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Hasya Natak
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Natak
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हास्य नाटक – गलती किसकी आधारित है हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली बेवकू फियों से। इस नाटक में
आपको वही दिखाया गया है जो हम अपने जीवन में अनुभव करते हैं। इस नाटक से आपको कोई शिक्षा नहीं मिलने
वाली इसलिए बिना दिमाग लगायें इसे पढ़ें और आनंद लें।
पहला दृश्य
एक आदमी पंखे पर फांसी का फं दा बना रहा है। फांसी का फं दा तैयार होते ही वो उस पर जैसे ही लटकने की कोशिश
करता है तभी एक कै मरामैन के साथ एक रिपोर्टर वहां पहुँच जाते हैं।
रिपोर्टर :- (हड़बड़ाते हुए ) ए..ए ….एक मिनट, क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है?
कै मरामैन :- (रिपोर्टर को थप्पड़ मारते हुए) अबे, ये एड की शूटिंग नहीं है। न्यूज़ कवर कर रहे हैं हम।
रिपोर्टर :- (घबराते और अपनी गलती सुधारते हुए) अरे हां….हां… तो जैसा कि आप देख सकते हैं दिन दिहाड़े बंद
कमरे के बीच एक आदमी लगा रहा है फांसी। क्या कर रहा है हमारा प्रशासन? क्या इस तरह सुरक्षित रहेंगे लोग?
रिपोर्टर :- जहाँ पहुँचने में सब हो जाते हैं फे ल, वहाँ पहुँच जाता है “वही” न्यूज़ चैनल।
रिपोर्टर :- “वही” न्यूज़ चैनल। तो आप ये बताइए, आप फांसी क्यों लगा रहे हैं?
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रिपोर्टर :- मगर आप मर जाएँगे तो नौकरी का क्या करेंगे?
बेरोजगार :- (रिपोर्टर की तरफ गुस्से में देख कर चिल्लाते हुए) अबे नौकरी नहीं मिली इसलिए मर रहा हूँ।
दूसरा दृश्य
(यदि इस नाटक को किसी स्टेज पर किया जा रहा है तो स्टेज को दो हिस्सों में बाँट कर दूसरे हिस्से में दूसरा दृश्य
किया जा सकता है और बाद में इसे तीसरे दृश्य के साथ जोड़ा जा सकता है।)
पुलिसवाला ;- तुझे पता हैं मैं कौन हूँ? पुलिसवाला हूँ। वर्दी नहीं पहनी तो क्या हुआ 24 घंटे ड्यूटी पर रहता हूँ।
( ये सुन कर बगल में खड़ा आम आदमी उस पुलिस वाले को गौर से देखता है। और पूछता है)
आम आदमी :- (फोन दिखाते हुए) सर देखिये ना न्यूज़ वाले दिखा रहे हैं कि हमारे पड़ोस में आदमी फांसी लगा रहा है।
चलिए न उसे बचाते हैं।
पुलिसवाला :- (अपनी शर्ट पकड़ते हुए) तेरे को दिखता नहीं क्या, मैं ऑफ ड्यूटी हूँ।
पुलिसवाला :- (बीच में टोकते हुए) एक मिनट…….किधर मर रहा है वो इधर पड़ोस में ना……वो इलाका मेरे थाने के
अंदर नहीं आता। जाओ उस एरिया के थाने में जा के रिपोर्ट करो।
पुलिसवाला :- चल निकल यहाँ से (फल वाले को देखते हुए) तू क्या देख रहा है के ला दे इधर।
तीसरा दृश्य
बेरोजगार :- हाँ।
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रिपोर्टर :- तो तू फांसी लगा ले।
रिपोर्टर :- इसका दिमाग ख़राब हो गया है। इंजीनियरिंग कर के भी ये नौकरी की उम्मीद लगा रहा है।
आम आदमी :- (हकलाते हुए रिपोर्टे को कहता है) ए….ए….पागल हो गए हो क्या? बचाते क्यों नहीं तुम उसको?
रिपोर्टर :- देखिये…हमारा काम है न्यूज़ कवर करना हम कर रहे है। इसे बचाना प्रशासन का काम है हमारा नहीं।
आपको ज्यादा चिंता है तो आप ही बचा लीजिये।
(जैसे ही वह बेरोजगार को बचाने के लिए आगे बढ़ता है उसका पैर फिसल जाता है और बेरोजगार के पैरों के नीचे की
कु र्सी खिसक जाती है और वह फांसी पर लटक जाता है। फिर से कै मरा सबकी तरफ घूमता है।)
रिपोर्टर :- टीआरपी हासिल करने के लिए कु छ तो करना होगा। (मुस्कराते हुए माइक संभाल कर आम आदमी की तरफ
इशारा करते हुए बोलना शुरू करता है।) गौर से देखिये इस शख्स को। इसकी वजह से एक मासूम की जान चली
गयी।
आम आदमी :- मैंने नहीं मारा सर। वो तो गलती से मेरा पैर फिसल गया था।
रिपोर्टर :- आज हमारे देश को जरूरत है ऐसे ही पुलिसवालों की जो निभाते हैं अपना फ़र्ज़ बिना किसी परेशानी के ।
आम आदमी :- (पुलिसवाले को देखते हुए) लेकिन सर, सच में मेरी कोई गलती नहीं है।
पुलिसवाला :- (आम आदमी को कॉलर से पकड़ता है और स्टेज से नीचे ले जाते हुए बोलता है।) हम बताते हैं गलती
किसकी है चल मेरे साथ।)
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(पीछे से आवाज आती है) इस नाटक को भले ही आपने मजाक में लिए हो लेकिन बस इसीलिए आज हमारे देश में एक
आदमी दूसरे आदमी की सहायता करने से डरता है। लेकिन क्या इसमें गलती सिर्फ उसी की है? इस बात को
सोचियेगा जरूर।
¤ नाटक समाप्त। ¤
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