Faiz Ahmed Faiz 3

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फैज़ अहमद फैज़ क क वताएँ-3

बहुत मला न मला िज़ंदगी से ग़म या है

बहुत मला न मला िज़ंदगी से ग़म या है


मता-ए-दद बहम है तो बेश-ओ-कम या है

हम एक उ से वा!क़फ़ ह$ अब न समझाओ
के ल'ु फ़ या है मेरे मेहरबाँ सतम या है

करे न जग म+ अलाव तो शे'र !कस मक़सद


करे न शहर म+ जल-थल तो च/म-ए-नम या है

अजल के हाथ कोई आ रहा है परवाना


न जाने आज क3 फ़ेह4र5त म+ रक़म या है

सजाओ ब6म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो


बहुत सह7 ग़म-ए-गेती शराब कम या है

लहाज़ म+ कोई कुछ दरू साथ चलता है


वरना दहर म+ अब :ख़< का भरम या है

बात बस से !नकल चल# है

बात बस से >नकल चल7 है


?दल क3 हालत सँभल चल7 है

अब जुनँू हद से बढ़ चला है
अब तबीयत बहल चल7 है

अ/क़ ख़ूनाब हो चले ह$


ग़म क3 रं गत बदल चल7 है

या यूँ ह7 बुझ रह7 है शAएँ


या शबे-?ह< टल चल7 है
लाख पैग़ाम हो गए ह$
जब सबा एक पल चल7 है
जाओ अब सो रहो सतारो
दद क3 रात ढल चल7 है

बेदम हुए बीमार दवा य% नह# दे ते

बेदम हुए बीमार दवा यE नह7 दे ते


तुम अFछे मसीहा हो शफ़ा यE नह7ं दे ते
ददG -शबे-?हHाँ क3 जज़ा यE नह7ं दे ते
खूने-?दले-वोशी का सला यE नह7ं दे ते
मट जाएगी मखलूक़ तो इंसाफ़ करोगे
मंु सफ़ हो तो अब हJ उठा यE नह7ं दे ते
हाँ नु तावरो लाओ लबो-?दल क3 गवाह7
हाँ नग़मागरो साज़े-सदा यE नह7 दे ते
पैमाने-जुनूँ हाथE को शरमाएगा कब तक
?दलवालो गरे बाँ का पता यE नह7ं दे ते
बरबाद7-ए-?दल जL नह7ं 'फ़ैज़' !कसी का
वो द/ु मने-जाँ है तो भुला यE नह7ं दे ते

इं!तसाब

आज के नाम
और
आज के ग़म के नाम
आज का ग़म !क है िज़ंदगी के भरे गु ल5ताँ से ख़फ़ा
ज़द प'तE का बन जो मेरा दे स है
दद क3 अंजुमन जो मेरा दे स है
लकN क3 अOसुदा जानE के नाम
!कमख़ुदा ?दलE और ज़बानE के नाम
पो5टमैनE के नाम
ताँगेवालE के नाम
रे लवानE के नाम
कारख़ानE के भोले िजयालE के नाम
बादशाहे -जहाँ, वा लये-मासेवा नायबQ
ु लाह !फ़ल ्अज़ दहक़ाँ के नाम
िजसके ढोरE को ज़ा लम हँका ले गए
िजसक3 बेट7 को डाकू उठा ले गए
हाथ भर खेत से एक अंगु/त पटवार ने काट ल7
दस
ू र7 मा लए के बहाने से सरकार ने काट ल7
िजसक3 पग ज़ोर वालE के पाँवE तले
धिUजयाँ हो गई
उन दख
ु ी माँओं के नाम
रात म+ िजनके बFचे Vबलखते ह$ और
नींद क3 मार खाए हुए बाज़ुओं से सँभलते नह7ं
दख
ु बताते नह7ं
मWनतE, ज़ा4रयE से बहलते नह7ं
उन हसीनाओं के नाम
िजनक3 आँखE के गुल
XचलमनE और दर7चE क3 बेलE पे बेकार :खल:खल के
मुरझा गए ह$
उन Yयाहताओं के नाम
िजनके बदन
बेमुहYबत 4रयाकार सेजE पे सज-सज के उ ता गए ह$
बेवाओं के नाम
कटZड़यE और ग लयE, मोहQलE के नाम
िजनके नापाक ख़ाशाक से चाँद रातE
को आ आ के करता है अ सर वज़ू
िजन के सायE म+ करती है आह-ओ-बुका
आँचलE क3 ?हना
चूZड़यE क3 खनक
काकुलE क3 महक
आरज़ूमंद सीनE क3 अपने पसीने म+ जलने क3 बू
ता लब इQमE के नाम
वो जो अ5हाबे-तYल-ओ-अलम
के दरE पर !कताब और क़लम
का तक़ाज़ा लए, हाथ फैलाए
पहुँचे, मगर लौट कर घर न आए
वो मासूम जो भोलपन म+
वहाँ अपने नWहे चराग़E म+ लौ क3 लगन
ले के पहुँचे जहाँ
बट रहे थे, घटा टोप, बे अंत रातE के साए
उन असीरE के नाम
िजनके सीनE म+ फ़दा के शबताब गौहर
जेलख़ानE क3 शोर7दा रातE क3 सर सर म+
जल-जल के अंजुमनुमा हो गए ह$
आने वाले ?दनE के सफ़3रE के नाम
वो जो ख़ुशबू-ए-गुल क3 तरह
अपने पैग़ाम पर ख़द
ु !फ़दा हो गए ह$

सोचने दो

इक ज़रा सोचने दो
इस ख़याबाँ म+
जो इस लहज़ा बयाबाँ भी नह7ं
कौन-सी शाख़ म+ फूल आए थे सब से पहले
कौन बेरंग हुई रं ज-ओ-ता'ब से पहले
और अब से पहले
!कस घड़ी कौन-से मौसम म+ यहाँ
ख़ून का क़हत पड़ा
गुल क3 शहरग पे कड़ा
व_त पड़ा
सोचने दो
इक ज़रा सोचने दो
यह भरा शहर जो अब वा?दए वीराँ भी नह7ं
इस म+ !कस व_त कहाँ
आग लगी थी पहले
इस के सफ़ब5ता दर7चE म+ से !कस म+ अ`वल
ज़ह हुई सुख़ शुआओं क3 कमाँ
!कस जगह जोत जगी थी पहले
सोचने दो
हम से इस दे स का, तुम नाम-ओ->नशां पूछते हो
िजसक3 तार7ख़ न जुग़रा!फ़या अब याद आए
और याद आए तो महबूबे-गुिज़/ता क3 तरह
a-ब-a आने से जी घबराए
हाँ मगर जैसे कोई
ऐसे महबूब या महबूबा का ?दल रखने को
आ >नकलता है कभी रात Vबताने के लए
हम अब इस उ को आ पहुँचे ह$ जब हम भी यूँ ह7
?दल से मल आते ह$ बस र5म >नभाने के लए
?दल क3 या पछ
ू ते हो
सोचने दो

मुलाक़ात

यह रात उस दद का शजर है
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है
अज़ीमतर है !क उसक3 शाख़E म+

लाख मशा'ल-बकफ़ सतारE


के कारवाँ, >घर के खो गए ह$
हज़ार महताब उसके साए
म+ अपना सब नूर, रो गए ह$
यह रात उस दद का शजर है
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है
मगर इसी रात के शजर से
यह चंद लमहE के ज़द प'ते
Xगरे ह$ और तेरे गेसुओं म+
उलझ के गुलनार हो गए ह$
इसी क3 शबनम से, ख़ामुशी के
यह चंद क़तरे , तेर7 ज़बीं पर
बरस के, ह7रे dपरो गए ह$

2
बहुत सयह है यह रात ले!कन
इसी सयाह7 म+ aनुमा है
वो नहरे -ख़ूँ जो मेर7 सदा है
इसी के साए म+ नूर गर है
वो मौजे-ज़र जो तेर7 नज़र है
वो ग़म जो इस व_त तेर7 बाँहE
के गुल सताँ म+ सुलग रहा है
(वो ग़म जो इस रात का समर है )
कुछ और तप जाए अपनी आहE
क3 आँच म+ तो यह7 शरर है
हर इक सयह शाख़ क3 कमाँ से
िजगर म+ टूटे ह$ तीर िजतने
िजगर से नीचे ह$, और हर इक
का हमने तीशा बना लया है

3
अलम नसीबE, िजगर !फ़गारE
क3 सुबह अOलाक पर नह7ं है
जहाँ पे हम-तुम खड़े ह$ दोनE
सहर का रौशन उफ़क़ यह7ं है
यह7ं पे ग़म के शरार :खल कर
शफ़क का गुलज़ार बन गए ह$
यह7ं पे क़ा>तल दख
ु E के तीशे
क़तार अंदर क़तार !करनE
के आतशीं हार बन गए ह$

यह ग़म जो इस रात ने ?दया है
यह ग़म सहर का यक़3ं बना है
यक़3ं जो ग़म से कर7मतर है
सहर जो शब से अज़ीमतर है

मौज़ू-ए-सुख़न

गुल हुई जाती है अOसुदा सुलगती हुई शाम


धुल के >नकलेगी अभी च/मा-ए महताब से रात
और मु/ताक़ >नगाहE से सुनी जाएगी
और उन हाथE से मस हEगे यह तरसे हुए हाथ
उनका आँचल है !क aख़सार !क पैराहन है
कुछ तो है िजससे हुई जाती है Xचलमन रं गीं
जाने उस ज़Q ु फ़ क3 मौहूम घनी छाओं म+
?टम?टमाता है वो आवेज़ा अभी तक !क नह7ं

आज !फर हु5ने?दल आरा क3 वह7 धज होगी


वह7 iवाबीदा सी आँख+, वह7 काजल क3 लक3र
रं गे jख़सार पे हQका सा वो ग़ाज़े का गुबार

संदल7 हाथ पे धुद
ँ ल7-सी ?हना क3 तहर7र

अपने अOकार क3, अशआर क3 द>ु नया है यह7


जाने-मज़मूं है यह7, शा?हदे -माना है यह7
आज तक सख़
ु -ओ- सयह स?दयE के साए के तले
आदम-ओ-ह`वा क3 औलाद पे या गुज़र7 है
मौत और ज़ी5त क3 रोज़ाना सफ़ आराई म+
हम पे या गुज़रे गी, अजदाद पे या गुज़र7 है ?
इन दमकते हुए शहरE क3 फ़रावाँ मख़लूक़
यूँ फ़क़त मरने क3 हसरत म+ िजया करती है
यह हसीं खेत फटा पड़ता है जोबन िजनका
!कस लए इनम+ फ़क़त भूख उगा करती है ?
यह हर इक सAत, पुर-असरार कड़ी द7वार+
जल बुझे िजनम+ हज़ारE क3 जवानी के चराग़
यह हर इक गाम पे उन iवाबE क3 म_तल गाह+
िजनेके पर-तव से चराग़ाँ ह$ हज़ारE के ?दमाग़

यह भी ह$, ऐसे कई और भी मज़मँू हEगे।


ले!कन उस शोख़ के आ?ह5ता से ख़ुलते हुए हEठ !
हाय उस िज5म के कमबiत, ?दलावेज़ ख़ुतूत !
आप ह7 क?हए, कह7ं ऐसे भी अOसूँ हEगे

अपना मौजू-ए-सुख़न इनके सवा और नह7ं


तब'अ-ए-शायर का वतन इन के सवा और नह7ं

हम लोग

?दल के ऐवाँ म+ लए गुमशुदा शAमा'ओं क3 क़तार


नूरे-ख़ुशoद से सहमे हुए, उकताए हुए
हु5ने-महबूब के सइयाल तस`वरु क3 तरह
अपनी तार7क3 को भींचे हुए, लपटाए हुए
ग़ायते सूद-ओ-िज़याँ , सूरते आग़ाज़-ओ-मआल
वह7 बेसूद तज5सुस, वह7 बेक़ार सवाल
मुज़म?हल, सा'अते-इमरोज़ क3 बेरंगी से
यादे माज़ी से ग़मीं , दहशते-फदा से >नढाल
>त/ना अOकार, जो त5क3न नह7ं पाते ह$
सोiता अ/क जो आँखE म+ नह7ं आते ह$
इक कड़ा दद !क जो गीत म+ ढलता ह7 नह7ं
?दल के तार7क शगाफ़E से >नकलता ह7 नह7ं
और इक उलझी हुई मोहूम-सी दरमाँ क3 तलाश
द/त-ओ-िज़ंदाँ क3 हवस, चाक-Xगरे बाँ क3 तलाश

या कर,

मेर7-तेर7 >नगाह म+
जो लाख इंतज़ार ह$
जो मेरे-तेरे तन-बदन म+
लाख ?दल!फ़गार ह$
जो मेर7-तेर7 उँ ग लयE क3 बे?हसी से
सब क़लम नज़ार ह$
जो मेरे-तेरे शहर म+
हर इक गल7 म+
मेरे-तेरे न_शेपा के बे>नशाँ मज़ार ह$
जो मेर7-तेर7 रात के
सतारे ज़iम-जiम ह$
जो मेर7-तेर7 सुबह के
गुलाब चाक-चाक ह$
यह ज़iम सारे बेदवा
यह चाक सारे बे रफ़ू
!कसी पे राख चाँद क3
!कसी पे ओस क3 लहू
यह है भी या नह7ं बता
यह है !क महज़ जाल है
मेरे-तुAहारे अWकबूते-वोम का बुना हुआ
जो है तो इसका या कर+
नह7ं है तो भी या कर+
बता, बता
बता, बता

यह फ़.ल उमीद% क हमदम

सब काट दो
Vबि5मल पौधE को
बे-आब ससकते मत छोड़ो
सब नोच लो
बेकल फूलE को
शाख़E पे Vबलकते मत छोड़ो
यह फ़5ल उमीदE क3 हमदम
इस बार भी ग़ारत जाएगी
सब मेहनत सब
ु हE-शामE क3
अब के भी अकारत जाएगी
खेती के कोनE खदरE म+
!फर अपने लहू क3 खाद भरो
!फर मpी सींचो अ/कE से
!फर अगल7 jत क3 !फ़q करो
जब !फर इक बार उजड़ना है
इक फ़5ल पक3 तो भर पाया
जब तक तो यह7 कुछ करना है

शीश% का मसीहा कोई नह#ं

मोती हो !क शीशा, जाम !क दरु


जो टूट गया, सो टूट गया
कब अ/कE से जुड़ सकता है
जो टूट गया, सो छूट गया
तुम नाहक़ टुकड़े चुन-चुन कर
दामन म+ छुपाए बैठे हो
शीशE का मसीहा कोई नह7ं
या आस लगाए बैठे हो
शायद !क इWह7ं टुकड़E म+ कह7ं
वो साग़रे ?दल है िजसम+ कभी
सद नाज़ से उतरा करती थी
सहबा-ए-ग़मे-जानाँ क3 पर7
!फर द>ु नया वालE ने तुमसे
यह साग़र लेकर फोड़ ?दया
जो मय थी बहा द7 मpी म+
मेहमान का शहपर तोड़ ?दया
यह रं गीं रे ज़े ह$ शायद
उन शोख़ Vबलोर7 सपनE के
तुम म5त जवानी म+ िजनसे
:ख़लवत को सजाया करते थे
नादार7, दOतर भख़
ू और ग़म
इन सपनE से टकराते रहे
बेरहम था चौमख
ु पथराओ
यह काँच के ढाँचे या करते

या शायद इन ज़रN म+ कह7ं


मोती है तुAहार7 इ6ज़त का
वो िजससे तुAहारे इ6ज़ पे भी
शमशाद क़दE ने र/क !कया
इस माल क3 धुन म+ !फरते थे
तािजर भी बहुत, रहज़न भी कई
है चोर नगर, या मफ़ु लस क3
गर जान बची तो आन गई
यह साग़र, शीशे, लाल-ओ-गुहर
सा लम हE तो क़3मत पाते ह$
और टुकड़े-टुकड़े हE तो फ़कत
चुभते ह$, लहू jलवाते ह$
तुम नाहक़ शीशे चुन-चुन कर
दामन म+ छुपाए बैठे हो
शीशE का मसीहा कोई नह7ं
या आस लगाए बैठे हो
यादE के Xगरे बानE के रफ़ू
पर ?दल क3 गुज़र कब होती है
इक ब:ख़या उधेड़ा, एक सया
यूँ उ बसर कब होती है
इस कारगहे ह5ती म+ जहाँ
यह साग़र, शीशे ढलते ह$
हर शय का बदल मल सकता है
सब दामन पुर हो सकते ह$
जो हाथ बढ़े , यावर है यहाँ
जो आँख उठे , वो बiतावर
याँ धन-दौलत का अंत नह7ं
हE घात म+ डाकू लाख मगर

कब लट
ू -झपट से ह5ती क3
दक
ू ान+ ख़ाल7 होती ह$
याँ परबत-परबत ह7रे ह$
याँ सागर-सागर मोती ह$

कुछ लोग ह$ जो इस दौलत पर


परदे लटकाए !फरते ह$
हर परबत को, हर सागर को
नीलाम चढ़ाए !फरते ह$
कुछ वो भी है जो लड़- भड़ कर
यह पदG नोच Xगराते ह$
ह5ती के उठाईगीरE क3
चाल+ उलझाए जाते ह$

इन दोनE म+ रन पड़ता है
>नत ब5ती-ब5ती, नगर-नगर
हर ब5ते घर के सीने म+
हर चलती राह के माथे पर

यह का लक भरते !फरते ह$
वो जोत जगाते रहते ह$
यह आग लगाते !फरते ह$
वो आग बुझाते !फरते ह$

सब साग़र,शीशे, लाल-ओ-गुहर
इस बाज़ी म+ बह जाते ह$
उrो, सब ख़ाल7 हाथE को
उस रन से बुलावे आते ह$
सु2हे -आज़ाद#

यह दाग़-दाग़ उजाला, यह शब गज़ीदा सहर


वो इंतज़ार था िजसका यह वो सहर तो नह7ं
यह वो सहर तो नह7ं िजसक3 आरज़ू लेकर
चले थे यार !क मल जाएगी कह7ं न कह7ं
फ़लक के द/त म+ तारE क3 आ:ख़र7 मंिज़ल
कह7ं तो होगा शबे-स5
ु त मौज का सा?हल
कह7ं तो जाके jकेगा सफ़3नःए-ग़मे-?दल

जवाँ लहू क3 पुरअसरार शाहराहE से


चले जो यार तो दामन पे !कतने हाथ पड़े
पुकारती रह7ं बाँह+, बदन बुलाते रहे
बहुत अज़ीज़ थी ले!कन jख़े-सहर क3 लगन

बहुत क़र7ं था हसीनाने-नूर का दामन


सुबुक-सुबुक थी तमWना, दबी-दबी थी थकन
सुना है , हो भी चक
ु ा है !फ़राक़े जलमत-ओ-न
ु़ ूर
सुना है हो भी चक
ु ा है dवसाले-मंिज़ल-ओ-गाम

बदल चुका है बहुत अहले-दद का द5तूर


>नशाते-व5ल हलाल-ओ-अज़ाबे- ?हH हराम
िजगर क3 आग, नज़र क3 उमंग, ?दल क3 जलन
!कसी पे चारा-ए-?हजराँ का कुछ असर ह7 नह7ं

कहाँ से आई >नगारे -सबा !कधर को गई


अभी Xचराग़े-सरे -रह को कुछ ख़बर ह7 नह7ं

अभी गरा>नए-शब म+ कमी नह7ं आई


>नजाते-द7दा-वो-?दल क3 घड़ी नह7ं आई
चले चलो !क वो मंिज़ल अभी नह7ं आई
ईरानी तुलबा के नाम
(जो अ6न और आज़ाद# क ज8-ओ-जेहद म, काम आए)

यह कौन सख़ी ह$
िजनके लहू क3
अश!फयाँ, छन-छन, छन-छन
धरती क3 पैहम tयासी
क/कोल म+ ढलती जाती ह$
क/कोल को भरती जाती ह$
यह कौन जवाँ ह$ अरज़े-अजम!
यह लख लुट
िजनके िज5मE क3
भरपूर जवानी का कंु दन
यूँ ख़ाक़ म+ रे ज़ा-रे ज़ा है
यूँ कूचा-कूचा Vबखरा है
ऐ अरज़े अजम! ऐ अरज़े अजम
यूँ नोच के हँस-हँस फ+क ?दए
इन आँखE ने अपने नीलम
इन हEटE ने अपने मरजाँ
इन हाथE क3 बेकल चाँद7
!कस काम आई, !कस हाथ लगी?
ऐ पूछने वाले परदे सी!
यह >तOल-ओ-जवाँ
उस नूर के नौरस मोती ह$
उस आग क3 कFची क लयाँ ह$
िजस मीठे नूर और कड़वी आग
से ज़ुQम क3 अंधी रात म+ फूटा
सब
ु हे -बग़ावत का गुलशन
और सबु ह हुई मन-मन, तन-तन
उस िज5मE का सोना-चाँद7
उन चेहरE के नीलम, मरजाँ
जगमग-जगमग, रiशां-रiशां
जो दे खना चाहे परदे सी
पास आए दे खे जी भर कर
यह ज़ी5त क3 रानी का झूमर
यह अमन क3 दे वी का कंगन

सरे -वा;द'ए-सीना

!फर बक़G फ़रोज़ाँ है सरे वा?द'ए सीना


!फर रं ग पे है शोल'अ-ए-aख़सारे हक़3क़त
पैग़ामे-अजल दावते-द7दारे -हक़3क़त
ऐ द7दःए-बीना
अब व_त है द7दार का दम है !क नह7ं है
अब क़ा>तले जाँ चारागरे कुQफ़ते ग़म है
गुलज़ारे -इरम परतवे-सहराये-अदम है
dपंदारे -जुनूँ
हौसलए राहे -अदम है !क नह7ं है
!फर बक़ फ़रोज़ाँ है सरे वा?द'ए सीना, ऐ द7दाए बीना
!फर ?दल को मुसOफ़ा करो, इस लौह पे शायद
माबैने-मन-ओ-तू नया पैमाँ कोई उतरे
अब र5मे- सतम ?हकमते-ख़ासाने -ज़मीं है
ताईदे - सतम मसलहते-मुिOतए-द7ं है
अब स?दयE के इक़रारे -इतायत को बदलने
लािज़म है !क इनकार का फ़रमाँ कोई उतरे

सुनो !क शायद यह नूर सैक़ल


है इस सह7फ़े का हरफ़े-अ`वल
जो हर कस-ओ-नाकसे-ज़मीं पर
?दले गदायाने अजमu पर
उतर रहा है फ़लक से अब तक
सुनो !क इस हफ़G-लमयज़ल के
हमीं तुAह7ं बंदगाने-बेबस
अल7म भी ह$ ख़बीर भी ह$
सुनो !क हम बेज़बान-ओ-बेकस
बशीर भी ह$ नज़ीर भी ह$
हर इक उलल
ु अ को सदा दो
!क अपनी फ़दG -अमल सँभाले
उठे गा जब जAमे सर फ़रोशाँ
पड़+गे दार-ओ-रसन के लाले, कोई न होगा !क जो बचा ले
जज़ा सज़ा सब यह7ं पे होगी, यह7ं अज़ाब-ओ-सवाब होगा
यह7ं से उrे गा शोरे -महशर, यह7ं पे रोज़े-?हसाब होगा

=फ़ ल.तीनी ब>चे के लए लोर#

मत रो बFचे
रो-रो के अभी
तेर7 अAमी क3 आँख लगी है
मत रो बFचे
कुछ ह7 पहले
तेरे अYबा ने
अपने ग़म से jख़सत ल7 है
मत रो बFचे
तेरा भाई
अपने iवाब क3 >ततल7 के पीछे
दरू कह7ं परदे स गया है
मत रो बFचे
तेर7 बाजी का
डोला पराए दे स गया है
मत रो बFचे
तेरे आँगन म+
मद
ु ा सूरज नहला के गए ह$
चंvमा दOना के गए ह$
मत रो बFचे
अAमी, अYबा, बाजी, भाई
चाँद और सूरज
रोएगा तो और भी तुझ को jलवाएँगे
तू म5
ु काएगा तो शायद
सारे इक ?दन भेस बदल कर
तुझसे खेलने लौट आएँगे

Africa Comes Back


(एक रजज़)

आ जाओ, म$ने सुन ल7 तेरे ढोल क3 तरं ग


आ जाओ, म5त हो गई मेरे लहू क3 ताल
आ जाओ अw3का
आ जाओ, म$ने धल
ू से माथा उठा लया
आ जाओ, म$ने छxल द7 आँखE से ग़म क3 छाल
आ जाओ, म$ने दद से बाजू ़ छुड़ा लया
आ जाओ, म$ने नोच ?दया बेकसी का जाल
आ जाओ अw3क़ा
पंजे म+ हथकड़ी क3 कड़ी बन गई है गुज़
गदन का तौक़ तोड़ के ढाल7 है म$ने ढाल
आ जाओ अw3क़ा
जलते ह$ हर कछार म+ भालE के मग
ृ नैन
द/ु मने-लहू से रात क3 का लक हुई है लाल
आ जाओ अw3क़ा
धरती धड़क रह7 है मेरे साथ अw3क़ा
द4रया Xथरक रहा है तो, बन दे रहा है ताल
म$ अw3क़ा हूँ, धार लया म$ने तेरा aप
म$ तू हूँ, मेर7 चाल है तेरे बबर क3 चाल
आ जाओ अw3क़ा
आओ बबर क3 चाल
आ जाओ अw3क़ा
हम जो तार#क राह% म, मारे गए
( ईथल और जू लयस रोज़MबगN के ख़त
ु ूत से मुताि.सर होकर)

तेरे हEटE के फूलE क3 चाहत म+ हम


दार क3 ख़ु/क टहनी पे वारे गए
तेरे हाथE क3 शAम'ओं क3 हसरत म+ हम
नीमतार7क राहE म+ मारे गए

सू लयE पर हमारे लबE से परे


तेरे हEटE क3 लाल7 लपकती रह7
तेर7 ज़ुQफ़E क3 म5ती बरसती रह7
तेरे हाथE क3 चाँद7 चमक़ती रह7

जब धुल7 तेर7 राहE म+ शामे- सतम


हम चले आए, लाए जहाँ तक क़दम
लब पे हफ़G-ग़जल, ?दल म+ क़द7ले-ग़म

अपना ग़म था गवाह7 तेरे हु5न क3


दे ख क़ायम रहे इस गवाह7 पे हम
हम जो तार7क राहE म+ मारे गए

नारसाई अगर अपनी तक़द7र थी


तेर7 उQफ़त तो अपनी ह7 तदबीर थी
!कसको शकवा है गो शौक के सल सले

?हH क3 क़'लगाहE से सब जा मले


क़'लगाहE से चुन कर हमारे अलम
और >नकल+गे उ/शाक़ के क़ा!फ़ले
िजनक3 राहे तलब से हमारे क़दम
मुiतसर कर चले दद के फ़ा सले
कर चले िजनक3 ख़ा>तर जहाँगीर हम
जाँ गँवा कर तेर7 ?दलबर7 का भरम
हम जो तार7क राहE म+ मारे गए

एक मंज़र

एक मंज़र
बाम-ओ-दर ख़ामुशी के बोझ से चूर
आसमानE से जू-ए-दद रवाँ
चाँद का दख
ु भरा फ़सानःए-नूर
शाहे राहE क3 ख़ाक़ म+ ग़Qताँ

iवाबगाहE म+ नील तार7क3


मु6म?हल लय रबाबे -ह5ती क3
हQके-हQके सुरE म+ नौहा-कुनां

िज़ंदाँ क एक शाम

शाम के पेच-ओ-ख़म2 सतारE से


ज़ीना-ज़ीना उतर रह7 है रात
यूँ सबा पास से गुज़रती है
जैसे कह द7 !कसी ने tयार क3 बात
सहरे -िज़Wदाँ के बेवतन अ/जार
सर>नगँू महव है बनाने म+
दामने-आसमाँ पे न_शो->नगार
शाने-बाम पर दमकता है
मेहरबाँ चाँदनी का द5ते-जमील
ख़ाक़ म+ घुल गई है आबे -नजूम
नूर म+ घुल गया है , अश का नील
सYज़ गोशE म+ नील-गँू साए
लहलहाते ह$ िजस तरह ?दल म+
मौजे-दद-!फ़राक़े-यार आए
?दल से पैहम ख़याल कहता है
इतनी शीर7ं है िज़ंदगी इस पल
ज़ुQम का ज़हर घोलने वाले
कामराँ हो सक+गे आज न कल
जलवागाहे -dवसाल क3 शAम'एँ
वो बुझा भी चुके अगर तो या
चाँद को गुल कर+ तो हम जान+

ऐ रोश!नय% के शहर

सYज़ा-सYज़ा सूख रह7 ह$ फ3क3, ज़द दोपहर


द7वारE को चाट रहा है तनहाई का ज़हर
दरू उफ़ुक़ तक घटती-बढ़ती, उठती-Xगरती रहती है
कोहर क3 सूरत बेरौनक़ ददN क3 गँदल7 लहर
बसता है इस कोहर के पीछे रोश>नयE का शहर
ऐ रोश>नयE के शहर
कौन कहे !कस सAत है तेर7 रोश>नयE क3 राह
हर जा>नब बेनूर खड़ी है ?हH क3 शहर पनाह
थक कर हर सू बैठ रह7 है शौक़ क3 माँद सपाह
आज मेरा ?दल !फ़q म+ है
ऐ रोश>नयE के शहर
शब ख़ूँ से मुँह फेर न जाए अरमानE क3 रौ
ख़ैर हो तेर7 लैलाओं क3, उन सब से कह दो
आज क3 शब जब ?दए जलाएँ ऊँची रख+ लौ

यहाँ से शहर को दे खो
यहाँ ये शहर को दे खो तो हQक़ा दर हQक़ा
:खंची है जेल क3 सूरत हर एक सAत फ़सील
हर एक राह गुज़र ग?दशे-असीरां है
न संगे-मील, न मंिज़ल, न मख़
ु लसी क3 सबील
जो कोई तेज़ चले रह तो पूछता है ख़याल
!क टोकने कोई ललकार यE नह7ं आई?
जो कोई हाथ ?हलाए तो वोम को है सवाल
कोई छनक, कोई झंकार यE नह7ं आई ?
यहाँ से शहर को दे खो तो सार7 :ख़Qक़त म+
न कोई सा?हबे -तAक3ं, न कोई वा ल-ए-होश
हर एक मदG जवाँ, मुिHमे-रसन-बगुलू
हर इक हसीना-ए-राना, कनीज हQक़ा बग़ोश
जो साए दरू चराग़ो के Xगद लरज़ाँ ह$
न जाने मह!फ़ले ग़म है !क ब6मे-जाम-ओ-सुबू
जो रं ग हर दर-ओ-द7वार पर पर7शाँ ह$
यहाँ से कुछ नह7ं खल
ु ता यह फूल ह$ !क लहू

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