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प्रति वेद्य

भार ीय सव च्च न्यायालय

सिसविवल अपील अति कारिर ा

सिसविवल अपील सं. 131/2020

@विवशेष अनुमति याति&का (सिसविवल) सं. 6999 वष+ 2017

बालकृष्ण राम

………...अपीलार्थी3(गण)

बनाम

भार संघ एवं अन्य

………... प्रत्यार्थी3 (गण)

विनण+ य
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता

1. अनुमति प्रदत्त।

2. इस अपील में उठाए गए विवषयों में से एक यह है विक क्या उच्च न्यायालय


के समक्ष विनलंम्बिHब सशस्त्र बल सेवाकम3 से संबंति मामाले में उच्च

न्यायालय के एकल न्याया ीश के आदेश के विवरूद्घ अपील सशस्त्र बल


न्यायाति करण को स्र्थीानान् रिर विकया जाना &ाविहए या उच्च न्यायालय द्वारा

सुनी जानी &ाविहए।


3. सशस्त्र बल न्याया ीकरण ' संक्षेप में ए.एफ.टी.’ का गठन सशस्त्र बल
न्यायाति करण अति विनयम 2007 (ए म्बिस्मन पश्चा अति विनयम के रूप में
संदर्भिभ ) विकया गया जो सशस्त्र बलों से संबंति सेवाकर्मिमयों के परिरवादों आै र
विववादों के न्याय विनण+ यन हे ु एक ए .एफ.टी गविठ करने के उद्देश्यों से

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2

अति विनयविम विकया गया र्थीा। अति विनयम का अध्याय 3 न्यायाति करण के
प्राति कार, शविZयों आै र क्षेत्राति कार से संबंति है अति विनयम की ारा
14(1) विनHनव हैः-
‘’ सेवा मामलों में क्षेत्राति कार शविZयाँ आै र प्राति कार – (1) इस
अति विनयम में स्पष्ट अन्यर्थीा उपबंति के सिसवाय , न्यायाति करण विनय
विदन से उस विदन के पूव+ सभी न्यायालयों (सव च्च न्यायालय या संविव ान
के अनुच्छे द 226 आै र 227 के अन् ग+ अति कारिर ा का प्रयोग कर रहें
उच्च न्यायालय को छोडकर) द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी सेवा मामलों
के संबं में अति कारिर ा, शविZ आै र प्रति कार का प्रयोग करेंगा।"

4. ारा 15 उपबंति कर ी है विक न्यायाति करण सैन्य न्यायालय द्वारा


विदए विकसी आदेश, विनण+ य, विनष्कष+ या दण्डादेश के विवरूद्घ अपील के संबं में
अति कारिर ा शविZ आै र प्राति कार का प्रयोग करेगा।

5. अति विनयम की ारा 34 विनHनव है:-

‘’34. लंविब मामालेां का स्र्थीानान् रण - (1) इस अति विनयम के


अन् ग+ न्यायाति करण की स्र्थीापना की ति थिर्थी से ठीक पूव+ विकसी उच्च
न्यायालय या अन्य प्राति कारी सविह विकसी न्यायालय के समक्ष लंविब
प्रत्येक वाद या अन्य काय+ वाही एे सा वाद या काय+ वाही है जो
न्यायाति करण के क्षे़त्राति कार के भी र हो ा है। यविद एे से न्यायाति करण
के स्र्थीाविप होने की ति थिर्थी के पश्चा उसके क्षेत्राति कार के भी र हो ा है ,
ो उस ति थिर्थी को न्यायाति करण को स्र्थीानान् रिर हो जायेगा ।

(2) विकसी वाद या अन्य काय+ वाही के उच्च न्यायालय या अन्य


प्राति कारी समे विकसी न्यायालय से उप ारा 1 के अन् ग+
न्यायाति करणको स्र्थीानान् रिर हो जाने पर
(अ) न्यायालय या अन्य प्राति कारी या एे से स्र्थीानान् रण के पश्चा एे से
वाद या अन्य काय+ वाही का रिरकाड+ न्यायाति करण को अग्रेसिस करेगा।
(ब) एे से रिरकाड+ प्राप्त होने पर न्यायाति करण एे से वाद या काय+ वाही
पर जहाँ यर्थीा संभव ारा 14 की उप ारा (2) के अन् ग+ अभ्यावेदन
की रह एे से स्र्थीानान् रण से पूव+ की म्बिस्र्थीति से ठीक पूव+ या उसके पू्व+
की म्बिस्र्थीति से या नये सिसरे से जैसा विक न्यायाति करण ठीक समझें
काय+ वाही करेगा।

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3

6. भार संघ एवं अन्य बनाम राम बरन1 के मामलें में इलाहाबाद उच्च
न्यायालय की खण्डपीठ ने ारिर विकया विक अति विनयम की ारा वाक्यांश
'अन्य काय+ वाही' में लेटस+ पेटेन्ट अपील (ए म्बिस्मन पश्चा एल.पी.ए. से
संदर्भिभ ) सविह सभी अपील सHमलिल होगी। यह कहा गया विक &ूविं क
न्यायाति करण उच्च न्यायालय का परिरपूरक है, न्यायाति करण एकल न्याया ीश
के आदेश के विवरूद्घ अपील जो विक न्यायाति करण को स्र्थीानान् रिर की जानी
र्थीी का न्याय विनण+ यन कर सक ा है।

7. हम यह कह सक े है, उत्तर प्रदेश उच्च् न्यायालय ''लेटस+ पेंटेन्ट अपील


उन्मूलन'’ अति विनयम 1962 के अति विनयविम हो जाने के पश्चा लेटस+ पेटेन्ट
अपील उच्च न्यायालय इलाहाबाद में प्रयोज्य नही है। हालाँविक एकल
न्याया ीश के विनण+ य के विवरूद्घ खंडपीठ में विवशेष अपील का उपबं विदया गया
है। उच्च न्यायालय ने ारिर विकया विक ' अन्य काय+ वाही' शब्द में एे से सभी
अन् ः न्यायालयीय अपील शाविमल होंगी।

8. डब्लू एक्स सिसगमैन नन्द विकशोर शाहू बनाम &ीफ आफ आम3 स्टाफ 2 के
मामलें में खंडपीठ त्पश्च&ा मामले को पूण+ पीछ को संदर्भिभ विकया गया आै र
पूण+ पीठ में बहुम से विनHन ारिर विकयाः-

‘’ पूव+गामी बहस के आलोक में हमारा यह सुचिं&ति म है विक सशस्त्र


न्यायाति करण के गठन से ठीक पूव+ एकल न्याया ीश के विनण+ य एवं
आदेश के विवरूद्घ इलाहाबाद उच्च न्यायालय विनयमावली 1952 के
विनयम 5 अध्याय 8 के अन् ग+ दायर की गइ+ लंविब विवशेष अनुमति
याति&का न्यायाति करण को स्र्थीानान् रण के योग्य नहीं है आै र राम बरन
उपरोZ के मामले में खंडपीठ द्वारा विदया गया विनण+ य सही विवति
प्रति पाविद नही कर ा।’’

9. अपीलार्थी3 की विवद्वान अति वZा सुश्री प्रति का विद्ववेदी का दावा है विक


भार संघ एवं अन्य बनाम मेजर जनरल श्रीकां शमा+ एवं अन्य 3 के मामले
सविह कइ+ विनण+ यों में इस न्यायालय द्वारा ारिर विकया गया है विक ए .एफ.टी.
उच्च न्यायालय के सभी शविZयों का प्रयोग कर ा है। उनका कर्थीन है विक यह
1Special Appeal Defective No. 445 of 2005
2 2012 (1) ESC 386 (All); Special Appeal (Defective) No. 610 of 2002
3 (2015) 6 SCC 773

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एक रह से अति विनयम द्वारा शासिस मामलों के संबं में उच्च न्यायालय को


प्रति स्र्थीाविप कर ा है आै र एकल न्याया ीश के विनण+ य के विवरूद्घ एल.पी.ए.
या विवशेष अनुमति याति&का भी ए.एफ.टी को स्र्थीानान् रिर की जानी &ाविहए।

10. हम इस कर्थीन से विबल्कुल सहम नहीं है। अति विनयम की ारा 14(1)
यर्थीा उद्ध ृ स्पष्ट उपबं कर ा है विक ए.एफ.टी. सव च्च न्यायालय या भार के
संविव ान के अनुच्छे द 226 आै र 227 के अन् ग+ अपनी अति कारिर ा का
प्रयोग कर रहे उच्च न्यायालय को छोडकर सभी न्यायालयों की शविZ का प्रयोग
करेगा। ारा 34 में बहु साव ानी पूव+क शब्दों का &यन विकया गया है। इसमें
कहा गया हे विक न्यायाति करण के स्र्थीाविप होने के ठीक पूव+ उच्च न्यायालय
समें विकसी न्यायालय के समक्ष लंविब कोइ+ वाद या कोई अन्य काय+ वाही उस
विदन न्यायाति करण को स्र्थीानान् रिर हो जायेगी विव ातियका ने स्पष्ट रूप से
ए.एफ.टी को उच्च न्यायालय द्वारा संविव ान के अनुच्छे द 226 के अन् ग+
प्रयोग की जानी वाली शविZयाँ व क्षेत्राति कार नहीं विदया है। हम इस प्रश्न पर
नहीं जा रहें हैं विक क्या न्यायाति करण संविव ान के अनुच्छे द 227 के अन् ग+
उच्च न्यायालय की पय+ वेक्षी अति कारिर ा के अ ीन है। लेविकन इसमें कोइ+ संदेह
नही है विक उच्च न्यायालय ए .एफ.टी. द्वारा विदए गए आदेशों के संHबन् में भी
अपनी रिरट अति कारिर ा का प्रयोग कर सक ा है। यह सत्य है विक &ूंविक कोइ+
अपील ए.एफ.टी के आदेश के विवरूद्घ सव च्च न्यायालय के पास हो , ो उच्च
न्यायालय अपनी असामान्य रिरट अति कारिर ा का प्रयाेग नही कर सक ा
क्योंविक एक अति क वाँछनीय उप&ार उपलब् रह ा है। लेविकन उसका अर्थी+
यह नही है विक उच्च न्यायालय की अति कारिर ा थिछन गइ+ है। विकसी परिरम्बिस्र्थी में
उच्च न्यायालय के आदेशों के विवरूद्घ अपनी असामान्य रिरट अति कारिर ा का
प्रयोग कर सक ा है।

11. ऐसा ारिर कर े हुए, हम एल.&न्द्र कुमार बनाम भार संघ एवं अन्य 4
के मामले में इस न्यायालय की संविव ान पीठ के विनण+ य का अवलंब ले े है।
इस न्यायालय ने स्पष्ट ः ारिर विकया विक न्यातियक पुनर्मिवलोकन संविव ान के
आ ारभू ढाँ&ें का विहस्सा है आै र उच्च न्यायालय आै र सव च्च न्यायालय में
विनविह न्यातियक पुनर्मिवलोकन का प्रासंविगक विहस्सा विनHनव हैः-

‘’ 78. हमारे संविव ान विनमा+ ाआें ने सिजस रीके से न्यायपलिलका से


संबंति प्राव ानों को शाविमल विकया उसके विवश्लेषण से यह विदखेगा विक
4 (1997) 3SCC 261

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वे न्यायपालिलका की स्व ंत्र ा के लिलए अत्यति क गंभीर र्थीे। उनके


प्रयासों का उद्देश्य यह सुविनतिश्च करना र्थीा विक न्यायपालिलका अपने
न्यातियक पुन+विवलोकन की व्यापक शविZ का प्रभावी विनवा+हन करने में
समर्थी+ हो। हालाँविक संविव ान उच्च न्यायालयों एवं सव च्च न्यायालय को
विवति यों को विनरस् करने की शविZ प्रदान कर ा है। इसमें न्याया ीशों
की पदावति , वे न, भत्ते, सेवाविनवृलित्त की आयु आै र सार्थी ही उच्च र
न्यायालयों में &यन की व्यवस्र्थीा का भी व्यापक प्राव ान हे।ै एे से
व्यापक प्राव ानों को शविमल करने के पीछे यह विवश्वास प्र ी हो ा है
विक एसे प्राव ानों से सुसलि• होने पर उच्च र न्यायालय विकसी भी
काय+ पालिलका या विव ायी हस् क्षेप के प्रयास से सुरतिक्ष रहेंगें।

उच्च र न्यायालयों के न्याया ीशों को संविव ान की रक्षा का काय+ विदया


गया है आै र इसके लिलए उन्हें विनव+ &न की शविZ प्रदान की गइ+ है। उन्हें
संविव ान द्वारा प्रकम्बिल्प शविZ सं ल ु न को सुविनतिश्च करना हो ा है आै र
यह भी विक काय+ पालिलका आै र विव ातियका अपने काय– के विनष्पादन में
संवै ाविनक सीमाआें का अति क्रमण न करें। इए बा को देखना उनका
समान दातियत्व है विक अ ीनस्र्थी न्यायालयों आै र न्यायाति करणों में बैठे
लोगों द्वारा विदया गया विनण+ य न्यातियक स्व ंत्र ा के सिसद्घान् से गल न
हो। उच्च र न्यायपालिलका के न्याया ीशों की स्व ंत्र ा सुविनतिश्च करने
वाले संवै ाविनक सुरक्षा, अ ीनस्र्थी न्यायपालिलका के न्याया ीशों या उन
लोगों को जो सामान्य विव ान द्वारा बनाए गए न्यायाति करणों में बैठे हैं ,
उपलब्ण् नहीं है। परिरणामस्वरूप दस ू रे श्रेणी के न्याया ीशों को
संवै ाविनक विनव+ &न का काय+ का विनव+ हन करने के लिलए उच्च र
न्यायपलिलका का परिरपूरक कभी नहीं माना जा सक ा है। इसलिलए हमारा
मानना है विक अनुच्छे द 226 के अन् ग+ उच्च न्यायालयों को संविव ान
के अनुच्छे द 32 के अन् ग+ इस न्यायालय को प्रदत्त विव ायी काय– के
न्यातियक पुन+विवलोकन की शविZ संविव ान की एक अविनवाय+ विवशेष ा है ।
जो विक उसके मूल ढाँ&े का विहस्सा है। इसलिलए सामान्य ः उच्च
न्यायालयों आै र सव च्च न्यायालय की विव ानों की संवै ाविनक वै ा का
परीक्षण करने की शविZ का कभी भी त्याग नहीं विकया जा सक ा।

79. हमारा यह भी मानना हे विक उच्च न्यायालयों को प्रदान की गइ+


न्यातियक पय+ वेक्षण की शविZ भी संविव ान के मूल ढाँ&े का विहस्सा है। यह
इसलिलए है विक संविव ान के विनव+ &न के अति रिरZ सभी न्यातियक काय– से

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उच्च न्यायालयों को रविह करने वाली म्बिस्र्थीति से समान रूप से ब&ा


जाना &ाविहए।’’

एल &न्द्र कुमार (उपरोZ) के मामले में से उZ विटप्पणी से इसमें कोइ+ संदेह


नहीं रह जा ा विक उच्च् न्यायालय को ए.एफ.टी द्वारा विदए गए आदेशों के संबं
में न्यातियक पुन+विवलोकन शविZ प्रदान की गइ+ हे आै र यह शविZ संविव ान के
मूल ढां&े का विहस्सा है।

12. एल. &ंद्र कुमार (उपरोZ) के मामले में इस न्यायालय ने न्यातियक

पुनर्मिवलोकन की शविZ के अथिभत्यजन के मामले पर विव&ार कर े हु ए ारिर विकया

विक, ऐसी शविZ विव ान या संवै ाविनक संशो न द्वारा छीनी नहीं जा सक ी। विनण+ य

का प्रासंविगक विहस्सा विनHनव है:-

"90. पहले हम उच्च न्यायालयों की न्यातियक पुनर्मिवलोकन की शविZ के

अपवज+ न पर विव&ार कर े हैं। हमने पहले ही ारिर विकया है विक, न्यातियक

पुनर्मिवलोकन की शविZ के संबं में अनुच्छे द 226/227 के अं ग+ उच्च

न्यायालयों की अति कारिर ा पूरी रह अपवर्जिज नहीं की जा सक ी। हमारे

समक्ष यह क+ विदया गया है विक , विव ातियका के अ ीन मामलों पर न्याय

विनण+ यन के लिलए न्यायाति करण को अनुमति नहीं दी जानी &ाविहए। और यह

विक, उन्हें स्वयं को केवल उन मामलों क सीविम रखना &ाविहए सिजसमें

संवै ाविनक विवषय उठाए गए हों। हम इस ारा से सहम नहीं हो सक े

क्योंविक उसका परिरणाम काय+ वाविहयों को अलग अलग करना होगा और इससे

अनावश्यक विवलंब हो सक ा है। यविद ऐसा दृविष्टकोण अपनाया जा ा है ो

वाविदयों के पास संविव ाविनक मुद्दे उठाने का विवकल्प होगा उसमें से कु छ इ ने

ुच्छ हो सक े हैं विक उनके लिलए सी े उच्च न्यायालय जाना अनावश्यक

होगा और इसे न्यायाति करण की अति कारिर ा का विव रण हो जाएगा। इसके

अलावा उसके विवशेष भागों में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं सिजनमें विनयविम ौर पर

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संवै ाविनक विवषय पर विव&ार करना शाविमल हो ा है उदाहरण के लिलए सेवा

विवति से संबतिं मामलों में बहु सारे मामलों में संविव ान के अनुच्छे द

14,15 और 16 का विनव+ &न शाविमल हो ा है। यह मानना विक संवै ाविनक

विवषयों से संबंति मामलों को विनपटाने की न्यायाति करण के पास कोई शविZ

नहीं हो ी उस उद्देश्य को पूरा नहीं करेगा सिजसके लिलए उनका गठन विकया

गया र्थीा। दस
ू री ओर से यह मानना विक ऐसे सभी विनण+ य संविव ान के
अनुच्छे द 226/ 227 के अं ग+ ऐसे उच्च न्यायालय के खंडपीठ के विवषय

होंगे सिजस उच्च न्यायालय के क्षेत्राति कार के अं ग+ न्यायाति करण पड़ ा है

से दो उद्देश्य पूरे होंगे। संविव ान के अनुच्छे द 226 /227 के अं ग+ उच्च

न्यायालयों में विनविह विव ायी काय– के न्यातियक पुनर्मिवलोकन को छोड़कर यह

सुविनतिश्च करेगा विक न्यायाति करण में न्याय विनण+ यन की प्रविक्रया द्वारा ऐसे

छोटे-मोटे दावे छांट लिलए जाएं । उच्च न्यायालय के पास मेरिरट के आ ार पर


क+संग विनण+ य का भी लाभ होगा जो मामले को अंति म रूप से विनपटाने में
लाभदायक होगा।

91. हमारे समक्ष यह भी प्रति वाद विकया गया है विक न्यायाति करण के समक्ष

सुसंग रूप से लाए गए मामलों के संदभ+ में भी उनके द्वारा सिजस रीके से

न्याय विदया जा ा है उससे बहु कुछ शेष रह जा ा है। इसके अलावा

संविव ान के अनुच्छे द 136 के अं ग+ मूल विवति में विवशेष अनुमति याति&का

के माध्यम से अपील का उप&ार इ ना ख&3ला और अप्राप्य है विक वास् विवक

और प्रभावी प्र ी नहीं हो ा। आगे , ऐसा उप&ार प्रदान करने का परिरणाम

यह है विक सव च्च न्यायालय में न्यायाति करण के ऐसे विनण+ यों की भरमार है

सिजन्हें अपेक्षाकृ ुच्छ आ ारों पर &ुनौ ी दी गई है। और यह प्रर्थीम

अपीलीय न्यायालय की भूविमका विनभाने के लिलए बाध्य हो गया है। हमने इस

आवश्यक ा पर पहले ही जोर विदया है विक उच्च न्यायालयों को संविव ान के

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अनुच्छे द 227 के अं ग+ न्यायाति करणों के विनण+ यों पर विनरीक्षण की शविZ

प्रदान की जाए। आर.के. जैन के मामले में इन थ्यों को दृविष्टग रख े हुए

यह सुझाव विदया गया विक विवति के प्रश्न पर न्यायाति करण के विनण+ य को ऐसे

उच्च न्यायालय के खंडपीठ के समक्ष अपील की संभावना पर विव&ार विकया

जाना &ाविहए सिजसकी क्षेत्रीय अति कारिर ा के अं ग+ वह न्यायाति करण पड़ ा

हो ा है। लेविकन इस पर कोई भी काय+ वाही नहीं की गई। ऐसे कदम से मामले

में काफी सु ार आया हो ा। उपरोZ दोनों क– को ध्यान में रख े हु ए हमारा

मानना है विक न्यायाति करण के सभी विनण+ य &ाहे संविव ान के अनुच्छे द 323a

या 323b के अं ग+ या संविव ान के अनुच्छे द 226/ 227 के अं ग+ उच्च

न्यायालय के समक्ष रिरट के विवषय होंगे सिजसकी क्षेत्रीय अति कारिर ा के अं ग+

विवशेष न्यायाति करण पड़ ा हो।

xxx xxx xxx

93. अन्य पहलुओ ं पर जाने से पहले हम क्षेत्राति कार संबतिं विवषयों को

सारांश रूप में रख े हैं। न्यायाति करण उन मामलों की सुनवाई करने में

सक्षम है सिजनमें वै ाविनक प्रश्नों के विवपरी को &ुनौ ी दी गई है। हालांविक इस

क + व्य का विनव+ हन कर े हुए उच्च न्यायालय और सव च्च न्यायालय के पूरक

के रूप में काय+ नहीं कर सक े सिजन्हें संवै ाविनक व्यवस्र्थीा के अं ग+ यह

दातियत्व विदया गया है । इस संबं में उनका काय+ पूरक मात्र का है और

न्यायाति करण के ऐसे विनण+ य संबंति उच्च न्यायालय के खंडपीठ के समक्ष

जां& का विवषय होंगे। न्यायाति करण को परिरणामस्वरूप अ ीनस्र्थी विव ानों

एवं विनयमों की शविZयों का परीक्षण करने का भी अति कार होगा। हालांविक

न्यायाति करण को यह शविZ एक महत्वपूण+ अपवाद के अ ीन होगी।

न्यायाति करण ऐसे विकसी मूल विवति की शविZ से संबंति प्रश्न पर विव&ार नहीं

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करेंगे क्योंविक यह सुसHम सिसद्धां है विक न्यायाति करण जो विक विकसी

अति विनयम की विनर्मिमति है , उस अति विनयम को ही असंवै ाविनक घोविष नहीं

कर सक ा। ऐसे मामलों में ही संबंति उच्च न्यायालयों में सी े जाया जा

सक ा है। इन न्यायाति करणों के सभी विनण+ य जो उन मामलों में विदए गए हैं

सिजन पर उनके मूल विव ान के कारण उन्हें न्याय विनण+ यन की शविZ प्राप्त है ,

संबंति उच्च न्यायालयों की खंडपीठ के समक्ष जां& का विवषय होंगे। हम यहां

पर जोड़ दें विक न्यायाति करण प्रर्थीम ः विवति के ऐसे क्षेत्रों के संबं में ,

सिजनके लिलए वे बनाए गए हैं, एकमात्र न्यायालय होंगे। इससे हमारा आशय

यह है विक वाविदयों को उन मामलों में भी सिजनमें वे वै ाविनक विव ायकी

शविZयों को प्रश्नांविक कर े हैं (उसको छोड़ कर सिजसमें उस विव ान को

&ुनौ ी दी गई है सिजसके द्वारा न्यायाति करण विवशेष का गठन हु आ है, को

&ुनौ ी दी गयी है) संबंति न्यायाति करण के क्षेत्राति कार को नजरअंदाज


कर सी े उच्च न्यायालय जाने का विवकल्प नहीं होगा।

xxx xxx xxx

99. हमारे द्वारा अपनाई गई युविZ के अनुसार हमारा यह मानना है विक

अनुच्छे द 323-A का खंड 2 (घ) और अनुच्छे द 323-B का खंड 3(घ)

सिजस सीमा क वह उच्च न्यायालयों का अनुच्छे द 226/227 के अं ग+ और

सव च्च न्यायालय का अनुच्छे द 32 के अं ग+ अति कारिर ा का हनन कर े हैं ,

उस सीमा क असंवै ाविनक है। अति विनयम की ारा 28 और अनुच्छे द

323-A और 323-B के ह अति विनयविम विव ानों के "अति कारिर ा का

हनन खंड" उस सीमा क असंवै ाविनक होंगे। संविव ान के अनुच्छे द 32 के

ह सव च्च न्यायालय और अनुच्छे द 226/227 के ह उच्च न्यायालयों

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10

को प्रदान की गई अति कारिर ा हमारे संविव ान के अलंघ्य मूल ढां&े का विहस्सा

है। हालांविक इस अति कारिर ा को छोड़ा नहीं जा सक ा, हमारे न्यायालय और

न्यायाति करण संविव ान के अनुच्छे द 32 और 226/227 द्वारा प्रदान की गई

शविZ के विनव+ हन में अनुपरू क भूविमका विनभा सक े हैं । संविव ान के अनुच्छे द

323-A और 323-B के अं ग+ गविठ न्यायाति करण विवति क प्राव ानों और

विनयमों की संवै ाविनक वै ा का परीक्षण करने में समर्थी+ हैं। हालांविक इन

न्यायाति करणों के सभी विनण+ य उच्च न्यायालयों की खंडपीठ के समक्ष &ुनौ ी

का विवषय होंगे सिजनकी अति कारिर ा में संबंति न्यायाति करण पड़ ा है।

लेविकन यह न्यायाति करण विवति के सिजन क्षेत्रों के लिलए बनाए गए हैं उनके संबं

में प्रार्थीविमक न्यायालय की भांति काय+ कर े रहेंगे। अ ः वाविदयों के लिलए उन

मामलों में भी संबंति न्यायाति करण की अति कारिर ा को नजरअंदाज कर

सी े उच्च न्यायालय में जाने का विवकल्प नहीं होगा सिजनमें वे विवति क प्राव ानों
की शविZयों को प्रश्नांविक कर े हैं। (उन मामलों को छोड़कर सिजनमें उन
विव ानों को &ुनौ ी दी गई है सिजनके ह ऐसे न्यायाति करण का गठन विकया

गया है)। अति विनयम की ारा 5(6) वै एवं संवै ाविनक है और इसका उसी

प्रकार विनव+ &न विकया जाना &ाविहए जैसा हमने दर्भिश विकया है।”

13. सुश्री विद्ववेदी द्वारा इस न्यायालय द्वारा मेजर जनरल श्रीकां शमा+ (उपरोZ)

के मामले में विदए गए विनण+ य पर अवलंब लेना गल है । इस मामले में इस न्यायालय

के समक्ष विवषय यह र्थीा विक क्या एएफटी के आदेश के विवरुद्ध उच्च न्यायालय द्वारा

रिरट याति&का स्वीकार करना न्यायोति& र्थीा । यह दो न्याया ीशों का विनण+ य र्थीा और

स्पष्ट ः यह एल &ंद्र कुमार (उपरोZ) के मामले में संवै ाविनक पीठ के विनण+ य को

नहीं उलट सक ा। खंडपीठ ने एल &ंद्र कुमार (उपरोZ) सविह विवथिभन्न विनण+ य को

संदर्भिभ करने के पश्चा अपने विनष्कष– को प्रस् र 36 में विनHनव रखा:

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“36. इस न्यायालय द्वारा विदए गए उपरोZ विनण+ य का सारांश विनHनव है :

(i) उच्च न्यायालय में अनुच्छे द 226 के द्वारा विनविह न्यातियक पुनर्मिवलोकन की

शविZ संविव ान की एक मूलभू एवं अपरिरहाय+ विवशेष ा है और सशस्त्र बल

न्यायाति करण अति विनयम, 2007 सविह कोई भी विव ान भार के संविव ान

के अनुच्छे द 226 के ह प्रदान की गई अति कारिर ा को विनरस् या कम नहीं

कर सक ा।

(ii) अनुच्छे द 226 के अं ग+ उच्च न्यायालय की और अनुच्छे द 32 के ह

इस न्यायालय की अति कारिर ा यद्यविप विकसी अति विनयम के प्राव ान द्वारा

सीविम नहीं की जा सक ी , विनतिश्च ही उनमें अति विनयम के प्राव ानों में

लतिक्ष विव ायी आशय के प्रति सHमान का भाव है और अपनी अति कारिर ा का

प्रयोग अति विनयम के प्राव ानों के अनुरूप करेंगे।

(iii) जब थिशकाय ों के विनपटारे के लिलए विवति द्वारा कोई वै ाविनक मं& बनाया

जा ा है ो ऐसे विवति क व्यवस्र्थीा को नजरअंदाज कर रिरट याति&का स्वीकार

नहीं करना &ाविहए

(iv) उच्च न्यायालय संविव ान के अनुच्छे द 226 के अं ग+ कोई याति&का

स्वीकार नहीं करेगा यविद पीविड़ व्यविZ को प्रभावी वैकम्बिल्पक उप&ार उपलब्

हो या उस विव ान में सिजसके अं ग+ उस काय+ की थिशकाय की गई है

थिशकाय विनवारण की व्यवस्र्थीा विवविह हो । इस न्यायालय ने यह ारिर विकया

की यद्यविप संविव ान के अनुच्छे द 226 के अं ग+ उच्च न्यायालय की शविZ

संविव ान की एक अविनवाय+ आ ारभू विवशेष ा है जो छीनी नहीं जा सक ी ,

उच्च न्यायालय को संविव ान के अनुच्छे द 226 के अं ग+ कोई याति&का नहीं

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12

स्वीकार करना &ाविहए यविद पीविड़ व्यविZ को प्रभावी वैकम्बिल्पक उप&ार

उपलब् हो या सिजसके अं ग+ विकसी काय+ की थिशकाय की गई है , थिशकाय

के विनवारण की कोई विवति विवविह हो। विनण+ य के विनद¨श (iii) और (iv) के सही

होने में हमें संदेह है क्योंविक हमारे म में यह संविव ान पीठ द्वारा विदए गए विनण+ य

के विवरुद्ध जा ा है।

14. यह कहना प्रासंविगक होगा विक यह सिसद्धां विक जब वांछनीय वैकम्बिल्पक उप&ार

उपलब् हों ो उच्च न्यायालय को अपनी असा ारण रिरट अति कारिर ा का प्रयोग

नहीं करना &ाविहए, बुतिद्धमत्ता का विनयम है विवति का नहीं। रिरट न्यायालय सामान्य ः

अपनी रिरट अति कारिर ा का प्रयोग करने से ब& े हैं यविद या&ी के पास वांथिछ

वैकम्बिल्पक उप&ार हो। ऐसे उप&ार के अम्बिस् त्व का अर्थी+ यह नहीं है विक उच्च

न्यायालय की अति कारिर ा &ली गई है। सार्थी ही यह एक स्र्थीाविप सिसद्धां है विक


जब कोई वैकम्बिल्पक उप&ार उपलब् हो ो ऐसी अति कारिर ा का प्रयोग नहीं करना
&ाविहए।5 वैकम्बिल्पक उप&ार का विनयम विदशा का विनयम है अति कारिर ा का नहीं।

केवल इसलिलए विक न्यायालय अपने विववेकाति कार का प्रयोग नहीं कर सक ा , यह

मानने का आ ार नहीं हो सक ा विक इसकी कोई अति कारिर ा नहीं है। ऐसे मामले

हो सक े हैं सिजनमें एएफटी के द्वारा की गई स्पष्ट विवति हीन ा के कारण उच्च

न्यायालय द्वारा अपनी रिरट अति कारिर ा का प्रयोग न्यायोति& होगा। यह भी स्मरण

रहे विक वैकम्बिल्पक उप&ार प्रभावी होना &ाविहए और गैर कमीशन ऑविफसर (NCO))

कविनष्ठ कमीशन ऑविफसर (JCO)) के मामलों में ऐसे व्यविZ से प्रत्येक मामले में

सव च्च न्यायालय जाने की अपेक्षा करना न्यायोति& नहीं हो सक ा। सव च्च

न्यायालय जाना सा ारण वादी के लिलए अत्यं कविठन और आर्भिर्थीक पहु &
ं के बाहर

हो ा है। इसलिलए प्रत्येक मामले में विवथिशष्ट थ्य एवं परिरम्बिस्र्थीति यों के आलोक में उच्च

न्यायालय को ही यह विन ा+रण करना होगा विक इसे अपनी असा ारण रिरट
5 Union of India VS. T.R. Varma AIR 1957 SC 882

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अति कारिर ा का प्रयोग करना &ाविहए या नहीं। ऐसी अति कारिर ा के प्रयोग पर पूण+

प्रति बं नहीं लगाया जा सक ा क्योंविक उसका अर्थी+ यह होगा विक रिरट न्यायालय

की ऐसी रिरट याति&काओं पर सुनवाई करने की अति कारिर ा थिछन गई है जोविक एल

&ंद्रकुमार (उपरोZ) के मामले में प्रति पाविद विवति नहीं है।

15. सुश्री विद्ववेदी ने मेजर जनरल श्रीकां शमा+ के मामले में की गई विटप्पणी का

अवलंब लिलया है। सशस्त्र बल न्यायाति करण अति विनयम के अं ग+ गविठ

न्यायाति करण की अति कारिर ा अति विनयम के प्राव ानों के अ ीन जहां क यह

लोगों की सेवाओं की म्बिस्र्थीति से संबंति वाद के बारे में है , उच्च न्यायालय और

सिसविवल कोट+ की अति कारिर ा के पूरक के रूप में होगी। यह स्पष्ट है विक न्यायालय

का आशय यह मानना नहीं र्थीा विक न्यायाति करण अपनी रिरट अति कारिर ा के संबं

में उच्च न्यायालय का परिरपूरक है क्योंविक वह अति विनयम की ारा 14 (1) के


अं ग+ विवविनर्मिदष्ट रूप से विनःसृ है। हम यह एक वाक्य संदभ+ से नहीं पढ़ सक े।
यह सत्य है विक रिरट अति कारिर ा के प्रयोग में भी मूल पक्ष की काय+ वाही एएफ़टी

द्वारा विनण+ य के लिलए न्यायाति करण को स्र्थीानां रिर विकया जाना &ाविहए क्योंविक मूल

अति कारिर ा अब एएफटी में विनविह है। हालांविक इसका अर्थी+ यह नहीं है विक यह उच्च

न्यायालय की सभी शविZयों का प्रयोग कर सक ी है।

16. रोजर मैथ्यू बनाम दतिक्षण भार ीय बैंक लिलविमटेड एवं अन्य 6 के मामले में इस

न्यायालय की संविव ान पीठ (सिजसमें हम में से एक न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता एक

सदस्य र्थीे) ने स्पष्ट आ ारिर विकया विक यद्यविप अनुच्छे द 323-A और अनुच्छे द

323-B के अं ग+ स्र्थीाविप न्यायाति करण में उच्च न्यायालयों और सव च्च

न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्याया ीश विनयुZ हो सक े हैं लेविकन वे सव च्च

6 2019 (15) SCALE 615

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14

न्यायालय या उच्च न्यायालय की बराबरी नहीं कर सक े। विनHनलिललिख विटप्पणी

प्रासंविगक है :-

“194. आगे, यद्यविप विक सव च्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अवकाश

प्राप्त न्याया ीश विनयुZ हो े हैं , संविव ान के अनुच्छे द 323-A और 323-B

के अं ग+ स्र्थीाविप ऐसे न्यायाति करण सव च्च न्यायालय या उच्च न्यायालय की

बराबरी नहीं कर सक े। सव च्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्याया ीश के

एक बार अवकाश प्राप्त हो जाने पर और उसके पास संवै ाविनक स् र न रह

जाने पर उसके द्वारा ारिर पद की उच्च न्यायालय या सव च्च न्यायालय के

न्याया ीश के विपछले पद से बराबरी नहीं की जा सक ी। अ ः संवै ाविनक

न्याया ीशों का पद गरिरमा और रैंक स्व ः स्फू + है और पदानुक्रम या वे न

विवशेषाति कारों की वजह से नहीं है। अविप ु उन्हें प्रदत्त संवै ाविनक विनष्ठा का
परिरणाम है। संवै ाविनक न्याया ीशों के स् र का न्यायाति करण के सदस्यों को
विदया जाना संवै ाविनक योजना के सार्थी ज्याद ी होगी।"

17. यविद अपीलार्थी3 के विवद्वान अति वZा के क+ को स्वीकार कर लिलया जाए ो

यह न्यातियक स्व ंत्र ा के जड़ पर प्रहार के समान होगा और यह उच्च न्यायालय को

एएफ़टी के अ ीन बना देगा जो कभी भी विव ातियका का उद्देश्य नहीं हो सक ा ।

उच्च न्यायालय एक संवै ाविनक न्यायालय है सिजसका गठन संविव ान के अनुच्छे द

214 के अं ग+ हुआ है और यह अनुच्छे द 215 के अर्थी– में अथिभलेख न्यायालय

है। यह स्पष्ट है विक उच्च न्यायालय के आदेश को सव च्च न्यायालय के अति रिरZ

विकसी अन्य मं& पर &ुनौ ी नहीं दी जा सक ी। अं र न्यायालयीय अपील &ाहे

लेटस+ पेटेंट अपील के माध्यम से हो या विवशेष अति विनयम के माध्यम से एक ऐसी

व्यवस्र्थीा हो ी है जो उच्च न्यायालय के ऐसे विनण+ य को सही करने के लिलए उपबंति

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विकया गया है जो एकल न्याया ीश द्वारा विदया गया हो। ऐसा विनण+ य खंडपीठ के

समक्ष &ुनौ ी के योग्य हो ा है। खंडपीठ में ऐसी अपील सभी मामलों में नहीं हो ी

और इसे या ो लेटस+ पेटेंट के अं ग+ होना &ाविहए या विकसी विवथिशष्ट अति विनयम

के अं ग+ । ऐसी अपील जहां की जा ी है वहां भी इसे उच्च न्यायालय के दो या

अति क न्याया ीशों के द्वारा सुना जा ा है। हम ऐसी म्बिस्र्थीति कल्पना नहीं कर

सक े जहां उच्च न्यायालय के विकसी व + मान न्याया ीश के आदेश के विवरुद्ध

अपील पर सुनवाई एक अवकाश प्राप्त न्याया ीश और एक अवकाश प्राप्त सैन्य

अति कारी वाले न्यायाति करण द्वारा की जा ी हो। इसलिलए हम यह क+ अस्वीकार

कर े हैं विक उच्च न्यायालय में विवलंविब ऐसी अपील जो उच्च न्यायालय की एकल

न्याया ीश के विनण+ य से खंडपीठ में की गई हो, अति विनयम की ारा 34 के अं ग+

स्र्थीानां रिर की जानी &ाविहए।

18. जहां क मामले के गुणावगुण का संबं है, यह एक विनर्मिववाद थ्य है विक


अपीलार्थी3 एम्बिप्टट्यूड टेस्ट पास नहीं कर पाया। यह कहा गया है विक &ाहे वह
एम्बिप्टट्यूड टेस्ट भले ही न पास कर पाया हो, उसे सेवा मुZ विकए जाने से पहले

विकसी अन्य पद पर विनयुZ करने के लिलए विव&ार करना र्थीा। यह भी कहा गया है विक

सेवा मुZ करने के आदेश में यह नहीं दर्भिश विकया गया है विक अपीलार्थी3 के मामले

में वैकम्बिल्पक सेवा पर विव&ार विकया गया या नहीं।

19. हमारे विव&ार से सेवामुविZ के आदेश में यह दर्भिश करना आवश्यक नहीं है विक

ऐसा विव&ार विकया गया या नहीं। मामले के थ्यों से हम यह पा े हैं विक सेवामुZ

करने के पहले अपीलार्थी3 के नाम पर दो श्रेथिणयों में विव&ार विकया गया लेविकन

दभ
ु ा+ग्य से अपीलार्थी3 विकसी भी पद पर विनयुविZ के लिलए लंबाई मापदंड को पूरा नहीं
कर पाया। इस प्रकार स्पष्ट विदख ा है विक उनके मामले पर नीति यों के अं ग+

विव&ार विकया गया लेविकन वह विकसी भी पद पर विनयुविZ के लिलए उपयुZ नहीं र्थीा।

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इस आलोक में हमें अपील में कोई भी मेरिरट नहीं विदख ी और इसलिलए इसे विनरस्

विकया जा ा है। लंविब अभ्यावेदन, यविद कोई, विनस् ारिर विकए जा े हैं।

……………………..

(न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता)

……………………….

(न्यायमूर्ति अविनरूद्ध घोष)

नई विदल्ली

जनवरी 09, 2020

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