बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र Part - 2

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बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र

Part – 2
Topic – बाल नवकाश का पररचय

By - नननतन गुप्ता

Hello Friend , I am नननतन गुप्त ा From – Nitin-Gupta.com

दोस्तो आप में से कुछ साथथयों ने मुझसे Child Development and Pedagogy के नोट्स की माांग की
थी ! तो उसी को ध्यान में रखते रृये आज से हम इस PDF में आपको Child Development and
Pedagogy के One Liner Question and Answer उपलब्ध कराऐांगे , जो आपको सभी तरह के
Teaching के Exam जैसे CTET ,UPTET , MP Samvida Teacher , HTET , REET आदद व
अन्य सभी Exams जजनमें कक Child Development and Pedagogy आता है उसमें काम आयेगी !
आज की हमारी पोस्ट Child Development and Pedagogy का 2nd पार्ट है जजसमें कक हम बाल
नबकाश का पररचय से सांबांथधत Most Important Question and Answer को बताऐांगे ! तो चजलये
दोस्तो शुरु करते हैं ! यह पोस्ट हमारी बेबसाइर् पोस्ट पर आधाररत है इसके अन्य पार्ट व उनकी PDF हमारी
बेबसाईर् पर उपलब्ध हैं , तो आप उन्हें भी Download कर सकते हैं

किसी भी सहायता िे किये फेसबि


ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र से सांब ांथ धत अन्य पार्ट –
 बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र Part – 1 यहाां पढें
 बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र Part – 2 यहाां पढें
 बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र Part – 3 यहाां पढें
 बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र Part – 4 यहाां पढें
 बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र Part – 5 यहाां पढें
 बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र Part – 6 यहाां पढें
 बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र Part – 7 यहाां पढें

अन्य सभी नबषयों की PDF यहाां से Download करें -

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
बाल नवकास एवां जशक्षाशास्त्र Part – 2
 बालक के नवकास की प्रकिया कब शुरू होती है – जन् म से पूव ट
 नवकास की प्रकिया – जीवन पयटन् त चलती है ।
 सामान्य रूप से नवकास की ककतनी अवस्थाएां होती हैं – पाांच
 ”वातावरण में सब बाह्य तत्व आ जाते हैं जजन्होंने व्यनि को जीवन आरां भ करने के समय से प्रभानवत ककया
है।” यह पररभाषा ककसकी है – वुड वथट की
 ”वांशानुिम व्यनि की जन्मजात नवशेषताओां का पूणट योग है – बी.एन.झा का
 बांशानुिम के ननधाटरक होते हैं – जीन् स
 कौन-सी नवशेषता नवकास पर लागू नहीं होती है – नवकास को स्पष्र् इकाइयों में मापा जा सकता है ।
 शैशव काल का ननयत समय है – जन् म से 5-6 वषट तक
 बालक की तीव्र बुथि का नवकास पर क्या प्रभाव पड़ता है – नवकास सामान्य से तीव्र होता है ।
 नवकास एक प्रकिया है – ननरन् तर
 बाल्यावस्था में मस्तस्तष्क का नवकास हो जाता है : – 90 प्रनतशत
 अन्तदटशटन नवथध में बल ददया जाता है – स्वयां के अध्ययन पर
 बालक को आनन्ददायक सरल कहाननयों द्वारा नैनतक जशक्षा प्रदान करनी चादहए। यह कथन है –
कोलेस ननक का
 नवकास के सन्दभट में मैक्डू गल ने – मूल प्रवृत्यात्मक व् यवहार का नवश्लेषण ककया।
 जब हम ककसी भी व्यनि के नवकास के नवषय में थचन्तन करते हैं तो हमारा आशय – उसकी कायटक्षमतासे
होता है , उसकी पररपक्वता से होता है , उसकी शनि ग्रहण करने से होता है ।
 सांवेगात्मक नवकास में ककस अवस्था में तीव्र पररवतटन होता है – ककशोरावस्था
 वृथि और नवकास है – एक-दूसरे के पूरक
 चाररकिक नवकास का प्रतीक है – उत् तेजना
 नवकासात्मक पिनत को कहते हैं – उत् पनि मूलक नवथध
 मानजसक नवकास के जलए अध्यापक का कायट है – बालकों को सीखनेके पूरे-पूरे अवसर प्रदान करें ।
छाि-छािाओां के शारीररक स्वास््य की ओर पूर-पूरा ध्यान दें । व् यनिगत भेदों की ओर ध्यान दे त े रृए उनके
जलए समुथचत वातावरण की व्यवस्था करें ।
 वार्सन ने नवजात जशशु में मुख्य रूप से ककन सांवेगों की बात कही है – भय, िोध व स्नेह
 ककशोरावस्था की मुख्य समस्याएां हैं – शारीररक नवकास की समस्याएां, समायोजन की समस्याएां, काम
और सांवग
े ात्मक समस्याएां
 शैशवावस्था है – जन् म से 7 वषट तक

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 जशशु का नवकास प्रारम्भ होता है – गभटकाल में
 बाल्यावस्था के जलए पयाटप्त नींद होती है – 8 घण् र्े
 बाजलकाओां की लम्बाई की दृथि से अथधकतम आयु है – 16 वषट
 बालक के नवकास को जो घर्क प्रेररत नहीं करता है, वह है – वांशानुिम या वातावरण दोनो ही नहीं
 ककसके नवचार से शैशवावस्था में बालक प्रेम की भावना, काम प्रवृनत पर आधाररत होती है – फ्रायड
 रॉस ने नवकास ने नवकास िम के अन्तगटत ककशोरावस्था का काल ननधाटररत ककया है – 12 से 18 वषट तक
 ककशोरावस्था की प्रमुख नवशेषता नहीं हैं – मानजसक नवकास
 बालकों के नवकास की ककस अवस्था को सबसे करिन काल के रूप में माना जाता है – ककशोरावस्था Bal
Vikas Shiksha Shastra Notes
 उत्तर बाल्याकाल का समय कब होता है – 6 से 12 वषट तक
 बाल्यावस्था की प्रमुख नवशेषता नहीं है – अन् तमुख
ट ी व् यनित्व
 सांवेगात्मक नवकास में ककस अवस्था में तीव्र पररवतटन होता है – ककशोरावस्था
 नवकासवाद के समथटक हैं – दडके एवां बुश, गाल्र्न, डानवि न
 नवकास का तात्पयट है – वह प्रकिया जजसमें बालक पररपक्वता की ओर बढ़ता है ।
 Age of Puberty कहलाता है – पूण ट ककशोरावस्था
 व्यनि के स्वाभानवक नवकास को कहते है – अथभवृथि
 बालक के नवकास की प्रकिया एवां नवकास की शुरूआत होती है – जन् म से पूव ट
 ”नवकास के पररणामस्वरूप व्यनि में नवीन नवशेषताएां और नवीन योग्यताएां प्रकर् होती है।” यह कथन है–
हरलॉक का
 शैजक्षक दृथि से बाल नवकास की अवस्थाएां है – शैशवावस्था, बाल्यावस्था, ककशोरावस्था
 स्तिनर का मानना है कक ”नवकास के स्वरूपों में व्यापक वैयनिक थभन्नताएां होती हैं। यह नवचार नवकास के
ककस जसिाांत के सांदभट में हैं – व्यनिगत थभन्नता का जसिान्त
 मनोनवश्लेषणवाद (Psyco Analysis) के जनक थे – फ्रायड
 ”मुझे बालक दे दीजजए। आप उसे जैसा बनाना चाहते हों, मैं उसे वैसा ही बना दूांगा।” यह कहा था –
वार्सन ने
 जसगमण्ड फ्रायड के अनुसार, ननम्न में से मन की तीन स्थिनतयों हैं – चेत न, अिचेतन, अचेतन
 इड (ID), ईगो (Ego), एवां सुपर इगो (Super Ego) को मानव की सांरचना का अथभन्न भाग मानता
है– फ्रायड
 केवल दो प्रकार की मूल प्रवृनि है – मृत्यु एवां जीवन। यह नवचार है – फ्रायड
 रुथचयों, मूल प्रवृनियों एवां स्वाभानवक सांवेगों का स्वस्थ नवकास हो सकता है यदद – वातावरण जजसमें वह
रहता है , स्वस्थ हो

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 मूल प्रवृनि की प्रमुख नवशेषता पायी जाती है – समस्त प्राणणयों में पायी जाती है , यह जन्मजात एवां प्रकृ नत
प्रदत् त होती है ।
 व्यनि के स्वाभानवक नवकास को कहते हैं – अथभवृथि
 नवकास का अथभप्राय है – वह प्रकिया जजसमेंबालक पररपक्वता की ओर बढ़ता है ।
 सांवेग शरीर की वह जरर्ल दशा है जजसमें श्वास, नाड़ी तन्ि, ग्रस्तियाां, मानजसक स्थिनत, उत्तेजना, अवबोध
आदद का अनुभूनत पर प्रभाव पड़ता है तथा पेजशयाां ननददि ष्र् व्यवहार करने लगती हैं। यह कथन है – ग्रीन का
 ”वातावरण में सब बाह्य तत्व आ जाते हैं, जजन्होंने व्यनि को आरम्भ करने के समय में प्रभानवत ककया है।”
यह पररभाषा है – बुड वथट की
 ”नवकास के पररणामस्वरूप व्यनि में नवीन नवशेषताएां और नवीन योग्यताएां प्रगर् होती हैं।” यह कथन है–
हरलॉक का
 शैजक्षक दृथि से बालक के नवकास की अवस्थाएां हैं – शैशवावस्था, बाल्यावस्था, ककशोरावस्था
 शैशवावस्था की प्रमुख मनोवैज्ञाननक नवशेषता क्या है – मूल प्रवृत्यात्मक व् यवहार
 शैशवावस्था में सीखने की प्रकिया का स्वरूप होता है – सीखने की प्रकिया में तीव्रता होती है ।
 बाल्यावस्था का समय है – 5 से 12 वषट तक Bal Vikas Shiksha Shastra Notes
 बाल्यावस्था की प्रमुख मनोवैज्ञाननक नवशेषता क्या है – सामूद हकता की भावना
 बाल्यावस्था में सामान्यत: बालक का व्यनित्व होता है – बदहमुख
ट ी व् यनित्व
 बाल्यावस्था में जशक्षा का स्वरूप होना चादहए – सामूदहक खेलों एवां रचनात्मक कायों के माध्यम से
जशक्षा दी जानी चादहए।
 मानव की वृथि एवां नवकास की प्रकियाननम्न में से ककस जसिान्त पर आधाररत है – नवकास की ददशा
का जसिान्त, परस्पर सम्बन्ध का जसिान्त, व् यनिगत थभन्नताओां का जसिान्त
 ”बालक की अथभवृथि जैनवकी ननयमों के अनुसार होती है।” यह कथन है – हरलॉक का
 ननम्न में से कौन-सा कारक व्यनि की वृथि या नवकास को प्रभानवत करता है – ग्रीन का
 ”पयाटवरण बाहरी वस्तु है जो हमें प्रभानवत करती है।” यह नवचार है – रॉस का
 बुथि-लब्धब्ध के जलए नवजशष्र् श्रेय ककस मनोवैज्ञाननक को जाता है – स्र्नट
 शैशवावस्था को जीवन का सवाटथधक महत्वपूणट काल क्यों कहा जाता है – यह अवस्था वह आधार है
जजस पर बालक के भावी जीवन का ननमाटणहोता है ।
 जैसे-जैसे बालक की आयु का नवकास होता है वैसे-वैसे उसके सीखने का िम ननम्नजलणखत की ओर
चलता है – सूझ -बूझ की ओर
 ननम्न में से कौन-सा कथन सही नहीं है – नवकास सांख्यात्मक
 ननम्न में से कौन-सा कथन सही है – वृथ ि, नवकास को प्रभानवत करती है ।
 जजस आयु में बालक की मानजसक योग्यता का लगभग पूणट नवकास हो जाता है, वह है – 14 वषट

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 ”मष्ष्तष्क द्वारा अपनी स्वयां की कियाओां का ननरीक्षण ककया जाता है।” – आत् म-ननरीक्षण नवथध
 नवकासात्मक पिनत को कहते हैं – उत् पनिमूलक नवथध
 प्रयोगात्मक नवथध में सामना नहीं करना पड़ता है – समस्या का चुनाव
 मानव नवकास जजन दो कारकों पर ननभटर करताहै, वह है – जैन वक और सामाजजक
 जशक्षक बालकों की पाि में रुथच उत्पन्न कर सकता है – सांव ेग ों से
 बैयनिक भेदों का अध्ययन तथा सामान्यीकरण का अध्ययन ककया जाता है – नवभेदात्मक नवथध में
 एक माता-नपता के अलग-अलग रां ग की सांतान होती हैं, क्योंकक – जीव कोष के कारण
 बाल नवकास को सबसे अथधक प्रेररत करने वाला प्रमुख घर्क है – बड़ा भवन
 बाल नवकास को प्रेररत करने वाला घर्क नहीं है – पररपक्वता
 वातावरण के अन्तगटत आते हैं – हवा, प्रकाश, जल
 ककतने माह का जशशु प्रौढ़ व्यनि की मुख मुद्रा को पहचानने लगता है – 4-5 मास का जशशु
 मानजसक नवकास के जलए अध्यापक का कायट है – बालकों को सीखने के पूरे–पूरे अवसर प्रदान करें ।
छाि-छािाओांके शारीररक स्वास््य की ओर पूरा-पूरा ध्यान दें । व् यनिगत भेदों की ओर ध्यान दे त े रृए
उनके जलए समुथचत वातावरण की व्यवस्था करें ।
 शैशवावस्था होती है – जन् म से 7 वषट तक
 वार्सन ने नवजात जशशु में मुख्य रूप में ककन सांवेगों की बात कही है – भय, िोध व स्नेह
 जब माता-नपता के बच्चे उनके नवपरीत नवशेषताओां वाले नवकजसत होते हैं, तो यहाां पर जसिान्त लागू
होता है – प्रत् यागमन का
 समानता के ननयम के अनुसार माता-नपता जैसे होते हैं, उनकी सन्तान भी होती है – माता-नपता
जैस ी Bal Vikas Shiksha Shastra Notes
 जशशु का नवकास प्रारम्भ होता है – गभटकाल में
 सामाजजक स्थिनत वांशानुिमणीय – होती है ।
 बालक की मूल शनियों का प्रधान कारक है – वांशानुिम
 वांश का बुथि पर प्रभाव देखनेके जलए सैननकों के वांशज का अध्ययन ककया – गोडाडट ने
 मूल प्रवृनि का प्रतीक होता है – सांव ेग
 बाल नवकास की दृथि से सवाटथधक समस्या का काल होता है – शैशवावस्था
 ”बालक की अथभवृथि जैनवकीय ननयमों के अनुसार होती है।” यह कथन है – िोगमैन का
 बालक के नवकास को जो घर्क प्रेररतनहीं करता है, वह है – वांशानुिम या वातावराण् दोनों की नहीं।
 ककसके नवचार से शैशवावस्था में बालक प्रेम की भावना, काम प्रवृनि पर आधाररत होता है – फ्रायड
 ”वांशानुिम माता-नपता से सन्तान को प्राप्त होने वाले गुणों का नाम है।” यह पररभाषा है – रूथ बैंदडक्र्
की

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 ”नवकास के पररणामस्वरूप व्यनि में नवीन नवशेषताएां और नवीन योग्यताएां प्रस्फुरर्त होती है।” यह
कथन है – हरलॉक का
 ”वातावरण वह प्रत्येक वस्तु है, जो व्यनि के जीन्स के अनतररक्त प्रत्येक वस्तु को प्रभानवत करती है।”
यह कथन है – एनास्र्ासी का
 ”वांशानुिम हमें नवकजसत होने की क्षमता प्रदान करता है।” यह कथन है – लेब्ध िस का
 जीवन की प्रत्येक घर्ना का वांशानुिम एवां वातावरण से ककस नवद्वान ने सांबांथधत ककया है – पेज एवां
मैक ाइवर ने
 यह मत ककसका है –”जशक्षक को अपने कायट के सफल सम्पादन के जलए व्यावहाररक मनोनवज्ञान का
ज्ञान होना चादहए।” – माण् र्ेसरी का
 वतटमान समय में नवद्यालयों में मैिी और प्रसन्नता का जो वातावरण ददखता है, उसका कारण है –
मनोवैज्ञाननक उपचार
 यह नवचार ककसका है –”क्योंकक दो बालकों में समान योग्यताएां या समान अनुभव नहीं होते हैं,
इसीजलए दो व्यनियों में ककसी वस्तु या पररस्थिनत का समान ज्ञान होने की आशा नहीं की जा
सकती।” – हरलॉक का
 लड़ककयों में बाह्य पररवतटन ककस अवस्था में होने लगते हैं – ककशोरावस्था
 बालक के सामाजजक नवकास में सबसे महत्वपूणट कारक हैं – वातावरण
 व्यनिगत भेद को ज्ञात करने की नवथधयाां हैं – बुथ ि परीक्षण, व् यनि इनतहास नवथध, रूथच परीक्षण
 बालक से यह कहना ‘घर गन्दा मत करो’ कैसा ननदेश है – ननषेधात्मक
 बाल्यावस्था के दो भाग कौन-कौन से हैं – पूव ट बाल् यावस्था तथा उत्तर बाल्यावस्था
 सात वषट की आयु में परृांचते-परृांचते एक सामान्य बालक का शब्द भिार हो जाता है, लगभग –
6000 शब्द
 सांकल्प शनि के ककतने अांग हैं – तीन
 बालक के समाजीकरण का प्राथथमक घर्क है – िीड़ा स्थल
 बालक के चाररकिक नवकास के स्तर हैं – मूल प्रवृत्यात्मक, पुरस्कार व दण्ड, सामाजजकता
 उत्तर बाल्यकाल का समय कब होता है – 6 से 12 वषट तक
 ”बालक की शनि का वह अांश जो ककसी काम में नहीं आता है, वह खेलों के माध्यम से बाहर ननकाल
ददया जाता है।” यह त्य कौन-सा जसिान्त कहता है – अनतररक्त शनि का जसिान्त
 भाषा नवकास के नवथभन्न अांग कौन से हैं – अक्षर ज्ञान, सुनकर भाषा समझना, ध्वनन पैदा करके भाषा
बोलना Bal Vikas Shiksha Shastra Notes
 स्र्नट के अनुसार खेल क्या है – खेल एक ऐस्तिक, आत्म-ननयन्त्रित किया है ।
 सांवेगात्मक स्थिरता का लक्षण है – भीरू

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 अथभप्रेरणा का महत्व है – रूथच के नवकास में, चररि ननमाटण में, ध्यान के न्द्रित करने में
 भाषा नवकास के िम में अन्त्रि िम (सोपान) है – भाषा नवकास की पूणाटव स्था
 जशक्षा का कायट है – अजजि त रूथचयों को स्वाभानवक बनाना।
 बालक के सामाजजक नवकास में सबसे महत्वपूणट कारक कौन-सा है – वातावरण
 सांवेगात्मक नवकास में ककस अवस्था में तीव्र पररवतटन होता है – ककशोरावस्था
 बालक का शारीररक, मानजसक, सामाजजक और सांवेगात्मक नवकास ककस अवस्था में पूणटता को प्राप्त
होता है – ककशोरावस्था
 चररि को ननश्चित करने वाला महत्वपूणट कारक है – मनोरां जन सम् बन्धी कारक
 जजस आयु मेंबालक की मानजसक योग्यता का लगभग पूणट नवकास हो जाता है, वह है – 14 वषट
 जशक्षा की दृथि से बाल की महत्वपूणट आवश्यकता क्या है – बालकों के साथ मनोवैज्ञाननक व् यवहार की
आवश्यकता
 मानव शरीर का आकार ककस ग्रस्ति की सकियता से बढ़ता है – नपनीयल ग्रस्ति से
 बालक की वृथि रूक जाती है – शारीररक पररपक् वता प्राप्त करने के बाद
 ”दो बालकों में समान मानजसक योग्यताएां नहीं होती।” यह कथन है – हरलॉक का
 ”सांवेदना ज्ञान की पहली सीढ़ी है।” यह – मानजसक नवकास है ।
 तकट, जजज्ञासा तथा ननरीक्षण शनि का नवकास होता है – 11 वषट की आयु में
 “Introduction of Psychology” नामक पुस्तक जलखी है – दहलगाडट तथा एर्ककसन ने
 व्यनि के स्वाभानवक नवकास को कहते हैं – अथभवृथि
 ‘ईमोशन’ शब्द का अथट है – उत् तेजजत करना, उथल-पुथल पैदा करना, हलचल मचाना।
 ‘सांवेग अथभप्रेरकों का भावनात्मक पक्ष है।’ यह कथन है – मैक् डू गल का
 ‘सांवेग प्रकृनत का हृदय है।’ यह कथन है – मैक् डू गल का
 ‘Physical and Character’ पुस्तक के लेखक हैं – थानटडाइक
 सांवेगहीन व्यनि को माना जाता है – पशु
 ”सत्य अथवा त्यों के दृथिकोण से उत्तम प्रनतकिया का बल ही बुथि है।” बुथि की यह पररभाषा है –
थानटडाइक की
 साांवेनगक स्थिरता में ककस वस्तु के प्रनत ननवेद अथधगम को बढ़ाते हैं – साहस, जजज्ञासा, भौनतक वस्तु
 कोई व्यनि डॉक्र्र बनने की योग्यता रखता है तो कोई व्यनि जशक्षक बनने की योग्यता। यह ककस
कारण से होती है – अथभरूथच के कारण
 बाल्यावस्था में जशक्षा का स्वरूप होना चादहए – सामूदहक खेलों एवां रचनात्मक कायों के माध्यम से
जशक्षा दी जानी चादहए।

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 एडोलसेन्स शब्द लैरर्न भाषा के एडोलेजसयर किया से बना है, जजसका तात्पयट है – पररपक्वता का
बढ़ना
 ककशोरावस्था का समय है – 12 से 18 तक
 मानव की वृथि एवां नवकास की प्रकिया ननम्न में से ककस जसिान्त पर आधाररत है – नवकास की
ददशाका जसिान्त, परस्पर सम्बन्ध का जसिान्त, व् यनिगत थभन्नताओां का जसिान्त
 बालकों को वांशानुिम से प्राप्त होती है – वाांछ नीय एवां अवाांछनीय आदतें
 पयाटवरण का ननमाटण रृआ है – परर + आवरण
 बोररिं ग के अनुसार जीन्स के अनतररक्त व्यनि को प्रभानवत करने वाली वस्तु है – वातावरण
 बुडवथट के अनुसार वातावरण का सम्बन्ध है – बाह्य तत्वों से
 ककशोर की जशक्षा में ककस बात पर नवशेष ध्यानाकषटण की आवश्यकता होती है – यौन जशक्षा पर, पूण ट
व् यावसाथयक जशक्षा पर, पयाटप्त मानजसक नवकास पर
 ककशोरावस्था की नवशेषताओां को सवोत्तम रूप में व्यक्त करने वाला एक शब्द है – पररवतटन
 ककशोरावस्था प्राप्त हो जाने पर, ननम्न में से कौन-सा गुण बालक में नहीं आता है – अथधक समायोजन
का
 ककशोरावस्था के नवकास को पररभानषत करने के जलए नबग एांड हण्र् ने ककस शब्द को महत्वपूणट माना
है – पररवतटन
 ककशोरावस्था में बालकों में सामाजजकता के नवकास के सन्दभट में कौन-सा कथन असत्य है – वे
पररवार के किोर ननयन्िण में रहना पसन्द करते हैं ।
 ननम्न में कौनसा कारक ककशोरावस्था में बालक के नवकास को प्रभानवत करता है – खान-
पान,वांशानुिम, ननयथमत ददनचयाट Bal Vikas Shiksha Shastra Notes
 ‘ददवास्वप्न’ ककस सांगिन तन्ि में नवकजसत रूप प्राप्त करता है – पलायन
 ”बालक की शनि का वह अांश जो ककसी काम में नहीं आता है, वह खेलों के माध्यम से बाहर ननकाल
ददया जाता है।” यह त्य कौन-सा जसिान्त कहलाता है – अनतररक्त शनिका जसिान्त
 ननरां कुश राजतन्ि में समाजीकरण की प्रकिया होगी – मन् द
 बालक के समाजीकरण में भूथमका होती है – पररवार की, नवद्यालय की, पररवेश की
 जजस बुथि का कायट सूक्ष्य तथा अमूतट प्रश्नों का थचन्तन तथा मनन द्वारा हल करना है, वह है – अमूत ट
बुथ ि
 ककशोरावस्था में रुथचयाां होती है – सामाजजक रूथचयाां, व् यावसाथयक रूथचयाां, व् यनिगत रूथचयाां
 जजस नवथध के द्वारा बालक को आत्म-ननदेशन के माध्य से बुरी आदतों को छु ड़वाने का प्रयास ककया
जाता है, वह नवथध है – आत् मननदेश नवथध
 ककस स्थिनत में समाजीकरण की प्रकिया तीव्र होगी – धमटन नरपेक्षता

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 सांवेगात्मक एवां सामाजजक नवकास के साथ-साथ चलने की प्रकिया को ककस नवद्वान ने स्वीकार ककया
है– िो एण् ड िो
 खेल के मैदान को ककस नवद्वान ने चररि ननमाटण का स्थल माना है – स्तिनर तथा हैरीमैन ने
 चररि को ननश्चित करने वाला महत्वपूणट कारक है – मनोरां जन सांब ांधी कारक
 समाजीकरण की प्रकिया को प्रभानवत करते है – जशक्षा, समाज का स्वरूप, आथथि क स्थिनत
 सामान्य बुथि बालक प्राय: ककस अवस्था में बोलना सीख जाते हैं – 11 माह
 पोषाहार योजना सम्बब्धित है – थमड डे मील योजना से
 थमड डे मील योजना का प्रमुख सांबांध है – के न् द्र से
 थमड डे मील योजना का प्रमुख लक्ष्य है – बालक को पोषण प्रदान करना।
 सामान्य ऊजाट में पोषण का अथट माना जाता है – सन् तुजलत भोजन से
 पोषण के प्रमुख पक्ष हैं – सन् तुजलत भोजन, ननयथमत भोजन
 पोषण का नवकृत रूप कहलाता है – कु पोषण
 एक जशक्षक को पूणट ज्ञान होना चादहए – पोषण का, पोषण के उपायों का, पोषक तत्वों का
 पोषण का सम्बन्ध होता है – शारीररक एवां मानजसक नवकास
 व्यापक अथट में पोषण का सम्बन्ध होता है – सन् तुजलत भोजन से, स्वास््यप्रद वातावरण एवां प्रकृनत से
 पोषण का अभाव अप्रत्यक्ष रूप से प्रभानवत करता है – सामाजजक नवकास को
 पोषण के अभाव में बालक का व्यवहार हो जाता है – थचड़थचड़ा, अमयाटददत
 सन्तुजलत भोजन का स्वरूप ननधाटररत होता है – आयु वगट के अनुस ार
 अनुपयुक्त भोजन उत्पन्न करता है – कु पोषण
 सन्तुजलत भोजन के जलए आवश्यक है – शुि ता एवां ननयथमतता
 पोषण में वृथि के उपाय होते है – भोजन से सम् बब्धित, पयाटवरण से सम् बब्धित
 पोषण के उपायों में प्रभावशीलता के जलए आवश्यक है – जशक्षक सहयोग, अथभभावक
सहयोग, नवद्याथी सहयोग
 ननम्नजलणखत में कौन-सी नवशेषता पोषण से सम्बब्धित है – सन् तुजलत भोजन
 सन्तुजलत भोजन के साथ पोषण के जलए आवश्यक है – स्वास््यप्रद वातावरण, उथचत
व् यायाम, खेलकूद
 वह उपाय जो पोषण पयाटवरणीय उपायों से सम्बब्धित है – पयाटप् त ननिं द्रा, पयाटप्त व् यायाम, स्वास््यप्रद
वातावरण
 सन्तुजलत भोजन की ताजलका में माांसाहारी एवां शाकाहारी बालकों की स्थिनत होती है – समान या
असमान दोनों की नहीं।
 1 से 3 वषट के बालक के जलए अन्न होना चादहए – 150 ग्राम

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 7 से 9 वषट के माांसाहारी एवां शाकाहारी बालकों के जलए अन्न होना चादहए – 250 ग्राम
 7 से 9 वषट के बाल को ककस स्वरूप के जलए 75 ग्राम हरी सस्थियों की आवश्यकता होती है –
शाकाहारी एवां माांसाहारी दोंनों के जलए
 सन्तुजलत भोजन की ताजलका में 1 से 9 वषट के जलए फलों की ताजलका में वजन होता है – एक
समान Bal Vikas Shiksha Shastra Notes
 सन्तुजलत भोजन में पोषक तत्व होते है – प्रोर्ीन, नवर्ाथमन, वसा
 प्रोर्ीन सामान्य रूप से होती है – दो प्रकार की
 माांस से प्राप्त प्रोर्ीन को कहते है – जन् तु जन्य प्रोर्ीन
 कौन-सा स्रोत वनस्पनतजन्य प्रोर्ीन का है – जौ
 क्वाजशयरकर नामक रोग उत्पन्न होता है – प्रोर्ीन की कमी से
 गन्ने के रस, अांगूर तथा खजूर से प्रमुख रूप से प्राप्त होती है – काबोज
 काबोज की अथधकता से कौन सा रोग उत्पन्न होता है – मोर्ापा, बदहजमी
 वसा के प्रमुख स्रोत हैं – वनस्पनत तेल व सूख े मेव े
 शरीर को अथधक शनि प्रदान करता है – वसा
 खननज लवणों की कमी से रक्त को नहीं थमल पाता है – हीमोग्लोनबन
 घेंघा नामक रोग उत्पन्न होता है – आयोदडन अथवा खननज लवण की कमी से
 नवर्ाथमन का आनवष्कार रृआ था – उन् नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में
 नवर्ाथमन ए की कमी से बालकों में कौंन-सा रोग होता है – रतौंधी
 नवर्ाथमन बी की कमी से होता है – बेर ी-बेरी रोग
 पेलाग्रा रोग ककस नवर्ाथमन की कमी से होता है – बी
 बी काम्पलेक्स कहा जाता है – B 1 , B 2, B 2 को
 नवर्ाथमन ‘सी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है – स्कवी
 नवर्ाथमन सी का प्रमुख स्िोत है – आांव ला
 स्तस्त्रयों में मृदुलास्थि रोग ककस नवर्ाथमन की कमी से होता है – नवर्ाथमन डी
 नवर्ाथमन डी की कमी से उत्पन्न होता है – सूख ा रोग
 सूखा रोग पाया जाता है – बाजलकाओां में
 नवर्ाथमन ई की कमी से स्तस्त्रयों में सम्भावना होती है – बाांझ पन, गभटपात
 नवर्ाथमन ई की कमी से उत्पन्न होने वाला रोग है – नपुांस कता
 नवर्ाथमन K का प्रमुख स्िोत है – के ला, गोभी, अण्डा
 नवर्ाथमन ‘के’ की सवाटथधक उपयोनगता होती है – गथभि णी स्िी के जलए, स्तनपान कराने वाली मदहलाओां
के जलए

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 रक्त का थक्का न जमने का रोग ककस नवर्ाथमन के अभाव से उत्पन्न होता है – नवर्ाथमन ‘के‘
 जल हमारे शरीर में ककतने प्रनतशत है – 70 प्रनतशत
 दूनषत जल के पीने से उत्पन्न रोग है – पीजलया, डायररया
 कायट करने के जलए ककस पदाथट की आवश्यकता होती है – काबोज की, काबोहाइड्रेर् की
 अध्यापक को पोषक के ज्ञान की आवश्यकता होती है – बाल नवकास के जलए, छािों के रोगों की
जानकारी के जलए, अथभभावकों को पोषण का ज्ञान प्रदान कराने के जलए।
 अथभभावकों को पोषण का ज्ञान कराने का सवोत्तम अवसर होता है – जशक्षक–अथभभावक गोष्िी Bal
Vikas Shiksha Shastra Notes
 पोषण की किया को बाल नवकास से सम्बि करने के जलए आवश्यक है – ननरन्तरता
 शारीररक नवकास के जलए ननरन्तरता के रूप में उपलब्ध होना चादहए – सन् तुजलत भोजन, उथचत व्यायाम
 अननरन्तरता का नवकास प्रकिया में प्रमुख कारक है – साधनों की अननरन्तरता
 एक बालक को सन्तुजलत भोजन की उपलब्धता सप्ताह में दो ददन होती है। इस अवस्था में उस बालक
का नवकास होगा – अननयथमत
 साधनों की ननरन्तरता में बालक नवकास की गनत को बनाती है – तीव्र
 साधनों की अननरन्तरता बाल नवकास को बनाती है – मांद
 एक बालक में नवद्यालय के प्रथम ददन अध्यापक एवां नवद्यालय के प्रनत अरूथच उत्पन्न हो जाती है तो
उसका प्रारस्तिक अनुभव माना जायेगा – दोषपूण ट
 सवोत्तम नवकास के जलए प्रारस्तिक अनुभवों का स्वरूप होना चादहए – सुख द
 एक बालक प्रथम अवसर पर एक नववाह समारोह में जाता है वहाां उसको अनेक प्रकार की नवसांगनतयाां
दृथिगोचर होती हैं तो माना जायेगा कक बालक का सामाजजक नवकास होगा – मांद गनत से
 जशक्षण कायट में बालक के प्रारस्तिक अनुभव को उत्तम बनाने का कायट करने के जलए जशक्षक को प्रयोग
करना चादहए – जशक्षण सूिों का
 परवती अनुभवों का सम्बन्ध होता है – पररणाम से
 परवती अनुभव का प्रयोग ककया जा सकता है – नवकासकी पररस्थिनत ननमाटण में, नवकास मागट को
प्रशस्त करने में
 बाल केन्द्रित जशक्षा में प्राथथमक स्तर पर सामान्यत: ककस नवथध का प्रयोग उथचत माना जायेगा – खेल
नवथध
 बाल केन्द्रित जशक्षा का प्रमुख आधार है – बालक का के न्द्र मानना
 बाल केन्द्रित जशक्षा में ककसकी भूथमका गौण होती है – जशक्षक की
 बाल केष्न्द्रत जशक्षा में प्रमुख भूथमका होती है – बालक की

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 बाल केन्द्रित जशक्षा का उद्देश्य होता है – बालक की रूथचयों का ध्यान, अन्तननि दहत प्रनतभाओां का
नवकास,गनतनवथधयों का नवकास
 बाल केन्द्रित जशक्षा में जशक्षा प्रदान की जाती है – कनवताओां एवां कहाननयों के रूप में
 बाल केन्द्रित जशक्षा में प्रमुख स्थान ददया जाता है – गनतनवथधयों एवां प्रयोगों को
 प्रगनतशील जशक्षा का आधार होता है – वैज्ञ ाननकता व तकनीकी
 जशक्षा में कम्प्यूर्र का प्रयोग माना जाता है – प्रगनतशील जशक्षा
 जशक्षा में प्राथथमक स्तर पर खेलों का प्रयोग माना जाता है – बाल के न्द्रित जशक्षा
 बालकों का वैज्ञाननक दृथिकोण नवकजसत करना उद्देश्य है – बाल के न्द्रित जशक्षा एवां प्रगनतशील जशक्षा
का
 जशक्षण प्रकिया में जशक्षण यन्िों का प्रयोग ककसकी देन माना जाता है – प्रगनतशील जशक्षा की
 समाज में अन्धनवश्वास एवां रूष्ऺढवाददता की समानप्त के जलए आवश्यक है – प्रगनतशील जशक्षा
 जशक्षण अथधगम प्रकिया को प्रभावी बनाना उद्देश्य है – बाल के न्द्रित जशक्षा एवां प्रगनतशील जशक्षा का
 जशक्षण अथधगम सामग्री में प्रोजेक्र्र, दूरदशटन एवां वीदडयो र्ेप का प्रयोग करना प्रमुख रूप से सम्बब्धित
है– प्रगनतशील जशक्षा का
 बाल केन्द्रित जशक्षा में एवां प्रगनतशील जशक्षा में पाया जाता है – घननष्ि सम्बन्ध
 नवशेष बालकों के जलए उनकी शैजक्षक आवश्यकताओां की पूनति की जाती हैं – बाल के न्द्रित जशक्षा
में Bal Vikas Shiksha Shastra Notes
 पाठ्यिम नवनवधता देन है – बाल केन्द्र ित जशक्षा एवां प्रगनतशील जशक्षा की
 छािों के सवाांगीण नवकास का उद्देश्य ननदहत है – बाल के न्द्रि त जशक्षा एवां प्रगनतशील जशक्षा में
 एक नवद्यालय में जानत के आधार पर बालकों को उनकी रूथच एवां योग्यता के आधार पर जशक्षा प्रदान
की जाती है। इस जशक्षा को माना जायेगा – बाल केन्द्र ित जशक्षा
 बालकों को नवद्यालय में ककसी जानत या धमट का भेदभाव ककए नबना बालकों को उनकी रूथच एवां
योग्यता के अनुसार जशक्षा प्रदान की जाती हैं। उनकी इस जशक्षा को माना जायेगा – आदशटवादी जशक्षा
 बाल केन्द्रित जशक्षा एवां प्रगनतशील जशक्षा है – एक-दूसरे की पूरक
 बाल केन्द्रित जशक्षा एवां प्रगनतशील जशक्षा के नवकास में महत्वपूणट योगदान है – मनोनवज्ञान, नवज्ञान, व
तकनीकी का
 एक बालक की लम्बाई 3 फुर् थी, दो वषट बाद उसकी लम्बाई 4 फुर् हो गयी। बालक की लम्बाई में होने
वाले पररवतटन को माना जायेगा – वृथ ि एवां नवकास
 स्तिनर के अनुसार वृथि एवां नवकास का उदेश्य है – प्रभावशाली व् यनित्व
 पररवतटन की अवधारणा सम्बब्धित है – वृथ ि एवां नवकास से
 वृथि एवां नवकास का ज्ञान एक जशक्षक के जलए क्यों आवश्यक हैं – सवाांगीण नवकास के जलए

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 िोगमैन के अनुसार वृथि का आशय है – जैन वकीय सांयमों के अनुसार वृथि
 सोरे न्सन के अनुसार वृथि सूचक है – धनात्मकता का
 सोरे न्सन के अनुसार वृथि मानी जाती है – पररवतटन का आधार
 गैसेल के अनुसार सांकुथचत दृथिकोण है – वृथ ि का
 गैसेल के अनुसार व्यापक दृथिकोण है – नवकास का
 ननम्नजलणखत में कौन-सा त्य गैसेल के नवकास के अवलोकन रूपों से सम्बब्धित है – शरीर
रचनात्मक,शरीर किया नवज्ञानात्मक, व् यवहारात्मक
 ”नवकास के अनुरूप व्यनि में नवीन योग्यताएां एवां नवशेषताएां प्रकर् होती है” यह कथन है –श्रीमती
हरलॉक का
 सोरे न्स के अनुसार नवकास है – पररपक्वता एवां कायट सुधार की प्रकिया
 अथभवृथि वृथि की प्रकिया चलती है – गभाटवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक
 अथभवृथि में होने वाले पररवतटन होते है – शारीररक
 अथभवृथि में होने वाले पररवतटन होते है – मािात्मक
 अथभवृथि में होने वाले पररवतटन होते है – रचनात्मक
 अथभवृथि का िममानव को ले जाता है – वृि ावस्था की ओर
 अथभवृथि कहलाती है – कोजशकीय वृथि
 अथभवृथि एक धारणा है – सांक ीणट
 अथभवृथि का सम्बन्ध है – शारीररक पररवतटन से
 अथभवृथि एक है – साधारण प्रकिया
 अथभवृथि की प्रकिया सम्भव है – मापन
 नवकास की प्रकिया चलती है – गभाटवस्था से बाल्यावस्था तक
 नवकास की प्रकिया में होने वाले पररवतटन माने जाते है – शारीररक, मानजसक, सामाजजक
 वृथिएवां नवकास के सन्दभट में सत्य है – अथभवृथि बाद में होती है व नवकास पहले होता है ।
 नवकास की प्रकिया में होने वाले पररवतटन माने जाते है – गुण ात्मक
 नवकास की प्रकिया के पररणाम हो सकते हैं – रचनात्मक एवां नवध्वांसात्मक
 नवकास का प्रमुख सम्बन्ध है – पररपक्वता से
 नवकास के क्षेि को माना जाता है – व्यापक प्रकिया से
 नवकास की प्रकिया को करिनाई के आधार पर स्वीकार ककया जाता है – जरर्ल प्रकिया के रूप में
 नवकास की प्रकिया में समावेश होता है – वृथ ि एवां पररपक् वता का
 नवकास की प्रकिया का सम्भव है – भनवष्यवाणी करना
 िो एण्ड िो के अनुसार सांवेग है – मापात्मक अनुभव

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 ‘सांवेग पुनजाटगरण की प्रकिया है।” यह कथन है – िो एण्ड िो का
 ‘सांवेग शरीर की जरर्ल दशा है।’ यह कथन है – जेम् स ड्रे कर का
 सांवेगों में मानव को अनुभूनतयाां होती है – सुख द व दु :खद
 सांवेगों की उत्पनि होती है – पररस्थिनत एवां मूलप्रवृनि के आधार पर
 मैक्डू गल के अनुसार सांवेग होते हैं – चौदह Bal Vikas Shiksha Shastra Notes
 भारतीय नवद्वानों के अनुसार सांवेगों के प्रकार है – दो
 भारतीय नवद्वानों के अनुसार सांवेग है – रागात्मक सांवग

 सम्मान, भनि और श्रिा सम्बब्धित है – रागात्मक सांवग े से
 गवट, अथभमान एवां अथधकार सम्बब्धित है – द्वे षात्मक सांवग
े से
 िोध का सम्बन्ध ककस मूल प्रवृनि से होता है – युय ुत् सा
 ननवृनि मूल प्रवृनि के आधार पर कौन-सा सांवेग उत्पन्न होता है – घृण ा
 आत्म अथभमान सांवेग ककस मूल प्रवृनि के कारण उत्पन्न होता है – आत् म गौरव
 कामुकता की स्थिनत के जलए कौन-सी प्रवृनिउत्तरदायी है – काम प्रवृनि
 सन्तान की कामना नाम मूल प्रवृनि कौन-सा सांवेग उत्पन्न करती है – वात् सल्य
 दीनता मानव में ककस सांवेग को उत्पन्न करती है – आत् महीनता
 भोजन की तलाश ककस सांवेग से सम्बब्धित है – भूख से
 रचना धथमि ता मूल प्रवृनि से कौन-सा सांवेग नवकजसत होता है – कृ नतभाव
 मैक्डू गल के अनुसार हास्य है – सांव ेग एवां मूल प्रवृनि
 सांग्रहणमूल प्रवृनि का सम्बन्ध है – अथधकार से
 थकान के कारण बालक के व्यवहार में कौन-सा सांवेग उदय हो सकता है – िोध
 सांवेगात्मक अस्थिरता पायी जाती है – कमजोर बालकों में, बीमार बालकों में
 सांवेगात्मक स्थिरता ककन बालकों में देखी जातीहै – प्रनतभाशाली बालकों में
 ककस पररवार में बालक में सांवेगात्मक स्थिरता उत्पन्न होगी – सुर जक्षत पररवार में, प्रनतभाशाली
पररवारमें,सुखद पररवार में
 माता-नपता का ककस प्रकार का व्यवहार बालकों के जलए सांवेगात्मक स्थिरता प्रदान करता है –
सकारात्मक
 ककस सामाजजक स्थिनत के बालकों में सांवेगात्मक अस्थिरता पायी जाती है – ननम् न आथथि क स्थिनत
में,गरीब एवां दजलत पररवारों में
 एक बालक को अपने ककये जाने वाले कायों पर समाज में प्रशांसा एवां पुरस्कार प्राप्त नहीं होता है, तो
उसका व्यवहार होगा – सांव ेगात्मक अस्थिरता से पररपूण ट

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 बालकों में सांवेगात्मक स्थिरता उत्पन्न करने के जलए जशक्षक को करना चादहए – सकारात्मक व् यवहार
एवां आत्मीय व्यवहार
 सांवेगात्मक स्थिरता उत्पन्न करने के जलए नवद्यालय में छािोंको प्रदान करना चादहए –
पुर स्कार, प्रेरणा,प्रशांसा
 नवद्यालय में सांवेगात्मक स्थिरता प्रदान करने के जलए ककस प्रकार की गनतनवथधयाां आयोजजत करनी
चादहए– नपकननक, खेल, पयटर्न Bal Vikas Shiksha Shastra Notes
 सांवेगात्मक अस्थिरता प्रत्यक्ष एवां अप्रत्यक्ष रूप से प्रभानवत करती है – शारीररक नवकास को, मानजसक
नवकास को, सामाजजक नवकास को
 आश्चयट सांवेग का उदय एक बालक में ककस मूल प्रवृनि के कारण होता है – जजज्ञासा
 ”समाजीकरण एवां व्यनिकरण एक ही प्रकिया के पहलू है।” यह कथन है – मैक ाइवर का
 ”नवद्यालय समाज का लघु रूप है।” यह कथन है – ड्यूव ी का
 ”वह प्रकिया जजससे बालक अपने समाज में स्वीकृत तरीकों को सीखता है तथा अपने व्यनित्व का अांग
बनाता है।” उसे कहते हैं – सामाजजक पररवतटन
 बालक के समाजीकरण की सबसे महत्वपूणट सांस्था है – पररवार
 बालक के समाजीकरण के जलए प्राथथमक व्यनि कहा गया है – माता को
 बालक के समाजीकरण चि का अन्त्रिम पड़ाव नबन्दु अपने में समादहत करता है – पास-पड़ोस को
 ”समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है, जो सीखने वाले को सामाजजक कायट करने के योग्य बनाता
है।”यह कथन है – जॉनसन का
 समाजीकरणका आशय रॉस के अनुसार बालकों में कायट करने की इच्छा नवकजसत करना है – समूह में
अथवा एक साथ कायट करने में
 समाजीकरण को सामाजजक अनुकूलन की प्रकिया ककस नवद्वान ने स्वीकार की है – रॉस ने
 समाजीकरण के माध्यम से व्यनि समाज का कैसा सदस्य बनता है – मान् य, कु शल, सहयोगी
 एक बालक की समाजीकरण की प्रकिया ककस पररस्थिनत में उथचत होगी – पोषण में
 एक पररवार में बालकों के साथ सहानुभूनत एवां प्रेम व्यवहार ककया जाता है, परन्तु बालक के कायों को
सामाजजक स्वीकृनत नहीं थमल पाती है, ऐसी स्थिनत में होगा – मन् द समाजीकरण
 नवद्यालय में समाजीकरण की प्रकिया के जलए बालकों को कायटददया जाना चादहए – सामूदहक कायट
 समाजीकरण में प्रमुख रूप से सहयोगी त्य है – सहकाररता
 ननम्नजलणखत में ककस देश के बालक में समाजीकरण की प्रकिया पायी जाती है – भारतीय बालकों में
 बालकों की सामाजजक कायट में भाग लेने की अनुमनत थमलने पर समाजीकरणकी प्रकिया होती है – तीव्र
 जजस समाज में सामाजजक नवज्ञान जशक्षण को प्रथम नवषय के रूप में मान्यता प्रदान की जाती है उस
समाज में बालक की समाजीकरणकी प्रकिया होती है – तीव्र व सवोत्तम

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
 समाजीकरण की प्रकिया में प्रमुख रूप से योगदान होता है – पुर स्कार का एवां दण्ड का
 नवद्यालय में ककस प्रकार का जशक्षण समाजीकरण का मागट प्रशस्त करता है – गनतनवथध आधाररत
जशक्षण,खेल आधाररत जशक्षण समूह जशक्षण
 समाजीकरण की प्रकिया में योगदान होता है – मूल प्रवृनि एवां जन्मजात प्रवृब्धयों का, बालक के
व् यनित्व का
 मानव जैनवकीय प्राणी से सामाजजक प्राणी कब बन जाता है – सामाजजक अन्त:किया
द्वारा, समाजीकरण द्वारा, सामाजजक सम् पकट द्वारा
 सामान्य रूप से बालकों द्वारा अमयाटददत आचरणों को नहीं सीखा जाता है – सामाजजक अस्वीकृनत
 पररवार को झूले की सांज्ञा ककसने दी – गोल् डस्र्ीन ने
 बालक की पररवार में समाजीकरण की प्रकिया सम्भव होती है – अनुकरण द्वारा
 नवद्यालय में बालक के समाजीकरण की प्रकिया होती है – आपसी अन्त:किया द्वारा, नवथभन्न
सांस्कृ नतयों के मेल द्वारा, नवथभन्न सभ्यताओां के मेल द्वारा
 गोल्डस्र्ीन के अनुसार समाजीकरण की प्रकियासम्भव होती है – सामाजजक नवश्वास एवां सामाजजक
उत् तरदाथयत्व द्वारा
 ककस समाज में रहने वाले बालक का समाजीकरण तीव्र गनत से सम्भव होता है – जशजक्षतसमाज में
 खेलकूद में समाजीकरण की प्रकिया की तीव्रताका आधार होता है – अन् त:किया, प्रेम एवां
सहानुभनू त,सहयोग
 जजस समाज में रीनत-ररवाज एवां परम्पराओांका अभाव पाया जाता है – मन् द
 ननम्नजलणखतमें से ककस स्थान के बालक की समाजीकरण प्रकिया तीव्र गनत से होगी – मथुरा

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ु पर संपिक िरें – किकति गुप्ता
तो दोस्तो आप सभी के जलये आगामी प्रनतयोगी परीक्षा के जलये नननतन गुप्ता की तरफ
से All The Best ! रोज हम आपको प्रनतयोगी परीक्षा के जलये नई पोस्ट उपलब्ध
कराऐांग े , तो Regular आप हमारी बेब साइर् नबजजर् करते रदहये !

आपका अपना – नननतन गुप्त ा

प्रनतयोगी परीक्षाओां से सांबांथधत सभी प्रकार की PDF एवां समान्य


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स्वागत है !

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