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शरू हूँ मैं

सप्त वर्षों से सप्त ऋषि मंडल के मार्ग दर्शन में अनवरत,


माँ भारती के सागर तट की रखवाली करता
क्षेत्र उत्तर पश्चिम का ग़रूु र हूँ मैं ,
शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं

अटल, अविचलित, अविरल सा


राष्ट्र दे वता की आराधना में मग्न सा
श्वेत ऐरावत सा विशाल
विवस्वान के तेज सा दे दीप्यमान मेरा कपाल
अपने नाविक मित्रों का परम सखा
किंतु दश्ु मनों के लिए काल ज़रूर हूँ मैं
शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं

कभी समद्र ु के रौद्र में जीवन रक्षक सा अडिग


तो कभी शांत सागर में तैनात मस् ु तैद पथिक
मेरे मस्तक पर नभ को कपकपाता तट रक्षक निशान
हर नियत कार्य को सम्पर्ण ू करता मैं कर्मठ धैर्यवान
बारह महीने call sign ‘१२’ की सत्यता प्रमाणित करता
अद्भत ु , अतल ु नीय, अचक ू हूँ मैं
शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं
इस जीवन रूपी रणक्षेत्र में
कभी शकुनि दर्यो ु धन के चक्रव्यह ू
तो कभी कृष्ण अर्जुन के कुरुक्षेत्र में
निष्कलंक, निर्विकार, निर्लिप्त सा में
तटस्थ हो आत्मपरिष्कार, आत्मसध ु ार में व्यस्त सा में
निर्भीक, नेत्तत्ृ ववान और ऊर्जा से भरपरू
सौराष्ट्र के सिंहों की हुंकार हूँ मैं
शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं

सप्त वर्षों से सप्त ऋषि मंडल के मार्ग दर्शन मैं


माँ भारती के सागर तट की रखवाली करता
क्षेत्र उत्तर पश्चिम का ग़रूु र हूँ मैं
शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं शरू हूँ मैं

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