनमू य होते ह। जीवनमू य लोग के वहार को नयं त करते ह, जब क स ांत उन वहार
के प रणाम को नयं त करते ह। स ांत हमसे अलहदा ह। चाहे हम उनके बारे म जाग क ह या न ह , चाहे हम
उ ह वीकार कर या न कर, चाहे हम उ ह पसंद कर या न कर, चाहे हम उनम वश्वास कर या न कर, चाहे हम
उनका पालन कर या न कर, वे काम करते ह। मुझे अब यह वश्वास हो चुका है क वन ता सभी गुण क जननी
है। वन ता कहती है क हम नयं ण म नह ह; स ांत नयं ण म ह, इस लये हम स ांत के सामने ख़ुद को
झुका लेते ह। गव कहता है क हम नयं ण म ह और चूँ क हमारे जीवनमू य हमारे वहार को नयं त करते ह,
इस लये हम अपने तरीक़े से जी सकते ह। हम ऐसा कर तो सकते ह, परंतु हमारे वहार के प रणाम हमारे
जीवनमू य से नह , ब क हमारे स ांत से उ प ह गे। इसी लये हम स ांत को ही अपना जीवनमू य बनाना
चा हये।

2. इस पु तक क साम ी के साथ मुझे नया भर म ब त से अनुभव मले ह। म इन स ांत क शाश्वत कृ त


को दे खने लगा ँ। उदाहरण और वहार म अंतर हो सकता है, सां कृ तक भ ता हो सकती है, परंतु स ांत वही
रहते ह। मने 7 आदत म समा हत स ांत को वश्व के सभी छह मुख धम म पाया है और उन सं कृ तय म
इन स ांत को सखाते समय दरअसल मने उनके धम ंथ से उ रण भी लये ह। मने ऐसा म य पूव, भारत,
ए शया, ऑ े लया, साउथ पै स फ़क, द ण अमे रका, यूरोप, उ र अमे रका, अ का इ या द महा प और
दे श म कया है। हम सब ी-पु ष एक जैसी सम या का सामना करते ह, हमारी आव यकताएँ समान होती ह
और हमारे भीतर न हत स ांत समान होते ह। याय या जीत/जीत के स ांत के बारे म हमारे भीतर एक
आंत रक एहसास होता है। हमम ज़ मेदारी, उद्दे य, अखंडता, स मान, सहयोग, सं ेषण और नवीनीकरण के
स ांत का आंत रक नै तक एहसास होता है। ये स ांत शाश्वत ह। परंतु इनके अनु प वहार करने का
तरीक़ा शाश्वत नह होता। यह थ त के अनुसार भ होता है। हर सं कृ त अपने अनूठे तरीक़े से इन शाश्वत
स ांत क ा या करती है।

3. मने 7 आदत के संगठना मक प रणाम दे खे ह, हालाँ क अगर तकनीक प से कहा जाये, तो संगठन म आदत
नह होती ह। इसक सं कृ त म नी तयाँ, मानदं ड, परंपरा या सामा जक आचार-सं हता होती ह, जो आदत का
त न ध व करती ह। संगठन म तं , याएँ और काय णाली भी होती ह। ये चीज़ आदत का त न ध व
करती ह। वा त वकता म, अं तम वश्लेषण म, सम त वहार गत होता है। यह गत है, हालाँ क
मैनेजमट ारा लये गये तं और ढाँचे, या तथा वहार संबंधी नणय के प म यह अ सर सामू हक
वहार का ह सा भी होता है। हमने लगभग हर उ ोग और वसाय के हज़ार संगठन के साथ काम कया है
और यह पाया है क 7 आदत म समा हत मूलभूत स ांत उन पर भी लागू होते ह तथा भावका रता को
प रभा षत करते ह।

4. आप कसी भी एक आदत से शु करके सभी 7 आदत को सखा सकते ह। और आप एक आदत को इस


तरीक़े से भी सखा सकते ह, जो बाक़ छह आदत को सखाने क ओर ले जा सके। यह एक होलो ाम क तरह है,
जहाँ पूण ह सा अंश म समा हत है और अंश पूण ह से म।

5. हालाँ क 7 आदत म अंदर से बाहर क ओर क नी त क अनुशंसा क गई है, परंतु यह सबसे सफलतापूवक


तब काम करती है, जब आप कसी बाहरी चुनौती से शु करते ह और फर अंदर से बाहर क ओर क नी त
अपनाते ह। सरे श द म, अगर आपके सामने संबंध को लेकर कोई सम या है, जैसे सं ेषण और वश्वास ख़ म
हो गया है, तो यह बतायेगी क कस कृ त क अंदर से बाहर क ओर क नी त आव यक है, जससे आपको वह
गत वजय मल सके, जो आपको उस सम या को र करने क सावज नक वजय पाने म समथ बनाये। यही
कारण है क म अ सर पहली, सरी और तीसरी आदत को सखाने से पहले चौथी, पाँचव और छठ आदत
सखाता ँ।

6. पर पर- नभरता आ म नभरता से दस गुना यादा मु कल है। इसम ब त अ धक मान सक और भावना मक


आ म नभरता क आव यकता होती है। जब सरा जीत/हार क मान सकता का हो, तब जीत/जीत के बारे
म सोचना ब त मु कल होता है। जब आपके भीतर का रोम-रोम अपनी बात समझाने के लये चीख़ रहा हो, तब
पहले समझने क को शश करना ब त मु कल होता है। जब समझौता करना ब त यादा आसान हो, तब बेहतर
तीसरे वक प क खोज करना ब त मु कल होता है। इसे सरे ढं ग से कहा जाये तो सर के साथ रचना मक
सहयोग के तरीक़े से सफलतापूवक काम करने के लये चुर आ म नभरता, आंत रक सुर ा और आ म- नयं ण
क आव यकता होती है। अगर ऐसा नह होगा तो जसे हम पर पर- नभरता कहते ह, वह दरअसल त- नभरता
है, जहाँ लोग अपनी आ म नभरता करने का ठ क उलटा करते ह या फर यह सह- नभरता है, जहाँ उ ह
अपनी आव यकता को पूरा करने और अपनी कमज़ोरी को उ चत ठहराने के लये सरे क कमज़ोरी क
ज़ रत होती है।

7. आप पहली तीन आदत को सं ेप म इस तरह से भी कह सकते ह, “वायदे करना और नभाना।” और आप


अगली तीन आदत को सं प
े म इस तरह से कह सकते ह, “सम या म सर को शा मल करना और मलकर
समाधान खोजना।”

8. 7 आदत एक नई भाषा का त न ध व करती है, हालाँ क इसम एक दजन से भी कम अनूठे श द या वा यांश


ह। यह नई भाषा एक कोड बन जाती है, कम श द म ब त यादा कहने क शॉटहड णाली बन जाती है। जब
आप सरे से कहते ह, “यह डपॉ ज़ट था या वद् ॉअल?” “यह रए टव है या ोए टव?” “यह सन ज टक
है या समझौता?” “यह जीत/जीत है या जीत/हार या हार/जीत?” “यह सबसे मह वपूण चीज़ को पहले रखना है
या सबसे मह वहीन चीज़ को पहले रखना है?” “यह शु आत अंत को यान म रखकर हो रही है या वतमान
को?” मने इन ब त ख़ास कोडवड् स म समा हत स ांत तथा अवधारणा क समझ और तब ता के ारा
सं कृ तय को पांत रत होते दे खा है।

9. अखंडता वफ़ादारी क तुलना म अ धक उ च जीवनमू य है। या इसे बेहतर तरीक़े से कहा जाये तो अखंडता
वफ़ादारी का सव च प है। अखंडता का अथ लोग या संगठन या प रवार पर नह , ब क स ांत पर क त
होना है। आप पायगे क लोग से संबं धत मु क जड़ यह है, “ या यह लोक य ( वीकाय, कूटनी तक) है या
यह सही है?” जब हम कसी काम को करते समय कसी या समूह के त अपनी वफ़ादारी को ाथ मकता
दे ते ह और इस वजह से उस काम को नह करते, जसे हम सही महसूस करते ह, तो हम अखंडता खो दे ते ह। हो
सकता है हम अ थायी तौर पर लोक यता हा सल कर ल या वफ़ादारी क़ायम कर ल, परंतु लंबे समय म अखंडता
क यह कमी उन संबंध को भी कमज़ोर बना दे गी। यह कसी क पीठ पीछे बुराई करने क तरह है। इस
तरह क आलोचना आप जसके सामने करते ह, वह जानता है क आप भ दबाव और प र थ तय म उसक
भी पीठ पीछे बुराई कर सकते ह। एक तरह से, पहली तीन आदत अखंडता का त न ध व करती ह और अगली
तीन आदत वफ़ादारी का, परंतु वे पूरी तरह आपस म गुँथी ई ह। समय के साथ अखंडता से वफ़ादारी उ प होती
है। अगर आप इस म को उलटने का यास करते ह और पहले वफ़ादारी दखाना चाहते ह, तो आप पायगे क
आप सफ़ ता का लक आव यकता क पू त कर रहे ह और अखंडता के साथ समझौता कर रहे ह। लोक य
बनने से वश्वसनीय बनना कह बेहतर है। अंतत: वश्वास और स मान से आम तौर पर ेम उ प होता है।

10. 7 आदत को जीना हर एक के लये सतत संघष है। हर समय-समय पर हर आदत म लड़खड़ाता है
और कई बार तो सभी आदत म ऐसा एक साथ होता है। 7 आदत को समझना तो आसान है, परंतु उन पर हमेशा
अमल करना मु कल है। उनम सहज बु है, परंतु उन पर अमल करना हमेशा सहज नह होता।

गत प से आपको कस आदत पर अमल करने म सबसे यादा मु कल होती है?


पाँचव आदत। जब म सचमुच थका होता ँ और मुझे यह वश्वास होता है क म सही ँ, तो म सचमुच सुनना नह
चाहता ।ँ हो सकता है म सुनने का अ भनय भी क ँ । मूलत: म उसी चीज़ का दोषी होता ,ँ जसके बारे म म
बात करता ँ - समझने के बजाय जवाब दे ने के इरादे से सुनना। दरअसल कुछ हद तक म लगभग हर दन सभी
सात आदत से संघष करता ँ। म उनम से कसी को नह जीत पाया ँ। म उ ह जीवन के ऐसे स ांत के प म
दे खता ँ, जनम हम दरअसल कभी पूरी तरह नपुण नह हो पाते ह। हम उनम महारत हा सल करने के जतने
क़रीब आते ह, हम उतने ही यादा जाग क होते ह क हम अभी सचमुच कतनी र और जाना है। यह उसी तरह
है क आप जतना अ धक जानते ह, उतना ही अ धक आपको यह पता होता है क आप कतना नह जानते।
इसी लये म अ सर अपने वश्व व ालय के व ा थय को 50 तशत अंक उनके श्न क गुणव ा के
लये दे ता था और 50 तशत उनके सवाल के जवाब क गुणव ा के लये। ान का उनका स चा तर इस तरीक़े
से यादा अ छे ढं ग से पता चलता है।
इसी तरह, 7 आदत ऊ वमुखी च का त न ध व करती ह।
पहली आदत का उ च तर इसी आदत के न न तर से ब त अलग होता है। हो सकता है, शु आती तर पर
ोए टव बनने का अथ सफ़ उ पन और त या के बीच के थान क जाग कता होना हो। अगले तर पर
इसम वक प शा मल हो सकते ह, जैसे कसी के पीछे न पड़ना या बदला न लेना। अगले तर पर, इसम फ़ डबैक
दे ना शा मल हो सकता है। इससे अगले तर पर इसम माफ़ माँगना शा मल हो सकता है। अगले तर पर माफ़ कर
दे ना। इससे अगले तर पर माता- पता को मा करना। इससे भी अगले तर पर मृत माता- पता को मा करना।
और अगले तर पर, कसी भी बात का बुरा न मानना।

ऊ वमुखी च य पथ

आप क लनकवी कंपनी के वाइस-चेयरमैन ह। या क लनकवी इन 7 आदत पर अमल करती है?

हम को शश करते ह। हम जो सखाते ह, उस पर अमल करने का सतत यास हमारे सबसे मूलभूत जीवनमू य म
से एक है। परंतु हम ऐसा आदश तरीक़े से नह कर पाते ह। कसी भी अ य वसाय क तरह, हम भी बाज़ार क
बदलती वा त वकता क चुनौ तय का सामना करना पड़ता है और पूव कवी लीडर शप सटर तथा क लन
वे ट क दो सं कृ तय को एक प करने क चुनौती का भी। यह वलय 1997 क ग मय म आ था। इन
स ांत पर अमल करने म समय, धैय तथा लगन क ज़ रत होती है और हमारी सफलता क असली परी ा लंबे
समय म होगी। कोई नैपशॉट सट क त वीर नह दे गा।
हर हवाई जहाज़ अ धकांश समय अपने मूलत: नधा रत माग से र उड़ता है, परंतु यह उड़ान क योजना पर
लौटता रहता है और अंतत: यह अपने गंत थान पर प ँच जाता है। यही य , प रवार या संगठन के प
म हम सबके साथ भी सच है। असली कुंजी “अंत को यान म रखना” है और नरंतर फ़ डबैक तथा या ापथ म
सतत सुधार करने के त साझा संक प है।

सात आदत ही य ? छह या आठ या दस या पं ह य नह ? सात के बारे म ऐसी या प व बात है?

सात के बारे म कोई प व बात नह है। बात सफ़ इतनी सी है क गत वजय क तीन आदत (चुनने क
वतं ता, वक प, काय) सावज नक वजय क तीन आदत (स मान, समझ, रचना मकता) के पहले आती ह और
फर बाक़ आदत का नवीनीकरण करना होता है। इस तरह से ये आदत सात ह।
जब यह सवाल पूछा जाता है, तो म हमेशा कहता ँ क अगर आप अ य कसी गुण को अपनी आदत बनाना
चाहते ह , तो आपको इसे सरी आदत म रखना होगा, य क यह वह जीवनमू य होगा, जसके अनु प आप
जीने क को शश करना चाहते ह। सरे श द म, अगर समयब ता एक अ छा गुण है, जसे आप अपनी आदत
बनाना चाहते ह, तो यह सरी आदत का एक जीवनमू य बन जायेगा। इस लये आपके दमाग़ म जो गुण आय,
उ ह आप सरी आदत यानी आपके जीवनमू य के तं म थान दगे। पहली आदत यह वचार है क आपके पास
जीवनमू य का एक तं हो सकता है, क आप अपने जीवनमू य का तं चुन सकते ह। सरी आदत बताती है क
वे वक प या जीवनमू य या ह और तीसरी आदत उनके अनु प जीना है। इस लये वे ब त मूलभूत, ापक और
पर पर-संब ह।
संयोग क बात है क 7 आदत के इस नये सं करण का उपसंहार लखते समय मने हाल ही म एक नई
पु तक पूरी क है, जसका शीषक है द एट् थ है बट: ॉम इफ़े टवनेस टु ेटनेस। कुछ लोग को लगेगा क इसे
आठव आदत कहना मेरे जवाब से भ है। परंतु दे खये, जैसा मने इस नई पु तक के शु आती अ याय म कहा है,
1989 म द सेवन है बट् स ऑफ़ हाइली इफ़े टव पीपुल के काशन के बाद नया म ब त गहन प रवतन ए ह।
अपने गत जीवन और संबंध म, अपने प रवार म, अपने ावसा यक जीवन म और अपने संगठन म हम
जन चुनौ तय और ज टलता का सामना करते ह, वे बलकुल अलग क़ म के ह। दरअसल, ब त से लोग
1989 को - जस वष ब लन क द वार गरी थी - सूचना युग क शु आत मानते ह, एक नई वा त वकता का ज म,
अ वश्वसनीय मह व का ापक प रवतन… सचमुच एक नया युग।
आज क नया म य और संगठन के लये अ त भावकारी बनना वैक पक नह है - यह खेल के
मैदान म उतरने क क़ मत है। परंतु इस नई वा त वकता म बचे रहने, उ त करने, योग करते रहने, उ कृ बनने
और नेतृ व करने के लये हम भावका रता को सु ढ़ बनाना होगा और इसके आगे जाना होगा। प रपूणता
(fulfillment) एक नये युग क माँग और आव यकता है। सम पत उ कृ ता, मह वपूण योगदान और महानता भी
नये युग क माँग और आव यकता ह। ये एक बलकुल ही अलग तर या आयाम पर ह। इनक कृ त एक- सरे से
बलकुल अलग है - जस तरह मह व और सफलता म अंतर अंश का नह , ब क कृ त का है। मानवीय तभा
और ेरणा के अ धक उ च दोहन - जसे हम आवाज़ कहते ह - के लये नई मान सकता, नई यो यता और नये
उपकरण क आव यकता होती है… और एक नई आदत क भी।
इस तरह आठव आदत सात आदत म सफ़ एक और आदत जोड़ना नह है - एक ऐसी आदत, जसे
जोड़ना हम पहले भूल गये थे। यह उन सात आदत म तीसरे आयाम क श को दे खने और उसका दोहन करने
के बारे म है, जो ान आधा रत युग क क य चुनौती का सामना कर सकती है।

सात आदत क नई वा त वकता - 8व आदत


लोक यता आपको कस तरह से भा वत करती है?

यह मुझे कई तरीक़ से भा वत करती है। अहम् के कोण से यह ब त अ छा लगता है। सखाने के कोण
से यह मुझे ब त वन बनाती है, परंतु म इस बात पर ज़ोर दे ना चाहता ँ क म इन स ांत म से कसी का
लेखक नह ँ और मुझे इसके लये ज़रा भी ेय नह दया जाना चा हये। म सफ़ वन और वनीत दखने क
इ छा के कारण ऐसा नह कह रहा ँ। म ऐसा इस लये कह रहा ँ, य क म इसम वश्वास करता ँ। म ख़ुद को
आपम से यादातर लोग क तरह दे खता ँ - स य और समझ क खोज करने वाले के प म। म कोई गु नह ँ;
गु कहे जाने से मुझे चढ़ होती है। मुझे एक भी श य नह चा हये। म तो सफ़ उन स ांत के त श य व को
बढ़ावा दे ने क को शश कर रहा ँ, जो पहले से ही लोग के दय म ह तथा ज ह लोग अपनी अंतरा मा के त
स चे रहकर जयगे।

अगर आपको बारा मौक़ा मले, तो आप बज़नेसमैन के प म कौन सी एक चीज़ अलग तरीक़े से करना
चाहगे?

म यादा सु नयो जत तरीक़े से, यादा ोए टव तरीक़े से, नयु और चुनाव करना चा ँगा। जब आप
अ याव यक काय म लगे ह और एक हज़ार गद हवा म ह , तो ऐसे लोग को मह वपूण पद पर नयु करना
ब त आसान होता है, जनके पास समाधान नज़र आते ह । ऐसे समय म उनक पृ भू मय और उनके व प को
गहराई से नह दे खा जाता है और इस दशा म “पया त मेहनत” नह क जाती है। इसके अलावा, व श
भू मका या काम को पूरा करने के लये आव यक मानदं ड को भी सावधानीपूवक वक सत नह कया जाता
है। मुझे वश्वास है क जब सु नयो जत तरीक़े से नयु याँ द जाती ह और चुनाव कया जाता है यानी णक
दबाव के बजाय लंबे समय के बारे म सोचकर और ोए टव तरीक़े से यह काम कया जाता है, तो इसके चुर
द घकालीन लाभ मलते ह। कसी ने एक बार कहा था, “ जसक हम सबसे यादा इ छा करते ह, उस पर हम
ब त आसानी से वश्वास कर लेते ह।” आपको च र और यो यता दोन े म सचमुच गहराई से दे खने क
ज़ रत है, य क अंतत: द घकाल म इन दोन म से कसी भी े म दोष प नज़र आने लगगे। मेरा वश्वास है
क हालाँ क श ण और वकास मह वपूण है, परंतु सही लोग को नयु करना और चुनना उससे यादा
मह वपूण है।

अगर आपको बारा करना पड़े, तो एक पता के प म आप कौन सी चीज़ अलग करगे?

एक पता के प म म सोचता ँ क काश मने अपने हर ब चे के साथ उसके जीवन क व भ अव था म


कोमल, अनौपचा रक जीत/जीत अनुबंध सावधानीपूवक वक सत करने म अ धक समय बताया होता। बज़नेस
और या ा के कारण मने ायः अपने ब च को लाड़- यार म रखा और ज़ रत से यादा बार हार/जीत वीकार
क , बजाय इसके क म संबंध बनाने क क़ मत चुकाता, ता क सु ढ़ जीत/जीत अनुबंध अ धक सतत प से
वक सत हो पाता।

ौ ो गक भ व य के वसाय को कस तरह बदलेगी?

मुझे टै न डे वस के व म वश्वास है क “जब इ ा चर बदलता है, तो हर चीज़ गड़गड़ाने लगती है।” मेरे
हसाब से ौ ो गक का इ ा चर हर चीज़ का क है। यह सम त अ छ और बुरी वृ य क र तार बढ़ा
दे गा। मुझे यह भी वश्वास है क इस वजह से मानवीय त व और भी यादा मह वपूण बन जाता है। हाई टे क बना
हाई टच के काम नह करती है और ौ ो गक जतनी भावशाली बनती है, उस ौ ो गक को नयं त करने
वाला मानवीय त व उतना ही मह वपूण बन जाता है। ऐसा ख़ासकर उस ौ ो गक के योग म लाये जाने वाले
मानदं ड के त सां कृ तक तब ता वक सत करने म होता है।

या आप 7 आदत क शाश्वत लोक यता ( सरे दे श /सं कृ तय /उ / लग ) से हैरान या


आ यच कत ह?

हाँ और नह । हाँ इस लये य क मुझे पता नह था क यह वश्व ापी बन जायेगी और इसके कुछ श द अमे रका
क श दावली म आ जायगे। नह इस अथ म क इस साम ी का परी ण 25 वष से अ धक तक कया जा चुका था
और म जानता था क यह मूलत: इस लये काम करेगी य क यह उन स ांत पर आधा रत है, जनका मने
आ व कार नह कया था और इस लये म उनका ेय नह ले सकता।

आप ब त छोटे ब च को 7 आदत सखाना कैसे शु करगे?

म सोचता ँ क ब चे पालने म म अ बट श्वेट्ज़र के तीन मूलभूत नयम के अनु प जीना पसंद क ँ गाः पहला,
उदाहरण; सरा, उदाहरण; तीसरा, उदाहरण। परंतु म उतनी र नह जाना चा ँगा। म यह क ँगा, पहला,
उदाहरण; सरा, परवाह करने वाला और समथन दे ने वाला संबंध; तीसरा, आदत म न हत कुछ आसान वचार
को ब च क भाषा म सखाना - 7 आदत क मूलभूत समझ और श दावली हा सल करने म उनक मदद करना
और उ ह सखाना क उनके अनुभव को स ांत ारा कैसे समझा जाये। उ ह प रभा षत करने द क कौन से
व श स ांत और आदत उनके जीवन म दखाई दे ती ह।

मेरे बॉस (जीवनसाथी, ब चे, म आ द) को सचमुच 7 आदत क ज़ रत है? आप कस तरह अनुशंसा


करगे क म उ ह यह कताब पढ़वा ँ ?

लोग इस बात क परवाह नह करते क आप कतना जानते ह, जब तक क उ ह यह पता न चल जाये क आप


उनक कतनी परवाह करते ह। वश्वसनीयता के च र के उदाहरण पर आधा रत वश्वास और खुलेपन का संबंध
बनाय और फर बताय क 7 आदत ने कस तरह आपक मदद क है। उ ह अपने जीवन के मा यम से यह दे खने
द क 7 आदत पर अमल करने पर या होता है। फर उ चत समय पर आप उ ह कसी श ण काय म म भाग
लेने के लये आमं त कर सकते ह या अपनी पु तक उपहार म दे सकते ह या जब अवसर मले, तो इसके कुछ
मूलभूत वचार सखा सकते ह।

आपक पृ भू म या है और आपने 7 आदत कैसे लखी?

यह समझा जाता था क म अपने पता का बज़नेस सँभालूँगा। बहरहाल, मने पाया क बज़नेस से यादा आनंद
मुझे लीडस को सखाने और श त करने म आता है। जब म हावड बज़नेस कूल म था, तब संगठन के
मानवीय पहलू म मेरी गहरी च जा त ई और म इसम संल न हो गया। बाद म मने घम यंग यु नव सट म
बज़नेस के वषय पढ़ाये और कई वष तक परामश दया, सलाह द और श ण दया। उस दौरान स ांत के
मब और संतु लत समूह के चार ओर संग ठत लीडर शप और मैनजमट वकास काय म को वक सत करने
म मेरी च जा त ई। ये अंतत: 7 आदत म वक सत हो गये। जब हमने संगठन म इस पर अमल करना शु
कया, तो ये 7 आदत स ांत-क त लीडर शप क अवधारणा म वक सत । मने यु नव सट छोड़ने का फ़ैसला
कया, ता क म पूणका लक प से सभी तरह के संगठन के ए ज़ी यू ट ज़ को श त कर सकूँ। ब त ही
सावधानीपूवक वक सत कये गये पाठ◌्य म के बाद हमने ऐसा बज़नेस तैयार कया, जसक वजह से हम इस
साम ी को नया भर के लोग तक ले जाने म समथ ए।

उन लोग पर आपक त या या होती है, जो यह दावा करते ह क उनके पास सफलता का स चा


फ़ॉमूला है?

म दो बात क ँगा। पहली, अगर उनक कही बात स ांत या ाकृ तक नयम पर आधा रत ह, तो म उनसे
सीखना चा ँगा और उनक अनुशंसा क ँ गा। सरी बात म यह क ँगा क हम शायद उ ह मूलभूत स ांत या
ाकृ तक नयम का वणन करने के लये अलग-अलग श द का योग कर रहे ह।
परश अ
व भ क से उ प होने वाली संभा वत
अनुभू तयाँ
परश ब
ऑ फ़स म वा ै ट II का एक दन

नी चेअ यंदया गया अ यास और


त ावहा रक तर पर
वश्लेषण इस तरह तैयार कया गया है, ता क आप ावसा यक प रवेश म
वा ै ट II के पैरेडाइम का भाव दे ख सक।
मान ली जये, आप दवा क एक बड़ी कंपनी के माक टग डायरे टर ह। आप हर दन क तरह ऑ फ़स का
अपना दन शु करने वाले ह। और जब आप उस दन कये जाने वाले काम पर नज़र डालते ह, तो आप हर काम
म लगने वाले समय का अनुमान लगाते ह।
आपक बगैर ाथ मकता क सूची म न न ल खत काय शा मल ह:

1. आप जनरल मैनेजर के साथ लंच करना चाहगे (1-1½) घंटा)।


2. आपसे एक दन पहले कहा गया था क आप अगले वष के लये अपना मी डया बजट तैयार कर ल (2 या 3
दन)।
3. आपक डे क पर “अंदर आने वाली फ़ाइल” इतनी यादा हो चुक ह क ये “बाहर जाने वाली फ़ाइल ” म
मलने लगी ह (1-1½) घंटा)।
4. आपको पछले महीने क ब के बारे म से स मैनेजर से बात करना है, जसका ऑ फ़स नीचे हॉल म है (4
घंटे)।
5. आपको कई प का जवाब दे ना है, जो आपक से े टरी के अनुसार अ याव यक ह (1 घंटा)।
6. आप अपनी डे क पर रखे ए मे डकल जन स पढ़कर नई जानकारी ा त करना चाहगे (½ घंटा)।
7. आपको अगले महीने होने वाली से स मी टग के लये एक तु त तैयार करना है (2 घंटे)।
8. ऐसी अफ़वाह है क ॉड ट “ए स” का पछला बैच वा लट कं ोल म पास नह आ।
9. एफ़डीए से कसी का फ़ोन आया था, जो चाहता था क आप ोड ट “ए स” के बारे म उससे फ़ोन
पर बात कर (½) घंटा)।
10. दोपहर दो बजे ए ज़ी यू टव बोड क मी टग है, परंतु आपको यह मालूम नह है क यह मी टग कस बारे म
है (1 घंटा)।

अब कुछ मनट नका लये और पहली, सरी तथा तीसरी आदत से आपने जो सीखा है, उसका योग
क जये। इससे आपको अपने दन के काय म को भावकारी प से व थत करने म मदद मल सकती है।

8 से 5 तक का टाइम-टे बल
आपको सफ़ एक दन क योजना बनाने के लये कहकर मने वत: स ताह के ापक संदभ को ख़ म कर
दया है, जो चौथी पीढ़ के टाइम मैनेजमट के लये मूलभूत है। परंतु आप नौ घंटे क समयाव ध म भी वा ै ट II
के स ांत-क त पैरेडाइम क श दे ख पायगे।
यह काफ़ हद तक प दख रहा है क सूची के अ धकांश काय वा ै ट I क ग त व धयाँ ह। छठे काम -
मे डकल जन स पढ़कर नई जानकारी ा त करना - के अलावा बाक़ हर काम मह वपूण भी दखता है और
अ याव यक भी।
य द आप ाथ मकता के म म नधा रत जीवनमू य और ल य का योग करने वाले तीसरी पीढ़ के
समय- बंधक ह, तो आपके पास म नधा रत करने का एक मान सक ढाँचा होगा। संभवत: आप हर काम के
सामने ए, बी और सी लखगे और फर इन तीन अ र म से येक के नीचे 1, 2, 3 लखगे। आप प र थ तय
पर भी वचार करगे, जैसे क अ य शा मल लोग क उपल धता तथा लंच करने के लये आव यक तकसंगत
समयाव ध। अंत म इन सब बात के आधार पर आप अपने दन का शेड्यूल तैयार करगे।
तीसरी पीढ़ के ब त से समय बंधक ने इस अ यास को उसी तरह से कया है, जैसा मने वणन कया है। वे
सूची तैयार करते ह क उ ह कब या करना है। व भन्न अनुमान के आधार पर वे प ता से समय नधा रत करते
ह क वे उस दन कतने काम नबटायगे या कम से कम उ ह शु करगे और बाक़ बचे काम को अगले दन या
कसी अ य समय के लये रख दगे।
उदाहरण के लये, अ धकांश लोग संकेत दे ते ह क वे सुबह 8 से 9 बजे के बीच के समय का योग
ए ज़ी यू टव बोड क मी टग का एजडा पता लगाने म करगे, ता क वे उसक तैयारी कर सक। वे दोपहर के
आसपास जनरल मैनेजर के साथ लंच तय करगे और एफ़डीए के फ़ोन का जवाब दगे। वे आम तौर पर योजना
बनाते ह क अगले एक या दो घंटे तक से स मैनेजर से चचा करगे और उन प से नबटगे जो अ यंत मह वपूण व
अ याव यक ह। इसके बाद वे ॉड ट “ए स” के पछले बैच के बारे म अफ़वाह क जाँच करगे, जो वा लट
कं ोल म पास नह आ है। दोपहर से पहले का बाक़ समय जनरल मैनेजर के साथ लंच मी टग क तैयारी करने म
गुज़रेगा। इसके अलावा दो बजे क ए ज़ी यू टव बोड क मी टग क तैयारी भी क जा सकती है या फर पछले
महीने क ब या ॉड ट “ए स” संबंधी जन सम या का पता चला हो, उनसे नबटा जा सकता है।
लंच के बाद का समय आम तौर पर ऊपर दये गये काम म से अधूरे काम को नबटाने म गुज़रता है। या फर
अ य मह वपूण व अ याव यक प का जवाब दे ने म गुज़रता है। “अंदर आने वाली फ़ाइल ” के ढे र को साफ़ करने
क दशा म ग त क जा सकती है। इसके अलावा अ य मह वपूण और अ याव यक काम से नबटा जा सकता
है, जो उस दन सामने आ गये ह ।
अ धकांश लोग महसूस करते ह क अगले साल के लये मी डया बजट क तैयारी व अगले महीने क से स
मी टग क तैयारी को संभवत: कसी और दन कया जा सकता है, जब वा ै ट I के अ धक मु े सामने नह ह गे।
प प से ये दोन काम वा ै ट II क ग त व धयाँ अ धक ह, जनका संबंध द घकालीन सोच और नयोजन से
है। मे डकल जन स को हमेशा एक तरफ़ रख दया जाता है य क वे प प से वा ै ट II से संबं धत ह और
ऊपर बताये गये वा ै ट II के दो काम क तुलना म संभवत: कम मह वपूण ह।
यह उस तरह क सोच है, जो तीसरी पीढ़ के समय- बंधक क आम तौर पर होती है, भले ही उनके इस बारे
म अलग-अलग वचार ह क वे कब या करगे?
जब आपने उन काम क सूची बनाई, तो आपका कोण या था? या यह तीसरी पीढ़ का कोण था?
या फर आपने वा ै ट II और चौथी पीढ़ के कोण को चुना था? (टाइम मैनेजमट मै स को दे ख।)

वा ै ट II कोण
आइये, अब वा ै ट II का कोण रखकर सूची के काम पर यान द। यह सफ़ एक संभा वत य है
और इसी तरह के अ य य भी रचे जा सकते ह, जो वा ै ट II के पैरेडाइम के तालमेल म ह , परंतु यह इसम
न हत सोच को दशाता है।
वा ै ट II के बंधक के प म आप पहचान लगे क अ धकांश पी ग त व धयाँ वा ै ट I म होती ह और
अ धकांश पी ग त व धयाँ वा ै ट II म होती ह। आप जान लगे क वा ै ट I को व थत करने यो य बनाने का
एकमा तरीक़ा वा ै ट II पर पया त यान दे ना है, जो मूलत: रोकथाम करता है और अवसर बनाता है तथा
वा ै ट III और IV के काम को “नह ” कहने का साहस रखता है।

2 बजे क बोड मी टग: हम यह मानगे क 2 बजे हाने वाली ए ज़ी यू टव बाड क मी टग का कोई एजडा नह है
या शायद आपको एजडा तब तक दे खने को नह मलेगा, जब तक क आप मी टग म न प ँच जाय। यह कोई
असामा य बात नह है। इसका नतीजा यह होता है क लोग म मी टग म बना तैयारी के आने क वृ बन जाती
है और वे जो मुँह म आता है, बोल दे ते ह। ऐसी मी टग आम तौर पर अ व थत होती ह और मूलत: वा ै ट I से
संबं धत मु पर क त होती ह, जो मह वपूण व अ याव यक दोन होते ह और जन पर अ सर आपस म अ ान
का आदान- दान होता है। इन मी टग म आम तौर पर समय बबाद होता है और घ टया प रणाम ा त होते ह। ये
अ सर भारी ए ज़ी यू टव के अहम् क तु से अ धक कुछ नह करती ह।
अ धकांश मी टग म वा ै ट II के मु े अ सर “अ य मु ” के प म वग कृत कये जाते ह। चूँ क
पा क सन के नयम के अनुसार “काम को पूरा करने के लये जतना समय नधा रत कया जाता है, काम उसी
अनु प फैल जाता है,” इस लये इन मु पर चचा करने के लये अ सर समय नह बचता। और अगर समय बचता
भी है, तो लोग वा ै ट I से इतने पट चुके होते ह, इतने थक चुके होते ह क उनके पास इन मु पर चचा करने के
लये ऊजा ही नह बचती है।
इस लये अगर आप वा ै ट II म आगे बढ़ना चाहते ह, तो आपको पहले तो अपना नाम एजडे म शा मल
करवाने का यास करना होगा, ता क आप इस बात को सबके सामने रख सक क ए ज़ी यू टव बोड क मी टग
का अ धकतम लाभ कैसे उठाया जा सकता है। हो सकता है आप उस तु त क तैयारी म सुबह एक या दो घंटे
का समय भी लगाय, भले ही आपको बोलने के लये सफ़ कुछ मनट का समय ही दया जाये और व तृत तु त
के लये अगली बोड मी टग म जगह द जाये। यह तु त इस बात के मह व पर अपना यान क त करेगी क हर
मी टग का एक प प से नधा रत उद्दे य और एक सु वचा रत एजडा हो, जसम हर उप थत को
योगदान दे ने का अवसर मले। अं तम एजडा ए ज़ी यू टव बोड के चेयरमैन ारा तैयार कया जायेगा और यह
वा ै ट II के मु पर पहले यान क त करेगा, जनके लये अ सर अ धक रचना मक सोच क ज़ रत होती
है। वा ै ट I के मु पर बाद म वचार कया जायेगा, य क इनम आम तौर पर अ धक मशीनी सोच क ज़ रत
होती है।
तु त म इस बात के मह व पर भी ज़ोर दया जायेगा क मी टग के तुरंत बाद इसम लये गये नणय सभी
संबं धत को भेजे जाय, जनम स पे गये काम और जवाबदे ही क तारीख़ का उ लेख हो। ये मुददे् फर भावी
एजड म रखे जायगे और काफ़ समय पहले भेज दये जायगे, ता क अ य लोग उन पर चचा करने के लये तैयारी
कर सक।
अगर हम सूची के एक काम यानी दो बजे क ए ज़ी यू टव बोड क मी टग को वा ै ट II के संदभ ढाँचे से
दे ख, तो इतना कुछ हो सकता है। इसके लये ोए ट वट के उ च तर क ज़ रत होती है, जसम इस मा यता
को चुनौती दे ने का साहस शा मल है क आपको काम को सूचीब करने क भी ज़ रत है। इसके लये सोच-
वचार या परवाह क भी ज़ रत है, ता क उस संकट के माहौल से बचा जा सके, जो अ सर बोड मी टग म छाया
रहता है।
शायद एफ़डीए के फ़ोन के अलावा सूची के हर आइटम पर इसी तरह वा ै ट II क सोच का कोण रखा
जा सकता है।

एफ़डीए के फ़ोन का जवाब दे ना: एफ़डीए के साथ संबंध क गुणव ा क पृ भू म के आधार पर आप सुबह ही
फ़ोन करते ह, ता क उससे मलने वाली जानकारी से उ चत तरीक़े से नबटा जा सके। इस काम को कसी सरे को
स पना मु कल होगा, य क इसम सरा संगठन शा मल है, जसम वा ै ट I क सं कृ त हो सकती है और हो
सकता है वह आपके त न ध से नह , ब क आपसे ही बात करना चाहता हो।
हालाँ क ए ज़ी यू टव बोड के सद य के प म आप अपने संगठन क सं कृ त को सीधे भा वत करने क
को शश कर सकते ह, परंतु आपके भाव का वृ शायद इतना बड़ा नह है क आप वा तव म एफ़डीए क
सं कृ त को भा वत कर सक, इस लये आप अनुरोध के अनुसार काम करते ह। य द आप फ़ोन करने के बाद यह
पाते ह क यह सम या लगातार या लंबे समय से सामने आ रही है, तो आप ऐसी सम या को भ व य म रोकने के
लये इस पर वा ै ट II क मान सकता का योग सकते ह। इस सम या को एक अवसर म पांत रत करने के
लये एक बार फर आपको काफ़ ोए ट वट क ज़ रत होगी, ता क एफ़डीए के साथ संबंध क गुणव ा को
सुधारा जा सके या सम या पर नवारक तरीक़े से काम कया जा सके।

जनरल मैनेजर के साथ लंच: जनरल मैनेजर के साथ लंच को आप वा ै ट II के द घकालीन मह व के मु पर


अनौपचा रक माहौल म चचा करने के लभ अवसर के प म दे ख सकते ह। इसके लये पया त तैयारी करने म
सुबह 30 से 60 मनट का समय भी लग सकता ह। या आप बना कसी योजना के सफ़ अ छ सामा जक चचा
करने तथा यानपूवक सुनने का फ़ैसला कर सकते ह। दोन ही संभावनाय आपको जनरल मैनेजर के साथ अपने
संबंध सु ढ़ करने का अ छा अवसर दान कर सकती ह।

मी डया बजट तैयार करना: सूची म शा मल सरे नंबर के काम के संबंध म आप दो-तीन सहयो गय को बुला
सकते ह, जो सीधे मी डया बजट क तैयारी से जुड़े ह । आप उनसे उनक सफ़ा रश सुझाने के लये कह सकते ह,
जो ‘ टाफ़ ारा पूण कया गया काम’ क ेणी म आते ह (इसक अं तम अनुशंसा करने म आपको सफ़ अपने
ह ता र करना ह गे) या शायद आप उनसे दो या तीन सु वचा रत वक प रेखां कत करने को कह सकते ह, जनम
से आप चुन सकते ह और हर वक प के प रणाम को प कर सकते ह। इसम दन म कसी भी समय आपका
एक घंटा लग सकता है, य क इस दौरान आप उ ह इ छत प रणाम , दशा नदश , संसाधन , जवाबदे ही और
नतीज क जानकारी दगे। परंतु इस एक घंटे का नवेश करके आप संबं धत लोग क सव म सोच का दोहन
करते ह, जनके कोण भन्न हो सकते ह। य द आपने यह नी त पहले कभी नह अपनाई हो, तो आपको उ ह
इसका श ण दे ने म थोड़ा यादा समय दे ने क ज़ रत हो सकती है। आपको उ ह यह भी सखाना पड़ेगा क
‘ टाफ़ ारा पूण कये गये काम’ का या अथ होता है, मत भन्नता के त सन ज टक तरीक़ा कैसे रखा
जाता है और स म लत वक प तथा प रणाम को कैसे पहचाना जाता है।

“इन” बा केट (आई ई डाक या फ़ाइल) और प ाचार: अपनी “इन” बा केट म कूद पड़ने के बजाय आप
अपनी से े टरी को श ण दे ने क या शु करने म कुछ समय लगाय, शायद तीस से साठ मनट। उसे इस
तरह श त कर, ता क वह धीरे-धीरे “इन” बा केट और सूची के पाँचव नंबर के प ाचार वाले काम को नबटाने
म स म हो जाये। यह श ण काय म कई ह त , ब क महीन तक चल सकता है, जब तक क आपक
से े टरी व धय क मान सकता के बजाय वा तव म प रणाम क मान सकता अपनाने म स म न हो जाये।
से े टरी को श त कया जा सकता है क वह प ाचार के सभी काम और “इन” बा केट क साम ी को
दे ख ले, उनका वश्लेषण करे और जतने काम वह ख़ुद कर सकती हो, कर दे । जन मामल को वह वश्वास के
साथ नह नबटा सकती हो, उ ह वह सावधानी से मह व के म म जमाकर आपके पास ला सकती है, जनके
साथ आपके ारा उठाये जाने वाले क़दम क अनुशंसा या ट पणी हो सकती है। इस तरह से कुछ ही महीन म
आपक से े टरी या सहायक आपके ‘इन’ बा केट तथा प ाचार के 80 से 90 तशत काय वयं सँभाल सकती है
और शायद वह उ ह आपसे बेहतर तरीक़े से कर सकती है, य क आपका म त क वा ै ट I क सम या म
उलझे रहने के बजाय वा ै ट II के अवसर पर क त होगा।

से स मैनेजर और पछले महीने क ब : चौथे नंबर के काम के लये वा ै ट II का संभा वत कोण यह


होगा क आप उस से स मैनेजर के साथ अपने संबंध तथा काय- दशन के अनुबंध के बारे म सोच, ता क आप यह
जान सक क यहाँ वा ै ट II के कोण पर अमल कया जा रहा है या नह । यह अ यास आपको यह संकेत
नह दे ता क आपको उस से स मैनेजर से कस बारे म बात करना है, परंतु हम यह मान लेते ह क यह वा ै ट I
का काम है। फर भी आप वा ै ट II का कोण रख सकते ह तथा सम या क द घकालीन कृ त पर काम कर
सकते ह। साथ ही, ता का लक आव यकता पूरी करने के लये आप वा ै ट I के कोण का योग भी कर
सकते ह।
संभवत: आप से े टरी को श त कर सकते ह क वह इस मामले को बना आपको शा मल कये सुलझा
ले और आपके यान म केवल वे ही मामले लाये, जनक जानकारी आपको होना चा हये। इसके लये आपको
अपने से स मैनेजर व अ य अधीन थ लोग के साथ वा ै ट II के कोण से काम करना होगा, ता क वे समझ
सक क आपका ाथ मक काय मैनेजमट नह , लीडर शप है। हो सकता है वे यह समझ ल क वे दरअसल आपके
बजाय आपक से े टरी के साथ सम या को बेहतर तरीक़े से सुलझा सकते ह और आपको वा ै ट II के
लीडर शप काय के लये मुक्त कर सकते ह।
य द आप महसूस करते ह क आपके बजाय आपक से े टरी ारा संपक करने से से स मैनेजर को बुरा लग
सकता है, तो आप उस संबंध को मज़बूत करने क या शु कर सकते ह, ता क आप अंतत: से स मैनेजर का
वश्वास जीत सक और उसे इस बात का भी यक़ न दला सक क वा ै ट II का कोण अपनाना आप दोन
के लये ही अ धक लाभकारी होगा।

मे डकल जन स पढ़कर जानकारी ा त करनाः मे डकल जन स पढ़ना वा ै ट II क ऐसी ग त व ध है,


जसे आप टालना चाह सकते ह। परंतु हो सकता है आपक द घकालीन द ता और वश्वास के पीछे काफ़ हद
तक इस सा ह य के ान का योगदान हो। इस लये आप इस वषय को अपनी टाफ़ मी टग के एजडा म रखने का
फ़ैसला कर सकते ह। इस मी टग म आप यह सुझाव दे सकते ह क टाफ़ म मे डकल जन स को पढ़ने क एक
सु नयो जत नी त अपनाई जाये। टाफ़ के सद य व भन्न जन स का अ ययन करके अगली मी टग म बाक़
लोग को उसका सार बता सकते ह। इसके अलावा, वे सर को ऐसे मुख लेख या मु य अंश भी दान कर सकते
ह, ज ह सबको पढ़ने और समझने क सचमुच ज़ रत हो।

अगले महीने क से स मी टग क तैयारी करनाः सूची के सातव नंबर के काम के संबंध म वा ै ट II का


संभा वत कोण यह हो सकता है क आप अपने अधीन थ के एक छोटे समूह को से समैन क ज़ रत का
वश्लेषण करने का काम स प। आप उ ह यह काम स प सकते ह क एक स ताह या दस दन के भीतर वे टाफ़
ारा पूण कये गये काम क अनुशंसा कर, ता क आपको इसे सुधारने और इस पर अमल करने के लये पया त
समय मल सके। इसके लये यह आव यक हो सकता है क उ ह हर से समैन या त न ध से समैन क
वा त वक चता और ज़ रत का पता लगाने के लये उनका इंटर ू लेना पड़े, ता क से स मी टग का एजडा
ासं गक हो और उसे समय रहते भेजा जा सके, जससे से समैन तैयारी कर सक और इसम समु चत प से
शा मल हो सक।
से स मी टग क तैयारी ख़ुद करने के बजाय आप इस काम को एक छोटे समूह को स प सकते ह, जो भ
कोण और भ कार क से स सम या का त न ध व करते ह । उ ह आपस म सृजना मक व
रचना मक प से चचा करने द और अपने सामने अं तम अनुशंसा तुत करने द। य द वे इस तरह के काम के
आद नह ह, तो हो सकता है आपको उस मी टग का कुछ ह सा उ ह चुनौती दे ने और श त करने म बताना
पड़े। आप उ ह बता सकते ह क आप इस कोण का योग य कर रहे ह और इससे उ ह भी कस तरह लाभ
होगा। ऐसा करते समय आप अपने लोग को द घकालीन सोच रखने, टाफ़ का काय या अ य इ छत प रणाम पूरा
करने के लये ज़ मेदार होने, पर पर- नभर तरीक़ से एक- सरे के साथ रचना मक चचा करने व नधा रत
समयसीमा के भीतर गुणव ापूण काम करने के लये श त करना शु कर रहे ह।

ोड ट “ए स” एवं वा लट कं ोल: अब आइये ाडे ट “ए स” से संबं धत सूची के आठव नंबर के काम पर


ग़ौर कर, जो वा लट कं ोल म पास नह हो पाया था। वा ै ट II का कोण यह होगा क आप यह दे खने के
लये इस सम या का अ ययन कर क या इसके साथ कोई द घकालीन या थायी आयाम जुड़ा आ है। य द ऐसा
है, तो आप इस पुरानी सम या का वश्लेषण करने का काम सर को इस आदे श के साथ स प सकते ह क वे
आपके सामने अपनी सफ़ा रश तुत कर, या शायद यह भी कह सकते ह क वे जस न कष पर प ँचे, उसे लागू
कर और आपको प रणाम क जानकारी द।

कायालय म वा ै ट II के इस दन का कुल भाव यह होगा क आप अपना अ धकांश समय काय स पने,


श त करने, बोड तु त तैयार करने, एक फ़ोन करने तथा एक सफल लंच करने म लगा रहे ह। द घकालीन
पीसी कोण अपनाने से शायद कुछ ही ह त या महीन म आपको वा ै ट I क इस तरह क कायसूची क
सम या का दोबारा सामना नह करना पड़ेगा।
हो सकता है इस वश्लेषण को पढ़ते समय आप यह सोच रहे ह क यह कोण आदशवाद दखता है। हो
सकता है आप सोच रहे ह क वा ै ट II के बंधक या कभी वा ै ट I म काम करते ह।
म वीकार करता ँ क यह आदशवाद है। यह पु तक अ त अ भावकारी लाग क आदत के बारे म नह
है; यह अ त भावकारी लोग क आदत के बारे म है। और अ त भावकारी होना आदश बनने क दशा म
काय करना है।
नश् चत प से आपको वा ै ट I म समय दे ने क ज़ रत होगी। कभी-कभी वा ै ट II क सव म प
से तैयार क गई योजनाय भी सफल नह होत । परंतु वा ै ट I को पया त प से व थत होने यो य अनुपात म
घटाया जा सकता है, ता क आप हमेशा तनावपूण संकट के माहौल म न रह, जससे आपक नणयशक् त और
सेहत पर नकारा मक भाव पड़ता है।
नश् चत प से इसके लये ब त धैय और लगन क ज़ रत होगी और हो सकता है क आप इस समय इन
सभी या इनम से अ धकांश काम के संदभ म वा ै ट II का कोण अपनाने म समथ न ह । परंतु य द आप
इनम से कुछ पर भी थोड़ी मेहनत करना शु कर सक और सरे लोग तथा वयं म वा ै ट II क मान सकता
पैदा कर सक, तो आगे चलकर आपके काय म ब त अ धक सुधार होगा।
म फर से यह वीकार करता ँ क हो सकता है प रवार म या छोटे ापा रक ढाँचे म इस तरह से काय
स पना संभव न हो। परंतु इसके बावज़ूद वा ै ट II के सोचने के ढं ग से ब त लाभ होता है। वा ै ट II क पहल
करने के मा यम से वा ै ट I के संकट का आकार कम करने के लये आप अपने भाव के वृ के भीतर चकर
व रचना मक तरीक़े खोज लेते ह।
लेखक के बारे म

प त, पता और दादा क भू मकाय नभा रहे ट फ़न आर. कवी अंतररा ीय तर पर स मा नत लीडर शप


श क, पा रवा रक वशेष , श क, संगठना मक परामशदाता, पूव कवी लीडर शप सटर के सं थापक तथा
क लन कवी कंपनी के सह-अ य ह। उ ह ने स ांत-क त जीवन और स ांत-क त लीडर शप सखाने को
अपने जीवन का उद्दे य बना लया है। उनके पास हावड से एम.बी.ए. तथा घम यंग यू नव सट से पीएच. डी.
क ड याँ ह। वे घम यू नव सट म संगठना मक वहार व बज़नेस मैनेजमट के ोफ़ेसर रह चुके ह। इसके
अलावा उ ह ने वश्व व ालय संबंध के नदे शक और े सडट के सहायक के प म भी काय कया। तीस वष से
भी अ धक समय तक उ ह ने लाख लोग , प रवार , बज़नेस लीडस, श क और सरकारी अ धका रय को
स ांत या ाकृ तक नयम क उस कायापलट करने वाली श का श ण दया है, जो मानवीय और
संगठना मक भावका रता को संचा लत करती है।
डॉ. कवी द 7 है बट् स ऑफ़ हाइली इफ़े टव पीपुल स हत कई शं सत पु तक के लेखक ह। द 7
है बट् स ऑफ़ हाइली इफ़े टव पीपुल सात साल से भी अ धक समय तक बे टसेलर सू चय म शीष पर रह
चुक है। अ ाइस भाषा और स र दे श म इसक डेढ़ करोड़ से भी अ धक तयाँ बक चुक ह। उनक अ य
पु तक सपल-सटड लीडर शप तथा फ़ ट थ स फ़ ट दशक क बे टसे लग बज़नेस पु तक म ह।
डॉ. कवी स हत क लन कवी के अ य लेखक , व ा एवं लीडर शप तथा भावका रता के वषय पर
सभी व ान क पूरी नया म रे डयो व टे ली वज़न टे शन , प का और समाचार-प म लगातार ब त माँग
रहती है।
डॉ. कवी को हाल ही म दये गये स मान म उनके ारा क जा रही मानवता क नरंतर सेवा के लये थॉमस
मूर कॉलेज मेडल, टो टमा टस इंटरनेशनल टॉप पीकर अवाड, इंक मै ज़ीन का नेशनल इंटर े योर ऑफ़ द इयर,
उ मी लीडर शप के लये लाइफ़टाइम एचीवमट अवाड तथा कई मानद डॉ टरेट उपा धयाँ शा मल ह। उ ह टाइम
प का के प चीस सवा धक भावशाली अमे र कय म शा मल होने का गौरव भी ा त आ है।
ट फ़न अपनी प नी सै ा एवं अपने प रवार के साथ यूटा के रॉक माउ टस म रहते ह।
क लन कवी कंपनी के बारे म
ट फ़न आर. कवी क लन कवी कंपनी के सह-अ य ह, जो 4000 सद य वाली अंतररा ीय सं था है।
यह कंपनी य , संगठन और प रवार को आज़माये ए स ांत या ाकृ तक नयम के योग से अ धक
भावकारी बनने म मदद करने के लये सम पत है। लोग और प रवार के साथ काम करने तथा उनके लये
ॉड ट तैयार करने के अलावा, कंपनी के ाहक क सूची म फ़ॉरचू न 100 कंप नय क 82 कंप नयाँ और
फ़ॉरचू न 500 कंप नय क दो- तहाई से अ धक कंप नयाँ शा मल ह। इसके अलावा इसके ाहक म थानीय,
ादे शक और रा ीय तर क हज़ार छोट व म यम आकार क कंप नयाँ तथा सरकारी संगठन शा मल ह।
क लन कवी ने उन शहर के साथ मलकर पायलट पाटनर शप योजनाएँ भी शु क ह, जो स ांत-आधा रत
समुदाय बनना चाहते ह। वतमान म यह दे श भर म तीन हज़ार से अ धक कूली जल और वश्व व ालय म
श क तथा शासक को सात आदत सखा रही है। यह ादे शक पहल के मा यम से 27 रा य म शै णक
लीडस के साथ काम कर रही है।
क लन कवी का ल य लोग को ख़ुद सीखना सखाना है, ता क वे कंपनी पर नभर न रह। कंपनी संगठन
को प रवार के त म वत वहार करना सखाती है। इसके अलावा यह ऐसी नपुणताएँ सखाती है और
ॉड ट् स दान करती है, ता क लोग अपने कायालयीन जीवन और पा रवा रक जीवन म संतुलन बना सक।
लाओ ज़ू क अमर सू है: “ कसी को एक मछली दे द, तो आप उसे एक दन के लये भोजन दे ते ह; परंतु उसे
यह सखा द क मछली कैसे पकड़ी जाती है, तो आप उसे जीवन भर के लये भोजन दे दे ते ह।” इसम क लन
कवी कंपनी यह जोड़ दे ती है, “मछु आर को श क के प म वक सत कर द, तो आप पूरे समाज का उ थान कर
दे ते ह।” सश करण क यह या यूटा के रॉक माउ टस थत प रसर म आयो जत काय म , क टम ऑन-
साइट े नग व ाहक ारा आयो जत श ण के मा यम से चलती है। इसके अलावा उ र अमे रका के 300
शहर और नया भर के 40 दे श म खुले वेश वाली वकशॉ स भी आयो जत क जाती ह।
क लन कवी कंपनी के पास 7000 से भी अ धक लाइससधारी सहायक ह, जो अपने सं थान म इसके
पाठ◌्य म को सखा रहे ह और यह तवष 7,50,000 से अ धक तभा गय को श त करती है। अमल
करने के उपकरण के मा यम से, जनम क लन डे लानर, सेवन है बट् स ऑगनाइज़र, ऑ डयो व वी डयो टे स,
पु तक व क यूटर सॉ टवेअर ो ा स क व तृत रज शा मल है, यह ाहक को इन अवधारणा तथा
नपुणता का भावकारी योग करने म समथ बनाती है। ये और क लन कवी कंपनी ारा सावधानीपूवक
चय नत व अनुशं सत अ य पा रवा रक ॉड ट् स पूरे उ र अमे रका तथा कई अ य दे श म 117 से भी अ धक
क लन कवी 7 है बट् स टोस म उपल ध ह।
क लन कवी कंपनी के ॉड ट् स व साम याँ अब 28 भाषा म उपल ध ह। उनके लानर ॉड ट् स का
योग पूरी नया म 1.5 करोड़ से भी अ धक लोग करते ह। कंपनी क डेढ़ करोड़ से अ धक पु तक छप चुक ह
और हर साल 15 लाख पु तक बकती ह। बज़नेस वीक ने डॉ. कवी क सेवन है बट् स ऑफ़ हाइली इफ़े टव
पीपुल को वष क नंबर वन बे ट से लग बज़नेस बुक क ेणी द है तथा टाइम मैनेजमट क पु तक फ़ ट थ स
फ़ ट को तीसरे नंबर क बे टसे लग पु तक का दजा दया है।
क लन कवी 7 है बट् स टोर या अपने नकटतम अंतररा ीय कायालय के बारे म जानकारी के लये अथवा
क लन कवी ॉड ट् स व काय म के मु त कैटे लॉग के लये नीचे लखे पते पर फ़ोन कर या लख:

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Blythe Road
London W14 0HN
Tel: (44-171) 602 6557
Fax: (44-171) 602 2166
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Tel No: 632-426-6121, 632-924-4490
Fax No: 632-426-5935
Territory:
Philippines
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mcar@pusit.admu.edu.ph
OP: Jimmy
jimar@admu.edu.ph

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19 Tanglin Road
#05-18 Tanglin Shopping Ctr.
Territory: Singapore 247909
Tel No: 65 6838 0777, Fax No: 65 6838 9211
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Territory:
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88-9 Nonhyun-Dong Kangnam-Ku
Seoul, 135-010 Korea
Tel No: 82-2-2106-4100
Fax No: 82-2-2106-4001
Web: www.eklc.co.kr
Territory:
South Korea
GM / Operations / Orders Contact
GM: Ken Gimm
kengimm@eklc.co.kr
OP: Justin Lee
justin@eklc.co.kr

Thailand
PacRim Leadership Center Co., Ltd.
59/387-389 Moo 4
Ramkhamhaeng Road
Sapansoong, Sapansoong, Bangkok 10240
Thailand
Tel No: 662-728-1224
Fax No: 662-728-0211
Email: plc@pacrimgroup.com
Web: www.pacrimgroup.com
Territory:
Thailand
GM / Operations / Orders Contact
GM: Porntip Iyimapun
porntip@pacrimgroup.com
OP: Paisan
paisan_k@pacrimgroup.com

Americas
Argentina
FranklinCovey Organizational Services
LFCA S.A.
Cerrito 774, Piso 11
C1010AAP, Buenos Aires, Buenos Aires
Argentina
Tel No: 54 (11) 4372-5648
Fax No: 54 (11) 4383-0226
Territory:
Argentina
GM / Operations / Orders Contact
GM: Roberto Nul
roberto.nul@attglobal.net
OP: Marta Aranzasti
maranzasti@franklincovey.com.ar

Bermuda
Effective Leadership Bermuda
4 Dunscombe Rd.
Warwick, WK08
Territory:
Bermuda
Tel No: 441-236-0383
Fax No: 441-236-0192
Email: franklincovey.bda@cwbda.bm
Territory:
Bermuda
GM / Operations / Orders Contact
GM: Martha Kirkland
marthak@logic.bm
OP:
franklincoveybda@cwbda.bm

Canada Quebec
Big Knowledge
360 St.-Jacques St. West, Suite 111
Montreal, Quebec H3C 1L5
Canada
Tel No: 514-844-2300
Fax No: 514-844-0706
Web: www.bigknowledge.com
Territory:
Quebec
PRES: Alain LaFrance
alafrance@bigknowledge.com
CEO: Renaud LaFrance
rlafrance@bigknowledge.com

Colombia
CLC Colombia, SA
Calle 90 No. 11 A-34
Oficina 101
Santa Fe de Bogota
Colombia
Tel No: 57 1 610-2736
Fax No: 57 1 610-2723
Email: franklincoveyco@fcla.com
Territory:
Colombia, Ecuador, Peru, Bolivia, Chile, Venezuela & Paraguay
(Paraguay shared w/ Uruguay Licensee)
GM / Operations / Orders Contact
GM: Juan Manuel Ruiz
juanmanuelruiz01@hotmail.com
OP: Patricia Buenaventura
pb.fc.col@colomsat.net.co
Peru
OP:
emonsante@cegag.com

Latin America
Advantage Management International, Inc.
3377 Forsyth Road
Winter Park, FL 32792
Tel No: 407-644-7117
Fax No: 407-644-5919
Email: franklincovey@fcla.com
Web: www.fcla.com
Territory:
Belize, Honduras, Nicaragua, El Salvador, Costa
Rica, Guyana, French Guyana & Surinam,
Bahamas, U.S. Virgin Islands, British Virgin
Islands, Haiti, Netherlands Antilles (Aruba,
Bonaire, Curacao & St. Martin) St.
Bartholomeu, St. Kitts, Martinique, Guadalupe & Cayman Islands
Cuba (if and when trade restrictions are removed, etc.)
GM / Operations / Orders Contact
GM: Tomas Morell
tmorell@fcla.com
OP: Eduardo Reyes
perfiles@fcla.com

Panama
Leadership Technologies, Inc.
Bella Vista, Avenida Federico Boyd
Edificio Alfaro - 1er Piso
Panama, Republic de Panama
Tel No: 507-264-8899
Web: www.fcla.com
Territory:
Panama
GM / Operations / Orders Contact
GM: Jose Miralles (Pepe)
jmiralles@fcpma.com
OP: Manuel Miralles
memiralles@fcpma.com

Puerto Rico
FranklinCovey Puerto Rico
Suite 112 MSC 388
100 Gran Bulevar Paseos
San Juan, Puerto Rico 00926-5955
Tel No: 787-977-4065, 787-977-4068,
787-644-9094
Fax No: 787-977-4067
Email: coveypr@coqui.net
Territory:
Puerto Rico, Dominican Republic & Guatemala
GM / Operations / Orders Contact
GM: Walter Santaliz
wsantaliz@fcla.com
OP: Melisa Reyes
coveypr@coqui.net

Guatemala Office
5a, Avenida 5-55 Zona 14
Edificio EuroPlaza Torre II, Oficina 404A
Guatemala
Tel No: (502) 385-3494
(502) 385-3495, (502) 385-3496,
(502) 385-3497
Fax No: (502) 385-3407
Email: franklincoveygu@fcla.com
ordenesgu@fcla.com
fcguatemala@hotmail.com
Web: www.fcla.com
GM / Operations / Orders Contact
OP:
ordenesgu@fcla.com

Trinidad & Tobago


Leadership Consulting Group Limited
#23 Westwood Street
San Fernando
Trinidad, West Indies
Tel No: 868-652-6805, 868-653-4313
Fax No: 868-657-4432
Email: lcg@rave-tt.net
Territory:
Trinidad & Tobago, Barbados, Jamaica &
St.
Lucia
GM / Operations / Orders Contact
GM: Curtis Manchoon
cmanchoon@nbn.co.tt
OP: lcg@rave-tt.net

Uruguay
FranklinCovey Uruguay
Torre Nauticas
Torre 24 / Of. 1204
Calle Publica 1234
Montevideo, 11300
Uruguay
Tel No: 59-82-628-6139
Fax No: 59-82-628-6117
Email: franklincoveyur@fcla.com
Web: www.fcla.com
Territory:
Uruguay & Paraguay
(Paraguay shared w/ Colombia Licensee)
GM / Operations / Orders Contact
GM: Guillermo Garrone
franklincoveyur@fcla.com
OP: Maria Laura Methol
fcuruadm@adinet.com.uy

Europe/MIddle East/Africa
Benelux
FranklinCovey Benelux
Ruimtesonde 3
3824 MZ Amersfoort
The Netherlands
Tel No: +31 33 453 0627
Fax No: +31 33 456 76 36
Email: info@franklincovey.nl
Web: www.franklincovey.nl
Territory:
Belgium, Netherlands & Luxembourg
GM / Operations / Orders Contact
GM: Jan Kuipers
j.kuipers@franklincovey.nl
OP: Jolanda Prijs
j.prijs@franklincovey.nl

Egypt
Egyptian Leadership Training Center
122 Mohi El-Din Abou El-Ezz Str.
Mohandessin
Giza,
Egypt
Tel No: +2 02 33 68 911
Fax No: +2 02 76 15 181
Email: fc_eltc@sofiocom.com.eg
customerservice@eltc.com.eg
Territory:
Egypt
GM / Operations / Orders Contact
GM: Hisham El-Bakry
helbakry@eltc.com.eg
Hazem Hamdy
hhamdy@eltc.com.eg
OP: Lamyaa Farouk
fc_eltc@sofiocom.com.eg

Estonia
7H Eesti OU
Kreutzwaldi 12
10124 Tallinn
Estonia
Tel No: +372 683 0315
Fax No: +372 683 0314
Email: 7H@7harjumust.ee
Web: www.7harjumust.ee
Territory:
Estonia
GM / Operations / Orders Contact
GM: Ilmar Raudsep (Gil)
ilmar@yahoo.com

France
FranklinCovey France
Cegos SA
Unité FranklinCovey
11, rue René Jacques
92798 Issy-les-Moulineaux cedex 9
France
Tel No: +33 1 55 00 94 01
Fax No: +33 1 40 95 28 05
Email: info@franklincoveyfrance.com
Web: www.franklincoveyfrance.com
Territory:
The French Republic
GM / Operations / Orders Contact
GM: Odile Salmon
osalmon@cegos.fr
Catherine Goutte
cgoutte@cegos.fr
OP: Nicolas Chaoui
nicolas.chaoui@cegos.fr

Germany
FranklinCovey®GSA (Germany, Switzerland, Austria)
Focus & Execution Ltd.
c/o FranklinCovey GSA
Gustav-Stresemann-Ring 1
65189 Wiesbaden
Tel No: +49 (0)611 9777-4215
Fax No: +49 (0)611 9777-4111
Email: info@franklincovey.de
Web: www.franklincovey.de
Territory:
Germany, Switzerland & Austria
GM / Operations / Orders Contact
GM: Leon van Melick
l.vanmelick@franklin-covey.biz
Ricardo Lillo
r.lillo@doortraining.de
Frauke Ion
f.ion@franklincovey.de
OP: Luisella
l.digiorgio@doortraining.de

Greece
ATHENS OFFICE
26 Perikou Str. Paleo Psixiko
115 24 Athens
Greece
Tel No: + 30 210 69 85 946
Fax No: + 30 210 69 85 947
Email: dms@sparknet.gr
Web: www.franklincoveygreece.gr
Territory:
Greece, Cyprus & Serbia
GM / Operations / Orders Contact
GM: Antony Antoniadis
dms@spark.net.gr

THESSALONIKI OFFICE
19 Karolou Dil Str.
546 23, Thessaloniki
Greece
Tel No: + 3 2310 273 979
Fax No: + 3 2310 271 945
OP: Despina Siskou
despinaSiskou@edoortraining.gr
Israel
Momentum Training Ltd.
Moshav Kfar,
Hess, 40692
Israel
Tel No: + 972 9 7961055
Fax No: + 972 9 7961055
Email: goz@momentumtraining.co.il
Territory:
Israel
GM / Operations / Orders Contact
GM: Aviad Goz
goz@inter.net.il
OP: Silvia
silvia@momentumtraining.co.il

Italy
Cegos Italia S.p.A
Piazza Velasca 5
20122 Milano
Italy
Tel No: +39 (2) 80 67 21
Fax No: +39 (2) 72 00 16 47
Email: servizio.clienti@cegos.it
Web: www.cegos.it
Territory:
The Republic of Italy & Malta
GM / Operations / Orders Contact
GM: Paolo Cavalleri
paolo.cavalleri@cegos.it
OP: Barbara Calvi
barbara.calvi@cegos.it

Lebanon
Starmanship & Associates
Badaro Street,
Komeir Bldg(CNSS)
P.O. Box 167089,
Beirut, Lebanon
Tel No: + 961 1 393 494, Fax No: + 961 1 386 451
Email: starman@cyberia.net.lb
Territory:
Lebanon
GM / Operations / Orders Contact
GM: Raja Haddad
starman@cyberia.net.lb

Nigeria
FranklinCovey Organisation Services, Nigeria
ReStraL Limited
12th Floor, St. Nicholas house
Catholic Mission Street
Lagos, Nigeria
Tel No: + 234-1-2645885, +234-1-2632239
+234-1-2632850, +234-1-4705124
+234-1-2880883, Fax No: +234-1-2635090
Email: enquiries@restral.com
Web: www.franklincoveynig.com
www.restral.com
Territory:
Nigeria
GM / Operations / Orders Contact
GM: Ifueko Omoigui
ifuekoomoigui@restral.com
OP: Thomas Ighalo
thomasighalo@restral.com
Kelly Vera Okeahialam
kelechiokeahialam@restral.com

Nordic Region
FranklinCovey nordic approach k/s
Tuborg Boulevard 12
DK-2900 Hellerup
Denmark
Tel No: +45 7022 6612,
Fax No: +45 7022 6712
Email: info@franklincovey.dk
Web: www.franklincovey.dk
Territory:
Denmark, Norway, Sweden, Finland,
Greenland, Iceland & Faroe Islands
GM / Operations / Orders Contact
GM: Carsten Lindgaard
cl@franklincovey.dk
Jan Balling Frederiksen
jbf@franklincovey.dk
OP: Ulla Lowenstein
ul@franklincovey.dk

Poland
Polska - FranklinCovey Poland
BIURO GLÓWNE NA EUROPE CENTRALNA I WSCHODNIA
FC PL Sp. z o.o.
02-384 Warszawa
ul. Wlodarzewska 33
Tel No: (0-22) 824 11 28
Fax No: (0-22) 824 11 29
Email: biuro@franklincovey.pl
Web: www.franklincovey.pl
Territory:
The Republic of Bulgaria, The Czech
Republic, The Republic of Croatia, The Republic
of Hungary, The Republic of Latvia, The
Republic
of Lithuania, The Republic of Poland, The
Slovak
Republic, The Republic of Slovenia, Russia,
Azerbaijan, Belarus, Georgia, Kazakhstan &
Kyrgyztan
GM / Operations / Orders Contact
GM: Marek Choim
marek.choim@door.com.pl
OP: Beata
bdeszcz@franklincovey.pl

Ceská republika - FranklinCovey Czech Republic


Výhradní zastoupení pro Ceskou a Slovenskou republiku
FC CZECH, s.r.o.
Ohradni 1424/2B,
140 00 Praha 4
Tel No: +420 261 099 341
+420 261 099 342
Fax No: +420 261 099 343
Email: info@franklincovey.cz
Web: www.franklincovey.cz
GM / Operations / Orders Contact
OP: Jerzy
info@franklincovey.cz

Wegry - FranklinCovey Hungary


FC HU
1134 Budapest,
Lehel utca 11.
BankCenter
Tel No: +36-1-4121884
Fax No: +36-1-4748181
Email: office@franklincovey.hu
Web: www.franklincovey.hu

Portugal
Cegoc - Tea, Lda
Avenida António Augusto de Aguiar, N° 21 - 2°
1050-012 Lisboa
Portugal
Tel No: +351 21 319 19 60
Fax No: +351 21 319 19 61
Email: mfonseca@cegoc.pt
mceitil@cegoc.pt
amrocha@cegoc.pt
Web: www.cegoc.pt
Territory:
The Republic of Portugal & Cape Verde Islands
GM / Operations / Orders Contact
GM: Mario Ceitil
mceitil@cegoc.pt
Catarina Alves
calves@cegoc.pt
OP: Mariana Fonseca
mfonseca@cegoc.pt

South Africa
FCSA Organisation Services (Pty) Ltd
45 De La Rey Road,
Rivonia, 2128, Johannesburg
South Africa
Tel No: + 27 11 807 2929
Fax No: + 27 11 807 2871
Email: info@franklincovey.co.za
Web: www.franklincovey.co.za
Territory:
South Africa, Botswana, Swaziland, Namibia,
Zimbabwe, Zambia, Malawi, Uganda,
Tanzania,
Kenya, Mauritius, Seychelles, Madagascar,
Angola & Mozambique
GM / Operations / Orders Contact
GM: Jay Owens
covey@pixie.co.za
Grant Ashfield
granta@franklincovey.co.za
OP: Graham Smith
grahams@franklincovey.co.za

Spain
TEA-CEGOS, S.A.
FranklinCovey Division
Fray Bernardino de Sahagún, 24
28036 Madrid
SPAIN
Tel No: +34-912 705 000
Fax No: +34-912 705 001
Email: ctyden@tea-cegos.es
Email: franklincovey@tea-cegos.es
Web: www.tea-cegos.es
Territory:
The Kingdom of Spain
GM / Operations / Orders Contact
GM: Jose Montes
jmontes@tea-cegos.es
FC Mngr/OP: Christian Tyden
ctyden@tea-cegos.es

Turkey
ProVista
Mithatpasa Cad. No: 1190/2
35260 Guzelyali IZMIR
Turkey
Tel No: +90-232-247 50 21
Fax No: +90-232-247 50 22
Email: provista@bilgilink.com
Web: www.bilgilink.com/provista.html
Territory:
Turkey
GM / Operations / Orders Contact
GM: Hakan Sandberg
hakan@bilgilink.com
OP: Michael S. Norris
msnorris@bilgilink.com
Mark Hunsmann
mark@bilgilink.com

UAE
FranklinCovey - Qiyada Consultants
Kendah House, Suite 3102
Sheikh Zayed Road
P.O. Box 53703
Dubai, UAE
Tel No: + 971 4 332 2244
Fax No: + 971 4 332 2282
Email: info@franklincoveyme.com
Territory:
United Arab Emirates, Bahrain, Kuwait, Oman,
Qatar, the Kingdom of Saudi Arabia, Iraq, Jordan
& Syria
GM / Operations / Orders Contact
GM: AnnMarie Handsel
annmarie@franklincoveyme.com
OP: Nasco Gavrailov
atanas@franklincoveyme.com

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