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Hindi Abhay
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२. प्रमाि ऩत्र
३. आभार प्रदर्शन
४. अनक्र
ु मणिका
५. प्रस्तावना
६. जीवन ऩररचय
७. कृततयााँ
८. हाऱावाद
१९२६ भें १९ वषत की उम्र भें उनका वववाह श्माभा फच्चन से हुआ जो उस सभम
१४ वषत की थीॊ। रेककन १९३६ भें श्माभा की टीफी के कायण भत्ृ मु हो गई। ऩाॉच सार
फाद १९४१ भें फच्चन ने एक ऩॊजाफन िेजी सूयी से वववाह ककमा जो यॊ गभॊच िथा
गामन से जुडी हुई थीॊ। इसी सभम उन्होंने 'नीड का तनभातण कपय-कपय' जैसे
कवविाओॊ की यचना की। िेजी फच्चन से असभिाब िथा अजजिाब दो ऩत्र
ु
हुए। असभिाब फच्चन एक प्रससद्ध असबनेिा हैं। िेजी फच्चन ने हरयवॊश याम
फच्चन द्वाया सेक्शवऩमय के अनूहदि कई नाटकों भें असबनम ककमा है ।
प्रमख
ु कृततयााँ
काव्य संग्रह :
ववववध :
आत्मकथा :
क्मा बर
ू ॉ ू क्मा माद करूॉ (1969), नीड का तनभातण कपय (1970), फसेये से दयू (1977),
दशद्वाय से सोऩान िक (1985) l
हाऱावाद
हालावाद (हाला+वाद) से ममलकर बना है. हाला का अथथ है मददरा और वाद का अथथ होता
है मसद्धान्त या मत. तो हालावाद का अथथ हुआ ’मददरावाद’. हाला, बाला, मधुशाला, प्याला आदद
का गुनानुवाद है. हालावाद जीवन की कठिनाईयों से मधुपान कर मुमि की क्षण्भंगुरता में मवश्वास है
और उसे आनंद और मस्ती से व्यतीत करने के भावना है.
हालावाद का उत्स सूदफ़योंअ का आंदोलन है मजसमें प्रेम-मादकता, शराब, प्याले आदद की
चचाथ है. सूदफ़यो का कहना था दक खुदा रोजा, नमाज़ आदद बाह्य आडम्बरों से प्राप्त नहीं हो सकता
अमपतु तादात्मय प्रेम-गहनता से यह सम्भव है. सूदफ़यों ने ममलन और आनंद की तुलना शराब के नशे
और खुमारी से की है. सूफ़ी कमव तन्मयता से मवभोर होकर कहता है:-
“मज़ा शराब का कै से कहूँ तुझसे ज़ामहद
हाय कम्बख्त तूने पी ही नहीं”.
सुरा के साथ सुन्दरी का योग आनंद का श्रीवधथन करता है. हालावाद की कमवताओं में सूफ़ी
दाशथमनकता समामहत है. आत्मा अथाथत आमशक (प्रेमी) , परमात्मा अथाथत माशूक (प्रेममका) के मवरह
में तड़पता है. मवश्व के कण-कण में उसी का हुस्न देखता है और अनेक व्यवधानों-अवरोधों को लांघता
हुआ पानी की बूूँद के समान उसी चेतना के सागर में लवलीन हो जाना चाहता है.
प्रेम, सौन्दयथ और यौवन के प्रमत आकषथण हाला के माध्यम से ईश्वरीय प्रेम की कल्पना की गई
है. हालावाद का मववेचन करते हुये आलोचकों का ध्यान के वल छायावादी काव्यधारा में ही के मन्ित
होकर रह जाता है. इसका पठरणाम यह है दक वे कमव जो पूरी तरह से छायावाद के अन्तगथत नहीं आ
पाते, उपेमक्षत हो जाते हैं. अब यहाूँ पर कहा जा सकता है दक प्रणय और यौवन का मचत्रण तो
छायावादी काव्य में बड़ी तल्लीनता के साथ दकया गया है, इसमलये इन कमवयों को स्वतन्त्र रूप से
प्रेम और मस्ती की काव्यधारा के अन्तगथत रखने का क्या आधार है? छायावादी कमवयों में प्रणय का
महत्त्व सीममत है. छायावादी कमवयों ने स्थूल प्रणय-बन्धन से ऊपर उिने का प्रयास करते हुये उसे
एक व्यापक जीवन चेतना के अंग के रूप में ग्रहण दकय. पन्त ने प्रणय को साध्य न मानकर साधन के
रूप में स्वीकार दकया है.
दूसरी महत्त्वपूणथ बात यह है दक यद्यमप छायावादी चेतना भी प्रधान रूप से व्यमिवादी चेतना
है और प्रेम और मस्ती के इन कमवयों की साधना व्यमिमनष्ठ रही है, तथामप दोनों के व्यमिवाद में
मूलभूत अन्तर है. छायावादी व्यमि चेतना शरीर से ऊपर उिकर मन और दिर आत्मा का स्पशथ करने
लगती है, जबदक इन कमवयों में व्यमिमनष्ठ चेतना प्रधान रूप से शरीर और मन के धरातल पर ही
व्यि होती है. इन्होंने प्रणय को ही साध्य के रूप में स्वीकार करने का प्रयास दकया है.
छायावादी काव्य जहाूँ प्रणय को जीवन की यथाथथ-मवषम व्यापकता में संजोने का प्रयास करता है
वहाूँ प्रेम और मस्ती का यह काव्य या तो मवमुख होकर प्रणय में तल्लीन ददखाई देता है या दिर
जीवन की व्यापकता को प्रणय की सीमाओं में ही खींच लाता है. ’नवीन’ जी ने जैसे कहा है:-
“हो जाने दे गकथ नशे में, मत पड़ने दे फ़कथ नशे में
ज्ञान ध्यान पूजा पोथी के , िट जाने दे वकथ नशे में.”
हालावाद की मवशेषता तो मात्र प्रणय में तल्लीन हो जाने की कामना में है. यही इसका साध्य
प्रतीत होता है.
इसीमलय बच्चन जी कहते हैं दक:-
“वह मादकता ही क्या मजसमें बाकी रह जाये जग का भय”.
इस प्रकार कहा ज सकता है दक प्रणय का रूप छायावादी प्रेम-भावना और अवाथचीन नई कमवता की
यौन-भावना के बीच की कड़ी है.
अब यहाूँ देखना यह है दक वह ऐसा कौन सा ’जग का भय’ है जो बच्चन जी ने कहा या वह कौन सी
ऐसी अनैमतक रूदढ़याूँ हैं मजसे ये अस्वीकार कर देना चाहते हैं. दरअसल यह कमवता भी उसी युग की
उपज है मजसने छायावाद को जन्म ददया. छायावादी कमवयों ने भी नैमतकता के बोझ से अक्रान्त
प्रणय को मुि करने का प्रयास दकया दकन्तु वे उससे पूरी तरह मुि नहीं हो सके और उनकी प्रणय-
भावना आध्यामत्मकता से सम्पृि हो गई. प्रणय के इन कमवयों ने (हालावाद) नैमतकता के किोर
बन्धनों के प्रमत मविोह दकया. लौदकक स्तर पर प्रणय की तीव्रता की स्वीकृ मत का एक पठरणाम यह
हुआ दक प्रणय के साथ-साथ कमवता में मादकता, शराब, साक़ी, मैखाने आदद का भरपूर वणथन ममलने
लगा.