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Contents

परिचय ............................................................................................................................................1
शुक्राचायय का जीवन सं घर्य ..................................................................................................................... 2
आचायय की शशक्षा ............................................................................................................................... 3
शुक्राचायय के योगदान ........................................................................................................................... 3
उनकी अनुयायययों का समर्यन ................................................................................................................. 3
शुक्राचायय का आदशय ............................................................................................................................ 3
शुक्राचायय के िाजनीयिक यवचाि ............................................................................................................... 4
िाजनीयिक नीयि (Political Strategy) : .............................................................................................. 4
िाजनीयिक शयि (Political Power): .................................................................................................. 4
नैयिकिा (Ethics): ........................................................................................................................ 4
शशक्षा (Education):...................................................................................................................... 4
शुक्र-नीयि ........................................................................................................................................ 5
िचनाकाल........................................................................................................................................ 6
शुक्रनीयि में दण्डनीयि की श्रेष्ठिा .............................................................................................................. 6
शुक्रनीयि में िाज्य सम्बन्धी यवचाि ............................................................................................................. 7
िाज्य की परिभार्ा एवं सप्ांग शसद्धान्त - .................................................................................................. 7
िाज्य का कायय क्षेत्र - ........................................................................................................................ 8
शुक्र का महत्व व मूल्ांकन .................................................................................................................... 9
1. दण्डनीयि को सवयप्रमुख यवद्या के रूप में मान्यिा : ................................................................................ 9
2. उदाि एवं व्यावहारिक सामाशजक-िाजनीयिक व्यवस्था का प्रयिपादन : ......................................................... 9
3. िाज्य का सावयव शसद्धान्त : ......................................................................................................... 9
4. िाज्यों का वगीकिण : ................................................................................................................ 9
5. िाजपद पि यर्ार्यवादी ढंग से यवचाि : ............................................................................................ 10
6. प्राचीन मं त्री परिर्द का यवकास : .................................................................................................. 10
7. कोर्, अर्य-व्यवस्था एवं प्रजायहिकािी िाज्य : .................................................................................... 10
8. यवकशसि प्रशासयनक व्यवस्था का यवविण : ...................................................................................... 10
9. न्याय प्रशासन का श्रेष्ठ यवविण : ................................................................................................... 10
10. पि-िाष्ट्र सम्बन्धों की सैद्धान्तन्तक एवं यर्ार्यवादी यववेचना : ................................................................. 11
शुक्राचायय
एक अयििीय जीवन औि योगदान

परिचय
शुक्राचायय, यहन्दू पौिाशणक सायहत्य में
एक महत्वपूणय व्ययि हैं जो भगवान शुक्र
के अच्छे पूजािी औि गुरु रूप में प्रशसद्ध
हैं । शुक्राचायय का नाम सं स्कृि शब्द
"शुक्र" से आया है, शजसका अर्य होिा है
"शुभ" या "सुखद" ।

शुक्राचायय का जन्म भगवान भास्कि


(सूयय) औि योगमाया के घिाने में हुआ
र्ा । वे देवगुरु बृहस्पयि के छोटे भाई र्े
औि ब्राह्मण जायि से सम्बं शिि र्े ।
शुक्राचायय का यवशेर् रूप से यववेकानं द सं स्कृि यवश्वयवद्यालय, हरियाणा में एक अयििीय
यवद्यालय के रूप में भी है, शजसे उनकी याद में स्थायपि यकया गया है । शुक्राचायय का बडा भाई
बृहस्पयि देवगुरु र्े, जो देविाओं के गुरु बने िहे र्े । शुक्राचायय ने भी जीवन का अध्ययन किने
के यलए अपने भाई के पास जाकि उनके शशष्य बनने का यनणयय यकया । उन्ोंने अपने भाई से
वेद, शास्त्र, औि िमयशास्त्र का अध्ययन यकया औि ब्रह्मचयय के समय में ही अपने शशक्षायात्रा में
यनपुणिा प्राप् की ।
शुक्राचायय ने अपने जीवन को भगवान शुक्र की भयि, ज्ञान औि सेवा में समयपयि
यकया । उन्ोंने अपने शशष्यों को नैयिकिा, िमय, औि योग मागय का उपदेश यदया औि उन्ें यदव्य
ज्ञान की प्रायप् के यलए प्रेरिि यकया । शुक्राचायय को नाना भी भगवान शुक्र औि नानी के रूप में
पुकािा जािा है, जो मािा योगमाया के रूप में जानी जािी हैं । शुक्राचायय की भयि औि उनका
ज्ञान यहन्दू िमय में महत्वपूणय हैं औि उनका शचत्रण वेद, पुिाण, औि िात्कायलक सायहत्य में शमलिा
है । उनके उपदेशों का अनुसिण किने से भयि, ज्ञान, औि सेवा के माध्यम से मनुष्य अपने
आत्मा की साक्षात्काि की ओि बढ़ सकिा है ।

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असुिाचायय, भृगु ऋयर् िर्ा यदव्या के पुत्र जो शुक्राचायय के नाम से अशिक यवख्याि हैं । इनका
जन्म का नाम 'शुक्र उशनस' है । पुिाणों के अनुसाि यह असुिों ( दैत्य , दानव औि िाक्षस ) के
गुरु िर्ा पुिोयहि र्े ।

कहिे हैं, भगवान के वामनाविाि में िीन पग भूशम प्राप् किने के समय, यह िाजा बयल
की झािी (सुिाही) के मुख में जाकि बैठ गए र्े औि वामनाविाि िािा दभायग्र (कुशा) से सुिाही
को साफ किने की यक्रया में इनकी एक आँख फूट गई र्ी । इसीयलए यह "एकाक्ष" भी कहे जािे
र्े । आिंभ में इन्ोंने अंयगिस ऋयर् का शशष्यत्व ग्रहण यकया यकंिु जब वह अपने पुत्र के प्रयि
पक्षपाि यदखाने लगे िब इन्ोंने शं कि की आिािना कि भगवान शं कि से मृिसं जीवनी यवद्या
प्राप् की शजसके प्रयोग से उन्ें युद्ध में मृत्यु होने पि मृि योद्धा को पुनः जीयवि किने की शयि
प्राप् र्ी । इसी कािण देवासुि सं ग्राम में असुि अनेक बाि जीिे । इन्ोंने एक हजाि अध्यायों वाले
"बाहयस्पत्य शास्त्र" की िचना की । 'गो' औि 'जयन्ती' नाम की इनकी दो पशियाँ र्ी ं । असुिों के
आचायय होने के कािण ही इन्ें 'असुिाचायय' या शुक्राचायय कहिे हैं ।

शुक्राचायय का जीवन सं घर्य


शुक्राचायय ने अपने जीवन में कई सं घर्ों का सामना यकया औि उन्ें परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकिा
है । एक बाि भगवान शुक्र ने अपने शशष्यों को देवलोक में यवद्या प्रायप् के यलए बढ़ावा देने के
यलए उन्ें िपस्या किने का आदान-प्रदान यकया । इस िपस्या के दौिान, शुक्राचायय ने अनेक वर्ों
िक अपने शशष्यों के सार् देवलोक में िहकि उन्ें यवशेर् ज्ञान प्रदान यकया ।

एक औि सं घर्य के दौिान, शुक्राचायय ने दैत्यिाज बयल के दिबाि में अपने ज्ञान का


प्रदशयन यकया औि उन्ोंने दैत्यों को अद्भि
ु उपदेश यदया । उन्ोंने दैत्यिाज को मोक्ष की प्रायप् के
यलए उनके शशष्य बनने का प्रस्ताव यदया औि बयल ने इसे स्वीकाि यकया ।
शुक्राचायय ने अपने जीवन के दौिान अपने शशष्यों को नैयिकिा, िमय, औि योग मागय
का उपदेश यदया औि उन्ें सत्य औि िमय के पर् पि चलने के यलए प्रेरिि यकया । उनका जीवन
एक महान गुरु औि भयिमागी के रूप में याद यकया जािा है शजसने अपने शशष्यों को यदव्य ज्ञान
की प्रायप् के यलए मागयदशयन यकया ।

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आचायय की शशक्षा
शुक्राचायय की शशक्षा का पृष्ठभूशम उनके आदशय गुरु बृहस्पयि के सार् यवश्ले र्ण कििा है । उनका
आचाययप्रणाली में उच्च शशक्षा प्राप् किने का अनुभव औि यवशभन्न यवद्याओं में उनकी पूणयिा की
दृयष्ट् से इस अध्याय को िौंगि देिा है ।

बृहस्पयि के शशक्षादान ने शुक्राचायय को ज्योयिर्, िं त्र, वास्तु, औि अन्य यवद्याओं के


प्रवीण बनाया । इस शशक्षा ने शुक्राचायय को एक अयििीय आध्यान्तत्मक दशयन के प्रयि प्रेरिि यकया,
शजसने उनके जीवन के अनेक क्षेत्रों में नई यदशा दी ।

शुक्राचायय के योगदान
शुक्राचायय ने भाििीय सायहत्य औि दशयन को समृशद्ध औि यवकास की यदशा में अपना अयििीय
योगदान यदया । उनकी िचनाएँ िाजनीयि, नीयि, औि आध्यान्तत्मकिा पि यवचाि किने के यलए
महत्वपूणय हैं औि आज भी उनका महत्व बना हुआ है ।

उनका ग्रंर् 'बृहद्दृयष्ट्' महाभािि के उपिान्त हुआ एक महत्वपूणय योगदान है शजसमें


उन्ोंने नैयिक औि आध्यान्तत्मक यवचािों को व्यि यकया है । इसके अलावा, उनका ग्रंर्
'शुक्रनीयि' िाजनीयिक नीयि के क्षेत्र में एक महत्वपूणय स्रोि है जो आज भी प्रेिणा स्त्रोि के रूप
में कायय कििा है ।

उनकी अनुयायययो ं का समर्यन


शुक्राचायय के यवचाि औि शसद्धांिों ने उन्ें एक महान आचायय बना यदया औि उनके अनुयायययों
ने उनके शसद्धांिों का पालन यकया । उनके शशष्यों ने उनके आदशों औि शसद्धांिों को जीवन में
अपनाया औि इसे समाज में फैलाया । इस अध्याय में, हम उनके अनुयायययों के सार् उनके
सं बं िों औि उनके शशक्षाओं का मूल्ांकन किेंगे ।

शुक्राचायय का आदशय
शुक्राचायय के आदशय, उनकी नैयिकिा, औि िायमयक दृयष्ट्कोण पि यवचाि किें िो उनके यवचािों
औि शसद्धांिों के माध्यम से हम जीवन को कैसे िायमयक औि उदाि बना सकिे हैं, यह समझेंगे ।
शुक्राचायय के आदशों का अनुसिण किने से हम नैयिकिा, िमय, औि सामाशजक न्याय की मूल
शसद्धांिों को समझ सकिे हैं औि उन्ें अपने जीवन में अपना सकिे हैं ।

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शुक्राचायय के िाजनीयिक यवचाि
शुक्राचायय, एक प्राचीन भाििीय िाजनीयिक शचंिक र्े शजनके यवचाि औि शसद्धांिों ने भाििीय
समाज में गहिा प्रभाव डाला । शुक्राचायय का िाजनीयिक दृयष्ट्कोण बहुि व्यापक र्ा, औि उनकी
िाजनीयिक शसद्धांिों में यवचािशीलिा, युयिवाद, औि व्यावसाययकिा का शमश्रण र्ा । यहां कुछ
मुख्य पहलु ओ ं पि चचाय की जा सकिी है:

िाजनीयिक नीयि (Political Strategy) : शुक्राचायय ने िाजनीयिक नीयि को बहुि अयििीयिा


औि युयिवाद से जोडा । उनका कहना र्ा यक िाजा को अपने िाज्य की िक्षा के यलए सदा िैयाि
िहना चायहए |

िाजनीयिक शयि (Political Power): शुक्राचायय ने यह बिाया यक िाजनीयिक शयि को


सुिशक्षि िखने के यलए एक शासक को अग्रगामी, बुशद्धमान, औि नैयिक रूप से स्थायपि होना
चायहए । वह यह भी शसखािे र्े यक एक िाजा को अपने प्रजा के यहि में ही काियवाई किनी
चायहए ।

नैयिकिा (Ethics): शुक्राचायय ने नैयिकिा को बहुि महत्वपूणय माना औि िाजा को नैयिक


मूल्ों का पालन किने की सलाह दी ।

शशक्षा (Education): शुक्र ने यह भी बिाया यक एक शासक को न केवल िाजनीयि का ज्ञान


होना चायहए, बन्ति उसको शशक्षा, यवद्या, औि सायहत्य का भी अच्छा ज्ञान होना चायहए ।

शुक्राचायय के िाजनीयिक यवचाि आज भी अत्यं ि महत्वपूणय हैं औि उनकी यवचािशीलिा यवशभन्न


िाष्ट्रीय औि अंिििाष्ट्रीय िाजनीयिक शसद्धांिों को प्रभायवि कि िही हैं ।

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शुक्र-नीयि
गुरु शुक्राचायय वेयदक सायहत्य औि यहन्दू िमयशास्त्र में महत्वपूणय व्ययि र्े औि उनकी यवशभन्न
ग्रंर्ों ने वेदांि, वैष्णव िमय, िाजनीयि औि आचायायचायय पिंपिा के बािे में बहुि सािी जानकािी
प्रदान की है । यहां गुरु शुक्राचायय यक मुख्य िचना शुक्रनीयि का उल्ले ख है –

शुक्रनीयि ( शुक्रनीयि - शुक्रनीयि ) शजसे शुक्रनीयिसाि ( शुक्रनीयिसाि - शुक्रनीयिशास्त्र ) के


नाम से भी जाना जािा है | शुक्रनीयि एक प्रशसदू ि नीयिग्रन्थ है । इसकी िचना किने वाले शुक्र
का नाम महाभािि में 'शुक्राचायय' के रूप में शमलिा है । शुक्रनीयि के िचनाकाि औि उनके काल
के बािे मैं कुछ औि पिा नही ं है । शुक्रनीयि में २००० श्लोक हैं जो इसके चौर्े अध्याय में
उशल्लन्तखि है । उसमें यह भी यलखा है यक इस नीयिसाि का िाि-यदन शचन्तन किने वाला िाजा
अपना िाज्य-भाि उठा सकने में सवयर्ा समर्य होिा है । इसमें कहा गया है यक िीनों लोकों मैं
शुक्रनीयि के समान दू सिी कोई नीयि नही ं है औि व्यवहािी लोगों के यलये शुक्र की ही नीयि है,
शेर् सब 'कुनीयि' है । शुक्रनीयि की सामग्री कामन्दकीय नीयिसाि से शभन्न शमलिी है । इसके चाि
अध्यायों में से प्रर्म अध्याय में िाजा, उसके महत्व औि कियव्य, सामाशजक व्यवस्था, मं त्री औि
युविाज सम्बन्धी यवर्यों का यववेचन यकया गया है ।
प्राचीन भाििीय िानीयिक शचंिन में शुक्रनीयि का महत्त्वपूणय स्थान है । शुक्रनीयि के
िचययिा शुक्राचायय का नाम प्राचीन भाििीय शचंिन में सम्मायनि स्थान िखिा है । टण्डी के
'दशकुमािचरििम' में िाजनीयि शास्त्रकािों के नामोल्ले ख में सवयप्रर्म स्थान शुक्राचायय को ही
प्रदान यकया है । शुक्रनीयि इिना प्राचीन ग्रंर् होिे हुए भी इसमें ऐसे अनेक यवर्यों का यवविण
है जो आज भी प्रासांयगक हैं औि उपयोगी भी है । शुक्रनीयि शचंिन की गौिवशाल्ली एवं समृदूि
पिम्पिा का ज्ञान होिा है । कौयटल् के “अर्यशास्त्र' एवं मैयकयावली के ‘द यप्रंस के समान शुक्र
की शुक्रनीयि मैं भी िाजा को शासन किना शसखाया गया है । इस प्रकाि इसमें िाजनीयि का
सैद्धान्तन्तक नही ं विन व्यावहारिक पक्ष अशिक महत्वपूणय है । शुक्र के अनुसाि, “सभी आशं काओं
को त्यागकि िाजा को ऐसी नीयि का पालन किना चायहए शजससे शत्रु को मािा जा सके अर्ायि
यवजय प्राप् हो” शुक्राचायय के अनुसाि, उन्ोंने अपने शशष्यों के सामने ब्रहमा के नीयिशास्त्र का
साि प्रस्तुि यकया है । शुक्र नीयि मे चाि मूल अध्याय है । इसके यवशभन्न सं स्किणों में पं चम
अध्याय 'न्तखल नीयि' (शेर् या अवशशष्ट् नीयि) के रूप में है जो मूल ग्रंर् का भाग नही ं है ।

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िचनाकाल
शुक्राचायय के काल का यनिायिण अत्यं ि कयठन कायय है । अपनी यवर्यवस्तु व शैली के आिाि पि
यह कौयटल् के अर्यशास्त्र के बाद की िचना प्रिीि होिी है । ऐसा लगिा है यक शुक्र नाम वस्तुिः
शचन्तन की एक यवशेर् पिम्पिा को व्यि कििा है, एक व्ययि को नही ं । भाििीय िाजनीयिक
शचन्तन के स्रोि के रूप में इसे एक प्रमाशणक ग्रन्थ माना जािा है । यद्ययप शुक्रनीयिसाि के
िचनाकाल के यवर्य में यविानों मैं मिभेद है, यकन्तु प्रायः सभी आिुयनक यविान इस पि सहमि
हैं यक यह वैयदककालीन िचना नही ं है अयपिु ईसा के बाद की कृयि है । काशीप्रसाद जायसवाल
के अनुसाि, यह 8वी ं शिाब्दी की िचना है । इसके ग्रंर्काि को इसी काल का िाजशास्त्री कहा
जा सकिा है ।

शुक्रनीयि में दण्डनीयि की श्रेष्ठिा


शुक्रनीयि, कौयटल् के अर्यशास्त्र के समान मूलिः िाजनीयिक प्रकृयि का ग्रन्थ है इसमैं शुक्र ने
कौयटल् एवं कामन्दक के समान ज्ञान की चाि शाखाएँ - आन्वीशक्षकी, त्रयी, वािाय एवं दण्डनीयि
को स्वीकाि यकया है । शुक्रनीयि के टीकाकाि, बी०के० सिकाि के अनुसाि, “दण्डनीयि शासन
किने िर्ा यनदेश देने से सं बं शिि यवद्या है ।” यह कहना उशचि है यक शुक्र ने यवशभन्न प्रसं गो में
दण्ड व नीयि का जो महत्व बिाया है वह दण्डनीयि अर्ायि िाजनीयिशास्त्र का ही महत्त्व हैं ।
दण्ड नीयि या नीयिशास्त्र के अलावा शजिने शास्त्र हैं, वे सम्पूणय मानव व्यवहाि के सीशमि भाग
से ही सं बं शिि होिे हैं, यकंिु नीयिशास्त्र सम्पूणय मानव व्यवहाि से सं बं शिि शास्त्र है । इस शास्त्र
की सहायिा से ही िाजा अपने आिािभूि दाययत्वों की पूयिय में सफल होिा है, यकंिु जो िाजा
नीयि का त्याग किके अच्छे व्यवहाि कििा है, वह दुः ख भोगिा है औि उसके सेवक भी कष्ट्
पािे है । श्यामलाल पाण्डे ने शुक्रनीयि साि का महत्त्व बिािे हुए कहा है यक यह प्राचीन भािि
की दण्ड प्रिान यवचाििािा पि आिारिि एकमात्र उपलब्ध ग्रंर् है ।
शुक्राचायय के अनुसाि िमय, अर्य, काम का प्रिान कािण एवं मोक्ष को सुयनशिि किने
वाल्ला ित्व नीयिशास्त्र को ही माना जा सकिा है । शुक्रनीयि मैं िाजनीयिक शचंिन के समस्त
महत्त्वपूणय पक्षों - दाशययनक, अविािणात्मक, सं िचनात्मक, प्रयक्रयात्मक को पयायप् महत्व के
सार् शचयत्रि यकया गया है । िाज्य के प्रयोजन, िाजसत्ता पि यनयं त्रण आयद सैद्धान्तन्तक पक्षों के
सार्-सार् दण्ड व न्याययक प्रयक्रया, िाज्य का प्रशासन, िाज्य की सुिक्षा व युद्ध, अन्तििाज्य
सम्बन्ध आयद ऐसे यवर्यों का जो िाज्य के व्यावहारिक पक्षों से सं बं शिि हैं, यवशद यववेचन यकया
गया है ।

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शुक्रनीयि में िाज्य सम्बन्धी यवचाि
शुक्रनीयि में िाज्य की उत्पशत्त के शसद्धान्त का यवस्तृि यववेचन नही ं यकया गया है । सम्पूणय ग्रंर् मैं
मात्र एक श्लोक ऐसा है शजसे िाज्य की उत्पशत्त से सं बं शिि माना जा सकिा है । शुक्रनीयि के
प्रर्म अध्याय में कहा गया है, “प्रजा से अपना वायर्यक कि वेिन के रूप में स्वीकाि किने से
स्वामी के रूप में न्तस्थि िाजा को ब्रहमा ने प्रजा के पालनार्य सेवक बनाया है” । इस प्रकाि जहाँ
िाज्य की उत्पशत्त ब्रहमा िािा बिाकि, िाज्य की उत्पशत्त के दैवी शसद्धान्त का समर्यन यकया है,
िाजा को प्रजा-सेवक बिाकि उसके प्रजा-पाल्लन के दाययत्व पि बल यदया औि उसके यकसी भी
प्रकाि के दैवी अशिकाि को स्वीकाि नही ं यकया है ।
शुक्र ने िाज्य को एक अयनवायय एवं स्वाभायवक सं स्था स्वीकाि यकया है क्ोंयक इस
सं साि के अभ्युदय का आिाि िाज्य है । शजस प्रकाि चन्द्रमा समुद्र की वृशद्ध का कािण है , उसी
प्रकाि िाज्य जनिा के अभ्युदय का मूल आिाि है । िाज्य ही न्याय िािा िमय , अर्य, काम (यत्रवगय)
की शसशद्ध किािा है । जैसे मल्लाह के अभाव में नौका नष्ट् हो जािी है, उसी प्रकाि िाजा के नेिृत्व
के अभाव मैं प्रजा जन के नष्ट् होने की सम्भावना िहिी है । शुक्र ने िाज्य को प्रजा की भौयिक
सुिक्षा के यलए ही नही,ं विन नैयिक उत्थान के यलऐ भी उत्तिदायी माना है ।

िाज्य की परिभार्ा एवं सप्ांग शसद्धान्त -

प्राचीन भाििीय शचंिन में िाज्य को सप्ांग िाज्य के रूप मैं परिभायर्ि यकया गया है, शुक्र भी
इसका अपवाद नही ं हैं । िाज्य साि अंगो से बना सावयवी है, यह (1) स्वामी, (2) अमात्य, (3)
शमत्र, (4) कोश, (5) िाष्ट्र, (6) दुगय, (7) सेना से बना है । शुक्रनीयि में कहा गया है, “िाज्य के
इन साि यनमायणक ित्वों में स्वामी शसि, अमात्य नेत्र, शमत्र कणय, कोश मुख, सेना मन, दुगय भुजाएँ
एवं िाष्ट्र पैि हैं ।” एक अन्य प्रसं ग मैं िाज्य की िुलना वृक्ष से कििे हुऐ िाजा को इस वृक्ष का
मूल, मं यत्रयों को स्कन्ध, सेनापयि को शाखा, सेना को पल्लव, प्रजा को िूल, भूशम से प्राप् होने
वाले कािकों को फल एवं िाज्य की भूशम को बीज कहा गया हैं । यह उल्ले खनीय है यक जहाँ
आिुयनक िाजनीयिक यवचािक िाज्य के 4 यनमायणक ित्व - जनसं ख्या, भू-भाग, सिकाि एवं
सं प्रभुिा मानिे है वही ं शुक्र 7 यनमायणक ित्व मानिे हैं ।

शुक्रनीयि मैं िाज्य व िाष्ट्र के मध्य अंिि को स्पष्ट् कििे हुऐ कहा गया है यक यकसी
यवशशष्ट् िाष्ट्र पि सं प्रभु का यनयं त्रण उसे िाज्य का रूप प्रदान कि देिा है । इस प्रकाि शुक्रनीयि
िाज्य व िाष्ट्र के मध्य अंिि को आिुयनक िाजनीयिक यवचािकों की ििह स्पष्ट् कििी है ।

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िाज्य का कायय क्षेत्र -

शुक्रनीयि मैं िाज्य के कायय क्षेत्र को अत्यं ि व्यापक बिाया गया है । शुक्र ने िाज्य के कियव्यों के
8 प्रमुख क्षेत्रों का उल्ले ख यकया है -

1. दुष्ट्ों का यनग्रह
2. प्रजा की सुिक्षा
3. दान
4. प्रजा का परिपालन
5. न्यायपूवयक कोर् का अजयन
6. िाजाओं से कि वसूल किना
7. शत्रुओ ं का मान-मदयन
8. यनिन्ति भूशम का अजयन किना

िाज्य के दाययत्वों की इस सूची से यह स्पष्ट् है यक शुक्र ने िाज्य के यवस्तृि काययक्षेत्र का प्रयिपादन


यकया है । सार् ही यह भी स्पष्ट् कि यदया है यक िाज्य को अपने दाययत्वों को पूिा किने के यलए
आवश्यक सािन भी अशजयि किने चायहए । शुक्र ने िाज्य के काययक्षेत्र में यनम्नयलन्तखि प्रमुख कायय
सन्तम्मयलि यकए हैं :

1. प्रजा एवं िाजनीयिक समाज की िक्षा किना


2. लोक कल्ाण
3. अर्यव्यवस्था का यनयं त्रण
4. िाज्य के सामाशजक दाययत्व
5. िाज्य का शैक्षशणक दाययत्व
6. यवशि एवं न्याय व्यवस्था
7. प्रशासयनक व्यवस्था का कुशल सं चालन
8. पििाष्ट्र सम्बन्ध

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शुक्र का महत्व व मूल्ांकन
मनु मूलिः िमयशास्त्रीय यवचािक है, कौयटल् अर्यशास्त्रीय यवचािक है, जबयक शुक्र िाजनीयिक
यवचािक हैं । इसीयलए प्राचीन भाििीय िाजनीयिक शचन्तन मैं उनका यवशशष्ट् स्थान व महत्व है ।
अल्टेकि का मि है, “शुक्रनीयि मैं प्रशासयनक महत्व की ऐसी अनेक सूचनाएं शमलिी है, जो
अर्यशास्त्र सयहि अन्य यकसी ग्रन्थ मैं उपलब्ध नही ं है । यह सत्य है यक शुक्र ने िाज्य के सैद्धान्तन्तक
पक्षों की यवस्ताि से यववेचना नही ं की है, पिन्तु प्राचीन भािि मैं व्यावहारिक पक्ष पि ही प्रकाश
डालने की पिम्पिा र्ी । अध्ययन की सुयविा के यलए शुक्र के योगदान को यनम्नयलन्तखि यबन्दुओ ं
के रूप में समझा जा सकिा है –

1. दण्डनीयि को सवयप्रमुख यवद्या के रूप में मान्यिा : शुक्र ने दण्डनीयि शास्त्रीय औशनस
सम्प्रदाय का अनुकिण कििे हुए सैद्धान्तन्तक एवं िमयशास्त्रीय ज्ञान पि व्यावहारिक व
लौयकक AT की श्रेष्ठिा को प्रयिपायदि यकया है । दण्डनीयि के प्रयोग से िाजा को सभी फलों
की शसशद्ध होिी है, यहां िक यक वह सियुग की स्थापना भी कि सकिा है ।
2. उदाि एवं व्यावहारिक सामाशजक-िाजनीयिक व्यवस्था का प्रयिपादन : शुक्र ने समाज-
सं गठन के आिाि के रूप मैं वणय व्यवस्था को मान्यिा दी है । यकन्तु उन्ोंने कमायनुसाि वणय
व्यवस्था की िािणा का समर्यन यकया है । इस प्रकाि शुक्र ने जन्म पि आिारिि वणय व्यवस्था
में यनयहि स्वार्य एवं अयोग्यिा की उपेक्षा किने की कोशशश की है औि कमय, योग्यिा व
प्रयिभा के आिाि पि वणय व्यवस्था के पुनः यनमायण का यवचाि यदया है । वणय एवं जायि का
महत्व यववाह एवं भोजन सामुदाययक जीवन मैं होिा है । िाष्ट्र प्रशासन जैसे सावयजयनक व
िाजनीयिक कायय मैं वणय एवं जायि की िुलना में कमयशील व गुण पि आिारिि योग्यिा व
यवशेर्ज्ञिा का ही महत्व होिा है । मनु की िुलना में शुक्र के यवचाि पयायप् उदाि हैं औि उस
सामाशजक परिवियन की ओि सं केि कििे है जो उनके युग में जन्म ले िहा र्ा ।
3. िाज्य का सावयव शसद्धान्त : भाििीय पिम्पिा का अनुकिण कििे हुए “सप्ांग िाज्य” की
िािणा को स्वीकािा है । उन्ोंने िाज्य के सािों अंगों की िुलना मानव शिीि के अंगो से की
है । शुक्र ने िाज्य को वृक्ष की भी उपमा दी है, िाज्य जैसी अमूिय िचना को स्पष्ट् किने की
इृयष्ट् से शुक्र का यह यवविण महत्त्वपूणय है ।
4. िाज्यों का वगीकिण : शुक्रनीयिसाि ऐसा एकमात्र प्राचीन भाििीय ग्रन्थ है, शजसने एक
सुयनशिि आिाि पि िाजिन्त्रीय िाज्य के यवशभन्न प्रकािों का उल्ले ख यकया है । यह वगीकिण
प्राचीन भािि की िाजिन्त्रात्मक साम्राज्यवादी शासन प्रणाली की ओि भी सं केि देिा है ।

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5. िाजपद पि यर्ार्यवादी ढंग से यवचाि : शुक्र ने मनु के समान िाजा को 'नि देव' नही ं
माना है । शुक्र का स्पष्ट् मि है यक िाजपद की समस्त गरिमा के उपिान्त भी िाजा मूलिः
प्रजा का सेवक ही होिा है औि इसी रूप में उसे कि प्राप् किने का अशिकाि यदया है ।
शुक्र ने प्रजा पालन को िाजा का आिािभूि कियव्य माना है ।
6. प्राचीन मं त्री परिर्द का यवकास : शुक्रनीयि ही एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है, शजसमें स्पष्ट् रूप
से मं यत्रयों के विीयिा क्रम, उनके वेिन मैं अन्ति, कायायलय आयद को प्रकट यकया गया
है । शुक्र ने ही सवयप्रर्म मन्तन्त्ररिर्द की यवभागीय पद्धयि, मन्तन्त्रयों के यवभाग परिवियन,
मन्त्रालयों के सं गठन आयद का उल्ले ख यकया है । शुक्र ने ही सवयप्रर्म मन्त्र परिर्द की
सुयनशिि एवं यलन्तखि काययप्रणाली का भी स्पष्ट् उल्ले ख यकया है ।
7. कोर्, अर्य-व्यवस्था एवं प्रजायहिकािी िाज्य : यह उल्ले खनीय है यक काल- सापेक्ष, आदशय
कोर् की िािणा का उल्ले ख केवल शुक्र ने ही यकया है । यह कोर् इिना सं पन्न होना चायहए
यक कि जमा न होने पि भी 20 वर्य िक प्रजा व सेना की िक्षा किने मैं समर्य हो । शुक्र
एकमात्र ऐसे िाजशास्त्री है, शजन्ोंने िाज्य की आय-व्यय की वायर्यक योजना का उल्ले ख
यकया है । मनु, कौयटल् आयद आचायों की िुलना मैं शुक्र का व्यय यवविण अशिक स्पष्ट्,
यनशिि एवं यनयमबदू ि है । शुक्र ने अपने व्यय के यवविण में जन कल्ाण एवं समाज
कल्ाण पि भी बल यदया है ।
8. यवकशसि प्रशासयनक व्यवस्था का यवविण : शुक्र की प्रशासयनक व्यवस्था मनुस्मृयि की
िुलना मैं पयायप् जयटल एवं यवकशसि है । इसमें यलन्तखि कायायलय पदू ियि, िाजसेवकों
की आचाि सं यहिा, न्यूनिम एवं अशिकिम वेिन के शसद्धान्त आयद का भी उल्ले ख यकया
गया है । शुक्र ने कायमयकों की सेवा अवशि, पदोन्नयि, पद-अवनयि, प्रशशक्षण, गणवेश
आयद के यनयमों का भी उल्ले ख यकया है । शुक्र ने प्रशासन की इस कायमयक व्यवस्था के
अन्तगयि कुछ ऐसी व्यवस्थाओं का भी उल्ले ख यकया है जो आिुयनक प्रशासयनक
व्यवस्थाओं के पयायप् यनकट प्रिीि होिी हैं । उन्ोनें सामान्य यवश्राम, अवकाश, स्वास्थ्य
अवकाश, पेंशन सयहि सेवायनवृयि, पारिवारिक पेंशन, भयवष्य यनशि, बोनस आयद का
भी उल्ले ख यकया है ।
9. न्याय प्रशासन का श्रेष्ठ यवविण : यद्ययप शुक्र ने न्याय प्रशासन मैं िमयशास्त्रीय पिम्पिा
का अनुकिण यकया है, यकन्तु इसके सार् ही उन्ोनें न्याय प्रशासन में कुछ नए ित्वों का
उल्ले ख यकया है । न्याय सभा के यलए सदस्यिा में केवल ब्राहयण वणय की अयनवाययिा
नही,ं जूिी प्रणाली, सम्मन, जमानि, अपील एवं पुनः यवचाि, यनयोगी (वकील) आयद
इसमें सन्तम्मयलि है ।

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10. पि-िाष्ट्र सम्बन्धों की सैद्धान्तन्तक एवं यर्ार्यवादी यववेचना : जहां इस क्षेत्र में मनु
आदशयवादी अशिक हैं, वही ं शुक्र ने यर्ार्यवादी सम्बन्धों का प्रमुख आिाि ही िाज्यों की
आपसी अयवश्वसनीयिा को स्वीकाि यकया है । उन्ोंने िाजयहि एवं शयि के ित्वों को
ही यवदेश नीयि के सं चालन में प्रमुख स्थान यदया है, जो आिुयनक काल के समान है ।
यद्ययप शुक्र ने पिाशजि िाजा एवं पिाशजि प्रदेश के आदशयवादी पक्ष का समर्यन यकया है
यकन्तु ऐसे व्यवहाि का अन्तन्तम उद्देश्य यर्ार्यवादी ही है । ऐसी नीयि पिाशजि पक्ष पि
यवजेिा िाजा की यवजय को स्थाययत्व प्रदान कििी है ।

शुक्र ने िाज्य एवं िाष्ट्र के मध्य भेद को स्पष्ट् यकया है िर्ा यह स्पष्ट् यकया है यक िाष्ट्र सम्प्रदाय का
यनयं त्रण ही उसे िाज्य का स्वरूप प्रदान कििा है । इस प्रकाि शुक्र ने अपने युग की िाजिं त्रात्मक
शासन प्रणात्ली के अन्तगयि पाए जाने वाली िाजनीयिक व्यवस्था का यवस्तृि यवविण प्रस्तुि
यकया है । बेनी प्रसाद का मि है यक शुक्रनीयिसाि प्राचीन यहन्दू समाशजक व िाजनीयिक पिम्पिा
में यलखा गया ऐसा अत्यन्त महत्वपूणय ग्रन्थ है, शजसने सभी यवर्यों को स्पशय यकया है औि उन्ें
सं वािा व समृदूि भी यकया है । अल्तेकि के अनुसाि “प्राचीन भाििीय िाजनीयि के
अध्ययनकिायओ ं के यलए यह अत्यन्त महत्वपूणय ग्रन्थ है । इसके सार् ही भाििीय शचन्तन पिम्पिा
मैं उनका यवशशष्ट् स्थान है |

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