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मातंगी साधना
मातंगी साधना
अक्षय तृतीया पर्व निकट ही है। बहुत कम लोगों को यह ज्ञात हैं कि वैशाख शुक्ल
तृतीया अथवा अक्षय तृतीया के दिन ”मातंगी जयन्ती” होती है और वैशाख पूर्णिमा को
”मातंगी सिद्धि दिवस” होता है। आप सभी को अक्षय तृतीया पर्व की ढेर सारी हार्दिक
शुभकामनाएँ।
वर्तमान युग में मानव जीवन के प्रारम्भिक पड़ाव से अन्तिम पड़ाव तक भौतिक
आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है। व्यक्ति जब तक भौतिक जीवन का
पूर्णता से निर्वाह नहीं कर लेता है, तब तक उसके मन में आसक्ति का भाव रहता ही है और
जब इन इच्छाओं की पूर्ति होगी, तभी वह आध्यात्मिकता के क्षेत्र में उन्नति कर सकता है।
मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है, जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए
आध्यात्म की ऊँ चाइयों को छू सकते हैं।
माँ मातंगी आदि सरस्वती है, जिस पर माँ मातंगी की कृ पा होती है, उसे स्वतः
ही सम्पूर्ण वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है, उसकी वाणी में दिव्यता आ
जाती है, फिर साधक को मन्त्र एवं साधना याद करने की जरुरत नहीं रहती, उसके मुख से
स्वतः ही धाराप्रवाह मन्त्र उच्चारण होने लगता है।
माँ मातंगी को उच्छिष्ट चाण्डालिनी भी कहते हैं, इस रूप में माँ साधक के
समस्त शत्रुओं एवं विघ्नों का नाश करती है, फिर साधक के जीवन में ग्रह या अन्य बाधा का
कोई असर नहीं होता। जिसे संसार में सब ठु करा देते हैं, जिसे संसार में कहीं पर भी आसरा
नहीं मिलता, उसे माँ उच्छिष्ट चाण्डालिनी अपनाती है और साधक को वह शक्ति प्रदान करती
है, जिससे ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा साधक के सामने तुच्छ-सी नजर आती है।
सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहिनकर पश्चिम दिशा
की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठ जाए। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा ले।
इस साधना में माँ मातंगी का चित्र, यन्त्र और लाल मूँगा माला का महत्व बताया गया है,
परन्तु सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताँबे की प्लेट में स्वास्तिक बनाए और उस पर एक
सुपारी स्थापित कर दे और उसे ही यन्त्र मानकर स्थापित कर दे। आपके पास मातंगी का
चित्र ना हो तो आप ''माताजी'' का ही मातंगी स्वरुप में पूजन करे, माताजी तो स्वयं ही
''जगदम्बा'' है और माला के विषय में स्फटिक माला, लाल हकीक माला, मूँगा माला, रुद्राक्ष
माला में से किसी भी माला का उपयोग हो सकता है।
इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हूं"
मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और
सफलता के लिए प्रार्थना करे।
फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और "ॐ हूं भ्रं हूं मतंग
भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान मतंग भैरवजी से साधना की
निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।
इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। साधक
दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि “मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज
से श्री मातंगी साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक
५१ माला मन्त्र जाप करूँ गा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की
सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।”
इसके बाद साधक भगवती मातंगी का सामान्य पूजन करे। कु मकु म, अक्षत, पुष्प
आदि से पूजा करके कोई भी मिष्ठान्न भोग में अर्पित करे।
विनियोग :-----
ॐ अस्य मन्त्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिः विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं
बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास :-----
करन्यास :-----
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः। (दोनों तर्जनी उं गलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उं गलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उं गलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उं गलियों को स्पर्श
करें)
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उं गलियों को स्पर्श
करें)
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)
हृदयादिन्यास :-----
ॐ ह्रां हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं कवचाय हूं। (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्। (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)
ध्यान :-----
इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक निम्न मन्त्र का ५१ माला जाप करे -----
मन्त्र :-----------
यह साधना दिखने में ही साधारण हो सकती है, परन्तु यह मन्त्र साधना अत्यन्त तीव्र
है। मातंगी महाविद्या साधना विश्व की सर्वश्रेष्ठ साधना है, जो साधक के दुर्भाग्य को भी
बदलकर उसे भाग्यवान बना देती है। आज तक इस साधना में किसी को असफलता नहीं
मिली है। मन्त्र जाप के पश्चात मातंगी कवच का एक पाठ अवश्य ही करे।
मातंगी कवच
श्रीदेव्युवाच
विनियोगः-----
मूल कवच
फलश्रुति
मन्त्र जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर माँ भगवती मातंगी को
ही समर्पित कर दें।
इस तरह यह साधना सम्पन्न होती है। कु छ दिनों में ही आप साधना का प्रभाव स्वयं
अनुभव करने लग जाएंगे। तो देर किस बात की, साधना करे तथा जीवन को पूर्णता प्रदान
करे।
आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती मातंगी का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं
सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।