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अध्य् 4 : दिव् जयञ

श्लो 4 . 10

वीतरागभयक्रा मनमया मामप


ु ाश्तात |
बहव् जाञतपता पूता मदभावमागतात || १० ||

वीत – मुकत; राग – आतककत; भय – भय; क्रात – तथा क्र ते; मत ्-मया – पूरत
् या
मुझमे ; माम ् – मुझमे ; उपाश्तात – पूरत
् या क्थत; बहवत – अञेक; जाञ – जाञ की; तपता –
तप्या ते; पूतात – पववत हुआ; मत ्-भावम ् – मेरे प्त दिवय पेम क्; आगतात – पारत |

भयवयर्

आतककत, भय तथा क्र ते मुकत ह्कर, मुझमे पूरत


् या तनमय ह्कर और मेरी शरर मे
आकर बहुत ते वयककत भूत काल मे मेरे जाञ ते पववत ह् चुके है | इत पकार ते उञ तबो ञे
मेरे प्त दिवयपेम क् पारत ककया है |

तयत्््

जैता कक पहले कहा जा चुका है ववषयो मे आतकत वयककत के ललए परमततय के ्ववप क्
तमझ पाञा अतयनत कदिञ है | तामानयतया ज् ल्ग िे हातमबुदशर मे आतकत ह्ते है, वे
भौ्तकतावाि मे इतञे लीञ रहते है कक उञके ललए यह तमझ पाञा अतमभव ता है कक
परमातमा वयककत भी ह् तकता है | ऐते भौ्तकतावािी वयककत इतकी कलपञा तक ञहीं कर
पाते कक ऐता भी दिवय शरीर है ज् ्ञतय तथा तक्चिा ञनिमय है | भौ्तकतावािी राररा
के अञुतार शरीर ञाशवाञ ्, अजाञमय तथा अतयनत िख
ु मय ह्ता है | अतत जब ल्गो क्
भगवाञ ् के ताकार वप के ववषय मे बताया जाता है त् उञके मञ मे शरीर की यही राररा
बञी रहती है | ऐते भौ्तकतावािी पुरषो के ललए ववराट भौ्तक जगत ् का ्ववप ही परमततव
है | फल्ववप वे परमेशवर क् ्ञराकार माञते है और भौ्तकता मे इतञे तललीञ रहते है कक
भौ्तक पिाथ् ते मुककत के बाि भी अपञा ्ववप बञाये रखञे के ववचार ते डरते है | जब
उनहे यह बताया जाता है कक आधयाकतमक जीवञ भी वयककतगत तथा ताकार ह्ता है त् वे
पञ
ु त वयककत बञञे ते भयभीत ह् उिते है, फलतत वे ्ञराकार शन
ू य मे तिाकार ह्ञा पतंि
करते है | तामानयतया वे जीवो की तल
ु ञा तमुद के बुलबुलो ते करते है, ज् टूटञे पर तमुद
मे ही लीञ ह् जाते है | पथ
ृ क् वयककततव ते रदहत आधयाकतमक जीवञ की यत चरम लतदशर है
| यत जीवञ की भयावह अव्था है , ज् आधयाकतमक जीवञ के पूरज
् ाञ ते रदहत है | इतके
अ्तररकत ऐते बहुत ते मञुषय है ज् आधयाकतमक जीवञ क् त्ञक भी ञहीं तमझ पाते |
अञेक वािो तथा िाश््ञक शचनतञ की ववववर ववतंग्तयो ते परे शाञ ह्कर वे उब उिते है
या कुदर ह् जाते है और मख
ू त
् ावश यत ्ञषकष् ्ञकालते है कक परम कारर जैता कुछ ञहीं
है , अतत पतयेक व्तु अनतत्गतवा शन
ू य है | ऐते ल्ग जीवञ की रुराव्था मे ह्ते है | कुछ
ल्ग भौ्तकता मे इतञे आतकत रहते है कक वे आधयाकतमक जीवञ की ओर क्ई धयाञ ञहीं
िे ते और कुछ ल्ग त् ्ञराशावश तभी पकार के आधयाकतमक शचनतञो ते कुदर ह्कर
पतयेक व्तु पर अववशवात करञे लगते है | इत अकनतम क्दट के ल्ग ककती ञ ककती मािक
व्तु का तहारा लेते है और उञके म्त-ववभम क् कभी-कभी आधयाकतमक दकषट माञ ललया
जाता है | मञुषय क् भौ्तक जगत ् के प्त आतककत की तीञो अव्थाओं ते छुटकारा पाञा
ह्ता है – ये है आधयाकतमक जीवञ की अपेका, आधयाकतमक ताकार वप का भय तथा जीवञ
की हताशा ते उतपनञ शन
ू यवाि की कलपञा | जीवञ की इञ तीञो अव्थाओं ते छुटकारा पाञे
के ललए पामामरक गर
ु के ्ञि् शञ मे भगवाञ ् की शरर गहर करञा और भककतमय जीवञ
के ्ञयम तथा ववशर-ववराञो का पालञ करञा आवशयक है | भककतमय जीवञ की अकनतम
अव्था भाव या दिवय इशवरीय पेम कहलाती है |
भककतरतामत
ृ लतनरु (१.४.१५-१६) के अञुतार भककत का ववजाञ इत पकार है –

आिौ ्दरा ततत तारुतंग्Sथ भजञककया


तत्Sञथ््ञववृ तत ्यातत् ्ञषिा वशच्ततत |
अथातककत्तत् भाव्ततत पेमामयि्च्त
तारकाञामयं पेमरत पािभ
ु ा्वे भवेतकमत ||

“पारमभ मे आतम-ताकातकार की तमानय इ्छा ह्ञी चादहए | इतते मञुषय ऐते वयककतयो की
तंग्त करञे का पयात करता है ज् आधयाकतमक दकषट ते उिे हुए है | अगली अव्था मे गर

ते िीककत ह्कर ञविीककत भकत उतके आिे शाञुतार भककतय्ग पारमभ करता है | इत पकार
तदगरु के ्ञि् श मे भककत करते हुए वह तम्त भौ्तक आतककत ते मकु त ह् जाता है ,
उतके आतम-ताकातकार मे क्थरता आती है और वह ्ीभगवाञ ् कृषर के ववषय मे ्वर
करञे के ललए वशच ववकलतत करता है | इत वशच ते आगे चलकर कृषरभावञामत
ृ मे
आतककत उतपनञ ह्ती है ज् भाव मे अथवा भगवतपेम के पथम त्पाञ मे पररपकव ह्ती है
| ईशवर के प्त पेम ही जीवञ की ताथ्कता है |” पेम-अव्था मे भकत भगवाञ ् की दिवय
पेमाभककत मे ्ञरनतर लीञ रहता है | अतत भककत और तम्त की मनि क्थ्त ते पामामरक
गर
ु के ्ञि् श मे तव््च अव्था पारत की जा तकती है और तम्त भौ्तक आतककत,
वयककतगत आधयाकतमक ्ववप के भय तथा शन ू यवाि ते उतपनञ हताशा ते मुकत हुआ जा
तकता है | तभी मञषु य क् अनत मे भगवाञ ् के राम की पाकरत ओ तकती है |
श्लो 4 . 11
ये यथा मां पपदयनते तां्तथैव भजामयहम ् |
मम वतमा्ञुवत्नते मञुषयात पाथ् तव्शत || ११ ||

ये – ज्; यथा – कजत तरह; माम ् – मेरी; पपदयनते – शरर मे जाते है; ताञ ् – उञक्; तथा – उती
तरह; एव – ्ञशचय ही; भजालम – फल िे ता हूँ; अहम ् – मै; मम – मेरे; वतम् – पथ
का; अञुवत्नते – अञुगमञ करते है; मञुषयात – तारे मञुषय; पाथ् – हे पथृ ापुत; तव्शत – तभी
पकार ते |

भयवयर्

कजत भाव ते तारे ल्ग मेरी शरर गहर करते है, उती के अञुवप मै उनहे फल िे ता हूँ | हे
पाथ्! पतयेक वयककत तभी पकार ते मेरे पथ का अञुगमञ करता है |

तयत्््

पतयेक वयककत कृषर क् उञके ववलभनञ ्ववपो मे ख्ज रहा है | भगवाञ ् ्ीकृषर क् अंशतत
उञके ्ञवव्शष
े ब्महय््त तेज मे तथा पतयेक व्तु के कर-कर मे रहञे वाले तव्वयापी
परमातमा के वप मे अञुभव ककया जाता है , लेककञ कृषर का पूर् ताकातकार त् उञके शद
ु र
भकत ही कर पाते है | फलतत कृषर पतयेक वयककत की अञुभू्त के ववषय है और इत तरह
क्ई भी और तभी अपञी-अपञी इ्छा के अञुतार तषु ट ह्ते है | दिवय जगत ् मे भी कृषर
अपञे शद
ु र भकतो के ताथ दिवय भाव ते वव्ञमय करते है कजत तरह कक भकत उनहे चाहता
है | क्ई एक भकत कृषर क् परम ्वामी के वप मे चाह तकता है , ित
ू रा अपञे तखा के वप
मे , तीतरा अपञे पुत के वप मे और चौथा अपञे पेमी के वप मे | कृषर तभी भकतो क्
तमाञ वप ते उञके पेम की पगागता के अञत
ु ार फल िे ते है | भौ्तक जगत ् मे भी ऐती ही
वव्ञमय की अञुभू्तयाँ ह्ती है और वे ववलभनञ पकार के भकतो के अञुतार भगवाञ ् दवारा
तमभाव ते वव्ञमय की जाती है | शद
ु र भकत यहाँ पर और दिवयराम मे भी कृषर का
ताकनञधय पारत करते है और भगवाञ ् की ताकार तेवा कर तकते है | इत तरह वे उञकी
पेमाभककत का दिवय आञनि पारत कर तकते है | ककनतु ज् ्ञवव्शष
े वािी तक्चिाञनि
भगवाञ ् क् ्वीकार ञहीं करते, फलतत वे अपञे वयककततव क् लमटाकर भगवाञ ् की दिवय
तगञ
ु भककत के आञनि क् पारत ञहीं कर तकते | उञमे ते कुछ ज् ्ञवव्शष
े तता मे
दगतापूवक
् क्थत ञहीं ह् पाते, वे अपञी काय् करञे की तुरत इ्छाओं क् पिलश्त करञे के
ललए इत भौ्तक केत मे वापत आते है | उनहे वैकुणिल्क मे पवेश करञे ञहीं दिया जाता,
ककनतु उनहे भौ्तक ल्क के काय् करञे का अवतर पिाञ ककया जाता है | ज् तकामकम् है,
भगवाञ ् उनहे यजेशवर के वप मे उञके कम् का वां्छत फल िे ते है | ज् य्गी है और
य्गशककत की ख्ज मे रहते है, उनहे य्गशककत पिाञ करते है | ित
ु रे शबिो मे , पतयेक
वयककत की ववशरयाँ एक ही पथ मे तफलता की ववलभनञ क्दटयाँ है | अतत जब तक क्ई
कृषरभावञामतृ की तव््च लतदशर तक ञहीं पहुँच जाता तब तक तारे पयात अपूर् रहते है,
जैता कक ्ीमदभागवत मे (२.३.१०) कहा गया है –

अकामत तव्काम् व म्ककाम उिाररीत |


तीवेर भककतय्गेञ यजेत पुरषं परम ् ||

“मञुषय चाहे ्ञषकाम ह् या फल का इ्छुक या मुककत का इ्छुक ही कयो ञ ह्, उते पूरे
तामरय् ते भगवाञ ् की तेवा करञी चादहए कजतते उते पर
ू ् लतदशर पारत ह् तके, कजतका
पय्वताञ कृषरभावञामत
ृ मे ह्ता है |”

श्लो 4 . 13
चातव
ु णयण मया तषृ टं गर
ु कम्ववभागशत |
त्य कता्रमवप मां ववदधयकता्रमवययम ् || १३ ||

चाततु -वणय्म ् – माञव तमाज के चार ववभाग; मया – मेरे दवारा; तषृ टम ् – उतपनञ ककये
हुए; गर
ु – गर
ु ; कम् - तथा कम् का; ववभागशत – ववभाजञ के अञुतार; त्य – उतका; कता्रम ् –
जञक; अवप – यदयवप; माम ् – मुझक्; ववदशर – जाञ्; अकता्रम ् – ञ करञे के वप
मे ; अवययम ् - अपररवत्ञीय क् |

भयवयर्

पकृ्त के तीञो गर
ु ो और उञते तमबदर कम् के अञुतार मेरे दवारा माञव तमाज के चार
ववभाग रचे गये | यदयवप मै इत वयव्था का ्तषटा हूँ, ककनतु तम
ु यह जाञा ल् कक मै
इतञे पर भी अवयय अकता् हूँ |
तयत्््
भगवाञ ् पतयेक व्तु के ्तषटा है | पतयेक व्तु उञते उतपनञ है , उञके ही दवारा पाललत है
और पलय के बाि व्तु उनहीं मे तमा जाती है | अतत वे ही वरा््म वयव्था के ्तषटा है
कजतमे तव्पथम बुदशरमाञ ् मञुषयो का वग् आता है ज् तत्गर
ु ी ह्ञे के कारर बा्मर
कहलाते है | दववतीय वग् पशातक वग् का है कजनहे रज्गर
ु ी ह्ञे के कारर क्तय कहा
जाता है | वमरक वग् या वैशय कहलाञे वाले ल्ग रज् तथा तम्गर
ु के लम्र ते यक
ु त ह्ते
है और शद
ु या ्लमयवग् के ल्ग तम्गर
ु ी ह्ते है | माञव तमाज के इञ चार ववभागो की
तकृ षट करञे पर भी भगवाञ ् कृषर इञमे ते ककती ववभाग (वर्) मे ञहीं आते, कयोकक वे उञ
बदरजीवो मे ते ञहीं है कजञका एक अंश माञव तमाज के वप मे है | माञव तमाज भी
ककती अनय पशत
ु माज के तल
ु य है , ककनतु मञुषयो क् पश-ु ्टार ते ऊपर उिाञे के ललए ही
उपयक
ु् त वरा््म की रचञा की गई, कजतते कलमक वप ते कृषरभावञामत
ृ ववकलतत ह् तके
| ककती ववशेष वयककत की ककती काय् के प्त पववृ त का ्ञरा्रर उतके दवारा अकज्त पकृ्त
के गर
ु ो दवारा ककया जाता है | गर
ु ो के अञुतार जीवञ के लकरो का वर्ञ इत गंथ के
अिारहवे अधयाय मे हुआ है | ककनतु कृषरभावञाभाववत वयककत बा्मर ते भी बगकर ह्ता है
| यदयवप गर
ु के अञुतार बा्मर क् ब्म या परमततय के ववषय मे जाञ ह्ञा चादहए,
ककनतु उञमे ते अशरकांश भगवाञ ् कृषर के ्ञवव्शष
े ब्म्ववप क् ही पारत कर पाते है,
ककनतु ज् मञुषय बा्मर के तीलमत जाञ क् लाँघकर भगवाञ ् ्ीकृषर के जाञ तक पहुँच
जाता है , वही कृषरभावञाभाववत ह्ता है अथा्त ् वैषरव ह्ता है | कृषरभावञामत
ृ मे कृषर के
ववलभनञ अंशो यथा राम, ञलृ तंह, वराह आदि का जाञ तकममललत रहता है | और कजत तरह
कृषर माञव तमाज की इत चातव
ु ण
् य् पराली ते परे है, उती तरह कृषरभावञाभाववत वयककत
भी इत चातव
ु ण
् य् पराली ते परे ह्ता है , चाहे हम इते जाती का ववभाग कहे , चाहे राष् अथवा
तमपिाय का |

श्लो 4 . 34

तदववदशर पमरपातेञ पररपशञेञ तेवया |


उपिे कयकनत ते जाञं जा्ञञ्ततविलश्ञत || ३४ ||

तत ् – ववलभनञ यजो के उत जाञ क्; ववदशर – जाञञे का पयात कर्; पमरपातेञ – गर


ु के
पात जाकर के; पररपशञेञ – ववञीत कजजाता ते; तेवया – तेवा के दवारा; उपिे कयकनत – िीककत
करे ग;े ते – तम
ु क्; जाञम ् – जाञ मे ; जा्ञञत – ्वरपलतदर; ततव – ततव के; िलश्ञत – िश् |

भयवयर्
तम
ु गर
ु के पात जाकर ततय क् जाञञे का पयात कर् | उञते ववञीत ह्कर कजजाता कर्
और उञकी तेवा कर् | ्वरपलतदर वयककत तम
ु हे जाञ पिाञ कर तकते है, कयोकक उनहोञे
ततय का िश्ञ ककया है |

तयत्््

्ञ्तनिे ह आतम-ताकातकार का माग् कदिञ है अतत भगवाञ ् का उपिे श है कक उनहीं ते


पारमभ ह्ञे वाली परमपरा ते पामामरक गर
ु की शरर गहर की जाए | इत परमपरा के
लतदरानत का पालञ ककये ्बञा क्ई पामामरक गर
ु ञहीं बञ तकता | भगवाञ ् आदि गर
ु है,
अतत गर
ु -परमपरा का ही वयककत अपञे लशषय क् भगवाञ ् का तनिे श पिाञ कर तकता है |
क्ई अपञी ्ञजी ववशर का ्ञमा्र करके ्वरपलतदर ञहीं बञ तकता जैता कक आजकल के
मख
ु ् पाखंडी करञे लगे है | भागवत का (६.३.१९) कथञ है – रमणतत
ु ाकातभगतपरीतम – रम्पथ
का ्ञमा्र ्वयं भगवाञ ् ञे ककया है | अतएव मञ्रम् या शषु क तक् ते तही पि पारत ञहीं
ह् तकता | ञ ही जाञगंथो के ्वतनत अधययञ ते ही क्ई आधयाकतमक जीवञ मे उनञ्त
कर तकता है | जाञ-पाकरत के ललए उते पामामरक गर
ु की शरर मे जाञा ह्गा | ऐते गर
ु क्
पूर् तमप्र करके ही ्वीकार करञा चादहए और अहं काररदहत ह्कर िात की भाँ्त गर
ु की
तेवा करञी चादहए | ्वरपलतदर गर
ु की पतनञता ही आधयाकतमक जीवञ की पग्त का
रह्य है | कजजाता और ववञीत भाव के मेल ते आधयाकतमक जाञ पारत ह्ता है | ्बञा
ववञीत भाव तथा तेवा के ववदवाञ गर
ु ते की गई कजजाताएँ पभावपूर् ञहीं होगी | लशषय क्
गर
ु -परीका मे उतीर् ह्ञा चादहए और अब गर
ु लशषय मे वा्तववक इ्छा िे खता है त् ्वतत
ही लशषय क् आधयाकतमक जाञ का आशीवा्ि िे ता है | इत शल्क मे अनराञुगमञ तथा
्ञरथ्क कजजाता-इञ ि्ञो की भतत्ञा की गई है | लशषय ञ केवल गर
ु ते ववञीत ह्कर तुञे,
अवपतु ववञीत भाव तथा तेवा और कजजाता दवारा गर
ु ते ्पषट जाञ पारत करे | पामामरक
गर
ु ्वभाव ते लशषय के प्त ियालु ह्ता है , अतत यदि लशषय ववञीत ह् और तेवा मे ततपर
रहे त् जाञ और कजजाता का वव्ञमय पूर् ह् जाता है |

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