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Faiz Ahmed Faiz 3
Faiz Ahmed Faiz 3
Faiz Ahmed Faiz 3
हम एक उ से वा!क़फ़ ह$ अब न समझाओ
के ल'ु फ़ या है मेरे मेहरबाँ सतम या है
अब जुनँू हद से बढ़ चला है
अब तबीयत बहल चल7 है
इं!तसाब
आज के नाम
और
आज के ग़म के नाम
आज का ग़म !क है िज़ंदगी के भरे गु ल5ताँ से ख़फ़ा
ज़द प'तE का बन जो मेरा दे स है
दद क3 अंजुमन जो मेरा दे स है
लकN क3 अOसुदा जानE के नाम
!कमख़ुदा ?दलE और ज़बानE के नाम
पो5टमैनE के नाम
ताँगेवालE के नाम
रे लवानE के नाम
कारख़ानE के भोले िजयालE के नाम
बादशाहे -जहाँ, वा लये-मासेवा नायबQ
ु लाह !फ़ल ्अज़ दहक़ाँ के नाम
िजसके ढोरE को ज़ा लम हँका ले गए
िजसक3 बेट7 को डाकू उठा ले गए
हाथ भर खेत से एक अंगु/त पटवार ने काट ल7
दस
ू र7 मा लए के बहाने से सरकार ने काट ल7
िजसक3 पग ज़ोर वालE के पाँवE तले
धिUजयाँ हो गई
उन दख
ु ी माँओं के नाम
रात म+ िजनके बFचे Vबलखते ह$ और
नींद क3 मार खाए हुए बाज़ुओं से सँभलते नह7ं
दख
ु बताते नह7ं
मWनतE, ज़ा4रयE से बहलते नह7ं
उन हसीनाओं के नाम
िजनक3 आँखE के गुल
XचलमनE और दर7चE क3 बेलE पे बेकार :खल:खल के
मुरझा गए ह$
उन Yयाहताओं के नाम
िजनके बदन
बेमुहYबत 4रयाकार सेजE पे सज-सज के उ ता गए ह$
बेवाओं के नाम
कटZड़यE और ग लयE, मोहQलE के नाम
िजनके नापाक ख़ाशाक से चाँद रातE
को आ आ के करता है अ सर वज़ू
िजन के सायE म+ करती है आह-ओ-बुका
आँचलE क3 ?हना
चूZड़यE क3 खनक
काकुलE क3 महक
आरज़ूमंद सीनE क3 अपने पसीने म+ जलने क3 बू
ता लब इQमE के नाम
वो जो अ5हाबे-तYल-ओ-अलम
के दरE पर !कताब और क़लम
का तक़ाज़ा लए, हाथ फैलाए
पहुँचे, मगर लौट कर घर न आए
वो मासूम जो भोलपन म+
वहाँ अपने नWहे चराग़E म+ लौ क3 लगन
ले के पहुँचे जहाँ
बट रहे थे, घटा टोप, बे अंत रातE के साए
उन असीरE के नाम
िजनके सीनE म+ फ़दा के शबताब गौहर
जेलख़ानE क3 शोर7दा रातE क3 सर सर म+
जल-जल के अंजुमनुमा हो गए ह$
आने वाले ?दनE के सफ़3रE के नाम
वो जो ख़ुशबू-ए-गुल क3 तरह
अपने पैग़ाम पर ख़द
ु !फ़दा हो गए ह$
सोचने दो
इक ज़रा सोचने दो
इस ख़याबाँ म+
जो इस लहज़ा बयाबाँ भी नह7ं
कौन-सी शाख़ म+ फूल आए थे सब से पहले
कौन बेरंग हुई रं ज-ओ-ता'ब से पहले
और अब से पहले
!कस घड़ी कौन-से मौसम म+ यहाँ
ख़ून का क़हत पड़ा
गुल क3 शहरग पे कड़ा
व_त पड़ा
सोचने दो
इक ज़रा सोचने दो
यह भरा शहर जो अब वा?दए वीराँ भी नह7ं
इस म+ !कस व_त कहाँ
आग लगी थी पहले
इस के सफ़ब5ता दर7चE म+ से !कस म+ अ`वल
ज़ह हुई सुख़ शुआओं क3 कमाँ
!कस जगह जोत जगी थी पहले
सोचने दो
हम से इस दे स का, तुम नाम-ओ->नशां पूछते हो
िजसक3 तार7ख़ न जुग़रा!फ़या अब याद आए
और याद आए तो महबूबे-गुिज़/ता क3 तरह
a-ब-a आने से जी घबराए
हाँ मगर जैसे कोई
ऐसे महबूब या महबूबा का ?दल रखने को
आ >नकलता है कभी रात Vबताने के लए
हम अब इस उ को आ पहुँचे ह$ जब हम भी यूँ ह7
?दल से मल आते ह$ बस र5म >नभाने के लए
?दल क3 या पछ
ू ते हो
सोचने दो
मुलाक़ात
यह रात उस दद का शजर है
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है
अज़ीमतर है !क उसक3 शाख़E म+
2
बहुत सयह है यह रात ले!कन
इसी सयाह7 म+ aनुमा है
वो नहरे -ख़ूँ जो मेर7 सदा है
इसी के साए म+ नूर गर है
वो मौजे-ज़र जो तेर7 नज़र है
वो ग़म जो इस व_त तेर7 बाँहE
के गुल सताँ म+ सुलग रहा है
(वो ग़म जो इस रात का समर है )
कुछ और तप जाए अपनी आहE
क3 आँच म+ तो यह7 शरर है
हर इक सयह शाख़ क3 कमाँ से
िजगर म+ टूटे ह$ तीर िजतने
िजगर से नीचे ह$, और हर इक
का हमने तीशा बना लया है
3
अलम नसीबE, िजगर !फ़गारE
क3 सुबह अOलाक पर नह7ं है
जहाँ पे हम-तुम खड़े ह$ दोनE
सहर का रौशन उफ़क़ यह7ं है
यह7ं पे ग़म के शरार :खल कर
शफ़क का गुलज़ार बन गए ह$
यह7ं पे क़ा>तल दख
ु E के तीशे
क़तार अंदर क़तार !करनE
के आतशीं हार बन गए ह$
यह ग़म जो इस रात ने ?दया है
यह ग़म सहर का यक़3ं बना है
यक़3ं जो ग़म से कर7मतर है
सहर जो शब से अज़ीमतर है
मौज़ू-ए-सुख़न
हम लोग
या कर,
मेर7-तेर7 >नगाह म+
जो लाख इंतज़ार ह$
जो मेरे-तेरे तन-बदन म+
लाख ?दल!फ़गार ह$
जो मेर7-तेर7 उँ ग लयE क3 बे?हसी से
सब क़लम नज़ार ह$
जो मेरे-तेरे शहर म+
हर इक गल7 म+
मेरे-तेरे न_शेपा के बे>नशाँ मज़ार ह$
जो मेर7-तेर7 रात के
सतारे ज़iम-जiम ह$
जो मेर7-तेर7 सुबह के
गुलाब चाक-चाक ह$
यह ज़iम सारे बेदवा
यह चाक सारे बे रफ़ू
!कसी पे राख चाँद क3
!कसी पे ओस क3 लहू
यह है भी या नह7ं बता
यह है !क महज़ जाल है
मेरे-तुAहारे अWकबूते-वोम का बुना हुआ
जो है तो इसका या कर+
नह7ं है तो भी या कर+
बता, बता
बता, बता
सब काट दो
Vबि5मल पौधE को
बे-आब ससकते मत छोड़ो
सब नोच लो
बेकल फूलE को
शाख़E पे Vबलकते मत छोड़ो
यह फ़5ल उमीदE क3 हमदम
इस बार भी ग़ारत जाएगी
सब मेहनत सब
ु हE-शामE क3
अब के भी अकारत जाएगी
खेती के कोनE खदरE म+
!फर अपने लहू क3 खाद भरो
!फर मpी सींचो अ/कE से
!फर अगल7 jत क3 !फ़q करो
जब !फर इक बार उजड़ना है
इक फ़5ल पक3 तो भर पाया
जब तक तो यह7 कुछ करना है
कब लट
ू -झपट से ह5ती क3
दक
ू ान+ ख़ाल7 होती ह$
याँ परबत-परबत ह7रे ह$
याँ सागर-सागर मोती ह$
इन दोनE म+ रन पड़ता है
>नत ब5ती-ब5ती, नगर-नगर
हर ब5ते घर के सीने म+
हर चलती राह के माथे पर
यह का लक भरते !फरते ह$
वो जोत जगाते रहते ह$
यह आग लगाते !फरते ह$
वो आग बुझाते !फरते ह$
सब साग़र,शीशे, लाल-ओ-गुहर
इस बाज़ी म+ बह जाते ह$
उrो, सब ख़ाल7 हाथE को
उस रन से बुलावे आते ह$
सु2हे -आज़ाद#
यह कौन सख़ी ह$
िजनके लहू क3
अश!फयाँ, छन-छन, छन-छन
धरती क3 पैहम tयासी
क/कोल म+ ढलती जाती ह$
क/कोल को भरती जाती ह$
यह कौन जवाँ ह$ अरज़े-अजम!
यह लख लुट
िजनके िज5मE क3
भरपूर जवानी का कंु दन
यूँ ख़ाक़ म+ रे ज़ा-रे ज़ा है
यूँ कूचा-कूचा Vबखरा है
ऐ अरज़े अजम! ऐ अरज़े अजम
यूँ नोच के हँस-हँस फ+क ?दए
इन आँखE ने अपने नीलम
इन हEटE ने अपने मरजाँ
इन हाथE क3 बेकल चाँद7
!कस काम आई, !कस हाथ लगी?
ऐ पूछने वाले परदे सी!
यह >तOल-ओ-जवाँ
उस नूर के नौरस मोती ह$
उस आग क3 कFची क लयाँ ह$
िजस मीठे नूर और कड़वी आग
से ज़ुQम क3 अंधी रात म+ फूटा
सब
ु हे -बग़ावत का गुलशन
और सबु ह हुई मन-मन, तन-तन
उस िज5मE का सोना-चाँद7
उन चेहरE के नीलम, मरजाँ
जगमग-जगमग, रiशां-रiशां
जो दे खना चाहे परदे सी
पास आए दे खे जी भर कर
यह ज़ी5त क3 रानी का झूमर
यह अमन क3 दे वी का कंगन
सरे -वा;द'ए-सीना
मत रो बFचे
रो-रो के अभी
तेर7 अAमी क3 आँख लगी है
मत रो बFचे
कुछ ह7 पहले
तेरे अYबा ने
अपने ग़म से jख़सत ल7 है
मत रो बFचे
तेरा भाई
अपने iवाब क3 >ततल7 के पीछे
दरू कह7ं परदे स गया है
मत रो बFचे
तेर7 बाजी का
डोला पराए दे स गया है
मत रो बFचे
तेरे आँगन म+
मद
ु ा सूरज नहला के गए ह$
चंvमा दOना के गए ह$
मत रो बFचे
अAमी, अYबा, बाजी, भाई
चाँद और सूरज
रोएगा तो और भी तुझ को jलवाएँगे
तू म5
ु काएगा तो शायद
सारे इक ?दन भेस बदल कर
तुझसे खेलने लौट आएँगे
एक मंज़र
एक मंज़र
बाम-ओ-दर ख़ामुशी के बोझ से चूर
आसमानE से जू-ए-दद रवाँ
चाँद का दख
ु भरा फ़सानःए-नूर
शाहे राहE क3 ख़ाक़ म+ ग़Qताँ
िज़ंदाँ क एक शाम
ऐ रोश!नय% के शहर
यहाँ से शहर को दे खो
यहाँ ये शहर को दे खो तो हQक़ा दर हQक़ा
:खंची है जेल क3 सूरत हर एक सAत फ़सील
हर एक राह गुज़र ग?दशे-असीरां है
न संगे-मील, न मंिज़ल, न मख़
ु लसी क3 सबील
जो कोई तेज़ चले रह तो पूछता है ख़याल
!क टोकने कोई ललकार यE नह7ं आई?
जो कोई हाथ ?हलाए तो वोम को है सवाल
कोई छनक, कोई झंकार यE नह7ं आई ?
यहाँ से शहर को दे खो तो सार7 :ख़Qक़त म+
न कोई सा?हबे -तAक3ं, न कोई वा ल-ए-होश
हर एक मदG जवाँ, मुिHमे-रसन-बगुलू
हर इक हसीना-ए-राना, कनीज हQक़ा बग़ोश
जो साए दरू चराग़ो के Xगद लरज़ाँ ह$
न जाने मह!फ़ले ग़म है !क ब6मे-जाम-ओ-सुबू
जो रं ग हर दर-ओ-द7वार पर पर7शाँ ह$
यहाँ से कुछ नह7ं खल
ु ता यह फूल ह$ !क लहू