Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 3

पाठ 1.

साखी [क वता]

न क-i:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
गु गो बंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
ब लहार गु आपनो, िजन गो बंद दयौ बताय॥
जब म था तब ह र नह ं, अब ह र ह म ना ह।
ेम गल अ त साँकर , तामे दो न समा ह॥
कबीर के गु के त ि टकोण को प ट क िजए।

उ तर:
कबीरदास ने गु का थान ई वर से े ठ माना है । कबीर कहते है जब गु और गो वंद (भगवान) दोन एक साथ खडे हो तो
गु के ीचरण मे शीश झुकाना उ तम है िजनके कृपा पी साद से गो वंद का दशन करने का सौभा य ा त हुआ। गु ान
दान करते ह, स य के माग पर चलने क ेरणा दे ते ह, मोह-माया से मु त कराते ह।

न क-ii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
गु गो बंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
ब लहार गु आपनो, िजन गो बंद दयौ बताय॥
जब म था तब ह र नह ं, अब ह र ह म ना ह।
ेम गल अ त साँकर , तामे दो न समा ह॥
कबीर के अनसु ार कौन परमा मा से मलने का रा ता दखाता है ?

उ तर :
कबीर के अनस
ु ार गु परमा मा से मलने का रा ता दखाता है ।

न क-iii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
गु गो बंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
ब लहार गु आपनो, िजन गो बंद दयौ बताय॥
जब म था तब ह र नह ं, अब ह र ह म ना ह।
ेम गल अ त साँकर , तामे दो न समा ह॥
‘जब म था तब ह र नह ं, अब ह र ह म नाँ ह।’ – का भावाथ प ट क िजए।

उ तर:
इस पंि त वारा कबीर का कहते है क जब तक यह मानता था क ‘म हूँ’, तब तक मेरे सामने ह र नह ं थे। और अब ह र आ
गटे , तो म नह ं रहा। अँधेरा और उजाला एक साथ, एक ह समय, कैसे रह सकते ह? जब तक मनु य म अ ान पी
अंधकार छाया है वह ई वर को नह ं पा सकता अथात ् अहं कार और ई वर का साथ-साथ रहना नामम
ु कन है । यह भावना दरू
होते ह वह ई वर को पा लेता है ।

न क-iv:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
गु गो बंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
ब लहार गु आपनो, िजन गो बंद दयौ बताय॥
जब म था तब ह र नह ं, अब ह र ह म ना ह।
ेम गल अ त साँकर , तामे दो न समा ह॥
यहाँ पर ‘म’ और ‘ह र’ श द का योग कसके लए कया गया है ?

उ तर:
यहाँ पर ‘म’ और ‘ह र’ श द का योग मशः अहं कार और परमा मा के लए कया है ।

न ख-i:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
काँकर पाथर जो र कै, मसिजद लई बनाय।
ता च ढ़ मु ला बाँग दे , या बहरा हुआ खद ु ाय॥
पाहन पज ू े ह र मले, तो म पज
ू ँू पहार।
ताते ये चाक भल , पीस खाय संसार॥
सात समंद क म स कर , लेख न सब बरनाय।
सब धरती कागद कर , ह र गन ु लखा न जाय।।
श द के अथ ल खए –
पाहन, पहार, म स, बनराय

उ तर:

श द अथ
पाहन प थर
पहार पहाड़
मस याह
बनराय वन

न ख-ii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
काँकर पाथर जो र कै, मसिजद लई बनाय।
ता च ढ़ मु ला बाँग दे , या बहरा हुआ खद ु ाय॥
पाहन पज ू े ह र मले, तो म पज ू ँू पहार।
ताते ये चाक भल , पीस खाय संसार॥
सात समंद क म स कर , लेख न सब बरनाय।
सब धरती कागद कर , ह र गन ु लखा न जाय।।
‘पाहन पज ू े ह र मले’ – दोहे का भाव प ट क िजए।

उ तर:
इस दोहे वारा क व ने मू त-पज
ू ा जैसे बा य आडंबर का वरोध कया है । कबीर मू त पज
ू ा के थान पर घर क च क को
पज
ू ने कहते है िजससे अ न पीसकर खाते है ।

न ख-iii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
काँकर पाथर जो र कै, मसिजद लई बनाय।
ता च ढ़ मु ला बाँग दे , या बहरा हुआ खद ु ाय॥
पाहन पजू े ह र मले, तो म पजू ँू पहार।
ताते ये चाक भल , पीस खाय संसार॥
सात समंद क म स कर , लेख न सब बरनाय।
सब धरती कागद कर , ह र गुन लखा न जाय।।
“ता च ढ़ मु ला बाँग दे , या बहरा हुआ खद
ु ाय” – पंि त म न हत यं य प ट क िजए।

उ तर:
श तत ु पंि त म कबीरदास ने मस
ु लमान के धा मक आडंबर पर यं य कया है । एक मौलवी कंकड़-प थर जोड़कर मि जद
बना लेता है और रोज़ सब
ु ह उस पर चढ़कर ज़ोर-ज़ोर से बाँग (अजान) दे कर अपने ई वर को पक
ु ारता है जैसे क वह बहरा हो।
कबीरदास शांत मन से भि त करने के लए कहते ह।

न ख-iv:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
काँकर पाथर जो र कै, मसिजद लई बनाय।
ता च ढ़ मु ला बाँग दे , या बहरा हुआ खद ु ाय॥
पाहन पज ू े ह र मले, तो म पज
ू ँू पहार।
ताते ये चाक भल , पीस खाय संसार॥
सात समंद क म स कर , लेख न सब बरनाय।
सब धरती कागद कर , ह र गुन लखा न जाय।।
कबीर क भाषा पर ट पणी क िजए।

उ तर:
कबीर साध-ु स या सय क संग त म रहते थे। इस कारण उनक भाषा म अनेक भाषाओ तथा बो लय के श द पाए जाते ह।
कबीर क भाषा म भोजपरु , अवधी, ज, राज थानी, पंजाबी, खड़ी बोल , उद ू और फ़ारसी के श द घल
ु - मल गए ह। अत:
व वान ने उनक भाषा को सधु कड़ी या पंचमेल खचड़ी कहा है ।

You might also like