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3 149 2017
3 149 2017
प्रति वेद्य
बालकृष्ण राम
………...अपीलार्थी3(गण)
बनाम
विनण+ य
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता
1. अनुमति प्रदत्त।
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अति विनयविम विकया गया र्थीा। अति विनयम का अध्याय 3 न्यायाति करण के
प्राति कार, शविZयों आै र क्षेत्राति कार से संबंति है अति विनयम की ारा
14(1) विनHनव हैः-
‘’ सेवा मामलों में क्षेत्राति कार शविZयाँ आै र प्राति कार – (1) इस
अति विनयम में स्पष्ट अन्यर्थीा उपबंति के सिसवाय , न्यायाति करण विनय
विदन से उस विदन के पूव+ सभी न्यायालयों (सव च्च न्यायालय या संविव ान
के अनुच्छे द 226 आै र 227 के अन् ग+ अति कारिर ा का प्रयोग कर रहें
उच्च न्यायालय को छोडकर) द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी सेवा मामलों
के संबं में अति कारिर ा, शविZ आै र प्रति कार का प्रयोग करेंगा।"
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6. भार संघ एवं अन्य बनाम राम बरन1 के मामलें में इलाहाबाद उच्च
न्यायालय की खण्डपीठ ने ारिर विकया विक अति विनयम की ारा वाक्यांश
'अन्य काय+ वाही' में लेटस+ पेटेन्ट अपील (ए म्बिस्मन पश्चा एल.पी.ए. से
संदर्भिभ ) सविह सभी अपील सHमलिल होगी। यह कहा गया विक &ूविं क
न्यायाति करण उच्च न्यायालय का परिरपूरक है, न्यायाति करण एकल न्याया ीश
के आदेश के विवरूद्घ अपील जो विक न्यायाति करण को स्र्थीानान् रिर की जानी
र्थीी का न्याय विनण+ यन कर सक ा है।
8. डब्लू एक्स सिसगमैन नन्द विकशोर शाहू बनाम &ीफ आफ आम3 स्टाफ 2 के
मामलें में खंडपीठ त्पश्च&ा मामले को पूण+ पीछ को संदर्भिभ विकया गया आै र
पूण+ पीठ में बहुम से विनHन ारिर विकयाः-
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10. हम इस कर्थीन से विबल्कुल सहम नहीं है। अति विनयम की ारा 14(1)
यर्थीा उद्ध ृ स्पष्ट उपबं कर ा है विक ए.एफ.टी. सव च्च न्यायालय या भार के
संविव ान के अनुच्छे द 226 आै र 227 के अन् ग+ अपनी अति कारिर ा का
प्रयोग कर रहे उच्च न्यायालय को छोडकर सभी न्यायालयों की शविZ का प्रयोग
करेगा। ारा 34 में बहु साव ानी पूव+क शब्दों का &यन विकया गया है। इसमें
कहा गया हे विक न्यायाति करण के स्र्थीाविप होने के ठीक पूव+ उच्च न्यायालय
समें विकसी न्यायालय के समक्ष लंविब कोइ+ वाद या कोई अन्य काय+ वाही उस
विदन न्यायाति करण को स्र्थीानान् रिर हो जायेगी विव ातियका ने स्पष्ट रूप से
ए.एफ.टी को उच्च न्यायालय द्वारा संविव ान के अनुच्छे द 226 के अन् ग+
प्रयोग की जानी वाली शविZयाँ व क्षेत्राति कार नहीं विदया है। हम इस प्रश्न पर
नहीं जा रहें हैं विक क्या न्यायाति करण संविव ान के अनुच्छे द 227 के अन् ग+
उच्च न्यायालय की पय+ वेक्षी अति कारिर ा के अ ीन है। लेविकन इसमें कोइ+ संदेह
नही है विक उच्च न्यायालय ए .एफ.टी. द्वारा विदए गए आदेशों के संHबन् में भी
अपनी रिरट अति कारिर ा का प्रयोग कर सक ा है। यह सत्य है विक &ूंविक कोइ+
अपील ए.एफ.टी के आदेश के विवरूद्घ सव च्च न्यायालय के पास हो , ो उच्च
न्यायालय अपनी असामान्य रिरट अति कारिर ा का प्रयाेग नही कर सक ा
क्योंविक एक अति क वाँछनीय उप&ार उपलब् रह ा है। लेविकन उसका अर्थी+
यह नही है विक उच्च न्यायालय की अति कारिर ा थिछन गइ+ है। विकसी परिरम्बिस्र्थी में
उच्च न्यायालय के आदेशों के विवरूद्घ अपनी असामान्य रिरट अति कारिर ा का
प्रयोग कर सक ा है।
11. ऐसा ारिर कर े हुए, हम एल.&न्द्र कुमार बनाम भार संघ एवं अन्य 4
के मामले में इस न्यायालय की संविव ान पीठ के विनण+ य का अवलंब ले े है।
इस न्यायालय ने स्पष्ट ः ारिर विकया विक न्यातियक पुनर्मिवलोकन संविव ान के
आ ारभू ढाँ&ें का विहस्सा है आै र उच्च न्यायालय आै र सव च्च न्यायालय में
विनविह न्यातियक पुनर्मिवलोकन का प्रासंविगक विहस्सा विनHनव हैः-
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विक, ऐसी शविZ विव ान या संवै ाविनक संशो न द्वारा छीनी नहीं जा सक ी। विनण+ य
क्योंविक उसका परिरणाम काय+ वाविहयों को अलग अलग करना होगा और इससे
अलावा उसके विवशेष भागों में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं सिजनमें विनयविम ौर पर
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विवति से संबतिं मामलों में बहु सारे मामलों में संविव ान के अनुच्छे द
नहीं हो ी उस उद्देश्य को पूरा नहीं करेगा सिजसके लिलए उनका गठन विकया
गया र्थीा। दस
ू री ओर से यह मानना विक ऐसे सभी विनण+ य संविव ान के
अनुच्छे द 226/ 227 के अं ग+ ऐसे उच्च न्यायालय के खंडपीठ के विवषय
सुविनतिश्च करेगा विक न्यायाति करण में न्याय विनण+ यन की प्रविक्रया द्वारा ऐसे
91. हमारे समक्ष यह भी प्रति वाद विकया गया है विक न्यायाति करण के समक्ष
सुसंग रूप से लाए गए मामलों के संदभ+ में भी उनके द्वारा सिजस रीके से
यह है विक सव च्च न्यायालय में न्यायाति करण के ऐसे विनण+ यों की भरमार है
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यह सुझाव विदया गया विक विवति के प्रश्न पर न्यायाति करण के विनण+ य को ऐसे
हो ा है। लेविकन इस पर कोई भी काय+ वाही नहीं की गई। ऐसे कदम से मामले
मानना है विक न्यायाति करण के सभी विनण+ य &ाहे संविव ान के अनुच्छे द 323a
सारांश रूप में रख े हैं। न्यायाति करण उन मामलों की सुनवाई करने में
न्यायाति करण ऐसे विकसी मूल विवति की शविZ से संबंति प्रश्न पर विव&ार नहीं
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सिजन पर उनके मूल विव ान के कारण उन्हें न्याय विनण+ यन की शविZ प्राप्त है ,
पर जोड़ दें विक न्यायाति करण प्रर्थीम ः विवति के ऐसे क्षेत्रों के संबं में ,
सिजनके लिलए वे बनाए गए हैं, एकमात्र न्यायालय होंगे। इससे हमारा आशय
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का विवषय होंगे सिजनकी अति कारिर ा में संबंति न्यायाति करण पड़ ा है।
लेविकन यह न्यायाति करण विवति के सिजन क्षेत्रों के लिलए बनाए गए हैं उनके संबं
सी े उच्च न्यायालय में जाने का विवकल्प नहीं होगा सिजनमें वे विवति क प्राव ानों
की शविZयों को प्रश्नांविक कर े हैं। (उन मामलों को छोड़कर सिजनमें उन
विव ानों को &ुनौ ी दी गई है सिजनके ह ऐसे न्यायाति करण का गठन विकया
गया है)। अति विनयम की ारा 5(6) वै एवं संवै ाविनक है और इसका उसी
प्रकार विनव+ &न विकया जाना &ाविहए जैसा हमने दर्भिश विकया है।”
13. सुश्री विद्ववेदी द्वारा इस न्यायालय द्वारा मेजर जनरल श्रीकां शमा+ (उपरोZ)
के समक्ष विवषय यह र्थीा विक क्या एएफटी के आदेश के विवरुद्ध उच्च न्यायालय द्वारा
रिरट याति&का स्वीकार करना न्यायोति& र्थीा । यह दो न्याया ीशों का विनण+ य र्थीा और
स्पष्ट ः यह एल &ंद्र कुमार (उपरोZ) के मामले में संवै ाविनक पीठ के विनण+ य को
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(i) उच्च न्यायालय में अनुच्छे द 226 के द्वारा विनविह न्यातियक पुनर्मिवलोकन की
न्यायाति करण अति विनयम, 2007 सविह कोई भी विव ान भार के संविव ान
कर सक ा।
लतिक्ष विव ायी आशय के प्रति सHमान का भाव है और अपनी अति कारिर ा का
(iii) जब थिशकाय ों के विनपटारे के लिलए विवति द्वारा कोई वै ाविनक मं& बनाया
स्वीकार नहीं करेगा यविद पीविड़ व्यविZ को प्रभावी वैकम्बिल्पक उप&ार उपलब्
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के विनवारण की कोई विवति विवविह हो। विनण+ य के विनद¨श (iii) और (iv) के सही
होने में हमें संदेह है क्योंविक हमारे म में यह संविव ान पीठ द्वारा विदए गए विनण+ य
के विवरुद्ध जा ा है।
14. यह कहना प्रासंविगक होगा विक यह सिसद्धां विक जब वांछनीय वैकम्बिल्पक उप&ार
उपलब् हों ो उच्च न्यायालय को अपनी असा ारण रिरट अति कारिर ा का प्रयोग
नहीं करना &ाविहए, बुतिद्धमत्ता का विनयम है विवति का नहीं। रिरट न्यायालय सामान्य ः
अपनी रिरट अति कारिर ा का प्रयोग करने से ब& े हैं यविद या&ी के पास वांथिछ
वैकम्बिल्पक उप&ार हो। ऐसे उप&ार के अम्बिस् त्व का अर्थी+ यह नहीं है विक उच्च
मानने का आ ार नहीं हो सक ा विक इसकी कोई अति कारिर ा नहीं है। ऐसे मामले
न्यायालय द्वारा अपनी रिरट अति कारिर ा का प्रयोग न्यायोति& होगा। यह भी स्मरण
रहे विक वैकम्बिल्पक उप&ार प्रभावी होना &ाविहए और गैर कमीशन ऑविफसर (NCO))
कविनष्ठ कमीशन ऑविफसर (JCO)) के मामलों में ऐसे व्यविZ से प्रत्येक मामले में
न्यायालय जाना सा ारण वादी के लिलए अत्यं कविठन और आर्भिर्थीक पहु &
ं के बाहर
हो ा है। इसलिलए प्रत्येक मामले में विवथिशष्ट थ्य एवं परिरम्बिस्र्थीति यों के आलोक में उच्च
न्यायालय को ही यह विन ा+रण करना होगा विक इसे अपनी असा ारण रिरट
5 Union of India VS. T.R. Varma AIR 1957 SC 882
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अति कारिर ा का प्रयोग करना &ाविहए या नहीं। ऐसी अति कारिर ा के प्रयोग पर पूण+
प्रति बं नहीं लगाया जा सक ा क्योंविक उसका अर्थी+ यह होगा विक रिरट न्यायालय
15. सुश्री विद्ववेदी ने मेजर जनरल श्रीकां शमा+ के मामले में की गई विटप्पणी का
सिसविवल कोट+ की अति कारिर ा के पूरक के रूप में होगी। यह स्पष्ट है विक न्यायालय
का आशय यह मानना नहीं र्थीा विक न्यायाति करण अपनी रिरट अति कारिर ा के संबं
द्वारा विनण+ य के लिलए न्यायाति करण को स्र्थीानां रिर विकया जाना &ाविहए क्योंविक मूल
अति कारिर ा अब एएफटी में विनविह है। हालांविक इसका अर्थी+ यह नहीं है विक यह उच्च
16. रोजर मैथ्यू बनाम दतिक्षण भार ीय बैंक लिलविमटेड एवं अन्य 6 के मामले में इस
सदस्य र्थीे) ने स्पष्ट आ ारिर विकया विक यद्यविप अनुच्छे द 323-A और अनुच्छे द
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प्रासंविगक है :-
विवशेषाति कारों की वजह से नहीं है। अविप ु उन्हें प्रदत्त संवै ाविनक विनष्ठा का
परिरणाम है। संवै ाविनक न्याया ीशों के स् र का न्यायाति करण के सदस्यों को
विदया जाना संवै ाविनक योजना के सार्थी ज्याद ी होगी।"
है। यह स्पष्ट है विक उच्च न्यायालय के आदेश को सव च्च न्यायालय के अति रिरZ
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विकया गया है जो एकल न्याया ीश द्वारा विदया गया हो। ऐसा विनण+ य खंडपीठ के
समक्ष &ुनौ ी के योग्य हो ा है। खंडपीठ में ऐसी अपील सभी मामलों में नहीं हो ी
अति क न्याया ीशों के द्वारा सुना जा ा है। हम ऐसी म्बिस्र्थीति कल्पना नहीं कर
कर े हैं विक उच्च न्यायालय में विवलंविब ऐसी अपील जो उच्च न्यायालय की एकल
विकसी अन्य पद पर विनयुZ करने के लिलए विव&ार करना र्थीा। यह भी कहा गया है विक
सेवा मुZ करने के आदेश में यह नहीं दर्भिश विकया गया है विक अपीलार्थी3 के मामले
19. हमारे विव&ार से सेवामुविZ के आदेश में यह दर्भिश करना आवश्यक नहीं है विक
ऐसा विव&ार विकया गया या नहीं। मामले के थ्यों से हम यह पा े हैं विक सेवामुZ
करने के पहले अपीलार्थी3 के नाम पर दो श्रेथिणयों में विव&ार विकया गया लेविकन
दभ
ु ा+ग्य से अपीलार्थी3 विकसी भी पद पर विनयुविZ के लिलए लंबाई मापदंड को पूरा नहीं
कर पाया। इस प्रकार स्पष्ट विदख ा है विक उनके मामले पर नीति यों के अं ग+
विव&ार विकया गया लेविकन वह विकसी भी पद पर विनयुविZ के लिलए उपयुZ नहीं र्थीा।
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इस आलोक में हमें अपील में कोई भी मेरिरट नहीं विदख ी और इसलिलए इसे विनरस्
विकया जा ा है। लंविब अभ्यावेदन, यविद कोई, विनस् ारिर विकए जा े हैं।
……………………..
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नई विदल्ली
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