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1857 के विद्रोह की विफलता ने भारतीयों को यह सोचने पर विवश कर दिया कि इतने बड़े पैमाने पर

विद्रोह करके भी वे अंग्रेजों को भारत से क्यों नहीं निकाल सके ! ग्वालियर , झाँसी और विठुर जैसे
मजबूत किलों में बंद होकर भी और 20,000 - 30,000 सैनिकों के साथ भी वे अंग्रेजों के मात्र दो -
तीन हजार सैनिकों को क्यों नहीं हरा सके ?
भारत के बुद्धिजीवियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध हुए विद्रोह के असफल हो जाने का मुख्य कारण बताया है
- किसी ऐसे नेता अथवा सेनानायक का न होना जो देश को स्वतंत्र करवाने के लिए भारतवर्ष के सभी
वर्गों को उत्साहित कर सकता । नाना साहब , बहादरशाह , रानी लक्ष्मीबाई , तात्या टोपे एवं कवरसिंह
इस विद्रोह के नेता माने जाते हैं ।
परंतु इनमें से एक भी ऐसा नहीं था जो पूरे देश में फै ले विप्लव को दिशा दे सकता ।
बहादुरशाह जफर अतिम मुगल सम्राट होने के कारण राष्ट्रीय महत्व रखता था परंतु वह इतना कमजार
था कि दिल्ली के लाल किले के अंदर भी उससे अधिक उसकी मलिका जीनतमहल का रौब था ।
विद्रोही भारतीय सिपाही तो उसका मजाक उड़ाते थे ।
उस समय के भारत के गवर्नर जनरल लाई कनिंग ने स्वयं कहा था - " यदि विद्रोहियों में एक भी योग्य
नेता होता तो हम हमेशा - हमेशा के लिए यदि हो गए थे l
इस विद्रोह में सबसे बड़ी बात जो भारतवासियों ने सीखी वह यह थी कि जब तक देश का हर नागरिक
विद्रोह नहीं करता , जब तक संपर्ष जन - आंदोलन का रूप धारण नहीं कर लेता , तब तक पूरी तरह
से । जमी हई साम्राज्यवादी अंग्रेजी सरकार को हराया नहीं जा सकता ।
देशवासिया ने यह भी महसूस किया कि साहस और वीरता चाहे कितनी । हो , अनुशासन और त्याग
के बिना कोई भी संघर्ष अयया क्रांति सफल नहीं हो सकती ।
भारतीय यह भी भली - भांति समझ गए कि जब तक घर में छुपे हुए , अपने ही देश में पैदा हए तथा पले
आस्तीन के साँपों को वश में नहीं । किया जाता , देशद्रोहियों में राष्ट्रीय भावना जागृत नहीं की जाती ,
पाहा शक्ति को परास्त करना टेढ़ी खीर है ।
विद्रोह के दौरान यदि पंजाब के । सिल एवं राजा अग्रजों की सहायता जन और धन से न करते तो वे
दिल्ली । को पुनः कदापि जीत नहीं सकते थे ।
इसी प्रकार महाराष्ट्र के सिंधिया , कई हिंदू राजाओ और मुसलमान नवानों ने भी विद्रोहियों के विरुद्ध
न । कवल आजी की सहायता ही की , अपित विद्रोह को दबाने में स्वयं उनसे लड़ाई की l
भारत मां के कु छ बेटे दूसरे उन बेटों को मार रहे थे
जो मा को विदेशी सत्ता से मुक्त करवाना चाहते । धे । यदि उस समय देश के कण भागों के लोगों ने
बुद्धिमत्ता का परिचय दिया होता तो भारत 90 वर्ष पूर्व ही स्वतंत्र हो जाता ।
इस विदोहरा अग्रजी सरकार को यह तो पता चल गया कि भारतीय उनसे कितनी घृणा करते हैं ।
यद्यपि विद्रोह को दबाने में अंग्रेज सफल हो गए परंतु विद्रोह के मच्य घटी घटनाओं ने उन्हें
सफलतापूर्वक भारतीयों पर शासन करने के लिए बहुत कु छ सोचने पर विवश कर दिया । पहला बड़ा
परिवर्तन था भारत से ईस्ट इंडिया कं पनी के शासन का सदा - सदा के लिए अंत।
भारत को इंग्लैंड की साम्राज्ञी के अधीन कर दिया गया ।
यद्यपि विद्रोह को दबाने के पश्चात् अंग्रेजों ने लोगों पर बदले की भावना से बहुत अत्याचार किए परतु
उन्होंने यह अवश्य सोचना शुरू कर दिया कि स्थाई रूप से शासन करने के लिए उन्हें भारत में
सुधारवादी पग भी उठाने पड़ेंगे ।
इस देश में से उन्हें उखाड़ फें कने के लिए हिंदू - मुस्लिम एकता सबसे बड़ा काम कर सकती थी ,
वस्ततः अंग्रेजों ने अपने मन में गांठ बांध ली कि हर संभव प्रयल से इस एकता को भंग करना है । इस
वचन का पालन उन्होंने आगे के नौ दशकों में बहत ईमानदारी से किया और भारत माँ के बेटों को धर्म
के नाम पर खूब मूर्ख बनाया ।
जो लड़ाई धार्मिक कारणों से भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेज शासकों के विरुद्ध आरंभ की थी वह बाद में
स्वतंत्रता संग्राम की बुनियाद बन गई ।
विद्रोहियों का एक ही लक्ष्य था कि अंग्रेजों को भारत से निकाल दिया जाए । आने वाले समय में भारत
के स्वतंत्रता संग्राम का भी यही लक्ष्य था ।

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