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Asth Nindit Purush ( अष्टनिन्दित पुरूष )- 8 Persons made Fun


By Bisht Samridhi < https://vaidyanamah.com/author/sam/>

December 28, 2019 < https://vaidyanamah.com/asth-nindit/>

चरक सूत्र स्थान 21वें अध्याय मेंं अष्टनिन्दितीय पुरूष का वर्णन किया गया है।
1) अतिदीर्घश्च
2)अतिह्रस्वश्च
3)अतिलोमा
4)अलोमा
5)अतिकृ ष्णच
6)अतिगौरश्च
7)अतिस्थूलश्च
8)अतिकृ श्च

यहाँ शरीर की बनावट के अनुसार निन्दित पुरूषों का वर्णन किया गया है।

अतिदीर्घ:- nowadays,it is known as Gigantism.


चिकित्सा की दृष्टि के यह विशेष रूप से निन्दित नहीं है किन्तु लोक दृष्टि से असुन्दर है।
Hence, it is taken in निन्दित प्रकरण।
शरीर ,के बड़े होने में वायु का महत्व रहता है , So known as वातल पुरूष।

अति हस्व :-असुन्दर होता है ।


also called Dwarfism
शरीर के अत्यंत छोटे होने के कारण औषधियों के वीर्य को सहन करने में भी असमर्थ होता है।
इससे मानसिक तथा शारीरिक के न्द्र पूर्ण विकसित नहीं रहते हैं।
इस प्रकार के मनुष्य प्रायः मन्दाग्नि से पीड़ित रहते हैं ।

अतिलोम :-का तात्पर्य , बड़े, मोटे, एवं एक लोम कू प में अनेक रोम के होने से है।
लोमकू पों के द्वारा शारीरिक मल स्वेद रूप में निकला करते हैं।
अभ्यंग,परिषेक करना necessary for all.
रोम के अधिक होने से इन दोनों कार्यौं में बाधा आती है।
अभ्यंग करते. समय रोम के टूट जाने से व्रण आदि हो जाते हैं
अलोमा :- लोन न होने या कम होने पर रोमकू पों की संख्या भी तदनुसार अल्प होती है।so that,स्वेदादि
मल का पूरा निष्कासन होने से निन्दनीय है।

अतिकृ ष्ण:-Amount of Melanin pigments increased.


अत एव यह निंदनीय है।

अतिगौर:-देखने में ये असुन्दर होते हैं,इनके शरीर में पित्त की प्रधानता होती है।रक्त की विकृ ति उन्हें ही
अधिक होती है।रोम भी अल्प होते है जिसमें सूर्य का ताप ये सहन नहीं कर सकते हैं।Now a days, kla
Albinism .इसमें त्वचा
का वर्ण श्वैत तथा Photophobia नामक लक्षण होता है।

अतिकृ श

अतिस्थूल

So these are in detailed below–

अतिकृ श की परिभाषा (Definition)–


“शुष्क स्फिगुदरग्रीवो धमनीजालसंतंतः ।
त्वगोस्थिरो षोअ्तिकृ शः स्थूलपर्वा नरोमतः।।”(च.सू.21/15)
अत्यन्त कृ श पुरुष का नितम्ब,उदर और ग्रीवा अधिक सुख जाती है,जिससे शरीर की धमनियों का जाल
दृष्टिगोचर होता है। शरीर में त्वचा और अस्थि मात्र ही शेष है ऐसा देखने में प्रतीत होता है तथा अतिकृ श पूरूष
की संधियां मोटी हो जाती है।

(Reasons ) अतिकृ शके कारण:–

●रूक्ष अन्नपान का सेवन


●उपवास,मात्रा से अल्प, नपा तुला भोजन करना(प्रमिताशन)
●किसी भी शारीरिक, मानसिक कार्यों को अधिक करना ।
●वातिल प्रकृ ति का होना।
●मलमूत्र और निद्रा के वेगों को रोकना।
अतिकृ श के दोष :

अतिकृ श व्यक्ति व्व्यायाम को,अधिक भोजन को,


-भूख-प्यास को,रोग को
-औषधियों को,
-अत्यंत शीत उष्ण आहार विहार को तथा अतिमैथुन सहन नहीं कर सकता।
प्लीहा वृद्धि ,कास,श्वास, क्षय उदर,गुल्म,अर्श ग्रहणी गत रोग हो जाते हैं।

चिकित्सा सिद्धांत ::-


अतिस्थूल से पीड़ित को=कर्षण
अतिकृ श से पीड़ित को= बृंहण

अतिस्थूल के कारण :- reasons


-अधिक मात्रा में भोजन करना |
-गुरू , मधुर,शीत, स्निग्ध आहार-द्रव्यों का सेवन।
-व्यायाम न करना।
-मैथुन न करना।
-दिव्याशयन।
-सर्वदा चित्त प्रसन्न होना।
-माता -पिता के बीज के अनुसार स्वभावतःशरीर स्थूल हो जाता है।
स्थूल होने पर सबसे अधिक शरीर में मेद धातु की वृद्धि होती है।

स्त्रोंतो के मार्गों को बंद कर देती है।


तब कोष्ठ में वायु विशेष रूप से बढ़कर गमन करती है।
अग्नि को विशेष रूप से प्रदीप्त करती है
आहार का शोषण भी कर लेती शोषण है।
-so that आहार का पाचन शीघ्र ही कर देती है।
जिससे मनुष्य आहार को बार – बार&अधिक मात्रा में चाहता.है।

Is obesity better or Emaciation ?


आतिस्थूलता & अतिकृ शता में कृ शता अच्छी होती है क्यों कि दोनों के पास चिकित्सा के समान साधन रहने
पर भी यदि दोनों समान व्याधि कृ श की अपेक्षा स्थूल मनुषय को अधिक कष्ट देने वाली होती है।

If Same disease occurs to Obese & Emaciated person then, obese


person is more suffered than thin person

स्थूल व्यक्ति –

मेदा नष्ट करने वाली औषधियां इस्तमाल होती है


अग्नि को नष्ट करने वाली और
वायु को नष्ट करने वाली औषधियोंं का प्रयोग किया जाता है।

But,मोटे व्यक्तियों के लिए बृहंण & लंघन can not be used.

Bcz,बृंहण –मेदा धातु वृद्धि ।

लंघन –मेदा नष्ट but वायु -अग्नि बढ़ जाएगी, जो पहले से ही स्थूल व्यक्ति में बढ़ी होती है।

अतिस्थूलता चिकित्सा:-
●वायु ,मेद,श्लेष्मा नष्ट करने वाले अन्न-पान ।
●तीक्षण, रुक्ष, उष्ण बस्तियां
●रूक्ष उबटन , गुडुची , नागरमोथा ,त्रिफला,तक्रारिष्ट+मधु का use
●वायविडंग ,सोंठ , क्षार,तीक्ष्ण लोह भस्म,मधु,जौ का आटा,आंवला चूर्ण -best

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