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आपका भविष्य आपके हाथ में
आपका भविष्य आपके हाथ में
चुना गया
पूव रा पित डॉ. ए पी जे अ ु ल कलाम भारत के िविश नेता ह। वे ब त ही लोकि य
ह, िवशेषकर युवाओं म, और फ़ेसबुक पर अठारह लाख लोग उ ‘फ़ॉलो’ करते ह।
डॉ. कलाम को ितिदन तीन सौ ई-मेल ा होते ह। सोशल मीिडया पर उनकी
सि य मौजूदगी ने उनको पाठकों से एक नए ढं ग से जुड़ने का अवसर दान िकया,
जो एक अनूठी पहल है । इस पु क के िलए डॉ. कलाम ने अं ेज़ी के पाँ च शीषक
चुने। ये पाँ चों शीषक बारह िदनों तक अॉनलाइन उपल रहे और पाठकों ने उनम से
अपने मनपस शीषक को वोट िदया। 41,675 लोगों ने इस अॉनलाइन वोिटं ग म भाग
िलया और सबसे अिधक लोगों ने फ़ोज योर यूचर शीषक को पस िकया और
िह ी म शीषक बना, आपका भिव आपके हाथ म।
आपका भिव आपके हाथ म उन मु ों पर के त है जो दे श के युवाओं के
िलए मह पूण ह या िज लेकर वे परे शान और िच त ह। पु क की भूिमका म डॉ.
कलाम िलखते ह, ‘‘इस पु क म जो िविभ मु े उठाए गए ह वे इ धनुष के अलग-
अलग रं गों जैसे ह, जो अलग होते ए भी एक ही काश से िनकले ह। और यह काश
युवाओं की आ ा, उनकी ईमानदारी, आशाओं, उ ं ठाओं का काश है । इस पु क
के मा म से मेरा यास है िक युवाओं के िदलो- िदमाग और आ ा की काश- ोित
न केवल दी रहे , ब उसकी लौ उ उपल यों की ऊँची उड़ान भरने के िलए
े रत करे ।’’
अवुल पिकर जैनुलाअबदीन अ ु ल कलाम जहाँ एक ओर ब त ही सरल कृित
के इं सान ह तो दू सरी ओर एक वै ािनक होने के नाते िव ान और ौ ोिगकी म ढ़-
िव ास रखते ह। उनका मानना है िक मनु की आ रक अ ाई को जब िव ान की
श से जोड़ा जाता है तो अिधक से अिधक लोगों का भला होता है ।
अद साहस, अि की उड़ान, तेज ी मन, टिनग ाइं ट्स, भारत की
आवाज़, ेरणा क िवचार उनकी अ लोकि य पु क ह।
आपका भिव आपके हाथ म
ए पी जे अ ु ल कलाम
अनुवाद
ऋिष माथुर एवं रमेश कपूर
ISBN : 978-93-5064-281-8
संशोिधत सं रण : 2014
© ए पी जे अ ु ल कलाम
© िह ी अनुवाद : राजपाल ए स ज़
AAPKA BHAVISHYA AAPKE HAATH MEIN
(Inspiration & Personal Growth) by A P J Abdul Kalam
(Hindi edition of Forge Your Future)
कवर की त ीर सौज : समर म ल, रा पित भवन
राजपाल ए सज़
1590, मदरसा रोड, क ीरी गेट-िद ी-110006
फोन : 011-23869812, 23865483,
फै : 011-233867791
website : www.rajpalpublishing.com
e-mail : sales@rajpalpublishing.com
उन सभी युवाओं को
जो समय िनकाल कर मुझे िलखते ह
और अपने भेजते ह
म
अाभार
भूिमका
सफलता की ओर
यं पर भरोसा रख
सपनों का मह
समय का सदु पयोग
असफलता से आगे
साहस की पहचान
अद साहस
क न कदम
इं शा ाह
िकस पर है सारा दारोमदार
अि तीय ह आप
अि की उड़ान
बेहतर समाज की ओर
सोशल मीिडया का बढ़ता भाव
नेकी की राह
ाचार का सा ा
संयु प रवार का मह
गुणों की म का
भला है दे ना
कलािवहीन संसार जैसे हवा िबना गु ारा
पेड़ लगाएँ खुशहाली लाएँ
नारी सश करण की ओर
ई र सृि की स ूणता का तीक
भेदभाव का िशकंजा
रोंगटे खड़े कर दे ने वाली स ाई
ज त है माँ के क़दमों म
मज़बूत भारत की ओर
भावी नेतृ का िनमाण
बिलदान से होता है रा िनमाण
मन-म का एक र
जड़ों को सींचना होगा
नई पीढ़ी के नए नर
कब गा सकूँगा म भारत का गीत
वैि क ित धा की ओर
हम होंगे कामयाब
भारत और चीन
वै ीकरण का बदलता प र
आभार
नई िद ी
अग , 2014
भूिमका
मुझे इससे बड़ा झटका िज़ गी म पहले कभी नहीं लगा था! छा वृि से ही मेरी
िज़ गी चलती थी। उसके िबना तो म अपने खाने का खचा भी नहीं उठा सकता था।
िदए गए तीन िदनों म काम पूरा करने के िसवा अब कोई चारा नहीं था। मेरी टीम के
सद ों ने, और मने तय िकया िक हम जी-जान से इस काम को पूरा करगे। रात को
भी डॉइं ग बोड पर िसर झुकाकर नज़र गड़ाए, खाना और सोना छोड़ हम चौबीसों घंटे
काम म जुटे रहे । शिनवार को मने िसफ़ घंटे भर के िलए काम से छु ी ली। रिववार की
सुबह जब म योगशाला म काम कर रहा था, तो मने महसूस िकया िक कोई वहाँ
मौजूद है । दे खा, तो वह ोफ़ेसर ीिनवासन थे, जो चुपचाप हमारे काम का मुआयना
कर रहे थे। मेरे काम को दे खने के बाद उ ोंने मेरी पीठ थपथपायी और ार से मुझे
सीने से लगाते ए बोले—‘‘मुझे मालूम था िक इतने कम समय म काम लेकर म
तु ारे ऊपर दबाव डाल रहा था और तुमसे कुछ ादा ही किठन काम की उ ीद
कर रहा था।’’ ोफ़ेसर ीिनवासन ने हम पूरे महीने भर तक अंधेरे म हाथ मारने दे ने
के िलए छोड़ने के बजाय अगले तीन िदनों म करने के िलए काम तय कर िदया था।
िनयत समय म काम पूरा करने के दबाव म हम सफलता की ओर ादा तेज़ी से बढ़े
जो बीते महीनों म हमसे दू र होती जा रही थी। इस ोजे पर काम करते ए मेरे
अ र अपने काम की बुिनयादी क़ाबिलयत पैदा ई और अपने साथ काम करने वालों
के साथ िमलजुल कर चलने की समझ भी।
इस अनुभव से ा सबक िमलता है ? यही िक आप अपना आ िव ास बढ़ाने
का काम इन चार क़दमों म पूरा कर सकते ह—पहले, अपना ल तय करना, दू सरे ,
उस ल की ओर अपने सफ़र की शु आत, तीसरे , सफ़लता की ओर तेज़ी से बढ़ना,
और चौथे, काम, काम और काम।
ल िनधारण वह सबसे ज़ री काम है िजसे सीखकर आप अपना आ -
िव ास बढ़ा सकते ह। िजस े म आप काम करना चाहते ह, उसम अपने िलए ल
िनधा रत कर और ल तक प ँ चने के िलए काम म जुट जाएँ । इससे सफलता ा
के िलए जीवन पय चलने वाली ि या शु हो जाएगी और आपको दू सरों के साथ
काम करने के िलए आ बल िमलेगा।
सपनों का मह
सर, सपने दे खने के आपके आ ान से े रत होकर, म बड़े –बड़े
. सपने दे खने लगा। मने एक ऐसे संसार की क ना की िजसम कोई
सीमाएँ न हों, जहाँ कुछ भी मेरे रा े की कावट न बन सके। मने
कभी इस बात की परवाह नही ं की िक वग कृत िव ापनों म यह दे खूँ िक
िकस तरह की नौक रयाँ िमल सकती ह, और न ही कभी यह सफ़ाई दे ने
की ज़ रत समझी िक अपनी सीिमत िश ा की वजह से म कुछ ही
तरह के काम कर सकता ँ । मने सोचा िक म आगे चलकर दू सरों से
िबलकुल अलग बनूँगा। म आशा और अपे ा से भरा था। कोई भी बात
मुझे आगे बढ़ने से नही ं रोक सकती। और मुझे भरोसा था िक एक िदन
ज़ र ब त बड़ा आदमी बनूँगा। िफर कुछ सचमुच बुरा घट गया। यह
बुरा कुछ ऐसा नही ं था जो जब घटा तभी मुझे पता चल जाता, ब
वा व म जब इसकी शु आत ई तो मुझे पता भी नही ं चला। यह ब त
ह े से शु आ, लेिकन धीरे –धीरे मुझ पर हावी हो गया, और अब
यही मेरी पहचान बन गया है । मने कभी ान भी नही ं िदया और मुझे
इस बात का एहसास भी नही ं आ। मने अपने सपने पूरे करने की ओर
ान दे ना ब कर िदया। म स ु हो गया। मने और ादा की उ ीद
करना छोड़ िदया। और तो और, मने और बेहतर की उ ीद करना छोड़
िदया। मने ख़ुद को अपने आसपास के हालात के हवाले कर िदया। म
आज जो कुछ ँ उसी से स ु हो गया। ऐसा कुछ नही ं है िक आज म
जो कुछ भी ँ उसम कुछ बुराई है —उसी से िज़ गी चलाने के िलए
ज़ री रक़म आती है , म सुरि त रहता ँ , िज़ गी ठीक–ठाक चलती
रहती है । लेिकन एक बार जो मने हार मान लेने का ाद चख िलया,
समझौता कर लेने के इस तरीके को मने अपनी कहानी बनाने का
इरादा कर िलया। िकस बात की ज ोज़हद ? काहे की लड़ाई? सपनों के
पूरा न होने से िनराश ों हों? ोंिक मने सब कुछ छोड़ने की सोच
ली, इसिलए मेरे सामने कोई कावट भी नही ं रही ं। परे शािनयाँ नही ं
रही ं। संघष ख़ हो गया। पीड़ा ख़ हो गई। अपने सपने पूरे करने की
कोिशश के बजाय, मने उससे ब त कम म ही स ु हो जाने का
फ़ैसला िकया। लेिकन, अपने मन की गहराई म मुझे कही ं न कही ं यह
महसूस होता है िक ऐसा नही ं होना चािहए। मुझे बताइए, डॉ र
कलाम, िक ा म िफर से सपने दे खना शु कर सकता ँ ?
कुछ बड़ा करने के िलए हम िसफ़ कुछ करना ही नहीं होता, ब सपने भी दे खने
होते ह; िसफ़ इरादा ही नहीं करना होता, ब भरोसा भी रखना होता है ।
—एनातोली ां स
संक वह श है जो हम तमाम
िनराशाओं और िव ों से पार पाने म
मदद करती है । वही इ ा–श
जुटाने म भी हमारी मदद करती है , जो
कामयाबी का आधार है ।
लोगों के कामकाज म भी एक ार है
बढ़ते पानी म उतर तो नसीब शानदार है
पीछे छूटा जो िज़ गी के तमाम सफ़र म
उथले म फँसे तो क ों की भरमार है
अब जो चल पड़े खुले सम र म हम
बढ़ते रह जब तक सागर मददगार है
छूटे तो डूबे! यही ापार है !
रोमन किव ओिवड (43 ईसा पूव–18वीं ई ी) ने कहा था—‘समय सबसे अ ी दवा
है ।’ कहा जाता है िक समय सारे घावों को भर दे ता है और वह उन घावों को भी भर
दे ता है िजनके हल तक से नहीं िमलते। जब डर, गु ा, ई ा हम पर हावी हो जाते ह,
तब हम सोच–समझ से काम नहीं ले पाते िजसके नतीजे ग ीर हो सकते ह। बाद म,
जब भावनाएँ ठं डी पड़ती ह तो हम अपने िकए पर पछतावा भी हो सकता है । लेिकन
जो नुकसान हो जाता है , वह हमेशा रहता है । लेिकन, समय बीतने के साथ वह
नुकसान भी ठीक होने लगता है । जो लोग इसम शरीक़ होते ह वह भी भूल जाते ह,
माफ़ कर दे ते ह। यही समय की मह ा है ।
यह भी सच है िक समय हम ब त कुछ िसखाता है । समय के साथ हर
उ म बड़े होने के साथ प रप भी होता जाता है । समय के साथ जो जीवन म अनुभव
होते ह उनसे सही िनणय लेने की सीख भी िमलती है । अ म वही है जो
समय से सीख ले। समय हमेशा हम याद िदलाता है कुछ करने की और कुछ बेहतर
करने की। कुछ लोग तो बस यही सोचते रहते ह िक अपना समय कैसे िबताएँ ।
समझदार और होिशयार लोग अपने समय का पूरा सदु पयोग करते ह। कहा जाता है
िक समझदार सबसे अिधक गम थ व बीतने का मनाते ह।
कुछ लोग समय का मह नहीं समझते, उसे बेकार जाने दे ते ह, या िफर िबना
कुछ िकए ही उसे ख़च कर दे ते ह। एक कहावत है िजसम कहा गया है िक समय की
ह ा करना क नहीं, ख़ुदकुशी है । इसका मतलब यह आ िक अगर समय को
बेकार िनकल जाने दे ते ह, तो हम िकसी दू सरे को नुक़सान नहीं प ँ चा रहे होते, ब
अपना ही नुक़सान कर रहे होते ह।
कुछ लोग हमेशा इसी बात का रोना रोते रहते ह िक उनके पास सब कुछ करने
के िलए ज़ री समय ही नहीं है । यह ठीक नहीं है । अगर हम समझदारी के साथ अपने
काम की योजना बनाकर काम कर, तो हर चीज़ के िलए काफ़ी समय िमल जाएगा।
आदमी जो िक कुदरत का एक िह ा है , कभी समय की िशकायत नहीं कर सकता।
आदमी को तो बस व का हर इशारा मानना होता है । समय ब त बलवान है और
वह सभी को जीत लेता है । हर िदन हरे क को जैसे चाहे वैसे इ ेमाल करने के
िलए वही बराबर के चौबीस घंटे िमलते ह। जो समय पूरी तरह से उसका अपना है वह
बेशक़ीमती होता है । मने यह बात ब त पहले जान ली थी और समय की धारा के साथ
बहने के बजाय होिशयारी से अपना रा ा बना िलया।
साहस की पाँ चवीं पहचान है , दु िनया को युवाओं वाले गुण चािहए—यौवन यानी
जीवन का काल खंड िवशेष नहीं, ब वैसी मनः थित, कड़क इ ा- श ,
क नाशीलता की ख़ूबी, डर के मुक़ाबले साहस की धानता, आराम की िज़ गी से
बढ़कर जो खम उठाने की भूख। िजतना साहस होता है , उसी के अनुपात म िज़ गी
िसकुड़ती या फैलती है । अगर म रामे रम् म घर के सुर ा के माहौल को छोड़कर
कॉलेज की पढ़ाई के िलए ित िचराप ी और उसके बाद चे ई म इं जीिनय रं ग पढ़ने
नहीं गया होता, और िफर तिमलनाडु को छोड़ काम करने के िलए उ र दे श,
कनाटक और केरल नहीं गया होता, तो मेरी कहानी भी वैसी नहीं बनती जैसी बन पड़ी
है और आज म इसे आपके साथ साझा नहीं कर रहा होता।
आिख़र म, ग रमा और आ था के साथ क झेलना ही साहस है । साहसी
के अ र ही आ था होती है । साहसी ही ग रमा और स ता के साथ जीवन की
दु घटनाओं को बदा करते ए हालात का पूरा फ़ायदा उठाता है । साहस दू सरी
तमाम अ ाइयों से ादा मह पूण है , ोंिक िबना साहस के आप दू सरी अ ाइयों
पर लगातार अमल नहीं कर सकते। आप िकसी भी अ ाई पर यदा-कदा अमल कर
सकते ह, लेिकन साहस के िबना लगातार कुछ भी नहीं कर सकते। एक बार मने
अपने दो ने न मंडेला से पूछा, ‘‘वह कौन सी चीज़ थी िजसने उन स ाइस सालों
के दौरान आपके अ र जीने की ललक बनाए रखी जो आपने कैदखाने म िबताए?’’
वह बोले—‘‘कलाम, मने जाना है िक साहस डर की गैरमौज़ूदगी नहीं है , ब
उसपर दज की गई जीत है । िनडर वह नहीं है जो डर महसूस नहीं करता, ब वह
है जो अपने डर पर िवजय ा कर लेता है ।’’
पाँ चवीं खूबी है अपने काम म जुटे रहकर रा े म आने वाली अड़चनों से डटकर
मुकाबला करना। म अ ाहम िलंकन के जीवन से ब त भािवत ँ । वह कई बार
नाकाम रहे और उनके िवरोिधयों ने ही नहीं, उनके िम ों, और यहाँ तक िक प रवार के
सद ों ने भी उनकी जमकर आलोचना की। अगर वह इस सारी आलोचना का असर
अपने ऊपर होने दे ते तो अपने दे श के िलए उनका असाधारण सपना बेकार चला
जाता। आज संयु रा अमरीका जो भी कुछ है , उसम ब त बड़ा हाथ िलंकन की
सोच का भी है । िबना िडगे जुटे रहने की बदौलत ही, वह आलोचना, असफलता, डर
और अपने आप पर शक के बावजूद आगे बढ़ते रहे । यही है डटे रहने की ताक़त।
अपने सपने के ित समिपत रहने के िलए हमारे अ र एक आ क बल और
अ नी ताक़त होनी चािहए।
ई र के संसार म ‘अगर’ के िलए कोई जगह नहीं है । और कोई भी जगह पूरी तरह
सुरि त नहीं है । उसकी इ ा के घेरे म बने रहना ही हमारे सुरि त रहने का अकेला
रा ा है — आइए ाथना कर िक हम हमेशा ई र की इ ा का ान रहे !
—कौरी टे न बूम
अपनी िक त के िनमाता आप खु ़ द ही
ह। हरे क िवचार, भावना, इ ा और
कम एक श पैदा करता है । अ ा
और बुरा दोनों ही हम भािवत करते
ह, और तब तक हम पर हावी रहते ह
जब तक िक हम उनके बीच स ुलन
नहीं पैदा कर दे ते।
इं सान अ े और बुरे, भ े और सु र
के भेद की समझ और उनम से एक को
चुनने की मता के दम पर अपनी
िनयित को समझ–बूझ कर एक प
़ द स म है ।
दे ने म खु
स ाई यह है िक ‘ कृित’ और
‘परव रश’ अलग–अलग और जिटल
तरीकों से एक–दू सरे पर असर डालते
ह िजसका नतीजा यह है िक हम सब
अपनी िक के अकेले होते ह, दू सरे
िकसी से भी िबलकुल अलग।
जीवन म सफल होने और कुछ हािसल करने के िलए आपको तीन बड़ी श यों को
समझना और उनम महारत हािसल करना ब त ज़ री है —इ ा, िव ास और
अपे ा।
—ए पी जे अ ु ल कलाम
हालाँ िक, म एक छोटी जगह का ँ , लेिकन मने ख़ुद को कभी िकसी भी तरह से
छोटा महसूस नहीं िकया ोंिक मेरे सपने हमेशा से बड़े थे। अपनी हाई ू ल की
पढ़ाई पूरी करने के बाद म ित िचराप ी चला गया, जहाँ मुझे सट जोसेफ’स कॉलेज
म दा खला िमल गया। मेरे पास उन िदनों कपड़ों और जूतों का एक ही जोड़ा होता था।
मेरी कोिशश यही रहती थी िक म ादा से ादा िदनों तक उ चलाऊँ। कपड़ों
और जूतों का पहला जोड़ा फटने के बाद ही म नया जोड़ा लेता था। वष 1954 म जब
मने चे ई के म ास इ ी ूट अॉफ टे ोलॉजी म एयरोनॉिटकल इं जीिनय रं ग के
िलए अपना नाम िलखाया, तो मेरा वेश शु चुकाने के िलए मेरी बहन को अपनी
सोने की दो चूिड़याँ बेचनी पड़ी थीं। यहाँ भी अपने भरण-पोषण के िलए म छा वृि पर
िनभर था। अपने पूरे छा जीवन म िजस बात ने मुझे पढ़ाई जारी रखने को लगातार
े रत िकया, वह था कुछ बड़ा हािसल करने का ज बा, एक बेहतर िज़ गी जीने की
चाह और अनुशािसत जीवन शैली के िलए मेरी ितब ता। वाकई म, अनुशासन से
रहना िज़ गी म ल तय करने और उस तक प ँ चने के बीच िकसी पुल की तरह
काम करता है ।
अनुशासन से रहना िज़ गी म ल
तय करने और उस तक प ँ चने के बीच
िकसी पुल की तरह काम करता है ।
मता है मुझम ज से अ ाई और
िव ास है मुझ म ज से क नाएँ और
सपने ह ज से महान बनने के गुण ह
मुझम ज से आ िव ास है मुझम
ज से साहस है मुझम ज से
सम ाओं पर जीत दज कर पाऊँगा
सफलता ह पंख मेरे ज से नहीं ज ा
ँ म रगने के िलए मेरे पास पंख ह, म
उड़ूँगा म उड़ूँगा, उड़ता र ँ गा!
बेहतर समाज की ओर
सोशल मीिडया का बढ़ता भाव
सर, म आपके फेसबुक पेज को इसकी शु आत से ही दे ख रहा ँ ।
. आप सोशल मीिडया के मा म से युवा पीढ़ी को अपने साथ जोड़ने
वाले दे श के सबसे पहले नेताओं म से एक ह। यिद हम दे श म नये–
नये उभरे सोशल मीिडया के वातावरण को दे ख, तो हमारी राजनीितक
णाली म हाल ही म एक प रवतन िदखाई िदया है । हमारी चुनावी
राजनीित पर पड़ने वाले सोशल मीिडया के भाव के स म आपके
ा िवचार ह और ा हमारे आगामी लोकसभा चुनावों के प रणामों
पर इसका कोई भाव पड़े गा? और दू सरे , ा सोशल मीिडया भारतीय
राजनीित म बदलाव लाने वाला एक मह पूण घटक िस होगा?
आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत ँ िक िजस दे श म महा ा गाँ धी, सरदार
मै◌ं पटे ल, लाल बहादु र शा ी और कामराज जैसी िवभूितयों ने ज िलया और
जीवन मू ों पर आधा रत जीवन िजया, उसी दे श को अब बड़े पैमाने पर
ाचार की सम ा का सामना करना पड़ रहा है । आजकल ाचार जैसी बुराई को
हर तरफ दे खा जा सकता है , वह हर जगह मौजूद है । जब हम सावजिनक जीवन म
ाचार की बात करते ह तो हम दरअसल राजनीित, रा सरकारों, के ीय सरकार,
ापार व उ ोग म ा ाचार की बात करते ह। अिधकां श सरकारी कायालयों म
जनता से जुड़े काय के काउं टरों पर सबसे ादा ाचार िदखाई दे ता है । यिद कोई
िकसी काय के िलए घूस नहीं दे ता, तो िनि त है िक उसका काय िकसी कीमत
पर नहीं होगा।
लोगों के अ र पैसे की कभी न ख़ होने वाली एक भूख पैदा हो चुकी है और
इस भूख को िमटाने के िलए वे िकसी भी र पर जाने को तैयार ह। इसम कोई संदेह
नहीं िक सै ा क प से वे नैितकता और मू ों पर आधा रत जीवन के मह की
बात करते ह, लेिकन यह वा व म उनका एक िदखावटी प है । उनके अ र की
आवाज़ कुछ और ही कहती है । हमेशा पैसे के िलए हाय-तौबा मची रहती है । अ र
यह भी दे खने म आया है िक िजन अिधका रयों को ाचार के मामलों को दे खने के
िलए िनयु िकया जाता है , वे यं ही ाचार म िल हो जाते ह। हमारे नेता भी इस
मामले म िकसी से कम नहीं ह। इस कार ाचार का यह जाल फैलता चला जाता है
और यह बेरोकटोक आगे बढ़ता रहता है ।
यिद हम ाचार के कारणों पर नज़र डाल तो इनम हमारे यहाँ लागू ज़ रत से
ादा िनयम कानून, जिटल कर व लाइसिसंग णािलयाँ , सरकारी िवभागों म
पारदिशतािवहीन नौकरशाही और ै क श याँ , कुछ चीज़ों व सेवाओं पर
सरकार ारा िनय त सं थानों का एकािधकार और पारदश कानूनों व ि याओं
की कमी शािमल है ।
सभी जानते ह िक अपरािधयों म िकसी कार की नैितकता नहीं होती, इसिलए
उनसे िकसी अ े काम की अपे ा करना थ होगा। लेिकन पुिलस को कानून व
व था का एक तीक माना जाता है , िक ु उनम से भी कुछ पुिलस वाले ाचार म
िल पाए जाते ह। इसका कारण यह है िक उ असीिमत श याँ दान की गई ह
और यिद उनके िव कोई िशकायत िमलती है और उनके ारा अपने पद का
दु पयोग करने, नृशंसता बरतने के पया माण होते भी ह, िफर भी उनके िव
अ र कोई कारवाई नहीं की जाती।
ाचार पर आधा रत धन अिजत करने और स ि के िवतरण की व था
ऐसी िकसी कोिशश को बढ़ावा नहीं दे ती िजससे सचमुच धन-दौलत पैदा की जा सके।
इसके बजाय घूसखोरी और दू सरे तरीकों से उन लोगा को भािवत करने म सारी
ताकत झोंक दी जाती है िजनके हाथ म फ ़ ै सले लेने का अिधकार होता है । इससे न
िसफ़ स ि म गत िनवेश करने के िनणय पर िवपरीत भाव पड़ता है , ब
इसका असर इससे भी कहीं ादा होता है ।
ाचार से (स वत: भूिम, खिनज, टे िलकॉम े म या िक ीं अ
प रस ि यों से स त) अिधकारों के अनुिचत आवंटन को बढ़ावा िमलता है । ऐसी
व था म िजन यों को िनयु िकया जाता है , वे आमतौर पर वही होते ह जो
सबसे ादा और घूस लेने म अ िधक स म होते ह, न िक इसिलए िक वह
आवंिटत प रस ि यों का उपयोग करने म स म होते ह। इस कार संसाधनों का
दु पयोग होता है और प रणाम जो होना चािहए उससे कहीं कम होता है और इस
कार नुकसान पूरे दे श को भुगतना पड़ता है ।
कृत ता का स इस धारणा से है
़ द होते ह
िक सद् गुण अपना पुर ार खु
और इससे पुर ार भी पैदा होते ह।
तो आप चाहे उपहार ख़रीदकर बां ट, कुछ हािसल करने की सोचे िबना अपना
समय द, या िकसी धमाथ सं था को धन द, यह दे ना िसफ़ कुछ पल अ ा लगने के
एहसास से कहीं ादा होता है । इससे आप को बेहतर सामािजक स क बनाने म
मदद िमल सकती है और आप अपने लोगों के बीच उदारता का एक िसलिसला छे ड़
सकते ह। और अगर इस ि या म आपको भी खु ़ िशयों की एक बड़ी सी खु़ राक िमल
जाए, तो है रत म मत पड़ जाइएगा। इसम कोई शक नहीं िक सच बोलने से, गु ा न
करने से, और माँ गने पर दे ने से, चाहे वह िकतना भी कम ों न हो, आप अपनी
िज़ गी को पूरी तरह बदल सकते ह और अपने आसपास वालों को भी फ़ायदा प ँ चा
सकते ह।
कलािवहीन संसार जैसे हवा िबना गु ारा
हमारे क े म मा िमक ू लों म कला की क ाओं की सुिवधा
. उपल नही ं है । मुझे यह बात ब त परे शान करने वाली लगती है
ोंिक मुझे मालूम है िक कला आन व सफलता का एक ब त
बड़ा ोत हो सकती है , िवशेष प से उन ब ों के िलए िजनकी
मानिसक व शारी रक मताएँ दू सरे ब ों से अलग ह। म अपने बेटे की
ही बात क ँ , तो मेरा बेटा पढ़ाई-िलखाई म थोड़ा धीमा है और दू सरों
की बातों को ज ी से नही ं समझ पाता। चूँिक वह अपनी क ाओं म
अपने आप को ठीक से अिभ नही ं कर पाता, इसिलए उसके
िश क अ र अपना धैय खो बैठते ह और उससे िचढ़ जाते ह। वह
अपनी ऊटपटांग िट िणयों, बेिसर-पैर के उ रों से और पढ़ाई म ान
न लगा पाने के कारण मु ल म पड़ जाता है । मने अ ा िव िव ालय
म फ़ादर जॉज के साथ िकए गए आपके काय के स म िकसी
पु क म पढ़ा है िजससे मुझे पता चला िक रचना क कला अिभ
का एक ऐसा प है , जो मन को सुख व शा दान करता है और
इससे हमारे म की अ िवकिसत कोिशकाओं को िफर से थ
होने म मदद िमलती है ।
सर, कला िविवध कार की होती है जैसे िच कारी, संगीत,
ना कला, का कला, मूितकला व फोटो ाफी इ ािद, जो मेरे बेटे जैसे
तमाम ब ों की सहायता कर सकती है । हमारे िलए यह बड़े दु :ख और
शम की बात है िक हमारे िव ालयों म ब ों के िलए इस कार का कोई
भी िवक उपल नही ं है । ा हम िकसी ब े म उसकी िछपी ई
़ बी को िवकिसत करने के िलए अपने िव ालयों म ऐसी कलाओं का
खू
उपयोग नही ं कर सकते या िफर उस ब े के म के औरों से अलग
होने की बात को समझने के िलए एक सेतु के प म इन कलाओं का
सहारा नही ं ले सकते?
कला के िवषयों की ापक िश ा ब ों की दु िनया को बेहतर ढं ग से समझने म मदद
करती है ...हम ऐसे िव ािथयों की ज़ रत है जो गिणत और िव ान के िवषयों के साथ-
साथ सां ृ ितक तौर पर भी सुिशि त हों।
़ द को अिभ
जब ब ों को खु करने
और कला की रचना का जो खम उठाने
के िलए ो ािहत िकया जाता है , तो
उनम कुछ नया करने की भावना का
िवकास होता है , इससे समाज म
िवचारशील, खोजी और रचना क
लोगों की पौध तैयार करने म सहायता
िमलती है ।
िश ा और ा स ी सुिवधाओं
तक प ँ च न होना, अगर आमतौर पर
सुिख़यों म जगह पाने वाले बला ार
और ह ा जैसे ख़तरों से ादा ग ीर
नहीं है , तो उनसे कम भी नहीं है ।
भारत को क ा ूण की ह ा के बढ़ते
िसलिसले को रोकने के िलए यु र
पर काम करने की ज़ रत है , अ था
इसके भाव से कई सामािजक और
जैिवक सम ाएँ पैदा होंगी।
‘‘तुझे उसके पैरों से नहीं बनाया गया, िजससे तुझे उसके पैरों तले न रहना पड़े ,
और न ही तुझे उसके िसर से िलया गया जो तू उसके ऊपर रहे । तुझे उसके एक ओर
से िलया गया है , तािक तू उसके साथ खड़ी हो, और वह तुझे अपने िबलकुल क़रीब
और बराबर म रखे। तू मेरा मुक ल फ़ र ा है । तू मेरी ारी सी न ीं ब ी है । तू
बड़ी होकर एक ब त ही शानदार औरत बन गई है , और जब म तेरे िदल म अ ाइयाँ
दे खता ँ तो मेरी आँ ख गव से भर जाती ह। तेरी आँ ख—इ बदलने मत दे ना। तेरे
होंठ—िकतने ारे लगते ह जब दु आ करते व उनके बीच ज़रा सी जगह बन जाती
है ।’’
‘‘तेरी नाक की बनावट िकतनी दोषरिहत है । तेरे हाथ िकतने कोमल ह। जब तू
ब त गहरी नींद सोयी ई थी, तब मने तेरे चेहरे को ार से सहलाया। तेरे िदल को
अपने िदल के ब त क़रीब रखा। िजस िकसी म भी जान है और जो कोई साँ स लेता है ,
उनम से तू सबसे ादा मेरे जैसी है ।’’
‘‘बेचैनी भरे िदन म आदम के साथ था िफर भी उसका अकेलापन नहीं गया। वह
न मुझे दे ख सका न छू सका। उसे िसफ़ मेरी मौज़ूदगी का एहसास भर आ। इसिलए
आदम के साथ म जो भी कुछ साझा करना चाहता था, वह सब मने तेरे प म ढाल
िदया। मेरी पिव ता, मेरी श , मेरा ेम, मेरी सुर ा और सहारा। तू ख़ास है , ोंिक
तू मेरा ही िह ा है , मेरा िव ार है ।’’
‘‘पु ष म मेरी छिव अिभ होती है , ी म मेरे भावों का ितिनिध होता है ।
दोनों िमलकर, तुम ई र की स ूणता की छिव हो।’’
िफर ई र ने आिद पु ष को आदे श िदया—‘‘ ी के साथ अ ा वहार करो।
उसका आदर करो, ोंिक वह कोमल है । उसे तकलीफ़ प ँ चाओगे तो मुझे तकलीफ़
होगी। तुम उसके साथ जैसा वहार करोगे, समझ लो वह तुम मेरे साथ ही कर रहे
होगे। उसे कुचलकर, तुम अपने ही िदल को नुकसान प ँ चाओगे, अपने परमिपता के
िदल को क प ँ चाओगे।’’
‘‘ई र ने ी और पु ष को बराबर बनाया है । िकसी ी का अनादर करना या
उसे नुकसान प ँ चाना ई र का अनादर करने जैसा है ।’’
ज त है माँ के क़दमों म
मु राती माँ के प रवार पर आपका ा ान ‘ ाइिलंग मदर
. फ़ ै िमली’ सुनते समय मेरी आँ खों से आं सू छलक पड़े । मेरी माँ छाती
के कसर की िशकार हो गई थी ं िजसका समय रहते पता नही ं चला।
वह हाल ही म चल बसी ं। ज़ािहर है , मुझे उनकी कमी अखरती है , लेिकन
उनके जाने से मुझे एक अहम एहसास आ है जो म आपके साथ साझा
करना चाहता ँ ।
मेरी ही तरह ादातर पु ष इस बात की ओर ान िदए िबना ही
बड़े आराम से सारी िज़ गी गुज़ार दे ते है िक हमारी माँएँ िदन– रात
ब े पालने, घर की दे खभाल और यहाँ तक िक इस सब के बीच िकसी
तरह अपने क रयर का ान रखने जैसे तमाम कामों म उलझी रहती
ह। जबिक इस बीच हम म से ादातर पु ष अपनी पु ष– धान
सां ृ ितक पर राओं और रीितयों की िवरासत और िवशेषािधकार का
सुख भोग रहे होते ह। अगर हम माँओ ं के रोज़ाना के कामकाज और
िज़ ेदा रयों पर ग ीरता से ान द तो हम पाएँ गे िक िपताओं के
मुक़ाबले उन पर तरह–तरह की व ब त ादा िज़ ेदा रयाँ ह,
ख़ासतौर से तब जब ब ों की परव रश से जुड़े कत ों और चुनौितयों
की बात आती है , िजसकी िक िकसी और चीज़ से तुलना ही नही ं की जा
सकती। पु ष सोचते ह िक िपता की भूिमका िस ़ फ भरण–पोषण करने
वाले की है , और वह लगातार िपता की इसी भूिमका के साथ जूझते रहते
ह।
िजनके ब े छोटे होते ह, ऐसी िववािहत मिहलाएँ ादा ल े
समय काम करती ह, ितिदन चौदह से सोलह घंटे तक। जबिक
शादीशुदा मद आठ से दस घंटे से ादा काम नही ं करते। और उन घरों
म जहाँ रोज़ी-रोटी कमाने की िज़ ेदारी भी मिहलाओं की है , उन पर
पड़ने वाले बोझ की क ना भी नही ं की जा सकती।
सर, जब म अपने समाज म कामकाजी मिहलाओं को सताए जाने
की ख़बर पढ़ता ँ , तो मेरा ख़ून खौलता है । वह पु ष जो उनके साथ
बुरा बताव करते ह, उ अपनी बुरी नीयत का िशकार बनाने की
कोिशश करते ह, वे यह कैसे भूल जाते ह िक उ इस दु िनया म लाने
वाली भी एक औरत ही है । म आपसे गुज़ा रश करता ँ िक मुझे यह
बताएँ िक म अपने समाज को मिहलाओं के िलए सुरि त बनाने के िलए
ा कर सकता ँ ?
ी वा व म ई र की रचना का
स ूण प है , और ज दे ने, पालने
और हर तरह से बदल डालने की
श भी उसी के पास है ।
हाल ही म मुझे िकसी अ ात किव की एक किवता ‘ज वंस’ पढ़ने को िमली,
िजसका िह ी पा र ‘िसफ़ एक’ यह है —
दो ी का बीज बने इक ह ी मु ान
एक बार िमल दो हाथ तो आए नयी जान
भटक नािवक जब भी, राह िदखाए
िसतारा आकर िसमटे एक श म परम ल हमारा
पकी ईमेल ने मुझे सोचने को मजबूर कर िदया है । मने क़रीब बीस साल
आ भारतीय अ र अनुसंधान संगठन यानी ‘इसरो’ म िबताए, और इतना ही
समय अलग से र ा अनुसंधान एवं िवकास संगठन को िदया। इतने ल े
समय के दौरान, मने कई पेशेवर युवाओं को अपनी दे खरे ख म टीम लीडर के तौर पर
तैयार िकया। उनम से कुछ ने आगे चलकर बड़े रा ीय काय मों का नेतृ सँभाला।
मेरे कुछ जाने-माने सहकिमयों और मेरी दे खरे ख म अनुभव जुटाने वालों म इसरो के
चेयरमैन माधवन नायर, लाइट कॉ ैट एअर ा ो ाम के मुख कोटा
ह रनारायण डीआरडीओ मुख वी. के. सार त और अिवनाश चंदर, ोज़ के
मुख ए. िशवतनु िप ई और िडफ़स इं ूट ऑफ़ एडवां ड टे ोलॉजी के
कुलपित डॉ र ाद के नाम शािमल ह। इनके अलावा और भी कई ह जो रा ीय
योगशालाओं और बड़ी क िनयों के मुख ह। जब म पीछे मुड़कर नेतृ करने
वाले इन लोगों को दे खता ँ , तो मुझे नेतृ की मता िवकिसत करने के िलए ज़ री
सात मह पूण ि याएँ याद आती ह, िज म आपके साथ साझा कर रहा ँ ।
इन सात ि याओं को िकसी भी सं थान पर लागू िकया जा सकता है , लेिकन
इनम से हरे क को अ ी तरह लागू करने के िलए ज़ री समय, मेहनत और संसाधन,
और इनम से िकसी भी ि या की जिटलता सं थान के आकार, उनके ािम ,
उ े ों, उनकी अपनी िविश ताओं और आव कताओं के अनुसार अलग-अलग हो
सकती ह।
पहली ि या है अगुआई करने वाले व र लोगों की ितब ता—िकसी भी
नीितगत वरीयता की तरह, भावी नेतृ के िवकास की शु आत सं थान का नेतृ
कर रहे उन व र जनों की सि यता और ितब ता से होती है जो ाथिमकताएँ तय
करते ह और धन की व था करते ह। मानव संसाधन ब न से जुड़े किमयों से इन
ि याओं म सहयोग की उ ीद की जा सकती है , लेिकन वह इ संचािलत नहीं कर
सकते। व र लोगों से अगुआई की िज़ ेदारी अपने ऊपर लेने की उ ीद की जाती है
और इस स म सामा ढं ग से ितब ता जताना अ र काफ़ी नहीं होता। उ
इन ि याओं के िलए अलग से समय और संसाधन िनधा रत करने होते ह। इसी तरह,
लाइन मैनेजरों को इस बात के िलए तैयार करना चािहए िक वह भिव के नेतृ के
िवकास के िलए जवाबदे ह हो सक। मने दे खा है िक िकस तरह वी. एस. अ णाचलम
ने इं िट ेटेड गाइडे ड िमसाइल ो ाम के िलए धन की व था की थी। बाद म कोटा
ह रनारायण और ए. िशवतनु िप ई ने अपने अथक यासों से मश: लाइट
कमिशयल एअर ा और ोज़ पर काम करने के िलए धन का इं तज़ाम िकया।
यह सव पदों से नेतृ सँभालने वालों के सहारे और भागीदारी के िबना मुमिकन
नहीं होता।
दू सरी ि या है सं थान की भिव की आव कताओं की समझ हािसल
करना। नेतृ िवकास का िसलिसला बनाने के म म बेहद ज़ री क़दम है यह तय
करना िक सं थान को अपने नीितगत ल ों को ा करने के िलए भिव म कैसी
भूिमकाओं, कौशल और सं ा म लोगों की आव कता होगी।
तीसरी ि या है सं थान म आव क भूिमकाओं को पूरा करने के िलए मौजूदा
कमचा रयों की मताओं का आकलन। इसे कभी-कभी ‘उ - मता’ वाले कमचारी
या ‘स ेशन कडीडे ट’ की पहचान भी कहा जाता है । भिव की ज़ रतों को सामने
रखते ए यह सोचना होगा िक इसके िलए िकस काय कौशल की ज़ रत पड़े गी; और
वतमान के िकन कायकताओं म इसकी ‘स ावना’ है । चुनौती यह है िक इन
‘स ावनाओं’ को प रभािषत कैसे िकया जाए और उ पहचाना कैसे जाए। आर.
ािमनाथन ने दो बार डीआरडीएल यानी र ा अनुसंधान एवं िवकास योगशाला के
पुनगठन म मदद की, और बाद म िमसाइल ो ाम के िलए युवा वै ािनकों के
उभरकर सामने आने के मूल म उसी दौर म िकया गया काम है ।
चौथी ि या है पहचान करने के बाद ‘उ स ावनाओं’ वाले कमचा रयों का
वा िवक िवकास और गहन मागदशन। कमचा रयों और उनके ब कों की
वचनब ता के साथ, चुने ए किमयों को उनकी अिधकतम काय मता के र तक
प ँ चने म मदद करने के िलए उनकी कई तरह से मदद करनी पड़ सकती है , िजसम
औपचा रक िश ण शािमल है , लेिकन वह कोई सीमा नहीं है । सबसे मह पूण है
काम करते ए अपना दायरा बढ़ाने के मौके। िमसाल के तौर पर, अ थाई ोजे या
िनधा रत भूिमका वाली िज़ ेदा रयाँ , और साथ म सं थान के ही णाली ब कों और
दू सरे व र माग-दशक की दे खरे ख म उनकी मट रं ग और कोिचंग। उदाहरण के
िलए, िवशाखाप नम् की भारत हे वी ेट्स एं ड वेज़े ् िलिमटे ड म डॉ र जी. जे.
गु राजा के साथ काम करते ए अ ण ितवारी ने ि शूल िमसाइल णाली के िलए
टाइटै िनयम की एअर बॉटल िवकिसत की।
िज़ गी तमाम कारकों का एक ब त
ही जिटल खेल है िजसम छु पे ए ख़तरों
को ीकार कर, उनसे िनपटते ए
आगे बढ़ते जाना होता है ।
मेरा तीसरा सपना है िक भारत दु िनया के सामने िसर उठा कर खड़ा हो सके।
ोंिक म मानता ँ िक अगर भारत दु िनया के बाकी दे शों के र से पीछे रह जाता है ,
तो कोई हमारा स ान नहीं करे गा। िसफ़ ताक़त ही ताक़त का स ान करती है । हम
िसफ़ एक सै श के तौर पर ही श शाली नहीं होना चािहए, ब आिथक
श के प म भी मज़बूत होना चािहए। दोनों साथ-साथ चलने चािहए।
अपने रा को आिथक प से िवकिसत दे श म बदलने के िलए िवकास दर म
तेज़ी लाने के उ े से मने भारत की मूलभूत मताओं, ाकृितक संसाधनों और
ितभाशाली जनबल के आधार पर पाँ च े ों की पहचान की है । ये पाँ च े ह—
वतमान कृिष उ ाद सं रण और खा ा उ ादन को दोगुना करने के उ े से
कृिष और खा सं रण; िबजली की भरोसेम उपल ता के साथ ामीण े ों म
शहरी सुिवधाएँ मुहैया कराना और सौर ऊजा का अिधकािधक उपयोग; िनर रता,
सामािजक सुर ा और जनसं ा के मु ों को ान म रखते ए िश ा और ा
सेवाओं का िव ार; दू रदराज़ के इलाकों म िश ा, दू रसंचार और टे ली-मेिडिसन के
िव ार के िलए ई-गवनस को बढ़ावा दे ने के िलए सूचना और संचार ौ ोिगकी; और,
अ म, नािभकीय ौ ोिगकी, अ र ौ ोिगकी और र ा ौ ोिगकी के िवकास
के िलए ‘ि िटकल’ ौ ोिगकी और साम रक मह के उ ोगों को बढ़ावा।
दे श के युवाओं को सा रता, पयावरण और सामािजक ाय के े ों म काम
करके भारी सामािजक बदलाव ला सकते ह, और उ ामीण और शहरी जीवन र
के बीच की खाई को पाटने की िदशा म काम करना चािहए। यह अ आव क है
िक िवकिसत भारत एक ऐसा रा हो जहाँ ऊजा और अ ी गुणव ा के पानी का
िवतरण और उपल ता ायसंगत होगी, जहाँ कृिष, उ ोग और सेवा- े आपसी
तालमेल के साथ काम करगे, एक ऐसा रा जहाँ सभी को उ ृ ा सेवाएँ
उपल होंगी, जहाँ शासन व था ज हरकत म आने वाली, पारदश और
ाचार रिहत होगी।
अब म आपके सवाल पर आता ँ — ा भारत का गीत हद दज की गरीबी और
िडिजटल ौ ोिगकी की पूजा का युगल गीत होगा? मेरा जवाब है नहीं। बेशक इसके
िलए हम अभी ब त कुछ करना है । हम अपने छोटे -मोटे झगड़े और मनमुटाव भुला
दे ने चािहए ोंिक ये झगड़े िबलकुल गलत ह। हमारे पिव धम ों म इन झगड़ों को
बुरा बताया गया है । हमारे पूवज, और वे महान लोग िजनके वंशज होने का हम दावा
करते ह, िजनका ख़ून हमारी रगों म दौड़ता है , अपनी औलादों को मामूली सी
असहमित की वजह से झगड़ते दे ख शिम ा महसूस करते होंगे।
झगड़ना ब कर दे ने से बाकी सब कुछ सुधरने लगेगा। जीवन का आधार,
हमारी जीवनी श जब दमदार और शु होती है , तो शरीर म रोग पैदा करने वाले
कीटाणु नहीं पनप पाते। हमारी जीवनी श है हमारी आ ा कता। अगर उसके
बहाव म कोई कावट नहीं है , अगर उसका वाह तेज़, शु और ओजपूण है , तो सब
कुछ ठीक रहे गा; राजनैितक, सामािजक या कोई भी दू सरी भौितक ख़ािमयाँ । यहाँ तक
िक दे श की गरीबी व सभी परे शािनयों से छु टकारा िमल जाएगा।
अगर आधुिनक िचिक ा िव ान की ज़बान म बात कर, तो हम कह सकते ह िक
हम मालूम है िक बीमारी के पीछे दो कारण होते ह, एक तो बाहर से शरीर म वेश
करने वाला रोगाणु और दू सरे शरीर के ा की आ रक थित। जब तक शरीर
ऐसी थित म नहीं होता िक रोगाणु उसम वेश कर सक, जब तक िक शरीर के ओज
म इतनी िगरावट नहीं आई ई होती है िक रोगाणु शरीर म घुस कर पनप और बढ़
सक, तब तक िकसी भी रोगाणु म इतनी श नहीं है िक वह थ शरीर म बीमारी
पैदा कर दे । सच तो यह है िक करोड़ों रोगाणु लगातार हमारे शरीर से होकर गुज़रते
रहते ह, लेिकन जब तक शरीर थ और तंदु रहता है , तब तक उसे कोई फ़क
नहीं पड़ता। जब शरीर कमज़ोर होता है िसफ़ तभी ये रोगाणु उस पर अपनी पकड़
बना लेते ह और रोग पैदा कर दे ते ह। कुछ ऐसा ही रा के जनजीवन के साथ भी है ।
एक रा के तौर पर हम अपनी
अ ा कता से बाँ धे ए ह, और अगर
हम इसे ाग दगे, तो हमारे टु कड़े –
टकड़े हो जाएँ गे।
हम वा व म साहस व आ –िव ास
से भरपूर एक रा ीय नेतृ की
आव कता है । ऐसा नेतृ जो उ ोगों
के िलए एक गितशील और रत
माहौल दान कर सके, िजससे
भारतीय उ ोग उ ित की ओर बढ़
सक।
म एक ऐसे रोमां चक दौर से गुज़र रहे ह जहाँ िकसी को नहीं मालूम िक अगले पल ा
होगा और कब दु िनया ऐसे िब दु पर प ँ च जाएगी जहाँ अगले क़दम पर न जाने ा
कुछ बदल जाएगा। अं ेज़ी म इसे ‘िटिपंग ाइं ट’ कहते ह।
ह ऐितहािसक बदलावों के दौर म इस बात की ज़ रत होती है िक िजस तरह
की सोच और जैसी िमसालों को सामने रखकर इस दु िनया को बारीकी से दे खते
और समझते ह, और आगे की तैयारी करते और उसे अंजाम दे ते ह, उ नई
स ाइयों म ढलने के िलहाज से नये िसरे से अपने अ र उतारना होगा।
हाल ही म, जब म अमरीका के दौरे पर था, तब मुझे बताया गया िक हम िजस
िवमान म सफर कर रहे थे, उसकी ादातर िनय ण णाली सॉ वेयर से संचािलत
थीं और शायद उ भारत म तैयार िकया गया था। एक दू सरी जगह, जब मने अपना
े िडट काड पेश िकया तो मुझे बताया गया िक उसका िहसाब मॉ रशस म रखे ‘सवर’
पर चलता है । इसी तरह, एक बार जब म बंगलू म एक सॉ वेयर डे वेलपमट सटर
पर गया तो वहाँ वा व म एक ब सां ृ ितक वातावरण दे ख म मं मु हो गया। वहाँ
चीन का एक सॉ वेयर इं जीिनयर को रया के एक ोजे लीडर के अधीन काम कर
रहा था। इसके अलावा, भारत का एक सॉ वेयर इं जीिनयर और अमरीका से आया
एक हाडवेयर आिकटे और जमनी का एक संचार िवशेष , ये सभी िमल कर
आ े िलया म थत एक बक की िकसी सम ा को सुलझाने की कोिशश कर रहे थे।
आपने इस बात का डर ज़ािहर िकया है िक बु म ा को सव प र मानने वालों
की दे खरे ख म एक नई िव - व था लागू होने जा रही है िजसम सामािजक सुर ा के
िलए जारी सोशल िस ो रटी नंबर, बाज़ार म िमलने वाली तमाम चीज़ों पर यूिनवसल
ॉड कोड के िनशान, और हाल ही म चलन म आए रे िडयो तरं गों के ज़ रये पहचान
कराने वाले RFID (Radio Frequency Identification) माइ ोिचप टै ग से बड़ी सं ा
म लोगों पर िनगरानी रखी जाएगी। आपकी उलझन को म समझता ँ , लेिकन म
आपको बता दे ना चाहता ँ िक ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है ।
पहले आपको इस िच ा या दहशत की वजह समझनी चािहए। टे ोलॉजी के
बल पर लोगों के िदमाग और जनसं ा जैसी चीज़ों पर क़ाबू करके बड़े कारोबार और
सरकारों को आम लोगों की तमाम जानकारी मुहैया कराने को लेकर दहशत के पीछे
दो वजह हो सकती ह— गत मू ों पर ज़ोर और अपने हाथ म कुछ करने की
ताक़त न होने का एहसास। पहली बात उन लोगों पर लागू होती है जो अपने िनजी
अिधकारों को लेकर ब त सचेत होते ह, जो जैसा चाहते ह वैसा करते ह, और अपनी
िज़ गी म सरकार या वैसी ही दू सरी बड़ी व थाओं की शत और दखलअ ाज़ी
नहीं चाहते। जब ऐसे हालात से गुज़रने के साथ वह अपनी िज़ गी म भी कुछ न कर
पाने के एहसास से गुज़रते ह, तो अपनी आज़ादी दू सरी बाहरी ताक़तों या अपनी
चलाने वालों के हाथों िछनने की िच ा उ सताने लगती है । जब गत आज़ादी
को पूरे िदल-ओ-िदमाग से अहिमयत दे ने वालों की आज़ादी म कहीं भी खलल पड़ता
है , तो उ लगता है जैसे कुछ ब त बुरा हो गया, और िफर वह मान बैठते ह िक इस
आज़ादी िछनने के पीछे कोई बड़ी ताक़त काम कर रही ह।
इस बारे म म आयन रै की िकताब एटलस ड का िज़ करना चा ँ गा,
िजसम उ ोंने िलखा है , ‘‘म मूल प से पूंजीवाद की समथक नहीं ँ , लेिकन
अह ाद की समथक ँ । म मूल प से अह ाद की समथक नहीं ँ , लेिकन म
तकश की समथक ज़ र ँ । अगर हम तक की े ता को मानते ह और उस पर
लगातार अमल करते ह, तो सब कुछ उसी म से होता चला जाता है । जब म िकसी
बु मान से असहमत होती ँ , तो म आिख़रकार ाय की िज़ ेदारी स ाई
को सौंप दे ती ँ –अगर म सही िनकली, तो उसे सबक िमलेगा, और अगर वह सही
िनकला तो मुझे सबक िमलेगा। जीत हमम से एक की होगी, लेिकन फ़ायदा दोनों को
होगा।’’
इं सान की िज़ गी चलाने के िलए िजस काम की ज़ रत होती है वह मूल प से
बौ क है । ोंिक इं सान को जो भी कुछ चािहए, पहले उसकी क ना उसके िदमाग
म होती है और िफर वह अपनी कोिशशों से उसे गढ़ता है । इ ीसवीं सदी म यह
दु िनया, पहले के मुक़ाबले कहीं ादा, ान पर आधा रत लोगों की होगी। म एक िदन
डे िनस वेटली की िकताब ए ायस अॉफ द माइ पढ़ रहा था। यह िकताब बताती है
िक कल दु िनया कैसी थी और आज की दु िनया कैसी है ।
यिद बु व ान ही हर तरह से श के ोत ह और दोनों मनु के अ र
मौजूद रहते ह और यह दे खते ए िक आज लोग पहले के मुक़ाबले अपनी आज़ादी
को कहीं ादा अहिमयत दे ते ह, तो िजन हालात की त ीर आप हमारे सामने
पेश कर रहे ह, उसके अंजाम तक प ँ चने के आसार नज़र नहीं आते। इसके अलावा,
तेज़ी से बात फैलाने की इं टरनेट की ख़ूबी के चलते ‘एक िव व था’ के खलाफ़
सुर ा का घेरा बन जाएगा।
इसके साथ-साथ, े ीय र पर भी ब त कुछ घटता रहता है , और यह सब
‘एक-िव व था’ की बात को सच होने म कावट पैदा करे गा। अमरीका और स
जैसी दो महाश यों के बजाय, इस दु िनया म ‘ि दे श’ (BRICS) जैसी कई
ताकत होंगी। ाजील, स, भारत, चीन व दि ण अ ीका का साथ िमलकर ‘ि
रा ों’ के नाम से एक भौगोिलक, राजनैितक और आिथक समूह के तौर पर अपनी
पहचान बनाना एक स ाई है िजससे दु िनया म िमलजुल कर शासन– व था चलाने
और आिथक स ों को एक नई गित िमली है । सारे ि रा ों म कुल िमलाकर
दु िनया की आबादी के 42 फ़ीसदी लोग रहते ह, और दु िनया भर के कुल GDP यानी
सकल घरे लू उ ाद म 18 फ़ीसदी की िह ेदारी इ ीं दे शों की है ।
चीन की अथ व था ने क़रीब चालीस करोड़ लोगों को गरीबी से छु टकारा
िदलाने म कामयाबी हािसल की है । और यह सब मुमिकन आ है तीन दशक तक 10
ितशत की वािषक वृ के साथ, कृिष और उ ोग के े म भारी िवदे शी िनवेश से
और अब घरे लू बाज़ार म आए उछाल से। चीन की अथ व था म इस अभूतपूव गित
की बदौलत वहाँ म म आय वग बेहद तेज़ी से बढ़ रहा है । साथ ही, हर साल
शहरीकरण का फ़ायदा उठाने वालों की आबादी का आँ कड़ा लगभग एक करोड़
स र लाख की सं ा के आसपास प ँ च गया है ।
ामीण े ों म बड़े पैमाने पर गरीबी के बावजूद, भारत अपने िति त लोकत
की बदौलत ौ ोिगकी और सेवा े म आिथक चम ार कर िदखाने म कामयाब
रहा है । इन े ों म तर ी से ल े समय तक सतत् िवकास की जो नींव पड़ी है ,
उसने भारत को ि दे शों के समूह म एक अ णी दे श के प म ला खड़ा िकया है ।
लैिटन अमरीकी अथ व थाओं म ाजील एक मुख दे श के प म उभर कर
सामने आया है । वह ाकृितक संसाधनों और खिनज तेल के बदले कम लागत वाली
तैयार चीज़ों के िलए चीन के साथ संयु उप मों के िलए तालमेल बैठाने की
कोिशशों म लगा आ है ।
इसी कार, स एक बेहद मज़बूत अथ व था के तौर पर मश र है , और
इसके पीछे तेल और गैस उ ादन े म उसकी भूिमका ही सबसे बड़ी वजह है ।
ापा रक भागीदार के िलए एक अ े सहयोगी बनने की स ावना के साथ िव ान
और ौ ोिगकी म िवशेष ता के चलते स ि के सद दे शों के िलए एक अ ा
सहयोगी सािबत हो सकता है ।
ि दे शों के समूह म पाँ चव सद के प म दि ण अ ीका को शािमल
िकए जाने से इस बात का भरोसा होता है िक दु िनया के िव ीय, िवकासा क व
ापा रक ढाँ चे म अ ीका को वह जगह िमली है िजसका वह हक़दार है ।
जहाँ तक िव के सभी धम, स दाय, पंथ और आ ा क आ था वाले समूहों
के सम य से सूमचे िव के िलए एक धम व था बनने की बात है , मुझे लगता है िक
आने वाले समय म लोग पूरब और पि म की आ ा क पर राओं और िस ा ों
का सार लेकर थ रहने के तौर-तरीकों को अपनाएँ गे।
जहाँ एक ओर हम रा ों और ापा रक िनगमों के समूहों को श के ों के
प म बढ़ते ए दे ख रहे ह, वहीं िकसी एक की बढ़ती ई ताकत और प ँ च
वैि क प र पर अपने गहरे भाव से श के ों के बीच स ुलन थािपत करने
का काम करे गी।