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मध्यकालीन भारत
मध्यकालीन भारत
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मध्यकालीन भारत
भारतीय क्षेत्रों पर प्रथम सफल आक्रमण 712 ईसवी में मोहम्मद बबन काबसम के नेतत्ृ व में हुआ।
इस समय बसिंध का शासक दा बहर था।
ऄरबों के अक्रमण के विषय में पयााप्त सूचना फुतुल - ऄल बलदान एिं चचनामा से वमलती है।
अरबों ने बिबकत्सा, दशशनशास्त्र, नक्षत्र बवज्ञान, गबणत और शासन प्रबधिं बशक्षा भारतीयों से ली।
बगदाद के खलीफाओ िं ने भारतीय बवद्वान को सिंरक्षण प्रदान बकया।
मसिं रू के समय में ऄरब विद्वान भारत से बगदाद अपने साथ दो पस्ु तक लेकर गए ब्रह्मगुप्त का
ब्रह्मवसद्ांत तथा खंडखाद्य।
अरब आक्रमणकारी मोहम्मद वबन कावसम ने वसध ं ु िावसयों से जवजया नामक कर पहली बार
िसूल की।
अरब आक्रमणकाररयों में महमदू गजनवी और मोहम्मद गोरी बवशेष उल्लेखनीय है।
महमूद गजनिी
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चंदािर के युद् के बाद मोहम्मद गौरी ने विवजत क्षेत्रों को कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप कर िापस
गजनी िला गया।
मोहम्मद गौरी के साथ प्रवसद् संत शेख मुआनुद्दीन वचश्ती भारत है बजसने वचश्ती संप्रदाय की
स्थापना की।
मोहम्मद गौरी के सेनापबत बवततयार वखलजी ने बिंगाल और बबहार में लट ू की तथा नालंदा
विश्वविद्यालय को जला बदया।
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2. वदल्ली सल्तनत
कुतुबुद्दीन ऐबक
ऐबक को 1208 ई. में बगयासद्दु ीन के पत्रु महमदू से दास मबु ि पत्र प्राप्त हुआ।
बसिंहासन पर बैठने पर उसने सल् ु तान की उपाबध नहीं ग्रहण की बबल्क मबलक और बसपहसालार की पदबवयों
से ही सिंतष्टु रहा।
ऐबक ने हसन वनजामी और फक्र ए मुदब्बीर को संरक्षण बदया।
वह लाखों में दान वदया करता था तथा अपनी ऄसीम ईदारता के वलए ईसे लाख बतश कहा गया।
उसने प्रबसद्ध सूफी संत तिाजा कुतुबुद्दीन बवततयार काकी के नाम पर वदल्ली में कुतुब मीनार की
ऐबक के बाद उसका अयोग्य पत्र ु आरामशाह उत्तराबधकारी बना बजसे इल्ततु बमश ने अपदस्थ करके
बसहासन पर अबधकार कर बलया।
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आल्तुतवमश
रवजया सुल्तान
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बलबन आल्तुतवमश का दास था वह आल्बरी तुका था बजस के बचपन का नाम बहाईद्दीन था।
बलबन बदल्ली सल्तनत का एक ऐसा व्यवक्त था जो सल्ु तान ना होते हए भी सल्ु तान के छत्र का
ईपयोग करता था।
बलबन ने सल्ु तान की प्रबतष्ठा को स्थाबपत करने के बलए रक्त एिं लौह की नीवत ऄपनाइ।
बलबन के अनसु ार सल्ु तान पथ्ृ िी पर इश्वर का प्रवतवनवध है।
बलबन ने खदु को शाहनामा में वबणशत अफराबसयाब के वश िं ज से सिंबिंध स्थाबपत बकया।
बलबन ने चालीसा दल का दमन वकया इसने सैन्य विभाग दीिान ए ऄजा की स्थापना की।
बलबन ने अपने दरबार में इरानी प्रथा वसजदा और पैबोस को लागू बकया तथा इरानी त्योहार नौरोज
प्रथा भी आरिंभ की।
विवभन्न सुल्तानों के काल में बलबन द्वारा धाररत पद
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ऄलाईद्दीन वखलजी
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गयासद्दु ीन का मूल नाम गाजी तुगलक था जो तक ु ों की करौना शाखा से सबिं बिं धत था।
राज्य की आबथशक बस्थबत को ठीक करने के बलए लगान व्यवस्था को पनु ः व्यवबस्थत बकया।
अलाउद्दीन बखलजी द्वारा लागू की गई भूवम लगान तथा बाजार व्यिस्था का त्याग कर वदया।
उसने कृवष में ईत्पादन को प्रोत्साहन देने के वलए नहर वसंचाइ पद्वत का विकास बकया।
गयासद्दु ीन प्रथम सुल्तान था वजसने नहर का वनमााण करिाया तथा डाक व्यिस्था की शुरुअत की।
सिाप्रथम गयासद्दु ीन तुगलक के समय में ही दवक्षण के राज्यों को वदल्ली सल्तनत में वमलाया
गया।
वनजामुद्दीन औवलया ने गयासुद्दीन तुगलक के विषय में कहा था वदल्ली ऄभी दूर है।
गयासद्दु ीन तगु लक के मृत्यु के पिात उसका पुत्र जौना खााँ मोहम्मद वबन तुगलक के नाम से वदल्ली
का सल्ु तान बना।
वह बदल्ली सल्तनत के सुल्तानों में सिाावधक विलक्षण एिं प्रवतभाशाली सुल्तान था।
मोहम्मद बबन तगु लक ने 200 ग्रेन का एक सोने का वसक्का वदनार तथा 140 ग्रेन का एक चांदी का
वसक्का ऄदली िलाया।
मोहम्मद तगु लक ने उलेमा वगश को प्रशासबनक कायों से दरू रखा।
मोहम्मद बबन तगु लक ने कृवष की ईन्नवत के वलए एक निीन विभाग की स्थापना की बजसके बलए नए
मंत्री ऄमीर एक कोही को वनयुक्त बकया।
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वसंचाइ के वलए सैकड़ों कुअं खुदिाया तथा ऄकाल ग्रस्त कृषकों को कृवष ऊण (तकािी) प्रदान
की।
मोहम्मद बबन तगु लक ने सवशप्रथम ऄकाल ग्रस्त लोगों के वलए ऄकाल सवं हता तैयार करवाई।
मोहम्मद बबन तगु लक के समय में सबसे ऄवधक 34 विद्रोह हए वजसमें 27 ऄके ले दवक्षण भारत में
हए।
मोहम्मद बबन तगु लक के समय प्रवसद् जैन विद्वान वजन प्रभु सूरी तथा राजशेखर थे।
वह बदल्ली का प्रथम सल्ु तान था बजसने कृवष भूवम के अकलन के वलए रवजस्टर तैयार करवाया।
मोहम्मद बबन तगु लक के शासन काल में मोरक्को यात्री आब्नबतूता भारत आया।
इब्नबततू ा की प्रमुख पुस्तक रेहाला है।
मोहम्मद वबन तुगलक ने ऄपनी राजधानी को वदल्ली से हटाकर दौलताबाद स्थावपत की।
3. सांकेवतक मुद्रा का प्रचलन 1329
उसने मोहम्मद बबन तगु लक द्वारा प्रदत्त समस्त तकािी ऊणों को माफ कर वदया
उसने सल्ु तान को भेंट देने की प्रथा को समाप्त कर बदया।
बफरोज शाह के समय में के िल चार कर खराज, जकात जवजया और खुम्स थे।
बफरोजशाह तगु लक ने ब्राह्मणों पर भी जवजया कर अरोवपत बकया।
हाब ए शबा नामक वसच ं ाइ कर लगाया जो भबू म उपज का 10% होता था।
बफरोजशाह तगु लक ने सैवनक और ऄसैवनक पदों को िंशानुगत बनाया।
बफरोज शाह के शासनकाल में वखजराबाद (वचत्तौड़) और मेरठ से ऄशोक के दो स्तंभ लेखों को
लाकर वदल्ली में स्थावपत वकया गया।
इसने एक दान विभाग दीिाने खैरात की स्थापना की।
बफरोज तगु लक ने शसगनी (चांदी), ऄद्दा (वमश्र धातु), िीख (वमश्र धातु) नाम के वसक्के िलाए।िं
बफरोजशाह तगु लक ने फतेहाबाद, वफरोजाबाद, वहसार, वफरोजपुर और जौनपुर नामक नगरों की
स्थापना की।
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बफरोजशाह तगु लक ने ज्वालामख ु ी मबिं दर के पस्ु तकालय से लटू े गए 1300 ग्रिंथों में से कुछ का फारसी में
बवद्वान अलाउद्दीन द्वारा दलायले वफरोजशाही नाम से ऄनुिाद करवाया।
बफरोज ने अपनी अत्मकथा फतूहात ए वफरोजशाही की रिना की यह वदल्ली सल्तनत के सल्ु तानों
की पहली अत्मकथा थी।
बरनी ने फतिा ए जहां दारी एिं तारीख ए वफरोजशाही की रचना की।
तारीख ए वफरोजशाही में समय जानने के बलए ताश घवड़याल नामक यंत्र का ईल्लेख था।
बफरोज को मध्यकालीन भारत का पहला कल्याणकारी वनरंकुश शासक कहा जाता है।
वफरोज के ईत्तरावधकारी
बफरोज का उत्तराबधकारी ईसका पत्रु तुगलक शाह था जो गयासद्दु ीन तुगलक वद्वतीय के नाम
से गद्दी पर बैठा।
तगु लक वश िं का ऄंवतम शासक नसीरुद्दीन महमूद हुआ।
इसके शासनकाल में मध्य एवशया के महान मंगोल सेनानायक तैमूर ने 1398 इ. में भारत पर
अक्रमण बकया।
सैयद िंश (1414 – 1451 इ)
वखज्र खां
सैयद िंश के संस्थापक वखज्र खां ने मगिं ोल आक्रमणकारी तैमरू को सहयोग बदया था।
तैमरू ने बखज्र खािं को लाहौर, मुल्तान एिं दीपालपुर की सबु ेदारी सौपी।
बखज्र खािं ने सल्ु तान की उपाबध धारण नहीं थी वह रैयत ए अला की ईपावध से ही सतं ुष्ट था।
उसने अपने बसक्कों पर तगु लक शासकों का ही नाम रहने बदया और मंगोल के नाम से खुतबा पढ़िाया।
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मुबारक शाह
मबु ारक शाह ने शाह की उपाबध धारण की और अपने नाम से खतु बा पढ़वाया।
मबु ारक शाह ने यावहया वबन ऄहमद सर वहदं ी को संरक्षण बदया।
तारीख ए मुबारक शाही का संबंध मुबारक शाह के शासनकाल से है।
ु में ईसने जैनल
1420 ई. में कश्मीर के गृह यद्ध ु ाब्दीन का पक्ष वलया।
यमनु ा नदी के बकनारे उसने मुबारक शाह नामक नगर की स्थापना की।
बहलोल लोदी
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आब्रावहम लोदी
तुगलक िश ं 94 साल
गुलाम िंश 84 साल
लोदी िंश 75 साल
सैयद िंश 37 साल
वखलजी िश ं 30 साल
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सल्तनत काल में पत्थर एविं आग फें कने की मशीन को मगररब तथा ऄराादा कहा जाता था।
बफरोजशाह तगु लक ने सैवनकों को ऄनुिांवशक अधार पर आक्ताएाँ प्रदान की।
मोहम्मद गौरी ने भारत में आक्ता प्रथा की शरुु अत की तथा आल्तुतवमश ने आसे ठोस रूप वदया।
रहट का पहला विस्तृत वलवखत वििरण 16 िीं शताब्दी में बाबरनामा में वमलता है ।
पवू श मध्यकालीन भारत में कुछ ग्रथिं ों में इसका ईल्लेख ऄरहट के नाम से वमलता है जो बसि
िं ाई के कायश में
प्रयिु बकया जाता था।
सल्तनत कालीन प्रमख
ु कर
1. ईश्र – मुसलमानों से वलया जाने िाला भूवम कर (5 – 10%)
2. खराज – गैर मुसलमानों पर भूवम कर (1/3 – 1/2 )
3. खुम्स – लूट, खानों तथा भूवम में गड़े हए खजानो से प्राप्त धन वजसके 1/5 भाग पर राज्य का
ऄवधकार था शेष 4 / 5 भाग पर सैवनकों का ऄवधकार होता था वफरोज तुगलक को छोड़कर शेष
सभी ने (ऄलाईद्दीन गयासद्दु ीन तथा मोहम्मद वबन तुगलक) 4 / 5 भाग ऄपने वलए रखा।
4. जकात – मुसलमानों पर धावमाक पर (2.5%) तथा ईन्हीं के भलाइ के वलए व्यय वकया जाता था।
5. चरी – मिेवशयों पर लगने िाला कर
6. घरी – गृह कर
7. हबा ए शबा – वसंचाइ कर
8. जजारी – कसाआयों से वलया जाने िाला कर
ऄन्य प्रमुख तथ्य
सल्तनत कालीन सल्ु तानों में बलबन ने सैन्य विभाग की स्थापना की तथा ऄलाईद्दीन वखलजी को
एक स्थाइ सेना के गठन का श्रेय वदया जाता है।
बखलजी काल में मंगोलों में प्रचवलत दशमलि प्रणाली पर आधाररत सैबनक वगीकरण था।
वखलजी में सैन्य िगीकरण
1. सर खेल = 10 घड़ु सिारों की टुकड़ी का प्रधान
2. वसपहसालार = 10 सरखेल का प्रधान (100 घुड़सिार)
3. ऄमीर = 10 वसपहसालार (1000 घुड़सिार)
4. मवलक = 10 ऄमीर (10,000 घड़ु सिार)
5. खान = 10 मवलक (100,000 घुड़सिार)
6. सुल्तान सिोच्च सेनापवत।
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ऄबुल फजल & तारीख ए मसूदी मोहम्मद गजनिी के दरबार आवतहास अवद का
मोहम्मद वबन वििरण
हसैन ऄल बैहाकी
तिाजा आसामी फूतूह ईस सलातीन यह पुस्तक बहमनी िंश के प्रथम शासक ऄलाईद्दीन
बहमन शाह को समवपात है।
वफरोज तुगलक फतूहात ए वफरोजशाही वफरोज शाह की अत्मकथा और ऄध्यादेशों का
संग्रह।
ऄज्ञात लेखक सीरत ए वफरोजशाही वफरोजशाह तुगलक के बारे में िणान
वकरान ईस सादेन वमफ्ताह
ईल फतह
नहू वसपेहर
अवशका ईल ऄनिर
तुगलकनामा
ऄमीर खुसरो लैला मजनू
वसरी फरहाद
अइन ए वसकंदरी
हस्त बवहश्त
तारीख ए वदल्ली
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3. प्रांतीय राजिंश
1. जौनपुर
जौनपुर की स्थापना बफरोजशाह तगु लक ने अपने भाई जौना खान की स्मृवत में की थी।
जौनपरु में स्ितंत्र शकी राजिंश की स्थापना मवलक सरिर (तिाजा जहान) ने की थी।
ख्वाजा जहान को मवलक ईस शका (पिू ा का स्िामी) की उपाबध 1394 में बफरोज शाह तगु लक के पत्रु
सल्ु तान महमदू ने दी थी।
जौनपुर के ऄन्य प्रमुख शासक थे
मुबारक शाह, शमसद्दु ीन आब्रावहम शाह, महमूद शाह और हसैन शाह।
लगभग 75 वषश तक स्वतिंत्र रहने के बाद जौनपुर पर बहलोल लोदी ने कब्जा कर वलया।
शकी शासन के अतिं गशत बवशेषकर आब्रावहम शाह के समय में जौनपुर में सावहत्य एिं स्थापत्य कला
के क्षेत्र में हए विकास के कारण जौनपुर को भारत के वसराज के नाम से जाना गया।
ऄटाला देिी की मवस्जद का बनमाशण 1408 में शकी सुल्तान आब्रावहम शाह द्वारा बकया गया था।
अटाला देवी मबस्जद का बनमाशण कन्नौज के राजा विजय चंद्र द्वारा वनवमात ऄटाला देिी मंवदर को
तोड़कर बकया गया था।
जामी मवस्जद का वनमााण 1470 में हसैन शाह शकी के द्वारा बकया गया था।
2. कश्मीर
सहू ादेि नामक एक वहदं ू ने 1301 ई. में कश्मीर में वहदं ू राज्य की स्थापना की थी।
1339 – 40 ई. में कश्मीर में शाह मीर के द्वारा प्रथम मुवस्लम िंश की स्थापना की गइ।
शाह मीर ने अपनी राजधानी आद्रं कोट में स्थाबपत की थी।
अलाउद्दीन ने राजधानी आद्रं कोट से हटाकर ऄलाईद्दीनपरु (श्रीनगर) में स्थावपत की।
बहदिं ू मबिं दरों एविं मबू तशयों को तोडने के कारण सुल्तान वसकंदर को बुतवशकन कहा गया।
1420 ई. में जैनुलाब्दीन वसंहासन पर बैठा इसकी धाबमशक सबहष्णतु ा के कारण इसे कश्मीर का ऄकबर
कहा गया।
जैनल ु ाब्दीन ने महाभारत एिं राज तरंवगणी को फारसी में ऄनुिाद करवाया।
1528 ई. में अकबर ने कश्मीर को मुगल साम्राज्य में वमला वलया।
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3. बगं ाल
आवततयार ईद्दीन मोहम्मद वबन बवततयार वखलजी ने बगं ाल को वदल्ली सल्तनत में वमलाया।
गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल को तीन भागों में विभावजत बकया लखनौती (ईत्तर बंगाल), सोनार
गांि (पूिी बंगाल), सत गांि (दवक्षण बंगाल)
पांडुना में ऄदीना मवस्जद का वनमााण 1364 में सुल्तान वसकंदर शाह ने करवाया।
बिंगाल का शासक गयासद्दु ीन आजमशाह अपनी न्याय बप्रयता के बलए प्रबसद्ध था।
महाप्रभु चैतन्य ऄलाईद्दीन के समकालीन थे अलाउद्दीन ने सत्य पीर नामक आदिं ोलन की शरुु आत की।
नसीरुद्दीन नुसरत शाह ने गौड में बडा सोना एविं कदम रसल
ू मबस्जद का बनमाशण करवाया
4. मालिा
5. गुजरात
गजु रात के शासक राजा कणा को परावजत कर ऄलाईद्दीन ने 1297 इ. में आसे वदल्ली सल्तनत में
वमला बदया।
1391 ई. में मोहम्मद शाह तुगलक द्वारा वनयुक्त गजु रात का सबू ेदार जफर खााँ ने सुल्तान मुजफ्फर
शाह की ईपावध धारण 1407 में गजु रात का स्ितंत्र सल्ु तान बना।
गुजरात के प्रमुख शासक थे
ऄहमद शाह (1411 – 1452) महमूद शाह बेगड़ा और बहादुर शाह (1526 – 1537)
ऄहमदशाह ने असावल के बनकट साबरमती नदी के बकनारे अह्मदाबाद नामक नगर बसाया
गुजरात का सबसे प्रवसद् शासक महमूद बेगड़ा था।
1572 इ. में ऄकबर ने गुजरात को मुगल साम्राज्य में वमला बलया।
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6. मेिाड़
ऄलाईद्दीन वखलजी ने 1303 इ. में मेवाड के गवु हलौत राजिश ं के शासक रतन वसहं को परावजत
कर मेिाड़ को वदल्ली सल्तनत में वमला वलया।
िं की एक शाखा वससोवदया िंश के हम्मीर देि ने मुहम्मद वबन तुगलक को हराकर पूरे
गबु हलौत वश
मेिाड़ को स्ितंत्र करा वलया।
राणा कुंभा ने 1448 ई. में वचत्तौड़ में एक विजय स्तंभ की स्थापना की।
खानिा का युद् 1527 इ. में राणा सांगा एिं बाबर के बीच हअ वजसमें बाबर विजयी हअ।
1576 इ. में हल्दीघाटी का युद् राणा प्रताप और ऄकबर के बीच हअ वजसमें ऄकबर विजयी
हुआ।
मेिाड़ की राजधानी वचत्तौड़गढ़ थी जहांगीर ने मेिाड़ को मुगल साम्राज्य में वमला वलया।
7. खानदेश
तुगलक िंश के पतन के समय वफरोजशाह तुगलक के सूबेदार मवलक ऄहमद रजा फारूकी ने
नमादा एिं ताप्ती नवदयों के बीच 1382 इ. में खानदेश की स्थापना की।
खानदेश की राजधानी बरु हानपरु थी। आसका सैवनक मुतयालय ऄसीरगढ़ था।
1601 इ. में ऄकबर ने खानदेश को मुगल साम्राज्य में वमला वलया।
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4. विजयनगर साम्राज्य
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में हररहर एिं बुक्का नामक दो भाआयों ने की थी।
हररहर एविं बक्ु का ने बवजयनगर की स्थापना विद्यारण्य सतं के अशीिााद प्राप्त कर की थी।
हररहर एविं बक्ु का ने अपने बपता सिंगम के नाम पर संगम राजिंश की स्थापना की थी।
बवजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी थी जो तुंगभद्रा नदी के तट पर वस्थत है इसकी राजभाषा
तेलगु ू थी।
हररहर और बक्ु का पहले िारंगल के काकातीय शासक प्रताप रूद्र देि के सामंत थे।
बवजयनगर साम्राज्य पर क्रमशः वनम्न िंश ने शासन वकया
1. सगं म िश
ं
1. हररहर प्रथम
2. बुक्का प्रथम
3. हररहर वद्वतीय
4. देिराय फस्टा
5. देिराय वद्वतीय
6. मवल्लकाजाुन
7. विरुपाक्ष वद्वतीय
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आटली का यात्री वनकोलो काण्टी बवजयनगर की यात्रा पर देिराय प्रथम के शासनकाल में आया।
देिराय प्रथम ने तुमभद्रा नदी पर नहर वनमााण के बलए एक बाधिं बनवाया।
सिंगम वश िं का सबसे प्रतापी राजा देिराय वद्वतीय था।
फारसी राजदूत ऄब्दुल रज्जाक देिराय वद्वतीय के शासनकाल में बवजयनगर आया था।
मबल्लकाजनशु को प्रौढ़ देवराय भी कहा जाता है।
प्रबसद्ध तेलगु ू कबव श्रीनाथ कुछ बदनों तक देवराय बद्वतीय के दरबार में रहा।
एक अबभलेख में देिराय वद्वतीय को जग बेटकर (हावथयों का वशकारी) कहा गया है।
देिराय वद्वतीय ने संस्कृत ग्रंथ महान नाटक सुधा वनवध एिं ब्रह्मसूत्र पर भाष्य बलखा।
इसके समय चीनी यात्री माहअन भारत आया।
इस वश िं का ऄंवतम शासक विरुपाक्ष वद्वतीय था।
2. सालिु िश
ं
इस वश
िं की स्थापना 1485 में नरबसिंह सालवु ने की थी।
3. तुलिु िश
ं
इस वश िं का महान शासक कृष्णदेि राय था वह 8 ऄगस्त 1509 इ. को शासक बना।
बाबर ने अपनी आत्मकथा में इसे भारत का सवाशबधक शबिशाली शासक कहा है।
कृ ष्णदेव राय ने तेलुगु में ऄमुक्तमाल्यद एिं संस्कृत में जामिंती कल्याणम की रचना की।
कृष्णदेि राय के शासनकाल में पुतागाली यात्री डोवमनगो पायस और क्रुअइ बारगोस भारत आया।
कृ ष्णदेव राय के दरबार में तेलुगु के 8 महान कवि वजन्हें ऄष्ट वदग्गज कहा जाता था रहते थे।
पांडुरंगा महात्म्यम की रिना तेनालीराम रामकृष्ण ने की थी।
नागलपुर नामक नया नगर हजारा एिं विट्ठल स्िामी मंवदर का वनमााण कृष्णदेि राय ने करिाया था।
कृष्ण देि राय ने अध्र ं भोज, ऄवभनि भोज, अध्र ं वपतामह आबद की उपाबध धारण की थी।
ऄच्युत देि राय कृ ष्ण देव राय का नामजद उत्तराबधकारी था।
नूनीज कुछ समय आस के दरबार में रहा था।
सदावशि राय के शासनकाल में 23 जनिरी 1565 को प्रवसद् तालीकोटा का युद्ध हुआ।
इस यद्धु में विजय नगर के विरुद् एक महासंघ बना बजसमें ऄहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा और
बीदर शावमल थे जबबक बरार आस संघ में सवम्मवलत नहीं हुआ।
सयं ुक्त ने मोचे का नेतृत्ि ऄली अवदलशाह कर रहा था।
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अराबवडु शासक िेंकट वद्वतीय के शासनकाल में िोडेयार ने 1612 इ. में मै सूर राज्य की स्थापना की।
प्रांत (मंडल)> कोट्टम या िलनाडू (वजला)> नाडू> मे लाग्राम (50 गांि का समूह)> उर (ग्राम)
बवजय नगर कालीन सेना नायकों को नायक कहा जाता था यह नायक िस्तुतः भूसामंत थे बजन्हें राजा
1. अयंगर व्यिस्था
बवजय नगर काल में ग्रामीण प्रशासन की महत्िपूणा विशेषता आयिंगर व्यवस्था थी।
इस प्रशासन के वलए 12 शासकीय व्यवक्तयों को वनयुवक्त बकया जाता था इसी समूह को अयंगर भी
कहा जाता था।
अयंगरों के पद ऄनुिांवशक होते थे।
आयग िं र व्यवस्था की बवबशष्टता थी की भबू म द्वारा बवशेष आवटिं न तथा वनवित नकद भुगतान पहली बार
ग्राम में सेिकों को वकया गया।
2. नायंकर व्यिस्था
बवजयनगर साम्राज्य की बवबशष्ट व्यवस्था नायक िं र व्यवस्था थी साम्राज्य की समस्त भूवम तीन भागों में
विभावजत थी।
A. भंडारिाद भूवम – यह राजकीय भूवम थी
B. ऄमरम् भूवम – यह भूवम सैवनक सेिा के बदले ऄमर नायकों और पलाइ गारों को दी जाती थी
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नायंकर व्यिस्था की स्थापना विजय नगर शासकों द्वारा समुद्री व्यापार तथा ऄश्व व्यापार पर
प्रभािी वनयंत्रण स्थावपत करने के वलए की गइ थी।
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5.बहमनी साम्राज्य
दक्कन में अमीरान ए सदह के बवद्रोह के पररणाम स्वरूप मोहम्मद वबन तुगलक के शासन काल के
ऄंवतम वदनों में बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई।
जफर खान नामक सरदार ने ऄलाईद्दीन हसन बहमन शाह की ईपावध धारण कर बहमनी साम्राज्य की
स्थापना की।
उसने गलु बगाा को ऄपनी राजधानी बनाया तथा उसका नाम ऄहसनाबाद रखा।
अपने साम्राज्य को आसने 4 प्रांतों में विभावजत बकया गुलबगाा, दौलताबाद, बरार और बीदर।
2. शहाबुद्दीन ऄहमद
शहाबद्दु ीन अहमद प्रथम ने ऄपनी राजधानी गल ु बगाा के स्थान पर बीदर को बनाइ और उसका नाम
मोहम्मदाबाद रखा।
ऄलाईद्दीन हमायूं को इसकी क्रूरता एविं जाबलम स्वभाव के कारण दक्कन का नीरो कहा जाता है।
महमूद गिा एक इरानी था बजसे शमसद्दु ीन मोहम्मद तृतीय ने प्रधानमत्रिं ी बनाया।
महमदू तृतीय के काल में राजद्रोह की आशक िं ा के कारण महमदू गवा को मृत्यदु डिं बदया गया।
मोहम्मद तृतीय के समय में बहमनी राज्य पााँच छोटे -छोटे राज्यों में बट गया।
दक्कन के प्रमुख राज्य राजधावनयां एिं संस्थापक
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6. भबि एविं सफ
ू ी आदिं ोलन
भबि आदिं ोलन के दो पक्ष रहे हैं प्रथम प्रपवत ऄथिा समथान मागा तथा वद्वतीय प्रेम मागा
समपाण मागा में ईश्वर तथा भिों का सिंबिंध स्िामी तथा दास जैसा था।
प्रेम मागश में ईश्वर तथा भिों का सबिं धिं समानता पर आधाररत था।
इसी प्रेम आधाररत भबि के अतिं गशत बशव एविं बवष्णु की प्रेम पणू श भबि दबक्षण में छठी से दसवीं शताब्दी
तक का भावपणू श रहने वाले भबि आदिं ोलन का आधार बनी।
भवक्त का िास्तविक विकास सातिीं और बारहिीं सवदयों के बीच दवक्षण भारत में हअ। इस
अदं ोलन के प्रथम प्रचारक शक ं राचाया माने जाते हैं।
दबक्षण भारत में जनबप्रय आदिं ोलन के रूप में िैष्णि ऄलिार और शैि नयनार संतो के द्वारा भवक्त
अदं ोलन प्रारंभ हुआ।
नयनार भक्तों की संतया 63 है बजनके भवक्त गीतों को देिाराम में संकवलत वकया गया है।
कबीर वसकंदर लोदी के समकालीन थे उन्होंने ऄपने गुरु रामानंद के सामावजक दशान को सुवनवित
रूप बदया।
कबीर बहदिं ू मबु स्लम एकता के बहमायती थे।
कबीर के इश्वर वनराकार और वनगाण ु थे।
कबीर की वशक्षाएं बीजक में संग्रवहत है।
गरुु नानक का जन्म तलिडं ी अधुवनक ननकाना (पज ं ाब) में एक खत्री पररिार में हुआ था।
गरुु नानक के ईपदेशों को अवद ग्रंथ के रूप में प्रकावशत बकया गया।
3. रविदास
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सगण
ु भवक्त सतं
शक ं राचाया
इनका जन्म के रल प्रांत के कलादी ग्रामों में 788 इ. में हुआ था।
इनका वसद्ांत ऄद्वैतिाद के नाम से वितयात है।
शक िं रािायश ने भारत की चारों वदशाओ ं में ईत्तर में के दारनाथ दवक्षण में श्रृंगेरी, पूिा में पुरी तथा
पविम में द्वाररका मठों की स्थापना की ।
रामानज ु (1017 – 1137 इ.)
रामानजु का जन्म तबमलनाडु के पेरिंबदरू में हुआ था।
इन्होंने विवशष्टाद्वैत दशान का प्रवतपादन बकया।
इनका सिंप्रदाय श्री वैष्णव सिंप्रदाय था।
रामानंद
रामानजु के बशष्य रामानिंद भारत के पहली महान सिंत थे बजनका जन्म प्रयाग में हुआ था।
इन्होंने राम की भवक्त पर बल बदया।
रामानिंद ने दबक्षण और उत्तर भारत के भबि आदिं ोलन के बीि सेतु का काम बकया।
इन्होंने आदिं ोलन में वनम्न िगों के साथ-साथ वियों को भी प्रिेश बदया।
उन्होंने सवशप्रथम वहदं ी को ऄपनी प्रिचन की भाषा बनाया।
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इनका जन्म आगरा मथरु ा मागश पर रुनकता ग्राम में हुआ था।
यह ऄकबर और जहांगीर के समकालीन थे।
सरू दास ने ब्रज भाषा में सरू सरािली, सरू सागर एिं सावहत्य लहरी की रिना की।
महाराष्र के भक्त पंढरपुर में मुतय देिता विठोबा या विट्ठल के मंवदर के चारों ओर कें वद्रत था।
बवट्ठल या बवठोबा को कृष्ण का ऄितार माना जाता था।
बवठोबा पिंथ के 3 महान गरुु ज्ञानेश्वर या ज्ञानदेि, नामदेि और तुकाराम थे।
महाराष्र में भवक्त अदं ोलन मुतय रूप से दो संप्रदायों में बवभि था
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आध्याबत्मक जीवन के समन्वयवादी बसद्धातिं के साथ बवबवध बवज्ञान एविं कलाओ िं बक अपने बवस्तृत ज्ञान
को सिंयि
ु रूप में प्रस्ततु बकया।
सफ ू ी बविारधारा में गुरु (पीर) और वशष्य (मुरीद) के बीच संबंध का बहुत अबधक महत्व है।
प्रत्येक पीर ऄपना ईत्तरावधकारी (िली) वनयुक्त करता है।
सफ ू ी दशशन एके श्वरिाद में वसफा विश्वास करता है।
सूफी वसलवसला मुतयत: दो िगों में विभावजत है
1. बा-शरा ऄथाात जो आस्लावमक विधान को मानते थे।
2. बे-शरा ऄथाात जो आस्लामी विधान से बंधे हए नहीं थे।
बे-शरा ऄवधकतर घुमक्कड़ सूफी संत होते थे।
मंसरू हल्लाज प्रथम साधक था बजसने अपने को ऄन हलक घोवषत वकया और प्राण न्योछािर कर
वदए।
बा-शरा आस्लामी विधान को मानने िाले बसलबसले में से के वल दो ही उत्तर भारत में अबधक प्रिबलत
हुए हैं यह वसलवसले थे वचश्ती और सुहरा िदी।
सफ ू ी संत के वनिास स्थान को खानकाह कहा जाता है।
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1. वचश्ती संप्रदाय
बिश्ती भारत का प्राचीन सफ ू ी वसलवसला है तिाजा मोआनद्दु ीन वचश्ती ने (1192 इ. में मोहम्मद
गोरी की सेना के साथ भारत अए ) बिश्ती परिंपरा की नींव डाली।
ख्वाजा मोइनद्दु ीन वचश्ती की समावध ऄजमेर में तिाजा साहब के नाम से प्रबसद्ध है।
मोइनद्दु ीन बिश्ती के वशष्यों में तिाजा कुतुबद्दु ीन बवततयार काकी एिं हमीदुद्दीन नागौरी प्रमुख थे।
तिाजा कुतुबुद्दीन बवततयार काकी आल्तुतवमश के समकालीन थे और उन्हीं की याद में कुतुब
मीनार का वनमााण कराया गया था।
बदल्ली में बवततयार काकी के ईत्तरावधकारी शेख फरीदुद्दीन गज ं ए शकर हुए।
इन्हें वसख परंपरा में बाबा फरीद के नाम से जाना जाता है।
यह बलवन के दामाद थे और उनका महत्िपूणा योगदान गुरु ग्रंथ सावहब की रचना में है।
बिश्ती सिंतों में सबसे प्रवसद् है वनजामुद्दीन औवलया (1238 – 1325) और नसीरूद्दीन वचराग ए
वदल्ली।
शेख वनजामुद्दीन औवलया सल्ु तान गयासुद्दीन तुगलक के समकालीन थे।
शेख बनजामद्दु ीन औबलया के अबतशय लोकबप्रयता से भयभीत होकर गयासद्दु ीन तगु लक ने उन्हें बदल्ली
छोडने का आदेश बदया था।
शेख नसीरुद्दीन महमूद, शेख वनजामुद्दीन औवलया के ईत्तरावधकारी थे।
शेख नसरुद्दीन महमूद वचराग ए वदल्ली के नाम से लोकवप्रय हुए।
बिश्ती शाखा के महत्िपण ू ा सतं शेख सलीम वचश्ती थे।
उन्हें shaikh-ul-hind की संज्ञा से विभूवषत बकया गया था।
उन्होंने सीकरी में ऄपना खानकाह बनाया यहीं पर ऄकबर ने फतेहपुर वसकरी की स्थापना की तथा
अपने पुत्र का नाम सलीम रखा।
दवक्षण में बिश्ती बसलबसले की नींव शेख बुरहानुद्दीन गरीब ने रखी थी जो वनजामुद्दीन औवलया का
वशष्य था। इन्होंने दौलताबाद को ऄपना स्थाइ वनिास बनाया।
शेख कद्दूस गंगोही, हाजी रूमी, सैयद मुताजा, शेख हसैनी गेसूदराज अवद महत्िपूणा संत थे।
2. सुहरािदी संप्रदाय
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सहु रावदी का मुतयालय मुल्तान था। बहाउद्दीन जकाररया ने कुबािा के बवरुद्ध इल्ततु बमश को सहायता
दी थी इसी कारण इल्ततु बमश ने उसे शेख उल इस्लाम की उपाबध दी थी।
3. शान्तारी संप्रदाय
4. कावदरी संप्रदाय
इसकी स्थापना शेख ऄब्दुल कावदर वजलानी ने की शेख मीर, मोहम्मद वमयां मीर आस वसलवसले
के प्रमुख संत थे।
दारा वशकोह कादरी वसलवसले का ऄनुयाइ था और उसने लाहौर में बमयािं मीर से भेंट की थी।
5. वफरदौसी संप्रदाय
6. नक्शबंदी संप्रदाय
छह प्रमख ु बसलबसले में अबिं तम नक्शबंदी वसलवसले की स्थापना तिाजा बाकी वबल्लाह ने की थी।
शेख ऄहमद सरवहदं ी नक्शबदं ी वसलवसले के प्रमुख सतं थे।
सबू फयों में यह सबसे अबधक कट्टरवादी बसलबसला था।
ऄकबर एिं जहांगीर के समकालीन
शेख अहमद सर बहदिं ी में ईश्वर (अल्लाह) के साथ आकत्ि िजहत ईल िजूद के रहस्यवादी दशशन पर
आक्षेप बकया तथा उसे अस्वीकार कर बदया उसके स्थान पर उसने प्रत्यक्षिादी दशान िजहत ईल शूद
का प्रवतपादन बकया
7. कलंदरी वसलवसला
इस बसलबसले के संत घुमक्कड़ फकीर होते थे तथा वे आस्लामी कानूनों का पालन नहीं करते थे।
इनका कोई अध्यावत्मक गरुु ऄथिा सगं ठन नहीं था ये नाथपथ ं ी योवगयों से प्रभावित थे।
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सवशप्रथम कलिंदररया शब्द का प्रयोग ऄब्दुल ऄजीज मक्की के नाम में वमलता है।
इस शाखा के संत वसर मुड़ाते थे तथा वहदं ू नागाओ ं की भााँवत अपने हाथ पैर खान तथा शरीर के अन्य
अगिं ों में लोहे के धल्ले डालते थे।
भारत में कलंदररया शाखा की स्थापना वनजामुद्दीन कलंदर ने बकया।
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7.मुगल साम्राज्य
जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर का जन्म 14 फरिरी 1483 को रांस ऑक्सीयाना में हुआ था।
बाबर बपतृ वश िं की ओर से तैमरू का पािंिवा वशिं ज तथा मातृवश
िं की ओर से ििंगजे खान का 14 वािं वश
िं ज
था।
बाबर ने बजस नवीन राजवश िं की नींव डाली वह तुकी नस्ल का चगताइ िंश था।
बाबर ने 1504 ई. में काबल ु पर अबधकार कर बलया और पररणाम स्वरूप उसने 1507 इ. में पाद शाह की
ईपावध धारण की।
भारत पर बाबर का अक्रमण
बाबर के आक्रमण के समय भारत राजनीबतक रूप से अबस्थर था।
बाबर को भारत पर अक्रमण करने का वनमंत्रण अलम खााँ, आब्रावहम लोदी का चाचा
इसी यद्ध ु के दौरान बाबर ने सिाप्रथम बारूद का आस्तेमाल कर भेरा के बकले को जीता।
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3. घाघरा का यद्ध
ु
बाबर ने 6 मइ 1529 में घाघरा के युद् में वबहार तथा बंगाल की संयुक्त ऄफगान
सेना को पराबजत बकया।
यह बाबर का ऄंवतम युद् था।
26 वदसंबर 1530 में अगरा में बाबर की मृत्यु हो गइ।
बाबर को अगरा के नूर ऄफगान (अधुवनक अरामबाग) बाग में दफना वदया गया
परंतु बाद में ईसे काबुल में ईसी के द्वारा चुने गए स्थान पर दफनाया गया।
बाबर ने अपनी आत्मकथा तज ु क
ु ए बाबरी तक ु ी भाषा में बलखी।
बाबर ने बलखा है बक उसकी बवजय के समय भारत में 5 मुवस्लम और दो वहद ं ू शासक
राज्य करते थे उसमें आब्रावहम लोदी, दौलत खान लोदी, अलम खान और राणा
सांगा के बारे में बववरण बदया है।
बाबर के चार पुत्रों (हमायूं, कामरान, ऄस्करी, वहन्दाल) में हमायूं सबसे बड़ा था बजसका जन्म 6
मािश 1508 को हुआ था।
बाबर की मृत्यु के बाद नसरुद्दीन मोहम्मद हमायूं 23 वषश की आयु में 30 बदसिंबर 1530 को बहदिं स्ु तान
के बसिंहासन पर बैठा।
हमायूं ने ऄपने साम्राज्य का विभाजन करते हए भाई कामरान को काबल ु एविं शानदार अस्करी को
सिंभल तथा बहडिं ाल को अलवर की जागीर दी।
हमायूं ने ऄपना पहला अक्रमण कावलंजर के शासक प्रताप रुद्रदेि पर बकया।
हुमायिंू का ऄफ़गानों से पहला मुकाबला महमदू लोदी के साथ 1532 ई. में दोहररया नामक स्थान पर
हुआ बजसमें अफगान पराबजत हुए।
शेरखान से संघषा
शेरखााँ या शेर शाह के विरुद् हमायूं ने ऄपना पहला अबभयान 1532 इ. में चुनार में घेरा डालकर
वकया।
4 महीने के घेरे के पिात शेरखााँ ने हुमायिंू की अधीनता स्वीकार कर ली।
शेर खााँ ने 1534 में सरू जगढ़ तथा 1536 में बगिं ाल को जीत बलया।
शेरखान की शबि बनयिंबत्रत करने के बलए हुमायिंू बिंगाल की ओर बढ़ा और 1538 में चुनारगढ़ पर ऄपना
दूसरा घेरा डाल बदया।
हमायूं ने चुनारगढ़ का नाम जन्नताबाद रखा।
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बगिं ाल से लौटते समय हमायूं एिं शेरखान के बीच बक्सर के वनकट चौसा नामक स्थान पर 28 जनू
1539 को यद्ध ु हुआ बजसमें हमायूं बुरी तरह परावजत हुआ।
अपनी इस बवजय के ईपलक्ष्य में शेर खााँ ने शेर शाह की ईपावध धारण की।
17 मइ 1540 में कन्नौज वबलग्राम के युद् में हमायूं पुनः परास्त हो गया।
इस यद्धु के बाद हुमायिंू ईरान की ओर पलायन कर गया अपने 15 िषा के वनिाासन काल के दौरान ही
हमायूं ने हमीदा बानो बेगम से वििाह बकया।
1545 में शेरशाह ने अपना ऄंवतम अक्रमण कावलंजर के शासक कीरत वसंह के विरुद् बकया।
इसी अबभयान के समय ईक्का नामक अग्नेयाि िलाते समय गोले फट जाने के कारण शेरशाह की
मृत्यु हो गई।
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बेईमानी को रोकने के बलए उसने घोडों को दागने की प्रथा तथा सैबनकों की हुबलया बलखे जाने की प्रथा को
अपनाया था।
शेरशाह ने ईत्पादन वकया अधार पर भूवम को तीन श्रेवणयों में विभावजत बकया ऄच्छी, मध्यम और
खराब।
शेरशाह ने लगान वनधाा रण के वलए मुतयत: तीन प्रणावलयां ऄपनाइ
1. गला बक्शी ऄथिा बटाइ,
2. नश्क या मुक्ताइ
शेरशाह ने परु ानी वघसी वपटी वसक्के के स्थान पर शद्ध ु चांदी का रुपया (180 ग्रेन) और तांबे का दाम
(322 ग्रेन) िलाया।
उसने 164 ग्रेन के सोने के वसक्के ऄशफी जारी की।
शेरशाह ने ग्रैंड रंक रोड का वनमाा ण करवाया जो बग िं ाल से बदल्ली, लाहौर होते हुए पजिं ाब में अटक तक
है।
शेरशाह ने वबहार के सासाराम में ऄपना मकबरा बनिाया बजससे स्थापत्य कला की एक नवीन शैली
का प्रारिंभ हुआ।
शेरशाह में हमायूं द्वारा वनवमा त वदनपनाह को तुड़िाकर कर ईसके ध्िस ं ािशेषों से वदल्ली में परु ाने
वकले का वनमााण करिाया।
बकले के अद िं र शेर शाह ने बकला ए कुहना का बनमाशण करवाया।
जलालद्दु ीन मोहम्मद ऄकबर का जन्म ऄमरकोट के राणा िीर साल के महल में 15 ऄक्टूबर 1942
को हुआ था।
अकबर की माता का नाम हमीदा बानो बेगम था।
अकबर का राज्याबभषेक 14 फरवरी 1556 को बमजाश अब्दल ु काबसम ने बकया था।
1556 इ. में ऄकबर ने बैरम खां को ऄपना िकील वनयुक्त कर उसे खान ए खाना की ईपावध प्रदान
की।
बैरम खान का सिंबिंध फारस के बशया सिंप्रदाय से था।
पानीपत का वद्वतीय यद्धु 5 नवबिं र 1556 को बैरम खान के नेतृत्ि में ऄकबर और हेमू के बीि लडा
गया।
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इस यद्ध
ु में हेमू की हार हुई।
हेमू ने वदल्ली पर ऄवधकार के बाद विक्रमावदत्य की ईपावध धारण की थी वह वदल्ली पर बैठने
िाला ऄंवतम वहदं ू शासक था।
अकबर के समय में 1564 इ. में ईजबेकों ने विद्रोह कर बदया इसी विद्रोह के दौरान बीरबल की मृत्यु
हुई।
1586 में सलीम (जहागिं ीर) के इशारे पर ओरछा के बुंदेला सरदार िीर वसंह देि ने ऄबुल फजल की
हत्या कर दी थी।
अकबर अपनी राजपतू नीबत के पररणाम स्वरूप 1563 में तीथा यात्रा कर तथा 1564 में जवजया कर को
समाप्त कर बदया।
अकबर ने दाशावनक एिं धावमाक विषयों पर वाद बववाद के बलए अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी में
एक आबादत खाना की स्थापना 1575 में करायी।
ऄकबर के दरबार में निरत्न
ऄबुल फजल बीरबल टोडरमल
फै जी हकीम हमाम राजा मानवसहं
तानसेन मुला दो प्याजा ऄब्दुल रहीम खानखाना
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अकबर ने 1579 में महजरनामा या एक घोषणा जारी करवाई बजससे ईसने धमा के मामले में स्ियं को
सिोच्च बना वलया।
अकबर ने सभी धमों में सामंजस्य स्थावपत करने के वलए 1582 इ. में दीन ए आलाही या तौहीद ए
आलाही का प्रवतपादन बकया।
अकबर ने 1584 में एक नए कै लेंडर आलाही संित को जारी बकया ऄकबर ने आसे वहजरी संित के
स्थान पर जारी बकया था।
अकबर ने झरोखा दशान तुलादान तथा पायबोस जैसी पारसी परंपराओ ं को अरंभ बकया।
तुलसीदास, ऄमर दास और शेख सलीम वचश्ती, ऄकबर के समकालीन थे।
अकबर ने वसखों के तीसरे गुरु ऄमरदास से भेंट की
अकबर ने वसख गरुु रामदास को 1577 ई. में 500 बीघा जमीन प्रदान की बजसमें एक प्राकृवतक
तालाब भी था।
अकबर ने सती प्रथा को रोकने का प्रयास वकया तथा लड़के एिं लड़वकयों के वििाह की अयु 16
और 14 िषा वनधााररत की।
सलीम (जहांगीर) का जन्म 30 अगस्त 1569 को फतेहपुर सीकरी में हुआ था।
इसका नाम सफ ू ी सतं शेख सलीम वचश्ती के नाम पर था । अकबर प्यार से उसे शेखू बाबा पकु ारता था।
अकबर की परिंपरा को स्थाबपत रखते हुए जहांगीर ने न्याय का घंटा स्थावपत करिाया।
जहागिं ीर में अपनी अत्मकथा तुजुक ए जहांगीरी बलखी।
जहािंगीर के शासनकाल का पहला विद्रोह बसखों के पांचिें गरुु ऄजाुन देि के सहयोग से खस ु रो द्वारा
वकया गया था।
ऄजाुन देि पर जहांगीर ने राजद्रोह का आरोप लगाकर फासिं ी की सजा दी।
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नरू जहािं के बढ़ते प्रभाव के कारण शाहजहािं ने मबलक अबिं र की सहायता से जहािंगीर के बखलाफ बवद्रोह
बकया बजसे महावत खािं एविं परवेज ने दबा बदया।
जहांगीर ने सिाप्रथम मराठों को मुगल ऄमीर िगा में शावमल बकया।
जहािंगीर के काल में ही ऄफगावनयों और शेखजादा (भारतीय मुसलमान) को भी मनसबदारी प्रदान
की जाने लगी।
जहािंगीर के शासनकाल में ही कंपनी के प्रवतवनवध के रूप में कै प्टन हॉवकंस (1608 – 11 ई.) और
सम्राट जेम्स के दूत के रूप में सर टॉमस रो (1615 – 19 इ.) भारत आए।
जहािंगीर ने कै प्टन हॉवकंस को 400 का मनसब प्रदान बकया।
नूरजहां
शाहजहां का जन्म लाहौर में 5 जनवरी 1592 को मारिाड़ के मोटा राजा ईदय वसंह की पुत्री जगत
गोसाइ के गभश से हुआ था।
शाहजहां का वििाह 1611 में असफ खां की पुत्री ऄजाुमन्द बानो बेगम से हुआ जो बाद में मुमताज
महल के नाम से बवख्यात हुई।
1631 ई. में प्रसव पीडा के कारण ममु ताज महल की मृत्यु हो गई।
अगरा में ईसके शि को दफनाकर उसकी याद में ताजमहल का बनमाशण बकया गया।
शाहजहािं के ऄंवतम 8 िषा अगरा के वकले के शाहबुजा में एक बिंदी की तरह व्यतीत हुआ इस समय
ईसकी बड़ी पुत्री जहांअरा ने ईसकी सेिा की।
शाहजहािं की मृत्यु 1666 इ. में हुई और उसे भी ताजमहल में उसकी पत्नी की कब्र के बनकट साधारण
नौकरों द्वारा दफना बदया गया।
शाहजहािं ने 1632 में पुतागावलयों के व्यापाररक कें द्र हगली को घेर बलया और उस पर अबधकार कर
बलया।
शाहजहािं ने आलाही संित को समाप्त कर पुन: वहजरी संित प्रारंभ वकया
दरबार में वसजदा की प्रथा समाप्त की और इसके स्थान पर चहार तस्लीम प्रणाली प्रारंभ की।
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मोबहउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब का जन्म 3 नवबिं र 1618 को उज्जैन के बनकट हुआ था।
18 मई 1637 को औरिंगजेब का वििाह फारस राजघराने की राजकुमारी वदलरास बानो बेगम (रवबया
बीबी) हुआ था।
साम्राज्य पर अपनी दािेदारी के वलए औरंगजेब को पांच युद् लडने पडे बजससे ईत्तरावधकार का युद्
कहा जाता है।
बशवाजी को दबिं डत करने के बलए औरंगजेब ने 1660 इ. में शाआस्ता खां को तथा 1665 इ. में राजा
जयवसंह को भेजा।
जयबसिंह ने वशिाजी को परावजत कर 22 जून 1665 को उन्हें पुरंदर की संवध के बलए बववश कर बदया।
औरिंगजेब आस्लामी कानूनों को ऄक्षरश: पालन करने के कारण अपनी कट्टर सुन्नी प्रजा के वलए वजंदा
पीर तथा शाही दरिेश के रूप में जाना जाता था।
औरिंगजेब ने वसक्कों पर कलमा खुदिाना , पारसी नििषा निरोज का आयोजन सावशजबनक संगीत
समारोह भांग ईत्पादन शराब पीने तथा जुअ खेलने पर प्रवतबध ं लगा बदया।
1663 इ. में सती प्रथा पर प्रवतबंध लगा बदया तथा वहदं ु ओ ं पर तीथा यात्रा कर लगाया।
औरिंगजेब ने मुहतवसब (सािाजवनक कदाचार वनरीक्षक) या धमा ऄवधकारी नामक एक अबधकारी की
वनयुवक्त भी की।
अपने शासन के 11िें िषा में झरोखा दशान एविं 12 िषा में तुलादान (प्रथा बादशाह को सोने चांदी से
तलना) को समाप्त कर बदया।
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औरंगजेब के समय वहदं ू मनसबदारों की संतया 33% थी जबबक शाहजहािं के समय यह मात्र 24.7 %
थी।
औरिंगजेब के समय अमेर (जयपरु ) के राजा जयवसहं , मेिाड़ के राजा राजवसहं और जोधपरु के राजा
जसिंत वसंह प्रमख
ु राजपतू राजा थे।
मुगलकालीन प्रशासन
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मनसबदारी व्यिस्था
जागीरदारी व्यिस्था
मनसबदारों को जब नकद िेतन के बदले वकसी भूवम क्षेत्र का राजस्ि अिंवटत वकया जाता था। तो
वह उनकी जागीर या बतयल ू कही जाती थी जागीर प्राप्तकताा को जागीरदार कहा जाता था।
जागीरदारों को इस भूवम क्षेत्र से लगान एिं ऄन्य करों की िसूली का ऄवधकार होता था जागीरो को
हस्तांतररत वकया जा सकता था।
जागीर की ऄनमु ावनत अय को जमा या जमादानी तथा िास्तविक रूप से प्राप्त होने िाली अय को
हाल ए हावसल कहा जाता था।
जागीरें कइ प्रकार की होती थी जैसे – तनतिाह जागीर, मशरूत जागीर (शता पर दी गइ जागीर),
ितन जागीर, आनाम जागीर (पुरस्कार स्िरूप दी गइ जागीर),
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महाल ए पैबाकी
उस जागीर वाली भबू म को कहा जाता था बजसे परु ाने जागीरदार से दडं स्िरूप छीन कर नए मनसबदार
को अिंवटत करने के बलए सरु बक्षत रख बलया जाता था।
2. जागीर भूवम – जो राज्य के प्रमुख सरदारों या व्यवक्तयों को ईनके िेतन की एिज में दी जाती
थी।
3. सयूरगाल या मदद ए मास भूवम – जो ऄनुदान के रूप में विद्वानों एिं धावमा क व्यवक्तयों को वदया
भूवम के प्रकार
3. कानकूत नस्क
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मगु ल काल में कृषक िगा स्पष्ट रूप से 3 िगों में विभावजत था
1. खुदकाश्त – वकसान िे वकसान होते थे जो ईसी गांि की भूवम पर खेती करते थे
माप की आकाइ
वसकंदरी गज
ं 39 ऄंगलु या 32 आच
ं
आलाही 41 ऄंगुल या 33 आच
ं
गज
ं
ऄकबर के वसक्कों पर राम सीता की अकृवत तथा सयू श िद्रिं मा की मबहमा में वबणशत कुछ पद भी बमलते
हैं।
अकबर ने ऄसीरगढ़ विजय की स्मृवत में अपने वसक्कों पर बाज की अकृवत अबिं कत करवाई।
औरिंगजेब ने वसक्कों पर कलमा खुदिाना बंद करा बदया।
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औरंगजेब के कुछ वसक्कों पर मीर ऄब्दुल बाकी शाहबाइ द्वारा रवचत पद ऄंवकत है।
स्थापत्य कला
मगु लकालीन स्थापत्य की मख्ु य बवशेषता वपत्रादुरा (संगमरमर के पत्थर पर हीरे जिाहरात से की गइ
जड़ािट) एविं महलों तथा बवलास भवनों में बहते पानी का उपयोग है।
मगु लकालीन स्थापत्य कला की शरुु अत बाबर के समय से होती है उसने पानीपत के वनकट काबल ु ी
बाग में एक मवस्जद बनवाई थी।
बाबर ने ज्यावमतीय विवध पर अधाररत एक ईद्यान आगरा में लगवाया बजसे उसने नूर ऄफगान
ऄथिा अरामबाग नाम बदया।
हुमायिंू ने 1553 ई. में वदल्ली में दीनपनाह नामक एक नगर का वनमााण करवाया।
ऄकबर कालीन स्थापत्य कला भारतीय एिं आरानी शैवलयों का सुंदर समन्िय है।
इसमें अबधकािंशतः त्रावियत शैली का प्रयोग हुआ है बकिंतु सजावट के बलए इस्लाम की ऄरकुएट शैली
का भी प्रयोग हुआ है।
जहांगीर कालीन स्थापत्य में सजावट पर बवशेष बल बदया गया है।
जहांगीर कालीन प्रमुख आमारतें हैं – वसकंदरा में वस्थत ऄकबर का मकबरा, वदल्ली वस्थत ऄब्दुल
रहीम खानखाना का मकबरा।
एत्माद्दौला के मकबरे को ताजमहल और हमायूं के मकबरे की बीच की कड़ी कहा जाता है।
वपत्रादुरा का प्रथम प्रयोग एत्मादद्दु ौला के मकबरे में हुआ है।
शाहजहां के काल में मुगल स्थापत्य कला में सिंगमरमर का बडे पैमाने पर प्रयोग बकया गया।
उसने आगरा तथा बदल्ली में अनेक भवनों का बनमाशण कराया।
अगरा में दीिान ए खास, रंग महल, शीश महल, खास महल मच्छी महल, नगीना मवस्जद, मोती
मवस्जद है।
आगरा की स्मारकों में सिाावधक महत्िपूणा ताजमहल है बजसे उसने अपनी वप्रय पत्नी मुमताज की
स्मृवत में बनवाया।
शाहजहां ने वदल्ली में 1640 ई. में शाहजहानाबाद नामक नगर बसाया यही लाल बकला और जामा
मबस्जद बनवाए गए।
वदल्ली में लाल वकला में दीिान ए अम, दीिान ए खास, हीरा महल, रंग महल, तिाबगाह का
आबद बनबमशत कराए गए।
औरंगजेब के शासनकाल में सिंदु र भवनों में लाहौर की बादशाही मबस्जद, बदल्ली के लाल बकले की
मोती मबस्जद और औरिंगाबाद में रवबया दुराानी या बीिी का मकबरा प्रमुख है।
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वचत्रकला
हमायूं
1. मीर सैयद ऄली तबरीजी - नावदर ईल ऄस्र की ईपावध
2. तिाजा ऄब्दुलस्समद
मुगल शैली का संस्थापक माना जाता है।
ऄकबर
ऄकबर ने वचत्रकला के वलए ऄलग विभाग खोला और आसका ऄध्यक्ष ऄब्दुलस्समद को बनाया।
मीर सैयद ऄली
ऄब्दुलस्समद वमस्कीन यूरोपीय शैली का वचत्रकार
फारुख बेग व्यंग वचत्रकार
बसािन
दसिंत
मुगल काल की महत्िपूणा कृवत दास्तान ए ऄमीर हम्जा (हम्जानामा) का वचत्रांकन आसी काल में
हअ।
जहांगीर
बित्रकला प्रेमी था इस काल को मगु ल बित्रकला का स्वणश यगु कहा जाता है।
जहाग िं ीर के समय में इरानी के स्थान पर यूरोपीय शैली का प्रभाव बढ़ा तथा प्राकृ बतक बित्रण को
प्रमख
ु ता दी गई।
जहािंगीर के समय में पशु पवक्षयों और िनस्पवतयों को प्रमुखता दी गई।
ऄकाररत्रा
ऄबुल हसन नावदर एल जमााँ
दौलत नावदर ईल ऄस्र
मंसरू पशु पक्षी तथा प्राकृवतक वचत्रण
विशन दास
फारुख बेग
ऄबुल हसन व्यवक्त वचत्र में वसद्हस्त थे।
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संगीत कला
बाबर एविं हुमायिंू ने भी सिंगीत को प्रोत्साहन बदया बकिंतु यह अकबर के काल में अपने बशखर पर पहुििं ी।
ऄबुल फजल के ऄनुसार अकबर के दरबार में 36 गायकों को राज्य आश्रय प्राप्त था।
ऄकबर स्ियं बहत ऄच्छा नगाड़ा बजाता था।
तानसेन अकबर के नौ रत्नों में से एक था।
अकबर ने तानसेन को कंठा भरणिाणी विलास की ईपावध प्रदान की थी।
ऄकबर के काल के प्रमुख संगीतज्ञ थे तानसेन, बाज बहादुर, बैजबतत, गोपाल, हररदास,
रामदास, सज ु ान खान, वमयां चांद, तथा वमयां लाल एिं बैजू बािरा।
जहांगीर के काल में प्रमुख संगीतज्ञ में तानसेन के पुत्र वबलास खााँ, छतर खान, मक्खू तथा हम्जान
ु थे जहागिं ीर ने एक ग़ज़ल गायक शौकी को अनंद खााँ की ईपावध दी।
प्रमख
शाहजहािं अत्यिंत रबसक एविं सिंगीत ममशज्ञ था।
शाहजहां के काल के प्रमुख सगं ीतज्ञ थे लाल खााँ, खश ु हाल खााँ और विशराम खााँ।
शाहजहािं ने लाल खान को गुण समुद्र की ईपावध दी थी।
औरंगजेब ने संगीत को आस्लाम विरोधी मानकर पाबंदी लगा दी थी बकिंतु ईसी के काल में फारसी
भाषा में भारतीय शािीय सगं ीत पर सिाावधक पस्ु तके बलखी गई।
औरंगजेब एक कुशल िीणा िादक था।
औरिंगजेब के काल में फकीर ईल्लाह ने मान कुतूहल का ऄनुिाद राग दपाण नाम से करके औरिंगजेब
को समबपशत बकया।
औरंगजेब के काल की प्रमुख संगीतज्ञ रसबैन खान, सुखी सेन कलािंत, हयात, सरसनैन और
वकरपा।
मगु ल काल में मकतब और मदरसों की व्यवस्था थी जहािं वशक्षा दी जाती थी।
बाबर के समय में एक विभाग सहु रमे अम होता था जो स्कूल एविं कॉलेज की व्यवस्था करता था।
हुमायिंू ज्योबतष एविं भगू ोल कक्षा ज्ञाता था उसने एक पस्ु तकालय भी बदल्ली में बनवाई।
महाम मनागा ने बदल्ली में मदरसा ए बेगम की स्थापना की थी।
शाहजहािं ने बदल्ली में एक नए कॉलेज का बनमाशण करवाया तथा दारुल बकाश नामक कॉलेज की मरम्मत
करवाई।
मुगल राज पररिार का सिाावधक विद्वान शहजादा दारा वशकोह था।
बाबर ने अपनी अत्मकथा बाबरनामा तुकी भाषा में बलखी।
दरबारी आवतहास वलखने की परंपरा ऄकबर ने शरू ु की।
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1. बदायूनी रामायण
2. राजा टोडरमल भागित पुराण
3. आब्रावहम सरवहदं ी ऄथिािेद
4. फै जी गवणत की पुस्तक लीलािती
5. मुकम्मल खा गुजराती – ज्यवतष तजक (जहााँन ए जफर)
6. ऄब्दुल रहीम खानखाना तुजुक ए बाबरी
7. पायंनदा खााँ जुजुके बाबरी
8. मौलाना शाह मोहम्मद शहाबादी राजतरंवगणी (कश्मीर के आवतहास)
मुगलकालीन रचनाएं
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िं के प्रथम शासक बाबर का मकबरा काबुल में और ऄंवतम शासक बहादुर शाह जफर का
मगु ल वश
मकबरा रंगून में बस्थत है।
चारबाग पद्वत से सिंगमरमर से बनबमशत दोहरे गुंबद िाले हमायूं के मकबरे का वनमााण उसकी विधिा
हमीदा बानो बेगम ने वदल्ली में करवाया।
हमायूं के मकबरे को ताजमहल का पूिागामी माना जाता है।
मुगल िंश के सिाावधक लोग जैसे – हमीदा बानो बेगम, दारावशकोह, जहााँदार शाह, फरूाखवसयर,
रफीईद्दरजात, रफीईद्दौलाह और अलमगीर वद्वतीय को हमायूं के मकबरे में दफनाया गया है।
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8. मराठों का ईत्कषा
मराठा साम्राज्य का संस्थापक वशिाजी थे।
बशवाजी का जन्म 6 ऄप्रैल 1627 इ. में वशिनेर दुगा में हुआ था।
बशवाजी के वपता का नाम शाहजी भोंसले एविं माता का नाम जीजाबाइ था।
अध्यावत्मक क्षेत्र में बशवाजी के अचरण पर गरु ु रामदास का काफी प्रभाव था।
बशवाजी का वििाह साइ ं बाइ वनंबालकर से 1640 इ. में हुआ था।
शाह जी ने वशिाजी को पूना की जागीर प्रदान कर स्ियं बीजापुर ररयासत में नौकरी कर ली।
अपने सैन्य अबभयान के अत िं गशत 1644 ई. में वशिाजी ने सिाप्रथम बीजापरु के तोरण नामक पहाड़ी
के वलए पर ऄवधकार बकया।
1656 इ. में वशिाजी ने रायगढ़ को ऄपनी राजधानी बनाया।
बीजापुर के सुल्तान ने अपने सेनापवत ऄफजल खान को बशवाजी को पराबजत करने के बलए भेजा
बशवाजी के मंवत्रमंडल को ऄष्टप्रधान कहा जाता था ऄष्टप्रधान में पेशिा का पद सिाा वधक
3. पैदल सेना
बशवाजी ने माप के वलए काठी एिं मानक छड़ी के प्रयोग को आरिंभ बकया।
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बशवाजी के समय कुल ईपज का 33% भाग राजस्ि के रूप में वसल ू ा जाता था जो बढ़कर 40% हो
गया था।
चौथ एिं सरदेशमुखी नामक कर बशवाजी के द्वारा लगाया गया।
चौथ – वकसी एक क्षेत्र को बबााद न करने के बदले दी जाने िाली रकम
सरदेशमुखी – आसकी हक का दािा करके वशिाजी स्ियं को सिाश्रेष्ठ देशमुख प्रस्तुत करना चाहते
थे।
ऄष्टप्रधान
1. पेशिा – प्रधानमंत्री – राज्य का प्रशासन एिं ऄथाव्यिस्था की देखरेख
2. सर ए नौबत – सेनापवत – सैन्य प्रधान
वशिाजी का ईत्तरावधकारी
राजाराम मग ु लों से सिंघषश करता हुआ 2 मािश 1700 में मारा गया।
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राजा राम की मृत्यु के बाद उसकी विधिा पत्नी ताराबाइ ऄपने 4 िषीय पुत्र वशिाजी वद्वतीय का
राज्याबभषेक करवाकर मराठा साम्राज्य की वास्तबवक सरिं बक्षका बन गई।
1707 ई. में औरिंगजेब की मृत्यु के बाद सभ ं ाजी के पत्रु साहू जो औरिंगजेब के कब्जे में था भोपाल के
बनकट के मगु ल बशबवर से वापस महाराष्र आया।
साहू एिं ताराबाइ के बीच 1707 ई. में खेड़ा का युद् हुआ बजसमें साहू विजयी हुआ।
साहू ने 22 जनिरी 1708 इ. को सतारा में अपना राज्य अबभषेक करवाया।
साहू के नेतत्ृ व में नवीन मराठा साम्राज्य िाद के प्रिताक पेशिा लोग थे जो साहू के पैतृक प्रधानमंत्री
थे पेशिा पद पहले पेशिा के साथ ही िंशानुगत हो गया था।
1713 में साहू ने बालाजी विश्वनाथ को पेशिा बनाया इसकी मृत्यु 1720 ई. में हुई इसके बाद पेशिा
बाजीराि प्रथम हुए।
पेशवा बाजीराि प्रथम ने मगु ल साम्राज्य की कमजोर हो रही बस्थबत का फायदा उठाने के बलए साहू को
ईत्सावहत करते हए कहा वक अओ आस पुरानी िृक्ष के खोखले तने पर प्रहार करें शाखाएं तो स्ियं
वगर जाएगं ी हमारे प्रयत्नों से मराठा पताका कृष्णा नदी से ऄटक तक फहराने लगेगी ईत्तर में साहू
ने कहा वनवित रूप से ही अप आसे वहमालय के पार गाड़ देंगे वनसंदेह अप योग्य वपता के योग्य
पुत्र हैं।
पाल खेड़ा का युद् 7 माचा 1728 इ. में बाजीराि प्रथम एिं वनजाम ईल मुल्क के बीच हुआ बजसमें
वनजाम की हार हइ बनजाम के साथ मूंगी वशिागांि की संवध।
वदल्ली पर अक्रमण करने िाला प्रथम पेशिा बाजीराि प्रथम था बजसने 29 मािश 1737 ई. को
बदल्ली पर आक्रमण बकया।
उस समय मुगल बादशाह मोहम्मद शाह बदल्ली छोडने के बलए तैयार हो गया था।
बाजीराि प्रथम मस्तानी नामक मवहला से संबंध होने के कारण िबिशत रहा था।
1740 इस्िी में बाजीराि प्रथम की मृत्यु हो गई।
बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद बालाजी बाजीराि 1740 ई. में पेशवा बने।
बालाजी बाजीराि को नाना साहब के नाम से भी जाना जाता है।
1750 इ. में संगोला संवध के बाद पेशवा के हाथ में सारे अबधकार सरु बक्षत हो गए।
झलकी की सवं ध हैदराबाद के वनजाम एिं बालाजी बाजीराि के मध्य हुई।
बालाजी बाजीराि के समय में ही पानीपत का तृतीय युद् हुआ बजसमें मराठों की हार हइ इस हार
को नहीं सह पाने के कारण बालाजी की मृत्यु 1761 में हो गई।
माधिराि नारायण प्रथम 1761 ई. में पेशवा बना इसने मराठों की खोई हुई प्रबतष्ठा को पनु ः प्राप्त करने
का प्रयास बकया।
माधिराि ने इस्ट आवं डया कंपनी की पेंशन पर रह रहे मुगल बादशाह शाह ऄलम वद्वतीय को पुनः
वदल्ली की गद्दी पर बैठाया मुगल बादशाह ऄब मराठों का पेंशनभोगी बन गया।
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पेशवा नारायण राव की हत्या ईसके चाचा रघुनाथ राि के द्वारा कर दी गई।
पेशिा माधिराि नारायण वद्वतीय की अल्पायु के कारण मराठा राज्य की देखरे ख बारह भाइ सभा
नाम के 12 सदस्यों की एक पररषद करती थी इस पररषद के दो महत्िपण ू ा सदस्य थे महादजी
वसंवधया एिं नाना फडणिीस।
नाना फडणिीस को मराठों का मैवकयािेली कहा जाता है।
अबिं तम पेशिा राघोबा का पुत्र बाजीराि वद्वतीय था जो अग्रिं ेजों की सहायता से पेशवा बना था।
मराठों के पतन में सिाावधक योगदान बाजीराि वद्वतीय का था । यह सहायक सवं ध स्िीकार करने
िाला प्रथम मराठा सरदार था।
प्रथम अग्ं ल मराठा युद् 1775 से 82 ई. तक िला।
इसके बाद 1776 इ. में परु ंदर की सवं ध हुई इसके तहत किंपनी ने रघनु ाथ राि के समथान को िापस
बलया।
वद्वतीय अग्ं ल मराठा युद् 1803 से 5 ईसवी में हुआ।
इसमें भोंसले ने ऄंग्रेजों को चुनौती दी इसके फलस्िरूप 7 वसतंबर 1803 को देिगांि की सवं ध हुई।
तृतीय अग्ं ल मराठा युद् 1816 से 18 ई. में हुआ।
आस युद् के बाद मराठा शवक्त और पेशिा के िंशानुगत पद को समाप्त कर वदया गया।
पेशिा बाजीराि वद्वतीय ने कोरेगांि एिं ऄष्टी के युद् में हारने के बाद फरवरी 1818 इसी में मेल्कम
के सम्मुख अत्मसमपाण कर बदया।
अग्रिं ेजों ने पेशिा के पद को समाप्त कर बाजीराि वद्वतीय को कानपुर के वनकट वबठूर में पेंशन पर
जीने के वलए भेज वदया यहािं 1853 इ. में आनकी मृत्यु हो गई।
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