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विश्व को भारत की दे न

सं कलन एिं मार्गदर्गनः -

श्री राजीि दीवित


संग्रहकर्ता : -

स्वदे शी रोबिन बसरतनत

“मैं भतरर् को भतरर्ीयर्त की मतन्यर्तओं के आधतर पर बिर से खडत करनत चतहर्त हूँ उस कतया में लगत हुआ हूँ ”

- श्री राजीि दीवित जी


हम सभी बिद्यतर्थी रहे है, सभी पढतई करके बनकले है, हम सभी उच्च बशक्षत ि मतध्यम बशक्षत से बनकले है। लेबकन जो ितर्
हमें पढतई जतर्ी है , बक भतरर् सिसे ज्यतदत बपछ़डत दे श रहत। बिर पढतयत जतर्त है बक दु बनयत में सिसे ज्यतदत गरीि दे श
भतरर् रहत, भतरर् ने दु बनयत को कुछ नही बदयत, बिर पढतयत जतर्त है बक यबद अं ग्रेज भतरर् नही आर्े र्ो कुछ नही होर्त,
अंग्रेज नही आर्े र्ो बशक्षत नही होर्ी, अंग्रेज नही आर्े र्ो बिज्ञतन नही आर्त, अंग्रेज नही आर्े र्ो टे क्नोलॉजी नही आर्ी, अंग्रेज
नही आर्े र्ो टर े न नही आर्ी, अंग्रेज नही आर्े र्ो हितई जहतज नही होर्त, ऐसी ितर्े हम िचपन से पढर्े आर्े है , सुनर्े आर्े
हैं , और आपस में चचताये भी करर्े हैं । लेबकन सिसे ज्यतदत दु ख और दु भताग्य इस ितर् कत है बक अध्यतपक हम सि को यह
पढतर्े हैं । गुरू जो हमतरे िर्ामतन में है , िे गुरू कम हो गये है बशक्षक ज्यतदत हो गये है , िर्ामतन में जो बशक्षक है िही हमें ये
सि पढतर्े है , और इस र्रह से पढतर्े है बक बदमतग में घु स जतर्त है । आपने मनोबिज्ञतन की ितर् सुनी होगी बक यबद एक झूठ
को ितर-ितर िोलत जतर्त है , र्ो र्थोडी बदन में झूठ सुनर्े सुनर्े सच लगने लगर्त है । र्ो भतरर् के ितरे में करीि 200-300 िर्षों
से एक झूठ पूरी दु बनयत में िोलत जतर्त है , बक भतरर् एक गरीि दे श, भतरर् एक बपछडत दे श, भतरर् एक अिैज्ञतबनक दे श,
भतरर् एक ऐसत दे श जहतूँ र्कनीक नही, जहतूँ गबिर् नही, जहतूँ भौबर्क शतस्त्र नहीं, कुछ भी नही।

भतरर् एक ऐसत दे श हर समय दू सरो पर बनभार, भतरर् एक ऐसत दे श जो हर समय परतिलंिी, भतरर् एक ऐसत दे श बजसकी
सभ्यर्त और संस्कृबर् गौरि करने लतयक कुछ नही, और जो कुछ गौरि करने लतयक है िो सि पतखंड हैं । और हमतरे बशक्षको
को जि हम ये प्रश्न करर्े है बक आप हमें ये सि क्ों पढतर्े है र्ो िे कहर्े है बक हमें भी यही पढतयत गयत है इसबलए हम र्ुम
सि को यही पढतर्े है । र्ो हमतरे बशक्षको के बशक्षक रहे है , उन्हें भी इसी र्रह पढतयत गयत हैं । लेबकन सिसे ज्यतदत कष्ट जि
होर्त है जि कोई सतधतरि व्यक्ति भतरर् के ितरे में ये कहर्त है बक हमतरे पतस ज्ञतन नही, हमतरे पतस र्कनीकी नही, हमतरे
पतस बिज्ञतन नही, हमतरे पतस अर्थाशतस्त्र नही, धन नही, कुछ नही। हम र्ो हमेशत से बपछडे और गरीि लोग है । सतधतरि
व्यक्ति को र्ो मति बकयत जत सकर्त है , लेबकन भतरर् कत प्रधतनमंत्री र्ि ये कहने लगे र्ो बदल को िहुर् चोट पहूँ चर्ी है ।
हमतरे दे श के कई प्रधतनमंबत्रयों के मुहूँ से यही सुनत है बक भतरर् दे श में नत र्ो ज्ञतन है , नत बशक्षत, नत बिज्ञतन, नत र्कनीक, जो
कुछ भी हमतरे पतस है िो अं ग्रेजों की दे न है । पूरी दु बनयत के सतमने हमतरे प्रधतनमंबत्रयों ने िोलत है - “सपेरो कत दे श, लुटेरो कत
दे श, अंधेरे कत दे श, ठगों कत दे श”, इस र्रह की ितर्े पूरी दु बनयत में भतरर् के ितरे में प्रचतररर् हुई है । हमतरे प्रधतनमंत्री के
द्वतरत लंदन के ऑक्सिोडा में भतर्षि बदयत बक “हम अंग्रेजों के िहुर् आभतरी है , यबद अंग्रेज भतरर् नत आर्े र्ो हमें र्ो नत बिज्ञतन
पर्त र्थत, नत र्कनीकी पर्त र्थी, नत बशक्षत व्यिस्र्थत होर्ी, नत अर्थाव्यिस्तत होर्ी, नत डतक बिभतग होर्त, नत रे लिे बिभतग होर्त”।
40 बमनट र्क िे अंग्रेजों कत गुिगतन करर्े रहे , बक अंग्रेजों कत आनत भतरर् के बलए िरदतन र्थत। बिल्कुल ऐसत ही भतर्षि
हमतरे प्रर्थम प्रधतनमंत्री ने भी संसद में बदयत, उन्होंने अपनी संसद में कहत बक “यबद अंग्रेजों कत भतरर् के सतर्थ संयोग नही
होर्त र्ो भतरर् र्ो हमेशत अं धकतर और अंधेरे में डूित हुआ दे श ही रहर्त है , इसबलए भतरर् कत बिकतस करतनत है र्ो अं ग्रेजों
जैसत िनतनत है , भतरर् को आगे िढतनत है र्ो अंग्रेजों के रतस्ते पर चलकर ही उसको लेकर चलनत है । 2 यत 3 प्रधतनमंत्री को
छोड बदयत जतये र्ो सभी इसी मतनबसकर्त के प्रधतनमंत्री रहे । लेबकन एक प्रधतनमंत्री र्थे बजन्हे अपनी संस्कृबर् पर िहुर् गिा
होर्त र्थत उनकत नतम र्थत “श्री लतल िहतदु र शतस्त्री”।

उन्होंने एक िैसलत बलयत र्थत बक अमेररकत से लतल गेहूँ भतरर् में आर्त र्थत, बजस गेहूँ को
अमेररकत में जतनिर भी नही खतर्े र्थे, िो गेहूँ हमें क्तखलतयत जतर्त र्थत, श्री शतस्त्री जी ने िैसलत
बलयत बक ये गेहूँ खतनत हमें मंजूर नही है , क्ोंबक अपमतनजनक र्रीके से आर्त है , और सिसे
खरति है , उस समय गेहूँ कत उत्पतदन कम र्थत, लोगो ने कहत बक हम क्त खतयेगे, र्ो शतस्त्री
जी ने कहत की हमें भूखे मरनत पंसद है , लेबकन अपमतनजनक र्रीके से बिदे शी घबटयत गेहूँ
खतनत मंजूर नही है , इस ितर् पर संसद पर िहस चल रही र्थी, र्ो संसद में िैठे लोगो ने शतस्त्री जी से कहत बक यबद ये अमेररकत
और यूरोप के दे श नत होर्े र्ो हम र्ो कही के नत रहर्े, र्भी शतस्त्री जी ने कहत बक अमेररकत और यूरोप के पतस ऐसत कुछ
नही है जो िे भतरर् को दे सके, हमतरे पतस ही है जो हम उन्हें दे सकर्े हैं ।

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इसी र्रह एक और प्रधतनमंत्री हुए इस दे श में उनकत नतम र्थत ‘मोरतरजी दे सतई’। िे भी यही कहर्े र्थे बक दु बनयत में अगर
सिसे ज्यतदत ज्ञतन है र्ो िो भतरर् के पतस है , लेबकन इस ितर् कत दु भताग्य है बक उस ज्ञतन को दु बनयत में स्र्थतबपर् करने में पीछे
रह गये। इसी र्रह एक ओर प्रधतनमंत्री हुए जो केिल 4 महीने के बलए रहे , उनकत नतम र्थत चंद्रशेखर, िे भी यही कहर्े र्थे बक
यूनतन से पुरतनी संस्कृबर् हमतरी रही है , यूरोप के ज्ञतन से पहले िो ज्ञतन भतरर् में मौजूद रहत है , इसबलए हमें बिदे बशयों से लेनी
की कोई जरूरर् नही है । इसी दृबष्ट से मैं आपके सतमने कुछ र्थ्य पेश करनत चतहर्त हूँ , बजसे पढकर आप भतरर् दे श पर
गिा करे गे। मैं शुरुआर् करर्त हूँ , भतरर् ने दु बनयत को क्त बदयत?

सिसे पहले हम दु बनयत के सतमने कह सकर्े है गिा से, बजसे दु बनयत ने भी स्वीकतर बकयत है बक सिसे पहली भतर्षत और सिसे
पहली बलबप(बलखनत) दु बनयत को दी है र्ो िो भतरर् ने दी है , हमतरी सिसे पहली भतर्षत जो है िो संस्कृ र् है और सिसे पहली
बलबप दे िनतगरी है । लेबकन कुछ इबर्हतसकतर कहर्े है बक दे िनतगरी बलबप से भी िहुर् पुरतनी बलबप रही है जो ब्रतह्मी बलबप है ।
ब्रतह्मी बलबप के ितरे में सतरी दु बनयत के िैज्ञतबनकों ने जो ितर् स्वीकतरी है िो है बक ब्रतह्मी बलबप उर्नी ही पुरतनी है बजर्नत पुरतनत
भतरर्। लगभग 2 अरि सतल पहले कत ये हमतरत ब्रतह्मति है , प्रकृबर् है बजसमें भतरर् िसर्त है , लगभग उर्नी ही पुरतनी ब्रतह्मी
बलबप है । पूरी दु बनयत भी यही मतनर्ी है बक बलखनत यबद बसखतयत है बकसी दे श ने र्ो भतरर् ने ही बसखतयत है । क्ोंबक भतरर्
से पहले बलखने की कलत बकसी को नही आर्ी र्थी, इसबलए भतरर् ने ही सिको बलखनत बसखतयत, पढनत और िोलनत र्थोडत
आसतन होर्त है लेबकन बलखनत र्थोडत कबठन मतनत जतर्त है जो बलबप द्वतरत संभि है । बिर यहीं बलबप हमतरी चीन में गयी, चीन
ने हमसे बलखनत सीखत, चीन के िैज्ञतबनक ईमतनदतरी से इस ितर् को स्वीकतर करर्े है , बक चीन के महतबर्षा भतरर् आये उन्होंने
बलबप कत अध्ययन बकयत, बिर चीन ितपस लौटकर िहतूँ अपनी बलबप कत अबिष्कतर बकयत।

भतर्षत भी भतरर् ने ही दी है पूरी दु बनयत को र्ो जतबहर सी ितर् है बक िोलनत भी सिसे पहले भतरर् ने ही बसखतयत है । दु बनयत
की जो बिबशष्ट भतर्षत मतनी जतर्ी है अं ग्रेजी को छोडकर जैसे – जमान, फ्रेंच, स्पेबनश,
पोरर्ुबगस,रबसयन, डे बनस आबद। अंग्रेजी की सतमतन्य भतर्षत में बगनर्ी होर्ी है । क्ोंबक
अंग्रेजी दू सरो की नकल हैं । बिबशष्ट (मूल) भतर्षत के िैज्ञतबनक यही कहर्े है बक हमतरी
भतर्षतएं संस्कृर् भतर्षत से ली गयी है । आपको सुनकर है रतनी होगी, दु बनयत में कम्प्यूटर को
चलतने ितली एल्गोररर्थम सं स्कृबर् में ही र्ैयतर की है और कुछ सतलो में सतरी दु बनयत में छत
जतयेगी। सभी िैज्ञतबनक इस ितर् को स्वीकतर करर्े हैं , िे कहर्े हैं बक इस भतर्षत में 2 चीजे महत्व की है पहली बिशेर्षर्त इसकत
जो व्यतकरि है िो एकदम पक्कत हैं , इर्नत पक्कत हैं बक लतखों करोडो िर्षा पहले बकसी िबर्ष मुबन ने जो व्यतकरि में कर
बदयत है , जो 21 िी शर्तब्दी में उर्नत ही सच है । जो लतखों करोडो िर्षा पहले र्थत। महबर्षा पतबिनी के सू त्र हजतरों िर्षा पुरतने हैं ,
महबर्षा पतबिनी के सू त्रों में एक कोमत र्क िदलने की जरूरर् आज र्क बकसी को नही लगर्ी। दु बनयत के ितबक सभी भतर्षतओं
में िदलति होर्े हैं । लेबकन संस्कृर् दु बनयत की अकेली एिं बिबशष्ट भतर्षत बजसकत व्यतकरि एकदम पक्कत है , और अगले लतखों
करोडो िर्षा र्क उर्नत ही पक्कत रहे गत।

इसबलए फ्रतसबसयों ने जो भतर्षत िनतयी फ्रेंच उसे संस्कृर् कत आधतर बदयत, जमानी को संस्कृर् कत आधतर बदयत। आप कभी
जमान ि फ्रेंच भतर्षत को पढने की कोबशश करें गे बिल्कुल ऐसी हैं जैसी संस्कृर्। दु बनयत की लगभग 56 ऐसी भतर्षतएं है बजनके
शब्द रूप, धतर्ु रूप संस्कृर् जैसे हैं ।

दू सरी बिशेर्षर्त यह है बक भतरर् की अकेली बिबशष्ट भतर्षत संस्कृर् है । बजसके पतस शब्दों कत सिसे िडत भडारतर है । दु बनयत
में िोली जतने ितली भतर्षत बजसको हम अं ग्रेजी कहर्े है , रबसयन, जमान, फ्रेंच, डच, स्पेबनश, डे बनस यत चतइनीज। इन सि
भतर्षतओं से हजतरो गुित ज्यतदत शब्द संस्कृर् भतर्षत में हैं । महबर्षा पतबिनी से लेकर आज र्क यबद संस्कृर् के उपयोग बकये गये
शब्दों की गिनत की जतए, बक बकर्ने शब्द भतर्षत के स्तर पर उपयोग बकये हैं । 102 अरि 78 करोड 50 लतख शब्दों कत
उपयोग अि र्क हो चुकत हैं । संस्कृर् भतर्षत िहुर्त समृद्धशतली हैं । जि भतर्षत समृद्ध होर्ी है र्ो सतबहत्य भी समृद्ध होर्त है ।
संस्कृर् भतर्षत में बजर्नत सतबहत्य बलखत गयत हैं पूरी दु बनयत में शतयद ही बकसी भतर्षत में बलखत गयत है । बिर आप कहोगें की ये
बदखतई क्ों नही दे र्त। इसकत कतरि है हमतरी लतपरितही कत नर्ीजत है बक हम अपने सतबहत्य को िचतकर नही रख सके।

2
हमतरे सतबहत्य कत िहुर् नु कसतन हुआ है बपछले 1000 िर्षों में । आपको जतनकर है रतनी होगी बक बिदे शी लुटेरो ने भतरर् में
आकर लूटनत शुरु बकयत र्ो केिल सम्पबि नही लूटी िक्तल्क सतबहत्य को भी लूटत, क्ोबक ज्ञतन यहतूँ भरत पडत है , और कई
बिदे शी अक्रतन्तत ऐसे आये र्थे बक बजन्होने हमतरे सतबहत्य को जलत बदयत, आपने सुनत होगत र्क्षबशलत की कहतनी, भतरर् के
सिसे िडे पु स्तकतलय की बकर्नी िडी दु दाशत हुई र्थी, बक उसको जलत बदयत गयत र्थत और र्क्षबशलत की पुस्तकों को जलत
दे ने की ितर् यह है बक 6 महीने र्क बिदे शी अक्रन्ततओं ने उन बकर्तिो के पन्ने को जलत-जलत कर पतनी गमा बकयत र्थत। ये
इर्नत िडत ज्ञतन कत भडारतर र्थत जो 6 महीने र्क जलर्त रहत र्थत। कल्पनत कीबजये लतखो करोडो पेज रहे होंगे। कई बिदे शी
लुटेरे ऐसे आये बक हमतरत सतबहत्य लूट बलयत, कई बिदे शी लुटेरे ऐसे आये की हमतरत सतबहत्य जलत बदयत, कई बिदे शी अक्रतन्ततएं
ऐसे आये बजन्होंने हमतरे सतबहत्य को र्ोड-मरोड करके, उसको ऐसत प्रस्तु र् कर बदयत बक िो हमें सिसे ज्यतदत खरति बदखर्त
हैं । जैसे िेदों की ितर् करें , हमतरे मूल िे द मुक्तिल से बमलर्े हैं । यबद िेदों की प्रबर्बलबप पतयी जतर्ी हैं र्ो पर्त चलर्त है बक
िे मैक्समूलर रबचर् हैं और मैक्समूलर ऐसत व्यक्ति र्थत जो भतरर् को जतननत चतहर्त र्थत लेबकन कभी भतरर् आयत नही, घर िैठे
उसे जो कुछ भी भतरर् के ितरे में बमलत िो उसने बलख बदयत। िेदो को उसने पढत पूरी रूबच से , संस्कृर् भी सीखी उसने,
लेबकन उसे अबधकतश समझ में नही आयत िेदो में, र्ो उसने अपने र्रीको से बलख बदयत, और आज हमें ये बदखतई दे र्त है र्ो
हमें ये सि बिरोधतभतसी बदखतयी दे र्ी है क्ोंबक हमतरे मूल ग्रन्ों के सतर्थ छे डछतड कर दी, ज्ञतन के भडारतर के सतर्थ छे डछतड
कर दी, हमतरे शतस्त्रों के सतर्थ छे डछतड कर दी।

यबद हम मूल िेदों को दे खो और मैक्समूलर रबचर् िेदों को दे खे र्ो जमीन आसमतन कत अंर्र है , जैसे मूल मनु स्मृबर्
और अंग्रेजों द्वतरत रबचर् मनुस्मृबर् में जमीन-आसमतन कत िका हैं । अं ग्रेजों ने हमतरे ग्रन्ों में िहुर् कुछ बमलतिट कर दी है ।
जैसे ये हमतरे िेदों में से कोट कर दे र्े है बक भतरर्ितसी मतं स खतर्े र्थे, गतय कत मतं स खतर्े र्थे, र्ो हमतरे पतस जो ज्ञतन कत भडारतर
रहत संस्कृर् भतर्षत में, इसमें िहुर् नुकसतन हो गयत। ज्ञतन हमतरे यहतूँ दु बनयत में सिसे ज्यतदत रहत है , क्ोंबक भतरर् एक र्रह
से ज्ञतन कत ही बहस्सत है , ‘भत’ मतने होर्त है “ज्ञतन” और ‘रर्’ मतने होर्त है “लगत हुआ”। ये सि हमतरे बलए चुनौर्ी की ितर् है
बक जो हमतरे िेद रहे है , हमतरे शतस्त्र रहे हैं , उन सि को खोज कर दु बनयत के सतमने लतनत है ।

यबद बिज्ञतन की दृबष्ट से दे खत जतए र्ो भतरर् बिज्ञतन के क्षेत्र में भी सिसे अग्रिी रहत है । स्वतस्थ्य को
सही रखने हे र्ु आचतया चरक ने 'चरक संबहर्त' की रचनत की है ।
उसमे आयुिेद से सभी िीमतररयों कत उपचतर करने कत बिस्ततर पूिाक ििान बकयत गयत है । रसोई में
कतम आने ितले मसतलों (ितरसी शब्द ) अर्थतार् और्षबधयों कत उपयोग बकस मतत्रत में करने से कौन सत
रोग दू र होर्त है सि िर्तयत गयत है । महबर्षा ितग्भट्ट ने िर्तयत बक जीिन शैली
कैसे होनी चतबहए, बकर्नी मतत्रत में जल
लेनत चतबहए, कैसे जल पीनत चतबहए इत्यतबद कत बिस्ततर पूिाक बििरि
अष्टतं गसंग्रह और अष्टतं गहृदयसंबहर्त में बदयत है । उदतहरनतर्था िर्तर्त
हूँ महबर्षा ितग्भट ने कहत र्थत बक भोजन िनतर्े समय सूया कत प्रकतश और पिन कत स्पशा आिश्यक है
और हमतरे गतिों में भोजन ऐसे ही पकतयत जतर्त है , जतपतबनयों ने अरिों रुपये खचा कर के िर्तयत है
बक खुले में भोजन िनतने से सम्पूिा पौबष्टक र्त्व भोजन में आर्े है । ऐसे िहुर् सी ितर्ों कत उल्लेख
इसमें बमलर्त है । आयुिेद में सभी बिमतररयों कत पू िार्यत उपचतर है अगर आज की बचबकत्सत बिज्ञतन 'एलोपैर्थी' और 'आयुिेद'
कत र्ुलनतत्मक अध्ययन बकयत जतए र्ो पर्त चलर्त है बक एलोपैर्थी में बसिा िीमतरी से लडत जतर्त है पूिार्यत इलतज नही
होर्त। बचबकत्सत बिज्ञतन की सिसे मुक्तिल शतखत शल्य बचबकत्सत ( सजारी) होर्ी है , िह भी बिश्व को भतरर् की ही दे न है ।
आचतया सुश्रुर् ने 'सुश्रुर् संबहर्त ' में शल्य बचबकत्सत की बिबध कत ििान बिस्ततरपूिाक बकयत है ।

3
आचतया सुश्रुर् ने 125 उपकरिों कत उल्लेख सुश्रुर् संबहर्त में बकयत है बजनसे शल्य
बचबकत्सत की जतर्ी र्थी और आज भी उन 125 उपकरिों कत प्रयोग हो रहत है । शल्य
बचबकत्सत कत एक और मुक्तिल भतग है प्लतक्तिक शल्य बचबकत्सत िह भी भतरर् की दे न है
। एक उदतहरि से यह ितर् िर्तनत चतहूँ गत " 1770 ई० में एक रतजत र्थत है दर अली, िह
कनताटक कत रतजत र्थत। अंग्रेजो ने कनताटक को अपने अं र्गार् बमलतने के बलए है दर अली पर
खूि आक्रमि बकये परन्तु हर ितर अं ग्रेजों को मुहूँ की खतनी पडी । 1775 ई० में प्रो० कूट
भतरर् में अबधकतरी िनकर आयत । उसने भी है दर अली पर आक्रमि बकयत है दर अली ने उसे
परतबजर् कर उसकी नतक कतट दी । िह कटी नतक लेकर ितपस आ रहत र्थत र्ो िेलगतम के
एक िैद्य ने उसकी दशत पर दयत कर के उसकी नतक प्लतक्तिक सजारी से जोड दी । इस घटनत कत बििरि प्रो० कूट ने बब्रबटश
सभत में बकयत , र्ि बब्रबटश दल भतरर् उस िैद्य के पतस आयत और पू छत के यह बिद्यत आपने कहतूँ से सीखी
र्ि उसने िर्तयत बक “यह कतया मैं क्त कोई भी िैद्य कर सकर्त है ” । र्ि प्रो० कूट ने यह बिद्यत पूनत में सीख कर इं ग्लैंड में
सीखतई । यह सि जतनकरी प्रो० कूट ने अपनी डतयरी में बलखी है । ऐसे ही टीकतकरि की शुरुआर् भी भतरर् में ही हुयी ।
डॉ. ओबलि ने अपनी डतयरी में बलखत है बक "जहतूँ बिश्व में लोग चेचक से मर रहे है िही यहतूँ भतरर् में चेचक नगण्य के िरतिर
है और यहतूँ इसके बलए टीकतकरि बकयत जतर्त है ।" यह घटनत 1710 की कलकित की है यह र्ो बसिा कुछ ही उदतहरि
है जो ये िर्तर्े है बक भतरर् बकर्नत समृद्ध र्थत और यह ज्ञतन भतरर् में लतखों िर्षों से चलत आ रहत है । ये सि घटनतओं कत पर्त
बिदे शी यतबत्रओं के बििरि से चलर्त है । अि र्थोडत र्कनीक की और दे खर्े है । भतरर् ने बिश्व को लोहत (इस्पतर् यत िील)
िनतनत बसखतयत। 1795 में एक अंग्रेज अबधकतरी ने सिे क्षि बकयत और अपनी यतत्रत बििरि में बलखत है बक " भतरर् में इस्पतर्
कत कतम कम से कम बपछले 1500 िर्षों से हो रहत है ।" उसके अनुसतर " पबिमी , पूिी, दबक्षिी भतरर् में 15000 छोटे िडे
कतरखतने चल रहे है और हर कतरखतने मे रोजतनत 500 बक०ग्रत० इस्पतर् िनतयत जतर्त है । भतरर् में बकसी भी कतरखतने की
भट्टी में लतगर् कत खचा 15 रुपये आर्त है । एक भट्टी से एक टन इस्पतर् िनतयत जतर्त है और इस्पतर् िनतने कत खचा 80 रुपये
आर्त है । इस इस्पतर् से िनत सररयत यूरोप के ितजतर में बिकर्त है और इस इस्पतर् की सिसे िडी बिशेर्षर्त है बक उस पर
कभी जंग नहीं लगर्त है ।"
इस ितर् कत सिसे िडत उदतहरि बदल्ली के महरोली में ध्रुि स्तम्भ है जो 1500िर्षा पूिा (लगभग)
िनत र्थत और आज र्क उस पर जंग नहीं लगत है ।
खगोल बिज्ञतन के क्षेत्र में गुरुत्वतकर्षाि से सम्बक्तिर् सभी बनयम िरतहबमबहर और आयाभट ने न्यूटन से
4000 िर्षा पूिा ही प्रबर्पतबदर् कर बदए र्थे । सूया से पृथ्वी के िीच की
दू री , शबन के उपग्रहों की संख्यत , आबद सभी गिनत उर्नी सटीक है जो
आज कत बिज्ञतन मतनर्त है । आयाभट ने सिसे पहले ब्लैक होल थ्योरी
दी । स्पष्ट है बक ये सभी गिनत बिनत बकसी टे बलस्कोप के सम्भि नहीं है
अर्थतार् टे बलस्कोप कत आबिष्कतर भी भतरर् में ही हुआ र्थत । आयाभट ने िहुर् सतरे रहस्य
खगोल बिज्ञतनं के ितरे में िर्तये र्थे बजनमे पृथ्वी के घूिान कत समय , बदन रतर् और ितर यत यूूँ
कहें बदन की संख्यत िर्तई र्थी । हम कह सकर्े है बक कलेंडर भी भतरर् की ही दे न है ।
अगर अि ितर् आयाभट्ट की हो रही है र्ो यह र्ो सिा बिबदर् है बक शुन्य कत आबिष्कतर भतरर् ने बकयत । बिश्व को गिनत
करनत भतरर् ने बसखतयत । महबर्षा भतरद्वतज ने एक ग्रन् 'लीलतिर्ी' की रचनत की उसमे उन्होंने अिकलन के सूत्रों कत ििान
बकयत है । समतकलन गबिर् की रचनत महबर्षा मतधितचतया ने की है । गबिर् की िहुर् ही सरल शतखत है बत्रकोिबमबर् उसकी
रचनत िोधतयन ने की र्थी और बकसी भी बनमताि कतया के बलए बत्रकोिबमबर् कत ज्ञतन होनत आिश्यक है । िीज गबिर् की
रचनत भी महबर्षा भरद्वतज ने की र्थी । िीज गबिर् में समस्त गबिर् कत छोटत रूप है ।
िैबदक गबिर् एक ऐसी दे न है बजसके द्वतरत बकसी भी गिनत को कम से कम समय में बकयत जत सकर्त है ।
रसतयन शतस्त्र में भतरर् के नतगतजुान कत नतम अग्रिी है । नतगतजुान रतख से सोनत िनतने की बिबध को जतनर्े र्थे । भतरर् ने ही
पतरत िनतने की बिबध कत ििान बिश्व को बदयत है । सिसे पहले ििा िनतने की बिबध चक्रिर्ी सम्रतट हर्षािधा न के द्वतरत खोजी
गयी । िह िहुर् िडत रसतयन शतस्त्री र्थत । शुष्क से ल कत आबिष्कतर भी भतरर् में महबर्षा अगस्त्य के द्वतरत हुआ र्थत । अगस्त्य
संबहर्त में शु ष्क सेल िनतने की बिबध कत पू िा बििरि है । डतयरे क्ट करं ट ( बदष्ट धतरत) की जतनकतरी महबर्षा अगस्त्य ने ही दी
र्थी । रसरत्न समुच्चय में जस्तत िनतने की बिबध कत उल्लेखबमलर्त है ।
अर्थाशतस्त्र में सिसे िडत ग्रन् " अर्थाशतस्त्र" आचतया चतिक् के द्वरत बदयत गयत है जो बक ईसत से 400 िर्षा पूिा बदयत जत चूकत
है ।

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बिश्व को बसक्कत िनतनत भतरर् ने बसखतयत इसकत प्रमति मोहनजोदडो और हड्ड्प्पत से प्रतअवश अिशेर्षों से चलर्त है । भतरर् से
कई िर्षों से मसतलों कत बनयतार् बकयत जत रहत है । भतरर् के इस्पतर् कत बििरि हम पहले ही दे चुके है जो यू रोप के ितजतरों
में िहुर् ही ऊूँचे दतमों पर िेचत जतर्त र्थत ।
स्पष्ट है बक भतरर् में बकर्नत ज्ञतन र्थत और यह ज्ञतन पूरे भतरर् में बशक्षि व्यिस्र्थत
से बदयत जतर्त र्थत । 1868 में बब्रटे न में पहलत बिद्यतलय एक
कतनून के र्हर् खुलत र्थत , उस समय भतरर् में लगभग 7 लतख 18 हजतर 568
गुरुकुल चलत करर्े र्थे
और उन गुरुकुलों में बसिा एक आचतया होर्े र्थे और हर गुरुकुल में बिद्यतबर्थायों
की संख्यत हजतरों में हुआ करर्ी र्थी । कक्षत नतयक ही अपने सतर्थी बिद्यतबर्थायों
को बसखतयत करर्त र्थत । यह बशक्षि व्यिस्र्थत बिश्व को भी भतरर् ने ही दी र्थी।
प्रो० कूट ने अपनी डतयरी में बलखत है बक बजस आचतया से उसने प्लतक्तिक सजारी
सीखी र्थी र्ो सीखतने ितलत आचतया जतर्ी से नतई र्थत अर्थतार् स्पष्ट है बक जतबर्गर्
बशक्षि व्यिस्र्थत भतरर् में नहीं र्थी । आज भी बब्रटे न में भतरर् की कक्षत नतयक
ितली बशक्षि व्यिस्र्थत चलर्ी है । बजस समय ह्वे नसतं ग भतरर् आयत र्थत र्ि उसने
अपने बििरि में बलखत है बक कलकित में 20,000 बिद्यतर्थी अपनी बशक्षत पूिा
कर अपने दे श लौटने की र्ै यतरी कर रहे है अर्थतार् भतरर् से ही समस्त ज्ञतन बिश्व में िैलत है ।
कृबर्ष क्षेत्र में खेर्ी करने के र्रीके , पहलत अबिष्कतर पबहयत , उपयुि िसल प्रतअवश करने के र्रीके भतरर् ने ही बदए र्थे ।
कुछ अन्य अबिष्कतर जैसे हितई जहतज भतरर् में हुए । 1895 में बिश्व कत सिसे पहलत बिमतन मुंिई की चौपतटी पर बशिकर
ितपूजी र्लपडे ने उडतयत र्थत ।
बिमतन शतस्त्र ( महबर्षा भतरद्वतज द्वतरत रबचर्) के अनुसतर बिमतन िनतने के 500 बसद्धतं र् है और हर बसद्धतं र् से 32 अलग अलग
र्रह के बिमतन िनतये जत सकर्े है । 1895 में जो बिमतन उडत िह 1500 िीट उपर उडतयत गयत र्थत और िह भी बिनत चतलक
के उडतयत गयत र्थत , उस बिमतन को सुरबक्षर् र्रीके से उर्तरत भी गयत र्थत । इस बिमतन
को उडर्े हुए रतजकोट के रतजत अशोक गतयकितड , मुंिई हतई कोटा के जज गोपतल
रतनतडे , और लोकमतन्य ितल गंगतधर बर्लक ने दे खत र्थत । हमतरी लतपरितही के कतरि
यह अबिष्कतर(1903) रतईट िंधू के नतम दजा हुआ । उन्होंने जो बिमतन िनतयत िह 120
िीट उपर उडकर नीचे बगर गयत र्थत । ितरूद कत आबिष्कतर भी भतरर् में हुआ । भतरर्
में ितरूद कत उपयोग 6िी शर्तब्दी में पटतखे िनतने के बलए बकयत जतर्त र्थत । अंग्रेजों ने
ितरूद िनतनत भतरर् में सीखत और उसकत उपयोग हबर्थयतर िनतने के बलए बकयत ।
अध्यतत्म के क्षेत्र में भतरर् कत लोहत आज भी समग्र बिश्व मतनर्त है । आज भी यह स्पष्ट है बक अध्यतत्म में हम से आगे कोई
नहीं है ।
अर्ः यह स्पष्ट हो चूकत है बक भतरर् ने बिश्व को हर क्षे त्र िहुर् कुछ बदयत है और हर क्षेत्र में भतरर् कत योगदतन है । भतरर्
इसीबलए बिश्व गुरु कहलतने लतयक र्थत और भतरर् को बिश्व गुरु कहत भी गयत है । अि हमे यह बमर्थक पतलने की कोई
आिश्यकर्त नही बक भतरर् कत बिश्व के प्रबर् कोई योगदतन नहीं है । जो यह बमर्थक पतले हुए है र्ो उसे सत्य से अिगर् करतनत
हमतरत कर्ाव्य है । अबर् महत्वपूिा कतया ये भी है बक जो भी अबिष्कतर भतरर् ितबसयों ने बकये है उनको भतरर्ितबसयों के नतम
पर दजा करितनत है जो अबिष्कतर बकसी और के नतम से दजा है उन्हें सही करितयत जतए और सभी र्थ्य सिके सतमने लतये
जतये । जो हमतरे ग्रंर्थों को नष्ट बकयत गयत यत लूटत गयत, उन्हें ितपस लतयत जतये यत बिर उनमे र्ोड मोड के पु नः बलख बदयत
गयत है र्ो उन्हें दु ितरत असली ग्रंर्थों से सु धतर बकयत जतए यह भी हमतरत कर्ाव्य है र्तबक आने ितली पीढी सत्य स्वीकतरे और
भतरर् को हीन दृबष्ट से न दे ख कर गौरिपूिा दृबष्ट से दे खे ।

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