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भारत म पहली बार िकसी पु क का शीषक अॉनलाइन वोिटं ग के मा म से

चुना गया
पूव रा पित डॉ. ए पी जे अ ु ल कलाम भारत के िविश नेता ह। वे ब त ही लोकि य
ह, िवशेषकर युवाओं म, और फ़ेसबुक पर अठारह लाख लोग उ ‘फ़ॉलो’ करते ह।
डॉ. कलाम को ितिदन तीन सौ ई-मेल ा होते ह। सोशल मीिडया पर उनकी
सि य मौजूदगी ने उनको पाठकों से एक नए ढं ग से जुड़ने का अवसर दान िकया,
जो एक अनूठी पहल है । इस पु क के िलए डॉ. कलाम ने अं ेज़ी के पाँ च शीषक
चुने। ये पाँ चों शीषक बारह िदनों तक अॉनलाइन उपल रहे और पाठकों ने उनम से
अपने मनपस शीषक को वोट िदया। 41,675 लोगों ने इस अॉनलाइन वोिटं ग म भाग
िलया और सबसे अिधक लोगों ने फ़ोज योर यूचर शीषक को पस िकया और
िह ी म शीषक बना, आपका भिव आपके हाथ म।
आपका भिव आपके हाथ म उन मु ों पर के त है जो दे श के युवाओं के
िलए मह पूण ह या िज लेकर वे परे शान और िच त ह। पु क की भूिमका म डॉ.
कलाम िलखते ह, ‘‘इस पु क म जो िविभ मु े उठाए गए ह वे इ धनुष के अलग-
अलग रं गों जैसे ह, जो अलग होते ए भी एक ही काश से िनकले ह। और यह काश
युवाओं की आ ा, उनकी ईमानदारी, आशाओं, उ ं ठाओं का काश है । इस पु क
के मा म से मेरा यास है िक युवाओं के िदलो- िदमाग और आ ा की काश- ोित
न केवल दी रहे , ब उसकी लौ उ उपल यों की ऊँची उड़ान भरने के िलए
े रत करे ।’’
अवुल पिकर जैनुलाअबदीन अ ु ल कलाम जहाँ एक ओर ब त ही सरल कृित
के इं सान ह तो दू सरी ओर एक वै ािनक होने के नाते िव ान और ौ ोिगकी म ढ़-
िव ास रखते ह। उनका मानना है िक मनु की आ रक अ ाई को जब िव ान की
श से जोड़ा जाता है तो अिधक से अिधक लोगों का भला होता है ।
अद साहस, अि की उड़ान, तेज ी मन, टिनग ाइं ट्स, भारत की
आवाज़, ेरणा क िवचार उनकी अ लोकि य पु क ह।
आपका भिव आपके हाथ म

ए पी जे अ ु ल कलाम
अनुवाद
ऋिष माथुर एवं रमेश कपूर

ISBN : 978-93-5064-281-8
संशोिधत सं रण : 2014
© ए पी जे अ ु ल कलाम
© िह ी अनुवाद : राजपाल ए स ज़
AAPKA BHAVISHYA AAPKE HAATH MEIN
(Inspiration & Personal Growth) by A P J Abdul Kalam
(Hindi edition of Forge Your Future)
कवर की त ीर सौज : समर म ल, रा पित भवन

राजपाल ए सज़
1590, मदरसा रोड, क ीरी गेट-िद ी-110006
फोन : 011-23869812, 23865483,
फै : 011-233867791
website : www.rajpalpublishing.com
e-mail : sales@rajpalpublishing.com
उन सभी युवाओं को
जो समय िनकाल कर मुझे िलखते ह
और अपने भेजते ह

अाभार
भूिमका

सफलता की ओर
यं पर भरोसा रख
सपनों का मह
समय का सदु पयोग
असफलता से आगे
साहस की पहचान
अद साहस
क न कदम
इं शा ाह
िकस पर है सारा दारोमदार
अि तीय ह आप
अि की उड़ान

बेहतर समाज की ओर
सोशल मीिडया का बढ़ता भाव
नेकी की राह
ाचार का सा ा
संयु प रवार का मह
गुणों की म का
भला है दे ना
कलािवहीन संसार जैसे हवा िबना गु ारा
पेड़ लगाएँ खुशहाली लाएँ

नारी सश करण की ओर
ई र सृि की स ूणता का तीक
भेदभाव का िशकंजा
रोंगटे खड़े कर दे ने वाली स ाई
ज त है माँ के क़दमों म

मज़बूत भारत की ओर
भावी नेतृ का िनमाण
बिलदान से होता है रा िनमाण
मन-म का एक र
जड़ों को सींचना होगा
नई पीढ़ी के नए नर
कब गा सकूँगा म भारत का गीत

वैि क ित धा की ओर
हम होंगे कामयाब
भारत और चीन
वै ीकरण का बदलता प र
आभार

िपछले कई वष से मेरी टीम के सद पूरे समपण और लगन से काम कर रहे ह। मेरे


भाषण तैयार करने म वे मेरी मदद करते ह और जहाँ भी म जाता ँ , वे मेरे साथ जाते
ह। म हज़ारों लोगों से िमलता ँ , उनसे बातचीत करता ँ , उन सबको वे ब त ही
बारीकी से नोट करते ह। उनके बनाए ए नोट् स मेरे िलए एक ोत बन जाते ह िजनके
आधार पर अपनी सोच और मने ा सीखा उस पर िवचार करता ँ । कई बार म
सोचता ँ िक ये सब मेरे साथ काम ों करते ह? आज तक मुझे इसका कोई उ र
नहीं िमला तो शायद यह उनकी ेम वृि ही है और आपस म मेरे और उनके बीच
एक तालमेल बैठ चुका है ।
शेरेडन, साद, धन ाम, पोनराज और जनरल ािमनाथन—म ेक का
िदल से आभारी ँ । मुझे ब त अफ़सोस है िक यह पु क कािशत होने से पहले ही
जनरल आर. ािमनाथन चल बसे। मेरे दो डॉ. अ ण ितवारी और धन ाम शमा
ने इस पु क को तैयार करने म उ ेखनीय योगदान िदया। हज़ारों ई-मेल को पढ़कर
धन ाम शमा ने उ िवषयानुसार अलग-अलग वग म संयोिजत िकया। िवषय की
बेहतर ुित के िलए अ ण ने ब त मेहनत से अनेक ई-मेल को एक साथ स िलत
िकया और मेरे िवचारों को वा ों म अिभ करने म सहायता की।
मुझे राजपाल ए स ज़, िवशेषकर मीरा जौहरी, के साथ काम करने म ब त
खुशी ई।
मने अपने माता-िपता से यह बात सीखी िक हमारी िज़ गी जैसी भी है , अ ी या
बुरी, इस बात पर आधा रत है िक हम ई र के ित िकतने कृत ह। म उन सभी
लाखों युवाओं का आभारी ँ जो समय िनकालकर मुझे िलखते ह या अपने मुझे
भेजते ह।
हमारी कृत ता की पहचान यह नहीं है िक हम ई र के िदए वरदानों के बारे म
ा कहते ह। कृत ता वह है िक हम उन वरदानों का कैसे सदु पयोग करते ह। अपने
ि य पाठकों का आभारी ँ िक उ ोंने मन को भाने वाली हज़ारों चीज़ों म से मेरी यह
पु क उठाई।
म आप सबके िलए ाथना करता ँ िक आपकी सभी आशंकाएँ और अिव ास
कृत ता म प रवितत हो जाएँ ।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

नई िद ी
अग , 2014
भूिमका

िपछले प ह वष के दौरान, िविभ सभाओं म, ई-मेल और फ़ेसबुक के ज़ रये डे ढ़


करोड़ से ादा युवाओं से मेरा स क आ। म जहाँ भी गया, वह चाहे कोई ा ान
हो, कोई सेिमनार या कोई बैठक, हर जगह लोगों ने मुझसे ढे रों िकए। फ़ेसबुक पर
लगभग 18 लाख लोग मुझे फ़ॉलो कर रहे ह और औसतन मुझे 300 ई-मेल ितिदन
िमलते ह। म हर रोज़ दो घंटे उनको पढ़ने और उनके जवाब दे ने म लगाता ँ ।
िपछले एक दशक के दौरान दे श के युवाओं ने मुझसे जो सवाल पूछे, उ ीं पर
आधा रत है मेरी यह पु क। जो लाखों िचि याँ मुझे िमलीं, उनम से िकसे इस पु क
म शािमल क ँ , और िकसे छोड़ूँ यह तय कर पाना मेरे िलए ब त किठन था। इसम
जो प आपको िमलगे, वह िकसी इ धनुष की तरह अलग-अलग रं ग के होते ए भी
एक ही काश से िनकले ह। और वह काश ा है ? वह काश हमारे युवाओं के
मन-म की आ ा, ईमानदारी, आशाओं और उ ं ठाओं का काश ही है । इस
पु क के मा म से मेरा यास है िक युवाओं के िदलो-िदमाग और आ ा की
काश- ोित न केवल दी रहे , ब उसकी लौ उ उपल यों की ऊँची
उड़ान भरने के िलए े रत करे ।
इनम से ादातर म, प भेजने वालों ने मुझसे सवाल िकए ह और िज़ गी म जो
सम ाएँ सामने आती ह, उनका हल जानना चाहा है । मने महसूस िकया िक इन
सवालों के जवाब दे ते व कहीं न कहीं सचमुच उनके हल तक प ँ चने की ि या
शु हो जाती है । थोड़ा और ान दे ने और गहराई से सोचने पर समझ म आया िक
अपनी िज़ गी और अपनी दु िनया म जो कुछ घटता है उसे हम िजस तरह आगे बढ़ाते
ह, उस तरीके यानी ‘ ि या’ की वजह से सम ाएँ खड़ी होती ह। िज़ गी म जो कुछ
होता है , उसे हम िकस नज़ रये से दे खते ह और उसके बारे म कैसे सोचते ह, वही
‘ ि या’ है । अगर हम इन थितयों और घटनाओं के साथ पेश आने का अपना
तरीका बदल ल, तो शायद अपनी सम ाओं को लेकर हमारी सोच बदल सकती है
और ज़ािहर है , उनके हल भी। ा हालात के साथ िकसी दू सरे तरीके से पेश आना
सीखा जा सकता है ? सवालों के जवाब दे ते ए मने यही समझाने की कोिशश की है ।
ई-मेल और िचि यों म पूछे गए सवालों पर मेरे जवाब मेरे िनजी जीवन के
अनुभवों, राजनीित और अ ा े की बड़ी ह यों के साथ िमलने-जुलने और
िकताबों से मने जो कुछ सीखा, उसी का सार ह। ये सवाल-जवाब इस तरह पेश िकए
गए ह िक सवालों से िमलती-जुलती सम ाओं का सामना कर रहे िकसी भी पाठक के
िलए जवाबों म छु पे संदेश कारगर हो सक। साथ ही इस बात पर लगातार ज़ोर िदया
गया है िक िजसे हम सम ा कहते ह, वह शायद अपनी िज़ गी म कुछ घटने या पता
चलने पर जो रवैया अपनाया, उसके फल के िसवा कुछ नहीं। जब आप पढ़ते ए आगे
बढ़गे, तो आपको एहसास होगा िक अपने ादातर जवाबों म मने, िज़ गी के इस
पल से हम ा चाहते ह, उसी पर पूरा ान दे ने पर ज़ोर िदया है । जब हम ऐसा करते
ह, तब हम अपना सारा ान और अपनी पूरी एका ता उस ण पर के त करते ह
और उस पल आने वाले िवचारों के अनुसार चलते ह, तो हम जो चाहते ह, उससे
ादा हमारी ओर खंचा चला आता है , न िक वह जो हम नहीं चाहते। अपनी
सम ाओं के हल खोजने और िज़ गी म जो कुछ वाकई म चाहते ह, उसे हािसल
करने म ादातर लोगों को जो मु ल होती है , उसकी एक वजह यह है िक उनका
ान हमेशा गड़बिड़यों, किमयों और सम ा पर िटका रहता है , जबिक ान होना
चािहए हल पर। यह कुछ वैसा ही है जैसे तूफ़ानी हवा से हवाई जहाज़ को बाहर
िनकालना—िजसके िलए पायलट को बवंडर पर नहीं, उससे बाहर िनकल हवाई-
जहाज़ ले जाने के तरीके पर ान लगाना होता है ।
भारत के दि ण म एक अलग-थलग टापू म अपना बचपन िबताने के बावजूद, म
िश ा हण कर सका, मुझे नौकरी िमली और कई अड़चनों और अवरोधों को पार
करते ए दे श का रा पित बना। अगर सारी किठनाइयों से हार न मान कर म इतना
कुछ हािसल कर सका ँ , तो कोई और भी ऐसा कर सकता है । म अपने भाषणों,
िकताबों और दे श-िवदे श की अपनी या ाओं के ज़ रये दे श के युवाओं से बातचीत
करता ँ और उनको े रत करता रहता ँ । म हमेशा उनसे सम ा पर नहीं, हल पर
ान लगाने को कहता ँ , ोंिक आपको अपनी सारी ऊजा अपनी मंिज़ल पर, अपने
म़कसद पर लगानी होती है ।
बृहदार क उपिनषद म एक ोक है —
असतो मा स मय, तमसो मा ोितगमय, मृ ोमा अमृतं गमय।
अथात् हे ई र! म अस से स की ओर बढ़ूँ, अंधेरे से रोशनी की ओर बदू ं ,
मृ ु से अमर की ओर ले चलूँ।
इन पं यों म कहा गया है िक अस और अंधकार आपकी ऊजा को कम कर
दे ते ह, लेिकन जब स , काश और आ ा क अमर की िद ऊजा का िनचले
र की ऊजा से आमना-सामना होता है तो िद ऊजा ही अ म रह पाती है ।
िजस तरह स अस को समा कर दे ता है , काश अंधकार को िमटा दे ता है और
मृ ु के प ात् आ ा अमर ा कर लेती है , ठीक उसी तरह ेम से घृणा िमट
जाती है , आन ा होने से शोक िमट जाता है और िव ास संदेह को िमटा दे ता है ।
जब हम अपनी सम ाओं को इस नज़ रये से दे खना शु कर दे ते ह, तो हम अपनी
सम ाओं को, अपनी किठनाइयों को ेम, दया और मा की िद ऊजा के स क
म लाकर उसम अपनी किठनाइयों को िवलीन कर सकते ह। जैसा िक मने पहले कहा
है , यह िसफ़ अपनी सोच को, अपनी िज़ गी म जो कुछ घट रहा है , जो हम जान रहे
ह, उसके बारे म अपना नज़ रया और अपना रवैया बदलने की बात है ।
एक िव ाथ के प म, म ब त सौभा शाली था िक मुझे मु ु अ र, िशवा
सु म अ र, आइयादु रई सोलोमन, थोथा ी अयंगर जैसे ेही और ेरक
िश कों से पढ़ने का मौका िमला, और बाद म िव म साराभाई और सतीश धवन जैसी
महान ह यों और तीन धानमंि यों के साथ काम करने का मौका िमला। जब आप
ऐसे लोगों के आसपास होते ह जो ऊजा के सव र पर होते ह, तो िसफ़ उनकी
ऊजा के दायरे म रहने भर से ही जो कुछ भी बुरा या अनचाहा होता है , वह सब ठीक
हो जाता है । जब ेम से सराबोर िद ऊजा को अ व था, असंगतता या िकसी
िवकार के सामने लाते ह, तो वा व म बुराई को ख़ करने वाली ऊजा छा जाती है ।
इस संसार म हर कोई और हर चीज़ एक दू सरे से जुड़े ह, और जो लोग ऊजा के
ब त ऊँचे और सि य र म जीते ह, वे उन लोगों की कमी की भी भरपायी करते ह
जो िन और म र पर होते ह। इस बारे म डे िवड हॉिकंस, जो एक िचिक क थे,
ने एक अद् ु भत िकताब िलखी है , पॉवर वसज़ फोस िजसम बताया गया है िक िद
ऊजा वालों और कम ऊजा वाले लोगों के बीच स ुलन बनाए रखने का काम िकस
तरह होता है । इस िकताब म बताया गया है िक एक से 1,000 के पैमाने पर, जहाँ
1,000 की सं ा दै वीय चेतना की इकाई दशाती है और ‘एक’ की सं ा सबसे कम
ऊजा वाले को दशाती है , अगर 1,000 के र की िद ऊजा वाला एक
, मान लीिजये िक वह महा ा गाँ धी या ने न मंडेला ह, इस पृ ी पर अ
लोगों की नकारा कता को न कर ऊजा का स ुलन थािपत करते ह।
ऐसा नहीं है िक महा ा गाँ धी या ने न मंडेला जैसे यों को अपने जीवन म
कभी सम ाओं, किठनाइयों या िवपि यों का सामना नहीं करना पड़ा, लेिकन उ ोंने
पूरी स ाई, िनडरता और क णा के साथ उनका सामना िकया। डर उनके जीवन म
भी था लेिकन उनके पास अपने डर का सामना करने के िलए साहस था। बस, यही
अ र है । उ ोंने डर की आँ खों म आँ ख डाल कर दे खा और सीधे अपने रा े पर
चलते रहे । वे कभी भी किठन प र थितयों से डर कर भागे नहीं और न ही उ ोंने
इसके िलये िकसी दू सरे को दोषी ठहराया। उ ोंने इस सच को समझा और इस पर
अमल िकया िक िज़ गी के मायने दू सरों से बेहतर बनना नहीं है ब आज ख़ुद को
बीते ए कल के मुकाबले बेहतर बनाना है । इसके िलए सबसे बड़ी चुनौती यह है िक
ा म ेम, स , शा और िद ऊजा के ऐसे पों का आ ान करके उनके
मा म से अपनी सम ाओं का सामना कर सकता ँ , और उनके हल ढू ँ ढने की
कोिशश कर सकता ँ ? िमसाल के तौर पर, हो सकता है िक हम िकसी श स या
िकसी चीज़ से नफ़रत करते हों और हम सोचते हों िक उसके िलए हमारे मन म जो
नफ़रत है उस पर काबू पाकर हमने सम ा का समाधान कर िलया है । लेिकन वा व
म ऐसा होता नहीं है , ोंिक कल हमारे अ र िकसी दू सरे श स या दू सरी चीज़ से
नफ़रत पैदा हो सकती है । जब तक हम इस बात का एहसास नहीं करते िक सम ा
वा व म िकसी श स या िकसी चीज़ की नहीं, ब सम ा नफ़रत की है । और जब
तक हम अपने िदल और िदमाग से नफ़रत को उखाड़ नहीं फकते, तब तक हम
नफ़रत से जुड़ी अपनी सम ा का समाधान नहीं पा सकते। जब तक हम सब िमलकर
यह नहीं जान लेते िक एक दू सरे के िलए नफ़रत का जवाब ार से कैसे िदया जाए—
जैसा िक ईसा मसीह ने हम िसखाया, िजसे िसखाने के िलए महा ा बु ने ज िलया,
जो चीज़ मोह द साहब ने हम िसखाई और जो बात हम िसखाने महान आ ा क
गु हमारे बीच आए और िज ोंने िद ऊजा भरा जीवन जीया और हम ेमभाव
िसखाया—ऐसे म, नकारा क ताकतों के जवाब म और ादा नकारा क ढं ग से
जवाब दे ने से सम ाएँ और बढ़गी।
कुल िमलाकर, मेरा मानना है िक यही सीखने के िलए हम सबका ज आ है ।
इस बीच, हम अपने भीतर कसर सी नकारा क ताक़तों पर गौर करना होगा जो
हमारे सपनों को उजाड़ना चाहती ह। हम कसर कोिशकाओं जैसे नकारा क िवचारों
और हार की सोच को अपने अ र से चुन-चुन कर िनकाल फकना होगा। अपने आस-
पास के हालात सुधारने के िलए अपने अ र झाँ कना होगा। अगर हम सब िमल कर
ऐसा कर पाते ह, तो हर तरफ़ एक ज़बरद बदलाव लाया जा सकता है । इस पु क
को िलखने की वजह यही है िक गत सम ाओं और उनके स ािवत हल इसे
पढ़ने वालों के साथ साझा करके एक श शाली िद ऊजा समूह बनाया जाए।
इस पु क म 32 शािमल िकए गए ह। यिद आप इनम से पाँ च और
उनके उ र ठीक से पढ़ लेते ह, और िफर ख़ुद से सवाल करते ह िक, ‘मने इससे ा
सीखा,’ तो आप ख़ुद को अ र से रौशन पाएँ गे। िजस तरह अंधेरा अंधेरे को दू र नहीं
कर सकता, िसफ़ रोशनी ही ऐसा कर सकती है , अ ानता को दू र केवल ान ही कर
सकता है । ान ा करने और ‘रोशनी’ को चारों ओर फैलने दे ने से आपके मन को
िव ार िमलेगा, आपके िवचार समृ होंगे और आपके िकए ए हर काम म कमी दू र
होंगी।

—ए. पी. जे. अ ु ल कलाम


सफलता की ओर
यं पर भरोसा रख
मेरे अ र हमेशा से ही आ िव ास की कमी रही है । दरअसल,
. इस मामले म म और मेरा भाई दोनों एक से ह। शायद ऐसा मेरी माँ
की वजह से है जो जब हम छोटे थे, हमारी दे खभाल और सुर ा को
लेकर ज़ रत से ादा सावधानी बरतती थी ं, और हम हमेशा िज़ गी
की स ाइयों से दू र रखती थी ं। पर म यह बात दावे के साथ नही ं कह
सकता। लेिकन अब सम ा ऐसे िब दु पर प ँ च गई है जहाँ इसकी
वजह से मेरे क रयर पर बुरा असर पड़ रहा है । म चाहता ँ िक हर कोई
मुझे चाहे , लेिकन सच यह है िक मुझे कोई पसंद नही ं करता। म जहाँ
काम करता ँ वहाँ मेरी एक दो थी, जो खाने के समय मेरे साथ बैठती
थी लेिकन मुझे ऐसा लगता था िक उसको मेरे ऊपर तरस आता था और
इसीिलए वह ऐसा करती थी। अगर मुझे घर से बाहर जाने की ज़ रत
होती थी, और कोई पड़ोसी घर के बाहर होते थे, तो म उनके वहाँ से चले
जाने का इं तज़ार करता था तािक म उनका सामना करने से बच सकूँ।
सबसे ख़राब बात यह है िक अब मुझे लगने लगा है िक म िकसी काम
का नही ं ँ । मुझे शायद ही िकसी बात से ख़ुशी िमलती हो। िनराशा को
सहने की मेरी ताक़त बेहद कम हो गई है । म बड़ी आसानी से हार मान
लेता ँ , और इस बात का इं तज़ार करता ँ िक कोई और हालात को
सँभाल ले। यहाँ तक िक कुछ समय की मु ल भी ऐसी लगती है जैसे
हमेशा के िलए हो, और उ भी बदा नही ं कर पाता। हर व एक
उदासी और िनराशा का भाव छाया रहता है ।
मने आपका वह भाषण सुना िजसम आपने कहा था, ‘‘ख़ुद पर
य़कीन रखो! अपनी क़ाबिलयत पर भरोसा करो! अपनी ख़ुद की ताक़तों
पर यथोिचत अिभमानरिहत िव ास नही ं होगा, तो आप सफल और
ख़ुश नही ं रह सकते।’’ मुझे अपने दु ःखी रहने और कामयाब न होने की
वजह पता है । लेिकन म ख़ुद पर यकीन क ँ तो कैसे क ँ ? िकस बात
का सहारा लेकर म ख़ुद पर भरोसा क ँ ? मुझे अफ़सोस होता है यह
कहते ए, लेिकन मेरे अ र कोई क़ाबिलयत ही नही ं है िजसकी वजह
से ख़ुद पर भरोसा क ँ । मुझे कुछ भी समझ म नही ं आ रहा है । मुझे
यकीन है िक आप जो कहते ह वह सच है , लेिकन ऐसा लगता है जैसे वह
मेरे ऊपर लागू नही ं होता। कृपया मुझे रा ा िदखाइये—बताइये िक
मुझे ा करना चािहए?

हर उस अनुभव से िजसम हम सचमुच डर से आँ ख चार करने की िह त करते ह,


उससे हम श , साहस और आ िव ास हािसल होता है ...हम वह ज़ र करना
चािहए जो हम सोचते ह िक हम नहीं कर पाएँ गे।
—एलेनर ज़वे

रे दो , जािहर है िक आपको अपना आ िव ास जगाना और बढ़ाना होगा।


म◌े हम सभी आ िव ास से भरपूर यों को पस करते ह, चाहे वह
ेरणा क भाषण दे ने वाला व ा हो या पूरे आ िव ास से मरीज़ों को दे खने
वाला डॉ र। दरअसल, आ िव ास जीवन के हरे क पहलू के िलए ज़ री है , िफर
भी िकतने ही लोग इसके िलए ज ोजहद करते रहते ह। अफ़सोस, िक आपके िलए
यह एक कुच बन गया है — ोंिक अपने अ र आ िव ास की कमी के चलते
आपको सफल होने म िद त आ रही है , और सफलता न िमलने के कारण आप
अपना रहा-सहा आ िव ास भी खो दे रहे ह।
आप पाएँ गे िक जीवन के िकसी भी े म लोग िकसी ऐसे काम से जुड़ने से पीछे
हट जाते ह िजसकी बात करने वाले के अ र घबराहट और िहचिकचाहट हो, और जो
ज़रा–ज़रा सी बात म माफ़ी माँ गने लगता हो। दू सरी ओर, वह श स जो साफ़–साफ़
बोलता हो और िसर उठाकर आ िव ास के साथ सवालों के जवाब दे ता हो, और
िकसी बात की जानकारी न होने पर बेिहचक ीकार कर लेता है , वह आपका भरोसा
जीत लेता है ।
आ िव ास से भरे लोगों को दे खकर दू सरों के मन म भरोसा पैदा होता है , चाहे
वह उनके ोता हों, सहकम हों, अिधकारी हों, ाहक हों या दो हों। और दू सरों का
भरोसा जीतना उन मुख तरीकों म से एक होता है िजनसे आ िव ास से भरा
सफलता हािसल करता है । अ ी बात यह है िक अपने अ र आ िव ास पैदा
करना सीखा जा सकता है , और उसे बढ़ाया जा सकता है । और चाहे आप अपने ख़ुद
के आ िव ास पर काम कर रहे हों, या अपने आसपास के लोगों का आ िव ास
बढ़ाने का काम कर रहे हों, यह एक ऐसा काम है िजसकी अहिमयत िकसी सूरत म
कम नहीं है । इसिलए अपना आ िव ास बढ़ाने के िलए आपको यास करने चािहए,
और इसके िलए जम कर मेहनत करनी चािहए।
दो मुख चीज़ जो आ िव ास को बढ़ाने म मदद करती ह, वे ह कायकुशलता
और ािभमान। हम अपने कायकुशल होने का तब एहसास होता है जब हम पाते ह
िक हम िजस े म जाना चाहते ह, उस े के िलए अहिमयत रखने वाले नर
हािसल कर रहे ह और उस े म अपने ल हािसल करते जा रहे ह। यह इस
िव ास का सवाल है िक अगर हम िकसी भी े के िलए ज़ री नर सीखगे और
मेहनत से काम करगे तो कामयाब होंगे, और यही वह िव ास है जो लोगों को किठन
चुनौितयाँ ीकार करने और बाधाएँ पैदा होने पर भी डटे रहने को े रत करता है ।
यह बात ािभमान से ब त कुछ िमलती-जुलती है , िजसे हम सामा तौर पर
यह मान सकते ह िक हमारे जीवन म जो कुछ चल रहा है वह हमारे क़ाबू म है या उसे
हम बदा कर सकते ह, और इसके साथ ही हम ख़ुश रहने का भी हक़ है । कुछ हद
तक तो यह एहसास इस बात पर भी िटका होता है िक हमारे इद-िगद जो लोग ह वे
हम िकतना ीकारते ह, और यह हमारे वश म हो भी सकता है , और नहीं भी हो
सकता है । इसके साथ ही यह इसपर भी िनभर करता है िक हम अ े वहार और
भलाई के रा े पर चलते ए जो कुछ करते ह उसे करने म िकतने िनपुण ह, िकतने
स म ह, और अगर ठान ल तो हम दू सरों से आगे भी िनकल सकते ह।
1957 म म ास इं ूट ऑफ़ टे ोलॉजी म अपनी पढ़ाई के आिख़री साल म
था। उस दौरान एक ुप ोजे म िदये ए काम को िनि त समय म पूरा करने को
लेकर मने एक ब त ही अनमोल सबक़ सीखा। ोफ़ेसर ीिनवासन ने मुझे ोजे
लीडर के प म लेकर नीची उड़ान भरने वाले लड़ाकू िवमान की ार क िडज़ाइन
तैयार करने को कहा था। छह सद ों वाली एक टीम बनाई गई और हम अपनी
िडज़ाइन जमा कराने के िलए छह महीने का समय िदया गया। ोजे के
‘एरोडायनािम ’ और ‘ रल िडज़ाइन’ की िज़ ेदारी मुझे सौंपी गई। टीम के
बाकी पाँ चों सद ों ने िवमान के ‘ ोप शन’, ‘कंटोल’, ‘गाइडस’, ‘एिवयॉिन ’ और
‘इं मटेशन’ का काम सँभाला। पाँ च महीने बाद जब ोफ़ेसर ीिनवासन ने ोजे
की समी ा की और पाया िक हमारा ोजे स ोषजनक ढं ग से नहीं चल रहा है , तो
उ ोंने साफ़ श ों म अपनी मायूसी ज़ािहर की। िडज़ाइन के काम म कई लोगो की
भागीदारी की वजह से उन सब के काम को एक जगह करने म आने वाली तमाम
िद तों को लेकर मेरी दलील पर उ ोंने कोई ान नहीं िदया। ोंिक मुझे अपने
पाँ च सहयोिगयों से जानकारी लेकर काम करना था, िजसके िबना म िस म िडज़ाइन
नहीं कर सकता था, इसिलए मने ोफ़ेसर ीिनवासन से ोजे पूरा करने के िलए
एक महीने का अित र समय माँ गा। ोफ़ेसर ीिनवासन ने कहा, ‘‘दे खो, आज
शु वार की दोपहर है । म तु तीन िदन का समय दे ता ँ ‘कॉनिफ़गरे शन िडज़ाइन’
मुझे िदखाने के िलए। अगर तुमने मुझे स ु कर िदया, तो तु एक महीना और िमल
जाएगा। लेिकन अगर ऐसा नहीं कर पाए, तो तु ारी छा वृि र कर दी जाएगी।’’

मुझे इससे बड़ा झटका िज़ गी म पहले कभी नहीं लगा था! छा वृि से ही मेरी
िज़ गी चलती थी। उसके िबना तो म अपने खाने का खचा भी नहीं उठा सकता था।
िदए गए तीन िदनों म काम पूरा करने के िसवा अब कोई चारा नहीं था। मेरी टीम के
सद ों ने, और मने तय िकया िक हम जी-जान से इस काम को पूरा करगे। रात को
भी डॉइं ग बोड पर िसर झुकाकर नज़र गड़ाए, खाना और सोना छोड़ हम चौबीसों घंटे
काम म जुटे रहे । शिनवार को मने िसफ़ घंटे भर के िलए काम से छु ी ली। रिववार की
सुबह जब म योगशाला म काम कर रहा था, तो मने महसूस िकया िक कोई वहाँ
मौजूद है । दे खा, तो वह ोफ़ेसर ीिनवासन थे, जो चुपचाप हमारे काम का मुआयना
कर रहे थे। मेरे काम को दे खने के बाद उ ोंने मेरी पीठ थपथपायी और ार से मुझे
सीने से लगाते ए बोले—‘‘मुझे मालूम था िक इतने कम समय म काम लेकर म
तु ारे ऊपर दबाव डाल रहा था और तुमसे कुछ ादा ही किठन काम की उ ीद
कर रहा था।’’ ोफ़ेसर ीिनवासन ने हम पूरे महीने भर तक अंधेरे म हाथ मारने दे ने
के िलए छोड़ने के बजाय अगले तीन िदनों म करने के िलए काम तय कर िदया था।
िनयत समय म काम पूरा करने के दबाव म हम सफलता की ओर ादा तेज़ी से बढ़े
जो बीते महीनों म हमसे दू र होती जा रही थी। इस ोजे पर काम करते ए मेरे
अ र अपने काम की बुिनयादी क़ाबिलयत पैदा ई और अपने साथ काम करने वालों
के साथ िमलजुल कर चलने की समझ भी।
इस अनुभव से ा सबक िमलता है ? यही िक आप अपना आ िव ास बढ़ाने
का काम इन चार क़दमों म पूरा कर सकते ह—पहले, अपना ल तय करना, दू सरे ,
उस ल की ओर अपने सफ़र की शु आत, तीसरे , सफ़लता की ओर तेज़ी से बढ़ना,
और चौथे, काम, काम और काम।
ल िनधारण वह सबसे ज़ री काम है िजसे सीखकर आप अपना आ -
िव ास बढ़ा सकते ह। िजस े म आप काम करना चाहते ह, उसम अपने िलए ल
िनधा रत कर और ल तक प ँ चने के िलए काम म जुट जाएँ । इससे सफलता ा
के िलए जीवन पय चलने वाली ि या शु हो जाएगी और आपको दू सरों के साथ
काम करने के िलए आ बल िमलेगा।
सपनों का मह
सर, सपने दे खने के आपके आ ान से े रत होकर, म बड़े –बड़े
. सपने दे खने लगा। मने एक ऐसे संसार की क ना की िजसम कोई
सीमाएँ न हों, जहाँ कुछ भी मेरे रा े की कावट न बन सके। मने
कभी इस बात की परवाह नही ं की िक वग कृत िव ापनों म यह दे खूँ िक
िकस तरह की नौक रयाँ िमल सकती ह, और न ही कभी यह सफ़ाई दे ने
की ज़ रत समझी िक अपनी सीिमत िश ा की वजह से म कुछ ही
तरह के काम कर सकता ँ । मने सोचा िक म आगे चलकर दू सरों से
िबलकुल अलग बनूँगा। म आशा और अपे ा से भरा था। कोई भी बात
मुझे आगे बढ़ने से नही ं रोक सकती। और मुझे भरोसा था िक एक िदन
ज़ र ब त बड़ा आदमी बनूँगा। िफर कुछ सचमुच बुरा घट गया। यह
बुरा कुछ ऐसा नही ं था जो जब घटा तभी मुझे पता चल जाता, ब
वा व म जब इसकी शु आत ई तो मुझे पता भी नही ं चला। यह ब त
ह े से शु आ, लेिकन धीरे –धीरे मुझ पर हावी हो गया, और अब
यही मेरी पहचान बन गया है । मने कभी ान भी नही ं िदया और मुझे
इस बात का एहसास भी नही ं आ। मने अपने सपने पूरे करने की ओर
ान दे ना ब कर िदया। म स ु हो गया। मने और ादा की उ ीद
करना छोड़ िदया। और तो और, मने और बेहतर की उ ीद करना छोड़
िदया। मने ख़ुद को अपने आसपास के हालात के हवाले कर िदया। म
आज जो कुछ ँ उसी से स ु हो गया। ऐसा कुछ नही ं है िक आज म
जो कुछ भी ँ उसम कुछ बुराई है —उसी से िज़ गी चलाने के िलए
ज़ री रक़म आती है , म सुरि त रहता ँ , िज़ गी ठीक–ठाक चलती
रहती है । लेिकन एक बार जो मने हार मान लेने का ाद चख िलया,
समझौता कर लेने के इस तरीके को मने अपनी कहानी बनाने का
इरादा कर िलया। िकस बात की ज ोज़हद ? काहे की लड़ाई? सपनों के
पूरा न होने से िनराश ों हों? ोंिक मने सब कुछ छोड़ने की सोच
ली, इसिलए मेरे सामने कोई कावट भी नही ं रही ं। परे शािनयाँ नही ं
रही ं। संघष ख़ हो गया। पीड़ा ख़ हो गई। अपने सपने पूरे करने की
कोिशश के बजाय, मने उससे ब त कम म ही स ु हो जाने का
फ़ैसला िकया। लेिकन, अपने मन की गहराई म मुझे कही ं न कही ं यह
महसूस होता है िक ऐसा नही ं होना चािहए। मुझे बताइए, डॉ र
कलाम, िक ा म िफर से सपने दे खना शु कर सकता ँ ?

कुछ बड़ा करने के िलए हम िसफ़ कुछ करना ही नहीं होता, ब सपने भी दे खने
होते ह; िसफ़ इरादा ही नहीं करना होता, ब भरोसा भी रखना होता है ।
—एनातोली ां स

पने वह नहीं होते जो आप नींद म दे खते ह, सपने वह होते ह जो आपको सोने


स नहीं दे ते। अपने सपने पूरे करने के िलए आपको जागते रहना होता है , पूरी तरह
आँ ख खोलकर जागते रहना होता है ।
आज िजतनी स ावनाएं ह, उतनी अब तक के समूचे इितहास म पहले कभी
नहीं थीं। इ ीसवीं सदी ऐसे अनुभव पैदा कर रही है िज मानव के िवकास की
िपछली बीस शता यों म अस व समझा जाता था। ऐसे माहौल म जब ौ ोिगकी
और िनत नई खोजों के बल पर मानव स ता तर ी करती जा रही है , इं सान म
िछपी स ावनाओं का भी तेज़ी से िव ार होता जा रहा है । लेिकन इन अवसरों का
अनुभव करने के िलए हमारे पास जो समय है वह उतना का उतना ही है । और आज
के युवा इसी दु िवधा म ह। युवा चाहते ह िक उनके सामने िजतने िक के अनुभव
उपल ह, वह सब का फ़ायदा उठा सक, जो िक उ िमलना भी चािहए, लेिकन
जैसे-जैसे दु िनया का दायरा बढ़ता जा रहा है , वैसे-वैसे हमारे ऊपर ख़ुद को कुछ ख़ास
िवषयों के संकरे दायरे म सीिमत कर लेना पड़ रहा है । मुझे नहीं लगता िक ऐसा करना
सही है । मेरा सपना है िक संसार के हर युवा को संसार के वह सारे अनुभव िमल सक
िजसकी उ चाह हो। लेिकन इसे कैसे स व बनाया जा सकता है ?
इसे स व बनाने के दो तरीके ह। एक तो यह िक हम कुछ ऐसा कर िक हमारे
पास जो समय उपल है उसे हम बढ़ा सक। दू सरा यह िक हमारे पास जो समय है
हम उतने ही समय म िजतना काम कर सकते ह, िजतना कुछ हािसल कर सकते ह
उसकी मा ा बढ़ा द। इन दोनों जीवन-ल ों को कैसे ा िकया जाए, यह समझ लेने
से दू सरी हर चीज़ तक प ँ चने के दरवाज़े ख़ुद-ब-ख़ुद खुल जाएँ गे। यही वह ल ी
छलां ग है िजसका मानवता को अब तक इं तज़ार था और जो हम िवकास म के
अगले चरण तक प ँ चा सकती है । तो हम इसे कैसे अमल म लाएँ ? म आपको दो
सुझाव दे ता ँ ।
म चाहता ँ िक हरे क युवा की िज़ गी
म दो सबसे मह पूण ल ज़ र हों
—एक तो यह िक वह कुछ ऐसा करे
िक उसके पास उपल समय बढ़
जाए। दू सरा यह िक उसके पास जो
समय है वह उतने ही समय म ादा से
ादा काम करके अिधक से अिधक
उपल याँ हािसल करे ।

पहले तो, सीधे-सरल ढं ग से पाक-साफ़ िज़ गी जीय, िजससे िक बुढ़ापे तक


सेहतम रह सक। उ बीतने के साथ शरीर पर उ के असर के साथ कई तरह की
बुढ़ापे से जुड़ी बीमा रयाँ , जैसे अ ाइमस रोग, पािक ंज़ रोग, कसर, िदल की
बीमा रयाँ घेरने लगती ह। लेिकन समझने वाली अहम बात यह है िक इनम से हरे क
बीमारी को शरीर पर अपनी पकड़ बनाने के िलए दिसयों साल लगते ह, और अकसर
कम उ म ही इन बीमा रयों के बीज पड़ जाते ह। इसिलए, यही वह समय है जब हम
सेहतम रहने की मुिहम छे ड़ दे नी चािहए। हर युवा को ा वधक भोजन करना
चािहए, थ जीवनशैली अपनानी चािहए और थ िवचार रखने चािहए। आपका
जीवन ई र का उपहार है , और दु िनया की कोई दौलत कभी उसकी बराबरी नहीं कर
सकती, इसिलए उसे िकसी िक की लत और बुरी आदतों के चलते ों मुरझाने द।
अ ी सेहत बना कर रख, बुरी आदतों से दू र रह, अ ी से अ ी िश ा ा कर
और नरम बन। सुयो और स म लोगों के िलए िकतने ही अवसर उपल ह,
इसिलए पूरे जोश से आगे बढ़कर उनका लाभ उठाएँ ।
दू सरे , अपने जीवन के िलए ख़ुद िज़ ेदार बन। शु आत अपने माता-िपता का
ान रखने से कर। इ ाम म ई र पर भरोसा करने के बाद िजस बात को सबसे
ादा अहिमयत दी गई है , वह है अपने माता-िपता को चाहना और उनका ान
रखना। हज़रत मोह द ने कहा है —‘तु ारी माँ के क़दमों म ज त है ।’ इस बात के
अलग-अलग लोगों ने मायने यही िनकाले ह, अपने ब ों को वह तमाम मज़हबी बात
और नेक चाल-चलन िसखाने की िज़ ेदारी माँ की होती है िजनसे ज त हािसल होती
है । या िफर इसके मायने यह भी हो सकते ह िक ताउ अपनी माँ की िख़दमत करने
से हम ज त नसीब होती है । दोनों ही तरह से यही ज़ािहर होता है िक इस मज़हब म
माँ ओं के िलए अदब और इ त के साथ िकतनी अहिमयत दी गई है । एक बार आप
उठकर अपनी िज़ गी और अपने माता–िपता के िलए अपनी िज़ ेदा रयों के ित
सजग हो जाते ह, तो सारी कायनात आपका साथ दे ने के िलए जुट जाती है । इस
मामूली से लगने वाले, लेिकन गहरे सच को लेकर मन म कोई शक नहीं होना चािहए।
जो भी हो, महज़ ादा व िमल जाना और अपनी िज़ गी की िज़ ेदा रयाँ
िनभाना ही अपने आप म काफ़ी नहीं है । आज जो असं नये अवसर और
स ावनाएँ हमारे सामने ह, उनका फ़ायदा उठाने के िलए आपको दो चीज़ों की
ज़ रत है —आ था और संक । आ था और संक वह दो पिहये ह िजनके सहारे
िज़ गी म अवसरों की राह पर आसानी से आगे बढ़ सकते ह। उनके िबना जीवन के
वा िवक अथ तक कभी नहीं प ँ चा जा सकता। िबना आ था के हम कुछ हद तक
बौ क ान तो ा कर सकते ह, लेिकन िसफ़ आ था के बल पर ही अपने भीतर
की गूढ़ गहराइयों म झाँ का जा सकता है ।

संक वह श है जो हम तमाम
िनराशाओं और िव ों से पार पाने म
मदद करती है । वही इ ा–श
जुटाने म भी हमारी मदद करती है , जो
कामयाबी का आधार है ।

संक वह श है जो हम तमाम िनराशाओं और िव ों से पार पाने म मदद


करती है । वही इ ा-श जुटाने म हमारी मदद करती है जो कामयाबी का मूल
आधार है । शा ों और वेदों म कहा गया है िक संक -श का सहारा िलया जाए,
तो कुछ भी अस व नहीं है । जब संक -श म कोई वधान नहीं होता, तो हम
िनि त प से इ त ल ा करते ह।
तय कीिजए िक चाहे जो भी हो, आप वह ज़ र करगे जो आप करने के िलए
िनकले ह। अगर आपका इरादा प ा होगा, तो ान बँटाने वाले तमाम कारणों के
बावजूद आप िवचिलत ए िबना अपने माग पर आगे बढ़ते जाएँ गे। आप अपनी
प र थितयों को, सारी दु िनया को और समाज को अपने अनुसार नहीं बदल सकते।
लेिकन अगर आपके पास बूता है और आप ढ़-संक ह, तो आप िज़ गी के सफ़र
म कामयाबी के साथ आगे बढ़ते रह सकते ह और हो सकता है आप इतने स म हो
जाएँ िक ख़ुद समाज को भी बदल डाल।
धैय एक और ब त बड़ा नैितक गुण है िजसे अपने अ र िवकिसत करने की
ज़ रत है । हम अपनी संक -श , ईमानदारी से की गई कोिशश, धैय, िनयिमतता
और ेही भाव का हमेशा ान रखना चािहए। हमेशा होिशयार रह तािक
नकारा क ताकत अपना क ा न जमा ल। आपको कोिशश करनी चािहए िक जब
कभी आपको कोई कावट िमले, आप धैय से काम ल। जब आप अपने अचेतन मन
की थाह लेने की कोिशश करगे तो आपको धैय से काम लेना पड़े गा। अगर आप िबना
िनराश ए जुटे रहगे तो आपको दू र से काश आता िदखाई दे गा, जो अ ानता के
अंधकार को िमटा दे गा। एक समय आएगा, जब आप वह सब जान लगे जो जानना है ।
इस सौ और शा त लौ को कमज़ोर न पड़ने द।

अपने सपने पूरे करने की राह म जो भी


मु ल आएँ , चाहे आपकी उ कुछ
भी हो और आप िज़ गी के िकसी भी
पड़ाव पर हों, बेहतर भिव के सपनों
को पूरा करने की कोिशश कभी न
छोडे़ ं ।

आपके सवाल, ‘‘ ा म िफर से सपने दे खना शु कर सकता ँ ’’ का जवाब दे ते


ए म यही कहना चा ँ गा िक जब मु ल सामने आएँ , तो उ ीद न छोड़ और अपने
काम म जुटे रह। अपने भरोसे पर अिडग रह, चाहे आपकी उ कुछ भी हो और आप
िज़ गी के िकसी भी पड़ाव पर ों न हों, बेहतर भिव के अपने सपनों को पूरा
करने की कोिशश कभी न छोड़। अपनी ावसाियक ख़ूिबयों म और सुधार करते रह,
नये तौर-तरीकों को अपनाएँ , मेहनत से काम कर और अपने चाल-चलन को बिढ़या
रख। अपने अनुभवों से क ँ तो, मेरे जीवन म सबसे ादा आन त करने वाले
अनुभव सपनों और स े मन से की गई उ ीदों से िनकल कर आए ह। आपको जो
अवसर िमलते ह, अगर आप उ यूँ ही नहीं गँवाते, हर अवसर को पूरे मन से थाम
लेते ह, तो आप ब त कुछ हािसल कर सकते ह।
समय का सदु पयोग
मुझे रोज़ाना इतने सारे काम पूरे करने पड़ते ह िक उनकी बड़ी
. सं ा और जिटलता से म िब ु ल जैसे हार कर रह जाता ँ । िदन
बीतने के साथ कभी–कभी मुझे लगने लगता है िक म हरे क काम
पर समुिचत ान नही ं दे सका, ोंिक ज ी ही दू सरे काम मेरी मेज़
पर आते रहे , सहकम सवाल करके काम म कावट डालते रहे ... म
अपने काम को िनयोिजत नही ं कर पाता। मने एक टाइम–टे बल बनाकर
उसके मुतािबक चलने की कोिशश की, लेिकन म हताश होकर हार
मान लेता ँ , ोंिक म कोई भी योजना ों न बना डालूँ, मुझे लगता है
िक म उसके मुतािबक चल नही ं पाता। ादातर ऐसा ही होता है िक मने
िजस काम को िजतने समय म करने की योजना बनाई होती है , वह काम
उतने समय म पूरा नही ं होता तो रातों को जाग कर उसे पूरा करना
पड़ता है । और तब आिख़री व म काम के साथ समझौता करना
पड़ता है । इस थित म म ब त अस ोष महसूस करता ँ ोंिक म
जानता ँ िक मुझम वह काम करने की जो यो ता है , वह उस काम म
नही ं आ पाई है ।
सर, आपने एस एल वी–3, िमसाइल, नािभकीय बम जैसी कई बड़ी
रा ीय प रयोजनाओं पर काम िकया है और उ समय पर पूरा िकया
है । आपने इतने बड़े और उलझे ए काय को िनयिमत समय म कैसे
पूरा िकया? इसका ा राज है ?

भिव एक ऐसी चीज़ है िजसकी ओर हर कोई साठ िमनट ित घंटे की गित से ही


बढ़ता है , चाहे वह कुछ भी करे , चाहे वह कोई भी हो।
—सी एस लुइस
मय को हमेशा, लगातार चलते रहने वाला बताया गया है । ऐसा कहा गया है िक समय
स का न तो आिद है और न अ । िफर भी मानव उसे साल, महीने, िदन, घंटे,
िमनट और सेकड म मापने म कामयाब रहा। मानव ने भूत, वतमान और
भिव जैसे श ों को अथ िदए। समय कभी नहीं कता, वह चलता ही रहता है । जो
कल था वह आज नहीं है । आज जो है वह कल नहीं रहे गा। कल बीत गया। आज यह है
और कल का आना अभी बाकी है ।
जैसा िक आप सब को पता है पृ ी अपनी धुरी पर 24 घंटे, या 1440 िमनट या
86400 सेकड घूमती है िजससे िदन और रात बनते ह। पृ ी सूय की प र मा भी
करती है िजसके एक च र म उसे करीब एक साल लग जाता है । सूय के चारों ओर
पृ ी की एक प र मा पूरी होते ही पृ ी पर रहते ए आपकी उ एक साल बढ़
जाती है । सृि की हरे क गित समय से जुड़ी ई है । ज , िवकास और मृ ु होते ह।
एक ब ा पैदा होता है , िफर समय बीतने के साथ वह िकशोर होता है , युवा होता है ,
म वय का होता है और िफर बूढ़ा हो जाता है । ऋतुएँ भी समय के अनुसार आती ह।
पौधों म फूल आते ह और फल लगते ह। एक महीने म धान नहीं उगता और न ही एक
साल म एक ब ा वय हो सकता है । हर चीज़ का समय होता है , और हरे क चीज़
अपने समय से होती है ।

समय एक त श है । वह िकसी का इं तज़ार नहीं करता। आमतौर पर


कहा जाता है िक समय और ार नहीं करते िकसी आदमी का इं तज़ार। समय ही धन
है । एक भी िमनट अगर काम के िलए नहीं ख़च आ तो समझ नुकसान हमेशा के िलए
आ। वह खोया िमनट कभी वापस नहीं िमल सकता। जब लोहा गम हो तभी हम उस
पर चोट करनी चािहए ोंिक व़ बीत जाता है तो िफर लौट के नहीं आता। अगर
आप समय को बबाद करते ह तो वह आपको बबाद कर दे ता है । शे पीयर ने
जूिलयस सीज़र (अंक 4, 3) म बड़ी ख़ूबसूरती से कहा है —

लोगों के कामकाज म भी एक ार है
बढ़ते पानी म उतर तो नसीब शानदार है
पीछे छूटा जो िज़ गी के तमाम सफ़र म
उथले म फँसे तो क ों की भरमार है
अब जो चल पड़े खुले सम र म हम
बढ़ते रह जब तक सागर मददगार है
छूटे तो डूबे! यही ापार है !

रोमन किव ओिवड (43 ईसा पूव–18वीं ई ी) ने कहा था—‘समय सबसे अ ी दवा
है ।’ कहा जाता है िक समय सारे घावों को भर दे ता है और वह उन घावों को भी भर
दे ता है िजनके हल तक से नहीं िमलते। जब डर, गु ा, ई ा हम पर हावी हो जाते ह,
तब हम सोच–समझ से काम नहीं ले पाते िजसके नतीजे ग ीर हो सकते ह। बाद म,
जब भावनाएँ ठं डी पड़ती ह तो हम अपने िकए पर पछतावा भी हो सकता है । लेिकन
जो नुकसान हो जाता है , वह हमेशा रहता है । लेिकन, समय बीतने के साथ वह
नुकसान भी ठीक होने लगता है । जो लोग इसम शरीक़ होते ह वह भी भूल जाते ह,
माफ़ कर दे ते ह। यही समय की मह ा है ।
यह भी सच है िक समय हम ब त कुछ िसखाता है । समय के साथ हर
उ म बड़े होने के साथ प रप भी होता जाता है । समय के साथ जो जीवन म अनुभव
होते ह उनसे सही िनणय लेने की सीख भी िमलती है । अ म वही है जो
समय से सीख ले। समय हमेशा हम याद िदलाता है कुछ करने की और कुछ बेहतर
करने की। कुछ लोग तो बस यही सोचते रहते ह िक अपना समय कैसे िबताएँ ।
समझदार और होिशयार लोग अपने समय का पूरा सदु पयोग करते ह। कहा जाता है
िक समझदार सबसे अिधक गम थ व बीतने का मनाते ह।

कहावत है िक समय की ह ा करना


क नहीं, खु ़ दकुशी है । मतलब यह,
िक अगर समय को बेकार िनकल जाने
दे ते ह, तो हम िकसी दू सरे को नुक़सान
नहीं प ँ चाते, ब अपना ही नुक़सान
करते ह।

कुछ लोग समय का मह नहीं समझते, उसे बेकार जाने दे ते ह, या िफर िबना
कुछ िकए ही उसे ख़च कर दे ते ह। एक कहावत है िजसम कहा गया है िक समय की
ह ा करना क नहीं, ख़ुदकुशी है । इसका मतलब यह आ िक अगर समय को
बेकार िनकल जाने दे ते ह, तो हम िकसी दू सरे को नुक़सान नहीं प ँ चा रहे होते, ब
अपना ही नुक़सान कर रहे होते ह।
कुछ लोग हमेशा इसी बात का रोना रोते रहते ह िक उनके पास सब कुछ करने
के िलए ज़ री समय ही नहीं है । यह ठीक नहीं है । अगर हम समझदारी के साथ अपने
काम की योजना बनाकर काम कर, तो हर चीज़ के िलए काफ़ी समय िमल जाएगा।
आदमी जो िक कुदरत का एक िह ा है , कभी समय की िशकायत नहीं कर सकता।
आदमी को तो बस व का हर इशारा मानना होता है । समय ब त बलवान है और
वह सभी को जीत लेता है । हर िदन हरे क को जैसे चाहे वैसे इ ेमाल करने के
िलए वही बराबर के चौबीस घंटे िमलते ह। जो समय पूरी तरह से उसका अपना है वह
बेशक़ीमती होता है । मने यह बात ब त पहले जान ली थी और समय की धारा के साथ
बहने के बजाय होिशयारी से अपना रा ा बना िलया।

समय ही सफलता की कुंजी है । समय


पर हमारा अिधकार नहीं है । अगर हम
कुछ कर सकते ह, तो िसफ़ यही िक
इसे अ ी तरह इ ेमाल कर ल।

िजस तरह समय पर न प ँ चने पर टे न छूट जाती है तो वह हमेशा के िलए छूट


जाती है , वैसा ही समय के साथ है । अगर आपने समय को एक बार हाथ से िनकल
जाने िदया या बेकार जाने िदया, तो वह हमेशा के िलए चला जाता है । आप उसे दोबारा
नहीं पकड़ सकते और न ही वापस हािसल कर सकते ह। इसीिलए समय को तेज़ी से
िनकलते जाने वाला कहा जाता है ।
समय ही सफलता की कुंजी है । इसपर हमारा अिधकार नहीं है । अगर हम कुछ
कर सकते ह, तो िसफ़ यही िक इसे अ ी तरह इ ेमाल कर ल। अपने समय को
बेकार न जाने द ादा से ादा फ़ायदा उठाना सीख ल। इन पंख लगे िदनों को यूँ ही
न जाने द।
असफलता से आगे
म अपने जीवन म उस िब दु पर आ प ँ चा ँ जहाँ मुझे लगता है िक
.म पूरी तरह से नाकाम रहा ँ । म ू ल म एक अ ा िव ाथ था
और दसवी ं क ा म अ े अंक पाने के बाद मने गवनमट कॉलेज म
इले ॉिन म िड ोमा करने के िलए दा खला ले िलया। वा व म,
इस िवषय म मेरी िबलकुल भी िच नही ं थी, और कॉलेज के ले रर
पढ़ाने म अ े नही ं थे। अब आिख़री इ हान के बाद रज़ भी आ
गया है और म एक िवषय म फ़ेल ँ । अब मुझे िफर से उस िवषय के
इ हान म बैठने के िलए एक साल इं तज़ार करना पड़े गा। हालाँिक मेरे
माता–िपता शा ह, लेिकन मेरे पास अपने दो ों और र ेदारों को
अपनी श िदखाने की िह त नही ं है । बार–बार मन म यही आता है
िक मुझे अंपनी िज़ गी ख़ कर लेनी चािहए, और एकाध बार म
अपनी कलाई म चीरा भी लगा चुका ँ ।
बारहवी ं के इ हान म मेरे पाँच िवषयों के औसत अंक 70.8
ितशत थे और भौितक, रसायन और गिणत के िमलाकर 58 ितशत।
बंगलू की संयु परी ा म मेरी रक 35,000 थी, और मुझे मालूम था
िक इस रक पर मुझे औसत दज के इं जीिनय रं ग कॉलेज म ऐसा कोस
िमलेगा जो मेरी पसंद का भी नही ं होगा। मेरे माता–िपता को मुझसे कोई
उ ीद नही ं बची है , और मेरे िपता कहते ह—‘‘म बेकार म ही तु ारे
ऊपर अपना सारा पैसा ख़च कर डाल रहा ँ ... तुम इतने मोटी बु के
हो िक मुझे ख़ुद को तु ारा बाप बताने म शम आती है ।’’ मुझे बताइए,
सर, ा म एक असफल ँ?

हर मुसीबत, हर असफलता और कलेजे म उठने वाली टीस म ही छु पा होता है उसके


हल का बीज।
—नेपोिलयन िहल

, असफलता के िबना सफलता का कोई वजूद नहीं। सफलता मंिज़ल है ।


द◌ो असफलता बीच-बीच म आने वाला अवरोध। अगर आप बीच-बीच म पड़ने
वाले इन अवरोधों को िह त और प े इरादे के साथ पार कर जाते ह, तो
आप असफलता को हराकर जीवन म सफलता को ा कर सकते ह।
म आपको ीिनवास रामानुजन की कहानी सुनाता ँ िज दु िनया के महानतम
गिणत ों म से एक माना जाता है । िसफ़ ब ीस साल की िज़ गी म, और वह भी ब त
कम औपचा रक िश ा के बावजूद उ ोंने मैथमैिटकल एनािलिसस, न र ोरी,
इनफ़ाइनाइट सीरीज़ और कंिट ूड ै ंस के े म अभूतपूव योगदान िदया, और
चार सौ मौिलक मेय पीछे छोड़ गए। 1887 म तिमलनाडु के इरोड म ज े रामानुजन
म बचपन से ही गिणत की नैसिगक ितभा िदखाई दे ने लगी थी। बारह साल की उ म
तो रामानुजन ने अपने ख़ुद के मेय गढ़ िलये थे। उन िदनों गिणत की दु िनया के
िद ज उनकी प ँ च से दू र यूरोप म के त थे, इसिलए भारत म रहकर काम करते
ए उ ोंने गिणत म शोध की अपनी अलग ही धारा िवकिसत कर ली। स ह साल के
होते–होते रामानुजन बरनौली सं ाओं (Bernoulli numbers) और इयूलर–मै े रॉनी
थरां क (Euler-Mascheroni constant) पर शोधकाय कर चुके थे।

असफलता के िबना सफलता का कोई


वजूद नहीं। असफलता बीच–बीच म
आने वाला अवरोध है । सफलता मंिज़ल
है ।

रामानुजन को कु ोनम के गवनमट कॉलेज म पढ़ने के िलए छा वृि िमली,


जो िक बाद म उनके गिणत को छोड़, दू सरे िवषयों म फ़ेल होने पर रोक दी गई।
अलग से गिणत म शोध के िलए उ ोंने दू सरे कॉलेज म दा खला िलया, जबिक इस
दौरान वह अपने गुज़ारे के िलए म ास पोट ट के अकाउं टट जनरल के द र म
क के तौर पर काम भी कर रहे थे। जनवरी 1912 म रामानुजन ने अपना कुछ काम
कै ज यूिनविसटी के िटिनटी कॉलेज के ोफ़ेसर जी. एच. हाड को भेजा। ोफ़ेसर
हाड ने रामानुजन के काम से उनकी ितभा को पहचाना, और उ के ज आकर
अपने साथ काम करने के िलए आम त िकया। बाद म वह रॉयल सोसायटी के फ़ेलो
बने और उ के ज के िटिनटी कॉलेज की फ़ेलोिशप भी िमली। रामानुजन ने
के ज म पाँ च साल िबताए जहाँ उनके 21 शोधप कािशत ए। दु भा से, जीवन
भर उ ा स ी सम ाएँ घेरे रहीं। घर से दू र िवदे श म रहते ए, और
दीवानगी की हद तक अपने गिणत म डूबे रहते ए, शायद तनाव बढ़ने और
शाकाहार की कमी के चलते इं ड म रामानुजन की सेहत और िबगड़ गई। 1919 म
वह भारत लौटे तो ब त बीमार थे। उ तपेिदक (टीबी) ने जकड़ िलया था। भारत
लौटने के बाद ज ी ही, िसफ़ ब ीस साल की उ म उनकी मृ ु हो गई।

रामानुजन के सामने कौन सी मु ल नहीं आईं? लेिकन इतनी सारी किठनाइयाँ


भी उनकी ितभा के आगे कावट नहीं खड़ी कर सकीं। हालाँ िक क और
किठनाइयाँ नुकसानदे ह और नकारा क लगती ह, लेिकन ल े समय म सब कुछ
स ुिलत हो जाता है और यहाँ तक िक उनके श शाली सकारा क भाव के आगे
सारी िद त ब त पीछे छूट जाती ह।
जमन दाशिनक े ड रक नी शे ने भी ब त अिधक सहा। अपने जीवन के
ादातर समय उ ोंने भयंकर पेट दद और अ क द माई ेन के िसरदद को
झेला, िजससे वह कई-कई िदन तक कुछ भी करने की थित म नहीं रहते थे। उ
अपने ख़राब ा की वजह से पतीस साल की उ म ट् ज़रलड के बेसेल
िव िव ालय म ोफ़ेसर का पद छोड़ना पड़ा और बाकी का जीवन तनहाई म िबताना
पड़ा। उनके दो भी ब त कम थे, और बीवी या ेिमका कभी नसीब ही नहीं ई
और उनके साथ काम करने वाले बु जीिवयों ने उनके अपर रागत िवचारों के
कारण उनका बिह ार िकया। एक लेखक के तौर पर वह इस कदर असफल थे िक
उ अपनी िकताब कािशत करवाने के िलए ख़ुद ख़च करना पड़ता था, और इसके
बावजूद उनकी ब तेरी िकताबों की दोबारा कागज़ बनाने के िलए लुगदी बना डाली
गई, ोंिक उ खरीदने वाला कोई नहीं था। आिख़रकार जब उनकी िकताबों को
पाठकों की शंसा िमलनी शु ई तब तक उनम मानिसक अ थरता के ल ण
िदखाई दे ने लगे थे। पतालीस साल की उ म वह पूरी तरह मानिसक िवकार के
िशकार हो चुके थे और िफर वह मानिसक और शारी रक प से पूरी तरह अ म
होकर अपने जीवन के आिख़री दस साल अपनी माँ के साथ रहे ।
नी शे म गज़ब का लचीलापन था, और वह हमेशा यही सोचा करते थे िक क
उनके िलए फ़ायदे म होंगे। वह अपनी पीड़ा को अपनी भावनाओं का सबसे ादा
भला करने वाला मानते थे जो िक उनके दशन के िलए ज़ री थी, ोंिक वही ‘हम
दाशिनकों को अपने अ र की सबसे गहरी गत म उतरने को मजबूर करती है ’...
मुझे शक है िक ऐसा क मनु को बेहतर बनाता होगा, लेिकन मुझे इतना ज़ र
पता है िक गहरा ज़ र बनाता है । उनका अपना अनुभव यह था िक जब इं सान
बीमारी, अकेलेपन या अपमान के दौर से िनकलकर आता है , तो ‘जैसे उसका नया
ज होता है , नई चमड़ी आ जाती है ,’ और उसके साथ ‘आन का रस लेने की
बेहतर समझ’ आ जाती है । ख़लील िज ान ने भी अपनी िकताब िद ॉिफ़ट म इससे
िमलती-जुलती बात कुछ यूँ कही है —‘गम आपके वजूद को िजतना गहरा कुरे द दे ता
है , उतना ही आन आपके अ र ठहर पाता है ।’
म नहीं कहता िक हम क ों का ागत करना चािहए, या िफर जानबूझ कर उ
पाने की कोिशश करनी चािहए। लेिकन जब कभी जीवन म हमारा उनसे सामना हो तो
हम साफ़ तौर पर यह ान रखना चािहए िक क ों के ऊपर से नकारा क लगने
वाले र के नीचे िवकास और गहराई तक उतरने की स ावना भी छु पी है । हम म से
कोई भी नाकाम नहीं हो सकता। अगर हमारा अ कोई चम ार नहीं है , या यह
िक हम िज़ ा ह, हमारी सेहत ठीक है , सोच समझ सकते ह और जहाँ चाह जा सकते
ह, और िकतना कुछ और भी कर सकते ह।

जब कभी जीवन म क ों से हमारा


सामना हो तो हम यह ान रखना
चािहए िक क के नकारा क लगने
वाले ऊपरी र के नीचे िवकास और
गहराई तक उतरने की स ावनाऍं
छु पी रहती ह।
ीव टे लर की पु क, आउट अॉफ़ द डाकनेस : ॉम टरमॉयल टू
टां सफ़ॉमशन म िज़ गी की बेहद ख़राब प र थितयों म ान का उजाला फैलने की,
ता ुब म डाल दे ने वाली कहािनयाँ ह। उसे पढ़कर यह समझने म मदद िमलती है िक
िज़ गी हमारे सामने जो कभी-कभी बेहद बुरा लाकर रख दे ती है , उसम से भी हम
कुछ अ ा बनाने का मन बना सकते ह, िजससे हमारे डर कम हो जाते ह और
िज़ गी ख़ुिशयों को बाहों म भर लेने के िलए बेचैन हो जाती है । इसिलए कभी ख़ुद को
असफल मत मानो। ऐसा ों होता है िक कुछ लोग किठनाइयों के दौर से गुज़रने के
बाद ादा िह तवाले, समझदार हो जाते ह और हर बात के िलए ख़ुद को ध
मानने लगते ह, जबिक कुछ अवसाद और कड़वाहट म डूब जाते ह और िनराशा को
अपना लेते ह? म िसफ़ इतना कह सकता ँ िक मनोवै ािनक उथल-पुथल
आ ा क पा रण की कीिमयािगरी के िलए उ ेरक की तरह काम करती है ,
और क ों की मूल धातु को सुख और मु के खरे सोने म बदलने का काम करती है ।
आ ा क ि से दे खा जाए तो उथल-पुथल एक तरह से जागृित पैदा करने वाला
काम करती है , और मनु की क से पार पाने की लगभग असीम मता को
करती है ।

िजस किठन प र थित का आप सामना


कर रहे ह, उसे अपनी आ ा कता
का रस लेने और जीवन म कुछ साथक
कर पाने की नींव के तौर पर इ ेमाल
कर।

जब तक हमारे पास नकारा क प र थितयों का सामना करने और उ


ीकार करने का साहस है , तब तक हम िकसी बात से डरने की ज़ रत नहीं है ।
लेिकन, उससे बढ़कर, इससे यह पता चलता है िक मनु के िलए आ ा क जागृित
िकतनी ाभािवक है , और हम सब इससे िकतने गहरे जुड़े ह। िजस किठन प र थित
का आप सामना कर रहे ह, उसे अपनी आ ा कता का रस लेने और जीवन म कुछ
साथक करने की नींव के तौर पर इ ेमाल कर।
साहस की पहचान
सर, मने साहस पर आपके िवचारों को सुना है । साहस ऐसा गुण है
. जो हम सब हािसल करना चाहते ह। इसम कोई शक नही ं िक
साहस अ े च र का एक ल ण है , जो हम इ त का हक़दार
बना दे ता है । पौरािणक कथाओं से लेकर परी कथाओं तक, ाचीन
िमथकों से लेकर िसनेमा तक, साहस और आ –बिलदान का रा ा
िदखाने वाली िकतनी ही कहािनयाँ ह। िफ द लाइफ़ ऑफ़ पाई म
अटलांिटक महासागर के बीच अपनी नाव म एक बाघ के साथ रहने की
िह त करने वाले उस छोटे से ब े से लेकर बाइिबल म डे िवड की
गॉिलएथ से लड़ाई तक, हलाद के िनडर होकर जलती िचता म बैठ
जाने और है री पॉटर की जांबाज़ी की ेरणा द कहािनयों की ख़ुराक पर
हम पाल–पोस कर बड़ा िकया गया है ।
इितहास की िकताब हम महा ा गाँधी और ने न मंडेला जैसे
साहसी लोगों के बारे म बताती ह िज ोंने गत प से भारी
जो खम उठाकर अ ाय के िख़लाफ़ आवाज़ उठाई। ीव जॉ और
वॉ िड नी जैसे उ िमयों ने अपने सपने पूरे करने के िलए, कुछ नया
करने की ख़ाितर िव ीय जो खम उठाए। यह सभी आधुिनक दु िनया के
सूरमा ह, जो इस बात की िमसाल ह िक साहस से काम करने के नतीजे
अ े होते ह, और लोगों से सराहना िमलती है । लेिकन सर, हम अपने
नेताओं म कही ं साहस दे खने को नही ं िमलता। िजन आतंकवािदयों ने
हमारे हज़ारों लोगों की जान ली ह, वे खु म–खु ा दू सरे दे शों म शरण
िलए ए ह। िकतने ही लोगों ने हमारे रा ीयकृत बकों से अपने जाली
कारोबार के नाम पर कज़ िलये और उस धन को अपने गत लाभ
के िलए इ ेमाल िकया और बक का धन वापस नही ं लौटाया। ऐसे लोग
ह िज ोंने अवैध तरीकों से हािसल िकया धन िवदे शी बकों म जमा कर
रखा है , जो टै भी नही ं दे ते, लेिकन उनके िख़लाफ़ कोई कायवाही
नही ं होती। एक रा के प म हम इतने लाचार ों ह? हमारे पास सही
क़दम उठाने का साहस ों नही ं है ? कहाँ है साहस?
जो उिचत है वह करने से कतराना साहस की कमी दशाता है ।
—कन यूिशयस

पने एक बेहद मह पूण सवाल पूछा है । हालाँ िक हम सभी साहसी लोगों के


आ जीवन की ऐितहािसक और पौरािणक गाथाओं से प रिचत ह, लेिकन ऐसा
लगता है िक वा िवक जीवन म ादा लोग साहस के साथ कोई क़दम नहीं
उठा पाते, साहस के साथ नहीं जी पाते। म इस कमज़ोरी को हमारे यहाँ ा सभी
सामािजक बुराइयों की जड़ मानता ँ । िलंगभेद, सामािजक असमानता, आय म
अवां छनीय अ र, कायकुशलता और कत परायणता की कमी इतनी ादा दे खने
को िमलती है , िफर भी लोग इन बुराइयों के िख़लाफ़ खड़े नहीं होते। म सै ा क
बातों का बोझ आपके ऊपर न लाद कर, आपके साथ साहस की वह ावहा रक
पहचान साझा क ँ गा िजनका मने िविभ प र थितयों से िनपटने म पालन िकया है ।
साहस की पहली और सबसे मह पूण पहचान यह है िक डर का अनुभव होने
के बावजूद वह करता है जो उिचत है । डर और साहस वा व म दो भाई ह जो
साथ रहते ह। साहस का अथ डर का न होना नहीं, ब डर पर जीत हािसल करना
है । बहादु र वह नहीं होता जो डर से डर जाए, ब वह होता है जो उस डर पर जीत
दज करता है । कोई भी ऐसा ाणी नहीं है जो ख़तरे से सामना होने पर डरता न हो।
स ा साहस इसम है िक डर लगने पर भी ख़तरे का सामना िकया जाए। आतंिकत
होते ए भी आगे बढ़कर जो करना चािहए वह कर डालना ही साहस है । िजसे डर ही
नहीं लगता वह मूख है , और जो डर को ख़ुद पर हावी हो जाने दे ता है वह िन ंदेह
कायर है । साहस का अथ है वह करना जो करने से आपको डर लगता है । अगर आप
डरे नहीं ह, तो िफर साहस का सवाल ही नहीं पैदा होता। िति या करने के बजाय
हमारे पास कुछ कर डालने का साहस होना चािहए। बचपन से ही, मने मन म हवा म
उड़ान भरने का सपना पाल रखा था। इसी वजह से मने ऐरोनॉिटकल इं जीिनय रं ग
पढ़ी। अपना कोस ख़ करने के बाद मने वायु सेना म ‘शॉट सिवस किमशन’ के िलए
आवेदन िकया, तािक म अपना सपना पूरा कर सकूँ। लेिकन इं टर ू म म कामयाब
नहीं हो सका। एक पल म बरसों का संजोया आ सपना चकनाचूर हो गया, जैसे िकसी
ने काँ च की खड़की पर प र मार िदया हो! सपना टू टने के बाद िहमालय म
ऋिषकेश तक मने पैदल या ा की, और जो कुछ आ उसे ीकार करने की कोिशश
करने लगा। बाद म मने मिटनस इं जीिनयर के तौर पर िह दु ान ऐरोनॉिट
िलिमटे ड म नौकरी की। हम म से कई लोग िजन चीज़ों की उ ीद संजोते ह, जब वह
नहीं िमल पातीं, (चाहे वह कोई र े हों, या नौकरी) तो वह िज़ गी से हार मान लेते
ह। िजसे हम पूरी िश त से चाहते हों, िजसे हमने लगातार चाहा हो, उसके न िमलने
पर भी िज़ गी म आगे बढ़ते जाना ही साहस है ।

डर लगने पर भी आगे बढ़कर वही


करना जो करना उिचत है —यही साहस
है । िजसे डर ही नहीं लगता वह मूख है ,
और जो डर को खु ़ द पर हावी हो जाने
दे ता है वह िन ंदेह कायर है । साहस
का अथ है वह करना जो करने म
आपको डर लगता है ।

साहस की दू सरी पहचान है अपने िदल की सुनना। हमारी सृजनशीलता के पीछे


होता है हमारा जुनून, जो िक हम सामा से आगे बढ़कर कुछ करने को े रत करता
है । जब आप अपने िदल और अ द◌ृ ि के मुतािबक चलते ह, तो आप महसूस करते
ह िक आपको पहले से ही पता है िक आप वाकई म ा बनना चाहते है । बाकी सब
बात इसके बाद आती ह। जो खम उठाकर काम करने का फ़ैसला करके कभी-कभी
आपको कुछ दे र के िलए ऐसा महसूस हो सकता है िक आपके पाँ व तले से ज़मीन
िनकल गई हो, लेिकन जो खम न उठाने पर आपके सामने खुद अपना ही वजूद खोने
का ख़तरा हो सकता है । 2006 म रा पित पद पर रहते ए मने ‘लाभ के पद’ से
स त िबल पर ह ा र करने से पूव अ ारह िदनों तक अपने पास रोके रखा।
नेताओं के िनजी िहत मुझे ीकार नहीं थे। मेरे पास िवक थे िक या तो म इस िबल
को एक बार रोक दू ँ और बाद म अपने ह ा र कर दू ँ या ल े समय तक टाल दू ँ या
अपने पद से इ ीफा दे कर राजनीितक अ थरता पैदा कर दू ँ जो म नहीं चाहता था।
काफी आ -िच न करने के बाद मने िबल संसद म दोबारा िवचार-िवमश के िलए
लौटा िदया। जब एक संयु संसदीय सिमित बनाई गई है जो िक ‘लाभ के पद’ िबल
के सारे पहलुओं को मेरे सुझावों के अनु प लागू करे गी, तब मने िबल पर ह ा र
कर िदए। मने यह महसूस िकया िक अगर लोकसभा म ब मत वाली पाट कोई ऐसा
कानून लाना चाहे जो संिवधान के िव जाता है पर उनके िनजी िहत म हो तो
रा पित के िलए अपनी िज़ ेदारी का िनवाह करना किठन हो जाता है । यह महसूस
करते ए मने िन य िकया िक म रा पित पद के दू सरे कायकाल को ीकार नहीं
क ँ गा और इसके बजाय डे वले ड इं िडया िवज़न 2020 के िलए लोगों, ख़ासकर
युवाओं के मन म उ ाह भरने म अपना समय लगाऊँगा।
बाक़ी की सारी िज़ गी जानबूझ कर अनजान बने रहने के मीठे दद को झेलने
के मुक़ाबले ख़ुद को जानने की गहरी टीस बदा करने के िलए िह त चािहए।
साहस की तीसरी पहचान है मु लों का सामना होने पर भी डटे रहना, जुटे
रहना। जब हम डर रहे होते ह या जब ख़तरे से हमारा सामना होता है , हम अपने आप
को यह नहीं समझाना चािहए िक कहीं कोई ख़तरा नहीं है , ब अपना समय और
ऊजा ख़तरे के बावजूद आगे बढ़ते रहने के िलए ख़ुद को तैयार करने पर ख़च करनी
चािहए। जब म छोटा ब ा था और रामे रम् म रहता था, मुझे याद है िक एक बार
बड़ा भारी तूफ़ान आया और मेरे िपता की नाव लापता हो गई जबिक वही उनके
रोज़गार का ज़ रया थी। नाव सवा रयों को ले जाने के काम आती थी, और उसके िबना
मेरे िपता के पास पैसे कमाकर हमारे बड़े से कुनबे का ख़च िनकालने का और कोई
ज़ रया नहीं था। तब हमारे यहाँ अं ेज़ों का शासन था, और ऐसी ाकृितक आपदाओं
से राहत के िलए सरकारी सहायता की कोई अवधारणा ही नहीं थी। कोई मेरे िपता को
कज़ भी दे ने को तैयार नहीं था। तब मेरे िपता ने नई नाव बनाने का फ़ैसला िकया। िदन
पर िदन, उ मेहनत के साथ जुटकर नई नाव बनाते दे ख कर मने जाना िक मुसीबतों
के आगे झुके िबना अगर हम बेख़ौफ़ होकर उनके बीच से रा ा बनाने का फ़ैसला
कर ल, तो तमाम कावट ख़ुद ब ख़ुद गायब हो जाती ह। मने अपने िपता से सीखा िक
साहस ‘जीत का िसंहनाद’ नहीं है , ब वह धीमी सी आवाज़ है जो कहती है िक कल
म िफर कोिशश क ँ गा। अगर ऐसा िवचार आता िक ‘छोड़ नाव को? टू टी नाव की
लकड़ी बेचकर कुछ और करते ह?’ पर उ ोंने ऐसा नहीं िकया। कई ह ों तक कड़ी
मेहनत से काम करते-करते अपनी नाव पूरी तरह ख़ुद ही बना डाली।

साहस दू सरी तमाम अ ाइयों से


ादा मह पूण है , ोंिक िबना
साहस के आप दू सरी अ ाइयों पर
लगातार अमल नहीं कर सकते।

1973 म मुझे भारत के पहले सैटेलाइट लॉ ीकल काय म का ोजे


डायरे र िनयु िकया गया। हमने उसे तैयार करने म छह साल जम कर मेहनत
की। 10 अग , 1979 को जब उसे ेिपत िकया गया, तब उप ह को उसकी क ा
म भेजने के बजाय रॉकेट बंगाल की खाड़ी म िगर गया। बरसों की कड़ी मेहनत और
कोिशशों पर पानी िफर गया। लेिकन यह हादसा हम गलितयों को सुधारने से नहीं रोक
सका, और आिख़रकार 18 जुलाई, 1980 को हमने रोिहणी उप ह को क ा म
थािपत करने म कामयाबी हािसल की। िणक असफलताओं को उन प रों की तरह
समझना चािहए िजनपर पैर जमाते ए सँभल कर आगे का रा ा तय िकया जाता है ,
पर उ ऐसी दु ह बाधा नहीं समझ लेना चािहए िक उनकी वजह से ल ही बदल
जाएँ ।

हमारे अ र िति या करने के बजाय


अपनी ओर से उिचत क़दम उठाने का
साहस होना जािहए।

जो सही है उसका साथ दे ना साहस की चौथी पहचान है । सबसे बड़े नायक वे


होते ह जो अपनी जान की परवाह न करते ए उसी बात का साथ दे ते ह जो उ ठीक
लगती है । ऐसा िन ाथ साहस अपने आप म िकसी जीत से कम नहीं है । 1960 के
दशक म म ित अनंतपुरम् के ेस साइं स एं ड टे ोलॉजी सटर म रॉकेट इं जीिनयर
के तौर पर काम कर रहा था, िजसे अब िव म साराभाई ेस सटर के नाम से जाना
जाता है । हम अनुसंधान के िलए 150 िकलोमीटर की ऊँचाई तक जाने वाले साउं िडं ग
रॉकेट म ईंधन के तौर पर इ ेमाल के िलए सोिडयम की वा के साथ योग कर रहे
थे। ईंधन के तौर पर रॉकेट िमलीमीटर के ास वाले 500 िमलीमीटर ल े ील के
चै र म सोिडयम और थमाइट की एक के बाद एक पत लगाकर तैयार िकया जाता
है । हरे क पत लगाने के बाद उसे 500 टन के हाइडॉिलक ेस से दबाया जाता है । हमने
ऐसे करीब दस सोिडयम पेलोड तैयार िकए। साउं िडग रॉकेट के ज़ रये वायुमंडल म
हवाओं की थित का पता लगाने के िलए इनका ेपण िकया जाना था। 60
िकलोमीटर की ऊँचाई पर इससे िनकलने वाले सोिडयम की वा की पड़ताल करने
पर इसका पता चलता है । सोिडयम पेलोड योगशाला के िवशेष, हर तरफ़ से अ ी
तरह ब हो जाने वाले कमरे म, िजसका तापमान 25 िड ी से यस और आ ता
दस फ़ीसदी पर रखते ए ारहवाँ रॉकेट तैयार िकया जा रहा था। जब पेलोड बनाने
की ि या शु ई और आधा चबर भरा जा चुका था तभी कुछ सेकड के िलए
िबजली चली गई, और कुछ ही पलों म वैक क व था के तहत तैयार रखा गया
जेनेरेटर चालू होने से पहले कुछ पल के िलए सब कुछ ठहर गया। उस समय म अपनी
टीम के सद वी. सुधाकर के साथ था। ोंिक सब कुछ ठीकठाक ढं ग से चल रहा
था और कुल प ह िमनट की ईंधन भरने की ि या बाक़ी थी, इसिलए मने
योगशाला के कंटोल म म जाने का फ़ैसला िकया। जैसे ही म ईंधन भरने वाले
सीलब कमरे से बाहर िनकला, मुझे ज़ोरदार धमाका सुनाई िदया! मने पीछे मुड़कर
कमरे की ओर दे खा तो मुझे लपट िदखाई दीं। पहली बार हम सब सोिडयम की आग
की चंडता के गवाह बने थे। ोंिक सोिडयम सीलब कमरे म था, इसिलए उसकी
आग से बच िनकलने के िलए कमरे की काँ च की खड़की ही एकमा रा ा थी।
सुधाकर ने काँ च की खड़की तोड़कर रा ा बनाया और अपने साथ काम कर रहे
तीनों सहकिमयों को बाहर धकेल िदया और उनके बाद ख़ुद बाहर कूद गए। सुधाकर
ने अपनी सुर ा की परवाह िकए िबना वह िकया जो अपने सहकिमयों की जान बचाने
के िलए करना ज़ री था।

िजसके अ र िकनारे को आँ खों से


ओझल हो जाने दे ने का साहस हो,
िसफ़ वही श स नए महासागरों की
खोज कर सकता है ।

मुसीबतों के आगे झुके िबना अगर हम


बेख़ौफ़ होकर उनके बीच से रा ा
बनाने का फ ़ ै सला कर ल, तो तमाम
कावट खु ़ द ब खु़ द गायब हो जाती ह।

साहस की पाँ चवीं पहचान है अपनी


िज़ गी के दायरे को बढ़ाना और
प रिचत प र थितयों से आगे बढ़कर
नए रा े खोजना।

साहस की पाँ चवीं पहचान है , दु िनया को युवाओं वाले गुण चािहए—यौवन यानी
जीवन का काल खंड िवशेष नहीं, ब वैसी मनः थित, कड़क इ ा- श ,
क नाशीलता की ख़ूबी, डर के मुक़ाबले साहस की धानता, आराम की िज़ गी से
बढ़कर जो खम उठाने की भूख। िजतना साहस होता है , उसी के अनुपात म िज़ गी
िसकुड़ती या फैलती है । अगर म रामे रम् म घर के सुर ा के माहौल को छोड़कर
कॉलेज की पढ़ाई के िलए ित िचराप ी और उसके बाद चे ई म इं जीिनय रं ग पढ़ने
नहीं गया होता, और िफर तिमलनाडु को छोड़ काम करने के िलए उ र दे श,
कनाटक और केरल नहीं गया होता, तो मेरी कहानी भी वैसी नहीं बनती जैसी बन पड़ी
है और आज म इसे आपके साथ साझा नहीं कर रहा होता।
आिख़र म, ग रमा और आ था के साथ क झेलना ही साहस है । साहसी
के अ र ही आ था होती है । साहसी ही ग रमा और स ता के साथ जीवन की
दु घटनाओं को बदा करते ए हालात का पूरा फ़ायदा उठाता है । साहस दू सरी
तमाम अ ाइयों से ादा मह पूण है , ोंिक िबना साहस के आप दू सरी अ ाइयों
पर लगातार अमल नहीं कर सकते। आप िकसी भी अ ाई पर यदा-कदा अमल कर
सकते ह, लेिकन साहस के िबना लगातार कुछ भी नहीं कर सकते। एक बार मने
अपने दो ने न मंडेला से पूछा, ‘‘वह कौन सी चीज़ थी िजसने उन स ाइस सालों
के दौरान आपके अ र जीने की ललक बनाए रखी जो आपने कैदखाने म िबताए?’’
वह बोले—‘‘कलाम, मने जाना है िक साहस डर की गैरमौज़ूदगी नहीं है , ब
उसपर दज की गई जीत है । िनडर वह नहीं है जो डर महसूस नहीं करता, ब वह
है जो अपने डर पर िवजय ा कर लेता है ।’’

सही का साथ दे ना ही साहस की


पहचान है ।

आपके सवाल—कहाँ है साहस? का जवाब है — िनःसंदेह साहस आपके िदल म


है , साहस आपके च र म है । एक रा के तौर पर, हमारे िलए यह ब त ज़ री है िक
हम सही िक के नेताओं को चुन और जो कुछ बुरा हो रहा है और अपने चारों ओर
हम जो अ ाय होते दे खते ह, उसके िख़लाफ़ आवाज़ उठाएँ । अपनी पु क वै रं ग
द सकल, म मने काल जंग की कही बात का उ ेख िकया है —‘आपका नज़ रया
तभी साफ़ हो सकता है जब आप अपने िदल म झाँ क कर दे खगे। जो बाहर दे खता है ,
उसे सपने िमलते ह; और जो भीतर झाँ कता है , वह जाग जाता है ।’ बुरे से बुरे समय म
बेहतर िज़ गी का सपना दे खना और बेहद िनराशाजनक थितयों म भी अपने अ र
छु पी स ावनाओं के ित जाग क हो जाना साहस है ।
अद साहस
हम ऐसे दौर म जी रहे ह जब हर िदन असं सम ाएँ िसर उठा
. रही ह। अगर हम इन सम ाओं को हल करना है , तो हम ऐसे
नेताओं की ज़ रत होगी िजनके पास िनडर होकर नई बात सोचने
का साहस हो और आलोचनाओं को बदा करने का हौसला हो।
अफ़सोस की बात है , आज के दौर म ऐसा नेता िमलना मु ल है
ोंिक हर नेता जनता के स ुख अपनी पाक–साफ़ छिव ुत करना
चाहता है । वह ऐसी कोई भी बात नही ं करना चाहता िजससे उसे िववादों
म फँसना पड़े ।
हमारे दे श के अ े लोग चाहे वह िश क हों, िवचारक हों,
आ ा क पथ दशक हों, कलाकार हों या बु जीवी हों, सभी ने ख़ुद
को अपनी छोटी सी दु िनया के सुरि त दायरे म समेट रखा है । अगर
उनके पास कोई साहिसक और नया िवचार होता भी है , तो वह उसे
करने से कतराते ह, ोंिक उ डर होता है िक कही ं उ दू सरों
की िचढ़ और उपहास का सामना न करना पड़े । उ इस बात का डर
होता है िक दू सरे उनके िवचारों को लेकर ा सोचगे।
लेिकन सर, आप ऐसे नही ं ह। आप अपनी मयादा और उसूलों पर
डटे रहे , चाहे ऐसा करना आपके िलए सुिवधाजनक नही ं था, और यहाँ
तक िक ऐसा करने म आपका नुकसान था। अगर आप चाहते तो
रा पित के प म दू सरा कायकाल आपके हाथ म था, लेिकन उसके
साथ जुड़ी शत के कारण आपने उसके िलए इनकार कर िदया। आप
मेरे जैसे असं भावहीन, डरपोक और बुज़िदल लोगों को ा संदेश
दे ना चाहगे, िज ोंने न तो जीत का ाद चखा है और न ये जानते ह िक
हार ा होती है ?
कल का सामना करने के िलए सबसे कम तैयारी उस की है जो आने वाले कल
के बारे म पहले से ही एक िनि त धारणा बना चुका है ।
—वॉट् स वैकर, िजम टे लर और हावड मी

ने रा पित के पद पर दू सरे कायकाल के ाव को इसिलए ीकार नहीं


मै◌ं िकया ोंिक मने भारत के रा पित के प म िकसी राजनैितक मोल–भाव म
पड़ना उिचत नहीं समझा। मेरा मानना है िक दे श के सव पद के िलए
स ाधारी दल और िवप ी दलों को साथ िमलकर सवस ित से रा पित का चुनाव
करना चािहए। हालाँ िक लोकत म चुनाव म खड़े होने और चुनाव जीतने को टाला
नहीं जा सकता, लेिकन मोटे तौर पर, रा पित का चुनाव सवस ित से ही होना चािहए
ोंिक यह दे श के सव पद के ित लोगों की आ था रखने का तीक है । म
राजनैितक माहौल म िकसी तरह की अ थरता नहीं चाहता था और इसिलए मने दू सरे
कायकाल की पेशकश को ीकार न करके उसके बजाय अपनी ऊजा इं िडया िवज़न
2020 को साकार करने की िदशा म लगाने का फ़ैसला िकया।

अस ोष और िनराशा िकसी चीज़ की


कमी की वजह से नहीं होते, ब
दू रदश न होने से होते ह।

आपकी ई-मेल वाकई म एक आम सम ा को सामने रखती है —हम सभी के


अ र जो एक जीवा ा या अ रा ा रहती है उससे जुड़ाव न रहना। हम अपनी
आ ा क कृित की श का उपयोग नहीं करते ोंिक हम उसके च र की
समझ नहीं है और न ही हम अपने मन के साथ उसके स को समझ पाते ह। यह
समझना ज़ री है िक हर चीज़ की शु आत मानव के म से होती है । और
म की श हमारी जीवा ा है । इं सान अपनी अ रा ा के ज़ रये अपने मन
की श यों को अपने अिधकार म ले सकता है , ब सच तो यह है िक सारे िवचारों
पर अपनी स ा क़ायम कर सकता है । इस ताक़त को ही म अद साहस कहता ँ ।

जब म युवाओं से ब त बड़े –बड़े सपने


दे खने के िलए कहता ँ तो म उनके
अ र एक ी का आ ान कर रहा
होता ँ । तुम जैसे सपने दे खोगे, एक
िदन वैसे ही बन जाओगे!
अद साहस की काया दो पैरों पर िटकी है —एक, ऊँचे ल ों पर िटकी नज़र
िजसे म िवज़न कहता ँ , और (vision) दू सरी, प ा इरादा।
अपनी आ ा क कृित से जुड़ने के िलए यह ज़ री है िक जीवन म आपके
पास िवज़न हो। अपने जीवन का िवज़न बनाने के िलए आपको अपने मन को टटोलना
होगा। िव िस मनोवै ािनक काल जंग ने कहा था, ‘‘आपका िवज़न तभी होगा
जब आप अपने िदल म तलाशगे। जो बाहर खोजता है , वह सपना पाता है ; जो अपने
अ र खोजता है , वह जागता है ।’’ अजीब बात है िक हमम से ादातर, ि या
नज़ रये पर अमल करने से कतराते ह, शायद इसिलए ोंिक हम दू रदश होने को
अ ावहा रकता से जोड़ कर दे खते ह। जो भी हो, मेरी िज़ यही है िक ि पूरी तरह
से ावहा रक होती है , और जहाँ उसम हमारे मू ों और आकां ाओं की छिव होनी
चािहए, वहीं उसे त ों पर आधा रत होना चािहए।

सफलता ा करने के िलए पहले


आपको अपनी इ यों को अपने वश
म करने म कामयाबी हािसल करनी
होती है ।

ि के दो अवयव होते ह। उसका एक िह ा भावा क होता है (क ना,


अ ि और मू ों से उ ) जबिक दू सरा िह ा तािकक होता है (िववेचना से
उ )। ि श का म बेहद बारीक और िव ृत मायने म योग करता ँ । इस
बारीकी के िबना, ि वा व म भटक कर कोरी क ना के लोक म प ँ च सकती है
और तब उसम ावहा रक श नहीं रहे गी जो िक उसम होनी ही चािहए,
प रभािषत और िन ािदत। यह ऐसी िकसी चीज़ को मानिसक पैनेपन और सू
दू रदिशता के साथ दे ख पाने की मता है जो िफलहाल नज़रों की प ँ च से दू र है । जब
म युवाओं से ब त बड़े -बड़े सपने दे खने के िलए कहता ँ तो म उनके अ र एक ि
का आ ान कर रहा होता ँ । आप जैसे सपने दे खोगे, एक िदन वैसे ही बन जाओगे!
आपके अपने नज़ रये म ही वह बनने की स ावना छु पी है जो एक िदन आप बनोगे।
आपके आदश म उस सच की भिव वाणी छु पी होती है िजसपर से एक िदन पदा
उठे गा। जब आपके पास अपने जीवन के िलए कोई िवज़न नहीं है तब यह नहीं
िक आप िकस ल की ओर चल रहे ह या िफर आप जीिवत भी िकसिलए ह। इस
थित म आपका जीवन उस जहाज की तरह है िजसे िबना क ान और िबना ल के
समु म छोड़ा गया है । समु की लहर ऐसे जहाज़ को जहाँ मज़ इधर से उधर करती
रहती ह। लेिकन यिद आप अपने जीवन का िवज़न िनधा रत कर लेते ह तब कम से
कम आपके जीवन को िदशा तो िमल जाती है और अपनी िज़ गी का जहाज़ उस
िदशा म ले जा सकते ह। अस ोष और िनराशा िकसी चीज़ की कमी की वजह से नहीं
होते, ब दू रदश न होने से होते ह।

अद साहस का दू सरा घटक है प ा इरादा। भगव ीता(अ ाय ि तीय,


ोक 68) म ‘ थत ’ की अवधारणा है , िजसम सफ़लता की कुंजी िनिहत है —‘वह
िजसका अपनी इ यों पर िनय ण है , िजसका मन थर है और िजसके
अ र म शा ा है ।’ सफलता ा करने के िलए पहले आपको अपनी इ यों
को अपने वश म करने म कामयाब होना ज़ री होता है । इ यों को वश म कर लेने
पर, और अपनी दू रदिशता को साथ लेकर आप जो भी ल ा करना चाहते ह, वह
ा कर सकते ह। दो हज़ार साल पहले स किव ित व ुवर नेकुरल (पद 595) म
कहा है —‘पानी का र बढ़ने पर कमल का तना बढ़ कर ल ा हो जाता है ।
की ग रमा को उसके मन से मापा जाता है ।’ इसका अथ यह आ िक िजस तरह
कमल के तने की ल ाई पानी की गहराई के अनु प हो जाती है , उसी तरह
की महानता उसके मन के अनु प होती है । यिद िकसी ल की ा के िलए
प ा इरादा कर िलया है , तो वह ल िकतना भी किठन ों न हो, आप उसे ा
करने म सफल हो ही जाएँ गे।

आ क बल सबसे बड़ा सहारा होता


है । अगर हम अपने भीतर की गहराइयों
म उतर कर गहन छानबीन कर, तो
चाहे रा ा िकतना भी किठन ों न
लगे, हम अपने ल की अोर बढ़ते
रहने के िलए वह आ रक शिकत
ज़ र ढू ँ ढ सकते ह।
अपने जीवन म, बड़े -बड़े काय म और प रयोजनाओं के ब न की िज़ ेदारी
मेरे ऊपर रही। मने किठन प र थितयों से गुज़रने के अनुभव िकए जब सफलता का
दू र-दू र तक नामोिनशां नज़र नहीं आता था और रा े म अड़चन ब त थीं—आदमी
की पैदा की ई अड़चन, काय म की परे खा से जुड़ी अड़चन, ौ ोिगकी से पैदा
होने वाली अड़चन। ब तेरे कारण होते थे मेरे पास िनराश होकर हार मान लेने के
िलए, लेिकन मने हार नहीं मानी। जैसा िक स ित व ुवर ने कुरल(पद 622) म
कहा है —‘शू हो भाव-िव ल करने वाली पीर, जो करे सामना डटकर धीर-ग ीर।’
इससे समझ म आता है िक किठन दौर से गुज़र रहे के िलए आ क बल का
सहारा ही सबसे बड़ा सहारा होता है । अगर हम अपने भीतर की गहराइयों म उतर
कर गहन छानबीन कर, तो चाहे रा ा िकतना भी किठन ों न लगे, हम अपने ल
की ओर बढ़ते रहने के िलए वह आ रक श ढू ँ ढ सकते ह।

तैर रहा था म, वह था सागर आती रही


लहर एक–एक कर तैरता जा रहा था
मंिज़ल की ओर पर एक तेज़ लहर, गई
झकझोर। बहा ले चली िजधर था उसे
जाना ले चली दू र, दे र तक मेरा ज़ोर
चला न तेज़ लहरों म गुम होने को था
छन म हाँ , तभी हौसले की बात कौंधी
मन म हर ताक़त को दे मात ललक
मंिज़ल पाने की अद साहस से जागी
श जीत जाने की बदली सोच,
िह त से पल म, बदली चाल खोया
िव ास लौटा, भरोसा आ बहाल जीत
सकता ँ म, जीत होगी मेरे नाम लहरों
से लड़ने म खोया बल िफर आया काम
यूँ िमली मुझे मंिज़ल, आ म़कसद
हािसल।
क न कदम
सर, मने आपकी पु क ै रं ग द सकल : सेवेन े टू इं िडयन
.रे नेसांस पढ़ी। भारत के ‘रे नेसांस’ यानी पुनजागरण का िवचार
िदलच भी है और ेरणा द भी। ोंिक मेरे दो और म
िकताब के शीषक से कुछ भी नही ं समझ पाए थे, इसिलए हमने अपने
िश कों से पूछा। गिणत के टीचर ने कहा िक वृ का वग बनाने के िलए
वग की भुजा की ल ाई के िलए π का वगमूल िनकालना होगा ोंिक
ि 2
ा वाले वृ का े फल होता है π r । इसिलए वृ के े फल के
बराबर के वग की भुजा की ल ाई होगी r √π । और यह सं ा बन नही ं
सकती, ोंिक π कोई सही सं ा ही नही ं है । िनि त प से ऐसी कोई
प रमेय सं ा नही ं है िजससे π का मान िनकाला जा सके। यू िडयन
समि म √π की रचना करना अस व है । अं ेज़ी के टीचर ने कहा िक
‘ ै र द सकल’ एकमुहावरा है िजसका मतलब है िकसी अस व से
सवाल का समुिचत हल ढू ँ ढ िनकालना, ख़ासतौर से इसिलए ोंिक
उसके बारे म उससे जुड़े लोगों के नज़ रये और राय ब त ही अलग–
अलग तरह के ह।
इन दोनों जवाबों से मुझे यह समझ म आया िक आपने ‘ वै रं ग
द सकल’ को जो अस व है वह करने के यास के एक पक के तौर
पर इ ेमाल िकया है । तो ा भारत का ‘रे नेसांस’ यानी पुनजागरण की
शु आत करना अस व है ? या िफर आप दोनों ओर के, स ाधारी और
िवप ी दलों के राजनेताओं को अपने दे श के िवकास के कायभार को
वृ का वग बनाने वाली बात के िलए राज़ी करने की कोिशश कर रहे
ह। कृपया कीिजए।

जो बाहर को नज़र दौड़ाता है , वह सपने दे खता है । जो अपने अ र झाँ कता है , वह


जाग जाता है ।
—काल गु ाफ़ जंग

ब म पुनजागरण की बात करता ँ तो मेरा ता य उन लोगों से होता है जो


ज अपनी (अपने सपने के ित) ितब ता, लगन (डर के बावजूद) और भरोसे
(अपने आप पर) की बदौलत कामयाबी हािसल करते ह। आज़ादी के लगभग
सात दशक होने को ह, लेिकन एक रा के प म हम गोल-गोल घूमते जा रहे ह,
यानी वहीं के वहीं ह। एक र तक िवकास आ है , दौलत पैदा की गई है , लेिकन
ादातर भारतीयों की िज़ गी म अभी सुधार आना बाक़ी है । हम अपने तौर- तरीके
ठीक करने ह, और प े इरादे के साथ आगे बढ़ना है तािक हम एक िवकिसत और
शा ि य रा की अपनी िनयित को ा हों।
रा प रवारों से िमलकर बना होता है , और प रवार बने होते ह यों से।
से रा के बीच एक सीिढ़यों जैसा िसलिसला है जो दोनों तरह से काम करता है
—एक दु च के प म और सद् च के प म भी—एक जिटल ृंखला है , एक
दू सरे से जुड़ी घटनाओं की। लोगों के साथ उसके भावों की जानकारी दे ने का
िसलिसला भी चलता रहता है । ये च अपनी गित की िदशा म तब तक चलते रहते ह
जब तक िक कोई बाहरी कारक इनम दखल दे कर इस च को तोड़ नहीं दे ता।
वतमान म हम िजस दु च म फँसे ह, उन च रों को रोकने के िलए ा करना
होगा? कौन इस च को तोड़े गा? इस पु क म इन दोनों सवालों के जवाब पाने की
कोिशश की गई है । ोंिक आपने इसे पढ़ा है , इसिलए म इस िवषय पर यहाँ चचा
नहीं क ँ गा। उसके बजाय म आपसे अनवरत चलने वाले के बारे म बात
क ँ गा िजसे रोका न जा सके। न कने वाले म छह ख़ूिबयाँ होती ह।
पहली है सपने दे खना, समिपत होना और ि याशील होना। हम सभी के अ र
कोई जुनून, कोई सपना, कोई ल तो होता ही है । चाहे वह पु क िलखने के िलए हो,
भूखों को भोजन कराने के िलए हो, पेड़ लगाने के िलए हो, मंिदर, मसिजद या
सामुदाियक भवन बनवाने के िलए हो, के अ र कोई भी इ ा हो, एक बार
हम उसके ित ख़ुद को समिपत कर दे ते ह, तो अब तक िवचार के प म रही बात
मन म ही कम का प ले लेती है । उसी पल हम एक ल और एक िदशा िमल जाती
है । िफर हम अपना जीवन प र थितयों के इशारे पर नहीं चलने दे ते, ब पतवार पर
अपनी पकड़ मज़बूत करके अपने जीवन की नौका का ख मनचाही मंिज़ल की ओर
कर आगे बढ़ने लगते ह।

यह ठान लेना िक िवक के प म भी


असफलता का कहीं नामोिनशां नहीं है
चम ारी सािबत होता है ।
अपनी मंिज़ल की ओर बढ़ते ए रा े म आने वाले तूफ़ानों से हम कैसे लड़ते ह,
उससे पता चलता है िक हमारे समपण म िकतनी ईमानदारी है । िसफ़ िकसी ल के
ित ख़ुद को समिपत कर दे ना ही काफ़ी नहीं है , ोंिक हो सकता है बाद म ख़ुद पर
भरोसा न रहे , आलोचनाओं से डर लगने लगे, िनराशाएँ और कुंठाएँ घेर ल। और जब
भी कुछ मह पूण हािसल करने की कोिशश की जाती है , तब इनसे वा ा पड़ता ही
है । लेिकन अगर हम वा व म अपने ल के ित समिपत होते ह तो िफर हमारे
अ र ल को हािसल करने का िपट बुल न के िशकारी कु ों जैसा प ा इरादा
होना चािहए। लेिकन दू सरी िकसी भी चीज़ के मुक़ाबले अपने ल को वरीयता दे ते
ए उसके ित समिपत होना वा व म सफलता की कुंजी है और उसके िलए
कुरबािनयाँ दे ने के िलए भी तैयार रहना चािहए।
दू सरी ख़ूबी है अपने आप पर भरोसा। अगर आपको सचमुच लगता है िक आप
कुछ कर सकते ह, तब तो आप वाकई म उसे अंजाम तक प ँ चा सकते ह, लेिकन
अगर आपको िकसी काम के िलए लगता है िक आप नहीं कर सकते, तो सचमुच आप
उसे नहीं कर सकगे। हे नरी फ़ोड ने सच ही कहा था—‘अगर आपको लगता है िक
आप कोई काम कर सकते ह तो भी और अगर आपको िकसी काम के िलए लगता है
िक आप वह नहीं कर सकते, तो भी आप सही ह।’
अपने आप पर िव ास, और िजस काम के िलए ख़ुद को समिपत िकया है , उसके
ित िव ास, इसम कोई शक नहीं िक इन दोनों बातों से अपने ल तक प ँ चने की
स ावना बढ़ जाती है । मन म यह ठान लेना िक िवक के प म भी अस़फलता का
कहीं नामोिनशां नहीं है चम ारी सािबत होता है ।
तीसरी ख़ूबी है आ था। हम जो भी कुछ करते ह उसका आिख़रकार अंजाम ा
होगा, उसपर ान लगाने म आ था हमारी मदद करती है । आ था का अथ है िक कोई
सबूत न होने पर भी मन ही मन हमारा इस बात पर िव ास बना रहता है िक
आिख़रकार सब कुछ ठीक हो जाएगा। िदल की गहराई म यह िव ास बना रहना िक
अगर हम अपने ल पर नज़र िटकाए रखकर लगातार उसे स व बनाने के िलए
अपने काम म जुटे रहे , तो हम जैसा चाहते है वैसा नतीजा हम ज़ र िमलेगा, यही
आ था है ।
चौथी खूबी है हर हाल म सफल होने का साहस। हम आलोचनाओं को अपने
सपने की राह म आड़े नहीं आने दे ना चािहए। जब लोग दू सरों को कुछ ऐसा करते
दे खते ह िजसे सामा वहार से अलग माना जाता है , तो वह खेपन से पेश आ
सकते ह। कभी-कभी लोग िनराशाजनक और नकारा क बात करने लगते ह। िकसी
का बदला आ वहार कई बार लोगों म असुर ा की भावना पैदा कर दे ता है ।
लेिकन, अगर यह सब हमारे संक ों की राह म अड़चन बन जाए तो सब बेकार, सब
कुछ हाथ से िनकल गया। आलोचनाओं को पीछे छोड़ आप जो ह और जो होना चाहते
ह लगातार इसी सोच के साथ जीने के िलए भी बड़ा साहस चािहए।
ख़ुशी अपनी इ ओं को पूरा करने से
नहीं, ब िकसी बड़े और अ े
उ े के ित ख़ुद को समिपत कर
दे ने से हािसल होती है । और हम जो
चाहते ह उस िदशा म स े मन से काम
करना ही खु ़ द से ार होने की िनशानी
है , जो हमारी िज़ गी को मक़सद और
मायने दे ती है ।

पाँ चवीं खूबी है अपने काम म जुटे रहकर रा े म आने वाली अड़चनों से डटकर
मुकाबला करना। म अ ाहम िलंकन के जीवन से ब त भािवत ँ । वह कई बार
नाकाम रहे और उनके िवरोिधयों ने ही नहीं, उनके िम ों, और यहाँ तक िक प रवार के
सद ों ने भी उनकी जमकर आलोचना की। अगर वह इस सारी आलोचना का असर
अपने ऊपर होने दे ते तो अपने दे श के िलए उनका असाधारण सपना बेकार चला
जाता। आज संयु रा अमरीका जो भी कुछ है , उसम ब त बड़ा हाथ िलंकन की
सोच का भी है । िबना िडगे जुटे रहने की बदौलत ही, वह आलोचना, असफलता, डर
और अपने आप पर शक के बावजूद आगे बढ़ते रहे । यही है डटे रहने की ताक़त।
अपने सपने के ित समिपत रहने के िलए हमारे अ र एक आ क बल और
अ नी ताक़त होनी चािहए।

छठी खूबी है उ े परक और धुन का प ा होना। कई लोगों को इस बात का


सही अ ाज़ा नहीं होता िक स ी ख़ुशी ा होती है । ख़ुशी अपनी इ ाओं को पूरा
करने से नहीं, ब िकसी बड़े और अ े उ े के ित ख़ुद को समिपत कर दे ने से
हािसल होती है । और हम जो चाहते ह उस िदशा म स े मन से काम करना ही ख़ुद से
ार करना है , जो हमारी िज़ गी को मक़सद और मायने दे ती है । एक बार हम जो
ख़ुद को िकसी बड़े उ े के ित समिपत कर दे ते ह, तो हमारा जीवन अथपूण हो
जाता है , और जब इसम जुनून के साथ अपनी धुन के प े होकर काम करना भी जुड़
जाए, तो समिझए महान बनने की िविध हमारे हाथ लग गई है । हम यह सुिनि त करना
है िक रोज़मरा के काम का भार और िज़ गी के उतार-चढ़ाव हम अपने ल से
भटका न द तािक हम अपने चुने ए माग से िडगे िबना आगे बढ़ते चले जाएँ ।
इं शा ाह
सर, जब दे खो तब मुझे ऐसा महसूस होता है िक हालाँिक मेरी
. िज़ गी की गाड़ी के पिहये तो घूम रहे ह, लेिकन म िकसी मंिज़ल
की ओर नही ं बढ़ रहा ँ । मुझे मालूम है िक म अपनी तरफ़ से
िजतना अ ा हो सकता है , कर रहा ँ , िफर भी ऐसा लगता है जैसे सब
कुछ िसफ़ एक मशीन की तरह चल रहा है । मुझे दरअसल ऐसा लगता है
जैसे म वह नही ं कर रहा ँ जो मेरी िज़ गी का मक़सद है । म कोई
तर ी नही ं कर रहा ँ । जैसे एक ऊँचाई पर प ँ चने के बाद अब और
ऊपर जाने का रा ा नही ं है और बस म एक सपाट सी जगह बेवजह
चला जा रहा ँ । बड़ी िनराशा होती है इससे, ोंिक अपने अ र कही ं
मुझे इस बात का एहसास होता है िक म और बुल यों तक प ँ च
सकता था। म और बेहतर करने के िलए बना ँ । इसी एहसास ने मुझे
तब भी आगे बढ़ते रहने के िलए मजबूर िकया जब मुझे लग रहा था िक
सब कुछ खो चुका है , मेरा समय िनकल गया है और कोिशश करते रहने
की कोई वजह नही ं बची है । लेिकन मने अपने यास जारी रखे, इसिलए
नही ं ोंिक िकसी ने मुझसे ऐसा करने के िलए कहा, ब इसिलए
ोंिक म ऐसा िकए िबना नही ं रह सकता था। कोई फ़क नही ं पड़ता िक
म िकतनी बार पीछे हट गया, कोई फ़क नही ं पड़ता िक मने िकतनी बार
अपनी हार मान ली, लेिकन कुछ ऐसा था िजसने मुझे िफर से उठ खड़े
होने और िफर कोिशश करने को मजबूर कर िदया।
लेिकन सर, अब यही एहसास मुझे डराने लगा है । मुझे यकीन होने
लगा है िक िजतना कुछ म करने के क़ािबल ँ , उतना कर नही ं रहा ँ ,
और हरे क िदन जो गुज़रता है वह उन िदनों की िगनती म जुड़ जाता है
जो हमेशा के िलए हाथ से िनकल गए, और इस तरह म उस ओर नही ं
बढ़ रहा ँ जहाँ मेरी िक त ले जाना चाहती है । िक त पर भरोसा
करना ख़तरनाक नही ं है ? ा यह िक त या िनयित का िनक
मंिज़ल तो नही ं, जो दू र, ब त दू र कही ं होती है , जहाँ तक जाने वाले रा े
िकसी न े म नही ं होते?
सर, आपके यासों से भारत का पहला उप ह क ा म भेजा गया,
आपने पाँच िमसाइल िस म बनाए, और नािभकीय बम और उसके
योग के िलए ज़ री त आपने िवकिसत िकए। आप मामूली से
रामे रम् ीप से गौरवशाली रा पित भवन तक प ँ चे। वह कौन सी
चीज़ थी िजससे आपको ेरणा िमलती रही? आपको कभी डर नही ं
लगा? ा आपको अपनी मंिज़ल पता थी? ा आप सफलता के पीछे
पड़े रहे या सफलता आपको अपने आप ही िमलती चली गई? ा एक
सृजनशील के प म इस दु िनया को िहला कर रख दे ना और
महानता को ा करना स व है ?

ई र के संसार म ‘अगर’ के िलए कोई जगह नहीं है । और कोई भी जगह पूरी तरह
सुरि त नहीं है । उसकी इ ा के घेरे म बने रहना ही हमारे सुरि त रहने का अकेला
रा ा है — आइए ाथना कर िक हम हमेशा ई र की इ ा का ान रहे !
—कौरी टे न बूम

यित बनाम इ ा-श का जो मु ा आपने उठाया उस पर म और मेरे


नि◌ ग य िम आर. ामीनाथन कभी-कभी चचा िकया करते थे। ा हम
अपनी इ ा के क ा ह, या िफर हम िनयित के हाथ म कठपुतिलयों की तरह
ह? ा हम अपनी िनयित को बदल सकते ह? एक नज़ रया यह है िक हम िनयित के
ब क ह, और हम जो चाहे कर ल, हम िकसी सूरत म उसे बदल नहीं सकते। दू सरा
नज़ रया यह है िक हम पूरी तरह से मु ह और हम सही और गलत म से चुनने के
िलए पूरी तरह त ह। ा हम अपने हालात सुधारने के िलए कोिशश कर सकते
ह? ा अपने कम और यासों से िनयित को बदला जा सकता है ? आपके सवाल से
मुझे िफर वही बात याद आ जाती ह जो म ामीनाथन के साथ िकया करता था। और
आपके सवाल के जवाब म म वही बात साझा करना चा ँ गा जो मेरे दो मेरे पास
छोड़ गए ह।
तीन तरह की श याँ हम सभी अपने अ र लेकर चलते ह। पहली, हमारी
ेरणा और आवेग, िजनके पीछे के कारणों का हम पता नहीं होता। दू सरी, हमारी
वृि याँ । हमम से हरे क का झान िकसी न िकसी चीज़ की तरफ़ होता है —कुछ
लोगों का झुकाव संगीत की ओर होता है , कुछ का मेहनत-मश त की ओर, कुछ
िकसी िदमाग़ी काम की ओर आकिषत होते ह, कुछ आ ा क ि याकलाप की
ओर, जबिक कुछ लोगों की वै ािनक िवषयों म िदलच ी होती है । और तीसरी चीज़ है
इ ा-श । हर पल यह तीनों ताक़त िमलजुल कर हमारी िज़ गी को आगे बढ़ाती
ह।
तीरं दाज़ी म इ ेमाल होने वाले धनुष और बाण की िमसाल के ज़ रये म आपके
सामने इसकी त ीर पेश करने की इजाज़त चाहता ँ । तीरं दाज़ के कंधे पर टं गे
तरकश म जो तीर होते ह, वह हमारे अ र की ेरणा और आवेग का ितिनिध
करते ह। वह तीर जो तीरं दाज़ ने अभी-अभी अपने धनुष से छोड़ा, वह तीरं दाज़ की
वृि का ितिनिध करता है , और िफ़लहाल तीरं दाज़ के हाथ म जो तीर है , वह
तीरं दाज़ की इ ा-श से कुछ करने की आज़ादी का तीक है । वह इस तीर को न

चलाने का भी फैसला कर सकता है , और वह चाहे तो उसे कमज़ोर की र ा के िलए
भी इ ेमाल कर सकता है और उ परे शान करने के िलए भी। इस तरह, वृि यानी
िफ़तरत वह चीज़ है िजसे न बदला जा सकता है और न उसके असर को ख़ िकया
जा सकता है , लेिकन अपनी इ ा-श से कुछ करने की आज़ादी हमारे पास हमेशा
रहती है ।
लेिकन हम यह कैसे पता चलेगा िक वह कौन सी ताक़त है जो हमारी िनयित या
िक त का िह ा है ? ा मौत या कोई भयानक बीमारी या िफर दौलत िनयित के
अधीन है ? अगर हर िकसी के मरने की तारीख़ पहले से तय है , तो िचिक ा िव ान की
ा भूिमका है ? वगैरह, वगैरह। अपने आिख़री िदनों म ामीनाथन के मन म ऐसे
सवाल ब त आते थे। उनके सवालों ने मुझे यह एहसास कराया िक म उ िनयित
बनाम अपनी इ ा-श से िकए गए काम को समझने की दु िवधा से िनकालने की
थित म नहीं था, लेिकन अब आपके सवाल ने मुझे बैठकर इस काम को पूरा करने
के िलए मजबूर कर िदया है ।
हमारी ेरणाएँ , वृि याँ और अपनी इ ा-श से कुछ करने की आज़ादी की
जीवन के हरे क प म भूिमका अव होती है , चाहे वह िकसी को मौत के मुँह से
बचाने के िलए की गई कायवाही जैसा बेहद किठन काम ही ों न हो। कायवाही के
समय हम अपनी िनयित के बारे म नहीं सोचना चािहए, ोंिक कोई भी उसके बारे म
भिव वाणी नहीं कर सकता। ेरणाओं और वृि यों का िस ा िसफ़ कायवाही
यानी कम के फल की ा ा करने के काम आता है । अ े से अ े यास के
बावजूद अगर अ े प रणाम न िमल, तो इसके िलए िनयित को िज़ ेदार ठहराया जा
सकता है । िनयित का िस ा इसिलए काम का है ोंिक यह को िबना हताश
ए प रणामों को ीकार करने म मददगार बनता है । इसी के साथ, अगर उस
सफलता म िनयित की भूिमका का एहसास हो, तो यह िस ा सफल को
अहं कारी बनने से रोकता है ।
यह स व है िक िकसी की कुछ करने की इ ा-श यानी कुछ ा
करने के िलए यास करने का उसका झान भी िनयित से भािवत हो? इस सवाल के
जवाब के िलए म पौरािणक ों की ओर ़ख करता ँ , और पौरािणक ान मुझे
बताता है —‘हाँ , लेिकन कभी-कभार ही ऐसा होता है ।’ जब िनयित म जो होना िलखा
हो वही िकसी की मज़ से काम करने की सोच को भी भािवत कर दे , ऐसी दु लभ
प र थित की ा ा करने के िलए राम के सुनहरे िहरन का पीछा करने का िनणय
उदाहरण के तौर पर िदया जाता है । ‘लाउह अल-म व अल-इथबात!’ इस अरबी
वा म वह इ ाम दशन िनिहत है िक अ ाह ने हर िकसी के जीवन की पूरी
अविध, उनके िह े का सौभा और दु भा और उनके यासों का फल पहले से तय
िकया आ है । भिव म जो भी कुछ हो सकता है उसकी स ावना की बात करते ए
मुसलमान अकसर ‘इं शा ाह’ कहते ह िजसका अथ होता है —‘अ ाह ने चाहा तो।’
अब सवाल यह पैदा होता है िक अगर मेरी ेरणा और वृि मुझम पहले से है ,
तो म अपनी इ ा-श से ा कर सकता ँ ? म यही क ँ गा िक की थित
के यह दो प , हमारी वृि और हमारी इ ा-श , िकसी कची के दो फलों की
तरह ह। एक फल इ ा-श से काय करने की आज़ादी है और दू सरा फल ेरणा
और वृि । जब दोनों फल िमलकर चलते ह तब कची अपना काम करती है । आप
कची के िसफ़ एक फल से कपड़ा नहीं काट सकते। इसी तरह, िकसी कायवाही के
िलए ेरणा और वृि और इ ा-श से करने की आज़ादी दोनों ही ज़ री ह।

अपनी िक त के िनमाता आप खु ़ द ही
ह। हरे क िवचार, भावना, इ ा और
कम एक श पैदा करता है । अ ा
और बुरा दोनों ही हम भािवत करते
ह, और तब तक हम पर हावी रहते ह
जब तक िक हम उनके बीच स ुलन
नहीं पैदा कर दे ते।

हमारी ेरणा और वृि से कई चीज़ तय होती ह िज हम बदल नहीं सकते।


हम िकस तरह के प रवार म ज लेते ह, अपनी न , और अपने शरीर की बनावट
कैसी है इस पर हमारा कोई वश नहीं। हो सकता है म चा ँ िक मेरी नाक की बनावट
बदल जाए या मेरा क़द कुछ इं च बढ़ जाए, और हालाँ िक ौ ोिगकी यह सब करने के
तरीके लगातार िवकिसत कर रही है , लेिकन हम म से ादातर के िलए यह न बदलने
वाली स ाइयाँ ह। यह भी सच है िक सब बराबर नहीं बने ह। एक ही प रवार म सभी
ब ों की मता और बु एक जैसी नहीं होती। ा इस असमानता के पीछे भी ई र
की मज़ है ? अगर ऐसा है , तो ा यह ायसंगत है ? दोनों सवालों का जवाब है
—‘हाँ ।’ िफर भी, जहाँ बदलाव अस व लगता है , वहाँ भी त इ ा-श के
िलए स ावनाएँ होती ह। अपनी प र थितयों, आ रक ेरणाओं, वृि यों और
अपने भा पर, सकारा क या नकारा क, कैसी िति या की जाए यह मेरे ही हाथ
म रहता है । यह हमेशा मेरे वश म होता है ! आिख़रकार आप ख़ुद ही अपनी िक त
के िनमाता ह। ेक िवचार, भाव, इ ा और कम एक श पैदा करता है । अ ा
और बुरा दोनों ही हम भािवत करते ह, और तब तक हमारे साथ ही रहते ह जब तक
हम उनके बीच स ुलन नहीं पैदा कर दे ते ह।

सृजनशील कुछ न कुछ कर


गुज़रने की इ ा–श से े रत रहता
है , न िक दू सरों को पीछे छोड़ने की
चाह से।

ा इसका अथ यह है िक कभी-कभी िनयित के आगे सारी कोिशश बेअसर


सािबत हो जाती ह? धािमक पु कों म इस सवाल का जवाब िदया गया है —‘नहीं।’
अ नी ताक़त कभी नाकाम नहीं होतीं, हालाँ िक ता ािलक प से सां सा रक ि
से वह नाकाम होती लग सकती ह। यह कुछ ऐसा है जैसे कोई तंदु रहने के िलए
िकसी खेल म िह ा ले। वह खेल म तो हार जाए, लेिकन इसके बावजूद तंदु ी
हािसल कर ले। इसी तरह से आप जो भी कुछ करते ह, वह सब आपके नर और
ताक़त म जुड़कर उसका िह ा बन जाता है िजससे िक भिव म बेहतर प रणाम
हािसल करने म मदद िमल सकती है ।
मेरे दो दादा जे. पी. वासवानी ने एक बार मुझे एक कहानी सुनाई जो म
आपके साथ साझा करना चाहता ँ । दू सरे िव -यु के दौरान पोलड की वायु सेना का
एक पायलट था रोमन तुर ी िजसे जमनी के ऊपर से उड़ान भरते समय िकसी वजह
से न चाहते ए भी अपना िवमान उतारना पड़ा। उसने अपने जहाज़ को मर त के
िलए छोड़ िदया और रात िबताने के िलए एक होटल म चला गया। अगली सुबह जैसे
ही उसने अपने कमरे से िनकलकर गिलयारे म क़दम रखा, एक दौड़ता आ
आया और उससे टकरा गया। डर के मारे उसका चेहरा पीला पड़ा आ था ोंिक
जमन ख़ुिफ़या पुिलस का दल उसके पीछे पड़ा था। िबना कुछ सोचे-िवचारे अनायास
ही रोमन तुर ी ने उस को अपने कमरे म बुला िलया। पूरी तरह आवेग म
काम करते ए रोमन तुर ी ने उस की जान बचा ली थी।
बाद म पोलड पर जमनी ने क ा कर िलया। रोमन तुर ी इं ड जा बसा और
रॉयल एअर फ़ोस म शािमल हो गया और आगे चलकर उसे जंग के एक सूरमा के तौर
पर जाना गया। एक िदन उड़ान भरते ए उसका िवमान दु घटना हो गया। बुरी
तरह घायल रोमन तुर ी को पास के अ ताल ले जाया गया जहाँ वह कोमा म चला
गया। जब कई िदनों बाद उसे होश आया तो उसने दे खा िक एक अजनबी उसके पलंग
के बगल म खड़ा टकटकी लगाए उसी को दे ख रहा है । उस अजनबी ने पूछा—‘‘ ा
आप मुझे जानते ह?’’ ‘‘नहीं,’’ रोमन तुर ी ने जवाब िदया। तब अजनबी बोला
—‘‘कई साल पहले आपने मेरी जान बचाई थी, और कल सुबह जब मने अख़बार म
आपके िवमान के दु घटना होने और आपके कोमा म होने की ख़बर पढ़ी तो म
यहाँ चला आया।’’ ‘‘लेिकन िकस िलए?’’ रोमन तुर ी ने पूछा। ‘‘ ोंिक,’’ अजनबी
ने जवाब िदया, ‘‘लोग कहते ह िक म दे श के सबसे अ े म के
श िचिक कों म से एक ँ । मने आपका अॉपरे शन िकया है , और अब आप ठीक
ह।’’ इस कहानी से यह सबक िमलता है िक अपनी तरफ़ से िजतना अ ा कर सकते
हो वह करो, और बाकी ई र पर छोड़ दो।

हमारी वृि और हमारी इ ा–श


कची के दो फलों की तरह ह। एक फल
अपनी मज़ करने की आज़ादी है और
दू सरा फल ेरणा और वृि । जब
दोनों फल िमलकर चलते ह तब कची
अपना काम करती है ।

सृजनशील कुछ न कुछ कर गुज़रने की अपनी ही इ ा से े रत रहता है ,


न िक दू सरों को पीछे छोड़ने की चाह से। ई र चाहता है िक आप अपने जीवन पर
ान द और अपने हालात सुधार। वह इसीिलए सम ाओं से आपका सामना कराता
है और आपको मु ल म डालता है तािक आप सम ाओं को हरा द, उनसे िनपट
और इस ि या म आपका कुछ और िवकास हो जाए, आप और बेहतर हो जाएँ ।
िकस पर है सारा दारोमदार
आपकी पु क टिनग ाइं ट्स पढ़कर मुझे अ ा लगा, िजसम
. आपने रा पित भवन म रहते ए अपनी िज़ गी के कई मह पूण
मोड़ों का वणन िकया है । इसम बताया गया है िक िकन मह पूण
थितयों यानी अपने जीवन के िनणायक मोड़ों पर आपने सही िनणय
िलये, िजसके कारण आप रा पित भवन तक प ँ च सके। आपकी
कहानी से मुझे यह समझ म आया िक आज िज़ गी जैसी है वह गुज़रे
व म हमने अपने िलये जो कुछ चुना उसी का नतीजा है ।
म आपसे यह पूछना चाहता ँ िक आपने ऐसे मह पूण िनणय,
िजनके इतने दू रगामी प रणाम रहे , कैसे िलये? मुझे नही ं है िक ऐसे
िनणय कैसे िलये जाते ह? म यह समझना चाहता ँ िक ऐसे िनणय हम
कैसे लेने चािहए। िवशेषकर यह जानते ए िक आज जो म िनणय लेता
ँ , वह भिव म जाकर िकतना िनणायक िस होगा। जब हमारा
िकसी थित िवशेष से सामना होता है तो हमारे मन की वृि याँ हमारे
मन को िकस तरह भािवत करती ह?
ा यह कहा जा सकता है िक वह चुनने की त ता के िसवा
और कुछ नही ं है जो की िनयित या भा को प दे ने म सबसे
मह पूण भूिमका िनभाती है ? या िफर वह वृि याँ जो पीढ़ी दर पीढ़ी
अनुवांिशक गुण आगे ले जाने वाले ‘जी ’ के ज़ रये हमारे पूवजों से हम
वंशानु म म िमलती ह, और हम इस तरह सोचने को मजबूर करती ह
िक िक ी ं प र थितयों म िकस ख़ास तरह से कदम उठाते ह? म जो
सवाल पूछना चाहता ँ , वह है —िकस पर है सारा दारोमदार?

म , शरीर और जी तीनों आपस म एक िक का नृ करने म जुटे ए ह।


—मैट रडली
मारी दु िनया ेस समय (space), थूल प रमाण ऊजा और चेतना (mass) के
ह आपसी स ों का एक जिटल नेटवक है । भौितकशा ी और चेतना का
गहराई से अ यन करने वाले िव ान थॉमस कै बेल ने अपनी पु क माई िबग
ोरी ऑफ़ एवरीिथंग म अपने इस िवचार को ुत िकया है िक हम ां ड को एक
‘िवशालकाय म ’ मान सकते ह। उनके अनुसार, ल े समय म िकसी व था
के बनने की ि या िवकास की एक ाकृितक गित से भािवत होती है , और वह सभी
तरह के नेटवक के िलए एक ही होती है , चाहे वह इं टरनेट हो, मानव म हो या
स ूण ां ड हो। इसिलए हम मान ल िक एक के प म हम अ र ही अ र
एक दू सरे से जुड़ी अित िव ृत जीवस ा से िनकले चेतना के अंश ह िजसम मन-
शरीर, प रवार, समुदाय, पयावरण, सं ृ ित आिद सभी कुछ समािहत है । सच यह है
िक ऐसा एक कोई भी नहीं है िजस पर सारा दारोमदार हो। यह संसार अनेक जिटल
और बौ क णािलयों से भरा है , जो एक-दू सरे से जुड़ी ह और एक-दू सरे को
भािवत करती ह और इनका कोई एक संचालन के नहीं है ।

यह संसार जिटल, बौ क और आपस


म एक दू सरे से जुड़े त ों से भरा है , जो
सभी एक दू सरे को भािवत करते ह,
और उनके संचालन का कोई एक के
नहीं है ।

म आपको अथ व था का एक उदाहरण दे ता ँ । अथ व थाएँ आव कता


और आपूित की बेहद जिटल व थाएँ होती ह िजनका िनय ण िकसी एक िब दु पर
के त नहीं होता। हालाँ िक इनके भी कुछ सामा से िनयम होते ह, िफर भी
अथ व थाओं म उछाल और िगरावट के बारे म पहले से कुछ भी बता पाना ब त
मु ल होता है । यह एक म है िक अगर िकसी को यह तय करने की िज़ ेदारी
सौंप दी जाए िक िकसी चीज़ का कब, कहाँ , कैसे, िकतना और िकसके ारा उ ादन
िकया जाए और उसे िकस भाव म बेचा जाए तो अथ व थाएँ बेहतर चलती ह, और
इस म ने सारी दु िनया म लोगों की सेहत और दौलत को तबाही की हद तक नुकसान
प ँ चाया है ।
अपने मानव शरीर को एक उदाहरण के प म लेकर इस बात को समझ। आप
कोई ऐसा िदमाग नहीं ह जो शरीर को चला रहा है और न ही आप कोई शरीर ह जो
हॉरमोन रसे स यानी अिभ ाहकों को सि य करके जीन समूह को संचािलत कर रहे
ह। न ही आप शरीर म हॉरमोन के ाव को े रत करने वाले जीन को सि य करके
म को संचािलत करने वाले जीन समूह ह। हालाँ िक आप इनम से कोई भी नहीं
ह लेिकन आप इनम से सभी कुछ ह। म और शरीर एक ही व था के िह े
ह। अनुवां िशक सू ों के वाहक डीएनए के दसव ोमोसोम पर थत एक जीन
CYP17 कॉिटसॉल नाम का एक हारमोन बनाती है जो व ुत: म के रवैये म
बदलाव लाकर शरीर और म का एकीकरण करके रखता है । कॉिटसॉल शरीर
के ितर ा त म दखल दे कर आँ ख, कान और नाक की संवेदनशीलता म बदलाव
लाता है िजससे कई शारी रक ि याओं म प रवतन आता है । मनोवै ािनक तनाव पर
िति या करते ए म कॉिटसॉल के ाव को े रत करता है । ख़ून म िमलकर
रगों म बहते ए कॉिटसॉल ितर ा त की िति या करने की मता को दबा दे ता
है िजससे सुषु अव था म पड़ा वायरस का सं मण भड़क उठता है या िफर कोई
नया सं मण शरीर को अपनी चपेट म ले लेता है । इसके भौितक ल ण ज़ र हो
सकते ह, लेिकन कारण मनोवै ािनक होता है । म िकसी बीमारी का िशकार
होता है या िफर अ ोहल या म के गुणधम बदल कर मन: थित म बदलाव
लाने वाले ऐसे ही िकसी पदाथ के सेवन से भािवत होता है तो इसके कारण भौितक
होते ह और ल ण मनौवै ािनक।
मने इस मु े पर अपने दो , अहमदाबाद थत इ ट् यूट ऑफ़ ह्ू यमन
जेनेिट के सं थापक-अ जयेष शेठ से चचा की तो उ ोंने बताया िक बाहरी
ि याकलापों को पूरी तरह सचेत होकर या चैत अव था के ित लापरवाह होकर
इं सान के जी को िबजली के च की तरह ‘खोला’ और ‘ब ’ िकया जा सकता है ।
कॉिटसॉल के असर से जो जी ‘खुल’ जाते ह, वे िफर दू सरे जी को भी जागृत कर
दे ते ह, और ये जी और दू सरे जी को, इस तरह जी के जागृत होने का
िसलिसला आगे बढ़ता जाता है । दरअसल, यह एक जिटल और पचदार व था है ।

इं सान अ े और बुरे, भ े और सु र
के भेद की समझ और उनम से एक को
चुनने की मता के दम पर अपनी
िनयित को समझ–बूझ कर एक प
़ द स म है ।
दे ने म खु

ब त सारे जी जीवन भर सुषु रह सकते ह, ोंिक उनम से ब तों को


जगाने के िलए बाहरी कारकों और अपनी इ ा-श से काम करने की ज़ रत
होती है । इस तरह, हम अपनी सवश मान समझी जाने वाली जी की दया के
मोहताज नहीं ह, ब अकसर दे खने म यही आता है िक हमारी जी ही हमारी
मेहरबानी की मोहताज होती ह। अगर आप लापरवाही से जीते ह या िफर आपका
काम तनावपूण है , या आपका घर-प रवार ठीक ढं ग से नहीं चल रहा है , या िफर आप
बार-बार ख़ुद के साथ कुछ डरावना या बुरा होने की क ना करते रहते ह, तो आप
अपने शरीर म कॉिटसॉल का र बढ़ा लगे, और कॉिटसॉल जी को हालात का
मुकाबला करने या भाग कर बच िनकलने के िलए जागृत करता िफरता है । इस त
पर िकसी िववाद की गुंजाइश ही नहीं है िक हम जानबूझ कर िबखेरी गई मु राहट
से अपने म के ‘आन के ों’ को ठीक वैसे ही सि य कर सकते ह जैसे ख़ुशी
दे ने वाले ख़यालों से होठों पर मु राहट ला सकते ह।
हालाँ िक मनु मा के िलए ई रीय इ ा सावभौिमक है , िफर भी पिव कुरान
(76:3) म इं सान की भी अलग और सि य भूिमका बताई गई है — ‘हमने इं सान को
सही रा ा िदखा िदया है , और वह सही रा ा चुनकर उसके िलए शु गुज़ार होने या
शु गुज़ार न होने के रा े को अपनाने के िलए आज़ाद है ।’
इसका अथ यह आ िक इं सान अ े और बुरे, भ े और सु र के भेद की समझ
और उनम से एक को चुनने की मता के दम पर अपनी िनयित को समझ- बूझ कर
एक प दे ने म ख़ुद स म है । म अपने ख़ुद के अनुभव के आधार पर आपको बता
सकता ँ िक ई र ने मेरे ित ेम और दया का भाव रखा है , लेिकन मने भी ादा से
ादा काम करके और कम से कम खच म अपना काम चलाकर साधारण जीवन
जीया है । हालाँ िक मानव की इ ा-श का दायरा िजतने भी दू सरे जीव-ज ुओं के
बारे म पता है उन सब के मुक़ाबले कहीं ादा बड़ा और ापक है और उसकी
भूिमका भी ादा सृजना क है , लेिकन उसका भाव ई र ारा उसके
ि याकलापों और कम के िलए िनधा रत े ों म सीिमत है । इसिलए इं सान जीवन म
जो कुछ करना चाहता है वह सारा कुछ नहीं कर सकता, ब उसे ई र की मज़ के
अनुसार चलना पड़ता है , जो अपने आप म सब कुछ समेटे ए है ।
अकसर ऐसा होता है िक कोई कुछ करना चाहता है , लेिकन वह िजतनी
भी कोिशश कर ले, कर नहीं पाता। इसका कारण यह नहीं है िक ई र की इ ा-
श उस की अपनी इ ा-श का िवरोध करती है और उसे वह करने से
रोकती है जो वह करना चाहता है , ब के ान और उसकी मता से परे
कोई अ ात बाहरी कारक होता है , जो उसके काम म बाधाएँ पैदा करता है और उसे
अपने ल तक प ँ चने से रोकता है । इसके िवपरीत, हम िबना िकसी कारण या
यो ता के आधार पर ख़ास काम और उ े ों के िलए चुना गया है ।

हर बार हमारी सभी आकां ाएँ पूरी हो


जाएँ यह ज़ री नहीं, लेिकन अपनी
चाहतों का हमारा अनुभव हम हमेशा
िकसी न िकसी तरह ज़ र बदल
डालता है ।

और समाज दोनों ही का लगातार ऐसी बाधाओं और स ावनाओं से


आमना- सामना होता रहता है । इस त के म े नज़र िक कृित के अिधकार े म
कुछ भी बेवजह नहीं होता, और जो भी कुछ होता है , उसके पीछे कोई न कोई वजह
ज़ र होती है , और यह भी िक हम िसफ़ संसार म वहीं तक दे ख पाते ह जहाँ तक
मनु की नज़र प ँ चती ह, इसिलए हम यह ीकार करने म परे शानी नहीं होनी
चािहए िक हर बार हमारी सभी आकां ाएँ पूरी नहीं हो सकतीं। लेिकन अपनी चाहतों
का हमारा अनुभव हम हर बार िकसी न िकसी तरह ज़ र बदल डालता है ।

अगर हम आपसी मेलजोल के साथ


रहने की कोिशश कर और अपनी
ऊजा िसफ अपने ही नहीं, अपने
आसपास वालों के भी हालात सुधारने
म लगाएँ , तो ज़ र एक सु र भिव
उभर कर सामने आएगा।

वह ि या िजसके तहत बड़ी चीज़, भ प और िवशाल व थाएँ उन


छोटी और अपे ाकृत सरल चीज़ों के बीच आपस म ि याएँ होने से उ होती ह,
िजनम ख़ुद म भ प और िवशाल व था के गुण नहीं नज़र आते, उ व या
‘एमजस’ कहलाती है । मानव समूहों को अगर अपने आप म पूरी तरह आज़ाद छोड़
िदया जाए तो वह िनरथक अ व था के बजाय सहज ही एक व था बनाने के िलए
ख़ुद ही िनयम-क़ायदों म ढल जाएँ गे। शेयर बाज़ार, या कोई भी दू सरा बाज़ार, बड़े
िवशाल पैमाने पर उ व का उदाहरण है । अपने वृहद प म वह दु िनया भर म
फैली क िनयों के ॉक और शेयर के दामों के िनयमन करता है , िफर भी उसम
पथ- दशक या अगुआई करने वाला कोई नहीं होता। जहाँ कोई के ीय योजना नहीं
होती, वहाँ सारे बाज़ार के कामकाज पर क़ाबू रखने वाली कोई एक ह ी नहीं होती।
इसिलए, ख़ुद को अपने इद-िगद मौजूद लोगों का एक िह ा ही समझो, ख़ुद को
बड़ी त ीर का िह ा समझो, और तु िज़ गी म अपना आगे बढ़ने का रा ा िमल
जाएगा। ाथ के िलए िकए गए काम, अपनी सनक और मनमज से की गई हरकत,
ार और नफ़रत के नाम पर भावना कता को लेकर जूझने से कोई ादा आगे नहीं
प ँ चता। इसके बजाय, अगर हम आपसी मेलजोल के साथ रहने की कोिशश कर और
अपनी ऊजा िसफ़ अपने ही नहीं, अपने आसपास वालों के भी हालात सुधारने म
लगाएँ , तो ज़ र एक सु र भिव िनकलकर सामने आएगा। िज़ गी के सभी मोड़
दरअसल ऐसे मुक़ाम होते ह जहाँ ई र की इ ा इं सान की इ ा को पीछे छोड़ दे ती
है । कभी हम रोक िदया जाता है , तो कभी हम आगे बढ़ने के िलए चुन िलया जाता है ।
ई र पर है सारा दारोमदार!
अि तीय ह आप
आप अ र यह बात कहते ह िक अगर हम अपने िदमाग का
. समुिचत उपयोग कर तो हम कुछ भी हािसल कर सकते ह। लेिकन
ा यह वाकई सच है ? ा औसत मता वाले मेरे ब े के िलए
यह स व है िक वह सिचन तदु लकर के समान खेले अथवा धन कमाने
म अंबानी ब ुओ ं की बराबरी कर सके? मुझे इस पर िव ास नही ं होता।
म सोचती ँ िक महानता, जो िक यो ता, ितभा और कौशल का एक
िमला–जुला प है , वह कुछ लोगों म ज जात होती है और यह भी
िक उ म अनुवांिशकी िवरासत और संवेदनशील गुणों वाले कुछे क
चुिनंदा ही महानता की ऊँचाइयों तक प ँ च सकते ह। इसका
अथ यही आ िक सभी गाँधी जी जैसे भले या िव म साराभाई
जैसे ितभाशाली नही ं हो सकते। महान यों म ज जात ही ऐसा
कुछ ‘िवशेष’ होता है जो अ लोगों म नही ं होता। यह उनका एक
आकषण अथवा क र ा है , यह उनके दे खने का ढं ग या भावशाली
ा ान दे ने की यो ता हो सकती है , लेिकन चाहे जो हो, ऐसा लगता
है िक यह कोई ऐसी चीज़ है , िजसे कोई अपने अ र िवकिसत
नही ं कर सकता। या तो यह आपम होगी या नही ं होगी। हाँ, यिद आपका
भी प रवार होता तो हम दे ख पाते िक आपके ब ों को आपके समान
ितभा िवरासत म िमली है या नही ं। लेिकन चूँिक ऐसा है नही ं, इसीिलए
म आपसे यह पूछ रही ँ ।
अब आप ही बताएँ , िक ों कुछ यों म ाकृितक ख़ूिबयाँ
होती ह और दू सरों म नही ं? ा जी म ही ऐसा कुछ होता है जो
माता–िपता से ब ों को िमलता है ? ा इसका हमारे कम और इस
बात से कुछ लेना–दे ना है िक कोई अपने पूवज म कैसा था?
या ा इसका बचपन म उनकी परव रश के साथ कोई स है ? या
िफर इसम से कोई भी चीज़ मायने नही ं रखती? मेरे िवचार से तो महान
बनना तब तक िनरथक और खोखला है जब तक इससे िकसी का
फ़ायदा न हो। म ख़ुद ब त तनाव म ँ ोंिक मुझे नही ं लगता िक मेरा
जीवन जहाँ और जैसा होना चािहए था, वहाँ और वैसा है । ा आपने
कभी अपने आपसे िकया है िक आप आज जो कुछ ह, आपने इस से
अलग कभी कुछ होने की इ ा की थी?

जहाँ सादगी, भलाई और स ाई नहीं है , वहाँ महानता हो ही नहीं सकती।


—िलयो तो ॉय

ह जानकारी तो ब त पुरानी है िक हमारा क़द, हमारी आँ खों और बालों का रं ग,


य हमारी चा की रं गत जैसे शारी रक गुण और कुछ ख़ास बीमा रयों की वजह
िवरासत म िमले जी होते ह। जो दू सरे शारी रक ल ण, अगर उनकी वजह
साफ़ न हो तो वह भी हमारे जैिवक माता-िपता की अनुवां िशक बनावट से भािवत
लगते ह। इससे कई लोग अ ाज़ा लगाने लगते ह िक ा हमारे मनोवै ािनक ल ण
और हमारे वहार की वृि याँ , हमारे की िवशेषाताएँ अथवा हमारी
मानिसक मताएँ हमारे ज से पूव ही हमारे साथ जुड़ जाती ह।
जो लोग अनुवां िशकता का अ िधक प लेते ह, उ ‘ कृितिवद् ’ कहा जाता है
यानी वह िजसकी यह धारणा हो िक मनु म कुछ िवशेष कौशल या मताएँ
ज जात ही होती ह। उनकी बुिनयादी धारणा यह होती है िक सम प से मनु
जाित के गुण मनु की िवकास ि या का प रणाम ह और इं सानों म गत
िभ ता ेक के िविश अनुवां िशक सू के कारण होती है । ऐसे गुण और
िभ ताएँ , जो िकसी मनु के ज के समय नमूदार नहीं होते, िक ु जो जीवन म बाद
म उभर कर सामने आते ह, उनका कारण प रप ता को माना गया है । कहने का अथ
है िक हम सब मनु ों म एक आ रक जैिवक घड़ी ( कृित) होती है जो पहले से तय
ढं ग से हमारे तरह-तरह के वहार को िकसी िबजली के च की तरह ‘सि य’ या
‘िन य’ करती है ।

इस ेणी म दू सरे िसरे पर आते ह पयावरणिवद् । उनकी मूल धारणा यह है िक


िकसी के ज के समय मानवीय म एक खाली ेट की तरह होता है ,
जो धीरे -धीरे उस के जीवन म होने वाले अनुभवों से भर जाती है । इस ि कोण
से, शैशवकाल व बचपन के दौरान उभरने वाले मनोवै ािनक गुण और वहार
स ी िभ ताएँ हमारे जीवन म सीखी गई चीज़ों का प रणाम ह। इस तरह आपकी
परव रश कैसी ई है , इसका स बचपन म आपके िवकास के मनोवै ािनक
पहलुओं पर िनभर करता है जबिक प रप ता की अवधारणा केवल िवकास के
जैिवक या शारी रक पहलुआ पर लागू होती है । इसिलए, जब िशशु म मोहभाव उ
होता है , तो इसका अथ है िक वह अपने प रवार वालों से पाए गए ेह व ान का
उ र दे रहा होता है । उसे भाषा का ान दू सरों को बोलते ए सुन कर उनकी नकल
करने पर होता है और उसका सं ाना क िवकास उसके आसपास के वातावरण म
होने वाले उ ेरण की मा ा पर, और मोटे तौर पर दे खा जाए तो यह उस स ता पर
िनभर करता है िजसम िशशु का लालन-पालन होता है ।

स ाई यह है िक ‘ कृित’ और
‘परव रश’ अलग–अलग और जिटल
तरीकों से एक–दू सरे पर असर डालते
ह िजसका नतीजा यह है िक हम सब
अपनी िक के अकेले होते ह, दू सरे
िकसी से भी िबलकुल अलग।

आज शायद ही िकसी को कृित या पालन-पोषण म से कोई एक चरम


अवधारणा ीकाय होगी। तक के दोनों ओर कई त होते ह जो ‘सब कुछ या कुछ
भी नहीं’ के िवचार के साथ मेल नहीं खाते। इसिलए, यह सवाल पूछने के बजाय िक
िकसी िशशु का िवकास कृित से जुड़ा आ है या उसके पालन-पोषण से, इसे इस
तरह बदल कर पूछा जा सकता है िक वह कृित या पालन-पोषण से ‘िकतना’ जुड़ा
आ है ? यानी िक, अगर मान िलया जाए िक हमारे को गढ़ने म
अनुवां िशकता और वातावरण दोनों की ही भूिमका होती है , तो इनम ादा मह
िकसका है ?
िक ु मेरे िवचार म ‘िकतने’ का सवाल भी एक गलत सवाल है । उदाहरण के
िलए बु को ही ल। मानवीय वहार की अिधकां श िक ों की तरह बु एक
जिटल, ब आयामी त है , जो कई कार से अपने आपको दिशत करती है ।
‘िकतना’ म यह मान िलया जाता है िक प रवतनशीलता को सं ा क प से
िकया जा सकता है और िववादा द िवषयों को प रमाणा क तरीके से हल िकया जा
सकता है । स ाई यह है िक ‘ कृित’ और ‘परव रश’ अलग-अलग और जिटल
तरीकों से एक-दू सरे पर असर डालते ह िजसका नतीजा यह है िक हम सब अपने
िक के अकेले होते ह, दू सरे िकसी से भी िबलकुल अलग। अगर ऐसा नहीं होता तो
यह कैसे स व है िक एक ही माता-िपता के ब े अलग-अलग श - सूरत और
िफ़तरत के हों। अनुवां िशक िव ान म ई हािलया उ ित को दे खते ए यह बात िवशेष
प से मह पूण है । मानव जीन समूह प रयोजना (ह्ू यमन जेनोम ोजे ) ने िविश
गुण-सू ों पर थत वहार की िक ों से लेकर डी एन ए की िवशेष िक ों की खोज
करने म भारी िदलच ी उ कर दी है । ऐसा माना जाता है िक वै ािनक अपराध,
म पान के सन और ऐसी ही अ वृि यों के जीन को खोज पाने की कगार पर ह।
इन वै ािनक खोजों का दु पयोग न हो, यह सुिनि त करने के िलए इस त को
समझने की बड़ी आव कता है िक जीविव ान सां ृ ितक संदभ और लोगों ारा
अपने जीवन को जीने के तरीकों जैसे गत िवक ों को भी भािवत करता है ।
गत गुणों से स त इन िभ ताओं और मानव वहार पर पार रक भावों
को सामने लाने का कोई सरल व तरीका नहीं है ।

हमम से हरे क अपने आप म अलग है ,


िविश है , ख़ास है , आपको अपनी इस
िविश ता का आन लेना चािहए।
आपको िकसी दू सरे की तरह होने का
िदखावा करने की ज़ रत नहीं। अपनी
िविश ता को संजो कर रख। यह एक
ऐसा तोहफ़ा है जो क ़ ु दरत ने िसफ़
आपको िदया है ।

अब आपके इस को ल िक आज म जो कुछ ँ , ा मने कभी इससे अलग


कुछ बनने की इ ा की थी, तो मेरा जवाब यही है िक नहीं, मने ऐसी इ ा कभी नहीं
की। हमम से ेक अपने आप म अलग है , िविश है , ख़ास है । म आज जो भी
ँ िसफ़ अपने जीवन की प र थितयों और अपने उन यासों के कारण ँ जो मने ऐसा
बनने की ि या म िकए ह। आपको अपनी इस िविश ता का आन लेना चािहए,
उसके िलए ख़ुशी मनानी चािहए। आपको कभी भी वैसा िदखने की कोिशश नहीं
करनी चािहए, जो आप नहीं ह या आपको िकसी अ की तरह होने का
िदखावा नहीं करना चािहए। आप औरों से िभ होने के िलए ही पैदा ए ह। आप
केवल ‘आप’ बनने के िलए ही ह। समूची दु िनया म कहीं भी और कभी भी िकसी
के म , मन या आ ा म ठीक वैसे ही िवचार नहीं आ रहे होंगे, जैसे अभी
आपको आ रहे ह और न ही िकसी की थितयाँ वैसी होंगी, जैसी आपके जीवन
की ह। यिद आपका अ समा हो जाता है , तो इस सृि म एक िछ रह जाएगा,
इितहास म एक खालीपन रह जाएगा, मानव जाित की उ ि के िलए बनाई गई
योजना म िकसी चीज़ का अभाव रह जाएगा। इसिलए, अपनी िविश ता को संजो कर
रख। यह एक ऐसा उपहार है जो कृित ने केवल आपको िदया है ।

दू सरों से अलग होने की ख़ूबी आपको


उपहार म िमली है , तािक आप उसका
आन ले सक, और अपने अनोखेपन
का आन दू सरों के साथ साझा कर
सक। दू सरों के काम आएँ । अिधक से
अिधक लोगों से जुड़।

कोई भी दू सरों से उस ख़ास तरीके से स क नहीं कर सकता, जैसे आप


कर सकते ह। कोई भी उस तरीके से सुख नहीं पा सकता जैसे आप पाते ह।
कोई भी आपके अिभ ाय को आपके समान स ेिषत नहीं कर सकता। कोई
भी अ के साथ आप जैसी समझ नहीं बना सकता। कोई भी
वैसे हँ समुख, स िच और ख़ुश नहीं हो सकता जैसे आप होते ह। कोई
आपकी हँ सी नहीं हँ स सकता। कोई भी अ दू सरे पर आप जैसा भाव
नहीं छोड़ सकता। इसिलए, अपनी िविश ता को दू सरों के साथ साझा कर। इसे अपने
प रवार, अपने िम ों और उन लोगों म उ ु भाव से सा रत होने द, िज आप
जीवन की भागदौड़ और भीड़भाड़ म िमलते ह, बेशक आप कोई भी हों और कहीं भी
हों। दू सरों के काम आएँ ! अपने जीवन को िजतना िव ार दे सक, दे डाल!
अि की उड़ान
भारत युवाश से भरपूर रा है । समकालीन भारत का सबसे
. मह पूण प रवतन है युवाओं का बु जीिवयों के प म उदय
और कैसे इसने भारत को एक सूचना ौ ोिगकी श के पम
थािपत करने म एक अहम भूिमका िनभाई है ?
हालाँिक, 1991 के बाद, भारत म आिथक उदारीकरण के चलते
उ कायकुशलता वाले उ ीदवारों के िलए रोज़गार के कई अवसर
पैदा ए ह, लेिकन इसकी तुलना म कम कुशल लोगों को काम िमलने
की स ावनाएँ नही ं बढ़ी ह। जो लोग ादा िशि त नही ं ह, उन
अकुशल किमयों के िलए रोज़गार के ब त कम रा े बचे ह। ऐसे कम
िशि त युवा रोज़गार की तलाश म यहाँ–वहाँ भटकते ह। हर तरफ से
नाउ ीद होने पर या तो हताश होकर बैठ जाते ह या जीवनयापन के
िलए उनके पास अकसर र ा चलाने या फेरी लगाकर सामान बेच
कर कम आमदनी वाले काम करने के िसवा कोई िवक नही ं होता।
इनम से कई के पास तो यह िवक भी नही ं होता। उनके माता–िपता
के पास जो कुछ थेड़ा–ब त होता है , वह उसी से काम चलाते ह, और
अपना समय बेकार के कामों म बबाद करते ह।
ऐसे युवाओं के िलए, िजनके पास न अवसर होते ह और न
संसाधन, ज़ािहर है उ िज़ गी म आगे बढ़ना, शादी करना और
प रवार बसाना किठन होता है । समाज की इस ग ीर सम ा को आप
िकस तरह सुलझाएँ गे?

जीवन म सफल होने और कुछ हािसल करने के िलए आपको तीन बड़ी श यों को
समझना और उनम महारत हािसल करना ब त ज़ री है —इ ा, िव ास और
अपे ा।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

कार की बातों और िवनाशकारी कामों जैसी सामािजक सम ा का समाधान है


ब◌े िश ा। िश ा से युवाओं को समाज म उड़ान भरने के िलए पंख िमल जाते ह।
युवाओं को चािहए िक अपनी िज़ गी के ये बेहतरीन साल अ ी िश ा हािसल
करने और काम के कुछ नर सीखने म लगाएँ । अगर एक बार मन िकसी नर या
अ ी सोच म लगने लगता है , तो कामयाबी तय है । लेिकन िज़ गी म मु लों और
कावटों का सामना करने के िलए िसफ़ िश ा ही काफ़ी नहीं है । इसके िलए आपको
अपनी मंिज़ल तक प ँ चने के प े इरादे के साथ ितब ता की भी ज़ रत होती है ।

बेकार की बातों और िवनाशकारी कामों


जैसी सामािजक सम ा का समाधान है
िश ा। िश ा से युवाओं को समाज म
उड़ान भरने के िलए पंख िमल जाते ह।

युवा ऊजा का मूत प होते ह। इं सानी स ता म नई ऊजा, नए िवचारों और


युवाओं के साहस के िबना तर ी मुमिकन नहीं है । इसी बात को घुमाकर कह, तो
हम कह सकते ह िक जब तक दु िनया म युवा ह, स ता की धारा उलटी नहीं बह
सकती। ॉटलड के नाटककार और उप ासकार जे एम. बैरी (1860-1937) ने
बड़े ही सु र श ों म कहा है —‘युवा और आन पयायवाची ह। वह न ा सा चूज़ा
जो अभी-अभी अंडे से िनकला है , और आज़ादी व आशा के खुले आकाश म उड़ान
भरने को आतुर है ।’ िकतना सच कहा है उ ोंन!े युवा लड़के-लड़िकयों के सपने प ों
की तरह बेस ी की हवा म उड़ते ह, एक ऐसी हवा म, जो सब कुछ बदल डालना
चाहती है । एक नई व था कायम करना चाहती है , िजसम ताकत का बोलबाला हो
और हो आग सी ऊजा।
वह भी समय था जब म जवान था, जोश और उ ाह से भरा था और मन म कुछ
कर गुज़रने की धुन थी। इसके िलए ज़ री था िक म रामे रम् की छोटी-सी दु िनया से
बाहर िनकलूँ। रामे रम् दि ण भारत म एक छोटा-सा ीप है , जहाँ म ज ा। मेरे िपता
ने मेरे युवा मन की उड़ान को समझा और मुझे उ ोंने पूरा ो ाहन िदया। तब
रामे रम् म ाइमरी र से आगे का कोई ू ल नहीं था। इसिलए बारह साल की उ
म ही म रामनाथपुरम के ातज़ हाई ू ल म पढ़ने चला गया था। ोंिक मेरे पास पैसे
भी ब त कम आ करते थे, इसिलए मुझे कम पैसों म गुज़ारा करना सीखना पड़ा।
हालाँ िक घर पर हम मां साहारी भोजन खाने के आदी थे, लेिकन मेरे पास ख़च के िलए
ब त कम रक़म होती थी, इसिलए मुझे शाकाहारी भोजन चुनना पड़ा। शाकाहारी
भोजन करने का मतलब था, हर ह े तीन पये की बचत। ह े के तीन पये आज
भले ही ब त कम लगते ह, िक ु उन िदनों यह एक शानदार रक़म होती थी। पैसे
बचाने और प रवार पर ख़च का बोझ कम करने के िलए म िकसी भी तरह की िद त
झेलने को तैयार था। शाकाहारी भोजन खाते-खाते मुझे वह अ ा लगने लगा और तब
से म शाकाहारी भोजन ही करता चला आ रहा ँ ।

अपने पूरे छा जीवन म िजस बात ने


मुझे पढ़ाई जारी रखने को लगातार
े रत िकया, वह था कुछ बड़ा हािसल
करने का ज बा, एक बेहतर िज़ गी
जीने की चाह और अनुशािसत जीवन
शैली के िलए मेरी ितब ता।

हालाँ िक, म एक छोटी जगह का ँ , लेिकन मने ख़ुद को कभी िकसी भी तरह से
छोटा महसूस नहीं िकया ोंिक मेरे सपने हमेशा से बड़े थे। अपनी हाई ू ल की
पढ़ाई पूरी करने के बाद म ित िचराप ी चला गया, जहाँ मुझे सट जोसेफ’स कॉलेज
म दा खला िमल गया। मेरे पास उन िदनों कपड़ों और जूतों का एक ही जोड़ा होता था।
मेरी कोिशश यही रहती थी िक म ादा से ादा िदनों तक उ चलाऊँ। कपड़ों
और जूतों का पहला जोड़ा फटने के बाद ही म नया जोड़ा लेता था। वष 1954 म जब
मने चे ई के म ास इ ी ूट अॉफ टे ोलॉजी म एयरोनॉिटकल इं जीिनय रं ग के
िलए अपना नाम िलखाया, तो मेरा वेश शु चुकाने के िलए मेरी बहन को अपनी
सोने की दो चूिड़याँ बेचनी पड़ी थीं। यहाँ भी अपने भरण-पोषण के िलए म छा वृि पर
िनभर था। अपने पूरे छा जीवन म िजस बात ने मुझे पढ़ाई जारी रखने को लगातार
े रत िकया, वह था कुछ बड़ा हािसल करने का ज बा, एक बेहतर िज़ गी जीने की
चाह और अनुशािसत जीवन शैली के िलए मेरी ितब ता। वाकई म, अनुशासन से
रहना िज़ गी म ल तय करने और उस तक प ँ चने के बीच िकसी पुल की तरह
काम करता है ।

अनुशासन से रहना िज़ गी म ल
तय करने और उस तक प ँ चने के बीच
िकसी पुल की तरह काम करता है ।

अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर म आपको बता सकता ँ िक चार प े


तरीके ह िजनसे आपको सफलता पाने म मदद िमल सकती है । पहले, बीस वष की
उ तक अपने जीवन का ल तय कर लेना। दू सरे , अहम िकताबों, गु जनों और
महान ह यों से इ हािसल करने का जुनून होना। तीसरे , कड़ी मेहनत और
अनुशािसत जीवन शैली का पालन करते ए अपने ल की ओर बढ़ना। और चौथे,
अपने चुने ए रा े पर प े इरादे के साथ िबना ठहरे चलते रहना।
म अमरीका म अ ीकी मूल के नाग रकों के अिधकारों के आ ोलन के नेता,
मािटन लूथर िकंग, जूिनयर के जीवन से ब त भािवत ँ । उ ाने अपने मश र
भाषण, ‘मेरा एक सपना है ’ म अपने सपने, अपने ि कोण को पूरी दु िनया के साथ
साझा िकया। और उ ोंने अपने सपने को सच म बदलने के िलए कड़ी मेहनत की,
संघष िकया और गत र पर ब त कुबािनयाँ दीं। अगर उ ोंने वह सपना नहीं
दे खा होता, तो वह अपने जीवन म कदािप वह सब नहीं कर सकते थे, जो उ ोंने कर
िदखाया।
युवा भी अपने मन म एक सपना पाले ए ह, वे उ ीद करते ह िक दु िनया म
गरीबी, बेरोज़गारी, असमानता और शोषण न रहे । वे जाित, रं ग, भाषा और िलंग के
आधार पर भेदभाव से मु एक दु िनया की उ ीद करते ह। युवाओं के िलए दु िनया
सदै व रचना क चुनौितयों और अवसरों से भरी रही है । हमारे िलए सबसे मह पूण
यह है िक हम िनराशाओं और शंकाओं को िकसी भी कीमत पर इस आशा पर हावी न
होने द। युवाओं की सकारा क उ ीद और सपने ज़ र सच होने चािहए। काफ़ी हद
तक इसकी िज़ ेदारी सरकार पर है िक वह युवाओं के िलए िश ा और रोज़गार के
अवसर उपल कराए तािक उनकी गत उ ित और िवकास के रा े खुल
सक।
लेिकन तीन ऐसी भूिमकाएँ ह जो भारतीय युवाओं को िनभानी ह, और जो मुझे
लगता है वह नहीं िनभा रहे ह। पहली तो यह िक वे राजनीित के े म कोई ख़ास
िदलच ी नहीं ले रहे ह, वे राजनीित को लेकर उदासीन से ह। राजनीित म युवाओं की
भागीदारी ब त मह पूण है ोंिक युवा ही दे श के भिव और उसकी ताकत का
ितिनिध करते ह। युवाओं के पास जो सबसे बड़ी ताकत है , वह है सम ाओं को
पहचानने और उनके समाधान सुझाने की उनकी मता। सामािजक आ ोलनों म यह
मता एक ब त मजबूत ताकत िस हो सकती है । मेरे फ़ेसबुक पेज पर न े
ितशत लोग युवा ह और उनम भी अिधकां श हाई ू ल के िव ाथ और कॉलेज जाने
वाले छा ह। वे अपने आस-पास के लोगों को िशि त करके उ उ र की
बौ क मता हािसल करने और उ ादा उपयोगी बनाने म मदद कर सकते ह।
दू सरे , म समझता ँ िक भारतीय युवा दे श की बेरोज़गारी की सम ा का
समाधान करने म भी एक मह पूण भूिमका अदा कर सकते ह। उ उ मी बनने के
िलए ो ाहन िदया जाना चािहए तािक वे अपने उ म थािपत करके अ युवाओं
को रोज़गार उपल कराएँ , न िक ख़ुद नौकरी की तलाश म भटक।

‘जैसा है वैसा ही रहने दो’ या िजसे आम


बोलचाल म ‘चलता है ’ का रवैया कहते
ह, भारत के िवकास के िलए काफ़ी
घातक िस हो रहा है ।

युवाओं की तीसरी सम ा है चीज़ों, थितयों व राजनीित के ित उनका


उदासीन रवैया। उनका यह रवैया िक ‘जैसा है वैसा ही रहने दो’ या िजसे आम
बोलचाल म ‘चलता है ’ का रवैया कहते ह, भारत के िवकास के िलए काफ़ी घातक
िस हो रहा है । लोगों म बदलाव लाने की भावना का न होना हमारे दे श के िवकास के
माग म सबसे बड़ी बाधा है । अब यही समय है िक युवा अपनी भूिमका, अपने कत ों
और अपने उ रदािय ों को समझ और अपने अिधकारों के िलए खड़े हों। युवा
मानवश और आकां ाओं के चरम का तीक ह। इन युवाओं को कभी भी
समझौते की थित को या अपनी आशाओं से कमतर िकसी चीज़ को ीकार नहीं
करना चािहए। वह समाज, जो युवाओं को ऐसी थितयों को ीकार करने पर मजबूर
करता है और उनकी आका ां ओं पर अपने िस ा ों का बोझ लाद दे ता है , कभी
पनप नहीं सकता। युवाओं को अपनी मजबूती और अपनी ताकत को महसूस करना
चािहए और उसे समाज व दे श की बेहतरी के िलए पूरी समझदारी से उपयोग करना
चािहए।

युवाओं को समझौते की थित को या


अपनी अशाओं से कमतर िकसी चीज़
को ीकार नहीं करना चािहए। वह
समाज, जो युवाओं को ऐसी थितयों
को ीकार करने पर मजबूर करता है
और उनकी अाकां ाओं पर अपने
िस ा ों का बोझ लाद दे ता है , कभी
पनप नहीं सकता।

भारत केवल तभी एक िवकिसत दे श बन सकता है , जब दे श का ेक


नाग रक, िवशेष प से युवा वग अपनी मता व यो ता का भरपूर योगदान दे ।
कृित म यूँ ही समय गुज़ारने जैसी कोई अवधारणा नहीं है । यहाँ कोई चीज़ या तो
उ होगी या िफर न हो जाएगी। या तो बढ़े गी या िफर सड़-गल कर ख़ हो
जाएगी, या तैरेगी या िफर डूब जाएगी। भारत अपनी युवा श का भरपूर उपयोग
करके ही सही अथ म एक महान दे श बन सकता है ।
हमम से हरे क के अ र इ ा-श की आग होती है , जो पंखों का, डै नों का
काम करती है । िश ा, कौशल और हमारे नज़ रये से हम ये आ ा क पंख िमलते ह
जो िनि त प से हमको अपने क रयर म और अपने जीवन म ऊँची उड़ान भरने म
मदद करते ह।

मता है मुझम ज से अ ाई और
िव ास है मुझ म ज से क नाएँ और
सपने ह ज से महान बनने के गुण ह
मुझम ज से आ िव ास है मुझम
ज से साहस है मुझम ज से
सम ाओं पर जीत दज कर पाऊँगा
सफलता ह पंख मेरे ज से नहीं ज ा
ँ म रगने के िलए मेरे पास पंख ह, म
उड़ूँगा म उड़ूँगा, उड़ता र ँ गा!
बेहतर समाज की ओर
सोशल मीिडया का बढ़ता भाव
सर, म आपके फेसबुक पेज को इसकी शु आत से ही दे ख रहा ँ ।
. आप सोशल मीिडया के मा म से युवा पीढ़ी को अपने साथ जोड़ने
वाले दे श के सबसे पहले नेताओं म से एक ह। यिद हम दे श म नये–
नये उभरे सोशल मीिडया के वातावरण को दे ख, तो हमारी राजनीितक
णाली म हाल ही म एक प रवतन िदखाई िदया है । हमारी चुनावी
राजनीित पर पड़ने वाले सोशल मीिडया के भाव के स म आपके
ा िवचार ह और ा हमारे आगामी लोकसभा चुनावों के प रणामों
पर इसका कोई भाव पड़े गा? और दू सरे , ा सोशल मीिडया भारतीय
राजनीित म बदलाव लाने वाला एक मह पूण घटक िस होगा?

हम अपनी सं ृ ित म होने वाले िनत नये प रवतनों से िनर र चुनौितयों का सामना


करते आ रहे ह और इसी ि या म, मानवता का िवकास होता है ।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

शल मीिडया सूचना के एक मह पूण मा म के प म उभर कर सामने


स◌ो आया है और इसने जनता के िवचारों को चा रत- सा रत करने और लोगों
को, िवशेष प से युवाओं को, राजनीितक और सामािजक गितिविधयों म
भाग लेने हे तु ो ािहत करने के नये तरीकों को ज िदया है । एक राजनीितक
उपकरण के प म सोशल नेटविकग के स म हमारे यहाँ एक अितशय आन
का सा माहौल िदखाई पड़ रहा है । ख़ासतौर से शहरी इलाकों म टे लीफोन
उपभो ाओं का घन ब त अिधक बढ़ने से अॉनलाइन रहने वालों की तादाद म
ब त ादा उछाल आया है । जैसे-जैसे म म वग म बढ़ो री होगी, और ादा
भारतीयों के इं टरनेट से जुड़ने की उ ीद की जा सकती है । भारत म फ़ेसबुक का
उपयोग करने वाले लगभग आठ करोड़ लोग राजनीित से बेख़बर नहीं ह। आमतौर पर
सभी महसूस कर रहे ह िक राजनीित को समाज के इस तेज़ी से उभरते ए वग की
नई आदतों व जीवनशैली के अनु प ढलने की ज़ रत है , जो सोशल मीिडया म ब त
सि य है और शायद इसी अितउ ाह की थित के चलते इसम िछपी वा िवक
स ावनाओं और इसकी भूिमका को अ र मीिडया म बढ़ा-चढ़ा कर पेश िकया
जाता है ।
वष 2013 को दे ख, तो यह इं टरनेट का वष था। इं टरनेट का उपयोग करने वालों
की सं ा इस त की पुि करती है िक भारतीय समाज म इं टरनेट की भागीदारी
बड़े पैमाने पर बढ़ती जा रही है । आज इं टरनेट का उपभोग करने वालों की सं ा
21.30 करोड़ तक प ँ च चुकी है यानी 2012 म 15 करोड़ उपभो ाओं की तुलना म
दे ख तो इसम 42 ितशत की वृ ई है । इं टरनेट के कुल उपभोगकताओं म से
मोबाइल फोन पर इं टरनेट का लाभ उठाने वाले लोगों की सं ा 13 करोड़ है । 2014
के आम चुनावों से पूव यह अनुमान लगाया गया था िक भारत के 543 संसदीय चुनाव
े ों म से 160 चुनाव े ों के प रणामों पर फ़ेसबुक का उपयोग करने वालों की
सं ा का मह पूण भाव पड़े गा और चुनावों के नतीजों से यह बात सही सािबत ई।
म समझता ँ इन आम चुनावों म कुल सीटों की 30 से 40 ितशत सीटों के
नतीजों पर सोशल मीिडया का असर ज़ र पड़ा है । वष 2019 के आम चुनावों तक
यह आँ कड़ा बढ़ कर 60 ितशत तक जा सकता है । कई चुनाव े ों म सोशल
मीिडया का थान चुनाव चार और िव ापन के पार रक तरीकों को पीछे छोड़
संचार मा मों म शीष तीन थानों म से एक रहा।
अपनी पु क कने े ड : द सर ाइिज़ंग पावर ऑफ़ सोशल नेटव एं ड हाउ दे
शेप अवर लाइ ज़ के लेखकों िनकोलस ि ािकस और जे फाउलर ने पर र
जुड़े आधुिनक िव के चार मुख िनयमों को रे खां िकत िकया है । इनम सबसे पहला है
‘ ल ऑफ़ टां िज़िटिवटी’ (Rule of Transitivity) िजसके मुतािबक िजतने ादा
लोगों के संपक म हम होते ह उन सब का हमारे जीवन पर असर पड़ता है । हमारे
तमाम संपक हमारी आशाओं, आकां ाओं, भावनाओं व हमारे ा को भािवत
करते ह। दू सरा है , दू सरों का अनुकरण का िनयम (Rule of Imitation)जो यह कहता
है िक हमारे अ र अपने िम ों की नकल करने की वृि होती है । िम ों से हम
‘ ीकृित’ और ‘सुर ा’ िमलती है । यिद एक िम कुछ करता है , कोई चीज़ ख़रीदता है
या िफर कहीं जाता है , तो उसकी दे खा-दे खी हम भी वही काम करते ह, वही चीज़
ख़रीदते ह और उसी थान पर जाते ह, जहाँ हमारे िम गए थे। तीसरा िनयम है
अनुनाद का िनयम (Rule of Echo) िजसके मुतािबक हम िसफ़ अपने िम ों से ही
भािवत नहीं होते, ब अपने िम ों के िम ों, और उनके िम ों तक से भािवत होते
ह। इस तरह हम जो भी कुछ करते ह, उसकी ित िन या अनुनाद अपनी ऊजा और
असर ख़ होने से िम ों के तीन रों के बीच गूँजती है । इस िसलिसले म चौथा िनयम
है अ थािय का िनयम (Rule of Transience) िजसके अनुसार ेक नेटवक का
अपना एक जीवनकाल होता है । नेटवक को कोई एक िनय त नहीं करता,
और न ही उसे अपने क े म ले सकता है । नेटवक यानी संजाल बेहद पेचीदा व
ग ा क होते ह, और िवकिसत होते रहने के साथ अपना प बदलते रहते ह।
इसका कोई के ीय िनय ण िब दु नहीं होता ब यह ‘सूचना म सहभािगता’ के
िस ा पर काम करते ह। उदाहरण के िलए, िविकपीिडया एक ऐसी ही खुली सूचना
व था है , िजसम उपल सूचनाओं को कोई भी स ािदत कर सकता है ।
सबसे िदलच बात तो यह है िक इसम कोई भी के ीकृत िनय ण नहीं है , और कई
िनयोिजत समूहों की तरह इनम औपचा रक प से िकसी के पास कोई अिधकार
नहीं होता, ब िकसी तरह का दु पयोग रोकने के िलए इसम यं पर िनय ण
और आपस म एक दू सरे पर दबाव बनाए रखते ए िनगरानी रखी जाती है ।

सोशल मीिडया की वजह से ही लोगों


को यह समझ म आ गया है िक उनकी
आवाज़ म भी दम है । लोग भी इतने
स म हो गए ह िजतने पहले कभी नहीं
थे—अब वे सरकार पर अपने िवचारों
का दबाव बना सकते ह।
सोशल मीिडया ने भारतीय राजनीित के े म खेल ही बदल कर रख िदया है ,
और इसका असर भिव म और भी ादा बढ़ने वाला है । राजनेता भी अब
अॉनलाइन मा मों म िछपी स ावनाओं को समझने लगे ह, जो िक उनके संदेशों को
जनता तक प ँ चाने की गित बढ़ाने वाले त के प म काम करते ह। अमरीका जैसे
दे शों म चुनाव अिभयानों म इनकी मह पूण भूिमका रहती है और वही थित अब
भारत म भी होती जा रही है । लेिकन सोशल मीिडया एक दु धारी तलवार है , ोंिक
यिद समाज म आपका एक भी गलत संदेश चला गया, तो आपको िनकालकर बाहर
फक िदया जाएगा, और इसम समय भी नहीं लगेगा।
दु िनया के इितहास म पहली बार िकसी रा का भिव उसकी जनता के हाथों म
आ गया है । लोग भी इतने स म हो गए ह िजतने पहले कभी नहीं थे— दे श के नेताओं
पर, चाहे वह सरकारी अिधकारी हों या िवधानमंडल प ँ चे जन ितिनिध, लोग अपनी
बात रखने के िलए दबाव डालने के गुर जान गए ह। ज़ािहर है , सोशल मीिडया की
वजह से ही लोगों को यह समझ म आ गया है िक उनकी आवाज़ म भी दम है , और
अपनी बात, अपने िवचारों को लोकता क प म रखा जाए, तो हम एक बार
िफर साझा उ े ों के िलए एक मंच पर संगिठत हो सकते ह, आ ोलन छे ड़ सकते ह
और बदलाव की िचंगारी सुलगा सकते ह।

राजनेता भी अब अॉनलाइन मा मों म


िछपी स ावनाओं को समझने लगे ह,
जो उनके बात को जनता तक प ँ चाने
की गित बढ़ाने वाले त के पम
काम करते ह।
नेकी की राह
सर, मने आपको अपने ा ानों म अ र यह बात लोगों को
. समझाते सुना है िक ब े िकस कार अपने ेम से, अपने ेह से
अपने माता–िपता को आचरण से रोक सकते ह। लेिकन
स ाई तो यह है िक हमारे जीवन के हर पहलू म इतना ाचार हो गया
है िक हम चाह कर भी इससे बच नही ं सकते। अिधकांश लोग एक
सीधा–सादा और साफ़ जीवन जीना चाहते ह और िकसी तरह के
ाचार म िह ेदार नही ं होना चाहते लेिकन हमारे समाज की व था
ऐसी हो गई है िक एक ईमानदार आदमी भी होने पर मजबूर हो
जाता है । यिद वह ऐसा न करे , तो उसके रोज़मरा के सब काम अटक
जाते ह।
मेरे िपता ईमानदार ह, लेिकन मुझे लगता है िक वे कुछ ऐसे काम
करते ह िजनम गत प से उनका िव ास नही ं है या जो उनके
िवचारों के अनु प नही ं होते, लेिकन एक व था का अंग होने के
कारण उ अपने अ को बचाए रखने के िलए वे काम करने पड़ते
ह। िजन प र थितयों का सामना मेरे िपता को करना पड़ रहा है , अगर
भिव म वैसे ही हालात मेरे सामने हों, तो म िकस तरह का इं सान
बनूँगा यह म िनि त प से नही ं कह सकता? आप, मेहरबानी करके
मुझे यह बताएँ सर, िक ा कोई ऐसा तरीका है िजससे म अपने घर म
और इस समूची व था म थोड़ा अलग हटकर, अपनी इ ा से कुछ
काय कर सकूँ।

कोई भी एहसास आपकी आ ा को इतना आन और इतनी ख़ुशी दान नहीं कर


सकता, िजतना इस बात को जान लेना िक नेक जीवन जीने के िलए आप िजतना
यास कर सकते ह, आप वह कर रहे ह।
—िविलयम आर. ैडफोड

खए, हम एक ऐसे युग म जी रहे ह, जहाँ कई लोग मानते ही नहीं िक वे जो


द◌े कुछ करते ह, उसका कोई नैितक पहलू भी होता है । उ लगता है िक उनके
िकए ए िकसी काम से िसफ़ सामािजक या आिथक नतीजे सामने आ सकते
ह। लोगों की सामा सोच यह है िक दु िनया म सही या गलत जैसी कोई चीज़ नहीं
होती और हम प र थितयों के गुलाम ह, इसिलए हम वही करना चािहए जो
प र थितयों के अनुकूल हो। हम सबने, कभी न कभी, यह बात अव सुनी होगी,
‘ठीक है , आप अपने ढं ग से काम कर।’ हम म से कई लोग ऐसे ह, जो इसी तरीके से
जी रहे ह, अपनी इ ा से काम करते ए। इसिलए मुझे आपके से कोई है रानी
नहीं ई है , लेिकन एक बात म आपको अव बता दू ँ िक इससे बेहतर भी एक
तरीका आपके पास मौजूद है । और वह तरीका है एक नेक जीवन जीने का।
नेकी म ब त सादगी होती है , ब त सरलता। िज़ गी म हम िजस िकसी भी
थित का सामना करते ह, उसम हम सही क़दम उठा सकते ह, या गलत क़दम उठा
सकते ह। अगर हम सही क़दम उठाते ह तो हम दरअसल नेकी के िस ा ों के
अनुसार अपने काम को अंजाम दे ते ह, िजसम ई र की दी ई श भी शािमल होती
है और यिद हम गलत क़दम उठाते ह, तो उस थित म हम पूणतया अकेले होते ह,
कोई हमारे साथ नहीं होता और ऐसे म असफलता हमारी िनयित बन जाती है ।
अब उठता है िक हम यह कैसे जान िक ा सही है और ा गलत? ऐसे म
हम ाथना का सहारा लेते ह िजसकी रचना एक ऐसी णाली के प म की गई है ,
िजसकी सहायता से हम इं सान के मन म स ाई की अवधारणा प ँ चाते ह। ई र,
हमारे अ :करण, ह या आ ा के मा म से हमारे मन को ान का काश दान
करता है । वह हम ऐसी ता दे ता है , िजससे हम स की अवधारणाओं को समझने
की श ा करते ह। इस तरीके से ई र हम गलत काय के उदाहरण से सही
काय करने की िश ा दे ता है । यिद हम ई र के तरीकों को सीखने और उन तरीकों का
पालन करने के इ ु क होते ह, तो हम गलत और सही के बीच के अ र को जानने के
िलए अनुमानों का सहारा नहीं लेना पड़े गा, ब तब हम िनि त प से इनके अ र
का त: ही ान हो जाएगा।

नेकी म ब त सादगी होती है , ब त


सरलता। िज़ गी म हम िजस िकसी भी
थित का सामना करते ह, उसम हमारे
पास दो ही िवक होते ह, सही या
ग़लत। दोनों म से कोई एक रा ा चुन
सकते ह।
हम म से ेक के जीवन की अपनी िविश थितयाँ होती ह, िजनके
साथ वह जीता है । हमारे जीवन म ा , धन, िश ा, कुँवारे पन, अकेलेपन, उ ीड़न,
दु वहार, थािपत नैितक मू ों के उ ंघन जैसी कई चुनौितयाँ ह और ऐसी
प र थितयों का एक अ हीन िसलिसला है , िजनका सामना हम करना पड़ रहा है ।
इन सभी चुनौितयों का केवल एक ही समाधान है —और वह है नेकी। नेकी म आ था
और आशा की पूित िनिहत होती है । ई र का ेक आशीवाद, िजसे ई र अपने
िनयमों व आ ाओं का पालन करने पर अपने ब ों को दान करता है , अ मह
रखता है । यही आशीवाद हम एक नेक इं सान बनाता है और इसी नेकी के बल पर हम
ई र के आशीवादों को ा करने के पा बन पाते ह।
ई र परोपकारी है और उसकी इसी कृपा से ही हम प ाताप का िस ा िमला
है , यािन एक अवसर। जब कभी हम ई र के िनयमों व उसकी आ ाओं का उ ंघन
करते ह, तो हमारे सामने प ा ाप का एक िवक खुला होता है । यिद हम इस
अद् ु भत िनयम पर अमल करते ह तो ई र हम हमारी अव ाओं के िलए मा कर दे ता
है और हम पहले से कहीं ादा नेक बन जाते ह। इस कार प ा ाप हम नेकी के
माग पर ले जाता है । दरअसल, नैितकता के स म जो चुनौितयाँ हमारे सामने आती
ह, उनका समाधान प ा ाप म िछपा होता है , िजसकी प रणित होती है नेकी म। िव
के सभी धम हम इस बुिनयादी स की िश ा दे ते ह।

िकसी गलत काम को करने का कोई


सही तरीका नहीं होता। नेकी न केवल
अ सभी तरीकों से बेहतर है , ब
यही एकमा तरीका है ।

नेकी के साथ जीवन जीने की कोिशश म ब त आन और सुख है । सरल श ों


म कह तो अपने ब ों के िलए ई र का यही य होता है िक वे इस धरती पर आएँ
और ई र के िनयमों का पालन करते ए जीवन जीना सीखने के िलए जो कुछ कर
सकते ह वह सब कर। इससे आ रक शा व सुख िमलता है , यह जान कर िक हम
जो कर सकते ह, वह करने से हमारे ारा ई र की इ ा पूरी होगी। इस कार हमारी
ओर से ई र का यह यास पूण हो जाता है । कोई भी एहसास आपकी आ ा को
इतना आन और इतनी ख़ुशी नहीं दे सकता िजतना यह एहसास िक नेकी के साथ
जीने के िलए आप िजतना कुछ कर सकते ह, वह कर रहे ह।
एक ऐसी दु िनया म, जहाँ थािपत मू ों की अवहे लना, ाचार और आतंकवाद
पु षों व मिहलाओं म डर पैदा कर दे ते ह, वहाँ हम अपने बचाव और अपनी सुर ा के
िलए कहाँ जा सकते ह, ा कर सकते ह? नेकी के अलावा और कहीं बचाव व सुर ा
नहीं है । इनसे डर कर िछपने का कोई थान नहीं है । ऐसी कोई दीवार नहीं है , जो
िवरोिधयों और िवरोध म िकए गए उनके काय को बाहर रख सके। नेकी को छोड़
कर, कोई भी अ चीज़ अिनि त व अ ात से आपकी र ा नहीं कर सकती। जब हम
यह समझ लगे िक सही और नेक कम करने से ही हम ई र की संरचना के सही
िनयम के मुतािबक चल रहे ह तभी हमारे मन म डर की जगह शा का वास होगा
ोंिक सही और नेक काम करने से ही हम ई र से अपने को जोड़ते ह।
िकसी गलत काम को करने का कोई सही तरीका नहीं होता। नेकी न केवल अ
सभी तरीकों से बेहतर है , ब यही एकमा तरीका है । नेकी म इतनी श है िक
वह हम आन और सुख दे ती है , और ऐसी सुर ा दे सकती है िजसकी मनु जीवन
भर इ ा करता रहा है और उसे पीढ़ी दर पीढ़ी तलाशता रहा है । यह वा व म ब त
सीधा-सादा सा समाधान तीत होता है , लेिकन स ाई यह है िक इसे पाना ब त
किठन है ोंिक शैतान इस धरती पर हर जगह मौजूद है और वह लोगों को हमेशा
धोखा दे ता रहता है । नेकी के रा े का िवरोध होता है । लेिकन सच यही है िक इस
दु िनया म सही और गलत, दोना का वजूद है । और हमारे िकए हर काम के नैितक
प रणाम िनि त प से सामने आते ह।
नवीन जीव-िव ान िवषय पर अपनी अभूतपूव पु क, द बायोलॉजी अॉफ
िबलीफ, म ूस िल न ने िव ार से समझाया है िक िवशाल नधारी जीवों के मनु
के प म प रवितत होने की िवकास ि या म ‘आ -चेतना’ नाम की एक नई चेतना
का ज आ। हालाँ िक हमारा अवचेतन मन अपना रा ा ख़ुद ही तलाशता है , लेिकन
हमारी चेतना हमारे अपने ही िनय ण म रहती है । अवचेतन मन ब त ही श शाली
सूचना संसाधक, यानी ‘इ ॉमशन ोसेसर’ है । यह अपने आसपास की दु िनया तथा
शरीर की आ रक चेतना दोना पर गौर करता है । चैत मन के साथ ताल-मेल
िबठाता है । यह सब चैत मन की मदद, दे खरे ख और यहाँ तक िक उसकी जानकारी
के िबना कर लेता है । ज़ रत है तो केवल अपने अवचेतन मन को मजबूत बनाने,
उसके संपक म रहने और उसका अनुसरण करने की। ाथना के ज़ रये ऐसा िकया जा
सकता है । आधुिनक प रचया के े की अ दू त ोरस नाइिटं गेल ने िलखा है ,
‘अ र जब लोग चेतना िवहीन लगते ह, तब ाथना के बोल उन तक प ँ च जाते ह।’
ाथना म हम हमारे अवचेतन मन से और अिधक गहराई से जोड़ने की श होती है
और जब हम अवचेतन मन के िदखाए माग का अनुसरण करते ह, तब हम नेकी की
राह पर होते ह।
ाचार का सा ा
सर, ा आज ाचार भारत की सबसे बड़ी सम ा नही ं है ,
. ोंिक यह दे श को कमज़ोर कर रहा है ? महा ा गाँधी जैसे
नेताओं ने दे श की त ता के िलए अपना जीवन बिलदान कर
िदया था िक ु आज कई लोग अपनी ताकत का दु पयोग कर रहे ह,
जबिक आम को अपने दै िनक काय म भी ाचार का सामना
करना पड़ रहा है । ऐसा लगता है िक ाचार ने नौकरशाही को बाहों म
जकड़ िलया है , और हरे क र के सरकारी अिधकारी ऐसी बड़ी
क िनयों से अपने िलए कृपाभाव की आस लगाए रहते ह, जो लाइसस
ा करने और अपने ावों के स म अिधका रक मंज़ूरी ा
करने म िकसी कार की दे री होने से बचना चाहते ह। जब कोई छोटा
सा नौकरशाह, दू सरे रा म रह रहे अपने प रवार से िमलने जाने के
िलए िकसी से अपने िलए एक कार की व था करने को कहता है , तो
इसे वसाय करने की अनुमित की कीमत के पम ीकार िकया
जाता है । लेिकन ऐसी िकसी माँग को अमरीका म एक अनुिचत हरकत
के प म दे खा जाएगा और उस ाव को तुर अ ीकृत कर िदया
जाएगा। भारतीय संसद म ाचार िवरोधी आठ िवधेयक अभी ल त
पड़े ह, लेिकन भारतीय संसद इन िवधेयकों को पास करने के िसलिसले
म सद ों के वैचा रक मतभेदों के कारण एकमत नही ं हो पा रही है ।
ा अपने काम को आगे बढ़ाने के िलए र त दे ने जैसा नैितक पतन का
रा ा अपनाना वह कीमत है जो एक उ मी को चुकानी ही चािहए?

ाचार की अपनी कई वजह ह िजनका अ ी तरह से अ यन िकया जाना चािहए


और उस आधार को ही ख़ कर दे ना चािहए िजस पर ाचार िटका होता है ।
ाचार का ज इस भावना से होता है िक ‘आप मुझे ा दे सकते ह?’ इस सोच को
उिचत िश ा और पा रवा रक पर रा के ज़ रये ‘म आपको ा दे सकता ँ ?’ म
बदल िदया जाना चािहए।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत ँ िक िजस दे श म महा ा गाँ धी, सरदार
मै◌ं पटे ल, लाल बहादु र शा ी और कामराज जैसी िवभूितयों ने ज िलया और
जीवन मू ों पर आधा रत जीवन िजया, उसी दे श को अब बड़े पैमाने पर
ाचार की सम ा का सामना करना पड़ रहा है । आजकल ाचार जैसी बुराई को
हर तरफ दे खा जा सकता है , वह हर जगह मौजूद है । जब हम सावजिनक जीवन म
ाचार की बात करते ह तो हम दरअसल राजनीित, रा सरकारों, के ीय सरकार,
ापार व उ ोग म ा ाचार की बात करते ह। अिधकां श सरकारी कायालयों म
जनता से जुड़े काय के काउं टरों पर सबसे ादा ाचार िदखाई दे ता है । यिद कोई
िकसी काय के िलए घूस नहीं दे ता, तो िनि त है िक उसका काय िकसी कीमत
पर नहीं होगा।
लोगों के अ र पैसे की कभी न ख़ होने वाली एक भूख पैदा हो चुकी है और
इस भूख को िमटाने के िलए वे िकसी भी र पर जाने को तैयार ह। इसम कोई संदेह
नहीं िक सै ा क प से वे नैितकता और मू ों पर आधा रत जीवन के मह की
बात करते ह, लेिकन यह वा व म उनका एक िदखावटी प है । उनके अ र की
आवाज़ कुछ और ही कहती है । हमेशा पैसे के िलए हाय-तौबा मची रहती है । अ र
यह भी दे खने म आया है िक िजन अिधका रयों को ाचार के मामलों को दे खने के
िलए िनयु िकया जाता है , वे यं ही ाचार म िल हो जाते ह। हमारे नेता भी इस
मामले म िकसी से कम नहीं ह। इस कार ाचार का यह जाल फैलता चला जाता है
और यह बेरोकटोक आगे बढ़ता रहता है ।
यिद हम ाचार के कारणों पर नज़र डाल तो इनम हमारे यहाँ लागू ज़ रत से
ादा िनयम कानून, जिटल कर व लाइसिसंग णािलयाँ , सरकारी िवभागों म
पारदिशतािवहीन नौकरशाही और ै क श याँ , कुछ चीज़ों व सेवाओं पर
सरकार ारा िनय त सं थानों का एकािधकार और पारदश कानूनों व ि याओं
की कमी शािमल है ।
सभी जानते ह िक अपरािधयों म िकसी कार की नैितकता नहीं होती, इसिलए
उनसे िकसी अ े काम की अपे ा करना थ होगा। लेिकन पुिलस को कानून व
व था का एक तीक माना जाता है , िक ु उनम से भी कुछ पुिलस वाले ाचार म
िल पाए जाते ह। इसका कारण यह है िक उ असीिमत श याँ दान की गई ह
और यिद उनके िव कोई िशकायत िमलती है और उनके ारा अपने पद का
दु पयोग करने, नृशंसता बरतने के पया माण होते भी ह, िफर भी उनके िव
अ र कोई कारवाई नहीं की जाती।
ाचार पर आधा रत धन अिजत करने और स ि के िवतरण की व था
ऐसी िकसी कोिशश को बढ़ावा नहीं दे ती िजससे सचमुच धन-दौलत पैदा की जा सके।
इसके बजाय घूसखोरी और दू सरे तरीकों से उन लोगा को भािवत करने म सारी
ताकत झोंक दी जाती है िजनके हाथ म फ ़ ै सले लेने का अिधकार होता है । इससे न
िसफ़ स ि म गत िनवेश करने के िनणय पर िवपरीत भाव पड़ता है , ब
इसका असर इससे भी कहीं ादा होता है ।
ाचार से (स वत: भूिम, खिनज, टे िलकॉम े म या िक ीं अ
प रस ि यों से स त) अिधकारों के अनुिचत आवंटन को बढ़ावा िमलता है । ऐसी
व था म िजन यों को िनयु िकया जाता है , वे आमतौर पर वही होते ह जो
सबसे ादा और घूस लेने म अ िधक स म होते ह, न िक इसिलए िक वह
आवंिटत प रस ि यों का उपयोग करने म स म होते ह। इस कार संसाधनों का
दु पयोग होता है और प रणाम जो होना चािहए उससे कहीं कम होता है और इस
कार नुकसान पूरे दे श को भुगतना पड़ता है ।

ाचार म कमी लाकर न केवल दे श


का िवकास सुिनि त िकया जा सकता
है , ब यह िनर र िवकास की एक
अिनवाय शत से कम नहीं है ।

ाचार का आधार ज़ रत भी हो सकता है और लालच भी। बेहतर शासन


व था से, नीितयों व ि याओं से अपनी प रयोजनाओं व वसाय के िलए
अनापि और मंज़ूरी लेने व नवीकरण की ि या पारदश व सु व थत हो जाएगी,
िजससे कम से कम ाचार पर िनय ण रखने म सहायता िमल सकती है । बेहतर
शासन व था से लालच पर आधा रत ाचार को भी काबू म िकया जा सकता है ।
इसका कारण यह है िक बेहतर शासन व था वाले दे श म लोगों को ब त ही
कारगर ढं ग से व शी द िदया जा सकेगा।
इस समूची थित म सुधार लाने के िलए तुर भावी कदम उठाए जाने ज़ री
ह। सरकारी कमचा रयों के िलए अपनी स ि की घोषणा करना अिनवाय बनाया
जाना चािहए और ाचार पर िनय ण रखने के िलए िनयिमत जाँ च करने के साथ-
साथ िनयिमत अ राल पर िनरी ण िकया जाना चािहए और छापे मारे जाने चािहए।
हालाँ िक ाचार पर िनय ण पाना बेहद किठन तीत होता है , लेिकन यह
अस व नहीं। यह न केवल सरकार की िज़ ेदारी है ब हमारा उ रदािय भी
है । कई दे शों ने व था म हर ओर फैले ाचार को एक ऐसे समाज म बदल डालने
म सफलता पाई है , जहाँ ईमानदारी व मेहनत को बढ़ावा िमलता है ।
यिद हम ाचार को जड़ से उखाड़ फकना चाहते ह, तो हम िमलकर यास
करने चािहए। इसके िलए, हम कुछ िस ा ों का पालन करना चािहए िजससे िक हम
आने वाली पीिढ़यों के िलए एक आदश ुत कर सक। हम ाचार से पूणत: मु
वातावरण उ करने की ित ा लेनी चािहए। एक मनु के प म यह हमारी
सबसे बड़ी उपल होगी।
ाचार को ख़ करने की ताक़त दे श के युवा वग के पास है । नौजवान समाज
म अ ी आदतों का प लेकर प रवतन ला सकते ह। यिद ेक घर म ब े अपने
माता-िपता को दू सरों को घूस दे ने अथवा घूस ीकार करने से रोक सक, तो हमारा
समाज शी ही ाचार से मु समाज बन सकता है । ाचार की शु आत सबसे
पहले प रवार से ही होती है । इसिलए, समाज को साफ करने के आ ोलन की
शु आत भी हमारे प रवार से ही होनी चािहए। एक अ ा पा रवा रक वातावरण और
हाल ही म संसद म ीकृत लोकपाल िवधेयक ाचार को जड़ से िमटाने म मददगार
सािबत होंगे।
संयु प रवर का मह
सर, आचाय महा के साथ िमल कर िलखी गई आपकी पु क,
. फैिमली एं ड नेशन, मने पढ़ी। यह पु क संयु प रवार के मह
को बढ़ावा दे ती है । सर, मैने दे खा है िक मिहलाओं व पु षों की
भूिमका म आए बदलाव, रोज़गार के बेहतर अवसरों और ौ ोिगकी म
उ रो र िवकास के चलते दू र दे शों के बीच आवाजाही म बढ़ो री के
साथ संयु प रवार की अवधारणा म िगरावट आ रही है । ऐसा तीत
होता है िक बड़े प रवारों म एक-दू सरे पर िनभरता की जगह लोगों म
त प से अलग रहने और ावल ी बनने का रवैया ज़ोर पकड़
रहा है ।
पहले जो एक ही छत के नीचे इक े रह कर जीवन िबताने का
चलन था, वह साझा मू ों के साथ सामंज पूण सह-अ के िसवा
और कुछ नही ं था, लेिकन आज उसम ‘समायोजन’ और ‘समझौता’
जैसे मु े उठ रहे ह। म एक डॉ र ँ और िचिक ा े म अपनी
सफलता का सारा ेय अपने प रवार को दे ती ँ । म एक दयाभाव के
साथ लोकिहत म काम करने वाली िचिक क बनने का सपना दे खती
ई बड़ी ई ँ । मेरे ावसाियक िश ण के दौरान, मेरे प रवार और
मेरे ससुराल वाले अपनी मज़ से मेरे साथ रहे और उ ोंने मेरे ब े की
दे खभाल की, िजससे म अपना क रयर वैसा बना सकी जैसा बनाना
चाहती थी।
सर, केवल आप ही पुरानी पीढ़ी के लोगों को समझा सकते ह िक
वे एकल प रवार म रहने वाले पित-प ी की ाय ता का स ान कर
और उन पर अपने कड़े िनणय न थोप, िजनके कारण उनके स ों म
दरार पैदा हो सकती है । तानाशाही और सलाह दे ने वाले बड़े -बुज़ुग की
भूिमका दो अलग-अलग बात ह और इन दोना बातों को लेकर िकसी
कार का म नही ं होना चािहए। िचिक ा े म हो रहे अनुसंधान
दशाते ह िक खान-पान, ायाम, जी या थान के मुकाबले
प रवारो ुख जीवन शैली से ही एक थ जीवन सुिनि त हो सकता
है । मेरा आपसे िनवेदन है िक आप इस स म एक सामािजक
आं दोलन शु कर।
एक िचिक क के प म मने दे खा है िक संयु प रवार म रहने
वाले रोगी पा रवा रक सहयोग िवहीन रोिगयों के मुकाबले अपने रोग से
जूझने, िनणय लेने की उधेड़बुन और अ रिवरोध की थितयों का
सामना बेहतर ढं ग से कर पाते ह। अपनी शादी को टू टने से बचाने के
िलए मनोवै ािनकों और िचिक कों के पास जाने वाले अिधकांश जोड़े
एकल प रवारों से होते ह। हमारे पास समाधान की तलाश म आने वाले
एकल प रवार के लोगों के िवपरीत, संयु प रवारों म घर के बड़े -बुजुग
उनकी सहायता करने और उ परामश दे ने के िलए मौजूद होते ह।

प रवार वह है िजसम कोई पीछे नहीं छूटता और न ही िकसी को भुलाया जाता है ।


—डे िवड अॉ डे न ीयस

ब तक के समूचे इितहास म, हरे क सं ृ ित म प रवार समाज की आधारभूत


अ बुिनयादी इकाई रहा है । लेिकन आज, कई मायनों म, यह इकाई संकट से िघरी
लगती है ।
िवकिसत दे शों म बदलती आिथक थितयों और उपभोग के नये ढाँ चों से ऐसे
प रवारों की सं ा म बेतहाशा बढ़ो री ई है जहाँ पित-प ी दोनों काम करते ह,
उनके पास अपने ब ों की दे खभाल करने के िलए और अपने पा रवा रक जीवन के
िलए भी समय नहीं होता। समाज म तलाकों की बढ़ती वृि से लोगों म वैवािहक
असुर ा की भावना घर करने लगी है । अ सामािजक ताकतों ने बड़े पैमाने पर
िव ृत प रवार, काय थल, आस-पड़ोस और समाज से िमलने वाली सहायता म भी
कमी करने म अपनी भूिमका िनभाई है । िवकासशील दे शों म, ऐसी वृि याँ गरीबी,
पयावरणीय दु दशा, पु षों व यों के बीच बढ़ती असमानताओं और वैि क
महामा रयों, िवशेष प से एच.आई.वी./एड् स जैसी बीमा रयों के उदय होने से
सम ाएँ ब त जिटल हो गई ह।
अपनी पु क म, आचाय महा जी ने और मने प रवार को एक रा की
बुिनयाद के प म और को एक क ता और िवकास के लाभाथ के प म पेश
िकया है । हमने पु क म सश करण, भागीदारी और िकसी काम म सभी लोगों को
स िलत करने पर ज़ोर िदया है । प रवार समाज की एक बुिनयादी इकाई है , और
इसकी मजबूती अिभ है और समूचे िवकास का के है ।
मजबूत प रवार सामािजक व आिथक िवकास म सुधार लाने के िलए िकए गए
सम यास के के म होता है । यह थाई समुदायों की उ ि करता है और वैि क
समृ म बढ़ो री करता है । िकसी के िलए िनि त प से, मजबूत प रवार
होने के कई लाभ ह। एक प रवार इसके सद ों के िलए ेक थित म सबसे बड़ा
सहारा होता है और किठन समय म उनके िलए एक सुर ा कवच का काय करता है ।
मजबूत प रवारों म लोग अपे ाकृत थ व स रहते ह और वे बेहतर ढं ग से
आपस म सामंज िबठा लेते ह।
सामािजक िवकास के संदभ म दे ख, तो समूची स ता की सामा व सम
उ ित म प रवार का मह सबसे अिधक है । ोंिक यह प रवार ही होता है िजसम
नैितकता के बुिनयादी मू ज लेते ह। यह प रवार ही है िजसम सीखने की मता,
आ िव ास और सकारा क सामािजक संवाद की आव क मताएँ ा होती ह।
और यह एक मजबूत प रवार का आधार ही होता है िक िजससे सम प से
समाज को अपना योगदान दे ने म स म हो पाते ह।
ऐितहािसक प से, धम पा रवा रक सामंज के सबसे मह पूण कारकों म
एक है । िववाह, तलाक, ब ों के पालन-पोषण और उनम डाले जाने वाले मू ों से
स त सभी कानून पार रक प से धम से ही बनते ह। िक ु, आज धम व
प रवार के म का स संकट म है । सबसे पहले तो, अब प रवार के िलए
पार रक पु ष-स ा क ढाँ चे पर लोगों का िव ास नहीं रहा और यह उिचत भी है
िक मिहलाओं के उ ीड़न, ब ों के पालन-पोषण की कड़ी थाओं और पु ष श
को बचा कर रखने के पा रवा रक जीवन के इस ढाँ चे को अनुिचत व अ ायपूण माना
जाता है ।
कई पि मी दे शों म, पु ष स ा क व अिधकारवादी ढाँ चे की असफलता ने
एक िवक को बढ़ावा िदया है । अपने प म अिधक उदार और धमिनरपे इस
िवक ने मिहलाओं को पा रवा रक िनणयों म एक समान भूिमका िनभाने का अवसर
दान िकया है , और यह उिचत भी है । लेिकन, इसके साथ-साथ, इस ढाँ चे ने ब ों के
लालन- पालन म एक कार की त ता के दरवाज़े खोल कर, धािमक िश ाओं
ारा ुत की जाने वाली नैितकता की मजबूत भावना को ख़ा रज कर िदया है । ब ों
के लालन-पालन म इस त ता से अ र ब ों म आ स ुि के अलावा जीवन-
मू ों अथवा नैितक िनणय की कोई भी मजबूत भावना पनप ही नहीं पाती।
ऐसे मू ों पर एक सफल िव का िनमाण करने की क ना करना भी किठन
है । तो िफर आिख़र इसका िवक ा है ? अभी आपने मुझे एक सामािजक
आ ोलन की पहल करने की सलाह दी है । म वा व म नहीं जानता िक म ऐसा कर
पाऊँगा या नहीं, लेिकन एक बात तो म िनि त प से कह सकता ँ िक म पित-प ी
के स ों म और इसके साथ-साथ अिभभावकों और ब ों के बीच उनके अिधकारों
व िज़ ेदा रयों के स म आपसी समझ को रे खां िकत करके, उनम समानता और
भावना क पार रकता को अव थािपत करने की कोिशश क ँ गा।

प रवार समाज की आधारभूत इकाई है


और उसकी मज़बूती अथ व था म
हर तरह की बेहतरी के िलए बेहद
ज़ री है ।

और हम यह भी महसूस करना होगा िक आज के समय म संयु प रवार की


प रभाषा लगातार बदल रही है ोंिक आज एक संयु प रवार के सद ों म िम ों व
पड़ोिसयों को भी स िलत िकया जा सकता है ोंिक वे मोबाइल फोन व अ
इलै ॉिनक उपकरणों की सहायता से आपस म जुड़े होते ह। ऐसी थित म एक
संयु प रवार णाली म िनि त प से यह ाभािवक मता होती है िक वे कभी
भी, िकसी भी कार की सम ा उ होने पर उसका समाधान िनकाल सक, जबिक
ू यर प रवारों म, जहाँ सम ाओं का समाधान खोजने का त नदारद होता है ,
सम ाएँ ब त ग ीर बन जाती ह। इसिलए, मेरे िवचार म संयु प रवार णाली,
िवशेष प से भारत के संदभ म, ब त अनुकूल है ।
गुणों की म का
सर, मने कही ं यह पढ़ा िक आप अपने िश क, े य फ़ादर
. िच ादु रई से ित वष िमलने जाते ह, िज ोंने आप को 1950 और
1954 के बीच, ित िचराप ी के सट जोज़फ’स कॉलेज म भौितक
िव ान की िश ा दी थी। एक छा के प म, आपके मन म अपने
िश क के िलए जो कृत ता की गहरी भावना है , उसे करने के
िलए मेरे पास श नही ं ह, और इस बारे म सोचकर मेरी आँ ख भर
आई।ं
दु भा से, आज कृत ता के इस भाव की बेहद कमी िदखाई दे ती
है । दो जगह इस भाव की कमी हम बुरी तरह खलती है , एक तो घर पर
और दू सरे वहाँ जहाँ हम काम करते ह। मेरे पित अपने मन म यह मान
कर चलते ह िक मुझे मालूम है िक वह मेरे काम को सराहते ह, और
इसिलए वह मेरे िकए कामों के िलए मेरी तारीफ़ करने या मुझे ध वाद
दे ने की परवाह ही नही ं करते। इसी कार, मेरे दोनों ब े भी यह सोचते
ह िक िदन-रात उनकी ज़ रतों और माँगों के मुतािबक काम करना मेरा
कत है , इसिलए मुझे अपने कत िनभाने के िलए ध वाद की
ज़ रत ों होनी चािहए? यही हाल वहाँ है जहाँ म काम करती ँ । म
अपने काम को और बेहतर ढं ग से करने की िकतनी भी बढ़-चढ़ कर
कोिशश क ँ , िफर भी मेरे ब क बमु ल ही कभी मुझे ध वाद
दे ते ह।
ज़ािहर है , िक काम की अहिमयत को सही तरह से न आँ के जाने
और उसके िलए सराहना न िकए जाने से मुझे ब त ठे स प ँ चती रही है
और इससे मेरे अ र एक गु ा भर गया है । लेिकन जब आपने बताया
िक कृत ता िकसी के शु गुज़ार होने से कही ं बढ़ कर है , तो मेरी समझ
म आया िक हम िकस कार अपने भीतर का सव े ुत करके और
उसके फल प, दू सरों का सव े पाकर एक-दू सरे को कृत ता का
मू समझा सकते ह।
अब म आपसे यह जानना चाहती ँ िक जब हम अपने यासों से
अ लोगा म कृत ता का भाव जगा नही ं पाते, तो उस थित म हम
ा करना चािहए?
़ द को कहीं बड़े और जिटल इं टरनेट
कृत ाता हम हमसे बाहर ले आती है , जहाँ हम खु
के एक िह े के प म दे ख पाते ह।
—रॉबट एम

आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत ँ िक इन िदनों कृत ता नैितक वहार


मै◌ं का िह ा नहीं रह गई है और इस कारण सामूिहक प से हम ब त
दु भा पूण थित म प ँ च गए ह। जब रोमन दाशिनक िससरो (106 ईसा
पूव-43 ईसा पूव) ने यह कहा था िक कृत ता सभी गुणों की दे वी है , तो िनि त प से
उनके कहने का अथ यह कदािप नहीं था िक कृत ता अपने िनजी सुख की ओर िकया
गया एक यास है । कृत ता नैितक प से एक जिटल वृि है और इस गुण को
अपना ‘मूड’ सुधारने के िलए या ‘खु ़ श होने’ की भावना को महसूस करने के िलए एक
तकनीक या एक रणनीित म प रवितत कर दे ना अ ाय होगा। इसी तरह, कृत ता को
केवल एक आ रक भावना तक सीिमत कर दे ना भी उिचत नहीं होगा।
िवचारों के इितहास म, कृत ता को एक ि या माना जाता है । उदाहरणाथ, िकसी
की कृपा का उ र दे ना न केवल अपने आप म एक सद् ु गण है , अिपतु यह समाज के
िलए भी ब मू है । िकसी को ु र दे ना एक अ ी चीज़ है । रोमन दाशिनक
मा ूिलयस िससरो ने कहा था, ‘दयालुता के बदले म दयालुता िदखाना आव क
है ।’ और रोमन व ा और लेखक, सेनेका (54 ईसा पूव-39 ई ी) का कहना था, ‘जो
कोई लाभ ा करते ए आभार जताता है , तो वह वा व म अपने ॠण की
पहली िक का भुगतान करता है ।’ समय के साथ- साथ, कृत ता को एक ग ीर
अवगुण के प म दे खा जाने लगा। वा व म कृत ता िजतना बड़ा गुण है , कृत ता
उससे कहीं ादा बड़ा अवगुण है । जमन दाशिनक इमैनुअल कै (1724- 1804) ने
िलखा था िक कृत ता ‘दु ता का मूल’ है । ॉिटश दाशिनक डे िवड ह्ू यम का िवचार
था िक कृत ता ‘िकसी ारा िकया जाने वाला सबसे जघ और अ ाकृितक
अपराध है ।’

हम अपने जीवन म िजस त ता का


आन उठा रहे ह, उसके ित हमारे
अ र कृत ता की भावना समा हो
चुकी है , िजन महान ह यों ने दे श के
त ता सं ाम म अपने जीवन की
आ ित दे दी, हमारे भीतर उनके ित
भी कृत ता का अभाव है ।

कृत ता खु़ शी के िलए अ ंत मह रखती है ोंिक यह खु ़ शी दान करती है ।


ूस िल न ने अपनी पु क, बॉयोलॉजी अॉफ िबलीफ◌़ म कृत ता और खु ़ शी के बीच
के स को दशाया है । उ ोंने माणों के आधार पर िलखा िक बचपन से लेकर
बुढ़ापे तक, मनोवै ािनक, शारी रक और स परक लाभों की ापक ंखला का
स कृत ता से होता है । कृत ता न केवल इसिलए मह पूण है ोंिक इसकी
वजह से लोग अ ा महसूस करते ह, ब इससे उ अ े काम करने की ेरणा
भी िमलती है । कृत ता इं सान को थ करती है , उसे ऊजा दान करती है और कई
मायनों म इस धारणा के साथ लोगों के जीवन को बदल कर रख दे ती है िक सद् ु गण
अपने आप म एक पुर ार है और इससे अ पुर ार भी पैदा होते ह।
मेरा अनुभव तो यह कहता है िक िकसी के भाव का अंग बन चुकी
कृत ता का स सकारा क गुणों जैसे सहानुभूित, मा और दू सरों की मदद
करने की इ ा से है । उदाहरण के िलए, िजन लोगों के भाव म कृत ता है , वे अपने
काय थल पर सौहादपूण वहार दिशत करते ह और अपने िम ों को भावना क
सहारा दे ते ह। इस िवषय पर कई अ यन िकए गए ह और यह पाया गया है िक जो
लोग कृत ता कट करते ह, उ ादा मददगार, ादा िमलनसार, ादा उ ीदों
से भरा माना जाता है ।
मोटे तौर पर, कृत ता एक ऐसा धागा है , जो सारे समाज को एक सू म बाँ धे
रखता है । कोई कृत ता के िबना मानव स ों की केवल क ना ही कर
सकता है । समाज तभी फलता-फूलता है , जब कृत ता को इसकी नैितक पूंजी के
मूलभूत घटक के तौर पर िलया जाता है । मेरे िवचार म, कृत ता स ों म िबगाड़
पैदा होने से बचाने वाली एक सुर ा-दीवार है । िम ता व िश ता म भी इसका
सकारा क योगदान रहता है । कृत ता ज़हर भरी भावनाओं को कम करती है और
समाज िवरोधी आवेगों और एक-दू सरे को नुकसान प ँ चाने वाले बताव को रोकती है ।

कृत ता की भावना न होने से मानवीय


स ों का िनर र ास हो रहा है
और यह हमारी सं ृ ित के भीतर एक
महामारी का प ले रही है , जहाँ हम
अपने कत ों व दािय ों की तुलना म
अपनी पा ता और अिधकारों को
अिधक मह दे रहे ह।
कृत ता के िलए किठन यास िकए जाने की ज़ रत होती है । यह भावना इतनी
आसानी से अथवा अपने आप ही नहीं आती और इसीिलए कृत तापूण होने की सोच
और वैसा ही वहार अ र सै ा क अवधारणाएँ बनकर रह जाती ह। इन
सै ा क अवधारणाओं को ावहा रक अमल म लाने के िलए पूरी इ ा-श और
सोच-िवचार के साथ की गई कोिशश की ज़ रत होती है । ऐसे सामािजक टीकाकारों
की सं ा बढ़ती जा रही है िजनका मानना है िक आधुिनक युग म लोगों म कृत ता
जैसे गुण की लगातार कमी होती जा रही है और इितहास को दे ख तो शायद पहले के
दौर के मुकाबले अब हम कृत ता के भाव से दू र होते जा रहे ह। आज मानवीय
स ों म कृत ता की भावना का िनर र ास हो रहा है और यह बात हमारी
सं ृ ित के भीतर एक महामारी का प ले रही है , जहाँ हम अपने कत ों व दािय ों
की तुलना म अपनी पा ता और अिधकारों को ाथिमकता दे रहे ह। ऐसी थित म तो
आ य नहीं होना चािहए िक यिद आज माता-िपता के मन म अपने ब ों के िलए सबसे
बड़ा डर है हताशा और अस ोष का, जो ब ों म तब उ होते ह जब वे समझते ह
िक िज़ गी से उ ीद रखने का उ हक़ है , लेिकन वे उ ीद पूरी नहीं हो पातीं।

कृत ता का स इस धारणा से है
़ द होते ह
िक सद् गुण अपना पुर ार खु
और इससे पुर ार भी पैदा होते ह।

कृत ता न िसक़ इसिलए मह पूण है


ोंिक इसकी वजह से लोग अ ा
महसूस करते ह, ब इससे उ
अ े काम करने की ेरणा भी िमलती
है ।

सही मायनों म कृत ता का वा ा बातों को याद रखने से है , इसीिलए मेरे िलए


जब भी स व होता है , म े य फ़ादर लैिडसलॉस िच ादु रई से िमलने के िलए चला
जाता ँ । यिद वतमान जीवन म कृत ता का कोई संकट है , तो वह केवल इसीिलए है
ोंिक आज हम सामूिहक प से चीज़ों को भूल गए ह। हम अपने जीवन म िजस
त ता का आन उठा रहे ह, उसके ित हमारे अ र कृत ता की भावना समा
हो चुकी है , िजन महान ह यों ने दे श के त ता सं ाम म अपने जीवन की आ ित
दे दी, हमारे भीतर उनके ित भी कृत ता का अभाव है । आज हम िजतनी भी चीज़ों से
भौितक लाभ ा कर रहे ह, उन सबके िलए हमारे दय म कृत ता जैसी कोई
भावना नहीं है । जबिक दू सरी ओर, कृत यों ने अपने मन म दू सरों ारा उन पर
दशायी गई दया की सकारा क ृितयाँ संजो रखी ह, यह एक ऐसा उपहार है , जो न
तो अिजत िकया गया है और न ही िजसके वे पा ह। कृत ता मन म संजो कर रखी
इन ृितयों से ादा, दय म संजोई गई ृितयाँ ह—एक ऐसा तरीका िजसे दय
याद रखता है । दय म संजोई ृित म उनकी ृित भी शािमल है , िजन पर हम िनभर
ह, ोंिक हम अपनी अिन ा के कारण अथवा दू सरों ारा हम दान िकए गए लाभों
को याद न रख पाने के कारण इस िनभरता को भूल गए ह।

कृत ता मन म संजो कर रखी इन


ृितयों से ादा, दय म संजोई गई
ृितयाँ ह—एक ऐसा तरीका िजसे
दय याद रखता है ।

हम इस दु िनया म एक िविश ाणी के प म आए ह, िजसे क ना करने की


श दान की गई है । हरे क इं सान से यह उ ीद की जाती है िक वह इस ां ड के
सभी जीवों की एका कता को समझे। संसार की ेक व ु एक-दू सरे से जुड़ी ई
है और एक-दू सरे को स ल दान करती है । इस बात को महसूस िकए िबना जीवन
साथक हो ही नहीं सकता। हम सभी ाणी िजस माग पर चल रहे ह, वह िवकास का
माग है अथात् हम ितिदन एक बेहतर इं सान बन रहे ह। इसिलए, आप अपनी ओर से
िजतना कुछ दे सकते ह, वह दे ना जारी रख ोंिक आगे केवल यही माग है । अ े
काय के िलए अपना समय द और जो लोग दु भा पूण थितयों के िशकंजे म जकड़े
ए ह, उनकी मदद कर और अगर और कुछ भी नहीं है , तो अपने आसपास उनकी
उप थित को स ान द, उ अनदे खा करने की कोिशश न कर। शी ही आप
महसूस करगे िक यिद आपके यासों से अ लोगों म बदले म आपके ित
कृत तापूण भाव नहीं पैदा होगा, तो यह वा व म उनकी असफलता है और आप
केवल उनकी परी ा लेने के एक मा म के प म काय कर रहे ह।
भला है दे ना
सर, मने आपका ‘म ा दे सकता ँ ’; ा ान पढ़ा। आपका
. ा ान उ आदश से भरा था और ेरणा दे ने वाला है । यिद
आपके ा ान म िदए गए आदश को हम सब अपने जीवन म
उतार ल तो वह ब त बिढ़या होगा। पर म आपके सुझावों पर अमल
करने म आने वाली ावहा रक िद तों को आपके साथ साझा करना
चाहता ँ । आज की युवा पीढ़ी के िलए सब कुछ पूरी तरह से काला या
पूरी तरह से सफ ़ े द, यानी िबलकुल नही ं, ब अ है , धुंधला
है । ावहा रकता पर ादा ज़ोर है न िक आदश पर। सारा ज़ोर
हािसल करने पर है , न िक दे ने पर। हम अपने चारों ओर लोगों को
समाज से जो कुछ वह ले सकते ह, ‘लेते’ दे खते ह। चाहे वह सड़क बनाने
वाला ठे केदार हो या रा ीय र की एक बड़ी प रयोजना म बड़ी
भागीदारी हािसल करने वाला, इनका ज़ोर इसी बात पर रहता है िक
प रयोजना म कैसे कम से कम लागत आए, चाहे इसके िलए घिटया दज
का या कम क ा माल इ ेमाल िकया जाए। और उसके
प रणाम प भले ही लाखों लोगों की जान पर बन आए इसकी उ
कतई िच ा नही ं रहती। उनका सारा ज़ोर इस बात पर रहता है िक कैसे
वह कीमत म कटौती करके अपना मुनाफ़ा बढ़ा ल।
सर, मुझे यह बताएँ िक ऐसे ाथ और लालच से भरे लोगों के
साथ रहते ए िजनका झान ही इस ओर है िक जो िमले उसे ले िलया
जाए, तो म हर समय ‘दे ने’ की कैसे सोच सकता ँ ?

हालाँ िक दे ना एक किठन चुनौती है , लेिकन तर ी का यही एक तरीका है । दो, तािक


तुम बढ़ सको।
—ए पी जे अ ु ल कलाम
रे बड़े भाई ए.पी.जे. मुथु मीरा लेबाई मरासयर इस समय 98 साल के ह, और
म◌े रामे रम् म हमारे पैतृक मकान म रहते ह। हर शु वार वह नोटों की एक
छोटी सी ग ी लेकर जाते ह, यही कोई एक हज़ार पये के क़रीब, और ये
पये मसिजद के आसपास गरीब लोगों म बाँ ट दे ते ह। गरीब लोग चाहते ह िक उनके
हाथों से उ कुछ पये िमल जाएँ , इसिलए नहीं िक उनसे उनकी िज़ गी म कोई
ब त बड़ा फ़क पड़ जाएगा, ब इसिलए ोंिक लोगों को उनके हाथों से लेने म
महज़ लेने और दे ने के ऊपरी काम से कुछ अलग महसूस होता है , कुछ गहरा कुछ
ग ीर।
मनोवै ािनक ि याओं का शरीर के तंि का त और ितर ा त पर जो
पार रक भाव होता है , उसका अ यन साइको- ूरो-इ ूनोलॉजी (Psycho-
Neuro Immunology) के तहत िकया जाता है । मेरे दो िविलयम से ामूित ने इस
े म हो रहे ताज़ा शोधकाय के बारे म मुझे सं ेप म बताया। ऐसे भरोसेम शोध
िजनसे पुि होती है िक दे ने से न िसफ़ लेने वाले को फ़ायदा प ँ चता है , ब इससे

दे ने वाले की सेहत पर अ ा असर पड़ता है और इससे उसे खुशी िमलती है , िजससे
समूचे समुदाय को ताक़त िमलती है । से ामूित कहते ह िक दान के धन पर चलने
वाली सं थाओं को दान दे ने से, सिदयों म बेघर गरीबों को क ल दान करने से, या
गम के िदनों म आने-जाने वाले राहगीरों और जानवरों को पानी िपलाने या अपनी मज़
से भलाई के ऐसे ही िकसी काम म अपना समय लगाने से भी वैसा ही फ़ायदा होता है ।
म आपको दे ने के पाँ च ठोस कारण बताता ँ , और साथ म उनसे होने वाले लाभ भी।
सबसे पहला और सबसे बड़ा कारण तो, यह है िक दे कर हम अ ा महसूस
करते ह। यह अ ा एहसास हमारे शरीर पर अ ा असर डालता है , जो िदखाई दे ता
है । जब लोग िकसी धमाथ सं था को दान दे ते ह, तो उनके िदमाग का वह िह ा
सि य हो जाता है जो आन , सामािजक स क और भरोसे से स िधत है िजससे
‘तेज़पूण आभा’ पैदा होती है । वै ािनकों का मानना है िक परोपकार भरे वहार से
म म ‘एं डॉिफ़न’(endorphin) नाम के रसायनों का ाव होता है िजससे अ ा
एहसास होता है । 18 िदस र 2005 को म केरल के को म िजले म माता
अमृतान मयी मठ गया, जहाँ अ ा की मौज़ूदगी म मने सुनामी पीिड़त नाग रकों के
िलए बने पाँ च सौ नए मकान उ सौंपने के िलए आयोिजत काय म म िह ा िलया।
अ ा के चेहरे पर तेज़पूण आभामंडल साफ़ िदखाई दे रहा था।
दू सरे , दे ना हमारी सेहत के िलए अ ा है । कई तरह के अ यनों के नतीजों से
यह बात सामने आई है िक तमाम िक की उदारता का सेहत पर, यहाँ तक िक
बीमार और बुज़ुग लोगों पर भी अ ा असर होता है । अपनी िकताब, वाय डू गुड िथं ज़
है ेन टू गुड पीपल, म ीफ़ेन पो ने िलखा है िक दू सरों को कुछ दे ने से ल ी
बीमा रयों से जूझ रहे लोगों की सेहत पर भी अ ा असर पड़ता है । िजन बुज़ुग लोगों
ने िबना िकसी पा र िमक के े ा से काम िकया, वह ऐसा न करने वालों के
मुक़ाबले बेहतर ा के साथ ादा ल ी िज़ गी जीये। दे ने से शारी रक ा
म सुधार होने के साथ िज़ गी के ादा ल े होने की स ावना बढ़ने की एक वजह
यह है िक ऐसा करने से कई तरह की ा गत सम ाओं की वजह बनने वाला
़ द दे ते ह। मेरे भाई
तनाव घट जाता है । उन लोगों को सीधा-सीधा लाभ होता है जो खु
इसका अ ा उदाहरण ह।

दे ने से आपसी सहयोग और सामािजक


स ों की भावना बढ़ती है । जब आप
दे ते ह, तो अापको भी िमलने की
स ावना पहली से ादा बढ़ जाती है ।

तीसरे , दे ने से आपसी सहयोग और सामािजक स ों की भावना बढ़ती है । जब


आप दे ते ह, तो आपको भी िमलने की स ावना पहले से ादा बढ़ जाती है । जब
आप िकसी को दे ते ह, तो आपकी उदारता के बदले म दे ने का यह िसलिसला कोई
दू सरा आगे बढ़ाता है , कभी वह िजसे आपने िदया है , और कभी कोई और। इस लेन-
दे न से एक दू सरे पर भरोसे और सहयोग की भावना को बढ़ावा िमलता है िजससे
दू सरों के साथ हमारे र ों म मजबूती आती है । शोध से भी यही पता चला है िक
सकारा क सामािजक आदान- दान अ े मानिसक और शारी रक ा का
मु कारक है । इतना ही नहीं, जब हम िकसी को कुछ दे ते ह, तो िसफ़ वही हम
अपने नज़दीक नहीं पाते ह, ब ़ द को उनके
हम भी खु ादा क़रीब महसूस करते
ह। दयालु और उदार होने से आप दू सरों को भी ादा सकारा क और भलाई के
नज़ रये से दे खते ह और इससे आपके सामािजक दायरे म एक दू सरे पर िनभरता और
आपसी सहयोग की भावना को बल िमलता है ।

दे ने से कृत ता पैदा होती है । रोज़मरा


की िज गी म कृत ता के भाव जगाना
अपने अ र खु ़ शी के भाव बढ़ाने का
अ ा तरीका है ।

चौथे, दे ने से कृत ता पैदा होती है । आप िकसी को कोई उपहार दे रहे ह, या


उपहार आपको िमल रहा है , वह उपहार खु ़ द ही आभार की भावना से भर दे ता है ।
उपहार दे ना कृत ता करने या उपहार पाने वाले म कृत ता के भाव जगाने का
तरीका हो सकता है । मने खु ़ द महसूस िकया है िक कृत ता खु ़ शी, सेहत और
सामािजक ब न बाँ धने के िलए बेहद ज़ री है । 1990 के दशक म डीआरडीओ म
मेरे सहकम डॉ र हर ार िसंह की जान बचाने के िलए िजगर के ारोपण की
ज़ रत थी। मने सारी शासन- शासन व था से लड़-झगड़ कर उ इं ड भेजने
का रा ा बनाया और उनके िजगर का ारोपण हो सका। आज वह थ और
सान ह। जब आप अपने मन म जागी कृत ता के भाव को श ों के ज़ रये या कुछ
कर के करते ह, तो िसफ़ आपके अ र ही नहीं, ब दू सरों के अ र भी
सकारा क भाव पैदा होते ह। रोज़मरा की िज़ गी म कृत ता पैदा करना अपनी
गत खु़ िशयों को बढ़ाने की कुंजी है ।
और सबसे बढ़कर, दे ने की भावना हवा म सुग की तरह फैलती है । जब हम
िकसी को कुछ दे ते ह, हम िसफ़ उसका ही भला नहीं कर रहे होते ह िजसे हम उपहार
दे रहे ह, ब पानी म कंकड़ िगरने से पैदा होने वाली तरं गों की तरह इसका असर
भी सारे समाज म फैलता है । जब एक उदारता का बताव करता है , तो दू सरों
को अ लोगों के साथ उदारता का बताव करने की ेरणा िमलती है । दरअसल, दे ने
की नीयत तीन तरह से फैलती है , एक से दू सरे म, और दू सरे से तीसरे म।
नतीजतन, एक-दू सरे से आगे बढ़ता यह िसलिसला हरे क के स क म आने
वाले दजनों और यहाँ तक िक सैकड़ों लोगों तक अपना असर कर सकता है , िजनम से
कई को वे लोग जानते भी नहीं होंगे िजनसे यह िसलिसला शु आ। सन् 2003 म
मने ज जात िदल की बीमारी के िशकार उन गरीब ब ों के इलाज के िलए एक फंड
शु करने के िलए केअर फाउं डेशन को एक छोटी सी रक़म दी, िजनकी जान बचाने
के िलए सजरी ज़ री होती है । आज वह फंड बढ़कर तीन करोड़ का हो गया है और
उससे अब तक एक हज़ार से ादा ब ों को मदद िमली है ।

दे ने की भावना हवा म सुग की तरह


फैलती है । जब हम िकसी को कुछ दे ते
ह, हम िसफ़ उसका ही भला नहीं कर
रहे होते ह िजसे हम कुछ दे ते ह, ब
पानी म कंकड़ िगरने से पैदा होने वाली
तरं गों की तरह इसका असर भी सारे
समाज म फैलता है ।

तो आप चाहे उपहार ख़रीदकर बां ट, कुछ हािसल करने की सोचे िबना अपना
समय द, या िकसी धमाथ सं था को धन द, यह दे ना िसफ़ कुछ पल अ ा लगने के
एहसास से कहीं ादा होता है । इससे आप को बेहतर सामािजक स क बनाने म
मदद िमल सकती है और आप अपने लोगों के बीच उदारता का एक िसलिसला छे ड़
सकते ह। और अगर इस ि या म आपको भी खु ़ िशयों की एक बड़ी सी खु़ राक िमल
जाए, तो है रत म मत पड़ जाइएगा। इसम कोई शक नहीं िक सच बोलने से, गु ा न
करने से, और माँ गने पर दे ने से, चाहे वह िकतना भी कम ों न हो, आप अपनी
िज़ गी को पूरी तरह बदल सकते ह और अपने आसपास वालों को भी फ़ायदा प ँ चा
सकते ह।
कलािवहीन संसार जैसे हवा िबना गु ारा
हमारे क े म मा िमक ू लों म कला की क ाओं की सुिवधा
. उपल नही ं है । मुझे यह बात ब त परे शान करने वाली लगती है
ोंिक मुझे मालूम है िक कला आन व सफलता का एक ब त
बड़ा ोत हो सकती है , िवशेष प से उन ब ों के िलए िजनकी
मानिसक व शारी रक मताएँ दू सरे ब ों से अलग ह। म अपने बेटे की
ही बात क ँ , तो मेरा बेटा पढ़ाई-िलखाई म थोड़ा धीमा है और दू सरों
की बातों को ज ी से नही ं समझ पाता। चूँिक वह अपनी क ाओं म
अपने आप को ठीक से अिभ नही ं कर पाता, इसिलए उसके
िश क अ र अपना धैय खो बैठते ह और उससे िचढ़ जाते ह। वह
अपनी ऊटपटांग िट िणयों, बेिसर-पैर के उ रों से और पढ़ाई म ान
न लगा पाने के कारण मु ल म पड़ जाता है । मने अ ा िव िव ालय
म फ़ादर जॉज के साथ िकए गए आपके काय के स म िकसी
पु क म पढ़ा है िजससे मुझे पता चला िक रचना क कला अिभ
का एक ऐसा प है , जो मन को सुख व शा दान करता है और
इससे हमारे म की अ िवकिसत कोिशकाओं को िफर से थ
होने म मदद िमलती है ।
सर, कला िविवध कार की होती है जैसे िच कारी, संगीत,
ना कला, का कला, मूितकला व फोटो ाफी इ ािद, जो मेरे बेटे जैसे
तमाम ब ों की सहायता कर सकती है । हमारे िलए यह बड़े दु :ख और
शम की बात है िक हमारे िव ालयों म ब ों के िलए इस कार का कोई
भी िवक उपल नही ं है । ा हम िकसी ब े म उसकी िछपी ई
़ बी को िवकिसत करने के िलए अपने िव ालयों म ऐसी कलाओं का
खू
उपयोग नही ं कर सकते या िफर उस ब े के म के औरों से अलग
होने की बात को समझने के िलए एक सेतु के प म इन कलाओं का
सहारा नही ं ले सकते?
कला के िवषयों की ापक िश ा ब ों की दु िनया को बेहतर ढं ग से समझने म मदद
करती है ...हम ऐसे िव ािथयों की ज़ रत है जो गिणत और िव ान के िवषयों के साथ-
साथ सां ृ ितक तौर पर भी सुिशि त हों।

मागी तौर पर कमज़ोर ब ों म समा हो चुकी उनकी मताओं व गुणों की


दि◌ भरपाई करने म कलाओं की उपयोिगता का माण फ़ादर जॉज और मेरे
ारा िकए गए अ यनों के ज़ रये अ ी तरह उजागर आ और उससे यह
भी पता चला िक लिलत कलाओं से जुड़े रहने से पढ़ाई-िलखाई म भी कई तरह से
फ़ायदा होता है । कलाएँ हमारे म म तंि काओं का िवकास करने म भी
मददगार सािबत होती ह, जो मां सपेिशयों के संचालन कौशल से लेकर रचना क
काय तक के फ़ायदों का एक ल ा िसलिसला पैदा करता है और हमारे अ र
भावना क स ुलन म सुधार लाता है । हम यह एहसास होना चािहए िक इन
णािलयों को दु होने म अ र महीनों ही नहीं ब बरसों लग जाते ह। कलाएँ
हमारे सीखने की गित को बढ़ाती ह। वे हमारे िजन संवेदी त ुओ,ं हमारे ान,
ाना क, भावना क व संचालन त स ी णािलयों को बल प ँ चाती ह, वे
हमारी सीखने की अ सभी ि याओं के पीछे काय करने वाली मुख श याँ ह।
अब आपके इस ने, िक हम उ े पूण ढं ग से ब ों म िछपी ई उनकी
िनजी मताओं का अथपूण ढं ग से िवकास करने म कला का उपयोग ों नहीं कर
सकते और उनकी इन मताओं के मा म से एक ब े के म की जिटल
क नाओं को समझ पाने म एक सेतु के प म मदद ों नहीं ले सकते, मुझे िश ा
के वा िवक उ े के स म िवचार करने पर मजबूर कर िदया है । मेरे िवचार म,
िश ा के तीन मु योजन होने चािहए—छा ों को नौक रयों के यो बनाना, उ
दे श के िज़ ेदार नाग रक बनाना और ब ों को ऐसे इं सानों के प म तैयार करना,
जो सौ य के गूढ़ पों का आन ले सक। तीसरा उ े अ दो उ े ों के
समान ही मह पूण है लेिकन वा व म अ दो उ े ों की कीमत पर या उनकी
उपे ा करके ही अ र पहले उ े पर ज़ोर िदया जाता है । इसी के प रणाम प,
छा ों को नौक रयों के िलए तैयार करने पर ादा मह िदए जाने से ू ली
पा मों का झुकाव आमतौर पर भाषा, गिणत, वािण और िव ान जैसे मूल
िवषयों की ओर है । इससे ब े के के केवल एक ही पहलू का िवकास हो
पाता है ।
ब ों की िवकास ि या को ऊँचा उठाने म सामा रचना क गितिविधयाँ
और उनके च र िनमाण म िविवध कलाएँ एक मह पूण भूिमका िनभाती ह। नई
पीढ़ी के ब ों के बढ़ने की ि या म उनका रचना क ि याओं और आँ खों से
िदखाई दे ने वाले सां सा रक सौ य की सराहना करना सीखना कहीं ादा मह पूण
हो सकता है । हालाँ िक संगीत और नाटकों के े ों म काफ़ी ावसाियक उ ित ई
है , लेिकन ादातर ब ों के िलए कला के दू सरे े ों को अपनाना अब भी आिथक
ि से एक ावहा रक क रयर नहीं हो सकता। लेिकन यह भी सच है िक केवल
कला ही हम अपने अ के ित चैत बनाती है और हमारे जीवन को एक
खूबसूरत व साथक आयाम दान करती है ।
कला े म िश ा लेने का आशय है इितहास, सािह , सामािजक िव ान,
संगीत, नृ , नाटक और कलाओं जैसे िवषयों की िश ा लेना। कलाओं का
अ यन करना वा व म हमारे समाज के िलए अ ंत आव क है । ये कलाएँ हमारी
सां ृ ितक िवरासत का अिभ अंग ह। कलाएँ ही ह जो हम बेहतर इं सान बनाती ह,
मुक ल इं सान बनाती ह। जैसा िक गिणत और िव ान के साथ है , कलाएँ भी जब- तब
मौक़ा िमलने पर थोड़ा-ब त जान लेने से नहीं सीखी जा सकती ह। लिलत कलाओं की
िश ा और उनके अ यन को ू ली पा मों का एक अिनवाय िह ा और शैि क
काय मों का एक मह पूण अंश होना चािहए।
कलाकृितयाँ बनाते समय श पकड़ने या े अॉन चलाने जैसी हाथों म होने वाली
गित छोटे ब ों म मां सपेिशयों के संचालन का कौशल िवकिसत करने और बढ़ाने के
िलए बेहद ज़ री ह। अमरीका के नैशनल इं ूट ऑफ़ हे के अनुसार, तीन
साल की उ के आसपास के ब ा म गोला बनाना और कची के इ ेमाल की
शु आत उनके िवकास के मह पूण पड़ाव ह। चार साल के ब ों को वग यानी
चौकोर आकृित बनाना और कची से एक सीधी रे खा म काटना आ जाना चािहए।
ू ली िश ा की शु आत से पहले वाले र पर अ र कची इ ेमाल करने पर
काफ़ी ज़ोर िदया जाता है , ोंिक इससे ब ों म िलखने की मता िवकिसत करने के
िलए ज़ री हाथों को इ ेमाल करने के कौशल का िवकास होता है ।
कला रचना क सोच की ि या और
अनुभव को ो ािहत करने का एक
तरीका है ।

िच कारी, िम ी से मूितयाँ बनाना और धागे म मोती िपरोना और ऐसी ही दू सरी


गितिविधयों से ब ों म नज़र और दू री से जुड़ी समझ िवकिसत होने म मदद िमलती
है , जो आज के दौर म मानव म के िवकास म पहले से कहीं ादा मह पूण
बन चुकी है । यह सच िक आज के छोटे -छोटे ब ों को भी पढ़ना या िलखना बाद म
आता है , लेिकन वे ाटफोन या टै बलेट को चलाना पहले जान जाते ह। इस त म
वह सू छु पे ह िक ब े पढ़ना-िलखना सीखने से पहले दे ख कर, त ीरों, दू सरी चीज़ों,
िडिजटल मीिडया या टे िलिवज़न से िमली जानकारी को अपना लेते ह। अिभभावकों को
इस बात का पता होना चािहए िक आज के दौर म ब े पहले के मुक़ाबले, ािफ़क
ोतों से ादा कुछ सीखने लगे ह। ब े श ों-वा ों और सं ाओं से िजतना कुछ
सीख सकते ह, उ उससे कहीं ादा जानने की ज़ रत होती है । कला की िश ा से
ब ों को जानकारी के प को समझने, उसकी समी ा करने और उसम
िछपी सूचनाओं को इ ेमाल करने और उनके आधार पर िनणय लेना आता है ।
कलाएँ , जैसे ािफ़क तीक ख़ास तौर से ब ों को समझदार उपभो ा बनाने और
तीकों से भरे बाज़ार म अपनी राह बनाने म मदद करती ह।

़ द को अिभ
जब ब ों को खु करने
और कला की रचना का जो खम उठाने
के िलए ो ािहत िकया जाता है , तो
उनम कुछ नया करने की भावना का
िवकास होता है , इससे समाज म
िवचारशील, खोजी और रचना क
लोगों की पौध तैयार करने म सहायता
िमलती है ।

जब ब ों को खु़ द को अिभ करने और कला की रचना करने का जो खम


उठाने के िलए ो ािहत िकया जाता है , तो उनम नये-नये िवचारों व तकनीकों का
िवकास होता है , जो उनके भावी जीवन के िलए ब त मह पूण है । इससे समाज म
ऐसे िवचारशील, खोजी और रचना क लोगों की पौध तैयार करने म सहायता िमलती
है , जो समाज को आगे ले जाने के िलए ज़ री ह। ऐसे , जो िक नये-नये तरीकों
को तलाश सक और जड़ हो चुकी व था को तोड़ कर नई व था की थापना कर
सक, न िक ऐसे लोग, जो केवल उनको िदए जाने वाले िदशा-िनदशों का ही पालन
कर। कला रचना क सोच की ि या और अनुभव को ो ािहत करने का एक
तरीका है ।
ऐ ल क ूटस के सं थापक ीव जॉ ने 2011 म आईपैड 2 को बाज़ार म
उतारते समय कहा था—‘ऐ ल के डीएनए (DNA) म यह बात िनिहत है िक
टे ोलॉजी अपने आप म काफ़ी नहीं है । टे ोलॉजी, सामा ान और बौ क
कौशल और सामािजक िवषयों के मेल से ही हम वह नतीजे िमल सकते ह, िजनसे
़ शी से गुनगुना उठे ।’
हमारा िदल खु
पेड़ लगाएँ खुशहाली लाएँ
सर, कुछ साल पहले मेरी मुलाकात आपसे दे हरादू न म ई थी और
. जब आपने त ालीन र ामं ी ी के.सी. पंत से रसच सटर
इमारत के आसपास 1,00,000 वृ लगवाने के िलए कहा था, तो म
आपकी इस बात से बेहद भािवत ई थी। मुझे उ राख , िहमाचल
दे श और िस म म ोजे थलों के दौरों के समय यह एहसास
होने पर ब त दु :ख आ िक इन े ों म थानीय िवकास के िलए बेहद
ज़ री सड़कों के िनमाण के साथ बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई होती है
जो िक इन इलाकों म पयावरण अस ुलन के िलए िज़ ेदार है । पिव
तीथ थानों पर भी पयटन से जुड़ी गितिविधयों म बढ़ोतरी हो रही है ,
िजसके प रणाम प सड़कों और होटला के िनमाण की माँग भी बढ़ी
है । चीन और को रया जैसे दे शों म पयावरण की ि से संवेदनशील
े ों म ाकृितक आपदाओं के कारण पैदा होने वाले जो खम को कम
करने के िलए सड़कों के िनमाण और निदयों के िकनारों को दरकने से
बचाने के िलए ब त ही उ त ौ ोिगकी का योग िकया जाता है ।
यिद े की तर ी के नाम पर िहमालय के पहाड़ी इलाकों म
बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई न की जाती, तो शायद जून 2013 म
उ राख म बाढ़ से इतनी तबाही न ई होती। पेड़ों की इस अंधाधुंध
कटाई ने पहाड़ों को कमज़ोर बना िदया है िजसके चलते भूिम की ऊपरी
सतह भी बाढ़ के पानी के साथ बह गई है । इसके साथ ज़मीन की बा रश
के पानी को सोखने की मता म भी कमी आई है । ऐसी आपदाओं से
बचने का एकमा उपाय यही है िक इन पहाड़ों पर ऐसे पेड़ लगाए जाएँ ,
जो इन इलाकों के िलए उपयु हों और िजनम पानी को सोखने की
पया मता हो। जैसे अखरोट के पेड़, िजनम बड़े प ों के कारण
बा रश के पानी को सोखने और िम ी के कटाव को रोकने की अद् भुत
मता होती है । ि िटश लोगों ने इन े ों म दे वदार के पेड़ लगाकर
इलाके के पहाड़ों का नाश कर डाला है । दे वदार के पेड़ के पतले तने
पानी को रोक नही ं पाते िजससे भूिम का कटाव होता है । म आपसे
िनवेदन करती ँ िक आप कम से कम एक वष उ राख म रह कर
वृ ारोपण पर नज़र रख।
ान से धरती की बात सुनते आकाश से कुछ कहते रहने का कभी न ख होने वाला
िसलिसला ह पेड़।
—रवी नाथ टै गोर

हाड़ों पर पेड़ लगाना इस दौर की सबसे बड़ी ज़ रत है । पहाड़ों पर ह रयाली म


प बढ़ो री के िलए अखरोट और दू सरे उपयु िक के पेड़ लगाने का आपका
सुझाव वा व म एक ावहा रक हल है ।
वष 2013 म उ राख म भारी तबाही मचाने वाली बाढ़ ने एक बार िफर हमारा
ान इस त की ओर खींचा है िक एक रा के तौर पर हमने इससे पहले ई
ासिदयों से कोई सबक नहीं सीखा है । हालाँ िक, रा शासन, भारत-ित त सीमा
पुिलस और सश सेनाओं ने िमलकर 40,000 से भी ादा लोगों को वहाँ से िनकाल
कर सुरि त थानों पर प ँ चा कर तारीफ़ के क़ािबल काम िकया लेिकन इस हादसे म
10,000 लोगों की जान चली गई। िगरे ए मकानों, होटलों और गै -हाउसों के मलबे
के नीचे दबे िज़ ा लोगों को खोजने, और िज़ ा बचे लोगों तक ज़ री चीज़ प ँ चाने
के बाद, सैलािनयों और तीथयाि यों की घर वापसी के बाद, ा रा और के के
सरकारी अिधका रयों का बाढ़ से भािवत उन लोगों के पुनवास से भी कोई सरोकार
होगा, जो े के िवकास के नाम पर जंगलों की कटाई की नीित के िशकार ए ह?
मुझे ‘िचपको आ ोलन’ याद है िजससे बड़ी सं ा म आम लोग जुड़े थे, िजसकी
लहर 1970 के दशक म पूरे गढ़वाल े म चली थी, िजसम पेड़ों को कटने से बचाने
के िलए गाँ व वाले पेड़ों से िचपक जाते थे, तािक उन पर आरी चलने से रोक सक। म
याद करता ँ जो इस ‘िचपको आ ोलन’ का नेतृ करने वाले 86 वष य सुंदर लाल
ब गुणा ने कहा था—‘ऐसी भयानक ासिदयों से बचने का एकमा समाधान यही है
िक पहाड़ों को पेड़ों से ढक िदया जाए।’
रा पित पद पर रहते ए म वंगारी मथाई से िमला, जो के ा की पहली मिहला
थीं िज नोबेल पुर ार से स ािनत िकया गया। भारत ने उ पयावरण संर ण के
े म उनके मह पूण योगदान के िलए स ािनत िकया था। वंगारी मथाई िकसी भी
पूव अ ीकी दे श की पहली मिहला थीं, िज ोंने पशु िचिक ा िव ान की एनाटॉमी,
यानी शरीर रचना िव ान म पीएच.डी. की उपािध ा की थी। नैरोबी िव िव ालय के
िश क-म ल की एक सद के तौर पर उ ोंने िव िव ालय म काम करने वाली
मिहलाओं के िलए पु षों के बराबर सुिवधाओं का मु ा उठाया और इसके िलए उ ोंने
वहाँ के शै िणक किमयों की सिमित को कमचा रयों के संघ की श दे ने की
कोिशश तक कर डाली तािक िश कों के िहतों के बारे म बात की जा सके। के ा म
बढ़ती ई बेरोज़गारी के समाधान के िलए, मथाई ने पयावरण संर ण की बात को
बढ़ावा िदया और आम लोगों की भागीदारी के साथ पेड़ लगाने की एक ऐसी मुिहम
चलाई िजससे आम लोगों को फ़ायदा प ँ च सके। मथाई ने के ा की मिहलाओं को
अपने-अपने इलाके म आसपास के जंगलों से बीज चुनकर दे श भर म अपने ही दे श
के पेड़-पौधों को उगाने के िलए े रत िकया। इसके िलए उ ोंने मिहलाओं को कहीं
और रोपने के िलए तैयार िकए जाने वाली पौध पर एक छोटी सी रािश दे ने का ावधान
रखा। िजन िदनों के ा म जातीय टकराव आ, तो वह अपने िम ों और मीिडया के
लोगों के साथ लोगों को लड़ाई ब करने के िलए े रत करने के िलए समूचे के ा के
िहं सा इलाकों के दौरे पर िनकल पड़ीं। ‘ ीन बे मूवमट’ के तहत उ ोंने ‘शा
के पेड़’ उगाने की पहल की।
वष 2002 के चुनावों म जीतकर मथाई के ा की संसद म प ँ चीं और पयावरण
एवं ाकृितक संसाधन मं ालय म मं ी बनीं। उ ‘सतत् िवकास, लोकत और
शा म योगदान’ के िलए 2004 का नोबेल शा पुर ार िदया गया, और इस तरह
वह यह पुर ार पाने वाली अ ीका की पहली मिहला और पहली पयावरणिवद् बनीं।
लोकता क अिधकारों की खाितर संघष करने वालों के िलए वह ेरणा ोत थीं, और
ख़ासतौर पर उ ोंने मिहलाओं को अपने हालात सुधारने के िलए ो ािहत िकया।
हमारे आसपास पेड़ होना ब त ज़ री है और मानव के अ और हमारे
प रवेश को बेहतर बनाने के िलए हमेशा ही इनकी अहिमयत रही है । प ों से लदा एक
बड़ा पेड़ ह रयाली के एक मौसम म इतनी अॉ ीजन पैदा करता है , िजतनी दस लोगों
के साल भर साँ स लेने के िलए ज़ री है । ब त सारे लोग इस बात से बेख़बर रहते ह
िक जंगल उस हवा को साफ़ करने वाले िवशाल ‘िफ़ र’ का भी काम करते ह िजसम
हम साँ स लेते ह। जंगल वा व म उस िवशाल हौज़ का भी काम करते ह िजसम पेड़
िजतना ादा काबन बनाते ह, उससे ादा काबन वह जमा करके रख सकते ह।
और जमा करके रखने की इस ि या म काबन वातावरण को दू िषत करने वाली
ीनहाउस गैसों के प म नहीं, ब लकड़ी के प म जमा रहता है ।
इं सान की रहाइश वाले इलाकों म पेड़ ग े पानी और रसायनों को छान कर
अलग कर दे ते ह, जानवरों के मल-मू के बुरे असर को कम करते ह और जो पानी
सोख कर रख नहीं पाते, उस पानी को कुदरती धाराओं की श म छोड़ दे ते ह। पेड़
हवा म मौजूद नाइटोजन को नाइटे ट यौिगकों म बदलकर िम ी म जमा करके उसे
स यों और दू सरी फ़सलों के िलए ादा उपजाऊ बना दे ते ह। शहरों म हवा म
मौजूद धूल के कण पेड़ों पर ठहर जाते ह िजससे गम ादा नहीं बढ़ने पाती, साथ ही
वह काबन मोनोअॉ ाइड, स र डाइअॉ ाइड और नाइटोजन डाइ-अॉ ाइड
जैसी दू षण बढ़ाने वाली गैसों को सोख हवा को साफ़ करने म भी मददगार होते ह।
इसके अलावा, पेड़ों के साँ स लेने से और उनके धूल के कणों को रोक लेने से वायु
दू षण और तापमान म िगरावट आती है ।
अ ा हो पुनिनमाण के बाद उ राख वहाँ के िनवािसयों और तीथयाि यों के
िलए एक बेहतर थान बने। पहाड़ों की ढलानों पर सोच-समझ कर चुनी गई िक ों के
ादा से ादा पेड़ लगाए जाएँ और बड़ा होने तक उनकी दे खरे ख की जाए। अगर
पेड़ ख़तरे म होंगे, तो मानव जाित भी ख़तरे म पड़ सकती है । एक पेड़ एक िवचार की
तरह होता है । जैसे हम एक िवचार को लेकर उसी को अपनी िज़ गी बना लेते ह,
उसी के बारे म सोचते ह, उसी के सपने दे खते ह, उसी को जीते ह। हम अपने
म , मां सपेिशयों, नसों और शरीर के हरे क िह े को उसी िवचार से भर जाने द।
उसी तरह हमम से हरे क श एक पेड़ लगाए, और उसकी िहफ़ाजत करने का
बीड़ा उठाए। तािक हमारी आने वाली पीिढ़यों की िह़फाज़त करने और उनकी दे खरे ख
के िलए पेड़ मौजूद हों।
नारी सश करण की ओर
ई र सृि की स ूणता का तीक
एक छोटे शहर से बड़े शहर म रहने और काम करने आई लड़की
. के प म मुझे लगता था िक मेरे जीवन म स ावनाएँ ही
स ावनाएँ भरी पड़ी थी ं। समाज ने मुझपर िजस तरह के तौर-
तरीक ़ े थोपने चाहे , मने उसे ीकार नही ं िकया। यह सफ़र आसान नही ं
था। मुझे तरह-तरह से परे शान िकया गया, और इस सब का मने सामना
िकया। लेिकन इस सब से गुज़रने के बावजूद मने हार नही ं मानी। मने
यही सीखा िक िज़ गी म ऐसा ब त कुछ है िजसे हािसल करने के िलए
अगर लड़ाई भी लड़नी पड़े तो भी कोई बात नही ं, और म उनके िलए
लड़ती र ँ गी।
भारत के दो पहलू ह िजनसे म रोज़ाना -ब- होती ँ — पहला,
वह ख़तरों से भरा भारत िजसम ऊँच-नीच और िलंगभेद के आधार पर
ज़बरद भेदभाव है , िजसकी बानगी हम ख़बरों म दे खने को िमलती
है । जहाँ लड़िकयों को, सड़कों पर मँडराते उ अपनी हवस का िशकार
बनाने को तैयार द रं दों से, ख़ुद को बचाना सीखना पड़ता है । दू सरा, वह
़ बसूरत भारत जो बचपन से मेरी यादों म बसा है । म अपने ब ों की
खू
परव रश यहाँ महानगर म करना चाहती ँ , लेिकन उन मू ों के साथ
िजन पर मेरे माता-िपता ने छोटे शहर म हम बड़ा िकया। ा यह
मुमिकन है ?
सर, ा आप बताएँ गे िक भारतीय मिहलाओं के िलए िकस तरह के
लोगों का अनुकरण करना ठीक होगा?

िज़ गी हमारी िह त के अनुपात म फैलती या िसकुड़ती चली जाती है ।


—अनाइस िनन
रे क गितशील समाज के मूल म मिहला सश करण ही है । कई सिदयों तक हमारे
ह दे श म मिहलाओं और उनकी ज़ रतों पर ठीक से ान ही नहीं िदया गया,
ब सच तो यह है िक उनका ितर ार ही होता रहा। भारत की कई
िह तवाली मिहलाओं ने अपना सारा जीवन भारतीय मिहलाओं की उ ित के िलए
समिपत कर िदया तािक आने वाली पीिढ़यों की मिहलाएँ खु ़ द को अ ाय और
अ ाचार के ू र चंगुल से छु ड़ा पाएँ और िश ा, रोज़गार और राजनीित की बुल यों
को छू सक।
1950 म भारत के संिवधान म मिहलाओं के िलए बराबरी के अिधकार और
स ावनाओं को एक ा कारी प रवतन के प म गढ़ा गया। प रणाम प,
आज त भारत म मिहलाओं की थित अपे ाकृत बेहतर ई है । कुछ सम ाएँ
िजनसे मिहलाएँ सिदयों से िघरी रही थीं, जैसे बाल िववाह, सती था, िवधवाओं के
पुनिववाह की मनाही और बािलकाओं की िश ा के ित नकारा क रवैया जैसे चलन
से अब छु टकारा िमल चुका है ।
िव ान और ौ ोिगकी के े म ई गित, अ ी िश ा और ा सुिवधाओं
तक प ँ च बनने के साथ सामािजक-राजनैितक आ ोलनों म खुलकर िह ेदारी के
फल प मिहलाओं के ित लोगों के रवैये म और भी ादा बदलाव आया है । इन
बदलावों की वजह से मिहलाओं के मनोबल और आ स ान म बढ़ो री ई है ।
पहले से ादा बड़ी सं ा म भारतीय मिहलाएँ अब यह महसूस करती ह िक उनका
अपना एक िविश ़ िबयाँ ह, मताएँ ह, और यो ताएँ
है , आ स ान है , खू
ह। ब त सारी ऐसी मिहलाएँ जो उपल अवसरों का सदु पयोग कर पा रही ह, उ ोंने
सािबत कर िदखाया है िक वह दी गई िज़ ेदा रयों को िनभाने म पूरी तरह स म ह।
इसके बावजूद, बदलती प र थितयाँ अपने साथ नई तरह की चुनौितयाँ भी
लेकर आती ह। कुछ मायनों म, बीते समय की तुलना म आज भारतीय मिहलाओं को
दोनों ही जगह, घर का और अपने क रयर का ादा बोझ झेलना पड़ रहा है िजससे
नई तरह के दबाव और िच ाओं का सामना करना पड़ रहा है ।
आपके सवाल की ओर लौटते ए, म तीन महान मिहलाओं की कहािनयाँ आपके
साथ साझा करना चा ँ गा, िज अपना आदश बनाया जा सकता है ।
मैरी ूरी नोबेल पुर ार जीतने वाली पहली मिहला थीं। पोलड के वारसा शहर
म ज ी मैरी यानी मा रया ोदो ा भौितकिवद और रसायनशा ी थीं, जो मु
प से ां स म काम करती थीं। उ 1903 म सहज िवकरण म उनके शोध के िलए
भौितकशा का नोबेल पुर ार िदया गया। वह पे रस िव िव ालय की पहली
मिहला ोफ ़ े सर भी थीं। रे िडयोधिमता के िस ा के ितपादन के साथ िकसी त के
रे िडयो आइसोटोप अलग करने की तकनीक और दो त ों, पोलोिनयम और रे िडयम
की खोज भी उनकी उपल यों म शािमल है । रे िडयोधिमता के गुण के िलए सारी
दु िनया म योग िकया जाने वाला श रे िडयोऐ िवटी भी उ ोंने ही गढ़ा था। दु िनया
म पहली बार कसर के इलाज के िलए रे िडयोऐ व आइसोटोप इ ेमाल करने के
िलए सबसे पहले शोधकाय भी उ ीं की दे खरे ख म िकया गया।
िपता के प रवार और निनहाल, दोनों ही की धन-दौलत और ज़मीन- जायदाद इन
प रवारों की दे शभ की भावना के चलते पोलड की रा वादी ा के य की भट
चढ़ गई थी, िजससे उ िज़ गी म आगे बढ़ने की राह म किठन संघष का सामना
करना पड़ा। उ िश ा के िलए वह ां स चली गईं और वहाँ बेहद सीिमत संसाधनों म
बड़ी मु ल से िकसी तरह सिदयों के मौसम म ठं ड बदा करते ए काम चलाया
और यहाँ तक िक भूखे रहने से आई कमज़ोरी के कारण वह कई बार बेहोश भी हो
गईं।
भौितकशा म ातक की उपािध ा करने के बाद उ ोंने िपयरे ूरी से
िववाह िकया और िफर दोनों िमलकर शोधकाय म जुट गए। ूरी द ित की अपनी
अलग योगशाला तक नहीं थी और सं थान के भौितक और रसायनशा िवभाग के
बगल म एक कामचलाऊ छत के नीचे वह अपना तमाम शोधकाय िकया करते थे।
उस घुटनभरी जगह, जहाँ पहले िचिक ा िव ान के छा अपनी पढ़ाई के िलए जीव-
ज ुओं की चीरफाड़ करते थे, बरसात होने पर छत से पानी चूने लगता था। ऐसी
जगह, िविकरण की चपेट म आने के हािनकारक भावों से बेख़बर, बचाव के िकसी
इं तज़ाम के िबना वह रे िडयोधम पदाथ के साथ अपने योग करते रहे । मैरी के पित
की तो 1906 म एक दु :खद सड़क दु घटना म मृ ु हो गई, लेिकन वह प रवार चलाने
की िज़ ेदारी िनभाने के साथ अपने शोधकाय म जुटी रहीं। 1911 म, पित की मौत के
पाँ च साल बाद, रे िडयोधिमता के े म उनके काम के मह को समझते ए उ
दोबारा रसायनशा का नोबेल पुर ार िदया गया।

कुछ बड़ा घटने का इं तज़ार मत करो।


जहाँ हो, वहीं से—जो तु ारे पास है ,
उसी से शु आत करो। ऐसा करने से
तु ारे सामने बेहतरी के रा े खु ़ द–ब–
़ द खुलते चले जाएँ गे।
खु

उनके जीवन से आज के भारत की मिहलाओं को ा संदेश िमलता है ? कुछ


बड़ा घटने का इं तज़ार मत करो। जहाँ हो, वहीं से—जो तु ारे पास है , उसी से
शु आत करो—और ऐसा करने से तु ारे सामने बेहतरी के रा े खु ़ द-ब-खु
़ द खुलते
चले जाएँ गे। कहीं से शु आत तो करो—जो हम करना चाहते ह उसके आधार पर
अपनी कोई छिव नहीं बनाई जा सकती। आप इस इं तज़ार म बैठे तो नहीं रह सकते
िक लोग आपके सुनहरे सपने को पूरा करके आपको भट कर द। खु ़ द आगे बढ़कर
अपनी ख़ाितर अपने सपने को साकार करना होगा। ितभा हर िकसी म होती है ।
लेिकन अपनी उस ितभा को उसकी मंिज़ल तक प ँ चाने का ज बा वह दु लभ चीज़
है जो हर िकसी के पास नहीं होती।
कुछ समय पहले म एक िकताब पढ़ रहा था िजसका शीषक था,एवरी डे ेटनेस।
म उस िकताब म से एक कहानी आपके साथ साझा करना चा ँ गा िजससे एक मिहला
की अप रिमत श का पता चलता है । मे को के ित ाना के ला मीज़ा कारागार म
दं गा भड़क गया था। िसफ़ छह सौ लोगों के िलए बनाए गए ां गण म प ीस हज़ार
ब यों को ठूंस िदया गया था। वह गु े से टू टी बोतलों से पुिलस पर हमले कर रहे थे
और जवाब म पुिलस गोिलयाँ चला रही थी। इस भीषण लड़ाई के बीच, अचानक एक
अड़सठ साल की पाँ च फुट छह इं च क़द वाली कमज़ोर सी मिहला शा बहाल करने
की माँ ग की मु ा म हाथ फैलाए भीड़ के बीच जा प ँ चीं। गोिलयों की बौछार को
नज़रअ ाज़ करते ए वह शा खड़ी रहीं और लोगों से शा होने के िलए गुहार
लगाती रहीं। और िव ास नहीं होता, लेिकन सारे लोग शा हो गए! दु िनया म और
कोई ऐसा नहीं कर सकता था, लेिकन उ ोंने कर िदखाया। उनका नाम है िस र
ए ोिनया।
एक बेहद सफ़ल वसायी के घर ज ी िस र ऐ ोिनया का बचपन का नाम
मैरी ाक था, और उनकी परव रश अमे रका म कैिलफ़ॉिनया के बेवरली िह म
ख़ास रईसों के इलाके म ई थी। रईसी ठाठ-बाट की िज़ गी के बावजूद वह लोगों के
क के ित संवेदनशील थीं और अपने आसपास के ज़ रतम लोगों का ान
रखती थीं। कम उ म शादी हो गई। दू सरी शादी भी ई। दोनों शािदयों से ए सात
ब ों की परव रश की। अपने िदवंगत िपता का कारोबार सँभालते ए, वह िसफ़
प रवार चलाने से स ु नहीं ईं, ब बढ़-चढ़ कर परोपकार के कामों म िह ा
लेती रहीं। प ीस साल प रवार चलाने के बाद जब उनके ादातर ब े घर से दू र
चले गए, तब उ ोंने अपनी िज़ गी म ज़बरद बदलाव िकया। उ ोंने अपना घर
और तमाम चीज़ बेच दीं और ित ाना के ला मीज़ा ब ीगृह के कैिदयों की सेवा म जुट
गईं।
कैिदयों ने उनकी बात ों सुनी? इसिलए सुनी ोंिक वह अपनी इ ा से
दिसयों साल से ब यों की सेवा म लगी थीं। कैिदयों की ख़ाितर अपने सारे सुखों को
ितलां जिल दे कर वह ह ारों, चोरों और मादक पदाथ का धंधा करने वालों के बीच रह
रही थीं, और उ अपने बेटे बताती थीं। वह उनकी ज़ रतों का ान रखती थीं,
उनके िलए दवाओं का इं तज़ाम करके उ बाँ टतीं, मरने पर दफ़नाने से पहले अ म
ान करातीं और आ ह ा करने की सोचने वालों को समझा-बुझा कर शा करती
थीं। ेम और क णा से भरी इस िन ाम सेवा के कारण ही कैिदयों के मन म मैरी
ाक के ित आदर के भाव पनपे थे और 1994 की उस ख़ास रात भी कैिदयों ने
उनकी बात मानी, जबिक उस रात कैिदयों का वह बलवा ादा भयावह प ले
सकता था।

अगर मिहलाएँ पु षों की नकल करके


ही सफल हो सकती है , तो मुझे लगता
है िक यह बड़े नुकसान की बात है ।
उ े िसफ़ सफल होना नहीं होना
चािहए, ब अपने नारी को संजो
कर रखते ए इस तरह सफल होना
चािहए िक नारी की ग रमा बढ़े और
समाज पर उसका असर पड़े ।

मैरी ाक के जीवन से आज की मिहला को ा संदेश िमलता है ? इस बात को


जानो िक तुम कौन हो, अपने प रवार और उस पु ष या ी से अलग हटकर िजसके
साथ तुमने र ा गढ़ा है । पता करो िक इस दु िनया के िलए तुम कौन हो, तु ा
़ श रहने के िलए अपने आप म खु
करना चािहए, खु ़ शी को महसूस करने के िलए। मेरा
मानना है िक जीवन म यही सबसे ज़ री चीज़ है । अ के सार त को खोज
िनकालो, ोंिक उससे तुम जो चाहो हािसल कर सकते हो। तु िकसी दू सरे की
ि तीय ेणी की नकल बनने के बजाय खु ़ द अपना ही थम ेणी का ा प होना
चािहए।
अगर मिहलाएँ पु षों की नकल करके ही सफल हो सकती ह, तो मुझे लगता है
िक यह सफलता नहीं, बड़े नुकसान की बात है । एक मिहला का उ े िसफ़ सफल
होना नहीं होना चािहए, ब अपने नारी को संजो कर रखते ए इस तरह सफल
होना चािहए िक नारी की ग रमा बढ़े और समाज पर उसका असर पड़े ।
8 जून 2012 को म पुदु ेरी के साधन-िवहीन लोगों की उ ित और उटौरन के
िलए काम करने वाली गैर-सरकारी सं था, ला वॉलो ा रयात (Le Voluntariat) के
ण जयंती समारोह म िह ा लेने पुदु ेरी गया। जब म ला वॉलो ा रयात की
सं थापक मैडम मैिडलीन द क (Madeleine de Blic) से िमला, तो मुझे उनम
अद साहस का मूत प िदखाई िदया। युवा मैिडलीन, जो तब मैिडलीन हरमन के
नाम से जानी जाती थीं, 1962 म सबसे गए-बीते गरीबों के िलए अपना एक साल
समिपत करने बे यम से भारत आईं। शु आत म उ ोंने ूनी िस स हॉ टल
के सूित िवभाग म काम िकया, जहाँ उ ोंने एक मु ीिनक भी चलाया। िफर
उ ोंने गरीब और ज़ रतम लोगों की मदद के िलए ला वॉलो ा रयात की थापना
की। उ ोंने आरनू द क से िववाह िकया, जो च लीसए (French Lycée) म काम
करने के िलए आए, और िफर वापस नहीं गए। उनके दो अपने ब े ए, और दो
उ ोंने लावा रस ब ों को गोद िलया।

तु िकसी दू सरे की ि तीय ेणी की


नकल बनने के बजाय ख़ुद अपना ही
थम ेणी का ा प होना चािहए।
अपने अ के सार त को खोज
िनकालो, ोंिक उससे तुम जो चाहो
हािसल कर सकते हो।

िपछले पाँ च दशकों के दौरान, इस िमशन ने ब त सारे ब ों को िश ा से सश


बनाया, बेसहारा औरतों और कोढ़ के मरीज़ों के पुनवास का काम िकया, और
आसपास के इलाके म जैिवक खेती को बढ़ावा िदया। ला वॉलो ा रयात की ओर से
छोटे ब ों की दे खरे ख के िलए आँ गनवाड़ी और इलाज के िलए ा के की
व था है , अनेक सां -िव ालय ह जहाँ सं था की ओर से 1600 से ादा छा ों के
भोजन की व था है । सं था ने लगभग 1300 ब ों को संर ण िदया आ है , और
इसके िलए क़रीब 200 लोग काम करते ह।
जब मने ला वॉलो ा रयात की सेवाओं पर गौर िकया, तो मुझे वह सीख याद हो
आयी जो महा ा गाँ धी की माँ ने उ तब दी थी जब वह नौ साल के थे। उ ोंने कहा
था—‘बेटा, अगर तुम अपने पूरे जीवन म िकसी की जान बचा सकते हो, या िकसी की
िज़ गी बेहतर बना सकते हो, तो समझो िक इं सान के प म तु ारा ज और
तु ारा जीवन सफल है । तु सवश मान ई र का वरदान िमल गया।’
मैडम मैिडलीन ने िपछले पाँ च दशकों म हज़ारों लोगों की जान बचाई है और
उनकी इस अि तीय सेवा के िलए हम सब उनके आभारी ह। लोग ार से उ
‘अ ा! मैिडलीन अ ा!’ कहते ह, और स दयता के यही बोल वहाँ गूँजा करते ह।
जब म उनसे िमला तो मुझे उनम मदर टे रेसा का सेवाभाव और ोरस नाइिटं गेल का
दयाभाव दे खने को िमला।
इन तीन कहािनयों से हम ा संदेश िमलता है ? वा व म ी पर आकर ई र
की सृि अपनी स ूणता को ा करती है । सृजन करने, पालन-पोषण और प रवतन
की श उसी म िनिहत है ।
इ ीसवीं शता ी की उभरती ई ी को िदल, िदमाग, शरीर और आ ा से
सश होना चािहए। श और उ ाह, साम और संवेदना का साथ आव क है ।
उभर कर सामने आती ी आगे बढ़ती
िसर उठाकर नज़र सीधी मंिज़ल पर है
मयादा उसकी अपनी उसे िकसी का
नहीं डर है गगनचु ी िजसका मान
और आधार बने ान सुसं ृ त, न िडग
राह से म ाग बोध की चाह से जीवन
के आन का ागत उनके िवशारद
मन का कम, ऐसी है स ूण ी और है
ऐसा उसका धम।
भेदभाव का िशकंजा
सर, एक तरफ़ हम दे ख रहे ह िक लड़िकयाँ हर तरह के पेशे अपना
. रही ह, द रों म ऊँचे पदों पर जा प ँ ची ह, इं जीिनयर, डॉ र,
मैनेजर, राजनेता, वगै़रह बन रही ह। लेिकन हम यह भी दे ख रहे ह
िक इसके साथ ही मिहलाओं के ित अपराधों का ाफ़ भी लगातार
ऊपर को जा रहा है । साफ़-साफ़ नज़र आने वाले इस िवरोधाभास की
आप िकस तरह ा ा करगे?
म िद ी म रहती ँ जहाँ दू सरे शहरों के मुक़ाबले मोटे तौर पर
मिहलाओं को ादा आज़ादी हािसल है । लेिकन इसम मिहलाओं और
पु षों के बीच बराबरी की बात की स ी त ीर नही ं िमलती। लड़िकयाँ
जहाँ काम करती ह वहाँ उ अपने पु ष सहयोिगयों के बराबर स ान
नही ं िमलता। ी घर के बाहर चाहे जो कुछ हािसल कर ले, घर के
अ र मोटे तौर पर एक गुलाम जैसी रहती है । जब घर के अ र और
बाहर ी की वा िवक थित यही है , तो इससे ज़ािहर होता है िक ी
िश ा और कमाई के मामले म िकतनी भी आज़ादी ों न हािसल कर
ले, पु षों के मुक़ाबले उसका दजा दू र-दू र तक बराबरी का नही ं हो
सकता।
िनजी तौर पर मुझे लगता है िक समाज म मिहलाओं के उ ान के
साथ ही उनके ित अपराध भी बढ़े ह, और इनके बीच जो र ा है उसे
समझना भी ादा मु ल नही ं है । ज़ािहर है , िक पु ष अपनी
अहिमयत को कम नही ं होने दे सकते और न ही मिहलाओं को
साझेदारी के लायक मानते ह। पु ष ही ह जो मिहलाओं की उ ित म
कावट पैदा करते ह, और इसीिलए, इससे पहले िक मिहलाएँ ऐसी
ऊँचाइयों को छूएं जहाँ वह सारी चुनौितयों के पार प ँ च जाएँ , पु ष के
अ र का है वान उ कुचल डालना चाहता है ।
सर, आपको ा लगता है , ऐसी अजीब थित ों है , और हम
इसे ठीक करने के िलए ा कर सकते ह?
अपने आप और िकसी दू सरे के बीच फ़क समझना एक म है । यों को कमतर
समझना तो म का सबसे गया बीता प है ।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

रत म मिहलाओं की थित म कई उतार-चढ़ाव आते रहे ह। जहाँ ाचीन


भ◌ा काल म पु ष और ी दोनों का बराबर का दजा होता था वहीं म काल म
यों की समाज म थित दयनीय हो गई। इसके बाद कई समाज-सुधारकों
ने यों को बराबरी का दजा िदलवाने के िलए भरसक यास िकए। हालाँ िक भारत
के संिवधान म पु षों और मिहलाओं के िलए बराबरी के अिधकार का ावधान है ,
लेिकन वा िवकता यह है िक िलंगभेद के आधार पर आज भी भारी असमानता है ।
मिहलाओं के ित िहं सा इस िलंगभेद आधा रत भेदभाव का सबसे चिलत प है
और ब त ापक है । इं िडया टु डे (16 जून, 2011 अंक) म कािशत िद थॉमसन
रॉयटस फ़ाउं डेशन ारा िकए गए एक िव ापी सव ण के अनुसार भारत ‘िव म
मिहलाओं के िलए चौथा सबसे ख़तरनाक दे श’ और जी-20 दे शों म मिहलाओं के िलए
सबसे ख़तरनाक जगह है । इस सव ण म दु िनया भर के िवशेष ों से ा स ी
ख़तरों, यौन िहं सा, अलिगक िहं सा, पारं प रक- सां ृ ितक या धम-सं दाय से जुड़ी
हािनकारक थाएँ , आिथक संसाधनों तक प ँ च न होना और दे ह- ापार जैसे छह
िविश मानद ों के आधार पर मिहलाओं के िलए स ािवत ख़तरों को आधार
मानकर िविभ दे शों को एक म म रखने को कहा गया था। इसके नतीजों म, एक
दे श के प म हम भले ही अपनी तर ी पर गव से चचा करते रहते ह, उसके
बावजूद हमारी जो छिव उभरती है वह बेहद िवचिलत करने वाली है ोंिक आज भी
हमारी आधी आबादी को जीने के मौिलक अिधकार समेत, अपने मूलभूत अिधकार
तक नहीं हािसल ह।
इस सव ण म यह त भी उभरकर सामने आता है िक िश ा और ा
स ी सुिवधाओं तक प ँ च न होना, अगर आमतौर पर सुिख़यों म जगह पाने वाले
बला ार और ह ा जैसे ख़तरों से ादा ग ीर नहीं ह, तो उनसे कम भी नहीं ह।
मिहलाओं के िलए सबसे ख़तरनाक माने गए पाँ च दे शों म मिहलाओं को जानबूझ कर
़ द अपनी िज़ गी
मूलभूत मानवािधकारों से वंिचत रखा जाता है । इन दे शों म अब भी खु
से जुड़े मामलों को लेकर भी मिहलाओं की मज़ ब त कम चलती है । िव ीय, ज़मीन-
जायदाद, उ रािधकार, िश ा, रोज़गार, ाय, ा और पोषण स ी मु े अब
भी उनकी प ँ च से बाहर ह।
दु िनया भर के दे शों म भारत को
मिहलाओं के िलए चौथा सबसे
ख़तरनाक दे श, और जी–20 दे शों म
इसे मिहलाओं के िलए सबसे ख़तरनाक
जगह माना गया है ।

इस मु े पर मने कई िवशेष ों के साथ चचा की, और दो मुख कारण उभर कर


सामने आए—पहला, यह त िक भारत म लड़िकयों को लड़कों के मुक़ाबले कमतर
आं का जाता है । मू ां कन की इस िवकृित के प रणाम प समाज म कई तरह की
िवषमताएँ पैदा होती ह। मनचाहे िलंग का ूण न होने पर अंधाधुंध गभपात के साथ,
ा सुिवधाओं और िश ा के े म भी ब त भेदभाव है ।
िमलीभगत की सं ृ ित का बोलबाला होना दू सरी सम ा है । जो लोग मिहलाओं
के साथ िहं सा क रवैया अपनाते ह उनका ढं ग से खुलासा नहीं होता और न ही उ
कानून से सज़ा िमलती है । ऐसे असं मामले ह िजनम पुिलस अिधका रयों ने
बला ार की िशकार मिहलाओं पर अपना मुँह ब रखने और मुक मेबाज़ी के
च र म पड़ने से बचने के िलए बला ारी से िववाह करने तक के िलए दबाव
बनाया।
लेिकन िदस र 2012 के िनभया बला ार कां ड के बाद बड़े पैमाने पर फूटा
गु ा इस बात का इशारा लगता है िक बदलाव की स ावना है , िजनसे मिहलाओं के
िलए ब त कुछ बदल जाएगा। िसफ़ क़ानून होना ही काफ़ी नहीं होता। कानून
असरदार तब होता है जब उसे लागू करने के िलए भी कारगर इं तज़ाम हों। इस बात के
संकेत िमल रहे ह िक ऐसा हो सकता है ।

िश ा और ा स ी सुिवधाओं
तक प ँ च न होना, अगर आमतौर पर
सुिख़यों म जगह पाने वाले बला ार
और ह ा जैसे ख़तरों से ादा ग ीर
नहीं है , तो उनसे कम भी नहीं है ।

न े के दशक की शु आत से जारी भारत के आिथक उदारीकरण के िसलिसले


की बदौलत िपछले पाँ च सालों म रा के िवकास म जो दोहरे अंकों म वृ दज ई है ,
उससे चीन और जापान के बाद भारत एिशया की तीसरी सबसे बड़ी अथ व था के
प म उभरा है । संगिठत े के तेज़ी से उभरने और लड़िकयों के िलए उ िश ा
की उपल ता का असर है िक अब पहले से ादा मिहलाएँ क िनयों म
ावसाियक पदों तक प ँ च रही ह। लेिकन अपनी ावसाियक सफलता के बावजूद
कई भारतीय घरों म ाह कर प ँ चने वाली मिहला से ही ब ों की दे खभाल के साथ
खाना बनाने और सफ़ाई जैसे काम करने की भी उ ीद की जाती है । अ र उनके
प रवार वाले उनके कामकाज को एक क रयर के तौर पर न लेकर उसे िसफ़
आमदनी का ज़ रया भर समझते ह। इस तरह के दबाव की वजह से एक ऐसी सोच
बन गई है िक कामकाजी मिहलाएँ अपने काम के ित कम समिपत होती ह और
आिख़रकार अपने घर-प रवार के दबाव म काम के साथ समझौता कर लेती ह।

िलंगभेद आधा रत भेदभाव का सबसे


चिलत प है मिहलाओं के ित
िहं सा और इसके ब त से मामले सामने
आते ह।

मुझे लगता है िक समाज उनके क रयर की राह म जो कावट पैदा करता है ,


उनसे िनपटने के िलए काम के ब न के तरीकों म और िविवधता लाने और स म
मिहलाओं को समाज की पैदा की ई अड़चनों से िनपटने के िलए ो ािहत करने की
ज़ रत है ।

िश ा मिहला सश करण की कुंजी


है , और िश ा िसफ़ मिहलाओं के िलए
ही नहीं, ब उनके िलए भी ज़ री है

जो खुद को मिहलाओं से बेहतर
समझते ह।

यही वह समय है जब हम ढ़ता से ऐसे क़दम उठाने चािहए िजनसे नारी और


पु ष वा व म बराबरी की थित म आ सक। िपछले दशक म, कम से कम आधा
दजन बार मिहला आर ण िबल लोकसभा म दा खल िकया गया लेिकन अब तक वह
कानून के प म लागू नहीं आ है । कई राजनैितक दलों ारा अपनी पाट म
मिहलाओं का ितिनिध बढ़ाने की कोिशशों के बावजूद उनकी सं ा िजतनी होनी
चािहए उस ल से ब त कम है । गत तौर पर म चाहता ँ िक संसद समेत
सभी वैधािनक िनकायों म मिहलाओं के िलए 33 फ़ीसदी आर ण होना चािहए। इससे
दे श की अगली पीढ़ी की युवा मिहलाओं का ादा आ िव ासी बनना सुिनि त हो
सकेगा। मिहलाओं म ब त स ावनाएँ ह िजनका दे श के िनमाण और िवकास की
ि या म इ ेमाल िकया जा सकता है । इसकी कुंजी िश ा म िनिहत है , और िश ा
़ द को मिहलाओं से बेहतर
िसफ़ मिहलाओं के िलए ही नहीं, उनके िलए भी है जो खु
समझते ह।
रोंगटे खड़े कर दे ने वाली स ाई
सर, भारत म िपछले कई दशकों से बेिटयों को लेकर वाद-िववाद
. होते रहे ह, लेिकन, अफ़सोस की बात है िक आज भी बेिटयों की
थित अ ी नही ं है । बेटी अथात क ा स ान हमेशा से अनचाही
औलाद रही है , िजसे अ र पैदा होते ही मार िदया जाता था। िव ान
और ौ ोिगकी के ऐसे नए तरीके ईजाद ए ह िक िजनसे अब ज
लेने से पहले ही क ा स ान की जान ली जाने लगी है । ऐसे हालात
हमारे समाज म औरत के भिव के िलए अ े नही ं ह।
मने सातव िसिवल सिवस िदवस पर िदया गया आपका ा ान
पढ़ा और सामािजक बुराइयों से िनपटने के िलए गितशील नेतृ का
िवचार मुझे पसंद आया। आपकी बातों से उ ीद ज़ र बँधती है लेिकन
िकसी भी एक पहलू म सुधार करने से इसका कोई हल नही ं िनकलेगा।
चाहे वह िश ा, रोज़गार या कानूनी अिधकार हो। हल िनकलेगा तो वह
िसफ़ सोच म बदलाव लाने से, िवशेषकर मिहलाओं के ित पु षों की
सोच और मािनसकता म। जब पु षा मिहला को शारी रक प से
कमज़ोर समझने की सोच से बाहर आकर बौ क र पर उसकी
काय मता को कम आं कना छोड़ दगे उ अपने बराबर दजा दगे तभी
ी का शोषण होना ब होगा।
मुझे यह बताएँ , सर, िक ऐसा िकस तरह िकया जा सकता है । जब तक
ऐसा नही ं होता, कोई भी िश ा, उपदे श या िनयम-क़ानून लड़की की
मदद नही ं कर सकते।

अज ी बेिटयों की जान लेना जीवन के ित पाप है । स वत: यह एक िज़ गी की


आस और दू सरी के ित िनराशा से ादा बेिदली के साथ जीवन के महा को
दरिकनार करने जैसा है ।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

भ◌ा रत म क ा ूण की ह ा कोई नई बात नहीं है , लेिकन िपछले कुछ दशकों


म इसम बड़े पैमाने पर इज़ाफ़ा आ है । यह दु :ख की बात है िक िव ान की
एक सकारा क खोज को माँ के गभ म पल रही ब यों की ह ा करने के
िलए इ ेमाल िकया जा रहा है । गभाशय के व के मा म से गभ थ िशशु की जाँ च
का िसलिसला भारत म सबसे पहले 1974 म नई िद ी के अॉल इं िडया इं ूट
ऑफ़ मेिडकल सां इसेज़ यानी अ खल भारतीय आयुिव ान सं थान म ूण की
स ािवत गड़बिड़यों का पता लगाने से शु आ था। बाद म इं िडयन काउं िसल
ऑफ़ मेिडकल रसच यानी भारतीय आयुिव ान अनुसंधान प रषद ने इस जां च पर
रोक लगा दी, लेिकन तब तक इनके बारे म लोगों को पता चल चुका था और 1979 म
पंजाब के अमृतसर म गभ थ िशशु के िलंग का पता लगाने की जाँ च करने वाला पहला
ीिनक खुल गया था। दे श भर के मिहला संगठनों ने इस नई मुसीबत पर रोक लगाने
की पुरज़ोर कोिशश की, लेिकन वह कुछ नहीं कर पा रही थीं, ोंिक 1971 के
‘मेिडकल टिमनेशन ऑफ़ ेगनसी ए ’ के तहत ूण की असामा ताओं का पता
लगाने के िलए ऐि योिसंटेिसस टे करने की इजाज़त थी। एमटीपी ए के तहत गभ
म बारहव से अ ारहव स ाह के दौरान की गई जां च म पाई गई कोई भी असामा ता
बीस स ाह तक के गभकाल तक गभपात कराने के िलए समुिचत वैधािनक आधार
थी। इस कानूनी व था के चलते गभाशय के व की जाँ च के ज़ रये दू सरी िकसी
असामा ता के बजाय ूण के िलंग का पता लगाकर गभ म ही क ाओं के सफ़ाये
का िसलिसला चल पड़ा।

संयु रा संघ का मानना है िक भारत


म हर रोज़ लगभग 2000 अज ी
क ाओं का अवैध गभपात होता है ।

भारत म क ा ूण की ह ा मा मिहला अिधकारों के हनन का मु ा न रहकर


एक पुरानी बीमारी बन चुका है । संयु रा संघ का मानना है िक भारत म हर रोज़
लगभग 2000 अज ी क ाएँ अवैध गभपात का िशकार होती ह। यह त भारत के
जनसं ा स ी आँ कड़ों म उभरकर सामने आता है , जहाँ जनगणना म यह बात भी
सामने आई है िक हर 1000 मद के मुक़ाबले औरतों की तादाद िसफ़ 940 है , यानी
एक हज़ार की जनसं ा म 60 मिहलाओं की कमी है । ादा िव ृत िव ेषण से
पता चलता है िक केरल और पुडुचेरी जैसे रा ों म िलंग अनुपात सबसे अ ा है
जबिक ह रयाणा जैसे कुछ रा ों म ी-पु ष अनुपात सबसे खराब है । यह माना जा
सकता है िक केरल म सा रता का र भारत के दू सरे तमाम रा ों से बेहतर होने
का भी ी-पु ष अनुपात से कहीं न कहीं सीधा स है ।

भारत को क ा ूण की ह ा के बढ़ते
िसलिसले को रोकने के िलए यु र
पर काम करने की ज़ रत है , अ था
इसके भाव से कई सामािजक और
जैिवक सम ाएँ पैदा होंगी।

यह दु भा पूण है िक िश ा के सार के बावजूद असुरि त क ा ूणों की ह ा


करने वालों की सोच और ू र वहार म या तो न के बराबर, या िफर िबलकुल भी
बदलाव नहीं आया है । 1994 म पहली बार स ािदत और उसके बाद तीन बार
संशोिधत आ ‘ ी-कंसे शन एं ड ी-नेटल डाय ो क टे ी ’ (PCPNDT) ए
यानी पूव-गभाधान और सव पूव िनदान तकनीक अिधिनयम 1994 भी इस सम ा
पर काबू करने म नाकाम रहा है , ब इसकी वजह से दे श भर म जगह-जगह
ाइवेट ीिनक कुकुरमु ों की तरह खुल गए जहाँ लोग मनचाहे िलंग के आधार पर
गभपात करवाने के िलए बेधड़क जाते ह। क ा ूण की ह ा के िसलिसले का
बेरोकटोक जारी रहना इस त की ओर इशारा करता है िक यह इ ीसवीं सदी के
भारत की सबसे ग ीर सम ाओं म से एक है , िजसपर ान दे ने और उससे
भावशाली ढं ग से िनपटने की ज़ रत है ।
अगर ऐसा नहीं िकया गया तो इसके भाव से कई सामािजक और जैिवक
सम ाएँ पैदा होंगी िजनसे कोई भी नहीं बच पाएगा। आ खरकार, इस बात को
नज़रअ ाज़ नहीं िकया जा सकता िक जैसे कोई प रं दा एक डै ने से नहीं उड़ सकता,
इं सानी समाज सही अनुपात से ादा मद के क ों पर नहीं चलता रह सकता है ।
मानव जाित के िवकास और मानवता की उ ित के िलए यह ज़ री है िक ी और
पु ष के बीच टकराव की थित न बनी रहे , ब दोनों के बीच तालमेल और आपसी
सहयोग रहे , ोंिक एक-दू सरे के िबना दोनों अधूरे ह। इसिलए, मानव जाित के
भिव के िलए बेिटयों को बचाना बेहद ज़ री हो जाता है ।

जैसे कोई प रं दा एक डै ने से नहीं उड़


सकता, कुदरत का िसलिसला ी और
पु ष के स ुलन के िबना जारी रह
नहीं सकता।
यहाँ म बाइिबल की एक कथा आपके साथ साझा करना चाहता ँ । यह कथा इस
सवाल के इद-िगद घूमती है िक ई र ने ी की रचना पु ष की पसली से ही ों की,
जबिक वह उसे भी पु ष की तरह ही धूल से गढ़ सकता था? ई र ने पहली ी से
कहा, ‘‘पृ ी और आकाश की रचना के म म मने इ ा की और वह अ
म आ गए। जब मने पु ष को बनाया तो मने उसे पृ ी की िम ी से गढ़ा और उसके
नथुनों म साँ स फूँक दी। लेिकन, हे ी, मने तुझे तब बनाया जब म आदमी म जान
डाल चुका था, ोंिक तेरे नथुने बेहद कोमल ह। इसिलए मने पु ष को गहरी नींद सो
जाने िदया तािक म पूरा समय दे कर तुझे बना सकूँ िजससे िक कहीं कोई कमी न रह
जाए। मद को इसिलए सुलाया तािक वह मेरी सृजनशीलता म कोई अड़चन न पैदा कर
सके। मने तुझे एक ही ह ी से गढ़ा। मने वह ह ी चुनी जो आदमी की जान बचाती है ।
मने पसली को चुना जो िक उसके िदल और फेफड़ों को सुरि त रखती है और उसे
सहारा दे ती है , और यही तेरा काम है ।’’
‘‘इस एक ह ी से मने तुझे आकार िदया, तुझे गढ़ा। मने तुझे बड़ी अ ी तरह से
और बड़ी खू ़ बसूरती से बनाया, मज़बूत लेिकन सुकुमार और नाज़ुक भी। आदमी के
सबसे नाज़ुक अंग, उसके िदल का बचाव तू करती है । उसका िदल उसके अ
का के िब दु है । उसके फेफड़ों म भरती है जीवन की साँ स। पसिलयों से बना उसकी
छाती का िपंजर िदल को कोई नुकसान प ँ चने से पहले खु़ द टू ट जाएगा। तू आदमी के
िलए उसी तरह मददगार बनेगी जैसे शरीर के िलए पसिलयों का िपंजर।’’

मानव जाित के िवकास और मानवता


की उ ित के िलए ज़ री है िक ी
और पु ष के बीच टकराव नहीं,
आपसी तालमेल और सहयोग रहे ।

‘‘तुझे उसके पैरों से नहीं बनाया गया, िजससे तुझे उसके पैरों तले न रहना पड़े ,
और न ही तुझे उसके िसर से िलया गया जो तू उसके ऊपर रहे । तुझे उसके एक ओर
से िलया गया है , तािक तू उसके साथ खड़ी हो, और वह तुझे अपने िबलकुल क़रीब
और बराबर म रखे। तू मेरा मुक ल फ़ र ा है । तू मेरी ारी सी न ीं ब ी है । तू
बड़ी होकर एक ब त ही शानदार औरत बन गई है , और जब म तेरे िदल म अ ाइयाँ
दे खता ँ तो मेरी आँ ख गव से भर जाती ह। तेरी आँ ख—इ बदलने मत दे ना। तेरे
होंठ—िकतने ारे लगते ह जब दु आ करते व उनके बीच ज़रा सी जगह बन जाती
है ।’’
‘‘तेरी नाक की बनावट िकतनी दोषरिहत है । तेरे हाथ िकतने कोमल ह। जब तू
ब त गहरी नींद सोयी ई थी, तब मने तेरे चेहरे को ार से सहलाया। तेरे िदल को
अपने िदल के ब त क़रीब रखा। िजस िकसी म भी जान है और जो कोई साँ स लेता है ,
उनम से तू सबसे ादा मेरे जैसी है ।’’
‘‘बेचैनी भरे िदन म आदम के साथ था िफर भी उसका अकेलापन नहीं गया। वह
न मुझे दे ख सका न छू सका। उसे िसफ़ मेरी मौज़ूदगी का एहसास भर आ। इसिलए
आदम के साथ म जो भी कुछ साझा करना चाहता था, वह सब मने तेरे प म ढाल
िदया। मेरी पिव ता, मेरी श , मेरा ेम, मेरी सुर ा और सहारा। तू ख़ास है , ोंिक
तू मेरा ही िह ा है , मेरा िव ार है ।’’
‘‘पु ष म मेरी छिव अिभ होती है , ी म मेरे भावों का ितिनिध होता है ।
दोनों िमलकर, तुम ई र की स ूणता की छिव हो।’’
िफर ई र ने आिद पु ष को आदे श िदया—‘‘ ी के साथ अ ा वहार करो।
उसका आदर करो, ोंिक वह कोमल है । उसे तकलीफ़ प ँ चाओगे तो मुझे तकलीफ़
होगी। तुम उसके साथ जैसा वहार करोगे, समझ लो वह तुम मेरे साथ ही कर रहे
होगे। उसे कुचलकर, तुम अपने ही िदल को नुकसान प ँ चाओगे, अपने परमिपता के
िदल को क प ँ चाओगे।’’
‘‘ई र ने ी और पु ष को बराबर बनाया है । िकसी ी का अनादर करना या
उसे नुकसान प ँ चाना ई र का अनादर करने जैसा है ।’’
ज त है माँ के क़दमों म
मु राती माँ के प रवार पर आपका ा ान ‘ ाइिलंग मदर
. फ़ ै िमली’ सुनते समय मेरी आँ खों से आं सू छलक पड़े । मेरी माँ छाती
के कसर की िशकार हो गई थी ं िजसका समय रहते पता नही ं चला।
वह हाल ही म चल बसी ं। ज़ािहर है , मुझे उनकी कमी अखरती है , लेिकन
उनके जाने से मुझे एक अहम एहसास आ है जो म आपके साथ साझा
करना चाहता ँ ।
मेरी ही तरह ादातर पु ष इस बात की ओर ान िदए िबना ही
बड़े आराम से सारी िज़ गी गुज़ार दे ते है िक हमारी माँएँ िदन– रात
ब े पालने, घर की दे खभाल और यहाँ तक िक इस सब के बीच िकसी
तरह अपने क रयर का ान रखने जैसे तमाम कामों म उलझी रहती
ह। जबिक इस बीच हम म से ादातर पु ष अपनी पु ष– धान
सां ृ ितक पर राओं और रीितयों की िवरासत और िवशेषािधकार का
सुख भोग रहे होते ह। अगर हम माँओ ं के रोज़ाना के कामकाज और
िज़ ेदा रयों पर ग ीरता से ान द तो हम पाएँ गे िक िपताओं के
मुक़ाबले उन पर तरह–तरह की व ब त ादा िज़ ेदा रयाँ ह,
ख़ासतौर से तब जब ब ों की परव रश से जुड़े कत ों और चुनौितयों
की बात आती है , िजसकी िक िकसी और चीज़ से तुलना ही नही ं की जा
सकती। पु ष सोचते ह िक िपता की भूिमका िस ़ फ भरण–पोषण करने
वाले की है , और वह लगातार िपता की इसी भूिमका के साथ जूझते रहते
ह।
िजनके ब े छोटे होते ह, ऐसी िववािहत मिहलाएँ ादा ल े
समय काम करती ह, ितिदन चौदह से सोलह घंटे तक। जबिक
शादीशुदा मद आठ से दस घंटे से ादा काम नही ं करते। और उन घरों
म जहाँ रोज़ी-रोटी कमाने की िज़ ेदारी भी मिहलाओं की है , उन पर
पड़ने वाले बोझ की क ना भी नही ं की जा सकती।
सर, जब म अपने समाज म कामकाजी मिहलाओं को सताए जाने
की ख़बर पढ़ता ँ , तो मेरा ख़ून खौलता है । वह पु ष जो उनके साथ
बुरा बताव करते ह, उ अपनी बुरी नीयत का िशकार बनाने की
कोिशश करते ह, वे यह कैसे भूल जाते ह िक उ इस दु िनया म लाने
वाली भी एक औरत ही है । म आपसे गुज़ा रश करता ँ िक मुझे यह
बताएँ िक म अपने समाज को मिहलाओं के िलए सुरि त बनाने के िलए
ा कर सकता ँ ?

मने अब तक िजतनी भी मिहलाओं को दे खा, उनम मेरी माँ सबसे सु र थीं। म जो


कुछ भी ँ अपनी माँ की बदौलत ँ । अपने जीवन म िमली सारी सफलता का ेय म
उस नैितक, बौ क और शारी रक िश ा को दे ता ँ , जो मुझे उनसे िमली।
—जॉज वॉिशंगटन

ष धान सां ृ ितक मा ताओं के बारे म अपकी सोच से म भी इि फ़ाक


प◌ु रखता ँ , जो िवकिसत दे शों म अपना औिच खोती जा रही ह। लेिकन दु भा
से हमारा समाज अब भी उनम फँसा है । यह तो तब है जब भारत के संिवधान
के अनुसार मिहलाओं को बराबरी का दजा उनके मौिलक अिधकारों म से एक है ।
इसके बावजूद, यह सच िक मिहलाएँ , यानी ‘इं सान की आधी आबादी’ को िजस नज़र
से दे खा जाता है , उसके साथ जैसा बताव िकया जाता है , वह बताता है िक इं सानी
समाजों म औरत को कमतर आँ का जाता है । कम से कम यह भेदभावपूण तो है ही,
और इसका असर बढ़ने से हमारा वजूद ही ख़तरे म पड़ सकता है ।
इस पु ष धान व था म, जो समाज के हर र पर सोच और वहार पर
हावी है , जीवनदाियनी, जीवनर क, पालक- पोषक, संवेदनशील, क णामयी, िमल-
बाँ टकर चलने वाली, ी-श की गहरी- घनी ऊजा की जानबूझ कर िनर र उपे ा
की गई, अनादर िकया गया है , उसपर चोट की गई है , अपमािनत और ितर ृ त िकया
गया है , उ ीिड़त िकया गया है , हवस का िशकार बनाया गया और उसकी ह ा की
गई है । अब समय आ गया है जब ेम और क णा जैसे उन भावों की क़ीमत समझी
जाए, जो िमल-बाँ ट कर, दू सरे का ान रखते ए शा पूण ढं ग से जीने को े रत
करते ह।

ी वा व म ई र की रचना का
स ूण प है , और ज दे ने, पालने
और हर तरह से बदल डालने की
श भी उसी के पास है ।
हाल ही म मुझे िकसी अ ात किव की एक किवता ‘ज वंस’ पढ़ने को िमली,
िजसका िह ी पा र ‘िसफ़ एक’ यह है —

एक गीत जान डाल सकता है पल म


एक फूल जगाए उनींदे आँ चल म
होवे शु एक पेड़ से िवशाल व दे श
ला सकता है एक पंछी वस का संदेश

दो ी का बीज बने इक ह ी मु ान
एक बार िमल दो हाथ तो आए नयी जान
भटक नािवक जब भी, राह िदखाए
िसतारा आकर िसमटे एक श म परम ल हमारा

सरकार बदल सकता है एक मतदाता का मन


एक िकरण पुंज कर डाले पूरा कमरा रौशन
जले एक शमा िमट जाए अंिधयारे का नाम
करे एक ठहाका उदासी का काम तमाम

एक क़दम से ही शु होता है हर सफ़र


हो ाथना पूरी एक श से शु होकर
एक आशा भर दे गी मन म जोश अथाह
एक श बताए िकसको िकतनी परवाह

एक बोल म हो सकती है बात गूढ़-ग ीर


जान ही लेता है सच को, एक दय अधीर।
एक िज़ गी से पड़ सकता है फ़क भारी
और, हो सकता है वह िज़ गी हो तु ारी!

जैसे ‘एक िज़ गी से फ़क पड़ सकता है ,’ इसिलए अपनी माँ की अहिमयत का


एहसास कर पाना आपके जीवन म वह िब दु बन सकता है जहाँ से आगे चलकर आप
उन सभी माँ ओं की िज़ गी म बदलाव ला सकते ह जो आपको अपने दो ों,
र ेदारों, पड़ोिसयों और सहकिमयों के घरों म नज़र आती ह। इस एहसास को अपने
इद-िगद के तमाम लोगों के साथ साझा कर और इसकी छिव को अपने वहार की
श म सामने आने द। जब हम म से हरे क बदलाव म भागीदार होता है , िसफ़ तभी
हम समाज को बदल सकते ह, ोंिक समाज और कुछ नहीं यों का समूह भर
है । अगर ेक बदल जाए तो समाज भी बदल जाएगा।
तु ारी ई-मेल पढ़ते ए मुझे दू सरे िव यु के वे िदन याद आ रहे ह जब म दस
साल का लड़का था, और रामे रम् म अपने प रवार के साथ रह रहा था। खाने की
ादातर चीज़ों और रोज़मरा के इ ेमाल के दू सरे सामान की कमी पड़ गई थी।
हमारे बड़े से प रवार म—पाँ च बेटे और पाँ च बेिटयाँ थीं, िजनम से तीन के साथ उनके
अपने प रवार भी थे। अपने पूरे बचपन के दौरान मने हमेशा अपने घर म एक बार म
कम से कम तीन पालने ज़ र दे खे। मेरी दादी और मेरी माँ हमारे प रवार के तमाम
सद ों के इस बड़े से अमले की सारी िज़ ेदारी िनभाती थीं। मेरी माँ हर रोज़ सुबह
चार बजे से पहले जाग जाती थीं, िफर मुझे जगाती थीं, मुझे नहाने और तैयार होने म
मदद करती थीं, तब म गिणत सीखने के िलए अपने िश क ी ािमयार के पास
जाता था। वह गिणत के ब त ही अ े िश क थे, और हर साल मु म पढ़ाने के
िलए िसफ़ पाँ च ब ों को ही लेते थे, लेिकन उनकी शत थी िक छा नहा कर ही
उनकी क ा म आएँ । म साढ़े पाँ च बजे लौटता था, और तब मेरे िपता मुझे अरबी पढ़ने
के िलए ले जाने का इं तज़ार करते िमलते थे, जहाँ म नमाज़ पढ़ने और कुरान शरी़फ
की बात सीखने जाता था। उसके बाद म अपने घर से तीन िकलोमीटर दू र रामे रम्
रोड रे लवे े शन जाता था, उधर से गुज़रने वाली म ास-धनुषकोड़ी ए ेस से िगराए
गए अख़बार के बंडल उठाने के िलए।
बंडल उठाकर म रामे रम् म यहाँ -वहाँ अख़बार डालता था। अख़बार डालने के
बाद म आठ बजे तक घर आ जाता था, और तब मेरी माँ मुझे ना ा दे ती थीं, घर म
बना मामूली सा ना ा, लेिकन मुझे दू सरे भाई-बहनों के मुक़ाबले कुछ ादा दे ती थीं,
ोंिक म पढ़ाई और काम दोनों साथ-साथ कर रहा था। ू ल के बाद शाम को म
िफर िनकल पड़ता था रामे रम् म अपने उन ाहकों से पैसे वसूलने िजनके यहाँ म
पेपर प ँ चाता था।

माँ की अहिमयत का एहसास कर पाना


आपके जीवन म वह िब दु बन सकता
है जहाँ से आगे चलकर आप उन सभी
माँ ओं की िज़ गी म बदलाव ला सकते
ह िज आप अपने आसपास पाते ह।
इस एहसास को अपने वहार म
उतार। जब हम म से हरे क बदलाव म
भागीदार होगा, िसफ़ तभी हम समाज
को बदल सकते ह, ोंिक समाज और
कुछ नहीं यों का समूह भर ही तो
है ।

एक िदन, हम सब भाई-बहन बैठे खा रहे थे, और माँ मुझे एक के बाद एक


चपाती दे ती चली जा रही थीं। जब म खा चुका तो मेरे बड़े भाई ने मुझे एक तरफ़
बुलाया और डां टा— ‘‘कलाम, तु पता है िक ा हो रहा था? तुम चपाती पर चपाती
खाते चले जा रहे थे, और माँ तु एक के बाद एक दे ती चली जा रही थीं। उ ोंने अपने
िह े की सारी रोिटयाँ भी तु दे डालीं। िफलहाल, ब त बुरा व चल रहा है हमारे
घर का। समझदार बेटे बनो और माँ को भूखा न रखो।’’ इतना सुनना था िक म काँ पने
लगा, ख़ुद पर काबू नहीं रख पा रहा था, म दौड़ कर माँ के पास गया और उनके गले
से लग गया।
मेरी माँ ितरानवे साल की उ तक िज़ ा रहीं। वह ार और क णा से भरी थीं,
और इस सब से बढ़कर वह दै वीय गुणों वाली मिहला थीं। मेरी माँ पाँ चों व नमाज़
पढ़ती थीं, और जब वह इबादत करती थीं तो उनके चेहरे से ऐसा ख़ुदायी नूर टपकता
था िक उ दे ख कर ही िदल को सुकून िमल जाता था और हौसला बढ़ जाता था।

अगर हम चाहते ह िक हमारी पृ ी


आबाद रहे , और मानवता के पतन के
बजाय उसका िवकास होता रहे , तो हम
िबना समय गँवाये ी-श , उसके
गुणों और उसकी सोच को समझ कर
अस ुलन हटाने की पहल करनी
होगी।

िजस तरह हम अपनी माँ को चाहना और उनका आदर करना चािहए, हम यह


भी एहसास होना चािहए िक पृ ी माँ , िजसने सारे जीवों को ज िदया है और जो हम
सब को िज़ ा रखती है , उसका इस हद तक दोहन िकया गया है िक अब हम उसके
तेज़ी से चुकते संसाधनों के भरोसे नहीं रह सकते। इसे िनर र संरि त रखने के
िस ा पर चलने के बजाय, ऐसा लगता है िक हमने हमेशा शोषण और दोहन के
पु षवादी िस ा को अपनाया। अगर हम चाहते ह िक हमारा यह ह, हमारी पृ ी,
आबाद रहे , और अगर चाहते ह िक मानवता के पतन के बजाय उसका उ रो र
िवकास हो, तो हम िबना समय गँवाये िफर से सब कुछ ठीक करके स ुलन बनाना
शु करने के िलए ी-श , उसके गुणों, िवशेषाताओं और उसकी सोच को
समझना होगा। हम ज़ रत है वहार की उन मूलभूत ख़ूिबयों को मा ता और
बढ़ावा दे ने की िजनका उ े है िज़ गी को बचाए रखना, संसाधन का िमल-बाँ ट कर
उपयोग, समझौते करके बीच का रा ा अपनाने, ेम और क णा बढ़ाने, या दू सरे
श ों म कह तो, हम उ रो र िवकिसत होने के िलए मानव समाज म सृि के ी
प को उजागर करना होगा।

दस साल का था म मुझे याद है अब भी


वह िदन, तु ारी गोद म सोता था,
जलते थे बड़े भाई–बहन। थी पूिणमा की
रात, बस तु पता था, मेरे जहाँ का, माँ
मेरी माँ ! जब आधी रात को जागा,
टपक रहे थे आँ सू टप–टप मेरे घुटनों
पर तु पता था अपने ब े की पीड़ा
का, मेरी माँ । तु ारे ार भरे हाथ
चुनते रहे दद धीरे –धीरे तु ारे ार,
तु ारे दु लार, तु ारे भरोसे ने दी मुझे
ताक़त, िनडर होकर दु िनया का सामना
करने की, और उसके भरोसे हम िफर
िमलगे क़यामत के उस अहम िदन, मेरी
माँ !
मज़बूत भारत की ओर
भावी नेतृ का िनमाण
भारत म ादातर कॉप रे ट लीडर यही चाहते ह िक शीष थ पद
. का ताज हमेशा उनके िसर पर बना रहे । इनम से िकतने ही ऐसे ह
जो स रवी ं सालिगरह पार कर लेने के बावजूद अब भी कामकाज
की बागडोर अपने हाथों म ही थामे, या तो अपना उ रािधकारी ढू ँ ढने म
पूरी बेिफ़ ी से काम कर रहे ह, या िफर यह कहकर सेवािनवृि की
उ और बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे ह िक अब तक अपने उ रािधकारी के
सवाल पर वह मन लगाकर काम नही ं कर पाए ह। यह ऐसे कॉप रे ट
लीडर ह िज उ रािधकारी के मामले म उनकी तैयारी की बात ही
उदास कर दे ती है । उनके िलए अपना पद छोड़ना भारी नाकामी जैसा
या जीते–जी अपने ही सं थान म अपनी मौत जैसा लगता है । इन लोगों
को अपने काम और अपने पद से इतना लगाव है ोंिक बस वही
उनकी पहचान है । वह नेतृ सँभालने के क़ािबल लोगों का एक दल
बनाने पर ज़ोर दे ते ह, लेिकन तर ी और समृ की राह के तौर पर
नही ं, ब सं थान के अ र ख़ुद अपनी प ी जगह बनाए रखने के
िलए।
सर, आपने भारतीय अ र अनुसंधान सं थान और (ISRO)
र ा अनुसंधान एवं िवकास संगठन म रहते ए यह सािबत (DRDO)
कर िदखाया िक समझदारी से काम िलया जाए, तो सं थान के अ र ही
आगे चलकर नेतृ सँभालने वालों को तैयार िकया जा सकता है ।
आपस के लोग जो सं थान के तौर–तरीकों, लोगों और ित धा की
बारीिकयों को जानते ह, वही सं थान की अगुआई करके उसे कामयाबी
के रा े पर ले जा सकते ह। अपने नीचे काम करने वाले िजन लोगों को
आपने िशि त िकया था, वह सब अब बड़े ोजे और सं थानों म
काम कर रहे ह।
राजनीित म अिधकतर प रवार के सद ों को ही नेतृ के िलए
बढ़ावा िदया जाता है । कां ेस पाट के लगभग चालीस फ़ीसदी संसद
सद िकसी पा रवा रक संपक के मा म से ही वहाँ तक प ँ चे ह, और
दू सरे राजनैितक दलों के दस फ़ीसदी से ादा सद ों ने भी यही रा ा
अपनाया है । आप सं थाओं के िनमाण के इस मह पूण पहलू पर
रोशनी डालने म ों िझझक रहे ह? आप ही अकेले ऐसे श स ह जो
इस सच पर कुछ बोल सकते ह, और आपकी बात को ही लोग सुनगे
भी।

जब तक िक कोई सं था आ रक ितभाओं के िवकास का इरादा नहीं कर लेती, तब


तक वह नेतृ करने वालों की लगातार कमी का सामना करती रहे गी।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

पकी ईमेल ने मुझे सोचने को मजबूर कर िदया है । मने क़रीब बीस साल
आ भारतीय अ र अनुसंधान संगठन यानी ‘इसरो’ म िबताए, और इतना ही
समय अलग से र ा अनुसंधान एवं िवकास संगठन को िदया। इतने ल े
समय के दौरान, मने कई पेशेवर युवाओं को अपनी दे खरे ख म टीम लीडर के तौर पर
तैयार िकया। उनम से कुछ ने आगे चलकर बड़े रा ीय काय मों का नेतृ सँभाला।
मेरे कुछ जाने-माने सहकिमयों और मेरी दे खरे ख म अनुभव जुटाने वालों म इसरो के
चेयरमैन माधवन नायर, लाइट कॉ ैट एअर ा ो ाम के मुख कोटा
ह रनारायण डीआरडीओ मुख वी. के. सार त और अिवनाश चंदर, ोज़ के
मुख ए. िशवतनु िप ई और िडफ़स इं ूट ऑफ़ एडवां ड टे ोलॉजी के
कुलपित डॉ र ाद के नाम शािमल ह। इनके अलावा और भी कई ह जो रा ीय
योगशालाओं और बड़ी क िनयों के मुख ह। जब म पीछे मुड़कर नेतृ करने
वाले इन लोगों को दे खता ँ , तो मुझे नेतृ की मता िवकिसत करने के िलए ज़ री
सात मह पूण ि याएँ याद आती ह, िज म आपके साथ साझा कर रहा ँ ।
इन सात ि याओं को िकसी भी सं थान पर लागू िकया जा सकता है , लेिकन
इनम से हरे क को अ ी तरह लागू करने के िलए ज़ री समय, मेहनत और संसाधन,
और इनम से िकसी भी ि या की जिटलता सं थान के आकार, उनके ािम ,
उ े ों, उनकी अपनी िविश ताओं और आव कताओं के अनुसार अलग-अलग हो
सकती ह।
पहली ि या है अगुआई करने वाले व र लोगों की ितब ता—िकसी भी
नीितगत वरीयता की तरह, भावी नेतृ के िवकास की शु आत सं थान का नेतृ
कर रहे उन व र जनों की सि यता और ितब ता से होती है जो ाथिमकताएँ तय
करते ह और धन की व था करते ह। मानव संसाधन ब न से जुड़े किमयों से इन
ि याओं म सहयोग की उ ीद की जा सकती है , लेिकन वह इ संचािलत नहीं कर
सकते। व र लोगों से अगुआई की िज़ ेदारी अपने ऊपर लेने की उ ीद की जाती है
और इस स म सामा ढं ग से ितब ता जताना अ र काफ़ी नहीं होता। उ
इन ि याओं के िलए अलग से समय और संसाधन िनधा रत करने होते ह। इसी तरह,
लाइन मैनेजरों को इस बात के िलए तैयार करना चािहए िक वह भिव के नेतृ के
िवकास के िलए जवाबदे ह हो सक। मने दे खा है िक िकस तरह वी. एस. अ णाचलम
ने इं िट ेटेड गाइडे ड िमसाइल ो ाम के िलए धन की व था की थी। बाद म कोटा
ह रनारायण और ए. िशवतनु िप ई ने अपने अथक यासों से मश: लाइट
कमिशयल एअर ा और ोज़ पर काम करने के िलए धन का इं तज़ाम िकया।
यह सव पदों से नेतृ सँभालने वालों के सहारे और भागीदारी के िबना मुमिकन
नहीं होता।
दू सरी ि या है सं थान की भिव की आव कताओं की समझ हािसल
करना। नेतृ िवकास का िसलिसला बनाने के म म बेहद ज़ री क़दम है यह तय
करना िक सं थान को अपने नीितगत ल ों को ा करने के िलए भिव म कैसी
भूिमकाओं, कौशल और सं ा म लोगों की आव कता होगी।
तीसरी ि या है सं थान म आव क भूिमकाओं को पूरा करने के िलए मौजूदा
कमचा रयों की मताओं का आकलन। इसे कभी-कभी ‘उ - मता’ वाले कमचारी
या ‘स ेशन कडीडे ट’ की पहचान भी कहा जाता है । भिव की ज़ रतों को सामने
रखते ए यह सोचना होगा िक इसके िलए िकस काय कौशल की ज़ रत पड़े गी; और
वतमान के िकन कायकताओं म इसकी ‘स ावना’ है । चुनौती यह है िक इन
‘स ावनाओं’ को प रभािषत कैसे िकया जाए और उ पहचाना कैसे जाए। आर.
ािमनाथन ने दो बार डीआरडीएल यानी र ा अनुसंधान एवं िवकास योगशाला के
पुनगठन म मदद की, और बाद म िमसाइल ो ाम के िलए युवा वै ािनकों के
उभरकर सामने आने के मूल म उसी दौर म िकया गया काम है ।
चौथी ि या है पहचान करने के बाद ‘उ स ावनाओं’ वाले कमचा रयों का
वा िवक िवकास और गहन मागदशन। कमचा रयों और उनके ब कों की
वचनब ता के साथ, चुने ए किमयों को उनकी अिधकतम काय मता के र तक
प ँ चने म मदद करने के िलए उनकी कई तरह से मदद करनी पड़ सकती है , िजसम
औपचा रक िश ण शािमल है , लेिकन वह कोई सीमा नहीं है । सबसे मह पूण है
काम करते ए अपना दायरा बढ़ाने के मौके। िमसाल के तौर पर, अ थाई ोजे या
िनधा रत भूिमका वाली िज़ ेदा रयाँ , और साथ म सं थान के ही णाली ब कों और
दू सरे व र माग-दशक की दे खरे ख म उनकी मट रं ग और कोिचंग। उदाहरण के
िलए, िवशाखाप नम् की भारत हे वी ेट्स एं ड वेज़े ् िलिमटे ड म डॉ र जी. जे.
गु राजा के साथ काम करते ए अ ण ितवारी ने ि शूल िमसाइल णाली के िलए
टाइटै िनयम की एअर बॉटल िवकिसत की।

नेतृ का पद िवरासत म िमल सकता


है , लेिकन उसकी मता नहीं। उसे
िवकिसत करना पड़ता है ।

पाँ चवी ि या है ज़ रत पड़ने पर बाहरी प रत से माग-दशकों की सेवाएँ


लेना। सं थान के अ र ही पदो ित और बाहरी लोगों को जोड़ने का अनुपात हर
सं थान म फ़क हो सकता है । ऐसे पद िज सं थान के अ र ही िवकिसत नहीं िकया
जा सकता, ऐसे उ ीदवार बाहर से लेने के िलए सं थानों को उ आकिषत करने,
उनम से छाँ टने और उ सं थान से जोड़ने की प रपाटी को ही वहार म लाना
होगा। िन:संदेह, छाँ टते समय सं थान के सं ृ ित के अनु प उ ीदवार का चयन
करना इस ि या का सबसे ज़ री और सबसे किठन िह ा लगता है , लेिकन बाहर
से िलये गए लोगों की िनयु के दौरान इस पर ज़ र ज़ोर िदया जाना चािहए। 1988
म मने ोफ़सर जी. वकटरमण को डीआरडीओ म एडवां ड ुमे रकल रसच एं ड
एनािलिसस ुप थािपत करने के िलए आम त िकया, और डीआरडीओ म ही
िमसाइल ो ाम को चलाने के िलए म इसरो से िशवतनु िप ई को लाया।
छठी ि या है काय णाली का आकलन करके कामकाज के तौर-तरीकों म
सुधार लाना। जैसा िक िकसी भी सं थान के अ र मूलभूत ि याओं के साथ होता है ,
व र माग-दशकों को बीच-बीच म ख़ुद पीछे हट कर इस बात का जायज़ा लेना
चािहए िक सं थान म नेतृ िवकास की ि या िकतने कारगर ढं ग से चल रही है ।
इसम प रणामों पर आधा रत ि याएँ शािमल ह। कभी-कभी अगर नीितगत
वरीयताओं म िकसी तरह का बदलाव होता है , तो ि याओं को भी बदलना ज़ री
हो जाता है । जो सं थान अपने मता िवकास के िलए िकए जा रहे यासों के भाव को
पता लगा कर रखेगा, उसी को भीतरी और बाहरी ोतों से सहयोग का आ ासन और
ज़ री संसाधन िमलने की ादा स ावना होगी। हमने डीआरडीओ म ब त ही
स म कं ूटेशन ुइड डायनािम तैयार कर ली थी, जो िक वा व म और पाँ च

सौ िकलो ाम भार के िव फोटक को 300 िकलोमीटर दू र तक ले जाने वाले मानव
रिहत िवमान की तकनीक िमसाइल टे ोलॉजी कंटोल रजीम (MTCR) से मुक़ाबले
के िलए थी।

इन सात ि याओं को िकसी भी


सं थान पर लागू िकया जा सकता है ,
लेिकन इनम से हरे क को अ ी तरह
लागू करने के िलए ज री समय,
मेहनत और संसाधन, और इनम से
िकसी भी ि या की जिटलता सं थान
के आकार, उनके ािम , उ े ों,
उनकी अपनी िविश ताओं और
आव कताओं के अनुसार अलग–
अलग हो सकती ह।

सातवीं ि या िजसे िक अमल म लाना ब त मु ल था, वह थी ऐसी सं ृ ित


िवकिसत करने की ि या जो नेतृ िवकास म मददगार हो। यथा थित म बदलाव
लाना िकसी भी मागदशक के िलए सबसे मु ल काम होता है । सफल सं थान नेतृ
या मागदशकों के िवकास को जानबूझ कर अपनी सं ृ ित का िह ा बनाते ह। जब
िति या के प म िमली जानकारी और ावसाियक िवकास की सं ृ ित को सभी
कमचा रयों के बीच जानबूझ कर खुलकर बढ़ावा िदया जाता है , तो सं थान म नेतृ
का बेहतर िवकास होता है और कमचा रयों को भी जुटे रहने की ेरणा िमलती है ।
व र मागदशकों को ऐसा माहौल बनाने का यास करना चािहए िजसम कमचारी
अगुआई की िज़ ेदारी वाले पदों म िदलच ी ल और ख़ुद उ यह महसूस हो सके
िक उ उनके िवकास के िलए सहारा िदया जा रहा है और जो उनके साथ सहयोग
कर रहे ह उ लगे िक अपने यासों के िलए उ भी मा ता दी जा रही है ।
राजनैितक नेतृ के उ रािधकार को लेकर आपके ख़ास सवाल का जवाब यह
है िक अगर नौजवान उ रािधकारी सुयो और अ ी तरह गढ़े ए नहीं ह, तो ऐसे म
नतीजा ब त बुरा होगा। जहाँ , नेतृ के िलए पद िवरासत म िमल सकता है , वहीं
नेतृ की मता का िवकास करना पड़ता है , वह िवरासत म नहीं िमल सकती।
बिलदान से होता है रा िनमाण
सर, हमारी िस ुर क पनडु ी के डूबने की ख़बर सुनने के बाद
. से म शोक म डूबा ँ । मेरे िपता भारतीय नौसेना म काम करते ह
और जब आप हमारे शहर िवशाखाप नम् आए थे, तब म भी
समु तट पर मौजूद था, और फ़रवरी 2006 म िस ुर क पनडु ी पर
भी गया था। मुझे लगता है िक आपको ज़ र उन नौसैिनक अफ़सरों म
से कुछ याद होंगे िजनसे आप तब िमले थे जब आप इस पनडु ी म
सवार होकर बंगाल की खाड़ी म कुछ घंटे की सैर के िलए गए थे।
बचपन म मुझे लगता था िक ये पनडु याँ अव ही जादु ई होती
ह। म है रत से सोचा करता था िक पानी म डूब जाने के बाद यह िफर
ऊपर कैसे आ जाती ह, और िफर अ र कैसे चली जाती ह। मेरे िपता
मुझे समझाने की कोिशश करते थे िक िकस तरह पनडु ी अपने अ र
पानी ले कर अ र डूब जाती है , और िफर पानी छोड़ कर सतह पर आ
जाती है । म िसर िहलाकर हामी भर दे ता था िक हाँ म समझ गया ँ ,
लेिकन मुझे नही ं लगता िक म आज तक भी इस बात को ठीक से समझ
पाया ँ । और इसके साथ ही, मुझे याद है वह समय जब मेरे िपता ूटी
पर कई–कई ह े और कभी–कभी तो कई–कई महीनों के िलए समु
म चले जाते थे। तब हम छोटे थे, और हम यह सब सामा लगता था।
इसम छु पे जो खम का हम ज़रा भी एहसास नही ं था। आज तक मेरी माँ
को याद है िक जब मेरे िपता समु म ूटी पर जाया करते थे तब वह
िकतनी िच ा िकया करती थी ं। िजस िदन उ मालूम होता था िक अब
वह ज़मीन पर होंगे तब कही ं उ कुछ चैन की नी ंद आया करती थी।
उनके िलए, जब ब रगाह म पनडु ी लंगर डाले होती थी, भले ही उ
यह नही ं पता होता था िक वह कौन सी पनडु ी है , उनके िलए इसका
मतलब यही होता था िक सब कुछ ठीक है , और वह उस िदन को
‘सुरि त िदन’ मानती थी ं। बाकी िदन बेचैनी भरे होते थे। उनके िदन
कैलडर पर नज़र गड़ाए, यही सोचते बीतते थे िक इस समय वह कहाँ
होंगे। उ िपता जी के फ़ोन का इं तज़ार रहता था। उनकी बेचैनी तब
ख़ होती थी जब वह फ़ोन पर बताते थे िक सब कुछ ठीक है । अगर
उनका फ़ोन उ ीद से एक–दो िदन दे र से आता था तो मेरी माँ िच ा
करने लगती थी ं।
जहाँ िस ुर क डूबी है , वहाँ समु की गहराई से हमारे बहादु र
नौसैिनकों म से अ ारह, अब कभी बाहर नही ं िनकलगे। जो बात मुझे
और भी ादा उदास कर दे ती है , वह यह है िक पनडु ी तब डूबी जब
वह नौसेना के ब रगाह म लंगर डाले थी। यह दु घटना ‘सुरि त िदन’
घटी। इस पनडु ी पर तैनात जो लोग मारे गए, म सहज ही उनके
प रवारों की पीड़ा को महसूस कर सकता ँ । वह प रवार मेरा प रवार
भी हो सकता था।
मने अख़बार म छपी एक रपोट म पढ़ा िक नौसेना के ब रगाह म
िस ुर क के डूब जाने के बाद मु ई आए सी िवशेष ों के एक दल
का मानना है िक पनडु ी म लगे साजोसामान को सही ढं ग से इ ेमाल
न करना इस दु घटना की वजह हो सकती है । एक दू सरे अख़बार म छपा
िक दो िव ़ फोटों से पनडु ी का ऊपरी खोल ित आ और अ र

आग लग गई, और वहाँ रखे कुछ हिथयारों म िव फोट ए। इससे
तापमान ब त अिधक बढ़ गया और पनडु ी के ढाँचे का कुछ
अ नी िह ा िपघल गया और बाहर िनकलने के रा े म लगे है च
टे ढ़े–मेढ़े हो गए। मुझे लगता है िक यह दोनों ही बात नौसेना के िलए
अपमानजनक ह। ा म आप से पूछ सकता ँ , डॉ र कलाम, िक
आप ा सोचते ह इस पनडु ी हादसे को लेकर?

सारी दु िनया म कुबानी का िनयम एक जैसा ही है । कारगर ढं ग से काम करते रहने के


िलए सबसे बहादु र और बेदाग लोगों की कुबानी की ज़ रत होती है ।
–महा ा गाँ धी

14 अग 2013 को िस ुर क के डूबने और उस पर तैनात चालक दल के


अ ारह सद ों की इस हादसे म मौत की ख़बर से म ब त आहत आ और
गहरी उदासी ने मुझे घेर िलया। म 13 फ़रवरी 2006 को आई. एन. एस.
िस ुर क पर एक िदन के िलए मेहमान था, और उसम बैठकर समु के अ र जाने
के बाद मुझे पनडु ी के काम करने से जुड़ी जिटलताओं के बारे म जानने को िमला।
हम िवशाखाप नम के तट से क़रीब पाँ च मील दू र समु म पचास मीटर की गहराई
तक गए। कमां डर वेश िसंह िब ने मुझे समझाया िक पनडु ी कैसे काम करती है ,
और मुझे उसके पाँ च क ाटमट म घुमाया। उ ोंने बताया िक िस ुर क भारतीय
नौसेना की िकलो ास पनडु यों म से नौंवी है । इसे 24 िदस र 1997 को स के
से पीटसबग शहर म भारतीय नौसेना म शािमल िकया गया, और उसके बाद यह
1999 और 2002 के सै संघष म िह ा भी ले चुकी थी।
यह पता चला िक पनडु ी को दहला दे ने वाले दो धमाकों के साथ कॉिनंग टावर
है च से आग का एक िवशाल गोला िनकला और पनडु ी गोदी म लंगर डाले होती है
तब उसके अ र आने-जाने का यही एक रा ा खुला रखा जाता है । और इस धमाके
के साथ ही िस ुर क ने जल समािध ले ली। ोंिक कॉिनंग टावर वाले िनकास ार से
आग का गोला िनकला था, उसके आसपास मौजूद िकसी भी श स का िज़ ा बचना
स व नहीं था। इस घटना से मुझे 11 जनवरी 1999 को ई एच एस-748 ऐवरो की
दु घटना याद आ गई, िजसम आठ लोग मारे गए थे। र ा अनुसंधान एवं िवकास
सं थान (DRDO) के इस ऐवरो िवमान से अ उ त िक के एअरबोन अल
वॉिनग (AEW) िस म यानी ब त दू र से ही उड़ान भरते ए दु न के घुसपैिठए
िवमान या पोत की सूचना जुटाने वाले दे शी त के परी ण िकए जाते थे।
इस तरह की दु घटनाओं के मामलों म िबना गहराई से जाँ चे-परखे दु घटना के
कारणों को लेकर तु े से कुछ िघसे-िपटे अनुमान लगा लेना बड़ा आसान होता है ।
तोड़फोड़ या जानबूझ कर गड़बड़ी पैदा करने से लेकर पुनस ा से जुड़ी सम ाओं,
हाइडोजन जिनत िव ोट या प रचालन की चूक से शु ए घटना म के दु घटना म
बदलने जैसे कई अनुमान लगाए जाने लगते ह। इनम से तोड़फोड़ या जानबूझ कर
गड़बड़ी पैदा करने वाली बात आमतौर पर सबसे ादा कही जाती है , ोंिक इससे
घटना की तह तक जाने के बजाय उसे ठं डे ब े म डालना सबसे आसान होता है । हम
ऐसी बातों के च र म नहीं पड़ना चािहए। सच का पता लगाने के िलए भारतीय
नौसेना को ख़ुद ही न िस़फ हादसे की वजह का पता लगाना होगा, ब वह तरीके
और सावधािनयाँ भी तय करनी होंगी िजससे सुिनि त िकया जा सके िक भिव म ऐसे
हादसे न हों। नौसैिनकों और नौसेना के अिधका रयों को भी इस बात का भरोसा
िदलाया जाना चािहए िक सभी ख़ािमयों का पता लगाकर उ दू र कर िदया जाएगा,
तािक वे पूरे भरोसे के साथ पनडु यों म िकए जाने वाले अपने ऐसे अिभयानों म मन
लगा सक िजनम पूरे जी-जान से लगने की ज़ रत होती है ।

अिधका रयों को इस बात का भरोसा


िदलाना चािहए िक सभी ख़ािमयों का
पता लगा कर उ दू र िकया जा सकता
है तािक वह पूरे भरोसे के साथ ऐसे
अिभयान जारी रख िजनम पूरे जी–जान
से लगने की ज़ रत होती ह।
जो जानकारी िमली, उससे ऐसा लगता है जैसे पनडु ी को िकसी साम रक
तैनाती के िलए तैयार िकया जा रहा था, और अगली सुबह तड़के उसके अपने सफ़र
पर िनकलने की उ ीद थी। पनडु ी को सफ़र के िलए तैयार करने के िलए इस पर
तैनात चालक दल के सभी सद ों को सुबह के तीन बजे पनडु ी पर प ँ चना था।
इस िक की पनडु ी म अ ारह हिथयारों का जखीरा होता है , िजसम िमसाइल,
अॉ ीजन टॉरपीडो और इले क टॉरपीडो शािमल ह। इनम से छह को ूब जैसी
िवशेष जगह रखा जाता है , जबिक बारह को टॉरपीडो क ाटमट म बनी अलमा रयों
जैसी ‘रै क’ म रखा जाता है । इस जगह रखे हिथयार ‘आ ड’ यानी इ ेमाल के िलए
तैयार नहीं होते ह। इसका अथ यह आ िक उनके अ र वह उपकरण नहीं लगे होते
जो इन अ -श ों म भरी िव ोटक साम ी को दागने के िलए ज़ री होते ह।
इस बात पर गौर करते ए िक िसफ़ दो धमाके ही सुनाई िदए थे, िजसका अथ
यह आ िक पनडु ी म मौजूद सोलह और अ , िजनम से ेक म लगभग 250
िकलो बेहद ख़तरनाक िव ोटक थे, नहीं दगे थे। इससे पता चलता है िक अ -श ों
के सुिनयोिजत और सुरि त िडज़ाइन की हादसे के समय भी जान-माल के नुकसान
को कम से कम रखने म बड़ी अहम भूिमका रही।

िज़ गी तमाम कारकों का एक ब त
ही जिटल खेल है िजसम छु पे ए ख़तरों
को ीकार कर, उनसे िनपटते ए
आगे बढ़ते जाना होता है ।

म यह सोचकर परे शान हो जाता ँ िक अगर यह हादसा तब आ होता जब


पनडु ी समु म िकनारे से कहीं दू र होती, तो िकतनी और जान जातीं, और पनडु ी
के िकसी भी िह े को बचाने की कोई स ावना ही नहीं रहती। गहरे सागर म बचाव
काय के िलए डीप सबमजस रे ू ीकल ो ाम पर तेज़ी से काम होना चािहए। पूरी
ईमानदारी से अपने लोगों की सुर ा और यु के िलए भारत की तैयारी, दोनों ही
ज़ री ह।
हम एक बार ही मनु ज िमलता है । ऐसी घटनाएँ िजनम ितभाशाली
नौजवानों की अचानक मौत हो जाती है , दु िनया म इससे बड़ी कोई ासदी नहीं है । जब
ऐसी घटनाएँ होती ह तब हम कुदरत की श का आभास होता है । हमने चाहे
िकतनी भी तकनीकी तर ी ों न कर ली हो लेिकन कभी ाकृितक कोप के
सामने हमारा कोई बस नहीं चलता या जब कभी मानव ारा बनाई मशीन बेकाबू या
ख़राब हो जाती ह तब ऐसा अनथ होता है । हर बार जब हवाई जहाज का कोई पायलट
दो सौ याि यों को लेकर उड़ान भरता है , तब वह िसफ़ अपनी क़ाबिलयत पर ही
भरोसा नहीं कर रहा होता है , ब उसे और भी कई लोगों पर िनभर रहना होता है ,
जैसे िवमान बनाने वाले इं जीिनयरों की यो ता उसके काम आती है , और िवमान को
तय रा े पर उड़ान भरने के िलए नैिवगेटर और ज़मीन पर वापस सुरि त उतरने के
िलए ज़मीन पर िवमान की दे खरे ख करने वाले कमचा रयों की ज़ रत होती है । लेिकन
इन तमाम मानव-िनय त कारकों के अलावा मौसम, वायुदाब के उतार-चढ़ाव से
होने वाली हलचल और यहाँ तक िक जानबूझ कर िवमान को नुकसान प ँ चाने की
नीयत रखने वालों का भी अनदे खा-अनजाना ख़तरा बना रहता है । इसिलए, हम कह
सकते ह िक िज़ गी एक ऐसा खेल है िजसम तमाम बात, तमाम कारक ब त ही
जिटल ढं ग से एक दू सरे को भािवत करते ह, और इससे गुज़रने म जो ख़तरे छु पे ए
ह, उ ीकार करते ए उनसे िनपटते ए आगे बढ़ते जाना होता है ।
मन म का एक र
सर, 1994 म अयो ा म मेरा ज आ। कल आप अयो ा के
. कामता साद सु रलाल साकेत िड ी कॉलेज आए, तो मने आपसे
िमलने की कोिशश की, लेिकन काय म के मु ैद कायकताओं
और पुिलस ने मुझे आप के पास तक प ँ चने से रोक िदया। काय म म
बोलते ए आपने हम युवा छा ों से सवाल िकया िक हम ज़रा सोच कर
बताएँ िक हम िकस बात के िलए याद िकया जाना चाहगे? मुझे अपना
मामूली सा नज़ रया पेश करने की इजाज़त द।
अयो ा म र के कलशों और गु ज़ों का शहर है जहाँ म रों
के ाचीन िह दू थाप पर रा के साथ मुगल शैली का पुट दे खने को
िमलता है । शहर के साथ होकर बहने वाली सरयू नदी को जैसे भुला
िदया गया है और वह तीथयाि यों की बाट जोह रही है । शहर के बाज़ार
और सड़कों पर स ाटा पसरा है । भूमंडलीकरण से अ भािवत
दु कानदार अपनी दु कानों पर पीतल की दे व– ितमाएँ , बेसन के लड् डू,
पेड़े, जलेबी जैसी थानीय िमठाइयाँ सजा कर ाहकों के इं तज़ार म बैठे
रहते ह।
सुर ा के घेरे म बाबरी मसिजद–राम ज भूिम प रसर म आमतौर
पर लोग नही ं जाते और वहाँ स ाटा छाया रहता है । राम म र के िलए
लाए गए लाल बलुआ प र के ख े और िस यों के बड़े –बड़े ढे र लगे
ह और धूल की मोटी पत और काई से उनकी गुलाबी रं गत पर कािलख
सी जम चुकी है । मुझे डर लगता है िक िकसी िदन अचानक बाहर से
लोगों का जूम अयो ा आ जाएगा और यहाँ िफर से संघष शु हो
जाएगा। हम यहाँ ऐसा कुछ ों नही ं बना दे ते जो िकसी एक धम का न
होकर पूरी मानवता का हो? ा अलग–अलग धम इं सान ने नही ं बनाए
ह? ा यह सच नही ं है िक ई र एक ही है ? अगर है , तो िफर यह झगड़े
ों होते रहते ह?
भले ही सा दाियक एकता स व न हो, लेिकन ेम के ज़ रये सब का जुड़ना स व
है ।
–हस उज़ वॉन बै ाज़ार

रे ारे नौजवान दो , अयो ा म के. एस. साकेत पो ैजुएट कॉलेज का


म◌े दौरा मुझे वाकई अ ा लगा। इतने सारे युवा छा थे वहाँ , शायद हज़ारों।
अफ़सोस की बात है िक आप मुझसे िमल नहीं पाए, लेिकन ई-मेल के ज़ रये
आपके सवालों के जवाब दे ने से, मुझे उ ीद है िक कुछ तो काम चलेगा।
आपका यह डर िक िकसी िदन अचानक बाहर के लोग अयो ा आकर संघष न
शु कर द पूरी तरह तक से परे नहीं है , ोंिक हमने पहले भी ऐसा होते ए दे खा है ।
लेिकन म आपको बताना चाहता ँ िक अभी उ ीद बाकी है । नौजवान बीते ए िदनों
दफ़न हो चुके संघष को कुरे दने के ◌़ खतरों से दो-चार हो चुके ह। अपनी सोच को बीते
ए दौर की बातों को सोचने के बजाय, इस बात पर ान दे ने की ज़ रत है िक भारत
िवकिसत रा कैसे बन सकता है । मु ा यह है िक हम अपने आप को एक रा के प
म नहीं दे ख पा रहे ह, और इसी वजह से हमारा कोई नैशनल िवज़न यानी रा ीय
नज़ रया भी नहीं बन पाया है ।
रा पित के प म अपने कायकाल के दौरान म रा पित भवन म त ता
सं ाम सेनािनयों के एक दल से िमला। उनम से हरे क ने हमारे त ता आ ोलन म
जान फूँकी थी। मने हरे क को सलामी दी ोंिक वह हमारी आज़ादी के िलए लड़े , और
आज़ादी को हािसल करने की ख़ाितर उ ोंने अपना सुख-चैन कुरबान कर िदया था।
भारत की आज़ादी के इस महान सपने की शु आत 1857 के आसपास ई थी। न े
साल तक आज़ादी के िलए िकतनी ही भीषण लड़ाइयाँ लड़ी गईं। िकतने ही लोग ल े
समय तक जेल म रहे और उ ोंने जो क झेले वही महा ा गाँ धी के नेतृ म
त ता आ ोलन का प ले सामने आए। उन त ता सेनािनयों के साथ
बातचीत म मने एक बार िफर त ता आ ोलन के सार को आ सात करने की
कोिशश की। दो पहलू प से उभरकर सामने आए—हम अपने सव
बिलदान, समपण, और एका िचत होकर िकए गए यासों से ही आज़ादी िमली, और
दू सरा पहलू यह था िक दू रदिशता से े रत आ ोलन म से राजनीित, अथ व था,
उ ोग, िव ान, कलाओं और सं ृ ित के े ों म तमाम नेता उभर कर सामने आए।
आज़ादी के बाद भारत ने कृिष और खा ा उ ादन, ऊजा, ा , िश ा और
िव ान एवं ौ ोिगकी के िविभ े ों म उ ेखनीय सफलता ा की। दवाइयों के
िनमाण, सूचना ौ ोिगकी, जनसंचार मा मों, अ र और परमाणु िव ान के े म
हमने अ ररा ीय र पर अपनी पहचान बनाई है ।

त ता के सपने ने एक ऐसे आ ोलन को ज िदया िजसने दे श के तमाम


लोगों को एक सू म बाँ ध िदया और वे एक ही ल की ा के िलए जी जान से जुट
गए। अब हम रा ीय र पर एक-दू सरे सपने की ज़ रत है जो समाज के हर वग के
लोगों को दोबारा एक सू म बाँ ध दे ।
हमारे रा का यह दू सरा सपना होगा कृिष एवं खा सं रण, िश ा एवं
ा , मूलभूत ढाँ चे के साथ िबजली, सूचना एवं संचार ौ ोिगकी और अ
मह पूण ौ ोिगक े ों म एकीकृत यासों से इसे िवकासशील रा के दज से
िवकिसत रा म पा रत करना। इस वृह र का उ े होगा गरीबी,
िनर रता और बेरोज़गारी का उ ूलन। जब हमारे दे श म लोगों के मन म इस उ े
को लेकर एक पता होगी और सब एक-दू सरे से जुड़े ए होंगे, तो सोया आ साम
एक िवशाल श के प म जाग उठे गा िजससे सौ करोड़ लोगों के जीवन म
ख़ुशहाली और समृ आ जाएगी। सारे रा के इस एक साझा सपने से आपसी
भेदभाव और छोटी सोच के कारण पैदा होने वाले झगड़े दू र हो जाएँ गे।

मुद्दे की बात यह है िक हम खु़ द को


एक रा के प म नहीं दे ख पा रहे ह।

अयो ा म अचानक झगड़ों का जो, आपके मन म डर है , उसकी बात कर।


अयो ा दो धम की आ था से समृ है । यह मानव इितहास की एक कार की
ज भूिम है और उसके संघष और सफलताओं का तीक भी। म अयो ा की पिव
भूिम को वष 2020 तक मानव की सेवा भावना के िन लंक तीक और रा की
आ ा म िनिहत आपसी सामंज और अखंडता के आकाशदीप के प म उभरते
ए दे खता ँ । म अयो ा की एक ऐसी जगह के प म क ना करता ँ जहाँ
आधुिनकतम तकनीकों से सुस त ब आयामी आरो के थािपत होगा, एक ऐसी
जगह जहाँ शारी रक, मानिसक और आ ा क पीड़ा से मु िमलेगी। इस आरो
के म चार िवशेषाताएँ ज़ र होनी चािहए।
पहली िवशेषता तो यह होनी चािहए िक इसका िवकास एक ऐसे ा सेवा
के के प म हो जहाँ हर आयु वग के लोगों के िलए कम ख़च म सव म ा
सेवाएँ उपल हों, ख़ासतौर से रा के गरीबों और वृ ों के िलए। भारत के कई
अ तालों म ऐसा होता है जहाँ लगभग स र ितशत मरीज़ों का मु इलाज िकया
जाता है । यह एक ऐसी जगह बने जहाँ सैकड़ों डॉ र हर साल लाखों दे खने से
मोहताज लोगों की आँ खों की रोशनी वापस लौटाने के िलए समिपत हों, जहाँ
ब आयामी िवशेष िवकलां गों के जीवन म गित भर द और गहरी हताशा म डूबे ए
लोगों म उ ीद जगाएँ । यह एक ऐसा के हो जहाँ शरीर को िनरोग रखने के िलए
आधुिनक िचिक ा प ित का आयुवद, यूनानी, िस , योग और ाकृितक िचिक ा
के साथ मेल हो और ज़ रतम ों को सहानुभूितपूण ा सेवा उपल कराई
जाए।

अयो ा म मानवता का आरो के


थािपत करने का िनणय बीते समय की
कड़वाहट और टीस को भुलाकर ऐसा
भिव गढ़ने की िदशा म एक क़दम
होगा िजसे सभी समुदाय, और उनसे
बढ़कर तमाम रा और समूची मानवता
सराहे गी और इससे ेरणा लेगी।

दू सरे , वह अित उ ृ र के शोधकाय के िलए िति त के के प म उभरे


जहाँ सारे रा म बड़ी सं ा म लोगों को भािवत करने वाली ा सम ाओं के
ौ ोिगक समाधान खोजे जाएँ । अब जब हम य- मता समता के आधार पर िव
की चौथी सबसे बड़ी अथ व था के प म उभर रहे ह, तब भी दे श म ज ा हर
दू सरा ब ा कुपोिषत है और हर 1000 िशशुओं म से 53 अपनी पहली सालिगरह तक
भी नहीं जी पाते। इसी तरह, तकरीबन सारी दु िनया के आधे टीबी यानी
ट् यूबरकुलोिसस के मरीज़ भारतीय ह और भारत की मिहलाओं म अनीिमया का र
िव म सबसे अिधक, कुछ रा ों म साठ ितशत से भी ादा है । अब भी लाखों
लोगों को पीने के िलए साफ़ पानी और पौि क भोजन नसीब नहीं है । मानवता की
ख़ाितर बनाए गए इस आरो के म इस बात पर भी ान िदया जाना चािहए िक
िकस तरह ऐसी कड़ी स ाइयों पर िनशाना साधा जाए, तािक ा जैसे सबसे
मुख रा ीय सरोकारों म से एक मु े को भावशाली, ापक और िकफ़ायती ढं ग से
िनपटाया जा सके, और वह भी इस तरह िक यह सेवाएँ दू रदराज़ के ामीण इलाकों
तक प ँ च सक जहाँ 70 करोड़ लोग रहते ह। इसे एक ऐसा के होना चािहए जहाँ
अ ररा ीय एजिसयों के सहयोग से उन बीमा रयों की रोकथाम के िलए टीके
िवकिसत िकए जाएँ िज ोंने मानव जाित को युगों से कर रखा है ।
तीसरे , मानव जाित के िलए बने आरो के म शारी रक और आ ा क
आरो को एक साथ लेकर काम करने पर ज़ोर िदया जाना चािहए। ह रयाली से िघरे
फूलों और सुरीले पि यों से यु इस आरो के को िविभ धम के साझा
आ ा क मंच के प म उभरना चािहए। कई समृ धम से िनकटता के कारण
आरो के सभी िवचारधाराओं म से सव े को चुन कर उसे पीिड़त लोगों के
उपचार के िलए इ ेमाल कर सकता है । इस तरह यह आ ा क ान का एक ऐसा
के भी होगा जहाँ मानव ख़ुद को दै व के िनकट पाएगा और मनु की आ ा का
िववेक जाग जाएगा।
मानवता के आरो के का चौथा दु िनया भर के लोगों को नैितक मू ों
पर आधा रत ान दान करने की नींव पर िटका होगा। यह एक ऐसा के होगा
िजसम िविभ िवचारधाराएँ एक-दू सरे म समािहत होकर आगे साथ बहगी िजससे
युवाओं को ऐसे मू ों को अपनाने और उनके ित आ थावान होने म सुिवधा होगी
िजससे रा को उनपर गव हो। सवाल यह है िक ा सभी धम का अयो ा म संगम
हो सकता है , िजससे ऐसे समाज का िनमाण हो सके जो ाचार और नैितक उथलेपन
से मु हो? मानवता का आरो के ऐसी जगह होगी जहाँ िविभ धम की िव ृत
पृ भूिम म नैितक िश ा के सव े पा म के िवकास पर शोधकाय होगा, और
उसे युवाओं को िसखाने के सबसे कारगर तरीके के प म अपनाया जाएगा।
ऐसे के का सृजन कौन करे गा? सरकारी और िनजी सं थाओं को इस के के
िवकास म सहयोग करना चािहए जो रं ग, धम, जाित, िलंगभेद या रा ीयता पर ान
िदए बगैर मानव मा को आरो दान करने का तीक होगा। म चाहता ँ िक इस
के को प क- ाइवेट-कॉ ूिनटी पाटनरिशप यानी सावजिनक, िनजी और
सामुदाियक े की भागीदारी से बनाया और चलाया जाए और इसी भागीदारी का
इस के पर मािलकाना हक़ हो। साथ ही, इस काम म सरकार के साथ सभी
राजनैितक दलों, और िविभ े ों से जुड़े पेशेवर लोगों, सेवािनवृ फ़ौिजयों, और
िविभ समुदायों के िव ानों को शािमल िकया जाए।
तो इस तरह हम दे खगे िक अगले एक दशक तक अयो ा बु नाग रकों के
िवकास के िलए िव का जाना-माना के बन जाएगा। एक ऐसी जगह जहाँ मू ों पर
आधा रत िश ा दी जाती हो, जहाँ िविभ धम अपनी साझा आ ा कता के साथ
एक जगह आकर िमल, जहाँ िवचार भेदभाव की बेिड़यों म न जकड़े रह, और जहाँ
रा ीय प रवतन के िलए सृजनशीलता को खुली छूट िमले। लोगों के बीच एकता ब त
ज़ री है ोंिक िवरोधी श याँ हमारी आिथक उ ित, सामािजक शां ित और
समृ के खलाफ़ काम कर रही ह।
अयो ा के बदले ए प का रा और उसके सौ करोड़ लोगों के भिव पर
गहरा असर होगा। यह एक ऐसा िनणायक ण है , िजसके दू रगामी प रणाम होंगे। बीते
ए समय के बैर का बोझ ढोते रहने के बजाय हमारे िलए यह भिव को लेकर अपनी
आकां ाओं को ान म रखते ए अपने वतमान को सही प दे ने का शानदार
अवसर है । ऐसा क़दम उठाने के िलए हमारी आने वाली पीढ़ी हमारा आदर करे गी
िजससे इं सािनयत को बढ़ावा िमले न िक आपसी मेलजोल और शां ित पर पानी िफर
जाए। इस पीढ़ी के िलए यह एक सुनहरा मौका है यह चुनने का िक उसे िचर थाई
भाईचारे और बु रा ीयता के अ दू तों के तौर पर याद िकया जाए या हज़ार साल के
संघष का िसलिसला छे ड़ने वालों के प म। अयो ा म मानवता का आरो के
थािपत करने का िनणय बीते समय की कड़वाहट और टीस को भुलाकर ऐसा भिव
गढ़ने की िदशा म एक क़दम होगा िजसे सभी समुदाय, और उनसे बढ़कर तमाम रा
और समूची मानवता सराहे गी और इससे ेरणा लेगी।
जड़ों को सींचना होगा
सर, मने ‘उपभो ा वग के िपरािमड’ पर आपका ा ान सुना।
. गरीबी म कमी लाने के िलए खुले बाज़ार की संक ना को बढ़ावा
दे ने वाले इस आ ोलन के तहत िपछले कुछ वष के दौरान
‘िपरािमड के आधार’ की ओर ज़ोंर िदया गया है । इसके तहत गरीब को
‘हर प र थित म ढल जाने वाला, सृजनशील उ मी और मू के ित
सजग उपभो ा’ माना गया है । गरीब की ऐसी झठ ू ी, मानी और
क त छिव उ दो तरह से नुकसान प ँ चाती है । पहले तो यह बात
उन गरीबों के िहतों के िलए बनाए गए क़ानूनी, िनयामक और
सामािजक त के मह का अवमू न करती है जो िक उपभो ा के
तौर पर कमज़ोंर और असुरि त होते ह। दू सरे , ‘खुले बाज़ार’ और
‘िपरािमड के आधार’ की संक ना माइ ो े िडट पर ज़ रत से
ादा ज़ोंर डालने के साथ ऐसे आधुिनक उ मों को बढ़ावा दे ने की
ज़ रत को नज़रअ ाज करती है जहाँ गरीबों को रोज़गार के अवसर
िमल सक। और इनसे बढ़कर, इसकी वजह से गरीबी उ ूलन म शासन
की अहम और नाज़ुक भूिमका और उसकी िज़ ेदारी पर से ान
हटाता है िजससे गरीबी उ ूलन का काम बुरी तरह भािवत होता है ।
सर, मुझे लगता है िक गरीबों को बाज़ार के ाहक के पमल
बनाने से उनकी मामूली सी आमदनी का कुछ न कुछ िह ा थ ही
िन वरीयता वाले उ ादों और सेवाओं पर ख़च हो जाता है । PURA
( ोवाइिडं ग अबन अमेिनटीज़ इन रल ए रयाज़) यानी ामीण े ों म
शहरी सुिवधाएँ उपल कराने के आपके सपने के साथ एक सपना यह
भी होना चािहए िक शहरी इलाकों म सामुदाियक िपरािमड के िनचले
िह े म आने वाले वग के लोगों को स म बनाने पर ज़ोर िदया जाए।
गरीब इसिलए गरीब नहीं ह ोंिक वे अ िशि त या अिशि त ह, ब इसिलए ह
ोंिक उनकी मेहनत की कमाई उनके पास नहीं िटकती। अपने रोज़गार पर उनका
वश नहीं चलता, जबिक अपना वजूद बनाए रखने की क़ाबिलयत ही लोगों को गरीबी
के दायरे से बाहर िनकलने की ताक़त दे ती है ।
—मोह द यूनुस

यूआरए ( ोवाइिडं ग अबन अमेिनटीज़ इन रल ए रयाज़) यानी ामीण े ों


प◌ी म शहरी सुिवधाएँ उपल कराने का ाथिमक उ े ामीण े ों म ऐसा
िवकास है िजसका िसलिसला अपने दम पर आगे भी जारी रह सके।
‘पीयूआरए’ के तहत ामीण े ों के लोगों के सश करण के िलए उनकी पारं प रक
कायकुशलता को बढ़ावा दे ते ए उसम ज़ री बदलाव लाकर रोज़गार के ऐसे और
ादा अवसर उपल कराए जाएँ गे िजससे उनकी ित आय वतमान र से
दु गनी हो जाए। इसिलए जब हम ‘पीयूआरए’ की बात करते ह तो गरीब के गरीब ही
बने रहने का सवाल ही नहीं बचता।
म ख़ुश ँ िक आपको ‘पीयूआरए’ का सपना अ ा लगा। आपने जानना चाहा है
िक शहरी े म सामुदाियक िपरािमड के िनचले र वाले लोगों को समृ बनाने के
िलए ा िकया जा सकता है । उपयु ौ ोिगकी के योग से पयावरण संर ण का
ान रखते ए सतत् िवकास के िलए ज़मीनी र पर कई रा ीय काय म शु िकए
गए ह। इनम से कुछ ह—सुरि त पेयजल और िसंचाई के िलए पानी उपल कराना,
दू षण घटाना, खिनज ईंधनों पर िनभरता कम करने के िलए अ य ऊजा संसाधनों
को और ादा अपनाना, चल-संसाधनों का इस तरह ब न िजससे पयावरण
भािवत न हो, िजससे ा और वातावरण की थित और ादा न िबगड़े , जैव
िविवधता का संर ण हो और इस सब से रा म शां ित और आिथक समृ आए।
लेिकन सवाल यह है िक इस सब से गरीबों को िकस तरह लाभ होगा और उनकी
िज़ गी कैसे बेहतर होगी? गरीब को कैसे सतत् िवकास का लाभ िमल सकता है ?
िव ान और ौ ोिगकी का योग करके हम मानव और आिथक िवकास के िलए
समु , भूिम, निदयों और जंगलों जैसे ाकृितक संसाधनों का दोहन करते रहे ह।
लेिकन ऐसा करते ए हमने पयावरण को दू िषत कर डाला है । वातावरण म काबन
डाइअॉ ाइड का र ब त अिधक बढ़ा है , जंगल कटे ह, उ ोगों और शहरों की
तमाम गंदगी ों की ों निदयों म छोड़ने के साथ रासायिनक खादों और
कीटनाशकों के अंधाधुंध इ ेमाल से ज़मीन के साथ निदयाँ और समु दू िषत ए ह।
आज हमारे ाकृितक संसाधन कम होते जा रहे ह और पयावरण के दू षण की वजह
से दु िनया का तापमान बढ़ रहा है और मौसम म असामा बदलाव आ रहे ह।
िवड ना यह है िक इन ाकृितक संसाधनों का आिथक लाभ वही चुिनंदा लोग उठाते
ह जो इन पर आधा रत उ ोगों के मािलक ह, लेिकन पयावरण के रण और उसके
फल प होने वाले हादसों के प म खािमयाजा थानीय लोगों को ही भुगतना
पड़ता है । पयावरण का प िबगाड़ने का असर िसफ़ थानीय लोगों पर ही नहीं
पड़ता, अ र कई रा ों म लोग इससे भािवत होते ह। प रणाम प सारा रा
नुकसान उठाता है । होना यह चािहए िक ाकृितक संसाधनों के इ ेमाल के हरे क
पहलू म सतत् िवकास का ान रखा जाए, जो िक पयावरण संर ण के िलए बेहद
ज़ री है ।
िविभ ौ ोिगिकयों के मेल, जैसे बायो-टे ोलॉजी, इनफ़ॉमैिट , नैनो-
टे ोलॉजी और ईको-टे ोलॉजी के सम य से, ऊजा और पयावरण के साथ दू षण,
कचरा, जैव िविवधता और ा सेवाओं के कई उ ादों और त ों के ब न की
आशा की जा सकती है । उदाहरण के िलए, सौर ौ ोिगकी से हमारे एक रा म 700
मेगावॉट मता का पहला सोलर पाक तैयार आ है । नैनो िफ़ र ौ ोिगकी के
ज़ रये सुरि त पेयजल की सम ा का हल ढू ँ ढा जा रहा है । नैनो पैकेिजंग और ईको
ौ ोिगकी के मेल से बायो-िड ेडेबल पैकेिजंग जैसे हल िमल रहे ह। इसम कोई शक
नहीं िक ौ ोिगकी के कई े ों के मेल को लेकर शोध और िवकास काय तेज़ी से चल
रहे ह िजन से मानवता को ऐसी चीज़ िमलगी जो िनिवकार तो होंगी ही, उनसे पयावरण
को भी िकसी तरह का नुकसान नहीं प ँ चेगा। सवाल यह है िक यह कैसे सुिनि त
िकया जाए िक ऐसी ौ ोिगकी गरीब और हािशये पर िज़ गी बसर कर रहे लोगों के
िलए िकस तरह फ़ायदे म हो?

ौ ोिगकी के लाभ सूचना और संचार ौ ोिगकी के ज़ रये ही गरीबों तक


प ँ चाए जा सकते ह। संचार नेटवक और तकनीकों के ज़ रये जानकारी जुटाना, उसे
तैयार करना और ज़मीनी और उप हों से जुड़े त ों के मा म से उसके सार ने भू-
थािनक से जुड़ी तकनीकों के समागम के चलते ही एक नया आयाम ा िकया है ।
इनसे ाकृितक संसाधनों की िनगरानी और उनकी पड़ताल करते रहने, पयावरण को
सुधारने की परे खा तैयार करने और जैव-िविवधता को समृ बनाने म मदद िमलती
है । सूचनाओं की खान म से आव क जानकारी िनकाल कर उसके िव ेषण से ान
ा होता है । सूचना और संचार त ज़मीन और आसमान से पृ ी पर फैले नेटवक
और बेतार ौ ोिगकी के ज़ रये साम ी जुटाते रहगे।
उप ह नेटवक पर आधा रत ोबल इनफ़ॉमशन िस म (GIS), ोबल
पोिज़शिनंग िस म(GPS) और िजयो- ैिशयल ौ ोिगकी के ज़ रये रमोट सिसंग
यानी सुदूर संवेदन से जानकारी इक ी करके और उसका िव ेषण करके उपल
भूिम अथवा जल संसाधनों के मानिच तैयार िकए जा सकते ह, और काट सैट
(Cartosat) और ओशनसैट (Oceansat) जैसे उप हों के मा म से निदयों के माग
और उनके वाह पर नज़र रखी जा सकती है । आधुिनक िजयो- ैिशयल िव ेषण
की िविध से जुटाई गई ब त सारी साम ी म से ज़ रत की सूचनाएँ िनकालकर इस
बात की जानकारी बढ़ाने म मदद िमल सकती है िक कचरे , दू षण, ऊजा, जैव-
िविवधता और िविभ े ों म होने वाले बदलावों सतत िवकास के अनुकूल ब न
कैसे िकया जा सकता है । सूचना एवं संचार ौ ोिगकी का योग करते ए हम
वसाय का ऐसा अिभनव सामािजक मॉडल िवकिसत करने की ज़ रत है तािक
िविभ ौ ोिगिकयों के सम य से िमलने वाले शोध के नतीजों का सतत मानव
िवकास के िलए योग हो सके।
लेिकन दू सरी ओर, एक ऐसा अिभनव ावसाियक मॉडल तैयार करने की बात,
िजसके मा म से सतत िवकास के तौर-तरीके गढ़ने म इ ेमाल करने के िलए
ौ ोिगकी को उसे उपयोग करने वालों तक प ँ चाया जा सके, अब भी एक ऐसा मु ा
है िजस पर ान नहीं िदया गया है । एक अिभनव सामािजक ावसाियक मॉडल
बनना अभी बाकी है जो िकसान, मछु आरे , कुशल कारीगर जैसे ामीण े ों म रहने
वाले अपने उपभो ाओं को सश और समृ करे । सतत िवकास की ओर उ ुख
सामािजक ावसाियक मॉडल को अमल म लाए जाने पर उपल ाकृितक
संसाधनों का आदश उपयोग होगा और वातावरण म दू षण फैलाए िबना उनकी
रीसायिकिलंग होगी तािक अगली पीिढ़यों के िलए उपल ता को सुिनि त िकया जा
सके।
हम ‘सामािजक िवकास राडार’ थािपत करने की ज़ रत है िजसके ज़ रये हम
उपभो ाओं के सामुदाियक िपरािमड उपभो ाओं को िकस तरह लाभ िमल रहा है
उसकी समी ा कर सक, उस पर िनगरानी रख सक। मने सश करण की पहचान
के आठ ज़ री िब दु सुझाए ह, िजनका होना िपरािमड के आधार से शु होकर
हमारे समाज के एक ख़ुशहाल, समृ और शा पूण समाज के प म िवकिसत होने
के िलए ब त ज़ री है । यह िब दु ह—भोजन और जल की उपल ता, ा
सेवाओं की उपल ता, रोज़गार के अवसर, िश ा और स म बनने के अवसर, िव ीय
सेवाओं तक प ँ च, और ह रत पयावरण की उपल ता।
हमारे सामने तीन ल ह—इन आठों सामािजक गुणों की वतमान थित का
आकलन, इ लेकर म म अविध के िलए हमारे ल और तय समय-सारणी के साथ
दीघ अविध के िलए हमारे ल । सामािजक बदलाव के िलए कॉरपोरे ट सोशल
रे ॉ िबिलटी के मा म से क िनयाँ या िनगम और सामािजक बदलाव के
अिभकता इस बात पर नज़र रख सकते ह िक वह कौन से अनु योग ह जो
उपभोगकताओं के सामुदाियक िपरािमड म सबसे नीचे वाले लोगों का सश करण
कर सकते ह, और इसके प रणामों पर ‘िवकास राडार’ के ज़ रये नज़र रखी जा
सकती है । भारत तब तक िवकिसत दे श नहीं बन सकता जब तक हम गरीबों के
अिधकारों को पहचानना नहीं सीख जाते और जब तक हम ‘िवकास राडार’ के सूचकों
के अनुसार उ मूलभूत सुिवधाएँ और सतत रोज़गार उपल नहीं कराते। जब तक
उसकी जड़ों को पानी से न सींचा जाए, और उसे िम ी म मौजूद पोषक त न िमल,
तब तक कोई पेड़ पनप नहीं सकता।
नई पीढ़ी के नए नर
सर, मने उ र दे श डे वलेपमट कॉन ेव म आपका ेरणादायक
. ा ान सुना। उ र दे श भारत का सबसे बड़ा रा है , जहाँ
हमारी कुल जनसं ा का पाँचवाँ िह ा बसता है । लोकसभा का
हर सातवाँ सद इसी रा से होता है । यही नही ं, धानमं ी चुने गए
तेरह म से आठ नेता इसी रा ने िदए ह, लेिकन िपछले कुछ सालों म
इसने अपनी कुछ राजनैितक साख खो दी है । अब इसकी ऐसी थित
नही ं रही है िक यह रा ीय र पर अपना भाव छोड़ सके।
यह दे श अब तक की सबसे बुरी जाित और समुदाय की जंग म
उलझा आ है । बदलाव के िलए िकसी परे खा की तो छोिड़ए, आज
इस रा के राजनेताओं के पास एक आकषक नारा तक नही ं है । यहाँ
अब िवचारधाराओं की लड़ाई नही ं रह गई है । रा के सभी राजनैितक
दलों की िदलच ी समुिचत सामािजक जोड़–तोड़ के ज़ रये जीतने म
मदद करने वाले जाितगत राजनैितक समीकरण गढ़ने म है । कोई भी
राजनैितक दल बेहतर शासन व था या बेरोज़गारों को रोज़गार
िदलाने की बात नही ं करता, ब जाित और वग से जुड़े सवालों और
मु ों पर उनका पूरा सरोकार रहता है ।
हालात बदतर होते जा रहे ह। दे श को ऐसे कमठ नेताओं की
आव कता है जो िनजी ाथ और राजनीित के घिटया दावपचों से
ऊपर उठकर जनता के क ाण के िलए काम कर तािक भेदभाव और
दू रयाँ बढ़ाने वाले जाितगत समीकरणों से छु टकारा पाया जा सके।

एक शमा दू सरी को लौ दे ती है तो उसका कुछ भी नहीं जाता।


—जे केलर
र दे श एक ब त बड़ा रा है । बीस करोड़ लोग रहते ह यहाँ और इसीिलए
उ सम ाएँ ब त ह और उनका हल मु ल। इस रा म चलने वाली
राजनैितक उधेड़बुन के बारे म आपकी िच ाओं को म समझ सकता ँ , लेिकन
थ लोकत म ऐसी उठापटक होना एक सामा बात है ।
मानव और ाकृितक दोनों ही तरह के संसाधनों से स उ र दे श पहले
आिथक और सामािजक िवकास के े म भारत के दू सरे रा ों की अगुआई कर
चुका है । रा का ादातर िह ा गंगा के बहाव- े के उवर मैदानी इलाके म है ,
जहाँ की िम ी ाकृितक प से बेहद उपजाऊ है , पया वषा होती है , और साथ ही
भूजल और भूिमगत जल ोतों की भी इस रा म कमी नहीं है । इसके पि मी इलाके
म 1960 और 1970 के दशकों के दौरान ह रत ा की जो लहर आई उससे पहले
कृिष उ ादन के े म काफ़ी िपछड़ा रहने के बाद यह रा िमसाल बन गया। 1970
और 1980 के दशकों के दौरान गरीबी के र म लगातार कमी, कृिष े म
अनुसंधान, िसंचाई, सड़क और िवपणन के िलए ज़ री मूलभूत ढाँ चे म िवकासो ुख
और उ े पूण िनवेश से 1980 के दशक म गित को और हवा िमली। लेिकन 1990
के दौर म आिथक गित को ऐसा ध ा लगा िक यह रा भारत के दू सरे बेहतर
दशन करने वाले रा ों से पीछे रह गया। हालाँ िक हाल म िवकास म आई तेज़ी
बताती है िक उ र दे श के दशन म आई िगरावट अब थम चुकी है , लेिकन अब भी
ब त सारी सम ाएँ बाकी ह।
आिथक अभावों के पैमाने पर मापी गई गरीबी भारत के दू सरे रा ों की तुलना म
उ र दे श म ादा है और िपछले दो दशकों के दौरान गरीबी उ ूलन के काम म
काफ़ी उतार-चढ़ाव आते रहे ह। गरीबी म जीने वाले ादातर प रवार ामीण े ों म
रहते ह, और इितहास गवाह है िक रा के पूव और दि णी िह े ादा गरीबी की
चपेट म रहे ह। उ र दे श के लोग बीमा रयों के भारी बोझ से भी पीिड़त ह। पूरे भारत
म ज ा की मृ ु दर एक लाख थ िशशुओं म 178 है । इसकी तुलना म उ र दे श
म यह दर 300 है , जो िक काफ़ी ऊँची है । ब े ख़ासतौर से हालात की मार से ादा
भािवत होते ह—इस रा म भी ब े अ र कुपोषण के िशकार िमलते ह—तीन
साल से कम उ के आधे से ादा ब े वज़न की कमी का िशकार ह और बचपन म
होने वाले रोगों से बचाव का भी इं तज़ाम नहीं है । दस म से तीन ब े तो ऐसे है िज
बीमा रयों से बचाव के टीके कभी नहीं लगे ह, और उ र दे श म िशशु मृ ु दर,
1000 जीिवत पैदा ए ब ों म से 85 इतनी ादा है िजतनी भारत म और कहीं नहीं
है । िजन प रवारों म भौितक संसाधनों की कमी है , उ ीं म िशशु मृ ु दर भी ख़ासतौर
पर ादा है ।

गरीबी से लड़ने के िलए सरकार को


अपनी सभी प रसंपि यों पर सोच–
समझ कर िनमाण काय करने होंगे,
चाहे वह सावजिनक े के हाथों म हो,
या िनजी े के। तब कहीं वा व म
गरीबों तक इसका लाभ प ँ चेगा।

उपयोगी और मू वान चीज़ों के अभाव के साथ िन और अिनि त आमदनी का


नतीजा है गरीबी। गरीबी से लड़ने के िलए सरकार को अपनी सभी प रस ि यों पर
सोच- समझ कर िनमाण काय करने होंगे, चाहे वह सावजिनक े के हाथों म हो, या
िनजी े के। तब कहीं वा व म गरीबों तक इसका लाभ प ँ चेगा। स े दर पर
िदहाड़ी की मज़दू री ही ादातर गरीबों के िह े म आती है , ोंिक उनके पास
ज़मीन या दू सरे लाभ के साधन या तो होते ही नहीं ह, या ब त कम होते ह। गरीबों के
पास ऐसे नर भी नहीं होते िजनकी बाज़ार म कोई क़ीमत िमल सके, और ादातर
मामलों म वही ा सम ाओं और शारी रक अ मताओं के भी अपे ाकृत ादा
िशकार होते ह। िनजी पूंजी और प रस ि यों के अभाव के कारण होती है गरीबी।
हाथ म नर यानी कौशल और काम-धंधा शु करने के िलए ज़ री पूँजी के अभाव
म गरीब आदमी और औरत िवकासो ुख अथ व था के चलते िमलने वाले अवसरों
का फ़ायदा उठा पाने म भी अ म होते ह।
मई 2012 म ए उ र दे श कॉन ेव म मने रा म एक समेिकत कौशल-
आधा रत सश करण िमशन शु करने का ाव रखा था। मने रा भर म एक
लाख सामािजक उ म शु करने की िसफ़ा रश की थी। इनम से हरे क म बड़ी सं ा
म मौजूद िशि त युवाओं म से पचास सामािजक उ िमयों को जोड़ा जा सकता है ।
मु मं ी अ खलेश यादव की मौजूदगी म मने कहा था, ‘‘उ र दे श के ये सामािजक
उ मी िबलकुल ज़मीनी र पर जी रहे समुदायों के साथ काम करते ए
सश करण की ि या पर भी नज़र रख सकते ह। इससे रा म प ीस लाख
िशि त बेरोज़गारों और अित र काम की तलाश कर रहे युवाओं को अिधक
आमदनी दे ने वाले रोज़गार मुहैया कराने म मदद िमलेगी और साथ ही िवकास के नये
रा े खुलगे।’’

हाथ म नर यानी कौशल और काम–


धंधा शु करने के िलए ज़ री पूँजी के
अभाव की वजह से गरीब लोग
िवकासो ुख अथ व था के चलते
िमलने वाले अवसरों का फ़ायदा उठा
पाने म भी अ म होते ह।
उदाहरण के िलए, मलीहाबाद के आमों को लेकर उन से अित र पोषक त ों
से यु खाने की चीज़ बनाकर उनकी लागत पर कम से कम लाभां श लेते ए और
थानीय बाज़ारों को वरीयता दे ते ए जनसामा को उपल कराया जाए। इस तरह
सामािजक उ मी थानीय उ ादों, थानीय पोषण स ी आव कताओं,
ौ ोिगकी और िवपणन के बीच सेतु का काम कर सकता है । मह पूण शहरों जैसे
लखनऊ, कानपुर, नौएडा और मेरठ के िवकास की ज़ रत पर ज़ोर दे ते ए मने
सुझाव िदया था िक रा सरकार ाइवेट-प क मॉडल पर यू. पी. ल एं टर ाइज़
कॉरपोरे शन थािपत कर सकती है , जो कॉलेज म पढ़ रहे और बाज़ारों म पार रक
कौशल स ितभाशाली युवाओं को चुनकर उन पर िनवेश करे तािक वे सामािजक
उ िमयों के प म उभर कर सामने आ सक।

िकसी समुदाय की संसाधनों के ब न


की मता का मुख कारक होता है
उस समाज म लोगों के बीच आपसी
लगाव और साझा ल तय करने और
उ ा करने की मता।

ल बनाकर औ ोिगक िश ण सं थानों म युवाओं के िश ण, युवा


कायशालाओं, िवपणन, ौ ोिगकी ि याओं म सुधार और अ िक के ह ेप
से समूचे रा को ही लाभ िमल सकता है । ेक िजले म वहाँ के कौशल,
स ावनाओं और थानीय उ ादों के उपयोग पर आधा रत अथ व था िवकिसत
करने का ल ा करने के िलए ा कुछ िकया जा सकता है । इसके साथ ही, यह
सामािजक उ मी ख़ुद ही एक-दू सरे से तुलना करके अपने मानद भी ख़ुद ही तय
कर सकते ह, आपसी सहयोग से िवतरण व था के रा े बन सकते ह और इस तरह
आपसी सहयोग के िनवेश से अपने साथ रा के क ाण म भी भागीदार हो सकते
ह। इससे भदोही, मुरादाबाद, अलीगढ़, आगरा और सोनभ समेत कई े ों म
औ ोिगक के बनने के रा े खुलगे। इसिलए, दो ो, शासन और आिथक िवकास
की यह एक वैक क कायसूची है जो रा की राजनैितक व था को दी गई है ।
आपने जानना चाहा है िक जाित और स दाय के आधार पर बनी दू रयों को
कैसे कम िकया जा सकता है । इन दू रयों की वजह है संसाधनों की कमी की सम ा।
अपे ाकृत स लोगों के मुक़ाबले गरीब लोग अपने गुज़ारे के िलए वन संसाधनों पर
ादा िनभर होते ह। िमसाल के तौर पर गरीब लोग खाना पकाने के िलए गैस या
आधुिनक दवाओं का खच नहीं उठा सकते। इस वजह से अपने िनजी संसाधनों को
इ ेमाल करने या न करने के पीछे उनके अपने अलग कारण हो सकते ह और
इसीिलए ाकृितक संसाधनों के दोहन के िसलिसले म कैसे िनयम होने चािहए इस बारे
म उनकी अपनी राय दू सरों से अलग हो सकती है ।
िकसी समुदाय की संसाधनों के ब न की मता का मुख कारक होता है उस
समाज म लोगों के बीच आपसी लगाव और साझा ल तय करने और उ ा
करने की मता। इसका मतलब यह नहीं िक समाज म एक पता होनी चािहए।
भारतीय समाज म सामािजक पहचान अचानक गायब नहीं हो सकती। लोगों के ऐसे
समुदाय भी ह जो जाित, धम, पा रवा रक पृ भूिम और इितहास समान होने के
बावजूद भी एकजुट नहीं ह। इससे उलट ऐसे भी कई समुदाय ह िजनम अलग-अलग
पृ भूिम वाले लोग साझा ल ा करने की ख़ाितर आपसी फ़क को दरिकनार
करने म कामयाब रहे ह। मु मु ा यह है िक कोई समुदाय साझा ल िनधा रत
करने म स म है , इन ल ों को हािसल करने की रणनीित तय करके िमलजुल कर
काम कर सकता है ।
2014 के आम चुनाव म जाित और स दाय से ऊपर उठकर मतदान ए। यहाँ
तक िक सां दाियकता से पैदा होने वाली दू रयाँ भी बेमानी सािबत ईं। माहौल म
आशा का संचार आ है । भारत ने इस तरह मतदान करके िवकास का रा ा चुना है
—तेज़ी से तर ी की ख़ाितर, रोज़गार की ादा स ावनाओं की ख़ाितर और
महं गाई को बढ़ने से रोकने की ख़ाितर। लगातार िवकास होने से लोगों के बीच जो कई
तरह की दू रयाँ ह वह िमट जाएँ गी, और एक श शाली भारत का उदय होगा, कुछ
वैसे ही जैसे कई धातुओं के मेल से ादा मज़बूत िम धातु तैयार होती है ।
कब गा सकूँगा म भारत का गीत
आपका ा ान ‘वेन कैन आई िसंग अ सॉ ग ऑफ़ इं िडया’ यानी
. ‘कब होगा मेरे होठों पर भारत का गीत’ वा व म ब त ेरणा द
है । लेिकन ेरणा के ये पल ब त ज ी बीत जाते ह। अभी उसे
लोगों के बीच पेश ए तीन साल भी नही ं ए ह िक दे श म ही िवकिसत
कम क़ीमत वाले टै बलेट क ूटर ‘आकाश’ का भिव अिनि त नज़र
आने लगा है । जबिक सरकार उसे बचाने का यास कर रही है , आकाश
के मुक़ाबले म िनजी क िनयों के कम-क़ीमत वाले टै बलेट क ूटर
आने के बाद उसके औिच पर ही सवाल उठने लगे ह। िदल की
बीमा रयों म काम आने वाले कम कीमत वाले दे शी ट िच ा हाट
वॉ के साथ भी ऐसा ही कुछ आ। ा यह भारत के िलए एक और
सबक है िक िवकासशील दे श म कुछ अ ा करने के िलए अ ी नीयत
ही आमतौर पर उतनी कारगर नही ं होती िजतना िक भौितकवाद,
क िनयों के िनजी िहत और बाज़ार? िबल गेट्स का कहना है िक भारत
को क ूटर की पूजा करने से पहले मूलभूत ढाँचा मुहैया कराने पर
ान दे ना होगा, चाहे वह ‘िवंडोज़’ पर ही आधा रत ों न हों। कुछ
महीने पहले उ र दे श म, जहाँ लोग दि णी अ ीका के सबसे गरीब
दे शों जैसी बदहाली म जीते ह, वहाँ मु मं ी और उनकी प ी ने मंच
पर खड़े होकर हाई ू ल के छा –छा ाओं को मु म लैपटॉप बाँटे,
जैसे ख़ैरात बाँटी जाती है । उ ोंने और लोगों को क ूटर दे ने का वादा
भी िकया।
सर, मुझे यह बताएँ िक ा भारत का गीत हद दज की गरीबी
और िडिजटल ौ ोिगकी की पूजा का युगल गीत होगा?

जब तक भारत अपने दम पर दु िनया का डटकर मुक़ाबला नहीं करता, तब तक कोई


हमारा आदर नहीं करे गा। इस दु िनया म डर के िलए कोई जगह नहीं है । ताक़त िसफ़
ताक़त का आदर करती है ।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

तमान थित को लेकर आपकी पीड़ा को म महसूस कर सकता ँ । िकसी नेक,


व शा ि य नाग रक के िलए दे श के भिव की िच ा करना ाभािवक है ।
आपके सवाल का जवाब दे ने से पहले म अपने उन तीन सपनों के बारे म बताना
चाहता ँ , जो मेरी आँ खों म ह।
हमारे तीन हज़ार वष के इितहास म, दु िनया भर से लोगों ने आकर हमारे ऊपर
हमले िकए, हमारी ज़मीन पर क ा िकया और हमारे िदल-ओ-िदमाग पर छा गए।
िसक र के बाद से दे ख तो यूनािनयों, पुतगािलयों, अं ेज़ों, ां सीिसयों और डच, सभी
ने आकर हमारी दौलत, हमारे संसाधनों को लूटा और जो कुछ कुदरत ने हम ब ा
आ था, उस सब पर अपना हक़ जमाया। लेिकन हमने िकसी दू सरे रा के साथ ऐसा
नहीं िकया। हमने िकसी पर जीत दज करने के िलए हमले नहीं िकए। हमने न उनकी
ज़मीन पर क ा िकया, और न उनकी स ता को रौंद कर उन पर अपने जीने के
तौर-तरीके थोपे। ों? हमने िकसी दे श की धरती पर हमला इसिलए नहीं िकया और
न ही िकसी को अपने अधीन िकया ोंिक हम इं सान की आज़ादी का स ान करते ह
—अपनी आज़ादी का, और दू सरों की आज़ादी का भी। इसिलए भारत को लेकर मेरी
आँ खों म पहला सपना आज़ादी का है ।
भारत को लेकर मेरा दू सरा सपना िवकास का है । िपछले साठ साल से हम
िवकासशील रा ह। अब समय आ गया है जब हम ख़ुद को िवकिसत रा बनते ए
दे ख। सकल घरे लू उ ाद के िलहाज से हम दु िनया के पाँ च शीष थ रा ों म आते ह।
ादातर े ों म हमारी िवकास दर पाँ च ितशत है । हमारे यहाँ गरीबी का र कम
होता जा रहा है । हमारी उपल यों को सारी दु िनया म मा ता दी जा रही है । लेिकन
ख़ुद को आ िनभर और आ स ान से भरे िवकिसत रा के प म दे खने के िलए
ज़ री आ िव ास हमारे पास नहीं है । ा यह बात सच नहीं है ?

मेरा तीसरा सपना है िक भारत दु िनया के सामने िसर उठा कर खड़ा हो सके।
ोंिक म मानता ँ िक अगर भारत दु िनया के बाकी दे शों के र से पीछे रह जाता है ,
तो कोई हमारा स ान नहीं करे गा। िसफ़ ताक़त ही ताक़त का स ान करती है । हम
िसफ़ एक सै श के तौर पर ही श शाली नहीं होना चािहए, ब आिथक
श के प म भी मज़बूत होना चािहए। दोनों साथ-साथ चलने चािहए।
अपने रा को आिथक प से िवकिसत दे श म बदलने के िलए िवकास दर म
तेज़ी लाने के उ े से मने भारत की मूलभूत मताओं, ाकृितक संसाधनों और
ितभाशाली जनबल के आधार पर पाँ च े ों की पहचान की है । ये पाँ च े ह—
वतमान कृिष उ ाद सं रण और खा ा उ ादन को दोगुना करने के उ े से
कृिष और खा सं रण; िबजली की भरोसेम उपल ता के साथ ामीण े ों म
शहरी सुिवधाएँ मुहैया कराना और सौर ऊजा का अिधकािधक उपयोग; िनर रता,
सामािजक सुर ा और जनसं ा के मु ों को ान म रखते ए िश ा और ा
सेवाओं का िव ार; दू रदराज़ के इलाकों म िश ा, दू रसंचार और टे ली-मेिडिसन के
िव ार के िलए ई-गवनस को बढ़ावा दे ने के िलए सूचना और संचार ौ ोिगकी; और,
अ म, नािभकीय ौ ोिगकी, अ र ौ ोिगकी और र ा ौ ोिगकी के िवकास
के िलए ‘ि िटकल’ ौ ोिगकी और साम रक मह के उ ोगों को बढ़ावा।
दे श के युवाओं को सा रता, पयावरण और सामािजक ाय के े ों म काम
करके भारी सामािजक बदलाव ला सकते ह, और उ ामीण और शहरी जीवन र
के बीच की खाई को पाटने की िदशा म काम करना चािहए। यह अ आव क है
िक िवकिसत भारत एक ऐसा रा हो जहाँ ऊजा और अ ी गुणव ा के पानी का
िवतरण और उपल ता ायसंगत होगी, जहाँ कृिष, उ ोग और सेवा- े आपसी
तालमेल के साथ काम करगे, एक ऐसा रा जहाँ सभी को उ ृ ा सेवाएँ
उपल होंगी, जहाँ शासन व था ज हरकत म आने वाली, पारदश और
ाचार रिहत होगी।
अब म आपके सवाल पर आता ँ — ा भारत का गीत हद दज की गरीबी और
िडिजटल ौ ोिगकी की पूजा का युगल गीत होगा? मेरा जवाब है नहीं। बेशक इसके
िलए हम अभी ब त कुछ करना है । हम अपने छोटे -मोटे झगड़े और मनमुटाव भुला
दे ने चािहए ोंिक ये झगड़े िबलकुल गलत ह। हमारे पिव धम ों म इन झगड़ों को
बुरा बताया गया है । हमारे पूवज, और वे महान लोग िजनके वंशज होने का हम दावा
करते ह, िजनका ख़ून हमारी रगों म दौड़ता है , अपनी औलादों को मामूली सी
असहमित की वजह से झगड़ते दे ख शिम ा महसूस करते होंगे।
झगड़ना ब कर दे ने से बाकी सब कुछ सुधरने लगेगा। जीवन का आधार,
हमारी जीवनी श जब दमदार और शु होती है , तो शरीर म रोग पैदा करने वाले
कीटाणु नहीं पनप पाते। हमारी जीवनी श है हमारी आ ा कता। अगर उसके
बहाव म कोई कावट नहीं है , अगर उसका वाह तेज़, शु और ओजपूण है , तो सब
कुछ ठीक रहे गा; राजनैितक, सामािजक या कोई भी दू सरी भौितक ख़ािमयाँ । यहाँ तक
िक दे श की गरीबी व सभी परे शािनयों से छु टकारा िमल जाएगा।
अगर आधुिनक िचिक ा िव ान की ज़बान म बात कर, तो हम कह सकते ह िक
हम मालूम है िक बीमारी के पीछे दो कारण होते ह, एक तो बाहर से शरीर म वेश
करने वाला रोगाणु और दू सरे शरीर के ा की आ रक थित। जब तक शरीर
ऐसी थित म नहीं होता िक रोगाणु उसम वेश कर सक, जब तक िक शरीर के ओज
म इतनी िगरावट नहीं आई ई होती है िक रोगाणु शरीर म घुस कर पनप और बढ़
सक, तब तक िकसी भी रोगाणु म इतनी श नहीं है िक वह थ शरीर म बीमारी
पैदा कर दे । सच तो यह है िक करोड़ों रोगाणु लगातार हमारे शरीर से होकर गुज़रते
रहते ह, लेिकन जब तक शरीर थ और तंदु रहता है , तब तक उसे कोई फ़क
नहीं पड़ता। जब शरीर कमज़ोर होता है िसफ़ तभी ये रोगाणु उस पर अपनी पकड़
बना लेते ह और रोग पैदा कर दे ते ह। कुछ ऐसा ही रा के जनजीवन के साथ भी है ।

जब रा का ‘शरीर’ कमज़ोर पड़ जाता


है तभी तमाम तरह के बीमा रयों के
कीटाणु उसकी कौम की राजनैितक,
सामािजक, शै िणक या बौ क
व था म जमा हो जाते ह और बीमारी
पैदा करते ह।

जब रा का ‘शरीर’ कमज़ोर पड़ जाता है तभी तमाम तरह के बीमा रयों के


कीटाणु उसकी कौम की राजनैितक, सामािजक, शै िणक या बौ क व था म
जमा हो जाते ह और बीमारी पैदा करते ह। इसिलए, इसका इलाज करने के िलए हम
बीमारी की जड़ों तक जाना चािहए और ख़ून की सारी ग गी को दू र करना चािहए।
एक ल यह होना चािहए िक आदमी को सश बनाया जाए, ख़ून को साफ़ िकया
जाए, शरीर को ओजपूण बनाया जाए, तािक वह िकसी भी बाहरी ज़हर का मुक़ाबला
कर सके और उसके असर से छु टकारा पा सके।
हमने दे खा है िक हमारा बल, हमारी श , ब दे खा जाए तो हमारे रा का
जीवन हमारे आ ा क भाव म ही बसा है । अभी म यह चचा नहीं करने जा रहा ँ
िक यह सही है या नहीं, आगे चलकर यह फ़ायदे म होगा या नहीं, लेिकन सच यही है
िक यह आ ा क ओज होता ज़ र है । हम इससे बाहर नहीं िनकल सकते, यह
जैसे अभी हमारे पास है , वैसे ही यह हमेशा रहे गा, और हम इसके साथ रहना है , भले
ही अिधकां श लोगों म इसके ित मेरे जैसी आ था न हो।

एक रा के तौर पर हम अपनी
अ ा कता से बाँ धे ए ह, और अगर
हम इसे ाग दगे, तो हमारे टु कड़े –
टकड़े हो जाएँ गे।

एक रा के तौर पर हम अपनी आ ा कता से बँधे ए ह, और अगर हम इसे


ाग दगे, तो हमारे टु कड़े -टकडे़ हो जाएँ गे। यह हमारी रा ीयता की जीवनी श है
िजसे अव ही प रपु िकया जाना चािहए। हम सिदयों से झटके सहते चले आ रहे ह
और इसकी वजह यही है िक हमने इसका ब त ान रखा है और इसके िलए हमने
बाकी सब कुछ क़ुबान कर िदया। हमारे पूवज सब कुछ बहादु री के साथ सह गए, यहाँ
तक िक मौत भी, लेिकन उ ोंने संवेदना के साथ काम करने की अपनी पर रा को
संजो कर रखा।
भारतीय मानस, सबसे पहले और सबसे बढ़कर आ ा क है । इसिलए इस
आ ा कता को समृ करना है , सवाल है िक इसे कैसे कर? नेकी और ईमानदारी
के रा े पर रह—पिव राह पर। पहले पिव ता का ान रख, आपके पास सारी
श ख़ुद ब ख़ुद आ जाएगी। जब आप ईमानदारी के रा े पर चलते ह तो आप पाते
ह िक हर कोई अपने आप ही आपके साथ सहयोग करे गा। सकारा क प र थितयाँ
सामने आ जाएँ गी, जैसे न जाने कहाँ से कट हो गई हों। आपके अ र से कुछ ऐसा
रह मय सा िनकलता आ महसूस होगा िजसकी वजह से लोग आपके पीछे चलना
चाहगे, आपको सुनना चाहगे, और उ इस बात का एहसास भी नहीं होगा, और यहाँ
तक िक वह अपनी मज़ के िख़लाफ़ जाकर भी वही करने लगगे जो आप चाहते ह।
यौवन वह समय है जब आप अपने भिव के बारे म फ ़ ै सले कर सकते ह, और
यह तभी हो सकता है जब आपके अ र यौवन की ऊजा है , तब नहीं जब आप िघस-
िपट कर मुरझा चुके होते ह, ब तब जब आपके पास यौवन की ताज़गी और जोश
होता है । यही काम करने का समय है , ोंिक भारत माता के चरणों म ऐसे अनछु ए
फूल ही चढ़ाने ह िज िकसी ने छु आ न हो। इसिलए, उठो, ोंिक जीवन छोटा है ,
लेिकन आ ा अमर है , िचर थाई है , और मृ ु शा त स । इसिलए, एक महान
आदश को अपना ल बनाएँ और उस पर अपना सारा जीवन ोछावर कर द। यही
आपका संक होना चािहए।
वैि क ित धा की ओर
हम होंगे कामयाब
सर, ऐसा नही ं हो सकता िक आप भारतीय बाज़ारों म आई चीन म
. बने सामान की बाढ़ और इसकी वजह से हमारे औ ोिगक आधार
के दरकने से अनजान हों। आप अथ व था के सेवा े पर
आधा रत अथ व था म बदलने की बात को भी नज़रं दाज नही ं कर
सकते, जो उन लोगों के ादा अनुकूल है िज ोंने बेहतर िश ा ली है ।
इसका मतलब यह आ िक हमारे दे श म ू ल समाज म बेहतर जगह
बनाने और ित धा के माहौल, दोनों को बढ़ावा दे ने की मौिलक नीित
का साधन बन रहे ह। आप इस बात की अनदे खी नही ं कर सकते िक
आज हम अपनी मानव पूंजी को बढ़ाने की ज़ रत है । यानी िजस
इलाके म आपका ज आ है , उसकी भौगोिलक पहचान, उसके िपन
कोड, के आधार पर आपका भा न तय हो जाए, जैसा िक अ र होता
है ।
आप इस त से अनजान नही ं हो सकते िक हमारी आिथक नीित
के साथ–साथ हमारी सामािजक नीित पर भी अिधकतम लोगों को
अिधकतम लाभ प ँ चने की सोच के बजाय च ताक़तवर लोगों के
लालच का ज़ोंर चलता है । जहाँ िनजी े हज़ारों नये उप म शु
करता जा रहा है , जो ौ ोिगकी के े म हो रही नई से नई गित से
जोड़े रखते ह, वही ं सरकारी व था नौकरशाही के पंजों की पकड़ म
है । िकसी भी र पर सरकारी मंज़ूरी हािसल करने के िलए जो बेहद
ल ा इं तज़ार करना पड़ता है उसे झेलना आसान नही ं। भारत म एक
औ ोिगक संय लगाने के िलए सरकार से पयावरण, ा और
सुर ा स ी आव क मंज़ ूरी लेने म लगभग दो साल लग जाते ह,
और इतना समय ौ ोिगकी की दु िनया म एक पूरी िज़ गी जैसा है ,
ोंिक इतने म तो वहाँ सब कुछ बदल जाता है ।
सर, जब आप ‘म कर सकता ँ ’ के ज बे के बारे म बात करते ह,
तो िजस व था म आज हम जी रहे ह, उसे दे खते ए तो यह सच से परे
लगता है । ा इस थित से बाहर िनकलने का कोई तरीका है ? अगर
हम अपनी वतमान क़ैद से िनकलने का रा ा नही ं मालूम, तो दू र
भिव म अपनी प ँ च बनाने के िलए िकसी रा े की बात करने का
ा अथ है ?

दु िनया म कुछ ही चीज़ आगे बढ़ने के िलए िदए गए ह े से ध े से ादा


श शाली ह—जैसे एक मु ान, आशावाद व उ ीद का एक श और किठन
समय म ‘हाँ , म यह कर सकता ँ ’ की सकारा क भावना।
— रचड डीवोस

पने भारतीय बाज़ारों म चीन म िनिमत उ ादों की आई बाढ़ के स म


आ जो िफ़ जताई है , म भी उस बात को लेकर िफ़ म ँ । हमारे बाज़ारों म
चीनी सामान की भरमार से हमारे छोटे और मझोले उ ोग बबाद हो रहे ह,
िजससे पये की कीमत पर भी दबाव बढ़ रहा है । इसकी शु आत ही नहीं होनी
चािहए थी, लेिकन िकसी भी गड़बड़ी को ठीक करने की पहल कभी भी की जा सकती
है । दे शी उ ोगों के पनपने म बाधा बनने वाली सरकारी मंज़ू रयों और उनम होने
वाली दे री के दु च पर आपकी िट णी भी काफी हद तक सही है । छोटे उ ोगों की
सफलता म दो त ों का हाथ होता है । पहले, की अपनी उ मशीलता की
भावना और दू सरे , इस भावना को बढ़ावा दे ने के िलए अ ा व अनुकूल वातावरण। म
मानता ँ िक हमारे दे श म ऐसे वातावरण की काफी कमी रही है , लेिकन भारतीयों की
सकारा क भावना की श को हम शक की नज़रों से नहीं दे खना चािहए। यह म
अपने िनजी अनुभव से कह रहा ँ और इसके साथ ही म आपके साथ एक घटना
साझा करना चा ँ गा जो 1998 म घटी थी।
न े के दशक की शु आत म म दे शी ह े लड़ाकू िवमान LCA (Light
Combat Aircraft) को िवकिसत करने की एक प रयोजना पर काम कर रहा था।
हमारी ोजे टीम ने िडिजटल ‘ ाई बाय वायर’ (FCS) यानी ाइट कंटोल
िस म िनय ण णाली को योग करने का िनणय िलया। चूंिक हम िवकिसत करने
का कोई अनुभव नहीं था, इसिलए हमने इसके िलए अमरीका की क नी, लॉकहीड
मािटन के साथ एक अनुब िकया। लॉकहीड मािटन को एफ-16 लड़ाकू िवमान के
िलए िडिजटल िनय ण णाली को िवकिसत करने का पया अनुभव था। संयु
प से िडिजटल िनय ण णाली को िवकिसत करने का यह अनुब 1992-98 के
बीच ठीक तरह से आगे बढ़ता रहा। र ा और िव मं ालय लगातार इस प रयोजना
की िनगरानी कर रहे थे और हमारी टे ोलॉजी पर काम कर रहे िवशेष ों के साथ-
साथ काम आगे बढ़ाने म भी मददगार बने ए थे। तभी, 11 मई, 1998 को भारत ने
परमाणु परी ण िकया, िजसके चलते अमरीकी सरकार ने हमारे ऊपर ितब लगा
िदए। इन ितब ों के कारण, लॉकहीड मािटन और हमारे बीच संयु प से ह े
लड़ाकू िवमान को िवकिसत करने के अनुब म अचानक एक ठहराव आ गया। यहाँ
तक िक हमारे अमरीकी सहयोिगयों ने अपने यहाँ मौजूद सभी भारतीय उपकरण,
सॉ वेयर और तकनीकी जानकारी भी अपने क े म ले ली। भारतीय टीम के िलए
उनका यह वहार एक ब त बड़ा झटका था।
मने इस प रयोजना से जुड़ी िविभ योगशालाओं के िनदे शकों की एक बैठक
बुलाई, िजसम भारतीय िव ान सं थान, बंगलू के िस िनय ण णाली िवशेष ,
ोफ़ेसर आई.जी. शमा, जाधवपुर िव िव ालय के िव ात िडिजटल िनय ण णाली
िवशेष , ोफ़ेसर टी.के. घोषाल और र ा अनुसंधान एवं िवकास संगठन, भारतीय
अ र अनुसंधान संगठन (इं िडयन ेस रसच अॉगनाइज़ेशन- इसरो) और
िह दु ान एअरोनॉिट िलिमटे ड के ितिनिधयों के साथ-साथ हमारे िव ीय
सलाहकार भी मौजूद थे। एक ल े िवचार-िवमश के बाद, टीम ने एक योजना पर चचा
की, िजससे चािलत िनय ण णाली को िवकिसत करने के काम को पूरा िकया जा
सकता था और लॉकहीड मािटन की मदद के िबना िवमानों के उड़ान परी णों को
मािणत करने की णाली िवकिसत हो सकती थी।
हमने खुले म ह े लड़ाकू िवमान को पायलट के साथ और िबना पायलट के
िसफ़ उपकरणों से िनय ण के ज़मीनी परी ण के िलए िबलकुल नये िक के साज़-
ओ-सामान से लैस एक ‘ रग’ (rig) तैयार करवाई।
इस टे रग म उड़ान के िलए ज़ री कॉकिपट, एिवयॉिन सूइट, खड़की के
बाहर का नज़ारा और दू सरी सभी व थाएँ मौजूद थीं, जो एल सी ए ाइट कंटोल
िस म के िडिजटल ाइट कंटोल क ूटर से जुड़ी थीं। इस तरह परी ण करने का
मक़सद था िकसी भी णाली म सामने आने वाली सम ाओं को शु आत म ही ढू ँ ढ
िनकालना तािक उनका समय रहते समाधान पाया जा सके।

हम वा व म साहस व आ –िव ास
से भरपूर एक रा ीय नेतृ की
आव कता है । ऐसा नेतृ जो उ ोगों
के िलए एक गितशील और रत
माहौल दान कर सके, िजससे
भारतीय उ ोग उ ित की ओर बढ़
सक।

वा िवक िवमान की परी ण उड़ान से पहले आयरन बड पर हमने हज़ारों घंटे


के परी ण िकए। पायलटों ने दो हज़ार घंटों से भी ादा समय तक ‘िस ुलेटर’
(simulator) म उड़ान भरने का अनुभव हािसल िकया। इस तरह, जो चीज़ हम हमारे
िवदे शी सहयोिगयों से नहीं िमल पा रही थी, हमने दे श म ही िमलजुल कर तैयार कीं।
िडज़ाइन की ग ीर समी ा करके और एकीकृत उड़ान िनय ण णाली के िडज़ाइन
सुर ा को सुिनि त करने के िलए परी ण समय म वृ करके इस कमी को पूरा
िकया। उस समय हमारी पूरी टीम अमरीका ारा ितब लगाने की इस कारवाई को
एक रा ीय चुनौती के प म ले रही थी। उनका कहना था िक यिद वे लॉकहीड मािटन
की सहायता से इस काय को तीन वष म पूरा कर लेते, तो त प से वे इसे दो वष
म ही पूरा कर िदखाएँ गे। यिद मूल प से इसम दो करोड़ डॉलर की लागत आनी थी,
तो वे इस लागत को कम करके एक करोड़ डॉलर कर िदखाएँ गे। यह सब उ ोंने दे श
म उपल अ िधक अनुभवी इं जीिनयरों, तकनीकी िवशेष ों और कुशल िव ानों को
अपने साथ जोड़ कर सरकारी संसाधनों के भीतर ही कर िदखाया था। िदस र 2013
म इस ह े लड़ाकू िवमान को IOC (Initial Operational Clearance) यानी इसे
उड़ाने की शु आती अनुमित िमली और फरवरी 2014 म इसे िहमालय की ऊँची
चोिटयों के ऊपर उड़ाकर और परी ण िकए गए। िदस र 2014 तक इसे FOC
(Final Operational Clearance) यानी अ म प इ ेमाल की अनुमित िमल
जाएगी, िजसके बाद इसे भारतीय वायु सेना म शािमल कर िलया जाएगा।
इस घटना से मुझे इतना आ ासन तो अव िमला िक कोई भी दे श ौ ोिगकी
अथवा आिथक ितब लगाकर हम पर हावी नहीं हो सकता और हर हाल म हम
होंगे कामयाब। हमारे वै ािनकों की सामूिहक ताकत और ब कीय और िव ीय
िवशेष ता िकसी भी रा से िमलने वाली चुनौितयों का सफलतापूवक सामना कर
सकती है ।
अब हम चीनी उ ादों के भारतीय बाज़ारों म छा जाने के मु े पर वापस आते ह।
हम वा व म साहस व आ -िव ास से भरपूर एक रा ीय नेतृ की आव कता है ।
ऐसा नेतृ , जो उ ोग और िविनमाण के े म एक गितशील व रत िति या से
भरपूर माहौल का िनमाण करके अ दे शों की बराबरी कर सके। इस कार
ौ ोिगकी, िव ीय संसाधन और उ मों के िलए पूंजी उपल करवा कर और
समावेशी सावजिनक नीितयों को अपना कर िवकास का एक अनुकूल वातावरण
तैयार करके भारतीय उ ोगों को सश बनाया जा सकेगा।
िवकिसत भारत इ ीसवीं सदी की महाश बन सकता है , और हम इसे कोई
सपना नहीं समझना चािहए। न ही इसे एक ल के प म दे खना ठीक होगा। यह
हम सब का अपने रा के ित एक कत है , िजसे हम पूरा करना ही है । आने वाले
समय म भारत सािबत कर दे गा िक उसम दमखम है , और इसम कोई शक नहीं िक
भारत के महाश बनने की नींव पहले ही पड़ चुकी है । अब समय है िक उसपर
काम िकया जाए। उसे अंजाम िदया जाए।
भारत और चीन
सर, मने बीिजंग म िदया गया आपका ा ान ‘पृ ी एक रहने
. यो ह’ पढ़ा। मुझे यह बात खोखली सी लगती है । मुझे लगता है
िक आप भी यह महसूस करते ह िक भूगोल से जुड़ी राजनीित के
मामलों म, भारत म भिव को ान म रख कर सोचने की पर रा
नही ं है । हमारी सोच और परखने की मता का र ठीक नही ं है ।
हमारे नेतागण न जाने कैसी ख़ुशफ़हमी पाल लेते ह, और अपनी सोच
पर ख़ुद ही इतराते रहते ह। िकसी ने एक बार कहा था िक ताकत और
भाव कोई यूं ही नही ं िमल जाते, उ छीनना पड़ता है । कोई चीज़ कैसे
ली या छीनी जाती है , इसे चीन ने बखूबी कर िदखाया है । भारत के पास
ताकत और अिधकारों के िलए लड़ने और इ हािसल करने के िलए
राजनीितक इ ा–श और साहस का अभाव है ।
यह उ ीद करना िक एक िदन भारत आिथक िवकास के मामले
म चीन को पछाड़ सकता है , िफलहाल तो ब त दू र की कौड़ी तीत
होती है । लेिकन चीन के साथ इस तुलना से भारतीय लोगों को ब त
ादा िचंितत होने की ज़ रत नही ं है । भारत और चीन म इससे भी
बड़ा अ र अित आव क सावजिनक सेवाएँ उपल कराने म है ,
िजनके न होने पर जीवन र नीचे िगर जाता है और इस वजह से
िवकास के रा े पर िघसट–िघसट कर चलने के िसवा कोई रा ा नही ं
बचता। दोनों ही दे शों म लोगों के बीच असमानता ब त ादा है , लेिकन
चीन ने ल ी उ तक जीने, सामा िश ा का िव ार करने और
अपने नाग रकों के िलए ा सुिवधाएँ सुिनि त करने के िलए भारत
की तुलना म ब त ादा काम िकया है । भारत म िविश वग के कुछे क
िव ािथयों के िलए अलग र के सव ृ िव ालय मौजूद ह, िक ु
सात वष या इससे ादा उ के सभी भारतीयों म, ेक पाँच लड़कों
म लगभग एक और ेक तीन लड़िकयों म से एक अिशि त है । और
यहाँ अिधकांश िव ालयों म िश ा का र ब त नीचा है , यहाँ तक िक
चार वष तक िश ा पाने के बाद आधे से भी कम ब े 20 को 5 से भाग
दे पाते ह। बेशक, भारत म हमारी सबसे बड़ी ताकत है हमारा
लोकतांि क ढाँचा। चीन म, िबना आम सहमित के शीष र पर िनणय
ले िलये जाते ह। चीनी णाली भारतीय जीवनशैली के िलए दमघोटू
सािबत हो सकती है । ऐसे म, यहाँ आव कता है लोकत के साथ एक
ऐसे नेतृ की, िजसम ती गित से सही िनणय लेने की मता हो।
अब आप ही बताएँ , सर, िक इस स ाई के ित हमारे नेताओं की
नी ंद कब खुलेगी? ‘रहने यो ह’ का सपना हम िदखाने से पहले आप
हम बताएँ िक एक उ ृ जीवन कैसे जीया जा सकता है ।

हम यह बुिनयादी व बेहद मह पूण बात हमेशा ान म रखनी चािहए—िजतना


अ ा कर सकते ह कर, लेिकन िजतना बुरा हो सकता है उसके िलए ख़ुद को तैयार
रख।
—ए पी जे अ ु ल कलाम

िजंग और नई िद ी को लेकर, दो तरह की सोच दे खने को िमलती है । एक


ब◌ी सोच यह है िक इन दो उभरती ई श यों के बीच एिशया महा ीप म
अपना भु जमाने की होड़ लगी रहे गी। इससे इन दोनों दे शों के बीच र ों
के आधार पर इ िवरोधी दे श करार िदया जा सकता है और ये स ऐसे ह िक
इनम कभी भी सै टकराव की थित पैदा हो सकती है या िफर दोनों दे शों म टकराव
की स ावना को दे खते ए इस इलाके म सेनाओं को और ादा हिथयारों से लैस
करने का िसलिसला ज़ोर पकड़ सकता है । यु इसिलए टलता रहता है ोंिक दोनों
दे शा के पास परमाणु हिथयारों का ज़खीरा मौजूद है । वे अपने पारं प रक यु की
मताओं को बढ़ा रहे ह और पार रक यु के िलए अपनी मता बढ़ाने के साथ
आधुिनकीकरण पर ज़ोर दे रहे ह। इसके िवपरीत, दू सरी तरह सोचने वाले एक उदार
नज़ रये से चीज़ों को दे खते ए चीन और भारत को एक- दू सरे पर आि त दु िनया म
दो उभरते ए मुख बाज़ारों के प म दे खते ह, जहाँ ापा रक और वािण क
गितिविधयों के दम पर शा पूण सह-अ की थित बनी ई है । अगर हम अपने
मीिडया की बात को सही मान, तो ादा लोगों का ‘चीनी ख़तरे की बात’ पर ही ादा
ज़ोर रहता है ।
यह सच है िक अगर हम सीधे-सीधे तुलना कर तो हम लगभग सभी सामािजक व
आिथक आँ कड़ों के िलहाज से चीन से ब त पीछे ह। पि मी िवशेष ों के साथ-साथ
कुछ भारतीय िवशेष भी धीमी लोकता क ि या को इस थित के िलए िज़ ेदार
मानते ह। हम एक बात अपने िदमाग म रखनी चािहए िक भारत की राजनीितक
णाली को इसकी अ िधक जिटलता के कारण पहचाना जाता है । यह जिटलता
े ीय िभ ताओं और लोगों को िमलने वाले अवसरों म िविवधता के कारण है , िजससे
सभी रों पर अवरोध, चोरी, आल व ाचार की भावना पैदा होती है । लेिकन
भारत म िवकास की ि या, िबना िकसी बड़ी राजनैितक उठापटक के लगातार जारी
है ।
इसके िवपरीत, िवकास का चीनी ढाँ चा कई दशकों की सामािजक व आिथक
हलचलों के बाद सामने आया है । चीन ने माओ युग, सां ृ ितक ा , उ र-
सां ृ ितक ा और उ र-ितयान ेन काल दे खा है । िविभ चरणों म इन प रवतनों
के साथ-साथ चीन को बडे़ र पर सामािजक व राजनीितक अशा से भी जूझना
पड़ा है । भारत की संघीय लोकता क णाली, अपनी सभी ख़ािमयों के बावजूद, अब
तक सभी तरह की गड़बिड़यों और सामािजक आ ोलनों से िनपटने के िलए
अपे ाकृत बेहतर तरीका सािबत ई है । जहाँ तक त भारत के 1990 के दशक
तक, आिथक मोच पर दशन की बात है , हालाँ िक वृ -दर धीमी रही, लेिकन
लगातार चली और इसका सही अ ाज़ा भी लगाना मु ल नहीं था। इससे उलट,
चीन के राजनीितक व आिथक प र म बेहद अ थरता रही और सामािजक थित
तो कई बार अ िव ोटक भी हो गई थी। भारत म िवकास और गित का लाभ
समाज के सभी वग तक प ँ च सके, इसके िलए दे श म िपछड़े सामािजक-आिथक
संकेतकों म ज ी से ज ी सुधार लाने के िलए अपने सभी यासों और संसाधनों को
लगा दे ने की ज़ रत को लेकर वैचा रक मतभेद हो सकते ह।
और जहाँ एक ओर, हम अपनी भौगोिलक सीमाओं के भीतर के िवकास पर
नज़र डालते ह, तो दू सरी ओर, ापक प र से यह दे खने की ज़ रत है िक
दु िनया के तमाम दे श इस धरती पर सह-अ की भावना के साथ कैसे अपना
वजूद बनाए रख सकते ह। हम ादा ापक नज़ रया अपनाने की ज़ रत है तािक
हम यों, िवचारधाराओं, दलीय वफादारी, राजनीितक मह ाकां ाओं और
वतमान समय म हािसल ौ ोिगकीय े ता से ऊपर उठ कर दे ख सक। जब तक
िभ -िभ े ों के बीच, शहरी व ामीण े ों के बीच, मू वान संसाधनों को एक-
दू सरे के साथ साझा करने म पड़ोसी दे शों के बीच, िवकास की असमानताएँ बनी
रहगी, िव शा हमारे िलए एक क ना ही बनी रहे गी। आधुिनक ौ ोिगकी ने
दे श- ा की दू रयों को घटाकर, समूचे िव को एक वैि क ाम म प रवितत कर
िदया है , िजससे िव भर के लोगों के बीच असमानताओं को सहने का धैय पहले से
कम होता जा रहा है । हम अपने दे श के रा ों म आिथक िवकास लाने के िलए इसी
तकनीक का उपयोग करना होगा और इसके साथ ही साथ इस धरती पर शा
सुिनि त करनी होगी। इसके िलए आव क है िक मानवता अपने मतभेदों को भुला
कर एक िव - रीय ि कोण अपनाए और िव के सभी नाग रकों के िलए शा व
समृ ा करने के साझा ल ों की ओर कदम बढ़ाए।
यूरोप के दे शों ने लगभग सौ वष तक इसके िलए संघष िकया और तब कहीं
जाकर वे इक े ए और उ ोंने िमल कर यूरोपीय संघ की थापना की। यह सच है िक
1962 का यु भारत व चीन, दोनों के िलए एक ब त बुरा अनुभव था। लेिकन ा हम
आपस म बातचीत करते समय हमेशा उसका संदभ दे ना या उसे िदशा- िनदश के
प म इ ेमाल करना ज़ री है ? इसका िनणय तो हम ही करना होगा िक हम
आपसी सहयोग चाहते ह या टकराव। िनि त प से हमारे िलए अपनी सीमाओं की
र ा करना ब त ज़ री है और हम अपने दे श की अखंडता को अव सुरि त
रखना चािहए, लेिकन यिद हम भारत व चीन की जनसं ा को िमला कर दे ख तो यह
िव जनसं ा की लगभग 37 ितशत बैठती है और यह सं ा दोना दे शों के िलए
ब त बड़ा अवसर दान कर सकती है ।

दोनों दे श यिद एक साथ िमलकर


िविश प रयोजनाओं पर काय कर तो
शा और समृ की चुर
स ावनाएँ ह।

इन सब बातों को दे खते ए म इस िन ष पर प ँ चा ँ िक हम इक े होकर


दु िनया के सामने एक े स ता का उदाहरण ुत करना चािहए। यिद दोनों दे श
एक संयु ि कोण अपनाते ह और इक े हो जाते ह, तो इससे ौ ोिगकीय या
सामािजक िवकास के ल ों अथवा कई िविभ ल ों के िलए भी संयु यास िकए
जा सकते ह। दोनों दे श यिद एक साथ िमलकर िविश प रयोजनाओं पर काय कर तो
शा और समृ की चुर स ावनाएँ ह। भारत का यह यास िव के सभी
नाग रकों के िलए एकीकृत व िविश तरीके से शा व समृ लाने के िलए, सहयोग
का एक महान आदश ुत करके भारत को एक अ णी दे श के प म उभरने म
मदद कर सकता है ।
नव र 2012 म म पीिकंग िव िव ालय के िनम ण पर ‘बीिजंग फॉरम 2012’
को स ोिधत करने के िलए चीन गया। मेरे भाषण का िवषय था, ‘पृ ी एक रहने यो
ह’। मने वैि क काय के िलए एक िव ान मंच थािपत करने का आवाहन िकया,
िजस पर चार िबिलयन डॉलर खच होंगे। सतत यास, ऊजा म आ -िनभरता और
पयावरण के े म एक संयु पहल करने के िलए िव िव ालयों, िविभ सरकारों
और उ िमयों को एक मंच पर लाने के िलए लगभग 400 करोड़ डॉलर की
आव कता होगी। अकादमी के युवा और बु जीवी वग के लोग, यहाँ तक िक
राजनीितक े के लोगों ने भी महसूस िकया िक उ भारत के साथ िमलजुल कर
काम करने की आव कता है । भारत िनमाण े म चीन की बुिनयादी द ताओं का
लाभ उठा सकता है , जबिक वह सूचना ौ ोिगकी व सेवाओं के े म चीन को अपना
तकनीकी ान दे सकता है ।
म समझता ँ िक िव के सभी रा ों के िलए इससे बड़ा कोई ल हो ही नहीं
सकता िक वे धरती को पूरी तरह से ‘रहने यो एक ह’ बनाएँ । इसका अथ है िक
हम एक ऐसी थायी दु िनया का िनमाण कर, जहाँ हमने कृित को िदया ादा हो
और उसकी तुलना म उससे िलया कम हो और इस कार हम अपनी आने वाली
पीिढ़यों का भिव सुरि त कर सकते ह।
वै ीकरण का बदलता प र
िव म इलै ॉिनक मु ा पर आधा रत एक अ ररा ीय आिथक
. व था की शु आत के माण बड़े पैमाने पर िमल रहे ह। कुछ
बड़ी क िनयाँ िव के अनेक दे शों से भी अिधक श शाली होती
जा रही ह और अमरीका, स जैसे बड़े दे श भी उनकी हाँ म हाँ िमलाते
िदख रहे ह। कुछ महीने पहले यह खबर आई थी िक अमरीका चोरी–
िछपे िव भर म इले ॉिनक िनगरानी कर रहा है । यह िनगरानी केवल
आम लोगों तक सीिमत नही ं थी ब इसम दु िनयाभर के राजनेता भी
शािमल थे। इस खबर से ब त बड़ा बवाल मचा था—लेिकन आज उसके
बारे म कोई खबर नही ं आती। ा अभी भी ऐसा िकया जा रहा है या
अमरीका ने ऐसा करना ब कर िदया है । इले ॉिनक िनगरानी और
िनय ण श से लैस ा भिव म एक नए एकीकृत िव का मा
एक सबसे श शाली नेता उभरे गा? ा िव के सारे धम, स दाय
और आ ा क सोच को एक ही ढाँचे म ढाला जाएगा।
एक नई िव व था की स ावना के स म आप ा सोचते
ह? ा िव की ‘महाश याँ’ िसफ़ अपना िहत िच न करगी और
भारत जैसे िवकासशील दे श हािशये पर चले जाएँ गे। इसिलए पहले से
तय करना होगा िक इसम भारत की भूिमका ा होगी? ा हम एक
बार िफर से गुलाम होने जा रहे ह?

िवचार ां ड की सव ापी व था का वह अंश है , जो कभी भी घट सकता है ।


— ीफेन रचड् स

म एक ऐसे रोमां चक दौर से गुज़र रहे ह जहाँ िकसी को नहीं मालूम िक अगले पल ा
होगा और कब दु िनया ऐसे िब दु पर प ँ च जाएगी जहाँ अगले क़दम पर न जाने ा
कुछ बदल जाएगा। अं ेज़ी म इसे ‘िटिपंग ाइं ट’ कहते ह।
ह ऐितहािसक बदलावों के दौर म इस बात की ज़ रत होती है िक िजस तरह
की सोच और जैसी िमसालों को सामने रखकर इस दु िनया को बारीकी से दे खते
और समझते ह, और आगे की तैयारी करते और उसे अंजाम दे ते ह, उ नई
स ाइयों म ढलने के िलहाज से नये िसरे से अपने अ र उतारना होगा।
हाल ही म, जब म अमरीका के दौरे पर था, तब मुझे बताया गया िक हम िजस
िवमान म सफर कर रहे थे, उसकी ादातर िनय ण णाली सॉ वेयर से संचािलत
थीं और शायद उ भारत म तैयार िकया गया था। एक दू सरी जगह, जब मने अपना
े िडट काड पेश िकया तो मुझे बताया गया िक उसका िहसाब मॉ रशस म रखे ‘सवर’
पर चलता है । इसी तरह, एक बार जब म बंगलू म एक सॉ वेयर डे वेलपमट सटर
पर गया तो वहाँ वा व म एक ब सां ृ ितक वातावरण दे ख म मं मु हो गया। वहाँ
चीन का एक सॉ वेयर इं जीिनयर को रया के एक ोजे लीडर के अधीन काम कर
रहा था। इसके अलावा, भारत का एक सॉ वेयर इं जीिनयर और अमरीका से आया
एक हाडवेयर आिकटे और जमनी का एक संचार िवशेष , ये सभी िमल कर
आ े िलया म थत एक बक की िकसी सम ा को सुलझाने की कोिशश कर रहे थे।
आपने इस बात का डर ज़ािहर िकया है िक बु म ा को सव प र मानने वालों
की दे खरे ख म एक नई िव - व था लागू होने जा रही है िजसम सामािजक सुर ा के
िलए जारी सोशल िस ो रटी नंबर, बाज़ार म िमलने वाली तमाम चीज़ों पर यूिनवसल
ॉड कोड के िनशान, और हाल ही म चलन म आए रे िडयो तरं गों के ज़ रये पहचान
कराने वाले RFID (Radio Frequency Identification) माइ ोिचप टै ग से बड़ी सं ा
म लोगों पर िनगरानी रखी जाएगी। आपकी उलझन को म समझता ँ , लेिकन म
आपको बता दे ना चाहता ँ िक ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है ।
पहले आपको इस िच ा या दहशत की वजह समझनी चािहए। टे ोलॉजी के
बल पर लोगों के िदमाग और जनसं ा जैसी चीज़ों पर क़ाबू करके बड़े कारोबार और
सरकारों को आम लोगों की तमाम जानकारी मुहैया कराने को लेकर दहशत के पीछे
दो वजह हो सकती ह— गत मू ों पर ज़ोर और अपने हाथ म कुछ करने की
ताक़त न होने का एहसास। पहली बात उन लोगों पर लागू होती है जो अपने िनजी
अिधकारों को लेकर ब त सचेत होते ह, जो जैसा चाहते ह वैसा करते ह, और अपनी
िज़ गी म सरकार या वैसी ही दू सरी बड़ी व थाओं की शत और दखलअ ाज़ी
नहीं चाहते। जब ऐसे हालात से गुज़रने के साथ वह अपनी िज़ गी म भी कुछ न कर
पाने के एहसास से गुज़रते ह, तो अपनी आज़ादी दू सरी बाहरी ताक़तों या अपनी
चलाने वालों के हाथों िछनने की िच ा उ सताने लगती है । जब गत आज़ादी
को पूरे िदल-ओ-िदमाग से अहिमयत दे ने वालों की आज़ादी म कहीं भी खलल पड़ता
है , तो उ लगता है जैसे कुछ ब त बुरा हो गया, और िफर वह मान बैठते ह िक इस
आज़ादी िछनने के पीछे कोई बड़ी ताक़त काम कर रही ह।
इस बारे म म आयन रै की िकताब एटलस ड का िज़ करना चा ँ गा,
िजसम उ ोंने िलखा है , ‘‘म मूल प से पूंजीवाद की समथक नहीं ँ , लेिकन
अह ाद की समथक ँ । म मूल प से अह ाद की समथक नहीं ँ , लेिकन म
तकश की समथक ज़ र ँ । अगर हम तक की े ता को मानते ह और उस पर
लगातार अमल करते ह, तो सब कुछ उसी म से होता चला जाता है । जब म िकसी
बु मान से असहमत होती ँ , तो म आिख़रकार ाय की िज़ ेदारी स ाई
को सौंप दे ती ँ –अगर म सही िनकली, तो उसे सबक िमलेगा, और अगर वह सही
िनकला तो मुझे सबक िमलेगा। जीत हमम से एक की होगी, लेिकन फ़ायदा दोनों को
होगा।’’
इं सान की िज़ गी चलाने के िलए िजस काम की ज़ रत होती है वह मूल प से
बौ क है । ोंिक इं सान को जो भी कुछ चािहए, पहले उसकी क ना उसके िदमाग
म होती है और िफर वह अपनी कोिशशों से उसे गढ़ता है । इ ीसवीं सदी म यह
दु िनया, पहले के मुक़ाबले कहीं ादा, ान पर आधा रत लोगों की होगी। म एक िदन
डे िनस वेटली की िकताब ए ायस अॉफ द माइ पढ़ रहा था। यह िकताब बताती है
िक कल दु िनया कैसी थी और आज की दु िनया कैसी है ।
यिद बु व ान ही हर तरह से श के ोत ह और दोनों मनु के अ र
मौजूद रहते ह और यह दे खते ए िक आज लोग पहले के मुक़ाबले अपनी आज़ादी
को कहीं ादा अहिमयत दे ते ह, तो िजन हालात की त ीर आप हमारे सामने
पेश कर रहे ह, उसके अंजाम तक प ँ चने के आसार नज़र नहीं आते। इसके अलावा,
तेज़ी से बात फैलाने की इं टरनेट की ख़ूबी के चलते ‘एक िव व था’ के खलाफ़
सुर ा का घेरा बन जाएगा।
इसके साथ-साथ, े ीय र पर भी ब त कुछ घटता रहता है , और यह सब
‘एक-िव व था’ की बात को सच होने म कावट पैदा करे गा। अमरीका और स
जैसी दो महाश यों के बजाय, इस दु िनया म ‘ि दे श’ (BRICS) जैसी कई
ताकत होंगी। ाजील, स, भारत, चीन व दि ण अ ीका का साथ िमलकर ‘ि
रा ों’ के नाम से एक भौगोिलक, राजनैितक और आिथक समूह के तौर पर अपनी
पहचान बनाना एक स ाई है िजससे दु िनया म िमलजुल कर शासन– व था चलाने
और आिथक स ों को एक नई गित िमली है । सारे ि रा ों म कुल िमलाकर
दु िनया की आबादी के 42 फ़ीसदी लोग रहते ह, और दु िनया भर के कुल GDP यानी
सकल घरे लू उ ाद म 18 फ़ीसदी की िह ेदारी इ ीं दे शों की है ।
चीन की अथ व था ने क़रीब चालीस करोड़ लोगों को गरीबी से छु टकारा
िदलाने म कामयाबी हािसल की है । और यह सब मुमिकन आ है तीन दशक तक 10
ितशत की वािषक वृ के साथ, कृिष और उ ोग के े म भारी िवदे शी िनवेश से
और अब घरे लू बाज़ार म आए उछाल से। चीन की अथ व था म इस अभूतपूव गित
की बदौलत वहाँ म म आय वग बेहद तेज़ी से बढ़ रहा है । साथ ही, हर साल
शहरीकरण का फ़ायदा उठाने वालों की आबादी का आँ कड़ा लगभग एक करोड़
स र लाख की सं ा के आसपास प ँ च गया है ।
ामीण े ों म बड़े पैमाने पर गरीबी के बावजूद, भारत अपने िति त लोकत
की बदौलत ौ ोिगकी और सेवा े म आिथक चम ार कर िदखाने म कामयाब
रहा है । इन े ों म तर ी से ल े समय तक सतत् िवकास की जो नींव पड़ी है ,
उसने भारत को ि दे शों के समूह म एक अ णी दे श के प म ला खड़ा िकया है ।
लैिटन अमरीकी अथ व थाओं म ाजील एक मुख दे श के प म उभर कर
सामने आया है । वह ाकृितक संसाधनों और खिनज तेल के बदले कम लागत वाली
तैयार चीज़ों के िलए चीन के साथ संयु उप मों के िलए तालमेल बैठाने की
कोिशशों म लगा आ है ।
इसी कार, स एक बेहद मज़बूत अथ व था के तौर पर मश र है , और
इसके पीछे तेल और गैस उ ादन े म उसकी भूिमका ही सबसे बड़ी वजह है ।
ापा रक भागीदार के िलए एक अ े सहयोगी बनने की स ावना के साथ िव ान
और ौ ोिगकी म िवशेष ता के चलते स ि के सद दे शों के िलए एक अ ा
सहयोगी सािबत हो सकता है ।
ि दे शों के समूह म पाँ चव सद के प म दि ण अ ीका को शािमल
िकए जाने से इस बात का भरोसा होता है िक दु िनया के िव ीय, िवकासा क व
ापा रक ढाँ चे म अ ीका को वह जगह िमली है िजसका वह हक़दार है ।
जहाँ तक िव के सभी धम, स दाय, पंथ और आ ा क आ था वाले समूहों
के सम य से सूमचे िव के िलए एक धम व था बनने की बात है , मुझे लगता है िक
आने वाले समय म लोग पूरब और पि म की आ ा क पर राओं और िस ा ों
का सार लेकर थ रहने के तौर-तरीकों को अपनाएँ गे।
जहाँ एक ओर हम रा ों और ापा रक िनगमों के समूहों को श के ों के
प म बढ़ते ए दे ख रहे ह, वहीं िकसी एक की बढ़ती ई ताकत और प ँ च
वैि क प र पर अपने गहरे भाव से श के ों के बीच स ुलन थािपत करने
का काम करे गी।

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