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वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में-1-5
वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में-1-5
जाता तब तक उसको मोक्ष प्रातत नहीं हो सकता। जजस तरह आत्मा के शलए मोक्ष जरूरी
होता है , मन के शलए काम की जरूरत होती है , बद्
ु धध के शलए धमम की जरूरत होती है , उसी
तरह शरीर के शलए अर्म की जरूरत होती है।
अपने शरीर को ककसी तरह की परे शानी पहुंचाए त्रबना ध्यान-मनन उपायों द्वारा शसफम
गुजारे के शलए अर्म संग्रह करना चाहहए। जो भी परमात्मा ने हदया है उसी में संतोष कर लेना
चाहहए। इसी प्रकार परी जजंदगी काम करते रहने से मोक्ष की प्राजतत होती है। इसके अलावा
और कोई सा उपाय संभव नहीं है।
वेदों, उपतनषदों के अलावा आचायों ने अपने द्वारा रधचयत शास्त्रों में अर्म से संबंधी जो
भी ज्ञान बोध कराए हैं उनका सारांश यही तनकलता है कक मुमुक्षु को संसार से उतने ही भोग्य
पदार्ों को लेना चाहहए जजतने के लेने से ककसी भी प्राणी को दख
ु न पहुंचे।
धमम और अर्म की तरह काम को भी हहंद सभ्यता का आधार माना गया है । धमम और
अर्म की तरह इसको भी मोक्ष का ही सहायक माना जाता है । अगर काम को काब तर्ा
मयामहदत न ककया जाए तो अर्म कभी मयामहदत नहीं हो सकता तर्ा त्रबना अर्म मयामदा के मोक्ष
प्रातत नहीं होगा। इसी कारण से भारत के आचायों ने काम के बारे में बहुत ही गंभीरता से
ववचार ककया है।
काम एक महती मन की ताकत है। भौततक कायों में प्रकि होकर यह ताकत
अन्तिःकरण की कियाओं द्वारा अशभव्यक्त होकर 2 भागों में बंि जाती है। यह ताकत कभी