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अग्ननहोत्र विऻान

अग्ननहोत्र विऻान
अग्ननहोत्र : ईश्िय की आऻाऩारनाथथ िामु ि ् जर की
शुवि के लरए अग्नन भें घत
ृ ि ् राबदामक साभग्री
दान ककमे जाने को अग्ननहोत्र कहतें है | इसे दे िमऻ,
हिन, होभ बी कहतें है |

प्रस्तत
ु रेख का भॊतव्म मऻ के िैऻाननक ऩहरओ
ु ॊ ऩय
चचाथ कयने का है ताकक ऩाठकगण अऩने विस्भत

अनतप्राचीन मऻ विऻान को जानकय इसका मथोचचत राब
रे सकें |
:- ऩिन कुभाय
pvnbajaj@yahoo.com
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अग्ननहोत्र विऻान

हभ अऩने स्िास््म को फहुत अचधक भहत्ि दे तें है इसके


लरए हभ प्रनतददन आिश्मक किमाकराऩ कयतें है जैसे :
शयीय की आन्तरयक शुवि के लरए ननत्मकभथ ि ् फाहयी
शुवि ग्जसके लरए अच्छे से अच्छे साफन
ु , शेम्ऩ,ू इतय
आदद कई ऩदाथों का प्रमोग कयतें है |
घय की शुवि, साप-सपाई ग्जसके लरए बी हभ कपनाइर
आदद कीटाणु नाशक ऩदाथों का प्रमोग कयतें है |
जर की शुवि को बी फहुत अचधक भहत्ि दे तें है ग्जसके
लरए िाटय ऩरु यपामेय का प्रमोग कयतें है मा घय की टॊ की
आदद भें कपटकयी डारतें है मा जर को गभथ कय ऩीते है
मा ताम्फे के फतथनों का प्रमोग कयतें है
खाने वऩने की साभग्री की चचाथ की जािे तो हभ इसभें बी
फहुत अचधक गॊबीय होते है , प्रोटीन्स ि ् विटालभन्स आदद
से मक्
ु त अच्छी से अच्छी िस्तए ु ॊ हभ खाना चाहतें है ,
लभरािट यदहत गाम का शुि दे शी घी आदद का प्रमोग,
अच्छे शुि जर से उगे पर-सग्जजमाॊ आदद के प्रनत हभ
सजग यहतें है |
साफ़ अच्छे धुरे हुए िस्त्र ऩहनते है औय अच्छी धुराई के
लरए एक से एक सफ़थ ऩाउडय का प्रमोग कयतें है |
खाना ऩकाते सभम साप सपाई आदद का बी विशेष
ध्मान यखतें है |
ऐसे अनेको कृत्म हभ केिर औय केिर अऩने स्िास््म
को ध्मान भें यखते हुए ही कयते है , हभाया एक भात्र
उद्देश्म यहता है की हभ विषाणुओॊ-कीटाणुओॊ से ग्रस्त
होकय फीभाय न हो | इस ऩय बी अचधकाॊश का ध्मान िामु
शुवि ऩय नही जाता ग्जसभे हभ प्रनतऺण श्िास रेते है |
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अग्ननहोत्र विऻान

क्मा प्राणदानमनी िामु का भहत्ि उक्त सबी ऩदाथों से


कभ है ? अनेको फीभारयमाॉ िामु द्िाया पैरती है औय हय
सभम कई प्रकाय के िामयस, हाननकायक तत्ि आदद िामु
भें विधभान यहतें है जोकक प्रनतऺण श्िास के साथ बीतय
जाते यहते है |
िामु की शुवि के लरए ही िेदों भें ईश्िय ने मऻ का
विधान ककमा है |
“प्राचीनकार भें इस आमाथित्तथ दे श भें आमथियलशयोभणण
भहाशम ऋवष, भहवषथ, याजे, भहायाजे रोग फहुत सा होभ
कयते ि ् कयाते थे, घय-घय भें ननत्म प्रनत होभ हुआ कयते
थे ग्जससे िामु की शुवि होकय, िषाथ की फहुतामत होकय,
उत्तभ औषचधमाॊ-िनस्ऩनतमाॉ हुआ कयती थी औय रोग
ननयोगी होकय सुखऩूिक
थ ितथते थे | जफतक होभ कयने
कयाने का प्रचाय यहा तफ तक आमाथित्तथ दे श योगों से
यदहत औय सुखों से ऩूरयत था, अफ बी मदद प्रचाय हो जािे
तो िैसा ही हो जामे” :– सत्माथथ प्रकाश (भहवषथ दमानॊद)
ननमभानुसाय आमोग्जत ककमे गमे मऻ की अग्नन का ताऩ
४०० से ५०० डडग्री सेंटीग्रेड तक हो जाता है | इतने ताऩ
भें जफ गाम का शुि घी अग्नन भें डारा जाता है तफ घी
अऩने ऩयभाणुओॊ भें विबाग्जत होकय सिथत्र िामु भें फ़ैर
जाता है | हभ जानते है की प्रत्मेक िस्तु ऩयभाणुओॊ से
लभर कय फनी है , ककसी स्थान ऩय दग
ु न्
थ ध मा प्रदष
ु ण
अचधक है िह बी ऩयभाणुओॊ के कायण होती है | गुण
सदे ि गण
ु ी भें यहता है | दग
ु न्
थ ध मा प्रदष
ु ण गण
ु है |
ककनका ? हाननकायक गैसों के ऩयभाणुओॊ का |
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अग्ननहोत्र विऻान

घी बी अग्नन भें जर कय अऩने ऩयभाणुओॊ भें विबाग्जत


होकय िामु भें पैरता है , घी के ऩयभाणुओॊ भें हाननकायक
ऩयभाणुओॊ से रड़ने की साभ्मथ होती है |
अग्नन की बेदन शग्क्त फहुत अचधक होती है , इसी कायण
अग्नन भें डारी गई िस्तु अऩने ऩयभाणुओॊ भें विबक्त
होकय िामु के साथ तीव्रता से पैरती है औय डारी गई
साभग्री के गुणों को कई गुना फढ़ा दे ती है | जफ अग्नन भें
ककसी प्राग्स्टक मा लभचथ आदद को जरामा जामे तो उसके
गण
ु ों भें कई गण
ु ा िवृ ि हो कय िह आसऩास के सबी
रोगो को प्रबावित कयती है औय सबी छीॊकने अथिा
खाॊसने रगते है , ऐसी ग्स्थनत भें श्िास रेना बी भग्ु श्कर
हो जाता औय मदद लभचथ को कोई एक ही व्मग्क्त खािे तो
उस एक को ही उसका प्रबाि होता है अन्मो को नही |
अग्ननहोत्र भें घी के साथ साथ अन्म साभग्री की आहुनत
बी दी जाती है ग्जसभे योगनाशक, फरिधथक आदद
औषचधमाॊ डारी जाती है जोकक अग्नन द्िाया बेदी जाकय
अऩने सूक्ष्भ ऩयभाणुओॊ भें विबक्त होकय िामु भें फ़ैर
श्िास के साथ बीतय जाकय राब कयती है
प्रश्न- घी जैसे उत्तभ ऩदाथो को अग्नन भें डार नष्ट
कयने से अच्छा हो ककसी को खाने दे िें? अग्नन भें नष्ट
कयना फवु िभानो का काभ नही |
उत्तर- जो तुभ ऩदाथथ-ऩयभाणु विद्मा जानते तो ऐसा न
कहते, क्मोंकक कोई बी ऩदाथथ नष्ट नही होता अवऩतु
अऩने कायण भें विरम भात्र होता है , कायण जोकक ऩयभाणु
है अत्मॊत सूक्ष्भ होते है , ददखाई नही दे ते, इसलरमे नष्ट
होना नाभभात्र का ही है | औय घी खाने से राब एक को
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अग्ननहोत्र विऻान

ही होगा अन्मो को नही, जफकक घी भें डारने से उसके


गुणों भें कई गुणा िवृ ि होकय सबी के लरए स्िास््म
िधथक होता है , अग्नन के धुम्र से िामु बी हल्की हो उऩय
उठती है ग्जससे फाहय से शुि िामु बीतय प्रिेश कयती है |
प्रश्न- जफ िामु शुवि ही उद्देश्म है तो चन्दन आदद नघस
के रगािें तथा केशय, कस्तयू ी, सग
ु ग्न्धत ऩष्ु ऩ औय इतय
आदद को घय भें यखने से िामु शुवि की जा सकती है |
उत्तर- इन ऩदाथों की सुगॊध भें िह साभ्मथ नही जोकक
घय के बीतय की िामु को हल्का कय घय से फाहय ननकार
शुि िामु को बीतय प्रविष्ट कया सके औय ना ही बेदन
शग्क्त है कक दग
ु न्
थ ध ि ् प्रदष
ु ण के हाननकायक ऩाभाणुओॊ
से रड़ सके |
प्रश्न- िामु को शुि कयने के लरए रूभ स्प्रे, अगयफत्ती,
धुऩ आदद का बी प्रमोग की जा सकता है |
उत्तर – जैसा की ऩूिथ प्रश्न का उत्तय फतामा िैसा ही महाॉ
बी सभझना चादहए, रूभ स्प्रे आदद भें कई प्रकाय के
कत्रत्रभ ऩदाथों का प्रमोग ककमा जाता है , उनभे हाननकायक
गैसों के ऩयभाणुओॊ को दफा दे ने भात्र की शग्क्त होती है ,
उनका नाश कयने की नही है , इसलरम प्रदष
ु ण के
ऩयभाणुओॊ कभये भें स्प्रे ककमे जाने के फाद बी िैसे ही
फने यहते है औय श्िास के साथ बीतय जाते यहते है औय
इस ऩय बी रूभ स्प्रे कत्रत्रभ ऩदाथों से फना है इसके अऩने
सुगॊध के ऩयभाणु िामु भें फ़ैर जाते है जो की शयीय के
लरए राबदामक तो दयू हाननकायक ही होते है |
प्रश्न- अग्नन भें घत
ृ के अनतरयक्त अन्म औषचधमाॊ डारने
का क्मा प्रमोजन है ?
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अग्ननहोत्र विऻान

उत्तर – दे खो, औषचधमों का धूआ दो प्रकाय के प्रबाि


छोड़ता है , एक तो उसकी साभ्मथ कई गुणा फढ़ जाती है
दस
ू या उसका प्रबाि ननकटिती व्मग्क्तओॊ, िाताियण,
जीि-जॊतओ
ु ॊ एिॊ िनस्ऩनत ऩय बी ऩड़ता है |
१- भुख द्िाया दी गई औषचध भें ऩाचनतॊत्र के
विलबन्न ऩाचक यसों एॊजाइभो की प्रनतकिमा होती है ,
तदऩ
ु याॊत व्मग्क्त विशेष की साभ्मथ के अनुसाय उसका
कुछ ही अॊश यक्त भें जाकय राब कयता है शेष भरभूत्र
भागथ से फाहय उत्सग्जथत कय ददमा जाता है | इस प्रकाय
औषचध का कुछ ही बाग इग्च्छत अिमिों तक ऩहुॉचता है |
२- यक्त भें इॊजेक्शन प्रकिमा द्िाया ऩहुॊचाई गई
औषचध का प्रबाि ननग्श्चत ही भुख द्िाया दी गई औषचध
से अचधक औय तुयॊत होता है ऩयन्तु उसके बी सूक्ष्भ
जीिकोषों-उतकों तक ऩहुॉचने की ऩयू ी सम्बािना ननग्श्चत
नही होती |
३- इॊजेक्शन की अऩेऺा इन्हे रेशन थेयेऩी (श्िास
द्िाया रेना) अचधक कायगय लसि होती है , क्मोंकक इसका
सीधा सम्फन्ध नालसका एिॊ श्िसनतॊत्र की सूक्ष्भ इकाइमों
से होता है , इस प्रकाय औषचध श्िास भागथ से एिॊ योभकूऩो
से सीधे शयीय भें प्रविष्ट होती है | मऻ प्रकिमा भें बी इसी
भागथ का प्रमोग औषचधमों को धूमें भें ऩरयिनतथत कय शयीय
के बीतय ऩहुॉचाने भें ककमा जाता है |
ऩाश्चात्म चचककत्सा ऩिनत भें बी कई औषचधमाॊ श्िासभागथ
से दी जाती है श्िास योगी को शीघ्र आयाभ ददराने हे तु
औषचध, भग्स्तष्क के ऊतक भें प्राण सॊचाय हे तु ऑक्सीजन
एिॊ ऑऩये शन हे तु भनु छथत ककमे जाने के लरए बी औषचध
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अग्ननहोत्र विऻान

श्िासभागथ द्िाया ही दी जाती है | आमि


ु ेद भें बी धुम्रऩान
द्िाया चचककत्सा को भहत्ता दी गई है | नशीरे ऩदाथथ
मथा ननकोदटन, हशीश, चयस, गाॊजा आदद लरए ग्जतना
रोकवप्रम नस्म भागथ है उतना भख
ु भागथ नही| नालसका को
इसीलरए प्रधानता दी गई है कक औषचधमाॊ आन्तरयक
अिमिो एिॊ कोष्टको तक ऩहुॊचकय अऩना प्रबाि सभग्र
रूऩ भें शीघ्र दशाथ सके |
हिन भें जो औषधीम ऩदाथथ डारे जाते है , उनके सूक्ष्भ
ऩयभाणु नालसका भागथ द्िाया शयीय भें ऩहुॉच कय उसे
ऩरयऩुष्ट फनाते है | ऩुग्ष्टकायक एिॊ योगननिायक औषधीम
ऩदाथों को खाना बी कामा को फर प्रदान कयता है , अत
इनको खामा बी जाना चादहए, ऩयन्तु उससे बी अचधक
उऩमोगी इनका हिन कय राब उठाना है | एक साथ खाने
अचधक ऩौग्ष्टक ऩदाथों का सेिन कय रेने ऩय राब के
स्थान ऩय हानी बी उठानी ऩड सकती है एिॊ ऩाचन शग्क्त
बी प्रबावित हो कयती है ककन्तु हिन के साथ मह
सभस्मा नही यहती, हिन द्िाया उत्ऩन्न ऩयभाणु सीधे
यक्तप्रिाह भें ऩहुॉचते है औय ऩाचन शग्क्त भें बी कोई
फाधा नही आती|
प्रश्न- क्मा हिन न कयने से ऩाऩ होता है ?
उत्तर – हाॉ, भनष्ु म अऩने दै ननक किमाकराऩों एिॊ
आिश्मकताओॊ की ऩूनतथ हे तु ग्जतना ग्जतना प्रदष
ु ण कय
प्रकृनत ग्जिजॊतु िामु आदद की हानन कयता है , उतना
उतना उसके द्िाया मऻ कय इनकी ऺनतऩनू तथ कयना
आिश्मक है , अन्मथा ऩाऩ का बागी होता है |
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अग्ननहोत्र विऻान

प्रश्न – जफ हिन का उद्देश्म ऩमाथियण शुवि ही है तो


इसभें िैददक भॊत्रोच्चाय की क्मा आिश्मकता है ?
उत्तर- हिन के साथ साथ िैददक भॊत्रोच्चय कयने से भन्त्र
ऩढने ि ् सन
ु ने िारो को कॊठस्थ होता है इससे भॊत्रो की
यऺा होती है , अथथ विददत होता है ग्जससे ईश्िय भें प्रीनत
फढती है , शुब कामथ कयने की प्रिनृ त फढती है औय
आसऩास तक ध्िनन जाने से बी अन्म स्थान के रोग बी
िेद भन्त्रों से आकवषथत होते, मऻ के राब जानकय आऩ
बी मऻ कयने को प्रेरयत होते है आदद |

प्रश्न – जो िैददक भन्त्र आदद न आिे तो ककस प्रकाय


ककमा जािे ?
उत्तर – िैददक भन्त्र विचध-विधान आदद न आिे तो
गामत्री भॊत्रोच्चय द्िाया १६ आहुनतमाॉ मा अचधक दे ते हुए
हिन ककमा जा सकता है –
ओ३भ ् बूबि
ुथ : स्ि्| तत्सवितुियथ े ण्मॊ बगो दे िस्म धीभदह|
चधमो मो न् प्रचोदमात | - मजि
ु ेद अध्माम ३६ भन्त्र ३

जो कोई विचधित सीखना ि ् कयना चाहिे िो ननम्न ऩतों


ऩय लसख सकता है –
https://www.youtube.com/watch?v=6ld0uZZdGQ0
https://www.youtube.com/watch?v=cfJXzpCQIrw
एिॊ िैददक भॊत्रो के लरए ननम्न ऩते ऩय जाएॉ –
http://www.vedicpress.com/wp-
content/uploads/2017/08/hawan.pdf
एिॊ मह तो अिश्म दे खें -
https://www.youtube.com/watch?v=pxwB_BRSCAM
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अग्ननहोत्र विऻान

प्रश्न – ककतने ही रोग कहते है कक मऻ दे िताओॊ को


प्रसन्न कयने का धालभथक अनुष्ठान भात्र है , औय मऻ भें
ऩशुफलर दे ने से दे िता प्रसन्न होते है औय भनोिाॊनछत
पर दे ते है , इसलरमे इसको दे िमऻ बी कहते है |
उत्तर – ऩदाथथ-ऩयभाणु विद्मा को न जानने, िेद,
उऩननषद, दशथन-शास्त्र एिॊ ऋवष-भहवषथ कृत आषथग्रॊथो का
अध्ममन न कयने िारे भुखथ अॊड-फॊड फका कयते है | औय
दे ि शजद का अथथ होता है - दाता, दे ने िारा, मा विद्िान ् |
िाम,ु जर, अग्नन, िनस्ऩनत-औषचधमाॊ, सम
ू ,थ चन्र आदद
जड ऩदाथथ है ककन्तु भनुष्म-जीिों आदद के लरए आिश्मक
है , प्राण के दाता है , इसलरमे इनको दे ि कहते है | औय
इन्ही िाम,ु जर, अग्नन, िनस्ऩनत-औषचधमाॊ आदद दे िों की
शुवि कयने की प्रकिमा को दे िमऻ कहते है जैसा ऊऩय
फता आमें है | औय विद्िान ् भनष्ु मों को बी दे ि कह कय
ऩुकाया जाताहै | औय मऻ की ऩयम्ऩया सग्ृ ष्ट आयॊ ब से ही
िेदों से चरी है , ऩशुफलर का विधान िेदों भें कही बी नही
है , नाभोननशान तक नही है , अवऩतु मऻ के आमोजन से
ऩशुऩक्षऺमो, ग्जि-जॊतुओॊ को रेशभात्र बी हानन न हो, ऐसा
तो लरखा है | धूतथ ऩॊडो-ऩाखॊडडमों ि ् स्िाचथथमों ने अऩने
भाॊस खाने की इच्छा को धभथ का रूऩ दे ने के लरए ऐसी
लभ्मा फाते चरा यखी है औय नकरी ग्रन्थ फना कय
उनभे ऩशुफलर का विधान ककमा है , ननयीह ऩशुओ को भाय
के भहाऩाऩ कहते है अन्मथा मऻ की प्रकिमा का भुख्म
उद्देश्म ही ऩमाथियण की शुवि कय ऩशुऩऺी, जीिजन्तु एिॊ
भनुष्म भात्र का सुख कयना है |
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अग्ननहोत्र विऻान

प्रश्न – जी, मऻ की दहॊसा, दहॊसा नही कहराती औय


ऩशुओॊ को भायना एक प्रथा है इससे ऩशु स्िगथ जाता है
औय मह कयने िारो ऩय दे िता प्रसन्न होते है |
उत्तर – बरा, मऻ की दहॊसा, दहॊसा ना हो तो तभ
ु ि्
तुम्हाये कुटुॊफ को भाय के होभ कय डारे तो क्मा चचॊता है ?
औय मऻ कयने िारा अऩने भाता-वऩता को भाय स्िगथ क्मों
नही बेजता ? ऩश्चात ् स्िमॊ क्मों नही जाता ?
औय दे िों का अथथ जो ऊऩय फता आमे िही सही है , अकर
के अन्धो, भख
ू ों की फाते भानने मोनम नही हो सकती |

प्रश्न – जी, आऩकी सबी फातों से सहभती हुई ऩयन्तु


आज हभाये ऩास कहाॉ इतना सभम है कक प्रनतददन मऻ
कयें ?
उत्तर - क्मा तुभ ननत्मप्रनत शोच, शुवि, नहाना, खाना
खाना आदद नही कयते ? जो कयते हो तो इनके लरए बी
तो सभम ननकरते ही हो| औय सभम नही है मे कहने
भात्र की फात है , भनष्ु म ग्जन-ग्जन कामो भें अऩना राब
दे खता है उसे अिश्म कयता है , कपय मऻ के अनेको राब
ऊऩय फता आमे है औय मऻ कयने भें केिर १५ से २०
लभनट का सभम ही रगता है , इसलरमे अिश्म कयना
चादहए |
प्रश्न – मऻ कयने का सही सभम क्मा है ?
उत्तर – सूमोदम के ऩश्चात से प्रात् ९ फजे तक एिॊ
सूमाथस्त से ऩूिथ तक, दोनों सभम अथाथत सुफह ि ् साॊम
कार भें मऻ कयना चादहए, जो दो सभम न कय ऩािे तो
एक सभम तो अिश्म ही कयना चादहए |
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अग्ननहोत्र विऻान

प्रश्न – मऻ कयने के लरए क्मा क्मा साभान चादहए ?


उत्तर – मऻ कयने के लरए –
१- हिन कॊु ड – फाजाय से ताम्फे मा रोहे हिन कॊु ड
खयीद सकतें है मा घय भें स्थान हो तो लभटटी के ऊऩय
फना सकतें है , ननमभानुसाय कॊु ड का ऊऩयी बाग मदद १६
अॊगर
ु रम्फा-चोडा है तो ननचे का बाग इसका ४ गण
ु ा
कभ अथाथत ४ अॊगुर रम्फा-चोडा होना चादहए |
२- सलभधा – मऻ भें प्रमुक्त रकड़ी को सलभधा कहा
जाता है , चन्दन, ऩरास मा आभ के काष्ठ उत्तभ यहतें है
३- साभग्री – योगनाशक, फरिधथक, सुगग्न्धत एिॊ
लभठे ऩदाथों को लभरा साभग्री तैमाय की जाती है अथिा
फाजाय से तैमाय खयीद सकतें है | अन्म औषचधमाॊ जो की
साभान्मत: घयों भें यहती है िह बी प्रमुक्त की जाती है
जैसे – सख
ु ेभेिे अखयोट, फादाभ, ककशलभश, इरामची,
रोंग, केसय, शक्कय, सोंठ आदद |
४- घी – गाम का शुि दे शी घी आहुनत दे ने के लरए
प्रमोग भें लरमा जाता है |

प्रश्न – क्मा ददल्री जैसे शहयों भें जहाॉ िामु प्रदष


ु ण एक
गॊबीय सभस्मा फन गमा है , िहाॊ मऻ द्िाया प्रदष
ु ण से
भुग्क्त हो सकती है ?
उत्तय- नन:सॊदेह | मदद ननत्मप्रनत िैददक विद्िानों की
दे खये ख भें शास्त्रोक्त विचधनुसाय फड़े स्तय ऩय मऻों का
आमोजन ककमा जािे तो ननग्श्चम ही िामु की गुणित्ता भें
सध
ु ाय होगा | िेद का उऩदे श भानि भात्र के कल्माण के
लरए है , मऻ िेदोक्त है औय िेद ईश्ियीम ऻान है इसलरमे
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अग्ननहोत्र विऻान

इसे ककसी धभथ, भत-सॊप्रदाम मा िगथ विशेष के रोगो से


जोड़ना केिर भुखत
थ ा की फात है क्मोंकक ग्जस प्रकाय िामु-
जर, औषचधमाॊ-िनस्ऩनतमाॉ सबी के लरए है उसी प्रकाय
इनके शोधन का कामथ सबी को लभर के कयना चादहए|

प्रश्न- क्मा अग्ननहोत्र आधुननक िैऻाननक अनुसॊधानों


द्िाया बी लसि है ?
उत्तय – जी, ननश्चम ही|
मऻ विऻान ऩय दे श-विदे श भें अनेको अनुसन्धान हो चुकें
औय अनेको ऐसे ग्क्रननक्स ि ् अस्ऩतार कामथ कय यहे है
जो की योग के अनुसाय, योगी की स्थनत ऩय विचाय कय
आमि
ु ेद भें िणणथत औषचधमों का प्रमोग कय अग्ननहोत्र
द्िाया धुम्र उत्ऩन्न कय योगी को उसके ऩास त्रफठा योगों
का उऩचाय कयतें है | इसभें से कुछ को उदाहयणस्िरुऩ
ननचे ददमा जा यहा है - .
१- भुॊफई के डॉक्टय तायालसॊह हिन के भाध्मभ से
अनेक योगों का सपरताऩि
ू क
थ इराज कय यहे है
दे खें -
https://youtu.be/pxwB_BRSCAM?t=528

२- जभथनी भें योगोऩचाय के लरए हिन थेयेऩी का प्रमोग


ककमा जाता है |
https://www.homatherapie.de/en

Agnihotra is a gift to humanity from the


ancient Vedic science of bioenergy, medicine,
agriculture and climate science.
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अग्ननहोत्र विऻान

३- अग्ननहोत्र का प्रचाय अभेरयका भें –


http://www.agnihotra.org/

Agnihotra is a healing fire from the ancient science of


Ayurveda. It is a process of purifying the atmosphere through a
specially prepared fire performed at sunrise and sunset daily

४- अग्ननहोत्र का प्रचाय ऩोरैंड भें –


https://agnihotra.pl/

५- अग्ननहोत्र का प्रचाय ऑस्रे लरमा भें –


http://www.agnihotra.com.au/

Agnihotra is from ancient wisdom, given in


these times as an antidote to pollution.
६- अप्रैर २०१४ भें (IJIRSE) International Journal of
Innovative Research in Science & Engineering (IJIRSE)
नाभक सॊस्था द्िाया एक ऩत्र प्रकालशत ककमा गमा
ग्जसभे िैऻाननक अनस
ु ॊधानों के ऩश्चात ् जो ननष्कषथ
प्राप्त हुए उसभे मऻ को िामु प्रदष
ु ण से भुग्क्त के
लरए अत्मॊत उऩमोगी भाना गमा, ऩत्र का विषम
यखा गमा-
AGNIHOTRA – A Non Conventional Solution to
Air Pollution
ऩत्र महाॉ ऩढ़ सकतें है –
http://ijirse.in/docs/Apr14/IJIRSE140407.pdf

ओ३भ ्

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