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सुप्रभात मित्रों ... ॐ नमः शिवाय !

आज का दिन आप सभी के लिये शुभ हो।


धन त्रयोदशी की साधना
कल शुक्रवार को धनतेरस, धन्वंतरि जयंती व यम दीप दान दिवस है।
आज के भौतिकवादी युग मे लगभग हर घर मे कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार का दुख है और हर व्यक्ति उस दुख से बाहर आने को व्याकु ल भी
है।
माँ अदिशक्ति की दस महाविध्याओं मे से एक धूमवाती हैं ,
हर प्रकार की द्ररिद्रता के नाश के लिए , तंत्र - मंत्र मे सिद्धि के लिए , जादू टोना , बुरी नजर और भूत प्रेत आदि समस्त भयों से मुक्ति के लिए ,
सभी रोगो के निवारण के लिए ,
अभय प्रप्ति के लिए ,
साधना मे रक्षा के लिए , तथा
जीवन मे आने वाले हर प्रकार के दुखो के नाश हेतु धन त्रयोदशी की रात्रि मे धूमावती देवी की साधना करनी चाहिए।
" ये मेरे जीवन की सबसे पहली साधना है जिसे मैंने सन 2000 मे किया था , और आज तक करता आ रहा हूँ। "
इस साधना के प्रभाव से पूरे वर्ष मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहता है।
दीपावली को हम लक्ष्मी के आगमन के त्योहार के रूप मे मनाते हैं,
लक्ष्मी के आगमन से पूर्व , घर की अलक्ष्मी यानि कि दुख दारिद्र्य और संताप को जाने का निवेदन करना होता है,
तभी लक्ष्मी का आगमन होता है।
इस साधना को धन त्रयोदशी की रात्रि को घर से दूर किसी सुनसान स्थान पर करना उचित होता है।
रात्रि के समय सुनसान व एकांत स्थान पर साधना करना हर किसी के बस की बात नहीं ...
इसलिए इस घर से बाहर ... घर के आगे के आँगन मे किया जा सकता है।
बहुमंज़िला इमारतों मे रहने वाले लोग इसे छत पर भी कर सकते हैं।
ये साधना घर का कोई पुरुष ही करे तो अधिक प्रभावी होती है।
रात्रि 10 बजे के बाद , जब भी शांति हो और लोगों का आवागमन बंद हो जाये ... तब आरंभ करें , क्योंकि किसी भी व्यक्ति द्वारा टोकने से
साधना खंडित मानी जाती है।
साधना के लिए विशेष सामाग्री की आवश्यकता नहीं है ...
श्वेत आसन , वस्त्र यानि कि धोती और अंगवस्त्र भी श्वेत ,
काले हकीक की माला या रुद्राक्ष की माला ,
एक मिट्टी का दिया तथा शुद्ध कपास की एक बत्ती ,
तिल या सरसों का तेल और
जल से भरा ताँबे का लोटा ।
दिशा दक्षिण ... अर्थात दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके बैठना है। आग्नेय कोण को भी लिया जा सकता है।
बेजोट ( आम की लकड़ी का पटा ) या कोई भी पटा।
शांत वातावरण देख कर आप सर्वप्रथम सामग्री एकत्र कर लें , तत्पश्चात स्नान के बाद धोती पहन कर आसन लगाकर बैठ जाएँ।
सामने बेजोट पर श्वेत वस्त्र रखें , उसपर मिट्टी के दिये को बत्ती लगाकर तेल से भरें और प्रज्वलित करें।
आचमन करें , स्थान पर जल छिड़क कर शुद्ध करें।
अपने गुरु की मानसिक पूजा करें तथा उनसे आज्ञा लें।
संकल्प मे कहें –
“ मैं अपने व अपने परिवार के समस्त प्रकार के दुख दारिद्र्य और संतापों से मुक्ति पाने के लिए माँ धूमवाती की साधना करने जा रहा हूँ ...
हे अलक्ष्मी , कृ पा कर आप मेरे घर और जीवन से प्रस्थान करें ...
जिससे कि माँ लक्ष्मी का आगमन सुनिश्चित हो “
- किसी भी साधना मे संकल्प का बहुत महत्व होता है ... इसलिए या तो इसे याद कर लें या फिर इसे पहले से ही लिख कर रखें।
तत्पश्चात माँ धूमावती का ध्यान करें व उनसे साधना सफलता और सिद्धि के लिए प्रार्थना करें।
अब निम्न मंत्र की 11 माला करें -
“ ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा “
या
“ धूं धूं धूमावती ठ: ठ: “
जप करते समय आपको कई प्रकार की भयभीत करने वाली अनुभूतियाँ होना निश्चित रूप से संभव है , किन्तु आप बिना विचलित हुये जप
कीजिएगा।
ये संके त है कि मंत्र सिद्धि हो रही है।
जप पूर्ण होने के पश्चात क्षमा याचना कर संकल्प को पुनः दोहराएँ ... इस प्रकार ये साधना पूर्ण हो जाएगी।
दीपक को जल से ठंडा करें ( बुझाएँ नहीं ) , दक्षिण दिशा की तरफ कहीं भी रख दें और लोटे मे बचा हुआ जल भी वहीं बहा दें।
!! ॐ सुरभ्यै नमः !!

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