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Aagyachakragatibhutkaal
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प्रत्येक व्यक्ति का यह जीवन पूर्व जीवन से जुड़ा हुआ है। अपने पूर्व जन्म के विषय में जानने की इच्छा प्रायः सभी को रहती है कि पूर्व जन्म
में आप क्या थे, कौन थे, कं हा थे और आपने क्या-क्या कर्म किये ? इस सम्बन्ध में शोध कर्ताओं ने बहुत से अनुसंधान किये हैं, जिनका
परिणाम बहुत ही रूचिकर और आश्चर्यचकित कर देने वाले निकले हैं। ऐसे बहुत से उदाहरण हम पत्रिकाओं, अखबारों आदि में पढ़ते रहते हैं,
जिनमें पूर्व जन्म की घटनाओं का उल्लेख मिलता है। ईसाई और मुस्लिम मतानुसार पुनर्जन्म को मान्यता नहीं दी जाती है लेकिन भारत से
लेकर विश्व के अनेकों स्थानों पर ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं, जिनके कारण पूर्व जन्म का सिद्धान्त कसौटी पर खरा उतरता है। अपने पूर्व
जीवन को देखने के लिए, उसे पूर्णतया समझने के लिए यह साधना अत्यावश्यक है। इस साधना को करने से साधक की एकाग्र शक्ति एवं
आत्म नियंत्रण शक्ति का विकास होता है उसके पूर्व जीवन के समस्त रहस्य खुल जाते हैं, वह जान जाता है कि उसकी पत्नी उसके साथ क्यों
है अथवा उसकी संतान उसके साथ क्यों है ? पूर्व जीवनों में उनके साथ उसके कै से थे, इत्यादि इत्यादि। इस उच्च कोटि की साधना को
संजीवनी साधना कहा जाता है, जिसे कभी भी सम्पन्न किया जा सकता है।
विधान:- इस मंत्र का पांच लाख जप ३१ दिन में करने का विधान है। अनुष्ठान काल में साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भूमि पर
शयन करना चाहिए. और के वल एक समय भोजन करना चाहिए। पाच लाख की संख्या में मंत्र जप समाप्त होने पर २१०० गुलाब के फू लों से
हवन करके ग्यारह कन्याओं को भोजन और वस्त्रादि से प्रसन्न करना चाहिए। मंत्र जप रूद्राक्ष माला से करना उचित रहता है।
यहा यह भी उल्लेखनीय है कि मंत्र जप के लिए तत्पर होने से पूर्व साधक को शांत भाव में बैठकर मस्तिष्क को एकाग्र करना चाहिए, ताकि
उसका अवचेतन मस्तिष्क कार्यशील हो सके , क्योंकि अवचेतन मस्तिष्क में ही पूर्व जीवन की घटनाओं का अंकन होता है।
इस साधना को करने के उपरान्त जब भी अपने पूर्व जीवन में झांकना हो तो उपयुक्त मंत्र का एक माला जप करें और ध्यान लगायें तो पूर्व
जीवन चलचित्र के समान आंतरिक चेतना में दिखायी देने लगता है।