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अपने सिरपर भगवान् - का हाथ है
अपने सिरपर भगवान् - का हाथ है
॥ श्रीहरिः ॥
मालाका नियम ले लें, कलियुगमें हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ; हरे कृ ष्ण हरे कृ ष्ण,
कृ ष्ण कृ ष्ण हरे हरे - यह मंत्र बहुत उत्तम है।
माला फे रनेका पहले थोड़ा नियम लें, फिर थोड़ा-थोड़ा बढ़ावें । भगवान्की मूर्ति या जो अपने
इष्ट हैं उन्हें सामने रखें और मुखारविन्द पर दृष्टि गड़ावें, विनयभावसे प्रार्थना करें - प्रभो ! कु छ
नहीं चाहिये। स्त्री, पुत्र, धन आदि कु छ नहीं, के वल आपका प्रेम चाहिये। भगवान्की मानसिक
पूजा करें । ईश्वरकी बड़ी कृ पा हुई जो मनुष्य शरीर मिल गया, उत्तम जाति, उत्तम दे श, उत्तम
धर्म सब संयोग ठीक मिल गया है यदि इसका फायदा नहीं उठाया तो गोस्वामी
श्रीतुलसीदासजी कहते हैं-
अर्थात् - वह परलोकमें दुः ख पाता है, सिर पीट-पीटकर पछताता है तथा [अपना दोष न
समझकर] कालपर, कर्मपर और ईश्वरपर मिथ्या दोष लगाता है।
जिस उपायसे हो भगवान्से प्रेम करें । गीताप्रेसकी पुस्तकें जो हैं उनका पढ़नेका खूब अभ्यास
करें । सत्संग करें ।
संसारके पदार्थोंसे आसक्ति हटावें। चित्तमें वैराग्य रखें। एकान्तमें रहकर भगवान्की शरण
होकर दीनभावसे प्रार्थना करें -
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12/6/23, 9:51 AM अपने सिरपर भगवान्का हाथ है
( गीता 2/7)
अर्थात्- कायरतारूप दोष करके उपहत हुए स्वभाववाला और धर्मके विषयमें मोहितचित्त
हुआ मैं, आपको पूछता हूँ, जो कु छ निश्चय किया हुआ कल्याणकारक साधन हो, वह मेरे लिये
कहिये, क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मेरे को शिक्षा दीजिये।
एकान्तमें बैठकर यह श्लोक पढ़ो। श्लोकका अर्थ चित्तमें खूब बैठानेसे सारे काम सिद्ध हो
जाते हैं।
परमात्मा सब जगह आकाशकी ज्यों व्यापक हैं। अपने शरीरमें भी बाहर-भीतर परिपूर्ण हो
रहा है, उसीका ध्यान करें । वह आनन्द रूप है, चलते, उठते बैठते अपने ऊपर भगवान्का
हाथ समझें। भगवान्की शरण होकर उनसे प्रार्थना करें , विश्वास रखें कि अपने सिरपर
भगवान्का हाथ है फिर क्या चिन्ता । यह बड़ी अच्छी बात है कि भगवान्का अपने सिरपर हाथ
है भगवान् तो सब जगह हैं ही। प्रेमसे प्रकट होवे तो प्रेम तो अपनेमें है ही नहीं, भगवान्से
रोकर प्रार्थना करें कि अपनी भक्ति, प्रेम मुझे दो ।
आकाशकी ज्यों वे परमात्मा सब जगह आनन्दरूपसे विराजमान हो रहे हैं। चलते, बैठते,
उठते, सोते भगवान्को याद रखें। कोई वेग सतावे तो भगवान्को बुलावें। जैसे चोरके लिये
सिपाहीको बुलाते हैं तो वह चोर ठहर नहीं सकता। वैसे ही भगवान्को पुकार लगानेसे वह
वेग ठहर नहीं सकता।
भगवान्का खूब ध्यान लगावें, मन इन्द्रियोंको वशमें करके ध्यानमें लगावें, सबसे बड़ी चीज
ध्यान है। संसारसे वैराग्य रखें। यह जो कु छ दीख रहा है क्षण-क्षणमें नाश हो रहा है।
नाशवान है। ध्यानके समयमें नींद नहीं आने दें , भोजन कम करें तो आलस्य नहीं आवे। इस
काममें संसारकी फु रना और आलस्य यह दो ही बड़े भारी विघ्न हैं, इनसे बचनेकी चेष्टा
करें ।
भगवान्का अपने सिरपर हाथ है। उसपर निर्भर रहें तो चिन्ता, भय, शोक पास नहीं आते।
राग-द्वे ष, भय, शोक, ईर्ष्या आदिको दिलसे निकाल दें , इनको आने नहीं दे वें।
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12/6/23, 9:51 AM अपने सिरपर भगवान्का हाथ है
भगवान्में प्रेम होनेसे सब कु छ हो सकता है। बार-बार उनके सामने, साथ-साथ अपनेको दे खें,
चलें तो साथमें चलें, बैठें तो साथमें बैठें , भगवान्को एक मिनट भी नहीं भूलें, हरवक्त साथ ही
दे खें। एक परमात्मा ही बैठते, उठते, चलते, फिरते साथ-साथ रहते हैं। और ज्यादा प्रेम
होनेसे प्रकट हो जाते हैं।
भगवान्को स्वरूपसे साथ समझें, वाणीसे जप करें और भगवान्के रूपको दे ख-दे खकर मस्त
होते रहें। खूब प्रेमसे मुग्ध होते रहें। सब प्रकारसे खूब जोरका साधन चलावें। ध्यानके समान
कोई चीज नहीं, खूब ध्यानमें मस्त रहें। काम-क्रोध आदिका वेग होवे तो भगवान्को
पुकारें - हे नाथ ! हे नाथ !! जैसे चोर आनेपर पुलिसको पुकारते हैं। बार-बार विलाप करें - हे
गोविन्द ! हे दीनबन्धु !! हे हरि !!! आपके दे खते हुए यह सब मेरी दु र्द शा हो रही है। इस तरह
पुकार लगावें ।
साकार निराकार दोनोंका ध्यान कर सकते हैं। भगवान्के स्वरूपको दे ख-दे खकर मुग्ध होते
रहें। हरवक्त स्वाध्यायकी आदत डालें, सबसे प्रेमका व्यवहार करें । क्रोध नहीं आने दें , क्रोध
आये तो आपकी भूल है। कोई आपका अपराध भी कर दे वे तो भी क्रोध नहीं करें । सबसे
स्वार्थका त्याग करके व्यवहार करें , किसी मतलबसे नहीं। सारे भूतों (प्राणियों) पर दया करें
और उदारताका व्यवहार करें । खाना, पहनना सब सादा रखें। कपड़ा मोटा पहनें, नील लगा
नहीं पहनें। संसारके सब जीवोंपर दया रखें तथा लिपायमान (लिप्त) भी न हों। कोई अपराध
कर दे वे तो माफ कर दे वें। बदला लेना है, यह नहीं चाहें। पवित्रतासे रहें। मान-बड़ाई, प्रतिष्ठा
नहीं चाहें। मान- -बड़ाई दू सरा दे वे तो स्वीकार नहीं करें । भारी आपत्ति आवे तो धीरज रखें,
घबड़ावें नहीं। भगवान्को हरवक्त याद रखें। आलस्य, भोग, प्रमाद और अधिक निद्राका
परित्याग कर दें , विषके समान इनसे बचें। ये बड़े खतरे की चीज हैं। पराये धनको धूलके
समान समझें। बाहर-भीतरसे शुद्ध रहें। चपलता, व्यर्थ चेष्टा नहीं करें । भगवान्का अपने
सिरपर हाथ समझे तो निर्भय हो जाता है।
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