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जाति

यह सोचने का विषय जरूर है वक कै से भारत के हर राज्य में लोगों की जाती के अनसु ार उन्हें बाांटा गया है और
यह सांख्या हजारों में है, जो वक विवभन्न राज्यों में हमें विखती है। अगर हम इसकी सचू ी पर ध्यान िें तो, हमें
अनेकों ऐसे भारत में रह रहे जनजावतयााँ विखेंगे, जो सरनेम के आधार पर लोगो के सामने हैं, अब इसमें िो पक्ष

जाति मि पूछो!
के लोग हैं, जो इसे सही मानते हैं और गलत मानते हैं, एक पक्ष सोचता हैं की इन सवू चयों द्वारा भेिभाि और
गलत सांिेश विखाने की कोवशश हो रही है।
वकांतु एक पक्ष ऐसा है वक इसे एक व्यिस्था के रूप में िेखता है, अब यह एक व्यिस्था हो या विर

मि
भेिभाि इस पर विचार करने की जरूरत हम सभी को है, भारत के अन्य प्ाांतों में जावतयों को िगीकृ त
(Category) तरीके से विभावजत वकया गया है। हर राज्य अपनी जावतयों को विवभन्न िगों में रखता है, जैसे
"अनसु वू चत जावतयााँ" (Scheduled Castes), "अनसु वू चत जनजावतयााँ" (Scheduled Tribes), और
"अन्य वपछडा िगग" (Other Backward Classes)। यह िगीकरण प्ाशावसक और सामावजक उद्देश्यों के
वलए वकया जाता है तावक समाज के विवभन्न िगों को समाज में और आवथगक रूप से उन्नवत प्ाप्त करने में
मिि वमल सके ।
इन सभी विवभन्न दृविकोण से यह बात सावबत होती है वक लोगों के विचार सामान नहीं है, कुछ लोग
जावतिाि के वखलाि हैं तो कुछ इसका समथगन करते हैं, समथगन करने िाले लोगों की तािाि ज्यािा है, वकांतु

पूछो!
समथगन न करने िालों की तािाि भी धीरे -धीरे बढ़ रही है, जो वक अच्छे सांकेत की ओर इशारा कर रहे हैं, और
यह होना भी चावहए, क्योंवक आने िाले समय में जावतिाि के कई प्कार, हमें विख सकते हैं, वजस प्कार से
ितगमान समय में हमें कुछ इसके नक ु सान विख रहे हैं।

अंशम
यह पुस्तक जावतिाि को रोकने का प्यास है, तावक मानि भाइचारे की भािना को बढ़ािा वमले। इस
पस्ु तक के माध्यम से विवभन्न जावतयों की सवू चयााँ प्स्ततु की गई हैं, जो लोगों के बीच वकसी भी प्कार के

ु न भगि
मतभेि को बढ़ने नहीं िेंगी, और इसका मख्ु य उद्देश्य है वक सभी व्यवियों के बीच सामांजस्य और समरसता
बढ़ सके । यह पस्ु तक धावमगकता और आत्मसम्मान को वकसी भी तरह की ठे स पहचां ाने का प्यास नहीं करे गी।
इस पस्ु तक के माध्यम से हमें यह सीखने को वमलेगा वक हमारे िेश में विविधता और सभी समिु ायों के साथ
सहयोग और समरसता को कै से बढ़ािा िेना चावहए। यह पुस्तक समृवि, समाज में अच्छाई, और सभी के
साथ न्याय के मल ू वसिातां ों को बढ़ािा िेगी, और इस विचार के माध्यम से हम एक समृि और सामररक
समाज की विशा में किम बढ़ा सकते हैं।
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अंशुमन भगि

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