Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 1

धमम की तरह अर्म भी भारतीय सभ्यता का मल है । मनुष्य जब तक अर्ममुक्त नहीं हो

जाता तब तक उसको मोक्ष प्रातत नहीं हो सकता। जजस तरह आत्मा के शलए मोक्ष जरूरी
होता है , मन के शलए काम की जरूरत होती है , बद्
ु धध के शलए धमम की जरूरत होती है , उसी
तरह शरीर के शलए अर्म की जरूरत होती है।

इसशलए भारतीय ववचारकों ने बहुत ही सावधानी से वववेचन ककया है । मनु के


मतानुसार सभी पववत्रताओं में अर्म की पववत्रता को सबसे अच्छा माना गया है । मनु ने अर्म
संग्रह के शलए कहा है कक जजस व्यापार में जीवों को त्रबककुल भी दख
ु न पहुंचे या र्ोडा सा
दख
ु पहुंचे उसी कायम व्यापार से गुजारा करना चाहहए।

अपने शरीर को ककसी तरह की परे शानी पहुंचाए त्रबना ध्यान-मनन उपायों द्वारा शसफम
गुजारे के शलए अर्म संग्रह करना चाहहए। जो भी परमात्मा ने हदया है उसी में संतोष कर लेना
चाहहए। इसी प्रकार परी जजंदगी काम करते रहने से मोक्ष की प्राजतत होती है। इसके अलावा
और कोई सा उपाय संभव नहीं है।

वेदों, उपतनषदों के अलावा आचायों ने अपने द्वारा रधचयत शास्त्रों में अर्म से संबंधी जो
भी ज्ञान बोध कराए हैं उनका सारांश यही तनकलता है कक मुमुक्षु को संसार से उतने ही भोग्य
पदार्ों को लेना चाहहए जजतने के लेने से ककसी भी प्राणी को दख
ु न पहुंचे।

धमम और अर्म की तरह काम को भी हहंद सभ्यता का आधार माना गया है । धमम और
अर्म की तरह इसको भी मोक्ष का ही सहायक माना जाता है । अगर काम को काब तर्ा
मयामहदत न ककया जाए तो अर्म कभी मयामहदत नहीं हो सकता तर्ा त्रबना अर्म मयामदा के मोक्ष
प्रातत नहीं होगा। इसी कारण से भारत के आचायों ने काम के बारे में बहुत ही गंभीरता से
ववचार ककया है।

दतु नया के ककसी भी ग्रंर् में आज तक अर्मशुद्धध के मल आधार-काम-पर उतनी


गंभीरता से नहीं सोचा गया है जजतना कक भारतीय ग्रंर् में हुआ है ।

भारतीय ववचारकों नें काम और अर्म को एक ही जानकर ववचार ककया है लेककन


भारतीय आचायों नें जजस तरह शरीर और मन को अलग रखकर ववचार ककया है उसी तरह
शरीर से संबंधधत अर्म को और मन से संबंधधत काम को एक-दसरे से अलग मानकर ववचार
ककया है।

काम एक महती मन की ताकत है। भौततक कायों में प्रकि होकर यह ताकत
अन्तिःकरण की कियाओं द्वारा अशभव्यक्त होकर 2 भागों में बंि जाती है। यह ताकत कभी

You might also like