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Sarva Aarti
Sarva Aarti
,कुण्डल झलकंता,
लोशा
सूंड सूंडालो नयन वि लो
प्रभु कुण्डल झलकंता,कुमकुम केसर चन्दन,
कुमकुम केसर चन्दन,सिंदूर बदन वंदा,
ॐ जय गौरी नंदा।।
॥जय देव 2॥
एकदंत गजानन लंबोदर देवा
रिद्धि सिद्धि प्रथमेवर रश्वजगत करे
कर जोड़े वंदन करते मंगल मूर्ति
सेवा
को
न देते तुम जग को
पत्र रूप में दर्नर्श
मोदक प्रिय विघ्नहरण मुष की सवारी
गण नायक की जन गण करके जयकारी
सुमुख नाम से ही पुकारे सब तुमको
।।जय देव जय देव।।
जय जय करते हम प्रथमेवर रश्व
को....जय देव जय देव
जय विघ्नहर्ता, बुद्धि विधाता
न मन को है भाता।।
धन्य तुम्हारा दर्नर्श
जय देव जय देव हे मंगल मूर्ति देवा गणे शा
सर्वप्रथम ध्यावे तुम्हे ही हमे शा
अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी। पान, फूल, मोदक के भोग लगावे
मनवांछित फल भक्त तुमसे है पावे
कोटीसूरजप्रकाश बी छबि तेरी। जय देव, जय देव ।।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि
॥जय देव जय देव॥
वक्रतुंड, सुखी शुंड, सोहे सुहावन
तिलक माथे पर त्रिपुंड्र लागे मन भावन आपदा, भय हरके तुम सारे जग को
गजनेवरीरी
श्वरूप में पूजे तुमको।।।।
स्वर्ण युक्त सोहे सर मुशक की सवारी जय देव, जय देव।।
मंगल करो जग का है मंगल कारी
जय देव, जय देव।।