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रावण रा स नह था। लेकन राम के

प म ज ह नेकताब लखी ह, वे रावण को रा स कहगे


। द ण म कताब लखी गई
ह, जनम रावण को महापुष कहा गया है
। वे
उसको रा स नह कहगे

जब ह तान और चीन म दो ती थी तो हद -चीनी भाई-भाई! और जब चीन ने हमला कया तो चीनी रा स हो गए। ह तान
म क वताएंलखी जाने लग क चीनी जो ह, रा स ह। मन रा स हो जाता है । रा स य ? य क रा स कह कर उसको
मारना आसान हो जाता है। आदमी कहोगे तो मारना मुकल होगा। रा स को मारनेम या हजा है
! अरेयह तो महापापी है
,
इसको मटा दो! तो उतना ही पृ
वी का भार कम आ!

अपने को अ छे -अ छे
श द क आड़ म खड़ा कर लो और सरे
को बु
रे
-बु
रे
श द से
लाद दो, तो सु
वधा हो जाती है
, आसानी
हो जाती है
, ब त आसानी हो जाती है

आ मानंद चारी, दे
श इ या द क बात, जा त और समू
ह क बात, संदाय क बात-- ा नय क बात नह ह। ान
तो नजी घटना है

एक कू
ल म एक ा ण पं
डत व ा थय से
पू
छ रहा थाः बताओ, भारत म कौन-कौन से
मत च लत ह?

एक छा ने
कहाः पं
डत जी, कांस
ेमत, जनता मत इ या द-इ या द।

पं
डत जी गु से म आ गए। वे
कहां
धम क बात कर रहे
ह और यह कहां
राजनी त क बात छे
ड़ रहा है
! पं
डत जी ने
गुसे

कहाः बको मत!

छा ने
कहा क पं
डत जी, म भू
ल गया था, बको मत भी ब त च लत है

भीड़ म तो बको मत रहता है


, कहां वाद!...बकवास! थ क बकवास! लोग ई र क चचा कर रहे ह, आ मा क चचा कर
रहेह; जै
सेक उ ह पता हो। पता उ ह कुछ भी नह है
, मगर श द सीख लए ह, तोत क तरह दोहराए चले जा रहेहै
। कसी
काम के वेश द नह ह। उनके जीवन म उन श द से कोई ां त नह होती। अगर तु
म इ ह श द को ान मानतेहो, तब
तो ठ क है
, भारत ानी देश है
; य क यहांजतनी ान क चचा होती हैकह नह होती। और कुछ हमारेपास चचा
को बचा भी नह है।

हर दे
श क अपनी-अपनी आदत होती ह, रवाज होते ह। जैसे
इं लड म लोग हमेशा मौसम क चचा करते ह। और कारण है
उसका, य क मौसम एक ऐसा वषय हैजसम कोई यादा वाद- ववाद क ज रत नह है । अंज
ेवाद- ववाद पसंद नह
करते, अ श मानतेह वाद- ववाद को, ऐसी कोई बात छेड़ना, जसम वाद- ववाद हो जाए। येबलकु ल ही न ववाद स य ह,
जनम कोई ववाद का सवाल ही नह है । जै
सेबादल घरे ह तो अंजेकहगे ः आज ब त बादल घरे ह। वभावतः सरा भी
कहेगा क हां
, आज ब त बादल घरे ह, बड़ी उमस है , बड़ी बे
चनैी अनु
भव हो रही है
। अब इसम या ववाद करना है!

मुला नस न अपने नाई से


बाल बनवानेजाता है
। बार-बार मने उसको देखा क जब भी वह नाई से
बाल बनवाता है
, तो
बस वह मौसम क ही बात करे -- क आज सू रज नकला आ है , बड़ा सु
दर सू
ं रज! और कभी कहेक आज वषा हो गई, खू ब
बू
दा-बां
ं द पड़ रही है
, बड़ा आनंद आ रहा है
! मने
उससे पू
छाः नस न, और तो तू कभी भी मौसम क चचा नह करता, मगर
जब नाई सेतूअपने बाल बनवाता हैतो हमे
शा मौसम क चचा करता है !

तो उसनेकहा क आप या समझते ह, क म पागल ,ंजस आदमी के हाथ म उ तरा हो और मे


री गदन पर उ तरा लगाए हो,
उससेया राजनी त या धम क बात छेडू

? आ जाए गुसेम, नउए का ब चा, या पता! छ ीस गु
ण का पूरा, मार दे
जोर से
!
तो मौसम क चचा करता ं, जसम क कोई झगड़े -झां
से
का सवाल ही नह ।

अंज
ेमौसम क चचा करते ह, जसम कोई वाद- ववाद नह है। एक तो वे
चचा ही नह करते
, जहां
तक बने
चचा ही नह
करते
। अगर दो अंज
ेएक रे
लगाड़ी केड बेम बैठे
ह तो घंट बैठेरहगेबना एक- सरेसेबोलेए, य क जब तक कोई
तीसरा उनका प रचय न कराए तब तक वे
बोल कै
से
! बोलना असं
भव। प रचय ही नह करवाया गया...तो चु
पचाप बै
ठे
रहगे
,
अपना-अपना अखबार पढ़ते रहगे

दो भारतीय मलगेतो ान छे ड़गे


। यह भारतीय आदत, रवाज। यह हमारी पु रानी लीक। इसका कोई मू य नह है--उतना
ही मूय हैजतना मौसम क चचा का इं लड म, उतना ही ान क चचा का भारत म। दो भारतीय मलगे तो फौरन वेदां

छड़ जाएगा। और एक- सरे से बढ़-चढ़ कर बात करगे, य क जब वे दां
त ही छड़ा हो तो फर कससेया पीछे रहना। लंबी
मारगे
। गपशप ही चल रही है, तो फर या कसी से हारना! और ान का मामला ऐसा है, इसम कु
छ भी कहो सभी ठ क है ,
य क न प म कोई माण है , न वप म कोई माण है , माण का तो कोई सवाल ही नह है ।

एक राधा वामी संदाय को माननेवालेस जन मेरे


पास आए और उ ह ने कहा क आप अ त व केकतने
खंड मानते
ह?
य क हमारे गुतो चैदह खंड मानतेह और चै
दहवां
खंड का नाम है
--स च खं
ड!

वेन शा भी लाए थे दह खं
--चै ड। और उन खं ड म जो उ ह नेदखाया था, वह झगड़े-झांसेक बात है
। य क उसम मोह मद,
मू
सा, इ या द तो पां
चव खंड म ह, अभी वह अटके ह। जीसस, जरथु जरा आगे गए ह--छठव खंड म। महावीर और बु
और थोड़े आगे बढ़े ह। बड़ी कृ
पा क उ ह ने--सातव खंड म! फर कबीर, नानक इ या द और थोड़ेआगे बढ़ा दए--आठव खंड
म। मगर चैदहव खं ड तक उनके ही गुप चं!ेस च खंड! वेमु
झसेपू
छने लगेः आप कतने खं
ड मानतेह? हमारेगुके सं
बध

म आपका या खयाल है ? या ये खंड सच ह?

मने
कहाः येबलकु
ल सच ह, य क मने
तुहारे
गुको चै
दहव खं
ड म अटके
दे
खा है

तो उ ह ने
कहाः आपका मतलब?

म पंहव खं
ड म !ंमहास च खं
ड!

आप कहतेया ह! यह तो कभी सु
ना नह ।

मने
कहाः तु
म सु
नोगे
कैसे
? तु
हारे
गुको ही पता नह था, तो तु
म सु
नोगे
कैसे
!

कहने
लगे
ः नह -नह , ऐसा कै
सेहो सकता हैक हमारे
गुको पता न हो!

उनको पता कै
सेहोगा, जब चै
दहव म ही अटके ह! जब तु
म सर को अटका रहेहो-- कसी को सातव म, कसी को आठव म;
जब तु
मको यह अ धकार है अटकाने का--तो अब म भी या क ं
, म पंहव म ं
!

तब से
वेआए नह । ऐसे
नाराज होकर गए ह क फर नह लौटे
। मने
उनसेकहा भी क कभी-कभी स सं
ग को आ जाया करो।
ऐसेतु
हारे
गुभी ब त ाथना करते ह क नकाल लो मु
झेचैदहव खं
ड से
। को शश कर रहा ं
उनको भी नकालने
क।

वेतो नाराज ही हो गए एकदम क बात ही हमारे गुकेखलाफ हो गई! और सरे गु केखलाफ जो कह रहे ह वह
बलकु ल ठ क है। महावीर और बु को भी सातव म अटकाए ए ह, चैदहव तक भी नह प ं चने दे
ते। बड़ी कृ
पा क उ ह ने
कबीर, नानक इ या द पर, क उनको आठव म चढ़ा दया! तो मने कहाः तु
म मे
रा तो दयाभाव दे
खो क तु हारे
गुको चैदहव
तक चढ़ाया वीकार करता ं । और म दे
ख ही रहा ं
उनको क चैदहव म ह। बलकु ल सच कहते ह वे। अब उनको कोई
चा हए जो नकाले । म को शश क ं गा जतना बन सकेगा नकालनेक , नकल आए तो ठ क। जोर से पकड़ेए ह चैदहव
खंड को, य क वे समझते ह स च खंड आ खरी खंड है
। स च खं
ड आ खरी कै से हो सकता है
, फर महास च खं ड का या
होगा?

- ान क ही बात करनी हो तो फर जो दल म आए बात करो--चै


दहवां
खंड बनाओ, सोलहवांबनाओ, अठारहवां बनाओ।
मं
दर म न शेलटकेए ह नरक के , वग के। महावीर कहते
थेएक नरक। उनका ही एक श य, गोशाल, बगावती हो गया।
बगावती यू
ंहो गया क उसने दे
खा क महावीर जो कहते ह - ान, यह तो म ही कह सकता ं । कई दन उनके साथ रहा,
सब समझ लया। उसने कहा क ठ क है , येबात तो म ही कह सकता ।ंतो वह भी कहने लगा। उसम उसने और जोड़ ल
बात। वह कहने लगाः तीन नरक होते ह और तीन वग होते ह। अब करोगेया? इसम कु छ झगड़ा तो नह है। लोग उससे
पू
छतेक महावीर तो कहते ह एक ही है
, तो उसने कहाः उनको एक का ही पता है , एक का बतातेह। आगेका उनको पता नह
है

सं
जय वे
ल पुको पता चला--वह भी एक ानी था-- क यह गोशाल कहता है तीन नरक ह। उसने
कहाः पागल है
, अरे
तीन
से
कह काम चला है
! सात केबना हो ही नह सकता। सात नरक ह, सात वग ह।

और पूणका यप एक और गुथा उन दन का--कहना चा हए गुघं टाल! आदमी यारा है


, मु
झे
पसं
द है
वह। उसने
कहाः या
लगा रखी है
बकवास छोट -मोट ! अरे
सात सौ नरक होते
ह और सात सौ वग!

अब इसको अगर - ान कहते


हो तो तु
हारी मौज, फर तु
ह जो दल म आए छे
ड़ो। अपनी-अपनी मौज है
। अपनी-अपनी
उड़ान है
। जतनी जसक क पना हो उतनेउड़े चलेजाओ।

मगर कोई दे श न तो ानी है


, न रहा है, न कभी हो सकता है
। यह अहंकार छोड़ो। दे
श वगैरह से - ान का कोई सं बध

नह है। येसब अपने अहंकार को भरने के परो रा तेह। अपनी आंख ठ क करो। देश के पास आंख होती ही नह , ठ क भी
या करोगे! अब कोई कहने लगेक दे श क आं ख पर च मेचढ़ा द, तो सबको ठ क दखाई पड़ने लगेगा; मगर दे
श क आं ख
ही नह ह तो च मा कहां चढ़ाओगे ! दे
श क अं त खोल द! मगर अंत दे
श क है कहां? दे
श कोई तो नह , आ मा
तो नह --संा मा है , थोथा श द मा है ।

श द से
जरा सावधान रहो। श द म मत उलझ जाओ।

बु
ढ़ापेम मुला नस न क आं ख कमजोर हो ग । जब उसेहाथी तक चू हे
केबराबर दखाई दे
नेलगे
तो वह अपनेने-
वशेष से सलाह लेनेप ं
चा। डा टर ने
आंख क जां च क और एक काफ मोटे लस वाला च मा नस न को पहना दया।
मुला खुशी-खु
शी बाहर आया। घर लौटतेसमय रा तेम बाजार पड़ा, तो नस न ने सोचाः आज मु
झेनई यो त मली है
,
चलो इसी खुशी म ब च केलए कु छ खलौने लेचलू? वह एक अं
ं गरूक कान पर प च ंा और पू
छनेलगाः य भाईजान, ये
फुगेकस भाव दए?

लोग कभी-कभी अपनी आं ख भी ठ क करतेह तो ज रत सेयादा ठ क कर लेते


ह। तो या तो उनको हाथी चूहा दखाई
पड़ता है
, नह तो फर चू
हा हाथी दखाई पड़ने
लगता है
। स यक --इस लए बु नेकहा--सम- होनी चा हए, ढं
गक
होनी चा हए।

आदमी चाहता या है ? एक बात चाहता हैक कसी तरह अपने अहंकार को नये-नयेशृगार दे
ं दे
, नये
-नयेआभू षण देदे
। तो
मे
रा दे
श महान! य ? य क आप, आ मानं द चारी, इस दे
श म पै
दा ए! महान न होता तो आप यहां पै
दा ही य होते?
होना ही चा हए महान! जब आप तक ने पैदा होने
केलए इसको चु ना, तो यह महान होना ही चा हए! यह अपने को ही महान
कहने का परो ढं ग है।

पेरस व व ालय म दशन शा का एक धान अ यापक था। उसने एक दन घोषणा क अपनेव ा थय के सामने, कम
इस पृवी का सबसे महान । व ाथ भी चके
ं । एक तो दशनशा के धान अ यापक...। दशनशा क कौन क मत
करता है! व व ालय म आ खरी दज म दशनशा होता है । कौन पढ़नेजाता है
! जनको क ह और वषय म जगह नह
मलती, वेदशनशा पढ़ते ह। भारत म तो आमतौर सेलड़ कयां पढ़ती ह, य क ववाह ही करना है , एम.ए. होकर और तो
कुछ करना नह है
, तो नाहक य उप व म पड़ना! दशनशा ठ क। और फर ान तो भारत के
खू न म ही है
। कोई
दशनशा म पढ़ने जाता नह है। सैकड़ व व ालय म दशनशा केवभाग खाली पड़ेए ह। मगर इ जत केलए
व व ालय दशन-शा का वभाग कायम रखते ह, य क उसको हटाने म भी बेइ जती होती हैक इसम एक वभाग कम
है

और यह गरीब अ यापक दशन-शा का! हां , कोई ग णत का अ यापक कहता, कोई फ ज स का अ यापक कहता। कसी
ने
एटम बम बनाया होता और वह कहता। यह इसने तो कु
छ न बनाया, न कभी कु
छ मटाया। बस ऊं
ची-ऊं
ची बात करता रहा
हवाई। यह कह रहा है
--मुझसे
महान कोई नया म नह है ! एक व ाथ ने कहा क आप तो दशन के अ यापक ह, या
आप स कर सकते ह?

उसने कहा क बना स करे म कोई बात कहता ही नह । तो सु


नो! उसने
फौरन न शा नकाला नया का, बोड पर टां
गा
और पूछा क म तु
मसेयह पू
छता ं
ः नया म सबसे महान देश कौन है? वभावतः व ा थय ने
कहा क ां स। और उसने
पू
छाः म तु
मसे
यह पू
छता ं, ां
स म सबसे बड़ा महान नगर कौन सा है?

उ ह ने
कहाः पे
रस।

और तब उसने पू
छा क म तु
मसेपू
छता ं
पेरस म सबसे
महान और प व तम थल कौन सा है
? उ ह ने
कहाः वभावतः, जो
सर वती का मं
दर है
, व व ालय।

तब वे
घबड़ाए क यह आदमी तो लए जा रहा है
धीरे
-धीरे
। तब उनको कु
छ थोड़ी सी शं
का होनी शु ई। और तब उसने
कहा क ठ क, और इस व व ालय म सबसेे वषय कौन सा है ?

अब फां
सी लगी लड़क क ! उ ह ने
कहा क अब लग गई फां
सी, य क हम सब दशनशा केव ाथ ह, तो हमको तो
कहना ही पड़े
गा क दशनशा । तो उ ह ने
कहाः दशनशा ।

तो उसने कहाः अब कु
छ स करनेको बचा है
? और म दशनशा का धान अ यापक, म इस नया का सबसे
महान
!ंयह स हो गया। और या स करनेलए चा हए?

भारत - ानी है! यहां


दे
वता पै
दा होनेको तरसते ह! श कर मलती नह , दे वता पैदा होनेको तरसतेह! तो उनसेकह दे
ना
दे
वता सेक श कर साथ ले तेआएं । घासलेट का ते
ल मलता नह , तो कह दे ना उनसेक घासले ट केतेल केपीपेसाथ लेते
आएं। तरसते हो, वह तो ठ क है
। तरसते हो तो आओ भै या, वै
सेही भीड़-भाड़ है, और थोड़ी भीड़-भाड़ हो जाएगी। मजे से
आओ, वागत है । अरेअ त थ तक को दे वता कहते ह, जब दे वता ही अ त थ होना चाहेतो अब या कर! मगर कु छ चीज लेते
आना। रहने केलए थोड़ी जगह ले आना, मकान ले आना, सामान ले आना, कुछ फन चर ले आना।

दे
वता तरसतेह यहांपै
दा होने
को! कस कारण तरसते ह गे
--या तो पागल हो गए ह या सोमरस यादा पी गए ह, बात या है
!
भां
ग चढ़ा गए ह। भारत म पै
दा होने
को तरसते
, कोई और जगह नह मलती पै दा होने
को!

मगर भारतीय मन को, भारतीय अहं


कार को तृत मलती है दे
--यहांवता पै
दा होने
को तरसते
ह! यह पु
य-भू
म है
! यह
ा नय का दे
श है!

यह पागलपन छोड़ो। तु
ह ानी हो जाओ, यही पया त है
। इन थ क बात म समय न गं
वाओ।

मुला नस न को चार महीने से कान म भयानक दद था। वह कान केवशे


ष के पास प ं
चा। वशे
ष ने एकबारगी कान
केभीतर झां
का और आधेमनट के अं
दर ही चमट सेपकड़ कर एक पये का स का बाहर नकाल कर मुला क हथेली
पर रख कर कहाः दे
खो, यह है
सारी सम या क जड़।

नस न ने राहत क सां
स ले
तेए कहाः मे
रे
तो इसनेाण ही लेलए थे। डा टर साहब। आज पू
रे
चार महीने
हो गए ह, न
ठ क से सोया ,ं न कु
छ ठ क से
खा-पी सका ं
। दन-रात कान तड़कता था और म मछली क तरह तड़फता था। आपने बड़ी
कृपा क ! म आपका एहसान जदगी भर नह भूलू ं
गा।
डा टर बोलाः ले
कन मुझेसमझ नह आया क तु मनेपहले
आने क को शश य नह क ! चर महीन से इस नरक क पीड़ा
को बे
वजह य झे ल रहेथे
? कभी भी आ जाते
। अरे
आधा मनट का ही तो का था, बस इस स के
को बाहर नकालना था।

दरअसल बात यह है
डा टर साहब--नस न ने
जवाब दया-- क आज तक मु
झे
इस स के
क आव यकता ही नह पड़ी।

आ मानंद चारी, तु
ह ान क आव यकता है या नह ? तुह आव यकता हो, अगर आ गई हो आव यकता, तो इस
थ केजाल म मत पड़ो। थ क बात म मत पड़ो। तो अपने भीतर उतरो, खोदो। वह पड़ा है
हीरा। हीर क खदान वह
है
। फर तुम भारतीय हो, क जापानी, क चीनी, क अफगानी, कुछ फक नह पड़ता। ये क के भीतर परमा मा वराजमान
है
। और ये क केभीतर यह मता हैक वह वयं को खोज ले , वयंसेप र चत हो जाए।

मगर हम - ान सेतो ज रत ही नह है
। हम तो और ही सरी बकवास म लगे रहना है
--भारत - ानी है
या नह ! हो भी
तो तु
म या करोगे? हो भी तो तु
म ानी न हो जाओगे। तुह होना पड़े
गा। इस लए मु े
क बात करो, जड़ क बात करो।
मू
ल सम या को पकड़ो। और सम या सीधी-साफ है ः अपनी चे
तना म उतरना है। अपनेसा ी-भाव को जा त करना है।

आ मानं
द चारी, जागो! काफ सो लए। भोर हो गई है

आज इतना ही।

ओशो वचन माला "सु


मरन मे
रा ह र करे
" के वचन संया 6 से

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