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भारत का संविधान

विषय सच
ू ी पर एक नजर

क्र. प्रावधान भाग अनच्


ु छे द पष्ृ ठ
1. प्रस्तावना - 1
2. संघ और राज्य क्षेत्र 1 1 से 4 2-3
3. नागररकता 2 5 से 11 3-4
4. मल
ू अधधकार 3 12 से 35 5-21
5. राज्य की नीतत के तनदे शक तत्व 4 36 से 51 21-24
6. मल
ू कर्त्तव्य 4 51क 24-25
7. संघ 5 52 से 151 25-61
8. राज्य 6 152 से 237 62-99
9. पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख के राज्य 7 238 99
10. संघ राज्य क्षेत्र 8 239 से 242 99-105
11. पंचायत 9 243 से 243ण 105-111
12. नगरपाललकाएँ 9 243त से 243यछ 112-119
13. सहकारी सोसायटी 9 243यज से 243यन 119-122
14. अनस
ु धू चत और जनजातत क्षेत्र 10 244 से 244क 122-123
15. संघ और राज्यो के बीच संबध
ं 11 245 से 263 123-128
16. ववर्त्, संपवर्त् और संववदाएँ 12 264 से 300क 128-143
17. भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर 141-143
व्यापार, वाणणज्य और समागम 13 301 से 307

18. संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ 308 से 323 143-152


19. अधधकरण 14 323क से 323ख 152-154
20. तनवातचन 15 324 से 329क 155-157
21. कुछ वगों के संबध
ं ववशेष उपबंध 16 330 से 342 157-166
22. राजभाषा 17 343 से 351 166-170
23. आपात उपबंध 18 352 से 360 170-180
24. प्रकीणत 19 361 से 367 180-187
25. संशोधन 20 368 187-188
26. अस्थायी, संक्रमणकालीन और ववशेष 188-205
उपबंध 21 369 से 392

27. संक्षक्षप्त नाम, प्रारं भ, हहन्दी में


प्राधधकृत पाठ और तनरसन 22 393 से 395 205-206

28. अनस
ु च
ू ी 1-12 - - 207-282
29. पररलशष्ट – 1 - - 283-296

1
संववधान जम्मू कश्मीर को लागू
होना आदे श, 1954
30. पररलशष्ट – 2 - - 297-312
संववधान के उन अपवादों और
उपांतरणों के अधीन संववधान जम्म-ू
कश्मीर को लागू होता है , वततमान
पाठ के प्रतत तनदे श से, पन
ु कतथन
31. पररलशष्ट – 3 संववधान (44 वाँ 313
संववधान संशोधन) - -

अधधतनयम 1978 से उद्धरण


32. उच्च न्यायालय अवस्थापन और 314
अधधकाररता - -

33. अभी तक हुए संववधान संशोधनों की 315-324


सच - -
ू ी
34. संववधान के स्त्रोत - - 325

2
अनच्
ु छे दों का क्रम

अनच्
ु छे द पष्ृ ठ क्रमांक

भाग 1
संघ और उसका राज्यक्षेत्र
1. संघ का नाम और राज्यक्षेत्र
2. नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
2क. [तनरलसत ]
3. नए राज्यों का तनमातण और वततमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में पररवततन
4. पहली अनस
ु च
ू ी और चौथी अनस
ु च
ू ी के संशोधन तथा अनप
ु रू क, आनष
ु धं गक और
पाररणालमक
ववषयों का उपबंध करने के ललए अनच्
ु छे द 2 और अनच्
ु छे द 3 के अधीन बनाई गई
ववधधयाँ
भाग 2
नागररकता
5. संववधान के प्रारं भ पर नागररकता
6. पाककस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तयों के नागररकता के अधधकार
7. पाककस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्क्तयों के नागररकता के अधधकार
8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यक्क्तयों के नागररक के अधधकार
9. ववदे शी राज्य की नागररकता स्वेच्छा से अक्जतत करने वाले व्यक्क्तयों का नागररक न होना
10. नागररकता के अधधकारों का बना रहना
11. संसद् द्वारा नागररकता के अधधकार का ववधध द्वारा ववतनयमन ककया जाना
भाग 3
मल
ू अधधकार
साधारण
12. पररभाषा
13. मल
ू अधधकाररओं से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली ववधधयाँ
समता का अधधकार
14. ववधध के समक्ष समता
15. धमत,मल
ू वंश, जातत, ललंग या जन्म स्थान के आधार पर ववभेद का प्रततवेध
16. लोक तनयोजन के ववषय में अवसर की समता
17. अस्पश्ृ यता का अंत

3
18. उपाधधयों का अंत
स्िातंत्रय - अधधकार
19. वाक् -स्वातंत्र्य आहद ववषयक कुछ अधधकारों का संरक्षण
20. अपराधों के ललए दोषलसद्धध के सबंध में संरक्षण
21. प्राण और दै हहक स्वतंत्रता का संरक्षण
21क. लशक्षा का अधधकार
22. कुछ दशायों में धगरफ़्तारी और तनरोध से संरक्षण
शोषण के विरूद्ध अधधकार
23. मानव के दव्ु यातपार और बलातश्रम
् का प्रततषेध
24. कारखानों आहद में बालकों के तनयोजन का प्रततषेध
धमम की स्ितंत्रता का अधधकार
25. अंत:करण के और धमत के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की
स्वतंत्रता
26. धालमतक कायों के प्रबंध की स्वतंत्रता
27. ककसी ववलशष्ट धमत की अलभवद्
ृ धध के ललए करों के संदाय से बारे में स्वतंत्रता
28. कुछ लशक्षा संस्थानों में धालमतक लशक्षा या धालमतक उपासना में उपक्स्थत होने के बारे में स्वतंत्रता
29. अल्पसंख्यक- वगों के हहतों का संरक्षण
30. लशक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक- वगों का अधधकार
31. [तनरलसत ]
कुछ विधधयों की व्यािवृ ि
31क. संपदाओं आहद के अजतन के ललए उपबंध करने वाली ववधधयों की व्यावतृ त
31-ख. कुछ अधधतनयमों और ववतनयमों का ववधधमान्यकरण
31-ग. कुछ तनदे शक तत्वों को प्रभावी करने वाली ववधधयों की व्याववृ र्त्
31घ. [तनरलसत]
संविधाननक उपचारों का अधधकार
32. इस भाग द्वारा प्रदर्त् अधधकारों को प्रवतततत कराने के ललए उपचार
32क. [तनरलसत ]
33. इस भाग द्वारा प्रदर्त् अधधकारों का, बलों आहद को लागू होने में ,उपांतरण करने की
संसद् की शक्क्त
34. जब ककसी क्षेत्र में सेना ववधध प्रवर्त्
ृ है तब इस भाग द्वारा प्रदर्त् अधधकारों पर तनबतन्धन
35. इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के ललए ववधान
भाग 4
राज्य की नीनत के ननदे शक तत्ि
36. पररभाषा
37. इस भाग में अंतववतष्ट तत्वों का लागू होना
38. राज्यलोक कल्याण की अलभवद्
ृ धध के ललए सामाक्जक व्यवस्था बनाएगा
39. राज्य द्वारा अनस
ु रणीय कुछ नीतत तत्व

4
39क. समान न्याय और तन:शल्
ु क ववधधक तत्व
40. ग्राम पंचायतो का संगठन
41. कुछ दशाओं में काम, लशक्षा और लोक सहायता पाने का अधधकार
42. काम की न्यायसंगत और मानवोधचत दशाओं का तथा प्रसतू त सहायता का उपबंध
43. कमतकारों के ललए तनवातह मजदरू ी आहद
43क. उधोगो के प्रबंध में कमतकरों का भाग लेना
43ख. सहकारी सलमतत की अलभवद्
ृ धध
44. नागररकों के ललए एक समान लसववल संहहता
45. छह वषत से कम आयु के बालकों के ललए प्रारं लभक बाल्यावस्था दे ख-रे ख और लशक्षा
का उपबंध
46. अनस
ु धू चत जाततयों, अनस
ु धू चत जनजाततयों और अन्य दब
ु ल
त बगो के लशक्षा और अथत
संबध
ं ी हहतों की अलभवद्
ृ धध
47. पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ का सध
ु ार करने क
राज्य का कततव्य
48. कृवष और पशप
ु ालन का संगठन
48क. पयातवरण का संरक्षण तथा संवधतन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
49. राष्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तओ
ु ं का संरक्षण
50. कायतपाललका से न्यायपाललका का पथ
ृ करण
51. अन्तराष्रीय शांतत और सरु क्षा की अलभवद्
ृ धध
भाग 4क
मल
ू कतमव्य
51क. मल
ू कततव्य
भाग 5
संघ
अध्याय 1- कायमपाललका
राष्ट्रपनत और उपराष्ट्रपनत
52. भारत का राष्रपतत
53. संघ की कायतपाललका शक्क्त
54. राष्रपतत का तनवातचन
55. राष्रपतत के तनवातचन की रीतत
56. राष्रपतत की पदावधध
57. पन
ु तनतवाचन के ललए पात्रता
58. पन
ु तनवातधचत के ललए पात्रता
59. राष्रपतत के पद के ललए शते
60. राष्रपतत के द्वारा शपथ या प्रततज्ञान
61. राष्रपतत पर महालभयोग चलाने की प्रकक्रया
62. राष्रपतत के पद में ररक्क्त को भरने के ललए तनवातचन करने का समय और

5
आकक्स्मक ररक्क्त को भरने के ललए तनवातधचत व्यक्क्त की पदावधध
63. भारत का उपराष्रपतत
64. उपराष्रपतत का राज्य सभा का पदे न सभापतत होना
65. राष्रपतत के पद में आकक्स्मक ररक्क्त के दौरान या उसकी अनप
ु क्स्थतत में
उपराष्रपतत का राष्रपतत के रूप में कायत करना या उसके कृत्यों का तनवतहन
66. उपराष्रपतत का तनवातचन
67. उपराष्रपतत की पदावधध
68. उपराष्रपतत के पद में ररक्क्त को भरने के ललए तनवातचन करने का समय और
आकक्स्मक ररक्क्त को भरने के ललए तनवातधचत व्यक्क्त की पदावधध
69. उपराष्रपतत द्वारा शपथ या प्रततज्ञान
70. अन्य आकक्स्मकताओं में राष्रपतत के कृत्यों का तनवतहन
71. राष्रपतत या उपराष्रपतत के तनवातचन से सबंधधत ववषय
72. क्षमा आहद की और कुछ मामलों में दण्डादे श के तनलंबन, पररहार या लघक
ु रण की
राष्रपतत की शक्क्त
73. संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार
मंत्रत्र-पररषद्
74. राष्रपतत को सहायता और सलाह दे ने के ललए मंत्रत्र-पररषद्
75. मंत्रत्रयों के बारे में अन्य उपबंध
भारत का महान्यायिादी
76. भारत का महान्यायवादी
सरकारी कायम का संचालन
77. भारत सरकार के कायत का संचालन
78. राष्रपतत को जानकारी दे ने आहद के संबध
ं में प्रधान मंत्री के कततव्य
अध्याय 2- संसद्
साधारण
79. संसद् का गठन
80. राज्य सभा की संरचना
81. लोक सभा की संरचना
82. प्रत्येक जनगणना के पश्चात ् पन
ु : समायोजन
83. संसद् के सदनों की अवधध
84. संसद् की सदस्यता के अहतता
85. संसद् के सत्र, सत्रावसान और ववघटन
86. सदनों में अलभभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्रपतत का अधधकार
87. राष्रपतत का ववशेष अलभभाषण
88. सदनों के बारे में मंत्रत्रयों और महान्यायवादी के अधधकार
89. राज्य सभा का सभापतत और उपसभापतत
90. उपसभापतत का पद ररक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना

6
91. सभापतत के पद के कततव्यों का पालन करने या सभापतत के रूप में कायत करने की
उपसभापतत या अन्य व्यक्क्त की शक्क्त
92. जब सभापतत या उपसभापतत को पद से हटाने का कोई संकल्प ववचाराधीन हैं तब
उसका पीठासीन न होना
93. लोक सभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
94. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद ररक्त होना, पद त्याग और पद से हटाया जाना
95. अध्यक्ष के पद के कततव्यों का पालन कने या अध्यक्ष के रूप में कायत करने की
उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्क्त की शक्क्त
96. जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प ववचाराधीन है तब उसका
पीठासीन न होना
97. सभापतत और उपसभापतत तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भर्त्े
98. संसद् का सधचवालय
99. सदस्यों द्वारा शपथ या प्रततज्ञान
100. सदनों में मतदान, ररक्क्तयों के होते हुए भी सदनों की कायत करने की शक्क्त और
गणपतू तत
101. स्थानों का ररक्त होना
102. सदस्यता के ललए तनहहततएं
103. सदस्यों की तनहहततओं से संबधं धत प्रश्नों पर ववतनश्चय
104. अनच्
ु छे द 99 के अधीन शपथ लेने या प्रततज्ञान करने से पहले या अहहतत न होते
हुए या तनरहहतत ककए जाने पर बैठने और मत दे ने के ललए शाक्स्त संसद् और उसके सदस्यों की
शक्क्तयाँ, ववशेषाधधकार और उन्मक्ु क्तयाँ
105. संसद् के सदनों कक तथा उनके सदस्यों कक सलमततयों कक शक्क्तयाँ, ववशेषाधधकार
आहद
106. सदस्यों के वेतन और भर्त्े
107. ववधेयकों के परु :स्थापना और पाररत ककए जाने के सबंध में उपबंध
108. कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयक्
ु त बैठक
109. धन ववधेयकों के सबंध में ववशेष प्रकक्रया
110. “धन ववधेयक” की पररभाषा
111. ववधेयकों पर अनम
ु तत
वििीय विषयों के सबंध में प्रक्रक्रया

112. वावषतक ववर्त्ीय वववरण


113. संसद में प्राक्कलनों के संबध
ं में प्रकक्रया
114. ववतनयोग ववधेयक
115. अनप
ु रू क, अततररक्त या अधधक अनद
ु ान
116. लेखानद
ु ान, प्रत्ययानद
ु ान और अपवादानद
ु ान
117. ववर्त् ववधेयकों के बारे में ववशेष उपबंध
118. प्रकक्रया के तनयम

7
119. संसद में ववर्त्ीय कायत संबध
ं ी प्रकक्रया का ववधध द्वारा ववतनयमन
120. संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
121. संसद में चचात पर तनबतन्धन
122. न्यायालयों द्वारा संसद की कायतवाहहयों की जाँच न ककया जाना
अध्याय -3
राष्ट्रपनत की विधायी शक्ततयााँ
123. संसद के ववश्रांततकाल में अध्यादे श प्रख्यावपत करने की राष्रपतत की शक्क्त
अध्याय – 4
संघ की न्यायपाललका
124. उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
125. न्यायाधीशों के वेतन आहद
126. कायतकारी मख्
ु य न्यायमतू तत की तनयक्ु क्त
127. तदथत न्यायाधीशों की तनयक्ु क्त
128. उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवातनवर्त्
ृ न्यायाधीशों की उपक्स्थतत
129. उच्चतम न्यायालय का अलभलेख न्यायालय होना
130. उच्चतम न्यायालय की आरं लभक अधधकाररता
131क. [तनरलसत ]
132. कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधधकाररता
133. उच्च न्यायालयों से लसववल ववषयों से संबधं धत अपीलों में उच्चतम न्यायालय की
अपीली अधधकाररता
134. दांडडक ववषयों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधधकाररता
134क. उच्चतम न्यायालय में अपील के ललए प्रमाणपत्र
135. ववद्यमान ववधध के अधीन फेडरल न्यायालय की अधधकाररता और शक्क्तयों का उच्चतम
न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना
136. अपील के ललए उच्चतम न्यायालय की ववशेष इजाजत
137. तनणतयों या आदे शों का उच्चतम न्यायालयों द्वारा पन
ु ववतलोकन
138. उच्चतम न्यायालय अधधकाररता की वद्
ृ धध
139. कुछ ररट तनकालने की शक्क्तयों का उच्चतम न्यायालय को प्रदर्त् ककया जाना
139क. कुछ मामलों का अंतरण
140. उच्चतम न्यायालय की आनष
ु धं गक शक्क्तयाँ
141. उच्चतम न्यायालय द्वारा घोवषत ववधध का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना
142. उच्चतम न्यायालय की डडकक्रयों और आदे शों का प्रवततन और प्रकटीकरण आहद के बारे में आदे श
143. उच्चतम न्यायालय से परामशत करने की राष्रपतत की शक्क्त
144. लसववल और न्यातयक प्राधधकाररयों द्वारा उच्चतम न्यायालय की सहायता में कायत ककया जाना
144क. [तनरलसत]
145. न्यायालय के तनयम आहद
146. उच्चतम न्यायालय के अधधकारी और सेवक तथा व्यय

8
147. तनवतचन
अध्याय 5
भारत का ननयंत्रक- महालेखापरीक्षक
148. भारत का तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक
149. तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के कततव्य और शक्क्तयाँ
150. संघ के और राज्यों के लेखाओं का प्रारूप
151. संपरीक्षा प्रततवेदन
भाग 6
1
[***] राज्य
अध्याय 1
साधारण
152. पररभाषा
अध्याय 2
कायमपाललका
राज्यपाल
153. राज्यों के राज्यपाल
154. राज्य की कायतपाललका शक्क्त
155. राज्यपाल की तनयक्ु क्त
156. राज्यपाल की पदावधध
157. राज्यपाल तनयक्
ु त होने के ललए अहतताएँ
158. राज्यपाल के पद के ललए शतें
159. राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रततज्ञान
160. कुछ आकक्स्मकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का तनवतहन
161. क्षमा आहद की और कुछ मामलों में दं डादे श के तनलंबन, पररहार या लघक
ु रण की
राज्यपाल की शक्क्त
162. राज्य की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार
मंत्रत्र-पररषद्
163. राज्यपाल को सहायता और सलाह दे ने के ललए मंत्रत्र-पररषद्
164. मंत्रत्रयों के बारे में अन्य उपबंध
राज्य का महाधधितता
165. राज्य का महाधधवक्ता
सरकारी कायम का संचालक
166. राज्य की सरकार के कायत का संचालन
167. राज्यपाल को जानकारी दे ने आहद के संबध
ं में मख्
ु यमंत्री के कततव्य

168. राज्यों के ववधान-मंडलों का गठन


169. राज्यों में ववधान पररषदों का उत्सादन या सज
ृ न

9
170. ववधानसभाओं की संरचना
171. ववधान पररषदों की संरचना
172. राज्यों के ववधान-मंडलों की अवधध
173. राज्य के ववधान-मंडल की सदस्यता के ललए अहतता
174. राज्य के ववधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और ववघटन
175. सदन या सदनों में अलभभाषणका और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधधकार
176. राज्यपाल का ववशेष अलभभाषण
177. सदनों के बारे में मंत्रत्रयों और महाधधवक्ता के अधधकार
राज्य के विधान मण्डल के अधधकारी
178. ववधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
179. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद ररक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना
180. अध्यक्ष के पद के कततव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कायत करने की
उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्क्त की शक्क्त
181. जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प ववचाराधीन है तब उसका
पीठासीन न होना
182. ववधान पररषद् का सभापतत और उपसभापतत
183. सभापतत और उपसभापतत का पद ररक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना
184. सभापतत के पद के कततव्यों का पालन करने या सभापतत के रूप में कायत करने की
उपसभापतत या अन्य व्यक्क्त की शक्क्त
185. जब सभापतत या उपसभापतत को पद से हटाने का कोई संकल्प ववचारधीन है तब
उसका पीठासीन न होना
186. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा सभापतत और उपसभापतत के वेतन और भर्त्े
187. राज्य के ववधान- मंडल का सधचवालय
कायम संचालन
188. सदस्यों द्वारा शपथ या प्रततज्ञान
189. सदनों में मतदान, ररक्क्तयाँ के होते हुए भी सदनों की कायत करने की शक्क्त और गणपतू तत
सदस्यों की ननर्हमतएं
190. स्थानों का ररक्त होना
191. सदस्यता के ललए तनहहततएँ
192. सदस्यों की तनहहततओं से संबधं धत प्रश्नों पर ववतनश्चय
193. अनच्
ु छे द 188 के अधीन शपथ लेने या प्रततज्ञान करने से पहले या अहहतत न होते
हुए या तनरहहतत कक जाने पर बैठने और मत दे ने के ललए शाक्स्त
राज्यों के विधान- मंडलों और उनके सदस्यों और सलमनतयों की शक्ततयााँ,
विशेषाधधकार और उन्मक्ु ततयााँ
194. ववधान- मंडलों के सदनों की तथा उनके सदस्यों और सलमततयों की शक्क्तयाँ,
ववशेषाधधकार, आहद
195. सदस्यों के वेतन भर्त्े

10
विधायी प्रक्रकया
196. ववधेयकों के परु :स्थापन और पाररत ककए जाने के सबंध में उपबंध
197. धन ववधेयकों से लभन्न ववधेयकों के बारे में ववधान पररषद् की शक्क्तयों पर तनबंधन
198. धन ववधेयकों के संबध
ं में ववशेष प्रकक्रया
199. '' धन ववधेयक'' की पररभाषा
200. ववधेयकों पर अनम
ु तत
201. ववचार के ललए आरक्षक्षत ववधेयक
वििीय विषयों के सबंध में प्रक्रक्रया
202. वावषतक ववर्त्ीय वववरण
203 ववधान-मंडल में प्राक्कलनों के संबध
ं में प्रकक्रया
204. ववतनयोग ववधेयक
205. अनप
ु रू क, अततररक्त या अधधक अनद
ु ान
206 लेखानद
ु ान, प्रत्ययानद
ु ान और अपवादानद
ु ान
207. ववर्त् ववधेयकों के बारे में ववशेष उपबंध
साधारणतया प्रक्रकया
208. प्रकक्रया के तनयम
209. राज्य के ववधान-मंडल में ववर्त्ीय कायत संबध
ं ी प्रकक्रया का ववधध द्वारा ववतनयमन
210. ववधान-मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा
211. ववधान-मंडल में चचात पर तनबंधन
212. न्यायालयों द्वारा ववधान
अध्याय 4
राज्यपाल की विधायी शक्तत
213. ववधान-मंडल के ववश्रांततकाल में अध्यादे श प्रख्यावपत करने की राज्यपाल की शक्क्त
अध्याय 5
राज्यों के ललए उच्च न्यायालय
214. राज्यों के ललए उच्च न्यायालय
215. उच्च न्यायालयों का अलभलेख न्यायालय होना
216. उच्च न्यायालयों का गठन
217. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तनयक्ु क्त और उसके पद की शतें
218. उच्चतम न्यायालय से संबधं धत कुछ उपबंधों का उच्च न्यायालयों को लागू होना
219. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा शपथ या प्रततज्ञान
220. स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात ् ववधध-व्यवसाय पर तनबंधन
221. न्यायाधीशों के वेतन आहद
222. ककसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दस
ू रे उच्च न्यायालय को अंतरण
223. कायतकारी मख्
ु य न्यायमतू तत की तनयक्ु क्त
224. अपर और कायतकारी न्यायाधीशों की तनयक्ु क्त
224क. उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवातनवर्त्
ृ न्यायाधीशों की तनयक्ु क्त

11
225. ववधमान उच्च न्यायालयों की अधधकाररता
226. कुछ ररट तनकालने की उच्च न्यायालय की शक्क्त
226क. [तनरलसत]
227. सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्क्त
228. कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण
228क. [तनरलसत]
229. उच्च न्यायालयों के अधधकारी और सेवक तथा व्यय
230. उच्च न्यायालयों की अधधकाररता का संघ राज्यक्षेत्रों पर ववस्तार
231. दो या अधधक राज्यों के ललए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना
232. लोवपत
अध्याय 6
अधीनस्थ न्यायालय
233. क्जला न्यायाधीशों की तनयक्ु क्त
233क. कुछ क्जला न्यायाधीशों की तनयक्ु क्तयों का और उनके द्वारा ककए गए तनणतयों आहद
का ववधधमान्यकरण
234. न्यातयक सेवा में क्जला न्यायाधीशों से लभन्न व्यक्क्तयों की भती
235. अधीनस्थ न्यायालयों पर तनयंत्रण
236. तनवतचन
237. कुछ वगत या वगों के मक्जस्रे टों पर इस अध्याय के उपबंधों का लागू होना

भाग 7
पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख के राज्य
238. तनरलसत
भाग 8
संघ राज्यक्षेत्र
239. संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन
239क. कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के ललए स्थानीय ववधान-मंडलों या मंत्रत्र-पररषदों का या दोनों का
सज
ृ न
239कक.हदल्ली के संबध
ं में ववशेष उपबंध
239कख.सांववधातनक तंत्र के ववफल हो जाने की दशा में उपबंध
239ख. ववधान-मंडल के ववश्रांततकाल में अध्यादे श प्रख्यावपत करने की प्रशासक की शक्क्त
240. कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के ललए ववतनयम बनाने की राष्रपतत की शक्क्त
241. संघ राज्यक्षेत्रों के ललए उच्च न्यायालय
242. कोड़ग[ू तनरलसत]
भाग 9
पंचायते
243. पररभाषाएँ

12
243क. ग्राम सभा
243ख. पंचायतों का गठन
243ग. पंचायतों की संरचना
243घ. स्थानों का आरक्षण
243ङ. पंचायतों की अवधध, आहद
243च. सदस्यता के ललए तनहहततएँ
243छ. पंचायतों की शक्क्तयाँ, प्राधधकार और उर्त्रदातयत्व
243ज. पंचायतों द्वारा कर अधधरोवपत करने की शक्क्तयाँ और उनकी तनधधयाँ
243झ. ववर्त्ीय क्स्थतत के पन
ु ववतलोकन के ललए ववर्त् आयोग का गठन
243ञ. पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा
243ट. पंचायतों के ललए तनवातचन
243ठ. संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना
243ड. इस भाग का कततपय क्षेत्रों को लागू न होना
243ढ. ववद्यमान ववधधयों और पंचायतों का बना रहना
243ण. तनवातचन संबध
ं ी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वजतन
भाग 9
नगरपाललकाएं
243त. पररभाषाएँ
243थ. नगरपाललकाओं का गठन
243द. नगरपाललकाओं की संरचना
243ध. वाडत सलमततयों, आहद का गठन और संरचना
243न. स्थानों का आरक्षण
243प. नगरपाललकाओं की अवधध, आहद
243फ. सदस्यता के ललए तनहहततएँ
243ब. नगरपाललकाओं, आहद की शक्क्तयाँ, प्राधधकार और उर्त्रदातयत्व
243भ. नगरपाललकाओं द्वारा कर अधधरोवपत करने की शक्क्त और उनकी तनधधयाँ
243म. ववर्त् आयोग
243य. नगरपाललकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा
243यक.नगरपाललकाओं के ललए तनवातचन
243यख.संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना
243यग.इस भाग का कततपय क्षेत्रों को लागू न होना
243यघ.क्जला योजना के ललए सलमतत
243यड.महानगर योजना के ललए सलमतत
243यच.ववद्यमान ववधधयों और नगरपाललकाओं का बना रहना
243यछ.तनवातचन संबध
ं ी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वजतन

13
14
भाग 9 – ख
सहकारी सलमनतयााँ
243-यज.पररभाषाएँ
243-यझ.सहकारी सलमततयों का तनगमन
243-यञ.बोडत के सदस्यों और उसके पदाधधकाररयों की संख्या और पदावधध
243-यट.बोडत के सदस्यों का तनवातचन
243-यठ.बोडत का दमन और तनलबंन तथा अंतररम प्रबन्ध
243-यड.सहकारी सलमततयों के लेखा का लेखा संपरीक्षण
243-यढ.सामान्य सभा की बैठक आयोक्जत करना
243-यण.सदस्य का सच
ू ना प्राप्त करने का अधधकार
243-यत.वववरणी
243-यथ.अपराध और शाक्स्तयाँ
243-यद.बहुराक्ज्यक सहकारी सलमततयों को लागू होना
243-यथ.संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना
243-यन.ववद्यमान ववधध का जारी रहना

भाग 10
अनस
ु धू चत और जनजानत क्षेत्र
244. अनस
ु धू चत क्षेत्रों और जनजातत क्षेत्रों का प्रशासन
244क. असम के कुछ जनजातत क्षेत्रों को समाववष्ट करने वाला एक स्वशासी राज्य बनाना और उसके
ललए स्थानीय ववधान-मंडल या मंत्रत्र-पररषद् का या दोनों का सज
ृ न
भाग 11
संघ और राज्यों के बीच संबध

अध्याय 1
विधायी संबध

विधायी शक्ततयों का वितरण
245. संसद् द्वारा और राज्यों के ववधान-मंडलों द्वारा बनाई गई ववधधयों का ववस्तार
246. संसद् द्वार और राज्यों के ववधान-मंडलों द्वारा बनाई गई ववधधयों की ववषय-वस्तु
247. कुछ अततररक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद् की शक्क्त
248. अवलशष्ट ववधायी शक्क्तयाँ
249. राज्य सधू च में से ववषय के संबध
ं में राष्रीय हहत में ववधध बनाने की संसद् की शक्क्त
250. यहद आपात की उद्घोषणा प्रवततन में हो तो राज्य सच
ू ी में के ववषय के संबध
ं में
ववधध बनाने की संसद् की शक्क्त

15
251. संसद् द्वारा अनच्
ु छे द 249 और अनच्
ु छे द 250 के अधीन बनाई गई ववधधयों और
राज्यों के ववधान-मंडलों द्वारा बनाई गई ववधधयों में असंगतत
252. दो या अधधक राज्यों के ललए उनकी सहमतत से ववधध बनाने की संसद् की शक्क्त
और ऐसी ववधध का ककसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार ककया जाना
253. अंतरातष्रीय करारों को प्रभावी करने के ललए ववधान
254. संसद् द्वारा बनाई गई ववधधयों और राज्यों के ववधान-मंडलों द्वारा बनाई गई
ववधधयों में असंगतत
255. लसफाररशों और पव
ू त मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रकक्रया के ववषय मानना
अध्याय 2
प्रशासननक संबध

साधारण
256. राज्यों की और संघ की बाध्यता
257. कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का तनयंत्रण
257-क. [तनरलसत]
258. कुछ दशाओं में राज्यों को शक्क्त प्रदान करने आहद की संघ की शक्क्त
259. (तनरलसत]
260. भारत के बहार के राज््क्षेत्रों के संबध
ं में संघ की अधधकाररता
261. सावतजतनक कायत, अलभलेख और न्यातयक कायतवाहहयाँ
जल संबध
ं ी वििाद
262. अंतराक्ज्यक नहदयों या नदी-दन
ू ों के जल संबध
ं ी वववादों का न्यायतनणतयन
राज्यों के बीच समन्िय
263. अंतरातक्ज्यक पररषद् के संबध
ं में उपबंध
भाग 12
विि, संपवि, संविदाएाँ और िाद
अध्याय 1
विि
साधारण
264. तनवतचन
265. ववधध के प्राधधकार के त्रबना करों का अधधरोपण न ककया जाना
266. भारत और राज्यों की संधचत तनधधयाँ और लोक लेखे
267. आकक्स्मकता तनधध
संघ और राज्यों के बीच राजस्िों का वितरण
268. संघ द्वारा उद्गहृ हत ककए जाने वाले ककं तु राज्यों द्वारा संगह
ृ ीत और ववतनयोक्जत
ककए जाने वाले शल्
ु क
268-क. संघ द्वारा उद्गगहृ हत ककए जाने वाला संघ तथा राज्यों द्वारा उद्गगहृ हत और
ववतनयोक्जत ककया जाने वाले सेवा-कर
269. संघ द्वारा उद्गहृ हत और संगह
ृ ीत ककं तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर

16
270. उद्गहृ हत कर और करों पर संघ के प्रयोजनों के ललए अधधभार
271. कुछ शल्
ु कों और करों पर स्नाघ के प्रयोजनों के ललए अधधभार
272. कर और संघ द्वारा उद्गहृ हत ककए जाते है तथा जो संघ अरु राज्यों के बीच
ववतररत ककए जा सकेंगे
273. जूट पर और जट
ू उत्पादों पर तनयातत शल्
ु क के स्थान पर अनद
ु ान
274. ऐसे कराधान पर क्जसमे राज्य हहतबद्ध है , प्रभाव डालने वाले ववधेयकों के ललए
275. कुछ राज्यों को संघ से अनद
ु ान
276. ववृ र्त्यों, व्यापारों, आजीववकाओं और तनयोजनों पर कर
277. व्याववृ र्त्
278. [तनरलसत]
279. शद्
ु ध आगम आहद की गणना
280. ववर्त् आयोग
281. ववर्त् आयोग की लसफाररशें
प्रकीणम वििीय उपबंध
282. संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व से ककए जाने वाले व्यय
283. संधचत तनधधयों, आकक्स्मकता तनधधयों और लोक लेखाओं में जमा धनरालशयों की
अलभरक्षा आहद
284. लोक सेवकों और न्यायालयों द्वारा प्राप्त वादकर्त्ातओं की जमा रालशयों और अन्य
धनरालशयों की अलभरक्षा
285. संघ की संपवर्त् को राज्य के कराधान से छूट
286. माल के क्रय या ववक्रय पर कर के अधधरोपण के बारे में तनबंधन
287. ववद्यत
ु पर करों से छूट
288. जल या ववद्यत
ु के संबध
ं में राज्यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट
289. राज्यों की संपवर्त् और आय को संघ के कराधान से छूट
290. कुछ राज्यों और पें शनों के संबध
ं में समायोजन
290-क. कुछ दे वस्वम ् तनधधयों को वावषतक संदाय
291. [तनरलसत]
अध्याय 2
उधार लेना
292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना
293. राज्यों द्वारा उधार लेना
अध्याय 3
संपवि, संविदाएाँ, अधधकार, दानयत्ि, बाध्यताएाँ और िाद
294. कुछ दशाओं में संपवर्त्, आक्स्तयों, अधधकारों, दातयत्यों और बाध्यताओं का उर्त्राधधकार
295. अन्य दशाओं में संपवर्त्, आक्स्तयों, अधधकारों, दातयत्यों और बाध्यताओं का
उर्त्राधधकार
296. राजगामी या व्यपगत या स्वामीववहीन होने से प्रोद्भत
ू संपवर्त्

17
297. राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भलू म में क्स्थत मल्
ू यवान चीजों और
अनन्य आधथतक क्षेत्र के संपवर्त् स्रोतों का संघ में तनहहत होना
298. व्यापार करने आहद की शक्क्त
299. संववदाएँ
300. वाद और कायतवाहहयाँ
अध्याय 4
संपवि का अधधकार
300-क. ववधध के प्राधधकार के त्रबना व्यक्क्तयों को संपवर्त् से वंधचत न ककया जाना
भाग 13
भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, िाणणज्य और समागम
301. व्यापार, वाणणज्य और समागम की स्वतंत्रता
302. व्यापार, वाणणज्य और समागम पर तनबंधन अधधरोवपत करने की संसद् की शक्क्त
303. व्यापार और वाणणज्य के संबध
ं में संघ और राज्यों की ववधायी शक्क्तयों पर तनबंधन
304. राज्यों के बीच व्यापार, वाणणज्य और समागम पर तनबंधन
305. ववद्यमान ववधधयों और राज्य के एकाधधकार का उपबंध करने वाली ववधधयों की
व्याववृ र्त्
306. [तनरलसत]
307. अनच्
ु छे द 301 से अनच्
ु छे द 304 के प्रयोजनों को कायतक्न्वत करने के ललए प्राधधकारी
तनयक्ु क्त
भाग 14
संघ और राज्यों के अधीन सेिाएाँ
अध्याय 1
सेिाएाँ
308. तनवतचन
309. संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्क्तयों की भती और सेवा की शते
310. संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्क्तयों की पदावधध
311. संघ या राज्य के अधीन लसववल है लसयत में तनयोक्जत व्यक्क्तयों का पदच्यत
ु ककया
जाना,पद से हटाया जाना या पंक्क्त में अवनत ककया जाना
312. अणखल भारतीय सेवाएँ
312क. कुछ सेवाओं के अधधकाररयों की सेवा की शतों में पररवततन करने या उन्हें प्रततसंहृत
करने की संसद् की शक्क्त
313. संक्रमणकालीन उपबंध
314. [तनरलसत]
अध्याय 2
लोक सेिा आयोग
315. संघ और राज्यों के ललए लोक सेवा आयोग
316. सदस्यों की तनयक्ु क्त और पदावधध

18
317. लोक सेवा आयोग के ककसी सदस्य का हटाया जाना और तनलंत्रबत ककया जाना
318. आयोग के सदस्यों और कमतचाररवद
ं ृ की सेवा और शतों के बारे में ववतनयम बनाने की
शक्क्त
319. आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबध
ं में प्रततषेध
320. लोक सेवा आयोगों के कृत्य
321. लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का ववस्तार करने की शक्क्त
322. लोक सेवा आयोगों के व्यय
323. लोक सेवा आयोगों के प्रततवेदन
भाग 14 – क
अधधकरण
323-क. प्रशासतनक अधधकरण
323-ख. अन्य ववषयों के ललए अधधकरण
भाग 15
ननिामचन
324. तनवातचनों के अधीक्षण, तनदे शन और तनयंत्रण का तनवातचन आयोग में तनहहत होना
325. धमत, मल
ू वंश, जातत या ललंग के आधार पर ककसी व्यक्क्त का तनवातचक-नामावली में
सक्म्मललत ककए जाने के ललए अपात्र न होना और उसके द्वारा ककसी ववशेष तनवातचक- नामावली
में सक्म्मललत ककए जाने का दावा न ककया जाना
326. लोक सभा और राज्यों की ववधान सभाओं के ललए तनवातचनों का वयस्क मताधधकार
के आधार पर होना
327. ववधान-मंडलों के ललए तनवातचनों के संबध
ं में उपबंध करने की संसद् की शक्क्त
328. ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ललए तनवातचनों के संबध
ं में उपबंध करने की उस
ववधान-मंडल की शक्क्त
329. तनवातचन संबध
ं ी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वजतन
329-क प्रधान मंत्री और अध्यक्ष के मामले में संसद् के ललए तनवातचनों के बारे में ववशेष
उपबंध
भाग 16
कुछ िगों के संबध
ं में विशेष उपबंध
330. लोक सभा में अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए स्थानों का
आरक्षण
331. लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रतततनधधत्व
332. राज्यों की ववधान सभाओं में अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए
स्थानों का आरक्षण
333. राज्यों की ववधान सभाओं में आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रतततनधधत्व
334. स्थानों के आरक्षण और ववशेष प्रतततनधधत्व का सर्त्र वषत के पश्चात ् न रहना
335. सेवाओं और पदों के ललए अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों के दावे
336. कुछ सेवाओं में आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के ललए ववशेष उपबंध

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337. आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के फायदे के ललए शैक्षक्षक अनद
ु ान के ललए ववशेष उपबंध
338. अनस
ु धू चत जातत के ललए राष्रीय आयोग
338-क अनस
ु धू चत जनजातत के ललए राष्रीय आयोग
339. अनस
ु धू चत क्षेत्रों के प्रशासन और अनस
ु धू चत जनजाततयों के कल्याण के बारे में
संघ का तनयंत्रण
340. वपछड़े वगों की दशाओं के अन्वेषण के ललए आयोग की तनयक्ु क्त
341. अनस
ु धू चत जाततयाँ
342. अनस
ु धू चत जनजाततयाँ
भाग 17
राजभाषा
संघ की भाषा
343. संघ की राजभाषा
344. राजभाषा के संबध
ं में आयोग और संसद् की सलमतत
अध्याय – 2
प्रादे लशक भाषाएाँ
345. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ
346. एक राज्य और दस
ू रे राज्य के बीच या ककसी राज्य और संघ के बीच पत्राहद की
राजभाषा
347. ककसी राज्य की जनसंख्या के ककसी अनभ
ु ाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबध
ं में
ववशेष उपबंध
अध्याय – 3
उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आर्द की भाषा
348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधधतनयमों,
ववधेयकों आहद के ललए प्रयोग की जाने वाली भाषा
349. भाषा से संबधं धत कुछ ववधधयाँ अधधतनयलमत करने के ललए ववशेष प्रकक्रया
अध्याय – 4
विशेष ननदे श
350. व्यथा के तनवारण के ललए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा
350क. प्राथलमक स्तर पर मातभ
ृ ाषा में लशक्षा की सवु वधाएँ
350ख. भाषाई अल्पसंख्यक-वगों के ललए ववशेष अधधकारी
351. हहन्दी भाषा के ववकास के ललए तनदे श
अध्याय 18
आपात उपबंध
352. आपात की उद्घोषणा
353. आपात की उद्घोषणा का प्रभाव
354. जब आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है तब राजस्वों के ववतरण
संबध
ं ी उपबंधों का लागू होना

20
355. बाह्य आक्रमण और आंतररक अशांतत से राज्य की संरक्षा करने का संघ का कततव्य
356. राज्यों में सांववधातनक तंत्र के ववफल हो जाने की दशा में उपबंध
357. अनच्
ु छे द 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अधीन ववधायी शक्क्तयों का प्रयोग
358. आपात के दौरान अनच्
ु छे द 19 के उपबंधों का तनलंबन
359. आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदर्त् अधधकारों को प्रवततन का तनलबंन
359क. [तनरलसत]
360. ववर्त्ीय आपात के बारे में उपबंध
भाग 19
प्रकीणम
361. राष्रपतत और राज्यपालों और राजप्रमख
ु ों का संरक्षण
361क. संसद् और राज्यों के ववधान-मंडलों की कायतवाहहयों के प्रकाशन का संरक्षण
361ख. लाभप्रद राजनीततक पद पर तनयक्ु क्त के ललए तनहहतत
362. दे शी राज्यों के शासकों के अधधकार और ववशेषाधधकार
363. कुछ संधधयों, करारों आहद से उत्पन्न वववादों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वजतन
363-क. दे शी राज्यों के शासकों को दी गई मान्यता की समाक्प्त और तनजी थैललयों का अंत
364. महापर्त्नों और ववमानक्षेत्रों के बारे में ववशेष उपबंध
365. संघ द्वारा हदए गए तनदे शों का अनप
ु ालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता
का प्रभाव
366. पररभाषाएँ
367. तनवतचन
भाग 20
संविधान का संशोधन
368. संववधान का संशोधन करने की संसद् की शक्क्त और उसके ललए प्रकक्रया
भाग 21
अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध
369. राज्य सच
ू ी के कुछ ववषयों के संबध
ं में ववधध बनाने की संसद् की इस प्रकार अस्थायी
शक्क्त मानो वे समवती सच
ू ी के ववषय हों
370. जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में अस्थायी उपबंध
371. महाराष्र और गज
ु रात राज्यों के संबध
ं में ववशेष उपबंध
371क. नागालैंड राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध
371ख. असम राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध
371ग. मणणपरु राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध
371घ. आंध्र प्रदे श राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध
371-ङ. आंध्र प्रदे श में केंद्रीय ववश्वववद्यालय की स्थापना
371-च. लसक्क्कम राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध
371-छ. लमजोरम राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध
371-ज. अरुणाचल प्रदे श राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध

21
371-झ. गोवा राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध
371-ञ. कनातटक राज्य के संबध
ं में ववशेष उपबंध
372. ववद्यमान ववधधयों का प्रवर्त्
ृ बने रहना और उनका अनक
ु ू लन
372-क. ववधधयों का अनक
ु ू लन करने की राष्रपतत की शक्क्त
373. तनवारक तनरोध में रखे गए व्यक्क्तयों के संबध
ं में कुछ दशाओं में आदे श करने की
राष्रपतत की शक्क्त
374. फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों और फेडरल न्यायालय में या सपररषद् हहज मेजेस्टी
के समक्ष लंत्रबत कायतवाहहयों के बारे में उपबंध
375. संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्यायालयों, प्राधधकाररयों और अधधकाररयों
का कृत्य करते रहना
376. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
377. भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध
378. लोक सेवा आयोगों के बारे में उपबंध
378क. आंध्र प्रदे श ववधान सभा की अवधध के बारे में ववशेष उपबंध
379-391. [तनरलसत]
392. कहठनाइयों को दरू करने की राष्रपतत की शक्क्त
भाग – 22
संक्षक्षप्त नाम, प्रारं भ [र्हंदी में प्राधधकृत पाठ] और ननरसन
393. संक्षक्षप्त नाम
394. प्रारं भ
394-क. हहंदी भाषा में प्राधधकृत पाठ
395. तनरसन
अनस
ु धू चयााँ
पहली अनस
ु च
ू ी
1. राज्य
2. संघ राज्यक्षेत्र
दस
ू री अनस
ु च
ू ी
भाग क – राष्रपतत और राज्यों के राज्यपालों के बारे में उपबंध
भाग ख – [तनरलसत]
भाग ग – लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा राज्य सभा के सभापतत और उप
सभापतत के तथा राज्य की ववधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा ववधान पररषद्
केसभापतत और उपसभापतत के बारे में उपबंध
भाग घ- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
भाग ङ- भारत के तनयंत्रक - ,महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध
तीसरी अनस
ु च
ू ी – शपथ या प्रततज्ञान के प्ररूप
चौथी अनस
ु च
ू ी – राज्य सभा में स्थानों का आबंटन
पााँचिी अनस
ु च
ू ी – अनस
ु धू चत क्षेत्रों और अनस
ु धू चत जनजाततयों के प्रशासन और तनयंत्रक के

22
बारे में उपबंध
भाग क – साधारण
भाग ख – अनस
ु धू चत क्षेत्रों और अनस
ु धू चत जनजाततयों का प्रशासन और तनयंत्रण
भाग ग – अनस
ु धू चत क्षेत्र
भाग घ – अनस
ु च
ू ी का संशोधन
छठी अनस
ु च
ू ी असम, मेघालय, त्रत्रपरु ा और लमजोरम राज्यों के जनजातत क्षेत्रों के प्रशासन
के बारे में उपबंध
सातिीं अनस
ु च
ू ी
सच
ू ी 1 – संघ सच
ू ी
सच
ू ी 2 – राज्य सच
ू ी
सच
ू ी 3 – समवती सच
ू ी
आठिीं अनस
ु च
ू ी भाषाएँ
नौिीं अनस
ु च
ू ी कुछ अधधतनयमों और ववतनयमों का ववधधमान्यकरण
दसिीं अनस
ु च
ू ी दल पररवततन के आधार पर तनहहतत के बारे में उपबंध
ग्यारहिीं अनस
ु च
ू ी पंचायतो की शाक्स्तयों, प्राधधकार और उर्त्रदातयत्व
बारहिीं अनस
ु च
ू ी नगरपाललकाओं, आहद की शक्क्तयाँ, प्राधधकार और उर्त्रदातयत्व

पररलशष्ट्ट

पररलशष्ट्ट 1
संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954
पररलशष्ट्ट 2
संववधान के उन अपवादों और उपांतरणों के क्जनके अधीन संववधान जम्मू कश्मीर राज्य को लागू होता है,
वततमान पाठ के प्रतत तनदे श से, पन
ु कतथन
पररलशष्ट्ट 3
संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 से उद्धरण
सारणी – 1 उच्च न्यायालयों का स्थान और अधधकाररता
सारणी – 2 अभी तक हुए संशोधनों की सच
ू ी
सारणी – 3 भारतीय संववधान के स्रोत

23
भारत का संविधान
उद्दे लशका

हम भारत के लोग, भारत को एक 1[सम्पण


ू म प्रभत्ु ि-संपन्न समाजिादी पंथननरपेक्ष लोकतंत्रात्मक
गणराज्य] बनाने के ललए, तथा उसके समस्त नागररकों को :

सामाक्जक, आधथतक और राजनैततक न्याय,

ववचार, अलभव्यक्क्त, ववश्वास, धमत

और उपासना की स्ितंत्रता,

प्रततष्ठा और अवसर की समता

प्राप्त करने के ललए,

तथा उन सब में ,

व्यक्क्त की गररमा और 2[राष्र की एकता

और अखंडता] सतु नक्श्चत करने वाली बंधुता

बढ़ाने के ललए

दृढ़संकल्प होकर

अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. )लमतत मागतशीषत शक्
ु ल सप्तमी,
संवत ् दो हजार छह ववक्रमी) को एतद्द्िारा इस संविधान को अंगीकृत, अधधननयलमत और आत्मावपमत
करते है |

___________________

1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “प्रमुख
संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य” शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “राष्र की
एकता” शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत|

भारत का संविधान, 1950


भाग 1
संघ और उसका राज्यक्षेत्र
1. संघ का नाम और राज्यक्षेत्र – (1) भारत, अथातत इंडडया, राज्यों का संघ होगा|
1
[(2) राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनस
ु च
ू ी में ववतनहदतष्ट है |]
(3) भारत के राज्यक्षेत्र में ,-
(क) राज्यों के राज्यक्षेत्र,
2
[(ख) पहली अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट संघ राज्यक्षेत्र, और]

24
(ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अक्जतत ककये जाएं,
समाववष्ट होंगे|
2. नए राज्यों का प्रिेश या स्थापना – संसद्, ववधध द्वारा, ऐसे तनबंधनो और शतों पर, जो वह ठीक
समझे, संघ में नए राज्यों या उनकी स्थापना कर सकेगी|
3
[2क. लसक्तकम का संघ के साथ सहयत
ु त क्रकया जाना| – [संविधान (छिीसिां संशोधन)
अधधननयम, 1975 की धारा 5 द्िारा (26-4-1975 से) ननरलसत|]
3. नए राज्यों का ननमामण और ितममान राज्यों के क्षेत्रो, सीमाओ या नामो में पररितमन - संसद्, ववधध
द्वारा-
(क) ककसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधधक राज्यों को या राज्यों
के भागो को लमलाकर अथवा ककसी राज्यों क्षेत्र को ककसी राज्य के भाग के साथ लमलाकर
नए राज्य का तनमातण कर सकेगी;
(ख) ककसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
(ग) ककसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी;
(घ) ककसी राज्य की सीमाओ में पररवततन कर सकेगी;
(ङ) ककसी राज्य के नाम में पररवततन कर सकेगी;

4
[परन्तु इस प्रयोजन के ललए कोई ववधेयक राष्रपतत की लसफाररश के त्रबना और जहाँ ववधेयक में
अंतववतष्ट प्रस्थापना का प्रभाव 5[***] राज्यों में से ककसी के क्षेत्र, सीमाओ या नाम पर पड़ता है वहाँ जब
तक उस राज्य के ववधानमंडल द्वारा उस पर अपने ववचार, ऐसी अवधध के भीतर जो तनदे श में ववतनहदत ष्ट
की जाय या ऐसी अततररक्त अवधध के भीतर जो राष्रपतत द्वारा अनज्ञ
ु ात की जाए, प्रकट ककये जाने के
ललए वह ववधेयक राष्रपतत द्वारा उसे तनदे लशत नहीं कर हदया गया है और इस प्रकार ववतनहदतष्ट या
अनज्ञ
ु ात अवधध समाप्त नहीं हो गई है , संसद् के ककसी सदन में परु :स्थावपत नहीं ककया जायेगा|]

___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा खंड (2) के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा उपखण्ड (ख) के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
3. संववधान (पैतीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा (1-3-1975से) अनुच्छे द 2ख
अंत:स्थावपत ककया गया|
4. संववधान (पाँचवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1955 की धारा 2 द्वारा परं तुक के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
5. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची”
के भाग क या भाग ख में ववतनहदतष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया|

1
[स्पष्ट्टीकरण 1- इस अनच्
ु छे द के खंड (क) से खंड (ख) में “राज्य” के अंतगतत संघ राज्यक्षेत्र है |
ककन्तु परं तक
ु में “राज्य” के अंतगतत संघ राज्यक्षेत्र नहीं है |

25
स्पष्ट्टीकरण 2- खण्ड (क) द्वारा संसद् को प्रदर्त् शक्क्त के अंतगतत ककसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग को ककसी अन्य राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के साथ लमलाकर नए राज्य या संघ राज्यक्षेत्र का
तनमातण करना है |

4. पहली अनस
ु च
ू ी और चौथी अनस
ु च
ू ी के संशोधन तथा अनप
ु रू क; आनष
ु धं गक और पररणालमक
विषयों का उपबंध के ललए अनच्
ु छे द 2 और अनच्
ु छे द 3 के अधीन बनाई गई विधधयााँ – (1) अनच्
ु छे द 2 या
अनच्
ु छे द 3 में तनहदतष्ट ककसी ववधध में पहली अनस
ु च
ू ी और चौथी अनस
ु च
ू ी के संशोधन के ललए ऐसे उपबंध
अंतववतष्ट होंगे जो उस ववधध के उपबंधों को प्रभावी करने के ललए आवश्यक हो तथा ऐसे अनप
ु रू क,
आनष
ु धं गक और पररणालमक उपबंध भी (क्जनके अंतगतत ऐसी ववधध से प्रभाववत राज्य या राज्यों के संसद्
में और ववधान-मण्डल या ववधान-मण्डलों में प्रतततनधधत्व के बारे में उपबंध है ) अंतववतष्ट हो सकेंगे क्जन्हें
संसद् आवश्यक समझे|

(2) पव
ू ोक्त प्रकार की कोई ववधध अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजनों के ललए इस संववधान का संशोधन
नहीं समझी जायगी|
भाग 2
नागररकता

5. संविधान के प्रारं भ में नागररकता – इस संववधान के प्रारं भ पर प्रत्येक व्यक्क्त क्जसका भारत
के राज्यक्षेत्र में अधधवास है| और -

(क) जो भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा था, या


(ख) क्जसके माता या वपता में से कोई भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा था, या
(ग) जो ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले कम से कम पांच वषत तक भारत के राज्यक्षेत्र में मामल
ू ी तौर से
तनवासी रहा है ,

भारत का नागररक होगा|

6. पाक्रकस्तान से भारत को प्रव्रजन करने िाले कुछ व्यक्ततयों के नागररकता के अधधकार –


अनच्
ु छे द 5 में ककसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्क्त क्जसने ऐसे राज्यक्षेत्र से जो इस समय पाककस्तान
के अंतगतत है , भारत के राज्यक्षेत्र को प्रव्रजन ककया है , इस संववधान के प्रारं भ पर भारत का नागररक
समझा जाएगा –

(क) यहद वह अथवा उसके माता या वपता में से कोई अथवा उसके वपतामह या वपतामही या
मातामह या मातामही में से कोई (मल
ू रूप में यथा अधधतनयलमत) भारत शासन अधधतनयम,
1935 में पररभावषत भारत में जन्मा था; और
(ख) (i) जबकक वह व्यक्क्त ऐसा है क्जसने 19 जुलाई, 1948 से पहले इस प्रकार प्रव्रजन ककया है तब
यहद वह अपने प्रव्रजन की तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र में मामल
ू ी तौर से तनवासी रहा है ;
या

___________________

26
1. संववधान (अठारहवां संशोधन) अधधतनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत|

(ii) जबकक वह व्यक्क्त ऐसा है क्जसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके पश्चात ् इस प्रकार प्रव्रजन
ककया तब यहद वह नागररकता प्राक्प्त के ललए भारत डोलमतनयम की सरकार द्वारा ववहहत
प्रारूप में और रीतत से उसके द्वारा इस संववधान के प्रारं भ से पहले ऐसे अधधकारों को, क्जसे
उस सरकार ने इस प्रयोजन के ललए तनयक्
ु त ककया है , आवेदन ककए जाने पर उस अधधकारी
द्वारा भारत का नागररक रक्जस्रीकृत कर ललया गया है ;

परन्तु यहद कोई व्यक्क्त अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छह मास भारत के
राज्यक्षेत्र में तनवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रक्जस्रीकृत नहीं ककया जायगा|

7. पाक्रकस्तान को प्रव्रजन करने िाले कुछ व्यक्ततयों के नागररकता के अधधकार – अनच्


ु छे द 5 और
अनच्
ु छे द 6 में ककसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्क्त क्जसने 1 माचत, 1947 के पश्चात ् भारत के राज्यक्षेत्र
से ऐसे राज्यक्षेत्र को, जो इस समय पाककस्तान के अंतगतत है , प्रव्रजन ककया है, भारत का नागररक नहीं
समझा जायेगा:

परं तु इस अनच्
ु छे द की कोई बात ऐसे व्यक्क्त को लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्य क्षेत्र को, जो इस
समय पाककस्तान के अंतगतत है , प्रव्रजन करने के पश्चात ् भारत के राज्यक्षेत्र को ऐसी अनज्ञ
ु ा के अधीन
लौट आया जो पन
ु वातस के ललए या स्थायी रूप से लौटने के ललए ककसी ववधध के प्राधधकार द्वारा या
उसके अधीन दी गई है और प्रत्येक ऐसे व्यक्क्त के बारे में अनच्
ु छे द 6 के खण्ड (ख) के प्रयोजनों के ललए
यह समझा जायेगा की उसने घत
ृ के राज्यक्षेत्र को 19 जुलाई, 1948 के पश्चात ् प्रव्रजन ककया है |

8. भारत के बाहर रहने िाले भारतीय उदभि के कुछ व्यक्ततयों के नागररकता के अधधकार -
अनच्
ु छे द 5 में ककसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्क्त जो या क्जसके माता या वपता में से कोई अथवा
वपतामह या वपतामही या मातामह या मातामही में से कोई (मल ू रूप में यथा अधधतनयलमत) भारत शासन
अधधतनयम, 1935 में पररभावषत भारत में जन्मा था और जो इस प्रकार पररभावषत भारत के बाहर ककसी
दे श में मामल
ू ी तौर से तनवास कर रहा है , भारत का नागररक समझा जाएगा, यहद वह नागररकता प्राक्प्त
के ललए भारत डोलमतनयन की सरकार द्वारा या भारत सरकार द्वारा ववहहत प्ररूप में और रीतत से अपने
द्वारा उस दे श में , जहाँ वह तत्समय तनवास कर रहा है , भारत के राजनतयक या कौंसलीय प्रतततनधध
द्वारा भारत का नागररक रक्जस्रीकृत कर ललया गया है |

9. विदे शी राज्य की नागररकता स्िेच्छा से अक्जमत करने िाले व्यक्ततयों का नागररक न होना –
यहद ककसी व्यक्क्त ने ककसी ववदे शी राज्य की नागररकता स्वेच्छा से अक्जतत कर ली है तो वह अनच्
ु छे द 5
के आधार पर भारत का नागररक नहीं होगा अथवा अनच्
ु छे द 6 या अनच्
ु छे द 8 के आधार पर भारत का
नागररक नहीं समझा जायेगा|

10. नागररकता के अधधकारों का बना रहना – प्रत्येक व्यक्क्त, जो इस भाग के पव


ू ग
त ामी उपबन्धो
में से ककसी के अधीन भारत का नागररक है या समझा जाता है , ऐसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते
हुए, जो संसद् द्वारा बनाई जाए, भारत का नागररक बना रहे गा|

27
11. संसद् द्िारा नागररकता के आधार का विधध द्िारा विननयम क्रकया जाना – इस भाग के
पव
ू ग
त ामी उपबंधों की कोई बात नागररकता के अजतन और समाक्प्त के तथा नागररकता से सबंधधत अन्य
सभी ववषयों के संबध
ं में उपबंध करने की संसद् की शक्क्त का अल्पीकरण नहीं करे गी|

भाग 3

मल
ू अधधकार

साधारण

12. पररभाषा – इस भाग में , जब तक की सन्दभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो, “राज्य” के अंतगतत
भारत की सरकार और संसद् तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और ववधान-मण्डल तथा भारत
के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के तनयंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधधकारी है |

13. मल
ू अधधकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने िाली विधधयााँ – (1) इस संववधान के
प्रारं भ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवर्त्
ृ सभी ववधधयाँ उस मात्रा तक शन्
ू य होंगी क्जस तक वे इस
भाग के उपबंधों से असंगत है |

(2) राज्य ऐसी कोई ववधध नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदर्त् अधधकारों की छीनती है या
न्यन
ू करती है और इस खण्ड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक ववधध उल्लंघन की मात्रा तक शन्
ू य होगी|

(3) इस अनच्
ु छे द में , जब तक कक सन्दभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो, -

(क) “ववधध” के अंतगतत भारत के राज्यक्षेत्र में ववधध का बल रखने वाला कोई अध्यादे श, आदे श,
उपववधध, तनयम, ववतनयम, अधधसच
ू ना, रूहढ़ या प्रथा है |

(ख) “प्रवर्त्
ृ ववधध” के अंतगतत भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी ववधान-मण्डल या अन्य सक्षम
प्राधधकारी द्वारा इस संववधान के प्रारं भ से पहले पाररत या बनाई गई ववधध है जो पहले ही
तनरलसत नहीं कर दी गई है , चाहे ऐसी कोई ववधध या उसका कोई भाग उस समय पण
ू त
त या
या ववलशष्ट क्षेत्रों में प्रवततन में नहीं है |

1
[(4) इस अनच्
ु छे द की कोई बात अनच्
ु छे द 368 के अधीन ककए गए संववधान के ककसी सशोधन
को लागू नहीं होगी|]

___________________
1. संववधान (चौबीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत|

समता का अधधकार

14. विधध के समक्ष समता – राज्य,भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी व्यक्क्त को ववधध के समक्ष
समता से या ववधधयों के समान संरक्षण से वंधचत नहीं करे गा|

28
15. धमम, मल
ू िंश, जानत, ललंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रनतषेध – (1) राज्य,
ककसी नागररक के ववरुद्ध केवल धमत, मल
ू वंश, जातत, ललंग, जन्मस्थान या इनमे ले ककसी के आधार पर
कोई ववभेद नहीं करे गा|

(2) कोई नागररक केवल धमत, मल


ू वंश, जातत, ललंग, जन्मस्थान या इनमे से ककसी के आधार पर

(क) दक
ु ानों, सावजततनक भोजनालयों, होटलों और सावजततनक मनोरं जन के स्थानों में प्रवेश, या

(ख) पण
ू त
त :, या भागत: राज्य-तनधध से पोवषत या साधारण जनता के प्रयोग के ललए समवपतत
कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सावजततनक समागम के स्थानों के उपयोग, के संबध

में ककसी भी तनयोग्यता, दातयत्व, तनबतन्धन या शतत के अधीन नहीं होगा|

(3) इस अनच्
ु छे द की कोई बात राज्य को क्स्त्रयों और बालकों के ललए कोई ववशेष उपबंध करने से
तनवाररत नहीं करे गी|

1
[(4) इस अनच्
ु छे द की या अनच्
ु छे द 29 के खण्ड (2) की कोई बात राज्य को सामाक्जक और
शैक्षक्षक दृक्ष्ट से वपछड़े हुए नागररको के ककन्ही वगों की उन्नतत के ललए या अनस
ु धू चत जाततयों और
अनस
ु धू चत जनजाततयो के ललए कोई ववशेष उपबंध करने से तनवाररत नहीं करे गी|]

2
[(5) इस अनच्
ु छे द या अनच्
ु छे द 19 के खण्ड (1) के उपखण्ड (छ) की कोई बात राज्य को
नागररको के ककसी सामाक्जक रूप से और शैक्षणणक रूप से वपछड़े वगों की प्रगतत के ललए या अनस
ु धू चत
जाततयों या अनस
ु धू चत जनजाततयों या अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए ववधध द्वारा ककसी ववशेष प्रावधान
को करने से तनवाररत नहीं करे गी, जहाँ तक ऐसा ववशेष प्रावधान अनच्
ु छे द 30 के खण्ड (1) में तनहदत ष्ट
अल्पसंख्यक शैक्षणणक संस्थान के अततररक्त अन्य शैक्षणणक संस्थानों में , क्जसमे गैर सरकारी शैक्षणणक
संस्थान शालमल है , चाहे सरकार द्वारा सहायता प्राप्त हो, उनके प्रवेश से सबंधधत है |]

___________________
1. संववधान (पहला सशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गया|
2. संववधान (ततरानबेवां संशोधन) अधधतनयम, 2005 की धारा 2 द्वारा अंत: स्थावपत, जो अधधसूचना
संख्या एस.ओ. 72(ई), हदनाँक 20 जनवरी, 2006 द्वारा भारत का राजपत्र (असा.) भाग II, खण्ड
3(ii), हदनाँक 20 जनवरी, 2006 में प्रकालशत

16. लोक ननयोजन के विषय में अिसर की समता – (1) राज्य के अधीन ककसी पद पर तनयोजन
या तनयक्ु क्त से संबधं धत ववषयों में सभी नागररकों के ललए अवसर की समता होगी|

(2) राज्य के अधीन ककसी तनयोजन या पद के संबध


ं में केवल धमत, मल
ू वंश, जातत, ललंग,
उद्भव, जन्मस्थान, तनवास या इनमे से ककसी के आधार पर न तो कोई नागररक अपात्र होगा और न
उससे ववभेद ककया जाएगा|

29
(3) इस अनच्
ु छे द की कोई बात संसद् को कोई ऐसी ववधध बनाने से तनवाररत नहीं करे गी जो
[ककसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के ककसी स्थानीय या अन्य प्राधधकारी के अधीन
1

वाले ककसी वगत या वगों के पद पर तनयोजन या तनयक्ु क्त के संबध


ं में ऐसे तनयोजन या तनयक्ु क्त से पहले
उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर तनवास ववषयक कोई अपेक्षा ववहहत करती है |]

(4) इस अनच्ु छे द की कोई बात राज्य को वपछड़े हुए नागररको के ककसी वगत के पक्ष में , क्जनका
प्रतततनधधत्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओ में पयातप्त नहीं है , तनयक्ु क्तयों या पदों के आरक्षण
के ललए उपबंध करने से तनवातधचत नहीं करे गी|

2
[(4-क) इस अनच्
ु छे द की कोई बात राज्य को अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों के
पक्ष में , क्जनका प्रतततनधधत्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पयातप्त नहीं है , राज्य के
अधीन सेवाओं में 3[ककसी वगत या वगों के पदों पर, पररणालमक ज्येष्ठता सहहत, प्रोन्नतत के मामलों में]
आरक्षण के ललए उपबंध करने से तनवाररत नहीं करे गी|]

4
[(4-ख) इस अनच्
ु छे द की कोई बात राज्य को ककसी वषत में ककन्ही न भरी गई ऐसी ररक्क्तयों
को, जो खण्ड (4) या खण्ड (4-क) के अधीन ककए गए आरक्षण के ललए ककसी उपबंध के अनस
ु ार उस वषत
में भरी जाने के ललए आरक्षक्षत है , ककसी उर्त्रवती वषत या वषों से भरे जाने के ललए पथ
ृ क वगत की
ररक्क्तयों के रुप में ववचार करने से तनवाररत नहीं करे गी और ऐसे वगत की ररक्क्तयों पर उस वषत की
ररक्क्तयों के साथ क्जसमे वे भरी जा रही है , उस वषत की ररक्क्तयों की कुल संख्या के संबध
ं में पचास
प्रततशत आरक्षण की अधधकतम सीमा का अवधारण करने के ललए ववचार नहीं ककया जाएगा|]

___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ‘पहली
अनुसूची में ववतनहदतष्ट ककसी राज्य के या उसके क्षेत्र में ककसी स्थानीय या अन्य प्राधधकारी के
अधीन उस राज्य के भीतर तनवास ववषयक कोई अपेक्षा ववहहत करती हो’ के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
2. संववधान (सतहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995 से)
अन्त:स्थावपत|
3. संववधान (पचासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2001, हदनांक 4 जनवरी, 2002 द्वारा (जो 17-6-
1995 को प्रवतृ हुआ माना जाएगा) ‘ककसी वगत या वगों के पदों पर प्रोन्नतत के मामलो में ’
शब्दों के ललए प्रततस्थावपत|
4. संववधान (इक्यासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से)
अन्त:स्थावपत|

(5) इस अनच्
ु छे द की कोई बात ककसी ऐसी ववधध के प्रवततन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबंध
करती है कक ककसी धालमतक या सांप्रदातयक संस्था के कायतकलाप से सबंधधत कोई पदधारी या उसके शासी
तनकाय का कोई सदस्य ककसी ववलशष्ट धमत का मानने वाला या ववलशष्ट संप्रदाय का ही हो|

30
17. अस्पश्ृ यता का अंत – “अस्पश्ृ यता” का अंत ककया जाता है और उसका ककसी भी रूप में
आचरण तनवषद्ध ककया जाता है | “अस्पश्ृ यता” से उपजी ककसी तनयोग्यता को लागू करना अपराध होगा
जो ववधध के अनस
ु ार दण्डनीय होगा|

अनच्
ु छे द 17 और 35 के अधीन अपनी शक्क्त का प्रयोग करते हुए संसद् ने सन ् 1955 में लसववल
अधधकार संरक्षण अधधतनयम पाररत ककया|

18. उपाधधयो का अंत – (1) राज्य, सेना या ववद्या संबध


ं ी सम्मान के लसवाय और कोई उपाधध
प्रदान नहीं करे गा|

(2) भारत का कोई नागररक ककसी ववदे शी राज्य से कोई उपाधध स्वीकार नहीं करे गा|

(3) कोई व्यक्क्त, जो भारत का नागररक नहीं है , राज्य के अधीन लाभ या ववश्वास के ककसी पद
को धारण करते हुए ककसी ववदे शी राज्य से कोई उपाधध राष्रपतत की सहमतत के त्रबना स्वीकार नहीं
करे गा|

(4) राज्य के अधीन लाभ या ववश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्क्त ककसी ववदे शी राज्य
से या उसके अधीन ककसी रूप में कोई भें ट, उपलक्ब्ध या पद राष्रपतत की सहमतत के त्रबना स्वीकार नहीं
करे गा|

स्िातंत्र्य - अधधकार

19. िाक् -स्िातंत्र्य आर्द विषयक कुछ अधधकारों का संरक्षण – (1) सभी नागररकों को –

(क) वाक् -स्वातंत्र्य और अलभव्यक्क्त-स्वातंत्र्य का,


(ख)शांततपव
ू क
त और तनरयध
ु सम्मलेन का,
(ग) संगम या संघ 1[या सहकारी सलमतत] बनाने का;

___________________

1. संववधान (सर्त्ानवें वा संशोधन) अधधतनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा (12-1-2012 से) अन्त:स्थावपत|

(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सवतत्र अबाध संचरण का,

(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र ककसी भाग में तनवास करने और बस जाने का, 1[और]

(च) 2[ * * * * *]

(छ) कोई वतृ त, उपजीववका, व्यापार या कारबार करने का,

अधधकार होगा|

[(2)खंड (1) के उपखण्ड (क) ई कोई बात उक्त उपखण्ड द्वारा हदए गए अधधकार के प्रयोग पर
3

[भारत की प्रभत
4
ु ा और अखंडता], राज्य की सरु क्षा, ववदे शी राज्यों के साथ मैत्रीपण
ू त संबध
ं ो, लोक व्यवस्था,

31
लशष्टाचार या सदाचार के हहतों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहातन या अपराध-उद्दीपन के संबध
ं में
यक्ु क्तयक्
ु त तनबंधन जहाँ तक की ववद्यमान ववधध अधधरोवपत करती है वहाँ तक उसके प्रवततन पर प्रभाव
नहीं डालेगी या वैसे तनबंधन अधधरोवपत करने वाली कोई ववधध बनाने से राज्य को तनवाररत नहीं करे गी|]

(3) उक्त खंड के उपखण्ड (ख) की कोई बात उक्त उपखण्ड द्वारा हदए गए अधधकार के प्रयोग
पर 4[भारत की प्रभत
ु ा और अखंडता या] लोक व्यवस्था के हहतों में यक्ु क्तयक्
ु त तनबंधन जहाँ तक कोई
ववद्यमान ववधध अधधरोवपत करती है वहाँ तक उसके प्रवततन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे तनबंधन
अधधरोवपत करने वाली कोई ववधध बनाने से, राज्य को तनवाररत नहीं करे गी|

(4) उक्त खण्ड के उपखण्ड (ग) की कोई बात उक्त उपखण्ड द्वारा हदए गए अधधकार के प्रयोग
पर [भारत की प्रभत
4
ु ा और अखंडता या] लोक व्यवस्था या सदाचार के हहतों में यक्ु क्तयक्
ु त तनबंधन जहाँ
तक कोई ववद्यमान ववधध अधधरोवपत करती है वहाँ तक उसके प्रवततन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे
तनबंधन अधधरोवपत करने वाली कोई ववधध बनाने से राज्य को तनवाररत नहीं करे गी|

(5) उक्त खण्ड के 5[उपखण्ड (घ) और उपखण्ड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखण्डों द्वारा हदए गए
अधधकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हहतों में या ककसी अनस
ु धू चत जनजातत के हहतों के संरक्षण के
ललए यक्ु क्तयक्
ु त तनबंधन जहाँ तक कोई ववद्यमान ववधध अधधरोवपत करती है वहाँ तक प्रवततन पर प्रभाव
नहीं डालेगी या वैसे तनबंधन अधधरोवपत करने वाली कोई ववधध बनाने से राज्य को तनवाररत नहीं करे गी|

(6) उक्त खण्ड के उपखण्ड (छ) की कोई बाद उक्त उपखण्ड द्वारा हदए गए अधधकार के प्रयोग
पर साधारण जनता के हहतों में यक्ु क्तयक्
ु त तनबंधन जहाँ तक कोई ववद्यमान ववधध अधधरोवपत करती है
वहाँ तक उसके प्रवततन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे तनबंधन अधधरोवपत करने वाली कोई ववधध बनाने
से राज्य को तनवाररत नहीं करे गी और ववलशष्टतया 6[उक्त उपखण्ड की कोई बात-

___________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 2 (20-6-1979 से) अन्त:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 2 (20-6-1979 से) उपखण्ड (च) का
लोप ककया गया|
3. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खण्ड (2)
के स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. संववधान (सोलहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा अन्त:स्थावपत|
5. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 2 (20-6-1979 से) “उपखण्ड (घ),
उपखण्ड (ङ) और उपखण्ड (च)” के स्थान प ् प्रततस्थावपत|
6. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 3 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

(i) कोई वतृ त, उपजीववका, व्यापार या कारबार करने के ललए आवश्यक ववृ र्त्क या तकनीकी
अहतताओ से, या

32
(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वालमत्व या तनयंत्रण में ककसी तनगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार,
उद्योग या सेवा, नागररको का पण
ू त
त : या भागत: अपवजतन करके या अन्यथा, चलाए जाने
से,

जहाँ तक कोई ववद्यमान ववधध संबध


ं रखती है वहाँ तक उसके प्रवततन पर प्रभाव नहीं डालेगी या
इस प्रकार संबध
ं रखने वाली की ववधध बनाने से राज्य को तनवाररत नहीं करे गी|

20. अपराधों के ललए दोषलसद्धध के संबध


ं में संरक्षण – (1) कोई व्यक्क्त ककसी अपराध के ललए
तब तक लसद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कक उसने ऐसा कोई कायत करने के समय, जो अपराध
के रूप में आरोवपत है , ककसी प्रवर्त्
ृ ववधध का अततक्रमण नहीं ककया है या उससे अधधक शाक्स्त का भागी
नहीं होगा जो उस अपराध के ककए जाने के समय प्रवर्त्
ृ ववधध के अधीन अधधरोवपत की जा सकती थी|

(2) ककसी व्यक्क्त को एक ही अपराध के ललए एक बार से अधधक अलभयोक्जत और दक्ण्डत नहीं
ककया जाएगा|

(3) ककसी अपराध के ललए अलभयक्


ु त ककसी व्यक्क्त को स्वयं अपने ववरुद्ध साक्षी होने के ललए बाध्य
नहीं ककया जाएगा|

21. प्राण और दै र्हक स्ितंत्रता का संरक्षण – ककसी व्यक्क्त को उसके प्राण या दै हहक स्वतंत्रता से
ववधध द्वारा स्थावपत प्रकक्रया के अनस
ु ार ही वंधचत ककया जाएगा, अन्यथा नहीं|

[21क. लशक्षा का अधधकार – राज्य, छह वषत से चौदह वषत तक की आयु वाले सभी बालको के
1

ललए तन:शल्
ु क और अतनवायत लशक्षा दे ने का ऐसी रीतत में , जो राज्य ववधध द्वारा, अवधाररत करे , उपबंध
करे गा|]

22.कुछ दशाओ में धगरफ़्तारी और ननरोध से संरक्षण – (1) ककसी व्यक्क्त जो धगरफ्तार ककया
2

गया है , ऐसी धगरफ्तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए त्रबना अलभरक्षा में तनरुद्ध नहीं रखा जाएगा
या अपनी रूधच के ववधध व्यवसायी से परामशत करने और प्रततरक्षा कराने के अधधकार से वंधचत नहीं रखा
जाएगा|

(2) प्रत्येक व्यक्क्त को, जो धगरफ्तार ककया गया है और अलभरक्षा में तनरुद्ध रखा गया है ,
धगरफ्तारी के स्थान से मक्जस्रे ट के न्यायालय तक यात्रा के ललए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी
धगरफ्तारी के स्थान से चौबीस घण्टे की अवधध में तनकटतम मक्जस्रे ट के समक्ष पेश ककया जाएगा और
ऐसे ककसी व्यक्क्त को मक्जस्रे ट के प्राधधकार के त्रबना उक्त अवधध के ललए अलभरक्षा में तनरुद्ध नहीं रखा
जाएगा|

(3) खण्ड (1) और खण्ड (2) की कोई बात ककसी ऐसे व्यक्क्त को लागू नहीं होगी जो –

(क) तत्समय शत्रु अन्यदे शीय है ; या

(ख) तनवारक तनरोध का उपबंध करने वाली ववधध के अधीन धगरफ्तार या तनरुद्ध ककया गया है |

33
(4) तनवारक तनरोध का उपबंध करने वाली कोई ववधध ककसी व्यक्क्त का तीन मास से अधधक
अवधध के ललए तब तक तनरुद्ध ककया जाना प्राधधकृत नहीं करे गी जब तक कक –

(क) ऐसे व्यक्क्तयों से, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश है या न्यायाधीश रहे है या न्यायाधीश
तनयक्
ु त होने के ललए अहहतत है , लमलकर बने सलाहकार बोडत ने तीन मास की उक्त अवधध की समाक्प्त
पहले यह प्रततवेदन नहीं हदया है कक उसकी राय में ऐसे तनरोध के ललए पयातप्त कारण है :

परं तु इस उपखण्ड कक कोई बाद ककसी व्यक्क्त का उस अधधकतम अवधध से अधधक अवधध के
ललए तनरुद्ध ककया जाना प्राधधकृत नहीं करे गी जा खण्ड (7) के उपखण्ड (ख) के अधीन संसद् द्वारा
बनाई गई ववधध द्वारा ववहहत की गई है ; या

(ख)ऐसे व्यक्क्त को खण्ड (7) के उपखण्ड (क) और उपखण्ड (ख) के अधीन संसद् द्वारा बनाई
गई ववधध के उपबंधों के अनस
ु ार तनरुद्ध नहीं ककया जाता है |

___________________
1. संववधान (तछयासीवाँ संशोधन) अधधनयम, 2002 की धारा 2 dvvद्वारा (1-4-2010 से)
अन्त:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधनयम, 1978 की धारा 3 के प्रवतततत होने पर, अनुच्छे द 22
उस अधधनयम की धारा 3 में तनदे लशत रूप में संशोधधत हो जाएगा – उस अधधतनयम की धारा 3
का पाठ पररलशष्ट 3 में दे णखए |

(5) तनवारक तनरोध का उपबंध करने वाली ककसी ववधध के अधीन ककये गए आदे श के अनस
ु रण में
जब ककसी व्यक्क्त को तनरुद्ध ककया जाता है तब आदे श करने वाला प्राधधकारी यथाशक्य शीघ्र उस
व्यक्क्त को यह संसधू चत करे गा कक वह आदे श ककन आधारों पर ककया गया है और उस आदे श के ववरुद्ध
अभ्यावेदन करने के ललए उसे शीघ्राततशीघ्र अवसर दे गा |

(6) खण्ड (5) की ककसी बात से ऐसा आदे श, जो उस खण्ड में तनहदत ष्ट है , करने वाले प्राधधकारी के
ललए ऐसे तथ्यों को प्रकट करना आवश्यक नहीं होगा क्जन्हें प्रकट करना ऐसा प्राधधकारी लोकहहत के
ववरुद्ध समझाता है |

(7) संसद् ववधध द्वारा ववहहत कर सकेगी कक –

(क) ककन पररक्स्थततयों के अधीन और ककस वगत या वगों के मामलों में ककसी व्यक्क्त की
तनवारक तनरोध का उपबंध करने वाली ककसी ववधध के अधीन तीन मास से अधधक अवधध
के ललए खण्ड (4) उपखण्ड (क) के उपबंधों के अनस
ु ार सलाहकार बोडत की राय प्राप्त ककए
त्रबना तनरुद्ध ककया जा सकेगा;

(ख) ककसी वगत या वगों के मामलों में ककतनी अधधकतम अवधध के ललए ककसी व्यक्क्त की
तनवारक तनरोध का उपबंध करने वाली ककसी ववधध के अधीन तनरुद्ध ककया जा सकेगा;
और

34
(ग) खण्ड (4) के उपखण्ड (क) के अधीन की जाने वाली जाँच में सलाहकार बोडत द्वारा अनस
ु रण
की जाने वाली प्रकक्रया क्या होगी |

शोषण के विरुद्ध अधधकार

23. मानि के दव्ु यामपार और बालश्रम का प्रनतषेध – (1) मानव का दव्ु यातपार और बेगार तथा इसी
प्रकार का अन्य बलात्श्रम प्रततवषद्ध ककया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा
जो ववधध के अनस
ु ार दं डनीय होगा |

(2) इस अनच्
ु छे द की कोई बात राज्य को सावजततनक प्रयोजनों के ललए अतनवायत सेवा अधधरोवपत
करने से तनवाररत नहीं करे गी | ऐसी सेवा अधधरोवपत करने में राज्य केवल धमत, मल
ू वंश, जातत या वगत
या इनमे से ककसी के आधार पर कोई ववभेद नहीं करे गा |

24. कारखानों आर्द में बालको के ननयोजन का प्रनतषेध – चौदह वषत से कम आयु के ककसी
बालक को ककसी कारखाने या खान में कम करने के ललए तनयोक्जत नहीं ककया जाएगा या ककसी अन्य
पररसंकटमय तनयोजन में नहीं लगाया जाएगा|

धमम की स्ितंत्रता का अधधकार

25. अन्त:करण के और धमम के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्ितंत्रता –
(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी
व्यक्क्तयों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धमत के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार
करने का सामान हक होगा|

(2) इस अनच्
ु छे द की कोई बात ककसी ऐसी ववद्यमान ववधध के प्रवततन पर प्रभाव नहीं डालेगी या
राज्य को कोई ऐसी ववधध बनाने से तनवाररत नहीं करे गी जो –

(क) धालमतक आचरण से संबद्ध ककसी आधथतक, ववर्त्ीय, राजनैततक या अन्य लौककक कक्रयाकलाप
का ववतनयमन या तनबंधन करती है ;

(ख) सामाक्जक कल्याण और सध


ु ार के ललए या सावतजातनक प्रकार की हहंदओ
ु की धालमतक
संस्थाओ को हहंदओ
ु के सभी वगों और अनभ
ु ागो के ललए खोलने का उपबंध करती है |

स्पष्ट्टीकरण 1- कृपाण धारण करना और लेकर चलना लसख धमत के मानने का अंग समझा
जाएगा |

स्पष्ट्टीकरण 2- खण्ड (2) के उपखण्ड (ख) में हहंदओ


ु के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा
कक उसके अंतगतत लसक्ख, जैन या बौद्ध धमत के मानने वाले व्यक्क्तयों के प्रतत तनदे श है और हहंदओ
ु कक
धालमतक संस्थाओ के प्रतत तनदे श क अथत तद्नस
ु ार लगाया जाएगा |

26. धालममक कायों के प्रबंध की स्ितंत्रता – लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते
हुए, प्रत्येक धालमतक संप्रदाय या उसके ककसी अनभ
ु ाग को –

35
(क) धालमतक और पत
ू त प्रयोजनों के ललए संस्थाओ की स्थापना और पोषण का,

(ख) अपने धमत ववषयक कायों का प्रबंध करने का,

(ग) जंगम और स्थावर संपवर्त् के अजतन और स्वालमत्व का, और

(घ) ऐसी संपवर्त् का ववधध के अनस


ु ार प्रशासन करने का,

अधधकार होगा|

27. क्रकसी विलशष्ट्ट धमम की अलभिद्


ृ धध के ललए करों के संदाय के बारे में स्ितंत्रता – ककसी भी
व्यक्क्त को ऐसे करों का संदाय करने के ललए बाध्य नहीं ककया जाएगा क्जनके आगम ककसी ववलशष्ट धमत
या धालमतक संप्रदाय की अलभवद्
ृ धध या पोषण में व्यय करने के ललए ववतनहदत ष्ट रूप से ववतनयोक्जत ककए
जाते है |

28. कुछ लशक्षा संस्थाओं में धालममक लशक्षा या धालममक उपासना में उपक्स्थत होने के बारे में
स्ितंत्रता – (1) राज्य-तनधध से पण
ू त
त : पोवषत ककसी लशक्षा संस्था में कोई धालमतक लशक्षा नहीं दी जाएगी|

(2) खण्ड (1) की कोई बात ऐसी लशक्षा संस्था को लागू नहीं होगी क्जसका प्रशासन राज्य करता
है ककं तु जो ककसी ऐसे ववन्यास या न्यास के अधीन स्थावपत हुई है क्जसके अनस
ु ार उस संस्था में धालमतक
लशक्षा दे ना आवश्यक है |

(3) राज्य से मान्यताप्राप्त या राज्य-तनधध से सहायता पाने वाली लशक्षा संस्था में उपक्स्थत होने
वाले ककसी व्यक्क्त को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धालमतक लशक्षा में भाग लेने के ललए या ऐसी संस्था
में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धालमतक उपासना में उपक्स्थत होने के ललए तब तक बाध्य
नहीं ककया जाएगा जब तक कक उस व्यक्क्त ने, या यहद वह अवयस्क है तो उसके संरक्षण ने, इसके ललए
अपनी सहमतत नहीं दे दी है |

संस्कृनत और लशक्षा संबध


ं ी अधधकार

29. अल्पसंख्यक-िगों के र्हतों का संरक्षण – (1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग के
तनवासी नागररको के ककसी अनभ
ु ाग को, क्जसकी अपनी ववशेष भाषा, ललवप या संस्कृतत है , उसे बनाए
रखने का अधधकार होगा|

(2) राज्य द्वारा पोवषत या राज्य-तनधध से सहायता पाने वाली ककसी लशक्षा संस्था में प्रवेश से
ककसी भी नागररक को केवल धमत, मल
ू वंश,जातत, भाषा या इनमे से ककसी के आधार पर वंधचत नहीं
ककया जाएगा|

30. लशक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-िगों का अधधकार- (1) धमत
या भाषा पर आधाररत सभी अल्पसंख्यक वगों को अपनी रूधच की लशक्षा संस्थाओं की स्थापना और
प्रशासन का अधधकार होगा|

36
1
[(1-क) खण्ड (1) में तनहदतष्ट ककसी अल्पसंख्यक-वगत द्वारा स्थावपत और प्रशालसत लशक्षा संस्था
की संपवर्त् के अतनवायत अजतन के ललए उपबंध करने वाली ववधध बनाते समय, राज्य यह सतु नक्श्चत करे गा
कक ऐसी संपवर्त् के अजतन के ललए ऐसी ववधध द्वारा तनयत या उसके अधीन अवधाररत रकम इतनी हो कक
उस खण्ड के अधीन प्रत्याभत
ू अधधकार तनबंधधत या तनराकृत न हो जाए|]

(2) लशक्षा संस्थाओं को सहायता दे ने में राज्य ककसी लशक्षा संस्था के ववरुद्ध इस आधार पर
ववभेद नहीं करे गा कक वह धमत या भाषा पर आधाररत ककसी अल्पसंख्यक-वगत के प्रबंध में है |

2
[* * * * *]

31. [संपवि का अननिायम अजमन]- संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 6
द्वारा (20-2-1979 से) तनरलसत|

___________________
1. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-2-1979 से) अंत:स्थावपत|

2. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 5 द्वारा (20-2-1979 से) उपशीषतक
“संपवर्त् का अधधकार” का लोप ककया गया|

[कुछ विधधयों की व्यािवृ ि]


1

[31क. संपदाओं आर्द के अजमन के ललए उपबंध करने िाली विधधयों की व्यािवृ ि]- 3[(1) अनच्
2
ु छे द 13 में
अंतववतष्ट ककसी बात के होते हुए भी, -

(क) ककसी संपदा के या उसमें ककन्हीं अधधकारों के राज्य द्वारा अजतन के ललए या ककन्हीं ऐसे
अधधकारों के तनवातपन या उनमे पररवततन के ललए, या
(ख)ककसी संपवर्त् का प्रबंध लोकहहत में या उस संपवर्त् का उधचत प्रबंध सतु नक्श्चत करने के
उद्दे श्य से पररसीलमत अवधध के ललए राज्य द्वारा ले ललए जाने के ललए, या
(ग) दो या अधधक तनगमों को लोकहहत में या उन तनगमों में से ककसी का उधचत प्रबंध सतु नक्श्चत
करने के उद्दे श्य से समामेललत करने के ललए, या
(घ) तनगमों के प्रबंध अलभकर्त्ातओं, सधचवों और कोषाध्यक्षों, प्रबंध तनदे शकों, तनदे शकों या प्रबंधकों
के ककन्हीं अधधकारों या उनके शेयर धारकों के मत दे ने के ककन्हीं अधधकारों के तनवातपन या
उनमे पररवततन के ललए, या
(ङ) ककसी खतनज या खतनज तेल की खोज करने ये उसे प्राप्त करने के प्रयोजन के ललए ककसी
करार, पट्टे या अनज्ञ
ु क्प्त के आधार पर प्रोद्भत
ू होने वाले ककन्हीं अधधकारों के तनवातपन या
उनमे पररवततन के ललए या ककसी ऐसे करार, पट्टे या अनज्ञ
ु क्प्त को समय से पहले समाप्त
करने या रद्द करने के ललए,

उपबंध करने वाली ववधध इस आधार पर शन्


ू य नहीं समझी जाएगी कक वह [अनच्
4
ु छे द 14 या
अनच्
ु छे द 19] द्वारा प्रदर्त् अधधकारों में से ककसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यन
ू करती है ;

37
परं तु जहाँ ऐसी ववधध ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ववधध है वहां इस अनच्
ु छे द
के उपबंध उस ववधध को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी ववधध को, जो राष्रपतत के ववचार के ललए
आरक्षक्षत रखी गई है , उसकी अनम
ु तत प्राप्त नहीं हो गई है ;]

5
[परं तु यह और कक जहाँ ककसी ववधध में ककसी संपदा के राज्य द्वारा अजतन के ललए कोई उपबंध
ककया गया है और जहाँ उसमे समाववष्ट कोई भलू म ककसी व्यक्क्त की अपनी जोत में है वहाँ राज्य के
ललए ऐसी भलू म के ऐसे भाग को, जो ककसी तत्समय प्रवर्त्
ृ ववधध के अधीन लागू अधधकतम सीमा के
भीतर है , या उस पर तनलमतत या उससे अनल
ु ग्न ककसी भवन या संरचना को अक्जतत करना उस दशा के
लसवाय ववधधपण
ू त नहीं होगा क्जस दशा में ऐसी भलू म, भवन या संरचना के अजतन से सबंधधत ववधध उस
दर से प्रततकर के संदाय के ललए उपबंध करती है जो उसके बाजार मल्
ू य से कम नहीं होगी |]

(2) इस अनच्
ु छे द में

6
[(क) “संपदा” पद का ककसी स्थानीय क्षेत्र के संबध
ं में वही अथत है जो उस पद का या उसके
समतल्
ु य स्थानीय पद का उस क्षेत्र में प्रवत
ृ भ-ू धतृ तयों से सबंधधत ववद्यमान ववधध में है और इसके
अंतगतत-

___________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंत:स्थावपत|
3. संववधान (चौथा संशोधन) अधधतनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खण्ड (1) के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) “अनुच्छे द
14, अनुच्छे द 19 या अनुच्छे द 31” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
5. संववधान (सत्रहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत|
6. संववधान (सत्रहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1964 की धारा 2 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) उपखण्ड
(क) के स्थान पर प्रततस्थावपत|
(i) कोई जागीर, इनाम या मआ
ु फी अथवा वैसा ही अन्य अनद
ु ान और [तलमलनाडु] और केरल
1

राज्यों में कोई जन्मम ् अधधकार भी होगा;


(ii) रै यतबाड़ी, बंदोबस्त के अधीन धत
ृ कोई भलू म भी होगी;
(iii) कृवष के प्रयोजनों के ललए या उसके सहायक प्रयोजनों के ललए धत
ृ या पट्टे पर दी गई कोई
भलू म भी होगी, क्जसके अंतगतत बंजर भलू म, वन भलू म, चरागाह या भलू म के कृषकों, कृवष
श्रलमकों और ग्रामीणों कारीगरों के अधधभोग में भवनों और अन्य संरचनाओं के स्थल है ;]

(ख) ''अधधकार'' पद के अंतगतत, ककसी संपदा के संबध


ं में , ककसी स्वत्वधारी, उप-स्वत्वधारी, अवर
स्वत्वधारी, भ-ू धतृ तधारक, 2[रै यत, अवर रै यत या अन्य मध्यवती में तनहहत कोई अधधकार और भ-ू राजस्व के
संबध
ं में कोई अधधकार या ववशेषाधधकार होंगे।
3
[31-ख. कुछ अधधननयमों और विननयमों का विधधमान्यकरण - अनच्
ु छे द 31क में अंतववतष्ट
उपबंधों की व्यापकता पर प्रततकूल प्रभाव डाले त्रबना, नवीं अनस
ु च
ू ी में ववतनहदतष्ट अधधतनयमों और ववतनयमों

38
में से और उनके उपबंधों में से कोई इस आधार पर शन्
ू य या कभी शन् ू य हुआ नहीं समझा जाएगा कक वह
अधधतनयम, ववतनयम या उपबंध इस भाग के ककन्हीं उपबंधों द्वारा प्रदर्त् अधधकारों में से ककसी से असंगत
है या उसे छीनता है या न्यन
ू करता है और ककसी न्यायालय या अधधकरण के ककसी प्रततकूल तनणतय, डडक्री
या आदे श के होते हुए भी, उक्त अधधतनयमों और ववतनयमों में से प्रत्येक, उसे तनरलसत या संशोधधत करने
की ककसी सक्षम ववधान-मंडल की शक्क्त के अधीन रहते हुए, प्रवर्त्
ृ बना रहे गा।
4
[31--ग. कुछ ननदे शक तत्त्िों को प्रभािी करने िाली विधधयों की व्यािवृ ि - अनच्
ु छे द 13 में ककसी
बात के होते हुए भी, कोई ववधध, जो 5[भाग 4 में अधधकधथत सभी या ककन्हीं तत्त्वों को सतु नक्श्चत करने के
ललए राज्य की नीतत को प्रभावी करने वाली है , इस आधार पर शन्
ू य नहीं समझी जाएगी कक वह 6[अनच् ु छे द
14 या अनच्
ु छे द 19] द्वारा प्रदर्त् अधधकारों में से ककसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यन
ू करती है
7और कोई ववधध, क्जसमें यह घोषणा है कक वह ऐसी नीतत को प्रभावी करने के ललए है , ककसी न्यायालय में
इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कक वह ऐसी नीतत को प्रभावी नहीं करती है |
परं तु जहाँ ऐसी ववधध ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहाँ इस अनच्
ु छे द के
उपबंध उस ववधध को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी ववधध को, जो राष्रपतत के ववचार के ललए
आरक्षक्षत रखी गई है , उसकी अनम
ु तत प्राप्त नहीं हो गई है :]
___________________
1. मद्रास राज्य (नाम-पररवततन) अधधतनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से)
''मद्रास'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (चौथा संशोधन) अधधतनयम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थावपत।
3. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थावपत।
4. संववधान (पच्चीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतःस्थावपत।
5. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) ''अनुच्छे द 39
के खंड (ख) या खंड (ग) में ववतनहदत ष्ट लसद्धांतों'' के स्थान पर प्रततस्थावपत। धारा 4 को
उच्चतम न्यायालय द्वारा, लमनवात लमल्स लल. और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1980) 2
एस.सी.सी. 591 में अधधमान्य घोवषत कर हदया गया।
6. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) ''अनुच्छे द
14, अनुच्छे द 19 या अनुच्छे द 31'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
7. उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) अनुपूरक एस.सी.आर. 1 में
कोष्ठक में हदए गए उपबंध को अधधमान्य घोवषत कर हदया है ।
[31घ. राष्ट्र विरोधी क्रक्रयाकलाप के संबध
1
ं में विधधयों की व्यािवृ ि – [संववधान (तैंतालीसवाँ संशोधन)
अधधतनयम, 1977 की धारा (13-4-1978 से) तनरलसत|

सांविधाननक उपचारों का अधधकार

32. इस भाग द्िारा प्रदि अधधकारों को प्रिनतमत कराने के ललए उपचार – (1) इस भाग द्वारा प्रदर्त्
अधधकारों को प्रवतततत कराने के ललए समधु चत कायतवाहहयों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने
का अधधकार प्रत्याभत
ू ककया जाता है |

39
(2) इस भाग द्वारा प्रदर्त् अधधकारों में से ककसी को प्रवतततत कराने के ललया उच्चतम न्यायालय
को ऐसे तनदे श या आदे श या ररट, क्जनके अंतगतत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादे श, प्रततवेध, अधधकार-पच्
ृ छा
और उत्प्रेषण ररट है , जो भी समधु चत हो, तनकालने की शक्क्त होगी|

(3) उच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदर्त् शक्क्तयों पर प्रततकूल प्रभाव डाले
त्रबना, संसद्, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य ककन्हीं या सभी शक्क्तयों का ककसी
अन्य न्यायालय को अपनी अधधकाररता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के ललए ववधध द्वारा
सशक्त कर सकेगी |

(4) इस संववधान द्वारा अन्यथा उपबंधधत के लसवाय, इस अनच्


ु छे द द्वारा प्रत्याभत
ू अधधकार
तनलंत्रबत नहीं ककया जाएगा|

2
[32क. राज्य विधधयों की सांविधाननक िैधता पर अनच्
ु छे द 32 के अधीन कायमिार्हयों में विचार
न क्रकया जाना – [संववधान (तैंतालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 3 द्वारा (13-4-1978 से)
तनरलसत]

3
[33. इस भाग द्िारा प्रदि अधधकारों का, बलों आर्द को लागू होने में , उपांतरण करने की संसद्
की शक्तत – संसद् ववधध द्वारा, अवधारण कर सकेगी कक इस भाग द्वारा प्रदत अधधकारों में से कोई –

(क) सशस्त्र बलों के सदस्यों को, या


(ख)लोक व्यवस्था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बलों के सदस्यों को, या
(ग) आसच
ू ना या प्रतत आसच
ू ना के प्रयोजनों के ललए राज्य द्वारा स्थावपत ककसी ब्यरू ो या अन्य
संगठन में तनयोक्जत व्यक्क्तयों कक, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) में तनहदत ष्ट ककसी बल, ब्यरू ो या संगठन के प्रयोजनों के ललया स्थावपत
दरू संचार प्रणाली में या उसके संबध
ं में तनयोक्जत व्यक्क्तयों को,

___________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 6 द्वारा(1-2-1977 से) अंत:स्थावपत|
3. संववधान (पचासवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा (11-9-1984 से) प्रततस्थावपत|

लागू होने में , ककस ववस्तार तक तनबतक्न्धत या तनराकृत ककया जाए क्जससे उनके कततव्यों का उधचत
पालन और उनमे अनश
ु ासन बना रहना सतु नक्श्चत रहे |]

34. जब क्रकसी क्षेत्र में सेना विधध प्रिि


ृ है तब इस भाग द्िारा प्रदि अधधकारों पर ननबंधन – इस
भाग के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में ककसी बात के होते हुए भी, संसद् ववधध द्वारा संघ या ककसी राज्य की सेवा
के ककसी व्यक्क्त की या ककसी अन्य व्यक्क्त की ककसी ऐसे कायत के संबध ं में क्षततपतू तत कर सकेगी जो
उसने भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर ककसी ऐसे क्षेत्र में , जहाँ सेना ववधध प्रवत
ृ थी, व्यवस्था के बनाए रखने
या पन
ु :स्थापन के संबध
ं में ककया है या ऐसे क्षेत्र में सेना ववधध के अधीन पाररत दं डादे श, हदए गए दं ड,
आहदष्ट समपहरण या ककए गए अन्य कायत को ववधधमान्य कर सकेगी|

40
35. इस भाग के उपबंधों को प्रभािी करने के ललया विधान- इस संववधान में ककसी बात के होते
हुए भी –

(क) संसद् को शक्क्त होगी और ककसी राज्य के ववधान-मंडल को शक्क्त नहीं होगी कक वह –

(i) क्जन ववषयों के ललए अनच्


ु छे द 16 के खंड (3), अनच्
ु छे द 32 के खंड (3), अनच्
ु छे द 33 और
अनच्
ु छे द 34 के अधीन संसद् ववधध द्वारा उपबंध कर सकेगी उनमे से ककसी के ललए, और

(ii)ऐसे कायों के ललए, जो इस भाग के अधीन अपराध घोवषत ककए गए है , दण्ड ववहहत करने के
ललए,

ववधध बनाए और संसद् इस संववधान के प्रारं भ के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र ऐसे कायों के ललए, जो उपखंड
(ii) में तनहदतष्ट है , दं ड ववहहत करने के ललए ववधध बनाएगी;

(ख) खंड (क) के उपखंड (i) में तनहदत ष्ट ववषयों में से ककसी से संबधं धत या उस खंड के उपखंड
(ii) में तनहदत ष्ट ककसी कायत के ललए दं ड का उपबंध करने वाली कोई प्रवर्त्
ृ ववधध, जो भारत के राज्यक्षेत्र
में इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले प्रवर्त्
ृ थी, उसके तनबंधनो के और अनच्
ु छे द 372 के अधीन उसमे
ककए गए ककन्हीं अनक ु ू लनों और उपांतरणो के अधीन रहते हुए तब तक प्रवर्त्
ृ रहे गी जब तक उसका
संसद् द्वारा पररवततन या तनरसन या सशोधन नहीं कर हदया जाता है |

स्पष्ट्टीकरण – इस अनच्
ु छे द में , “प्रवर्त्
ृ ववधध” पद का वाही अथत है जो अनच्
ु छे द 372 में है |

भाग 4

राज्य की नीनत के ननदे शक तत्ि

36. पररभाषा – इस भाग में , जब तक कक सन्दभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो, “राज्य” का वही
अथत जो भाग 3 में है|

37. इस भाग में अंतविमष्ट्ट तत्िों का लागू होना – इस भाग में अंतववतष्ट उपबंध ककसी न्यायालय
द्वारा प्रवततनीय नहीं होंगे ककं तु कफर भी इनमे अधधकधथत तत्त्व दे श के शासन में मल
ु भत
ु है और ववधध
बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कततव्य होगा|

38. राज्य लोक कल्याण क्रक अलभिद्


ृ धध के ललए सामाक्जक व्यिस्था बनाएगा – [(1)] राज्य ऐसी
1

सामाक्जक व्यवस्था की, क्जसमे सामाक्जक, आधथतक और राजनैततक न्याय राष्रीय जीवन की सभी
संस्थाओं को अनप्र
ु माणणत करे , भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके ओके कल्याण की
अलभवद्
ृ धध का प्रयास करे गा|
2
[(2) राज्य, ववलशष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करे गा और न केवल
व्यक्ष्टयों के बीच बक्ल्क ववलभन्न क्षेत्रो में रहने वाले और ववलभन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगो के समह
ू ों
के बीच भी प्रततष्ठा, सवु वधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करे गा|]

41
39. राज्य द्िारा अनस
ु रणीय कुछ नीनत तत्ि – राज्य अपनी नीतत का, ववलशष्टतया, इस प्रकार
सचांलन करे गा कक सतु नक्श्चत रूप से –

(क) परु
ु ष और स्त्री सभी नागररकों को सामान रूप से जीववका के पयातप्त साधन प्राप्त करने का
अधधकार हो;

(ख) समद
ु ाय के भौततक संशाधनो का स्वालमत्व और तनयंत्रण इस प्रकार बंटा हो क्जससे सामहू हक
हहत का सवोर्त्म रूप से साधन हो;

(ग) आधथतक व्यवस्था इस प्रकार चले क्जससे धन और उत्पादन-साधनों का सवतसाधारण के ललए


अहहतकारी संक्रेंद्रण न हो;

(घ) परु
ु षों और क्स्त्रयों दोनों का सामान कायत के ललए सामान वेतन हो;

(ङ) परु
ु ष और स्त्री कमतकारों के स्वास्थ्य और शक्क्त का तथा बालको की सक
ु ु मार अवस्था का
दरू
ु पयोग न हो और आधथतक आवश्यकता से वववश होकर नागररकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो
उनकी आयु या शक्क्त के अनक
ु ू ल न हो;

[(च) बालकों को स्वतंत्र और गररमामय वतावरण में स्वस्थ ववकास के अवसर और सवु वधाएँ दी
3

जाए और बालकों और अल्पवय व्यक्क्तयों की शोषण से तथा नैततक और आधथतक पररत्याग से रक्षा कक
जाए|]

[39क. सामान न्याय और नन:शल्


4
ु क विधधक सहायता – राज्य यह सतु नक्श्चत करे गा कक ववधधक
तंत्र इस प्रकार कम करें कक समान अवसर के आधार पर न्याय सल
ु भ हो और वह, ववलशष्टतया, यह
सतु नक्श्चत करने के ललए कक आधथतक या ककसी अन्य तनयोग्यता के कंरण कोई नागररक न्याय प्राप्त
करने के अवसर से वंधचत न रह जाए, उपयक्
ु त ववधान या स्कीम द्वारा या ककसी अन्य रीतत से
तन:शल्
ु क ववधधक सहायता कक व्यवस्था करे गा|]

40. ग्राम पंचायतों का संगठन – राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के ललए कदम उठाएगा
और उनको ऐसी शक्क्तयाँ और प्राधधकार प्रदान करे गा जो उन्हें स्वायर्त् शासन कक इकाइयों के रूप में
कायत करने योग्य बनाने के ललए आवश्यक हों|

___________________
1. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे द
38 की उसके खंड (1) के रूप में पुन: संख्यांककत ककया गया|
2. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से)
अंत:स्थावपत|
3. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1996 की धारा 7 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (च) के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 8 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|

42
41. कुछ दशाओं में काम, लशक्षा और लोक सहायता पाने का अधधकार – राज्य अपनी आधथतक
सामथ्यत और ववकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के और बेकारी, बढ़
ु ापा, बीमारी और तन:शक्तता
तथा अन्य अनहत आभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधधकार की प्राप्त कराने का प्रभावी
उपबंध करे गा|

42. काम की न्यायसंगत और मानिोधचत दशाओं का तथा प्रसनू त सहायता का उपबंध – राज्य काम
की न्यायसंगत और मानवोधचत दशाओं को सतु नक्श्चत करने के ललए और प्रसतू त सहायता के ललए उपबंध
करे गा|

43. कममकारों के ललए ननिामह मजदरू ी आर्द – राज्य, उपयक्


ु त ववधान या आधथतक संगठन द्वारा या
ककसी अन्य रीतत से कृवष के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कमतकारों को काम, तनवातह मजदरू ी,
लशष्ट जीवनस्तर और अवकाश का सम्पण
ू त उपभोग सतु नक्श्चत करने वाली काम की दशाएँ तथा सामाक्जक
और सांस्कृततक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करे गा और ववलशष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को
वैयक्क्तक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करे गा|

1
[43क. उद्योगों के प्रबंध में कममकारों का भाग लेना – राज्य ककसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों,
स्थापनों या अन्य संगठनों के प्रबंध में कमतकारों का भाग लेना सधु चक्श्चत करने के ललए उपयक्
ु त ववधान
द्वारा या ककसी अन्य रीतत से कदम उठाएगा|]

2
[43.ख सहकारी सलमनतयों की अलभिद्
ृ धध – राज्य सहकारी सलमततयों के स्वैक्च्छक संगठन, स्वायर्त्
कायत संपादन, लोकतांत्रत्रक तनयंत्रण और ववृ र्त्क प्रबंधन में अलभवद्
ृ ध करने का प्रयास करे गा|]

44. नागररकों के ललए एक समान लसविल संर्हता- राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागररकों के
ललए एक समान लसववल संहहता प्राप्त कराने का प्रयास करे गा|]

3
[45. छह िषम से काम आयु के बालकों के ललए प्रारं लभक बाल्यािस्था दे ख-रे ख और लशक्षा का उपबंध
– राज्य सभी बालकों के ललए छह वषत की अन्यू परू ी करने तक, प्रारं लभक बाल्यावस्था दे ख-रे ख और लशक्षा
दे ने के ललए उपबंध करने का प्रयास करे गा |]

46. अनस
ु धू चत जानतयों, अनधु चत जनजानतयों और अन्य दब
ु ल
म िगों के लशक्षा और अथम संबध
ं ी र्हतों
की अलभिद्
ृ धध – राज्य, जनता के दब
ु ल
त वगों के , ववलशष्टतया, अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत
जनजाततयों के लशक्षा और अथत संबध
ं ी हहतों की ववशेष सावधानी से अलभवद्
ृ धध करे गा और सामाक्जक
अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उसकी संरक्षा करे गा|

47. पोषाहार स्तर और जीिन स्तर को ऊाँचा करने तथा लोक स्िास््य का सध
ु ार करने का राज्य का
किमव्य – राज्य, अपने लोगो के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के
सध
ु ार को अपने प्राथलमक कततव्यों में मानेगा और राज्य, ववलशष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के ललए
हातनकर औषधधयों के, औषधीय प्रयोजनों से लभन्न, उपभोग का प्रततषेध करने क प्रयास करे गा |

48. कृवष और पशप


ु ालन का संगठन – राज्य, कृवष और पशप
ु ालन को आधुतनक और वैज्ञातनक
प्रणाललयों से संगहठत करने का प्रयास करे गा और ववलशष्टतया गायों और बछड़ों तथा अन्य दध
ु ारू और

43
वाहक पशओ
ु ं की नस्लों के पररक्षण और सध
ु ार के ललए और उनके वध प्रततषेध करने के ललए कदम
उठाएगा|

___________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 9 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (सर्त्ानबेवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2011 की धारा 3 द्वारा (12-1-2012 से)
अंत:स्थावपत|
3. संववधान (तछयासीवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2002 की धारा 3 द्वारा (1-4-2010 से)
प्रततस्थावपत|

1
[48क. पयामिरण का संरक्षण तथा संिधमन और िन तथा िन्य जीिों की रक्षा – राज्य, दे श के
पयातवरण के संरक्षण तथा संवधतन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करे गा|]

49. राष्ट्रीय महत्ि के संस्मारको, स्थानों और िस्तओ


ु ं का संरक्षण – [संसद् द्वारा बनाई गई ववधध
2

द्वारा या उसे अधीन] राष्रीय महत्व वाले 2[घोवषत ककए गए] कलात्मक या ऐततहालसक अलभरुधच वाले
प्रत्येक संस्मारक स्थान या वास्तु का, यथाक्स्थतत, लठ
ंु न, ववरूपण, ववनाश, अपसारण, व्ययन या तनयातत
से संरक्षण करना राज्य की बाध्यता होगी|

50. कायमपाललका से न्यायपाललका का पथ


ृ तकरण – राज्य की लोक सेवाओं में , न्यायपाललका को
कायतपाललका से प्रथक करने के ललए राज्य कदम उठाएगा|

51. अंतरराष्ट्रीय शांनत और सरु क्षा की अलभिद्


ृ धध – राज्य –

(क) अंतरराष्रीय शांतत और सरु क्षा की अलभवद्


ृ धध का;

(ख) राष्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपण


ू त संबध
ं ो को बनाए रखने का;

(ग) संगहठत लोगों के एक-दस


ू रे से व्यवहारों में अंतरराष्रीय ववधध और संधध-बाध्यताओं के प्रतत
आदर बढ़ाने का; और

(घ) अंतरराष्रीय वववादों के माध्यस्थम ् द्वारा तनपटारे के ललए प्रोत्साहन दे ने का,

प्रयास करे गा |

3
[भाग 4क

मल
ू कतमव्य

51क. मल
ू कतमव्य – भारत के प्रत्येक नागररक का यह कततव्य होगा कक वह –

(क) संववधान का पालन करे और उसके आदशो, संस्थाओं, राष्र ध्वज और राष्र गान का आदर
करे ;

44
(ख)स्वतंत्रता के ललए हमारे राष्रीय आन्दोलन को प्रेररत करने वाले उच्च आदशो को ह्रदय में
सजोए रखे और उनका पालन करे ;
(ग) भारत की प्रभत
ु ा, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) दे श की रक्षा करे और आवाहन ककया जाने पर राष्र की सेवा करे ;
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और सामान भ्रातत्ृ व की भावना का तनमातण करे जो धमत,
भाषा और प्रदे श या वगत पर आधाररत सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो
क्स्त्रयों के सम्मान के ववरुद्ध है ;
(च) हमारी सामालसक संस्कृतत की गौरवशाली परं परा का महत्व समझे और उसका परररक्षण करे ;
(छ) प्राकृततक पयातवरण की, क्जसके अंतगतत वन, झील, नदी और वन्य जीव है , रक्षा करे और
उसका संवधतन करे तथा प्राणण मात्र के प्रतत दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञातनक दृक्ष्टकोण, मानववाद और ज्ञानाजतन तथा सध
ु ार की भावना का ववकास करे ;
(झ)सावतजतनक संपवर्त् को सरु क्षक्षत रखे और हहंसा से दरू रहे ;

___________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 10 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (सातवावाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा “संसद् द्वारा ववधध द्वारा
घोवषत” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
(ञ) व्यक्क्तगत और सामहू हक गततववधधयों के सभी क्षेत्रो में उत्कषत की ओर बढ़ने का सतत ् प्रयास
करे क्जससे राष्र तनरं तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलक्ब्ध की नई ऊँचाईयों को छू ले;]

1
[(ट) यहद माता-वपता या संरक्षण है , तो छह वषत से चौदह वषत तक की आयु वाले अपने,
यथाक्स्थतत, बालक या प्रततपाल्य के ललए लशक्षा के अवसर प्रदान करे |]

भाग 5
संघ
अध्याय 1 कायमपाललका
राष्ट्रपनत और उपराष्ट्रपनत
52. भारत का राष्ट्रपनत – भारत का एक राष्रपतत होगा|

53. संघ की कायमपाललका शक्तत – (1) संघ की कायतपाललका शक्क्त राष्रपतत में तनहहत होगी और ओः
इसका प्रयोग इस संववधान के अनस
ु ार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधधकाररयों के द्वारा करे गा|

(2) पव
ू ग
त ामी उपबंध की व्यापकता पर प्रततकूल प्रभाव डाले त्रबना, संघ के रक्षा बलों का सवोच्च
समादे श राष्रपतत में तनहहत होगा और उसका प्रयोग ववधध द्वारा ववतनयलमत होगा|

(3) इस अनच्
ु छे द की कोई बात

45
(क) ककसी ववद्यमान ववधध द्वारा ककसी राज्य की सरकार या अन्य प्राधधकारी की प्रदान ककए
गए कृत्य राष्रपतत को अंतररत करने वाली नहीं समझी जाएगी; या

(ख) राष्रपतत से लभन्न अन्य प्राधधकाररयों को ववधध द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद् को
तनवाररत नहीं करे गी |

54. राष्ट्रपनत का ननिामचन – राष्रपतत का तनवातचन ऐसे तनवातचकगण के सदस्य करें गे क्जसमें –

(क) संसद् के दोनों सदनों के तनवातधचत सदस्य; और

(ख) राज्यों की ववधान सभाओं के तनवातधचत सदस्य,

होंगे|

2
[स्पष्ट्टीकरण – इस अनच्
ु छे द 55 में , “राज्य” के अंतगतत हदल्ली राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र और
*
पांडडचेरी संघ राज्यक्षेत्र है |]

55. राष्ट्रपनत के ननिामचन की रीनत – (1) जहाँ तक साध्य हों, राष्रपतत के तनवातचन में लभन्न-
लभन्न राज्यों के प्रतततनधधत्व के मापमान में एकरूपता होगी|

(2) राज्यों में आपस में ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में समतल्
ु यता प्राप्त कराने
के ललए संसद् और प्रत्येक राज्य की ववधान सभा का प्रत्येक तनवातधचत सदस्य ऐसे तनवातचन में क्जतने
मत का हकदार है उनकी संख्या तनम्नललणखत रीतत से अवधाररत की जाएगी, अथातत ् –

___________________
1. संववधान (तछयासीवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2002 की धारा 4 (1-4-2010 से) जोड़ा गया|

2. संववधान (सर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 द्वारा (1-6-1995 से) अंत:स्थावपत|

* पांडच
े ेरी (नाम पररवततन) अधधतनयम, 2006 की धारा 3 द्वारा (1-10-2006 से) अब यह पुद्दच
ु ेरी है |

(क) ककसी राज्य की ववधान सभा के प्रत्येक तनवातधचत सदस्य के उतने मत होंगे क्जतने कक एक
हजार के गणु णत उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस ववधान सभा के तनवातधचत सदस्यों
की कुल संख्या से भाग दे ने पर आए ;

(ख) यहद एक हजार के उक्त गणु णतों को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम नहीं है तों उपखंड
(क) में तनहदतष्ट प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ हदया जाएगा;

(ग) संसद् के प्रत्येक सदन के प्रत्येक तनवातधचत सदस्य के मतों की संख्या वह होगी जो उपखंड
(क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्यों की ववधान सभाओं के सदस्यों के ललए तनयत कुल मतों की
संख्या को, संसद् के दोनों सदनों के तनवातधचत सदस्यों की कुल संख्या से भाग दे ने पर आए, क्जसमे आधे
से अधधक लभन्न को एक धगना जाएगा और अन्य लभन्नो की उपेक्षा की जाएगी|

46
(3) राष्रपतत का तनवातचन अनप
ु ाततक प्रतततनधधत्व पद्धतत के अनस
ु ार एकल संक्रमणीय मत
द्वारा होगा और ऐसे तनवातचन में मतदान गप्ु त होगा|

[स्पष्ट्टीकरण – इस अनच्
1
ु छे द में , “जनसंख्या” पद से ऐसी अंततम पव
ू व
त ती जनगणना में
अलभतनक्श्चत की गई जनसंख्या अलभप्रेत है क्जसके सस
ु ग
ं त आंकड़े प्रकालशत हों गए है :

परं तु इस स्पष्टीकरण में अंततम पव


ू व
त ती जनगणना के प्रतत, क्जसके सस
ु ग
ं त आँकड़े प्रकालशत हों
गए है , तनदे श का, जब तक सन ् 2[2026] के पश्चात ् की गई पहली जनगणना के सस
ु ग
ं त आँकड़े
प्रकालशत नहीं हों जाते है , यह अथत लगाया जाएगा कक वह 1971 कक जनगणना के प्रतत तनदे श है |]

56. राष्ट्रपनत की पदािधध – (1) राष्रपतत अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वषत की अवधध तक
पद धारण करे गा :

परं तु –

(क) राष्रपतत, उपराष्रपतत को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपना पद त्याग कर
सकेंगा;
(ख)संववधान का अततक्रमण करने पर राष्रपतत को अनच्
ु छे द 61 में उपबंधधत रीतत से चलाए गए
महालभयोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा;
(ग) राष्रपतत, अपने पद की अवधध समाप्त हों जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहे गा
जब तक उसका उर्त्राधधकारी अपना पद ग्रहण नही कर लेता है |

(2) खंड (1) के परं तक


ु के खान (क) के अधीन उपराष्रपतत को संबोधधत त्यागपत्र की सच
ू ना
उसके द्वारा लोक सभा के अध्यक्ष को तरु ं त दी जाएगी|

57. पन
ु विमचार के ललए पात्रता – कोई व्यक्क्त, जो राष्रपतत के रूप में पद धारण करता है या कर
चूका है , इस संववधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए पद के ललए पन
ु तनतवातचन का पात्र होगा|

58. राष्ट्रपनत ननिामधचत होने के ललए अहमताएाँ – (1) कोई व्यक्क्त राष्रपतत तनवातधचत होने का पात्र
तभी होगा जब वह –

___________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 12 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्टीकरण के
स्थान पर प्रततस्थावपत|

2. संववधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 2 द्वारा अंक “2000” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

(क) भारत का नागररक है ,

(ख) पैंतीस वषत की आयु परू ी कर चक


ु ा है , और

(ग) लोक सभा का सदस्य तनवातधचत होने के ललए अहहतत है |

47
(2) कोई व्यक्क्त, जो भारत सरकार के या ककसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से
ककसी के तनयंत्रण में ककसी स्थानीय या अन्य प्राधधकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है,
राष्रपतत तनवातधचत होने का पात्र नहीं होगा|

स्पष्ट्टीकरण – इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए, कोई व्यक्क्त केवल इस कारण कोई लाभ का
पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कक वह संघ का राष्रपतत या उपराष्रपतत या ककसी राज्य का
राज्यपाल 1[***] है अथवा संघ का या ककसी राज्य का मंत्री है |

59. राष्ट्रपनत के पद के ललए शते – (1) राष्रपतत संसद् के ककसी सदन का या ककसी राज्य के
ववधान-मंडल के ककसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यहद संसद् के ककसी सदन का या ककसी राज्य के
ववधान-मंडल के ककसी सदन का कोई सदस्य राष्रपतत तनवातधचत हों जाता है तों यह समझा जाएगा कक
उसने उस सदन में अपना स्थान राष्रपतत के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से ररक्त कर हदया है |

(2) राष्रपतत अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करे गा|

(3) राष्रपतत, त्रबना ककराया हदए, अपने शासकीय तनवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी
उपलक्ब्धयों, भर्त्ों और ववशेषाधधकारों का भी, जो संसद्, ववधध द्वारा अवधाररत करें और जब तक इस
तनलमर्त् इस प्रकार उपबंध नहीं ककया जाता है तब तक ऐसी उपलक्ब्धयों, भर्त्ों और ववशेषाधधकारों का, जो
दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट है , हकदार होगा|

(4) राष्रपतत की उपलक्ब्धयाँ और भर्त्े उसकी पदावधध के दौरान कम नहीं ककए जाएंगे|

60. राष्ट्रपनत द्िारा शपथ या प्रनतज्ञान – प्रत्येक राष्रपतत और प्रत्येक व्यक्क्त, जो राष्रपतत के
रूप में कायत कर रहा है या उसके कृत्यों का तनवतहन कर रहा है , अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के
मख्
ु य न्यायमतू तत या उसकी अनप
ु क्स्थतत में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के
समक्ष तनम्नललणखत प्रारूप में शपथ लेगा या प्रततज्ञान करे गा और उस पर अपने हस्ताक्षर करे गा, अथातत ्:-

ईश्वर की शपथ लेता हूँ


‘मैं, अमक
ु कक मैं श्रद्
ृ धापव
ू क
त भारत के राष्रपतत के पद का कायतपालन
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
(अथवा राष्रपतत के कृत्यों का तनवतहन) करूँगा तथा अपनी परू ी योग्यता से संववधान और ववधध का
परररक्षण, संरक्षण और प्रततरक्षण करूँगा और मैं भारत के जनता की सेवा और कल्याण में तनरत रहूँगा|’

61. राष्ट्रपनत पर महालभयोग चलाने की प्रक्रक्रया – (1) जब संववधान के अततक्रमण के ललए


राष्रपतत पर महालभयोग चलाना हों, तब संसद् का कोई सदन आरोप लगाएगा|

(2) ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कक –

1. संववधान (सातवाँ संववधान) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राज्यप्रमुख या
उप-राज्यप्रमुख” शब्दों का लोप ककया गया|

(क) ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना ककसी ऐसे संकल्प में अंतववतष्ट नहीं है , जो कम से कम
चौदह हदन की ऐसी ललणखत सच
ू ना के हदए जाने के पश्चात ् प्रस्ताववत ककया गया है क्जस

48
पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम के कम एक-चौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके
उस संकल्प को प्रस्ताववत करने का अपना आशय प्रकट ककया है ; और

(ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-ततहाई बहुमत द्वारा ऐसा सकल्प
पाररत नहीं ककया है |

(3) जब आरोप संसद् के ककसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दस


ू रा सदन उस
आरोप का अन्वेषण करे गा या कराएगा और ऐसे अन्वेषण में उपक्स्थत होने का तथा अपना प्रतततनधधत्व
कराने का राष्रपतत को अधधकार होगा|

(4) यहद अन्वेषण के पररणामस्वरुप यह घोवषत करने वाला संकल्प कक राष्रपतत के ववरुद्ध
लगाया गया आरोप लसद्ध हो गया है , आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले सदन की कुल संख्या
कम से कम दो-ततहाई बहुमत द्वारा पाररत कर हदया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार
पाररत ककए जाने की तारीख से राष्रपतत को उसके पद से हटाना होगा|

(62) राष्ट्रपनत के पद में ररक्तत को भरने के ललए ननिामचन करने समय और आकक्स्मक ररक्तत
को भरने के ललए ननिामधचत व्यक्तत की पदािधध – (1) राष्रपतत की पदावधध की समाक्प्त से हुई ररक्क्त
को भरने के ललए तनवातचन, पदावधध की समाक्प्त से पहले ही पण
ू त कर ललया जाएगा|

(2) राष्रपतत की मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य करण से हुई उसके पद में
ररक्क्त को भरने के ललए तनवातचन, ररक्क्त होने की तारीख के पश्चात ् यथाशीघ्र और प्रत्येक दशा में छह
मास बीतने से पहले ककया जाएगा और ररक्क्त को भरने के ललए तनवातधचत व्यक्क्त, अनच्
ु छे द 56 के
उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वषत की परू ी अवधध तक पद धारण करने
का हकदार होगा |

63.भारत का उपराष्ट्रपनत – भारत का एक उपराष्रपतत होगा|

64. उपराष्ट्रपनत का राज्य सभा का पदे न सभापनत होना – उपराष्रपतत, राज्य सभा का पदे न
सभापतत होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करे गा|

परं तु क्जस ककसी अवधध के दौरान उपराष्रपतत, अनच्


ु छे द 65 के अधीन राष्रपतत के रूप में कायत
करता है या राष्रपतत के कृत्यों का तनवतहन करता है , उस अवधध के दौरान वह राज्य सभा के सभापतत
के पद के कततव्यों का पालन नहीं करे गा और वह अनच्
ु छे द 97 के अधीन राज्य सभा के सभापतत को
संदेय वेतन या भर्त्े का हकदार नहीं होगा|

65. राष्ट्रपनत के पद में आकक्स्मक ररक्तत के दौरान या उसकी अनप


ु क्स्थनत में उपराष्ट्रपनत का
राष्ट्रपनत के रूप में कायम करना या उसके कृत्यों का ननिमहन – (1) राष्रपतत की मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से
हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई ररक्क्त की दशा में उपराष्रपतत उस तारीख तक राष्रपतत
के रूप में कायत करे गा क्जस तारीख को ऐसी ररक्क्त को भरने के ललए इस अध्याय के उपबंधों के अनस
ु ार
तनवातधचत नया राष्रपतत अपना पद ग्रहण करता है |

49
(2) जब राष्रपतत अनप
ु क्स्थतत, बीमारी या अन्य ककसी कारण से अपने कृत्यों का तनवतहन करने
में असमथत है तब उपराष्रपतत उस तारीख तक उसके कृत्यों का तनवतहन करे गा क्जस तारीख को राष्रपतत
अपने कततव्यों को कफर से संभालता है |

(3) उपराष्रपतत को उस अवधध के दौरान और उस अवधध के संबध


ं में , जब वह राष्रपतत के रूप
में इस प्रकार कायत कर रहा है या उसके कृत्यों का तनवतहन कर रहा है , राष्रपतत की सभी शक्क्तयाँ और
उन्मक्ु क्तयाँ होंगी तथा वह ऐसी उपलक्ब्धयों, भर्त्ो और ववशेषाधधकारो का जो संसद्, ववधध द्वारा
अवधाररत करे , और जब तक इस तनलमत इस प्रकार उपबंध नहीं ककया जाता तब तक ऐसी उपलक्ब्धयों,
भर्त्ो और ववशेषाधधकारों का, जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट है , हकदार होगा|

66. उपराष्ट्रपनत का ननिामचन – (1) उपराष्रपतत का तनवातचन 1[संसद् के दोनों सदनों के सदस्यों
से लमलकर बनने वाले तनवातचकगण के सदस्यों] द्वारा अनप
ु ाततक प्रतततनधधत्व पद्धतत के अनस
ु ार एकल
संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे तनवातचन में मतदान गप्ु त होगा|

(2) उपराष्रपतत संसद् के ककसी सदन का या ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन का
सदस्य नहीं होगा और यहद संसद् के ककसी सदन का या ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन का
कोई सदस्य उपराष्रपतत तनवातधचत हों जाता है तों यह समझा जाएगा कक उसने उस सदन में अपना
स्थान उपराष्रपतत के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से ररक्त कर हदया है |

(3) कोई व्यक्क्त उपराष्रपतत तनवातधचत होने का पात्र तभी होगा जब वह –

(क) भारत का नागररक है ,

(ख) पैंतीस वषत कक आयु परू ी कर चक


ु ा है , और

(ग) राज्य सभा का सदस्य तनवातधचत होने के ललए अहहतत है |

(4) कोई व्यक्क्त, जो भारत सरकार के या ककसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त
सरकारों में से ककसी के तनयंत्रण में ककसी स्थानीय या अन्य प्राधधकारी के अहहं कोई लाभ का पद धारण
करता है , उपराष्रपतत तनवातधचत तनवातधचत होने का पात्र नहीं होगा|

स्पष्ट्टीकरण – इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए, कोई व्यक्क्त केवल इस कारण कोई लाभ का
पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कक वह संघ का राष्रपतत या उपराष्रपतत या ककसी राज्य का
राज्यपाल 2[***] है अथवा संघ का या ककसी राज्य का मंत्री है |

67. उपराष्ट्रपनत क्रक पदािधध – उपराष्रपतत अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वषत की अवधध
तक पद धारण करे गा ;

परं तु –

(क) उपराष्रपतत, राष्रपतत को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपना पद त्याग
सकेगा;

50
(ख)उपराष्रपतत, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा क्जसे राज्य
सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत ने पाररत ककया है और क्जससे लोक सभा
सहमत है ; ककं तु इस खंड के प्रयोजन के ललए कोई संकल्प तब तक प्रस्ताववत नहीं ककया
जाएगा जब तक कक उस संकल्प को प्रस्ताववत करने के आशय की कम से कम चौदह हदन
की सच
ू ना न दे दी गई हों;

___________________
1. संववधान (ग्यारहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1961 की धारा 2 द्वारा “संयुक्त अधधवेशन” में
समवेत ् संसद् के दोनों सदनों के सदस्यों” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख
या उप-राजप्रमुख” शब्दों का लोप ककया गया|
(ग) उपराष्रपतत, अपने पद की अवधध समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहे गा
जब तक उसका उर्त्राधधकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है |

68. उपराष्ट्रपनत के पद में ररक्तत को भरने के ललए ननिामचन करने का समय और आकक्स्मक
ररक्तत को भरने के ललए ननिामधचत व्यक्तत की पदािधध - (1) उपराष्रपतत की पदावधध की
समाक्प्त से हुई ररक्क्त को भरने के ललए तनवातचन, पदावधध की समाक्प्त से पहले ही पण
ू त कर
ललया जाएगा|

(2) उपराष्रपतत की मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके
पद में ररक्क्त को भरने के ललए तनवातचन, ररक्क्त होने के पश्चात ् यथाशीघ्र ककया जाएगा और
ररक्क्त की भरने के ललए तनवातधचत व्यक्क्त, अनच्
ु छे द 67 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने
पद ग्रहण की तारीख से पाँच वषत की परू ी अवधध तक पद धारण करने का हकदार होगा|

69. उपराष्ट्रपनत द्िारा शपथ या प्रनतज्ञान – प्रत्येक उपराष्रपतत अपना पद ग्रहण करने
से पहले राष्रपतत अथवा उसके द्वारा तनलमर्त् तनयक्
ु त ककसी व्यक्क्त के समक्ष तनम्नललणखत
प्रारूप में शपथ लेगा या प्रततज्ञान करे गा और उस पर अपने हस्ताक्षर करे गा, अथातत ्

ईश्वर की शपथ लेता हूँ


“ मैं, अमक
ु कक मै ववधध द्वारा स्थावपत भारत के संववधान के प्रतत
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
सच्ची श्रद्ृ धा और तनष्ठा रखग
ूँ ा तथा क्जस पद को मै ग्रहण करने वाला हूँ उसके कततव्यों का
श्रद्
ृ धापव
ू क
त तनवतहन करूँगा|”

70. अन्य आकक्स्मकताओं में राष्ट्रपनत के कृत्यों का ननिमहन – संसद् ऐसी ककसी
आकक्स्मकता में जो इस अध्याय में उपबंधधत नहीं है , राष्रपतत के कृत्यों के तनवतहन के ललए
ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठीक समझे|

1
[71. राष्ट्रपनत या उपराष्ट्रपनत के ननिामचन से संबधं धत या संसतत विषय – (1) राष्रपतत
या उपराष्रपतत के तनवातचन से उत्पन्न या संसक्त सभी शंकाओं और वववादों की जाँच और
ववतनश्चय उच्चतम न्यायालय द्वरा ककया जाएगा और उसका ववतनश्चय अंततम होगा|

51
(2) यहद उच्चतम न्यायलय द्वारा ककसी व्यक्क्त के राष्रपतत या उपराष्रपतत के रूप में
तनवातचन को शन्
ू य घोवषत कर हदया जाता है तों उसके द्वारा, यथाक्स्थतत, राष्रपतत या
उपराष्रपतत के पद की शक्क्तयों के प्रयोग और कततव्यों के पालन में उच्चतम न्यायालय के
ववतनश्चय की तारीख को या उससे पहले ककए गए कायत उस घोषणा के कारण अववधधमान्य नहीं
होंगे|

(3) इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्रपतत या उपराष्रपतत के तनवातचन से


संबधं धत या संसक्त ककसी ववषय का ववतनयमन संसद् ववधध द्वारा कर सकेगी|

(4) राष्रपतत या उपराष्रपतत के रूप में ककसी व्यक्क्त के तनवातचन को उसे तनवातधचत
करने वाले तनवातचकगण के सदस्यों में ककसी भी कारण से ववद्यमान ककसी ररक्क्त के आधार पर
प्रश्नगत नहीं ककया जाएगा| ]

___________________
1. अनुच्छे द 71, संववधान (उन्तालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 2 द्वारा (10-8-1975 से)
और तत्पश्चात ् संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 10 द्वारा (20-6-1979 से)
संशोधधत होकर उपरोक्त रूप में आया|

72. क्षमा आर्द की और कुछ मामलों में दण्डादे श के ननलंबन, पररहार या लघक
ु रण की राष्ट्रपनत
की शक्तत – (1) राष्रपतत की, ककसी अपराध के ललए लसद्धदोष ठहराए गए ककसी व्यक्क्त के दं ड को
क्षमा, उसका प्रववलंबन, ववराम या पररहार करने की अथवा दं डादे श के तनलंबन, पररहार या लघक
ु रण की –

(क) उन सभी मामलों में , क्जनमे दण्ड या दण्डादे श सेना न्यायालय ने हदया है ,

(ख) उन सभी मामलों में , क्जनमे दण्ड या दण्डादे श ऐसे ववषय संबध
ं ी ककसी ववधध के ववरुद्ध
अपराध के ललए हदया गया है क्जस ववषय तक संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार है ,

(ग) उन सभी मामलों में , क्जनमे दण्डादे श, मत्ृ यु दण्डादे श है , शक्क्त होगी|

(2) खंड (1) के उपखण्ड (क) की कोई बात संघ के सशस्त्र बलों के ककसी आकफसर की सेना
न्यायालय द्वारा पाररत दण्डादे श के तनलंबन, पररहार या लघक
ु रण की ववधध द्वारा प्रदर्त् शक्क्त पर प्रभाव
नहीं डालेगी|

(3) खंड (1) के उपखण्ड (ग) की कोई बात तत्समय प्रवर्त्


ृ ककसी ववधध के अधीन ककसी राज्य के
राज्यपाल 1[***] द्वारा प्रयोक्तव्य मत्ृ यु दं डादे श के तनलंबन, पररहार या लघक
ु रण की शक्क्त पर प्रभाव
नहीं डालेगी|

73. संघ की कायमपाललका शक्तत का विस्तार – (1) इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार –

(क) क्जन ववषयों के संबध


ं में संसद् को ववधध बनाने की शक्क्त है उन तक, और

52
(ख) ककसी संधध या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा प्रयोक्तव्य अधधकारों, प्राधधकार और
अधधकाररता के प्रयोग तक, होगा :

परं तु इस संववधान में या संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध में अलभव्यक्त रूप से यथा
उपबंधधत के सवे, उपखण्ड (क) में तनहदत ष्ट कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार ककसी 2[***] राज्य में ऐसे
ववषयों तक नहीं होगा क्जनके संबध
ं में उस राज्य के ववधान-मंडल को भी ववधध बनाने की शक्क्त है |

(2) जब तक संसद् अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस अनच् ु छे द में ककसी बात के होते हुए भी,
कोई राज्य और राज्य का कोई अधधकारी या प्राधधकारी उन ववषयों में , क्जनके संबध
ं में संसद् को उस
राज्य के ललए ववधध बनाने की शक्क्त है , ऐसी कायतपाललका शक्क्त का या कृत्यों का प्रयोग कर सकेगा
क्जनका प्रयोग वह राज या उसका अधधकारी या प्राधधकारी इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले कर
सकता था|

___________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|

2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “प्रथम अनुसूची के
भाग (क) और भाग (ख) में उक्ल्लणखत” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया|

मंत्रत्र-पररषद्

74. राष्ट्रपनत को सहायता और सलाह दे ने के ललए मंत्रत्र-पररषद् – 1[(1) राष्रपतत की सहायता


और सलाह दे ने के ललए एक मंत्रत्र-पररषद् होगी क्जसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्रपतत अपने कृत्यों
का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनस
ु ार कायत करे गा:]

2
[परं तु राष्रपतत मंत्रत्र-पररषद् से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पन
ु ववतचार करने की
अपेक्षा कर सकेगा और राष्रपतत ऐसे पन
ु ववतचार के पश्चात ् दी गई सलाह के अनस
ु ार कायत करे गा|]

(2) इस प्रश्न की ककसी न्यायालय में जाँच नहीं की जाएगी कक क्या मंत्रत्रयो ने राष्रपतत को कोई
सलाह दी और यहद दी तो क्या दी|

75. मंत्रत्रयों के बारे में अन्य उपबंध – (1) प्रधानमंत्री की तनयक्ु क्त राष्रपतत करे गा और अन्य
मंत्रत्रयों की तनयक्ु क्त राष्रपतत, प्रधानमंत्री की सलाह पर करे गा|

3
[(1क) मंत्रत्र-पररषद् में प्रधानमंत्री सहहत मंत्रत्रयों की कुल संख्या लोक सभा के सदस्यों की कुल
संख्या के पन्द्रह प्रततशत से अधधक नहीं होगी|

(1ख) ककसी राजतनततक दल का संसद् के ककसी सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं अनस
ु च
ू ी के
पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के ललए तनहहतत है , अपनी तनहहतत की तारीख से प्रारं भ होने
वाली और उस तारीख तक क्जसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधध समाप्त होगी या जहाँ वह ऐसी
अवधध की समाक्प्त के पव
ू त संसद् के ककसी सदन के ललए तनवातचन लड़ता है , उस तारीख तक क्जसको वह

53
तनवातधचत घोवषत ककया जाता है , इनमें से जो भी पव
ू त
त र हों, की अवधध के दौरान, खण्ड (1) के अधीन
मंत्री के रूप में तनयक्
ु त ककए जाने के ललए भी तनरहहतत होगा|]

(2) मंत्री, राष्रपतत के प्रसादपयंत अपने पद धारण करें गे|

(3) मंत्रत्र-पररषद् लोक सभा के प्रतत सामहू हक रूप से उतरदायी होगी|

(4) ककसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्रपतत तीसरी अनस
ु च
ू ी में इस प्रयोजन
के ललए हदए गए प्ररूपों के अनस
ु ार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ हदलाएगा|

(5) कोई मंत्री, जो तनरं तर छह मास की ककसी अवधध तक संसद् के ककसी सदन का सदस्य नहीं
है , उस अवधध की समाक्प्त पर मंत्री नहीं रहे गा|

(6) मंत्रत्रयों के वेतन और भर्त्े ऐसे होंगे जो संसद्, ववधध द्वारा, समय-समय पर अवधाररत करे
और जब तक संसद् इस प्रकार अवधाररत नहीं करती है तब तक ऐसे होंगे जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी में
ववतनहदतष्ट है |

भारत का महान्यायिादी

76. भारत का महान्यायिादी – (1) राष्रपतत, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश तनयक्


ु त होने के
ललए अहहतत ककसी व्यक्क्त को भारत का महान्यायवादी तनयक्
ु त करे गा|

___________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 13 (20-6-1977 से) खण्ड (1) के
स्थान पर प्रततस्थावपत
2. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 11 द्वारा (20-6-1979 से)
अंत:स्थावपत|
3. संववधान (इक्यानबेवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धार 2 द्वारा अंत:स्थावपत|

(2) महान्यायवादी का यह कततव्य होगा कक वह भारत सरकार को ववधध संबध


ं ी ऐसे ववषयों पर
सलाह दे और ववधधक स्वरुप ऐसे अन्य कततव्यों का पालन करे जो राष्रपतत उसको समय-समय पर
तनदे लशत करें या सौंपे और उन कृत्यों का तनवतहन करे जो उसको इस संववधान अथवा तत्समय प्रवर्त्

ककसी अन्य ववधध द्वारा या उसके अधीन प्रदान ककए गए हों|

(3) महान्यायवादी को अपने कततव्यों के पालन में भारत के राज्य क्षेत्र में सभी न्यायलयों में
सन
ु वाई का अधधकार होगा|

(4) महान्यायवादी, राष्रपतत के प्रसादपयंत पद धारण करे गा और ऐसा पाररश्रलमक प्राप्त करे गा
जो राष्रपतत अवधाररत करे |

54
सरकारी कायम का संचालन

77. भारत सरकार के कायम का संचालन – (1) भारत सरकार कक समस्त कायतपाललका कारत वाई
राष्रपतत के नाम से की हुई कही जाएगी|

(2) राष्रपतत के नाम से ककये गए और तनष्पाहदत आदे शो और अन्य ललखतों को ऐसी रीतत से
अधधप्रमाणणत ककया जाएगा जो राष्रपतत द्वारा बनाए जाने वाले तनयमों1 में ववतनहदत ष्ट की जाए और इस
प्रकार अधधप्रमाणणत आदे श या ललखत की ववधधमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं कक जाएगी की वह
राष्रपतत द्वारा ककया गया था या तनष्पाहदत आदे श या ललखत नहीं है |

(3) राष्रपतत, भारत सरकार का कायत अधधक सवु वधापव


ू क
त ककए जाने के ललए और मंत्रत्रयों में
उक्त कायत के आबंटन के ललए तनयम बनाएगा|

(4) 2[* * * * *]

78. राष्ट्रपनत को जानकारी दे ने आर्द के संबध


ं में प्रधानमंत्री के कतमव्य – प्रधानमंत्री का यह
कततव्य होगा कक वह –

(क) संघ के कायतकलाप के प्रशासन संबध


ं ी और ववधान ववषयक प्रस्थापनाओं संबध
ं ी मंत्रत्र -पररषद्
के सभी ववतनश्चय राष्रपतत को संसधू चत करे ;

(ख) संघ के कायतकलाप के प्रशासन संबध


ं ी और ववधान ववषयक प्रस्थापनाओं संबध
ं ी जो जानकारी
राष्रपतत माँगे, वह दे ; और

(ग) ककसी ववषय को क्जस पर ककसी मंत्री ने ववतनश्चय कर हदया है ककं तु मंत्रत्र-पररषद् ने ववचार
नहीं ककया है , राष्रपतत द्वारा अपेक्षा ककए जाने पर पररषद् के समक्ष ववचार के ललए रखे|

अध्याय २ – संसद्
साधारण
79. संसद् का गठन – संघ के ललए एक संसद् होगी जो राष्रपतत और दो सदनों से लमलकर बनेगी क्जनके
नाम राज्य सभा और लोक सभा होगे |

1. दे णखये समय- समय पर यथासंसोधधत अधधसूचना क्र. का. आ. 2297 , तारीख 03 जनबरी 1958,
भारत का राजपत्र, असाधारण , 1958 भाग 2, अनुभाग 3(ii), पष्ृ ट 1315.

2. संववधान (बयालीसवां संसोधन ) अधधतनयम, 1976 की धारा 14 द्वारा (3-1-1977) से खण्ड (4)
अंतस्थावपत ककया गया और संववधान (चवालीसवा संसोधन ) अधधतनयम, 1978 की धारा 12 द्वारा
(20-6-1979 से ) उसका लोप ककया गया |

अनच्
ु छे द 81

80. राज्य सभा की संरचना – (1) 1[2[***] राज्य सभा ] -

55
(क) राष्रपतत द्वारा खंड (3) के उपसबंधो के अनस
ु ार नामतनदे लशत ककए जाने वाले बारह
सदस्यों, और
(ख) राज्यों के 3 [ और संघ राज्यक्षेत्रो के ] दो सौ अड़तालीस से अनधधक प्रतततनधधयों , से
लमलकर बनेगी |
(2) राज्य सभा में राज्यों के 3[ और संघ राज्यक्षेत्रो के ] प्रतततनधधयों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों
का आबंटन चौथी अनस
ु च
ू ी मैं इस तनलमत अंतववतष्ट उपबंधों के अनस
ु ार होगा |
(3) राष्रपतत द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नामतनदे लशत ककए जाने वाले सदस्य एसे
व्यक्क्त होंगे क्जन्हें तनम्नललणखत ववषयों के सबंध में ववशेष ज्ञान या व्यावहाररक अनभ
ु व है ,
अथातत –

साहहत्य, ववज्ञान, कला और समाज सेवा |

(4) राज्य सभा मै प्रत्येक 4[ ****]राज्य के प्रतततनधधयों का तनवातचन उस राज्य की ववधानसभा के


तनवातधचत सदस्यों द्वारा आनप
ु ाततक प्रतततनधधत्व पद्धतत के अनस
ु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा ककया
जाएगा |

(5) राज्य सभा मै 5[ संघ राज्यक्षेत्रों ] के प्रतततनधध ऐसी रीती से चुने जाएगे जो संसद् ववधध द्वारा
ववहहत करे |

[81.लोक सभा की संरचना – (1) 7[अनच्


6
ु छे द 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए 8 [***]] लोक सभा –

(क) राज्यों में प्रादे लशक तनवातचन – क्षेत्रों से प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा चुने गए 9[ पांच सौ तीस
सदस्यों] से अनधधक, और
(ख) संघ राज्यक्षेत्रों का प्रतततनधधत्व करने के ललए ऐसी रीतत से, जो संसद् ववधध द्वारा से
लमलकर बनेगी |

1. संववधान (पैताललसवां संसोधन )अधधतनयम,1974 की द्वारा (1-3-1975) “राज्यसभा “ के


स्थान पर प्रततस्थावपत |
2. संववधान (छर्त्ीसवाँ संसोधन ) अधधतनयम,1975 की धारा 5 द्वारा (_26-4-1975 से ) “
दसवाँ अनुसूची के पैरा 4 के उपबंधों के अधीन रहते हुए ‘शब्दों का लोप ककया गया |
3. संववधान (सातवाँ संसोधन ) अधधतनयम,1956 की धारा 3 द्वारा (1-11-1956 ) से जोड़ा गया
|
4. संववधान (सातवाँ संसोधन ) अधधतनयम , 1956 की धारा 3 द्वारा “ पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख मै ववतनहदत ष्ट “ शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया |
5. संववधान (सातवाँ संसोधन ) अधधतनयम,1956 की धारा 3 द्वारा “ पहली अनुसूची के भाग
ग मै ववतनहदत ष्ट राज्यों “ के स्थान पर प्रततस्थावपत |
6. संववधान (सातवाँ संसोधन ) अधधतनयम,1956 की धारा 4 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द
81 के स्थान पर प्रततस्थावपत |

56
7. संववधान (सातवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1974 की धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से )” अनुच्छे द 331
के उपबंधों के अधीन रहते हुए “ के स्थान पर प्रततस्थावपत |
8.संववधान (छर्त्ीसवाँ संसोधन ) अधधतनयम,1974 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से )“ और दसवी
अनुसूची के पैरा 4 “ शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया |
9. गोवा,दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18 ) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987
से) “ पांच सौ पच्चीस “ के स्थान पर प्रततस्थावपत |
10. संववधान (इक्तीसवा संसोधन ) अधधतनयम, 1973 की धारा 2 द्वारा “ पच्चीस सदस्यों “
के स्थान पर प्रततस्थावपत |
अनच्
ु छे द 82

(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के ललए –

(क) प्रत्येक राज्य को लोक सभा में स्थानों का आबंटन ऐसी रीतत से ककया जाएगा
कक स्थानों कक संख्या से उस राज्य कक जनसंख्या का अनप
ु ात सभी राज्यों के ललए यथासाध्य
एक ही हो, और

(ख) प्रत्येक राज्य को प्रादे लशक तनवातचन – क्षेत्र को ऐसी रीतत से ववभाक्जत ककया
जाएगा कक प्रत्येक तनवातचन – क्षेत्र की जनसख्या का उसको आबंहटत स्थानों की संख्या से
अनप
ु ात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो :

[परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपखंड ककसी राज्य को लोक सभा मै स्थानों के आबंटन के
1

प्रयोजन के ललए तब तक लागू नहीं होंगे जब तक उस राज्य की जनसख्या साठ लाख से अधधक
नहीं हो जाती है |]

(3) इस अनच्
ु छे द में “जनसंख्या “ पद से ऐसी अंततम पव
ू व
त ती जनगणना मै अलभतनक्श्चत की
गई जनसंख्या अलभप्रेत है क्जसके सस
ु ग
ं त आंकडे प्रकालशत हो गए है :]

2
[परन्तु इस खंड मै अंततम पव
ू व
त ती जनगणना के प्रतत, क्जसके सस
ु ग
ं त आकंडे प्रकालशत
हो गए है ,तनदे श का, जब तक सन ् 3[2026] के पश्चात ् की गई पहली जनगणना के सस
ु ग
ं त आँकड़े
प्रकालशत नहीं हो जाते है , 4[ यह अथत लगाया जाएगा की वह,-

(i) खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तक


ु के प्रयोजनों
के ललए 1971 की जनगणना के प्रतत तनदे श है , और
(ii) खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजनों के ललए 5[2001] की
जनगणना के प्रतततनदे श है |]]
6
[82. प्रत्येक जनगणना के पश्चात ् पन
ु : समायोक्जत – प्रत्येक जनगणना की समाक्प्त पर
राज्यों को लोक सभा मै स्थानों के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादे लशक तनवातचन- क्षेत्रों मै

57
ववभाजन का ऐसे प्राधधकारी द्वारा और ऐसी रीतत से पन
ु : समायोक्जत ककया जाएगा जो संसद्
ववधध द्वारा अवधाररत करे :]

परं तु ऐसे पन
ु : समायोक्जत से लोक सभा में प्रतततनधधत्व पर तब तक कोई जब तक उस
समय ववधवान लोक सभा का ववघटन नहीं हो जाता है :]

[परं तु यह और की ऐसा पन
7
ु : समायोक्जत उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्रपतत
आदे श द्वारा ववतनहदत ष्ट करे और ऐसे पन
ु : समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के ललए
कोई तनवातचन उन प्रादे लशक तनवातचन- क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पन
ु : समायोजन के
पहले ववद्यमान हें :

1. संववधान (इकतीसवाँ संसोधन ) अधधतनयम,1973 की धारा 2 द्वारा अंत: स्थावपत|


2. संववधान (बयालीसवाँ संसोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से ) अंत:
स्थावपत |
3. संववधान (चौरासीवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 2001 की धारा 3 द्वारा अंको “2000” के स्थान
पर प्रततस्थावपत |
4. संववधान (चौरालसवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 2001 की धारा 3(ii) द्वारा “ यह अथत लगाया
जाएगा की वह 1971 की जनगणना के प्रतत तनदे श है “ शब्दों के ललए प्रततस्थावपत |
5. संववधान (सर्त्ासीवाँ संसोधन) अधधतनयम, 2003 के द्वारा (22-6-2003 से ) अंको “1991”
के स्थान पर प्रततस्थावपत |
6. संववधान (सातवाँ संसोधन अधधतनयम ), 1956 के द्वारा (1-11-1956 से ) अनुच्छे द 82 के
स्थान पर प्रततस्थावपत |
7. संववधान (बयालीसवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1976 की धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से )
अंत: स्थावपत|
परं तु यह और भी की जब तक सन ्’ [2026] के पश्चात ् की गई पहली जनगणना के सस
ु ग
ं त
आँकड़े प्रकालशत नहीं हो जाते है तब तक 2[ इस अनच्
ु छे द के अधीन –

(i) राज्यों को लोक सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पन


ु : समायोक्जत स्थानों
के आबंटन का, और
(ii) प्रत्येक राज्य के प्रादे लशक तनवातचन- क्षेत्रों में ववभाजन का, जो [2001] की जन
3

गणना के आधार पर पन
ु : समायोक्जत ककए जाए;
पन
ु : समायोजन आवश्यक नहीं होगा|]

83. संसद् के सदनों की अिधध- (1)राज्य सभा का ववघटन नहीं होगा, ककं तु उसके सदस्यों में
से यथा संभव तनकटतम एक- ततहाई सदस्य,संसद् द्वारा ववधध द्वारा इस तनलमर्त् ककए गए उपबंधों के
अनस
ु ार, प्रत्येक द्ववतीय वषत की समाक्प्त पर यथाशक्य शीघ्र तनवत
ृ हो जायेगें|

58
(2) लोकसभा, यहद पहले ही ववघहटत नहीं कर दी जाती हें तो, अपने प्रथम अधधवेशन के
ललए तनयत तारीख से 4[पांच वषत ] तक बनी रहे गी, इससे अधधक नहीं और 4[पांच वषत] की उक्त अवधध
की समाक्प्त का पररणाम लोक सभा का ववघटन होगा :

परन्तु उक्त अवधध को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है तब, संसद् ववधध द्वारा, ऐसी
अवधध के ललए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वषत से अधधक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवततन में न
रह जाने के पश्चात ् उसका ववस्तार ककसी भी दशा में छह मास की अवधध से अधधक नहीं होगा |

84. संसद् की सदस्यता के अहताम – कोई व्यक्क्त संसद् के ककसी स्थान को भरने के ललए चन
ु े
जाने के ललए अहहतत तभी होगा जब –

5
[(क) बह भारत का नागररक है और तनवातचन आयोग द्वारा इस तनलमत्त प्राधधकृत ककसी
व्यक्क्त के समक्ष तीसरी अनस
ु च
ू ी में इस प्रयोजन के ललए हदए गए प्ररूप के अनस
ु ार शपथ
लेता है या प्रततज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है ; ]

(ख) वह राज्य सभा में स्थान के ललए कम से कम तीस वषत की आयु का और लोक सभा में
स्थान के ललए कम से कम पच्चीस वषत की आयु का है ; और

(ग) उसके पास ऐसी अन्य अहतताए हें जो संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या उसके
अधीन इस तनलमर्त् ववहहत की जाए |

6
[85.संसद् के सत्र, सत्रािसान और विघटन- (1) राष्रपतत समय – समय पर,संसद् के प्रत्येक सदन
को ऐसे समय और स्थान, पर जो वह ठीक समझे, अधधवेशन के ललए आहूत करे गा, ककन्तु उसके एक
सत्र की अंततम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के ललए तनयत तारीख के बीच छह माह का अंतर
नहीं होगा |

1. संववधान(चौरासीवाँ संसोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 4(i) द्वारा अंको “2000” के स्थान पर
प्रततस्थावपत |
2. संववधान (चौरासीवाँ संसोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 4(ii) द्वारा “राज्यों को लोक सभा में स्थानों
के आबंटन का और इस अनुच्छे द के अधीन प्रत्येक राज्य के प्रादे लशक राज्य के प्रादे लशक
तनवातचन क्षेत्रों में ववभाजन का पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा” शब्दों के ललए (8-9-2001
से) प्रततस्थावपत|
3. संववधान (सर्त्ासीवाँ संसोधन ) अधधतनयम 2003 द्वारा (22-6-2003 से ) अंको “1991” के
स्थान पर प्रततस्थावपत |
4. संववधान (चवालीसवाँ संसोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979)
से “छह वषत” के स्थान पर प्रततस्थावपत | संववधान (बयालीसवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1976
की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से ) “पांच वषत” मुल शब्दों के स्थान पर “छह वषत” मूल शब्दों के
स्थान पर “छह वषत” शब्द प्रततस्थावपत ककए गए थे |

59
5. संववधान (सोलहवाँ संसोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से ) खण्ड (क)
के स्थान पर प्रततस्थावपत |
6. संववधान (पहला संसोधन) अधधतनयम, की धारा 6 द्वारा (18-6-1951 से) अनुच्छे द 85 के स्थान
पर प्रततस्थावपत |
अनच्
ु छे द 90

(2) राष्रपतत समय –समय पर –


(क) सदनों का या ककसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा;
(ख) लोक सभा का ववघटन कर सकेगा |]
86. सदनों में अलभभाषण का और उनको सन्दे श भेजने का राष्ट्रपनत का अधधकार –
(1) राष्रपतत, संसद् के ककसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अलभभाषण
कर सकेगा और इस प्रयोजन के ललए सदस्यों की उपक्स्थतत की अपेक्षा कर सकेगा|
(2) राष्रपतत,संसद् में उस समय लंत्रबत ककसी ववधेयक के सबंध में संदेश या कोई अन्य
संदेश, संसद् के ककसी सदन को भेज सकेगा और क्जस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा
गया हें वह सदन उस संदेश द्वारा ववचार करने के ललए अपेक्षक्षत ववषय पर सवु वधानस
ु ार शीघ्रता
से ववचार करे गा |

87.राष्ट्रपनत का विशेष अलभभाषण – (1) राष्रपतत, 1[लोक सभा के ललए प्रत्येक साधारण
तनवातचन के पश्चात ् प्रथम सत्र] के आरं भ में 1[ और प्रत्येक वषत के प्रथम सत्र के आरं भ में ] एक साथ
समवेत संसद् के दोनों सदनों में अलभभाषण करे गा और संसद् को उसके आह्वान के कारण बताएगा |

(2) प्रत्येक सदन की प्रकक्रया का ववतनयमन करने वाले तनयमों द्वारा ऐसे अलभभाषण में तनहदत ष्ट
ववषयों की चचात के ललए समय तनयत करने के ललए 2[***] उपबंध ककया जाएगा |

88. सदनों के बारे में मंत्रत्रयो और महान्यायिादी के अधधकार- प्रत्येक मंत्री और भारत के
महान्यायवादी को यह अधधकार होगा की वह ककसी भी सदन में , सदनों की ककसी संयक्
ु त बैठक में और
संसद् की ककसी सलमतत में , क्जसमें उसका नाम सदस्य के रूप में हदया गया हें , बोले और उसकी
कायतवाहहयो में अन्यथा भाग ले, ककन्तु इस अनच्
ु छे द के आधार पर यह मत दे ने का हक़दार नहीं होगा |

संसद् के अधधकारी

89. राज्य सभा का सभापनत और उपसभापनत - (1) भारत का उपराष्रपतत राज्य सभा का पदे न
सभापतत होगा |

(2) राज्यसभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने ककसी सदस्य को अपना उपसभापतत चुनग
े ी और
जब-जब उप सभापतत का पद ररक्त होता हें तब- तब राज्य सभा ककसी अन्य सदस्य को अपना
उपसभापतत चन
ु ेगी |

90. उपसभापनत का पद ररतत होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना – राज्य सभा के


उपसभापतत के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य-

60
(क) यहद राज्य सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद ररक्त कर दे गा;

(ख) ककसी भी समय सभापतत को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपना पद
त्याग सकेगा; और

(ग) राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प द्वारा अपने
पद से हटाया जा सकेगा;

परं तु खण्ड (ग) के प्रयोजन के ललए कोई संकल्प तब तक प्रस्ताववत नहीं ककया जाएगा
जब तक कक उस संकल्प को प्रस्ताववत करने के आशय कक कम के कम चौदह हदन की
सच
ू ना न दे दी गई हो |

1. संववधान(पहला संसोधन )अधधतनयम, 1951 की धारा 7 द्वारा “प्रत्येक सत्र” के स्थान पर


प्रततस्थावपत |
2. संववधान(पहला संसोधन )अधधतनयम, 1951 की धारा 7 द्वारा “और सदन के अन्य कायत पर
इस चचात को आग्रता दे ने के ललए” शब्दों का लोप ककया गया |

अनच्
ु छे द 94

91. सभापनत के पद के कतमव्यों का पालन करने या सभापनत के रूप मै कायम करने की


उपसभापनत या अन्य व्यक्तत की शक्तत – (1) जब सभापतत का पद ररक्त है
या ऐसी अवधध मै जब उपराष्रपतत, राष्रपतत के रूप में कायत कर रहा है या उसके कृत्यों का तनवतहन
कर रहा है तब उपसभापतत, या यहद उपसभापतत का पद ररक्त है तो, राज्य सभा का ऐसा सदस्य,
क्जसको राष्रपतत इस प्रयोजन के ललए तनयक्
ु त करे , उस पद के कततव्यों का पालन करे गा |
(2) राज्य सभा को ककसी बैठक से सभापतत की अनप
ु क्स्थतत मै उपसभापतत, या यहद वह भी
अनप
ु क्स्थत है तो ऐसा व्यक्क्त, जो राज्य सभा की प्रकक्रया के तनयमों द्वारा अवधाररत ककया जाए,
या यहद ऐसा कोई व्यक्क्त उपक्स्थत नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्क्त, जो राज्य द्वारा अवधाररत ककया
जाए, सभापतत के रूप में कायत करे गा |

92. जब सभापनत या उपसभापनत को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका


पीठासीन न होना (1) राज्य सभा की ककसी बैठक में , जब उपराष्रपतत को उसके पद से हटाने का
कोई संकल्प ववचारधीन है तब सभापतत,या जब उपसभापतत को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प
ववचारधीन है तब उपसभापतत, उपक्स्थत रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनच्
ु छे द 91 के खंड
(2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के सबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के सबंध में लागू
होते है क्जससे, यथाक्स्थतत, सभापतत या उपसभापतत अनप
ु क्स्थत है |

(2) जब उपराष्रपतत को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा में ववचाराधीन है तब
सभापतत को राज्य सभा में बोलने और उसकी कायतवाहहयों में अन्यथा भाग लेने का अधधकार होगा,

61
ककन्तु वह अनच्
ु छे द 100 में ककसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर या ऐसी कायतवाहहयों के
दौरान ककसी अन्य ववषय पर, मत दे ने का त्रबलकुल हक़दार नहीं होगा |

93. लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष – लोक सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्यों को
अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब –जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद ररक्त होता है तब-
तब लोक सभा ककसी अन्य सदस्य को,यथाक्स्थतत, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी |

94. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद ररतत होना पद त्याग और पद से हटाया जाना – लोक सभा
के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य –

(क) यहद लोक सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद ररक्त कर

दे गा;

(ख) ककसी भी समय, यहद वह सदस्य अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को संबोधधत और यहद


वह सदस्य उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख
द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; और

(ग) लोक सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प द्वारा अपने
पद से हटाया जा सकेगा :

परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के ललए कोई संकल्प तब तक प्रस्ताववत नहीं ककया जायगा
जब तक कक उस संकल्प को प्रस्ताववत करने के आशय कक कम से कम चौदह हदन कक सच
ू ना न
दे दी गई हो :

परन्तु यह और कक जब कभी लोक सभा का ववघटन ककया जाता है तो ववघटन के


पश्चात ् होने वाले लोक सभा के प्रथम अधधवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को ररक्त
नहीं करे गा |

अनच्
ु छे द 98

95. अध्यक्ष के पद के कतमव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कायम करने क्रक उपाध्यक्ष
या अन्य व्यक्तत क्रक शक्तत – (1) जब अध्यक्ष का पद ररक्त है तब उपाध्यक्ष, या यहद उपाध्यक्ष का पद
भी ररक्त है तो लोक सभा का ऐसा सदस्य, क्जसको इस प्रयोजन के ललए तनयक्
ु त करे , उस पद के
कततव्यों का पालन करे गा |
(2) लोक सभा की ककसी बैठक के अध्यक्ष की अनप
ु क्स्थतत में उपाध्यक्ष,या यहद वह भी
अनप
ु क्स्थतत है तो ऐसा व्यक्क्त, जो लोक सभा की प्रकक्रया के तनयमों द्वारा अवधाररत ककया जाए, या
यहद ऐसा कोई व्यक्क्त उपक्स्थत नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्क्त, जो लोक सभा अवधाररत ककया जाए,
अध्यक्ष के रूप में कायत करे गा |

62
96. जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका
पीठासीन न होना – (1) लोकसभा कक ककसी बैठक मै, जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का संकल्प
ववचाराधीन है तब अध्यक्ष, या उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प ववच्राधीन है तब
उपाध्यक्ष, उपक्स्थतत रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनच्
ु छे द 95 के खंड (2) के उपबंध ऐसी
प्रत्येक बैठक के सबंध वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के सबंध में लागू हुए है क्जससे, यथाक्स्थतत,
अध्यक्ष अनप
ु क्स्थतत है |

97. सभापनत और उपसभापनत तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के िेतन और भिे – राज्य सभा के
सभापतत औत उपसभापतत कक तथा लोक सभा के अध्यक्ष औत उपाध्यक्ष को, ऐसे वेतन औत भर्त्ों का
जो संसद्, ववधध द्वारा, तनयत करे और जब ता इस तनलमत इस प्रकार उपबंध नहीं ककया जाता है तब
तक ऐसे वेतन औत भर्त्ों का, जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी मै ववतनहदत स्ट है , संदाय ककया जाएगा |

98. संसद् का सधचिालय – (1) संसद् के प्रत्येक सदन का पथ


ृ क सधचवीय कमतचारीवद
ं ृ होगा :
(2) संसद्, ववधध द्वारा, संसद् के प्रत्येक सदन के सधचवीय कमतचारीवद
ं ृ मै भती का और तनयक्
ु त
व्यक्क्तयों कक सेवा की शतों का ववतनयमन कर सकेगी |
(3) जब तक संसद् खंड (2) के अधीन उपबंध नहीं करती है तब तक राष्रपतत, यथाक्स्थतत, लोक
सभा के अध्यक्ष या राज्य सभा के सभापतत से परामशत करने के पश्चात ् लोक सभा के या राज्य सभा के
सधचवीय कमतचारीवद
ं ृ मै भती के और तनयक्
ु त व्यक्क्तयों की सेवा की शतों से ववतनयमन के ललए तनयम
बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए तनयम उक्त खंड के अधीन बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के
अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे |
अनच्
ु छे द 101

कायम संचालन

99. सदस्यों द्िारा शपथ पर प्रनतज्ञान – संसद् के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना
स्थान ग्रहण करने से पहले, राष्रपतत या उसके द्वारा तनलमत तनयक्
ु त व्यक्क्त के समक्ष, तीसरी अनस
ु च
ू ी
के इस प्रयोजन के ललए हदए गए प्ररूप के अनस
ु ार, शपथ लेगा या प्रततज्ञान करे गा और उस पर अपने
हस्ताक्षर करे गा |

100. सदनों मै मतदान, ररक्ततयों के होते हुए भी सदनों की कायम करने की शक्तत और गणपनू तम
– (1) इस संववधान में यथा अन्यथा उपबंधधत के लसवाय, प्रत्येक सदन की बैठक में या सदनों की
संयक्
ु त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष को अथवा सभापतत या अध्यक्ष के रूप में कायत करने
वाले व्यक्क्त को छोड़कर, उपक्स्थतत और मत दे ने वाले सदस्यों के बहुमत से ककया जाएगा |

सभापतत का अध्यक्ष, अथवा उस रूप मै कायत करने वाला व्यक्क्त प्रथमत: मत नहीं दे गा, ककन्तु
मत बराबर होने की दशा में उसका तनणातयक मत होगा और वह उसका प्रयोग करे गा |

63
(2) संसद् के ककसी सदन की सदस्यता में कोई ररक्क्त होने पर भी, उस सदन को कायत करने की
शक्क्त होगी और यहद बाद में यह पता चलता है कक कोई व्यक्क्त, जो ऐसा करने का हक़दार नहीं था,
कायतवाहहयों में उपक्स्थतत रहा है या उसने मत हदया है या अन्यथा भाग ललया है तो भी संसद की कोई
कायतवाही ववधधमान्य होगी |

(3) जब तक संसद् ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद् के प्रत्येक सदन का
अधधवेशन गहठत करने के ललए गणपतू तत सदन के सदस्यों कक कुल संख्या का दसवा भाग होगी |

(4) यहद सदन के अधधवेशन में ककसी समय गणपतू तत नहीं है तो सभापतत या अध्यक्ष अथवा उस
रूप मै कायत करने वाले व्यक्क्त का वह कततव्य होगा कक वह सदन को स्थधगत कर दे या अधधवेशन को
तब तक के ललए तनलंत्रबत कर दे जब तक गणपतू तत नहीं हो जाती है |

सदस्यों क्रक ननर्हमतएं

101. स्थानों का ररतत होना- (1) कोई व्यक्क्त संसद् के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और
जो व्यक्क्त दोनों सदनों का सदस्य चुन ललया जाता है उसके एक या दस
ू रे सदन के स्थान को ररक्त
करने के ललए संसद् ववधध द्वारा उपबंध करे गी |

(2)कोई व्यक्क्त संसद् और ककसी 1


[***] राज्य के ववधान – मंडल के ककसी सदन, दोनों का
सदस्य नहीं होगा और यहद कोई व्यक्क्त संसद् और 2[ ककसी राज्य ] के ववधान- मंडल के ककसी सदन,
दोनों कस सदस्य चुन ललया जाता है तो ऐसी अवधध कक समाक्प्त के पश्चात ् जो राष्रपतत द्वारा बनाए
गए तनयमों 3 में ववतनहदत ष्ट कक जाए, संसद् में ऐसे व्यक्क्त का स्थान ररक्त हो जाएगा यहद उसने राज्य
के ववधान- मंडल में अपने स्थान को पहले ही त्याग हदया है |

(3) यहद संसद् के ककसी सदन का सदस्य –

1. संववधान (सातवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1956 कक धारा 29 और अनुसूची द्वारा(1-11-


1956 से ) “पहली अनुसूची के भाग क या ख में ववतनहदत ष्ट” शब्द और अक्षरों का लोप ककया
गया |

2. संववधान (सातवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1956 कक धारा 29 द्वारा और अनुसूची द्वारा


(1-11-1956 से ) “ऐसे ककसी राज्य” के स्थान पर प्रततस्थावपत |

3. दे णखये, ववधध मंत्रालय कक अधधसूचना संख्या एफ. 46/50- सी.तारीख 26 जनवरी, 1950,
भारत का राजपत्र, असाधारण पष्ृ ठ 678 में प्रकालशत समसामतयक सदस्यता प्रततषेध तनयम,
1950

64
अनच्
ु छे द 102

(क) [ अनच्
1
ु छे द 102 के खंड (1) या खंड (2) में वणणतत ककसी तनहतरता से ग्रस्त हो जाता है , या

[(ख) यथाक्स्थतत, सभापतत या अध्यक्ष को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपने स्थान का
2

त्याग कर दे ता है और उसका त्यागपत्र, यथाक्स्थतत, सभापतत या अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर ललया जाता
है , ] तो ऐसा होने पर उसका स्थान ररक्त हो जाएगा :

[ परन्तु उपखंड (ख) में तनहदत ष्ट त्यागपत्र कक दशा में , यहद प्राप्त जानकारी से या अन्यथा और
3

ऐसी जांच करने के पश्चात ्, जो वह ठीक समझे, यथाक्स्थतत, सभापतत या अध्यक्ष का यह समाधान हो
जाता है कक ऐसा त्यागपत्र स्वेक्च्छक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं करे गा |]

(4) यहद संसद् के ककसी सदन का कोई सदस्य साठ हदन कक अवधध तक सदन कक अनज्ञ
ु ा के
त्रबना उसके सभी अधधवेशनों से अनप
ु क्स्थत रहता है तो सदन उसके स्थान को ररक्त घोवषत कर सकेगा :

परन्तु साठ हदन कक उक्त अवधध कक संगणना करने में ककसी ऐसी अवधध को हहसाब में नहीं
ललया जाएगा क्जसके दौरान सदन सत्रावलसत या तनरं तर चार से अधधक हदनों के ललए स्थधगत रहता है |

102. सदस्या के ललए ननर्हमतए – (1) कोई व्यक्क्त संसद् के ककसी सदन का सदस्य चुने जाने के
ललए और सदस्य होने के ललए तनरहहतत होगा –
(क) यहद वह भारत सरकार के या ककसी राज्य कक सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर,
क्जसको धारण करने वाले का तनरहहतत न होना संसद् ने ववधध द्वारा घोवषत ककया है , कोई
लाभ का पद धारण करता है :
(ख) यहद वह ववकृतधचत है और सक्षम न्यायालय कक ऐसी घोषणा ववघमान है ;
(ग) यहद वह अनन्
ु मोधचत हदवाललया है ;
(घ) यहद वह भारत का नागररक नहीं है या उसने ककसी ववदे शी राज्य कक नागररकता स्वेच्छा
से अक्जतत कर ली है या वह ककसी ववदे शी राज्य के प्रतत तनष्ठा या अनष
ु क्क्त को
अलभस्वीकार ककए हुआ है ;
(ड) यहद वह संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या उसके इस प्रकार तनरहहतत कर
हदया जाता है |

[ स्पष्ट्टीकरण – इस खंड के प्रयोजनों के ललए,] कोई व्यक्क्त केवल इस कारण भारत सरकार के
4

या ककसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कक वह संघ
का या ऐसे राज्य का मंत्री है |

1. संववधान (बावनवाँ संसोधन) अधधतनयम, 1985 की धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से )


अनुच्छे द 102 के खण्ड (1) “के स्थान पर प्रततस्थावपत|

65
2. संववधान (तैतीसवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा उपखण्ड (ख ) के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (तैतीसवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा अंत: स्थावपत |
4. संववधान (बाबनवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1985 की धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से )
“(2) इस अनुच्छे द के प्रयोजनों के ललए” के स्थान पर प्रततथावपत |
अनच्
ु छे द 103

1
[(2) कोई व्यक्क्त संसद् के ककसी सदन का सदस्य होने के ललए तनरहहतत होगा यहद वह दसवीं
अनस
ु च
ू ी के अधीन इस प्रकार तनरहहतत हो जाता है |

2
[103. सदस्यों की तनहहततओ से सबंधधत प्रशनों पर ववतनश्चय – (1) यहद या प्रश्न उठता है की
संसद् के ककसी सदन का कोई सदस्य अनच्
ु छे द 102 के खंड (1) में वणणतत ककसी तनहहतत से ग्रस्त हो
गया है या नहीं तो वह प्रश्न राष्रपतत को ववतनश्चय के ललए तनदे लशत ककया जाएगा और उसका
ववतनश्चय अंततम होगा |

(2) ऐसे ककसी प्रश्न पर ववतनश्चय करने के पहले राष्रपतत तनवातचन आयोग की राय लेना और
ऐसी राय के अनस
ु ार कायत करे गा |

104. अनच्
ु छे द 99 के अधीन शपथ लेने या प्रनतज्ञान करने से पहले या अर्हमत न होते हुए या
ननरर्हमत क्रकए जाने पर बैठने और मत दे ने के ललए शाक्स्त – यहद संसद् के ककसी सदन में कोई व्यक्क्त
अनच्
ु छे द 99 की अपेक्षाओं का अनप
ु ालन करने से पहले, या यह जानते हुए कक में उसकी सदस्यता के
ललए अहहतत नहीं हूँ या तनरहहतत कर हदया गया हूँ, या संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों
द्वारा ऐसा करने से प्रततवषद्ध कर हदया गया हूँ, सदस्य के रूप मै बैठता है या मत दे ता है तो वह
प्रत्येक हदन के ललए, जब वह इस प्रकार बैठता है या मत दे ता है , पांच सौ रुपए कक शाक्स्त का भागी
होगा जो संघ को दे य ऋण के रूप में वसल
ू कक जाएगी |

संसद् और उसके सदस्यों क्रक शक्ततयााँ, विशेषाधधकार और उन्मक्ु ततयााँ

105. संसद् के सदनों क्रक तथा उनके सदस्यों क्रक सलमनतयों क्रक शक्ततयााँ, विशेषाधधकार आर्द-
(1) इस संववधान के उपबंधों के और संसद् कक प्रकक्रया का ववतनयमन करने वाले तनयमों और स्थायी
आदे शों के अधीन रहते हुए,संसद् में वाक् –स्वातंत्र होगा |

(2) संसद् में या उसकी ककसी सलमतत में संसद् के ककसी सदस्य द्वारा कही गई ककसी बात या
हदए गए ककसी मत के सबंध में उसके ववरुद्ध ककसी न्यायालय में कोई कायतवाही नहीं कक जाएगी और
ककसी व्यक्क्त के ववरुद्ध संसद् के ककसी सदन के प्राधधकार द्वारा या उसके अधीन ककसी प्रततवेदन, पत्र,
मतों या कायतवाहहयों के प्रकाशन के सबंध मै इस प्रकार कक कोई कायतवाही नहीं कक जाएगी|

66
(3) अन्य बातों में संसद् के प्रत्येक सदन कक और प्रत्येक सदन के सदस्यों और सलमततयों कक
शक्क्स्तयाँ, ववशेषाधधकार और उन्मक्ु क्तयां ऐसी होंगी जो संसद्, समय-समय पर, ववधध द्वारा, पररतनक्श्चत
करे और जब तक वे इस प्रकार पररतनक्श्चत नहीं की जाती है तब तक 3
[ वही होगी जो संववधान
(चवालीसवां संसोधन )अधधतनयम, 1978 की धारा 15 के प्रवर्त्
ृ होने के ठीक पहले उस सदन की और
उसके सदस्यों और सलमततयों की थीं |

(4) क्जन व्यक्क्तयों को इस संववधान के आधार पर संसद् के ककसी सदन या उसकी ककसी
सलमतत में बोलने का और उसकी कायतवाहहयों में अन्यथा भाग लेने का अधधकार है , उनके सबंध में खंड
(1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे क्जस प्रकार वे संसद् के सदस्यों के सबंध में
लागू होते है |

1. संववधान (बावनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1985 की धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से ) अंत:


स्थावपत |
2. अनच्
ु छे द 103, संववधान (बयालीसवाँ संसोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 20 द्वारा (3-1-
1977 से ) और तत्पश्चात संववधान (चवालीसवाँ संसोधन ) अधधतनयम, 1978 की धारा 14
द्वारा (20-6-1979 से ) संशोधधत होकर उपरोक्त होकर उपरोक्त रूप में आया |
3. संववधान (चवालीसवाँ संसोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से ) कुछ
शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत |

106. सदस्यों के िेतन और भिे – संसद् के प्रत्येक सदन के सदस्य ऐसे वेतन और भर्त्े, क्जन्हें
संसद्, समय- समय पर, ववधध द्वारा, अवधाररत करे और जब तक इस सबंध में इस प्रकार उपबंध नहीं
ककया जाता है तब तक ऐसे भर्त्े, ऐसी दरों से और ऐसी शतों पर, जो भारत डोलमतनयन की संववधान
सभा के सदस्यों को इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले लागू थीं, प्राप्त करने के हक़दार होंगे |

विधायी प्रक्रक्रया

107. विधेयकों के परु :स्थापना और पाररत क्रकए जाने के सबंध में उपबंध – (1) धन ववधेयकों
और अन्य ववर्त् ववधेयकों के सबंध में अनच्
ु छे द 109 और अनच्
ु छे द 117 के उपबंधों के अधीन रहते
हुए, कोई ववधेयक संसद् के ककसी भी सदन में आरं भ हो सकेगा |

(2) अनच्
ु छे द 108 और अनच्
ु छे द 109 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई ववधेयक संसद्
के सदनों द्वारा तब तक पाररत ककया गया नहीं समझा जाएगा जब तब संसोधन के त्रबना या केवल
ऐसे संशोधनों सहहत,क्जन पर दोनों सदन सहमत हो गए है , उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते
है |

(3) संसद् मै लंत्रबत ववधेयक सदनों के सत्रावसान के कारण व्यपगत नहीं होगा |

67
(4) राज्य सभा में लंत्रबत ववधेयक, क्जसको लोक सभा ने पाररत नहीं ककया है , लोक सभा के
ववघटन पर व्यपगत नहीं होगा |

(5) कोई ववधेयक, जो लोक सभा में लंत्रबत है या जो लोक सभा द्वारा पाररत कर हदया गया
है और राज्य सभा में लंत्रबत है , अनच्
ु छे द 108 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोक सभा के ववघटन
पर व्यपगत हो जाएगा |

108. कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयत


ु त बैठक – (1) यहद ककसी ववधेयक के एक सदन
द्वारा पाररत ककए जाने और दस
ू रे सदन को पारे वषत ककए जाने के पश्चात ्

(क) दस
ू रे सदन द्वारा ववधेयक अस्वीकार कर हदया गया है , या

(ख) ववधेयक में ककए जाने वाले संसोधन के बारे में दोनों सदन अंततम रूप से असहमत हो
गए है , या

(ग) दस
ू रे सदन को ववधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा ववधेयक पाररत ककए त्रबना
छह मास से अधधक बीत गए है ,

तो उस दशा के लसवाय क्जसमें लोक सभा का ववघटन होने के कारण ववधेयक व्यपगत हो गया हें ,
राष्रपतत ववधेयक पर ववचार –ववमशत करने और मत दे ने के प्रयोजन के ललए सदनों को संयक्
ु त बैठक में
अधधवेलशत होने के ललए आहूत करने के अपने आशय की सच
ू ना, यहद वे बैठक मै हें तो संदेश द्वारा या
यहद वे बैठक में नहीं है तो लोक अधधसच
ू ना द्वारा दे गा:

परन्तु इस खण्ड की कोई बात धन ववधेयक को लागू नहीं होगी |

(2) छह मास की ऐसी अवधध की गणना करने में , जो खण्ड (1) में तनहदत ष्ट है , ककसी ऐसी
अवधध को हहसाब में नहीं ललया जाएगा क्जसमें उक्त खण्ड के उपखण्ड (ग) में तनहदतष्ट सदन सत्रावलसत
या तनरं तर चार से अधधक हदनों के ललए स्थधगत कर हदया जाता है |

(3) यहद राष्रपतत ने खण्ड (1) के अधीन सदनों को संयक्


ु त बैठक मै अधधवेलशत होने के ललए
आहूत करने के अपने आशय की सच ू ना दे दी है तो कोई भी सदन ववधेयक पर आगे कायतवाही नहीं
करे गा, ककन्तु राष्रपतत अपनी अधधसचू ना की तारीख के पश्चात ् ककसी समय सदनों को अधधसच
ू ना में
ववतनहदतष्ट प्रयोजन के ललए संयक्
ु त बैठक मै अधधवेलशत होने के ललए आहूत कर सकेगा और, यहद वह
ऐसा करता है तो, सदन तदनस ु ार अधधवेलशत होंगे |
(4) यहद सदनों की संयक्
ु त बैठक मै ववधेयक ऐसे संशोधनों सहहत, यहद कोई हो, क्जन पर
संयक्
ु त बैठक में सहमतत हो जाती है , दोनों सदनों के उपक्स्थतत और मत दे ने वाले सदस्यों की कुल
संख्या के बहुमत द्वारा पाररत हो जाता है तो इस संववधान के प्रयोजनों के ललए वह दोनों सदनों द्वारा
पाररत ककया गया समझा जाएगा :

68
परन्तु संयक्
ु त बैठक में –

(क) यहद ववधेयक एक सदन में पाररत ककए जाने पर दस


ू रे सदन द्वारा संसोधनो सहहत पाररत
नहीं कर हदया गया है और उस सदन को, क्जसमें उसका आरं भ हुआ था, लौटा नहीं हदया
गया है तो संशोधनों से लभन्न (यहद कोई हों ), जो ववधेयक के पाररत होने में दे री के कारण
आवश्यक हो गए है , ववधेयक में कोई और संशोधन प्रस्थावपत नहीं ककया जाएगा ;
(ख) यहद ववधेयक इस प्रकार पाररत कर हदया गया है और लौटा हदया गया है तो ववधेयक मै
केवल पव
ू ोक्त संसोधन, और ऐसे अन्य संशोधन, जो उन ववषयों से सस
ु ग
ं त है क्जन पर
सदनों मै सहमतत नहीं हुई है , प्रततस्थावपत ककए जाएगे, और पीठासीन व्यक्क्त का इस वारे
में ववतनक्श्चय अंततम होगा कक कौन से संशोधन इस खण्ड के अधीन गह ृ ा हें |
(3) सदनों कक संयक्
ु त बैठक मै अधधवेलशत होने के ललए आहूत करने के अपने आशय कक राष्रपतत कक
सच
ू ना के पश्चात ्, लोक सभा का ववघटन बीच में हो जाने पर भी, इस अनच्
ु छे द के अधीन संयक्
ु त
बैठक हो सकेगी और उसमें ववधेयक पाररत हो सकेगा |

109. धन विधेयकों के सबंध में विशेष प्रक्रक्रया – (1) धन ववधेयक राज्य सभा में परु :स्थावपत
नहीं ककया जाएगा |
(2) धन ववधेयक लोक सभा द्वारा पाररत ककए जाने के पश्चात ् राज्य सभा को उसकी लसफाररसों
के ललए पारे वषत ककया जाएगा और राज्य सभा ववधेयक कक प्राक्प्त कक तारीख से चौदह हदन कक अवधध
के भीतर ववधेयक को अपनी लसफाररशो सहहत लोक सभा को लौटा दे गी और ऐसा होने पर लोक सभा ,
राज्य सभा कक सभी या ककन्हीं लसफाररश को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी |
(3) यहद लोक सभा, राज्य सभा कक ककसी लसफाररश को स्वीकार कर लेती है तो धन ववधेयक
राज्य सभा द्वारा पाररत ककया गया समझा जाएगा |
(4) यहद लोक सभा, राज्य सभा की ककसी भी लसफाररश को स्वीकार नहीं करती है तो धन
ववधेयक, राज्य सभा द्वारा लसफाररश ककए गए ककसी संशोधन के त्रबना, दोनों सदनों द्वारा उस रूप में
पाररत ककया समझा जाएगा क्जसमें वह लोक सभा द्वारा पाररत ककया गया था |
(5) यहद लोक सभा द्वारा पाररत और राज्य सभा को उसकी लसफाररशों के ललए पारे वषत धन
ववधेयक उक्त चौदह हदन की अवधध के भीतर लोक सभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधध की
समाक्प्त पर वह दोनों सदनों द्वारा, उस रूप में पाररत ककया गया समझा जाएगा क्जसमें वह लोक सभा
द्वारा पाररत ककया गया था |
110. “धन विधेयक” की पररभाषा – (1) इस अध्याय के प्रयोजनों के ललए, कोई ववधेयक धन
ववधेयक समझा जाएगा यहद उसमें केवल तनम्नललणखत सभी या ककन्हीं ववषयों से संबधधत उपबंध है ,
अथातत –

(क) ककसी कर का अधधरोपण, उत्पादन, पररहार, पररवततन या ववतनयमन;

69
(ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभतू त दे ने का ववतनयमन अथवा भारत
सरकार द्वारा अपने ऊपर ली गई या ली जाने वाली ककन्ही ववर्त्ीय बांध्यताओ से संबधं धत ववधध का
संसोधन ;

(ग) भारत की संधचत तनधध या आकक्स्मकता तनधध को अलभरक्षा, ऐसी ककसी तनधध में धन जमा
करना या उसमें से धन तनकलना;

(घ) भारत की संधचत तनधध में से धन का ववतनयोग ;

(ड) ककसी व्यय को भारत की संधचत तनधध पर भाररत व्यय घोवषत करना या ऐसे ककसी व्यय
की रकम बढ़ाना ;

(च) भारत की संधचत तनधध या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की
अलभरक्षा या उसका तनगतमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओ की संपरीक्षा ; या

(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) में ववतनहदत ष्ट ककसी ववषय का आनष
ु धं गक कोई ववषय|

(2) कोई ववधेयक केवल इस कारण धन ववधेयक नहीं समझा जाएगा की वह जुमातनों या अन्य
धनीय शाक्स्तयों के अधधरोपण के अथवा अनज्ञ
ु क्प्तयों के ललए फीसो की या की गई सेवाओ के ललए फीसों
की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन ववधेयक नहीं समझा जाएगा की
वह ककसी स्थानीय प्राधधकारी या तनकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के ललए ककसी कर के अधधरोपण,
उत्पादन, पररहार, पररवततन या ववतनयमन का उपबंध करता है |

(3) यहद यह प्रश्न उठता है की कोई ववधेयक धन ववधेयक है या नहीं तो उस पर लोक सभा के
अध्यक्ष का ववतनश्चय अंततम होगा |

(4) जब धन ववधेयक अनच्


ु छे द 109 के अधीन राज्य सभा को पारे वषत ककया जाता है और जब
वह अनच्
ु छे द 111 के अधीन अनम
ु तत के ललए राष्रपतत के समक्ष प्रस्तत
ु ककया जाता है तब प्रत्येक धन
ववधेयक पर लोक सभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहहत यह प्रमाण पष्ृ ठांककत ककया जाएगा की वह धन
ववधेयक है |

111. विधेयकों पर अनम


ु नत – जब कोई ववधेयक संसद् के सदनों द्वारा पाररत कर हदया गया है तब वह
राष्रपतत के समक्ष प्रस्तत
ु ककया जाएगा और राष्रपतत घोवषत करे गा की वह ववधेयक पर अनम
ु तत दे ता है
या अनम
ु तत रोक लेता है :

70
अनच्
ु छे द 112

परन्तु राष्रपतत अनम


ु तत के ललए अपने समक्ष ववधेयक प्रस्तत
ु ककए जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र
उस ववधेयक को, यहद वह धन ववधेयक नहीं है तो, सदनों की इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कक वे
ववधेयक पर या उसके ककन्हीं ववतनहदत ष्ट उपबंधों पर पन
ु ववतचार करें और ववलशष्टतया ककन्हीं ऐसे संशोधनों
के परु :स्थापन कक वांछ्नीयता पर ववचार करें क्जनकी उसने अपने संदेश में लसफाररश कक है और जब
ववधेयक इस प्रकार लौटा हदया जाता है तब सदन ववधेयक पर तद्नस
ु ार पन
ु ववतचार करें गे और यहद
ववधेयक सदनों द्वारा संसोधन सहहत या उसके त्रबना कफर से पाररत कर हदया जाता है और राष्रपतत के
समक्ष अनम
ु तत के ललए प्रस्तत
ु ककया जाता है तो राष्रपतत उस पर अनम
ु तत नहीं रोकेगा |

वििीय विषयों के सबंध में प्रक्रक्रया

112. िावषमक वििीय वििरण-(1) राष्रपतत प्रत्येक ववर्त्ीय वषत के संबध


ं में संसद के दोनों सदनों
के समक्ष भारत सरकार की उस वषत के ललए प्राक्कललत प्राक्प्तयों और व्यय का वववरण रखवाएगा क्जसे
इस भाग में ''िावषमक वििीय वििरण'' कहा गया है ।

(2) वावषतक ववर्त्ीय वववरण में हदए हुए व्यय के प्राक्कलनों में --
(क) इस संववधान में भारत की संधचत तनधध पर भाररत व्यय के रूप में वणणतत व्यय की पतू तत के
ललए अपेक्षक्षत रालशयाँ, और
(ख) भारत की संधचत तनधध में से ककए जाने के ललए प्रस्थावपत अन्य व्यय की पतू तत के ललए
अपेक्षक्षत रालशयाँ, पथ
ृ क-पथ
ृ क हदखाई जाएँगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद
ककया जाएगा।
(3) तनम्नललणखत व्यय भारत की संधचत तनधध पर भाररत व्यय होगा, अथातत:् --
(क) राष्रपतत की उपलक्ब्धयाँ और भर्त्े तथा उसके पद से संबधं धत अन्य व्यय;
(ख) राज्यसभा के सभापतत और उपसभापतत के तथा लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और
भर्त्े;
(ग) ऐसे ऋण भार, क्जनका दातयत्व भारत सरकार पर है , क्जनके अंतगतत ब्याज, तनक्षेप तनधध भार और
मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से संबधं धत अन्य व्यय हैं;
(घ) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबध
ं में संदेय वेतन, भर्त्े और पें शन;
फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबध
ं में संदेय पें शन;
उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबध
ं में दी जाने वाली पें शन, जो भारत के राज्यक्षेत्र के
अंतगतत ककसी क्षेत्र के संबध
ं में का प्रयोग करता है या जो भारत डोलमतनयन के राज्यपाल वाले प्रांत के
अंतगतत ककसी क्षेत्र के संबध
ं में इस संववधान के प्रारं भ से पहले ककसी भी समय का प्रयोग करता था;

71
(ङ) भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक को, या उसके संबध
ं में , संदेय वेतन, भर्त्े और पें शन;
(च) ककसी न्यायालय या माध्यम ओंधकरण के तनणतय, डडक्री या पंचाट की तक्ु ष्ट के ललए अपेक्षक्षत
रालशयाँ;

-----------------------------

1. संववधान (सातवां संसोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क में ववतनहदत ष्ट राज्य के तत्स्थानी प्रांत” के स्थान पर प्रततस्थावपत |

अनच्
ु छे द 113
------------------

(छ) कोई अन्य व्यय जो इस संववधान द्वारा या संसद द्वारा, ववधध द्वारा, इस प्रकार भाररत
घोवषत ककया जाता है ।

113. संसद में प्रातकलनों के संबध


ं में प्रक्रक्रया - (1) प्राक्कलनों में से क्जतने प्राक्कलन भारत की
संधचत तनधध पर भाररत व्यय से संबधं धत हैं वे संसद में मतदान के ललए नहीं रखे जाएँगे, ककन्तु इस खंड
की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह संसद के ककसी सदन में उन प्राक्कलनों में से
ककसी प्राक्कलन पर चचात को तनवाररत करती है ।

(2) उक्त प्राक्कलनों में से क्जतने प्राक्कलन अन्य व्यय से संबधं धत हैं वे लोकसभा के समक्ष
अनद
ु ानों की माँगों के रूप में रखे जाएँगे और लोकसभा को शक्क्त होगी कक वह ककसी माँग को अनम
ु तत
दे या अनम
ु तत दे ने से इंकार कर दे अथवा ककसी मांग को, उसमें ववतनहदतष्ट रकम को कम करके,
अनम
ु तत दे ।

(3) ककसी अनद


ु ान की माँग राष्रपतत की लसफाररश पर ही की जाएगी, अन्यथा नहीं।

114. विननयोग विधेयक- (1) लोकसभा द्वारा अनच्


ु छे द 113 के अधीन अनद
ु ान ककए जाने के
पश्चात,् यथाशक्य शीघ्र, भारत की संधचत तनधध में से--
(क) लोकसभा द्वारा इस प्रकार ककए गए अनद
ु ानों की, और
(ख) भारत की संधचत तनधध पर भाररत, ककन्तु संसद के समक्ष पहले रखे गए वववरण में दलशतत रकम से
ककसी भी दशा में अनधधक व्यय की,
पतू तत के ललए अपेक्षक्षत सभी धनरालशयों के ववतनयोग का उपबंध करने के ललए ववधेयक परु :स्थावपत ककया
जाएगा।

(2) इस प्रकार ककए गए ककसी अनद


ु ान की रकम में पररवततन करने या अनद
ु ान के लक्ष्य को
बदलने अथवा भारत की संधचत तनधध पर भाररत व्यय की रकम में पररवततन करने का प्रभाव रखने वाला
कोई संशोधन, ऐसे ककसी ववधेयक में संसद के ककसी सदन में प्रस्थावपत नहीं ककया जाएगा और पीठासीन
व्यक्क्त का इस बारे में ववतनश्चय अंततम होगा कक कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह्य है या नहीं।

72
(3) अनच् ु छे द 115 और अनच् ु छे द 16 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत की संधचत तनधध में
से इस अनच्
ु छे द के उपबंधों के अनस
ु ार पाररत ववधध द्वारा ककए गए ववतनयोग के अधीन ही कोई धन
तनकाला जाएगा, अन्यथा नहीं।

115. अनप
ु रू क, अनतररतत या अधधक अनद
ु ान -(1) यहद-
(क) अनच्
ु छे द 114 के उपबंधों के अनस
ु ार बनाई गई ककसी ववधध द्वारा ककसी ववलशष्ट सेवा पर
चालू ववर्त्ीय वषत के ललए व्यय ककए जाने के ललए प्राधधकृत कोई रकम उस वषत के प्रयोजनों के ललए
अपयातप्त पाई जाती है या उस वषत के वावषतक ववर्त्ीय वववरण में अनप
ु यात न की गई ककसी नई सेवा पर
अनप
ु रू क या अततररक्त व्यय की चालू ववर्त्ीय वषत के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है , या
(ख) ककसी ववर्त्ीय वषत के दौरान ककसी सेवा पर, उस वषत और उस सेवा के ललए अनद
ु ान की गई
रकम से अधधक कोई धन व्यय हो गया है ,
तो राष्रपतत, यथाक्स्थतत, संसद के दोनों सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कललत रकम को दलशतत करने
वाला दस
ू रा वववरण रखवाएगा या लोकसभा में ऐसे आधधक्य के ललए माँग प्रस्तत
ु करवाएगा।

अनच्
ु छे द 116
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
(2) ऐसे ककसी वववरण और व्यय या मांग के संबध
ं में तथा भारत की संधचत तनधध में से ऐसे
व्यय या ऐसी माँग से संबधं धत अनद
ु ान की पतू तत के ललए धन का ववतनयोग प्राधधकृत करने के ललए बनाई
जाने वाली ककसी ववधध के संबध
ं में भी, अनच्
ु छे द 112, अनच्
ु छे द 113 और अनच्
ु छे द 114 के उपबंध वैसे
ही प्रभावी होंगे जैसे वे वावषतक ववर्त्ीय वववरण और उसमें वणणतत व्यय या ककसी अनद
ु ान की ककसी मांग
के संबध
ं में और भारत की संधचत तनधध में से ऐसे व्यय या अनद
ु ान की पतू तत के ललए धन का ववतनयोग
प्राधधकृत करने के ललए बनाई जाने वाली ववधध के संबध
ं में प्रभावी हैं।
116. लेखानद
ु ान, प्रत्ययानद
ु ान और अपिादानद
ु ान- (1) इस अध्याय के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में ककसी
बात के होते हुए भी, लोकसभा को-
(क) ककसी ववर्त्ीय वषत के भाग के ललए प्राक्कललत व्यय के संबध
ं में कोई अनद
ु ान, उस अनद
ु ान
के ललए मतदान करने के ललए अनच्
ु छे द 113 में ववहहत प्रकक्रया के परू ा होने तक और उस व्यय के संबध

में अनच्
ु छे द 114 के उपबंधों के अनस
ु ार ववधध के पाररत होने तक, अधग्रम दे ने की;
(ख) जब ककसी सेवा की महर्त्ा या उसके अतनक्श्चत रूप के कारण मांग ऐसे ब्यौरे के साथ वणणतत
नहीं की जा सकती है जो वावषतक ववर्त्ीय वववरण में सामान्यतया हदया जाता है तब भारत के संपवर्त् स्रोतों
पर अप्रत्यालशत मांग की पतू तत के ललए अनद
ु ान करने की;
(ग) ककसी ववर्त्ीय वषत की चालू सेवा का जो अनद
ु ान भाग नहीं है , ऐसा कोई अपवादानद
ु ान करने
की, शक्क्त होगी और क्जन प्रयोजनों के ललए उक्त अनद
ु ान ककए गए हैं उनके ललए भारत की संधचत
तनधध में से धन तनकालना ववधध द्वारा प्राधधकृत करने की संसद को शक्क्त होगी।
(2) खंड (1) के अधीन ककए जाने वाले ककसी अनद
ु ान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाली
ककसी ववधध के संबध
ं में अनच्
ु छे द 113 और अनच्
ु छे द 114 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वावषतक
ववर्त्ीय वववरण में वणणतत ककसी व्यय के बारे में कोई अनद
ु ान करने के संबध
ं में और भारत की संधचत
तनधध में से ऐसे व्यय की पतू तत के ललए धन का ववतनयोग प्राधधकृत करने के ललए बनाई जाने वाली ववधध
के संबध
ं में प्रभावी हैं।

73
117. विि विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध - (1) अनच्
ु छे द 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से
उपखंड (च) में ववतनहदत ष्ट ककसी ववषय के ललए उपबंध करने वाला ववधेयक या संशोधन राष्रपतत की
लसफाररश से ही परु ःस्थावपत या प्रस्ताववत ककया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला
ववधेयक राज्य सभा में परु ःस्थावपत नहीं ककया जाएगा।
परन्तु ककसी कर के घटाने या उत्सादन के ललए उपबंध करने वाले ककसी संशोधन के प्रस्ताव के ललए इस
खंड के अधीन लसफाररश की अपेक्षा नहीं होगी।
(2) कोई ववधेयक या संशोधन उक्त ववषयों में से ककसी के ललए उपबंध करने वाला केवल इस
कारण नहीं समझा जाएगा कक वह जुमातनों या अन्य धनीय शाक्स्तयों के अधधरोपण का अथवा
अनज्ञ
ु क्प्तयों के ललए फीसों की या की गई सेवाओं के ललए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध
करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कक वह ककसी स्थानीय प्राधधकारी या तनकाय द्वारा
स्थानीय प्रयोजनों के ललए ककसी कर के अधधरोपण, उत्सादन, पररहार, पररवततन या ववतनयमन का उपबंध
करता है ।

(3) क्जस ववधेयक को अधधतनयलमत और प्रवतततत ककए जाने पर भारत की संधचत तनधध में से
व्यय करना पड़ेगा वह ववधेयक संसद के ककसी सदन द्वारा तब तक पाररत नहीं ककया जाएगा जब तक
ऐसे ववधेयक पर ववचार करने के ललए उस सदन से राष्रपतत ने लसफाररश नहीं की है ।
साधारणतया प्रक्रक्रया
118. प्रक्रक्रया के ननयम--(1) इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद के प्रत्येक सदन
अपनी प्रकक्रया और अपने कायत संचालन के ववतनयमन के ललए तनयम बना सकेगा।
(2) जब तक खंड (1) के अधीन तनयम नहीं बनाए जाते हैं तब तक इस संववधान के प्रारं भ से
ठीक पहले भारत डोलमतनयन के ववधान-मंडल के संबध
ं में जो प्रकक्रया के तनयम और स्थायी आदे श प्रवर्त्

थे।
वे ऐसे उपांतरणों और अनक
ु ू लनों के अधीन रहते हुए संसद के संबध
ं में प्रभावी होंगे क्जन्हें , यथाक्स्थतत,
राज्य सभा का सभापतत या लोकसभा का अध्यक्ष उनमें करे ।
(3) राष्रपतत, राज्य सभा के सभापतत और लोकसभा के अध्यक्ष से परामशत करने के पश्चात,्
दोनों सदनों की संयक्
ु त बैठकों से संबधं धत और उनमें परस्पर संचार से संबधं धत प्रकक्रया के तनयम बना
सकेगा।
(4) दोनों सदनों की संयक्
ु त बैठक में लोकसभा का अध्यक्ष या उसकी अनप
ु क्स्थतत में ऐसा
व्यक्क्त पीठासीन होगा क्जसका खंड (3) के अधीन बनाई गई प्रकक्रया के तनयमों के अनस
ु ार अवधारण
ककया जाए।
119. संसद में वििीय कायम संबध
ं ी प्रक्रक्रया का विधध द्िारा विननयमन -संसद, ववर्त्ीय कायत को
समय के भीतर परू ा करने के प्रयोजन के ललए ककसी ववर्त्ीय ववषय से संबधं धत या भारत की संधचत तनधध
में से धन का ववतनयोग करने के ललए ककसी ववधेयक से संबधं धत, संसद के प्रत्येक सदन की प्रकक्रया और
कायत संचालन का ववतनयमन ववधध द्वारा कर सकेगी तथा यहद और जहां तक इस प्रकार बनाई गई
ककसी ववधध का कोई उपबंध अनच्
ु छे द 118 के खंड (1) के अधीन संसद के ककसी सदन द्वारा बनाए गए
तनयम से या उस अनच्
ु छे द के खंड (2) के अधीन संसद के संबध
ं में प्रभावी ककसी तनयम या स्थायी
आदे श से असंगत है तो और वहां तक ऐसा उपबंध अलभभावी होगा।

74
120. संसद में प्रयोग की जाने िाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककन्तु
अनच्
ु छे द 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद में कायत हहन्दी में या अंग्रज
े ी में ककया जाएगा:
परन्त,ु यथाक्स्थतत, राज्य सभा का सभापतत या लोकसभा का अध्यक्ष अथवा उस रूप में कायत
करने वाला व्यक्क्त ककसी सदस्य को, जो हहन्दी में या अंग्रेजी में अपनी पयातप्त अलभव्यक्क्त नहीं कर
सकता है , अपनी मातभ
ृ ाषा में सदन को संबोधधत करने की अनज्ञ
ु ा दे सकेगा।
(2) जब तक संसद ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संववधान के प्रारं भ के पंद्रह
वषत की अवधध की समाक्प्त के पश्चात ् यह अनच्
ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो ''या अंग्रेजी में '' शब्दों का
उसमें से लोप कर हदया गया हो।
121. संसद में चचाम पर ननबमन्धन -उच्चतम न्यायालय या ककसी उच्च न्यायालय के ककसी
न्यायाधीश के, अपने कततव्यों के तनवतहन में ककए गए आचरण के ववषय में संसद में कोई चचात इसमें
इसके पश्चात ् उपबंधधत रीतत से उस न्यायाधीश को हटाने की प्राथतना करने वाले समावेदन को राष्रपतत
के समक्ष प्रस्तत
ु करने के प्रस्ताव पर ही होगी, अन्यथा नहीं।

अनच्
ु छे द 122
122. न्यायालयों द्िारा संसद की कायमिार्हयों की जााँच न क्रकया जाना- (1) संसद की ककसी
कायतवाही की ववधधमान्यता की प्रकक्रया की ककसी अलभकधथत अतनयलमतता के आधार पर प्रश्नगत नहीं
ककया जाएगा।
(2) संसद का कोई अधधकारी या सदस्य, क्जसमें इस संववधान द्वारा या इसके अधीन संसद में
प्रकक्रया या कायत संचालन का ववतनयमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्क्तयाँ तनहहत हैं,
उन शक्क्तयों के अपने द्वारा प्रयोग के ववषय में ककसी न्यायालय के अधीन नहीं होगा।

अध्याय -3
राष्ट्रपनत की विधायी शक्ततयााँ
123. संसद के विश्रांनतकाल में अध्यादे श प्रख्यावपत करने की राष्ट्रपनत की शक्तत-
(1) उस समय को छोड़कर जब संसद के दोनों सदन सत्र में हैं, यहद ककसी समय राष्रपतत का
यह समाधान हो जाता है कक ऐसी पररक्स्थततयाँ ववद्यमान हैं क्जनके कारण तरु ं त कारत वाई करना उसके
ललए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्यावपत कर सकेगा जो उसे उन पररक्स्थततयों में
अपेक्षक्षत प्रतीत हों।
(2) इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रख्यावपत अध्यादे श का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद के
अधधतनयम का होता है , ककन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादे श –
(क) संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद के पन
ु ः समवेत होने से छह सप्ताह
की समाक्प्त पर या यहद उस अवधध की समाक्प्त से पहले दोनों सदन उसके अननम
ु ोदन का संकल्प
पाररत कर दे ते हैं तो, इनमें से दस
ू रे संकल्प के पाररत होने पर प्रवततन में नहीं रहे गा; और
(ख) राष्रपतत द्वारा ककसी भी समय वापस ललया जा सकेगा।
स्पष्ट्टीकरण - जहाँ संसद के सदन, लभन्न-लभन्न तारीखों को पन
ु ः समवेत होने के ललए, आहूत
ककए जाते हैं वहाँ इस खंड के प्रयोजनों के ललए, छह सप्ताह की अवधध की गणना उन तारीखों में से
पश्चातवती
् तारीख से की जाएगी।

75
(3) यहद और जहाँ तक इस अनच्
ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता है क्जसे
अधधतनयलमत करने के ललए संसद इस संववधान के अधीन सक्षम नहीं है तो और वहाँ तक वह अध्यादे श
शन्
ू य होगा।
[* * * * ]
1

अध्याय 4

संघ की न्यायपाललका

124. उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन – (1) भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा
जो भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत और, जब तक संसद् ववधध द्वारा अधधक संख्या ववहहत नहीं करीत है तब
तक, सात2 से अनधधक अन्य न्यायधीशों से लमलकर बनेगा|

___________________
1. संववधान (अड़तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 2 द्वारा (भूतलक्षी रूप से) खंड (4)
अंत:स्थावपत ककया गया और संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 16
द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप ककया गया|
2. उच्चतम नायालय (न्यायाधीश संख्या) संशोधन अधधतनयम, 2008 (2009 का 11) की धारा 2 के
अनुसार अब यह संख्या तीस है |

(2) उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामशत करने
के पश्चात ्, क्जनसे राष्रपतत इस प्रयोजन के ललए परामशत करना आवश्यक समझे, राष्रपतत अपने
हस्ताक्षर और मद्र
ु ा सहहत अधधपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को तनयक्
ु त करे गा
और वह न्यायाधीश को तनयक्
ु त करे गा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करे गा जब तक वह पैंसठ
वषत की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है :

परन्तु मख्
ु य न्यायमतू तत से लभन्न ककसी न्यायाधीश की तनयक्ु क्त की दशा में भारत के मख्
ु य
न्यायमतू तत से सदै व परामशत ककया जाएगा :

परन्तु यह और कक –

(क) कोई न्यायाधीश, राष्रपतत को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपना पद त्याग
सकेगा ;
(ख)ककसी न्यायाधीश को खंड (4) में उपबंधधत रीतत से उसके पद से हटाया जा सकेगा|

[(2क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश कक आयु ऐसे प्राधधकारी द्वारा और ऐसी रीतत से
1

अवधाररत की जाएगी क्जसका संसद् ववधध द्वारा उपबंध करे |]

(3) कोई व्यक्क्त, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के न्यायाधीश के रूप में तनयक्ु क्त के ललए
तभी अहहतत होगा जब वह भारत का नागररक है और –

(क) ककसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधधक न्यायालयों का लगातार कम से कम पांच


वषत तक न्यायाधीश रहा है ; या

76
(ख) ककसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधधक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस
वषत तक अधधवक्ता रहा है ;या

(ग) राष्रपतत की राय में पारं गत ववधधवेर्त्ा है|

स्पष्ट्टीकरण 1 – इस खंड में , “उच्च न्यायालय” से वह उच्च न्यायालय अलभप्रेत है जो भारत के


राज्यक्षेत्र के ककसी भारत में अधधकाररता का प्रयोग करता है , या इस संववधान के प्रारं भ से पहले ककसी
भी समय प्रयोग करता था|

स्पष्ट्टीकरण 2 – इस खंड के प्रयोजन के ललए, ककसी व्यक्क्त के अधधवक्ता रहने की अवधध की


संगणना करने में वह अवधध की संगणना करने में वह अवधध भी सक्म्मललत की जाएगी क्जसके दौरान
ककसी व्यक्क्त ने अधधवक्ता होने के पश्चात ् ऐसा न्यातयक पद धारण ककया है जो क्जला न्यायाधीश के
पद से अवर नहीं है |

(4) उच्चतम न्यायालय के ककसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा तब


तक सात्रबत कदाचार या असमथतता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के ललए संसद् के प्रत्येक सदन द्वारा
अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपक्स्थत और मत दे ने वाले सदस्यों के कम से कम दो-
ततहाई बहुमत द्वारा समधथतत समावेदन, राष्रपतत के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्रपतत ने आदे श
नहीं दे हदया है |

(5) संसद् खंड (4) के अधीन ककसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या
असमथतता के अन्वेषण और सात्रबत करने की प्रकक्रया का ववधध द्वारा ववतनयमन कर सकेगी|

___________________
1. संववधान (पन्द्रहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत |

(6) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के ललए तनयक्


ु त प्रत्येक व्यक्क्त, अपना पद ग्रहण
करने से पहले राष्रपतत या उसके द्वारा इस तनलमर्त् तनयक्
ु त व्यक्क्त के समक्ष, तीसरी अनस
ु च
ू ी में इस
प्रयोजन के ललए हदए गए प्ररूप के अनस
ु ार, शपथ लेगा या प्रततज्ञान करे गा और उस पर अपने हस्ताक्षर
करे गा|

(7) कोई व्यक्क्त, क्जसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण ककया है , भारत
के राज्यक्षेत्र के भीतर ककसी न्यायालय में या ककसी प्राधधकारी के समक्ष अलभवचन या कायत नहीं करे गा|

125. न्यायाधीशों के िेतन आर्द – 1[(1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का
संदाय ककया जाएगा जो संसद्, ववधध द्वारा, अवधाररत करें और जब तक इस तनलमर्त् इस प्रकार उपबंध
नहीं ककया जता है तब तक ऐसे वेतनों का संदाय ककया जाएगा जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट है |]

(2) प्रत्येक न्यायाधीशों ऐसे ववशेषाधधकारों और भर्त्ो का तथा अनप


ु क्स्थतत छुट्टी और पें शन के
संबध
ं में ऐसे अधधकारों का, जो संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर
अवधाररत ककए जाएं और जब तक इस प्रकार अवधाररत नहीं ककए जाते है तब तक ऐसे ववशेषाधधकारों,
भर्त्ो और अधधकारों का जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदतष्ट है , हकदार होगा :

77
परं तु ककसी न्यायाधीश के ववशेषाधधकारों और भर्त्ो में तथा अनप
ु क्स्थतत छुट्टी या पें शन के संबध

में उसके अधधकारों में उसकी तनयक्ु क्त के पश्चात ् उसके ललए अलाभकारी पररवततन नहीं ककया जाएगा|

126. कायमकारी मख्


ु य न्यायमनू तम की ननयक्ु तत – जब भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत का पद ररक्त है
या जब मख्
ु य न्यायमतू तत, अनप
ु क्स्थतत के कारण या अन्यथा अपने पद के कततव्यों का पालन करने में
असमथत है तब न्यायालय के ने न्यायाधीशों में से ऐसा एक न्यायाधीश, क्जसे राष्रपतत इस प्रयोजन के
ललए तनयक्
ु त करे , उस पद के कततव्यों का पालन करे गा|

127. तदथम न्यायाधीशों की ननयक्ु तत – (1) यहद ककसी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को
आयोक्जत करने या चालू रखने के ललए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपतू तत प्राप्त न हों तो भारत
का मख्
ु य न्यायमतू तत राष्रपतत की पव
ू त सहमतत से और संबधं धत उच्च न्यायालय के मख्
ु य न्यायमतू तत से
परामशत करने के पश्चात ्, ककसी उच्च न्यायालय के ककसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का
न्यायाधीश तनयक्
ु त होने के ललए सम्यक् रूप से अहहतत है और क्जसे भारत का मख्
ु य न्यायमतू तत
नामतनहदत ष्ट करे , न्यायालय की बैठकों में उतनी अवधध के ललए, क्जतनी आवश्यक हों, तदथत न्यायाधीश
के रूप में उपक्स्थत रहने के ललए ललणखत रूप में अनरु ोध कर सकेगा|

(2) इस प्रकार नामतनहदत ष्ट न्यायाधीश का कततव्य होगा कक वह अपने पद के अन्य कततव्यों पर
पवू वतकता दे कर उस समय और उस अवधध के ललए, क्जसके ललए उसकी उपक्स्थतत अपेक्षक्षत है , उच्चतम
न्यायालय की बैठकों में , उपक्स्थत हों और जब वह इस प्रकार उपक्स्थत होता है तब उसको उच्चतम
न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधधकाररता, शक्क्तयां और ववशेषाधधकार होंगे और वह उक्त
न्यायाधीश के कततव्यों का तनवतहन करे गा|

___________________
1. संववधान (चौवनवां संशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान
पर प्रततस्थावपत|

128. उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेिाननिि


ृ न्यायाधीशों की उपक्स्थनत – इस अध्याय में
ककसी बात के होते हुए भी, भारत का मख् ु य न्यायमतू तत, ककसी भी समय, राष्रपतत की पव
ू त सहमतत से
ककसी व्यक्क्त से, जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है
[या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चक
1
ु ा है और उच्चतम न्यायालय का
न्यायाधीश तनयक्
ु त होने के ललए सम्यक् से अहहतत है ,] उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने
और कायत करने का अनरु ोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यकक्र, क्जसमे इस प्रकार अनरु ोध ककया जाता
है , इस प्रकार बैठने और कायत करने के दौरान, ऐसे भर्त्ो का हकदार होगा जो राष्रपतत आदे श द्वारा
अवधाररत करे और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधधकाररता, शक्क्तयाँ और
ववशेषाधधकार होंगे, ककन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा

परं तु जब तक यथापव
ू ोक्त व्यक्क्त उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कायत करने
की सहमतत नहीं दे दे ता है तब तक इस अनच्
ु छे द की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली
नहीं समझी जाएगी|

78
129. उच्चतम न्यायालय का अलभलेख न्यायालय होना – उच्चतम न्यायालय अलभलेख न्यायालय
होगा और उसकी अपने अवमान के ललए दं ड दे ने की शक्क्त सहहत ऐसे न्यायालय की सभी शक्क्तयां
होंगी|

130. उच्चतम न्यायालय का स्थान – उच्चतम न्यायालय हदल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान या
स्थानों में अधधववष्ट होगा क्जन्हें भारत का मख्
ु य न्यायमतू तत, राष्रपतत के अनम
ु ोदन से समय-समय पर,
तनयत करें |

131. उच्चतम न्यायालय की आरं लभक अधधकाररता – इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते
हुए, –

(क) भारत सरकार और एक या अधधक राज्यों के बीच, या

(ख) एक ओर भारत सरकार और ककसी राज्य या राज्यों और दस


ू री ओर एक या अधधक अन्य
राज्यों के बीच, या

(ग) दो या अधधक राज्यों के बीच,

ककसी वववाद में , यहद और जहां तक उस वववाद में (ववधध का या तथ्य का) ऐसा कोई प्रश्न अंतवतललत है
क्जस पर ककसी ववधधक अधधकार का अक्स्तत्व या ववस्तार तनभतर है तों और वह तक अन्य न्यायालयों का
अपवजतन करके उच्चतम न्यायालय को आरं लभक अधधकाररता होगी:

[ परं तु उक्त अधधकाररता का ववस्तार उस वववाद पर नहीं होगा जो ककसी ऐसी संधध, करार,
2

प्रसंववदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य ललखत से उत्पन्न हुआ है जो सी संववधान के प्रारं भ से पहले
की गई थी या तनष्पाहदत की गई थी और ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् प्रवततन में है या जो यह उपबंध करती है
की उक्त अधधकाररता का ववस्तार ऐसे वववाद पर नहीं होगा|]

___________________
1. संववधान (पन्द्रहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थावपत|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1953 की धारा 5 द्वारा परन्तुक के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

[ 131क. केन्रीय विधधयों की सांविधाननक िैधता से संबधं धत प्रश्नों के बारे में उच्चतम
1

न्यायालय की अनन्य अधधकाररता – [संववधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 4


द्वारा (13-4-1978) से तनरलसत|]]

132. कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधधकाररता
– (1) भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी उच्च न्यायालय की लसववल, दांडडक या अन्य कायतवाही में हदए
गए ककसी तनणतय, डडक्री या अंततम आदे श की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी 6[यहद वह उच्च
न्यायालय अनच्
ु छे द 134क के अधीन प्रमाणणत कर दे ता है कक उस मामले में इस संववधान के
तनवातचन के बारे में ववधध का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवतललत है |

79
3
[****]

(3) जहाँ ऐसा प्रमाणपत्र दे हदया गया है 4[***] वहां उस मामले में कोई पक्षकार इस आधार प ्
उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा कक पव
ू ोक्त ककसी प्रश्न का ववतनश्चय गलत ककया गया है
4
[***]|

स्पष्ट्टीकरण – इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललया, “अंततम आदे श’ पद के अंतगतत ऐसे वववाद्यक
का ववतनश्चय करने वाला आदे श है जो, यहद अपीलाथी के पक्ष में ववतनक्श्चत ककया जाता है तों, उस
मामले के अंततम तनपटारे के ललए पयातप्त होगा|

133. उच्च न्यायालयों से लसविल विषयों से संबधं धत अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली
अधधकाररता- [(1) भारत के राज्यक्षेत्र में ककस उच्च न्यायालय की लसववल कायतवाही में हदए गए
5

ककसी तनणतय, डडक्री या अंततम आदे श की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी 6[यहद उच्च न्यायालय
अनच्
ु छे द 134क के अधीन प्रमाणणत कर दे ता है कक]

(क) उस मामले में ववधध का व्यापक महत्व का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवतललत है ; और

(ख) उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा ववतनश्चय आवश्यक है |]

(2) अनच्
ु छे द 132 में ककसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय में खंड (1) के अधीन
अपील करने वाला कोई पक्षकार ऐसी अपील के आधारों में यह आधार भी बता सकेगा कक इस
संववधान के तनवतचन के बारे में ववधध के ककसी सारवान ् प्रश्न का ववतनश्चय गलत ककया गया है |

___________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 23 द्वारा (1-2-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) “यहद
उच्च न्यायालय प्रमाणणत कर दे ” के स्थान आर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (2)
का लोप ककया गया|
4. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) कुछ शब्दों
का लोप ककया गया|
5. संववधान (तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (27-2-1973 से) खंड (1) के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
6. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 18 द्वारा (1-8-1979 से) “यहद
उच्च न्यायालय प्रमाणणत करे ” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(3) इस अनच्
ु छे द में ककसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के तनणतय, डडक्री
या अंततम आदे श की अपील उच्चतम न्यायालय में तब तक नहीं होगी जब तक संसद् ववधध द्वारा
अन्यथा उपबंध न करे |

80
134. दांडडक विषयों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधधकाररता – (1) भारत के राज्यक्षेत्र में
ककसी उच्च न्यायालय की दांडडक कायतवाही में हदए गए ककसी तनणतय, अंततम आदे श या दं डादे श की
अपील उच्चतम न्यायालय में होगी यहद –

(क) उस उच्च न्यायालय ने अपील में ककसी अलभयक्


ु त व्यक्क्त की दोषमक्ु क्त के आदे श को उलट
हदया है और उसकी मत्ृ यु दं डादे श हदया है ; या

(ख) उस उच्च न्यायालय ने अपने प्राधधकार के अधीनस्थ ककसी न्यायालय से ककसी मामले को
ववचारण के ललए अपने पास मंगा ललया है और ऐसे ववचारण में अलभयक्
ु त व्यक्क्त को
लसद्धदोष ठहराया है और उसको मत्ृ यु दं डादे श हदया है ; या

(ग) वह उच्च न्यायालय 1[अनच्


ु छे द 134क के अधीन प्रमाणणत कर दे ता है ] कक मामला उच्चतम
न्यायालय में अपील ककए जाने योग्य है :

परं तु उपखंड (ग) के अधीन अपील ऐसे उपबंधों के अधीन रहते हुए होगी जो अनच्
ु छे द 145 के
खंड (1) के अधीन इस तनलमत बनाए जाएं और ऐसी शतों के अधीन रहते हुए होगी जो उच्च न्यायालय
तनयत या अपेक्षक्षत करे |

(2) संसद् ववधध द्वारा उच्चतम न्यायालय को भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी उच्च न्यायालय की
दांडडक कायतवाही में हदए गए ककसी तनणतय, अंततम आदे श या दं डादे श की अपील ऐसी शतों और
पररसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो ऐसी ववधध में ववतनहदत ष्ट की जाएं, ग्रहण करने और सन
ु ने कक
अततररक्त शक्क्त दे सकेगी|

2
[134.क. उच्चतम न्यायालय में अपील के ललए प्रमाणपत्र – प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो
अनच्
ु छे द 132 के खंड (1) या अनच्
ु छे द 133 के खंड (1) या अनच्
ु छे द 134 के खंड (1) में तनहदत ष्ट
तनणतय, डडक्री, अंततम आदे श या दं डादे श पाररत करता है या दे ता है , इस प्रकार पाररत ककए जाने या हदए
जाने के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र, इस प्रश्न का अवधारण कक उस मामले के संबध
ं में , यथाक्स्थतत,
अनच्
ु छे द 132 के खंड (1) या अनच्
ु छे द 133 के खंड (1) या अनच्
ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग)
में तनहदत ष्ट प्रकृतत का प्रमाणपत्र हदया जाए या नहीं, -

(क) यहद वह ऐसा करना ठीक समझता है तों स्वप्रेरणा से कर सकेगा ; और


(ख)यहद ऐसा तनणतय, डडक्री, अंततम आदे श या दं डादे श पाररत ककए जाने या हदए जाने के ठीक
पश्चात ् व्यधथत पक्षकार द्वारा या उसकी ओर से मौणखक आवेदन ककया जाता है तो करे गा|]

135. विद्यमान विधध के अधीन फेडरल न्यायालय क्रक अधधकाररता और शक्ततयों का उच्चतम
न्यायालय द्िारा प्रयोततव्य होना – जब तक संसद् ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक उच्चतम
न्यायालय को भी ककसी ऐसे ववषय के संबध
ं में , क्जसको अनच्
ु छे द 133 या अनच्
ु छे द 134 के उपबंध लागू
नहीं होते है , अधधकाररता और शक्क्तयां होंगी यहद उस ववषय के संबध
ं में इस संववधान के प्रारं भ से ठीक
पहले ककसी ववद्यमान ववधध के अधीन अधधकाररता और शक्क्तयां फेडरल न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य थीं|

___________________

81
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 19 द्वारा (1-8-1979 से) “प्रमाणणत
करता है ’ के स्थान पर प्रततस्थावपत|

2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 20 द्वारा (1-8-1979 से) अंत:स्थावपत|

136. अपील के ललए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत – (1) इस अध्याय में ककसी बात के होते हुए
भी, उच्चतम न्यायालय अपने वववेकानस
ु ार भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी न्यायालय या अधधकरण द्वारा
ककसी वाद या मामले में पाररत ककए गए ककसी तनणतय, डडक्री, अवधारण, दं डादे श या आदे श की अपील के
ललए ववशेष इजाजत दे सकेगा|

(2) खंड (1) की कोई बात सशस्त्र बलों से संबधं धत ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन गहठत
ककसी न्यायालय या अधधकरण द्वरा पाररत ककए गए या हदए गए ककसी तनणतय, अवधारण, दं डादे श या
आदे श को लागू नहीं होगी|

137. ननणमयों या आदे शों का उच्चतम न्यायालयों द्िारा पन


ु विमलोकन – संसद् द्वारा बनाई गई
ककसी ववधध के या अनच्ु छे द 145 के अधीन बनाए गए तनयमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम
न्यायालय को अपने द्वारा सन ु ाए गए तनणतय या हदए गए आदे श का पन
ु ववतलोकन करने की शक्क्त होगी|

138. उच्चतम न्यायालय की अधधकाररता की िद्


ृ धध – (1) उच्चतम न्यायालय को संघ सधू च के
ववषयों में से ककसी के संबध
ं में ऐसी अततररक्त अधधकाररता और शक्क्तयाँ होंगी जो संसद् ववधध द्वारा
प्रदान करे |

(2) यहद संसद् ववधध द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अधधकाररता और शक्क्तयों के प्रयोग
का उपबंध करती है तो उच्तम न्यायालय को ककसी ववषय के संबध
ं में ऐसी अततररक्त अधधकाररता और
शक्क्तयाँ होंगी जो भारत सरकार और ककसी राज्य की सरकार ववशेष करार द्वारा प्रदान करे i|

139. कुछ ररट ननकालने की शक्ततयों का उच्चतम न्यायालय को प्रदि क्रकया जाना – संसद् ववधध
द्वारा उच्चतम न्यायालय को अनच्
ु छे द 32 के खंड (2) में वणणतत प्रयोजनों से लभन्न ककन्हीं प्रयोजनों के
ललए ऐसे तनदे श, आदे श या ररट, क्जनके अंतगतत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादे श, प्रततषेध, अधधकार-पच्
ृ छा
और उत्प्रेषण ररट है , या उनमे से कोई तनकालने की शक्क्त प्रदान कर सकेगी|

1
[139क. कुछ मामलों का अंतरण – 2[(1)यहद ऐसे मामले, क्जनमें ववधध के सामान या सारत:
समान प्रश्न अंतवतललत है , उच्चतम न्यायालय के और एक या अधधक उच्च न्यायालयों के अथवा दो या
अधधक उच्च न्यायालयों के समक्ष लंत्रबत है और उच्चतम न्यायालय का स्वप्रेरणा से अथवा भारत को
महान्यायवादी द्वारा या ऐसे ककसी मामले की ककसी पक्षकार द्वारा ककए गए आवेदन पर वह समाधान
हों जाता है कक ऐसे प्रश्न व्यापक महत्व के सारवान ् प्रश्न है तो, उच्चतम न्यायालय उस उच्च न्यायालय
या उन उच्च न्यायालयों के समक्ष लंत्रबत मामले या मामलों को अपने पास मंगा सकेगा और उन सभी
मामलों को स्वयं तनपटा सकेगा :

परं तु उच्चतम न्यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उक्त ववधध के प्रश्नों का अवधारण
करने के पश्चात ् ऐसे प्रश्नों पर अपने तनणतय की प्रततललवप सहहत उस उच्च न्यायालय को, क्जससे मामला

82
मंगा ललया गया है , लौटा सकेगा और वह उच्च न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे
तनणतय के अनरू
ु प तनपटाने के ललए आगे कायतवाही करे गा|]

(2) यहद उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्दे श्य की पतू तत के ललए ऐसा करना समीचीन समझता है
तो वह ककसी उच्च न्यायालय के समक्ष लंत्रबत ककसी मामले, अपील या अन्य कायतवाही का अंतरण ककसी
अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगे|]

140. उच्चतम न्यायालय की आनष


ु धं गक शक्ततयााँ – संसद्, ववधध द्वारा, उच्चतम न्यायालय को
ऐसी अनप
ु रू क शक्क्तयां प्रदान करने के ललए उपबंध कर सकेगी जो इस संववधान के उपबंधों में से ककसी
से असंगत न हों और जो उस न्यायालय को इस संववधान द्वारा या इसके अधीन प्रदर्त् अधधकाररता का
अधधक प्रभावी रूप से प्रयोग करने के योग्य बनाने के ललए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हों|

141. उच्चतम न्यायालय द्िारा घोवषत विधध का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना –
उच्चतम न्यायालय द्वरा घोवषत ववधध भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होगी|

142. उच्चतम न्यायालय की डडक्रक्रयों और आदे शों का प्रितमन और प्रकटीकरण आर्द के बारे में
आदे श- (1) उच्चतम न्यायालय अपनी अधधकाररता का प्रयोग करते हुए ऐसी डडक्री पाररत कर सकेगा या
ऐसा आदे श कर सड़ेगा जो उसके समक्ष लंत्रबत ककसी वाद या ववषय में पण ू त न्याय करने के ललए
आवश्यक हों और इस प्रकार पाररत डडक्री या ककया गया आदे श भारत के राज्यक्षेत्र में सवतत्र ऐसी रीतत से,
जो संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वरा या उसके अधीन ववहहत की जाए, और जब तक इस तनलमर्त्
इस प्रकार उपबंध नहीं ककया जाता है तब तक, ऐसी रीतत से जो राष्रपतत आदे श3 द्वारा ववहहत करे ,
प्रवततनीय होगा|

___________________
1. संववधान (बयालीसवां सशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 24 द्वारा (1-2-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां सशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 21 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (1)
के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. उच्चतम न्यायालय (डडक्री और आदे श) प्रवततन आदे श, 1954 (सं.आ.47) दे णखए|

(2) संसद् द्वारा इस तनलमर्त् बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए उच्चतम
न्यायालयों को भारत के सम्पणू त राज्यक्षेत्र के बारे में ककसी व्यक्क्त को हाक्जर कराने के, ककन्हीं
दस्तावेजों के प्रकटीकरण या पेश कराने के अथवा अपने ककसी अवमान का अन्वेषण करने या दं ड
दे ने के प्रयोजन के ललए कोई आदे श करने की समस्त और प्रत्येक शक्क्त होगी|

143. उच्चतम न्यायालय से परामशम करने की राष्ट्रपनत की शक्तत – (1) यहद ककसी समय
राष्रपतत को प्रतीत होता है कक ववधध या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने
की संभावना है , जो ऐसी प्रकृतत का और ऐसे व्यापक महत्व का है कक उस पर उच्चतम न्यायालय
की राय प्राप्त करना समीचीन है , तो वह उस प्रश्न को ववचार करने के ललए उस न्यायालय को

83
तनदे लशत कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी सन
ु वाई के पश्चात ् जो वह ठीक समझता है , राष्रपतत
को उस पर अपनी राय प्रततवेहदत कर सकेगा|

(2) राष्रपतत अनच्


ु छे द 131 [***] के परन्तक
1
ु में ककसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार के
वववाद को, जो 2[उक्त परं तक
ु ] में वणणतत है , राय दे ने के ललए उच्चतम न्यायालय को तनदे लशत कर
सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सन
ु वाई के पश्चात ् जो वह ठीक समझता है , राष्रपतत को उस
पर अपनी राय प्रततवेहदत करे गा|

144. लसविल और न्यानयक प्राधधकाररयों द्िारा उच्चतम न्यायालय की सहायता में कायम क्रकया
जाना – भारत के राज्यक्षेत्र के सभी लसववल और न्यातयक प्राधधकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में
कायत करें गे|

[144.क विधधयों की सांविधाननक िैधता से संबधं धत प्रश्नों के ननपटारे के बारे में विशेष उपबंध –
3

[संववधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 5 द्वारा (13-4-178 से) तनरलसत|]

145 न्यायालय के ननयम आर्द – (1) संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन
रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, राष्रपतत के अनम ु ोदन से न्यायालय की पद्धतत और
प्रकक्रया के, साधारणतया, ववतनयमन के ललए तनयम बना सकेगा क्जसके अंतगतत तनम्नललणखत भी है ,
अथातत ् :

(क) उस न्यायालय में ववधध-व्यवसाय करने वाले व्यक्क्तयों के बारे में तनयम ;
(ख)अपीलें सन
ु ने के ललए प्रकक्रया के बारे में और अपीलों संबध
ं ी अन्य ववषयों के बारे में , क्जनके
अंतगतत वह समय भी है क्जसके भीतर अपीलें उस न्यायालय में ग्रहण की जानी है , तनयम;
(ग) भाग 3 द्वारा प्रदर्त् अधधकारों में से ककसी का प्रवततन कराने के ललए उस न्यायालय में
कायतवाहहयों के बारे में तनयम ;

[(गग) 5[अनच्
4
ु छे द 139क] के अधीन उस न्यायालय में कायतवाहहयों के बारे में तनयम] ;

___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “के खंड (i)”
शब्दों, कोष्ठकों आर अंक का लोप ककया गया|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “उक्त खंड” के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 25 द्वारा (1-2-1977 से)
अंत:स्थावपत|
4. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से)
अंत:स्थावपत|
5. संववधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) “अनुच्छे द
131क और 139क” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

84
(घ) अनच्
ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन अपीलों को ग्रहण ककए जाने के बारे में
तनयम ;
(ङ) उस न्यायालय द्वारा सन
ु ाए गए ककसी तनणतय या ककए गए आदे श का क्जन शतों के अधीन
रहते हुए पन ु ववतलोकन ककया जा सकेगा उनके बारे में और ऐसे पनु ववतलोकन के ललए प्रकक्रया
के बारे में , क्जसके अंतगतत वह समय भी है क्जसके भीतर ऐसे पन ु ववतलोकन के ललए आवेदन
उस न्यायालय में ग्रहण ककए जाने है , तनयम ;
(च) उस न्यायालय में ककन्हीं कायतवाहहयों के और उनके आनष
ु धं गक खचे के बारे में, तथा उसमे
कायतवाहहयों के संबध
ं में प्रभाररत की जाने वाली फीसों के बारे में तनयम;
(छ) जमानत मंजूर करने के बारे में तनयम ;
(ज) कायतवाहहयों को रोकने के बारे में तनयम ;
(झ)क्जस अपील के बारे में उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है कक वह तच्
ु छ या तंग करने
वाली है अथवा ववलंब करने के प्रयोजन से की गई है , उसके संक्षक्षप्त अवधारण के ललए
उपबंध करने वाले तनयम ;
(ञ) अनच्
ु छे द 317 के खंड (1) में तनहदत ष्ट जांचो के ललए प्रकक्रया के बारे में तनयम|

(2) 1[2[***] खंड (3) के उपबंधों] के अधीन रहते हुए, इस अनच्


ु छे द के अधीन बनाए गए तनयम,
उन न्यायाधीशों की न्यनू तम संख्या तनयत कर सकेंगे जो ककसी प्रयोजन के ललए बैठेंगे तथा एकल
न्यायाधीशों और खंड न्यायालयों की शक्क्त के ललए उपबंध कर सकेंगे|

(3) क्जस मामले में इस संववधान के तनवतचन के बारे में ववधध का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवतललत
है उसका ववतनश्चय करने के प्रयोजन के ललए या इस संववधान के अनच्
ु छे द 143 के अधीन तनदे श की
सन
ु वाई करने के प्रयोजन के ललए बैठने वाले न्यायाधीशों की [ [***न्यन
3 4
ू तम संख्या] पांच होगी :

परं तु जहां अनच्


ु छे द 132 से लभन्न इस अध्याय के उपबंधों के अधीन अपील की सन
ु वाई करने
वाला न्यायालय पांच से कम न्यायाधीशों से लमलकर बना है और अपील की सन
ु वाई के दौरान उस
न्यायालय का समाधान हों जाता है कक अपील में संववधान के तनवतचन के बारे में ववधध का ऐसा सारवान ्
प्रश्न अंतवतललत है क्जसका अवधारण अपील के तनपटारे के ललए आवश्यक है वहां वह न्यायालय ऐसे प्रश्न
को उस न्यायालय को, जो ऐसे प्रश्न को अंतवतललत गहठत ककया जाता है , उसकी राय दे ने के ललए
तनदे लशत करे गा और ऐसी राय की प्राक्प्त पर उस अपील को उस राय के अनरू
ु प तनपटाएगा|

___________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “खंड (3)
के उपबंधों” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) कुछ
शब्दों, अंको और अक्षरों का लोप ककया गया|
3. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “न्यूनतम
संख्या” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. संववधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) कुछ
शब्दों, अंको और अक्षरों का लोप ककया गया|

85
(4) उच्चतम न्यायालय प्रत्येक तनणतय खुले न्यायालय में ही सन
ु ाएगा, अन्यथा नहीं और अनच्
ु छे द
143 के अधीन प्रत्येक प्रततवेदन खल
ु े न्यायालय में सन
ु ाई गई राय के अनस
ु ार ही हदया जाएगा, अन्यथा
नहीं|

(5) उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक तनणतय और ऐसी प्रत्येक राय, मामले की सन
ु वाई में उपक्स्थत
न्यायाधीशों की बहुसंख्या की सहमतत से ही दी जाएगी, अन्यथा नहीं, ककन्तु इस खंड की कोई बात ककसी
ऐसे न्यायाधीश की, जो सहमत नहीं है , अपना ववसम्मत तनणतय या राय दे ने से तनवाररत नहीं करे गी|

146. उच्चतम न्यायालय के अधधकारी और सेिक तथा व्यय – (1) उच्चतम न्यायालय के
अधधकाररयों और सेवकों की तनयक्ु क्तयां भारत का मख्
ु य न्यायमतू तत करे गा या उस न्यायालय का ऐसा
अन्य न्यायाधीश या अधधकारी करे गा क्जसे वह तनहदत ष्ट करे :

परं तु राष्रपतत तनयम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कक ऐसी ककन्हीं दशाओं में , जो तनयम में
ववतनहदतष्ट की जाएं, ककसी ऐसे व्यक्क्त को, जो पहले से ही न्यायालय से संलग्न नहीं है , न्यायालय से
संबधं धत ककसी पद पर संघ लोक सेवा आयोग से परामशत करके ही तनयक्
ु त ककया जाएगा, अन्यथा नहीं|

(2) संसद् द्वारा बनाई गई ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय के अधधकाररयों
और सेवकों की सेवा की शते ऐसी होंगी जो भारत के मख् ु य न्यायमतू तत या उस न्यायालय के ऐसे अन्य
न्यायाधीश या अधधकारी द्वारा, क्जसे भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत ने इस प्रयोजन के ललए तनयम बनाने के
ललए प्राधधकृत ककया है , बनाए गए तनयमों द्वारा ववहहत की जाएं :

परं तु इस खंड के अधीन बनाए गए तनयमों के ललए, जहाँ तक वे वेतनों , भर्त्ो, छुट्टी, या पें शनों से
संबधं धत है , राष्रपतत के अनम
ु ोदन की अपेक्षा होगी|

(3) उच्चतम न्यायालय के प्रशासतनक व्यय, क्जनके अंतगतत उस न्यायालय के अधधकाररयों और


सेवकों को या उनके संबध
ं में संदेय सभी वेतन, भर्त्े और पें शन है , भारत की तनधध का भाग होंगी|

147. ननिमचन – इस अध्याय में और भाग 6 के अध्याय 5 में इस संववधान के तनवतचन के बारे में
ववधध के ककसी सारवान ् प्रश्न के प्रतत तनदे शों का या अथत लगाया जाएगा कक उनके अंतगतत भारत शासन
अधधतनयम, 1935 के (क्जसके अंतगतत उस अधधतनयम कक संशोधक या अनप
ु रू क कोई अधधतनयलमतत है )
अथवा ककसी सपररषद् आदे श या उसके अधीन बनाए गए ककसी आदे श के तनवतचन के बारे में ववधध के
ककसी सारवान ् प्रश्न के प्रतत तनदे श है |

अध्याय 5

भारत का ननयंत्रक-महालेखापरीक्षक

148. भारत का ननयंत्रक महालेखापरीक्षक – (1) भारत का एक तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक होगा


क्जसको राष्रपतत अपने हस्ताक्षर और मद्र
ु ा सहहत अधधपत्र द्वारा तनयक्
ु त करे गा और उसे उसके पद से
केवल उसी रीतत से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा क्जस रीतत से और क्जन आधारों पर उच्चतम
न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है |

86
(2) प्रत्येक व्यक्क्त, जो भारत का तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक तनयक्
ु त ककया जाता है अपना पद
ग्रहण करने से पहले, राष्रपतत या उसके द्वारा इस तनलमर्त् तनयक्
ु त व्यक्क्त के समक्ष, तीसरी अनस
ु च
ू ी में
इस प्रयोजन के ललए हदये गए प्ररूप के अनस
ु ार, शपथ लेगा या प्रततज्ञान करे गा और उस पर अपने
हस्ताक्षर करे गा|

(3) तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक का वेतन और सेवा की अन्य शते ऐसी होगी जो संसद्, ववधध
द्वारा, अवधाररत करे और जब तक वे इस प्रकार अवधाररत नहीं की जाती है तब तक ऐसी होंगी जो
दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट है :

(4) तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक, अपने पद पर न रह जाने के पश्चात ्, भारत सरकार के या ककसी


राज्य की सरकार के अधीन ककसी और पद का पात्र नहीं होगा|

(5) इस संववधान के और संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा ववभाग में सेवा करने वाले व्यक्क्तयों की सेवा की शते और तनयंत्रक-
महालेखापरीक्षक की प्रशासतनक शक्क्तयां ऐसी होंगी जो तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामशत करने के
पश्चात ् राष्रपतत द्वारा बनाए गए तनयमों द्वारा ववहहत की जाए|

(6) तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के कायातलय के प्रशासतनक व्यय, क्जनके अंतगतत उस कायातलय में


सेवा करने वाले व्यक्क्तयों को या उनके संबध
ं में संदेय सभी वेतन, भर्त्े और पेंशन है , भारत की संधचत
तनधध पर भाररत होंगे|

149. ननयंत्रक-महालेखापरीक्षक के कतमव्य और शक्ततयााँ - तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक संघ के और


राज्यों के तथा ककसी अन्य प्राधधकारी या तनकाय के लेखाओं के संबध
ं में ऐसे कततव्यों का पालन और
ऐसी शक्क्तयों का प्रयोग करे गा क्जन्हें संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन ववहहत ककया
जाए और जब तक इस तनलमर्त् इस प्रकार उपबंध नहीं ककया जाता है तब तक, संघ के और राज्यों के
लेखाओं के संबध
ं में ऐसे कततव्य का पालन और ऐसी शक्क्तयों का प्रयोग करे गा जो इस संववधान के
प्रारं भ से ठीक पहले क्रमश: भारत डोलमतनयन के और प्रांतो के लेखाओं के संबध
ं में भारत के
महालेखापरीक्षक को प्रदर्त् थीं या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य थीं|

1
[150. संघ के और राज्यों के लेखाओं का प्ररूप – संघ के और राज्यों के लेखाओं को ऐसे प्ररूप
में रखा जाएगा जो राष्रपतत, भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक 2[की सलाह पर] ववहहत करे |]

151 संपरीक्षा प्रनतिेदन – (1) भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के संघ के लेखाओं संबध


ं ी
प्रततवेदनों को राष्रपतत के समक्ष प्रस्तत
ु ककया जाएगा, जो उनको संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष
रखवाएगा|

(2) भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के ककसी राज्य के लेखाओं संबध


ं ी प्रततवेदनों को उस राज्य
के राज्यपाल 3
[***] के समक्ष प्रस्तत
ु ककया जाएगा, जो उनको राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष
रखवाएगा|

___________________

87
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 27 द्वारा (1-4-1977 से) अनुच्छे द
150 के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 22 द्वारा (20-6-1979 से) “से
परामशत के पश्चात”् के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|

भाग 6
[***] राज्य
1

अध्याय 1
साधारण
152. पररभाषा – इस भाग में , जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हों, “राज्य” पद 2[के अंतगतत
जम्म-ू कश्मीर राज्य नहीं है|]

अध्याय 2
कायमपाललका राज्यपाल
153. राज्यों के राज्यपाल – प्रत्येक राज्य के ललए एक राज्यपाल होगा :

3
[परं तु इस अनच्
ु छे द की कोई बात एक ही व्यक्क्त को दो या अधधक राज्यों के ललए राज्यपाल
तनयक्
ु त ककए जाने से तनवाररत नहीं करे गी|]

154. राज्य की कायमपाललका शक्तत – (1) राज्य की कायतपाललका शक्क्त राज्यपाल में तनहहत होगी
और वह इसका प्रयोग इस संववधान के अनस
ु ार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधधकाररयों के द्वारा करे गा|

(2) इस अनच्
ु छे द की कोई बात –

(क) ककसी ववद्यमान ववधध द्वारा ककसी अन्य प्राधधकारी को प्रदान ककए गए कृत्य राज्यपाल को
अंतररत करने वाली नहीं समझी जाएगी ; या

(ख) राज्यपाल के अधीनस्थ ककसी प्राधधकारी को ववधध द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद् या
राज्य के ववधान-मंडल को तनवाररत नहीं करे गी|

155. राज्यपाल की ननयक्ु तत – राज्य के राज्यपाल को राष्रपतत अपने हस्ताक्षर और मद्र


ु ा सहहत
अधधपत्र द्वारा तनयक्
ु त करे गा|

156. राज्यपाल की पदािधध – (1) राज्यपाल, राष्रपतत के प्रसादपयंत पद धारण करे गा|

(2) राज्यपाल, राष्रपतत को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा|

(3) इस अनच्
ु छे द के पव
ू ग
त ामी उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्यपाल अपने पदग्रहण की तारीख
से पांच वषत की अवधध तक पद धारण करे गा:

88
परं तु राज्यपाल, अपने पद की अवधध समाप्त हों जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहे गा
जब तक उसका उर्त्राधधकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है |

157. राज्यपाल ननयत


ु त होने के ललए अहमताएाँ – कोई व्यक्क्त राज्यपाल तनयक्
ु त होने का पात्र
तभी होगा जब वह भारत का नागररक है और पैंतीस वषत की आयु परू ी कर चुका है |

___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956
से) “पहली अनुसूची के भाग क में के” शब्दों का लोप ककया गया|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956
से) “का अथत प्रथम अनुसूची के भाग क में उक्ल्लणखत राज्य है ” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 6 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया|

158. राज्यपाल के पद ललए शते – (1) राज्यपाल संसद् के ककसी सदन का या पहली अनस
ु च
ू ी में
ववतनहदतष्ट ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यहद संसद् के ककसी
सदन का या ऐसे ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल तनयक्
ु त हों
जाता है तो यह समझा जाएगा कक उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के रूप में अपने पद ग्रहण
कक तारीख से ररक्त कर हदया है |

(2) राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करे गा|

(3) राज्यपाल, त्रबना ककराया हदए, अपने शासकीय तनवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी
उपलक्ब्धयों, भर्त्ो और ववशेषाधधकारों का भी, जो संसद्, ववधध द्वारा, अवधाररत करे और जब तक इस
तनलमर्त् इस प्रकार उपबंध नहीं ककया जाता है तब तक ऐसी उपलक्ब्धयों, भर्त्ो और ववशेषाधधकारों का, जो
दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट है , हकदार होगा|

1
[(3क) जहां एक ही व्यक्क्त को दो या अधधक राज्यों का राज्यपाल तनयक्
ु त ककया जाता है वहां
उस राज्यपाल को संदेय उपलक्ब्धयों और भर्त्े उन राज्यों के बीच ऐसे अनप
ु ात में आबंहटत ककए जाएंगे
जो राष्रपतत आदे श द्वारा अवधाररत करे |]

(4) राज्यपाल कक उपलक्ब्धयां और भर्त्े उसकी पदावधध के दौरान कम नहीं ककए जाएंगे|

159. राज्यपाल द्िारा शपथ या प्रनतज्ञान – प्रत्येक राज्यपाल और प्रत्येक व्यक्क्त जो राज्यपाल
के कृत्यों का तनवतहन कर रहा है , अपना पद ग्रहण करने से पहले उस राज्य के संबध
ं में अधधकाररता का
प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय के मख्
ु य न्यायमतू तत या उसकी अनप
ु क्स्थतत में उस न्यायालय के
उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष तनम्नललणखत प्ररूप में शपथ लेगा या प्रततज्ञान करे गा और उस
पर अपने हस्ताक्षर करे गा, अथातत ् :-

ईश्वर की शपथ लेता हूँ


“मैं, अमक
ु , , कक मैं श्रद्
ृ धापव
ू क
त ..................(राज्य का नाम) के
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
राज्यपाल के पद का कायतपालन (अथवा राज्यपाल के कृत्यों का तनवतहन) करूंगा तथा अपनी परू ी योग्यता

89
से संववधान और ववधध का परररक्षण, संरक्षण और प्रततरक्षण करूंगा और मैं .................(राज्य का नाम)
की जनता की सेवा और कल्याण में तनरत रहूँगा|”|

160. कुछ आकक्स्मकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का ननिमहन – राष्रपतत ऐसी ककसी
आकक्स्मकता में , जो इस अध्याय में उपबंधधत नहीं है , राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के तनवतहन के ललए
ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है |

161. क्षमा आर्द की और कुछ मामलों में दं डादे श के ननलंबन, पररहार या लघक
ु रण की राज्यपाल
की शक्तत – ककसी राज्य के राज्यपाल को उस ववषय संबध
ं ी, क्जस ववषय पर उस राज्य की कायतपाललका
शक्क्त का ववस्तार है , ककसी ववधध के ववरुद्ध ककसी अपराध के ललए लसद्धदोष ठहराए गए ककसी व्यक्क्त
के दं ड को क्षमा, उसका प्रववलंबन, ववराम या पररहार करने की अथवा दं डादे श के तनलंबन, पररहार या
लघक
ु रण की शक्क्त होगी|

___________________
1. संववधान ( सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 7 द्वारा (1-11-1956 से) अंत:स्थावपत|

162. राज्य की कायमपाललका शक्तत का विस्तार – इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
ककसी राज्य की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार उन ववषयों पर होगा क्जनके संबधं में उस राज्य के
ववधान-मंडल को ववधध बनाने की शक्क्त है :

परं तु क्जस ववषय के संबध


ं में राज्य के ववधान-मंडल और संसद् को ववधध बनाने की शक्क्त है
उसमे राज्य की कायतपाललका शक्क्त इस संववधान द्वारा, या संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा,
संघ या उसके प्राधधकाररयों को अलभव्यक्त रूप से प्रदर्त् कायतपाललका शक्क्त के अधीन और उससे
पररसीलमत होगी|

मंत्रत्र-पररषद्

163. राज्यपाल को सहायता और सलाह दे ने के ललए मंत्रत्रपररषद् – (1) क्जन बातों में इस
संववधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षक्षत है कक वह अपने कृत्यों या उनमे से ककसी को
अपने वववेकानस
ु ार करे उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और
सलाह दे ने के ललए एक मंत्रत्र-पररषद् होगी क्जसका प्रधान, मख्
ु यमंत्री होगा|

(2) यहद कोई प्रश्न उठता है कक कोई ववषय ऐसा है या नहीं क्जसके संबध
ं में इस संववधान द्वारा
या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षक्षत है कक वह अपने वववेकानस
ु ार कायत करे तो राज्यपाल का
अपने वववेकानस
ु ार ककया गया ववतनश्चय अंततम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई ककसी बात की
ववधधमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कक उसे अपने वववेकानस
ु ार कायत करना चाहहए था
या नहीं|

(3) इस प्रश्न की ककसी न्यायालय में जाँच नहीं की जाएगी कक क्या मंत्रत्रयों ने राज्यपाल को
कोई सलाह दी, और यहद दी तो क्या दी|

90
164. मंत्रत्रयों के बारे में अन्य उपबंध – (1) मख्
ु यमंत्री की तनयक्ु क्त राज्यपाल करे गा और अन्य
मंत्रत्रयों कक तनयक्ु क्त राज्यपाल, मख्
ु यमंत्री की सलाह पर करे गा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपयंत अपने
पद धारण करें गे :

परं तु [छर्त्ीसगढ़, झारखण्ड] मध्य प्रदे श और उड़ीसा राज्यों में जनजाततयों के कल्याण का
1

भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनस


ु धू चत जाततयों और वपछड़े वगों के कल्याण का या ककसी
अन्य कायत का भी भारसाधक हों सकेगा|

2
[(1क) ककसी राज्य की मंत्रत्र-पररषद् में मख्
ु यमंत्री सहहत मंत्रत्रयों की कुल संख्या उस राज्य की
ववधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पंद्रह प्रततशत से अधधक नहीं होगी :

परं तु ककसी राज्य में मख्


ु यमंत्री सहहत मंत्रत्रयों की संख्या बारह से कम नहीं होगी :

परं तु यह और कक जहां संववधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 के प्रारं भ पर ककसी


राज्य की मंत्रत्र-पररषद् में मख्
ु यमंत्री सहहत मंत्रत्रयों की कुल संख्या, यथाक्स्थतत, उक्त पंद्रह प्रततशत या
पहले परं तक
ु में ववतनहदत ष्ट संख्या से अधधक है वहां उस राज्य में मंत्रत्रयों की कुल संख्या ऐसी तारीख से,
जो राष्रपतत लोक अधधसच
ू ना द्वारा तनयत करे , छह मास के भीतर इस खंड के उपबंधों के अनरू
*
ु प लाई
जाएगी |

___________________
1. संववधान (चौरानबेवां संशोधन) अधधतनयम, 2006 की धारा 2 द्वारा (12-6-2006 से) शब्द
“त्रबहार” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 3 द्वारा (1-1-2004 से)
अंत:स्थावपत|

* दे णखये एस.ओ. 21(E) हदनांक 7 जनवरी, 2004

(1ख) ककसी राजतनततक दल का ककसी राज्य की ववधान सभा का या ककसी राज्य के ववधान-मंडल
के ककसी सदन का क्जसमे ववधान पररषद् है , कोई सदस्य जो दसवीं अनस
ु च
ू ी के पैरा 2 के अधीन उस
सदन का सदस्य होने के ललए तनरहहतत है , अपनी तनहहतत की तारीख से प्रारं भ होने वाली और उस तारीख
तक क्जसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधध समाप्त होगी या जहां वह, ऐसी अवधध की समाक्प्त
के पव
ू ,त यथाक्स्थतत, ककसी राज्य की ववधान सभा के ललए या ववधान पररषद् वाले ककसी राज्य के ववधान-
मंडल के ककसी सदन के ललए कोई तनवातचन लड़ता है , उस तारीख तक क्जसको वह तनवातधचत घोवषत
ककया जाता है , इनमें से जो भी पव
ू त
त र हो, की अवधध के दौरान, खंड (1) के अधीन मंत्री के रूप में
तनयक्
ु त ककए जाने के ललए भी तनरहहतत होगा|]

(2) मंत्रत्र-पररषद् राज्य की ववधान सभा के प्रतत सामहू हक रूप से उर्त्रदायी होगी |

(3) ककसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसरी अनस
ु च
ू ी में इस प्रयोजन
के ललए हदए गए प्ररूपों के अनस
ु ार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ हदलाएगा|

91
(4) कोई मंत्री, जो तनरं तर छह मास की ककसी अवधध तक राज्य के ववधान-मंडल का सदस्य नहीं
है , उस अवधध की समाक्प्त पर मंत्री नहीं रहे गा |

(5) मंत्रत्रयों के वेतन और भर्त्े ऐसे होंगे जो उस राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, समय-समय
पर अवधाररत करे और जब तक उस राज्य का ववधान-मंडल इस प्रकार अवधाररत नहीं करता है तब तक
ऐसे होंगे जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट है |

राज्य का महाधधितता

165. राज्य का महाधधितता – (1) प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश
तनयक्
ु त होने के ललए अहहतत ककसी व्यक्क्त को राज्य का महाधधवक्ता तनयक्
ु त करे गा|

(2) महाधधवक्ता का यह कततव्य होगा कक वह उस राज्य की सरकार को ववधध संबध


ं ी ऐसे ववषयों
पर सलाह दे और ववधधक स्वरुप के ऐसे अन्य कततव्यों का पालन करे जो राज्यपाल उसको समय-समय
पर तनदे लशत करे या सौंपे और उन कृत्यों का तनवतहन करे जो उसको इस संववधान अथवा तत्समय प्रवर्त्

ककसी अन्य ववधध द्वारा या उसके अधीन प्रदान ककए गए हों |

(3) महाधधवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपयंत पद धारण करे गा और ऐसा पाररश्रलमक प्राप्त करे गा जो
राज्यपाल अवधाररत करे |

सरकारी कायम का संचालन

166. राज्य का सरकार के कायम का संचालन - (1) ककसी राज्य की सरकार की समस्त
कायतपाललका कारत वाई राज्यपाल के नाम से की हुई कही जाएगी|

(2) राज्यपाल के नाम से ककए गए और तनष्पाहदत आदे शों और अन्य ललखतों को ऐसी रीतत से
अधधप्रमाणणत ककया जाएगा जो राज्यपाल द्वारा बनाए जाने वाले तनयमों में ववतनहदत ष्ट की जाए और इस
प्रकार अधधप्रमाणणत आदे श या ललखत की ववधधमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कक वह
राज्यपाल द्वारा ककया गया या तनष्पाहदत आदे श या ललखत नहीं है |

(3) राज्यपाल, राज्य की सरकार का कायत अधधक सवु वधापव


ू क
त ककए जाने के ललए और जहां तक
वह कायत ऐसा कायत नहीं है क्जसके ववषय में इस संववधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह
अपेक्षक्षत है कक वह अपने वववेकानस
ु ार कायत करे वहां तक मंत्रत्रयों में उक्त कायत के आबंटन के ललए
तनयम बनाएगा|

(4) 1[* * * * *]

167. राज्यपाल को जानकारी दे ने आर्द के संबध


ं में मख्
ु यमंत्री के कतमव्य – प्रत्येक राज्य के
मख्
ु यमंत्री का यह कततव्य होगा कक वह –

(क) राज्य के कायों के प्रशासन संबध


ं ी और ववधान ववषयक प्रस्थापनाओं संबध
ं ी मंत्रत्र-पररषद् के
सभी ववतनश्चय राज्यपाल को संसधू चत करे ;

92
(ख) राज्य के कायों के प्रशासन सबंधी और ववधान ववषयक प्रस्थ्पनाओं संबध
ं ी जो जानकारी
राज्यपाल मांगे, वह दे ; और

(ग) ककसी ववषय को क्जस पर ककसी मंत्री ने ववतनश्चय कर हदया है ककं तु मंत्रत्र-पररषद् ने ववचार
नहीं ककया है , राज्यपाल द्वारा अपेक्षा ककए जाने पर पररषद् के समक्ष ववचार के ललए रखे|

अध्याय 3

राज्य का विधान-मंडल

साधारण

168. राज्यों के विधान-मंडलों का गठन – (1) प्रत्येक राज्य के ललए एक ववधान-मंडल होगा जो
राज्यपाल और –

(क) [आंध्रप्रदे श] त्रबहार,


2
[***]
3 4
[***]5[***] [महाराष्र,
6
[कनातटक
7
[***]
8 9
[और उर्त्र प्रदे श]
10
[तलमलनाडु] राज्यों में दो सदनों से ;

___________________
1. संववधान (बयालीसवां सशोधन) अधधतनयम, 1976 ककड धारा 28 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (4)
अंत:स्थावपत ककया गया था और उसका संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की
धारा 23 द्वारा (20-6-1979 से) लोप ककया गया|
2. “आंध्र प्रदे श” शब्दों का आंध्र प्रदे श ववधान पररषद् (उत्सादन) अधधतनयम, 1985 (1985 का 34)
की धारा 4 द्वारा (1-6-1985 से) लोप ककया गया और आंध्रप्रदे श ववधान पररषद् अधधतनयम,
2005 (2006 का 1) की धारा 3 द्वारा पुन: अंतस्थावपत|
3. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) “मुब
ं ई”
शब्द का लोप ककया गया|
4. इस उपखंड में “मध्य प्रदे श” शब्दों के अंत:स्थापन के ललए संववधान (सातवां संशोधन)
अधधतनयम, 1956 की धारा 8(2) के अधीन कोई तारीख तनयत नहीं की गई है |
5. तलमलनाडु ववधान पररषद् (उत्सादन) अधधतनयम, 1986 (1986 का 40) की धारा 4 द्वारा (1-
11-1986 से) “तलमलनाडु” शब्द का लोप ककया गया|
6. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से)
अंत:स्थावपत|
7. मैसूर राज्य (नाम-पररवततन) अधधतनयम, 1973 (1973 का 31) की धारा 4 द्वारा (1-11-1973
से) “मैसूर” के स्थान पर प्रततस्थावपत क्जसे संववधान (सातवां सशोधन) अधधतनयम, 1956 की
धारा 8(1) द्वारा (1-11-1956 से) अंत:स्थावपत ककया गया था|
8. पंजाब ववधान पररषद् (उत्सादन) अधधतनयम, 1969 (1969 का 46) की धारा 4 द्वारा (7-1-
1970 से) “पंजाब” शब्द का लोप ककया गया|
9. पक्श्चमी बंगाल ववधान पररषद् (उत्सादन) अधधतनयम, 1969 (1969 का 20) की धारा 4 द्वारा
(1-8-1969 से) “उर्त्र प्रदे श और पक्श्चमी बंगाल” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

93
10. तलमलनाडु ववधान पररषद् अधधतनयम, 2010 (2010 का 16) की धारा 3(1) द्वारा अंत:स्थावपत|

(ख) अन्य राज्यों में एक सदन से,

लमलकर बनेगा |

(2) जहां ककसी राज्य के ववधान-मंडल के दो सदन है वहां एक का नाम ववधान पररषद् और दस
ू रे
का नाम ववधान सभा होगा और जहां केवल एक सदन है वहां उसका नाम ववधान सभा होगा|

169. राज्यों के विधान पररषदों का उत्सादन या सज


ृ न – (1) अनच्
ु छे द 168 में ककसी बात के
होते हुए भी, संसद् ववधध द्वारा ककसी ववधान पररषद् वाले राज्य में ववधान पररषद् के उत्सादन के ललए
या ऐसे राज्य में , क्जसमें ववधान पररषद् नहीं है , ववधान पररषद् के सज
ृ न के ललए उपबंध कर सकेगी,
यहद उस राज्य की ववधान सभा ने इस आशय का संकल्प ववधान सभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत
द्वारा तथा उपक्स्थत और मत दे ने वाले सदस्यों की संख्या के कम के कम दो-ततहाई बहुमत द्वारा
पाररत कर हदया है |

(2) खंड (1) में तनहदत ष्ट ककसी ववधध में इस संववधान के संशोधन के ललए ऐसे उपबंध अंतववतष्ट
होंगे जो उस ववधध के उपबंधों को प्रभावी करने के ललए आवश्यक हों तथा ऐसे अनप
ु रू क, आनष
ु धं गक और
पररणालमक उपबंध भी अंतववतष्ट हों सकेंगे क्जन्हें संसद् आवश्यक समझे|

(3) पव
ू ोक्त प्रकार की कोई ववधध अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजनों के ललए इस संववधान का संशोधन
नहीं समझी जाएगी|

1
[170. विधान सभाओं की संरचना – (1) अनच् ु छे द 333 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक
राज्य की ववधान सभा उस राज्य में प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रो से प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा चुने हुए पांच सौ
से अनधधक और साठ से अन्यन
ू सदस्यों से लमलकर बगेगी|

(2) खंड (1) के प्रयोजनों के ललए, प्रत्येक राज्य को प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रो में ऐसी रीतत से
ववभाक्जत ककया जाएगा कक प्रत्येक तनवातधचत-क्षेत्र कक जनसंख्या का उसको आबंहटत स्थानों की संख्या से
अनप
ु ात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हों|]

2
[स्पष्ट्टीकरण – इस खंड में “जनसंख्या” पद से ऐसी अंततम पव
ू व
त ती जनगणना में अधधतनक्श्चत
की गई जनसंख्या अलभप्रेत है क्जसके सस
ु ग
ं त आंकड़े प्रकालशत हों गए है :

परं तु इस स्पष्टीकरण में अंततम पव


ू व
त ती जनगणना के प्रतत क्जसके सस
ु ग
ं त आंकड़े प्रकालशत हों
गए है , तनदे श का, जब तक सन ् 3[2026] के पश्चात ् की गई पहली जनगणना के सस
ु ग
ं त आंकड़े
प्रकालशत नहीं हों जाते है , यह अथत लगाया जाएगा कक वह 4[2001] की जनगणना के प्रतततनदे श है |]
___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 9 द्वारा अनुच्छे द 170 के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
2. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से)
स्पष्टीकरण के स्थान पर प्रततस्थावपत |

94
3. संववधान (चौरासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 5 द्वारा अंको “2000” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
4. संववधान (सतासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 द्वारा (22-6-2003 से) अंको “1991” के स्थान
पर प्रततस्थावपत|

(3) प्रत्येक जनगणना की समाक्प्त पर प्रत्येक राज्य की ववधान सभा में स्थानों की कुल संख्या
और प्रत्येक राज्य के प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रो में ववभाजन का ऐसे प्राधधकारी द्वारा और ऐसी रीतत से
पन
ु :समायोजन ककया जाएगा जो संसद् ववधध द्वारा अवधाररत करे :

परं तु ऐसे पन
ु : समायोजन से ववधानसभा में प्रतततनधधत्व पद पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
जब तक उस समय ववद्यमान ववधानसभा का ववघटन नहीं हो जाता है :]

1
[परं तु यह और कक ऐसा पन
ु : समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्रपतत आदे श द्वारा
ववतनहदतष्ट करे और ऐसे पन
ु : समायोजन के प्रभावी होने तक ववधानसभा के ललए कोई तनवातचन उन
प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पन
ु : समायोजन के पहले ववद्यमान हैं :

परं तु यह और भी कक जब तक सन ् 2[2026] के पश्चात ् की गई पहली जनगणना के सस


ु ग
ं त
आँकड़े प्रकालशत नहीं हो जाते हैं तब तक 3[इस खंड के अधीन-

(i) प्रत्येक राज्य की ववधानसभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पन


ु : समायोक्जत स्थानों की
कुल संख्या का; और

(ii) ऐसे राज्य के प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों में ववभाजन का, जो 4[2001] की जनगणना के आधार पर
पन
ु : समायोक्जत ककए जाएँ,

पन
ु : समायोजन आवश्यक नहीं होगा। ]]

171. विधान पररषदों की संरचना – (1) ववधान पररषद् वाले राज्य की ववधान पररषद् के सदस्यों की
कुल संख्या उस राज्य की ववधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 5
[एक-ततहाई] से अधधक नहीं होगी:

परं तु ककसी राज्य की ववधान पररषद् के सदस्यों की कुल संख्या ककसी भी दशा में चालीस से कम
नहीं होगी।

(2) जब तक संसद् ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक ककसी राज्य की ववधान पररषद् की
संरचना खंड (3) में उपबंधधत रीतत से होगी।

(3) ककसी राज्य की ववधान पररषद् के सदस्यों की कुल संख्या का –

(क) यथाशक्य तनकटतम एक-ततहाई भाग उस राज्य की नगरपाललकाओ, क्जला बोडो और


अन्य ऐसे स्थानीय प्राधधकाररयों के, संसद् ववधध द्वारा ववतनहदत ष्ट करे , सदस्यों से
लमलकर बनने वाले तनवातचक-मंडलों द्वारा तनवातधचत होगा;

___________________

95
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चौरासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 5 (ख) (i) द्वारा (8-9-2000 से) अंको
“2000” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (चौरासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 5 (ख) द्वारा प्रततस्थावपत|
4. संववधान (सतासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 द्वारा (22-6-2003 से) अंको “1991” के स्थान
पर प्रततस्थावपत|
5. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 10 द्वारा (1-11-1956 से) “एक-चौथाई”
के स्थान पर प्रततस्थावपत|
(ख)यथाराज्य तनकटतम बारहवां भाग उस राज्य में तनवास करने वाले ऐसे व्यक्क्तयों से
लमलकर बनने वाले तनवातचक-मंडलों द्वारा तनवातधचत होगा, जो भारत के राज्यक्षेत्र में
ककसी ववश्वववद्यालय के कम से कम तीन वषत से स्नातक है या क्जनके पास कम से
कम तीन वषत से ऐसी अहत ताएं है जो संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध या उसके
अधीन ऐसे ककसी ववश्वववद्यालय के स्नातक की अहतताओं के समतल्
ु य ववहहत की
गई हो ;
(ग) यथाशक्य तनकटतम बारहवां भाग ऐसे व्यक्क्तयों से लमलकर बनने वाले तनवातचक-
मंडलों द्वारा तनवातधचत होगा जो राज्य के भीतर माध्यलमक पाठशालाओ से अतनम्न
स्तर की ऐसी लशक्षा संस्थाओं में , जो संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या
उसके अधीन ववहहत की जाए, पढ़ाने के काम में कम से कम तीन वषत से लगे हुए है
;
(घ) यथाशक्य तनकटतम एक-ततहाई भाग राज्य की ववधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे
व्यक्क्तयों में से तनवातधचत होगा जो ववधान सभा के सदस्य नहीं है ;
(ङ) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खण्ड (5) के उपबंधों के अनस
ु ार नामतनदे लशत ककए
जाएंगे|

(4) खंड (3) के उपखंड (क), उपखंड (ग) के अधीन तनवातधचत होने वाले सदस्य ऐसे प्रादे लशक
तनवातचन-क्षेत्रों में चुने जाएंगे, जो संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन ववहहत ककए जाएं
तथा उक्त उपखंडो के और उक्त खंड के उपखंड (घ) के अधीन तनवातचन अनप
ु ाततक प्रतततनधत्व पद्धतत
के अनस
ु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होंगे|

(5) राज्यपाल द्वारा खंड (3) के उपखंड (ङ) के अधीन नामतनदे लशत ककए जाने वाले सदस्य ऐसे
व्यक्क्त होंगे क्जन्हें तनम्नललणखत ववषयों के संबध
ं में ववशेष ज्ञान या व्यावहाररक अनभ
ु व है , अथातत ् :-

साहहत्य, ववज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा|

172. राज्यों के विधानमंडलो की अिधध – (1) प्रत्येक राज्य की प्रत्येक ववधान सभा, यहद पहले
ही ववघहटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधधवेशन के ललए तनयत तारीख से 1[पांच वषत] तक
बनी रहे गी, इससे अधधक नहीं 1[पांच वषत] की उक्त अवधध की समाक्प्त का पररणाम ववधान सभा का
ववघटन होगा :

96
परं तु उक्त अवधध को, जब आपात ् की उद्घोषणा प्रवततन में है , तब संसद् ववधध द्वारा, ऐसी
अवधध के ललए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वषत से अधधक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवततन में न
रह जाने के पश्चात ् ककसी भी दशा में उसका ववस्तार छह मास की अवधध से अधधक नहीं होगा|

___________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से) “छह
वषत” के स्थान पर प्रततस्थावपत| संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा
30 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्दों “पांच वषत” के स्थान पर “छह वषत” प्रततस्थावपत ककये
गए थे|

(2) राज्य की ववधान पररषद् का ववघटन नहीं होगा, ककं तु उसके सदस्यों में से यथासंभव तनकटतम
एक-ततहाई सदस्य संसद् द्वारा ववधध द्वारा इस तनलमर्त् बनाए गए उपबंधों के अनस
ु ार, प्रत्येक द्ववतीय वषत
की समाक्प्त पर यथाशक्य शीघ्र तनवर्त्
ृ हो जाएँगे।

173. राज्य के विधान-मंडल की सदस्यता के ललए अहमता - कोई व्यक्क्त ककसी राज्य में ववधान-
मंडल के ककसी स्थान को भरने के ललए चुने जाने के ललए अहतत तभी होगा जब —

1
[(क) वह भारत का नागररक है और तनवातचन आयोग द्वारा इस तनलमर्त् प्राधधकृत ककसी व्यक्क्त
के समक्ष तीसरी अनस
ु च
ू ी में इस प्रयोजन के ललए हदए गए प्ररूप के अनस
ु ार शपथ लेता है या प्रततज्ञान
करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है ;]
(ख) वह ववधानसभा के स्थान के ललए कम से कम पच्चीस वषत की आयु का और ववधान पररषद्
के स्थान के ललए कम से कम तीस वषत की आयु का है ; और
(ग) उसके पास ऐसी अन्य अहतताएँ हैं जो इस तनलमर्त् संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा
या उसके अधीन ववहहत की जाएं।
2
[174. राज्य के विधान-मंडल के सत्र, सत्रािसान और विघटन - (1) राज्यपाल, समय-समय पर, राज्य
के ववधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधधवेशन
के ललए आहूत करे गा, ककं तु उसके एक सत्र की अंततम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के ललए
तनयत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।
(2) राज्यपाल, समय-समय पर –
(क) सदन का या ककसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा;
(ख) ववधानसभा का ववघटन कर सकेगा।]
175. सदन या सदनों में अलभभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधधकार- (1)
राज्यपाल, ववधानसभा में या ववधान पररषद् वाले राज्य की दशा में उस राज्य के ववधान-मंडल के ककसी
एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में , अलभभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के ललए
सदस्यों की उपक्स्थतत की अपेक्षा कर सकेगा।
(2) राज्यपाल, राज्य के ववधान-मंडल में उस समय लंत्रबत ककसी ववधेयक के संबध
ं में संदेश या
कोई अन्य संदेश, उस राज्य के ववधान-मंडल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और क्जस सदन को कोई

97
संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा ववचार करने के ललए अपेक्षक्षत ववषय पर
सवु वधानस
ु ार शीघ्रता से ववचार करे गा।
___________________
1. संववधान (सोलहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 8 द्वारा अनुच्छे द 174 के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
176. राज्यपाल का विशेष अलभभाषण- (1) राज्यपाल, 1[ववधानसभा के ललए प्रत्येक साधारण तनवातचन
के पश्चात ् प्रथम सत्र के आरं भ में और प्रत्येक वषत के प्रथम सत्र के आरं भ में ] ववधानसभा में या ववधान
पररषद् वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अलभभाषण करे गा और ववधान-मंडल को
उसके आह्वान के कारण बताएगा।
(2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रकक्रया का ववतनयमन करने वाले तनयमों द्वारा ऐसे अलभभाषण में
तनहदत ष्ट ववषयों की चचात के ललए समय तनयत करने के ललए 3[***] उपबंध ककया जाएगा।
177. सदनों के बारे में मंत्रत्रयों और महाधधितता के अधधकार - प्रत्येक मंत्री और राज्य के
महाधधवक्ता को यह अधधकार होगा कक वह उस राज्य की ववधानसभा में या ववधान पररषद् वाले राज्य की
दशा में दोनों सदनों में बोले और उनकी कायतवाहहयों में अन्यथा भाग ले और ववधान-मंडल की ककसी
सलमतत में , क्जसमें उसका नाम सदस्य के रूप में हदया गया है , बोले और उसकी कायतवाहहयों में अन्यथा
भाग ले, ककन्तु इस अनच्
ु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नहीं होगा।
राज्य के विधान-मंडल के अधधकारी
178. विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष- प्रत्येक राज्य की ववधानसभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो
सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद ररक्त होता है
तब-तब ववधानसभा ककसी अन्य सदस्य को, यथाक्स्थतत, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनग
े ी।
179. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद ररतत होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना- ववधानसभा के
अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य-
(क) यहद ववधानसभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद ररक्त कर दे गा;
(ख) ककसी भी समय, यहद वह सदस्य अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को संबोधधत और यहद वह सदस्य
उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; और
(ग) ववधानसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प द्वारा अपने पद से
हटाया जा सकेगा:
परं तु खंड (ग) के प्रयोजन के ललए कोई संकल्प तब तक प्रस्ताववत नहीं ककया जाएगा जब तक कक
उस संकल्प को प्रस्ताववत करने के आशय की कम से कम चौदह हदन की सच
ू ना न दे दी गई हो:
परं तु यह और कक जब कभी ववधानसभा का ववघटन ककया जाता है तो ववघटन के पश्चात ् होने
वाले ववधानसभा के प्रथम अधधवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को ररक्त नहीं करे गा।
___________________
1. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 9 द्वारा “प्रत्येक सत्र” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
2. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 9 द्वारा कुछ शब्दों के लोप ककया गया|

98
180. अध्यक्ष के पद के कतमव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कायम करने की उपाध्यक्ष या
अन्य व्यक्तत की शक्तत- (1) जब अध्यक्ष का पद ररक्त है तो उपाध्यक्ष, या यहद उपाध्यक्ष का पद भी
ररक्त है तो ववधानसभा का ऐसा सदस्य, क्जसको राज्यपाल इस प्रयोजन के ललए तनयक्
ु त करे , उस पद के
कततव्यों का पालन करे गा।
(2) ववधानसभा की ककसी बैठक से अध्यक्ष की अनप
ु क्स्थतत में उपाध्यक्ष, या यहद वह भी
अनप
ु क्स्थत है तो ऐसा व्यक्क्त, जो ववधानसभा की प्रकक्रया के तनयमों द्वारा अवधाररत ककया जाए, या यहद
ऐसा कोई व्यक्क्त उपक्स्थत नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्क्त, जो ववधानसभा द्वारा अवधाररत ककया जाए,
अध्यक्ष के रूप में कायत करे गा।
181. जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका
पीठासीन न होना- (1) ववधानसभा की ककसी बैठक में , जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प
ववचाराधीन है तब अध्यक्ष, या जब उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प ववचाराधीन है तब
उपाध्यक्ष, उपक्स्थत रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनच्
ु छे द 180 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक
बैठक के संबध
ं में वैसे ही लागू होंगे जैसे वह उस बैठक के संबध
ं में लागू होते हैं क्जससे, यथाक्स्थतत,
अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनप
ु क्स्थत है ।
(2) जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प ववधानसभा में ववचाराधीन है तब उसको
ववधानसभा में बोलने और उसकी कायतवाहहयों में अन्यथा भाग लेने का अधधकार होगा और वह अनच्
ु छे द
189 में ककसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कायतवाहहयों के दौरान ककसी अन्य ववषय पर
प्रथमत: ही मत दे ने का हकदार होगा ककं तु मत बराबर होने की दशा में मत दे ने का हकदार नहीं होगा।
182. विधान पररषद् का सभापनत और उपसभापनत- ववधान पररषद् वाले प्रत्येक राज्य की ववधान
पररषद्, यथाशीघ्र, अपने दो सदस्यों को अपना सभापतत और उपसभापतत चन
ु ेगी और जब-जब सभापतत या
उपसभापतत का पद ररक्त होता है तब-तब पररषद् ककसी अन्य सदस्य को, यथाक्स्थतत, सभापतत या
उपसभापतत चुनेगी।
183. सभापनत और उपसभापनत का पद ररतत होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना- ववधान
पररषद् के सभापतत या उपसभापतत के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य-
(क) यहद ववधान पररषद् का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद ररक्त कर दे गा;
(ख) ककसी भी समय, यहद वह सदस्य सभापतत है तो उपसभापतत को संबोधधत और यहद वह
सदस्य उपसभापतत है तो सभापतत को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपना पद त्याग
सकेगा; और
(ग) ववधान पररषद् के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प द्वारा अपने पद से
हटाया जा सकेगा:
परं तु खंड (ग) के प्रयोजन के ललए कोई संकल्प तब तक प्रस्ताववत नहीं ककया जाएगा जब तक कक
उस संकल्प को प्रस्ताववत करने के आशय की कम से कम चौदह हदन की सच
ू ना न दे दी गई हो।
184. सभापनत के पद के कतमव्यों का पालन करने या सभापनत के रूप में कायम करने की
उपसभापनत या अन्य व्यक्तत की शक्तत- (1) जब सभापतत का पद ररक्त है तब उपसभापतत, यहद
उपसभापतत का पद भी ररक्त है तो ववधान पररषद् का ऐसा सदस्य, क्जसको राज्यपाल इस प्रयोजन के
ललए तनयक्
ु त करे , उस पद के कततव्यों का पालन करे गा।

99
(2) ववधान पररषद् की ककसी बैठक से सभापतत की अनप
ु क्स्थतत में उपसभापतत, या यहद वह भी
अनप
ु क्स्थत है तो ऐसा व्यक्क्त, जो ववधान पररषद् की प्रकक्रया के तनयमों द्वारा अवधाररत ककया जाए, या
यहद ऐसा कोई व्यक्क्त उपक्स्थत नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्क्त, जो ववधान पररषद् द्वारा अवधाररत ककया
जाए, सभापतत के रूप में कायत करे गा।
185. जब सभापनत या उपसभापनत को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसके
पीठासीन न होना- (1) ववधान पररषद् की ककसी बैठक में , जब सभापतत को उसके पद हटाने का कोई
संकल्प ववचाराधीन है तब सभापतत, या जब उपसभापतत को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प
ववचाराधीन है तब उपसभापतत, उपक्स्थत रहने पर भी पीठासीन नहीं होगा और अनच्
ु छे द 184 के खंड (2)
के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबध
ं में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबध
ं में लागू होते है
क्जससे, यथाक्स्थतत, सभापतत या उपसभापतत अनप
ु क्स्थत है |
(2) जब सभापतत को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प ववधान पररषद् में ववचाराधीन है तब
उसको ववधान पररषद् में बोलने और उसकी कायतवाहहयों में अन्यथा भाग लेने का अधधकार होगा और वह
अनच्
ु छे द 189 में ककसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कायतवाहहयों के दौरान ककसी अन्य
ववषय पर प्रथमत: ही मत दे ने के हकदार होगा ककं तु मत बराबर होने की दशा में मत दे ने का हकदार
नहीं होगा|
186. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा सभापनत और उपसभापनत के िेतन और भिे- ववधान सभा के
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा ववधान पररषद् के सभापतत और उपसभापतत को, ऐसे वेतन और भर्त्ो का
जो राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, तनयत करे और जब तक इस तनलमर्त् इस प्रकार उपबंध नहीं
ककया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भर्त्ो का जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट है , संदाय ककया जाएगा|
187. राज्य के विधान-मंडल का सधचिालय – (1) राज्य के ववधान-मंडल के सदन का या प्रत्येक
सदन का पथ
ृ क् सधचवीय कमतचाररवन्ृ द होगा :
परं तु ववधान पररषद् वाले राज्य के ववधान-मंडल की दशा में , इस खान की ककसी बात का यह
अथत नहीं लगाया जाएगा फड वह ऐसे ववधान-मंडल के दोनों सदनों के ललए सक्म्मललत पदों के सज
ृ न को
तनवाररत करती है |
(2) राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, राज्य के ववधान-मंडल के सदन या सदनों के सधचवीय
कमतचाररवन्ृ द में भती का और तनयक्
ु त व्यक्क्तयों की सेवा की शतों का ववतनयमन कर सकेगा|
(3) जब तक राज्य का ववधान-मंडल खंड (2) के अधीन उपबंध नहीं करता है तब तक राज्यपाल,
यथाक्स्थतत, ववधान सभा के अध्यक्ष या ववधान पररषद् के सभापतत के परामशत करने के पश्चात ् ववधान
सभा के या ववधान पररषद् के सधचवीय कमतचाररवन्ृ द में भती के और तनयक्
ु त व्यक्क्तयों की सेवा की शतों
के ववतनयमन के ललए तनयम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए तनयम उक्त खंड के अधीन बनाई
गई ककसी ववधध के उपबन्धो के अधीन रहते हुए, प्रभावी होंगे|
कायम संचालन
188. सदस्यों द्िारा शपथ या प्रनतज्ञान- राज्य की ववधान सभा या ववधान पररषद् का प्रत्येक
सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल या उसके द्वारा इस तनलमर्त् तनयक्त व्यक्क्त के
समक्ष, तीसरी अनस
ु च
ू ी में इस प्रयोजन के ललए ककये गए प्ररुप के अनस
ु ार, शपथ लेगा या प्रततज्ञान
करे गा और उस पर अपने हस्ताक्षर करे गा|

100
189. सदनों में मतदान, ररक्ततयों के होते हुए भी सदनों की कायम करने की शक्तत और गणपनू तम
(1) इस संववधान में यथा अन्यथा उपबंधधत के लसवाय, ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन की
बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष या सभापतत को अथवा उस रूप में कायत करने वाले व्यक्क्त
को छोड़कर, उपक्स्थत और मत दे ने वाले सदस्यों के बहुमत से ककया जाएगा|
अध्यक्ष या सभापतत, अथवा उस रूप में कायत करने वाला व्यक्क्त प्रथमत: मत नहीं दे गा, ककं तु
मत बराबर होने की दशा में उसका तनणातयक मत होगा और वह उसके प्रयोग करे गा|
(2) राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन की सदस्यता में कोई ररक्क्त होने पर भी, उस सदन
को कायत करने की शक्क्त होगी और यहद बाद में यह पता चलता है कक कोई व्यक्क्त, जो ऐसा करने का
हकदार नहीं था, कायतवाहहयों में उपक्स्थत रहा है या उसने मत क्या है या अन्यथा भाग ललया है तो भी
राज्य के ववधान-मंडल की कायतवाही ववधधमान्य होगी|
(3) जब तक राज्य का ववधान-मंडल ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के
ववधान-मंडल के ककसी सदन का अधधवेशन गहठत करने के ललए गणपतू तत दस सदस्य या सदन के सदस्यों
की कुल संख्या का दसवां भाग, इसमें से जो भी अधधक हो, होगी|
(4) यहद राज्य की ववधान सभा या ववधान पररषद् के अधधवेशन में ककसी समय गणपतू तत नहीं है
तो अध्यक्ष या सभापतत अथवा उस रूप में कायत करने वाले व्यक्क्त का यह कततव्य होगा कक वह सदन
को स्थधगत कर दे या अधधवेशन को तब तक के ललए तनलंत्रबत कर दे जब तक गणपतू तत नहीं हो जाती
है |

सदस्यों की ननर्हमतएाँ

190. स्थानों का ररतत होना- (1) कोई व्यक्क्त राज्य के ववधान-मंडल के दोनों सदनों का सदस्य
नहीं होगा और जो व्यक्क्त दोनों सदनों का सदस्य चुन ललया जाता है उसके एक या दस
ू रे सदन के स्थान
को ररक्त करने के ललए उस राज्य का ववधान-मंडल ववधध द्वारा उपबंध करे गा।
(2) कोई व्यक्क्त पहली अनस
ु च
ू ी में ववतनहदतष्ट दो या अधधक राज्यों के ववधान-मंडलों का सदस्य
नहीं होगा और यहद कोई व्यक्क्त दो या अधधक ऐसे राज्यों के ववधान-मंडलों का सदस्य चुन ललया जाता है
तो ऐसी अवधध की समाक्प्त के पश्चात ् जो राष्रपतत द्वारा बनाए गए तनयमों1 में ववतनहदत ष्ट की जाए, ऐसे
सभी राज्यों के ववधान-मंडलों में ऐसे व्यक्क्त का स्थान ररक्त हो जाएगा यहद उसने एक राज्य को छोड़कर
अन्य राज्यों के ववधान-मंडलों में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग हदया है ।
(3) यहद राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन का सदस्य-
(क) 3[अनच्
ु छे द 191 के खंड (2)] में वणणतत ककसी तनहहतत से ग्रस्त हो जाता है , या
3
[(ख) यथाक्स्थतत, अध्यक्ष या सभापतत को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपने स्थान
का त्याग कर दे ता है और उसका त्यागपत्र, यथाक्स्थतत, अध्यक्ष या सभापतत द्वारा स्वीकार कर ललया
जाता है ,]
तो ऐसा होने पर उसका स्थान ररक्त हो जाएगा :
4
[परं तु उपखंड (ख) में तनहदतष्ट त्यागपत्र की दशा में , यहद प्राप्त जानकारी से या अन्यथा और ऐसी
जाँच करने के पश्चात,् जो वह ठीक समझे, यथाक्स्थतत, अध्यक्ष या सभापतत का यह समाधान हो जाता है
कक ऐसा त्यागपत्र स्वैक्च्छक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं करे गा।]

101
(4) यहद ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन का सदस्य साठ हदन की अवधध तक सदन
की अनज्ञ
ु ा के त्रबना उसके सभी अधधवेशनों से अनप
ु क्स्थत रहता है तो सदन उसके स्थान को ररक्त घोवषत
कर सकेगा:
परं तु साठ हदन की उक्त अवधध की संगणना करने में ककसी ऐसी अवधध को हहसाब में नहीं ललया
जाएगा क्जसके दौरान सदन सत्रावलसत या तनरं तर चार से अधधक हदनों के ललए स्थधगत रहता है ।
191. सदस्यता के ललए ननर्हमतएाँ - (1) कोई व्यक्क्त ककसी राज्य की ववधानसभा या ववधान पररषद्
का सदस्य चन
ु े जाने के ललए और सदस्य होने के ललए तनरहहतत होगा-
___________________
1. दे णखये ववधध मंत्रायल की अधधसूचना से.एफ. 46/50- सी, हदनांक 26जनवरी, 1950, भारत का
राजपत्र, असाधारण, पष्ृ ठ 678 में प्रकालशत समसामतयक सदस्यता प्रततषेध तनयम, 1950 |
2. संववधान (बावनवां संशोधन) अधधतनयम, 1985 की धारा 4 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छे द
191 के खंड (1)” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (बावनवां संशोधन) अधधतनयम, 1985 की धारा 4 द्वारा उपखंड (ख) के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
4. संववधान (तैंतीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1974 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थावपत|
(क) यहद वह भारत सरकार के या पहली अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट ककसी राज्य की सरकार के अधीन,
ऐसे पद को छोड़कर क्जसको धारण करने वाले का तनरहहतत न होना राज्य के ववधान-मंडल ने ववधध द्वारा
घोवषत ककया है , कोई लाभ का पद धारण करता है ;
(ख) यहद वह ववकृतधचर्त् है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा ववद्यमान है ;
(ग) यहद वह अनन्
ु मोधचत हदवाललया है ;
(घ) यहद वह भारत का नागररक नहीं है या उसने ककसी ववदे शी राज्य की नागररकता स्वेच्छा से
अक्जतत कर ली है या वह ककसी ववदे शी राज्य के प्रतत तनष्ठा या अनष
ु क्क्त को अलभस्वीकार ककए हुए है ;
(ङ) यहद वह संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार तनरहहतत कर
हदया जाता है ।
1[स्पष्ट्टीकरण- इस खंड के प्रयोजनों के ललए,] कोई व्यक्क्त केवल इस कारण भारत सरकार के या
पहली अनस
ु च
ू ी में ववतनहदतष्ट ककसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं
समझा जाएगा कक वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है ।
2
[(2) कोई व्यक्क्त ककसी राज्य की ववधानसभा या ववधान पररषद् का सदस्य होने के ललए
तनरहहतत होगा यहद वह दसवीं अनस
ु च
ू ी के अधीन इस प्रकार तनरहहतत हो जाता है |]
3
[192. सदस्यों की ननर्हमतओं से सम्बंधधत प्रश्नों पर विननश्चय - (1) यहद यह प्रश्न उठता है कक
ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन का कोई सदस्य अनच्
ु छे द 191 के खंड (1) में वणणतत ककसी
तनहहतत से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राज्यपाल को ववतनश्चय के ललए तनदे लशत ककया जाएगा
और उसका ववतनश्चय अंततम होगा|
(2) ऐसे ककसी प्रश्न पर ववतनश्चय करने से पहले राज्यपाल तनवातचन आयोग की राय लेगा और
ऐसी राय के अनस
ु ार कायत करे गा| ]
193. अनच्
ु छे द 188 के अधीन शपथ लेने या प्रनतज्ञान करने से पहले या अर्हमत न होते
हुए या ननरर्हमत क्रकये जाने पर बैठने और मत दे ने दे ललए शाक्स्त – यहद ककसी राज्य की ववधान सभा या

102
ववधान पररषद् में कोई व्यक्क्त अनच्
ु छे द 188 की अपेक्षाओं का अनप
ु ालन करने से पहले, या यह जानते
हुए कक मैं उसकी सदस्यता के ललए अहहतत नहीं हूँ या तनरहहतत कर हदया गया हूँ या संसद् या राज्य के
ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबन्धो द्वारा ऐसा करने से प्रततवषद्ध कर हदया गया हूँ,
सदस्य के रूप में बैठता है या मत दे ता है तो वह प्रत्येक हदन के ललए जब वह इस प्रकार बैठता है या
मत दे ता है , पांच सौ रूपए कक शाक्स्त का भागी होगा जो राज्य को दे य ऋण के रूप में वसल
ू की
जाएगी|
___________________
1. संववधान (बावनवां संशोधन) अधधतनयम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस
अनुच्छे द के प्रयोजनों के ललए” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (बावनवां संशोधन) अधधतनयम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) अंत:स्थावपत|
3. अनुच्छे द 192, संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 33 द्वारा (3-1-1977
से) और तत्पश्चात ् संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 25 द्वारा (20-6-
1979 से) संशोधधत होकर उपरोक्त रूप में आया|

राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्ततयााँ,


विशेषाधधकार और उन्मक्ु ततयााँ
194. विधान-मंडलों के सदनों की तथा उनके सदस्यों और सलमनतयों की शक्ततयााँ, विशेषाधधकार, आर्द-
(1) इस संववधान के उपबन्धो के और ववधान-मंडल की प्रकक्रया का ववतनयमन करने वाले तनयमों और
स्थायी आदे शों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य के ववधान-मंडल में वाक् -स्वातंत्र्य होगा|
(2) राज्य के ववधान-मंडल में या उसकी ककसी सलमतत में ववधान-मंडल के ककसी सदस्य द्वारा
कही गई ककसी बात या हदए गे ककसी मत के सम्बन्ध में उसके ववरुद्ध ककसी न्यायालय में कोई
कायतवाही नहीं की जाएगी और ककसी व्यक्क्त के ववरुद्ध ऐसे ववधान-मंडल के ककसी सदन के प्राधधकार
द्वारा या उसके अधीन ककसी प्रततवेदन पत्र, मतों या कायतवाहहयों के प्रकाशन के संबध
ं में इस प्रकार की
कोई कायतवाही नहीं दी जाएगी|
(3) अन्य बातों में राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन की और ऐसे ववधान-मंडल के ककसी
सदन के सदस्यों और सलमततयों की शक्क्तयाँ, ववशेषाधधकार और उन्मक्ु क्तयाँ ऐसी होंगी जो वह ववधान-
मंडल, समय-समय पर, ववधध द्वारा पररतनक्श्चत करे और जब तक वे इस प्रकार पररतनक्श्चत नहीं की
जाती है तब तक 1[वही होंगी जो संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 26 के प्रवर्त्

होने से ठीक पहले उस सदन की और सदस्यों और सलमततयों की थी| ]
(4) क्जन व्यक्क्तयों को इस संववधान के आधार पर राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन या
उसकी ककसी सलमतत में बोलने का और उसकी कायतवाहहयों में अन्यथा भाग लेने का अधधकार है , उनके
संबध
ं में खंड (1), खंड (२) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे क्जस प्रकार वे उस ववधान-
मंडल के सदस्यों के संबध
ं में लागू होते है |
195. सदस्यों के िेतन और भिे- राज्य की ववधान सभा और ववधान पररषद् के सदस्य ऐसे वेतन
और भर्त्े, क्जन्हें उस राज्य का ववधान-मंडल, समय-समय पर, ववधध द्वारा, अवधाररत करे और जब तक
इस संबध
ं में इस प्रकार उपबंध नहीं ककया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भर्त्े, ऐसी दरों से और ऐसी
शतों पर, जो तत्स्थानी प्रांत की ववधान सभा के सदस्यों को इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले लागू
थीं, प्राप्त करने के हक़दार होंगे|

103
विधायी प्रक्रक्रया
196. विधेयकों के परु :स्थापन और पाररत क्रकये जाने के संबध
ं में उपबंध- (1) धन ववधेयकों और
अन्य ववर्त् ववधेयकों के संबध
ं में अनच्
ु छे द 198 और अनच्
ु छे द 207 के उपबन्धो के अधीन रहते हुए, कोई
ववधेयक ववधान पररषद् वाले राज्य के ववधान-मंडल के ककसी भी सदन में आरं भ हो सकेगा|
___________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 26 द्वारा (20-6-1979 से) कुछ शब्दों के
स्थान आर प्रततस्थावपत|
(2) अनच् ु छे द 197 और अनच्
ु छे द 198 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई ववधेयक ववधान
पररषद् वाले राज्य के ववधान-मंडल के सदनों द्वारा तब तक पाररत ककया गया नहीं समझ जाएगा तब
तक संशोधन के त्रबना या केवल ऐसे संशोधनों सहहत, क्जन पर दोनों सदन सहमत हो गए है , उस पर
दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते है |
(3) ककसी राज्य के ववधान-मंडल में लंत्रबत ववधेयक उसके सदन या सदनों के सत्रावसान के
कारण व्यपगत नहीं होगा|
(4) ककसी राज्य की ववधान पररषद् में लंत्रबत ववधेयक क्जसको ववधान सभा ने पाररत नहीं ककया
है , ववधान सभा के ववघटन पर व्यपगत नहीं होगा|
(5) कोई ववधेयक, जो ककसी राज्य की ववधान सभा में लंत्रबत है या जो ववधान सभा द्वारा
पाररत कर हदया गया है और ववधान पररषद् में लंत्रबत है , ववधान सभा के ववघटन पर व्यपगत हो
जाएगा|
197. धन विधेयकों से लभन्न विधेयकों के बारे में विधान पररषद् की शक्ततयों पर ननबंधन - (1)
यहद ववधान पररषद् वाले राज्य की ववधानसभा द्वारा ककसी ववधेयक के पाररत ककए जाने और ववधान
पररषद् को पारे वषत ककए जाने के पश्चात-्
(क) ववधान पररषद् द्वारा ववधेयक अस्वीकार कर हदया जाता है , या
(ख) ववधान पररषद् के समक्ष ववधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा ववधेयक पाररत ककए
त्रबना, तीन मास से अधधक बीत गए हैं, या
(ग) ववधान पररषद् द्वारा ववधेयक ऐसे संशोधनों सहहत पाररत ककया जाता है क्जनसे ववधानसभा
सहमत नहीं होती है ,
तो ववधानसभा ववधेयक को, अपनी प्रकक्रया का ववतनयमन करने वाले तनयमों के अधीन रहते हुए, उसी या
ककसी पश्चातवती
् सत्र में ऐसे संशोधनों सहहत या उसके त्रबना, यहद कोई हों, जो ववधान पररषद् ने ककए हैं,
सझ
ु ाए हैं या क्जनसे ववधान पररषद् सहमत है , पन
ु ःपाररत कर सकेगी और तब इस प्रकार पाररत ववधेयक
को ववधान पररषद् को पारे वषत कर सकेगी।
(2) यहद ववधानसभा द्वारा ववधेयक इस प्रकार दब
ु ारा पाररत कर हदए जाने और ववधान पररषद् को
पारे वषत ककए जाने के पश्चात ् -
(क) ववधान पररषद् द्वारा ववधेयक अस्वीकार कर हदया जाता है , या
(ख) ववधान पररषद् के समक्ष ववधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा ववधेयक पाररत ककए
त्रबना, एक मास से अधधक बीत गया है , या
(ग) ववधान पररषद् द्वारा ववधेयक ऐसे संशोधनों सहहत पाररत ककया जाता है क्जनसे ववधानसभा
सहमत नहीं होती है ,

104
तो ववधेयक राज्य के ववधान-मंडल के सदनों द्वारा ऐसे संशोधनों सहहत, यहद कोई हों, जो ववधान पररषद् ने
ककए हैं या सझ
ु ाए हैं और क्जनसे ववधानसभा सहमत है , उस रूप में पाररत ककया गया समझा जाएगा
क्जसमें वह ववधानसभा द्वारा दब
ु ारा पाररत ककया गया था।
(3) इस अनच्
ु छे द की कोई बात धन ववधेयक को लागू नहीं होगी।
198. धन विधेयकों के संबध
ं में विशेष प्रक्रक्रया- (1) धन ववधेयक ववधान पररषद् में परु ःस्थावपत नहीं
ककया जाएगा।
(2) धन ववधेयक ववधान पररषद् वाले राज्य की ववधानसभा द्वारा पाररत ककए जाने के पश्चात ्
ववधान पररषद् को उसकी लसफाररशों के ललए पारे वषत ककया जाएगा और ववधान पररषद् ववधेयक की प्राक्प्त
की तारीख से चौदह हदन की अवधध के भीतर ववधेयक को अपनी लसफाररशों सहहत ववधानसभा को लौटा
दे गी और ऐसा होने पर ववधानसभा, ववधान पररषद् की सभी या ककन्हीं लसफाररशों को स्वीकार या अस्वीकार
कर सकेगी।
(3) यहद ववधानसभा, ववधान पररषद् की ककसी लसफाररश को स्वीकार कर लेती है तो धन ववधेयक
ववधान पररषद् द्वारा लसफाररश ककए गए और ववधानसभा द्वारा स्वीकार ककए गए संशोधनों सहहत दोनों
सदनों द्वारा पाररत ककया गया समझा जाएगा।
(4) यहद ववधानसभा, ववधान पररषद् की ककसी भी लसफाररश को स्वीकार नहीं करती है तो धन
ववधेयक ववधान पररषद् द्वारा लसफाररश ककए गए ककसी संशोधन के त्रबना, दोनों सदनों द्वारा उस रूप में
पाररत ककया गया समझा जाएगा क्जसमें वह ववधानसभा द्वारा पाररत ककया गया था।
(5) यहद ववधानसभा द्वारा पाररत और ववधान पररषद् को उसकी लसफाररशों के ललए पारे वषत धन
ववधेयक उक्त चौदह हदन की अवधध के भीतर ववधानसभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधध की
समाक्प्त पर वह दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पाररत ककया गया समझा जाएगा क्जसमें वह ववधानसभा
द्वारा पाररत ककया गया था।
199. '' धन विधेयक'' की पररभाषा- (1) इस अध्याय के प्रयोजनों के ललए, कोई ववधेयक धन ववधेयक
समझा जाएगा यहद उसमें केवल तनम्नललणखत सभी या ककन्हीं ववषयों से संबधं धत उपबंध हैं, अथातत ् -
(क) ककसी कर का अधधरोपण, उत्सादन, पररहार, पररवततन या ववतनयमन;
(ख) राज्य द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभतू त दे ने का ववतनयमन अथवा राज्य द्वारा
अपने। पर ली गई या ली जाने वाली ककन्हीं ववर्त्ीय बाध्यताओं से संबधं धत ववधध का संशोधन;
(ग) राज्य की संधचत तनधध या आकक्स्मकता तनधध की अलभरक्षा, ऐसी ककसी तनधध में धन जमा
करना या उसमें से धन तनकालना;
(घ) राज्य की संधचत तनधध में से धन का ववतनयोग;
(ङ) ककसी व्यय को राज्य की संधचत तनधध पर भाररत व्यय घोवषत करना या ऐसे ककसी व्यय की
रकम को बढ़ाना;
(च) राज्य की संधचत तनधध या राज्य के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की
अलभरक्षा या उसका तनगतमन; या
(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) में ववतनहदत ष्ट ककसी ववषय का आनष
ु धं गक कोई ववषय।
(2) कोई ववधेयक केवल इस कारण धन ववधेयक नहीं समझा जाएगा, कक वह जम
ु ातनों अन्य धनीय
शाक्स्तयों के अधधरोपण का अथवा अनज्ञ
ु क्प्तयों के ललए फीसों की या की गई सेवाओं के ललए फीसों की
माँग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन ववधेयक नहीं समझा जाएगा कक वह

105
ककसी स्थानीय प्राधधकारी या तनकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के ललए ककसी कर के अधधरोपण, उत्सादन,
पररहार, पररवततन या ववतनयमन का उपबंध करता है ।
(3) यहद यह प्रश्न उठता है कक ववधान पररषद् वाले ककसी राज्य के ववधान-मंडल में परु ःस्थावपत
कोई ववधेयक धन ववधेयक है या नहीं तो उस पर उस राज्य की ववधानसभा के अध्यक्ष का ववतनश्चय
अंततम होगा।
(4) जब धन ववधेयक अनच्
ु छे द 198 के अधीन ववधान पररषद् को पारे वषत ककया जाता है और जब
वह अनच्
ु छे द 200 के अधीन अनम
ु तत के ललए राज्यपाल के समक्ष प्रस्तत
ु ककया जाता है तब प्रत्येक धन
ववधेयक पर ववधानसभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहहत यह प्रमाण पष्ृ ठांककत ककया जाएगा कक वह धन
ववधेयक है ।
200. विधेयकों पर अनम
ु नत- जब कोई ववधेयक राज्य की ववधानसभा द्वारा या ववधान पररषद् वाले
राज्य में ववधान-मंडल के दोनों सदनों द्वारा पाररत कर हदया गया है तब वह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तत

ककया जाएगा और राज्यपाल घोवषत करे गा कक वह ववधेयक पर अनम
ु तत दे ता है या अनम
ु तत रोक लेता है
अथवा वह ववधेयक को राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखता है :
परं तु राज्यपाल अनम
ु तत के ललए अपने समक्ष ववधेयक प्रस्तत
ु ककए जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र उस
ववधेयक को, यहद वह धन ववधेयक नहीं है तो, सदन या सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कक
सदन या दोनों सदन ववधेयक पर या उसके ककन्हीं ववतनहदत ष्ट उपबंधों पर पन
ु ववतचार करें और ववलशष्टतया
ककन्हीं ऐसे संशोधनों के परु ःस्थापन की वांछनीयता पर ववचार करें क्जनकी उसने अपने संदेश में लसफाररश
की है और जब ववधेयक इस प्रकार लौटा हदया जाता है तब सदन या दोनों सदन ववधेयक पर तदनस
ु ार
पन
ु ववतचार करें गे और यहद ववधेयक सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहहत या उसके त्रबना कफर से पाररत
कर हदया जाता है और राज्यपाल के समक्ष अनम
ु तत के ललए प्रस्तत
ु ककया जाता है तो राज्यपाल उस पर
अनम
ु तत नहीं रोकेगा :
परं तु यह और कक क्जस ववधेयक से, उसके ववधध बन जाने पर, राज्यपाल की राय में उच्च
न्यायालय की शक्क्तयों का ऐसा अल्पीकरण होगा कक वह स्थान, क्जसकी पतू तत के ललए वह न्यायालय इस
संववधान द्वारा पररकक्ल्पत है , संकटापन्न हो जाएगा, उस ववधेयक पर राज्यपाल अनम
ु तत नहीं दे गा, ककं तु
उसे राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखेगा।
201. विचार के ललए आरक्षक्षत विधेयक- जब कोई ववधेयक राज्यपाल द्वारा राष्रपतत के ववचार के
ललए आरक्षक्षत रख ललया जाता है तब राष्रपतत घोवषत करे गा कक वह ववधेयक पर अनम
ु तत दे ता है या
अनम
ु तत रोक लेता है :
परं तु ववधेयक धन ववधेयक नहीं है वहाँ राष्रपतत राज्यपाल को यह तनदे श दे सकेगा कक वह
ववधेयक को, यथाक्स्थतत, राज्य के ववधान-मंडल के सदन या सदनों को ऐसे संदेश के साथ, जो अनच्
ु छे द
200 के पहले परं तक
ु में वणणतत है , लौटा दे और जब कोई ववधेयक इस प्रकार लौटा हदया जाता है तब ऐसा
संदेश लमलने की तारीख से छह मास की अवधध के भीतर सदन या सदनों द्वारा उस पर तदनस
ु ार
पन
ु ववतचार ककया जाएगा और यहद वह सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहहत या उसके त्रबना कफर से पाररत
कर हदया जाता है तो उसे राष्रपतत के समक्ष उसके ववचार के ललए कफर से प्रस्तत
ु ककया जाएगा।

106
वििीय विषयों के संबध
ं में प्रक्रक्रया
202. िावषमक वििीय वििरण- (1) राज्यपाल प्रत्येक ववर्त्ीय वषत के संबध
ं में राज्य के ववधान-मंडल के
सदन या सदनों के समक्ष उस राज्य की उस वषत के ललए प्राक्कललत प्राक्प्तयों और व्यय का वववरण
रखवाएगा क्जसे इस भाग '' वावषतक ववर्त्ीय वववरण'' कहा गया है ।
(2) वावषतक ववर्त्ीय वववरण में हदए हुए व्यय के प्राक्कलनों में –
(क) इस संववधान में राज्य की संधचत तनधध पर भाररत व्यय के रूप में वणणतत व्यय की पतू तत के
ललए अपेक्षक्षत रालशयाँ, और
(ख) राज्य की संधचत तनधध में से ककए जाने के ललए प्रस्थावपत अन्य व्यय की पतू तत के ललए
अपेक्षक्षत रालशयाँ, पथ
ृ क् -पथ
ृ क् हदखाई जाएँगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद ककया
जाएगा।
(3) तनम्नललणखत व्यय प्रत्येक राज्य की संधचत तनधध पर भाररत व्यय होगा, अथातत ् : -
(क) राज्यपाल की उपलक्ब्धयाँ और भर्त्े तथा उसके पद से संबधं धत अन्य व्यय;
(ख) ववधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा ववधान पररषद् वाले राज्य की दशा में ववधान
पररषद् के सभापतत और उपसभापतत के भी वेतन और भर्त्े;
(ग) ऐसे ऋण भार क्जनका दातयत्व राज्य पर है , क्जनके अंतगतत ब्याज, तनक्षेप तनधध भार और
मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से संबधं धत अन्य व्यय हैं;
(घ) ककसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतनों और भर्त्ों के संबध
ं में व्यय;
(ङ) ककसी न्यायालय या माध्यस्थम अधधकरण के तनणतय, डडक्री या पंचाट की तक्ु ष्ट के ललए
अपेक्षक्षत रालशयाँ;
(च) कोई अन्य व्यय जो इस संववधान द्वारा या राज्य के ववधान-मंडल द्वारा, ववधध द्वारा, इस
प्रकार भाररत घोवषत ककया जाता है ।
203. विधान-मंडल में प्रातकलनों के संबध
ं में प्रक्रक्रया- (1) प्राक्कलनों में से क्जतने प्राक्कलन राज्य
की संधचत तनधध पर भाररत व्यय से संबधं धत हैं वे ववधानसभा में मतदान के ललए नहीं रखे जाएँगे, ककन्तु
इस खंड की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह ववधान-मंडल में उन प्राक्कलनों में से
ककसी प्राक्कलन पर चचात को तनवाररत करती है ।
(2) उक्त प्राक्कलनों में से क्जतने प्राक्कलन अन्य व्यय से संबधं धत हैं वे ववधानसभा के समक्ष
अनद
ु ानों की मांगों के रूप में रखे जाएँगे और ववधानसभा को शक्क्त होगी कक वह ककसी माँग को अनम
ु तत
दे या अनम
ु तत दे ने से इंकार कर दे अथवा ककसी माँग को, उसमें ववतनहदतष्ट रकम को कम करके, अनम
ु तत
दे ।
(3) ककसी अनद
ु ान की माँग राज्यपाल की लसफाररश पर ही की जाएगी, अन्यथा नहीं।
204. विननयोग विधेयक- (1) ववधानसभा द्वारा अनच्
ु छे द 203 के अधीन अनद
ु ान ककए जाने के
पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र, राज्य की संधचत तनधध में से—
(क) ववधानसभा द्वारा इस प्रकार ककए गए अनद
ु ानों की, और
(ख) राज्य की संधचत तनधध पर भाररत, ककन्तु सदन या सदनों के समक्ष पहले रखे गए वववरण में
दलशतत रकम से ककसी भी दशा में अनधधक व्यय की,
पतू तत के ललए अपेक्षक्षत सभी धनरालशयों के ववतनयोग का उपबंध करने के ललए ववधेयक परु ःस्थावपत ककया
जाएगा।

107
(2) इस प्रकार ककए गए ककसी अनद
ु ान की रकम में पररवततन करने या अनद
ु ान के लक्ष्य को
बदलने अथवा राज्य की संधचत तनधध पर भाररत व्यय की रकम में पररवततन करने का प्रभाव रखने वाला
कोई संशोधन, ऐसे ककसी ववधेयक में राज्य के ववधान-मंडल के सदन में या ककसी सदन में प्रस्थावपत नहीं
ककया जाएगा और पीठासीन व्यक्क्त का इस बारे में ववतनश्चय अंततम होगा कक कोई संशोधन इस खंड के
अधीन अग्राह्य है या नहीं।
(3) अनच्ु छे द 205 और अनच्
ु छे द 206 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य की संधचत तनधध में से
इस अनच्
ु छे द के उपबंधों के अनसु ार पाररत ववधध द्वारा ककए गए ववतनयोग के अधीन ही कोई धन
तनकाला जाएगा, अन्यथा नहीं।
205. अनप
ु रू क, अनतररतत या अधधक अनद
ु ान- (1) यहद-
(क) अनच्
ु छे द 204 के उपबंधों के अनस
ु ार बनाई गई ककसी ववधध द्वारा ककसी ववलशष्ट सेवा पर
चालू ववर्त्ीय वषत के ललए व्यय ककए जाने के ललए प्राधधकृत कोई रकम उस वषत के प्रयोजनों के ललए
अपयातप्त पाई जाती है या उस वषत के वावषतक ववर्त्ीय वववरण में अनध्
ु यात न की गई ककसी नई सेवा पर
अनप
ु रू क या अततररक्त व्यय की चालू ववर्त्ीय वषत के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है , या
(ख) ककसी ववर्त्ीय वषत के दौरान ककसी सेवा पर उस वषत और उस सेवा के ललए अनद
ु ान की गई
रकम से अधधक कोई धन व्यय हो गया है ,
तो राज्यपाल, यथाक्स्थतत, राज्य के ववधान-मंडल के सदन या सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कललत
रकम को दलशतत करने वाला दस
ू रा वववरण रखवाएगा या राज्य की ववधानसभा में ऐसे आधधक्य के ललए
माँग प्रस्तत
ु करवाएगा।
(2) ऐसे ककसी वववरण और व्यय या माँग के संबध
ं में तथा राज्य की संधचत तनधध में से ऐसे व्यय
या ऐसी माँग से संबधं धत अनद
ु ान की पतू तत के ललए धन का ववतनयोग प्राधधकृत करने के ललए बनाई जाने
वाली ककसी ववधध के संबध
ं में भी, अनच्
ु छे द 202, अनच्
ु छे द 203 और अनच्
ु छे द 204 के उपबंध वैसे ही प्रभावी
होंगे जैसे वे वावषतक ववर्त्ीय वववरण और उसमें वणणतत व्यय के संबध
ं में या ककसी अनद
ु ान की ककसी माँग
के संबध
ं में और राज्य की संधचत तनधध में से ऐसे व्यय या अनद
ु ान की पतू तत के ललए धन का ववतनयोग
प्राधधकृत करने के ललए बनाई जाने वाली ववधध के संबध
ं में प्रभावी हैं।
206. लेखानद
ु ान, प्रत्ययानद
ु ान और अपिादानद
ु ान- (1) इस अध्याय के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में ककसी
बात के होते हुए भी, ककसी राज्य की ववधानसभा को –
(क) ककसी ववर्त्ीय वषत के भाग के ललए प्राक्कललत व्यय के संबध
ं में कोई अनद
ु ान, उस अनद
ु ान के
ललए मतदान करने के ललए अनच्
ु छे द 203 में ववहहत प्रकक्रया के परू ा होने तक और उस व्यय के संबध
ं में
अनच्
ु छे द 204 के उपबंधों के अनस
ु ार ववधध के पाररत होने तक, अधग्रम दे ने की;
(ख) जब ककसी सेवा की महर्त्ा या उसके अतनक्श्चत रूप के कारण माँग ऐसे ब्यौरे के साथ वणणतत
नहीं की जा सकती है जो वावषतक ववर्त्ीय वववरण में सामान्यतया हदया जाता है तब राज्य के संपवर्त् स्रोतों
पर अप्रत्यालशत माँग की पतू तत के ललए अनद
ु ान करने की ;
(ग) ककसी ववर्त्ीय वषत की चालू सेवा का जो अनद
ु ान भाग नहीं है ऐसा कोई अपवादानद
ु ान करने
की,
शक्क्त होगी और क्जन प्रयोजनों के ललए उक्त अनद
ु ान ककए गए हैं उनके ललए राज्य की संधचत
तनधध में से धन तनकालना ववधध द्वारा प्राधधकृत करने की राज्य के ववधान-मंडल को शक्क्त होगी।

108
(2) खंड (1) के अधीन ककए जाने वाले ककसी अनद
ु ान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाली
ककसी ववधध के संबध
ं में अनच्
ु छे द 203 और अनच्
ु छे द 204 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वावषतक
ववर्त्ीय वववरण में वणणतत ककसी व्यय के बारे में कोई अनद
ु ान करने के संबध
ं में और राज्य की संधचत तनधध
में से ऐसे व्यय की पतू तत के ललए धन का ववतनयोग प्राधधकृत करने के ललए बनाई जाने वाली ववधध के
संबध
ं में प्रभावी हैं।
207. विि विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध- (1) अनच्
ु छे द 199 के खंड (1) के उपखंड (क) से
उपखंड (च) में ववतनहदत ष्ट ककसी ववषय के ललए उपबंध करने वाला ववधेयक या संशोधन राज्यपाल की
लसफाररश से ही परु ःस्थावपत या प्रस्ताववत ककया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला ववधेयक
ववधान पररषद् में परु ःस्थावपत नहीं ककया जाएगा:
परं तु ककसी कर के घटाने या उत्सादन के ललए उपबंध करने वाले ककसी संशोधन के प्रस्ताव के ललए इस
खंड के अधीन लसफाररश की अपेक्षा नहीं होगी।
(2) कोई ववधेयक या संशोधन उक्त ववषयों में से ककसी ववषय के ललए उपबंध करने वाला केवल
इस कारण नहीं समझा जाएगा कक वह जुमातनों या अन्य धनीय शाक्स्तयों के अधधरोपण का अथवा
अनज्ञ
ु क्प्तयों के ललए फीसों की या की गई सेवाओं के ललए फीसों की माँग का या उनके संदाय का उपबंध
करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कक वह ककसी स्थानीय प्राधधकारी या तनकाय द्वारा स्थानीय
प्रयोजनों के ललए ककसी कर के अधधरोपण, उत्सादन, पररहार, पररवततन या ववतनयमन का उपबंध करता है ।
(3) क्जस ववधेयक को अधधतनयलमत और प्रवतततत ककए जाने पर राज्य की संधचत तनधध में से व्यय
करना पड़ेगा वह ववधेयक राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन द्वारा तब तक पाररत नहीं ककया जाएगा
जब तक ऐसे ववधेयक पर ववचार करने के ललए उस सदन से राज्यपाल ने लसफाररश नहीं की है ।
साधारणतया प्रक्रक्रया
208. प्रक्रक्रया के ननयम- (1) इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के ववधान-मंडल का
कोई सदन अपनी प्रकक्रया और अपने कायत संचालन के ववतनयमन के ललए तनयम बना सकेगा।
(2) जब तक खंड (1) के अधीन तनयम नहीं बनाए जाते हैं तब तक इस संववधान के प्रारं भ से ठीक
पहले तत्स्थानी प्रांत के ववधान-मंडल के संबध
ं में जो प्रकक्रया के तनयम और स्थायी आदे श प्रवर्त्
ृ थे वे ऐसे
उपांतरणों और अनक ु ू लनों के अधीन रहते हुए उस राज्य के ववधान-मंडल के संबध
ं में प्रभावी होंगे क्जन्हें ,
यथाक्स्थतत, ववधानसभा का अध्यक्ष या ववधान पररषद् का सभापतत उनमें करे ।
(3) राज्यपाल, ववधान पररषद् वाले राज्य में ववधानसभा के अध्यक्ष और ववधान पररषद् के सभापतत
से परामशत करने के पश्चात,् दोनों सदनों में परस्पर संचार से संबधं धत प्रकक्रया के तनयम बना सकेगा।
209. राज्य के विधान-मंडल में वििीय कायम संबध
ं ी प्रक्रक्रया का विधध द्िारा विननयमन- ककसी राज्य
का ववधान-मंडल, ववर्त्ीय कायत को समय के भीतर परू ा करने के प्रयोजन के ललए ककसी ववर्त्ीय ववषय से
संबधं धत या राज्य की संधचत तनधध में से धन का ववतनयोग करने के ललए ककसी ववधेयक से संबधं धत, राज्य
के ववधान-मंडल के सदन या सदनों की प्रकक्रया और कायत संचालन का ववतनयमन ववधध द्वारा कर सकेगा
तथा यहद और तक इस प्रकार बनाई गई ककसी ववधध का कोई उपबंध अनच्
ु छे द 208 के खंड (1) के अधीन
राज्य के ववधान-मंडल के सदन या ककसी सदन द्वारा बनाए गए तनयम से या उस अनच्
ु छे द के खंड (2) के
अधीन राज्य ववधान-मंडल के संबध
ं में प्रभावी ककसी तनयम या स्थायी आदे श से असंगत है तो और वहां
तक ऐसा उपबंध अलभभावी होगा।

109
210. विधान-मंडल में प्रयोग की जाने िाली भाषा- (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककन्तु
अनच्
ु छे द 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के ववधान-मंडल में कायत राज्य की राजभाषा या
राजभाषाओं में या हहंदी में या अंग्रेजी में ककया जाएगा :
परं त,ु यथाक्स्थतत, ववधानसभा का अध्यक्ष या ववधान पररषद् का सभापतत अथवा उस रूप में कायत
करने वाला व्यक्क्त ककसी सदस्य को, जो पव
ू ोक्त भाषाओं में से ककसी भाषा में अपनी पयातप्त अलभव्यक्क्त
नहीं कर सकता है , अपनी मातभ
ृ ाषा में सदन को संबोधधत करने की अनज्ञ
ु ा दे सकेगा।
(2) जब तक राज्य का ववधान-मंडल ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संववधान के प्रारं भ से
पंद्रह वषत की अवधध की समाक्प्त के पश्चात ् यह अनच्
ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो '' या अंग्रेजी में '' शब्दों का
उसमें से लोप कर हदया गया होः
1
[परं तु 2[हहमाचल प्रदे श, मणणपरु , मेघालय और त्रत्रपरु ा राज्यों के ववधान-मंडलों] के संबध
ं में यह खंड
इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसमें आने वाले '' पंद्रह वषत'' शब्दों के स्थान पर '' पच्चीस वषत'' शब्द रख हदए
गए हों :]
3
[परं तु यह और कक 4[अरुणाचल प्रदे श, गोवा और लमजोरम राज्यों के ववधान-मंडलों के संबध
ं में यह
खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसमें आने वाले '' पंद्रह वषत'' शब्दों के स्थान पर '' चालीस वषत'' शब्द रख
हदए गए हों।]
211. विधान-मंडल में चचाम पर ननबंधन- उच्चतम न्यायालय या ककसी उच्च न्यायालय के ककसी
न्यायाधीश के अपने कततव्यों के तनवतहन में ककए गए, आचरण के ववषय में राज्य के ववधान-मंडल में कोई
चचात नहीं होगी।
212. न्यायालयों द्िारा विधान-मंडल की कायमिार्हयों की जााँच न क्रकया जाना- (1) राज्य के ववधान-
मंडल की ककसी कायतवाही की ववधधमान्यता को प्रकक्रया की ककसी अलभकधथत अतनयलमतता के आधार पर
प्रश्नगत नहीं ककया जाएगा।
(2) राज्य के ववधान-मंडल का कोई अधधकारी या सदस्य, क्जसमें इस संववधान द्वारा या इसके
अधीन उस ववधान-मंडल में प्रकक्रया या कायत संचालन का ववतनयमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने
की शक्क्तयाँ तनहहत हैं, उन शक्क्तयों के अपने द्वारा प्रयोग के ववषय में ककसी न्यायालय की अधधकाररता
के अधीन नहीं होगा।
___________________
1 हहमाचल प्रदे श राज्य अधधतनयम, 1970 (1970 का 53) की धारा 46 द्वारा (25-1-1971 से)
अंतःस्थावपत।
2 पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) ''
हहमाचल प्रदे श राज्य के ववधान-मंडल'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3 लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से)
अंतःस्थावपत।
4 अरुणाचल प्रदे श राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) ''
लमजोरम राज्य के ववधान-मंडल'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
5 गोवा, दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) ''
अरुणाचल प्रदे श और लमजोरम'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।

अध्याय 4

110
राज्यपाल की विधायी शक्तत

213. विधान-मंडल के विश्रांनतकाल में अध्यादे श प्रख्यावपत करने की राज्यपाल की शक्तत- (1) उस
समय को छोड़कर जब ककसी राज्य की ववधान सभा सत्र में है या ववधान पररषद् वाले राज्य में ववधान-
मंडल के दोनों सदन सत्र में है , यहद ककसी समय राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कक ऐसी
पररक्स्थततयाँ ववद्यमान हैं क्जनके कारण तरु ं त कारत वाई करना उसके ललए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे
अध्यादे श प्रख्यावपत कर सकेगा जो उसे उन पररक्स्थततयाँ में अपेक्षक्षत प्रतीत हों:
परं तु राज्यपाल, राष्रपतत के अनद
ु े शों के त्रबना, कोई ऐसा अध्यादे श प्रख्यावपत नहीं करे गा यहद—
(क) वैसे ही उपबंध अंतववतष्ट करने वाले ववधेयक को ववधान-मंडल में परु :स्थावपत ककए जाने के
ललए राष्रपतत की पव
ू त मंजूरी की अपेक्षा इस संववधान के अधीन होती; या
(ख) वह वैसे ही उपबंध अंतववतष्ट करने वाले ववधेयक को राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत
रखना आवश्यक समझता; या
(ग) वैसे हर उपबंध अंतववतष्ट करने वाला राज्य के ववधान-मंडल का अधधतनयम इस संववधान के
अधीन तब तक अधधमान्य होता जब तक राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखे जाने पर उसे राष्रपतत
की अनम
ु तत प्राप्त नहीं हो गई होती।
(2) इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रख्यावपत अध्यादे श का वही बल और प्रभाव होगा जो राज्य के
ववधान-मंडल के ऐसे अधधतनयम का होता है क्जसे राज्यपाल ने अनम
ु तत दे दी है , ककं तु प्रत्येक ऐसा
अध्यादे श –
(क) राज्य की ववधान सभा के समक्ष और ववधान पररषद् वाले राज्य में दोनों सदनों के समक्ष रखा
जाएगा तथा ववधान-मंडल के पन
ु : समवेत होने से छह सप्ताह की समाक्प्त पर या यहद उस अवधध की
समाक्प्त से पहले ववधान सभा उसके अनम
ु ोदन का संकल्प पाररत कर दे ती है और यहद ववधान पररषद् है
तो वह उससे सहमत हो जाती है तो, यथाक्स्थतत, संकल्प के पाररत होने पर या ववधान पररषद् द्वारा संकल्प
से सहमत होने पर प्रवततन में नहीं रहे गा; और
(ख) राज्यपाल द्वारा ककसी भी समय वापस ललया जा सकेगा।
स्पष्ट्टीकरण - जहाँ ववधान पररषद् वाले राज्य के ववधान मंडल के सदन, लभन्न-लभन्न तारीखों को
पन
ु : समवेत करने के ललए। आहूत ककए जाते हैं वहाँ इस खंड के प्रयोजनों के ललए छह सप्ताह की अवधध
की गणना उन तारीखों में से पश्चातवती तारीख से की जाएगी।
(3) यहद और जहाँ तक इस अनच्
ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता है जो राज्य के
ववधानमंडल के ऐसे अधधतनयम में क्जसे राज्यपाल ने अनम
ु तत दे दी है , अधधतनयम ककए जाने पर
ववधधमान्य नहीं होता तो और वहाँ तक वह अध्यादे श शन्
ू य होगा :
परं तु राज्य के ववधान-मंडल के ऐसे अधधतनयम के, जो समवती सच
ू ी में प्रगणणत ककसी ववषय के
बारे में संसद् के ककसी अधधतनयम या ककसी ववद्यमान ववधध के ववरुद्ध है , प्रभाव से संबधं धत इस
संववधान के उपबंधों के प्रयोजन के ललए यह है कक कोई अध्यादे श, जो राष्रपतत के अनद
ु े शों के अनस
ु रण में
इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रख्यावपत ककया जाता है , राज्य के ववधानमंडल का ऐसा अधधतनयम समझा जाएगा
जो राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखा गया और क्जसे उसने अनम
ु तत दे दी है ।
1
[* * * * * *]

111
अध्याय 5
राज्यों के उच्च न्यायालय
214. राज्यों के ललए उच्च न्यायालय- 2[***] प्रत्येक राज्य के ललए एक उच्च न्यायालय होगा।
3
[* * * * *]
215. उच्च न्यायालयों का अलभलेख न्यायालय होना- प्रत्येक उच्च न्यायालय अलभलेख न्यायालय
होगा और उसको अपने अवमान के ललए दं ड दे ने की शक्क्त सहहत ऐसे न्यायालय की सभी शक्क्तयाँ होंगी।
216. उच्च न्यायालयों का गठन- प्रत्येक उच्च न्यायालय मख्
ु य न्यायमतू तत और ऐसे अन्य
न्यायाधीशों से लमलकर बनेगा क्जन्हें राष्रपतत समय-समय पर तनयक्
ु त करना आवश्यक समझे।
4
[* * * * *]
217. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की ननयक्ु तत और उसके पद की शतें - (1) भारत के मख्
ु य
न्यायमतू तत से, उस राज्य के राज्यपाल से और मख्
ु य न्यायमतू तत से लभन्न ककसी न्यायाधीश की तनयक्ु क्त की
दशा में उस उच्च न्यायालय के मख्
ु य न्यायमतू तत से परामशत करने के पश्चात,् राष्रपतत अपने हस्ताक्षर और
मद्र
ु ा सहहत अधधपत्र द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को तनयक्
ु त करे गा और वह न्यायाधीश
5
[अपर या कायतकारी न्यायाधीश की दशा में अनच्
ु छे द 224 में उपबंधधत रूप में पद धारण करे गा और ककसी
अन्य दशा में तब तक पद धारण करे गा जब तक वह 6[बासठ वषत] की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है ] :
___________________
1. संववधान (अड़तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 3 द्वारा खंड (4) (भूतलक्षी प्रभाव से)
अंत:स्थावपत ककया गया और संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 27 द्वारा (20-
6-1979 से) इसका लोप ककया गया|
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से)
कोष्ठक और अंक “(1)” का लोप ककया गया|
3. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड
(2) और (3) का लोप ककया गया।
4. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 11 द्वारा (1-11-1956 से) परं तुक का लोप
ककया गया।
5. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 12 द्वारा (1-11-1956 से) ''तब तक पद धारण
करे गा जब तक कक वह साठ वषत की आयु प्राप्त न कर ले'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
6. संववधान (पंद्रहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (5-10-1963 से) ''साठ वषत'' के स्थान
पर प्रततस्थावपत।

परं त-ु
(क) कोई न्यायाधीश, राष्रपतत को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत लेख द्वारा अपना पद त्याग
सकेगा ;
(ख) ककसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के ललए अनच्
ु छे द 124 के
खंड (4) में उपबंधधत रीतत से उसके पद से राष्रपतत द्वारा हटाया जा सकेगा ;
(ग) ककसी न्यायाधीश का पद, राष्रपतत द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश तनयक्
ु त ककए
जाने पर या राष्रपतत द्वारा उसे भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी अन्य उच्च न्यायालय को, अंतररत ककए जाने
पर ररक्त हो जाएगा।

112
(2) कोई व्यक्क्त, ककसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में तनयक्ु क्त के ललए तभी अहतत
होगा जब वह भारत का नाधगरक है और –
(क) भारत के राज्यक्षेत्र में कम से कम दस वषत तक न्यातयक पद धारण कर चक
ु ा है ; या
(ख) ककसी 1[***] उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधधक न्यायालयों का लगातार कम से कम
दस वषत तक अधधवक्ता रहा है ; 2[***]
2
[* * * * * *]
स्पष्ट्टीकरण- इस खंड के प्रयोजनों के ललए—
3
[(क) भारत के राज्यक्षेत्र में न्यातयक पद धारण करने की अवधध की संगणना करने में वह अवधध
भी सक्म्मललत की जाएगी क्जसके दौरान कोई व्यक्क्त न्यातयक पद धारण करने के पश्चात ् ककसी उच्च
न्यायालय का अधधवक्ता रहा है या उसने ककसी अधधकरण के सदस्य का पद धारण ककया है अथवा संघ
या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण ककया है क्जसके ललए ववधध का ववशेष ज्ञान अपेक्षक्षत है ;
4
[(कक) ककसी उच्च न्यायालय का अधधवक्ता रहने की अवधध की संगणना करने में वह अवधध भी
सक्म्मललत की जाएगी क्जसके दौरान ककसी व्यक्क्त ने अधधवक्ता होने के पश्चात ् न्यातयक पद धारण ककया
है या ककसी अधधकरण के सदस्य का पद धारण ककया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद
धारण ककया है क्जसके ललए ववधध का ववशेष ज्ञान अपेक्षक्षत है ;]
___________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से)
''पहली अनुसूची में ववतनहदतष्ट ककसी राज्य में के'' शब्दों का लोप ककया गया।
2. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) शब्द '' या'' और
उपखंड (ग) अंतःस्थावपत ककए गए और संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा
28 द्वारा (20-6-1979 से) उनका लोप ककया गया।
3. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थावपत।
4. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (क) को
खंड (कक) के रूप में पुनःअक्षरांककत ककया गया।
5. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 36 द्वारा(3-1-1977 से) '' न्यातयक पद
धारण ककया हो'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(ख) भारत के राज्यक्षेत्र में न्यातयक पद धारण करने या ककसी उच्च न्यायालय का अधधवक्ता
रहने की अवधध की संगणना करने में इस संववधान के प्रारं भ से पहले की वह अवधध भी सक्म्मललत की
जाएगी क्जसके दौरान ककसी व्यक्क्त ने, यथाक्स्थतत, ऐसे क्षेत्र में जो 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत शासन
अधधतनयम, 1935 में पररभावषत भारत में समाववष्ट था, न्यातयक पद धारण ककया है या वह ऐसे ककसी क्षेत्र
में ककसी उच्च न्यायालय का अधधवक्ता रहा है ।
1
[(3) यहद उच्च न्यायालय के ककसी न्यायाधीश की आयु के बारे में कोई प्रश्न उठता है तो उस
प्रश्न का ववतनश्चय भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत से परामशत करने के पश्चात ् राष्रपतत का ववतनश्चय अंततम
होगा।
218. उच्चतम न्यायालय से संबधं धत कुछ उपबंधों का उच्च न्यायालयों को लागू होना- अनच्
ु छे द
124 के खंड (4) और खंड (5) के उपबंध, जहाँ-जहाँ उनमें उच्चतम न्यायालय के प्रतत तनदे श है वहाँ-वहाँ उच्च

113
न्यायालय के प्रतत तनदे श प्रततस्थावपत करके, उच्च न्यायालय के संबध
ं में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उच्चतम
न्यायालय के संबध
ं में लागू होते हैं।
219. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्िारा शपथ या प्रनतज्ञान- 2
[***] उच्च न्यायालय का
न्यायाधीश होने के ललए तनयक्
ु त प्रत्येक व्यक्क्त, अपना पद ग्रहण करने से पहले, उस राज्य के राज्यपाल या
उसके द्वारा इस तनलमर्त् तनयक्
ु त व्यक्क्त के समक्ष, तीसरी अनस
ु च
ू ी में इस प्रयोजन के ललए हदए गए प्रारूप
के अनस
ु ार, शपथ लेगा या प्रततज्ञान करे गा और उस पर अपने हस्ताक्षर करे गा।
3
[220. स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात ् विधध-व्यिसाय पर ननबंधन- कोई व्यक्क्त, क्जसने इस
संववधान के प्रारं भ के पश्चात ् ककसी उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पद धारण ककया है ,
उच्चतम न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों के लसवाय भारत में ककसी न्यायालय या ककसी प्राधधकारी
के समक्ष अलभवंचन या कायत नहीं करे गा।
स्पष्ट्टीकरण- इस अनच्
ु छे द में , '' उच्च न्यायालय'' पद के अंतगतत संववधान (सातवाँ संशोधन)
अधधतनयम, 1956 के प्रारं भ1 से पहले ववद्यमान पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख में ववतनहदत ष्ट राज्य का उच्च
न्यायालय नहीं है ।]
221. न्यायाधीशों के िेतन आर्द- 1[(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का
संदाय ककया जाएगा जो संसद्, ववधध द्वारा, अवधाररंत करे और जब तक इस तनलमर्त् इस प्रकार उपबंध
नहीं ककया जाता है तब तक ऐसे वेतनों का संदाय ककया जाएगा जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट हैं।]
___________________
1. संववधान (पंद्रहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) अंतःस्थावपत।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) ''
ककसी राज्य में '' शब्दों का लोप ककया गया।
3. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 13 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 220 के
स्थान पर प्रततस्थावपत।
4. 1 नवंबर, 1956।
5. संववधान (चौवनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 3 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान
पर प्रततस्थावपत।

(2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे भर्त्ों का तथा अनप


ु क्स्थतत छुट्टी और पें शन के संबध
ं में ऐसे अधधकारों का,
जो संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर अवधाररत ककए जाएँ , और जब
तक इस प्रकार अवधाररत नहीं ककए जाते हैं तब तक ऐसे भर्त्ों और अधधकारों का जो दस
ू री अनस
ु च
ू ी में
ववतनहदतष्ट हैं, हकदार होगा।
परं तु ककसी न्यायाधीश के भर्त्ों में और अनप
ु क्स्थतत छुट्टी या पें शन के संबध
ं में उसके अधधकारों
में उसकी तनयक्ु क्त के पश्चात ् उसके ललए अलाभकारी पररवततन नहीं ककया जाएगा।
222. क्रकसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दस
ू रे उच्च न्यायालय को अंतरण- (1) राष्रपतत,
भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत से परामशत करने के पश्चात ् [***] ककसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय
1

से दस
ू रे उच्च न्यायालय को अंतरण कर सकेगा।
2
[(2) जब कोई न्यायाधीश इस प्रकार अंतररत ककया गया है या ककया जाता है तब वह उस अवधध
के दौरान, क्जसके दौरान वह संववधान (पंद्रहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1963 के प्रारं भ के पश्चात ् दस
ू रे उच्च
न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवा करता है , अपने वेतन के अततररक्त ऐसा प्रततकरात्मक भर्त्ा, जो

114
संसद् ववधध द्वारा अवधाररत करे , और जब तक इस प्रकार अवधाररत नहीं ककया जाता है तब तक ऐसा
प्रततकरात्मक भर्त्ा, जो राष्रपतत आदे श द्वारा तनयत करे , प्राप्त करने का हकदार होगा।
223. कायमकारी मख्
ु य न्यायमनू तम की ननयक्ु तत- जब ककसी उच्च न्यायालय के मख्
ु य न्यायमतू तत का
पद ररक्त है या जब ऐसा मख्
ु य न्यायमतू तत अनप
ु क्स्थतत के कारण या अन्यथा अपने पद के कततव्यों का
पालन करने में असमथत है तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा एक न्यायाधीश, क्जसे राष्रपतत
इस प्रयोजन के ललए तनयक्
ु त करे , उस पद के कततव्यों का पालन करे गा।
3
[224. अपर और कायमकारी न्यायाधीशों की ननयक्ु तत- (1) यहद ककसी उच्च न्यायालय के कायत में
ककसी अस्थायी वद्
ृ धध के कारण या उसमें कायत की बकाया के कारण राष्रपतत को यह प्रतीत होता है कक
उस न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को तत्समय बढ़ा दे ना चाहहए तो राष्रपतत सम्यक् रूप से आहत
व्यक्क्तयों को दो वषत से अनधधक की ऐसी अवधध के ललए जो वह ववतनहदतष्ट करे , उस न्यायालय के अपर
न्यायाधीश तनयक्
ु त कर सकेगा।
(2) जब ककसी उच्च न्यायालय का मख्
ु य न्यायमतू तत से लभन्न कोई न्यायाधीश अनप
ु क्स्थतत के
कारण या अन्य कारण से अपने पद के कततव्यों का पालन करने में असमथत है या मख्
ु य न्यायमतू तत के रूप
में अस्थायी रूप से कायत करने के ललए तनयक्
ु त ककया जाता है तब राष्रपतत सम्यक् रूप से अहहतत ककसी
व्यक्क्त को तब तक के ललए उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कायत करने के ललए तनयक्
ु त कर
सकेगा जब तक स्थायी न्यायाधीश अपने कततव्यों को कफर से नहीं संभाल लेता है ।
___________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 14 द्वारा (1-11-1956 से) '' भारत के
राज्यक्षेत्र में के'' शब्दों का लोप ककया गया।
2. संववधान (पंद्रहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थावपत। संववधान (सातवाँ
संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 14 द्वारा मूल खंड (2) का लोप ककया गया।
3. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 15 द्वारा अनुच्छे द 224 के स्थान पर
प्रततस्थावपत।

(3) उच्च न्यायालय के अपर या कायतकारी न्यायाधीश के रूप में तनयक्


ु त कोई व्यक्क्त [बासठ वषत]
1

की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात ् पद धारण नहीं करे गा]|]


224क. उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेिाननिि
ृ न्यायाधीशों की ननयक्ु तत- इस अध्याय में ककसी
बात के होते हुए भी, ककसी राज्य के उच्च न्यायालय का मख्
ु य न्यायमतू तत, ककसी भी समय, राष्रपतत की पव
ू त
सहमतत से ककसी व्यक्क्त से, जो उस उच्च न्यायालय या ककसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद
धारण कर चुका है , उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कायत करने का
अनरु ोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्क्त, क्जससे इस प्राकर अनरु ोध ककया जाता है , इस प्रकार बैठने
और कायत करने के दौरान ऐसे भर्त्ों का हकदार होगा जो राष्रपतत आदे श द्वारा अवधाररत करे और उसको
उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधधकाररता, शक्क्तयाँ और ववशेषाधधकार होंगे, ककं तु उसे
अन्यथा उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा:
परं तु जब तक यथापव
ू ोक्त व्यक्क्त उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कायत
करने की सहमतत नहीं दे दे ता है तब तक इस अनच्
ु छे द की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने
वाली नहीं समझी जाएगी|

115
225. विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधधकाररता – इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए
और इस संववधान द्वारा समधु चत ववधान-मंडल को प्रदर्त् शक्क्तयों के आधार पर उस ववधान-मंडल द्वारा
बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हे स, ककसी ववद्यमान उच्च न्यायालय की अधधकाररता
और उसमे प्रशालसत ववधध तथा उस न्यायालय में न्याय प्रशासन के संबध
ं में उसके न्यायाधीशों की
अपनी-अपनी शक्क्तयाँ, क्जनके अंतगतत न्यायालय के तनयम बनाने की शक्क्त तथा उस न्यायालय और
उसके सदस्यों की बैठकों का चाहे वे अकेले बैठे या खंड न्यायालयों में बैठे ववतनयमन करने की शक्क्त है ,
वही होगी जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले थी :
3
[परं तरु ाजस्व संबध
ं ी अथवा उसका संग्रहण करने में आहदष्ट या हदए गए ककसी कायत संबध
ं ी
ववषय की बावत ् उच्च न्यायालयों में से ककसी की आरं लभक अधधकाररता का प्रयोग, इस संववधान के प्रारं भ
से ठीक पहले, क्जस ककसी तनबंधन के अधीन था वह तनबंधन ऐसी अधधकाररता के प्रयोग को ऐसे प्रारं भ
के पश्चात ् लागू नहीं होगा|
__________________
1. संववधान (पन्द्रहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 6 द्वारा “साठ वषत” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
2. संववधान (पन्द्रहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 7 द्वारा अंत:स्थावपत|
3. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 29 द्वारा (20-6-1977 से)
अंत:स्थावपत एवं संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 37 द्वारा (1-2-
1977 से) मूल परं तुक का लोप ककया गया था|
1
[226. कुछ ररट ननकालने की उच्च न्यायालय की शक्तत – (1) अनच्
ु छे द 32 में ककसी बात के
होते हुए भी 2[***] प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्यक्षेत्रों में सवतत्र, क्जनके संबध
ं में वह अपनी
अधधकाररता का प्रयोग करता है , 3[भाग 3 द्वारा प्रदर्त् अधधकारों में से ककसी की प्रवतततत कराने के ललए
और ककसी अन्य प्रयोजन के ललए] उन राज्यक्षेत्रों के भीतर ककसी व्यक्क्त या प्राधधकारी को या समधु चत
मामलो में ककसी सरकार की ऐसे तनदे श, आदे श या ररट क्जनके अंतगतत 3[ बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादे श,
प्रततषेध, अधधकार-पच्
ृ छा और उत्प्रेषण ररट है , या उनमे में कोई] तनकालने की शक्क्त होगी|
(2) ककसी सरकार, प्राधधकारी या व्यक्क्त को तनदे श, आदे श या ररट तनकालने की खंड (1) द्वारा
प्रदर्त् शक्क्त का प्रयोग उन राज्यक्षेत्रों के संबध
ं में , क्जनके भीतर ऐसी शक्क्त के प्रयोग के ललए वादहे तक

पण
ू त
त : या भागत: उत्पन्न होता है , अधधकाररता का प्रयोग करने वाले ककसी उच्च न्यायालय द्वारा भी,
इस बात के होते हुए भी ककया जा सकेगा की ऐसी सरकार या प्राधधकारी का स्थान या ऐसे व्यक्क्त का
तनवास-स्थान उन राज्यक्षेत्रों के भीतर नहीं है |
4
[(3) जहाँ कोई पक्षकार, क्जसके ववरुद्ध खंड (1) के अधीन ककसी याधचका पर या उससे सबंधधत
ककसी कायतवाही में व्यादे श के रूप में या रोक के रूप में या ककसी अन्य रीतत से कोई अंतररम आदे श –
(क) ऐसे पक्षकार को ऐसी याधचका की और ऐसे अंतररम आदे श के ललए अलभवाक् के समथतन में
सभी दस्तवेजों की प्रततललवपयाँ, और
(ख) ऐसे पक्षकार को सन
ु वाई का अवसर,
हदए त्रबना हदया गया है , ऐसे आदे श को रद्द कराने के ललए उच्च न्यायालय को आवेदन करता है और
ऐसे आवेदन की एक प्रततललवप उस पक्षकार की क्जसके पक्ष में ऐसा आदे श ककया गया है या उसके
काउं सेल को दे ता है वहां उच्च न्यायालय उसकी प्राक्प्त की तारीख से या ऐसे आवेदन की प्रततललवप इस

116
प्रकार हदए जाने की तारीख से दो सप्ताह की अवधध के भीतर, इनमें से जो भी पश्चात्वती हो, या जहाँ
उच्च न्यायालय उस अवधध के अंततम हदन बंद है वहां उसके ठीक बाद वाले हदन की समाक्प्त से पहले
क्जस हदन उच्च न्यायालय खुला है , आवेदन की तनपटाएगा और यहद आवेदन इस प्रकार अनहह तनपटाया
जाता है तो अंतररम आदे श, यथाक्स्थतत, उक्त अवधध की या उक्त ठीक बाद वाले हदन की समाक्प्त पर
रद्द हो जाएगा|]
___________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 38 द्वारा (1-2-1977 से) अनुच्छे द
226 के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 7 द्वारा (13-4-1978 से) “ककं तु
अनुच्छे द 131क और अनुच्छे द 226क के उपबंधों के अधीन रहते हुए” शब्दों, अंको और अक्षरों
का लोप ककया गया|
3. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) “क्जनके
अंतगतत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादे श, प्रततषेध, अधधकार-पच्
ृ छा और उत्प्रेषण के प्रकार के लेख भी
है अथवा उनमे से ककसी को “शब्दों से आरं भ होकर” न्याय की सारवान तनष्फलता हुई है , ककसी
क्षतत के प्रतततोष के ललए” शब्दों के साथ-साथ समाप्त होने वाले भग के स्थान पर प्रररस्थावपत|
4. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (3),
खंड (4), खंड (5) और खंड (6) के स्थान पर प्रततस्थावपत|
1
[(4) इस अनच्
ु छे द द्वारा उच्च न्यायालय को प्रदर्त् शक्क्त से, अनच्
ु छे द 32 के खंड (2) द्वारा
उच्चतम न्यायालय को प्रदर्त् शक्क्त का अल्पीकरण नहीं होगा|]
__________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा (1-8-1979 से), खंड (7) को खंड (4)
के रूप में पुन्संख्याककत ककया गया|

1
[226क. अनच्
ु छे द 226 के अधीन कायमिार्हयों में केन्रीय विधधयों की सांविधाननक िैधता पर विचार
न क्रकया जाना- [संववधान (तैंतालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 8 द्वारा (13-4-78 से)
तनरलसत।]]
227. सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्तत- 2[(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय उन
राज्यक्षेत्रों में सवतत्र, क्जनके संबध
ं में वह अपनी अधधकाररता का प्रयोग करता है , सभी न्यायालयों और
अधधकरणों का अधीक्षण करे गा।
(2) पव
ू ग
त ामी उपबंध की व्यापकता पर प्रततकूल प्रभाव डाले त्रबना, उच्च न्यायालय-
(क) ऐसे न्यायालयों से वववरणी मँगा सकेगा;
(ख) ऐसे न्यायालयों की पद्धतत और कायतवाहहयों के ववतनयमन के ललए साधारण तनयम और
प्रारूप बना सकेगा, और तनकाल सकेगा तथा ववहहत कर सकेगा ; और
__________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 39 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्थावपत।
2. खंड (1) संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से) और
तत्पश्चात ् संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से )
प्रततस्थावपत होकर उपरोक्त रूप में आया।

117
(ग) ककन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधधकाररयों द्वारा रखी जाने वाली पस्
ु तकों, प्रववक्ष्टयों और लेखाओं के
प्रारूप ववहहत कर सकेगा।
(3) उच्च न्यायालय उन फीसों की सारणणयाँ भी क्स्थर कर सकेगा जो ऐसे न्यायालयों के शैररफ को
तथा सभी ललवपकों और अधधकाररयों को तथा उनमें ववधध-व्यवसाय करने वाले अटतनतयों, अधधवक्ताओं और
लीडरों को अनज्ञ
ु ेय होंगी:
परं तु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई तनयम, ववहहत ककए गए कोई प्रारूप या क्स्थर
की गई कोई सारणी तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध के उपबंध से असंगत नहीं होगी और इनके ललए राज्यपाल
के पव
ू त अनम
ु ोदन की अपेक्षा होगी।
(4) इस अनच्
ु छे द की कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बलों से संबधं धत ककसी ववधध द्वारा या
उसके अधीन गहठत ककसी न्यायालय या अधधक रण पर अधीक्षण की शक्क्तयाँ दे ने वाली नहीं समझी
जाएगी।
1[* * * * * *]
228. कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण- यहद उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता
है कक उसके अधीनस्थ ककसी न्यायालय में लंत्रबत ककसी मामले में इस संववधान के तनवतचन के बारे में
ववधध का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवतललत है क्जसका अवधारण मामले के तनपटारे के ललए आवश्यक है 2[तो
वह 3[***] उस मामले को अपने पास मंगा लेगा और-
(क) मामले को स्वयं तनपटा सकेगा, या
__________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से ) खंड (5)
अंतःस्थावपत ककया गया और उसका संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 31
द्वारा (20-6-1979 से) लोप ककया गया।
2. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 41 द्वारा (1-2-1977 से) '' तो वह उस
मामले को अपने पास मँगा लेगा तथा'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (तैंतालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 9 द्वारा (13-4-1978 से) '' अनुच्छे द
131क के उपबंधों के अधीन रहते हुए'' शब्दों, अंकों और अक्षर का लोप ककया गया।
(ख) उक्त ववधध के प्रश्न का अवधारण कर सकेगा और उस मामले को ऐसे प्रश्न पर तनणतय की
प्रततललवप सहहत उस न्यायालय को, क्जससे मामला इस प्रकार मँगा ललया गया है , लौटा सकेगा और उक्त
न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे तनणतय के अनरू
ु प तनपटाने के ललए आगे कायतवाही
करे गा।
1
[228क. राज्य विधधयों की सांविधाननक िैधता से संबधं धत प्रश्नों के ननपटारे के बारे में विशेष
उपबंध- संववधान (तैंतालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1977 की धारा 10 द्वारा (13-4-1978 से) तनरलसत।
229. उच्च न्यायालयों के अधधकारी और सेिक तथा व्यय- (1) ककसी उच्च न्यायालय के
अधधकाररयों और सेवकों की तनयक्ु क्तयाँ उस न्यायालय का मख्
ु य न्यायमतू तत करे गा या उस न्यायालय का
ऐसा अन्य न्यायाधीश या अधधकारी करे गा क्जसे वह तनहदत ष्ट करे :
परं तु उस राज्य का राज्यपाल तनयम 2[***] द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कक ऐसी ककन्हीं दशाओं
में जो तनयम में ववतनहदत ष्ट की जाएँ, ककसी ऐसे व्यक्क्त को, जो पहले से ही न्यायालय से संलषन नहीं है,

118
न्यायालय से संबधं धत ककसी पद पर राज्य लोक सेवा आयोग से परामशत करके ही तनयक्
ु त ककया जाएगा,
अन्यथा नहीं।
(2) राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्च न्ययालय के
अधधकाररयों और सेवकों की सेवा की शतें ऐसी होंगी जो उस न्यायालय के मख् ु य न्यायमतू तत या उस
न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अधधकारी द्वारा, क्जसे मख्
ु य न्यायमतू तत ने इस प्रयोजन के ललए
तनयम बनाने के ललए प्राधधकृत ककया है , बनाए गए तनयमों द्वारा ववहहत की जाएँ:
परं तु इस खंड के अधीन बनाए गए तनयमों के ललए, जहाँ तक वे वेतनों, भर्त्ों, छुट्टी या पें शनों से
संबधं धत है , उस राज्य के राज्यपाल के 3[***] अनम
ु ोदन की अपेक्षा होगी।
(3) उच्च न्यायालय के प्रशासतनक व्यय, क्जनके अंतगतत उस न्यायालय के अधधकाररयों और सेवकों
को या उनके संबध
ं में संदेय सभी वेतन, भर्त्े और पें शन हैं, राज्य की संधचत तनधध पर भाररत होंगे और
उस न्यायालय द्वारा ली गई फीसें और अन्य धनरालशयाँ उस तनधध का भाग होंगी।
4
[230. उच्च न्यायालयों की अधधकाररता का संघ राज्यक्षेत्रों पर विस्तार- (1) संसद्, ववधध द्वारा,
ककसी संघ राज्यक्षेत्र पर ककसी उच्च न्यायालय की अधधकाररता का ववस्तार कर सकेगी या ककसी संघ
राज्यक्षेत्र से ककसी उच्च न्यायालय की अधधकाररता का अपवजतन कर सकेगी।
__________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 42 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्थावपत।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से)
''क्जसमें उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है ,'' शब्दों का लोप ककया गया।
3. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से)
''क्जसमें उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है ,'' शब्दों का लोप ककया गया।
4. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 16 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 230,
231 और 232 के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(2) जहाँ ककसी राज्य का उच्च न्यायालय ककसी संघ राज्यक्षेत्र के संबध
ं में अधधकाररता का प्रयोग
करता है , वहाँ-
(क) इस संववधान की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह उस राज्य के ववधान-
मंडल को उस अधधकाररता में वद्
ृ धध, उसका तनबंधन या उत्सादन करने के ललए सशक्त करती है ; और
(ख) उस राज्यक्षेत्र में अधीनस्थ न्यायालयों के ललए ककन्हीं तनयमों, प्ररूपों या सारणणयों के संबध

में , अनच्
ु छे द 227 में राज्यपाल के प्रतत तनदे श का, यह अथत लगाया जाएगा कक वह राष्रपतत के प्रतत तनदे श
है ।
231. दो या अधधक राज्यों के ललए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना- (1) इस अध्याय के
पव
ू व
त ती उपबंधों में ककसी बात के होते हुए भी, संसद्, ववधध द्वारा, दो या अधधक राज्यों के ललए अथवा दो
या अधधक राज्यों और ककसी संघ राज्यक्षेत्र के ललए एक ही उच्च न्यायालय स्थावपत कर सकेगी।
(2) ककसी ऐसे उच्च न्यायालय के संबध
ं में , -
(क) अनच्
ु छे द 217 में उस राज्य के राज्यपाल के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक वह
उन सभी राज्यों के राज्यपालों के प्रतत तनदे श है क्जनके संबध
ं में वह उच्च न्यायालय अधधकाररता
का प्रयोग करता है;

119
(ख) अधीनस्थ न्यायालयों के ललए ककन्हीं तनयमों, प्रारूपों या सारणणयों के संबध
ं में , अनच्
ु छे द 227 में
राज्यपाल के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक वह उस राज्य के राज्यपाल के प्रतत
तनदे श है क्जसमें वे अधीनस्थ न्यायालय क्स्थत हैं; और
(ग) अनच्
ु छे द 219 और अनच्
ु छे द 229 में राज्य के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे
उस राज्य के प्रतत तनदे श है, क्जसमें उस उच्च न्यायालय का मख्
ु य स्थान है :
परं तु यहद ऐसा मख्
ु य स्थान ककसी संघ राज्यक्षेत्र में है तो अनच्
ु छे द 219 और अनच्
ु छे द 229 में
राज्य के, राज्यपाल, लोक सेवा आयोग, ववधान-मंडल और संधचत तनधध के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया
जाएगा कक वे क्रमश: राष्रपतत, संघ लोक सेवा आयोग, संसद् और भारत की संधचत तनधध के प्रतत तनदे श
हैं।
232. [लोवपत दे णखए संविधान (सातिां संधोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 16]
अध्याय 6
अधीनस्थ न्यायालय

233. क्जला न्यायाधीशों की ननयक्ु तत- (1) ककसी राज्य में क्जला न्यायाधीश तनयक्
ु त होने वाले
व्यक्क्तयों की तनयक्ु क्त तथा क्जला न्यायाधीश की पदस्थापना और प्रोन्नतत उस राज्य का राज्यपाल ऐसे
राज्य के संबध
ं में अधधकाररता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामशत करके करे गा।
(2) वह व्यक्क्त, जो संघ की या राज्य की सेवा में पहले से ही नहीं है , क्जला न्यायाधीश तनयक्
ु त होने
के ललए केवल तभी पात्र होगा जब वह कम से कम सात वषत तक अधधवक्ता या लीडर रहा है और उसकी
तनयक्ु क्त के ललए उच्च न्यायालय ने लसफाररश की है ।
1
[233क. कुछ क्जला न्यायाधीशों की ननयक्ु ततयों का और उनके द्िारा क्रकए गए ननणमयों आर्द का
विधधमान्यकरण- ककसी न्यायालय का कई तनणतय, डडक्री या आदे श होते हुए भी,-
(क) (i)उस व्यक्क्त की जो राज्य की न्यातयक सेवा में पहले से ही है या उस व्यक्क्त की, जो कम
से कम सात वषत तक अधधवक्ता या लीडर रहा है , उस राज्य में क्जला न्यायाधीश के रूप में
तनयक्ु क्त की बाबत, और
(ii)ऐसे व्यक्क्त की क्जला न्यायाधीश के रूप में पदस्थापना, प्रोन्नतत या अंतरण की बाबत,
जो संववधान (बीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1966 के प्रारं भ से पहले ककसी समय अनच्
ु छे द 233 या
अनच्
ु छे द 235 के उपबंधों के अनस
ु ार न करके अन्यथा ककया गया है , केवल इस तथ्य के कारण कक
ऐसी तनयक्ु क्त, पदस्थापना, प्रोन्नतत या अंतरण उक्त उपबंधों के अनस
ु ार नहीं ककया गया था, यह
नहीं समझा जाएगा कक वह अवैध या शन्
ू य है या कभी भी अवैध या शन्
ू य रहा था ;
(ख) ककसी राज्य में क्जला न्यायाधीश के रूप में अनच्
ु छे द 233 या अनच्
ु छे द 235 के उपबंधों के
अनस
ु ार न करके अन्यथा तनयक्
ु त, पदस्थावपत, प्रोन्नत या अंतररत ककसी व्यक्क्त द्वारा या उसके समक्ष
संववधान (बीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1966 के प्रारं भ से पहले प्रयक्
ु त अधधकाररता की, पाररत ककए गए या
हदए गए तनणतय, डडक्री, दं डादे श या आदे श की और ककए गए अन्य कायत या कायतवाही की बाबत, केवल इस
तथ्य के कारण कक ऐसी तनयक्ु क्त, पदस्थापना, प्रोन्नतत या अंतरण उक्त उपबंधों के अनस
ु ार नहीं ककया
गया था, यह नहीं समझा जाएगा कक वह अवैध या अधधमान्य है या कभी भी अवैध या अधधमान्य रहा
था।]
234. न्यानयक सेिा में क्जला न्यायाधीशों से लभन्न व्यक्ततयों की भती- क्जला न्यायाधीशों से लभन्न
व्यक्क्तयों की ककसी राज्य की न्यातयक सेवा में तनयक्ु क्त उस राज्य के राज्यपाल द्वारा, राज्य लोक सेवा

120
आयोग से और ऐसे राज्य के संबध
ं में अधधकाररता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामशत करने
के पश्चात,् और राज्यपाल द्वारा इस तनलमर्त् बनाए गए तनयमों के अनस
ु ार की जाएगी।
235. अधीनस्थ न्यायालयों पर ननयंत्रण- क्जला न्यायालयों और उनके अधीनस्थ न्यायालयों का
तनयंत्रण, क्जसके अंतगतत राज्य की न्यातयक सेवा के व्यक्क्तयों और क्जला न्यायाधीश के पद से अवर
ककसी पद को धारण करने वाले व्यक्क्तयों की पदस्थापना, प्रोन्नतत और उनको छुट्टी दे ना है , उच्च
न्यायालय में तनहहत होगा, ककं तु इस अनच्
ु छे द की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह ऐसे
ककसी व्यक्क्त से उसके अपील के अधधकार को छीनती है जो उसकी सेवा की शतों का ववतनयमन करने
वाली ववधध के अधीन उसे है या उच्च न्यायालय को इस बात के ललए प्राधधकृत करती है कक वह उससे
ऐसी ववधध के अधीन ववहहत उसकी सेवा की शतों के अनस
ु ार व्यवहार न करके अन्यथा व्यवहार करे ।
236. ननिमचन- इस अध्याय में ,-
(क) '' क्जला न्यायाधीश'' पद के अंतगतत नगर लसववल न्यायालय का न्यायाधीश, अपर क्जला
न्यायाधीश, संयक्
ु त क्जला न्यायाधीश, सहायक क्जला न्यायाधीश, लघव
ु ाद न्यायालय का मख्
ु य न्यायाधीश,
मख्
ु य प्रेलसडेंसी मक्जस्रे ट, अपर मख्
ु य प्रेलसडेंसी मक्जस्रे ट, सेशन न्यायाधीश, अपर सेशन न्यायाधीश और
सहायक सेशन न्यायाधीश है ;
__________________
1. संववधान (बीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थावपत।
(ख) '' न्यातयक सेवा'' पद से ऐसी सेवा अलभप्रेत है जो अनन्यतः ऐसे व्यक्क्तयों से लमलकर बनी है ,
क्जनके द्वारा क्जला न्यायाधीश के पद का और क्जला न्यायाधीश के पद से अवर अन्य लसववल न्यातयक
पदों का भरा जाना आशतयत है ।
237. कुछ िगम या िगों के मक्जस्रे टों पर इस अध्याय के उपबंधों का लागू होना- राज्यपाल, लोक
अधधसच
ू ना द्वारा, तनदे श दे सकेगा कक इस अध्याय के पव
ू ग
त ामी उपबंध और उनके अधीन बनाए गए तनयम
ऐसी तारीख से, जो वह इस तनलमर्त् तनयत करे , ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, जो ऐसी
अधधसचू ना में ववतनहदतष्ट ककए जाएँ, राज्य में ककसी वगत या वगों के मक्जस्रे टों के संबध
ं में वैसे ही लागू
होंगे जैसे वे राज्य की न्यातयक सेवा में तनयक्
ु त व्यक्क्तयों के संबध
ं में लागू होते हैं।
भाग 7
पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख के राज्य
238. [संविधान (सातिां संशोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु च
ू ी] द्वारा (1-11-
1956 से) तनरलसत|
भाग 8
1
[संघ राज्यक्षेत्र
2
[239. संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन- (1) संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा यथा अन्यथा उपबंधधत
के लसवाय, प्रत्येक संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासन राष्रपतत द्वारा ककया जाएगा, और वह अपने द्वारा ऐसे
पदालभधान सहहत, जो वह ववतनहदत ष्ट करे , तनयक्
ु त ककए गए प्रशासक के माध्यम से उस मात्रा तक कायत
करे गा क्जतनी वह ठीक समझता है ।
(2) भाग 6 में ककसी बात के होते हुए भी, राष्रपतत ककसी राज्य के राज्यपाल को ककसी तनकटवती
संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक तनयक्
ु त कर सकेगा और जहाँ कोई राज्यपाल इस प्रकार तनयक्ु त ककया जाता है
वहाँ वह ऐसे प्रशासक के रूप में अपने कृत्यों का प्रयोग अपनी मंत्रत्र-पररषद् से स्वतंत्र रूप से करे गा।

121
3
[239क. कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के ललए स्थानीय विधान- मंडलों या मंत्रत्र-पररषदों का या दोनों का
सज
ृ न- (1) संसद, ववधध द्वारा 4[पांडडचेरी, संघ राज्यक्षेत्र के ललए],-
(क) उस संघ राज्यक्षेत्र के ववधान-मंडल के रूप में कायत करने के ललए तनवातधचत या भागतः
नामतनदे लशत और भागतः तनवातधचत तनकाय का, या
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 17 द्वारा शीषतक '' प्रथम अनुसूची के भाग
ग में के राज्य'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 17 द्वारा अनुच्छे द 239 और अनुच्छे द 240
के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (चौदहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1962 की धारा 4 द्वारा अंतःस्थावपत।
4. गोवा, दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से)
'' गोवा, दमण और दीव, और पांडडचेरी संघ राज्यक्षेत्रों में से ककसी के ललए'' शब्दों के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
5. संववधान (उनहर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1991 की धारा 2 द्वारा (1-2-1992 से) अंतःस्थावपत।

(ख) मंत्रत्र-पररषद् का,


या दोनों का सज
ृ न कर सकेगी, क्जनमें से प्रत्येक का गठन, शक्क्तयाँ और कृत्य वे होंगे जो उस ववधध में
ववतनहदतष्ट ककए जाएँ।
(2) खंड (1) में तनहदतष्ट ववधध को, अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजनों के ललए इस संववधान का संशोधन इस
बात के होते हुए भी नहीं समझा जाएगा कक उसमें कोई ऐसा उपबंध अंतववतष्ट है जो इस संववधान
का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है । ]
1
[239कक. र्दल्ली के संबध
ं में विशेष उपबंध- (1) संववधान (उनहर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1991 के प्रारं भ
से हदल्ली संघ राज्यक्षेत्र को हदल्ली राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र (क्जसे इस भाग में इसके पश्चात ् राष्रीय
राजधानी राज्यक्षेत्र कहा गया है ) कहा जाएगा और अनच्
ु छे द 239 के अधीन तनयक्
ु त उसके प्रशासक का
पदालभधान उप-राज्यपाल होगा।
(2)(क) राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के ललए एक ववधान सभा होगी और ऐसी ववधान सभा में स्थान
राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र में प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों में से प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा चन
ु े हुए सदस्यों
से भरे जाएँगे।
(ख) ववधान सभा में स्थानों की कुल संख्या, अनस
ु धू चत जाततयों के ललए आरक्षक्षत स्थानों की संख्या,
राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों में ववभाजन (क्जसके अंतगतत ऐसे ववभाजन
का आधार है ) तथा ववधान सभा के कायतकरण से संबधं धत सभी अन्य ववषयों का ववतनयमन, संसद्
द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा ककया जाएगा।
(ग) अनच्
ु छे द 324 से अनच्
ु छे द 327 और अनच्
ु छे द 329 के उपबंध राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र,
राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र की ववधान सभा और उसके सदस्यों के संबध
ं में वैसे ही लागू होंगे जैसे
वे, ककसी राज्य, ककसी राज्य की ववधान सभा और उसके सदस्यों के संबध
ं में लागू होते हैं तथा
अनच्
ु छे द 326 और अनच्
ु छे द 329 में '' समधु चत ववधान-मंडल'' के प्रतत तनदे श के बारे में यह समझा
जाएगा कक वह संसद् के प्रतत तनदे श है ।

122
(3)(क) इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, ववधान सभा को राज्य सच ू ी की प्रववक्ष्ट 1,
प्रववक्ष्ट 2 और प्रववक्ष्ट 18 से तथा उस सच
ू ी की प्रववक्ष्ट 64, प्रववक्ष्ट 65 और प्रववक्ष्ट 66 से, जहाँ
तक उनका संबध
ं उक्त प्रववक्ष्ट 1, प्रववक्ष्ट 2 और प्रववक्ष्ट 18 से है , संबधं धत ववषयों से लभन्न राज्य
सच
ू ी में या समवती सच
ू ी में प्रगणणत ककसी भी ववषय के संबध
ं में , जहाँ तक ऐसा कोई ववषय संघ
राज्यक्षेत्रों को लागू है , संपण
ू त राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग के ललए ववधध बनाने
की शक्क्त होगी।
(ख) उपखंड (क) की ककसी बात से संघ राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग के ललए ककसी भी ववषय
के संबध
ं में इस संववधान के अधीन ववधध बनाने की संसद् की शक्क्त का अल्पीकरण नहीं होगा।
__________________
1. संववधान (उनहर्त्रवां संशोधन) अधीतनयम, 1991 की धारा 2 द्वारा (1-2-1992 से)अंत:स्थापतत|
(ग) यहद ववधान सभा द्वारा ककसी ववषय के संबध
ं में बनाई गई ववधध का कोई उपबंध संसद्
द्वारा उस ववषय के संबध
ं में बनाई गई ववधध के, चाहे वह ववधान सभा द्वारा बनाई गई ववधध से पहले या
उसके बाद में पाररत की गई हो, या ककसी पव
ू त
त र ववधध के, जो ववधान सभा द्वारा बनाई गई ववधध से
लभन्न है , ककसी उपबंध के ववरुद्ध है तो, दोनों दशाओं में , यथाक्स्थतत, संसद् द्वारा बनाई गई ववधध, या ऐसी
पव
ू त
त र ववधध अलभभावी होगी और ववधान सभा द्वारा बनाई गई ववधध उस ववरोध की मात्रा तक शन्ू य
होगी :
परं तु यहद ववधान सभा द्वारा बनाई गई ककसी ऐसी ववधध को राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत
रखा गया है और उस पर उसकी अनम
ु तत लमल गई है तो ऐसी ववधध राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र में
अलभभावी होगी :
परं तु यह और कक इस उपखंड की कोई बात संसद् को उसी ववषय के संबध
ं में कोई ववधध, क्जसके
अंतगतत ऐसी ववधध है जो ववधान सभा द्वारा इस प्रकार बनाई गई ववधध का पररवधतन, संशोधन, पररवततन
या तनरसन करती है , ककसी भी समय अधधतनयलमत करने से तनवाररत नहीं करे गी।
(4) क्जन बातों में ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन उप-राज्यपाल से यह अपेक्षक्षत है कक वह
अपने वववेकानस
ु ार कायत करे उन बातों को छोड़कर, उप-राज्यपाल की, उन ववषयों के संबध
ं में , क्जनकी बाबत
ववधान सभा को ववधध बनाने की शक्क्त है , अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह दे ने के ललए
एक मंत्रत्र-पररषद् होगी जो ववधान सभा की कुल सदस्य संख्या के दस प्रततशत से अधधक सदस्यों से
लमलकर बनेगी, क्जसका प्रधान, मख्
ु यमंत्री होगा :
परं तु उप-राज्यपाल और उसके मंत्रत्रयों के बीच ककसी ववषय पर मतभेद की दशा में , उप-राज्यपाल
उसे राष्रपतत को ववतनश्चय के ललए तनदे लशत करे गा और राष्रपतत द्वारा उस पर ककए गए ववतनश्चय के
अनस
ु ार कायत करे गा तथा ऐसा ववतनश्चय होने तक उप-राज्यपाल ककसी ऐसे मामले में , जहाँ वह ववषय,
उसकी राय में , इतना आवश्यक है क्जसके कारण तरु ं त कारत वाई करना उसके ललए आवश्यक है वहां, उस
ववषय में ऐसी कारत वाई करने या ऐसा तनदे श दे ने के ललए, जो वह आवश्यक समझे, सक्षम होगा|
(5) मख्
ु यमंत्री की ननयक्ु तत राष्ट्रपनत करे गा और अन्य मंत्रत्रयों की तनयक्ु क्त राष्रपतत , मख्
ु यमंत्री की
सलाह पर करे गा तथा मंत्री, राष्रपतत के प्रसादपयतन्त अपने पद धारण करें गे।
(6) मंत्रत्र-पररषद् ववधान सभा के प्रतत सामहू हक रूप से उर्त्रदायी होगी।
[(7)(क)] संसद् पव
1
ू ग
त ामी खंडों को प्रभावी करने के ललए, या उनमें अंतववतष्ट उपबंधों की अनप
ु तू तत के
ललए और उनके आनष
ु धं गक या पाररणालमक सभी ववषयों के ललए, ववधध द्वारा, उपबंध कर सकेगी;

123
2
[(ख) उपखंड (क) में तनहदत ष्ट ववधध को, अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजनों के ललए इस संववधान का
संशोधन इस बात के होते हुए भी नहीं समझा जाएगा कक उसमें कोई ऐसा उपबंध अंतववतष्ट है जो
इस संववधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है ।]
__________________
1. संववधान (सर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) '' (7)'' के स्थान
पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (सर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) अंतःस्थावपत|

(8) अनच्
ु छे द 239ख के उपबंध, जहाँ तक हो सके, राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र, उप-राज्यपाल और
ववधान सभा के संबध
ं में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे पांडडचेरी संघ राज्यक्षेत्र, प्रशासक और उसके
ववधान-मंडल के संबध
ं में लागू होते हैं; और उस अनच्
ु छे द में '' अनच्
ु छे द 239क के खंड (1)'' के प्रतत
तनदे श के बारे में यह समझा जाएगा कक वह, यथाक्स्थतत, इस अनच्
ु छे द या अनच्
ु छे द 239कख के
प्रतत तनदे श है ।
239-कख. सांविधाननक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध- यहद राष्रपतत का, उप-राज्यपाल
से प्रततवेदन लमलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कक,-
(क) ऐसी क्स्थतत उत्पन्न हो गई है क्जसमें राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र का प्रशासन अनच्
ु छे द
239कक या या उस अनच्
ु छे द के अनस
ु रण में बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अनस
ु ार
नहीं चलाया जा सकता है ; या
(ख) राष्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के उधचत प्रशासन के ललए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है ,
तो राष्रपतत , आदे श द्वारा, अनच्
ु छे द 239कक के ककसी उपबंध के अथवा उस अनच्
ु छे द के अनस
ु रण में
बनाई गई ककसी ववधध के सभी या ककन्हीं उपबंधों के प्रवततन को, ऐसी अवधध के ललए और ऐसी शतों के
अधीन रहते हुए, जो ऐसी ववधध में ववतनहदत ष्ट की जाएँ, तनलंत्रबत कर सकेगा, तथा ऐसे आनष ु धं गक और
पाररणालमक उपबंध कर सकेगा जो अनच् ु छे द 239 और अनच् ु छे द 239-कक के उपबंधों के अनस
ु ार राष्रीय
राजधानी राज्यक्षेत्र के प्रशासन के ललए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों।]
1
[239ख. विधान-मंडल के विश्रांनतकाल में अध्यादे श प्रख्यावपत करने की प्रशासक की शक्तत- (1)
उस समय को छोड़कर जब 2[2[पद्
ु दच
ु ेरी]संघ राज्यक्षेत्र] का ववधान-मंडल सत्र में है , यहद ककसी समय उसके
प्रशासक का यह समाधान हो जाता है कक ऐसी पररक्स्थततयाँ ववद्यमान हैं क्जनके कारण तरु ं त कारत वाई
करना उसके ललए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्यावपत कर सकेगा जो उसे उन
पररक्स्थततयों में अपेक्षक्षत प्रतीत हों:
परं तु प्रशासक, कोई ऐसा अध्यादे श राष्रपतत से इस तनलमर्त् अनद
ु े श अलभप्राप्त करने के पश्चात ् ही
प्रख्यावपत करे गा, अन्यथा नहीं :
परं तु यह और कक जब कभी उक्त ववधान-मंडल का ववघटन कर हदया जाता है या अनच्
ु छे द 239क
के खंड (1) में तनहदत ष्ट ववधध के अधीन की गई ककसी कारत वाई के कारण उसका कायतकरण तनलंत्रबत रहता है
तब प्रशासक ऐसे ववघटन या तनलंबन की अवधध के दौरान कोई अध्यादे श प्रख्यावपत नहीं करे गा।
__________________
1. संववधान (सर्त्ाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा (30-12-1971 से) अंतःस्थावपत।
2. गोवा, दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से)
''अनुच्छे द 239 क के खंड (1) में तनहदत ष्ट संघ राज्यक्षेत्रों'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।

124
3. पांडडचेरी (नाम पररवततन) अधधतनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से)
पांडडचेरी के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(2) राष्रपतत के अनद


ु े शों के अनस
ु रण में इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रख्यावपत अध्यादे श संघ
राज्यक्षेत्र के ववधान-मंडल का ऐसा अधधतनयम समझा जाएगा जो अनच्
ु छे द 239क के खंड (1) में तनहदतष्ट
ववधध में , उस तनलमर्त् अंतववतष्ट उपबंधों का अनप
ु ालन करने के पश्चात ् सम्यक् रूप से अधधतनयलमत ककया
गया है , ककं तु प्रत्येक ऐसा अध्यादे श-
(क) संघ राज्यक्षेत्र के ववधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा और ववधान-मंडल के पन
ु ः समवेत होने
से छह सप्ताह की समाक्प्त पर या यहद उस अवधध की समाक्प्त से पहले ववधान-मंडल उसके
अननम
ु ोदन का संकल्प पाररत कर दे ता है तो संकल्प के पाररत होने पर प्रवततन में नहीं रहे गा; और
(ख) राष्रपतत से इस तनलमर्त् अनद
ु े श अलभप्राप्त करने के पश्चात ् प्रशासक द्वारा ककसी भी समय
वापस ललया जा सकेगा।
(3) यहद और जहाँ तक इस अनच्
ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता है जो संघ
राज्यक्षेत्र के ववधान-मंडल के ऐसे अधधतनयम में , क्जसे अनच्
ु छे द 239-क के खंड (1) में तनहदतष्ट ववधध में इस
तनलमर्त् अंतववतष्ट उपबंधों का अनप
ु ालन करने के पश्चात ् बनाया गया है , अधधतनयलमत ककए जाने पर
ववधधमान्य नहीं होता तो और वहाँ तक वह अध्यादे श शन्
ू य होगा।]
1
[* * * * * *]
240. कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के ललए विननयम बनाने की राष्ट्रपनत की शक्तत – (1) राष्रपतत-
(क) अंडमान और तनकोबार द्वीप ;
2
[(ख) लक्षद्वीप ;
3
[(ग) दादरा और नगर हवेली ;
4
[(घ) दमण और दीव ;
5
[(ङ) 6[पद्
ु दच
ु ेरी] ;
7
[(च)* * * * *]
8
[(छ)* * * * *]
संघ राज्यक्षेत्र की शांतत, प्रगतत और सश
ु ासन के ललए ववतनयम बना सकेगा :
___________________
1. संववधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (4)
अंतःस्थावपत ककया गया और उसका संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 32
द्वारा (20-6-1979 से) लोप ककया गया।
2. लक्कादीव, लमतनकोय और अमीनदावी द्वीप (नाम पररवततन) अधधतनयम, 1973 (1973 का 34) की
धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) प्रववक्ष्ट (ख) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (दसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1961 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थावपत।
4. गोवा, दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा प्रववक्ष्ट (घ) के
स्थान पर प्रततस्थावपत। संववधान (बारहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1962 की धारा 3 द्वारा प्रववक्ष्ट
(घ) अंतःस्थावपत की गई थी।
5. संववधान (चौदहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1962 की धारा 5 और धारा 7 द्वारा (16-8-1962 से)
अंतःस्थावपत।

125
6. पांडडचेरी (नाम पररवततन) अधधतनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से)
पांडडचेरी के स्थान पर प्रततस्थावपत|
7. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) लमजोरम
संबध
ं ी प्रववक्ष्ट (च) का लोप ककया गया|
8. अरुणाचल प्रदे श अधधतनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से)
अरुणाचल प्रदे श संबध
ं ी प्रववक्ष्ट (छ) का लोप ककया गया|

1
[परं तु जब 2[3[4[पद्
ु दच
ु ेरी] संघ राज्यक्षेत्र] के ललए ववधान-मंडल के रूप में कायत करने के ललए
अनच्
ु छे द 239क के अधीन ककसी तनकाय का सज
ृ न ककया जाता है तब राष्रपतत ववधान-मंडल के प्रथम
अधधवेशन के ललए तनयत तारीख से उस संघ राज्यक्षेत्र की शांतत, प्रगतत और सश
ु ासन के ललए ववतनयम
नहीं बनाएगा:]
5
[परं तु यह और कक जब कभी 3[4[पद्
ु दच
ु ेरी]], संघ राज्यक्षेत्र के ववधान-मंडल के रूप में कायत करने
वाले तनकाय का ववघटन कर हदया जाता है या उस तनकाय का ऐसे ववधान-मंडल के रूप में कायतकरण,
अनच्
ु छे द 239क के खंड (1) में तनहदत ष्ट ववधध के अधीन की गई कारत वाई के कारण तनलंत्रबत रहता है तब
राष्रपतत ऐसे ववघटन या तनलंबन की अवधध के दौरान उस संघ राज्यक्षेत्र की शांतत, प्रगतत और सश
ु ासन के
ललए ववतनयम बना सकेगा।]
(2) इस प्रकार बनाया गया कोई ववतनयम संसद् द्वारा बनाए गए ककसी अधधतनयम या 1[ककसी
अन्य ववधध] का, जो उस संघ राज्यक्षेत्र को तत्समय लागू है , तनरसन या संशोधन कर सकेगा और राष्रपतत
द्वारा प्रख्यावपत ककए जाने पर उसका वही बल और प्रभाव होगा जो संसद् के ककसी ऐसे अधधतनयम का है
जो उस राज्यक्षेत्र को लागू होता है ।
241. संघ राज्यक्षेत्रों के ललए उच्च न्यायालय- (1) संसद् ववधध द्वारा, ककसी 7[संघ राज्यक्षेत्र] के ललए
उच्च न्यायालय गहठत कर सकेगी या ऐसे 8[संघ राज्यक्षेत्र] में ककसी न्यायालय को इस संववधान के सभी
या ककन्हीं प्रयोजनों के ललए उच्च न्यायालय घोवषत कर सकेगी।
(2) भाग 6 के अध्याय 5 के उपबंध, ऐसे उपांतरणों या अपवादों के अधीन रहते हुए, जो संसद् ववधध
द्वारा उपबंधधत करे , खंड (1) में तनहदत ष्ट प्रत्येक उच्च न्यायालय के संबध
ं में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे
अनच्
ु छे द 214 में तनहदतष्ट ककसी उच्च न्यायालय के संबध
ं में लागू होते हैं।
9
[(3) इस संववधान के उपबंधों के और इस संववधान द्वारा या इसके अधीन समधु चत ववधान-मंडल
को प्रदर्त् शक्क्तयों के आधार पर बनाई गई उस ववधान-मंडल की ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते
हुए, प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 के प्रारं भ से ठीक पहले ककसी
संघ राज्यक्षेत्र के संबध
ं में अधधकाररता का प्रयोग करता था, ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् उस राज्यक्षेत्र के संबध

में उस अधधकाररता का प्रयोग करता रहे गा।
__________________

1. संववधान (चौदहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1962 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थावपत।


2. गोवा, दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से)
''गोवा, दमण और दीव या पांडडचेरी'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (सर्त्ाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) ''गोवा, दमण और
दीव या पांडडचेरी संघ राज्यक्षेत्र'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।

126
4. पांडडचेरी (नाम पररवततन) अधधतनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से)
पांडडचेरी के स्थान पर प्रततस्थावपत|
5. संववधान (सर्त्ाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्थावपत।
6. संववधान (सर्त्ाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) ''ककसी ववद्यमान
ववधध'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
7. संववधान (सर्त्ाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली
अनुसूची के भाग ग में ववतनहदत ष्ट राज्य” शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत|
8. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसा राज्य”
शब्दों के स्थान पर परततस्थावपत|
9. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा खंड (3) और
खंड (4) के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(4) इस अनच्
ु छे द की ककसी बात से ककसी राज्य के उच्च न्यायालय की अधधकाररता का ककसी संघ
राज्यक्षेत्र या उसके भाग पर ववस्तार करने या उससे अपवजतन करने की संसद् की शक्क्त का अल्पीकरण
नहीं होगा।]
242. [कोड़ग]ू – संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु च
ू ी द्वारा
तनरलसत|

1
[ भाग 9
पंचायतें
243. पररभाषाएाँ – इस भाग में , जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो, -
(क) ''क्जला'' से ककसी राज्य का क्जला अलभप्रेत है;
(ख) ''ग्राम सभा'' से ग्राम स्तर पर पंचायत के क्षेत्र के भीतर समाववष्ट ककसी ग्राम से संबधं धत
तनवातचक नामावली में रक्जस्रीकृत व्यक्क्तयों से लमलकर बना तनकाय अलभप्रेत है ;
(ग) ''मध्यिती स्तर'' से ग्राम और क्जला स्तरों के बीच का ऐसा स्तर अलभप्रेत है क्जसे ककसी
राज्य का राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के ललए, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, मध्यवती स्तर के रूप में
ववतनहदतष्ट करे
(घ) ''पंचायत'' से ग्रामीण क्षेत्रों के ललए अनच्
ु छे द 243ख के अधीन गहठत स्वायर्त् शासन की कोई
संस्था (चाहे वह ककसी भी नाम से ज्ञात हो) अलभप्रेत है ;
(ङ) ''पंचायत क्षेत्र'' से पंचायत का प्रादे लशक क्षेत्र अलभप्रेत है ;
(च) ''जनसंख्या'' से ऐसी अंततम पव
ू व
त ती जनगणना में अलभतनक्श्चत की गई जनसंख्या अलभप्रेत है
क्जसके सस
ु ग
ं त आँकड़े प्रकालशत हो गए हैं;
(छ) ''ग्राम'' से राज्यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजनों के ललए, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, ग्राम के
रूप में ववतनहदत ष्ट ग्राम अलभप्रेत है और इसके अंतगतत इस प्रकार ववतनहदत ष्ट ग्रामों का समह
ू भी है ।
243-क. ग्राम सभा- ग्राम सभा, ग्राम स्तर पर ऐसी शक्क्तयों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन
कर सकेगी, जो ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा, ववधध द्वारा, उपबंधधत ककए जाएँ।
243-ख. पंचायतों का गठन- (1) प्रत्येक राज्य में ग्राम, मध्यवती और क्जला स्तर पर इस भाग के
उपबंधों के अनस
ु ार पंचायतों का गठन ककया जाएगा।

127
(2) खंड (1) में ककसी बात के होते हुए भी, मध्यवती स्तर पर पंचायत का उस राज्य में गठन नहीं
ककया जा सकेगा क्जसकी जनसंख्या बीस लाख से अधधक है ।
243-ग. पंचायतों की संरचना- (1) इस भाग के उपबंधों के अधीन रहते हुए, ककसी राज्य का ववधान-
मंडल, ववधध द्वारा, पंचायतों की संरचना की बाबत उपबंध कर सकेगा :
__________________
1. संववधान (ततहर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (24-1-1993 से) अंतःस्थावपत।
संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा मूल भाग 9 का लोप
ककया गया था।

परं तु ककसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादे लशक क्षेत्र की जनसंख्या का ऐसी पंचायत में तनवातचन
द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या से अनप
ु ात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो।
(2) ककसी पंचायत के सभी स्थान, पंचायत क्षेत्र में प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा
चुने हुए व्यक्क्तयों से भरे जाएँगे और इस प्रयोजन के ललए, प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों
में ऐसी रीतत से ववभाक्जत ककया जाएगा कक प्रत्येक तनवातचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंहटत स्थानों
की संख्या से अनप
ु ात समस्त पंचायत क्षेत्र में यथासाध्य एक ही हो।
(3) ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,-
(क) ग्राम स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का मध्यवती स्तर पर पंचायतों में या ऐसे राज्य की दशा
में , जहाँ मध्यवती स्तर पर पंचायतें नहीं हैं, क्जला स्तर पर पंचायतों में;
(ख) मध्यवती स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का क्जला स्तर पर पंचायतों में ;
(ग) लोकसभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की ववधान सभा के ऐसे सदस्यों का, जो उन
तनवातचन-क्षेत्रों का प्रतततनधधत्व करते हैं क्जनमें ग्राम स्तर से लभन्न स्तर पर कोई पंचायत क्षेत्र
पण
ू त
त ः या भागतः समाववष्ट है , ऐसी पंचायत में;
(घ) राज्य सभा के सदस्यों का और राज्य की ववधान पररषद् के सदस्यों का, जहाँ वे,--
(i) मध्यवती स्तर पर ककसी पंचायत क्षेत्र के भीतर तनवातचकों के रूप में रक्जस्रीकृत है , मध्यवती
स्तर पर पंचायत में;
(ii) क्जला स्तर पर ककसी पंचायत क्षेत्र के भीतर तनवातचकों के रूप में रक्जस्रीकृत हैं, क्जला स्तर
पर पंचायत में ,
प्रतततनधधत्व करने के ललए उपबंध कर सकेगा।
(4) ककसी पंचायत के अध्यक्ष और ककसी पंचायत के ऐसे अन्य सदस्यों को, चाहे वे पंचायत क्षेत्र में
प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा चुने गए हों या नहीं, पंचायतों के अधधवेशनों में मत दे ने
का अधधकार होगा।
(5) (क) ग्राम स्तर पर ककसी पंचायत के अध्यक्ष का तनवातचन ऐसी रीतत से, जो राज्य के ववधान-
मंडल द्वारा, ववधध द्वारा, उपबंधधत की जाए, ककया जाएगा; और
(ख) मध्यवती स्तर या क्जला स्तर पर ककसी पंचायत के अध्यक्ष का तनवातचन, उसके तनवातधचत
सदस्यों द्वारा अपने में से ककया जाएगा।
243-घ. स्थानों का आरक्षण- (1) प्रत्येक पंचायत में -
(क) अनस
ु धू चत जाततयों; और
(ख) अनस
ु धू चत जनजाततयों,

128
के ललए स्थान आरक्षक्षत रहें गे और इस प्रकार आरक्षक्षत स्थानों की संख्या का अनप
ु ात, उस पंचायत में
प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा जो उस पंचायत क्षेत्र
में अनस
ु धू चत जाततयों की अथवा उस पंचायत क्षेत्र में अनस
ु धू चत जनजाततयों की जनसंख्या का अनप
ु ात उस
क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान ककसी पंचायत में लभन्न-लभन्न तनवातचन क्षेत्रों को चक्रानक्र
ु म
से आबंहटत ककए जा सकेंगे।
(2) खंड (1) के अधीन आरक्षक्षत स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक-ततहाई स्थान,
यथाक्स्थतत, अनस
ु धू चत जाततयों या अनस
ु धू चत जनजाततयों की क्स्त्रयों के ललए आरक्षक्षत रहें गे।
(3) प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के कम से कम
एक-ततहाई स्थान (क्जनके अंतगतत अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों की क्स्त्रयों के ललए
आरक्षक्षत स्थानों की संख्या भी है ) क्स्त्रयों के ललए आरक्षक्षत रहें गे और ऐसे स्थान ककसी पंचायत में लभन्न-
लभन्न तनवातचन-क्षेत्रों को चक्रानक्र
ु म से आबंहटत ककए जा सकेंगे।
(4) ग्राम या ककसी अन्य स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के पद अनस
ु धू चत जाततयों, अनस
ु धू चत
जनजाततयों और क्स्त्रयों के ललए ऐसी रीतत से आरक्षक्षत रहें ग,े जो राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,
उपबंधधत करे :
परं तु ककसी राज्य में प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों
के ललए आरक्षक्षत अध्यक्षों के पदों की संख्या का अनप
ु ात, प्रत्येक स्तर पर उन पंचायतों में ऐसे पदों की
कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा, जो उस राज्य में अनस
ु धू चत जाततयों की अथवा उस राज्य में अनस
ु धू चत
जनजाततयों की जनसंख्या का अनप
ु ात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है :
परं तु यह और कक प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के पदों की कुल संख्या के कम से कम
एक-ततहाई पद क्स्त्रयों के ललए आरक्षक्षत रहें गे :
परं तु यह भी कक इस खंड के अधीन आरक्षक्षत पदों की संख्या प्रत्येक स्तर पर लभन्न-लभन्न
पंचायतों को चक्रानक्र
ु म से आबंहटत की जाएगी।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थानों का आरक्षण और खंड (4) के अधीन अध्यक्षों के पदों
का आरक्षण (जो क्स्त्रयों के ललए आरक्षण से लभन्न है ) अनच्
ु छे द 334 में ववतनहदतष्ट अवधध की समाक्प्त पर
प्रभावी नहीं रहे गा।
(6) इस भाग की कोई बात ककसी राज्य के ववधान-मंडल को वपछड़े हुए नागररकों के ककसी वगत के
पक्ष में ककसी स्तर पर ककसी पंचायत में स्थानों के या पंचायतों में अध्यक्षों के पदों के आरक्षण के ललए
कोई उपबंध करने से तनवाररत नहीं करे गी।
243-ङ. पंचायतों की अिधध, आर्द- (1) प्रत्येक पंचायत, यहद तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध के अधीन
पहले ही ववघहटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधधवेशन के ललए तनयत तारीख से पाँच वषत तक
बनी रहे गी, इससे अधधक नहीं।
(2) तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध के ककसी संशोधन से ककसी स्तर पर ऐसी पंचायत का, जो ऐसे
संशोधन के ठीक पव
ू त कायत कर रही है , तब तक ववघटन नहीं होगा जब तक खंड (1) में ववतनहदत ष्ट उसकी
अवधध समाप्त नहीं हो जाती।
(3) ककसी पंचायत का गठन करने के ललए तनवातचन,-
(क) खंड (1) में ववतनहदतष्ट उसकी अवधध की समाक्प्त के पव
ू ;त

129
(ख) उसके ववघटन की तारीख से छह मास की अवधध की समाक्प्त के पव
ू ,त
परू ा ककया जाएगा:
परं तु जहाँ वह शेष अवधध, क्जसके ललए कोई ववघहटत पंचायत बनी रहती, छह मास से कम है वहां
ऐसी अवधध के ललए उस पंचायत का गठन करने के ललए इस खंड के अधीन कोई तनवातचन कराना
आवश्यक नहीं होगा।
(4) ककसी पंचायत की अवधध की समाक्प्त के पव
ू त उस पंचायत के ववघटन पर गहठत की गई कोई
पंचायत, उस अवधध के केवल शेष भाग के ललए बनी रहे गी क्जसके ललए ववघहटत पंचायत खंड (1) के
अधीन बनी रहती, यहद वह इस प्रकार ववघहटत नहीं की जाती।
243-च. सदस्यता के ललए ननर्हमतएाँ- (1) कोई व्यक्क्त ककसी पंचायत का सदस्य चन
ु े जाने के ललए
और सदस्य होने के ललए तनरहहतत होगा,
(क) यहद वह संबधं धत राज्य के ववधान-मंडल के तनवातचनों के प्रयोजनों के ललए तत्समय प्रवर्त्

ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार तनरहहतत कर हदया जाता है :
परं तु कोई व्यक्क्त इस आधार पर तनरहहतत नहीं होगा कक उसकी आयु पच्चीस वषत से कम है , यहद
उसने इक्कीस वषत की आयु प्राप्त कर ली है ;
(ख) यहद वह राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन इस
प्रकार तनरहहतत कर हदया जाता है ।
(2) यहद यह प्रश्न उठता है कक ककसी पंचायत का कोई सदस्य खंड (1) में वणणतत ककसी तनहहतत से
ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न ऐसे प्राधधकारी को, और ऐसी रीतत से, जो राज्य का ववधान-मंडल,
ववधध द्वारा, उपबंधधत करे , ववतनश्चय के ललए तनदे लशत ककया जाएगा।
243-छ. पंचायतों की शक्ततयााँ, प्राधधकार और उिरदानयत्ि- संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, पंचायतों को ऐसी शक्क्तयाँ और प्राधधकार प्रदान कर सकेगा, जो
उन्हें स्वायर्त् शासन की संस्थाओं के रूप में कायत करने में समथत बनाने के ललए आवश्यक हों और ऐसी
ववधध में पंचायतों को उपयक्ु त स्तर पर, ऐसी शतों के अधीन रहते हुए, जो उसमें ववतनहदत ष्ट की जाएँ,
तनम्नललणखत के संबध ं में शक्क्तयाँ और उर्त्रदातयत्व न्यागत करने के ललए उपबंध ककए जा सकेंगे, अथातत:-्
(क) आधथतक ववकास और सामाक्जक न्याय के ललए योजनाएँ तैयार करना;
(ख) आधथतक ववकास और सामाक्जक न्याय की ऐसी स्कीमों को, जो उन्हें सौंपी जाएँ, क्जनके अंतगतत
वे स्कीमें भी हैं, जो ग्यारहवीं अनस
ु च
ू ी में सच
ू ीबद्ध ववषयों के संबध
ं में हैं, कायातक्न्वत करना।
243-ज. पंचायतों द्िारा कर अधधरोवपत करने की शक्ततयााँ और उनकी ननधधयााँ- ककसी राज्य का
ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,-
(क) ऐसे कर, शल्
ु क, पथ कर और फीसें उद्गह
ृ ीत, संगह
ृ ीत और ववतनयोक्जत करने के ललए ककसी
पंचायत को, ऐसी प्रकक्रया के अनस ु ार और ऐसे तनबंधनों के अधीन रहते हुए, प्राधधकृत कर सकेगा;
(ख) राज्य सरकार द्वारा उद्गह ृ ीत और संगहृ ीत ऐसे कर, शल्ु क, पथ कर और फीसें ककसी पंचायत
को, ऐसे प्रयोजनों के ललए, तथा ऐसी शतों और तनबंधनों के अधीन रहते हुए, समनहु दष्ट कर सकेगा;
(ग) राज्य की संधचत तनधध में से पंचायतों के ललए ऐसे सहायता-अनद ु ान दे ने के ललए उपबंध कर
सकेगा; और

130
(घ) पंचायतों द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्राप्त ककए गए सभी धनों को जमा करने के ललए
ऐसी तनधधयों का गठन करने और उन तनधधयों में से ऐसे धनों को तनकालने के ललए भी उपबंध
कर सकेगा,
जो ववधध में ववतनहदतष्ट ककए जाएँ|
243-झ. वििीय क्स्थनत के पन
ु विमलोकन के ललए विि आयोग का गठन- (1) राज्य का राज्यपाल,
संववधान (ततहर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 के प्रारं भ से एक वषत के भीतर यथाशीघ्र, और तत्पश्चात,्
प्रत्येक पाँचवें वषत की समाक्प्त पर, ववर्त् आयोग का गठन करे गा जो पंचायतों की ववर्त्ीय क्स्थतत का
पन
ु ववतलोकन करे गा, और जो-
(क) (i) राज्य द्वारा उद्गह
ृ ीत करों, शल्
ु कों, पथ करों और फीसों के ऐसे शद्
ु ध आगमों के राज्य
और पंचायतों के बीच, जो इस भाग के अधीन उनमें ववभाक्जत ककए जाएँ, ववतरण को और
सभी स्तरों पर पंचायतों के बीच ऐसे आगमों के तत्संबध
ं ी भाग के आबंटन को;
(ii) ऐसे करों, शल्
ु कों, पथ करों और फीसों के अवधारण को, जो पंचायतों को समनहु दष्ट की जा
सकेंगी या उनके द्वारा ववतनयोक्जत की जा सकेंगी;
(iii) राज्य की संधचत तनधध में से पंचायतों के ललए सहायता अनद
ु ान को,
शालसत करने वाले लसद्धांतों के बारे में;
(ख) पंचायतों की ववर्त्ीय क्स्थतत को सध
ु ारने के ललए आवश्यक अध्यप
ु ायों के बारे में ;
(ग) पंचायतों के सदृ
ु ढ़ ववर्त् के हहत में राज्यपाल द्वारा ववर्त् आयोग को तनहदतष्ट ककए गए ककसी
अन्य ववषय के बारे में ,
राज्यपाल को लसफाररश करे गा।
(2) राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, आयोग की संरचना का, उन अहतताओं का, जो आयोग के
सदस्यों के रूप में तनयक्ु क्त के ललए अपेक्षक्षत होंगी, और उस रीतत का, क्जससे उनका चयन ककया जाएगा,
उपबंध कर सकेगा।
(3) आयोग अपनी प्रकक्रया अवधाररत करे गा और उसे अपने कृत्यों के पालन में ऐसी शक्क्तयाँ होंगी
जो राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, उसे प्रदान करे
(4) राज्यपाल इस अनच्
ु छे द के अधीन आयोग द्वारा की गई प्रत्येक लसफाररश को, उस पर की गई
कारत वाई के स्पष्टीकारक ज्ञापन सहहत, राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा।
243-ञ. पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा- ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, पंचायतों द्वारा
लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे में उपबंध कर सकेगा।
243-ट. पंचायतों के ललए ननिामचन- (1) पंचायतों के ललए कराए जाने वाले सभी तनवातचनों के ललए
तनवातचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी तनवातचनों के संचालन का अधीक्षण, तनदे शन और तनयंत्रण
एक राज्य तनवातचन आयोग में तनहहत होगा, क्जसमें एक राज्य तनवातचन आयक्
ु त होगा, जो राज्यपाल द्वारा
तनयक्
ु त ककया जाएगा।
(2) ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य
तनवातचन आयक् ु त की सेवा की शते और पदावधध ऐसी होंगी जो राज्यपाल तनयम द्वारा अवधाररत करे :
परं तु राज्य तनवातचन आयक्
ु त को उसके पद से उसी रीतत से और उन्हीं आधारों पर ही हटाया
जाएगा, क्जस रीतत से और क्जन आधारों पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है , अन्यथा

131
नहीं और राज्य तनवातचन आयक्
ु त की सेवा की शतों में उसकी तनयक्ु क्त के पश्चात ् उसके ललए अलाभकारी
पररवततन नहीं ककया जाएगा।
(3) जब राज्य तनवातचन आयोग ऐसा अनरु ोध करे तब ककसी राज्य का राज्यपाल, राज्य तनवातचन
आयोग को उतने कमतचाररवद
ं ृ उपलब्ध कराएगा क्जतने खंड (1) द्वारा राज्य तनवातचन आयोग को उसे सौंपे
गए कृत्यों के तनवतहन के ललए आवश्यक हों।
(4) इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, पंचायतों
के तनवातचनों से संबधं धत या संसक्त सभी ववषयों के संबध
ं में उपबंध कर सकेगा।
243-ठ. संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना- इस भाग के उपबंध संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होंगे और ककसी
संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो ककसी राज्य के राज्यपाल के प्रतत
तनदे श, अनच्
ु छे द 239 के अधीन तनयक्
ु त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रतत तनदे श हों और ककसी राज्य के
ववधान-मंडल या ववधान सभा के प्रतत तनदे श, ककसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबध
ं में , क्जसमें ववधान सभा है ,
उस ववधान सभा के प्रतत तनदे श हों:
परं तु राष्रपतत, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, यह तनदे श दे सकेगा कक इस भाग के उपबंध ककसी संघ
राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, लागू होंगे, जो वह
अधधसच ू ना में ववतनहदत ष्ट करे ।
243-ड. इस भाग का कनतपय क्षेत्रों को लागू न होना- (1) इस भाग की कोई बात अनच्
ु छे द 244 के
खंड (1) में तनहदत ष्ट अनस
ु धू चत क्षेत्रों और उसके खंड (2) में तनहदत ष्ट जनजातत क्षेत्रों को लागू नहीं होगी।
(2) इस भाग की कोई बात तनम्नललणखत को लागू नहीं होगी, अथातत:-्
(क) नागालैंड, मेघालय और लमजोरम राज्य;
(ख) मणणपरु राज्य में ऐसे पवततीय क्षेत्र क्जनके ललए तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध के अधीन क्जला
पररषदें ववद्यमान हैं।
(3) इस भाग की—
(क) कोई बात क्जला स्तर पर पंचायतों के संबध
ं में पक्श्चमी बंगाल राज्य के दाक्जतललंग क्जले के
ऐसे पवततीय क्षेत्रों को लागू नहीं होगी क्जनके ललए तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध के अधीन दाक्जतललंग
गोरखा पवततीय पररषद् ववद्यमान है ;
(ख) ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह ऐसी ववधध के अधीन गहठत दाक्जतललंग
गोरखा पवततीय पररषद् के कृत्यों और शक्क्तयों पर प्रभाव डालती है ।
1
[(3क) अनस
ु धू चत जाततयों के ललए स्थानों के आरक्षण से संबधं धत अनच्
ु छे द 243घ की कोई बात
अरुणाचल प्रदे श राज्य को लागू नहीं होगी।
(4) इस संववधान में ककसी बात के हुए होते
भी,--
(क) खंड (2) के उपखंड (क) में तनहदत ष्ट ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, इस भाग का
ववस्तार, खंड (1) में तनहदत ष्ट क्षेत्रों के लसवाय, यहद कोई हों, उस राज्य पर उस दशा में कर सकेगा
जब उस राज्य की ववधान सभा इस आशय का एक संकल्प उस सदन की कुल सदस्य संख्या के
बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपक्स्थत और मत दे ने वाले सदस्यों के कम से कम दो-ततहाई
बहुमत द्वारा पाररत कर दे ती है;
(ख) संसद, ववधध द्वारा, इस भाग के उपबंधों का ववस्तार, खंड (1) में तनहदत ष्ट अनस
ु धू चत क्षेत्रों और
जनजातत क्षेत्रों पर, ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी ववधध में

132
ववतनहदतष्ट ककए जाएँ और ऐसी ककसी ववधध को अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजनों के ललए इस संववधान का
संशोधन नहीं समझा जाएगा।
243-ढ. विद्यमान विधधयों और पंचायतों का बना रहना- इस भाग में ककसी बात के होते हुए भी,
संववधान (ततहर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 के प्रारं भ के ठीक पव
ू त ककसी राज्य में प्रवर्त्
ृ पंचायतों से
संबधं धत ककसी ववधध का कोई उपबंध, जो इस भाग के उपबंधों से असंगत है , जब तक सक्षम ववधान-मंडल
द्वारा या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा उसे संशोधधत या तनरलसत नहीं कर हदया जाता है या जब तक ऐसे
प्रारं भ से एक वषत समाप्त नहीं हो जाता है , इनमें से जो भी पहले हो, तब तक प्रवर्त्
ृ बना रहे गा:
परं तु ऐसे प्रारं भ के ठीक पव
ू त ववद्यमान सभी पंचायतें , यहद उस राज्य की ववधान सभा द्वारा या
ऐसे राज्य की दशा में , क्जसमें ववधान पररषद् है , उस राज्य के ववधान-मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पाररत
इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ही ववघहटत नहीं कर दी जाती हैं तो, अपनी अवधध की समाक्प्त तक
बनी रहें गी।
243-ण. ननिामचन संबध
ं ी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का िजमन- इस संववधान में ककसी बात
के होते हुए भी,-
(क) अनच्ु छे द 243ट के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के ललए तात्पतयतत ककसी ऐसी ववधध की
ववधधमान्यता, जो तनवातचन-क्षेत्रों के पररसीमन या ऐसे तनवातचन-क्षेत्रों को स्थानों के आबंटन से
संबधं धत है , ककसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं की जाएगी;
__________________
1. संववधान (ततरासी वां संशोधन) अधधतनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा (8-9-2000 से)
अंत:स्थावपत|

(ख) ककसी पंचायत के ललए कोई तनवातचन, ऐसी तनवातचन अजी पर ही प्रश्नगत ककया जाएगा जो
ऐसे प्राधधकारी को और ऐसी रीतत से प्रस्तत
ु की गई है , क्जसका ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई
गई ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन उपबंध ककया जाए, अन्यथा नहीं।

1
[भाग – 9
नगरपाललकाएाँ

243-त. पररभाषाएाँ- इस भाग में , जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो,-


(क) ''सलमतत'' से अनच्
ु छे द 243ध के अधीन गहठत सलमतत अलभप्रेत है ;
(ख) ''क्जला'' से ककसी राज्य का क्जला अलभप्रेत है ;
(ग) ''महानगर क्षेत्र'' से दस लाख या उससे अधधक जनसंख्या वाला ऐसा क्षेत्र अलभप्रेत है क्जसमें
एक या धधक क्जले समाववष्ट हैं और जो दो या अधधक नगरपाललकाओं या पंचायतों या अन्य
संलग्न क्षेत्रों से लमलकर बनता है तथा क्जसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के ललए, लोक
अधधसच
ू ना द्वारा, महानगर क्षेत्र के रूप में ववतनहदत ष्ट करे ;
(घ) '' नगरपाललका क्षेत्र'' से राज्यपाल द्वारा अधधसधू चत ककसी नगरपाललका का प्रादे लशक क्षेत्र
अलभप्रेत है ;
(ङ) ''नगरपाललका'' से अनच्
ु छे द 243थ के अधीन गहठत स्वायर्त् शासन की कोई संस्था अलभप्रेत है ;
(च) ''पंचायत'' से अनच्
ु छे द 243ख के अधीन गहठत कोई पंचायत अलभप्रेत है ;

133
(छ) ''जनसंख्या'' से ऐसी अंततम पव
ू व
त ती जनगणना में अलभतनक्श्चत की गई जनसंख्या अलभप्रेत है
क्जसके सस
ु ग
ं त आँकड़े प्रकालशत हो गए हैं।
243थ. नगरपाललकाओं का गठन- (1) प्रत्येक राज्य में , इस भाग के उपबंधों के अनस
ु ार,-
(क) ककसी संक्रमणशील क्षेत्र के ललए, अथातत,् ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में संक्रमणगत क्षेत्र के
ललए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह ककसी भी नाम से ज्ञात हो) ;
(ख) ककसी लघत्ु तर नगरीय क्षेत्र के ललए नगरपाललका पररषद् का ; और
(ग) ककसी वह
ृ र्त्र नगरीय क्षेत्र के ललए नगर तनगम का,
गठन ककया जाएगा :
परं तु इस खंड के अधीन कोई नगरपाललका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके ककसी भाग में गहठत नहीं
की जा सकेगी क्जसे राज्यपाल, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र में ककसी औद्योधगक स्थापन द्वारा दी जा रही
या हदए जाने के ललए प्रस्ताववत नगरपाललक सेवाओं और ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, ध्यान
में रखते हुए, लोक अधधसच ू ना द्वारा, औद्योधगक नगरी के रूप में ववतनहदतष्ट करे ।
(2) इस अनच्
ु छे द में , ''संक्रमणशील क्षेत्र'', ''लघत
ु र नगरीय क्षेत्र'' या ''वह
ृ र्त्र नगरीय क्षेत्र'' से ऐसा क्षेत्र
अलभप्रेत है क्जसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के ललए, उस क्षेत्र की जनसंख्या, उसमें जनसंख्या की
सघनता, स्थानीय प्रशासन के ललए उत्पन्न राजस्व, कृवष से लभन्न कक्रयाकलापों में तनयोजन की प्रततशतता,
आधथतक महत्व या ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, ध्यान में रखते हुए, लोक अधधसच
ू ना द्वारा,
ववतनहदतष्ट करे ।
__________________
1. संववधान (चौहर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्थावपत।

243-द. नगरपाललकाओं की संरचना- (1) खंड (2) में जैसा उपबंधधत है उसके लसवाय, ककसी नगरपाललका के
सभी स्थान, नगरपाललका क्षेत्र में प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा चन
ु े हुए व्यक्क्तयों द्वारा
भरे जाएँगे और इस प्रयोजन के ललए, प्रत्येक नगरपाललका क्षेत्र को प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों में ववभाक्जत
ककया जाएगा जो वाडत के नाम से ज्ञात होंगे।
(2) ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, -
(क) नगरपाललका में ,-
(i) नगरपाललका प्रशासन का ववशेष ज्ञान या अनभ
ु व रखने वाले व्यक्क्तयों का;
(ii) लोकसभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की ववधान सभा के ऐसे सदस्यों का, जो उन तनवातचन-
क्षेत्रों का प्रतततनधधत्व करते हैं क्जनमें कोई नगरपाललका क्षेत्र पण
ू त
त ः या भागतः समाववष्ट हैं;
(iii) राज्य सभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की ववधान पररषद् के ऐसे सदस्यों का, जो
नगरपाललका क्षेत्र के भीतर तनवातचकों के रूप में रक्जस्रीकृत हैं;
(iv) अनच्
ु छे द 243-ध के खंड (5) के अधीन गहठत सलमततयों के अध्यक्षों का,
प्रतततनधधत्व करने के ललए उपबंध कर सकेगा :
परं तु पैरा (i) में तनहदत ष्ट व्यक्क्तयों को नगरपाललका के अधधवेशनों में मत दे ने का अधधकार नहीं होगा ;
(ख) ककसी नगरपाललका के अध्यक्ष के तनवातचन की रीतत का उपबंध कर सकेगा।
243-ध. िाडम सलमनतयों, आर्द का गठन और संरचना- (1) ऐसी नगरपाललका के, क्जसकी जनसंख्या
तीन लाख या उससे अधधक है , प्रादे लशक क्षेत्र के भीतर वाडत सलमततयों का गठन ककया जाएगा, जो एक या
अधधक वाडो से लमलकर बनेगी।

134
(2) राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,-
(क) वाडत सलमतत की संरचना और उसके प्रादे लशक क्षेत्र की बाबत;
(ख) उस रीतत की बाबत क्जससे ककसी वाडत सलमतत में स्थान भरे जाएँगे,
उपबंध कर सकेगा।
(3) वाडत सलमतत के प्रादे लशक क्षेत्र के भीतर ककसी वाडत का प्रतततनधधत्व करने वाला ककसी
नगरपाललका का सदस्य उस सलमतत का सदस्य होगा।
(4) जहाँ कोई वाडत सलमतत,-
(क) एक वाडत से लमलकर बनती है वहाँ नगरपाललका में उस वाडत का प्रतततनधधत्व करने वाला
सदस्य; या
(ख) दो या अधधक वाडों से लमलकर बनती है वहाँ नगरपाललका में ऐसे वाडों का प्रतततनधधत्व
करने वाले सदस्यों में से एक सदस्य, जो उस वाडत सलमतत के सदस्यों द्वारा तनवातधचत ककया
जाएगा,
उस सलमतत का अध्यक्ष होगा।
(5) इस अनच्
ु छे द की ककसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कक वह ककसी राज्य के ववधान-मंडल
को वाडत सलमततयों के अततररक्त सलमततयों का गठन करने के ललए कोई उपबंध करने से तनवाररत करती
है ।
243-न. स्थानों का आरक्षण- (1) प्रत्येक नगरपाललका में अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत
जनजाततयों के ललए स्थान आरक्षक्षत रहें गे और इस प्रकार आरक्षक्षत स्थानों की संख्या का अनप
ु ात, उस
नगरपाललका में प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा जो
उस नगरपाललका क्षेत्र में अनस
ु धू चत जाततयों की अथवा उस नगरपाललका क्षेत्र में अनस
ु धू चत जनजाततयों की
जनसंख्या का अनप
ु ात उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान ककसी नगरपाललका के लभन्न-
लभन्न तनवातचन-क्षेत्रों को चक्रानक्र
ु म से आबंहटत ककए जा सकेंगे।
(2) खंड (1) के अधीन आरक्षक्षत स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक-ततहाई स्थान,
यथाक्स्थतत, अनस
ु धू चत जाततयों या अनस
ु धू चत जनजाततयों की क्स्त्रयों के ललए आरक्षक्षत रहें गे।
(3) प्रत्येक नगरपाललका में प्रत्यक्ष तनवातचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के कम से
कम एक-ततहाई स्थान (क्जनके अंतगतत अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों की क्स्त्रयों के ललए
आरक्षक्षत स्थानों की संख्या भी है ) क्स्त्रयों के ललए आरक्षक्षत रहें गे और ऐसे स्थान ककसी नगरपाललका के
लभन्न-लभन्न तनवातचन-क्षेत्रों को चक्रानक्र
ु म से आबंहटत ककए जा सकेंगे।
(4) नगरपाललकाओं में अध्यक्षों के पद अनस
ु धू चत जाततयों, अनस
ु धू चत जनजाततयों और क्स्त्रयों के
ललए ऐसी रीतत से आरक्षक्षत रहें गे, जो राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, उपबंधधत करे ।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थानों का आरक्षण और खंड (4) के अधीन अध्यक्षों के पदों
का आरक्षण (जो क्स्त्रयों के ललए आरक्षण से लभन्न है ) अनच्
ु छे द 334 में ववतनहदतष्ट अवधध की समाक्प्त पर
प्रभावी नहीं रहे गा।
(6) इस भाग की कोई बात ककसी राज्य के ववधान-मंडल को वपछड़े हुए नागररकों के ककसी वगत के
पक्ष में ककसी नगरपाललका में स्थानों के या नगरपाललकाओं में अध्यक्षों के पद के आरक्षण के ललए कोई
उपबंध करने से तनवाररत नहीं करे गी।

135
243-प. नगरपाललकाओं की अिधध, आर्द- (1) प्रत्येक नगरपाललका, यहद तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध
के अधीन पहले ही ववघहटत नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधधवेशन के ललए तनयत तारीख से पांच
वषत तक बनी रहे गी, इससे अधधक नहीं:
परं तु ककसी नगरपाललका का ववघटन करने के पव
ू त उसे सन
ु वाई का उधचत अवसर हदया जाएगा।
(2) तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध के ककसी संशोधन से ककसी स्तर पर ऐसी नगरपाललका का, जो ऐसे
संशोधन के ठीक पव
ू त कायत कर रही है , तब तक ववघटन नहीं होगा जब तक खंड (1) में ववतनहदत ष्ट उसकी
अवधध समाप्त नहीं हो जाती।
(3) ककसी नगरपाललका का गठन करने के ललए तनवातचन,-
(क) खंड (1) में ववतनहदतष्ट उसकी अवधध की समाक्प्त के पव
ू ;त
(ख) उसके ववघटन की तारीख से छह मास की अवधध की समाक्प्त के पव
ू ,त
परू ा ककया जाएगा:
परं तु जहाँ वह शेष अवधध, क्जसके ललए कोई ववघहटत नगरपाललका बनी रहती, छह मास से कम है
वहां ऐसी अवधध के ललए उस नगरपाललका का गठन करने के ललए इस खंड के अधीन कोई तनवातचन कराना
आवश्यक नहीं होगा।
(4) ककसी नगरपाललका की अवधध की समाक्प्त के पव
ू त उस नगरपाललका के ववघटन पर गहठत की
गई कोई नगरपाललका, उस अवधध के केवल शेष भाग के ललए बनी रहे गी क्जसके ललए ववघहटत
नगरपाललका खंड (1) के अधीन बनी रहती, यहद वह इस प्रकार ववघहटत नहीं की जाती।
243-फ. सदस्यता के ललए ननर्हमतएाँ- (1) कोई व्यक्क्त ककसी नगरपाललका का सदस्य चन
ु े जाने के
ललए और सदस्य होने के ललए तनरहहतत होगा,-
(क) यहद वह संबधं धत राज्य के ववधान-मंडल के तनवातचनों के प्रयोजनों के ललए तत्समय प्रवर्त्

ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार तनरहहतत कर हदया जाता है :
परं तु कोई व्यक्क्त इस आधार पर तनरहहतत नहीं होगा कक उसकी आयु पच्चीस वषत से कम है , यहद
उसने इक्कीस वषत की आयु प्राप्त कर ली है ;
(ख) यहद वह राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन इस
प्रकार तनरहहतत कर हदया जाता है ।
(2) यहद यह प्रश्न उठता है कक ककसी नगरपाललका का कोई सदस्य खंड (1) में वणणतत ककसी तनहहतत
से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न ऐसे प्राधधकारी को, और ऐसी रीतत से, जो राज्य का ववधान-मंडल,
ववधध द्वारा, उपबंधधत करे , ववतनश्चय के ललए तनदे लशत ककया जाएगा।
243-ब. नगरपाललकाओं, आर्द की शक्ततयााँ, प्राधधकार और उिरदानयत्ि- इस संववधान के उपबंधों के
अधीन रहते हुए, ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,-
(क) नगरपाललकाओं को ऐसी शक्क्तयाँ और प्राधधकार प्रदान कर सकेगा, जो उन्हें स्वायर्त् शासन की
संस्थाओं के रूप में कायत करने में समथत बनाने के ललए आवश्यक हों और ऐसी ववधध में
नगरपाललकाओं को, ऐसी शतों के अधीन रहते हुए, जो उसमें ववतनहदत ष्ट की जाएँ, तनम्नललणखत के
संबध
ं में शक्क्तयाँ और उर्त्रदातयत्व न्यागत करने के ललए उपबंध ककए जा सकेंगे, अथातत:-
(i) आधथतक ववकास और सामाक्जक न्याय के ललए योजनाएँ तैयार करना;
(ii) ऐसे कृत्यों का पालन करना और ऐसी स्कीमों को, जो उन्हें सौंपी जाएँ, क्जनके अंतगतत वे
स्कीमें भी हैं, जो बारहवीं अनस
ु च
ू ी में सच
ू ीबद्ध ववषयों के संबध
ं में हैं, कायातक्न्वत करना;

136
(ख) सलमततयों को ऐसी शक्क्तयाँ और प्राधधकार प्रदान कर सकेगा जो उन्हें अपने को प्रदर्त्
उर्त्रदातयत्वों को, क्जनके अन्तगतत वे उर्त्रदातयत्व भी हैं जो बारहवीं अनस
ु च
ू ी में सच
ू ीबद्ध ववषयों के
संबध
ं में हैं, कायातक्न्वत करने में समथत बनाने के ललए आवश्यक हों।
243-भ. नगरपाललकाओं द्िारा कर अधधरोवपत करने की शक्तत और उनकी ननधधयााँ- ककसी राज्य
का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,-
(क) ऐसे कर, शल्
ु क, पथ कर और फीसें उद्गह
ृ ीत, संगह
ृ ीत और ववतनयोक्जत करने के ललए ककसी
नगरपाललका को, ऐसी प्रकक्रया के अनस
ु ार और ऐसे तनबंधनों के अधीन रहते हुए, प्राधधकृत कर
सकेगा;
(ख) राज्य सरकार द्वारा उद्गह
ृ ीत और संगह
ृ ीत ऐसे कर, शल्
ु क, पथकर और फीसें ककसी
नगरपाललका को, ऐसे प्रयोजनों के ललए, तथा ऐसी शतों और तनबंधनों के अधीन रहते हुए,
समनहु दष्ट कर सकेगा;
(ग) राज्य की संधचत तनधध में से नगरपाललकाओं के ललए ऐसे सहायता-अनद
ु ान दे ने के ललए
उपबंध कर सकेगा; और
(घ) नगरपाललकाओं द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्राप्त ककए गए सभी धनों को जमा करने के
ललए ऐसी तनधधयों का गठन करने और उन तनधधयों में से ऐसे धनों को तनकालने के ललए भी
उपबंध कर सकेगा,
जो ववधध में ववतनहदतष्ट ककए जाएँ।
243-म. विि आयोग- (1) अनच्
ु छे द 243झ के अधीन गहठत ववर्त् आयोग नगरपाललकाओं की
ववर्त्ीय क्स्थतत का भी पन
ु ववतलोकन करे गा और जो-
(क) (i) राज्य द्वारा उद्गह
ृ णीय ऐसे करों, शल्
ु कों, पथ करों और फीसों के ऐसे शद्
ु ध आगमों के
राज्य और नगरपाललकाओं के बीच, जो इस भाग के अधीन उनमें ववभाक्जत ककए जाएँ,
ववतरण को और सभी स्तरों पर नगरपाललकाओं के बीच ऐसे आगमों के तत्संबध
ं ी भाग के
आबंटन को;
(ii) ऐसे करों, शल्
ु कों, पथ करों और फीसों के अवधारण को, जो नगरपाललकाओं को
समनहु दष्ट की जा सकेंगी या उनके द्वारा ववतनयोक्जत की जा सकेंगी;
(iii) राज्य की संधचत तनधध में से नगरपाललकाओं के ललए सहायता अनद
ु ान को,
शालसत करने वाले लसद्धांतों के बारे में;
(ख) नगरपाललकाओं की ववर्त्ीय क्स्थतत को सध
ु ारने के ललए आवश्यक अध्यप
ु ायों के बारे में ;
(ग) नगरपाललकाओं के सदृ
ु ढ़ ववर्त् के हहत में राज्यपाल द्वारा ववर्त् आयोग को तनहदत ष्ट ककए गए
ककसी अन्य ववषय के बारे में ,
राज्यपाल को लसफाररश करे गा।
(2) राज्यपाल इस अनच्
ु छे द के अधीन आयोग द्वारा की गई प्रत्येक लसफाररश को, उस पर की गई
कारत वाई के स्पष्टीकारक ज्ञापन सहहत, राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा।
243-य. नगरपाललकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा- ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,
नगरपाललकाओं द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे में उपबंध कर सकेगा।

137
243-यक. नगरपाललकाओं के ललए ननिामचन- (1) नगरपाललकाओं के ललए कराए जाने वाले सभी
तनवातचनों के ललए तनवातचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी तनवातचनों के संचालन का अधीक्षण,
तनदे शन और तनयंत्रण, अनच्
ु छे द 243 में तनहदतष्ट राज्य तनवातचन आयोग में तनहहत होगा।
(2) इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,
नगरपाललकाओं के तनवातचनों से संबधं धत या संसक्त सभी ववषयों के संबध
ं में उपबंध कर सकेगा।
243-यख. संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना- इस भाग के उपबंध संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होंगे और
ककसी संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो ककसी राज्य के राज्यपाल के प्रतत
तनदे श, अनच्
ु छे द 239 के अधीन तनयक्
ु त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रतत तनदे श हों और ककसी राज्य के
ववधान-मंडल या ववधान सभा के प्रतत तनदे श, ककसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबध
ं में , क्जसमें ववधान सभा है ,
उस ववधान सभा के प्रतत तनदे श हों:
परं तु राष्रपतत, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, यह तनदे श दे सकेगा कक इस भाग के उपबंध ककसी संघ
राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, लागू होंगे, जो वह
अधधसच ू ना में ववतनहदत ष्ट करे ।
243-यग. इस भाग का कनतपय क्षेत्रों को लागू न होना- (1) इस भाग की कोई बात अनच्
ु छे द 244 के
खंड (1) में तनहदत ष्ट अनस
ु धू चत क्षेत्रों और इसके खंड (2) में तनहदत ष्ट जनजातत क्षेत्रों को लागू नहीं होगी।
(2) इस भाग की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह पक्श्चमी बंगाल राज्य के
दाक्जतललंग क्जले के पवततीय क्षेत्रों के ललए तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध के अधीन गहठत दाक्जतललंग गोरखा
पवततीय पररषद् के कृत्यों और शक्क्तयों पर प्रभाव डालती है ।
(3) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, संसद, ववधध द्वारा, इस भाग के उपबंधों का ववस्तार
खंड (1) में तनहदत ष्ट अनस
ु धू चत क्षेत्रों और जनजातत क्षेत्रों पर, ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते
हुए, कर सकेगी, जो ऐसी ववधध में ववतनहदत ष्ट ककए जाएँ और ऐसी ककसी ववधध को अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजनों
के ललए इस संववधान का संशोधन नहीं समझा जाएगा।
243-यघ. क्जला योजना के ललए सलमनत- (1) प्रत्येक राज्य में क्जला स्तर पर, क्जले में पंचायतों और
नगरपाललकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं का समेकन करने और संपण
ू त क्जले के ललए एक ववकास
योजना प्रारूप तैयार करने के ललए, एक क्जला योजना सलमतत का गठन ककया जाएगा।
(2) राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, तनम्नललणखत की बाबत उपबंध कर सकेगा, अथातत:-्
(क) क्जला योजना सलमततयों की संरचना;
(ख) वह रीतत क्जससे ऐसी सलमततयों में स्थान भरे जाएँगे:
परं तु ऐसी सलमतत की कुल सदस्य संख्या के कम से कम चार बटा पाँच सदस्य, क्जला स्तर पर
पंचायत के और क्जले में नगरपाललकाओं के तनवातधचत सदस्यों द्वारा, अपने में से, क्जले में ग्रामीण क्षेत्रों की
और नगरीय क्षेत्रों की जनसंख्या के अनप
ु ात के अनस
ु ार तनवातधचत ककए जाएँगे;
(ग) क्जला योजना से संबधं धत ऐसे कृत्य जो ऐसी सलमततयों को समनहु दष्ट ककए जाएँ;
(घ) वह रीतत, क्जससे ऐसी सलमततयों के अध्यक्ष चुने जाएँगे।
(3) प्रत्येक क्जला योजना सलमतत, ववकास योजना प्रारूप तैयार करने में ,--
(क) तनम्नललणखत का ध्यान रखेगी, अथातत:-्

138
(i) पंचायतों और नगरपाललकाओं के सामान्य हहत के ववषय, क्जनके अंतगतत स्थातनक योजना, जल
तथा अन्य भौततक और प्राकृततक संसाधनों में हहस्सा बंटाना, अवसंरचना का एकीकृत ववकास और
पयातवरण संरक्षण है;
(ii) उपलब्ध ववर्त्ीय या अन्य संसाधनों की मात्रा और प्रकार;
(ख) ऐसी संस्थाओं और संगठनों से परामशत करे गी क्जन्हें राज्यपाल, आदे श द्वारा, ववतनहदत ष्ट करे ।
(4) प्रत्येक क्जला योजना सलमतत का अध्यक्ष, वह ववकास योजना, क्जसकी ऐसी सलमतत द्वारा
लसफाररश की जाती है , राज्य सरकार को भेजेगा।
243-यङ. महानगर योजना के ललए सलमनत- (1) प्रत्येक महानगर क्षेत्र में , संपण
ू त महानगर क्षेत्र के
ललए ववकास योजना प्रारूप तैयार करने के ललए, एक महानगर योजना सलमतत का गठन ककया जाएगा।
(2) राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, तनम्नललणखत की बाबत उपबंध कर सकेगा, अथातत:-्
(क) महानगर योजना सलमततयों की संरचना;
(ख) वह रीतत क्जससे ऐसी सलमततयों में स्थान भरे जाएँगे:
परं तु ऐसी सलमतत के कम से कम दो-ततहाई सदस्य, महानगर क्षेत्र में नगरपाललकाओं के तनवातधचत
सदस्यों और पंचायतों के अध्यक्षों द्वारा, अपने में से, उस क्षेत्र में नगरपाललकाओं की और पंचायतों की
जनसंख्या के अनप
ु ात के अनस
ु ार तनवातधचत ककए जाएँगे;
(ग) ऐसी सलमततयों में भारत सरकार और राज्य सरकार का तथा ऐसे संगठनों और संस्थाओं का
प्रतततनधधत्व जो ऐसी सलमततयों को समनहु दष्ट कृत्यों को कायातक्न्वत करने के ललए आवश्यक
समझे जाएँ;
(घ) महानगर क्षेत्र के ललए योजना और समन्वय से संबधं धत ऐसे कृत्य जो ऐसी सलमततयों को
समनहु दष्ट ककए जाएँ;
(घ) वह रीतत, क्जससे ऐसी सलमततयों के अध्यक्ष चुने जाएँगे।
(3) प्रत्येक महानगर योजना सलमतत, ववकास योजना प्रारूप तैयार करने में ,-
(क) तनम्नललणखत का ध्यान रखेगी, अथातत:-्
(i) महानगर क्षेत्र में नगरपाललकाओं और पंचायतों द्वारा तैयार की गई योजनाएं;
(ii) नगरपाललकाओं और पंचायतों के सामान्य हहत के ववषय, क्जनके अंतगतत उस क्षेत्र की
समक्न्वत स्थातनक योजना, जल तथा अन्य भौततक और प्राकृततक संसाधनों में हहस्सा
बंटाना, अवसंरचना का एकीकृत ववकास और पयातवरण संरक्षण है;
(iii) भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा तनक्श्चत समस्त उद्दे श्य और पवू वतकताएँ;
(iv) उन ववतनधानों की मात्रा और प्रकृतत जो भारत सरकार और राज्य सरकार के
अलभकरणों द्वारा महानगर क्षेत्र में ककए जाने संभाव्य हैं तथा अन्य उपलब्ध ववर्त्ीय या
अन्य संसाधन;
(ख) ऐसी संस्थाओं और संगठनों से परामशत करे गी क्जन्हें राज्यपाल, आदे श द्वारा, ववतनहदत ष्ट करे ।
(4) प्रत्येक महानगर योजना सलमतत का अध्यक्ष, वह ववकास योजना, क्जसकी ऐसी सलमतत द्वारा
लसफाररश की जाती है , राज्य सरकार को भेजग
े ा।
243-यच. विद्यमान विधधयों और नगरपाललकाओं का बना रहना- इस भाग में ककसी बात के होते
हुए भी, संववधान (चौहर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 के प्रारं भ के ठीक पव
ू त ककसी राज्य में प्रवर्त्

नगरपाललकाओं से संबधं धत ककसी ववधध का कोई उपबंध, जो इस भाग के उपबंधों से असंगत है , जब तक

139
सक्षम ववधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा उसे संशोधधत या तनरलसत नहीं कर हदया जाता
है या जब तक ऐसे प्रारं भ से एक वषत समाप्त नहीं हो जाता है , इनमें से जो भी पहले हो, तब तक प्रवर्त्

बना रहे गा :
परं तु ऐसे प्रारं भ के ठीक पव
ू त ववद्यमान सभी नगरपाललकाएँ, यहद उस राज्य की ववधान सभा द्वारा
या ऐसे राज्य की दशा में , क्जसमें ववधान पररषद् हैं, उस राज्य के ववधान-मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा
पाररत इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ही ववघहटत नहीं कर दी जाती हैं तो, अपनी अवधध की समाक्प्त
तक बनी रहें गी।
243-यछ. ननिामचन संबध
ं ी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का िजमन- इस संववधान में ककसी
बात के होते हुए भी, -
(क) अनच्
ु छे द 243-यक के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के ललए तात्पतयतत ककसी ऐसी ववधध
की ववधधमान्यता, जो तनवातचन-क्षेत्रों के पररसीमन या ऐसे तनवातचन-क्षेत्रों को स्थानों के आबंटन से संबधं धत
है , ककसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं की जाएगी;
(ख) ककसी नगरपाललका के ललए कोई तनवातचन, ऐसी तनवातचन अजी पर ही प्रश्नगत ककया जाएगा
जो ऐसे प्राधधकारी को और ऐसी रीतत से प्रस्तत
ु की गई है , क्जसका ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा
बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन उपबंध ककया जाए, अन्यथा नहीं।
1
[भाग 9-ख : सहकारी सलमनतयााँ
243.- यज. पररभाषायें – इस भाग में , जब तक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो,-
(क) “प्राधधकृत व्यक्क्त” से ऐसा व्यक्क्त अलभप्रेत है , जो इस प्रकार अनच्
ु छे द 243 यथ में तनहदत ष्ट
है ;
(ख) ”बोडत” से सहकारी सलमतत का तनदे शक बोडत य शासी तनकाय से अलभप्रेत है , चाहे क्जस नाम
से कहा जाय, क्जसको सलमतत के मामलों के प्रबन्धन का तनदे श या तनयंत्रण सौंपा जाता है ;
(ग) “सहकारी सलमतत” से ऐसी सलमतत अलभप्रेत है , जो ककसी राज्य में तत्समय प्रवर्त्
ृ सहकारी
सलमततयों से संबधं धत ककसी ववधध के अधीन रक्जस्रीकृत है या रक्जस्रीकृत की गयी समझी जाती
है ;
(घ) “बहुराक्ज्यक सहकारी सलमतत” से उन उद्दे श्यों के साथ सलमतत अलभप्रेत है , जो एक राज्य
तक सीलमत नहीं है और जो ऐसी सहकाररता से संबधं धत तत्समय प्रवतततत ककसी ववधध के अधीन
रक्जस्रीकृत या रक्जस्रीकृत की गयी समझी जाती है |
(ङ) “पदाधधकारी” से सहकारी सलमतत का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापतत, उप-सभापतत, सधचव या
कोषाध्यक्ष अलभप्रेत है और इसमें ककसी सहकारी सलमतत के बोडत द्वारा तनवातधचत ककया जाने
वाला कोई अन्य व्यक्क्त सक्म्मललत है ;
(च) “रक्जस्रार” से बहुराक्ज्यक सहकारी सलमततयों के संबध ं में केन्द्रीय सरकार द्वारा तनयक्
ु त
केन्द्रीय रक्जस्रार और सहकारी सलमततयों के संबध
ं में राज्य के ववधान मंडल द्वारा तनलमतत ववधध
के अधीन राज्य सरकार द्वारा तनयक्
ु त सहकारी सलमततयों का रक्जस्रार अलभप्रेत है ;
(छ) “राज्य अधधतनयम” से राज्य के ववधान मंडल द्वारा तनलमतत कोई ववधध अलभप्रेत है ;
(ज) “राज्य स्तरीय सहकारी सलमतत” से ऐसी सहकारी सलमतत अलभप्रेत है , क्जसके प्रवततन के क्षेत्र
का ववस्तार सम्पण
ू त राज्य तक है और जो राज्य ववधान मंडल द्वारा तनलमतत ककसी ववधध में इस
प्रकार पररभावषत है |

140
243.-यज्ञ. सहकारी सलमनतयों का ननगमन - इस भाग के प्रावधानों के अध्यधीन, राज्य ववधान
मंडल, ववधध द्वारा, ऐक्च्छक गठन, लोकताक्न्त्रक सदस्य तनयंत्रण, सदस्य आधथतक भागीदारी और
स्वायर्त् कायत संपादन के लसद्धांतों पर आधाररत सहकारी सलमततयों के तनगमन, ववतनयमन और
समापन के संबध
ं में उपबंध तनलमतत कर सकेगा|
__________________
1. भाग 9-ख (अनुच्छे द 243यज से 243यन) संववधान के (सर्त्ानवें संशोधन) अधधतनयम, 2011 की
धारा 4 द्वारा (15-2-2012 से) अंत:स्थावपत|

243-यञ. बोडम के सदस्यों और उसके पदाधधकाररयों की संख्या और पदािधध- (1) बोडत का गठन
तनदे शकों की ऐसी संख्या से होगा, जैसा कक राज्य ववधानमंडल द्वारा ववधध द्वारा उपबंधधत ककया जाए|
परं तु सहकारी सलमतत के तनदे शकों की अधधकतम संख्या इक्कीस से अधधक नहीं होगी|
परं तु यह और कक राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा अनस
ु धू चत जातत या अनस
ु धू चत जनजातत के
ललए एक स्थान और महहलाओं के ललए दो स्थानों का आरक्षण प्रत्येक सहकारी सलमतत के बोडत पर
करे गा, क्जसका गठन सदस्यों के रूप में व्यक्ष्टयों से होगा और क्जसमे व्यक्क्तयों के ऐसे वगत या संवगत से
सदस्य होंगे|
(2) बोडत के तनवातधचत सदस्यों और उसके पदाधधकाररयों कक पदावधध तनवातचन की तारीख से पांच
वषत होगी और पदाधधकाररयों की पदावधध बोडत की अवधध सेसल
ं ग्न होगी :
परं तु बोडत, बोडत में आकक्स्मक ररक्क्त की सदस्यों के उसी वगत में से नामांकन द्वारा भर सकेगा,
क्जसके संबध
ं में आकक्स्मक ररक्क्त हुयी है , यहद बोडत की पदावधध उसकी मल
ू अवधध के आधे से कम है |
(3) राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा, बोडत के सदस्यों होने के ललए व्यक्क्तयों का, जो बैंककार,
प्रबंधन, ववर्त् के क्षेत्र में अनभ
ु व या सहकारी सलमतत द्वारा ग्रहण ककये गये उद्दे श्यों और कक्रयाकलापों से
संबधं धत ककसी अन्य क्षेत्र में ववशेषज्ञता धारण करता है , सहयोजन ऐसी सलमतत के बोडत के सदस्य के रूप
में करे गा:
परं तु ऐसे सहयोक्जत सदस्यों की संख्य खंड (1) के प्रथम परन्तक
ु में ववतनहदत ष्ट इक्कीस तनदे शकों
के अततररक्त दो से अधधक नहीं होगी:
परं तु यह और कक ऐसे सहयोक्जत सदस्यों को सहकारी सलमतत के ककसी तनवातचन में ऐसे सदस्य
के रूप में उनकी है लसयत में मतदान करने और बोडत के पदाधधकारी के रूप में तनवातधचत ककये जाने के
ललए अहत होने का अधधकार नहीं होगा:
परं तु यह भी सहकारी सलमतत के कायतकारी तनदे शक भी बोडत के सदस्य होंगे और ऐसे सदस्य खंड
(1) के प्रथम परं तक
ु में ववतनहदत ष्ट तनदे शकों कक कुल संख्या कक गणना के प्रयोजन के ललए अपवक्जतत
ककये जायेंगे|
243- यट. बोडम के सदस्यों का ननिामचन- (1) राज्य के ववधानमंडल द्वारा तनलमतत ककसी ववधध में
अंतववतष्ट ककसी बात के होते हुए, बोडत का तनवातचन बोडत की अवधध के अवसान के पव ू त ककया जाएगा,
क्जससे यह सतु नक्श्चत ककया जाय कक बोडत के नये रीतत से तनवातधचत सदस्य पदावरोही बोडत के सदस्यों के
पद के अवसान पर तत्काल पद ग्रहण करें गे|
(2) सहकारी सलमतत के सभी तनवातचनों के ललए तनवातचक नामावली की तैयारी का अधीक्षण,
तनदे शन और तनयंत्रण और संचालन ऐसे प्राधधकारी या तनकाय में तनहहत होगा, जैसा कक ववधध द्वारा
राज्य ववधान मंडल द्वारा उपबंधधत ककया जाए :

141
परं तु राज्य ववधानमंडल ववधध द्वारा तनवातचनों के संचालन के ललए प्रकक्रया और हदशा तनदत श का
उपबंध कर सकेगी|
243- यठ. बोडम का दमन और ननलंबन तथा अंतररम प्रबंध – (1) तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध में
अंतववतष्ट ककसी बट के होते हुए, ककसी बोडत का छ: मास से अधधक की अवधध के ललए दमन नहीं ककया
जाएगा या तनलंबन के अधीन नहीं रखा जाएगा :
(i) उसके तनरं तर व्यततक्रम के मामले में ; या
(ii) उसके कततव्यों के तनवतहन में उपेक्षा के मामले में ; या
(iii) यहद बोडत ने सहकारी सलमतत या उसके सदस्यों के हहत के प्रततकूल कोई कायत ककया है ;
या
(iv) बोडत के गठन या कृत्य में गत्यावरोध है ; या
(v) प्राधधकारी या तनकाय, जैसा कक राज्य ववधानमंडल द्वारा ववधध द्वारा अनच्
ु छे द 243-यट
के खंड (2) के अधीन उपबंधधत है , राज्य के अधधतनयम के प्रावधानों के अनस
ु ार तनवातचन
संचाललत करने में असफल रहा है :
परं तु यह और कक ककसी ऐसी सहकारी सलमतत के बोडत का दमन नहीं ककया जाएगा या तनलंबन
के अधीन नहीं रखा जाएगा, जहाँ सरकार द्वारा कोई सहकारी अंशधारण या ऋण या ववर्त्ीय
सहायता का कोई प्रत्याभतू त नहीं है :
परं तु यह भी कक बैंककार कारबार करने वली सहकारी सलमतत के मामले में , बैंककार
ववतनयमन अधधतनयम, 1949 (1949 का 10) के प्रावधान भी लागू होंगे :
परं तु यह भी कक बैंककार कारबार करने वाली बहुराक्ज्यक सहकारी सलमतत के अततररक्त
ऐसी सहकारी सलमतत के मामले, इस खंड के प्रावधानों का प्रभाव होगा, मानों शब्दों “छ: मास” के
ललए शब्द “एक वषत” प्रततस्थावपत ककये गये है |
(2) बोडत के दमन के मामले में , ऐसी सहकारी सलमतत के मामलों का प्रबंध करने के ललए
तनयक्
ु त प्रशासक खंड (1) में ववतनहदत ष्ट अवधध के भीतर तनवातचनों के सचालन के ललए प्रबंध
करे गा और तनवातधचत बोडत को प्रबंध सौंपेगा|
(3) राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा, प्रशासक कक सेवा शतों के ललए प्रावधान तनलमतत कर
सकेगा|
243- यड. सहकारी सलमनतयों के लेखा का लेखा संपरीक्षण- (1) राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा
सहकारी सलमततयों द्वारा लेखा को बनाये रखने और प्रत्येक ववर्त्ीय वषत में कम से कम एक बार ऐसे
लेखा का लेखा संपरीक्षण करने के संबध
ं में उपबंध तनलमतत कार सकेगा|
(2) राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा, लेखा संपरीक्षकों और लेखा संपरीक्षण करने वाले फमो कक,
जो सहकारी सलमततयों के लेखा का लेखा संपरीक्षण करने के ललए अढ़त होंगे, न्यन
ू तम अहतता और अनभ
ु व
को अधधकधथत करे गा|
(3) प्रत्येक सहकारी सलमतत खंड (2) में तनहदत ष्ट लेखा संपरीक्षण करने वाले फामत से, क्जसकी
तनयक्ु क्त सहकारी सलमतत के सामान्य तनकाय द्वारा की जाएगी, लेखा संपरीक्षण कराएगा:
परं तु ऐसे लेखा संपरीक्षकों या लेखा संपरीक्षण करने वाले फमो की तनयक्ु क्त राज्य सरकार या इस
तनलमर्त् राज्य सरकार द्वारा प्राधधकृत प्राधधकारी द्वारा अनम
ु ोहदत पैनल से की जाएगी|

142
(4) प्रत्येक सहकारी सलमतत के लेखा का लेखा संपरीक्षण ववर्त्ीय वषत के, क्जससे ऐसा लेखा
सबंधधत है , समापन के छ: मास के भीतर ककया जाएगा|
(5) उच्चतम सहकारी सलमतत के, जैसा कक राज्य अधधतनयम में पररभावषत ककया जाए, लेखा का
लेखा संपरीक्षण ररपोटत राज्य ववधानमंडल के समक्ष उस रीतत में रखी जाएगी, जैसा कक राज्य ववधानमंडल
द्वारा ववधध द्वारा उपबंधधत ककया जाए|
243-यढ. सामान्य सभा की बैठक आयोक्जत करना- राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा, यह उपबंध
कर सकेगा कक प्रत्येक सहकारी सलमतत के साधारण सभा की वावषतक बैठक कारबार का संव्यवहार करने
के ललए ववर्त्ीय वषत के समापन के छ:मास की अवधध के भीतर आयोक्जत की जाएगी, जैसा कक ऐसी
ववधध में उपबंधधत ककया जाए|
243-यण. सदस्य का सच
ू ना प्राप्त करने का अधधकार – (1) राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा,
सहकारी सलमतत के प्रत्येक सदस्य की ऐसे सदस्य के साथ उसके कारबार के तनयलमत एवं संव्यवहार में
रखे गये सहकारी सलमतत की बही, सच
ू ना और लेखा तक पहुँच के ललए उपबंध कर सकेगा|
(2) राज्य ववधान मंडल, ववधध द्वारा, सदस्यों द्वारा बैठक में उपक्स्थत होने और सेवा के
न्यन
ू तम स्तर का उपयोग करने की न्यन ू तम अपेक्षा का उपबंध करते हुए सहकारी सलमतत के प्रबंधन में
सदस्यों की भागीदारी कों सतु नक्श्चत करने के ललए उपबंधध तनलमतत कर सकेगा, जैसा कक ऐसी ववधध द्वारा
उपबंधधत की जाए|
(3) राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा, उसके सदस्यों के ललए सहकारी लशक्षा और प्रलशक्षण के ललए
उपबंध कार सकेगा|
243-यत. वििरणी- प्रत्येक सहकारी सलमतत प्रत्येक ववर्त्ीय वषत के समापन के छ:मास के भीतर
राज्य सरकार द्वारा पदालभहहत प्राधधकरण के समक्ष वववरणी दाणखल करे गा, क्जसमे तनम्नललणखत ववषय
शालमल है , अथातत ् –
(क) उसके कक्रयाकलापों की वावषतक ररपोटत ;
(ख) उसके लेखा का लेखा संपरीक्षक्षत वववरण;
(ग) अधधशेष तनस्तारण के ललए योजना, जैसा कक सहकारी सलमतत के सामान्य तनकाय द्वारा
अनम
ु ोहदत है ;
(घ) सहकारी सलमतत की उपाधध में संशोधन की अनस
ु च
ू ी, यहद कोई हो;
(ङ) उसके सामान्य सभा की बैठक कों आयोक्जत करने और तनवातचनों के, जब तनयत हो, संचालन
की तारीख से संबधं धत घोषणा; और
(च) राज्य अधधतनयम के प्रावधानों में से ककसी के अनस
ु रण में रक्जस्रार द्वारा अपेक्षक्षत कोई
ऐसी सच
ू ना|
243-यथ. अपराध और शाक्स्तयााँ – (1) राज्य ववधानमंडल, ववधध द्वारा, सहकारी सलमततयों से
संबधं धत अपराधों और ऐसे अपराधों के ललए शाक्स्तयों के ललए उपबंध कर सकेगा|
(2) खंड (1) के अधीन राज्य ववधानमंडल द्वारा तनलमतत ववधध अपराध के रूप में तनम्नललणखत
या लमथ्या सच
ू ना दे ता है या कोई व्यक्क्त जानबझ
ू कर राज्य अधधतनयम के प्रावधानों के अधीन इस
तनलमर्त् प्राधधकृत व्यक्क्त द्वारा उससे अपेक्षक्षत कोई सच
ू ना नहीं दे ता;

143
(ख) कोई व्यक्क्त जानबझ
ू कर या ककसी यक्ु क्तयक्
ु त प्रततहे तु के त्रबना राज्य अधधतनयम के
प्रावधानों के अधीन जारी ककये गये ककसी समन, अध्यपेक्षा या ववधधपण
ू त ललणखत आदे श की अवज्ञा करता
है ;
(ग) कोई तनयोजक, जो पयातप्त कारण के त्रबना, सहकारी सलमतत कों उसके कमतचारी से उसके
द्वारा कटौती की गयी धनरालश का उस तारीख से, क्जसको ऐसी कटौती की जाती है , चौदह हदनों की
अवधध के भीतर भग
ु तान करने में असफल रहता है ;
(घ) कोई अधधकारी या अलभरक्षक, जो जानबझ
ू कर सहकारी सलमतत से संबधं धत, क्जसका वह
अधधकारी या अलभरक्षक है , बहहयों, लेखा, दस्तावेजों, अलभलेखों, नकद, प्रततभतू त और अन्य संपवर्त्
प्राधधकृत व्यक्क्त को सौंपने में असफल रहता है ; और
(ङ) जो कोई, बोडत के सदस्यों या पदाधधकाररयों के तनवातचन के पव
ू ,त दौरान या के पश्चात ् ककसी
भ्रष्ट आचरण कों अंगीकार करता है |
243-यद. बहुराक्ज्यक सहकारी सलमनतयों को लागू होना- इस भाग के प्रावधान बहुराक्ज्यक
सहकारी सलमततयों को इस उपान्तरण के अध्यधीन लागू होंगे कक “राज्य के ववधान मण्डल”, “राज्य
अधधतनयम” या “राज्य सरकार” कों ककसी तनदे श का अथातन्वयन क्रमश: “संसद्”, “केन्द्रीय अधधतनयम”
या “केन्द्रीय सरकार” के प्रतत तनदे श के रूप में ककया जाएगा|
243-यथ. संघ राज्य क्षेत्रों कों लागू होना- इस भाग के प्रावधान संघ राज्य क्षेत्रों कों लागू होंगे
और संघ राज्यक्षेत्र का, क्जसमे कोई ववधान सभा नहीं है , लागू होने में , ववधानमंडल कों तनदे श अनच्
ु छे द
239 के अधीन तनयक्
ु त ककये गये उसके प्रशासक और संघ राज्य के संबध
ं में , क्जसमे ववधानसभा है , उस
ववधान सभा का तनदे श होगा:
परं तु राष्रपतत, शासकीय राजपत्र में अधधसच
ू ना द्वारा, तनदे श दे सकेगा कक इस भाग के प्रावधान
ककसी संघ राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग कों लागू नहीं होंगे, जैसा कक वह अधधसच
ू ना में ववतनहदत ष्ट करे |
243-यन. विद्यमान विधध का जारी रहना- इस भाग में ककसी बात के होते हुए भी, संववधान
(सर्त्ानबेवां संशोधन) अधधतनयम, 2011 के प्रारं भ होने के ठीक पव
ू त राज्य में प्रवर्त्
ृ बने रहें गे, जब तक
सक्षम ववधानमंडल या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा संशोधन या तनरलसत न ककया जाए या जब तक ऐसे
प्रारं भ से एक वषत के भीतर अवसान न हो, जो भी कम हो|]

भाग 10 : अनस
ु धू चत और जनजानत क्षेत्र
244. अनस
ु धू चत क्षेत्रों और जनजानत क्षेत्रों का प्रशासन- (1) पाँचवीं अनस
ु च
ू ी के उपबंध 1[असम, 2[3[मेघालय,
त्रत्रपरु ा और लमजोरम]] राज्यों] से लभन्न 4[***] ककसी राज्य के अनस
ु धू चत क्षेत्रों और अनस
ु धू चत जनजाततयों
के प्रशासन और तनयंत्रण के ललए लागू होंगे।
__________________
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) ''असम
राज्य'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) ''मेघालय और
त्रत्रपुरा'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (उनचासवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा ''और मेघालय'' के स्थान पर (1-
4-1985 से) प्रततस्थावपत।

144
4. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख में ववतनहदत ष्ट'' शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया।

(2) छठी अनस


ु च
ू ी के उपबंध 1[असम, 2[5[मेघालय, त्रत्रपरु ा] और लमजोरम राज्यों] के] जनजातत क्षेत्रों
के प्रशासन के ललए लागू होंगे।
4
[244क. असम के कुछ जनजानत क्षेत्रों को समाविष्ट्ट करने िाला एक स्िशासी राज्य बनाना और
उसके ललए स्थानीय विधान-मंडल या मंत्रत्र-पररषद् का या दोनों का सज
ृ न- (1) इस संववधान में ककसी
बात के होते हुए भी, संसद् ववधध द्वारा असम राज्य के भीतर एक स्वशासी राज्य बना सकेगी, क्जसमें
छठी अनस ु च
ू ी के पैरा 20 से संलग्न सारणी के 5[भाग 1] में ववतनहदत ष्ट सभी या कोई जनजातत क्षेत्र
(पण
ू त
त ः या भागतः) समाववष्ट होंगे और उसके ललए-
(क) उस स्वशासी राज्य के ववधान-मंडल के रूप में कायत करने के ललए तनवातधचत या भागतः
नामतनदे लशत और भागतः तनवातधचत तनकाय का, या
(ख) मंत्रत्र-पररषद् का,
या दोनों का सज
ृ न कर सकेगी, क्जनमें से प्रत्येक का गठन, शक्क्तयाँ और कृत्य वे होंगे जो उस ववधध में
ववतनहदतष्ट ककए जाएँ।
(2) खंड (1) में तनहदत ष्ट ववधध, ववलशष्टतया,-
(क) राज्य सच
ू ी या समवती सच
ू ी में प्रगणणत वे ववषय ववतनहदत ष्ट कर सकेगी क्जनके संबध
ं में
स्वशासी राज्य के ववधान-मंडल को संपण
ू त स्वशासी राज्य के ललए या उसके ककसी भाग के ललए ववधध
बनाने की शक्क्त, असम राज्य के ववधान-मंडल का अपवजतन करके या अन्यथा, होगी;
(ख) वे ववषय पररतनक्श्चत कर सकेगी क्जन पर उस स्वशासी राज्य की कायतपाललका शक्क्त का
ववस्तार होगा;
(ग) यह उपबंध कर सकेगी कक असम राज्य द्वारा उद्गह
ृ ीत कोई कर स्वशासी राज्य को वहाँ तक
सौंपा जाएगा जहाँ तक उसके आगम स्वशासी राज्य से प्राप्त हुए माने जा सकते हैं;
(घ) यह उपबंध कर सकेगी कक इस संववधान के ककसी अनच् ु छे द में राज्य
(ङ) ऐसे अनप
ु रू क, आनष
ु धं गक या पाररणालमक उपबंध कर सकेगी जा आवश्यक समझे जाएँ।
(3) पव
ू ोक्त प्रकार की ककसी ववधध का कोई संशोधन, जहाँ तक वह संशोधन खंड (2) के उपखंड (क)
या उपखंड (ख) में ववतनहदतष्ट ववषयों में से ककसी से संबधं धत है , तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक वह
संशोधन संसद् के प्रत्येक सदन में उपक्स्थत और मत दे ने वाले कम से कम दो-ततहाई सदस्यों द्वारा पाररत
नहीं कर हदया जाता है ।
(4) इस अनच्
ु छे द में तनहदत ष्ट ववधध को अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजनों के ललए इस संववधान का संशोधन
इस बात के होते हुए भी नहीं समझा जाएगा कक उसमें कोई ऐसा उपबंध अंतववतष्ट है जो इस संववधान का
संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है।
भाग 11 : संघ और राज्यों के बीच संबध

अध्याय 1 : विधायी संबध

विधायी शक्ततयों का वितरण
245. संसद् द्िारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्िारा बनाई गई विधधयों का विस्तार- (1) इस
संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद् भारत के संपण
ू त राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग के ललए

145
ववधध बना सकेगी और ककसी राज्य का ववधान-मंडल संपण
ू त राज्य या उसके ककसी भाग के ललए ववधध बना
सकेगा।
__________________
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) ''असम
राज्य'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) ''मेघालय और
त्रत्रपुरा'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) ''मेघालय और
त्रत्रपुरा राज्यों और लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
4. संववधान (बाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1969 की धारा 2 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्थावपत।
5. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) ''भाग
क” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
(2) संसद् द्वारा बनाई गई कोई ववधध इस आधार पर अधधमान्य नहीं समझी जाएगी कक उसका
राज्यक्षेत्रातीत प्रवततन होगा।
246. संसद् द्िारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्िारा बनाई गई विधधयों की विषय-िस्त-ु (1) खंड
(2) और खंड (3) में ककसी बात के होते हुए भी, संसद् को सातवीं अनस ु च
ू ी की सच
ू ी 1 में (क्जसे इस संववधान
में ''संघ सच
ू ी'' कहा गया है ) प्रगणणत ककसी भी ववषय के संबध
ं में ववधध बनाने की अनन्य शक्क्त है ।
(2) खंड (3) में ककसी बात के होते हुए भी, संसद् को और खंड (1) के अधीन रहते हुए, 1[***] ककसी
राज्य के ववधान-मंडल को भी, सातवीं अनस ु च
ू ी की सचू ी 3 में (क्जसे इस संववधान में ''समवती सच
ू ी'' कहा
गया है ) प्रगणणत ककसी भी ववषय के संबध
ं में ववधध बनाने की शक्क्त है ।
(3) खंड (1) और खंड (2) के अधीन रहते हुए, 1[***] ककसी राज्य के ववधान-मंडल को, सातवीं
अनस
ु च
ू ी की सच ू ी 2 में (क्जसे इस संववधान में ''राज्य सच
ू ी'' कहा गया है ) प्रगणणत ककसी भी ववषय के
संबध
ं में उस राज्य या उसके ककसी भाग के ललए ववधध बनाने की अनन्य शक्क्त है।
(4) संसद् को भारत के राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के ललए 2[जो ककसी राज्य] के अंतगतत नहीं है , ककसी
भी ववषय के संबध
ं में ववधध बनाने की शक्क्त है , चाहे वह ववषय राज्य सच
ू ी में प्रगणणत ववषय ही क्यों न
हो।
247. कुछ अनतररतत न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद् की शक्तत- इस अध्याय में
ककसी बात के होते हुए भी, संसद् अपने द्वारा बनाई गई ववधधयों के या ककसी ववद्यमान ववधध के, जो संघ
सचू ी में प्रगणणत ववषय के संबध
ं में है , अधधक अच्छे प्रशासन के ललए अततररक्त न्यायालयों की स्थापना का
ववधध द्वारा उपबंध कर सकेगी।
248. अिलशष्ट्ट विधायी शक्ततयााँ- (1) संसद् को ककसी ऐसे ववषय के संबध
ं में , जो समवती सच
ू ी या
राज्य सच
ू ी में प्रगणणत नहीं है , ववधध बनाने की अनन्य शक्क्त है ।
(2) ऐसी शक्क्त के अंतगतत ऐसे कर के अधधरोपण के ललए जो उन सधू चयों में से ककसी में वणणतत
नहीं है , ववधध बनाने की शक्क्त है ।
249. राज्य सच
ू ी में के विषय के संबध
ं में राष्ट्रीय र्हत में विधध बनाने की संसद् की शक्तत- (1)
इस अध्याय के पव ू ग
त ामी उपबंधों में ककसी बात के होते हुए भी, यहद राज्य सभा ने उपक्स्थत और मत दे ने
वाले सदस्यों में से कम से कम दो-ततहाई सदस्यों द्वारा समधथतत संकल्प द्वारा घोवषत ककया है कक

146
राष्रीय हहत में यह आवश्यक या समीचीन है कक संसद् राज्य सच
ू ी में प्रगणणत ऐसे ववषय के संबध
ं में , जो
उस संकल्प में ववतनहदत ष्ट है , ववधध बनाए तो जब तक वह संकल्प प्रवर्त्
ृ है , संसद् के ललए उस ववषय के
संबध
ं में भारत के संपण
ू त राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग के ललए ववधध बनाना ववधधपण
ू त होगा।
(2) खंड (1) के अधीन पाररत संकल्प एक वषत से अनधधक ऐसी अवधध के ललए प्रवर्त्
ृ रहे गा जो
उसमें ववतनहदत ष्ट की जाए :
परं तु यहद और क्जतनी बार ककसी ऐसे संकल्प को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने का अनम
ु ोदन करने वाला
संकल्प खंड (1) में उपबंधधत रीतत से पाररत हो जाता है तो और उतनी बार ऐसा संकल्प उस तारीख से,
क्जसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्त्
ृ नहीं रहता, एक वषत की और अवधध तक प्रवर्त्
ृ रहे गा।
(3) संसद् द्वारा बनाई गई कोई ववधध, क्जसे संसद् खंड (1) के अधीन संकल्प के पाररत होने के
अभाव में बनाने के ललए सक्षम नहीं होती, संकल्प के प्रवर्त्
ृ न रहने के पश्चात ् छह मास की अवधध की
समाक्प्त पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के लसवाय प्रभावी नहीं रहे गी क्जन्हें उक्त अवधध की समाक्प्त
से पहले ककया गया है या करने का लोप ककया गया है ।
250. यर्द आपात की उद्घोषणा प्रितमन में हो तो राज्य सच
ू ी में के विषय के संबध
ं में विधध बनाने
की संसद् की शक्तत- (1) इस अध्याय में ककसी बात के होते हुए भी, संसद् को, जब तक आपात की
उद्घोषणा प्रवततन में है , राज्य सच
ू ी में प्रगणणत ककसी भी ववषय के संबध
ं में भारत के संपण
ू त राज्यक्षेत्र या
उसके ककसी भाग के ललए ववधध बनाने की शक्क्त होगी।
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख में ववतनहदत ष्ट'' शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख में ” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
(2) संसद् द्वारा बनाई गई कोई ववधध, क्जसे संसद् आपात की उद्घोषणा के अभाव में बनाने के
ललए सक्षम नहीं होती, उद्घोषणा के प्रवततन में न रहने के पश्चात ् छह मास की अवधध की समाक्प्त पर
अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के लसवाय प्रभावी नहीं रहे गी क्जन्हें उक्त अवधध की समाक्प्त से पहले
ककया गया है या करने का लोप ककया गया है ।
251. संसद् द्िारा अनच्
ु छे द 249 और अनच्
ु छे द 250 के अधीन बनाई गई विधधयों और राज्यों के
विधान-मंडलों द्िारा बनाई गई विधधयों में असंगनत- अनच्
ु छे द 249 और अनच्
ु छे द 250 की कोई बात ककसी
राज्य के ववधान-मंडल की ऐसी ववधध बनाने की शक्क्त को, क्जसे इस संववधान के अधीन बनाने की शक्क्त
उसको है , तनबंधधत नहीं करे गी ककं तु यहद ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ववधध का कोई
उपबंध संसद् द्वारा बनाई गई ववधध के, क्जसे उक्त अनच्
ु छे दों में से ककसी अनच्
ु छे द के अधीन बनाने की
शक्क्त संसद् को है , ककसी उपबंध के ववरुद्ध है तो संसद् द्वारा बनाई गई ववधध अलभभावी होगी चाहे वह
राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ववधध से पहले या उसके बाद में पाररत की गई हो और राज्य के
ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ववधध उस ववरोध की मात्रा तक अप्रवततनीय होगी ककं तु ऐसा तभी तक होगा
जब तक संसद् द्वारा बनाई गई ववधध प्रभावी रहती है ।
252. दो या अधधक राज्यों के ललए उनकी सहमनत से विधध बनाने की संसद् की शक्तत और ऐसी
विधध का क्रकसी अन्य राज्य द्िारा अंगीकार क्रकया जाना- (1) यहद ककन्हीं दो या अधधक राज्यों के ववधान-
मंडलों को यह वांछनीय प्रतीत होता है कक उन ववषयों में से, क्जनके संबध
ं में संसद् को अनच्
ु छे द 249 और

147
अनच्
ु छे द 250 में यथा उपबंधधत के लसवाय राज्यों के ललए ववधध बनाने की शक्क्त नहीं है , ककसी ववषय का
ववतनयमन ऐसे राज्यों में संसद् ववधध द्वारा करे और यहद उन राज्यों के ववधान-मंडलों के सभी सदन उस
आशय के संकल्प पाररत करते हैं तो उस ववषय का तदनस
ु ार ववतनयमन करने के ललए कोई अधधतनयम
पाररत करना संसद् के ललए ववधधपण
ू त होगा और इस प्रकार पाररत अधधतनयम ऐसे राज्यों को लागू होगा
और ऐसे अन्य राज्य को लागू होगा, जो तत्पश्चात ् अपने ववधान-मंडल के सदन द्वारा या जहाँ दो सदन हैं
वहाँ दोनों सदनों में से प्रत्येक सदन इस तनलमर्त् पाररत संकल्प द्वारा उसको अंगीकार कर लेता है ।
(2) संसद् द्वारा इस प्रकार पाररत ककसी अधधतनयम का संशोधन या तनरसन इसी रीतत से पाररत
या अंगीकृत संसद् के अधधतनयम द्वारा ककया जा सकेगा, ककं तु उसका उस राज्य के संबध
ं में संशोधन या
तनरसन क्जसको वह लागू होता है , उस राज्य के ववधान-मंडल के अधधतनयम द्वारा नहीं ककया जाएगा।
253. अंतरराष्ट्रीय करारों को प्रभािी करने के ललए विधान- इस अध्याय के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में
ककसी बात के होते हुए भी, संसद् को ककसी अन्य दे श या दे शों के साथ की गई ककसी संधध, करार या
अलभसमय अथवा ककसी अंतरराष्रीय सम्मेलन, संगम या अन्य तनकाय में ककए गए ककसी ववतनश्चय के
कायातन्वयन के ललए भारत के संपण
ू त राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग के ललए कोई ववधध बनाने की शक्क्त
है ।
254. संसद् द्िारा बनाई गई विधधयों और राज्यों के विधान-मंडलों द्िारा बनाई गई विधधयों में
असंगनत- (1) यहद ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ववधध का कोई उपबंध संसद् द्वारा बनाई
गई ववधध के, क्जसे अधधतनयलमत करने के ललए संसद् सक्षम है , ककसी उपबंध के या समवती सच
ू ी में
प्रगणणत ककसी ववषय के संबध
ं में ववद्यमान ववधध के ककसी उपबंध के ववरुद्ध है तो खंड (2) के उपबंधों के
अधीन रहते हुए, यथाक्स्थतत, संसद् द्वारा बनाई गई ववधध, चाहे वह ऐसे राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई
गई ववधध से पहले या उसके बाद में पाररत की गई हो, या ववद्यमान ववधध, अलभभावी होगी और उस राज्य
के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ववधध उस ववरोध की मात्रा तक शन्
ू य होगी।
(2) जहाँ 1[***] राज्य के ववधान-मंडल द्वारा समवती सच
ू ी में प्रगणणत ककसी ववषय के संबध
ं में
बनाई गई ववधध में कोई ऐसा उपबंध अंतववतष्ट है जो संसद् द्वारा पहले बनाई गई ववधध के या उस ववषय
के संबध
ं में ककसी ववद्यमान ववधध के उपबंधों के ववरुद्ध है तो यहद ऐसे राज्य के ववधान-मंडल द्वारा इस
प्रकार बनाई गई ववधध को राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखा गया है और उस पर उसकी अनम
ु तत
लमल गई है तो वह ववधध उस राज्य में अलभभावी होगी :
परं तु इस खंड की कोई बात संसद् को उसी ववषय के संबध
ं में कोई ववधध, क्जसके अंतगतत ऐसी
ववधध है , जो राज्य के ववधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई ववधध का पररवधतन, संशोधन, पररवततन या
तनरसन करती है , ककसी भी समय अधधतनयलमत करने से तनवाररत नहीं करे गी।
255. लसफाररशों और पि
ू म मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केिल प्रक्रक्रया के विषय मानना- यहद
संसद् के या 1[***] ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी अधधतनयम को-
(क) जहाँ राज्यपाल की लसफाररश अपेक्षक्षत थी वहाँ राज्यपाल या राष्रपतत ने,
(ख) जहाँ राजप्रमख
ु की लसफाररश अपेक्षक्षत थी वहाँ राजप्रमख
ु या राष्रपतत ने,
(ग) जहाँ राष्रपतत की लसफाररश या पव
ू त मंजूरी अपेक्षक्षत थी वहाँ राष्रपतत ने,
अनम
ु तत दे दी है तो ऐसा अधधतनयम और ऐसे अधधतनयम का कोई उपबंध केवल इस कारण अधधमान्य
नहीं होगा कक इस संववधान द्वारा अपेक्षक्षत कोई लसफाररश नहीं की गई थी या पव
ू त मंजरू ी नहीं दी गई
थी।

148
अध्याय 2
प्रशासननक संबध

साधारण
256. राज्यों की और संघ की बाध्यता- प्रत्येक राज्य की कायतपाललका शक्क्त का इस प्रकार प्रयोग
ककया जाएगा क्जससे संसद् द्वारा बनाई गई ववधधयों का और ऐसी ववद्यमान ववधधयों का, जो उस राज्य में
लागू हैं, अनप
ु ालन सतु नक्श्चत रहे और संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार ककसी राज्य को ऐसे तनदे श
दे ने तक होगा जो भारत सरकार को उस प्रयोजन के ललए आवश्यक प्रतीत हों।
257. कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का ननयंत्रण- (1) प्रत्येक राज्य की कायतपाललका शक्क्त का इस
प्रकार प्रयोग ककया जाएगा क्जससे संघ की कायतपाललका शक्क्त के प्रयोग में कोई अड़चन न हो या उस पर
कोई प्रततकूल प्रभाव न पड़े और संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार ककसी राज्य को ऐसे तनदे श दे ने
तक होगा जो भारत सरकार को इस प्रयोजन के ललए आवश्यक प्रतीत हों।
(2) संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार राज्य को ऐसे संचार साधनों के तनमातण और बनाए
रखने के बारे में तनदे श दे ने तक भी होगा क्जनका राष्रीय या सैतनक महत्व का होना उस तनदे श में घोवषत
ककया गया है :
परं तु इस खंड की कोई बात ककसी राजमागत या जल मागत को राष्रीय राजमागत या राष्रीय जल
मागत घोवषत करने की संसद् की शक्क्त को अथवा इस प्रकार घोवषत राजमागत या जल मागत के बारे में संघ
की शक्क्त को अथवा सेना, नौसेना और वायस
ु ेना संकमत ववषयक अपने कृत्यों के भागरूप संचार साधनों के
तनमातण और बनाए रखने की संघ की शक्क्त को तनबंधधत करने वाली नहीं मानी जाएगी।
(3) संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार ककसी राज्य में रे लों के संरक्षण के ललए ककए जाने
वाले उपायों के बारे में उस राज्य को तनदे श दे ने तक भी होगा।
___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क या भाग ख में ववतनहदतष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया|
(4) जहाँ खंड (2) के अधीन संचार साधनों के तनमातण या बनाए रखने के बारे में अथवा खंड (3) के
अधीन ककसी रे ल के संरक्षण के ललए ककए जाने वाले उपायों के बारे में ककसी राज्य को हदए गए ककसी
तनदे श के पालन में उस खचत से अधधक खचत हो गया है जो, यहद ऐसा तनदे श नहीं हदया गया होता तो
राज्य के प्रसामान्य कततव्यों के तनवतहन में खचत होता वहाँ उस राज्य द्वारा इस प्रकार ककए गए अततररक्त
खचों के संबध
ं में भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी रालश का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव
में ऐसी रालश का, क्जसे भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत द्वारा तनयक्
ु त मध्यस्थ अवधाररत करे , संदाय ककया
जाएगा।
1
[257क. संघ के सशस्त्र बलों या अन्य बलों के अलभननयोजन द्िारा राज्यों की सहायता- संववधान
(चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 33 द्वारा (20-6-1979 से) तनरलसत।
258. कुछ दशाओं में राज्यों को शक्तत प्रदान करने आर्द की संघ की शक्तत- (1) इस संववधान में
ककसी बात के होते हुए भी, राष्रपतत, ककसी राज्य की सरकार की सहमतत से उस सरकार को या उसके
अधधकाररयों को ऐसे ककसी ववषय से संबधं धत कृत्य, क्जन पर संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार है ,
सशतत या त्रबना शतत सौंप सकेगा।

149
(2) संसद् द्वारा बनाई गई ववधध, जो ककसी राज्य को लागू होती है ऐसे ववषय से संबधं धत होने पर
भी, क्जसके संबध
ं में राज्य के ववधान-मंडल को ववधध बनाने की शक्क्त नहीं है , उस राज्य या उसके
अधधकाररयों और प्राधधकाररयों को शक्क्त प्रदान कर सकेगी और उन पर कततव्य अधधरोवपत कर सकेगी या
शक्क्तयों का प्रदान ककया जाना और कततव्यों का अधधरोवपत ककया जाना प्राधधकृत कर सकेगी।
(3) जहाँ इस अनच्
ु छे द के आधार पर ककसी राज्य अथवा उसके अधधकाररयों या प्राधधकाररयों को
शक्क्तयाँ प्रदान की गई हैं या उन पर कततव्य अधधरोवपत ककए गए हैं वहाँ उन शक्क्तयों और कततव्यों के
प्रयोग के संबध
ं में राज्य द्वारा प्रशासन में ककए गए अततररक्त खर्त चों के संबध
ं में भारत सरकार द्वारा
उस राज्य को ऐसी रालश का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव में ऐसी रालश का, क्जसे भारत के
मख्
ु य न्यायमतू तत द्वारा तनयक्
ु त मध्यस्थ अवधाररत करे , संदाय ककया जाएगा।
[258क. संघ को कृत्य सौंपने की राज्यों की शक्तत- इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी,
2

ककसी राज्य का राज्यपाल, भारत सरकार की सहमतत से उस सरकार को या उसके अधधकाररयों को ऐसे
ककसी ववषय से संबधं धत कृत्य, क्जन पर उस राज्य की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार है , सशतत या त्रबना
शतत सौंप सकेगा।
259. [पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख के राज्यों के सशस्त्र बल– [संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम,
1956 की धारा 29 और अनस
ु च
ू ी द्वारा तनरलसत।
260. भारत के बाहर के राज्यक्षेत्रों के संबध
ं में संघ की अधधकाररता- भारत सरकार ककसी ऐसे
राज्यक्षेत्र की सरकार से, जो भारत के राज्यक्षेत्र का भाग नहीं है , करार करके ऐसे राज्यक्षेत्र की सरकार में
तनहहत ककन्हीं कायतपालक, ववधायी या न्यातयक कृत्यों का भार अपने ऊपर ले सकेगी, ककन्तु प्रत्येक ऐसा
करार ववदे शी अधधकाररता के प्रयोग से संबधं धत तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध के अधीन होगा और उससे
शालसत होगा।
261. सािमजननक कायम, अलभलेख और न्यानयक कायमिार्हयााँ- (1) भारत के राज्यक्षेत्र में सवतत्र, संघ के
और प्रत्येक राज्य के सावतजतनक कायों, अलभलेखों और न्यातयक कायतवाहहयों को परू ा ववश्वास और परू ी
मान्यता दी जाएगी।
__________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 43 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थावपत।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 18 द्वारा अंतःस्थावपत।
(2) खंड (1) में तनहदत ष्ट कायों, अलभलेखों और कायतवाहहयों को सात्रबत करने की रीतत और शतें तथा
उनके प्रभाव का अवधारण संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा उपबंधधत रीतत के अनस
ु ार ककया जाएगा।
(3) भारत के राज्यक्षेत्र के ककसी भाग में लसववल न्यायालयों द्वारा हदए गए अंततम तनणतयों या
आदे शों का उस राज्यक्षेत्र के भीतर कहीं भी ववधध के अनस
ु ार तनष्पादन ककया जा सकेगा।
जल संबध
ं ी वििाद
262. अंतरराक्ज्यक नर्दयों या नदी-दन
ू ों के जल संबध
ं ी वििादों का न्यायननणमयन- (1) संसद्, ववधध
द्वारा, ककसी अंतरराक्ज्यक नदी या नदी-दन
ू के या उसमें जल के प्रयोग, ववतरण या तनयंत्रण के संबध
ं में
ककसी वववाद या पररवाद के न्यायतनणतयन के ललए उपबंध कर सकेगी।
(2) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, संसद्, ववधध द्वारा, उपबंध कर सकेगी कक उच्चतम
न्यायालय या कोई अन्य न्यायालय खंड (1) में तनहदत ष्ट ककसी वववाद या पररवाद के संबध ं में अधधकाररता
का प्रयोग नहीं करे गा।

150
राज्यों के बीच समन्िय
263. अंतरराज्य पररषद् के संबध
ं में उपबंध- यहद ककसी समय राष्रपतत को यह प्रतीत होता है कक
ऐसी पररषद् की स्थापना से लोक हहत की लसद्धध होगी क्जसे—
(क) राज्यों के बीच जो वववाद उत्पन्न हो गए हों उनकी जाँच करने और उन पर सलाह दे ने,
(ख) कुछ या सभी राज्यों के अथवा संघ और एक या अधधक राज्यों के सामान्य हहत से संबधं धत
ववषयों के अन्वेषण और उन पर ववचार-ववमशत करने, या
(ग) ऐसे ककसी ववषय पर लसफाररश करने और ववलशष्टतया उस ववषय के संबध
ं में नीतत और
कारत वाई के अधधक अच्छे समन्वय के ललए लसफाररश करने, के कततव्य का भार सौंपा जाए तो राष्रपतत के
ललए यह ववधधपण
ू त होगा कक वह आदे श द्वारा ऐसी पररषद् की स्थापना करे और उस पररषद् द्वारा ककए
जाने वाले कततव्यों की प्रकृतत को तथा उसके संगठन और प्रकक्रया को पररतनक्श्चत करे ।
भाग 12 : विि, संपवि, संविदाएाँ और िाद
अध्याय 1 – विि
साधारण
1
[264. ननिमचन- इस भाग में , ''ववर्त् आयोग'' से अनच्
ु छे द 280 के अधीन गहठत ववर्त् आयोग अलभप्रेत
है ।]
265. विधध के प्राधधकार के त्रबना करों का अधधरोपण न क्रकया जाना- कोई कर ववधध के प्राधधकार से
ही अधधरोवपत या संगह
ृ ीत ककया जाएगा, अन्यथा नहीं।
266. भारत और राज्यों की संधचत ननधधयााँ और लोक लेखे- (1) अनच्
ु छे द 267 के उपबंधों के तथा
कुछ करों और शल्
ु कों के शद्
ु ध आगम पण
ू त
त ः या भागतः राज्यों को सौंप हदए जाने के संबध
ं में इस
अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडडयाँ
तनगतलमत करके, उधार द्वारा या अथोपाय अधग्रमों द्वारा ललए गए सभी उधार और उधारों के प्रततसंदाय में
उस सरकार को प्राप्त सभी धनरालशयों की एक संधचत तनधध बनेगी जो ''भारत की संधचत तनधध'' के नाम
से ज्ञात होगी तथा ककसी राज्य सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडडयाँ तनगतलमत
करके, उधार द्वारा या अथोपाय अधग्रमों द्वारा ललए गए सभी उधार और उधारों के प्रततसंदाय में उस
सरकार को प्राप्त सभी धनरालशयों की एक संधचत तनधध बनेगी जो ''राज्य की संधचत तनधध'' के नाम से
ज्ञात होगी।
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अनुच्छे द 264 के
स्थान पर प्रततस्थावपत।
(2) भारत सरकार या ककसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक
धनरालशयाँ, यथाक्स्थतत, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक लेखे में जमा की जाएँगी।
(3) भारत की संधचत तनधध या राज्य की संधचत तनधध में से कोई धनरालशयाँ ववधध के अनस
ु ार तथा
इस संववधान में उपबंधधत प्रयोजनों के ललए और रीतत से ही ववतनयोक्जत की जाएँगी, अन्यथा नहीं।
267. आकक्स्मकता ननधध- (1) संसद्, ववधध द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकक्स्मकता तनधध की
स्थापना कर सकेगी जो ''भारत की आकक्स्मकता तनधध'' के नाम से ज्ञात होगी क्जसमें ऐसी ववधध द्वारा
अवधाररत रालशयाँ समय-समय पर जमा की जाएँगी और अनवेक्षक्षत व्यय का अनच्
ु छे द 115 या अनच्
ु छे द
116 के अधीन संसद् द्वारा, ववधध द्वारा, प्राधधकृत ककया जाना लंत्रबत रहने तक ऐसी तनधध में से ऐसे व्यय

151
की पतू तत के ललए अधग्रम धन दे ने के ललए राष्रपतत को समथत बनाने के ललए उक्त तनधध राष्रपतत के
व्ययनाधीन रखी जाएगी।
(2) राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकक्स्मकता तनधध की
स्थापना कर सकेगा जो ''राज्य की आकक्स्मकता तनधध'' के नाम से ज्ञात होगी क्जसमें ऐसी ववधध द्वारा
अवधाररत रालशयाँ समय-समय पर जमा की जाएँगी और अनवेक्षक्षत व्यय का अनच्
ु छे द 205 या अनच्
ु छे द
206 के अधीन राज्य के ववधान-मंडल द्वारा, ववधध द्वारा, प्राधधकृत ककया जाना लंत्रबत रहने तक ऐसी तनधध
में से ऐसे व्यय की पतू तत के ललए अधग्रम धन दे ने के ललए राज्यपाल को समथत बनाने के ललए उक्त तनधध
राज्य के राज्यपाल 1[***] के व्ययनाधीन रखी जाएगी।
संघ और राज्यों के बीच राजस्िों का वितरण
268. संघ द्िारा उद्गह
ृ ीत क्रकए जाने िाले क्रकं तु राज्यों द्िारा संगह
ृ ीत और विननयोक्जत क्रकए जाने
िाले शल्
ु क- (1) ऐसे स्टांप-शल्
ु क तथा औषधीय और प्रसाधन तनलमतततयों पर ऐसे उत्पाद-शल्
ु क, जो संघ सच
ू ी
में वणणतत हैं, भारत सरकार द्वारा उद्ग्रहीत ककए जाएँगे, ककं तु –
(क) उस दशा में, क्जसमें ऐसे शल्
ु क 3[संघ राज्यक्षेत्र के भीतर उद्ग्रहणीय हैं भारत सरकार द्वारा,
और
(ख) अन्य दशाओं में क्जन-क्जन राज्यों के भीतर ऐसे शल्
ु क उद्ग्रहणीय हैं, उन-उन राज्यों द्वारा,
संगह
ृ ीत ककए जाएँगे।
(2) ककसी राज्य के भीतर उद्ग्रहणीय ककसी ऐसे शल्
ु क के ककसी ववर्त्ीय वषत में आगम, भारत की
संधचत तनधध के भाग नहीं होंगे, ककन्तु उस राज्य को सौंप हदए जाएँगे।
3
[268क. संघ द्िारा उद्गह
ृ ीत क्रकए जाने िाला और संघ तथा राज्यों द्िारा संगह
ृ ीत और
विननयोक्जत क्रकया जाने िाला सेिा-कर- (1) सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा उद्गह
ृ ीत ककए जाएँगे
और ऐसा कर खंड (2) में उपबंधधत रीतत से भारत सरकार तथा राज्यों द्वारा संगह
ृ ीत और ववतनयोक्जत
ककया जाएगा।
(2) ककसी ववर्त्ीय वषत में , खंड (1) के उपबंध के अनस
ु ार, उद्गह
ृ ीत ऐसे ककसी कर के आगमों का—
(क) भारत सरकार और राज्यों द्वारा संग्रहण;
(ख) भारत सरकार और राज्यों द्वारा ववतनयोजन,
संग्रहण और ववतनयोजन के ऐसे लसद्धान्तों के अनस
ु ार ककया जाएगा, क्जन्हें संसद् ववधध द्वारा बनाए।]
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों
का लोप ककया गया।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के
भाग ग में ववतनहदत ष्ट राज्य'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (अठासीवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा (प्रवततन की तारीख से)
अंतःस्थावपत।
269. संघ द्िारा उद्गह
ृ ीत और संगह
ृ ीत क्रकं तु राज्यों को सौंपे जाने िाले कर- 1[(1) माल के क्रय या
ववक्रय पर कर और माल के परे षण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गह
ृ ीत और संगह
ृ ीत ककए जाएँगे ककन्तु
खंड (2) में उपबंधधत रीतत से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात ् सौंप हदए जाएँगे या सौंप हदए
गए समझे जाएँगे।

152
स्पष्ट्टीकरण - इस खंड के प्रयोजनों के ललए-
(क) ''माल के क्रय या ववक्रय पर कर'' पद से समाचारपत्रों से लभन्न माल के क्रय या ववक्रय पर
उस दशा में कर अलभप्रेत है क्जसमें ऐसा क्रय या ववक्रय अंतरराक्ज्यक व्यापार या वाणणज्य के दौरान होता
है ;
(ख) ''माल के परे षण पर कर'' पद से माल के परे षण पर (चाहे प्रेषण उसके करने वाले व्यक्क्त को
या ककसी अन्य व्यक्क्त को ककया गया हो) उस दशा में कर अलभप्रेत है क्जसमें ऐसा प्रेषण अंतरराक्ज्यक
व्यापार या वाणणज्य के दौरान होता है ।
(2) ककसी ववर्त्ीय वषत में ककसी ऐसे कर के शद्
ु ध आगम वहाँ तक के लसवाय, जहाँ तक वे आगम
संघ राज्यक्षेत्रों से प्राप्त हुए आगम माने जा सकते हैं, भारत की संधचत तनधध के भाग नहीं होंगे, ककं तु उन
राज्यों को सौंप हदए जाएँगे क्जनके भीतर वह कर उस वषत में उद्ग्रहणीय हैं और ववतरण के ऐसे लसद्धांतों
के अनस
ु ार, जो संसद् ववधध द्वारा बनाए, उन राज्यों के बीच ववतररत ककए जाएँगे।]
2
[(3) संसद्, यह अवधाररत करने के ललए कक 3[माल का क्रय या ववक्रय या प्रेषण] कब अंतरराक्ज्यक
व्यापार या वाणणज्य के दौरान होता है , ववधध द्वारा लसद्धांत बना सकेगी।
4
[270.उद्गह
ृ ीत कर और उनका संघ तथा राज्यों के बीच वितरण- (1) क्रमशः 6[अनच्
ु छे द 268 और
अनच्
ु छे द 269] में तनहदतष्ट शल्
ु कों और करों के लसवाय, संघ सच
ू ी में तनहदत ष्ट सभी कर और शल्
ु क; अनच्
ु छे द
271 में तनहदत ष्ट करों और शल्
ु कों पर अधधभार और संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के अधीन ववतनहदत ष्ट
प्रयोजनों के ललए उद्गह
ृ ीत कोई उपकर भारत सरकार द्वारा उद्गह
ृ ीत और संगह
ृ ीत ककए जाएँगे तथा खंड
(2) में उपबंधधत रीतत से संघ और राज्यों के बीच ववतररत ककए जाएँगे।
(2) ककसी ववर्त्ीय वषत में ककसी ऐसे कर या शल्
ु क के शद्
ु ध आगमों का ऐसा प्रततशत, जो ववहहत
ककया जाए, भारत की संधचत तनधध का भाग नहीं होगा, ककन्तु उन राज्यों को सौंप हदया जाएगा क्जनके
भीतर वह कर या शल्
ु क उस वषत में उद्ग्रहणीय है और ऐसी रीतत से और ऐसे समय से, जो खंड (3) में
उपबंधधत रीतत से ववहहत ककया जाए, उन राज्यों के बीच ववतररत ककया जाएगा।
(3) इस अनच्
ु छे द में , ''ववहहत'' से अलभप्रेत है -
(i) जब तक ववर्त् आयोग का गठन नहीं ककया जाता है तब तक राष्रपतत द्वारा आदे श द्वारा
ववहहत; और
(ii) ववर्त् आयोग का गठन ककए जाने के पश्चात ् ववर्त् आयोग की लसफाररशों पर ववचार करने के
पश्चात ् राष्रपतत द्वारा आदे श द्वारा ववहहत।
271. कुछ शल्
ु कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के ललए अधधभार- अनच्
ु छे द 269 और अनच्
ु छे द
270 में ककसी बात के होते हुए भी, संसद् उन अनच्
ु छे दों में तनहदत ष्ट शल्
ु कों या करों में से ककसी में ककसी
भी समय संघ के प्रयोजनों के ललए अधधभार द्वारा वद् ृ धध कर सकेगी और ककसी ऐसे अधधभार के संपण ू त
आगम भारत की संधचत तनधध के भाग होंगे।
____________________
1. संववधान (अस्सीवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा खंड (1) और खंड (2) के स्थान
पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (छठा संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्थावपत।
3. संववधान (तछयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1982 की धारा 2 द्वारा (2-2-1983 से) ''माल का
क्रय या ववक्रय'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।

153
4. संववधान (अस्सीवाँ संशोधन) की धारा 3 द्वारा (1-4-1996 से) प्रततस्थावपत।
5. संववधान (अठासीवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2003 ''अनुच्छे द 268 और अनुच्छे द 269'' शब्दों के स्थान
पर प्रततस्थावपत|
272. [कर जो संघ द्िारा उद्गह
ृ ीत और संगह
ृ ीत क्रकए जाते है तथा जो संघ और राज्यों के बीच
वितररत क्रकए जा सकेंगे – संववधान (अस्सीवां संशोधन) अधधतनयम, 2000 की धारा 4 द्वारा लोप ककया
गया|
273. जट
ू पर और जट
ू उत्पादों पर ननयामत शल्
ु क के स्थान पर अनद
ु ान- (1) जट
ू पर और जट

उत्पादों पर तनयातत शल्
ु क के प्रत्येक वषत के शद्
ु ध आगम का कोई भाग असम, त्रबहार, [ओडीशा] और
*

पक्श्चमी बंगाल राज्यों को सौंप हदए जाने के स्थान पर उन राज्यों के राजस्व में सहायता अनद
ु ान के रूप
में प्रत्येक वषत भारत की संधचत तनधध पर ऐसी रालशयाँ भाररत की जाएँगी जो ववहहत की जाएँ।
(2) जूट पर और जूट उत्पादों पर जब तक भारत सरकार कोई तनयातत शल्
ु क उद्गहृ ीत करती रहती
है तब तक या इस संववधान के प्रारं भ से दस वषत की समाक्प्त तक, इन दोनों में से जो भी पहले हो, इस
प्रकार ववहहत रालशयाँ भारत की संधचत तनधध पर भाररत बनी रहें गी।
(3) इस अनच्
ु छे द में , ''ववहहत'' पद का वही अथत है जो अनच्
ु छे द 270 में है ।
274. ऐसे कराधान पर क्जसमें राज्य र्हतबद्ध है , प्रभाि डालने िाले विधेयकों के ललए राष्ट्रपनत की
पि
ू म लसफाररश की अपेक्षा- (1) कोई ववधेयक या संशोधन, जो ऐसा कर या शल्
ु क, क्जसमें राज्य हहतबद्ध है ,
अधधरोवपत करता है या उसमें पररवततन करता है अथवा जो भारतीय आय-कर से संबधं धत अधधतनयलमततयों
के प्रयोजनों के ललए पररभावषत ''कृवष-आय'' पद के अथत में पररवततन करता है अथवा जो उन लसद्धांतों को
प्रभाववत करता है क्जनसे इस अध्याय के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में से ककसी उपबंध के अधीन राज्यों को
धनरालशयाँ ववतरणीय हैं या हो सकेंगी अथवा जो संघ के प्रयोजनों के ललए कोई ऐसा अधधभार अधधरोवपत
करता है जो इस अध्याय के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में वणणतत है , संसद् के ककसी सदन में राष्रपतत की लसफाररश
पर ही परु ःस्थावपत या प्रस्ताववत ककया जाएगा, अन्यथा नहीं।
(2) इस अनच्
ु छे द में , ''ऐसा कर या शल्
ु क, क्जसमें राज्य हहतबद्ध हैं'' पद से ऐसा कोई कर या
शल्
ु क अलभप्रेत है -
(क) क्जसके शद्
ु ध आगम पण
ू त
त ः या भागतः ककसी राज्य को सौंप हदए जाते हैं, या
(ख) क्जसके शद्
ु ध आगम के प्रतत तनदे श से भारत की संधचत तनधध में से ककसी राज्य को रालशयाँ
तत्समय संदेय हैं।
275. कुछ राज्यों को संघ से अनद
ु ान- (1) ऐसी रालशयाँ, क्जनका संसद् ववधध द्वारा उपबंध करे , उन
राज्यों के राजस्वों में सहायता अनद
ु ान के रूप में प्रत्येक वषत भारत की संधचत तनधध पर भाररत होंगी क्जन
राज्यों के ववषय में संसद् यह अवधाररत करे कक उन्हें सहायता की आवश्यकता है और लभन्न-लभन्न राज्यों
के ललए लभन्न-लभन्न रालशयाँ तनयत की जा सकेंगी:
परं तु ककसी राज्य के राजस्वों में सहायता अनद
ु ान के रूप में भारत की संधचत तनधध में से ऐसी
पज
ूं ी और आवती रालशयाँ संदर्त् की जाएँगी जो उस राज्य को उन ववकास स्कीमों के खचों को परू ा करने में
समथत बनाने के ललए आवश्यक हों क्जन्हें उस राज्य में अनस
ु धू चत जनजाततयों के कल्याण की अलभवद्
ृ धध
करने या उस राज्य में अनस
ु धू चत क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन स्तर तक
उन्नत करने के प्रयोजन के ललए उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनम
ु ोदन से हाथ में ललया जाए :

154
परं तु यह और कक असम राज्य के राजस्व में सहायता अनद
ु ान के रूप में भारत की संधचत तनधध
में से ऐसी पँज
ू ी और आवती रालशयाँ संदर्त् की जाएँगी –
(क) जो छठी अनस
ु च
ू ी के पैरा 20 से संलग्न सारणी के 1[भाग1] में ववतनहदत ष्ट जनजातत क्षेत्रों के
प्रशासन के संबध
ं में इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पव
ू व
त ती दो वषत के दौरान औसत व्यय राजस्व से
क्जतना अधधक है , उसके बराबर हैं; और
(ख) जो उन ववकास स्कीमों के खचों के बराबर हैं क्जन्हें उक्त क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को उस राज्य
के शेष क्षेत्रों के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के ललए उस राज्य द्वारा भारत सरकार के
अनम
ु ोदन से हाथ में ललया जाए।
___________________

*
उड़ीसा (नाम पररवततन) अधधतनयम, 2011 की धारा 5 द्वारा प्रततस्थावपत|
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से)
“भाग क” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
1
[(1-क) अनच्
ु छे द 244-क के अधीन स्वशासी राज्य के बनाए जाने की तारीख को और से –
(i) खंड (1) के दस
ू रे परं तक
ु के खंड (क) के अधीन संदेय कोई रालशयाँ स्वशासी राज्य को उस दशा
में संदर्त् की जाएँगी जब उसमें तनहदत ष्ट सभी जनजातत क्षेत्र उस स्वशासी राज्य में समाववष्ट हों
और यहद स्वशासी राज्य में उन जनजातत क्षेत्रों में से केवल कुछ ही समाववष्ट हों तो वे रालशयाँ
असम राज्य और स्वशासी राज्य के बीच ऐसे प्रभाक्जत की जाएँगी जो राष्रपतत आदे श द्वारा
ववतनहदतष्ट करे ;
(ii) स्वशासी राज्य के राजस्वों में सहायता अनद
ु ान के रूप में भारत की संधचत तनधध में से ऐसी
पँज
ू ी और आवती रालशयाँ संदर्त् की जाएँगी जो उन ववकास स्कीमों के खचों के बराबर है क्जन्हें
स्वशासी राज्य के प्रशासन स्तर को शेष असम राज्य के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के
प्रयोजन के ललए स्वशासी राज्य द्वारा भारत सरकार के अनम
ु ोदन से हाथ में ललया जाए।
(2) जब तक संसद् खंड (1) के अधीन उपबंध नहीं करती है तब तक उस खंड के अधीन संसद् को
प्रदर्त् शक्क्तयाँ राष्रपतत द्वारा, आदे श द्वारा, प्रयोक्तव्य होंगी और राष्रपतत द्वारा इस खंड के अधीन
ककया गया कोई आदे श संसद् द्वारा इस प्रकार ककए गए ककसी उपबंध के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा:
परं तु ववर्त् आयोग का गठन ककए जाने के पश्चात ् राष्रपतत द्वारा इस खंड के अधीन कोई आदे श ववर्त्
आयोग की लसफाररशों पर ववचार करने के पश्चात ् ही ककया जाएगा, अन्यथा नहीं।
276. िवृ ियों, व्यापारों, आजीविकाओं और ननयोजनों पर कर- (1) अनच्
ु छे द 246 में ककसी बात के
होते हुए भी, ककसी राज्य के ववधान-मंडल की ऐसे करों से संबधं धत कोई ववधध, जो उस राज्य के या उसमें
ककसी नगरपाललका, क्जला बोडत, स्थानीय बोडत या अन्य स्थानीय प्राधधकारी के फायदे के ललए ववृ र्त्यों,
व्यापारों, आजीववकाओं या तनयोजनों के संबध
ं में है , इस आधार पर अधधमान्य नहीं होगी कक वह आय पर
कर से संबधं धत है ।
(2) राज्य को या उस राज्य में ककसी एक नगरपाललका, क्जला बोडत, स्थानीय बोडत या अन्य स्थानीय
प्राधधकारी को ककसी एक व्यक्क्त के बारे में ववृ र्त्यों, व्यापारों, आजीववकाओं और तनयोजनों पर करों के रूप
में संदेय कुल रकम 1[दो हजार पाँच सौ रुपए] प्रतत वषत से अधधक नहीं होगी।
3
[* * * * * * *]

155
(3) ववृ र्त्यों, व्यापारों, आजीववकाओं और तनयोजनों पर करों के संबध
ं में पव
ू ोक्त रूप में ववधधयाँ
बनाने की राज्य के ववधान-मंडल की शक्क्त का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह ववृ र्त्यों, व्यापारों,
आजीववकाओं और तनयोजनों से प्रोद्भत
ू या उद्भत
ू आय पर करों के संबध
ं में ववधधयाँ बनाने की संसद् की
शक्क्त को ककसी प्रकार सीलमत करती है ।
277. व्यािवृ ि- ऐसे कर, शल्
ु क, उपकर या फीसें, जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले ककसी राज्य
की सरकार द्वारा अथवा ककसी नगरपाललका या अन्य स्थानीय प्राधधकारी या तनकाय द्वारा उस राज्य,
नगरपाललका, क्जला या अन्य स्थानीय क्षेत्र के प्रयोजनों के ललए ववधधपव
ू क
त उद्गह
ृ ीत की जा रही थी, इस
बात के होते हुए भी कक वे कर, शल् ु क, उपकर या फीसें संघ सच
ू ी में वणणतत हैं, तब तक उद्गह
ृ ीत की जाती
रहें गी और उन्हीं प्रयोजनों के ललए उपयोक्जत की जाती रहें गी जब तक संसद् ववधध द्वारा इसके प्रततकूल
उपबंध नहीं करती है ।
278. [कुछ वििीय विषय के संबध
ं में पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख के राज्यों से करार]- संववधान
(सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु च
ू ी द्वारा तनरलसत।
___________________
1. संववधान (बाईसवां संशोधन) अधधतनयम, 1969 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थावपत|
2. संववधान (साठवां संशोधन) अधधतनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा (20-12-1988 से) “दो सौ
पचास रूपए” शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (साठवां संशोधन) अधधतनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा (20-12-1988 से) परं तुक का
लोप ककया गया|
279. ''शद्
ु ध आगम'' आर्द की गणना- (1) इस अध्याय के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में ''शद्
ु ध आगम'' से
ककसी कर या शल्
ु क के संबध
ं में उसका वह आगम अलभप्रेत है जो उसके संग्रहण के खचों को घटाकर आए
और उन उपबंधों के प्रयोजनों के ललए ककसी क्षेत्र में या उससे प्राप्त हुए माने जा सकने वाले ककसी कर या
शल्
ु क का अथवा ककसी कर या शल् ु क के ककसी भाग का शद् ु ध आगम भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक
द्वारा अलभतनक्श्चत और प्रमाणणत ककया जाएगा और उसका प्रमाणपत्र अंततम होगा।
(2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके और इस अध्याय के ककसी अन्य अलभव्यक्त उपबंध के अधीन
रहते हुए, ककसी ऐसी दशा में , क्जसमें इस भाग के अधीन ककसी शल्
ु क या कर का आगम ककसी राज्य को
सौंप हदया जाता है या सौंप हदया जाए, संसद् द्वारा बनाई गई ववधध या राष्रपतत का कोई आदे श उस
रीतत का, क्जससे आगम की गणना की जानी है , उस समय का, क्जससे या क्जसमें और उस रीतत का, क्जससे
कोई संदाय ककए जाने हैं, एक ववर्त्ीय वषत और दस
ू रे ववर्त्ीय वषत में समायोजन करने का और अन्य
आनष
ु धं गक या सहायक ववषयों का उपबंध कर सकेगा।
280. विि आयोग- (1) राष्रपतत, इस संववधान के प्रारं भ से दो वषत के भीतर और तत्पश्चात ् प्रत्येक
पाँच वें वषत की समाक्प्त पर या ऐसे पव
ू त
त र समय पर, क्जसे राष्रपतत आवश्यक समझता है , आदे श द्वारा,
ववर्त् आयोग का गठन करे गा जो राष्रपतत द्वारा तनयक्
ु त ककए जाने वाले एक अध्यक्ष और चार अन्य
सदस्यों से लमलकर बनेगा।
(2) संसद् ववधध द्वारा, उन अहतताओं का, जो आयोग के सदस्यों के रूप में तनयक्ु क्त के ललए
अपेक्षक्षत होंगी और उस रीतत का, क्जससे उनका चयन ककया जाएगा, अवधारण कर सकेगी।
(3) आयोग का यह कततव्य होगा कक वह-

156
(क) संघ और राज्यों के बीच करों के शद्
ु ध आगमों के, जो इस अध्याय के अधीन उनमें ववभाक्जत
ककए जाने हैं या ककए जाएँ, ववतरण के बारे में और राज्यों के बीच ऐसे आगमों के तत्संबध
ं ी भाग के
आबंटन के बारे में;
(ख) भारत की संधचत तनधध में से राज्यों के राजस्व में सहायता अनद
ु ान को शालसत करने वाले
लसद्धांतों के बारे में;
[(खख) राज्य के ववर्त् आयोग द्वारा की गई लसफाररशों के आधार पर राज्य में पंचायतों के
1

संसाधनों की अनप
ु तू तत के ललए ककसी राज्य की संधचत तनधध के संवधतन क एललया आवश्यक अध्यप
ु ायों के
बारे में ;]
[(ग)] राज्य के ववर्त् आयोग द्वारा की गई लसफाररशों के आधार पर राज्य में नगरपाललकाओं के
2

संसाधनों की अनप
ु तू तत के ललए ककसी राज्य की संधचत तनधध के संवधतन के ललए आवश्यक अध्यप
ु ायों के
बारे में ;]
_________________
1. संववधान (ततहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (24-4-1993 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चौहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) अंत:स्थावपत|
1
[(घ) सदृ
ु ढ़ ववर्त् के हहत में राष्रपतत द्वारा आयोग को तनहदत ष्ट ककए गए ककसी अन्य ववषय के बारे
; राष्रपतत को लसफाररश करे |
(4) आयोग अपनी प्रकक्रया अवधाररत करे गा और अपने कृत्यों के पालन में उसे ऐसी शक्क्तयां होंगी
जो संसद्, ववधध द्वारा, उसे प्रदान करे |
281. विि आयोग की लसफाररशें- राष्रपतत इस संववधान के उपबंधों के अधीन ववर्त् आयोग द्वारा की
गई प्रत्येक लसफाररश को, उस पर की गई कारत वाई के स्पष्टीकारक ज्ञापन सहहत, संसद् के प्रत्येक सदन
के समक्ष रखवाएगा|
प्रकीणम वििीय उपबंध
282. संघ या राज्य द्िारा अपने राजस्ि के क्रकए जाने िाले व्यय- संघ या राज्य ककसी लोक
प्रयोजन के ललए कोई अनद ु ान इस बात के होते हुए भी दे सकेगा कक वह प्रयोजन ऐसा नहीं है क्जसके
संबधं मे, यथाक्स्थतत, संसद् या उस राज्य का ववधान-मंडल ववधध बना सकता है |
283. संधचत ननधधयो, आकक्स्मकता ननधधयों और लोक लेखाओं में जमा धनरालशयों क्रक अलभरक्षा
आर्द- (1) भारत कक संधचत तनधध और भारत की आकक्स्मकता तनधध की अलभरक्षा, ऐसी तनधधयों में
धनरालशयों के तनकाले जाने, ऐसी तनधधयों में जमा धनरालशयों से लभन्न भारत सरकार द्वारा या उसकी
ओर से प्राप्त लोक धनरालशयों की अलभरक्षा, भारत के लोक लेखे में उनके संदाय और ऐसे लेखे से
धनरालशयों के तनकाले जाने का तथा पव
ू ोक्त ववषयों से संबधं धत या उनके आनष
ु धं गक अन्य सभी ववषयों
का ववतनयमन संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा ककया जाएगा और जब तक इस तनलमर्त् इस प्रकार
उपबंध नहीं ककया जाता है तब तक राष्रपतत द्वारा बनाए गए तनयमों द्वारा ककया जाएगा|
(2) राज्य की संधचत तनधध और राज्य की आकक्स्मकता तनधध की अलभरक्षा, ऐसी तनधधयों में
धनरालशयों के संदाय, उनसे धनरालशयों के तनकाले जाने, ऐसी तनधधयों में जमा धनरालशयों से लभन्न राज्य
की सरकार या उसकी ओर से प्राप्त लोक धनरालशयों की अलभरक्षा, राज्य के लोक लेखे में उनके संदाय
और ऐसे लेखे से धनरालशयों के तनकाले जाने का तथा पव
ू ोक्त ववषयों से संबधं धत या उनके आनष
ु धं गक

157
अन्य सभी ववषयों का ववतनयमन राज्य के ववधान-,मंडल द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा ककया जाएगा और
जब तक इस तनलमर्त् इस प्रकार उपबंध नहीं ककया जाता है तब तक राज्य के राज्यपाल 2[***] द्वारा
बनाए गई तनयमों द्वारा ककया जाएगा|
284. लोक सेिकों और न्यायालयों द्िारा प्राप्त िादकिामओं की जमा रालशयों और अन्य
धनरालशयों की अलभरक्षा- ऐसी सभी धनरालशयां, जो-
(क) यथाक्स्थतत, भारत सरकार या राज्य की सरकार द्वारा जट
ु ाए गए या प्राप्त राजस्व या लोक
धनरालशयों से लभन्न है , और संघ या ककसी राज्य के कायतकलाप के संबध
ं में तनयोक्जत ककसी अधधकारी
को उसकी उस है लसयत में , या
__________________
1. संववधान (चौहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) उपखंड (ग)
को उपखंड (घ) के रूप में पुन:अक्षरांककत ककया गया|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|
(ख) ककसी वाद, ववषय, लेखे या व्यक्क्तयों के नाम में जमा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर ककसी
न्यायालय को,
प्राप्त होती है या उसके पास तनक्षक्षप्त की जाती है , यथाक्स्थतत, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक
लेखे में जमा की जाएगी|
285. संघ की संपवि को राज्य के कराधान से छूट- (1) वहाँ तक के लसवाय, जहाँ तक संसद् ववधध
द्वारा अन्यथा उपबंध करे , ककसी राज्य द्वारा या राज्य के भीतर ककसी प्राधधकारी द्वारा अधधरोवपत सभी
करों से संघ की संपवर्त् को छूट होगी।
(2) जब तक संसद् ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक खंड (1) की कोई बात ककसी राज्य
के भीतर ककसी प्राधधकारी को संघ की ककसी संपवर्त् पर कोई ऐसा कर, क्जसका दातयत्व इस संववधान के
प्रारं भ से ठीक पहले, ऐसी संपवर्त् पर था या माना जाता था, उद्गह
ृ ीत करने से तब तक नहीं रोकेगी जब तक
वह कर उस राज्य में उद्गहृ ीत होता रहता है ।
286. माल के क्रय या विक्रय पर कर के अधधरोपण के बारे में ननबंधन - (1) राज्य की कोई ववधध,
माल के क्रय या ववक्रय पर, जहाँ ऐसा क्रय या ववक्रय-
(क) राज्य के बाहर, या
(ख) भारत के राज्यक्षेत्र में माल के आयात या उसके बाहर तनयातत के दौरान,
होता है वहाँ, कोई कर अधधरोवपत नहीं करे गी या अधधरोवपत करना प्राधधकृत नहीं करे गी।
1
[* * * * *]
2
[(2) संसद्, यह अवधाररत करने के ललए कक माल का क्रय या ववक्रय खंड (1) में वणणतत रीततयों में
से ककसी रीतत से कब होता है ववधध द्वारा, लसद्धांत बना सकेगी।
3
[(3) जहाँ तक ककसी राज्य की कोई ववधध-
(क) ऐसे माल के, जो संसद् द्वारा ववधध द्वारा अंतरराक्ज्यक व्यापार या वाणणज्य में ववशेष महत्व
का माल घोवषत ककया गया है , क्रय या ववक्रय पर कोई कर अधधरोवपत करती है या कर का
अधधरोपण प्राधधकृत करती है ; या

158
(ख) माल के क्रय या ववक्रय पर ऐसा कर अधधरोवपत करती है या ऐसे कर का अधधरोपण प्राधधकृत
करती है , जो अनच्
ु छे द 366 के खंड (29क) के उपखंड (ख), उपखंड (ग) या उपखंड (घ) में तनहदतष्ट
प्रकृतत का कर है ,
वहाँ तक वह ववधध, उस कर के उद्ग्रहण की पद्धतत, दरों और अन्य प्रसंगततयों के संबध
ं में ऐसे तनबंधनों
और शतों के अधीन होगी जो संसद् ववधध द्वारा ववतनहदत ष्ट करे ।]]
__________________
1. संववधान (छठा संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा खंड (1) के स्पष्टीकरण का लोप
ककया गया|
2. संववधान (छठा संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 4 द्वारा खंड (2) और खंड (3) के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
3. संववधान (तछयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1982 की धारा 3 द्वारा खंड (3) के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
287. विद्यत
ु पर करों से छूट- वहाँ तक के लसवाय, जहाँ तक संसद् ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध करे ,
ककसी राज्य की कोई ववधध (ककसी सरकार द्वारा या अन्य व्यक्क्तयों द्वारा उत्पाहदत) ववद्यत
ु के उपभोग
या ववक्रय पर क्जसका –
(क) भारत सरकार द्वारा उपभोग ककया जाता है या भारत सरकार द्वारा उपभोग ककए जाने के
ललए उस सरकार को ववक्रय ककया जाता है , या
(ख) ककसी रे ल के तनमातण, बनाए रखने या चलाने में भारत सरकार या ककसी रे ल कंपनी द्वारा, जो
उस रे ल को चलाती है , उपभोग ककया जाता है अथवा ककसी रे ल के तनमातण, बनाए रखने या चलाने
में उपभोग के ललए उस सरकार या ककसी ऐसी रे ल कंपनी को ववक्रय ककया जाता है,
कोई कर अधधरोवपत नहीं करे गी या कर का अधधरोपण प्राधधकृत नहीं करे गी और ववद्यत
ु के ववक्रय पर
कोई कर अधधरोवपत करने या कर का अधधरोपण प्राधधकृत करने वाली कोई ऐसी ववधध यह सतु नक्श्चत
करे गी कक भारत सरकार द्वारा उपभोग ककए जाने के ललए उस सरकार को, या ककसी रे ल के तनमातण,
बनाए रखने या चलाने में उपभोग के ललए यथापव
ू ोक्त ककसी रे ल कंपनी को ववक्रय की गई ववद्यत
ु की
कीमत, उस कीमत से जो ववद्यत
ु का प्रचुर मात्रा में उपभोग करने वाले अन्य उपभोक्ताओं से ली जाती है ,
उतनी कम होगी क्जतनी कर की रकम है ।
288. जल या विद्यत
ु के संबध
ं में राज्यों द्िारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट- (1) वहाँ तक के
लसवाय जहाँ तक राष्रपतत आदे श द्वारा अन्यथा उपबंध करे , इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले ककसी
राज्य की कोई प्रवर्त्
ृ ववधध ककसी जल या ववद्यत
ु के संबध
ं में , जो ककसी अंतरराक्ज्यक नदी या नदी-दन
ू के
ववतनयमन या ववकास के ललए ककसी ववद्यमान ववधध द्वारा या संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा
स्थावपत ककसी प्राधधकारी द्वारा संधचत, उत्पाहदत, उपभक्
ु त, ववतररत या ववक्रीत की जाती है , कोई कर
अधधरोवपत नहीं करे गी या कर का अधधरोपण प्राधधकृत नहीं करे गी।
स्पष्ट्टीकरण - इस खंड में , ''ककसी राज्य की कोई प्रवर्त्
ृ ववधध'' पद के अंतगतत ककसी राज्य की ऐसी
ववधध होगी जो इस संववधान के प्रारं भ से पहले पाररत या बनाई गई है और जो पहले ही तनरलसत नहीं कर
दी गई है , चाहे वह या उसके कोई भाग उस समय त्रबल्कुल या ववलशष्ट क्षेत्रों में प्रवततन में न हों।
(2) ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, खंड (1) में वणणतत कोई कर अधधरोवपत कर सकेगा
या ऐसे कर का अधधरोपण प्राधधकृत कर सकेगा, ककन्तु ऐसी ककसी ववधध का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा

159
जब तक उसे राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखे जाने के पश्चात ् उसकी अनम
ु तत न लमल गई हो
और यहद ऐसी कोई ववधध ऐसे करों की दरों और अन्य प्रसंगततयों को ककसी प्राधधकारी द्वारा, उस ववधध के
अधीन बनाए जाने वाले तनयमों या आदे शों द्वारा, तनयत ककए जाने का उपबंध करती है तो वह ववधध ऐसे
ककसी तनयम या आदे श के बनाने के ललए राष्रपतत की पव
ू त सहमतत अलभप्राप्त ककए जाने का उपबंध
करे गी।
289. राज्यों की संपवि और आय को संघ के कराधान से छूट--(1) ककसी राज्य की संपवर्त् और आय
को संघ के करों से छूट होगी।
(2) खंड (1) की कोई बात संघ को ककसी राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से ककए जाने वाले
ककसी प्रकार के व्यापार या कारबार के संबध
ं में अथवा उससे संबधं धत ककन्हीं कक्रयाओं के संबध
ं में अथवा
ऐसे व्यापार या कारबार के प्रयोजनों के ललए प्रयक्
ु त या अधधमक्
ु त ककसी संपवर्त् के संबध
ं में अथवा उसके
संबध
ं में प्रोद्भत
ू या उद्भत
ू ककसी आय के बारे में , ककसी कर को ऐसी मात्रा तक, यहद कोई हो, क्जसका
संसद् ववधध द्वारा उपबंध करे , अधधरोवपत करने या कर का अधधरोपण प्राधधकृत करने से नहीं रोकेगी।
(3) खंड (2) की कोई बात ककसी ऐसे व्यापार या कारबार अथवा व्यापार या कारबार के ककसी ऐसे
वगत को लागू नहीं होगी क्जसके बारे में संसद् ववधध द्वारा घोषणा करे कक वह सरकार के मामल
ू ी कृत्यों
का आनष
ु धं गक है ।
290. कुछ व्ययों और पें शनों के संबध
ं में समायोजन- जहाँ इस संववधान के उपबंधों के अधीन ककसी
न्यायालय या आयोग के व्यय अथवा ककसी व्यक्क्त को या उसके संबध
ं में , क्जसने इस संववधान के प्रारं भ
से पहले भारत में क्राउन के अधीन अथवा ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् संघ के या ककसी राज्य के कायतकलाप के
संबध
ं में सेवा की है , संदेय पें शन भारत की संधचत तनधध या ककसी राज्य की संधचत तनधध पर भाररत है
वहाँ, यहद –
(क) भारत की संधचत तनधध पर भाररत होने की दशा में , वह न्यायालय या आयोग ककसी राज्य की
पथ
ृ क् आवश्यकताओं में से ककसी की पतू तत करता है या उस व्यक्क्त ने ककसी राज्य के कायतकलाप
के संबध
ं में पण
ू त
त ः या भागतः सेवा की है , या
(ख) ककसी राज्य की संधचत तनधध पर भाररत होने की दशा में , वह न्यायालय या आयोग संघ की
या अन्य राज्य की पथ
ृ क् आवश्यकताओं में से ककसी की पतू तत करता है या उस व्यक्क्त ने संघ या
अन्य राज्य के कायतकलाप के संबध
ं में पण
ू त
त ः या भागतः सेवा की है ,
तो, यथाक्स्थतत, उस राज्य की संधचत तनधध पर अथवा, भारत की संधचत तनधध अथवा अन्य राज्य की
संधचत तनधध पर, व्यय या पें शन के संबध
ं में उतना अंशदान, क्जतना करार पाया जाए या करार के अभाव
में , क्जतना भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत द्वारा तनयक्
ु त मध्यस्थ अवधाररत करे , भाररत ककया जाएगा और
उसका उस तनधध में से संदाय ककया जाएगा।
1
[290-क. कुछ दे िस्िम ् ननधधयों को िावषमक संदाय- प्रत्येक वषत तछयालीस लाख पचास हजार रुपए
की रालश केरल राज्य की संधचत तनधध पर भाररत की जाएगी और उस तनधध में से ततरूवाँकुर दे वस्वम ्
तनधध को संदर्त् की जाएगी और प्रत्येक वषत तेरह लाख पचास हजार रुपए की रालश 2[तलमलनाडु] राज्य की
संधचत तनधध पर भाररत की जाएगी और उस तनधध में से 1 नवंबर, 1956 को उस राज्य को ततरुवाँकुर-
कोचीन राज्य से अंतररत राज्यक्षेत्रों के हहंद ू मंहदरों और पववत्र स्थानों के अनरु क्षण के ललए उस राज्य में
स्थावपत दे वस्वम ् तनधध को संदर्त् की जाएगी।]
__________________

160
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 19 द्वारा अंतःस्थावपत।
2. मद्रास राज्य (नाम पररवततन) अधधतनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से)
मद्रास के स्थान पर प्रततस्थावपत।
291. [शासकों की ननजी थैली की रालश।] - संववधान (छब्बीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा
2 तनरलसत।
अध्याय 2
उधार लेना
292. भारत सरकार द्िारा उधार लेना- संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार, भारत की संधचत
तनधध की प्रततभतू त पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यहद कोई हों, क्जन्हें संसद् समय-समय पर ववधध द्वारा
तनयत करे , उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यहद कोई हों, क्जन्हें इस प्रकार तनयत ककया जाए,
प्रत्याभतू त दे ने तक है ।
293. राज्यों द्िारा उधार लेना- (1) इस अनच्
ु छे द के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य की
कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार उस राज्य की संधचत तनधध की प्रततभतू त पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यहद
कोई हों, क्जन्हें ऐसे राज्य का ववधान-मंडल समय-समय पर ववधध द्वारा तनयत करे , भारत के राज्यक्षेत्र के
भीतर उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यहद कोई हों, क्जन्हें इस प्रकार तनयत ककया जाए,
प्रत्याभतू त दे ने तक है ।
(2) भारत सरकार, ऐसी शतों के अधीन रहते हुए, जो संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या
उसके अधीन अधधकधथत की जाएँ, ककसी राज्य को उधार दे सकेगी या जहाँ तक अनच् ु छे द 292 के अधीन
तनयत ककन्हीं सीमाओं का उल्लंघन नहीं होता है वहाँ तक ककसी ऐसे राज्य द्वारा ललए गए उधारों के संबध

में प्रत्याभतू त दे सकेगी और ऐसे उधार दे ने के प्रयोजन के ललए अपेक्षक्षत रालशयाँ भारत की संधचत तनधध पर
भाररत की जाएँगी।
(3) यहद ककसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसकी पव
ू व
त ती सरकार ने उस राज्य को
हदया था अथवा क्जसके संबध
ं में भारत सरकार ने या उसकी पव
ू व
त ती सरकार ने प्रत्याभतू त दी थी, कोई भाग
अभी भी बकाया है तो वह राज्य, भारत सरकार की सहमतत के त्रबना कोई उधार नहीं ले सकेगा।
(4) खंड (3) के अधीन सहमतत उन शतों के अधीन, यहद कोई हो, दी जा सकेगी क्जन्हें भारत
सरकार अधधरोवपत करना ठीक समझे।
अध्याय 3
संपवि, संविदाएं, अधधकार, दानयत्ि, बाध्यताएं और िाद
294. कुछ दशाओं में संपवि, आक्स्तयों, अधधकारों, दानयत्िों और बाध्यताओं का उिराधधकार — इस
संववधान के प्रारं भ से ही-
(क) जो संपवर्त् और आक्स्तयाँ ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले भारत डोलमतनयन की सरकार के प्रयोजनों
के ललए हहज मेजेस्टी में तनहहत थीं और जो संपवर्त् और आक्स्तयाँ ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले प्रत्येक
राज्यपाल वाले प्रांत की सरकार के प्रयोजनों के ललए हहज मेजेस्टी में तनहहत थीं, वे सभी इस
संववधान के प्रारं भ से पहले पाककस्तान डोलमतनयन के या पक्श्चमी बंगाल, पव
ू ी बंगाल, पक्श्चमी
पंजाब और पव
ू ी पंजाब प्रांतों के सज
ृ न के कारण ककए गए या ककए जाने वाले ककसी समायोजन के
अधीन रहते हुए क्रमशः संघ और तत्स्थानी राज्य में तनहहत होंगी; और

161
(ख) जो अधधकार, दातयत्व और बाध्यताएँ भारत डोलमतनयन की सरकार की और प्रत्येक राज्यपाल
वाले प्रांत की सरकार की थीं, चाहे वे ककसी संववदा से या अन्यथा उद्भत
ू हुई हों, वे सभी इस
संववधान के प्रारं भ से पहले पाककस्तान डोलमतनयन के या पक्श्चमी बंगाल, पव
ू ी बंगाल, पक्श्चमी
पंजाब और पव
ू ी पंजाब प्रांतों के सज
ृ न के कारण ककए गए या ककए जाने वाले ककसी समायोजन के
अधीन रहते हुए क्रमशः भारत सरकार और प्रत्येक तत्स्थानी राज्य की सरकार के अधधकार,
दातयत्व और बाध्यताएँ होंगी।
295. अन्य दशाओं में संपवि, आक्स्तयों, अधधकारों, दानयत्िों और बाध्यताओं का उिराधधकार - (1)
इस संववधान के प्रारं भ से ही –
(क) जो संपवर्त् और आक्स्तयाँ ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख में ववतनहदतष्ट
राज्य के तत्स्थानी ककसी दे शी राज्य में तनहहत थीं, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत
सरकार इस तनलमर्त् उस राज्य की सरकार से करे , संघ में तनहहत होंगी यहद वे प्रयोजन क्जनके
ललए ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले ऐसी संपवर्त् और आक्स्तयाँ धाररत थीं, तत्पश्चात ् संघ सच
ू ी में प्रगणणत
ककसी ववषय से संबधं धत संघ के प्रयोजन हों, और
(ख) जो अधधकार, दातयत्व और बाध्यताएँ पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख में ववतनहदत ष्ट राज्य के
तत्स्थानी ककसी दे शी राज्य की सरकार की थीं, चाहे वे ककसी संववदा से या अन्यथा उद्भत
ू हुई हों,
वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस तनलमर्त् उस राज्य की सरकार से करे ,
भारत सरकार के अधधकार, दातयत्व और बाध्यताएँ होंगी यहद वे प्रयोजन, क्जनके ललए ऐसे प्रारं भ से
ठीक पहले ऐसे अधधकार अक्जतत ककए गए थे अथवा ऐसे दातयत्व या बाध्यताएँ उपगत की गई थीं,
तत्पश्चात ् संघ सच
ू ी में प्रगणणत ककसी ववषय से संबधं धत भारत सरकार के प्रयोजन हों।
(2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके अधीन रहते हुए, पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख में ववतनहदत ष्ट प्रत्येक
राज्य की सरकार, उन सभी संपवर्त् और आक्स्तयों तथा उन सभी अधधकारों, दातयत्वों और बाध्यताओं के
संबध
ं में , चाहे वे ककसी संववदा से या अन्यथा उद्भत ू हुई हों, जो खंड (1) में तनहदत ष्ट से लभन्न हैं, इस
संववधान के प्रारं भ से ही तत्स्थानी दे शी राज्य की सरकार की उर्त्राधधकारी होगी।
296. राजगामी या व्यपगत या स्िामीविहीन होने से प्रोद्भत
ू संपवि- इसमें इसके पश्चात ् यथा
उपबंधधत के अधीन रहते हुए, भारत के राज्यक्षेत्रों में कोई संपवर्त् जो यहद यह संववधान प्रवततन में नहीं
आया होता तो राजगामी या व्यपगत होने से या अधधकारवान ् स्वामी के अभाव में स्वामीववहीन होने से,
यथाक्स्थतत, हहज मेजेस्टी को या ककसी दे शी राज्य के शासक को प्रोद्भत ू हुई होती, यहद वह संपवर्त् ककसी
राज्य में क्स्थत है तो ऐसे राज्य में और ककसी अन्य दशा में संघ में तनहहत होगी :
परं तु कोई संपवर्त्, जो उस तारीख को जब वह इस प्रकार हहज मेजेस्टी को या दे शी राज्य के शासक
को प्रोद्भत
ू हुई होती, भारत सरकार के या ककसी राज्य की सरकार के कब्जे या तनयंत्रण में थी तब, यहद वे
प्रयोजन, क्जनके ललए वह उस समय प्रयक् ु त या धाररत थीं, संघ के थे तो वह संघ में या ककसी राज्य के थे
तो वह उस राज्य में तनहहत होगी।
स्पष्ट्टीकरण - इस अनच्
ु छे द में , ''शासक'' और ''दे शी राज्य'' पदों के वही अथत हैं जो अनच्
ु छे द 363 में
हैं।
1
[297. राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्िीपीय मग्रतट भलू म में क्स्थत मल्
ू यिान चीजों और अनन्य
आधथमक क्षेत्र के संपवि स्रोतों का संघ में ननर्हत होना - (1) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय

162
मग्नतट भलू म या अनन्य आधथतक क्षेत्र में समद्र
ु के नीचे की सभी भलू म, खतनज और अन्य मल्
ू यवान चीजें
संघ में तनहहत होंगी और संघ के प्रयोजनों के ललए धारण की जाएँगी।
(2) भारत के अनन्य आधथतक क्षेत्र के अन्य सभी संपवर्त् स्रोत भी संघ में तनहहत होंगे और संघ के
प्रयोजनों के ललए धारण ककए जाएँगे।
(3) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मग्रतट भलू म, अनन्य आधथतक क्षेत्र और अन्य
सामहु द्रक क्षेत्रों की सीमाएँ वे होंगी जो संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन समय-समय
पर ववतनहदतष्ट की जाएँ।
2
[298. व्यापार करने आर्द की शक्तत - संघ की और प्रत्येक राज्य की कायतपाललका शक्क्त का
ववस्तार, व्यापार या कारबार करने और ककसी प्रयोजन के ललए संपवर्त् का अजतन, धारण और व्ययन तथा
संववदा करने पर, भी होगा:
परं तु –
(क) जहाँ तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है क्जसके संबध
ं में संसद् ववधध
बना सकती है वहाँ तक संघ की उक्त कायतपाललका शक्क्त प्रत्येक राज्य में उस राज्य के ववधान के
अधीन होगी ; और
(ख) जहाँ तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है क्जसके संबध
ं में राज्य का
ववधान-मंडल ववधध बना सकता है वहाँ तक प्रत्येक राज्य की उक्त कायतपाललका शक्क्त संसद् के
ववधान के अधीन होगी। ]
299. संविदाएाँ - (1) संघ की या राज्य की कायतपाललका शक्क्त का प्रयोग करते हुए की गई सभी
संववदाएँ, यथाक्स्थतत, राष्रपतत द्वारा या उस राज्य के राज्यपाल 3[***] द्वारा की गई कही जाएँगी और वे
सभी संववदाएँ और संपवर्त् संबध
ं ी हस्तांतरण-पत्र, जो उस शक्क्त का प्रयोग करते हुए ककए जाएँ, राष्रपतत या
राज्यपाल 2[***] की ओर से ऐसे व्यक्क्तयों द्वारा और रीतत से तनष्पाहदत ककए जाएँगे क्जसे वह तनहदत ष्ट
या प्राधधकृत करे ।
(2) राष्रपतत या ककसी राज्य का राज्यपाल 3[***] इस संववधान के प्रयोजनों के ललए या भारत
सरकार के संबध
ं में इससे पव
ू त प्रवर्त्
ृ ककसी अधधतनयलमतत के प्रयोजनों के ललए की गई या तनष्पाहदत की
गई ककसी संववदा या हस्तांतरण-पत्र के संबध
ं में वैयक्क्तक रूप से दायी नहीं होगा या उनमें से ककसी की
ओर से ऐसी संववदा या हस्तांतरण-पत्र करने या तनष्पाहदत करने वाला व्यक्क्त उसके संबध
ं में वैयक्क्तक
रूप से दायी नहीं होगा।
__________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा (27-5*1976 से) अनुच्छे द
297 के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 20 द्वारा अनुच्छे द 298 के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
3. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों
का लोप ककया गया।

300. िाद और कायमिार्हयााँ- (1) भारत सरकार भारत संघ के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर
वाद लाया जा सकेगा और ककसी राज्य की सरकार उस राज्य के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद
लाया जा सकेगा और ऐसे उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो इस संविधान द्िारा प्रदि शक्ततयों के आधार पर

163
अधधतनयलमत संसद् के या ऐसे राज्य के ववधान-मंडल के अधधतनयम द्वारा ककए जाएँ, वे अपने-अपने
कायतकलाप के संबध
ं में उसी प्रकार वाद ला सकेंगे या उन पर उसी प्रकार वाद लाया जा सकेगा क्जस
प्रकार, यहद यह संववधान अधधतनयलमत नहीं ककया गया होता तो, भारत डोलमतनयन और तत्स्थानी प्रांत या
तत्स्थानी दे शी राज्य वाद ला सकते थे या उन पर वाद लाया जा सकता था।
(2) यहद इस संववधान के प्रारं भ पर-
(क) कोई ऐसी ववधधक कायतवाहहयाँ लंत्रबत हैं क्जनमें भारत डोलमतनयन एक पक्षकार है तो उन
कायतवाहहयों में उस डोलमतनयन के स्थान पर भारत संघ प्रततस्थावपत ककया गया समझा
जाएगा; और
(ख) कोई ऐसी ववधधक कायतवाहहयाँ लंत्रबत हैं क्जनमें कोई प्रांत या कोई दे शी राज्य एक पक्षकार है
तो उन कायतवाहहयों में उस प्रांत या दे शी राज्य के स्थान पर तत्स्थानी राज्य प्रततस्थावपत
ककया गया समझा जाएगा।
1[अध्याय 4
संपवि का अधधकार
300-क. विधध के प्राधधकार के त्रबना व्यक्ततयों को संपवि से िंधचत न क्रकया जाना- ककसी व्यक्क्त
को उसकी संपवर्त् से ववधध के प्राधधकार से ही वंधचत ककया जाएगा, अन्यथा नहीं।]
भाग 13
भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापर, िाणणज्य और समागम
301. व्यापार, िाणणज्य और समागम की स्ितंत्रता - इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते
हुए, भारत के राज्यक्षेत्र में सवतत्र व्यापार, वाणणज्य और समागम अबाध होगा।
__________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से)
अंत:स्थावपत|
302. व्यापार, िाणणज्य और समागम पर ननबंधन अधधरोवपत करने की संसद् की शक्तत - संसद्
ववधध द्वारा, एक राज्य और दस
ू रे राज्य के बीच या भारत के राज्यक्षेत्र के ककसी भाग के भीतर व्यापार,
वाणणज्य या समागम की स्वतंत्रता पर ऐसे तनबंधन अधधरोवपत कर सकेगी जो लोक हहत में अपेक्षक्षत हों।
303. व्यापार और िाणणज्य के संबध
ं में संघ और राज्यों की विधायी शक्ततयों पर ननबंधन - (1)
अनच्
ु छे द 302 में ककसी बात के होते हुए भी, सातवीं अनस ु च
ू ी की सधू चयों में से ककसी में व्यापार और
वाणणज्य संबधं ी ककसी प्रववक्ष्ट के आधार पर, संसद् को या राज्य के ववधान-मंडल को, कोई ऐसी ववधध बनाने
की शक्क्त नहीं होगी जो एक राज्य को दस
ू रे राज्य से अधधमान दे ती है या हदया जाना प्राधधकृत करती है
अथवा एक राज्य और दस
ू रे राज्य के बीच कोई ववभेद करती है या ककया जाना प्राधधकृत करती है ।
(2) खंड (1) की कोई बात संसद् को कोई ऐसी ववधध बनाने से नहीं रोकेगी जो कोई ऐसा अधधमान
दे ती है या हदया जाना प्राधधकृत करती है अथवा कोई ऐसा ववभेद करती है या ककया जाना प्राधधकृत करती
है , यहद ऐसी ववधध द्वारा यह घोवषत ककया जाता है कक भारत के राज्यक्षेत्र के ककसी भाग में माल की कमी
से उत्पन्न ककसी क्स्थतत से तनपटने के प्रयोजन के ललए ऐसा करना आवश्यक है ।
304. राज्यों के बीच व्यापार, िाणणज्य और समागम पर ननबंधन - अनच्
ु छे द 301 या अनच्
ु छे द 303
में ककसी बात के होते हुए भी, ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा,-

164
(क) अन्य राज्यों 1[या संघ राज्यक्षेत्रों] से आयात ककए गए माल पर कोई ऐसा कर अधधरोवपत कर
सकेगा जो उस राज्य में ववतनलमतत या उत्पाहदत वैसे ही माल पर लगता है , ककन्तु इस प्रकार कक उससे इस
तरह आयात ककए गए माल और ऐसे ववतनलमतत या उत्पाहदत माल के बीच कोई ववभेद न हो; या
(ख) उस राज्य के साथ या उसके भीतर व्यापार, वाणणज्य और समागम की स्वतंत्रता पर ऐसे
यक्ु क्तयक्
ु त तनबंधन अधधरोवपत कर सकेगा जो लोक हहत में अपेक्षक्षत हों :
परं तु खंड (ख) के प्रयोजनों के ललए कोई ववधेयक या संशोधन राष्रपतत की पव
ू त मंजूरी के त्रबना
ककसी राज्य के ववधान-मंडल में परु ःस्थावपत या प्रस्ताववत नहीं ककया जाएगा।
2
[305. विद्यमान विधधयों और राज्य के एकाधधकार का उपबंध करने िाली विधधयों की व्यािवृ ि -
वहाँ तक के लसवाय जहाँ तक राष्रपतत आदे श द्वारा अन्यथा तनदे श दे अनच्
ु छे द 301 और अनच्
ु छे द 303 की
कोई बात ककसी ववद्यमान ववधध के उपबंधों पर कोई प्रभाव नहीं डालेगी और अनच्
ु छे द 301 की कोई बात
संववधान (चौथा संशोधन) अधधतनयम, 1955 के प्रारं भ से पहले बनाई गई ककसी ववधध के प्रवततन पर वहाँ
तक कोई प्रभाव नहीं डालेगी जहाँ तक वह ववधध ककसी ऐसे ववषय से संबधं धत है , जो अनच्
ु छे द 19 के खंड
(6) के उपखंड (i) में तनहदतष्ट है या वह ववधध ऐसे ककसी ववषय के संबध
ं में , जो अनच्
ु छे द 19 के खंड (6) के
उपखंड (ii) में तनहदत ष्ट है , ववधध बनाने से संसद् या ककसी राज्य के ववधान-मंडल को नहीं रोकेगी।]
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थावपत।
2. संववधान (चौथा संशोधन) अधधतनयम, 1955 की धारा 4 द्वारा अनुच्छे द 305 के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
306. [पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख के कुछ राज्यों की व्यापार और िाणणज्य पर ननबंधनों के
अधधरोपण की शक्तत] - संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु च
ू ी द्वारा
तनरलसत|
307. अनच्
ु छे द 301 से अनच्
ु छे द 304 के प्रयोजनों को कायामक्न्ित करने के ललए प्राधधकारी की
ननयक्ु तत - संसद् ववधध द्वारा, ऐसे प्राधधकारी की तनयक्ु क्त कर सकेगी जो वह अनच्
ु छे द 301, अनच्
ु छे द 302,
अनच्
ु छे द 303 और अनच्
ु छे द 304 के प्रयोजनों को कायातक्न्वत करने के ललए समधु चत समझे और इस प्रकार
तनयक्
ु त प्राधधकारी को ऐसी शक्क्तयां प्रदान कर सकेगी और ऐसे कततव्य सौंप सकेगी जो वह आवश्यक
समझे।
भाग 14
संघ और राज्यों के अधीन सेिाएाँ
अध्याय 1
सेिाएं
308. ननिमचन - इस भाग में, जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो, ''राज्य'' पर 1[के अंतगतत
जम्म-ू कश्मीर राज्य नहीं है ।]
309. संघ या राज्य की सेिा करने िाले व्यक्ततयों की भती और सेिा की शतें - इस संववधान के
उपबंधों के अधीन रहते हुए, समधु चत ववधान-मंडल के अधधतनयम संघ या ककसी राज्य के कायतकलाप से
संबधं धत लोक सेवाओं और पदों के ललए भती का और तनयक् ु त व्यक्क्तयों की सेवा की शतों का ववतनयमन
कर सकेंगे:

165
` परं तु जब तक इस अनच्
ु छे द के अधीन समधु चत ववधान-मंडल के अधधतनयम द्वारा या उसके
अधीन इस तनलमर्त् उपबंध नहीं ककया जाता है तब तक, यथाक्स्थतत, संघ के कायतकलाप से संबधं धत सेवाओं
और पदों की दशा में राष्रपतत या ऐसा व्यक्क्त क्जसे वह तनहदत ष्ट करे और राज्य के कायतकलाप से संबधं धत
सेवाओं और पदों की दशा में राज्य का राज्यपाल 2[***] या ऐसा व्यक्क्त क्जसे वह तनहदत ष्ट करे , ऐसी सेवाओं
और पदों के ललए भती का और तनयक्
ु त व्यक्क्तयों की सेवा की शतों का ववतनयमन करने वाले तनयम
बनाने के ललए सक्षम होगा और इस प्रकार बनाए गए तनयम ककसी ऐसे अधधतनयम के उपबंधों के अधीन
रहते हुए प्रभावी होंगे।
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''प्रथम अनुसूची के
भाग क या भाग ख में ववतनहदत ष्ट राज्य अलभप्रेत है '' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख''
शद्बों का लोप ककया गया।

310. संघ या राज्य की सेिा करने िाले व्यक्ततयों की पदािधध - (1) इस संववधान द्वारा अलभव्यक्त
रूप से यथा उपबंधधत के लसवाय, प्रत्येक व्यक्क्त जो रक्षा सेवा का या संघ की लसववल सेवा का या अणखल
भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा रक्षा से संबधं धत कोई पद या संघ के अधीन कोई लसववल पद धारण
करता है , राष्रपतत के प्रसादपयंत पद धारण करता है और प्रत्येक व्यक्क्त जो ककसी राज्य की लसववल सेवा
का सदस्य है या राज्य के अधीन कोई लसववल पद धारण करता है , उस राज्य के राज्यपाल 1[***] के
प्रसादपयंत पद धारण करता है ।
(2) इस बात के होते हुए भी कक संघ या ककसी राज्य के अधीन लसववल पद धारण करने वाला
व्यक्क्त, यथाक्स्थतत, राष्रपतत या राज्य के राज्यपाल 2[***] के प्रसादपयंत पद धारण करता है , कोई संववदा
क्जसके अधीन कोई व्यक्क्त जो रक्षा सेवा का या अणखल भारतीय सेवा का या संघ या राज्य की लसववल
सेवा का सदस्य नहीं है , ऐसे ककसी पद को धारण करने के ललए इस संववधान के अधीन तनयक्
ु त ककया
जाता है , उस दशा में , क्जसमें , यथाक्स्थतत, राष्रपतत या राज्यपाल 2[***] ववशेष अहतताओं वाले ककसी व्यक्क्त
के सेवाएँ प्राप्त करने के ललए आवश्यक समझता है , यह उपबंध कर सकेगी कक यहद करार की गई अवधध
की समाक्प्त से पहले वह पद समाप्त कर हदया जाता है या ऐसे कारणों से, जो उसके ककसी अवचार से
संबधं धत नहीं है , उससे वह पद ररक्त करने की अपेक्षा की जाती है तो, उसे प्रततकर हदया जाएगा।
311. संघ या राज्य के अधीन लसविल है लसयत में ननयोक्जत व्यक्ततयों का पदच्यत
ु क्रकया जाना, पद
से हटाया जाना या पंक्तत में अिनत क्रकया जाना - (1) ककसी व्यक्क्त को जो संघ की लसववल सेवा का या
अणखल भारतीय सेवा का या राज्य की लसववल सेवा का संदस्य है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई
लसववल पद धारण करता है , उसकी तनयक्ु क्त करने वाले प्राधधकारी के अधीनस्थ ककसी प्राधधकारी द्वारा
पदच्यत
ु नहीं ककया जाएगा या पद से नहीं हटाया जाएगा।
3
[(2) यथापव
ू ोक्त ककसी व्यक्क्त को, ऐसी जाँच के पश्चात ् ही, क्जसमें उसे अपने ववरुद्ध आरोपों की
सच
ू ना दे दी गई है और उन आरोपों के संबध
ं में 2[***] सन
ु वाई का यक्ु क्तयक्
ु त अवसर दे हदया गया है,
पदच्यत
ु ककया जाएगा या पद से हटाया जाएगा या पंक्क्त में अवनत ककया जाएगा, अन्यथा नहीं]
5
[परं तु जहाँ ऐसी जाँच के पश्चात ् उस पर ऐसी कोई शाक्स्त अधधरोवपत करने की प्रस्थापना है वहाँ
ऐसी शाक्स्त ऐसी जाँच के दौरान हदए गए साक्ष्य के आधार पर अधधरोवपत की जा सकेगी और ऐसे व्यक्क्त
को प्रस्थावपत शाक्स्त के ववषय में अभ्यावेदन करने का अवसर दे ना आवश्यक नहीं होगा :

166
परं तु यह और कक यह खंड वहाँ लागू नहीं होगा:
______________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''यथाक्स्थतत, उस
राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख'' के स्थान पर उपरोक्त रूप में रखा गया।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|
3. संववधान (पन्द्रहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 10 द्वारा खंड (2) और खंड (3) के स्थान
पर प्रततस्थावपत।
4. संववधान (बयालीसवाँ संशोधऩ) अधधतनयम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्दों का
लोप ककया गया।
5. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्दों के
स्थान पर प्रततस्थावपत।
परं तु यह और कक यह खंड वाहन लागू नहीं होगा -]
(क) जहाँ ककसी व्यक्क्त को ऐसे आचरण के आधार पर पदच्यत
ु ककया जाता है या पद से हटाया
जाता है या पंक्क्त में अवनत ककया जाता है क्जसके ललए आपराधधक आरोप पर उसे लसद्धदोष ठहराया
गया है ; या
(ख) जहाँ ककसी व्यक्क्त को पदच्यत
ु करने या पद से हटाने या पंक्क्त में अवनत करने के ललए
सशक्त प्राधधकारी का यह समाधान हो जाता है कक ककसी कारण से, जो उस प्राधधकारी द्वारा लेखबद्ध
ककया जाएगा, यह यक्ु क्तयक्
ु त रूप से साध्य नहीं है कक ऐसी जाँच की जाए; या
(ग) जहाँ, यथाक्स्थतत, राष्रपतत या राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कक राज्य की सरु क्षा के
हहत में यह समीचीन नहीं है कक ऐसी जाँच की जाए।
(3) यहद यथापव
ू ोक्त ककसी व्यक्क्त के संबध
ं में यह प्रश्न उठता है कक खंड (2) में तनहदतष्ट जाँच
करना यक्ु क्तयक्
ु त रूप से साध्य है या नहीं तो उस व्यक्क्त को पदच्यत
ु करने या पद से हटाने या पंक्क्त
में अवनत करने के ललए सशक्त प्राधधकारी का उस पर ववतनश्चय अंततम होगा।
312. अणखल भारतीय सेिाएाँ - (1) 1[भाग 6 के अध्याय 6 या भाग 11] में ककसी बात के होते हुए
भी, यहद राज्य सभा ने उपक्स्थत और मत दे ने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-ततहाई सदस्यों द्वारा
समधथतत संकल्प द्वारा यह घोवषत ककया है कक राष्रीय हहत में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो
संसद, ववधध द्वारा, संघ और राज्यों के ललए सक्म्मललत एक या अधधक अणखल भारतीय सेवाओं के 2[(क्जनके
अंतगतत अणखल भारतीय न्यातयक सेवा है )] सज
ृ न के ललए उपबंध कर सकेगी और इस अध्याय के अन्य
उपबंधों के अधीन रहते हुए, ककसी ऐसी सेवा के ललए भती का और तनयक्
ु त व्यक्क्तयों की सेवा की शतों का
ववतनयमन कर सकेगी।
(2) इस संववधान के प्रारं भ पर भारतीय प्रशासतनक सेवा और भारतीय पलु लस सेवा के नाम से ज्ञात
सेवाएँ इस अनच्
ु छे द के अधीन संसद् द्वारा सक्ृ जत सेवाएँ समझी जाएँगी।
2
[(3) खंड (1) में तनहदतष्ट अणखल भारतीय न्यातयक सेवा के अंतगतत अनच्
ु छे द 236 में पररभावषत
क्जला न्यायाधीश के पद से अवर कोई पद नहीं होगा।
(4) पव
ू ोक्त अणखल भारतीय न्यातयक सेवा के सज
ृ न के ललए उपबंध करने वाली ववधध में भाग 6 के
अध्याय 6 के संशोधन के ललए ऐसे उपबंध अंतववतष्ट हो सकेंगे जो उस ववधध के उपबंधों को कायातक्न्वत

167
करने के ललए आवश्यक हों और ऐसी कोई ववधध अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजनों के ललए संववधान का संशोधन
नहीं समझी जाएगी।]
3
[312क. कुछ सेिाओं के अधधकाररयों की सेिा की शतों में पररितमन करने या उन्हें प्रनतसंहृत करने
की संसद् की शक्तत - (1) संसद्, ववधध द्वारा –
__________________
1. संववधान (बयालीसवाँ संशोधऩ) अधधतनयम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) ''भाग 11'' के
स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (बयालीसवाँ संशोधऩ) अधधतनयम, 1976 की धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थावपत।
3. संववधान (अट्ठाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा (29-8-1972 से) अंतःस्थावपत

(क) उन व्यक्क्तयों के, जो सेक्रेटरी ऑफ स्टे ट द्वारा या सेक्रेटरी ऑफ स्टे ट इन कौंलसल द्वारा इस
संववधान के प्रारं भ से पहले भारत में क्राउन की ककसी लसववल सेवा में तनयक्
ु त ककए गए थे
और जो संववधान (अट्ठाइसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1972 के प्रारं भ पर और उसके पश्चात,्
भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार के अधीन ककसी सेवा या पद पर बने रहते हैं,
पाररश्रलमक, छुट्टी और पें शन संबध
ं ी सेवा की शतें तथा अनश
ु ासतनक ववषयों संबध
ं ी अधधकार,
भववष्यलक्षी या भत
ू लक्षी रूप से पररवतततत कर सकेगी या प्रततसंहृत कर सकेगी;
(ख) उन व्यक्क्तयों के, जो सेक्रेटरी ऑफ स्टे ट द्वारा या सेक्रेटरी ऑफ स्टे ट इन कौंलसल द्वारा इस
संववधान के प्रारं भ से पहले भारत में क्राउन की ककसी लसववल सेवा में तनयक्
ु त ककए गए थे
और जो संववधान (अट्ठाइसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1972 के प्रारं भ से पहले ककसी समय सेवा
से तनवर्त्
ृ हो गए हैं या अन्यथा सेवा में नहीं रहे हैं, पें शन संबध
ं ी सेवा की शतें भववष्यलक्षी या
भत
ू लक्षी रूप से पररवतततत कर सकेगी या प्रततसंहृत कर सकेगी :
परं तु ककसी ऐसे व्यक्क्त की दशा में , जो उच्चतम न्यायालय या ककसी उच्च न्यायालय के मख्
ु य
न्यायमतू तत या अन्य न्यायाधीश, भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक, संघ या ककसी राज्य के लोक सेवा
आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्य अथवा मख्
ु य तनवातचन आयक्
ु त का पद धारण कर रहा है या कर चुका
है , उपखंड (क) या उपखंड (ख) की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह संसद् को, उस
व्यक्क्त की उक्त पद पर तनयक्ु क्त के पश्चात,् उसकी सेवा की शतों में , वहाँ तक के लसवाय जहाँ तक ऐसी
सेवा की शतें उसे सेक्रेटरी ऑफ स्टे ट द्वारा या सेक्रेटरी ऑफ स्टे ट इन कौंलसल द्वारा भारत में क्राउन की
ककसी लसववल सेवा में तनयक्
ु त ककया गया व्यक्क्त होने के कारण लागू हैं, उसके ललए अलाभकारी पररवततन
करने के ललए या उन्हें प्रततसंहृत करने के ललए सशक्त करती है ।
(2) वहाँ तक के लसवाय जहाँ तक संसद्, ववधध द्वारा, इस अनच्
ु छे द के अधीन उपबंध करे इस
अनच्
ु छे द की कोई बात खंड (1) में तनहदत ष्ट व्यक्क्तयों की सेवा की शतों का ववतनयमन करने की इस
संववधान के ककसी अन्य उपबंध के अधीन ककसी ववधान-मंडल या अन्य प्राधधकारी की शक्क्त पर प्रभाव
नहीं डालेगी।
(3) उच्चतम न्यायालय को या ककसी अन्य न्यायालय को तनम्नललणखत वववादों में कोई
अधधकाररता नहीं होगी, अथातत ् :-
(क) ककसी प्रसंववदा, करार या अन्य ऐसी ही ललखत के, क्जसे खंड (1) में तनहदत ष्ट ककसी व्यक्क्त ने
ककया है या तनष्पाहदत ककया है , ककसी उपबंध से या उस पर ककए गए ककसी पष्ृ ठांकन से उत्पन्न
कोई वववाद अथवा ऐसे व्यक्क्त को, भारत में क्राउन की ककसी लसववल सेवा में उसकी तनयक्ु क्त या

168
भारत डोलमतनयन की या उसके ककसी प्रांत की सरकार के अधीन सेवा में उसके बने रहने के संबध

में भेजे गए ककसी पत्र के आधार पर उत्पन्न कोई वववाद ;
(ख) मल
ू रूप में यथा अधधतनयलमत अनच्
ु छे द 314 के अधीन ककसी अधधकार, दातयत्व या बाध्यता
के संबध
ं में कोई वववाद।
(4) इस अनच्
ु छे द के उपबंध मल
ू रूप में यथा अधधतनयलमत अनच्
ु छे द 314 में या इस संववधान के
ककसी अन्य उपबंध में ककसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।]
313. संक्रमणकालीन उपबंध - जब तक इस संववधान के अधीन इस तनलमर्त् अन्य उपबंध नहीं
ककया जाता है तब तक ऐसी सभी ववधधयां जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले प्रवर्त्
ृ हैं और ककसी
ऐसी लोक सेवा या ककसी ऐसे पद को, जो इस संववधान के प्रारं भ के पश्चात ् अणखल भारतीय सेवा के अथवा
संघ या ककसी राज्य के अधीन सेवा या पद के रूप में बना रहता है , लागू हैं वहाँ तक प्रवर्त्
ृ बनी रहें गी जहाँ
तक वे इस संववधान के उपबंधों से संगत है ।
314. [कुछ सेिाओं के विद्यमान अधधकाररयों के संरक्षण के ललए उपबंध - ] संववधान (अट्ठाइसवाँ
संशोधन) अधधतनयम, 1972 की धारा 3 द्वारा (2-8-1972 से) तनरलसत।
अध्याय 2
लोक सेिा आयोग
315. संघ और राज्यों के ललए लोक सेिा आयोग - (1) इस अनच्
ु छे द के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
संघ के ललए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के ललए एक लोक सेवा आयोग होगा।
(2) दो या अधधक राज्य यह करार कर सकेंगे कक राज्यों के उस समह
ू के ललए एक ही लोक सेवा
आयोग होगा और यहद इस आशय का संकल्प उन राज्यों में से प्रत्येक राज्य के ववधान-मंडल के सदन
द्वारा या जहाँ दो सदन हैं वहाँ प्रत्येक सदन द्वारा पाररत कर हदया जाता है तो संसद् उन राज्यों की
आवश्यकताओं की पतू तत करने के ललए ववधध द्वारा संयक्
ु त राज्य लोक सेवा आयोग की (क्जसे इस अध्याय
में ''संयक्
ु त आयोग'' कहा गया है ) तनयक्ु क्त का उपबंध कर सकेगी।
(3) पव
ू ोक्त प्रकार की ककसी ववधध में ऐसे आनष
ु धं गक और पाररणालमक उपबंध हो सकेंगे जो उस
ववधध के प्रयोजनों को प्रभावी करने के ललए आवश्यक या वांछनीय हों।
(4) यहद ककसी राज्य का राज्यपाल 1[***] संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने का अनरु ोध करता
है तो वह राष्रपतत के अनम
ु ोदन से उस राज्य की सभी या ककन्हीं आवश्यकताओं की पतू तत करने के ललए
सहमत हो सकेगा।
(5) इस संववधान में , जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो संघ लोक सेवा आयोग या
ककसी राज्य लोक सेवा आयोग के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे ऐसे आयोग के प्रतत
तनदे श हैं जो प्रश्नगत ककसी ववलशष्ट ववषय के संबध
ं में , यथाक्स्थतत, संघ की या राज्य की आवश्यकताओं
की पतू तत करता है ।
316. सदस्यों की ननयक्ु तत और पदािधध - (1) लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की
तनयक्ु क्त, यहद वह संघ आयोग या संयक्
ु त आयोग है तो, राष्रपतत द्वारा और, यहद वह राज्य आयोग है तो,
राज्य के राज्यपाल 1[***] द्वारा की जाएगी :
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख''
शब्दों का लोप ककया गया।

169
परं तु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य तनकटतम आधे ऐसे व्यक्क्त होंगे जो
अपनी-अपनी तनयक्ु क्त की तारीख पर भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम
दस वषत तक पद धारण कर चुके हैं और उक्त दस वषत की अवधध की संगणना करने में इस संववधान के
प्रारं भ से पहले की ऐसी अवधध भी सक्म्मललत की जाएगी क्जसके दौरान ककसी व्यक्क्त ने भारत में क्राउन
के अधीन या ककसी दे शी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण ककया है ।
1
[(1क) यहद आयोग के अध्यक्ष का पद ररक्त हो जाता है या यहद कोई ऐसा अध्यक्ष अनप
ु क्स्थतत
के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कततव्यों का पालन करने में असमथत है तो, यथाक्स्थतत, जब तक
ररक्त पद पर खंड (1) के अधीन तनयक्
ु त कोई व्यक्क्त उस पद का कततव्य भार ग्रहण नहीं कर लेता है या
जब तक अध्यक्ष अपने कततव्यों को कफर से नहीं संभाल लेता है तब तक आयोग के अन्य सदस्यों में से
ऐसा एक सदस्य, क्जसे संघ आयोग या संयक्
ु त आयोग की दशा में राष्रपतत और राज्य आयोग की दशा में
उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन के ललए तनयक्
ु त करे , उन कततव्यों का पालन करे गा।]
(2) लोक सेवा आयोग का सदस्य, अपने पद ग्रहण की तारीख से छह वषत की अवधध तक या संघ
आयोग की दशा में पैंसठ वषत की आयु प्राप्त कर लेने तक और राज्य आयोग या संयक्
ु त आयोग की दशा
में 2[बासठ वषत] की आयु प्राप्त कर लेने तक इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करे गा:
परं तु –
(क) लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य, संघ आयोग या संयक्
ु त आयोग की दशा में राष्रपतत को
और राज्य आयोग की दशा में राज्य के राज्यपाल 1*** को संबोधधत अपने हस्ताक्षर सहहत
लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
(ख) लोक सेवा आयोग के ककसी सदस्य को, अनच्
ु छे द 317 के खंड (1) या खंड (3) में उपबंधधत रीतत
से उसके पद से हटाया जा सकेगा।
(3) कोई व्यक्क्त जो लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण करता है , अपनी पदावधध
की समाक्प्त पर उस पद पर पन
ु तनतयक्ु क्त का पात्र नहीं होगा।
317. लोक सेिा आयोग के क्रकसी सदस्य का हटाया जाना और ननलंत्रबत क्रकया जाना - (1) खंड (3)
के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या ककसी अन्य सदस्य को केवल कदाचार के
आधार पर ककए गए राष्रपतत के ऐसे आदे श से उसके पद से हटाया जाएगा जो उच्चतम न्यायालय को
राष्रपतत द्वारा तनदे श ककए जाने पर उस न्यायालय द्वारा अनच्
ु छे द 145 के अधीन इस तनलमर्त् ववहहत
प्रकक्रया के अनस
ु ार की गई जाँच पर, यह प्रततवेदन ककए जाने के पश्चात ् ककया गया है कक, यथाक्स्थतत,
अध्यक्ष या ऐसे ककसी सदस्य को ऐसे ककसी आधार पर हटा हदया जाए।
__________________
1. संववधान (पन्द्रहवाँ संशोधऩ) अधधतनयम, 1963 की धारा 11 द्वारा अंतःस्थावपत।
2. संववधान (इकतालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 2 द्वारा ''साठ वषत'' के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
3. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख''
शब्दों का लोप ककया गया।
(2) आयोग के अध्यक्ष या ककसी अन्य सदस्य को, क्जसके संबध
ं में खंड (1) के अधीन उच्चतम
न्यायालय को तनदे श ककया गया है , संघ आयोग या संयक्
ु त आयोग की दशा में राष्रपतत और राज्य आयोग

170
की दशा में राज्यपाल 1[***] उसके पद से तब तक के ललए तनलंत्रबत कर सकेगा जब तक राष्रपतत ऐसे
तनदे श पर उच्चतम न्यायालय का प्रततवेदन लमलने पर अपना आदे श पाररत नहीं कर दे ता है ।
(3) खंड (1) में ककसी बात के होते हुए भी, यहद लोक सेवा आयोग का, यथाक्स्थतत, अध्यक्ष या कोई
अन्य सदस्य –
(क) हदवाललया न्यायतनणीत ककया जाता है , या
(ख) अपनी पदावधध में अपने पद के कततव्यों के बाहर ककसी सवेतन तनयोजन में लगता है , या
(ग) राष्रपतत की राय में मानलसक या शारीररक शैधथल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के ललए
अयोग्य है ,
तो राष्रपतत, अध्यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदे श द्वारा पद से हटा सकेगा।
(4) यहद लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य, तनगलमत कंपनी के सदस्य के रूप में
और कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सक्म्मललत रूप से अन्यथा, उस संववदा या करार से, जो भारत सरकार
या राज्य सरकार के द्वारा या तनलमर्त् की गई या ककया गया है , ककसी प्रकार से संपक्
ृ त या हहतबद्ध है या
हो जाता है या उसके लाभ या उससे उद्भत
ू ककसी फायदे या उपलक्ब्ध में भाग लेता है तो वह खंड (1) के
प्रयोजनों के ललए कदाचार का दोषी समझा जाएगा।
318. आयोग के सदस्यों और कममचाररिद
ं ृ की सेिा की शतों के बारे में विननयम बनाने की शक्तत -
संघ आयोग या संयक्
ु त आयोग की दशा में राष्रपतत और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का
राज्यपाल 1[***] ववतनयमों द्वारा –
(क) आयोग के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शतों का अवधारण कर सकेगा; और
(ख) आयोग के कमतचाररवद
ं ृ के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शतों के संबध
ं में उपबंध
कर सकेगा:
परं तु लोक सेवा आयोग के सदस्य की सेवा की शतों में उसकी तनयक्ु क्त के पश्चात ् उसके ललए
अलाभकारी पररवततन नहीं ककया जाएगा।
319. आयोग के सदस्यों द्िारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबध
ं में प्रनतषेध - पद
पर न रह जाने पर –
(क) संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार के अधीन ककसी
भी और तनयोजन का पात्र नहीं होगा;
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख''
शब्दों का लोप ककया गया।

(ख) ककसी राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य
सदस्य के रूप में अथवा ककसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में तनयक्
ु त होने
का पात्र होगा, ककन्तु भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार के अधीन ककसी अन्य तनयोजन का
पात्र नहीं होगा;
(ग) संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष से लभन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के
अध्यक्ष के रूप में या ककसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में तनयक्
ु त होने का पात्र
होगा, ककन्तु भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार के अधीन ककसी अन्य तनयोजन का पात्र
नहीं होगा;

171
(घ) ककसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष से लभन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग
के अध्यक्ष या ककसी अन्य सदस्य के रूप में अथवा उसी या ककसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग
के अध्यक्ष के रूप में तनयक्
ु त होने का पात्र होगा, ककन्तु भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार
के अधीन ककसी अन्य तनयोजन का पात्र नहीं होगा।
320. लोक सेिा आयोगों के कृत्य - (1) संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों का यह कततव्य होगा कक
वे क्रमशः संघ की सेवाओं और राज्य की सेवाओं में तनयक्ु क्तयों के ललए परीक्षाओं का संचालन करें ।
(2) यहद संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या अधधक राज्य ऐसा करने का अनरु ोध करते हैं तो
उसका यह भी कततव्य होगा कक वह ऐसी ककन्हीं सेवाओं के ललए, क्जनके ललए ववशेष अहतताओं वाले अभ्यथी
अपेक्षक्षत हैं, संयक्
ु त भती की स्कीमें बनाने और उनका प्रवततन करने में उन राज्यों की सहायता करे ।
(3) यथाक्स्थतत, संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग से-
(क) लसववल सेवाओं में और लसववल पदों के ललए भती की पद्धततयों से संबधं धत सभी ववषयों पर,
(ख) लसववल सेवाओं और पदों पर तनयक्ु क्त करने में तथा एक सेवा से दस
ू री सेवा में प्रोन्नतत और
अंतरण करने में अनस
ु रण ककए जाने वाले लसद्धांतों पर और ऐसी तनयक्ु क्त, प्रोन्नतत या
अंतरण के ललए अभ्यधथतयों की उपयक्
ु तता पर,
(ग) ऐसे व्यक्क्त पर, जो भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार की लसववल है लसयत में सेवा कर
रहा है , प्रभाव डालने वाले, सभी अनश
ु ासतनक ववषयों पर, क्जनके अंतगतत ऐसे ववषयों से संबधं धत
अभ्यावेदन या याधचकाएँ हैं,
(घ) ऐसे व्यक्क्त द्वारा या उसके संबध
ं में , जो भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार के अधीन
या भारत में क्राउन के अधीन या ककसी दे शी राज्य की सरकार के अधीन लसववल है लसयत में
सेवा कर रहा है या कर चुका है , इस दावे पर कक अपने कततव्य के तनष्पादन में ककए गए या
ककए जाने के ललए तात्पतयतत कायों के संबध
ं में उसके ववरुद्ध संक्स्थत ववधधक कायतवाहहयों की
प्रततरक्षा में उसके द्वारा उपगत खचत का, यथाक्स्थतत, भारत की संधचत तनधध में से या राज्य
की संधचत तनधध में से संदाय ककया जाना चाहहए,
(ङ) भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार या भारत में क्राउन के अधीन या ककसी दे शी राज्य
की सरकार के अधीन लसववल है लसयत में सेवा करते समय ककसी व्यक्क्त को हुई क्षततयों के
बारे में पें शन अधधतनणणतत ककए जाने के ललए ककसी दावे पर और ऐसे अधधतनणतय की रकम
ववषयक प्रश्न पर,
परामशत ककया जाएगा और इस प्रकार उसे तनदे लशत ककए गए ककसी ववषय पर तथा ऐसे ककसी अन्य
ववषय पर, क्जसे, यथाक्स्थतत, राष्रपतत या उस राज्य राज्यपाल 1[***] उसे तनदे लशत करे , परामशत दे ने का
लोक सेवा आयोग का कततव्य होगा:
परं तु अणखल भारतीय सेवाओं के संबध
ं में तथा संघ के कायतकलाप से संबधं धत अन्य सेवाओं और
पदों के संबध
ं में भी राष्रपतत तथा राज्य के कायतकलाप से संबधधत अन्य सेवाओं और पदों के संबध
ं में
राज्यपाल 1[***] उन ववषयों को ववतनहदत ष्ट करने वाले ववतनयम बना सकेगा क्जनमें साधारणतया या ककसी
ववलशष्ट वगत के मामले में या ककन्हीं ववलशष्ट पररक्स्थततयों में लोक सेवा आयोग से परामशत ककया जाना
आवश्यक नहीं होगा।

172
(4) खंड (3) की ककसी बात से यह अपेक्षा नहीं होगी कक लोक सेवा आयोग से उस रीतत के संबध

में , क्जससे अनच्
ु छे द 16 के खंड (4) में तनहदतष्ट कोई उपबंध ककया जाना है या उस रीतत के संबध
ं में , क्जससे
अनच्
ु छे द 335 के उपबंधों को प्रभावी ककया जाना है , परामशत ककया जाए।
(5) राष्रपतत या ककसी राज्य के राज्यपाल 3[***] द्वारा खंड (3) के परं तक
ु के अधीन बनाए गए
सभी ववतनयम, बनाए जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र, यथाक्स्थतत, संसद् के प्रत्येक सदन या राज्य के ववधान-मंडल
के सदन या प्रत्येक सदन के समक्ष कम से कम चौदह हदन के ललए रखे जाएँगे और तनरसन या संशोधन
द्वारा ककए गए ऐसे उपांतरणों के अधीन होंगे जो संसद् के दोनों सदन या उस राज्य के ववधान-मंडल का
सदन या दोनों सदन उस सत्र में करें क्जसमें वे इस प्रकार रखे गए हैं।
321. लोक सेिा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्तत - यथाक्स्थतत, संसद् द्वारा या ककसी
राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अधधतनयम संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा
आयोग द्वारा संघ की या राज्य की सेवाओं के संबध
ं में और ककसी स्थानीय प्राधधकारी या ववधध द्वारा
गहठत अन्य तनगलमत तनकाय या ककसी लोक संस्था की सेवाओं के संबध
ं में भी अततररक्त कृत्यों के प्रयोग
के ललए उपबंध कर सकेगा।
322. लोक सेिा आयोगों के व्यय - संघ या राज्य लोक सेवा आयोग के व्यय, क्जनके अंतगतत
आयोग के सदस्यों या कमतचाररवद
ं ृ को या उनके संबध
ं में संदेय कोई वेतन, भर्त्े और पें शन हैं, यथाक्स्थतत,
भारत की संधचत तनधध या राज्य की संधचत तनधध पर भाररत होंगे।
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख''
शब्दों का लोप ककया गया।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा '' यथास्थावपत
राज्यपाल या राजप्रमुख'' शब्दों के स्थान पर उपरोक्त रूप से रखा गया।
323. लोक सेिा आयोगों के प्रनतिेदन - (1) संघ आयोग का यह कततव्य होगा कक वह राष्रपतत को
आयोग द्वारा ककए गए कायत के बारे में प्रततवषत प्रततवेदन दे और राष्रपतत ऐसा प्रततवेदन प्राप्त होने पर
उन मामलों के संबध
ं में , यहद कोई हों, क्जनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अस्वीकृतत
के कारणों को सपष्ट करने वाले ज्ञापन सहहत उस प्रततवेदन की प्रतत संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष
रखवाएगा।
(2) राज्य आयोग का यह कततव्य होगा कक वह राज्य के राज्यपाल 1[***] को आयोग द्वारा ककए
गए कायत के बारे में प्रततवषत प्रततवेदन दे और संयक्
ु त आयोग का यह कततव्य होगा कक ऐसे राज्यों में से
प्रत्येक के, क्जनकी आवश्यकताओं की पतू तत संयक्
ु त आयोग द्वारा की जाती है , राज्यपाल 1[***] को उस
राज्य के संबध
ं में आयोग द्वारा ककए गए कायत के बारे में प्रततवषत प्रततवेदन दे और दोनों में से प्रत्येक
दशा में ऐसा प्रततवेदन प्राप्त होने पर, राज्यपाल 2[***] उन मामलों के संबध
ं में , यहद कोई हों, क्जनमें आयोग
की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अस्वीकृतत के कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहहत उस
प्रततवेदन की प्रतत राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा।
3
[भाग 14 – क
अधधकरण
323-क. प्रशासननक अधधकरण - (1) संसद्, ववधध द्वारा, संघ या ककसी राज्य के अथवा भारत के
राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के तनयंत्रण के अधीन ककसी स्थानीय या अन्य प्राधधकारी के अथवा

173
सरकार के स्वालमत्व या तनयंत्रण के अधीन ककसी तनगम के कायतकलाप से संबधं धत लोक सेवाओं और पदों
के ललए भती तथा तनयक्
ु त व्यक्क्तयों की सेवा की शतों के संबध
ं में वववादों और पररवादों के प्रशासतनक
अधधकरणों द्वारा न्यायतनणतयन या ववचारण के ललए उपबंध कर सकेगी।
(2) खंड (1) के अधीन बनाई गई ववधध-
(क) संघ के ललए एक प्रशासतनक अधधकरण और प्रत्येक राज्य के ललए अथवा दो या अधधक
राज्यों के ललए एक पथ
ृ क् प्रशासतनक अधधकरण की स्थापना के ललए उपबंध कर सकेगी ;
(ख) उक्त अधधकरणों में से प्रत्येक अधधकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधधकाररता, शक्क्तयाँ
(क्जनके अंतगतत अवमान के ललए दं ड दे ने की शक्क्त है ) और प्राधधकार ववतनहदतष्ट कर सकेगी
;
(ग) उक्त अधधकरणों द्वारा अनस
ु रण की जाने वाली प्रकक्रया के ललए (क्जसके अंतगतत पररसीमा के
बारे में और साक्ष्य के तनयमों के बारे में उपबंध हैं) उपबंध कर सकेगी ;
(घ) अनच्
ु छे द 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधधकाररता के लसवाय सभी न्यायालयों की
अधधकाररता का खंड (1) में तनहदत ष्ट वववादों या पररवादों के संबध में अपवजतन कर सकेगी ;
__________________
1. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख''
शब्दों का लोप ककया गया।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाक्स्थतत,
राज्यपाल या राजप्रमुख” के स्थान पर उपरोक्त रूप से रखा गया|
3. संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से)
अंतःस्थावपत।
(ङ) प्रत्येक ऐसे प्रशासतनक अधधकरण को उन मामलों के अंतरण के ललए उपबंध कर सकेगी जो
ऐसे अधधकरण की स्थापना से ठीक पहले ककसी न्यायालय या अन्य प्राधधकारी के समक्ष
लंत्रबत हैं और जो, यहद ऐसे वाद हे तक
ु , क्जन पर ऐसे वाद या कायतवाहहयाँ आधाररत हैं,
अधधकरण की स्थापना के पश्चात ् उत्पन्न होते तो, ऐसे अधधकरण की अधधकाररता के भीतर
होते ;
(च) राष्रपतत द्वारा अनच्
ु छे द 371घ के खंड (3) के अधीन ककए गए आदे श का तनरसन या
संशोधन कर सकेगी ;
(छ) ऐसे अनप
ु रू क, आनष
ु धं गक और पाररणालमक उपबंध (क्जनके अंतगतत फीस के बारे में उपबंध हैं)
अंतववतष्ट कर सकेगी जो संसद् ऐसे अधधकरणों के प्रभावी कायतकरण के ललए और उनके द्वारा
मामलों के शीघ्र तनपटारे के ललए और उनके आदे शों के प्रवततन के ललए आवश्यक समझे।
(3) इस अनच्
ु छे द के उपबंध इस संववधान के ककसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी अन्य
ववधध में ककसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।
323-ख. अन्य विषयों के ललए अधधकरण - (1) समधु चत ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, ऐसे वववादों,
पररवादों या अपराधों के अधधकरणों द्वारा न्यायतनणतयन या ववचारण के ललए उपबंध कर सकेगा जो खंड
(2) में ववतनहदत ष्ट उन सभी या ककन्हीं ववषयों से संबधं धत हैं क्जनके संबध
ं में ऐसे ववधान-मंडल को ववधध
बनाने की शक्क्त है ।
(2) खंड (1) में तनहदत ष्ट ववषय तनम्नललणखत हैं, अथातत ् :-
(क) ककसी कर का उद्ग्रहण, तनधातरण, संग्रहण और प्रवततन ;

174
(ख) ववदे शी मद्र
ु ा, सीमाशल्
ु क सीमांतों के आर-पार आयात और तनयातत ;
(ग) औद्योधगक और श्रम वववाद ;
(घ) अनच्
ु छे द 31क में यथापररभावषत ककसी संपदा या उसमें ककन्हीं अधधकारों के राज्य द्वारा
अजतन या ऐसे ककन्हीं अधधकारों के तनवातपन या उपांतरण द्वारा या कृवष भलू म की अधधकतम
सीमा द्वारा या ककसी अन्य प्रकार से भलू म सध
ु ार ;
(ङ) नगर संपवर्त् की अधधकतम सीमा ;
(च) संसद् के प्रत्येक सदन या ककसी राज्य ववधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के ललए
तनवातचन, ककन्तु अनच्
ु छे द 329 और अनच्
ु छे द 329क में तनहदत ष्ट ववषयों को छोड़कर ;
(छ) खाद्य पदाथों का (क्जनके अंतगतत खाद्य ततलहन और तेल हैं) और ऐसे अन्य माल का
उत्पादन, उपापन, प्रदाय और ववतरण, क्जन्हें राष्रपतत, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, इस अनच्
ु छे द के
प्रयोजन के ललए आवश्यक माल घोवषत करे और ऐसे माल की कीमत का तनयंत्रण ;
1
[(ज)] ककराया, उसका ववतनयमन और तनयंत्रण तथा कराएदारी संबध
ं ी वववाद्यक, क्जनके अंतगतत
मकान माललकों और ककराएदारों के अधधकार, हक और हहत हैं ;]
__________________
1. संववधान (पचहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से)
अंत:स्थावपत|

1
[(झ)] उपखंड (क) से उपखंड 3[(ज)] में ववतनहदत ष्ट ववषयों में से ककसी ववषय से संबधं धत ववधधयों के
ववरुद्ध अपराध और उन ववषयों में से ककसी की बाबत फीस ;
1
[(ञ)] उपखंड (क) से उपखंड 4[(झ)] में ववतनहदतष्ट ववषयों में से ककसी का आनष
ु धं गक कोई ववषय।
(3) खंड (1) के अधीन बनाई गई ववधध –
(क) अधधकरणों के उत्क्रम की स्थापना के ललए उपबंध कर सकेगी ;
(ख) उक्त अधधकरणों में से प्रत्येक अधधकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधधकाररता, शक्क्तयाँ
(क्जनके अंतगतत अवमान के ललए दं ड दे ने की शक्क्त है ) और प्राधधकार ववतनहदतष्ट कर सकेगी
;
(ग) उक्त अधधकरणों द्वारा अनस
ु रण की जाने वाली प्रकक्रया के ललए (क्जसके अंतगतत पररसीमा के
बारे में और साक्ष्य के तनयमों के बारे में उपबंध हैं) उपबंध कर सकेगी ;
(घ) अनच्
ु छे द 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधधकाररता के लसवाय सभी न्यायालयों की
अधधकाररता का उन सभी या ककन्हीं ववषयों के संबध
ं में अपवजतन कर सकेगी जो उक्त
अधधकरणों की अधधकाररता के अंतगतत आते हैं ;
(ङ) प्रत्येक ऐसे अधधकरण को उन मामलों के अंतरण के ललए उपबंध कर सकेगी जो ऐसे
अधधकरण की स्थापना से ठीक पहले ककसी न्यायालय या अन्य प्राधधकारी के समक्ष लंत्रबत हैं
और जो, यहद ऐसे वाद हे तक
ु क्जन पर ऐसे वाद या कायतवाहहयाँ आधाररत हैं, अधधकरण की
स्थापना के पश्चात ् उत्पन्न होते तो ऐसे अधधकरण की अधधकाररता के भीतर होते ;
(च) ऐसे अनप
ु रू क, आनष
ु धं गक और पाररणालमक उपबंध (क्जनके अंतगतत फीस के बारे में उपबंध हैं)
अंतववतष्ट कर सकेगी जो समधु चत ववधान-मंडल ऐसे अधधकरणों के प्रभावी कायतकरण के ललए
और उनके द्वारा मामलों के शीघ्र तनपटारे के ललए और उनके आदे शों के प्रवततन के ललए
आवश्यक समझे।

175
(4) इस अनच्
ु छे द के उपबंध इस संववधान के ककसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी अन्य
ववधध में ककसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।
स्पष्ट्टीकरण - इस अनच् ु छे द में , ककसी ववषय के संबध ं में , ''समधु चत ववधान-मंडल'' से, यथाक्स्थतत,
संसद् या ककसी राज्य का ववधान-मंडल अलभप्रेत है , जो भाग 11 के उपबंधों के अनस
ु ार ऐसे ववषय के संबध

में ववधध बनाने के ललए सक्षम है ।
__________________
1. संववधान (पचहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) उपखंड (ज)
और (झ) को उपखंड (झ) और (ञ) के रूप में पुन:अक्षरांककत ककया जाएगा|
2. संववधान (पचहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(छ)” के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (पचहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(ज)” के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
भाग 15
ननिामचन
324. ननिामचनों के अधीक्षण, ननदे शन और ननयंत्रण का ननिामचन आयोग में ननर्हत होना - (1) इस
संववधान के अधीन संसद् और प्रत्येक राज्य के ववधान-मंडल के ललए कराए जाने वाले सभी तनवातचनों के
ललए तथा राष्रपतत और उपराष्रपतत के पदों के ललए तनवातचनों के ललए तनवातचक-नामावली तैयार कराने का
और उन सभी तनवातचनों के संचालन का अधीक्षण, तनदे शन और तनयंत्रण, 1[***] एक आयोग में तनहहत होगा
(क्जसे इस संववधान में तनवातचन आयोग कहा गया है )।
(2) तनवातचन आयोग मख्
ु य तनवातचन आयक्
ु त और उतने अन्य तनवातचन आयक्
ु तों से, यहद कोई हों,
क्जतने राष्रपतत समय-समय पर तनयत करे , लमलकर बनेगा तथा मख्
ु य तनवातचन आयक्
ु त और अन्य
तनवातचन आयक् ु तों की तनयक्ु क्त, संसद् द्वारा इस तनलमर्त् बनाई गई ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
राष्रपतत द्वारा की जाएगी।
(3) जब कोई अन्य तनवातचन आयक्
ु त इस प्रकार तनयक्
ु त ककया जाता है तब मख्
ु य तनवातचन
आयक्
ु त तनवातचन आयोग के अध्यक्ष के रूप में कायत करे गा।
(4) लोक सभा के और प्रत्येक राज्य की ववधान सभा के प्रत्येक साधारण तनवातचन से पहले तथा
ववधान पररषद् वाले प्रत्येक राज्य की ववधान पररषद् के ललए प्रथम साधारण तनवातचन से पहले और उसके
पश्चात ् प्रत्येक द्वववावषतक तनवातचन से पहले, राष्रपतत तनवातचन आयोग से परामशत करने के पश्चात,् खंड
(1) द्वारा तनवातचन आयोग को सौंपे गए कृत्यों के पालन में आयोग की सहायता के ललए उतने प्रादे लशक
आयक्
ु तों की भी तनयक्ु क्त कर सकेगा क्जतने वह आवश्यक समझे।
(5) संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, तनवातचन आयक् ु तों और
प्रादे लशक आयक्ु तों की सेवा की शतें और पदावधध ऐसी होंगी जो राष्रपतत तनयम द्वारा अवधाररत करे :
परन्तु मख्
ु य तनवातचन आयक्
ु त को उसके पद से उसी रीतत से और उन्हीं आधारों पर ही हटाया
जाएगा, क्जस रीतत से और क्जन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है अन्यथा
नहीं और मख्
ु य तनवातचन आयक्
ु त की सेवा की शतों में उसकी तनयक्ु क्त के पश्चात ् उसके ललए अलाभकारी
पररवततन नहीं ककया जाएगा :

176
परन्तु यह और कक ककसी अन्य तनवातचन आयक्
ु त या प्रादे लशक आयक्
ु त को मख्
ु य तनवातचन
आयक्
ु त की लसफाररश पर ही पद से हटाया जाएगा, अन्यथा नहीं।
(6) जब तनवातचन आयोग ऐसा अनरु ोध करे तब, राष्रपतत या ककसी राज्य का राज्यपाल 2[***]
तनवातचन आयोग या प्रादे लशक आयक्
ु त को उतने कमतचाररवन्ृ द उपलब्ध कराएगा क्जतने खंड (1) द्वारा
तनवातचन आयोग को सौंपे गए कृत्यों के तनवतहन के ललए आवश्यक हों।
___________________
1. संववधान (उन्नीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1966 की धारा 2 द्वारा (11-12-1966) ''क्जसके अंतगतत
संसद् के और राज्य के ववधान-मंडलों के तनवातचनों से उद्भूत या संसक्त संदेहों और वववाद के
तनणतय के ललए तनवातचन न्यायाधधकरण की तनयुक्क्त भी है '' शब्दों का लोप ककया गया।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों
का लोप ककया गया।
325. धमम, मल
ू िंश, जानत या ललंग के आधार पर क्रकसी व्यक्तत का ननिामचक-नामािली में सक्म्मललत
क्रकए जाने के ललए अपात्र न होना और उसके द्िारा क्रकसी विशेष ननिामचक-नामािली में सक्म्मललत क्रकए
जाने का दािा न क्रकया जाना - संसद् के प्रत्येक सदन या ककसी राज्य के ववधान-मंडल के सदन या प्रत्येक
सदन के ललए तनवातचन के ललए प्रत्येक प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्र के ललए एक साधारण तनवातचक-नामावली
होगी और केवल धमत, मल
ू वंश, जातत, ललंग या इनमें से ककसी के आधार पर कोई व्यक्क्त ऐसी ककसी
नामावली में सक्म्मललत ककए जाने के ललए अपात्र नहीं होगा या ऐसे ककसी तनवातचन-क्षेत्र के ललए ककसी
ववशेष तनवातचक-नामावली में सक्म्मललत ककए जाने का दावा नहीं करे गा।
326. लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के ललए ननिामचनों का ियस्क मताधधकार के आधार
पर होना - लोक सभा और प्रत्येक राज्य की ववधान सभा के ललए तनवातचन वयस्क मताधधकार के आधार
पर होंगे अथातत ् प्रत्येक व्यक्क्त, जो भारत का नागररक है और ऐसी तारीख को, जो समधु चत ववधान-मंडल
द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा या उसके अधीन इस तनलमर्त् तनयत की जाए, कम से कम 1[अठारह
वषत] की आयु का है और इस संववधान या समधु चत ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के अधीन
अतनवास, धचर्त्ववकृतत, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा तनरहहतत नहीं कर हदया
जाता है , ऐसे ककसी तनवातचन में मतदाता के रूप में रक्जस्रीकृत होने का हकदार होगा।
327. विधान-मंडल के ललए ननिामचनों के संबध
ं में उपबंध करने की संसद् की शक्तत - इस संववधान
के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद् समय-समय पर, ववधध द्वारा, संसद् के प्रत्येक सदन या ककसी राज्य
के ववधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के ललए तनवातचनों से संबधं धत या संसक्त सभी ववषयों के संबधं
में , क्जनके अंतगतत तनवातचक-नामावली तैयार कराना, तनवातचन-क्षेत्रों का पररसीमन और ऐसे सदन या सदनों
का सम्यक् गठन सतु नक्श्चत करने के ललए अन्य सभी आवश्यक ववषय हैं, उपबंध कर सकेगी।
328. क्रकसी राज्य के विधान-मंडल के ललए ननिामचनों के संबध
ं में उपबंध करने की उस विधान-मंडल
की शक्तत - इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए और जहाँ तक संसद् इस तनलमर्त् उपबंध नहीं
करती है वहाँ तक, ककसी राज्य का ववधान-मंडल समय-समय पर, ववधध द्वारा, उस राज्य के ववधान-मंडल के
सदन या प्रत्येक सदन के ललए तनवातचनों से संबधं धत या संसक्त सभी ववषयों के संबध
ं में , क्जनके अंतगतत
तनवातचक-नामावली तैयार कराना और ऐसे सदन या सदनों का सम्यक् गठन सतु नक्श्चत करने के ललए
अन्य सभी आवश्यक ववषय हैं, उपबंध कर सकेगा।

177
329. ननिामचन संबध
ं ी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का िजमन - 1[इस संववधान में ककसी बात
के होते हुए भी 3[***]-]
__________________
1. संववधान (इकसठवां संशोधन) अधधतनयम, 1988 की धारा 2 द्वारा (28-3-1989 से) “इक्कीस
वषत” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (उनतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 3 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
3. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 35 द्वारा (20-6-1979 से) “परं तु
अनुच्छे द 329क के उपबंधों के अधीन रहते हुए” शब्दों, अंको और अक्षर का लोप ककया गया|
(क) अनच्
ु छे द 327 या अनच्
ु छे द 328 के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के ललए तात्पतयतत ककसी
ऐसी ववधध की ववधधमान्यता, जो तनवातचन-क्षेत्रों के पररसीमन या ऐसे तनवातचन-क्षेत्रों को स्थानों
के आबंटन से संबधं धत है , ककसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं की जाएगी;
(ख) संसद् के प्रत्येक सदन या ककसी राज्य के ववधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के ललए
कोई तनवातचन ऐसी तनवातचन अजी पर ही प्रश्नगत ककया जाएगा, जो ऐसे प्राधधकारी को और
ऐसी रीतत से प्रस्तत
ु की गई है क्जसका समधु चत ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा
या उसके अधीन उपबंध ककया जाए, अन्यथा नहीं।
1
[329-क. [प्रधान मंत्री और अध्यक्ष के मामले में संसद् के ललए ननिामचनों के बारे में विशेष उपबंध
– [संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 36 द्वारा (20-6-1979 से) तनरलसत|
भाग 16
कुछ िगों के संबध
ं में विशेष उपबंध

330. लोक सभा में अनस


ु धू चत जानतयों और अनस
ु धू चत जनजानतयों के ललए स्थानों का आरक्षण –
(1) लोक सभा में-
(क) अनस
ु धू चत जाततयों के ललए,
2
[(ख) असम के स्वशासी क्जलों की अनस
ु धू चत जनजाततयों को छोड़कर अन्य अनस
ु धू चत
जनजाततयों के ललए, और
(ग) असम के स्वशासी क्जलों की अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए,
स्थान आरक्षक्षत रहें गे।
(2) खंड (1) के अधीन ककसी राज्य 3[या संघ राज्यक्षेत्र] में अनस
ु धू चत जाततयों या अनस
ु धू चत
जनजाततयों के ललए आरक्षक्षत स्थानों की संख्या का अनप
ु ात, लोक सभा में उस राज्य 3[या संघ राज्यक्षेत्र]
को आबंहटत स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा जो, यथाक्स्थतत, से राज्य 3[या संघ राज्यक्षेत्र] की
अनस
ु धू चत जाततयों की अथवा उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्रट की या उस राज्य 3[या संघ राज्यक्षेत्र] के
भाग की अनस
ु धू चत जनजाततयों की, क्जनके संबध
ं में स्थान इस प्रकार आरक्षक्षत हैं, जनसंख्या का अनप
ु ात
उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्रट की कुल जनसंख्या से है।
[(3) खंड (2) में ककसी बात के होते हुए भी, लोक सभा में असम के स्वशासी क्जलों की अनस
4
ु धू चत
जनजाततयों के ललए आरक्षक्षत स्थानों की संख्या का अनप
ु ात, उस राज्य को आबंहटत स्थानों की कुल संख्या
के उस अनप
ु ात से कम नहीं होगा जो उक्त स्वशासी क्जलों की अनस
ु धू चत जनजाततयों की जनसंख्या का
अनप
ु ात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है ।

178
__________________
1. संववधान (उनतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 4 द्वारा अंत:स्थावपत|
2. संववधान (इक्यावनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 2 द्वारा (16-6-1986 से) उपखंड (ख) के
स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थावपत।
4. संववधान (इकतीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1973 की धारा 3 द्वारा (17-10-1973 से)
अंतःस्थावपत।
1
[स्पष्ट्टीकरण - इस अनच्
ु छे द में और अनच्
ु छे द 332 में , ''जनसंख्या'' पद से ऐसी अंततम पव
ू व
त ती
जनगणना में अलभतनक्श्चत की गई जनसंख्या अलभप्रेत है क्जसके सस
ु ग
ं त आँकड़े प्रकालशत हो गए हैं:
परन्तु इस स्पष्टीकरण में अंततम पव
ू व
त ती जनगणना के प्रतत, क्जसके सस
ु ग
ं त आँकड़े प्रकालशत हो
गए हैं, तनदे श का, जब तक सन ् 2[2026] के पश्चात ् की गई पहली जनगणना के सस
ु ग
ं त आँकड़े प्रकालशत
नहीं हो जाते हैं, यह अथत लगाया जाएगा कक वह 3[2001] की जनगणना के प्रतत तनदे श है ।]
331. लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रनतननधधत्ि - अनच्
ु छे द 81 में ककसी बात के होते
हुए भी, यहद राष्रपतत की यह राय है कक लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समद ु ाय का प्रतततनधधत्व पयातप्त
नहीं है तो वह लोक सभा में उस समद
ु ाय के दो से अनधधक सदस्य नामतनदे लशत कर सकेगा।
332. राज्यों की विधान सभाओं में अनस
ु धू चत जानतयों और अनस
ु धू चत जनजानतयों के ललए स्थानों
का आरक्षण - (1) 4[***] प्रत्येक राज्य की ववधान सभा में अनस
ु धू चत जाततयों के ललए और 8[असम के
स्वशासी क्जलों की अनस
ु धू चत जनजाततयों को छोड़कर] अन्य अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए स्थान
आरक्षक्षत रहें गे।
(2) असम राज्य की ववधान सभा में स्वशासी क्जलों के ललए भी स्थान आरक्षक्षत रहें गे।
(3) खंड (1) के अधीन ककसी राज्य की ववधान सभा में अनस
ु धू चत जाततयों या अनस
ु धू चत
जनजाततयों के ललए आरक्षक्षत स्थानों की संख्या का अनप
ु ात, उस ववधान सभा में स्थानों की कुल संख्या
से यथाशक्य वाही होगा जो, यथाक्स्थतत, उस राज्य की अनस
ु धू चत जाततयों की अथवा उस राज्य की या
उस राज्य के भाग की अनस
ु धू चत जनजाततयों की, क्जनके संबध
ं में स्थान इस प्रकार आरक्षक्षत है ,
जनसंख्या का अनप
ु ात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है |
[(3क) खंड (3) में ककसी बात के होते हुए भी, सन ् 7[2026] के पश्चात ् की गई पहली जनगणना
6

के आधार पर, अरुणाचल प्रदे श, मेघालय, लमजोरम और नागालैंड राज्यों की ववधान सभाओं में स्थानों की
संख्या के, अनच्
ु छे द 170 के अधीन, पन
ु :समायोजन के प्रभावी होने तक, जो स्थान ऐसे ककसी राज्य की
ववधान सभा में अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए आरक्षक्षत ककए जाएंगे, वे-
_________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चौरासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 6 द्वारा अंको “2000” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
3. संववधान (सतासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा प्रततस्थावपत|
4. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क या भाग ख में ववतनहदतष्ट” शब्दों का लोप ककया गया|

179
5. संववधान (इक्यावनवां संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 3 द्वारा (16-6-1986 से)
प्रततस्थावपत|
6. संववधान (सर्त्ावनवां संशोधन) अधधतनयम, 1987 की धारा 2 द्वारा (21-9-1987 से)
अंत:स्थावपत|
7. संववधान (चौरासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 7 द्वारा अंको “2000” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

(क) यहद संववधान (सर्त्ावनवां संशोधन) अधधतनयम, 1987 के प्रवर्त्


ृ होने की तारीख को ऐसे राज्य
की ववद्यमान ववधान सभा में (क्जसे इस खंड में इसके पश्चात ् ववद्यमान ववधान सभा कहा
गया है ) सभी स्थान अनस
ु धू चत जनजाततयों के सदस्यों द्वारा धाररत है तो, एक स्थान को
छोड़कर सभी स्थान होंगे ; और
(ख) ककसी अन्य दशा में , उतने स्थान होंगे, क्जनकी संख्या का अनप
ु ात, स्थानों की कुल संख्या के
उस अनप
ु ात से कम नहीं होगा जो ववद्यमान ववधान सभा में अनस
ु धू चत जनजाततयों के
सदस्यों की (उक्त तारीख को यथाववद्यमान) संख्या का अनप
ु ात ववद्यमान ववधान सभा में
स्थानों की कुल संख्या से है|]
[(3ख) खंड (3) में ककसी बात के होते हुए भी, सन ् 2[2006] के पश्चात ् की गई पहली जनगणना
1

के आधार पर, त्रत्रपरु ा राज्य की ववधान सभा में स्थानों की संख्या के, अनच्
ु छे द 170 के ललए आरक्षक्षत
ककए जाएंगे वे उनते स्थान होंगे क्जनकी संख्या का अनप
ु ात, स्थानों की कुल संख्या के उस अनप
ु ात से
कम नहीं होगा जो ववद्यमान ववधान सभा में अनस
ु धू चत जनजाततयों के सदस्यों की, संववधान (बहर्त्रवां
संशोधन) अधधतनयम, 1992 के प्रवर्त्
ृ होने की तारीख को यथाववद्यमान संख्या का अनप
ु ात उक्त तारीख
को सु ववधान सभा में स्थानों की कुल संख्या से है|]
(4) असम राज्य की ववधान सभा में ककसी स्वशासी क्जले के ललए आरक्षक्षत स्थानों की संख्या का
अनप
ु ात, उस ववधान सभा में स्थानों की कुल स्थानों के उस अनप
ु ात से कम नहीं होगा जो उस क्जले की
जनसंख्या का अनप
ु ात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है |
(5) 3[***] असम के ककसी स्वशासी क्जले के ललए आरक्षक्षत स्थानों के तनवातचन-क्षेत्रों में उस क्जले
के बाहर का कोई क्षेत्र समाववष्ट नहीं होगा|
(6) कोई व्यक्क्त जो असम राज्य के ककसी स्वशासी क्जले की अनस
ु धू चत जनजातत का सदस्य
नहीं है , उस राज्य की ववधान सभा के ललए 3[***] उस क्जले के ककसी तनवातचन-क्षेत्र से तनवातधचत होने का
पात्र नहीं होगा:
4
[परं तु असम राज्य की ववधान सभा के तनवातचनो के ललए, बोडोलैंड प्रादे लशक पररषद् क्षेत्र क्जला में
सक्म्मललत तनवातचन-क्षेत्रों में अनस
ु धू चत जनजाततयों और गैर-अनस
ु धू चत जनजाततयों का प्रतततनधधत्व, जो
उस प्रकार अधधसधू चत ककया गया था और बोडोलैंड प्रादे लशक क्षेत्र क्जला के गठन से पव
ू त ववद्यमान था,
बनाए रखा जाएगा|
__________________
1. संववधान (बहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा (5-12-1992 से) अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चौरासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2001 की धारा 7 द्वारा अंको “2000” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

180
3. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से)
कुछ शब्दों का लोप ककया गया|
4. संववधान (नब्बेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 (28-9-2003 से) द्वारा अंत:स्थावपत|
333. राज्यों की विधान सभाओं में आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय का प्रनतननधधत्ि – अनच्
ु छे द 170 में
ककस बात के होते हुए भी, यहद ककसी राज्य के राज्यपाल 1[***] की यह राय है कक उस राज्य कक
ववधान सभा में आंग्ल-भारतीय समदु ाय का प्रतततनधधत्व आवश्यक है और उसमें उसका प्रतततनधधत्व
पयातप्त नहीं है तो वह उस ववधान सभा में 2[उस समद
ु ाय का एक सदस्य नामतनदे लशत कर सकेगा]|
334. स्थानों के आरक्षण और विशेष प्रनतननधधत्ि का 3[सिर िषम] के पश्चात ् न रहना – इस भाग
के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में ककसी बात के होते हुए भी,-
(क) लोक सभा में और राज्यों कक ववधान सभाओं में अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत
जनजाततयों के ललए स्थानों के आरक्षण संबध
ं ी, और
(ख) लोक सभा में और राज्यों की ववधान सभाओं में नामतनदे शन द्वारा आंषल-भारतीय समद
ु ाय
के प्रतततनधधत्व संबध
ं ी,
इस संववधान के उपबंध इस संववधान के प्रारं भ से 1[साठ वषत] की अवधध की समाक्प्त पर प्रभावी
नहीं रहें गे :
परन्तु इस अनच्
ु छे द की ककसी बात से लोक सभा में या ककसी राज्य की ववधान सभा में ककसी
प्रतततनधधत्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक, यथाक्स्थतत, उस समय ववद्यमान लोक सभा या
ववधान सभा का ववघटन नहीं हो जाता है ।
335. सेिाओं और पदों के ललए अनस
ु धू चत जानतयों और अनस
ु धू चत जनजानतयों के दािे - संघ या
ककसी राज्य के कायतकलाप से संबधं धत सेवाओं और पदों के ललए तनयक्ु क्तयाँ करने में , अनस
ु धू चत जाततयों
और अनस
ु धू चत जनजाततयों के सदस्यों के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाए रखने की संगतत के अनस
ु ार
ध्यान रखा जाएगा:
4
[परन्तु इस अनच्
ु छे द की कोई बात अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों के सदस्यों के
पक्ष में , संघ या ककसी राज्य के कायतकलाप से संबधं धत सेवाओं के ककसी वगत या वगों में या पदों पर
प्रोन्नतत के मामलों में आरक्षण के ललए, ककसी परीक्षा में अहतक अंकों में छूट दे ने या मल्
ू यांकन के मानकों
को घटाने के ललए उपबंध करने से तनवाररत नहीं करे गी।]
336. कुछ सेिाओं में आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के ललए विशेष उपबंध - (1) इस संववधान के प्रारं भ के
पश्चात,् प्रथम दो वषत के दौरान, संघ की रे ल, सीमाशल्
ु क, डाक और तार संबध
ं ी सेवाओं में पदों के ललए
आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के सदस्यों की तनयक्ु क्तयाँ उसी आधार पर की जाएँगी क्जस आधार पर 15 अगस्त,
1947 से ठीक पहले की जाती थीं।
__________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|
2. संववधान (तेईसवां संशोधन) अधधतनयम, 1969 की धारा 4 द्वारा “उस ववधान सभा में उस
समुदाय के क्जतने सदस्य वह समुधचत समझे नामतनदे लशत का सकेगा” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

181
3. संववधान (वपचान्बेवां संशोधन) अधधतनयम, 2009 की धारा 2 द्वारा (25-1-2010 से) “साठ वषत”
के स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. संववधान (बयासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2000 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत|
प्रत्येक उर्त्रवती दो वषतकी अवधध के दौरान उक्त समद
ु ाय के सदस्यों के ललए, उक्त सेवाओं में
आरक्षक्षत पदों की संख्या ठीक पव
ू व
त ती दो वषतकी अवधध के दौरान इस प्रकार आरक्षक्षत संख्या से यथासंभव
तनकटतम दस प्रततशत कम होगी :
परन्तु इस संववधान के प्रारं भ से दस वषत के अंत में ऐसे सभी आरक्षण समाप्त हो जाएँगे।
(2) यहद आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के सदस्य अन्य समद
ु ायों के सदस्यों की तल
ु ना में गण
ु ागण
ु के
आधार पर तनयक्ु क्त के ललए अहतत पाए जाएँ तो खंड (1) के अधीन उस समद
ु ाय के ललए आरक्षक्षत पदों से
लभन्न या उनके अततररक्त पदों पर आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के सदस्यों की तनयक्ु क्त को उस खंड की कोई
बात वक्जतत नहीं करे गी।
337. आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के फायदे के ललए शैक्षक्षक अनद
ु ान के ललए विशेष उपबंध - इस
संववधान के प्रारं भ के पश्चात,् प्रथम तीन ववर्त्ीय वषों के दौरान आंग्ल-भारतीय समद
ु ाय के फायदे के ललए
लशक्षा के संबध
ं में संघ और 1[***] प्रत्येक राज्य द्वारा वही अनद
ु ान, यहद कोई हों, हदए जाएँगे जो 31 माचत,
1948 को समाप्त होने वाले ववर्त्ीय वषत में हदए गए थे।
प्रत्येक उर्त्रवती तीन वषत की अवधध के दौरान अनद
ु ान ठीक पव
ू व
त ती तीन वषत की अवधध की
अपेक्षा दस प्रततशत कम हो सकेंगे :
परन्तु इस संववधान के प्रारं भ से दस वषत के अंत में ऐसे अनद
ु ान, क्जस मात्रा तक वे आंग्ल-
भारतीय समद
ु ाय के ललए ववशेष ररयायत है उस मात्रा तक, समाप्त हो जाएँगे :
परन्तु यह और कक कोई लशक्षा संस्था इस अनच्
ु छे द के अधीन अनद
ु ान प्राप्त करने की तब तक
हकदार नहीं होगी जब तक उसके वावषतक प्रवेशों में कम से कम चालीस प्रततशत प्रवेश आंग्ल-भारतीय
समद
ु ाय से लभन्न समद
ु ायों के सदस्यों के ललए उपलब्ध नहीं ककए जाते हैं।
338. 2[अनस
ु धू चत जानत के ललए राष्ट्रीय आयोग] - 2[ [(1) अनस
4
ु धू चत जाततयों के ललए एक आयोग
होगा जो राष्रीय अनस
ु धू चत जातत आयोग के नाम से ज्ञात होगा।
(2) संसद् द्वारा इस तनलमर्त् बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, आयोग एक
अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों से लमलकर बनेगा और इस प्रकार तनयक्ु त ककए गए अध्यक्ष,
उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा की शतें और पदावधध ऐसी होंगी जो राष्रपतत, तनयम द्वारा,
अवधाररत करे ।
(3) राष्रपतत अपने हस्ताक्षर और मद्र
ु ा सहहत अधधपत्र द्वारा आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और
अन्य सदस्यों को तनयक्
ु त करे गा।
(4) आयोग को अपनी प्रकक्रया स्वयं ववतनयलमत करने की शक्क्त होगी।
(5) आयोग का यह कततव्य होगा कक वह,-
__________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क या भाग ख में ववतनहदतष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया|
2. संववधान (नवासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2(क) द्वारा (19-2-2004 से) प्रततस्थावपत|
3. संववधान (नवासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2(ख) द्वारा (19-2-2004 से) प्रततस्थावपत|

182
4. खंड (1) से (9) तक संववधान के (पैंसठवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1990 द्वारा (12-3-1992 से)
खंड (1) और (2) के ललए प्रततस्थावपत|

(क) अनस
ु धू चत जाततयों [***] के ललए इस संववधान या तत्समय प्रवर्त्
1
ृ ककसी अन्य ववधध या
सरकार के ककसी आदे श के अधीन उपबंधधत रक्षोपायों से संबधं धत सभी ववषयों का अन्वेषण
करे और उन पर तनगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के कायतकरण का मल्
ू यांकन करे ;
(ख) अनस
ु धू चत जाततयों 1[***] को उनके अधधकारों और रक्षोपायों से वंधचत करने की बाबत
ववतनहदतष्ट लशकायतों की जाँच करें ;
(ग) अनस
ु धू चत जाततयों 1[***] के सामाक्जक-आधथतक ववकास की योजना प्रकक्रया में भाग ले और
उन पर सलाह दे तथा संघ और ककसी राज्य के अधीन उनके ववकास की प्रगतत का मल्
ू यांकन
करे ;
(घ) उन रक्षोपायों के कायतकरण के बारे में प्रततवषत, और ऐसे अन्य समयों पर, जो आयोग ठीक
समझे, राष्रपतत को प्रततवेदन दे ;
(ङ) ऐसे प्रततवेदनों में उन उपायों के बारे में जो उन रक्षोपायों के प्रभावपण
ू त कायातन्वयन के ललए
संघ या ककसी राज्य द्वारा ककए जाने चाहहए, तथा अनस
ु धू चत जाततयों 1[***] के संरक्षण,
कल्याण और सामाक्जक-आधथतक ववकास के ललए अन्य उपायों के बारे में लसफाररश करे ;
(च) अनस
ु धू चत जाततयों
1
[***]के संरक्षण, कल्याण और ववकास तथा उन्नयन के संबध
ं में ऐसे
अन्य कृत्यों का तनवतहन करे जो राष्रपतत, संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के
अधीन रहते हुए, तनयम द्वारा ववतनहदत ष्ट करे ।
(6) राष्रपतत ऐसे सभी प्रततवेदनों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और उनके साथ
संघ से संबधं धत लसफाररशों पर की गई या ककए जाने के ललए प्रस्थावपत कारतवाई तथा यहद कोई ऐसी
लसफाररश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृतत के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
(7) जहाँ कोई ऐसा प्रततवेदन, या उसका कोई भाग, ककसी ऐसे ववषय से संबधं धत है क्जसका ककसी
राज्य सरकार से संबध
ं है तो ऐसे प्रततवेदन की एक प्रतत उस राज्य के राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे
राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संबधं धत लसफाररशों पर की गई या
ककए जाने के ललए प्रस्थावपत कारत वाई तथा यहद कोई ऐसी लसफाररश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृतत के
कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
(8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) में तनहदत ष्ट ककसी ववषय का अन्वेषण करते समय या
उपखंड (ख) में तनहदत ष्ट ककसी पररवाद के बारे में जाँच करते समय, ववलशष्टतया तनम्नललणखत ववषयों के
संबध
ं में , वे सभी शक्क्तयाँ होंगी, जो वाद का ववचारण करते समय लसववल न्यायालय को हैं, अथातत ् :-
(क) भारत के ककसी भी भाग से ककसी व्यक्क्त को समन करना और हाक्जर कराना तथा शपथ पर
उसकी परीक्षा करना;
(ख) ककसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
_________________
1. संववधान (नवासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 (ग) द्वारा (19-2-2004 से) शब्दों
“और अनुसूधचत जनजाततयों” का लोप ककया गया|

(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;

183
(घ) ककसी न्यायालय या कायातलय से ककसी लोक अलभलेख या उसकी प्रतत की अध्यपेक्षा करना;
(ङ) साक्षक्षयों और दस्तावेजों की परीक्षा के ललए कमीशन तनकालना;
(च) कोई अन्य ववषय, जो राष्रपतत, तनयम द्वारा अवधाररत करे ।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनस
ु धू चत जाततयों को 1[***]प्रभाववत करने वाले सभी महत्वपण
ू त
नीततगत ववषयों पर आयोग से परामशत करे गी।
2
[(10)] इस अनच्
ु छे द में , अनस
ु धू चत जाततयों [***] के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा
1

कक इसके अंतगतत ऐसे अन्य वपछड़े वगों के प्रतत तनदे श, क्जनको राष्रपतत अनच्
ु छे द 340 के खंड (1) के
अधीन तनयक्
ु त आयोग के प्रततवेदन कक प्राक्प्त पर आदे श द्वारा ववतनहदत ष्ट करे , और आंग्ल-भारतीय
समद
ु ाय के प्रतत तनदे श भी है |
3
[338-क अनस
ु धू चत जनजानत के ललए राष्ट्रीय आयोग] - (1) अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए एक
आयोग होगा जो राष्रीय अनस
ु धू चत जनजातत आयोग के नाम से ज्ञात होगा।
(2) संसद् द्वारा इस तनलमर्त् बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, आयोग एक
अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों से लमलकर बनेगा और इस प्रकार तनयक्ु त ककए गए अध्यक्ष,
उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा की शतें और पदावधध ऐसी होंगी जो राष्रपतत, तनयम द्वारा,
अवधाररत करे ।
(3) राष्रपतत अपने हस्ताक्षर और मद्र
ु ा सहहत अधधपत्र द्वारा आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और
अन्य सदस्यों को तनयक्
ु त करे गा।
(4) आयोग को अपनी प्रकक्रया स्वयं ववतनयलमत करने की शक्क्त होगी।
(5) आयोग का यह कततव्य होगा कक वह,-
(क) अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए इस संववधान या तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी अन्य ववधध या सरकार
के ककसी आदे श के अधीन उपबंधधत रक्षोपायों से संबधं धत सभी ववषयों का अन्वेषण करे और
उन पर तनगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के कायतकरण का मल्
ू यांकन करे ;
(ख) अनस
ु धू चत जनजाततयों को उनके अधधकारों और रक्षोपायों से वंधचत करने की बाबत ववतनहदत ष्ट
लशकायतों की जाँच करें ;
(ग) अनस
ु धू चत जनजाततयों के सामाक्जक-आधथतक ववकास की योजना प्रकक्रया में भाग ले और उन
पर सलाह दे तथा संघ और ककसी राज्य के अधीन उनके ववकास की प्रगतत का मल्
ू यांकन
करे ;
__________________
1. संववधान (नवासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 (ग) द्वारा शब्दों “और अनस
ु धू चत
जनजाततयों” का लोप ककया गया|
2. संववधान (पैंसठवां संशोधन) अधधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (3) को
खंड (10) के रूप में पन
ु :संख्यांककत ककया गया|
3. संववधान (नवासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 कक धारा 3 द्वारा (192-2004 से) अंत:स्थावपत|

(घ) उन रक्षोपायों के कायतकरण के बारे में प्रततवषत, और ऐसे अन्य समयों पर, जो आयोग ठीक
समझे, राष्रपतत को ररपोटत दे ;

184
(ङ) ऐसे ररपोटो में उन उपायों के बारे में जो उन रक्षोपायों के प्रभावपण
ू त कायातन्वयन के ललए संघ
या ककसी राज्य द्वारा ककए जाने चाहहए, तथा अनस
ु धू चत जनजाततयों के संरक्षण, कल्याण और
सामाक्जक-आधथतक ववकास के ललए अन्य उपायों के बारे में लसफाररश करे ;
(च) अनस
ु धू चत जनजाततयों के संरक्षण, कल्याण और ववकास तथा उन्नयन के संबध
ं में ऐसे अन्य
कृत्यों का तनवतहन करे जो राष्रपतत, संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन
रहते हुए, तनयम द्वारा ववतनहदत ष्ट करे ।
(6) राष्रपतत ऐसी सभी ररपोटो को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और उनके साथ
संघ से संबधं धत लसफाररशों पर की गई या ककए जाने के ललए प्रस्थावपत कारतवाई तथा यहद कोई ऐसी
लसफाररश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृतत के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
(7) जहाँ कोई ऐसी ररपोटत या उसका कोई भाग, ककसी ऐसे ववषय से संबधं धत है क्जसका ककसी राज्य
सरकार से संबध
ं है तो ऐसी ररपोटत की एक प्रतत उस राज्य के राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के
ववधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संबधं धत लसफाररशों पर की गई या ककए जाने
के ललए प्रस्थावपत कारत वाई तथा यहद कोई ऐसी लसफाररश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृतत के कारणों को
स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
(8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) में तनहदतष्ट ककसी ववषय का अन्वेषण करते समय या
उपखंड (ख) में तनहदत ष्ट ककसी पररवाद के बारे में जाँच करते समय, ववलशष्टतया तनम्नललणखत ववषयों के
संबध
ं में , वे सभी शक्क्तयाँ होंगी, जो वाद का ववचारण करते समय लसववल न्यायालय को हैं, अथातत ् :-
(क) भारत के ककसी भी भाग से ककसी व्यक्क्त को समन करना और हाक्जर कराना तथा शपथ पर
उसकी परीक्षा करना;
(ख) ककसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) ककसी न्यायालय या कायातलय से ककसी लोक अलभलेख या उसकी प्रतत की अध्यपेक्षा करना;
(ङ) साक्षक्षयों और दस्तावेजों की परीक्षा के ललए कमीशन तनकालना;
(च) कोई अन्य ववषय, जो राष्रपतत, तनयम द्वारा अवधाररत करे ।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनस
ु धू चत जनजाततयों को प्रभाववत करने वाले सभी महत्वपण
ू त
नीततगत ववषयों पर आयोग से परामशत करे गी।]
339. अनस
ु धू चत क्षेत्रों के प्रशासन और अनस
ु धू चत जनजानतयों के कल्याण के बारे में संघ का
ननयंत्रण – (1) राष्रपतत, 1[***] राज्यों के अनस
ु धू चत क्षेत्रों के प्रशासन और अनस
ु धू चत जनजाततयों के
कल्याण के बारे में प्रततवेदन दे ने के ललए आयोग की तनयक्ु क्त, आदे श द्वारा, ककसी भी समय कर सकेगा
और इस संववधान के प्रारं भ से दस वषत की समाक्प्त पर करे गा|
__________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क या भाग ख में ववतनहदतष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया|

आदे श में आयोग की संरचना, शक्क्तयां और प्रकक्रया पररतनक्श्चत की जा सकेगी और उसमे ऐसे
आनष
ु धं गक या सहायक उपबंध समाववष्ट हो सकेंगे क्जन्हें राष्रपतत आवश्यक या वांछनीय समझे|

185
(2) संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार 1[ककसी राज्य] की ऐसे तनदे श दे ने तक होगा जो उस
राज्य की अनस
ु धू चत जनजाततयों के कल्याण के ललए तनदे श में आवश्यक बताई गई स्कीमों के बनाने और
तनष्पादन के बारे में है |
340. वपछड़े िगों की दशाओं के अन्िेषण के ललए आयोग की ननयक्ु तत – (1) राष्रपतत भारत के
राज्यक्षेत्र के भीतर सामाक्जक और शैक्षक्षक दृक्ष्ट से वपछड़े वगों की दशाओं के और क्जन कहठनाइयों को
वे झेल रहे है उनके अन्वेषण के ललए और उन कहठनाइयों को दरू करने और उनकी दशा को सध
ु ारने के
ललए संघ या ककसी राज्य द्वारा जो उपाय ककए जाने चाहहए उनके बारे में और उस प्रयोजन के ललए संघ
या ककसी राज्य द्वारा जो अनद
ु ान ककए जाने चाहहएं और क्जन शतों के अधीन वे अनद
ु ान ककए जाने
चाहहए उनके बारे में लसफाररश करने के ललए, आदे श द्वारा, एक आयोग तनयक्
ु त कर सकेगा जो ऐसे
व्यक्क्तयों से लमलकर बनेगा जो वह ठीक समझे और ऐसे आयोग को तनयक्
ु त करने वाले आदे श में
आयोग द्वारा अनस
ु रण की जाने वाली प्रकक्रया पररतनक्श्चत की जाएगी|
(2) इस प्रकार तनयक्
ु त आयोग अपने को तनदे लशत ववषयों का अन्वेषण करे गा और राष्रपतत को
प्रततवेदन दे गा, क्जसमें उसके द्वारा पाए गए तथ्य उपवणणतत ककए जाएंगे और क्जसमे ऐसी लसफाररशें की
जाएंगे क्जन्हें आयोग उधचत समझे|
(3) राष्रपतत, इस प्रकार हदए गए प्रततवेदन की एक प्रतत, उस पर की गई कारत वाई को स्पष्ट
करने वाले ज्ञापन सहहत, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा|
341. अनस
ु धू चत जानतयााँ – (1)राष्रपतत, [ककसी राज्य] 3[या संघ राज्यक्षेत्र] के संबध
2
ं में और जहाँ
वह 4[***] राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल 5[***] से परामशत करने के पश्चात]् लोक अधधसच
ू ना द्वारा, उन
जाततयों, मल
ू वंशो या जनजाततयों, अथवा जाततयों, मल
ू वंशो या जनजाततयों के भागों या उनमें के यथ
ू ों को
ववतनहदतष्ट कर सकेगा, क्जन्हें इस संववधान के प्रयोजनों के ललए, 1[यथाक्स्थतत] उस राज्य 1[या संघ
राज्यक्षेत्र] के संबध ु धू चत जाततयाँ समझा जाएगा।
ं में अनस
_________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ककसी ऐसे
राज्य” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 10 द्वारा ''राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख
से परामशत करने के पश्चात''् के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थावपत।
4. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख में ववतनहदत ष्ट'' शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया।
5. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों
का लोप ककया गया।
6. संववधान (अऩुसूधचत जनजाततयाँ) आदे श, 1950 (सं.आ. 19), संववधान (अनुसूधचत जनजाततयाँ)
(संघ राज्यक्षेत्र) आदे श, 1951 (सं.आ. 32), संववधान (जम्मूकश्मीर) अनुसूधचत जाततयाँ आदे श,
1956 (सं.आ. 52), संववधान (दादरा और नागर हवेली) अनुसूधचत जाततयाँ आदे श, 1962 (सं.आ.
64), संववधान (पांडडचेरी) अनुसूधचत जाततयाँ आदे श, 1964 (सं.आ. 68), संववधान (गोवा, दमण
और दीव) अनुसूधचत जाततयाँ आदे श, 1968 (सं.आ. 81) और संववधान (लसक्क्कम) अनुसूधचत
जाततयाँ आदे श, 1978 (सं.आ. 110) दे णखए|

186
(2) संसद्, ववधध द्वारा, ककसी जातत, मल
ू वंश या जनजातत को अथवा जातत, मल
ू वंश या जनजातत
के भाग या उसमें के यथ
ू को खंड (1) के अधीन तनकली गई अधधसच
ू ना में ववतनहदत ष्ट अनस
ु धू चत
जाततयों की सच
ू ी में सक्म्मललत कर सकेगी या उसमे से अपवक्जतत कर सकेगी, ककन्तु जैसा ऊपर
कहा गया है उसके लसवाय उक्त खंड के अधीन तनकली गई अधधसच
ू ना में ककसी पश्चात्वती
अधधसच
ू ना द्वारा पररवततन नहीं ककया जाएगा|
342. अनस
ु धू चत जनजानतयााँ - (1) राष्रपतत, 1[ककसी राज्य] 2[या संघ राज्यक्षेत्र] के संबध
ं में और जहाँ
वह 3[***] राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल से 4[***] परामशत करने के पश्चात ् 5लोक अधधसच
ू ना द्वारा, उन
जनजाततयों या जनजातत समद
ु ायों अथवा जनजाततयों या जनजातत समद
ु ायों के भागों या उनमें के यथ
ू ों को
ववतनहदतष्ट कर सकेगा, क्जन्हें इस संववधान के प्रयोजनों के ललए, 2[यथाक्स्थतत] उस राज्य 2[या संघ
राज्यक्षेत्र] के संबध
ं में अनस
ु धू चत जनजाततयाँ समझा जाएगा।
(2) संसद्, ववधध द्वारा, ककसी जनजातत या जनजातत समद
ु ाय को अथवा ककसी जनजातत या
जनजातत समद
ु ाय के भाग या उसमें के यथ
ू को खंड (1) के अधीन तनकाली गई अधधसच
ू ना में ववतनहदतष्ट
अनस
ु धू चत जनजाततयों की सच
ू ी में सक्म्मललत कर सकेगी या उसमें से अपवक्जतत कर सकेगी, ककन्तु जैसा
ऊपर कहा गया है उसके लसवाय उक्त खंड के अधीन तनकाली गई अधधसच
ू ना में ककसी पश्चातवती

अधधसच
ू ना द्वारा पररवततन नहीं ककया जाएगा।

भाग 17
राजभाषा
अध्याय 1
संघ की भाषा
343. संघ की राजभाषा – (1) संघ की राजभाषा हहंदी और ललवप दे वनागरी होगी|
संघ के शासकीय प्रयोजनों के ललए प्रयोग होने वाले अंको का रूप भारतीय अंको का अंतरराष्रपतत
रूप होगा|
__________________
1. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 11 द्वारा ''राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख
से परामशत करने के पश्चात''् के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थावपत।
3. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख में ववतनहदत ष्ट'' शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया।
4. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों
का लोप ककया गया।
5. संववधान (अऩुसूधचत जनजाततयाँ) आदे श, 1950 (सं.आ. 22), संववधान (अनुसूधचत जनजाततयाँ)
(संघ राज्यक्षेत्र) आदे श, 1951 (सं.आ. 33), संववधान (अंडमान और तनकोबार द्वीप) अनुसूधचत जनजाततयाँ
आदे श, 1959 (सं.आ. 58). संववधान (दादरा और नागर हवेली) अनुसूधचत जनजाततयाँ आदे श, 1962 (सं.आ. 65),
संववधान (अनुसूधचत जनजाततयाँ) (उर्त्र प्रदे श) आदे श, 1967 (सं.आ.78). संववधान (गोवा, दमण और दीव)
अनुसूधचत जनजाततयाँ आदे श, 1968 (सं.आ. 82), संववधान (नागालैंड) अनुसूधचत जनजाततयाँ आदे श, 1970
(सं.आ. 88) और संववधान (लसक्क्कम) अनुसूधचत जनजाततयाँ आदे श, 1978 (सं.आ. 111) दे णखए|

187
(2) खंड (1) में ककसी बात के होते हुए भी, इस संववधान के प्रारं भ से पन्द्रह वषत की अवधध तक संघ
के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के ललए अंग्रज े ी भाषा का प्रयोग ककया जाता रहे गा क्जनके ललए उसका ऐसे
प्रारं भ से ठीक पहले प्रयोग ककया जा रहा था:
परन्तु राष्रपतत उक्त अवधध के दौरान, आदे श1 द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से ककसी के
ललए अंग्रेजी भाषा के अततररक्त हहन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतरराष्रीय रूप के अततररक्त
दे वनागरी रूप का प्रयोग प्राधधकृत कर सकेगा।
(3) इस अनच्
ु छे द में ककसी बात के होते हुए भी, संसद् उक्त पन्द्रह वषत की अवधध के पश्चात,् ववधध
द्वारा-
(क) अंग्रेजी भाषा का, या
(ख) अंकों के दे वनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के ललए प्रयोग उपबंधधत कर सकेगी जो ऐसी ववधध में ववतनहदतष्ट ककए जाएँ।
344. राजभाषा के संबध
ं में आयोग और संसद् की सलमनत - (1) राष्रपतत, इस संववधान के प्रारं भ से
पाँच वषत की समाक्प्त पर और तत्पश्चात ् ऐसे प्रारं भ से दस वषत की समाक्प्त पर, आदे श द्वारा, एक आयोग
गहठत करे गा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट ववलभन्न भाषाओं का प्रतततनधधत्व करने
वाले ऐसे अन्य सदस्यों से लमलकर बनेगा क्जनको राष्रपतत तनयक्
ु त करे और आदे श में आयोग द्वारा
अनस
ु रण की जाने वाली प्रकक्रया पररतनक्श्चत की जाएगी।
(2) आयोग का यह कततव्य होगा कक वह राष्रपतत को—
(क) संघ के शासकीय प्रयोजनों के ललए हहन्दी भाषा के अधधकाधधक प्रयोग,
(ख) संघ के सभी या ककन्ही शासकीय प्रयोजनों के ललए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर तनबंधनों,
(ग) अनच्
ु छे द 348 में उक्ल्लणखत सभी या ककन्हीं प्रयोजनों के ललए प्रयोग की जाने वाली भाषा,
(घ) संघ के ककसी एक या अधधक ववतनहदत ष्ट प्रयोजनों के ललए प्रयोग ककए जाने वाले अंकों के
रूप,
(ङ) संघ की राजभाषा तथा संघ और ककसी राज्य के बीच या एक राज्य और दस
ू रे राज्य के बीच
पत्राहद की भाषा और उनके प्रयोग के संबध
ं में राष्रपतत द्वारा आयोग को तनदे लशत ककए गए
ककसी अन्य ववषय,
के बारे में लसफाररश करे ।
(3) खंड (2) के अधीन अपनी लसफाररशें करने में , आयोग भारत की औद्योधगक, सांस्कृततक और
ज्ञातनक उन्नतत का और लोक सेवाओं के संबध
ं में अहहन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्क्तयों के न्यायसंगत वों और
हहतों का सम्यक् ध्यान रखेगा।
___________________
1. सं.आ. 41 दे णखए|
(4) एक सलमतत गहठत की जाएगी जो तीस सदस्यों से लमलकर बनेगी क्जनमें से बीस लोक सभा
के दस्य होंगे और दस राज्य सभा के सदस्य होंगे जो क्रमशः लोक सभा के सदस्यों और राज्य सभा के
सदस्यों द्वारा आनप
ु ाततक प्रतततनधधत्व पद्धतत के अनस
ु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा तनवातधचत होंगे।
(5) सलमतत का यह कततव्य होगा कक वह खंड (1) के अधीन गहठत आयोग की लसफाररशों की परीक्षा
करे और राष्रपतत को उन पर अपनी राय के बारे में प्रततवेदन दे ।

188
(6) अनच्
ु छे द 343 में ककसी बात के होते हुए भी, राष्रपतत खंड (5) में तनहदत ष्ट प्रततवेदन पर ववचार
करने के पश्चात ् उस संपण
ू त प्रततवेदन के या उसके ककसी भाग के अनस ु ार तनदे श दे सकेगा।
अध्याय – 2
प्रादे लशक भाषाएं
345. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएाँ - अनच्
ु छे द 346 और अनच्
ु छे द 347 के उपबंधों के अधीन
रहते हुए, ककसी राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से ककसी
एक या अधधक भाषाओं को या हहन्दी को उस राज्य के सभी या ककन्हीं शासकीय प्रयोजनों के ललए प्रयोग
की जाने वाली भाषा या भाषाओं के प्ररूप में अंगीकार कर सकेगा:
परन्तु जब तक राज्य का ववधान-मंडल, ववधध द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर
उन शासकीय प्रयोजनों के ललए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग ककया जाता रहे गा क्जनके ललए उसका इस संववधान
के प्रारं भ से ठीक पहले प्रयोग ककया जा रहा था।
346. एक राज्य और दस
ू रे राज्य के बीच या क्रकसी राज्य और संघ के बीच पत्रार्द की राजभाषा -
संघ में शासकीय प्रयोजनों के ललए प्रयोग ककए जाने के ललए तत्समय प्राधधकृत भाषा, एक राज्य और दस
ू रे
राज्य के बीच तथा ककसी राज्य और संघ के बीच पत्राहद की राजभाषा होगी:
परन्तु यहद दो या अधधक राज्य यह करार करते हैं कक उन राज्यों के बीच पत्राहद की राजभाषा
हहन्दी भाषा होगी तो ऐसे पत्राहद के ललए उस भाषा का प्रयोग ककया जा सकेगा।
347. क्रकसी राज्य की जनसंख्या के क्रकसी अनभ
ु ाग द्िारा बोली जाने िाली भाषा के संबध
ं में विशेष
उपबंध - यहद इस तनलमर्त् मांग ककए जाने पर राष्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक ककसी राज्य की
जनसंख्या का पयातप्त भाग यह चाहता है कक उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता
दी जाए तो वह तनदे श दे सकेगा कक ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सवतत्र या उसके ककसी भाग में ऐसे
प्रयोजन के ललए, जो वह ववतनहदत ष्ट करे , शासकीय मान्यता दी जाए।
अध्याय – 3
उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आर्द की भाषा
348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधधननयमों, विधेयकों आर्द के ललए प्रयोग
की जाने िाली भाषा - (1) इस भाग के पवू ग
त ामी उपबंधों में ककसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद्
ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक-
(क) उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कायतवाहहयाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी,
(ख) (i) संसद् के प्रत्येक सदन या ककसी राज्य के ववधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन में
परु ःस्थावपत ककए जाने वाले सभी ववधेयकों या प्रस्ताववत ककए जाने वाले उनके संशोधनों के,
(ii) संसद् या ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा पाररत सभी अधधतनयमों के और राष्रपतत
या ककसी राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा प्रख्यावपत सभी अध्यादे शों के, और
(iii) इस संववधान के अधीन अथवा संसद् या ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई
ककसी ववधध के अधीन तनकाले गए या बनाए गए सभी आदे शों, तनयमों, ववतनयमों और
उपववधधयों के,
प्राधधकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) में ककसी बात के होते हुए भी, ककसी राज्य का राज्यपाल 1[***]
राष्रपतत की पव ू त सहमतत से उस उच्च न्यायालय की कायतवाहहयों में , क्जसका मख्
ु य स्थान उस राज्य में है ,

189
हहन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के ललए प्रयोग होने वाली ककसी अन्य भाषा का प्रयोग
प्राधधकृत कर सकेगा :
परन्तु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा हदए गए ककसी तनणतय, डडक्री या आदे श
को लागू नहीं होगी।
(3) खंड (1) के उपखंड (ख) में ककसी बात के होते हुए भी, जहाँ ककसी राज्य के ववधान-मंडल ने, उस
ववधान-मंडल में परु ःस्थावपत ववधेयकों में या उसके द्वारा पाररत अधधतनयमों में अथवा उस राज्य के
राज्यपाल 1[***] द्वारा प्रख्यावपत अध्यादे शों में अथवा उस उपखंड के पैरा (ii) में तनहदतष्ट ककसी आदे श,
तनयम, ववतनयम या उपववधध में प्रयोग के ललए अँग्रज
े ी भाषा से लभन्न कोई भाषा ववहहत की है वहाँ उस
राज्य के राजपत्र में उस राज्य के राज्यपाल1*** के प्राधधकार से प्रकालशत अँग्रेजी भाषा में उसका अनव
ु ाद
इस अनच्
ु छे द के अधीन उसका अँग्रेजी भाषा में प्राधधकृत पाठ समझा जाएगा।
349. भाषा से संबधं धत कुछ विधधयााँ अधधननयलमत करने के ललए विशेष प्रक्रक्रया - इस संववधान के
प्रारं भ से पन्द्रह वषत की अवधध के दौरान, अनच्
ु छे द 348 के खंड (1) में उक्ल्लणखत ककसी प्रयोजन के ललए
प्रयोग की जाने वाली भाषा के ललए उपबंध करने वाला कोई ववधेयक या संशोधन संसद् के ककसी सदन में
राष्रपतत की पव
ू त मंजूरी के त्रबना परु ःस्थावपत या प्रस्ताववत नहीं ककया जाएगा और राष्रपतत ककसी ऐसे
ववधेयक को परु ःस्थावपत या ककसी ऐसे संशोधन को प्रस्ताववत ककए जाने की मंजरू ी अनच्
ु छे द 344 के खंड
(1) के अधीन गहठत आयोग की लसफाररशों पर और उस अनच्
ु छे द के खंड (4) के अधीन गहठत सलमतत के
प्रततवेदन पर ववचार करने के पश्चात ् ही दे गा, अन्यथा नहीं।
____________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|

अध्याय – 4
विशेष ननदे श
350. व्यथा के ननिारण के ललए अभ्यािेदन में प्रयोग की जाने िाली भाषा - प्रत्येक व्यक्क्त ककसी
व्यथा के तनवारण के ललए संघ या राज्य के ककसी अधधकारी या प्राधधकारी को, यथाक्स्थतत, संघ में या राज्य
में प्रयोग होने वाली ककसी भाषा में अभ्यावेदन दे ने का हकदार होगा।
1
[350क. प्राथलमक स्तर पर मातभ
ृ ाषा में लशक्षा की सवु िधाएाँ - प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर
प्रत्येक स्थानीय प्राधधकारी भाषाई अल्पसंख्यक-वगों के बालकों को लशक्षा के प्राथलमक स्तर पर मातभ
ृ ाषा में
लशक्षा की पयातप्त सवु वधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करे गा और राष्रपतत ककसी राज्य को ऐसे तनदे श
दे सकेगा जो वह ऐसी सवु वधाओं का उपबंध सतु नक्श्चत कराने के ललए आवश्यक या उधचत समझता है ।
350-ख. भाषाई अल्पसंख्यक-िगों के ललए विशेष अधधकारी - (1) भाषाई अल्पसंख्यक-वगों के ललए
एक ववशेष अधधकारी होगा क्जसे राष्रपतत तनयक्
ु त करे गा।
(2) ववशेष अधधकारी का यह कततव्य होगा कक वह इस संववधान के अधीन भाषाई अल्पसंख्यक-वगों
के ललए उपबंधधत रक्षोपायों से संबधं धत सभी ववषयों का अन्वेषण करे और उन ववषयों के संबध
ं में ऐसे
अंतरालों पर जो राष्रपतत तनहदत ष्ट करे , राष्रपतत को प्रततवेदन दे और राष्रपतत ऐसे सभी प्रततवेदनों को
संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और संबधं धत राज्यों की सरकारों को लभजवाएगा।]
351. र्हन्दी भाषा के विकास के ललए ननदे श - संघ का यह कततव्य होगा कक वह हहन्दी भाषा का
प्रसार बढ़ाए, उसका ववकास करे क्जससे वह भारत की सामालसक संस्कृतत के सभी तत्वों की अलभव्यक्क्त

190
का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृतत में हस्तक्षेप ककए त्रबना हहन्दस्
ु तानी में और आठवीं अनस
ु च
ू ी में
ववतनहदतष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयक्
ु त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ
आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भंडार के ललए मख्ु यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से
शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समद्
ृ धध सतु नक्श्चत करे ।
अध्याय 18
आपात उपबंध
352. आपात की उद्घोषणा - (1) यहद राष्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक गंभीर आपात
ववद्यमान है क्जसे यद्
ु ध या बाह्य आक्रमण या 1[सशस्त्र ववद्रोह] के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग की सरु क्षा संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा 2[संपण
ू त भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग
के संबध
ं में जो उद्घोषणा में ववतनहदत ष्ट ककया जाए] इस आशय की घोषणा कर सकेगा।
___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 21 द्वारा (1-11-1956 से) अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से)
“अभ्यांतररक अशांतत” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 48 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
1
[स्पष्ट्टीकरण - यहद राष्रपतत को यह समाधान हो जाता है कक यद्
ु ध या वाह्य आक्रमण या
सशस्त्र ववद्रोह का संकट सक्न्नकट है तो यह घोवषत करने वाली आपात की उद्घोषणा कक यद्
ु ध या बाह्य
आक्रमण या सशस्त्र ववद्रोह से भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सरु क्षा संकट में है , यद्
ु ध या
ऐसे ककसी आक्रमण या ववद्रोह के वास्तव में होने से पहले भी की जा सकेगी। ]
2
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा में ककसी पश्चातवती
् उद्घोषणा द्वारा पररवततन ककया
जा सकेगा या उसको वापस ललया जा सकेगा।
(3) राष्रपतत, खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररवततन करने वाली उद्घोषणा
तब तक नहीं करे गा जब तक संघ के मंत्रत्रमंडल का (अथातत ् उस पररषद् का जो अनच्
ु छे द 75 के अधीन
प्रधानमंत्री और मंत्रत्रमंडल स्तर के अन्य मंत्रत्रयों से लमलकर बनती है ) यह ववतनश्चय कक ऐसी उद्घोषणा की
जाए, उसे ललणखत रूप में संसधू चत नहीं ककया जाता है ।
(4) इस अनच्
ु छे द के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी
और जहाँ वह पव
ू व
त ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है वहाँ वह एक मास की समाक्प्त पर,
यहद उस अवधध की समाक्प्त से पहले संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनम
ु ोदन नहीं कर
हदया जाता है तो, प्रवततन में नहीं रहे गी:
परन्तु यहद ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पव
ू व
त ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है)
उस समय की जाती है जब लोक सभा का ववघटन हो गया है या लोक सभा का ववघटन इस खंड में
तनहदत ष्ट एक मास की अवधध के दौरान हो जाता है और यहद उद्घोषणा का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प
राज्य सभा द्वारा पाररत कर हदया गया है , ककन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबध
ं में कोई संकल्प लोक सभा
द्वारा उस अवधध की समाक्प्त से पहले पाररत नहीं ककया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से क्जसको
लोक सभा अपने पन
ु गतठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है , तीस हदन की समाक्प्त पर, प्रवततन में नहीं रहे गी

191
यहद उक्त तीस हदन की अवधध की समाक्प्त से पहले उद्घोषणा का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प लोक
सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर हदया जाता है ।
(5) इस प्रकार अनम
ु ोहदत उद्घोषणा, यहद वापस नहीं ली जाती है तो, खंड (4) के अधीन उद्घोषणा
का अनम
ु ोदन करने वाले संकल्पों में से दस
ू रे संकल्प के पाररत ककए जाने की तारीख से छह मास की
अवधध की समाक्प्त पर प्रवततन में नहीं रहे गी:
परन्तु यहद और क्जतनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने का अनम
ु ोदन करने वाला
संकल्प संसद् के दोनों सदनों द्वारा पाररत कर हदया जाता है तो और उतनी बार वह उद्घोषणा, यहद वापस
नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से क्जसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवततन में नहीं रहती, छह मास
की और अवधध तक प्रवर्त्
ृ बनी रहे गी :
__________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2-
क) और खंड (3) के स्थान पर प्रततस्थावपत|

परन्तु यह और कक यहद लोक सभा का ववघटन छह मास की ऐसी अवधध के दौरान हो जाता है
और ऐसी उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर
हदया गया है , ककन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने के संबध
ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त
अवधध के दौरान पाररत नहीं ककया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से क्जसको लोक सभा अपने पन
ु गतठन
के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है , तीस हदन की समाक्प्त पर, प्रवततन में नहीं रहे गी यहद उक्त तीस हदन की
अवधध की समाक्प्त से पहले उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प लोक सभा
द्वारा भी पाररत नहीं कर हदया जाता है ।
(6) खंड (4) और खंड (5) के प्रयोजनों के ललए, संकल्प संसद् के ककसी सदन द्वारा उस सदन की
कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपक्स्थत और मत दे ने वाले सदस्यों में से कम से
कम दो-ततहाई बहुमत द्वारा ही पाररत ककया जा सकेगा।
(7) पव
ू ग
त ामी खंडों में ककसी बात के होते हुए भी, यहद लोक सभा खंड (1) के अधीन की गई
उद्घोषणा ऐसी उद्घोषणा में पररवततन करने वाली उद्घोषणा का, यथाक्स्थतत, अननमु ोदन या उसे प्रवर्त्

बनाए रखने का अननम
ु ोदन करने वाला संकल्प पाररत कर दे ती है तो राष्रपतत ऐसी उद्घोषणा को वापस
ले लेगा।
(8) जहाँ खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा में पररवततन करने वाली उद्घोषणा
का, यथाक्स्थतत, अननम
ु ोदन या उसको प्रवर्त्
ृ बनाए रखने का अननम
ु ोदन करने वाले संकल्प को प्रस्ताववत
करने के अपने आशय की सच
ू ना लोक सभा की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दसवें भाग द्वारा
हस्ताक्षर करके ललणखत रूप में , -
(क) यहद लोक सभा सत्र में है तो अध्यक्ष को, या
(ख) यहद लोक सभा सत्र में नहीं है तो राष्रपतत को,
दी गई है वहाँ ऐसे संकल्प पर ववचार करने के पररयोजन के ललए लोक सभा की ववशेष बैठक, यथाक्स्थतत,
अध्यक्ष या राष्रपतत को ऐसी सच
ू ना प्राप्त होने की तारीख से चौदह हदन के भीतर की जाएगी।

192
[ [(9)] इस अनच्
1 2
ु छे द द्वारा राष्रपतत को प्रदर्त् शक्क्त के अंतगतत, यद्
ु ध या बाह्य आक्रमण या
3[सशस्त्र ववद्रोह] के अथवा यद्
ु ध या बाह्य आक्रमण या 3[सशस्त्र ववद्रोह] का संकट सक्न्नकट होने के
ववलभन्न आधारों पर ववलभन्न उद्घोषणाएँ करने की शक्क्त होगी चाहे राष्रपतत ने खंड (1) के अधीन पहले
ही कोई उद्घोषणा की है या नहीं और ऐसी उद्घोषणा पररवततन में है या नहीं।

[*4
* * * *]
____________________
1. संववधान (अड़तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4)
को खंड (9) के रूप में पुर:संख्यांककत ककया गया|
3. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से)
“आभ्यांतररक आशांतत” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, की धारा 37 द्वारा खंड (5) का लोप ककया गया|

353. आपात की उद्घोषणा का प्रभाि - जब आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है तब-


(क) संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार ककसी राज्य
को इस बारे में तनदे श दे ने तक होगा कक वह राज्य अपनी कायतपाललका शक्क्त का ककस रीतत
से प्रयोग करे ;
(ख) ककसी ववषय के संबध
ं में ववधधयाँ बनाने की संसद् की शक्क्त के अंतगतत इस बात के होते हुए
भी कक वह संघ सचू ी में प्रगणणत ववषय नहीं है , ऐसी ववधधयाँ बनाने की शक्क्त होगी जो उस
ववषय के संबध
ं में संघ को या संघ के अधधकाररयों और प्राधधकाररयों को शक्क्तयाँ प्रदान
करती हैं और उन पर कततव्य अधधरोवपत करती हैं या शक्क्तयों का प्रदान ककया जाना और
कततव्यों का अधधरोवपत ककया जाना प्राधधकृत करती है :
1
[परन्तु जहाँ आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल ककसी भाग में पररवततन में है वहाँ
यहद और जहाँ तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सरु क्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में
या उसके संबध
ं में , क्जसमें आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है , होने वाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है
तो और वहाँ तक,-
(i) खंड (क) के अधीन तनदे श दे ने की संघ की कायतपाललका शक्क्त का, और
(ii) (ii) खंड (ख) के अधीन ववधध बनाने की संसद् की शक्क्त का,
ववस्तार ककसी ऐसे राज्य पर भी होगा जो उस राज्य से लभन्न है क्जसमें या क्जसके ककसी भाग में आपात
की उद्घोषणा प्रवततन में हैं।
354. जब आपात की उद्घोषणा प्रितमन में है तब राजस्िों के वितरण संबध
ं ी उपबंधों का लागू होना
- (1) जब आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है तब राष्रपतत, आदे श द्वारा, यह तनदे श दे सकेगा कक इस
संववधान के अनच्
ु छे द 268 से अनच्
ु छे द 279 के सभी या कोई उपबंध ऐसी ककसी अवधध के ललए, जो उस
आदे श में ववतनहदतष्ट की जाए और जो ककसी भी दशा में उस ववर्त्ीय वषत की समाक्प्त से आगे नहीं बढ़े गी,
क्जसमें ऐसी उद्घोषणा प्रवततन में नहीं रहती है , ऐसे अपवादों या उपान्तरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे
जो वह ठीक समझे।

193
(2) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आदे श, ककए जाने के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र, संसद् के
प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
355. बाह्य आक्रमण और आंतररक अशांनत से राज्य की संरक्षा करने का संघ का कतमव्य - संघ का
यह कततव्य होगा कक वह बाह्य आक्रमण और आंतररक अशाक्न्त से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और
प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संववधान के उपबंधों के अनस
ु ार चलाया जाना सतु नक्श्चत करे ।
___________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 49 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|

356. राज्यों में सांविधाननक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध - (1) यहद राष्रपतत का
ककसी राज्य के राज्यपाल 1[***] से प्रततवेदन लमलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कक ऐसी
क्स्थतत उत्पन्न हो गई है क्जसमें उस राज्य का शासन इस संववधान के उपबंधों के अनस
ु ार नहीं चलाया
जा सकता है तो राष्रपतत उद्घोषणा द्वारा—
(क) उस राज्य की सरकार के सभी या कोई कृत्य और 2[राज्यपाल] में या राज्य के ववधान-मंडल
से लभन्न राज्य के ककसी तनकाय या प्राधधकारी में तनहहत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या
कोई शक्क्तयाँ अपने हाथ में ले सकेगा;
(ख) यह घोषणा कर सकेगा कक राज्य के ववधान-मंडल की शक्क्तयाँ संसद् द्वारा या उसके
प्राधधकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी;
(ग) राज्य के ककसी तनकाय या प्राधधकारी से संबधं धत इस संववधान के ककन्हीं उपबंधों के प्रवततन
को पण
ू त
त ः या भागतः तनलंत्रबत करने के ललए उपबंधों सहहत ऐसे आनष
ु धं गक और पाररणालमक
उपबंध कर सकेगा जो उद्घोषणा के उद्दे श्यों को प्रभावी करने के ललए राष्रपतत को आवश्यक
या वांछनीय प्रतीत हों:
परन्तु इस खंड की कोई बात राष्रपतत को उच्च न्यायालय में तनहहत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य
ककसी शक्क्त को अपने हाथ में लेने या उच्च न्यायालयों से संबधं धत इस संववधान के ककसी उपबंध के
प्रवततन को पण
ू त
त ः या भागतः तनलंत्रबत करने के ललए प्राधधकृत नहीं करे गी।
(2) ऐसी कोई उद्घोषणा ककसी पश्चातवती
् उद्घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी या उसमें
पररवततन ककया जा सकेगा।
(3) इस अनच्
ु छे द के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी
और जहाँ वह पव
ू व
त ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है वहाँ वह दो मास की समाक्प्त पर
प्रवततन में नहीं रहे गी यहद उस अवधध की समाक्प्त से पहले संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका
अनम
ु ोदन नहीं कर हदया जाता है :
परन्तु यहद ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पव
ू व
त ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है)
उस समय की जाती है जब लोक सभा का ववघटन हो गया है या लोक सभा का ववघटन इस खंड में
तनहदत ष्ट दो मास की अवधध के दौरान हो जाता है और यहद उद्घोषणा का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प
राज्य सभा द्वारा पाररत कर हदया गया है , ककन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबध
ं में कोई संकल्प लोक सभा
द्वारा उस अवधध की समाक्प्त से पहले पाररत नहीं ककया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से क्जसको
लोक सभा अपने पन
ु गतठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है , तीस हदन की समाक्प्त पर, प्रवततन में नहीं रहे गी

194
यहद उक्त तीस हदन की अवधध की समाक्प्त से पहले उद्घोषणा का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प लोक
सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर हदया जाता है ।
____________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाक्स्थतत,
राजपाल या राजप्रमुख” शब्दों का लोप ककया गया|

(4) इस प्रकार अनम


ु ोहदत उद्घोषणा, यहद वापस नहीं ली जाती है तो, [ऐसी उद्घोषणा के ककए जाने
1

की तारीख से छह मास] की अवधध की समाक्प्त पर प्रवततन में नहीं रहे गी :


परन्तु यहद और क्जतनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने का अनम
ु ोदन करने वाला
संकल्प संसद् के दोनों सदनों द्वारा पाररत कर हदया जाता है तो और उतनी बार वह उद्घोषणा, यहद वापस
नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से क्जसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवततन में नहीं रहती है , 2[छह
मास] की अवधध तक प्रवर्त्
ृ बनी रहे गी, ककन्तु ऐसी उद्घोषणा ककसी भी दशा में तीन वषत से अधधक प्रवर्त्

नहीं रहे गी:
परन्तु यह और कक यहद लोक सभा का ववघटन 2[छह मास] की ऐसी अवधध के दौरान हो जाता है
और ऐसी उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर
हदया गया है , ककन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने के संबध
ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त
अवधध के दौरान पाररत नहीं ककया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से, क्जसको लोक सभा अपने पन
ु गतठन
के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है , तीस हदन की समाक्प्त पर, प्रवततन में नहीं रहे गी यहद उक्त तीस हदन की
अवधध की समाक्प्त से पहले उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखने का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प लोक सभा
द्वारा भी पाररत नहीं कर हदया जाता है :
3
[परन्तु यह भी कक पंजाब राज्य की बाबत 11मई, 1987 को खंड (1) के अधीन की गई
उद्घोषणा की दशा में , इस खंड के पहले परन्तक
ु में ''तीन वषत'' के प्रतत तनदे श का इस प्रकार अथत लगाया
जाएगा मानो वह 4[पांच वषत] के प्रतत तनदे श हो।
[(5) खंड (4) में ककसी बात के होते हुए भी, खंड (3) के अधीन अनम
5
ु ोहदत उद्घोषणा के ककए जाने
की तारीख से एक वषत की समाक्प्त से आगे ककसी अवधध के ललए ऐसी उद्घोषणा को प्रवर्त् ृ बनाए रखने के
संबध
ं में कोई संकल्प संसद् के ककसी सदन द्वारा तभी पाररत ककया जाएगा जब-
__________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) “खंड (3)
के अधीन उदघोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दस
ू रे के पाररत हो जाने की तारीख
से एक वषत” के स्थान पर प्रततस्थावपत| संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की
धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) “छह मास” मूल शब्द के स्थल पर “एक वषत” शब्द प्रततस्थावपत
ककए गए थे|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) “एक
वषत” के स्थान पर प्रततस्थावपत| संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 50
द्वारा (3-1-1977 से) “छह मास” मूल शब्द के स्थल पर “एक वषत” शब्द प्रततस्थावपत ककए
गए थे|

195
3. संववधान (चौसठवां संशोधन) अधधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थावपत।
4. संववधान (सड़सठवां संशोधन) अधधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा और तत्पश्चात ् संववधान (अड़सठवां
संशोधन) अधधतनयम, 1991 की धारा 2 द्वारा संशोधधत होकर वततमान रूप में आया।
5. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (5) के
स्थान पर प्रततस्थावपत। संववधान (अड़तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 6 द्वारा (भूतलक्षी
प्रभाव से) खंड (5) अंतः स्थावपत ककया गया था।

(क) ऐसे संकल्प के पाररत ककए जाने के समय आपात की उद्घोषणा, यथाक्स्थतत, अथवा संपण
ू त
भारत में संपण
ू त राज्य या उसके ककसी भाग में प्रवततन में है ; और
(ख) तनवातचन आयोग यह प्रमाणणत कर दे ता है कक ऐसे संकल्प में ववतनहदतष्ट अवधध के दौरान खंड
(3) के अधीन अनम
ु ोहदत उद्घोषणा को प्रवर्त्
ृ बनाए रखना, संबधं धत राज्य की ववधान सभा के साधारण
तनवातचन कराने में कहठनाइयों के कारण, आवश्यक है :
1
[परन्तु इस खंड की कोई बात पंजाब राज्य की बाबत 11 मई, 1987 को खंड (1) के अधीन की गई
उद्घोषणा को लागू नहीं होगी।
357. अनच्
ु छे द 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अधीन विधायी शक्ततयों का प्रयोग - (1) जहाँ
अनच्
ु छे द 356 के खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा द्वारा यह घोषणा की गई है कक राज्य के ववधान-
मंडल की शक्क्तयाँ संसद् द्वारा या उसके प्राधधकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी वहाँ-
(क) राज्य के ववधान-मंडल की ववधध बनाने की शक्क्त राष्रपतत को प्रदान करने की और इस
प्रकार प्रदर्त् शक्क्त का ककसी अन्य प्राधधकारी को, क्जसे राष्रपतत इस तनलमर्त् ववतनहदत ष्ट करे ,
ऐसी शतों के अधीन, क्जन्हें राष्रपतत अधधरोवपत करना ठीक समझे, प्रत्यायोजन करने के ललए
राष्रपतत को प्राधधकृत करने की संसद् को,
(ख) संघ या उसके अधधकाररयों और प्राधधकाररयों को शक्क्तयाँ प्रदान करने या उन पर कततव्य
अधधरोवपत करने के ललए अथवा शक्क्तयों का प्रदान ककया जाना या कततव्यों का अधधरोवपत
ककया जाना प्राधधकृत करने के ललए, ववधध बनाने की संसद् को अथवा राष्रपतत को या ऐसे
अन्य प्राधधकारी को, क्जसमें ऐसी ववधध बनाने की शक्क्त उपखंड (क) के अधीन तनहहत है ,
(ग) जब लोक सभा सत्र में नहीं है तब राज्य की संधचत तनधध में से व्यय के ललए, संसद् की
मंजरू ी लंत्रबत रहने तक ऐसे व्यय के प्राधधकृत करने की राष्रपतत को, क्षमता होगी।
2
[(2) राज्य के ववधान-मंडल की शक्क्त का प्रयोग करते हुए संसद् द्वारा, अथवा राष्रपतत या खंड
(1) के उपखंड (क) में तनहदतष्ट अन्य प्राधधकारी द्वारा, बनाई गई ऐसी ववधध, क्जसे संसद् अथवा राष्रपतत या
ऐसा अन्य प्राधधकारी अनच्
ु छे द 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अभाव में बनाने के ललए सक्षम नहीं
होता, उद्घोषणा के प्रवततन में न रहने के पश्चात ् तब तक प्रवर्त्
ृ बनी रहे गी जब तक सक्षम ववधान-मंडल या
अन्य प्राधधकारी द्वारा उसका पररवततन या तनरसन या संशोधन नहीं कर हदया जाता है ।]
___________________
1. संववधान (ततरसठ वां संशोधन) अधधतनयम, 1989 की धारा 2 द्वारा (6-1-1990 से) मूल परं तुक
का लोप ककया गया क्जस संववधान (चौसठवां संशोधन) अधधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा
अंत:स्थावपत ककया गया था|
2. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 51 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (2)
के स्थान पर प्रततस्थावपत|

196
358. आपात के दौरान अनच्
ु छे द 19 के उपबंधों का ननलंबन - [(1)] 2[जब यद्
1
ु ध या बाह्य आक्रमण
के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सरु क्षा के संकट में होने की घोषणा करने वाली
आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है ] तब अनच्
ु छे द 19 की कोई बात भाग 3 में यथा पररभावषत राज्य की कोई
ऐसी ववधध बनाने की या कोई ऐसी कायतपाललका कारत वाई करने की शक्क्त को, क्जसे वह राज्य उस भाग में
अंतववतष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के ललए सक्षम होता, तनबातधधत नहीं करे गी, ककन्तु इस प्रकार
बनाई गई कोई ववधध उद्घोषणा के प्रवततन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के लसवाय
तरु न्त प्रभावहीन हो जाएगी, क्जन्हें ववधध के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले ककया गया है या करने का
लोप ककया गया है :
3
[परन्तु 4[जहाँ आपात की ऐसी उद्घोषणा] भारत के राज्यक्षेत्र के केवल ककसी भाग में प्रवततन में है
वहाँ, यहद और जहाँ तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सरु क्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस
भाग में या उसके संबध
ं में , क्जसमें आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है , होने वाले कक्रयाकलाप के कारण
संकट में है तो और वहाँ तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबध
ं में , क्जसमें या क्जसके ककसी
भाग में आपात की उद्घोषणा प्रवततन में नहीं है , इस अनच्
ु छे द के अधीन ऐसी कोई ववधध बनाई जा सकेगी
या ऐसी कोई कायतपाललका कारत वाई की जा सकेगी।]
5
[(2) खंड (1) की कोई बात,-
(क) ककसी ऐसी ववधध को लागू नहीं होगी क्जसमें इस आशय का उल्लेख अंतववतष्ट नहीं है कक ऐसी
ववधध उसके बनाए जाने के समय प्रवर्त्
ृ आपात की उद्घोषणा के संबध
ं में है; या
(ख) ककसी ऐसी कायतपाललका कारत वाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख अंतववतष्ट करने वाली
ववधध के अधीन न करके अन्यथा की गई है ।
359. आपात के दौरान भाग 3 द्िारा प्रदि अधधकारों के प्रितमन का ननलबंन - (1) जहाँ आपात की
उद्घोषणा प्रवततन में है वहाँ राष्रपतत, आदे श द्वारा यह घोषणा कर सकेगा कक 6[(अनच्
ु छे द 20 और अनच्
ु छे द
21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रदर्त् ऐसे अधधकारों] को प्रवतततत कराने के ललए, जो उस आदे श में उक्ल्लणखत
ककए जाएँ, ककसी न्यायालय को समावेदन करने का अधधकार और इस प्रकार उक्ल्लणखत अधधकारों को
प्रवतततत कराने के ललए ककसी न्यायालय में लंत्रबत सभी कायतवाहहयाँ उस अवधध के ललए क्जसके दौरान
उद्घोषणा प्रवर्त्
ृ रहती है या उससे लघत
ु र ऐसी अवधध के ललए जो आदे श में ववतनहदत ष्ट की जाए, तनलंत्रबत
रहें गी।
___________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे द 358
को उसके खंड (1) के रूप में पुनःसंख्यांककत ककया गया।
2. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) ''जब आपात
की उद्घोषणा प्रवततन में है '' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 52 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थावपत ।
4. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) ''जब आपात
की उद्घोषणा'' शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
5. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थावपत।
6. संववधान (चवालीसववां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) ''भाग 3 द्वारा
प्रदर्त् अधधकारों'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।

197
1
[(1क) जब 2[(अनच्
ु छे द 20 और अनच्
ु छे द 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रदर्त् ककन्हीं अधधकारों] को
उक्ल्लणखत करने वाला खंड (1) के अधीन ककया गया आदे श प्रवततन में है तब उस भाग में उन अधधकारों
को प्रदान करने वाली कोई बात उस भाग में यथापररभावषत राज्य की कोई ऐसी ववधध बनाने की या कोई
ऐसी कायतपाललका कारत वाई करने की शक्क्त को, क्जसे वह राज्य उस भाग में अंतववतष्ट उपबंधों के अभाव में
बनाने या करने के ललए सक्षम होता, तनर्त बधं धत नहीं करे गी, ककन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई ववधध पव
ू ोक्त
आदे श के प्रवततन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के लसवाय तरु न्त प्रभावहीन हो जाएगी,
क्जन्हें ववधध के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले ककया गया है या करने का लोप ककया गया है :]
3
[परन्तु जहाँ आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल ककसी भाग में प्रवततन में है वहाँ,
यहद और जहाँ तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सरु क्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में
या उसके संबध
ं में, क्जसमें आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है , होने वाले कक्रयाकलाप के कारण संकट में है
तो और वहाँ तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबध
ं में , क्जसमें या क्जसके ककसी भाग में
आपात की उद्घोषणा प्रवततन में नहीं है , इस अनच्
ु छे द के अधीन ऐसी कोई ववधध बनाई जा सकेगी या ऐसी
कोई कायतपाललका कारत वाई की जा सकेगी।]
4
[(1ख) खंड (1क) की कोई बात-
(क) ककसी ऐसी ववधध को लागू नहीं होगी क्जसमें इस आशय का उल्लेख अंतववतष्ट नहीं है कक ऐसी
ववधध उसके बनाए जाने के समय प्रवर्त्
ृ आपात की उद्घोषणा के संबध
ं में है; या
(ख) ककसी ऐसी कायतपाललका कारत वाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख अंतववतष्ट करने वाली
ववधध के अधीन न करके अन्यथा की गई है ।
(2) पव
ू ोक्त रूप में ककए गए आदे श का ववस्तार भारत के संपण
ू त राज्यक्षेत्र या उसके ककसी भाग
पर हो सकेगा :
3
[परन्तु जहाँ आपात की उद्घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल ककसी भाग में प्रवततन में है वहाँ
ककसी ऐसे आदे श का ववस्तार भारत के राज्यक्षेत्र के ककसी अन्य भाग पर तभी होगा जब राष्रपतत, यह
समाधान हो जाने पर कक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सरु क्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस
भाग में या उसके संबध
ं में , क्जसमें आपात की उद्घोषणा प्रवततन में है , होने वाले कक्रयाकलाप के कारण
संकट में है , ऐसा ववस्तार आवश्यक समझता है ।]
(3) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आदे श, ककए जाने के पश्चात ् यथाशक्य, संसद् के प्रत्येक
सदन के समक्ष रखा जाएगा।
_________________
1. संववधान (अड़तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 7 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से)
अंत:स्थावपत|
3. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से)
प्रतत:स्थावपत|
4. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से)
अंत:स्थावपत|

198
1
[359-क.[ इस भाग का पंजाब राज्य को लागू होना – [संववधान (ततरसठवाँ संशोधन) अधधतनयम,
1989 की धारा 3 द्वारा (6-1-1990 से) तनरलसत]।]
360. वििीय आपात के बारे में उपबंध - (1) यहद राष्रपतत को यह समाधान हो जाता है कक ऐसी
क्स्थतत उत्पन्न हो गई है क्जससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग का ववर्त्ीय स्थातयत्व या प्रत्यय
संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा इस आशय की घोषणा कर सकेगा।
2
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा-
(क) ककसी पश्चातवती
् उद्घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी या पररवतततत की जा सकेगी;
(ख) संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी;
(ग) दो मास की समाक्प्त पर, प्रवततन में नहीं रहे गी यहद उस अवधध की समाक्प्त से पहले संसद् के
दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनम
ु ोदन नहीं कर हदया जाता है :
परन्तु यहद ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का ववघटन हो गया है या
लोकसभा का ववघटन उपखंड (ग) में तनहदत ष्ट दो मास की अवधध के दौरान हो जाता है और यहद उद्घोषणा
का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर हदया गया है , ककन्तु ऐसी उद्घोषणा के
संबध
ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधध की समाक्प्त से पहले पाररत नहीं ककया गया है तो
उद्घोषणा उस तारीख से, क्जसको लोक सभा अपने पन
ु गतठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है , तीस हदन की
समाक्प्त पर प्रवततन में नहीं रहे गी यहद उक्त तीस हदन की अवधध की समाक्प्त से पहले उद्घोषणा का
अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर हदया जाता है ।]
(3) उस अवधध के दौरान, क्जसमें खंड (1) में उक्ल्लणखत उद्घोषणा प्रवर्त्
ृ रहती है , संघ की
कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार ककसी राज्य को ववर्त्ीय औधचत्य संबध
ं ी ऐसे लसद्धांतों का पालन करने के
ललए तनदे श दे ने तक, जो तनदे शों में ववतनहदत ष्ट ककए जाएँ, और ऐसे अन्य तनदे श दे ने तक होगा क्जन्हें
राष्रपतत उस प्रयोजन के ललए दे ना आवश्यक और पयातप्त समझे।
(4) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी,-
(क) ऐसे ककसी तनदे श के अंतगतत-
(i) ककसी राज्य के कायतकलाप के संबध
ं में सेवा करने वाले सभी या ककसी वगत के व्यक्क्तयों के
वेतनों और भर्त्ों में कमी की अपेक्षा करने वाला उपबंध;
(ii) धन ववधेयकों या अन्य ऐसे ववधेयकों को, क्जनको अनच्
ु छे द 207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य
के ववधान-मंडल द्वारा पाररत ककए जाने के पश्चात ् राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखने
के ललए उपबंध,
हो सकेंगे;
____________________
1. संववधान (उनसठवां संशोधन) अधधतनयम, 1988 की धारा 3 द्वारा (30-3-1988 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2)
के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(ख) राष्रपतत, उस अवधध के दौरान, क्जसमें इस अनच्


ु छे द के अधीन की गई उद्घोषणा प्रवर्त्
ृ रहती
है , संघ के कायतकलाप के संबध
ं में सेवा करने वाले सभी या ककसी वगत के व्यक्क्तयों के, क्जनके

199
अंतगतत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश हैं, वेतनों और भर्त्ों में कमी
करने के ललए तनदे श दे ने के ललए सक्षम होगा।
[*
1
* * * *]
भाग 19
प्रकीणम
361. राष्ट्रपनत और राज्यपालों और राजप्रमख
ु ों का संरक्षण - (1) राष्रपतत अथवा राज्य का
राज्यपाल या राजप्रमख
ु अपने पद की शक्क्तयों के प्रयोग और कततव्यों के पालन के ललए या उन शक्क्तयों
का प्रयोग और कततव्यों का पालन करते हुए अपने द्वारा ककए गए या ककए जाने के ललए तात्पतयतत ककसी
कायत के ललए ककसी न्यायालय को उर्त्रदायी नहीं होगा :
परन्तु अनच्
ु छे द 61 के अधीन आरोप के अन्वेषण के ललए संसद् के ककसी सदन द्वारा तनयक्
ु त या
अलभहहत ककसी न्यायालय, अधधकरण या तनकाय द्वारा राष्रपतत के आचरण का पन
ु ववतलोकन ककया जा
सकेगा :
परन्तु यह और कक इस खंड की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह भारत
सरकार या ककसी राज्य की सरकार के ववरुद्ध समधु चत कायतवाहहयाँ चलाने के ककसी व्यक्क्त के अधधकार
को तनबंधधत करती है ।
(2) राष्रपतत या ककसी राज्य के राज्यपाल 2[***] के ववरुद्ध उसकी पदावधध के दौरान ककसी
न्यायालय में ककसी भी प्रकार की दांडडक कायतवाही संक्स्थत नहीं की जाएगी या चालू नहीं रखी जाएगी।
(3) राष्रपतत या ककसी राज्य के राज्यपाल 2[***] की पदावधध के दौरान उसकी धगरफ्तारी या
कारावास के ललए ककसी न्यायालय से कोई आदे लशका तनकाली नहीं जाएगी।
(4) राष्रपतत या ककसी राज्य के राज्यपाल 2[***] के रूप में अपना पद ग्रहण करने से पहले या
उसके पश्चात,् उसके द्वारा अपनी वैयक्क्तक है लसयत में ककए गए या ककए जाने के ललए तात्पतयतत ककसी
कायत के संबध
ं में कोई लसववल कायतवाहहयाँ, क्जनमें राष्रपतत या ऐसे राज्य के राज्यपाल 2[***] के ववरुद्ध
अनत
ु ोष का दावा ककया जाता है , उसकी पदावधध के दौरान ककसी न्यायालय में तब तक संक्स्थत नहीं की
जाएगी जब तक कायतवाहहयों की प्रकृतत, उनके ललए वाद हे तक
ु , ऐसी कायतवाहहयों को संक्स्थत करने वाले
पक्षकार का नाम, वणतन, तनवास-स्थान और उस अनत
ु ोष का क्जसका वह दावा करता है , कथन करने वाली
ललणखत सच
ू ना, यथाक्स्थतत, राष्रपतत या राज्यपाल 2[***] को पररदर्त् ककए जाने या उसके कायातलय में छोड़े
जाने के पश्चात ् दो मास का समय समाप्त नहीं हो गया है ।
__________________
1. संववधान (अड़तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 8 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (5)
अंत:स्थावपत ककया गया था और उसका संववधान (चवालीस संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा
41 द्वारा (20-6-1979 से) लोप ककया गया|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|

[361-क. संसद् और राज्यों के विधान-मंडलों की कायमिार्हयों के प्रकाशन का संरक्षण - (1) कोई


1

व्यक्क्त संसद् के ककसी सदन या, यथाक्स्थतत, ककसी राज्य की ववधान सभा या ककसी राज्य के ववधान-मंडल
के ककसी सदन की ककन्ही कायतवाहहयों के सारतः सही वववरण के ककसी समाचारपत्र में प्रकाशन के संबध
ं में

200
ककसी न्यायालय में ककसी भी प्रकार की लसववल या दांडडक कायतवाही का तब तक भागी नहीं होगा जब तक
यह सात्रबत नहीं कर हदया जाता है कक प्रकाशन ववद्वेषपव
ू क
त ककया गया है :
परन्तु इस खंड की कोई बात संसद् के ककसी सदन या, यथाक्स्थतत, ककसी राज्य की ववधान सभा
या ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ककसी सदन की गप्ु त बैठक की कायतवाहहयों के वववरण के प्रकाशन को
लागू नहीं होगी।
(2) खंड (1) ककसी प्रसारण केंद्र के माध्यम से उपलब्ध ककसी कायतक्रम या सेवा के भागरूप बेतार
तारयांत्रत्रकी के माध्यम से प्रसाररत ररपोटों या सामग्री के संबध
ं में उसी प्रकार लागू होगा क्जस प्रकार वह
ककसी समाचारपत्र में प्रकालशत ररपोटों या सामग्री के संबध
ं में लागू होता है ।
स्पष्ट्टीकरण - इस अनच्
ु छे द में , ''समाचारपत्र'' के अंतगतत समाचार एजेंसी की ऐसी ररपोटत है क्जसमें
ककसी समाचारपत्र में प्रकाशन के ललए सामग्री अंतववतष्ट है ।]
2
[361-ख. लाभप्रद राजनीनतक पद पर ननयक्ु तत के ललए ननर्हमत - ककसी राजनीततक दल का ककसी
सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं अनस
ु च
ू ी के पैरा 2 के अधीन सदन का सदस्य होने के ललए तनरहहतत है ,
अपनी तनहहतत की तारीख से प्रारं भ होने वाली और उस तारीख तक क्जसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी
पदावधध समाप्त होगी या उस तारीख तक क्जसको वह ककसी सदन के ललए कोई तनवातचन लड़ता है , और
तनवातधचत घोवषत ककया जाता है , इनमें से जो भी पव
ू त
त र हो, की अवधध के दौरान, कोई लाभप्रद राजनीततक
पद धारण करने के ललए भी तनरहहतत होगा।
स्पष्ट्टीकरण - इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए,-
(क) ''सदन'' पद का वही अथत है जो उसका दसवीं अनस
ु च
ू ी के पैरा 1 के खंड (क) में है ;
(ख) ''लाभप्रद राजनीततक पद'' अलभव्यक्क्त से अलभप्रेत है ,-
(i) भारत सरकार या ककसी राज्य सरकार के अधीन कोई पद, जहाँ ऐसे पद के ललए वेतन या
पाररश्रलमक का संदाय, यथाक्स्थतत, भारत सरकार या राज्य सरकार के लोक राजस्व से ककया
जाता है ; या
(ii) ककसी तनकाय के अधीन, चाहे तनगलमत हो या नहीं, जो भारत सरकार या ककसी राज्य सरकार
के पण
ू त
त ः या भागतः स्वालमत्वाधीन है , कोई पद और ऐसे पद के ललए वेतन या पाररश्रलमक का
संदाय ऐसे तनकाय से ककया जाता है ,
लसवाय वहाँ के जहाँ संदर्त् ऐसा वेतन या पाररश्रलमक प्रततकरात्मक स्वरूप का है ।]
__________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 42 द्वारा (20-6-1979 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा (1-1-2004 से)
अंत:स्थावपत|

362. [दे शी राज्यों के शासकों के अधधकार और विशेषाधधकार] – [संववधान (छब्बीसवाँ संशोधन)


अधधतनयम, 1971 की धारा 2 द्वारा तनरलसत।]
363. कुछ संधधयों, करारों आर्द से उत्पन्न वििादों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का िजमन - (1) इस
संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, ककन्तु अनच्
ु छे द 143 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम
न्यायालय या ककसी अन्य न्यायालय को ककसी ऐसी संधध, करार, प्रसंववदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य
ललखत के ककसी उपबंध से, जो इस संववधान के प्रारं भ से पहले ककसी दे शी राज्य के शासक द्वारा की गई

201
थी या तनष्पाहदत की गई थी और क्जसमें भारत डोलमतनयन की सरकार या उसकी पव
ू व
त ती कोई सरकार
और क्जसमें भारत डोलमतनयन की सरकार या उसकी पव
ू व
त ती कोई सरकार एक पक्षकार थी और जो ऐसे
प्रारं भ के पश्चात ् प्रवततन में है या प्रवततन में बनी रही है , उत्पन्न ककसी वववाद में या ऐसी संधध, करार,
प्रसंववदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य ललखत से संबधं धत इस संववधान के ककसी उपबंध के अधीन
प्रोद्भत
ू ककसी अधधकार या उससे उद्भत
ू ककसी दातयत्व या बापयता के संबध
ं में ककसी वववाद में
अधधकाररता नहीं होगी।
(2) इस अनच्
ु छे द में -
(क) ''दे शी राज्य'' से ऐसा राज्यक्षेत्र अलभप्रेत है क्जसे हहज मेजेस्टी से या भारत डोलमतनयन की
सरकार से इस संववधान के प्रारं भ से पहले ऐसे राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त थी ; और
(ख) ''शासक'' के अंतगतत ऐसा राजा, प्रमख
ु या अन्य व्यक्क्त है क्जसे हहज मेजस्
े टी से या भारत
डोलमतनयन की सरकार से ऐसे प्रारं भ से पहले ककसी दे शी राज्य के शासक के रूप में मान्यता
प्राप्त थी।
1
[363-क. दे शी राज्यों के शासकों को दी गई मान्यता की समाक्प्त और ननजी थैललयों का अंत -
इस संववधान या तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध में ककसी बात के होते हुए भी-
(क) ऐसा राजा, प्रमख
ु या अन्य व्यक्क्त, क्जसे संववधान (छब्बीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 के
प्रारं भ से पहले ककसी समय राष्रपतत से ककसी दे शी राज्य के शासक के रूप में मान्यता प्राप्त
थी, या ऐसा व्यक्क्त, क्जसे ऐसे प्रारं भ से पहले ककसी समय राष्रपतत से ऐसे शासक के
उर्त्राधधकारी के रूप में मान्यता प्राप्त थी, ऐसे प्रारं भ को और से ऐसे शासक या ऐसे शासक
के उर्त्राधधकारी के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं रह जाएगा ;
(ख) संववधान (छब्बीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 के प्रारं भ को और से तनजी थैली का अंत
ककया जाता है और तनजी थैली की बाबत सभी अधधकार, दातयत्व और बाध्यताएं तनवातवपत की
जाती हैं और तद्नस
ु ार खंड (क) में तनहदत ष्ट, यथाक्स्थतत, शासक या ऐसे शासक के उर्त्राधधकारी
को या अन्य व्यक्क्त को ककसी रालश का तनजी थैली के रूप में संदाय नहीं ककया जाएगा।]
364. महापिनों और विमानक्षेत्रों के बारे में विशेष उपबंध - (1) इस संववधान में ककसी बात के होते
हुए भी, राष्रपतत लोक अधधसच
ू ना द्वारा तनदे श दे सकेगा कक ऐसी तारीख से, जो उस अधधसच
ू ना में
ववतनहदतष्ट की जाए,-
___________________
1. संववधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थावपत|

(क) संसद् या ककसी राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई ववधध ककसी महापर्त्न या
ववमानक्षेत्र को लागू नहीं होगी अथवा ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू
होगी जो उस अधधसच ू ना में ववतनहदतष्ट ककए जाएँ ; या
(ख) कोई ववद्यमान ववधध ककसी महापर्त्न या ववमानक्षेत्र में उन बातों के लसवाय प्रभावी नहीं रहे गी
क्जन्हें उक्त तारीख से पहले ककया गया है या करने का लोप ककया गया है अथवा ऐसे पर्त्न
या ववमानक्षेत्र को लागू होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी जो
उस अधधसच ू ना में ववतनहदत ष्ट ककए जाएँ।
(2) इस अनच्
ु छे द में -

202
(क) ''महापर्त्न'' से ऐसा पर्त्न अलभप्रेत है क्जसे संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध या ककसी
ववद्यमान ववधध द्वारा या उसके अधीन महापर्त्न घोवषत ककया गया है और इसके अंतगतत
ऐसे सभी क्षेत्र हैं जो उस समय ऐसे पर्त्न की सीमाओं के भीतर हैं ;
(ख) ''ववमानक्षेत्र'' से वायु मागों, वायय
ु ानों और ववमान चालन से संबधं धत अधधतनयलमततयों के
प्रयोजनों के ललए यथा पररभावषत ववमानक्षेत्र अलभप्रेत है।
365. संघ द्िारा र्दए गए ननदे शों का अनप
ु ालन करने में या उनको प्रभािी करने में असफलता का
प्रभाि - जहां इस संववधान के ककसी उपबंध के अधीन संघ की कायतपाललका शक्क्त का प्रयोग करते हुए
हदए गए ककन्हीं तनदे शों का अनप
ु ालन करने में या उनको प्रभावी करने में कोई राज्य असफल रहता है वहाँ
राष्रपतत के ललए यह मानना ववधधपण
ू त होगा कक ऐसी क्स्थतत उत्पन्न हो गई है क्जसमें उस राज्य का
शासन इस संववधान के उपबंधों के अनस
ु ार नहीं चलाया जा सकता है ।
366. पररभाषाएाँ - इस संववधान में , जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो, तनम्नललणखत पदों
के तनम्नललणखत अथत हैं, अथातत ् : -
(1) ''कृवष-आय'' से भारतीय आय-कर से संबधं धत अधधतनयलमततयों के प्रयोजनों के ललए यथा
पररभावषत कृवष-आय अलभप्रेत है ;
(2) ''आंग्ल-भारतीय'' से ऐसा व्यक्क्त अलभप्रेत है क्जसका वपता या वपत-ृ परं परा में कोई अन्य परू
ु ष
जनक यरू ोपीय उद्भव का है या था, ककन्तु जो भारत के राज्यक्षेत्र में अधधवासी है और जो ऐसे राज्यक्षेत्र
में ऐसे माता-वपता से जन्मा है या जन्मा था जो वहाँ साधारणतया तनवासी रहे हैं और केवल अस्थायी
प्रयोजनों के ललए वास नहीं कर रहे हैं ;
(3) ''अनच्
ु छे द'' से इस संववधान का अनच्
ु छे द अलभप्रेत है ;
(4) ''उधार लेना'' के अंतगतत वावषतककयाँ दे कर धन लेना है और ''उधार'' का तद्नस
ु ार अथत लगाया
जाएगा ;
(4क)1[* * * * *]
___________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1979 की धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (4क)
अंत:स्थावपत ककया गया और पुन:उसका संववधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1977 की
धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से) लोप ककया गया|

(5) ''खंड'' से उस अनच्


ु छे द का खंड अलभप्रेत है क्जसमें वह पद आता है ;
(6) ''तनगम कर'' से कोई आय पर कर अलभप्रेत है , जहां तक वह कर कंपतनयों द्वारा संदेय है और
ऐसा कर है क्जसके संबध
ं में तनम्नललणखत शतें परू ी होती हैं, अथातत ् :--
(क) वह कृवष-आय के संबध
ं में प्रभायत नहीं है ;
(ख) कंपतनयों द्वारा संदर्त् कर के संबध
ं में कंपतनयों द्वारा व्यक्ष्टयों को संदेय लाभांशों में से
ककसी कटौती का ककया जाना उस कर को लागू अधधतनयलमततयों द्वारा प्राधधकृत नहीं है ;
(ग) ऐसे लाभांश प्राप्त करने वाले व्यक्ष्टयों की कुल आय की भारतीय आय-कर के प्रयोजनों के
ललए गणना करने में अथवा ऐसे व्यक्ष्टयों द्वारा संदेय या उनको प्रततदे य भारतीय आय-कर
की गणना करने में , इस प्रकार संदर्त् कर को हहसाब में लेने के ललए कोई उपबंध ववद्यमान
नहीं है ;

203
(7) शंका की दशा में , ''तत्स्थानी प्रांत'', ''तत्स्थानी दे शी राज्य'' या ''तत्स्थानी राज्य'' से ऐसा प्रांत,
दे शी राज्य या राज्य अलभप्रेत है क्जसे राष्रपतत प्रश्नगत ककसी ववलशष्ट प्रयोजन के ललए, यथाक्स्थतत,
तत्स्थानी प्रांत, तत्स्थानी दे शी राज्य या तत्स्थानी राज्य अवधाररत करे ;
(8) ''ऋण'' के अंतगतत वावषतककयों के रूप में मल
ू धन के प्रततसंदाय की ककसी बाध्यता के संबध
ं में
कोई दातयत्व और ककसी प्रत्याभतू त के अधीन कोई दातयत्व है और ''ऋणभार'' का तद्नस
ु ार अथत लगाया
जाएगा ;
(9) ''संपदा शल्
ु क'' से वह शल्
ु क अलभप्रेत है जो ऐसे तनयमों के अनस
ु ार जो संसद् या ककसी राज्य
के ववधान-मंडल द्वारा ऐसे शल्
ु क के संबध
ं में बनाई गई ववधधयों द्वारा या उनके अधीन ववहहत ककए जाएँ,
मत्ृ यु पर संक्रांत होने वाली या उक्त ववधधयों के उपबंधों के अधीन इस प्रकार संक्रांत हुई समझी गई सभी
संपवर्त् के मलू मल् ू य पर या उसके प्रतत तनदे श से, तनधातररत ककया जाए ;
(10) ''विद्यमान विधध'' से ऐसी ववधध, अध्यादे श, आदे श, उपववधध, तनयम या ववतनयम अलभप्रेत है
जो इस संववधान के प्रारं भ से पहले ऐसी ववधध, अध्यादे श, आदे श, उपववधध, तनयम या ववतनयम बनाने की
शक्क्त रखऩे वाले ककसी ववधान-मंडल, प्राधधकारी या व्यक्क्त द्वारा पाररत ककया गया है या बनाया गया है
;
(11) ''फेडरल न्यायालय'' से भारत शासन अधधतनयम, 1935 के अधीन गहठत फेडरल न्यायालय
अलभप्रेत है ;
(12) ''माल'' के अंतगतत सभी सामग्री, वाणणज्या और वस्तए
ु ँ हैं ;
(13) ''प्रत्याभनू त'' के अंतगतत ऐसी बाध्यता है क्जसका, ककसी उपक्रम के लाभों के ककसी ववतनहदत ष्ट
रकम से कम होने की दशा में , संदाय करने का वचनबंध इस संववधान के प्रारं भ से पहले ककया गया है ;
(14) ''उच्च न्यायालय'' से ऐसा न्यायालय अलभप्रेत है जो इस संववधान के प्रयोजनों के ललए ककसी
राज्य के ललए उच्च न्यायालय समझा जाता है और इसके अंतगतत—
(क) भारत के राज्यक्षेत्र में इस संववधान के अधीन उच्च न्यायालय के रूप में गहठत या पन
ु गतहठत
कोई न्यायालय है , और
(ख) भारत के राज्यक्षेत्र में संसद् द्वारा ववधध द्वारा इस संववधान के सभी या ककन्हीं प्रयोजनों के
ललए उच्च न्यायालय के रूप में घोवषत कोई अन्य न्यायालय है ;
(15) ''दे शी राज्य'' से ऐसा राज्यक्षेत्र अलभप्रेत है क्जसे भारत डोलमतनयन की सरकार से ऐसे राज्य
के रूप में मान्यता प्राप्त थी ;
(16) ''भाग'' से इस संववधान का भाग अलभप्रेत है ;
(17) ''पें शन'' से ककसी व्यक्क्त को या उसके संबध
ं में संदेय ककसी प्रकार की पें शन अलभप्रेत है चाहे
वह अलभदायी है या नहीं है और इसके अंतगतत इस प्रकार संदेय सेवातनववृ र्त् वेतन, इस प्रकार संदेय उपदान
और ककसी भववष्य तनधध के अलभदानों की, उन पर ब्याज या उनमें अन्य पररवधतन सहहत या उसके त्रबना,
वापसी के रूप में इस प्रकार संदेय कोई रालश या रालशयाँ हैं ;
(18) ''आपात की उद्घोषणा'' से अनच्
ु छे द 352 के खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा अलभप्रेत है ;
(19) ''लोक अधधसच
ू ना '' से, यथाक्स्थतत, भारत के राजपत्र में या ककसी राज्य के राजपत्र में
अधधसच
ू ना अलभप्रेत है ;
(20) ''रे ल'' के अंतगतत-
(क) ककसी नगरपाललक क्षेत्र में पण
ू त
त या क्स्थत राम नहीं है , या

204
(ख) ककसी राज्य में पण
ू त
त या क्स्थत संचार की ऐसी अन्य लाइन नहीं है क्जसकी बाबत संसद् ने
ववधध द्वारा घोवषत ककया है कक वह रे ल नहीं है ;]
21. 1[* * * *]
2
[(22) ''शासक'' से ऐसा राजा, प्रमख
ु या अन्य व्यक्क्त अलभप्रेत है क्जसे संववधान (छब्बीसवाँ
संशोधन) अधधतनयम, 1971 के प्रारं भ से पहले ककसी समय, राष्रपतत से ककसी दे शी राज्य के शासक के रूप
में मान्यता प्राप्त थी या ऐसा व्यक्क्त अलभप्रेत है क्जसे ऐसे प्रारं भ से पहले ककसी समय, राष्रपतत से ऐसे
शासक के उर्त्राधधकारी के रूप में मान्यता प्राप्त थी ;]
(23) ''अनस
ु च
ू ी'' से इस संववधान की अनस
ु च
ू ी अलभप्रेत है ;
(24) ''अनस
ु धू चत जानतयों'' से ऐसी जाततयाँ, मल
ू वंश या जनजाततयाँ अथवा ऐसी जाततयों, मल
ू वंशों
या जनजाततयों के भाग या उनमें के यथ
ू अलभप्रेत हैं क्जन्हें इस संववधान के प्रयोजनों के ललए अनच्
ु छे द
341 के अधीन अनस
ु धू चत जाततयाँ समझा जाता है ;
(25) ''अनस
ु धू चत जनजानतयों'' से ऐसी जनजाततयाँ या जनजातत समद
ु ाय अथवा ऐसी जनजाततयों
या जनजातत समद
ु ायों के भाग या उनमें के यथ
ू अलभप्रेत हैं क्जन्हें इस संववधान के प्रयोजनों के ललए
अनच्
ु छे द 342 के अधीन अनस
ु धू चत जनजाततयाँ समझा जाता है ;
___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा खंड (21) का
लोप ककया गया|
2. संववधान (छब्बीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 4 द्वारा खंड (22) के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

(26) ''प्रनतभनू तयों'' के अंतगतत स्टाक है ;


(26क)1[* * * *]
(27) ''उपखंड'' से उस खंड का उपखंड अलभप्रेत है क्जसमें वह पद आता है ;
(28) ''कराधान'' के अंतगतत ककसी कर या लाग का अधधरोपण है चाहे वह साधारण या स्थानीय या
ववशेष है और ''कर'' का तद्नस
ु ार अथत लगाया जाएगा ;
(29) ''आय पर कर'' के अंतगतत अततलाभ-कर की प्रकृतत का कर है ;
2
[(29क) ''माल के क्रय या विक्रय पर कर'' के अंतगतत-
(क) वह कर है जो नकदी, आस्थधगत संदाय या अन्य मल्
ू यवान प्रततफल के ललए ककसी माल में
संपवर्त् के ऐसे अंतरण पर है जो ककसी संववदा के अनस
ु रण में न करके अन्यथा ककया गया
है ;
(ख) वह कर है जो माल में संपवर्त् के (चाहे वह माल के रूप में हो या ककसी अन्य रूप में ) ऐसे
अंतरण पर है जो ककसी संकमत संववदा के तनष्पादन में अंतवतललत है ;
(ग) वह कर है जो अवक्रय या ककस्तों में संदाय की पद्धतत से माल के पररदान पर है ;
(घ) वह कर है जो नकदी, आस्थधगत संदाय या अन्य मल्
ू यवान प्रततफल के ललए ककसी माल का
ककसी प्रयोजन के ललए उपयोग करने के अधधकार के (चाहे वह ववतनहदत ष्ट अवधध के ललए हो
या नहीं) अंतरण पर है ;

205
(ङ) वह कर है जो नकदी, आस्थधगत संदाय या अन्य मल्
ू यवान प्रततफल के ललए ककसी माल के
प्रदाय पर है जो ककसी अतनगलमत संगम या व्यक्क्त-तनकाय द्वारा अपने ककसी सदस्य को
ककया गया है ;
(च) वह कर है , जो ऐसे माल के, जो खाद्य या मानव उपभोग के ललए कोई अन्य पदाथत या कोई
पेय है (चाहे वह मादक हो या नहीं) ऐसे प्रदाय पर है, जो ककसी सेवा के रूप में या सेवा के
भाग के रूप में या ककसी भी अन्य रीतत से ककया गया है और ऐसा प्रदाय या सेवा नकदी,
आस्थधगत संदाय या अन्य मल्
ू यवान प्रततफल के ललए की गई है ,
और माल के ऐसे अंतरण, पररदान या प्रदाय के बारे में यह समझा जाएगा कक वह उस व्यक्क्त
द्वारा, जो ऐसा अंतरण, पररदान या प्रदाय कर रहा है , उस माल का ववक्रय है , और उस व्यक्क्त द्वारा,
क्जसको ऐसा अंतरण, पररदान या प्रदाय ककया जाता है , उस माल का क्रय है ।]
[(30) ''संघ राज्यक्षेत्र'' से पहली अनस
3
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट कोई संघ राज्यक्षेत्र अलभप्रेत है और इसके
अंतगतत ऐसा अन्य राज्यक्षेत्र है जो भारत के राज्यक्षेत्र में समाववष्ट है ककं तु उस अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट
नहीं है ।]
____________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड
(26क) अंत:स्थावपत ककया गया और उसका संववधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1977
की धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से) लोप ककया गया|
2. संववधान (तछयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1982 की धारा 4 द्वारा अंत:स्थावपत|
3. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा खंड (30) के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
367. ननिमचन - (1) जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो, इस संववधान के तनवतचन के
ललए साधारण खंड अधधतनयम, 1897, ऐसे अनक ु ू लनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, जो अनच्
ु छे द 372 के
अधीन उसमें ककए जाएं, वैसे ही लागू होगा जैसे वह भारत डोलमतनयन के ववधान-मंडल के ककसी अधधतनयम
के तनवतचन के ललए लागू होता है ।
(2) इस संववधान में संसद् के या उसके द्वारा बनाए गए अधधतनयमों या ववधधयों के प्रतत ककसी
तनदे श का अथवा 1[***] ककसी राज्य के ववधान-मंडल के या उसके द्वारा बनाए गए अधधतनयमों या ववधधयों
के प्रतत ककसी तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक उसके अंतगतत, यथाक्स्थतत, राष्रपतत द्वारा तनलमतत
अध्यादे श या ककसी राज्यपाल 2[***] द्वारा तनलमतत अध्यादे श के प्रतत तनदे श है ।
(3) इस संववधान के प्रयोजनों के ललए, ''ववदे शी राज्य'' से भारत से लभन्न कोई राज्य अलभप्रेत है :
परं तु संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्रपतत आदे श4 द्वारा
यह घोषणा कर सकेगा कक कोई राज्य उन प्रयोजनों के ललए, जो उस आदे श में ववतनहदतष्ट ककए जाएँ
ववदे शी राज्य नहीं हैं।
भाग 20
संविधान का संशोधन
368. 4[संविधान का संशोधन करने की संसद् की शक्तत और उसके ललए प्रक्रक्रया] - 5[(1) इस
संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, संसद् अपनी संववधायी शक्क्त का प्रयोग करते हुए इस संववधान के

206
ककसी उपबंध का पररवधतन, पररवततन या तनरसन के रूप में संशोधन इस अनच्
ु छे द में अधधकधथत प्रकक्रया के
अनस
ु ार कर सकेगी।]
6
[(2)] इस संववधान के संशोधन का आरं भ संसद् के ककसी सदन में इस प्रयोजन के ललए ववधेयक
परु ःस्थावपत करके ही ककया जा सकेगा और जब वह ववधेयक प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य
संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपक्स्थत और मत दे ने वाले सदस्यों के कम से कम दो-ततहाई
बहुमत द्वारा पाररत कर हदया जाता है तब 7[वह राष्रपतत के समक्ष प्रस्तत
ु ककया जाएगा, जो ववधेयक को
अपनी अनम
ु तत दे गा और तब] संववधान उस ववधेयक के तनबंधनों के अनस
ु ार संशोधधत हो जाएगा:
___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क या भाग ख में ववतनहदतष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या
राजप्रमुख”शब्दों का लोप ककया गया|
3. संववधान (ववदे शी राज्यों के बारे में घोषणा) आदे श, 1950 (सं. आ. 2) दे णखए|
4. संववधान (चौबीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा “संववधान में संशोधन करने
की प्रकक्रया” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
5. संववधान (चौबीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थावपत|
6. संववधान (चौबीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा अनुच्छे द 368 को खंड (2) के
रूप में पुनसंख्याककत ककया गया|
7. संववधान (चौबीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 3 द्वारा “तब वह राष्रपतत के समक्ष
उसकी अनुमतत के ललए रखा जाएगा तथा ववधेयक को ऐसी अनुमतत दी जाने के पश्चात”् के
स्थान पर प्रततस्थावपत|

परं तु यहद ऐसा संशोधन—


(क) अनच्
ु छे द 54, अनच्
ु छे द 55, अनच्
ु छे द 73, अनच्
ु छे द 162 या अनच्
ु छे द 241 में , या
(ख) भाग 5 के अध्याय 4, भाग 6 के अध्याय 5 या भाग 11 के अध्याय 1 में, या
(ग) सातवीं अनस
ु च
ू ी की ककसी सच
ू ी में , या
(घ) संसद् में राज्यों के प्रतततनधधत्व में , या
(ङ) इस अनच्
ु छे द के उपबंधों में ,
कोई पररवततन करने के ललए है तो ऐसे संशोधन के ललए उपबंध करने वाला ववधेयक राष्रपतत के समक्ष
अनम
ु तत के ललए प्रस्तत
ु ककए जाने से पहले उस संशोधन के ललए 5 *** कम से कम आधे राज्यों के
ववधान-मंडलों द्वारा पाररत इस आशय के संकल्पों द्वारा उन ववधान-मंडलों का अनस
ु मथतन भी अपेक्षक्षत
होगा।
2
[(3) अनच्
ु छे द 13 की कोई बात इस अनच्
ु छे द के अधीन ककए गए ककसी संशोधन को लागू नहीं
होगी।]
3
[(4) इस संववधान का (क्जसके अंतगतत भाग 3 के उपबंध हैं) इस अनच्
ु छे द के अधीन [संववधान
(बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 55 के प्रारं भ से पहले या उसके पश्चात]् ककया गया या
ककया गया तात्पतयतत कोई संशोधन ककसी न्यायालय में ककसी भी आधार पर प्रश्नगत नहीं ककया जाएगा।

207
(5) शंकाओं को दरू करने के ललए यह घोवषत ककया जाता है कक इस अनच्
ु छे द के अधीन इस
संववधान के उपबंधों का पररवधतन, पररवततन या तनरसन के रूप में संशोधन करने के ललए संसद् की
संववधायी शक्क्त पर ककसी प्रकार का तनबतन्धन नहीं होगा।
__________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क और ख में ववतनहदत ष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया|
2. संववधान (ववदे शी राज्यों के बारे में घोषणा) आदे श, 1950 (सं. आ. 2) दे णखए|
3. अनुच्छे द 368 में खंड (4) और खंड (5) संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की
धारा 55 द्वारा अंत:स्थावपत ककए गए थे| उच्चतम न्यायालय ने लमनवात लमल्स लललमटे ड और
अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1980) 2 एस.पी.सी. 591 के मामले में इस धारा को
अववधधमान्य घोवषत ककया है |

भाग 21

1[अस्थायी, संक्रमण कालीन और विशेष उपबंध]

369. राज्य सच
ू ी के कुछ विषयों के संबध
ं में विधध बनाने की संसद् की इस प्रकार अस्थायी शक्तत मानो
िे समिती सच ू ी के विषय हों - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, संसद् को इस संववधान के
प्रारं भ से पाँच वषत की अवधध के दौरान तनम्नललणखत ववषयों के बारे में ववधध बनाने की इस प्रकार शक्क्त
होगी मानो वे ववषय समवती सच
ू ी में प्रगणणत हों, अथातत:् -
(क) सत ू ी और ऊनी वस्त्रों, कच्ची कपास (क्जसके अंतगतत ओटी हुई रुई और त्रबना ओटी रुई या
कपास है ), त्रबनौले, कागज (क्जसके अंतगतत अखबारी कागज है ), खाद्य पदाथत (क्जसके अंतगतत खाद्य
ततलहन और तेल हैं), पशओ
ु ं के चारे (क्जसके अंतगतत खली और अन्य सारकृत चारे हैं), कोयले (क्जसके
अंतगतत कोक और कोयले के व्यत्ु पाद हैं), लोहे , इस्पात और अभ्रक का ककसी राज्य के भीतर व्यापार और
वाणणज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और ववतरण;
(ख) खंड (क) में वणणतत ववषयों में से ककसी ववषय से संबधं धत ववधधयों के ववरुद्ध अपराध, उन
ववषयों में से ककसी के संबध
ं में उच्चतम न्यायालय से लभन्न सभी न्यायालयों की अधधकाररता और
शक्क्तयाँ, तथा उन ववषयों में से ककसी के संबध
ं में फीस ककं तु इसके अंतगतत ककसी न्यायालय में ली जाने
वाली फीस नहीं है , ककं तु संसद् द्वारा बनाई गई कोई ववधध, क्जसे संसद् इस अनच्
ु छे द के उपबंधों के
अभाव में बनाने के ललए सक्षम नहीं होती, उक्त अवधध की समाक्प्त पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों
के लसवाय प्रभावी नहीं रहे गी क्जन्हें उस अवधध की समाक्प्त के पहले ककया गया है या करने का लोप
ककया गया है ।
[370. जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
2
ं में अस्थायी उपबंध - (1) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए
भी,-
(क) अनच्
ु छे द 238 के उपबंध जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में लागू नहीं होंगे ;
(ख) उक्त राज्य के ललए ववधध बनाने की संसद् की शक्क्त,-
___________________
1. संववधान (तेरहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1962 की धारा 2 द्वारा (1-12-1963
से) ''अस्थायी तथा अंतःकालीन उपबंध'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।

208
2. इस अनुच्छे द द्वारा प्रदर्त् शक्क्तयों का प्रयोग करते हुए राष्रपतत ने जम्मू और
कश्मीर राज्य की संववधान सभा की लसफाररश पर यह घोषणा की कक 17 नवंबर, 1952 से उक्त
अनुच्छे द 370 इस उपांतरण के साथ प्रवततनीय होगा कक उसके खंड (1) में स्पष्टीकरण के स्थान
पर तनम्नललणखत स्पष्टीकरण रख हदया गया है , अथातत:-्
''स्पष्ट्टीकरण - इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए राज्य की सरकार से वह
व्यक्क्त अलभप्रेत है क्जसे राज्य की ववधान सभा की लसफाररश पर राष्रपतत ने राज्य की तत्समय पदारूढ़
मंत्रत्र-पररषद् की सलाह पर कायत करने वाले जम्म-ू कश्मीर के सदरे ररयासत। के रूप में मान्यता प्रदान की
हो।''
*
अब ''राज्यपाल'' (ववधध मंत्रालय आदे श सं. आ. 44, हदनांक 15 नवंबर, 1952)।
(i) संघ सच
ू ी और समवती सच
ू ी के उन ववषयों तक सीलमत होगी क्जनको राष्रपतत, उस राज्य की
सरकार से परामशत करके, उन ववषयों के तत्स्थानी ववषय घोवषत कर दे जो भारत डोलमतनयन में उस
राज्य के अधधलमलन को शालसत करने वाले अधधलमलन पत्र में ऐसे ववषयों के रूप में ववतनहदत ष्ट हैं क्जनके
संबध
ं में डोलमतनयन ववधान-मंडल उस राज्य के ललए ववधध बना सकता है ; और

(ii) उक्त सधू चयों के उन अन्य ववषयों तक सीलमत होगी जो राष्रपतत, उस राज्य की सरकार की
सहमतत से, आदे श द्वारा, ववतनहदत ष्ट करे ।

स्पष्ट्टीकरण - इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए, उस राज्य की सरकार से वह व्यक्क्त अलभप्रेत
है क्जसे राष्रपतत से, जम्म-ू कश्मीर के महाराजा की 5 माचत, 1948 की उद्घोषणा के अधीन तत्समय
पदस्थ मंत्रत्र-पररषद् की सलाह पर कायत करने वाले जम्म-ू कश्मीर के महाराजा के रूप में तत्समय मान्यता
प्राप्त थी;

(ग) अनच्
ु छे द 1 और इस अनच्
ु छे द के उपबंध उस राज्य के संबध
ं में लागू होंगे;
(घ) इस संववधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, जो
राष्रपतत आदे श द्वारा1 ववतनहदत ष्ट करे , उस राज्य के संबध
ं में लागू होंगे:
परं तु ऐसा कोई आदे श जो उपखंड (ख) के पैरा (i) में तनहदतष्ट राज्य के अधधलमलन पत्र में ववतनहदतष्ट
ववषयों से संबधं धत है , उस राज्य की सरकार से परामशत करके ही ककया जाएगा, अन्यथा नहीं:

परं तु यह और कक ऐसा कोई आदे श जो अंततम पव


ू व
त ती परं तक
ु में तनहदत ष्ट ववषयों से लभन्न ववषयों
से संबधं धत है , उस सरकार की सहमतत से ही ककया जाएगा, अन्यथा नहीं।

(2) यहद खंड (1) के उपखंड (ख) के पैरा (i) में या उस खंड के उपखंड (घ) के दस
ू रे परं तक
ु में
तनहदत ष्ट उस राज्य की सरकार की सहमतत, उस राज्य का संववधान बनाने के प्रयोजन के ललए संववधान
सभा के बल
ु ाए जाने से पहले दी जाए तो उसे ऐसी संववधान सभा के समक्ष ऐसे ववतनश्चय के ललए रखा
जाएगा जो वह उस पर करे ।

209
(3) इस अनच्
ु छे द के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में ककसी बात के होते हुए भी, राष्रपतत लोक अधधसच
ू ना
द्वारा घोषणा कर सकेगा कक यह अनच्
ु छे द प्रवततन में नहीं रहे गा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहहत
ही और ऐसी तारीख से, प्रवततन में रहे गा, जो वह ववतनहदत ष्ट करे :

परं तु राष्रपतत द्वारा ऐसी अधधसच


ू ना तनकाले जाने से पहले खंड (2) में तनहदत ष्ट उस राज्य की
संववधान सभा की लसफाररश आवश्यक होगी।

[371 3[* * *] महाराष्ट्र और गज


2
ु रात राज्यों के संबध
ं में विशेष उपबंध – 4[***]

___________________

1. समय-समय पर यथासंशोधधत संववधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदे श, 1954
(सं. आ. 48) पररलशष्ट 1 में दे णखए।
2. संववधान (सातवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 22 द्वारा अनुच्छे द 371 के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
3. संववधान (बर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1973 की धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) ''आंध्र प्रदे श,''
शब्दों का लोप ककया गया।
4. संववधान (बर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1973 की धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) खंड (1) का
लोप ककया गया।

(2) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, राष्रपतत, 4[महाराष्र या गज
ु रात राज्य] के संबध

में ककए गए आदे श द्वारा: -
(क) यथाक्स्थतत, ववदभत, मराठवाड़ा 2[और शेष महाराष्र या ] सौराष्र, कच्छ और शेष गज
ु रात के ललए
पथ
ृ क ववकास बोडों की स्थापना के ललए, इस उपबंध सहहत कक इन बोडों में से प्रत्येक के
कायतकरण पर एक प्रततवेदन राज्य ववधान सभा के समक्ष प्रततवषत रखा जाएगा,
(ख) समस्त राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उक्त क्षेत्रों के ववकास व्यय के
ललए तनधधयों के साम्यापण
ू त आबंटन के ललए, और
(ग) समस्त राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उक्त सभी क्षेत्रों के संबधं में , तकनीकी
लशक्षा और व्यावसातयक प्रलशक्षण के ललए पयातप्त सवु वधाओं की और राज्य सरकार के तनयंत्रण
के अधीन सेवाओं में तनयोजन के ललए पयातप्त अवसरों की व्यवस्था करने वाली साम्यापण
ू त
व्यवस्था करने के ललए,
राज्यपाल के ककसी ववशेष उर्त्रदातयत्व के ललए उपबंध कर सकेगा।
3
[371क. नागालैंड राज्य के संबध
ं में विशेष उपबंध - (1) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए
भी,-
(क) तनम्नललणखत के संबध
ं में संसद् का कोई अधधतनयम नागालैंड राज्य को तब तक लागू नहीं
होगा जब तक नागालैंड की ववधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा ववतनश्चय नहीं करती है ,
अथातत ् : --

210
(i) नागाओं की धालमतक या सामाक्जक प्रथाएँ;
(ii) नागा रुहढ़जन्य ववधध और प्रकक्रया;
(iii) लसववल और दांडडक न्याय प्रशासन, जहाँ ववतनश्चय नागा रुहढ़जन्य ववधध के अनस
ु ार
होने हैं;
(iv) भलू म और उसके संपवर्त् स्रोतों का स्वालमत्व और अंतरण;
(ख) नागालैंड के राज्यपाल का नागालैंड राज्य में ववधध और व्यवस्था के संबध में तब तक
ववशेष उर्त्रदातयत्व रहे गा जब तक उस राज्य के तनमातण के ठीक पहले नागा पहाड़ी
त्यए
ु नसांग क्षेत्र में ववद्यमान आंतररक अशांतत, उसकी राय में , उसमें या उसके ककसी भाग
में बनी रहती है और राज्यपाल, उस संबध
ं में अपने कृत्यों का तनवतहन करने में की जाने
वाली कारत वाई के बारे में अपने व्यक्क्तगत तनणतय का प्रयोग, मंत्रत्र-पररषद् से परामशत करने
के पश्चात ् करे गा:
___________________
1. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) ''मुब
ं ई
राज्य'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) ''शेष
महाराष्र'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (तेरहवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1962 की धारा द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्थावपत।

परं तु यहद यह प्रश्न उठता है कक कोई मामला ऐसा मामला है या नहीं क्जसके संबध
ं में राज्यपाल
से इस उपखंड के अधीन अपेक्षा की गई है कक वह अपने व्यक्क्तगत तनणतय का प्रयोग करके कायत करे तो
राज्यपाल का अपने वववेक से ककया गया ववतनश्चय अंततम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई ककसी बात
की ववधधमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कक उसे अपने व्यक्क्तगत तनणतय का प्रयोग
करके कायत करना चाहहए था या नहीं :

परं तु यह और कक यहद राज्यपाल से प्रततवेदन लमलने पर या अन्यथा राष्रपतत का यह समाधान


हो जाता है कक अब यह आवश्यक नहीं है कक नागालैंड राज्य में ववधध और व्यवस्था के संबध
ं में
राज्यपाल का ववशेष उर्त्रदातयत्व रहे तो वह, आदे श द्वारा, तनदे श दे सकेगा कक राज्यपाल का ऐसा
उर्त्रदातयत्व उस तारीख से नहीं रहे गा जो आदे श में ववतनहदत ष्ट की जाए ;
(ग) अनद
ु ान की ककसी माँग के संबध
ं में अपनी लसफाररश करने में , नागालैंड का राज्यपाल यह
सतु नक्श्चत करे गा कक ककसी ववतनहदत ष्ट सेवा या प्रयोजन के ललए भारत की संधचत तनधध में से
भारत सरकार द्वारा हदया गया कोई धन उस सेवा या प्रयोजन से संबधं धत अनद
ु ान की माँग में,
न कक ककसी अन्य माँग में , सक्म्मललत ककया जाए;
(घ) उस तारीख से क्जसे नागालैंड का राज्यपाल इस तनलमर्त् लोक अधधसच
ू ना द्वारा ववतनहदतष्ट
करे , त्यए
ु नसांग क्जले के ललए एक प्रादे लशक पररषद् स्थावपत की जाएगी जो पैंतीस सदस्यों से
लमलकर बनेगी और राज्यपाल तनम्नललणखत बातों का उपबंध करने के ललए तनयम अपने वववेक
से बनाएगा, अथातत:--

211
(i) प्रादे लशक पररषद् की संरचना और वह रीतत क्जससे प्रादे लशक पररषद् के सदस्य चुने जाएँगे :
परं तु त्यए
ु नसांग क्जले का उपायक्
ु त प्रादे लशक पररषद् का पदे न अध्यक्ष होगा और प्रादे लशक पररषद् का
उपाध्यक्ष उसके सदस्यों द्वारा अपने में से तनवातधचत ककया जाएगा;
(ii) प्रादे लशक पररषद् के सदस्य चुने जाने के ललए और सदस्य होने के ललए अहतताएँ;
(iii) प्रादे लशक पररषद् के सदस्यों की पदावधध और उनको हदए जाने वाले वेतन और भर्त्े, यहद
कोई हों;
(iv) प्रादे लशक पररषद् की प्रकक्रया और कायत संचालन;
(v) प्रादे लशक पररषद् के अधधकाररयों और कमतचाररवद
ं ृ की तनयक्ु क्त और उनकी सेवा की शतें; और
(vi) कोई अन्य ववषय क्जसके संबध
ं में प्रादे लशक पररषद् के गठन और उसके उधचत कायतकरण के
ललए तनयम बनाने आवश्यक हैं।

(2) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, नागालैंड राज्य के तनमातण की तारीख से दस वषत
की अवधध तक या ऐसी अततररक्त अवधध के ललए क्जसे राज्यपाल, प्रादे लशक पररषद् की लसफाररश
पर, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, इस तनलमर्त् ववतनहदतष्ट करे ,-

(क) त्यए
ु नसांग क्जले का प्रशासन राज्यपाल द्वारा चलाया जाएगा;

(ख) जहाँ भारत सरकार द्वारा नागालैंड सरकार को, संपण


ू त नागालैंड राज्य की आवश्यकताओं
की पतू तत के ललए कोई धन हदया जाता है वहाँ, राज्यपाल अपने वववेक से त्यए
ु नसांग क्जले
और शेष राज्य के बीच उस धन के साम्यापण
ू त आबंटन के ललए प्रबंध करे गा;

(ग) नागालैंड ववधान-मंडल का कोई अधधतनयम त्यए


ु नसांग क्जले को तब तक लागू नहीं होगा
जब तक राज्यपाल, प्रादे लशक पररषद् की लसफाररश पर, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, इस
प्रकार तनदे श नहीं दे ता है और ऐसे ककसी अधधतनयम के संबध
ं में ऐसा तनदे श दे ते हुए
राज्यपाल यह तनहदत ष्ट कर सकेगा कक वह अधधतनयम त्यए
ु नसांग क्जले या उसके ककसी
भाग को लागू होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए, प्रभावी होगा क्जन्हें
राज्यपाल प्रादे लशक पररषद् की लसफाररश पर ववतनहदत ष्ट करे :

परं तु इस उपखंड के अधीन हदया गया कोई तनदे श इस प्रकार हदया जा सकेगा कक उसका भत
ू लक्षी प्रभाव
हो;

(घ) राज्यपाल त्यए


ु नसांग क्जले की शांतत, उन्नतत और सश
ु ासन के ललए ववतनयम बना सकेगा
और इस प्रकार बनाए गए ववतनयम उस क्जले को तत्समय लागू संसद् के ककसी
अधधतनयम या ककसी अन्य ववधध का, यहद आवश्यक हो तो भत
ू लक्षी प्रभाव से तनरसन
या संशोधन कर सकेंगे;

212
(ङ) (i) नागालैंड ववधान सभा में त्यए
ु नसांग क्जले का प्रतततनधधत्व करने वाले सदस्यों में से
एक सदस्य को राज्यपाल, मख्
ु यमंत्री की सलाह पर त्यए
ु नसांग कायत मंत्री तनयक्
ु त करे गा
और मख्
ु यमंत्री अपनी सलाह दे ने में पव
ू ोक्त सदस्यों की बहुसंख्या की लसफाररश पर कायत
1

करे गा;
(ii) त्यए
ु नसांग कायत मंत्री त्यए
ु नसांग क्जले से संबधं धत सभी ववषयों की बाबत कायत करे गा
और उनके संबध
ं में राज्यपाल के पास उसकी सीधी पहुँच होगी ककं तु वह उनके संबध
ं में
मख्
ु यमंत्री को जानकारी दे ता रहे गा;

___________________
1. संववधान (कहठनाइयों का तनराकरण) आदे श सं. 10 के पैरा 2 में यह उपबंध है कक भारत के
संववधान का अनुच्छे द 371क इस प्रकार प्रभावी होगा मानो उसके खंड (2) के उपखंड (ङ) के
पैरा (i) में तनम्नललणखत परं तुक (1-12-1963) से जोड़ हदया गया हो, अथातत ् :--
''परं तु राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर, ककसी व्यक्क्त को त्युएनसांग कायत मंत्री के रूप में
ऐसे समय तक के ललए तनयुक्त कर सकेगा, जब तक कक नागालैंड की ववधान सभा में
त्युएनसांग क्जले के ललए, आबंहटत स्थानों को भरने के ललए ववधध के अनुसार व्यक्क्तयों को
चुन नहीं ललया जाता है ''।

अनच्
ु छे द 371-ख
--------------------------------------------------------------------------------------------
(च) इस खंड के पवू ग
त ामी उपबंधों में ककसी बात के होते हुए भी, त्यए
ु नसांग क्जले से संबधं धत
सभी ववषयों पर अंततम ववतनश्चय राज्यपाल अपने वववेक से करे गा;
(छ) अनच्
ु छे द 54 और अनच्
ु छे द 55 में तथा अनच्
ु छे द 80 के खंड (4) में राज्य की ववधान
सभा के तनवातधचत सदस्यों के या ऐसे प्रत्येक सदस्य के प्रतत तनदे शों के अंतगतत इस
अनच्
ु छे द के अधीन स्थावपत प्रादे लशक पररषद् द्वारा तनवातधचत नागालैंड ववधान सभा के
सदस्यों या सदस्य के प्रतत तनदे श होंगे;
(ज) अनच्
ु छे द 170 में --
(i) खंड (1) नागालैंड ववधान सभा के संबध
ं में इस प्रकार प्रभावी होगा मानो ''साठ''
शब्द के स्थान पर ''तछयालीस'' शब्द रख हदया गया हो;
(ii) उक्त खंड में , उस राज्य में प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष तनवातचन के प्रतत
तनदे श के अंतगतत इस अनच्
ु छे द के अधीन स्थावपत प्रादे लशक पररषद् के सदस्यों
द्वारा तनवातचन होगा;
(iii) खंड (2) और खंड (3) में प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों के प्रतत तनदे श से कोहहमा और
मोकोकचुंग क्जलों में प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों के प्रतत तनदे श अलभप्रेत होंगे।
(3) यहद इस अनच्
ु छे द के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में से ककसी उपबंध को प्रभावी करने में कोई कहठनाई
उत्पन्न होती है तो राष्रपतत, आदे श द्वारा, कोई ऐसी बात (क्जसके अंतगतत ककसी अन्य अनच्
ु छे द का
कोई अनक
ु ू लन या उपांतरण है ) कर सकेगा जो उस कहठनाई को दरू करने के प्रयोजन के ललए उसे
आवश्यक प्रतीत होती है :

213
परं तु ऐसा कोई आदे श नागालैंड राज्य के तनमातण की तारीख से तीन वषत की समाक्प्त के पश्चात ्
नहीं ककया जाएगा।
स्पष्ट्टीकरण - इस अनच्
ु छे द में , कोहहमा, मोकोकचुंग और त्यए
ु नसांग क्जलों का वही अथत है जो
नागालैंड राज्य अधधतनयम, 1962 में है ।]
[371-ख असम राज्य के संबध
1
ं में विशेष उपबंध - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी,
राष्रपतत, असम राज्य के संबध
ं में ककए गए आदे श द्वारा, उस राज्य की ववधान सभा की एक सलमतत
के गठन और कृत्यों के ललए, जो सलमतत छठी अनस
ु च
ू ी के पैरा 20 से संलग्न सारणी के [भाग1] में
2

ववतनहदतष्ट जनजातत क्षेत्रों से तनवातधचत उस ववधान सभा के सदस्यों से और उस ववधान सभा के उतने
अन्य सदस्यों से लमलकर बनेगी क्जतने आदे श में ववतनहदत ष्ट ककए जाएँ तथा ऐसी सलमतत के गठन और
उसके उधचत कायतकरण के ललए उस ववधान सभा की प्रकक्रया के तनयमों में ककए जाने वाले उपांतरणों के
ललए उपबंध कर सकेगा।]
------------------------------------------------
1. संववधान (बाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1969 की धारा 4 द्वारा अंतःस्थावपत।
2. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से)
''भाग क'' के स्थान पर प्रततस्थावपत।

-------------------------------------------------------------------------------------------

1
[371-ग. मणणपरु राज्य के संबध
ं में विशेष उपबंध - (1) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए
भी, राष्रपतत, मणणपरु राज्य के संबध
ं में ककए गए आदे श द्वारा, उस राज्य की ववधान सभा की एक
सलमतत के गठन और कृत्यों के ललए, जो सलमतत उस राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से तनवातधचत उस ववधान सभा
के सदस्यों से लमलकर बनेगी, राज्य की सरकार के कामकाज के तनयमों में और राज्य की ववधान सभा
की प्रकक्रया के तनयमों में ककए जाने वाले उपांतरणों के ललए और ऐसी सलमतत का उधचत कायतकरण
सतु नक्श्चत करने के उद्दे श्य से राज्यपाल के ककसी ववशेष उर्त्रदातयत्व के ललए उपबंध कर सकेगा।

(2) राज्यपाल प्रततवषत या जब कभी राष्रपतत ऐसी अपेक्षा करे , मणणपरु राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के
प्रशासन के संबध
ं में राष्रपतत को प्रततवेदन दे गा और संघ की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार उक्त क्षेत्रों
के प्रशासन के बारे में राज्य को तनदे श दे ने तक होगा।

स्पष्ट्टीकरण - इस अनच्
ु छे द में , ''पहाड़ी क्षेत्रों'' से ऐसे क्षेत्र अलभप्रेत हैं क्जन्हें राष्रपतत, आदे श
द्वारा, पहाड़ी क्षेत्र घोवषत करे ।

2
[371घ. आंध्र प्रदे श राज्य के संबध
ं में विशेष उपबंध-(1) राष्रपतत, आंध्र प्रदे श राज्य के संबध
ं में
ककए गए आदे श द्वारा, संपण
ू त आंध्र प्रदे श राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उस राज्य के
ववलभन्न भागों के लोगों के ललए लोक तनयोजन के ववषय में और लशक्षा के ववषय में साम्यापण
ू त अवसरों

214
और सवु वधाओं का उपबंध कर सकेगा और राज्य के ववलभन्न भागों के ललए लभन्न-लभन्न उपबंध ककए जा
सकेंगे।

(2) खंड (1) के अधीन ककया गया आदे श ववलशष्टतया –


(क) राज्य सरकार से यह अपेक्षा कर सकेगा कक वह राज्य की लसववल सेवा में पदों के ककसी
वगत या वगों का अथवा राज्य के अधीन लसववल पदों के ककसी वगत या वगों का राज्य के
लभन्न भागों के ललए लभन्न स्थानीय काडरों में गठन करे और ऐसे लसद्धांतों और प्रकक्रया
के अनस
ु ार जो आदे श में ववतनहदत ष्ट की जाए, ऐसे पदों को धारण करने वाले व्यक्क्तयों
का इस प्रकार गहठत स्थानीय काडरों में आबंटन करे ;
(ख) राज्य के ऐसे भाग या भागों को ववतनहदतष्ट कर सकेगा जो—
(i) राज्य सरकार के अधीन ककसी स्थानीय काडर में (चाहे उसका गठन इस अनच्
ु छे द
के अधीन आदे श के अनस
ु रण में या अन्यथा ककया गया है ) पदों के ललए सीधी
भती के ललए,
(ii) राज्य के भीतर ककसी स्थानीय प्राधधकारी के अधीन ककसी काडर में पदों के ललए
सीधी भती के ललए, और
(iii) राज्य के भीतर ककसी ववश्वववद्यालय में या राज्य सरकार के तनयंत्रण के अधीन
ककसी अन्य लशक्षा संस्था में प्रवेश के प्रयोजन के ललए, स्थानीय क्षेत्र समझे
जाएँगे;
----------------------------------------
1. संववधान (सर्त्ाईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 5 द्वारा (15-2-1972 से)
अंतःस्थावपत।
2. संववधान (बर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1973 की धारा 3 द्वारा (1-7-1974 से) अंतःस्थावपत।
-------------------------------------------------------------------------------------------

(ग) वह ववस्तार ववतनहदत ष्ट कर सकेगा क्जस तक, वह रीतत ववतनहदत ष्ट कर सकेगा क्जससे और वे शतें
ववतनहदतष्ट कर सकेगा क्जनके अधीन, यथाक्स्थतत, ऐसे काडर, ववश्वववद्यालय या अन्य लशक्षा
संस्था के संबध
ं में ऐसे अभ्यधथतयों को, क्जन्होंने आदे श में ववतनहदत ष्ट ककसी अवधध के ललए
स्थानीय क्षेत्र में तनवास या अध्ययन ककया है –

(i) उपखंड (ख) में तनहदत ष्ट ऐसे काडर में जो इस तनलमर्त् आदे श में ववतनहदत ष्ट ककया जाए,
पदों के ललए सीधी भती के ववषय में ;

(ii) उपखंड (ख) में तनहदत ष्ट ऐसे ववश्वववद्यालय या अन्य लशक्षा संस्था में जो इस तनलमर्त्
आदे श में ववतनहदतष्ट की जाए, प्रवेश के ववषय में , अधधमान हदया जाएगा या उनके ललए
आरक्षण ककया जाएगा।

(3) राष्रपतत, आदे श द्वारा, आंध्र प्रदे श राज्य के ललए एक प्रशासतनक अधधकरण के गठन के ललए
उपबंध कर सकेगा जो अधधकरण तनम्नललणखत ववषयों की बाबत ऐसी अधधकाररता, शक्क्त और प्राधधकार

215
का क्जसके अंतगतत वह अधधकाररता, शक्क्त या प्राधधकार है जो संववधान (बर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम,
1973 के प्रारं भ से ठीक पहले (उच्चतम न्यायालय से लभन्न) ककसी न्यायालय द्वारा अथवा ककसी
अधधकरण या अन्य प्राधधकारी द्वारा प्रयोक्तव्य था प्रयोग करे गा जो आदे श में ववतनहदतष्ट ककया जाए,
अथातत ् :--

(क) राज्य की लसववल सेवा में ऐसे वगत या वगों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वगत या वगों
के लसववल पदों पर अथवा राज्य के भीतर ककसी स्थानीय प्राधधकारी के तनयंत्रण के अधीन ऐसे
वगत या वगों के पदों पर जो आदे श में ववतनहदतष्ट ककए जाएँ, तनयक्ु क्त, आबंटन या प्रोन्नतत;

(ख) राज्य की लसववल सेवा में ऐसे वगत या वगों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वगत या वगों
के लसववल पदों पर अथवा राज्य के भीतर ककसी स्थानीय प्राधधकारी के तनयंत्रण के अधीन ऐसे
वगत या वगों के पदों पर जो आदे श में ववतनहदतष्ट ककए जाएँ, तनयक्
ु त, आबंहटत या प्रोन्नत
व्यक्क्तयों की ज्येष्ठता;

(ग) राज्य की लसववल सेवा में ऐसे वगत या वगों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वगत या वगों
के लसववल पदों पर अथवा राज्य के भीतर ककसी स्थानीय प्राधधकारी के तनयंत्रण के अधीन ऐसे
वगत या वगों के पदों पर तनयक्
ु त, आबंहटत या प्रोन्नत व्यक्क्तयों की सेवा की ऐसी अन्य शतें जो
आदे श में ववतनहदत ष्ट की जाएँ।

(4) खंड (3) के अधीन ककया गया आदे श-

(क) प्रशासतनक अधधकरण को उसकी अधधकाररता के भीतर ककसी ववषय से संबधं धत व्यथाओं के
तनवारण के ललए ऐसे अभ्यावेदन प्राप्त करने के ललए, जो राष्रपतत आदे श में ववतनहदत ष्ट करे और
उस पर ऐसे आदे श करने के ललए जो वह प्रशासतनक अधधकरण ठीक समझता है , प्राधधकृत कर
सकेगा;

(ख) प्रशासतनक अधधकरण की शक्क्तयों और प्राधधकारों और प्रकक्रया के संबध


ं में ऐसे उपबंध (क्जनके
अंतगतत प्रशासतनक अधधकरण की अपने अवमान के ललए दं ड दे ने की शक्क्त के संबध
ं में उपबंध
हैं) अंतववतष्ट कर सकेगा जो राष्रपतत आवश्यक समझे;

(ग) प्रशासतनक अधधकरण को उसकी अधधकाररता के भीतर आने वाले ववषयों से संबधं धत और उस
आदे श के प्रारं भ से ठीक पहले (उच्चतम न्यायालय से लभन्न) ककसी न्यायालय अथवा ककसी
अधधकरण या अन्य प्राधधकारी के समक्ष लंत्रबत कायतवाहहयों के ऐसे वगों के, जो आदे श में
ववतनहदतष्ट ककए जाएँ, अंतरण के ललए उपबंध कर सकेगा;

(घ) ऐसे अनप


ु रू क, आनष
ु धं गक और पाररणालमक उपबंध (क्जनके अंतगतत फीस के बारे में और
पररसीमा, साक्ष्य के बारे में या तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी ववधध को ककन्हीं अपवादों या उपांतरणों के

216
अधीन रहते हुए लागू करने के ललए उपबंध हैं, अंतववतष्ट कर सकेगा जो राष्रपतत आवश्यक
समझे।

(5) प्रशासतनक अधधकरण का ककसी मामले को अंततम रूप से तनपटाने वाला आदे श, राज्य सरकार
द्वारा उसकी पक्ु ष्ट ककए जाने पर या आदे श ककए जाने की तारीख से तीन मास की समाक्प्त पर, इनमें
से जो भी पहले हो, प्रभावी हो जाएगा:

परं तु राज्य सरकार, ववशेष आदे श द्वारा, जो ललणखत रूप में ककया जाएगा और क्जसमें उसके कारण
ववतनहदतष्ट ककए जाएँगे, प्रशासतनक अधधकरण के ककसी आदे श को उसके प्रभावी होने के पहले उपांतररत
या रद्द कर सकेगी और ऐसे मामले में प्रशासतनक अधधकरण का आदे श, यथाक्स्थतत, ऐसे उपांतररत रूप
में ही प्रभावी होगा या वह तनष्प्रभाव हो जाएगा।

(6) राज्य सरकार द्वारा खंड (5) के परं तक


ु के अधीन ककया गया प्रत्येक ववशेष आदे श, ककए जाने के
पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र, राज्य ववधान-मंडल के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा।

(7) राज्य के उच्च न्यायालय को प्रशासतनक अधधकरण पर अधीक्षण की शक्क्त नहीं होगी और
(उच्चतम न्यायालय से लभन्न) कोई न्यायालय अथवा कोई अधधकरण, प्रशासतनक अधधकरण की या उसके
संबध
ं में अधधकाररता, शक्क्त या प्राधधकार के अधीन ककसी ववषय की बाबत ककसी अधधकाररता, शक्क्त या
प्राधधकार का प्रयोग नहीं करे गा।

(8) यहद राष्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक प्रशासतनक अधधकरण का तनरं तर बने रहना
आवश्यक नहीं है तो राष्रपतत आदे श द्वारा प्रशासतनक अधधकरण का उत्सादन कर सकेगा और ऐसे
उत्सादन से ठीक पहले अधधकरण के समक्ष लंत्रबत मामलों के अंतरण और तनपटारे के ललए ऐसे आदे श में
ऐसे उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

(9) ककसी न्यायालय, अधधकरण या अन्य प्राधधकारी के ककसी तनणतय, डडक्री या आदे श के होते हुए
भी,-

(क) ककसी व्यक्क्त की कोई तनयक्ु क्त, पदस्थापना, प्रोन्नतत या अंतरण की बाबत जो-

(i) 1 नवंबर, 1956 से पहले यथाववद्यमान हैदराबाद राज्य की सरकार के या उसके भीतर ककसी
स्थानीय प्राधधकारी के अधीन उस तारीख से पहले ककसी पद पर ककया गया था, या
(ii) संववधान (बर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1973 के प्रारं भ से पहले आंध्र प्रदे श राज्य की सरकार
के अधीन या उस राज्य के भीतर ककसी स्थानीय या अन्य प्राधधकारी के अधीन ककसी पद पर ककया
गया था, और

---------------------------------------------------

217
1. उच्चतम न्यायालय ने पी.सांबमूततत और अन्य बनाम्र आंध्र प्रदे श राज्य और एक अन्य 1987 (1)
एस.सी.सी. प.ृ 362 में अनुच्छे द 371घ के खंड (5) और उसके परं तुक को असंवध
ै ातनक और
शून्य घोवषत ककया।
---------------------------------------------------------------------------------------

(ख) उपखंड (क) में तनहदत ष्ट ककसी व्यक्क्त द्वारा या उसके समक्ष की गई ककसी कारत वाई या
बात की बाबत,

केवल इस आधार पर कक ऐसे व्यक्क्त की तनयक्ु क्त, पदस्थापना, प्रोन्नतत या अंतरण, ऐसी तनयक्ु क्त,
पदस्थापना, प्रोन्नतत या अंतरण की बाबत, यथाक्स्थतत, है दराबाद राज्य के भीतर या आंध्र प्रदे श राज्य के
ककसी भाग के भीतर तनवास के बारे में ककसी अपेक्षा का उपबंध करने वाली तत्समय प्रवर्त्
ृ ववधध के
अनस
ु ार नहीं ककया गया था, यह नहीं समझा जाएगा कक वह अवैध या शन्
ू य है या कभी भी अवैध या
शन्
ू य रहा था।

(10) इस अनच्
ु छे द के और राष्रपतत द्वारा इसके अधीन ककए गए ककसी आदे श के उपबंध इस
संववधान के ककसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी अन्य ववधध में ककसी बात के होते हुए भी
प्रभावी होंगे।

371-ङ. आंध्र प्रदे श में केंरीय विश्िविद्यालय की स्थापना - संसद् ववधध द्वारा, आंध्र प्रदे श राज्य
में एक ववश्वववद्यालय की स्थापना के ललए उपबंध कर सकेगी।

1
[371-च. लसक्तकम राज्य के संबध
ं में विशेष उपबंध - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए
भी,-

(क) लसक्क्कम राज्य की ववधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से लमलकर बनेगी;

(ख) संववधान (छर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 के प्रारं भ की तारीख से (क्जसे इस अनच्
ु छे द
में इसके पश्चात ् तनयत हदन कहा गया है )—

(i) लसक्क्कम की ववधान सभा, जो अप्रैल, 1974 में लसक्क्कम में हुए तनवातचनों के
पररणामस्वरूप उक्त तनवातचनों में तनवातधचत बर्त्ीस सदस्यों से (क्जन्हें इसमें इसके
पश्चात ् आसीन सदस्य कहा गया है ) लमलकर बनी है , इस संववधान के अधीन सम्यक्
रूप से गहठत लसक्क्कम राज्य की ववधान सभा समझी जाएगी;

(ii) आसीन सदस्य इस संववधान के अधीन सम्यक् रूप से तनवातधचत लसक्क्कम राज्य की
ववधान सभा के सदस्य समझे जाएँगे; और

218
(iii) लसक्क्कम राज्य की उक्त ववधान सभा इस संववधान के अधीन राज्य की ववधान सभा की
शक्क्तयों का प्रयोग और कृत्यों का पालन करे गी;

(ग) खंड (ख) के अधीन लसक्क्कम राज्य की ववधान सभा समझी गई ववधान सभा की
दशा में , अनच्
ु छे द 172 के खंड (1) में [पाँच वषत] की अवधध के प्रतत तनदे शों का यह अथत
2

लगाया जाएगा कक वे 3[चार वषत] की अवधध के प्रतत तनदे श हैं और 3[चार वषत] की उक्त
अवधध तनयत हदन से प्रारं भ हुई समझी जाएगी ;

-------------------------------------------------

1. संववधान (छर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 3 द्वारा (26-4-1975 से)


अंतःस्थावपत।
2. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) ''छह वषत''
के स्थान पर प्रततस्थावपत। संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 56 द्वारा
(3-1-1977 से) ''पाँच वषत'' मूल शब्दों के स्थान पर ''छह वषत'' शब्द प्रततस्थावपत ककए गए थे।
3. संववधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) ''पाँच वषत''
के स्थान पर प्रततस्थावपत। संववधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 56 द्वारा
(3-1-1977 से) ''चार वषत'' मूल शब्दों के स्थान पर ''पाँच वषत'' शब्द प्रततस्थावपत ककए गए थे।
---------------------------------------------------------------------------------------

(घ) जब तक संसद् ववधध द्वारा अन्य उपबंध नहीं करती है जब तक लसक्क्कम राज्य को
लोक सभा में एक स्थान आबंहटत ककया जाएगा और लसक्क्कम राज्य एक संसदीय
तनवातचन-क्षेत्र होगा क्जसका नाम लसक्क्कम संसदीय तनवातचन-क्षेत्र होगा;
(ङ) तनयत हदन को ववद्यमान लोक सभा में लसक्क्कम राज्य का प्रतततनधध लसक्क्कम राज्य
की ववधान सभा के सदस्यों द्वारा तनवातधचत ककया जाएगा;
(च) संसद्, लसक्क्कम की जनता के ववलभन्न अनभ
ु ागों के अधधकारों और हहतों की संरक्षा करने
के प्रयोजन के ललए लसक्क्कम राज्य की ववधान सभा में उन स्थानों की संख्या के ललए
जो ऐसे अनभ
ु ागों के अभ्यधथतयों द्वारा भरे जा सकेंगे और ऐसे सभा तनवातचन-क्षेत्रों के
पररसीमन के ललए, क्जनसे केवल ऐसे अनभ
ु ागों के अभ्यथी ही लसक्क्कम राज्य की ववधान
सभा के तनवातचन के ललए खड़े हो सकेंगे, उपबंध कर सकेगी;
(छ) लसक्क्कम के राज्यपाल का, शांतत के ललए और लसक्क्कम की जनता के ववलभन्न अनभ
ु ागों
की सामाक्जक और आधथतक उन्नतत सतु नक्श्चत करने के ललए साम्यापण
ू त व्यवस्था करने के
ललए ववशेष उर्त्रदातयत्व होगा और इस खंड के अधीन अपने ववशेष उर्त्रदातयत्व का
तनवतहन करने में लसक्क्कम का राज्यपाल ऐसे तनदे शों के अधीन रहते हुए जो राष्रपतत
समय-समय पर दे ना ठीक समझे, अपने वववेक से कायत करे गा;

219
(ज) सभी संपवर्त् और आक्स्तयाँ (चाहे वे लसक्क्कम राज्य में समाववष्ट राज्यक्षेत्रों के भीतर हों
या बाहर) जो तनयत हदन से ठीक पहले लसक्क्कम सरकार में या लसक्क्कम सरकार के
प्रयोजनों के ललए ककसी अन्य प्राधधकारी या व्यक्क्त में तनहहत थीं, तनयत हदन से
लसक्क्कम राज्य की सरकार में तनहहत हो जाएँगी;
(झ) लसक्क्कम राज्य में समाववष्ट राज्यक्षेत्रों में तनयत हदन से ठीक पहले उच्च न्यायालय के
रूप में कायतरत उच्च न्यायालय तनयत हदन को और से लसक्क्कम राज्य का उच्च
न्यायालय समझा जाएगा;
(ञ) लसक्क्कम राज्य के राज्यक्षेत्र में सवतत्र लसववल, दांडडक और राजस्व अधधकाररता वाले सभी
न्यायालय तथा सभी न्यातयक, कायतपालक और अनस
ु धचवीय प्राधधकारी और अधधकारी
तनयत हदन को और से अपने-अपने कृत्यों को इस संववधान के उपबंधों के अधीन रहते
हुए, करते रहें गे;
(ट) लसक्क्कम राज्य में समाववष्ट राज्यक्षेत्र में या उसके ककसी भाग में तनयत हदन से ठीक
पहले प्रवर्त्
ृ सभी ववधधयां वहाँ तब तक प्रवर्त्
ृ बनी रहें गी जब तक ककसी सक्षम ववधान-
मंडल या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा उनका संशोधन या तनरसन नहीं कर हदया जाता
है ;
(ठ) लसक्क्कम राज्य के प्रशासन के संबध
ं में ककसी ऐसी ववधध को, जो खंड (ट) में तनहदत ष्ट है ,
लागू ककए जाने को सक
ु र बनाने के प्रयोजन के ललए और ककसी ऐसी ववधध के उपबंधों
को इस संववधान के उपबंधों के अनरू
ु प बनाने के प्रयोजन के ललए राष्रपतत, तनयत हदन
से दो वषत के भीतर, आदे श द्वारा, ऐसी ववधध में तनरसन के रूप में या संशोधन के रूप
में ऐसे अनक
ु ू लन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और तब
प्रत्येक ऐसी ववधध इस प्रकार ककए गए अनक
ु ू लनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए
प्रभावी होगी और ककसी ऐसे अनक
ु ू लन या उपांतरण को ककसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं
ककया जाएगा;
(ड) उच्चतम न्यायालय या ककसी अन्य न्यायालय को, लसक्क्कम के संबध
ं में ककसी ऐसी
संधध, करार, वचनबंध या वैसी ही अन्य ललखत से, जो तनयत हदन से पहले की गई थी
या तनष्पाहदत की गई थी और क्जसमें भारत सरकार या उसकी पव
ू व
त ती कोई सरकार
पक्षकार थी, उत्पन्न ककसी वववाद या अन्य ववषय के संबध
ं में अधधकाररता नहीं होगी,
ककं तु इस खंड की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह अनच्
ु छे द 143 के
उपबंधों का अल्पीकरण करती है ;
(ढ) राष्रपतत, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, ककसी ऐसी अधधतनयलमतत का ववस्तार, जो उस
अधधसच
ू ना की तारीख को भारत के ककसी राज्य में प्रवर्त्
ृ है , ऐसे तनबतन्धनों या उपांतरणों
सहहत, जो वह ठीक समझता है , लसक्क्कम राज्य पर कर सकेगा;

220
(ण) यहद इस अनच्
ु छे द के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में से ककसी उपबंध को प्रभावी करने में कोई
कहठनाई उत्पन्न होती है तो राष्रपतत, आदे श1 द्वारा, कोई ऐसी बात (क्जसके अंतगतत
ककसी अन्य अनच्
ु छे द का कोई अनक
ु ू लन या उपांतरण है ) कर सकेगा जो उस कहठनाई
को दरू करने के प्रयोजन के ललए उसे आवश्यक प्रतीत होती है :
परं तु ऐसा कोई आदे श तनयत हदन से दो वषत की समाक्प्त के पश्चात ् नहीं ककया जाएगा;
(त) लसक्क्कम राज्य या उसमें समाववष्ट राज्यक्षेत्रों में या उनके संबध
ं में , तनयत हदन को
प्रारं भ होने वाली और उस तारीख से क्जसको संववधान (छर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम,
1975 राष्रपतत की अनम
ु तत प्राप्त करता है , ठीक पहले समाप्त होने वाली अवधध के
दौरान की गई सभी बातें और कारत वाइयाँ, जहाँ तक वे संववधान (छर्त्ीसवाँ संशोधन)
अधधतनयम, 1975 द्वारा यथासंशोधधत इस संववधान के उपबंधों के अनरू
ु प हैं, सभी
प्रयोजनों के ललए इस प्रकार यथासंशोधधत इस संववधान के अधीन ववधधमान्यतः की गई
समझी जाएँगी।
2
[371-छ. लमजोरम राज्य के संबध
ं में विशेष उपबंध - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी,-
(क) तनम्नललणखत के संबधं में संसद् का कोई अधधतनयम लमजोरम राज्य को तब तक लागू नहीं
होगा जब तक लमजोरम राज्य की ववधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा ववतनश्चय नहीं करती है , अथातत:् -
(i) लमजो लोगों की धालमतक या सामाक्जक प्रथाएँ;
(ii) लमजो रुहढ़जन्य ववधध और प्रकक्रया;
(iii) लसववल और दांडडक न्याय प्रशासन, जहाँ ववतनश्चय लमजो रुहढ़जन्य ववधध के अनस
ु ार होने हैं;

(iv) भलू म का स्वालमत्व और अंतरण:


परं तु इस खंड की कोई बात, संववधान (ततरपनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1986 के प्रारं भ से ठीक
पहले लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र में प्रवर्त्
ृ ककसी केंद्रीय अधधतनयम को लागू नहीं होगी;
-------------------------------------------
1. संववधान (कहठना;यों का तनराकरण) आदे श सं0 11 (सं0 आ0 99) दे णखए।
2. संववधान (ततरपनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से)
अंतःस्थावपत।
-------------------------------------------------------------------------------------------
(ख) लमजोरम राज्य की ववधान सभा कम से कम चालीस सदस्यों से लमलकर बनेगी।]
[371-ज. अरुणाचल प्रदे श राज्य के संबध
1
ं में विशेष उपबंध - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए
भी,-
(क) अरुणाचल प्रदे श के राज्यपाल का अरुणाचल प्रदे श राज्य में ववधध और व्यवस्था के संबध

में ववशेष उर्त्रदातयत्व रहे गा और राज्यपाल, उस संबध
ं में अपने कृत्यों का तनवतहन करने
में की जाने वाली कारत वाई के बारे में अपने व्यक्क्तगत तनणतय का प्रयोग मंत्रत्र-पररषद् से
परामशत करने के पश्चात ् करे गा:
परं तु यहद यह प्रश्न उठता है कक कोई मामला ऐसा मामला है या नहीं क्जसके संबध
ं में राज्यपाल
से इस खंड के अधीन अपेक्षा की गई है कक वह अपने व्यक्क्तगत तनणतय का प्रयोग करके कायत करे तो
राज्यपाल का अपने वववेक से ककया गया ववतनश्चय अंततम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई ककसी बात

221
की ववधधमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कक उसे अपने व्यक्क्तगत तनणतय का प्रयोग
करके कायत करना चाहहए था या नहीं:
परं तु यह और कक यहद राज्यपाल से प्रततवेदन लमलने पर या अन्यथा राष्रपतत का यह समाधान
हो जाता है कक अब यह आवश्यक नहीं है कक अरुणाचल प्रदे श राज्य में ववधध और व्यवस्था के संबध
ं में
राज्यपाल का ववशेष उर्त्रदातयत्व रहे तो वह, आदे श द्वारा, तनदे श दे सकेगा कक राज्यपाल का ऐसा
उर्त्रदातयत्व उस तारीख से नहीं रहे गा जो आदे श में ववतनहदत ष्ट की जाए;
(ख) अरुणाचल प्रदे श राज्य की ववधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से लमलकर बनेगी।]
[371-झ. गोिा राज्य के संबध
2
ं में विशेष उपबंध - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी,
गोवा राज्य की ववधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से लमलकर बनेगी।]
3
[371-ञ. कनामटक राज्य के सबंध में विशेष उपबंध (1) –राष्रपतत कनातटक राज्य के सबंध में
ककए गए आदे श द्वारा,-
(क) है दराबाद- कनातटक क्षेत्र के ललए पथ
ृ क ववकास बोडत की स्थापना इस उपबंध के साथ कक
बोडत के कायत पर ररपोटत प्रतत वषत राज्य ववधानसभा के समक्ष रखी जाएगी,
(ख) सम्पण
ू त राज्य की आवश्यकता के अध्यधीन, उक्त क्षेत्र पर ववकास खचत के ललए तनधध के
साम्यपण
ू त आबंटन; और
(ग) सम्पण
ू त राज्य की आवश्यकता के अध्यधीन लोक तनयोजन, लशक्षा और व्यावसातयक
प्रलशक्षण के मामले में उक्त क्षेत्र से सबंधधत लोगों के ललए साम्यापण
ू त अवसर और सवु वधाओं, के ललए
राज्यपाल के ककसी ववशेष उर्त्रदातयत्व के ललए उपबंध कर सकेगा |
(2)खण्ड (1) के उपखंड (ग) के अधीन ककया गया कोई आदे श-
----------------------------------------
1. संववधान (पचपनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1986 की धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से)
अंतःस्थावपत।
2. संववधान (छ्रपनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1987 की धारा 2 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्थावपत।
3. संववधान (98वाँ संसोधन) अधधतनयम, 2012 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत |
--------------------------------------------------------------------------------------------
(क) है दराबाद- कनातटक क्षेत्र के शैक्षणणक और व्यावसातयक प्रलशक्षण संस्थानों में छात्रों के ललए, जो
जन्मद्वारा या अधधवास या उस क्षेत्र से संबधधत है , स्थानों के अनप
ु ात के आरक्षण, और
(ख) है दराबाद –कनातटक क्षेत्र में राज्य सरकार के अधीन और राज्य सरकार के तनयंत्रणाधीन ककसी
तनकाय या संगठन में पदों या पदों के वगों की लशनाख्त और व्यक्क्तयों के ललए, जो जन्म द्वारा
या अधधवास द्वारा उस क्षेत्र से सबंधधत हें , ऐसे पदों के अनप
ु ात के आरक्षण और सीधी भती
द्वारा पदोन्नतत द्वारा या ककसी अन्य ढं ग से, जैसा कक आदे श में ववतनहदत ष्ट ककया जाय, उसमें
तनयक्ु क्त,
के ललये उपबंध कर सकेगा|]
372. विद्यमान विधधयों का प्रिि
ृ बने रहना और उनका अनक
ु ू लन - (1) अनच्
ु छे द 395 में तनहदत ष्ट
अधधतनयलमततयों का इस संववधान द्वारा तनरसन होने पर भी, ककं तु इस संववधान के अन्य उपबंधों के
अधीन रहते हुए, इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में सभी प्रवर्त्
ृ ववधध वहाँ तब

222
तक प्रवर्त्
ृ बनी रहे गी जब तक ककसी सक्षम ववधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा उसे पररवतततत
या तनरलसत या संशोधधत नहीं कर हदया जाता है ।
(2) भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी प्रवर्त्
ृ ववधध के उपबंधों को इस संववधान के उपबंधों के अनरू
ु प बनाने
के प्रयोजन के ललए राष्रपतत, आदे श द्वारा, ऐसी ववधध में तनरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे
अनक
ु ू लन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और यह उपबंध कर सकेगा कक वह
ववधध ऐसी तारीख से जो आदे श में ववतनहदतष्ट की जाए, इस प्रकार ककए गए अनक
ु ू लनों और उपांतरणों के
अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और ककसी ऐसे अनक
ु ू लन या उपांतरण को ककसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं
ककया जाएगा।
(3) खंड (2) की कोई बात—
(क) राष्रपतत को इस संववधान के प्रारं भ से 1[तीन वषत] की समाक्प्त के पश्चात ् ककसी ववधध का कोई
अनक
ु ू लन या उपांतरण करने के ललए सशक्त करने वाली, या
(ख) ककसी सक्षम ववधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधधकारी को, राष्रपतत द्वारा उक्त खंड के अधीन
अनक
ु ू ललत या उपांतररत ककसी ववधध का तनरसन या संशोधन करने से रोकने वाली,
नहीं समझी जाएगी।
स्पष्ट्टीकरण 1 - इस अनच्
ु छे द में , ''प्रवर्त्
ृ ववधध'' पद के अंतगतत ऐसी ववधध है जो इस संववधान के
प्रारं भ से पहले भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी ववधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा पाररत
की गई है या बनाई गई है और पहले ही तनरलसत नहीं कर दी गई है , भले ही वह या उसके कोई भाग
तब पण
ू त
त ः या ककन्हीं ववलशष्ट क्षेत्रों में प्रवततन में न हों।
-------------------------------------------
1. दे णखये, अधधसूचना सं0 का0 तन0 आ0 115, तारीख 5 जून 1950, भारत का राजपत्र,असाधारण,
भाग II अनुभाग 3, प0
ृ 51;
2. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 12 द्वारा “दो वषत” के स्थान पर
प्रततस्थावपत |
----------------------------------------------------------------------------------------
स्पष्ट्टीकरण 2-भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी ववधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा
पाररत की गई या बनाई गई ऐसी ववधध का, क्जसका इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले राज्यक्षेत्रातीत
प्रभाव था और भारत के राज्यक्षेत्र में भी प्रभाव था, यथापव
ू ोक्त ककन्हीं अनक
ु ू लनों और उपांतरणों के
अधीन रहते हुए, ऐसा राज्य क्षेत्रातीत प्रभाव बना रहेगा।
स्पष्ट्टीकरण 3-इस अनच्
ु छे द की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह ककसी अस्थायी
प्रवर्त्
ृ ववधध को, उसकी समाक्प्त के ललए तनयत तारीख से, या उस तारीख से क्जसको, यहद वह संववधान
प्रवर्त्
ृ न हुआ होता तो, वह समाप्त हो जाती, आगे प्रवर्त् ृ बनाए रखती है ।
स्पष्ट्टीकरण 4-ककसी प्रांत के राज्यपाल द्वारा भारत शासन अधधतनयम, 1935 की धारा 88 के अधीन
प्रख्यावपत और इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले प्रवर्त्
ृ अध्यादे श, यहद तत्स्थानी राज्य के राज्यपाल
द्वारा पहले ही वापस नहीं ले ललया गया है तो, ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् अनच्
ु छे द 382 के खंड (1) के
अधीन कायतरत उस राज्य की ववधान सभा के प्रथम अधधवेशन से छह सप्ताह की समाक्प्त पर प्रवततन में
नहीं रहे गा और इस अनच्
ु छे द की ककसी बात का यह अथत नहीं लगाया जाएगा कक वह ऐसे ककसी
अध्यादे श को उक्त अवधध से आगे प्रवर्त्
ृ बनाए रखती है ।

223
1
[372-क. विधधयों का अनक
ु ू लन करने की राष्ट्रपनत की शक्तत- (1) संववधान (सातवाँ संशोधन)
अधधतनयम, 1956 के प्रारं भ से ठीक पहले भारत में या उसके ककसी भाग में प्रभर्त्
ु ककसी ववधध के
उपबंधों को उस अधधतनयम द्वारा यथासंशोधधत इस संववधान के उपबंधों के अनरू
ु प बनाने के प्रयोजनों के
ललए, राष्रपतत , 1 नवंबर, 1957 से पहले ककए गए आदे श2 द्वारा, ऐसी ववधध में तनरसन के रूप में या
संसोधन के रूप मै ऐसे अनक
ु ू लन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और यह
उपबंध कर सकेगा कक वह ववधध ऐसी तारीख से जो आदे श में ववतनहदत ष्ट कक जाए, इस प्रकार ककए गए
अनकु ू लनों और उपंतारणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और ककसी ऐसे अनक
ु ू लन या उपांतरण को
ककसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं ककया जाएगा |
(2) खंड (1) कक कोई बात, ककसी सक्षम ववधान- मंडल या अन्य सक्षम प्राधधकारी को, राष्रपतत
द्वारा उक्त खंड के अधीन अनक
ु ू ललत या उपांतररत ककसी ववधध का तनरसन या संसोधन करने से रोकने
वाली नहीं समझी जाएगी|
373. ननिारक ननरोध में रखे गए व्यक्ततयों के सबंध में कुछ दशाओं में आदे श करने क्रक राष्ट्रपनत
क्रक शक्तत - जब तक अनच्
ु छे द 22 के खंड (7) के अधीन संसद् उपबंध नहीं करती है या जब तक
इस संववधान के प्रारं भ से एक वषत समाप्त नहीं हो जाता है , इनमें से जो भी पहले हो, तब तक उक्त
अनच्
ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो उसके खंड (4) और खंड (7) में संसद् के प्रतत ककसी तनदे श के स्थान
पर राष्रपतत के प्रतत तनदे श और उन खंडों में संसद् द्वारा बनाई गई ववधध के प्रतत तनदे श के स्थान पर
राष्रपतत द्वारा ककए गए आदे श के प्रतत तनदे श रख हदया गया हो |
----------------------------------------
1. संववधान (सातवाँ संसोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 23 द्वारा अंत:स्थावपत |
2. दे णखए 1956 और 1957 के ववधध अनुकूलन आदे श |
--------------------------------------------------------------------------------------------
374. फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों और फेडरल न्यायालय में या सपररषद् र्हज मेजेस्टी के
समक्ष लंत्रबत कायमिार्हयों के बारे में उपबंध – (1) इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले फेडरल न्यायालय
के पद धारण करने वाले न्यायधीश, यहद वे अन्यथा तनवातधचत न कर चुके हों तो,ऐसे प्रारं भ पर उच्चतम
न्यायालय के न्यायाधीश हो जायगे और तब ऐसे वेतनों और भर्त्ों तथा अनप
ु क्स्थतत छुट्टी और पें शन के
सबंध में ऐसे अधधकारों के हक़दार होंगे जो उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशो के सबंध में अनच्
ु छे द 125
के अधीन उपबंधधत है |
(2) इस संववधान के प्रारं भ पर फेडरल न्यायालय में लंत्रबत सभी लसववल या दांडडक वाद, अपील
और कायतवाहहयां, उच्चतम न्यायालय को अंतररत हो जाएगी और उच्चतम न्यायालय को उनको सन
ु ने
और उनका अवधारण करने की अधधकाररता होगी और फेडरल न्यायालय द्वारा इस संववधान के प्रारं भ से
पहले सन
ु ाए गए या हदए गए तनणतयों और आदे शों का वही बल और प्रभाव होगा मानो वे उच्चतम
न्यायालय द्वारा सन
ु ाए गए हों या हदए गए हों |
(3) इस संववधान की कोई बात भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर ककसी न्यायालय के ककसी तनणतय,
डडक्री या आदे श की या उसके सबंध में अपीलों और याधचकाओं को तनपटाने के ललए पररषद हहज मेजेस्टी
द्वारा अधधकाररता के प्रयोग को वहां तक अववधधमान्य नहीं करे गी जहां तक ऐसी अधधकाररता का प्रयोग
ववधध द्वारा प्राधधकृत है और ऐसी अपील या याधचका पर इस संववधान के प्रारं भ के पश्चात ककया गया
सपररषद् हहज मेजेस्टी का कोई आदे श सभी प्रयोजनों के ललए ऐसे प्रभावी होगा मानी वह उच्चतम

224
न्यायालय द्वारा उस अधधकाररता के प्रयोग में जो ऐसे न्यायालय को इस संववधान द्वारा प्रदान की गई
है , ककया गया कोई आदे श या डडक्री हो |
(4) इस संववधान के प्रारं भ से ही पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख में ववतनहदत ष्ट ककसी राज्य में वप्रवी
कौंलसल के रूप में कायतरत प्राधधकारी की उस राज्य के भीतर ककसी न्यायालय के ककसी तनणतय , डडक्री
या आदे श की या उसके सबंध में अपीलों और याधचकायों को ग्रहण करने का तनपटाने की अधधकाररता
समाप्त हो जाएगी और उक्त प्राधधकारी के समक्ष ऐसे प्रारं भ पर लंत्रबत सभी अपीलें और अधधकाररता
समाप्त हो जाएगी और उक्त प्राधधकारी के समक्ष ऐसे प्रारं भ पर लंत्रबत सभी अपीलें और अन्य
कायतवाहहयां उच्चतम न्यायालय को अंतररत कर दी जाएंगी और उसके द्वारा तनपटाई जाएंगी |
(5) इस अनच्
ु छे द के उपबंधों को प्रभावी करने के ललए संसद् ववधध द्वारा और उपबंध कर सकेगी
|
375. संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्यायालयों, प्राधधकाररयों और अधधकाररयों का कृत्य
करते रहना – भारत के राज्यक्षेत्र में सवतत्र लसववल, दं डडका और राजस्व अधधकाररता वाले सभी न्यायालय
और सभी न्यातयक,कायतपालक और अनस
ु धचवीय प्राधधकारी और अधधकारी अपने- अपने कृत्यों को, इस
संववधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, करते रहें गे |
376. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध - (1) अनच्
ु छे द 217 के खंड (2) में
ककसी बात के होते हुए भी, इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले ककसी प्रांत के उच्च न्यायालय के पद
धारण करने वाले न्यायाधीश, यहद वे अन्यथा तनवातचन न कर चुके हों तो, ऐसे प्रारं भ पर तत्स्थानी राज्य
के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएँगे और तब ऐसे वेतनों और भर्त्ों तथा अनप
ु क्स्थतत छुट्टी और
पें शन के संबध
ं में ऐसे अधधकारों के हकदर होंगे जो ऐसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संबध
ं में
अनच्
ु छे द 221 के अधीन उपबंधधत हैं। [ऐसा न्यायाधीश इस बात के होते हुए भी कक वह भारत का
1

नागररक नहीं है , ऐसे उच्च न्यायालय का मख्


ु य न्यायमतू तत अथवा ककसी अन्य उच्च न्यायालय का मख्
ु य
न्यायमतू तत या अन्य न्यायाधीश तनयक्
ु त होने का पात्र होगा।]
-------------------------------------------
1. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 13 द्वारा जोडा गया।
--------------------------------------------------------------------------------------------
(2) इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख में ववतनहदत ष्ट ककसी राज्य
के तत्स्थानी ककसी दे शी राज्य के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, यहद वे अन्यथा
तनवातचन न कर चक
ु े हों तो, ऐसे प्रारं भ पर इस प्रकार ववतनहदतष्ट राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
हो जाएँगे और अनच् ु छे द 217 के खंड (1) और खंड (2) में ककसी बात के होते हुए भी, ककं तु उस
अनच्
ु छे द के खंड (1) के परं तक
ु के अधीन रहते हुए, ऐसी अवधध की समाक्प्त तक पद धारण करते रहें गे
जा राष्रपतत आदे श द्वारा अवधाररत करे ।
(3) इस अनच्
ु छे द में , ''न्यायाधीश'' पद के अंतगतत कायतकारी न्यायाधीश या अपर न्यायाधीश नहीं
है ।
377. भारत के ननयंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध - इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले
पद धारण करने वाला भारत का महालेखापरीक्षक, यहद वह अन्यथा तनवातचन न कर चक
ु ा हो तो, ऐसे
प्रारं भ पर भारत का तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक हो जाएगा और तब ऐसे वेतनों तथा अनप
ु क्स्थतत छुट्टी और
पें शन के संबध
ं में ऐसे अधधकारों का हकदार होगा जो भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के संबध
ं में

225
अनच्
ु छे द 148 के खंड (3) के अधीन उपबंधधत है और अपनी उस पदावधध की समाक्प्त तक पद धारण
करने का हकदार होगा जो ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले उसे लागू होने वाले उपबंधों के अधीन अवधाररत की
जाए।
378. लोक सेिा आयोगों के बारे में उपबंध - (1) इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारत
डोलमतनयन के लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, यहद वे अन्यथा तनवातचन न कर चक
ु े
हों तो ऐसे प्रारं भ पर संघ के लोक सेवा आयोग के सदस्य हो जाएँगे और अनच्
ु छे द 316 के खंड (1) और
खंड (2) में ककसी बात के होते हुए भी, ककं तु उस अनच्
ु छे द के खंड (2) के परं तक
ु के अधीन रहते हुए,
अपनी उस पदावधध की समाक्प्त तक पद धारण करते रहें गे जो ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले ऐसे सदस्यों को
लागू तनयमों के अधीन अवधाररत है ।
(2) इस सववधान के प्रारं भ से ठीक पहले ककसी प्रांत के लोक सेवा आयोग के या प्रांतों के समह

की आवश्यकताओं की पतू तत करने वाले ककसी लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, यहद वे
अन्यथा तनवातचन न कर चक
ु े हों तो, ऐसे प्रारं भ पर, यथाक्स्थतत, तत्स्थानी राज्य के लोक सेवा आयोग के
सदस्य या तत्स्थानी राज्यों की आवश्यकताओं की पतू तत करने वाले संयक्
ु त राज्य लोक सेवा आयोग के
सदस्य हो जाएँगे और अनच् ु छे द 316 के खंड (1) और खंड (2) में ककसी बात के होते हुए भी, ककं तु उस
अनच्
ु छे द के खंड (2) के परं तक
ु के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदावधध की समाक्प्त तक पद धारण
करते रहें गे जो ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले ऐसे सदस्यों को लागू तनयमों के अधीन अवधाररत है ।
2
[378क. आंध्र प्रदे श विधान सभा की अिधध के बारे में विशेष उपबंध - अनच्
ु छे द 172 में ककसी
बात के होते हुए भी, राज्य पन ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा 28 और धारा 29 के उपबंधों के अधीन
गहठत आंध्र प्रदे श राज्य की ववधान सभा, यहद पहले ही ववघहटत नहीं कर दी जाती है तो, उक्त धारा 29
में तनहदत ष्ट तारीख से पाँच वषत की अवधध तक बनी रहे गी, इससे अधधक नहीं और उक्त अवधध की
समाक्प्त का पररणाम उस ववधान सभा का ववघटन होगा।]
---------------------------------------------------
1 संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 13 द्वारा जोडा गया।
-------------------------------------------------------------------------------------------379-391. संववधान (सातवाँ
संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु च
ू ी द्वारा तनरलसत।
392. कर्ठनाइयों को दरू करने की राष्ट्रपनत की शक्तत -(1) राष्रपतत ककन्हीं ऐसी कहठनाइयों को,
जो ववलशष्टतया भारत शासन अधधतनयम, 1935 के उपबंधों से इस संववधान के उपबंधों को संक्रमण के
संबध
ं में हों, दरू करने के प्रयोजन के ललए आदे श द्वारा तनदे श दे सकेगा कक यह संववधान उस आदे श में
ववतनहदतष्ट अवधध के दौरान उपांतरण, पररवधतन या लोप के रूप में ऐसे अनक
ु ू लनों के अधीन रहते हुए
प्रभावी होगा जो वह आवश्यक या समीचीन समझे:
परं तु ऐसा कोई आदे श भाग 5 के अध्याय 2 के अधीन सम्यक् रूप से गहठत संसद् के प्रथम
अधधवेशन के पश्चात ् नहीं ककया जाएगा।
(2) खंड (1) के अधीन ककया गया प्रत्येक आदे श संसद् के समक्ष रखा जाएगा।
(3) इस अनच्
ु छे द, अनच्
ु छे द 324, अनच्
ु छे द 367 के खंड (3) और अनच्
ु छे द 391 द्वारा राष्रपतत
को प्रदर्त् शक्क्तयाँ, इस संववधान के प्रारं भ से पहले, भारत डोलमतनयन के गवनतर जनरल द्वारा प्रयोक्तव्य
होंगी।

226
भाग – 22

संक्षक्षप्त नाम, प्रारं भ, 1[र्हन्दी में प्राधधकृत पाठ ] और ननरसन


393. संक्षक्षप्त नाम - इस संववधान का संक्षक्षप्त नाम भारत का संववधान है ।
394. प्रारं भ - यह अनच्
ु छे द और अनच्
ु छे द 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 379, 380,
388, 391, 392 और 393 तरु ं त प्रवर्त्
ृ होंगे और इस संववधान के शेष उपबंध 26 जनवरी, 1950
को प्रवर्त्
ृ होंगे जो हदन इस संववधान में इस संववधान के प्रारं भ के रूप में तनहदत ष्ट ककया गया
है ।s
2
[394क. र्हंदी भाषा में प्राधधकृत पाठ - (1) राष्रपतत-
(क) इस संववधान के हहंदी भाषा में अनव
ु ाद को, क्जस पर संववधान सभा के सदस्यों ने
हस्ताक्षर ककए थे, ऐसे उपांतरणों के साथ जो उसे केंद्रीय अधधतनयमों के हहंदी भाषा में
प्राधधकृत पाठों में अपनाई गई भाषा, शैली और शब्दावली के अनरू
ु प बनाने के ललए
आवश्यक हैं, और ऐसे प्रकाशन के पव
ू त ककए गए इस संववधान के ऐसे सभी संशोधनों को
उसमें सक्म्मललत करते हुए, तथा
(ख) अंग्रेजी भाषा में ककए गए इस संववधान के प्रत्येक संशोधन के हहंदी भाषा में अनव
ु ाद को,
अपने प्राधधकार से प्रकालशत कराएगा।
(2) खंड (1) के अधीन प्रकालशत इस संववधान और इसके प्रत्येक संशोधन के अनव
ु ाद का वही
अथत लगाया जाएगा जो उसके मल
ू का है और यहद ऐसे अनव
ु ाद के ककसी भाग का इस प्रकार अथत लगाने
में कोई कहठनाई उत्पन्न होती है तो राष्रपतत उसका उपयक्
ु त पन
ु रीक्षण कराएगा।
(3) इस संववधान का और इसके प्रत्येक संशोधन का इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रकालशत अनव
ु ाद,
सभी प्रयोजनों के ललए, उसका हहंदी भाषा में प्राधधकृत पाठ समझा जाएगा।
395. ननरसन - भारत स्वतंत्रता अधधतनयम, 1947 और भारत शासन अधधतनयम, 1935 का,
पश्चात ् कधथत अधधतनयम की, संशोधक या अनप
ु रू क सभी अधधतनयलमततयों के साथ, क्जनके अंतगतत वप्रवी
कौंलसल अधधकाररता उत्सादन अधधतनयम, 1949 नहीं है , इसके द्वारा तनरसन ककया जाता है ।
-----------------------------------------------------------
1. संववधान (अठावनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1987 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थावपत।
2. संववधान (अठावनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1987 की धारा 3 द्वारा( 9-12-1987 से )
अंतःस्थावपत।

227
1
[पहली अनस
ु च
ू ी
(अनच्
ु छे द 1 और अनच्
ु छे द 4)
1.राज्य

नाम राज्यक्षेत्र

1. आंध्रप्रदे श 2
[वे राज्य क्षेत्र जो आंध्र राज्य अधधतनयम, 1953 की धारा 3
की उपधारा (1) में , राज्य पन
ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा 3 की
उपधारा (1) में , आंध्रप्रदे श और मद्रास (सीमा पररवततन) अधधतनयम,
1959 की प्रथम अनस
ु च
ू ी में और आंध्रप्रदे श और मैसरू (राज्य क्षेत्र
अंतरण) अधधतनयम, 1968 की अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट हैं, ककं तु वे राज्य
क्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं जो आंध्रप्रदे श और मद्रास (सीमा पररवततन)
अधधतनयम, 1959 की द्ववतीय अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट हैं।]
2. असम वे राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले
असम प्रांत, खासी राज्यों और असम जनजातत क्षेत्रों में समाववष्ट थे,
ककं तु वे राज्य क्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं जो असम (सीमा पररवततन)
अधधतनयम, 1951 की अनस
ु च
ू ी में ववतनहदतष्ट हैं [और वे राज्य क्षेत्र भी
3

इसके अंतगतत नहीं हैं, जो नागालैंड राज्य अधधतनयम, 1962 की धारा 3


की उपधारा (1) में ववतनहदतष्ट हैं।] 4[और वे राज्य क्षेत्र] भी इसके अंतगतत
नहीं हैं 4[जो पव
ू ोर्त्र क्षेत्र (पन
ु गतठन) अधधतनयम, 1971 की धारा 5, धारा
6 और धारा 7 में ववतनहदतष्ट हैं।]
3. त्रबहार 5
[वे राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले या
तो त्रबहार प्रांत में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशालसत थे मानो वे उस
प्रांत के भाग रहे हों और वे राज्य क्षेत्र जो त्रबहार और उर्त्रप्रदे श (सीमा
पररवततन) अधधतनयम, 1968 की धारा 3 की उपधारा (1) के खंड (क) में
ववतनहदतष्ट हैं, ककं तु वे राज्य क्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं जो त्रबहार और
पक्श्चमी बंगाल (राज्य क्षेत्र अंतरण) अधधतनयम, 1956 की धारा 3 की
उपधारा (1) में ववतनहदतष्ट हैं और वे राज्य क्षेत्र भी इसके अंतगतत नहीं हैं
जो प्रथम वणणतत अधधतनयम की धारा 3 की उपधारा (1) के खंड (ख) में
ववतनहदतष्ट हैं।6[ और वे राज्यक्षेत्र जो त्रबहार पन
ु गतठन अधधतनयम, 2000
की धारा 3 में ववतनहदतष्ट है] | ]
-------------------------------------------------------------
1. संववधान(सातवाँ संसोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा पहली अनुसूची के स्थान पर
प्रततस्थावपत |
2. आंध्रप्रदे श और मैसूर (राज्यक्षेत्र अंतरण ) अधधतनयम, 1968 (1968 का 36) की धारा 4 द्वारा
(1-10-1968 से ) पूवव
त ती प्रववष्ट के स्थान पर प्रततस्थावपत |
3. नागालैंड राज्य अधधतनयम,1962 (1962 का 27) की धारा 4 द्वारा(1-12-1963 से ) जोड़ा गया
|

228
4. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से )
जोड़ा गया |
5. त्रबहार और उर्त्र प्रदे श (सीमा – पररवततन ) अधधतनयम, 1968 (1968 का 24) की धारा 4 द्वारा
(10-6-1970 से) पूवव
त ती प्रववक्ष्ट के स्थान पर प्रततस्थावपत |
6. त्रबहार पुनगतठन अधधतनयम, 2000 (2000 का 30 ) की धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से ) जोड़ा
गया |
पहली अनस
ु च
ू ी

--------------------------------------------------------------------------------------------

1
[4.गज
ु रात वे राज्य क्षेत्र जो मब
ुं ई पन
ु गतठन अधधतनयम, 1960 की धारा 3 की
उपधारा (1) में तनहदत ष्ट हैं।]
5. केरल वे राज्य क्षेत्र जो राज्य पन
ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा
5 की उपधारा (1) में ववतनहदत ष्ट हैं।
6. मध्यप्रदे श वे राज्य क्षेत्र जो राज्य पन
ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा
9 की उपधारा (1) में 2
[तथा राजस्थान और मध्यप्रदे श (राज्य क्षेत्र
अंतरण) अधधतनयम, 1959 की प्रथम अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट हैं] 3[ककन्तु
इनके अंतगतत मध्यप्रदे श पन
ु गतठन अधधतनयम,2000 की धारा 3 में
ववतनहदतष्ट राज्यक्षेत्र नहीं है ]|]
4
[7.तलमलनाडु] वे राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले या तो
मद्रास प्रांत में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशालसत थे मानो वे उस प्रांत
के भाग रहे हों और वे राज्य क्षेत्र जो राज्य पन
ु गतठन अधधतनयम, 1956
की धारा 4 में 5[तथा आंध्रप्रदे श और मद्रास (सीमा पररवततन) अधधतनयम,
1959 की द्ववतीय अनस
ु च
ू ी में ] ववतनहदत ष्ट हैं, ककं तु वे राज्य क्षेत्र इसके
अंतगतत नहीं हैं जो आंध्र राज्य अधधतनयम, 1953 की धारा 3 की
उपधारा (1) और धारा 4 की उपधारा (1) में ववतनहदत ष्ट हैं और 6
[(वे
राज्य क्षेत्र भी इसके अंतगतत नहीं हैं जो राज्य पन
ु गतठन अधधतनयम,
1956 की धारा 5 की उपधारा (1) के खंड (ख), धारा 6 और धारा 7 की
उपधारा (1) के खंड (घ) में ववतनहदत ष्ट हैं और वे राज्य क्षेत्र भी इसके
अंतगतत नहीं हैं जो आंध्रप्रदे श और मद्रास (सीमा पररवततन) अधधतनयम,
1959 की प्रथम अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट हैं]|
7
[8.महाराष्र वे राज्य क्षेत्र जो राज्य पन
ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा 8 की
उपधारा (1) में ववतनहदतष्ट हैं, ककं तु वे राज्य क्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं
जो मब
ुं ई पन
ु गतठन अधधतनयम, 1960 की धारा 3 की उपधारा (1) में
तनहदत ष्ट हैं।

229
[ [9.]कनातटक
8 9
वे राज्य क्षेत्र जो राज्य पन
ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा 7 की
उपधारा (1) में ववतनहदतष्ट हें [ककं तु वे राज्य क्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं
10

जो आंध्रप्रदे श और मैसरू (राज्य क्षेत्र अंतरण) अधधतनयम, 1968 की


अनस
ु च
ू ी में ववतनहदतष्ट हैं
-------------------------------------------

1. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्रववक्ष्ट 4
के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. राजस्थान और मध्यप्रदे श (राज्यक्षेत्र अंतरण ) अधधतनयम,1959 (1959 का 47 )की धारा 4
द्वारा (1-10-1959 से ) अंत:स्थावपत |
3. मध्यप्रदे श पुनगतठन अधधतनयम 2000 (2000 का 28) की धारा 5 द्वारा (1-11-200 से ) जोड़ा
गया |
4. मद्रास राज्य (नाम पररवततन) अधधतनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 5 द्वारा (14-1-1969
से) '7. मद्रास' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
5. आंध्रप्रदे श और मद्रास (सीमा- पररवततन) अधधतनयम, 1959 (1959 का 56) की धारा 6 द्वारा
(1-4-1960 से ) अंत:स्थावपत |
6. आंध्रप्रदे श और मद्रास (सीमा- पररवततन) अधधतनयम, 1959 (1959 का 56) की धारा 6 द्वारा
(1-4-1960 से ) कुछ शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत |
7. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से)
अंत:स्थावपत |
8. मैसूर राज्य (नाम पररवततन) अधधतनयम, 1973 (1973 का 31) की धारा 5 द्वारा (1-11-1973
से) “9 मैसूर” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
9. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्रववक्ष्ट 8
से 14 तक को प्रववक्ष्ट 9 से 15 तक के रूप में पुनः संख्यांककत ककया गया।
10. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्यक्षेत्र अंतरण ) अधधतनयम, 1968 (1968 का 36) की धारा 4 द्वारा
(1-10-1968 से ) अंत:स्थावपत |
-------------------------------------------------------------------------------------------

1
[10.2[-ओडडसा] वे राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले या तो उड़ीसा प्रांत
में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशालसत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे
हों।

1[11.] पंजाब वे राज्य क्षेत्र जो राज्य पन


ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा 11 में
ववतनहदतष्ट हैं [और वे राज्य क्षेत्र जो अक्जतत राज्य क्षेत्र (ववलयन)
3

अधधतनयम, 1960 की प्रथम अनस


ु च
ू ी के भाग 2 में तनहदत ष्ट हैं,] [ककं तु
4

वे राज्यक्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं जो संववधान (नवाँ संशोधन)


अधधतनयम, 1960 की पहली अनस
ु च
ू ी के भाग 2 में तनहदत ष्ट हैं] [और वे
5

230
राज्य क्षेत्र भी इसके अंतगतत नहीं हैं जो पंजाब पन
ु गतठन अधधतनयम,
1966 की धारा 3 की उपधारा (1), धारा 4 और धारा 5 की उपधारा (1)
में ववतनहदत ष्ट हैं]।

1[12].राजस्थान वे राज्य क्षेत्र जो राज्य पन


ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा 10 में
ववतनहदतष्ट हैं, 6[ककं तु वे राज्य क्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं जो राजस्थान
और मध्यप्रदे श (राज्यक्षेत्र अंतरण) अधधतनयम, 1959 की प्रथम अनस
ु च
ू ी
में ववतनहदत ष्ट हैं]।

1
[13. उर्त्र प्रदे श 7
[वे राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले या तो संयक्
ु त
प्रांत नाम से ज्ञात प्रांत में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशालसत थे मानो
वे उस प्रांत के भाग रहे हों, वे राज्य क्षेत्र जो त्रबहार और उर्त्रप्रदे श
(सीमा पररवततन) अधधतनयम, 1968 की धारा 3 की उपधारा (1) के खंड
(ख) में ववतनहदत ष्ट हैं और वे राज्य क्षेत्र जो हररयाणा और उर्त्रप्रदे श
(सीमा पररवततन) अधधतनयम, 1979 की धारा 4 की उपधारा (1) के खंड
(ख) में ववतनहदतष्ट हैं, ककं तु वे राज्य क्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं जो त्रबहार
और उर्त्रप्रदे श (सीमा पररवततन) अधधतनयम, 1968 की धारा 3 की
उपधारा (1) के खंड (क) में ववतनहदत ष्ट हैं 8
[और वे राज्यक्षेत्र ,जो
उर्त्रप्रदे श पन
ु गतठन अधधतनयम, 2000 की धारा 3 में ववतनहदतष्ट हें ] और
वे राज्य क्षेत्र भी इसके अंतगतत नहीं हैं जो हररयाणा और उर्त्रप्रदे श
(सीमा पररवततन) अधधतनयम, 1979 की धारा 4 की उपधारा (1) के खंड
(क) में ववतनहदत ष्ट हैं]।

1
[14.पक्श्चमी बंगाल वे राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले या तो पक्श्चमी
बंगाल प्रांत में समाववष्ट थे या इस प्रकार प्रशालसत थे मानों वे उस प्रांत
के भाग रहे हों, और चंद्रनगर (ववलयन) अधधतनयम, 1954 की धारा 2
के खंड (ग) में यथा पररभावषत चंद्रनगर का राज्य क्षेत्र और वे राज्य क्षेत्र
भी जो त्रबहार और पक्श्चमी बंगाल (राज्यक्षेत्र अंतरण) अधधतनयम, 1956
की धारा 3 की उपधारा (1) में ववतनहदत ष्ट हैं।]

----------------------------------------

1. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्रववक्ष्ट 8
से 14 तक को प्रववक्ष्ट 9 से 15 तक के रूप में पुनः संख्यांककत ककया गया।
2. उडीसा (नाम पररवततन)अधधतनयम, 2011 (1960 का 64 ) की धारा 4 द्वारा (1-11-2011 से )
प्रततस्थावपत |

231
3. अक्जतत राज्यक्षेत्र (ववलयन)अधधतनयम, 1960 (1960 का 64) की धारा 4 द्वारा (17-1-1961 से
) अंत:स्थावपत |
4. संववधान (नवां संसोधन ) अधधतनयम, 1960 की धारा 3 द्वारा (17-1-1961 से ) जोड़ा गया |
5. पंजाब पुनगतठन अधधतनयम, 1966 (1966 का 31) की धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से)
अंतःस्थावपत।
6. राजस्थान और मध्यप्रदे श (राज्यक्षेत्र अंतरण ) अधधतनयम, 1959(1959 का 47 ) की धारा
4द्वारा (1-10-1959 से ) अंत:स्थावपत |
7. हररयाणा और उर्त्रप्रदे श (सीमा- पररवततन) अधधतनयम, 1979 (1979 का 31)की धारा 5 द्वारा
(15-9-1983 से ) “13, उर्त्रप्रदे श” के सामने की प्रववक्ष्ट के स्थान पर प्रततस्थावपत |
8. उर्त्रप्रदे श पुनगतठन अधधतनयम, 2000 (2000 का 29 ) की धारा 5 (क) द्वारा (9-11-2000 से )
अंत:स्थापतत |
---------------------------------------------------

1
[15.]जम्म-ू कश्मीर वह राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले जम्म-ू कश्मीर
दे शी राज्य में समाववष्ट था।

2[16.]नागालैण्ड वे राज्य क्षेत्र जो नागालैंड राज्य अधधतनयम, 1962 की धारा 3 की


उपधारा (1) में ववतनहदत ष्ट हैं।

3
[17.हररयाणा 4
[वे राज्यक्षेत्र जो पंजाब पन
ु गतठन अधधतनयम, 1966 की धारा 3 की
उपधारा (1) में ववतनहदतष्ट हैं और वे राज्य क्षेत्र जो हररयाणा और
उर्त्रप्रदे श (सीमा पररवततन) अधधतनयम, 1979 की धारा 4 की उपधारा
(1) के खंड (क) में ववतनहदतष्ट हैं, ककं तु वे राज्यक्षेत्र इसके अंतगतत नहीं हैं
जो उस अधधतनयम की धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (ख) में
ववतनहदतष्ट हैं।
5[18. हहमाचल प्रदे श वे राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले इस प्रकार
प्रशालसत थे मानो वे हहमाचल प्रदे श और त्रबलासपरु के नाम से ज्ञात
मख्
ु य आयक्
ु त वाले प्रांत रहे हों और वे राज्य क्षेत्र जो पंजाब पन
ु गतठन
अधधतनमय, 1966 की धारा 5 में ववतनहदत ष्ट हैं।]

6
[19.मणणपरु वह राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले इस प्रकार
प्रशालसत था मानो वह मणणपरु के नाम से ज्ञात मख्
ु य आयक्
ु त वाला
प्रांत रहा हो।

20.त्रत्रपरु ा वह राज्य क्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले इस प्रकार


प्रशालसत था मानो वह त्रत्रपरु ा के नाम से ज्ञात मख्
ु य आयक्
ु त वाला प्रांत
रहा हो।

232
21. मेघालय वे राज्य क्षेत्र जो पव
ू ोर्त्र क्षेत्र (पन
ु गतठन) अधधतनयम, 1971 की धारा 5
में ववतनहदत ष्ट हैं।

7
[22.लसक्क्कम वे राज्य क्षेत्र जो संववधान (छर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 के
प्रारं भ से ठीक पहले लसक्क्कम में समाववष्ट थे।

8
[23.लमजोरम वे राज्य क्षेत्र जो पव
ू ोर्त्र क्षेत्र (पन
ु गतठन) अधधतनयम, 1971 की धारा 6
में ववतनहदत ष्ट हैं।

-----------------------------

1. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्रववक्ष्ट 8
से 14 तक को प्रववक्ष्ट 9 से 15 तक के रूप में पुनः संख्यांककत ककया गया।
2. नागालैंड राज्य अधधतनयम, 1962 (1962 का 27) की धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से)
अंतःस्थावपत।
3. पंजाब पुनगतठन अधधतनयम, 1966 (1966 का 31) की धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से)
अंतःस्थावपत।
4. हररयाणा और उर्त्रप्रदे श (सीमा पररवततन) अधधतनयम, 1979 (1979 का 31) की धारा 5 द्वारा
(15-9-1983 से) “'17. हररयाणा” के सामने की प्रववक्ष्ट के स्थान पर प्रततस्थावपत।
5. हहमाचल प्रदे श राज्य अधधतनयम, 1970 (1970 का 53) की धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से)
अंतःस्थावपत।
6. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से)
अंतःस्थावपत।
7. संववधान (छर्त्ीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 2 द्वारा (26-4-1975 से)
अंतःस्थावपत।
8. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से)
अंतःस्थावपत।

1
[24. अरुणाचलप्रदे श वे राज्य क्षेत्र जो पव
ू ोर्त्र क्षेत्र (पन
ु गतठन) अधधतनयम, 1971 की धारा 7 में ववतनहदत ष्ट
हैं।
2
[गोवा, दमण और दीव पन
ु गतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 5 द्वारा (30-5-
1987 से) अंतःस्थावपत।
3
[26. छर्त्ीसगढ़ मध्यप्रदे श पन
ु गतठन अधधतनयम, 2000 की धारा 3 में ववतनहदतष्ट राज्यक्षेत्र|]
4
[27. 5[उर्त्राखण्ड] वे राज्यक्षेत्र जो उर्त्र प्रदे श पन
ु गतठन अधधतनयम, 2000 की धारा 3 में ववतनहदतष्ट
है |
6
[28. झारखंड वे राज्यक्षेत्र जो त्रबहार पन
ु गतठन अधधतनयम, 2000 की धारा 3 में ववतनहदत ष्ट है |]
__________________

233
1. अरुणाचल प्रदे श राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से)
अंत:स्थावपत|
2. गोवा, दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 5 द्वारा (30-5-
1987 से) अंत:स्थावपत|
3. 2000 के अधधतनयम 28 की धारा 5 (ख) द्वारा (1-11-2000 से) अंत:स्थावपत|
4. 2000 के अधधतनयम 29 की धारा 5 (ख) द्वारा (9-11-2000 से) अंत:स्थावपत|
5. उर्त्रांचल (नाम-पररवततन) अधधतनयम, 2006 (2006 का 52) की धारा 4 द्वारा उर्त्रांचल के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
6. 2000 के अधधतनयम 30 की धारा 5 (ख) द्वारा (15-11-2000 से) अंत:स्थावपत|
2. संघ राज्यक्षेत्र
नाम ववस्तार
1. हदल्ली वह राज्यक्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले हदल्ली के
मख्
ु य आयक्
ु त वाले प्रांत में समववष्ट था|
1
[* * * * * *]
2
[* * * * * *]
3
[2.] अंदमान और तनकोब्र द्वीप वह राज्यक्षेत्र जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले अंदमान
और तनकोबार द्वीप के मख्
ु य आयक्
ु त वाले प्रांत में समाववष्ट
था|
3
[3.]4[लक्षद्वीप] वह राज्यक्षेत्र जो राज्य पन
ु गतठन अधधतनयम, 1956 की धारा 6
में ववतनहदत ष्ट है|
[ [4]दादरा और नागर हवेली
5 3
वह राज्यक्षेत्र जो 11nअगस्त, 1961 से ठीक पहले स्वतंत्र दादरा
और नागर हवेली में समाववष्ट था|]
[ [ [5.]दमण और दीव
6 3 7
वे राज्यक्षेत्र जो गोवा, दमण और दीव पन
ु गतठन अधधतनयम,
1987 की धारा 4 में ववतनहदत ष्ट है |]
[ [6.]9[पद्
8 3
ु दच
ु ेरी] वे राज्यक्षेत्र जो 16 अगस्त, 1962 से ठीक पहले भारत में
पांडडचेरी, काररकल, माही और यनम के नाम से ज्ञात फ्ांसीसी
बक्स्तयों में समाववष्ट थे|]
10 3
[ [7.]चंडीगढ़ वे राज्यक्षेत्र जो पंजाब (पन
ु गतठन) अधधतनयम, 1966 की धारा 4
में ववतनहदत ष्ट है|]
11
[* * * * * *]
12
[* * * * * *]
____________________

234
1. हहमाचल प्रदे श राज्य अधधतनयम, 1970 (1970 का 53) की धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से)
“हहमाचल प्रदे श” से सबंधधत प्रववक्ष्ट 2 का लोप ककया गया|
2. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से)
मणणपुर और त्रत्रपुरा से संबधं धत प्रववक्ष्टयों का लोप ककया गया|
3. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से)
प्रववक्ष्ट 4 से 9 तक को प्रववक्ष्ट 2 से 7 तक के रूप में पुन:संख्यांककत ककया गया|
4. लक्कादीव, लमतनकोय और अमीनदीवी द्वीप (नाम-पररवततन) अधधतनयम, 1973 (1973 का 34)
की धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “लक्कादीव, लमतनकोय, अमीनदीवी द्वीप” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
5. संववधान (दसवां संशोधन) अधधतनयम, 1961 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत|
6. संववधान (बारहवां संशोधन) अधधतनयम, 1962 की धारा 2 द्वारा (20-12-1961 से) अंत:
स्थावपत|
7. गोवा, दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 5 द्वारा प्रववक्ष्ट 5
के स्थान पर (30-5-1987 से) प्रततस्थावपत|
8. संववधान (चौदहवां संशोधन) अधधतनयम, 1962 की धारा 3 और धारा 7 द्वारा (16-8-1962 से)
अंत:स्थावपत|
9. पांडडचेरी (नाम पररवततन) अधधतनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से)
पांडडचेरी के स्थान पर प्रततस्थावपत|
10. पंजाब पुनगतठन अधधतनयम, 1966 (1966 का 31) की धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से)

अंत:स्थावपत|
11. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) लमजोरम

संबध
ं ी प्रववक्ष्ट का लोप ककया गया और अरुणाचल प्रदे श संबध
ं ी प्रववक्ष्ट 9 को प्रववक्ष्ट 8 के रूप
में पुन:संख्यांककत ककया गया|
12. अरुणाचल प्रदे श राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से)

अरुणाचल प्रदे श संबध


ं ी प्रववक्ष्ट 8 का लोप|

235
दस
ू री अनस
ु च
ू ी

(अनच्
ु छे द 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 158(3), 164(5), 186 और 221)
भाग क
राष्ट्रपनत और 1[***] राज्यों के राज्यपालों के बारे में उपबंध
1. राष्ट्रपनत और 1[***](संविधान (सातिां संशोधन) अधधननयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु च
ू ी
द्िारा 'पहली अनस
ु च
ू ी के भाग क में विननर्दमष्ट्ट' शब्दों और अक्षर का लोप क्रकया गया।) राज्यों के
राज्यपालों को प्रनत मास ननम्नललणखत उपलक्ब्धयों का संदाय क्रकया जाएगा, अथामत-्
राष्ट्रपनत 2
[1,50,000 रूपए]
राज्य का राज्यपाल 3
[1,10,000 रूपए]
2. राष्रपतत और 4[***] राज्यों के राज्यपालों को ऐसे भर्त्ो का भी संदाय ककया जाएगा जो इस
संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले क्रमशः भारत डोलमतनयन के गवगतर जनरल को तथा तत्स्थानी प्रांतो के
गवतनरों को संदेय थे|
3. राष्रपतत और [राज्यों] के राज्यपाल अपनी-अपनी संपण
8
ू त पदावधध में ऐसे ववशेषाधधकारों के
हकदार होंगे क्जनके इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले क्रमशः गवनतर जनरल और तत्स्थानी प्रांतो के
गवनतर हकदार थे|
4. जब उपराष्रपतत या कोई अन्य व्यक्क्त राष्रपतत के कृत्यों का तनवतहन कर रहा है या उसके रूप
में कायत कर रहा है या कोई व्यक्क्त राज्यपाल के कृत्यों का तनवतहन कर रहा है तब वह ऐसी उपलक्ब्धयों,
भर्त्ों और ववशेषाधधकारों का हकदार होगा क्जनका, यथाक्स्थतत, वह राष्रपतत या राज्यपाल हकदार है , क्जसके
कृत्यों का वह तनवतहन करता है या, यथाक्स्थतत, क्जसके रूप में वह कायत करता है ।
6
[* * * * *]
भाग ग
लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा राज्यसभा के सभापनत और उपसभापनत के तथा
7
[***]8[राज्य] की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा विधान पररषद् के सभापनत और
उपसभापनत के बारे में उपबंध
____________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली
अनुसूची के भाग क में ववतनहदत ष्ट” शब्दों और अक्षर का लोप ककया गया|
2. राष्रपतत की पररलक्ब्धयाँ और पें शन (संशोधन) अधधतनयम, 2008 (2008 का 28) की धारा 2
द्वारा (1-1-2006 से) से “50,000 रूपए” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. राज्यपाल की (पररलक्ब्धयाँ, भर्त्े और ववशेषाधधकार) संशोधन अधधतनयम, 2008 (2009 का 1)
द्वारा (11-1-2006 से) “36000 रूपए” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसे ववतनहदत ष्ट”
शब्दों का लोप ककया गया|
5. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसे राज्यों” के
स्थान पर प्रततस्थावपत|

236
6. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा भाग ख का लोप
ककया गया|
7. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क में के ककसी राज्य का” शब्दों और अक्षर का लोप ककया गया|
8. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ककसी ऐसे
राज्य” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

7. लोक सभा के अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापतत को ऐसे वेतन और भर्त्ों का संदाय ककया
जाएगा जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारत डोलमतनयन की संववधान सभा के अध्यक्ष को संदेय
थे तथा लोकसभा के उपाध्यक्ष को और राज्यसभा के उपसभापतत को ऐसे वेतन और भर्त्ों का संदाय ककया
जाएगा जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारत डोलमतनयन की संववधान सभा के उपाध्यक्ष को
संदेय थे।
8. 1[***] राज्य की ववधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा 1[राज्य] की ववधान पररषद् के
सभापतत और उपसभापतत को ऐसे वेतन और भर्त्ों का संदाय ककया जाएगा जो इस संववधान के प्रारं भ से
ठीक पहले क्रमशः तत्स्थानी प्रांत की ववधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा ववधान पररषद् के
सभापतत और उपसभापतत को संदेय थे और जहाँ ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले तत्स्थानी प्रांत की कोई ववधान
पररषद् नहीं थी वहाँ उस राज्य की ववधान पररषद् के सभापतत और उपसभापतत को ऐसे वेतन और भर्त्ों
का संदाय ककया जाएगा जो उस राज्य का राज्यपाल अवधाररत करे ।
भाग घ
उच्चतम न्यायालय और [***] उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
3

9.(1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को वास्तववक सेवा में त्रबताए समय के ललए प्रतत मास
तनम्नललणखत दर से वेतन का संदाय ककया जाएगा, अथातत ् –
मख्
ु य न्यायमतू तत
4
[1,00,000 रूपए]
कोई अन्य न्यायाधीश 5
[90,000 रूपए:]
परं तु यहद उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी तनयक्ु क्त के समय भारत सरकार की या
उसकी पव
ू व
त ती सरकारों में से ककसी की अथवा राज्य की सरकार की या उसकी पव
ू व
त ती सरकारों में से ककसी
की पव
ू त सेवा के संबध
ं में (तनःशक्तता या क्षतत पें शन से लभन्न) कोई पें शन प्राप्त कर रहा है तो उच्चतम
न्यायालय में सेवा के ललए उसके वेतन में से (संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25
द्वारा 'उस पें शन की रालश घटा दी जाएगी' के स्थान पर प्रततस्थावपत।) (तनम्नललणखत को घटा हदया
जाएगा, अथातत-्
(क) उस पेंशन की रकम; और
(ख) यहद उसने ऐसी तनयक्ु क्त से पहले, ऐसी पव
ू त सेवा के संबध
ं में अपने को दे य पेंशन के एक भाग
के बदले उसका संरालशत मल्
ू य प्राप्त ककया है तो पें शन के उस भाग की रकम; और
(ग) यहद उसने ऐसी तनयक्ु क्त से पहले, ऐसी पव
ू त सेवा के संबध
ं में तनववृ र्त् उपदान प्राप्त ककया है
तो उस उपदान के समतल् ु य पें शन।)
____________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भगा क में ववतनहदत ष्ट ककसी राज्य का” शब्दों और अक्षर का लोप ककया गया|

237
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसा राज्य” के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा (1-11-1956 से) “पहली
अनुसूची के भाग क में के राज्यों में ” शब्दों और अक्षर का लोप ककया गया|
4. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायाधीश (वेतन तथा सेवा की शते) संशोधन अधधतनयम, 2009
(2009 का 23) की धारा 8(क) द्वारा (1-1-2006 से) 33,000 रूपये के स्थान पर प्रततस्थावपत|
5. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायाधीश (वेतन तथा सेवा की शते) संशोधन अधधतनयम, 2009
(2009 का 23) की धारा 8(ख) द्वारा (1-1-2006 से) 30,000 रूपये के स्थान पर प्रततस्थावपत|
6. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा “उस पें शन की रालश घटा दी
जाएगी” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(2) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश, त्रबना ककराया हदए, शासकीय तनवास के उपयोग का
हकदार होगा।
(3) इस पैरा के उपपैरा (2) की कोई बात उस न्यायाधीश को, जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक
पहले-
(क) फेडरल न्यायालय के मख्
ु य न्यायमतू तत के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ
पर अनच्
ु छे द 374 के खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय का मख्
ु य न्यायमतू तत बन गया है ,
या
(ख) फेडरल न्यायालय के ककसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे
प्रारं भ पर उक्त खंड के अधीन उच्चतम न्यायालय का (मख्
ु य न्यायमतू तत से लभन्न) न्यायाधीश
बन गया है ,
उस अवधध में , क्जसमें वह ऐसे मख्
ु य न्यायमतू तत या अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण करता है , लागू
नहीं होगी और ऐसा प्रत्येक न्यायाधीश जो इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का मख्
ु य न्यायमतू तत या अन्य
न्यायाधीश बन जाता है , यथाक्स्थतत, ऐसे मख्
ु य न्यायमतू तत या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तववक सेवा
में त्रबताए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में ववतनहदत ष्ट वेतन के अततररक्त ववशेष वेतन के रूप में
ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार ववतनहदत ष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर
है जो वह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा था।
(4) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायधीश भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर अपने कततव्य पालन में
की गई यात्रा में उपगत व्यय की प्रततपतू तत के ललए ऐसे यक्ु क्तयक्
ु त भर्त्े प्राप्त करे गा और यात्रा संबध
ं ी उसे
ऐसी यक्ु क्तयक्
ु त सवु वधाएँ दी जाएँगी जो राष्रपतत समय-समय पर ववहहत करे ।
(5) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की अनप
ु क्स्थतत छुट्टी के (क्जसके अंतगतत छुट्टी भर्त्े हैं)
और पें शन के संबध
ं में अधधकार उन उपबंधों से शालसत होंगे जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले
फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को लागू थे।
10. 1[(1) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को वास्तववक सेवा में त्रबताए समय के ललए प्रततमास
तनम्नललणखत दर से वेतन का संदाय ककया जाएगा, अथातत-्
मख्
ु य न्यायमतू तत
2
[90,000 रूपए]
कोई अन्य न्यायाधीश 3
[80,000 रूपए]

238
परं तु यहद ककसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी तनयक्ु क्त के समय भारत सरकार की
या उसकी पव
ू व
त ती सरकारों में से ककसी की अथवा राज्य की सरकार की या उसकी पव
ू व
त ती सरकारों में से
ककसी की पव
ू त सेवा के संबध
ं में (तनःशक्तता या क्षतत पें शन से लभन्न) कोई पें शन प्राप्त कर रहा है तो
उच्च न्यायालय में सेवा के ललए उसके वेतन में से तनम्नललणखत को घटा हदया जाएगा, अथातत-्
___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा उपपैरा (1) के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
2. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायाधीश (वेतन तथा सेवा शते) संशोधन अधधतनयम, 2009
(2009 का 23) की धारा 2(क) द्वारा (1-1-2006 से) 30,000 रूपए के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायाधीश (वेतन तथा सेवा शते) संशोधन अधधतनयम, 2009
(2009 का 23) की धारा 2(ख) द्वारा (1-1-2006 से) 26,000 रूपए के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(क) उस पें शन की रकम; और


(ख) यहद उसने ऐसी तनयक्ु क्त से पहले, ऐसी पव
ू त सेवा के संबध
ं में अपने को दे य पेंशन के एक भाग
के बदले उसका संरालशत मल्
ू य प्राप्त ककया है तो पें शन के उस भाग की रकम; और
(ग) यहद उसने ऐसी तनयक्ु क्त से पहले, ऐसी पव
ू त सेवा के संबध
ं में तनववृ र्त्-उपदान प्राप्त ककया है तो
उस उपदान के समतल्
ु य पेंशन।
(2) ऐसा प्रत्येक व्यक्क्त, जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले-
(क) ककसी प्रांत के उच्च न्यायालय के मख्
ु य न्यायमतू तत के रूप में पद धारण कर रहा था और ऐसे
प्रारं भ पर अनच्
ु छे द 376 के खंड (1) के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का मख्
ु य
न्यायमतू तत बन गया है , या
(ख) ककसी प्रांत के उच्च न्यायालय के ककसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर रहा था
और जो ऐसे प्रारं भ पर उक्त खंड के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का (मख्
ु य
न्यायमतू तत से लभन्न) न्यायाधीश बन गया है ,
यहद वह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले इस पैरा के उपपैरा (1) में ववतनहदतष्ट दर से उच्चतर दर पर
वेतन प्राप्त कर रहा था तो, यथाक्स्थतत, ऐसे मख्
ु य न्यायमतू तत या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तववक
सेवा में त्रबताए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में ववतनहदत ष्ट वेतन के अततररक्त ववशेष वेतन के रूप
में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार ववतनहदतष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के
बराबर है जो वह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा था।
1
[(3) ऐसा कोई व्यक्क्त जो संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 के प्रारं भ से ठीक पहले,
पहली अनस
ु च
ू ी के भाग ख में ववतनहदत ष्ट ककसी राज्य के उच्च न्यायालय के मख्
ु य न्यायमतू तत के रूप में पद
धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर उक्त अधधतनयम द्वारा यथा संशोधधत उक्त अनस
ु च
ू ी में
ववतनहदतष्ट ककसी राज्य के उच्च न्यायालय का मख्
ु य न्यायमतू तत बन गया है , यहद वह ऐसे प्रारं भ से ठीक
पहले अपने वेतन के अततररक्त भर्त्े के रूप में कोई रकम प्राप्त कर रहा था तो, ऐसे मख्
ु य न्यायमतू तत के
रूप में वास्तववक सेवा में त्रबताए समय के ललए इस पैरा के उपपैरा (1) में ववतनहदत ष्ट वेतन के अततररक्त
भर्त्े के रूप में वही रकम प्राप्त करने का हकदार होगा।]
11. इस भाग में , जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो-

239
(क) 'मख्
ु य न्यायमतू तत' पद के अंतगतत कायतकारी मख्
ु य न्यायमतू तत है और 'न्यायाधीश' पद के
अंतगतत तदथत न्यायाधीश है ,
(ख) 'वास्तववक सेवा' के अंतगतत –
(i) न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीश के रूप में कततव्य पालन में या ऐसे अन्य कृत्यों के पालन में ,
क्जनका राष्रपतत के अनरु ोध पर उसने तनवतहन करने का भार अपने ऊपर ललया है , त्रबताया गया
समय है ,
(ii) उस समय को छोड़कर क्जसमें न्यायाधीश छुट्टी लेकर अनप
ु क्स्थत है , दीघातवकाश है , और
(iii) उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय से दस
ू रे उच्च न्यायालय
को अंतरण पर जाने पर पदग्रहण काल है ।
____________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 25 द्वारा (1-11-1956 से) उपपैरा (3)
और उपपैरा (4) के स्थान पर प्रततस्थावपत|

भाग ङ
भारत के ननयंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध
12. (1) भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक को चार हजार रूपए प्रततमास1 की दर से वेतन का
संदाय ककया जाएगा|
(2) ऐसा कोई व्यक्क्त, जो इस संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक के रूप
में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर अनच्
ु छे द 377 के अधीन भारत का तनयंत्रक-
महालेखापरीक्षक बन गया है , इस पैरा के उपपैरा (1) में ववतनहदत ष्ट वेतन के अततररक्त ववशेष वेतन के रूप
में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार ववतनहदतष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के
बराबर है जो वह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक के रूप में प्राप्त कर रहा था।
(3) भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक की अनप
ु क्स्थतत छुट्टी और पें शन तथा अन्य सेवा-शतों के
संबध
ं में अधधकार उन उपबंधों से, यथाक्स्थतत, शालसत होंगे या शालसत होते रहें गे जो इस संववधान के
प्रारं भ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक को लागू थे और उन उपबंधों में गवतनर जनरल के प्रतत सभी
तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे राष्रपतत के प्रतत तनदे श हैं।
_____________________
1. 1971के अधधतनयम संo 56 की धारा 3 द्वारा भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक को उच्चतम
न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन का संदाय ककया जाएगा और संववधान (चौवनवां
संशोधन) अधधतनयम, 1986 द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन बढ़ाकर 9000
रुपये प्रततमास कर हदया गया है | इसके अततररक्त 1998 के अधधतनयम संख्यांक 18 की धारा 7
द्वारा (हदनांक 1-1-1996 से) 30,000 प्रतत मास कर हदया गया था| अब उच्च न्यायालय और
उच्चतम न्यायालय (वेतन तथा सेवा की शते) संशोधन अधधतनयम, 2009 (2009 का 23) की
धारा 8(क) द्वारा (1-1-2006 से) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन बढ़ाकर 90000
प्रतत मास कर हदया है |

240
तीसरी अनस
ु च
ू ी
(अनच्
ु छे द 75 (4), ठठ, 124 (6), 148 (2), 164 (3), 188 और 219)*
शपथ या प्रनतज्ञान के प्ररूप
1

संघ के मंत्री के ललए पद की शपथ का प्ररूप :-


ईश्वर की शपथ लेता हूँ
“मैं अमक
ु , कक मैं ववधधद्वारा स्थावपत भारत के संववधान के प्रतत
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
सच्ची श्रद्धा और तनष्ठा रखग
ूँ ा, (संववधान (सोलहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा
अंतःस्थावपत।) मैं भारत की प्रभत
ु ा और अखंडता अक्षुण्ण रखग
ूँ ा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कततव्यों
का श्रद्धापव
ू क
त और शद्
ु ध अंतःकरण से तनवतहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनरु ाग या द्वेष के त्रबना,
सभी प्रकार के लोगों के प्रतत संववधान और ववधध के अनस
ु ार न्याय करूँगा।”
2
संघ के मंत्री के ललए गोपनीयता की शपथ का प्ररूप :-
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
“मैं, अमक
ु , कक जो ववषय संघ के मंत्री के रूप में मेरे ववचार के ललए
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
लाया जाएगा अथवा मझ
ु े ज्ञात होगा उसे ककसी व्यक्क्त या व्यक्क्तयों को, तब के लसवाय जबकक ऐसे मंत्री के
रूप में अपने कततव्यों के सम्यक् तनवतहन के ललए ऐसा करना अपेक्षक्षत हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से
संसधू चत या प्रकट नहीं करूँगा।”
2
[3

संसद् के ललए तनवातचन के ललए अभ्यथी द्वारा ली जाने वाली शपथ या ककए जाने वाले प्रततज्ञान
का प्ररूप :-
“'मैं, अमक
ु , जो राज्यसभा (या लोकसभा) में स्थान भरने के ललए अभ्यथी के रूप में नामतनदे लशत
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
हुआ हूँ कक मैं ववधध द्वारा स्थावपत भारत के संववधान के प्रतत सच्ची श्रद्धा
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
और तनष्ठा रखूग ँ ा और मैं भारत की प्रभत ु ा और अखंडता अक्षुण्ण रखग ूँ ा।”

संसद् के सदस्य द्वारा ली जाने वाली शपथ या ककए जाने वाले प्रततज्ञान का प्ररूप :-
“मैं, अमक
ु , जो राज्यसभा (या लोकसभा) में स्थान भरने के ललए अभ्यथी के रूप में तनवातधचत या
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
नामतनदे लशत हुआ हूँ कक मैं ववधध द्वारा स्थावपत भारत के संववधान के प्रतत
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
सच्ची श्रद्धा और तनष्ठा रखूगँ ा, मैं भारत की प्रभत ु ा और अखंडता अक्षुण्ण रखग ूँ ा तथा क्जस पद को मैं
ग्रहण करने वाला हूँ उसके कततव्यों का श्रद्धापव
ू क
त तनवतहन करूँगा।”]
____________________
* अनुच्छे द 84(क) और 173(क) भी दे णखए|
1. संववधान (सोलहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंत:स्थावपत|
2. संववधान (सोलहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा प्ररूप 3 के स्थान पर प्रततस्थावपत|

241
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों और भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ली जाने वाली
शपथ या ककए जाने वाले प्रततज्ञान का प्ररूप :-
“मैं, अमक
ु , जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मख्
ु य न्यायमतू तत (या न्यायाधीश) (या भारत का
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक) तनयक्ु त हुआ हूँ, कक मैं ववधध द्वारा स्थावपत भारत
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
के संववधान के प्रतत सच्ची श्रद्धा और तनष्ठा रखग ूँ ा, 1[मैं भारत की प्रभत ु ा और अखंडता अक्षुण्ण रखग ूँ ा]
तथा मैं सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापव
ू क
त तथा अपनी परू ी योग्यता, ज्ञान और वववेक से अपने पद के
कततव्यों का भय या पक्षपात, अनरु ाग या द्वेष के त्रबना पालन करूँगा तथा मैं संववधान और ववधधयों की
मयातदा बनाए रखग
ूँ ा।”
5
ककसी राज्य के मंत्री के ललए पद की शपथ का प्ररूप :-
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
“मैं, अमक
ु , कक मैं ववधध द्वारा स्थावपत भारत के संववधान के प्रतत
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
सच्ची श्रद्धा और तनष्ठा रखग
ूँ ा, 1[मैं भारत की प्रभत
ु ा और अखंडता अक्षुण्ण रखग
ूँ ा,] मैं --------- राज्य के
मंत्री के रूप में अपने कततव्यों का श्रद्धापव
ू क
त और शद्
ु ध अंतःकरण से तनवतहन करूँगा तथा मैं भय या
पक्षपात, अनरु ाग या द्वेष के त्रबना, सभी प्रकार के लोगों के प्रतत संववधान और ववधध के अनस
ु ार न्याय
करूँगा।”
6
ककसी राज्य के मंत्री के ललए गोपनीयता की शपथ का प्ररूप :
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
“मैं, अमक
ु , कक जो ववषय ------------------- राज्य के मंत्री के रूप में
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
मेरे ववचार के ललए लाया जाएगा अथवा मझ
ु े ज्ञात होगा उसे ककसी व्यक्क्त या व्यक्क्तयों को, तब के लसवाय
जबकक ऐसे मंत्री के रूप में अपने कततव्यों के सम्यक् तनवतहन के ललए ऐसा करना अपेक्षक्षत हो, मैं प्रत्यक्ष
अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसधू चत या प्रकट नहीं करूँगा।”
2
[7

ककसी राज्य के ववधान-मंडल के ललए तनवातचन के ललए अभ्यथी द्वारा ली जाने वाली शपथ या
ककए जाने वाले प्रततज्ञान का प्ररूप :-
“मैं, अमक
ु , ---------------- जो ववधानसभा (या ववधान पररषद्) में स्थान भरने के ललए अभ्यथी के
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
रूप में नामतनदे लशत हुआ हूँ, कक मैं ववधध द्वारा स्थावपत भारत के संववधान
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
के प्रतत सच्ची श्रद्धा और तनष्ठा रखूग
ँ ा और मैं भारत की प्रभत ु ा और अखंडता अक्षुण्ण रखग ूँ ा।”
___________________
1. संववधान (सोलहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंत:स्थावपत|
2. संववधान (सोलहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा प्ररूप 7 के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

242
ककसी राज्य के ववधान मंडल के सदस्य द्वारा ली जाने वाली शपथ या ककए जाने वाले प्रततज्ञान
का प्ररूप :-
“मैं, अमक ु , जो ववधानसभा (या ववधान पररषद्) का सदस्य तनवातधचत (या नामतनदे लशत) हुआ हूँ,
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
कक मैं ववधध द्वारा स्थावपत भारत के संववधान के प्रतत सच्ची श्रद्धा और
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
तनष्ठा रखग ूँ ा, मैं भारत की प्रभत ु ा और अखंडता अक्षुण्ण रखग ूँ ा तथा क्जस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ
उसके कततव्यों का श्रद्धापव
ू क
त तनवतहन करूँगा।”]
8
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ या ककए जाने वाले प्रततज्ञान का
प्ररूप:-
'मैं, अमक ु , जो -----------------उच्च न्यायालय का मख्
ु य न्यायमतू तत (या न्यायमतू तत) तनयक्
ु त हुआ हूँ
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
कक मैं ववधध द्वारा स्थावपत भारत के संववधान के प्रतत सच्ची श्रद्धा और
सत्यतनष्ठा से प्रततज्ञान करता हूँ
तनष्ठा रखूगँ ा, 1[मैं भारत की प्रभत ु ा और अखंडता अक्षुण्ण रखूग ँ ा,] तथा मैं सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापव
ू क

तथा अपनी परू ी योग्यता, ज्ञान और वववेक से अपने पद के कततव्यों का भय या पक्षपात, अनरु ाग या द्वेष
के त्रबना पालन करूँगा तथा मैं संववधान और ववधधयों की मयातदा बनाए रखग
ूँ ा।”

___________________
1. संववधान (सोलहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंत:स्थावपत|

243
1
[चौथी अनस
ु च
ू ी
(अनच्
ु छे द 4 (1) और अनच्
ु छे द 80 (2)
राज्यसभा में स्थानों का आबंटन
तनम्नललणखत सारणी के पहले स्तंभ में ववतनहदतष्ट प्रत्येक राज्य या संघ राज्य क्षेत्र को उतने स्थान
आबंहटत ककए जाएँगे क्जतने उसके दस
ू रे स्तंभ में , यथाक्स्थतत, उस राज्य या उस संघ राज्य क्षेत्र के सामने
ववतनहदतष्ट हैं।
सारणी
1. आंध्रप्रदे श 18
2. असम 7
3. त्रबहार 2
[16]
[4. झारखंड 6]
4[5[5. गोवा 1]
6[7[6. गज
ु रात 11]
8[7[7. हररयाणा 5]
7[8. केरल 9]
9[5[9. मध्यप्रदे श [11]
10

9[5[10. छर्त्ीसगढ़ 5]
11[12[11.] तलमनाडु] [18]
13

____________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) चौथी अनुसूची
के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. 2000 के अधधतनयम 30 की धारा 7 द्वारा (1511-2000 से) प्रततस्थावपत|
3. 2000 के अधधतनयम 30 की धारा 7 द्वारा (1511-2000 से) अंत:स्थावपत|
4. 2000 के अधधतनयम 30 की धारा 7 द्वारा (1511-2000 से) प्रववक्ष्ट 4 से 29, प्रववक्ष्ट 5 से
30 के रूप में पुन:स्थावपत|
5. प्रववक्ष्ट गोवा, दमण और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) 6 द्वारा (30-5-
1987 से) अंत:स्थावपत|
6. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 196 (1960 का 11) की धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) प्रववक्ष्ट 4 के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
7. गोवा, दमन और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 6 द्वारा (30-5-
1987 से) प्रववक्ष्ट 4 से 26 को क्रमशः प्रववक्ष्ट 5 से 27 के रूप में पुन: संख्यांककत ककया गया|
8. पंजाब पुनगतठन अधधतनयम, 1966 (1966 का 31) की धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से)
अंत:स्थावपत|
9. 2000 के अधधतनयम 28 की धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) प्रततस्थावपत|
10. म.प्र.(पुनगतठन) अधधतनयम, 2000 (2000 का 28) की धारा 7 द्वारा (हदनांक 1-11-2000 से)
16 के स्थान पर प्रततस्थावपत|
11. 2000 के अधधतनयम 28 की धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) अंत:स्थावपत|

244
12. मद्रास राज्य (नाम पररवततन) अधधतनयम, 1968 (1968 का 53) की धारा 5 द्वारा (14-1-1969
से) “मद्रास” के स्थान प्रततस्थावपत|
13. आंध्रप्रदे श और मद्रास (सीमा-पररवततन) अधधतनयम, 1959 (1959 का 56) की धारा 8 द्वारा (1-
4-1960 से) “17” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

[ [12. महाराष्र
1 2
19]
[ [13.] कनातटक]
3 2
12]
2
[14. [ओडडसा]
17
10
2
[15.] पंजाब 13
[7]
2
[16.] राजस्थान 10
2
[17.] उर्त्रप्रदे श 14
[31]
4
[18.15[गज
ु रात 3]
[ [19. पक्श्चमी बंगाल
5 2
16]
2
[20.] जम्म-ू कश्मीर 4
[ [21.] नागालैंड
6 2
1]
[ [22.] हहमाचल प्रदे श
7 2
3]
[ [23. मणणपरु
8 2
1
2
[24.] त्रत्रपरु ा 1
2
[25.] मेघालय 1
[ [26.] लसक्क्कम
9 2
1]
10 2
[ [27.] लमजोरम 1]
11 2
[ [28.] अरुणाचल प्रदे श 1]
2
[29.] हदल्ली 3
2
[30. [पद्
ु दच
16
ु ेरी] 1]
योग 12
[233]
_____________________
1. मुब
ं ई पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 11) की धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्थावपत।
2. त्रबहार पुनगतठन अधधतनयम, 2000 (2000 का 30) की धारा 7 द्वारा (15-11-2003 से) प्रववक्ष्ट
4 से 29 को क्रमशः प्रववक्ष्ट 5 से 30 के रूप में पुन:संख्यांककत ककय गया|
3. मैसूर राज्य (नाम पररवततन) अधधतनयम, 1973 (1973 का 31) की धारा 5 द्वारा (1-11-1973
से) “13. मैसूर” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. 2000 के अधधतनयम संख्यांक 29 की धारा 7(ग) द्वारा अंत:स्थावपत|
5. 2000 के अधधतनयम संख्या 29 की धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) प्रववक्ष्ट 17 से 28
पुन:स्थावपत| .
6. नागालैंड राज्य अधधतनयम, 1962 (1962 का 27) की धार 6 द्वारा (1-12-1963 से)
अंत:स्थावपत|
7. हहमाचल प्रदे श राज्य अधधतनयम, 1970 (1972 का 53) की धारा 5 द्वारा (25-1-1971 से)
अंत:स्थावपत|

245
8. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1972 का 81) की धारा 10 प्रववक्ष्ट से 22 के ललए
प्रततस्थावपत (21-1-1972 से) प्रभाववत|
9. संववधान (छर्त्ीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 4 द्वारा (26-4-1975 से) अंत:स्थावपत|
10. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से)
अंत:स्थावपत|
11. अरुणाचल प्रदे श राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 69) की धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से)
अंत:स्थावपत|
12. गोवा, दमन और दीव पुनगतठन अधधतनयम, 1987 (1987 का 18) की धारा 6 द्वारा (30-5-
1987 से) “232” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
13. पंजाब पुनगतठन अधधतनयम, 1960 (1960 का 31) की धारा 98 द्वारा 11 के ललए प्रततस्थावपत|
14. उर्त्रप्रदे श पुनगतठन अधधतनयम, 2000 (2000 का 29) धारा 7 द्वारा “34” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
15. उर्त्रांचल (नाम-पररवततन) अधधतनयम, 2006 (2006 का 52) की धारा 5 द्वारा उर्त्रांचल के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
16. पांडडचेरी (नाम-पररवततन) अधधतनयम, 2006 (2006 का 44) की धारा 4 द्वारा (1-1-2006 से)
पांडडचेरी के स्थान पर प्रततस्थावपत|
17. उड़ीसा (नाम-पररवततन) अधधतनयम, 2011 की धारा 7 द्वारा शब्द “उड़ीसा” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

246
पााँचिी अनस
ु च
ू ी
(अनच्
ु छे द 244(1))
अनस
ु धू चत क्षेत्रों और अनस
ु धू चत जनजानतयों के प्रशासन और ननयंत्रण के बारे में उपबंध
भाग क
साधारण
1. ननिमचन - इस अनस
ु च
ू ी में , जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो, 'राज्य' पद के अंतगतत
[***] [असम3[4[मेघालय, त्रत्रपरु ा और लमजोरम]]राज्य] नहीं हैं।
1 2

2. अनस
ु धू चत क्षेत्रों में क्रकसी राज्य की कायमपाललका शक्तत - इस अनस
ु च
ू ी के उपबंधों के अधीन
रहते हुए, ककसी राज्य की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार उसके अनस ु धू चत क्षेत्रों पर है ।
3. अनस ु धू चत क्षेत्रों के प्रशासन के संबध
ं में राष्ट्रपनत को राज्यपाल 5[***] द्िारा प्रनतिेदन - ऐसे
प्रत्येक राज्य का राज्यपाल 5[***] क्जसमें अनस
ु धू चत क्षेत्र हैं, प्रततवषत या जब भी राष्रपतत इस प्रकार अपेक्षा
करे , उस राज्य के अनस
ु धू चत क्षेत्रों के प्रशासन के संबध
ं में राष्रपतत को प्रततवेदन दे गा और संघ की
कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार राज्य को उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में तनदे श दे ने तक होगा।
भाग ख
अनस
ु धू चत क्षेत्रों और अनस
ु धू चत जनजानतयों का प्रशासन और ननयंत्रण
4. जनजानत सलाहकार पररषद् - (1) ऐसे प्रत्येक राज्य में , क्जसमें अनस
ु धू चत क्षेत्र हैं और यहद
राष्रपतत ऐसा तनदे श दे तो, ककसी ऐसे राज्य में भी क्जसमें अनस
ु धू चत जनजाततयाँ हैं ककं तु अनस
ु धू चत क्षेत्र
नहीं हैं, एक जनजातत सलाहकार पररषद् स्थावपत की जाएगी जो बीस से अनधधक सदस्यों से लमलकर
बनेगी क्जनमें से यथाशक्य तनकटतम तीन-चौथाई उस राज्य की ववधानसभा में अनस
ु धू चत जनजाततयों के
प्रतततनधध होंगे,
परं तु यहद उस राज्य की ववधानसभा में अनस
ु धू चत जनजाततयों के प्रतततनधधयों की संख्या जनजातत
सलाहकार पररषद् में ऐसे प्रतततनधधयों से भरे जाने वाले स्थानों की संख्या से कम है तो शेष स्थान उन
जनजाततयों के अन्य सदस्यों से भरे जाएँगे।
(2) जनजातत सलाहकार पररषद् का यह कततव्य होगा कक वह उस राज्य की अनस
ु धू चत जनजाततयों
के कल्याण और उन्नातत से संबधं धत ऐसे ववषयों पर सलाह दे जो उसको राज्यपाल (संववधान (सातवां
संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनस
ु च
ू ी द्वारा 'यथाक्स्थतत, राज्यपाल या राजप्रमख
ु ' शब्दों के
स्थान पर उपरोक्त रूप में रखा गया।) द्वारा तनहदत ष्ट ककए जाएँ।
(3) राज्यपाल 6[***]
___________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची
के भाग क या भाग ख में ववतनहदत ष्ट राज्य अलभप्रेत है परं तु” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया
गया|
2. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से)
“असम राज्य” स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से)
“मेघालय और त्रत्रपुरा” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

247
4. संववधान (उनचासवां संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 3 द्वारा (1-4-1985 से) “और
मेघालय” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
5. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राज्यप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|
6. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाक्स्थतत,
राज्यपाल या राज्यप्रमुख” शब्दों के स्थान पर उपरोक्त रूप में रखा गया|

(क) पररषद् के सदस्यों की संख्या को, उनकी तनयक्ु क्त की और पररषद् के अध्यक्ष तथा उसके
अधधकाररयों और सेवकों की तनयक्ु क्त की रीतत को,
(ख) उसके अधधवेशनों के संचालन तथा साधारणतया उसकी प्रकक्रया को, और
(ग) अन्य सभी आनष
ु धं गक ववषयों को,
यथाक्स्थतत, ववहहत या ववतनयलमत करने के ललए तनयम बना सकेगा।
(5) अनसु धू चत क्षेत्रों को लागू विधध - (1) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, राज्यपाल
1

लोक अधधसचू ना द्वारा तनदे श दे सकेगा कक संसद् का या उस राज्य के ववधान मंडल का कोई ववलशष्ट
अधधतनयम उस राज्य के अनस
ु धू चत क्षेत्र या उसके ककसी भाग को लागू नहीं होगा अथवा उस राज्य के
अनसु धू चत क्षेत्र या उसके ककसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो
वह अधधसच ू ना में ववतनहदत ष्ट करे और इस उपपैरा के अधीन हदया गया कोई तनदे श इस प्रकार हदया जा
सकेगा कक उसका भत
ू लक्षी प्रभाव हो।
(2) राज्यपाल 1[***] ककसी राज्य में ककसी ऐसे क्षेत्र की शांतत और सश
ु ासन के ललए ववतनयम बना
सकेगा जो तत्समय अनस
ु धू चत क्षेत्र है ।
ववलशष्टतया और पव
ू ग
त ामी शक्क्त की व्यापकता पर प्रततकूल प्रभाव डाले त्रबना, ऐसे ववतनयम-
(क) ऐसे क्षेत्र की अनस
ु धू चत जनजाततयों के सदस्यों द्वारा या उनमें भलू म के अंतरण का प्रततषेध
या तनबंधन कर सकेंगे,
(ख) ऐसे क्षेत्र की जनजाततयों के सदस्यों को भलू म के आबंटन का ववतनयमन कर सकेंगे,
(ग) ऐसे व्यक्क्तयों द्वारा जो ऐसे क्षेत्र की अनस
ु धू चत जनजाततयों के सदस्यों को धन उधार दे ते हैं,
साहूकार के रूप में कारबार करने का ववतनयमन कर सकेंगे।
(3) ऐसे ककसी ववतनयम को बनाने में जो इस पैरा के उपपैरा (2) में तनहदत ष्ट है , राज्यपाल 2[***]
संसद् के या उस राज्य के ववधान मंडल के अधधतनयम का या ककसी ववद्यमान ववधध का, जो प्रश्नगत क्षेत्र
में तत्समय लागू है , तनरसन या संशोधन कर सकेगा।
(4) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी ववतनयम राष्रपतत के समक्ष तरु ं त प्रस्तत
ु ककए जाएँगे और
जब तक वह उन पर अनम
ु तत नहीं दे दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा।
(5) इस पैरा के अधीन कोई ववतनयम तब तक नहीं बनाया जाएगा जब तक ववतनयम बनाने वाले
राज्यपाल 2[***] ने जनजातत सलाहकार पररषद् वाले राज्य की दशा में ऐसी पररषद् से परामशत नहीं कर
ललया है ।
भाग ग
अनस
ु धू चत क्षेत्र
6. अनस
ु धू चत क्षेत्र- (1) इस संववधान में , “अनस
ु धू चत क्षेत्र” पद से ऐसे क्षेत्र अलभप्रेत हैं, क्जन्हें राष्रपतत
आदे श द्वारा अनस
3
ु धू चत क्षेत्र घोवषत करे ।

248
__________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “यथाक्स्थतत,
राज्यपाल या राज्यप्रमुख” शब्दों के स्थान पर उपरोक्त रूप में रखा गया|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राज्यप्रमुख”
शब्दों का लोप ककया गया|
3. अनुसूधचत क्षेत्र (भाग डी राज्य) आदे श, 1950 (सं.आ. 9), अनुसूधचत क्षेत्र (भाग ख राज्य) आदे श,
1950 (सं.आ. 26), अनुसूधचत क्षेत्र (हहमाचल प्रदे श) आदे श, 1975 (सं.आ. 102) और अनुसूधचत
क्षेत्र (त्रबहार, गुजरात, मध्य प्रदे श और उड़ीसा राज्य) आदे श, 1977 (सं.आ. 109) दे णखए|

(2) राष्रपतत ककसी भी समय आदे श1 द्वारा –


(क) तनदे श दे सकेगा कक कोई संपण
ू त अनस
ु धू चत क्षेत्र या उसका कोई ववतनहदतष्ट भाग अनस
ु धू चत
क्षेत्र या ऐसे क्षेत्र का भाग नहीं रहे गा,
2
[(कक) ककसी राज्य के ककसी अनस
ु धू चत क्षेत्र के क्षेत्र को उस राज्य के राज्यपाल से परामशत करने
के पश्चात ् बढ़ा सकेगा,
(ख) ककसी अनस
ु धू चत क्षेत्र में , केवल सीमाओं का पररशोधन करके ही, पररवततन कर सकेगा,
(ग) ककसी राज्य की सीमाओं के ककसी पररवततन पर या संघ में ककसी नए राज्य के प्रवेश पर या
नए राज्य की स्थापना पर ऐसे ककसी क्षेत्र को, जो पहले से ककसी राज्य में सक्म्मललत नहीं हैं,
अनस
ु धू चत क्षेत्र या उसका भाग घोवषत कर सकेगा,
2
[(घ) ककसी राज्य या राज्यों के संबध
ं में इस पैरा के अधीन ककए गए आदे श या आदे शों को
ववखंडडत कर सकेगा और संबधं धत राज्य के राज्यपाल से परामशत करके उन क्षेत्रों को, जो
अनस
ु धू चत क्षेत्र होंगे, पन
ु ः पररतनक्श्चत करने के ललए नए आदे श कर सकेगा,]
और ऐसे ककसी आदे श में ऐसे आनष
ु धं गक और पाररणालमक उपबंध हो सकेंगे जो राष्रपतत को आवश्यक
और उधचत प्रतीत हों, ककं तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके लसवाय इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन ककए
गए आदे श में ककसी पश्चातवती
् आदे श द्वारा पररवततन नहीं ककया जाएगा।
भाग घ
अनस
ु च
ू ी का संशोधन
7. अनस
ु च
ू ी का संशोधन - (1) संसद् समय-समय पर ववधध द्वारा, इस अनस
ु च
ू ी के उपबंधों में से
ककसी का, पररवधतन, पररवततन या तनरसन के रूप में , संशोधन कर सकेगी और जब अनस
ु च
ू ी का इस प्रकार
संशोधन ककया जाता है तब इस संववधान में इस अनस
ु च
ू ी के प्रतत ककसी तनदे श का यह अथत लगाया
जाएगा कक वह इस प्रकार संशोधधत ऐसी अनस
ु च
ू ी के प्रतत तनदे श है ।
(2) ऐसी कोई ववधध, जो इस पैरा के उपपैरा (1) में उक्ल्लणखत है , इस संववधान के अनच्
ु छे द 368 के
प्रयोजनों के ललए इस संववधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।
__________________
1. मद्रास अनुसूधचत क्षेत्र (समाक्प्त) आदे श, 1950 (सं.आ. 30) और आंध्र अनुसूधचत क्षेत्र (समाक्प्त),
आदे श, 1955 (सं.आ. 50) दे णखए|
2. संववधान पांचवी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का 101) की धारा 2 द्वारा
अंत:स्थावपत|

249
छठी अनस
ु च
ू ी

(अनच्
ु छे द 244(2) और अनच्
ु छे द 275(1))
[ [ असम, [ मेघालय, त्रत्रपरु ा ] और लमजोरम राज्यों ]] के जनजानत क्षेत्रो के प्रशासन के बारे में उपबंध
1 2 3

1. स्िशासी क्जले और स्िशासी प्रदे श – (1) इस पैरा के उपबंधो के अधीन रहते हुए, इस अनस
ु च
ू ी
के पैरा 20 से संलग्न सारणी के [ [भाग 1, भाग 2 और भाग 2क] की प्रत्येक मद के और भाग 3] के
4 5

जनजातत क्षेत्रों का एक स्वशासी क्जला होगा|


(2) यहद ककसी स्वशासी क्जले में लभन्न-लभन्न अनस
ु धू चत जनजाततयाँ है तो राज्यपाल, लोक
अधधसच
ू ना द्वारा, ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों को, क्जनमे वे बसे हुए है , स्वशासी प्रदे शों में ववभाक्जत कर सकेगा|
(3) राज्यपाल, लोक अधधसच ू ना द्वारा –
(क) उक्त सारणी के 4[ककसी भाग] में ककसी क्षेत्र को सक्म्मललत कर सकेगा;
(ख) उक्त सारणी के 4[ककसी भाग] में ककसी क्षेत्र को अपवक्जतत कर सकेगा;
(ग) नया स्वशासी क्जला बना सकेगा;
(घ) ककसी स्वशासी क्जले का क्षेत्र बढ़ा सकेगा;
(ङ) ककसी स्वशासी क्जले का क्षेत्र घटा सकेगा;
(च) दो या अधधक स्वशासी क्जलों या उनके भागों को लमला सकेगा क्जससे एक स्वशासी क्जला
बन सके;
7
[(चच) ककसी स्वशासी क्जले के नाम में पररवततन का सकेगा;
(छ) ककसी स्वशासी क्जले की सीमाएँ पररतनक्श्चत कर सकेगा:
परं तु राज्यपाल इस उपपैरा के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) के अधीन कोई आदे श
इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 14 के उपपैरा (1) के अधीन तनयक्
ु त आयोग के प्रततवेदन पर ववचार करने के
पश्चात ् ही करे गा, अन्यथा नहीं :
8
[परं तु यह और कक राज्यपाल द्वारा इस उपपैरा के अधीन ककए गए आदे श में ऐसे आनष
ु धं गक
और पररणालमक उपबंध (क्जनके अंतगतत पैरा 20 का और उक्त सारणी के ककसी भाग की ककसी मद का
कोई संशोधन है ) अंतववतष्ट हो सकेंगे, जो राज्यपाल को उस आदे श के उपबंधों को प्रभावी करने के ललए
आवश्यक प्रतीत हों|]
__________________
1. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की 39 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर (20-
2-1987 से) प्रततस्थावपत|
2. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची
द्वारा (21-1-1971 से) “असम” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान (उनचासवां संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) “और वे
मेघालय के” स्थान पर प्रततस्थावपत|
4. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची
द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
5. संववधान (उनचासवां संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) “भाग 1
और भग 2” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

250
6. संववधान (छठी अनुसूची) संशोधन अधधतनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा (7-9-
2003 से) असम में लागू होने के ललए पैरा 1 में उपपैरा (2) के पश्चात ् तनम्नललणखत परं तुक
अंत:स्थावपत कर संशोधन ककया गया, अथातत ् :
“परन्तु इस उपपैरा की कोई बात, बोडोलैंड प्रादे लशक क्षेत्र क्जले को लागू नहीं होगी|”|
7. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) अंत:स्थावपत|
8. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची
द्वारा (21-2-1972 से) अंत:स्थावपत|

2. क्जला पररषदों और प्रादे लशक पररषदों का गठन – 1[(1) प्रत्येक स्वशासी क्जले के ललए
एक क्जला पररषद् होगी जो तीस से अनधधक सदस्यों से लमलकर बनेगी क्जनमें से चार से,
अनधधक व्यक्क्त राज्यपाल द्वारा नामतनदे लशत ककए जाएंगे और शेष व्यस्क मताधधकार के
आधार पर तनवातधचत ककए जाएंगे|]
2
[परन्तु बोडोलैंड राज्य क्षेत्रीय पररषद् में तछयालीस सदस्यों से अधधक शालमल नहीं होंगे,
क्जनमें से चालीस व्यस्क मताधधकार के आधार पर तनवातधचत ककए जाएंगे, क्जनमें से तीस
अनस
ु धू चत जनजाततयों के ललए पाँच गैर-जनजातीय समद
ु ाय के ललए आरक्षक्षत ककए जाएंगे, पाँच
सभी समद
ु ायों के ललए खुले रहें गे और शेष छह राज्यपाल द्वारा बोडोलैण्ड राज्य क्षेत्रीय क्जलों के
उन समद
ु ायों में से, क्जनका प्रतततनधधत्व नहीं ककया गया है , क्जनमे से कम से कम दो महहलाएँ
होंगी, नामांककत ककए जाएंगे, क्जन्हें मतदान के अधधकार को शालमल करके वाही अधधकार और
ववशेषाधधकार होगा, जैसा कक अन्य सदस्यों को है|]
(2) इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 1 के उपपैरा (2) के अधीन स्वशासी प्रदे श के रूप में गहठत
प्रत्येक क्षेत्र के ललए पथ
ृ क् प्रादे लशक पररषद् होगी|
(3) प्रत्येक क्जला पररषद् और प्रत्येक प्रादे लशक पररषद् क्रमशः “(क्जले का नाम) की क्जल
पररषद्” और “(प्रदे श का नाम) की प्रादे लशक पररषद्” नामक तनगलमत तनकाय होगी, उसका
शाश्वत उर्त्राधधकार होगा और उसकी सामान्य मद्र
ु ा होगी और उक्त नाम से वह वाद लाएगी और
उस पर वाद लाया जाएगा|
3
[परन्तु उर्त्री कछार पहाड़ी क्जले के ललए गहठत क्जला पररषद्, उर्त्री कछार पहाड़ी
स्वशासी पररषद् कहलाएगी|]
2
[परन्तु यह और कक बोडोलैंड राज्य क्षेत्रीय क्जला के ललए गहठत क्जला के ललए गहठत
क्जला पररषद् की बोडोलैंड राज्य क्षेत्रीय पररषद् कहा जाएगा|]
(4) इस अनस ु च
ू ी के उपबंधों के अधीन रहते हुए, स्वशासी क्जले का प्रशासन ऐसे क्जले
की क्जला पररषद् में वहाँ तक तनहहत नहीं है और स्वशासी प्रदे श का प्रशासन ऐसे प्रदे श की
प्रादे लशक पररषद् में तनहहत होगा|
(5) प्रादे लशक पररषद् वाले स्वशासी क्जले में प्रादे लशक पररषद् के प्राधधकार के अधीन क्षेत्रों
के संबध
ं में क्जला पररषद् को, इस अनस
ु च
ू ी द्वारा ऐसे क्षेत्रों के संबध
ं में प्रदर्त् शक्क्तयों के
अततररक्त केवल ऐसी शक्क्तयाँ होंगी जो उसे प्रादे लशक पररषद् द्वारा प्रत्यायोक्जत की जाएं|
(6) राज्यपाल, संबधं धत स्वशासी क्जलों या प्रदे शों के भीतर ववद्यमान जनजातत पररषदों
या अन्य प्रतततनधध जनजातत संगठनों से परामशत करके, क्जला पररषदों और प्रादे लशक पररषदों के

251
प्रथम गठन के ललए तनयम बनाएगा और ऐसे तनयमों में तनम्नललणखत के ललए उपबंध ककये
जाएंगे, अथातत ्-
(क) क्जला पररषदों और प्रादे लशक पररषदों की संरचना तथा उनमें स्थानों का आबंटन;
(ख) उन पररषदों के ललए तनवातचनों के प्रयोजन के ललए प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों का
पररसीमन;
(ग) ऐसे तनवातचनों में मतदान के ललए अहतताएँ और उनके ललए तनवातचक नामावललयों की
तैयारी;
(घ) ऐसे तनवातचनों में ऐसी पररषदों के सदस्य तनवातधचत होने के ललए अहतताएँ;
(ङ) 4[प्रादे लशक पररषदों] के सदस्यों की पदावधध;
(च) ऐसी पररषदों के ललए तनवातचन या नामतनदे शन से संबधं धत या संसक्त कोई अन्य
ववषय;
__________________
1. “आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) उपपैरा (1) के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 2003 (2003 का 44) द्वारा (7-9-2003 से)
असम में लागू होने के ललए परन्तुक को अंत:स्थावपत ककया गया|
3. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1995(1995 का 42) द्वारा (12-9-1995 से)
असम में लागू होने के ललए परन्तुक को अंत:स्थावपत ककया गया|
4. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) “ऐसी पररषदों” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(छ) क्जला पररषदों और प्रादे लशक पररषदों की प्रकक्रया और उनका कायत संचालन 1[(क्जसके अंतगतत
ककसी ररक्क्त के होते हुए भी कायत करने की शक्क्त है )];
(ज) क्जला और प्रादे लशक पररषदों के अधधकाररयों और कमतचाररवद ं ृ की तनयक्ु क्त|
1
[(6क) क्जला पररषद् के तनवातधचत सदस्य, यहद क्जला पररषद् पैरा 16 के अधीन पहले ही
ववघहटत नहीं कर दी जाती है तो, पररषद्, के ललए साधारण तनवातचन के पश्चात ् पररषद् के प्रथम
अधधवेशन के ललए तनयत तारीख से पाँच वषत की अवधध तक पद धारण करें गे और नामतनदे लशत सदस्य
राज्यपाल के प्रसाद पयतन्त पद धारण करे गा:
परं तु पाँच वषत की उक्त अवधध को, जब आपात की उदघोषणा प्रवततन में है तब या यहद ऐसी
पररक्स्थततयाँ ववद्यमान है क्जनके कारण तनवातचन करना राज्यपाल की राय में असाध्य है तो, राज्यपाल
ऐसी अवधध के ललए बढ़ा सकेगा जो एक बार में एक वषत से अधधक नहीं होगी और जब आपात की
उदघोषणा प्रवततन में है तब उदघोषणा के प्रवर्त्
ृ न रह जाने के पश्चात ् ककसी भी दशा में उसका ववस्तार
छह मास की अवधध से अधधक नहीं होगा|
परं तु यह और कक आकक्स्मक ररक्क्त को भरने के ललए तनवातधचत सदस्य उस सदस्य कक, क्जसका
स्थान वह लेता है , शेष पदावधध के ललए पद धारण करे गा|]
(7) क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् अपने प्रथम गठन के पश्चात ् 2[राज्यपाल के अनम
ु ोदन से]
इस पैरा के उपपैरा (6) में ववतनहदतष्ट ववषयों के ललए तनयम बना सकेगी और 2[वैसे ही अनम
ु ोदन से]-

252
(क) अधीनस्थ स्थानीय पररषदों या बोडो के बनाए जाने तथा उनकी प्रकक्रया और उनके कायत
संचालन का, और
(ख) यथाक्स्थतत, क्जले या प्रदे श के प्रशासन ववषयक कायत करने से संबधं धत साधारणतया सभी
ववषयों का ववतनयमन करने वाले तनयम भी, बना सकेगी:
परं तु जब तक क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् द्वारा इस इस उपपैरा के अधीन तनयम नहीं
बनाए जाते है तब तक राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उपपैरा (6) के अधीन बनाए गए तनयम, प्रत्येक ऐसी
पररषद् के ललए तनवातचनों, उसके अधधकाररयों और कमतचाररयों तथा उसकी प्रकक्रया और उसके कायत
संचालन के संबध
ं में प्रभावी होंगे|
3
[* * * * *]
4
[3. विधध बनाने की पररषदों और प्रादे लशक पररषदों की शक्तत – (1) स्वशासी प्रदे श की प्रादे लशक
पररषद् को ऐसे प्रदे श के भीतर के सभी क्षेत्रों के संबध
ं में और स्वशासी क्जले की क्जला पररषद् को ऐसे
क्षेत्रों को छोड़कर जो उस क्जले के भीतर की प्रादे लशक पररषदों के, यहद कोई हों, प्राधधकार के अधीन है ,
उस क्जले के भीतर के अन्य सभी क्षेत्र के संबध
ं में तनम्नललणखत ववषयों के ललए ववधध बनाने की शक्क्त
होगी, अथातत ्-
___________________
1. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) “ऐसी पररषदों” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) अंत:स्थावपत|
3. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) दस
ू रे परन्तुक को लोवपत ककया गया|
4. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 2003 (2003 का 44) की धारा 2 द्वारा पैरा 3
असम राज्य को लागू करने में तनम्नललणखत रूप से संशोधधत ककया गया क्जससे उपपैरा (3)
तनम्नललणखत रूप से प्रततस्थावपत हो सके, अथातत ्: (अगले पष्ृ ठ पर जारी)
(वपछले पष्ृ ठ से जारी)
“(3) पैरा 3क के उपपैरा (2) या पैरा 3ख के उपपैरा (2) में जैसा अन्यथा उपबंधधत है , उसके
लसवाय इस पैरा या पैरा 3क के उपपैरा (1) या पैरा 3ख के उपपैरा (1) के अधीन बनाई गई सभी
ववधधयां राज्यपाल के समक्ष तुरंत प्रस्तुत की जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुमतत नहीं दे
दे ता है तब तक प्रभावी नहीं होंगी|”|
संववधान (छठी अनुसूची) संशोधन अधधतनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा असम में
लागू होने के ललया पैरा 3 के पश्चात ् तथा संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 2003
की धारा 2 द्वारा पैरा 3क के पश्चात ् क्रमशः तनम्नललणखत अंत:स्थावपत ककया गया, अथातत ् :
“3-क उिरी कछार पहाड़ी स्िशासी पररषद् और काबी अलांग स्िशासी पररषद् की विधध बनाने की
अनतररतत शक्ततयााँ – (1) पैरा 3 के उपबंधों पर प्रततकूल प्रभाव डाले त्रबना, उर्त्री कछार
पहाड़ी/स्वशासी पररषद् और काबी आलांग स्वशासी पररषद् को, संबधं धत क्जलों के भीतर
तनम्नललणखत की बाबत ववधधयां बनाने की शक्क्त होंगी, अथातत ् :

253
(क) सातवीं अनुसूची की सूधच 1 की प्रववक्ष्ट 7 और प्रववक्ष्ट 52 के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
उद्योग;
(ख) संचार, अथातत ्, सड़कें, पुल, फेरी और अन्य संचार साधन, जो सातवीं अनुसूची की सूधच 1 में
ववतनहदतष्ट नहीं है , नगरपाललक राम, राज्जुमागत, अंतदे शीय जलमागों के संबध
ं में सातवीं अनुसूची
की सूची 1 और सूची 3 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अंतदे शीय जलमागत और उन पर
यातायात, यंत्र नोहदत यानों से लभन्न यान;
(ग) पशुधन का परररक्षण, संरक्षण और सुधार तथा जीवजंतुओं के रोगों का तनवारण, पशु धचककत्सा
प्रलशक्षण और व्यवसाय ; कांजी हाउस ;
(घ) प्राथलमक और माध्यलमक लशक्षा ;
(ङ) कृवष क्जसके अंतगतत कृवष लशक्षा और अनुसध
ं ान, नाशक जीवों से संरक्षण और पादप रोगों का
तनवारण है ;
(च) मत्स्य उद्योग ;
(छ) सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रववक्ष्ट 56 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जल अथातत ्, जल
प्रदाय, लसंचाई और नहरें , जल तनकासी और तटबंध, जल भंडारण और जल शक्क्त ;
(ज) सामाक्जक सुरक्षा और सामाक्जक बीमा ; तनयोजन और बेकारी ;
(झ) ग्रामो, धन के खेतों, बाजारों, शहरों आहद के संरक्षण के ललए बाढ़ तनयंत्रण स्कीमें (जो तकनीकी
प्रकृतत की न हों) ;
(ञ) नाट्यशाला और नाट्य प्रदशतन ; सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रववक्ष्ट 60 के उपबंधों के
अधीन रहते हुए, लसनेमा, खेल-कूद, मनोरं जन और आमोद ;
(ट) लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय ;
(ठ) लघु लसंचाई ;
(ड) खाद्य पदाथत, पशुओं के चारे , कच्ची कपास और कच्चे जूट का व्यापार और वाणणज्य तथा उनका
उत्पादन, प्रदाय और ववतरण ;
(ढ) राज्य द्वारा तनयंत्रत्रत या ववर्त्पोवषत पुस्तकालय, संग्रहालय और वैसी ही अन्य संस्थाएं संसद्
द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन राष्रीय महत्व के घोवषत ककए गए प्राचीन और
ऐततहालसक संस्मारकों और अलभलेखों से लभन्न प्राचीन और ऐततहालसक संस्मारक और अलभलेख ;
और
(ण) भूलम का अन्य संक्रमण|
(2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन उर्त्री कछार पहाड़ी स्वशासी पररषद् और काबी
आलांग स्वशासी पररषद् द्वारा बनाई गई सभी ववधधयां, जहां तक उनका संबध
ं सातवीं अनुसूची
की सूची 3 में ववतनहदतष्ट ववषयों से है , राज्यपाल के समक्ष तुरंत प्रस्तुत की जाएंगी, जो उन्हें
राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखेगा|
(3) जब कोई ववधध राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रख ली जाती है तब राष्रपतत घोवषत
कैगा कक व उक्त ववधध पर अनुमतत दे ता है या अनुमतत रोक लेता है :
परं तु राष्रपतत राज्यपाल को यह तनदे श दे सकेगा कक वह ववधध को, यथाक्स्थतत, उर्त्री कछार
पहाड़ी स्वशासी पररषद् या काबी आलांग स्वशासी पररषद् को ऐसे संदेश के साथ यह अनुरोध
करते हुए लौटा दे कक उक्त पररषद् ववधध या उसके ककन्हीं ववतनहदतष्ट उपबंधों पर पुनववतचार करे

254
और ववलशष्ट तया, ककन्हीं ऐसे संशोधनो के पुर:स्थापन कक वांछनीयता पर ववचार करे क्जनकी
उसने अपने संदेश में लसफाररश की है और जब ववधध इस प्रकार लौटा दी जाती है तब ऐसा संदेश
लमलने की तारीख से छह मास की अवधध के भीतर पररषद् ऐसी ववधध पर तदनुसार ववचार करे गी
और यहद ववधध उक्त पररषद् द्वारा संशोधन सहहत या उसके त्रबना कफर से पाररत कर दी जाती
है तो उसे राष्रपतत के समक्ष उसके ववचार के ललए कफर से प्रस्तुत ककया जाएगा|”|
(क) ककसी आरक्षक्षत वन की भलू म से लभन्न अन्य भलू म का, कृवष या चराई के प्रयोजनों के ललए
अथवा तनवास के या कृवष से लभन्न अन्य प्रयोजनों के ललए अथवा ककसी ऐसे अन्य
प्रयोजन के ललए क्जसे ककसी ग्राम या नगर के तनवालसयों के हहतों की अलभवद्
ृ धध संभाव्य
है , आबंटन, अधधभोग या उपयोग अथवा अलग रखा जाना :
परं तु ऐसी ववधधयों की कोई बात 1[संबधं धत राज्य की सरकार को] अतनवायत में हों या नहीं, लोक
प्रयोजनों के ललए अतनवायत अजतन करने से तनवाररत नहीं करे गी ;
(ख) ककसी ऐसे वन का प्रबंध जो आरक्षक्षत वन नहीं है ;
(ग) कृवष के प्रयोजन के ललए ककसी नहर या जलसरणी का उपयोग ;
(घ) झूम की पद्धतत का या पररवती खेती की अन्य पद्धततयों का ववतनयमन ;
(ङ) ग्राम या नगर प्रशासन से संबधं धत कोई अन्य ववषय क्जसके अंतगतत ग्राम या नगर पलु लस
और लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता है ;
(छ) प्रमख
ु ों या मणु खयों की तनयक्ु क्त या उर्त्राधधकार ;
(ज) संपवर्त् की ववरासत ;
2
[(झ) वववाह और वववाह-ववच्छे द ;]
(ञ) सामाक्जक रूहढयां|
(2) इस पैरा में , “आरक्षक्षत वन” से ऐसा क्षेत्र अलभप्रेत है जो असम वन ववतनयम, 1891 के
अधीन या प्रश्नगत क्षेत्र में तत्समय प्रवर्त्
ृ ककसी अन्य ववधध के अधीन आरक्षक्षत वन है |
3
[(3) इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी ववधधयां राज्यपाल के समक्ष तरु ं त प्रस्तत
ु की जाएंगी
और जब तक वह उन पर अनम
ु तत नहीं दे दे ता है तब तक प्रभावी नहीं होंगी|]
4. स्िशासी क्जलों और स्िशासी प्रदे शों में न्याय प्रशासन – स्वशासी प्रदे श की प्रादे लशक पररषद्
ऐसे प्रदे श के भीतर के क्षेत्रों के संबध
ं में और स्वशासी क्जले की क्जला पररषद् ऐसे क्षेत्रों से लभन्न जो उस
क्जले के भीतर की प्रादे लशक पररषदों के, यहद कोई हों, प्राधधकार के अधीन है , उस क्जले के भीतर के
अन्य क्षेत्रों के संबध
ं में , ऐसे वादों और मामलो के ववचारण के ललए जो ऐसे पक्षकारों के बीच है क्जनमे से
सभी पक्षकार ऐसे क्षेत्रों के भीतर की अनस
ु धू चत जनजाततयों के है तथा जो उन वादों और मामलों से
लभन्न है क्जनको इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 5 के उपपैरा (1) के उपबंध लागू होते है , उस राज्य के ककसी
न्यायालय का अपवजतन करके ग्राम पररषदों या न्यायालयों का गठन कर सकेगी और उपयक्
ु त व्यक्क्तयों
को ऐसी ग्राम पररषद् के सदस्य या ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधधकारी तनयक्
ु त कर सकेगी और ऐसे
अधधकारी भी तनयक्
ु त कर सकेगी जो सी अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 के अधीन बनाई गई ववधधयों के प्रशासन के
ललए आवश्यक हों|
______________________
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवां अनुसूची
द्वारा (21-1-1972 से) कुछ शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत|

255
2. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) खंड (झ) के स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 2003 (2003 का 44) द्वारा असम में लागू होने
के ललए उपपैरा(3) के स्थान पर तनम्न उपपैरा को प्रततस्थावपत ककया जाएगा|
“(3) जैसा कक पैरा 3-क के उपपैरा (2) या पैरा 3-ख के उपपैरा (2) में उपबंधधत है , उसके
लसवाय इस पैरा या पैरा 3-क के उपपैरा (1) या पैरा 3-ख के उपपैरा (1) के अधीन बनायी गई
सभी ववधधयाँ राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी और जब तक वह उन पर अनुमतत नहीं दे ता
है , तब तक प्रभावी नहीं होगी|”

(2) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, स्वशासी प्रदे श की प्रादे लशक पररषद् या उस
प्रादे लशक पररषद् द्वारा इस तनलमर्त् गहठत कोई न्यायालय या यहद ककसी स्वशासी क्जले के भीतर के
ककसी क्षेत्र के ललए कोई प्रादे लशक पररषद् नहीं है तो, ऐसे क्जले की क्जला पररषद् या उस क्जला पररषद्
द्वारा इस तनलमर्त् गहठत कोई न्यायालय ऐसे सभी वादों और मामलों के संबध
ं में जो, यथाक्स्थतत, ऐसे
प्रदे श या क्षेत्र के भीतर इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन गहठत ककसी ग्राम पररषद् या न्यायालय द्वारा
ववचारणीय है तथा जो उन वादों और मामलों से लभन्न है क्जनको इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 5 के उपपैरा (1)
के उपबंध लागू होते है अपील न्यायालय की शक्क्तयों का प्रयोग करे गा तथा उच्च न्यायालय और
उच्चतम न्यायालय से लभन्न ककसी अन्य न्यायालय को ऐसे वादों या मामलों में अधधकाररता नहीं होगी|
(3) 1[***] उच्च न्यायालय को, उन वादों और मामलों में क्जनको इस पैरा के उपपैरा (2) के
उपबंध लागू होते है , ऐसी अधधकाररता होगी और वह उसका प्रयोग करे गा जो राज्यपाल समय-समय पर
आदे श द्वारा ववतनहदत ष्ट करे |
(4) यथाक्स्थतत, प्रादे लशक पररषद् या क्जला पररषद् राज्यपाल के पव
ू त अनम
ु ोदन से तनम्नललणखत
के ववतनयमन के ललए तनयम बना सकेगी, अथातत ् :
(क) ग्राम पररषदों और न्यायालयों का गठन और इस पैरा के अधीन उनके द्वारा प्रयोक्तव्य
शक्क्तयां ;
(ख) इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन वादों और मामलों के ववचारण में ग्राम पररषदों या
न्यायालयों द्वारा अनस
ु रण की जाने वाले प्रकक्रया ;
(ग) इस पैरा के उपपैरा (2) के अधीन अपीलों और अन्य कायतवाहहयों में प्रादे लशक पररषद् या
क्जला पररषद् अथवा ऐसी पररषद् द्वारा गहठत ककसी न्यायालय द्वारा अनस
ु रण की जाने
वाली प्रकक्रया;
(घ) ऐसी पररषदों और न्यायालयों के ववतनश्चयों और आदे शो का प्रवततन ;(ङ) इस पैरा के उपपैरा
(1) और उपपैरा (2) के उपबंधों को कायातक्न्वत करने के ललए अन्य सभी आनष
ु धं गक ववषय|
2
[(5) उस तारीख की और से जो राष्रपतत [सबंधधत राज्य की सरकार से परामशत करने के
3

पश्चात ्] अधधसच
ू ना द्वारा, इस तनलमर्त् तनयत करे , यह पैरा ऐसे स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श के
संबध
ं में , जो उस अधधसच
ू ना में ववतनहदत ष्ट ककया जाए, इस प्रकार प्रभावी होगा मानो –
(i) उपपैरा (1) में , “जो ऐसे पक्षकारों के बीच है क्जनमे से सभी पक्षकार ऐसे क्षेत्रों के भीतर
की अनस
ु धू चत जनजाततयों के है तथा जो उन वादों और मामलों से लभन्न है क्जनको इस
अनस
ु च
ू ी के पैरा 5 के उपपैरा (1) के उपबंध लागू होते है , “शब्दों के स्थान पर, “जो इस

256
अनस
ु च
ू ी के पैरा 5 के उपपैरा (1) में तनहदत ष्ट प्रकृतत के ऐसे वाद और मामले नहीं है
क्जन्हें राज्यपाल इस तनलमर्त् ववतनहदत ष्ट करे , “शब्द रख हदए गए हो ;
____________________
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची
द्वारा (21-1-1972 से) “आसाम के” शब्दों का लोप ककया गया|
2. आसाम पुनगतठन (मेघायल) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) अंत:स्थावपत|
3. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कुछ शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(ii) उपपैरा (2) और उपपैरा (3) का लोप का हदया गया हो ;


(iii) उपपैरा (4) में
(क) “यथाक्स्थतत, प्रादे लशक पररषद् या क्जला पररषद्, राज्यपाल के पव
ू त अनम
ु ोदन से, तनम्नललणखत
के ववतनयमन के ललए तनयम बना सकेगी, अथातत ् :” शब्द रख हदया गए हो ; और
(ख) खंड (क) के स्थान पर, तनम्नललणखत खंड रख हदया गया हो, अथातत ् :-
“(क) ग्राम पररषदों और न्यायालयों का गठन, इस पैरा के अधीन उनके द्वारा प्रयोक्तव्य
शक्क्तयां और वे न्यायालय क्जनको ग्राम पररषदों और न्यायालयों के ववतनश्चयों से अपीलें हो
सकेगी;”
(ग) खंड (ग) के स्थान पर, तनम्नललणखत खंड रख हदया गया हो, अथातत ् :
“(ग) प्रादे लशक पररषद् या क्जला पररषद् अथवा ऐसी पररषद् द्वारा गहठत ककसी न्यायालय के
समक्ष उपपैरा (5) के अधीन राष्रपतत द्वारा तनयत तारीख से ठीक पहले लंत्रबत अपीलों और
अन्य कायतवाहहयों का अंतरण,”;और
(घ) खंड (ङ) में “उपपैरा (1) और उपपैरा (2)” शदो, कोष्ठकों और अंको के स्थान पर, “उपपैरा
(1)” शब्द, कोष्ठक और अंक रख हदए गए हो|
1
[(6) इस पैरा की कोई चीज इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के परन्तक
ु के अधीन गहठत
बोडोलैंड, राज्य क्षेत्रीय पररषद् को लागू नहीं होगी|]
5. कुछ िादों, मामलों और अपराधों के विचारण के ललए प्रादे लशक पररषदों और क्जला पररषदों को
तथा क्रकन्हीं न्यायालयों और अधधकाररयों को लसविल प्रक्रक्रया संर्हता, 1908 और दण्ड प्रक्रक्रया संर्हता,
18982 के अधीन शक्ततयों का प्रदान क्रकया गया - (1) राज्यपाल, ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श
में ककसी ऐसी प्रवर्त्
ृ ववधध से, जो ऐसी ववधध है क्जसे राज्यपाल इस तनलमर्त् ववतनहदत ष्ट करे , उद्भत
ू वादों
या मामलों के ववचारण के ललए अथवा भारतीय दं ड संहहता के अधीन या ऐसे क्जले या प्रदे श में तत्समय
लागू ककसी अन्य ववधध के अधीन मत्ृ यु से, आजीवन तनवातसन से या पांच वषत से अन्यन
ू अवधध के ललए
कारावास से दं डनीय अपराधों के ववचारण के ललए, ऐसे क्जले या प्रदे श पर प्राधधकार रखने वाली क्जला
पररषद् या प्रदे लशक पररषद् को अथवा ऐसी क्जला पररषद् द्वारा गहठत न्यायालयों को अथवा राज्यपाल
द्वारा इस तनलमर्त् तनयक्
ु त ककसी अधधकारी को, यथाक्स्थतत, लसववल प्रकक्रया संहहता, 1908 या दं ड प्रकक्रया
संहहता, 1898 के अधीन ऐसी शक्क्तयां प्रदान कर सकेगा जो वह समधु चत समझे और तब उक्त पररषद्,
न्यायालय या अधधकारी इस प्रकार प्रदर्त् शक्क्तयों का प्रयोग करते हुए वादों, मामलों या अपराधों का
ववचारण करे गा|

257
(2) राज्यपाल, इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन ककसी क्जला पररषद्, प्रादे लशक पररषद्,
न्यायालय या अधधकारी की प्रदर्त् शक्क्तयों में से ककसी शक्क्त को वापस ले सकेगा या उपान्तररत कर
सकेगा|
(3) इस पैरा में अलभव्यक्त रूप से यथा उपबंधधत के लसवाय, लसववल प्रकक्रया संहहता, 1908 और
दं ड प्रकक्रया संहहता, 18982 ककसी स्वशासी क्जले में या ककसी स्वशासी प्रदे श में , क्जसको इस पैरा के
उपबंध लागू होते है , ककन्हीं वादों, मामलों या अपराधों के ववचारण को लागू नहीं होगी|
[(4) राष्रपतत द्वारा ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श के संबध
3
ं में पैरा 4 के उपपैरा (5)
के अधीन तनयत तारीख को और से, उस क्जले या प्रदे श को लागू होएं में इस पैरा की ककसी बात के बारे
में यह नहीं समझा जाएगा कक वह ककसी क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् को या क्जला पररषद् द्वारा
गहठत न्यायालयों इस पैरा के उपपैरा (1) में तनहदत ष्ट शक्क्तयों में से कोई शक्क्त प्रदान करने के ललए
राज्यपाल को प्राधधकृत करती है |
____________________
1. संववधान छठी अनुसूची अधधतनयम, 2003 (2003 का 44) द्वारा (7-9-2003 से) असम में लागू
होने के ललए उप-पैरा (6) को अंत:स्थावपत ककया गया|
2. अब दं ड प्रकक्रया संहहता, 1973 (1974 का 2) दे खें|
3. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) कक धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) अंत:स्थावपत|
[6. प्राथलमक विद्यालय आर्द स्थावपत करने क्रक क्जला पररषद् क्रक शक्तत – (1) स्वशासी
1

क्जले की क्जले की क्जलो पररषद्, क्जले में प्राथलमक ववद्यालयों, औषधालयों, बाजारों, 2
[कांजी,
हाउसों,] फेरी, मीन क्षेत्रों, सड़कों, सड़क पररवहन और जल मागो की स्थापना, तनमातण और प्रबंध
कर सकेगी तथा राज्यपाल के पव
ू त अनम
ु ोदन से, उनके ववतनयमन और तनयंत्रण के ललए ववतनयम
बना सकेगी और, ववलशष्टतया, वह भाषा और वह रीतत ववहहत कर सकेगी, क्जससे क्जले के
प्राथलमक ववद्यालयों में प्राथलमक लशक्षा दी जाएगी|
(2) राज्यपाल, क्जला पररषद् की सहमतत से, उस पररषद् को या उसके अधधकाररयों को
कृवष, पशप
ु ालन, सामद
ु ातयक पररयोजनाओं, सहकारी सोसाईहटयों, समाज कल्याण, ग्राम योजना या
ककसी अन्य ऐसे ववषय के संबध
ं में , क्जस पर 3[***] राज्य की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार
है , कृत्य सशतत या त्रबना शतत सौंप सकेगा|]
7. क्जला और प्रादे लशक ननधधयााँ – (1) प्रत्येक स्वशासी क्जले के ललए एक क्जला तनधध
और प्रत्येक स्वशासी प्रदे श के ललयें एक प्रादे लशक तनधध गहठत की जाएगी क्जसमे क्रमशः उस
क्जले की क्जला पररषद्, उस क्जले या प्रदे श के प्रशासन के अनक्र
ु म में प्राप्त सभी धनरालशयां
जमा की जाएगी|
[(2) राज्यपाल, यथाक्स्थतत, क्जला तनधध या प्रादे लशक तनधध के प्रबंध के ललए और उक्त
4

तनधध में धन जमा करे , उसमे से धनरालशयां तनकलने, उसके धन की अलभरक्षा और पव


ू ोक्त
ववषयों से संबधं धत या आनष
ु धं गक ककसी अन्य ववषय के संबध
ं में अनस
ु रण की जाने वाली प्रकक्रया
के ललए तनयम बना सकेगी|
(3) यथाक्स्थतत, क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् के लेखे ऐसे प्ररूप में रखे जाएंगे जो
भारक का तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक राष्रपतत के अनम
ु ोदन से, ववहहत करे |

258
(4) तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक क्जला पररषदों और प्रादे लशक पररषदों के लेखाओं की
संपरीक्षा ऐसी रीतत से कराएगा जो वह ठीक समझे और तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के ऐसे लेखाओं
से संबधं धत प्रततवेदन राज्यपाल के समक्ष प्रस्तत
ु ककए जाएंगे जो उन्हें पररषद् के समक्ष
रखवाएगा|]
8. भ-ू राजस्ि का ननधामरण और संग्रहण करने तथा कर का अधधरोपण करने की शक्ततयााँ-
स्वशासी प्रदे श के भीतर की सभी भलू मयों के संबध
ं में ऐसे प्रदे श की प्रादे लशक पररषद् को और
यकी क्जले में कोई प्रादे लशक पररषद् है तो उनके प्राधधकार के अधीन आने वाले क्षेत्रों में
क्स्थतभलू मयों को छोड़कर क्जले के भीतर की सभी भलू मयों के संबध
ं में स्वशासी क्जले की क्जला
पररषद् को ऐसी भलू मयों की बाबत, उन लसद्धांतों के अनस
ु ार राजस्व का तनधातरण और संग्रहण
करने की शक्क्त क्जनका 5
[ साधारणतया राज्य में भ-ू राजस्व के प्रयोजन के ललए भलू म के
तनधातरण में राज्य की सरकार द्वारा तत्समय अनस
ु रण हदया जाता है |
____________________
1. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) पैरा 6 के स्थान पर अंत:स्थावपत|
2. तनरसन और संशोधन अधधतनयम, 1974 (1974 का 56) की धारा 4 द्वारा “कांजी हाउस” के
स्थान पर प्रततस्थावपत|
3. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची
द्वारा (21-1-1972 से) “यथाक्स्थतत, आसाम या मेघालय” शब्दों का लोप ककया गया|
4. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) उपपैरा (2) के स्थान पर प्रततस्थावपत|
5. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची
द्वारा (21-1-1972 से) कुछ शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत|
(2) स्वशासी प्रदे श के भीतर के क्षेत्रों के संबध
ं में ऐसे प्रदे श की प्रादे लशक पररषद् को और यहद
क्जले में कोई प्रादे लशक पररषद् है तो उनके प्राधधकार के अधीन आने वाले क्षेत्रों को छोड़कर क्जले के भीतर
के सभी क्षेत्रों के संबध
ं में स्वशासी क्जले की क्जला पररषद् को, भलू म और भवनों पर करों का तथा ऐसे
क्षेत्रों में तनवासी व्यक्क्तयों पर पक्षकार का उद्ग्रहण और संग्रहण करने की शक्क्त होगी|
(3) स्वशासी क्जले की क्जला पररषद् को ऐसे क्जले के भीतर तनम्नललणखत सभी या ककन्हीं करों
का उद्ग्रहण और संग्रहण करने की शक्क्त होगी, अथातत ् :
(क) ववृ र्त्, व्यापार, आजीववका और तनयोजन पर कर ;
(ख) जीवजंतओ
ु , यानी और नोकाओं पर कर ;
(ग) ककसी बाजार में ववक्रम के ललए माल के प्रवेश पर कर और फेरी से ले जाए जाने वाले
यात्रत्रयों और माल पर पथकर ;और
(घ) ववद्यालयों, औषधालयों या सड़कों को बनाए रखने के ललए कर|
(4) इस पैरा के उपपैरा (2) और उपपैरा (3) में ववतनहदत ष्ट करो में से ककसी कर के उद्ग्रहण और
संग्रहण का उपबंध करने के ललए, यथाक्स्थतत, प्रादे लशक पररषद् या क्जला पररषद् ववतनमय बना सकेगी
और 1[ऐसा प्रत्येक ववतनयम राज्यपाल के समक्ष तरु ं त प्रस्तत
ु ककया जाएगा और जब तक वह उस पर
अनम
ु तत नहीं दे दे ता है तब तक उसका कोई प्रमाण नहीं होगा|]

259
2
9. खननजों के पि
ू क्ष
े ण या ननष्ट्कषमण के प्रयोजन के ललए अनज्ञ
ु क्प्तयााँ या पट्टे – (1) ककसी
स्वशासी क्जले के भीतर के ककसी क्षेत्र के संबध
ं में 3
[राज्य की सरकार] द्वारा खतनजों के पव
ू क्ष
े ण या
तनष्कषतण के प्रयोजन के ललए दी गई अनज्ञ
ु क्प्तयाँ या पट्टों से प्रत्येक वषत प्रोद्भत
ू होने वाले स्वालमत्व
का ऐसा अंश, क्जला पररषद् को हदया जाएगा जो उस 3
[राज्य की सरकार] और ऐसे क्जले की क्जला
पररषद् के बीच करार पाया जाए|
(2) यहद क्जला पररषद् को हदए जाने वाले ऐसे स्वालमत्व के अंश के बारे में कोई वववाद उत्पन्न
होता है तो वह राज्यपाल को अवधारण के ललए तनदे लशत ककया जाएगा और राज्यपाल द्वारा अपने वववेक
के अनस
ु ार अवधाररत रकम इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन क्जला पररषद् को संदेय रकम समझी
जाएगी और राज्यपाल का ववतनश्चय अंततम होगा|
__________________
1. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची
द्वारा (2-4-1970 से) अंत:स्थावपत|
2. संववधान (छठी अनुसूची) संशोधन अधधतनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 9
त्रत्रपुरा और लमजोरम राज्यों को लागू करने में तनम्नललणखत रूप से संशोधधत ककया गया क्जससे
उपपैरा (2) के पश्चात ् तनम्नललणखत उपपैरा अंत:स्थावपत ककया जा सके, अथातत ् :
“(3) राज्यपाल, आदे श द्वारा, यह तनदे श दे सकेगा कक इस पैरा के अधीन क्जला पररषद्
को हदया जाने वाला स्वालमत्व का अंश उस पररषद् को, यथाक्स्थतत, उपपैरा (1) के अधीन ककसी
करार या उपपैरा (2) के अधीन ककसी अवधारण की तारीख से एक वषत की अवधध के भीतर ककया
जाएगा”|
3. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची
द्वारा (21-1-1972 से) “असम सरकार” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

1
10. जनजानतयों से लभन्न व्यक्ततयों की साहूकारी और व्यापार के ननयंत्रण के ललए विननयम बनाने
की क्जला पररषद् की शक्तत – (1) स्वशासी क्जले की क्जला पररषद् उस क्जले में तनवासी जनजाततयों से
लभन्न व्यक्क्तयों की उस क्जले के भीतर साहूकारी या व्यापार के ववतनयमन और तनयंत्र के ललए ववतनयम
बना सकेगी|
(2) ववलशष्टतया और पव
ू ग
त ामी शक्क्त की व्यापकता पर प्रततकूल प्रभाव डाले त्रबना, ऐसे ववतनमय –
(क) ववहहत कर सकेंगे कक उस तनलमर्त् दी गई अनज्ञ
ु क्प्त के धारक के अततररक्त और कोई साहूकारी
का कारोबार नहीं करे गा ;
(ख) साहूकार द्वारा प्रभाररत या वसलू ककए जाने वाले ब्याज कक अधधकतम दर ववहहत कर सकेंगे ;
(ग) साहूकारों द्वारा लेखे रखे जाने का और क्जला पररषदों द्वारा इस तनलमर्त् तनयक्
ु त अधधकाररयों
द्वारा ऐसे लेखाओं के तनरीक्षण का उपबंध कर सकेंगे ;
(घ) ववहहत कर सकेंगे कक कोई कोई व्यक्क्त, जो क्जले में तनवासी अनस
ु धू चत जनजाततयों का सदस्य
नहीं है , क्जला पररषद् द्वारा इस तनलमर्त् दी गई अनज्ञ
ु क्प्त के अधीन हो ककसी वस्तु का थोक
या फुटकर कारबार करे गा, अन्यथा नहीं :
परं तु इस पैरा के अधीन ऐसे ववतनयम तब तक नहीं बनाए जा सकेंगे जब तक वे क्जला पररषद्
कक कुल सदस्य संख्या के कम से कम तीन चौथाई बहुमत द्वारा पाररत नहीं कर हदए जाते है :

260
परं तु यह और कक ऐसे ककन्हीं ववतनयमों के अधीन ककसी ऐसे साहूकार या व्यापारी को, जो ऐसे
ववतनयमों के बनाए जाने के पहले से उस क्जले के भीतर कारबार करता रहा है , अनज्ञ
ु क्प्त दे ने से इंकार
करना सक्षम नहीं होगा|
(3) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी ववतनयम राज्यपाल के समक्ष तरु ं त प्रस्तत
ु ककए जाएंगे
और जब तक वह उन पर अनम
ु तत नहीं दे दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नहीं होगा|
11. अनस
ु च
ू ी के अधीन बनाई गई विधधयों, ननयमों और विननयमों का प्रकाशन - क्जला पररषद् या
प्रादे लशक पररषद् द्वारा इस अनस
ु च
ू ी के अधीन बनाई गई सभी ववधधयाँ, तनयम और ववतनयम राज्य के
राजपत्र में तरु ं त प्रकालशत ककए जाएँगे और ऐसे प्रकाशन पर ववधध का बल रखें गे।
2
12. 3[असम राज्य में स्िशासी क्जलों और स्िशासी प्रदे शों को संसद् के और असम राज्य के
विधान मंडल के अधधननयमों का लागू होना] - (1) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी,-
____________________
1. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 10 त्रत्रपुरा
और लमजोरम राज्यों को लागू करने तनम्नललणखत रूप से संशोधधत ककया गया :
‘(क) शीषतक में से “जनजाततयों से लभन्न व्यक्क्तयों की” शब्दों का लोप ककया जाएगा ;
(ख) उपपैरा (1) में से “जनजाततयों से लभन्न व्यक्क्तयों की” शब्दों का लोप ककया जाएगा ;
(ग) उपपैरा (2) में , खंड (घ) के स्थान पर, तनम्नललणखत खंड रखा जाएगा, अथातत ् :-
“(घ) ववहहत कर सकेंगे कक कोई व्यक्क्त, जो क्जले में तनवासी है क्जला पररषद् द्वारा इस तनलमर्त्
दी गई अनुज्ञक्प्त के अधीन कोई थोक या फुटकर व्यापार करे गा अन्यथा नहीं :”’|
2. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा पैरा 12 असम
राज्य में लागू होने के ललए तनम्नललणखत रूप से संशोधधत ककया गया, अथातत ् :-
“पैरा 12 के उपपैरा (1) में “इस अनुसूची के पैरा 3 में ऐसे ववषयों” शब्दों और अंक के
स्थान पर “'इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क में ऐसे ववषयों" शब्द, अंक और अक्षर रखे जाएँगे।’।
3. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) 'राज्य का ववधान मंडल' के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(क) 1(असम राज्य के ववधान मंडल) का कोई अधधतनयम, जो ऐसे ववषयों में से ककसी ववषय के
संबध
ं में है क्जनको 2[इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 में ऐसे ववषयों] के रूप में ववतनहदत ष्ट ककया गया
है , क्जनके संबध
ं में क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् ववधधयाँ बना सकेगी और 1[असम राज्य
के ववधान मंडल] का कोई अधधतनयम, जो ककसी अनासत
ु ऐल्कोहाली ललकर के उपभोग को
प्रततवषद्ध या तनबंधधत करता है , 3[उस राज्य में ] ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को
तब तक लागू नहीं होगा जब तक दोनों दशाओं में से हर एक में ऐसे क्जले की क्जला पररषद्
या ऐसे प्रदे श पर अधधकाररता रखने वाली क्जला पररषद्, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, इस प्रकार
तनदे श नहीं दे दे ती है और क्जला पररषद् ककसी अधधतनयम के संबध
ं में ऐसा तनदे श दे ते समय
यह तनदे श दे सकेगी कक वह अधधतनयम ऐसे क्जले या प्रदे श या उसके ककसी भाग को लागू
होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठीक समझती है ;
(ख) राज्यपाल, लोक अधधसच ू ना द्वारा, तनदे श दे सकेगा कक संसद् का या [असम राज्य के ववधान
1

मंडल] का कोई अधधतनयम, क्जसे इस उपपैरा के खंड (क) के उपबंध लागू नहीं होते हैं, 3[उस
राज्य में ] ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे क्जले या

261
प्रदे श या उसके ककसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो
वह उस अधधसच ू ना में ववतनहदत ष्ट करे ।
(2) इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन हदया गया कोई तनदे श इस प्रकार हदया जा सकेगा कक उसका
भत
ू लक्षी प्रभाव हो।
4
[12क. मेघालय राज्य में स्िशासी क्जलों और स्िशासी प्रदे शों को संसद् के और मेघालय राज्य के
विधान मंडल के अधधननयमों का लागू होना - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, -
(क) यहद इस अनसु चू ी के पैरा 3 के उपपैरा (1) में ववतनहदत ष्ट ववषयों में से ककसी ववषय के संबध
ं में
मेघालय राज्य में ककसी क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध का
कोई उपबंध या यहद इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 8 या पैरा 10 के अधीन उस राज्य में ककसी क्जला
पररषद् या प्रादे लशक द्वारा बनाए गए ककसी ववतनयम का कोई उपबंध, मेघालय राज्य के
ववधान मंडल द्वारा उस ववषय के संबध
ं में बनाई गई ककसी ववधध के ककसी उपबंध के ववरुद्ध
है तो, यथाक्स्थतत, उस क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् द्वारा बनाई गई ववधध या बनाया
गया ववतनयम, चाहे वे मेघालय राज्य के ववधान मंडल द्वारा बनाई गई ववधध से पहले बनाया
गया हो या उसके पश्चात,् उस ववरोध की मात्रा तक शन्ू य होगा और मेघालय राज्य के ववधान
मंडल द्वारा बनाई गई ववधध अलभभावी होगी,
___________________
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) “राज्य का ववधान-मंडल” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. असम राज्य में लागू होने के ललए पहले संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1995
(1995 का 42) द्वारा शब्द तथा अंक “इस अनुसूची के पैरा 3 में ऐसे ववषयों” के स्थान पर
शब्द तथा अंक “इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क में ऐसे ववषयों” को प्रततस्थावपत ककया
गया| तत्पश्चात ् संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 2003 (2003 का 44) द्वारा (7-
9-2003 से) तथा अंक “इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क में ऐसे ववषयों के स्थान पर शब्द
तथा अंक इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क या पैरा 3ख में ऐसे ववषयों” को प्रततस्थावपत
ककया गया|
3. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) अंत:स्थावपत|
4. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 12क के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(ख) राष्रपतत, संसद् के ककसी अधधतनयम के संबध


ं में , अधधसच
ू ना द्वारा तनदे श दे सकेगा कक वह
मेघालय राज्य में ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे क्जले
या प्रदे श या उसके ककसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा
जो वह अधधसच ू ना में ववतनहदत ष्ट करे और ऐसा कोई तनदे श इस प्रकार हदया जा सकेगा कक
उसका भत
ू लक्षी प्रभाव हो।]
1
[12-कक. त्रत्रपरु ा राज्य में स्िशासी क्जलों और स्िशासी प्रदे शों को संसद् के और त्रत्रपरु ा राज्य के
विधान मंडल के अधधननयमों का लागू होना - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, -

262
(क) त्रत्रपरु ा राज्य के ववधान मंडल का कोई अधधतनयम, जो ऐसे ववषयों में से ककसी ववषय के संबध

में है , क्जनको इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 में ऐसे ववषयों के रूप में ववतनहदतष्ट ककया गया है क्जनके
संबध
ं में क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् ववधधयाँ बना सकेगी, और त्रत्रपरु ा राज्य के ववधान
मंडल का कोई अधधतनयम जो ककसी अनासत
ु ऐल्कोहाली ललकर के उपभोग को प्रततवषद्ध या
तनबतक्न्धत करता है , उस राज्य में ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को तब तक लागू
नहीं होगा जब तक, दोनों दशाओं में से हर एक में, उस क्जले की क्जला पररषद् या ऐसे प्रदे श
पर अधधकाररता रखने वाली क्जला पररषद्, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, इस प्रकार तनदे श नहीं दे
दे ती है और क्जला पररषद् ककसी अधधतनयम के संबध
ं में ऐसा तनदे श दे ते समय यह तनदे श दे
सकेगी कक वह अधधतनयम उस क्जले या प्रदे श या उसके ककसी भाग को लागू होने में ऐसे
अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठीक समझती है ,
(ख) राज्यपाल, लोक अधधसच ू ना द्वारा, तनदे श दे सकेगा कक त्रत्रपरु ा राज्य के ववधान मंडल का कोई
अधधतनयम, क्जसे इस उपपैरा के खंड (क) के उपबंध लागू नहीं होते हैं, उस राज्य में ककसी
स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे क्जले या प्रदे श या उसके
ककसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस
अधधसचू ना में ववतनहदत ष्ट करे ,
(ग) राष्रपतत, संसद् के ककसी अधधतनयम के संबध
ं में , अधधसच
ू ना द्वारा तनदे श दे सकेगा कक वह
त्रत्रपरु ा राज्य में ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे क्जले
या प्रदे श या उसके ककसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा
जो वह अधधसच ू ना में ववतनहदत ष्ट करे और ऐसा कोई तनदे श इस प्रकार हदया जा सकेगा कक
उसका भत
ू लक्षी प्रभाव हो।]
1
[12ख. लमजोरम राज्य में स्िशासी क्जलों और स्िशासी प्रदे शों को संसद् के और लमजोरम राज्य
के विधान मंडल के अधधननयमों का लागू होना - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी-
_________________
1. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 12कक
और 12ख के स्थान पर प्रततस्थावपत और पैरा 12कक संववधान (उनचासवां संशोधन) अधधतनयम,
1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंत:स्थावपत ककया गया था|

(क) लमजोरम राज्य के ववधान मंडल का कोई अधधतनयम जो ऐसे ववषयों में से ककसी ववषय के
संबध
ं में है , क्जनको इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 में ऐसे ववषयों के रूप में ववतनहदत ष्ट ककया गया है ,
क्जनके संबध
ं में क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् ववधधयाँ बना सकेगी, और लमजोरम राज्य
के ववधान मंडल का कोई अधधतनयम, जो ककसी अनासत
ु ऐल्कोहाली ललकर के उपभोग को
प्रततवषद्ध या तनबतक्न्धत करता है , उस राज्य में ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को
तब तक लागू नहीं होगा, जब तक, दोनों दशाओं में से हर एक में , उस क्जले की क्जला पररषद्
या ऐसे प्रदे श पर अधधकाररता रखने वाली क्जला पररषद्, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, इस प्रकार
तनदे श नहीं दे दे ती है और क्जला पररषद्, ककसी अधधतनयम के संबध
ं में ऐसा तनदे श दे ते समय
यह तनदे श दे सकेगी कक वह अधधतनयम उस क्जले या प्रदे श या उसके ककसी भाग को लागू
होने में ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठीक समझती है ।

263
(ख) राज्यपाल, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, तनदे श दे सकेगा कक लमजोरम राज्य के ववधान मंडल का
कोई अधधतनयम, क्जसे इस उपपैरा के खंड (क) के उपबंध लागू नहीं होते हैं, उस राज्य में
ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे क्जले या प्रदे श या
उसके ककसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस
अधधसचू ना में ववतनहदत ष्ट करे ।
(ग) राष्रपतत, संसद् के ककसी अधधतनयम के संबंध में, अधधसच
ू ना द्वारा तनदे श दे सकेगा कक वह
लमजोरम राज्य में ककसी स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श को लागू नहीं होगा अथवा ऐसे
क्जले या प्रदे श या उसके ककसी भाग को ऐसे अपवादों या उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू
होगा जो वह अधधसच ू ना में ववतनहदत ष्ट करे और ऐसा कोई तनदे श इस प्रकार हदया जा सकेगा
कक उसका भत
ू लक्षी प्रभाव हो।]
13. स्िशासी क्जलों से संबधं धत प्रातकललत प्राक्प्तयों और व्यय का िावषमक वििीय वििरण में पथ
ृ क्
रूप से र्दखाया जाना - ककसी स्वशासी क्जले से संबधं धत प्राक्कललत प्राक्प्तयां और व्यय, जो 1[***] राज्य की
संधचत तनधध में जमा होनी हैं या उसमें से ककए जाने हैं, पहले क्जला पररषद् के समक्ष ववचार-ववमशत के
ललए रखे जाएँगे और कफर ऐसे ववचार-ववमशत के पश्चात ् अनच्
ु छे द 202 के अधीन राज्य के ववधान-मंडल के
समक्ष रखे जाने वाले वावषतक ववर्त्ीय वववरण में पथ
ृ क् रूप से हदखाए जाएँगे।
2
[14. स्िशासी क्जलों और स्िशासी प्रदे शों के प्रशासन की जााँच करने और उस पर प्रनतिेदन दे ने के
ललए आयोग की ननयक्ु तत - (1) राज्यपाल, राज्य में स्वशासी क्जलों और स्वशासी प्रदे शों के प्रशासन के संबध

में अपने द्वारा ववतनहदत ष्ट ककसी ववषय की, क्जसके अंतगतत इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 1 के उपपैरा (3) के खंड
(ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) में ववतनहदत ष्ट ववषय हैं, जाँच करने और उस पर प्रततवेदन दे ने के ललए
ककसी भी समय आयोग तनयक्
ु त कर सकेगा, या राज्य में स्वशासी क्जलों और स्वशासी प्रदे शों के
साधारणतया प्रशासन की और ववलशष्टतया-
__________________
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) “असम” शब्द का लोप ककया गया।
2. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा पैरा 14
“असम” राज्य में लागू होने के ललए तनम्नललणखत रूप से संशोधधत ककया गया, अथातत ्:-
‘पैरा 14 के उपपैरा (2) में, “राज्यपाल की उससे सम्बंधधत लसफाररशों के साथ” शब्दों का लोप
ककया गया|’

(क) ऐसे क्जलों और प्रदे शों में लशक्षा और धचककत्सा की सवु वधाओं की और संचार की व्यवस्था की,
(ख) ऐसे क्जलों और प्रदे शों के संबध
ं में ककसी नए या ववशेष ववधान की आवश्यकता की, और
(ग) क्जला पररषदों और प्रादे लशक पररषदों द्वारा बनाई गई ववधधयों, तनयमों और ववतनयमों के
प्रशासन को,
समय-समय पर जाँच करने और उस पर प्रततवेदन दे ने के ललए आयोग तनयक्
ु त कर सकेगा और ऐसे
आयोग द्वारा अनस
ु रण की जाने वाली प्रकक्रया पररतनक्श्चत कर सकेगा।
(2) संबधं धत मंत्री, प्रत्येक ऐसे आयोग के प्रततवेदन को, राज्यपाल की उससे संबधं धत लसफाररशों के
साथ, उस पर 1[राज्य की सरकार] द्वारा की जाने के ललए प्रस्ताववत कारत वाई के संबध
ं में स्पष्टीकरण
ज्ञापन सहहत, राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखेगा।

264
(3) राज्यपाल राज्य की सरकार के कायत का अपने मंत्रत्रयों में आबंटन करते समय अपने मंत्रत्रयों में
से एक मंत्री को राज्य के स्वशासी क्जलों और स्वशासी प्रदे शों के कल्याण का ववशेषतया भारसाधक बना
सकेगा।
15. क्जला पररषदों और प्रादे लशक पररषदों के कायों और संकल्पों का ननष्ट्प्रभाि या ननलंत्रबत क्रकया
2

जाना - (1) यहद राज्यपाल का ककसी समय यह समाधान हो जाता है कक क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद्
के ककसी कायत या संकल्प से भारत की सरु क्षा का संकटापन्ना होना संभाव्य है (4) (या लोक व्यवस्ता पर
प्रततकूल प्रभाव पड़ना संभाव्य है ) तो वह ऐसे कायत या संकल्प को तनष्प्रभाव या तनलंत्रबत कर सकेगा और
ऐसी कारत वाई (क्जसके अंतगतत पररषद् का तनलंबन और पररषद् में तनहहत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी
या ककन्हीं शक्क्तयों को अपने हाथ में ले लेना है ) कर सकेगा जो वह ऐसे कायत को ककए जाने या उसके
चालू रखे जाने का अथवा ऐसे संकल्प को प्रभावी ककए जाने का तनवारण करने के ललए आवश्यक समझे।
(2) राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन ककया गया आदे श, उसके ललए जो कारण है
उनके सहहत, राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष यथासंभव शीघ्र रखा जाएगा और यहद वह आदे श, राज्य के
ववधान-मंडल द्वारा प्रततसंहृत नहीं कर हदया जाता है तो वह उस तारीख से, क्जसको वह इस प्रकार ककया
गया था, बारह मास की अवधध तक प्रवर्त्
ृ बना रहे गा :
__________________
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) “असम सरकार” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 15 त्रत्रपुरा
और लमजोरम राज्यों को लागू करने में तनम्नललणखत रूप से संशोधधत ककया गया है :-
‘(क) आरं लभक भाग में , 'राज्य के ववधान-मंडल द्वारा' शब्दों के स्थान पर 'राज्यपाल द्वारा' शब्द
रखे जाएँग;े
(ख) परं तुक का लोप ककया जाएगा।'।
3. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) अंतःस्थावपत।

परं तु यहद और क्जतनी बार, ऐसे आदे श को प्रवर्त्


ृ बनाए रखने का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प
राज्य के ववधान-मंडल द्वारा पाररत कर हदया जाता है तो और उतनी बार वह आदे श, यहद राज्यपाल द्वारा
रद्द नहीं कर हदया जाता है तो, उस तारीख से, क्जसको वह इस पैरा के अधीन अन्यथा प्रवततन में नहीं
रहता, बारह मास की और अवधध तक प्रवर्त्
ृ बना रहे गा।
16. क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् का विघटन – 2[(1)] राज्यपाल, इस अनस
1
ु च
ू ी के पैरा 14 के
अधीन तनयक्
ु त आयोग की लसफाररश पर, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, ककसी क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद्
का ववघटन कर सकेगा, और
(क) तनदे श दे सकेगा कक पररषद् के पन
ु गतठन के ललए नया साधारण तनवातचन तरु ं त कराया जाए;
या
(ख) राज्य के ववधान-मंडल के पव
ू त अनम
ु ोदन से ऐसी पररषद् के प्राधधकार के अधीन आने वाले क्षेत्र
का प्रशासन बारह मास से अनधधक अवधध के ललए अपने हाथ में ले सकेगा अथवा ऐसे क्षेत्र
का प्रशासन ऐसे आयोग को क्जस उक्त पैरा के अधीन तनयक्
ु त ककया गया है या अन्य ऐसे
ककसी तनकाय को क्जसे वह उपयक्
ु त समझता है , उक्त अवधध के ललए दे सकेगा :

265
परं तु जब इस पैरा के खंड (क) के अधीन कोई आदे श ककया गया है तब राज्यपाल प्रश्नगत क्षेत्र के
प्रशासन के संबध
ं में , नया साधारण तनवातचन होने पर पररषद् के पन
ु गतठन के लंत्रबत रहने तक, इस पैरा के
खंड (ख) में तनहदत ष्ट कारत वाई कर सकेगा :
परं तु यह और कक, यथाक्स्थतत, क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् को राज्य के ववधान-मंडल के
समक्ष अपने ववचारों को रखने का अवसर हदए त्रबना इस पैरा के खंड (ख) के अधीन कोई कारत वाई नहीं की
जाएगी।
3
[(2) यहद राज्यपाल का ककसी समय यह समाधान हो जाता है कक ऐसी क्स्थतत उत्पन्न हो गई है
क्जसमें स्वशासी क्जले या स्वशासी प्रदे श का प्रशासन इस अनस
ु च
ू ी के उपबंधों के अनस
ु ार नहीं चलाया जा
सकता है तो वह, यथाक्स्थतत, क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् में तनहहत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी
या कोई कृत्य या शक्क्तयाँ, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, छह मास से अनधधक अवधध के ललए अपने हाथ में ले
सकेगा और यह घोषणा कर सकेगा कक ऐसे कृत्य या शक्क्तयाँ उक्त अवधध के दौरान ऐसे व्यक्क्त या
प्राधधकारी द्वारा प्रयोक्तव्य होंगी क्जसे वह इस तनलमर्त् ववतनहदतष्ट करे :
परं तु राज्यपाल आरं लभक आदे श का प्रवततन, अततररक्त आदे श या आदे शों द्वारा, एक बार में छह
मास से अनधधक अवधध के ललए बढ़ा सकेगा।
__________________
1. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा पैरा 16 त्रत्रपुरा
और लमजोरम राज्यों को लागू करने में तनम्नललणखत रूप से संशोधधत ककया गया है :
‘(क) उपपैरा (1) के खंड (ख) में आने वाले “राज्य के ववधान-मंडल के पूवत अनुमोदन से” शब्दों
और दस ू रे परन्तुक का लोप ककया जाएगा;
(ख) उपपैरा (3) के स्थान पर तनम्नललणखत उपपैरा रखा जाएगा, अथातत ् :-
“(3) इस पैरा के उपपैरा (1) या उपपैरा (2) के अधीन ककया गया प्रत्येक आदे श, उसके ललए जो
कारण है उनके सहहत, राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा।”’।
2. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) पैरा 16 को उपपैरा (1) के रूप में पुनसंख्यांककत ककया गया।
3. आसाम पुनगतठन (मेघालय) अधधतनयम, 1969 (1969 का 55) की धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) अंत:स्थावपत|
(3) इस पैरा के उपपैरा (2) के अधीन ककया गया प्रत्येक आदे श, उसके ललए जो कारण हैं उनके
सहहत, राज्य के ववधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा और वह आदे श उस तारीख से क्जसको राज्य ववधान-
मंडल उस आदे श के ककए जाने के पश्चात ् प्रथम बार बैठता है , तीस हदन की समाक्प्त पर प्रवततन में नहीं
रहे गा यहद उस अवधध की समाक्प्त से पहले राज्य ववधान-मंडल द्वारा उसका अनम
ु ोदन नहीं कर हदया
जाता है ।]
17. स्िशासी क्जलों में ननिामचन-क्षेत्रों के बनाने में ऐसे क्जलों से क्षेत्रों का अपिजमन - राज्यपाल,
[असम या मेघालय 2[या त्रत्रपरु ा 3[या लमजोरम) की ववधानसभा] के तनवातचनों के प्रयोजनों के ललए, आदे श
1

द्वारा, यह घोषणा कर सकेगा कक, 1[यथाक्स्थतत, असम या मेघालय 2[(या त्रत्रपरु ा 3[या लमजोरम]] राज्य में ]
ककसी स्वशासी क्जले के भीतर का कोई क्षेत्र ऐसे ककसी क्जले के ललए ववधान सभा में आरक्षक्षत स्थान या
स्थानों को भरने के ललए ककसी तनवातचन-क्षेत्र का भाग नहीं होगा, ककं तु ववधान सभा में इस प्रकार आरक्षक्षत
न ककए गए ऐसे स्थान या स्थानों को भरने के ललए आदे श में ववतनहदत ष्ट तनवातचन-क्षेत्र का भाग होगा।

266
4
[परन्तु इस पैरा की कोई बात बोडोलैण्ड राज्य क्षेत्रीय क्जला को लागू नहीं होगी|]
18. 5[* * * * *]
19. संक्रमणकालीन उपबंध - (1) राज्यपाल, इस संववधान के प्रारं भ के पश्चात ् यथासंभव शीघ्र, इस
अनस
ु च
ू ी के अधीन राज्य में प्रत्येक स्वशासी क्जले के ललए क्जला पररषद् के गठन के ललए कारत वाई करे गा
और जब तक ककसी स्वशासी क्जले के ललए क्जला पररषद् इस प्रकार गहठत नहीं की जाती है तब तक ऐसे
क्जले का प्रशासन राज्यपाल में तनहहत होगा और ऐसे क्जले के भीतर के क्षेत्रों के प्रशासन को इस अनस
ु च
ू ी
के पव
ू ग
त ामी उपबंधों के स्थान पर तनम्नललणखत उपबंध लागू होंगे, अथातत:-्
(क) संसद् का या उस राज्य के ववधान-मंडल का कोई अधधतनयम ऐसे क्षेत्र को तब तक लागू नहीं
होगा जब तक राज्यपाल, लोक अधधसच
ू ना द्वारा, इस प्रकार तनदे श नहीं दे दे ता है और
राज्यपाल ककसी अधधतनयम के संबध
ं में ऐसा तनदे श दे ते समय यह तनदे श दे सकेगा कक वह
अधधतनयम ऐसे क्षेत्र या उसके ककसी ववतनहदतष्ट भाग को लागू होने में ऐसे अपवादों या
उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठीक समझता है ;
(ख) राज्यपाल ऐसे ककसी क्षेत्र की शांतत और सश ु ासन के ललए ववतनयम बना सकेगा और इस
प्रकार बनाए गए ववतनयम संसद् के या उस राज्य के ववधान-मंडल के ककसी अधधतनयम का
या ककसी ववद्यमान ववधध का, जो ऐसे क्षेत्र को तत्समय लागू है , तनरसन या संशोधन कर
सकेंगे।
___________________
1. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) 'असम की ववधान सभा' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (उनचासवां संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्थावपत।
3. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्थावपत।
4. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 2003 (2003 का 44) द्वारा (7-9-2003 से)
असम राज्य में लागू होने के ललए परन्तुक को अंत:स्थावपत ककया जाएगा|
5. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 18 का लोप ककया गया।

(2) राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उपपैरा (1) के खंड (क) के अधीन हदया गया कोई तनदे श इस
प्रकार हदया जा सकेगा कक उसका भत
ू लक्षी प्रभाव हो।
(3) इस पैरा के उपपैरा (1) के खंड (ख) के अधीन बनाए गए सभी ववतनयम राष्रपतत के समक्ष
तरु ं त प्रस्तत
ु ककए जाएँगे और जब तक वह उन पर अनम
ु तत नहीं दे दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव
नहीं होगा।
1
[(4) इस अधधतनयम के प्रारं भ के बाद यथासम्भव शीघ्र असम में बोडोलैण्ड राज्य क्षेत्रीयक्जला
अन्तररम कायतवाहक पररषद् का गठन राज्यपाल द्वारा बोडो आन्दोलन के नेताओं में से ककया जाएगा,
क्जनमे समझौता ज्ञापन के हस्ताक्षरकर्त्ात शालमल होंगे और उस क्षेत्र में गैर जनजातीय समद
ु ाय को पयातप्त
प्रतततनधधत्व हदया जाएगा:
परन्तु अन्तररम पररषद् छह माह की अवधध के ललए होगी, क्जसके दौरान पररषद् के तनवातचन को
आयोक्जत ककये जाने का प्रयास ककया जाएगा|

267
स्पष्ट्टीकरण – इस उप-पैरा के प्रयोजनों के ललए अलभव्यक्क्त “समझौता ज्ञापन” से वह ज्ञापन
अलभप्रेत है , क्जस पर भारत सरकार, असम सरकार और बोडो ललबरे शन टाइगसत के बीच फरवरी, 2003 के
दसवें हदन हस्ताक्षर ककया गया था|]
2
20. जनजानत क्षेत्र - (1) नीचे दी गई सारणी के भाग 1, भाग 2 3[,(भाग 2-क) और भाग 3 में
ववतनहदतष्ट क्षेत्र क्रमशः असम राज्य, मेघालय राज्य 3[त्रत्रपरु ा राज्य] और लमजोरम 4[राज्य] के जनजातत क्षेत्र
होंगे।
(2) 5[(नीचे दी गई सारणी के भाग 1, भाग 2 या भाग 3 में ] ककसी क्जले के प्रतत तनदे श का यह अथत
लगाया जाएगा कक वह पव
ू ोर्त्र क्षेत्र (पन
ु गतठन) अधधतनयम, 1971 की धारा 2 के खंड (ख) के अधीन तनयत
ककए गए हदन से ठीक पहले ववद्यमान उस नाम के स्वशासी क्जले में समाववष्ट राज्यक्षेत्रों के प्रतत तनदे श
है :
परं तु इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 के उपपैरा (1) के खंड (ङ) और खंड (च), पैरा 4, पैरा 5, पैरा 6, पैरा 8 के
उपपैरा (2), उपपैरा (3) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (घ) और उपपैरा (4) तथा पैरा 10 के उपपैरा (2) के
खंड (घ) के प्रयोजनों के ललए, लशलांग नगरपाललका में समाववष्ट क्षेत्र के ककसी भाग के बारे में यह नहीं
समझा जाएगा कक वह 6[खासी पहाड़ी क्जले] की भीतर है ।
3
[(3) नीचे दी गई सारणी के भाग 2क में “त्रत्रपरु ा जनजातत क्षेत्र क्जला” के प्रतत तनदे श का यह अथत
लगाया जाएगा कक वह त्रत्रपरु ा जनजातत क्षेत्र स्वशासी क्जला पररषद् अधधतनयम, 1979 की पहली अनस
ु च
ू ी में
ववतनहदतष्ट जनजातत क्षेत्रों में समाववष्ट राज्यक्षेत्र के प्रतत तनदे श है ।]
__________________
1. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 2003 (2003 का 44) द्वारा (7-9-2003 से) असम
राज्य में लागू होने के ललया उपपैरा (4) को अंत:स्थावपत ककया गया|
2. पूवोर्त्र क्षेत्र (पुनगतठन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 20 और 20-क के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान (उनचासवां संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्थावपत।
4. लमजोरम राज्य अधधतनयम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “संघ राज्यक्षेत्र”
के स्थान पर प्रततस्थावपत|
5. संववधान (उनचासवां संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) प्रततस्थावपत|
6. मेघालय सरकार के अधधसूचना सं० डी.सी.ए. 31/72/11, तारीख 14 जून, 1973, मेघालय का
राजपत्र, भाग V-क, तारीख 23-6-1973 प.ृ 200 द्वारा प्रततस्थावपत|

सारणी
भाग 1

1. उर्त्री कछार पहाड़ी क्जला।

2. 1[काबी आंगलांग क्जला।]

2
[बोडोलैंड वनक्षेत्र क्जला|]

268
भाग 2

3
[1. खासी पहाड़ी क्जला।

2. जयंततया पहाड़ी क्जला।)

3. गारो पहाड़ी क्जला।

4
[भाग 2-क

त्रत्रपरु ा जनजातत क्षेत्र क्जला।]

भाग 3

5
[* * * *]
6
[1. चकमा क्जला|
7
[2. मारा क्जला|
3. लाई क्जला|]]
[20-क. लमजो क्जला पररषद् का विघटन - (1) इस अनस
8
ु च
ू ी में ककसी बात के होते हुए भी, ववहहत
तारीख से ठीक पहले ववद्यमान लमजो क्जले की क्जला पररषद् (क्जसे इसमें इसके पश्चात ् लमजो क्जला
पररषद् कहा गया है) ववघहटत हो जाएगी और ववद्यमान नहीं रह जाएगी।
(2) लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक, एक या अधधक आदे शों द्वारा, तनम्नललणखत सभी या ककन्हीं
ववषयों के ललए उपबंध कर सकेगा, अथातत ् :-
(क) लमजो क्जला पररषद् की आक्स्तयों, अधधकारों और दातयत्वों का (क्जनके अंतगतत उसके द्वारा की
गई ककसी संववदा के अधीन अधधकार और दातयत्व है ) पण
ू त
त ः या भागतः संघ को या ककसी
अन्य प्राधधकारी को अंतरण;
(ख) ककन्हीं ऐसी ववधधक कायतवाहहयों में , क्जनमें लमजो क्जला पररषद् एक पक्षकार है , लमजो क्जला
पररषद् के स्थान पर संघ का या ककसी अन्य प्राधधकारी का पक्षकार के रूप में रखा जाना
अथवा संघ का या ककसी अन्य प्राधधकारी का पक्षकार के रूप में जोड़ा जाना;
(ग) लमजो क्जला पररषद् के ककन्हीं कमतचाररयों का संघ को या ककसी अन्य प्राधधकारी को अथवा
उसके द्वारा अंतरण या पन
ु तनतयोजन, ऐसे अंतरण या पन
ु तनतयोजन के पश्चात ् उन कमतचाररयों
को लागू होने वाले सेवा के तनबंधन और शतें;
__________________
1. असम सरकार द्वारा तारीख 14-10-1976 की अधधसूचना सं.टी.ए.डी./आर./1165/74/47 द्वारा
“लमककर पहाड़ी क्जला” के स्थान पर प्रततस्थावपत|
2. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 2003 (2003 का 4) की धारा 2 द्वारा (7-9-
2003 से) अंत:स्थावपत|
3. मेघालय सरकार के अधधसूचना सं डी.सी.ए. 31/72/11, तारीख 14 जून, 1973, मेघालय का
राजपत्र, भाग V-क, तारीख 23-6-1973 प.ृ 200 द्वारा प्रततस्थावपत|

269
4. संववधान (उनचासवां संशोधन) अधधतनयम, 1984 की धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्थावपत।
5. संघ राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से)
“लमजो क्जला” शब्दों का लोप ककया गया।
6. लमजोरम का राजपत्र, 1972, तारीख 5 मई, 1972, क्जल्द 1, भाग II, पष्ृ ठ 17 में प्रकालशत, लमजोरम
क्जला पररषद् (प्रकीणत उपबंध) आदे श, 1972 द्वारा (29-4-1972 से) अंतःस्थावपत।
7. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा क्रम सं० 2
और 3 और उनसे संबधं धत प्रववक्ष्टयों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
8. संघ राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से),
पैरा 20क के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(घ) लमजो क्जला पररषद् द्वारा बनाई गई और उसके ववघटन से ठीक पहले प्रवर्त्
ृ ककन्हीं ववधधयों
का, ऐसे अनक
ु ू लनों और उपांतरणों के, चाहे वे तनरसन के रूप में हों या संशोधन के रूप में,
अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस तनलमर्त् ककए जाएं, तब तक प्रवर्त्
ृ बना रहना जब तक
ककसी सक्षम ववधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा ऐसी ववधधयों में पररवततन,
तनरसन या संशोधन नहीं कर हदया जाता है ;
(ङ) ऐसे आनष
ु धं गक, पाररणालमक और अनप
ु रू क ववषय जो प्रशासक आवश्यक समझे।
स्पष्ट्टीकरण - इस पैरा में और इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 20ख में , 'ववहहत तारीख' पद से वह तारीख
अलभप्रेत है क्जसको लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र की ववधान सभा का, संघ राज्यक्षेत्र शासन अधधतनयम, 1963 के
उपबंधों के अधीन और उनके अनस
ु ार, सम्यक् रूप से गठन होता है ।]
पैराग्राफ 20ख संघ राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 83) धारा 13
द्वारा प्रततस्थावपत|
1
20ख*. लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र में स्िशासी प्रदे शों का स्िशासी क्जले होना और उसके पाररणालमक
संक्रमणकालीन उपबंध - (1) इस अनस ु च
ू ी में ककसी बात के होते हुए भी, -
(क) लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र में ववहहत तारीख से ठीक पहले ववद्यमान प्रत्येक स्वशासी प्रदे श उस
तारीख को और से उस संघ राज्यक्षेत्र का स्वशासी क्जला (क्जसे इसमें इसके पश्चात ् तत्स्थानी नया क्जला
कहा गया है ) हो जाएगा और उसका प्रशासक, एक या अधधक आदे शों द्वारा, तनदे श दे सकेगा कक इस
अनस
ु च
ू ी के पैरा 20 में (क्जसके अंतगतत उस पैरा से संलग्न सारणी का भाग 3 है) ऐसे पाररणालमक संशोधन
ककए जाएँगे जो इस खंड के उपबंधों को प्रभावी करने के ललए आवश्यक है और तब उक्त पैरा और उक्त
भाग 3 के बारे में यह समझा जाएगा कक उनका तद्नस
ु ार संशोधन कर हदया गया है ;
__________________
1. संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1995 (1995 का 42) की धारा 2 द्वारा असम में लागू
होने के ललए पैरा 20ख के पश्चात ् तनम्नललणखत पैरा अंतःस्थावपत ककया गया, अथातत ् :-
“20खक. राज्यपाल द्वारा अपने कृत्यों के तनवतहन में वैवेककक शक्क्तयों का प्रयोग- राज्यपाल, इस
अनुसूची के पैरा 1 के उपपैरा (2) और उपपैरा (3), पैरा 2 के उपपैरा (1), उपपैरा (6), उपपैरा (6क) के
पहले परं तुक को छोड़कर और उपपैरा (7), पैरा 3 के उपपैरा (3), पैरा 4 के उपपैरा (4), पैरा 5, पैरा 6
के उपपैरा (1), पैरा 7 के उपपैरा (2), पैरा 8 के उपपैरा (4), पैरा 9 के उपपैरा (3), पैरा 10 के उपपैरा
(3), पैरा 14 के उपपैरा (1), पैरा 15 के उपपैरा (1) और पैरा 16 के उपपैरा (1) और उपपैरा (2) के
अधीन अपने कृत्यों के तनवतहन में , मंत्रत्रपररषद् और, यथाक्स्थतत, उर्त्री कछार पहाड़ी स्वशासी पररषद्

270
या काबी आंगलांग पहाड़ी स्वशासी पररषद् से परामशत करने के पश्चात ् ऐसी कारतवाई करे गा, जो वह
स्ववववेकानुसार आवश्यक मानता है ।”।
संववधान छठी अनुसूची (संशोधन) अधधतनयम, 1988 (1988 का 67) की धारा 2 द्वारा त्रत्रपुरा और
लमजोरम राज्यों को लागू करने में , पैरा 20ख के पश्चात ् तनम्नललणखत पैरा अंतःस्थावपत ककया गया
है , अथातत ् :-
“20खक. राज्यपाल द्वारा अपने कृत्यों के तनवतहन में वैवेककक शक्क्तयों का प्रयोग- राज्यपाल, इस
अनुसूची के पैरा 1 के उपपैरा (2) और उपपैरा (3), पैरा 2 के उपपैरा (1) और उपपैरा (7), पैरा 3 का
उपपैरा (3), पैरा 4 का उपपैरा (4), पैरा 5, पैरा 6 का उपपैरा (1), पैरा 7 का उपपैरा (2), पैरा 9 का
उपपैरा (3), पैरा 14 का उपपैरा (1), पैरा 15 का उपपैरा (1) और पैरा 16 के उपपैरा (1) और उपपैरा
(2) के अधीन अपने कृत्यों के तनवतहन में , मंत्रत्रपररषद् से, और यहद वह आवश्यक समझे तो संबधं धत
क्जला पररषद् या प्रादे लशक पररषद् से, परामशत करने के पश्चात ् ऐसी कारत वाई करे गा जो वह
स्ववववेकानुसार आवश्यक समझे।”।
पैराग्राफ 20-ख संघ राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13
द्वारा (2-4-1974 से) प्रततस्थावपत|

(ख) लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र में ववहहत तारीख से ठीक पहले ववद्यमान स्वशासी प्रदे श की प्रत्येक
प्रादे लशक पररषद् (क्जसे इसमें इसके पश्चात ् ववद्यमान प्रादे लशक पररषद् कहा गया है ) उस
तारीख को और से और जब तक तत्स्थानी नए क्जले के ललए पररषद् का सम्यक रूप से
गठन नहीं होता है तब तक, उस क्जले की क्जला पररषद् (क्जसे इसमें इसके पश्चात ्
तत्स्थानी नई क्जला पररषद् कहा गया है ) समझी जाएगी|
(2) ववद्यमान प्रादे लशक पररषद् का प्रत्येक तनवातधचत या नामतनदे लशत सदस्य तत्स्थानी नई क्जला
पररषद् के ललए, यथाक्स्थतत, तनवातधचत या नामतनदे लशत समझा जाएगा और तब तक पद धारण करे गा
जब तक इस अनस
ु च
ू ी के अधीन तत्स्थानी नए क्जले के ललए क्जले पररषद् का सम्यक् रूप से गठन नहीं
होता है |
(3) जब तक तत्स्थानी नई क्जला पररषद् द्वारा इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 2 के उपपैरा (7) और पैरा
4 के उपपैरा (4) के अधीन तनयम नहीं बनाए जाते है तब तक ववद्यमान प्रादे लशक पररषद् द्वारा उक्त
उपबंधों के अधीन बनाए गए तनयम, जो ववहहत तारीख से ठीक पहले प्रवर्त्
ृ है , तत्स्थानी नई क्जला
पररषद् के संबध ं में ऐसे अनकु ू लनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे जो लमजोरम संघ
राज्यक्षेत्र के प्रशासक द्वारा उनमें ककए जाएं|
(4) लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक, एक या अधधक आदे शों द्वारा, तनम्नललणखत सभी या
ककन्हीं ववषयों के ललए उपबंध कर सकेगा, अथातत ् :-
(क) ववद्यमान प्रादे लशक पररषद् की आक्स्तयों, अधधकारों और दातयत्यों का (क्जनके अंतगतत उसके
द्वारा की गई ककसी संववदा के अधीन अधधकार और दातयत्व है ) पण
ू त
त ः या भागतः
तत्स्थानी नई क्जला पररषद् को अंतरण ;
(ख) ककन्हीं ऐसी ववधधक कायतवाहहयों में , क्जनमे ववद्यमान प्रादे लशक पररषद् एक पक्षकार है ,
ववद्यमान प्रादे लशक पररषद् के स्थान पर तत्स्थानी नई क्जला पररषद् का पक्षकार के रूप में
रखा जाना;

271
(ग) ववद्यमान प्रादे लशक पररषद् के ककन्हीं कमतचाररयों का तत्स्थानी नई क्जला पररषद् को अथवा
उसके द्वारा अंतरण या पन
ु तनतयोजन ; ऐसे अंतरण या पन
ु तनतयोजन के पश्चात ् उन
कमतचाररयों को लागू होने वाले सेवा के तनबंधन और शते ;
(घ) ववद्यमान प्रादे लशक पररषद् द्वारा बनाई गई और ववहहत तारीख से ठीक पहले प्रवर्त्
ृ ककन्हीं
ववधधयों का, ऐसे अनक
ु ू लनों और उपांतरणों के, चाहे वे तनरसन के रूप में हों या संशोधन
के रूप में , अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस तनलमर्त् ककए जाएं, तब तक प्रवर्त्
ृ बना
रहना जब तक सक्षम ववधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधधकारी द्वारा ऐसी ववधधयों में
पररवततन, तनरसन या संशोधन नहीं कर हदया जाता है ;
(ङ) ऐसे आनष
ु धं गक, पररणालमक और अनप
ु रू क ववषय जो प्रशासक आवश्यक समझे|
[20.-ग. ननिमचन – इस तनलमर्त् बनाए गए ककसी उपबंध के अधीन रहते हुए, इस अनस
1
ु च
ू ी के
उपबंध लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे-
__________________
1. संघ राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) अधधतनयम, 1971 (1971 का 83) की धारा 13 द्वारा (29-4-
1972 से) प्रततस्थावपत|

(1) मानो राज्य के राज्यपाल और राज्य की सरकार के प्रतत तनदे श अनच्


ु छे द 239 के अधीन
तनयक्
ु त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासन के प्रतत तनदे श हों ; (“राज्य की सरकार” पद के लसवाय)
राज्य के प्रतत तनदे श लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र के प्रतत तनदे श हों और राज्य ववहान-मंडल के
प्रतत तनदे श लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र की ववधान सभा के प्रतत तनदे श हों ;
(2) मानो-
(क) पैरा 4 के उपपैरा (5) में संबधं धत राज्य की सरकार से परामशत करने के उपबंध का लोप कर
हदया गया है ;
(ख) पैरा 6 के उपपैरा (2) में , “क्जस पर राज्य की कायतपाललका शक्क्त का ववस्तार है ”, शब्दों के
स्थान पर “क्जसके संबध
ं में लमजोरम संघ राज्यक्षेत्र की ववधान सभा को ववधधयां बनाने की
शक्क्त है ” शब्द रख हदए गए हों ;
(ग) पैरा 13 में , “अनच्
ु छे द 202 के अधीन” शब्दों और अंको का लोप कर हदया गया हों|]
21. अनस
ु च
ू ी का संशोधन – (1) संसद्, समय-समय पर ववधध द्वारा, इस अनस
ु च
ू ी के उपबंधों में
से ककसी का, पररवधतन, पररवततन या तनरसन के रूप में संशोधन कर सकेगी और जब अनस
ु च
ू ी का इस
प्रकार संशोधन ककया जाता है तब इस संववधान में इस अनस
ु च
ू ी के प्रतत ककसी तनदे श का यह अथत
लगाया जाएगा कक वह इस प्रकार संशोधधत ऐसी अनस
ु च
ू ी के प्रतत तनदे श है |
(2) ऐसी कोई ववधध जो इस पैरा के उपपैरा (1) में उक्ल्लणखत है , इस संववधान के अनच्
ु छे द 368
के प्रयोजनों के ललए इस संववधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी|

272
सातिीं अनस
ु च
ू ी
[अनच्
ु छे द 246]
सच
ू ी 1
संघ सच
ू ी
1. भारत की और उसके प्रत्येक भाग की रक्षा, क्जसके अंतगतत रक्षा के ललए तैयारी और ऐसे सभी
कायत हैं, जो यद्
ु ध के समय यद्
ु ध के संचालन और उसकी समाक्प्त के पश्चात ् प्रभावी सैन्यववयोजन में
सहायक हों।
2. नौसेना, सेना और वायस
ु ेना; संघ के अन्य सशस्त्र बल।
1
[2क. संघ के ककसी सशस्त्र बल या संघ के तनयंत्रण के अधीन ककसी अन्य बल का या उसकी
ककसी टुकड़ी या यतू नट का ककसी राज्य में लसववल शक्क्त की सहायता में अलभतनयोजन; ऐसे अलभतनयोजन
के समय ऐसे बलों के सदस्यों की शक्क्तयाँ, अधधकाररता, ववशेषाधधकार और दातयत्व।
3. छावनी क्षेत्रों का पररसीमन, ऐसे क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन, ऐसे क्षेत्रों के भीतर छावनी
प्राधधकाररयों का गठन और उनकी शक्क्तयाँ तथा ऐसे क्षेत्रों में गह
ृ वास-सवु वधा का ववतनयमन (क्जसके
अंतगतत भाटक का तनयंत्रण है )।
4. नौसेना, सेना और वायस
ु न
े ा संकमत।
5. आयध
ु , अग्रयायध
ु , गोलाबारूद और ववस्फोटक।
6. परमाणु ऊजात और उसके उत्पादन के ललए आवश्यक खतनज संपवर्त् स्त्रोत।
7. संसद् द्वारा ववधध द्वारा रक्षा के प्रयोजन के ललए या यद्
ु ध के संचालन के ललए आवश्यक
घोवषत ककए गए उद्योग।
8. केंद्रीय आसच
ू ना और अन्वेषण ब्यरू ो।
9. रक्षा, ववदे श कायत या भारत की सरु क्षा संबध
ं ी कारणों से तनवारक तनरोध; इस प्रकार तनरोध में रखे
गए व्यक्क्त।
10. ववदे श कायत, सभी ववषय क्जनके द्वारा संघ का ककसी ववदे श से संबध
ं होता है ।
11. राजनतयक, कौंसलीय और व्यापाररक प्रतततनधधत्व।
12. संयक्
ु त राष्र संघ।
13. अंतरराष्रीय सम्मेलनों, संगमों और अन्य तनकायों में भाग लेना और उनमें ककए गए ववतनश्चयों
का कायातन्वयन।
14. ववदे शों से संधध और करार करना और ववदे शों से की गई संधधयों, करारों और अलभसमयों का
कायातन्वयन।
15. यद्
ु ध और शांतत।
16. वैदेलशक अधधकाररता।
17. नागररकता, दे शीयकरण और अन्यदे शीय।
18. प्रत्यपतण।
_________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977) से
अंत:स्थावपत|

273
19. भारत में प्रवेश और उसमें से उत्प्रवास और तनष्कासन; पासपोटत और वीजा।
20. भारत से बाहर के स्थानों की तीथतयात्राएँ।
21. खुले समद्र
ु या आकाश में की गई दस्यत
ु ा और अपराध; स्थल या खुले समद्र
ु या आकाश में
राष्रों की ववधध के ववरुद्ध ककए गए अपराध।
22. रे ल।
23. ऐसे राजमागत क्जन्हें संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन राष्रीय राजमागत
घोवषत ककया गया है ।
24. यंत्र नोहदत जलयानों के संबध
ं में ऐसे अंतदे शीय जलमागों पर पोतपररवहन और नौपररवहन जो
संसद् द्वारा ववधध द्वारा राष्रीय जलमागत घोवषत ककए गए हैं; ऐसे जलमागों पर मागत का तनयम।
25. समद्र
ु ी पोतपररवहन और नौपररवहन, क्जसके अंतगतत ज्वारीय जल में पोतपररवहन और
नौपररवहन है ; वाणणक्ज्यक समद्र
ु ी बेड़े के ललए लशक्षा और प्रलशक्षण की व्यवस्था तथा राज्यों और अन्य
अलभकरणों द्वारा दी जाने वाली ऐसी लशक्षा और प्रलशक्षण का ववतनयमन।
26. प्रकाशस्तंभ, क्जनके अंतगतत प्रकाशपोत, बीकन तथा पोतपररवहन और वायय
ु ानों की सरु क्षा के
ललए अन्य व्यवस्था है ।
27. ऐसे पर्त्न क्जन्हें संसद् द्वारा बनाई गई ववधध या ववद्यमान ववधध द्वारा या उसके अधीन
महापर्त्न घोवषत ककया जाता है , क्जसके अंतगतत उनका पररसीमन और उनमें पर्त्न प्राधधकाररयों का गठन
और उनकी शक्क्तयाँ हैं।
28. पर्त्न करतीन, क्जसके अंतगतत उससे संबद्ध अस्पताल हैं; नाववक और समद्र
ु ीय अस्पताल।
29. वायम
ु ागत, वायय
ु ान और ववमान चालन; ववमानक्षेत्रों की व्यवस्था; ववमान यातायात और
ववमानक्षेत्रों का ववतनयमन और संगठन; वैमातनक लशक्षा और प्रलशक्षण के ललए व्यवस्था तथा राज्यों और
अन्य अलभकरणों द्वारा दी जाने वाली ऐसी लशक्षा और प्रलशक्षण का ववतनयमन।
30. रे ल, समद्र
ु या वायु मागत द्वारा अथवा यंत्र नोहदत जलयानों में राष्रीय जलमागों द्वारा यात्रत्रयों
और माल का वहन।
31. डाक-तार; टे लीफोन, बेतार, प्रसारण और वैसे ही अन्य संचार साधन।
32. संघ की संपवर्त् और उससे राजस्व, ककं तु ककसी 1[***] राज्य में क्स्थत संपवर्त् के संबध
ं में , वहां
तक के लसवाय जहां तक संसद् ववधध द्वारा अन्यथा उपबंध करे , उस राज्य के ववधान के अधीन रहते हुए।
33. 2[* * * * *]
34. दे शी राज्यों के शासकों की संपदा के ललए प्रततपाल्य अधधकरण।
35. संघ का लोकऋण।
__________________
1. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के
भाग क या भाग ख में ववतनहदत ष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप ककया गया।
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा प्रववक्ष्ट 33 का लोप ककया गया।

36. करे सी, लसक्का तनमातण और वैध तनववदा, ववदे शी मद्र


ु ा।
37. ववदे शी ऋण।
38. भारतीय ररजवत बैंक।
39. डाकघर बचत बैंक।

274
40. भारत सरकार या ककसी राज्य की सरकार द्वारा संचाललत लाटरी।
41. ववदे शों के साथ व्यापार और वाणणज्य; सीमा शल्
ु क सीमांतों के आर-पार आयात और तनयातत;
सीमा शल्
ु क सीमांतों का पररतनश्चय।
42. अंतरराक्ज्यक व्यापार और वाणणज्य।
43. व्यापार तनगमों का, क्जनके अंतगतत बैंककारी, बीमा और ववर्त्ीय तनगम हैं ककं तु सहकारी सोसाइटी
नहीं हैं, तनगमन, ववतनयमन और पररसमापन।
44. ववश्वववद्यालयों को छोड़कर ऐसे तनगमों का, चाहे वे व्यापार तनगम हों या नहीं, क्जनके उद्दे श्य
एक राज्य तक सीलमत नहीं हैं, तनगमन, ववतनयमन और पररसमापन।
45. बैंककारी।
46. ववतनमय-पत्र, चेक, वचनपत्र और वैसी ही अन्य ललखतें ।
47. बीमा।
48. स्टॉक एक्सचें ज और वायदा बाजार।
49. पेटेंट, अववष्कार और डडजाइन; प्रततललप्याधधकार; व्यापार धचह्न और पण्य वस्तु धचह्न।
50. बाटों और मापों के मानक तनयत करना।
51. भारत से बाहर तनयातत ककए जाने वाले या एक राज्य से दस
ू रे राज्य को पररवहन ककए जाने
वाले माल की क्वाललटी के मानक तनयत करना।
52. वे उद्योग क्जनके संबध
ं में संसद् ने ववधध द्वारा घोषणा की है कक उन पर संघ का तनयंत्रण
लोकहहत में समीचीन है ।
53. तेलक्षेत्रों और खतनज तेल संपतत स्त्रोतों का ववतनयमन और ववकास; पेरोललयम और पेरोललयम
उत्पाद; अन्य द्रव और पदाथत क्जनके ववषय में संसद् ने ववधध द्वारा घोषणा की है कक वे खतरनाक रूप से
ज्वलनशील हैं।
54. उस सीमा तक खानों का ववतनयमन और खतनजों का ववकास क्जस तक संघ के तनयंत्रण के
अधीन ऐसे ववतनयमन और ववकास को संसद्, ववधध द्वारा, लोकहहत में समीचीन घोवषत करे ।
55. खानों और तेलक्षेत्रों में श्रम और सरु क्षा का ववतनयमन।
56. उस सीमा तक अंतरराक्ज्यक नहदयों और नदी दन
ू ों का ववतनयमन और ववकास क्जसतक संघ
के तनयंत्रण के अधीन ऐसे ववतनयमन और ववकास को संसद्, ववधध द्वारा, लोकहहत में समीचीन घोवषत करे ।
57. राज्यक्षेत्रीय सागरखंड से परे मछली पकड़ना और मीन क्षेत्र।
58. संघ के अलभकरणों द्वारा नमक का ववतनमातण, प्रदाय और ववतरण; अन्य अलभकरणों द्वारा ककए
गए नमक के ववतनमातण, प्रदाय और ववतरण का ववतनयमन और तनयंत्रण।
59. अफीम की खेती, उसका ववतनमातण और तनयातत के ललए ववक्रय।
60. प्रदशतन के ललए चलधचत्र कफल्मों की मंजरू ी।
61. संघ के कमतचाररयों से संबधं धत औद्योधगक वववाद।
62. इस संववधान के प्रारं भ पर राष्रीय पस्
ु तकालय, भारतीय संग्रहालय, इंपीररयल यद्
ु ध संग्रहालय,
ववक्टोररया स्मारक और भारतीय यद्
ु ध स्मारक नामों से ज्ञात संस्थाएं और भारत सरकार द्वारा पण
ू त
त ः या
भागतः ववर्त्पोवषत और संसद् द्वारा, ववधध द्वारा, राष्रीय महत्व की घोवषत वैसी ही कोई अन्य संस्था।

275
63. इस संववधान के प्रारं भ पर काशी हहन्द ू ववश्वववद्यालय, अलीगढ़ मक्ु स्लम ववश्वववद्यालय और
[हदल्ली ववश्वववद्यालय] नामों से ज्ञात संस्थाएँ; 1[अनच्
1
ु छे द 371-ङ के अनस
ु रण में स्थावपत ववश्वववद्यालय;]
संसद् द्वारा, ववधध द्वारा, राष्रीय महत्व की घोवषत कोई अन्य संस्था।
64. भारत सरकार द्वारा पण
ू त
त ः या भागतः ववर्त्पोवषत और संसद् द्वारा, ववधध द्वारा राष्रीय महत्व
की घोवषत वैज्ञातनक या तकनीकी लशक्षा संस्थाएं।
65. संघ के अलभकरण और संस्थाएँ जो-
(क) ववृ र्त्क, व्यावसातयक या तकनीकी प्रलशक्षण के ललए हैं क्जसके अंतगतत पलु लस अधधकाररयों का
प्रलशक्षण है ; या
(ख) ववशेष अध्ययन या अनस
ु ध
ं ान की अलभवद्
ृ धध के ललए हैं; या
(ग) अपराध के अन्वेषण या पता चलाने में वैज्ञातनक या तकनीकी सहायता के ललए हैं।
66. उच्चतर लशक्षा या अनस
ु ध
ं ान संस्थाओं में तथा वैज्ञातनक और तकनीकी संस्थाओं में मानकों का
समन्वय और अवधारण।
67. 2[संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन] राष्रीय महत्व के 2[घोवषत] प्राचीन और
ऐततहालसक संस्मारक और अलभलेख तथा परु ातत्वीय स्थल और अवशेष।
68. भारतीय सवेक्षण, भारतीय भव
ू ज्ञ
ै ातनक, वनस्पतत ववज्ञान, प्राणी ववज्ञान और मानव शास्त्र
सवेक्षण; मौसम ववज्ञान संगठन।
69. जनगणना।
70. संघ लोक सेवाएँ; अणखल भारतीय सेवाएँ; संघ लोक सेवा आयोग।
71. संघ की पें शनें, अथातत ् भारत सरकार द्वारा या भारत की संधचत तनधध में से संदेय पें शनें।
72. संसद् के ललए, राज्यों के ववधान-मंडलों के ललए तथा राष्रपतत और उपराष्रपतत के पदों के
ललए तनवातचन; तनवातचन आयोग।
73. संसद् सदस्यों के, राज्य सभा के सभापतत और उपसभापतत के तथा लोक सभा के अध्यक्ष और
उपाध्यक्ष के वेतन और भर्त्े।
74. संसद् के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और सलमततयों की शक्क्तयाँ,
ववशेषाधधकार और उन्मक्ु क्तयाँ; संसद् की सलमततयों या संसद् द्वारा तनयक्
ु त आयोगों के समक्ष साक्ष्य दे ने
या दस्तावेज पेश करने के ललए व्यक्क्तयों को हाक्जर कराना।
__________________

1. संववधान (बर्त्ीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1973 की धारा 4 द्वारा (1-7-1974 से) “हदल्ली
ववश्वववद्यालय और” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा “संसद् द्वारा ववधध द्वारा घोवषत”
के स्थान पर प्रततस्थावपत।

75. राष्रपतत और राज्यपालों की उपलक्ब्धयाँ, भर्त्े, ववशेषाधधकार और अनप


ु क्स्थतत छुट्टी के संबध
ं में
अधधकार; संघ के मंत्रत्रयों के वेतन और भर्त्े; तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक के वेतन, भर्त्े और अनप
ु क्स्थतत छुट्टी
के संबध
ं में अधधकार और सेवा की अन्य शतें।
76. संघ के और राज्यों के लेखाओं की संपरीक्षा।

276
77. उच्चतम न्यायालय का गठन, संगठन, अधधकाररता और शक्क्तयाँ (क्जनके अंतगतत उस न्यायालय
का अवमान है ) और उसमें ली जाने वाली फीस; उच्चतम न्यायालय के समक्ष ववधध-व्यवसाय करने के
हकदार व्यक्क्त।
78. उच्च न्यायालयों के अधधकाररयों और सेवकों के बारे में उपबंधों को छोड़कर उच्च न्यायालयों
का गठन और संगठन (1) (क्जसके अंतगतत दीघातवकाश है ); उच्च न्यायालयों के समक्ष ववधध-व्यवसाय करने
के हकदार व्यक्क्त।
2
[79. ककसी उच्च न्यायालय की अधधकाररता का ककसी संघ राज्यक्षेत्र पर ववस्तारण और उससे
अपवजतन।]
80. ककसी राज्य के पलु लस बल के सदस्यों की शक्क्तयों और अधधकाररता का उस राज्य से बाहर
ककसी क्षेत्र पर ववस्तारण, ककं तु इस प्रकार नहीं कक एक राज्य की पलु लस उस राज्य से बाहर ककसी क्षेत्र में
उस राज्य की सरकार की सहमतत के त्रबना क्जसमें ऐसा क्षेत्र क्स्थत है , शक्क्तयों और अधधकाररता का प्रयोग
करने में समथत हो सके; ककसी राज्य के पलु लस बल के सदस्यों की शक्क्तयों और अधधकाररता का उस राज्य
से बाहर रे ल क्षेत्रों पर ववस्तारण।
81. अंतरराक्ज्यक प्रव्रजन; अंतरराक्ज्यक करं तीन।
82. कृवष-आय से लभन्न आय पर कर।
83. सीमाशल्
ु क क्जसके अंतगतत तनयातत शल्
ु क है ।
84. भारत में ववतनलमतत या उत्पाहदत तंबाकू और अन्य माल पर उत्पाद-शल्
ु क क्जसके अंतगतत-
(क) मानवीय उपभोग के ललए ऐल्कोहाली ललकर,
(ख) अफीम, इंडडयन हें प और अन्य स्वापक औषधधयाँ तथा स्वापक पदाथत,
नहीं हैं; ककं तु ऐसी औषधीय और प्रसाधन तनलमतततयाँ हैं क्जसमें ऐल्कोहाल या इस प्रववक्ष्ट के उपपैरा
(ख) का कोई पदाथत अंतववतष्ट है ।
85. तनगम कर।
86. व्यक्ष्टयों और कंपतनयों की आक्स्तयों के, क्जनके अंतगतत कृवष भलू म नहीं है , पँज
ू ी मल्
ू य पर कर;
कंपतनयों की पँज
ू ी पर कर।
87. कृवष भलू म से लभन्न संपवर्त् के संबध
ं में संपदा शल्
ु क।
88. कृवष भलू म से लभन्न संपवर्त् के उर्त्राधधकार के संबध
ं में शल्
ु क।
___________________
1. संववधान (पंद्रहवां संशोधन) अधधतनयम, 1963 की धारा 12 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थावपत।
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा प्रववक्ष्ट 79 के स्थान
पर प्रततस्थावपत।

89. रे ल, समद्र
ु या वायम
ु ागत द्वारा ले जाए जाने वाले माल या यात्रत्रयों पर सीमा कर; रे ल भाड़ों और
माल भाड़ों पर कर।
90. स्टॉक एक्सचें जों और वायदा बाजारों के संव्यवहारों पर स्टांप-शल्
ु क से लभन्न कर।
91. ववतनमयपत्रों, चेकों, वचनपत्रों, वहनपत्रों, प्रत्ययपत्रों, बीमा पालललसयों, शेयरों के अंतरण, डडबेंचरों,
परोक्षक्षयों और प्राक्प्तयों के संबध
ं में स्टांप-शल्
ु क की दर।
92. समाचारपत्रों के क्रय या ववक्रय और उनमें प्रकालशत ववज्ञापनों पर कर।

277
1
[92क. समाचारपत्रों से लभन्न माल के क्रय या ववक्रय पर उस दशा में कर क्जसमें ऐसा क्रय या
ववक्रय अंतरराक्ज्यक व्यापार या वाणणज्य के दौरान होता है ।]
2
[92ख. माल के परे षण पर (चाहे परे षण उसके करने वाले व्यक्क्त को या ककसी अन्य व्यक्क्त को
ककया गया है ), उस दशा में कर क्जसमें ऐसा परे षण अंतरराक्ज्यक व्यापार या वाणणज्य के दौरान होता है ।]
93. इस सच
ू ी के ववषयों में से ककसी ववषय से संबधं धत ववधधयों के ववरुद्ध अपराध।
94. इस सच
ू ी के ववषयों में से ककसी ववषय के प्रयोजनों के ललए जाँच, सवेक्षण और आँकड़े।
95. उच्चतम न्यायालय से लभन्न सभी न्यायालयों की इस सच
ू ी के ववषयों में से ककसी ववषय के
संबध
ं में अधधकाररता और शक्क्तयाँ; नावधधकरण ववषयक अधधकाररता।
96. इस सच
ू ी के ववषयों में से ककसी ववषय के संबध
ं में फीस, ककं तु इसके अंतगतत ककसी न्यायालय
में ली जाने वाली फीस नहीं है ।
97. कोई अन्य ववषय जो सच
ू ी 2 या सच
ू ी 3 में प्रगणणत नहीं है और क्जसके अंतगतत कोई ऐसा कर
है जो उन सधू चयों में से ककसी सच
ू ी में उक्ल्लणखत नहीं है ।
सच
ू ी - 2
राज्य सच
ू ी
1. लोक व्यवस्था (ककं तु इसके अंतगतत लसववल शक्क्त की सहायता के ललए 4[नौसेना, सेना या वायु
सेना या संघ के ककसी अन्य सशस्त्र बल का या संघ के तनयंत्रण के अधीन ककसी अन्य बल का या उसकी
ककसी टुकड़ी या यतू नट का प्रयोग] नहीं है )।
3
[2. सच
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 2क के उपबंधों के अधीन रहते हुए पलु लस (क्जसके अंतगतत रे ल और ग्राम
पलु लस है )।]
___________________
1. संववधान (छठा संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्थावपत।
2. संववधान (तछयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1982 की धारा 5 द्वारा (2-2-1983 से) अंतःस्थावपत।
3. संववधान (अट्ठासीवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 4 द्वारा अंत:स्थावपत|
4. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्दों के
स्थान पर प्रततस्थावपत।
5. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रववक्ष्ट शब्दों
के स्थान पर प्रततस्थावपत|

3. 1[***] उच्च न्यायालय के अधधकारी और सेवक; भाटक और राजस्व न्यायालयों की प्रकक्रया;


उच्चतम न्यायालय से लभन्न सभी न्यायालयों में ली जाने वाली फीस।
4. कारागार, सध
ु ारालय, बोस्टत ल संस्थाएँ और उसी प्रकार की अन्य संस्थाएँ और उनमें तनरुद्ध
व्यक्क्त; कारागारों और अन्य संस्थाओं के उपयोग के ललए अन्य राज्यों से ठहराव।
5. स्थानीय शासन, अथातत ् नगर तनगमों, सद
ु ार न्यासों, क्जला बोडों, खनन-बस्ती प्राधधकाररयों और
स्थानीय स्वशासन या ग्राम प्रशासन के प्रयोजनों के ललए अन्य स्थानीय प्राधधकाररयों का गठन और
शक्क्तयाँ।
6. लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता; अस्पताल और औषधालय।
7. भारत से बाहर के स्थानों की तीथतयात्राओं से लभन्न तीथतयात्राएँ।
8. मादक ललकर, अथातत ् मादक ललकर का उत्पादन, ववतनमातण, कब्जा, पररवहन, क्रय और ववक्रय।

278
9. तनःशक्त और तनयोजन के ललए अयोग्य व्यक्क्तयों की सहायता।
10. शव गाड़ना और कत्रब्रस्तान; शव-दाह और श्मशान।
11. 2[* * * * *]
12. राज्य द्वारा तनयंत्रत्रत या ववर्त्पोवषत पस्
ु तकालय, संग्रहालय या वैसी ही अन्य संस्थाएँ; 3[संसद्
द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन] राष्रीय महत्व के 3
[घोवषत ककए गए] प्राचीन और
ऐततहालसक संस्मारकों और अलभलेखों से लभन्न प्राचीन और ऐततहालसक संस्मारक और अलभलेख।
13. संचार, अथातत ् सड़कें, पल
ु , फेरी और अन्य संचार साधन जो सच
ू ी 1 में ववतनहदत ष्ट नहीं हैं;
नगरपाललक राम; रज्जुमागत; अंतदे शीय जलमागों के संबध
ं में सच
ू ी 1 और सच
ू ी 3 के उपबंधों के अधीन रहते
हुए, अंतदे शीय जलमागत और उन पर यातायात; यंत्र नोहदत यानों से लभन्न यान।
14. कृवष क्जसके अंतगतत कृवष लशक्षा और अनस ु ध
ं ान, नाशक जीवों से संरक्षण और पादप रोगों का
तनवारण है ।
15. पशध
ु न का परररक्षण, संरक्षण और सध
ु ार तथा जीवजंतओ
ु ं के रोगों का तनवारण; पशु धचककत्सा
प्रलशक्षण और व्यवसाय।
16. कांजी हाउस और पशु अततचार का तनवारण।
17. सच
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 56 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जल, अथातत ् जल प्रदाय, लसंचाई और नहरें ,
जल तनकास और तटबंध, जल भंडारकरण और जल शक्क्त।
18. भलू म, अथातत ् भलू म में या उस पर अधधकार, भध
ू तृ त क्जसके अंतगतत भस्
ू वामी और अलभधारी का
संबध
ं है और भाटक का संग्रहण; कृवष भलू म का अंतरण और अन्य संक्रामण; भलू म ववकास और कृवष उधार;
उपतनवेशन।
_________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्दों
का लोप ककया गया|
2. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रववक्ष्ट
11 का लोप ककया गया|
3. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) “संसद् द्वारा
ववधध द्वारा घोवषत” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

19. एिं 20 1[* * * * *]


21. माक्त्स्यकी।
22. सच
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 34 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रततपाल्य-अधधकरण; ववल्लंगलमत और
कुकत की गई संपदा।
23. संघ के तनयंत्रण के अधीन तनयमन और ववकास के संबध
ं में सच
ू ी 1 के उपबंधों के अधीन रहते
हुए, खानों का ववतनयमन और खतनज ववकास।
24. सचू ी 1 की [प्रववक्ष्ट 7 और प्रववक्ष्ट 52] के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उद्योग।
2

25. गैस और गैस संकमत।


26. सच
ू ी 3 की प्रववक्ष्ट 33 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के भीतर व्यापार और वाणणज्य।
27. सचू ी 3 की प्रववक्ष्ट 33 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, माल का उत्पादन, प्रदाय और ववतरण।
28. बाजार और मेले।

279
29. 3[* * * * * *]
30. साहूकारी और साहूकार; कृवष ऋणणता से मक्ु क्त।
31. पांथशाला और पांथशालापाल।
32. ऐसे तनगमों का, जो सच
ू ी 1 में ववतनहदत ष्ट तनगमों से लभन्न हैं और ववश्वववद्यालयों का
तनगमन, ववतनयमन और पररसमापन; अतनगलमत व्यापाररक, साहहक्त्यक, वैज्ञातनक, धालमतक और अन्य
सोसाइहटयाँ और संगम; सहकारी सोसाइहटयाँ।
33. नाट्यशाला और नाट्यप्रदशतन; सच
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 60 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लसनेमा;
खेलकूद, मनोरं जन और आमोद।
34. दांव और द्यत
ू ।
35. राज्य में तनहहत या उसके कब्जे के संकमत, भलू म और भवन।
36. 4[* * * * *]
37. संसद् द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के ववधान-मंडल के
ललए तनवातचन।
38. राज्य के ववधान-मंडल के सदस्यों के, ववधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के और, यहद ववधान
पररषद् है तो, उसके सभापतत और उपसभापतत के वेतन और भर्त्े।
___________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रववक्ष्ट 19 और
20 का लोप ककया गया|
2. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 28 द्वारा “प्रववक्ष्ट 52” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
3. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रववक्ष्ट 29 का
लोप ककया गया|
4. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा प्रववक्ष्ट 36 का लोप ककया
गया|

39. ववधान सभा की और उसके सदस्यों और सलमततयों की तथा, यहद ववधान पररषद् है तो, उस
ववधान पररषद् की और उसके सदस्यों और सलमततयों की शक्क्तयाँ, ववशेषाधधकार और उन्मक्ु क्तयाँ; राज्य के
ववधान-मंडल की सलमततयों के समक्ष साक्ष्य दे ने या दस्तावेज पेश करने के ललए व्यक्क्तयों को हाक्जर
कराना।
40. राज्य के मंत्रत्रयों के वेतन और भर्त्े।
41. राज्य लोक सेवाएँ; राज्य लोक सेवा आयोग।
42. राज्य की पें शनें, अथातत ् राज्य द्वारा या राज्य की संधचत तनधध में से संदेय पेंशन।
43. राज्य का लोक ऋण।
44. तनखात तनधध।
45. भ-ू राजस्व क्जसके अंतगतत राजस्व का तनधातरण और संग्रहण, भ-ू अलभलेख रखना, राजस्व के
प्रयोजनों के ललए और अधधकारों के अलभलेखों के ललए सवेक्षण और राजस्व का अन्यसंक्रामण है ।
46. कृवष-आय पर कर।
47. कृवष भलू म के उर्त्राधधकार के संबध
ं में शल्
ु क।

280
48. कृवष भलू म के संबध
ं में संपदा-शल्
ु क।
49. भलू म और भवनों पर कर।
50. संसद् द्वारा, ववधध द्वारा, खतनज ववकास के संबध
ं में अधधरोवपत तनबंधनों के अधीन रहते हुए,
खतनज संबध
ं ी अधधकारों पर कर।
51. राज्य में ववतनलमतत या उत्पाहदत तनम्नललणखत माल पर उत्पाद-शल्
ु क और भारत में अन्यत्र
ववतनलमतत या उत्पाहदत वैसे ही माल पर उसी दर या तनम्नतर दर से प्रततशल्
ु क-
(क) मानवीय उपभोग के ललए ऐल्कोहाली ललकर;
(ख) अफीम, इंडडयन हें प और अन्य स्वापक औषधधयां तथा स्वापक पदाथत,
ककं तु क्जसके अंतगतत ऐसी औषधधयाँ और प्रसाधन तनलमतततयाँ नहीं हैं क्जनमें ऐल्कोहाल या इस
प्रववक्ष्ट के उपपैरा (ख) का कोई पदाथत अंतववतष्ट है ।
52. ककसी स्थानीय क्षेत्र में उपभोग, प्रयोग या ववक्रय के ललए माल के प्रवेश पर कर।
53. ववद्यत
ु के उपभोग या ववक्रय पर कर।
1
[54. सच
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 92क के उपबंधों के अधीन रहते हुए, समाचारपत्रों से लभन्न माल के क्रय
या ववक्रय पर कर।]
55. समाचारपत्रों में प्रकालशत 2
[और रे डडयो या दरू दशतन द्वारा प्रसाररत ववज्ञापनों] से लभन्न
ववज्ञापनों पर कर।
56. सड़कों या अंतदे शीय जलमागों द्वारा ले जाए जाने वाले माल और यात्रत्रयों पर कर।
___________________
1. संववधान (छठा संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 54 के स्थान पर
प्रततस्थावपत|
2. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|

57. सचू ी 3 की प्रववक्ष्ट 35 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सड़कों पर उपयोग के योग्य यानों पर
कर, चाहे वे यंत्र नोहदत हों या नहीं, क्जनके अंतगतत रामकार हैं।
58. जीवजंतओ
ु ं और नौकाओं पर कर।
59. पथकर।
60. ववृ र्त्यों, व्यापारों, वाजीववकाओं और तनयोजन पर कर।
61. प्रततव्यक्क्त कर।
62. ववलास वस्तओ
ु ं पर कर, क्जसके अंतगतत मनोरं जन, आमोद, दांव और द्यत
ू पर कर हैं।
63. स्टांप-शल्
ु क की दरों के संबध
ं में सच
ू ी 1 के उपबंधों में ववतनहदतष्ट दस्तावेजों से लभन्न दस्तावेजों
के संबध
ं में स्टांप-शल्
ु क की दर।
64. इस सच
ू ी के ववषयों में से ककसी ववषय से संबधं धत ववधधयों के ववरुद्ध अपराध।
65. उच्चतम न्यायालय से लभन्न सभी न्यायालयों की इस सच
ू ी के ववषय में से ककसी ववषय के
संबध
ं में अधधकाररता और शक्क्तयाँ।
66. इस सच
ू ी के ववषयों में से ककसी ववषय के संबध
ं में फीस, ककं तु इसके अंतगतत ककसी न्यायालय
में ली जाने वाली

281
सच
ू ी - 3
समिती सच
ू ी

1. दं ड ववधध क्जसके अंतगतत ऐसे सभी ववषय हैं जो इस संववधान के प्रारं भ पर भारतीय दं ड संहहता
के अंतगतत आते हैं, ककं तु इसके अंतगतत सच
ू ी 1 या सच
ू ी 2 में ववतनहदत ष्ट ववषयों में से ककसी ववषय से
संबधं धत ववधधयों के ववरुद्ध अपराध और लसववल शक्क्त की सहायता के ललए नौसेना, सेना या वायस
ु ेना
अथवा संघ के ककसी अन्य सशस्त्र बल का प्रयोग नहीं है ।
2. दं ड प्रकक्रया क्जसके अंतगतत ऐसे सभी ववषय हैं जो इस संववधान के प्रारं भ पर दं ड प्रकक्रया
संहहता के अंतगतत हैं।
3. ककसी राज्य की सरु क्षा, लोक व्यवस्था बनाए रखने या समद
ु ाय के ललए आवश्यक प्रदायों और
सेवाओं को बनाए रखने संबध
ं ी कारणों से तनवारक तनरोध; इस प्रकार तनरोध में रखे गए व्यक्क्त।
4. बंहदयों, अलभयक्
ु त व्यक्क्तयों और इस सच
ू ी की प्रववक्ष्ट 3 में ववतनहदतष्ट कारणों से तनवारक
तनरोध में रखे गए व्यक्क्तयों का एक राज्य से दस
ू रे राज्य को हटाया जाना।
5. वववाह और वववाह-ववच्छे द; लशशु और अवयस्क; दर्त्क-ग्रहण; ववल, तनवतसीयतता और उर्त्राधधकार;
अववभक्त कुटुंब और ववभाजन; वे सभी ववषय क्जनके संबध
ं में न्यातयक कायतवाहहयों में पक्षकार इस
संववधान के प्रारं भ से ठीक पहले अपनी स्वीय ववधध के अधीन थे।
6. कृवष भलू म से लभन्न संपवर्त् का अंतरण; ववलेखों और दस्तावेजों का रक्जस्रीकरण।
7. संववदाएँ क्जनके अंतगतत भागीदारी, अलभकरण, वहन की संववदाएँ और अन्य ववशेष प्रकार की
संववदाएँ हैं, ककं तु कृवष भलू म संबध
ं ी संववदाएँ नहीं हैं।
8. अनय
ु ोज्य दोष।
9. शोधन अक्षमता और हदवाला।
10. न्यास और न्यासी।
11. महाप्रशासक और शासकीय न्यासी।
1
[11क. न्याय प्रशासन; उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों से लभन्न सभी न्यायालयों का
गठन और संगठन।
12. साक्ष्य और शपथ; ववधधयों, लोक कायों और अलभलेखों और न्यातयक कायतवाहहयों को मान्यता।
13. लसववल प्रकक्रया क्जसके अंतगतत ऐसे सभी ववषय हैं जो इस संववधान के प्रारं भ पर लसववल
प्रकक्रया संहहता के अंतगतत आते हैं, पररसीमा और माध्यस्थम।्
14. न्यायालय का अवमान, ककं तु इसके अंतगतत उच्चतम न्यायालय का अवमान नहीं है ।
15. आहहंडन; यायावरी और प्रव्राजी जनजाततयाँ।
16. पागलपन और मनोवैकल्य, क्जसके अंतगतत पागलों और मनोववकल व्यक्क्तयों को ग्रहण करने
या उनका उपचार करने के स्थान हैं।
17. पशओ
ु ं के प्रतत क्रूरता का तनवारण।
1
[17क. वन।
17ख. वन्य जीवजंतओ
ु ं और पक्षक्षयों का संरक्षण।]
18. खाद्य पदाथों और अन्य माल का अपलमश्रण।
19. अफीम के संबध
ं में सच
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 59 के उपबंधों के अधीन रहते हुए मादक द्रव्य और
ववष।

282
20. आधथतक और सामाक्जक योजना।
1
[20क. जनसंख्या तनयंत्रण और पररवार तनयोजन।]
21. वाणणक्ज्यक और औद्योधगक एकाधधकार, गट
ु और न्यास।
22. व्यापार संघ; औद्योधगक और श्रम वववाद।
23. सामाक्जक सरु क्षा और सामाक्जक बीमा; तनयोजन और बेकरी।
24. श्रलमकों का कल्याण क्जसके अंतगतत कायत की दशाएँ, भववष्य तनधध, तनयोजक का दातयत्व,
कमतकार प्रततकर, अशक्तता और वाधतक्य पें शन तथा प्रसतू त सवु वधाएँ हैं।
[25. सच
2
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 63, 64, 65 और 66 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लशक्षा क्जसके अंतगतत
तकनीकी लशक्षा, आयवु वतज्ञान लशक्षा और ववश्वववद्यालय हैं; श्रलमकों का व्यावसातयक और तकनीकी प्रलशक्षण।)
26. ववधध ववृ र्त्, धचककत्सा ववृ र्त् और अन्य ववृ र्त्याँ।]
27. भारत और पाककस्तान डोलमतनयनों के स्थावपत होने के कारण अपने मल
ू तनवास-स्थान से
ववस्थावपत व्यक्क्तयों की सहायता और पन
ु वातस।
28. पत
ू त कायत और पत
ू त संस्थाएँ, पत
ू त और धालमतक ववन्यास और धालमतक संस्थाएँ।
___________________
1. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से)
अंत:स्थावपत|
2. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्रववक्ष्ट
25 के स्थान पर प्रततस्थावपत|

29. मानवों, जीवजंतओ


ु ं या पौधों पर प्रभाव डालने वाले संक्रामक या सांसधगतक रोगों अथवा
नाशकजीवों के एक राज्य से दस
ू रे राज्य में फैलने का तनवारण।
30. जन्म-मरण सांक्ख्यकी, क्जसके अंतगतत जन्म और मत्ृ यु रक्जस्रीकरण है ।
31. संसद् द्वारा बनाई गई ववधध या ववद्यमान ववधध द्वारा या उसके अधीन महापर्त्न घोवषत
पर्त्नों से लभन्न पर्त्न।
32. राष्रीय जलमागों के संबध
ं में सच
ू ी 1 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अंतदे शीय जलमागों पर
यंत्र नोहदत जलयानों के संबध ं में पोत पररवहन और नौपररवहन तथा ऐसे जलमागों पर मागत का तनयम
और अंतदे शीय जलमागों द्वारा यात्रत्रयों और माल का वहन।
1
[33. (क) जहां संसद् द्वारा ववधध द्वारा ककसी उद्योग का संघ द्वारा तनयंत्रण लोकहहत में
समीचीन घोवषत ककया जाता है वहां उस उद्योग के उत्पादों का और उसी प्रकार के आयात ककए गए माल
का ऐसे उत्पादों के रूप में,
(ख) खाद्य पदाथों का क्जनके अंतगतत खाद्य ततलहन और तेल हैं,
(ग) पशओ
ु ं के चारे का क्जसके अंतगतत खली और अन्य सारकृत चारे हैं,
(घ) कच्ची कपास का, चाहे वह ओटी हुई हो या त्रबना ओटी हो, और त्रबनौले का, और
(ङ) कच्चे जट
ू का,
यापार और वाणणज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और ववतरण।]
2
[33क. बाट और माप, क्जनके अंतगतत मानकों का तनयत ककया जाना नहीं है ।]
34. कीमत तनयंत्रण।

283
35. यंत्र नोहदत यान क्जसके अंतगतत वे लसद्धांत हैं क्जनके अनस
ु ार ऐसे यानों पर कर उद्गह
ृ ीत
ककया जाना है ।
36. कारखाने।
37. बायलर।
38. ववद्यत
ु ।
39. समाचारपत्र, पस्
ु तकें और मद्र
ु णालय।
40. 3[संसद् द्वारा बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन] राष्रीय महत्व के (3) (घोवषत)
परु ातत्वीय स्थलों और अवशेषों से लभन्न परु ातत्वीय स्थल और अवशेष।
41. ऐसी संपवर्त् की (क्जसके अंतगतत कृवष भलू म है ) अलभरक्षा, प्रबंध और व्ययन जो ववधध द्वारा
तनष्क्रांत संपवर्त् घोवषत की जाए।
4
[42. संपवर्त् का अजतन और अधधग्रहण।]
___________________
1. संववधान (तीसरा संशोधन) अधधतनयम, 1954 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 33 के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
2. संववधान (बयालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थावपत।
3. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 27 द्वारा “संसद् द्वारा ववधध द्वारा घोवषत”
के स्थान पर प्रततस्थावपत।
4. संववधान (सातवां संशोधन) अधधतनयम, 1956 की धारा 26 द्वारा प्रववक्ष्ट 42 के स्थान पर
प्रततस्थावपत।

43. ककसी राज्य में , उस राज्य से बाहर उद्भत


ू कर से संबधं धत दावों और अन्य लोक माँगों की
वसल
ू ी क्जनके अंतगतत भ-ू राजस्व की बकाया और ऐसी बकाया के रुप में वसल
ू की जा सकने वाली रालशयाँ
हैं।
44. न्यातयक स्टांपों के द्वारा संगह
ृ ीत शल्
ु कों या फीसों से लभन्न स्टांप-शल्
ु क, ककं तु इसके अंतगतत
स्टांप-शल्
ु क की दरें नहीं हैं।
45. सच
ू ी 2 या सच
ू ी 3 में ववतनहदतष्ट ववषयों में से ककसी ववषय के प्रयोजनों के ललए जाँच और
आँकड़े।
46. उच्चतम न्यायालय से लभन्न सभी न्यायालयों की इस सच
ू ी के ववषयों में से ककसी ववषय के
संबध
ं में अधधकाररता और शक्क्तयाँ।
47. इस सच
ू ी के ववषयों में से ककसी ववषय के संबध
ं में फीस, ककं तु इसके अंतगतत ककसी न्यायालय
में ली जाने वाली फीस नहीं है ।

284
आठिीं अनस
ु च
ू ी
[अनच्
ु छे द 344(1) और अनच्
ु छे द 351]
भाषाएाँ
1. असलमया|
2. बंगला|
1
[3. बोडो|
4. डोगरो|]
2
[5.] गज
ु राती|
3
[6.] हहन्दी|
3
[7.] कन्नड़|
3
[8.] कश्मीरी|
[ [9.] कोंकणी|]
4 3

1
[10.] मैधथली|]
5
[11.] मलयालम|
[ [12.] मणणपरू ी|]
4 6

6
[13.] मराठी|
[ [14.] नेपाली|
4 6

6
[15.] 10
[ओडडया]|
6
[16.] पंजाबी|
6
[17.] संस्कृत|
1
[18.] संथाली|
[ [19.] लसंघी]|
7 8

9
[20.]तलमल|
9
[21.] तेलग
ु |ु
9
[22.]उदत |ू
__________________
1. संववधान (बावनेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा द्वारा अंत:स्थावपत।
2. संववधान (बावनेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 5 के रूप में
पुन:संख्यांककत।
3. संववधान (बावनेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 4 से 7 को प्रववक्ष्ट 6 से
9 के रूप में पुन:संख्यांककत।
4. संववधान (इकहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थावपत।
5. संववधान (बावनेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 8 प्रववक्ष्ट 11 के रूप में
पुन:संख्यांककत।
6. संववधान (बावनेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 9 से 14 को प्रववक्ष्ट 12
से प्रववक्ष्ट 17 के रूप में पुन:संख्यांककत।
7. संववधान (इक्कीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1967 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गया।

285
8. संववधान (बावनेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 15 को प्रववक्ष्ट 19 के
रूप में पुन:संख्यांककत।
9. संववधान (बावनेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 16 से 18 को प्रववक्ष्ट
20 से 22 के रूप में पुन:संख्यांककत।
10. संववधान (तछयानेवाँ संशोधन) अधधतनयम, 2011 की धारा 2 द्वारा शब्द “उडड़या” के स्थान पर
प्रततस्थावपत|

286
निीं अनस
ु च
ू ी
[अनच्
ु छे द 31-ख]

1. त्रबहार भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1950 (1950 का त्रबहार अधधतनयम सं. 30)।
2. मब
ुं ई अलभधतृ त और कृवष भलू म अधधतनयम, 1948 (1948 का मब
ुं ई अधधतनयम 67)।
3. मब
ंु ई माललकी भध
ू तृ त उत्सादन अधधतनयम, 1949 (1949 का मब
ंु ई अधधतनयम 61)।
4. मब
ुं ई तालक
ु दारी भध
ू तृ त उत्सादन अधधतनयम, 1949 (1949 का मब
ुं ई अधधतनयम 62)।
5. पंच महल मेहवासी भध
ू तृ त उत्सादन अधधतनयम, 1949 (1949 का मब
ुं ई अधधतनयम 63)।
6. मब
ुं ई खोतत उत्सादन अधधतनयम, 1950 (1950 का मब
ुं ई अधधतनयम 6)।
7. मब
ुं ई परगना और कुलकणी वतन उत्सादन अधधतनयम, 1950 (1950 का मब
ुं ई अधधतनयम 60)।
8. मध्य प्रदे श सांपवर्त्क अधधकार (संपदा, महल, अन्यसंक्रांत भलू म) उत्सादन अधधतनयम, 1950 (मध्य
प्रदे श अधधतनयम क्रमांक 1 सन ् 1951)।
9. मद्रास संपदा (उत्सादन और रै ्यतवाड़ी में संपररवततन) अधधतनयम, 1948 (1948 का मद्रास
अधधतनयम 26)।
10. मद्रास संपदा (उत्सादन और रै ्यतवाड़ी में संपररवततन) अधधतनयम, 1950 (1950 का मद्रास
अधधतनयम 1)।
11. 1950 ई. का उर्त्र प्रदे श जमींदारी ववनाश और भलू म-व्यवस्था अधधतनयम (उर्त्र प्रदे श
अधधतनयम संख्या 1, 1951)।
12. है दराबाद (जागीर उत्सादन) ववतनयम, 1358-फ (1358 फसली का सं. 69)।
13. है दराबाद जागीर (पररवततन) ववतनयम, 1359-फ (1359 फसली का सं. 25)।
2
[14. त्रबहार ववस्थावपत व्यक्क्त पन
ु वातस (भलू म अजतन) अधधतनयम, 1950 (1950 का त्रबहार अधधतनयम
सं. 38)।
15. संयक्
ु त प्रांत के शरणाधथतयों को बसाने के ललए भलू म प्राप्त करने का ऐक्ट, 1948 ई. (संयक्
ु त
प्रांतीय ऐक्ट संख्या 26, 1948)।
16. ववस्थावपत व्यक्क्त पन
ु वातस (भलू म अजतन) अधधतनयम, 1948 (1948 का अधधतनयम 60)।
17. बीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1950 (1950 का अधधतनयम 47) की धारा 42 द्वारा यथा अंतःस्थावपत
बीमा अधधतनयम, 1938 (1938 का अधधतनयम 4) की धारा 52क से धारा 52छ।
18. रे ल कंपनी (आपात उपबंध) अधधतनयम, 1951 (1951 का अधधतनयम 51)।
19. उद्योग (ववकास और ववतनयमन) संशोधन अधधतनयम, 1953 (1953 का अधधतनयम 26) की धारा
13 द्वारा यथा अंतःस्थावपत उद्योग (ववकास और ववतनयमन) अधधतनयम, 1951 (1951 का अधधतनयम 65)
का अध्याय 3क।
___________________
1. संववधान (पहला संशोधन) अधधतनयम, 1951 की धारा 14 द्वारा जोड़ा गया।
2. संववधान (चौथा संशोधन) अधधतनयम, 1955 की धारा 5 द्वारा जोड़ा गया।

20. 1951 के पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम 29 द्वारा यथा संशोधधत पक्श्चमी बंगाल भलू म ववकास और
योजना अधधतनयम, 1948 (1948 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम 21)|]

287
[21. आंध्र प्रदे श अधधकतम कृवष जोत सीमा अधधतनयम, 1961 (1961 का आंध्र प्रदे श अधधतनयम
1

10)।]
22. आंध्र प्रदे श (तेलग
ं ाना क्षेत्र) अलभधतृ त और कृवष भलू म (ववधधमान्यकरण) अधधतनयम, 1961 (1961
का आंध्र प्रदे श अधधतनयम 21)।
23. आंध्र प्रदे श (तेलग
ं ाना क्षेत्र) इजारा और कौली भलू म अतनयलमत पट्टा रद्द करण और ररयायती
तनधातरण उत्सादन अधधतनयम, 1961 (1961 का आंध्र प्रदे श अधधतनयम 36)।
24. असम राज्य लोक प्रकृतत की धालमतक या पत
ू त संस्था भलू म अजतन अधधतनयम, 1959 (1961 का
असम अधधतनयम 9)।
25. त्रबहार भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1953 (1954 का त्रबहार अधधतनयम सं. 20)।
26. त्रबहार भलू म सध
ु ार (अधधकतम सीमा तनधातरण और अधधशेष भलू म अजतन) अधधतनयम, 1961
(1962 का त्रबहार अधधतनयम सं. 12) (क्जसके अंतगतत इस अधधतनयम की धारा 28 नहीं है )।
27. मब
ुं ई तालक
ु दारी भध
ू तृ त उत्सादन (संशोधन) अधधतनयम, 1954 (1955 का मब
ुं ई अधधतनयम 1)।
28. मब
ुं ई तालक
ु दारी भध
ू तृ त उत्सादन (संशोधन) अधधतनयम, 1957 (1958 का मब
ुं ई अधधतनयम 18)।
29. मब
ुं ई इनाम (कच्छ क्षेत्र) उत्सादन अधधतनयम, 1958 (1958 का मब
ुं ई अधधतनयम 98)।
30. मब
ंु ई अलभधतृ त और कृवष भलू म (गज
ु रात संशोधन) अधधतनयम, 1960 (1960 का गज
ु रात
अधधतनयम 16)।
31. गज
ु रात कृवष भलू म अधधकतम सीमा अधधतनयम, 1960 (1961 का गज
ु रात अधधतनयम 26)।
32. सगबारा और मेहवासी संपदा (सांपवर्त्क अधधकार उत्सादन, आहद) ववतनयम, 1962 (1962 का
गज
ु रात ववतनयम1)।
33. गज
ु रात शेष अन्यसंक्रामण उत्सादन अधधतनयम, 1963 (1963 का गज
ु रात अधधतनयम 33), वहां
तक के लसवाय जहां तक यह अधधतनयम इसकी धारा 2 के खंड (3) के उपखंड (घ) में तनहदत ष्ट
अन्यसंक्रामण के संबध
ं में है ।
34. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) अधधतनयम, 1961 (1961 का महाराष्र अधधतनयम
27)।
35. है दराबाद अलभधतृ त और कृवष भलू म (पन
ु ः अधधतनयमन, ववधधमान्यकरण और अततररक्त
संशोधन) अधधतनयम, 1961 (1961 का महाराष्र अधधतनयम 45)।
36. है दराबाद अलभधतृ त और कृवष भलू म अधधतनयम, 1950 (1950 का है दराबाद अधधतनयम 21)।
37. जन्मीकरण संदाय (उत्सादन) अधधतनयम, 1960 (1961 का केरल अधधतनयम 3)।
___________________
1. संववधान (सत्रहवां संशोधन) अधधतनयम, 1964 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया|

38. केरल भलू म-कर अधधतनयम, 1961 (1961 का केरल अधधतनयम 13)।
39. केरल भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1963 (1964 का केरल अधधतनयम 1)।
40. मध्य प्रदे श भ-ू राजस्व संहहता, 1959 (मध्य प्रदे श अधधतनयम, क्रमांक 20 सन ् 1959)।
41. मध्य प्रदे श कृवषक जोत उच्चतम सीमा अधधतनयम, 1960 (मध्य प्रदे श अधधतनयम क्रमांक 20
सन ् 1960)।
42. मद्रास खेततहर अलभधारी संरक्षण अधधतनयम, 1955 (1955 का मद्रास अधधतनयम 25)।

288
43. मद्रास खेततहर अलभधारी (उधचत लगान संदाय) अधधतनयम, 1956 (1956 का मद्रास अधधतनयम
24)।
44. मद्रास कुडीइरुपु अधधभोगी (बेदखली से संरक्षण) अधधतनयम, 1961 (1961 का मद्रास अधधतनयम
38)।
45. मद्रास लोक न्यास (कृवष भलू म प्रशासन ववतनयमन) अधधतनयम, 1961 (1961 का मद्रास
अधधतनयम 57)।
46. मद्रास भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) अधधतनयम, 1961 (1961 का मद्रास
अधधतनयम 58)।
47. मैसरू अलभधतृ त अधधतनयम, 1952 (1952 का मैसरू अधधतनयम 13)
48. कोड़गू अलभधारी अधधतनयम, 1957 (1957 का मैसरू अधधतनयम 14)।
49. मैसरू ग्राम-पद उत्सादन अधधतनयम, 1961 (1961 का मैसरू अधधतनयम 14)।
50. है दराबाद अलभधतृ त और कृवष भलू म (ववधधमान्यकरण) अधधतनयम, 1961 (1961 का मैसरू
अधधतनयम 36)।
51. मैसरू भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1961 (1962 का मैसरू अधधतनयम 10)।
52. उड़ीसा भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1960 (1960 का उड़ीसा अधधतनयम 16)।
53. उड़ीसा ववलीन राज्य क्षेत्र (ग्राम-पद उत्सादन) अधधतनयम, 1963 (1963 का उड़ीसा अधधतनयम
10)।
54. पंजाब भ-ू धतृ त सरु क्षा अधधतनयम, 1953 (1953 का पंजाब अधधतनयम 10)।
55. राजस्थान अलभधतृ त अधधतनयम, 1955 (1955 का राजस्थान अधधतनयम सं. 3)।
56. राजस्थान जमींदारी और त्रबस्वेदारी उत्सादन अधधतनयम, 1959 (1959 का राजस्थान अधधतनयम
सं. 8)।
57. कुमायूं तथा उर्त्राखंड जमींदारी ववनाश तथा भलू म-व्यवस्था अधधतनयम, 1960 (उर्त्र प्रदे श
अधधतनयम संख्या 17, 1960)।
58. उर्त्र प्रदे श अधधकतम जोत-सीमा आरोपण अधधतनयम, 1960 (उर्त्र प्रदे श अधधतनयम संख्या 1,
1961)।
59. पक्श्चमी बंगाल संपदा अजतन अधधतनयम, 1953 (1954 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम 1)।
60. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1955 (1956 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम 10)।
61. हदल्ली भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1954 (1954 का हदल्ली अधधतनयम 8)।
62. हदल्ली भलू म जोत (अधधकतम सीमा) अधधतनयम, 1960 (1960 का केंद्रीय अधधतनयम 24)।
63. मणणपरु भ-ू राजस्व और भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1960 (1960 का केंद्रीय अधधतनयम 33)।
64. त्रत्रपरु ा भ-ू राजस्व और भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1960 (1960 का केंद्रीय अधधतनयम 43)।
1
[65. केरल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1969 (1969 का केरल अधधतनयम 35)।
66. केरल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1971 (1971 का केरल अधधतनयम 25)।]
2
[67. आंध्र प्रदे श भलू म सध
ु ार (अधधकतम कृवष जोत सीमा) अधधतनयम, 1973 (1973 का आंध्र प्रदे श
अधधतनयम 1)।]
68. त्रबहार भलू म सध
ु ार (अधधकतम सीमा तनधातरण और अधधशेष भलू म अजतन) (संशोधन)
अधधतनयम, 1972 (1973 का त्रबहार अधधतनयम सं. 1)।

289
69. त्रबहार भलू म सध
ु ार (अधधकतम सीमा तनधातरण और अधधशेष भलू म अजतन) (संशोधन)
अधधतनयम, 1973 (1973 का त्रबहार अधधतनयम सं. 9)।
70. त्रबहार भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1972 (1972 का त्रबहार अधधतनयम सं. 5)।
71. गज
ु रात अधधकतम कृवष भलू म सीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1972 (1974 का गज
ु रात अधधतनयम
2)।
72. हररयाणा भलू म-जोत की अधधकतम सीमा अधधतनयम, 1972 (1972 का हररयाणा अधधतनयम 26)।
73. हहमाचल प्रदे श अधधकतम भलू म जोत सीमा अधधतनयम, 1972 (1973 का हहमाचल प्रदे श
अधधतनयम 19)।
74. केरल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1972 (1972 का केरल अधधतनयम 17)।
75. मध्य प्रदे श कृवषक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1972 (मध्य प्रदे श अधधतनयम
क्रमांक 12 सन ् 1974)।
76. मध्य प्रदे श कृवषक जोत उच्चतम सीमा (द्ववतीय संशोधन) अधधतनयम, 1972 (मध्य प्रदे श
अधधतनयम क्रमांक 13 सन ् 1974)।
77. मैसरू भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1973 (1974 का कनातटक अधधतनयम 1)।
78. पंजाब भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1972 (1973 का पंजाब अधधतनयम 10)।
79. राजस्थान कृवष जोतों पर अधधकतम सीमा अधधरोपण अधधतनयम, 1973 (1973 का राजस्थान
अधधतनयम सं. 11)।
__________________
1. संववधान (उन्तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1972 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चौतीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1974 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत|

80. गड
ु लरू जन्मम ् संपदा (उत्सादन और रै ्यतवाड़ी में संपररवततन) अधधतनयम, 1969 (1969 का
तलमलनाडु अधधतनयम 24)।
81. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1972 (1972 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
12)।
82. पक्श्चमी बंगाल संपदा अजतन (संशोधन) अधधतनयम, 1964 (1964 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
22)।
83. पक्श्चमी बंगाल संपदा अजतन (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1973 (1973 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 33)।
84. मब
ुं ई अलभधतृ त और कृवष भलू म (गज
ु रात संशोधन) अधधतनयम, 1972 (1973 का गज
ु रात
अधधतनयम 5)।
85. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1974 (1974 का उड़ीसा अधधतनयम 9)।
86. त्रत्रपरु ा भ-ू राजस्व और भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1974 (1974 का त्रत्रपरु ा
अधधतनयम 7)।
87. 1[2[* * * * * *]
88. उद्योग (ववकास और ववतनयमन) अधधतनयम, 1951 (1951 का केंद्रीय अधधतनयम 65)।
89. स्थावर संपवर्त् अधधग्रहण और अजतन अधधतनयम, 1952 (1952 का केंद्रीय अधधतनयम 30)।
90. खान और खतनज (ववतनयमन और ववकास) अधधतनयम, 1957 (1957 का केंद्रीय अधधतनयम 67)।

290
91. एकाधधकार तथा अवरोधक व्यापाररक व्यवहार अधधतनयम, 1969 (1969 का केंद्रीय अधधतनयम
54)।
92. 3[* * * * * *]
93. कोककारी कोयला खान (आपात उपबंध) अधधतनयम, 1971 (1971 का केंद्रीय अधधतनयम 64)।
94. कोककारी कोयला खान (राष्रीयकरण) अधधतनयम, 1972 (1972 का केंद्रीय अधधतनयम 36)।
95. साधारण बीमा कारबार (राष्रीयकरण) अधधतनयम, 1972 (1972 का केंद्रीय अधधतनयम 57)।
96. इंडडयन कॉपर कारपोरे शन (उपक्रम का अजतन) अधधतनयम, 1972 (1972 का केंद्रीय अधधतनयम
58)।
___________________
1. संववधान (उनतालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 5 द्वारा अंत:स्थावपत|
2. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रववक्ष्ट
87 का लोप ककया गया|
3. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रववक्ष्ट
92 का लोप ककया गया|

97. रुग्ण कपड़ा उपक्रम (प्रबंध-ग्रहण) अधधतनयम, 1972 (1972 का केंद्रीय अधधतनयम 72)।
98. कोयला खान (प्रबंध-ग्रहण) अधधतनयम, 1973 (1973 का केंद्रीय अधधतनयम 15)।
99. कोयला खान (राष्रीयकरण) अधधतनयम, 1973 (1973 का केंद्रीय अधधतनयम 26)।
100. ववदे शी मद्र
ु ा ववतनयमन अधधतनयम, 1973 (1973 का केंद्रीय अधधतनयम 46)।
101. एलकाक एशडाउन कंपनी लललमटे ड (उपक्रमों का अजतन) अधधतनयम, 1973 (1973 का केंद्रीय
अधधतनयम 56)।
102. कोयला खान (संरक्षण और ववकास) अधधतनयम, 1974 (1974 का केंद्रीय अधधतनयम 28)।
103. अततररक्त उपलक्ब्धयाँ (अतनवायत तनक्षेप) अधधतनयम, 1974 (1974 का केंद्रीय अधधतनयम 37)।
104. ववदे शी मद्र
ु ा संरक्षण और तस्करी तनवारण अधधतनयम, 1974 (1974 का केंद्रीय अधधतनयम 52)।
105. रुग्ण कपड़ा उपक्रम (राष्रीयकरण) अधधतनयम, 1974 (1974 का केंद्रीय अधधतनयम 57)।
106. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अधधतनयम, 1964 (1965 का महाराष्र
अधधतनयम 16)।
107. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अधधतनयम, 1965 (1965 का महाराष्र
अधधतनयम 32)।
108. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अधधतनयम, 1968 (1968 का महाराष्र
अधधतनयम 16)।
109. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1968 (1968 का
महाराष्र अधधतनयम 33)।
110. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अधधतनयम, 1969 (1969 का महाराष्र
अधधतनयम 37)।
111. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1969 (1969 का
महाराष्र अधधतनयम 38)।

291
112. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अधधतनयम, 1970 (1970 का महाराष्र
अधधतनयम 27)।
113. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अधधतनयम, 1972 (1972 का महाराष्र
अधधतनयम 13)।
114. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अधधतनयम, 1973 (1973 का महाराष्र
अधधतनयम 50)।
115. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1965 (1965 का उड़ीसा अधधतनयम 13)।
116. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1966 (1967 का उड़ीसा अधधतनयम 8)।
117. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1967 (1967 का उड़ीसा अधधतनयम 13)।
118. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1969 (1969 का उड़ीसा अधधतनयम 13)।
119. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1970 (1970 का उड़ीसा अधधतनयम 18)।
120. उर्त्र प्रदे श अधधकतम जोत सीमा आरोपण (संशोधन) अधधतनयम, 1972 (उर्त्र प्रदे श
अधधतनयम संख्या 18, 1973)।
121. उर्त्र प्रदे श अधधकतम जोत सीमा आरोपण (संशोधन) अधधतनयम, 1974 (उर्त्र प्रदे श
अधधतनयम संख्या 2, 1975)।
122. त्रत्रपरु ा भ-ू राजस्व और भलू म सध
ु ार (तीसरा संशोधन) अधधतनयम, 1975 (1975 का त्रत्रपरु ा
अधधतनयम 3)।
123. दादरा और नागर हवेली भलू म सध
ु ार ववतनयम, 1971 (1971 का 3)।
124. दादरा और नागर हवेली भलू म सध
ु ार (संशोधन) ववतनयम, 1973 (1973 का 5)।]
1
[125. मोटर यान अधधतनयम, 1939 (1939 का केंद्रीय अधधतनयम 4) की धारा 66क और अध्याय
4क2|]
126. आवश्यक वस्तु अधधतनयम, 1955 (1955 का केंद्रीय अधधतनयम 10)।
127. तस्कर और ववदे शी मद्र
ु ा छलसाधक (संपवर्त् समपहरण) अधधतनयम, 1976 (1976 का केंद्रीय
अधधतनयम 13)।
128. बंधधत श्रम पद्धतत (उत्सादन) अधधतनयम, 1976 (1976 का केंद्रीय अधधतनयम 19)।
129. ववदे शी मद्र
ु ा संरक्षण और तस्करी तनवारण (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का केंद्रीय
अधधतनयम 20)।
130. 3[* * * * *]
131. लेवी चीनी समान कीमत तनधध अधधतनयम, 1976 (1976 का केंद्रीय अधधतनयम 31)।
132. नगर-भलू म (अधधकतम सीमा और ववतनयमन) अधधतनयम, 1976 (1976 का केंद्रीय अधधतनयम
33)।
133. संघ लेखा ववभागीकरण (कालमतक अंतरण) अधधतनयम, 1976 (1976 का केंद्रीय अधधतनयम 59)।
134. असम अधधकतम भलू म जोत सीमा तनयतन अधधतनयम, 1956 (1957 का असम अधधतनयम 1)।
135. मब
ुं ई अलभधतृ त और कृवष भलू म (ववदभत क्षेत्र) अधधतनयम, 1958 (1958 का मब
ुं ई अधधतनयम
99)।
136. गज
ु रात प्राइवेट वन (अजतन) अधधतनयम, 1972 (1973 का गज
ु रात अधधतनयम 14)।

292
137. हररयाणा भलू म-जोत की अधधकतम सीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का हररयाणा
अधधतनयम 17)।
___________________
1. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1976 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थावपत|
2. अब मोटर यान अधधतनयम, (1988 का 59) के सुसग
ं त उपबंध दे खें|
3. संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978 की धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्रववक्ष्ट
130 का लोप ककया गया|

138. हहमाचल प्रदे श अलभधतृ त और भलू म सध


ु ार अधधतनयम, 1972 (1974 का हहमाचल प्रदे श
अधधतनयम 8)।
139. हहमाचल प्रदे श ग्राम शालमलाती भलू म तनधान और उपयोजन अधधतनयम, 1974 (1974 का
हहमाचल प्रदे श अधधतनयम 18)।
140. कनातटक भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन और प्रक्रीणत उपबंध) अधधतनयम, 1974 (1974 का कनातटक
अधधतनयम 31)।
141. कनातटक भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का कनातटक अधधतनयम 27)।
142. केरल बेदखली तनवारण अधधतनयम, 1966 (1966 का केरल अधधतनयम 12)।
143. ततरुप्पव
ु ारम ् संदाय (उत्सादन) अधधतनयम, 1969 (1969 का केरल अधधतनयम 19)।
144. श्री पादम ् भलू म ववमक्ु क्त अधधतनयम, 1969 (1969 का केरल अधधतनयम 20)।
145. श्रीपणडारवका भलू म (तनधान और ववमक्ु क्त) अधधतनयम, 1971 (1971 का केरल अधधतनयम 20)।
146. केरल प्राइवेट वन (तनधान और समनद
ु े शन) अधधतनयम, 1971 (1971 का केरल अधधतनयम
26)।
147. केरल कृवष कमतकार अधधतनयम, 1974 (1974 का केरल अधधतनयम 18)।
148. केरल काजू कारखाना (अजतन) अधधतनयम, 1974 (1974 का केरल अधधतनयम 29)।
149. केरल धचट्ठी अधधतनयम, 1975 (1975 का केरल अधधतनयम 23)।
150. केरल अनस
ु धू चत जनजातत (भलू म के अंतरण पर तनबंधन ौौअर अन्य-संक्रांत भलू म का
प्रत्यावततन) अधधतनयम, 1975 (1975 का केरल अधधतनयम 31)।
151. केरल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का केरल अधधतनयम 15)।
152. काणम ् अलभधतृ त उत्सादन अधधतनयम, 1976 (1976 का केरल अधधतनयम 16)।
153. मध्य प्रदे श कृवषक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1974 (मध्य प्रदे श अधधतनयम
क्रमांक 20 सन ् 1974)।
154. मध्य प्रदे श कृवषक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1975 (मध्य प्रदे श अधधतनयम
क्रमांक 2 सन ् 1976)।
155. पक्श्चमी खानदे श मेहवासी संपदा (सांपवर्त्क अधधकार उत्सादन, आहद) ववतनयम, 1961 (1962 का
महाराष्र ववतनयम 1)।
156. महाराष्र अनस
ु धू चत जनजाततयों को भलू म का प्रत्यावततन अधधतनयम, 1974 (1975 का महाराष्र
अधधतनयम 14)।
157. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा घटाना) और (संशोधन) अधधतनयम 1972 (1975
का महाराष्र अधधतनयम 21)।

293
158. महाराष्र प्राइवेट वन (अजतन) अधधतनयम, 1975 (1975 का महाराष्र अधधतनयम 29)।
159. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा घटाना) और (संशोधन) संशोधन अधधतनयम 1975
(1975 का महाराष्र अधधतनयम 47)।
160. महाराष्र कृवष भलू म (अधधकतम जोत सीमा) (संशोधन) अधधतनयम 1975 (1976 का महाराष्र
अधधतनयम 2)।
161. उड़ीसा संपदा उत्सादन अधधतनयम, 1951 (1952 का उड़ीसा अधधतनयम 1)।
162. राजस्थान उपतनवेश अधधतनयम, 1954 (1954 का राजस्थान अधधतनयम सं. 27)।
163. राजस्थान भलू म सध
ु ार तथा भ-ू स्वालमयों की संपदा का अजतन अधधतनयम, 1963 (1964 का
राजस्थान अधधतनयम सं.11)।
164. राजस्थान कृवष जोतों पर अधधकतम सीमा अधधरोपण (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का
राजस्थान अधधतनयम सं. 8)।
165. राजस्थान अलभधतृ त (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का राजस्थान अधधतनयम सं. 12)।
166. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा घटाना) अधधतनयम, 1970 (1970 का तलमलनाडु
अधधतनयम 17)।
167. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1971 (1971 का
तलमलनाडु अधधतनयम 41)।
168. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1972 (1972 का
तलमलनाडु अधधतनयम 10)।
169. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) दस
ू रा संशोधन अधधतनयम, 1972
(1972 का तलमलनाडु अधधतनयम 20)।
170. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) तीसरा संशोधन अधधतनयम, 1972
(1972 का तलमलनाडु अधधतनयम 37)।
171. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) चौथा संशोधन अधधतनयम, 1972
(1972 का तलमलनाडु अधधतनयम 39)।
172. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) छठा संशोधन अधधतनयम, 1972
(1974 का तलमलनाडु अधधतनयम 7)।
173. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) पांचवाँ संशोधन अधधतनयम, 1972
(1974 का तलमलनाडु अधधतनयम 10)।
174. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1974 (1974 का
तलमलनाडु अधधतनयम 15)।
175. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) तीसरा संशोधन अधधतनयम, 1974
(1974 का तलमलनाडु अधधतनयम 30)।
176. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) दस
ू रा संशोधन अधधतनयम, 1974
(1974 का तलमलनाडु अधधतनयम 32)।
177. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1975 (1975 का
तलमलनाडु अधधतनयम 11)।

294
178. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) दस
ू रा संशोधन अधधतनयम, 1975
(1975 का तलमलनाडु अधधतनयम 21)।
179. उर्त्र प्रदे श भलू म-ववधध (संशोधन) अधधतनयम, 1971 (उर्त्र प्रदे श अधधतनयम संख्या 21, 1971)
तथा उर्त्र प्रदे श भलू म-ववधध (संशोधन) अधधतनयम, 1974 (उर्त्र प्रदे श अधधतनयम संख्या 34, 1974) द्वारा
1950 ई. का उर्त्र प्रदे श जमींदारी ववनाश और भलू म-व्यवस्था अधधतनयम (उर्त्र प्रदे श अधधतनयम संख्या 1,
1951) में ककए गए संशोधन।
180. उर्त्र प्रदे श अधधकतम जोत-सीमा आरोपण (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (उर्त्र प्रदे श अधधतनयम
संख्या 20, 1976)।
181. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1972 (1972 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 28)।
182. पक्श्चमी बंगाल अन्यसंक्रांत भलू म का प्रत्यावततन अधधतनयम, 1973 (1973 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 23)।
183. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1974 (1974 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
33)।
184. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1975 (1975 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
23)।
185. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
12)।
186. हदल्ली भलू म जोत (अधधकतम सीमा) संशोधन अधधतनयम, 1976 (1976 का केंद्रीय अधधतनयम
15)।
187. गोवा, दमण और दीव मड
ुं कार (बेदखली से संरक्षण) अधधतनयम, 1975 (1976 का गोवा, दमण
और दीव अधधतनयम 1)।
188. पांडडचेरी भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) अधधतनयम, 1973 (1974 का पांडडचेरी
अधधतनयम 9)।]
1
[189. असम (अस्थायी रुप से व्यवस्थावपत क्षेत्र) अलभधतृ त अधधतनयम, 1971 (1971 का असम
अधधतनयम 23)।
190. असम (अस्थायी रुप से व्यवस्थावपत क्षेत्र) अलभधतृ त (संशोधन) अधधतनयम, 1974 (1974 का
असम अधधतनयम 18)।
191. त्रबहार भलू म सध
ु ार (अधधकतम सीमा तनधातरण और अधधशेष भलू म अजतन) (संशोधन) संशोधी
अधधतनयम, 1974 (1975 का त्रबहार अधधतनयम 13)।
192. त्रबहार भलू म सध
ु ार (अधधकतम सीमा तनधातरण और अधधशेष भलू म अजतन) (संशोधन)
अधधतनयम, 1976 (1976 का त्रबहार अधधतनयम 22)।
193. त्रबहार भलू म सध
ु ार (अधधकतम सीमा तनधातरण और अधधशेष भलू म अजतन) (संशोधन)
अधधतनयम, 1978 (1978 का त्रबहार अधधतनयम 7)।
194. भलू म अजतन (त्रबहार संशोधन) अधधतनयम, 1979 (1980 का त्रबहार अधधतनयम 2)।
195. हररयाणा (भलू म-जोत की अधधकतम सीमा) (संशोधन) अधधतनयम, 1977 (1977 का हररयाणा
अधधतनयम 14)।

295
196. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1978 (1978 का
तलमलनाडु अधधतनयम 25)।
197. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1979 (1979 का
तलमलनाडु अधधतनयम 11)।
198. उर्त्र प्रदे श जमींदारी ववनाश ववधध (संशोधन) अधधतनयम, 1978 (1978 का उर्त्र प्रदे श
अधधतनयम 15)।
199. पक्श्चमी बंगाल अन्यसंक्रांत भलू म का प्रत्यावततन (संशोधन) अधधतनयम, 1978 (1978 का
पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम 24)।
200. पक्श्चमी बंगाल अन्यसंक्रांत भलू म का प्रत्यावततन (संशोधन) अधधतनयम, 1980 (1980 का
पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम 56)।
201. गोवा, दमण और दीव कृवष अलभधतृ त अधधतनयम, 1964 (1964 का गोवा, दमण और दीव
अधधतनयम 7)।
202. गोवा, दमण और दीव कृवष अलभधतृ त (पाँचवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का गोवा,
दमण और दीव अधधतनयम 17)।]
1
[203. आंध्र प्रदे श अनस
ु धू चत क्षेत्र भलू म अंतरण ववतनयम, 1959 (1959 का आंध्र प्रदे श ववतनयम 1)।
204. आंध्र प्रदे श अनस
ु धू चत क्षेत्र ववधध (ववस्तारण और संशोधन) ववतनयम, 1963 (1963 का आंध्र
प्रदे श ववतनयम 2)।
205. आंध्र प्रदे श अनस
ु धू चत क्षेत्र भलू म अंतरण (संशोधन) ववतनयम, 1970 (1970 का आंध्र प्रदे श
ववतनयम 1)।
206. आंध्र प्रदे श अनस
ु धू चत क्षेत्र भलू म अंतरण (संशोधन) ववतनयम, 1971 (1971 का आंध्र प्रदे श
ववतनयम 1)।
207. आंध्र प्रदे श अनस
ु धू चत क्षेत्र भलू म अंतरण (संशोधन) ववतनयम, 1978 (1978 का आंध्र प्रदे श
ववतनयम 1)।
208. त्रबहार काश्तकारी अधधतनयम, 1885 (1885 का त्रबहार अधधतनयम 8)।
209. छोटा नागपरु काश्तकारी अधधतनयम, 1908 (1908 का बंगाल अधधतनयम 6) (अध्याय 8 - धारा
46, धारा 47, धारा 48, धारा 48क और धारा 49; अध्याय 10 - धारा 71, धारा 71क और धारा 71ख; और
अध्याय 18 - धारा 240, धारा 241 और धारा 242)।
___________________
1. संववधान (तछयासठवां संशोधन) अधधतनयम, 1990 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थावपत|

210. संथाल परगना काश्तकारी (परू क प्रावधान) अधधतनयम, 1949 (1949 का त्रबहार अधधतनयम 14)
धारा 53 को छोड़कर।
211. त्रबहार अनस
ु धू चत क्षेत्र ववतनयम, 1969 (1969 का त्रबहार ववतनयम 1)।
212. त्रबहार भलू म सध
ु ार (अधधकतम सीमा तनधातरण और अधधशेष भलू म अजतन) (संशोधन)
अधधतनयम, 1982 (1982 का त्रबहार अधधतनयम 55)।
213. गज
ु रात दे वस्थान इनाम उत्सादन अधधतनयम, 1969 (1969 का गज
ु रात अधधतनयम 16)।
214. गज
ु रात अलभधतृ त ववधध (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का गज
ु रात अधधतनयम 37)।

296
215. गज
ु रात अधधकतम कृवष भलू म सीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का राष्रपतत
अधधतनयम 43)।
216. गज
ु रात दे वस्थान इनाम उत्सादन (संशोधन) अधधतनयम, 1977 (1977 का गज
ु रात अधधतनयम
27)।
217. गज
ु रात अलभधतृ त ववधध (संशोधन) अधधतनयम, 1977 (1977 का गज
ु रात अधधतनयम 30)।
218. मब
ुं ई भ-ू राजस्व (गज
ु रात दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1980 (1980 का गज
ु रात अधधतनयम
37)।
219. मब
ुं ई भ-ू राजस्व संहहता और भध
ू तृ त उत्सादन ववधध (गज
ु रात संशोधन) अधधतनयम, 1982
(1982 का गज
ु रात अधधतनयम 8)।
220. हहमाचल प्रदे श भलू म अंतरण (ववतनयमन) अधधतनयम, 1968 (1969 का हहमाचल प्रदे श
अधधतनयम 15)।
221. हहमाचल प्रदे श भलू म अंतरण (ववतनयमन) (संशोधन) अधधतनयम, 1986 (1986 का हहमाचल
प्रदे श अधधतनयम 16)।
222. कनातटक अनस
ु धू चत जातत और अनस
ु धू चत जनजातत (कततपय भलू म अंतरण प्रततषेध)
अधधतनयम, 1978 (1979 का कनातटक अधधतनयम 2)।
223. केरल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1978 (1978 का केरल अधधतनयम 13)।
224. केरल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1981 (1981 का केरल अधधतनयम 19)।
225. मध्य प्रदे श भ-ू राजस्व संहहता (तत
ृ ीय संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का मध्य प्रदे श
अधधतनयम 61)।
226. मध्य प्रदे श भ-ू राजस्व संहहता (संशोधन) अधधतनयम, 1980 (1980 का मध्य प्रदे श अधधतनयम
15)।
227. मध्य प्रदे श अकृवषक जोत उच्चतम सीमा अधधतनयम, 1981 (1981 का मध्य प्रदे श अधधतनयम
11)।
228. मध्य प्रदे श कृवषक जोत उच्चतम सीमा (द्ववतीय संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1984 का मध्य
प्रदे श अधधतनयम 1)।
229. मध्य प्रदे श कृवषक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1984 (1984 का मध्य प्रदे श
अधधतनयम 14)।
230. मध्य प्रदे श कृवषक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1989 का मध्य प्रदे श
अधधतनयम 8)।
231. महाराष्र भ-ू राजस्व संहहता, 1966 (1966 का महाराष्र अधधतनयम 41) धारा 36, धारा 36क और
धारा 36ख।
232. महाराष्र भ-ू राजस्व संहहता और महाराष्र अनस
ु धू चत जनजातत भलू म प्रत्यावततन (दस
ू रा
संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1977 का महाराष्र अधधतनयम 30)।
233. महाराष्र कततपय भलू म में खानों और खतनजों के ववद्यमान सांपवर्त्क अधधकारों का उत्सादन
अधधतनयम, 1985 (1985 का महाराष्र अधधतनयम 16)।
234. उड़ीसा अनस
ु धू चत क्षेत्र (अनस
ु धू चत जनजाततयों द्वारा) स्थावर संपवर्त् अंतरण ववतनयम, 1956
(1956 का उड़ीसा ववतनयम 2)।

297
235. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1975 (1976 का उड़ीसा अधधतनयम 29)।
236. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का उड़ीसा अधधतनयम 30)।
237. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1976 (1976 का उड़ीसा अधधतनयम 44)।
238. राजस्थान उपतनवेशन (संशोधन) अधधतनयम, 1984 (1984 का राजस्थान अधधतनयम 12)।
239. राजस्थान अलभधतृ त (संशोधन) अधधतनयम, 1984 (1984 का राजस्थान अधधतनयम 13)।
240. राजस्थान अलभधतृ त (संशोधन) अधधतनयम, 1987 (1987 का राजस्थान अधधतनयम 21)।
241. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) दस
ू रा संशोधन अधधतनयम, 1979
(1980 का तलमलनाडु अधधतनयम 8)।
242. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1980 (1980 का
तलमलनाडु अधधतनयम 21)।
243. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1981 (1981 का
तलमलनाडु अधधतनयम 59)।
244. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) दस
ू रा संशोधन अधधतनयम, 1983
(1984 का तलमलनाडु अधधतनयम 2)।
245. उर्त्र प्रदे श भलू म-ववधध (संशोधन) अधधतनयम, 1982 (1982 का उर्त्र प्रदे श अधधतनयम 20)।
246. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1965 (1965 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
18)।
247. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1966 (1966 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
11)।
248. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1969 (1969 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 23)।
249. पक्श्चमी बंगाल संपदा अजतन (संशोधन) अधधतनयम, 1977 (1977 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
36)।
250. पक्श्चमी बंगाल भलू म जोत राजस्व अधधतनयम, 1979 (1979 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
44)।
251. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1980 (1980 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
41)।
252. पक्श्चमी बंगाल भलू म जोत राजस्व (संशोधन) अधधतनयम, 1981 (1981 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 33)।
253. कलकर्त्ा ठे का अलभधतृ त (अजतन और ववतनयमन) अधधतनयम, 1981 (1981 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 37)।
254. पक्श्चमी बंगाल भलू म जोत राजस्व (संशोधन) अधधतनयम, 1982 (1982 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 23)।
255. कलकर्त्ा ठे का अलभधतृ त (अजतन और ववतनयमन) (संशोधन) अधधतनयम, 1984 (1984 का
पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम 41)।
256. माहे भलू म सध
ु ार अधधतनयम, 1968 (1968 का पांडडचेरी अधधतनयम 1)।
257. माहे भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1980 (1981 का पांडडचेरी अधधतनयम 1)।

298
1
[257क. तलमलनाडु वपछड़ा वगत, अनस
ु धू चत जातत और अनस
ु धू चत जनजातत (राज्य के अधीन लशक्षा
संस्थाओं में स्थानों और सेवाओं में तनयक्ु क्तयों या पदों का आरक्षण) अधधतनयम, 1993 (1994 का तलमलनाडु
अधधतनयम 45)।]
2
[258. त्रबहार ववशेषाधधकार प्राप्त व्यक्क्त वासभलू म अलभधतृ त अधधतनयम, 1947 (1948 का त्रबहार
अधधतनयम 4)।
259. त्रबहार चकबंदी और खंडकरण तनवारण अधधतनयम, 1956 (1956 का त्रबहार अधधतनयम 22)।
260. त्रबहार चकबंदी और खंडकरण तनवारण (संशोधन) अधधतनयम, 1970 (1970 का त्रबहार
अधधतनयम 7)।
___________________
1. संववधान (तछहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1994 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थावपत।
2. संववधान (अठहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1995 की धारा 2 द्वारा प्रववक्ष्ट 258 से 284 तक
अंतःस्थावपत|

261. त्रबहार ववशेषाधधकार प्राप्त व्यक्क्त वासभलू म अलभधतृ त (संशोधन) अधधतनयम, 1970 (1970 का
त्रबहार अधधतनयम 9)।
262. त्रबहार चकबंदी और खंडकरण तनवारण (संशोधन) अधधतनयम, 1973 (1975 का त्रबहार
अधधतनयम 27)।
263. त्रबहार चकबंदी और खंडकरण तनवारण (संशोधन) अधधतनयम, 1981 (1982 का त्रबहार
अधधतनयम 35)।
264. त्रबहार भलू म सध
ु ार (अधधकतम सीमा तनधातरण और अधधशेष भलू म अजतन) (संशोधन)
अधधतनयम, 1987 (1987 का त्रबहार अधधतनयम 21)।
265. त्रबहार ववशेषाधधकार प्राप्त व्यक्क्त वासभलू म अलभधतृ त (संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1989 का
त्रबहार अधधतनयम 11)।
266. त्रबहार भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1990 का त्रबहार अधधतनयम 11)।
267. कनातटक अनस
ु धू चत जातत और अनस
ु धू चत जनजातत (कततपय भलू म अंतरण प्रततषेध)
(संशोधन) अधधतनयम, 1984 (1984 का कनातटक अधधतनयम 3)।
268. केरल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1989 का केरल अधधतनयम 16)।
269. केरल भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1990 का केरल अधधतनयम 2)।
270. उड़ीसा भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1990 का उड़ीसा अधधतनयम 9)।
271. राजस्थान अलभधतृ त (संशोधन) अधधतनयम, 1979 (1979 का राजस्थान अधधतनयम 16)।
272. राजस्थान उपतनवेशन (संशोधन) अधधतनयम, 1987 (1987 का राजस्थान अधधतनयम 2)।
273. राजस्थान उपतनवेशन (संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1989 का राजस्थान अधधतनयम 12)।
274. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1983 (1984 का
तलमलनाडु अधधतनयम 3)।
275. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) संशोधन अधधतनयम, 1986 (1986 का
तलमलनाडु अधधतनयम 57)।
276. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) दस
ू रा संशोधन अधधतनयम, 1987
(1988 का तलमलनाडु अधधतनयम 4)।

299
277. तलमलनाडु भलू म सध
ु ार (अधधकतम भलू म सीमा तनयतन) (संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1989 का
तलमलनाडु अधधतनयम 30)।
278. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1981 (1981 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
50)।
279. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1986 (1986 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
5)।
280. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (दस
ू रा संशोधन) अधधतनयम, 1986 (1986 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 19)।
281. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (तीसरा संशोधन) अधधतनयम, 1986 (1986 का पक्श्चमी बंगाल
अधधतनयम 35)।
282. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1989 (1989 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
23)।
283. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार (संशोधन) अधधतनयम, 1990 (1990 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
24)।
284. पक्श्चमी बंगाल भलू म सध
ु ार अधधकरण अधधतनयम, 1991 (1991 का पक्श्चमी बंगाल अधधतनयम
12)।
स्पष्ट्टीकरण - राजस्थान अलभधतृ त अधधतनयम, 1955 (1955 का राजस्थान अधधतनयम सं. 3) के
अधीन, अनच्
ु छे द 31क के खंड (1) के दस
ू रे परं तक
ु के उल्लंघन में ककया गया अजतन उस उल्लंघन की मात्रा
तक शन्
ू य होगा।]

300
1
[दसिीं अनस
ु च
ू ी
[अनच्
ु छे द 102(2) और अनच्
ु छे द 191(2)]
दल पररितमन के आधार पर ननर्हमत के बारे में उपबंध
1. ननिमचन - इस अनस
ु च
ू ी में जब तक कक संदभत से अन्यथा अपेक्षक्षत न हो,-
(क) “सदन” से, संसद् का कोई सदन या ककसी राज्य की, यथाक्स्थतत, ववधान सभा या, ववधान-मंडल
का कोई सदन अलभप्रेत है;
(ख) सदन के ककसी ऐसे सदस्य के संबध
ं में जो, 2[***] पैरा 2 2[***]या पैरा 4 के उपबंधों के
अनस
ु ार ककसी राजनीततक दल का सदस्य है , “ववधान-दल” से, उस सदन के ऐसे सभी सदस्यों
का समह
ू अलभप्रेत है जो उक्त उपबंधों के अनस
ु ार तत्समय उस राजनीततक दल के सदस्य हैं;
(ग) सदन के ककसी सदस्य के संबध
ं में , “मल
ू राजनीततक दल” से ऐसा राजनीततक दल अलभप्रेत है
क्जसका वह पैरा 2 के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के ललए सदस्य है ;
(घ) “पैरा” से इस अनस
ु च
ू ी का पैरा अलभप्रेत है ।
2. दल पररितमन के आधार पर ननर्हमत - (1) 3[ पैरा 4 और पैरा 5] के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
सदन का कोई सदस्य, जो ककसी राजनीततक दल का सदस्य है , सदन का सदस्य होने के ललए
उस दशा में तनरहहतत होगा क्जसमें
(क) उसने ऐसे राजनीततक दल की अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है ; या
(ख) वह ऐसे राजनीततक दल द्वारा क्जसका वह सदस्य है अथवा उसके द्वारा इस तनलमर्त्
प्राधधकृत ककसी व्यक्क्त या प्राधधकारी द्वारा हदए गए ककसी तनदे श के ववरुद्ध, ऐसे राजनीततक
दल, व्यक्क्त या प्राधधकारी की पव
ू त अनज्ञ
ु ा के त्रबना, ऐसे सदन में मतदान करता है या मतदान
करने से ववरत रहता है और ऐसे मतदान या मतदान करने से ववरत रहने को ऐसे राजनीततक
दल, व्यक्क्त या प्राधधकारी ने ऐसे मतदान या मतदान करने से ववरत रहने की तारीख से पंद्रह
हदन के भीतर माफ नहीं ककया है ।
स्पष्ट्टीकरण - इस उपपैरा के प्रयोजनों के ललए, -
(क) सदन के ककसी तनवातधचत सदस्य के बारे में यह समझा जाएगा कक वह ऐसे राजनीततक दल
का, यहद कोई हो, सदस्य है क्जसने उसे ऐसे सदस्य के रूप में तनवातचन के ललए अभ्यथी के
रूप में खड़ा ककया था;
(ख) सदन के ककसी नामतनदे लशत सदस्य के बारे में , -
(i) उस दशा में , क्जसमें वह ऐसे सदस्य के रूप में अपने नामतनदे शन की तारीख को ककसी
राजनीततक दल का सदस्य है , यह समझा जाएगा कक वह ऐसे राजनीततक दल का सदस्य है ;
___________________
1. संववधान (बावनवां संशोधन) अधधतनयम, 1985 की धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया।
2. संववधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 की धारा 5 द्वारा शब्दों और अंक
“यथाक्स्थतत” तथा “या पैरा 3” का लोप ककया गया|
3. उपरोक्त द्वारा शब्दों और अंको “पैरा 3, पैरा 4 और पैरा 5” के स्थान पर प्रततस्थावपत|

(ii) ककसी अन्य दशा में , यह समझा जाएगा कक वह उस राजनीततक दल का सदस्य है क्जसका,
यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 99 या अनच्
ु छे द 188 की अपेक्षाओं का अनप
ु ालन करने के पश्चात ् अपना

301
स्थान ग्रहण करने की तारीख से छह मास की समाक्प्त के पव
ू त वह, यथाक्स्थतत, सदस्य बनता
है या पहली बार बनता है ।
(2) सदन का कोई तनवातधचत सदस्य, जो ककसी राजनीततक दल द्वारा खड़े ककए गए अभ्यथी से
लभन्न रूप में सदस्य तनवातधचत हुआ है , सदन का सदस्य होने के ललए तनरहहतत होगा यहद वह ऐसे तनवातचन
के पश्चात ् ककसी राजनीततक दल में सक्म्मललत हो जाता है ।
(3) सदन का कोई नामतनदे लशत सदस्य, सदन का सदस्य होने के ललए तनरहहतत होगा यहद वह,
यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 99 या अनच्
ु छे द 188 की अपेक्षाओं का अनप
ु ालन करने के पश्चात ् अपना स्थान ग्रहण
करने की तारीख से छह मास की समाक्प्त के पश्चात ् ककसी राजनीततक दल में सक्म्मललत हो जाता है ।
(4) इस पैरा के पव
ू ग
त ामी उपबंधों में ककसी बात के होते हुए भी, ककसी ऐसे व्यक्क्त के बारे में जो,
संववधान (बावनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1985 के प्रारं भ पर, सदन का सदस्य है (चाहे वह तनवातधचत सदस्य
हो या नामतनदे लशत) –
(i) उस दशा में , क्जसमें वह ऐसे प्रारं भ से ठीक पहले ककसी राजनीततक दल का सदस्य था वहाँ, इस
पैरा के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के ललए, यह समझा जाएगा कक वह ऐसे राजनीततक दल द्वारा
खड़े ककए गए अभ्यथी के रूप में ऐसे सदन का सदस्य तनवातधचत हुआ है;
(ii) ककसी अन्य दशा में, यथाक्स्थतत, इस पैरा के उपपैरा (2) के प्रयोजनों के ललए, यह समझा
जाएगा कक वह सदन का ऐसा तनवातधचत सदस्य है जो ककसी राजनीततक दल द्वारा खड़े ककए
गए अभ्यथी से लभन्न रूप में सदस्य तनवातधचत हुआ है या, इस पैरा के उपपैरा (3) के प्रयोजनों
के ललए, यह समझा जाएगा कक वह सदन का नामतनदे लशत सदस्य है ।
3. 1[*****]
___________________
1. संववधान (इक्यानवेवां संशोधन) अधधतनयम, 2003 द्वारा लोप ककया गया| लोप करने से पूवत यह
पैरा तनम्न प्रकार था :
“3. दल पररितमन के आधार पर ननर्हमत का दल विभाजन की दशा में लागू न होना – जहाँ सदन
का कोई सदस्य यह दवा करता है कक वह और उसके ववधान-दल के कोई ऐसी सदस्य ऐसे गुट
का प्रतततनधधत्व करने वाला समूह गहठत करते है जो उसके उल राजतनततक दल के ववभाजन के
पररणामस्वरूप उत्पन्न हुआ है और ऐसे समूह में ऐसे ववधान-दल के नाम से कम एक ततहाई
सदस्य हैं, वहाँ –
(क) वह पैरा 2 के उपपैरा (1) के अधीन इस आधार पर तनरहहतत नहीं होगा कक –
(i) उसने अपने मूल राजनीततक दल कक अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है ; या
(ii) उसने ऐसे दल द्वारा अथवा उसके द्वारा इस तनलमर्त् प्राधधकृत ककसी व्यक्क्त या प्राधधकारी
द्वारा हदए गए ककसी तनदे श के ववरुद्ध, ऐसे दल, व्यक्क्त या प्राधधकारी की पूवत अनुज्ञा के
त्रबना, ऐसे सदन में मतदान ककया है या वह मतदान करने से ववरत रहा है और ऐसे
मतदान या मतदान करने से ववरत रहने को ऐसे दल, व्यक्क्त या प्राधधकारी ने ऐसे मतदान
या मतदान करने से ववरत रहने की तारीख से पंद्रह हदन के भीतर माफ नहीं ककया है ; और
(ख) ऐसे दल ववभाजन के समय से, ऐसे गुट के बारे में यह समझा जाएगा कक वह, पैरा 2 के
उपपैरा (1) के प्रयोजनों के ललए, ऐसा राजनीततक दल है क्जसका वह सदस्य है और वह इस
पैरा के प्रयोजनों के ललए उसका मूल राजनीततक दल है ।”

302
4. दल पररितमन के आधार पर ननर्हमत का विलय की दशा में लागू न होना - (1) सदन का कोई
सदस्य पैरा 2 के उपपैरा (1) के अधीन तनरहहतत नहीं होगा यहद उसके मल
ू राजनीततक दल का ककसी अन्य
राजनीततक दल में ववलय हो जाता है और वह यह दावा करता है कक वह और उके मल
ू राजनीततक दल के
अन्य सदस्य –
(क) यथाक्स्थतत, ऐसे अन्य राजनीततक दल के या ऐसे ववलय से बने नए राजनीततक दल के
सदस्य बन गए हैं; या
(ख) उन्होंने ववलय स्वीकार नहीं ककया है और एक पथ
ृ क् समह
ू के रुप में कायत करने का
ववतनश्चय ककया है ,
और ऐसे ववलय के समय से, यथाक्स्थतत, ऐसे अन्य राजनीततक दल या नए राजनीततक दल या समह
ू के
बारे में यह समझा जाएगा कक वह, पैरा 2 के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के ललए, ऐसा राजनीततक दल है
क्जसका वह सदस्य है और वह इस उपपैरा के प्रयोजनों के ललए उसका मल
ू राजनीततक दल है ।
(2) इस पैरा के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के ललए, सदन के ककसी सदस्य के मल
ू राजनीततक दल का
ववलय हुआ तभी समझा जाएगा जब संबधं धत ववधान-दल के कम से कम दो ततहाई सदस्य ऐसे ववलय के
ललए सहमत हो गए हैं।
5. छूट - इस अनस
ु च
ू ी में ककसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्क्त, जो लोक सभा के अध्यक्ष या
उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा के उपसभापतत अथवा ककसी राज्य की ववधान पररषद् के सभापतत या
उपसभापतत अथवा ककसी राज्य की ववधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद पर तनवातधचत हुआ है , इस
अनस
ु च
ू ी के अधीन तनरहहतत नहीं होगा,-
(क) यहद वह, ऐसे पद पर अपने तनवातचन के कारण ऐसे राजनीततक दल की क्जसका वह ऐसे
तनवातचन से ठीक पहले सदस्य था, अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दे ता है और उसके पश्चात ्
जब तक वह पद धारण ककए रहता है तब तक, उस राजनीततक दल में पन
ु ः सक्म्मललत नहीं
होता है या ककसी दस
ू रे राजनीततक दल का सदस्य नहीं बनता है ; या
(ख) यहद वह, ऐसे पद पर अपने तनवातचन के कारण, ऐसे राजनीततक दल की क्जसका वह ऐसे
तनवातचन से ठीक पहले सदस्य था, अपनी सदस्यता छोड़ दे ता है और ऐसे पद पर न रह जाने
के पश्चात ् ऐसे राजनीततक दल में पन
ु ः सक्म्मललत हो जाता है ।
6. दल पररितमन के आधार पर ननर्हमत के बारे में प्रश्नों का विननश्चय - (1) यहद यह प्रश्न उठता है
कक सदन का कोई सदस्य इस अनस
ु च
ू ी के अधीन तनहहतत से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न, ऐसे
सदन के, यथाक्स्थतत, सभापतत या अध्यक्ष के ववतनश्चय के ललए तनदे लशत ककया जाएगा और उसका
ववतनश्चय अंततम होगा:
परं तु जहाँ यह प्रश्न उठता है कक सदन का सभापतत या अध्यक्ष तनहहतत से ग्रस्त हो गया है या
नहीं वहाँ वह प्रश्न सदन के ऐसे सदस्य के ववतनश्चय के ललए तनदे लशत ककया जाएगा क्जसे वह सदन इस
तनलमर्त् तनवातधचत करे और उसका ववतनश्चय अंततम होगा।
(2) इस अनस
ु च
ू ी के अधीन सदन के ककसी सदस्य की तनहहतत के बारे में ककसी प्रश्न के संबध
ं में
इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन सभी कायतवाहहयों के बारे में यह समझा जाएगा कक वे, यथाक्स्थतत,
अनच्
ु छे द 122 के अथत में संसद् की कायतवाहहयां हैं या अनच्
ु छे द 212 के अथत में राज्य के ववधान-मंडल की
कायतवाहहयाँ हैं।

303
7. न्यायालयों की अधधकाररता का िजमन - इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, ककसी
1

न्यायालय को इस अनस ु च
ू ी के अधीन सदन के ककसी सदस्य की तनहहतत से संबधं धत ककसी ववषय के बारे
में कोई अधधकाररता नहीं होगी।
8. ननयम - (1) इस पैरा के उपपैरा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सदन का सभापतत या
अध्यक्ष, इस अनस ु च
ू ी के उपबंधों को कायातक्न्वत करने के ललए तनयम बना सकेगा तथा ववलशष्टतया और
पव
ू ग
त ामी शक्क्त की व्यापकता पर प्रततकूल प्रभाव डाले त्रबना, ऐसे तनयमों में तनम्नललणखत के ललए उपबंध
ककया जा सकेगा, अथातत ् :-
(क) सदन के ववलभन्न सदस्य क्जन राजनीततक दलों के सदस्य हैं, उनके बारे में रक्जस्टर या अन्य
अलभलेख रखना;
(ख) ऐसा प्रततवेदन जो सदन के ककसी सदस्य के संबध
ं में ववधान-दल का नेता, उस सदस्य की
बाबत पैरा 2 के उपपैरा (1) के खंड (ख) में तनहदत ष्ट प्रकृतत की माफी के संबध
ं में दे गा, वह
समय क्जसके भीतर और वह प्राधधकारी क्जसको ऐसा प्रततवेदन हदया जाएगा।
(ग) ऐसे प्रततवेदन क्जन्हें कोई राजनीततक दल सदन के ककसी सदस्य को ऐसे राजनीततक दल में
प्रववष्ट करने के संबध
ं में दे गा और सदन का ऐसा अधधकारी क्जसको ऐसे प्रततवेदन हदए
जाएँग;े और
(घ) पैरा 6 के उपपैरा (1) में तनहदतष्ट ककसी प्रश्न का ववतनश्चय करने की प्रकक्रया क्जसके अंतगतत
ऐसी जाँच की प्रकक्रया है , जो ऐसे प्रश्न का ववतनश्चय करने के प्रयोजन के ललए की जाए।
(2) सदन के सभापतत या अध्यक्ष द्वारा इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन बनाए गए तनयम, बनाए
जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र, सदन के समक्ष, कुल तीस हदन की अवधध के ललए रखे जाएँगे। यह अवधध एक
सत्र में अथवा दो या अधधक आनक्र
ु लमक सत्रों में परू ी हो सकेगी। वे तनयम तीस हदन की उक्त अवधध की
समाक्प्त पर प्रभावी होंगे जब तक कक उनका सदन द्वारा पररवततनों सहहत या उनके त्रबना पहले ही
अनम
ु ोदन या अननम
ु ोदन नहीं कर हदया जाता है । यहद वे तनयम इस प्रकार अनम
ु ोहदत कर हदए जाते हैं तो
वे, यथाक्स्थतत, ऐसे रूप में क्जसमें वे रखे गए थे या ऐसे पररवतततत रूप में ही प्रभावी होंगे। यहद तनयम इस
प्रकार अनम
ु ोहदत कर हदए जाते हैं तो वे तनष्प्रभाव हो जाएँगे।
(3) सदन का सभापतत या अध्यक्ष, यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 105 या अनच्
ु छे द 194 के उपबंधों पर और
ककसी ऐसी अन्य शक्क्त पर जो उसे इस संववधान के अधीन प्राप्त है , प्रततकूल प्रभाव डाले त्रबना, यह तनदे श
दे सकेगा कक इस पैरा के अधीन बनाए गए तनयमों के ककसी व्यक्क्त द्वारा जानबझ
ू कर ककए गए ककसी
उल्लंघन के बारे में उसी रीतत से कारत वाई की जाए क्जस रीतत से सदन के ववशेषाधधकार के भंग के बारे में
की जाती है ।]
___________________
1. पैरा 7 को ककहोतो होलोहन बनाम जेधचल्हु और अन्य (1992) 1 एस.सी.सी. 309 में बहुमत कक
राय के अनुसार अनुच्छे द 368 के खंड (2) के परं तुक के अनुसार अधधसूचना के आभाव में
अववधधमान्य घोवषत ककया गया|

304
1
[ग्यारहिीं अनस
ु च
ू ी
[अनच्
ु छे द 243-छ]
1. कृवष, क्जसके अंतगतत कृवष-ववस्तार है |
2.भलू म ववकास, भलू म सध
ु ार का कायातन्वयन, चकबंदी और भलू म संरक्षण।
3. लघु लसंचाई, जल प्रबंध और जलववभाजक क्षेत्र का ववकास।
4. पशप
ु ालन, डेरी उद्योग और कुक्कुट-पालन।
5. मत्स्य उद्योग।
6. सामाक्जक वातनकी और फामत वातनकी।
7. लघु वन उपज।
8. लघु उद्योग, क्जनके अंतगतत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी हैं।
9. खादी, ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग।
10. ग्रामीण आवासन।
11. पेय जल।
12. ईंधन और चारा।
13. सड़कें, पलु लया, पल
ु , फेरी, जलमागत और अन्य संचार साधन।
14. ग्रामीण ववद्यत
ु ीकरण, क्जसके अंतगतत ववद्यत
ु का ववतरण है ।
15. अपारं पररक ऊजात स्त्रोत।
16. गरीबी उन्मल
ू न कायतक्रम।
17. लशक्षा, क्जसके अंतगतत प्राथलमक और माध्यलमक ववद्यालय भी है ।
18. तकनीकी प्रलशक्षण और व्यावसातयक लशक्षा।
19. प्रौढ़ और अनौपचाररक लशक्षा।
20. पस्
ु तकालय।
21. सांस्कृततक कक्रयाकलाप।
22. बाजार और मेले।
23. स्वास्थ्य और स्वच्छता, क्जनके अंतगतत अस्पताल, प्राथलमक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय भी हैं।
24. पररवार कल्याण।
25. महहला और बाल-ववकास।
26. समाज कल्याण, क्जसके अंतगतत ववकलांगों और मानलसक रुप से मंद व्यक्क्तयों का कल्याण भी
है ।
27. दब
ु ल
त वगों का और ववलशष्टतया, अनस
ु धू चत जाततयों और अनस
ु धू चत जनजाततयों का कल्याण।
28. सावतजतनक ववतरण प्रणाली।
29. सामद
ु ातयक आक्स्तयों का अनरु क्षण।
____________________
1. संववधान (ततहर्त्रवां संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 4 द्वारा (244-1993 से) जोड़ा गया|

305
[बारहिीं अनस
1
ु च
ू ी
[अनच्
ु छे द 243-ब]
1. नगरीय योजना क्जसके अंतगतत नगर योजना भी है ।
2. भलू म उपयोग का ववतनयमन और भवनों का तनमातण।
3. आधथतक और सामाक्जक ववकास योजना।
4. सड़कें और पल
ु ।
5. घरे ल,ू औद्योधगक और वाणणक्ज्यक प्रयोजनों के ललए जल प्रदाय।
6. लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई और कूड़ा-करकट प्रबंध।
7. अक्ग्नशमन सेवाएँ।
8. नगरीय वातनकी, पयातवरण का संरक्षण और पाररक्स्थततकी आयामों की अलभवद्
ृ धध।
9. समाज के दब
ु ल
त वगों के, क्जनके अंतगतत ववकलांग और मानलसक रूप से मंद व्यक्क्त भी हैं, हहतों
की रक्षा।
10. गंदी-बस्ती सध
ु ार और प्रोन्नयन।
11. नगरीय तनधतनता उन्मल
ू न।
12. नगरीय सख
ु -सवु वधाओं, जैसे पाकत, उद्यान, खेल के मैदानों की व्यवस्था।
13. सांस्कृततक, शैक्षणणक और सौंदयतपरक आयामों की अलभवद्
ृ धध।
14. शव गाड़ना और कत्रब्रस्तान; शवदाह और श्मशान और ववद्यत
ु शवदाह गह
ृ ।
15. कांजी हाउस; पशओ
ु ं के प्रतत क्रूरता का तनवारण।
16. जन्म-मरण सांक्ख्यकी, क्जसके अंतगतत जन्म और मत्ृ यु रक्जस्रीकरण भी है ।
17. सावतजतनक सख
ु -सवु वधाएँ, क्जनके अंतगतत सड़कों पर प्रकाश, पाककंग स्थल, बस स्टॉप और जन
सवु वधाएँ भी हैं।
18. वधशालाओं और चमतशोधनशालाओं का ववतनयमन।]
____________________
1. संववधान (चौहर्त्रवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1992 की धारा 4 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्थावपत।

306
पररलशष्ट्ट 1

संविधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श 19541

स.आ.48

राष्रपतत, संववधान के अनच्


ु छे द 370 के खंड (1) द्वारा प्रदर्त् शक्क्तयों का प्रयोग करते हुए, जम्म-ू
कश्मीर राज्य की सरकार की सहमतत से, तनम्नललणखत आदे श करते हैं :-

1. (1) इस आदे श का संक्षक्षप्त नाम संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 है ।
(2) यह 14 मई, 1954 को प्रवर्त्
ृ होगा, और ऐसा होने पर संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू
होना) आदे श, 1950 को अधधक्रांत कर दे गा।
2. 2[संववधान के अनच्
ु छे द 1 तथा अनच्
ु छे द 370 के अततररक्त उसके 20 जून, 1964 को यथा
प्रवर्त्
ृ और संववधान (उन्नसीवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1966, संववधान (इक्कीसवाँ संशोधन) अधधतनयम,
1967, संववधान (तेईसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1969 की धारा 5, संववधान (चौबीसवाँ संशोधन)
अधधतनयम, 1971, संववधान (पच्चीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1971 की धारा 2, संववधान (छब्बीसवाँ
संशोधन) अधधतनयम, 1971, संववधान (तीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1972, संववधान (इकतीसवाँ
संशोधन) अधधतनयम, 1973 की धारा2, संववधान (तैंतीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1974 की धारा 2,
संववधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 की धारा 2, 5, 6 और 7, संववधान (उनतालीसवाँ
संशोधन) अधधतनयम, 1975, संववधान (चालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1976, संववधान (बावनवाँ
संशोधन) अधधतनयम, 1985 की धारा 2, 3 और 6 और संववधान (इकसठवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1988
द्वारा यथासंशोधधत, जो उपबंध जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में लागू होंगे और वे अपवाद और उपांतरण
क्जनके अधीन वे इस प्रकार लागू होंगे, तनम्नललणखत होंगे :-
(1) उद्दे लशका
(2) भाग 1
अनच्
ु छे द 3 में तनम्नललणखत और परं तक
ु जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
“परं तु यह और कक जम्म-ू कश्मीर राज्य के क्षेत्र को बढ़ाने या घटाने या उस राज्य के नाम या
उसकी सीमा में पररवततन करने का उपबंध करने वाला कोई ववधेयक उस राज्य के ववधान-मंडल की
सहमतत के त्रबना संसद् में परु ःस्थावपत नहीं ककया जाएगा।“।
(3) भाग 2
(क) यह भाग जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में 26 जनवरी, 1950 से लागू समझा जाएगा।
(ख) अनच्
ु छे द 7 में तनम्नललणखत और परं तक
ु जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
------------------------------

1. ववधध मंत्रालय की अधधसूचना सं. का. तन. 1610, तारीख 14 मई, 1954, भारत का राजपत्र,
असाधारण, भाग 3, पष्ृ ठ 821 में प्रकालशत।
2. प्रारं भ में आने वाले शब्द संववधान आदे श 56, संववधान आदे श 74, संववधान आदे श 76,
संववधान आदे श 79, संववधान आदे श 89, संववधान आदे श 91, संववधान आदे श 94, संववधान
आदे श 98, संववधान आदे श 103, संववधान आदे श 104, संववधान आदे श 105, संववधान

307
आदे श 108, संववधान आदे श 136 और तत्पश्चात ् संववधान आदे श 141 द्वारा संशोधधत
होकर उपरोक्त रुप में आए।

“परं तु यह और कक इस अनच्
ु छे द की कोई बात जम्म-ू कश्मीर राज्य के ऐसे स्थायी तनवासी को
लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्र को जो इस समय पाककस्तान के अंतगतत है , प्रवततन करने के पश्चात ्
उस राज्य के क्षेत्र को ऐसी अनज्ञ
ु ा के अधीन लौट आया है जो उस राज्य में पन
ु वातस के ललए या स्थायी
रूप से लौटने के ललए उस राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध के प्राधधकार द्वारा या
उसके अधीन दी गई है , तथा ऐसा प्रत्येक व्यक्क्त भारत का नागररक समझा जाएगा।“।

(4) भाग 3
(क) अनच्
ु छे द 13 में , संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे इस
आदे श के प्रारं भ के प्रतत तनदे श है ।
(ख) 1[* * * * * * ]
(ग) अनच्
ु छे द 16 के खंड (3) में , राज्य के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक उसके
अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श नहीं है ।
(घ) अनच्
ु छे द 19 में , इस आदे श के प्रारं भ से (4) (5) (पच्चीस) वषत की अवधध के ललए :-
(ii) खंड (3) और (4) में , “अधधकार के प्रयोग पर” शब्दों के पश्चात ् “राज्य की सरु क्षा या” शब्द
अंतःस्थावपत ककए जाएँगे;
(iiii) खंड (5) में , 'या ककसी अनस
ु धू चत जनजातत के हहतों के संरक्षण के ललए' शब्दों के स्थान पर
'अथवा राज्य की सरु क्षा के हहतों के ललए' शब्द रखे जाएँगे; और
(iiiiii) तनम्नललणखत नया खंड जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
'(7) खंड (2), (3), (4) और (5) में आने वाले “यक्ु क्तयक्
ु त तनबंधन” शब्दों का यह अथत लगाया
जाएगा कक वे तनबंधन ऐसे हैं क्जन्हें समधु चत ववधान-मंडल यक्ु क्तयक्
ु त समझता है ।'।
(ङ) अनच्
ु छे द 22 के खंड (4) में “संसद्” शब्द के स्थान पर “राज्य ववधान-मंडल” शब्द रखे
जाएँगे और खंड (7) में “संसद् ववधध द्वारा ववहहत कर सकेगी” शब्दों के स्थान पर “राज्य ववधान-मंडल
ववधध द्वारा ववहहत कर सकेगा” शब्द रखे जाएँगे।
(च) अनच्
ु छे द 31 में , खंड (3), (4) और (6) का लोप ककया जाएगा; और खंड (5) के स्थान पर
तनम्नललणखत खंड रखा जाएगा, अथातत ् :
“(5) खंड (2) की कोई बात-
(क) ककसी वततमान ववधध के उपबंधों पर, अथवा
(ख) ककसी ऐसी ववधध के उपबंधों पर, क्जसे राज्य इसके पश्चात-्
(ii) ककसी कर या शाक्स्त के अधधरोपण या उद्ग्रहण के प्रयोजन के ललए; अथवा
(iiii) सावतजतनक स्वास्थ्य की अलभवद्
ृ धध या प्राण या संपवर्त् के संकट-तनवारण के ललए; अथवा
(iiiiii) ऐसी संपवर्त् की बाबत, जो ववधध द्वारा तनष्क्रांत संपवर्त् घोवषत की गई है , बनाए,
कोई प्रभाव नहीं डालेगी।“

308
(छ) अनच्
ु छे द 31क में खंड (1) के परं तक
ु का लोप ककया जाएगा; और खंड (2) के उपखंड (क)
के स्थान पर तनम्नललणखत उपखंड रखा जाएगा, अथातत ् :-
----------------------------

1. संववधान आदे श 124 द्वारा (4-2-1985 से) खंड (ख) का लोप ककया गया।
2. संववधान आदे श 69 द्वारा 'दस वषत' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान आदे श 97 द्वारा 'बीस' के स्थान पर प्रततस्थावपत।

'(क) “संपदा” से ऐसी भलू म अलभप्रेत होगी जो कृवष के प्रायोजनों के ललए या कृवष के सहायक
प्रयोजनों के ललए या चरागाह के ललए अधधभोग में है या पट्टे पर दी गई है और इसके अंतगतत
तनम्नललणखत भी हैं, अथातत ् :-
(i) ऐसी भलू म पर भवनों के स्थल और अन्य संरचनाएँ;
(ii) ऐसी भलू म पर खड़े वक्ष
ृ ;
(iii) वन भलू म और वन्य बंजर भलू म;
(iv) जल से ढके क्षेत्र और जल पर तैरते हुए खेत;
(v) बंदर और घराट स्थल;
(vi) कोई जागीर, इनाम, मआ
ु फी या मक
ु रत री या इसी प्रकार का अन्य अनद
ु ान,
ककं तु इसके अंतगतत तनम्नललणखत नहीं हैं :-
(i) ककसी नगर, या नगरक्षेत्र या ग्राम आबादी में कोई भवन-स्थल या ककसी ऐसे भवन या स्थल से अनल
ु ग्र कोई
भलू म;
(ii) कोई भलू म जो ककसी नगर या ग्राम के स्थल के रूप में अधधभोग में है ; या
(iii) ककसी नगरपाललका या अधधसधू चत क्षेत्र या छावनी या नगरक्षेत्र में या ककसी क्षेत्र में , क्जसके ललए कोई
नगर योजना स्कीम मंजूर की गई है , भवन तनमातण के प्रयोजनों के ललए आरक्षक्षत कोई भलू म।'।
1
[(ज) अनच्
ु छे द 32 में , खंड (3) का लोप ककया जाएगा।]
(झ) अनच्
ु छे द 35 में , -
(i) संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे इस आदे श के प्रारं भ के प्रतत तनदे श हैं;
(ii) खंड (क) (1) में , 'अनच्
ु छे द 16 के खंड (3), अनच्
ु छे द 32 के खंड (3)' शब्दों, कोष्ठकों और अंकों का लोप
ककया जाएगा; और
(iii) खंड (ख) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
“(ग) संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 के प्रारं भ के पव
ू त या पश्चात,् तनवारक
तनरोध की बाबत जम्म-ू कश्मीर राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई ववधध इस आधार पर शन्
ू य
नहीं होगी कक वह इस भाग के उपबंधों में से ककसी से असंगत है , ककं तु ऐसी कोई ववधध उक्त आदे श के
प्रारं भ से (2) (3) (पच्चीस वषत) के अवसान पर, ऐसी असंगतत की मात्रा तक, उन बातों के लसवाय
प्रभावहीन हो जाएगी क्जन्हें उनके अवसान के पव
ू त ककया गया है या करने का लोप ककया गया है ।“।
(ञ) अनच्
ु छे द 35 के पश्चात ् तनम्नललणखत नया अनच्
ु छे द जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-

309
“35क. स्थायी ननिालसयों और उनके अधधकारों की बाबत विधधयों की व्यािवृ ि- इस संववधान में
अंतववतष्ट ककसी बात के होते हुए भी, जम्म-ू कश्मीर राज्य में प्रवर्त्
ृ ऐसी कोई ववद्यमान ववधध और इसके
पश्चात ् राज्य के ववधान-मंडल द्वारा अधधतनयलमत ऐसी कोई ववधध -
(क) जो उन व्यक्क्तयों के वगों को पररभावषत करती है जो जम्म-ू कश्मीर राज्य के स्थायी तनवासी हैं
या होंगे, या
---------------------------------

1. संववधान आदे श 89 द्वारा खंड (ज) के स्थान पर प्रततस्थावपत।


2. संववधान आदे श 69 द्वारा 'दस वषत' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान आदे श 97 द्वारा 'बीस' के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(ख) जो-
(i) राज्य सरकार के अधीन तनयोजन;
(ii) राज्य में स्थावर संपवर्त् के अजतन;
(iii) राज्य में बस जाने; या
(iv) छात्रववृ र्त्यों के या ऐसी अन्य प्रकार की सहायता के जो राज्य सरकार प्रदान करे , अधधकार,
की बाबत ऐसे स्थायी तनवालसयों को कोई ववशेष अधधकार और ववशेषाधधकार प्रदर्त् करती है या अन्य
व्यक्क्तयों पर कोई तनबंधन अधधरोवपत करती है , इस आधार पर शन्
ू य नहीं होगी कक वह इस भाग के
ककसी उपबंध द्वारा भारत के अन्य नागररकों को प्रदर्त् ककन्हीं अधधकारों से असंगत है या उनको छीनती
या न्यन
ू करती है ।“।
(5) भाग 5
1
[(क) अनच्
ु छे द 55 के प्रयोजनों के ललए जम्म-ू कश्मीर राज्य की जनसंख्या ततरसठ लाख समझी
जाएगी;
(ख) अनच्
ु छे द 81 में , खंड (2) और (3) के स्थान पर तनम्नललणखत खंड रखे जाएँगे, अथातत ् :-
“(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के ललए,-
(क) लोक सभा में राज्य को छह स्थान आबंहटत ककए जाएँगे;
(ख) पररसीमन अधधतनयम, 1972 के अधीन गहठत पररसीमन आयोग द्वारा राज्य को ऐसी
प्रकक्रया के अनस
ु ार, जो आयोग उधचत समझे, एक सदस्यीय प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों में ववभाक्जत ककया
जाएगा;
(ग) तनवातचन-क्षेत्र, यथासाध्य, भौगोललक रूप से संहत क्षेत्र होंगे और उनका पररसीमन करते
समय प्राकृततक ववशेषताओं, प्रशासतनक इकाइयों की ववद्यमान सीमाओं, संचार की सवु वधाओं और लोक
सवु वधा को ध्यान में रखा जाएगा;
(घ) उन तनवातचन-क्षेत्रों में , क्जनमें राज्य ववभाक्जत ककया जाए, पाककस्तान अधधकृत क्षेत्र समाववष्ट
नहीं होंगे।
(3) खंड (2) की कोई बात लोक सभा में राज्य के प्रतततनधधत्व पर तब तक प्रभाव नहीं डालेगी
जब तक पररसीमन अधधतनयम, 1972 के अधीन संसदीय तनवातचन-क्षेत्रों के पररसीमन से संबधं धत

310
पररसीमन आयोग के अंततम आदे श या आदे शों के भारत के राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को ववद्यमान
सदन का ववघटन न हो जाए।
(4) (क) पररसीमन आयोग राज्य की बाबत अपने कततव्यों में अपनी सहायता करने के प्रयोजन
के ललए अपने साथ पाँच व्यक्क्तयों को सहयोक्जत करे गा जो राज्य का प्रतततनधधत्व करने वाले लोक सभा
के सदस्य होंगे।
(ख) राज्य से इस प्रकार सहयोक्जत ककए जाने वाले व्यक्क्त सदन की संरचना का सम्यक् ध्यान
रखते हुए लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा नामतनहदत ष्ट ककए जाएँगे।
(ग) उपखंड (ख) के अधीन ककए जाने वाले प्रथम नामतनदे शन लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा
संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) दस
ू रा संशोधन आदे श, 1974 के प्रारं भ से दो मास के भीतर ककए
जाएँगे।
---------------------------------------
1. संववधान आदे श 98 द्वारा खंड (क) और खंड (ख) के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(घ) ककसी भी सहयोक्जत सदस्य को पररसीमन आयोग के ककसी ववतनश्चय पर मत दे ने या


हस्ताक्षर करने का अधधकार नहीं होगा।
(ङ) यहद मत्ृ यु या पदत्याग के कारण ककसी सहयोक्जत सदस्य का पद ररक्त हो जाता है तो उसे
लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा और उपखंड (क) और (ख) के उपबंधों के अनस
ु ार यथाशक्य शीघ्र भरा
जाएगा।'।
1
[(ग) अनच्
ु छे द 133 में खंड (1) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड अंतःस्थावपत ककया जाएगा, अथातत ्
:-
'(1क) संववधान (तीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1972 की धारा 3 के उपबंध जम्म-ू कश्मीर राज्य
के संबध
ं में इस उपांतरण के अधीन लागू होंगे कक उसमें “इस अधधतनयम”, “इस अधधतनयम के प्रारं भ”,
“यह अधधतनयम पाररत नहीं ककया गया हो” और “इस अधधतनयम द्वारा यथा संशोधधत उस खंड के
उपबंधों की” के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे क्रमशः “संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू
होना) दस
ू रा संशोधन आदे श, 1974”, “उक्त आदे श के प्रारं भ”, “उक्त आदे श पाररत नहीं ककया गया हो”
और “उक्त खंड के उपबंधों, जैसे कक वे उक्त आदे श के प्रारं भ के पश्चात ् हो” के प्रतत तनदे श है '।
2
[(घ) अनच्
ु छे द 134 के खंड (2) में “संसद्” शब्द के पश्चात ् “राज्य के ववधान-मंडल के अनरु ोध
पर” शब्द अंतःस्थावपत ककए जाएँगे।
2
[(ङ) अनच्
ु छे द 135 [* * *]4 और 139 का लोप ककया जाएगा।
3

4
[* * * * * *]

(1) (क) अनच्


ु छे द 153 से 217 तक, अनच्
ु छे द 219, अनच्
ु छे द 221, अनच्
ु छे द 223, 224,
224क और 225 तथा अनच्
ु छे द 227, से 237 तक का लोप ककया जाएगा।)
(ख) अनच्
ु छे द 220 में , संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे संववधान
(जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1960 के प्रतत तनदे श हैं।
(2) (ग) अनच्
ु छे द 222 में , खंड (1) के पश्चात ् तनम्नललणखत नया खंड अंतःस्थावपत ककया जाएगा,
अथातत ् :-

311
'(1क) प्रत्येक ऐसा अंतरण जो जम्म-ू कश्मीर के उच्च न्यायालय से अथवा उस उच्च न्यायालय को हो,
राज्यपाल के परामशत के पश्चात ् ककया जाएगा।')
(6) भाग 11
(3) (क) अनच्
ु छे द 246 के खंड (1) में आने वाले 'खंड (2) और खंड (3)' शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के
स्थान पर 'खंड (2)' शब्द, कोष्ठक और अंक रखे जाएँगे और खंड (2) में आने वाले 'खंड (3) में ककसी
बात के होते हुए भी' शब्दों, कोष्ठकों और अंक का तथा संपण
ू त खंड (3) और खंड (4) का लोप ककया
जाएगा।
------------------------------------------
1. संववधान आदे श 98 द्वारा प्रततस्थावपत।
2. संववधान आदे श 98 द्वारा खंड (ग) और खंड (घ) को खंड (घ) और खंड (ङ) के रूप में
पुनःअक्षरांककत ककया गया।
3. संववधान आदे श 60 द्वारा अंक “136” का लोप ककया गया।
4. संववधान आदे श 56 द्वारा खंड (च) और खंड (छ) का लोप ककया गया।
5. संववधान आदे श 60 द्वारा (26-1-1960 से) अंतःस्थावपत।
6. संववधान आदे श 89 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
7. संववधान आदे श 74 द्वारा (24-11-1965 से) खंड (ग) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
8. संववधान आदे श 66 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रततस्थावपत।

[ [(ख) अनच्
1 2
ु छे द 248 के स्थान पर तनम्नललणखत अनच्
ु छे द रखा जाएगा, अथातत ् :-
“248. अिलशष्ट्ट विधायी शक्ततयााँ- संसद् को, -
3
[(क) ववधध द्वारा स्थावपत सरकार को आतंककत करने या जनता या जनता के ककसी अनभ
ु ाग में
आतंक उत्पन्न करने या जनता के ककसी अनभ
ु ाग को पथ
ृ क् करने या जनता के ववलभन्न अनभ
ु ागों के
बीच समरसता पर प्रततकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कायों को अंतवतललत करने वाले कक्रयाकलाप को
रोकने के संबध
ं में ;
4
[(कक) भारत की प्रभत
ु ा तथा प्रादे लशक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या ववक्च्छन्न करने
अथवा भारत राज्यक्षेत्र के ककसी भाग का अध्यपतण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के ककसी भाग को संघ
से ववलग कराने अथवा भारत के राष्रीय ध्वज, भारतीय राष्रगान और इस संववधान का अपमान करने
वाले 5[अन्य कक्रयाकलाप को रोकने] के संबध
ं में ; और
(ख) (i) समद्र
ु या वायु द्वारा ववदे श यात्रा पर;
(ii) अंतदे शीय ववमान यात्रा पर;
(iii)मनीआडतर, फोनतार और तार को सक्म्मललत करते हुए, डाक वस्तओ
ु ं पर,
कर लगाने के संबध
ं में ,
ववधध बनाने की अनन्य शक्क्त है ।'।
[(स्पष्ट्टीकरण- इस अनच्
3
ु छे द में , “आतंकवादी कायत” से बमों, डायनामाइट या अन्य ववस्फोटक
पदाथों या ज्वलनशील पदाथों या अग्न्यायध
ु ों या अन्य प्राणहर आयध
ु ों या ववषों का या अपायकर गैसों या
अन्य रसायनों या पररसंकटमय प्रकृतत के ककन्हीं अन्य पदाथों का (चाहे वे जैव हों या अन्य) उपयोग
करके ककया गया कोई कायत या बात अलभप्रेत है ।]

312
7
[(खख) अनच्
ु छे द 249 के खंड (1) में , “राज्य सच
ू ी में प्रगणणत ऐसे ववषय के संबध
ं में , जो उस
संकल्प में ववतनहदतष्ट है ,” शब्दों के स्थान पर “उस संकल्प में ववतनहदत ष्ट ऐसे ववषय के संबध
ं में , जो संघ
सच
ू ी या समवती सच
ू ी में प्रगणणत ववषय नहीं है ,” शब्द रखे जाएँगे।]
(ग) अनच्
ु छे द 250 में , “राज्य-सच
ू ी में प्रगणणत ककसी भी ववषय कें संबध
ं में” शब्दों के स्थान पर
“संघ-सच
ू ी में प्रगणणत न ककए गए ववषयों के संबध
ं में भी” शब्द रखे जाएँगे।
(घ) 7[* * * * * *]
(ङ) अनच्
ु छे द 253 में तनम्नललणखत परं तक
ु जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
“परं तु संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 के प्रारं भ के पश्चात,् जम्म-ू कश्मीर राज्य के
संबध
ं में व्यवस्था को प्रभाववत करने वाला कोई ववतनश्चय भारत सरकार द्वारा उस राज्य की सरकार की
सहमतत से ही ककया जाएगा।“।
-----------------------------------------------------------
1. संववधान आदे श 85 द्वारा खंड (ख) और खंड (खख), मूल खंड (ख) के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
2. संववधान आदे श 93 द्वारा खंड (ख) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान आदे श 122 द्वारा अंतःस्थावपत।
4. संववधान आदे श 122 द्वारा खंड (क) को खंड (कक) के रूप में पुनःअक्षरांककत ककया
गया।
5. संववधान आदे श 122 द्वारा 'कक्रयाकलापों को रोकने” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
6. संववधान आदे श 129 द्वारा खंड (खख) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
7. संववधान आदे श 129 द्वारा खंड (घ) का लोप ककया गया।

1
[* * * * * *]
2
[(च)] अनच्
ु छे द 225 का लोप ककया जाएगा।
2
[(छ)] अनच्
ु छे द 256 को उसकें खंड (1) के रूप में पन
ु ःसंख्यांककत ककया जाएगा और उसमें
तनम्नललणखत नया खंड जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
“(2) जम्म-ू कश्मीर राज्य अपनी कायतपाललका शक्क्त का इस प्रकार प्रयोग करे गा क्जससे उस राज्य
के संबध
ं में संववधान के अधीन संघ के कततव्यों और उर्त्रदातयत्वों का संघ द्वारा तनवतहन सग
ु म हो; और
ववलशष्टतया उक्त राज्य यहद संघ वैसी अपेक्षा करे , संघ की ओर से और उसके व्यय पर संपवर्त् का
अजतन या अधधग्रहण करे गा अथवा यहद संपवर्त् उस राज्य की हो तो ऐसे तनबंधनों पर, जो करार पाए जाएँ
या करार के अभाव में जो भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत द्वारा तनयक्
ु त मध्यस्थ द्वारा अवधाररत ककए जाएँ,
उसे संघ को अंतररत करे गा।“|
3
[* * * * * *]
4
[(ज) अनच्
ु छे द 261 के खंड (2) में , 'संसद् द्वारा बनाई गई' शब्दों का लोप ककया जाएगा।
(7) भाग 12
5
[* * * * * *]
6
[(क) अनच्
ु छे द 267 के खंड (2), अनच्
ु छे द 273, अनच्
ु छे द 283 के खंड (2) (7) (और अनच्
ु छे द
290) का लोप ककया जाएगा।

313
[(ख)] अनच्
6
ु छे द 266, 282, 284, 298, 299 और 300 में राज्य या राज्यों के प्रतत तनदे शों का
यह अथत लगाया जाएगा कक उनके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श नहीं है ।
[(ग)] अनच्
6
ु छे द 277 और 295 में , संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया
जाएगा कक वे इस आदे श के प्रारं भ के प्रतत तनदे श हैं।
(8) भाग 13
8
[***] अनच्
ु छे द 303 के खंड (1) में ,”'सातवीं अनस
ु च
ू ी की सधू चयों में से ककसी में व्यापार और वाणणज्य
संबध
ं ी ककसी प्रववक्ष्ट के आधार पर,” शब्दों का लोप ककया जाएगा।
8
[* * * * * *]
----------------------------------------
1. संववधान आदे श 66 द्वारा खंड (च) का लोप ककया गया।
2. संववधान आदे श 66 द्वारा खंड (छ) और खंड (ज) को खंड (च) और खंड (छ) के रूप में
पुनःअक्षरांककत ककया गया।
3. संववधान आदे श 56 द्वारा खंड (झ) का लोप ककया गया।
4. संववधान आदे श 56 द्वारा खंड (ञ) को खंड (झ) के रूप में पुनःअक्षरांककत ककया गया और
तत्पश्चात ् संववधान आदे श 66 द्वारा उसे खंड (ज) के रूप में पुनःअक्षरांककत ककया गया।
5. संववधान आदे श 55 द्वारा अंतःस्थावपत खंड (क) और खंड (ख) का संववधान आदे श 56 द्वारा
लोप ककया गया।
6. संववधान आदे श 55 द्वारा खंड (क), खंड (ख) और खंड (ग) को क्रमशः खंड (ग), खंड (घ) और
खंड (ङ) के रूप में पुनःअक्षरांककत ककया गया और तत्पश्चात ् संववधान आदे श 56 द्वारा उन्हें
क्रमशः खंड (क), खंड (ख) और खंड (ग) के रूप में पुनःअक्षरांककत ककया गया।
7. संववधान आदे श 94 द्वारा “अनुच्छे द 290 और अनुच्छे द 291” के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
8. संववधान आदे श 56 द्वारा कोष्ठक और अक्षर “(क)” तथा खंड “(ख)” का लोप ककया
गया।

(9) भाग 14
[(अनच्
1
ु छे द 312 में , “राज्यों के” शब्दों के पश्चात ् “(क्जसके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य भी है )”
कोष्ठक और शब्द अंतःस्थावपत ककए जाएँगे।
2
[(10) भाग 15
(क) अनच्
ु छे द 324 के खंड (1) में , जम्म-ू कश्मीर के ववधान-मंडल के दोनों सदनों में से ककसी
सदन के तनवातचनों के बारे में संववधान के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक वह जम्म-ू कश्मीर
के संववधान के प्रतत तनदे श है ।
[(ख) अनच्
3
ु छे द 325, 326, 327 और 329 में राज्य के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा
कक उसके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर के संववधान के प्रतत तनदे श नहीं है ।
(ग) अनच्
ु छे द 328 का लोप ककया जाएगा।
(घ) अनच्
ु छे द 329 में , 'या अनच्
ु छे द 328' शब्दों और अंकों का लोप ककया जाएगा।
4
[(ङ)
अनच्
ु छे द 329क में , खंड (4) और (5) का लोप ककया जाएगा।]

314
(11) भाग 16
5
[* * * * * *]
6
[(क) अनच्
ु छे द 331, 332, 333, (2) (336 और 337) का लोप ककया जाएगा।
6
[(ख) अनच्
ु छे द 334 और 335 में राज्य या राज्यों के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा
कक उनके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श नहीं है ।
8
[(ग) अनच्
ु छे द 339 के खंड (1) में 'राज्यों के अनस
ु धू चत क्षेत्रों के प्रशासन और अनस
ु धू चत
जनजाततयों' शब्दों के स्थान पर 'राज्यों की अनस
ु धू चत जनजाततयों' शब्द रखे जाएँगे।
(12) भाग 17
इस भाग के उपबंध केवल वहीं तक लागू होंगे जहाँ तक वे-
(i) संघ की राजभाषा,
(ii) एक राज्य और दस
ू रे राज्य की बीच, अथवा ककसी राज्य और संघ के बीच पत्राहद की
राजभाषा, और
(iii) उच्चतम न्यायालय में कायतवाहहयों की भाषा, से संबधं धत है ।
(13) भाग 18
(क) अनच्
ु छे द 352 में तनम्नललणखत नया खंड जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
-----------------------------------------------
1. संववधान आदे श 56 द्वारा पूवव
त ती उपांतरण के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान आदे श 60 द्वारा (26-1-1960 से) उप-पैरा (10) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान आदे श 75 द्वारा खंड (ख) और खंड (ग) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
4. संववधान आदे श 105 द्वारा अंतःस्थावपत।
5. संववधान आदे श 124 द्वारा खंड (क) का लोप ककया गया।
6. संववधान आदे श 124 द्वारा खंड (ख) और खंड (ग) को खंड (क) और खंड (ख) के रूप में
पुनःअक्षरांककत ककया गया।
7. संववधान आदे श 124 द्वारा “336, 337 339 और 342” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
8. संववधान आदे श 124 द्वारा अंतःस्थावपत।

“1[(6)] केवल आंतररक अशांतत या उसका संकट सक्न्नकट होने के आधार पर की गई आपात की
उद्घोषणा (अनच्
ु छे द 354 की बाबत लागू होने के लसवाय) जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में तभी लागू
होगी 2[ (जब वह-
(क) उस राज्य की सरकार के अनरु ोध पर या उसकी सहमतत से की गई है ; या
(ख) जहाँ वह इस प्रकार नहीं की गई है वहां वह उस राज्य की सरकार के अनरु ोध पर या उसकी
सहमतत से राष्रपतत द्वारा बाद में लागू की गई है ।)'।
3
[(ख)] अनच्
ु छे द 356 के खंड (1) में , इस संववधान के उपबंधों या उपबंध के प्रतत तनदे शों का जम्म-ू
कश्मीर राज्य के संबध
ं में यह अथत लगाया जाएगा कक उनके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर के संववधान के
उपबंधों या उपबंध के प्रतत तनदे श है ;
4
[(खख) अनच्
ु छे द 356 के खंड (4) में दस
ू रे परं तक
ु के पश्चात ् तनम्नललणखत परं तक
ु अंतःस्थावपत
ककया जाएगा, अथातत ् :-

315
“परं तु यह भी कक जम्म-ू कश्मीर राज्य के बारे में 18 जुलाई, 1990 को खंड (1) के अधीन जारी की
गई उद्घोषणा के मामले में इस खंड के पहले परं तक
ु में “तीन वषत” के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया
जाएगा कक वह 5[“(छह वषत)” के प्रतत तनदे श है ]’]।
(ग) (अनच्
ु छे द 360 का लोप ककया जाएगा।)
(14) भाग 19
[*
6
* * * * *]
[(क)] [अनच्
7
ु छे द 365] का लोप ककया जाएगा।
8

[*
7
* * * * *]
10
[(ख)] अनच्
ु छे द 367 में तनम्नललणखत खंड जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
“(4) इस संववधान के, जैसा कक वह जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में लागू होता है , प्रयोजनों के
ललए-
(क) इस संववधान या उसके उपबंधों के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे उक्त
राज्य के संबध
ं में लागू संववधान के या उसके उपबंधों के प्रतत तनदे श भी हैं।
10
[(कक) राज्य की ववधान सभा की लसफाररश पर राष्रपतत द्वारा, जम्म-ू कश्मीर के सदरे -ररयासत
के रूप में तत्समय मान्यता प्राप्त तथा तत्समय पदस्थ राज्य मंत्रत्र-पररषद् की सलाह पर कायत करने वाले
व्यक्क्त के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे जम्म-ू कश्मीर के राज्यपाल के प्रतत तनदे श हैं।
-------------------------------------
1. संववधान आदे श 104 द्वारा “(4)” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
2. संववधान आदे श 100 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान आदे श 71 द्वारा खंड (ख) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
4. संववधान आदे श 151 द्वारा जोड़ा गया।
5. संववधान आदे श 154 द्वारा “चार वषत” के स्थान पर और पुनः संववधान आदे श 160 द्वारा
“पाँच वषत” के स्थान पर और पुन:संववधान आदे श 162 द्वारा (6-7-1996 से) “छ बषत“ के
स्थान पर प्रततस्थावपत।
6. संववधान आदे श 74 द्वारा खंड (क) का लोप ककया गया।
7. संववधान आदे श 74 द्वारा खंड (ख) और खंड (ग) को खंड (क) और खंड (ख) के रूप में
पुनःअक्षरांककत ककया गया।
8. संववधान आदे श 94 द्वारा 'अनुच्छे द 362 और अनुच्छे द 365' के स्थान पर प्रततस्थावपत।
9. संववधान आदे श 56 द्वारा मूल खंड (ग) का लोप ककया गया।
10. संववधान आदे श 74 द्वारा खंड (ख) के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(ख) उस राज्य की सरकार के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक उनके अंतगतत अपनी
मंत्रत्र-पररषद् की सलाह पर कायत कर रहे जम्म-ू कश्मीर के राज्यपाल के प्रतत तनदे श हैं :
परं तु 10 अप्रैल 1965 से पव
ू की ककसी अवधध की बाबतल ऐसे तनदे शों का यह अथत लगाया
जाएगा कक उनके अंतगतत अपनी मंत्रत्र-पररषद् की सलाह से कायत कर रहे सदरे -ररयासत के प्रतत तनदे श है ;
(ग) उच्च न्यायालय के प्रतत तनदे शों के अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय के प्रतत
तनदे श हैं;

316
1[* * * * * *]
2
[(घ)] उक्त राज्य के स्थायी तनवालसयों के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक उनसे
ऐसे व्यक्क्त अलभप्रेत हैं क्जन्हें राज्य में प्रवर्त्
ृ ववधधयों के अधीन राज्य की प्रजा के रूप में , संववधान
(जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 के प्रारं भ से पव
ू ,त मान्यता प्राप्त थी या क्जन्हें राज्य के
ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा राज्य के स्थायी तनवालसयों के रूप में मान्यता प्राप्त है ;
और
[(ङ)] राज्यपाल के प्रतत तनदे शों के अंतगतत जम्म-ू कश्मीर के राज्यपाल के प्रतत तनदे श हैं :
3

परं तु 10 अप्रैल, 1965 से पव


ू त की ककसी अवधध की बाबत, ऐसे तनदे शों का यह अथत लगाया
जाएगा कक वे राष्रपतत द्वारा जम्म-ू कश्मीर के सदरे -ररयासत के रूप में मान्यता प्राप्त व्यक्क्त के प्रतत
तनदे श हैं और उनके अंतगतत राष्रपतत द्वारा सदरे -ररयासत की शक्क्तयों का प्रयोग करने के ललए सक्षम
व्यक्क्त के रूप में मान्यता प्राप्त ककसी व्यक्क्त के प्रतत तनदे श भी हैं।]”]|
(15) भाग 20
4
[(क) [(अनच्
5
ु छे द 368 के खंड (2) में ] तनम्नललणखत परं तक
ु जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
“परं तु यह और कक कोई संशोधन जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में तभी प्रभावी होगा जब वह
अनच्
ु छे द 370 के खंड (1) के अधीन राष्रपतत के आदे श द्वारा लागू ककया गया हो।“;
6
[(ख) अनच्
ु छे द 368 के खंड (3) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड जोड़ा जाएगा, अथातत ् :-
“(4) जम्म-ू कश्मीर संववधान के -
(क) राज्यपाल की तनयक्ु क्त, शक्क्तयों, कृत्यों, कततव्यों, उपलक्ब्धयों, भर्त्ों, ववशेषाधधकारों या
उन्मक्ु क्तयों; या
(ख) भारत के तनवातचन आयोग द्वारा तनवातचनों के अधीक्षण, तनदे शन और तनयंत्रण, ववभेद के
त्रबना तनवातचन नामावलल में सक्म्मललत ककए जाने की पात्रता, वयस्क मताधधकार और
ववधान पररषद् के गठन, जो जम्म-ू कश्मीर संववधान की धारा 138, 139, 140 और 150
में ववतनहदत ष्ट ववषय हैं;
से संबधं धत ककसी उपबंध में या उसके प्रभाव में कोई पररवततन करने के ललए जम्मू
कश्मीर राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध का कोई प्रभाव तभी होगा
जब ऐसी ववधध राष्रपतत के ववचार के ललए आरक्षक्षत रखने के पश्चात,् उनकी अनम
ु तत
प्राप्त कर लेती है ।“]|
---------------------------------------
1. संववधान आदे श 56 द्वारा खंड (घ) का लोप ककया गया।
2. संववधान आदे श 56 द्वारा खंड (ङ) को खंड (घ) के रूप में पुनःअक्षरांककत ककया गया।
3. संववधान आदे श 74 द्वारा खंड (ङ) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
4. संववधान आदे श 101 द्वारा खंड (क) के रूप में संख्यांककत।
5. संववधान आदे श 91 द्वारा “अनुच्छे द 368 में ” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
6. संववधान आदे श 101 द्वारा अंतःस्थावपत।
(16) भाग 21
(क) अनच्
ु छे द 369, 371, (7) (371क), (8) (372क), 373, अनच्
ु छे द 374 के खंड (1), (2),
(3) और (5) और (9) (अनच्
ु छे द 376 से 378क तक का और अनच्
ु छे द 392) का लोप ककया जाएगा।

317
(ख) अनच्
ु छे द 372 में , -
(i) खंड (2) और (3) का लोप ककया जाएगा;
(ii) भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवर्त्
ृ ववधध के प्रतत तनदे शों के अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के राज्यक्षेत्र में ववधध
का बल रखने वाली हहदायतों, ऐलानों, इक्श्तहारों, पररपत्रों, रोबकारों, इरशादों, याददाश्तों, राज्य पररषद् के संकल्पों,
संववधान सभा के संकल्पों और अन्य ललखतों के प्रतत तनदे श भी होंगे; और
(iii) संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक वे इस आदे श के प्रारं भ के प्रतत तनदे श
हैं।
(ग) अनच्
ु छे द 374 के खंड (4) में , राज्य में वप्रवी कौंलसल के रूप में कायतरत प्राधधकारी के प्रतत
तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक वह जम्म-ू कश्मीर संववधान अधधतनयम, संवत ् 1996 के अधीन
गहठत सलाहकार बोडत के प्रतत तनदे श हैं, और संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया
जाएगा कक वे इस आदे श के प्रारं भ के प्रतत तनदे श हैं।
(17) भाग 22
अनच्
ु छे द 394 और 395 का लोप ककया जाएगा।
(18) पहली अनस
ु च
ू ी
(19) दस
ू री अनस
ु च
ू ी
4
[* * * * * *]
(20) तीसरी अनस
ु च
ू ी
प्रारूप 5, 6, 7 और 8 का लोप ककया जाएगा।
(21) चौथी अनस
ु च
ू ी
5
(22) सातवीं अनस
ु च
ू ी
(क) संघ-सच
ू ी में ,-
(i) प्रववक्ष्ट 3 के स्थान पर “3. छावतनयों का प्रशासन” प्रववक्ष्ट रखी जाएगी;
6
[(ii) प्रववक्ष्ट 8, 9 7[और 34]” 8[***] प्रववक्ष्ट 79 और प्रववक्ष्ट 81 में , “अंतरराज्यीय प्रव्रजन” शब्दों का
लोप ककया जाएगा;]
9
[* * * * * *]
10
[(iii) प्रववक्ष्ट 72 में ,-
------------------------------------
1. संववधान आदे श 74 द्वारा अंतःस्थावपत।
2. संववधान आदे श 56 द्वारा अंतःस्थावपत।.
3. संववधान आदे श 56 द्वारा “अनुच्छे द 376 से अनुच्छे द 392 तक” के स्थान पर
प्रततस्थावपत।
4. संववधान आदे श 56 द्वारा पैरा 6 से संबधं धत उपांतरण का लोप ककया गया।
5. संववधान आदे श 66 द्वारा उपपैरा (22) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
6. संववधान आदे श 85 द्वारा मद (ii) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
7. संववधान आदे श 92 द्वारा “34 और 60” के स्थान पर प्रततस्थावपत।
8. संववधान आदे श 95 द्वारा 'प्रववक्ष्ट 67 में “और अलभलेख” शब्दों' शब्दों और अंकों का
लोप ककया गया।
9. संववधान आदे श 74 द्वारा मूल मद (iii) का लोप ककया गया।

318
10. संववधान आदे श 83 द्वारा मद (iii) के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(क) ककसी ऐसी तनवातचन याधचका में क्जसके द्वारा उस राज्य के ववधान-मंडल के दोनों सदनों में से
ककसी सदन के ललए तनवातचन प्रश्नगत है , जम्म-ू कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा ककए गए ककसी
ववतनश्चय या आदे श के ववरुद्ध उच्चतम न्यायालय को अपीलों के संबध
ं में राज्यों के प्रतत तनदे शों का
यह अथत लगाया जाएगा कक उसके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श है ;
(ख) अन्य मामलों के संबध
ं में राज्यों के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक उसके अंतगतत
उस राज्य के प्रतत तनदे श नहीं है ; 1[और]]
2
[(iv) प्रववक्ष्ट 97 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखी जाएगी, अथातत:-्
3
[97. (क) ववधध द्वारा स्थावपत सरकार को आतंककत करने या लोगों या लोगों के सी अनभ
ु ाग में
आतंक उत्पन्न करने या लोगों के ककसी अनभ
ु ाग को पथ
ृ क् करने या लोगों के ववलभन्न अनभ
ु ागों के बीच
समरसता पर प्रततकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कायों को अंतवतललत करने वाले,
(ख) भारत की प्रभत
ु ा तथा प्रादे लशक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या ववक्च्छन्न करने, अथवा
भारत राज्यक्षेत्र के ककसी भाग का अध्यपतण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के भाग को संघ से ववलग
कराने अथवा भारत के राष्रीय ध्वज, भारतीय राष्र-गान और इस संववधान का अपमान करने वाले,
कक्रयाकलाप को रोकना,
समद्र
ु या वायु द्वारा ववदे श यात्रा, अंतदे शीय ववमान यात्रा और डाक वस्तओ
ु ं पर क्जनके अंतगतत
मनीआडतर, फोनतार और तार हैं, कर|
स्पष्ट्टीकरण- इस प्रववक्ष्ट में , 'आतंकवादी कायत' का वही अथत है जो अनच्
ु छे द 248 के स्पष्टीकरण में
है ।)
(ख) राज्य सच
ू ी का लोप ककया जाएगा।
4
[(ग) समवती सच
ू ी में ,-
5
[(i) प्रववक्ष्ट 1 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखी जाएगी, अथातत:-्
“1. दं ड ववधध, (क्जसके अंतगतत सच
ू ी 1 में ववतनहदत ष्ट ववषयों में से ककसी ववषय से संबधं धत ववधधयों
के ववरुद्ध अपराध और लसववल शक्क्त की सहायता के ललए नौ सेना, वायु सेना या संघ के ककन्हीं अन्य
सशस्त्र बलों के प्रयोग नहीं हैं) जहाँ तक ऐसी दं ड ववधध इस अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट ववषयों में से ककसी
ववषय से संबधं धत ववधध के ववरुद्ध अपराधों से संबधं धत है ।“]
[ (iक) प्रववक्ष्ट 2 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखी जाएगी, अथातत ् :-
6 7

“2. दं ड प्रकक्रया (क्जसके अंतगतत अपराधों को रोकना तथा दं ड न्यायालयों का, क्जनके अंतगतत उच्चतम
न्यायालय और उच्च न्यायालय नहीं हैं, गठन और संगठन है ) जहाँ तक उसका संबध
ं -
----------------------------------------
1. संववधान आदे श 85 द्वारा अंतःस्थावपत।
2. संववधान आदे श 93 द्वारा मद (4) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
3. संववधान आदे श 122 द्वारा (4-6-1985 से) प्रववक्ष्ट 97 के स्थान पर प्रततस्थावपत।
4. संववधान आदे श 69 द्वारा खंड (ग) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
5. संववधान आदे श 70 द्वारा मद (1) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
6. संववधान आदे श 94 द्वारा अंतःस्थावपत।

319
7. संववधान आदे श 122 द्वारा उपखंड (i-क) और (i-ख) के स्थान पर प्रततस्थावपत।

(ii) ककन्हीं ऐसे ववषयों से, जो ऐसे ववषय हैं, क्जनके संबध
ं में संसद् को ववधधयाँ बनाने की शक्क्त
है , संबधं धत ववधधयों के ववरुद्ध अपराधों से है ; और
(iiii) ककसी ववदे श में राजनतयक और कौंसलीय अधधकाररयों द्वारा शपथ हदलाए जाने तथा शपथ
पत्र ललए जाने से है ।',
(iख) प्रववक्ष्ट 12 के स्थान पर, तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखी जाएगी, अथातत ् :-
“12. साक्ष्य तथा शपथ, जहाँ तक उनका संबध
ं -
(ii) ककसी ववदे श में राजनतयक और कौंसलीय अधधकाररयों द्वारा शपथ हदलाए जाने तथा शपथ
पत्र ललए जाने से है ; और
(iiii) ककन्हीं ऐसे अन्य ववषयों से है , जो ऐसे ववषय हैं, क्जनके संबध
ं में संसद् को ववधधयाँ बनाने
की शक्क्त है ।'
(iग) प्रववक्ष्ट 13 के स्थान पर “13. लसववल प्रकक्रया, जहाँ तक उसका संबध
ं ककसी ववदे श में
राजनतयक तथा कौंसलीय अधधकाररयों द्वारा शपथ हदलाए जाने तथा शपथ-पत्र ललए जाने से है ' प्रववक्ष्ट
रखी जाएगी;]
1
[* * * * * *]
[ (iii)] प्रववक्ष्ट 30 के स्थान पर “30. जन्म-मरण सांक्ख्यकी, जहाँ तक उसका संबध
2 3
ं जन्म तथा
मत्ृ यु से है , क्जसके अंतगतत जन्म और मत्ृ यु रक्जस्रीकरण है ” प्रववक्ष्ट रखी जाएगी;]
4
[* * * * * *]
5
[(iiiii) प्रववक्ष्ट 3, प्रववक्ष्ट 5 से 10 तक (क्जसमें ये दोनों सक्म्मललत हैं), प्रववक्ष्ट 14, 15, 17,
20, 21, 27, 28, 29, 31, 32, 37, 38, 41 तथा 44 का लोप ककया जाएगा;
(iiiक) प्रववक्ष्ट 42 के स्थान पर “42. संपवर्त् का अजतन और अधधग्रहण, जहाँ तक उसका संबध

सच
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 67 या सच
ू ी 3 की प्रववक्ष्ट 40 के अंतगतत आने वाली संपवर्त् के या ककसी ऐसी
मानवीय कलाकृतत के, क्जसका कलात्मक या सौंदयातत्मक मल्
ू य है , अजतन से है ” प्रववक्ष्ट रखी जाएगी;
और]
[(iiv) प्रववक्ष्ट 45 में , “सच
6
ू ी 2 या सच
ू ी 3” के स्थान पर “इस सच
ू ी” शब्द रखे जाएँगे।]
(23) आठिीं अनस
ु च
ू ी
7
[(24) निीं अनस
ु च
ू ी
8
[(क)] प्रववक्ष्ट 64 के पश्चात,् तनम्नललणखत प्रववक्ष्टयाँ जोड़ी जाएँगी, अथातत ् :-
9
[(64क)] जम्म-ू कश्मीर राज्य कुठ अधधतनयम (संवत ् 1978 का सं. 1);
9
[(64ख)] जम्म-ू कश्मीर अलभधतृ त अधधतनयम (संवत ् 1980 का सं. 2);
9
[(64ग)] जम्म-ू कश्मीर भलू म अन्य संक्रमण अधधतनयम (संवत ् 1995 का सं. 5);
--------------------------------
1. संववधान आदे श 74 द्वारा मद (ii) और मद (iii) का लोप ककया गया।
2. संववधान आदे श 70 द्वारा अंतःस्थावपत।
3. संववधान आदे श 74 द्वारा मद (iv) को मद (ii) के रूप में पुनःसंख्यांककत ककया गया।
4. संववधान आदे श 72 द्वारा मद (v) और मद (vi) का लोप ककया गया।

320
5. संववधान आदे श 95 द्वारा मद (iii) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
6. संववधान आदे श 74 द्वारा मद (vii) को मद (iv) के रूप में पुनःसंख्यांककत ककया गया।
7. संववधान आदे श 74 द्वारा उपपैरा (24) के स्थान पर प्रततस्थावपत।
8. संववधान आदे श 105 द्वारा संख्यांककत।
9. संववधान आदे श 98 द्वारा पुनःसंख्यांककत।

1
[* * * * * *]
2
[64घ] जम्म-ू कश्मीर बह
ृ द् भ-ू संपदा उत्सादन अधधतनयम (संवत ् 2007 का सं. 17);
2[64ङ] जागीरों और भ-ू राजस्व के अन्य समनद
ु े शनों आहद के पन
ु ग्रतहण के बारे में 1951 का
आदे श सं. 6-एच, तारीख 10 माचत, 1951;
[64च] जम्म-ू कश्मीर बंधक संपवर्त् की वापसी अधधतनयम, 1976
3

(1976 का अधधतनयम 14);


64छ. जम्म-ू कश्मीर ऋणी राहत अधधतनयम, 1976 (1976 का अधधतनयम 15)।
[(ख) संववधान (उनतालीसवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1975 द्वारा अंतःस्थावपत प्रववक्ष्ट 87 से
4

124 तक को क्रमशः प्रववक्ष्ट 65 से 102 के रूप में पन


ु ःसंख्याँककत ककया जाएगा।
[(ग) प्रववक्ष्ट 125 से 188 तक को क्रमशः प्रववक्ष्ट 103 से 166 के रूप में पन
5
ु ःसंख्यांककत
ककया जाएगा।

6
[(25) दसिीं अनस
ु च
ू ी
(क) “अनच्
ु छे द 102 (2) और अनच्
ु छे द 191 (2)” शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के स्थान पर,
“[अनच्
ु छे द 102 (2)]” कोष्ठक, शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(ख) पैरा 1 के खंड (क) में , “या ककसी राज्य की, यथाक्स्थतत, ववधान सभा या ववधान-मंडल का
कोई सदन” शब्दों का लोप ककया जाएगा;
(ग) पैरा 2 में ,-
(ii) उपपैरा 1 में , स्पष्टीकरण के खंड (ख) के उपखंड (2) में , “यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 99 या
अनच्
ु छे द 188” शब्दों और अंकों के स्थान पर, “अनच्
ु छे द 99” शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(iiii) उपपैरा (3) में , 'यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 99 या अनच्
ु छे द 188' शब्दों और अंकों के स्थान
पर, “अनच्
ु छे द 99” शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(iiiiii) उपपैरा (4) में , संववधान (बावनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1985 के प्रारं भ के प्रतत तनदे श का
यह अथत लगाया जाएगा कक वह संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) संशोधन आदे श, 1989 के प्रारं भ
के प्रतत तनदे श है ;
(घ) पैरा 5 में , “अथवा ककसी राज्य की ववधान पररषद् के सभापतत या उप सभापतत अथवा ककसी
राज्य की ववधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष” शब्दों का लोप ककया जाएगा;
(ङ) पैरा 6 के उपपैरा (2) में ,”यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 122 के अथत में संसद् की कायतवाहहयाँ हैं या
अनच्
ु छे द 212 के अथत में राज्य के ववधान-मंडल की कायतवाहहयाँ हैं” शब्दों और अंकों के स्थान पर
“अनच्
ु छे द 122 के अथत में संसद् की कायतवाहहयाँ हैं” शब्द और अंक रखे जाएँगे;

321
(च) पैरा 8 के उपपैरा (3) में ,”यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 105 या अनच्
ु छे द 194” शब्दों और अंकों के
स्थान पर,”अनच्
ु छे द 105” शब्द और अंक रखे जाएँगे।
------------------------------------

1. संववधान आदे श 106 द्वारा लोप ककया गया।


2. संववधान आदे श 106 द्वारा पुनःसंख्यांककत।
3. संववधान आदे श 106 द्वारा अंतःस्थावपत।
4. संववधान आदे श 105 द्वारा अंतःस्थावपत।
5. संववधान आदे श 108 द्वारा (31-12-1977 से) अंतःस्थावपत।
6. संववधान आदे श 136 द्वारा अंतःस्थावपत।

322
पररलशष्ट्ट 2

संविधान के, उन अपिादों और उपांतरणों के क्जनके अधीन संविधान जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू होता
है , ितममान पाठ के प्रनत ननदे श से, पन
ु कमथन

(र्टप्पणी- वे अपवाद और उपांतरण क्जनके अधीन संववधान जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू होता है
या तो वे हैं क्जनका उपबंध संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954में ककया गया है या वे
हैं जो संववधान के कुछ संशोधनों के जम्म-ू कश्मीर राज्य को न लागू होने के पररणामस्वरूप है । ऐसे सभी
अपवाद और उपांतरण क्जनका व्यावहाररक महत्व है , उस पन
ु कतथन में सक्म्मललत हैं जो शीघ्र तनदे श को
मात्र सक
ु र बनाने के ललए हैं। सही क्स्थतत को सतु नक्श्चत करने के ललए संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू
होना) आदे श, 1954 को और उक्त आदे श के खंड 2 में वणणतत संववधान के पश्चातवती
् संशोधनों द्वारा
यथा संशोधधत संववधान के 20 जन
ू , 1964 के पाठ के प्रतत तनदे श करना होगा।)
(1) उद्दे लशका
(क) पहले पैरा में 'समाजवादी पंथ तनरपेक्ष' का लोप करें ।
(ख) पव
ू ांततम पैरा में 'और अखंडता' का लोप करें ।
(2) भाग 1
अनच्
ु छे द 3-
(क) तनम्नललणखत और परं तक
ु जोड़ें, अथातत ् :-
“परं तु यह और कक जम्म-ू कश्मीर राज्य के क्षेत्र को बढ़ाने या घटाने या उस राज्य के नाम या
उसकी सीमा में पररवततन करने का उपबंध करने वाला कोई ववधेयक उस राज्य के ववधान-मंडल की
सहमतत के त्रबना संसद् में परु ःस्थावपत नहीं ककया जाएगा।“;
(ख) स्पष्टीकरण 1 और स्पष्टीकरण 2 का लोप करें ।
(3) भाग 2
(क) यह भाग जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में 26 जनवरी, 1950 से लागू समझा जाएगा;
(ख) अनच्
ु छे द 7 - तनम्नललणखत परं तक
ु जोड़े, अथातत ् :-
“परं तु यह और कक इस अनच्
ु छे द की कोई बात जम्म-ू कश्मीर राज्य के ऐसे स्थायी तनवासी को
लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्रो को जो इस समय पाककस्तान के अंतगतत है , प्रव्रजन करने के पश्चात ्
उस राज्य के क्षेत्र को ऐसी अनज्ञ
ु ा के अधीन लौट आया है जो उस राज्य में पन
ु वातस के ललए या स्थायी
रूप से लौटने के ललए उस राज्य के ववधान-मंडल द्वारा या उसके अधीन दी गई है , तथा ऐसा प्रत्येक
व्यक्क्त भारत का नागररक समझा जाएगा।“
(4) भाग 3
(क) अनच्
ु छे द 13- संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे
संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 (सं.आ. 48) के प्रारं भ, अथातत ् 14
मई, 1954 के प्रतत तनदे श हैं,
* * * * *
(ग) अनच्
ु छे द 16- खंड (3) में , राज्य के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक उसके
अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श नहीं है ।
(घ) अनच्
ु छे द 19-

323
(अ) खंड (1) में -
(i) उपखंड (ङ) में अंत में , 'और' का लोप करें :-
(ii) उपखंड (ङ) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड अंतःस्थावपत करें , अथातत ् :-
“(च) संपवर्त् के अजतन, धारण और व्ययन का; और”;
(आ) खंड 5 में , “उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)” के स्थान पर “उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और
उपखंड (च)” रखें ।
(ङ) अनच्
ु छे द 22- खंड (4) में “संसद्” शब्द के स्थान पर “राज्य ववधान-मंडल" शब्द रखे जाएँगे
और खंड (7) में “संसद् ववधध द्वारा ववहहत कर सकेगी” शब्दों के स्थान पर “राज्य ववधान-
मंडल ववधध द्वारा ववहहत कर सकेगा” शब्द रखे जाएँगे।
(च) अनच्
ु छे द 30- खंड (1क) का लोप करें ।
(छ) अनच्
ु छे द 30 के पश्चात ् तनम्नललणखत अंतःस्थावपत करें , अथातत ् :-
“संपवि का अधधकार
31. संपवर्त् का अतनवायत अजतन-
(1) कोई व्यक्क्त ववधध के प्राधधकार के त्रबना अपनी संपवर्त् से वंधचत नहीं ककया जाएगा।

(2) कोई संपवर्त्, सावतजतनक प्रयोजन के ललए ही और केवल ऐसी ववधध के प्राधधकार से
अतनवायततः अक्जतत या अधधगह
ृ ीत की जाएगी, अन्यथा नहीं, जो

संपवर्त् के अजतन या अधधग्रहण का, ऐसी रालश के बदले जो उस ववधध द्वारा तनयत की जाए या जो ऐसे
लसद्धांतों के अनस
ु ार अवधाररत की जाए और ऐसी रीतत से दी जाए जो उस ववधध में ववतनहदत ष्ट हों,
उपबंध करती हैं; और ऐसी ककसी ववधध ककसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कक
इस प्रकार तनयत या अवधाररत रालश पयातप्त नहीं है अथवा ऐसी परू ी रालश या उसका कोई भाग नकद न
हदया जा कर अन्यथा हदया जाना है :

परं तु अनच्
ु छे द 30 के खंड (1) तनहदत ष्ट ककसी अल्पसंख्यक-वगत द्वारा स्थावपत और प्रशालसत
ककसी लशक्षा-संस्था की संपवर्त् के अतनवायत अजतन के ललए उपबंध करने से संबद्ध ववधध बनाते समय,
राज्य यह सतु नक्श्चत करे गा कक ऐसी संपवर्त् के अजतन के ललए ऐसी ववधध के अधीन जो रालश तनयत या
अवधाररत की जाए वह ऐसी हो जो उस खंड के अधीन प्रत्याभत
ू अधधकार को तनबंधधत या तनराकृत न
करे ।

(2क) जहाँ ववधध ककसी संपवर्त् के स्वालमत्व का या कब्जा रखने के अधधकार का अंतरण राज्य या
ककसी ऐसे तनगम को, जो कक राज्य के स्वालमत्व या तनयंत्रण के अधीन है , करने के ललए उपबंध नहीं
करती है वहाँ, इस बात के होते हुए भी कक वह ककसी व्यक्क्त को उसकी संपवर्त् से वंधचत करती है , उसकी
बाबत यह नहीं समझा जाएगा कक वह संपवर्त् के अतनवायत अजतन या अधधग्रहण के ललए उपबंध करती है ।

(2ख) अनच्
ु छे द 19 के खंड (1) के उपखंड (च) की कोई बात ककसी ऐसी ववधध पर प्रभाव नहीं
डालेगी जो खंड (2) में तनहदत ष्ट है ।

* * * * *

324
(5) खंड (2) की कोई बात-

(क) ककसी वततमान ववधध के उपबंधों पर, अथवा

(ख) ककसी ऐसी ववधध के उपबंधों पर, क्जसे राज्य इसके पश्चात-्

(i) ककसी कर या शाक्स्त के अधधरोपण या उद्ग्रहण के प्रयोजन के ललए, अथवा

(ii) लोक स्वास्थ्य की अलभवद्


ृ धध या प्राण या संपवर्त् के संकट-तनवारण के ललए, अथवा

(iii) ऐसी संपवर्त् की बाबत, जो ववधध द्वारा तनष्क्रांत संपवर्त् घोवषत की गई है ,

बनाए, कोई प्रभाव नहीं डालेगी।'।


* * * * *

(ज) अनच्
ु छे द 31 के पश्चात ् तनम्नललणखत उपशीषत का लोप करें , अथातत ् :-

“कुछ विधधयों की व्यािवृ ि”

(झ) अनच्
ु छे द 31क-

(अ) खंड (1) में -

(i) “अनच्
ु छे द 14 या अनच्
ु छे द 19” के स्थान पर “अनच्
ु छे द 14, अनच्
ु छे द 19 और
अनच्
ु छे द 31” रखें ;

(ii) खंड (1)के पहले परं तक


ु का लोप करें ;

(iii) दस
ू रे परं तक
ु में “यह और कक” के स्थान पर “यह कक” रखें ।

(आ) खंड (2) में उपखंड (क) के स्थान पर तनम्नललणखत उपखंड रखें , अथातत ् :-

(क) “संपदा” से ऐसी भलू म अलभप्रेत होगी जो कृवष के प्रयोजनों के ललए या कृवष के सहायक
प्रयोजनों के ललए या चरागाह के ललए अधधभोग में है या पट्टे पर दी गई है और इसके
अंतगतत तनम्नललणखत भी हैं, अथातत ् :-

(i) ऐसी भलू म पर भवनों के स्थल और अन्य संरचनाएँ;

(ii) ऐसी भलू म पर खड़े वक्ष


ृ ;

(iii) वन भलू म और वन्य बंजर भलू म;

(iv) जल से ढके क्षेत्र और जल पर तैरते हुए खेत;

(v) जंदर और घराट स्थल;

(vi) कोई जागीर, इनाम, मआ


ु फी या मक
ु रत री या इसी प्रकार का अन्य अनद
ु ान,

325
ककं तु इसके अंतगतत तनम्नललणखत नहीं हैं :-

(i) ककसी नगर, या नगरक्षेत्र या ग्राम आबादी में कोई भवन-स्थल या ककसी ऐसे भवन या स्थल
से अनल
ु ग्र कोई भलू म;

(ii) कोई भलू म जो ककसी नगर या ग्राम के स्थल के रूप में है , या

(iii) ककसी नगरपाललका या अधधसधू चत क्षेत्र या छावनी या नगरक्षेत्र में या ककसी क्षेत्र में , क्जसके
ललए कोई नगर योजना स्कीम मंजरू की गई है , भवन तनमातण के प्रयोजनों के ललए आरक्षक्षत
कोई भलू म।'।

(ञ) अनच्
ु छे द 31ग- यह अनच्
ु छे द जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(ट) अनच्
ु छे द 32-खंड (3) का लोप करें ।

(ठ) अनच्
ु छे द 35-

(अ) संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे संववधान (जम्म-ू
कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 (सं.आ. 48) के प्रारं भ अथातत ् 14 मई, 1954 के प्रतत
तनदे श हैं;

(आ) खंड (क) (1) में , 'अनच्


ु छे द 16 के खंड (3), अनच्
ु छे द 32 के खंड (3)' का लोप करें ; और

(इ) खंड (ख) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड जोड़े, अथातत ् :-

“(ग) संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 के प्रारं भ के पव


ू त या पश्चात,् तनवारक
तनरोध की बाबत जम्म-ू कश्मीर राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई ववधध इस
आधार पर शन्
ू य नहीं होगी कक वह इस भाग के उपबंधों में से ककसी से असंगत है , ककं तु
ऐसी कोई ववधध उक्त आदे श के प्रारं भ से पच्चीस वषत के अवसान पर, ऐसी असंगतत की
मात्रा तक, उन बातों के लसवाय प्रभावहीन हो जाएगी क्जन्हें उनके अवसान के पव
ू त ककया
गया या करने का लोप ककया गया है ।“।

(ङ) अनच्
ु छे द 35 के पश्चात ् तनम्नललणखत अनच्
ु छे द जोड़ें, अथातत ् :-

“35क. स्थायी ननिालसयों और उनके अधधकारों की बाबत विधधयों की व्यािवृ ि-


इस संववधान में अंतववतष्ट ककसी बात के होते हुए भी, जम्म-ू कश्मीर राज्य में प्रवर्त्
ृ ऐसी कोई ववद्यमान
ववधध और इसके पश्चात ् राज्य के ववधान-मंडल द्वारा अधधतनयलमत ऐसी कोई ववधध-

(क) जो उन व्यक्क्तयों के वगों को पररभावषत करती है जो जम्म-ू कश्मीर राज्य के स्थायी तनवासी
हैं या होंगे, या

(ख) जो-

(i) राज्य सरकार के अधीन तनयोजन;

326
(ii) राज्य में स्थावर संपवर्त् के अजतन;

(iii) राज्य में बस जाने; या

(iv) छात्रववृ र्त्यों के या ऐसी अन्य प्रकार की सहायता के जो राज्य सरकार प्रदान करे , अधधकार,

की बाबत ऐसे स्थायी तनवालसयों को कोई ववशेष अधधकार और ववशेषाधधकार प्रदर्त् करती है या अन्य
व्यक्क्तयों पर कोई तनबंधन अधधरोवपत करती है , इस आधार पर शन्
ू य नहीं होगी कक वह इस भाग के
ककसी उपबंध द्वारा भारत के अन्य नागररकों को प्रदर्त् ककन्हीं अधधकारों से असंगत है या उनको छीनती
या न्यन
ू करती है ।'।

(5) भाग 4- यह भाग जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(6) भाग 4क- यह भाग जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(5) भाग 5-

(क) अनच्
ु छे द 55-

(अ) इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए जम्म-ू कश्मीर राज्य की जनसंख्या ततरसठ लाख समझी
जाएगी;

(आ) स्पष्टीकरण में परं तक


ु का लोप करें ।

(ख) अनच्
ु छे द 81- खंड (2) और (3) के स्थान पर तनम्नललणखत खंड रखें , अथातत ् :-

“(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के ललए,-

(क) लोक सभा में राज्य को छह स्थान आबंहटत ककए जाएँगे;

(ख) पररसीमन अधधतनयम, 1972 के अधीन गहठत पररसीमन आयोग द्वारा राज्य को ऐसी
प्रकक्रया के अनस
ु ार, जो आयोग उधचत समझे, एक सदस्यीय प्रादे लशक तनवातचन-क्षेत्रों में
ववभाक्जत ककया जाएगा;

(ग) तनवातचन-क्षेत्र, यथासाध्य, भौगोललक रूप से संहत क्षेत्र होंगे और उनका पररसीमना करते
समय प्राकृततक ववशेषताओं, प्रशासतनक इकाइयों की ववद्यमान सीमाओं, संचार की
सवु वधाओं और लोक सवु वधा को ध्यान में रखा जाएगा; और

(घ) उन तनवातचन-क्षेत्रों में , क्जनमें राज्य ववभाक्जत ककया जाए, पाककस्तान अधधकृत क्षेत्र समाववष्ट
नहीं होगा

(3) खंड (2) की कोई बात लोक सभा में राज्य के प्रतततनधधत्व पर तब तक प्रभाव नहीं डालेगी
जब तक पररसीमन अधधतनयम, 1972 के अधीन संसदीय तनवातचन-क्षेत्र के पररसीमन से संबधं धत
पररसीमन आयोग के अंततम आदे श या आदे शों के भारत के राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को ववद्यमान
सदन का ववघटन न हो जाए।

327
(4) (क) पररसीमन आयोग राज्य की बाबत अपने कततव्यों में अपनी सहायता करने के प्रयोजन
के ललए अपने साथ पाँच व्यक्क्तयों को सहयोक्जत करे गा जो राज्य का प्रतततनधधत्व करने वाले,
लोक सभा के सदस्य होंगे।

(ख) राज्य से इस प्रकार सहयोक्जत ककए जाने वाले व्यक्क्त सदन की संरचना का सम्यक् ध्यान
रखते हुए लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा नामतनहदत ष्ट ककए जाएँगे।

(ग) उपखंड (ख) के अधीन ककए जाने वाले प्रथम नामतनदे शन लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा
संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) दस
ू रा संशोधन आदे श, 1974 के प्रारं भ से दो मास के
भीतर ककए जाएँगे।

(घ) ककसी भी सहयोक्जत सदस्य को पररसीमन आयोग के ककसी ववतनश्चय पर मत दे ने या


हस्ताक्षर करने का अधधकार नहीं होगा।

(ङ) यहद मत्ृ यु या पदत्याग के कारण ककसी सहयोक्जत सदस्य का पद ररक्त हो जाता है तो उसे
लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा और उपखंड (क) और (ख) के उपबंधों के अनस
ु ार यथाशक्य शीघ्र
भरा जाएगा'।

(ग) अनच्
ु छे द 82- दस
ू रे और तीसरे परं तक
ु का लोप करें ।

(घ) अनच्
ु छे द 105- खंड (3) में “वही होंगी जो संववधान (चवालीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1978
की धारा 15 के प्रवर्त्
ृ होने के ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और सलमततयों की
थीं” के स्थान पर “वही होंगी जो इस संववधान के प्रारं भ पर यन
ू ाइटे ड ककं गडम की पाललतयामें ट के
हाउस ऑफ कामन्स की और उसके सदस्यों और सलमततयों की थीं” रखें ।“।

(ङ) अनच्
ु छे द 132 के स्थान पर तनम्नललणखत अनच्
ु छे द रखें , अथातत ् :-

'132. कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधधकाररता
- (1) भारत के राज्यक्षेत्र में ककसी उच्च न्यायालय की लसववल, दांडडक या अन्य कायतवाही में हदए गए

ककसी तनणतय, डडक्री या अंततम आदे श की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी यहद वह उच्च न्यायालय
प्रमाणणत कर दे ता है कक उस मामले में इस संववधान के तनवतचन के बारे में ववधध का कोई सारवान ् प्रश्न
अंतवतललत है ।

(2) जहाँ उच्च न्यायालय ने ऐसे प्रमाणपत्र दे ने से इंकार कर हदया है वहाँ, यहद उच्चतम
न्यायालय का समाधान हो जाता है कक उस मामले में इस संववधान के तनवतचन के बारे में ववधध का कोई
सारवान ् प्रश्न अंतवतललत है तो, वह ऐसे तनणतय, डडक्री या अंततम आदे श की अपील के ललए ववशेष
इजाजत दे सकेगा।

328
(3) जहाँ ऐसा प्रमाणपत्र या ऐसी इजाजत दे दी गई है वहाँ उस मामले में कोई पक्षकार इस
आधार पर कक पव
ू ोक्त ककसी प्रश्न का ववतनश्चय गलत ककया गया है तथा उच्चतम न्यायालय की
इजाजत से अन्य ककसी आधार पर, उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा।

स्पष्ट्टीकरण- इस अनच्
ु छे द के प्रयोजनों के ललए “अंततम आदे श” पद के अंतगतत ऐसे वववाद्यक का
ववतनश्चय करने वाला आदे श है जो, यहद अपीलाथी के पक्ष में ववतनक्श्चत ककया जाता है तो, उस मामले
के अंततम तनपटारे के ललए पयातप्त होगा।'।

(च) अनच्
ु छे द 133-

(अ) खंड (1) में “अनच्


ु छे द 134क के अधीन” का लोप करें ।

(आ) खंड (1) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड अंतःस्थावपत करें , अथातत ् :-

'(1क) संववधान (तीसवां संशोधन) अधधतनयम, 1972 की धारा 3 के उपबंध जम्म-ू कश्मीर राज्य
के संबध
ं में इस उपांतरण के अधीन लागू होंगे कक उसमें “इस अधधतनयम”, “इस अधधतनयम के
प्रारं भ”,”यह अधधतनयम पाररत नहीं ककया गया हो” और “इस अधधतनयम द्वारा यथासंशोधधत उस खंड के
उपबंधों को” के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे क्रमशः ”संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू
होना) दस
ू रा संशोधन आदे श, 1974”, “उक्त आदे श के प्रारं भ”, “उक्त आदे श पाररत नहीं ककया गया हो”
और “उक्त खंड के उपबंधों, जैसे कक वे उक्त आदे श के प्रारं भ के पश्चात ् हो” प्रतत तनदे श है ।‘।

(छ) अनच्
ु छे द 134-

(अ) खंड (1) के उपखंड (ग) में 'अनच्


ु छे द 134क के अधीन' का लोप करें ;

(आ) खंड (2) में 'संसद्' के पश्चात ् 'राज्य के ववधान-मंडल के अनरु ोध पर' अंतःस्थावपत
करें ।

(ज) अनच्
ु छे द 134क, 135, 139 और 139क- ये अनच्
ु छे द जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं
हैं।

(झ) अनच्
ु छे द 145- खंड (1) में उपखंड (गग) का लोप करें ।

(ञ) अनच्
ु छे द 150- “जो राष्रपतत, भारत के तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक की सलाह पर, ववहहत
करे ” के स्थान पर “जो भारत का तनयंत्रक-महालेखापरीक्षक राष्रपतत के अनम
ु ोदन से,
ववहहत करे ” रखें ।

(8) भाग 6

(क) अनच्
ु छे द 153 से 217 तक, अनच्
ु छे द 219, अनच्
ु छे द 221, अनच्
ु छे द 223, 224, 224क
और 225 तथा अनच्
ु छे द 227 से 233, अनच्
ु छे द 233क और अनच्
ु छे द 234 से 237 तक
का लोप करें ।

329
(ख) अनच्
ु छे द 220- संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे
संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1960 के प्रारं भ, अथातत ् 26 जनवरी,
1960 के प्रतत तनदे श हैं।

(ग) अनच्
ु छे द 222- खंड (1) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड अंतःस्थावपत करें , अथातत ् :-
“(1क) प्रत्येक ऐसा अंतरण जो जम्म-ू कश्मीर के उच्च न्यायालय से या उस न्यायालय को हो,
राज्यपाल के परामशत के पश्चात ् ककया जाएगा।'।

(घ) अनच्
ु छे द 226-

(अ) खंड (2) को खंड (1क) के रूप में पन


ु ःसंख्यांककत करें ।

(आ) खंड (3) का लोप करें ;

(इ) खंड (4) को खंड (2) के रूप में पन


ु ःसंख्यांककत करें और इस प्रकार पन
ु ःसंख्यांककत खंड (2)
में “इस अनच्
ु छे द” के स्थान पर 'खंड (1) या खंड (1क)' रखें ।

(9) भाग 8- यह भाग जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(10) भाग 10- यह भाग जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(11) भाग 11-

(क) अनच्
ु छे द 246-

(अ) खंड (1) में , “खंड (2) और खंड (3)” के स्थान पर “खंड (2)” रखें ।

(आ) खंड (2) में , “खंड (3) में ककसी बात के होते हुए भी” का लोप करें ।

(इ) खंड (3) और खंड (4) का लोप करें ।

(ख) अनच्
ु छे द 248 के स्थान पर तनम्नललणखत अनच्
ु छे द रखें , अथातत ् :-

“248. अिलशष्ट्ट विधायी शक्ततयााँ- संसद् को,-

(क) ववधध द्वारा स्थावपत सरकार को आतंककत करने या लोगों या लोगों के ककसी अनभ
ु ाग में
आतंक उत्पन्न करने या लोगों के ककसी अनभ
ु ाग को पथ
ृ क् करने या लोगों के ववलभन्न
अनभ
ु ागों के बीच समरसता पर प्रततकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कायों को
अंतवतललत करने वाले कक्रयाकलाप को रोकने के संबध
ं में ;

(कक) भारत की प्रभत


ु ा तथा प्रादे लशक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या ववतछन्न करने
अथवा भारत राज्यक्षेत्र के ककसी भाग का अध्यपतण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग को संघ से ववलग कराने अथवा भारत के राष्रीय ध्वज, भारतीय राष्रगान
और इस संववधान का अपमान करने वाले अन्य कक्रयाकलाप को रोकने के संबध
ं में , और

330
(ख) (i) समद्र
ु या वायु द्वारा ववदे श यात्रा पर;

(ii) अंतदे शीय ववमान यात्रा पर;

(iii) मनीआडतर, फोनतार, और तार को सक्म्मललत करते हुए, डाक वस्तओ


ु ं पर, कर लगाने
के संबध
ं में , ववधध बनाने की अनन्य शक्क्त है ।

स्पष्ट्टीकरण- इस अनच्
ु छे द में , “आतंकवादी कायत” से बमों, डायनामाइट या अन्य ववस्फोटक
पदाथों या ज्वलनशील पदाथों या अग्नयायध
ु ों या अन्य प्राणहर आयध
ु ों या ववषों का या अपायकर गैसों या
अन्य रसायनों या पररसंकटमय प्रकृतत के ककन्हीं अन्य पदाथों का (चाहे वे जैव हों या अन्य) उपयोग
करके ककया गया कोई कायत या बात अलभप्रेत है ।“।

(खख) अनच्
ु छे द 249, खंड (1) में , “राज्य-सच
ू ी में प्रगणणत ऐसे ववषय के संबध
ं में , जो उस
संकल्प में ववतनहदतष्ट है ”, के स्थान पर “उस संकल्प में ववतनहदत ष्ट ऐसे ववषय के संबध

में , जो संघ-सच
ू ी या समवती सच
ू ी में प्रगणणत ववषय नहीं है ,” रखें ।

(ग) अनच्
ु छे द 250 “राज्य-सच
ू ी में प्रगणणत ककसी भी ववषय के संबध
ं में” के स्थान पर “संघ-
सच
ू ी में प्रगणणत न ककए गए ववषयों के संबध
ं में भी” रखें ।

(घ) खंड (घ) का लोप करें ।

(ङ) अनच्
ु छे द 253 में तनम्नललणखत परं तक
ु जोड़ें, अथातत ् :-

“परं तु संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 के प्रारं भ के पश्चात,् जम्म-ू कश्मीर
राज्य के संबध
ं में व्यवस्था को प्रभाववत करने वाला कोई ववतनश्चय भारत सरकार द्वारा उस राज्य की
सरकार की सहमतत से ही ककया जाएगा।“।

(च) अनच्
ु छे द 255 का लोप करें ।

(छ) अनच्
ु छे द 256 को उसके खंड (1) के रूप में पन
ु ःसंख्यांककत करें और उसमें

तनम्नललणखत नया खंड जोड़ें, अथातत ् :-

“(2) जम्म-ू कश्मीर राज्य अपनी कायतपाललका शक्क्त का इस प्रकार प्रयोग करे गा क्जससे उस राज्य
के संबध
ं में संववधान के अधीन संघ के कततव्यों और उर्त्रदातयत्वों का संघ द्वारा तनवतहन सग
ु म हो; और
ववलशष्टतया उक्त राज्य, यहद संघ वैसी अपेक्षा करे , संघ की ओर से और उसके व्यय पर संपवर्त् का
अजतन या अधधग्रहण करे गा अथवा यहद संपवर्त् उस राज्य की हो तो ऐसे तनबंधनों पर, जो करार पाए जाएँ
या करार के अभाव में जो भारत के मख्
ु य न्यायमतू तत द्वारा तनयक्
ु त मध्यस्थ द्वारा अवधाररत ककए जाएँ,
उसे संघ को अंतररत करे गा।“।

(ज) अनच्
ु छे द 261- खंड (2) में “संसद् द्वारा बनाई गई” का लोप करें ।

(12) भाग 12

331
(क) अनच्
ु छे द 266, 282, 284, 298 और 300- इन अनच्
ु छे दों में राज्य या राज्यों के प्रतत
तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक उनके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श
नहीं है ।

(ख) अनच्
ु छे द 267 के खंड (2), अनच्
ु छे द 273, अनच्
ु छे द 283 के खंड (2) और अनच्
ु छे द
290 का लोप करें ।

(ग) अनच्
ु छे द 277 और 295- इन अनच्
ु छे दों में संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह
अथत लगाया जाएगा कक वे संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 के
प्रारं भ, अथातत ् 14 मई, 1954 के प्रतत तनदे श हैं।

(घ) उपशीषत “अध्याय 4- संपवर्त् का अधधकार” और अनच्


ु छे द 300क का लोप करें ।

(13) भाग 13- अनच्


ु छे द 303 के खंड (1) में , “सातवीं अनस
ु च
ू ी की सधू चयों में से ककसी में
व्यापार और वाणणज्य संबध
ं ी ककसी प्रववक्ष्ट के आधार पर” का लोप करें ।

(14) भाग 14- अनच्


ु छे द 312 के लसवाय इस भाग में , “राज्य” के प्रतत तनदे श के अंतगतत
जम्म-ू कश्मीर राज्य नहीं है ।

(15) भाग 14क- यह भाग जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं होता है ।

(16) भाग 15- अनच्


ु छे द 324-

(क) खंड (1) में , जम्म-ू कश्मीर के ववधान-मंडल के दोनों सदनों में से ककसी सदन के ललए
तनवातचनों के बारे में संववधान के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक वह जम्म-ू
कश्मीर के संववधान के प्रतत तनदे श है ।

(ख) अनच्
ु छे द 325, 326 और 327- इस अनच्
ु छे द में राज्य के प्रतत तनदे श का यह अथत
लगाया जाएगा कक उसके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श नहीं है ।

(ग) अनच्
ु छे द 328 का लोप करें ।

(घ) अनच्
ु छे द 329-

(अ) राज्य के प्रतत तनदे श का यह अथत लगाया जाएगा कक उसके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य
के प्रतत तनदे श नहीं है ;

(आ) “या अनच्


ु छे द 328” का लोप करें ।

(17) भाग 16

मल
ू खंड (क) का लोप ककया गया और खंड (ख) और खंड (ग) को, खंड (क) और खंड (ख) के रू
प में पन
ु ःअक्षरांककत ककया गया।

(क) अनच्
ु छे द 331, 332, 333, 336 और 337 का लोप करें ।

332
(ख) अनच्
ु छे द 334 और 335- राज्य या राज्यों के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा
कक उनके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श नहीं है ।

(ग) अनच्
ु छे द 339- खंड (1) में 'राज्यों के अनस
ु धू चत क्षेत्रों के प्रशासन और अनस
ु धू चत
जनजाततयों' शब्दों के स्थान पर 'राज्यों की अनस
ु धू चत जनजाततयों' शब्द रखें ।

(18) भाग 17-

इस भाग के उपबंध जम्म-ू कश्मीर राज्य को केवल वहीं तक लागू होंगे जहाँ तक वे-

(i) संघ की राजभाषा,

(ii) एक राज्य और दस
ू रे राज्य के बीच, अथवा ककसी राज्य और संघ के बीच पत्राहद की
राजभाषा, और

(iii) उच्चतम न्यायालय में कायतवाहहयों की भाषा, से संबधं धत हैं।

(19) भाग 18

(क) अनच्
ु छे द 352 के स्थान पर तनम्नललणखत अनच्
ु छे द रखें , अथातत ् :-

“352. आपात की उद्घोषणा - (1) यहद राष्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक गंभीर आपात
ववद्यमान है क्जससे यद्
ु ध या बाह्य आक्रमण या आंतररक अशांतत के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के
ककसी भाग की सरु क्षा संकट में है , तो वह उद्घोषणा द्वारा उस आशय की घोषणा कर सकेगा।

(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा-

(क) पश्चातवती
् उद्घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी;

(ख) संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी;

(ग) दो मास की समाक्प्त पर प्रवततन में नहीं रहे गी यहद उस अवधध की समाक्प्त से पहले
संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनम
ु ोदन नहीं कर हदया जाता है :

परं तु यहद ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का ववघटन हो गया है या
लोक सभा का ववघटन उपखंड (ग) में तनहदत ष्ट दो मास की अवधध के दौरान हो जाता है , और यहद
उद्घोषणा का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पाररत कर हदया गया है ककं तु ऐसी
उद्घोषणा के संबध
ं में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधध की समाक्प्त से पहले पाररत नहीं ककया
गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से, क्जसको लोक सभा अपने पन
ु गतठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है ,
तीस हदन की समाक्प्त पर प्रवततन में नहीं रहे गी यहद उक्त तीस हदन की अवधध की समाक्प्त से पहले
उद्घोषणा का अनम
ु ोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पाररत नहीं कर हदया जाता है ।“

(3) यहद राष्रपतत का यह समाधान हो जाता है कक यद्


ु ध या बाह्य आक्रमण या आंतररक
अशांतत का संकट सक्न्नकट है तो यह घोवषत करने वाली आपात की उद्घोषणा कक यद्
ु ध या बाह्य

333
आक्रमण या आंतररक अशांतत के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ककसी भाग की सरु क्षा संकट में है ,
यद्
ु ध या ऐसा कोई आक्रमण या अशांतत के वास्तव में होने से पहले भी की जा सकेगी।

(4) इस अनच्
ु छे द द्वारा राष्रपतत को प्रदर्त् शक्क्त के अंतगतत यद्
ु ध या बाह्य आक्रमण या
आंतररक अशांतत अथवा यद्
ु ध, बाह्य आक्रमण या आंतररक अशांतत के सक्न्नकट संकट के लभन्न-लभन्न
आधारों पर लभन्न-लभन्न घोषणाएँ करने की शक्क्त होगी चाहे खंड (1) के अधीन राष्रपतत द्वारा पहले से
की गई उद्घोषणा हो या न हो और ऐसी उद्घोषणा प्रवततन में हो या नहीं।

(5) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी,-

(क) खंड (1) और खंड (3) में वणणतत राष्रपतत का समाधान अंततम और तनश्चायक होगा और
उसे ककसी आधार पर ककसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं ककया जाएगा;

(ख) उपखंड (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए न तो उच्चतम न्यायालय को न ककसी अन्य
न्यायालय को-

(i) राष्रपतत द्वारा की गई उद्घोषणा द्वारा खंड (1) में वणणतत आशय की घोषणा;
या

(ii) ऐसी उद्घोषणा के प्रवर्त्


ृ बने रहने, की ववधध मान्यता के बारे में ककसी भी आधार
पर कोई प्रश्न ग्रहण करने की अधधकाररता होगी।

(6) केवल आंतररक अशांतत या उसका संकट सक्न्नकट होने के आधार पर की गई आपात ् की
उद्घोषणा(अनच्
ु छे द 354 की बाबत के लसवाय) जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध
ं में तभी लागू होगी जब वह-

(क) उस राज्य की सरकार के अनरु ोध पर या उसकी सहमतत से की गई है ; या

(ख) जहाँ वह इस प्रकार नहीं की गई है वहाँ वह उस राज्य की सरकार के अनरु ोध पर या


उसकी सहमतत से राष्रपतत द्वारा बाद में लागू की गई है ।

(ख) अनच्
ु छे द 353- परं तक
ु का लोप करें ।

(ग) अनच्
ु छे द 356

(अ) खंड (1) में , इस संववधान के उपबंधों या उपबंध के प्रतत तनदे शों का जम्म-ू कश्मीर राज्य
के संबध
ं में यह अथत लगाया जाएगा कक उनके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर के संववधान के
उपबंधों या उपबंध के प्रतत तनदे श है ;

(आ) खंड (4) में :-

(i) प्रारं लभक भाग के स्थान पर तनम्नललणखत रखें , अथातत ् :-

334
“इस प्रकार अनम
ु ोहदत उद्घोषणा, यहद वापस नहीं ली जाती है तो, खंड (3) के अधीन उद्घोषणा
का अनम
ु ोदन करने वाले संकल्पों में से दस
ू रे संकल्प के पाररत ककए जाने की तारीख से छह मास की
अवधध के अवसान पर प्रवर्त्
ृ नहीं रहे गी।“;

(ii) दस
ू रे परं तक
ु के पश्चात ् तनम्नललणखत परं तक
ु अंतःस्थावपत ककया जाएगा, अथातत:-्

“परं तु यह भी कक जम्म-ू कश्मीर राज्य के बारे में 18 जुलाई, 1990 को खंड (1) के अधीन जारी
की गई उद्घोषणा के मामले में इस खंड के पहले परं तक
ु में “तीन वषत” के प्रतत तनदे श का यह अथत
लगाया जाएगा कक वह “छह वषत” के प्रतत तनदे श है ।“।

(ई) खंड (5) के स्थान पर तनम्नललणखत खंड रखें , अथातत ् :-

“(5) इस संववधान में ककसी बात के होते हुए भी, खंड (1) में वणणतत राष्रपतत का समाधान
अंततम और तनश्चायक होगा और ककसी भी आधार पर ककसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं ककया जाएगा।“।

(घ) अनच्
ु छे द 357- खंड (2) के स्थान पर तनम्नललणखत खंड रखें , अथातत ् :-

“(2) राज्य के ववधान-मंडल की शक्क्त का प्रयोग करते हुए संसद् द्वारा अथवा राष्रपतत या खंड
(1) के उपखंड (क) में तनहदत ष्ट अन्य प्राधधकारी द्वारा बनाई गई ऐसी ववधध क्जसे संसद् अथवा राष्रपतत
या ऐसा अन्य प्राधधकारी अनच्
ु छे द 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अभाव में बनाने के ललए सक्षम
नहीं होता, उद्घोषणा के प्रवततन में न रहने के पश्चात ् एक वषत की अवधध के अवसान पर, अक्षमता की
मात्रा तक, उन बातों के लसवाय क्जन्हें उक्त अवधध के अवसान के पहले ककया गया है या करने का लोप
ककया गया है प्रभावहीन हो जाएगी यहद वे उपबंध जो प्रभावहीन हो जाएँगे, सक्षम ववधान-मंडल के
अधधतनयम द्वारा पहले ही तनरलसत या उपांतरणों के सहहत या उनके त्रबना पन
ु ः अधधतनयलमत नहीं कर
हदए जाते हैं।“।

(ङ) अनच्
ु छे द 358 के स्थान पर तनम्नललणखत अनच्
ु छे द रखें , अथातत ् :-

“358. आपात के दौरान अनच्


ु छे द 19 के उपबंधों का तनलंबन- जब आपात की उद्घोषणा प्रवततन
में है तब अनच्
ु छे द 19 की कोई बात भाग 3 में यथापररभावषत राज्य की कोई ऐसी ववधध बनाने की या
कोई ऐसी कायतपाललका कारत वाई करने की शक्क्त को, क्जसे वह राज्य उस भाग में अंतववतष्ट उपबंधों के
अभाव में बनाने या करने के ललए सक्षम होता, तनबंक्न्धत नहीं करे गी ककं तु इस प्रकार बनाई गई कोई
ववधध उद्घोषणा के प्रवततन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के लसवाय तरु ं त प्रभावहीन हो
जाएगी, क्जन्हें ववधध के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले ककया गया है या करने का लोप ककया गया
है ।“।

(च) अनच्
ु छे द 359-

(अ) खंड (1) में “(अनच्


ु छे द 20 और अनच्
ु छे द 21 को छोड़कर)” का लोप करें ;

(आ) खंड (1क) में ,-

(ii) “(अनच्
ु छे द 20 और अनच्
ु छे द 21 को छोड़कर)” का लोप करें ;

335
(iiii) परन्तक
ु का लोप करें ;

(इ) खंड (1ख) का लोप करें ;

(ई) खंड (2) में परन्तक


ु का लोप करें ।

(छ) अनच्
ु छे द 360 का लोप करें ।

(20) भाग 19

(क) अनच्
ु छे द 361क- यह अनच्
ु छे द जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(ख) अनच्
ु छे द 365 का लोप करें ।

(ग) अनच्
ु छे द 367- खंड (3) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड जोड़ें, अथातत ् :-

“(4) इस संववधान के, जैसा कक वह जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध


ं में लागू होता है , प्रयोजनों के
ललए-

(क) इस संववधान या उसके उपबंधों के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे उक्त
राज्य के संबध
ं में लागू संववधान के या उसके उपबंधों के प्रतत तनदे श भी हैं;

(कक) राज्य की ववधान-सभा की लसफाररश पर राष्रपतत द्वारा, जम्म-ू कश्मीर के सदरे -ररयासत
के रूप में तत्समय मान्यताप्राप्त तथा तत्समय पदस्थ राज्य मंत्रत्र-पररषद् की सलाह पर
कायत करने वाले व्यक्क्त के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे जम्म-ू कश्मीर
के राज्यपाल के प्रतत तनदे श हैं;

(ख) उक्त राज्य की सरकार के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक उनके अंतगतत
अपनी मंत्रत्र-पररषद् की सलाह पर कायत कर रहे जम्म-ू कश्मीर के राज्यपाल के प्रतत तनदे श
हैं:

परन्तु 10 अप्रैल, 1965 से पहले की ककसी अवधध की बाबत, ऐसे तनदे शों का यह अथत लगाया
जाएगा कक उनके अंतगतत अपनी मंत्रत्र-पररषद् की सलाह से कायत कर रहे सदरे -ररयासत के प्रतत तनदे श हैं;

(ग) उच्च न्यायालय के प्रतत तनदे शों के अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय के
प्रतत तनदे श हैं।

(घ) उक्त राज्य के स्थायी तनवालसयों के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक उनसे
ऐसे व्यक्क्त अलभप्रेत हैं क्जन्हें राज्य में प्रवर्त्
ृ ववधधयों के अधीन राज्य की प्रजा के रूप
में , संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 के प्रारं भ से पव
ू ,त मान्यता
प्राप्त थी या क्जन्हें राज्य के ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध द्वारा राज्य के
स्थायी तनवालसयों के रूप में मान्यता प्राप्त है ; और

(ङ) राज्यपाल के प्रतत तनदे शों के अंतगतत जम्म-ू कश्मीर के राज्यपाल के प्रतत तनदे श हैं :

336
परन्तु 10 अप्रैल, 1965 से पहले की ककसी अवधध की बाबत, ऐसे तनदे शों का यह अथत लगाया
जाएगा कक वे राष्रपतत द्वारा जम्म-ू कश्मीर के सदरे -ररयासत के रूप में मान्यता प्राप्त व्यक्क्त के प्रतत
तनदे श हैं और उनके अंतगतत राष्रपतत द्वारा सदरे -ररयासत की शक्क्तयों का प्रयोग करने के ललए सक्षम
व्यक्क्त के रूप में मान्यता प्राप्त ककसी व्यक्क्त के प्रतत तनदे श भी हैं।“।

(21) भाग 20

अनच्
ु छे द 368-

(क) खंड (3) में तनम्नललणखत और परं तक


ु जोड़े, अथातत ् :-

“परं तु यह और कक कोई संशोधन जम्म-ू कश्मीर राज्य के संबध


ं में तभी प्रभावी होगा जब वह
अनच्
ु छे द 370 के खंड (1) के अधीन राष्रपतत के आदे श द्वारा लागू ककया गया हो।“।

(ख) खंड (4) और खंड (5) का लोप करें , और खंड (3) के पश्चात ् तनम्नललणखत खंड जोड़ें, अथातत ्
:-

“(4) जम्म-ू कश्मीर के संववधान के-

(क) राज्यपाल की तनयक्ु क्त, शक्क्तयों, कृत्यों, कततव्यों, उपलक्ब्धयों, भर्त्ों, ववशेषाधधकारों या
उन्मक्ु क्तयों, या

(ख) भारत के तनवातचन आयोग द्वारा तनवातचनों के अधीक्षण, तनदे शन और तनयंत्रण, ववभेद के
त्रबना तनवातचन नामावली में सक्म्मललत ककए जाने की पात्रता, वयस्क मताधधकार और
ववधान पररषद् के गठन, जो जम्म-ू कश्मीर संववधान की धारा 138, 139, 140 और 150
में ववतनहदत ष्ट ववषय हैं,

से संबधं धत ककसी उपबंध में या उसके प्रभाव में कोई पररवततन करने के ललए जम्म-ू कश्मीर राज्य के
ववधान-मंडल द्वारा बनाई गई ककसी ववधध का कोई प्रभाव तभी होगा जब ऐसी ववधध राष्रपतत के ववचार
के ललए आरक्षक्षत रखने के पश्चात,् उसकी अनम
ु तत प्राप्त कर लेती है ।“।

(22) भाग 21

(क) अनच्
ु छे द 369, 371, 371क, 372क, 373 और अनच्
ु छे द 376 से 378क तक का और
अनच्
ु छे द 392 का लोप करें ।

(ख) अनच्
ु छे द 372 में ,-

(अ) खंड (2) और (3) का लोप करें ;

(आ) भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवर्त्


ृ ववधध के प्रतत तनदे शों के अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के
राज्यक्षेत्र में ववधध का बल रखने वाली हहदायतों, ऐलानों, इक्श्तहारों, पररपत्रों, रोबकारों,
इरशादों, याददाश्तों, राज्य पररषद् के संकल्पों, संववधान सभा में संकल्पों और अन्य
ललखतों के प्रतत तनदे श होंगे;

337
(इ) संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक वे संववधान (जम्म-ू
कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954 (सं.आ. 48) के प्रारं भ, अथातत ् 14 मई, 1954 के
प्रतत तनदे श हैं।

(ग) अनच्
ु छे द 374-

(अ) खंड (1), (2), (3) और (5) का लोप करें ;

(आ) खंड (4) में , राज्य में वप्रवी कौंलसल के रूप में कायत करने वाले प्राधधकारी के प्रतत तनदे श
का यह अथत लगाया जाएगा कक वह जम्म-ू कश्मीर संववधान अधधतनयम संवत ् 1996 के
अधीन गहठत सलाहकार बोडत के प्रतत तनदे श है ; और संववधान के प्रारं भ के प्रतत तनदे शों
का यह अथत लगाया जाएगा कक वे संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 1954
के प्रारं भ, अथातत ् 14 मई, 1954 के प्रतत तनदे श हैं।

(23) भाग 22- अनच्


ु छे द 394 तथा 395 का लोप करें ।

(24) तीसरी अनस


ु च
ू ी- प्ररूप 5, 6, 7 और 8 का लोप करें ।

(25) पााँचिीं अनस


ु च
ू ी- यह अनस
ु च
ू ी जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(26) छठी अनस


ु च
ू ी- यह अनस
ु च
ू ी जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(27) सातिीं अनस


ु च
ू ी-

(क) सच
ू ी 1- संघ सच
ू ी-

(अ) प्रववक्ष्ट 2क का लोप करें ;

(आ) प्रववक्ष्ट 3 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

“3. छावतनयों का प्रशासन।“;

(इ) प्रववक्ष्ट 8, 9, 34 और 79 का लोप करें ;

(ई) प्रववक्ष्ट 72 में ,-

(i) ककसी ऐसी तनवातचन याधचका में क्जसके द्वारा उस राज्य के ववधान-मंडल के
दोनों सदनों में से ककसी सदन के ललए तनवातचन प्रश्नगत है , जम्म-ू कश्मीर राज्य
के उच्च न्यायालय द्वारा ककए गए ककसी ववतनश्चय या आदे श के ववरुद्ध
उधातम न्यायालय को अपीलों के संबध
ं में राज्यों के प्रतत तनदे शों का यह अथत
लगाया जाएगा कक उसके अंतगतत जम्म-ू कश्मीर राज्य के प्रतत तनदे श है ;

(ii) अन्य मामलों के संबध


ं में राज्यों के प्रतत तनदे शों का यह अथत लगाया जाएगा कक
उसके अंतगतत उस राज्य के प्रतत तनदे श नहीं है ;

338
(उ) प्रववक्ष्ट 81 में “अंतरराक्ज्यक प्रव्रजन” का लोप करें ;

(ऊ) प्रववक्ष्ट 97 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

'97. (क) ववधध द्वारा स्थावपत सरकार को आतंककत करने या लोगों या लोगों के ककसी
अनभ
ु ाग में आतंक उत्पन्न करने या लोगों के ककसी अनभ
ु ाग को पथ
ृ क् करने या लोगों
के ववलभन्न अनभ
ु ागों के बीच समरसता पर प्रततकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कायों
को अंतवतललत करने वाले;

(ग) भारत की प्रभत


ु ा तथा प्रादे लशक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या ववतछन्न करने, अथवा
भारत राज्यक्षेत्र के ककसी भाग का अध्यपतण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के भाग को संघ
से ववलग कराने अथवा भारत के राष्रीय ध्वज, भारतीय राष्रगान और इस संववधान का
अपमान करने वाले,
कक्रयाकलाप को रोकना,

समद्र
ु या वायु द्वारा ववदे श यात्रा, अंतरदे शीय ववमान यात्रा और डाक वस्तओ
ु ं पर, क्जनके अंतगतत
मनीआडतर, फोनतार और तार हैं, कर।

स्पष्ट्टीकरण- इस प्रववक्ष्ट में , “आतंकवादी कायत” का वही अथत है जो अनच्


ु छे द 248 के स्पष्टीकरण में
है ।'।

(ख) सच
ू ी 2- राज्य सच
ू ी का लोप करें ।

(ग) सच
ू ी 3- समवती सच
ू ी-

(अ) प्रववक्ष्ट 1 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

“1. दं ड ववधध (क्जसके अंतगतत सच


ू ी 1 के ववतनहदतष्ट ववषयों में से ककसी ववषय से संबधं धत
ववधधयों के ववरुद्ध अपराध और लसववल शक्क्त की सहायता के ललए नौ-सेना, वायस
ु ेना या संघ के ककन्हीं
अन्य सशस्त्र बलों के प्रयोग नहीं हैं,) जहाँ तक ऐसी दं ड ववधध इस अनस
ु च
ू ी में ववतनहदत ष्ट ववषयों में से
ककसी ववषय से संबधं धत ववधध के ववरुद्ध अपराधों से संबधं धत है ।

(आ) प्रववक्ष्ट 2 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

“2. दं ड प्रकक्रया, (क्जसके अंतगतत अपराधों को रोकना तथा दं ड न्यायालयों का, क्जनके अंतगतत
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय नहीं हैं, गठन और संगठन है ) जहाँ तक उसका संबध
ं -

(i) ककन्हीं ऐसे ववषयों से, जो ऐसे ववषय हैं, क्जनके संबध
ं में संसद् को ववधधयाँ बनाने की
शक्क्त है , संबधं धत ववधधयों के ववरुद्ध अपराधों से है , और

(ii) ककसी ववदे श में राजनतयक और कौंसलीय अधधकाररयों द्वारा शपथ हदलाए जाने तथा
शपथ-पत्र ललए जाने से है ”;

339
(इ) प्रववक्ष्ट 3, प्रववक्ष्ट 5 से 10 तक, (क्जसमें ये दोनों सक्म्मललत हैं,) प्रववक्ष्ट 14, 15, 17,
20, 21, 27, 28, 29, 31, 32, 37, 38, 41 तथा 44 का लोप करें ;

(ई) प्रववक्ष्ट 11क,17क,17ख,20क और 33क जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं हैं;

(उ) प्रववक्ष्ट 12 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

“12. साक्ष्य तथा शपथ, जहाँ तक उनका संबध


ं -

(i) ककसी ववदे श में राजनतयक और कौंसलीय अधधकाररयों द्वारा शपथ हदलाए जाने तथा
शपथ-पत्र ललए जाने से है ; और

(ii) ककन्हीं ऐसे अन्य ववषयों से है , जो ऐसे ववषय हैं, क्जनके संबध
ं में संसद् को ववधधयाँ
बनाने की शक्क्त है ।“।

(ऊ) प्रववक्ष्ट 13 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

“13. लसववल प्रकक्रया, जहाँ तक उसका संबध


ं ककसी ववदे श में राजनतयक तथा कौंसलीय
अधधकाररयों द्वारा शपथ हदलाए जाने से तथा शपथ-पत्र ललए जाने से है ';

(ए) प्रववक्ष्ट 25 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

“25. श्रलमकों को व्यावसातयक और तकनीकी प्रलशक्षण”;

(ऐ) प्रववक्ष्ट 30 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

“30. जन्म-मरण सांक्ख्यकी, जहाँ तक उसका संबध


ं जन्म तथा मत्ृ यु से है , क्जसके अंतगतत जन्म
और मत्ृ यु रक्जस्रीकरण है ';

(ओ) प्रववक्ष्ट 42 के स्थान पर तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट रखें , अथातत ् :-

“42. संपवर्त् का अजतन और अधधग्रहण, जहाँ तक उसका संबध


ं सच
ू ी 1 की प्रववक्ष्ट 67 या सच
ू ी 3
की प्रववक्ष्ट 40 के अंतगतत आने वाली संपवर्त् के या ककसी ऐसी मानवीय कलाकृतत के, क्जसका कलात्मक
या सौंदयातत्मक मल्
ू य है , अजतन से है ”;

(औ) प्रववक्ष्ट 45 में , “सच


ू ी 2 या सच
ू ी 3” के स्थान पर “इस सच
ू ी” शब्द रखें ।

(28) नौवीं अनस


ु च
ू ी

(क) प्रववक्ष्ट 64 के पश्चात,् तनम्नललणखत प्रववक्ष्टयाँ जोड़ें, अथातत ् :-

“64क. जम्म-ू कश्मीर राज्य कुठ अधधतनयम (संवत ् 1978 का सं. 1)।

64ख. जम्म-ू कश्मीर अलभधतृ त अधधतनयम (संवत ् 1980 का सं. 2)।

64ग. जम्म-ू कश्मीर भलू म अन्य संक्रमण अधधतनयम (संवत ् 1995 का सं. 5)।

340
64घ. जम्म-ू कश्मीर बह
ृ द् भ-ू संपदा उत्सादन अधधतनयम (संवत ् 2007 का सं. 17)।

64ङ. जागीरों और भ-ू राजस्व के अन्य समनद


ु े शनों आहद के पन
ु ग्रतहण के बारे में 1951 का आदे श
सं. 6-एच, तारीख 10 माचत, 1951।

64च. जम्म-ू कश्मीर बंधक संपवर्त् की वापसी अधधतनयम, 1976

(1976 का अधधतनयम 14)';

64छ. जम्म-ू कश्मीर ऋणी राहत अधधतनयम, 1976 (1976 का अधधतनयम 15)”;

(ख) प्रववक्ष्ट 65 से 86 तक जम्म-ू कश्मीर राज्य को लागू नहीं होती है ;

(ग) प्रववक्ष्ट 86 के पश्चात ् तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट अंतःस्थावपत करें , अथातत ् :-

“87. लोक प्रतततनधधत्व अधधतनयम, 1951 (1951 का केंद्रीय अधधतनयम 43), लोक प्रतततनधधत्व
(संशोधन) अधधतनयम, 1974 (1974 का केंद्रीय अधधतनयम 58), तनवातचन ववधध (संशोधन) अधधतनयम,
1975 (1975 का केंद्रीय अधधतनयम 40)।';

(घ) प्रववक्ष्ट 91 के पश्चात ् तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट अंतःस्थावपत करें , अथातत ् :-

“92. आंतररक सरु क्षा अधधतनयम, 1971 (1971 का केंद्रीय अधधतनयम 26)।“;

(ङ) प्रववक्ष्ट 129 के पश्चात ् तनम्नललणखत प्रववक्ष्ट अंतःस्थावपत करें , अथातत ् :-

“130. आक्षेपणीय सामग्री प्रकाशन तनवारण अधधतनयम, 1976 (1976 का केंद्रीय अधधतनयम
27)।“;

(ङ) ऊपर उपदलशतत रूप में , प्रववक्ष्ट 87, प्रववक्ष्ट 92 और प्रववक्ष्ट 130 के अंतःस्थापन के पश्चात ्
प्रववक्ष्ट 87 से प्रववक्ष्ट 188 तक को क्रमशः प्रववक्ष्ट 65 से प्रववक्ष्ट 166 के रूप में
पन
ु ःसंख्यांककत करें ।

(29) दसिीं अनस


ु च
ू ी

(क) “[अनच्
ु छे द 102 (2) और अनच्
ु छे द 191 (2)]” शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के स्थान पर,
“(अनच्
ु छे द 102 (2))” कोष्ठक, शब्द और अंक रखे जाएँगे;

(ख) पैरा 1 के खंड (क) में , “या ककसी राज्य की, यथाक्स्थतत, ववधान सभा या ववधान-मंडल का
कोई सदन” शब्दों का लोप ककया जाएगा;

(ग) पैरा 2 में ,-

(i) उपपैरा 1 में , स्पष्टीकरण के खंड (ख) के उपखंड (2) में ,”यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 99 या
अनच्
ु छे द 188” शब्दों और अंकों के स्थान पर, “अनच्
ु छे द 99” शब्द और अंक रखे जाएँगे;

341
(ii) उपपैरा (3) में , “यथाक्स्थतत, अनच्
ु छे द 99 या अनच्
ु छे द 188” शब्दों और अंकों के स्थान पर,
“अनच्
ु छे द 99” शब्द और अंक रखे जाएँगे;

(iii) उपपैरा (4) में , संववधान (बावनवाँ संशोधन) अधधतनयम, 1985 के प्रारं भ के प्रतत तनदे श का
यह अथत लगाया जाएगा कक वह संववधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) संशोधन आदे श, 1989 के प्रारं भ
के प्रतत तनदे श है ;

(घ) पैरा 5 में , “अथवा ककसी राज्य की ववधान पररषद् के सभापतत या उपसभापतत अथवा ककसी
राज्य की ववधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष” शब्दों का लोप ककया जाएगा;

(ङ) पैरा 6 के उपपैरा (2) में , “यथाक्स्थतत, अनच्


ु छे द 122 के अथत में संसद् की कायतवाहहयाँ हैं या
अनच्
ु छे द 212 के अथत में राज्य के ववधान-मंडल की कायतवाहहयाँ हैं” शब्दों और अंकों के स्थान पर
“अनच्
ु छे द 122 के अथत में संसद् की कायतवाहहयाँ है ” शब्द और अंक रखे जाएँगे;

(च) पैरा 8 के उपपैरा (3) में , “यथाक्स्थतत, अनच्


ु छे द 105 या अनच्
ु छे द 194” शब्दों और अंकों के
स्थान पर, “अनच्
ु छे द 105” शब्द और अंक रखे जाएँग;े

पररलशष्ट्ट 3

संविधान (चिालीसिााँ संशोधन) अधधननयम, 1978 से उद्धरण

* * * * * *

1. संक्षक्षप्त नाम और प्रारं भ- (1) * * * *

342
(2) यह उस तारीख को प्रवर्त्
ृ होगा जो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधधसच
ू ना द्वारा, तनयत करे
और इस अधधतनयम के ववलभन्न उपबंधों के ललए वव तारीखें तनयत की जा सकेंगी।
* * * * * * *
3. अनच्
ु छे द 22 का संशोधन- संववधान के अनच्
ु छे द 22 में ,-
(क) खंड (4) के स्थान पर तनम्नललणखत खंड रखा जाएगा, अथातत ् :-
‘(4) तनवारक तनरोध का उपबंध करने वाली कोई ववधध ककसी व्यक्क्त का दो मास से अधधक की
अवधध के ललए तनरुद्ध ककया जाना प्राधधकृत नही करे गी जब तक कक समधु चत उच्च न्यायालय के मख्
ु य
न्यायमतू तत की लसफाररश के अनस
ु ार गहठत सलाहकार बोडत ने उक्त दो मास की अवधध की समाक्प्त से
पहले यह प्रततवेदन नहीं हदया है कक उसकी राय में ऐसे तनरोध के ललए पयातप्त कारण है :
परं तु सलाहकार बोडत एक अध्यक्ष और कम से कम दो अन्य सदस्यों से लमलकर बनेगा और
अध्यक्ष समधु चत उच्च न्यायालय का सेवारत न्यायाधीश होगा और अन्य सदस्य ककसी उच्च न्यायालय
के सेवारत या सेवातनवर्त्
ृ न्यायाधीश होंगे :
परं तु यह और कक इस खंह की कोई बात ककसी व्यक्क्त का उस अधधकतम अवधध के ललए
तनरुद्ध ककया जाना प्राधधकृत नहीं करे गी जो खंड (7) के उपखंड (क) के अधीन संसद् द्वारा बनाई गई
ववधध द्वारा ववहहत की जाए।
स्पष्ट्टीकरण- इस खंड में , “समधु चत उच्च न्यायालय” से अलभप्रेत है -
(ii) भारत सरकार या उस सरकार के अधीनस्थ ककसी अधधकारी या प्राधधकारी द्वारा ककए गए
तनरोध आदे श के अनस
ु रण में तनरुद्ध व्यक्क्त की दशा में , हदल्ली संघ राज्यक्षेत्र के ललए
उच्च न्यायालय;
(iiii) (संघ राज्यक्षेत्र से लभन्न) ककसी राज्य सरकार द्वारा ककए गए तनरोध आदे श के अनस
ु रण
में तनरुद्ध व्यक्क्त की दशा में , उस राज्य के ललए उच्च न्यायालय; और
(iiiiii) ककसी संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के अधीनस्थ ककसी अधधकारी या
प्राधधकारी द्वारा ककए गए तनरोध आदे श के अनस
ु रण में तनरुद्ध व्यक्क्त की दशा में वह
उच्च न्यायालय जो संसद् द्वारा इस तनलमर्त् बनाई गई ववधध द्वारा या उसके अधीन
ववतनहदतष्ट ककया जाए।';
(ख) खंड (7) में ,-
(ii) उपखंड (क) का लोप ककया जाएगा;
(iiii) उपखंड (ख) को उपखंड (क) के रूप में पन
ु ःअक्षरांककत ककया जाएगा; और
(iiiiii) उपखंड (ग) को उपखंड (ख) के रूप में पन
ु ःअक्षरांककत ककया जाएगा और इस प्रकार
पन
ु ःअक्षरांककत उपखंड में “खंड (4) के उपखंड (क)” शब्दों, कोष्ठकों, अंक और अक्षर के
स्थान पर “खंड (4)” शब्द, कोष्ठक और अंक रखे जाएँगे।

343
उच्च न्यायालय:अधधकाररता और अिस्थापन *
क्र नाम िषम स्थापना राज्य/क्षेत्रीय अधधकाररता मूल स्थान खण्डपीठ
िषम
1 बम्बई 1862 महाराष्र, गोवा, दादर और मुम्बई नागपुर, पणजी,
नागर हवेली तथा दमन व औरं गाबाद
दीप
2 कलकर्त्ा 1862 पक्श्चम बंगाल, अंडमान कलकर्त्ा पोटत ब्लेयर
और तनकोबार द्वीप समूह

3 मद्रास 1862 तलमलनाडु, पाक्ण्डचेरी चेन्नई मदरु ई

344
4 इलाहबाद 1866 उर्त्रप्रदे श इलाहाबाद लखनऊ
5 कनातटक 1884 कनातटक बंगलौर हुबली-धारवाड
और गुलबगत में
सककतट बेंच

6 पटना 1916 त्रबहार पटना -


श्रीनगर,

7 जम्मू- कश्मीर 1928 जम्मू- कश्मीर जम्मू -


8 गुवाहाटी 1948 असम, नागलैंड, लमजोरम गुवाहाटी कोहहमा,आइजोल
और अरुणाचल प्रदे श तथा ईटानगर

9 ओडडसा 1948 ओडडसा कटक -


10 राजस्थान 1949 राजस्थान जोधपुर जयपुर

11 आंध्रप्रदे श 1954 आंध्रप्रदे श है दराबाद -


12 मध्यप्रदे श 1956 मध्यप्रदे श जबलपुर
इंदौर, ग्वाललयर

13 केरल 1958 केरल, लक्षद्वीप अनातकुलम -


14 गुजरात 1960 गुजरात अहमदाबाद -
15 हदल्ली 1966 हदल्ली हदल्ली -
16 हहमाचल प्रदे श 1971 हहमाचल प्रदे श लशमला -
17 पंजाब और 1975 पंजाब, हररयाणा चंडीगढ़ -

हररयाणा

18 लसक्क्कम 1975 लसक्क्कम गंगटोक -


19 छर्त्ीसगढ़ 2000 छर्त्ीसगढ़ त्रबलासपुर -
20 उर्त्राखंड 2000 उर्त्राखंड नैनीताल -
21 झारखंड 2000 झारखंड राँची -
22 त्रत्रपुरा 2013 त्रत्रपुरा अगरतला -
23 मेघालय 2013 मेघालय लशलांग -
24 मणणपरु 2013 मणणपरु इम्फाल -

345
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
पहला 18 जून, 19514 15,19,85,87,174,341,342,372,376 31क,31ख - - 9 वी -
(1951)
दस
ू रा 1 मई, 1953 81 - - - - -
(1952)
तीसरा 22 फरवरी, - - - - - 7 वीं
(1954) 1955

चौथा (1955) 27 अप्रैल,1955 31,31क - 305 - - 9 वीं


पाँचवां 24 3 - - - - -
हदसंबर,1955
(1995)
छटवाँ 11 269,286 - - - - 7 वीं
लसतम्बर,1956
(1956)
सातवाँ 19 1,3,16,31क,58,66,72,73,101, 258क,290क,350क,350ख,372क,378क, 81,82,170, 240,243,259,278,306, - 1 ली, 2री,
अक्टूबर,1956 220,232,239, 379 से 391
(1956) 112,131,143,151,152,153,158, 4थी, 5वी,
240,264,298,
168,171,214,216,217,219,222,
371, और 8वी
239,241,244,246,254,255,267,
268,269,270,280,283,291,299,
204,308,309,310,311,314,316,
317,318,320,323,324,330,332,
333,337,339,341,342,348,356,
361,362,366,367,368

346
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
आठवाँ 5 जनबरी, 334 - - - - -

(1959) 1960

नौवाँ 28 हदसंबर, - - - - - 1 ली
(1960) 1960
दसवाँ 16 अगस्त 240 - - - - 1 ली
(1961) ,1961

ग्यारहवाँ 19 हदसंबर, 66 , 71 - - - - -

(1962) 1961

बारहरवाँ 27 माचत, 240 - - - - 1 ली


(1962) 1962

तेरहवाँ 28 हदसंबर, - - - - 371 क -

(1962) 1962

चौदहवाँ 28 हदसंबर, 81,240 239 क - - - 1 ली एंव 4


(1962) 1962 थी

पंद्रहवाँ 5 अक्टूबर, 124 ,128 ,217 ,222 ,224 , 226 , 297 224 क - - - 7 वी
,311 , 316
(1963) 1963

सोलहवाँ 5अक्टूबर, 19 ,84 ,173 - - - - 3 री


(1963) 1963

347
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
सत्रहवाँ 20 जून,1964 31 क - - - - 9 वी
(1964)
अठारहवाँ 27 अगस्त, 3 - - - - -

(1966) 1966

उन्नीसवाँ 11 हदसंबर, 324 - - - - -

(1966) 1966

बीसवाँ 22 हदसंबर, - 233 क - - - -

(1966) 1966

इक्कीसवाँ 10 अप्रैल - - - - - 8 वीं


(1967) ,1967

बाईसवाँ 25 लसतम्बर, 275 244 क,371ख - - - -

(1969) 1969

तेईसवाँ 23 जनवरी, 330 ,332 ,333 , 334 - - - - -

(1969) 1970

चौबीसवाँ 5 नवंवर, 13, 368 - - - - -

(1971) 1971

पच्चीसवाँ 20 अप्रैल, 31 31 ग - - - -

(1971) 1972

348
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
छब्बीसवाँ 28 हदसंबर, 366 363 क - 291 और 362 - -

(1971) 1971

सर्त्ाईसवाँ 30 हदसंबर, 239 क,240 239 क,371 ग - - - -

(1971) 1971

अठ्ठाइवाँ 27 अगस्त - 312 क - 314 - -

(1972) ,1972

उनतीसवाँ 9 जन
ू , 1972 - - - - - 9 वीं
(1972)
तीसवाँ 22 फरवरी, 133 - - - - -

(1972) 1973

इकतीसवाँ 17 अक्टूबर, 81 ,330 ,332 - - - - -

(1973) 1973

बर्त्ीसवाँ 3 मई, 1974 371 371 घ,371 ड. - - - 7 वीं


(1973)
तैतीसवाँ 19 मई, 1974 101 ,190 - - - - -

(1974)

चौतीसवाँ 7 लसतंबर, - - - - - 9 वीं


(1974) 1974

349
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
पैतीसवाँ 2 फरबरी,1975 80, 81 2क - - 10 वीं -

(1974)
छतीसवाँ 16 मई,1975 81, 81 371 घ - 2क - 1ली,4थी,10
(1975) वीं
सैंतीसवाँ 3 मई,1975 - 239 क,240 - - - -

(1975)
अडतीसवाँ 1 अगस्त,1975 123, 213 ,239 ख,352 ,356 ,359 ,360 - - - - -

(1975)
उनचालीसवाँ 10 अगस्त, 239 329क 71 - - 9 वीं
(1975) 1975

चालीसवाँ 27 मई,1976 - - 297 - - 9 वीं


(1976)
इकतालीसवाँ 7 लसतंबर,1976 316 - - - - -

(1976)

350
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
बयालीसवाँ 18 31 ग 31,31घ,32क,39क,43क,48क,51क,131 103 ,150 - - 7 वीं
हदसंबर,1976 ,192 ,226
(1976) ,39,55,74,77,81,82,83,100,102,105, क,139क,144क,226क,228क,257क,323
118, 145, 166, 170, 172, 189, 191,
क,323ख
194, 208, 217, 225, 227,228, 311
,312, 330, 352, 353 ,356 ,357, 358,
359, 366, 368 ,371 च
ततरताललसवाँ 13 अप्रैल,1978 145 ,226 ,228 ,366 - - 31घ,32क,131क,144क, - -

(1977) 226 क,228क


चवालीसवाँ 30 अप्रैल,1979 19 ,22 ,30 ,31 , 31 ,38, 74 ,77, 83 134 क,300 क,361 क 71, 103 ,192 30, 31 ,257 क, 329 क - 9 वीं
,105 ,123 ,132, 133 ,134 ,139 , 150,
(1978)
166 ,172 ,194 ,213 ,217, 225 ,
पैतालीसवाँ 14 अप्रैल,1980 334 - - - - -

(1980)
तछयालीसवाँ 2 फरवरी,1983 269, 286 ,366 - - - - 7 वीं
(1982)
सैंतालीसवाँ 26 - - - - - 9 वीं
अगस्त,1984
(1984)
अड़तालीसवाँ 26 356 - - - - -
लसतंबर,1984
(1984)

351
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
उनचासवाँ 11 244 - - - - 5 वीं, 6 वीं
लसतंबर,1984
(1984)
पचासवाँ 11 - - 13 - - -
लसतंबर,1984
(1984)
इक्कावनवाँ 29 अप्रैल,1985 330 ,332 - - - - -

(1981)
बावनवां 15 101 ,102 ,190 ,191 - - - 10 वीं -
फरवरी,1985
(1985)
ततरे पनवां 14 - 371छ - - - -
अगस्त,1986
(1986)
चौवनवाँ 14 माचत,1987 125 ,221 - - - - 2 री
(1986)
पचपनवाँ 23 - 371ज - - - -
हदसंबर,1986
(1986)
छप्पनवाँ 23 मई,1987 - 371झ - - - -

(1987)

सर्त्ावनवाँ 15 - अनच्
ु छे द 332के खण्ड 3क - - - -
लसतंबर,1987
(1987)

352
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
अट्ठावनवाँ 9 हदसंबर,1987 - 394क - - - -

(1987)
उनसठवाँ 30 माचत,1988 356 359क - - - -

(1988)
साठवाँ 20 हदसम्बर, 276 - - - - -

(1988) 1988

इकसठवाँ 28 माचत, 326 - - - - -

(1988) 1989

बासठवाँ 25 जनवरी, 334 - - - - -

(1989) 1990

ततरे सठवाँ 6 जनवरी, 356 - - 359क - -

(1989) 1990

चौसठवाँ 16 अप्रैल, 356 - - - - -

(1990) 1990

पैसठवाँ 7 जून , 1990 338 - - - - -

(1990)

तछयासठवाँ 7 जन
ू , 1990 - - - - - 9 वीं
(1990)

353
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
सडसठवाँ 4 अक्टूबर, 356 - - - - -

(1990) 1990

अड़सठवाँ 12 माचत,1991 356 - - - - -

(1991)
उनहर्त्रवाँ 21 हदसंबर, - 239 कक, 239 कख - - - -

(1991) 1991

सर्त्रवाँ 12 अगस्त, 54 ,239कक - - - - -

(1992) 1992

इकहर्त्रवाँ 31 अगस्त, - - - - - -

(1992) 1992

बहर्त्रवाँ 4 हदसंबर, 332 - - - - 8 वीं


(1992) 1992

ततहर्त्रवाँ 20 अप्रैल, 280 243 ,243 क से 243 ण - - 11 वीं -

(1992) 1993

चौहतरवाँ 20 अप्रैल,1993 280 243 त से 243 य तक 243 यक से - - 12 वीं -

(1992) 243 यछ तक

पचहर्त्रवाँ 5 फरवरी,1994 323ख - - - - -

354
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
(1993)

तछयोर्त्रवाँ 31 अगस्त, - - - - - 9 वीं


(1994) 1994

सतहर्त्रवाँ 17 जन
ू ,1955 16 - - - - -

(1995)
अठहर्त्रवाँ 30 अगस्त, - - - - - 9वीं
(1995) 1995

उन्यासीवाँ 21 जनवरी, 334 - - - - -

(1999) 2000

अस्सीवाँ 9 जून, 2000 269 - 270 272 - -

(2000)
इक्यासीवाँ 9 जन
ू , 2000 16 - - - - -

(2000)
बयालीवाँ 8 लसतंबर, 335 - - - - -

(2000) 2000

ततरासीवाँ 8 लसतंबर, 243ड - - - - -

(2000) 2000

355
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
चौरासीवाँ 21 55 ,81 ,82 ,170 ,330 ,332 - - - - -
फरवरी,2002
(2001)
पाचासीवाँ 4 जनवरी,2002 16 - -

(2001)
तछयासीवाँ* 12 लसतंबर, 51-क 21क 45 - -

(2002) 2002

सर्त्ासीवाँ 22 जन
ू ,2003 81 ,82 ,170, 330 - -

(2003)
अट्ठासीवाँ 15 जनवरी, 270 268क - - 7 वीं
(2003) 2004

नवासीवाँ 28 लसतंबर, 338 338क - -

(2003) 2003

नब्बेवाँ 28 लसतंबर, 332 - -

(2003) 2003

इक्यानवेवाँ 1 जनवरी, 75 ,164 361ख - - 10 वीं


(2003) 2004

बयानवेवाँ 7 जनवरी, - - - 8 वीं


(2003) 2004

356
संसोधन अनुमनत संशोधधत अनुच्छे द अंत:स्थावपत अनुच्छे द प्रनतस्थावपत लोवपत अनुच्छे द अनुसूची संशोधधत
क्र./िषम र्दनांक अनच्
ु छे द (जोड़ी गई ) /प्रनतस्थावपत
अनुसूची
ततरानवेवाँ 20 जनवरी, 15 - -

(2005) 2006

चौरानवेवाँ 12 जून,2006 164 - -

(2006)
वपंचानवेवाँ 18 जनवरी, 334 - -

(2009) 2010

तछयानवेवाँ 23 लसतंबर, - - - 8 वीं


(2011) 2011

सर्त्ानवेवाँ 12 जनवरी, 19 43ख,243यज- 243यन - - भाग 9 ख


(2011) 2012 अंत:स्थावपत
98 वाँ 1 जनवरी, - 371ञ - -

(2012) 2013

*
1 अप्रैल 2010 से प्रवर्त्
ृ में आया

357
भारतीय संविधान के विदे शी स्त्रोत सारणी -3
क्र. स्त्रोत त्य
1 अमेररका 1.हम भारत के लोग (प्रस्तावना के शब्द)

2.मूल अधधकार
3. न्यातयक पुनरावलोकन

4. ‘कानून का समान संरक्षण’ शब्द


5.उपराष्रपतत का पदे न सभापतत होना
6.जनहहत मुकदमे का आरं भ

2 पूवस
त ोववयत संघ 1.मूल कततव्य
/इटली 2. पंचवषीय की अवधारणा

3 आयरलैंड 1. नीतत तनदे शक तत्व


2.संसदीय प्रणाली पर एक तनवातधचत राष्रपतत
3. मंत्रत्रपररषद् की सलाह पर राष्रपतत के कृत्य
4.राज्य ववधानमण्डलों द्वारा आनुपाततक प्रतततनधधत्व के आधार पर राज्य सभा
के सदस्यों का तनवातचन |
5.राज्य सभा में कला, समाज सेवा, साहहत्य, ववज्ञान के आधार पर 12 सदस्यों का
मनोनयन |

4 आस्रे ललया 1. समवती सूची


2.प्रस्तावना की ववलशष्ट भाषा

5 कनाडा 1.संघीय व्यवस्था


2. सातवीं अनुसूची की सूधचयाँ
3. केन्द्र राज्य संबंध
4.अवलशष्ट शक्क्तयाँ (संसद् के पास)
5.राज्यपाल द्वारा राष्रपतत के ववचाराथत ववधेयक सरु क्षक्षत रखने का प्रावधान
(अनुच्छे द 201 )
6. राष्रपतत द्वारा राज्यपाल की तनयुक्क्त और राज्यपाल का राष्रपतत के
प्रसादपयतन्त पद धारण|

6 त्रब्रटे न 1. संसदीय व्यवस्था


2. ववधध के समक्ष समानता
3. ववधध का शासन
4. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाए जाने की प्रकक्रया
5. राष्रपतत द्वारा अलभभाषण

7 जमतनी आपात उपबंध

358
8 दक्षक्षण अफ्ीका संववधान संशोधन पर प्रकक्रया

9 जापान ववधध द्वारा स्थावपत प्रकक्रया

10 फ़्ांस गणतंत्र

11 क्स्वटजरलैण्ड सामाक्जक नीततयों के संदभत में तनदे शक तत्व

भारतीय स्त्रोत

1 नेहरू ररपोटत -
2 1935 ई. का भारतीय
शासन अधधतनयम, -

359

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