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54 Alankar
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BOARDING SCHOOL
CLASS - 9
अलंकार
अलंकार की पररभाषा
काव्यों की सुंदरता बढ़ाने वाले यंत्रों को ही अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपनी सुंदरता बढ़ाने के जलए
जवजभन्न आभूषणों का प्रयोग करते हैं उसी तरह काव्यों की सुंदरता बढ़ाने के जलए अलंकारों का उपयोग ककया
िाता है।
अतः काव्यों को शब्दों व दूसरे तत्वों की मदद से सुसजित करने वाला ही अलंकार कहलाता है ।
मनुष्य सौंदया प्रेमी है, वह अपनी प्रत्येक वस्तु को सुसजित और अलंकृत देखना चाहता है। वह अपने कर्न को
भी शब्दों के सुंदर प्रयोग और जवश्व उसकी जवजशष्ट अर्ावत्ता से प्रभावी व सुंदर बनाना चाहता है। मनुष्य की
यही प्रकृ जत काव्य में अलंकार कहलाती है।
मनुष्य सौंदया जप्रय प्राणी है। बच्चे सुंदर जखलौनों की ओर आकृ ष्ट होते हैं। युवक – युवजतयों के सौंदया पर
मुग्ध होते हैं। प्रकृ जत के सुंदर दृश्य सभी को अपनी ओर आकृ ष्ट करते हैं। मनुष्य अपनी प्रत्येक वस्तु को सुंदर रुप
में देखना चाहता है , उसकी इच्छा होती है कक उसका सुंदर रूप हो उसके वस्त्र सुंदर हो आकद आकद।
सौंदया ही नहीं , मनुष्य सौंदया वृजि भी चाहता है और उसके जलए प्रयत्नशील रहता है , इस स्वाभाजवक प्रवृजत्त
के कारण मनुष्य िहां अपने रुप – वेश , घर आकद के सौंदया को बढ़ाने का प्रयास करता है , वहां वह अपनी
भाषा और भावों के सौंदया में वृजि करना चाहता है। उस सौंदया की वृजि के जलए िो साधन अपनाए गए , उन्हें
ही अलंकार कहते हैं। उनके रचना में सौंदया को बढ़ाया िा सकता है , पैदा नहीं ककया िा सकता।
” काव्यशोभा करान धमाानअलंकारान प्रचक्षते ।”
अर्ाात वह कारक िो काव्य की शोभा बढ़ाते हैं अलंकार कहलाते हैं। अलंकारों के भेद और उपभेद की संख्या
काव्य शाजस्त्रयों के अनुसार सैकडों है।
लेककन पाठ्यक्रम में छात्र स्तर के अनुरूप यह कु छ मुख्य अलंकारों का पररचय व प्रयोग ही अपेजक्षत है।
अलंकार का महत्व
1. अलंकार शोभा बढ़ाने के साधन है। काव्य रचना में रस पहले होना चाजहए उस रसमई रचना की शोभा
बढ़ाई िा सकती है अलंकारों के द्वारा।
जिस रचना में रस नहीं होगा , उसमें अलंकारों का प्रयोग उसी प्रकार व्यर्ा है. िैसे – जनष्प्राण शरीर पर
आभूषण। ।
2. काव्य में अलंकारों का प्रयोग प्रयासपूवाक नहीं होना चाजहए। ऐसा होने पर वह काया पर भारस्वरुप प्रतीत
होने लगते हैं , और उनसे काव्य की शोभा बढ़ने की अपेक्षा घटती है।
काव्य का जनमााण शब्द और अर्ा द्वारा होता है। अतः दोनों शब्द और अर्ा के सौंदया की वृजि होनी चाजहए
अलंकार के भेद
अलंकार के मुख्यतः दो भेद होते हैं :
1. शब्दालंकार
2. अर्ाालंकार
1. शब्दालंकार
िो अलंकार शब्दों के माध्यम से काव्यों को अलंकृत करते हैं, वे शब्दालंकार कहलाते हैं। याजन ककसी काव्य में
कोई जवशेष शब्द रखने से सौन्दया आए और कोई पयाायवाची शब्द रखने से लुप्त हो िाये तो यह शब्दालंकार
कहलाता है।
शब्दालंकार के भेद:
1. अनुप्रास अलंकार
2. यमक अलंकार
3. श्लेष अलंकार
1. अनुप्रास अलंकार
िब ककसी काव्य को सुंदर बनाने के जलए ककसी वणा की बार-बार आवृजत हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता
है। ककसी जवशेष वणा की आवृजत से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है। िैसे :
ऊपर कदये गए उदाहरण में आप देख सकते हैं की ‘च’ वणा की आवृजत हो रही है और आवृजत हों से वाक्य का
सौन्दया बढ़ रहा है। अतः यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण होगा।
उपयुाक्त उदाहरण में ‘म’ वणा की आवृजत हो रही है, एवं हम िानते हैं की िब ककसी वाक्य में ककसी वणा या
व्यंिन की एक से अजधक बार आवृजत होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण
अनुप्रास अलंकार के अंतगात आयेगा।
िैसा की आप ऊपर कदए गए उदाहरण में देख सकते हैं की शुरू के तीन शब्दों में ‘क’ वणा की आवृजत हो रही है,
एवं हम िानते हैं की िब ककसी वाक्य में ककसी वणा या व्यंिन की एक से अजधक बार आवृजत होती है तब वहां
अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतगात आएगा।
िैसा की आप ऊपर कदए गए उदाहरण में देख सकते हैं की ‘क’ वणा की आवृजत हो रही है, एवं हम िानते हैं की
िब ककसी वाक्य में ककसी वणा या व्यंिन की एक से अजधक बार आवृजत होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार
होता है। अतएव यह उदाहरण भी अनुप्रास आंकार के अंतगात आयेगा।
ऊपर कदए गए उदाहरण में शुरू के चार शब्दों में ‘क’ वणा की आवृजत हो रही है, एवं हम िानते हैं की िब ककसी
वाक्य में ककसी वणा या व्यंिन की एक से अजधक बार आवृजत होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतगात आएगा।
2. यमक अलंकार
जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में ककसी एक वणा की आवृजत होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में ककसी काव्य
का सौन्दया बढ़ाने के जलए एक शब्द की बार-बार आवृजत होती है। दो बार प्रयोग ककए गए शब्द का अर्ा अलग
हो सकता है । िैस:े
इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। प्रर्म कनक का अर्ा ‘सोना’ और दुसरे कनक का
अर्ा ‘धतूरा’ है। अतः ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग और जभन्नार्ा के कारण उक्त पंजक्तयों में यमक अलंकार की
छटा कदखती है।
ऊपर कदए गए पद्य में ‘मनका’ शब्द का दो बार प्रयोग ककया गया है। पहली बार ‘मनका’ का आशय माला के
मोती से है और दूसरी बार ‘मनका’ से आशय है मन की भावनाओ से।
अतः ‘मनका’ शब्द का दो बार प्रयोग और जभन्नार्ा के कारण उक्त पंजक्तयों में यमक अलंकार की छटा कदखती है।
िैसा की आप देख सकते हैं की ऊपर कदए गए वाक्य में ‘बेनी’ शब्द दो बार आया है। दोनों बार इस शब्द का
अर्ा अलग है।
पहली बार ‘बेनी’ शब्द कजव की तरफ संकेत कर रहा है। दूसरी बार ‘बेनी’ शब्द चोटी के बारे में बता रहा है।
अतः उक्त पंजक्तयों में यमक अलंकार है।
3. श्लेष अलंकार
श्लेष अलंकार ऊपर कदये गए दोनों अलंकारों से जभन्न है । श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के जवजभन्न अर्ा होते
हैं। िैस:े
रजहमन पानी राजखए जबन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोई मानस चून।
इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्ों में प्रयोग ककया है। पानी का पहला अर्ा मनुष्य के संदभा में है िब
इसका मतलब जवनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कक मनुष्य में हमेशा जवनम्रता (पानी) होना चाजहए। पानी का
दूसरा अर्ा आभा, तेि या चमक से है जिसके जबना मोती का कोई मूल्य नहीं।
पानी का तीसरा अर्ा िल से है जिसे आटे (चून) से िोडकर दशााया गया है। रहीम का कहना है कक जिस तरह
आटे का अजस्तत्व पानी के जबना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के जबना नहीं हो सकता
है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (जवनम्रता) रखना चाजहए जिसके जबना उसका
मूल्यह्रास होता है। अतः यह उदाहरण श्लेष के अंतगात आएगा।
िे रहीम गजत दीप की, कु ल कपूत गजत सोय ।बारे उजियारो करै, बढ़े अंघरे ो होय।
िैसा कक आप ऊपर उदाहरण में देख सकते हैं कक रहीम िी ने दोहे के द्वारा दीये एवं कु पुत्र के चररत्र को एक
िैसा दशााने की कोजशश की है। रहीम िी कहते हैं कक शुरू में दोनों ही उिाला करते हैं लेककन बढ़ने पर अन्धेरा
हो िाता है।
यहाूँ बढे शब्द से दो जवजभन्न अर्ा जनकल रहे हैं। दीपक के सन्दभा में बढ़ने का मतलब है बुझ िाना जिससे अन्धेरा
हो िाता है। कु पुत्र के सन्दभा में बढ़ने से मतलब है बडा हो िाना।
बडे होने पर कु पुत्र कु कमा करता है जिससे पररवार में अूँधेरा छा िात है। एक शब्द से ही डो जवजभन्न अर्ा जनकल
रहे हैं अतः यह उदाहरण श्लेष अलंकार के अंतगात आएगा।
ऊपर कदए गए उदाहरण में िैसा कक आप देख सकते हैं हरर शब्द एक बार प्रयुक्त हुआ है लेककन उसके दो अर्ा
जनकलते हैं। पहला अर्ा है बन्दर एवं दूसरा अर्ा है भगवान।
यह दोहा बंदरों के सन्दभा में भी हो सकता है एवं भगवान के सन्दभा में भी। एक सहबद से डो अर्ा जनकल रहे हैं,
अतः यह उदाहरण श्लेष अलंकार के अंतगात आएगा।
2. अर्ाालंकार
िब ककसी वाक्य का सौन्दया उसके अर्ा पर आधाररत होता है तब यह अर्ाालंकार के अंतगात आता है ।
अर्ाालक
ं ार के भेद
1. उपमा अलंकार
2. रूपक अलंकार
3. उत्प्रेक्षा अलंकार
4. अजतशयोजक्त अलंकार
5. मानवीकरण अलंकार
1. उपमा अलंकार
उप का अर्ा है समीप से और पा का अर्ा है तोलना या देखना । अतः िब दो जभन्न वस्तुओं में समानता कदखाई
िाती है, तब वहाूँ उपमा अलंकार होता है । िैस:े
कर कमल-सा कोमल है ।
यहाूँ पैरों को कमल के समान कोमल बताया गया है । अतः यहाूँ उपमा अलंकार होगा।
ऊपर कदए गए उदाहरण में मन को पीपल के पत्ते कक तरह जहलता हुआ बताया िा रहा है। इस उदाहरण
में ‘मन’ – उपमेय है, ‘पीपर पात’ – उपमान है, ‘डोला’ – साधारण धमा है एवं ‘सररस’ अर्ाात ‘के सामान’ –
वाचक शब्द है। िैसा की हम िानते हैं की िब ककन्ही दो वस्तुओं की उनके एक सामान धमा की विह से तुलना
की िाती है तब वहां उपमा अलंकार होता है।
ऊपर कदए गए उदाहरण में चेहरे की तुलना चाूँद से की गयी है। इस वाक्य में ‘मुख’ – उपमेय है, ‘चन्रमा’ –
उपमान है, ‘सुन्दर’ – साधारण धमा है एवं ‘सा’ – वाचक शब्द है।िैसा की हम िानते हैं की िब ककन्ही दो
वस्तुओं की उनके एक सामान धमा की विह से तुलना की िाती है तब वहां उपमा अलंकार होता है।
िैसा की आप ऊपर कदए गए उदाहरण में देख सकते हैं यहां हृदय की नील गगन से तुलना की गयी है। इस
वाक्य में हृदय – उपमेय है एवं नील गगन – उपमान है शांत – साधारण धमा है एवं सा – वाचक शब्द है। िैसा
की हम िानते हैं की िब ककन्ही दो वस्तुओं की उनके एक सामान धमा की विह से तुलना की िाती है तब वहां
उपमा अलंकार होता है।
उपमा के अंग :
उपमेय : जिस वस्तु की समानता ककसी दूसरे पदार्ा से कदखलायो िाये वह उपमेय होते है । िैस:े कर
कमल सा कोमल है । इस उदाहरण में कर उपमेय है ।
उपमान : उपमेय को जिसके समान बताया िाये उसे उपमान कहते हैं । उक्त उदाहरण में
‘कमल’ उपमान है।
2. रूपक अलंकार
िब उपमान और उपमेय में अजभन्नता या अभेद कदखाया िाए तब यह रूपक अलंकार कहलाता है। िैस:े
ऊपर कदए गए गए वाक्य में चरणों को कमल के सामान न कदखाकर चरणों को ही कमल बोल कदया गया है।
अतः यह रूपक अलंकार के अंतगात आएगा।
कदए गए उदाहरण में िैसा कक आप देख सकते हैं चाूँद की रोशनी को चादर के समान ना बताकर चादर ही बता
कदया गया है। इस वाक्य में उपमेय – ‘चजन्रका’ है एवं उपमान – ‘चादर’ है। यहां आप देख सकते हैं की उपमान
एवं उपमेय में अजभन्नता दशाायी िा रही है। हम िानते हैं की िब अजभन्नता दशाायी िाती ही तब वहां रूपक
अलंकार होता है।
ऊपर कदए गए उदाहरण में राम रतन को ही धन बता कदया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ –
उपमान का आरोप है एवं दोनों में अजभन्नता है।यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अजभन्नता
दशाायी िा रही है। हम िानते हैं की िब अजभन्नता दशाायी िाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
3. उत्प्रेक्षा अलंकार
िहाूँ उपमेय में उपमान के होने की संभावना का वणान हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यकद पंजक्त में -
मनु, िनु,मेरे िानते,मनहु,मानो, जनश्चय, ईव आकद आता है बहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। िैस:े
ऊपर कदए गए उदाहरण में मुख के चन्रमा होने की संभावना का वणान हो रहा है। उक्त वाक्य में मानो भी
प्रयोग ककया गया है अतः यहाूँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
ऊपर कदए गए उदाहरण में िैसा कक आप देख सकते हैं कनक का अर्ा धतुरा है। कजव कहता है कक वह धतूरे को
ऐसे ले चला मानो कोई जभक्षु सोना ले िा रहा हो।
काव्यांश में ‘ज्यों’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक – उपमेय में स्वणा – उपमान के होने कक कल्पना हो
रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतगात आएगा।
जसर फट गया उसका वहीं। मानो अरुण रंग का घडा हो।
कदए गए उदाहरण में जसर कक लाल रंग का घडा होने कक कल्पना की िा रही है। यहाूँ जसर – उपमेय है एवं लाल
रंग का घडा – उपमान है। उपमेय में उपमान के होने कक कल्पना कक िा रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा
अलंकार के अंतगात आएगा।
ऊपर कदए गए उदाहरण में ‘नेत्र’ – उपमेय की ‘कमल’ – उपमान होने कक कल्पना कक िा रही है। मानो शब्द
का प्रय्पप्ग कल्पना करने के जलए ककया गया है। आएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतगात आएगा।
4. अजतशयोजक्त अलंकार
िब ककसी बात का वणान बहुत बढ़ा-चढ़ाकर ककया िाए तब वहां अजतशयोजक्त अलंकार होता है। िैसे :
आगे नकदयाूँ पडी अपार, घोडा कै से उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक र्ा उस पार।
ऊपर कदए गए उदाहरण में चेतक की शजक्तयों व स्फू र्ता का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वणान ककया गया है। अतएव यहाूँ
पर अजतशयोजक्त अलंकार होगा।
धनुष उठाया ज्यों ही उसने, और चढ़ाया उस पर बाण |धरा–जसन्धु नभ काूँपे सहसा, जवकल हुए िीवों
के प्राण।
ऊपर कदए गए वाक्यों में बताया गया है कक िैसे ही अिुान ने धनुष उठाया और उस पर बाण चढ़ाया तभी
धरती, आसमान एवं नकदयाूँ कांपने लगी ओर सभी िीवों के प्राण जनकलने को हो गए।
यह बात जबलकु ल असंभव है क्योंकक जबना बाण चलाये ऐसा हो ही नहीं सकता है। इस र्थ्य का लोक सीमा से
बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वणान ककया गया है। अतः यह उदाहरण अजतशयोजक्त अलंकार के अंतगात आएगा।
5. मानवीकरण अलंकार
िब प्राकृ जतक चीज़ों में मानवीय भावनाओं के होने का वणान हो तब वहां मानवीकरण अलंकार होता है। िैसे :
ऊपर कदए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं की फू लों के हसने का वणान ककया गया है िो मनुष्य करते हैं
अतएव यहाूँ मानवीकरण अलंकार है।
मेघमय आसमान से उतर रही है संध्या सुन्दरी परी सी धीरे धीरे धीरे |
ऊपर दी गयी पंजक्तयों में बताया गया है कक संध्या सुन्दर परी की तरह धीरे धीरे आसमान से नीचे उतर रही
है।इस वाक्य में संध्या कक तुलना एक सुन्दर पारी से की है। एक जनिीव की सिीव से।ये असजलयत में संभव
नहीं है एवं हम यह भी िानते हैं की िब सिीव भावनाओं का वणान चीज़ों में ककया िाता है तब यह
मानवीकरण अलंकार होता है।
ऊपर कदए गए उदाहरण में उषा यानी भोर को सुनहरे तीर बरसाती हुई नाजयका के रूप में कदखाया िा रहा है।
यहाूँ भी जनिीवों में मानवीय भावनाओं का होना कदख रहा है। हम िानते हैं की नाजयका एक मनुष्य होती हैं ना
की एक जनिीव अतः यह संभव नहीं है। हम यह भी िानते हैं की िब सिीव भावनाओं का वणान चीज़ों में ककया
िाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है।
पुनरुजक्त अलंकार
काव्य में िहां एक शब्द की क्रमशः आवृजत्त है पर अर्ा जभन्नता न हो वहाूँ पुनरूजक्त प्रकाश अलंकार होता है /
माना िाता है।
उदाहरण ->
२ खड – खड करताल बिा
अन्योजक्त अलंकार
अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत का वणान करने वाले काव्य अन्योजक्त अलंकार कहलाते है।
उदाहरण
माली आवत देख के ,कजलयाूँ करे पूकार। फू ल – फू ल चुन जलए काल्हे हमारी बार
जिन कदन देखे वे कु सुम, गई सुबीजत बहार। अब अजल रही गुलाब में, अपत कूँ टीली
डार
इलहं आस अटक्यो रहत, अली गुलाब के मूल अइहैं फे रर बसंत ररतु, इन डारन के मूल।
भयो सररत पजत सजलल पजत, अरु रतनन की खाजन। कहा बडाई समुर की, िु पै न
पीवत पाजन।