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पाठ-6 सभ

ु ाषितानि (सु + भाषितानि) अच्छे वचि

श्लोक -1- आलस्य मिुष्य के शरीर में रहिे वाला महाि शत्रु होता है ।

पररश्रम के समाि कोई ममत्र िहीीं होता है , जिसे करके मिुष्य कभी दख
ु ी
िहीीं होता है।

श्लोक -2 - गण
ु वाि गण
ु के महत्व को िािता है , मख
ू ख िहीीं िािता है ।

बलवाि बल के महत्व को िािता है , निबखल िहीीं िािता है ।

कोयल वसन्त के महत्व को िािती है , कौवा िहीीं िािता है ।

हाथी शेर के बल को िािता है, चह


ू ा िहीीं िािता है ।।

श्लोक -3 – िो व्यजतत ककसी कारण वश क्रोध करता है तो वह उस


कारण के दरू हो िािे पर प्रसन्ि हो िाता है । परन्तु अगर कोई व्यजतत
बबिा कारण ही ककसी से द्वेि करता है तो कोई उसे कैसे प्रसन्ि
करे गा॥

श्लोक -4- समझाए गए अथों को पशु भी ग्रहण कर लेते हैं, समझािे पर


घोडे और हाथी बोझ भी ढोते हैं। बुद्धधमाि व्यजतत अिकही बातों को
भी समझ लेते हैं, बुद्धध इशारों में कही गई बातों के फल को भी प्रदाि
करती है ।।

श्लोक -5- क्रोध मिष्ु य का प्रथम शत्रु होता है , िो शरीर में रहकर शरीर
का ही षविाश कर दे ता है।
जिस प्रकार लकडी में जस्थत आग ही उस लकडी का षविाश कर दे ती
है ।।

श्लोक - 6 – हहरि हहरिों के साथ रहते हैं, गाय गायों के साथ और घोडे
घोडों के साथ रहते हैं।

मख
ू ख व्यजतत मख
ू ों के साथ और बद्
ु धधमाि व्यजतत बद्
ु धधमािों के साथ
रहते हैं। सच ही कहा गया है कक समाि स्वभाव और आदत वालों में
ममत्रता होती है।।

श्लोक -7- फल और छाया से यत


ु त बडे वक्ष
ृ ों की सेवा करिी चाहहए,

तयोंकक यहद भाग्यवशात ् फल ि भी ममले तो छाया कौि दरू कर सकता


है ।।

श्लोक -8 -

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