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Hindi - Unseen-Revision-2
Hindi - Unseen-Revision-2
Grade: 10
खंड 'अ'
अपठित गद्यांश 1
यदि आप इस गद्यांश का चयन करते हैं तो कृ पया उत्तर पुस्तिका में लिखें कि आप प्रश्न
संख्या 1 में दिए गए गद्यांश 1 पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिख रहे हैं।
अपठित गद्यांश- 1
यदि आप इस गद्यांश का चयन करते हैं तो कृ पया उत्तर पुस्तिका में लिखें कि आप प्रश्न
संख्या 1 में दिए गए गद्यांश 1 पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिख रहे हैं।
देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद सादगी और ईमानदारी के लिए शुरू से विख्यात थे।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाँधीजी ने उन्हें मीडिया प्रभारी बनाया। कांग्रेस की गतिविधियों की
कौन-सी खबर प्रकाशित होनी है, कौन-सी नहीं इसका निर्णय राजेंद्र बाबू को करना होता था। वह
अखबार में खबरें भी खुद ही पहुँचाते थे। एक बार वह इलाहाबाद के लीडर प्रेस गए। उस समय
लीडर प्रेस के संपादक
सी.वाई. चिंतामणि थे। उनकी राजेंद्र बाबू से गहरी दोस्ती थी। जब राजेंद्र बाबू प्रेस पहुँचे तो गेट
पर बैठे चपरासी ने कहा, 'इस समय आप उनसे नहीं मिल सकते। उनके पास कई नेता बैठे हुए
हैं। आपको इंतज़ार करना पड़ेगा।' राजेंद्र बाबू ने अपना कार्ड उसे देते हुए कहा, 'ठीक है, यह उन्हें
दे दो। जब वह खाली हो जाएँगे तो मुझे बुला लेंगे।' चपरासी ने कार्ड चिंतामणि की मेज पर रख दिया। उस
समय ठंड ज्यादा थी और हल्की बूंदाबांदी भी हो रही थी। राजेंद्र बाबू भीग गए थे। कार्यालय के
बाहर कु छ मजदूर अंगीठी जलाकर आग ताप रहे थे। राजेंद्र बाबू भी वहीं बैठ गए। काफ़ी देर बाद
चिंतामणि की नजर उस कार्ड पर पड़ी। वह नंगे पाँव दौड़ते हुए बाहर आए और उन्होंने चपरासी
से पूछा, 'यह कार्ड देने वाले सज्जन कहाँ हैं?' चपरासी ने कहा, 'वहाँ बैठकर आग ताप रहे हैं।
मैंने उन्हें रोक लिया था।'चिंतामणि को देखकर राजेंद्र बाबू भी आ गए। दोनों गले मिले।
चिंतामणि ने कहा, 'आज इसकी गलती से आपको बहुत तकलीफ़ हुई।' फिर वह चपरासी को
डाँटते हुए बोले, 'तुमने राजेंद्र बाबू को रोका क्यों ?' राजेंद्र बाबू का नाम सुनते ही चपरासी काँपने
लगा और माफी माँगते हुए बोला, 'मैंने आपको पहचाना नहीं साहब मुझे माफ़ कर दें।' राजेंद्र बाबू
बोले, 'तुमने कोई गलती की ही नहीं तो माफ़ी क्यों माँगते हो तुमने अपनी ड्यूटी ईमानदारी से
निभाई है और आगे भी इसी तरह निभाते रहना।
2. 'लीडर प्रेस' के चपरासी ने राजेंद्र बाबू को अंदर नहीं जाने दिया क्योंकि
(क) संपादक प्रेस में नहीं था
ख) संपादक ने मना किया था
(ग) मिलने का समय खत्म हो गया था।
(घ) संपादक के पास अन्य लोग बैठे थे
यदि आप इस गद्यांश का चयन करते हैं तो कृ पया उत्तर पुस्तिका में लिखें कि आप प्रश्न
संख्या 1 में दिए गए गद्यांश 2 पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिख रहे हैं।
यह युग एक प्रकार से पैसे का युग है। परंतु फिर भी एक गरीब लेखक तथा विद्वान व्यक्ति
का करोड़पतियों से अधिक आदर होता है। धन हमेशा ही बुरी आदतों को प्रोत्साहन देता है। धन-
लोलुप व्यक्ति की सफलता हजारों को दुख और असफलता में डाल देती है। बुद्धि की दुनिया में
सफलता से समाज की उन्नति में सहायता मिलती है। धनी धन के घमंड में अपने चरित्र को खो
बैठता है और धनहीन उसे ही अपना सब कु छ समझकर अपनाता है। संसार में विजय पाने के
लिए चरित्र बड़ा मूल्यवान साधन होता है। चरित्र के मार्ग पर चलने वाला आदमी ही सच्चे अर्थों
में महान होता है। ऐसे व्यक्ति ही मानव जाति का कल्याण करते हैं, अनाथों और निरीह
अबलाओं के उत्थान में सहायक होते हैं, रोगग्रस्त मानवों की सहायता करते हैं और राष्ट्र के
उत्थान के लिए अपना बलिदान कर देते हैं।
संसार में जिसका देवता सुवर्ण होता है उसका हृदय प्रायः पत्थर का होता है। उसको दूसरों के
आँसू पोंछने में विश्वास नहीं होता। संसार को ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जो स्वार्थ के
लिए नहीं परमार्थ के लिए जीवित रहते हैं। जो धन के लिए स्वाभिमान नहीं बेचते, जिनकी
अंतरात्मा एक दिशा सूचक यंत्र की सुई के समान एक शुभ नक्षत्र की ओर हो देखा करती है, जो
अपने समय, शक्ति और जीवन को दूसरों के लिए तथा देश, जाति और समाज के लिए अर्पित
कर देते हैं, ऐसे ही आदमियों का चरित्र महान होता है। ये वज्र के समान दृढ़ होते हैं, पत्थरों के
प्रहार होते हैं, पर उनका एक रोम भी विचलित नहीं होता। निम्नलिखित में से निर्देशानुसार
सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए: