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Aisa Kehte Hain - Manav Kaul
Aisa Kehte Hain - Manav Kaul
Aisa Kehte Hain - Manav Kaul
ऐसा
कहते
है...
सीन-1
सीन-2
काया- तुमने इतने सालों में कोई दूसरा तरीका नहीं सीखा।
सैम- तुमने इतने सालों में दूसरे तरीकों से जवाब देना नहीं सीखा।
काया- हाँ, तुमने कभी गिना हैं कितनी बार तुम मुझे शादी के लिए प्रपोज कर
चुके हो?
सैम- मैं अपने फ़े ल्योर्स (failures) याद नहीं रखता।
काया- हमने कितना अच्छा समय साथ में गुजारा हैं अभी भी कहानियां कहते
ही हो कि उन्हें लिखना भी शुरू किया हैं।
सैम- सुनने वाले कम हैं पर कहता ही हूँ मेरी कहानियां सुनना हैं तो मेरे पास
आना पड़ेगा और वो मेरे साथ ही खत्म हो जायेंगी
काया- कु छ सुनाओं
सैम- क्या
काया- कु छ भी
सैम- एक छोटी कहानी
बहुत पहले अब तो मुझे याद भी नहीं कब
मैंने अपने हाथ पर लिख दिया था ’प्रेम’
क्यों? क्यों का पता नहीं पर शायद ये
भीतर पड़े सूखे कुं ए के लिए बाल्टी खरीदने की आशा जैसा था।
से मैंने इसे अपने हाथ पर लिख लिया- ’प्रेम’
आशा? आशा ये कि इसे किसी को दे दूँगा।
जबरदस्ती नहीं चोरी से भी नहीं
किसी की जेब में डाल दूंगा या किसी की किताब में रख दूंगा
या ’रख के भूल गया जैसा’ किसी के पास छोड़ दूंगा
इससे क्या होगा ठीक-ठीक पता नहीं
पर शायद मेरा ये ’प्रेम’ उस किसी के साथ रहते-रहते जब बड़ा होगा, तब
तब मैं बाल्टी खरीदकर अपने सूखे कुं ए के पास जाउं गा
और वहाँ मुझे पानी पड़ा मिलेगा
पर ऐसा हुआ नहीं- ’प्रेम’ चोरी से मैं किसी को दे नहीं पाया
वो मेरे हाथ में ही गुदा रहा
सीन-3
सीन-4
सीन-5
सीन-6
गाना-
कबूतर-कबूतर
कबूतरों की कहानियाँ
तिनका-तिनका, टु कड़ा-टु कड़ा
चुनके -बुनके निशानियाँ
कबूतरों की कहानियाँ
कबूतर-कबूतर
जो कह ना सके हम डर गये।
या कहने से पहले ही मर गये
मरे हुए लोंगो की जिंदा परेशानियाँ।
कबूतरों की कहानियाँ
कबूतर-कबूतर
जो बात अधूरी लेके मरेगा
वो बनके कबूतर फिरेगा।
इस शहर का हर इक परिंदा
आधी कहानी लेकर हैं जिंदा
कबूतर-कबूतर
पर आज तलक तो हुआ नहीं
किसी आधी कहानी को छु आ नहीं
अब बात फं सी हैं कु छ ऐसी
होंगे आँसु या होगी खुशी।
भाई- तुझसे मना किया ना, बीच में आकर मत गाया कर कौवे।
कौआ- मैं गाना चाहता हूँ।
भाई- चाह लेने से गाना नहीं होता हैं, रियाज करना होता हैं, मेहनत करनी होती
हैं कौवे।
कौवा- कौवा मत बोल मुझे।
भाई- चल दूर जाके बैठ और बीच में गाया तो पड़ेगा एक कौवे।
माँ- आज कितना मजा आया ना इंसान-इंसान खेलके । हैं ना...? क्या हुआ तुझे ?
वहाँ क्यों बैठा हैं? अरे सुन ठं ड लग जायेगी।
कौआ- हं
माँ- तो ऐसा उकडू बैठने से अच्छा है, एक चादर ले ले।
कौआ- ना
माँ- अरे मर जायेगा। चल सब लोग अंदर रियाज कर रहें हैं, हम फिर इंसान-
इंसान खेलेंगे।
कौआ- मुझे नहीं खेलना
माँ- बापू कहाँ हैं तेरे ? अच्छा ठीक है जा थोड़ा उड़ ले गर्मी आ जायेगी।
कौआ- माँ मैं कौआ क्यों हूँ ? जब आप सब कबूतर हो तो मैं कौआ क्यों पैदा
हुआ?
माँ- फिर किसी ने तुझे कौआ कहा? किसने कहा किसने कहा ? तू बस काला है
तो क्या हुआ बोल तू क्या हुआ ?
कौआ- काला कबूतर।
माँ- सही जवाब। कहाँ मर गया तेरा बापू? चल रियाज करने चलते हैं। ऐसी
आदत पड़ गई हैं इंसान-इंसान खेलने की कि उसके बिना मेरा खाना ही नहीं
पचतां।
कौआ- माँ हम ये इंसान-इंसान क्यों खेलते हैं ?
माँ- बेटा, हम पहले इंसा ही थे ये हमें भूलना नहीं चाहिये वर्ना हर बार हम
कबूतर बनके ही पैदा होते ऐसी बापू की खोज है, अविष्कार है तेरा बापू बड़ा
साइंटिस्ट है।
कौआ- आपने तो बताया था कि हम लोग गवैये थे। ट्रेनों में गा-गाकर पैसा
मांगते थे फिर बापू सांईटिस्ट कै से हो गये।
माँ- देख ऐसा कहते हैं कि ट्रेन का यहीं एक्सीडेंट हुआ था, हम सब यहीं मरे
और तेरे बापू सांईटिस्ट हो गये। हजार बार बोल चुकी हूँ दोबारा मत पूछना।
(बापू तेजी से दौड़ते हुए आते हैं और दोनों के बीच में आकर खड़े हो जाते हैं।)
बापू- डिश डिश डिश।
सलीम- मरना चाहते हैं, मैं मदद कर सकता हूँ। मेरा काम है ये धंधा हैं मेरा।
बस इसके बदले में जाने दीजिए मैं क्या चाहता हूँ उससे आपको क्या मतलब
लेकिन सच बताऊँ , मुझे वो लोग बहुत पसंद हैं जिन्हें पता लग जाता हैं कि अब
इसके बाद वो इस दुनिया में जी नहीं रहे हैं, बस जिंदा हैं।
आशीष- क्या तुम्हें कै से? मैं असल में
सलीम- जाने दो मैं समझता हूँ देखिये मेरा तो ये काम हैं लोगों के मरने में
उनकी सहायता करना। किसी ने कहा हैं- @ Life, like all other games,
becomes fun when one realizes that’s just a game गेम, खेल और खेल में
आपको पूरी आजादी होनी चाहिये कि आप कभी भी खेलना बंद कर सके तभी
खेलने का मजा है।
आशीष- हाँ तभी खेलने का मजा हैं
सलीम- लेकिन तारीफ करूँ गा आपकी मतलब आप जैसे लोंगो की जो लोग यूँ ही
घिसटते नहीं पाये जाते हैं आप लोग मस्त जीते हें और मस्ती से चले जाते हैं।
आशीष- मस्ती... तुमने कभी मरने के बारे में सोचा है? आत्महत्या? तुम्हारे पास
किताबी ज्ञान है जैसे प्रेम के बारे में सारा पढ़ लिया, सीख लिया पर प्रेम कभी
नहीं किया।
सलीम- देखों मैं अभी खेल में हूँ और अभी और खेलना चाहता हूँ।
आशीष- तुमने अच्छा खेल चुना हैं। पिछले चार दिन से मैं यहाँ रोज आ रहा
हूँ।
सलीम- जानता हूँ पहले दिन ही आपकी चाल देखकर समझ गया कि आप यहाँ
क्यों आ रहे हो।
आशीष- तो तुम पहले दिन ही
सलीम- नहीं पहले दिन आप बहुत परेशान थे अगर उस उक्त मैं आपके पास
आता तो आप डाँट कर भगा देते और बाकी दो दिन आप लोंगो की आँखों से
बच रहे थे पर आज... आज आप कु छ ठान कर आये हैं।
आशीष- मेरे पास दो कहानियाँ हैं, ये दूसरी कहानी मैंने कल ही पूरी की हैं, और
इसके पूरी होते ही मुझे लगा कि मुझे मर जाना चाहिये।
सलीम- एक बात कहूँ सौ से ज्यादा लोंगो की मदद कर चुका हूँ अब तक मरने
में, लेकिन जितनी गंभीर बात आपने कही बहुत कम ही लोग कह पाते हैं
अक्सर जो बेमौसम मरने आते हैं।
आशीष- अब इसका मौसम भी होता है ?
सलीम- जब मौसम होता है तो मैं बहुत व्यस्त होता हूँ। खासकर जब स्कू ल का
रिजल्ट निकलता है शादियों के मौसम में प्रेमी आते हैं हारे हुए लोगों का भी
एक मौसम होता हैं। धोखा खाये लोगों का भी अपना मौसम होता हैं। और
मौसम के साथ-साथ आत्महत्या की एक उम्र भी होती है। बूढ़े लोग बहुत
आत्महत्या करते हैं क्योकि एक उम्र के बाद खेल में मजा आए या ना आए
खेल में बने रहने की आदत पड़ जाती हैं।
आशीष- आदत
गाना-
आदत हैं हमको
जैसे हैं वैसे ही होने की, आदत हैं हमको
चादर से बाहर रखकर पाँव
सोने की आदत हैं हमको
सूरज गर ना निकले दिन में भी अँधेरा हो
अंधेरे में जी लेने की
चाय में घोल के गम पीने की, आदत हैं हमको
अच्छा-बुरा कु छ भी नहीं, जो सब कह दे वही सही
गलत को सही सुन लेने की, आदत हैं हमको
पाँव का जूता काटे तो आँख में आँसु ना आयें
दिल चाहे छलनी-छलनी हो होंठ हमेशा मुस्काए
आँसु को रूमाल में रखकर, फिर रूमाल को खो देने की
आदत हैं हमको
सीन-9
(गाना खत्म होता हैं सब लोग अपनी-अपनी जगह जाकर बैठ जाते हैं।)
सीन-10
सीन- 13
सीन-14
सीन-15
ईश्वर- कै से चुराओगे हाथी?
छोटू - हम लोग सबसे पहले.....
बंटी- मज़ाक कर रहे थे हम लोग.... टाईम पास। इसे भूख लग रही थी तो मेरा
सिर खा रहा था।
ईश्वर- भूख लगी है... पान खाओगे? नहीं एक काम करो पहले खाना खाना फिर
तुम लोगों को कु छ मीठा खिलाऊं गा और फिर पान खाना। चलेगा .....?
छोटू -बंटी- हां चलेगा।
ईश्वर- पर खाना तो तुम्हें मिलेगा नहीं और कु छ चाहिये तो बता दो। (छोटू -बंटी
एक दूसरे की ओर देखते हैं ईश्वर लेट जाता है।)
बंटी- चाय?
छोटू - चाय.... हां चाय?
बंटी- हां चाय ठीक रहेगी।
छोटू - एक चाय मिल जाये तो....
ईश्वर- चाय.. एक चाय देना।
चाय- पैसे....?
ईश्वर- मैं दूंगा... क्या करे हो तुम लोग चोरी-चकारी के अलावा...?
छोटू - हम दोनों सर्क स में काम करते थे फिर उस सर्क स वाले ने हम दोनों को
निकाल दिया तो .....
ईश्वर- सर्क स में जोकर थे?
छोटू - नहीं ये जगलिंग करता था।
ईश्वर- जगलिंग मतलब...?
छोटू - मतलब चार-पांच गेंदो को एक साथ हवा में उछालने का काम।
बंटी- और ये रस्सी पर साईकिल चलाता था।
ईश्वर- और....
छोटू - और....और क्या?
ईश्वर- और क्या करते थे?
छोटू - और ये वहीं खेल आंख बंद करके भी करता था। है ना........
बंटी- हां और ये रस्सी पर आंखे बंद करके भी साईकिल चलाता था।
ईश्वर- और....?
छोटू - और .... और ये जगलिंग करते हुए.... करते हुए एकदम मस्त.....
बंटी- और ये साईकिल चलाते वक्त हांथों को ऊपर नीचे भी....
छोटू - ऊपर नीचे नहीं कर पाता था हाथों में डंडा होता था।
बंटी- डंडा भी हाथों में और बहुत बढ़िया..... एकदम.....
ईश्वर- और....?
छोटू - और.....
बंटी- और.....
छोटू - और..... हम दोनों बचपन से सर्क स में.... है ना और...
बंटी- और .... बस।
ईश्वर- ठीक है। ठीक है समझ गया तुम दोनों क्या थे।
छोटू - तूने वो नहीं बताया कि मैं हाथी को नहलाता भी था।
बंटी- जैसे तूने बड़ा बताया कि मैं तोते को बोलना सिखाता था.. बेवकू फ....
छोटू - बेवकू फ मत बोल। गाली सिखाई थी तूने तोते को.....
बंटी- अच्छा चुप रह...।
छोटू - अब बोलूं.....एक बार चलते शो में तोते ने कहा था तेरी मां की.....
ईश्वर- चुप एकदम.....सोने भी नहीं देंगे।
चाय- ये....चाय।
ईश्वर- नहीं देना है किसी को
सीन-16
चाय- चाय।
आशीष- धन्यवाद।
चाय- सलीम भाई कहां है?
आशीष- आ रहे हैं.... पैसे चाहिए?
चाय- नहीं वो तो सलीम भाई देंगें।
आशीष- इतने खुश क्यों हो?
चाय- मैं बता नहीं सकता... चलता हूं।
आशीष- नहीं.... नहीं इतने खुश क्यों हो बोलो..?
चाय- बहुत दिन से सलीम भाई खाली बैठे थे, उनकी कमाई होती है तो हमको
भी हर चाय का सौ रूपया मिलता है।
आशीष- अच्छा।
चाय- सलीम भाई को मत बताना।
आशीष- नहीं बताऊं गा।
चाय- मरना है
आशीष- एक चाय और दोगे?
चाय- अभी लाया।
सीन-17
ईश्वर- अरे ज़़रा उधर खिसकें गे मुझे सोना है अरे भाई सुनाई नहीं दे रहा है
क्या, अरे उठो भाई। अबे उठता है कि तेरी तो
ब्रम्हानंद- आ आ (चीखता है ईश्वर डर जाता है और वहां से अलग हट जाता है
और वर्मा के पास पहुंचता है)
वर्मा- हां, क्या हुआ?
ईश्वर- अरे कु छ नहीं यार वो तो मैं बस सोना चाह रहा था मैंने बोला सरक
जाओ तो वो चिल्लाने लगा। अगर मेरा एरिया होता तो साले को अंदर कर
देता। कौन है ये
वर्मा- ब्रम्हानंद।
ईश्वर- अरे कौन ब्रम्हानंद?
चाय- मैंने देखा था आपको आप ब्रम्हानंद को मारने वाले थे तभी वो चीखा। ऐसे
वो किसी को कु छ नहीं बोलता है
ईश्वर- तू कौन है बे? ये कोन है?
चाय- चाय।
ईश्वर- क्या?
चाय- चाय... सुनाई नहीं दे रहा।
ईश्वर- अब नाम पूछ रहा हूं तेरा काम नहीं।
वर्मा- अरे वो सच कह रहा है, इसका नाम ही चाय है।
ईश्वर- तो जाके चाय बेच बीच में मत बोल। चाय। ये ब्रम्हानंद इसी गांव का
है?
वर्मा- हां।
ईश्वर- यहां क्या कर रहा है इसके बाप का स्टेशन है।
चाय- हां इसके बाप का ही है।
ईश्वर- अब तू
वर्मा- वो सही कह रहा है इसके बाप का ही है।
ईश्वर- मतलब?
वर्मा- ऐसा कहते है कि ये ब्रम्हानंद के पुरखों की जमीन थी, जिस पर सरकार ने
रेलवे स्टेशन बना दिया। और वादा किया था कि इनको कहीं और जमीन देंगे,
पर वो दी नहीं गई तो ये यहीं रहने लगा पहले इसके दादाजी यहां बैठते थे
फिर पिताजी और फिर ये।
ईश्वर- ये तो गैर कानूनी है। इसको कोई भगाता नहीं?
वर्मा- क्यों भगायेंगे साहब, ये रेलवे स्टेशन को अपना घर मानता है और यहां के
हर व्यक्ति को अपना मेहमान। सबकी खैर तबीयत पूछता है, पूरे स्टेशन को
साफ रखता है। हर आने वाले को नमस्कार करता है, और हर जाने वाले को
फिर आइये का सलाम। और इंतजार करता है।
ईश्वर- कौन कहते हैं?
वर्मा- ऐसा कहते है ये एक चमत्कार जैसा कि जिसका वो इंतजार करता रहता
है।
ईश्वर- चमत्कार का इंतजार है।
सीन-18
गाना-
इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार
वो तो चला गया रे
वो तो चला गया समुन्दरों के पार
इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार
वो चला गया समुन्दरों के पार -3
छोटा सा पंछी वो नन्हीं सी जान रे -2
कै से वो झेलेगा आंधी तूफान रे -2
इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार वो लेकर के आयेगा कोई ऐसी किताब
जिसमें मिलेंगे सब सवालों के जवाब
वो नाम करेगा, ऐसा काम करेगा।
चाहे रास्ते में आए मुश्किलें हजार।
इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार
मेरा काला रे
मेरा कौआ काला रे
मेरा काग रे।
मेरा काला कागा रे
मेरा काक रे
वो जो बोले कांव, सुन के कोयल हो बेहाल, मैं तो हो जाऊं निहाल।
इंतजार इंतजार इंतजार इंतजार
सीन-19
छोटू - बंटी, हम कब तक जिंदा रहेंगे?
बंटी- क्या
छोटू - हम कब तक जिंदा रहेंगे?
बंटी- एक घंटे तक अरे मुझे क्या पता।
छोटू - और बंटी जब तक मैं जिंदा रहूंगा मैं छोटू ही रहूंगा और जब तक तू जिंदा
है तू बंटी ही रहेगा?
बंटी- हां।
छोटू - याद है तूने मुझे ध्रुव तारा दिखाया था। सुबह चार बजे। वो कब से ध्रुव
तारा ही है बेचारा ध्रुव तारा
बंटी- तो क्या है?
छोटू - मुझे इसी बात पे कभी-कभी रोना आ जाता है कि मैं कु छ नहीं होऊं गा मैं
अपने मरने तक छोटू ही रहूंगा अंत तक छोटू एकदम अंत तक अरे ये रस्सी
खुल गई साब साब ये रस्सी खुल गई।
बंटी- अबे
ईश्वर- इन दो जोकरों को भी तो संभालना है (ईश्वर छोटू -बंटी के पास जाता है।)
सीन-20
वर्मा- जल्दी से स्टू ल साफ कर। ऐसे भूखे बहुत कम आते हैं।
चाय- मतलब
वर्मा- आज खाना बनाने में मजा आएगा। ये संभाल अपनी चाय की के तली और
ये रहे कम और तू निकल ले।
चाय- मैं चुपचाप यहां कोने में बैठा रहूंगा। प्लीज प्लीज।
वर्मा- दिमाग का दही मत कर। वरना स्टू ल पे बैठना तो दूर उसे साफ भी नहीं
कर पायेगा।
चाय- और बीच में अगर चाय ठं डी हो गई तो।
वर्मा- तू जो मोटी-मोटी किताबें पढ़ता है ना उसे जलाकर गर्म कर लेना। चल
अब जा भूखा आ रहा है।
सीन-21
सीन-22
सीन-23
सीन-24
ईश्वर- ब्रम्हानंद ऐ ब्रम्हानंद
वर्मा- वो नहीं सुनेगा।
ईश्वर- क्यों?
वर्मा- क्योंकि हम उसे ब्रम्हानंद कहते हैं लेकिन शायद उसे नहीं पता कि उसका
नाम ब्रम्हानंद है।
ईश्वर- क्या? वो ब्रम्हानंद है उसे नहीं पता लेकिन तुम उसे ब्रम्हानंद कहते हो तो
तुम्हें कै से पता उसका नाम ब्रम्हानंद है
वर्मा- क्येांकि बहुत पहले ट्रेन में से एक आदमी ने ब्रम्हानंद चिल्लाया था और
तब ये मुड़ा था दूसरे ब्रम्हानंद में ये खड़ा हुआ था और तीसरे ब्रम्हानंद चिल्लाने
पर ये बहुत तेजी से भागा था मगर तब तक ट्रेन निकल चुकी थी। ओह अब
समझ में आया ये हर ट्रेन के डिब्बे में इसलिए झांकता फिरता है कि ये शायद
पता करना चाहता है कि किसने इसे इसके नाम से पुकारा।
ईश्वर- हां हां
वर्मा- शायद
ईश्वर- शायद शायद क्या?
वर्मा- देखो सच किसी को नहीं पता ऐसा कहते हैं?
ईश्वर- ये तुम्हारे स्टेशन पे कौन हैं जो कहते हैं कौन हैं ये?
गाना-
ये हम हैं जो कहते हैं, हां हां हम हैं जो कहते हैं
ज़रा नज़रें उठाकर देखो तो हम आसपास ही रहते हैं।
ये हम हैं जो कहते हैं।
कहते हैं दुनिया को ऊपर वाले ने हाथों से अपने बनाया था।
कहते हैं आदम अके ला था पहले फिर हौवा ने आके मुस्कराया था।
उसके ही कहने से फल खाया पहले खाया पहले फिर?
फिर कहते हैं धक्का भी खाया था।
कहते हैं उसकी ही संतान हैं सब। कौन हैं जो ये कहते हैं?
ये हम हैं जो कहते हैं, हां हां हम हैं जो कहते हैं
ज़रा नज़रें उठाकर देखो तो हम आसपास ही रहते हैं।
ये हम हैं जो कहते हैं
सीन-25
(गाना खत्म होता है सभी एक जगह इकट्ठे होकर बैठ जाते हैं।)
बापू- अरे क्या हुआ? चलो अपनी-अपनी जगह। अरे जाओ खड़े क्या हो? अरे
चलो अपनी-अपनी कहानियां शुरू करो।
भाई- अभी क्या कहें?
बापू- मतलब कहानी किसने रोकी? कहानी किसने रोकी?
सैम- कहानी मैंने रोकी।
बापू- ये बेईमानी है।
सैम- माफ करना दो मिनट
काया- मैं कु छ कहूं।
सैम- हां, बस शुरू कर रहा हूं।
काया- मैं बस बताना चाहती हूं कि तुम्हारी ट्रेन का टाईम हो रहा है।
सैम- मैं जानता हूं।
काया- क्या करोगे प्रेम कहानी, ऊपर से सुखांत
सैम- हं
काया- मैं जानना चाहती हूं कै से करोगे?
सैम- मृत्यु के बारे में इतना सोचोगी तो जीयोगी कब?
काया- क्या?
सैम- क्या हम जीते हुए लगातार मरने के बार में सोचते हैं नहीं ना अंत अपनी
गति से होगा।
काया- पर अंत बोलने से तो नहीं होगा ना अंत करना पडेगा, पहली बार तुम
इतनी बुरी तरह फं से हो। है ना?
सैम- हं
काया- मुझे तुम्हारे ऊपर बड़ी दया आ रही है।
सैम- हा हा हा
काया- क्या हुआ?
सैम- मिल गया मुझे अंत।
काया- क्या?
सैम- हां अंत मिल गया अब मेरी इस प्रेम कहानी का अंत तुम्हीं करोगी अब
अंत तुम्हारे हाथ में है।
काया- मैं? मुझे नहीं पता तुम क्या करने वाले हो? पर तुम्हारे पास समय कम है
अगर अंत नहीं हुआ तो मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी।
सैम- पक्का। हा हा (हंसता है) शुरू करें?
(सैम कबूतरों की तरफ पलटता है, कहता है अंत है, जरा जमाके )
बापू- ताली तो बजा दो।
(सैम ताली बजाता है सब घूमकर एक तरफ देखने लगते हैं वहां से कहानी शुरू
हो जाती है। कौआ प्रवेश करता है आकर बापू के गले लग जाता है।)
कितनी सारी चांद की रातें, कितना दिन का उजाला
क्या होता मतलब सफे द का यारों, जो ना होता रंग काला
मां- बेटा कहां चला गया था इतने दिन? कितनी चिंता हो रही थी तेरी।
कौआ- मां मुझे पता लग गया है कि मैं कबूतरों के बीच एक कौआ हूं।
बापू- किसने कहा तुझसे किसने कहा?
कौआ- इस बार किसी ने नहीं कहा मुझे पता लग गया है और मुझे इसमें कोई
समस्या नहीं है। बापू मैं बाहर गया था बाहर संसार में मैं उड़ता रहा उड़ता रहा
ना जमीन खत्म होने का नाम ले रही थी ना आसमान और तभी अचानक पता
नहीं कहां से बहुत सारी भीड़ आ गई। बापू वो सब हवाई जहाज़ की तरह उड़
रहे थे बहुत तेज़ पता नहीं कितने तरीके के किसने सारे पक्षी उड़ रहे थे और वो
कौए भी नहीं थे कबूतर भी नहीं थे फिर मैंने उनसे पूछा-
सैम- आप लोग कौन से स्टेशन पर रहते हैं और कौन से स्टेशन जा रहे हैं?
सीन-26
सीन-27
सीन-28
चाय- ये चाय
आशीष- हं
चाय- चलता हूं
आशीष- सलीम भाई तुम्हें ही बुलाने गये हैं।
चाय- पता है। मैं पीछे से आया आपसे कु छ कहना चाहता हूं।
आशीष- बोलो
चाय- बोलो
चाय- पश्चाताप जीने में है मरने में नहीं माफ करना चलता हूँ।
सीन-29
(ईश्वर, वर्मा का कॉलर पकड़े हुए हैं।)
वर्मा- बताता हूं बताता हूं। मैं ही ब्रम्हानंद हूं। मेरा नाम ब्रम्हानंद वर्मा है।
ईश्वर- अबे तो मुझे बेवकू फ बनाने की क्या जरूरत थी?
वर्मा- मुझे क्या पता था आज ये जल्दी उठ जायेगा देखो मुझे रात भर जागना
पड़ता है और ये रात भर सोता है। ये मेरे मनोरंजन का साधन है। आज पहली
बार पकड़ा गया हूं। माफ कर दो।
ईश्वर- ठीक है लेकिन एक शर्त पर कि तूने मुझे बेवकू फ बनाया ये बात किसी
को नहीं बतायेगा।
वर्मा- अच्छा, ठीक है।
सीन-30
छोटू - बंटी हमने अभी तक सिर्फ भागने के बारे में बात की है भागे कभी नहीं
है।
बंटी- मतलब?
छोटू - मतलब हमने कभी भागना सीखा ही नहीं है हम भागने के लिए बने ही
नहीं हैं। हमें बस एक जगह रहना आता है।
बंटी- तू चुप रहेगा? ट्रेन आने वाली है, तैयार हो जा।
सीन-31
सलीम- तो चलें
आशीष- कहां?
सलीम- यहां नहीं आगे। उस खंभे के पास ट्रेन आने वाली है।
आशीष- मेरी एक बात मानोगे?
सलीम- जो बोलो
आशीष- मैंने तुम्हें कहा था ना कि मैं सबसे डरता हूं कहीं मैं उस आखिरी क्षण
में डर ना जाऊं मुझे पता नहीं तो क्या तुम मुझे धक्का दे दोगे?
सलीम- नहीं नहीं ये तो हत्या होगी।
आशीष- तुम्हारा धंधा है तुम आत्महत्या में मदद करते हो। तो मैं मदद ही तो
मांग रहा हूं ये हत्या कै से हुई?
सलीम- ये हत्या है बस और यूं भी मैं तुम्हें वहां छोड़ के आ जाउं गा, मैं कभी
आत्महत्या के समय किसी के साथ नहीं रहता इसमें फं सने का डर है। चलें
समय हो रहा है।
आशीष- चलो
सीन-32
बंटी- चल ट्रेन आ रही है।
छोटू - बंटी, हम दोनों के बीच भाग-भाग एक खेल है भेड़िया आया, भेड़िया आया
जैसा एक खेल। इसमें सच के भेड़िये को मत लाओ।
बंटी- चुप ट्रेन आ गई है। भाग बोलूंगा सामने कू द जाना।
छोटू - बंटी इसे खेल ही रहने दे मुझसे नहीं होगा।
बेटी- अपना हाथ दे मुझे।
छोटू - नहीं।
बंटी- हाथ दे
(सलीम आकर नीचे खड़ा हो जाता है और आशीष को देख रहा होता है ब्लैक
आउट होता है छोटू के चिल्लाने की आवाज आती है और साथ में ट्रेन के तेज़ी
से निकल जाने की आवाज़ और गाना शुरू होता है स्पॉट आता है आशीष
अपनी जगह नहीं खड़ा है। दूसरा स्पॉट आता है बंटी अके ला बैठा रो रहा है
ईश्वर, बंटी के पास जाता है और पूछता है छोटू कहां है और बंटी रोता रहता
है।)
गाना-
अंधेरे में ढूंढते हैं टु कड़ा-टु कड़ा जिंदगी
सांसो से छू के देखा अपनी है कि अजनबी
अंधेरे में ढूंढते हैं। रा रा रा रा
एक कतरा आंसु का या चमकती इक खुशी
हाथ जाने क्या लगेगा जानता कोई नहीं
अंधेरे में ढूंढते हैं। रा रा रा रा
एक टु कड़ा मेरे हिस्से का दर्द में डू बा हुआ
एक टु कड़ा मुस्कु राकर पूछता है क्या हुआ
एक टु कड़ा चुप्पी साधे
मेरे हाथें ही मौत मांगे। रा रा रा रा
ऐसे कितने टु कड़े सीकर
जैसे-तैसे मरके जीकर।
बन रही है कहानी।
चल रही है कहानी।
बुन रही है कहानी।
तेरी मेरी कहानी।
सीन-33
(आशीष आता है, चाय उसे देखकर उसके गले लग जाता है।)
आशीष- ये मेरी कहानियां हैं अब मुझे इनकी जरूरत नहीं है मैं चार पच्चीस की
ट्रेन से जा रहा हूं।
चाय- कहां?
आशीष- नया जीवन शुरू करने। जिंदा रहकर पश्चाताप करने मरकर नहीं।
चाय- ये कु छ पैसे रख लीजिये टिकट तो खरीदना पड़ेगा ना।
आशीष- नहीं चाहिये।
चाय- आप ही के हैं।
सीन-34
सैम- कहानी हमारी पूरा संबंध ये शब्द है, कहानी मुझे पता ही नहीं चला कब
तुम्हारी उं गलियों ने कहानी कहना सीख लिया, हां सच। जब मैंने तुम्हें पहली
बार कहानी सुनाई थी तब उस कहानी को मैंने तुम्हारी उं गलियों से ही बाहर
झांकते हुए देखा था। मैं हमेशा उस क्षण, उस पल को याद करता हूं जब
तुम्हारी उं गलियां हिलीं थीं और मैंने एक कहानी को बाहर आते हुए देखा था
और मैंने आज तक वो ही कहानियां पढ़ी हैं जिसे तुम्हारी उं गलियों ने दिखाया
और तुमने सुनना चाहा।
काया- नहीं तुमने किसी न किसी ब्रम्हानंद के नाम से हमेशा अपनी ही कहानी
कही है और तुमने अंत में आशीष को बचा लिया।
सैम- तुम्हीं चाहती थीं कि आशीष ना मरे तुम्हें अजीब लगेगा पर पता नहीं
कितनी बार मैंने आशीष को मारना चाहा पर हर बार किसी ना किसी चाय ने
आकर उसे बचा लिया और कई बार तो चाय बनकर तुम खुद आई हो।
काया- मैंने तुम्हें आत्महत्या से नहीं बचाया।
सैम- मैं आत्महत्या की बात ही नहीं कर रहा हूं मैं तो अपने उस आदमी की
बात कर रहा हूं जो स्कू ल के दिनों से तुमसे प्रेम करता था कई बार मैंने उसे
मार देना चाहा और हर बार तुम्हारी किसी ना किसी बात ने उसे जिंदा रहने
दिया और देखो वो आज तक जिंदा है।
काया- अरे तुम्हारी ट्रेन आ गई।
सैम- हां
काया- पर ये सुखांत नहीं है।
सैम- मैं जानता हूं ये सुखांत नहीं है।
काया- और मुझे सुखांत चाहिये।
सैम- वरना
काया- वरना तुम्हें मुझसे माफी मांगनी पड़ेगी।
सैम- मैंने आज तक जितना तुम्हें प्रपोज किया उससे कहीं ज्यादा तुम्हें
कहानियां सुनाई है उन कहानियों का एक घर है जिसके लगभग हर कोने में
तुम रह चुकी हो पर ये कहानी उस अंधेरे कमरे की है जो घर की छू टी हुई
चीजें लिए पता नहीं कब से बंद पड़ा था स्टोर रूप जैसा और इसके हर पात्र
हाशिये पर रखे हुए पात्र थे जो मुख्य पात्र को खूबसूरत दिखाने के लिये हमेशा
कहानी के पीछे चुपचाप खड़े रहे। आज तुमने ये कमरा भी खोल दिया। अब
किस्सों में नहीं, टु कड़ों में नहीं, जबरदस्ती नहीं, चोरी से भी नहीं बल्कि ये पूरा
घर उसके मालिक के साथ तुमसे पूछता है मुझसे शादी करोगी?
ये प्रेम कहानी है और अंत तुम्हारे हाथ में हैं। अगर तुम हां कह दोगी तो
सुखांत और ना कह दोगी। तो दुखांत।
काया- ये तो तुमने
सैम- मैंने कहा था अंत तुम्हारे हाथ में है।
काया- तुम्हारी ट्रेन
सैम- जल्दी बोलो मुझसे शादी करोगी? (ट्रेन का साउं ड, सारे कबूतर भाग जाते हैं
ट्रेन निकल जाती है ब्लैक आउट। लाईट आती है काया अके ली खड़ी है। वो
मुस्कु कराकर चली जाती है। कबूतर प्रवेश करते हैं, गाना गाते हैं।)
अब बात फं सी है कु छ ऐसी
होगें आंसु या होगी हंसी
पर अंत तो हमने सुना नहीं
जब अंत हुआ हम उड़े कहीं
अब खत्म ये किस्सा कै सा हो
गर चाहे आंखे नम रहे
और साथ में थोड़ा सा गम रहे
तो थी ये कहानी इस दुखांत
गर चाहे होंठों पे हंसी खिले
और सबको सबका मीत मिले
तो थी ये कहानी इक सुखांत
तो थी ये कहानी इक सुखांत
तो थी ये कहानी|