Shanivar Vrat Katha

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शनिवार

व्रत कथा

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एक सभम स्वगगरोक भें 'सफसे फड़ा कौन?' के प्रश्न ऩय
नौ ग्रहों भें वाद-वववाद हो गमा। वववाद इतना फढ़ा कक
ऩयस्ऩय बमॊकय मुद्ध की स्स्ितत फन गई। तनर्गम के लरए
सबी दे वता दे वयाज इॊद्र के ऩास ऩहुॉचे औय फोरे- 'हे
दे वयाज! आऩको तनर्गम कयना होगा कक हभभें से सफसे
फड़ा कौन है ?' दे वताओॊ का प्रश्न सुनकय दे वयाज इॊद्र
उरझन भें ऩड़ गए।
इॊद्र फोरे- 'भैं इस प्रश्न का उत्तय दे ने भें असभिग हॉ। हभ
सबी ऩथ्
ृ वीरोक भें उज्जतमनी नगयी भें याजा
ववक्रभाददत्म के ऩास चरते हैं।
दे वयाज इॊद्र सदहत सबी ग्रह (दे वता) उज्जतमनी नगयी
ऩहुॉच।े भहर भें ऩहुॉचकय जफ दे वताओॊ ने उनसे अऩना
प्रश्न ऩछा तो याजा ववक्रभाददत्म बी कुछ दे य के लरए
ऩये शान हो उठे क्मोंकक सबी दे वता अऩनी-अऩनी
शस्क्तमों के कायर् भहान िे। ककसी को बी छोटा मा फड़ा
कह दे ने से उनके क्रोध के प्रकोऩ से बमॊकय हातन ऩहुॉच
सकती िी।

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अचानक याजा ववक्रभाददत्म को एक उऩाम सझा औय
उन्होंने ववलबन्न धातुओ-ॊ स्वर्ग, यजत (चाॉदी), काॊसा,
ताम्र (ताॊफा), सीसा, याॊगा, जस्ता, अभ्रक व रोहे के नौ
आसन फनवाए। धातओ
ु ॊ के गर्
ु ों के अनस
ु ाय सबी आसनों
को एक-दसये के ऩीछे यखवाकय उन्होंने दे वताओॊ को
अऩने-अऩने लसॊहासन ऩय फैठने को कहा।
दे वताओॊ के फैठने के फाद याजा ववक्रभाददत्म ने कहा-
'आऩका तनर्गम तो स्वमॊ हो गमा। जो सफसे ऩहरे
लसॊहासन ऩय ववयाजभान है , वहीॊ सफसे फड़ा है ।'
याजा ववक्रभाददत्म के तनर्गम को सुनकय शतन दे वता ने
सफसे ऩीछे आसन ऩय फैठने के कायर् अऩने को छोटा
जानकय क्रोधधत होकय कहा- 'याजा ववक्रभाददत्म! तभ
ु ने
भझ
ु े सफसे ऩीछे फैठाकय भेया अऩभान ककमा है । तभ
ु भेयी
शस्क्तमों से ऩरयधचत नहीॊ हो। भैं तम्
ु हाया सवगनाश कय
दॉ गा।'
शतन ने कहा- 'समग एक यालश ऩय एक भहीने, चॊद्रभा सवा
दो ददन, भॊगर डेढ़ भहीने, फुध औय शुक्र एक भहीने,
वह
ृ स्ऩतत तेयह भहीने यहते हैं, रेककन भैं ककसी यालश ऩय
साढ़े सात वषग (साढ़े साती) तक यहता हॉ। फड़े-फड़े
दे वताओॊ को भैंने अऩने प्रकोऩ से ऩीड़ड़त ककमा है ।

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याभ को साढ़े साती के कायर् ही वन भें जाकय यहना ऩड़ा
औय यावर् को साढ़े साती के कायर् ही मुद्ध भें भत्ृ मु का
लशकाय फनना ऩड़ा। याजा! अफ त बी भेये प्रकोऩ से नहीॊ
फच सकेगा।'
इसके फाद अन्म ग्रहों के दे वता तो प्रसन्नता के साि चरे
गए, ऩयॊ तु शतनदे व फड़े क्रोध के साि वहाॉ से ववदा हुए।
याजा ववक्रभाददत्म ऩहरे की तयह ही न्माम कयते यहे ।
उनके याज्म भें सबी स्री-ऩुरुष फहुत आनॊद से जीवन-
माऩन कय यहे िे। कुछ ददन ऐसे ही फीत गए। उधय शतन
दे वता अऩने अऩभान को बरे नहीॊ िे।
ववक्रभाददत्म से फदरा रेने के लरए एक ददन शतनदे व ने
घोड़े के व्माऩायी का रूऩ धायर् ककमा औय फहुत से घोड़ों
के साि उज्जतमनी नगयी ऩहुॉच।े याजा ववक्रभाददत्म ने
याज्म भें ककसी घोड़े के व्माऩायी के आने का सभाचाय
सन
ु ा तो अऩने अश्वऩार को कुछ घोड़े खयीदने के लरए
बेजा।
घोड़े फहुत कीभती िे। अश्वऩार ने जफ वाऩस रौटकय
इस सॊफॊध भें फतामा तो याजा ववक्रभाददत्म ने स्वमॊ
आकय एक सुॊदय व शस्क्तशारी घोड़े को ऩसॊद ककमा।
घोड़े की चार दे खने के लरए याजा उस घोड़े ऩय सवाय हुए

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तो वह घोड़ा बफजरी की गतत से दौड़ ऩड़ा। तेजी से दौड़ता
घोड़ा याजा को दय एक जॊगर भें रे गमा औय कपय याजा
को वहाॉ धगयाकय जॊगर भें कहीॊ गामफ हो गमा। याजा
अऩने नगय को रौटने के लरए जॊगर भें बटकने रगा।
रेककन उन्हें रौटने का कोई यास्ता नहीॊ लभरा। याजा को
बख-प्मास रग आई। फहुत घभने ऩय उसे एक चयवाहा
लभरा।
याजा ने उससे ऩानी भाॉगा। ऩानी ऩीकय याजा ने उस
चयवाहे को अऩनी अॉगठी दे दी। कपय उससे यास्ता ऩछकय
वह जॊगर से तनकरकय ऩास के नगय भें ऩहुॉचा।
याजा ने एक सेठ की दक
ु ान ऩय फैठकय कुछ दे य आयाभ
ककमा। उस सेठ ने याजा से फातचीत की तो याजा ने उसे
फतामा कक भैं उज्जतमनी नगयी से आमा हॉ। याजा के कुछ
दे य दक
ु ान ऩय फैठने से सेठजी की फहुत बफक्री हुई।
सेठ ने याजा को फहुत बाग्मवान सभझा औय खुश होकय
उसे अऩने घय बोजन के लरए रे गमा। सेठ के घय भें
सोने का एक हाय खट
ॉ ी ऩय रटका हुआ िा। याजा को उस
कभये भें छोड़कय सेठ कुछ दे य के लरए फाहय गमा। तबी
एक आश्चमगजनक घटना घटी। याजा के दे खते-दे खते
सोने के उस हाय को खट
ॉ ी तनगर गई।

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सेठ ने कभये भें रौटकय हाय को गामफ दे खा तो चोयी का
सॊदेह याजा ऩय ही ककमा क्मोंकक उस कभये भें याजा ही
अकेरा फैठा िा। सेठ ने अऩने नौकयों से कहा कक इस
ऩयदे सी को यस्स्समों से फाॉधकय नगय के याजा के ऩास रे
चरो।
याजा ने ववक्रभाददत्म से हाय के फाये भें ऩछा तो उसने
फतामा कक उसके दे खते ही दे खते खट
ॉ ी ने हाय को तनगर
लरमा िा। इस ऩय याजा ने क्रोधधत होकय चोयी कयने के
अऩयाध भें ववक्रभाददत्म के हाि-ऩाॉव काटने का आदे श दे
ददमा। याजा ववक्रभाददत्म के हाि-ऩाॉव काटकय उसे नगय
की सड़क ऩय छोड़ ददमा गमा।
कुछ ददन फाद एक तेरी उसे उठाकय अऩने घय रे गमा
औय उसे अऩने कोल्ह ऩय फैठा ददमा। याजा आवाज दे कय
फैरों को हाॉकता यहता। इस तयह तेरी का फैर चरता यहा
औय याजा को बोजन लभरता यहा। शतन के प्रकोऩ की
साढ़े साती ऩयी होने ऩय वषाग ऋतु प्रायॊ ब हुई।
याजा ववक्रभाददत्म एक यात भेघ भल्हाय गा यहा िा कक
तबी नगय के याजा की रड़की याजकुभायी भोदहनी यि ऩय
सवाय उस तेरी के घय के ऩास से गुजयी। उसने भेघ
भल्हाय सुना तो उसे फहुत अच्छा रगा औय दासी को

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बेजकय गाने वारे को फुरा राने को कहा। दासी ने
रौटकय याजकुभायी को अऩॊग याजा के फाये भें सफ कुछ
फता ददमा। याजकुभायी उसके भेघ भल्हाय से फहुत भोदहत
हुई। अत् उसने सफ कुछ जानकय बी अऩॊग याजा से
वववाह कयने का तनश्चम कय लरमा।
याजकुभायी ने अऩने भाता-वऩता से जफ मह फात कही तो
वे है यान यह गए। यानी ने भोदहनी को सभझामा- 'फेटी!
तेये बाग्म भें तो ककसी याजा की यानी होना लरखा है ।
कपय त उस अऩॊग से वववाह कयके अऩने ऩाॉव ऩय कुल्हाड़ी
क्मों भाय यही है ?'
याजकुभायी ने अऩनी स्जद नहीॊ छोड़ी। अऩनी स्जद ऩयी
कयाने के लरए उसने बोजन कयना छोड़ ददमा औय प्रार्
त्माग दे ने का तनश्चम कय लरमा।
आखखय याजा-यानी को वववश होकय अऩॊग ववक्रभाददत्म
से याजकुभायी का वववाह कयना ऩड़ा। वववाह के फाद याजा
ववक्रभाददत्म औय याजकुभायी तेरी के घय भें यहने रगे।
उसी यात स्वप्न भें शतनदे व ने याजा से कहा- 'याजा तुभने
भेया प्रकोऩ दे ख लरमा।
भैंने तुम्हें अऩने अऩभान का दॊ ड ददमा है ।' याजा ने
शतनदे व से ऺभा कयने को कहा औय प्रािगना की- 'हे

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शतनदे व! आऩने स्जतना द्ु ख भुझे ददमा है , अन्म ककसी
को न दे ना।‘
शतनदे व ने कुछ सोचकय कहा- 'याजा! भैं तम्
ु हायी प्रािगना
स्वीकाय कयता हॉ। जो कोई स्री-ऩरु
ु ष भेयी ऩजा कये गा,
शतनवाय को व्रत कयके भेयी व्रतकिा सन
ु ेगा, उस ऩय भेयी
अनुकम्ऩा फनी यहे गी।
प्रात्कार याजा ववक्रभाददत्म की नीॊद खुरी तो अऩने
हाि-ऩाॉव दे खकय याजा को फहुत खुशी हुई। उसने भन ही
भन शतनदे व को प्रर्ाभ ककमा। याजकुभायी बी याजा के
हाि-ऩाॉव सही-सराभत दे खकय आश्चमग भें डफ गई।
तफ याजा ववक्रभाददत्म ने अऩना ऩरयचम दे ते हुए शतनदे व
के प्रकोऩ की सायी कहानी सन
ु ाई।
सेठ को जफ इस फात का ऩता चरा तो दौड़ता हुआ तेरी
के घय ऩहुॉचा औय याजा के चयर्ों भें धगयकय ऺभा भाॉगने
रगा। याजा ने उसे ऺभा कय ददमा क्मोंकक मह सफ तो
शतनदे व के प्रकोऩ के कायर् हुआ िा।
सेठ याजा को अऩने घय रे गमा औय उसे बोजन कयामा।
बोजन कयते सभम वहाॉ एक आश्चमगजनक घटना घटी।
सफके दे खते-दे खते उस खट
ॉ ी ने हाय उगर ददमा। सेठजी
ने अऩनी फेटी का वववाह बी याजा के साि कय ददमा औय

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फहुत से स्वर्ग-आबषर्, धन आदद दे कय याजा को ववदा
ककमा।
याजा ववक्रभाददत्म याजकुभायी भोदहनी औय सेठ की फेटी
के साि उज्जतमनी ऩहुॉचे तो नगयवालसमों ने हषग से
उनका स्वागत ककमा। अगरे ददन याजा ववक्रभाददत्म ने
ऩये याज्म भें घोषर्ा कयाई कक शतनदे व सफ दे वों भें
सवगश्रेष्ठ हैं। प्रत्मेक स्री-ऩुरुष शतनवाय को उनका व्रत
कयें औय व्रतकिा अवश्म सुनें।
याजा ववक्रभाददत्म की घोषर्ा से शतनदे व फहुत प्रसन्न
हुए। शतनवाय का व्रत कयने औय व्रत किा सुनने के
कायर् सबी रोगों की भनोकाभनाएॉ शतनदे व की
अनक
ु म्ऩा से ऩयी होने रगीॊ। सबी रोग आनॊदऩवगक यहने
रगे।

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मह ऩजा व व्रत शतनदे व को प्रसन्न कयने हे तु की जाती
है । कारा ततर, तेर, कारा वस्र, कारी उड़द शतन दे व
को अत्मॊत वप्रम है । इस ददन शतनस्रोत का ऩाठ कयना
चादहए। शतनवाय का व्रत मॊ तो आऩ वषग के ककसी बी
शतनवाय के ददन शरू
ु कय सकते हैं ऩयॊ तु श्रावर् भास भें
शतनवाय का व्रत प्रायम्ब कयना अतत भॊगरकायी है । इस
व्रत का ऩारन कयने वारे को शतनवाय के ददन प्रात:
ब्रह्भ भुहतग भें स्नान कयके शतनदे व की प्रततभा की ववधध
सदहत ऩजन कयनी चादहए। शतन बक्तों को इस ददन
शतन भॊददय भें जाकय शतन दे व को नीरे राजवन्ती का
पर, ततर, तेर, गुड़ अऩगर् कयना चादहए। शतन दे व के
नाभ से दीऩोत्सगग कयना चादहए।
शतनवाय के ददन शतनदे व की ऩजा के ऩश्चात उनसे अऩने
अऩयाधों एवॊ जाने अनजाने जो बी आऩसे ऩाऩ कभग हुआ
हो उसके लरए ऺभा माचना कयनी चादहए।शतन भहायाज
की ऩजा के ऩश्चात याहु औय केतु की ऩजा बी कयनी
चादहए। इस ददन शतन बक्तों को ऩीऩर भें जर दे ना
चादहए औय ऩीऩर भें सर फाॊधकय सात फाय ऩरयक्रभा

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कयनी चादहए। शतनवाय के ददन बक्तों को शतन भहायाज
के नाभ से व्रत यखना चादहए।

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